वैभव भी कुसुम और जगताप वाले मामले पर विचार कर रहा था और जिस निष्कर्ष पर वो पहुंचा, बहुत हद तक मैं भी उससे सहमत हूं। मसलन, एक बाप खुद अपनी बेटी को इस दलदल में धकेले, ये होना संभव नहीं लगता। परंतु, कलयुग की माया के आगे अच्छे – अच्छे वचन और आदर्श टूट जाया करते हैं। अभी तक की कहानी को पढ़ने के बाद,इन कागजातों को ध्यान में रखते हुए, सबसे अधिक संदेह जगताप पर ही है, हालांकि मुझे कहीं न कहीं लगता है कि वो शायद असली षड्यंत्रकारी नहीं है। इसका सबसे प्रमुख कारण है कि वो नौकरानी, शीला, उसे हवेली में मुख्य षड्यंत्रकारियों द्वारा ही भेजा गया था, तो ये स्पष्ट है की कुसुम और विभोर – अजीत वाला पूरा प्रकरण इन सब तक पहुंचा ही होगा। अब यदि जगताप उनमें से एक होता, तो अपनी खुद की बेटी के साथ उसीके भाइयों द्वारा किए जा रहे अन्याय पर कुछ नहीं करता? चाहे कोई व्यक्ति कितना भी गलत हो, पर ये स्वीकार करना मेरे लिए फिलहाल कठिन हैं। तो, अभी के लिए जगताप मेरे संदेह के घेरे से तो बाहर ही है।