#2
पलट कर जो देखा बस देखता ही रह गया. ढलती शाम में डूबते सूरज की लाली में मैंने चाँद को देखा . नीला दुपट्टा, पीला सूट कानो में झुमके, हाथो में चांदी के कड़े, पांवो में मुरकी वाली जुतिया . उमस भरी गर्मी में ठंडी हवा का झोंका उतर सा गया सीने में .
“तेरी जुर्रत कैसे हुई मेरे मटके को छूने की , गन्दा कर दिया न इसे ” इस बार उसकी आवाज में तल्खी थोड़ी और बढ़ गयी थी .
मैं- प्यास लगी थी , पानी पिलाना तो धर्म होता है ,समझ ले थोडा पुन्य तेरे भाग में भी था .
“जुबान को लगाम दे ,देख कर बोल किसके सामने खड़ा है ” उसने अपनी आवाज ऊँची की .
मैं- रे लाडली, ऐसी बोली ठीक ना है . अगर मेरे छूने से तेरा मटका ख़राब हो गया तो जा कुम्हार से मेरा नाम ले दिए नया मटका दे देगा तुझे
“”तू मुझे खरीद कर देगा “ उसने कहा
मैंने एक नजर उसके झुमको पर डाली जो बड़ी नजाकत से उसके गाल चूम रहे थे .
मै- तो तू ही बता कैसे मानेगी तू. पानी तो मैंने पी लिया कहे तो मैं भर दू तेरा मटका
उसने मुझे घूर कर देखा और फिर उस मटके को धरती पर दे मारा. गुस्से में हसिनाये और भी हसीन लगती है ये मैंने उस लम्हे में महसूस किया . उफ्फ्फ इतना घमंड, इतना गुरुर भला किस चीज का .मैने गहरी मुस्कान से उसे देखा उसका चेहरा और लाल हो गया . उसने अपना हाथ उठाया मुझे मारने को मैंने कलाई पकड़ ली उसकी.
“ना लाडली ना, ऐसा मत करिए, गाँव में थोड़ी बहुत इज्जत तो मेरी भी है , रही तेरी बात मटके को तोड़ कर तूने बता दिया की क्या है तू, रही जुर्रत की बात तो गुस्ताखिया खून में दौड़ती है मेरी उड़ने को बेताब मेरा मन और ये खुला आसमान ,यहाँ से जाने के बाद याद तो आएगी तुझे मेरी , ” गोरी कलाई को मैंने जोर से मसला तो गुलाबी हो गयी . वो कसमसाई
मैं- तू जिस भी घर की है , वहां उजाला कर दिया होगा तूने . पर मेरी कही एक बात याद रखिये लोगो के दिल जीतना बड़ी बात होती है , ये तुनकमिजाजी तेरी अदा तो हो सकती है पर इसे स्वभाव मत बनाना कभी .
वो- हाथ छोड़ मेरा
मैं- अभी तो पकड़ा भी नहीं लाडली तू छोड़ने की बात करती है .
मैंने हँसते हुए उसकी कलाई छोड़ दी.
वो- देख लुंगी तुझे
मैं- खुशकिस्मती हमारी जो दुबारा दीदार होंगे आपके
गुस्से में तमतमाती हुई वो जाने लगी कुछ दूर जाकर वो मुड़ी और बोली- भूलूंगी नहीं मैं
मैं- अगर हमें भूल गयी तो क्या ख़ाक असर हुआ हमारा लाडली.
मैंने उसे जाते हुए देखा , मैंने सूरज को डूबते हुए देखा . जिस हाथ से से उसकी कलाई पकड़ी थी , उसे हलके से ना जाने क्यों चूम लिया मैंने.
अब खेलने में मन नहीं था मेरा , घर पहुन्चा तो देखा की तैयारिया हो रही थी गाँव में दारु बांटने की , कुछ पेटिया मैंने जीप में पटकी और गाँव की तरफ चल दिया.
हर घर दो दो बोतल पकड़ाते हुए मैंने लखन के घर पर दस्तक दी. निर्मला ने दरवाजा खोला ,
मैं- लखन है क्या
निर्मला- नहीं सुबह ही आएगा वो
मैं- ले आये तो ये दे दियो ,
मैंने एक नजर निर्मला पर डाली, लगती तो कंटाप ही थी , भारी भारी छातिया, थोड़ी सी चौड़ी कमर और गदरायी जांघे . ब्लाउज के दो बटन तो बस छात्तियो के बोझ को इस उम्मीद में थामे हुए थे की कब वो टूटे और उनका काम खत्म हो .
“इतना भी मत देखो हुकुम ” निर्मला ने हँसते हुए कहा तो मैं झेंप गया.
मैं- लखन से कहना मुझे खेत पर मिले
वहां से निकल कर चलते हुए मैं जीप की तरफ बढ़ ही रहा था की मुझे रुक जाना पड़ा
“कितनी भी दारु बाँट ले अर्जुन इस बार सरपंची हाथ ना आने वाली ” अजीत सिंह की आवाज ने मेरे कदमो को रोक लिया .
मैं- राज के लिए पंची सरपंची की जरुरत ना पड़ती अजित सिंह, पर क्या करू बाप का दिल रखने के लिए करना पड़ता है वर्ना इस दारू से हद नफरत है , दारू का नशा गाँव को बर्बाद कर रहा है मुझसे जायदा कौन जानता है . रही बात हार जीत की तो क्या फर्क पड़ता है मेरा बाप जीते या तेरा बाप . बाप तो बाप हो होता है , तेरा बाप जीत जाए तो तेरी ख़ुशी में शामिल हो जायेंगे मेरा बाप जीता तो तू बधाई दे देना. क्या फर्क पड़ता है
अजीत- फर्क तो पड़ता है अर्जुन, तुम लोग समझते हो की सरपंची तुम्हारी जागीर है .
मैं- ये गाँव मेरी जागीर है , यहाँ का हर एक घर मेरा है , हर चूल्हे में पकती रोटी मेरी है , हर बुजुर्ग मेरा अपना है हर जवान मेरा अपना है . मैं इस मिटटी का और ये मिटटी मेरी है .
अजित- तभी तो तेरी कोई हसियत नहीं गाँव में, पैरो की जूतों को तूने सर पर रखा हुआ है , तेरी वजह से ठाकुरों की पहले जैसी बात नहीं रही .
मैं-ये गाँव वाले हमारे टुकडो पर पलने वाले गुलाम नहीं है अजित, ये हमारी जमीन जोतते है अपनी मेहनत करते है तो इनकी मेहनताना इनको पसीना सूख जाने से पहले मिल जाना चाहिए, तेरी बात ऊपर रख ली अगर ये हमारी प्रजा है तो अगर प्रजा दुखी तो क्या ख़ाक राज किया तुमने .
अजित- तू नहीं सुधर सकता
अजित के जाने के बाद मैंने बची खुची दारु बांटी और जीप को खेतो वाले रस्ते पर मोड़ दिया. रेडियो चालु किया , मोटर चला कर पानी हौदी में छोड़ा पेट में मरोड़ सी थी हल्का होने का विचार किये मैं पगडण्डी पर चले जा रहा था की मैंने तभी किसी को पड़े देखा, और जब मैं उसके पास गया तो बदन में झुरझुरी सी दौड़ गयी