parkas
Well-Known Member
- 26,896
- 60,047
- 303
Bahut hi badhiya update diya hai HalfbludPrince bhai.....#13
दो सवाल मेरे मन को बेहद परेशां किये हुए थे , पहला की मेरा इस हवेली से क्या ताल्लुक है और दूसरा की कामिनी कहाँ गयी, ठाकुर परिवार की एकलौती लड़की का यूँ गायब हो जाना सामान्य तो कभी भी नहीं रहा होगा पर उस रात ऐसा क्या हुआ था की जश्न की रात को कत्ल की रात बना दी गयी. जहाँ पर ऐसा काण्ड होता है वहां पर बेपनाह नफरत होती है, पैसो के लिए तो हरगिज नहीं किया गया ये काण्ड ये तो तय था . शौर्य सिंह के परिवार की जिस्मो के प्रति भूख जग जाहिर थी तो पहला पॉइंट मैं ये ही ले सकता था की किसी सताए हुए ने मौका देख कर मामले को निपटा दिया. पर किसने ये मुझे मालूम करना था .
रात को एक बार फिर मैं चंदा से बाते कर रहा था
मैं- पुरुषोत्तम के आलावा उसके दोनों भाई कैसे थे
चंदा- तेजवीर का अपना ही जलवा था , बड़े ठाकुर से कभी नहीं बनती थी उसकी वो जायदातर बाहर ही रहता था कभी कभी ही आता था हवेली में .
मैं- और कुलदीप
चंदा- हरामी था साला. हवेली की सभी नौकरानियो पर बुरी नजर थी उसकी, अपनी माँ का बहुत मुह लगा था वो .
मैं- अक्सर सबसे छोटी औलाद को माँ बाप का ज्यादा प्यार मिलता है
चंदा- विलायत से पढ़ कर आया था वो , विलायती बोली बोलता था बिलायती कपडे पहनता था वो , ज्यादातर वो अपने कमरे में ही घुसा रहता था पर अक्सर दोपहर को वो घुमने जाता था .
मैं- कहाँ पर
चंदा- ये नहीं मालूम पर ये उसका नियम था .
चंदा ने बातो के सिलसिले को आराम दिया और झोपडी के पीछे की तरफ चली गयी . कुछ देर बाद मुझे गुनगुनाने की आवाज आई मैं समझ गया की चंदा नहा रही है, न जाने क्यों उसे नग्न देखने की इच्छा को मैं रोक नहीं पाया. दबे पाँव मैं उस तरफ गया और लट्टू की पीली रौशनी में चंदा के बदन को देखने लगा. उसके बदन की कसावट गजब की थी शायद इतनी मेहनत करने की वजह से , प्रत्येक अंग जैसे सांचे में ढला था . तने हुए उरोज, पतली सी कमर , नितम्बो के आलावा और कहीं चर्बी नहीं थी, चालीस पैंतालीस की होने के बावजूद चंदा जवानी से भरपूर औरत थी .
खाना खाते वक्त मैंने सोचा की कल राशन लाकर रख दूंगा .
“आज बिस्तर अन्दर लगायेंगे, गाँव में जंगली सुअरों ने आतंक मचाया हुआ है , कल दो गाँव वालो को सोते हुए हमला कर गए. ” उसने कहा
“मैं गीले बालो में बला की खूबसूरत लगती हो तुम ” मैंने उस से कहा
चंदा ने मुझे गौर से देखा और बोली- किसी ज़माने में कहते तो मान लेती पर अब उम्र हो गयी है
मैं- उम्र से साथ साथ और गदरा गयी हो , ये मैं नहीं वो आदमी कह रहा था तुमसे
चंदा- कुछ बाते बताने की नहीं होती अर्जुन.
मैं- समझता हूँ
प्यास के मारे मेरी नींद उचटी , पानी पीकर वापिस आया तो मैंने पाया की चंदा बिस्तर पर नहीं थी .इतनी रात को उसका यूँ गायब होना अजीब ही लगा जबकि उसकी झोपडी के आस पास और कोई घर भी नहीं था . अगर चंदा का मन चुदाई का होता तो वो घर के पीछे भी करवा सकती थी , दूर जाने की क्या जरुरत हो सकती थी और अगर दूर गयी है तो उसका क्या मकसद हो सकता है . सोचते सोचते न जाने मुझे कब नींद आ गयी.
सुबह मैं गाँव में घुमने चला गया , चाय की दूकान के पास पहुंचा ही था की मैंने जय सिंह की गाड़ी को देखा , चांदनी ने बताया था की वो शहर जायेगा. मैंने कदम चांदनी के घर की तरफ बढ़ा दिए. मुझे देख कर वो हक्की बक्की रह गयी
“यहाँ क्यों आये तुम ” उसने कहा
मैं- मैं नहीं आया ये कमबख्त दिल ले आया
उसके होंठो पर मुस्कराहट आ गयी . उसने मुझे इशारा किया और हम चलते हुए उसके कमरे में आ गये.जितना सादगी भरा ये घर बहार से दीखता था अन्दर से मालूम हो की कोई राजा ही रहता हो ऐसी आलिशानता मैंने कही देखि ही नहीं थी .
“वो आये यूँ हमारे दर पर कभी हम उनको कभी इस दर को देखते है ” उसने कहा
मैं मुस्कुरा दिया.
चांदनी- नाश्ता करते है पहले फिर बाते करेंगे.
उसके एक इशारे पर दस्तरखान लग गए. इतने पकवान मैंने ब्याह शादियों में भी न खाए थे. उसके बाद चांदनी और मैं छत की तरफ आ गये.
मैं- एक बार ठाकुर साहब का दीदार करने की इच्छा थी .
चांदनी- फिर कभी , थोड़ी देर में डॉक्टर आएगा, हफ्ते में दो दिन आता है देखने के लिए. तुम थोडा इंतज़ार करो मैं नहा लेती हूँ फिर हवेली चलेंगे.
चांदनी चलने को हुई ही थी की मैंने उसका हाथ पकड़ लिया
“क्या हुआ ” उसने कहा
मैंने उसे अपनी तरफ खींचा और उसके होंठो को चूमने लगा वो मेरी बाँहों में मचलने लगी .
मैं- थोडा मीठा तो चाहिए था न
चांदनी - बेशर्म कहीं के .
लगभग आधे घंटे बाद हम लोग हवेली के उस जर्जर दरवाजे के सामने खड़े थे, चांदनी ने ताला खोला और हम लोग अन्दर आये. सामने की तरफ से मैं हवेली को पहली बार देख रहा था . एक तरफ शायद गाडिया खड़ी होती होंगी, दूसरी तरफ एक बड़ा सा विदेशी फव्वारा था जो अब सुखा पड़ा था .झूले थे .शायद ये बगीचा रहा होगा.
“आओ भी ” चांदनी ने कहा तो हम उस बड़े से दरवाजे को खोल कर अन्दर आ गए. अजीब सी घुटन ने एक बार फिर मुझे जैसे कुछ कहना चाहा.
चांदनी- कितनी मिटटी जमा है मालूम होता तो नौकरों को ले आते.
मैं- पिछली बार कब आई थी
चांदनी- शायद आठ-नौ साल पहले
अन्दर आने के बाद जितना चांदनी जानती थी उसने मुझे बताया, उसी ने बताया की ये पुरुषोत्तम की तस्वीर है ये तेज की और ये कुलदीप की . पुरुषोत्तम तीनो भाइयो में सबसे कमजोर था , वही कुलदीप किसी अँगरेज़ जैसा था .
“रुपाली या कामिनी की तस्वीरे नहीं है ” मैंने कहा
चांदनी मुझे सीढियों से होते हुए उस ऊपर की मंजिल पर ले गयी जहाँ पर लगातार चार कमरे बने थे .उसने एक कमरे का ताला खोला और अन्दर आ गए.
“ये कामिनी का कमरा है .” उसने कहा .
उसने एक तस्वीर की धुल साफ़ की फूलो के बगीचे में एक सांवली लड़की खड़ी थी . पहली नजर में कोई ये कह ही नहीं सकता था की ये लड़की ठाकुरों की बहन है , तीनो ठाकुर जहाँ बेहद गोरे थे कामिनी सांवली थी . ये कमरा कुछ अलग सा था , दिवार पर अख़बार की कतरने लगी थी जिन पर माधुरी और श्रीदेवी की फोटो लगी थी. एक टेपरिकार्डर रखा था जिसमे सेल नहीं थे. एक फूलदान था . टेबल पर शेरो-शायरियो की खूब किताबे पड़ी थी .
चांदनी ने अलमारी खोली और .........................
Nice and beautiful update....