बिलकुल, मैं भी वही बोला कि पर्सनल रिकॉर्ड पर जब लोग ज्यादा ध्यान देते हैं तो टीम की परफॉर्मेंस खराब होती है।
धोनी एक बड़ा फैक्टर था 2011 की जीत में, लेकिन वो बस एक फैक्टर था, उसके अलावा गंभीर और युवराज भी बहुत बड़े फैक्टर थे, दोनो में फाइटिंग स्पिरिट थी, जो इस टीम के बॉलर्स में ही दिखी, बैट्समैन में बिलकुल नहीं। ऑस्ट्रेलिया से लीग वाला मैच भी बस इसी कारण जीते क्योंकि बॉलर्स ने उनको रन नही बनने दिए ज्यादा।
ऐसा ही सचिन के समय भी होता था। हालांकि सचिन ने कई ऐसी इनिंग्स खेली हैं जहां जब जरूरत होती थी तब वो खड़ा होता था, यही कमी मुझे कोहली में दिखती है, बल्कि सचिन से भी ज्यादा बड़ी कमी।
रोहित as a captain बहुत बढ़िया काम किया, उसने खुद के रिकॉर्ड को न देख रन को एक्सेलरेट किया और एक अच्छी शुरुवात दी। इसके बाद ही तो कोहली का काम था की टिके रहो, आखिरी तक, भले रन नही बनाओ। As a main batsman you only need to do that only. बॉलर्स ने सारे मैच जितवाए, बैट्समैन इकलौते मैच में भी फेल हो गए, जबकि वही हमारी सबसे बड़ी ताकत होते हैं।
ऑस्ट्रेलिया में यही फाइटिंग स्पिरिट उसके है प्लेयर में भरी हुई है। 1983 की टीम में भी यही बात थी।