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Adultery ☆ प्यार का सबूत ☆ (Completed)

What should be Vaibhav's role in this story..???

  • His role should be the same as before...

    Votes: 19 9.9%
  • Must be of a responsible and humble nature...

    Votes: 22 11.5%
  • One should be as strong as Dada Thakur...

    Votes: 75 39.3%
  • One who gives importance to love over lust...

    Votes: 44 23.0%
  • A person who has fear in everyone's heart...

    Votes: 31 16.2%

  • Total voters
    191

TheBlackBlood

αlѵíժα
Supreme
78,684
115,199
354
परिवार पहले बाक़ी सब बाद में। आप अपने भाइयों का इतना ख़याल रख रहे है ये सराहनीय कार्य है। हम सब की शुभेच्छा सदेव आपके साथ है।
Shukriya aapka, sab ka karta dharta upar wala hai. Ham to bas madhyam hain...farz aur kartavya samajh kar jitna hamse ho sakega zarur karenge. Khair shukriya....sath bane rahiye,,,,,:dost:
 

TheBlackBlood

αlѵíժα
Supreme
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एक बहूत ही सुंदर और रमणिय रहस्यमयी अपडेट है भाई मजा आ गया
चाची वैभव को थकान आने तक मालिश करना चाहती हैं का क्या मतलब निकाले यह समझने वाली बात है
एक और हत्या हो गई
अगले धमाकेदार अपडेट की प्रतिक्षा रहेगी जल्दी से दिजिएगा
Shukriya bhai is khubsurat pratikriya ke liye,,,,:hug:
 

TheBlackBlood

αlѵíժα
Supreme
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sooch ki uran experience se pahale hi hoti hai, Vastvik jivan main experience ke baad kalpana ki uraan jab jab kulanche bharti hai vastavikta hath pakar kar hakikat ki dharti par le aati hai. bagvaan kare aapki kalpanikta ke anurup hi vastavikta bhi ho.......................................
SADHUVAAD
Kya baat hai bhai, kitne sundar shabdo me aapne is bare me apni baat kahi. Behad achha laga. Baaki apne ko to utna hi milna hai jitna apne bhaagya me hoga. Usse zyada na to mil sakta hai aur na hi zyada milne ki khwaahish hai. Khair sath bane rahiye,,,,,:hug:
 

TheBlackBlood

αlѵíժα
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☆ प्यार का सबूत ☆
अध्याय - 33
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अब तक,,,,,,

"जी मैं समझ गया ठाकुर साहब।" दरोगा ने सिर हिलाते हुए कहा____"रात के इस अँधेरे में उसके दूसरे साथी को या उसकी लाश को खोजना मुश्किल तो है लेकिन मैं कोशिश करुंगा उसे खोजने की, नहीं तो फिर दिन के उजाले में मैं इस पूरे क्षेत्र का बड़ी बारीकी से निरीक्षण करुंगा। अगर सफेद कपड़े वाले ने इसके दूसरे साथी को भी इसी की तरह जान से मार दिया होगा तो यकीनन कहीं न कहीं उसके निशान मौजूद ही होंगे और अगर वो अभी ज़िंदा है तो ज़ाहिर है कि उसके निशान मिलना संभव नहीं होगा, बल्कि उस सूरत में उसे ढूंढना टेढ़ी खीर जैसा ही होगा।"

थोड़ी देर और दरोगा से इस सम्बन्ध में बातें हुईं उसके बाद पिता जी के कहने पर मैं उनके पीछे हमारी जीप की तरफ बढ़ गया जबकि दरोगा वहीं खड़ा रहा।


अब आगे,,,,,,


"क्या सोच रहे हैं पिता जी?" रास्ते में मैंने पिता जी को कुछ सोचते हुए देखा तो हिम्मत कर के पूंछ ही बैठा____"जिस आदमी की लाश मिली है क्या वो सच में वही काला साया हो सकता है जो अपने एक और साथी के साथ मुझे मारने आया था?"

"बेशक़ हो सकता है।" पिता जी ने सोचने वाले भाव से ही कहा____"लेकिन हम ये सोच रहे हैं कि जिस किसी ने भी उसकी जान ली है क्या उसी ने मुरारी की भी हत्या की होगी या फिर करवाई होगी?"

"आप ऐसा कैसे कह सकते हैं?" मैंने उनकी तरफ एक नज़र डाल कर कहा____"जबकि मुरारी काका की हत्या करने में और इस आदमी की हत्या करने में बहुत फ़र्क है। मुरारी काका की हत्या तेज़ धार वाले किसी हथियार से गला काट कर की गई थी जबकि इस आदमी की जान उसके सिर पर लट्ठ मारने से ली गई है और ये बात दरोगा खुद ही बता चुका है।"

"हम मानते हैं कि दोनों की हत्या करने का तरीका अलग अलग है।" पिता जी ने कहा____"किन्तु उस सफ़ेद कपड़े वाले को मत भूलो जिसने इस मरे हुए आदमी को कोई काम सौंपा था और जिस काम के नाकाम होने पर इस आदमी को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा।"

"आप कहना क्या चाहते हैं?" मैंने उलझ गए भाव से उनकी तरफ देखा____"मुझे कुछ समझ में नहीं आई आपकी बात।"
"दरोग़ा की सारी बातें सुनने के बाद इस मामले के सम्बन्ध में हमारे ज़हन में कुछ बातें चल रही हैं।" पिता जी ने सोचने वाले अंदाज़ से कहा____"दरोगा के अनुसार सफ़ेद कपड़े वाले ने इस आदमी को कोई काम सौंपा था जिसके नाकाम होने पर उसने इसे जान से मार दिया। मरे हुए आदमी के कपड़ों से ये बात साफ़ हो गई है कि ये वही आदमी है जो अपने एक दूसरे साथी के साथ उस शाम तुम्हें मारने आया था। इससे ये बात साफ़ समझ में आ जाती है कि सफ़ेद कपड़े वाले ने इसे कौन सा काम सौपा था। इन सब बातों को मद्दे नज़र रखते हुए कहानी को कुछ इस तरीके से समझो_____'कोई अज्ञात आदमी शुरू से ही तुम पर नज़र रख रहा था और उसका मकसद था तुम्हें हर हाल में नुकसान पहुंचाना। जिसके लिए उसने गुप्त तरीके से दो ऐसे आदमियों को चुना जो किसी भी तरह के काम करने में माहिर हों। उसके बाद उसने अपने उन आदमियों के द्वारा मुरारी की हत्या करवाई और उस हत्या में तुम्हें फ़साने की कोशिश की। उसे अच्छी तरह पता था कि मुरारी की हत्या में तुम्हें फ़साने से तुम्हारा कुछ नहीं बिगड़ सकता किन्तु इसके बावजूद उसने तुम्हें फंसाया। कदाचित उसका मकसद था तुम्हारे नाम को हत्या जैसे मामले में शामिल कर के तुम्हें हर तरफ बदनाम कर देना और ज़ाहिर है कि तुम्हारी वजह से हमारी और हमारे पूरे खानदान की भी छवि ख़राब हो जाती। ख़ैर इस सबके बाद जब उसने देखा कि वो अपने मकसद में उस तरीके से कामयाब नहीं हुआ है जिस तरीके से वो चाहता था तो गुस्से में आ कर उसने अपने उन आदमियों के द्वारा तुम पर ही हमला करवाना शुरू कर दिया और जब उसके आदमी अपने हर प्रयास के बावजूद तुम्हारा कुछ नहीं बिगाड़ सके तो गुस्से में आग बबूला हो कर आज उस अज्ञात आदमी ने अपने ही आदमी की जान ले ली।"

लम्बी चौड़ी बात कहने के बाद जब पिता जी चुप हो गए तो जैसे ख़ामोशी छा गई। ये अलग बात है कि जीप के इंजन की आवाज़ फिज़ा में गूँज रही थी। पिता जी की इन बातों ने मेरे मनो मस्तिष्क को जैसे कुछ देर के लिए कुंद सा कर दिया था। उन्होंने जो कुछ भी कहा था वो यकीनन वजनदार था और सच्चाई भी यही हो सकती थी।

"अगर आपकी बातों को सच मान लिया जाए तो फिर इसमें कई सवाल खड़े होते हैं।" कुछ देर सोचने के बाद मैंने कहा____"जैसे कि अगर वो अज्ञात आदमी मुझे कोई नुकसान ही पहुंचाना चाहता था तो उसे इतना सब कुछ करने की क्या ज़रूरत थी? मेरा मतलब है कि वो खुद भी कोई अच्छा सा मौका देख कर मुझे नुकसान पहुंचा सकता था? इसके लिए उसे गुप्त रूप से आदमी लगाने की और उन आदमियों के द्वारा मुरारी की हत्या करवाने की क्या ज़रूरत थी। अगर वो मुझे ही अपना सबसे बड़ा दुश्मन समझता था तो वो सिर्फ मुझे ही नुकसान पहुँचाता या फिर मुझे जान से ही मार देता।"

"यही तो सोचने वाली बात है बरखुर्दार।" पिता जी ने मेरी तरफ देखते हुए कहा____"उसका मकसद सिर्फ तुम्हें नुकसान पहुंचाना ही बस नहीं था बल्कि तुम्हारे द्वारा हम सबकी छवि को ख़राब करना भी था। अगर वो तुम्हें हत्या जैसे मामले में न फंसाता तो क्या तुम्हारे साथ साथ हम सबकी छवि भी ख़राब हो सकती थी? उसके दुश्मन सिर्फ तुम ही नहीं हो बल्कि हम सब हैं।"

"हां यही बात हो सकती है।" मैंने गहरी सांस लेते हुए कहा____"तो क्या लगता है आपको? ये सब किसने किया होगा? वो सफ़ेद कपड़े वाला कौन हो सकता है? क्या ये सब गांव के साहूकारों का किया धरा है?"

"ये सच है कि गांव के साहूकारों से हमेशा ही हमारा मन मुटाव रहा है और वो हमें अपना दुश्मन भी समझते रहे हैं।" पिता जी ने कहा____"लेकिन इस सबके लिए हम फिलहाल उन पर आरोप नहीं लगा सकते। जैसा कि हमने पहले भी तुमसे कहा था कि हमें भले ही उन पर हर चीज़ के लिए शक हो लेकिन जब तक हमारे पास उनके खिलाफ़ कोई ठोस प्रमाण नहीं होगा तब तक हम इस बारे में उनके खिलाफ़ कोई भी क़दम नहीं उठा सकते।"

"इसका मतलब तो यही हुआ कि इस सबके लिए हम कुछ कर ही नहीं सकते।" मैंने थोड़ा खीझते हुए कहा तो पिता जी ने कहा____"ऐसी बात नहीं है बल्कि हमें तो अब ऐसा लग रहा है कि हमें कुछ करने की ज़रूरत ही नहीं पड़ेगी।"

"ये आप क्या कह रहे हैं?" मैंने चौंक कर उनकी तरफ देखा।
"हमारे सामने दो तरह के मामले हैं।" पिता जी ने शांत भाव से जैसे मुझे समझाते हुए कहा____"एक तो ऐसा मामला है जो प्रत्यक्ष रूप से हमारे सामने है और दूसरा वो है जो हमारी नज़र से दूर है, जिसके बारे में हम सिर्फ अनुमान ही लगाते रहे हैं। अभी का ये मामला अप्रत्यक्ष रूप वाला है लेकिन प्रत्यक्ष रूप वाला मामला ये है कि कल तुम्हें मणि शंकर के घर जाना है और उसके घर वालों से अच्छे सम्बन्ध बनाने हैं। हमें यकीन है कि उसमे भी कुछ न कुछ पता चलेगा और आज के इस मामले में भी जल्द ही कुछ न कुछ होता नज़र आएगा।"

"ये आप कैसे कह सकते हैं?" मैंने हैरानी से उनकी तरफ देखा तो उन्होंने कहा____"तुम्हें क्या लगता है इतना सब कुछ होने के बाद अब वो सफ़ेद कपड़े वाला शान्ति से बैठ जाएगा? हरगिज़ नहीं, बल्कि वो अपनी इस नाकामी से बुरी तरह झुलस रहा होगा और जल्द ही कुछ ऐसा करने का सोचेगा जिससे वो अपने मकसद में कामयाब हो सके। हमें भी उसके अगले क़दम के लिए पूरी तरह से तैयार रहना होग, ख़ास कर तुम्हें।"

"वैसे उस दरोगा के बारे में आपका क्या ख़याल है पिता जी?" कुछ सोचते हुए मैंने पिता जी से कहा____"क्या आपको लगता है कि वो भरोसेमंद आदमी है?"
"हमें अच्छा लगा कि अब तुम इस मामले में गहराई से सोचने लगे हो।" पिता जी ने मेरी तरफ देखने के बाद कहा____"जिस तरह के हालात बने हुए हैं उसके लिए हमें हर पहलू के बारे में गहराई से सोचना ज़रूरी है। दरोगा के भरोसे पर सवाल खड़ा करना मौजूदा वक़्त में जायज़ भी है बुद्धिमानी भी है किन्तु हम तुम्हें बता दें कि दरोगा पर पूरी तरह भरोसा किया जा सकता है।"

"दरोग़ा पर भरोसा करने की वजह?" मैंने एक नज़र पिता जी की तरफ डालने के बाद कहा तो पिता जी ने कहा____"क्योंकि एक तरह से वो हमारा ही आदमी है। कुछ साल पहले हमने ही उसकी नौकरी लगवाई थी। उसका बाप बहुत अच्छा आदमी था। हमसे काफी अच्छे सम्बन्ध थे उसके। दरोगा उस समय पढ़ ही रहा था जब गंभीर बिमारी के चलते उसके पिता की मृत्यु हो गई थी। उसकी मृत्यु पर हम गए थे उसके घर। धनञ्जय पढ़ने लिखने में बड़ा होशियार था और हम उसे बहुत मानते भी थे। उसके पिता रमाकांत की मृत्यु के बाद हमने खुद ही उसके परिवार की जिम्मेदारी के ली थी। ख़ैर धनञ्जय की जब पढ़ाई पूरी हो गई तो हमने पुलिस में उसकी नौकरी लगवा दी। असल में उसके पिता रमाकांत का सपना था कि उसका बेटा एक पुलिस वाला बने। धनञ्जय पुलिस वाला बन गया और अपनी माँ के साथ साथ छोटी बहन का भी सहारा बन गया। अभी पिछले साल ही धनञ्जय का तबादला इस शहर में हुआ है। इसके पहले वो अपनी माँ और बहन को ले कर दूसरी जगह रहता था।"

"इसका मतलब दरोगा हमारे लिए भरोसेमंद है।" मैंने गहरी सांस लेते हुए कहा।
"बिल्कुल।" पिता जी ने कहा____"हमने कुछ समय पहले यहीं पर उसे रहने के लिए एक जगह कमरा दिलवा दिया था और गुप्त रूप से मुरारी की हत्या की जांच करने के लिए कहा था। शहर से हर रोज़ यहाँ आना उसके लिए आसान तो था लेकिन हम नहीं चाहते थे कि वो यहाँ पर हमारे किसी अज्ञात दुश्मन की नज़र में आ जाए। इसके लिए हमने उसके उच्च अधिकारियों से बात भी कर ली थी।"

"तो उसके यहाँ रहने से।" मैंने कहा____"क्या मुरारी काका की हत्या के मामले में कुछ पता चला?"
"उसी काम में तो वो लगा हुआ था।" पिता जी ने कहा____"और शायद वो सफल भी हो जाता अगर वो सफ़ेद कपड़े वाला उसकी पकड़ में आ जाता।"

"मेरे मन में एक सवाल खटक रहा है पिता जी।" मैंने सोचने वाले अंदाज़ से कहा____"आपने बताया था कि मेरी सुरक्षा के लिए आपने एक आदमी को लगा रखा है जो तभी मेरे पीछे लग जाता है जब मैं हवेली से निकलता हूं। सवाल है कि अगर वो मेरे पीछे ही लगा रहता है तो अब तक वो उन दो सायों को पकड़ क्यों नहीं पाया? इतना तो अब उसे भी पता ही है कि मुझे मारने के लिए उस शाम दो साए आए थे तो फिर उसने अब तक उनका पता क्यों नहीं लगाया?"

"उसका काम किसी का पता लगाने नहीं है।" पिता जी ने कहा____"उसका काम सिर्फ इतना ही है कि शाम को जब भी तुम हवेली से बाहर जाओ तो वो तुम्हारा साया बन कर तुम्हारे पीछे लग जाए और अगर तुम पर कोई हमला करता है तो वो उस हमले से तुम्हारी रक्षा करे।"

"बड़ी अजीब बात है।" मैंने कहा___"वैसे एक और बात भी है पिता जी और वो ये कि उस सफ़ेद कपड़े वाले का मकसद पूरा न होने देने के पीछे आपके उस आदमी का भी थोड़ा बहुत हाथ है जिसे आपने मेरी रक्षा के लिए लगाया हुआ है। उसकी वजह से उस शाम वो दोनों साए मुझे नुक्सान नहीं पहुंचा पाए थे।" मैंने ये कहा ही था कि तभी मेरे ज़हन में बिजली की तरह एक बात कौंधी तो मैंने चौंक कर पिता जी से कहा____"इसका मतलब आपके उस आदमी की जान को भी ख़तरा है पिता जी।"

"क्या मतलब???" पिता जी मेरी बात सुन कर चौंके।
"हां पिता जी।" मैंने जोशपूर्ण भाव से कहा____"कहीं न कहीं आपके उस आदमी का भी हाथ है उस सफ़ेद कपड़े वाले की नाकामी में। सफ़ेद कपड़े वाला अगर अपनी नाकामी में गुस्सा हो कर अपने आदमी को जान से मार सकता है तो आपके उस आदमी को भी तो जान से मार देना चाहेंगा।"

"यकीनन।" पिता जी के मस्तिष्क की जैसे बत्ती जल उठी____"ऐसा भी हो सकता है। ज़रूर वो सफ़ेद कपड़े वाला हमारे उस आदमी को भी जान से मारने की कोशिश करेगा लेकिन....!"
"लेकिन क्या पिता जी??" मैंने उनकी तरफ देखा तो उन्होंने कहा____"लेकिन चिंता की कोई बात नहीं है। हमारा वो आदमी इतना कमज़ोर नहीं है कि कोई ऐरा गैरा उसका कुछ बिगाड़ सके। हमें यकीन है कि अगर ऐसा कुछ हुआ तो वो सफ़ेद कपड़े वाला खुद ही मात खाएगा और संभव है कि हमारे आदमी के द्वारा पकड़ा भी जाए।"

"अब ये तो आने वाला समय ही बताएगा पिता जी।" मैंने कहा____"कि आगे क्या होता है इस सम्बन्ध में।"
"फिलहाल तुम इन सब बातों से ध्यान हटा कर कल के बारे में सोचो।" पिता जी ने कहा____"कल तुम्हें मणि शंकर के घर जाना है। इस बात का ख़ास ख़याल रहे कि तुम्हारी किसी बचकानी हरकत की वजह से कुछ उल्टा सीधा न हो।"

"आप बेफिक्र रहिए पिता जी।" मैंने दृढ भाव से कहा____"मैं आपको शिकायत का मौका नहीं दूंगा। मुझे भी लगता है कि उन लोगों से बेहतर सम्बन्ध बना कर ही मुझे उनकी असलियत का पता चल पाएगा। वैसे एक सवाल है पिता जी, अगर आपकी इजाज़त हो तो पूछूं आपसे?"

"इसके पहले क्या तुमने अपने किसी सवाल के लिए हमसे इजाज़त मांगी थी?" पिता जी ने मेरी तरफ घूर कर देखा तो मैं एकदम से झेंप सा गया, जबकि उन्होंने कहा____"ख़ैर पूछो क्या पूछना चाहते हो?"

"गांव के साहूकारों से।" मैंने उनकी तरफ देखते हुए कहा____"क्या सच में हमारी कोई दुश्मनी है या फिर वो बेवजह ही हमें अपना दुश्मन समझते रहे हैं?"

"समय आने पर तुम्हें तुम्हारे इस सवाल का जवाब ज़रूर देंगे हम।" पिता जी ने गंभीरता से कहा____"फिलहाल हम ये चाहते हैं कि तुम सिर्फ़ एक चीज़ पर ध्यान दो और वो ये कि साहूकारों से अपने सम्बन्धों को अच्छा बनाओ और इस क़दर बनाओ कि वो ये यही समझने लगें कि अब तुम्हारे ज़हन में उनके प्रति कोई ग़लत भावना नहीं है।"

पिता जी की बात सुन कर मैंने हां में अपना सिर हिलाया और ख़ामोशी से जीप चलाता रहा। ख़ैर कुछ ही देर में जीप हवेली पहुंच ग‌ई। हवेली के मुख्य दरवाज़े के पास मैंने जीप को रोका तो पिता जी जीप से उतर गए। मैं दूसरे छोर पर जीप को खड़ी करने चला गया। कुछ देर बाद मैं भी हवेली के अंदर आ गया।

अंदर आ कर सबसे पहले मैं ऊपर अपने कमरे में गया और कपड़े उतार कर नीचे गुसलखाने में चला गया। नहा धो कर मैं वापस अपने कमरे में आया और दूसरे कपड़े पहन ही रहा था कि भाभी मेरे कमरे में आईं और बोलीं कि खाना बन गया है इस लिए जल्दी से खाना खाने के लिए नीचे आ जाओ। भाभी इतना बोल कर वापस चली गईं।

कुछ देर बाद मैं नीचे गया और सबके साथ बैठ कर भोजन करना शुरू कर दिया। खाते वक़्त हमेशा की तरह सब ख़ामोश ही थे। मेरी नज़र बड़े भैया पर पड़ी तो देखा वो चुपचाप खाना खा रहे थे। उनके बगल से विभोर और अजीत भी बैठे खा रहे थे। हवेली की दो नौकरानियाँ खाना परोस रहीं थी।

☆☆☆

रात लगभग आधी गुज़र चुकी थी। हवेली में हर तरफ गहन सन्नाटा ब्याप्त था। हर रोज़ की तरह आज भी आधी रात को बिजली जा चुकी थी। खाना खाने के बाद मैं ऊपर अपने कमरे में आ गया था। पलंग पर लेटे लेटे ही मैंने फैसला कर लिया था कि आज तब तक नहीं सोऊंगा जब तक मेरे कुछ सवालों के जवाब नहीं मिल जाते। आज शाम की घटना ने भी मेरे मन में कुछ सवाल खड़े कर दिए थे जो पहले के सवालों के साथ ही जुड़ गए थे और सच तो ये था कि अब मैं इन सभी सवालों के बारे में सोचते सोचते पके हुए फोड़े की तरह ही पक गया था। मुझे अब हर हाल में सभी सवालों के जवाब चाहिए थे।

मेरे ज़हन में सबसे पहले कुसुम का ही ख़याल था और मैं हर हाल में जानना चाहता था कि कुसुम के सीने में ऐसी कौन सी बात या रहस्य दफ़न है जिसकी वजह से उसका ब्यक्तित्व बदल सा गया है? पलंग पर लेटे लेटे मैं सबके सो जाने का इंतज़ार कर रहा था और जब मुझे लगा कि हवेली का हर सदस्य अब गहरी नींद में जा चुका होगा तो मैंने अपने कमरे से निकलने का विचार बनाया।

मैं चुपके से अपने कमरे से निकला और लम्बी चौड़ी राहदारी की तरफ आहिस्ता से बढ़ चला। वैसे तो मैं किसी के बाप से भी नहीं डरता था लेकिन जाने क्यों इस वक़्त मेरे दिल की धड़कनें सामान्य से थोड़ा बढ़ गईं थी। अँधेरे में चलते हुए मैं उस जगह पर आया जहां से एक तरफ को नीचे जाने के लिए सीढ़ियां थी और एक तरफ वो गलियारा था जिसमें सबसे पहले बड़े भैया का कमरा था और उनके आगे विभोर अजीत तथा कुसुम का कमरा था।

मैं दबे पाँव गलियारे की तरफ बढ़ते हुए कुछ ही पलों में बड़े भैया के कमरे में के पास पहुंच गया। दरवाज़े के एकदम नज़दीक आ कर मैंने दरवाज़े पर अपना एक कान सटा दिया और कमरे के अंदर की आवाज़ सुनने की कोशिश करने लगा। हालांकि मैं जानता था कि मेरा ऐसा करना सरासर ग़लत है क्योंकि कमरे के अंदर बड़े भैया और भाभी थे और इस वक़्त वो किसी भी हालत में हो सकते थे। ख़ैर इस वक़्त मैं सही ग़लत के बारे में न सोचते हुए वही कर रहा था जो मेरे लिए निहायत ही ज़रूरी हो गया था। दरवाज़े पर अपना कान सटाए मैं कमरे के अंदर की आवाज़ सुनने की कोशिश कर रहा था किन्तु काफी देर तक कान सटाए रहने के बाद भी जब अंदर से किसी तरह की कोई आवाज़ नहीं सुनाई दी तो मैं दरवाज़े से अपना कान हटा कर सीधा खड़ा हो गया। मैं समझ गया कि अंदर भैया और भाभी गहरी नींद में हैं, क्योंकि अगर वो जाग रहे होते तो यकीनन उनके द्वारा कोई न कोई आवाज़ सुनने को मुझे मिलती।

बड़े भैया के कमरे से हट कर मैं गलियारे में आगे की तरफ बढ़ चला। इस वक़्त मैं अपनी ही हवेली में चोर बना हुआ था और इस वक़्त अगर कोई मुझे इस जगह पर देख लेता तो यकीनन मेरे चरित्र के बारे में सोच कर वो मुझ पर लानत भेजने लगता और ये भी संभव ही था कि उसके बाद दादा ठाकुर तक बात पहुंच जाती। उसके बाद दादा ठाकुर मेरा क्या हश्र करते इसका अंदाज़ा लगाना ज़रा भी मुश्किल नहीं था। ख़ैर मैं दबे पाँव आगे बढ़ते हुए दाहिने तरफ विभोर और अजीत के कमरे के पास पहुंच गया। वैसे तो उन दोनों भाइयों का कमरा अलग अलग ही था किन्तु अक्सर वो दोनों एक ही कमरे में सो जाया करते हैं। दोनों भाइयों का आपस में बहुत गहरा प्रेम था।

बड़े भैया के कमरे के बाद दाहिनी तरफ विभोर का ही कमरा पड़ता था। मैंने विभोर के कमरे के पास पहुंच कर वही किया जो इसके पहले बड़े भैया के कमरे के पहुंच कर किया था। यानि दरवाज़े पर अपना कान सटा कर अंदर की आवाज़ सुनने की कोशिश करने लगा किन्तु परिणाम वही निकला जो बड़े भैया के कमरे के पास पहुंच कर निकला था। ख़ैर विभोर के कमरे से हट कर मैं थोड़ा आगे बढ़ा और अजीत के कमरे के पास पहुंच गया। अँधेरा गहरा था किन्तु मुझे हवेली के हर ज़र्रे का पता था इस लिए मैं बड़ी ही कुशलता से आगे बढ़ रहा था।

अजीत के कमरे के पास पहुंच कर एक बार फिर से मैंने वही क्रिया दोहराई जो इसके पहले बड़े भैया और विभोर के कमरे के पास पहुंच कर की थी। काफी देर तक मैं दरवाज़े पर अपना कान सटाए रहा लेकिन यहाँ भी मुझे निराशा ही मिली। मैं सीधा खड़ा हुआ और सोचने लगा कि ये साला हर तरफ सन्नाटा क्यों है? कहीं ऐसा तो नहीं कि मैं बेकार में ही यहाँ झक मारने आ गया हूं? अभी मैं ये सोच ही रहा था कि तभी मेरी बाईं तरफ कुछ आवाज़ हुई तो मैं एकदम से चौंका और साथ ही बिजली की तरह घूम कर बाएं तरफ देखा। बाएं तरफ गलियारे के उस पार कुसुम का कमरा था। आवाज़ उसी तरफ से आई थी और ये मेरा वहम नहीं था क्योंकि सन्नाटे में तो सुई के गिरने से भी तेज़ आवाज़ उत्पन्न होती है।

मैं कुसुम के कमरे की तरफ बढ़ा ही था कि फिर से आवाज़ आई। इस बार मेरे कान खड़े हो गए और मन में तरह तरह के ख़याल उभरने लगे। दिल की धड़कनें पहले से थोड़ा और ज़्यादा तेज़ हो ग‌ईं। मैं बड़ी ही सतर्कता से कुसुम के कमरे के पास पहुंचा और दरवाज़े पर अपना कान सटा दिया। मेरे ज़हन में ऐसे ऐसे ख़याल उभरने लगे थे जिनके बारे में मैंने कभी कल्पना भी नहीं की थी। हालांकि मेरे ख़याल बेवजह या फिर ग़लत भी हो सकते थे किन्तु फिर भी इस वक़्त मेरे मन पर मेरा कोई ज़ोर नहीं था और मैं मन ही मन ईश्वर से सब कुछ अच्छा ही होने की कामना करने लगा था।

"आह्हहह मादरचोद दाँत क्यों गड़ा रही है?" मेरे कानों में विभोर की ये आवाज़ पड़ी तो मैं ये सोच कर बुरी तरह चौंका कि कुसुम के कमरे से विभोर की आवाज़ कैसे? उधर विभोर ने हल्के गुस्से में आगे कहा____"क्या लंड को ही खा जाएगी साली? आराम से नहीं चूस सकती?"

"हाहाहा ज़रा सम्हाल के भाई।" अजीत की इस आवाज़ से मैं एक बार फिर से चौंका, जबकि उधर अजीत ने धीमी आवाज़ में हंसते हुए कहा____"अँधेरे में इस रांड को कुछ दिख नहीं रहा है न इस लिए तुम्हारे लौड़े में अपने दाँत गड़ा देती है।"

"तू पीछे से इस बुरचोदी की गांड में अपना लंड डाल।" विभोर ने धीमी आवाज़ में कहा_____"और एक ही बार में पूरा लंड इसकी गांड में डाल दे, तभी इसको पता चलेगा कि दर्द क्या होता है।"
"इसको अब दर्द कहां होता है भाई?" अजीत ने कहा____"इसके तीनों बिल तो हम दोनों ने चोद चोद के बड़े कर दिए हैं इस लिए अब इसे दर्द नहीं होगा। वैसे इसकी गांड में अगर उस साले वैभव का लंड चला जाए तो पूरी हवेली इसकी दर्द भरी चीख से झनझना जाएगी।"

"तुझसे कितनी बार कहा है छोटे कि उस हरामज़ादे का नाम मेरे सामने मत लिया कर।" विभोर ने गुस्से से कहा____"उसका नाम सुन कर खून खौल जाता है मेरा। पता नहीं कब उस कम्बख़्त से मुक्ति मिलेगी हमें? उसकी वजह से होली वाले दिन पिता जी ने हमें सब के सामने थप्पड़ मारा था।"

"उसके थप्पड़ का हिसाब हम ज़रूर लेंगे भाई।" अजीत ने कहा____"बहुत जल्द उसकी गांड मारने का हमें मौका मिलेंगा।"
"बस उसी दिन के इंतज़ार में तो बैठा हूं मैं।" विभोर ने कहा____"बस कुछ समय की ही बात है। दवा के असर से जल्दी ही उसकी मर्दानगी उसके पिछवाड़े से निकल जाएगी। उसके बाद हम जैसे चाहेंगे उसकी गांड मारेंगे।"

"उस दवा को अभी कब तक चाय के साथ उसे पिलाना पड़ेगा भाई?" अजीत ने धीमी आवाज़ में पूछा____"दवा का असर धीरे धीरे न हो कर जल्दी हो जाता तो अच्छा होता। मुझे डर है कि कहीं किसी दिन उसे इस बात का पता न चल जाए।"

"गौराव ने बताया था कि उस दवा को नियमित रूप से उसे चाय के साथ पिलाना होगा।" विभोर ने कहा____"अगर नियमित रूप से दवा पिलाई जाएगी तो बीस दिन के अंदर ही उस हरामज़ादे की मर्दानगी फुस्स हो जाएगी। उसके बाद न तो कभी उसका लंड खड़ा होगा और ना ही उसमें इतनी ताक़त रहेगी कि वो हमारी झाँठ का बाल भी उखाड़ सके।"

कमरे के अंदर चल रही दोनों भाइयों की ये बातें जैसे मेरे कानों में खौलता हुआ लावा उड़ेलती जा रहीं थी। मैं सोच भी नहीं सकता था कि मेरे चाचा के इन दोनों सपूतों के अंदर मेरे प्रति इतना ज़हर भरा हुआ हो सकता है जिसकी वजह से वो मुझसे इतनी नफ़रत करते हैं। दोनों की ऐसी बातें सुन कर मेरे तन बदन में भयंकर आग लग गई थी और मेरा मन कर रहा था कि अभी अंदर जाऊं और दोनों की गांड में अपना हलब्बी लंड डाल कर दोनों के मुख से निकाल दूं लेकिन मैंने अपने खौलते हुए गुस्से को किसी तरह शांत करने की कोशिश की और ये सोच कर चुप चाप खड़ा ही रहा कि सुनूं तो सही कि ये और क्या बातें करते हैं मेरे बारे में। दूसरी बात मेरे लिए अब ये जानना भी ज़रूरी था कि अंदर दोनों के साथ तीसरी कौन है? न चाहते हुए भी मेरे मन में कुसुम का ख़याल आ जाता था किन्तु फिर मैं ये सोच कर अपने ऐसे ख़याल को झटक दे रहा था कि नहीं नहीं अंदर इन दोनों के साथ कुसुम नहीं हो सकती। माना कि ये दोनों बहुत हरामी हैं लेकिन इतने भी नहीं होंगे कि अपनी ही बहन के साथ मुँह काला करने लगें।

"दवा तो उसे नियमित रूप से ही चाय के साथ पिलाई जा रही है भाई।" अजीत की आवाज़ ने मुझे सोचो से बाहर किया____"मैं हर रोज़ कुसुम से इस बारे में पूछता हूं।"
"कुसुम पर अच्छे से नज़र रख तू।" विभोर ने कहा____"वो उस हरामज़ादे को हमसे ज़्यादा चाहती है। अगर किसी दिन वो आत्म ग्लानि का बोझ सह न पाई तो यकीनन हमारा सारा काम ख़राब कर देगी। वैसे मुझे लगता है कि उसे कुसुम पर किसी बात का शक हो गया है और इसी लिए वो अपने कमरे में कुसुम से कुरेद कुरेद कर कुछ पूंछ रहा था। वो तो अच्छा हुआ कि मुझे इस रांड ने समय पर बता दिया था कि कुसुम वैभव के कमरे में गई है। इसकी बात सुन कर मैं फ़ौरन ही उसके कमरे की तरफ बढ़ गया था। उसके कमरे के बाहर खड़े हो कर मैंने दोनों की सारी बातें सुनी थी और फिर जैसे ही मुझे महसूस हुआ कि कुसुम का मुख खुलने वाला है तो मैंने उसे आवाज़ लगा दी थी।"

"मुझे लगता है भाई की कुसुम अब ज़्यादा दिनों तक अपने अंदर इस बात को दफ़न नहीं कर पाएगी।" अजीत ने कहा____"वो अपराध बोझ में दबी जा रही है जिसके चलते वो यकीनन टूट जाएगी और सब कुछ बता देगी उसे। हमें कुछ न कुछ करना होगा इसके लिए।"

"तू सही कह रहा है छोटे।" विभोर ने कहा____"हमें कुछ न कुछ करना ही पड़ेगा। अरे! बस कर रे मादरचोद, झड़ा ही देगी क्या मुझे? अभी तो तुझे एक बार और जम के चोदना है।"

"इसकी बुर में अपना लंड डालो भाई।" अजीत ने धीमी आवाज़ में कहा____"तब तक मैं इसके मुँह में अपना लंड डालता हूं। बड़े मस्त तरीके से लंड चूसती है ये।"
"चल साली अपनी टाँगें फैला कर लेट जा।" विभोर ने कहा____"और हां अपनी हवस में ये मत भूल जाना कि तुझे क्या काम सौंपा है हमने। हमारे यहाँ न रहने पर तुझे कुसुम पर पैनी नज़र रखना है। अगर वो उस कमीने के कमरे में जाए तो उसे रोकना है तुझे। बाकी तो तुझे सब कुछ समझा ही दिया था मैंने।"

"आप चिंता क्यों करते हो छोटे ठाकुर?" अंदर से पहली बार किसी औरत की आवाज़ मेरे कानों में पड़ी____"आपकी बहन मेरी नज़रों में धूल झोंक कर कहीं नहीं जाएगी। मैंने उसे अच्छे से समझा दिया है कि अगर उसने आपके दुश्मन को इस बारे में कुछ भी बताने का सोचा तो उसके लिए बिलकुल भी अच्छा नहीं होगा।"

"शाबाश!" विभोर ने कहा____"वैसे तूने मेरी बहन की मज़बूरी का कोई फ़ायदा तो नहीं उठाया न?"
"मैं ऐसा सोच भी नहीं सकती छोटे ठाकुर।" औरत ने कहा____"आह्हहह ऐसे ही, थोड़ा और ज़ोर से चोदिए मेरी इस प्यासी चूत को...शशशश...आहहहह...मैं तो बस समय समय पर आपकी बहन को याद दिलाती रहती हूं कि अगर उसने आपके दुश्मन को कुछ भी बताने का सोचा तो उसके लिए अच्छा नहीं होगा।"

औरत की इस बात के बाद दोनों में से किसी की भी आवाज़ नहीं आई। ये अलग बात है कि औरत की मस्ती में चूर सिसकारियों की आवाज़ ज़रूर आ रही थी जो कि धीमी ही थी। मैं समझ गया कि अंदर दोनों भाई उस औरत को पेलने में लग गए हैं। इधर बाहर दरवाज़े के पास खड़ा मैं ये सोच रहा था कि दोनों भाई एक साथ कैसे इस तरह का काम कर सकते हैं? वहीं मेरे ज़हन में ये भी सवाल था कि ऐसी कौन सी बात होगी जिसके लिए ये लोग कुसुम को मजबूर किए हुए हैं??

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Aryanv

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Awesome update

Ab to in dono bhaiyon k kuch kaarnaame saamne aa gye dekhte hai kya krya hai ab vaibhave
 
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Chutiyadr

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☆ प्यार का सबूत ☆
अध्याय - 29
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अब तक,,,,,,

भाभी की बात सुन कर मैं कुछ न बोला बल्कि भाभी के पेट से छुपका हुआ मैं बस यही सोच कर दुखी होता रहा कि काश मेरे भैया को मेरी उम्र लग जाए। कुछ देर बाद मैं भाभी से अलग हुआ। मैंने देखा उनकी आँखों में आंसू तैर रहे थे। संसार भर की मासूमियत विद्यमान थी उस पाक़ चेहरे में।

"एक बात बताइए भाभी।" मैंने गहरी सांस लेते हुए कहा____"भैया को अपने बारे में वो सब बातें कैसे पता हैं? क्या आपने उन्हें बताया है?"
"वो असल में बात ये हुई थी।" भाभी ने कहा____"कि एक दिन दादा ठाकुर मुझे उन्हीं सब बातों के लिए समझा रहे थे तो तुम्हारे भैया ने सुन लिया था। उसके बाद उन्होंने मुझसे उस बारे में पूछा था लेकिन मैंने जब उन्हें कुछ नहीं बताया तो उन्होंने अपनी कसम दे दी। उनकी कसम से मजबूर हो कर मुझे उन्हें सब कुछ बताना ही पड़ा।"


अब आगे,,,,,



"तो इस तरीके से भैया को अपने बारे में वो सब पता चला।" मैंने सोचने वाले भाव से कहा____"ख़ैर भैया के उस बर्ताव ने मुझे बड़ी हैरत में डाल रखा है भाभी। होली के दिन वो मुझसे ऐसे मिले थे जैसे हमारा भरत मिलाप हुआ था। उन्होंने बड़ी ख़ुशी से मुझे अपने गले लगाया था और फिर उसी ख़ुशी में उन्होंने ये कह कर मुझे भांग वाला शरबत भी पिलाया था कि आज वो बहुत खुश हैं। उनके उस बर्ताव से मैं भी बेहद खुश हो गया था लेकिन कल शाम को जब मैं उनसे मिलने उनके कमरे में गया तो वो मुझे बेहद गुस्से में नज़र आए थे और उसी गुस्से में मुझे ये तक कहा था कि वो मुझसे कोई बात नहीं करना चाहते और अगर मैं उनके सामने से न गया तो वो मेरे टुकड़े टुकड़े कर देंगे। मैं उस वक़्त उनके उस वर्ताव से आश्चर्य चकित था भाभी। मुझे अब भी समझ नहीं आ रहा कि उनका अचानक से वैसा वर्ताव कैसे हो गया? आख़िर अचानक से उन्हें क्या हो गया था कि वो मुझे देखते ही बेहद गुस्से में आ गए थे जबकि मैंने तो उन्हें कुछ कहा भी नहीं था?"

"उनका ऐसा वर्ताव मेरे साथ भी है वैभव।" भाभी ने गहरी सांस ले कर उदास भाव से कहा____"पिछले कुछ समय से बड़ा अजीब सा वर्ताव कर रहे हैं वो। किसी किसी दिन वो अपने आप ही मुझसे गुस्सा हो जाते हैं और उस गुस्से में वो ऐसी बातें बोलते हैं जो बताने में भी मुझे शर्म आएगी। शुरू शुरू में मैं भी तुम्हारी तरह उनके ऐसे वर्ताव से चकित हो जाती थी किन्तु अब आदत हो गई है।"

"क्या पिता जी को बड़े भैया के ऐसे वर्ताव के बारे में पता है?" मैंने भाभी की तरफ देखते हुए पूछा____"क्या आपने पिता जी को उनके ऐसे वर्ताव के बारे में बताया नहीं?"
"हां उन्हें पता है।" भाभी ने कहा____"मैंने ही उन्हें बताया था। मेरे बताने पर पिता जी ने यही कहा कि तुम्हारे भैया का ऐसा वर्ताव शायद इस वजह से होगा कि उन्हें अपने बारे में वो भविष्यवाणी पता चल गई है जिसकी वजह से वो रात दिन उस बारे में सोचते होंगे और वो सब सोच सोच कर खुद को हलकान करते होंगे। इस वजह से किसी किसी दिन वो थोड़ा चिड़चिड़े हो कर ऐसा वर्ताव करते हैं।"

"क्या आपने और पिता जी ने बड़े भैया से उनके ऐसे वर्ताव के बारे में कुछ नहीं पूछा?" मैंने कहा____"जब आपको और पिता जी को उनके बारे में सब पता है तो उनके लिए आप दोनों को फिक्रमंद होना चाहिए था। उन्हें हर हाल में खुश रखने की कोशिश करनी चाहिए थी।"

"तुम्हें क्या लगता है वैभव कि हमने ऐसी कोशिश ही नहीं की?" भाभी ने गंभीर भाव से कहा____"नहीं वैभव, हमने इस बारे में तुम्हारे भैया से बहुत पूछा लेकिन उन्होंने कुछ नहीं बताया। दादा ठाकुर कई बार उन्हें अपने साथ ले कर शहर गए और वहां अकेले में उनसे उनके उस वर्ताव के बारे में पूछा लेकिन तुम्हारे भैया ने उन्हें कुछ नहीं बताया। सिर्फ ये कहा कि उन्हें अब हर चीज़ से नफ़रत सी हो गई है। मैं उनकी पत्नी हूं वैभव और मुझे उनके लिए सबसे ज़्यादा दुःख है। हर रोज़ उनसे पूछती हूं और समझाती भी हूं। थोड़े समय के लिए उनका वर्ताव बहुत अच्छा हो जाता है लेकिन सुबह आँख खुलते ही उनका वर्ताव फिर से वैसा ही हो जाता है। मैं रात दिन इसी सोच में कुढ़ती रहती हूं कि आख़िर उन्हें कैसे खुश रखूं? संसार के सभी देवी देवताओं की पूजा भक्ति करती हूं लेकिन कोई फायदा नहीं हो रहा। आज जिस तरह के हालात बने हुए हैं उसे देख कर ये भी ख़याल रखना पड़ता है कि उनके बारे में ऐसी बात हवेली के बाहर न जाए वरना जो भी हमारा दुश्मन होगा उसे इस बात से यकीनन कोई न कोई फायदा हो जाएगा। हवेली में भी उनके बारे में ऐसी बात बाकी किसी को पता नहीं है। हवेली में किसी को उनके बारे में इसी लिए नहीं बताया गया क्योंकि ऐसी बातें माँ जी के कानों तक भी पहुंच जाएंगी और माँ जी उनके बारे में ऐसी बातें सहन नहीं कर पाएंगी। झूठी ही सही लेकिन अपने चेहरे पर हंसी और मुस्कान सजा कर रखनी पड़ती है ताकि हवेली में इस बात की भनक किसी भी तरह से किसी को न लग सके। सबसे ज़्यादा दुखी तो मैं हूं वैभव क्योंकि उन्हीं से तो मेरा सब कुछ है। अगर उन्हें ही कुछ हो गया तो मेरा तो सब कुछ उजड़ ही जायेगा न।"

भाभी ये सब कहने के बाद फफक फफक कर रोने लगीं थी। उनकी बातों ने मेरे दिलो दिमाग़ को झकझोर कर रख दिया था। मुझे एहसास हो रहा था कि इतना सब कुछ होने के बाद भाभी के लिए इस हवेली में सबके सामने अपने होठों पर मुस्कान सजा के रहना कितना मुश्किल होता होगा। मैं समझ नहीं पा रहा था कि ईश्वर मेरी देवी सामान भाभी के भाग्य में ऐसा दुःख क्यों लिख दिया था? इतनी छोटी सी उम्र में उन्हें विधवा बना देने का अन्याय क्यों कर रहा था? मेरी नज़र भाभी के रोते हुए चेहरे पर पड़ी। दुःख और पीड़ा के भाव से उनका खूबसूरत चेहरा बिगड़ गया था। मेरे दिल में एक हूक सी उठी और मैंने धीरे से उनके कंधे पर अपना एक हाथ रखा तो उन्होंने चेहरा उठा कर मेरी तरफ देखा और फिर एक झटके से मेरे सीने से लिपट ग‌ईं। उनके लिपटते ही मेरा वजूद जैसे हिल सा गया। इस वक़्त मेरे मन में उनके लिए कोई भी ग़लत भावना नहीं थी बल्कि मैं बड़े प्यार से उन्हें खुद से छुपका कर उन्हें दिलाशा देने लगा था।

"मत रोइए भाभी।" मैंने उन्हें चुप कराने की गरज़ से कहा____"बड़े भैया को कुछ नहीं होगा। मैं अपने बड़े भैया को कुछ होने भी नहीं दूंगा। भगवान के लिए चुप हो जाइए। आप तो मेरी सबसे अच्छी और बहादुर भाभी हैं। आप इस तरह से हिम्मत नहीं हार सकती हैं। सब कुछ ठीक हो जाएगा। मेरे रहते भैया को कुछ नहीं होगा।"

"मुझे झूठा दिलासा मत दो वैभव।" भाभी ने मुझसे अलग हो कर और दुखी भाव से कहा____"तुम किसी के प्रारब्ध को नहीं बदल सकते और न ही तुम भगवान के लिखे को मिटा सकते हो। अब तो सारी ज़िन्दगी मुझे यूं ही तड़प तड़प के जीना है।"

"माना कि मैं किसी के प्रारब्ध को नहीं बदल सकता और न ही भगवान के लिखे को मिटा सकता हूं।" मैंने भाभी से कहा____"लेकिन अपनी आख़िरी सांस तक सब कुछ ठीक कर देने की कोशिश तो कर ही सकता हूं न भाभी? अभी तक तो मुझे अपनी किसी भी ज़िम्मेदारी का एहसास ही नहीं था लेकिन अब मैं हर ज़िम्मेदारी को अपनी जान दे कर भी निभाउंगा और ये मैं यूं ही नहीं कह रहा बल्कि ये वैभव सिंह का वादा है आपसे...और हां एक वादा मैं आपसे भी चाहता हूं।"

"मुझसे??" भाभी ने थोड़े हैरानी भरे भाव से मुझे देखा।
"हां भाभी।" मैंने कहा____"आपसे भी मुझे एक वादा चाहिए और वो ये कि आप ख़ुद को दुखी नहीं रखेंगी और अपनी आँखों से इस तरह आँसू नहीं बहाएंगी। मुझसे वादा कीजिए भाभी।"

"बहुत मुश्किल है वैभव।" भाभी की आँख से आंसू का एक कतरा छलक कर उनके खूबसूरत गाल पर बह आया जिसे मैंने अपने एक हाथ से पोंछा और फिर उनकी तरफ देखते हुए कहा____"ये आख़िरी आंसू था भाभी जो आपकी आँखों से निकला है। अब से कोई आंसू नहीं निकलना चाहिए। मुझसे वादा कीजिए कि अब से आप न तो ख़ुद को दुखी रखेंगी और न ही अपनी आँखों से आंसू बहाएंगी।"

मेरे कहने पर भाभी मुझे कुछ पलों तक अपलक देखती रहीं और फिर हल्के से अपना सिर हां में हिलाया। रोने की वजह से उनका बेदाग़ और खूबसूरत चेहरा थोड़ा मलिन हो गया था। मैं ख़ामोशी से कुछ पलों तक उन्हें देखता रहा और फिर बिना कुछ कहे उसी ख़ामोशी से पलट कर कमरे से बाहर निकल गया। इस वक़्त मेरे ज़हन में भैया और भाभी ही थे और मैं उन दोनों के बारे में सोचते हुए हवेली से बाहर निकल गया।

☆☆☆

उस वक़्त शाम पूरी तरह से घिर चुकी थी और रात का अँधेरा धीरे धीरे पूरी कायनात को अपनी आगोश में समेटने लगा था। हालांकि इस वक़्त ज़्यादा वक़्त नहीं हुआ था क्योंकि गांव के लोग अभी जाग ही रहे थे। बिजली इस वक़्त गई हुई थी इस लिए घरों में लालटेन के जलने का प्रकाश दिख रहा था। मैं पैदल ही अँधेरे में चलता हुआ एक तरफ तेज़ी से बढ़ा चला जा रहा था। ये गांव का पूर्वी छोर था और इस छोर पर मैं साढ़े चार महीने बाद आया था। मैं अकेला था और पैदल ही चल रहा था इस लिए इस बात का भी ख़याल था मुझे कि मेरे आस पास मेरा कोई दुश्मन न मौजूद हो जो आज कल मेरी ही फ़िराक में है। हालांकि दादा ठाकुर ने मेरी सुरक्षा के लिए एक साए को लगा रखा है लेकिन अपनी तरफ से भी सतर्क रहना मेरे लिए निहायत ही ज़रूरी था।

काफी देर तक पैदल चलने के बाद मैं एक पक्के मकान के पास आ कर रुक गया। मकान के बगल से नीम का एक बड़ा सा पेड़ था जिसके नीचे चबूतरा बना हुआ था। इस वक़्त चबूतरे पर कोई नहीं था। मैंने देखा मकान का दरवाज़ा खुला हुआ है और अंदर लालटेन का हल्का प्रकाश फैला हुआ है। मैं नीम के पेड़ के पास ही अँधेरे में खड़ा हुआ था। आस पास और भी घर थे लेकिन घर के बाहर इस वक़्त कोई नहीं दिख रहा था। मैंने आस पास का अच्छे से मुआयना किया और फिर उस पक्के मकान के खुले हुए दरवाज़े की तरफ बढ़ चला।

मैं चलते हुए अभी उस दरवाज़े के क़रीब पंहुचा ही था कि तभी अंदर से मेरी ही उम्र का जो शख़्स आता हुआ दिखा मुझे वो चेतन था। उसे देख कर मैं अपनी जगह पर रुक गया। बाहर क्योंकि अँधेरा था इस लिए वो मुझे देख नहीं सकता था। ख़ैर कुछ ही पलों में जब वो दरवाज़े के बाहर अँधेरे में आया तो मैंने उसे दबोच लिया और जल्दी से उसके मुख पर अपने एक हाथ ही हथेली रख दी। चेतन मेरे द्वारा अचानक की गई इस हरकत से बुरी तरह डर गया और मुझसे छूटने की कोशिश करने ही लगा था कि तभी मैंने गुर्राते हुए धीमी आवाज़ में कहा____"ज़्यादा फड़फड़ा मत वरना एक ही झटके में तेरी गर्दन मरोड़ दूंगा। उसके बाद क्या होगा ये बताने की ज़रूरत नहीं है मुझे।"

चेतन मेरी सर्द आवाज़ सुन कर एकदम से ढीला पड़ गया। वो मेरी आवाज़ से मुझे पहचान चुका था। जब वो ढीला पड़ गया तो मैंने धीरे से ही कहा____"डर मत, मैं तेरे साथ कुछ नहीं करुंगा लेकिन हां ज़्यादा तेज़ आवाज़ की तो जान से मार दूंगा तुझे। बात समझ में आई कि नहीं?"

मेरे कहने पर उसने हां में अपने सिर को जल्दी से हिलाया तो मैंने उसे छोड़ दिया। मेरे छोड़ देने पर चेतन एकदम से मुझसे दूर हुआ और अपनी उखड़ी हुई साँसों को काबू करते हुए कहा____"ये क्या था वैभव? तूने तो मेरी जान ही निकल दी थी।"

"मेरे साथ चल।" मैंने कहा तो उसने चौंक कर पूछा____"कहां चलूं?"
"जहन्नुम में।" मैंने शख़्त भाव से कहा तो चेतन अँधेरे में मुझे कुछ पलों तक घूरा और फिर मेरे पीछे चल पड़ा।

मैं चलते हुए नीम के पेड़ के पास आ कर रुक गया तो चेतन भी रुक गया। वो मेरे पास ही खड़ा था इस लिए उसके चेहरे के भावों से मैं समझ सकता था कि इस वक़्त उसके मन में क्या चल रहा है।

"मुझे समझ नहीं आ रहा कि तू इस वक़्त यहाँ कैसे?" चेतन से जब न रहा गया तो उसने मुझसे कहा____"क्या मेरी ग़लती की सज़ा देने आया है यहाँ?"
"भूल जा उस बात को।" मैंने सपाट लहजे में कहा____"मैंने तुम दोनों को माफ़ कर देने का फैसला किया है लेकिन....।"

"लेकिन???" चेतन हकलया।
"लेकिन ये कि उसके लिए मैं तुम दोनों को जो कहूंगा वो करना पड़ेगा।" मैंने शख़्त भाव से ये कहा तो चेतन जल्दी से बोल पड़ा____"बिल्कुल करेंगे भाई। तू बस एक बार बोल के तो देख।"

"ठीक है।" मैंने कहा____"कल सुनील के साथ गांव के बाहर उसी जगह पर मिलना जहां पर हम पहले मिला करते थे।"
"क्या कोई नई माल हाथ लगी है?" चेतन ने खुश होते हुए जल्दी से पूछा तो मैंने उसके पेट में हल्के से एक मुक्का जड़ते हुए कहा____"बुरचटने साले। तुझे क्या मैं दल्ला नज़र आता हूं?"

"तो फिर मेरा सुनील के साथ उस जगह मिलने से तेरा क्या मतलब है?" चेतन ने कराहते हुए कहा तो मैंने कहा____"मेरा मतलब तुम दोनों की गांड मारने से है। आज रात तू अपनी गांड में अच्छे से तेल लगा लेना ताकि कल जब मैं तेरी गांड में अपना सूखा लंड डालूं तो तुझे दर्द न हो गांडू।"

"ये क्या कह रहा है तू?" चेतन की हवा निकल गई, घबरा कर बोला____"भगवान के लिए ऐसा मत करना वैभव। क्या गांड मारने के लिए तुझे कोई लड़की नहीं मिली जो अब तू हम दोनों की मारने की बात कह रहा है?"

"बकवास बंद कर भोसड़ी के।" मैंने इस बार गुस्से में कहा____"मुझे तुम दोनों की सड़ियल गांड में कोई दिलचस्पी नहीं है। अब जा अपनी गांड मरा। कल समय से उस जगह पर मिल जाना वरना तेरे घर आ कर तेरी गांड मारुंगा।"

चेतन मेरी बात सुन कर मूर्खों की तरह मेरी तरफ देखता रह गया था और मैं पलट कर हवेली की तरफ वापस चल पड़ा था। मेरे ज़हन में इस वक़्त कई सारी बातें चल रहीं थी जिनके बारे में मैं गहराई से विचार करता जा रहा था।

☆☆☆

जब मैं हवेली पंहुचा तो माँ से सामना हो गया मेरा। उन्होंने मुझे देखते ही पूछा कि कहां चला गया था तू? उन्होंने बताया कि उन्होंने खुद मुझे हवेली में हर जगह खोजा था लेकिन मैं उन्हें कहीं नहीं मिला था। उनके पूछने पर मैंने उन्हें बताया कि मैं बाहर खुली हवा लेने गया था। मेरी बात सुनने के बाद माँ ने कुछ पलों तक मुझे देखा और फिर बोलीं कि खाने के लिए सब मेरा इंतज़ार कर रहे हैं।

गुसलखाने में जा कर मैंने हाथ मुँह धोया और सबके साथ खाना खाने आ गया। आज खाने पर काफी सारे लोग बैठे हुए थे। जगताप चाचा जी के लड़के भी थे किन्तु मेरी नज़र बड़े भैया पर थी। उनके चेहरे पर कोई भाव नहीं था। मुझ पर नज़र पड़ते ही उन्होंने इस तरह से अपना मुँह फेर लिया जैसे वो मुझे देखना ही नहीं चाहते थे। मुझे उनके इस वर्ताव से थोड़ा दुःख तो हुआ लेकिन फिर ये सोच कर खुद को समझा लिया कि इसमें शायद उनकी कोई ग़लती नहीं है बल्कि इसके पीछे वही वजह है जिसके बारे में भाभी ने बताया था। मैंने मन ही मन निश्चय कर लिया कि अब मुझे क्या करना है। ख़ैर हम सबने पिता जी की इजाज़त मिलते ही ख़ामोशी से भोजन करना शुरू किया।

खाना खाने के बाद सब अपने अपने कमरों की तरफ चले गए। मैं भी चुपचाप अपने कमरे की तरफ चल दिया तो आगे बरामदे के पास मुझे कुसुम मिल गई। मैंने उसे खाना खाने के बाद मेरे कमरे में आने को कहा तो उसने सिर हिला दिया। बिजली आ गई थी इस लिए हवेली में हर तरफ उजाला फैला हुआ था। मैं आँगन से न जा कर लम्बे चौड़े बरामदे से चल कर दूसरी तरफ जा रहा था। असल में मेरी नज़र उस नौकरानी को खोज रही थी जो मेनका चाची से बातें कर रही थी और मुझे देखते ही घबरा सी गई थी।

बरामदे से चलते हुए मैं दूसरी तरफ आ गया। इस बीच मुझे दूसरी कई नौकरानियाँ दिखीं लेकिन वो नौकरानी मुझे नज़र न आई। हवेली इतनी बड़ी थी कि उसमे कमरों की कोई कमी नहीं थी। हवेली के सभी नौकर और नौकरानियों के लिए अलग अलग कमरे थे जो हवेली के बाएं छोर पर थे। हालांकि कुछ नौकर और नौकरानी शाम को अपने अपने घर चले जाते थे लेकिन कुछ हवेली में ही रहते थे। माँ और चाची के लिए दो दो नौकरानियाँ थी। जिनमे से एक एक माँ और चाची के कपड़े धोती थी और दूसरी उनका श्रृंगार करती थी। भाभी के लिए भी इसी तरह दो नौकरानियाँ थी। हालांकि भाभी को अपने काम खुद करना पसंद था किन्तु माँ की बात रखने के लिए उन्हें नौकरानियों को काम देना पड़ता था। बाकी की नौकरानियाँ मर्दों के कपड़े धोती थी और हवेली की साफ़ सफाई करती थी। नौकरों का काम हवेली के बाहर की साफ़ सफाई का था जिसमे बग्घी वाले घोड़ों की देख भाल करना भी शामिल था।

मैं दूसरी तरफ आ चुका था। मेरी नज़र अभी उस नौकरानी को खोज रही थी। मेरे मन में ख़याल उभरा कि क्या वो नौकरानी मेनका चाची की होगी? क्योंकि वो उन्हीं के पास खड़ी थी और चाची उससे बातें कर रही थी। मैंने कभी इस बात पर ध्यान ही नहीं दिया था कि हवेली में रहने वाली नौकरानियों में कौन किसका काम करती हैं। पहले वाली सभी नौकरानियों को पिता जी ने मेरी वजह से हवेली से निकाल दिया था। आज अगर वो नौकरानियाँ हवेली में होतीं तो मेरे कहने पर वो कुछ भी कर सकती थीं। ख़ैर मैं सीढ़ियों पर चढ़ कर ऊपर अपने कमरे की तरफ चल पड़ा।

कमरे में आ कर मैंने अपनी कमीज उतारी और पंखा चालू कर के पलंग पर लेट गया। पलंग पर लेटा मैं सोच रहा था कि आज के समय में मेरे सामने कई सारे ऐसे मामले थे जिनको मुझे सुलझाना था। पहला मामला मुरारी काका की हत्या का था जो कि दिन-ब-दिन एक रहस्य सा बनता जा रहा था। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि आख़िर किस वजह से मुरारी काका का क़त्ल किया गया होगा? क्या सिर्फ इस लिए कि उनकी हत्या कर के मुझे फंसा दिया जाए और उनकी हत्या के जुर्म में कानूनन मुझे जेल हो जाए? पिता जी का तो यही सोचना था इस बारे में। ख़ैर दूसरा मामला था साहूकारों का कि उन्होंने क्या सोच कर हमसे अपने रिश्ते सुधारे होंगे? क्या ऐसा करने के पीछे सच में उनका कोई मकसद छिपा है? तीसरा मामला था हवेली में रहने वाले मेरे चचेरे भाइयों का। आख़िर मैंने उनका क्या बुरा किया है जिसकी वजह से वो दोनों मुझसे दूर दूर रहते हैं? चौथा मामला था मेरे बड़े भाई साहब का जो कि किसी रहस्य से कम नहीं था। कुल गुरु ने उनके बारे में भविष्यवाणी की है कि उनका जीवन काल बस कुछ ही समय का है। सवाल है कि आख़िर ऐसा क्यों? वहीं एक तरफ सोचने वाला सवाल ये भी है कि आख़िर बड़े भैया का वर्ताव ऐसा क्यों हो जाता है कि वो मुझसे या भाभी से गुस्सा हो जाते हैं? हालांकि एक सवाल तो ये भी है कि क्या उनका ऐसा वर्ताव हवेली के बाकी लोगों के साथ भी है या उनके ऐसे वर्ताव के शिकार सिर्फ मैं और भाभी ही हैं? पांचवा मामला था कुसुम का। हमेशा अपनी नटखट और चुलबुली हरकतों से हवेली में शोर मचाने वाली कुसुम कभी कभी इतना गंभीर क्यों हो जाती है? आख़िर चार महीने में ऐसा क्या हो गया है जिसने उसे गंभीर बना दिया है? ऐसे अभी और भी मामले थे जो मेरे लिए रहस्य ही बनते जा रहे थे जैसे कि रजनी का रूपचन्द्र के साथ सम्बन्ध और वो दो साए जो मुझे उस दिन बगीचे में मारने आये थे।

मैं इन सभी मामलों में इतना खो गया था कि मुझे पता ही नहीं चला कि कब मेरे कमरे में कुसुम आ कर खड़ी हो गई थी। उसने जब मुझे आवाज़ दी तो मैं चौंक कर विचारों के समुद्र से बाहर आया।

"मैंने आपका नाम सोचन देव ठीक ही रखा है।" कुसुम ने पलंग के किनारे पर बैठते हुए कहा____"पता नहीं आज कल आपको क्या हो गया है कि हर वक़्त कहीं न कहीं खोए हुए ही नज़र आते हैं।"

"वक़्त और हालात ही ऐसे हैं कि मुझे हर पल खो जाने पर मजबूर किए रहते हैं।" मैंने थोड़ा सा उठ कर पलंग की पुष्ट पर अपनी पीठ टिकाते हुए कहा____"ख़ैर ये सब छोड़ और ये बता खाना खा लिया तूने?"

"हां खाना खा कर ही आई हूं यहां।" कुसुम ने कहा____"आप बताइए किस लिए बुलाया था मुझे?"
"अगर मैं तुझसे ये पूछूं कि तू मुझसे कितना प्यार करती है।" मैंने उसकी आँखों में देखते हुए ख़ास भाव से कहा____"तो क्या तू इसका सच सच जवाब देगी?"

"ये...ये क्या कह रहे हैं आप?" कुसुम ने हैरत से मेरी तरफ देखते हुए कहा तो मैंने कहा____"क्यों क्या ग़लत कह रहा हूं मैं? क्या तू अपने इस भाई से प्यार नहीं करती?"
"वो तो मैं करती हूं।" कुसुम ने कहा____"एक आप ही तो हैं जो मेरे सबसे अच्छे वाले भैया हैं। भला कौन ऐसी बहन होगी जो ऐसे भाई से प्यार नहीं करेगी? आप ये क्यों पूछ रहे हैं?"

"वो इस लिए कि तू अपने इस भाई से सच छुपा रही है।" मैंने उसके चेहरे की तरफ देखते हुए कहा____"अगर तू सच में अपने इस भाई से प्यार करती है तो मुझे वो बता जिसे तू मुझसे छुपा रही है। मुझे बता कि इन चार महीनों में यहाँ पर ऐसा क्या हुआ है जिसने तुझे गंभीर बना दिया है?"

"ऐसी कोई बात नहीं है भइया।" कुसुम ने नज़रें चुराते हुए कहा____"आप बेवजह ही इस बात की शंका कर रहे हैं। मैं तो वैसी ही हूं जैसी हमेशा से थी। आपको ऐसा क्यों लगता है कि चार महीनों में यहाँ पर कुछ ऐसा हुआ है जिसने मुझे गंभीर बना दिया है?"

"तूने शायद भुला दिया होगा लेकिन मुझे अभी भी याद है।" मैंने कहा____"जब मैं चार महीने बाद यहाँ आया था तब इसी कमरे में मेरी तुझसे बातें हो रही थी। उन्हीं बातों में तूने मुझसे कहा था कि यहाँ तो कुछ लोग ऐसे भी हैं जो ख़ुशी से ऐसे भी काम करते हैं जिसे वो गुनाह नहीं समझते। अब बता बहना, तू उस वक़्त ऐसे किन लोगों की बात कर रही थी और हां मुझसे झूठ मत बोलना। मुझे सच सुनना है तुझसे।"

मेरी बात सुन कर कुसम के चेहरे पर एकदम से कई सारे भाव आते जाते दिखाई देने लगे। वो एकदम से मुझे कुछ परेशान सी और कुछ घबराई हुई सी दिखाई देने लगी थी। उसके खूबसूरत और मासूम से चेहरे पर बेचैनी से पसीना उभर आया था। मैं अपलक उसी को देख रहा था और समझ भी रहा था कि उसके मन में बड़ी तेज़ी से कुछ चलने लगा है।

"क्या हुआ?" जब वो कुछ न बोली तो मैंने कहा____"तू इतना परेशान और घबराई हुई सी क्यों दिखने लगी है? आख़िर क्या बात है बहना? मुझसे बेझिझक हो कर बता। तू अच्छी तरह जानती है कि तेरा ये भाई तुझे किसी भी हालत में परेशान या दुखी होते नहीं देख सकता। अगर कोई बात है तो तू मुझे बिना संकोच के बता दे। मैं तुझसे वादा करता हूं कि मेरे रहते तुझे कोई कुछ नहीं कहेगा।"

मेरी बात सुन कर कुसुम ने नज़र उठा कर मेरी तरफ देखा। उसके चेहरे पर दुःख और पीड़ा के भाव उभर आये थे। उसकी आँखों में आंसू तैरते हुए नज़र आए मुझे। उसके गुलाब की पंखुड़ियों जैसे होठ कांप रहे थे। अभी शायद वो कुछ बोलने ही वाली थी कि तभी कमरे के बाहर से एक आवाज़ आई जिसे सुन कर कुसुम के साथ साथ मेरा भी ध्यान उस आवाज़ पर गया। कमरे के बाहर विभोर था और वो कुसुम को आवाज़ दे कर ये कहा था कि माँ बुला रही हैं उसे। विभोर की ये बात सुन कर कुसुम ने मेरी तरफ बेबस भाव से देखा और फिर चुपचाप पलंग से उठ कर कमरे से बाहर चली गई।

कुसुम तो चली गई थी लेकिन मैं ये सोचने पर मजबूर हो गया था कि आख़िर ऐसी क्या बात थी कि मेरे पूछने पर उसके चेहरे पर इस तरह के भाव मानो तांडव सा करने लगे थे? अभी मैं ये सोच ही रहा था कि तभी मैं चौंका। मेरे ज़हन में बिजली की तरह ये ख़याल उभरा कि विभोर की आवाज़ ठीक उसी वक़्त क्यों आई थी जब कुसुम शायद मुझसे कुछ बोलने वाली थी? क्या ये इत्तेफ़ाक़ था या फिर जान बूझ कर उसने उसी वक़्त कुसुम को आवाज़ दी थी? यानि हो सकता है कि वो कमरे के बाहर छुप कर हमारी बातें सुन रहा होगा और जैसे ही उसे आभास हुआ कि कुसुम मुझे कुछ बताने वाली है तो उसने उसे आवाज़ लगा दी। मुझे अपना ये ख़्याल जंचा तो ज़रूर किन्तु मैं ख़ुद ये निर्णय नहीं ले सका कि मेरे इस ख़्याल में कोई सच्चाई है भी अथवा नहीं?

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