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Adultery ☆ प्यार का सबूत ☆ (Completed)

What should be Vaibhav's role in this story..???

  • His role should be the same as before...

    Votes: 19 9.9%
  • Must be of a responsible and humble nature...

    Votes: 22 11.5%
  • One should be as strong as Dada Thakur...

    Votes: 75 39.1%
  • One who gives importance to love over lust...

    Votes: 44 22.9%
  • A person who has fear in everyone's heart...

    Votes: 32 16.7%

  • Total voters
    192

Naik

Well-Known Member
21,369
77,171
258
☆ प्यार का सबूत ☆
अध्याय - 31
----------☆☆☆----------




अब तक,,,,,

हवेली में आ कर मैं अपने कमरे में गया और दूसरे कपड़े पहन कर नीचे आया तो माँ से मुलाक़ात हो गई। माँ ने मुझसे पूछा कि कहां जा रहे तो मैंने उन्हें बताया कि मुरारी काका की आज तेरहवीं है इस लिए उनके यहाँ जा रहा हूं। मेरी बात सुन कर माँ ने कहा ठीक है लेकिन समय से वापस आ जाना। माँ से इजाज़त ले कर मैं हवेली से बाहर आया और मोटर साइकिल में बैठ कर मुरारी काका के गांव की तरफ निकल गया।

अब आगे,,,,,


मुरारी काका के घर पहुंचते पहुंचते मुझे ग्यारह बज गए थे। रूपा से मिलने और उससे बात चीत में ही काफी समय निकल गया था। हालांकि मुरारी काका के घर में हर चीज़ की ब्यवस्था मैंने करवा दी थी, बाकी का काम तो घर वालों का ही था। ख़ैर मैं पहुंचा तो देखा वहां पर काफी सारे लोग जमा हो रखे थे। पूजा का कार्यक्रम समाप्त ही होने वाला था। मैं जगन से मिला और उससे हर चीज़ के बारे में पूछा और ये भी कहा कि अगर किसी चीज़ की कमी हो रही हो तो वो मुझे खुल कर बताए। मैं दिल से चाहता था कि मुरारी काका की तेरहवीं का कार्यक्रम अच्छे से ही हो।

मुरारी काका के गांव वाले वहां मौजूद थे जिनसे मुरारी काका के अच्छे सम्बन्ध थे। मुझे जो काम नज़र आ जाता मैं उसी को करने लगता था। हालांकि जगन ने मुझे इसके लिए कई बार मना भी किया मगर मैं तब भी लगा ही रहा। वहां मौजूद सब लोग मुझे देख रहे थे और यकीनन सोच रहे होंगे कि दादा ठाकुर का बेटा एक मामूली से आदमी के घर पर आज एक मामूली इंसान की तरह काम कर रहा है। ऐसा नहीं था कि वो लोग मेरे चरित्र के बारे में जानते नहीं थे बल्कि सब जानते थे लेकिन उनके लिए ये हैरानी की बात थी कि मैं अपने स्वभाव के विपरीत ऐसे काम कर रहा था जिसकी किसी ने उम्मीद भी नहीं की थी। ऐसा लग ही नहीं रहा था कि मैं कोई पराया इंसान हूं बल्कि ऐसा लग रहा था जैसे ये मेरा ही घर था और मैं इस घर का एक ज़िम्मेदार सदस्य जो हर काम के लिए तैयार था।

मुरारी काका के घर के बाहर और अंदर दोनों तरफ औरतें और मर्द भरे पड़े थे। मैं कभी किसी काम के लिए अंदर जाता तो कभी बाहर आता। सरोज काकी मेरे इस कार्य से बेहद खुश थी। वहीं अनुराधा की नज़र जब भी मुझसे टकराती तो वो बस हल्के से मुस्कुरा देती थी। ख़ैर पूजा होने के बाद खाने पीने का कार्यक्रम शुरू हुआ जिसमे सबसे पहले तेरह ब्राम्हणों को भोज के लिए बैठाया गया। वहीं बाहर गांव वालों को ज़मीन पर ही बोरियां और चादर बिछा कर बैठा दिया गया। भोजन के बाद सभी ब्राम्हणों को नियमानुसार दान और दक्षिणा मुरारी काका के बेटे अनूप के हाथों दिलवाया गया।

एक के बाद एक पंगत खाने के लिए बैठती रही। मैं जगन के साथ बराबर सबको खाना परोसने में लगा हुआ था। हालांकि गांव के कुछ लड़के लोग भी खाना परोस रहे थे। जगन काका ने मुझे भी खाना खा लेने के लिए कहा लेकिन मैंने ये कह कर मना कर दिया कि सबके भोजन करने के बाद ही मैं उसके साथ बैठ कर खाऊंगा। ख़ैर दोपहर तीन बजते बजते सभी गांव वाले खा चुके और धीरे धीरे सब अपने अपने घर चले गए। सभी गांव वालों के मुख से एक ही बात निकल रही थी कि मुरारी की तेरहवीं का कार्यक्रम बहुत ही बढ़िया था और बहुत ही बढ़िया भोजन बनवाया गया था। हालांकि सब ये जान चुके थे कि ये सब मेरी वजह से ही संभव हुआ है।

सबके खाने के बाद मैं और जगन खाने के लिए बैठे। घर के अंदर जगन के बीवी बच्चे और गांव की दो चार औरतें अभी मौजूद थीं जो बची कुची औरतों को खाना खिला कर अब आराम से सरोज काकी के पास बैठी हुईं थी। मैं और जगन खाने के लिए बैठे तो अनुराधा और जगन की बेटी ने खाना परोसना शुरू कर दिया। खाने के बाद जगन ने मुझे पान सुपारी खिलाई। मैंने अपने जीवन में आज तक इतना काम नहीं किया था इस लिए मेरे जिस्म का ज़र्रा ज़र्रा अब दुःख रहा था किन्तु मैं अपनी तक़लीफ को दबाए बैठा हुआ था। जगन मुझसे बड़ा खुश था। वो जानता था कि सारे गांव ने आज जो वाह वाही उसकी और उसके घर वालों की है उसकी वजह मैं ही था। वो ये भी जानता था कि अगर मैंने मदद न की होती तो इतना बड़ा कार्यक्रम करना उसके लिए मुश्किल ही था। उस दिन शहर जाते वक़्त जगन ने मुझसे कहा था कि उसके भाई की तेरहवीं के लिए अगर मैंने उसकी मदद न की होती तो वो ये सब अकेले नहीं कर पाता क्योंकि उसके पास इस सबके लिए पैसा ही नहीं था। कुछ महीने पहले उसकी बड़ी बेटी बीमार हो गई थी जिसके इलाज़ के लिए उसने गांव के सुनार से कर्ज़ में रूपया लिया था। मैंने जगन को कहा था कि मेरे रहते हुए उसे मुरारी काका की तेरहवीं के लिए फ़िक्र करने की ज़रूरत नहीं है।

"आज तो बहुत थक गए होंगे न बेटा?" सरोज काकी मेरे पास आते हुए बोली____"क्या ज़रूरत थी इतनी मेहनत करने की? यहाँ लोग तो थे ही काम करवाने के लिए।"

"अगर ये सब नहीं करता काकी तो मुझे अंदर से सुकून नहीं मिलता।" मैंने कहा____"सच कहूं तो मैंने अपने जीवन में पहली बार ऐसा कोई काम किया है जिसके लिए मुझे अंदर से ख़ुशी महसूस हो रही है। थकान का क्या है काकी, वो तो दूर हो जाएगी लेकिन मुरारी काका के लिए ये सब करना फिर दुबारा क्या नसीब में होगा? आज जो कुछ भी मैंने किया है उसे मुरारी काका ने ऊपर से ज़रूर देखा होगा और उनकी आत्मा को ये सोच कर शान्ति मिली होगी कि उनके जाने के बाद उनके परिवार को किसी बात के लिए परेशान नहीं होना पड़ा।"

"तुम सच में बदल गए हो बेटा।" जगन ने खुशदिली से कहा____"गांव के कई लोगों ने आज मुझसे तुम्हारे बारे में बातें की थी और कहा था कि उन्हें यकीन ही नहीं हो रहा कि दादा ठाकुर का सबसे बिगड़ा हुआ बेटा किसी के लिए इतना कुछ कर सकता है। इसका तो यही मतलब हुआ कि इस लड़के का कायाकल्प हो चुका है।"

"मेरे पास बैठी वो औरतें भी यही कह रही थीं मुझसे।" सरोज काकी ने कहा____"वो छोटे ठाकुर को इस तरह काम करते देख हैरान थीं। मुझसे पूछ रहीं थी कि तुम यहाँ इस तरह कैसे तो मैंने उन सबको बताया कि तुम ये सब अपने काका के प्रेम की वजह से कर रहे हो।"

"मुझे इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता काकी।" मैंने सपाट भाव से कहा____"लोग क्या सोचते हैं ये उनका अपना नज़रिया है। मैं सिर्फ इतना जानता हूं कि अपनी पिछली ज़िन्दगी का सब कुछ भुला कर मुझे एक ऐसी ज़िन्दगी की शुरुआत करनी है जिसमे मैं किसी के भी साथ बुरा न करूं।"

"ये तो बहुत ही अच्छी बात है बेटा।" सरोज काकी ने कहा____"इन्सान जब सबके साथ अच्छा करता है तब खुद उसके साथ भी अच्छा ही होता है।"
"अच्छा अब मैं चलता हूं काका।" मैंने खटिया से उठते हुए जगन से कहा____"किसी चीज़ की ज़रूरत पड़े तो मुझे बता देना।"

"ज़रूर वैभव बेटा।" जगन ने भी खटिया से उठते हुए कहा____"मेरे लिए भी कोई काम या कोई सेवा हो तो बेझिझक बता देना। मैं तुम्हारे किसी काम आऊं ये मेरे लिए ख़ुशी की बात होगी।"

"बिल्कुल काका।" मैंने मुस्कुराते हुए कहा____"मुझे जब भी आपकी ज़रूरत होगी तो मैं आपको बता दूंगा। ख़ैर अब चलता हूं।"
"ठीक है बेटा।" जगन ने कहा____"और हां आते रहना यहां। अब तुम्हारे आने से मुझे कोई समस्या नहीं होगी बल्कि ख़ुशी ही होगी।"

जगन की ये बात सुन कर मैं बस हल्के से मुस्कुराया और फिर सरोज काकी के साथ साथ जगन काका की बीवी और भतीजी अनुराधा की तरफ बारी बारी से देखने के बाद मैं घर से बाहर निकल गया। मेरे पीछे जगन भी मुझे बाहर तक छोड़ने के लिए आया। घर के बाएं तरफ मेरी मोटर साइकिल खड़ी थी जिस पर मैं बैठा और उसे चालू कर के अपने गांव की तरफ निकल गया।

मुरारी काका के कार्यक्रम से अब मैं फुर्सत हो गया था और अब मुझे अपनी उन समस्याओं की तरफ ध्यान देना था जिनकी वजह से आज कल मैं कुछ ज़्यादा ही सोचने लगा था और उन सबको सोचते हुए परेशान भी हो चला था। मुझे जल्द से जल्द इन सभी चीज़ों का रहस्य जानना था।

हवेली पहुंचते पहुंचते दिन ढलने को आ गया था। आज बुरी तरह थक गया था मैं। हवेली के अंदर आया तो बैठक में पिता जी से सामना हो गया। उन्होंने मुझसे यूं ही पूछा कि आज कल कहां गायब रहता हूं मैं तो मैंने उन्हें मुरारी काका की तेरहवीं के कार्यक्रम के बारे में सब बता दिया जिसे सुन कर पिता जी कुछ देर तक मेरी तरफ देखते रहे उसके बाद बोले____"चलो कोई तो अच्छा काम किया तुमने। वैसे हमें पता तो था कि आज कल तुम मुरारी के घर वालों की मदद कर रहे हो किन्तु इस तरह से मदद कर रहे हो इसकी हमें उम्मीद नहीं थी। ख़ैर हमें ख़ुशी हुई कि तुमने मुरारी के घर वालों की इस तरह से मदद की। मुरारी की हत्या की वजह चाहे जो भी हो लेकिन कहीं न कहीं उसकी हत्या में तुम्हारा भी नाम शामिल हुआ है। ऐसे में अगर तुम उसके परिवार की मदद नहीं करते तो उसके गांव वाले तुम्हारे बारे में कुछ भी उल्टा सीधा सोचने लगते।"

"जी मैं समझता हूं पिता जी।" मैंने अदब से कहा____"हालाँकि किसी के कुछ सोचने की वजह से मैंने मुरारी काका के घर वालों की मदद नहीं की है बल्कि मैंने इस लिए मदद की है क्योंकि मेरे बुरे वक़्त में एक मुरारी काका ही थे जिन्होंने मेरी मदद की थी। मेरे लिए वो फरिश्ता जैसे थे और उनकी हत्या के बाद अगर मैं उनके एहसानों को भुला कर उनके परिवार वालों से मुँह फेर लेता तो कदाचित मुझसे बड़ा एहसान फ़रामोश कोई न होता।"

"बहुत खूब।" पिता जी ने प्रभावित नज़रों से देखते हुए मुझसे कहा____"हमे सच में ख़ुशी हो रही है कि तुम किसी के बारे में इतनी गहराई से सोचने लगे हो। आगे भी हम तुमसे ऐसी ही उम्मीद रखते हैं। ख़ैर हमने तुम्हें इस लिए रोका था कि तुम्हें बता सकें कि कल तुम्हें मणि शंकर के घर जाना है। असल में मणि शंकर और उसकी पत्नी हमसे मिलने आए थे। बातों के दौरान ही उन्होंने हमसे तुम्हारे बारे में भी चर्चा की और फिर ये भी कहा कि वो तुम्हें अपने घर पर बुला कर तुम्हारा सम्मान करना चाहते हैं। इस लिए हम चाहते हैं कि कल तुम उनके घर जाओ।"

"बड़ी अजीब बात है ना पिता जी।" मैंने हल्की मुस्कान के साथ कहा____"गांव का शाहूकार दादा ठाकुर के एक ऐसे लड़के को अपने घर बुला कर उसका सम्मान करना चाहता है जिस लड़के ने अपनी ज़िन्दगी में सम्मान पाने लायक कभी कोई काम ही नहीं किया है।"

"कहना क्या चाहते हो तुम?" पिता जी ने मेरी तरफ घूरते हुए कहा।
"यही कि अगर मणि शंकर हवेली के किसी सदस्य को अपने घर बुला कर सम्मान ही देना चाहता है तो मुझे ही क्यों?" मैंने एक एक शब्द पर ज़ोर देते हुए कहा____"इस हवेली के सबसे बड़े सदस्य आप हैं तो आपका सम्मान क्यों नहीं? आपके बाद जगताप चाचा जी हैं, उनका सम्मान क्यों नहीं? चाचा जी के बाद बड़े भैया हैं तो उनका सम्मान क्यों नहीं? मणि शंकर के ज़हन में मुझे ही सम्मान देने की बात कैसे आई? आख़िर मैंने ऐसा कौन सा बड़ा नेक काम किया है जिसके लिए वो मुझे ब्यक्तिगत तौर पर अपने घर बुला कर मुझे सम्मान देना चाहता है? क्या आपको नहीं लगता कि इसके पीछे कोई ख़ास वजह हो सकती है?"

"हमारे या तुम्हारे कुछ लगने से क्या होता है?" पिता जी ने सपाट लहजे में कहा____"लगने को तो इसके अलावा भी बहुत कुछ लगता है लेकिन उसका फायदा क्या है? किसी भी बात को साबित करने के लिए प्रमाण की ज़रूरत होती है। जब तक हमारे पास किसी बात का प्रमाण नहीं होगा तब तक हमारे शक करने से या हमारे कुछ लगने से कोई फ़र्क नहीं पड़ेगा। चलो मान लेते हैं कि मणि शंकर किसी ख़ास वजह से तुम्हें अपने घर बुला कर तुम्हें सम्मान देना चाहता है लेकिन हमें ये कैसे पता चल जाएगा कि इस सबके पीछे उसकी वो ख़ास वजह क्या है? उसके लिए तो हमें वही करना होगा न जो वो चाहता है, तब शायद हमें कुछ पता चलने की संभावना नज़र आए कि वो ऐसा क्यों करना चाहता है?"

"तो इसी लिए आप कह रहे हैं कि कल मैं मणि शंकर के घर जाऊं?" मैंने गहरी सांस लेते हुए कहा____"ताकि वहां जाने से ही समझ आए कि मुझे सम्मान देने के पीछे उसकी क्या वजह है?"

"ठीक समझे।" पिता जी ने कहा____"अगर हमें ये शक है कि साहूकारों ने हमसे अपने रिश्ते किसी ख़ास मकसद के तहत सुधारे हैं तो उनके उस ख़ास मकसद को जानने और समझने के लिए हमें ये बहुत अच्छा मौका मिला है। इस अवसर का लाभ उठाते हुए तुम्हें उसके घर जाना चाहिए और उसके साथ साथ उसके परिवार के हर सदस्य से घुलना मिलना चाहिए। उनसे अपने सम्बन्धों को ऐसा बनाओ कि उन्हें यही लगे कि हमारे मन में उनके प्रति अब शक जैसी कोई बात ही नहीं है। तुम एक लड़के हो इस लिए उनके लड़कों के साथ अपने बैर भाव मिटा कर बड़े आराम से घुल मिल सकते हो। जब ऐसा हो जाएगा तभी संभव है कि हमें उनके असल मकसद के बारे में कुछ पता चल सके।"

"आप ठीक कह रहे हैं।" मैंने बात को समझते हुए कहा____"जब तक हम सांप के बिल में हाथ नहीं डालेंगे तब तक हमें पता ही नहीं चलेगा कि उसकी गहराई कितनी है।"

"एक बात और।" पिता जी ने मेरी तरफ देखते हुए कहा____"अपनी अकड़ और अपने गुस्से को कुछ समय के लिए किनारे पर रख दो। क्योंकि हो सकता है कि जब तुम साहूकारों के घर जाओ और उनके लड़कों से मिलो जुलो तो उनके बीच रहते हुए कुछ ऐसी बातें भी हो जाएं जिनकी वजह से तुम्हें गुस्सा आ जाए। उस सूरत में तुम्हारा सारा काम ख़राब हो जाएगा। इस लिए तुम्हें अपने गुस्से पर काबू रखना होगा। उनकी कोई बात बुरी भी लगे तो तुम्हें उसे जज़्ब करना होगा। उनके साथ रहते हुए तुम्हें हर वक़्त इसी बात का ख़याल रखना होगा कि तुम्हारी किसी हरकत की वजह से ना तो ख़ुद अपना काम ख़राब हो और ना ही वो ये सोच बैठें कि तुम अभी भी उन्हें अपने से कमतर समझते हो।"

"जी मैं इन सब बातों का ख़याल रखूंगा पिता जी।" मैंने कहा तो पिता जी ने कहा____"अब तुम जा सकते हो।"

पिता जी के कहने पर मैं पलटा और अंदर की तरफ चला गया। पिता जी से हुई बातों से मैं काफी हद तक संतुलित व मुतम‌ईन हो गया था और मुझे समझ भी आ गया था कि आने वाले समय में मुझे किस तरह से काम करना होगा।

अंदर आया तो देखा माँ और मेनका चाची कुर्सियों पर बैठी बात कर रहीं थी। मुझे देखते ही माँ ने मेरा हाल चाल पूछा तो मैंने उन्हें बताया कि आज मैं बहुत थक गया हूं इस लिए मुझे मालिश की शख़्त ज़रूरत है। मेरी बात सुन कर माँ ने कहा____"ठीक है, तू जा पहले नहा ले। उसके बाद तेरी चाची तेरी मालिश कर देगी।"

"चाची को क्यों परेशान कर रही हैं माँ?" मैंने चाची की तरफ नज़र डालते हुए कहा____"भला चाची के कोमल कोमल हाथों में अब इतनी ताक़त कहां होगी कि वो मेरे बदन के दर्द को दूर कर सकें।"

"अच्छा जी।" मेरी बात सुन कर चाची ने आँखें चौड़ी करते हुए कहा____"तो तुम्हारे कहने का मतलब है कि मुझमे अब इतनी ताक़त ही नहीं रही?"
"और नहीं तो क्या?" मैंने मुस्कुराते हुए कहा____"आप तो एकदम फूल की तरफ नाज़ुक हैं और मैं ठहरा हट्टा कट्टा मर्द। भला आपके छूने मात्र से मेरी थकान कैसे दूर हो जाएगी?"

"देख रही हैं न दीदी?" मेनका चाची ने मानो माँ से शिकायत करते हुए कहा____"ये वैभव क्या कह रहा है मुझे? मतलब कि ये अब इतना बड़ा हो गया है कि मैं इसकी मालिश ही नहीं कर सकती?" कहने के साथ ही चाची ने मेरी तरफ देखते हुए कहा____"बेटा ये मत भूलो कि तुम चाहे जितने बड़े हो जाओ लेकिन तुम हमारे लिए आज भी छोटे से बच्चे ही हो।"

"आपकी इस बात से मैं कहां इंकार कर रहा हूं चाची जी?" मैंने कहा____"मैं तो आज भी आपका छोटा सा बेटा ही हूं लेकिन एक सच ये भी तो है ना कि आपका ये बेटा पहले से अब थोड़ा बड़ा हो गया है।"

"हां हां ठीक है।" चाची ने कहा____"रहेगा तो मेरा बेटा ही न। अब चलो बातें बंद करो और गुसलखाने में जा कर नहा लो। मैं सरसो का तेल गरम कर के आती हूं तुम्हारे कमरे में।"

"ठीक है चाची।" मैंने मुस्कुराते हुए कहा और अपने कमरे में जाने के लिए आँगन से होते हुए दूसरे छोर की तरफ बढ़ गया। कुछ ही देर में मैं अपने कमरे में पहुंच गया। कमरे में मैंने अपने कपड़े उतारे और एक तौलिया ले कर नीचे गुसलखाने में चला गया।


☆☆☆

नीचे गुसलखाने से नहा धो कर जब मैं आँगन से होते हुए इस तरफ आया तो मुझे कुसुम दिख गई। उसकी नज़र भी मुझ पर पड़ चुकी थी। मैंने साफ़ देखा कि मुझ पर नज़र पड़ते ही उसने अपनी नज़रे झुका ली थी। ज़ाहिर था कि वो किसी बात से मुझसे नज़रें चुरा रही थी। उसके ऐसे वर्ताव से मेरे मन में और भी ज़्यादा शक घर गया और साथ ये जानने की उत्सुकता भी बढ़ गई कि आख़िर ऐसी कौन सी बात हो सकती है जिसके लिए कुसुम इतनी गंभीर हो जाती है और मुझसे वो बात बताने में कतराने लगती है? उसे देखते ही मेरे ज़हन में पहले ख़याल आया कि उसे आवाज़ दूं और अपने कमरे में बुला कर उससे पूछूं लेकिन फिर याद आया कि ये सही वक़्त नहीं है क्योंकि उसकी माँ यानी कि मेनका चाची मेरे कमरे में मेरी मालिश करने आने वाली हैं। इस ख़याल के साथ ही मैंने उसे आवाज़ देने का इरादा मुल्तवी किया और ख़ामोशी से सीढ़ियों की तरफ बढ़ गया।

कमरे में आ कर मैंने पंखा चालू किया और तौलिया लपेटे ही पलंग पर लेट गया। मेनका चाची आज से पहले भी कई बार सरसो के तेल से मेरी मालिश कर चुकीं थी और यकीनन उनके मालिश करने से मेरी थकान भी दूर हो जाती थी। उनके पहले मेरी मालिश करने का काम हवेली की कोई न कोई नौकरानी ही करती थी लेकिन जब से पिता जी ने पुरानी नौकरानियों को हटा कर दूसरी नौकरानियों को हवेली पर काम करने के लिए रखा था तब से उनके लिए ये शख़्त हुकुम भी दिया था कि कोई भी नौकरानी मेरे कमरे न जाए और ना ही मेरा कोई काम करे। शुरू शुरू में तो मैं इस बात से बेहद गुस्सा हुआ था किन्तु दादा ठाकुर के हुकुम के खिलाफ़ भला कौन जाता? ख़ैर इस सबके बाद जब एक दिन मेरा बदन दर्द कर रहा था और मुझे मालिश की शख़्त ज़रूरत हुई तो माँ ने कहा कि वो ख़ुद अपने बेटे की मालिश करेंगी। माँ की ये बात सुन कर मेनका चाची ने उनसे कहा था कि वैभव उनका भी तो बेटा है इस लिए वो ख़ुद मेरी मालिश कर देंगी। असल में चाची के मन में माँ के प्रति बेहद सम्मान की भावना थी इस लिए वो नहीं चाहतीं थी कि मालिश करने जैसा काम हवेली की बड़ी ठकुराइन करें। मेनका चाची की इस बात से माँ ने खुश हो कर यही कहा था कि ठीक है अब से जब भी वैभव को मालिश करवाना होगा तो तुम ही कर दिया करना।

मेरा स्वभाव भले ही ऐसा था कि मैं अपनी मर्ज़ी का मालिक था और किसी की नहीं सुनता था लेकिन मैं अपने से बड़ों की इज्ज़त ज़रूर करता था। मैं गुस्सा तब होता था जब कोई मेरी मर्ज़ी या मेरी इच्छा के विरुद्ध काम करता था। जहां मेरे तीनो भाई दादा ठाकुर और जगताप चाचा जी के सामने आ कर उनसे बात करने में झिझकते थे वहीं मैं बेख़ौफ़ हो कर और उनसे आँख मिला कर बात करता था। जिसके लिए मुझे शुरुआत में बहुत बातें सुनने को मिलती थी और दादा ठाकुर के हुकुम से बदन पर कोड़े भी पड़ते थे लेकिन मैं भी कुत्ते की दुम की तरह ही था जो किसी भी शख़्ती के द्वारा सीधा ही नहीं हो सकता था। बढ़ती उम्र के साथ साथ मैं और भी ज़्यादा निडर होता गया और मेरा गुस्सा भी बढ़ता गया। मेरे गुस्से का शिकार अक्सर हवेली के नौकर चाकर हो जाते थे जिनको मेरे गुस्से का सामना करते हुए मार भी खानी पड़ जाती थी। यही वजह थी कि जब तक मैं हवेली में रहता तब तक हवेली के सभी नौकर एकदम सतर्क रहते थे।

मेरा स्वभाव बाहर से बेहद कठोर था किन्तु अंदर से मैं बेहद नरम दिल था। हालांकि मैं किसी को भी अपनी नरमी दिखाता नहीं था सिवाए माँ और कुसुम के। हवेली में कुसुम को मैं अपनी सगी बहन से भी ज़्यादा मानता था। इसकी वजह ये थी कि एक तो हवेली में सिर्फ वही एक लड़की थी और दूसरे मेरी कोई बहन नहीं थी। कुसुम शुरू से ही नटखट चंचल और मासूम थी। सब जानते थे कि हवेली में सबसे ज़्यादा मैं कुसुम को ही मानता हूं। मेरे सामने कोई भी कुसुम को डांट नहीं सकता था। हर किसी की तरह कुसुम भी जानती थी कि हवेली की नौकरानियों से मेरे जिस्मानी सम्बन्ध हैं लेकिन इसके लिए उसने कभी भी मुझसे कोई शिकायत नहीं की बल्कि जब भी ऐसे मौकों पर मैं फंसने वाला होता था तो अक्सर वो कुछ ऐसा कर देती थी कि मैं सतर्क हो जाता था। बाद में जब कुसुम से मेरा सामना होता तो मैं उससे यही कहता कि आज उसकी वजह से मैं दादा ठाकुर के कोड़ों की मार से बच गया। मेरी इस बात पर वो बस यही कहती कि मैं अपने भैया को किसी के द्वारा सज़ा पाते हुए नहीं देख सकती। हर बार उसका इतना ही कहना होता था। उसने ये कभी नहीं कहा कि आप ऐसे गंदे काम करते ही क्यों हैं?

मैं पलंग पर आँखे बंद किए लेटा हुआ ही था कि तभी मेरे कानों में पायल के छनकने की आवाज़ सुनाई दी। मैं समझ गया कि मेनका चाची मेरी मालिश करने के लिए मेरे कमरे में आ रही हैं। लगभग छह महीने हो गए थे मैंने उनसे मालिश नहीं करवाई थी।

मेनका चाची के पायलों की छम छम करती मधुर आवाज़ मेरे कमरे में आ कर रुक गई। उनके गोरे सफ्फाक़ बदन पर काले रंग की साड़ी थी जिस पर गुलाब के फूलों की नक्कासी की गई थी। साड़ी का कपड़ा ज़्यादा तो नहीं पर थोड़ा पतला ज़रूर था जिसकी वजह से साड़ी में ढंका हुआ उनका पेट झलक रहा था। मेनका चाची का शरीर न तो पतला था और ना ही ज़्यादा मोटा था। यही वजह थी कि तीन बच्चों की माँ हो कर भी वो जवान लगतीं थी। मैं अक्सर उन्हें छेड़ दिया करता था जिस पर वो मुस्कुराते हुए मेरे सिर पर चपत लगा देती थीं। इधर जब से मैं चार महीने की सज़ा काट कर हवेली आया था तब से मेरे बर्ताव में भी थोड़ा बदलाव आ गया था। हालांकि मैं पहले भी ज़्यादा किसी से बात नहीं करता था किन्तु हवेली से निकाले जाने के बाद जब मैं चार महीने उस बंज़र ज़मीन पर रहा और इस बीच हवेली से कोई मुझे देखने नहीं आया था तो हवेली के सदस्यों के प्रति मेरे अंदर गुस्सा भर गया था जिसके चलते मैंने बिलकुल ही बात करना बंद कर दिया था। ये अलग बात है कि पिछले कुछ समय से मेरे बर्ताव में नरमी आ गई थी और मैं थोड़ा गंभीर हो चला था।

"अरे! चाची आप तो सच में मेरी मालिश करने आ ग‌ईं।" चाची पर नज़र पड़ते ही मैंने पलंग पर बैठते हुए कहा तो चाची ने मेरे क़रीब आते हुए कहा____"तो तुम्हें क्या लगा था कि मैं मज़ाक कर रही थी?"

"वैसे सच कहूं तो मेरी भी यही इच्छा थी कि मेरी मालिश आप ही करें।" मैंने मुस्कुराते हुए कहा____"वो क्या है न कि आपके हाथों में जादू है। जिस्म की सारी थकान ऐसे ग़ायब हो जाती है जैसे उसका कहीं नामो निशान ही न रहा हो।"

"चलो अब मस्का मत लगाओ।" चाची ने लकड़ी के स्टूल पर तेल की कटोरी को रखते हुए कहा____"और उल्टा हो कर लेट जाओ।"
"जी ठीक है चाची।" मैंने कहा और पलंग पर नीचे की तरफ पेट कर के लेट गया।

मेनका चाची ने अपनी साड़ी के पल्लू को समेट कर अपनी कमर के एक किनारे पर खोंस लिया। उसके बाद उन्होंने स्टूल से तेल की कटोरी को उठाया और उसमे से कुछ तेल अपनी हथेली पर डाला। हथेली पर लिए हुए तेल को उन्होंने अपनी दूसरी हथेली में भी बराबर मिलाया और फिर झुक कर मेरी पीठ पर उसे मलने लगीं। चाची के कोमल कोमल हाथ मेरी पीठ पर घूमने लगे। गुनगुना तेल उनके हाथों द्वारा मेरी पीठ पर लगा तो मेरी आँखें एक सुखद एहसास के चलते बंद हो ग‌ईं।

"आह्ह चाची कितना अच्छा लग रहा है।" मैंने आँखें बंद किए हुए कहा____"सच में आपके हाथों में जादू है, तभी तो उस जादू के असर से मुझे सुकून मिल रहा है और इस सुकून की वजह से मेरी पलकें बंद हो गई हैं।"

"दीदी के सामने तो बड़ा कह रहे थे कि मेरे कोमल हाथों में वो ताकत कहां जिससे तुम्हारी थकान दूर हो सके।" चाची ने थोड़ा ज़ोर डालते हुए अपनी हथेली को मेरी पीठ पर घिसते हुए कहा तो मैंने मुस्कुराते हुए कहा_____"वो तो मैं आपको छेड़ रहा था चाची वरना क्या मैं जानता नहीं हूं कि आप चीज़ क्या हैं।"

"झूठी तारीफ़ करना तो कोई तुमसे सीखे।" चाची ने स्टूल से कटोरी उठा कर उसमे से थोड़ा तेल अपनी हथेली में डालते हुए कहा____"तुम्हें अच्छी तरह जानती हूं मैं। जब ज़रूरत होती है तभी तुम्हें अपनी इस चाची का ख़याल आता है।"

"ऐसी कोई बात नहीं है चाची।" मैंने आँखें खोल कर उनकी तरफ देखते हुए कहा_____"आप बेवजह ही मेरे बारे में ऐसा कह रही हैं।"
"अच्छा..।" चाची ने तेल को अपनी दोनों हथेलियों में मिलाने के बाद मेरी पीठ पर मलते हुए कहा____"तो मैं ऐसा बेवजह ही कह रही हूं? ज़रा ये तो बताओ कि जब से तुम यहाँ आए हो तब से तुम कितने दिन अपनी इस चाची के पास बैठे हो? अरे बैठने की तो बात दूर तुमने तो दूर से भी मेरा हाल चाल नहीं पूछा...हुह...बात करते हैैं।"

"अच्छा तो अब आप झूठ भी बोलने लगी हैं।" मैंने चाची के चेहरे की तरफ देखने की कोशिश की लेकिन मेरी गर्दन पूरी तरफ से पीछे न घूम सकी, अलबत्ता उनकी तरफ देखने के चक्कर में मेरी नज़र उनके सपाट और बेदाग़ पेट पर ज़रूर जा कर ठहर गई। चाची ने अपनी साड़ी के पल्लू को समेट कर उसे अपनी कमर के किनारे पर खोंस लिया था। चाची के गोरे और बेदाग़ पेट पर मेरी नज़र पड़ी तो कुछ पलों के लिए तो मेरी साँसें जैसे रुक सी गईं। पेट के नीचे उनकी गहरी नाभी साड़ी के पास साफ़ दिख रही थी। मैंने जल्दी से खुद को सम्हाला और आगे कहा____"जब कि सच तो यही है कि जब भी आपसे मेरी मुलाक़ात हुई है तब मैंने आपको प्रणाम भी किया है और आपका हाल चाल भी पूछा है।"

"इस तरह तो चलते हुए लोग गै़रों से भी उनका हाल चाल पूंछ लेते हैं।" चाची ने मेरे कंधे पर अपनी हथेली को फिराते हुए कहा____"तुमने भी मेरा हाल तभी पूछा था न जब आते जाते मैं तुम्हे संयोग से मिली थी। अगर तुम अपनी इस चाची को दिल से मानते तो खुद चल कर मेरे पास आते और मुझसे मेरा हाल चाल पूंछते।"

"हां आपकी ये बात मैं मानता हूं चाची।" मैंने उनके चेहरे की तरफ देखने के लिए फिर से गर्दन घुमानी चाही लेकिन इस बार भी मेरी नज़र उनके चेहरे तक न पहुंच सकी, बल्कि वापसी में फिर से उनके पेट पर ही जा पड़ी। चाची मेरे इतने क़रीब थीं और उनका दूध की तरह गोरा और सपाट पेट मेरे चेहरे के एकदम पास ही था। उनके पेट पर नज़र पड़ते ही मेरे जिस्म में सनसनी सी होने लगती थी। मेरी आँखों के सामने न जाने कितनी ही लड़कियों और औरतों के नंगे जिस्म जैसे किसी चलचित्र की तरह दिखने लग जाते थे। मैंने गर्दन दूसरी तरफ कर के अपने मन को शांत करने की कोशिश करते हुए आगे कहा_____"लेकिन ये आप भी जानती हैं कि मैंने ऐसा क्यों नहीं किया? पिता जी ने मुझे एक मामूली सी ग़लती के लिए इतनी बड़ी सज़ा दी और सज़ा की उस अवधि के दौरान इस हवेली का कोई भी सदस्य एक बार भी मुझे देखने नहीं आया। उस समय हर गुज़रता हुआ पल मुझे ये एहसास करा रहा था जैसे इस संसार में मेरा अपना कोई नहीं है। इस भरी दुनिया में जैसे मैं एक अनाथ हूं जिसके प्रति किसी के भी दिल में कोई दया भाव नहीं है। आप उस समय की मेरी मानसिकता का एहसास कीजिए चाची कि वैसी सूरत में मेरे दिल में मेरे अपनों के प्रति किस तरह की भावना हो जानी थी?"

"हां मैं अच्छी तरह समझती हूं वैभव।" चाची ने खेद प्रकट करते हुए कहा_____"किन्तु यकीन मानो उस समय हम सब बेहद मजबूर थे। तुम अच्छी तरह जानते हो कि दादा ठाकुर के हुकुम के खिलाफ़ कोई नहीं जा सकता। हम सब तुम्हारे लिए दुखी तो थे लेकिन तुम्हारे लिए कुछ कर नहीं सकते थे। ख़ैर छोड़ो इस बात को, अब तो सब ठीक हो गया है न? मैं चाहती हूं कि तुम सब कुछ भुला कर एक अच्छे इंसान के रूप में अपनी ज़िन्दगी की शुरुआत करो।"

मेनका चाची की इस बात पर इस बार मैं कुछ नहीं बोला। कुछ देर बाद चाची ने मुझे सीधा लेटने के लिए कहा तो मैं सीधा लेट गया। मेरी नज़र चाची पर पड़ी। वो कटोरी से अपनी हथेली पर तेल डाल रहीं थी। मेरी नज़र उनके खूबसूरत चेहरे से फिसल कर उनके सीने के उभारों पर ठहर गई। काले रंग का ब्लाउज पहन रखा था उन्होंने। ब्लाउज का गला ज़्यादा तो नहीं पर थोड़ा बड़ा ज़रूर था लेकिन मुझे उनके उभारों के बीच की दरार नहीं दिखी थी। एक तो उन्होंने साड़ी को सीने में पूरी तरफ लपेट रखा था दूसरे वो सीधी खड़ी हुई थीं। मैं साड़ी के ऊपर से ही उनके सीने के बड़े बड़े उभार को देख कर बस कल्पना ही कर सकता था कि वो कैसे होंगे। हालांकि अगले ही पल मैं ये सोच कर अपने आप पर नाराज़ हुआ कि अपनी माँ सामान चाची को मैं किस नज़र से देख रहा हूं।

अपनी दोनों हथेलियों में तेल को अच्छी तरह मिलाने के बाद चाची आगे बढ़ीं और झुक कर मेरे सीने पर दोनों हथेलियों को रखा। मेरे सीने पर घुंघराले बाल उगे हुए थे जो यकीनन चाची को अपनी हथेलियों पर महसूस हुए होंगे। चाची ने एक नज़र मेरी तरफ देखा। मेरी नज़र उनकी नज़र से मिली तो उनके गुलाबी होठों पर हल्की सी मुस्कान उभर आई। मेरे दिलो-दिमाग़ में न चाहते हुए भी एक अजीब तरह की हलचल शुरू हो गई। चाची का खूबसूरत चेहरा अब मेरी आँखों के सामने ही था और न चाहते हुए भी इतने पास होने की वजह से मेरी नज़र उनके चेहरे पर बार बार पड़ रही थी। मेरे मन में न चाहते हुए भी ये ख़्याल उभर आता था कि चाची इस उम्र में भी कितनी सुन्दर और जवान लगती हैं। हालांकि पहले भी कई बार चाची ने मेरी इस तरह से मालिश की थी किन्तु इस तरीके से मैं कभी भी उनके बारे में ग़लत सोचने पर मजबूर नहीं हुआ था। इसकी वजह शायद ये हो सकती है कि तब आए दिन मेरे अंदर की गर्मी कहीं न कहीं किसी न किसी की चूत के ऊपर निकल जाती थी और मेरा मन शांत रहता था लेकिन इस बार ऐसा नहीं था। मुंशी की बहू रजनी को पेले हुए मुझे काफी समय हो गया था। किसी औरत का जिस्म जब मेरे इतने पास मुझे इस रूप में दिख रहा था तो मेरे जज़्बात मेरे काबू से बाहर होते नज़र आ रहे थे। मैं एकदम से परेशान सा हो गया। मैं नहीं चाहता था कि चाची के बारे में मैं ज़रा सा भी ग़लत सोचूं और साथ ही ये भी नहीं चाहता था कि उनके जिस्म के किसी हिस्से को देख कर मेरे अंदर हवस वाली गर्मी बढ़ने लगे जिसकी वजह से मेरी टांगों के दरमियान मौजूद मेरा लंड अपनी औक़ात से बाहर होने लगे।


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Bahot behtareen zaberdast shaandaar lajawab update bhai
 

Naik

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☆ प्यार का सबूत ☆
अध्याय - 32
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अब तक,,,,,,

अपनी दोनों हथेलियों में तेल को अच्छी तरह मिलाने के बाद चाची आगे बढ़ीं और झुक कर मेरे सीने पर दोनों हथेलियों को रखा। मेरे सीने पर घुंघराले बाल उगे हुए थे जो यकीनन चाची को अपनी हथेलियों पर महसूस हुए होंगे। चाची ने एक नज़र मेरी तरफ देखा। मेरी नज़र उनकी नज़र से मिली तो उनके गुलाबी होठों पर हल्की सी मुस्कान उभर आई। मेरे दिलो-दिमाग़ में न चाहते हुए भी एक अजीब तरह की हलचल शुरू हो गई। चाची का खूबसूरत चेहरा अब मेरी आँखों के सामने ही था और न चाहते हुए भी इतने पास होने की वजह से मेरी नज़र उनके चेहरे पर बार बार पड़ रही थी। मेरे मन में न चाहते हुए भी ये ख़्याल उभर आता था कि चाची इस उम्र में भी कितनी सुन्दर और जवान लगती हैं। हालांकि पहले भी कई बार चाची ने मेरी इस तरह से मालिश की थी किन्तु इस तरीके से मैं कभी भी उनके बारे में ग़लत सोचने पर मजबूर नहीं हुआ था। इसकी वजह शायद ये हो सकती है कि तब आए दिन मेरे अंदर की गर्मी कहीं न कहीं किसी न किसी की चूत के ऊपर निकल जाती थी और मेरा मन शांत रहता था लेकिन इस बार ऐसा नहीं था। मुंशी की बहू रजनी को पेले हुए मुझे काफी समय हो गया था। किसी औरत का जिस्म जब मेरे इतने पास मुझे इस रूप में दिख रहा था तो मेरे जज़्बात मेरे काबू से बाहर होते नज़र आ रहे थे। मैं एकदम से परेशान सा हो गया। मैं नहीं चाहता था कि चाची के बारे में मैं ज़रा सा भी ग़लत सोचूं और साथ ही ये भी नहीं चाहता था कि उनके जिस्म के किसी हिस्से को देख कर मेरे अंदर हवस वाली गर्मी बढ़ने लगे जिसकी वजह से मेरी टांगों के दरमियान मौजूद मेरा लंड अपनी औक़ात से बाहर होने लगे।

अब आगे,,,,,


कमरे में एकदम से ख़ामोशी छा गई थी। न चाची कुछ बोल रहीं थी और ना ही मैं। मैं तो ख़ैर कुछ बोलने की हालत में ही नहीं रह गया था क्योंकि अब आलम ये था कि मेरे लाख प्रयासों के बावजूद मेरा मन बार बार चाची के बारे में ग़लत सोचने लगा था जिससे अब मैं बेहद चिंतित और परेशान हो गया था। मुझे डर था कि चाची के बारे में ग़लत सोचने की वजह से मेरा लंड तौलिए के अंदर अपनी औक़ात में आ कर कुछ इस तरीके से न खड़ा हो जाए कि चाची की नज़र उस पर पड़ जाए। उसके बाद क्या होगा ये तो भगवान ही जानता था। अभी तक तो मेरे अपने यही जानते थे कि मैं भले ही चाहे जैसा भी था लेकिन मेरी नीयत मेरे अपने परिवार की स्त्रियों पर ख़राब नहीं हो सकती। किन्तु अब मैं ये सोच सोच कर घबराने लगा था कि इस वक़्त अगर मेरा लंड तौलिए के अंदर अपनी पूरी औक़ात में आ कर खड़ा हो गया तो दादा ठाकुर के द्वारा मेरी गांड फटने में ज़रा भी विलम्ब नहीं होगा।

उधर चाची मेरे मनोभावों से बेख़बर मेरे सीने पर और मेरे पेट पर मालिश करने में लगी हुईं थी। मैं आँखें बंद किए हुए दो काम एक साथ कर रहा था। एक तो भगवान से प्रार्थना कर रहा था कि आज वो मुझे नपुंसक ही बना दे ताकि मेरा लंड खड़ा ही न हो पाए और दूसरी ये कि चाची खुद ही किसी काम का बहाना बना कर यहाँ से चली जाएं। क्योंकि अगर मैं उन्हें इतने पर ही रोक देता और जाने के लिए कह देता तो वो मुझसे सवाल करने लगतीं कि क्या हुआ...अभी तो दोनों पैरों की भी मालिश करनी है। भला मैं उन्हें कैसे बताता कि अब मुझे मालिश की नहीं बल्कि उनके यहाँ पर रुकने की चिंता है?

रागिनी भाभी की तरफ भी मैं आकर्षित होता था लेकिन मेनका चाची की तरफ आज मैं पहली बार ही आकर्षित हो रहा था और वो भी इस क़दर कि मेरी हालत ख़राब हो चली थी। जब मैं समझ गया कि भगवान मेरी दो में से एक भी प्रार्थना स्वीकार नहीं करने वाला तो मैंने मजबूरन चाची से कहा कि अब वो मेरे पैरों की मालिश कर दें और फिर वो जाएं यहाँ से। हालांकि मैंने ऐसा इस अंदाज़ से कहा था कि चाची के चेहरे पर सोचने वाले भाव न उभर पाएं।

"अब तुम्हें भी शादी कर लेनी चाहिए वैभव।" मेरे एक पैर में तेल की मालिश करते हुए चाची ने अचानक मुझे देखते हुए ये कहा तो मैंने चौंक कर उनकी तरफ देखा और मेरा ये देखना जैसे मुझ पर ही भारी पड़ गया। चाची इस तरीके से मेरी तरफ मुँह कर के थोड़ा झुकी हुईं थी कि जैसे ही मैंने उनकी तरफ देखा तो मेरी नज़र पहले तो उनके चेहरे पर ही पड़ी किन्तु फिर उनके ब्लाउज से झाँक रहे उनके बड़े बड़े उभारों पर जा कर ठहर गई। ब्लाउज से उनकी बड़ी बड़ी छातियों की गोलाइयाँ स्पष्ट दिख रहीं थी। दोनों गोलाइयों के बीच की लम्बी दरार की वजह से ऐसा प्रतीत हुआ जैसे उस दरार के अगल बगल मौजूद दोनों पर्वत शिखर एक दूसरे से चिपके हुए हैं। पलक झपकते ही मेरी हालत और भी ख़राब होने लगी। मेरी धड़कनें अनायास ही बढ़ ग‌ईं। माथे पर पसीने की बूंदें झिलमिलाती महसूस हुई। जिस बात से मैं डर रहा था वही होता जा रहा था। उधर मेरे लंड में बड़ी तेज़ी से चींटियां रेंगती हुई सी महसूस होने लगीं थी। बिजली की तरह मेरे ज़हन में ये ख़याल उभरा कि अगर इस कम्बख्त लौड़े ने अपना सिर उठाया तो इसके सिर उठाने की वजह से आज ज़रूर मेरी गांड फाड़ दी जाएगी।

मेनका चाची के सीने के उस हिस्से से साड़ी का वो हिस्सा हट गया था जो इसके पहले उनके उभारों के ऊपर था। अभी मैं अपने ज़हन में चल रहे झंझावात से जूझ ही रहा था कि तभी मैं चाची की आवाज़ सुन कर हड़बड़ा गया।

"क्या हुआ वैभव?" मुझे कहीं खोए हुए देख मेनका चाची ने पूछा था____"किन ख़यालों में गुम हो तुम? कहीं ऐसा तो नहीं कि मैंने तुम्हें शादी कर लेने की बात कही तो तुम अपने मन में किसी सुन्दर लड़की की सूरत बनाने लग गए हो?"

"न..नहीं तो।" मैंने हड़बड़ाते हुए कहा____"ऐसी तो कोई बात नहीं है चाची। मैं भला क्यों अपने ज़हन में किसी लड़की की सूरत बनाने लगा?"
"अच्छा, अगर सूरत नहीं बना रहे थे तो कहां गुम हो गए थे अभी?" चाची ने मुस्कुराते हुए कहा तो मेरी नज़र एक बार फिर से न चाहते हुए भी ब्लाउज से झाँक रहे उनके उभारों पर पड़ गई किन्तु मैंने जल्दी ही वहां से नज़र हटा कर चाची से कहा____"कहीं भी तो नहीं चाची। वो तो मैं ऐसे ही आपके द्वारा की जा रही मालिश की वजह से सुकून महसूस कर रहा था।"

"ये मालिश के सुकून की बात छोड़ो।" चाची ने कहा____"मैं ये कह रही हूं कि अब तुम्हें भी शादी कर लेनी चाहिए।"
"ऐसा क्यों कह रही हैं आप?" मैं मन ही मन ये सोच कर थोड़ा घबरा सा गया कि कहीं चाची ने मेरी मनोदशा को ताड़ तो नहीं लिया, बोला_____"अभी तो मेरी खेलने कूदने की उमर है चाची। अभी से शादी के बंधन में क्यों फंसा देना चाहती हैं आप?"

"हो सकता है कि तुम्हें मेरी बात बुरी लगे।" चाची ने मेरी तरफ देखते हुए थोड़ा संजीदगी से कहा____"किन्तु तुम भी इतना समझते ही होंगे कि जिनकी खेलने कूदने की उमर होती है वो किसी की बहू बेटियों को अपने नीचे सुलाने वाले काम नहीं करते।"

मेनका चाची की इस बात को सुन कर मैं कुछ बोल न सका बल्कि उनसे नज़रें चुराते हुए इधर उधर देखने लगा। उनके कहने का मतलब मैं बखूबी समझ गया था और मैं चाहता तो अपने तरीके से उन्हें इस बात का जवाब भी दे सकता था किन्तु मैं ये सोच कर कुछ न बोला था कि मेरे कुछ बोलने से कहीं बात ज़्यादा न बढ़ जाए।

"ऐसा नहीं है कि तुम जो करते हो वो कोई और नहीं करता।" मुझे ख़ामोश देख चाची ने कहा____"आज के युग में सब ऐसे काम करते हैं। कुछ लोग इस तरीके से ऐसे काम करते हैं कि किसी दूसरे को उनके ऐसे काम की भनक भी नहीं लगती और कुछ लोग इतने हिम्मत वाले होते हैं कि वो ऐसे काम करते हुए इस बात की ज़रा भी परवाह नहीं करते कि उनके द्वारा किए जा रहे ऐसे काम के बारे में जब लोगों को पता चलेगा तो वो लोग उसके और उसके घर परिवार के बारे में क्या सोचेंगे? ख़ैर छोड़ो इस बात को और ये बताओ कि शादी करने का विचार है कि नहीं?"

"शादी तो एक दिन करनी ही पड़ेगी चाची।" मैंने गहरी सांस ली____"कहते हैं शादी ब्याह और जीवन मरण इंसान के हाथ में नहीं होता बल्कि ईश्वर के हाथ में होता है। इस लिए जब वो चाहेगा तब हो जाएगी शादी।"

"मैं तो ये सोच रही थी कि जल्दी से एक और बहू आ जाएगी इस हवेली मे।" चाची ने हल्की मुस्कान के साथ कहा____"और तुम्हें भी बीवी के साथ साथ एक मालिश करने वाली मिल जाएगी।"

"क्या चाची आप भी कैसी बातें करती हैं?" मैंने बुरा सा मुँह बनाते हुए कहा____"आज के युग में भला ऐसी कौन सी बीवी है जो अपने पति को परमेश्वर मान कर उसकी इतनी सेवा करती है? नहीं चाची, जिस औरत से बीवी का रिश्ता हो उससे मालिश या किसी सेवा की उम्मीद तो हर्गिज़ भी नहीं करनी चाहिए। सच्चे दिल से मालिश या तो माँ करती है या फिर आप जैसी प्यार करने वाली चाची।"

"फिर से मस्का लगाया तुमने।" चाची ने आंखें चौड़ी करके कहा____"लेकिन एक बात अब तुम भी मेरी सुन लो कि अब से मैं तुम्हारी कोई मालिश वालिश नहीं करने वाली। अब तो तुम्हारी धरम पत्नी ही तुम्हारी मालिश करेगी।"

"ये तो ग़लत बात है चाची।" मैंने मासूम सी शकल बनाते हुए कहा तो चाची ने कहा____"कोई ग़लत बात नहीं है। चलो हो गई तुम्हारी मालिश। तुम्हारी मालिश करते करते अब मेरी खुद की कमर दिखने लगी है। इसी लिए कह रही हूं कि शादी कर लो अब।"

"कोई बात नहीं चाची।" मैंने उठते हुए कहा____"अगर सच में आपकी कमर दुखने लगी है तो चलिए मैं आपके कमर की मालिश कर देता हूं। अब अपनी प्यारी चाची के लिए क्या मैं इतना भी नहीं कर सकता?"

"रहने दो तुम।" चाची ने कमर से अपनी साड़ी के पल्लू को निकालते हुए कहा____"मुझे तुम अपना ये झूठ मूठ का प्यार न दिखाओ। वैसे भी कहीं ऐसा न हो कि मेरी मालिश करने के बाद तुम फिर से ये न कहने लगो कि मैं बहुत थक गया हूं, इस लिए चाची मेरी मालिश कर दो। अब क्या मैं रात भर तुम्हारी मालिश ही करती रहूंगी? बड़े आए अपनी प्यारी चाची की मालिश करने वाले...हुंह...बात करते हैं।"

"अरे! मैं ऐसा कुछ नहीं कहूंगा चाची।" मैंने मुस्कुराते हुए कहा____"अगर सच में आपकी कमर दुखने लगी है तो चलिए मैं आपकी मालिश कर देता हूं। इतने में थोड़ी न मैं थक जाऊंगा मैं।"

"अच्छा।" चाची ने कटोरी उठाते हुए कहा____"तो फिर तुमसे अपनी मालिश मैं तब करवाउंगी जब तुम मेरी मालिश करते हुए पूरी तरह थक जाने वाले होगे।"
"अब ये क्या बात हुई चाची।" मैंने नासमझने वाले भाव से कहा____"कहीं आप ये सोच कर तो नहीं डर गई हैं कि एक हट्टा कट्टा इंसान जब आपकी कमर की मालिश करेगा तो उसके द्वारा मामूली सा ज़ोर देने पर ही आपकी नाज़ुक कमर टूट जाएगी?"

"मैं इतनी भी नाज़ुक नहीं हूं बेटा।" चाची ने हाथ को लहरा कर कहा____"जितना कि तुम समझते हो। ठाकुर की बेटी हूं। बचपन से घी दूध खाया पिया ही नहीं है बल्कि उसमें नहाया भी है।"

"ओह! तो छुपी रुस्तम हैं आप।" मैंने मुस्कुरा कर कहा तो चाची ने मुस्कुराते हुए कहा____"अपने चाचा जी को तो देखा ही होगा तुमने। मेरे सामने कभी शेर बनने की कोशिश नहीं की उन्होंने, बल्कि हमेशा भीगी बिल्ली ही बने रहते हैं।"

"ऐसी कोई बात नहीं है चाची।" मैंने राज़दाराना अंदाज़ में कहा____"बल्कि वो आपके सामने इस लिए भीगी बिल्ली बने रहते हैं क्योंकि वो आपको बहुत प्यार करते हैं...लैला मजनू जैसा प्यार और आप ये समझती हैं कि वो आपके डर की वजह से भीगी बिल्ली बने रहते हैं। आप भी हद करती हैं चाची।"

"तुम क्या मुझे बेवकूफ समझते हो?" भाभी ने हंसते हुए कहा तो मैंने कहा____"हर्गिज़ नहीं चाची, बल्कि मैं तो ये समझता हूं कि आप मेरी सबसे प्यारी चाची हैं। काश! आप जैसी एक और हसीन लड़की होती तो मैं उसी से ब्याह कर लेता।"

"रूको मैं अभी जा कर दीदी को बताती हूं कि तुम मुझे क्या क्या कह कर छेड़ते रहते हो।" चाची ने आँखें दिखाते हुए ये कहा तो मैंने हड़बड़ा कर कहा____"क्या चाची आप तो हर वक़्त मेरी पिटाई करवाने पर ही तुली रहती हैं। जाइए मुझे आपसे कोई बात नहीं करना।"

मैं किसी छोटे से बच्चे की तरह मुँह फुला कर दूसरी तरफ फिर गया तो चाची ने मुस्कुराते हुए मेरे चेहरे को अपनी तरफ घुमाया और फिर कहा____"अरे! मैं तो मज़ाक कर रही थी। क्या ऐसा हो सकता है कि मैं तुम्हारी पिटाई करवाने का सोचूं भी? चलो अब मुस्कुराओ। फिर मुझे जाना भी है यहाँ से। बहुत काम पड़ा है करने को।"

चाची की बात सुन कर मैं मुस्कुरा दिया तो उन्होंने झुक कर मेरे माथे पर हल्के से चूमा और फिर मुस्कुराते हुए कमरे से चली गईं। चाची के जाने के बाद मैं फिर से पलंग पर लेट गया और ये सोचने लगा कि कितना बुरा हूं मैं जो अपनी चाची के बारे में उस वक़्त कितना ग़लत सोचने लगा था, जबकि चाची तो मुझे बहुत प्यार करती हैं।


☆☆☆

मेनका चाची को गए हुए अभी कुछ ही समय हुआ था कि तभी मेरे कमरे में कुसुम आई। कमरे का दरवाज़ा क्योंकि खुला हुआ था इस लिए मेरी नज़र कुसुम पर पड़ गई थी। मुझे उम्मीद नहीं थी कि मौजूदा हालात में कुसुम इस तरह ख़ुद ही मेरे कमरे में आ जाएगी किन्तु उसके यूं आ जाने पर मुझे थोड़ी हैरानी हुई। मैंने ध्यान से उसके चेहरे की तरफ देखा तो पता चला कि उसकी साँसें थोड़ी उखड़ी हुई हैं। ये जान कर मैं मन ही मन चौंका।

"भैया आपको ताऊ जी ने बुलाया है।" कुसुम ने अपनी उखड़ी साँसों को सम्हालते हुए कहा____"जल्दी चलिए, वो आपका इंतज़ार कर रहे हैं।"
"क्या हुआ है?" उसकी बात सुन कर मेरे माथे पर सोचने वाले भाव उभरे____"और तू इतना हांफ क्यों रही है?"

"वो मैं भागते हुए आपको बुलाने आई हूं ना।" कुसुम ने कहा____"इस लिए मेरी साँसें थोड़ी भारी हो गई हैं। आप जल्दी से चलिए। ताऊ जी कहीं जाने के लिए तैयार खड़े हैं। मुझसे कहा कि मैं जल्दी से आपको बुला लाऊं।"

"अच्छा ठीक है।" मैं कुछ सोचते हुए जल्दी से उठा_____"तू चल मैं कपड़े पहन कर आता हूं थोड़ी देर में।"
"जल्दी आइएगा।" कुसुम ने कहा____"कहीं ऐसा न हो कि आपकी वजह से मुझे भी डांट पड़ जाए।"

कुसुम इतना कह कर वापस चली गई और मैं ये सोचने लगा कि आख़िर पिता जी ने मुझे इतना जल्दी आने को क्यों कहा होगा? आख़िर ऐसी कौन सी बात हो गई होगी जिसके लिए उन्होंने मुझे बुलाया था? शाम घिर चुकी थी और रात का अँधेरा फैलने लगा था। कुसुम के अनुसार पिता जी कहीं जाने के लिए तैयार खड़े हैं, इसका मतलब इस वक़्त वो मुझे भी अपने साथ ले जाना चाहते हैं किन्तु सवाल है कि कहां और किस लिए?

मैंने मेनका चाची से कुछ देर पहले ही अपने बदन की मालिश करवाई थी इस लिए मेरे पूरे बदन पर अभी भी तेल की चिपचिपाहट थी। मेरा कहीं जाने का बिलकुल भी मन नहीं था किन्तु पिता जी ने बुलाया था तो अब उनके साथ जाना मेरी मज़बूरी थी। ख़ैर फिर से नहाने का मेरे पास समय नहीं था इस लिए तौलिए से ही मैंने अपने बदन को अच्छे से पोंछा ताकि तेल की चिपचिपाहट दूर हो जाए। उसके बाद मैंने कपड़े पहने और कमरे से बाहर आ गया। थोड़ी ही देर में मैं नीचे पहुंच गया।

"पिता जी आपने बुलाया मुझे?" मैंने बाहर बैठक में पहुंचते ही पिता जी से पूछा तो उन्होंने कहा____"जीप की चाभी लो और फ़ौरन हमारे साथ चलो।"
"जी..।" मैंने कहा और पास ही दीवार पर दिख रही एक कील पर से मैंने जीप की चाभी ली और बाहर निकल गया। बाहर आ कर मैंने जीप निकाली और मुख्य दरवाज़े के पास आया तो पिता जी दरवाज़े से निकले और सीढ़ियां उतर कर नीचे आए।

पिता जी जब जीप में मेरे बगल से बैठ गए तो उनके ही निर्देश पर मैंने जीप को आगे बढ़ा दिया। मेरे ज़हन में अभी भी ये सवाल बना हुआ था कि पिता जी मुझे कहां ले कर जा रहे हैं?

"कुछ देर पहले दरोगा ने अपने एक हवलदार के द्वारा हमें ख़बर भेजवाई थी कि मुरारी के गांव के पास उसे एक आदमी की लाश मिली है।" रास्ते में पिता जी ने ये कहा तो मैंने बुरी तरह चौंक कर उनकी तरफ देखा, जबकि उन्होंने शांत भाव से आगे कहा____"दरोगा ने हवलदार के हाथों हमें एक पत्र भेजा था। दरोगा को शक है कि उस लाश का सम्बन्ध मुरारी की हत्या से हो सकता है।"

"ऐसा कैसे हो सकता है?" मैंने चकित भाव से कहा____"भला किसी की लाश मिलने से दरोगा को ये शक कैसे हो सकता है कि उसका सम्बन्ध मुरारी काका की हत्या से हो सकता है? क्या उसे लाश के पास से ऐसा कोई सबूत मिला है जिसने उसे ये बताया हो कि उसका सम्बन्ध किससे है?"

"इस बारे में तो उसने कुछ नहीं लिखा था।" पिता जी ने कहा____"किन्तु मुरारी के गांव के पास किसी की लाश का मिलना कोई मामूली बात नहीं है बल्कि गहराई से सोचने वाली बात है कि वो लाश किसकी हो सकती है और उसकी हत्या किसी ने किस वजह से की होगी?"

"हत्या???" मैंने चौंक कर पिता जी की तरफ देखा____"ये आप क्या कह रहे हैं? अभी आप कह रहे थे कि किसी की लाश मिली है और अब कह रहे हैं कि उसकी हत्या किसी ने किस वजह से की होगी? भला आपको या दरोगा को ये कैसे पता चल गया कि जिसकी लाश मिली है उसकी किसी ने हत्या की है?"

"बेवकूफों जैसी बातें मत करो।" पिता जी ने थोड़े शख़्त भाव से कहा____"कोई लाश अगर सुनसान जगह पर लहूलुहान हालत में मिलती है तो उसका एक ही मतलब होता है कि किसी ने किसी को बुरी तरह से मार कर उसकी हत्या कर दी है। हवलदार से जब हमने पूछा तो उसने यही बताया कि जिस आदमी की लाश मिली है उसे देख कर यही लगता है कि किसी ने उसे बुरी तरह से मारा था और शायद बुरी तरह मारने से ही उस आदमी की जान चली गई है।"

"अगर ऐसा ही है।" मैंने लम्बी सांस छोड़ते हुए कहा____"फिर तो ज़ाहिर ही है कि किसी ने उस आदमी की हत्या ही की है लेकिन सवाल ये है कि उस लाश के मिलने से दरोगा ये कैसे कह सकता है कि उसका सम्बन्ध मुरारी काका की हत्या वाले मामले से हो सकता है? ऐसा भी तो हो सकता है कि इस वाली हत्या का मामला कुछ और ही हो।"

"बिल्कुल हो सकता है।" पिता जी ने कहा____"किन्तु जाने क्यों हमें ये लगता है कि उस लाश का सम्बन्ध किसी और से नहीं बल्कि मुरारी की हत्या वाले मामले से ही है।"
"फिर तो उस दरोगा को भी यही लगा होगा।" मैंने पिता जी की तरफ देखते हुए कहा____"और शायद यही वजह थी कि लाश मिलते ही उसने उस लाश के बारे में आप तक ख़बर पहुंचाई।"

"ज़ाहिर सी बात है।" पिता जी ने अपने कन्धों को उचका कर कहा____"ख़ैर अभी तो ये सिर्फ सम्भावनाएं ही हैं। सच का पता तो लाश की जांच पड़ताल और उस आदमी की हत्या की छान बीन से ही चलेगा।"

पिता जी की इस बात पर मैंने इस बार कुछ नहीं कहा किन्तु मेरे ज़हन में बड़ी तेज़ी से विचारों का आवा गवन चालू हो गया था कि वो लाश किसकी होगी और मुरारी काका के गांव के पास दरोगा को उस हालत में क्यों मिली होगी? अगर सच में उस आदमी की हत्या की गई होगी तो ये बेहद सोचने वाली बात होगी कि ऐसा कौन कर सकता है और क्यों किया होगा? मुरारी काका की हत्या वाले रहस्य से अभी पर्दा उठा भी नहीं था कि एक और आदमी की रहस्यमय तरीके से हत्या हो गई थी। हालांकि मुरारी काका की हत्या की तरह इस हत्या से भी मेरा दूर दूर तक कोई वास्ता नहीं था किन्तु रह रह कर मेरे ज़हन में ये ख़याल उभर रहा था कि कहीं इस हत्या में भी मेरा नाम न आ जाए।

अंधेरा पूरी तरह से हो चुका था। जीप की हेडलाइट जल रही थी जिसके प्रकाश की मदद से आगे बढ़ते हुए हम उस जगह पर पहुंच गए जहां पर दरोगा ने अपने हवलदार के द्वारा पिता जी को घटना स्थल का पता बताया था। जीप के रुकते ही पिता जी जीप से नीचे उतरे, उनके साथ मैं भी जीप के इंजन को बंद कर के नीचे उतर आया। जीप की हेडलाइट को मैंने जलाए ही रखा था क्योंकि अँधेरे में ठीक से कुछ दिखाई नहीं देता।

दरोग़ा के साथ तीन पुलिस वाले थे। इस जगह से मुरारी काका का गांव मुश्किल से एक किलो मीटर की दूरी पर था। लाश के सम्बन्ध में अभी किसी को कुछ पता नहीं चला था किन्तु ये भी सच था कि देर सवेर इस सनसनीखेज काण्ड की ख़बर दूर दूर तक फ़ैल जाने वाली थी।

ये एक ऐसी जगह थी जहां पर खेत नहीं थे बल्कि बंज़र ज़मीन थी जिसमें कहीं कहीं पेड़ पौधे थे और पथरीला मैदान था। जिस जगह पर मेरा नया मकान बन रहा था वो इस जगह के बाईं तरफ क़रीब दो सौ गज की दूरी पर था। यहाँ से मुख्य सड़क थोड़ी दूर थी किन्तु मुरारी काका के गांव जाने के लिए एक छोटा रास्ता जिसे पगडण्डी कहते हैं वो इसी जगह से हो कर जाता था।

पिता जी के साथ मैं भी उस जगह पहुंचा जहां पर दरोगा अपने तीन पुलिस वालों के साथ खड़ा शायद हमारे ही आने की प्रतीक्षा कर रहा था। पिता जी जैसे ही दरोगा के पास पहुंचे तो दरोगा ने सबसे पहले पिता जी को अदब से सलाम किया उसके बाद हाथ के इशारे से उन्हें लाश की तरफ देखने के लिए कहा।

पिता जी के साथ साथ मैंने भी लाश की तरफ देखा। लाश किसी आदमी की ही थी जिसकी उम्र यही कोई पैंतीस के आस पास रही होगी। लाश के जिस्म पर जो कपड़े थे उन्हें देख कर मैं बुरी तरह चौंका और साथ ही पिता जी की तरफ भी जल्दी से देखा। पिता जी के चेहरे पर भी चौंकने वाले भाव नुमायां हुए थे किन्तु उन्होंने फ़ौरन ही अपने चेहरे के भावों को ग़ायब कर लिया था। लाश के बदन पर काले कपड़े थे जो एक दो जगह से फटे हुए थे और खून से भी सन गए थे। सिर फट गया था जहां से भारी मात्रा में खून बहा था और उसी ख़ून से आदमी का चेहरा भी नहाया हुआ था। ख़ून से नहाए होने की वजह से चेहरा पहचान में नहीं आ रहा था।

"क्या आप जानते हैं इसे?" दरोगा ने पिता जी की तरफ देखते हुए पूछा तो पिता जी ने गर्दन घुमा कर दरोगा से कहा____"इसका चेहरा खून में नहाया हुआ है इस लिए इसे पहचानना संभव नहीं है। वैसे तुम्हें इस लाश के बारे में कैसे पता चला?"

"बस इसे इत्तेफ़ाक़ ही समझिए।" दरोगा ने अजीब भाव से कहा और फिर उसने उन तीनों पुलिस वालों से मुखातिब हो कर कहा____"तुम लोग इस लाश को सम्हाल कर जीप में डालो और पोस्ट मोर्टेम के लिए शहर ले जाओ। मैं ठाकुर साहब से ज़रूरी पूंछतांछ के लिए यहीं रुकूंगा।"

दरोग़ा के कहने पर तीनों पुलिस वाले अपने काम पर लग ग‌ए। कुछ ही देर में उन लोगों ने लाश को एक बड़ी सी पन्नी में लपेट कर पुलिस की जीप में रखा और फिर दरोगा और पिता जी को सलाम कर के चले गए।

"अब बताओ असल बात क्या है?" तीनों पुलिस वालों के जाने के बाद पिता जी ने दरोगा से कहा____"और ये सब कैसे हुआ?"
"असल में जब आपने पिछले दिन मुझे ये बताया था कि छोटे ठाकुर(वैभव सिंह) के साथ आज कल अजीब सी घटनाएं हो रही हैं।" दरोगा ने कहा____"जिनमें किसी ने इन्हें नुकसान पहुंचाने की भी कोशिश की गई थी तो मैंने अपने तरीके से इस सबका पता लगाने का सोचा। कल रात भी मैं इस क्षेत्र में देर रात तक भटकता रहा था लेकिन कुछ हाथ नहीं लगा था। आज शाम होने के बाद भी मैं यही सोच कर इस तरफ आ रहा था कि अचानक ही मेरे कानों में एक तरफ से ऐसी आवाज़ आई जैसे कोई दर्द से चीखा हो। मैंने आवाज़ सुनते ही अपने कान खड़े कर दिए और फिर जल्दी ही मुझे पता चल गया कि आवाज़ किस तरफ से आई थी। मैं फ़ौरन ही आवाज़ की दिशा की तरफ भाग चला। कुछ ही देर में जब मैं भागते हुए एक जगह आया तो मेरी नज़र अँधेरे में दो सायों पर पड़ी। एक साया तो मुझे कुछ हद तक साफ़ ही दिखा क्योंकि उसके जिस्म पर सफ़ेद कपड़े थे किन्तु दूसरा साया काले कपड़ों में था। मैंने देखा और सुना कि काला साया उस सफ़ेद कपड़े वाले से दर्द में गिड़गिड़ाते हुए बोला कि बस एक आख़िरी मौका और दे दीजिए, उसके बाद भी अगर मैं नाकाम हो गया तो बेशक मेरी जान ले लीजिएगा। काले साए द्वारा इस तरह गिड़गिड़ा कर कहने से भी शायद उस सफ़ेद कपड़े वाले पर कोई असर न हुआ था तभी तो उसने हाथ में लिए हुए लट्ठ को उठा कर बड़ी तेज़ी से उस काले साए के सिर पर मार दिया था जिससे वो वहीं ढेर होता चला गया।"

"अगर ये सब तुम्हारी आँखों के सामने ही हो रहा था।" पिता जी ने थोड़े नाराज़ लहजे में कहा____"तो तुमने आगे बढ़ कर इस सबको रोका क्यों नहीं?"
"मैं इस सबको रोकने के लिए तेज़ी से आगे बढ़ा ही था ठाकुर साहब लेकिन।" दरोगा ने पैंट को घुटने तक ऊपर उठा कर अपनी दाहिनी टांग को दिखाते हुए कहा____"लेकिन तभी मेरा पैर ज़मीन पर पड़े एक पत्थर से टकरा गया जिससे मैं भरभरा कर औंधे मुँह ज़मीन पर जा गिरा। जल्दबाज़ी में वो पत्थर मुझे दिखा ही नहीं था और अँधेरा भी था। मैं औंधे मुँह गिरा तो मेरा दाहिना घुटना किसी दूसरे पत्थर से टकरा गया जिससे मेरे मुख से दर्द भरी कराह निकल गई। उस सफ़ेद साए ने शायद मेरी कराह सुन ली थी इसी लिए तो वो वहां से उड़न छू हो कर ऐसे गायब हुआ कि फिर मुझे बहुत खोजने पर भी नहीं मिला। थक हार कर जब मैं वापस आया तो देखा काले कपड़े वाले साए ने दम तोड़ दिया था। उसका सिर लट्ठ के प्रहार से फट गया था जिससे बहुत ही ज़्यादा खून बह रहा था। उसके बाद मैं वापस आपके द्वारा मिले कमरे में गया और मोटर साइकिल से शहर निकल गया। मुझे डर था कि मेरे पीछे वो सफ़ेद कपड़े वाला आदमी उस लाश को कहीं ग़ायब न कर दे किन्तु शुक्र था कि ऐसा नहीं हुआ। शहर से मैं जल्दी ही तीन पुलिस वालों को ले कर यहाँ आया और आपको भी इस सबकी ख़बर भेजवाई।"

"वो सफ़ेद कपड़े वाला भाग कर किस तरफ गया था?" दरोगा की बातें सुनने के बाद सहसा मैंने उससे पूछा तो दरोगा ने मेरी तरफ देखते हुए कहा____"वो आपके गांव की तरफ ही भागता हुआ गया था छोटे ठाकुर और फिर अँधेरे में गायब हो गया था। ज़ाहिर है कि वो आपके ही गांव का कोई आदमी था। काले कपड़े वाला ये आदमी जिस तरह गिड़गिड़ाते हुए उससे दूसरा मौका देने की बात कह रहा था उससे यही लगता है कि सफ़ेद कपड़े वाले ने इसे कोई ऐसा काम दिया था जिसमें उसे हर हाल में सफल होना चाहिए था किन्तु वो सफल नहीं हो पाया और आख़िर में इस असफलता के लिए उसे अपनी जान से हाथ धोना पड़ा।"

दरोगा की इस बात से न पिता जी कुछ बोले और ना ही मैं। असल में उसकी इस बात से हम दोनों ही सोच में पड़ गए थे। मेरे ज़हन में तो बस एक ही सवाल खलबली सा मचाए हुए था कि जिस काले कपड़े वाले की लाश मिली है कहीं ये वही तो नहीं जो एक और दूसरे काले साए के साथ उस शाम बगीचे में मुझे मारने आया था? उस शाम बगीचे में चाँद की चांदनी थी जिसके प्रकाश में मैंने देखा था कि उन दोनों के जिस्म पर इसी तरह का काला कपड़ा लिपटा हुआ था और चेहरा भी काले कपड़े से ढंका हुआ था। अब सवाल ये था कि अगर ये वही था तो दूसरा वाला वो साया कहां है और जिस किसी ने भी इन दोनों को मुझे मारने के लिए भेजा रहा होगा तो उसने उस दूसरे वाले को भी जान से क्यों नहीं मार दिया? आख़िर दोनों एक ही तो काम कर रहे थे यानी कि मुझे मारने का काम, तो अगर ये वाला काला साया अपने काम में नाकाम हुआ है तो वो दूसरा वाला भी तो नाकाम ही कहलाया गया न, फिर उसकी लाश इस वाले साए के पास क्यों नहीं है? कहीं ऐसा तो नहीं कि उसकी भी हत्या कर दी गई हो किसी दूसरी जगह पर या फिर मैं बेवजह ही ये समझ रहा हूं कि ये साया वही है जो उस शाम मुझे बगीचे में मिला था। मेरा दिमाग़ जैसे चकरा सा गया था। मैं समझ नहीं पा रहा था कि आख़िर ये चक्कर क्या है?

"तुम्हारे लिए आज ये बेहतर मौका था।" मैं सोचो में ही गुम था कि तभी मेरे कानों में पिता जी का वाक्य पड़ा तो मैंने उनकी तरफ देखा, जबकि उन्होंने दरोगा से आगे कहा____"जिसे तुमने गंवा दिया। ऐसा मौका बार बार नहीं मिलता। आज अगर ये काले कपड़े वाला उस सफ़ेद कपड़े वाले के साथ तुम्हारी पकड़ में आ जाता तो हमें बहुत कुछ पता चल सकता था। हमें पता चल जाता कि वो सफ़ेद कपड़े वाला कौन था और वो इस आदमी के द्वारा ये सब क्यों करवा रहा था?"

"माफ़ कर दीजिए ठाकुर साहब।" दरोगा ने खेद प्रकट करते हुए कहा____"ये मेरा दुर्भाग्य ही था जो मैं ऐन वक़्त पर पत्थर से टकरा कर ज़मीन पर गिर गया था जिसकी वजह से मैं उस सफ़ेद कपड़े वाले तक पहुंचने में नाकाम रहा।"

"हमें पूरा यकीन है कि मुरारी की हत्या में उस सफ़ेद कपड़े वाले का ही हाथ है।" पिता जी ने गंभीरता से कहा____"आज अगर वो तुम्हारी पकड़ में आ जाता तो पलक झपकते ही सब कुछ हमारे सामने आ जाता। ख़ैर अब भला क्या हो सकता है?"

"आप बिलकुल सही कह रहे हैं ठाकुर साहब।" दरोगा ने गहरी सांस लेते हुए कहा____"अगर वो पकड़ में आ जाता तो कई सारी चीज़ों से पर्दा उठ जाता। ख़ैर एक चीज़ तो अच्छी ही हुई है और वो ये कि अभी तक तो हम अंदाज़े से चल रहे थे किन्तु इस सबके बाद इतना तो साफ़ हो गया है कि कोई तो ज़रूर है जो कोई बड़ा खेल खेल रहा है आपके परिवार के साथ।"

"अभी जिस आदमी की लाश हमने देखी है उसके जिस्म पर वैसे ही काले कपड़े थे जैसे कि हमने तुम्हें बताया था।" पिता जी ने सोचने वाले अंदाज़ से कहा____"इसका मतलब यही हुआ कि ये वही है जिसने काले कपड़ों में छुप कर हमारे इस बेटे को मारने की कोशिश की थी किन्तु इसके अनुसार वो दो लोग थे, जबकि यहाँ पर तो एक ही मिला हमें। अब सवाल है कि दूसरा कहां है? उसकी लाश भी तो हमें मिलनी चाहिए।"

"ये क्या कह रहे हैं आप?" दरोगा ने चौंकते हुए कहा____"किस दूसरे की लाश के बारे में बात कर रहे हैं आप?"
"तुम भी हद करते हो दरोगा।" पिता जी ने कहा____"क्या तुम खुद को मूर्ख साबित करना चाहते हो जबकि हमें लगा था कि तुम सब कुछ समझ गए होगे।"

"जी???" दरोगा एकदम से चकरा गया।
"जिस आदमी की लाश मिली है हम उसके दूसरे साथी की बात कर रहे हैं।" पिता जी ने अपने शब्दों पर ज़ोर देते हुए कहा____"इतना तो अब ज़ाहिर हो चुका है कि ये वही काले कपड़ों वाला साया है जो हमारे इस बेटे को मारने के लिए कुछ दिन पहले बगीचे में मिला था लेकिन उस दिन ये अकेला नहीं था बल्कि इसके साथ एक दूसरा साया भी था। तुम्हारे अनुसार अगर इसके मालिक ने इसे इस लिए जान से मार दिया है कि ये अपने काम में नाकाम हुआ था तो ज़ाहिर है कि इसके दूसरे साथी को भी इसके मालिक ने जान से मार दिया होगा। हम उसी की बात कर रहे हैं।"

"ओह! हॉ।" दरोगा को जैसे अब सारी बात समझ में आई थी, बोला____"अगर ये वही है तो यकीनन इसके दूसरे साथी की भी लाश हमें मिलनी चाहिए। इस तरफ तो मेरा ध्यान ही नहीं गया था।"
"इस पूरे क्षेत्र को बारीकी से छान मारो दरोगा।" पिता जी ने जैसे हुकुम सा देते हुए कहा____"हमे यकीन है कि इसके दूसरे साथी की भी हत्या कर दी गई होगी और उसकी लाश यहीं कहीं होनी चाहिए।"

"ऐसा भी तो हो सकता है कि इसके मालिक ने इसके दूसरे साथी को मार कर किसी ऐसी जगह पर छुपा दिया हो जहां पर हमें उसकी लाश मिले ही न।" दरोगा ने तर्क देते हुए कहा____"इसकी लाश तो हमें इस लिए मिल गई क्योंकि सफ़ेद कपड़े वाले ने मुझे देख लिया था और उसको फ़ौरन ही इसे लावारिश छोड़ कर भाग जाना पड़ा था।"

"होने को तो कुछ भी हो सकता है दरोगा।" पिता जी ने कहा____"ऐसा भी हो सकता है कि सफेद कपड़े वाले ने इसके दूसरे साथी के साथ कुछ न किया हो और वो अभी भी ज़िंदा ही हो। सफेद कपड़े वाले के द्वारा इसके दूसरे साथी को भी जान से मार देने की बात भी हम सिर्फ इसी आधार पर कह रहे हैं क्योंकि उसने इन दोनों को ही एक काम सौंपा था जिसमें ये दोनों नाकाम हुए हैं और उसी नाकामी के लिए इन्हें अपनी जान से हाथ धोना पड़ा है। ख़ैर बात जो भी हो किन्तु अपनी तसल्ली के लिए हमें ये तो पता करना ही पड़ेगा न कि इसका दूसरा साथी कहां है।"

"जी मैं समझ गया ठाकुर साहब।" दरोगा ने सिर हिलाते हुए कहा____"रात के इस अँधेरे में उसके दूसरे साथी को या उसकी लाश को खोजना मुश्किल तो है लेकिन मैं कोशिश करुंगा उसे खोजने की, नहीं तो फिर दिन के उजाले में मैं इस पूरे क्षेत्र का बड़ी बारीकी से निरीक्षण करुंगा। अगर सफेद कपड़े वाले ने इसके दूसरे साथी को भी इसी की तरह जान से मार दिया होगा तो यकीनन कहीं न कहीं उसके निशान मौजूद ही होंगे और अगर वो अभी ज़िंदा है तो ज़ाहिर है कि उसके निशान मिलना संभव नहीं होगा, बल्कि उस सूरत में उसे ढूंढना टेढ़ी खीर जैसा ही होगा।"

थोड़ी देर और दरोगा से इस सम्बन्ध में बातें हुईं उसके बाद पिता जी के कहने पर मैं उनके पीछे हमारी जीप की तरफ बढ़ गया जबकि दरोगा वहीं खड़ा रहा।


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Behad shaandaar zaberdast lajawab update bhai
 

Mahi Maurya

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बत्तीसवाँ भाग
बहुत ही जबरदस्त।।
मालिश के दौरान चाची की चुचियाँ देखकर वैभव का ईमान डोल गया। आज पहली बार किसी औरत के बारे में गलत सोचते हुए उसे डर लगा। उसने भगवान से प्रार्थना की कि उसे भगवान नपुंषक बना दें। बिल्कुल सही कहा वैभव ने। अगर यही दुआ उसने भगवान से पहले ही मांग ली होती तो कितनी सारी लड़कियों और औरतों की इज़्ज़त बच जाती। शायद चाची ने वैभव की मंशा पढ़ ली और उन्हें भान हो गया कि वैभव की नीयत उनके ऊपर खराब हो रही है। तभी उन्होंने वैभव को शादी के लिए पूछ लिया हो।।
कुसुम अभी भी एक पहेली बनी हुई है। पता नहीं उसके मन मे क्या है। वैभव के कमरे में आई तो उसकी सांस उखड़ी हुई थी। वैभव को अपने पापा से पता चला कि मुरारी काका के गांव के पास किसी की हत्या हो गई है। घटनास्थल पर एक लाश मिली जिसके जिस्म पर काला कपड़ा था। शायद वो वैभव को मारने आए दो काले साये में से एक रहा हो। जरूर कुछ न कुछ गहरी साजिश हो रही है ठाकुर खानदान के खिलाफ।।🤔🤔🤔
 

aalu

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Jab aisi koi baat hai hi nahi bhaiya ji to main kaise koi alag situation banane par majboor ho jaauga,,,, :D

Aap bhi kabhi kabhi hawa me hi laathiya ghumane lagte hain,,,,:lol:
machhar ko dande se maar ke kaam ka paath padhte hain hamare kammo dahling... aapko thori dikhega aap toh tharkee masoom ho...
 

Moon Light

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अध्याय - 32
मालिश का ये समय वैभव के सब्र की परीक्षा ले रहा था... जिसमे कुछ हद तक वो कामयाब भी रहा और नाकामयाब भी... क्योंकि चाची की बातें तो यही कह रहीं की उनकी नजर जरूर वैभव के अंग पर पड़ चुकी है । इसलिए उन्होंने कहा कि उसे शादी करलेनी चाहिए ।

आज के युग में सब ऐसे काम करते हैं। कुछ लोग इस तरीके से ऐसे काम करते हैं कि किसी दूसरे को उनके ऐसे काम की भनक भी नहीं लगती और कुछ लोग इतने हिम्मत वाले होते हैं कि वो ऐसे काम करते हुए इस बात की ज़रा भी परवाह नहीं करते कि उनके द्वारा किए जा रहे ऐसे काम के बारे में जब लोगों को पता चलेगा तो वो लोग उसके और उसके घर परिवार के बारे में क्या सोचेंगे?
इसका मतलब निकाला जा सकता है 😜😜 और बढ़िया मतलब निकल सकता था । एक बेहद सीक्रेट बाला किरदार बन सकता है चाची का भी जैसे कुसुम का है फिलहाल ।

वैसे ठाकुरों के परिवार में औरतों से डरना ??? शायद इसकी वजह भी यही हो सकती है जिसका मतलब मैं ऊपर निकाल रही । जरूर चाचा को रंगे हाथों पकड़ा होगा चाची ने 😜😜
खैर छोड़ो ये बात कभी कभी हवाई बातें सभी कर लेते हैं ।
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दादा ठाकुर और वैभव हवेली से निकल कर उस मृत मिले व्यक्ति के पास उसकी लाश देखने जाते हैं । वो एक काले साये में लिपटा हुआ था । उसका चेहरा देखने की कोशिश क्यों न कि गयी ??? इतना बड़ा गांव तो नही जो पता न लग पाए ये कौन है ??? और ठाकुर के लिए ये काम तो बहुत आसान हो सकता था !!!
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दरोगा जी भी संदिग्ध गतिविधियों में लिप्त हो सकते हैं ये उसकी बातों से झलक रहा । उसने ये भी बताया कि इसे मारने वाला इसे धमका रहा था और ये गिड़गिड़ा रहा था अपना काम पूरा करने के लिए । जरूर ये दोनों ही मोहरे हो सकते हैं क्योंकि इन कामों के लिए स्वयम कोई नही करता बल्कि किसी और से ही करवाता है ताकि अगर पकड़ा भी जाये तो उसको कोई हानि न हो ।
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रहस्यों के खुलने के बजाए उसमे 1 और रहस्य जुड़ गया या मैं तो ये कहती हूँ एक नही बल्कि दो रहस्य और जुड़ गए एक लाश वाला और दूसरा चाची की बातों का...
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कब तक आखिर कब तक ऐसे ही हम रहस्यमयी दुनिया मे खोये रहेंगे शुभम जी 😃😃
पर्दा उठाइये अब थोड़ा हम भी खुश हो लेंगे 😍😍
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ब्रिलियंट अपडेट

वेटिंग फ़ॉर नेक्स्ट....
 
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aalu

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update-31... revo...

dada thakur ka beta mamuli aadmi ke ghar mein hi toh saare kaam karta hain... jab us ghar ka mamuli aadmi na hota hain toh unki bewi ke saath... :D. // aaj kal unki betio ke oopar bhi nishana laga raha hain.... yeh launda kitna bhara baitha tha apni tareef ke liye... gaon ke logo ne iske baare mein socha hoga kee nahin yeh toh na pata lekin yeh jaroor soch lega...:D

achha hain saroj kaki ko ek fokat ka naukar mil gaya jo paise bhi deta hain aur kaam bhi karta hain... akhir raat ke kasrat ka itna achha parinam milega yeh na socha hoga saroj kaaki ne...

chalo ho gaya murari ka happy birthday... ab jagan kee baari...:D... waise agar iss wakt koi jagan ko tapka de toh maza aa jayega... sara shaq vaibhaw pe aur phir vaibhaw ko jail phir dada thakur saroj aur jagan kee bewi ko samjhane aayenge roj roj...:D... jaise bhaujee ko samjhate hain akele mein...

waise ghar ke andar mujhe lagta hain insect ka keeda chal raha hain kidhar toh... yeh jo chhin chhin chhin kar ke raat bhar mujra hota hain kisi ke kamre mein... wo naukrani karti hain ya ghar kee hee koi aur aurat... hamara sochan dev /// chodan dev kitna bhi kameena ho lekin ghar kee maal pe haath saaf na kiya hain kabhi... bhale hi wo sanskari(tharkee) bhaujee ko dekh ke kutte kee tarah laar tapkata hain.... lekin kabhi haath saaf na kiya itta sanskari hain...:winknudge:...

"आज तो बहुत थक गए होंगे न बेटा?" "क्या ज़रूरत थी इतनी मेहनत करने की? "..... are na kaaki aaj ja ke apni kamini chachi se khoob maalish karwa loonga aur phir thora tharkee ho ke unko dekhoonga.... hehehehe

आज जो कुछ भी मैंने किया है उसे मुरारी काका ने ऊपर से ज़रूर देखा होगा और उनकी आत्मा को ये सोच कर शान्ति मिली होगी कि उनके जाने के बाद उनके परिवार को किसी बात के लिए परेशान नहीं होना पड़ा।"... wo toh hain beta lekin jo unke neeche rahte tumne kiya usse toh aur jyda khus ho gaya hoga murari... :D... haan wo apni beti mere saath set karna chahta tha lekin maine toh bewi hi set kar lee...:lol:... ab beti bhi line de rahi hain...:D

saroj kaaki pure gaon mein afwah failaye hue hain ke vaibhaw kaka prem mein kaam kar raha hain... kitni sanskari hain kaki prem ke baare mein kuchh na batati hain...:laugh:...

हमे सच में ख़ुशी हो रही है कि तुम किसी के बारे में इतनी गहराई से सोचने लगे हो।.... are kaa baat kar rahe hain pitajee abhi tak pure kahani mein yahee toh ek kaam kiya hain sochna... sochan dev mera naam bhi bara popular ho gaya hain...wasie gehrai ka toh pata nahin baaki shab theek hain...:D


achha hain sahukaro ne khud hi entry de dee... vaibhaw bhi toh yahee chah raha tha... lekin sahukaro ka isse samman dena waali baat mein jhol toh hain... aur yeh prashn bas vaibhaw ne dada thakur kee najariya janne ke liye kiya tha... kyunki wo khud janta hain uske ghar mein iske himayati kam aur dushman jyada hain... khair bina beti wala budhau ne bhi theek hi kaha kee bina praman ke wo kisi par iljam na laga shakte hain... sambhawnaye toh kayee hain... sala sochna chhor ke khojna shuru kar....


"आप ठीक कह रहे हैं।" मैंने बात को समझते हुए कहा____"जब तक हम सांप के बिल में हाथ नहीं डालेंगे तब तक हमें पता ही नहीं चलेगा कि उसकी गहराई कितनी है।"..... kahe rupa ne gehrai na batayee...:lol1:..

असल में चाची के मन में माँ के प्रति बेहद सम्मान की भावना थी इस लिए वो नहीं चाहतीं थी कि मालिश करने जैसा काम हवेली की बड़ी ठकुराइन करें।.... ab chachi ke man mein samman kee bhawna hain kee tharkee chachi mauka haath se na jaane dena chahti hain...

bechara dada thakur ke maar se gussa ho jata tha aur sara gussa peet paat ke naukrani pe nikal ke so jata tha...:D

saari bakwaso se pare vaibhaw aur kusum ka relation bara nischhal hain bina kisi shart ke bas pyar se bhara... na usne kabhi vaibhaw kee khamio ke liye kuchh kaha na vaibhaw ne pyar se pare usse dekha... ek tharkee insan ke liye jo har doosri larki ko ussi najar se dekhta hain apni behen bhi achhuti na rahti... lekin jahan pyar hota hain wasna kee jagah na hoti... aksar kuchh insano ko dekh ke bas unhe pyar karne ko jee chahta hian uske itra koi bhi apavitra vichar man mein na aate hain... khair udhar chachi aa gayee hain chhin chhin karte hue.. jaroor tharkee writer ne isse payal pehna ke bheja hain kee sochte raho raat mein mujra kaun kar rahi thee chachi ya naukrani... ya sanskari bhaujee... ab toh kusum pe bhi shaq hota hain...

sala lu###d bhi bara ajeeb hota hain uski dosti ek ang se ho toh bataye sala pet dekh ke kabhi uchhalne lagta hain toh kabhi kamar... isse toh pair ke nakhun bhi kabhi dikh jaye toh wahan pe bhi sawdhan... kitna anushashit banda hain... lekin phir thak bhi jata hain....:D... bechari vaibhaw aur sanskari chachi...
 
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aalu

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Raj bhai agle update me kuch baato ka pata chalega. Main bhi yahi chaahta hu bhai ki itne saare sawaalo ke jawaab ab milne hi chahiye is liye ab isi par kaarya chal raha hai. Jab ek cheez ka pata chalega to fir baaki cheezo ka pata lagne me deri nahi hogi. Is kahani me sabse badi samasya yahi bani huyi hai ki abhi tak vaibhav ko kuch pata nahi chal saka hai. Wo samajhta to bahut kuch hai lekin kisi cheez ko jaanne ke liye use koi clue nahi mil raha hai. Jabki wo ab isi kaam me laga hua hai. Khair situation hamesha ek jaisi to nahi rahegi na. Is liye next update ka wait karo,,,, :D
achha vaibhaw ko clue na mil raha hain... usse bas murari kee lugai aur chachi kee maalish mein ghumate raho aur bolo clue na mil raha hain... kusum ke oopar sandeh hain lekin usse baat na karwaoge mahino guzar diye... aur clue na mil raha hain...:bat1:.... rangili rajni ne rupp ke chand se samandh kyon yeh jante hue bhi sahukaro aur thakuro kee na banti hain( wasie lu###d aur ch###t saale shab jhagre bhula ke turant ro dho ke gale mil lete hain...) banaye... ya phir wo jasoos hain sahukaro kee thakuro ke ghar mein.. uska pati aur sasur thakuro ke liye kaam karta hain jasoosi karna aasan hoga uske liye... aur kya bas rajni hi shamil hain uski saas na hain...

itna shab clue hain puchhne ke liye... inko khula chhor rakhha hain... aur raat mein payal pehen ke kaun bhaag raha tha chachi,, kusum ya phir dada thakur.....:lol:
 

Avi12

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Behtareen update bhai ji.
 
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