manikmittalme07
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wah sanju bhai...aapne fir se sabit kar diya ke aap ek uchh koti ke lekhak ho...is forum par aapki koi tulna nahi kar sakta. limited words mein itna achha plot taiyar kar diya. poori dunia mein murder mystery se behtar topic koi nahi hoga shayad. log ise bade chav se padhte hain. aapne kaise ek ladki jo ke ek model hai ke madhyam se kahani ki shuruat ki, jisko is baat ka dar tha ke uska koi katl kar sakta hai aur hua bhi aisa. fir pata chalta hai ke ek aur katl hua hai aur dono katl ek doosre se jude hue the.क़ातिल कौन ?
प्रस्तुतकर्ता - SANJU ( Versha Ritu )
नेहा एक माॅडल थी । पहली बार उसे मैंने अपने दोस्त इन्स्पेक्टर दुशयंत के साथ कुछ दिनों पहले एक पार्टी में देखा था । एक प्रतिष्ठित न्यूज चैनल के रिपोर्टर के कारण उसने तत्काल मुझे पहचाना था ।
उसका अचानक यूं मेरे घर आ धमकना मुझे चौंका देने वाला घटना लगा था । वो बेहद भयभीत और आतंकित लग रही थी ।
" क्या बात है ? "- मैंने संजीदगी से पूछा ।
" मुझे आपकी मदद की जरूरत है अपस्यू साहब" - वह कम्पित स्वर में बोली ।
"क्या बात है ?"
"वो लोग मुझे मार देना चाहते हैं ।"
"कौन लोग ?"
"मैं आपको सब कुछ बताउंगी । ये एक लम्बी कहानी है । लेकिन उसमें आपके दोस्त इन्स्पेक्टर दुशयंत साहब की दखल जरूरी है । आप प्लीज , आज रात आठ बजे उन्हें साथ लेकर मेरे फ्लैट पर तशरीफ़ लाइए । यह मेरा पता है । "- उसने एक कार्ड मेरे सामने मेज पर रखा ।
" आपको लगता है कि दुशयंत आपकी सहायता कर सकते हैं ।"
" बहुत ज्यादा । वह मेरी जान बचा सकते हैं ।"
" तो आपको दुशयंत के पास जाना चाहिए था न ।"
"मैं उनके पास सीधे नहीं जा सकती थी । वह मुझे गलत समझ सकता था लेकिन आपकी वजह से वो मेरी बात हमदर्दी से सुनेगा और कोई मदद करने की कोशिश करेगा ।"
" आप की पुलिस में कोई जान पहचान नहीं ?"
वह एक क्षण हिचकिचायी फिर बोली -" है । एक सब इंस्पेक्टर मेरा अच्छा दोस्त है ।ए के श्रीवास्तव । शायद आप जानते हों ।"
" उसके पास क्यों नहीं गई ?"
" नहीं जा सकती । मेरी मजबूरी है ।"
"क्या मजबूरी ?"
"शाम को बताउंगी । शाम को विस्तार से बातें होंगी ।"
फिर वो चली गई ।
मैं थाने गया । मालूम हुआ कि दुशयंत अभी गश्ती गाड़ी की ड्यूटी में था । श्रीवास्तव थाने में अपने केबिन में मौजूद था । मुझसे बड़ी मुहब्बत से मिला शायद इसलिए कि मैं उसके अफसर का दोस्त था ।
" कैसे आए ?"- उसने पूछा ।
" एक बात पुछने आया हूं । बशर्ते कि गलत मत समझो ।"
" क्या बात है ?"- वह सशंक स्वर में बोला ।
" तुम नेहा को जानते हो ?"
" नेहा ! वो माॅडल !"
" हां ।"
" जानता हूं । लेकिन दोस्त , उसके चक्कर में मत पड़ना । वह मेरी गर्लफ्रेंड है ।"
" अच्छा ।"
" तुम विक्रांत की मौत पर कोई काम तो नहीं कर रहे हो !"
" ऐसा क्यों लगा तुम्हें ?"
" क्योंकि उसकी मौत में नेहा की टांग फंसी हुई है । लेकिन कहे देता हूं , उसके बारे में कुछ अनाप-शनाप मत दिखा देना ।"
विक्रांत एक अधेड़ावस्था विधूर था । बड़ा बिजनेसमैन था । कुछ दिन पहले किसी ने उसके फ्लैट पर उसे चाकू घोंपकर उसकी हत्या कर दी थी ।
" विक्रांत की हत्या में नेहा की टांग कैसे फंसी हुई है ।"
" तुमने अंकित चौधरी का नाम सुना है ?"
" खूब सुना है । करोड़पति आदमी है । और सुना है उसकी मौजूदा बीवी उससे उम्र में बीस साल छोटी है । वैसे किस्सा क्या है ?"
" सुनने में आया है कि विक्रांत और अंकित गुप्ता की बीवी आशा में आशिकी चल रही थी । अंकित गुप्ता को खबर लग गई । आशा का कहना है कि ईष्या से वशीभूत होकर उसके पति ने विक्रांत का कत्ल कर दिया है । आशा ने उससे तलाक की मांग की थी ताकि वह विक्रांत से शादी कर सके । इसपर अंकित गुप्ता आगबबूला हो गया था । उसने विक्रांत से फोन पर बात की थी और दो हफ्ते पहले दोपहर दो बजे विक्रांत के फ्लैट पर उससे मुलाकात निश्चित की थी । निर्धारित समय पर अंकित विक्रांत के फ्लैट पर पहुंचा । उसने घंटी बजाई लेकिन भीतर से कोई जवाब नहीं मिला । फिर उसे ताले में अटकी चाबी दिखाई दी । उसने चाबी को छुआ तक नहीं , जो कि उसने अक्लमंदी की । लेकिन दरवाजे को धकेलकर खोलने की कोशिश की । दरवाजा नहीं खुला । फिर उसने इमारत से बाहर निकल कर मुझे फोन किया ।"
" तुम्हें क्यों ?"
" क्योंकि मेरा उससे गहरा याराना है । उसने सोचा कि मुझे बुलाने में यह फायदा था कि अगर कोई गड़बड़ हुई तो उसकी कच्ची नहीं होगी । मैं वहां पहुंचा । मैंने चाबी को इस ढंग से घुमाकर ताला खोला कि अगर चाबी पर कोई उंगलियों के निशान हों तो वो नष्ट न हो । मैं भीतर दाखिल हुआ । भीतर से विक्रांत की लाश बरामद हुई । किसी ने उसे चाकू से मार कर उसकी हत्या कर दी थी । फ्लैट की हालत बता रही थी कि हत्या से पहले वहां विक्रांत और हत्यारे में भयंकर हाथापाई हुई थी जिसकी वजह से कमरा अस्त व्यस्त हो गया था । मैंने पुलिस को काॅल किया लेकिन पुलिस के वहां पहुंचने से पहले वहां नेहा पंहूच गई ।"
" वो वहां क्यों आईं थीं ?"
" उसका कहना था कि विक्रांत ने उसे बुलाया था । अपने प्रोडक्ट के माॅडलिंग के लिए । वह कहती है कि उसने उससे पहले कभी विक्रांत को देखा तक नहीं । वह पहली बार वहां आई थी । लेकिन फिर दरवाजे में लगी चाबी पर से उसकी उंगलियों के निशान बरामद हुए थे ।"
मुझे आश्चर्य हुआ ।
" हमारे फिंगरप्रिंट एक्सपर्ट की रिपोर्ट के अनुसार उंगलियों के निशान नेहा के है । इससे साफ जाहिर होता है कि या तो वह फ्लैट में दाखिल हुई थी या उसने दाखिल होने की कोशिश की थी ।"
" चाकू पर से कोई उंगलियों के निशान ?"
" न ! हम इसी उलझन में हैं । अंकित गुप्ता के पास हत्या का उद्देश्य तो है लेकिन उसके खिलाफ कोई सबूत नहीं है । नेहा के खिलाफ सिर्फ ये ही सबूत है कि चाबी पर उसके उंगलियों के निशान पाये गए हैं लेकिन सिर्फ ये बात उसे हत्यारी सिद्ध करने के लिए काफी नहीं है । लगता है यह केस भी अनसुलझे केसों में ही शुमार होने वाला है ।"
" तुम्हारा क्या ख्याल है ?"
" कोई मजबूत ख्याल नहीं है । शुरू मे नेहा पर शक पक्का होने लगा था । शायद विक्रांत से उसका कोई अफेयर चल रहा हो । शायद उसके पास उसके फ्लैट की चाबी हो जो विक्रांत ने उसे दी हो लेकिन साबित कुछ नहीं किया जा सकता है । दुसरी तरफ अंकित गुप्ता की बीवी आशा कबूल करती है कि उसके पास विक्रांत के फ्लैट की चाबी थी । उसका दावा है कि वह चाबी अंकित गुप्ता ने चुरा ली थी । शायद वह अपने पति को अपने आशिक के कत्ल में फंसाकर उससे पीछा छुड़ाने के बारे में सोच रही हो । मतलब बातें तो बहुत है पर सबूत कुछ नहीं ।"
उसके बाद उससे हल्की फुल्की बातें हुई । मैंने उससे अंकित गुप्ता का पता पूछा । उसने बड़े संदिग्ध भाव से मुझे देखते हुए पता बताया ।
मैं अंकित गुप्ता के कोठी पर पंहुचा ।
अंकित गुप्ता घर पर नहीं था लेकिन उसकी जवान बीवी वहां मौजूद थी ।
आशा एक निहायत खुबसूरत लड़की थी । मैंने अपना परिचय दिया और कहा कि अपने टीबी के लिए उसका इंटरव्यू लेने आया हूं ।
वो साफ साफ अपने पति पर इल्ज़ाम लगा रही थी कि उसके पति ने ही विक्रांत की हत्या की है । वो कलप रही थी कि अभी तक पुलिस ने उसके पति को गिरफ्तार क्यों नहीं किया । उसने मुझे अंकित गुप्ता से छुटकारा दिलाने की मदद मांगी और बदले में मुंहमांगी कीमत देने का वादा किया ।
मैं वहां से अंकित गुप्ता के आफिस गया । वह पचपन साल से उपर एक तंदुरुस्त लेकिन हड़बड़ाया सा आदमी था । उसने इस विषय में मुझसे कोई बात करने से साफ इंकार कर दिया । जरूर दौलत का घमंड था ।
शाम तक दुशयंत से मेरी मुलाकात न हो सकी । निर्धारित समय पर मैं अकेला ही नेहा के फ्लैट पर पहुंचा ।
लेकिन बहुत देर हो चुकी थी ।
वहां पुलिस ही पुलिस दिखाई दे रही थी । मेरा दोस्त इन्स्पेक्टर दुशयंत भी वहां मौजूद था । वहां सब इंस्पेक्टर श्रीवास्तव भी मौजूद था । पता चला कि नेहा अपने फ्लैट में मरी पाई गई थी ।उसकी छाती में एक पतला सा चाकू धंसा हुआ था और उसका अपना हाथ उसकी मूठ के गिर्द लिपटा हुआ था । चाकू की मूठ पर से केवल उसकी उंगलियों के निशान बरामद हुए थे ।
दुशयंत ने एक और बातें बताई ।
उसकी राइटिंग टेबल पर एक अधूरा पत्र पड़ा मिला था ।
पत्र में लिखा था :
अंकित ,
मैं इस बखेड़े से बहुत ही परेशान हूं । मुझे बहुत डर लग रहा है । मैं कुछ अरसे के लिए शहर से दूर जा रही हूं । मैंने आज एक साहब से बात की है जो कि मुझे उम्मीद है मेरी जान को इस सांसत से निकालने में मेरी पुरी मदद करेंगे और...."
पुलिस इसे आत्महत्या करार कर रही थी । चिठ्ठी की बावत उनकी राय थी कि इसका उसकी मौत से कोई रिश्ता नहीं है । एक कारण ये भी था कि चिठ्ठी पर कोई तारीख वगैरह नहीं थी ।
घटनास्थल पर पुलिस की सारी कारवाई समाप्त हो गई थी । वहां सिर्फ मैं , श्रीवास्तव और दुशयंत रह गये ।
उसी दौर में मैंने दुशयंत को नेहा के अपने घर पर आगमन की बात सुनाई । नेहा के अंजाम का फिर जिक्र आरंभ हुआ ।
" तुम्हारा क्या ख्याल है ?"- मुझसे पूछा गया ।
" मेरे ख्याल से यह हत्या का केस है ।"
" हत्या के केस में ख्याल नहीं चलता अपस्यू राजवंशी साहब "- श्रीवास्तव बोला -" सबूत की जरूरत होती है ।"
" श्रीवास्तव ठीक कहता है "- दुशयंत बोला -" हालात आत्महत्या की ओर संकेत कर रहे हैं । लड़की का विक्रांत की हत्या में हाथ था । आज उसकी अंतरात्मा ने उसे कचौटा और उसने आत्महत्या कर ली । हथियार लड़की के हाथ में था । उस पर से केवल उसकी उंगलियों के निशान बरामद हुए हैं ।"
" लेकिन "- मैंने कहना चाहा ।
" थ्योरियों से काम नहीं चलता , तथ्य तलाश करने पड़ते हैं "- श्रीवास्तव बोला ।
" तो करो !"
" लेकिन कोई संकेत तो हो कि हत्यारा कौन है ?"
" संकेत मैं दिए देता हूं ।"
" तुम ! तुम जानते हो कि हत्यारा कौन है ?"
" हां ।"
" कौन है ?"
" तुम ।"
" एक क्षण को श्रीवास्तव के मुंह से बोल न फूटा ।वह मुंह बाए मेरी ओर देखने लगा । फिर उसके चेहरे ने कई रंग बदले । अंत में वह क्रोध से आग बबूला होता दिखाई देने लगा ।
" क्या कह रहे हो !"- दुशयंत बोला -" श्रीवास्तव ! हत्यारा !"
" बाई गाॅड !"- वह कहर भरे स्वर में बोला - क्या बेहूदा मजाक है । मैं तेरी..."
" पहले मेरी बात सुनो फिर फैसला करना ।"
" कहो , क्या कहना चाहते हो ?"- श्रीवास्तव बोला ।
" दुशयंत "- मैं बोला -" तुमने कभी देखा सुना है कि चाकू से आत्महत्या की गई हो ! चाकू तो हत्यारे का हथियार है ।"
" लेकिन जरूरी नहीं कि जो काम कभी नहीं हुआ , वह अब भी न हो "- श्रीवास्तव बोला ।
" मैं शुरूआत से बताता हूं । पहला कत्ल विक्रांत का । केवल एक ही आदमी ऐसा है जिसके पास उसके कत्ल का कोई ठोस उद्देश्य था और वह आदमी है अंकित गुप्ता । वह पूर्व निर्धारित समय पर विक्रांत से मिलने गया । दोनो में तकरार हुई । विक्रांत ने चाकू निकाल लिया । दोनो में हाथापाई हुई , छीना झपटी हुई । अंकित गुप्ता ने उसी का चाकू उससे छीना और उसकी छाती में घोंप दिया । विक्रांत मर गया । अब क्या था ? आप एक करोड़पति आदमी हो और आपने अभी एक कत्ल कर दिया । आप क्या करेंगे ? आप उस बखेड़े से बाहर निकलने के लिए कोई तरकीब सोचेंगे । उस घड़ी में आपको अपने दोस्त ए के श्रीवास्तव का ख्याल आयेगा । आप उसकी फितरत से वाकिफ है कि वह पैसे से खरीदा जा सकता है । आप उसे बुलाते हैं , उसे एक मोटी तगड़ी रकम की आफर देते हैं । वह आफर कबूल करता है और आपको झंझट से निकालने का वादा करता है और वह निकालता भी है ।"
" कैसे ?"
" वह केस में उलझने पैदा करता है । वह इस काम के लिए अपनी गर्लफ्रेंड नेहा का इस्तेमाल करता है । श्रीवास्तव एक पुलिस अधिकारी हैं और कानून को खुब समझता है । वो इस केस में बैनीफिट आफ डाउट ( संदेह लाभ ) वाली परिस्थितियां खड़ा करता है ।"
" कैसे ?"
" इसने घटनास्थल पर अपनी गर्लफ्रेंड नेहा को बुलाया । उसके वहां पंहुचने से पहले उसने अंकित गुप्ता को कहा कि वह अपने घर जाकर अपनी बीवी के पास मौजूद विक्रांत के फ्लैट की चाबी ले आए । फिर वह चाकू से उंगलियों के निशान पोंछ देता है । फिर नेहा वहां पंहुचती है । वे उसकी उंगलियों के निशान चाबी पर बनवाते हैं और चाबी दरवाजे पर छोड़ देते हैं । इसमें सहमति होती है कि पुलिस के सामने दो संदिग्ध व्यक्ति हैं - नेहा और अंकित गुप्ता । लेकिन ठोस सबूत दोनों में से किसी के खिलाफ नहीं ।"
" लेकिन नेहा ऐसा काम करने के लिए कैसे मान गई ?"
" पहले तो इसलिए कि वह श्रीवास्तव की प्रेमिका है । दुसरा प्रलोभन पैसे का हो सकता है ।"
" ये एक तुक्का लगता है ।"
" तुक्का नहीं है । विक्रांत के फ्लैट में ऐसे संकेत मिले थे कि वहां तगड़ी छीना झपटी हुई हो । क्या कोई औरत विक्रांत जैसे तंदरुस्त आदमी से इतना फाइट कर सकती थी ? लेकिन अंकित गुप्ता कर सकता था । वह अधेड़ जरूर है लेकिन शरीर से काफी तंदरुस्त है । और सबसे बड़ा सबूत वह चाबी है जो विक्रांत के मुख्यद्वार के ताले में लगी पाई गई थी ।"
" कैसे ?"
" जो हत्यारा विक्रांत की छाती पर घुसे चाकू पर से उंगलियों के निशान पोंछे जाने की होशियारी दिखा सकता है । वह न तो चाबी पर अपनी उंगलियों के निशान छोड़ सकता है और न ही चाबी को ताले में । चाबी का ताले में पाया जाना ही इस बात का सबूत है कि चाबी वहां ' प्लांट ' की गई थी ।"
" ओह !"- दुशयंत बोला ।
" नेहा भयभीत हो गई थी । वह एकाएक केस में अपने योगदान के बारे में सोच सोचकर आतंकित होने लगी । उसे लगता था कि श्रीवास्तव की बातों में आकर वह भारी गलती कर बैठी है । किसी को बचाने के चक्कर में वह खुद फंस सकती थी ।"
" लेकिन नेहा की हत्या क्यों ?"
" क्योंकि मैं आज श्रीवास्तव से मिला था और उससे इस विषय पर बात हुई थी । वह समझ गया था कि नेहा घबरा गई थी और मदद हासिल करने के लिए गैर लोगों के पास पहुंच गई थी । उसे लगा नेहा के चलते उसकी पोल खुल सकती थी । उसने बड़ी रफ्तार से काम किया । वह यहां पंहुचा । उस वक्त उसने नेहा को एक चिट्ठी लिखते पाया । चिठ्ठी पर निगाह पड़ते ही यह समझ गया कि नेहा का मुंह हमेशा के लिए बंद कर देने के अलावा बचाव का कोई रास्ता नहीं था । इसने वहीं मेज पर रखे हुए एक चाकू से उसकी हत्या कर दी ।"
" लेकिन नेहा का अंकित गुप्ता को चिट्ठी लिखने का क्या मतलब ? उससे नेहा का क्या वास्ता था ? अगर उसने चिट्ठी लिखनी ही थी तो श्रीवास्तव को लिखती !"
" इसी को लिखी है ।"
" क्या मतलब ?"
" श्रीवास्तव "- मैं उसकी ओर घूमा -" तुम्हरा नाम ए के श्रीवास्तव है । यह ए के से क्या बनता है ?"
" अंकित कुमार श्रीवास्तव "- जबाव दुशयंत के मूंह से निकला -" ओह , माई गॉड ।"
श्रीवास्तव और अंकित गुप्ता दोनों को गिरफ्तार कर लिया गया । पुलिस के सख्ती के आगे नहीं टीक पाए । उन्होंने अपना अपराध स्वीकार कर लिया ।
अगले दिन मैं आशा के घर गया और उसने क्या कीमत चुकाई ! दिल खुश हो गया । दिन भर उसके पहलू में उसके बिस्तर पर उससे कीमत वसुलते रहा ।
समाप्त ।
aapne bahut hi mazedar dhang se dono katlon ko ek doosre ke saath joda aur use justify bhi kar diya. itne kam shabdon mein itni achhi kahani likhna koi asaan kaam nahi hai. kahani ek baar padhni shuru ki aur jab tak ant tak padh nahi liya tab tak poori utsukta bani rahi to pathkon ko poori tarah se bandh kar rakhne waali kahani hai aapki.
aapko itni achhi kahani ke liye bahut bahut badhai jo sanju ji