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Romance फ़िर से

avsji

कुछ लिख लेता हूँ
Supreme
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अपडेट सूची :

दोस्तों - इस अपडेट सूची को स्टिकी पोस्ट बना रहा हूँ!
लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि केवल पहनी पढ़ कर निकल लें। यह केवल आपकी सुविधा के लिए है। चर्चा बंद नहीं होनी चाहिए :)


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Last edited:

KinkyGeneral

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मेरे भाई, इस कहानी के साथ रहिए।
ये आपको ज़रूर पसंद आएगी 😊
ज़रूर भैया, पहले ही update से कहानी जच गई और तीसरे ने तो अब बाँध लिया है। अब तो आपके साथ ही रहेंगे।🌸
 

Rihanna

Don't get too close dear, you may burn yourself up
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अपडेट 1


“अंकल जी,” अजय अंदर ही अंदर पूरी तरह से हिला हुआ था, लेकिन फिर भी ऊपर से स्वयं को संयत दिखाने का पूरा प्रयास कर रहा था कि उस बूढ़े आदमी को डर न महसूस हो, “आप चिंता मत करिए... मैंने इमरजेंसी पर कॉल कर दिया है... एम्बुलेंस बस आती ही होगी!”

बूढ़ा आदमी बहुत मुश्किल से साँसे ले पा रहा था। उसका पूरा शरीर पसीने से भीगा हुआ था और उसके चेहरे पर पीड़ा वाले भाव थे। अजय ने उसको अपनी बोतल से पानी पिलाने की कोशिश करी भी थी, लेकिन वो बस दो तीन छोटी घूँट भर कर रह गया।

दोपहर की कड़ी, चिलचिलाती धूप उसके चेहरे पर पड़ रही थी, इसलिए वो अपनी आँखें भी ठीक से नहीं खोल पा रहा था। अजय ने यह देखा। घोर आश्चर्य की बात थी कि इन पंद्रह मिनटों में कई सारी गाड़ियाँ उनके सामने से चली गई थीं, लेकिन अभी तक एक ने भी अपना वाहन रोक कर माज़रा जानने की ज़हमत नहीं उठाई थी। दुनिया ऐसी ही तो है!

यह देख कर अजय समझ गया कि जो करना है, उसको खुद से ही करना है। उसका खुद का दाहिना कन्धा अपने जोड़ से थोड़ा हट गया था, लेकिन फिर भी उसने अपनी सारी ताक़त इकट्ठा करी और बूढ़े को अपनी बाँहों में उठा लिया। पीड़ा की एक तीव्र लहर उसके दाहिने कन्धे से उठ कर मानों पूरे शरीर में फ़ैल गई। लेकिन उसने कोशिश कर के अपनी ‘आह’ को दबा लिया।

‘बस पाँच छः स्टेप्स (कदम), और फिर कोई प्रॉब्लम नहीं!’ उसने सोचा और बूढ़े को अपनी बाँहों में लिए अपना पहला कदम बढ़ाया।

अजय एक ‘क्लासिक अंडरअचीवर’ था। उसको अपने जीवन में अपनी प्रतिभा और क्षमता के हिसाब से बहुत ही कम सफ़लता मिली थी - इतनी कि उसको समाज एक ‘असफ़ल’ व्यक्ति या फिर एक ‘फेलियर’ कहता था। कम से कम उसके दोस्त तो यही कहते थे!

एक समय था जब उसके कॉलेज में उसके दोस्त और उसके शिक्षक सभी सोचते थे कि अगर आईआईटी न सही, वो एक दिन किसी न किसी अच्छे इंजीनियरिंग कॉलेज - जैसे रीजनल इंजीनियरिंग कॉलेज - में तो जाएगा ही जाएगा! उसके आस पड़ोस की आंटियाँ सोचती थीं कि उनके बच्चे अजय के जैसे हों। लेकिन ऊपरवाले ने उसकी तक़दीर न जाने किस क़लम से लिखी हुई थी। एक के बाद एक विपत्तियों और असफ़लताओं ने उसको तोड़ कर रख दिया था। ठीक कॉलेज से इंजीनियरिंग करना तो छोड़िए, इंजीनियरिंग कर पाना भी दूर का सपना बन गया। लिहाज़ा, मन मार कर उसको बीएससी और फ़िर ऍमसीए की डिग्री से ही समझौता करना पड़ा। आज तक उसकी एक भी ढंग की नौकरी नहीं लगी - एक आईटी कंपनी में नौकरी लगी थी, लेकिन वो दुर्भाग्यवश छूट गई। फिर, कभी किसी स्कूल में टीचर, तो कभी इंश्योरेंस एजेंट, तो कभी एमवे जैसी स्कीमें! कुछ बड़ा करने की चाह, कुछ हासिल कर पाने ही चाह दिन-ब-दिन बौनी होती जा रही थी।

वो बूढ़े को अपनी बाँहों में उठाये पाँच छः कदम चल तो लिया, लेकिन अभी भी छाँव दूर थी। ऐसी चटक धूप में छाँव भी चट्टानों और पेड़ों के ठीक नीचे ही मिलती है। उसको लग रहा था कि अब उसका हाथ टूट कर गिर जाएगा। लेकिन वैसा होने पर उस बूढ़े को अभूतपूर्ण हानि होनी तय थी। जैसे तैसे तीन चार ‘और’ कदम की दूरी तय करनी ही थी। अजय ने गहरी साँस भरी, और आगे चल पड़ा।

संयोग भी देखिए - आज 'एमवे' की मीटिंग थी मुंबई में। उसी के सिलसिले में वो अपने पुणे वाले घर से निकला था मुंबई को। जब उसने मुंबई-पुणे एक्सप्रेस वे पकड़ा, तब उसको लगा था कि आज तो आराम से पहुँच जाएगा वो! सामान्य दिनों के मुकाबले आज ट्रैफिक का नामोनिशान ही नहीं था जैसे। लेकिन फिर उसने अपने सामने वाली गाड़ी को देखा - बहुत अजीब तरीक़े से चला रहा था उसका ड्राइवर। कभी इस लेन में, तो कभी उस लेन में। लोगों में ड्राइविंग करने की तमीज़ नहीं है, लेकिन ऐसा गड़बड़ तो कम ही लोग चलाते हैं। कहीं ड्राइवर को कोई समस्या तो नहीं है - यह सोच कर न जाने क्यों अजय उस गाड़ी से कुछ दूरी बना कर उसके पीछे ही चलने लगा।

कुछ ही क्षणों में उसकी शंका सच साबित हुई।

अचानक से ही सामने वाली गाड़ी सड़क के बीचों-बीच चीख़ती हुई सी रुक गई - कुछ ऐसे कि लेन के समान्तर नहीं, बल्कि लेन के लंबवत। यह स्थिति ठीक नहीं थी। फिलहाल ट्रैफिक बहुत हल्का था - बस इक्का दुक्का गाड़ियाँ ही निकली थीं उसके सामने से, लेकिन यह स्थिति कभी भी बदल सकती थी। उसने जल्दी से अपनी गाड़ी सड़क के किनारे पार्क करी और भाग कर अपने सामने वाली गाड़ी की तरफ़ गया। यह बहुत ही डरावनी स्थिति थी - सौ किलोमीटर प्रति घण्टे वाली सड़क पर पैदल चलना - मतलब जानलेवा दुर्घटना को न्यौता देना। लेकिन क्या करता वो!

जब उसने उस गाड़ी में झाँक कर देखा तो पाया कि एक बूढ़ा आदमी पसीने पसीने हो कर, अपना सीना पकड़े, पीड़ा वाले भाव लिए अपनी सीट पर लुढ़का हुआ था। उसकी साँस उखड़ गई थी और दिल की धड़कन क्षीण हो गई थी। उसको देख कर लग रहा था कि उसको अभी अभी हृदयघात हुआ था। अजय ने जल्दी से बूढ़े को ड्राइवर की सीट से हटा कर पैसेंजर सीट पर बैठाया, और ख़ुद उसकी कर को ड्राइव कर के अपनी कार के ही पीछे पार्क कर दिया। एक मुसीबत कम हुई थी... अब बारी थी बूढ़े को बचाने की। हाँलाकि अजय को थोड़ा ही ज्ञान था, लेकिन उसने बूढ़े को कार्डिओपल्मोनरी रिसुसिटेशन चिकित्सा, जिसको अंग्रेज़ी में सीपीआर कहा जाता है, दिया।

जैसा फ़िल्मों में दिखाते हैं, वैसा नहीं होता सीपीआर! उसमें इतना बल लगता है कि कभी कभी चिकित्सा प्राप्त करने वाले की पसलियाँ चटक जाती हैं। वो बूढ़ा आदमी कमज़ोर था - इसलिए उसकी भी कई पसलियाँ चटक गईं। नुक़सान तो हुआ था, लेकिन फिलहाल उसकी जान बच गई लग रही थी। इस पूरी चिकित्सा में अजय के दाहिना कन्धा अपने स्थान से थोड़ा निकल गया!

छाँव तक जाते जाते अजय की खुद की साँसें उखड़ गईं थीं। उसको ऐसा लग रहा था कि कहीं उसको भी हृदयघात न हो जाए! उसने सावधानीपूर्वक बूढ़े को ज़मीन पर लिटाया। बूढ़ा दर्द के मारे दोहरा हो गया। अजय की हालत भी ठीक नहीं थी। लेकिन,

“अंकल जी,” उसने बूढ़े से पूछा, “अब आपको कैसा लग रहा है?”

“ब... बेटा...” बूढ़े ने बड़ी मुश्किल से टूटी फूटी आवाज़ में कहा, “तुम...ने ब...चा... लिया म...मुझे...”

“नहीं अंकल जी,” अजय ने सामान्य शिष्टाचार दिखाते हुए कहा, “ऐसा कुछ नहीं है! ... और आप भी... थोड़ा आराम कर लीजिए।”

बूढ़ा अल्पहास में हँसा और तुरंत ही अपनी इस हरक़त पर उसको पछतावा हो आया। हँसी के कारण उसको अपने पूरे शरीर में तीव्र पीड़ा महसूस हुई। लेकिन फिर भी वो बोला,

“अब इस बूढ़े की ज़िन्दगी में आराम ही आराम है बेटे,” उसने मुश्किल से कहा, “बयासी साल का हो गया हूँ... अपना कहने को कोई है नहीं यहाँ! ... जो अपने थे, वो विदेश में हैं।”

“आपके पास उनका नंबर तो होगा ही न!” अजय ने उत्साह से कहा, “मैं कॉल कर देता हूँ? आपका मोबाइल कार में ही होगा न?”

वो मुस्कुराया, “नहीं बेटे... तुम मेरे पास बैठो। उनको मेरी ज़रुरत नहीं है अब! ... तुमने बीस मिनट में मेरे लिए इतना कुछ कर दिया, जो उन्होंने मेरे लिए बीस साल में नहीं किया!”

अजय फ़ीकी हँसी में हँसा। यही तो नियम है संसार का। काम बन जाए, तो क्या बाप? क्या माँ?

लेकिन उसको अपने माँ बाप की कमी महसूस होती थी। उनको गए लगभग पंद्रह साल होने को आए थे अब! दोनों के इंश्योरेंस थे और अजय को उनकी मृत्यु पर इंश्योरेंस के रुपए भी मिले। लेकिन अधिकतर रक़म उसके पापा के देनदारों को अदा करने में चली गई। अपने जीते जी, वो अपने माँ बाप का नाम ख़राब नहीं कर सकता था।

“... और मेरी बदक़िस्मती देखिए न अंकल जी,” उसने निराशापूर्वक कहा, “मैं अपने माँ बाप के लिए कुछ कर नहीं सकता!”

“क्या हुआ उनको बेटे?”

“अब वो इस दुनिया में नहीं हैं अंकल जी,”

“दुःख हुआ जान कर!”

“कोई बात नहीं अंकल जी,” उसने गहरी साँस भरी, “... आपका नाम क्या है?”

“प्रजापति...” बूढ़े ने बताया, “मैं प्रजापति हूँ,” फिर उसने पूछा, “और तुम बेटे?”

“जी मेरा नाम अजय है...” अजय ने कहा, और पानी की बोतल बूढ़े के होंठों से लगाते हुए बोला, “लीजिए, थोड़ा पानी पी लीजिए...”

“अजय बेटे, तुम बहुत अच्छे हो!” बूढ़े ने इस बार अच्छी तरह से पानी पिया, “माफ़ करना, बहुत प्यास लगी थी... तुम्हारे लिए कुछ बचा ही नहीं!”

अजय ने मुस्कुरा कर कहा, “अंकल जी, आप सोचिए नहीं! वैसे भी आपकी ज़रुरत मुझसे अधिक थी।”


**
Bahut hi beautiful way me aapne kahani ki starting ki h...

Koi hassle ni... Koi lamba introduction ni ... Seedha to the point kahani... Mujhe aapki yahi baat achhi lagti h... Wese to main detailings waali kahaniya padhti hu... Lekin for a change kuch kahaniya aisi bhi honi chahiye jo seedha to the point rhe...

Aapki lekhni ekdum upanyas jesi h... 🖤
Pehle update me zyada kuch nazar to ni aaya. Ye sirf prologue jesa tha... 🤔 Ajay ek under achiever h .. lagta h meri tarah h ... Mujhe bhi meri qualities k jitna praise ni milta 😓

Cpr aapne ekdum aptly describe kia... It's not an easy task to give cpr. Cpr dete time patient ki ribs tak toot sakti h... Lekin cpr rukna ni chahiye... Kyuki jitni zor se press karte h, tabhi blood heart tak pahuchta h ... Agar halka sa bhi lightly press kia to heart tak blood pahuchega hi nhi aur pateint ka wahi pe the end... 🪦

Baaki setting mujhe thodi cliche lagi... Jese wahi retired uncle aur unke bachho ka unn par dhyan na dena, foreign me rehna, nd paiso k peechhe crazy hona... But let's see how this turns out later...

Ek suggestion h... Baaki aapki marzi h follow karna na karna... 😊 Dots ka usage aap jitna kam karenge aur sahi jagah par bas karenge na to ye poori 100% upanyas wali feeling dega... At the end, a very beautiful start... Let's see how Ajay's future will turn the tables for him...
 

park

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अपडेट 3


“अरे... अज्जू बेटे, इतनी जल्दी वापस आ गए?” अजय की ताई माँ - किरण जी - ने आश्चर्यचकित होते हुए कहा।

समय के हिसाब से उसको देर रात तक वापस आना चाहिए था।

“... मीटिंग जल्दी ख़तम हो गई क्या बेटे?”

किरण जी - अजय के पिता अशोक जी के बड़े भाई अनामि जी की पत्नी थीं। पूरे परिवार में अब केवल वो ही शेष रही थीं, और वो अजय के साथ थीं, पास थीं... लिहाज़ा, वो हर प्रकार से अजय की माता जी थीं। इसलिए वो भी उनको ‘माँ’ ही कहता था।

“नहीं माँ,” अजय ने जूते उतारते हुए कहा, “हुआ यह कि रास्ते में एक एक्सीडेंट हो गया... उसके कारण मैं मुंबई पहुँच ही नहीं पाया!”

“क्या?” माँ तुरंत ही चिंतातुर होते हुए बोलीं, “तुझे चोट वोट तो नहीं लगी? ... दिखा... क्या हुआ?”

माँ लोगों की छठी इन्द्रिय ऐसी ही होती है - बच्चों के मुँह से रत्ती भर भी समस्या सुन लें, तो उनको लगता है कि अनर्थ ही हो गया होगा।

“नहीं माँ,” कह कर अजय ने माँ को पूरी कहानी सुनाई।

“सॉरी बेटे... कि वो बच नहीं सके!” माँ ने सहानुभूतिपूर्वक कहा, “लेकिन, तूने पूरी कोशिश करी... वो ज़्यादा मैटर करता है। ... वैसे भी वो बूढ़े पुरुष थे...”

“हाँ माँ,” अजय बोला, “... लेकिन सच में माँ, मुझको एक समय में वाक़ई लग रहा था कि वो बच जाएँगे...”

“समय होता है बेटा जाने का... सभी का समय होता है।” माँ ने गहरी साँस भरते हुए कहा, फिर बात बदलते हुए बोलीं, “वैसे चलो, बहुत अच्छा हुआ कि तू जल्दी आ गया... मैं भी सोच रही थी कि तेरे वापस आने तक कैसे समय बीतेगा! ... अब तू आ गया है, तो तेरी पसंद की कच्छी दाबेली बनाती हूँ और अदरक वाली चाय!”

अजय ख़ुशी से मुस्कुराया, “हाँ माँ! मज़ा आ जाएगा!”

कुछ समय बाद माँ बेटा दोनों कच्छी दाबेली और अदरक वाली चाय का आनंद ले रहे थे। अब तो यही आलम थे - ऐसी छोटी छोटी बातों से ही खुशियाँ मिल रही थीं। जेल के अंदर तो... ख़ैर!

चाय नाश्ता ख़तम हुआ ही था कि अजय को पुलिस का फ़ोन आया।

कुछ सामान्य प्रश्नोत्तर के बाद पुलिस इंस्पेक्टर ने अजय को उसकी सूझ-बूझ और उस बूढ़े आदमी की सहायता करने के लिए धन्यवाद दिया और यह भी बताया कि उसको इस बार डिपार्टमेंट की तरफ़ से “सर्टिफिकेट ऑफ़ अप्प्रेसिएशन” भी दिया जाएगा। एक समय था जब पुलिस ने एक झूठे आपराधिक केस में उलझा कर उसकी और उसके परिवार की इज़्ज़त की धज्जियाँ उड़ा दी थीं। और एक आज का समय है कि वो उसकी अनुशंसा करना चाहते हैं! समय समय का फेर! उसने सोचा और इस हास्यास्पद स्थिति पर हँसे बिना न रह सका। माँ को भी बताया, तो वो भी उसकी हँसी में शामिल हो गईं - कैसा कठिन समय था वो! इतना कि वो भी उसको याद नहीं करना चाहती थीं।

बाकी का समय सामान्य ही रहा।

लेकिन अजय को रह रह कर आज की बातें याद आ रही थीं - ख़ास कर उस बूढ़े प्रजापति की! कैसा दुर्भाग्य था उनका कि बच्चों के होते हुए भी उनको यूँ अकेले रहना पड़ा, और यूँ अकेले ही - एक अजनबी के सामने - अपने प्राण त्यागने पड़े! क्या ही अच्छा होता अगर बच्चे नहीं, कम से कम उनका कोई हितैषी ही उनके साथ होता। फिर उसने सोचा कि वो उनका हितैषी ही तो था। उस कठिन समय में वो उनके साथ था... उनकी प्राण-रक्षा करने का प्रयास कर रहा था। ऐसे लोग ही तो हितैषी होते हैं!

उसको अपने बड़े (चचेरे) भाई प्रशांत भैया की याद हो आई। वो भी तो माँ से अलग हो गए! इतने साल हो गए - क्या जी रही हैं या मर रही हैं, कुछ जानकारी ही नहीं है उनको। ऐसा तब होता है जब कोई गोल्ड-डिगर लड़की आती है, और आपको आपके परिवार से अलग कर देती है। वही उनके साथ भी हुआ था। बिल्कुल रागिनी के ही जैसी हैं कणिका भाभी! सुन्दर - लेकिन ज़हर बुझी! उनको भैया के घर में सभी से समस्या थी। न जाने क्यों! माँ को उनका विवाह सम्बन्ध पसंद नहीं आया था, क्योंकि उनको कणिका भाभी के परिवार का चरित्र पता था। पुराने सम्बन्धी थे वो - उनके मौसेरे भाई की बेटी थी कणिका भाभी। प्रशांत भैया के अमेरिका जाने के एक साल बाद येन-केन-प्रकारेण वो उसी युनिवर्सिटी में पढ़ने गईं, जहाँ भैया थे।

शायद इसी मिशन के साथ कि वो उनको फँसा लें। भैया भी एक नम्बरी मेहरे आदमी थे। फँस गए!

विचारों की श्रंखला में फिर उसको अपने दिवंगत पिता की याद हो आई।

क्या राजा आदमी थे, और किस हालत में गए! उसकी आँखें भर आईं।

“माँ...” रात में सोने के समय उसने माँ से कहा, “आपके पास लेट जाऊँ?”

“क्या हो गया बेटे?” माँ ने लाड़ से उसके बालों को बिगाड़ते हुए कहा, “सब ठीक है?”

“नहीं माँ...” उसने झिझकते हुए कहा, “आज जो सब हुआ... वो सब... और अब पापा की याद आ रही है... और फिर भैया ने जो सब किया... मन ठीक नहीं है माँ,”

“बस बेटे... ऐसा सब नहीं सोचते!” माँ ने उसको समझाते हुए कहा, “ये सब किस्मत की बातें हैं! भगवान पर भरोसा रखो... सब ठीक हो जाएगा!”

अजय ने ‘हाँ’ में सर हिलाया।

माँ ने मुस्कुराते हुए आगे कहा, “और तुम्हारे पहले क्वेश्चन का आंसर है, हाँ... आ जा! तुमको मुझसे पूछने की ज़रुरत नहीं!”

माँ को पता था कि अजय आज बहुत ही डिस्टर्ब्ड था - ऐसा पहले कुछ बार हो चुका था।

अजय एक अच्छा लड़का था... अपने ख़ुद के बेटे द्वारा उपेक्षित किए जाने के बाद अजय ने उनको सम्हाला था, और बिल्कुल अच्छे बेटे की ही तरह बर्ताव किया था। उसके पास बेहद सीमित साधन शेष थे, लेकिन उसने माँ की हर आवश्यकता का पूरा ध्यान रखा था। अजय वो बेटा था, जो अपना न हो कर भी अपने से कहीं अधिक अपना था! ऐसे बेटे की माँ बनना किसी भी स्त्री का सौभाग्य हो सकता है।

धीरे से आ जा री अँखियन में निंदिया आ जा री आ जा...
चुपके से नयनन की बगियन में निंदिया आ जा री आ जा”

माँ की इस लोरी पर अजय पहले तो मुस्कुराने, फिर हँसने लगा, “... क्या माँ... मैं कोई छोटा बच्चा हूँ कि मुझे लोरी सुना रही हो?”

“नहीं हो?”

“उह हह,” अजय ने ‘न’ में सर हिलाते हुए, मुस्कुराते हुए कहा।

जब माँ से उसने उनके पास लेटने को कहा, तभी वो समझ गईं कि आज बहुत भारी भावनात्मक समस्या में है अजय! समस्या ऐसी, जो उसके मन को खाये ले रही है। वो समझ रही थीं कि क्या चल रहा है उसके मन में... ऐसे में माँ वही करने लगती हैं, जिसको करने से अजय को बहुत सुकून और शांति मिलती है।

“नहीं हो?” माँ ने ब्लाउज़ के बटन खोल कर अपना एक स्तन उसके होंठों से छुवाते हुए कहा, “... आज भी मेरा दुद्धू पीते हो, लेकिन छोटे बच्चे नहीं हो!”

अजय ने मुस्कुरा कर माँ के चूचक को चूम लिया और अपने मुँह में ले कर पीने लगा। पीने क्या लगा - अब कोई दूध थोड़े ही बनता था, जो वो पीने लगता। लेकिन यह एक अवसर होता था माँ के निकट होने का, उनकी ममता के निकट होने का। उसके कारण उसको बहुत शांति मिलती थी।

किरण जी जानती थीं कि अजय का मन जब क्लांत होता है, तब स्तनपान से उसको बहुत शांति मिलती है। जब वो बहुत छोटा था, तब वो और अजय की माँ, प्रियंका जी, दोनों मिल कर अपने बेटों अजय और प्रशांत को बारी बारी से स्तनपान करातीं। इस परिवार में दोनों बच्चों में कोई अंतर नहीं था... और न ही कभी कोई अंतर किया गया। प्रशांत के स्तनपान छोड़ने के बाद से आयुष को दोनों माँओं से स्तनपान करने का एक्सक्लूसिव अधिकार मिल गया था। ख़ैर, दस साल की उम्र तक स्तनपान करने के बाद वो बंद हो ही गया।

लेकिन उसकी माँ की असमय मृत्यु के बाद से किरण जी ने पुनः उसको स्तनपान कराना शुरू कर दिया था। उस समय पुनः माँ बनने के कारण उनको दूध आता था। यह कुछ वर्षों तक चला। उसके बाद जब अजय वयस्क हुआ, तो फिर यह काम बंद हो गया। लेकिन जेल से छूटने के बाद अजय मनोवैज्ञानिक समस्याओं से जूझ रहा था। लिहाज़ा, अब जब भी स्तनपान होता, तो वो अधिकतर मनोवैज्ञानिक कारणों के कारण ही होता। पिछले कुछ वर्षों में उन दोनों के ही जीवन में तबाही आ गई थी - अजय के पिता की मृत्यु हो गई, फिर उनका कारोबार पूरी तरह से चौपट हो गया, अजय की पढ़ाई लिखाई भी कहीं की न रही, प्रशांत भैया ने भी उन दोनों से सारे रिश्ते नाते तोड़ लिए, फिर अजय की शादी ख़राब हो गई, माँ - बेटे दोनों दहेज़ के झूठे केस में जेल में रहे... अंतहीन यातनाएँ!

पिछले एक साल से, जेल से छूट कर आने के बाद अब शांति आई है। भारी क़ीमत चुकाई उन दोनों ने, लेकिन शांति आई तो! किरण जी ने यह अवश्य देखा कि कैसी भी गन्दी परिस्थिति क्यों न हो, उनके स्तनों का एहसास पा कर अजय मानसिक और भावनात्मक रूप से शांत हो जाता था - अगली कठिन परिस्थिति का सामना करने के लिए! इसलिए वो कभी भी अजय की स्तनपान करने की प्रार्थना को मना नहीं करती थीं।

“माँ?” कुछ देर बाद अजय ने कहा,

“हाँ बेटे?”

“कभी कभी सोचता हूँ कि काश आपको दूध आता...” वो दबी हुई हँसी हँसते हुए बोला।

“हा हा... बहुत अच्छा होता तब तो! तुझे रोज़ पिलाती अपना दूध!”

“सच में माँ?”

“और क्या!” फिर जैसे कुछ याद करती हुई बोलीं, “बेटे, तुझे दिल्ली वाले अमर भैया याद हैं?”

“हाँ माँ, क्यों? क्या हुआ? ऐसे आपको उनकी याद कैसे आ गई?”

“तू अमर से बात कर न... नौकरी के लिए? ... उसका बिजनेस तो बढ़िया चल रहा है न?”

“हाँ माँ!” अजय को जैसे यह बात इतने सालों में सूझी ही न हो, “आख़िरी बार बात हुई थी तो सब बढ़िया ही था! हाल ही में तो उनकी और उनकी कंपनी की ख़बर भी छपी थी अखबार में... उनसे बात करता हूँ! ... थैंक यू, माँ! मुझे सच में कभी उनकी याद ही नहीं आई इस बारे में!”

माँ बस ममता से मुस्कुराईं।

... लेकिन आपको उनकी याद कैसे आई?”

“अरे, कोई सप्ताह भर पहले काजल से बात हुई थी...”

“अच्छा? आपके पास उनका नंबर है?”

“हाँ... तुझे मैंने कभी बताया नहीं, लेकिन एक बार आई थी वो मिलने जेल में!”

“हे भगवान!” अजय ने सर पीट लिया।
शायद ही कोई ऐसा जानने वाला बचा हो, जिसको इनके संताप के बारे में न पता चला हो! अजय को इस तरह से 'प्रसिद्ध' होना अच्छा नहीं लगता। लेकिन अच्छे लोगों की... हितैषियों की पहचान कठिनाई के समय में ही होती है।

“नहीं बेटे! बहुत अच्छे लोग हैं वो। ... बहुत कम लोग ही हैं जिनको दोस्ती यारी याद रही! देखो न, कौन याद करता है हमको?”

“हम्म्म... अच्छा, वो सब छोड़ो माँ! क्या बोल रही थीं काजल आंटी?”

“मुंबई में ही रहती है अब। ... वो भी और सुमन भी! तुझे मालूम है?”

“नहीं!”

“हाँ, मुंबई में रहती है वो। सुमन भी! ... काजल ने बताया कि बहू को बेटी हुई है!”

“वाओ! सुमन आंटी को? वाओ! अमेज़िंग! कब? ... ये... तीसरा बच्चा है न उनका?”

“अमर को क्यों भूल जाते हो? चौथा बच्चा है...” उन्होंने कहा, “कोई नौ दस महीने की हो गई है अब उसकी बेटी भी!”

“सुमन ऑन्टी बहुत लकी हैं!”

“सुमन और काजल दोनों ही बहुत लकी हैं... दोनों की फ़िर से शादी भी हुई और बच्चे भी!” माँ जैसे चिंतन करती हुई बोलीं, “बहुत प्यारी फैमिली है... इतने दुःख आए उन पर, लेकिन हर दुःख के बाद वो सभी और भी मज़बूत हो गए...”

“जैसा आपने कहा माँ, सब किस्मत की बातें हैं!”

“हाँ बेटे...”

“हमको काजल या सुमन आंटी जैसी बहुएँ क्यों नहीं मिलीं, माँ?”

“किस्मत की बातें हैं बेटे... सब किस्मत की बातें हैं!” इस बार बहुत कोशिश करने पर भी किरण जी की आँखों से आँसू टपक ही पड़े!

अजय नहीं चाहता था कि माँ बहुत दार्शनिक हो जाएँ, इसलिए उसने चुहल करते हुए कहा,

“माँ... अमर भैया भी तो आंटी जी का दूधू पीते थे न?”

माँ ने ‘हाँ’ में सर हिलाया, “अभी भी! ... अब तो और समय तक पिएगा!”



[प्रिय पाठकों : अमर, काजल, और सुमन के बारे में जानने के लिए मेरी कहानी “मोहब्बत का सफ़र” अवश्य पढ़ें!]


“माँ, आप भी शादी कर लीजिए... फिर मैं भी आपका दूध पियूँगा!”

“हा हा! शादी कर तो लूँ, लेकिन अब कहाँ होंगे मुझे बच्चे!”

“क्यों?”

“अरे! सत्तावन की हो रही हूँ! अगर चाहूँ भी, तो भी ये सब नहीं होने वाला!”

“हम्म्म, मतलब चाह तो है आपको,” अजय ने फिर से चुहल करी।

माँ ने प्यार से उसके कान को उमेठा, “क्या रे, अपनी माँ से चुहल करता है?”

“सॉरी माँ, आऊऊ...” अजय ने अपने कान को सहलाते हुए कहा, “लेकिन माँ, अगर आपको अपनी कोई अधूरी इच्छा पूरी करनी हो, तो वो क्या होगी?”

“तुझे अपनी कोख से जनम देना चाहूँगी मेरे लाल... तेरी असली वाली माँ बनना चाहूँगी... ताई माँ नहीं!” माँ ने बड़ी ममता से कहा, “मेरी एक और भी इच्छा है - और वो ये है कि तेरी किसी बहुत ही अच्छी लड़की से शादी हो!”

“हा हा! पेट भरा नहीं आपका माँ दो दो बहुओं से? ... मेरा तो एक ही बीवी से भर गया माँ... अच्छे से!”

“बेटे, मैं अच्छी सी लड़की की बात कर रही हूँ... ऐसी जो तुझे चाहे... जो तेरी ताक़त बन कर रहे!”

“हा हा! क्या माँ - सपने देखने की आदत नहीं गई तुम्हारी!” अजय ने फ़ीकी सी हँसी हँसते हुए कहा।

“लव यू टू बेटे,” माँ ने उसके मज़ाक को नज़रअंदाज़ कर के, उसके माथे को चूमते हुए कहा, “सो जाओ अब?”

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Nice and superb update....
 

park

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कब नींद आ गई उसे, उसको नहीं पता।

लेकिन सोते समय बड़े अजीब से सपने आए उसको...

उसको ऐसा लगा कि जैसे उसके जीवन के सभी अनुभव... जीवन का हर एक पल एक रबड़ जैसी एक अथाह चादर पर बिखेर दिए गए हों, और वो चादर हर दिशा में खिंच रही हो। चादर अपने आप में बेहद काले रंग की थी... शायद आदर्श कृष्णिका रही हो! “आदर्श कृष्णिका” भौतिकी में ऐसी काली सतह या पदार्थ होता है, जो किसी भी प्रकार की रोशनी को पूरी तरह से सोख़ ले, और उसमें से कुछ भी प्रतिबिंबित या उत्सर्जित न होने दे!

चादर अवश्य ही आदर्श कृष्णिका रही हो, लेकिन हर तरफ़ अजीब सी रोशनियाँ दीप्तिमान थीं। ऐसी रोशनियाँ जो आज तक उसने महसूस तक नहीं करी थीं! उस चादर पर उसने ख़ुद को खड़ा हुआ महसूस किया। लेकिन उसको अपना शरीर भी नहीं महसूस हो रहा था। उसको ऐसा लग रहा था कि जैसे उसका खुद का शरीर भी उसी रबड़ जैसी चादर का ही हिस्सा हो।

चादर निरंतर खिंचती चली जा रही थी, और उसके खिंचते खिंचते अजय के जीवन ही हर घटना जगमग ज्योतिर्मय होने लगी और वो उस जगमग सी वीथी पर अबूझ से पग भरते हुए आगे बढ़ रहा था।

उसने यह भी महसूस किया कि अचानक से उसके जीवन की कई घटनाओं में आग लग गई हो और वो बड़ी तेजी से धूं धूं कर के जलने लगीं। वो भाग कर उनको जलने से बचाना चाह रहा था, लेकिन वो चादर थी कि उसका फैलना और खिंचना रुक ही नहीं रहा था!

अजय बस निःस्सहाय सा अपने ही अवचेतन में स्वयं को समाप्त होते महसूस कर रहा था। लेकिन वो कुछ नहीं कर पा रहा था। जैसे उसको लकवा मार गया हो। और उसको जब ऐसा लगने लगा कि उसकी सारी स्मृतियाँ जल कर भस्म हो जाएँगी, और यह उसके जीवन की चादर फट कर चीथड़े में परिवर्तित हो जाएगी, अचानक से सब रुक गया।

एक तेज श्वेत रौशनी का झमका हुआ, और अचानक से ही सब कुछ उल्टा होने लगा। जो चादर एक क्षण पहले तक फ़ैल और खिंच रही थी, अब वो बड़ी तेजी से हर दिशा से सिकुड़ने लगी। संकुचन का दबाव अत्यंत पीड़ादायक था। अजय वहाँ से निकल लेना चाहता था, लेकिन उसके पैर जैसे उस चादर पर जम गए हों! कुछ ही पलों में अजय का सारा जीवन, किसी बॉल-बिअरिंग के छोटे से छर्रे जितना सिकुड़ गया। आश्चर्यजनक था कि वो खुद अपने जीवन के ‘छर्रे’ को देख भी पा रहा था और उसका हिस्सा भी था!

और फिर अचानक से सब कुछ शून्य हो गया!



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(सपने को दर्शाना आवश्यक था शायद! यह पहली और आखिरी बार है कि कहानी के बीच में किसी चित्र का प्रयोग होगा। यह चित्र AI की मदद से बनाया गया है...)
Nice and superb update....
 
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भ्रमित ना हो, कोई अबला प्रताड़ित नहीं होती।

मुझे सिर्फ 1% भी ऐसे विवाह दिखा दीजिए जिनमें कन्या के माता-पिता ने अपने से गरीब, बेघर, बेरोजगार लड़के से अपनी बेटी की शादी की हो।
दहेज रहित शादी तो तब हो जब बेटी का बाप लड़के की हैसियत, नौकरी, आमदनी की बजाय गुण व योग्यता देखें और धूमधाम की बजाय बेटी दामाद को घर-कारोबार में सहयोग के लिए पैसा दे।

पिछले 45-46 बर्षौं की अपनी याददाश्त में मैंने बेटे वालों की बनाई दहेज की लिस्ट से पहले हमेशा ही बेटी वालों की बनाई हैसियत लिस्ट देखी है।

मैंने दोनों पक्षों के संबंध का अनुभव अपनी और अपने भाई बहन की शादी की जिम्मेदारी निभा के लिया है।
मांगने से कोई सम्पन्न नहीं हुआ।
आज की हैसियत भविष्य की गारंटी नहीं।
इसलिए संबंध हैसियत नहीं चरित्र, संस्कार और परिवार को देख समझकर बनाओ
आप के पहली बात से मै इत्तफाक नही रखता कि कोई अबला प्रताड़ित नही होती ।
आप संसद मे दिए गए आंकड़ों को ही देख लिजिए । नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के रिपोर्ट के अनुसार 2018 , 2019 , 2020 मे दहेज उत्पीड़न पर दर्ज मामलों की संख्या क्रमशः 12826 , 13307 , 10366 हैं । दहेज मृत्यु क्रमशः 7167 , 7141 , 6966 हैं ।
2022 मे 6450 दहेज हत्याएं दर्ज की गई है । इनमे 359 दहेज हत्याओं के मामले इस लिए बंद कर दिए गए क्योंकि साक्ष्य अपर्याप्त थे ।
उत्तर प्रदेश , बिहार और मध्य प्रदेश मे दहेज का असर सबसे अधिक है ।
यह सब आंकड़े हैं जो गवर्नमेंट के एजेन्सी द्वारा जारी किए गए हैं । बहुत सारे मौतें तो पुलिस और कोर्ट तक पहुंच ही नही पाती ।
लेकिन यह भी सच है कि दहेज के कठोर कानून का फ़ायदा कुछ गलत औरतें उठा ले जाती है लेकिन यह भी सच है कि इनकी संख्या बेहद ही कम हैं ।

आप के दूसरी बात से मै बिल्कुल सहमत हूं । सम्बन्ध हैसियत नही चरित्र , संस्कार और फैमिली के बैक ग्राउंड हिस्ट्री को देखकर बनाना चाहिए । पहले शादी मे एक अगुवा ( विचौलिया) होता था जो दोनो पक्षों को भलीभाँति जानता था और इसलिए कोई खास प्रोब्लम नही होती थी । थोड़े-बहुत प्रोब्लम होते तो थे पर उन्हे आसानी से सुलझा लिया जाता था ।
 

kas1709

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“अरे... अज्जू बेटे, इतनी जल्दी वापस आ गए?” अजय की ताई माँ - किरण जी - ने आश्चर्यचकित होते हुए कहा।

समय के हिसाब से उसको देर रात तक वापस आना चाहिए था।

“... मीटिंग जल्दी ख़तम हो गई क्या बेटे?”

किरण जी - अजय के पिता अशोक जी के बड़े भाई अनामि जी की पत्नी थीं। पूरे परिवार में अब केवल वो ही शेष रही थीं, और वो अजय के साथ थीं, पास थीं... लिहाज़ा, वो हर प्रकार से अजय की माता जी थीं। इसलिए वो भी उनको ‘माँ’ ही कहता था।

“नहीं माँ,” अजय ने जूते उतारते हुए कहा, “हुआ यह कि रास्ते में एक एक्सीडेंट हो गया... उसके कारण मैं मुंबई पहुँच ही नहीं पाया!”

“क्या?” माँ तुरंत ही चिंतातुर होते हुए बोलीं, “तुझे चोट वोट तो नहीं लगी? ... दिखा... क्या हुआ?”

माँ लोगों की छठी इन्द्रिय ऐसी ही होती है - बच्चों के मुँह से रत्ती भर भी समस्या सुन लें, तो उनको लगता है कि अनर्थ ही हो गया होगा।

“नहीं माँ,” कह कर अजय ने माँ को पूरी कहानी सुनाई।

“सॉरी बेटे... कि वो बच नहीं सके!” माँ ने सहानुभूतिपूर्वक कहा, “लेकिन, तूने पूरी कोशिश करी... वो ज़्यादा मैटर करता है। ... वैसे भी वो बूढ़े पुरुष थे...”

“हाँ माँ,” अजय बोला, “... लेकिन सच में माँ, मुझको एक समय में वाक़ई लग रहा था कि वो बच जाएँगे...”

“समय होता है बेटा जाने का... सभी का समय होता है।” माँ ने गहरी साँस भरते हुए कहा, फिर बात बदलते हुए बोलीं, “वैसे चलो, बहुत अच्छा हुआ कि तू जल्दी आ गया... मैं भी सोच रही थी कि तेरे वापस आने तक कैसे समय बीतेगा! ... अब तू आ गया है, तो तेरी पसंद की कच्छी दाबेली बनाती हूँ और अदरक वाली चाय!”

अजय ख़ुशी से मुस्कुराया, “हाँ माँ! मज़ा आ जाएगा!”

कुछ समय बाद माँ बेटा दोनों कच्छी दाबेली और अदरक वाली चाय का आनंद ले रहे थे। अब तो यही आलम थे - ऐसी छोटी छोटी बातों से ही खुशियाँ मिल रही थीं। जेल के अंदर तो... ख़ैर!

चाय नाश्ता ख़तम हुआ ही था कि अजय को पुलिस का फ़ोन आया।

कुछ सामान्य प्रश्नोत्तर के बाद पुलिस इंस्पेक्टर ने अजय को उसकी सूझ-बूझ और उस बूढ़े आदमी की सहायता करने के लिए धन्यवाद दिया और यह भी बताया कि उसको इस बार डिपार्टमेंट की तरफ़ से “सर्टिफिकेट ऑफ़ अप्प्रेसिएशन” भी दिया जाएगा। एक समय था जब पुलिस ने एक झूठे आपराधिक केस में उलझा कर उसकी और उसके परिवार की इज़्ज़त की धज्जियाँ उड़ा दी थीं। और एक आज का समय है कि वो उसकी अनुशंसा करना चाहते हैं! समय समय का फेर! उसने सोचा और इस हास्यास्पद स्थिति पर हँसे बिना न रह सका। माँ को भी बताया, तो वो भी उसकी हँसी में शामिल हो गईं - कैसा कठिन समय था वो! इतना कि वो भी उसको याद नहीं करना चाहती थीं।

बाकी का समय सामान्य ही रहा।

लेकिन अजय को रह रह कर आज की बातें याद आ रही थीं - ख़ास कर उस बूढ़े प्रजापति की! कैसा दुर्भाग्य था उनका कि बच्चों के होते हुए भी उनको यूँ अकेले रहना पड़ा, और यूँ अकेले ही - एक अजनबी के सामने - अपने प्राण त्यागने पड़े! क्या ही अच्छा होता अगर बच्चे नहीं, कम से कम उनका कोई हितैषी ही उनके साथ होता। फिर उसने सोचा कि वो उनका हितैषी ही तो था। उस कठिन समय में वो उनके साथ था... उनकी प्राण-रक्षा करने का प्रयास कर रहा था। ऐसे लोग ही तो हितैषी होते हैं!

उसको अपने बड़े (चचेरे) भाई प्रशांत भैया की याद हो आई। वो भी तो माँ से अलग हो गए! इतने साल हो गए - क्या जी रही हैं या मर रही हैं, कुछ जानकारी ही नहीं है उनको। ऐसा तब होता है जब कोई गोल्ड-डिगर लड़की आती है, और आपको आपके परिवार से अलग कर देती है। वही उनके साथ भी हुआ था। बिल्कुल रागिनी के ही जैसी हैं कणिका भाभी! सुन्दर - लेकिन ज़हर बुझी! उनको भैया के घर में सभी से समस्या थी। न जाने क्यों! माँ को उनका विवाह सम्बन्ध पसंद नहीं आया था, क्योंकि उनको कणिका भाभी के परिवार का चरित्र पता था। पुराने सम्बन्धी थे वो - उनके मौसेरे भाई की बेटी थी कणिका भाभी। प्रशांत भैया के अमेरिका जाने के एक साल बाद येन-केन-प्रकारेण वो उसी युनिवर्सिटी में पढ़ने गईं, जहाँ भैया थे।

शायद इसी मिशन के साथ कि वो उनको फँसा लें। भैया भी एक नम्बरी मेहरे आदमी थे। फँस गए!

विचारों की श्रंखला में फिर उसको अपने दिवंगत पिता की याद हो आई।

क्या राजा आदमी थे, और किस हालत में गए! उसकी आँखें भर आईं।

“माँ...” रात में सोने के समय उसने माँ से कहा, “आपके पास लेट जाऊँ?”

“क्या हो गया बेटे?” माँ ने लाड़ से उसके बालों को बिगाड़ते हुए कहा, “सब ठीक है?”

“नहीं माँ...” उसने झिझकते हुए कहा, “आज जो सब हुआ... वो सब... और अब पापा की याद आ रही है... और फिर भैया ने जो सब किया... मन ठीक नहीं है माँ,”

“बस बेटे... ऐसा सब नहीं सोचते!” माँ ने उसको समझाते हुए कहा, “ये सब किस्मत की बातें हैं! भगवान पर भरोसा रखो... सब ठीक हो जाएगा!”

अजय ने ‘हाँ’ में सर हिलाया।

माँ ने मुस्कुराते हुए आगे कहा, “और तुम्हारे पहले क्वेश्चन का आंसर है, हाँ... आ जा! तुमको मुझसे पूछने की ज़रुरत नहीं!”

माँ को पता था कि अजय आज बहुत ही डिस्टर्ब्ड था - ऐसा पहले कुछ बार हो चुका था।

अजय एक अच्छा लड़का था... अपने ख़ुद के बेटे द्वारा उपेक्षित किए जाने के बाद अजय ने उनको सम्हाला था, और बिल्कुल अच्छे बेटे की ही तरह बर्ताव किया था। उसके पास बेहद सीमित साधन शेष थे, लेकिन उसने माँ की हर आवश्यकता का पूरा ध्यान रखा था। अजय वो बेटा था, जो अपना न हो कर भी अपने से कहीं अधिक अपना था! ऐसे बेटे की माँ बनना किसी भी स्त्री का सौभाग्य हो सकता है।

धीरे से आ जा री अँखियन में निंदिया आ जा री आ जा...
चुपके से नयनन की बगियन में निंदिया आ जा री आ जा”

माँ की इस लोरी पर अजय पहले तो मुस्कुराने, फिर हँसने लगा, “... क्या माँ... मैं कोई छोटा बच्चा हूँ कि मुझे लोरी सुना रही हो?”

“नहीं हो?”

“उह हह,” अजय ने ‘न’ में सर हिलाते हुए, मुस्कुराते हुए कहा।

जब माँ से उसने उनके पास लेटने को कहा, तभी वो समझ गईं कि आज बहुत भारी भावनात्मक समस्या में है अजय! समस्या ऐसी, जो उसके मन को खाये ले रही है। वो समझ रही थीं कि क्या चल रहा है उसके मन में... ऐसे में माँ वही करने लगती हैं, जिसको करने से अजय को बहुत सुकून और शांति मिलती है।

“नहीं हो?” माँ ने ब्लाउज़ के बटन खोल कर अपना एक स्तन उसके होंठों से छुवाते हुए कहा, “... आज भी मेरा दुद्धू पीते हो, लेकिन छोटे बच्चे नहीं हो!”

अजय ने मुस्कुरा कर माँ के चूचक को चूम लिया और अपने मुँह में ले कर पीने लगा। पीने क्या लगा - अब कोई दूध थोड़े ही बनता था, जो वो पीने लगता। लेकिन यह एक अवसर होता था माँ के निकट होने का, उनकी ममता के निकट होने का। उसके कारण उसको बहुत शांति मिलती थी।

किरण जी जानती थीं कि अजय का मन जब क्लांत होता है, तब स्तनपान से उसको बहुत शांति मिलती है। जब वो बहुत छोटा था, तब वो और अजय की माँ, प्रियंका जी, दोनों मिल कर अपने बेटों अजय और प्रशांत को बारी बारी से स्तनपान करातीं। इस परिवार में दोनों बच्चों में कोई अंतर नहीं था... और न ही कभी कोई अंतर किया गया। प्रशांत के स्तनपान छोड़ने के बाद से आयुष को दोनों माँओं से स्तनपान करने का एक्सक्लूसिव अधिकार मिल गया था। ख़ैर, दस साल की उम्र तक स्तनपान करने के बाद वो बंद हो ही गया।

लेकिन उसकी माँ की असमय मृत्यु के बाद से किरण जी ने पुनः उसको स्तनपान कराना शुरू कर दिया था। उस समय पुनः माँ बनने के कारण उनको दूध आता था। यह कुछ वर्षों तक चला। उसके बाद जब अजय वयस्क हुआ, तो फिर यह काम बंद हो गया। लेकिन जेल से छूटने के बाद अजय मनोवैज्ञानिक समस्याओं से जूझ रहा था। लिहाज़ा, अब जब भी स्तनपान होता, तो वो अधिकतर मनोवैज्ञानिक कारणों के कारण ही होता। पिछले कुछ वर्षों में उन दोनों के ही जीवन में तबाही आ गई थी - अजय के पिता की मृत्यु हो गई, फिर उनका कारोबार पूरी तरह से चौपट हो गया, अजय की पढ़ाई लिखाई भी कहीं की न रही, प्रशांत भैया ने भी उन दोनों से सारे रिश्ते नाते तोड़ लिए, फिर अजय की शादी ख़राब हो गई, माँ - बेटे दोनों दहेज़ के झूठे केस में जेल में रहे... अंतहीन यातनाएँ!

पिछले एक साल से, जेल से छूट कर आने के बाद अब शांति आई है। भारी क़ीमत चुकाई उन दोनों ने, लेकिन शांति आई तो! किरण जी ने यह अवश्य देखा कि कैसी भी गन्दी परिस्थिति क्यों न हो, उनके स्तनों का एहसास पा कर अजय मानसिक और भावनात्मक रूप से शांत हो जाता था - अगली कठिन परिस्थिति का सामना करने के लिए! इसलिए वो कभी भी अजय की स्तनपान करने की प्रार्थना को मना नहीं करती थीं।

“माँ?” कुछ देर बाद अजय ने कहा,

“हाँ बेटे?”

“कभी कभी सोचता हूँ कि काश आपको दूध आता...” वो दबी हुई हँसी हँसते हुए बोला।

“हा हा... बहुत अच्छा होता तब तो! तुझे रोज़ पिलाती अपना दूध!”

“सच में माँ?”

“और क्या!” फिर जैसे कुछ याद करती हुई बोलीं, “बेटे, तुझे दिल्ली वाले अमर भैया याद हैं?”

“हाँ माँ, क्यों? क्या हुआ? ऐसे आपको उनकी याद कैसे आ गई?”

“तू अमर से बात कर न... नौकरी के लिए? ... उसका बिजनेस तो बढ़िया चल रहा है न?”

“हाँ माँ!” अजय को जैसे यह बात इतने सालों में सूझी ही न हो, “आख़िरी बार बात हुई थी तो सब बढ़िया ही था! हाल ही में तो उनकी और उनकी कंपनी की ख़बर भी छपी थी अखबार में... उनसे बात करता हूँ! ... थैंक यू, माँ! मुझे सच में कभी उनकी याद ही नहीं आई इस बारे में!”

माँ बस ममता से मुस्कुराईं।

... लेकिन आपको उनकी याद कैसे आई?”

“अरे, कोई सप्ताह भर पहले काजल से बात हुई थी...”

“अच्छा? आपके पास उनका नंबर है?”

“हाँ... तुझे मैंने कभी बताया नहीं, लेकिन एक बार आई थी वो मिलने जेल में!”

“हे भगवान!” अजय ने सर पीट लिया।
शायद ही कोई ऐसा जानने वाला बचा हो, जिसको इनके संताप के बारे में न पता चला हो! अजय को इस तरह से 'प्रसिद्ध' होना अच्छा नहीं लगता। लेकिन अच्छे लोगों की... हितैषियों की पहचान कठिनाई के समय में ही होती है।

“नहीं बेटे! बहुत अच्छे लोग हैं वो। ... बहुत कम लोग ही हैं जिनको दोस्ती यारी याद रही! देखो न, कौन याद करता है हमको?”

“हम्म्म... अच्छा, वो सब छोड़ो माँ! क्या बोल रही थीं काजल आंटी?”

“मुंबई में ही रहती है अब। ... वो भी और सुमन भी! तुझे मालूम है?”

“नहीं!”

“हाँ, मुंबई में रहती है वो। सुमन भी! ... काजल ने बताया कि बहू को बेटी हुई है!”

“वाओ! सुमन आंटी को? वाओ! अमेज़िंग! कब? ... ये... तीसरा बच्चा है न उनका?”

“अमर को क्यों भूल जाते हो? चौथा बच्चा है...” उन्होंने कहा, “कोई नौ दस महीने की हो गई है अब उसकी बेटी भी!”

“सुमन ऑन्टी बहुत लकी हैं!”

“सुमन और काजल दोनों ही बहुत लकी हैं... दोनों की फ़िर से शादी भी हुई और बच्चे भी!” माँ जैसे चिंतन करती हुई बोलीं, “बहुत प्यारी फैमिली है... इतने दुःख आए उन पर, लेकिन हर दुःख के बाद वो सभी और भी मज़बूत हो गए...”

“जैसा आपने कहा माँ, सब किस्मत की बातें हैं!”

“हाँ बेटे...”

“हमको काजल या सुमन आंटी जैसी बहुएँ क्यों नहीं मिलीं, माँ?”

“किस्मत की बातें हैं बेटे... सब किस्मत की बातें हैं!” इस बार बहुत कोशिश करने पर भी किरण जी की आँखों से आँसू टपक ही पड़े!

अजय नहीं चाहता था कि माँ बहुत दार्शनिक हो जाएँ, इसलिए उसने चुहल करते हुए कहा,

“माँ... अमर भैया भी तो आंटी जी का दूधू पीते थे न?”

माँ ने ‘हाँ’ में सर हिलाया, “अभी भी! ... अब तो और समय तक पिएगा!”



[प्रिय पाठकों : अमर, काजल, और सुमन के बारे में जानने के लिए मेरी कहानी “मोहब्बत का सफ़र” अवश्य पढ़ें!]


“माँ, आप भी शादी कर लीजिए... फिर मैं भी आपका दूध पियूँगा!”

“हा हा! शादी कर तो लूँ, लेकिन अब कहाँ होंगे मुझे बच्चे!”

“क्यों?”

“अरे! सत्तावन की हो रही हूँ! अगर चाहूँ भी, तो भी ये सब नहीं होने वाला!”

“हम्म्म, मतलब चाह तो है आपको,” अजय ने फिर से चुहल करी।

माँ ने प्यार से उसके कान को उमेठा, “क्या रे, अपनी माँ से चुहल करता है?”

“सॉरी माँ, आऊऊ...” अजय ने अपने कान को सहलाते हुए कहा, “लेकिन माँ, अगर आपको अपनी कोई अधूरी इच्छा पूरी करनी हो, तो वो क्या होगी?”

“तुझे अपनी कोख से जनम देना चाहूँगी मेरे लाल... तेरी असली वाली माँ बनना चाहूँगी... ताई माँ नहीं!” माँ ने बड़ी ममता से कहा, “मेरी एक और भी इच्छा है - और वो ये है कि तेरी किसी बहुत ही अच्छी लड़की से शादी हो!”

“हा हा! पेट भरा नहीं आपका माँ दो दो बहुओं से? ... मेरा तो एक ही बीवी से भर गया माँ... अच्छे से!”

“बेटे, मैं अच्छी सी लड़की की बात कर रही हूँ... ऐसी जो तुझे चाहे... जो तेरी ताक़त बन कर रहे!”

“हा हा! क्या माँ - सपने देखने की आदत नहीं गई तुम्हारी!” अजय ने फ़ीकी सी हँसी हँसते हुए कहा।

“लव यू टू बेटे,” माँ ने उसके मज़ाक को नज़रअंदाज़ कर के, उसके माथे को चूमते हुए कहा, “सो जाओ अब?”

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कब नींद आ गई उसे, उसको नहीं पता।

लेकिन सोते समय बड़े अजीब से सपने आए उसको...

उसको ऐसा लगा कि जैसे उसके जीवन के सभी अनुभव... जीवन का हर एक पल एक रबड़ जैसी एक अथाह चादर पर बिखेर दिए गए हों, और वो चादर हर दिशा में खिंच रही हो। चादर अपने आप में बेहद काले रंग की थी... शायद आदर्श कृष्णिका रही हो! “आदर्श कृष्णिका” भौतिकी में ऐसी काली सतह या पदार्थ होता है, जो किसी भी प्रकार की रोशनी को पूरी तरह से सोख़ ले, और उसमें से कुछ भी प्रतिबिंबित या उत्सर्जित न होने दे!

चादर अवश्य ही आदर्श कृष्णिका रही हो, लेकिन हर तरफ़ अजीब सी रोशनियाँ दीप्तिमान थीं। ऐसी रोशनियाँ जो आज तक उसने महसूस तक नहीं करी थीं! उस चादर पर उसने ख़ुद को खड़ा हुआ महसूस किया। लेकिन उसको अपना शरीर भी नहीं महसूस हो रहा था। उसको ऐसा लग रहा था कि जैसे उसका खुद का शरीर भी उसी रबड़ जैसी चादर का ही हिस्सा हो।

चादर निरंतर खिंचती चली जा रही थी, और उसके खिंचते खिंचते अजय के जीवन ही हर घटना जगमग ज्योतिर्मय होने लगी और वो उस जगमग सी वीथी पर अबूझ से पग भरते हुए आगे बढ़ रहा था।

उसने यह भी महसूस किया कि अचानक से उसके जीवन की कई घटनाओं में आग लग गई हो और वो बड़ी तेजी से धूं धूं कर के जलने लगीं। वो भाग कर उनको जलने से बचाना चाह रहा था, लेकिन वो चादर थी कि उसका फैलना और खिंचना रुक ही नहीं रहा था!

अजय बस निःस्सहाय सा अपने ही अवचेतन में स्वयं को समाप्त होते महसूस कर रहा था। लेकिन वो कुछ नहीं कर पा रहा था। जैसे उसको लकवा मार गया हो। और उसको जब ऐसा लगने लगा कि उसकी सारी स्मृतियाँ जल कर भस्म हो जाएँगी, और यह उसके जीवन की चादर फट कर चीथड़े में परिवर्तित हो जाएगी, अचानक से सब रुक गया।

एक तेज श्वेत रौशनी का झमका हुआ, और अचानक से ही सब कुछ उल्टा होने लगा। जो चादर एक क्षण पहले तक फ़ैल और खिंच रही थी, अब वो बड़ी तेजी से हर दिशा से सिकुड़ने लगी। संकुचन का दबाव अत्यंत पीड़ादायक था। अजय वहाँ से निकल लेना चाहता था, लेकिन उसके पैर जैसे उस चादर पर जम गए हों! कुछ ही पलों में अजय का सारा जीवन, किसी बॉल-बिअरिंग के छोटे से छर्रे जितना सिकुड़ गया। आश्चर्यजनक था कि वो खुद अपने जीवन के ‘छर्रे’ को देख भी पा रहा था और उसका हिस्सा भी था!

और फिर अचानक से सब कुछ शून्य हो गया!



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सुमन , काजल और अमर का इस कहानी मे पदार्पण अजय के लिए शुभ संकेत है । चूंकि मैने " मोहब्बत का सफर " पढ़ा है इसलिए अच्छी तरह जानता हूं अजय को इस बार निराश नही होना पड़ेगा । कम से कम फाइनेंशियल कंडीशन तो अवश्य ही ठीक हो जायेगी ।
अमर साहब की तरह अजय भी स्तनपान का शौकीन है लेकिन क्या अमर साहब के परिवार मे जो खुलापन था वह अजय के नसीब मे भी है , यह हम रीडर्स के लिए जिज्ञासा की बात होगी ।

प्रजापति साहब के अप्रवासी संतान और किरण जी के अप्रवासी राजदुलारे प्रशांत साहब को क्या कभी अपने गलती का एहसास होगा ? और अगर एहसास नही हुआ तो क्या उन्हे अपने कुकर्मों का फल भोगना होगा या जीवन भर वो शाही सुख ही भोगते रहेंगे , यह भी हमारे लिए कौतुहल का विषय रहेगा !
वैसे अजय ने अब तक जिस तरह मुश्किल हालात का सामना किया है , अच्छाइयों से मुंह नही मोड़ा है , दिल के अंदर अपने मासूम बचपन को जगाए रखा है ; उससे लगता नही कि उसके बुरे दिनों के अंत होने मे कोई ज्यादा समय लगने वाला है !

इस अपडेट मे आपने अजय के रात्रि स्वप्न का जो वर्णन किया वह बहुत ही खूबसूरत था । शब्दावली शानदार थी और आम लेखनी से हटकर थी । यह वास्तव मे अद्भुत राइटिंग थी ।

खुबसूरत अपडेट अमर भाई ।
आउटस्टैंडिंग एंड अमेजिंग अपडेट ।
 

kamdev99008

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आप के पहली बात से मै इत्तफाक नही रखता कि कोई अबला प्रताड़ित नही होती ।
आप संसद मे दिए गए आंकड़ों को ही देख लिजिए । नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के रिपोर्ट के अनुसार 2018 , 2019 , 2020 मे दहेज उत्पीड़न पर दर्ज मामलों की संख्या क्रमशः 12826 , 13307 , 10366 हैं । दहेज मृत्यु क्रमशः 7167 , 7141 , 6966 हैं ।
2022 मे 6450 दहेज हत्याएं दर्ज की गई है । इनमे 359 दहेज हत्याओं के मामले इस लिए बंद कर दिए गए क्योंकि साक्ष्य अपर्याप्त थे ।
उत्तर प्रदेश , बिहार और मध्य प्रदेश मे दहेज का असर सबसे अधिक है ।
यह सब आंकड़े हैं जो गवर्नमेंट के एजेन्सी द्वारा जारी किए गए हैं । बहुत सारे मौतें तो पुलिस और कोर्ट तक पहुंच ही नही पाती ।
लेकिन यह भी सच है कि दहेज के कठोर कानून का फ़ायदा कुछ गलत औरतें उठा ले जाती है लेकिन यह भी सच है कि इनकी संख्या बेहद ही कम हैं ।

आप के दूसरी बात से मै बिल्कुल सहमत हूं । सम्बन्ध हैसियत नही चरित्र , संस्कार और फैमिली के बैक ग्राउंड हिस्ट्री को देखकर बनाना चाहिए । पहले शादी मे एक अगुवा ( विचौलिया) होता था जो दोनो पक्षों को भलीभाँति जानता था और इसलिए कोई खास प्रोब्लम नही होती थी । थोड़े-बहुत प्रोब्लम होते तो थे पर उन्हे आसानी से सुलझा लिया जाता था ।
बड़े भाई .... शब्दों से मत खेलो, भावनाओं की गहराई को समझो
1- जिनका परिवार उनके दामाद की कितनी कमाई, कितनी जायदाद और कितना रूतबा है जिसका लाभ और विरासत इनकी बेटी को मिलेगी...... इस लालच के आधार पर रिश्ता करते हैं
2- जाने पहचाने पुराने रिश्तेदारों जिनके साथ उनका व उनकी बेटी का सामंजस्य बैठ जाये उनको हैसियत के आधार पर दरकिनार करके, चाहे कर्ज लेकर दहेज देना पड़े , चाहे अनजाने, घमण्डी, असभ्य और लालची लोग हों लेकिन रिश्ता हैसियत के आधार पर वहीं होगा


ऐसी बेटियों को आप किस आधार पर अबला मान सकते हैं???

NCRB डाटा तो कुछ भी नहीं इससे 10 गुना रियल मामले होते हैं जो सामाजिक स्तर पर दबा या सुलझा लिए जाते हैं
लेकिन इनका गहन विश्लेषण करके देखना 90% मामलों में बेटी वालों की लालसा ऐसे बेमेल विवाह का आधार होती है जो उनकी ही बेटियों को बेटे वालों की प्रताड़ना और शोषण के रूप में झेलनी पड़ती है

मैं लिखित रूप में आपको बता रहा हूं कि अपवाद 10% से कम ही मिलेंगे जहां अनजानी या परिस्थितिजन्य दुष्प्रवृत्ति कारण हो।

बुरे से बुरा व्यक्ति भी, चाहे कर ना सके लेकिन सोचता हमेशा अपने परिवार के भले के लिए ही है
 
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