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रजनी की गांड से रिस रिसकर ढेर सारा बिरजू का रस निकलने लगा और चूत में से उसका खुद का.माहौल एकदम शांत हो चुका था…दोनो गहरी साँसे लेते हुए एक दूसरे के उपर गिरकर संभलने की कोशिश कर रहे थे…
तब रजनी ने पहली बार उसके काले भूसंद लॅंड को देखा..काले नाग जैसा ख़ूँख़ार था वो….गांड मारने के बाद अपने ही रस में डूबकर अब सुस्ता रहा था….उसकी नसें दूर से ही चमक रही थी….
और जिस काले लॅंड की कल्पना उसने आज तक की थी, वो उससे भी ज़्यादा निकला….और एक अंजान सम्मोहन में बँधी रजनी का सिर खिसक-2 कर अपने आप उसके लॅंड की तरफ जाने लगा….
बिरजू के चेहरे पर एक कुटिल मुस्कान आ गयी ये सोचते ही की अब ये रसीली भाभी उसके मोटे लॅंड को मुँह में लेगी….अभी तो पूरा दिन पड़ा था…और इस पूरे दिन में उसे क्या-2 करना है ये वो अच्छी तरह से जानता था.
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अब आगे
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रजनी की लपलपाती जीभ ने बिरजू के लॅंड को छुआ तो उसे करंट सा लगा….
बिरजू ने शायद कल्पना भी नही की थी की इतने ऊँचे घराने की औरत उसके लॅंड को चूसने के लिए इतनी बेकरार होगी….
बिरजू की आँखो में भी हवस की परछाईयाँ एकदम से उमड़ी और उसने रजनी के बाल पकड़कर अपना पूरा लौड़ा एक ही बार में उसके मुँह में घुसेड डाला…
बेचारी गुं गुं करती हुई छटपटाने लगी…
शायद उसकी साँस अटक रही थी इतना बड़ा लॅंड मुँह में लेने से…
पर उसे मज़ा बहुत आ रहा था…
इसलिए जब बिरजू ला रस से सना लॅंड उसके मुँह मे गया तो वो उसे बुरी तरह से चूसने लगी…
जैसे लॉलिपोप..
और उसकी नसों में फंसी आख़िर की चंद बूंदे भी उसने अंदर फूँक मारकर निगल डाली.
तभी दरवाजे पर एक आहट सी हुई…
बिरजू ने देखा तो उसकी बीबी पिंकी खड़ी थी…
वो उसे देखकर मुस्कुरा दिया…
उसके हाथ में ट्रे थी जिसमे बड़े से काँच के ग्लास में बादाम वाला दूध था..
रजनी ने तिरछी नज़रों से देखा की कौन है, और पिंकी को देखकर वो एक बार फिर से अपने काम में लग गयी.
पिंकी का बदन अपने सामने का नज़ारा देखकर सुलग सा उठा…
वैसे तो उसे पता था की उसका मर्द दूसरी औरतों के पास जाता है पर ऐसे उसे किसी दूसरी औरत के साथ देखने के ये पहला मौका था…
अपनी मालकिन को अपने पति के लॅंड को चूसते देखकर उसे इस वक़्त खुद मालकिन होने का एहसास हो रहा था…
कैसे ये बड़े घर की औरतें मोटे लॅंड की दीवानी होती है…
अपने ही घर में काम करने वाली औरत के पति का लॅंड वो ऐसे चूस रही थी जैसे इसी दिन के लिए पैदा हुई थी वो..
मालकिन और नौकर के अंतर को ख़त्म करते इस दृश्य ने एक अलग सा एहसास करवाया पिंकी को.
ऐसे मौके पर जब औरत नंगी होती है तो उसके हर रंग से वासना टपक रही होती है, यही हाल इस वक़्त पिंकी का हो रहा था…
उसके होंठ फड़फडा से रहे थे मानो जो भी पहली चीज़ मिलेगी उन्हे चूस कर पी जाएगी पूरा…चाहो वो होंठ हो, लॅंड हो या फिर चूत.
उसके स्तन पूर्ण रूप से उत्तेजना में भरकर कड़क हो चुके थे और अंदर की मांसपेशियाँ अपना मर्दन करवाने के लिए मछली की तरह मचलकर व्याकुल हो रही थी.
उसके मोटे निप्पल्स तन कर इतने कठोर हो चुके थे की उन्हे कोई उंगलियो के बीच रखकर दबा दे तो वो पानी के गुब्बारे की तरह फट पड़ते
यही हाल उसके समतल पेट का था जो गहरी साँसे छोड़ते हुए थोड़ा बाहर निकलता तो अंदर धँसी नाभि उसे तुरंत वापिस खींचकर अपने अंदर समेट लेती..
और सबसे ज़्यादा उत्तेजना तो उसकी चूत से निकल रही थी…
निकल क्या बह रही थी…
इस वक़्त उसकी चूत का हाल उस सरकारी नल की तरह था जो खराब होने के कारण लगातार बहे जा रहा था..
अपनी चूत से निकल रहे गाड़े रस को वो अपनी जाँघो पर लकीर बनकर नीचे जाते हुए सॉफ महसूस कर पा रही थी.
कुल मिलाकर उसका पूरा बदन इस वक़्त उस प्यार के खेल में डुबकी लगाने के लिए पूरा तैयार था.
सामने ही बिस्तर पर पड़ी पिंकी भी अपनी काले रंग की चूत को बुरी तरह से मसल रही थी….
और बुदबुदा रही थी..
‘’अहह…….क्या चोद रहा है रे बिरजू…..ऐसे मुझे तो ना चोदा तूने आज तक…..जल्दी निपटा मालकिन को….मेरी चूत की प्यास भी बुझानी है तुझे…..अहह’’
रजनी तो अपने ऑर्गॅज़म के काफ़ी करीब थी….
पहले अपनी गांड मरवाते हुए भी उसकी चूत से काफ़ी रस निकला था…
और अब भी उसकी चूत फटने के कगार पर थी….
और जल्द ही उसने अपनी दोनो टांगे बिरजू के गठीले बदन के चारों तरफ लेपेटी और अपने मुम्मे उसके गले से लगाकर उसे अपने उपर खींच लिया…..
और झड़ते हुए ज़ोर से चिल्ला उठी..
‘’आआआआआआआआआआआआआहह……. मैं तो गयी …..बिरजू………अहह…… मैं तो गयी रे…..’’