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Romance फ़िर से

avsji

कुछ लिख लेता हूँ
Supreme
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अपडेट सूची :

दोस्तों - इस अपडेट सूची को स्टिकी पोस्ट बना रहा हूँ!
लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि केवल पहनी पढ़ कर निकल लें। यह केवल आपकी सुविधा के लिए है। चर्चा बंद नहीं होनी चाहिए :)


अपडेट 1; अपडेट 2; अपडेट 3; अपडेट 4; अपडेट 5; अपडेट 6; अपडेट 7; अपडेट 8; अपडेट 9; अपडेट 10; अपडेट 11; अपडेट 12; अपडेट 13; अपडेट 14; अपडेट 15; अपडेट 16; अपडेट 17; अपडेट 18; अपडेट 19; अपडेट 20; अपडेट 21; अपडेट 22; अपडेट 23; अपडेट 24; अपडेट 25; अपडेट 26; अपडेट 27; अपडेट 28; अपडेट 29; अपडेट 30; अपडेट 31; अपडेट 32; अपडेट 33; अपडेट 34; अपडेट 35; अपडेट 36; अपडेट 37; अपडेट 38; अपडेट 39; अपडेट 40;
 
Last edited:

avsji

कुछ लिख लेता हूँ
Supreme
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भ्रमित ना हो, कोई अबला प्रताड़ित नहीं होती।

मुझे सिर्फ 1% भी ऐसे विवाह दिखा दीजिए जिनमें कन्या के माता-पिता ने अपने से गरीब, बेघर, बेरोजगार लड़के से अपनी बेटी की शादी की हो।
दहेज रहित शादी तो तब हो जब बेटी का बाप लड़के की हैसियत, नौकरी, आमदनी की बजाय गुण व योग्यता देखें और धूमधाम की बजाय बेटी दामाद को घर-कारोबार में सहयोग के लिए पैसा दे।

पिछले 45-46 बर्षौं की अपनी याददाश्त में मैंने बेटे वालों की बनाई दहेज की लिस्ट से पहले हमेशा ही बेटी वालों की बनाई हैसियत लिस्ट देखी है।

मैंने दोनों पक्षों के संबंध का अनुभव अपनी और अपने भाई बहन की शादी की जिम्मेदारी निभा के लिया है।
मांगने से कोई सम्पन्न नहीं हुआ।
आज की हैसियत भविष्य की गारंटी नहीं।
इसलिए संबंध हैसियत नहीं चरित्र, संस्कार और परिवार को देख समझकर बनाओ

कामदेव भैया, आपकी दोनों पोस्ट्स से मैं सहमत हूँ।
यह सब ऐसे विषय हैं, जिन पर श्वेत - श्याम परिप्रेक्ष्य रख पाना बहुत मुश्किल है -- कम से कम मेरे लिए।
हाँ, लेकिन जब भी कोई कानून बनेगा तो उसका मखौल उड़ेगा।
मनुष्य की बनाई कोई भी व्यवस्था सटीक हो ही नहीं सकती। प्रकृति की व्यवस्थाएँ ही आइडियल हैं।


Ge8lys-KW4-AApeu3
 

avsji

कुछ लिख लेता हूँ
Supreme
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साल 2002

जगह गाजियाबाद

नाम निशा शर्मा

कारनामा, दहेज मांगने के कारण बारात वापस लौटादेना।

असलियत: एक बॉयफ्रेंड था, जिसके कारण बारात को वापस लौटाया था, झूठे इल्जाम में। लेकिन उस बॉयफ्रेंड से भी शादी नहीं की उसने, बल्कि 2007 या 08 में किसी बहुत ही अमीर खानदान में शादी हुई इसकी। लड़के के घर वाले 3 साल जेल में रहे। और 10 साल बाद यानि 2012 में बरी हुए इस केस से। लड़की जीवन में आने से पहले ही बर्बाद कर गई।


आज के समय की दुखद सच्चाई है कि ज्यादातर ऐसे केस फर्जी ही होते हैं।

अनगिनत ऐसी कहानियाँ हैं, और अनगिनत कहानियाँ हैं दहेज़ हत्या की भी।
दिक्कत ये है कि गेहूँ और भूसे में अंतर कर पाना भारत जैसे देश में असंभव ही लगता है।
क्यों? क्योंकि (अ)न्याय व्यवस्था में जो भी लोग हैं, सभी के सभी महाधूर्त और महाभ्रष्ट हैं।
 

avsji

कुछ लिख लेता हूँ
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Riky007

उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
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अनगिनत ऐसी कहानियाँ हैं, और अनगिनत कहानियाँ हैं दहेज़ हत्या की भी।
दिक्कत ये है कि गेहूँ और भूसे में अंतर कर पाना भारत जैसे देश में असंभव ही लगता है।
क्यों? क्योंकि (अ)न्याय व्यवस्था में जो भी लोग हैं, सभी के सभी महाधूर्त और महाभ्रष्ट हैं।
उपाय बहुत सरल है, लेकिन लोग उसे इंप्लीमेंट नहीं करना चाहते।

कानून के दुरुपयोग पर सजा क्यों नहीं सुनाई जाती, जिस दिन अपने कानून में इसका प्रावधान हो गया, लोग उसका दुरपयोग करना बंद कर देंगे।

लेकिन अपने यहां कानून बनाने वाले आज भी अंग्रेजी मानसिकता से प्रेरित हैं। जैसे एडल्ट्री कानून जो पहले था, उसमे औरत को सजा नहीं हो सकती थी कभी भी, उसे बनाया इस तरह से गया था कि अगर जो आदमी अपनी औरत पर आरोप लगाए तो वो उसकी मर्जी कही जाएगी। पर सजा उस तीसरे आदमी को मिलेगी जो उस औरत के साथ इंवॉल्व है, पर उसमें भी उस औरत को ये कहना पड़ेगा कि उस आदमी ने उसे बहका कर रिश्ता कायम किया है। पर अगर जो वो आदमी ये सबूत कर दे कि पहल औरत की तरफ से थी, तो भी उस औरत को कोई सजा नहीं होगी।

कानून खुद ही ऐसा है कि जेंडर इक्वालिटी गई तेल लेने।

मैने पहले भी कहा है कि दहेज हत्या, डोमेस्टिक वायलेंस जैसी चीजें हैं, लेकिन कोर्ट तक वो कम पहुंचती है, और फर्जी केस ज्यादा। न न्यायपालिका, न legislative इस की ओर देखते हैं, न peer pressure groups. क्योंकि इस पूरे nexus में सबका हिस्सा है।
 

Riky007

उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
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खैर माफी चाहता हूं 🙏🏼

avsji भाई जी, आप कहानी आगे बढ़ाए, और mods से रिक्वेस्ट है कि मेरे कमेंट्स को जो भी इस कहानी से संबंधित नहीं है डिलीट कर दिए जाय 🙏🏼
 

avsji

कुछ लिख लेता हूँ
Supreme
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अपडेट 3


“अरे... अज्जू बेटे, इतनी जल्दी वापस आ गए?” अजय की ताई माँ - किरण जी - ने आश्चर्यचकित होते हुए कहा।

समय के हिसाब से उसको देर रात तक वापस आना चाहिए था।

“... मीटिंग जल्दी ख़तम हो गई क्या बेटे?”

किरण जी - अजय के पिता अशोक जी के बड़े भाई अनामि जी की पत्नी थीं। पूरे परिवार में अब केवल वो ही शेष रही थीं, और वो अजय के साथ थीं, पास थीं... लिहाज़ा, वो हर प्रकार से अजय की माता जी थीं। इसलिए वो भी उनको ‘माँ’ ही कहता था।

“नहीं माँ,” अजय ने जूते उतारते हुए कहा, “हुआ यह कि रास्ते में एक एक्सीडेंट हो गया... उसके कारण मैं मुंबई पहुँच ही नहीं पाया!”

“क्या?” माँ तुरंत ही चिंतातुर होते हुए बोलीं, “तुझे चोट वोट तो नहीं लगी? ... दिखा... क्या हुआ?”

माँ लोगों की छठी इन्द्रिय ऐसी ही होती है - बच्चों के मुँह से रत्ती भर भी समस्या सुन लें, तो उनको लगता है कि अनर्थ ही हो गया होगा।

“नहीं माँ,” कह कर अजय ने माँ को पूरी कहानी सुनाई।

“सॉरी बेटे... कि वो बच नहीं सके!” माँ ने सहानुभूतिपूर्वक कहा, “लेकिन, तूने पूरी कोशिश करी... वो ज़्यादा मैटर करता है। ... वैसे भी वो बूढ़े पुरुष थे...”

“हाँ माँ,” अजय बोला, “... लेकिन सच में माँ, मुझको एक समय में वाक़ई लग रहा था कि वो बच जाएँगे...”

“समय होता है बेटा जाने का... सभी का समय होता है।” माँ ने गहरी साँस भरते हुए कहा, फिर बात बदलते हुए बोलीं, “वैसे चलो, बहुत अच्छा हुआ कि तू जल्दी आ गया... मैं भी सोच रही थी कि तेरे वापस आने तक कैसे समय बीतेगा! ... अब तू आ गया है, तो तेरी पसंद की कच्छी दाबेली बनाती हूँ और अदरक वाली चाय!”

अजय ख़ुशी से मुस्कुराया, “हाँ माँ! मज़ा आ जाएगा!”

कुछ समय बाद माँ बेटा दोनों कच्छी दाबेली और अदरक वाली चाय का आनंद ले रहे थे। अब तो यही आलम थे - ऐसी छोटी छोटी बातों से ही खुशियाँ मिल रही थीं। जेल के अंदर तो... ख़ैर!

चाय नाश्ता ख़तम हुआ ही था कि अजय को पुलिस का फ़ोन आया।

कुछ सामान्य प्रश्नोत्तर के बाद पुलिस इंस्पेक्टर ने अजय को उसकी सूझ-बूझ और उस बूढ़े आदमी की सहायता करने के लिए धन्यवाद दिया और यह भी बताया कि उसको इस बार डिपार्टमेंट की तरफ़ से “सर्टिफिकेट ऑफ़ अप्प्रेसिएशन” भी दिया जाएगा। एक समय था जब पुलिस ने एक झूठे आपराधिक केस में उलझा कर उसकी और उसके परिवार की इज़्ज़त की धज्जियाँ उड़ा दी थीं। और एक आज का समय है कि वो उसकी अनुशंसा करना चाहते हैं! समय समय का फेर! उसने सोचा और इस हास्यास्पद स्थिति पर हँसे बिना न रह सका। माँ को भी बताया, तो वो भी उसकी हँसी में शामिल हो गईं - कैसा कठिन समय था वो! इतना कि वो भी उसको याद नहीं करना चाहती थीं।

बाकी का समय सामान्य ही रहा।

लेकिन अजय को रह रह कर आज की बातें याद आ रही थीं - ख़ास कर उस बूढ़े प्रजापति की! कैसा दुर्भाग्य था उनका कि बच्चों के होते हुए भी उनको यूँ अकेले रहना पड़ा, और यूँ अकेले ही - एक अजनबी के सामने - अपने प्राण त्यागने पड़े! क्या ही अच्छा होता अगर बच्चे नहीं, कम से कम उनका कोई हितैषी ही उनके साथ होता। फिर उसने सोचा कि वो उनका हितैषी ही तो था। उस कठिन समय में वो उनके साथ था... उनकी प्राण-रक्षा करने का प्रयास कर रहा था। ऐसे लोग ही तो हितैषी होते हैं!

उसको अपने बड़े (चचेरे) भाई प्रशांत भैया की याद हो आई। वो भी तो माँ से अलग हो गए! इतने साल हो गए - क्या जी रही हैं या मर रही हैं, कुछ जानकारी ही नहीं है उनको। ऐसा तब होता है जब कोई गोल्ड-डिगर लड़की आती है, और आपको आपके परिवार से अलग कर देती है। वही उनके साथ भी हुआ था। बिल्कुल रागिनी के ही जैसी हैं कणिका भाभी! सुन्दर - लेकिन ज़हर बुझी! उनको भैया के घर में सभी से समस्या थी। न जाने क्यों! माँ को उनका विवाह सम्बन्ध पसंद नहीं आया था, क्योंकि उनको कणिका भाभी के परिवार का चरित्र पता था। पुराने सम्बन्धी थे वो - उनके मौसेरे भाई की बेटी थी कणिका भाभी। प्रशांत भैया के अमेरिका जाने के एक साल बाद येन-केन-प्रकारेण वो उसी युनिवर्सिटी में पढ़ने गईं, जहाँ भैया थे।

शायद इसी मिशन के साथ कि वो उनको फँसा लें। भैया भी एक नम्बरी मेहरे आदमी थे। फँस गए!

विचारों की श्रंखला में फिर उसको अपने दिवंगत पिता की याद हो आई।

क्या राजा आदमी थे, और किस हालत में गए! उसकी आँखें भर आईं।

“माँ...” रात में सोने के समय उसने माँ से कहा, “आपके पास लेट जाऊँ?”

“क्या हो गया बेटे?” माँ ने लाड़ से उसके बालों को बिगाड़ते हुए कहा, “सब ठीक है?”

“नहीं माँ...” उसने झिझकते हुए कहा, “आज जो सब हुआ... वो सब... और अब पापा की याद आ रही है... और फिर भैया ने जो सब किया... मन ठीक नहीं है माँ,”

“बस बेटे... ऐसा सब नहीं सोचते!” माँ ने उसको समझाते हुए कहा, “ये सब किस्मत की बातें हैं! भगवान पर भरोसा रखो... सब ठीक हो जाएगा!”

अजय ने ‘हाँ’ में सर हिलाया।

माँ ने मुस्कुराते हुए आगे कहा, “और तुम्हारे पहले क्वेश्चन का आंसर है, हाँ... आ जा! तुमको मुझसे पूछने की ज़रुरत नहीं!”

माँ को पता था कि अजय आज बहुत ही डिस्टर्ब्ड था - ऐसा पहले कुछ बार हो चुका था।

अजय एक अच्छा लड़का था... अपने ख़ुद के बेटे द्वारा उपेक्षित किए जाने के बाद अजय ने उनको सम्हाला था, और बिल्कुल अच्छे बेटे की ही तरह बर्ताव किया था। उसके पास बेहद सीमित साधन शेष थे, लेकिन उसने माँ की हर आवश्यकता का पूरा ध्यान रखा था। अजय वो बेटा था, जो अपना न हो कर भी अपने से कहीं अधिक अपना था! ऐसे बेटे की माँ बनना किसी भी स्त्री का सौभाग्य हो सकता है।

धीरे से आ जा री अँखियन में निंदिया आ जा री आ जा...
चुपके से नयनन की बगियन में निंदिया आ जा री आ जा”

माँ की इस लोरी पर अजय पहले तो मुस्कुराने, फिर हँसने लगा, “... क्या माँ... मैं कोई छोटा बच्चा हूँ कि मुझे लोरी सुना रही हो?”

“नहीं हो?”

“उह हह,” अजय ने ‘न’ में सर हिलाते हुए, मुस्कुराते हुए कहा।

जब माँ से उसने उनके पास लेटने को कहा, तभी वो समझ गईं कि आज बहुत भारी भावनात्मक समस्या में है अजय! समस्या ऐसी, जो उसके मन को खाये ले रही है। वो समझ रही थीं कि क्या चल रहा है उसके मन में... ऐसे में माँ वही करने लगती हैं, जिसको करने से अजय को बहुत सुकून और शांति मिलती है।

“नहीं हो?” माँ ने ब्लाउज़ के बटन खोल कर अपना एक स्तन उसके होंठों से छुवाते हुए कहा, “... आज भी मेरा दुद्धू पीते हो, लेकिन छोटे बच्चे नहीं हो!”

अजय ने मुस्कुरा कर माँ के चूचक को चूम लिया और अपने मुँह में ले कर पीने लगा। पीने क्या लगा - अब कोई दूध थोड़े ही बनता था, जो वो पीने लगता। लेकिन यह एक अवसर होता था माँ के निकट होने का, उनकी ममता के निकट होने का। उसके कारण उसको बहुत शांति मिलती थी।

किरण जी जानती थीं कि अजय का मन जब क्लांत होता है, तब स्तनपान से उसको बहुत शांति मिलती है। जब वो बहुत छोटा था, तब वो और अजय की माँ, प्रियंका जी, दोनों मिल कर अपने बेटों अजय और प्रशांत को बारी बारी से स्तनपान करातीं। इस परिवार में दोनों बच्चों में कोई अंतर नहीं था... और न ही कभी कोई अंतर किया गया। प्रशांत के स्तनपान छोड़ने के बाद से आयुष को दोनों माँओं से स्तनपान करने का एक्सक्लूसिव अधिकार मिल गया था। ख़ैर, दस साल की उम्र तक स्तनपान करने के बाद वो बंद हो ही गया।

लेकिन उसकी माँ की असमय मृत्यु के बाद से किरण जी ने पुनः उसको स्तनपान कराना शुरू कर दिया था। उस समय पुनः माँ बनने के कारण उनको दूध आता था। यह कुछ वर्षों तक चला। उसके बाद जब अजय वयस्क हुआ, तो फिर यह काम बंद हो गया। लेकिन जेल से छूटने के बाद अजय मनोवैज्ञानिक समस्याओं से जूझ रहा था। लिहाज़ा, अब जब भी स्तनपान होता, तो वो अधिकतर मनोवैज्ञानिक कारणों के कारण ही होता। पिछले कुछ वर्षों में उन दोनों के ही जीवन में तबाही आ गई थी - अजय के पिता की मृत्यु हो गई, फिर उनका कारोबार पूरी तरह से चौपट हो गया, अजय की पढ़ाई लिखाई भी कहीं की न रही, प्रशांत भैया ने भी उन दोनों से सारे रिश्ते नाते तोड़ लिए, फिर अजय की शादी ख़राब हो गई, माँ - बेटे दोनों दहेज़ के झूठे केस में जेल में रहे... अंतहीन यातनाएँ!

पिछले एक साल से, जेल से छूट कर आने के बाद अब शांति आई है। भारी क़ीमत चुकाई उन दोनों ने, लेकिन शांति आई तो! किरण जी ने यह अवश्य देखा कि कैसी भी गन्दी परिस्थिति क्यों न हो, उनके स्तनों का एहसास पा कर अजय मानसिक और भावनात्मक रूप से शांत हो जाता था - अगली कठिन परिस्थिति का सामना करने के लिए! इसलिए वो कभी भी अजय की स्तनपान करने की प्रार्थना को मना नहीं करती थीं।

“माँ?” कुछ देर बाद अजय ने कहा,

“हाँ बेटे?”

“कभी कभी सोचता हूँ कि काश आपको दूध आता...” वो दबी हुई हँसी हँसते हुए बोला।

“हा हा... बहुत अच्छा होता तब तो! तुझे रोज़ पिलाती अपना दूध!”

“सच में माँ?”

“और क्या!” फिर जैसे कुछ याद करती हुई बोलीं, “बेटे, तुझे दिल्ली वाले अमर भैया याद हैं?”

“हाँ माँ, क्यों? क्या हुआ? ऐसे आपको उनकी याद कैसे आ गई?”

“तू अमर से बात कर न... नौकरी के लिए? ... उसका बिजनेस तो बढ़िया चल रहा है न?”

“हाँ माँ!” अजय को जैसे यह बात इतने सालों में सूझी ही न हो, “आख़िरी बार बात हुई थी तो सब बढ़िया ही था! हाल ही में तो उनकी और उनकी कंपनी की ख़बर भी छपी थी अखबार में... उनसे बात करता हूँ! ... थैंक यू, माँ! मुझे सच में कभी उनकी याद ही नहीं आई इस बारे में!”

माँ बस ममता से मुस्कुराईं।

... लेकिन आपको उनकी याद कैसे आई?”

“अरे, कोई सप्ताह भर पहले काजल से बात हुई थी...”

“अच्छा? आपके पास उनका नंबर है?”

“हाँ... तुझे मैंने कभी बताया नहीं, लेकिन एक बार आई थी वो मिलने जेल में!”

“हे भगवान!” अजय ने सर पीट लिया।
शायद ही कोई ऐसा जानने वाला बचा हो, जिसको इनके संताप के बारे में न पता चला हो! अजय को इस तरह से 'प्रसिद्ध' होना अच्छा नहीं लगता। लेकिन अच्छे लोगों की... हितैषियों की पहचान कठिनाई के समय में ही होती है।

“नहीं बेटे! बहुत अच्छे लोग हैं वो। ... बहुत कम लोग ही हैं जिनको दोस्ती यारी याद रही! देखो न, कौन याद करता है हमको?”

“हम्म्म... अच्छा, वो सब छोड़ो माँ! क्या बोल रही थीं काजल आंटी?”

“मुंबई में ही रहती है अब। ... वो भी और सुमन भी! तुझे मालूम है?”

“नहीं!”

“हाँ, मुंबई में रहती है वो। सुमन भी! ... काजल ने बताया कि बहू को बेटी हुई है!”

“वाओ! सुमन आंटी को? वाओ! अमेज़िंग! कब? ... ये... तीसरा बच्चा है न उनका?”

“अमर को क्यों भूल जाते हो? चौथा बच्चा है...” उन्होंने कहा, “कोई नौ दस महीने की हो गई है अब उसकी बेटी भी!”

“सुमन ऑन्टी बहुत लकी हैं!”

“सुमन और काजल दोनों ही बहुत लकी हैं... दोनों की फ़िर से शादी भी हुई और बच्चे भी!” माँ जैसे चिंतन करती हुई बोलीं, “बहुत प्यारी फैमिली है... इतने दुःख आए उन पर, लेकिन हर दुःख के बाद वो सभी और भी मज़बूत हो गए...”

“जैसा आपने कहा माँ, सब किस्मत की बातें हैं!”

“हाँ बेटे...”

“हमको काजल या सुमन आंटी जैसी बहुएँ क्यों नहीं मिलीं, माँ?”

“किस्मत की बातें हैं बेटे... सब किस्मत की बातें हैं!” इस बार बहुत कोशिश करने पर भी किरण जी की आँखों से आँसू टपक ही पड़े!

अजय नहीं चाहता था कि माँ बहुत दार्शनिक हो जाएँ, इसलिए उसने चुहल करते हुए कहा,

“माँ... अमर भैया भी तो आंटी जी का दूधू पीते थे न?”

माँ ने ‘हाँ’ में सर हिलाया, “अभी भी! ... अब तो और समय तक पिएगा!”


[प्रिय पाठकों : अमर, काजल, और सुमन के बारे में जानने के लिए मेरी कहानी “मोहब्बत का सफ़र” अवश्य पढ़ें!]


“माँ, आप भी शादी कर लीजिए... फिर मैं भी आपका दूध पियूँगा!”

“हा हा! शादी कर तो लूँ, लेकिन अब कहाँ होंगे मुझे बच्चे!”

“क्यों?”

“अरे! सत्तावन की हो रही हूँ! अगर चाहूँ भी, तो भी ये सब नहीं होने वाला!”

“हम्म्म, मतलब चाह तो है आपको,” अजय ने फिर से चुहल करी।

माँ ने प्यार से उसके कान को उमेठा, “क्या रे, अपनी माँ से चुहल करता है?”

“सॉरी माँ, आऊऊ...” अजय ने अपने कान को सहलाते हुए कहा, “लेकिन माँ, अगर आपको अपनी कोई अधूरी इच्छा पूरी करनी हो, तो वो क्या होगी?”

“तुझे अपनी कोख से जनम देना चाहूँगी मेरे लाल... तेरी असली वाली माँ बनना चाहूँगी... ताई माँ नहीं!” माँ ने बड़ी ममता से कहा, “मेरी एक और भी इच्छा है - और वो ये है कि तेरी किसी बहुत ही अच्छी लड़की से शादी हो!”

“हा हा! पेट भरा नहीं आपका माँ दो दो बहुओं से? ... मेरा तो एक ही बीवी से भर गया माँ... अच्छे से!”

“बेटे, मैं अच्छी सी लड़की की बात कर रही हूँ... ऐसी जो तुझे चाहे... जो तेरी ताक़त बन कर रहे!”

“हा हा! क्या माँ - सपने देखने की आदत नहीं गई तुम्हारी!” अजय ने फ़ीकी सी हँसी हँसते हुए कहा।

“लव यू टू बेटे,” माँ ने उसके मज़ाक को नज़रअंदाज़ कर के, उसके माथे को चूमते हुए कहा, “सो जाओ अब?”

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avsji

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अपडेट 4


कब नींद आ गई उसे, उसको नहीं पता।

लेकिन सोते समय बड़े अजीब से सपने आए उसको...

उसको ऐसा लगा कि जैसे उसके जीवन के सभी अनुभव... जीवन का हर एक पल एक रबड़ जैसी एक अथाह चादर पर बिखेर दिए गए हों, और वो चादर हर दिशा में खिंच रही हो। चादर अपने आप में बेहद काले रंग की थी... शायद आदर्श कृष्णिका रही हो! “आदर्श कृष्णिका” भौतिकी में ऐसी काली सतह या पदार्थ होता है, जो किसी भी प्रकार की रोशनी को पूरी तरह से सोख़ ले, और उसमें से कुछ भी प्रतिबिंबित या उत्सर्जित न होने दे!

चादर अवश्य ही आदर्श कृष्णिका रही हो, लेकिन हर तरफ़ अजीब सी रोशनियाँ दीप्तिमान थीं। ऐसी रोशनियाँ जो आज तक उसने महसूस तक नहीं करी थीं! उस चादर पर उसने ख़ुद को खड़ा हुआ महसूस किया। लेकिन उसको अपना शरीर भी नहीं महसूस हो रहा था। उसको ऐसा लग रहा था कि जैसे उसका खुद का शरीर भी उसी रबड़ जैसी चादर का ही हिस्सा हो।

चादर निरंतर खिंचती चली जा रही थी, और उसके खिंचते खिंचते अजय के जीवन ही हर घटना जगमग ज्योतिर्मय होने लगी और वो उस जगमग सी वीथी पर अबूझ से पग भरते हुए आगे बढ़ रहा था।

उसने यह भी महसूस किया कि अचानक से उसके जीवन की कई घटनाओं में आग लग गई हो और वो बड़ी तेजी से धूं धूं कर के जलने लगीं। वो भाग कर उनको जलने से बचाना चाह रहा था, लेकिन वो चादर थी कि उसका फैलना और खिंचना रुक ही नहीं रहा था!

अजय बस निःस्सहाय सा अपने ही अवचेतन में स्वयं को समाप्त होते महसूस कर रहा था। लेकिन वो कुछ नहीं कर पा रहा था। जैसे उसको लकवा मार गया हो। और उसको जब ऐसा लगने लगा कि उसकी सारी स्मृतियाँ जल कर भस्म हो जाएँगी, और यह उसके जीवन की चादर फट कर चीथड़े में परिवर्तित हो जाएगी, अचानक से सब रुक गया।

एक तेज श्वेत रौशनी का झमका हुआ, और अचानक से ही सब कुछ उल्टा होने लगा। जो चादर एक क्षण पहले तक फ़ैल और खिंच रही थी, अब वो बड़ी तेजी से हर दिशा से सिकुड़ने लगी। संकुचन का दबाव अत्यंत पीड़ादायक था। अजय वहाँ से निकल लेना चाहता था, लेकिन उसके पैर जैसे उस चादर पर जम गए हों! कुछ ही पलों में अजय का सारा जीवन, किसी बॉल-बिअरिंग के छोटे से छर्रे जितना सिकुड़ गया। आश्चर्यजनक था कि वो खुद अपने जीवन के ‘छर्रे’ को देख भी पा रहा था और उसका हिस्सा भी था!

और फिर अचानक से सब कुछ शून्य हो गया!



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(सपने को दर्शाना आवश्यक था शायद! यह पहली और आखिरी बार है कि कहानी के बीच में किसी चित्र का प्रयोग होगा। यह चित्र AI की मदद से बनाया गया है...)
 

kas1709

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अपडेट 2


अजय ने अपनी कलाई की घड़ी को देखा, “इमरजेंसी सर्विस न जाने कब आएगी!”

“आ जाएगी बच्चे!” प्रजापति ने मुस्कुरा कर अपनी टूटी फूटी दर्द-भरी आवाज़ में कहा, “... मैं बहुत बोल नहीं पाऊँगा... तकलीफ़ होती है। तुम ही सब कहो! अपने बारे में बताओ कुछ...”

“क्या है बताने को अंकल जी? कुछ भी नहीं!”

“अरे! ऐसे न कहो बेटे! अपने रक्षक के बारे में जानने का कुछ तो हक़ है न मुझे?”

“हा हा हा... रक्षक! क्या अंकल जी!” अजय ने हँसते हँसते कहा, “ठीक है, कहता हूँ!”

“हम दिल्ली में रहते थे... हम, मतलब मेरे मम्मी पापा... मैं... और मेरे काका ताई!” अजय ने बताना शुरू किया, “पापा का बिज़नेस था, जो उन्होंने मम्मी के साथ शुरू किया था। मम्मी तब चल बसीं जब मैं पंद्रह साल का था। ... एक्चुअली, एक रोड एक्सीडेंट में माँ और काका चल बसे।”

प्रजापति ने सहानुभूति में सर हिलाया।

“फिर पापा ने ख़ुद को काम में झोंक दिया। ... लेकिन उनकी किस्मत ऐसी ख़राब निकली कि कई सालों तक बिज़नेस में उनको नुक़सान उठाना पड़ा। बहुत टेंशन में थे वो... एक दिन उसी के चलते उनको हार्ट अटैक हुआ और वो चल बसे!”

“आई ऍम सो सॉरी बेटे... इतनी कम उम्र में माँ बाप को खोना...” प्रजापति ने सर हिलाते हुए कहा, “और तुम?”

“जी कुछ भी ख़ास नहीं! बस, ऍमसीए करने के बाद छोटी मोटी नौकरियाँ करता रहा हूँ... अभी भी स्ट्रगल चल रहा है! घर में बस ताई जी हैं... तो वो ही मेरा परिवार हैं!”

“उनके बच्चे हैं?”

“एक बेटा है उनका... अमेरिका में! लेकिन वो अपने में ही खुश हैं!”

“शादी?”

“हाँ... उनकी शादी हो गई है!”

बूढ़ा बहुत मुश्किल से मुस्कुराया, “नहीं... तुम्हारी...”

अजय ने फ़ीकी हँसी हँसते हुए कहा, “हाँ... हुई थी शादी... लेकिन उसकी याद न ही करूँ तो बेहतर!”

“क्या हुआ?”

“होना क्या है अंकल जी... वही जो आज कल हर रोज़ हज़ारों आदमियों के साथ हो रहा है! ... उसने ताई जी और मुझ पर दहेज़ और डोमेस्टिक वायलेंस का झूठा केस लगा दिया!”

कहते हुए उसके मन में कड़वी यादें ताज़ा हो गईं!

रागिनी... उसकी पत्नी -- नहीं, भूतपूर्व पत्नी... एक्स वाइफ... के साथ बिताया गया एक एक पल जैसे नश्तर पर चलने के समान था। विदा हो कर आते ही उसने गिरगिट की तरह रंग दिखाने शुरू कर दिए थे। परिवार को तोड़ने की हर कला में निपुण थी वो! ऊपर से देश का कानून - दफ़ा 498A की बलि-वेदी पर अनगिनत भारतीय पुरुषों की बलि चढ़ चुकी है... एक उसकी भी सही!

“ऐसे में कोई कुछ सुनता थोड़े ही है! ... उसके चलते हम दोनों को तीन साल जेल में रहना पड़ा। न कोई सुनवाई न कुछ! ... डिवोर्स के सेटलमेंट में पापा का घर उसने हड़प लिया। ... बाद में दहेज़ का केस झूठा साबित हुआ... वायलेंस का भी... लेकिन तब तक हमारा सब कुछ बर्बाद हो गया था। वो सब होने से पहले वो पापा का घर भी बेच कर, सब कुछ सफ़ाचट कर के चम्पत हो गई... पुलिस को उसको ढूंढने में कोई इंटरेस्ट नहीं था। ... बस... इस तरह पीछे रह गए बस माँ और मैं!”

यह सब याद कर के अजय का मन खट्टा हो गया, “... जेल जाने के कारण जो छोटे मोटे काम मिलते थे, वो भी बंद हो गए। अब बस जैसे तैसे दो जून की रोटी का जुगाड़ हो पाता है, बस!”

प्रजापति ने निराशा में अपना सर झुका लिया, “क्या हो गया है समाज को... संसार को! हर तरफ़ बस नीचता ही नीचता!”

“हा हा! समाज और संसार को हम बदल तो नहीं सकते न अंकल जी!”

“तो क्या बदलना चाहते हो?” प्रजापति ने पूरी सहानुभूति से पूछा, “अगर उस लड़की... मतलब तुम्हारी बीवी से फिर से मुलाक़ात हो जाए, तो बदला लोगे उससे?”

“आपको क्या लगता है? इतना कुछ हो जाने के बाद मैं उसकी शक्ल भी देखना चाहूँगा?”

“फ़िर?”

“नहीं अंकल जी... मैं वैसी ज़हरीली सी लड़की फ़िर कभी भी अपनी ज़िन्दगी में देखना नहीं चाहूँगा... न ही कभी देखना और न ही कभी मिलना! कम से कम ये तो होना ही चाहिए!”

प्रजापति ने मुस्कुराते हुए कहा, “वो भी ठीक बात है! फिर क्या चाहते हो?”

“अंकल जी,” अजय ने कुछ देर सोचते हुए कहा, “एक मौका चाहता हूँ बस... एक मौका कि जो कुछ जानता हूँ, काश उसका एक बेहतर तरीक़े से इस्तेमाल कर सकता... काश कि अपने पापा, अपनी मम्मी के लिए कुछ कर सकता! ताई माँ को एक बेहतर ज़िन्दगी दे सकता...”

“अपनी ताई माँ को एक बेहतर ज़िन्दगी तो अभी भी दे सकते हो!”

इस बात पर अजय चुप रहा, और ‘हाँ’ में सर हिलाया।

“... तो सच में... क्या चाहते हो?”

“अपने पापा को थोड़ी ख़ुशी देना चाहता हूँ, अंकल जी... मैं यह अक्सर ही सोचता हूँ कि काश एक मौका मिल जाए कि उनको थोड़ी खुशियाँ दे सकूँ... उन्होंने बहुत कुछ किया मेरे लिए, लेकिन मैं ही कुछ न कर सका...”

बहुत कुछ कहना चाहता था अजय, लेकिन शब्द मौन हो गए। इच्छाओं की कोई सीमा नहीं होती। लेकिन उसने जब ठहर कर सोचा, तो बस इतना ही तो चाहता था वो!

“बीता हुआ समय वापस नहीं आता न बेटे,” प्रजापति ने जैसे समझाते हुए कहा।

“जी अंकल जी... बीता हुआ समय वापस नहीं आता!”

अजय ने एक गहरा निःश्वास छोड़ते हुए कहा।

उसी समय एम्बुलेंस की आवाज़ आती हुई सुनाई देने लगी। अजय ने अपनी घड़ी में देखा,

“अंकल जी, एम्बुलेंस आने ही वाली है! आप घबराइएगा नहीं। सब ठीक हो जाएगा!”

प्रजापति मुस्कुराए, “तुम बहुत अच्छे हो, अजय बेटे! ... अपनी अच्छाई बनाए रखना!” कह कर उन्होंने अपना झुर्रियों से भरा हाथ अजय के सर पर फिराया, “... और अपना ध्यान रखना बेटे... अपने पथ से डिगना मत! जो सोचा हुआ है, वो करना... और मतिभ्रम न होने देना...!” प्रजापति की आवाज़ धीमी पड़ रही थी - लेकिन उनकी आँखों की चमक बरक़रार!

“थैंक यू अंकल जी,” अजय मुस्कुराते हुए बोला, “लेकिन आप तो ऐसे कह रहे हैं जैसे कि आप मुझे बाय बाय कर रहे हैं! ऐसे नहीं छोड़ूँगा आपको... हॉस्पिटल चल रहा हूँ आपके साथ, और आपको देखने रोज़ आता रहूँगा...”

इतना कह कर अजय अपनी जगह से उठ कर सड़क के किनारे खड़ा हो गया, और हाथ हिलाने लगा, जिससे कि आती हुई एम्बुलेंस उसको देख सके।

कोई मिनट भर में ही एम्बुलेंस उसके सामने आ खड़ी हुई। एक नर्स और एक पैरामेडिक तेजी से एम्बुलेंस से उतरे, और उनकी तरफ़ बढ़े। अजय को राहत हुई... समय व्यय हुआ, लेकिन कम से कम प्रजापति जी को समुचित चिकित्सा तो मिल ही सकती है। अजय ने इशारा कर के नर्स और पैरामेडिक को मरीज़ की तरफ़ जाने को कहा।

पैरामेडिक ने स्टेथोस्कोप लगा कर प्रजापति जी की हृदयगति नापी और बड़ी विचित्र दृष्टि से अजय की तरफ़ देखा।

“क्या हुआ?” अजय ने आशंकित होते हुए पैरामेडिक से पूछा।

“ही इस नो मोर...”

“क्या?!” अजय इस खुलासे पर चौंक गया, “... लेकिन आप लोगों के आने के एक मिनट पहले तक ही तो मैं इनसे बात कर रहा था! ऐसे कैसे...?” वो भाग कर प्रजापति जी के पास पहुँचा।

उसने देखा कि प्रजापति जी वाक़ई बड़े सुकून से अपनी चिर-निद्रा को प्राप्त हो गए थे।

“मतलब इतना सब किया वो सब बेकार गया!” वो बड़बड़ाया।

“जी?” पैरामेडिक ने पूछा।

“जी, मैंने इनको सीपीआर दिया था...” अजय की आँखों में आँसू आ गए, “हमने कुछ देर तक बातें भी करीं! ... मुझे तो लगा था कि...”

“आई ऍम सॉरी,” पैरामेडिक ने सहानुभूतिपूर्वक कहा, “लेकिन इतनी एडवांस्ड एज में कुछ भी हो सकता है... इन्होने आपको कुछ बताया? कोई रिलेटिव या कोई और... जिनको हम इत्तला दे सकते हैं?”

“बता रहे थे कि इनके बच्चे विदेश में रहते हैं... कहाँ, वो मुझको बताया नहीं।”

“इनके पर्सनल इफेक्ट्स में कोई इन्फॉर्मेशन मिल सकती है,” कह कर उसने प्रजापति जी की कार की तलाशी लेनी शुरू कर दी।

कुछ देर बाद उसने निराश हो कर कहा, “... फ़ोन भी नहीं है!”

फिर उनका बटुआ निकाल कर बोला, “विश्वकर्मा प्रजापति... पुणे में रहते हैं... थे...”

कुछ देर तक वो प्रशासनिक काम करता रहा, फिर अजय से बोला, “आप अपना कांटेक्ट दे दीजिए... वैसे तो आपको कांटेक्ट करने की कोई ज़रुरत नहीं पड़ेगी, लेकिन अगर पुलिस को कोई ज़रुरत हुई, तो आपको कांटेक्ट करेंगे!”

“ठीक है...” अजय ने कहा, और अपना नाम पता और फ़ोन नंबर लिखवाने लगा।

इस पूरे काम में बहुत समय लग गया था, और मीटिंग के लिए पहुँचने में बहुत देर लगने वाली थी। अब मुंबई जाने का कोई मतलब नहीं था। इसलिए अजय वापस पुणे की तरफ़ हो लिया।


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Nice update....
 

Riky007

उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
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तो अजय के जीवन में अगर कुछ अच्छा है तो वो उसकी ताई मां हैं,चलिए अच्छा है कि इस उथल pathal भरे जीवन में कुछ तो भावनात्मक सहारा है।

अमर की एंट्री करवाएंगे क्या, या प्रजापति जी ही कुछ उद्धार करेंगे अजय के आर्थिक जीवन का?

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parkas

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“अरे... अज्जू बेटे, इतनी जल्दी वापस आ गए?” अजय की ताई माँ - किरण जी - ने आश्चर्यचकित होते हुए कहा।

समय के हिसाब से उसको देर रात तक वापस आना चाहिए था।

“... मीटिंग जल्दी ख़तम हो गई क्या बेटे?”

किरण जी - अजय के पिता अशोक जी के बड़े भाई अनामि जी की पत्नी थीं। पूरे परिवार में अब केवल वो ही शेष रही थीं, और वो अजय के साथ थीं, पास थीं... लिहाज़ा, वो हर प्रकार से अजय की माता जी थीं। इसलिए वो भी उनको ‘माँ’ ही कहता था।

“नहीं माँ,” अजय ने जूते उतारते हुए कहा, “हुआ यह कि रास्ते में एक एक्सीडेंट हो गया... उसके कारण मैं मुंबई पहुँच ही नहीं पाया!”

“क्या?” माँ तुरंत ही चिंतातुर होते हुए बोलीं, “तुझे चोट वोट तो नहीं लगी? ... दिखा... क्या हुआ?”

माँ लोगों की छठी इन्द्रिय ऐसी ही होती है - बच्चों के मुँह से रत्ती भर भी समस्या सुन लें, तो उनको लगता है कि अनर्थ ही हो गया होगा।

“नहीं माँ,” कह कर अजय ने माँ को पूरी कहानी सुनाई।

“सॉरी बेटे... कि वो बच नहीं सके!” माँ ने सहानुभूतिपूर्वक कहा, “लेकिन, तूने पूरी कोशिश करी... वो ज़्यादा मैटर करता है। ... वैसे भी वो बूढ़े पुरुष थे...”

“हाँ माँ,” अजय बोला, “... लेकिन सच में माँ, मुझको एक समय में वाक़ई लग रहा था कि वो बच जाएँगे...”

“समय होता है बेटा जाने का... सभी का समय होता है।” माँ ने गहरी साँस भरते हुए कहा, फिर बात बदलते हुए बोलीं, “वैसे चलो, बहुत अच्छा हुआ कि तू जल्दी आ गया... मैं भी सोच रही थी कि तेरे वापस आने तक कैसे समय बीतेगा! ... अब तू आ गया है, तो तेरी पसंद की कच्छी दाबेली बनाती हूँ और अदरक वाली चाय!”

अजय ख़ुशी से मुस्कुराया, “हाँ माँ! मज़ा आ जाएगा!”

कुछ समय बाद माँ बेटा दोनों कच्छी दाबेली और अदरक वाली चाय का आनंद ले रहे थे। अब तो यही आलम थे - ऐसी छोटी छोटी बातों से ही खुशियाँ मिल रही थीं। जेल के अंदर तो... ख़ैर!

चाय नाश्ता ख़तम हुआ ही था कि अजय को पुलिस का फ़ोन आया।

कुछ सामान्य प्रश्नोत्तर के बाद पुलिस इंस्पेक्टर ने अजय को उसकी सूझ-बूझ और उस बूढ़े आदमी की सहायता करने के लिए धन्यवाद दिया और यह भी बताया कि उसको इस बार डिपार्टमेंट की तरफ़ से “सर्टिफिकेट ऑफ़ अप्प्रेसिएशन” भी दिया जाएगा। एक समय था जब पुलिस ने एक झूठे आपराधिक केस में उलझा कर उसकी और उसके परिवार की इज़्ज़त की धज्जियाँ उड़ा दी थीं। और एक आज का समय है कि वो उसकी अनुशंसा करना चाहते हैं! समय समय का फेर! उसने सोचा और इस हास्यास्पद स्थिति पर हँसे बिना न रह सका। माँ को भी बताया, तो वो भी उसकी हँसी में शामिल हो गईं - कैसा कठिन समय था वो! इतना कि वो भी उसको याद नहीं करना चाहती थीं।

बाकी का समय सामान्य ही रहा।

लेकिन अजय को रह रह कर आज की बातें याद आ रही थीं - ख़ास कर उस बूढ़े प्रजापति की! कैसा दुर्भाग्य था उनका कि बच्चों के होते हुए भी उनको यूँ अकेले रहना पड़ा, और यूँ अकेले ही - एक अजनबी के सामने - अपने प्राण त्यागने पड़े! क्या ही अच्छा होता अगर बच्चे नहीं, कम से कम उनका कोई हितैषी ही उनके साथ होता। फिर उसने सोचा कि वो उनका हितैषी ही तो था। उस कठिन समय में वो उनके साथ था... उनकी प्राण-रक्षा करने का प्रयास कर रहा था। ऐसे लोग ही तो हितैषी होते हैं!

उसको अपने बड़े (चचेरे) भाई प्रशांत भैया की याद हो आई। वो भी तो माँ से अलग हो गए! इतने साल हो गए - क्या जी रही हैं या मर रही हैं, कुछ जानकारी ही नहीं है उनको। ऐसा तब होता है जब कोई गोल्ड-डिगर लड़की आती है, और आपको आपके परिवार से अलग कर देती है। वही उनके साथ भी हुआ था। बिल्कुल रागिनी के ही जैसी हैं कणिका भाभी! सुन्दर - लेकिन ज़हर बुझी! उनको भैया के घर में सभी से समस्या थी। न जाने क्यों! माँ को उनका विवाह सम्बन्ध पसंद नहीं आया था, क्योंकि उनको कणिका भाभी के परिवार का चरित्र पता था। पुराने सम्बन्धी थे वो - उनके मौसेरे भाई की बेटी थी कणिका भाभी। प्रशांत भैया के अमेरिका जाने के एक साल बाद येन-केन-प्रकारेण वो उसी युनिवर्सिटी में पढ़ने गईं, जहाँ भैया थे।

शायद इसी मिशन के साथ कि वो उनको फँसा लें। भैया भी एक नम्बरी मेहरे आदमी थे। फँस गए!

विचारों की श्रंखला में फिर उसको अपने दिवंगत पिता की याद हो आई।

क्या राजा आदमी थे, और किस हालत में गए! उसकी आँखें भर आईं।

“माँ...” रात में सोने के समय उसने माँ से कहा, “आपके पास लेट जाऊँ?”

“क्या हो गया बेटे?” माँ ने लाड़ से उसके बालों को बिगाड़ते हुए कहा, “सब ठीक है?”

“नहीं माँ...” उसने झिझकते हुए कहा, “आज जो सब हुआ... वो सब... और अब पापा की याद आ रही है... और फिर भैया ने जो सब किया... मन ठीक नहीं है माँ,”

“बस बेटे... ऐसा सब नहीं सोचते!” माँ ने उसको समझाते हुए कहा, “ये सब किस्मत की बातें हैं! भगवान पर भरोसा रखो... सब ठीक हो जाएगा!”

अजय ने ‘हाँ’ में सर हिलाया।

माँ ने मुस्कुराते हुए आगे कहा, “और तुम्हारे पहले क्वेश्चन का आंसर है, हाँ... आ जा! तुमको मुझसे पूछने की ज़रुरत नहीं!”

माँ को पता था कि अजय आज बहुत ही डिस्टर्ब्ड था - ऐसा पहले कुछ बार हो चुका था।

अजय एक अच्छा लड़का था... अपने ख़ुद के बेटे द्वारा उपेक्षित किए जाने के बाद अजय ने उनको सम्हाला था, और बिल्कुल अच्छे बेटे की ही तरह बर्ताव किया था। उसके पास बेहद सीमित साधन शेष थे, लेकिन उसने माँ की हर आवश्यकता का पूरा ध्यान रखा था। अजय वो बेटा था, जो अपना न हो कर भी अपने से कहीं अधिक अपना था! ऐसे बेटे की माँ बनना किसी भी स्त्री का सौभाग्य हो सकता है।

धीरे से आ जा री अँखियन में निंदिया आ जा री आ जा...
चुपके से नयनन की बगियन में निंदिया आ जा री आ जा”

माँ की इस लोरी पर अजय पहले तो मुस्कुराने, फिर हँसने लगा, “... क्या माँ... मैं कोई छोटा बच्चा हूँ कि मुझे लोरी सुना रही हो?”

“नहीं हो?”

“उह हह,” अजय ने ‘न’ में सर हिलाते हुए, मुस्कुराते हुए कहा।

जब माँ से उसने उनके पास लेटने को कहा, तभी वो समझ गईं कि आज बहुत भारी भावनात्मक समस्या में है अजय! समस्या ऐसी, जो उसके मन को खाये ले रही है। वो समझ रही थीं कि क्या चल रहा है उसके मन में... ऐसे में माँ वही करने लगती हैं, जिसको करने से अजय को बहुत सुकून और शांति मिलती है।

“नहीं हो?” माँ ने ब्लाउज़ के बटन खोल कर अपना एक स्तन उसके होंठों से छुवाते हुए कहा, “... आज भी मेरा दुद्धू पीते हो, लेकिन छोटे बच्चे नहीं हो!”

अजय ने मुस्कुरा कर माँ के चूचक को चूम लिया और अपने मुँह में ले कर पीने लगा। पीने क्या लगा - अब कोई दूध थोड़े ही बनता था, जो वो पीने लगता। लेकिन यह एक अवसर होता था माँ के निकट होने का, उनकी ममता के निकट होने का। उसके कारण उसको बहुत शांति मिलती थी।

किरण जी जानती थीं कि अजय का मन जब क्लांत होता है, तब स्तनपान से उसको बहुत शांति मिलती है। जब वो बहुत छोटा था, तब वो और अजय की माँ, प्रियंका जी, दोनों मिल कर अपने बेटों अजय और प्रशांत को बारी बारी से स्तनपान करातीं। इस परिवार में दोनों बच्चों में कोई अंतर नहीं था... और न ही कभी कोई अंतर किया गया। प्रशांत के स्तनपान छोड़ने के बाद से आयुष को दोनों माँओं से स्तनपान करने का एक्सक्लूसिव अधिकार मिल गया था। ख़ैर, दस साल की उम्र तक स्तनपान करने के बाद वो बंद हो ही गया।

लेकिन उसकी माँ की असमय मृत्यु के बाद से किरण जी ने पुनः उसको स्तनपान कराना शुरू कर दिया था। उस समय पुनः माँ बनने के कारण उनको दूध आता था। यह कुछ वर्षों तक चला। उसके बाद जब अजय वयस्क हुआ, तो फिर यह काम बंद हो गया। लेकिन जेल से छूटने के बाद अजय मनोवैज्ञानिक समस्याओं से जूझ रहा था। लिहाज़ा, अब जब भी स्तनपान होता, तो वो अधिकतर मनोवैज्ञानिक कारणों के कारण ही होता। पिछले कुछ वर्षों में उन दोनों के ही जीवन में तबाही आ गई थी - अजय के पिता की मृत्यु हो गई, फिर उनका कारोबार पूरी तरह से चौपट हो गया, अजय की पढ़ाई लिखाई भी कहीं की न रही, प्रशांत भैया ने भी उन दोनों से सारे रिश्ते नाते तोड़ लिए, फिर अजय की शादी ख़राब हो गई, माँ - बेटे दोनों दहेज़ के झूठे केस में जेल में रहे... अंतहीन यातनाएँ!

पिछले एक साल से, जेल से छूट कर आने के बाद अब शांति आई है। भारी क़ीमत चुकाई उन दोनों ने, लेकिन शांति आई तो! किरण जी ने यह अवश्य देखा कि कैसी भी गन्दी परिस्थिति क्यों न हो, उनके स्तनों का एहसास पा कर अजय मानसिक और भावनात्मक रूप से शांत हो जाता था - अगली कठिन परिस्थिति का सामना करने के लिए! इसलिए वो कभी भी अजय की स्तनपान करने की प्रार्थना को मना नहीं करती थीं।

“माँ?” कुछ देर बाद अजय ने कहा,

“हाँ बेटे?”

“कभी कभी सोचता हूँ कि काश आपको दूध आता...” वो दबी हुई हँसी हँसते हुए बोला।

“हा हा... बहुत अच्छा होता तब तो! तुझे रोज़ पिलाती अपना दूध!”

“सच में माँ?”

“और क्या!” फिर जैसे कुछ याद करती हुई बोलीं, “बेटे, तुझे दिल्ली वाले अमर भैया याद हैं?”

“हाँ माँ, क्यों? क्या हुआ? ऐसे आपको उनकी याद कैसे आ गई?”

“तू अमर से बात कर न... नौकरी के लिए? ... उसका बिजनेस तो बढ़िया चल रहा है न?”

“हाँ माँ!” अजय को जैसे यह बात इतने सालों में सूझी ही न हो, “आख़िरी बार बात हुई थी तो सब बढ़िया ही था! हाल ही में तो उनकी और उनकी कंपनी की ख़बर भी छपी थी अखबार में... उनसे बात करता हूँ! ... थैंक यू, माँ! मुझे सच में कभी उनकी याद ही नहीं आई इस बारे में!”

माँ बस ममता से मुस्कुराईं।

... लेकिन आपको उनकी याद कैसे आई?”

“अरे, कोई सप्ताह भर पहले काजल से बात हुई थी...”

“अच्छा? आपके पास उनका नंबर है?”

“हाँ... तुझे मैंने कभी बताया नहीं, लेकिन एक बार आई थी वो मिलने जेल में!”

“हे भगवान!” अजय ने सर पीट लिया।
शायद ही कोई ऐसा जानने वाला बचा हो, जिसको इनके संताप के बारे में न पता चला हो! अजय को इस तरह से 'प्रसिद्ध' होना अच्छा नहीं लगता। लेकिन अच्छे लोगों की... हितैषियों की पहचान कठिनाई के समय में ही होती है।

“नहीं बेटे! बहुत अच्छे लोग हैं वो। ... बहुत कम लोग ही हैं जिनको दोस्ती यारी याद रही! देखो न, कौन याद करता है हमको?”

“हम्म्म... अच्छा, वो सब छोड़ो माँ! क्या बोल रही थीं काजल आंटी?”

“मुंबई में ही रहती है अब। ... वो भी और सुमन भी! तुझे मालूम है?”

“नहीं!”

“हाँ, मुंबई में रहती है वो। सुमन भी! ... काजल ने बताया कि बहू को बेटी हुई है!”

“वाओ! सुमन आंटी को? वाओ! अमेज़िंग! कब? ... ये... तीसरा बच्चा है न उनका?”

“अमर को क्यों भूल जाते हो? चौथा बच्चा है...” उन्होंने कहा, “कोई नौ दस महीने की हो गई है अब उसकी बेटी भी!”

“सुमन ऑन्टी बहुत लकी हैं!”

“सुमन और काजल दोनों ही बहुत लकी हैं... दोनों की फ़िर से शादी भी हुई और बच्चे भी!” माँ जैसे चिंतन करती हुई बोलीं, “बहुत प्यारी फैमिली है... इतने दुःख आए उन पर, लेकिन हर दुःख के बाद वो सभी और भी मज़बूत हो गए...”

“जैसा आपने कहा माँ, सब किस्मत की बातें हैं!”

“हाँ बेटे...”

“हमको काजल या सुमन आंटी जैसी बहुएँ क्यों नहीं मिलीं, माँ?”

“किस्मत की बातें हैं बेटे... सब किस्मत की बातें हैं!” इस बार बहुत कोशिश करने पर भी किरण जी की आँखों से आँसू टपक ही पड़े!

अजय नहीं चाहता था कि माँ बहुत दार्शनिक हो जाएँ, इसलिए उसने चुहल करते हुए कहा,

“माँ... अमर भैया भी तो आंटी जी का दूधू पीते थे न?”

माँ ने ‘हाँ’ में सर हिलाया, “अभी भी! ... अब तो और समय तक पिएगा!”



[प्रिय पाठकों : अमर, काजल, और सुमन के बारे में जानने के लिए मेरी कहानी “मोहब्बत का सफ़र” अवश्य पढ़ें!]


“माँ, आप भी शादी कर लीजिए... फिर मैं भी आपका दूध पियूँगा!”

“हा हा! शादी कर तो लूँ, लेकिन अब कहाँ होंगे मुझे बच्चे!”

“क्यों?”

“अरे! सत्तावन की हो रही हूँ! अगर चाहूँ भी, तो भी ये सब नहीं होने वाला!”

“हम्म्म, मतलब चाह तो है आपको,” अजय ने फिर से चुहल करी।

माँ ने प्यार से उसके कान को उमेठा, “क्या रे, अपनी माँ से चुहल करता है?”

“सॉरी माँ, आऊऊ...” अजय ने अपने कान को सहलाते हुए कहा, “लेकिन माँ, अगर आपको अपनी कोई अधूरी इच्छा पूरी करनी हो, तो वो क्या होगी?”

“तुझे अपनी कोख से जनम देना चाहूँगी मेरे लाल... तेरी असली वाली माँ बनना चाहूँगी... ताई माँ नहीं!” माँ ने बड़ी ममता से कहा, “मेरी एक और भी इच्छा है - और वो ये है कि तेरी किसी बहुत ही अच्छी लड़की से शादी हो!”

“हा हा! पेट भरा नहीं आपका माँ दो दो बहुओं से? ... मेरा तो एक ही बीवी से भर गया माँ... अच्छे से!”

“बेटे, मैं अच्छी सी लड़की की बात कर रही हूँ... ऐसी जो तुझे चाहे... जो तेरी ताक़त बन कर रहे!”

“हा हा! क्या माँ - सपने देखने की आदत नहीं गई तुम्हारी!” अजय ने फ़ीकी सी हँसी हँसते हुए कहा।

“लव यू टू बेटे,” माँ ने उसके मज़ाक को नज़रअंदाज़ कर के, उसके माथे को चूमते हुए कहा, “सो जाओ अब?”

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Bahut hi badhiya update diya hai avsji bhai....
Nice and beautiful update....
 
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