☆ प्यार का सबूत ☆
अध्याय - 34
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अब तक,,,,,
"शाबाश!" विभोर ने कहा____"वैसे तूने मेरी बहन की मज़बूरी का कोई फ़ायदा तो नहीं उठाया न?"
"मैं ऐसा सोच भी नहीं सकती छोटे ठाकुर।" औरत ने कहा____"आह्हहह ऐसे ही, थोड़ा और ज़ोर से चोदिए मेरी इस प्यासी चूत को...शशशश...आहहहह...मैं तो बस समय समय पर आपकी बहन को याद दिलाती रहती हूं कि अगर उसने आपके दुश्मन को कुछ भी बताने का सोचा तो उसके लिए अच्छा नहीं होगा।"
औरत की इस बात के बाद दोनों में से किसी की भी आवाज़ नहीं आई। ये अलग बात है कि औरत की मस्ती में चूर सिसकारियों की आवाज़ ज़रूर आ रही थी जो कि धीमी ही थी। मैं समझ गया कि अंदर दोनों भाई उस औरत को पेलने में लग गए हैं। इधर बाहर दरवाज़े के पास खड़ा मैं ये सोच रहा था कि दोनों भाई एक साथ कैसे इस तरह का काम कर सकते हैं? वहीं मेरे ज़हन में ये भी सवाल था कि ऐसी कौन सी बात होगी जिसके लिए ये लोग कुसुम को मजबूर किए हुए हैं??
अब आगे,,,,,
अपने कमरे में आ कर मैंने दरवाज़ा बंद किया और पलंग पर लेट गया। मेरे कानों में अभी भी दोनों भाइयों की बातें गूँज रही थी। मैं ये जान कर हैरत में पड़ गया था कि वो दोनों मुझे नामर्द बना देना चाहते हैं जिसके लिए वो हर रोज़ मुझे चाय के साथ दवा पिला रहे हैं। सुबह शाम मुझे चाय देने के लिए कुसुम ही मेरे कमरे में आती थी। उन दोनों ने कुसुम को जरिया बनाया हुआ था किन्तु सबसे ज़्यादा सोचने वाली बात ये थी कि कुसुम को इसके लिए उन लोगों ने मजबूर कर रखा है। मैं अच्छी तरह जानता था कि वो दोनों भले ही कुसुम के सगे भाई थे लेकिन कुसुम सबसे ज़्यादा मुझे ही मानती है और वो मेरी लाड़ली भी है लेकिन सोचने वाली बात थी कि कुसुम उनके कहने पर ऐसा काम कैसे कर सकती थी जिसमें मुझे किसी तरह का नुकसान हो? यकीनन उन लोगों ने कुसुम को कुछ इस तरीके से मजबूर किया हुआ है कि कुसुम के पास उनकी बात मानने के सिवा दूसरा कोई रास्ता ही नहीं होगा। अब सवाल ये था कि उन लोगों ने आख़िर किस बात पर कुसुम को इतना मजबूर कर रखा होगा कि वो उनके कहने पर अपने उस भाई को चाय में नामर्द बनाने वाली दवा मिला कर पिला रही है जिसे वो सबसे ज़्यादा मानती है?
पलंग पर लेटा मैं इस सवाल के बारे में गहराई से सोच रहा था किन्तु मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा था। मेरे लिए जैसे ये सवाल भी एक बहुत बड़ा रहस्य बन गया था। वहीं सोचने वाली बात ये भी थी कि वो लोग कुसुम के कमरे में किसी औरत के साथ ऐसा काम कैसे कर सकते हैं? क्या कुसुम को उनके इस काम के बारे में सब पता है और क्या कुसुम खुद भी उसी कमरे में होगी? क्या ये दोनों भाई इतना नीचे तक गिर चुके हैं कि अपनी ही बहन की मौजूदगी में किसी औरत के साथ ऐसा काम करने में कोई शर्म ही नहीं करते? मेरा दिल इस बात को ज़रा भी नहीं मान रहा था कि कुसुम भी उसी कमरे में होगी। कुसुम ऐसी लड़की है ही नहीं कि इतना सब कुछ अपनी आँखों से देख सके और उसे सहन कर सके। वो खुदख़ुशी कर लेगी लेकिन ऐसी हालत में वो अपने कमरे में नहीं रुक सकती। मतलब साफ़ है कि वो या तो विभोर व अजीत के कमरे में रही होगी या फिर नीचे बने किसी कमरे में चली गई होगी। ऐसी परिस्थिति में कुसुम की क्या दशा होगी इसका एहसास मैं बखूबी कर सकता था।
इस सब के बारे में सोच सोच कर जहां गुस्से में मेरा खून खौलता जा रहा था वहीं मैं ये भी सोच रहा था कि मैं कुसुम से हर हाल में जान कर रहूंगा कि इन लोगों ने उसे आख़िर किस बात पर इतना मजबूर कर रखा है कि उनके कहने पर उसने अपने इस भाई को चाय में ऐसी दवा पिलाना भी स्वीकार कर लिया जिस दवा के असर से उसका ये भाई नामर्द बन जाएगा?
मुझे यकीन नहीं हो रहा था कि मेरे ये दोनों चचेरे भाई इस हद तक मुझसे नफ़रत करते हैं। हालांकि मैंने कभी भी उनके साथ कुछ ग़लत नहीं किया था, बल्कि मैं तो हमेशा अपने में ही मस्त रहता था। हवेली के किसी सदस्य से जब मुझे कोई मतलब ही नहीं होता था तो किसी के साथ कुछ ग़लत करने का सवाल कहां से पैदा हो जाएगा?
मैं ये सब सोच ही रहा था कि तभी मेरे ज़हन में बिजली की तरह एक ख़याल उभरा। बड़े भैया भी तो ज़्यादातर उन दोनों के साथ ही रहते हैं तो क्या उन्हें इस सबके बारे में पता है? क्या वो जानते हैं कि वो दोनों भाई हवेली के अंदर और बाहर कैसे कैसे कारनामें करते हैं? कहीं ऐसा तो नहीं कि उन दोनों ने बड़े भैया को भी मेरी तरह नामर्द बनाने का सोचा हो और भैया को इस सबके बारे में पता ही न हो? मेरी आँखों के सामने बड़े भैया का चेहरा उजागर हो गया और फिर मेरी आँखों के सामने होली के दिन का वाला वो दृश्य भी दिखने लगा जब बड़े भैया ने मुझे ख़ुशी से गले लगाया था और उसी ख़ुशी में मुझे भांग वाला शरबत पिलाया था। ये दृश्य देखते हुए मैं सोचने लगा कि क्या बड़े भैया उन दोनों के साथ मिले हुए हो सकते हैं? मेरा दिल और दिमाग़ चीख चीख कर इस बात से इंकार कर रहा था कि नहीं बड़े भैया उनसे मिले हुए नहीं हो सकते। उनके संस्कार उन्हें इतना नीचे तक नहीं गिरा सकते कि वो उन दोनों के साथ ऐसे घिनौने काम करने लगें। मेरे मन में सहसा एक सवाल उभरा कि क्या उनके ऐसे बर्ताव के पीछे विभोर और अजीत का कोई हाथ हो सकता है? कहीं ऐसा तो नहीं कि उन्होंने बड़े भैया को कोई ऐसी दवा खिलाई हो जिसकी वजह से उनका बर्ताव ऐसा हो गया है? मुझे मेरा ये ख़याल जंचा तो ज़रूर लेकिन मैं अपने ही ख़याल पर मुतमईन नहीं था।
मेरे सामने फिर से कई सारे सवाल खड़े हो गए थे। कहां मैं अपने कुछ सवालों के जवाब खोजने के लिए अँधेरे में निकला था और कहां मैं कुछ ऐसे सवाल लिए लौट आया था जिन्होंने मुझे हैरत में डाल दिया था। हालांकि इतना तो मुझे पता चल चुका था कि मेरे चाचा जी के ये दोनों सपूत किस फ़िराक में हैं और किस बात के लिए उन दोनों ने कुसुम को मजबूर कर के उसे चारा बना रखा है लेकिन इसी के साथ अब ये सवाल भी खड़ा हो गया था कि आख़िर ऐसी कौन सी बात हो सकती है जिसकी वजह से कुसुम उनका हर कहा मानने पर इतना मजबूर है?
मैं सोच ही रहा था कि तभी मेरे मन में ख़याल आया कि कुसुम के कमरे में विभोर और अजीत जिस औरत के साथ पेलम पेल वाला काम कर रहे थे वो कौन है? मुझे उसके बारे में पता करना होगा। उन दोनों की बातों से ये ज़ाहिर हो गया था कि उन्हीं के इशारे पर वो औरत कुसुम को कोई बात याद दिला कर उसे मजबूर करती है। इसका मतलब उसे कुसुम की वो मजबूरी पता है जिसकी वजह से वो मुझे दवा वाली चाय पिलाने पर मजबूर है।
मैं फ़ौरन ही पलंग से उठा और कमरे का दरवाज़ा खोल कर बाहर निकल आया। बिजली अभी भी नहीं आई थी इस लिए अभी भी हर तरफ अँधेरा था। मैं दबे पाँव कुछ ही देर में कुसुम के कमरे के पास पहुंच गया और दरवाज़े पर अपने कान सटा दिए।
"आज तो आप दोनों ने मुझे बुरी तरह पस्त कर दिया है।" अंदर से किसी औरत की आवाज़ मेरे कानो में पड़ी। औरत की ये आवाज़ मेरे लिए निहायत ही अजनबी थी। हालांकि मैं अपने ज़हन पर ज़ोर डाल कर सोचने लगा था कि वो कौन हो सकती है। अभी मैं उसके बारे में सोच ही रहा था कि तभी मेरे कानों में अजीत की आवाज़ पड़ी____"तुने भी तो हमें खुश कर दिया है। ख़ैर अब तू जा यहाँ से और हां सतर्कता से जाना। कहीं ऐसा न हो कि उस रात की तरह आज भी वो हरामज़ादा तुझे मिल जाए और तुझे दुम दबा कर भागना पड़ जाए।"
"उस रात तो मेरी जान हलक में ही आ कर फंस गई थी छोटे ठाकुर।" औरत ने धीमी आवाज़ में कहा____"वो तो अच्छा हुआ कि अँधेरा था इस लिए मैं अँधेरे में एक जगह छुप गई थी वरना अगर मैं उसकी पकड़ में आ जाती तो फिर मेरा तो भगवान ही मालिक हो सकता था। हालांकि वो काफी देर तक सीढ़ियों के पास खड़ा रहा था, इस उम्मीद में कि शायद उसे मेरे पायलों की आवाज़ कहीं से सुनाई दे जाए लेकिन मैं भी कम होशियार नहीं थी। मुझे पता था कि वो अभी ताक में ही होगा इस लिए मैं उस जगह से निकली ही नहीं, बल्कि तभी निकली जब मुझे उसके चले जाने की आहट सुनाई दी थी।"
"माना कि उस रात तूने होशियारी दिखाई थी।" विभोर ने कहा____"लेकिन तेरी उस होशियारी में भी काम बिगड़ गया है। अभी तक उस वैभव के ज़हन में दूर दूर तक ये बात नहीं थी कि हवेली के अंदर ऐसा वैसा कुछ हो रहा है लेकिन उस रात की घटना के बाद उसके ज़हन में कई सारे सवाल खड़े हो गए होंगे और मुमकिन है कि वो ये जानने की फ़िराक में हो कि आख़िर उस रात वो कौन सी औरत थी जो आधी रात को इस तरह ऊपर से नीचे भागती हुई गई थी?"
"अगर सच में ऐसा हुआ।" औरत ने घबराए हुए लहजे में कहा____"तो फिर अब क्या होगा छोटे ठाकुर? मेरी तो ये सोच कर ही जान निकली जा रही है कि अगर उसने किसी तरह मुझे खोज लिया और पहचान लिया तो मेरा क्या हश्र होगा?"
"चिंता मत कर तू।" विभोर ने जैसे उसे आस्वाशन देते हुए कहा____"हमारे रहते तुझे किसी से डरने की ज़रूरत नहीं है लेकिन हां अब से तू हर पल होशियार और सतर्क ही रहना। चल अब जा यहाँ से।"
"ठीक है छोटे ठाकुर।" औरत की इस आवाज़ के साथ ही अंदर से पायल के बजने की आवाज़ हुई तो मैं समझ गया कि वो औरत अब कमरे से बाहर आने वाली है। इस लिए मैं भी दरवाज़े से हट कर फ़ौरन ही दबे पाँव लौट चला।
मैं अँधेरे में उस जगह पर आ कर छुप गया था जहां से मेरे कमरे की तरफ जाने वाला गलियारा था। कुछ ही दूरी पर नीचे जाने वाली सीढ़ियां थी। ख़ैर कुछ ही पलों में मुझे पायल के छनकने की बहुत ही धीमी आवाज़ सुनाई दी। मतलब साफ़ था कि वो औरत दबे पाँव इस तरफ आ रही थी। उसे भी पता था कि उसके पायलों की आवाज़ रात के इस सन्नाटे में कुछ ज़्यादा ही शोर मचाती है।
मैं चाहता तो इसी वक़्त उस औरत को पकड़ सकता था और उसके साथ साथ उन दोनों सूरमाओं का भी क्रिया कर्म कर सकता था लेकिन मैंने ऐसा करने का इरादा फिलहाल मुल्तवी कर दिया था। मैं इस वक़्त सिर्फ उस औरत का चेहरा देख लेना चाहता था लेकिन अँधेरे में ये संभव नहीं था। मैं बड़ी तेज़ी से सोच रहा था कि आख़िर ऐसा क्या करूं जिससे मुझे उस औरत का चेहरा देखने को मिल जाए? अभी मैं ये सोच ही रहा था कि तभी अँधेरे में मुझे एक साया नज़र आया। वो उस औरत का ही साया था क्योंकि उस साए के पास से ही पायल की आवाज़ धीमें स्वर में आ रही थी। मेरी धड़कनें फिर से थोड़ा तेज़ हो गईं थी।
वो औरत धीमी गति से सीढ़ियों की तरफ बढ़ती जा रही थी। इधर मैं समझ नहीं पा रहा था कि किस तरह उस औरत का चेहरा देखूं। वो औरत अभी सीढ़ियों के पास ही पहुंची थी कि तभी एक झटके से पूरी हवेली बिजली के आ जाने से रोशन हो गई। शायद भगवान ने मुझ पर मेहरबानी करने का फैसला किया था। बिजली के आ जाने से पहले तो मैं भी उछल ही पड़ा था किन्तु फिर जल्दी से ही सम्हल कर छुप गया। उधर हर तरफ प्रकाश फैला तो वो औरत भी बुरी तरह चौंक गई थी और मारे हड़बड़ाहट के इधर उधर देखने लगी थी। घाघरा चोली पहने उस औरत ने हड़बड़ा कर जब पीछे की तरफ देखा तो मेरी नज़र उसके चेहरे पर पड़ गई। मैंने उसे पहचानने में कोई ग़लती नहीं की। ये वही औरत थी जो उस दिन मेनका चाची के पास खड़ी उनसे बातें कर रही थी।
हड़बड़ाहट में इधर उधर देखने के बाद वो फ़ौरन ही पलटी और सीढ़ियों से नीचे उतरती चली गई। उसकी सारी सतर्कता और सारी होशियारी मेरे सामने मानो बेनक़ाब हो गई थी। ये देख कर मेरे होठों पर हल्की सी मुस्कान उभर आई। अभी मैं मुस्कुराया ही था कि तभी मेरे कानों में खट खट की आवाज़ पड़ी तो मैं आवाज़ की दिशा में देखने के लिए आगे बढ़ा। बाएं तरफ गलियारे पर विभोर और अजीत खड़े नज़र आए मुझे।
मैंने देखा कि अजीत ने अपने कमरे के दरवाज़े को अपने एक हाथ से हल्के से थपथपाया, जबकि विभोर अपने कमरे के दरवाज़े के पास खड़ा इधर उधर देख रहा था। कुछ ही देर में दरवाज़ा खुला तो अजीत ने शायद कुछ कहा जिसके बाद फ़ौरन ही दरवाज़े से कुसुम बाहर निकली और चुप चाप अपने कमरे में चली गई। उसके जाने के बाद अजीत ने विभोर की तरफ देखा और फिर वो दोनों अपने अपने कमरे के अंदर दाखिल हो गए।
कुछ पल सोचने के बाद मैं भी अपने कमरे की तरफ बढ़ चला। कुसुम अजीत के कमरे में थी। जैसा कि मुझे यकीन था कि कुसुम किसी भी कीमत पर उन लोगों के साथ उस कमरे में नहीं रह सकती थी। इतना कुछ देखने के बाद ये बात भी साफ़ हो गई थी कि कुसुम को अपने उन दोनों भाइयों की हर करतूत के बारे में अच्छे से पता है।
अपने कमरे में आ कर मैंने दरवाज़ा बंद किया और पलंग पर लेट कर ये सोचने लगा कि दोनों भाइयों को उस औरत के साथ अगर वही सब करना था तो उन्होंने वो सब अपने कमरे में क्यों नहीं किया? कुसुम के ही कमरे में वो सब करने की क्या वजह थी?
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रात में सोचते सोचते पता नहीं कब मेरी आँख लग गई थी। सुबह कुसुम के जगाने पर ही मेरी आँख खुली। मौजूदा हालात में मुझे कुसुम के इस तरह आने की उम्मीद नहीं थी क्योंकि मैं समझ रहा था कि वो एक दो दिन से मुझसे कतरा रही थी। मैंने कुसुम को ध्यान से देखा तो उसके चेहरे पर गुमसुम से भाव झलकते नज़र आए। मैं समझ सकता था कि कल रात जो कुछ मैंने देखा सुना था उसी बात को ले कर शायद वो गुमसुम थी। हालांकि इस वक़्त वो मेरे सामने सामान्य और खुश दिखने की कोशिश कर रही थी। मैंने भी सुबह सुबह इस बारे में कुछ पूंछ कर उसे परेशान करना ठीक नहीं समझा इस लिए मैंने मुस्कुराते हुए उसके हाथ से चाय ले ली।
"सुबह सुबह तेरा चेहरा देख लेता हूं तो मेरा मन खुश हो जाता है।" मैंने उसकी तरफ देखते हुए मुस्कुरा कर कहा____"एक तू ही तो है जिसमें तेरे इस भाई की जान बसती है। हर रोज़ सुबह सुबह तू अपने इस भाई के लिए चाय ले कर आती है। सच में कितना ख़याल रखती है मेरी ये लाड़ली बहन। वैसे ये तो बता कि आज भी इस चाय में तूने कुछ मिलाया है कि नहीं?"
"क्..क्..क्या मतलब???" मेरी आख़िरी बात सुन कर कुसुम एकदम से हड़बड़ा गई और पलक झपकते ही उसके चेहरे पर घबराहट के भाव उभर आए। किसी तरह खुद को सम्हाल कर उसने कहा____"ये आप क्या कह रहे हैं भैया? भला मैं इस चाय में क्या मिलाऊंगी?"
"वही, जो तू हर रोज़ मिलाती है।" मैंने मुस्कुराते हुए उसकी तरफ देखा तो मारे घबराहट के कुसुम के माथे पर पसीना उभर आया। बड़ी मुश्किल से खुद को सम्हाला उसने और फिर बड़ी मासूमियत से पूछा____"पता नहीं आप ये क्या कह रहे हैं? मैं भला क्या मिलाती हूं चाय में?"
"क्या तू इस चाय में अपने प्यार और स्नेह की मिठास नहीं मिलाती?" मैंने जब देखा कि उसकी हालत ख़राब हो चली है तो मैंने बात को बनाते हुए कहा____"मुझे पता है कि मेरी ये लाड़ली बहना अपने इस भाई से बहुत प्यार करती है। मेरी बहना का वही प्यार इस चाय में मिला होता है, तभी तो इस चाय का स्वाद हर रोज़ इतना मीठा होता है।"
"अच्छा तो आपके कहने का ये मतलब था?" मेरी बात सुन कर कुसुम के चेहरे पर राहत के भाव उभर आए और फिर उसने जैसे ज़बरदस्ती मुस्कुरा कर कहा था।
"और नहीं तो क्या?" मैंने मुस्कुराते हुए कहा____"पर लगता है कि तूने कुछ और ही समझ लिया था, है ना?"
"आपने बात ही इस तरीके से की थी कि मुझे कुछ समझ में ही नहीं आया था।" कुसुम ने मासूम सी शक्ल बना कर कहा____"ख़ैर अब जल्दी से चाय पीजिए और फिर नित्य क्रिया से फुर्सत हो कर नीचे आ जाइए। नास्ता बन गया है।"
"चल ठीक है।" मैंने कहा____"तू जा मैं चाय पीने के बाद ही नित्य क्रिया करने जाऊंगा।"
"जल्दी आइएगा।" कुसुम ने दरवाज़े की तरफ बढ़ते हुए कहा____"ऐसा न हो कि देरी करने पर आपको ताऊ जी के गुस्से का शिकार हो जाना पड़े।"
कुसुम ये कह कर बाहर निकल गई थी और मैं अपने दाहिने हाथ से पकड़े हुए चाय के प्याले की तरफ देखने लगा था। अब जबकि मुझे पता था कि इस चाय में मेरी मासूम बहन के प्यार की मिठास के साथ साथ वो दवा भी मिली हुई थी जो मुझे नामर्द बनाने के लिए कुसुम के द्वारा दी जा रही थी तो मैं सोचने लगा कि अब इस चाय को कहां फेंकूं? कुसुम को मुझ पर भरोसा था कि मैं उसके हाथ की चाय ज़रूर पी लूँगा इस लिए वो मेरे कहने पर चली गई थी वरना अगर उसे ज़रा सा भी शक होता तो वो मेरे सामने तब तक खड़ी ही रहती जब तक कि मैं चाय न पी लेता। आख़िर ये उसकी विवशता जो थी।
चाय के प्याले को पकड़े मैं उसे फेंकने के बारे में सोच ही रहा था कि तभी मेरी नज़र कमरे की खिड़की पर पड़ी। खिड़की को देखते ही मेरे होठों पर मुस्कान उभर आई। मैं पलंग से उठा और चल कर खिड़की के पास पहुंचा। खिड़की के पल्ले को खोल कर मैंने खिड़की के उस पार देखा। दूर दूर तक हरा भरा मैदान दिख रहा था जिसमें कुछ पेड़ पौधे भी थे। मैंने खिड़की की तरफ हाथ बढ़ाया और प्याले में भरी चाय को खिड़की के उस पार उड़ेल दिया। चाय उड़ेलने के बाद मैंने खिड़की को बंद किया और वापस पलंग के पास आ गया। खाली प्याले को मैंने लकड़ी के एक छोटे से स्टूल पर रख दिया और फिर नित्य क्रिया के लिए कमरे से बाहर निकल गया।
नित्य क्रिया से फुर्सत हो कर मैं नहाया धोया और अच्छे वाले कपड़े पहन कर नीचे आ गया। इस बीच एक सवाल मेरे ज़हन में विचरण कर रहा कि मेरे दोनों चचेरे भाई मुझे नामर्द क्यों बना देना चाहते हैं? आख़िर इससे उन्हें क्या लाभ होने वाला है? उन दोनों का सम्बन्ध साहूकार के लड़के गौरव से है और उस गौरव के ही द्वारा उन्हें वो दवा मिली है, जिसे चाय में मिला कर मुझे पिलाई जा रही थी। गौरव के ही निर्देशानुसार ये दोनों भाई ये सब कर रहे थे। मुझे उस गौरव को पकड़ना होगा और अच्छे से उसकी गांड तोड़नी होगी। तभी पता चलेगा कि ये सब चक्कर क्या है।
नीचे आया तो कुसुम फिर से मुझे मिल गई। उसने मुझे बताया कि अभी अभी ताऊ जी ने मुझे बैठक में बुलाया है। कुसुम की ये बात सुन कर मैं बाहर बैठक की तरफ बढ़ गया। कुछ ही देर में जब मैं बैठक में पंहुचा तो देखा बैठक में पिता जी और जगताप चाचा जी के साथ साथ साहूकार मणि शंकर भी बैठा हुआ था। मणि शंकर को सुबह सुबह यहाँ देख कर मैं हैरान नहीं हुआ क्योंकि मैं समझ गया था कि वो यहाँ क्यों आया था। ख़ैर मैंने एक एक कर के सबके पैर छुए और उन सबका आशीर्वाद लिया। मेरे इस शिष्टाचार पर सबके चेहरे पर ख़ुशी के भाव उभर आए।
"हालाँकि हमने इन्हें उसी दिन कह दिया था कि वैभव समय से इनके घर पहुंच जाएगा।" पिता जी ने मेरी तरफ देखते हुए कहा____"किन्तु फिर भी ये तुम्हें लेने आए हैं।"
"आपने भले ही कह दिया था ठाकुर साहब।" मणि शंकर ने मुस्कुराते हुए कहा____"लेकिन ये मेरा फ़र्ज़ ही नहीं बल्कि मेरी ख़ुशी की भी बात है कि मैं खुद छोटे ठाकुर को यहाँ लेने के लिए आऊं और फिर अपने साथ इन्हें सम्मान के साथ अपने घर ले जाऊं।"
"इस औपचारिकता की कोई ज़रूरत नहीं थी मणि काका।" मैंने नम्र भाव से कहा____"मैं एक मामूली सा लड़का हूं जिसे आप अपने घर बुला कर सम्मान देना चाहते हैं, जबकि मुझ में ऐसी कोई बात ही नहीं है जिसके लिए मेरा सम्मान किया जाए। अब तक मैंने जो कुछ भी किया है उसके लिए मैं बेहद शर्मिंदा हूं और अब से मेरी यही कोशिश रहेगी कि मैं एक अच्छा इंसान बनूं। आपके मन में मेरे प्रति प्रेम भाव है और आप मुझे अपने घर बुला कर मेरा मान बढ़ाना चाहते हैं तो ये मेरे लिए ख़ुशी की ही बात है।"
"हमे बेहद ख़ुशी महसूस हो रही है कि हमारा सबसे प्यारा भतीजा पूरी तरह बदल गया है।" सहसा जगताप चाचा जी ने कहा____"आज वर्षों बाद अपने भतीजे को इस रूप में देख कर बहुत अच्छा लग रहा है।"
"आपने बिलकुल सही कहा मझले ठाकुर।" मणि शंकर ने कहा____"छोटे ठाकुर में आया ये बदलाव सबके लिए ख़ुशी की बात है। समय हमेशा एक जैसा नहीं रहता। वक़्त बदलता है और वक़्त के साथ साथ इंसान को भी बदलना पड़ता है। छोटे ठाकुर के अंदर जो भी बुराइयां थी वो सब अब दूर हो चुकी हैं और अब इनके अंदर सिर्फ अच्छाईयां ही हैं।"
"नहीं काका।" मैंने मणि शंकर की तरफ देखते हुए कहा____"आप मेरे बारे में इतनी जल्दी ऐसी राय मत बनाइए, क्योंकि अभी मैंने अच्छाई वाला कोई काम ही नहीं किया है और जब ऐसा कोई काम किया ही नहीं है तो मैं अच्छा कैसे साबित हो गया? सच तो ये है काका कि मुझे अपने कर्म के द्वारा ये साबित करना होगा कि मुझ में अब कोई बुराई नहीं है और मैं एक अच्छा इंसान बनने की राह पर ही चल रहा हूं।"
"वाह! क्या बात कही है छोटे ठाकुर।" मणि शंकर ने कहा____"तुम्हारी इस बात से अब मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि तुम पहले वाले वो इंसान नहीं रहे जिसके अंदर सिर्फ और सिर्फ बुराईयां ही थी बल्कि अब तुम सच में बदल गए हो और अब तुम्हारे अंदर अच्छाईयों का उदय हो चुका है।"
मणि शंकर की इस बात पर कुछ देर ख़ामोशी छाई रही उसके बाद मणि शंकर ने पिता जी से जाने की इजाज़त ली और कुर्सी से उठ कर खड़ा हो गया। पिता जी का हुकुम मिलते ही मैं मणि शंकर के साथ बाहर निकल गया। बाहर मणि शंकर की बग्घी खड़ी थी। मणि शंकर ने मुझे सम्मान देते हुए बग्घी में बैठने को बड़े आदर भाव से कहा तो मैंने उनसे कहा कि आप मुझसे बड़े हैं इस लिए पहले आप बैठिए। मेरे ऐसा कहने पर मणि शंकर ख़ुशी ख़ुशी बग्घी में बैठ गया और उसके बैठने के बाद मैं भी उसके बगल से बैठ गया। हम दोनों बैठ गए तो बग्घी चला रहे एक आदमी ने घोड़ो की लगाम को हरकत दे कर बग्घी को आगे बढ़ा दिया।
बग्घी में मणि शंकर के बगल से बैठा मैं सोच रहा था कि यहाँ से मेरी ज़िन्दगी का शायद एक नया अध्याय शुरू होने वाला है। अब देखना ये है कि इस अध्याय में कौन सी इबारत लिखी जाने वाली है। रास्ते में मणि शंकर से इधर उधर की बातें होती रही और कुछ ही देर में बग्घी मणि शंकर के घर के अंदर दाखिल हो गई। मणि शंकर के घर के सामने एक बड़ा सा मैदान था जहां घर के मुख्य दरवाज़े के सामने ही बग्घी को रोक दिया गया था। मैंने देखा दरवाज़े के बाहर मणि शंकर के सभी भाई और उनके लड़के खड़े थे। मणि शंकर के बाद मैं भी बग्घी से नीचे उतरा और आगे बढ़ कर मणि शंकर के सभी भाइयों के पैर छू कर उन सबका आशीर्वाद लिया। मेरे ऐसा करने पर जहां वो सब खुश हो गए थे वहीं उनके लड़के थोड़ा हैरान हुए थे। वो सब मुझे अजीब सी नज़रों से देख रहे थे लेकिन मैंने उन्हें थोड़ा और भी हैरान तब किया जब मैंने खुद ही उनसे नम्र भाव से उनका हाल चाल पूछा।
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Wah Bhai wah. Gajab update bhai. kuch sawaal Samne aaye hai is update me.
1. Kusum ko blackmail kiya ja Raha hai. Par kaise?
Ye Sahukar aakhir chahte kya hai?
Bhai mujhe lagta hai vaibhav ko namard banane ke peeche ye ho sakta hai ki. Uska bada bhai to jald hi marne wala h. Or vibhav ko agar santaan nahi hogi to. saara raaj Paat jagtaap or unke beto ka hoga.