• If you are trying to reset your account password then don't forget to check spam folder in your mailbox. Also Mark it as "not spam" or you won't be able to click on the link.

Incest हवेली by The_Vampire (Completed)

Studxyz

Well-Known Member
2,933
16,286
158
ज़िंदगी के रंग हैं ये.......... दिल को छू लेते हैं......... कभी जोड़कर तो कभी..... तोड़कर
वैम्पायर भाई और फौजी भाई दोनों की कहानियों में एक समानता है.............
हवस जिस्म की हावी होती है, दर्द दिल में होता है..........
दोनों ही दिल तोड़ते हैं, बेरहमी से और....... उसे जायज भी ठहराते हैं

अब क्या कहें........
हम भी मजबूर हैं...... और ये भी मजबूर हैं........
दर्द ही इनके पास है, दर्द ही हमारे पास हैं..........
ना ये कुछ और लिखना चाहते हैं........... ना हम कुछ और पढ़ना चाहते हैं

तभी तो इनकी कहानियां आकषक होती है दिल से लिखी गई होती हैं

पर इस कहानी में तो कोई कबीर, अंजू वंजु, नंदिनी, चम्पा भी नही जिन्हे कोस कर भड़ास निकल ले :D
 

kamdev99008

FoX - Federation of Xossipians
8,586
34,726
219
तभी तो इनकी कहानियां आकषक होती है दिल से लिखी गई होती हैं

पर इस कहानी में तो कोई कबीर, अंजू वंजु, नंदिनी, चम्पा भी नही जिन्हे कोस कर भड़ास निकल ले :D
तभी तो वैम्पायर भाई यादगार हैं........... वैसे अप शौर्य सिंह, उनकी पत्नी, उनके बेटों और परिस्थितियों को दोषी मानकर गालियां दे सकते हैं
लेकिन वास्तव में ये कहानी रूपाली की है...........और सब पीछे छूट गए.............
 

HalfbludPrince

मैं बादल हूं आवारा
12,375
86,173
259
तभी तो इनकी कहानियां आकषक होती है दिल से लिखी गई होती हैं

पर इस कहानी में तो कोई कबीर, अंजू वंजु, नंदिनी, चम्पा भी नही जिन्हे कोस कर भड़ास निकल ले :D

तभी तो वैम्पायर भाई यादगार हैं........... वैसे अप शौर्य सिंह, उनकी पत्नी, उनके बेटों और परिस्थितियों को दोषी मानकर गालियां दे सकते हैं
लेकिन वास्तव में ये कहानी रूपाली की है...........और सब पीछे छूट गए.............
इस कहानी से मुझे इतना लगाव है कि क्या ही कहे ❤️ मैंने तभी सोच लिया था कि हवेली खरीदनी है
 

HalfbludPrince

मैं बादल हूं आवारा
12,375
86,173
259
ज़िंदगी के रंग हैं ये.......... दिल को छू लेते हैं......... कभी जोड़कर तो कभी..... तोड़कर
वैम्पायर भाई और फौजी भाई दोनों की कहानियों में एक समानता है.............
हवस जिस्म की हावी होती है, दर्द दिल में होता है..........
दोनों ही दिल तोड़ते हैं, बेरहमी से और....... उसे जायज भी ठहराते हैं

अब क्या कहें........
हम भी मजबूर हैं...... और ये भी मजबूर हैं........
दर्द ही इनके पास है, दर्द ही हमारे पास हैं..........
ना ये कुछ और लिखना चाहते हैं........... ना हम कुछ और पढ़ना चाहते हैं
एक दिलकश हसीना मिली थी किसी मोड़ पर कह गयी थी कि ये दिल बना ही इसलिए है कि इसे बार बार तोड़ा जा सके
 

kamdev99008

FoX - Federation of Xossipians
8,586
34,726
219
हवेली ..5



रूपाली लगभग आधी नंगी शीशे के सामने खड़ी बाल बना रही थी. वो शायद अभी नहाके निकली थी और जिस्म पर सिर्फ़ एक ब्रा और पेटिकोट था. लंबे गीले बॉल उसके पेटिकोट को भी गीला कर रहे थे जो भीग कर उसकी गांड से चिपक गया था. एक पल के लिए वो शरम के मारे दरवाज़े से हट गया और अपने कमरे की तरफ चल पड़ा पर फिर पलटा और दरवाज़े से झाँकने लगा. उसने अपनी ज़िंदगी में कितनी औरतों को नंगी देखा था ये गिनती उसे भी याद नही थी पर रूपाली जैसी कोई भी नही थी. गोरा मखमल जैसा जिस्म, मोटापे का कहीं कोई निशान नही, लंबे बॉल, पतली कमर और गोल उठी हुई गांद. इस नज़ारे ने जैसे उसकी जान निकल दी. वो एक अय्याश आदमी था और भाभी है तो क्या, चूत तो आख़िर चूत ही होती है ऐसी उसकी सोच थी. वो औरो के चक्कर में जाने किस किस रंडी के यहाँ पड़ा रहता था और उसे अब अपनी बेवकूफी पे मलाल हो रहा था. घर में ऐसा माल और वो बाहर के धक्के खाए? नही ऐसा नही होगा.

रूपाली जानती थी के पिछे दरवाज़े पे खड़ा तेज उसे देख रहा था. शीशे के एक तरफ वो उसके चेहरे की झलक देख सकती थी. उसने बड़ी धीरे धीरे अपने गीले बॉल सुखाए ताकि उसका देवर एक लंबे वक़्त तक उसे देख सके. वो जानबूझ कर अपनी गांड को थोड़ा आगे पिछे करती और उसकी वो हरकत तेज की क्या हालत कर रही थी ये भी उसे नज़र आ रहा था. थोड़ी देर बाद उसने अपना ब्लाउस उठाया और पहनते हुए बाथरूम की तरफ चली गयी. कपड़े पहेन कर जब वो वापिस आई तो तेज भी दरवाज़े पे नही था. उसने अपने कपड़े ठीक किए और दरवाज़ा खोलकर बाहर निकली.

बाहर निकलकर रूपाली ने एक नज़र तेज के कमरे की तरफ डाली. दरवाज़ा बंद था. उसने एक लंबी साँस ली और सीढ़ियाँ उतरकर बड़े कमरे में आई. उसके ससुर कहीं बाहर जाने को तैय्यार हो रहे थे.

“भूषण आ गया क्या?” शौर्य ने पुचछा “जी नही. तेज आए हैं” रूपाली सिर झुकाके बोली “आ गया अय्याश” कहते हुए शौर्य ने एक नज़र रूपाली पे डाली. अभी यही औरत जो घूँघट में खड़ी है थोड़ी देर पहले उन्हें नहला रही थी. थोड़ी देर पहले इसकी दोनो छातियाँ उनके चेहरे के सामने आधी नंगी लटक रही थी सोचकर ही शौर्य सिंह के बदन में वासना की लहर दौड़ उठी. अब उनकी नज़र में जो उनके सामने खड़ी थी वो उनकी बहू नही एक जवान औरत थी.

“मैं ज़रा बाहर जा रहा हूँ. शाम तक लौट आउन्गा. भूषण आए तो उसे मेरे कपड़े धोने के लिए दे देना.” कहते हुए शौर्य सिंह बाहर निकल गये रूपाली उन्हें जाता देखकर मुस्कुरा उठी. ये सॉफ था के वो नशे में नही थे. और उसे याद भी नही था के आखरी बार शौर्य सिंह ने हवेली से बाहर कदम भी कब रखा था.

यही सोचती हुई वो शौर्य सिंह के कमरे में पहुँची और चीज़ें उठाकर अपनी जगह पे रखने लगी. गंदे कपड़े समेटकर एक तरफ रखे. एक नज़र बाथरूम की तरफ पड़ी तो शरम से आँखें झुक गयी. यहीं थोड़ी देर पहले वो अपने ससुर के सामने आधी नंगी हो गयी थी. अभी वो इन ख्यालों में ही थी के कार स्टार्ट होने की आवाज़ आई. वो लगभग भागती हुई बाहर आई तो देखा के तेज कार लेके फिर निकल गया था.

“फिर निकल गये अययाशी करने.” जाती हुई कार को देखके रूपाली ने सोचा.

ससुर का कमरा सॉफ करके वो किचन में पहुँची. खाना बनाया और खाने ही वाली थी के याद आया के उसने भूषण को कहा था के उसका व्रत है. वो बाहर आके उसका इंतेज़ार करने लगी और थोड़ी ही देर में भूषण लौट आया. “लो बहू. आपकी पूजा का पूरा समान ले आया.” कहते हुए भूषण ने समान उसके सामने रख दिया.

रूपाली ने व्रत खोलने का ड्रामा किया और खाना ख़ाके अपने कमरे में आ गयी. दोपहर का सूरज आसमान से जैसे आग उगल रहा था. इस साल बारिश की एक बूँद तक नही गिरी थी. वो सुबह की जागी हुई थी. बिस्तर पे लेटी ही थी के आँख लग गयी ओर अपने अतीत के मीठे सपने मैं खो गयी पुरुषोत्तम के एक हाथ में रूपाली की सारी का पल्लू था जो वो अपनी और खींच रहा था. दूसरी तरफ से रूपाली अपनी सारी को उतारने से बचने के लिए पूरा ज़ोर लगा रही थी और पुरुषोत्तम से दूर भाग रही थी.

“छ्चोड़ दीजिए ना. मुझे पूजा करनी है” उसने पुरुषोत्तम से कहा.

“पहले प्रेम पूजा फिर काम दूजा” कहते हुए पुरुषोत्तम ने उसकी सारी को ज़ोर का झटका दिया. रूपाली ने अपने दोनो हाथों से कसकर सारी को थाम रखा था जिसका नतीजा ये हुए के वो एक झटके में पुरुषोत्तम की बाहों में आ गयी.

“उस भगवान का सोचती रहती हो हमेशा. पति भी तो परमेश्वर होता है. हमें खुश करने का धर्म भी तो निभाया करो” पुरषोत्तम ने उसे देखके मुस्कुराते हुए कहा.

“आपको इसके अलावा कुच्छ सूझता है क्या” रूपाली पुरुषोत्तम के हाथ को रोकने की कोशिश कर रही थी जो उसके पेट से सरक कर उसकी सारी पेटिकोट से बाहर खींचने की कोशिश कर रहा था.

“तुम्हारी जैसी बीवी जब सामने हो तो कुच्छ और सूझ सकता है भला” कहते हुए पुरुषोत्तम ने अपने एक हाथ उसके पेटिकोट में घुसाया और सारी बाहर खींच दी.

रूपाली ने सारी को दोनो हाथों से पकड़ लिया जिसकी वजह से वो पूरी तरह से पुरषोत्तम के रहमो करम पे आ गयी. पुरोशोत्तम ने आगे झुक कर अपने होंठ उसके होंठो पे रख दिया और दूसरा हाथ कमर से नीचे होता हुआ उसकी गांद पे आ गया.

रूपाली ने दोनो हाथ पुरुषोत्तम के सीने पे रख उसे पिछे धकेलने की कोशिश की. इस चक्कर में उसकी सारी उसकी हाथ से छूट गयी और खुली होने की वजह से उसके पैरों में जा गिरी. अब वो सिर्फ़ ब्लाउस और पेटिकोट में रह गयी थी. पुरुषोत्तम ने उसे ज़ोर से पकड़ा और अपने साथ चिपका लिया. उसका लंड पेटिकोट के उपेर से ठीक रूपाली की चूत से जा टकराया. दूसरा हाथ गांद पे दबाव डाल रहा था जिससे चूत और लंड आपस में दबे जा रहे थे.

“छ्चोड़ दीजिए ना” रूपाली ने कहा “नही जान. बोलो चोद दीजिए ना” पुरूहोत्तम ने कहा और रूपाली शरम से दोहरी हो गयी.

“हे भगवान. एक तो आपकी ज़ुबान. जाने क्या क्या बोलते हैं” कहते हुए रूपाली ने पूरा ज़ोर लगाया और पुरुषोत्तम की गिरफ़्त से आज़ाद हो गयी. छूट कर वो पलटी ही थी के पुरुषोत्तम ने उसे फिर से पकड़ लिया और सामने धकेलते हुए दीवार से लगा दिया. रूपाली दीवार से जा चिपकी और उसकी दोनो चुचियाँ दीवार से दब गयी. पुरुषोत्तम पिछे से फिर रूपाली से चिपक गया और उसके गले को चूमना लगा. नीचे से उसका लंड रूपाली की गांद पे दब रहा था और उसका एक हाथ घूमकर रूपाली की एक छाति को पकड़ चुका था.

“रेप करोगे क्या” रूपाली ने पुचछा जिसके जवाब में पुरुषोत्तम ने उसकी छाति को मसलना शुरू कर दिया.
उसका लंड अकड़ कर पत्थर की तरह सख़्त हो गया था ये रूपाली महसूस कर रही थी. उसके लंड का दबाव रूपाली की गांद पे बढ़ता जराहा था और एक हाथ दोनो चुचियों का आटा गूँध रहा था.

“ओह रूपाली. आज गांद मरवा लो ना” पुरुषोत्तम ने धीरे से उसके कान में कहा.

“बिल्कुल नही” रूपाली ने ज़रा नाराज़गी भरी आवाज़ में कहा “ और अपनी ज़ुबान ज़रा संभालिए”
पुरुषोत्तम का दूसरा हाथ उसका पेटिकोट उपेर की तरफ खींच रहा था. रूपाली को उसने इस तरह से दीवार के साथ दबा रखा था के वो चाहकर भी कुच्छ ना कर पा रही थी. थोड़ी ही देर में पेटी कोट कमर तक आ गयी और उसकी गांद पर सिर्फ़ एक पॅंटी रह गयी. वो भी अगले ही पल सरक कर नीचे हो गयी और पुरुषोत्तम का हाथ उसकी नंगी गांद को सहलाने लगा.

रूपाली की समझ में नही आ रहा था के वो क्या करे. वो चाहकर हिल भी नही पा रही थी. वो अभी नहाकर पूजा करने के लिए तैय्यार हो ही रही थी के ये सब शुरू हो गया. अब दोबारा नहाना पड़ेगा ये सोचकर उसे थोड़ा गुस्सा भी आ रहा था.

तभी उसे अपनी गांद पे पुरुषोत्तम का नंगा लंड महसूस हुआ. उसे पता ही ना चला के उसने कब अपनी पेंट नीचे सरका दी थी और लंड को उसकी गांद पे रगड़ने लगा था.

“थोड़ा झुक जाओ” पुरुषोत्तम ने कहा और उसकी कमर पे हल्का सा दबाव डाला. रूपाली ने झुकने से इनकार किया तो वो फिर उसके कान में बोला.

“भूलो मत के लंड के सामने तुम्हारी गांद है. अगर नही झुकी तो ये सीधा गांद में ही जाएगा. सोच लो”
रूपाली ना चाहते हुए भी आधे मॅन के साथ झुकने लगी.

“रूपाली, रूपाली” बाहर दरवाज़े पे से उसकी सास सरिता देवी की आवाज़ आ रही थी.

“बेटा पूजा का वक़्त हो गया है. दरवाज़ा खोलो” रूपाली सीधी खड़ी हो गयी और कपड़े ठीक करने लगी. पुरुषोत्तम तो कबका पिछे हटके पेंट फिर उपेर खींच चुक्का था. चेहरे पे झल्लाहट के निशान सॉफ दिख रहे थे जिसे देखकर रूपाली की हसी छूट पड़ी.

“बहू” दरवाज़े फिर से खटकाया गया और फिर से आवाज़ आई “बहू” और इसके साथ ही रूपाली के नींद खुल गयी. बाहर खड़ा भूषण उसे आवाज़ दे रहा था.

______________________________
 

kamdev99008

FoX - Federation of Xossipians
8,586
34,726
219
एक दिलकश हसीना मिली थी किसी मोड़ पर कह गयी थी कि ये दिल बना ही इसलिए है कि इसे बार बार तोड़ा जा सके
टूटता भी तो नहीं है कमबख्त.......... फिर से जुड़ जाता है, किसी और हसीना से..........
वक़्त, हालात और लोग बदलते रहते हैं, किनारे के नज़ारों की तरह ........... लेकिन नियति, वो तो एक दरिया की तरह सबकुछ बहाकर ले जाती है, अपनी मंजिल की ओर

आशिक़ी, सब्र, तलब और तमन्ना बेताब............................
 

Riky007

उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
17,119
33,917
259
हवेली ..5



रूपाली लगभग आधी नंगी शीशे के सामने खड़ी बाल बना रही थी. वो शायद अभी नहाके निकली थी और जिस्म पर सिर्फ़ एक ब्रा और पेटिकोट था. लंबे गीले बॉल उसके पेटिकोट को भी गीला कर रहे थे जो भीग कर उसकी गांड से चिपक गया था. एक पल के लिए वो शरम के मारे दरवाज़े से हट गया और अपने कमरे की तरफ चल पड़ा पर फिर पलटा और दरवाज़े से झाँकने लगा. उसने अपनी ज़िंदगी में कितनी औरतों को नंगी देखा था ये गिनती उसे भी याद नही थी पर रूपाली जैसी कोई भी नही थी. गोरा मखमल जैसा जिस्म, मोटापे का कहीं कोई निशान नही, लंबे बॉल, पतली कमर और गोल उठी हुई गांद. इस नज़ारे ने जैसे उसकी जान निकल दी. वो एक अय्याश आदमी था और भाभी है तो क्या, चूत तो आख़िर चूत ही होती है ऐसी उसकी सोच थी. वो औरो के चक्कर में जाने किस किस रंडी के यहाँ पड़ा रहता था और उसे अब अपनी बेवकूफी पे मलाल हो रहा था. घर में ऐसा माल और वो बाहर के धक्के खाए? नही ऐसा नही होगा.

रूपाली जानती थी के पिछे दरवाज़े पे खड़ा तेज उसे देख रहा था. शीशे के एक तरफ वो उसके चेहरे की झलक देख सकती थी. उसने बड़ी धीरे धीरे अपने गीले बॉल सुखाए ताकि उसका देवर एक लंबे वक़्त तक उसे देख सके. वो जानबूझ कर अपनी गांड को थोड़ा आगे पिछे करती और उसकी वो हरकत तेज की क्या हालत कर रही थी ये भी उसे नज़र आ रहा था. थोड़ी देर बाद उसने अपना ब्लाउस उठाया और पहनते हुए बाथरूम की तरफ चली गयी. कपड़े पहेन कर जब वो वापिस आई तो तेज भी दरवाज़े पे नही था. उसने अपने कपड़े ठीक किए और दरवाज़ा खोलकर बाहर निकली.

बाहर निकलकर रूपाली ने एक नज़र तेज के कमरे की तरफ डाली. दरवाज़ा बंद था. उसने एक लंबी साँस ली और सीढ़ियाँ उतरकर बड़े कमरे में आई. उसके ससुर कहीं बाहर जाने को तैय्यार हो रहे थे.

“भूषण आ गया क्या?” शौर्य ने पुचछा “जी नही. तेज आए हैं” रूपाली सिर झुकाके बोली “आ गया अय्याश” कहते हुए शौर्य ने एक नज़र रूपाली पे डाली. अभी यही औरत जो घूँघट में खड़ी है थोड़ी देर पहले उन्हें नहला रही थी. थोड़ी देर पहले इसकी दोनो छातियाँ उनके चेहरे के सामने आधी नंगी लटक रही थी सोचकर ही शौर्य सिंह के बदन में वासना की लहर दौड़ उठी. अब उनकी नज़र में जो उनके सामने खड़ी थी वो उनकी बहू नही एक जवान औरत थी.

“मैं ज़रा बाहर जा रहा हूँ. शाम तक लौट आउन्गा. भूषण आए तो उसे मेरे कपड़े धोने के लिए दे देना.” कहते हुए शौर्य सिंह बाहर निकल गये रूपाली उन्हें जाता देखकर मुस्कुरा उठी. ये सॉफ था के वो नशे में नही थे. और उसे याद भी नही था के आखरी बार शौर्य सिंह ने हवेली से बाहर कदम भी कब रखा था.

यही सोचती हुई वो शौर्य सिंह के कमरे में पहुँची और चीज़ें उठाकर अपनी जगह पे रखने लगी. गंदे कपड़े समेटकर एक तरफ रखे. एक नज़र बाथरूम की तरफ पड़ी तो शरम से आँखें झुक गयी. यहीं थोड़ी देर पहले वो अपने ससुर के सामने आधी नंगी हो गयी थी. अभी वो इन ख्यालों में ही थी के कार स्टार्ट होने की आवाज़ आई. वो लगभग भागती हुई बाहर आई तो देखा के तेज कार लेके फिर निकल गया था.

“फिर निकल गये अययाशी करने.” जाती हुई कार को देखके रूपाली ने सोचा.

ससुर का कमरा सॉफ करके वो किचन में पहुँची. खाना बनाया और खाने ही वाली थी के याद आया के उसने भूषण को कहा था के उसका व्रत है. वो बाहर आके उसका इंतेज़ार करने लगी और थोड़ी ही देर में भूषण लौट आया. “लो बहू. आपकी पूजा का पूरा समान ले आया.” कहते हुए भूषण ने समान उसके सामने रख दिया.

रूपाली ने व्रत खोलने का ड्रामा किया और खाना ख़ाके अपने कमरे में आ गयी. दोपहर का सूरज आसमान से जैसे आग उगल रहा था. इस साल बारिश की एक बूँद तक नही गिरी थी. वो सुबह की जागी हुई थी. बिस्तर पे लेटी ही थी के आँख लग गयी ओर अपने अतीत के मीठे सपने मैं खो गयी पुरुषोत्तम के एक हाथ में रूपाली की सारी का पल्लू था जो वो अपनी और खींच रहा था. दूसरी तरफ से रूपाली अपनी सारी को उतारने से बचने के लिए पूरा ज़ोर लगा रही थी और पुरुषोत्तम से दूर भाग रही थी.

“छ्चोड़ दीजिए ना. मुझे पूजा करनी है” उसने पुरुषोत्तम से कहा.

“पहले प्रेम पूजा फिर काम दूजा” कहते हुए पुरुषोत्तम ने उसकी सारी को ज़ोर का झटका दिया. रूपाली ने अपने दोनो हाथों से कसकर सारी को थाम रखा था जिसका नतीजा ये हुए के वो एक झटके में पुरुषोत्तम की बाहों में आ गयी.

“उस भगवान का सोचती रहती हो हमेशा. पति भी तो परमेश्वर होता है. हमें खुश करने का धर्म भी तो निभाया करो” पुरषोत्तम ने उसे देखके मुस्कुराते हुए कहा.

“आपको इसके अलावा कुच्छ सूझता है क्या” रूपाली पुरुषोत्तम के हाथ को रोकने की कोशिश कर रही थी जो उसके पेट से सरक कर उसकी सारी पेटिकोट से बाहर खींचने की कोशिश कर रहा था.

“तुम्हारी जैसी बीवी जब सामने हो तो कुच्छ और सूझ सकता है भला” कहते हुए पुरुषोत्तम ने अपने एक हाथ उसके पेटिकोट में घुसाया और सारी बाहर खींच दी.

रूपाली ने सारी को दोनो हाथों से पकड़ लिया जिसकी वजह से वो पूरी तरह से पुरषोत्तम के रहमो करम पे आ गयी. पुरोशोत्तम ने आगे झुक कर अपने होंठ उसके होंठो पे रख दिया और दूसरा हाथ कमर से नीचे होता हुआ उसकी गांद पे आ गया.

रूपाली ने दोनो हाथ पुरुषोत्तम के सीने पे रख उसे पिछे धकेलने की कोशिश की. इस चक्कर में उसकी सारी उसकी हाथ से छूट गयी और खुली होने की वजह से उसके पैरों में जा गिरी. अब वो सिर्फ़ ब्लाउस और पेटिकोट में रह गयी थी. पुरुषोत्तम ने उसे ज़ोर से पकड़ा और अपने साथ चिपका लिया. उसका लंड पेटिकोट के उपेर से ठीक रूपाली की चूत से जा टकराया. दूसरा हाथ गांद पे दबाव डाल रहा था जिससे चूत और लंड आपस में दबे जा रहे थे.

“छ्चोड़ दीजिए ना” रूपाली ने कहा “नही जान. बोलो चोद दीजिए ना” पुरूहोत्तम ने कहा और रूपाली शरम से दोहरी हो गयी.

“हे भगवान. एक तो आपकी ज़ुबान. जाने क्या क्या बोलते हैं” कहते हुए रूपाली ने पूरा ज़ोर लगाया और पुरुषोत्तम की गिरफ़्त से आज़ाद हो गयी. छूट कर वो पलटी ही थी के पुरुषोत्तम ने उसे फिर से पकड़ लिया और सामने धकेलते हुए दीवार से लगा दिया. रूपाली दीवार से जा चिपकी और उसकी दोनो चुचियाँ दीवार से दब गयी. पुरुषोत्तम पिछे से फिर रूपाली से चिपक गया और उसके गले को चूमना लगा. नीचे से उसका लंड रूपाली की गांद पे दब रहा था और उसका एक हाथ घूमकर रूपाली की एक छाति को पकड़ चुका था.

“रेप करोगे क्या” रूपाली ने पुचछा जिसके जवाब में पुरुषोत्तम ने उसकी छाति को मसलना शुरू कर दिया.
उसका लंड अकड़ कर पत्थर की तरह सख़्त हो गया था ये रूपाली महसूस कर रही थी. उसके लंड का दबाव रूपाली की गांद पे बढ़ता जराहा था और एक हाथ दोनो चुचियों का आटा गूँध रहा था.

“ओह रूपाली. आज गांद मरवा लो ना” पुरुषोत्तम ने धीरे से उसके कान में कहा.

“बिल्कुल नही” रूपाली ने ज़रा नाराज़गी भरी आवाज़ में कहा “ और अपनी ज़ुबान ज़रा संभालिए”
पुरुषोत्तम का दूसरा हाथ उसका पेटिकोट उपेर की तरफ खींच रहा था. रूपाली को उसने इस तरह से दीवार के साथ दबा रखा था के वो चाहकर भी कुच्छ ना कर पा रही थी. थोड़ी ही देर में पेटी कोट कमर तक आ गयी और उसकी गांद पर सिर्फ़ एक पॅंटी रह गयी. वो भी अगले ही पल सरक कर नीचे हो गयी और पुरुषोत्तम का हाथ उसकी नंगी गांद को सहलाने लगा.

रूपाली की समझ में नही आ रहा था के वो क्या करे. वो चाहकर हिल भी नही पा रही थी. वो अभी नहाकर पूजा करने के लिए तैय्यार हो ही रही थी के ये सब शुरू हो गया. अब दोबारा नहाना पड़ेगा ये सोचकर उसे थोड़ा गुस्सा भी आ रहा था.

तभी उसे अपनी गांद पे पुरुषोत्तम का नंगा लंड महसूस हुआ. उसे पता ही ना चला के उसने कब अपनी पेंट नीचे सरका दी थी और लंड को उसकी गांद पे रगड़ने लगा था.

“थोड़ा झुक जाओ” पुरुषोत्तम ने कहा और उसकी कमर पे हल्का सा दबाव डाला. रूपाली ने झुकने से इनकार किया तो वो फिर उसके कान में बोला.

“भूलो मत के लंड के सामने तुम्हारी गांद है. अगर नही झुकी तो ये सीधा गांद में ही जाएगा. सोच लो”
रूपाली ना चाहते हुए भी आधे मॅन के साथ झुकने लगी.

“रूपाली, रूपाली” बाहर दरवाज़े पे से उसकी सास सरिता देवी की आवाज़ आ रही थी.

“बेटा पूजा का वक़्त हो गया है. दरवाज़ा खोलो” रूपाली सीधी खड़ी हो गयी और कपड़े ठीक करने लगी. पुरुषोत्तम तो कबका पिछे हटके पेंट फिर उपेर खींच चुक्का था. चेहरे पे झल्लाहट के निशान सॉफ दिख रहे थे जिसे देखकर रूपाली की हसी छूट पड़ी.

“बहू” दरवाज़े फिर से खटकाया गया और फिर से आवाज़ आई “बहू” और इसके साथ ही रूपाली के नींद खुल गयी. बाहर खड़ा भूषण उसे आवाज़ दे रहा था.


______________________________
फुल इरोटिका का मजा दे रही है दोनो बाप बेटों को।

देखते हैं आगे क्या होता है

हम लोग...
 
Top