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Adultery हवेली

Sanju@

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#1



आँख खुली तो बदन पसीने से भीगा था , मुह से निकली लार तकिये को भिगोये हुए थी. पास रखे रेडियो पर अभी भी कुमार सानु के गाने बज रहे थे. गानों में धुन कम सुर सुर की आवाज ज्यादा थी जो बता रही थी की सिग्नल ठीक नहीं है . बनियान पहनते हुए मैं उठा और पानी के धोरे की तरफ बढ़ गया . झुक कर मैंने हथेली भरी . पानी को होंठो से लगाया ठन्डे पानी ने लू चलती रात में करार दिया . वापिस से सोने जा ही रहा था की खेतो के दूसरी तरफ मुझे कुछ सुलगता सा दिखाई दिया. मैं उसी तरफ बढ़ा जाकर देखा तो लखन चोकीदार बीडी सुलगाये हुए था , पास में ही देसी का पव्वा रखा था जिसे अभी तक खोला नहीं गया था .

मैं- क्या लखन भाई, इतनी रात को यहाँ खेतो पर नींद नहीं आई क्या

लखन- नींद क्या हमारा तो चैन भी गया यार .

मैं- ऐसा क्या हो गया भाई

लखन- कल रात यार

मैं- क्या हुआ कल रात को

लखन ने पव्वा खोला और कडवे पानी से अपना गला तर किया .

लखन- कल सुबह जब मैं बैंक से चोकिदारी करके आया तो

मैं- तो क्या

लखन - देख तू मेरा अपना है इसलिए तुझे बता रहा हूँ वैसे बात तो बताने लायक नहीं है

लखन ने फिर से पव्वे को मुह से लगाया और इस बार लगभग आधे पव्वे को गटक गया .

लखन- कल मैं चोकिदारी छोड़ कर जल्दी ही घर आ गया . रात के करीब तीन बज रहे होंगे , मैंने देखा की मेरी बीवी पर कोई और चढ़ा हुआ है . दोनों नंगे ऊपर निचे हो रहे थे . लुगाई की दोनों टाँगे ऊपर उठी हुई थी और उसके हाथ आदमी की पीठ पर चल रहे थे .

लखन की ये बात सुनकर मेरे कान खड़े हो गये. मैंने तो चुदाई की बाते इधर उधार से ही सुनी थी , यहाँ पर तो एक पति खुद अपनी पत्नी की बेवफाई मुझे बता रहा था . थोडा अजीब भी लग रहा था पर चस्का सा जाग उठा .

मैं- तुझे गुस्सा न आया , लट्ठ उठा कर दो दो बार मारता और पूछता और उस आदमी की गांड तोड़ता .

लखन- ना तोड़ सकू भाई .

मैं- क्यों कौन था वो .

लखन- तुझे यकीन न होगा . तू ना मानेगा मेरी बात की मैं सच कह रहा हूँ

मैं- लखन तू भाई है अपना

लखन- जिन्दगी बर्बाद हो गयी यार.

इस बार लखन की आवाज टूटी सी लगी , दर्द था उसमे .

मैं- कौन था वो बता मैं साले की गांड तोड़ दूंगा . पर तूने तेरी लुगाई से सवाल ना किया , ना पूछा की के कमी रह गयी थी .

लखन ने बाकी बची दारु भी पी ली और रोने लगा . मेरे लिए अजीब हालात हो गए थे , अच्छा भला सो रहा था और अब ये चोकीदार पल्ले पड़ गया था .

मैं- रो मत यार . अच्छा एक काम करते है तुझे घर छोड़ आता हूँ सुबह फिर बात करेंगे चल मेरे साथ .

मैंने बैटरी और लट्ठ उठाया , लखन को साथ लेकर उसके घर पहुँच गया .

“किवाड़ खोल भाभी ” मैंने दरवाजे पर दस्तक दी.

“कौन आ मरा इतनी रात को ” अन्दर से किवाड़ खोलने के साथ ही ये आवाज आई .

मुझे देखते ही निर्मला थोडा होश में आई और बोली- माफ़ करना , गलती हो गयी ना मालूम था दरवाजे पर आप हो .

मैं- माफ़ी की जरुरत ना है भाभी .संभाल अपने पति को , ध्यान रखा कर इसका

मैंने कमरे में लखन को बिस्तर पर पटकते हुए कहा . नशे की वजह से उसने करवट ली और सो गया .

मैं- निर्मला भाभी, मैं ना जानता तू सही कर रही है या गलत . पर इसकी पीठ पीछे जो भी कर रही है न इसे मालुम हो चूका है . मैं न जानता जो तू कर रही है तेरी राजी से हैं नाराजी से हैं पर ये तेरा पति है जैसा है ठीक है ना लायक है पर तेरा पति है . मान कर इसका ये है तो तू है .

मैंने निर्मला को नजरो को झुकते हुए देखा .

मैं- नजरे न झुका, माफ़ी मांग लिए इस से इसकी नजरो में उठ .

कच्ची नींद उठ गया था तो आँखे भारी सी हो रही थी अब हिम्मत ना थी वापिस खेत में जाने की . मैने अपने कदम घर की तरफ बढ़ा दिए. आँगन में पड़ी चारपाई पर पड़ा और चद्दर तान ली . सुबह उठने का बिलकुल भी मन नही था पर बाप के तानो से ही मेरे दिन की शुरुआत होती थी .

“रे नालायक हमारी नहीं तो सूरज की ही शर्म कर लिया कर . दोपहर होने को आई तू अब तक सोये जा रहा है ” बाप ने पानी की बाल्टी मुझ पर फेंकी तो मैं उठा . इस घर में ऐसे नाटक रोज ही चलते थे , हमें लगता था की बाप हमारा दुश्मन है , बाप को लगता था की उसकी औलाद ना लायक है .

“चुनाव् सर पर आया हुआ है , लाट साहब की आवारगी ना थम रही , थोड़ी मेहनत कर ले. कल रात भी तू दारु बांटने ना गया ” बाप ने ताना मारा .

मैं- बापू , दारू नोटों से वोट न मिलते कब समझ आएगी ये बात . राज करे तो ऐसे करो की दुनिया दिल से चाहे, आगे सलाम और पीठ पीछे गाली बके ये तो ठीक ना है न .

बापू- रे नालायक , तू क्या जाने राज के चीज होवे है , राजे-महाराजो के ज़माने से हमारा परिवार इस गाँव पर मालिकाना हक़ रखता है , रियासते गए ,सरकारे बदली पर हम न बदले .

मैं जानता था बाप से बहस करने का कोई नतीजा नहीं है . मैं घर से निकल गया .

“फिर चला ना लायक आज शाम दारू बाँटने ना गया तो तेरी खैर नहीं ” बाप के ताने मेरे कानो में पड़े पर किसे परवाह थी . जब से होश संभाला था मैंने मेरे बाप को ही सरपंच देखा था , उस से पहले उसके बाप दादा थे, मेरा बाप ठाकुर रणबीर सिंह. दिन रात मुझमे कमिया निकालना मुझे कोसना पर मैं जानता था की प्यार भी बहुत करता है वो मुझसे, वर्ना जिस रणबीर सिंह की मर्जी के बिना पत्ता तक न हिल पाए गाँव में मैं उसकी बात कैसे काट सकता था . मेरे होश सँभालने के बाद ये दूसरा इलेक्शन था जिसमे वो दारू बाँट रहा था और मेरा मानना था की लोग अगर हमें दिल से अपना नेता मानते है तो फिर दारू, पैसो की क्या जरुरत हमें लोगो के दिल जीतने चाहिए, इलेक्शन लोग ही जीता देंगे.

क्रिकेट खेलते हुए प्यास के मारे बुरा हाल था ऊपर से गर्मियों की ढलती शाम , मैंने गेंद दुसरे खिलाड़ी को दी और पानी पीने के लिए कुंवे पर बनी टंकी की तरफ चल दिया. प्यास से गला इतना सूख गया था की मैंने ये ध्यान न दिया की टंकी पर किसका मटका रखा है मैंने उस आधे भरे मटके को अपने होंठो से लगाया और अपनी प्यास बुझाने लगा.


“हाथ लगाने से पहले देख तो लेता किसका मटका है, तेरी जुर्रत कैसे हुई इसे छूने की, गन्दा कर दिया न इसे ” मेरे कानो में किसी की आवाज आई और मैंने पलट कर देखा. ...............
ऐसा कौन हो सकता है जिसकी गांड़ लखन नही तोड़ सकता है अपनी बीवी को चुदती देखकर ।अब ये कोन है जो सरपंच के छोरे को इतना सुना दिया
 

Riky007

उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
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ASR

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HalfbludPrince मुसाफिर रोमांचक सफ़र शुरू.. किरदारों की रूपरेखा तैयार होती जा रही है 😍 🤔 💰... गाँव की इतनी सहजता से रूपांकन ये आपकी लेखनी का अद्भुत संगम स्थल है 😍.. 😍
एक बात तो है कि अर्जुन की अपनी ही अदा है उस पर अजित भी फिदा हैं चाहे ठाकुरों की सोच के विपरीत हो...
दिल जले की नायिका का भी झलक समारोहों आयोजित किया पूरे हुस्न शबाब की गर्मी के साथ...
अंत में 😊 रहस्य रोमांच का ताड़का रूपी वर्णन न हो तो मुसाफिर की यात्रा आगे कैसे बढ़ेगी.... 😍
अगले घटनाक्रम के इंतजार में 😊 💕 💖 💕
 

Riky007

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#2

पलट कर जो देखा बस देखता ही रह गया. ढलती शाम में डूबते सूरज की लाली में मैंने चाँद को देखा . नीला दुपट्टा, पीला सूट कानो में झुमके, हाथो में चांदी के कड़े, पांवो में मुरकी वाली जुतिया . उमस भरी गर्मी में ठंडी हवा का झोंका उतर सा गया सीने में .

“तेरी जुर्रत कैसे हुई मेरे मटके को छूने की , गन्दा कर दिया न इसे ” इस बार उसकी आवाज में तल्खी थोड़ी और बढ़ गयी थी .

मैं- प्यास लगी थी , पानी पिलाना तो धर्म होता है ,समझ ले थोडा पुन्य तेरे भाग में भी था .

“जुबान को लगाम दे ,देख कर बोल किसके सामने खड़ा है ” उसने अपनी आवाज ऊँची की .

मैं- रे लाडली, ऐसी बोली ठीक ना है . अगर मेरे छूने से तेरा मटका ख़राब हो गया तो जा कुम्हार से मेरा नाम ले दिए नया मटका दे देगा तुझे

“”तू मुझे खरीद कर देगा “ उसने कहा

मैंने एक नजर उसके झुमको पर डाली जो बड़ी नजाकत से उसके गाल चूम रहे थे .

मै- तो तू ही बता कैसे मानेगी तू. पानी तो मैंने पी लिया कहे तो मैं भर दू तेरा मटका

उसने मुझे घूर कर देखा और फिर उस मटके को धरती पर दे मारा. गुस्से में हसिनाये और भी हसीन लगती है ये मैंने उस लम्हे में महसूस किया . उफ्फ्फ इतना घमंड, इतना गुरुर भला किस चीज का .मैने गहरी मुस्कान से उसे देखा उसका चेहरा और लाल हो गया . उसने अपना हाथ उठाया मुझे मारने को मैंने कलाई पकड़ ली उसकी.

“ना लाडली ना, ऐसा मत करिए, गाँव में थोड़ी बहुत इज्जत तो मेरी भी है , रही तेरी बात मटके को तोड़ कर तूने बता दिया की क्या है तू, रही जुर्रत की बात तो गुस्ताखिया खून में दौड़ती है मेरी उड़ने को बेताब मेरा मन और ये खुला आसमान ,यहाँ से जाने के बाद याद तो आएगी तुझे मेरी , ” गोरी कलाई को मैंने जोर से मसला तो गुलाबी हो गयी . वो कसमसाई

मैं- तू जिस भी घर की है , वहां उजाला कर दिया होगा तूने . पर मेरी कही एक बात याद रखिये लोगो के दिल जीतना बड़ी बात होती है , ये तुनकमिजाजी तेरी अदा तो हो सकती है पर इसे स्वभाव मत बनाना कभी .

वो- हाथ छोड़ मेरा

मैं- अभी तो पकड़ा भी नहीं लाडली तू छोड़ने की बात करती है .

मैंने हँसते हुए उसकी कलाई छोड़ दी.

वो- देख लुंगी तुझे

मैं- खुशकिस्मती हमारी जो दुबारा दीदार होंगे आपके

गुस्से में तमतमाती हुई वो जाने लगी कुछ दूर जाकर वो मुड़ी और बोली- भूलूंगी नहीं मैं

मैं- अगर हमें भूल गयी तो क्या ख़ाक असर हुआ हमारा लाडली.

मैंने उसे जाते हुए देखा , मैंने सूरज को डूबते हुए देखा . जिस हाथ से से उसकी कलाई पकड़ी थी , उसे हलके से ना जाने क्यों चूम लिया मैंने.

अब खेलने में मन नहीं था मेरा , घर पहुन्चा तो देखा की तैयारिया हो रही थी गाँव में दारु बांटने की , कुछ पेटिया मैंने जीप में पटकी और गाँव की तरफ चल दिया.

हर घर दो दो बोतल पकड़ाते हुए मैंने लखन के घर पर दस्तक दी. निर्मला ने दरवाजा खोला ,

मैं- लखन है क्या

निर्मला- नहीं सुबह ही आएगा वो

मैं- ले आये तो ये दे दियो ,

मैंने एक नजर निर्मला पर डाली, लगती तो कंटाप ही थी , भारी भारी छातिया, थोड़ी सी चौड़ी कमर और गदरायी जांघे . ब्लाउज के दो बटन तो बस छात्तियो के बोझ को इस उम्मीद में थामे हुए थे की कब वो टूटे और उनका काम खत्म हो .

“इतना भी मत देखो हुकुम ” निर्मला ने हँसते हुए कहा तो मैं झेंप गया.

मैं- लखन से कहना मुझे खेत पर मिले

वहां से निकल कर चलते हुए मैं जीप की तरफ बढ़ ही रहा था की मुझे रुक जाना पड़ा

“कितनी भी दारु बाँट ले अर्जुन इस बार सरपंची हाथ ना आने वाली ” अजीत सिंह की आवाज ने मेरे कदमो को रोक लिया .

मैं- राज के लिए पंची सरपंची की जरुरत ना पड़ती अजित सिंह, पर क्या करू बाप का दिल रखने के लिए करना पड़ता है वर्ना इस दारू से हद नफरत है , दारू का नशा गाँव को बर्बाद कर रहा है मुझसे जायदा कौन जानता है . रही बात हार जीत की तो क्या फर्क पड़ता है मेरा बाप जीते या तेरा बाप . बाप तो बाप हो होता है , तेरा बाप जीत जाए तो तेरी ख़ुशी में शामिल हो जायेंगे मेरा बाप जीता तो तू बधाई दे देना. क्या फर्क पड़ता है

अजीत- फर्क तो पड़ता है अर्जुन, तुम लोग समझते हो की सरपंची तुम्हारी जागीर है .

मैं- ये गाँव मेरी जागीर है , यहाँ का हर एक घर मेरा है , हर चूल्हे में पकती रोटी मेरी है , हर बुजुर्ग मेरा अपना है हर जवान मेरा अपना है . मैं इस मिटटी का और ये मिटटी मेरी है .

अजित- तभी तो तेरी कोई हसियत नहीं गाँव में, पैरो की जूतों को तूने सर पर रखा हुआ है , तेरी वजह से ठाकुरों की पहले जैसी बात नहीं रही .

मैं-ये गाँव वाले हमारे टुकडो पर पलने वाले गुलाम नहीं है अजित, ये हमारी जमीन जोतते है अपनी मेहनत करते है तो इनकी मेहनताना इनको पसीना सूख जाने से पहले मिल जाना चाहिए, तेरी बात ऊपर रख ली अगर ये हमारी प्रजा है तो अगर प्रजा दुखी तो क्या ख़ाक राज किया तुमने .

अजित- तू नहीं सुधर सकता


अजित के जाने के बाद मैंने बची खुची दारु बांटी और जीप को खेतो वाले रस्ते पर मोड़ दिया. रेडियो चालु किया , मोटर चला कर पानी हौदी में छोड़ा पेट में मरोड़ सी थी हल्का होने का विचार किये मैं पगडण्डी पर चले जा रहा था की मैंने तभी किसी को पड़े देखा, और जब मैं उसके पास गया तो बदन में झुरझुरी सी दौड़ गयी .
एक दिल ले गई, दूसरी दिल देने वाली आ गई??
 

Riky007

उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
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Congratulations for new story
Aapki pahle bhi isi naam ki ek padhi thi xp pe dilwale ya diljale
भाई गलत आदमी को कोट किया
 
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अर्जुन (hero of the stroy) की तरफ से नई हिरोइन के लिए :-:writing:

नशा शराब की कैफियत में नहीं ,
उनकी आंखों में था
बस वो वहीं नहीं देख पाई जो ,
हमारी आंखों में था

फौजी भाई दोनो अपडेट बहुत ही शानदार थे। हर बार की तरह इस बार भी नायिका का परिचय नजाकत भरा था।
पर यह वाली तो तीखी मिर्च 🌶️ है .......😂😂
 
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