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Adultery हवेली

Tiger 786

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#11

सुबह मैंने गाड़ी ठीक करवाई और वापिस से घर आ गया पर इस बार मैं अकेला नही था मेरे साथ सवालों का बोझ भी आया था . मैंने निर्मला को समझाया की आगे से जमीनों का काम उसे ही देखना होगा मैं थोड़े दिन व्यस्त रहूँगा . मैंने लखन को भी चोकिदारी छोड़ने को कहा. निर्मला को खेतो पर छोड़ कर मैं आया और सारे घर की तलाशी ली पर सरपंच साहब कोई भी ऐसा सुराग नहीं छोड़ गए थे जो मेरे काम आ सके. और सबसे बड़ी उलझन वो चाबी जो मेरी जेब में पड़ी थी . मैंने गाडी शहर की तरह घुमाई और सीधा कचहरी पहुँच गया जहाँ पर एक और आश्चय मेरा इंतज़ार कर रहा था .



कचहरी में मुझे मालूम हुआ की रमेश चंद नाम का कोई भी वकील था ही नहीं. तो फिर वो कौन था जो चाबी देकर गया था . उसे हर हाल में तलाश करना ही होगा. वापिस आते समय मैंने थोड़ी जलेबिया खरीदी और अन्दर घुस गया . मैं नहा ही रहा था की निर्मला आ गयी . उसने लकडिया कोने में रखी और नलके पर आकर हाथ पाँव धोने लगी. जब वो झुकी तो उसकी गदराई छतिया देख कर मेरे कच्छे में हलचल सी मचने लगी. उसने अपनी साडी ऊपर की उफ्फ्फ उसकी गोरी पिंडलिया जिस पर एक भी बाल नही था कसम से मैंने सीने में तूफ़ान मचलते हुए महसूस किया .

“जलेबिया लाया हूँ तुम्हारे लिए ” मैने कहा

वो मुस्कुराई और चारपाई पर रखे लिफाफे को खोल कर जलेबी खाने लगी . मैंने भी तब तक तौलिया बाँध लिया

“तुम भी चख लो , जलेबियो का स्वाद तब तक ही जंचता है जब तक की वो गर्म हो . ” निर्मला ने अपने होंठो पर लगी चाशनी उंगलियों पर लपेटी और जलेबी मेरी तरफ की, कसम से उसकी अदा पर पिघल ही तो गया था मैं. जलेबी पकड़ने के बहाने मैंने चाशनी से सनी उसकी उंगलियों को छुआ और जलेबी के टुकड़े को अपने होंठो में दबा लिया. मैं उसके इतने पास आ गया था की उसकी भारी छातिया मेरे सीने में दबने लगी थी . पर वो पीछे न सरकी . मैंने अपनी ऊँगली उसके चाशनी से लिपटे लाल होंठो पर रखी और उसके होंठो को सहलाने लगा.



“सीई ” निर्मला के होंठो से एक आह निकली . तौलिये में फद्फ्दाता मेरा लंड निर्मला की चूत पर दस्तक देने लगा था निर्मला का अकड़ता बदन कांप रहा था मेरे छूने से उसके होंठ लरज रहे थे , उसके हाथ में जो लिफाफा था मैंने उसमे पड़ी जलेबियो को मसला और चाशनी को उसके होंठो पर लगा दिया. उसकी आँखे बंद होती गयी और अगले ही पल मैंने अपने होंठ उसके दहकते होंठो से मिला दिए. जीवन का पहला चुम्बन , मैंने उसकी कमर में हाथ डाल कर उसे अपने आप से जोड़ लिया और बेतहाशा चूमता चला गया उसे. होंठो से जो होंठ मिले , निर्मला ने अपने होंठ खोले और अपनी जीभ मेरे मुह में डाल दी. हाय, एक आग सी ही तो लग गयी तन में . मेरे हाथ उसकी पीठ से होते हुए उसके नितम्बो पर आ गए. पर इस से पहले की मैं उसकी गांड का जायजा ले पाता ,बाहर से आई आवाज ने हम दोनों को होश में ला दिया.

कोई गाँव वाला फरियाद लेकर आया था

मैं- बाबा अब हम सरपंच नहीं रहे , तुम्हे अजित सिंह के घर जाना चाहिए वो ही समाधान करेंगे तुम्हारा.

बाबा- बरसो से इसी चौखट ने हमारी फरियादे सुनी है बेटा,

मैं गाँव वालो की भावनाए समझता था मैंने कहा की उसकी मदद होगी. बाकि फिर लखन था तो निर्मला और मैं चाह कर भी कुछ नहीं कर पाए. अगर मैं सरपचं जी का बेटा नहीं था तो फिर क्या वजूद था मेरा और उस हवेली से क्या लेना देना था मेरा. इस घर में मैंने कभी शौर्य सिंह का नाम भी नहीं सुना था , और जब अब उससे मिलने की जरुरत थी वो बिस्तर पर कोमा में पड़ा था . अगली सुबह मैं फिर से निकल गया पर इस बार मैंने गाड़ी नहीं ली साथ . दोपहर को मैं एक बार फिर हवेली के सामने खड़ा था पर आज थोड़ी आसानी थी क्योंकि भूषण की झोपडी पर ताला लगा था मतलब वो यहाँ नहीं था .

मैंने हवेली का पीछे से जायजा लेने का सोचा , उस तरफ काफी ऊँचे पेड़ थे, मैं एक पेड़ पर चढ़ा और दिवार के अन्दर कूद गया. एक अजीब सा सन्नाटा ,बरसो से ये जगह खाली थी किसी ने संभाला नहीं था तो काफी झाडिया, घास उग आई थी . रास्ता बनाते हुए उस बड़े बरगद के पास से होते हुए मैं हवेली के पीछे वाले हिस्से में पहुँच चूका था . मेरा दिल जोरो से धडक रहा था यहाँ की हवा में कुछ तो अजीब था , सांसो पर दबाव सा पड़ रहा था . पसीने भरे हाथो से मैंने पिछले दरवाजे को धक्का दिया पर वो नहीं खुला . शीशम की लकड़ी का बना वो दरवाजा वक्त की मार सहते हुए भी वफदारी से खड़ा था . मैं अन्दर घुसने का कोई और जुगाड़ देखने लगा. मैंने देखा की रसोई की खिड़की का शीशा टुटा हुआ है मैंने उसमे हाथ दिया और चिटकनी खोल दी. पल्ले को सरकाया और अन्दर दाखिल हो गया. हर कहीं धुल मिटटी भरी हुई थी मैंने अपने साफे को मुह पर बाँधा और रसोई के खुले दरवाजे से होते हुए अन्दर की तरफ पहुँच गया.

काले संगमरमर का वो फर्श जिस पर बेशक मिटटी धुल ने अपना कब्ज़ा कर लिया था पर आज भी शान बाकी थी उसकी , सामने दीवारों पर बंदूके टंगी थी जो जालो से ढकी थी , छत पर विदेशी फानूस, , दीवारों पर आदमकद तस्वीरे जिन्हें मैं नहीं जानता था . ऐशो-आराम तो खूब रहा होगा हवेली में . उस बड़े से आँगन में कुछ नहीं था कोने में दो कमरे बने थे बस. ऊपर जाती सीढियों पर चढ़ कर मैं पहली मंजिल पर आया. यहाँ पर एक लाइन में कुल चार कमरे बने थे जिनमें से तीन पर ताले लगे थे. मैंने जेब से चाबी निकाली और बरी बारी से कोशिश की पर चाबी ने धोखा दिया.

फिर मैं उस कमरे की तरफ बढ़ा जिस पर केवल कुण्डी लगी थी .मैंने उस कमरे को खोला और जैसे ही अन्दर गया.........................
Haveli ka rahasya to or bi gehra hota ja raha hai fauji bhai
 

Tiger 786

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#१२

जैसे ही मैं अन्दर गया , मैं हैरान हो गया. हर चीज इतने सलीके से रखी गयी थी . कमरे में एक बड़ा शीशा था उसके पास ही एक अलमारी थी , एक बेड जिसकी चादरों पर सलवटे थी . पास की टेबल पर करीने से किताबे रखी हुई थी , एक फूलदान था . मैंने अलमारी खोली , उसमे साड़िया थी, गहने थे . ड्रेसिंग की दराजो में सौ सौ के नोटों की गद्दिया पड़ी थी . जरुरत की हर चीज थी इस कमरे में पर कोई तस्वीर नही थी . पैसो ने मुझे जरा भी हैरान नहीं किया था क्योंकि ठाकुर परिवार रईस था पैसो की क्या ही कद्र रही होगी उनको . मैं बिस्तर पर बैठ गया . सर तकिये पर लगाया की कुछ चुर्मुराने की आवाज से मैंने तकिया हटा कर देखा, एक कागज का टुकड़ा था जिस पर लाल धब्बे थे और कुछ लिखा था



“तुझे भुला कर जिए तो क्या जिए ”



बहुत गौर करने पर मैं समझा की ये धब्बे खून के थे हो न हो ये लाइन खून से ही लिखी गयी थी पर क्यों. क्या कलम खत्म हो गयी थी दुनिया से . पर इतना अगर लिखा गया तो यक़ीनन दीवानगी तो बहुत रही होगी. मैंने उस कागज के टुकड़े को जेब में रख लिया और हवेली से बाहर निकल गया , पहले दिन के लिए इतना ही बहुत था . मैं जंगल के किनारे पहुंचा तो देखा की भूषण की झोपडी का दरवाजा खुला था . मैंने सोचा की मिलता चलू, पर जैसे ही मैंने अन्दर देखा मेरे कदम ठिठक गए, क्योंकि झोपडी में भूषण नहीं नहीं, उसकी लाश पड़ी थी . आँखे बाहर को निकल आई थी . गला घोंट कर मारा गया था उसे. मुझे पूरा यकीन था की ये हत्या थोड़ी देर पहले ही की गयी थी क्योंकि जब मैं यहाँ से गुजरा था तो झोपडी बंद थी . पर कौन , कौन पेल गया इसको . मैंने माथे पर हाथ रखा और वहां से निकल गया. पर मेरे जेहन में एक बात और थी की क्या किसी की नजर थी मुझ पर हवेली में घुसते हुए.



कोई तो था जो इस वक्त का इंतज़ार कर रहा था वर्ना ये सब अचानक से शुरू नहीं होता. कोई तो था जो मौके की तलाश में था पर भूषण को अभी क्यों मारा गया जबकि ये काम कभी भी किया जा सकता था . इस गाँव में कुछ तो ऐसा चल रहा था जिसे जानने के लिए मुझे यहाँ समय बिताना जरुरी था और उसके लिए मुझे किसी का साथ चाहिए था . मैं सीधा चंदा की झोपडी जा पहुंचा. मैंने पाया की वो वहां नहीं थी , पर शायद ये मेरा अंदाजा था , झोपडी के पीछे से गुनगुनाने की आवाज आई तो मैं दबे पाँव उस तरफ चल दिया.



दीन दुनिया से बेखबर उस भरी दोपहर में चंदा पत्थर पर बैठी नहा रही थी , पूर्ण रूप से नग्न चंदा की चिकनी पीठ मेरी तरफ थी और मैं दिल थामे उस दिलकश नजारे को देख रहा था . एडियो को घिसने के बाद वो खड़ी हो गयी और पानी बदन पर गिराने लगी. न जाने क्यों मुझे उन पानी की बूंदों से रश्क होने लगा. जब चंदा अपने घुटनों पर लगी साबुन को रगड़ने के लिए झुकी तो उसका पूरा पिछवाडा मेरी आँखों के सामने आ गया . उफ्फ्फ हुस्न क्या होता है मैंने उस लमहे में जाना .



मध्यम आकार के तरबूजो जैसे उसके नितम्ब और उनके बीच में दबी हुई उसकी काली चूत, जिस पर एक भी बाल का रेशा नहीं था . मेरा तो कलेजा ही मुह को आ गया पर मैं उस नज़ारे को ज्यादा देर तक अपनी आँखों में पनाह नहीं दे पाया क्योंकि उसका नहाना खत्म हो गया था मैं बाहर की तरफ आकर बैठ गया. कुछ देर बाद वो अपने गीले बालो का पानी झाड़ते हुए आई.

“तुम यहाँ ” उसने मुझे देख कर कहा

मैं- तुमसे मिलने का मन हुआ तो चला आया.

चंदा- क्यों मन किया तुम्हारा भला

मैं- किसी ने भूषण का क़त्ल कर दिया है

मेरी बात सुनकर चंदा के चेहरे पर एक रंग आकर चला गया फिर वो धीमी आवाज में बोली- बढ़िया हुआ, उस नीच को तो बहुत पहले मर जाना चाहिए था .

पिछली मुलाकात में ही मैं जान गया था की चंदा कोई खास पसंद नहीं करती थी भूषण को पर आज मैं जान गया की वो नफरत करती थी उस से .

मैं- इतनी नफरत क्यों करती थी तुम उस से

चंदा-उसकी वजह से मुझे हवेली से निकाला गया था .

मैं- क्यों

चंदा- रुपाली ठकुराइन अटूट विश्वास करती थी मुझ पर , जमीं की धूल को उठा कर हवेली ले गयी वो , धीरे धीरे हम दोनों नौकरानी-मालकिन की जगह दोस्त सी हो गयी थी . ये बात उस भूषण को ना पसंद थी न जाने क्यों वो नहीं चाहता था की हवेली में कोई और भी आये. उसने ठाकुर शौर्य सिंह के कान भरने शुरू कर दिए , पर ठाकुर साहब ने उसकी कोई ना सुनी पर एक रात उन्होंने मुझे अपने कमरे में बुलाया और .........

“और शौर्य सिंह ने तुम्हे रगड़ दिया ” मैंने उसकी बात पूरी की

चंदा कुछ नहीं बोली

मैं- अगर तुम शौर्य सिंह के बिस्तर तक जा पहुंची थी तो भूषण ने तुम्हे हवेली से निकलवा दिया ये बात झूठी साबित हो जाती है चंदा

मेरी बात सुनकर चंदा अपने बाल संवारने भूल गयी और मेरी तरफ देखने लगी.

चंदा- हवस इन लोगो के खून में दौड़ती है अर्जुन . इन लोगो के लिए कोई रिश्ता नाता मायने नहीं रखता इनको अगर कुछ चाहिए तो गर्म जिस्म जिसे ये अपनी मर्जी से जहाँ चाहे रौंद सके. ये बात पुरुषोत्तम के जन्मदिन की है, ठाकुर साहब चाहते थे की जन्म दिन मनाया जाये , जश्न ऐसा हो की सालो तक याद रखा जाये और हुआ भी ऐसा ही. सब काम निपटा कर मैं सोने ही जा रही थी की तभी किसी ने मेरा मुह दबा लिया और एक कोने में खींच लिया .

“कौन हो छोड़ो मुझे ” मैंने कहा पर उसने जैसे सुना ही नहीं उसके हाथ मेरे बदन को मसलने लगे, जिस बेबाकी से मेरे बदन को मसला जा रहा था मैं जान गयी थी की कोई ठाकुर परिवार का ही है , उसने मुझे घुटनों के बल झुकाया और अपना करने लगा पर एक बार से उसका मन नहीं भरा वो मुझे पास के कमरे में ले गया और फिर से चढ़ गया . सुबह जब मेरी आँख खुली तो हवेली में चीख पुकार मची हुई थी .हवेली के दिए बुझ गए थे.

“तुम आज तक नहीं जान पाई की वो कौन था जिसने तुम्हे चोदा उस रात ” मैंने चोदा शब्द पर जान बुझ कर जोर दिया .

चंदा- कैसे जान पाती मुझे लगा की ठाकुर के लडको में से कोई होगा पर वो तो खुद ही मर गए थे, हर किसी के मन में बस यही था की किसने ये काण्ड किया और फिर कुछ सोचने का मौका ही नहीं मिला ठाकुर साहब ने खून की नदिया बहा दी, रुपाली अपने कमरे में कैद होकर रह गयी .

मैं- और कामिनी उसका क्या हुआ

चंदा- कोई नहीं जानता कोई उसके बारे में कुछ कहता है कोई कुछ . रुपाली के जाने के बाद वहां जाने की वजह भी खत्म हो गयी चांदनी के पिता ने कब्ज़ा कर लिया और हवेली को अपने हाल पर छोड़ दिया गया

मैं-बताया था तुमने. वैसे तुमने कभी मालूम नहीं किया की रुपाली ठकुराइन कहाँ रहती है लंदन में

चंदा- मैं कभी शहर तक ना गयी तुम दुसरे देश का जिक्र करते हो

मैं- ऐसा कुछ जो कभी रुपाली ने तुमसे बताया हो .

चंदा- वो बस अपने पति के कातिल को तलाश करना चाहती थी .

मैं- क्या तुम मेरे साथ हवेली चलोगी


चंदा हैरान होकर मुझी देखने लगी.
Behtreen update
 

Thakur

Alag intro chahiye kya ?
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पुरूषोत्तम के जन्मदिन वाली रात हवेली मे तीन भाईयों की हत्या हुई थी और कत्ल किसने और क्यों किया था , आज तक पता नही चला। जब कातिल का कोई सुराग ही नही मिला तो ठाकुर शौर्य सिंह ने गांव मे खून की नदियां क्यों बहवा दी ? उनका कहर किस पर और क्यों पड़ा ?
हवेली के अंदर कितने सदस्य थे और उनमे कितने फिलहाल जीवित हैं एवं कितने परलोक सिधार गए ?
इसका जिक्र नेक्स्ट अपडेट मे कीजियेगा फौजी भाई ।

इस कहानी की मेन धुरी हवेली और हवेली मे रहे व्यक्ति ही प्रतीत हो रहे है।

सोलह साल पहले जो खून खराबों का दौर चला था वो फिर से शुरू हो गया। पहले सरपंच साहब की हत्या और अब एक बुजुर्ग नौकर भूषण की। आखिर इतने दिनो तक कातिल शांत क्यों रहा ? आखिर कातिल की मंशा क्या है ?

कुछ अपडेट मे ही सवालों की बाढ़ सी आ गई है। इस कहानी का प्लाट मुझे कहीं से भी छोटा नही दिख रहा है। यह कहानी शार्ट कहानी लग ही नही रहा है।
खैर , अपडेट हमेशा की तरह बेहतरीन और जबरदस्त था।
आउटस्टैंडिंग फौजी भाई।
 
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HalfbludPrince

मैं बादल हूं आवारा
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#13

दो सवाल मेरे मन को बेहद परेशां किये हुए थे , पहला की मेरा इस हवेली से क्या ताल्लुक है और दूसरा की कामिनी कहाँ गयी, ठाकुर परिवार की एकलौती लड़की का यूँ गायब हो जाना सामान्य तो कभी भी नहीं रहा होगा पर उस रात ऐसा क्या हुआ था की जश्न की रात को कत्ल की रात बना दी गयी. जहाँ पर ऐसा काण्ड होता है वहां पर बेपनाह नफरत होती है, पैसो के लिए तो हरगिज नहीं किया गया ये काण्ड ये तो तय था . शौर्य सिंह के परिवार की जिस्मो के प्रति भूख जग जाहिर थी तो पहला पॉइंट मैं ये ही ले सकता था की किसी सताए हुए ने मौका देख कर मामले को निपटा दिया. पर किसने ये मुझे मालूम करना था .

रात को एक बार फिर मैं चंदा से बाते कर रहा था

मैं- पुरुषोत्तम के आलावा उसके दोनों भाई कैसे थे

चंदा- तेजवीर का अपना ही जलवा था , बड़े ठाकुर से कभी नहीं बनती थी उसकी वो जायदातर बाहर ही रहता था कभी कभी ही आता था हवेली में .

मैं- और कुलदीप

चंदा- हरामी था साला. हवेली की सभी नौकरानियो पर बुरी नजर थी उसकी, अपनी माँ का बहुत मुह लगा था वो .

मैं- अक्सर सबसे छोटी औलाद को माँ बाप का ज्यादा प्यार मिलता है

चंदा- विलायत से पढ़ कर आया था वो , विलायती बोली बोलता था बिलायती कपडे पहनता था वो , ज्यादातर वो अपने कमरे में ही घुसा रहता था पर अक्सर दोपहर को वो घुमने जाता था .

मैं- कहाँ पर

चंदा- ये नहीं मालूम पर ये उसका नियम था .

चंदा ने बातो के सिलसिले को आराम दिया और झोपडी के पीछे की तरफ चली गयी . कुछ देर बाद मुझे गुनगुनाने की आवाज आई मैं समझ गया की चंदा नहा रही है, न जाने क्यों उसे नग्न देखने की इच्छा को मैं रोक नहीं पाया. दबे पाँव मैं उस तरफ गया और लट्टू की पीली रौशनी में चंदा के बदन को देखने लगा. उसके बदन की कसावट गजब की थी शायद इतनी मेहनत करने की वजह से , प्रत्येक अंग जैसे सांचे में ढला था . तने हुए उरोज, पतली सी कमर , नितम्बो के आलावा और कहीं चर्बी नहीं थी, चालीस पैंतालीस की होने के बावजूद चंदा जवानी से भरपूर औरत थी .

खाना खाते वक्त मैंने सोचा की कल राशन लाकर रख दूंगा .

“आज बिस्तर अन्दर लगायेंगे, गाँव में जंगली सुअरों ने आतंक मचाया हुआ है , कल दो गाँव वालो को सोते हुए हमला कर गए. ” उसने कहा

“मैं गीले बालो में बला की खूबसूरत लगती हो तुम ” मैंने उस से कहा

चंदा ने मुझे गौर से देखा और बोली- किसी ज़माने में कहते तो मान लेती पर अब उम्र हो गयी है

मैं- उम्र से साथ साथ और गदरा गयी हो , ये मैं नहीं वो आदमी कह रहा था तुमसे

चंदा- कुछ बाते बताने की नहीं होती अर्जुन.

मैं- समझता हूँ

प्यास के मारे मेरी नींद उचटी , पानी पीकर वापिस आया तो मैंने पाया की चंदा बिस्तर पर नहीं थी .इतनी रात को उसका यूँ गायब होना अजीब ही लगा जबकि उसकी झोपडी के आस पास और कोई घर भी नहीं था . अगर चंदा का मन चुदाई का होता तो वो घर के पीछे भी करवा सकती थी , दूर जाने की क्या जरुरत हो सकती थी और अगर दूर गयी है तो उसका क्या मकसद हो सकता है . सोचते सोचते न जाने मुझे कब नींद आ गयी.



सुबह मैं गाँव में घुमने चला गया , चाय की दूकान के पास पहुंचा ही था की मैंने जय सिंह की गाड़ी को देखा , चांदनी ने बताया था की वो शहर जायेगा. मैंने कदम चांदनी के घर की तरफ बढ़ा दिए. मुझे देख कर वो हक्की बक्की रह गयी

“यहाँ क्यों आये तुम ” उसने कहा

मैं- मैं नहीं आया ये कमबख्त दिल ले आया

उसके होंठो पर मुस्कराहट आ गयी . उसने मुझे इशारा किया और हम चलते हुए उसके कमरे में आ गये.जितना सादगी भरा ये घर बहार से दीखता था अन्दर से मालूम हो की कोई राजा ही रहता हो ऐसी आलिशानता मैंने कही देखि ही नहीं थी .

“वो आये यूँ हमारे दर पर कभी हम उनको कभी इस दर को देखते है ” उसने कहा

मैं मुस्कुरा दिया.

चांदनी- नाश्ता करते है पहले फिर बाते करेंगे.

उसके एक इशारे पर दस्तरखान लग गए. इतने पकवान मैंने ब्याह शादियों में भी न खाए थे. उसके बाद चांदनी और मैं छत की तरफ आ गये.

मैं- एक बार ठाकुर साहब का दीदार करने की इच्छा थी .

चांदनी- फिर कभी , थोड़ी देर में डॉक्टर आएगा, हफ्ते में दो दिन आता है देखने के लिए. तुम थोडा इंतज़ार करो मैं नहा लेती हूँ फिर हवेली चलेंगे.

चांदनी चलने को हुई ही थी की मैंने उसका हाथ पकड़ लिया

“क्या हुआ ” उसने कहा

मैंने उसे अपनी तरफ खींचा और उसके होंठो को चूमने लगा वो मेरी बाँहों में मचलने लगी .

मैं- थोडा मीठा तो चाहिए था न

चांदनी - बेशर्म कहीं के .

लगभग आधे घंटे बाद हम लोग हवेली के उस जर्जर दरवाजे के सामने खड़े थे, चांदनी ने ताला खोला और हम लोग अन्दर आये. सामने की तरफ से मैं हवेली को पहली बार देख रहा था . एक तरफ शायद गाडिया खड़ी होती होंगी, दूसरी तरफ एक बड़ा सा विदेशी फव्वारा था जो अब सुखा पड़ा था .झूले थे .शायद ये बगीचा रहा होगा.

“आओ भी ” चांदनी ने कहा तो हम उस बड़े से दरवाजे को खोल कर अन्दर आ गए. अजीब सी घुटन ने एक बार फिर मुझे जैसे कुछ कहना चाहा.

चांदनी- कितनी मिटटी जमा है मालूम होता तो नौकरों को ले आते.

मैं- पिछली बार कब आई थी

चांदनी- शायद आठ-नौ साल पहले

अन्दर आने के बाद जितना चांदनी जानती थी उसने मुझे बताया, उसी ने बताया की ये पुरुषोत्तम की तस्वीर है ये तेज की और ये कुलदीप की . पुरुषोत्तम तीनो भाइयो में सबसे कमजोर था , वही कुलदीप किसी अँगरेज़ जैसा था .

“रुपाली या कामिनी की तस्वीरे नहीं है ” मैंने कहा

चांदनी मुझे सीढियों से होते हुए उस ऊपर की मंजिल पर ले गयी जहाँ पर लगातार चार कमरे बने थे .उसने एक कमरे का ताला खोला और अन्दर आ गए.

“ये कामिनी का कमरा है .” उसने कहा .

उसने एक तस्वीर की धुल साफ़ की फूलो के बगीचे में एक सांवली लड़की खड़ी थी . पहली नजर में कोई ये कह ही नहीं सकता था की ये लड़की ठाकुरों की बहन है , तीनो ठाकुर जहाँ बेहद गोरे थे कामिनी सांवली थी . ये कमरा कुछ अलग सा था , दिवार पर अख़बार की कतरने लगी थी जिन पर माधुरी और श्रीदेवी की फोटो लगी थी. एक टेपरिकार्डर रखा था जिसमे सेल नहीं थे. एक फूलदान था . टेबल पर शेरो-शायरियो की खूब किताबे पड़ी थी .


चांदनी ने अलमारी खोली और .........................
 
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Riky007

उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
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#14

दो सवाल मेरे मन को बेहद परेशां किये हुए थे , पहला की मेरा इस हवेली से क्या ताल्लुक है और दूसरा की कामिनी कहाँ गयी, ठाकुर परिवार की एकलौती लड़की का यूँ गायब हो जाना सामान्य तो कभी भी नहीं रहा होगा पर उस रात ऐसा क्या हुआ था की जश्न की रात को कत्ल की रात बना दी गयी. जहाँ पर ऐसा काण्ड होता है वहां पर बेपनाह नफरत होती है, पैसो के लिए तो हरगिज नहीं किया गया ये काण्ड ये तो तय था . शौर्य सिंह के परिवार की जिस्मो के प्रति भूख जग जाहिर थी तो पहला पॉइंट मैं ये ही ले सकता था की किसी सताए हुए ने मौका देख कर मामले को निपटा दिया. पर किसने ये मुझे मालूम करना था .

रात को एक बार फिर मैं चंदा से बाते कर रहा था

मैं- पुरुषोत्तम के आलावा उसके दोनों भाई कैसे थे

चंदा- तेजवीर का अपना ही जलवा था , बड़े ठाकुर से कभी नहीं बनती थी उसकी वो जायदातर बाहर ही रहता था कभी कभी ही आता था हवेली में .

मैं- और कुलदीप

चंदा- हरामी था साला. हवेली की सभी नौकरानियो पर बुरी नजर थी उसकी, अपनी माँ का बहुत मुह लगा था वो .

मैं- अक्सर सबसे छोटी औलाद को माँ बाप का ज्यादा प्यार मिलता है

चंदा- विलायत से पढ़ कर आया था वो , विलायती बोली बोलता था बिलायती कपडे पहनता था वो , ज्यादातर वो अपने कमरे में ही घुसा रहता था पर अक्सर दोपहर को वो घुमने जाता था .

मैं- कहाँ पर

चंदा- ये नहीं मालूम पर ये उसका नियम था .

चंदा ने बातो के सिलसिले को आराम दिया और झोपडी के पीछे की तरफ चली गयी . कुछ देर बाद मुझे गुनगुनाने की आवाज आई मैं समझ गया की चंदा नहा रही है, न जाने क्यों उसे नग्न देखने की इच्छा को मैं रोक नहीं पाया. दबे पाँव मैं उस तरफ गया और लट्टू की पीली रौशनी में चंदा के बदन को देखने लगा. उसके बदन की कसावट गजब की थी शायद इतनी मेहनत करने की वजह से , प्रत्येक अंग जैसे सांचे में ढला था . तने हुए उरोज, पतली सी कमर , नितम्बो के आलावा और कहीं चर्बी नहीं थी, चालीस पैंतालीस की होने के बावजूद चंदा जवानी से भरपूर औरत थी .

खाना खाते वक्त मैंने सोचा की कल राशन लाकर रख दूंगा .

“आज बिस्तर अन्दर लगायेंगे, गाँव में जंगली सुअरों ने आतंक मचाया हुआ है , कल दो गाँव वालो को सोते हुए हमला कर गए. ” उसने कहा

“मैं गीले बालो में बला की खूबसूरत लगती हो तुम ” मैंने उस से कहा

चंदा ने मुझे गौर से देखा और बोली- किसी ज़माने में कहते तो मान लेती पर अब उम्र हो गयी है

मैं- उम्र से साथ साथ और गदरा गयी हो , ये मैं नहीं वो आदमी कह रहा था तुमसे

चंदा- कुछ बाते बताने की नहीं होती अर्जुन.

मैं- समझता हूँ

प्यास के मारे मेरी नींद उचटी , पानी पीकर वापिस आया तो मैंने पाया की चंदा बिस्तर पर नहीं थी .इतनी रात को उसका यूँ गायब होना अजीब ही लगा जबकि उसकी झोपडी के आस पास और कोई घर भी नहीं था . अगर चंदा का मन चुदाई का होता तो वो घर के पीछे भी करवा सकती थी , दूर जाने की क्या जरुरत हो सकती थी और अगर दूर गयी है तो उसका क्या मकसद हो सकता है . सोचते सोचते न जाने मुझे कब नींद आ गयी.



सुबह मैं गाँव में घुमने चला गया , चाय की दूकान के पास पहुंचा ही था की मैंने जय सिंह की गाड़ी को देखा , चांदनी ने बताया था की वो शहर जायेगा. मैंने कदम चांदनी के घर की तरफ बढ़ा दिए. मुझे देख कर वो हक्की बक्की रह गयी

“यहाँ क्यों आये तुम ” उसने कहा

मैं- मैं नहीं आया ये कमबख्त दिल ले आया

उसके होंठो पर मुस्कराहट आ गयी . उसने मुझे इशारा किया और हम चलते हुए उसके कमरे में आ गये.जितना सादगी भरा ये घर बहार से दीखता था अन्दर से मालूम हो की कोई राजा ही रहता हो ऐसी आलिशानता मैंने कही देखि ही नहीं थी .

“वो आये यूँ हमारे दर पर कभी हम उनको कभी इस दर को देखते है ” उसने कहा

मैं मुस्कुरा दिया.

चांदनी- नाश्ता करते है पहले फिर बाते करेंगे.

उसके एक इशारे पर दस्तरखान लग गए. इतने पकवान मैंने ब्याह शादियों में भी न खाए थे. उसके बाद चांदनी और मैं छत की तरफ आ गये.

मैं- एक बार ठाकुर साहब का दीदार करने की इच्छा थी .

चांदनी- फिर कभी , थोड़ी देर में डॉक्टर आएगा, हफ्ते में दो दिन आता है देखने के लिए. तुम थोडा इंतज़ार करो मैं नहा लेती हूँ फिर हवेली चलेंगे.

चांदनी चलने को हुई ही थी की मैंने उसका हाथ पकड़ लिया

“क्या हुआ ” उसने कहा

मैंने उसे अपनी तरफ खींचा और उसके होंठो को चूमने लगा वो मेरी बाँहों में मचलने लगी .

मैं- थोडा मीठा तो चाहिए था न

चांदनी - बेशर्म कहीं के .

लगभग आधे घंटे बाद हम लोग हवेली के उस जर्जर दरवाजे के सामने खड़े थे, चांदनी ने ताला खोला और हम लोग अन्दर आये. सामने की तरफ से मैं हवेली को पहली बार देख रहा था . एक तरफ शायद गाडिया खड़ी होती होंगी, दूसरी तरफ एक बड़ा सा विदेशी फव्वारा था जो अब सुखा पड़ा था .झूले थे .शायद ये बगीचा रहा होगा.

“आओ भी ” चांदनी ने कहा तो हम उस बड़े से दरवाजे को खोल कर अन्दर आ गए. अजीब सी घुटन ने एक बार फिर मुझे जैसे कुछ कहना चाहा.

चांदनी- कितनी मिटटी जमा है मालूम होता तो नौकरों को ले आते.

मैं- पिछली बार कब आई थी

चांदनी- शायद आठ-नौ साल पहले

अन्दर आने के बाद जितना चांदनी जानती थी उसने मुझे बताया, उसी ने बताया की ये पुरुषोत्तम की तस्वीर है ये तेज की और ये कुलदीप की . पुरुषोत्तम तीनो भाइयो में सबसे कमजोर था , वही कुलदीप किसी अँगरेज़ जैसा था .

“रुपाली या कामिनी की तस्वीरे नहीं है ” मैंने कहा

चांदनी मुझे सीढियों से होते हुए उस ऊपर की मंजिल पर ले गयी जहाँ पर लगातार चार कमरे बने थे .उसने एक कमरे का ताला खोला और अन्दर आ गए.

“ये कामिनी का कमरा है .” उसने कहा .

उसने एक तस्वीर की धुल साफ़ की फूलो के बगीचे में एक सांवली लड़की खड़ी थी . पहली नजर में कोई ये कह ही नहीं सकता था की ये लड़की ठाकुरों की बहन है , तीनो ठाकुर जहाँ बेहद गोरे थे कामिनी सांवली थी . ये कमरा कुछ अलग सा था , दिवार पर अख़बार की कतरने लगी थी जिन पर माधुरी और श्रीदेवी की फोटो लगी थी. एक टेपरिकार्डर रखा था जिसमे सेल नहीं थे. एक फूलदान था . टेबल पर शेरो-शायरियो की खूब किताबे पड़ी थी .


चांदनी ने अलमारी खोली और .........................
तो छान बीन में मूनलाइट भी शामिल हो गई। 😍

अच्छा है, मगर ये चंदा आधी रात को कहां गायब हो गई, इसपर इतना भरोसा करना सही नहीं है अर्जुन का, चांदनी तो उस घर की ही है और वो भी राज जानना चाहेगी।

ये कामिनी का सबसे अलग होने का मतलब वो पक्का ठाकुर और ठकुराइन की अपनी औलाद नहीं होगी। वैसे ये जवाब तो वक्त ही देगा। अभी तो हवेली में की छुपा है वो जाना जाय।
 
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