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Adultery ☆ प्यार का सबूत ☆ (Completed)

What should be Vaibhav's role in this story..???

  • His role should be the same as before...

    Votes: 19 9.9%
  • Must be of a responsible and humble nature...

    Votes: 22 11.5%
  • One should be as strong as Dada Thakur...

    Votes: 75 39.1%
  • One who gives importance to love over lust...

    Votes: 44 22.9%
  • A person who has fear in everyone's heart...

    Votes: 32 16.7%

  • Total voters
    192

Nevil singh

Well-Known Member
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173
☆ प्यार का सबूत ☆
अध्याय - 29
----------☆☆☆----------




अब तक,,,,,,

भाभी की बात सुन कर मैं कुछ न बोला बल्कि भाभी के पेट से छुपका हुआ मैं बस यही सोच कर दुखी होता रहा कि काश मेरे भैया को मेरी उम्र लग जाए। कुछ देर बाद मैं भाभी से अलग हुआ। मैंने देखा उनकी आँखों में आंसू तैर रहे थे। संसार भर की मासूमियत विद्यमान थी उस पाक़ चेहरे में।

"एक बात बताइए भाभी।" मैंने गहरी सांस लेते हुए कहा____"भैया को अपने बारे में वो सब बातें कैसे पता हैं? क्या आपने उन्हें बताया है?"
"वो असल में बात ये हुई थी।" भाभी ने कहा____"कि एक दिन दादा ठाकुर मुझे उन्हीं सब बातों के लिए समझा रहे थे तो तुम्हारे भैया ने सुन लिया था। उसके बाद उन्होंने मुझसे उस बारे में पूछा था लेकिन मैंने जब उन्हें कुछ नहीं बताया तो उन्होंने अपनी कसम दे दी। उनकी कसम से मजबूर हो कर मुझे उन्हें सब कुछ बताना ही पड़ा।"


अब आगे,,,,,



"तो इस तरीके से भैया को अपने बारे में वो सब पता चला।" मैंने सोचने वाले भाव से कहा____"ख़ैर भैया के उस बर्ताव ने मुझे बड़ी हैरत में डाल रखा है भाभी। होली के दिन वो मुझसे ऐसे मिले थे जैसे हमारा भरत मिलाप हुआ था। उन्होंने बड़ी ख़ुशी से मुझे अपने गले लगाया था और फिर उसी ख़ुशी में उन्होंने ये कह कर मुझे भांग वाला शरबत भी पिलाया था कि आज वो बहुत खुश हैं। उनके उस बर्ताव से मैं भी बेहद खुश हो गया था लेकिन कल शाम को जब मैं उनसे मिलने उनके कमरे में गया तो वो मुझे बेहद गुस्से में नज़र आए थे और उसी गुस्से में मुझे ये तक कहा था कि वो मुझसे कोई बात नहीं करना चाहते और अगर मैं उनके सामने से न गया तो वो मेरे टुकड़े टुकड़े कर देंगे। मैं उस वक़्त उनके उस वर्ताव से आश्चर्य चकित था भाभी। मुझे अब भी समझ नहीं आ रहा कि उनका अचानक से वैसा वर्ताव कैसे हो गया? आख़िर अचानक से उन्हें क्या हो गया था कि वो मुझे देखते ही बेहद गुस्से में आ गए थे जबकि मैंने तो उन्हें कुछ कहा भी नहीं था?"

"उनका ऐसा वर्ताव मेरे साथ भी है वैभव।" भाभी ने गहरी सांस ले कर उदास भाव से कहा____"पिछले कुछ समय से बड़ा अजीब सा वर्ताव कर रहे हैं वो। किसी किसी दिन वो अपने आप ही मुझसे गुस्सा हो जाते हैं और उस गुस्से में वो ऐसी बातें बोलते हैं जो बताने में भी मुझे शर्म आएगी। शुरू शुरू में मैं भी तुम्हारी तरह उनके ऐसे वर्ताव से चकित हो जाती थी किन्तु अब आदत हो गई है।"

"क्या पिता जी को बड़े भैया के ऐसे वर्ताव के बारे में पता है?" मैंने भाभी की तरफ देखते हुए पूछा____"क्या आपने पिता जी को उनके ऐसे वर्ताव के बारे में बताया नहीं?"
"हां उन्हें पता है।" भाभी ने कहा____"मैंने ही उन्हें बताया था। मेरे बताने पर पिता जी ने यही कहा कि तुम्हारे भैया का ऐसा वर्ताव शायद इस वजह से होगा कि उन्हें अपने बारे में वो भविष्यवाणी पता चल गई है जिसकी वजह से वो रात दिन उस बारे में सोचते होंगे और वो सब सोच सोच कर खुद को हलकान करते होंगे। इस वजह से किसी किसी दिन वो थोड़ा चिड़चिड़े हो कर ऐसा वर्ताव करते हैं।"

"क्या आपने और पिता जी ने बड़े भैया से उनके ऐसे वर्ताव के बारे में कुछ नहीं पूछा?" मैंने कहा____"जब आपको और पिता जी को उनके बारे में सब पता है तो उनके लिए आप दोनों को फिक्रमंद होना चाहिए था। उन्हें हर हाल में खुश रखने की कोशिश करनी चाहिए थी।"

"तुम्हें क्या लगता है वैभव कि हमने ऐसी कोशिश ही नहीं की?" भाभी ने गंभीर भाव से कहा____"नहीं वैभव, हमने इस बारे में तुम्हारे भैया से बहुत पूछा लेकिन उन्होंने कुछ नहीं बताया। दादा ठाकुर कई बार उन्हें अपने साथ ले कर शहर गए और वहां अकेले में उनसे उनके उस वर्ताव के बारे में पूछा लेकिन तुम्हारे भैया ने उन्हें कुछ नहीं बताया। सिर्फ ये कहा कि उन्हें अब हर चीज़ से नफ़रत सी हो गई है। मैं उनकी पत्नी हूं वैभव और मुझे उनके लिए सबसे ज़्यादा दुःख है। हर रोज़ उनसे पूछती हूं और समझाती भी हूं। थोड़े समय के लिए उनका वर्ताव बहुत अच्छा हो जाता है लेकिन सुबह आँख खुलते ही उनका वर्ताव फिर से वैसा ही हो जाता है। मैं रात दिन इसी सोच में कुढ़ती रहती हूं कि आख़िर उन्हें कैसे खुश रखूं? संसार के सभी देवी देवताओं की पूजा भक्ति करती हूं लेकिन कोई फायदा नहीं हो रहा। आज जिस तरह के हालात बने हुए हैं उसे देख कर ये भी ख़याल रखना पड़ता है कि उनके बारे में ऐसी बात हवेली के बाहर न जाए वरना जो भी हमारा दुश्मन होगा उसे इस बात से यकीनन कोई न कोई फायदा हो जाएगा। हवेली में भी उनके बारे में ऐसी बात बाकी किसी को पता नहीं है। हवेली में किसी को उनके बारे में इसी लिए नहीं बताया गया क्योंकि ऐसी बातें माँ जी के कानों तक भी पहुंच जाएंगी और माँ जी उनके बारे में ऐसी बातें सहन नहीं कर पाएंगी। झूठी ही सही लेकिन अपने चेहरे पर हंसी और मुस्कान सजा कर रखनी पड़ती है ताकि हवेली में इस बात की भनक किसी भी तरह से किसी को न लग सके। सबसे ज़्यादा दुखी तो मैं हूं वैभव क्योंकि उन्हीं से तो मेरा सब कुछ है। अगर उन्हें ही कुछ हो गया तो मेरा तो सब कुछ उजड़ ही जायेगा न।"

भाभी ये सब कहने के बाद फफक फफक कर रोने लगीं थी। उनकी बातों ने मेरे दिलो दिमाग़ को झकझोर कर रख दिया था। मुझे एहसास हो रहा था कि इतना सब कुछ होने के बाद भाभी के लिए इस हवेली में सबके सामने अपने होठों पर मुस्कान सजा के रहना कितना मुश्किल होता होगा। मैं समझ नहीं पा रहा था कि ईश्वर मेरी देवी सामान भाभी के भाग्य में ऐसा दुःख क्यों लिख दिया था? इतनी छोटी सी उम्र में उन्हें विधवा बना देने का अन्याय क्यों कर रहा था? मेरी नज़र भाभी के रोते हुए चेहरे पर पड़ी। दुःख और पीड़ा के भाव से उनका खूबसूरत चेहरा बिगड़ गया था। मेरे दिल में एक हूक सी उठी और मैंने धीरे से उनके कंधे पर अपना एक हाथ रखा तो उन्होंने चेहरा उठा कर मेरी तरफ देखा और फिर एक झटके से मेरे सीने से लिपट ग‌ईं। उनके लिपटते ही मेरा वजूद जैसे हिल सा गया। इस वक़्त मेरे मन में उनके लिए कोई भी ग़लत भावना नहीं थी बल्कि मैं बड़े प्यार से उन्हें खुद से छुपका कर उन्हें दिलाशा देने लगा था।

"मत रोइए भाभी।" मैंने उन्हें चुप कराने की गरज़ से कहा____"बड़े भैया को कुछ नहीं होगा। मैं अपने बड़े भैया को कुछ होने भी नहीं दूंगा। भगवान के लिए चुप हो जाइए। आप तो मेरी सबसे अच्छी और बहादुर भाभी हैं। आप इस तरह से हिम्मत नहीं हार सकती हैं। सब कुछ ठीक हो जाएगा। मेरे रहते भैया को कुछ नहीं होगा।"

"मुझे झूठा दिलासा मत दो वैभव।" भाभी ने मुझसे अलग हो कर और दुखी भाव से कहा____"तुम किसी के प्रारब्ध को नहीं बदल सकते और न ही तुम भगवान के लिखे को मिटा सकते हो। अब तो सारी ज़िन्दगी मुझे यूं ही तड़प तड़प के जीना है।"

"माना कि मैं किसी के प्रारब्ध को नहीं बदल सकता और न ही भगवान के लिखे को मिटा सकता हूं।" मैंने भाभी से कहा____"लेकिन अपनी आख़िरी सांस तक सब कुछ ठीक कर देने की कोशिश तो कर ही सकता हूं न भाभी? अभी तक तो मुझे अपनी किसी भी ज़िम्मेदारी का एहसास ही नहीं था लेकिन अब मैं हर ज़िम्मेदारी को अपनी जान दे कर भी निभाउंगा और ये मैं यूं ही नहीं कह रहा बल्कि ये वैभव सिंह का वादा है आपसे...और हां एक वादा मैं आपसे भी चाहता हूं।"

"मुझसे??" भाभी ने थोड़े हैरानी भरे भाव से मुझे देखा।
"हां भाभी।" मैंने कहा____"आपसे भी मुझे एक वादा चाहिए और वो ये कि आप ख़ुद को दुखी नहीं रखेंगी और अपनी आँखों से इस तरह आँसू नहीं बहाएंगी। मुझसे वादा कीजिए भाभी।"

"बहुत मुश्किल है वैभव।" भाभी की आँख से आंसू का एक कतरा छलक कर उनके खूबसूरत गाल पर बह आया जिसे मैंने अपने एक हाथ से पोंछा और फिर उनकी तरफ देखते हुए कहा____"ये आख़िरी आंसू था भाभी जो आपकी आँखों से निकला है। अब से कोई आंसू नहीं निकलना चाहिए। मुझसे वादा कीजिए कि अब से आप न तो ख़ुद को दुखी रखेंगी और न ही अपनी आँखों से आंसू बहाएंगी।"

मेरे कहने पर भाभी मुझे कुछ पलों तक अपलक देखती रहीं और फिर हल्के से अपना सिर हां में हिलाया। रोने की वजह से उनका बेदाग़ और खूबसूरत चेहरा थोड़ा मलिन हो गया था। मैं ख़ामोशी से कुछ पलों तक उन्हें देखता रहा और फिर बिना कुछ कहे उसी ख़ामोशी से पलट कर कमरे से बाहर निकल गया। इस वक़्त मेरे ज़हन में भैया और भाभी ही थे और मैं उन दोनों के बारे में सोचते हुए हवेली से बाहर निकल गया।


☆☆☆

उस वक़्त शाम पूरी तरह से घिर चुकी थी और रात का अँधेरा धीरे धीरे पूरी कायनात को अपनी आगोश में समेटने लगा था। हालांकि इस वक़्त ज़्यादा वक़्त नहीं हुआ था क्योंकि गांव के लोग अभी जाग ही रहे थे। बिजली इस वक़्त गई हुई थी इस लिए घरों में लालटेन के जलने का प्रकाश दिख रहा था। मैं पैदल ही अँधेरे में चलता हुआ एक तरफ तेज़ी से बढ़ा चला जा रहा था। ये गांव का पूर्वी छोर था और इस छोर पर मैं साढ़े चार महीने बाद आया था। मैं अकेला था और पैदल ही चल रहा था इस लिए इस बात का भी ख़याल था मुझे कि मेरे आस पास मेरा कोई दुश्मन न मौजूद हो जो आज कल मेरी ही फ़िराक में है। हालांकि दादा ठाकुर ने मेरी सुरक्षा के लिए एक साए को लगा रखा है लेकिन अपनी तरफ से भी सतर्क रहना मेरे लिए निहायत ही ज़रूरी था।

काफी देर तक पैदल चलने के बाद मैं एक पक्के मकान के पास आ कर रुक गया। मकान के बगल से नीम का एक बड़ा सा पेड़ था जिसके नीचे चबूतरा बना हुआ था। इस वक़्त चबूतरे पर कोई नहीं था। मैंने देखा मकान का दरवाज़ा खुला हुआ है और अंदर लालटेन का हल्का प्रकाश फैला हुआ है। मैं नीम के पेड़ के पास ही अँधेरे में खड़ा हुआ था। आस पास और भी घर थे लेकिन घर के बाहर इस वक़्त कोई नहीं दिख रहा था। मैंने आस पास का अच्छे से मुआयना किया और फिर उस पक्के मकान के खुले हुए दरवाज़े की तरफ बढ़ चला।

मैं चलते हुए अभी उस दरवाज़े के क़रीब पंहुचा ही था कि तभी अंदर से मेरी ही उम्र का जो शख़्स आता हुआ दिखा मुझे वो चेतन था। उसे देख कर मैं अपनी जगह पर रुक गया। बाहर क्योंकि अँधेरा था इस लिए वो मुझे देख नहीं सकता था। ख़ैर कुछ ही पलों में जब वो दरवाज़े के बाहर अँधेरे में आया तो मैंने उसे दबोच लिया और जल्दी से उसके मुख पर अपने एक हाथ ही हथेली रख दी। चेतन मेरे द्वारा अचानक की गई इस हरकत से बुरी तरह डर गया और मुझसे छूटने की कोशिश करने ही लगा था कि तभी मैंने गुर्राते हुए धीमी आवाज़ में कहा____"ज़्यादा फड़फड़ा मत वरना एक ही झटके में तेरी गर्दन मरोड़ दूंगा। उसके बाद क्या होगा ये बताने की ज़रूरत नहीं है मुझे।"

चेतन मेरी सर्द आवाज़ सुन कर एकदम से ढीला पड़ गया। वो मेरी आवाज़ से मुझे पहचान चुका था। जब वो ढीला पड़ गया तो मैंने धीरे से ही कहा____"डर मत, मैं तेरे साथ कुछ नहीं करुंगा लेकिन हां ज़्यादा तेज़ आवाज़ की तो जान से मार दूंगा तुझे। बात समझ में आई कि नहीं?"

मेरे कहने पर उसने हां में अपने सिर को जल्दी से हिलाया तो मैंने उसे छोड़ दिया। मेरे छोड़ देने पर चेतन एकदम से मुझसे दूर हुआ और अपनी उखड़ी हुई साँसों को काबू करते हुए कहा____"ये क्या था वैभव? तूने तो मेरी जान ही निकल दी थी।"

"मेरे साथ चल।" मैंने कहा तो उसने चौंक कर पूछा____"कहां चलूं?"
"जहन्नुम में।" मैंने शख़्त भाव से कहा तो चेतन अँधेरे में मुझे कुछ पलों तक घूरा और फिर मेरे पीछे चल पड़ा।

मैं चलते हुए नीम के पेड़ के पास आ कर रुक गया तो चेतन भी रुक गया। वो मेरे पास ही खड़ा था इस लिए उसके चेहरे के भावों से मैं समझ सकता था कि इस वक़्त उसके मन में क्या चल रहा है।

"मुझे समझ नहीं आ रहा कि तू इस वक़्त यहाँ कैसे?" चेतन से जब न रहा गया तो उसने मुझसे कहा____"क्या मेरी ग़लती की सज़ा देने आया है यहाँ?"
"भूल जा उस बात को।" मैंने सपाट लहजे में कहा____"मैंने तुम दोनों को माफ़ कर देने का फैसला किया है लेकिन....।"

"लेकिन???" चेतन हकलया।
"लेकिन ये कि उसके लिए मैं तुम दोनों को जो कहूंगा वो करना पड़ेगा।" मैंने शख़्त भाव से ये कहा तो चेतन जल्दी से बोल पड़ा____"बिल्कुल करेंगे भाई। तू बस एक बार बोल के तो देख।"

"ठीक है।" मैंने कहा____"कल सुनील के साथ गांव के बाहर उसी जगह पर मिलना जहां पर हम पहले मिला करते थे।"
"क्या कोई नई माल हाथ लगी है?" चेतन ने खुश होते हुए जल्दी से पूछा तो मैंने उसके पेट में हल्के से एक मुक्का जड़ते हुए कहा____"बुरचटने साले। तुझे क्या मैं दल्ला नज़र आता हूं?"

"तो फिर मेरा सुनील के साथ उस जगह मिलने से तेरा क्या मतलब है?" चेतन ने कराहते हुए कहा तो मैंने कहा____"मेरा मतलब तुम दोनों की गांड मारने से है। आज रात तू अपनी गांड में अच्छे से तेल लगा लेना ताकि कल जब मैं तेरी गांड में अपना सूखा लंड डालूं तो तुझे दर्द न हो गांडू।"

"ये क्या कह रहा है तू?" चेतन की हवा निकल गई, घबरा कर बोला____"भगवान के लिए ऐसा मत करना वैभव। क्या गांड मारने के लिए तुझे कोई लड़की नहीं मिली जो अब तू हम दोनों की मारने की बात कह रहा है?"

"बकवास बंद कर भोसड़ी के।" मैंने इस बार गुस्से में कहा____"मुझे तुम दोनों की सड़ियल गांड में कोई दिलचस्पी नहीं है। अब जा अपनी गांड मरा। कल समय से उस जगह पर मिल जाना वरना तेरे घर आ कर तेरी गांड मारुंगा।"

चेतन मेरी बात सुन कर मूर्खों की तरह मेरी तरफ देखता रह गया था और मैं पलट कर हवेली की तरफ वापस चल पड़ा था। मेरे ज़हन में इस वक़्त कई सारी बातें चल रहीं थी जिनके बारे में मैं गहराई से विचार करता जा रहा था।


☆☆☆

जब मैं हवेली पंहुचा तो माँ से सामना हो गया मेरा। उन्होंने मुझे देखते ही पूछा कि कहां चला गया था तू? उन्होंने बताया कि उन्होंने खुद मुझे हवेली में हर जगह खोजा था लेकिन मैं उन्हें कहीं नहीं मिला था। उनके पूछने पर मैंने उन्हें बताया कि मैं बाहर खुली हवा लेने गया था। मेरी बात सुनने के बाद माँ ने कुछ पलों तक मुझे देखा और फिर बोलीं कि खाने के लिए सब मेरा इंतज़ार कर रहे हैं।

गुसलखाने में जा कर मैंने हाथ मुँह धोया और सबके साथ खाना खाने आ गया। आज खाने पर काफी सारे लोग बैठे हुए थे। जगताप चाचा जी के लड़के भी थे किन्तु मेरी नज़र बड़े भैया पर थी। उनके चेहरे पर कोई भाव नहीं था। मुझ पर नज़र पड़ते ही उन्होंने इस तरह से अपना मुँह फेर लिया जैसे वो मुझे देखना ही नहीं चाहते थे। मुझे उनके इस वर्ताव से थोड़ा दुःख तो हुआ लेकिन फिर ये सोच कर खुद को समझा लिया कि इसमें शायद उनकी कोई ग़लती नहीं है बल्कि इसके पीछे वही वजह है जिसके बारे में भाभी ने बताया था। मैंने मन ही मन निश्चय कर लिया कि अब मुझे क्या करना है। ख़ैर हम सबने पिता जी की इजाज़त मिलते ही ख़ामोशी से भोजन करना शुरू किया।

खाना खाने के बाद सब अपने अपने कमरों की तरफ चले गए। मैं भी चुपचाप अपने कमरे की तरफ चल दिया तो आगे बरामदे के पास मुझे कुसुम मिल गई। मैंने उसे खाना खाने के बाद मेरे कमरे में आने को कहा तो उसने सिर हिला दिया। बिजली आ गई थी इस लिए हवेली में हर तरफ उजाला फैला हुआ था। मैं आँगन से न जा कर लम्बे चौड़े बरामदे से चल कर दूसरी तरफ जा रहा था। असल में मेरी नज़र उस नौकरानी को खोज रही थी जो मेनका चाची से बातें कर रही थी और मुझे देखते ही घबरा सी गई थी।

बरामदे से चलते हुए मैं दूसरी तरफ आ गया। इस बीच मुझे दूसरी कई नौकरानियाँ दिखीं लेकिन वो नौकरानी मुझे नज़र न आई। हवेली इतनी बड़ी थी कि उसमे कमरों की कोई कमी नहीं थी। हवेली के सभी नौकर और नौकरानियों के लिए अलग अलग कमरे थे जो हवेली के बाएं छोर पर थे। हालांकि कुछ नौकर और नौकरानी शाम को अपने अपने घर चले जाते थे लेकिन कुछ हवेली में ही रहते थे। माँ और चाची के लिए दो दो नौकरानियाँ थी। जिनमे से एक एक माँ और चाची के कपड़े धोती थी और दूसरी उनका श्रृंगार करती थी। भाभी के लिए भी इसी तरह दो नौकरानियाँ थी। हालांकि भाभी को अपने काम खुद करना पसंद था किन्तु माँ की बात रखने के लिए उन्हें नौकरानियों को काम देना पड़ता था। बाकी की नौकरानियाँ मर्दों के कपड़े धोती थी और हवेली की साफ़ सफाई करती थी। नौकरों का काम हवेली के बाहर की साफ़ सफाई का था जिसमे बग्घी वाले घोड़ों की देख भाल करना भी शामिल था।

मैं दूसरी तरफ आ चुका था। मेरी नज़र अभी उस नौकरानी को खोज रही थी। मेरे मन में ख़याल उभरा कि क्या वो नौकरानी मेनका चाची की होगी? क्योंकि वो उन्हीं के पास खड़ी थी और चाची उससे बातें कर रही थी। मैंने कभी इस बात पर ध्यान ही नहीं दिया था कि हवेली में रहने वाली नौकरानियों में कौन किसका काम करती हैं। पहले वाली सभी नौकरानियों को पिता जी ने मेरी वजह से हवेली से निकाल दिया था। आज अगर वो नौकरानियाँ हवेली में होतीं तो मेरे कहने पर वो कुछ भी कर सकती थीं। ख़ैर मैं सीढ़ियों पर चढ़ कर ऊपर अपने कमरे की तरफ चल पड़ा।

कमरे में आ कर मैंने अपनी कमीज उतारी और पंखा चालू कर के पलंग पर लेट गया। पलंग पर लेटा मैं सोच रहा था कि आज के समय में मेरे सामने कई सारे ऐसे मामले थे जिनको मुझे सुलझाना था। पहला मामला मुरारी काका की हत्या का था जो कि दिन-ब-दिन एक रहस्य सा बनता जा रहा था। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि आख़िर किस वजह से मुरारी काका का क़त्ल किया गया होगा? क्या सिर्फ इस लिए कि उनकी हत्या कर के मुझे फंसा दिया जाए और उनकी हत्या के जुर्म में कानूनन मुझे जेल हो जाए? पिता जी का तो यही सोचना था इस बारे में। ख़ैर दूसरा मामला था साहूकारों का कि उन्होंने क्या सोच कर हमसे अपने रिश्ते सुधारे होंगे? क्या ऐसा करने के पीछे सच में उनका कोई मकसद छिपा है? तीसरा मामला था हवेली में रहने वाले मेरे चचेरे भाइयों का। आख़िर मैंने उनका क्या बुरा किया है जिसकी वजह से वो दोनों मुझसे दूर दूर रहते हैं? चौथा मामला था मेरे बड़े भाई साहब का जो कि किसी रहस्य से कम नहीं था। कुल गुरु ने उनके बारे में भविष्यवाणी की है कि उनका जीवन काल बस कुछ ही समय का है। सवाल है कि आख़िर ऐसा क्यों? वहीं एक तरफ सोचने वाला सवाल ये भी है कि आख़िर बड़े भैया का वर्ताव ऐसा क्यों हो जाता है कि वो मुझसे या भाभी से गुस्सा हो जाते हैं? हालांकि एक सवाल तो ये भी है कि क्या उनका ऐसा वर्ताव हवेली के बाकी लोगों के साथ भी है या उनके ऐसे वर्ताव के शिकार सिर्फ मैं और भाभी ही हैं? पांचवा मामला था कुसुम का। हमेशा अपनी नटखट और चुलबुली हरकतों से हवेली में शोर मचाने वाली कुसुम कभी कभी इतना गंभीर क्यों हो जाती है? आख़िर चार महीने में ऐसा क्या हो गया है जिसने उसे गंभीर बना दिया है? ऐसे अभी और भी मामले थे जो मेरे लिए रहस्य ही बनते जा रहे थे जैसे कि रजनी का रूपचन्द्र के साथ सम्बन्ध और वो दो साए जो मुझे उस दिन बगीचे में मारने आये थे।

मैं इन सभी मामलों में इतना खो गया था कि मुझे पता ही नहीं चला कि कब मेरे कमरे में कुसुम आ कर खड़ी हो गई थी। उसने जब मुझे आवाज़ दी तो मैं चौंक कर विचारों के समुद्र से बाहर आया।

"मैंने आपका नाम सोचन देव ठीक ही रखा है।" कुसुम ने पलंग के किनारे पर बैठते हुए कहा____"पता नहीं आज कल आपको क्या हो गया है कि हर वक़्त कहीं न कहीं खोए हुए ही नज़र आते हैं।"

"वक़्त और हालात ही ऐसे हैं कि मुझे हर पल खो जाने पर मजबूर किए रहते हैं।" मैंने थोड़ा सा उठ कर पलंग की पुष्ट पर अपनी पीठ टिकाते हुए कहा____"ख़ैर ये सब छोड़ और ये बता खाना खा लिया तूने?"

"हां खाना खा कर ही आई हूं यहां।" कुसुम ने कहा____"आप बताइए किस लिए बुलाया था मुझे?"
"अगर मैं तुझसे ये पूछूं कि तू मुझसे कितना प्यार करती है।" मैंने उसकी आँखों में देखते हुए ख़ास भाव से कहा____"तो क्या तू इसका सच सच जवाब देगी?"

"ये...ये क्या कह रहे हैं आप?" कुसुम ने हैरत से मेरी तरफ देखते हुए कहा तो मैंने कहा____"क्यों क्या ग़लत कह रहा हूं मैं? क्या तू अपने इस भाई से प्यार नहीं करती?"
"वो तो मैं करती हूं।" कुसुम ने कहा____"एक आप ही तो हैं जो मेरे सबसे अच्छे वाले भैया हैं। भला कौन ऐसी बहन होगी जो ऐसे भाई से प्यार नहीं करेगी? आप ये क्यों पूछ रहे हैं?"

"वो इस लिए कि तू अपने इस भाई से सच छुपा रही है।" मैंने उसके चेहरे की तरफ देखते हुए कहा____"अगर तू सच में अपने इस भाई से प्यार करती है तो मुझे वो बता जिसे तू मुझसे छुपा रही है। मुझे बता कि इन चार महीनों में यहाँ पर ऐसा क्या हुआ है जिसने तुझे गंभीर बना दिया है?"

"ऐसी कोई बात नहीं है भइया।" कुसुम ने नज़रें चुराते हुए कहा____"आप बेवजह ही इस बात की शंका कर रहे हैं। मैं तो वैसी ही हूं जैसी हमेशा से थी। आपको ऐसा क्यों लगता है कि चार महीनों में यहाँ पर कुछ ऐसा हुआ है जिसने मुझे गंभीर बना दिया है?"

"तूने शायद भुला दिया होगा लेकिन मुझे अभी भी याद है।" मैंने कहा____"जब मैं चार महीने बाद यहाँ आया था तब इसी कमरे में मेरी तुझसे बातें हो रही थी। उन्हीं बातों में तूने मुझसे कहा था कि यहाँ तो कुछ लोग ऐसे भी हैं जो ख़ुशी से ऐसे भी काम करते हैं जिसे वो गुनाह नहीं समझते। अब बता बहना, तू उस वक़्त ऐसे किन लोगों की बात कर रही थी और हां मुझसे झूठ मत बोलना। मुझे सच सुनना है तुझसे।"

मेरी बात सुन कर कुसम के चेहरे पर एकदम से कई सारे भाव आते जाते दिखाई देने लगे। वो एकदम से मुझे कुछ परेशान सी और कुछ घबराई हुई सी दिखाई देने लगी थी। उसके खूबसूरत और मासूम से चेहरे पर बेचैनी से पसीना उभर आया था। मैं अपलक उसी को देख रहा था और समझ भी रहा था कि उसके मन में बड़ी तेज़ी से कुछ चलने लगा है।

"क्या हुआ?" जब वो कुछ न बोली तो मैंने कहा____"तू इतना परेशान और घबराई हुई सी क्यों दिखने लगी है? आख़िर क्या बात है बहना? मुझसे बेझिझक हो कर बता। तू अच्छी तरह जानती है कि तेरा ये भाई तुझे किसी भी हालत में परेशान या दुखी होते नहीं देख सकता। अगर कोई बात है तो तू मुझे बिना संकोच के बता दे। मैं तुझसे वादा करता हूं कि मेरे रहते तुझे कोई कुछ नहीं कहेगा।"

मेरी बात सुन कर कुसुम ने नज़र उठा कर मेरी तरफ देखा। उसके चेहरे पर दुःख और पीड़ा के भाव उभर आये थे। उसकी आँखों में आंसू तैरते हुए नज़र आए मुझे। उसके गुलाब की पंखुड़ियों जैसे होठ कांप रहे थे। अभी शायद वो कुछ बोलने ही वाली थी कि तभी कमरे के बाहर से एक आवाज़ आई जिसे सुन कर कुसुम के साथ साथ मेरा भी ध्यान उस आवाज़ पर गया। कमरे के बाहर विभोर था और वो कुसुम को आवाज़ दे कर ये कहा था कि माँ बुला रही हैं उसे। विभोर की ये बात सुन कर कुसुम ने मेरी तरफ बेबस भाव से देखा और फिर चुपचाप पलंग से उठ कर कमरे से बाहर चली गई।

कुसुम तो चली गई थी लेकिन मैं ये सोचने पर मजबूर हो गया था कि आख़िर ऐसी क्या बात थी कि मेरे पूछने पर उसके चेहरे पर इस तरह के भाव मानो तांडव सा करने लगे थे? अभी मैं ये सोच ही रहा था कि तभी मैं चौंका। मेरे ज़हन में बिजली की तरह ये ख़याल उभरा कि विभोर की आवाज़ ठीक उसी वक़्त क्यों आई थी जब कुसुम शायद मुझसे कुछ बोलने वाली थी? क्या ये इत्तेफ़ाक़ था या फिर जान बूझ कर उसने उसी वक़्त कुसुम को आवाज़ दी थी? यानि हो सकता है कि वो कमरे के बाहर छुप कर हमारी बातें सुन रहा होगा और जैसे ही उसे आभास हुआ कि कुसुम मुझे कुछ बताने वाली है तो उसने उसे आवाज़ लगा दी। मुझे अपना ये ख़्याल जंचा तो ज़रूर किन्तु मैं ख़ुद ये निर्णय नहीं ले सका कि मेरे इस ख़्याल में कोई सच्चाई है भी अथवा नहीं?


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Bhav vibhor karti update mitr
Vaibhav to chakrvyuh me fansha hua hai
Kuchh to hai jo usshe chhupaya jaa raha hai
Aur majboor kiya ja raha hai kusum ko na batane ke liye
Ye chacha ka parwaar shaq ke ghere me aa raha hai
 
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nice update ..bhabhi bahut dukhi hai par vaibhav ne vaada le liya ki wo kabhi dukhi nahi rahegi .
kahi koi bade bhaiya ko dawai ya kuch aisa to nahi khila raha hai jisse unka bartaw badal gaya hai ,,, yaa koi vaibhav aur bhabhi ke rishte ko galat najariye se bata raha ho 🤔🤔🤔..

chetan aur sunil ko milne bulaya ,ab unse kya kaam aa pada aur chetan se milne ke liye aise gaya vaibhav jaise khoon karne jaa raha ho ..

soch vichar to chalta hi rahega vaibhav ke dimaag me .par abhi koi samadhan nahi mil raha usko ..

kusum se baat ki aur shayad wo batane hi wali thi kuch tabhi vibhor ka aawaj dena ,vaibhav ka sochna sahi bhi ho sakta hai ki vibhor baate sun raha ho chupke se ..
par niche jakar confirm nahi kiya ki sach me maa bula rahi thi yaa nahi .
 

Dhansu2

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Bhai sabd nhi hai tariff ke liye bahut hi shaandar story hai hai ekdum dhansu
 

Moon Light

Prime
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अध्याय - 29


भाई का वर्ताव ऐसा ही है ये भाभी ने कहा और ये सब कुछ समय पहले से हुआ है पिता जी के अनुसार भविष्यवाणी के कारण ऐसा होगा.. और वजह भी क्या होगी कौन जाने अब सिवाए शुभम जी के.... भाभी से बायदा तो करवा लिया वो अब खुश रहा करें पर ऐसा कहना तो आसान हुआ भाभी के लिए पर करना आसान नही होता... मन मे अगर किसी बात को लेकर समस्या होती है तो तब तक शुकुन नही मिलता जब तक वह समस्या खत्म न हो जाये...
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हवेली से निकल कर चेतन से मुलाकात... शायद चेतन सुनील मित्र रहे हों वैभव के और उसके सहयोगी भी रहें हैं सब क्रिया कर्म में जो वह करता था हवेली से निकालने के पहले... पर अब जबकि उसका बर्ताब पहले जैसा नही रहा उसका स्वभाव बदल गया तो ऐसे समय मे उनकी जरूरत क्यों पड़ी है वैभव को ये जानने की उत्सुकता बनी रहेगी ....
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समस्याएं हैं जो कम होने के बजाए बढ़ती ही जा रहीं... अब चाहिए वैभव की समस्याओं को थोड़ा थोड़ा करके कम किया जाए यही गुज़ारिश है राइटर साहेब से... परत दर परत समस्याओं का हल अब निकालो क्योंकि अभी तक एक समस्या सॉल्व न हुई है...
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कुसुम से बातें पता करना तो चाहा पर जैसे ही वह कुछ बताने के लिए तैयार हुई विभोर ने आकर सब खेल खत्म करदिया... शायद वो कुसुम के पीछे आकर ही बातों को सुन रहा हो... हो न हो वो कुसुम को डरा धमका कर बातों को ही बदलवा दे क्योंकि वैभव आसानी से उसकी बातों में आजयेगा आखिर बहन जो ठहरी उसकी....
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सब खेल परिवार का ही है शुभम जी...
शीघ्र ही थोड़ी समस्याओं को कम कीजिये जी, कमसे उन समस्याओं को तो करदीजिये जिनसे ज्यादा फर्क न पड़े कहानी में...
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ब्रिलियंट अपडेट

वेटिंग फ़ॉर नेक्स्ट...
 

Mahi Maurya

Dil Se Dil Tak
Supreme
31,583
58,204
304
उनतीसवाँ भाग

बहुत ही बेहतरीन।।

भाभी के ऊपर तो सचमुच बहुत बुरी गुजर रही है। वैभव ने भी निर्णय ले लिया है कि जिस जिम्मेदारी का निर्वहन उसने अभी तक नहीं किया है उसका निर्वहन वो अब करेगा।। भाभी को देवी कहा। मतलब उसके अंदर भाभी के लिए सम्मान है। लेकिन देखना ये है कि ये सम्मान कब तक है।।

कुछ सोचकर वो अपने दोस्तों से मिलता है और पुरानी जगह मिलने के लिए बोल देता है। हवेली वापस आने पर उस नौकरानी को ढूंढता है। कुसुम को कोई न कोई बात पता है जो बहुत जरूरी है। जब वो वैभव को बताने वाली थी। तभी विभोर उसे बुला लेता है। आखिर वो क्या बात है जो कुसुम अपने सीने में दबाकर रखी है।
 
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