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Lucifer

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Unfortunately We are facing a server issue which limits most users from posting long posts which is very necessary for USC entries as all of them are above 5-7K words ,we are fixing this issue as I post this but it'll take few days so keeping this in mind the last date of entry thread is increased once again,Entry thread will be closed on 7th May 11:59 PM. And you can still post reviews for best reader's award till 13th May 11:59 PM. Sorry for the inconvenience caused.

Note to writers :- Don't try to post long updates instead post it in 2 Or more posts. Thanks. Regards :- Luci
 
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satrangi muniya

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शीर्षक : जीवों का करुण क्रँदन


सुनीता मोरनी आपने पांचवे बच्चे बिट्टू के मुँह में दाना डाल रही थी तो उसने वीना तोती की आवाज सुनी..
सुनीता बहन, सुनीता बहन. उसे इस तरह बदहवास सा देखकर सुनीता मोरनी बोली... क्या हुआ वीना तुम इस तरह परेशान सी क्यों नज़र आ रही हो?

वीना तोती रोनी सी आवाज में बोली... बहन सुना है हमारा जंगल काटा जा रहा है.

सुनीता बिट्टू को छोड़कर वीना को देखते हुए बोली... हैँ? तुम्हे किसने कहा वीना.

कल्लू कौवा इनका (तोते का) दोस्त है ना, वो पंद्रह दिन बाद शहर से लौटा है ना. वो इंसानों का त्योहार होता है जिसमें ये लोग कौवे को भोजन खिलाते हैँ कि पुरखों को जायेगा, कल्लू वहीं त्यौहार मनाने घर घर जा रहा था तो वो किसी अफसर के घर पर भी गया. वो अपने मातहत को बता रहा था कि मंत्री ने कानून पास किया है और इस विशाल जंगल में से 400 एकड़ जंगल काटा जायेगा.

सुनीता....भला ये एकड़ कितना होता है वीना.

वीना तोती....मुझे तो नहीं पता दीदी, हमें तो उतनी ही जमीन का पता होता है जिसमे हम रहते हैं, या फिर यूँ कह लें कि सारी ज़मीन ही हमारी है.

सुनीता...वो भी अब उदास सी हो गयी थी....वीना, कहाँ जायेंगे हम बहना? कहीं वो चिड़ियाघर वाले ही उठा कर ना ले जाएँ. हम लोग तो बहुत ज्यादा ऊँचा उठ भी नहीं पाते और 6 6 बच्चे भी हैं मेरे.

वीना....सबकी अपनी अपनी प्रोब्लेम्स हैं दीदी, हमें तो ज्यादातर अमरुद या आम ही खाने होते हैं. वो पेड़ ना रहे तो हम अगर उड़कर दूर चले भी गए तो खाएंगे क्या?

इतने में एक तितली आती है जिसका नाम स्वीटी था. बोली...क्या बातें हो रही हैं बहनो में.

सुनीता...आओ आओ स्वीटी, सुना तुमने जंगल काटा जा रहा है.

स्वीटी जो अभी तक चहक रही थी, बोली...क्या? जंगल काटा जा रहा है? तो हम लोग रहेंगे कहाँ?

सुनीता मोरनी....ये इंसान इतना थोड़े सोचते हैं बहना. जितनी देर सर्दी, गर्मी बारिश सह सकेंगे, सहेंगे फिर मर जायेंगे. हमारी जान की कीमत ही क्या है.

स्वीटी....कीमत क्यों नहीं है दीदी, ये पृथ्वी तो सबकी है ना, और भगवान तो सबके हैं न?

वीना जो अब तक इन दोनों की बातें सुन रही थी बोली...पता नहीं दीदी, ये इंसान तो खुद को पृथ्वी का मालिक ही समझते हैं और शायद भगवान इनके ही हैं क्यूंकि इन्होने तस्वीरें तो अपने जैसी ही बना रखी हैं भगवान की. जानवरों और पक्षियों को तो उन्हें ढोने के लिए उनकी सवारी के रूप में दिखाया जाता है,

सुनीता....ऐसा नहीं है कुछ भगवान हैं जिनकी बनावट जानवरों जैसी भी दिखाई देती है. पर हम लोग मुद्दे से भटक रहे हैं. क्या होगा हमारा.

स्वीटी बोली....पता नहीं दीदी. ये तो भगवान को ही पता है. कहते हुए तितली उड़ जाती है और घने जंगल में पहुँच जाती है जहाँ पर तेंदुआ, भेड़िया, बन्दर, शेर, हिरण, अजगर, गेंडा और ना जाने कौन कौन से प्राणी एक ही जगह इकट्ठे हो रखे थे और आपस में बातें कर रहे थे.

जंगल कटाई की खबर इन तक भी पहुँच गयी थी. दुर्गम सिंह शेर हालाँकि इन सबका मुखिया था पर उसके चेहरे पर भी चिंता की लकीरें साफ़ नज़र आती थी. उसके खास जासूस अभय बाज ने उसे ये सुचना दी थी कि आने वाले छह महीने के भीतर ही जंगल के एक बड़े हिस्से को काट दिया जायेगा. एक बार को तो दुर्गम शेर हिल गया था पर फिर भी उसने सोचा कि क्यों ना सभी जानवरो की एक मीटिंग बुला ली जाये और इस मामले को सुलझाने के लिए सबकी सलाह ली जाए.

अभी तो मीटिंग अच्छे से शुरू भी नहीं थी कि शमशेर सिंह चीता गरजकर बोल पड़ा ...मेरे हिसाब से तो हमें इकठ्ठा होकर इन इंसानो पर हमला कर देना चाहिए और इनके चीथड़े उड़ा देने चाहिए. दन्त पिस्ता और मुट्ठियां भींचे शमशेर चीता बोला तो दुर्गम ने उसे शांत करने के लिए कहा.

दुर्गम शेर....भाई शमशेर समय अति उत्साह दिखाने का नहीं है, पता भी है उन लोगों के पास कैसे कैसे हथियार हैं. दस मिनट लगेंगे उन्हें हमें साफ़ करने में.

शमशेर....तो क्या हम लोग हाथ पर हाथ रखकर बैठे रहें.

बब्बन भेड़िया बोला....दुर्गम भाई की बात तो सुन लो शमशेर. शमशेर उसकी बात पर जोर से गुर्राया तो दुर्गम शेर बोला.

दुर्गम शेर....बस यही एकता ही हम लोगों की. क्या जरुरत है इस मीटिंग की अगर हमें दुसरे को बात रखने का मौका ही नहीं देना तो कहीं जाकर शमशेर चुप हुआ.

भोला हिरण बोला... मुझे पता है मांसाहारी जीवों द्वारा हमें भोजन बनाया जाता है पर फिर भी वो सिर्फ भूख के लिए है, लेकिन इस इंसान नामी जानवर की तो पेटभर खाने के बाद भी भूख नहीं मिटती. कुछ कीजिये महाराज.

गुड्डू गेंडा बोला....क्यों ना हम जाकर इनकी सरकार के आगे हाथ पैर जोड़कर देखें.

दुर्गम....बात तुम्हारी सही है गुड्डू पर कोई फायदा नहीं जब ये इंसानो की सरकार इंसानो की नहीं सुनती तो हमारी क्या सुनेगी. और भोला तुम चिंता मत करो हम कुछ ना कुछ करते हैं.

तभी चतुरसेन बन्दर जो काफी देर चुप बैठा था और सबकी बातें सुन रहा था कुछ कहने को हुआ तो अजगर उसकी बात को काटते हुए बोला.

भीम अजगर....मेरे हिसाब से तो मैं शहर के एक कोने में जाकर बैठ जाता हूँ और हर आने जाने वाले को निगल लेता हूँ.

दुर्गम उसे डपटते हुए बोला....तुम तो चुप ही रहो भीम, काम के ना काज के ढाई मण अनाज के, हाँ चतुर तुम कुछ कहने लगे थे तुम बोलो.

चतुरसेन बन्दर बोलना शुरू करता है....आदरणीय महाराज और मेरे उपस्थित बंधुओ, मेरी एक विनती है कि जब मैं बोलना शुरू करूँ तो मेरे बीच में कोई ना बोले.

दुर्गम बोला....तुम बोलो चतुर, बीच में कोई नहीं बोलेगा.

चतुर.....महाराज मैंने सुना है कि इंसानो ने बहुत सारी संस्थाएं बनाई हुई हैं हम जानवरों के अधिकारों और एक तो अंतर्राष्ट्रीय संस्था भी है जो जानवरों के हित के लिए काम करती है.

हालाँकि चतुर ने मना किया था पर फिर भी बिल्लू बकरा बीच में टोकते हुए बोला....पता है चतुर भाई उस अंतर्राष्ट्रीय संस्था की एक मीटिंग में मेरे ही भाइयों का मांस परोसा गया था. ये इंसान लोग दोगले हैं. इनका कोई भरोसा नहीं.

दुर्गम शेर गरजते हुए बोला...बिल्लू बकरा, मना किया था ना कि कोई बीच में नहीं बोलेगा. उसकी गरज सुनकर बिल्लू सहम कर बैठ गया.

लेकिन चतुर बोला...नहीं महाराज बिल्लू ने बिलकुल सही कहा है इंसानो के बारे में. पर महाराज फिर भी हमें इन संस्थाओ के सदस्यों से जरूर संपर्क करना चाहिए. क्यूंकि ये हमारी बात को जरूर सुनेंगे. और हमारे लिए आवाज़ भी उठाएंगे. क्यूंकि ये संस्था अंतर्राष्ट्रीय है तो इन लोगों की आवाज़ की वैल्यू भी है.

दुर्गम शेर क्या वहां मौजूद हर सदस्य बड़े ही ध्यान से चतुर की बात सुन रहा था. उसकी बात सुनने के बाद दुर्गम बोला.....बस एक समस्या है.

चतुर बोला....वो क्या महाराज.

दुर्गम बोला....जब तक ये इंसान कोई कार्रवाई नहीं करते, कोई संस्था भी हमारी बात नहीं सुनेगी. हमें उनकी प्रथम कार्रवाई का इंतज़ार करना पड़ेगा. चतुर तुम एक काम करो, तब तक एक अर्जी तैयार करके रखो जो हमें उस संस्था को देनी होगी जब जंगल कटाई का काम शुरू होगा.

चतुर....आप चिंता मत कीजिये महाराज और हाँ मुझे आपकी बात सही लगी. अभी कोई नहीं सुनेगा हमारी बात.

इसी बात पर ये मीटिंग बर्खास्त हो जाती है और अब इन जानवरों के पास कोई चारा नहीं था, सिवाय जंगल कटाई शुरू होने के इंतज़ार के.
********************************************************************************************
सुनीता उसकी बहिन वनिता मोरनी, इन दोनों के परिवार के इलावा और भी ना जाने कितने ही मोर परिवारों के करूँ क्रंदन से आकाश गूंज उठा था. ना जाने कितने ही चिड़िया, कौवे, कबूतर आकाश में मंडरा रहे थे और अपनी बर्बादी का मंज़र देख रहे थे. मुन्ना तोता अपनी माँ वीना तोती से बोला....माँ अब हमें कभी अमरुद नहीं मिलेगा?

उसको संभालती वीना दुःखी स्वर में बोली.....क्या कहूं मुन्ना, मुझे तो खुद समझ नहीं आ रही. अब तो भगवान का ही भरोसा है.

दरअसल कोई एक हजार पक्षी जंगल की शुरुआत में रहते थे. इसके दो कारण थे, एक तो फलदार वृक्ष इसी एरिया में थे और दुसरे यहाँ पास से ही एक नदी बहती थी तो इन लोगों की नदी के पानी से प्यास बुझ जाती थी.

पर अब तो इस एरिया में पेड़ ही नहीं बचे थे और मान भी लिया जाए कि ये लोग आगे चले जाएँ पर वहां जाकर भी क्या करेंगे, ये इंसान एक भी पेड़ नहीं छोड़ने वाले थे और उधर कौन सा फलदार पेड़ थे.

उनका रुदन आकाश और यहाँ तक कि ब्रह्माण्ड तक भी फ़ैल गया था. भगवान को भी इनकी करुण पुकार सुनाई दे गयी थी शायद. इसलिए उन्होंने कुछ पशु पक्षी प्रेमियों के हृदय में उनके लिए दया भर दी थी.

चतुर बन्दर के साथ दुर्गम शेर ने वृद्ध ऋषव भालू को भी भेजा वो अर्जी देने के लिए. चतुर बन्दर ने जब पशु संस्था के बड़े अधिकारी वरुण,जो कि एक युवा था, को वो अर्जी दिखाई और जंगल के जानवरों की दशा जानी तो तो हृदय पसीज गया. उसने अपने दुसरे अधिकारीयों से इस बारे में बातचीत की. उन्होंने उसे आश्वासन दिया कि वो लोग उसका पूरा साथ देंगे.

वरुण ने अपनी मम्मी को भी जानवरों और पक्षियों की हालत के बारे में बताया. सोशल मीडिया पर एक मुहीम चलाई गयी इनके लिए और उन लोगों की चीखों की वीडियो ऐसी वायरल हुई कि लोगों ने सरकार को गलियां देनी शुरू कर दी.

वरुण, उसकी संस्था और बाकि लोगों के प्रयास से जानवरों के लिए नित आंदोलन किये गए जिससे सरकार हिल गयी. संस्था द्वारा हाई कोर्ट से स्टे ली गयी. कोर्ट ने ना सिर्फ जंगल की कटाई पर रोक लगाई बल्कि उन जानवरों और पक्षियों के पुनर्वास के लिए सरकार को आदेश दिया गया.

चाहे सुनीता मोरनी और उसके साथियों का वर्तमान निवास चाहे छीन गया था पर उनके पुनर्वास के लिए समिति बना दी गयी थी और आदेश दिया गया था कि कोई जंगल नहीं काटा जायेगा.

जंगल में चारों ओर जश्न का माहौल था. राजा दुर्गम सिंह द्वारा सभी जानवरों को दावत दी गयी.
 
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RED Ashoka

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Ek Alien
Genre: comdey





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Pappu, ek sadak-chhaap lekin “mummy ka laadla” ladka, jab 30 saal ka ho gaya, to poore gaon mein shaadi ki tsunami aa gayi.
Log kehte the:

> “Iska rishta karado nahi to isne fridge se bhi shaadi kar leni hai.”



Shaadi fix hui. Par ladki ki photo kisi ne nahi dekhi. Sirf itna bola gaya:

> “Bas dulhan foreign return hai… bahut unique hai.”
Unique? Matlab? Ladki hai ya password?




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Baraat nikal chuki thi. DJ wale Bablu ne aaj new speaker lagaya tha – itna loud ki murge bhi remix mein kukdukoo karne lage.
Pappu ghode par tha, aur peechhe Masterji naach rahe the jaise unki pension do guna ho gayi ho.

Mandap pe sab ruk gaye.

TABHI…

Achanak aasman mein ek chamak, ek UFO seedha mandap ke beech land hua.

Log:

> “Arre light waale helikopter lag raha hai.”
Pujari ji chillaaye:
“Isse boliye hawan mein na thukey!”



UFO ka gate khula… aur bahar aayi ek tall, glowing alien dulhan.
Chaar haath, teen aankhen… aur mooh mein gulab jamun.

Pappu ki mummy behosh.

Pappu bola:

> “Shaadi to karni hi hai. Maa ne kasam di thi ki jo ladki raazi ho usse kar lena!”




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DJ wale Bablu, jinka ex-girlfriend bhi alien lagti thi (par asli thi), dulhan ko dekh ke shock mein aa gaye.

Bablu:

> “Bhai main DJ hoon, NASA nahi!”



Par jab alien ne bola “Main naachungi!”
To Bablu ne beat chadhaya:

DJ Remix: "Aati Kya Mars Pe?"

Alien ne 360-degree spin maar ke dance kiya, mandap tod diya.
Bablu itna khush ki bola:

> “Ab se main bas galaxy weddings mein bajaoonga.”




---



Kanyadaan ki jagah hua "Planetdaan".

Alien ke planet ke log gift mein ek anti-gravity cooker le aaye.

Pujari confusion mein mantra ke jagah bol rahe the:


> “Om zom zoom zara zulu!”



Pappu ne maang mein taara (star) bhara.
Shaadi complete.



Pappu apne kamre mein gaya.
Alien dulhan :

> “Pyaar ka real test tab hoga jab bed hawa mein udta hai!”



Aur literally, bed hawa mein 10 feet ud gaya.

Pappu ne bola:

> “Bas yahi kami thi zindagi mein – flying suhaag raat!”




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Agle Din Ke News Channels

Breaking News: "Gaon Mein Hui Intergalactic Shaadi"

Aaj Tak: “Kya Pappu ki alien biwi chhupaye hai koi raaz?”

India TV: “Kya dulhan ki third aankh se nikalta hai WiFi?”

Sansani: “Dekhiye Pappu ka moon honeymoon – Live from Mars!”



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Pappu ki mummy har roz alien bahu se ladti:

Mummy:

> “Tu sabzi mein mirch kyu nahi daalti?”
Alien:
“Kyuki mirch se time portal khul jaata hai mummyji!”




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Scene 8: Pappu Ka Beta – Half Alien, Half Gaonwala

9 mahine baad, ek ladka paida hua – teen kaan, ek dumki (UFO ka horn) aur thakur ki naak.

Doctor bola:

> “Yeh bachcha to rocket bina petrol ke uda dega.”



Naam rakha gaya – “PAPPU 2.0”


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The End?

Nahi!
UF
O waale log ab shaadi ke card leke ghoom rahe hain:

> “Humari alien bitiya ki shaadi Pappu ke cousin Chintu se karni hai.”



Chintu bhaag chuka hai.


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RED Ashoka

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Andheri Dehleej
Andheri Dehleez


Raat ke andheron mein sirf ek jeep ki ghut-ghut si awaaz goonj rahi thi.
Rohan apne raaste se bhatak chuka tha. Compass ghoom raha tha, jaise koi anjaani shakti uski dishaon ko uljha rahi ho.
GPS dead. Mobile network gayab.

Samne ek patla, jungleon se ghira raasta tha — aur uske beech mein khadi thi ek purani haveli.

Haveli — safed pardon se lapeta hua, lekin pardey kab ke fate pade the.
Kaan tak thandi hawa ki sarsarahat pahunch rahi thi, jaise haveli khud bula rahi ho.

Gate ke samne ek puraana board jhool raha tha:

> "Andar aane wale kabhi laut kar nahi jaate."



Rohan ne ek kadam aage badhaya.
Halka sa deepak jala tha, lekin hawa mein hilte hue bhi bujh nahi raha tha.
Wo andheron mein kuch dhoondta hua haveli ke andar chala gaya.


---

1. Pehla Kadam

Haveli ka andar ka mahaul kuch aur hi tha.
Diwarein phat-phatakar khud se kuch bolti si lag rahi thi.
Zameen par purane khoon ke dhabbe, jaise kisi ne mitti se chhupane ki koshish ki ho.

Ek bada drawing room tha, jisme ek aaina tha — itna bada ki puri deewar ko cover karta tha.

Aur aaina...
us aaine mein kuch ajeeb tha.

Jab Rohan ne dekha —
uska pratibimb usse dekh kar muskuraya.
Muskuraya.
Aisa jaise andar ka Rohan kuch jaanta tha jo bahar ka nahi jaanta.

Rohan ne peechhe mud kar dekha — koi nahi tha.

Uske ragon mein ek thandi lahar daud gayi.

Tabhi peeche se ek awaaz aayi:

"Kyu aaye ho...?"

Rohan ka gala sukh gaya.
Usne torch nikali — lekin roshni bas 2-3 kadam tak ja rahi thi. Jaise andhera roshni ko nigal raha ho.


---

Drawing room ke beech mein ek purani seedhiyaan neeche jaati thi.
Basement ki taraf.

Seedhiyon ke neeche se kuch chilchilahat si awaaz aa rahi thi.

"Aaja... hum intezaar kar rahe hain..."

Rohan ke pair khud-ba-khud basement ki taraf badhne lage.
Har kadam ke saath haveli ka temperature thanda padta ja raha tha.

Basement ka darwaza puraane lakdi ka tha.
Us par khoon ke hath ke nishaan the — jaise kisi ne bachaav karte hue darwaza pe hath maara ho.

Aur... bina chooye... darwaza khud khul gaya.

"Krrrrrkkk...!"

Rohan ki torch ka cone andar gaya —
aur usne dekha —
ek aurat basement ke kone mein ulti latki hui thi.

Uska chehra ulta tha, aankhen safed, zabaan kaali aur lambi nikalti ja rahi thi.

Wo dheere dheere hil rahi thi... aise jaise hawa mein kisi dori se latak rahi ho.

Aur tabhi uska sir palat gaya — seedha Rohan ki taraf.


---

Andhera

Basement ke andar jaise ek aur duniya thi.

Haveli ke neeche ek maze tha — jaise andheron ki gufaayein.
Rohan bhatak gaya.

Har mod par kuch pada tha — tute hue khilone, jale hue photo frames, sadte kapde.

Ek jagah usne dekha:

Ek aadmi ka sookha hua sharir kursi se baandha hua tha.

Munh ko sil diya gaya tha — aankhein khuli, jaise maut ke samay tak darr mein jam gayi thi.


Rohan peeche hatne laga —
tabhi us sookhe sharir ki aankh halka se blink hui.

"Tum bhi yahaan band hoge..."

Ek dardnaak cheekh haveli mein goonj uthi.


---



Rohan ko samajh aaya — yahaan kuch gadbad hai.

Har aane wale ka pratibimb — mirror version — uski jagah le leta hai.

Asli vyakti yahaan — haveli ke basement mein — hamesha ke liye fasa rehta hai.
Aur uska duplicate — duniya mein jeeta hai, logo ke beech, unke jaane bina.

Aaina, seedhiyan, haveli — sab ek jaal hai.

Jab Rohan bhaag kar wapas jaane laga, usne dekha:
Darwaza khud bandh ho chuka tha.

Aur samne aaine mein —
uska pratibimb haath hila raha tha — lekin haath ka ulta side hilla raha tha.

Jaise keh raha ho:

"Ab main azaad hoon... aur tu yahaan sada ke liye rahega..."




Rohan ne ek antim koshish ki.
Usne chillakar aaine par mukka maara.

CRASH!

Aaina ke tukde bikhre.

Par jab aaina toota — tab asli haveli ki shakl badal gayi.

Poore maze mein laal laal aankhen chamak uthi.
Hundreds of dead bodies — jeeti hui laashein — Rohan ki taraf daud padi.

Wo cheekhta raha.
Uska gala fat gaya.
Lekin uski cheekhein sirf basement ke andheron mein ghoomti rahi.

Koi nahi sunta yahaan.

Koi nahi bachaane aata.


-

Bahaar — jeep mein ek ladka aur ladki ruke.

Ladka bola, "Chalo explore karte hain! Kya mast scary jagah hai!"

Haveli ka deepak ab bhi j
al raha tha.

Aur andhar se ek naya Rohan — pratibimb Rohan — seedhiyon ke paas khada tha, unhe bulaata hua.

Bhulakar. Hansi ke saath.

"Aao... andar aao..."


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satrangi muniya

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पुनर्मिलन


राजू एक सीधा सादा किसान का बेटा, पिता मर चुके हैं और इसके इलावा सिर्फ माता जी हैं जो घर संभालती हैं. पिता जी के जाने के बाद क्यूंकि खेतों को संभालना था तो बारहवीं के बाद पढाई नहीं कर सका राजू. पर हाँ लड़का बड़ा होनहार था. जितना पढ़ा बहुत अच्छा पढ़ा. स्वाभाव से बहुत अच्छा और हंसमुख. कोई भी राजू से बात करता तो दिल ही नहीं करता था कि रुक जाये.

राजू की बुआ की बहु मीना उसका स्वाभाव बहुत अच्छा लगता था तो उसने अपनी मौसेरी बहिन अनु की शादी राजू के साथ फिक्स करवा दी. देखने में राजू बलिष्ट, ऊँची कद काठी का स्वामी था. नयन नक्श भी अच्छे थे देखने में. तो किसी भी लड़की को पहली नज़र में ही पसंद आ जाये ऐसा था वो.

अनु बी.ए बी एड की पढाई की थी और टीचर की जॉब के लिए कोशिश कर रही थी. मीना के हिसाब से अनु अच्छी लड़की थी और राजू के लिए एकदम सही थी. अनु को राजू पसंद आ जाता है. उनके पिता के पास ज्यादा कुछ नहीं था, पर राजू और उसकी माँ को भी कुछ नहीं चाहिए था.

अनु ने जल्द ही अपने घर परिवार को संभाल लिया. उसे राजू की यह बात बहुत अच्छी लगती थी कि वो बहुत खुशमिजाज़ है और उसका स्वाभाव भी बहुत अच्छा है. वो जितना हो सके अपनी तरफ से दूसरों की मदद करने की कोशिश करता, हमेशा हँसता ही रहता. जिस वजह से अनु उसके साथ जल्दी ही घुल मिल गयी.

अच्छी किस्मत कि शादी के दो महीने बाद ही उसकी उसकी नौकरी लग गयी. पर ये नौकरी अभी कॉन्ट्रैक्ट बेसिस पर ही थी. और दूसरी बात नौकरी अनु के शहर में थी, तो राजू और उसकी माँ की इजाज़त की जरुरत थी. उन्हें भला क्या ऐतराज़ होता. इनको वैसे भी उसके जॉब करने से कोई ऐतराज़ नहीं था और दूसरी बात यह भी थी कि इनका शहर गांव से कोई 12 किलोमीटर की दूरी पर था तो आने जाने में कोई ज्यादा दिक्कत नहीं थी. तो अनु आसानी से स्कूल आ जा सकती थी क्यूंकि गांव से शहर की ओर खुद ऑटो चलते थे और समय समय पर बस भी आती थी.

अनु शुरू में तो सही रही. पर धीरे धीरे उसके मन में आने लगा कि वो तो जॉब करती है. इसलिए काम से आनाकानी करने लगी. राजू की माँ सरोज को ये बात थोड़ी आखरी कि जॉब लगने के बाद तो इसके तेवर ही बदल गए हैं. लेकिन उसने सोचा कि कोई बात नहीं धीरे धीरे अपने आप लग जाएगी. काम का क्या है सारी उम्र ही करना है.

धीरे धीरे उसका बर्ताव राजू के प्रति भी खराब होने लगा. उसे उसका सारा दिन हंसना अखरने लगा. उसका लोगों की मदद करना बुरा लगने लगा. अब वो कहती..."हम दोनों लोगों के लिए थोड़ी कमा रहे हैं. हमें अपने बारे में भी सोचना पड़ेगा. राजू कहता किसी को किसी मौके पर जरुरत होती है तो वो ले जाता है और अपनी जुबान के हिसाब से वापिस भी कर देता है. और ये तो मैं शुरू से ही करता आ रहा हूँ. तुम्हे अच्छा नहीं लगता तो छोड़ देता हूँ." अनु बोली..."हाँ छोड़ ही दो"

हालाँकि राजू ने अनु की बात मान ली थी पर फिर भी उसका मुँह बना हुआ था. पता नहीं उसके दिमाग में क्या चलता रहता था. उसे लगता था कि जो 15-20 हजार वो कमाती है ये घर उसी से चलता है. राजू को समझ तो आ रही थी. पर वो ऐसा इंसान नहीं था कि किसी को उसके स्वाभाव के लिए टोके या फिर कुछ गलत बोले.

ऐसे ही एक दिन राजू को गांव का एक आदमी मिलने आया. उसकी बीवी प्रेग्नेंएट थी और उसे जल्द से जल्द 5000 /- की जरुरत थी. अब राजू उस वक्त ये थोड़ी याद रखता कि उसने अपनी पत्नी को क्या वादा किया है. उसने अनु के रखे पैसों में से 5000/- उस आदमी को दिए क्यूंकि उसकी पत्नी की जान पर बनी हुई थी. भगवान का शुक्र उसकी बीवी की जान बच गयी. राजू भी अनु को बताना भूल गया कि उसने उसके पैसों में से पैसे लिए हैं.

अब एक दिन अनु से कोई शख्स मिलने आया. अनु वो पैसे देखने लगी जो उसने रखे हुए थे. उसमे से 5000/- कम निकले. अनु ने राजू से पूछा तो उसने सारी बात बता दी. अनु तो उसी शख्स के सामने राजू को बुरा भला बोलने लगी. "मैं तो कितना जतन कर रही हूँ अपने परिवार के लिए और तुम तो कुछ सोचते ही नहीं हो ऐसे ही लुटाते रहते हो. मुझे तुम्हारे साथ रहना ही नहीं."

बोलकर वो अपने कपडे पैक करने लगती है. राजू ने बहुत समझाया कि किसी की जान पर बनी थी और उसने यहाँ तक बोला कि मेरी फसल के पैसे आ जाएँ तुम पांच के दस ले लेना. लेकिन अनु नहीं मानी और वो मायके चली ही गयी.

अब पता नहीं मायके में किसी ने उसे कुछ समझाया या नहीं. पर उन लोगों की तो मौज ही हो गयी. बैठे बिठाये घर में 20 हजार आने लगे. एक दो बार राजू आया भी उसे लेने पर उसने साफ़ मना कर दिया. इसकी वजह ये थी कि माँ को घर आती लक्ष्मी अच्छी लगने लगी थी और उसने अनु को राजू और उसकी माँ के खिलाफ भड़काना शुरू कर दिया था. बात तलाक पर पहुँच गयी. राजू ने बहुत कोशिश की कि तलाक ना हो. उसने कसम भी खाई कि वो आगे से कभी उसके खिलाफ कोई फैसला नहीं लेगा. पर अनु पर माँ का भूत सवार था, वो तलाक लिए बिना नहीं मानी.

उसकी मौसेरी बहन मीना ने भी उसे और उसकी माँ को बहुत समझाया था कि राजू बहुत अच्छा लड़का है पर ये माँ बेटी नहीं माने और अनु राजू से तलाक लेकर ही मानी.

खैर समय बीता एक साल हो गया....सरकार बदली. जितने कच्ची भर्ती टीचर थे सबको निकाल दिया गया. हालाँकि इन लोगों ने केस किया. पर केस के फैसले इतनी जल्दी कहाँ आते हैं.

पैसा आना बंद हुआ तो माँ बाप को बेटी अखरने लगी. उसके साथ दुर्व्यवहार शुरू हो गया और उसके लिए अब रिश्ते ढूंढे जाने लगे.

अब जाकर अनु को राजू के स्वाभाव की याद आई. उसकी आँखों के सामने राजू का हँसता खेलता चेहरा नाचने लगा. उसके चेहरे पर मुस्कान आ गयी राजू का चेहरा देखकर. उसे उसका अच्छा स्वाभाव याद आने लगा और हाँ उसे अपनी सास की भी याद आने लगी जो बिना किसी स्वार्थ के उसे प्यार करती थी. वो अपनी माँ की तुलना अपनी सास से करने लगी तो उसे लगा उसकी माँ उसकी सास के सामने कहीं नहीं ठहरती.

अनु को उन दोनों की याद आने लगी और वो अब सोचने लगी थी कि वो उन लोगों से मिलने जाए. पर वो एक बात सोच कर उदास हो गयी कि राजू का स्वाभाव बहुत अच्छा है. और देखने में भी सूंदर है तो जरूर उसकी शादी हो गयी होगी.

एक दिन अनु को उसकी माँ ने बोला कि उसे एक लड़का देखने आ रहा है. उसके दिल पर चोट लगी पर वो कर भी क्या सकती थी. उसने खुद अपने पैरों पर कुल्हाड़ी जो मारी थी.

लड़का क्या 40 साल का आदमी था. दो बच्चे थे. पत्नी मर गयी थी. काला कलूटा ऊपर से देखने का अंदाज़ भी गलत. गोरी चिट्टी सूंदर अनु को बहुत ही गलत नज़रों से देख रहा था. हम लड़कियों में लड़कों की नज़र पहचानने की एक खास कला होती है. तो अनु ने पहचान लिया कि ये कमीना इंसान है.

वैसे भी उसके दिल में कहीं ना कहीं राजू ही बसा था. उसने उसी दिन गांव जाने की सोची. जैसे ही वो गांव पहुंची तो उसे सामने से वही इंसान आता मिला जिसकी पत्नी की जान राजू ने बचाई थी. वो अनु के पैर पड़ गया और रोने गिड़गिड़ाने लगा कि मेरी वजह से आपकी गृहस्थी टूट गयी. बोला राजू के पास वापिस लौट जाइये.

अनु ने हैरानी से उस आदमी से पूछा..."क्यों राजू ने दूसरी शादी नहीं की क्या?"

वो आदमी बोला "दूसरी शादी? वो आपको अभी भी अपनी पत्नी ही मानता है और अक्सर आपकी ही बातें करता है."

अनु बोली..."वो खेत में मिलेंगे क्या?"

आदमी..."उसने आपके जाने के बाद समय बिताने के लिए चाय की दूकान खोल ली थी. वो आपको इस वक्त उसी दूकान पर मिलेगा."

अनु ने साड़ी पहनी हुई थी. वो वहां गयी जहाँ राजू ने चाय की दुकान खोली थी. उसने दुकान पर जाने से पहले घूँघट ओढ़ लिया था. वहां गयी तो राजू बोला..."हांजी बताइये"

अनु घूँघट में से ही बोली "एक चाय और एक मट्ठी"

राजू मुस्कुराकर बोला "चीनी तो दो चमच्च ही पीती होगी अभी भी." जी हाँ, राजू को अनु की आवाज़ पहचान में आ गयी थी.

वो हँसते गुनगुनाते हुए चाय बना रहा था. साथ में उसका दोस्त बंटी भी पहचान गया था, बोला" भाभी घूँघट हटा दीजिये, भैया ने आपको पहचान लिया है."

अनु ने घूँघट हटा दिया तो उसका सामना राजू की प्यारी सी मुस्कान के साथ हुआ.

"मुझे पता था अनु, तुम एक दिन जरूर आओगी." राजू की इस बात ने अनु के दिल की घंटियां बजा दी थी.

गांव के और लोग भी, जो दुकान पर बैठे थे बोल पड़े..."बहु तुमने बहुत अच्छा किया जो वापिस आ गयी."

अनु की आँखों में आंसू आ गया इन सबका और खासकर राजू का प्यार देखकर. वो बोली..."मुझे कभी उस घर में वापिस नहीं जाना. क्या माँ मुझे स्वीकार कर लेंगी."

राजू मुस्कुराकर बोला...."वो भी तुम्हारा ही इंतज़ार कर रही हैं"

अनु "और शादी?"

राजू बोला "कोर्ट के चंद कागज़ात हमारे सात जन्म के रिश्ते को थोड़े तोड़ सकते हैं. फिर भी तुम्हारी तसल्ली के लिए इस रविवार पंडित जी से हवन यज्ञ करवाकर दुबारा फेरे फेर लेंगे. इसी बहाने घर का शुद्धिकरण भी हो जायेगा."

अनु बस मुस्कुरा दी. जाकर माँ के चरणों में गिर गयी. जहाँ उसे खूब आशीर्वाद मिले. ससुराल में आना शुभ रहा. एक महीने बाद फैसला आ गया जो टीचरों के पक्ष में था. अब तो अनु को जॉब पक्की हो गयी और सैलरी भी 50 हजार से ऊपर. लेकिन अनु ने अब ठान लिया था कि कोई घमंड नहीं करेगी, मायके की ओर रुख भी नहीं करेगी और राजू के साथ सुखी सुखी अपना सारा जीवन व्यतीत करेगी.


दोस्तों कैसी लगी आपको कहानी. अपने रिव्यु के जरिये बताइये.
 
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"पीपल की चुड़ैल"

" जल्दी चल मानू! उस पीपल वाले पेड़ को जल्दी जल्दी पार कर लेते है... वरना कहीं...!! "
"वरना क्या... क्या शालू! कहीं पर क्या? पूरी बात बता न। "
"अरे! बताया तो था मंजूषा ने, तूने सुना नही? "
"ओफ़! बता भी अब । मुझे पता होता तो पूछती क्यों! क्या बताया था मंजूषा ने? "
"सुन, उस पीपल वाले पेड़ पर चुड़ैल रहती है, और वह आते जाते बच्चों को खा जाती है। "
शालू ने रहस्यमय स्वर में फुसफुसा कर बताया।
और मानू का हाथ पकड़ कर उसे तेज चलने का इशारा किया।
"जब वह खा जायेगी तो वहाँ से हम कैसे निकलेंगे ?" मानू के सवाल रुक नही रहे थे।
" देख, बुद्धू, अगर हम उस पीपल वाले पेड़ को देखते हुए चलेंगे, और धीरे धीरे चलेंगे तो वह हमे आसानी से पकड़ लेगी इसलिए हम उधर नही देखेंगे और तेज तेज चलते हुए वह पेड़ पार कर लेंगे, फिर कुछ नहीं होगा। " शालू ने राज की बात बताई।
"हट पागल, ऐसा कैसे हो सकता है? मैंने तो सुना है कि चुड़ैल के बहुत तेज भागती है। "
"नही, उसके पैर तो उल्टे होते हैं, तो वह तेज कैसे भाग सकती है? " शालू ने मानू से ही सवाल कर दिया। अब मानू को कोई जवाब नही सूझा।
वह चुपचाप चल पड़ी।
शालू और मानू दोनो बहने चौथी कक्षा में पढ़ती थी और उनका स्कूल उनके घर से थोड़ी दूर था। दोनो जुड़वा थी और स्कूल ज्यादा दूर नही था तो दोनो पैदल ही स्कूल आती जाती थी। स्कूल के रास्ते में एक पीपल का पेड़ था। बहुत ही घना ।वह स्कूल से बाहर निकलते ही पहले मोड़ पर ही था। उसके पास से गुजरते हुए मानू उसे बड़ी उत्सुकता से निहारती थी । उसे वह बड़ा ही रहस्यमय लगता था। उसकी कक्षा की लड़किया उस पीपल वाले पेड़ के बारे में कुछ न कुछ बातें करती रहती थी। तभी शालू को पता चला कि उस पेड़ पर चुड़ैल रहती है।
मानू का मन मानने को तैयार नहीं हो रहा था। आखिर यह चुड़ैल उस पीपल वाले पेड़ पर क्यों रहती है? वह समझ नहीं पा रही थी। फिर वह बच्चों को क्यों खा जायेगी ? मानू का मन नही माना तो उसने शालू से कहा -
"शालू, चुड़ैल कभी देखी है क्या किसी ने? "
"पता नही मानू, लेकिन जब उसके उल्टे पैर देखे है तो वह भी देखी ही होगी। " शालू ने सोचते हुए कहा।
और दूर से पीपल का पेड़ दिखने लगा। दोनो ने एक दूसरे को देखा फिर उनकी चाल बढ़ गयी। बिना पेड़ पर नजर डाले वे दोनो सामने देखती हुई पेड़ पार कर गयी। आगे निकल कर मानू का मन किया पलट कर देखूँ कि चुड़ैल है या नही पर शालू उसका हाथ पकड़ कर खीचती हुई चली जा रही थी तो वह देख ही नहीं पाई।
घर आकर भी उसके दिमाग से पीपल वाली चुड़ैल की बात उतर नही रही थी। वह थोड़ी थोड़ी देर में उससे सम्बन्धित कुछ न कुछ शालू से पूछती और शालू अपनी समझ से उसे उत्तर दे देती।
कई दिन इसी तरह गुजर गए। दोनो रोज उस रास्ते पर आती, सरपट भागती और घर जाकर ही रुकती। मानू रोज सोचती कि जब चुड़ैल दिखाई नही देती तो सब उससे इतना क्यों डरते हैं। लगता है कोई चुड़ैल उडैल नही होती।
जब उससे रहा नही गया तो एक दिन उसने अपने टीचर से पूछ ही लिया कि चुड़ैल क्या होती है। उसके सवाल पर टीचर ने उस डांट दिया। फालतू के प्रश्न के बजाय उस पाठ पर ध्यान देने को कहा जो वे पढ़ा रहीं थी। मानू सिर झुका कर बैठ गयी।
छुट्टी के समय रोज की तरह दोनो बहनें एक दूसरे का हाथ पकड़े तेजी से पीपल के पास से निकल गयी।
मानू अब किससे पूछे!
रात को जब सब खाना खा रहे थे तो मानू के दिमाग का दही हो रहा था। उसका मन खाने में नही था,वह चम्मच से कभी चावल दाल में डालती,कभी दही में, कभी दाल में चम्मच घुमाती, कभी दही में । उसको खाना खाने के बजाय खाने से खेलते हुए देख उसकी मम्मी ने कहा, "मानू, खाना क्यों नही खा रही हो ? "
मानू सकपका गयी। फिर बोली, "मम्मी, चुड़ैल क्या होती है? "
"लो, खाना खाते हुए इसे चुड़ैल याद आ रही है । " मम्मी ने सिर पर हाथ रखते हुए कहा।
"कुछ नही होती चुड़ैल! तू खाना खा । आलतू फालतू मत सोच। "मम्मी ने आदेशात्मक स्वर में कहा।
" पर...! "
"पर वर कुछ नहीं, खाना खाते समय बातें नही। " अब पापा बोले।
मानू फिर कसमसा कर रह गयी।
अगले दिन शालू स्कूल नही गयी। उसके पेट में दर्द हो रहा था। पापा मानू को स्कूल छोड़ आये और बोले ,"छुट्टी के समय तेरी मम्मी तुझे लेने आ जायेगी।"
मानू ने हाँ में सिर हिला दिया और कक्षा में चली गई।
छुट्टी के समय मानू अपनी मम्मी को इधर उधर देखने लगी पर वे उसे कहीं दिखाई नही दी।
दरअसल उसकी मम्मी तो आई ही नहीं थी, शायद भूल गयी थी। थोड़ी देर तक मानू इंतजार करती रही फिर उसने सोचा कि चलती रहूँ तो मम्मी रास्ते में मिल जायेंगी।
अब मानू घर के लिए अकेली ही चल दी। वह रास्ते में मम्मी को देखती जा रही थी पर कोई फायदा नही। मम्मी तो नही मिली, पीपल का पेड़ दिखने लगा। मानू डर गयी।
'अब क्या करूँ! अकेली कैसे जाऊँ! चुड़ैल आ गयी तो क्या होगा! ' मानू का जी हलकान होने लगा।
' मम्मी पता नही क्यों नही आई अभी तक?अब यहाँ कब तक खड़ी रहूँ! ' ऐसा सोचकर मानू फिर धीरे धीरे चलने लगी। उसने कोशिश की कि पीपल की तरफ नही देखेगी, न ही चुड़ैल के बारे में सोचेगी। अपने मन को समझाती हुई मानू पीपल के पेड़ के पास तक आ गयी। दोपहर हो रही थी। सभी बच्चे अपने घर जा चुके थे तो सड़क पर इक्का दुक्का लोग ही निकल रहे थे। मानू पीपल के पेड़ के नीचे पहुंची तो वह अकेली थी। अपने स्कूल बैग की स्ट्रेप को अपने हाथों से कस कर थामे मानू तेज चाल में वहाँ से निकलने की कोशिश में थी कि पीपल के पते जोर से खड़के जैसे चुड़ैल कहीं कूद कर आई हो, हवा जोर से चलने लगी और मानू के सामने हवा में मिट्टी उड़ उड़ कर गोल गोल घूमने लगी।
मानू की सिट्टीपिट्टी गुम हो गयी।
आँखों में आँसू आ गए।
'चुड़ैल आ गयी , अब मुझे खा जायेगी। ' उसने सोचा और उसकी नजर पीपल के पेड़ की तरफ उठ गयी। उसने देखा पेड़ हवा के जोर से हिल रहा है। उसके पत्ते सांयसांय की आवाज कर रहे हैं। डर और घबराहट के मारे उसका बुरा हाल था।
पर मानू बिना लड़े हार मानने वाली लड़की नही थी इसलिए वह इतनी डर कर भी बचाव का उपाय ढूढ़ रही थी कि एकदम उसके दिमाग की बत्ती जली। उसके भीतर से आवाज आई कि चुड़ैल के उल्टे पैर होते हैं और वह तेज नही भाग सकती।

"भागो , तेज भागो! " उसने खुद से कहा।
और मानू ने अपनी पूरी ताकत लगा कर दौड़ लगा दी। दौड़ते हुए उसके दिमाग में एक ही बात आ रही थी कि चुड़ैल तेज नही भाग सकती। उसने दौड़ते हुए ही पीछे मुड़ कर देखा तो वहाँ कुछ नहीं था।
मानू ने हवा में मुक्का मारा जोर से बोली
'मैं जीत गयी'
अब उसकी हिम्मत बढ़ चुकी थी।
मानू जब घर पहुंची तो बहुत खुश थी मानो उसे कोई खजाना मिल गया हो। वह शालू के पास पहुंची और उसे गुदगुदी करने लगी ।शालू भी हँसने लगी और हँसते हँसते ही हाथ के इशारे से उसे रुकने को बोली। जब मानू ने उसे छोड़ा तो उसने मानू से उसकी इतनी खुशी का कारण पूछा।
मानू ने बताया"आज मैंने चुड़ैल को रेस में हरा दिया। "और ताली बजाकर फिर खुश होने लगी।
शालू उसे हैरानी से देखने लगी। उसे लगा मानू का सिर फिर गया है। भला चुड़ैल से भी कोई रेस लगाता है।
उसे ऐसे देखते हुए पाकर मानू ने उसे सब कुछ बता दिया और बोली ,"चुड़ैल से क्या डरना, उसके तो पैर ही उल्टे होते हैं। वो तो दौड़ ही नही पाती। बेचारी!! "
शालू ने सिर पर हाथ मारा। अब चुड़ैल भी बेचारी हो गयी। धत!! इस मानू की बच्ची को अगर सच में चुड़ैल मिल जाए न, तो इसकी बोलती बन्द हो जायेगी। अभी देखो कितना उछल रही है। पागल कहीं की।
उसने मानू से कहा, तूने चुड़ैल को देखा था क्या? वो बेचारी नही होती। वो तो भयानक होती है। उसके दांत बड़े बड़े होते हैं। उसके बाल बिखरे होते हैं। उसका रंग काला होता है...! "

"मम्मी!..ई.....ई!!!!"मानू डर कर चिल्लाई।
और शालू उसको जीभ निकाल कर चिढ़ाने लगी।

मानू शालू के पास से उठी और अपना बैग अलमारी में रख कर यूनिफॉर्म बदलने चली गई। अब तक उनकी मम्मी उन दोनो को लंच करने के लिए आवाज लगा देती हैं और दोनो चुड़ैल की चर्चा फिर नही कर पाती।
मगर मानू के दिमाग से चुड़ैल का भूत नही उतरा। उतरता भी कैसे ! शालू ने चुड़ैल के बारे में नई बातें जो बताई थी।
अब मानू सोच रही थी कि किस तरह वह इस बात की सच्चाई पता लगाए कि चुड़ैल होती कैसी है। उसको जितना उससे डर लगता उतना ही उसके प्रति उत्सुकता भी बढ़ती। जब भी पीपल के पेड़ के पास से वे दोनो गुजरती, शालू मानू का हाथ पकड़कर दौड़ लगा देती। मानू का दिल पीपल के पेड़ को देखते रहने का करता। मगर वह दूर से ही देख पाती थी, पास आते ही दोनो को दौड़ लगानी होती थी।
इसी तरह कई दिन गुजर गए।
एक दिन मानू दूर से पीपल को देखती हुई सोच रही थी कि चुड़ैल इस पेड़ पर कैसे और कहाँ पर बैठी होगी। उसने शालू से कहा कि आज हम दौड़ेंगे नही, बल्कि धीरे धीरे पीपल को देखते हुए चलेंगे, अगर चुड़ैल दिखी तो तेज दौड़ लगा लेंगे । आखिर चुड़ैल तो तेज दौड़ नही पाती तो हम उससे तेज भाग लेंगे।
शालू ने उसे घूरा तो वह बोली ,"उस दिन तो मै अकेली थी तो भी भाग ली थी फिर आज क्यों नही भाग पाऊँगी। चल न शालू! "
शालू असमंजस में पड़ गयी।
अभी वे दोनो थोड़ा सा आगे बढ़े थे कि उन्होंने देखा कि उनके आगे एक लंबी सी लड़की खड़ी थी जिसको पीठ उनकी तरफ थी। उसने काले रंग का लंबा कुर्ता पहना था और काला ही शरारा। मगर उसका सिर लाल रंग के दुपट्टे से ढका था। दोनो डर के मारे कांपने लगी। आज तो गए। आज चुड़ैल आ गई।
वे दोनो वापस उल्टे पैर भागने वाली थी कि वह लड़की उनकी तरफ मुड़ गयी।
उसको देखते ही वे दोनो एकटक उसे देखने लगी। उनकी नजरें उस पर से हटने को तैयार ही नहीं हो रही थी। होती भी क्यों! वह थी ही इतनी खूबसूरत।
गोल चेहरा, बड़ी बड़ी बोलती हुई आँखें, मुस्कराते हुए गुलाबी होंठ। सफेद दूध जैसा रंग उस पर तराशी हुई दोनो भवें।

उसे अपलक निहारते हुए उनकी तंद्रा तब टूटी जब उन्होंने उसकी मीठी आवाज सुनी।
" मेरे साथ आओ तुम दोनो, मै तुम दोनो को पीपल भी दिखा दूँगी और पार भी करवा दूँगी। "
दोनो ने एक दूसरे को गहरी नजर से देखा, जैसे कह रही हो कि ये चुड़ैल नही हो सकती।
कौन थी वह...
शालू और मानू ने एक दूसरे को देखा और आँखों ही आँखों में चलने का इशारा किया।
लेकिन मानू ने अपनी तसल्ली के लिए उस लड़की से पूछा, "आप कौन है? "
"मेरा नाम पायल है। मैं यही पास ही रहती हूँ। मैं अपनी छोटी बहन को स्कूल से लेने जा रही हूँ। "
"अच्छा! " शालू, मानू उसके साथ चलते हुए बोली।
"आपकी बहन कौन से स्कूल में पढ़ती है? मानू ने फिर पूछा।
" वह मंदिर के पास वाले स्कूल मे पढ़ती है , महिमा जूनियर हाई स्कूल में। "

"कौन सी क्लास में?

"छठी कक्षा मे "

"अरे वाह! हम भी छठी कक्षा में पढ़ते हैं। " शालू मानू एक साथ बोली।

पायल भी मुस्कराने लगी।
"मैंने तुम दोनो को रोज यहाँ से जाते देखा है, और कई बार तो बातें भी सुनी है तुम्हारी। "
शालू, मानू ने आँखे बड़ी करके उसे देखा। शालू बोली, "आप चुपके से बात सुनती थी हमारी । गलत बात दीदी! "
पायल हँस कर बोली, "जब दीदी कह रही हो, तो तुम भी मेरी छोटी बहन जैसी हो न, फिर बात सुन सकती हूँ न! "
फिर गंभीर होकर बोली, "तुम दोनो इतनी मगन होकर आपस में बातें करती चलती हो कि आसपास कोई सुन रहा है, ये तुम्हे पता ही नहीं चलता। मैंने जान कर नही सुनी, बस सुनाई पड़ गयी तो सुन ली। "

"अच्छा पायल दीदी, आपको तो फिर उस चुड़ैल के बारे में भी पता होगा। " मानू उत्सुक होकर पूछने लगी।

"हाँ, जिसके डर से तुम रोज भागती हो। " कहकर पायल फिर हँस पड़ी।

"आओ, डरो नही। मैं तुम्हे सच बताती हूँ। "

पायल उन दोनो का हाथ पकड़ कर उस पीपल के पेड़ के नीचे ले गयी।

"देखो, यह कितना घना और विशाल है। "

"हाँ दीदी, तभी इस पर चुड़ैल...! "
"श.... श ... ! " मानू को बोलने से रोक दिया पायल ने।
"मैं बता रही हूँ न, सुनो!
इस पेड़ की घनी छाया के कारण यहाँ धूप नही आती है न, इसलिए यहाँ की मिट्टी मे नमी है। तो आसपास सांप,बिच्छू और विषैले जीव हो सकते हैं, इसलिए बच्चों को यहाँ आने से रोकने के लिए चुड़ैल की अफवाह उड़ा रखी है लोगों ने। "

"तो चुड़ैल उडैल कुछ नही होती दीदी? " शालू ने पूछा।

"पता नही मुझे, पर अभी जो बताया वह सच है। " पायल बोली।

" दीदी, ये तो आपने बड़ी अच्छी बात बताई। हम ध्यान रखेंगे इस बात का और पेड़ के नीचे नही आयेंगे। "मानू ने कहा।

" अब चले! देर हो रही है! "

"हाँ दीदी, चलो। "दोनो ने कहा और उछलती कूदती चल पड़ी।

जब उनके घर का मोड़ आ गया तो वे दोनो उधर मुड़ गयी और पायल दूसरी तरफ मुड़ गयी।
"बाई दीदी" दोनो ने हाथ हिलाकर कहा।
"चल शालू! " मानू शालू का हाथ पकड़ कर बोली, "आज मम्मी को सब बतायेंगे, हमे रास्ते मे दीदी मिली, उन्होंने कितनी अच्छी बात बताई। "

हाँ में सिर हिलाकर शालू भी चल पड़ी।

घर पहुँच कर शालू, मानू ने स्कूल बैग एक तरफ रखा और अपनी मम्मी के पास पहुंची। उनकी मम्मी पड़ोस वाली आंटी के साथ बैठी बातें कर रहीं थी ।


" मम्मी...!! "दोनो एक साथ बोली।
उनकी मम्मी ने उनको देखा और बोली, " क्या बात है? आज बड़ी खुश लग रही हो! "
"हाँ मम्मी! आज हमें बड़ी अच्छी दीदी मिली थी रास्ते में। "

"अच्छा! अच्छा!! तो तुम इस बात पर खुश हो । जबकि मैंने मना किया था न कि अजनबियों से बात नही करनी चाहिए। " मम्मी ने थोड़े सी गुस्से में कहा।

"अरे मम्मी! वो कोई अजनबी नही थी, वो तो रोज हमारे साथ ही अपनी छोटी बहन को लेने जाती हैं। " मानू ने ऐसे बताया जैसे वो उनको रोज मिलती थी।

"तो फिर आज क्या खास हो गया?" मम्मी ने कहा, "चलो, स्कूल ड्रेस बदलो, फिर फ्रेश होकर खाना खाओ। "

"मम्मी!! " दोनो ने मुँह लटका कर कहा।
मम्मी जरूर इन कंचन आंटी के कारण हमारी बात नही सुन रहीं।

उनके लटके मुँह देख कंचन आंटी बोली, " नीता, बच्चों की बात तो सुन लो, वरना ये दोनो निराश हो जायेगी । "

यह सुनकर नीता ने अपनी बेटियों को पास बुलाया। उनके माथे चूमकर बोली, अच्छा तो बताओ, क्या हुआ था। "

शालू मानू खुश हो गयी और उछलते हुए अपनी मम्मी के गले मे बाहें डालकर सारी बात बताने लगी।

कंचन आंटी भी उनकी बात गौर से सुनने लगी। बीच बीच में उनकी आँखें बड़ी हो जाती। पूरी बात सुनकर वे बोली, "बच गए आज तो तुम दोनो। बाल बाल बच गए। "

"वो कैसे? " मानू ने उनकी तरफ देख कर हैरान होकर पूछा।

"अरे पागलों! वो पायल और कोई नही, वही चुड़ैल थी। " कंचन आंटी ने अपने हाथ से उनके सिर पर हल्की सी चपत लगा कर कहा।
"ये क्या कह रही हो आप? " अब तो हैरान परेशान हो गयी शालू मानू की मम्मी नीता भी।

मानू ने अपने हाथ से इंकार करते हुए कहा, "आंटी, वो पायल दीदी थी। वो चुड़ैल नही थी। "

अब मन में यही सवाल था कि क्या कंचन सच बोल रही थी? या मानू का विश्वास सच्चा था?

क्रमश:

 
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कहानी: मुक्ति

स्वेच्छा से घर से भाग कर शादी करने वाली मुक्ति ने शादी के महीने भर बाद ही तलाक भी ले लिया. आखिर क्यों.

वह डिवोर्सी है. यह बात सारे स्टाफ को पता थी. मुझे तो इंटरव्यू के समय ही पता चल गया था. एक बड़े प्राइवेट कालेज में हमारा साक्षात्कार एकसाथ था. मेरे पास पुस्तकालय विज्ञान में डिगरी थी. उस के पास मास्टर डिगरी. कालेज की साक्षात्कार कमेटी में प्राचार्य महोदया जो कालेज की मालकिन, अध्यक्ष सभी कुछ वही एकमात्र थीं. हमें बताया गया था कि कमेटी इंटरव्यू लेगी, मगर जब कमरे के अंदर पहुंचे तो वही थीं यानी पूरी कमेटी स्नेहा ही थीं. उन्होंने हमारे भरे हुए फार्म और डिगरियां देखीं. फिर मुझ से कहा, ‘‘आप शादीशुदा हैं.’’
‘‘जी.’’

‘‘बी. लिब. हैं?’’
‘‘जी,’’ मैं ने कहा.

फिर उन्होंने मेरे पास खड़ी उस अति सुंदर व गोरी लड़की से पूछा, ‘‘आप की मास्टर डिगरी है? एम.लिब. हैं आप मुक्ति?’’ ‘‘जी,’’ उस ने कहा. लेकिन उस के जी कहने में मेरे जैसी दीनता नहीं थी.

‘‘आप डिवोर्सी हैं?’’ ‘‘जी,’’ उस ने बेझिझक कहा.

‘‘पूछ सकती हूं क्यों?’’ ‘‘व्यक्तिगत मैटर,’’ उस ने जवाब देना उचित नहीं समझा.

‘‘ओके,’’ कालेज की मालकिन, जो अध्यक्ष व प्राचार्य भी थीं, ने कहा. ‘‘तो आप आज से लाइब्रेरियन की पोस्ट संभालेंगी और मनु आप सहायक लाइब्रेरियन. और हां अटैंडैंट की पोस्ट इस वर्ष नहीं है. आप दोनों को ही सब कुछ संभालना है.’’

‘‘जी,’’ हम दोनों के मुंह से एकसाथ निकला. इस प्राइवेट कालेज में मेरा वेतन 15 हजार मासिक था. और मेरी सीनियर मुक्ति का 20 हजार. मुक्ति अब मेरे लिए मुक्तिजी थी क्योंकि वे मुझ से बड़ी पोस्ट पर थीं.

मुक्ति के बाहर जाते ही मैं भी बाहर निकलने ही वाला था कि प्राचार्य महोदया ने मुझे रोकते हुए कहा, ‘‘मनु डिवोर्सी है… संभल कर… भूखी शेरनी कच्चा खा जाती है शिकार को,’’ कह वे जोर से हंसती हुई आगे बोलीं, ‘‘मजाक कर रही थी, आप जा सकते हैं.’’ विशाल लाइब्रेरी कक्ष.

काम बहुत ज्यादा नहीं रहता था. मैं मुक्तिजी के साथ ही काम करता था, बल्कि उन के अधीनस्थ था. मुझे उन के डिवोर्सी होने से हमदर्दी थी. दुख था… इतनी सुंदर स्त्री… कैसा बेवकूफ पति है, जिस ने इसे डिवोर्स दे दिया. लेकिन मुक्तिजी के चेहरे पर कोई दुख नहीं था. वे खूब खुश रहतीं. हरदम हंसीमजाक करती रहतीं. पहले तो उन्होंने मुझ से अपने नाम के आगे जी लगवाना बंद करवाया, ‘‘आप की उम्र 30 वर्ष है और मेरी 29. एक साल छोटी हूं आप से. यह जी लगाना बंद करिए, केवल मुक्ति कहा करिए.’’

‘‘लेकिन आप सीनियर हैं.’’ ‘‘यह कौन सी फौज या पुलिस की नौकरी है. इतने अनुशासन की जरूरत नहीं है. हम साथ काम करते हैं. दोस्तों की तरह बात करें तो ज्यादा सहज रहेगा मेरे लिए.’’

मैं उन की बात से सहमत था. इन 8 महीनों में हम एकदूसरे से बहुतघुल मिल गए थे. विद्यालय के काम में एकदूसरे की मदद कर दिया करते थे. अपनी हर बात एकदूसरे को बता दिया करते थे. उन्होंने अपने जीवन को ले कर, परिवार को ले कर कभी कोई शिकायत नहीं की और न ही मुझ से कभी मेरे परिवार के बारे में पूछा. वे सिर्फ इतना पूछतीं, ‘‘और घर में सब ठीक हैं?’’

उन के हंसीमजाक से मुझे कई बार लगता कि वे अपने अंदर के दर्द को छिपाने के लिए दिखावे की हंसी हंसती हैं. लेकिन मुझे बहुत समय बाद भी ऐसा कुछ नजर नहीं आया उन में. कोई दर्द, तकलीफ, परेशानी नहीं और मैं हद से ज्यादा जानने को उत्सुक था कि उन के पति ने उन्हें तलाक क्यों दिया? हम लंच साथ करते. चाय साथ पीते. इधरउधर की बातें भी दोस्तों की तरह मिल कर करते. कालेज के काम से भी कई बार साथ बाहर जाना होता.

सोचा होगा तलाक में लंबी रकम हासिल कर के आराम से अपने प्रेमी से विवाह... लेकिन नहीं, इतने समय में तो कोई नहीं दिखा ऐसा और न ही कभी मुक्ति ने बताया...

‘‘आप से एक बात पूछूं मुक्ति?’’ एक दोपहर लंच के समय मैं ने कहा. ‘‘मेरे डिवोर्स के बारे में?’’ उन्होंने सहज भाव से कहा.

फिर हंसते हुए बोलीं, ‘‘एक पुरुष को स्त्री के बारे में जानने की उत्सुकता रहती ही है, पूछिए.’’ ‘‘आप इतनी सुंदर हैं. सिर से ले कर पैरों तक आप में कोई कमी नहीं. व्यावहारिक भी हैं. पढी़लिखी भी हैं. फिर आप के पति ने आप को तलाक कैसे दे दिया?’’

उन्होंने सहज भाव से कहा, ‘‘सुंदरता का डिवोर्स से कोई तालमेल नहीं होता. और दूसरी बात यह कि तलाक मेरे पति ने नहीं, मैं ने दिया है उन्हें.’’

अब मैं विस्मय में था, ‘‘आप ने? क्या आप के पति शराबी, जुआरी टाइप व्यक्ति हैं?’’ ‘‘हैं नहीं थे. अब वे मेरे पति नहीं हैं. नहीं, वे शराबी, कबाबी, जुआरी टाइप नहीं थे.’’

‘‘तो किसी दूसरी औरत से …’’ मेरी बात बीच ही में काटते हुए उन्होंने कहा, ‘‘नहीं.’’

‘‘तो दहेज की मांग?’’ ‘‘नहीं,’’ मुक्ति ने कहा.

‘‘तो आप की पसंद से शादी नहीं हुई थी?’’

‘‘नहीं, हमारी लव मैरिज थी,’’ मुक्ति ने बिलकुल सहज भाव से कहा. कहते हुए उन के चेहरे पर हलका सा भी तनाव नहीं था. अब मेरे पास पूछने को कुछ नहीं था. सिवा इस के कि फिर डिवोर्स की वजह? लेकिन मैं ने दूसरी बात पूछी, ‘‘आप के मातापिता को चिंता रहती होगी.’’

‘‘रहती तो होगी,’’ मुक्ति ने लापरवाही से कहा, ‘‘हर मांबाप को रहती है. लेकिन उतनी नहीं, बल्कि उन का यह कहना है कि अपनी पसंद की शादी की थी. अब भुगतो. फिर उन्हें शायद अच्छा लगा हो कि बेटी ने बगावत की. विद्रोह असफल हुआ. बेटी हार कर घर वापस आ गई. जैसा कि सहज मानवीय प्रकृति होती है. बेटी घर पर है तो घर भी देखती है और अपना कमा भी लेती है. एक भाई है जो अपने परिवार के साथ दिल्ली में रहता है.’’ अब मुझे पूछना था क्योंकि मुख्य प्रश्न यही था, ‘‘फिर डिवोर्स की वजह?’’ उस ने उलटा मुझ से प्रश्न किया, ‘‘पुरुष क्यों डिवोर्स देते हैं अपनी पत्नी को?’’

मैं कुछ देर चुप रहा. फिर कुछ सोचते हुए कहा, ‘‘शायद उन्हें किसी दूसरी स्त्री से प्रेम हो जाता होगा इसलिए.’’ ‘‘बस यही एक वजह है.’’

‘‘दूसरी कोई वजह हो तो मुझे नहीं मालूम,’’ मैं ने कहा. फिर मेरे मन में अनायास ही खयाल आया कि कहीं ऐसा तो नहीं कि मुक्ति को किसी और से प्यार हो गया हो शादी के बाद. हो सकता है कि बड़े घर में शादी हुई हो. सोचा होगा तलाक में लंबी रकम हासिल कर के आराम से अपने प्रेमी से विवाह… लेकिन नहीं, इतने समय में तो कोई नहीं दिखा ऐसा और न ही कभी मुक्ति ने बताया… न कोई उस से मिलने आया.

मुक्ति ने मुझे विचारों में खोया देख कर कहा, ‘‘ऐसा कुछ नहीं है कार्तिक जैसा आप सोच रहे हैं.’’ ‘‘मैं क्या सोच रहा हूं?’’ मुझे लगा कि मेरे मन की बात पकड़ ली मुक्ति ने. मैं हड़बड़ा गया.

उन्होंने हंसते हुए कहा, ‘‘मुझे किसी दूसरे पुरुष से प्रेम नहीं हुआ. जैसा कि आजकल महिलाएं करती हैं. तलाक लो… तगड़ा मुआवजा मांगो. मेरा भूतपूर्व पति सरकारी अस्पताल में लोअर डिवीजन क्लर्क था. था से मतलब वह जिंदा है, लेकिन मेरा पति नहीं है.’’ मैं समझ नहीं पा रहा था कि फिर तलाक की क्या वजह हो सकती थी?

‘‘समाज डिवोर्सी स्त्री के बारे में क्या सोचता है?’’ मैं ने पूछा. ‘‘कौन सा समाज? मुझे क्या लेनादेना समाज से? समाज का काम है बातें बनाना. समाज अपना काम बखूबी कर रहा है और मैं अपना जीवन अपने तरीके से जी रही हूं,’’ उन्होंने समाज को ठेंगा दिखाने वाले अंदाज में कहा.

‘‘लेकिन कोई तो वजह होगी तलाक की… इतना बड़ा फैसला… शादी 7 जन्मों का बंधन होता है,’’ मैं ने कहा. ‘‘शादी 7 जन्मों का बंधन… आप पुरुष लोग कब तक 7 जन्मों की आड़ ले कर हम औरतों को बांध कर रखेंगे? ये औरतों को बेवकूफ बनाने की बात है,’’ मुक्ति ने व्यंग्यात्मक लहजे में कहा.

‘‘आप तो नारीवादी विचारधारा की हैं.’’ ‘‘नहीं, मैं बिलकुल भी पुरुषविरोधी विचारधारा की नहीं हूं.’’

लंच समाप्त हो चुका था. मैं ने उठते हुए पूछा, ‘‘मुक्ति, शादीशुदा रही हैं आप… अपनी शारीरिक इच्छाएं कैसे…’’ मुझे लगा कि प्रश्न मर्यादा लांघ रहा है. अत: मैं बीच ही में चुप हो गया.

लेकिन उन्होंने मेरी बात का उत्तर अपने हाथ की मध्यमा और तर्जनी उंगली उठा कर दिया और फिर नारी सुलभ हया से अपना चेहरा झुका लिया.

मैं दोगले खोखले व्यक्ति के साथ नहीं रहना चाहती. सारी जिंदगी घुट कर जीने से अच्छा है कि हम एकदूसरे से मुक्त हो कर अपने जीवन को अपनेअपने तरीके से जीएं.

शाम को हम अपनेअपने घर निकल जाते. कालेज की बस हमें हमारे स्टौप पर छोड़ देती. पहले उन का घर पड़ता था. वे हंसते हुए बाय कहते हुए उतर जातीं. उन्होंने मुझ से कभी अपने घर आने को नहीं कहा. मुझे जाना भी नहीं चाहिए. पता नहीं एक डिवोर्सी महिला के घर जाने पर उस के पासपड़ोस के लोग, उस के मातापिता क्या सोचें? कहीं मुझे उस का नया प्रेमी न समझ बैठें. फिर प्राचार्य महोदया ने कहा भी था भले ही मजाक में कि भूखी शेरनी है बच के रहना. कच्चा खा जाएगी.

मुझे तो ऐसा कभी नहीं लगा. इन 8 महीनों में व्यावहारिकता के नाते मैं तो उन्हें अपने घर आमंत्रित कर सकता हूं. अत: दूसरे दिन मैं ने कहा, ‘‘कभी हमारे घर आइए.’’ ‘‘औपचारिकता निभाने की कोई जरूरत नहीं है. आप से दिन भर मिलना होता है. आप के घर के लोगों को मैं जानती भी नहीं. उन से मिल कर क्या करूंगी? फिर मेरे डिवोर्सी होने का पता चलेगा तो तुम्हारी पत्नी के मन में शक बैठ सकता है कि कहीं मेरा आप से…’’ मुक्ति ने बात अधूरी छोड़ दी.

उसे मैं ने यह कह कर पूरा किया, ‘‘वह ऐसा क्यों सोचेगी?’’ ‘‘सोचने में क्या जाता है? सोच सकती है. क्यों बेचारी के दिमाग में खलल डालना. मुझे और आप को कोई यहां परमानैंट नौकरी तो करनी नहीं है. न ही कालेज वालों ने हमें रखना है. दूसरी अच्छी जौब मिली तो मैं भी छोड़ दूंगी… आप का परिवार है, आप को घर चलाने के लिए ज्यादा रुपयों की जरूरत है. आप भी कोई न कोई नौकरी तलाश ही रहे होंगे.’’

‘‘हां, मैं ने पीएससी का फार्म भरा है.’’ ‘‘और मैं ने भी सैंट्रल स्कूल में.’’

‘‘आप बिलकुल स्पष्ट बोलती हैं.’’ ‘‘सही बात को बोलने में हरज कैसा?’’

‘‘फिर आप ने तलाक की वजह क्यों नहीं बताई?’’

‘‘चलो, अब बता देती हूं. मैं और विनय एकदूसरे से प्यार करते थे, बल्कि वह मेरा ज्यादा दीवाना था. घर से भाग कर शादी की. दोनों के घर वालों ने अपनाने से इनकार कर दिया. समाज अलगअलग था दोनों का. लेकिन विनय के पास सरकारी नौकरी थी, तो कोई दिक्कत नहीं हुई. व्यक्ति आर्थिक रूप से सक्षम हो तो बहुत सी समस्याओं का समाधान हो जाता है.’’ ‘‘पता नहीं मेरी दीवाने पति को शादी की रात क्या सूझी कि उस ने एक फालतू प्रश्न उठाया कि मुक्ति, अब हम नई जिंदगी शुरू करने वाले हैं. अच्छा होगा कि हम विवाह से पूर्व के संबंधों के बारे में एकदूसरे को सचसच बता दें. इस से संबंधों में प्रेम, विश्वास और ईमानदारी बढ़ेगी.

‘‘और फिर उस ने विवाह से पूर्व के अपने संबंधों के बारे में बताया. एक रिश्ते की भाभी से और एक कालेज की प्रेमिका से संबंध होना स्वीकार किया. उस ने यह भी स्वीकारा कि जब मेरे साथ प्रेम में था तब भी उस के एक विवाहित स्त्री से संबंध थे. वह कई बार वेश्यागमन भी कर चुका है. उस के बताने में शर्म बिलकुल नहीं थी. बल्कि गर्व ज्यादा था. फिर उस ने कहा कि अब तुम बताओ?’’ ‘‘मैं ने कुछ याद किया. फिर कहा, ‘‘बहुत पहले की बात है.

उस समय मेरी उम्र 16 साल रही होगी और मेरे साथ पढ़ने वाले लड़के की 16 या ज्यादा से ज्यादा 17. एक दिन मेरे घर में कोई नहीं था. वह आया तो था पढ़ाई के काम से, लेकिन उसे न जाने क्या सूझी कि उस ने मुझे चूमना शुरू कर दिया. ‘‘हम दोनों एकदूसरे को पसंद करते थे. मैं मना नहीं कर पाई. तापमान इतना बढ़ चुका था शरीर का कि लौटना संभव नहीं था. मैं स्वयं आग में पिघलना चाहती थी. मैं पिघली और शरीर का सारा भार फूल सा हलका हो गया.

‘‘मेरे पति विनय के चेहरे का रंग ही बदल गया. उस के चेहरे पर अनेक भाव आ जा रहे थे, जिन में कठोरता, धिक्कार और भी न जाने क्याक्या था. उस ने कहा कि इस से अच्छा था कि तुम मुझे न ही बताती. मैं ने एक ऐसी लड़की से प्यार किया, जिस का कौमार्य पहले ही भंग हो चुका है वो भी उस की इच्छा से. जिस लड़की के पीछे मैं ने सब कुछ छोड़ा, घर, परिवार, जाति, समाज, वही चरित्रहीन निकली.’’

‘‘मैं ने गुस्से में कहा कि यह तुम क्या कह रहे हो? जब तुम ये सब करते चरित्रहीन नहीं हुए तो मैं कैसे हो गई? मैं ने भी तुम्हारे लिए अपना सब कुछ छोड़ा है. फिर तुम ने ही अतीत के बारे में पूछा. वह अतीत जिस से तुम्हारा कोई वास्ता नहीं. उस समय तो मैं तुम्हें जानती तक नहीं थी. तुम ने तो उस समय भी चरित्रहीनता दिखाई जब तुम मेरे प्रेम में डूबे हुए थे.’’ ‘‘मेरी बात सुन कर वह बोला कि मेरी बात और है. मैं पुरुष हूं.’’

‘‘मैं ने कहा कि तुम करो तो पुरुषत्व और मैं करूं तो चरित्रहीनता… मेरा शरीर है… मेरी मरजी है, मेरी स्वीकारोक्ति थी. तुम ने पूछा इसलिए मैं ने बताया.’’ ‘‘इस पर उस का कहना था कि शादी से पहले बता देती.’’

‘‘मैं ने जवाब दिया कि तुम पूछते तो जरूर बताती.’’

‘‘इस के बाद वह मुझ से खिंचाखिंचा सा रहने लगा. जब देखो उस का मुंह लटका रहता. उस का मूड उखड़ा रहता.’’ ‘‘कई दिन बीत गए. एक दिन मैं ने उस से कहा कि इस में इतना तनाव लेने की क्या जरूरत है? हम अलग हो जाते हैं. डिवोर्स ले लेते हैं.’’

‘‘इस पर उस ने कहा कि शादी के 1 महीने बाद ही तलाक… मजाक है क्या?

लोग क्या सोचेंगे?’’ ‘‘मेरा जवाब था कि लोग गए भाड़ में. मैं ऐसे आदमी के साथ नहीं रहना चाहती जो अपने संबंध गर्व से बताए और पत्नी के बताने पर ऐसा जाहिर करे जैसे उस ने कोई बहुत बड़ा गुनाह कर दिया हो. सच सुनने की हिम्मत नहीं थी तो पूछा क्यों? अपना सच बताया क्यों?’’

‘‘वह अभिमान से बोला कि मैं तो पुरुष हूं. लोग तुम्हें डिवोर्सी कहेंगे.’’ ‘‘मेरा कहना था कि मेरे बारे में इतना सोचने की जरूरत नहीं. लोग कहेंगे तो तुम्हारे बारे में भी. लेकिन मर्द होने के अहं में तुम्हें कोई फर्क नहीं पड़ेगा. मेरे बारे में उलटासीधा कह कर तुम लौट जाओगे अपने घर वापस. तुम्हारी धूमधाम से शादी हो जाएगी और मुझे लोग वही कहेंगे जो तुम कह रहे हो. कहते रहें. मैं दोगले खोखले व्यक्ति के साथ नहीं रहना चाहती. सारी जिंदगी घुट कर जीने से अच्छा है कि हम एकदूसरे से मुक्त हो कर अपने जीवन को अपनेअपने तरीके से जीएं. मेरे लिए संबंध टूटने का अर्थ जीवन खत्म होना नहीं है और मैं डिवोर्सी हो गई.’’

मैं मुक्ति के सच को सुन कर एक ओर हैरान भी था तो दूसरी ओर उस के सच से प्रभावित भी. लेकिन फिर भी मैं ने उस से कहा, ‘‘मुक्ति, औरतों को कुछ बातें छिपा कर ही रखना चाहिए. उन्हें उजागर न करना ही बेहतर रहता है.’’

उस ने गुस्से से मेरी तरफ देख कर कहा, ‘‘छिपा कर गुनाह रखा जाता है. मैं ने कोई अपराध नहीं किया था. जब उस ने नहीं छिपाया, तो मैं क्यों छिपाती, क्योंकि मैं औरत हूं. मैं ऐसे पुरुषों को पसंद नहीं करती जो स्त्री के लिए अलग और अपने लिए अलग मानदंड तय करें. मेरे शरीर का एक अंग मेरा सर्वांग नहीं है. ‘‘मेरे पास अपना स्वाभिमान है… शिक्षा है… मेरा अपना वजूद है. अपनी स्वेच्छा से अपने शरीर को अपनी पसंद के व्यक्ति को एक बार सौंपने का अर्थ यदि पुरुष की नजर में चरित्रहीनता है तो हम क्या वेश्याओं से गएगुजरे हो गए… और वे पुरुष क्या हुए जो अपने रिश्ते की महिलाओं से ले कर वेश्याओं तक से संबंध बनाए हैं वे मर्द हो गए… नहीं चाहिए मुझे ऐसा पाखंडी पति.’’

मुक्ति की बात ठीक ही थी. हम दोनों के संबंध नौकरी करते तक मधुर रहे. वह सच्ची थी. सच कहने का हौसला था उस में. कोई भी आवेदन करते समय आवेदन के कौलम में क्यों पूछा जाता है विवाहित, अविवाहित, तलाकशुदा, विधवा. किसी एक पर निशान लगाइए. नौकरी से इन सब बातों का क्या लेनादेना? नौकरी का फार्म भरवा रहे हैं या शादी का? मुझे मालूम था कि मुक्ति को कहीं अच्छी जगह नौकरी मिल चुकी होगी. और आवेदन के कौलम में उस ने डिवोर्सी भरा होगा बिना किसी झिझक के.

और सारे विभाग में उस के डिवोर्सी होने की चर्चा भी होने लगी होगी. लोग तरहतरह से उस के बारे में बातें करने लगे होंगे. लेकिन मुक्ति जैसी महिलाओं को इन बातों से कोई फर्क नहीं पड़ता. जब व्यक्ति सच बोलता है, तो डरता नहीं है और न ही किसी की परवाह करता है. मुक्ति भी उन्हीं में से एक है.

समाप्त

 
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जिस्म की गंध


तीन फुट ऊंचे, संगमरमर के फर्श पर, बहुत कम कपड़ों में, चीखते आर्केस्ट्रा के बीच वह लड़की हंस हंस कर नाच रही थी। बीच-बीच में कोई दस-बीस या पचास का नोट दिखाता था और लड़की उस ऊंचे, गोल फर्श से नीचे उतर लहराती हुई नोट पकड़ने के लिए लपक जाती थी।

कोई नोट उसकी वक्षरेखा के बीच में ठूंस देता था, कोई होंठों में दबा कर होंठों से ही लेने का आग्रह करता था और नोट बड़ा हो तो लड़की एक या दो सैकेंड के लिए गोद में भी बैठ जाती थी।

उत्तेजना वहाँ शर्म पर भारी थी और वीभत्स मुस्कराहटों के उस वनैले परिदृश्य में सहानुभूति या संवेदना का एक भी कतरा शेष नहीं बचा था। पैसे के दावानल में लड़की सूखे बांस सी जल रही थी।

उस जले बांस की गंध से कमरे का मौसम लगातार बोझिल और कसैला होता जा रहा था। मैं उठ खड़ा हुआ।

“नीचे बैठेंगे।” मैंने अल्टीमेटम सा दिया।
“क्यों?”
“मुझे लगता है, लड़की मेरी धमनियों में विलाप की तरह उतर रही है।”

‘शरीफ बोले तो? चोदू !” रतन ने कहकहा उछाला और हम सीढ़ियां उतरने लगे।

नीचे वाले हॉल का एक अंधेरा कोना हमने तेजी से थाम लिया, जहां से अभी अभी कोई उठा था- दिन भर की थकान, चिढ़, नफरत और क्रोध को मेज पर छोड़कर, घर जाने के लिए।

मुझे घर याद आ गया। घर यानी एक सस्ते गैस्ट हाउस का दस बाई दस का वह उदास कमरा जहां मैं अपनी आक्रामक और तीखी रातों से दो-चार होता था।

मैं फिर बार में लौट आया। हमारी मेज पर जो लड़की शराब सर्व कर रही थी, वह खासी आकर्षक थी। इस अंधेरे कोने में भी उसकी सांवली दमक कौंध कौंध जाती थी।डीएसपी के दो लार्ज हमारी मेज पर रख कर, उनमें सोडा डाल वह मुस्कराई,”खाने को?”

“बॉइल्ड एग !” रतन ने उसके उभारों की तरफ इशारा किया।

“धत्त।” वह शरमा गई और काउंटर की तरफ चली गई।

“धांसू है न?” रतन ने अपनी मुट्ठी मेरी पीठ पर मार दी।

“हां ! चेहरे में कशिश है।” मैं एक बड़ा सिप लेने के बाद सिगरेट सुलगा रहा था।

“सिर्फ चेहरे में?” रतन खिलखिला दिया।

मुझे ताज्जुब हुआ। हर समय खिलखिलाना इसका स्वभाव है या इसके भीतरी दुख बहुत नुकीले हो चुके हैं? मैंने फिर एक बड़ा सिप लिया और बगल वाली मेज को देखने लगा जहां एक खूबसूरत सा लड़का गिलास हाथ में थामे अपने भीतर उतर गया था।

किसी और मेज पर शराब सर्व करती एक लड़की बीच बीच में उसे थपथपा देती थी और वह चौंक कर अपने भीतर से निकल आता था। लड़की की थपथपाहट में जो अवसाद ग्रस्त आत्मीयता थी उसे महसूस कर लगता था कि लड़का ग्राहक नहीं है। इस लड़के में जीवन में कोई पक्का सा, गाढ़ा सा दुख है। मैंने सोचा।

“इस बार में कई फिल्मों की शूटिंग हो चुकी है।” रतन के भीतर सोया गाइड जागने लगा,”फाइट सीन ऊपर होते हैं, सैड सीन नीचे।”

“हम दुखी दृश्य के हिस्से हैं?” मैंने पूछा और रतन फिर खिलखिलाने लगा।

शराब खत्म होते ही लड़की फिर आ गई।

“रिपीट।” रतन ने कहा, “बॉयल्ड एग का क्या हुआ?”

“धत्त।” लड़की फिर इठलाई और चली गई।

उसके बाद मैं ध्वस्त हो गया। मैंने कश लिया और लड़की का इंतजार करने लगा।

लड़की फिर आई। वह दो लार्ज पैग लाई थी। बॉयल्ड एग उसके पीछे-पीछे एक पुरुष वेटर दे गया।
अंडों पर नमक छिड़कते समय वह मुस्करा रही थी। सहसा मुझसे उसकी आँख मिली।
“अंडे खाओगी?” मैंने पूछा।
मैंने ऐसा क्यों पूछा होगा? मैंने सोचा। मैं भीतर से किसी किस्म के अश्लील उत्साह से भरा हुआ नहीं था। तो फिर?
तभी लड़की ने अपनी गर्दन हां में हिलाई, मेरे भीतर एक गुमनाम, अजाना सा सुख तैर गया।
“ले लो।” मैंने कहा।

उसने एक नजर काउंटर की तरफ देखा फिर चुपके से एक साथ दो टुकड़े उठाकर मुँह में डाल लिए। अंडे चबा कर वह बोली, “यहाँ का चिली चिकन बहुत टेस्टी है, मंगवाऊ?”

“मंगवा लो।” जवाब रतन ने दिया, “बहुत अच्छी हिंदी बोलती हो ! यूपी की हो?”

लड़की ने जवाब नहीं दिया। तेजी से लौट गई। मुझे लगा, रतन ने शायद उसके किसी रहस्य पर उंगली रख दी है। चिली चिकन के पीछे पीछे वह फिर आई। इस बार अपने कपड़ों की किसी तह में छिपा कर वह एक कांच का गिलास भी लाई थी।

“थोड़ी सी दो न?” उसने मेरी आंखों में देखते हुए बड़े अधिकार और मान भरे स्वर में कहा।

उसके शब्दों की आंच में मेरा मन तपने लगा। मुझे लगा, मैं इस लड़की के तमाम रहस्यों को पा लूंगा। मैंने काउंटर की तरफ देखा कि कोई देख तो नहीं रहा। दरअसल उस वक्त मैं लड़की को तमाम तरह की आपदाओं से बचाने की इच्छा से भर उठा था। अपनी सारी शराब उसके गिलास में डाल कर मैं बोला, “मेरे लिए एक और लाना।”

एक सांस में पूरी शराब गटक कर और चिकन का एक टुकड़ा चबा कर वह मेरे लिए शराब लेने चली गई। उसका खाली गिलास मेज पर रह गया। मैं चोरों की तरह, गिलास पर छूटे रह गए उसके होंठ अपने रूमाल से उठाने लगा।

“भावुक हो रहे हो।” रतन ने टोका।

मैंने चौंक कर देखा, वह गंभीर था।
हमारे दो लार्ज खत्म करने तक, हमारे खाते में वह भी दो लार्ज खत्म कर चुकी थी।
मैंने “रिपीट !” कहा तो वह बोली,”मैं अब नहीं लूंगी। आप तो चले जाएंगे। मुझे अभी नौकरी करनी है।”

मेरा नशा उतर गया। धीमे शब्दों में उच्चारी गई उसकी चीख बार के उस नीम अंधेरे में कराह की तरह कांप रही थी।

“तुम्हारा पति नहीं है?” मैंने नकारत्मक सवाल से शुरूआत की, शायद इसलिए कि वह कुंआरी लड़की का जिस्म नहीं था, न उसकी महक ही कुंवारी थी।

“मर गया।” वह संक्षिप्त हो गई- कटु भी। मानो पति का मर जाना किसी विश्वासघात सा हो।

“इस धंधे में क्यों आ गई?” मेरे मुंह से निकल पड़ा। हालांकि यह पूछते ही मैं समझ गया कि मुझसे एक नंगी और अपमानजनक शुरूआत हो चुकी है।

“क्या करती मैं?” वह क्रोधित होने के बजाय रूआंसी हो गई,”शुरू में बर्तन मांजे थे मैंने, कपड़े भी धोए थे अपने मकान मालिक के यहाँ। देखो, मेरे हाथ देखो।” उसने अपनी दोनों हथेलियाँ मेरी हथलियों पर रगड़ दीं। उसकी हथेलियां खुरदुरी थीं-कटी फटी।

“इन हथेलियों का गम नहीं था मुझे जब आदमी ही नहीं रहा तो…” वह अपने अतीत के अंधेरे में खड़ी खुल रही थी,”बर्तन मांज कर जीवन काट लेती मैं लेकिन वहाँ भी तो…” उसने अपने होंठ काट लिए।

उसे याद आ गया था कि वह “नौकरी” पर है और रोने के लिए नहीं, हंसने के लिए रखी गई है।

“और पीने का?…” वह पेशेवर हो गई, कठोर भी।

“मैं तुम्हारे हाथ चूम सकता हूं?” मैंने पूछा।

“हुंह.. !” लड़की ने इतनी तीखी उपेक्षा के साथ कहा कि मेरी भावुकता चटख गई। लगा कि एक लार्ज और पीना चाहिए।

अपमान का दंश और शराब की इच्छा लिए, लेकिन मैं उठ खड़ा हुआ और रतन का हाथ थाम बाहर चला आया।

पीछे, अंधेरे कोने वाली मेज पर, चिली चिकन की खाली प्लेट के नीचे सौ-सौ के तीन नोट देर तक फड़फड़ाते रहे- उस लड़की की तरह।

बाहर आकर गाड़ी के भीतर घुसने पर मैंने पाया- उस लड़की की गंध भी मेरे साथ चली आई है।


“तेल भरवा लें !” कह कर रतन ने अपनी कार जुहू बीच जाने वाली सड़क के किनारे बने पेट्रोल पंप पर रोक दी और दरवाजा खोल कर बाहर उतर गया।

शहर में अभी-अभी दाखिल हुए किसी अजनबी के कौतुहल की तरह मेरी नजरें सड़क पर थी कि उन नजरों में एक टैक्सी उभर आई। टैक्सी का पिछला दरवाजा खुला और वह लड़की बाहर निकली। उसने बिल चुकाया और पर्स बंद किया। टैक्सी आगे बढ़ गई। लड़की पीछे रह गई।

यह लड़की है? विस्मय मेरी आँखों से कोहरे सा टपकने लगा।

मैं कार से बाहर आ गया।

कोहरा आसमान से भी झर रहा था। हमेशा की तरह निःशब्द और गतिहीन। कार की छत बता रही थी कि कोहरा गिरने लगा है।

मैंने घड़ी देखी। रात के दस से ज्यादा बज रहे थे।

रात के इस पहर में मैं कोहरे में चुपचाप भीगती लड़की को देखने लगा। घुटनों से बहुत बहुत ऊपर रह गया स्कर्ट और गले से बहुत बहुत नीचे चला आया सफेद टॉप पहने वह लड़की उसे गीले अंधेरे में चारों तरफ दूधिया रौशनी की तरह चमक रही थी। अपनी सुडौल, चिकनी और आकर्षक टांगों को वह जिस लयात्मक अंदाज में एक दूसरे से छुआ रही थी उसे देख कोई भी फिसल पड़ने को आतुर हो सकता था।

जैसे कि मैं।

लेकिन ठीक उसी क्षण, जब मैं लड़की की तरफ एक अजाने सम्मोहन सा खिंचने को था, रतन गाड़ी में आ बैठा। न सिर्फ आ बैठा बल्कि उसने गाड़ी भी स्टार्ट कर दी।

मैं चुपचाप रतन के बगल में आ बैठा और तंद्रिल आवाज में बोला,”वो लड़की देखी?” वो लड़की मेरी आँखों में अश्लील वासना की तरह तैर रही थी।

“लिफ्ट चाहती है !” रतन ने लापरवाही से कहा और गाड़ी बैक करने लगा।

“पर यह अभी अभी टैक्सी से उतरी है।” मैंने प्रतिवाद किया।

“लिफ्ट के ही लिए तो !” रतन ने किसी अनुभवी गाइड की तरह किसी ऐतिहासिक इमारत के महत्वपूर्ण लगते तथ्य के मामूलीपन को उद्घाटित करने वाले अंदाज में बताया और गाड़ी सड़क पर ले आया।

“अरे तो उसे लिफ्ट दे दो न यार !” मैंने चिरौरी सी की।

जुहू बीच जाने वाली सड़क पर रतन ने अपनी लाल रंग की कार सर्र से आगे बढ़ा दी और लड़की के बगल से निकल गया। मेरी आंखों के हिस्से में लड़की के उड़ते हुए बाल आए। मैंने पीछे मुड़ कर देखा-लड़की जल्दी में नहीं थी और किसी-किसी कार को देख लिफ्ट के लिए अपना हाथ लहरा देती थी।

“अपन लिफ्ट दे देते तो… !” मेरे शब्द अफसोस की तरह उभर रहे थे।

“माई डियर! रात के साढ़े दस बजे इस सुनसान सड़क पर, टैक्सी से उतर कर यह जो हसीन परी लिफ्ट मांगने खड़ी है न, यह अपुन को खलास भी करने को सकता। क्या?” रतन मवालियों की तरह मुस्कराया।

अपने पसंदीदा पॉइंट पर पहुंच कर रतन ने गाड़ी रोकी।

दुकानें इस तरह उजाड़ थीं, जैसे लुट गई हों। तट निर्जन था। समुद्र वापस जा रहा था।

“दो गिलास मिलेंगे?” रतन ने एक दुकानदार से पूछा।

“नहीं साब, अब्बी सख्ती है इधर, पर ठंडा चलेगा। दूर…समंदर में जा के पीने का।” दुकानदार ने रटा-रटाया सा जवाब दिया। उस जवाब में लेकिन एक टूटता सा दुख और बहुत सी चिढ़ भी शामिल थी।

“क्या हुआ?” रतन चकित रह गया,”पहले तो बहुत रौनक होती थी इधर। बेवड़े कहां चले गए?”

“पुलिस रेड मारता अब्बी। धंदा खराब कर दिया साला लोक।” दुकानदार ने सूचना दी और दुकान के पट बंद करने लगा। बाकी दुकानें भी बुझ रही थीं।

“कमाल है?” रतन बुदबुदाया, “अभी छह महीने पहले तक शहर के बुद्धिजीवी यहीं बैठे रहते थे। वो, उस जगह। वहां एक दुकान थी। चलो।” रतन मुड़ गया, “पाम ग्रोव वाले तट पर चलते हैं।”

हम फिर गाड़ी में बैठ गए। तय हुआ था कि आज देर रात तक मस्ती मारेंगे, अगले दिन इतवार था- दोनों का अवकाश।

फिर, हम करीब महीने भर बाद मिल रहे थे अपनी-अपनी व्यस्तताओं से छूट कर। चाहते थे कि अपनी-अपनी बदहवासी और बेचैनी को समुद्र में डुबो दिया जाए आज की रात। समुद्र किनारे शराब पीने का कार्यक्रम इसीलिए बनाया था।

गाड़ी के रुकते ही दो-चार लड़के मंडराने लगे। रतन ने एक को बुलाया,”गिलास मिलेगा?”

“और?” लड़का व्यवसाय पर था।

‘दो सोडे, चार अंडे की भुज्जी, एक विल्स का पैकेट।” रतन ने आदेश जारी कर दिया।

थोड़ी ही दूरी पर पुलिस चौकी थी, एक भय की तरह ! लेकिन कार की भव्यता उस भय के ऊपर थी।

सारा सामान आ गया था। हमने अपना डीएसपी का अद्धा खोल लिया था।

दूर तक कई कारें एक दूसरे से सम्मानजनक दूरी बनाए खड़ी थीं- मयखानों की शक्ल में। किसी किसी कार की पिछली सीट पर कोई नवयौवना अलमस्त सी पड़ी थी- प्रतीक्षा

सड़क पर भी कितना निजी है जीवन। मैं सोच रहा था और देख रहा था। देख रहा था और शहर के प्यार में डूब रहा था।

आइ लव मुम्बेई ! मैं बुदबुदाया।

किसी दुआ को दोहराने की तरह और सिगरेट सुलगाने लगा।

हवा में ठंडक बढ़ गई

रतन को एक फिलीस्तीनी कहानी याद आ गई थी, जिसका अधेड़ नायक अपने युवा साथी से कहता है- तुम अभी कमसिन हो याकूब, लेकिन तुम बूढ़े लोगों से सुनोगे कि सब औरतें एक जैसी होती हैं, कि आखिरकार उनमें कोई फर्क नहीं होता। इस बात को मत सुनना क्योंकि यह झूठ है। हरेक औरत का अपना स्वाद और अपनी खुशबू होती है।

“पर यह सच नहीं है यार।” रतन कह रहा था,”इस गाड़ी की पिछली सीट पर कई औरतें लेटी हैं, लेकिन जब वे रुपयों को पर्स में ठूंसती हुई, हंसकर निकलती हैं, तो एक ही जैसी गंध छोड़ जाती हैं। बीवी की गंध हो सकता है, कुछ अलग होती हो। क्या खयाल है तुम्हारा?”

मुझे अनुभव नहीं था तो चुप रहा। बीवी के नाम से मेरी स्मृति में अचानक अपनी पत्नी कौंध गई, जो एक छोटे शहर में अपने मायके में छूट गई थी- इस इंतजार में कि एक दिन मुझे यहाँ रहने के लिए ढंग का घर मिल जाएगा और तब वह भी यहाँ चली आएगी। अपना यह दुख याद आते ही शहर के प्रति मेरा प्यार क्रमशः बुझने लगा।

हमारा डीएस०पी का अद्धा खत्म हो गया तो हमें समुद्र की याद आई। गाड़ी बंद कर हमने पैसे चुकाए तो सर्विस करने वाला छोकरा बायीं आंख दबा कर बोला,”माल मंगता है?”

“नहीं!” रतन ने इन्कार कर दिया और हम समुद्र की तरफ बढ़ने लगे, जो पीछे हट रहा था। लड़का अभी तक चिपका हुआ था।

“छोकरी जोरदार है सेठ ! दोनों का खाली सौ रुपए।”

“नई बोला तो?” रतन ने छोकरे को डपट दिया।

तट निर्जन हो चला था। परिवार अपने अपने ठिकानों पर लौट गए थे। दूर…कोई अकेला बैठा दुख सा जाग रहा था।

“जुहू भी उजड़ गया स्साला।” रतन ने हवा में गाली उछाली और हल्का होने के लिए दीवार की तरफ चला गया- निपट अंधकार में।

तभी वह औरत सामने आ गई। बददुआ की तरह।

“लेटना मांगता है?” वह पूछ रही थी।

एक क्वार्टर शराब मेरे जिस्म में जा चुकी थी। फिर भी मुझे झुरझुरी सी चढ़ गई। वह औरत मेरी मां की उम्र की थी, पूरी नहीं तो करीब-करीब।

रात के ग्यारह बजे, समुद्र की गवाही में, उस औरत के सामने मैंने शर्म की तरह छुपने की कोशिश की लेकिन तुरंत ही धर लिया गया।मेरी शर्म को औरत अपनी उपेक्षा समझ आहत हो गई थी। झटके से मेरा हाथ पकड़ अपने वक्ष पर रखते हुए वह फुसफुसाई, ”एकदम कड़क है। खाली दस रुपया देना। क्या? अपुन को खाना खाने का।”

“वो…उधर मेरा दोस्त है।” मैं हकलाने लगा।
“वांदा नईं। दोनों ईच चलेगा।”

“शटअप।” सहसा मैं चीखा और अपना हाथ छुड़ा कर तेजी से भागा-कार की तरफ। कार की बाडी से लग कर मैं हांफने लगा रोशनी में। पीछे, समुद्री अंधेरे में वह औरत अकेली छूट गई थी-हतप्रभ। शायद आहत भी।

औरत की गंध मेरे पीछे-पीछे आई थी। मैंने अपनी हथेली को नाक के पास लाकर सूंघा- उस औरत की गंध हथेली में बस गई थी।
“क्या हुआ?” रतन आ गया था।
“कुछ नहीं।” मैंने थका-थका सा जवाब दिया, “मुझे घर ले चलो। आई…आई हेट दिस सिटी। कितनी गरीबी है यहाँ।”
“चलो, कहीं शराब पीते हैं।” रतन मुस्कराने लगा था।

समाप्त.....
 
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Inamorato

" क्या मेरी बात टैडी से हो रही हैं?? " फोन के रिंगर से टूटी नींद में काॅल का आंसर करते हुए तुहिन को दूसरी तरफ से आवाज सुनाई दी.

" जी... "

" सर मैं #@##@ ट्राॅमा सेंटर से बोल रही हूं एक एक्सीडेंट के केस में हमारे यहां मिस्टर अनुज टोकस को एड़मिट किया गया है, जिन्होंने हमें आपका यह नंब..."

इतना सुनकर टैडी के पैर जमीन पर आ गये और बदन फुर्ती से कपडों को टटोलने लगा, " प्लीज उनको बेस्ट ट्रीटमेंट देना मैम, और रिक्वेश्ट है मेरे आने तक वो इस हाॅस्पिटल से कहीं बाहर नहीं जाएंगे ", अपने डैड का हालचाल पूछकर तुहिन ने उससे यह फेवर मांगा.. क्यूंकि उसकी घरवाली और ससुराल वालों परेशान होकर उसका डैड घर छोड़कर चला गया था.

" हम प्रोफेशनल हैं मिस्टर टोकस... "

ईयरफोन में गूंजे इस जवाब ने उसके दिमाग में घूमते ख्यालों की घुड़दौड़ पर फुल स्टाॅप लगा कर कुछ देर के लिए आराम दे‌ दिया, और हाॅस्पिटल में अनुज को‌ पूर्ण स्वस्थ और उनके चिर परिचित अंदाज में मुस्कुराते हुए पाया तो उसकी आंखों से खुशी के आंसू निकलने लगे. जाने-अनजाने में किये हरेक अपराध के लिए उसने अपने‌ पिता से माफी मांगी और उनसे घर लौटने‌ का‌ निवेदन करने‌ लगा, " मुझे बस केस की फिक्र है डैड, नहीं तो अपना पेट भरने के लिए मैं अपने गोदाम में बैग्स भी उठा लेता "

" ठीक है ठीक है.. पागलपन बंद कर और इस बच्चे के लिए बिलिंग काउंटर पर अपनी माॅं के बैंक अकाउंट की डिटेल्स दे दे, पिछले डेढ़ साल में बहुत खयाल‌ रखा है इसने मेरा ",

फिर टैडी की नजर उस भाई पर गई जिसकी उम्र बमुश्किल 18-20 साल रही होगी. उसकी एक कलाई पर‌ पट्टी बंधी थी लेकिन मैडीकल चार्ट पर कटी हुई रेडियल आर्टरी के ट्रीटमेंट का विवरण लिखा था. माॅं से बात करने के लिए अपना फोन डैड को पकडा़कर वो उस भाई के पेरेंट्स से बात करने लगा. पता लगा मामला बेवफाई का है और उसके डैड उनके खेत लीज पर लेकर फार्मिंग कर रहे थे.

टैडी को बहुत अफसोस होता जब वो शगुन के साथ अपने रिश्ते के बारे में सोचता क्यूंकि उसी गलत फैसले के कारण उम्र के इस पडा़व पर, इज्जत बचाने की खातिर घर-परिवार और सफल व्यवसाय छोड़ कर उसके डैड हाड़-तोड़ मेहनत से पूर्ण यह काम कर रहे थे और प्रारंभिक अवस्था से अपनी हैशियत से बाहर प्रतिष्ठित संस्थानों से पढ़ने और जॉब करने के वाबजूद आजीविका के लिए उसे आज भी अपने डैड के संरक्षण की दरकार थी.

" तो अब घर चलें डैड ", अपने साथ लाए कैश से हाॅस्पिटल का बिल जमा करने के बाद टैडी ने अपने फादर को‌ उनका वायदा याद‌ दिलाया.

" जरूर, पर बताएगा तेरा घर है कहां?? देख तू जिस घर की बात कर रहा है उसका किराया तेरी माॅं देती है, बाकी अपनी जायदाद से बेदखल मैंने तुझे उस दिन कर दिया था जब‌ तूने हमारी मर्जी के खिलाफ अपनी शादी का फैसला लिया,‌ तो बता मैं कहां चलूं मैं तेरे साथ? "

अचानक अपनी बात से पलटकर अनुज ने उसे दुबारा उदास कर दिया, और सामने पडे़ अनुभव‌ के परिजनों का बुरा हाल देखकर टाॅबी की हिम्मत नहीं हुई मरने-मारने की धमकी देने की. हारकर वो उन्हें अपनी माॅम के संग रहने के लिए मनाने लगा, हालांकि इससे उसकी कोई मनोकामना सिद्ध होती ना दिख रही थी लेकिन बुढ़ापे में बाप को बेघर करने का कलंक जो उसके माथे पर लगा था, उसे मिटने से मानसिक तौर पर उसे कुछ राहत तो मिलती, " फाईन मेरा ना‌ सही पर आपको माॅम और बिट्टी के बारे में तो सोचना चाहिये, अगर आप ऐसे ही चले तो आइम श्योर वो भी मेरी तरह घुटघुट कर वक्त से पहले चली जाएगी "

इतना सुननेपर अनुज ने एक झन्नाटेदार थप्पड तुहिन के चेहरे पर रशीद किया, " तेरी इसी समझदारी ने‌ हमें बर्बाद किया है गधे.. सीधी और स्पष्ट बात‌ है टैडी तू अपनी जिंदगी के लिए फैसले ले और मुझे मेरे हाल पर छोड़ दे....."

भड़ककर अनुज के हाथ उठाने पर वहां मौजूद गांव वाले उनके बीच आ कर उन दोनों को समझाने लगे, लेकिन हर बार घूम फिर कर बात 'शगुन' पर अटक जाती, जो बचपन की दोस्ती को परिणयसूत्र में बदल कर अपनी कानून मंत्री समतुल्य माॅं, वकील बहन और पुलिस-अफसर समान पिता के आलीशान घर में रहकर अपनी मनमानी चला रही थी.

" बाप के ताने बच्चों का भविष्य संवारते‌ हैं बेटा पर तुम लोग प्यार में इतना बहक जाते हो कि बडे होने पर तुम्हें बचपन से मिला हमारा दुलार नहीं दिखता. बेटा मझधार में साथ छोड़ने वाले मौकापरस्त होते हैं, जीवन-साथी नहीं... "

यह समझ देने वाले उस लड़के के पिता 'स्वरूप' थे जिसका इलाज चल रहा था. हालांकि, उसकी स्टोरी टैडी की कहानी से बिल्कुल जुदा थी लेकिन पहली बार टैडी को यह अहसास जरूर हुआ कि नासमझी में बच्चों की नादानियॉं उन्हें पाल-पोश कर बडा़ करने वाले‌ पेरेंट्स का बुढा़पा कितना दर्दनांक बना देती हैं. आखिरकार अपने माथे पर‌ लगा कलंक मिटाने के लिए उसने अंतरिम मेंटेनेंस नहीं देने का वायदा अपने डैड से कर लिया. इससे उसे जेल तो जाना पड़ता पर उसे सुकून था माॅं-बाप को बेघर करने के लिए अब कम से कम उसकी अंतरात्मा उसे झिड़केगी नहीं.

उधर अनुज के घर पहुंचने की खबर सुनकर शगुन ने पुराने‌ पैंतरों इस्तेमाल कर अपनी बहन को तुहिन के सामने कर दिया.

" थोडी भी शर्म नहीं आई तुम्हें अपनी बीवी की दोस्त को डेट करते हुए?? "

टाॅबी को अपनी बात पूरी करने का मौका दिए बिना किचिन से निकलते हुए मेघना ने उन दोनों की काॅमन दोस्त के‌ साथ के फोटोग्राफ्स टाॅबी के हाथ में थमा दिए, जिनको देखने पर बिल्कुल‌ भी वैसा नहीं लगता, जैसा वो साबित करना चाहती थी. और फिर तीन दिन गैरकानूनी ढंग से पुलिसिया कस्टडी़ में रहने के बाद अदालत ने मारपीट के झूठे इल्जामों के लिए उसे जेल भेज दिया जहां उसका परिचय अनुभव‌ के मामा से‌ हुआ, जो दूसरों के लिए तो खूंखार थे मगर टैडी के लिए व्यवहारिक ज्ञान का चलती फिरती लाइब्रेरी.

उस दौरान अनुज टैडी से मिलने जेल या कोर्ट नहीं गया. वो शायद वो खुद को बचा रहा था या चाहता था सभ्य लोगों की पहुंच से दूर अपने बच्चे का यह व्यवहारिक ज्ञान-अर्जन, जो बेचारे तुहिन की समझ से बिल्कुल परे था. थैंकफुली, बुखार में तबियत बिगड़ने की खबर सुनकर उसकी माॅं के आंसुओं ने जब अनुज के पितृत्व को झिंझोडा़, तब उसके प्रयासों से उसे जेल से मुक्ति मिली. खैर, जेल का संकट अभी दूर नहीं हुआ था इसलिए शगुन का मंथली शगन और उसकी बहन की वकालत बंद करने के लिए अनुज ने उसे अपने दोस्त स्वरूप के पास खेती करने के बहाने भेज दिया.

शाम को अनुभव की कजिन जब टैडी को लेने आई तब उसे पता लगा यह वही लड़की थी जिसने ट्राॅमासेंटर से काॅल कर उसे उसके डैड से मिलवाया, और हाॅस्टल में वो उसकी बहन की रूममेट रही थी, " वैलकम बैक.. मैं मंदिरा राठी. यह रहा तुम्हारा नया फोन लेकिन ध्यान रहे इसमें डला नंबर मेरे नाम से रजिस्टर्ड है ", गाडी़ में बैठने पर टैडी के स्मार्टफोन के बदले मंदिरा ने उसे एक कीपैड़ फोन थमा दिया.

मगर जेल के भयानक अनुभव और बीमारी से टूटे तुहिन का दिमाग कहीं और था. इसी दिमागी रस्साकसी में रातभर नींद नहीं आई जबकि नई जगह का माहौल जेल और उसके घर से बहुत बेहतर था. शहर-देहात के शोरगुल से दूर लम्बे-चौडे खेतों की गोद में बने इस घर में अनुभव के डैड स्वरूप, मदर बाला, तायाजात बहन मंदिरा, उसके दो बडे़ भाई शरवन एंड किरशन (श्रवण-कृष्ण), श्रवण की बीवी नीता और दोनों का छोटा बच्चा रहते.

बोली अलग होने पर उसे उनकी आधी से ज्यादा बातें समझ नहीं आती मगर सूरज डूबने तक उसको खाली या पानी भरे खेत को जोतना, चारा काटना और फसल की सिंचाई करना काफी हद तक आ गया‌. फिर एक दिन अनुज के काॅल करने‌ पर अपना यह अनभुव उसके साथ साझा करने लगा जिससे तमककर अनुज ने उसे बुरी तरह सुना दिया, " तेरे इसी रूख से दिक्कत है मुझे. जानता हूं तू जिम्मेदार है मुझे निराश नहीं करेगा लेकिन अपनी लडा़ई‌ खुद लड़ना क्या तू मेरे मरने‌ के‌ बाद सीखेगा?? "

टैडी समझ रहा था उसके डैड उसको प्रोटेक्ट कर, गलत को‌ गलत साबित करने की वो लडा़ई लड़ रहा था जो असलियत में उसे लड़नी चाहिये थी. बहरहाल, थकान की वजह से नींद के झटके आने पर उसने अनुज को भरोसा दिलाया कि आगे से वो उसे शर्मिंदा नहीं करेगा और सुबह आंख खुलने पर ईष्ट के बाद उसके हाथों में दूसरी फोटो अनुज की थी.

" क्या बात है खुश लग रहे हो आज ", अनुभव के संग कमरे में दाखिल होते हुए मंदिरा ने टैडी से पूछा और फोटोफ्रेम के बारे अंदाजा लगाने लगी, " बचपन का प्या... ", मगर फ्रेम में अनुज को देख अपनी गलती सुधारने लगी, " माफ कर देना मुझे लगा.... जाने दो... वैसे, दोनों भाई कहां गये? जीरी की रोपाई नहीं होगी क्या आज?? "

" नहीं.. आज गवांडियों की बारी है और दोनों भाई ट्रैक्टर से खाद-दवाइयां लेने डैड की आढ़त पर गये हैं "

लेकिन तुहिन को हरियाणवी में लड़खडाते देखकर उन दोनों बहन भाई की हंसी छूट गई, " इट्स ओके टैडी, जरूरत नहीं है कुछ सीखने की. अंकल ने तुम्हें यहां मैंटली डिटाॅक्स करने के लिए भेजा है, और कुछ प्रोडक्टिव करना है तो बस जल्द से जल्द खुद को अपनी ट्राॅमैटिक लाइफ से बाहर निकलो "

मंदिरा की बात ने टैडी को पहले तो हैरान किया मगर अपने सादेपन पर वो फिर से परेशान होने लगा, " आई विश.. ऐसा बाप सबको मिले, लेकिन मेरे जैसी बेवकूफ औलाद भगवान किसी को ना दे... "

अनुभव को पानी लाने का बोलकर मंदिरा उस को समझाने लगी, " खुशनसीब हो तुम टैडी. मुझे देखो, मुझे तो अब मेरे पेरेंट्स के चेहरे भी याद नहीं... "

मंदिरा का दुख जानकर तुहिन का दर्द एक लम्हे में खत्म हो गया, फिर अनुभव के रिएक्ट करने‌ से पहले उसने मंदिरा को‌ पानी पिलाया और संत्वना देने‌ के चक्कर में गलती से गलत जगह सहलाने लगा जिससे मंदिरा एकदम असहज‌ हो‌ गई

" हाउ... Ever.. पापा (असल चाचा), मम्मी (माॅसी) भाइयों ने मुझे उनकी कमी कभी महसूस नहीं होने दी.. इसलिए जो हुआ उसके लिए अफसोस मत करना क्यूंकि अच्छाई हमेशा मल्टीप्लाइड होकर लौटती है "

हाउ डेयर को उसे फिर हाउएवर में बदलना पडा़ क्यूंकि टैडी की नजरों में वैसी कमीनगी और मंशा में उस तरह की गंदगी की झलक दिखने को नहीं मिली, और दूसरी तरफ मंदिरा के सुलझे अंदाज और पॉजिटिव रुख ने टैडी को अपना कायल बना दिया. आपसी मोबाइल नंबर सेव कर तीनों ने एक साथ खाना खाया और अनुभव के हॉस्टल/कॉलिज जाने के बाद वो टैडी की अच्छी दोस्त, ट्रांसलेटर और खबरी बन गई.

एक दिन तबियत खराब होने पर मंदिरा ने उसे उसके दफ्तर छोड़ने के लिए बोला और फिक्रमंद टैडी के ज्यादा पूछने पर इरीटेट होकर उसे असल वजह बतानी पडी़, " I'm on the rag.. stupid "

हालांकि टैडी को 'On the rag' का मतलब नहीं मालूम था लेकिन मंदिरा की इरीटेशन और फिर तकलीफ नोटिस करने पर असल बात‌ समझ‌ में आ गई. परवाह तो वो उसकी पहले से करता था मगर अब और सजग हो गया, " मैं रूक रहा हूं आज तुम्हारे साथ एंड जब‌ तक ठीक ना हो तब तक छुट्टी ले लेना प्लीज "

" हर महीने इतनी छुट्टियां नहीं ले सकती यार.... वैसे‌ भी इस महीने रितु (मामा की बेटी) की सगाई है एंड तुम वहां बोर हो जाओगे और शाम तक तो मैं ठीक हो जाउंगी... "

" मैं फार्मा सेक्टर से हूं डियरी... तुम्हारा दर्द नहीं बांट‌ सकता पर मैं जानता हूं यह कैसा होता है.. ", बांये हाथ से मंदिरा के दायें हाथ‌ की उंगलियां सहलाते हुए टैडी उसे अपनी कहानी सुनाने लगा, " ज्यादातर लोग भगवान की दी इस सलाहियत का गलत फायदा उठाते हैं मंदिरा... और बदकिस्मती से मैंने ऐसी लड़की के साथ ही अपनी जोडी़ बनाई... तुम अच्छी हो और मुझे यकीन है दर्द सहने की यह क्षमता तुम्हें आत्मीयता से पूर्ण आदर्श माॅं बनाएगी "

हालांकि टैडी की बहन की दोस्त होने के नाते मंदिरा उसकी जिंदगी के बारे में पहले से जानती थी लेकिन अवसाद में दबे टैडी का दुख बांटने के लिए वो अपनी खीझ़ भूल गई, " और तुम्हें एक आदर्श बाप.. वैसे पहली बार इतना खुल रहे हो तो‌ बताओगे क्या हुआ था तुम्हारे और शगुन के बीच?? "

" एक्चुअली सच बुरा लग गया था उसे‌, क्यूंकि पंद्रह सप्ताह के बच्चे का‌ अबाॅर्शन‌ कराने‌ के लिए मैंने‌ उसे Filicide बोल दिया "

टैडी ने अभी जो सच बताया मंदिरा उसे जानने वाली तीसरी इंसान थी, " शगुन अनुभव के काॅलिज में फैकल्टी है और वो‌ बता रहा था उसका अफेयर... "

" वो इरिलेवेंट है लेकिन अबार्शन वाली बात बिट्टी या डैड से शेयर मत करना प्लीज. वो इसे कोर्ट में इस्तेमाल करेंगे, एंड क्लीनिक मेघना के क्लायंट का है तो इसका एवीडेंस मिलेगा नहीं ", मिन्नतें करते‌ हुए तुहिन ने अपनी दूसरी परेशानी उसे बताई क्यूंकि शगुन से शदीद नफरत में अनुज कुछ भी कर गुजरता.

" समझ सकती हूं मगर इस राज को राज रखने के लिए तुम्हें मुझे चाॅकलेट आइईक्रीम खिलानी होगी, कुज‌ इट‌ हैल्प्... "

मंदिरा के‌ एक्सप्लेन करने‌ से पहले‌ टैडी मान गया, " पक्का, तुम्हें फिश-फूड भी खिला सकता हूं क्यूंकि वैरियस रिसर्च के हिसाब से यह हैल्प करता हैं एंड शगुन भी...."

जैसे ही फिश-फूड का नाम मंदिरा ने‌ सुना उसके सुहावने से चेहरे के हाव-भाव बिगड़ गये, " छी... शगुन की तरह हत्यारी नहीं हूं मैं ईडियट... "

फिर ऐसे दोनों हल्की-फुल्की मजा़क करते हुए शहर आ गये और अपने ऑफिस (हाॅस्पिटल) जाने से पहले टाॅबी के खाते से मंदिरा ने पसंदीदा आइसक्रीम खाई और कुछ पैसे पकडा़ कर जबरदस्ती उसे मूवी देखने और अपनी कजिन की शादी में जाने के लिए शाॅपिंग करने के लिए भेज दिया. वहीं ड्राइव करते हुए टैडी का दिमाग मंदिरा के खयालों से ऑक्यूपाइड था, जिसकी वजह‌ से आगे जाने पर उसकी गाडी़ की किसी वाहन से टकरा गई. हालांकि इसमें किसी को कोई चोट नहीं पहुंची लेकिन मंदिरा की कार महीनों के लिए सर्विस स्टेशन जरूर चली गई.

थैंकफुली, छुट्टी होने से पहले तुहिन की बहन बिट्टी ने अपनी गाडी़ भेज दी थी मगर मंदिरा उस पर दूसरे रीजन्स की वजह से भड़क उठी. अगले दिन ठीक होने के बावजूद वो‌ टैडी को शहर ले गई, पूरा दिन अपने सामने रखा और ऑफिस छूटने के बाद उसे शहर के सबसे अच्छे टेलर के सामने उसे खडा़ कर दिया, " सर, मीलार्ड के लिए कुछ‌ अच्छा सा दिखाएंगें? "

मंदिरा को दुबारा चहचहाते देख तुहिन का उतरा हुआ चेहरा भी खिल उठा, क्यूंकि अब उसे उसकी कंपनी अच्छी लगने लगी थी. हालांकि अच्छे कपड़ों से उसका वार्डराॅब पूरा भरा हुआ था, वाबजूद इसके उसकी मंशा मंदिरा को अफेंड करने की नहीं हुई, " प्राॅमिस करो इसका हिसाब डैड से नहीं लोगी क्यूंकि मेरा जब टाइम आएगा तब मैं तुम्हें यह सब सूद समेत वापस करूंगा ", लौटते हुए उसने मंदिरा से आग्रह किया.

" पर मैं तो आज ही इसका डबल वसूलने वाली थी "

मंदिरा के उकसाने पर टैडी उसके जाल में फंस गया, " मुझे तो तुम पैसों की भूखी नहीं लगती. एनीवे अगर और जरूरत पडे़ तो बता देना, बहन की दोस्त की हैल्प कर मुझे खुशी ही होगी "

टैडी की हिमाकत पर एक‌बारगी मंदिरा का मन हुआ उसका जबडा़ तोड़ दे मगर फिर वो ना जाने क्या सोच कर शांत हो गई. उधर एक्जोटिक फार्मिंग के लिए तुहिन वैंचुरी इंटीग्रेटिड स्प्रिंकलर सिस्टम लगाना चाहता था लेकिन किसी को उसके प्रोजेक्ट रास नहीं आया. क्यूंकि फसलों में बालियां निकलने लगी थीं और पाइपलाइन डालने के लिए होने वाली खुदाई से राठी परिवार की फसल भी खराब होती.

भाषा के बैरियर की वजह से स्वरूप और श्रवण ने‌ टैडी को समझाने की जिम्मेदारी मंदिरा को सौंपी, लेकिन अपनी एक वैलिड दलील से टैडी ने उसे मना लिया, " तुम एक्शे्पशनल हो, अन्नू (अनुभव) को भी नौकरी मिल जाएगी लेकिन सोच कर देखो मंदिरा क्या इस तरह फार्मिंग करने‌ से श्रवण-कृष्ण भाई अपने बच्चों को तुम्हारी जैसी लाइफ दे‌‌ पायेंगे?? "

" ठीक है लेकिन तुम्हें इससे क्या मिलेगा?? "

मंदिरा के यह पूछने पर टाॅबी की कांफिडेंट जुबान अचानक से लड़खडा गई,‌ " देखो काॅर्पोरेट में सफलता का एक मंत्र है, काम मालिक का करो लेकिन वफादरी अपने रिपोर्टिंग पर्सन के लिए होनी चाहिये. लिहाजा, डैड बेशक मेरे मालिक हैं पर मेरी वफा उनसे ज्यादा तुम लोगों में रहेगी, एंड सब ठीक रहा तब आमदनी तो मेरी भी तो बढे़गी "

इस आधे सच से टैडी ने मंदिरा को राजी तो कर लिया मगर खर्चा नहीं मिलने पर शगुन ने कोर्ट में उसकी जमानत निरस्त करने‌ की अर्जी डाल दी. इस बार तो मंदिरा के मामा भी जेल से बाहर थे फिर उनकी बेटी की सगाई वाली शाम हुई तगडी़ बारिश में डूबी फसल के नुकसान, और पब्लिकली कृष्ण के थप्पड़ मारने से निराश तुहिन की हालत वापस धोबी के कुत्ते जैसी हो गई.

" अच्छी लगती हो तुम साडी़ में... ", मंदिरा की खूबसूरती से अपना दुख हल्का करते‌ हुए टैडी ने उसके लिए अपनी कुर्सी छोड़ दी.

लेकिन तुहिन के‌ करीब आते ही मंदिरा उससे लिपटती चली‌ गई, " पापा और भाई की नाराजगी तुमसे नहीं हैं टैडी, वो सिर्फ बारिश की वजह से फ्रस्ट्रेटिड हैं, और मुझे पूरा यकीन है हमारी फसल बिल्कुल नहीं गिरेगी "

मंदिरा के इस कदम से सहमे हुए तुहिन की पुतलियां हैरत से फैल गई मगर उसके नाजुक-नरम बदन का अहसास पाकर कुछ देर के‌ लिए लज्जत में खो गया. मंदिरा अभी भी उसको दुलारते हुए‌ हिम्मत बढा़ रही थी, लेकिन पानी में सीढि़यों पर किसी के चढ़ने की आवाज सुन उसने खुद को उस आनंद से महरूम कर दिया, " तुम्हें लगता है मेरी जिंदगी में सिर्फ एक ही परेशानी है... "

इतने में अनुभव अंदर दाखिल होते हुए ने बताया वो स्वरूप और श्रवण-कृष्ण को लेकर घर जा रहा है क्यूंकि नशे की हालत, खराब मौसम और घनघोर अंधेरे के वाबजूद वो तीनों गांव जाने‌ की रट लगाए हुए थे.‌ दूसरा ऑप्शन‌ बहुत हैक्टिक था इसलिए सभी एक साथ वहां से निकल आए. फार्महाउस लौटने पर अपनी फसल बिछी देखकर भाईयों का नशा उतर‌ गया, मगर इस बार तुहिन से उनकी कोई बहस नहीं हुई.

सुबह बैग लगाकर टैडी अपनी बहन के आने का इंतजार कर‌ था मगर उसके आने से पहले श्रवण-कृष्ण की जोडी़ उस पर चढ़ गई, " नफा-नुकसान तो चलता रहता है टैडी.. और क्या पता हमारी यह भरपाई सब्जी की अगली फसल पहले लान (प्लकिंग) में ही कर दे? "

बेचारा तुहिन उन्हें कैसे समझाए असल मसला फसल खराब होने का नहीं मंदिरा के लिए उसके दिल में उमड़ने वाले प्यार का है. खैर, दुखी मन से उसने सबसे विदा ली और जीजा के साथ आ गया. नेक्सट हियरिंग में जज के सामने उसने जेल जाने की दरख्वाश्त‌ कर दी क्यूंकि झूठे आरोपों के खिलाफ खुद को बेकसूर साबित करने से ज्यादा मुनासिब उसे बाहर की बजाय भीतर‌ रहना‌ लगा.

हारे हुए टैडी के इस हथियार ने शगुन के अरमानों को झटके में हलाल कर दिया और रही-सही कसर डाॅमस्टिक वायलेंस मामले में सीसीटीवी फुटेज और पडौसियों की गवाही ने पूरी कर दी. हालांकि जंग अभी खत्म नहीं हुई थी लेकिन उसकी ईमानदारी और जुझारुपन ने लोअर कोर्ट में दोनों बहनों का दबदबा खत्म जरूर कर दिया.

जेल का खौफ दूर होने‌ पर उसके डैड ने जब उसे वापस गांव जाने के लिए बोला तो तुहिन ने अपने दिल की बात उसे सच सच बता दी, " मुझे आपको फिर से शर्मिंदा नहीं कराना डैड. रितु के डिसटेंस ब्रदर-इन-लाॅ संग उसकी शादी की बात चल रही है और क्या पता अगले डेढ़-दो साल में मुझे कोई दूसरी मंदिरा दिख जाए... "

" तू एकदम सही राह पर है मेरे बच्चे. ठीक है.. मैं बात करता हूं स्वरूप से और मंदिरा भ... "

बेटे की परिपक्वता से खुश होकर अनुज ने अपना बडा़ दिल दिखाना चाहा लेकिन तुहिन की मनुहार के आगे वो बेबस हो गया, "‌ आप किसी को कुछ नहीं बताओगे डैड, एंड अनुभव को उस काॅलिज से निकाल कर मुझे यह किस्सा खत्म करने दो प्लीज "

मिड-सैशन में काॅलिज बदलने से अन्नू को हाॅस्टल नहीं रहना था लिहाजा उसकी साथ रहने की जिद, सलामती एंड पढा़ई की खातिर टैडी को मजबूरन झुकना पडा़ जिसकी वजह से मंदिरा का चैप्टर पूरी तरह बंद नहीं हुआ. सिंपिल हाय-हैलो और उसका हालचाल वो अक्सर उससे पूछती रहती लेकिन एक शाम उसके भेजे एक लिफाफे ने कुछ वक्त के लिए उसे‌ पत्थर बना दिया क्यूंकि उसके अंदर उसके अविकसित बच्चे की तस्वीर (शगुन की सोनोग्राफी रिपोर्ट) थी.

वो रेडियोलाॅजिस्ट कोर्ट में गवाही देने के लिए तैयार था मगर अपने डैड के आक्रामक व्यवहार की खातिर तुहिन ने उसको मना कर दिया क्यूंकि पहले बेटा और अब अपने ग्रांडचाइल्ड से जुदा करने के लिए अनुज उसे जिंदा दफन कर देता. खैर, मंदिरा से पहले किरशन की शादी फिक्स हो गई थी लिहाजा उसे एडवांस में इनवाइट कर वो अपनी खरीददारी चंडीगढ़ से कराने के लिए उससे इंसिस्ट करने‌ लगी, " तुम्हारी फसल के 1.6 लाख रुपये मेरे वाॅलेट में उछल रहे हैं, अगर सूट का हिसाब नहीं किया तो मैं यह सारा पैसा उडा़ दूंगी "

वो उससे जितना दूर जाने की कोशिश करता मंदिरा की यादें उसकी कोशिशों पर पानी फेर देती. दिनभर ऑफिस में काम और शाम को बदनतोड़ वर्कआउट करने के वाबजूद नींद ना आने पर उसने व्हिस्की पीना शुरू कर दिया, जिससे उसकी दिनचर्या रोबोट की तरह नीरस हो गई. फिर एक रोज अनुज ने उसे गांव निकलने के लिए बोला क्यूंकि एलीमनी डिस्कस करने के बहाने शगुन कैमरा लेकर फार्महाउस पहुंच गई थी, झूठ पकडे़ जाने से उसका मामला कमजोर पड़ता लिहाजा बिना वक्त गंवाए उसने हिसार के लिए बस पकड़ ली.

अगले दिन रिस्ट्रेनिंग ऑर्डर स्क्रैप होने से पहले वो कोर्टरूम में जंभाई ले रहा था. उसे उंघता और बुरेहाल देख शगुन की तो जैसे मुराद ही पूरी हो गई. खैर उसे नीचा दिखाने के लिए उसने अनुज की माफी और पहले की तरह चंढ़ीगढ़ रहने की रट दुहराई जो टैडी को अब हरगिज मंजूर नहीं था, लिहाजा अपने वकील को सोनोग्राफी रिपोर्ट देकर वो वहां से निकला तो अचानक चक्कर आने से वो पहले सीढ़ियों पर गिरा, और फिर चैकअप ना कराने की जिद को लेकर मंदिरा के थप्पड़ ने उसके चेहरे का हुलिया बिगाड़ दिया.

घर लौटने पर उसकी मासी और भाभी तुहिन की टूटी नाक के बारे में मजाक करने लगे, जिससे मंदिरा बिफर गई " हां, पिट कर आया है अपनी लुगाई से. क्या तुम श्रवण भाई का दिमाग खराब नहीं करती? और मम्मी, गुनगुने पानी से एक बार इसे नहला दे नहीं तो अपने बिस्तर पर इसे फटकने नहीं दूंगी "

तुहिन को प्रोटेस्ट करना था मगर मंदिरा के तमतमाया चेहरा देख उसकी हिम्मत नहीं हुई दुबारा नाक तुड़वाने की. कपडे़ पहनने में मदद करने के दौरान बाला ने बताया अन्नू को कार‌ ड्रिफ्टिंग सिखाने एंड फार्मर ट्रेनिंग में गये स्वरूप और श्रवण-कृष्ण की गैरहाजिरी ने उसे इरीटेट कर रखा है, " उसे लगता है हमारे चार नहीं बस अनुभव ही इकलौती औलाद है, प्लस तुम्हारे लौटने से उसे मदद मिलती मगर तुम पहले ही शहीद हो गये "

वैसे भी तुहिन को मंदिरा से कोई शिकायत नहीं थी इसलिए अनुभव की पहली कमाई और मंदिरा का बर्थडे गिफ्ट बाला को सौंपकर वो टाइमली उसके बिस्तर पर सो गया. नींद के लिए अब उसे व्हिस्की की जरूरत नहीं पडी, और आधी रात से ज्यादा वक्त बीतने के बाद जब उसकी आंखे खुली तो बेड के दूसरी तरफ फोल्डिंग पर मंदिरा को बेसुध सोते हुए पाया.
बहरहाल उसे खेतों का काम संभालना था, इसलिए मजदूरों को लेकर वो सब्जियों की प्लकिंग, ग्रेडिंग और पैकिंग कराने लगा.

" पसलियों में दर्द तो नहीं ", टमाटर की क्रेट्स की टेबल बना कर मंदिरा ने दोनों के लिए चूरमा और गरम दूध परोसा और तुहिन के सामने बैठ गई, " एंड मम्मी को तो तुमने मना लिया है मगर याद रखना अनुभव को मामूली खरोंच भी आई तो मैं तुम्हें और अपने आप को माफ नहीं कर पाउंगी "

" अपने वजन से डबल बेंच-प्रेस एंड डैडलिफ्ट करता है अब वो पर तुम्हें उसकी बस एक क्लिप अफेंड कर गई ", टैडी ने उसे आश्वश्त किया वो और उसके दोस्त बहुत जिम्मेदारी से उसके भाई का खयाल रखते हैं, " तुम्हें तो खुश होना चाहिये इतना जल्दी वो उस ट्राॅमा से बाहर निकला और स्पीडिंग का यह शौक तुमने उसे दिया है रेसिंग-व्हील (गेमिंग) गिफ्ट कर "

" प्लेस्टेशन पर जान का जोखिम नहीं होता गधे.... ",

मंदिरा ने क्लियर कर दिया अनुभव के मामले में उसे उसकी दलील मंजूर नहीं. खैर, तुहिन के अंदर ताकत नहीं थी उससे उलझने की इसलिए आगे से वैसी गलती ना करने की कसम खा कर उसने बात वहीं खत्म कर दी. रात में ट्यूबवैल खराब होने से टंकी में पानी नहीं रहा और फसलों को गलन (पाला) से बचाने के लिए मोटर ठीक कराने में उसे रात हो गई. अभी उसे नहाना था लेकिन बिजली चले जाने‌ पर उसके पास ठंडे पानी के अलावा दूसरा ऑप्शन सिर्फ गैस थी, लेकिन मंदिरा को वहां काम करते देख उसकी हिम्मत नहीं हुई उससे पूछने‌ की.

" तेरी प्राॅब्लम क्या है टैडी? नीचे‌ ही नहा लेता, और जरूरत क्या थी इतनी ठंढ में कपडे़ धुलने की? ", तुहिन के बाथरूम से निकलने पर मंदिरा रुआंसी हो गई क्यूंकि रात के दस बज चुके थे और सुबह जल्दी उठकर उसे ऑफिस भी जाना था.

वहीं टेबल पर खाना, दूध, पानी की बाॅटल और बिस्तर पर एक्स्ट्रा कंबल देखकर तुहिन का दिमाग चकरा गया, " तुम क्यूं भटक रही ह... "

मगर उसकी बात पूरी होने से पहले वो उसके धुले हुए कपडे़ उठाकर तेजी से बाहर निकली और फिर सीढ़ियां उतरते हुए नीचे चली गई. दुविधा में तुहिन ने कपडे़ पहने और मैसेज में उससे माफी मांग कर उसकी बाट जोहने लगा. भूख से अब उसका भी बुरा हाल था लेकिन मैडम के वापस ना लौटने पर उसे अपनी गलती का अहसास हो गया. इसके वाकये के दो तीन दिन बाद वीकेंड पर वो फसलों में पेस्टीसाइड्स का स्प्रे करा रहा था तभी उसे मंदिरा आते हुए दिखी.

" फोन कहां है तेरा? ", अगली दोपहर खेतों पर नाश्ता लेकर पहुंची मंदिरा को ट्रैक्टर‌ के शोर में टैडी से बात करने के लिए इशारों की जरूरत पड़ रही थी, " स्प्रे-मशीन का मैं देखती हूं जब तक तू खाना खा ले "

" थैंक्स... तुमने खाया?? ", हाथ धुलने के बाद तुहिन ने उस रात के लिए उससे माफी मांगी और ऑमलेट का एक टुकडा़ उसकी तरफ बढा़ दिया.

" इट्स ओके... प्रोसेसर स्लो है तुम्हारा ", उसके हाथ में लगे टुकडे को छीनते हुए मंदिरा ने हां में गर्दन हिला कर टैडी को जवाब दिया, " तेरी उम्र बीत जाएगी लेकिन Between the lines पढ़ना तुझे कभी नहीं आएगा "

तुहिन के लिए यह उलहाना नया नहीं था, लेकिन मंदिरा के आखिरी वक्तव्य को उसने सीरियसली ले लिया, " सच बोल रही हो तुम.. इतनी समझ होती तो मैं इन सर्कमस्टांसिज से दूर अपने पेरेंट्स के नजदीक नहीं होता "

" किसी और दिन लड़ते हैं तुहिन, और बेफिक्र रहो शगुन की तरह मैं तुम्हें कोर्ट नहीं ले जाउंगी ", टैडी को खिसियाते देख मंदिरा ने बातों का रुख बदला, " अर्बन इस्टेट में तुम्हारा एक गोदाम है, अंकल से रिक्वेश्ट कर उसकी एक शाॅप हमें दिला दे ", फिर उसने बताया आमदनी का एक और साधन बनाने के लिए वो #@&#₹ डेयरी की डीलरशिप लेने का सोच रही है.

" मर्चेंट नेवी छोड़कर वो बिजनिस करेगा?? ", अपने डैड का नंबर डायल करते हुए टैडी ने उससे पूछ लिया क्यूंकि उसको लगा कि वो यह अपने मंगेतर के लिए कर रही है.

जवाब देने के बजाय मंदिरा ने उसके हाथ से मोबाइल छीना और खुद अनुज से बात करते हुए वापस घर की तरफ चली गई. अगले दिन स्वरूप और श्रवण-कृष्ण के लौटने पर टैडी भी चंडीगढ़ आ गया. बाला ने घी और पूजा का कुछ सामान रखा था जिसे अनुभव को पकडा़कर वो प्लांट में काम देखने लगा. रात को अनुभव ने बताया एक चिट्ठी के साथ वो ब्रास-लैम्प मंदिरा ने उसके लिए भेजा है और डेयरी की डीलरशिप के पेपरवर्क के लिए उसे गांव जाना पडे़गा.

आईडिया बुरा नहीं था मगर जब अन्नू ने बताया मंदिरा ने वो रकम अपनी शादी के लिए जमा की थी तो तुहिन की नजरों में उसकी इज्जत और बढ़ गई, " ऑनेस्टली, मैं शुक्रगुजार हूं डैड का उन्होंने मुझे तुम लोगों से मिलाया और भरोसा करना इस कार्ड और लैम्प के आगे मेरा गिफ्ट कुछ नहीं है ", काॅल कनैक्ट होने पर तुहिन ने मंदिरा को बताया कि उनसे मिलने के बाद वो पहले की तरह बुझा-बुझा नहीं रहता.

" ऑनेस्टली.. तुमसे ज्यादा ऑनेस्ट मुझे आज तक कोई नहीं मिला और मुझे खुशी है तुम्हारे प्रोसेसर ने उस कार्ड का सही मतलब समझ लिया ", मंदिरा ने बताया वो परिवार की तरह हैं और परिवार में किसी एक को दुख पहुंचे तो दूसरे सदस्यों को भी उसका दर्द महसूस होना चाहिये, " किसी ने यह मुझे सिखाया है इसलिए इनॉगुरेशन पर चुपचाप आ जाना, नहीं तो इस बार मैं तुम्हारा सर फोड़ दूंगी "

टैडी को बताना था फार्म छोड़ना उसके लिए कितना पेनफुल रहता है मगर ऐसा करने से उसे कुछ हाशिल होने वाला नहीं था, " बता चुका हूं मंदिरा खेती से मुझे 45 लाख नहीं मिलेंगे और एलीमनी लिए बिना वो डिवोर्स नहीं देगी. बाकी शाॅपिंग के लिए तुम यहां आ ही रही हो, तो भाई की शादी में मैं वहां आ जाउंगा "

" तुझे झूठ बोलना नहीं आता टैडी इसलिए बकवास करने से परहेज किया कर वो भी मेरे सामने. 45 में 10 बढा़ कर 55 लाख मैं अभी बिट्टी से दिलाती हूं, तू बस उससे माफी वाली कंडीशन्श वापस करा ले ", बुरी तरह चिढ़कर मंदिरा ने उसे झिड़का और सोने का बहाना कर काॅल डिसकनैक्कट कर‌ दी.

लिहाजा इनाॅगरेशन के दिन उसे हिसार जाना पडा़, पर एक गुड न्यूज वहां उसका भी इंतजार कर रही थी. नया एवीडेंस और डिवोर्स पिटीशन का नोटिस मिलने पर बौखलाई शगुन पुराने केसिज वापस‌ लेकर, बिना किसी मांग जल्द से जल्द म्यूचुअल डिवोर्स पिटीशन फाइल करना चाहती थी. क्यूंकि, उसे डर था अबार्शन का सच बाहर आने से उसके फरेब और ब्वायफ्रैंड की नजरों में उसकी इज्जत की असल नुमाइश हो जाती. बहरहाल टैडी को तलाक से ज्यादा कुछ चाहिये नहीं था इसलिए हवन-पूजा के बाद वो जाॅइंट पिटीशन की अर्जी लगाने कोर्ट जा पहुंचा.

वहां उसे पता लगा सोनोग्राफी रिपोर्ट और रेडियोलाॅजिस्ट के गवाही देने के खौफ से अबार्शन करने वाले शगुन के फैमिली डाॅक्टर की जान पर बन आई थी और उसे धमकाने में मंदिरा ने अपने मामा का इस्तेमाल किया. फाईनली सालों बाद टैडी अपने घर जाने और पेरेंट्स के साथ रहने को आजाद था पर इस इनायत के लिए अब उसे सबसे पहले राठी फैमिली और रितु के डैड का आभार व्यक्त करना था. थैंक्स बोलना काफी नहीं था इसलिए तुहिन ने गले मिलकर सबसे इजाजत मांगी और भारी मन से अपनी बहन के साथ घर आने लगा.

" पर्सनल ग्रूमिंग आयटम्स तुझे गिफ्ट में मिलते होंगे, पर टैडी 29 हजार के शेड्स और 1700 डालर्स के रेसिंग व्हील जैसे गिफ्ट्स तू मेरे लिए तो कभी नहीं लाया? ", बिट्टी उसे कुरेदने लगी क्यूंकि उसे पूरा भरोसा था अंतृमुखी टैडी के अंदर कुछ तो चल रहा है.

शगुन के चुंगल से बाहर निकलने पर मंदिरा का रिलेशनशिप में होना अब ज्यादा खटकने लगा था क्यूंकि उसके लिए अब वो असली एम-4 भी खरीद सकता था, " अन्नू को भी गेमिंग का शौक है, और तुझे अपनी बेस्टी पर भरोसा नहीं या अपने भाई पर?? "

" टैडी! डैड ने तुझे बेदखल किया है इसलिए सोचना भी मत वो मुझसे कुछ छुपाएंगे और भरोसा-वरोसा छोड़, मुझे फख्र है मेरा भाई अब पहले जितना सेल्फिश और इंट्रोवर्ट भी नहीं रहा ", बिट्टी ने जाहिर कर दिया अनुज घर में सबके साथ यह शेयर कर चुका है, और मंदिरा से उसे या उसकी मॉं को कोई शिकायत नहीं, " एक बार उससे बात कर के तो दे... "

बिट्टी को बीच में रोक कर टैडी ने उसे बताया मंदिरा के आधे से ज्यादा परिवारवाले उसे बेवकूफ समझते हैं, और 'दूजिया' का स्टेटस तो उसके पास पहले से है ही जिसे वो चाहकर भी नहीं बदल पाएगा, " आई नो, वो किसी के साथ रिलेशनशिप में है और उसे यह रिश्ता पसंद नहीं, पर खुद को आगे कर‌ मैं अपनी दोस्ती को तबाह नहीं करना चाहता "

" व्हाट इफ उसने यह सुन लिया हो.... "

अपना फोन निकाल कर बिट्टी उसे चिढ़ाने लगी मगर उसकी स्क्रीन पर टैडी को कुछ नहीं दिखा. बहरहाल, बिट्टी खुश थी तुहिन के तलाक के बाद वो अपने हसबैंड के साथ इस्तांबुल जा सकती थी जहां वो पहले नौकरी करते एंड उनके पेरेंट्स को घर का चिराग वापस मिल गया. मंदिरा के करीब रहकर उससे फासले रखना तुहिन के लिए बेहद मुश्किल था, प्लस अनुभव को उसकी फैमिली ने सिर्फ उसके भरोसे वहां छोडा़ था लिहाजा दो दिन बाद वो प्लांटहैड (वीनू रेड्डी) संग प्रोडक्शन सिड्यूल डिस्कस कर रहा था, और शाम को जब वो अपने अपार्टमेंट पहुंचा तब दरवाजा खोलने पर किस्मत ने मंदिरा के माथे से उसके अधरों को लगभग मिला दिया.

दोनों में से किसी को भी इस तरह मिलने की उम्मीद नहीं थी क्यूंकि मंदिरा की नजरों में तुहिन अपनी जाॅब छोड़ चुका था, एंड टेबल पर रखी मंदिरा के नाम से एक काॅर्पारेट हाउस की आईडी देखकर उसे अपनी आंखों पर नहीं हुआ कि अनुभव के लिए वो हिसार छोड़ देगी. खैर, किस्मत ने मिलाया था तो टैडी ने तय कर लिया इस बार वो उससे भागेगा नहीं, वैसे भी उसे बुली करने के लिए यहां कृष्ण नहीं था.

अनुभव के पानी लाने पर वो थोडा़ कंफर्टबल हुआ तब उसने नई जाॅब के लिए मंदिरा को शुभकामनाएं दी एंड मीनव्हाइल मंदिरा भी अपने खयालों से बाहर निकल आई, " उम्र बडी़ है तेरी, अभी हम तेरी ही बात कर रहे थे. वैसे रेजिग्नेशन अप्रूव नहीं हुआ या फिर अंकल ने भगा दिया? "

हालांकि ऐसा कुछ नहीं था पर तुहिन ने मैनेजमेंट के दवाब का बहाना बना कर मंदिरा के दिमागी घोडों को कुछ देर के लिए शांत कर दिया, " एंड तुम्हारे हाथ का बना चूरमा खाना था इसलिए वहां मन नहीं लगा "

" ओह... फ्लर्ट करना बंद कर क्यूंकि अभी तलाक नहीं हुआ है तेरा ", मंदिरा को उसका मजाक पसंद नहीं आया इसलिए आंखे निकाल कर उसने टैडी को उसकी हैशियत याद दिला दी.

तुहिन के अंदर वैसे हिम्मत तो नहीं थी उससे फ्लर्ट‌ करने की लेकिन अब वो उससे भागने की फिराक में तो बिल्कुल नहीं था, " मेरी किस्मत इतनी अच्छी नहीं पर ये इल्जाम लगाकर तुम मुझपर ज्यादाती जरूर कर रही हो ", और फिर अपनी बात सही साबित करने के लिए उसने अन्नू को उसके सामने कर दिया, " बता भी दे भाई काजू-बर्फी के लिए कौन अपना चूरमा ट्रेड करता है? "

इसकी तस्दीक कर अनुभव वर्क आउट के लिए निकल गया, पर उससे जाने से पहले मंदिरा ने उसे मक्की का आटा लाने के लिए कहा. मंदिरा टैडी को बताने लगी आज उनके बाहर जाने का प्लान था क्यूंकि महीना खत्म होने पर आज उसकी दो दिन की सैलरी आई थी, " चल जल्दी से अब चेंज कर ले. एंड किस्मत से याद आया होली वाले दिन शगुन अपने बाॅय-फ्रेंड संग सगाई कर रही है "

" अब मुझे पूरा यकीन है अपने Inamorato को तुम बेहद पसंद करती हो क्यूंकि अपने मामा की मदद से तुम उसे भी मजबूर कर सकती थीं ", तुहिन को शगुन के नाम से नफरत थी लिहाजा बाथरूम में घुसने से पहले उसने मंदिरा की गन का रुख मंदिरा की तरफ कर दिया, " तुम्हारे जैसी लड़की के लिए कोई जेल तो क्या खुशी-खुशी फांसी भी चढ़ जाये मगर उसको अच्छा प्रूव करने के लिए मैं हरगिज उसके मंगेतर से नहींं मिलूंगा "

लेकिन इमोशन्स में बहकर तुहिन एक गलती कर गया जिसे मंदिरा ने उसी वक्त लपक लिया, " तो ठीक है मेरी खातिर‌ ही मिल ले उससे? बेशक तारीफ मत करना उसकी लेकिन क्या पता खुश होकर वो डिवोर्स का कूलिंग-ऑफ पीरियड़ कम करा दे?? "

मंदिरा के जाल में वो बुरी तरह फंस चुका था. हालांकि उसने मना नहीं किया मगर शदीद नापसंदगी के बावजूद शगुन का चेहरा देखना उसके लिए जीते जी नरक भुगतने से कम नहीं था. डिनर में मंदिरा के साथ उसके हाथ का खाने से वो अंदर तक तृप्त हो गया और फिर फोन पर श्रवण-स्वरूप का हाल-चाल जानने के बाद लिविंग रूम में थकान से बंद हुई उसकी आंखें अगले दिन बेडरूम में खुली.

ऑफिस जाने से पहले टैडी को लगा मंदिरा के आने से उन्हें रात की तरह उन्हें इंडियन फूड खाने को मिलेगा मगर नाश्ते में पहले की तरह मिल्क-शेक और नट्स‌ मिलने पर वो बिना कंप्लेन किये दफ्तर चला गया. शाम को लौटने पर उसे दोनों भाई-बहनों के चहरे उतरे हुए दिखे और वजह पूछने पर उसे कोई जवाब नहीं मिला. शनिवार की शाम उनके हांसी जाने पर जब उसकी बात अनुज से हुई तब पता लगा कृष्ण डेयरी एजेंसी और हिसार में घर के बदले अपने हिस्से का खेत बेच मंगेतर संग रहना चाहता है, और उसको इस राह पर ले जाने वाला वही परिवार था जहां मंदिरा का रिश्ता तय हुआ.

फाइनली सालों की बचत और रिलेटिव्स से लिया कर्ज कृष्ण की ख्वाहिशों पर लगा कर मंदिरा को वापस चंडीगढ़ लौटना पडा़ क्यूंकि कर्ज चुकाने के लिए यह जाॅब करना अब उसकी मजबूरी बन गई थी, " नींद नहीं आ रही तुहिन... थोडी़ देर के लिए मुझे तेरी कंपनी मिलेगी?? "

जागने के बाद मंदिरा के हाथों में व्हिस्की की बॉटल और दो ग्लास देखकर टैडी कुछ देर के लिए सुन्न पड़ा गया, " फाइन, लेकिन उससे पहले तुम्हें यह प्राॅमिश करना होगा कृष्ण भाई की शादी की जिम्मेदारी तुम लोग उठाओगे... "

इतना सुनने के बाद मंदिरा का चेहरा गुस्से से तमतमाने लगा लेकिन जब तुहिन ने बोला बकौल मंदिरा वो उसकी फैमिली का हिस्सा है एंड इस मौके पर‌ कृष्ण को अकेले नहीं छोड़ना चाहिये तब अचानक से वो नर्म पड़ गई, " बता, हमें ऐसा क्यूं करना चाहिये? ", फीकी सी मुस्कान चेहरे पर लाकर मंदिरा दोनों ग्लासिज़ में व्हिस्की डालने लगी.

" शादी के बाद सिर्फ एक 'संस्कार' बचता है इसलिए मैं नहीं चाहता इन-फ्यूचर अंतिम संस्कार के वक्त तुम लोगों के बीच कोई गिला-शिकवा हो ", और फिर तुहिन ने अपनी उंगली से उतारकर एक रिंग टैडी ने मंदिरा के हाथों में रख दी जिसके दोनों किनारों पर उसकी डैथ-विश (Only a Tokas is entitled to cremate me) इंग्रेव्ड थी, " गलती सबसे होती हैं मंदिरा लेकिन खून के रिश्तों के लिए हमें कभी इतना हार्श नहीं होना चाहिये "

थैंकफुली मंदिरा को महसूस हुआ वो लोग कितनी बडी़ गलती करने जा रहे थे, फिर स्वरूप-श्रवण से बात कर उन्होंने तय किया कृष्ण की यह जिम्मेदारी वो लोग खुशी-खुशी उठाएंगे. स्ट्रैस कम होने व्हिस्की की जरूरत खत्म हो गई थी और बातें करते करते उसे टैडी के बिस्तर पर नींद आ गई. बहन को सोते देख अनुभव को भी सुकून मिला और काॅफी सिप करते हुए वो अपनी फ्रैंड के ऑफर के बारे में बताने लगा, " जिम के बाद मुझे नाज़ के डैड की वाइन-शाॅप पर छोड़ दिया करोगे? दीदी के लिए मुझे एक स्कूटी खरीदनी है “

" और तुझे लगता है उसने तुझे इधर स्कूटी खरीदने के लिए भेजा है? हां? गधे वो हमारी तरह कमजोर नहीं है इसलिए वाइनशाॅप एंड ट्रेनिंग देना छोड़ और वही कर जो उसे पसंद है ", अनुभव को हड़काते हुए टैडी ने उसे कृष्ण वाला एपिसोड स्किप करने का बोल उसे याद दिलाया जब उससे गलती हुई थी तब कृष्ण उसके लिए ब्लड-बैंकों में ब्लड तलाश रहा था.

" तुम उसे बचा रहे हो जो सगी बहन के साथ तुम्हें भी ब... ", फ्लो-फ्लो में जवाब देते हुए अचानक से अन्नू खामोश हो गया.

वहीं तुहिन को पता था कृष्ण की नजरों में उसकी इज्जत पालतू जानवरों जैसी है, मगर मंदिरा के साथ खुद का जिक्र होने पर वो थोडा़ सहम गया.

" करैक्ट मी अन्नू, उसे लगता है मंदिरा और मेरे बीच कुछ है और इसी वजह से मर्चेंट नेवी वाला लड़का कृष्ण को सपोर्ट कर‌ रहा है?? "

पहली बार था जब तुहिन ने कृष्ण को बस उसे नाम से एड्रेस किया, फिर अनुभव की चुप्पी और सपाट चेहरे में उसे जवाब मिल गया. बात इतनी गंदे स्तर तक पहुंच चुकी है इसका उसका उसे अंदाजा नहीं था इसलिए दोनों परिवारों की दोस्ती की खातिर बिना लाग लपेट उसने कंफैस कर लिया वो मंदिरा को इकतरफा पसंद करता है, " यही वजह थी फार्म छोड़ने की… खैर छोड़.. परवर्ट नहीं हूं मैं तो प्लीज मंदिरा को मत बताना… “

टैडी की बात खत्म होने से पहले बिना कुछ रिएक्ट किये अन्नू अपने रूम में चला गया. नींद अब तुहिन की गायब थी इसलिए आंखें बंद होने तक वो अपने अंदर डेढ़ बॉटल से ज्यादा व्हिस्की उतार चुका था. फोन के वाइब्रेट होने पर जब उसकी नींद खुली तब हैडफोन चढा़ए मंदिरा गेम खेल रही थी, और सुबह दफ्तर और अब जिम में ना आने के लिए वीनू रेड्डी उसे तमिल, तेलगु, अंग्रेजी और हिंदी में भर-भरकर गालियां सुना रहा था.

बराबर में हलचल महसूस करने पर मंदिरा ने गेमिंग बंद की और बेड के साइड़ टेबल से ऑरेंज जूस का ग्लास उठाकर टैडी के हाथों में थमा दिया, “ लुगाई मैं तेरी बन गई, बिस्तर तक मैं आ गई. सिर्फ कपड़े निकालने रह गये हैं टैडी, अब ये काम भी क्या मुझे करना पडे़गा? “, मंदिरा को आज उससे लड़ना था लेकिन उसकी खस्ता हालत देख कर उसे तरस आ गया.

नींद और नशे के आगोश में तुहिन को लगा वो कोई ख्वाब तो नहीं देख रहा, लेकिन अपनी रिंग को जब उसने उसकी इंडेक्स फिंगर में पाया तब जाकर उसे अपनी किस्मत पर यकीं हुआ, “ अनुभव ने बताया या बदनामी से बचने के लिए कर रही हो?

“ वैल, कर तो मैं तो बहुत पहले चुकी थी टैडी मगर यह तुम थे जिसने शगुन के लिए अपनी फैमिली की पसंद को ठुकराया “
 
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फ्लैट नंबर 126

अगस्त चल रहा था बरसात का महिना तो न था पर पिछले हफ्ते से काफी बारिश हो रही थी लेकिन कुछ दिनों से बादल एक दम साफ थे।

आसमान समुंदर के पानी की तरह यकायक नीला था । चिड़ियों की चहचहाहट पूरे वातावरण में एक संगीत-सा गा रही थी। शहर की शोरगुल भरी ज़िंदगी से दूर कही दुनिया थी कॉलेज कैम्पस की।

चारों तरफ अनेकों प्रकार के पेड़,डिज़ाइनदार कटे हुए छोटे-छोटे पौधे और रंग-बिरंगी दीवारे, खुला मैदान मानो एक स्वर्ग उतर आता हो कॉलेज में ।

सबकी सबसे ज़्यादा पसंदीदा जगह होती थी कैंटीन। चारों तरफ गोल टेबलें, टहलते बच्चे और टीचर्स आपस में गप्पे मार रहे थे। हवा में घूमती चाय और समोसे की महक सबको अपनी ओर खींच रही थी ।

एक कोने वाली टेबल पर सुनील चाय समोसे खा रहा था और अपने दोस्तों से बातें कर रहा था। उसके सुनाये गए चुट्कुले और वो दोनों महफिल की शान थे । उसके चुट्कुले सिलसिले दर सिलसिले चलते रहते और उसके दोस्त अमित,फ़ारूक और हिना ठहाके मार मार कर हँसते और चाय पीते जाते।

तभी देखा श्याम दौड़ता हुआ उनकी तरफ आ रहा है । उसने आते ही कहा

"अबे तुम यहाँ चाय पी रहे हो और वहाँ सक्सेना सर का लैक्चर शुरू हो गया।"
सभी दोस्त जल्दी-जल्दी चाय ख़त्म कर के क्लास की तरफ दौड़ पड़े । "सर मेय आइ कम इन?"

सभी ने एक स्वर में कहा और अंदर जा कर पीछे की कुर्सियों पर बैठ गए लेकिन आज क्लास में बच्चों की तादात पहले से अधिक थी।

फारूक़ ने आगे बैठी अंजली से पूछा:- "यार आज इतनी भीड़ कैसे है और ये पड़ोस की क्लास वाले भी हमारी क्लास में आ गए क्या क्लास लेने?" और हँस पड़ा।

अंजली ने चुप रहने के इशारे से कहा कि "ये सभी नए आए हैं आज ही इनका एड्मिशन हुआ है।"

क्लास ओवर हुई तो सब उठ खड़े हुए और बाहर जाने लगे सुनील की नज़र आख़िरी लाइन में हल्के गुलाबी रंग में बैठी लड़की पर जा कर अटक गयी ।

आँखों में काजल लगाए वो बड़ी-बड़ी आँखें,गुलाबी होठ ,सूरज की किरणों-सा सुनहरा रंग,चुलबुल मिज़ाज लड़की जो अपने साथ बैठी लड़कियों से हँसी मज़ाक कर रही थी । सुनील उसे एक टक देखता रहा ।

तभी फारूक की आवाज़ आई "भाई क्या कर रहा है जल्दी चल नहीं तो कैंटीन पर समोसे न मिलेंगे।"

सुनील को जैसे जबर्दस्ती ले जाया गया ध्यान तो उसका उसी गुलाबी गुलाब पर टिका था जो क्लास में अपना नूर छलका रहा था । उसका चेहरा,उसकी झील-सी आँखें जिनमें आज सुनील खो जाना चाहता था,उसकी वो दंतुरित मुसकान एक पल के लिए भी सुनील से अलग न हुई ।

हीना से उसे झिंझोड़ते हुए कहा "कहाँ खो गया सुनील? आज सुबह से देख रही हूँ यह कहीं खोया हुआ है। क्लास में भी पूरे टाइम वो गुलाबी सूट वाली को निहारता रहा।"

अमीत और फ़रूक उसे छेड़ने लगे "भाई क्या बात है ? हमें भी बता दे।"

"अरे कुछ नहीं यह हीना तो पागल है कुछ भी बोलती रहती है । तुम इसकी बातों को संज़ीदा मत लो" – सुनील मुस्कुराते हुए इतना कह कर चल दिया।

अगली सुबह सुनील कॉलेज में जल्दी ही आ गया था सोचा आज जब वो लड़की आएगी तो उससे बात करने की कोशिश करेगा और अमीत और हीना भी नहीं आए हैं तो उसे छेड़ेंगे भी नहीं।
सुबह- सुबह का वक़्त था तो सफाई वालों के सिवा उसे वहाँ कोई दिखाई न दिया ।

वो सोचने लगा "सुबह का मौसम आज ही अच्छा है या हमेशा इतना सुहावना होता है?"

अब सुनील को क्या पता उसकी सुबह भी तो अमित के फोन से होती थी । जब उसे कॉलेज जबरदस्ती बुलाया जाता था और मुस्कुराते हुए वह जल्दी से क्लास की तरफ गया अंदर जैसे ही कदम रखा अगले ही क्षण उसके कदम क्लास के बाहर आ गए।

उससे पहले भी कोई आ गया था। उसे लगा इतनी सुबह कौन आ सकता है? उसने अंदर झांक के देखा तो वही लड़की सबसे आगे वाली सीट पर बैठी हुयी थी।

सुनील के तो अब अंदर कदम रखते में भी पैर काँप रहे थे। उसने हिम्मत की और अंदर दाखिल हो गया।

सुनील ने अंदर जाकर उस लड़की को देखा वो कुछ कहता उससे पहले उस लड़की ने ही कह दिया :

"गुड मॉर्निंग"

सुनील ने भी कंपकपाती आवाज़ में जवाज़ दिया –"ग्गूड मॉर्निंग"

यह सुनते ही उसकी हँसी छूट गयी और कहा – "आप हकला क्यूँ रहे हैं कल तो नहीं हकला रहे थे।"

अब सुनील को समझ नहीं आ रहा था कि वह अब क्या जवाब दे। उसने बस इतना कहा : "मैं मैं कहाँ हकला रहा हूँ? "

वो और तेज़ हंसने लगी ।

अब तो सुनील को लगा जैसे उसने सुबह तो अभी देखी है बाहर तो बस सूरज उगा है,पंछी गीत गा रहे हैं, लोग ऑफिस जाने की तैयारी में हैं , कुत्ते अलसाए हुए है यहाँ से वहाँ घूम रहे हैं पर सुबह तो अभी हुई है, इसकी मुस्कान के साथ।

उसने सुनील को अपने पास बैठने को कहा। "आपका नाम क्या है? "

सुनील ने कहा –"सुनील" और आपका?

"सुनीता शर्मा"

सुनीता जैसे कि सुनील को संसार में सबसे मनोरम नाम यही लग रहा था । सुनीता उसे अपने बारे में बता रही थी कि कहाँ से उसने अपनी पढ़ाई पूरी की और आज सुबह आकर वो डर गयी जब उसे कॉलेज में कोई न दिखा ।

लेकिन सुनील तो मानो किसी और दुनिया में खोया हुआ था ।

सुनीता बोलती गयी सुनील उसकी आँखों में ख़ुद का चेहरा निहारता रहा।

धीरे-धीरे अब सुनील की झिझक कम हो रही थी और उसने सुनीता को इतनी देर में दसियों चुट्कुले सुना दिए और हर चुट्कुले पर सुनीता ज्यों-ज्यों हँसती सुनील और सुनाता जाता। वह तो बस उसका हँसता हुआ चेहरा देख कर खुश होता जा रहा था।

थोड़ी ही देर में क्लास के और बच्चे आने लगे सुनील अमित और हिना के आने से पहले ही पीछे जा कर बैठ गया।

सुनील ने उससे कहा – "क्लास के बाद कैंटीन चलें ? यहाँ समोसे बहुत अच्छे मिलते हैं।"

"ज़रूर"

क्लास ख़त्म होने के बाद सभी कैंटीन की तरफ चल दिए सुनील ने सुनीता को सबसे मिलाया।

कैंटीन के समोसे की तारीफ़ें हुईं, चाय का स्वाद चखा गया ...उसने आज सबको ख़ुद ही चाय मंगाई।

अमित और हिना सुनील को ऐसा करते चुपचाप देख रहे थे।

फिर सुनील ने सुनीता को लाइब्रेरी,प्ले ग्राउंड,म्यूजिक लैब सब कुछ दिखाया जैसे आज ही वो इस कॉलेज को सुनीता से परिचित करा देना चाहता हो।

हिना और अमित सुनील को देखे जा रहे थे । सुनीता के जाते ही दोनों से उसे दबोच लिया ।

"क्यों भाई अब तो हम पुराने हो गए क्यों अमित" – हिना ने अमित की तरफ सुनील को छेड़ते हुए कहा।

अमित ने भी हिना की बात में हामी भरी और कहा - "और नहीं तो क्या जनाब को उसका गुलाब दिख गया अब हमें कहाँ देखेंगे महाराज ? हिना तूने कल सही कहा था यह उसे कल ताक रहा होगा और देखो आज तो पूरा कैम्पस भी घुमाने चल दिये जनाब । हम तो जैसे कुछ हैं ही नहीं।"

"अरे तुम दोनों भी कैसी बात कर रहे हो वो नई आई है तो बस उसे कॉलेज घूमा दिया ताकि बेचारी को कोई तकलीफ न हो।"

"लो भाई अब वो बेचारी भी हो गयी" और दोनों ठहाके मार कर हँसने लगे।

दोनों उसे छेड़ते रहे और बेचारा सुनील उन्हें यकीन दिलाता रहा कि सुनीता महज़ उसकी दोस्त है ।

अब सुनील और सुनीता की दोस्ती गहरी होने लगी या कहें तो सुनिल की मोहब्बत। सुनीता के साथ अब वो ज़्यादा वक़्त बिताने लगा यहाँ-वहाँ की बातें होतीं। सुनीता उसे फोन में अपने हाथ से बने थारपोश,कभी कढ़ाई की गई ल**क्ष्मी जी की तस्वीर दिखाती।

उसने बताया कि उसकी एक छोटी बहन है,दो भाई हैं और वो पास के लाजपत नगर की कृष्णा मार्के में फ्लैट नंबर 126 में रहती है ।

सुनील अब प्रतिदिन उसके साथ ही रहता उसे बोलते हुए सुनता । दोनों साथ में ज़्यादा समय बिताने लगे। सुनीता उसके लिए भी लंच लाने लगी थी।

सुनील को लगा कि सुनीता भी सुनील को पसंद करती है भला करे भी क्यों न सुनील है ही ऐसा। सुनील ने सुनीता को बताया था कि वो उसे पसंद करता है। इस पर सुनीता बस हँस दी थी सुनील को लगा कि सुनीता भी उससे बहुत पसंद करती है।

उसने एक रोज़ कहा था –
"सुनीता! तुम अपने पति से क्या-क्या अपेक्षाएँ रखती हो?"

"बस ज़्यादा नहीं वो हमें ख़ुश रखे और हम जो करना चाहे हमारा साथ दे।"- सुनीता ने अपने चिरपरिचित अंदाज़ में सुनील को जवाब दे दिया।

सुनील को लगा कि सुनीता तो उसके बारे में ही बात कर रही है। अब तो मानो सुनील के सपनों को आधार मिलने लगा था। सुनील अपने रूम पर आता तो उसके दिमाग में बस यही सब घूमता रहता।

सुनीता की कढ़ाई की तस्वीर,सोफ़ा के कवर और एक चीज जो उसके दिमाग में घर कर गयी फ्लैट नंबर 126।

अब तो सुनीता जैसे-जैसे अपने घर के बारे में बताती और अपनी बनाई पेंटिंग को दिखाती सुनील रूम पर आकर अपने रूम को वैसा ही आकार देने लगता।उसने तो अपने गेट के अंदर की तरफ फ्लैट नंबर 126 लिख दिया था और बाज़ार से वैसी ही वस्तुएँ ला कर अपने रूम में सजाने लगा।

यही सोचता कि सुनीता जब आएगी तो उसे सब वैसा ही मिले जैसा उसके घर पर है।सुनील और सुनीता के किस्से अब कॉलेज में फैलने लगे थे और शायद सुनीता को भी इस बात का ख़्याल था कि वह उसे पसंद नहीं प्यार करता है।

एक रोज़ वह दिन आ ही गया जब सुनील को सुनीता के घर जाने का मौका मिला। हुआ यूं कि सुनीता कुछ दिन से आ नहीं रही थी और सुनील की परेशानी भी बढ़ रही थी तभी ऐसे में सुनीता का फोन आया कि सुनील सुनो मेरे घर आकर मुझे नोट्स दे जाओ घर में ज़रूरी काम की वजह से वह एक दो दिन कॉलेज नहीं आ सकेगी और परीक्षा भी नजदीक थीं।

सुनील ने फौरन हामी भर दी आख़िर इसी दिन का तो वह कब से इंतज़ार कर रहा था और वह दिन अब आ ही गया था ।

अगले दिन सुनील कॉलेज में कुछ अलग ही रंग में दिख रहा था जैसे उसे आज लाखों की लॉटरी लग गयी हो अब प्यार में महबूब के घर की पहली मुलाक़ात लॉटरी से कम भी तो नहीं होती ।

अमित और हिना समझ नहीं पा रहे थे कि आज सुनील को क्या हुआ आज इतना खुश क्यों है पहले तो कभी उसे ऐसा नहीं देखा। दोनों ने उससे पूछना चाहा पर उसने "कुछ नहीं" कह कर टाल दिया ।

शाम का वक़्त होने को था सुनील आनन-फानन सुनीता के घर कि ओर बढ़ा । आज उसे दुनिया का सबसे बड़ा खज़ाना मिलने वाला था जिस फ्लैट नंबर 126 के वो हजारों सपने अपनी आँखों में पिरो चुका था आज उसे देखने का मौका मिल रहा था।

रास्ते भर वह यही सोचता रहा कि सुनीता का घर ऐसा होगा वैसा होगा,वो अंदर जाएगा सबसे पहले उसके पापा के पैर छूएगा,फिर सुनीता से घंटों बात करेगा,सुनीता उसे अपना सारा घर दिखाएगी और लक्ष्मी जी की पेंटिंग भी जिसका ज़िक्र करते-करते शायद ही उसकी ज़ुबान कभी थकती थी ।

हल्के हरे रंग से रंगी हुयी बिल्डिंग जिस पर लोहे का गेट चढ़ा था सुनील को नज़र आई। बिल्डिंग से जुड़ा हरा-भरा बगीचा जो शायद हाल ही की सरकार ने बनवाया था।बगीचे में ओपन जिम खुली थी।कुछ बच्चे अब भी उन झूलों पर झूल रहे थे। बिल्डिंग के गार्ड ने सुनील से रजिस्टर पर उसका ब्यौरा लिया और जाने दिया।

सुनील जैसे-जैसे सुनीता के घर की तरफ बढ़ता उसके पैर कांपना शुरू हो गए और दिल की धड़कन भी तेज़ हो गयी कि न जाने अंदर क्या होगा कैसा होगा ? जीतने भी ख़्याल सुनील ने बो रखे थे अब सब हवा होते जा रहे थे।

उसने दरवाजे की घंटी बजाई अंदर से एक 13-14 साल की पतली सी लड़की ने गेट खोला शायद यह आरती थी सुनीता की सबसे छोटी बहन।

उसने अपनी पतली आवाज़ में पूछा – "आप कौन?"

"जी मैं सुनिल! यह सुनीता का घर है न?"

"जी हाँ आइए दीदी कब से आपका ही इंतज़ार कर रही थीं"

आरती ने सुनील को सोफ़े पर बैठने का इशारा किया और किचन की ओर चली गयी। थोड़ी देर में एक गिलास में पानी लाकर उसने सुनील को दिया और कहा "दीदी आ रही हैं पूजा कर रही हैं"

सुनील ने पानी पिया और घर की दीवारों को निहारने लगे । एक दम हूबहू वैसा ही जैसा सुनीता बताया करती थी। दीवारों पर उसके द्वारा की गयी पेंटिंग, गेट पर लटकी मोतियों और प्लास्टिक की झालर,सोफ़े पर कढ़ाईदार कवर,दीवारों पर हल्का गुलाबी कलर उसे सुनीता से पहली मुलाक़ात की याद दिला रहा था जब उसने सुनीता को क्लास में देखा था,घर कुछ ज़्यादा ही साफ और सजा हुआ लग रहा था ।

कुछ विशेष कारण था या सुनीता ऐसे ही घर को सजा कर रखती है यह तो सुनीता ही बता सकती थी।

सुनील अपने ही ख्यालों में खो गया। शादी के बाद सुनील और सुनीता के भी दो बच्चे होंगे,अरे नहीं तीन हाँ तीन। जिसमें एक लड़की दो लड़के। लड़की की शक्ल सुनीता पर जाएगी और लड़कों की मेरे पर। एक को डॉक्टर बनाएगा,एक को इंजीनियर और हाँ लड़की को वो वकील बनाएगा। सुनीता का रसोई में हाथ बटाएगा,हर सनडे सब घूमने जाया करेंगे,घर में सुनीता की पसंद की सारी चीजें रखी होंगी और हाँ दीवारों का रंग वो भी हल्का गुलाबी ही रखेगा ताकि उसे सुनीता से पहली मुलाक़ात की याद दिलाता रहे ।
सुनील अपने ख़्यालों में खोया ही था कि इतने में सुनीता के पापा अंदर से निकल कर आए। सुनील स्तब्ध हो गया कि अब क्या करे, उसने तो सोचा था कि सुनीता उसके पापा से मिलाएगी। ये अचानक आ गए। सुनील उठा और जल्दी से उसके पापा के पैर छूते हुए प्रणाम कहा ।

"जीते रहो बेटा और कैसे हो" – सुनीता के पापा ने मुस्कुरा कर सोफ़े पर बैठते हुए कहा-
"अरे आरती! शिशिर! कहाँ हो भाई बिटिया के कॉलेज से उसका दोस्त कब से बैठा है नाश्ता-वाशता लाओगे या नहीं"

"अभी लाया" अंदर से आवाज़ आई ।

"नाम का है बेटा?"

"जी! जी! सुनील!"

"अच्छा पूरो नाम जेई है? "

"जी नहीं सुनील पाठक"

"अच्छा हमाई जात के हो"

सुनील को यह सुन कर थोड़ा अचरज हुआ पर उसे एक खुशी हुई उसने मन ही मन सोचा चलो एक बात तो तय है कि उसकी मोहब्बत जाति के हाथों नहीं टूटेगी ।

अब तो मानो सुनील के मन में शादी की शहनाई बजने लगी थी और उसे सब कुछ मिलता-सा लग रहा था। तभी अंदर से सुनीता पूजा सम्पन्न करके आ गयी और अपने पापा के पास आकार खड़ी हो गयी और कहने लगी-

"पापा! सुनील को कुछ खिलाओगे भी या ऐसे ही व्रत रखाने का इरादा है।"

सभी ठहाके मार के हंसने लगे,लेकिन सुनील अब भी घर को देखने में ही व्यस्त था,कभी दीवारों को देखता तो कभी अपने दिल की दीवारों को देखता जिसका रंग भी गुलाबी हो गया था जहां सुनीता के घर की तरह सभी चीज़ें उसके दिल में मौजूद थीं।

ट्रॉफियाँ,सर्टिफिकेट जिन्हें सुनीता और शिशिर जीत कर लाये थे।एक फ़ैमिली फोटो। सुनीता की फोटोज जो उन दीवारों को और भी सुसज्जित कर रहीं थीं और सुनील ने अपने दिल का नाम भी फ्लैट नंबर 126 रख लिया था ।

सुनीता के पिताजी कॉलेज में हिन्दी के शिक्षक थे इसलिए घर पर ब्रजभाषा ही बोला करते थे। तीनों के बीच कॉलेज को लेकर काफ़ी बातें हुई। सुनीता ने बताया कि कैसे सभी सुनील के चुटकुलों के दीवाने हैं ।उसे बेसन के लड्डू बहुत पसंद हैं ,छोटी-छोटी बातें सुनीता सबको बड़े चाव से सबको बता रही थी मानो सुनील को वैसा ही लग रहा था जैसा एक नव विवाहित बधू अपने पति की प्रशंसा करते नहीं थकती।

इतने में शिशिर नाश्ते का थाल ले कर आ गया। चाय ,नमकीन ,बिस्किट और सुनील के मनपसंद बेसन के लड्डू । सुनीता को भी बेसन के लड्डू ही पसंद थे। सुनीता और उसके पापा सुनील की एक नए दामाद की तरह उसकी सेवा पानी में लगे थे ।

सुनील को लग गया था कि भाई कुछ भी हो ससुराल में खातिरदारी तो खूब होती है। तभी सुनीता के पापा ने सुनील को देखते हुए कहा –

"अरे सुनील! जे बेसन के लड्डू तो खाओ तुम्हें तो पसंद हैं न और सुनीता ने अपने हाथन से बनाए हैं इसे खाना बनाने को बहुत सोक है"
सुनील जैसे ही लड्डू उठाने जा रहा था तभी सुनीता के पापा ने कहा –

"भगवान जाने फिर कब जाके हाथ के लड्डू खाबे को मिलें,लड़कियां इतनी जल्दी बड़ी हो जाती है कि पता भी नहीं चलता अभी तो ऐसा लगता है मानो परसों ही की बात है सुनीता हमाई उंगलीन को पकड़ के पूरे घर में घूमती, सबन को सताती और अपनी अम्मा के संग रसोई में हाथ बटाती और आज देखो कुछई दिनन के बाद हम सबकूँ छोड़ के चली जइये। अभई दो दिना पहले जाके सगाई है गयी हमे तो यकीन न है रओ"

सुनील की आँखें मानों फटी की फटी रह गईं। हाथ का लड्डू जहाँ था वही जम गया । उसे अपने कानों पर ज़रा भी यकीन न हुआ कि उसने सही सुना 'सुनीता की सगाई' नहीं ऐसा नहीं हो सकता।

अच्छा तो इसलिए सुनीता कुछ दिन से कॉलेज नहीं आ रही थी। यही वह ज़रूरी काम था जिसके बारे में सुनीता कह रही थी । इसलिए यह घर इतना सजा हुआ है । यह घर जो सुनील को अब तक स्वर्ग से भी सुंदर लग रहा था अब उस घर की एक-एक चीज उसे काटने को दौड़ रही थी। यह सजावट, तस्वीरें,सोफा,मूर्ति सब मानों उसे कह रहे हो "सुनील तू यहाँ क्यों आया था?" "क्या इसी के लिए यही सुनने?"

सुनीता के पापा ने आगे क्या कहा क्या नहीं सुनील को कुछ भी पता न चला वो तो बेहोशी की हालत में वहाँ बैठा हुआ था और उसे याद था तो बस
"दो दिन पहले सुनीता की सगाई हो गयी"

लेकिन उसने सुनील को क्यों नहीं बताया?

सुनील अब जल्द से जल्द वहाँ से चला जाना चाहता था उसने जल्दी से सबसे विदा ली और चल दिया । सुनीता सोचने लगी इसे अचानक क्या हुआ? सुनील सुनीता के घर से कब अपने रूम पर आ गया उसे नहीं पता ? रास्ते में कौन मिला कौन नहीं? रात के ग्यारह बज चुके थे उसे उसका भी पता न था।

सुनील ने खुद को कमरे में बंद कर लिया और ज़ारों-क़तार रोने लगा कि आख़िर क्यों सुनीता ने उसे एक बार भी क्यों नहीं बताया कि उसकी सगाई होने वाली है। सुनीता को तो पता था न कि सुनील उसे पसंद करता है फिर भी? वो तो सोच रहा था कि आज सुनीता के घर वालों से मिल लेगा और जल्द ही सुनीता से कह देगा –"सुनीता मैं तुम्हें बहुत प्यार करता हूँ क्या तुम मुझसे शादी करोगी?"

सब कुछ कैसे एक पल में ख़त्म हो गया उसे पता भी न चला और उसके सपने जो उसने सजा लिए थे, वो बच्चे.....इंजीनियर.....डॉक्टर.....वकील.....सुनीता को हमेशा ख़ुश रखना .......सब एक पल में ख़त्म हो जाएगा और इस तरह उसने कभी सपने में भी न सोचा था ।

ज़िंदगी कैसे एक पल में सब कुछ छीन लेती है उसे दिख रहा था। सुनील इन सब बातों को सोचता और ज़्यादा ही रोता। पूरी रात सुनील सोचता और रोता,रोता और सोचता और फिर रोता। उसे आज ऐसा ही महसूस हो रहा था मानो जैसे किसी कच्चे घर की दीवारों को किसी ने पानी डाल कर बहा दिया हो,जैसे कोई किसान बीज बोए और वैसे ही बारिश पड़ जाए।

अगले कुछ दिन सुनील कॉलेज नहीं गया और न ही अमित और हिना का कॉल उठाया। सुनील जब कॉलेज गया तो मानो आज उसे सब कुछ अजनबी-सा लगा।

ये पेड़,ये रास्ता जिन पर से रोजाना वह कॉलेज जाता था पर आज जैसे ये उसे पीछे धकेल रहे थे । कॉलेज में अंदर जाते ही हिना ने सुनील को देख लिया।

"सुनील यार कहा था तू? इतने दिन से दिखा नहीं न कॉल उठा रहा था न कोई मैसेज? तबीयत तो ठीक है तेरी?" – हिना ने एक सांस में कई सवाल सुनील की ओर दाग दिए ।

"कुछ नहीं ऐसे ही"-सुनील ने इतना कहा और चला गया। सुनील ने सबसे बात करना बंद कर दिया । न कैंटीन जाना न किसी से मिलना न किसी के साथ रहना। अब वो पूरे दिन लाइब्रेरी में बैठा रहता।

सुनीता ने भी उससे भी मिलने की कई कोशिशें की पर वो नहीं मिला।उसके चुट्कुले भी मानो कहीं शोक मनाने जा चुके थे। उसका हँसता चेहरा कब इतना गंभीर हो गया किसी को पता न चला।

अमित सबसे ज़्यादा दुखी था वो सुनील को कभी ऐसे भी देखेगा उसने कल्पना भी न की थी ।हिना ने भी कई बार सुनील को चाय के लिए कहा लेकिन उसने हर बार "दिल नहीं है" कह कर मना कर दिया ।

एक रोज़ क्लास ख़त्म होने के बाद सुनीता ने सुनील का हाथ पकड़ा और कहा –

"सुनील बात क्या है? इतने दिन से देख रही हूँ न तुम मुझसे बात कर रहे हो, न मिल रहे हो और सीधे मुंह देखते भी नहीं हो आख़िर क्या प्रोब्लेम है तुम्हारी? अगर मैंने कुछ कहा है या किया है तो बताओ न या अमित या हिना तुम्हें मेरा नाम लेकर चिढ़ाते हैं तो मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता लेकिन बताओ तो सही आख़िर बात क्या है क्यों कर रहे हो तुम ऐसा?"

सुनीता एक ही साँस में सब कह दिया मानो अगर बीच में रुकी तो सुनील हाथ छुड़ा कर चला न जाए।सुनील चुपचाप सुनीता की सारी बात सुनता रहा और मन ही मन कई जवाब दे दिए

"क्या तुम्हें नहीं पता कि मैं ऐसा क्यों हो गया? क्या तुम्हें नहीं याद कब से हूँ मैं ऐसा?"

सुनील चुप रहा कहना तो बहुत कुछ चाहता था पर कहता क्या
"कि वो तुमसे से बेपनाह मोहब्बत करता है। नहीं जी सकता वो तुम्हारे बिना और वो 126 जो उसके दिमाग में गढ़ गया था वो उसे कभी नहीं भूल सकता । वो सुनीता को आज भी उतनी ही मोहब्बत करता है जितनी किया करता था ।

वह सुनीता के सीने से लग कर कह देना चाहता था कि वह उसके साथ अपनी पूरी ज़िंदगी बिताना चाहता है लेकिन कहता भी क्या जब सुनीता को पता था कि वो उसे पसंद करता है तब भी उसने एक बार भी न बताया कि उसकी सगाई हो रही है।"

सुनील एक मूर्ति बने सुनीता के सामने खड़ा रहा। उसकी आँखों में अपना प्यार ढूँढता रहा जिसे वो कभी पाना चाहता था।

सुनीता ने हिना से बात कि तो पता चला कि एक रोज कॉलेज में सुनील काफ़ी ख़ुश था उसके बाद वह कुछ दिन कॉलेज नहीं आया और आया तो तब से ऐसा ही है। सुनीता को याद आया कि सुनील उस दिन उसके घर आया था। उसने हिना को यह बात बता दी कि वो मेरे घर आया था ।

"तभी वो इतना ख़ुश था"- हिना ने कहा

"मतलब"

"मतलब तुम्हें नहीं पता वो तुमसे कितना प्रेम करता है पर उसके बाद उसने सबसे बात करना ही बंद कर दिया और पूछो तो भी कुछ बताता भी नहीं है।"

सुनीता को अब सब कुछ समझ आ गया था कि उस दिन मेरी सगाई कि बात सुन कर आख़िर वो घर से क्यों चला आया था।

सुनीता ने दोबारा सुनील से मिलने की कोशिश की पर सुनील न मिला। सुनीता भी जानती थी कि सुनील आज भी उसे कितना प्यार करता है और कहीं न कहीं वो भी उसे प्रेम करने लगी थी पर अब बात बहुत आगे बढ़ चुकी थी । यह रिश्ता उसके माता-पिता ने कराया था जो अब अटूट हो गया था।

परीक्षा ख़त्म हो चुकी थी और अगले ही साल सुनीता की शादी भी हो गयी। सुनील दिल्ली यूनिवर्सिटी में पढ़ाने लगा था। सरकार की तरफ से उसे लाजपत नगर में कृष्णा मार्केट में ही फ्लैट मिला । फ्लैट नंबर 126 ।

यह संयोग था या कुछ और ।उसने पता किया यहाँ जो पहले रहते थे वो कहाँ चले गए पड़ोसी ने बताया कि बेटी की शादी के बाद वो सब अपने गाँव चले गए। सुनील जब वहाँ पहुँचा तो सब कुछ वैसा ही था जैसा की आख़िरी दफा सुनील इसे छोड़ कर गया था ।

वहीं दीवारें उनका रंग, उन पर पेंटिंग सब कुछ वैसा ही था। सुनील मानो फिर से उसी संसार में खो गया जहाँ वो आज भी वहीं खड़ा था न आज तक उसका सुनीता के प्रति प्रेम कम हुआ न उसकी याद।

आज जब वह उसी घर में आ गया था जहाँ सुनीता ने अपना बचपन बिताया था। सुनील उठा और अंदर कमरों को जाकर देखता ऐसा लगता था 4-5 साल की सुनीता पापा-पापा करती हुई यहाँ से वहाँ भाग रही है,कभी उसे सुनाई देता "देखो सुनील यह पेंटिंग! हम कहा करते थे न हम से अच्छी पेंटिंग कोई दूसरा नहीं बना सकता...... अरे सुनील हम भी न एक दम बुद्धू हैं ... बताओ चाय पियोगे न ... अरे हाँ बाबा कैंटीन जैसी न बना पाएंगे पर जैसी है पिलो ...लो पकड़ों ..."सुनील ने जैसे ही हाथ बढ़ाया देखा तो वहाँ तो कुछ भी न बस था तो एक सन्नाटा और सुनीता की यादें।

एक ऐसा ताजमहल जिसमें सब कुछ था पर बेरंग था उसकी मुमताज़ तो थी ही नहीं इसमें।सब कुछ जैसा का वैसा था सुनील,सुनीता की यादें और यह फ्लैट नंबर 126। सुनील उठा और सोफ़े पर आ कर बैठ गया और आँखें बंद कर लीं । बाहर से जौन एलिया के शे'र की पंक्तियाँ हवा में बह रही थीं –

ये मुझे चैन क्यूँ नहीं पड़ता
एक ही शख़्स था जहान में क्या .......
 
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