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निर्मला को देखकर अर्जुन की आग भड़क जाती है लेकिन उसने काबू कर रखा है लेकिन कब तक काबू करेगा बेचारा ।अर्जुन हवेली में से कुछ ऐसा मिले जिससे उसे आगे बढ़ने में मदद मिले ।मुझे लगता है वह चाबी किसी संदूक या कोई गुप्त अलमारी की हो सकती हैं देखते उसे क्या नजर आया हैं#11
सुबह मैंने गाड़ी ठीक करवाई और वापिस से घर आ गया पर इस बार मैं अकेला नही था मेरे साथ सवालों का बोझ भी आया था . मैंने निर्मला को समझाया की आगे से जमीनों का काम उसे ही देखना होगा मैं थोड़े दिन व्यस्त रहूँगा . मैंने लखन को भी चोकिदारी छोड़ने को कहा. निर्मला को खेतो पर छोड़ कर मैं आया और सारे घर की तलाशी ली पर सरपंच साहब कोई भी ऐसा सुराग नहीं छोड़ गए थे जो मेरे काम आ सके. और सबसे बड़ी उलझन वो चाबी जो मेरी जेब में पड़ी थी . मैंने गाडी शहर की तरह घुमाई और सीधा कचहरी पहुँच गया जहाँ पर एक और आश्चय मेरा इंतज़ार कर रहा था .
कचहरी में मुझे मालूम हुआ की रमेश चंद नाम का कोई भी वकील था ही नहीं. तो फिर वो कौन था जो चाबी देकर गया था . उसे हर हाल में तलाश करना ही होगा. वापिस आते समय मैंने थोड़ी जलेबिया खरीदी और अन्दर घुस गया . मैं नहा ही रहा था की निर्मला आ गयी . उसने लकडिया कोने में रखी और नलके पर आकर हाथ पाँव धोने लगी. जब वो झुकी तो उसकी गदराई छतिया देख कर मेरे कच्छे में हलचल सी मचने लगी. उसने अपनी साडी ऊपर की उफ्फ्फ उसकी गोरी पिंडलिया जिस पर एक भी बाल नही था कसम से मैंने सीने में तूफ़ान मचलते हुए महसूस किया .
“जलेबिया लाया हूँ तुम्हारे लिए ” मैने कहा
वो मुस्कुराई और चारपाई पर रखे लिफाफे को खोल कर जलेबी खाने लगी . मैंने भी तब तक तौलिया बाँध लिया
“तुम भी चख लो , जलेबियो का स्वाद तब तक ही जंचता है जब तक की वो गर्म हो . ” निर्मला ने अपने होंठो पर लगी चाशनी उंगलियों पर लपेटी और जलेबी मेरी तरफ की, कसम से उसकी अदा पर पिघल ही तो गया था मैं. जलेबी पकड़ने के बहाने मैंने चाशनी से सनी उसकी उंगलियों को छुआ और जलेबी के टुकड़े को अपने होंठो में दबा लिया. मैं उसके इतने पास आ गया था की उसकी भारी छातिया मेरे सीने में दबने लगी थी . पर वो पीछे न सरकी . मैंने अपनी ऊँगली उसके चाशनी से लिपटे लाल होंठो पर रखी और उसके होंठो को सहलाने लगा.
“सीई ” निर्मला के होंठो से एक आह निकली . तौलिये में फद्फ्दाता मेरा लंड निर्मला की चूत पर दस्तक देने लगा था निर्मला का अकड़ता बदन कांप रहा था मेरे छूने से उसके होंठ लरज रहे थे , उसके हाथ में जो लिफाफा था मैंने उसमे पड़ी जलेबियो को मसला और चाशनी को उसके होंठो पर लगा दिया. उसकी आँखे बंद होती गयी और अगले ही पल मैंने अपने होंठ उसके दहकते होंठो से मिला दिए. जीवन का पहला चुम्बन , मैंने उसकी कमर में हाथ डाल कर उसे अपने आप से जोड़ लिया और बेतहाशा चूमता चला गया उसे. होंठो से जो होंठ मिले , निर्मला ने अपने होंठ खोले और अपनी जीभ मेरे मुह में डाल दी. हाय, एक आग सी ही तो लग गयी तन में . मेरे हाथ उसकी पीठ से होते हुए उसके नितम्बो पर आ गए. पर इस से पहले की मैं उसकी गांड का जायजा ले पाता ,बाहर से आई आवाज ने हम दोनों को होश में ला दिया.
कोई गाँव वाला फरियाद लेकर आया था
मैं- बाबा अब हम सरपंच नहीं रहे , तुम्हे अजित सिंह के घर जाना चाहिए वो ही समाधान करेंगे तुम्हारा.
बाबा- बरसो से इसी चौखट ने हमारी फरियादे सुनी है बेटा,
मैं गाँव वालो की भावनाए समझता था मैंने कहा की उसकी मदद होगी. बाकि फिर लखन था तो निर्मला और मैं चाह कर भी कुछ नहीं कर पाए. अगर मैं सरपचं जी का बेटा नहीं था तो फिर क्या वजूद था मेरा और उस हवेली से क्या लेना देना था मेरा. इस घर में मैंने कभी शौर्य सिंह का नाम भी नहीं सुना था , और जब अब उससे मिलने की जरुरत थी वो बिस्तर पर कोमा में पड़ा था . अगली सुबह मैं फिर से निकल गया पर इस बार मैंने गाड़ी नहीं ली साथ . दोपहर को मैं एक बार फिर हवेली के सामने खड़ा था पर आज थोड़ी आसानी थी क्योंकि भूषण की झोपडी पर ताला लगा था मतलब वो यहाँ नहीं था .
मैंने हवेली का पीछे से जायजा लेने का सोचा , उस तरफ काफी ऊँचे पेड़ थे, मैं एक पेड़ पर चढ़ा और दिवार के अन्दर कूद गया. एक अजीब सा सन्नाटा ,बरसो से ये जगह खाली थी किसी ने संभाला नहीं था तो काफी झाडिया, घास उग आई थी . रास्ता बनाते हुए उस बड़े बरगद के पास से होते हुए मैं हवेली के पीछे वाले हिस्से में पहुँच चूका था . मेरा दिल जोरो से धडक रहा था यहाँ की हवा में कुछ तो अजीब था , सांसो पर दबाव सा पड़ रहा था . पसीने भरे हाथो से मैंने पिछले दरवाजे को धक्का दिया पर वो नहीं खुला . शीशम की लकड़ी का बना वो दरवाजा वक्त की मार सहते हुए भी वफदारी से खड़ा था . मैं अन्दर घुसने का कोई और जुगाड़ देखने लगा. मैंने देखा की रसोई की खिड़की का शीशा टुटा हुआ है मैंने उसमे हाथ दिया और चिटकनी खोल दी. पल्ले को सरकाया और अन्दर दाखिल हो गया. हर कहीं धुल मिटटी भरी हुई थी मैंने अपने साफे को मुह पर बाँधा और रसोई के खुले दरवाजे से होते हुए अन्दर की तरफ पहुँच गया.
काले संगमरमर का वो फर्श जिस पर बेशक मिटटी धुल ने अपना कब्ज़ा कर लिया था पर आज भी शान बाकी थी उसकी , सामने दीवारों पर बंदूके टंगी थी जो जालो से ढकी थी , छत पर विदेशी फानूस, , दीवारों पर आदमकद तस्वीरे जिन्हें मैं नहीं जानता था . ऐशो-आराम तो खूब रहा होगा हवेली में . उस बड़े से आँगन में कुछ नहीं था कोने में दो कमरे बने थे बस. ऊपर जाती सीढियों पर चढ़ कर मैं पहली मंजिल पर आया. यहाँ पर एक लाइन में कुल चार कमरे बने थे जिनमें से तीन पर ताले लगे थे. मैंने जेब से चाबी निकाली और बरी बारी से कोशिश की पर चाबी ने धोखा दिया.
फिर मैं उस कमरे की तरफ बढ़ा जिस पर केवल कुण्डी लगी थी .मैंने उस कमरे को खोला और जैसे ही अन्दर गया.........................
देखते है भाई कहानी किस राह जाती हैBahut hi shandar update he Fauji Bhai,
Khun se likha khat mila he Arjun ko..........jisne bhi likha he wo kisi na kisi behad tut kar chahta hoga.............Bhushan ko ab kisne mara........ye naya sawal khada ho gaya he.............
Chanda.............ye ek bahut hi aham kirdar hone wala he kahani me............ho sakta he Nirmala se pehle ye h Arjun ko swarg ka dwar dikha de............
Keep posting Bhai
बस यूँ हीBhai ye Neela ford atthasi ka
Iska kya chakkar hai???
चाबी किस ताले की है जल्दी ही मालूम होगानिर्मला को देखकर अर्जुन की आग भड़क जाती है लेकिन उसने काबू कर रखा है लेकिन कब तक काबू करेगा बेचारा ।अर्जुन हवेली में से कुछ ऐसा मिले जिससे उसे आगे बढ़ने में मदद मिले ।मुझे लगता है वह चाबी किसी संदूक या कोई गुप्त अलमारी की हो सकती हैं देखते उसे क्या नजर आया हैं
“तुझे भुला कर जिए तो क्या जिए ”#१२
जैसे ही मैं अन्दर गया , मैं हैरान हो गया. हर चीज इतने सलीके से रखी गयी थी . कमरे में एक बड़ा शीशा था उसके पास ही एक अलमारी थी , एक बेड जिसकी चादरों पर सलवटे थी . पास की टेबल पर करीने से किताबे रखी हुई थी , एक फूलदान था . मैंने अलमारी खोली , उसमे साड़िया थी, गहने थे . ड्रेसिंग की दराजो में सौ सौ के नोटों की गद्दिया पड़ी थी . जरुरत की हर चीज थी इस कमरे में पर कोई तस्वीर नही थी . पैसो ने मुझे जरा भी हैरान नहीं किया था क्योंकि ठाकुर परिवार रईस था पैसो की क्या ही कद्र रही होगी उनको . मैं बिस्तर पर बैठ गया . सर तकिये पर लगाया की कुछ चुर्मुराने की आवाज से मैंने तकिया हटा कर देखा, एक कागज का टुकड़ा था जिस पर लाल धब्बे थे और कुछ लिखा था
“तुझे भुला कर जिए तो क्या जिए ”
बहुत गौर करने पर मैं समझा की ये धब्बे खून के थे हो न हो ये लाइन खून से ही लिखी गयी थी पर क्यों. क्या कलम खत्म हो गयी थी दुनिया से . पर इतना अगर लिखा गया तो यक़ीनन दीवानगी तो बहुत रही होगी. मैंने उस कागज के टुकड़े को जेब में रख लिया और हवेली से बाहर निकल गया , पहले दिन के लिए इतना ही बहुत था . मैं जंगल के किनारे पहुंचा तो देखा की भूषण की झोपडी का दरवाजा खुला था . मैंने सोचा की मिलता चलू, पर जैसे ही मैंने अन्दर देखा मेरे कदम ठिठक गए, क्योंकि झोपडी में भूषण नहीं नहीं, उसकी लाश पड़ी थी . आँखे बाहर को निकल आई थी . गला घोंट कर मारा गया था उसे. मुझे पूरा यकीन था की ये हत्या थोड़ी देर पहले ही की गयी थी क्योंकि जब मैं यहाँ से गुजरा था तो झोपडी बंद थी . पर कौन , कौन पेल गया इसको . मैंने माथे पर हाथ रखा और वहां से निकल गया. पर मेरे जेहन में एक बात और थी की क्या किसी की नजर थी मुझ पर हवेली में घुसते हुए.
कोई तो था जो इस वक्त का इंतज़ार कर रहा था वर्ना ये सब अचानक से शुरू नहीं होता. कोई तो था जो मौके की तलाश में था पर भूषण को अभी क्यों मारा गया जबकि ये काम कभी भी किया जा सकता था . इस गाँव में कुछ तो ऐसा चल रहा था जिसे जानने के लिए मुझे यहाँ समय बिताना जरुरी था और उसके लिए मुझे किसी का साथ चाहिए था . मैं सीधा चंदा की झोपडी जा पहुंचा. मैंने पाया की वो वहां नहीं थी , पर शायद ये मेरा अंदाजा था , झोपडी के पीछे से गुनगुनाने की आवाज आई तो मैं दबे पाँव उस तरफ चल दिया.
दीन दुनिया से बेखबर उस भरी दोपहर में चंदा पत्थर पर बैठी नहा रही थी , पूर्ण रूप से नग्न चंदा की चिकनी पीठ मेरी तरफ थी और मैं दिल थामे उस दिलकश नजारे को देख रहा था . एडियो को घिसने के बाद वो खड़ी हो गयी और पानी बदन पर गिराने लगी. न जाने क्यों मुझे उन पानी की बूंदों से रश्क होने लगा. जब चंदा अपने घुटनों पर लगी साबुन को रगड़ने के लिए झुकी तो उसका पूरा पिछवाडा मेरी आँखों के सामने आ गया . उफ्फ्फ हुस्न क्या होता है मैंने उस लमहे में जाना .
मध्यम आकार के तरबूजो जैसे उसके नितम्ब और उनके बीच में दबी हुई उसकी काली चूत, जिस पर एक भी बाल का रेशा नहीं था . मेरा तो कलेजा ही मुह को आ गया पर मैं उस नज़ारे को ज्यादा देर तक अपनी आँखों में पनाह नहीं दे पाया क्योंकि उसका नहाना खत्म हो गया था मैं बाहर की तरफ आकर बैठ गया. कुछ देर बाद वो अपने गीले बालो का पानी झाड़ते हुए आई.
“तुम यहाँ ” उसने मुझे देख कर कहा
मैं- तुमसे मिलने का मन हुआ तो चला आया.
चंदा- क्यों मन किया तुम्हारा भला
मैं- किसी ने भूषण का क़त्ल कर दिया है
मेरी बात सुनकर चंदा के चेहरे पर एक रंग आकर चला गया फिर वो धीमी आवाज में बोली- बढ़िया हुआ, उस नीच को तो बहुत पहले मर जाना चाहिए था .
पिछली मुलाकात में ही मैं जान गया था की चंदा कोई खास पसंद नहीं करती थी भूषण को पर आज मैं जान गया की वो नफरत करती थी उस से .
मैं- इतनी नफरत क्यों करती थी तुम उस से
चंदा-उसकी वजह से मुझे हवेली से निकाला गया था .
मैं- क्यों
चंदा- रुपाली ठकुराइन अटूट विश्वास करती थी मुझ पर , जमीं की धूल को उठा कर हवेली ले गयी वो , धीरे धीरे हम दोनों नौकरानी-मालकिन की जगह दोस्त सी हो गयी थी . ये बात उस भूषण को ना पसंद थी न जाने क्यों वो नहीं चाहता था की हवेली में कोई और भी आये. उसने ठाकुर शौर्य सिंह के कान भरने शुरू कर दिए , पर ठाकुर साहब ने उसकी कोई ना सुनी पर एक रात उन्होंने मुझे अपने कमरे में बुलाया और .........
“और शौर्य सिंह ने तुम्हे रगड़ दिया ” मैंने उसकी बात पूरी की
चंदा कुछ नहीं बोली
मैं- अगर तुम शौर्य सिंह के बिस्तर तक जा पहुंची थी तो भूषण ने तुम्हे हवेली से निकलवा दिया ये बात झूठी साबित हो जाती है चंदा
मेरी बात सुनकर चंदा अपने बाल संवारने भूल गयी और मेरी तरफ देखने लगी.
चंदा- हवस इन लोगो के खून में दौड़ती है अर्जुन . इन लोगो के लिए कोई रिश्ता नाता मायने नहीं रखता इनको अगर कुछ चाहिए तो गर्म जिस्म जिसे ये अपनी मर्जी से जहाँ चाहे रौंद सके. ये बात पुरुषोत्तम के जन्मदिन की है, ठाकुर साहब चाहते थे की जन्म दिन मनाया जाये , जश्न ऐसा हो की सालो तक याद रखा जाये और हुआ भी ऐसा ही. सब काम निपटा कर मैं सोने ही जा रही थी की तभी किसी ने मेरा मुह दबा लिया और एक कोने में खींच लिया .
“कौन हो छोड़ो मुझे ” मैंने कहा पर उसने जैसे सुना ही नहीं उसके हाथ मेरे बदन को मसलने लगे, जिस बेबाकी से मेरे बदन को मसला जा रहा था मैं जान गयी थी की कोई ठाकुर परिवार का ही है , उसने मुझे घुटनों के बल झुकाया और अपना करने लगा पर एक बार से उसका मन नहीं भरा वो मुझे पास के कमरे में ले गया और फिर से चढ़ गया . सुबह जब मेरी आँख खुली तो हवेली में चीख पुकार मची हुई थी .हवेली के दिए बुझ गए थे.
“तुम आज तक नहीं जान पाई की वो कौन था जिसने तुम्हे चोदा उस रात ” मैंने चोदा शब्द पर जान बुझ कर जोर दिया .
चंदा- कैसे जान पाती मुझे लगा की ठाकुर के लडको में से कोई होगा पर वो तो खुद ही मर गए थे, हर किसी के मन में बस यही था की किसने ये काण्ड किया और फिर कुछ सोचने का मौका ही नहीं मिला ठाकुर साहब ने खून की नदिया बहा दी, रुपाली अपने कमरे में कैद होकर रह गयी .
मैं- और कामिनी उसका क्या हुआ
चंदा- कोई नहीं जानता कोई उसके बारे में कुछ कहता है कोई कुछ . रुपाली के जाने के बाद वहां जाने की वजह भी खत्म हो गयी चांदनी के पिता ने कब्ज़ा कर लिया और हवेली को अपने हाल पर छोड़ दिया गया
मैं-बताया था तुमने. वैसे तुमने कभी मालूम नहीं किया की रुपाली ठकुराइन कहाँ रहती है लंदन में
चंदा- मैं कभी शहर तक ना गयी तुम दुसरे देश का जिक्र करते हो
मैं- ऐसा कुछ जो कभी रुपाली ने तुमसे बताया हो .
चंदा- वो बस अपने पति के कातिल को तलाश करना चाहती थी .
मैं- क्या तुम मेरे साथ हवेली चलोगी
चंदा हैरान होकर मुझी देखने लगी.
Chanda se kuch bate to pata chali par jitni umeed thi utni pata nahi chali.#10
मैंने मुड कर देखा हाथ में लालटेन और सर पर लकडिया लिए चंदा कड़ी थी वो ही चंदा जिसे आज दोपहर में मैंने जंगल में चुदते हुए देखा था . उसकी नजरे मुझ पर थी और मेरी नजरे उसकी छातियो पर .
“क्या हुआ बाबु कोई परेशानी है क्या ” उसने पूछा
मैं- गाड़ी पंक्चर हो गयी है ऊपर से अँधेरा घिर आया है
चंदा- परेशानी की बात तो है पर इतनी भी नहीं , थोड़ी दूर पर ही एक कबाड़ी है जो ठाकुरों की गाड़ी ठीक करता है अगर वो गया नहीं होगा तो तुम्हारी मदद कर देगा . चलो मैं तुमको लेकर चलती हु
उसने अपनी लकडिया गाड़ी के पास ही रखी और हम दोनों कबाड़ी की दूकान पर जा पहुंचे पर बदकिस्मती से वो ताला लगा कर जा चूका था
मैं- किस्मत ही ख़राब है
चंदा- अब तो सुबह ही ठीक हो पायेगी गाड़ी तुम्हारी
हम दोनों वापिस से गाड़ी तक आये.
मैं- मदद के लिए शुक्रिया ,
चंदा- मदद हुई तो नहीं पर मदद कर सकती हूँ रात घिर आई है तुम चाहो तो मेरे घर रुक जाओ , सुबह गाडी ठीक करवा कर चले जाना
मैं-नहीं मेरी वजह से तुमको तकलीफ होगी , मैं यही गाड़ी में ही सो जाऊंगा
चंदा- भला मुझे क्या तकलीफ होगी मैं तो अकेली ही रहती हूँ
चंदा मुझे दिल्स्च्प सी लगी मैंने हां कर दी और उसके पीछे पीछे उसके घर आ गया. घर तो क्या था थोड़ी बड़ी सी झोपडी ही कहना ठीक था उसे, खेतो के किनारे पर रहती थी वो. उसने चारपाई बिछाई और मुझे बैठने को कहा. आँगन में ही एक टीन लगा कर उसने रसोई बनाई हुई थी अन्दर एक कमरा था बस यही था उसके पास.
चंदा-पहले कभी देखा नहीं तुमको बाबु इस गाँव में
उसने पानी का गिलास दिया मुझे
मैं- पुराणी चीजो का व्यापार है मेरा, उसी सिलसिले में इधर-उधर आना जाना होता है , इस गाँव में एक पुराणी हवेली के बारे में किसी ने बताया था तो सोचा देखता चलू पर गाँव में कोई तैयार ही नहीं था उसके बारे में बात करने को . वैसे तुम बता सकती हो क्या मुझे कुछ उसके बारे में
चंदा- नहीं मैं नहीं जानती
मैं- देखो तुम मेरी मदद कर सकती हो बदले में मैं तुम्हारी मदद करूँगा
चंदा- मुझे मदद की भला क्या जरुरत है , एक जान हूँ मैं कोई आगे न पीछे रोटी-पानी का जुगाड़ हो ही जाता है मुझ को और क्या चाहिए वैसे भी हवेली का जिक्र कोई नहीं करता
मैं- तुम कर सकती हो जिक्र
मैंने जेब से कुछ नोट निकाल कर चंदा के हाथ में रखे
चंदा- कौन हो तुम
मैं- नही जानता अभी तो नहीं जानता पर हवेली को जानना चाहता हूँ .
चंदा- इस दुनिया में अभी भी कुछ बचा है जो बिकाऊ नहीं है , पैसे से हर काम नहीं होता मुझसे जानना चाहते हो तो फिर खुद को क्यों छिपाया है , इतना तो मैं जान गयी हूँ की तुमने अपना झूठा परिचय दिया है कोई पुलिसवाले हो क्या
मैं- क्यों पुलिस वाले भी आते रहते है क्या हवेली के बारे में पूछने तुमसे.
चंदा-नहीं पुलिस की क्या औकात जो सर उठा कर देख सके बड़े ठाकुर की मिलकियत की तरफ
मैं- तो बताती क्यों नहीं मुझे हवेली के बारे में
चंदा- अब कुछ है नहीं बताने को
मैं- अब नहीं है तब तो होगा, जब वो ईमारत आबाद रही होगी. तुम हवेली की पुराणी नौकर हो तुमसे ज्यादा कौन जानेगा उसको.
“तुम्हे किसने बताया की मैं हवेली में काम करती थी ”चंदा ने अधीरता से पूछा .
मैंने उसे जवाब नहीं दिया . उसने दो पल मुझे देखा और बोली- उस मादरचोद भूषण ने कहा न तुमसे .
मैं- नहीं , दोपहर में जब तुम किसी आदमी के साथ सलवार उतारे घुटनों पर झुकी हुई थी तब मैंने तुम्हारी बाते सुन ली थी .
चंदा के हाथ से गिलास छुट कर गिर गया. अविश्वास से उसने मुझे देखा और बोली- ये बात किसी से न कहना बाबू. एक विधवा हूँ मैं गाँव में किसी को भनक भी लगी तो गजब हो जायेगा.
मैं- मुझे क्यों कहना है किसी से .तुम अपनी जिन्दगी चाहे जैसे जियो ये तुम्हारी मर्जी है . इस गाँव में किसी ने भी मुझे नहीं बताया हवेली के बारे में , मैं तुमसे भी गुजारिश ही कर सकता हूँ चंदा .
चंदा ने गहरी साँस ली और बोली- वो हवेली जिसे तुमने देखा है वो हमेशा ऐसी नहीं थी , जिन्दादिली की मिसाल थी वो . ठाकुर शौर्य सिंह ने बड़े अरमानो से बनवाया था उसे, तीन मंजिल की वो काले पत्थरों से बनी इमारत जिसकी ख़ूबसूरती के किस्से हवाए भी बताती थी . हर रात वहां पर महफ़िल लगती दूर दूर से कलाकार आते . दिन बहुत सुख से बीत रहे थे पर फिर एक रात ऐसा कुछ हुआ की हवेली के दिए बुझ गए. ठाकुर साहब के तीनो बेटे उस जश्न की रात मर गए.
मैं- कैसा जश्न था वो .
चंदा- ठाकुर के बड़े बेटे पुरुषोत्तम का जन्मदिन था .सारे गाँव को भोज दिया गया था . रात आधी बीत जाने तक नाच-गाना हो रहा था लोग मजे में ,नशे में झूम रहे थे पर सुबह अपने साथ हाहाकार लेकर आई थी . सुबह अपने अपने कमरों में ठाकुर के तीनो बेटे मरे हुए मिले.
मैं- किसने किया
चंदा- अठारह साल बीत गए , कोई नहीं जान पाया. हवेली के दिए बुझ गए, ठाकुर साहब ने कातिलो को तलाशने के लिए दिन रात एक कर दिया जिस पर भी शक हुआ अगले दिन वो गायब हो गया. बहुत बुरा दौर था वो नालियों में पानी कम और खून ज्यादा बहता था . पर फिर दो साल बाद ठाकुर साहब खुद हादसे का शिकार हो गए. आज तक कोमा में पडे है .
मैं- और बाकि बचे लोग.
चंदा- ठाकुर साहब की जायदाद पर उनके भतीजे ने कब्ज़ा कर लिया . उसका बेटा जय सिंह और बेटी चांदनी गाँव में ही नए मकान बना कर रहते है .
मैं- बस
चंदा- बस
मैं- ठाकुर परिवार की औरते कहाँ गयी तुमने उनका जिक्र क्यों नहीं किया
चंदा- बड़ी ठकुराइन सरिता देवी बेटो के गम में ऐसी खाट पकड़ी की फिर कभी उठ नहीं पायी . पुरुषोत्तम की पत्नी रुपाली ठकुराइन उनकी मौत के बाद विदेश में बस गयी , यहाँ तक की ठाकुर साहब के कोमा में जाने की खबर सुनने के बाद भी वो नहीं लौटी. बस एक बात जिसे सबने परेशां किया हुआ है की कामिनी कहाँ गयी. जिस रात ठाकुर साहब के साथ हादसा हुआ उसी रात से कामिनी गायब है कहाँ गयी किसी ने नहीं देखा. बस यही है दास्ताँ हवेली और उसमे रहने वाले लोगो की .
चंदा की बताई कहानी ने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया. बापू ने मरते वक्त कहा था की हवेली. वो इस हवेली से कैसे जुड़ा था . मुझे वसीयत में वो चाबी क्यों दी गयी थी और रुपाली क्यों छोड़ गयी इतनी बड़ी जायदाद बाकि की रात तमाम सवालो को सोचते हुए कट गयी.