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खोया हुआ प्यार
2020 - लखनऊ का एक मेट्रो स्टेशन
‘‘एक्सक्यूज मी!’’ मैंने अपने आगे खड़ी महिला से कहा, ताकि वह थोड़ा साइड हो जाये और मैं आगे निकल कर टिकट खरीद सकूँ।
मेरी अवाज सुनकर उसने मुड़ कर मेरी तरफ देखा......और उसका चेहरा देखते ही जैसे मैं कहीं खो गया। ‘‘स्नेहा तुम....’’ मेरे मुंह से बस इतना ही निकल पाया।
2010 - लखनऊ का एक प्रतिष्ठित कालेज
मैं रोहन आज बेहद खुश था। आखिर शहर के इतने मशहूर कालेज में बीसीए में मेरा एडमिशन हुआ था। इस कालेज में एडमिशन की खुशी और भी इसलिये थी क्योंकि इसी कालेज में मेरी कजन यानी मौसेरी बहन और फ्रेण्ड स्नेहा भी पढ़ती थी। वह मुझसे 1 साल सीनियर थी। यानि की एक साल पहले से इस कालेज में पढ़ रही थी। वैसे तो हम दोनों सेम एज के थे लेकिन इस कालेज में उसे पहले एडमिशन मिल गया, जबकि अच्छे कालेज में एडमिशन न मिल पाने के कारण मुझे 12 के बाद का पहला साल ड्राप करना पड़ा था। लेकिन अब मुझे 1 साल ड्राप होने का कोई गम नहीं था। मैं बहुत खुश था कि मुझे एडमिशन मिल गया है। इस कालेज में काफी प्लेसमेण्ट होता था और यहाँ से डिग्री लेकर इण्डिया और अब्राॅड में आसानी से जाॅब मिल जाती थी। कालेज लोकल का था इसलिये हाॅस्टल में रहने की भी जरूरत नहीं थी। हम अपने-अपने घर से ही वहँा आते थे। स्नेहा और मैं एक ही शहर में रहते थे, यह कालेज भी उसी शहर में था। हाँलाकी स्नेहा और मेरे घर में 10 किमी0 की दूरी थी। इसलिये मैं और स्नेहा अलग-अलग ही कालेज आते थे।
आज मेरा पहला दिन था और खुशकिस्मती से मेरे एक दोस्त विनय का भी एडमिशन वहाँ मेरे साथ हुआ था। मैंने और विनय ने साथ में क्लासेज अटेंड की फिर लंच टाइम में हम कैण्टीन पहुँचे। मैं स्नेहा को ढूँढने की कोशिश कर रहा था। मैं जानता था लंच में वो भी कैण्टीना आयेगी। आज हमारा पहला दिन था इसलिये हम थोड़ा डर भी रहे थे कि हमारी रैगिंग न हो जाये। मैं और विनय खाने की प्लेट लेकर कैण्टीन की एक टेबल पर बैठे। तभी एक हट्टा कट्टा हैण्डसम नौजवान वहाँ आया और बोला ‘‘क्यों? फ्रेशर्स हो ना? पता नहीं कि यह टेबल सीट मेरे और मेरे फ्रेण्ड्ज के लिये रिजर्व रहती है? अभी बताता हूँ, खड़े हो’’
यह सुनकर हमारी तो सिट्टी पिट्टी ही गुम हो गयी। तभी आवाज सुनाई दी।
‘‘रुको अमित......’’
यह आवाज स्नेहा की थी।
‘‘अमित यह मेरा कजिन रोहन है, साॅरी बोलो’’
‘‘ओह साॅरी मुझे पता नहीं था तुम स्नेहा के कजिन हो।’’ अमित ने मुझसे और विनय से कहा।
‘‘कोई बात नहीं अमित।’’ मैंने जवाब दिया।
अमित: ‘‘आओ बैठो...हम भी साथ बैठते हैं।’’
अमित, स्नेहा, स्नेहा की एक फ्रेण्ड, मैं, विनय उस टेबल के चारों ओर बैठे। अमित भी जा के उन तीनों के लिये प्लेट्स ले आया और हम साथ में खाना खाने लगे और खाते खाते बाते करने लगे।
स्नेहा: ‘‘मुझे काफी खुशी है रोहन कि तुम्हे यहाँ एडमिशन मिल गया। अब अच्छे से स्टडी करना। और हाँ कोई परेशानी हो तो मुझे बताना’’
मैं (रोहन): ‘‘थैंक्स स्नेहा’’
स्नेहा: ‘‘बाई द वे ये मेरी फ्रेण्ड सोनम है और अमित से तुम मिल ही चुके हो। वैसे तो हमारे और भी फ्रेण्ड्स हैं पर हम तीनों ज्यादा पक्के दोस्त हैं।’’
‘‘नाइस टू मीट यू सोनम......मैं रोहन और ये मेरा दोस्त विनय। हम 10 से 12 क्लास तक क्लासमेट्स रहे हैं।’’ मैंने विनय का इन्ट्रोडक्शन उन तीनों से कराया।
जल्द ही हम पाँचों पक्के दोस्त बन गये। इधर विनय और सोनम में काफी पट रही थी। और स्नेहा और अमित की दोस्ती भी दोस्ती से कहीं ज्यादा थी। स्नेहा और अमित ब्वायफ्रेण्ड और गर्लफ्रेण्ड थे। पर पता नहीं क्यों मुझे अमित से जलन हो रही थी। पता नहीं क्यों मुझे स्नेहा की अमित से नजदीकियाँ पसन्द नहीं आ रही थी। स्नेहा मेरी कजन थी, मैं उसे बचपन से जानता था, पर मैंने उसे बहन नहीं बल्कि हमेशा से अपनी फ्रेण्ड माना था। लेकिन उसको अब उसके ब्वायफ्रेण्ड के साथ देखकर मुझे महसूस होने लगा था कि मैं उसको बहन या फ्रेण्ड नहीं बल्की प्रेमिका के रूप में देखना चाहता था।
मुझसे स्नेहा ने कई बार कहा भी कि तुम सिंगल हो, कहो तो अपनी किसी फ्रेण्ड्स से तुम्हारी दोस्ती करा दूँ। पर मुझे तो कोई पसंद ही नहीं थी स्नेहा के अलावा। स्नेहा अमित के साथ खुश थी, हालाँकि मैं जानता था कि अमित बहुत अच्छा लड़का नहीं है और कभी न कभी वो स्नेहा धोखा जरूर देगा, पर मैं कुछ कहने की हिम्मत न कर पातपा। और स्नेहा मुझे अपना भाई ही नहीं अपना अच्छा दोस्त भी मानती थी, वह मुझे मेरे नाम से ही बुलाती थी, न कि भाई या ब्रो कहकर क्योंकि हम हमउम्र थे। पर मैं जानता था कि वह मुझे एक भाई और दोस्त से ज्यादा कुछ नहीं मानती है। मेरे अन्दर भी अपने दिल की बात स्नेहा या किसी और दोस्त से भी कहने की बिल्कुल हिम्मत नहीं थी। हमारा रिश्ता उस मंजिल तक नहीं पहुँच सकता था जिसके मैंने कभी सपने देख लिये थे। और समाज.....हमारे पैरेन्ट्स भी हमारे रिश्ते को कभी कबूल नहीं करेंगे।
मैंने अब अपने फ्रेण्ड ग्रुप से दूरी बनाना शुरु कर दी क्योंकि मुझे अब स्नेहा और अमित को साथ देखना अच्छा नहीं लगता था। मैं अलग-अलग रहने लगा था। वो मुझसे पूछते थे कि अब मैं अलग-अलग क्यों रहता हूँ तो मैं पढ़ाई का बहाना बना देता था। सब को लगता था शायद मैं पढ़ाई को झेल नहीं पा रहा हूँ मुझमे पढ़ाई का ही प्रेशर है। हाँलाकि ऐसा नहीं था कि मैं पढ़ाई को झेल नहीं सकता था बल्कि मैं पढ़ाई में भी दिल नहीं लगा पा रहा था। सेमेस्ट के एक्जाम में सिर्फ 1 महीना था। मैं अब उस काॅलेज को ही छोड़ना चाहता था जिसमें एडमिशन के लिये मैं कभी बेहद उत्सुक था। मैं फेल हो कर या कालेज छोड़ कर मैं अपने पेरेन्ट्स को भी दुखी नहीं करना चाहता था क्योंकि उन्हें मुझसे काफी उम्मीदें थीं मैं उनका एकलौता बेटा था। मैं बहोत परेशान था, मैं वो कालेज छोड़ना चाहता था पर पढ़ाई नहीं छोड़ना चाहता था। तभी मुझे एक उम्मीद की किरन नजर आयी, मैंने इस कालेज में एडमिशन लेने से पहले एक फाॅरेन यूनिवर्सिटी में एडमिशन और स्काॅलरशिप के लिये फार्म भरा था। उसकी एक्जाम डेट भी करीब आ रही थी। मेरे सेमेस्टर एक्जाम्स शुरु होने से 2-3 दिन पहले ही उसका एन्ट्रेन्स एक्जाम था। अगर मैं उस फाॅरेन यूनिवर्सिटी के एक्जाम को क्लियर कर लेता तो मुझे स्काॅलरशिप मिलती और आॅस्ट्रेलिया में जा कर पढ़ने का मौका मिलता। यही एक मौका था जब मैं अपने कालेज को छोड़ जा सकता था और अपनी लाईफ ‘मूव आॅन’ कर सकता था। स्काॅलरशिप का एक्जेम काफी टफ होना था और उसमें काफी काॅम्पेटीशन होना था क्योंकि सिर्फ 50 स्टूडेन्ट्स सेलेक्ट होने थे पर मैं जानता था कि असम्भव कुछ भी नहीं है। मेरे पास स्टडी के लिये 1 महीने से भी कम का समय था। स्काॅलरशिप के एक्जाम में 12 तक के लेवल के क्वेश्चन्स आने थे। मैंने 12 तक की पढ़ाई अच्छे से की थी, मैं रिवीजन में लग गया मैंने एक कोचिंग ज्वाइन कर ली और इंटरनेट की भी हेल्प लेने लगा। यहाँ तक की मैं काॅलेज की छुट्टी करके भी उसी एक्जाम की तैयारी करता। मेरे पैरेन्ट्स और फ्रेण्ड्स को लगता कि मैं सेमेस्टर एक्जाम्स की तैयारी कर रहा हूँ। आखिरकार मेरी मेहनता रंग लाई मैंने स्काॅलरशिप का एक्जाम दिया और बहुत अच्छा गया। मेरे पेरेन्ट्स का या किसी दोस्त को अभी भी नहीं पता था कि मैंने कोई स्काॅलरशिप का एक्जाम दिया है। अब मुझे बस रिजल्ट का इंतेजार था। इसी बीच मेरे सेमेस्टर के एक्जाम शुरु हो गये, स्काॅलरशिप के एक्जाम की तैयारी की वजह से मैं सेमेस्टर एक्जाम की बिल्कुल भी तैयारी नहीं कर पाया था और उसके पेपर बहुत खराब गये। बस मैं अब यह दुआ कर रहा था कि सेमेस्टर के एक्जाम के रिजल्ट से पहले मेरे स्काॅलरशिप के एक्जाम का रिजल्ट आ जाये। क्योंकि स्काॅलरशिप के एक्जाम में ही मैं पास हो सकता था, सेमेस्टर वालों में तो फेल होना पक्का था। खैर हुआ भी ऐसा ही।
सेमेस्टर के एक्जाम्स खतम होने के बाद कालेज में छुट्टियाँ हो गई और कुछ ही दिन में स्काॅलरशिप के एक्जाम का रिजल्ट आ गया। मेरे पैरेन्ट्स, दोस्त, और सब लोग खुश थे कि मुझे स्काॅलरशिप भी मिलेगी और आॅस्ट्रेलिया की प्रतिष्ठित यूनिवर्सिटी में पढ़ने का मौका मिलेगा।
विदेश में स्टडी पूरी करने के बाद मेरी वहीं विदेश में जाॅब लग गई। स्टडी पूरी करने के बाद मैं कुछ दिन के लिये छुट्टी पर इण्डिया आया था। मुझे पता चला स्नेहा और अमित की शादी हो गई है और स्नेहा अमित के साथ दिल्ली चली गई है क्योंकि अमित दिल्ली में जाॅब कर रहा था। स्नेहा की फैमिली वाले स्नेहा की अमित से शादी के पक्ष में नहीं थे। लेकिन उनकी मर्जी के खिलाफ स्नेहा ने अमित से शादी कर ली थी। मैंने भी स्नेहा से काॅन्टेक्ट करने की कोशिश नहीं की।
उसके बाद से मेरा भी दोबारा इण्डिया आना नहीं हुआ। मैं अपने पेरेन्ट्स को वहीं बुलवा लेता था। वो इसी बहाने विदेश घूम भी लेते थे। अब कई साल बाद जा कर मैं वापस इण्डिया आया था।
2020
‘‘रोहन....तुम’’ स्नेहा की आवाज सुनकर मैं फ्लैशबैक से वापस आया। 10 साल बाद उसे देख रहा था मैं। वो कालेज गोइंग 18-19 साल की गर्ल अब 28-29 साल की हो चुकी थी। अभी भी खूबसूरत थी वह। पर उसके चेहरे पर अब वो उत्साह नजर नहीं आ रहा था जो पहले दिखता था। एक उदासी दिखी मुझे उसके चेहरे और आँखों में। मेरी भी आँखों में आँसु थे और उसके भी।
‘‘स्नेहा तुम....यहाँ कैसे, तुम तो दिल्ली में थी न अमित के साथ और अमित कैसा है?’’ मैंने पूछा।
मेरे इतना पूछते ही स्नेहा फफक पड़ी। मैं उसको लेकर किनारे आया और पास रखी चेयर्स पर बैठ कर मैं उससे जानने की कोशिश करने लगा आखिर वह दुखी क्यों है।
‘‘क्या हुआ स्नेहा? सब ठीक तो है? अमित ठीक तो है?’’ मैंने उससे पूछा।
‘‘हाँ वह ठीक है पर अब हमारा रिश्ता खतम हो चुका है।’’ स्नेहा ने खुद को सम्भालते हुए मुझसे कहा।
‘‘आज से करीब 6 साल पहले कालेज खतम होने बाद ही, परिवार की मर्जी न होने के बावजूद मैंने उससे शादी की, तब तुम आस्ट्रेलिया में थे, उसके लिये अपने परिवार को छोड़ दिया, पर शादी के बाद वो एकदम बदल गया। अमित शादी बाद वो अमित नहीं रहा जिससे मैंने प्यार किया था। उसके दूसरी लड़कियों से सम्बन्ध थे। रात-रात भर गायब रहता था और तो और शराब के नशे में मुझ पर हाथ तक उठा देता था। शादी के 2 साल बाद मैं एक बेटे की माँ भी बनी। पर बेटे के पैदा होने के बाद भी वह नहीं सुधरा। मैंने बहुत सहा रोहन, पर अब सहा नहीं जाता। कुछ महीने पहले मैंने तलाक की अर्जी डाली थी जो कबूल हो गई और मुझे तलाक मिल गई है, बेटे की कस्टडी भी मुझे मिली है, और अमित को हर माह मुझे खर्चा देने का आर्डर दिया है अदालत नें।’’ स्नेहा ने अपनी आप बीती मुझे सुना दी।
‘‘तो....तुम कब आई यहाँ लखनऊ वापस दिल्ली से.....मौसी-मौसा जी ने........’’ मैंने जानने की कोशिश करते हुए पूछा कि अब स्नेहा क्या कर रही है, कहाँ रह रही है।
‘‘माँ-बाप तो माँ-बाप ही होते हैं रोहन, मैंने उनको नाराज करके, उनकी मर्जी के खिलाफ शादी की...पर जिस शख्स के लिये मैंने अपने माँ-बाप को छोड़ा था जब उसी ने कहीं का न छोड़ा तो माँ-बाप ने ही मुझे फिर से घर पर पनाह दी।’’ स्नेहा ने सिसकते हुए कहा।
‘‘कोई बात नहीं स्नेहा....अभी जिन्दगी खत्म नहीं हुई....जो हो गया उसे भूल जाओ, आगे का क्या प्लान है......अपने फ्यूचर की सोचो’’ मैंने उसे दिलासा देते हुए कहा।
‘‘हाँ रोहन मैंने नौकरी ज्वाइन कर ली है यहीं लखनऊ में, ताकि अपने माँ-बाप पर बोझ न लगूँ, और अतीत भूलने में मदद मिले। ग्रेजुएशन के बाद मैंने कहीं नौकरी नहीं की थी और अब ग्रेजुएशन पूरी करने के 5-6 साल बाद नौकरी ढूँढने में थोड़ी दिक्कत तो हुई पर एक रिसेप्शनिस्ट की नौकरी मिल गई है।’’ स्नेहा ने कहा।
‘‘तो अभी तो तुम यंग हो....और खूबसूरत भी हो....तुम्हे अभी भी कोई न कोई मिल जायेगा....शादी क्यों नहीं कर लेती।’’ मैंने मुस्कुरा कर उसकी तारीफ कर माहौल की गम्भीरता को कम करने की कोशिश की।
‘‘नहीं रोहन, एक बार धोखा खा चुकी हूँ, अब आगे अगर धोखा मिलेगा तो झेल नहीं पाऊँगी।’’
‘‘अरे स्नेहा...ऐसा नहीं है सब मर्द एक जैसे नहीं होते हैं।’’
‘‘हाँ रोहन जानती हूँ हर मर्द एक जैसा नहीं होता है। पर शायद सच्चा प्यार करने वाला मेरी किस्मत में नहीं है।’’
‘‘ऐसा नहीं है स्नेहा.....सच्चा प्यार करने वाला तुम्हारी किस्मत में है.....जो तुम्हें हमेशा सच्चा प्यार करेगा, बिना किसी लालच के।’’
‘‘अच्छा। कौन है वो जरा मुझे भी बताओ।’’
‘‘तुम्हारे सामने.....मैं हूँ स्नेहा......मैं तुमसे सच्चा प्यार करता हूँ। हमेशा से करता था और करता रहूँगा। कभी कहने की हिम्मत नहीं कर पाया पर आज कह रहा हूँ। शादी करोगी मुझसे? आस्ट्रेलिया चलोगी मेरे साथ?’’ मैंने दिल मजबूत करके स्नेहा से अपने दिल की बात का इजहार कर दिया।
‘‘क्या?....ओह गाॅड.....तुम मजाक तो नहीं कर रहे.......।’’
‘‘मेरी आँखों में देखो स्नेहा। क्या तुम्हे यह मजाक नजर आता है? क्या तुम्हे लगता है मैं तुम्हारे साथ ऐसा मजाक करूँगा।’’
‘‘पर तुम मेरे भाई हो रोहन।’’
‘‘भाई नहीं कजन हूँ स्नेहा, पर हमने हमेशा एक दूसरे को भाई-बहन से ज्यादा दोस्त माना है।’’
‘‘म...मुझे अभी कुछ समझ नहीं आ रहा है रोहन। मैं अभी जाती हूँ मैं आॅलरेडी लेट हो गयी हूँ आॅफिस के लिये। मैं तुमसे बाद में बात करूँगी।’’
‘‘ठीक है। मुझे इंतजार रहेगा। वेट मेरा नम्बर तो ले लो’’
मैंने स्नेहा को अपना मोबाइल नम्बर दे दिया। 2 दिन बीत गये फिर एक दिन उसमें मुझे काॅल करके एक पार्क में मिलने बुलाया।
पार्क में......
‘‘स्नेहा देखो....अगर उस दिन मेरी बात बुरी लग गई हो तो आई एम साॅरी.....शायद मुझे वह नहीं कहना चाहिए जो मैंने कह दिया।’’
‘‘साॅरी कहने की जरूरत नहीं है रोहन। साॅरी तो मुझे कहना चाहिए कि तुम्हारे प्यार को मैं महसूस ही नहीं कर पाई। उस दिन तुमने जो कहा अपने सच्चे दिल से कहा। पर आज मैं एक तलाकशुदा लड़की हूँ जो एक बच्चे की माँ भी है। अब मैं वो स्नेहा नहीं हूँ जिससे तुमने प्यार किया था। तुम्हे मुझसे बेहतर लड़की मिल जाएगी रोहन। मेरे और तुम्हारे माता-पिता भी शायद इस रिश्ते से खुश न हों।’’
‘‘स्नेहा....मेरे लिये कोई भी लड़की तुमसे बेहतर नहीं हो सकती। किसी और को मैं उतना खुश नहीं रख सकूँगा जितना मैं तुमको रखूँगा। और पैरेन्ट्स को मैं समझा लूँगा, वो मान जायेंगे।’’
‘‘ठीक है रोहन। मैं करूँगी तुमसे शादी। चलूँगी तुम्हारे साथ आॅस्ट्रेलिया।’’ आँखों में आँसूं लिये मुस्कुराते हुए स्नेहा ने कहा।
मिल चुका था अब मुझे मेरा......
खोया हुआ प्यार
‘‘एक्सक्यूज मी!’’ मैंने अपने आगे खड़ी महिला से कहा, ताकि वह थोड़ा साइड हो जाये और मैं आगे निकल कर टिकट खरीद सकूँ।
मेरी अवाज सुनकर उसने मुड़ कर मेरी तरफ देखा......और उसका चेहरा देखते ही जैसे मैं कहीं खो गया। ‘‘स्नेहा तुम....’’ मेरे मुंह से बस इतना ही निकल पाया।
2010 - लखनऊ का एक प्रतिष्ठित कालेज
मैं रोहन आज बेहद खुश था। आखिर शहर के इतने मशहूर कालेज में बीसीए में मेरा एडमिशन हुआ था। इस कालेज में एडमिशन की खुशी और भी इसलिये थी क्योंकि इसी कालेज में मेरी कजन यानी मौसेरी बहन और फ्रेण्ड स्नेहा भी पढ़ती थी। वह मुझसे 1 साल सीनियर थी। यानि की एक साल पहले से इस कालेज में पढ़ रही थी। वैसे तो हम दोनों सेम एज के थे लेकिन इस कालेज में उसे पहले एडमिशन मिल गया, जबकि अच्छे कालेज में एडमिशन न मिल पाने के कारण मुझे 12 के बाद का पहला साल ड्राप करना पड़ा था। लेकिन अब मुझे 1 साल ड्राप होने का कोई गम नहीं था। मैं बहुत खुश था कि मुझे एडमिशन मिल गया है। इस कालेज में काफी प्लेसमेण्ट होता था और यहाँ से डिग्री लेकर इण्डिया और अब्राॅड में आसानी से जाॅब मिल जाती थी। कालेज लोकल का था इसलिये हाॅस्टल में रहने की भी जरूरत नहीं थी। हम अपने-अपने घर से ही वहँा आते थे। स्नेहा और मैं एक ही शहर में रहते थे, यह कालेज भी उसी शहर में था। हाँलाकी स्नेहा और मेरे घर में 10 किमी0 की दूरी थी। इसलिये मैं और स्नेहा अलग-अलग ही कालेज आते थे।
आज मेरा पहला दिन था और खुशकिस्मती से मेरे एक दोस्त विनय का भी एडमिशन वहाँ मेरे साथ हुआ था। मैंने और विनय ने साथ में क्लासेज अटेंड की फिर लंच टाइम में हम कैण्टीन पहुँचे। मैं स्नेहा को ढूँढने की कोशिश कर रहा था। मैं जानता था लंच में वो भी कैण्टीना आयेगी। आज हमारा पहला दिन था इसलिये हम थोड़ा डर भी रहे थे कि हमारी रैगिंग न हो जाये। मैं और विनय खाने की प्लेट लेकर कैण्टीन की एक टेबल पर बैठे। तभी एक हट्टा कट्टा हैण्डसम नौजवान वहाँ आया और बोला ‘‘क्यों? फ्रेशर्स हो ना? पता नहीं कि यह टेबल सीट मेरे और मेरे फ्रेण्ड्ज के लिये रिजर्व रहती है? अभी बताता हूँ, खड़े हो’’
यह सुनकर हमारी तो सिट्टी पिट्टी ही गुम हो गयी। तभी आवाज सुनाई दी।
‘‘रुको अमित......’’
यह आवाज स्नेहा की थी।
‘‘अमित यह मेरा कजिन रोहन है, साॅरी बोलो’’
‘‘ओह साॅरी मुझे पता नहीं था तुम स्नेहा के कजिन हो।’’ अमित ने मुझसे और विनय से कहा।
‘‘कोई बात नहीं अमित।’’ मैंने जवाब दिया।
अमित: ‘‘आओ बैठो...हम भी साथ बैठते हैं।’’
अमित, स्नेहा, स्नेहा की एक फ्रेण्ड, मैं, विनय उस टेबल के चारों ओर बैठे। अमित भी जा के उन तीनों के लिये प्लेट्स ले आया और हम साथ में खाना खाने लगे और खाते खाते बाते करने लगे।
स्नेहा: ‘‘मुझे काफी खुशी है रोहन कि तुम्हे यहाँ एडमिशन मिल गया। अब अच्छे से स्टडी करना। और हाँ कोई परेशानी हो तो मुझे बताना’’
मैं (रोहन): ‘‘थैंक्स स्नेहा’’
स्नेहा: ‘‘बाई द वे ये मेरी फ्रेण्ड सोनम है और अमित से तुम मिल ही चुके हो। वैसे तो हमारे और भी फ्रेण्ड्स हैं पर हम तीनों ज्यादा पक्के दोस्त हैं।’’
‘‘नाइस टू मीट यू सोनम......मैं रोहन और ये मेरा दोस्त विनय। हम 10 से 12 क्लास तक क्लासमेट्स रहे हैं।’’ मैंने विनय का इन्ट्रोडक्शन उन तीनों से कराया।
जल्द ही हम पाँचों पक्के दोस्त बन गये। इधर विनय और सोनम में काफी पट रही थी। और स्नेहा और अमित की दोस्ती भी दोस्ती से कहीं ज्यादा थी। स्नेहा और अमित ब्वायफ्रेण्ड और गर्लफ्रेण्ड थे। पर पता नहीं क्यों मुझे अमित से जलन हो रही थी। पता नहीं क्यों मुझे स्नेहा की अमित से नजदीकियाँ पसन्द नहीं आ रही थी। स्नेहा मेरी कजन थी, मैं उसे बचपन से जानता था, पर मैंने उसे बहन नहीं बल्कि हमेशा से अपनी फ्रेण्ड माना था। लेकिन उसको अब उसके ब्वायफ्रेण्ड के साथ देखकर मुझे महसूस होने लगा था कि मैं उसको बहन या फ्रेण्ड नहीं बल्की प्रेमिका के रूप में देखना चाहता था।
मुझसे स्नेहा ने कई बार कहा भी कि तुम सिंगल हो, कहो तो अपनी किसी फ्रेण्ड्स से तुम्हारी दोस्ती करा दूँ। पर मुझे तो कोई पसंद ही नहीं थी स्नेहा के अलावा। स्नेहा अमित के साथ खुश थी, हालाँकि मैं जानता था कि अमित बहुत अच्छा लड़का नहीं है और कभी न कभी वो स्नेहा धोखा जरूर देगा, पर मैं कुछ कहने की हिम्मत न कर पातपा। और स्नेहा मुझे अपना भाई ही नहीं अपना अच्छा दोस्त भी मानती थी, वह मुझे मेरे नाम से ही बुलाती थी, न कि भाई या ब्रो कहकर क्योंकि हम हमउम्र थे। पर मैं जानता था कि वह मुझे एक भाई और दोस्त से ज्यादा कुछ नहीं मानती है। मेरे अन्दर भी अपने दिल की बात स्नेहा या किसी और दोस्त से भी कहने की बिल्कुल हिम्मत नहीं थी। हमारा रिश्ता उस मंजिल तक नहीं पहुँच सकता था जिसके मैंने कभी सपने देख लिये थे। और समाज.....हमारे पैरेन्ट्स भी हमारे रिश्ते को कभी कबूल नहीं करेंगे।
मैंने अब अपने फ्रेण्ड ग्रुप से दूरी बनाना शुरु कर दी क्योंकि मुझे अब स्नेहा और अमित को साथ देखना अच्छा नहीं लगता था। मैं अलग-अलग रहने लगा था। वो मुझसे पूछते थे कि अब मैं अलग-अलग क्यों रहता हूँ तो मैं पढ़ाई का बहाना बना देता था। सब को लगता था शायद मैं पढ़ाई को झेल नहीं पा रहा हूँ मुझमे पढ़ाई का ही प्रेशर है। हाँलाकि ऐसा नहीं था कि मैं पढ़ाई को झेल नहीं सकता था बल्कि मैं पढ़ाई में भी दिल नहीं लगा पा रहा था। सेमेस्ट के एक्जाम में सिर्फ 1 महीना था। मैं अब उस काॅलेज को ही छोड़ना चाहता था जिसमें एडमिशन के लिये मैं कभी बेहद उत्सुक था। मैं फेल हो कर या कालेज छोड़ कर मैं अपने पेरेन्ट्स को भी दुखी नहीं करना चाहता था क्योंकि उन्हें मुझसे काफी उम्मीदें थीं मैं उनका एकलौता बेटा था। मैं बहोत परेशान था, मैं वो कालेज छोड़ना चाहता था पर पढ़ाई नहीं छोड़ना चाहता था। तभी मुझे एक उम्मीद की किरन नजर आयी, मैंने इस कालेज में एडमिशन लेने से पहले एक फाॅरेन यूनिवर्सिटी में एडमिशन और स्काॅलरशिप के लिये फार्म भरा था। उसकी एक्जाम डेट भी करीब आ रही थी। मेरे सेमेस्टर एक्जाम्स शुरु होने से 2-3 दिन पहले ही उसका एन्ट्रेन्स एक्जाम था। अगर मैं उस फाॅरेन यूनिवर्सिटी के एक्जाम को क्लियर कर लेता तो मुझे स्काॅलरशिप मिलती और आॅस्ट्रेलिया में जा कर पढ़ने का मौका मिलता। यही एक मौका था जब मैं अपने कालेज को छोड़ जा सकता था और अपनी लाईफ ‘मूव आॅन’ कर सकता था। स्काॅलरशिप का एक्जेम काफी टफ होना था और उसमें काफी काॅम्पेटीशन होना था क्योंकि सिर्फ 50 स्टूडेन्ट्स सेलेक्ट होने थे पर मैं जानता था कि असम्भव कुछ भी नहीं है। मेरे पास स्टडी के लिये 1 महीने से भी कम का समय था। स्काॅलरशिप के एक्जाम में 12 तक के लेवल के क्वेश्चन्स आने थे। मैंने 12 तक की पढ़ाई अच्छे से की थी, मैं रिवीजन में लग गया मैंने एक कोचिंग ज्वाइन कर ली और इंटरनेट की भी हेल्प लेने लगा। यहाँ तक की मैं काॅलेज की छुट्टी करके भी उसी एक्जाम की तैयारी करता। मेरे पैरेन्ट्स और फ्रेण्ड्स को लगता कि मैं सेमेस्टर एक्जाम्स की तैयारी कर रहा हूँ। आखिरकार मेरी मेहनता रंग लाई मैंने स्काॅलरशिप का एक्जाम दिया और बहुत अच्छा गया। मेरे पेरेन्ट्स का या किसी दोस्त को अभी भी नहीं पता था कि मैंने कोई स्काॅलरशिप का एक्जाम दिया है। अब मुझे बस रिजल्ट का इंतेजार था। इसी बीच मेरे सेमेस्टर के एक्जाम शुरु हो गये, स्काॅलरशिप के एक्जाम की तैयारी की वजह से मैं सेमेस्टर एक्जाम की बिल्कुल भी तैयारी नहीं कर पाया था और उसके पेपर बहुत खराब गये। बस मैं अब यह दुआ कर रहा था कि सेमेस्टर के एक्जाम के रिजल्ट से पहले मेरे स्काॅलरशिप के एक्जाम का रिजल्ट आ जाये। क्योंकि स्काॅलरशिप के एक्जाम में ही मैं पास हो सकता था, सेमेस्टर वालों में तो फेल होना पक्का था। खैर हुआ भी ऐसा ही।
सेमेस्टर के एक्जाम्स खतम होने के बाद कालेज में छुट्टियाँ हो गई और कुछ ही दिन में स्काॅलरशिप के एक्जाम का रिजल्ट आ गया। मेरे पैरेन्ट्स, दोस्त, और सब लोग खुश थे कि मुझे स्काॅलरशिप भी मिलेगी और आॅस्ट्रेलिया की प्रतिष्ठित यूनिवर्सिटी में पढ़ने का मौका मिलेगा।
विदेश में स्टडी पूरी करने के बाद मेरी वहीं विदेश में जाॅब लग गई। स्टडी पूरी करने के बाद मैं कुछ दिन के लिये छुट्टी पर इण्डिया आया था। मुझे पता चला स्नेहा और अमित की शादी हो गई है और स्नेहा अमित के साथ दिल्ली चली गई है क्योंकि अमित दिल्ली में जाॅब कर रहा था। स्नेहा की फैमिली वाले स्नेहा की अमित से शादी के पक्ष में नहीं थे। लेकिन उनकी मर्जी के खिलाफ स्नेहा ने अमित से शादी कर ली थी। मैंने भी स्नेहा से काॅन्टेक्ट करने की कोशिश नहीं की।
उसके बाद से मेरा भी दोबारा इण्डिया आना नहीं हुआ। मैं अपने पेरेन्ट्स को वहीं बुलवा लेता था। वो इसी बहाने विदेश घूम भी लेते थे। अब कई साल बाद जा कर मैं वापस इण्डिया आया था।
2020
‘‘रोहन....तुम’’ स्नेहा की आवाज सुनकर मैं फ्लैशबैक से वापस आया। 10 साल बाद उसे देख रहा था मैं। वो कालेज गोइंग 18-19 साल की गर्ल अब 28-29 साल की हो चुकी थी। अभी भी खूबसूरत थी वह। पर उसके चेहरे पर अब वो उत्साह नजर नहीं आ रहा था जो पहले दिखता था। एक उदासी दिखी मुझे उसके चेहरे और आँखों में। मेरी भी आँखों में आँसु थे और उसके भी।
‘‘स्नेहा तुम....यहाँ कैसे, तुम तो दिल्ली में थी न अमित के साथ और अमित कैसा है?’’ मैंने पूछा।
मेरे इतना पूछते ही स्नेहा फफक पड़ी। मैं उसको लेकर किनारे आया और पास रखी चेयर्स पर बैठ कर मैं उससे जानने की कोशिश करने लगा आखिर वह दुखी क्यों है।
‘‘क्या हुआ स्नेहा? सब ठीक तो है? अमित ठीक तो है?’’ मैंने उससे पूछा।
‘‘हाँ वह ठीक है पर अब हमारा रिश्ता खतम हो चुका है।’’ स्नेहा ने खुद को सम्भालते हुए मुझसे कहा।
‘‘आज से करीब 6 साल पहले कालेज खतम होने बाद ही, परिवार की मर्जी न होने के बावजूद मैंने उससे शादी की, तब तुम आस्ट्रेलिया में थे, उसके लिये अपने परिवार को छोड़ दिया, पर शादी के बाद वो एकदम बदल गया। अमित शादी बाद वो अमित नहीं रहा जिससे मैंने प्यार किया था। उसके दूसरी लड़कियों से सम्बन्ध थे। रात-रात भर गायब रहता था और तो और शराब के नशे में मुझ पर हाथ तक उठा देता था। शादी के 2 साल बाद मैं एक बेटे की माँ भी बनी। पर बेटे के पैदा होने के बाद भी वह नहीं सुधरा। मैंने बहुत सहा रोहन, पर अब सहा नहीं जाता। कुछ महीने पहले मैंने तलाक की अर्जी डाली थी जो कबूल हो गई और मुझे तलाक मिल गई है, बेटे की कस्टडी भी मुझे मिली है, और अमित को हर माह मुझे खर्चा देने का आर्डर दिया है अदालत नें।’’ स्नेहा ने अपनी आप बीती मुझे सुना दी।
‘‘तो....तुम कब आई यहाँ लखनऊ वापस दिल्ली से.....मौसी-मौसा जी ने........’’ मैंने जानने की कोशिश करते हुए पूछा कि अब स्नेहा क्या कर रही है, कहाँ रह रही है।
‘‘माँ-बाप तो माँ-बाप ही होते हैं रोहन, मैंने उनको नाराज करके, उनकी मर्जी के खिलाफ शादी की...पर जिस शख्स के लिये मैंने अपने माँ-बाप को छोड़ा था जब उसी ने कहीं का न छोड़ा तो माँ-बाप ने ही मुझे फिर से घर पर पनाह दी।’’ स्नेहा ने सिसकते हुए कहा।
‘‘कोई बात नहीं स्नेहा....अभी जिन्दगी खत्म नहीं हुई....जो हो गया उसे भूल जाओ, आगे का क्या प्लान है......अपने फ्यूचर की सोचो’’ मैंने उसे दिलासा देते हुए कहा।
‘‘हाँ रोहन मैंने नौकरी ज्वाइन कर ली है यहीं लखनऊ में, ताकि अपने माँ-बाप पर बोझ न लगूँ, और अतीत भूलने में मदद मिले। ग्रेजुएशन के बाद मैंने कहीं नौकरी नहीं की थी और अब ग्रेजुएशन पूरी करने के 5-6 साल बाद नौकरी ढूँढने में थोड़ी दिक्कत तो हुई पर एक रिसेप्शनिस्ट की नौकरी मिल गई है।’’ स्नेहा ने कहा।
‘‘तो अभी तो तुम यंग हो....और खूबसूरत भी हो....तुम्हे अभी भी कोई न कोई मिल जायेगा....शादी क्यों नहीं कर लेती।’’ मैंने मुस्कुरा कर उसकी तारीफ कर माहौल की गम्भीरता को कम करने की कोशिश की।
‘‘नहीं रोहन, एक बार धोखा खा चुकी हूँ, अब आगे अगर धोखा मिलेगा तो झेल नहीं पाऊँगी।’’
‘‘अरे स्नेहा...ऐसा नहीं है सब मर्द एक जैसे नहीं होते हैं।’’
‘‘हाँ रोहन जानती हूँ हर मर्द एक जैसा नहीं होता है। पर शायद सच्चा प्यार करने वाला मेरी किस्मत में नहीं है।’’
‘‘ऐसा नहीं है स्नेहा.....सच्चा प्यार करने वाला तुम्हारी किस्मत में है.....जो तुम्हें हमेशा सच्चा प्यार करेगा, बिना किसी लालच के।’’
‘‘अच्छा। कौन है वो जरा मुझे भी बताओ।’’
‘‘तुम्हारे सामने.....मैं हूँ स्नेहा......मैं तुमसे सच्चा प्यार करता हूँ। हमेशा से करता था और करता रहूँगा। कभी कहने की हिम्मत नहीं कर पाया पर आज कह रहा हूँ। शादी करोगी मुझसे? आस्ट्रेलिया चलोगी मेरे साथ?’’ मैंने दिल मजबूत करके स्नेहा से अपने दिल की बात का इजहार कर दिया।
‘‘क्या?....ओह गाॅड.....तुम मजाक तो नहीं कर रहे.......।’’
‘‘मेरी आँखों में देखो स्नेहा। क्या तुम्हे यह मजाक नजर आता है? क्या तुम्हे लगता है मैं तुम्हारे साथ ऐसा मजाक करूँगा।’’
‘‘पर तुम मेरे भाई हो रोहन।’’
‘‘भाई नहीं कजन हूँ स्नेहा, पर हमने हमेशा एक दूसरे को भाई-बहन से ज्यादा दोस्त माना है।’’
‘‘म...मुझे अभी कुछ समझ नहीं आ रहा है रोहन। मैं अभी जाती हूँ मैं आॅलरेडी लेट हो गयी हूँ आॅफिस के लिये। मैं तुमसे बाद में बात करूँगी।’’
‘‘ठीक है। मुझे इंतजार रहेगा। वेट मेरा नम्बर तो ले लो’’
मैंने स्नेहा को अपना मोबाइल नम्बर दे दिया। 2 दिन बीत गये फिर एक दिन उसमें मुझे काॅल करके एक पार्क में मिलने बुलाया।
पार्क में......
‘‘स्नेहा देखो....अगर उस दिन मेरी बात बुरी लग गई हो तो आई एम साॅरी.....शायद मुझे वह नहीं कहना चाहिए जो मैंने कह दिया।’’
‘‘साॅरी कहने की जरूरत नहीं है रोहन। साॅरी तो मुझे कहना चाहिए कि तुम्हारे प्यार को मैं महसूस ही नहीं कर पाई। उस दिन तुमने जो कहा अपने सच्चे दिल से कहा। पर आज मैं एक तलाकशुदा लड़की हूँ जो एक बच्चे की माँ भी है। अब मैं वो स्नेहा नहीं हूँ जिससे तुमने प्यार किया था। तुम्हे मुझसे बेहतर लड़की मिल जाएगी रोहन। मेरे और तुम्हारे माता-पिता भी शायद इस रिश्ते से खुश न हों।’’
‘‘स्नेहा....मेरे लिये कोई भी लड़की तुमसे बेहतर नहीं हो सकती। किसी और को मैं उतना खुश नहीं रख सकूँगा जितना मैं तुमको रखूँगा। और पैरेन्ट्स को मैं समझा लूँगा, वो मान जायेंगे।’’
‘‘ठीक है रोहन। मैं करूँगी तुमसे शादी। चलूँगी तुम्हारे साथ आॅस्ट्रेलिया।’’ आँखों में आँसूं लिये मुस्कुराते हुए स्नेहा ने कहा।
मिल चुका था अब मुझे मेरा......
खोया हुआ प्यार