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Adultery ☆ प्यार का सबूत ☆ (Completed)

What should be Vaibhav's role in this story..???

  • His role should be the same as before...

    Votes: 19 9.9%
  • Must be of a responsible and humble nature...

    Votes: 22 11.5%
  • One should be as strong as Dada Thakur...

    Votes: 75 39.1%
  • One who gives importance to love over lust...

    Votes: 44 22.9%
  • A person who has fear in everyone's heart...

    Votes: 32 16.7%

  • Total voters
    192

TheBlackBlood

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
79,765
117,163
354
अभी तक समस्याएं जस की तस है । वैभव ने वैसे तो कुछ पहल की है जैसे कि अपनी भाभी से बातें करना , अपने पुराने मित्रों से मिलकर कोई योजना बनाना , हवेली में रहने वाली उस अज्ञात " छम छम " पायल वाली का पता लगाना एवं कुसुम से उसकी परेशानियों के बारे में जानकारी लेना आदि । शायद कुसुम जरूर कुछ बताती अगर विभोर ने उसे आवाज नहीं दी होती ।
Vaibhav apne jeewan me pahli baar aisi situation me fasa hai. Aap samajh sakte hain ki jo insaan hamesha se hi apni marzi ka maalik raha ho aur apni khushi ke liye hi jiya ho wo jab ekdam se aisi situation me fasega to us par iska kya asar hoga. Mera khayaal hai ki aisi situation me fas kar pahle to kuch samay tak use kuch samajh me hi nahi aayega ki ye sab asal me hai kya?? Uske baad jab wo is sabke bare me gahraai se sochna shuru karega tab dheere dheere use samajh me aayega ki wo kin jhanjhato me fasa hua hai. Tab shayad wo is situation se bachne ke liye aur aisi situation ko mitane ke liye kuch karna shuru karega. Khair waqt aa gaya hai ki ab wo is sabse aage badhe,,,,:dazed:
पर मुझे ऐसा महसूस हो रहा है जैसे तुफान आने से पहले जो शांति छाई हुई रहती है वो अब खतम होने वाला है । अब उस तुफान के आने का वक्त हो गया है । कुछ बड़ा होने वाला है जो हवेली के लिए शुभ संकेत नहीं है ।

बहुत ही बेहतरीन और आउटस्टैंडिंग अपडेट शुभम भाई ।
Dada thakur jaisa suljha hua insaan is sabke bare me abhi chup nazar aa raha hai. Zaahir hai ki use bhi filhaal is sabke bare me koi clue nahi mila hai. Khair ye to satya hai ki paristhitiya hamesha ek jaisi nahi bani rahti yaani ek din badlaav ka waqt zarur aata hai. Mumkin hai ki aisi paristhitiyo ka ye aakhiri samay ho,,,,:D

Bahut bahut shukriya bhaiya ji is khubsurat sameeksha ke liye,,,,:hug:
 

TheBlackBlood

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
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☆ प्यार का सबूत ☆
अध्याय - 30
----------☆☆☆----------





अब तक,,,,,,

कुसुम तो चली गई थी लेकिन मैं ये सोचने पर मजबूर हो गया था कि आख़िर ऐसी क्या बात थी कि मेरे पूछने पर उसके चेहरे पर इस तरह के भाव मानो तांडव सा करने लगे थे? अभी मैं ये सोच ही रहा था कि तभी मैं चौंका। मेरे ज़हन में बिजली की तरह ये ख़याल उभरा कि विभोर की आवाज़ ठीक उसी वक़्त क्यों आई थी जब कुसुम शायद मुझसे कुछ बोलने वाली थी? क्या ये इत्तेफ़ाक़ था या फिर जान बूझ कर उसने उसी वक़्त कुसुम को आवाज़ दी थी? यानि हो सकता है कि वो कमरे के बाहर छुप कर हमारी बातें सुन रहा होगा और जैसे ही उसे आभास हुआ कि कुसुम मुझे कुछ बताने वाली है तो उसने उसे आवाज़ लगा दी। मुझे अपना ये ख़्याल जंचा तो ज़रूर किन्तु मैं ख़ुद ये निर्णय नहीं ले सका कि मेरे इस ख़्याल में कोई सच्चाई है भी अथवा नहीं?

अब आगे,,,,,,,


अगले दिन मैं सुबह ही नहा धो कर और कपड़े पहन कर कमरे से नीचे आया तो आँगन में तुलसी की पूजा करते हुए भाभी दिख ग‌ईं। सुबह सुबह भाभी को पूजा करते देख मेरा मन खुश सा हो गया। मैं चल कर जब उनके क़रीब पंहुचा तो उनकी नज़र मुझ पर पड़ी। पूजा की थाली लिए वो बस हल्के से मुस्कुराईं तो मेरे होठों पर भी मुस्कान उभर आई। मैं उन्हें मुस्कुराता देख खुश हो गया था। मैं यही तो चाहता था कि भाभी ऐसे ही मुस्कुराती रहें। ख़ैर मैं उनके क़रीब आया तो उन्होंने मुझे लड्डू का प्रसाद दिया। प्रसाद ले कर मैंने ईश्वर को और फिर उन्हें प्रणाम किया और फिर होठों पर मुस्कान सजाए हवेली से बाहर निकल गया।

मुख्य द्वार से बाहर आया तो मेरी नज़र एक छोर पर खड़ी मेरी मोटर साइकिल पर पड़ी। फिर कुछ सोच कर मैं पैदल ही हाथी दरवाज़े की तरफ बढ़ गया। मैंने रूपा को आज मंदिर में मिलने के लिए बुलाया था। मैं चाहता था कि रूपा से जब मेरी मुलाक़ात हो तो हम दोनों के पास कुछ देर का समय ज़रूर हो ताकि मैं बिना किसी बिघ्न बाधा के उससे ज़रूरी बातें कर सकूं। मैं ये तो जानता था कि रूपा हर दिन मंदिर जाती थी किन्तु मैं ये नहीं जनता था कि इन चार महीनों में उसमे भी कोई बदलाव आया था या नहीं। मुझे अंदेशा था कि मुझे गांव से निष्कासित कर दिए जाने पर शायद उसने मंदिर में आना जाना बंद कर दिया होगा। ऐसे में आज जब वो मंदिर आएगी तो यकीनन उसके घर वालों के ज़हन में ये बात आएगी कि उसने आज मंदिर जाने का विचार क्यों किया होगा? रूपचंद्र अगर उसे मंदिर जाते देखेगा तो वो ज़रूर समझ जाएगा कि वो मुझसे मिलने ही मंदिर जा रही है। ये सोच कर संभव है कि वो रूपा का पीछा करते हुए मंदिर की तरफ आ जाए।

मैं तेज़ क़दमों से चलते हुए मुख्य सड़क से एक छोटी सी पगडण्डी पर मुड़ गया। इस छोटी पगडण्डी से मैं कम समय में उस जगह पहुंच सकता था जहां पर मैंने चेतन और सुनील को मिलने के लिए कहा था। बताई हुई जगह पर जब मैं पहुंचा तो महुआ के पेड़ के पास मुझे चेतन और सुनील खड़े हुए दिख ग‌ए।

"कैसा है भाई?" मैं उन दोनों के क़रीब पंहुचा तो सुनील ने मुझसे कहा____"मुझे बहुत ख़ुशी हो रही है कि तूने हम दोनों को माफ़ कर दिया है। चेतन ने बताया कि तूने हम दोनों को मिलने के लिए कहा है तो हम दोनों समय से पहले ही यहाँ आ गए थे और तेरे आने का इंतज़ार कर रहे थे।"

"अब बता भाई।" चेतन ने बड़ी उत्सुकता से पूछा____"तूने हम दोनों को यहाँ पर किस लिए मिलने को कहा था? मैं रात भर यही सोचता रहा कि आख़िर ऐसा कौन सा ज़रूरी काम होगा तेरा हम दोनों से?"

"मैं चाहता हूं कि तुम दोनों साहूकारों और मुंशी चंद्रकांत के घर वालों पर नज़र रखो।" मैंने दोनों की तरफ बारी बारी से देखते हुए कहा____"चेतन तू रूपचन्द्र और उसके सभी भाइयों पर नज़र रखेगा और सुनील तू मुंशी के घर वालों पर नज़र रखेगा।"

"साहूकारों का तो समझ में आ गया भाई।" चेतन ने सोचने वाले भाव से कहा____"लेकिन मुंशी के घर वालों पर नज़र रखने की क्या ज़रूरत है भला?"
"अगर ज़रूरत न होती।" मैंने कहा____"तो मैं उन पर नज़र रखने के लिए क्यों कहता?"

"बड़ी हैरानी की बात है भाई।" सुनील ने कहा____"आख़िर बात क्या है वैभव? कहीं ऐसा तो नहीं कि तुझे मुंशी के घर वालों पर इस बात का शक है कि वो साहूकारों से मिले हुए हो सकते हैं? देख अगर तू ऐसा सोचता है तो समझ ले कि तू ग़लत सोच रहा है। क्योंकि हमने कभी उसके घर वालों को साहूकारों के किसी भी सदस्य से मिलते जुलते नहीं देखा।"

"तू ज़्यादा दिमाग़ मत चला।" मैंने कठोर भाव से कहा____"जितना कहा है उतना कर। तेरा काम सिर्फ इतना है कि तू मुंशी के घर वालों पर नज़र रख और ये देख कि उसके घर पर या उनसे मिलने कौन कौन आता है और वो ख़ुद किससे मिलते हैं।"

"ठीक है।" सुनील ने कहा____"अगर तू यही चाहता है तो मैं मुंशी के घर पर और उसके घर वालों पर आज से ही नज़र रखूंगा।"
"बहुत बढ़िया।" कहने के साथ ही मैंने चेतन की तरफ देखा____"मैं आज रूपचन्द्र की बहन रूपा से मिलने मंदिर जा रहा हूं इस लिए मैं चाहता हूं कि तू ये देख कि रूपा का पीछा करते हुए वो रूप का चंद्र तो नहीं आ रहा। अगर वो आए तो तू फ़ौरन मुझे बताएगा।"

"लगता है रूपा को पेलने का इरादा है तेरा।" चेतन ने मुस्कुराते हुए कहा____"लेकिन ये ग़लत बात है भाई। तू तो उसके साथ मज़ा करेगा और यहाँ हम जो चार महीने से सिर्फ मुट्ठ मार कर जी रहे हैं उसका क्या?"

"बुरचटने साले, मैं उसके साथ मज़ा करने नहीं जा रहा समझे।" मैंने आँखें दिखाते हुए कहा____"मेरा उससे मिलना बहुत ज़रूरी है। इस लिए मैं चाहता हूं कि तुम दोनों फिलहाल रूपचन्द्र पर नज़र रखो। उसे पता चल चुका है कि मेरा उसकी बहन के साथ सम्बन्ध है। अब जब कि मैं वापस आ गया हूं तो वो यकीनन अपनी बहन पर नज़र रखे हुए होगा।"

"फिर तो वो तुझसे खार खाए बैठा होगा।" सुनील ने हंसते हुए कहा____"उसकी गांड ये सोच कर सुलगती होगी कि तूने उसकी बहन की अच्छे से बजाई है।"
"उसकी सुलगती है तो सुलगती रहे।" मैंने लापरवाही से कहा____"लेकिन फिलहाल मैं नहीं चाहता कि उससे मेरा टकराव हो क्योंकि तुझे भी पता है कि अब साहूकारों ने हमसे अपने रिश्ते सुधार लिए हैं। इस लिए किसी भी तरह के लफड़े की पहल मैं ख़ुद नहीं करना चाहता। अगर उनकी तरफ से कोई लफड़ा होता है तो उनकी गांड तोड़ने में कोई कसर भी नहीं छोड़ूंगा।"

"मुझे पता चला था कि तूने मानिक का हाथ तोड़ दिया था।" चेतन ने कहा____"काश! उस वक़्त हम दोनों भी होते तो हम दोनों को भी हांथ साफ़ करने का मौका मिल जाता।"

"हांथ साफ़ करने का भी वक़्त आएगा।" मैंने कहा____"लेकिन इस वक़्त जो ज़रूरी है वो करो। अब तुम दोनों जाओ और रूपचन्द्र पर नज़र रखो। मैं भी मंदिर की तरफ निकल रहा हूं।"

चेतन और सुनील मेरे कहने पर चले गए और मैं भी मंदिर की तरफ जाने के लिए मुड़ गया। आज मुरारी काका की तेरहवीं भी है इस लिए मुझे मुरारी काका के घर भी समय से पंहुचना था। ख़ैर मैं तेज़ क़दमों से चलते हुए मंदिर की तरफ बढ़ा चला जा रहा था। चेतन और सुनील मेरी तरह ही किसी से न डरने वाले और शातिर लौंडे थे। हालांकि किसी से न डरने की वजह भी मैं ही था। गांव में सब जानते थे कि वो मेरे साथी हैं इस लिए कोई उन दोनों से भिड़ने की कोशिश ही नहीं करता था। दोनों के घर वाले भी मेरी वजह से उनसे कुछ नहीं कहते थे।

उस वक़्त सुबह के नौ बज चुके थे जब मैं मंदिर में पंहुचा था। गांव के इक्का दुक्का लोग मंदिर में पूजा करने और दर्शन करने आए हुए थे। मैंने भी पहले माता रानी के दर्शन किए और फिर मंदिर के पीछे की तरफ बढ़ गया। पीछे काफी सारे पेड़ पौधे लगे हुए थे जहां एक पेड़ के पास जा कर मैं बैठ गया और रूपा के आने का इंतज़ार करने लगा।

मंदिर में मैं जब भी रूपा से मिलता था तो यहीं पर मिलता था क्योंकि यहाँ पर लोगों की नज़र नहीं जाती थी। कुछ देर के अंतराल में मैं पेड़ से सिर निकाल कर मंदिर की तरफ देख लेता था। कोई आधा घंटा इंतज़ार करने के बाद मुझे रूपा आती हुई नज़र आई। खिली हुई धुप में वो बेहद सुन्दर लग रही थी। मेरे अंदर उसे देखते ही जज़्बात उछाल मारने लगे थे जिन्हें मैंने बेदर्दी से दबाने की कोशिश की।

कुछ ही देर में वो मेरे पास आ गई। आज साढ़े चार महीने बाद मैं रूपा जैसी खूबसूरत बला को अपने इतने क़रीब देख रहा था। हल्के सुर्ख रंग के शलवार कुर्ते में वो बहुत ही खूबसूरत दिख रही थी। उसके गले पर पतला सा दुपट्टा था जिसकी वजह से उसके सीने के उन्नत और ठोस उभार स्पष्ट दिख रहे थे। गुलाब की पंखुड़ियों जैसे होठों पर हल्की सी मुस्कान सजाए वो कुछ पलों तक मुझे देखती रही और फिर उसकी नज़रें झुकती चली गईं। जाने क्या सोच कर वो शर्मा गई थी जिसकी वजह से उसका गोरा सफ्फाक़ चेहरा हल्का सुर्ख पड़ गया था।

मैं रूपा के रूप सौंदर्य को कुछ पलों तक ख़ामोशी से देखता रहा और फिर आगे बढ़ कर उसके चेहरे को अपनी हथेलियों में ले लिया। मेरे छूते ही उसके समूचे जिस्म में कम्पन हुआ और उसने अपनी बड़ी बड़ी और कजरारी आँखों से मेरी तरफ देखा।

"दिल तो करता है कि खा जाऊं तुम्हें।" मैंने उसकी आँखों में देखते हुए कहा____"इन साढ़े चार महीनों में तुम और भी ज़्यादा सुन्दर लगने लगी हो। तुम्हारा ये जिस्म पहले से ज़्यादा भरा हुआ और खिला हुआ नज़र आ रहा है। मैंने तो सोचा था कि मेरी याद में तुम्हारी हालत शायद ख़राब हो गई होगी।"

"शुरुआत में दो महीने तो मेरी हालत ख़राब ही थी जनाब।" रूपा ने अपनी खनकती हुई आवाज़ से कहा____"किन्तु फिर मैंने ख़ुद को ये सोच कर समझाया कि मेरी हालत देख कर कहीं मेरे घर वालों को मेरी वैसी हालत की असल वजह न पता चल जाए। तुम क्या जानो कि मैंने कितनी मुश्किल से ख़ुद को समझाया था।"

"हां मैं समझ सकता हूं।" मैंने उसके चेहरे को अपनी हथेलियों में लिए हुए ही कहा____"पर क्या तुम्हें एहसास है कि मैं चार महीने कितनी तक़लीफ में था?"
"जिसे हम दिल की गहराइयों से चाहते हैं उसकी हर चीज़ का हमें दूर से भी एहसास हो जाता है।" रूपा ने कहा____"मेरे दिल पर हांथ रख कर देख लो, ये तुम्हें ख़ुद बता देगा कि ये किसके नाम से धड़कता है।"

"मेरे मना करने के बाद भी तुमने मेरे प्रति ऐसे ख़याल अपने दिल से नहीं निकाले।" मैंने उसकी आँखों में अपलक देखते हुए कहा____"तुम्हें अच्छी तरह पता है कि हम दोनों कभी एक नहीं हो सकते। फिर ऐसी हसरत दिल में पालने का क्या फ़ायदा?"

"अब तक मैं भी यही समझती थी कि तुम मेरी किस्मत में नहीं हो सकते।" रूपा ने मेरी आँखों में झांकते हुए बड़ी मासूमियत से कहा____"किन्तु अब मैं समझती हूं कि तुम मेरी किस्मत में ज़रूर हो सकते हो। हां वैभव, अब तो मेरे घर वालों ने दादा ठाकुर से अपने रिश्ते भी सुधार लिए हैं। अब तो हम एक हो सकते हैं। किसी को भी हमारे एक होने में ऐतराज़ नहीं होगा।"

"तुम्हें क्या लगता है रूपा?" मैंने उसके चेहरे को अपनी हथेलियों से आज़ाद करते हुए कहा____"तुम्हारे घर वालों ने हमसे अपने रिश्ते सुधारे हैं तो उसके पीछे क्या वजह हो सकती है?"

"क्या मतलब??" रूपा ने आँखें सिकोड़ कर मेरी तरफ देखा तो मैंने कहा_____"मतलब ये कि मुझे लगता है कि इसके पीछे ज़रूर कोई वजह है। इतिहास गवाह है कि हम ठाकुरों से साहूकारों के रिश्ते कभी अच्छे नहीं रहे थे। हमारे दादा पुरखों के ज़माने से ही दोनों खानदानों के बीच मन मुटाव और बैर भावना जैसी बात रही है। सवाल उठता है कि अब ऐसी कौन सी ख़ास बात हो गई है जिसके लिए साहूकारों ने ख़ुद ही आगे बढ़ कर हमसे अपने रिश्ते सुधार लेने की पहल की? इस गांव के ही नहीं बल्कि आस पास गांव वाले भी आज कल यही सोचते हैं कि आख़िर किस वजह से साहूकारों ने दादा ठाकुर से अपने रिश्ते सुधार लेने की पहल की होगी?"

"मैं ये मानती हूं कि शुरू से ही इन दोनों खानदानों के बीच अच्छे रिश्ते नहीं रहे थे।" रूपा ने कहा____"लेकिन तुम भी जानते हो कि संसार में कोई भी चीज़ हमेशा के लिए एक जैसी नहीं बनी रहती। कल अगर हमारा कोई दुश्मन था तो यकीनन एक दिन वो हमारा दोस्त भी बन जाएगा। परिवर्तन इस सृष्टि का नियम है वैभव। हमें तो खुश होना चाहिए कि शादियों से दोनों खानदानों के बीच जो अनबन थी या बैर भाव था वो अब ख़त्म हो गया है और अब हम एक दूसरे के साथ हैं। मैं मानती हूं कि ऐसी चीज़ें जब पहली बार होती हैं तो वो सबके मन में कई सारे सवाल पैदा कर देती हैं लेकिन क्या ये सही है कि दोनों परिवारों के बीच क़यामत तक दुश्मनी ही बनी रहे? आज अगर दोनों परिवार एक हो गए हैं तो इसमें ऐसी वैसी किसी वजह के बारे में सोचने की क्या ज़रूरत है?"

"मेरे कहने का मतलब ये नहीं है रूपा कि मैं दोनों परिवारों के एक हो जाने से खुश नहीं हूं।" मैंने गहरी सांस लेते हुए कहा____"बल्कि इस बात से तो हम भी बेहद खुश हैं लेकिन ऐसा हो जाने से मन में जो सवाल खड़े हुए हैं उनके जवाब भी तो हमें पता होना चाहिए।"

"तो तुम किस तरह के जवाब पता होने की उम्मीद रखते हो?" रूपा ने कहा____"क्या तुम ये सोचते हो कि मेरे घर वालों के मन में कुछ ऐसा वैसा है जिसके लिए उन्होंने दादा ठाकुर से अपने रिश्ते सुधारे हैं?"

"मेरे सोचने से क्या होता है रूपा?" मैंने कहा____"इस तरह की सोच तो गांव के लगभग हर इंसान के मन में है।"
"मुझे गांव वालों से कोई मतलब नहीं है वैभव।" रूपा ने मेरी तरफ अपलक देखते हुए कहा____"मैं सिर्फ ये जानना चाहती हूं कि मेरे घर वालों के ऐसा करने पर तुम क्या सोचते हो?"

"हर किसी की तरह मैं भी ये सोचने पर मजबूर हूं कि साहूकारों के ऐसा करने के पीछे कोई तो वजह ज़रूर है।" मैंने रूपा की आँखों में देखते हुए सपाट लहजे में कहा_____"और ऐसा सोचने की मेरे पास वजह भी है।"

"और वो वजह क्या है?" रूपा ने मेरी तरफ ध्यान से देखा।
"जैसा कि तुम्हें भी पता है कि मेरे और तुम्हारे भाइयों के बीच हमेशा ही बैर भाव रहा है।" मैंने कहा_____"जिसका नतीजा हमेशा यही निकला था कि मेरे द्वारा तुम्हारे भाइयो को मुँह की खानी पड़ी थी। उस दिन तो मानिक का मैंने हाथ ही तोड़ दिया था। अब सवाल ये है कि मेरे द्वारा ऐसा करने पर भी तुम्हारे घर वालों ने कोई आपत्ति क्यों नहीं जताई और दादा ठाकुर से न्याय की मांग क्यों नहीं की?"

"क्या सिर्फ इतनी सी बात के लिए तुम ये सोच बैठे हो कि दादा ठाकुर से अपने रिश्ते सुधार लेने के पीछे कोई ऐसी वैसी वजह हो सकती है?" रूपा के चेहरे पर तीखे भाव उभर आए थे जो कि मेरे लिए थोड़ा हैरानी की बात थी, जबकि उसने आगे कहा____"जब कि तुम्हें सोचना चाहिए कि इस सबके बाद भी अगर मेरे घर वालों ने सब कुछ भुला कर दादा ठाकुर से अच्छे रिश्ते बना लेने का सोचा तो क्या ग़लत किया उन्होंने?"

"कुछ भी ग़लत नहीं किया और ये बात मैं भी मानता हूं।" मैंने कहा____"लेकिन बात सिर्फ इतनी ही नहीं है बल्कि इसके अलावा भी कुछ ऐसी बाते हैं जिन्हें जान कर शायद तुम ये समझने लगोगी कि मैं बेवजह ही तुम्हारे परिवार वालों ऊँगली उठा रहा हूं।"

"और कैसी बातें हैं वैभव?" रूपा ने कहा____"मुझे भी बताओ। मुझे भी तो पता चले कि मेरे घर वालों ने ऐसा क्या किया है जिसके लिए तुम ये सब कह रहे हो।"

"मेरे पास इस वक़्त कोई प्रमाण नहीं है रूपा।" मैंने गहरी सांस ली____"किन्तु मेरा दिल कहता है कि मेरा शक बेवजह नहीं है। जिस दिन मेरे पास प्रमाण होगा उस दिन तुम्हें ज़रूर बताऊंगा। उससे पहले ये बताओ कि क्या तुम्हें पता है कि तुम्हारे भाई को मेरे और तुम्हारे रिश्ते के बारे में सब पता है?"

"ये क्या कह रहे हो तुम?" रूपा मेरी ये बात सुन कर बुरी तरह चौंकी थी, चेहरे पर घबराहट के भाव लिए बोली____"मेरे भाई को कैसे पता चला और तुम ये कैसे कह सकते हो कि उसे सब पता है?"

"उसी के मुख से मुझे ये बात पता चली है।" मैंने कहा____"तुम्हारा भाई रूपचन्द्र मुझसे इसी बात का बदला लेने के लिए आज कल कई ऐसे काम कर रहा है जिसकी मैंने कल्पना भी नहीं की थी।"

"क्या कर रहा है वो?" रूपा ने चकित भाव से पूछा।
"क्या तुम सोच सकती हो कि तुम्हारे भाई का सम्बन्ध मुंशी चंद्रकांत की बहू रजनी से हो सकता है?"

"नहीं हरगिज़ नहीं।" रूपा ने इंकार में सिर हिलाते हुए कहा____"सबको पता है कि मुंशी चंद्रकांत से हमारे सम्बन्ध अच्छे नहीं हैं। मेरे लिए ये यकीन करना मुश्किल है कि मेरे भाई का सम्बन्ध मुंशी की बहू से हो सकता है।"

"जबकि यही सच है।" मैंने कहा____"मैंने ख़ुद अपनी आँखों से तुम्हारे भाई को मुंशी की बहू रजनी के साथ देखा है। वो दोनों मुंशी के ही घर में पूरी तरह निर्वस्त्र हो कर रास लीला कर रहे थे और उसी रास लीला में रूपचन्द्र ने रजनी को बताया था कि मेरा उसकी बहन रूपा के साथ जिस्मानी सम्ब्नध है और इसके लिए वो मुझे हर हाल में सज़ा देगा। मुझे सज़ा देने के लिए वो मेरी बहन कुसुम को अपने जाल में फ़साने की बात कर रहा था।"

मेरी बातें सुन कर रूपा आँखें फाड़े मुझे देखती रह गई थी। कुछ कहने के लिए उसके होठ ज़रूर फड़फड़ा रहे थे किन्तु आवाज़ हलक से बाहर नहीं निकल रही थी।

"इतना ही नहीं।" उसकी तरफ देखते हुए मैंने आगे कहा____"तुम्हारे भाई ने दूसरे गांव में मुरारी काका के घर में भी झंडे गाड़ने की कोशिश की थी। वो तो वक़्त रहते मैं मुरारी काका के घर पहुंच गया था वरना वो मुरारी काका की बेटी अनुराधा के साथ ग़लत ही कर देता।"

मैने संक्षेप में रूपा को उस दिन की सारी कहानी बता दी जिसे सुन कर रूपा आश्चर्य चकित रह ग‌ई। हालांकि रूपा को मैंने ये नहीं बताया था कि मेरा जिस्मानी सम्बन्ध मुरारी काका की बीवी सरोज से था जिसका पता उसके भाई रूपचन्द्र को चल गया था और इसी बात को लेकर वो सरोज को मजबूर कर रहा था।

"बड़ी हैरत की बात है।" फिर रूपा ने कुछ सोचते हुए कहा____"मेरा भाई इस हद तक भी जा सकता है इसका मुझे यकीन नहीं हो रहा लेकिन तुमने ये सब बताया है तो यकीन करना ही पड़ेगा।"

"मैं भला तुमसे झूठ क्यों बोलूंगा रूपा?" मैंने कहा____"ये तो मेरे लिए इत्तेफ़ाक़ की ही बात थी कि मैं ऐन वक़्त पर दोनों जगह पहुंच गया था और मुझे रूपचन्द्र का ये सच पता चल गया था। मुंशी की बहू रजनी से जब वो ये कह रहा था कि वो मुझसे अपनी बहन का बदला लेने के लिए मेरी बहन कुसुम को अपने जाल में फसाएगा और फिर उसके साथ भी वही सब करेगा जो मैं तुम्हारे साथ कर चुका हूं तो मैं चाहता तो उसी वक़्त रूपचन्द्र के सामने जा कर उसकी हड्डियां तोड़ देता लेकिन मैंने ऐसा नहीं किया। क्योंकि मैं पहले ये जानना चाहता था कि रूपचन्द्र का सम्बन्ध मुंशी की बहू के साथ कब और कैसे हुआ?"

"मैं मानती हूं कि मेरे भाई रूपचन्द्र को तुमसे बदला लेने की भावना से ये सब नहीं करना चाहिए था और ना ही रजनी से ये सब कहना चाहिए था।" रूपा ने मेरी तरफ देखते हुए कहा____"लेकिन इन सब बातों से तुम ये कैसे कह सकते हो कि मेरे घर वालों के मन में कुछ ऐसा वैसा है जिसके लिए उन्होंने दादा ठाकुर से अपने रिश्ते सुधारे हैं? मुझे तो लगता है कि तुम बेवजह ही मेरे घर वालों पर शक कर रहे हो वैभव। मेरे भाई का मामला अलग है, उसके मामले को ले कर अगर तुम इस सबके लिए ऐसा कह रहे हो तो ये सरासर ग़लत है।"

"जैसा कि मैं तुमसे पहले ही कह चुका हूं कि मेरे पास फिलहाल इसका कोई प्रमाण नहीं है।" मैंने कहा____"और मैं खुद भी ये चाहता हूं कि मेरा शक बेवजह ही निकले लेकिन मन की तसल्ली के लिए क्या तुम्हें नहीं लगता कि हमें सच का पता लगाना चाहिए?"

"किस तरह के सच का पता?" रूपा के माथे पर शिकन उभरी।
"सच हमेशा ही कड़वा होता है रूपा।" मैंने कहा____"और सच को हजम कर लेना आसान भी नहीं होता लेकिन सच जैसा भी हो उसका पता होना निहायत ही ज़रूरी होता है। अगर तुम समझती हो कि मैं तुम्हारे घर वालों पर बेवजह ही शक कर रहा हूं तो तुम खुद सच का पता लगाओ।"

"म...मैं कैसे???" रूपा के चेहरे पर उलझन के भाव नुमायां हुए____"भला मैं कैसे किसी सच का पता लगा सकती हूं और एक पल के लिए मैं ये मान भी लू कि मेरे घर वालों के मन में कुछ ऐसी वैसी बात है भी तो क्या तुम समझते हो कि मैं वो सब तुम्हें बताऊंगी?"

"ख़ुद से ज़्यादा तुम पर ऐतबार है मुझे।" मैंने रूपा को प्यार भरी नज़रों से देखते हुए कहा____"मुझे पूरा भरोसा है कि तुम सच को जान कर भी किसी के साथ पक्षपात नहीं करोगी। अगर मैं ग़लत हुआ तो मैं इसके लिए अपने घुटनों के बल बैठ कर तुमसे माफ़ी मांग लूंगा।"

मेरे ऐसा कहने पर रूपा मुझे अपलक देखने लगी। उसके चेहरे पर कई तरह के भाव आते जाते नज़र आये मुझे। मैं ख़ामोशी से उसी को देखे जा रहा था। कुछ देर तक जाने क्या सोचने के बाद रूपा ने कहा____"तुमने मुझे बड़ी दुविधा में डाल दिया है वैभव। एक तरह से तुम मुझे मेरे ही घर वालों की जासूसी करने का कह रहे हो। क्या तुम मेरे प्रेम की परीक्षा ले रहे हो?"

"ऐसी बात नहीं है रूपा।" मैंने फिर से उसके चेहरे को अपनी हथेलियों में लेते हुए कहा____"मैं अच्छी तरह जानता हूं कि तुम मुझे बेहद प्रेम करती हो। तुम्हारे प्रेम की परीक्षा लेने का तो मैं सोच भी नहीं सकता।"

"तो फिर क्यों मुझे इस तरह का काम करने को कह रहे हो?" रूपा ने मेरी आँखों में अपलक देखते हुए कहा____"अगर तुम सही हुए तो मैं कैसे तुमसे नज़रें मिला पाऊंगी और कैसे अपने ही घर वालों के खिलाफ़ जा पाऊंगी?"

"इतना कुछ मत सोचो रूपा।" मैंने कहा____"अगर मैं सही भी हुआ तो तुम्हें अपने मन में हीन भावना रखने की कोई ज़रूरत नहीं होगी बल्कि सच जानने के बाद हम उसे अपने तरीके से सुलझाएंगे। तुम्हारे घर वालों के मन में मेरे खानदान के प्रति जैसी भी बात होगी उसे दूर करने की कोशिश करेंगे। शदियों बाद दो खानदान एक हुए हैं तो उसमे किसी के भी मन में कोई ग़लत भावना नहीं रहनी चाहिए बल्कि एक दूसरे के प्रति सिर्फ और सिर्फ प्रेम रहना चाहिए। क्या तुम ऐसा नहीं चाहती?"

"तुमसे मिलने से पहले तो मैं यही सोच कर खुश थी कि अब हमारे परिवार वाले खुशी खुशी एक हो गए हैं।" रूपा ने गंभीरता से कहा____"लेकिन तुम्हारी ये बातें सुनने के बाद मेरे अंदर की वो ख़ुशी गायब सी हो गई है और अब मेरे मन में एक डर सा बैठ गया है कि अगर सच में मेरे परिवार वाले अपने मन में तुम्हारे प्रति कोई ग़लत विचार रखे हुए होंगे तो फिर उसका परिणाम क्या होगा?"

"सब कुछ अच्छा ही होगा रूपा।" मैंने रूपा के चेहरे पर लटक आई उसके बालों की एक लट को अपने एक हाथ से हटाते हुए कहा____"मैं भी अब यही सोचता हूं कि हमारे परिवारों के बीच किसी भी तरह का मन मुटाव न रहे बल्कि अब से हमेशा के लिए एक दूसरे के प्रति प्रेम ही रहे।"

"अच्छा अब मुझे जाना होगा वैभव।" रूपा दो क़दम पीछे हटते हुए बोली____"काफी देर हो गई है। तुम्हारे अनुसार अगर सच में मेरे भाई को हमारे सम्बन्धों के बारे में पता है तो वो ज़रूर मुझ पर नज़र रख रहा होगा। मैं जब घर से चली थी तब वो मुझे घर पर नहीं दिखा था। ख़ैर मैं जा रही हूं और तुम्हारे कहे अनुसार सच का पता लगाने की कोशिश करुंगी।"

"क्या ऐसे ही चली जाओगी?" मैंने उसकी तरफ देखते हुए मुस्कुरा कर कहा____"मैंने तो सोचा था कि इतने महीनों बाद मिले हैं तो कम से कम तुम मेरा मुँह तो मीठा करवाओगी ही।"
"यहां आने से पहले मेरे ज़हन में भी यही सब चल रहा था।" रूपा ने कहा____"और मैं ये सोच कर खुश थी कि तुमसे जब मिलूंगी तो तुम्हारे सीने से लिपट कर अपने दिल की आग को शांत करुँगी लेकिन इन सब बातों के बाद दिल की वो हसरतें जैसे बेज़ार सी हो गई हैं।"

रूपा की आँखों में आंसू के कतरे तैरते हुए नज़र आए तो मैंने आगे बढ़ कर उसे अपने सीने से छुपका लिया। उसके एक हाथ में पूजा की थाली थी इस लिए वो मुझे अपने एक हाथ से ही पकड़े हुए थी। कुछ पलों तक उसे खुद से छुपकाए रखने के बाद मैंने उसे अलग किया और फिर उसके चेहरे को अपनी हथेलियों में ले कर उसके चेहरे की तरफ झुकता चला गया। कुछ ही पलों में मेरे होठ उसके शहद की तरह मीठे और रसीले होठों से जा मिले। मेरे पूरे जिस्म में एक सुखद और मीठी सी लहार दौड़ती चली गई। रूपा का जिस्म कुछ पलों के लिए थरथरा सा गया था और फिर वो सामान्य हो गई थी। मैंने उसके होठों को अपने मुँह में भर कर उसके होठों की शहद जैसी चाशनी को पीना शुरू कर दिया। पहले तो वो बुत की तरह खड़ी ही रही किन्तु फिर उसने भी सहयोग किया और मेरे होठों को चूमना शुरू कर दिया। ऐसा लगा जैसे कुछ ही पलों में सारी दुनियां हमारे ज़हन से मिट चुकी थी।

मैं रूपा के होठों को मुँह में भर कर चूसे जा रहा था और मेरे दोनों हाथ उसकी पीठ से लेकर उसकी कमर और उसके रुई की तरह मुलायम नितम्बों को भी सहलाते जा रहे थे। पलक झपकते ही मेरे जिस्म में अजीब अजीब सी तरंगें उठने लगीं जिसके असर से मेरी टांगों के बीच मौजूद मेरा लंड सिर उठा कर खड़ा हो गया था। जी तो कर रहा था कि रूपा को उसी पेड़ के नीचे लिटा कर उसके ऊपर पूरी तरह से सवार हो जाऊं लेकिन वक़्त और हालात मुनासिब नहीं थे। हम दोनों की जब साँसें हमारे काबू से बाहर हो गईं तो हम दोनों एक दूसरे से अलग हो गए। आँखें खुलते ही मेरी नज़र रूपा पर पड़ी तो देखा उसका गोरा चेहरा सुर्ख पड़ गया था और उसकी साँसें भारी हो गईं थी। गुलाब की पंखुड़ियां मेरे चूसने से थोड़ी मोटी सी दिखने लगीं थी।

रूपा की आँखेन बंद थी, जैसे वो अभी भी उस पल को अपनी पलकों के अंदर समाए उसमे खोई हुई थी। मैंने उसके बाजुओं को पकड़ कर उसे हिलाया तो उसने चौंक कर मेरी तरफ पलकें उठा कर देखा और फिर एकदम से शर्मा कर उसने अपनी नज़रें झुका ली। उसकी इस हया को देख कर मेरा जी चाहा कि मैं उसे फिर से अपने आगोश में ले लूं लेकिन फिर मैंने अपने जज़्बातों को काबू किया और मुस्कुराते हुए कहा____"तुम्हारे होठों की शहद चख कर दिल ख़ुशी से झूम उठा है रूपा। मन तो यही करता है कि तुम्हारे होठों पर मौजूद शहद को चखता ही रहूं लेकिन क्या करें, वक़्त और हालात इसकी इजाज़त ही नहीं दे रहे।"

"ये तुमने अच्छा नहीं किया वैभव।" रूपा पहले तो शरमाई फिर उसने थोड़ा उदास भाव से कहा____"मेरे अंदर के जज़्बातों को बुरी तरह झिंझोड़ दिया है तुमने। घर जा कर अब मुझे चैन नहीं आएगा।"

"कहो तो आज रात तुम्हारे घर आ जाऊं।" मैंने मुस्कुराते हुए कहा____"मेरा वादा है तुमसे कि उसके बाद तुम्हारे अंदर की सारी बेचैनी और सारी तड़प दूर हो जाएगी।"

"अगर ये सच में आसान होता तो मैं तुम्हें आने के लिए फौरन ही हां कह देती।" रूपा ने कहा____"ख़ैर अब जा रही हूं। कहीं मेरा भाई मुझे खोजते हुए यहाँ न पहुंच जाए।"

रूपा जाने के लिए मुड़ी तो मैंने जल्दी से उसका हाथ पकड़ लिया जिससे उसने गर्दन घुमा कर मेरी तरफ देखा। मैंने उसे अपनी तरफ खींच लिया जिससे वो मेरे सीने से आ टकराई। उसके सीने के हाहाकारी उभार मेरी चौड़ी छाती में जैसे धंस से ग‌ए, जिसका असर मुझ पर तो हुआ ही किन्तु उसके होठों से भी एक आह निकल गई। रूपा के सुन्दर चेहरे को सहलाते हुए मैंने पहले उसकी समंदर की तरह गहरी आंखों में देखा और फिर झुक कर उसके होठों को हल्के चूम लिया। इस वक़्त मेरे जज़्बात खुद ही मेरे काबू में नहीं थे। मेरे ऐसा करने पर रूपा बस हल्के से मुस्कुराई और फिर वो अपने दुपट्टे को ठीक करते हुए मंदिर की तरफ बढ़ गई। रूपा के जाने के कुछ देर बाद मैं भी उस जगह से चल दिया।

रास्ते में चेतन और सुनील मुझे मिले तो दोनों ने मुझे बताया कि उन्हें रूपचन्द्र कहीं मिला ही नहीं। हालांकि वो मंदिर जाने वाले रास्ते पर पूरी तरह से नज़र रखे हुए था। उन दोनों की बात सुन कर मैंने मन ही मन सोचा कि रूपचन्द्र अगर घर पर भी नहीं था तो कहां गया होगा? ख़ैर मैंने चेतन और सुनील को फिर से यही कहा कि वो दोनों साहूकारों और मुंशी के घर वालों पर नज़र रखें।

चेतन और सुनील को कुछ और ज़रूरी निर्देश देने के बाद मैं हवेली की तरफ चल पड़ा। रूपा से हुई मुलाक़ात का मंज़र बार बार मेरी आँखों के सामने दिखने लगता था। ख़ैर रूपा के ही बारे में सोचते हुए मैं हवेली आ गया। मेरे ज़हन में कुसुम से एक बार फिर से बात करने का ख़याल उभर आया किन्तु इस बार मैं चाहता था कि जब मैं उससे बात करूं तो किसी भी तरह की बाधा हमारे दरमियान न आए। इतना तो अब मैं भी समझने लगा था कि चक्कर सिर्फ हवेली के बाहर ही बस नहीं चल रहा है बल्कि हवेली के अंदर भी एक चक्कर चल रहा है जिसका पता लगाना मेरे लिए अब ज़रूरी था।

हवेली में आ कर मैं अपने कमरे में गया और दूसरे कपड़े पहन कर नीचे आया तो माँ से मुलाक़ात हो गई। माँ ने मुझसे पूछा कि कहां जा रहे तो मैंने उन्हें बताया कि मुरारी काका की आज तेरहवीं है इस लिए उनके यहाँ जा रहा हूं। मेरी बात सुन कर माँ ने कहा ठीक है लेकिन समय से वापस आ जाना। माँ से इजाज़त ले कर मैं हवेली से बाहर आया और मोटर साइकिल में बैठ कर मुरारी काका के गांव की तरफ निकल गया।

---------☆☆☆---------
 

KANCHAN

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बहुत शानदार अपडेट दिया है आपने
कहानी रोचकता से भरी है
 

TheBlackBlood

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
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दोस्तों, अध्याय - 30 पोस्ट कर दिया है।
अपडेट कैसा लगा इस बारे में आप सब अपने विचार ज़रूर ब्यक्त करें। :love: :declare:
 
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nice update ..chetan aur sunil ko munshi aur sahukaro ke pariwar par najar rakhne ka kaam de diya vaibhav ne ..

rupa se mulakat ki aur usko bhi sab bata diya .
rupa ne socha tha ki dono pariwaro ke rishte sudharne se uski shadi vaibhav ke saath hone me koi pareshani nahi aayegi par vaibhav ki baate sunkar uska dil toot gaya hai ..

ab kya rupa kar paati hai jasoosi apne pariwar ki ya nahi ..

waise kya kisike paas mobile nahi hai ???.
abhi tak aisa jikr kahi par bhi nahi hua jisse lage ke kisike paas mobile ho sakta hai 🤔..

shayad me bhul gaya hu par ye kaunse waqt ki kahani hai ???.
matalb 1890 ya 2000 year type ...
 
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dono dosto ko najar rakhne ka kaam to de diya par kahi wo chalakh hone ke baawjud bhi kisike najar me naa aa jaaye ..

kusum se baat karne ke liye sahi samay ka intejar kar raha hai vaibhav ,kyunki koi disturb naa kar de jab kusum koi baat bataye ..
 

Raj_sharma

परिवर्तनमेव स्थिरमस्ति ||❣️
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Bhai Ekdam jhakkas update tha. Maja aagaya.
Mujhe lagta hai ab kusum wale chepter par kuch rosni dalni chahiye aapko
 

Riitesh02

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☆ प्यार का सबूत ☆
अध्याय - 30
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अब तक,,,,,,

कुसुम तो चली गई थी लेकिन मैं ये सोचने पर मजबूर हो गया था कि आख़िर ऐसी क्या बात थी कि मेरे पूछने पर उसके चेहरे पर इस तरह के भाव मानो तांडव सा करने लगे थे? अभी मैं ये सोच ही रहा था कि तभी मैं चौंका। मेरे ज़हन में बिजली की तरह ये ख़याल उभरा कि विभोर की आवाज़ ठीक उसी वक़्त क्यों आई थी जब कुसुम शायद मुझसे कुछ बोलने वाली थी? क्या ये इत्तेफ़ाक़ था या फिर जान बूझ कर उसने उसी वक़्त कुसुम को आवाज़ दी थी? यानि हो सकता है कि वो कमरे के बाहर छुप कर हमारी बातें सुन रहा होगा और जैसे ही उसे आभास हुआ कि कुसुम मुझे कुछ बताने वाली है तो उसने उसे आवाज़ लगा दी। मुझे अपना ये ख़्याल जंचा तो ज़रूर किन्तु मैं ख़ुद ये निर्णय नहीं ले सका कि मेरे इस ख़्याल में कोई सच्चाई है भी अथवा नहीं?

अब आगे,,,,,,,


अगले दिन मैं सुबह ही नहा धो कर और कपड़े पहन कर कमरे से नीचे आया तो आँगन में तुलसी की पूजा करते हुए भाभी दिख ग‌ईं। सुबह सुबह भाभी को पूजा करते देख मेरा मन खुश सा हो गया। मैं चल कर जब उनके क़रीब पंहुचा तो उनकी नज़र मुझ पर पड़ी। पूजा की थाली लिए वो बस हल्के से मुस्कुराईं तो मेरे होठों पर भी मुस्कान उभर आई। मैं उन्हें मुस्कुराता देख खुश हो गया था। मैं यही तो चाहता था कि भाभी ऐसे ही मुस्कुराती रहें। ख़ैर मैं उनके क़रीब आया तो उन्होंने मुझे लड्डू का प्रसाद दिया। प्रसाद ले कर मैंने ईश्वर को और फिर उन्हें प्रणाम किया और फिर होठों पर मुस्कान सजाए हवेली से बाहर निकल गया।

मुख्य द्वार से बाहर आया तो मेरी नज़र एक छोर पर खड़ी मेरी मोटर साइकिल पर पड़ी। फिर कुछ सोच कर मैं पैदल ही हाथी दरवाज़े की तरफ बढ़ गया। मैंने रूपा को आज मंदिर में मिलने के लिए बुलाया था। मैं चाहता था कि रूपा से जब मेरी मुलाक़ात हो तो हम दोनों के पास कुछ देर का समय ज़रूर हो ताकि मैं बिना किसी बिघ्न बाधा के उससे ज़रूरी बातें कर सकूं। मैं ये तो जानता था कि रूपा हर दिन मंदिर जाती थी किन्तु मैं ये नहीं जनता था कि इन चार महीनों में उसमे भी कोई बदलाव आया था या नहीं। मुझे अंदेशा था कि मुझे गांव से निष्कासित कर दिए जाने पर शायद उसने मंदिर में आना जाना बंद कर दिया होगा। ऐसे में आज जब वो मंदिर आएगी तो यकीनन उसके घर वालों के ज़हन में ये बात आएगी कि उसने आज मंदिर जाने का विचार क्यों किया होगा? रूपचंद्र अगर उसे मंदिर जाते देखेगा तो वो ज़रूर समझ जाएगा कि वो मुझसे मिलने ही मंदिर जा रही है। ये सोच कर संभव है कि वो रूपा का पीछा करते हुए मंदिर की तरफ आ जाए।

मैं तेज़ क़दमों से चलते हुए मुख्य सड़क से एक छोटी सी पगडण्डी पर मुड़ गया। इस छोटी पगडण्डी से मैं कम समय में उस जगह पहुंच सकता था जहां पर मैंने चेतन और सुनील को मिलने के लिए कहा था। बताई हुई जगह पर जब मैं पहुंचा तो महुआ के पेड़ के पास मुझे चेतन और सुनील खड़े हुए दिख ग‌ए।

"कैसा है भाई?" मैं उन दोनों के क़रीब पंहुचा तो सुनील ने मुझसे कहा____"मुझे बहुत ख़ुशी हो रही है कि तूने हम दोनों को माफ़ कर दिया है। चेतन ने बताया कि तूने हम दोनों को मिलने के लिए कहा है तो हम दोनों समय से पहले ही यहाँ आ गए थे और तेरे आने का इंतज़ार कर रहे थे।"

"अब बता भाई।" चेतन ने बड़ी उत्सुकता से पूछा____"तूने हम दोनों को यहाँ पर किस लिए मिलने को कहा था? मैं रात भर यही सोचता रहा कि आख़िर ऐसा कौन सा ज़रूरी काम होगा तेरा हम दोनों से?"

"मैं चाहता हूं कि तुम दोनों साहूकारों और मुंशी चंद्रकांत के घर वालों पर नज़र रखो।" मैंने दोनों की तरफ बारी बारी से देखते हुए कहा____"चेतन तू रूपचन्द्र और उसके सभी भाइयों पर नज़र रखेगा और सुनील तू मुंशी के घर वालों पर नज़र रखेगा।"

"साहूकारों का तो समझ में आ गया भाई।" चेतन ने सोचने वाले भाव से कहा____"लेकिन मुंशी के घर वालों पर नज़र रखने की क्या ज़रूरत है भला?"
"अगर ज़रूरत न होती।" मैंने कहा____"तो मैं उन पर नज़र रखने के लिए क्यों कहता?"

"बड़ी हैरानी की बात है भाई।" सुनील ने कहा____"आख़िर बात क्या है वैभव? कहीं ऐसा तो नहीं कि तुझे मुंशी के घर वालों पर इस बात का शक है कि वो साहूकारों से मिले हुए हो सकते हैं? देख अगर तू ऐसा सोचता है तो समझ ले कि तू ग़लत सोच रहा है। क्योंकि हमने कभी उसके घर वालों को साहूकारों के किसी भी सदस्य से मिलते जुलते नहीं देखा।"

"तू ज़्यादा दिमाग़ मत चला।" मैंने कठोर भाव से कहा____"जितना कहा है उतना कर। तेरा काम सिर्फ इतना है कि तू मुंशी के घर वालों पर नज़र रख और ये देख कि उसके घर पर या उनसे मिलने कौन कौन आता है और वो ख़ुद किससे मिलते हैं।"

"ठीक है।" सुनील ने कहा____"अगर तू यही चाहता है तो मैं मुंशी के घर पर और उसके घर वालों पर आज से ही नज़र रखूंगा।"
"बहुत बढ़िया।" कहने के साथ ही मैंने चेतन की तरफ देखा____"मैं आज रूपचन्द्र की बहन रूपा से मिलने मंदिर जा रहा हूं इस लिए मैं चाहता हूं कि तू ये देख कि रूपा का पीछा करते हुए वो रूप का चंद्र तो नहीं आ रहा। अगर वो आए तो तू फ़ौरन मुझे बताएगा।"

"लगता है रूपा को पेलने का इरादा है तेरा।" चेतन ने मुस्कुराते हुए कहा____"लेकिन ये ग़लत बात है भाई। तू तो उसके साथ मज़ा करेगा और यहाँ हम जो चार महीने से सिर्फ मुट्ठ मार कर जी रहे हैं उसका क्या?"

"बुरचटने साले, मैं उसके साथ मज़ा करने नहीं जा रहा समझे।" मैंने आँखें दिखाते हुए कहा____"मेरा उससे मिलना बहुत ज़रूरी है। इस लिए मैं चाहता हूं कि तुम दोनों फिलहाल रूपचन्द्र पर नज़र रखो। उसे पता चल चुका है कि मेरा उसकी बहन के साथ सम्बन्ध है। अब जब कि मैं वापस आ गया हूं तो वो यकीनन अपनी बहन पर नज़र रखे हुए होगा।"

"फिर तो वो तुझसे खार खाए बैठा होगा।" सुनील ने हंसते हुए कहा____"उसकी गांड ये सोच कर सुलगती होगी कि तूने उसकी बहन की अच्छे से बजाई है।"
"उसकी सुलगती है तो सुलगती रहे।" मैंने लापरवाही से कहा____"लेकिन फिलहाल मैं नहीं चाहता कि उससे मेरा टकराव हो क्योंकि तुझे भी पता है कि अब साहूकारों ने हमसे अपने रिश्ते सुधार लिए हैं। इस लिए किसी भी तरह के लफड़े की पहल मैं ख़ुद नहीं करना चाहता। अगर उनकी तरफ से कोई लफड़ा होता है तो उनकी गांड तोड़ने में कोई कसर भी नहीं छोड़ूंगा।"

"मुझे पता चला था कि तूने मानिक का हाथ तोड़ दिया था।" चेतन ने कहा____"काश! उस वक़्त हम दोनों भी होते तो हम दोनों को भी हांथ साफ़ करने का मौका मिल जाता।"

"हांथ साफ़ करने का भी वक़्त आएगा।" मैंने कहा____"लेकिन इस वक़्त जो ज़रूरी है वो करो। अब तुम दोनों जाओ और रूपचन्द्र पर नज़र रखो। मैं भी मंदिर की तरफ निकल रहा हूं।"

चेतन और सुनील मेरे कहने पर चले गए और मैं भी मंदिर की तरफ जाने के लिए मुड़ गया। आज मुरारी काका की तेरहवीं भी है इस लिए मुझे मुरारी काका के घर भी समय से पंहुचना था। ख़ैर मैं तेज़ क़दमों से चलते हुए मंदिर की तरफ बढ़ा चला जा रहा था। चेतन और सुनील मेरी तरह ही किसी से न डरने वाले और शातिर लौंडे थे। हालांकि किसी से न डरने की वजह भी मैं ही था। गांव में सब जानते थे कि वो मेरे साथी हैं इस लिए कोई उन दोनों से भिड़ने की कोशिश ही नहीं करता था। दोनों के घर वाले भी मेरी वजह से उनसे कुछ नहीं कहते थे।

उस वक़्त सुबह के नौ बज चुके थे जब मैं मंदिर में पंहुचा था। गांव के इक्का दुक्का लोग मंदिर में पूजा करने और दर्शन करने आए हुए थे। मैंने भी पहले माता रानी के दर्शन किए और फिर मंदिर के पीछे की तरफ बढ़ गया। पीछे काफी सारे पेड़ पौधे लगे हुए थे जहां एक पेड़ के पास जा कर मैं बैठ गया और रूपा के आने का इंतज़ार करने लगा।

मंदिर में मैं जब भी रूपा से मिलता था तो यहीं पर मिलता था क्योंकि यहाँ पर लोगों की नज़र नहीं जाती थी। कुछ देर के अंतराल में मैं पेड़ से सिर निकाल कर मंदिर की तरफ देख लेता था। कोई आधा घंटा इंतज़ार करने के बाद मुझे रूपा आती हुई नज़र आई। खिली हुई धुप में वो बेहद सुन्दर लग रही थी। मेरे अंदर उसे देखते ही जज़्बात उछाल मारने लगे थे जिन्हें मैंने बेदर्दी से दबाने की कोशिश की।

कुछ ही देर में वो मेरे पास आ गई। आज साढ़े चार महीने बाद मैं रूपा जैसी खूबसूरत बला को अपने इतने क़रीब देख रहा था। हल्के सुर्ख रंग के शलवार कुर्ते में वो बहुत ही खूबसूरत दिख रही थी। उसके गले पर पतला सा दुपट्टा था जिसकी वजह से उसके सीने के उन्नत और ठोस उभार स्पष्ट दिख रहे थे। गुलाब की पंखुड़ियों जैसे होठों पर हल्की सी मुस्कान सजाए वो कुछ पलों तक मुझे देखती रही और फिर उसकी नज़रें झुकती चली गईं। जाने क्या सोच कर वो शर्मा गई थी जिसकी वजह से उसका गोरा सफ्फाक़ चेहरा हल्का सुर्ख पड़ गया था।

मैं रूपा के रूप सौंदर्य को कुछ पलों तक ख़ामोशी से देखता रहा और फिर आगे बढ़ कर उसके चेहरे को अपनी हथेलियों में ले लिया। मेरे छूते ही उसके समूचे जिस्म में कम्पन हुआ और उसने अपनी बड़ी बड़ी और कजरारी आँखों से मेरी तरफ देखा।

"दिल तो करता है कि खा जाऊं तुम्हें।" मैंने उसकी आँखों में देखते हुए कहा____"इन साढ़े चार महीनों में तुम और भी ज़्यादा सुन्दर लगने लगी हो। तुम्हारा ये जिस्म पहले से ज़्यादा भरा हुआ और खिला हुआ नज़र आ रहा है। मैंने तो सोचा था कि मेरी याद में तुम्हारी हालत शायद ख़राब हो गई होगी।"

"शुरुआत में दो महीने तो मेरी हालत ख़राब ही थी जनाब।" रूपा ने अपनी खनकती हुई आवाज़ से कहा____"किन्तु फिर मैंने ख़ुद को ये सोच कर समझाया कि मेरी हालत देख कर कहीं मेरे घर वालों को मेरी वैसी हालत की असल वजह न पता चल जाए। तुम क्या जानो कि मैंने कितनी मुश्किल से ख़ुद को समझाया था।"

"हां मैं समझ सकता हूं।" मैंने उसके चेहरे को अपनी हथेलियों में लिए हुए ही कहा____"पर क्या तुम्हें एहसास है कि मैं चार महीने कितनी तक़लीफ में था?"
"जिसे हम दिल की गहराइयों से चाहते हैं उसकी हर चीज़ का हमें दूर से भी एहसास हो जाता है।" रूपा ने कहा____"मेरे दिल पर हांथ रख कर देख लो, ये तुम्हें ख़ुद बता देगा कि ये किसके नाम से धड़कता है।"

"मेरे मना करने के बाद भी तुमने मेरे प्रति ऐसे ख़याल अपने दिल से नहीं निकाले।" मैंने उसकी आँखों में अपलक देखते हुए कहा____"तुम्हें अच्छी तरह पता है कि हम दोनों कभी एक नहीं हो सकते। फिर ऐसी हसरत दिल में पालने का क्या फ़ायदा?"

"अब तक मैं भी यही समझती थी कि तुम मेरी किस्मत में नहीं हो सकते।" रूपा ने मेरी आँखों में झांकते हुए बड़ी मासूमियत से कहा____"किन्तु अब मैं समझती हूं कि तुम मेरी किस्मत में ज़रूर हो सकते हो। हां वैभव, अब तो मेरे घर वालों ने दादा ठाकुर से अपने रिश्ते भी सुधार लिए हैं। अब तो हम एक हो सकते हैं। किसी को भी हमारे एक होने में ऐतराज़ नहीं होगा।"

"तुम्हें क्या लगता है रूपा?" मैंने उसके चेहरे को अपनी हथेलियों से आज़ाद करते हुए कहा____"तुम्हारे घर वालों ने हमसे अपने रिश्ते सुधारे हैं तो उसके पीछे क्या वजह हो सकती है?"

"क्या मतलब??" रूपा ने आँखें सिकोड़ कर मेरी तरफ देखा तो मैंने कहा_____"मतलब ये कि मुझे लगता है कि इसके पीछे ज़रूर कोई वजह है। इतिहास गवाह है कि हम ठाकुरों से साहूकारों के रिश्ते कभी अच्छे नहीं रहे थे। हमारे दादा पुरखों के ज़माने से ही दोनों खानदानों के बीच मन मुटाव और बैर भावना जैसी बात रही है। सवाल उठता है कि अब ऐसी कौन सी ख़ास बात हो गई है जिसके लिए साहूकारों ने ख़ुद ही आगे बढ़ कर हमसे अपने रिश्ते सुधार लेने की पहल की? इस गांव के ही नहीं बल्कि आस पास गांव वाले भी आज कल यही सोचते हैं कि आख़िर किस वजह से साहूकारों ने दादा ठाकुर से अपने रिश्ते सुधार लेने की पहल की होगी?"

"मैं ये मानती हूं कि शुरू से ही इन दोनों खानदानों के बीच अच्छे रिश्ते नहीं रहे थे।" रूपा ने कहा____"लेकिन तुम भी जानते हो कि संसार में कोई भी चीज़ हमेशा के लिए एक जैसी नहीं बनी रहती। कल अगर हमारा कोई दुश्मन था तो यकीनन एक दिन वो हमारा दोस्त भी बन जाएगा। परिवर्तन इस सृष्टि का नियम है वैभव। हमें तो खुश होना चाहिए कि शादियों से दोनों खानदानों के बीच जो अनबन थी या बैर भाव था वो अब ख़त्म हो गया है और अब हम एक दूसरे के साथ हैं। मैं मानती हूं कि ऐसी चीज़ें जब पहली बार होती हैं तो वो सबके मन में कई सारे सवाल पैदा कर देती हैं लेकिन क्या ये सही है कि दोनों परिवारों के बीच क़यामत तक दुश्मनी ही बनी रहे? आज अगर दोनों परिवार एक हो गए हैं तो इसमें ऐसी वैसी किसी वजह के बारे में सोचने की क्या ज़रूरत है?"

"मेरे कहने का मतलब ये नहीं है रूपा कि मैं दोनों परिवारों के एक हो जाने से खुश नहीं हूं।" मैंने गहरी सांस लेते हुए कहा____"बल्कि इस बात से तो हम भी बेहद खुश हैं लेकिन ऐसा हो जाने से मन में जो सवाल खड़े हुए हैं उनके जवाब भी तो हमें पता होना चाहिए।"

"तो तुम किस तरह के जवाब पता होने की उम्मीद रखते हो?" रूपा ने कहा____"क्या तुम ये सोचते हो कि मेरे घर वालों के मन में कुछ ऐसा वैसा है जिसके लिए उन्होंने दादा ठाकुर से अपने रिश्ते सुधारे हैं?"

"मेरे सोचने से क्या होता है रूपा?" मैंने कहा____"इस तरह की सोच तो गांव के लगभग हर इंसान के मन में है।"
"मुझे गांव वालों से कोई मतलब नहीं है वैभव।" रूपा ने मेरी तरफ अपलक देखते हुए कहा____"मैं सिर्फ ये जानना चाहती हूं कि मेरे घर वालों के ऐसा करने पर तुम क्या सोचते हो?"

"हर किसी की तरह मैं भी ये सोचने पर मजबूर हूं कि साहूकारों के ऐसा करने के पीछे कोई तो वजह ज़रूर है।" मैंने रूपा की आँखों में देखते हुए सपाट लहजे में कहा_____"और ऐसा सोचने की मेरे पास वजह भी है।"

"और वो वजह क्या है?" रूपा ने मेरी तरफ ध्यान से देखा।
"जैसा कि तुम्हें भी पता है कि मेरे और तुम्हारे भाइयों के बीच हमेशा ही बैर भाव रहा है।" मैंने कहा_____"जिसका नतीजा हमेशा यही निकला था कि मेरे द्वारा तुम्हारे भाइयो को मुँह की खानी पड़ी थी। उस दिन तो मानिक का मैंने हाथ ही तोड़ दिया था। अब सवाल ये है कि मेरे द्वारा ऐसा करने पर भी तुम्हारे घर वालों ने कोई आपत्ति क्यों नहीं जताई और दादा ठाकुर से न्याय की मांग क्यों नहीं की?"

"क्या सिर्फ इतनी सी बात के लिए तुम ये सोच बैठे हो कि दादा ठाकुर से अपने रिश्ते सुधार लेने के पीछे कोई ऐसी वैसी वजह हो सकती है?" रूपा के चेहरे पर तीखे भाव उभर आए थे जो कि मेरे लिए थोड़ा हैरानी की बात थी, जबकि उसने आगे कहा____"जब कि तुम्हें सोचना चाहिए कि इस सबके बाद भी अगर मेरे घर वालों ने सब कुछ भुला कर दादा ठाकुर से अच्छे रिश्ते बना लेने का सोचा तो क्या ग़लत किया उन्होंने?"

"कुछ भी ग़लत नहीं किया और ये बात मैं भी मानता हूं।" मैंने कहा____"लेकिन बात सिर्फ इतनी ही नहीं है बल्कि इसके अलावा भी कुछ ऐसी बाते हैं जिन्हें जान कर शायद तुम ये समझने लगोगी कि मैं बेवजह ही तुम्हारे परिवार वालों ऊँगली उठा रहा हूं।"

"और कैसी बातें हैं वैभव?" रूपा ने कहा____"मुझे भी बताओ। मुझे भी तो पता चले कि मेरे घर वालों ने ऐसा क्या किया है जिसके लिए तुम ये सब कह रहे हो।"

"मेरे पास इस वक़्त कोई प्रमाण नहीं है रूपा।" मैंने गहरी सांस ली____"किन्तु मेरा दिल कहता है कि मेरा शक बेवजह नहीं है। जिस दिन मेरे पास प्रमाण होगा उस दिन तुम्हें ज़रूर बताऊंगा। उससे पहले ये बताओ कि क्या तुम्हें पता है कि तुम्हारे भाई को मेरे और तुम्हारे रिश्ते के बारे में सब पता है?"

"ये क्या कह रहे हो तुम?" रूपा मेरी ये बात सुन कर बुरी तरह चौंकी थी, चेहरे पर घबराहट के भाव लिए बोली____"मेरे भाई को कैसे पता चला और तुम ये कैसे कह सकते हो कि उसे सब पता है?"

"उसी के मुख से मुझे ये बात पता चली है।" मैंने कहा____"तुम्हारा भाई रूपचन्द्र मुझसे इसी बात का बदला लेने के लिए आज कल कई ऐसे काम कर रहा है जिसकी मैंने कल्पना भी नहीं की थी।"

"क्या कर रहा है वो?" रूपा ने चकित भाव से पूछा।
"क्या तुम सोच सकती हो कि तुम्हारे भाई का सम्बन्ध मुंशी चंद्रकांत की बहू रजनी से हो सकता है?"

"नहीं हरगिज़ नहीं।" रूपा ने इंकार में सिर हिलाते हुए कहा____"सबको पता है कि मुंशी चंद्रकांत से हमारे सम्बन्ध अच्छे नहीं हैं। मेरे लिए ये यकीन करना मुश्किल है कि मेरे भाई का सम्बन्ध मुंशी की बहू से हो सकता है।"

"जबकि यही सच है।" मैंने कहा____"मैंने ख़ुद अपनी आँखों से तुम्हारे भाई को मुंशी की बहू रजनी के साथ देखा है। वो दोनों मुंशी के ही घर में पूरी तरह निर्वस्त्र हो कर रास लीला कर रहे थे और उसी रास लीला में रूपचन्द्र ने रजनी को बताया था कि मेरा उसकी बहन रूपा के साथ जिस्मानी सम्ब्नध है और इसके लिए वो मुझे हर हाल में सज़ा देगा। मुझे सज़ा देने के लिए वो मेरी बहन कुसुम को अपने जाल में फ़साने की बात कर रहा था।"

मेरी बातें सुन कर रूपा आँखें फाड़े मुझे देखती रह गई थी। कुछ कहने के लिए उसके होठ ज़रूर फड़फड़ा रहे थे किन्तु आवाज़ हलक से बाहर नहीं निकल रही थी।

"इतना ही नहीं।" उसकी तरफ देखते हुए मैंने आगे कहा____"तुम्हारे भाई ने दूसरे गांव में मुरारी काका के घर में भी झंडे गाड़ने की कोशिश की थी। वो तो वक़्त रहते मैं मुरारी काका के घर पहुंच गया था वरना वो मुरारी काका की बेटी अनुराधा के साथ ग़लत ही कर देता।"

मैने संक्षेप में रूपा को उस दिन की सारी कहानी बता दी जिसे सुन कर रूपा आश्चर्य चकित रह ग‌ई। हालांकि रूपा को मैंने ये नहीं बताया था कि मेरा जिस्मानी सम्बन्ध मुरारी काका की बीवी सरोज से था जिसका पता उसके भाई रूपचन्द्र को चल गया था और इसी बात को लेकर वो सरोज को मजबूर कर रहा था।

"बड़ी हैरत की बात है।" फिर रूपा ने कुछ सोचते हुए कहा____"मेरा भाई इस हद तक भी जा सकता है इसका मुझे यकीन नहीं हो रहा लेकिन तुमने ये सब बताया है तो यकीन करना ही पड़ेगा।"

"मैं भला तुमसे झूठ क्यों बोलूंगा रूपा?" मैंने कहा____"ये तो मेरे लिए इत्तेफ़ाक़ की ही बात थी कि मैं ऐन वक़्त पर दोनों जगह पहुंच गया था और मुझे रूपचन्द्र का ये सच पता चल गया था। मुंशी की बहू रजनी से जब वो ये कह रहा था कि वो मुझसे अपनी बहन का बदला लेने के लिए मेरी बहन कुसुम को अपने जाल में फसाएगा और फिर उसके साथ भी वही सब करेगा जो मैं तुम्हारे साथ कर चुका हूं तो मैं चाहता तो उसी वक़्त रूपचन्द्र के सामने जा कर उसकी हड्डियां तोड़ देता लेकिन मैंने ऐसा नहीं किया। क्योंकि मैं पहले ये जानना चाहता था कि रूपचन्द्र का सम्बन्ध मुंशी की बहू के साथ कब और कैसे हुआ?"

"मैं मानती हूं कि मेरे भाई रूपचन्द्र को तुमसे बदला लेने की भावना से ये सब नहीं करना चाहिए था और ना ही रजनी से ये सब कहना चाहिए था।" रूपा ने मेरी तरफ देखते हुए कहा____"लेकिन इन सब बातों से तुम ये कैसे कह सकते हो कि मेरे घर वालों के मन में कुछ ऐसा वैसा है जिसके लिए उन्होंने दादा ठाकुर से अपने रिश्ते सुधारे हैं? मुझे तो लगता है कि तुम बेवजह ही मेरे घर वालों पर शक कर रहे हो वैभव। मेरे भाई का मामला अलग है, उसके मामले को ले कर अगर तुम इस सबके लिए ऐसा कह रहे हो तो ये सरासर ग़लत है।"

"जैसा कि मैं तुमसे पहले ही कह चुका हूं कि मेरे पास फिलहाल इसका कोई प्रमाण नहीं है।" मैंने कहा____"और मैं खुद भी ये चाहता हूं कि मेरा शक बेवजह ही निकले लेकिन मन की तसल्ली के लिए क्या तुम्हें नहीं लगता कि हमें सच का पता लगाना चाहिए?"

"किस तरह के सच का पता?" रूपा के माथे पर शिकन उभरी।
"सच हमेशा ही कड़वा होता है रूपा।" मैंने कहा____"और सच को हजम कर लेना आसान भी नहीं होता लेकिन सच जैसा भी हो उसका पता होना निहायत ही ज़रूरी होता है। अगर तुम समझती हो कि मैं तुम्हारे घर वालों पर बेवजह ही शक कर रहा हूं तो तुम खुद सच का पता लगाओ।"

"म...मैं कैसे???" रूपा के चेहरे पर उलझन के भाव नुमायां हुए____"भला मैं कैसे किसी सच का पता लगा सकती हूं और एक पल के लिए मैं ये मान भी लू कि मेरे घर वालों के मन में कुछ ऐसी वैसी बात है भी तो क्या तुम समझते हो कि मैं वो सब तुम्हें बताऊंगी?"

"ख़ुद से ज़्यादा तुम पर ऐतबार है मुझे।" मैंने रूपा को प्यार भरी नज़रों से देखते हुए कहा____"मुझे पूरा भरोसा है कि तुम सच को जान कर भी किसी के साथ पक्षपात नहीं करोगी। अगर मैं ग़लत हुआ तो मैं इसके लिए अपने घुटनों के बल बैठ कर तुमसे माफ़ी मांग लूंगा।"

मेरे ऐसा कहने पर रूपा मुझे अपलक देखने लगी। उसके चेहरे पर कई तरह के भाव आते जाते नज़र आये मुझे। मैं ख़ामोशी से उसी को देखे जा रहा था। कुछ देर तक जाने क्या सोचने के बाद रूपा ने कहा____"तुमने मुझे बड़ी दुविधा में डाल दिया है वैभव। एक तरह से तुम मुझे मेरे ही घर वालों की जासूसी करने का कह रहे हो। क्या तुम मेरे प्रेम की परीक्षा ले रहे हो?"

"ऐसी बात नहीं है रूपा।" मैंने फिर से उसके चेहरे को अपनी हथेलियों में लेते हुए कहा____"मैं अच्छी तरह जानता हूं कि तुम मुझे बेहद प्रेम करती हो। तुम्हारे प्रेम की परीक्षा लेने का तो मैं सोच भी नहीं सकता।"

"तो फिर क्यों मुझे इस तरह का काम करने को कह रहे हो?" रूपा ने मेरी आँखों में अपलक देखते हुए कहा____"अगर तुम सही हुए तो मैं कैसे तुमसे नज़रें मिला पाऊंगी और कैसे अपने ही घर वालों के खिलाफ़ जा पाऊंगी?"

"इतना कुछ मत सोचो रूपा।" मैंने कहा____"अगर मैं सही भी हुआ तो तुम्हें अपने मन में हीन भावना रखने की कोई ज़रूरत नहीं होगी बल्कि सच जानने के बाद हम उसे अपने तरीके से सुलझाएंगे। तुम्हारे घर वालों के मन में मेरे खानदान के प्रति जैसी भी बात होगी उसे दूर करने की कोशिश करेंगे। शदियों बाद दो खानदान एक हुए हैं तो उसमे किसी के भी मन में कोई ग़लत भावना नहीं रहनी चाहिए बल्कि एक दूसरे के प्रति सिर्फ और सिर्फ प्रेम रहना चाहिए। क्या तुम ऐसा नहीं चाहती?"

"तुमसे मिलने से पहले तो मैं यही सोच कर खुश थी कि अब हमारे परिवार वाले खुशी खुशी एक हो गए हैं।" रूपा ने गंभीरता से कहा____"लेकिन तुम्हारी ये बातें सुनने के बाद मेरे अंदर की वो ख़ुशी गायब सी हो गई है और अब मेरे मन में एक डर सा बैठ गया है कि अगर सच में मेरे परिवार वाले अपने मन में तुम्हारे प्रति कोई ग़लत विचार रखे हुए होंगे तो फिर उसका परिणाम क्या होगा?"

"सब कुछ अच्छा ही होगा रूपा।" मैंने रूपा के चेहरे पर लटक आई उसके बालों की एक लट को अपने एक हाथ से हटाते हुए कहा____"मैं भी अब यही सोचता हूं कि हमारे परिवारों के बीच किसी भी तरह का मन मुटाव न रहे बल्कि अब से हमेशा के लिए एक दूसरे के प्रति प्रेम ही रहे।"

"अच्छा अब मुझे जाना होगा वैभव।" रूपा दो क़दम पीछे हटते हुए बोली____"काफी देर हो गई है। तुम्हारे अनुसार अगर सच में मेरे भाई को हमारे सम्बन्धों के बारे में पता है तो वो ज़रूर मुझ पर नज़र रख रहा होगा। मैं जब घर से चली थी तब वो मुझे घर पर नहीं दिखा था। ख़ैर मैं जा रही हूं और तुम्हारे कहे अनुसार सच का पता लगाने की कोशिश करुंगी।"

"क्या ऐसे ही चली जाओगी?" मैंने उसकी तरफ देखते हुए मुस्कुरा कर कहा____"मैंने तो सोचा था कि इतने महीनों बाद मिले हैं तो कम से कम तुम मेरा मुँह तो मीठा करवाओगी ही।"
"यहां आने से पहले मेरे ज़हन में भी यही सब चल रहा था।" रूपा ने कहा____"और मैं ये सोच कर खुश थी कि तुमसे जब मिलूंगी तो तुम्हारे सीने से लिपट कर अपने दिल की आग को शांत करुँगी लेकिन इन सब बातों के बाद दिल की वो हसरतें जैसे बेज़ार सी हो गई हैं।"

रूपा की आँखों में आंसू के कतरे तैरते हुए नज़र आए तो मैंने आगे बढ़ कर उसे अपने सीने से छुपका लिया। उसके एक हाथ में पूजा की थाली थी इस लिए वो मुझे अपने एक हाथ से ही पकड़े हुए थी। कुछ पलों तक उसे खुद से छुपकाए रखने के बाद मैंने उसे अलग किया और फिर उसके चेहरे को अपनी हथेलियों में ले कर उसके चेहरे की तरफ झुकता चला गया। कुछ ही पलों में मेरे होठ उसके शहद की तरह मीठे और रसीले होठों से जा मिले। मेरे पूरे जिस्म में एक सुखद और मीठी सी लहार दौड़ती चली गई। रूपा का जिस्म कुछ पलों के लिए थरथरा सा गया था और फिर वो सामान्य हो गई थी। मैंने उसके होठों को अपने मुँह में भर कर उसके होठों की शहद जैसी चाशनी को पीना शुरू कर दिया। पहले तो वो बुत की तरह खड़ी ही रही किन्तु फिर उसने भी सहयोग किया और मेरे होठों को चूमना शुरू कर दिया। ऐसा लगा जैसे कुछ ही पलों में सारी दुनियां हमारे ज़हन से मिट चुकी थी।

मैं रूपा के होठों को मुँह में भर कर चूसे जा रहा था और मेरे दोनों हाथ उसकी पीठ से लेकर उसकी कमर और उसके रुई की तरह मुलायम नितम्बों को भी सहलाते जा रहे थे। पलक झपकते ही मेरे जिस्म में अजीब अजीब सी तरंगें उठने लगीं जिसके असर से मेरी टांगों के बीच मौजूद मेरा लंड सिर उठा कर खड़ा हो गया था। जी तो कर रहा था कि रूपा को उसी पेड़ के नीचे लिटा कर उसके ऊपर पूरी तरह से सवार हो जाऊं लेकिन वक़्त और हालात मुनासिब नहीं थे। हम दोनों की जब साँसें हमारे काबू से बाहर हो गईं तो हम दोनों एक दूसरे से अलग हो गए। आँखें खुलते ही मेरी नज़र रूपा पर पड़ी तो देखा उसका गोरा चेहरा सुर्ख पड़ गया था और उसकी साँसें भारी हो गईं थी। गुलाब की पंखुड़ियां मेरे चूसने से थोड़ी मोटी सी दिखने लगीं थी।

रूपा की आँखेन बंद थी, जैसे वो अभी भी उस पल को अपनी पलकों के अंदर समाए उसमे खोई हुई थी। मैंने उसके बाजुओं को पकड़ कर उसे हिलाया तो उसने चौंक कर मेरी तरफ पलकें उठा कर देखा और फिर एकदम से शर्मा कर उसने अपनी नज़रें झुका ली। उसकी इस हया को देख कर मेरा जी चाहा कि मैं उसे फिर से अपने आगोश में ले लूं लेकिन फिर मैंने अपने जज़्बातों को काबू किया और मुस्कुराते हुए कहा____"तुम्हारे होठों की शहद चख कर दिल ख़ुशी से झूम उठा है रूपा। मन तो यही करता है कि तुम्हारे होठों पर मौजूद शहद को चखता ही रहूं लेकिन क्या करें, वक़्त और हालात इसकी इजाज़त ही नहीं दे रहे।"

"ये तुमने अच्छा नहीं किया वैभव।" रूपा पहले तो शरमाई फिर उसने थोड़ा उदास भाव से कहा____"मेरे अंदर के जज़्बातों को बुरी तरह झिंझोड़ दिया है तुमने। घर जा कर अब मुझे चैन नहीं आएगा।"

"कहो तो आज रात तुम्हारे घर आ जाऊं।" मैंने मुस्कुराते हुए कहा____"मेरा वादा है तुमसे कि उसके बाद तुम्हारे अंदर की सारी बेचैनी और सारी तड़प दूर हो जाएगी।"

"अगर ये सच में आसान होता तो मैं तुम्हें आने के लिए फौरन ही हां कह देती।" रूपा ने कहा____"ख़ैर अब जा रही हूं। कहीं मेरा भाई मुझे खोजते हुए यहाँ न पहुंच जाए।"

रूपा जाने के लिए मुड़ी तो मैंने जल्दी से उसका हाथ पकड़ लिया जिससे उसने गर्दन घुमा कर मेरी तरफ देखा। मैंने उसे अपनी तरफ खींच लिया जिससे वो मेरे सीने से आ टकराई। उसके सीने के हाहाकारी उभार मेरी चौड़ी छाती में जैसे धंस से ग‌ए, जिसका असर मुझ पर तो हुआ ही किन्तु उसके होठों से भी एक आह निकल गई। रूपा के सुन्दर चेहरे को सहलाते हुए मैंने पहले उसकी समंदर की तरह गहरी आंखों में देखा और फिर झुक कर उसके होठों को हल्के चूम लिया। इस वक़्त मेरे जज़्बात खुद ही मेरे काबू में नहीं थे। मेरे ऐसा करने पर रूपा बस हल्के से मुस्कुराई और फिर वो अपने दुपट्टे को ठीक करते हुए मंदिर की तरफ बढ़ गई। रूपा के जाने के कुछ देर बाद मैं भी उस जगह से चल दिया।

रास्ते में चेतन और सुनील मुझे मिले तो दोनों ने मुझे बताया कि उन्हें रूपचन्द्र कहीं मिला ही नहीं। हालांकि वो मंदिर जाने वाले रास्ते पर पूरी तरह से नज़र रखे हुए था। उन दोनों की बात सुन कर मैंने मन ही मन सोचा कि रूपचन्द्र अगर घर पर भी नहीं था तो कहां गया होगा? ख़ैर मैंने चेतन और सुनील को फिर से यही कहा कि वो दोनों साहूकारों और मुंशी के घर वालों पर नज़र रखें।

चेतन और सुनील को कुछ और ज़रूरी निर्देश देने के बाद मैं हवेली की तरफ चल पड़ा। रूपा से हुई मुलाक़ात का मंज़र बार बार मेरी आँखों के सामने दिखने लगता था। ख़ैर रूपा के ही बारे में सोचते हुए मैं हवेली आ गया। मेरे ज़हन में कुसुम से एक बार फिर से बात करने का ख़याल उभर आया किन्तु इस बार मैं चाहता था कि जब मैं उससे बात करूं तो किसी भी तरह की बाधा हमारे दरमियान न आए। इतना तो अब मैं भी समझने लगा था कि चक्कर सिर्फ हवेली के बाहर ही बस नहीं चल रहा है बल्कि हवेली के अंदर भी एक चक्कर चल रहा है जिसका पता लगाना मेरे लिए अब ज़रूरी था।

हवेली में आ कर मैं अपने कमरे में गया और दूसरे कपड़े पहन कर नीचे आया तो माँ से मुलाक़ात हो गई। माँ ने मुझसे पूछा कि कहां जा रहे तो मैंने उन्हें बताया कि मुरारी काका की आज तेरहवीं है इस लिए उनके यहाँ जा रहा हूं। मेरी बात सुन कर माँ ने कहा ठीक है लेकिन समय से वापस आ जाना। माँ से इजाज़त ले कर मैं हवेली से बाहर आया और मोटर साइकिल में बैठ कर मुरारी काका के गांव की तरफ निकल गया।

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Kasam se bhai aaj ka update bilkul dil pe laga hai. Clg me mai bhi apne gf se ped ke niche milta tha uske hostel ke pass.
Khair bahut accha update tha waiting for next.
 

Avi12

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बहुत ही सुंदर अपडेट शुभम भाई। रूपा और वैभव के बीच की घटनाओं का वर्णन आपने पहले भी किया और आज इन दोनो के मिलने पर बहुत अच्छा लगा मुझे। रूपा और कुसुम का वर्णन पढ़कर बहुत अच्छा लगता है, एक प्रेमिका के तौर पर प्रेम दिखाती है तो दूसरी अनुजा के तौर पर दोनो का ही प्रेम निश्छल है।
विभोर का रवैया तो पहले से ही संदेहात्मक था और पिछली रात की घटना के बाद तो और भी संदेह बढ़ रहा है। हो न हो विभोर की रूपचंद्र के साथ साठ गांठ अवश्य ही है। बड़े भईया का रवैया रह रह कर बदलना बहुत ही अजीब लग रहा है, अब देखते हैं धीरे धीरे रहस्यों से पर्दा हटेगा तो कुछ पता चलेगा।
लिखते रहिए
 
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