Death Kiñg
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अभिनव के बारे में कुलगुरु के द्वारा की गई भविष्यवाणी, उसके पीछे छुपे रहस्य और अब उसके हो चुके समाधान के बारे में हवेली के सभी सदस्यों को पता चल चुका है। ये तो अच्छा हुआ कि अब अभिनव पर से खतरा टल चुका है अन्यथा ये सच यदि पहले सामने आ गया होता तो वैभव की मां की हालत बद से बदतर हो गई होती। खैर, इस सच से अवगत होने के बाद, जैसा की होना ही था, एक मां का दिल काबू से बाहर हो गया। वैभव की चाची और कुसुम के लिए भी ये सत्य एक बड़ा झटका ही था। परंतु, यदि कोई इस घटनाक्रम से सबसे अधिक प्रसन्न हुआ होगा, तो निश्चित ही वो रागिनी ही है। अभी उसकी उम्र ही क्या है? और इस आयु में विधवा हो जाने की बात, बेशक उसके लिए बेहद ही कठोर रही होगी। परंतु जैसा की वैभव ने उसे वचन दिए था, उसीके अनुरूप उसने अपना वादा और फर्ज़ पूरा भी किया।
रागिनी का वैभव के कमरे में आना और उसके सामने अपनी भावनाओं को प्रकट करना, दिल को स्पर्श कर गया ये प्रकरण। रागिनी ने पिछले कुछ वक्त में एक साथ कई तरह के कष्टों को सहा है परंतु अब लगता है कि उसकी परेशानियों पर एक अल्प विराम तो लग ही गया है। वैभव का अपनी जिम्मेदारियों का यूं निर्वाह करना, रागिनी भी एक बड़ा कारण है इसके पीछे। हवेली में लौटने के बाद, अगर किसीने वैभव को उसकी जिम्मेदारियों के प्रति जागृत किया है तो वो रागिनी ही है। खैर, अब अभिनव भी उससे अच्छे से बात कर रहा है, अर्थात कम से कम रागिनी का जीवन तो फिलहाल के लिए कुशल मंगल है। वैसे SANJU ( V. R. ) भाई, के कहे अनुसार कि रागिनी भी मुख्य षड्यंत्रकारी हो सकती है, यदि ये सच हुआ तो मेरे ख़्याल में इनसेस्ट प्रेमियों से गाली पड़ने वाली है शुभम भाई आपको ...
वैभव भी कुसुम और जगताप वाले मामले पर विचार कर रहा था और जिस निष्कर्ष पर वो पहुंचा, बहुत हद तक मैं भी उससे सहमत हूं। मसलन, एक बाप खुद अपनी बेटी को इस दलदल में धकेले, ये होना संभव नहीं लगता। परंतु, कलयुग की माया के आगे अच्छे – अच्छे वचन और आदर्श टूट जाया करते हैं। अभी तक की कहानी को पढ़ने के बाद,इन कागजातों को ध्यान में रखते हुए, सबसे अधिक संदेह जगताप पर ही है, हालांकि मुझे कहीं न कहीं लगता है कि वो शायद असली षड्यंत्रकारी नहीं है। इसका सबसे प्रमुख कारण है कि वो नौकरानी, शीला, उसे हवेली में मुख्य षड्यंत्रकारियों द्वारा ही भेजा गया था, तो ये स्पष्ट है की कुसुम और विभोर – अजीत वाला पूरा प्रकरण इन सब तक पहुंचा ही होगा। अब यदि जगताप उनमें से एक होता, तो अपनी खुद की बेटी के साथ उसीके भाइयों द्वारा किए जा रहे अन्याय पर कुछ नहीं करता? चाहे कोई व्यक्ति कितना भी गलत हो, पर ये स्वीकार करना मेरे लिए फिलहाल कठिन हैं। तो, अभी के लिए जगताप मेरे संदेह के घेरे से तो बाहर ही है।
इधर विभोर – अजीत और गौरव की तिकड़ी की वार्ता से भी कुछ बातें पता चली। दोनो चूतिये वैभव से अपनी निजी खुन्नस के चलते ही ये सब कर रहे थे, ऐसा प्रतीत होता है। दूसरा, कुसुम के प्रति दोनो कमीनों के अंदर रत्ती भर भी प्रेम या अपनापन नहीं है, ये स्पष्ट है। गौरव को कुसुम का राज़ मालूम होना,साफ कर देता है कि किसी भी सूरत में ये दोनों माफी के या किसी भी दया के पात्र नहीं हैं। इसके अलावा ये भी साफ है कि इन दोनों के ऊपर शायद किसी का भी हाथ नहीं, अर्थात ये दोनों केवल अपने बल पर, शीला के साथ मिलकर ही वैभव को नुकसान पहुंचाना चाहते थे।
अब यहां एक और सवाल खड़ा होता है! षड्यंत्रकारी का असली मकसद क्या है? ठाकुरों की जायदाद हड़प करना, उनके बेटों को मारना, उनके वंश की समाप्ति? मेरे खयाल में उन सबका असल मकसद, ठाकुरों की हवेली के आंतरिक टुकड़े कर उन्हे नेस्तनाबूद करने का है। अर्थात, जगताप – दादा ठाकुर के मध्य और अभिनव – वैभव और विभोर – अजीत के मध्य शत्रुता पैदा कर, इन सबको एक – दूसरे के खिलाफ करना, और फिर समाज में इनके रूतबे को खत्म कर इन्हे पूरी तरह से तोड़ देना। मेरी इस सोच का प्रमुख कारण, उन नकाबपोशों का कथन है कि शीला हवेली में अपना काम भली भांति कर रही है (जैसा उस बुजुर्ग ग्रामीण ने वैभव को बताया)! क्या काम था उसका? मेरी नजर में, विभोर और अजीत को वैभव के विरुद्ध करना और इन भाइयों को आपस में ही लड़वाना। बाकी असलियत क्या थी, ये तो आगे चलकर ही पता चलेगा।
खैर, अब विभोर और अजीत की धुलाई नजदीक आती दिख रही है। वैभव से मिलने जो व्यक्ति हवेली के बाहर आया था, वो मेरे खयाल में भुवन हो सकता है, को विभोर और अजीत की खबर देने आया हो? अब इन तीनों के ठिकाने पर भी किसने दस्तक दे दी है, जोकि मेरे अनुसार वैभव ही है। आशा है कि दोनों को कम से कम इस बात का एहसास हो कि अपनी उस बहन के साथ इन दोनों ने क्या किया, बाकी कुछ हो न हो।
बहुत ही खूबसूरत अध्याय था शुभम भाई, हर बार की ही तरह। अभिनव की मां के रूदन वाला प्रकरण काफी बढ़िया था, वहीं रागिनी वाला भाग भी बहुत ही खूबसूरती से लिखा आपने। अब इंतजार केवल एक चीज़ का है, आप जानते ही हो, दोनो कमीनों की तुड़ाई का ...
अगली कड़ी की प्रतीक्षा में...
रागिनी का वैभव के कमरे में आना और उसके सामने अपनी भावनाओं को प्रकट करना, दिल को स्पर्श कर गया ये प्रकरण। रागिनी ने पिछले कुछ वक्त में एक साथ कई तरह के कष्टों को सहा है परंतु अब लगता है कि उसकी परेशानियों पर एक अल्प विराम तो लग ही गया है। वैभव का अपनी जिम्मेदारियों का यूं निर्वाह करना, रागिनी भी एक बड़ा कारण है इसके पीछे। हवेली में लौटने के बाद, अगर किसीने वैभव को उसकी जिम्मेदारियों के प्रति जागृत किया है तो वो रागिनी ही है। खैर, अब अभिनव भी उससे अच्छे से बात कर रहा है, अर्थात कम से कम रागिनी का जीवन तो फिलहाल के लिए कुशल मंगल है। वैसे SANJU ( V. R. ) भाई, के कहे अनुसार कि रागिनी भी मुख्य षड्यंत्रकारी हो सकती है, यदि ये सच हुआ तो मेरे ख़्याल में इनसेस्ट प्रेमियों से गाली पड़ने वाली है शुभम भाई आपको ...
वैभव भी कुसुम और जगताप वाले मामले पर विचार कर रहा था और जिस निष्कर्ष पर वो पहुंचा, बहुत हद तक मैं भी उससे सहमत हूं। मसलन, एक बाप खुद अपनी बेटी को इस दलदल में धकेले, ये होना संभव नहीं लगता। परंतु, कलयुग की माया के आगे अच्छे – अच्छे वचन और आदर्श टूट जाया करते हैं। अभी तक की कहानी को पढ़ने के बाद,इन कागजातों को ध्यान में रखते हुए, सबसे अधिक संदेह जगताप पर ही है, हालांकि मुझे कहीं न कहीं लगता है कि वो शायद असली षड्यंत्रकारी नहीं है। इसका सबसे प्रमुख कारण है कि वो नौकरानी, शीला, उसे हवेली में मुख्य षड्यंत्रकारियों द्वारा ही भेजा गया था, तो ये स्पष्ट है की कुसुम और विभोर – अजीत वाला पूरा प्रकरण इन सब तक पहुंचा ही होगा। अब यदि जगताप उनमें से एक होता, तो अपनी खुद की बेटी के साथ उसीके भाइयों द्वारा किए जा रहे अन्याय पर कुछ नहीं करता? चाहे कोई व्यक्ति कितना भी गलत हो, पर ये स्वीकार करना मेरे लिए फिलहाल कठिन हैं। तो, अभी के लिए जगताप मेरे संदेह के घेरे से तो बाहर ही है।
इधर विभोर – अजीत और गौरव की तिकड़ी की वार्ता से भी कुछ बातें पता चली। दोनो चूतिये वैभव से अपनी निजी खुन्नस के चलते ही ये सब कर रहे थे, ऐसा प्रतीत होता है। दूसरा, कुसुम के प्रति दोनो कमीनों के अंदर रत्ती भर भी प्रेम या अपनापन नहीं है, ये स्पष्ट है। गौरव को कुसुम का राज़ मालूम होना,साफ कर देता है कि किसी भी सूरत में ये दोनों माफी के या किसी भी दया के पात्र नहीं हैं। इसके अलावा ये भी साफ है कि इन दोनों के ऊपर शायद किसी का भी हाथ नहीं, अर्थात ये दोनों केवल अपने बल पर, शीला के साथ मिलकर ही वैभव को नुकसान पहुंचाना चाहते थे।
अब यहां एक और सवाल खड़ा होता है! षड्यंत्रकारी का असली मकसद क्या है? ठाकुरों की जायदाद हड़प करना, उनके बेटों को मारना, उनके वंश की समाप्ति? मेरे खयाल में उन सबका असल मकसद, ठाकुरों की हवेली के आंतरिक टुकड़े कर उन्हे नेस्तनाबूद करने का है। अर्थात, जगताप – दादा ठाकुर के मध्य और अभिनव – वैभव और विभोर – अजीत के मध्य शत्रुता पैदा कर, इन सबको एक – दूसरे के खिलाफ करना, और फिर समाज में इनके रूतबे को खत्म कर इन्हे पूरी तरह से तोड़ देना। मेरी इस सोच का प्रमुख कारण, उन नकाबपोशों का कथन है कि शीला हवेली में अपना काम भली भांति कर रही है (जैसा उस बुजुर्ग ग्रामीण ने वैभव को बताया)! क्या काम था उसका? मेरी नजर में, विभोर और अजीत को वैभव के विरुद्ध करना और इन भाइयों को आपस में ही लड़वाना। बाकी असलियत क्या थी, ये तो आगे चलकर ही पता चलेगा।
खैर, अब विभोर और अजीत की धुलाई नजदीक आती दिख रही है। वैभव से मिलने जो व्यक्ति हवेली के बाहर आया था, वो मेरे खयाल में भुवन हो सकता है, को विभोर और अजीत की खबर देने आया हो? अब इन तीनों के ठिकाने पर भी किसने दस्तक दे दी है, जोकि मेरे अनुसार वैभव ही है। आशा है कि दोनों को कम से कम इस बात का एहसास हो कि अपनी उस बहन के साथ इन दोनों ने क्या किया, बाकी कुछ हो न हो।
बहुत ही खूबसूरत अध्याय था शुभम भाई, हर बार की ही तरह। अभिनव की मां के रूदन वाला प्रकरण काफी बढ़िया था, वहीं रागिनी वाला भाग भी बहुत ही खूबसूरती से लिखा आपने। अब इंतजार केवल एक चीज़ का है, आप जानते ही हो, दोनो कमीनों की तुड़ाई का ...
अगली कड़ी की प्रतीक्षा में...
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