Game888
Hum hai rahi pyar ke
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Interesting update bhaiदोस्तो, कहानी का अगला अध्याय - 49 पोस्ट कर दिया है। आशा है आप सभी को पसंद आएगा। आप सबकी समीक्षा अथवा विचारों का इंतज़ार रहेगा...
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Dost hamare Karamchand aur Sherlock Holmes to aap hi hai.Jin do hastiyo ke naam liye hain mitra wo to ab zinda hi nahi hain, fir kaise unhe bulaaoge. Well next update me vibhor aur ajeet ka faisla ho jayega
कहीं ये साहूकारों की तो चाल नही है की अपना नाम आए बिना ही दादा ठाकुर का नाम खराब करने का। क्या कोई अतीत का ऐसा पन्ना तो नही जो अब वर्तमान में आ कर खुल रहा है और हवेली में भूचाल ला रहा है। उस काले साए का भी कुछ पता नही है अभी तक। रोमांचक अपडेट।अध्याय - 49
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अब तक....
पिता जी ने जो कहा था वो मैं भी समझ रहा था लेकिन ये समझ में नहीं आ रहा था कि ऐसा कर कौन रहा था? आख़िर क्या दुश्मनी थी हमारी उससे? आख़िर ऐसा क्यों था कि उसने सिर्फ़ हम दोनों भाईयों को ही मौत के मुंह तक पहुंचा दिया था जबकि जगताप चाचा के बेटों पर उसने किसी तरह की भी आंच नहीं लगाई थी? ये क्या रहस्य था? क्या वो जगताप चाचा और उनके परिवार को अपना समझता था या फिर ऐसा वो जान बूझ कर रहा था ताकि हम जगताप चाचा पर ही शक करें और उनके अलावा किसी और के बारे में न सोचें? कुछ देर पिता जी और बड़े भैया इसी विषय में बातें करते रहे उसके बाद वो चले गए। उनके जाने के बाद मैंने कमरे का दरवाज़ा बंद किया और पलंग पर आ कर लेट गया। सोचते विचारते पता ही न चला कब आंख लग गई मेरी।
अब आगे....
सुबह हम सब नाश्ता कर रहे थे। एक लंबी आयताकार मेज के चारो तरफ नक्काशी की हुई लकड़ी की कुर्सियां रखी हुईं थी जिन पर हम सब बैठे नाश्ता कर रहे थे। नाश्ता करते वक्त कोई बात नहीं कर सकता था किंतु मैं महसूस कर रहा था कि जगताप चाचा बार बार पिता जी की तरफ देख कर कुछ कहने की हिम्मत जुटाते और फिर बिना कुछ बोले ही सिर झुका कर थाली पर रखे परांठे को यूं ही तोड़ने का नाटक करने लगते। उधर पिता जी को भी शायद ये आभास हो गया था इस लिए वो भी कुछ पलों के अंतराल में उनकी तरफ देख लेते थे लेकिन ये संयोग अथवा इत्तेफ़ाक ही था कि इतनी देर में अब तक उन दोनों की नज़रें आपस में टकरा नहीं पाईं थी। मैंने देखा एक तरफ विभोर और अजीत भी सिर झुकाए नाश्ता करने में व्यस्त थे। उन दोनों ने अब तक सिर ही नहीं उठाया था। मैं समझ सकता था कि कल के हादसे के बाद दोनों के अंदर अब इतनी हिम्मत ही ना बची होगी कि वो हम में से किसी से नज़रें मिला सकें।
"पहले अपने मन को शांत करके नाश्ता कर लो जगताप।" तभी सहसा ख़ामोशी को चीरते हुए पिता जी ने जगताप चाचा की तरफ देखते हुए अपनी भारी आवाज़ में कहा____"उसके बाद जो भी तुम्हारे मन में हो उसे हमसे बेझिझक कह देना।"
"ज...जी बड़े भैया।" जगताप चाचा ने धीमें स्वर में किंतु सम्मान से कहा और फिर चुपचाप नाश्ता करने लगे। पिता जी कुछ पलों तक उन्हें देखते रहे उसके बाद वो भी ख़ामोशी से नाश्ता करने लगे।
आख़िर किसी तरह हम सब का नाश्ता हुआ और फिर हम सब कुर्सियों से उठे। विभोर और अजीत ऊपर अपने कमरे की तरफ जाने लगे तो जगताप चाचा ने उन्हें रोक लिया। मैं समझ गया कि कुछ तो होने वाला है। मैंने बड़े भैया की तरफ देखा तो उन्होंने भी मुझे देखा। हमने आंखों के इशारे से ही एक दूसरे से पूछा कि जगताप चाचा आख़िर क्या करने वाले हैं पर शायद इसका जवाब न उनके पास था और ना ही मेरे पास। ख़ैर पिता जी के कहने पर कुछ ही देर में हम सब बैठक में आ गए।
"हम नहीं जानते कि तुम्हारे मन में नाश्ता करते वक्त ऐसा क्या था जिसके लिए तुम कुछ ज़्यादा ही बेचैन दिख रहे थे।" पिता जी ने अपनी सिंघासननुमा कुर्सी पर बैठने के बाद कहा____"हम ज़रूर तुम्हारे मन की बात जानना चाहेंगे किंतु उससे पहले तुम ये जान लो कि हमारे भतीजों ने वैभव के साथ जो कुछ भी किया है उसके लिए हमने उन्हें माफ़ कर दिया है और यकीन मानों तुम्हारे भतीजे ने भी अपने छोटे भाइयों को माफ़ कर दिया होगा।"
"य...ये आप क्या कह रहे हैं बड़े भैया?" जगताप चाचा ने हैरान परेशान से लहजे में कहा____"आप ऐसा कुकर्म करने वाले मेरे कपूतों को कैसे माफ़ कर सकते हैं? मैं तो कल ही उन दोनों को उनके किए की सज़ा देना चाहता था लेकिन आपने ही मुझे रोक लिया था। मुझे रात भर ये सोच सोच कर नींद नहीं आई कि मेरी अपनी औलादों ने इतना गन्दा कुकर्म किया है। मैं रात भर ऊपर वाले से यही सवाल करता रहा कि आख़िर मैंने ऐसा कौन सा पाप किया था जिसकी वजह से उसने मुझे ऐसा कुकर्म करने वाली औलादें प्रदान की है? ऐसी औलाद होने से तो अच्छा था कि मेरी कोई औलाद ही न होती। मैं तो शुरू से वैभव को ही अपने बेटे की तरह प्यार और स्नेह करता आया हूं और सच कहूं तो मुझे उसके जैसा भतीजा पाने पर गर्व भी है। माना कि उसने अपने जीवन में कुछ ग़लतियां की थीं लेकिन उसकी वो ग़लतियां ऐसी तो हर्गिज़ नहीं थी जिसके लिए किसी की अंतरात्मा को ही चोट लग जाए।"
"शांत हो जाओ जगताप।" पिता जी ने कहा____"तुम्हारे जैसे इंसान को इस तरह भावनाओं में बहना शोभा नहीं देता। हम मानते हैं कि विभोर और अजीत ने जो किया है वो बहुत ही ग़लत है किंतु तुम भी जानते हो कि ग़लतियां हर इंसान से होती हैं। इंसान ग़लती करता है तो उस ग़लती से उसे अच्छे बुरे का सबक भी मिलता है। अगर कोई किसी तरह की ग़लती ही न करे तो भला कैसे किसी को अच्छे बुरे का ज्ञान हो पाएगा। इंसान को अपने जीवन में ग़लतियां करना भी ज़रूरी है लेकिन हां, ग़लतियों से हमें सबक सीखना चाहिए और फिर दुबारा वैसी ग़लतियां ना करने का संकल्प भी लेना चाहिए।"
"पर इन्होंने ग़लती कहां की है बड़े भैया?" जगताप चाचा ने आहत भाव से कहा____"इन्होंने तो अपराध किया है। हद दर्जे का पाप किया है इन लोगों ने और पाप करने पर माफ़ी नहीं दी जाती।"
"पाप से याद आया।" पिता जी ने कुछ सोचते हुए सहसा मेरी तरफ देखा____"हमने इन दोनों के मुख से और खुद तुम्हारे मुख से ये तो सुना था कि इन लोगों ने कुसुम को मजबूर किया हुआ था। हम जानना चाहते हैं कि इन दोनों ने हमारी फूल सी कोमल बेटी को आख़िर किस तरह से मजबूर किया हुआ था? हम सब जानते हैं कि कुसुम तुम्हारी लाडली है और वो खुद भी अपने सभी भाइयों में सबसे ज़्यादा तुम्हें ही मानती हैं तो ज़ाहिर है कि वो इतनी आसानी से इस बात के लिए तैयार नहीं हुई होगी कि वो तुम्हें चाय में नामर्द बना देने वाली दवा मिला कर पिलाए। हमें यकीन है कि हमारी बच्ची मर जाना पसंद करती लेकिन वो ऐसा काम इनके कहने पर हर्गिज़ नहीं करती। इस लिए हम जानना चाहते हैं कि ऐसी कौन सी बात थी जिसकी वजह से वो मासूम इतना बड़ा अपराध करने पर मजबूर हो गई थी? ऐसी कौन सी बात थी जिसके द्वारा मजबूर हो कर वो अपने उस भाई को ही नामर्द बनाने की राह पर चल पड़ी थी जिस भाई को वो दुनिया में सबसे ज़्यादा प्यार और स्नेह करती है?"
"माफ़ कीजिए पिता जी।" मैंने सहसा दृढ़ भाव से कहा____"लेकिन मैं आपको इस बारे में कुछ भी नहीं बता सकता और मेरी आपसे विनती भी है कि इस बारे में आप इन दोनों से भी कुछ नहीं पूछेंगे।"
"आख़िर बात क्या है?" पिता जी के साथ साथ जगताप चाचा के भी चेहरे पर गहन हैरानी के भाव उभर आए थे____"तुम इस बारे में कुछ भी बताने से और हमारे द्वारा इनसे पूछने के लिए क्यों मना कर रहे हो?"
"सिर्फ़ इतना समझ लीजिए पिता जी कि मैं अपनी मासूम बहन को किसी की भी नज़रों से गिराना नहीं चाहता।" मैंने गंभीरता से कहा____"मैं नहीं चाहता कि उसके प्रति सबके दिल में जो प्यार और स्नेह है उसमें कमी आ जाए।"
मेरी बात सुन कर विभोर और अजीत के अलावा बाकी सब सोच में पड़ गए थे। बैठक में एकदम से सन्नाटा सा छा गया था। विभोर और अजीत ने तो जैसे शर्म से अपना चेहरा ही ज़मीन पर गाड़ लिया था।
"अगर हमारी फूल सी कोमल बेटी की प्रतिष्ठा का सवाल है।" फिर पिता जी ने गंभीर भाव से कहा____"तो हमें इस बारे में कुछ भी नहीं जानना और हम ये भी चाहते हैं कि कोई उससे भी इस बारे में कोई बात न करे। हम किसी भी कीमत पर अपनी बेटी के चेहरे से उसकी हंसी और उसका चुलबुलापन मिटाना नहीं चाहते। ख़ैर, हमने फ़ैसला कर लिया है कि जो कुछ भी इन दोनों ने किया है उसके लिए हम इन्हें माफ़ करते हैं और आइंदा से हम इनसे बेहतर इंसान बनने की उम्मीद करते हैं।"
"आपने भले ही इन्हें माफ़ कर दिया है बड़े भैया।" जगताप चाचा ने शख़्त भाव से कहा____"लेकिन मैं इन्हें कभी माफ़ नहीं कर सकता और ना ही इनकी शक्ल देखना चाहता हूं। मुझे माफ़ कीजिए भैया क्योंकि मैं आपके फ़ैसले के खिलाफ़ जा रहा हूं लेकिन मैं बता नहीं सकता कि इनकी वजह से मेरी अंतरात्मा को कितनी ठेस पहुंची है। मैंने फ़ैसला किया है कि अब से ये दोनों इस हवेली में ही क्या बल्कि इस गांव में ही नहीं रहेंगे।"
"तुम होश में तो हो जगताप?" पिता जी एकदम कठोर भाव से बोल पड़े थे____"ये क्या अनाप शनाप बोल रहे हो तुम?"
"माफ़ कीजिए भैया।" जगताप चाचा की आंखें छलक पड़ीं, बोले____"पर आप समझ ही नहीं सकते कि इस वक्त मेरे दिल पर क्या बीत रही है। मैंने ख़्वाब में भी नहीं सोचा था कि एक दिन मुझे अपनी ही औलाद की करनी की वजह से इस क़दर शर्मिंदा होना पड़ जाएगा कि मैं आपके सामने ही क्या बल्कि किसी के भी सामने सिर उठा कर खड़ा नहीं रह पाऊंगा। काश! ऐसी स्थिति आने से पहले मुझे मौत आ गई होती।"
"ज..जगताप।" पिता जी एकदम सिंहासन से उठ कर चाचा के पास आए और उनके कंधे पर हाथ रख कर अधीरता से बोले_____"क्या हो गया है तुम्हें? आख़िर इतना हताश और दुखी क्यों हो रहे हो तुम? तुम ये सोच भी कैसे सकते हो कि महज इतनी सी बात पर तुम हमारी नज़रों से गिर जाओगे? ये जो कुछ भी हुआ है उसके बारे में तुम्हें इतना कुछ सोचने की कोई ज़रूरत नहीं है। एक बात अच्छी तरह याद रखो कि तुम जैसा भाई पा कर हम हमेशा से गर्व करते आए हैं और तुम्हारे प्रति हमारे दिल में जो ख़ास जज़्बात हैं वो कभी नहीं मिट सकते। इस लिए ये सब बेकार की बातें सोच कर तुम खुद को हताश और दुखी मत करो। विभोर और अजीत जितना तुम्हारे बेटे हैं उतना ही वो हमारे भी बेटे हैं। हम अच्छी तरह जानते हैं कि उनके अंदर वैभव के प्रति जो ईर्ष्या पैदा हुई थी उसने एक दिन नफ़रत का रूप ले लिया और फिर उस नफ़रत ने उनसे ऐसा कर्म करवा दिया था। हमें यकीन है कि अब वो ऐसी ग़लती दुबारा नहीं करेंगे, इसी लिए उनकी इस ग़लती को उनकी आख़िरी ग़लती समझ कर हमने उन्हें माफ़ कर देना बेहतर समझा।"
"आप सच में महान हैं भैया।" जगताप चाचा आंसू भरी आंखों से देखते हुए बोले____"मुझे अपनी सेवा और अपनी क्षत्रछाया से कभी दूर मत कीजिएगा। आप मेरे सब कुछ हैं। मैं मरते दम तक आपकी छाया बन कर आपके साथ रहना चाहता हूं।"
"एकदम पागल हो तुम।" पिता जी ने लरजते स्वर में कहा और जगताप चाचा को अपने गले से लगा लिया। उनकी आंखें भी नम हो गईं थी। मैं और बड़े भैया दोनों भाईयों के इस प्रेम को देख कर एक अलग ही तरह का सुखद एहसास महसूस करने लगे थे। उन्हें इस तरह एक दूसरे के गले से लगा हुआ देख मैंने बड़े भैया की तरफ देखा। उन्होंने भी मुझे बड़े ही प्रेम भाव से देखा और फिर हल्के से मुस्कुराए। जाने क्यों मेरे अंदर के जज़्बात मचल उठे और मैं एकदम से उनसे लिपट गया। उनके सीने से लगा तो बड़ा ही सुखद एहसास हुआ जिसके चलते मेरी आंखें सुकून से बंद हो गईं।
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हवेली के बाहर अचानक शोर गुल सुनाई दिया तो बैठक में बैठे हम सब चौंके। अभी मैं शोर गुल सुन कर बाहर जाने ही वाला था कि तभी एक दरबान अंदर आया। पिता जी के पूछने पर उसने बताया कि गांव के कुछ लोग चेहरे पर आक्रोश लिए हाथी दरवाज़े के अंदर आ गए हैं और बार बार दादा ठाकुर से न्याय चाहिए की बातें कह रहे हैं। दरबान की बात सुन कर पिता जी एक झटके में अपने सिंहासन से उठ खड़े हुए। उसके बाद फ़ौरन ही हम सब उनके पीछे बाहर की तरफ चल दिए।
बाहर आए तो देखा सच में गांव के काफी सारे लोग हवेली के मुख्य दरवाज़े से थोड़ी दूरी पर खड़े थे। उन लोगों में शीला और रेखा के पति भी थे। उन दोनों को देख कर मैं समझ गया कि वो लोग कौन से न्याय पाने की चाहत में यहां आए हैं।
"क्या बात है? तुम सब यहां एक साथ किस लिए आए हो?" पिता जी ने उन सबकी तरफ देखते हुए थोड़ा ऊंची आवाज़ में पूछा।
"हम सब यहां आपसे न्याय मांगने आए हैं दादा ठाकुर।" उन लोगों में से उस व्यक्ति ने तेज़ आवाज़ में कहा जिसका नाम सरजू था।
"आख़िर बात क्या है?" पिता जी ने ऊंची आवाज़ में ही पूछा____"किस तरह का न्याय मांगने आए हो तुम लोग हमसे?"
"छोटे मुंह बड़ी बात होगी दादा ठाकुर।" सरजू ने सहसा अपने हाथ जोड़ते हुए कहा____"आज तक हम गांव वाले कभी आपके सामने इस तरह नहीं आए और ना ही कभी आपसे ज़ुबान लड़ाने की हिम्मत की है लेकिन हमारे साथ जो कुछ हुआ है उसका इंसाफ़ कौन करेगा? आप हमारे माई बाप हैं, इस लिए आपसे ही तो न्याय के लिए गुहार लगाएंगे न?"
"बिलकुल।" पिता जी ने कहा____"और ये तुम सबका अधिकार भी है। तुम सबकी तक़लीफों को सुनना और उन्हें दूर करना हमारा फर्ज़ है। इस लिए अगर तुम लोगों के साथ किसी प्रकार की नाइंसाफी हुई है तो उसके लिए तुम लोग बेझिझक हो कर इंसाफ़ की मांग कर सकते हो। ख़ैर, अब बताओ कि तुम लोगों के साथ क्या नाइंसाफी हुई है और किसने नाइंसाफी की है?"
"माफ़ कीजिए दादा ठाकुर पर नाइंसाफी तो आपके द्वारा ही की गई है।" उन लोगों में से एक कलुआ नाम के आदमी ने कहा____"हमारे घर की औरतें आपकी हवेली में काम करती हैं और फिर बेवजह ही अचानक से उनकी मौत हो जाती है। क्या हमारा ये जानने का भी हक़ नहीं है कि रेखा और शीला की इस तरह से मौत कैसे हो गई? अभी कल शाम की ही बात है, छोटे ठाकुर शीला को खोजते हुए उसके घर आए थे और उसके कुछ ही समय बाद उसकी हत्या हो गई। उसके पहले सुबह रेखा के बारे में पता चला था कि उसने ज़हर खा कर खुद खुशी कर ली थी। हम जानना चाहते हैं दादा ठाकुर कि हम ग़रीबों के घर की औरतों के साथ अचानक ये सब क्यों और कैसे हो गया? आख़िर क्यों रेखा ने खुद खुशी की और क्यों शीला की हत्या कर दी गई?"
"रेखा और शीला के साथ जो कुछ भी हुआ है।" पिता जी ने गंभीरता से कहा____"वो यकीनन बहुत बुरा हुआ है और हम खुद इस बात से हैरान और परेशान हैं कि उनके साथ ये अचानक से क्यों हो गया? हम इस सबके बारे में पता लगा रहे हैं। जिस किसी का भी उन दोनों की मौत में हाथ होगा उसे शख़्त से शख़्त सज़ा दी जाएगी।"
"हमें इन बातों से मत बहलाइए दादा ठाकुर।" रंगा नाम के आदमी ने पिता जी को घूरते हुए कहा____"रेखा ने आपकी हवेली में खुद खुशी की थी तो ज़ाहिर है कि हवेली में ही कुछ ऐसा हुआ होगा जिसके चलते उसे खुद खुशी कर के अपनी जान देनी पड़ी। क्या पता हवेली में किसी ने उसे ज़हर खिला कर जान से मार दिया हो और अफवाह ये उड़ा दी गई कि उसने खुद खुशी की है। इसी तरह देवधर की बीवी को खोजने आपके छोटे बेटे कुंवर आए थे और उसके कुछ ही देर बाद आपके ही बाग़ में उसकी गला रेत कर हत्या कर दी गई। ज़ाहिर है कि शीला की हत्या का मामला भी हवेली से ही जुड़ा है। हम जानना चाहते हैं दादा ठाकुर कि असलियत क्या है?"
"तुम लोगों की हिम्मत कैसे हुई दादा ठाकुर पर आरोप लगाने की?" जगताप चाचा एकाएक गुस्से से चीख पड़े थे। रंगा की बातें सुन कर गुस्सा तो मुझे भी बहुत ज़्यादा आ गया था किंतु मुझसे पहले जगताप चाचा बोल पड़े थे_____"क्या तुम लोग रेखा और शीला की मौत का जिम्मेदार हमें समझते हो?"
"शांत हो जाओ जगताप।" पिता जी ने बड़े धैर्य से कहा_____"इन पर इस तरह गुस्से से चिल्लाना ठीक नहीं है।"
"क्यों ठीक नहीं है बड़े भैया?" जगताप चाचा मानों बिफर ही पड़े____"इन लोगों की हिम्मत कैसे हुई हम पर इस तरह से आरोप लगाने की? इनके कहने का तो यही मतलब है कि रेखा और शीला की मौत के जिम्मेदार हम ही हैं। ये साफ़ साफ़ हमें उन दोनों का हत्यारा कह रहे हैं।"
"तो क्या ग़लत कह रहे हैं ये लोग?" पिता जी ने शांत भाव से कहा____"रेखा ने हवेली में खुद खुशी की तो इसके जिम्मेदार हम हैं, इसी तरह शीला की हत्या हमारे बाग़ में हुई तो उसके जिम्मेदार भी हम ही हैं। दोनों का हवेली से संबंध था यानि हमसे। ये लोग अगर उन दोनों की मौत का जिम्मेदार हमें ठहरा रहे हैं तो ग़लत नहीं है। हमें इन सबको जवाब देना पड़ेगा जगताप। हमें इनको बताना पड़ेगा कि हमारी हवेली में काम करने वाली दो दो नौकरानियां अचानक से मौत का ग्रास क्यों बन गईं?"
"तो जवाब देने से इंकार कहां कर रहे हैं हम बड़े भैया?" जगताप चाचा ने कहा____"हम खुद भी तो जानना चाहते हैं कि ऐसा क्यों हुआ है लेकिन इसके लिए ये लोग सीधे तौर पर आप पर आरोप नहीं लगा सकते।"
"जिनके घर की औरतों की इस तरह मौत हो गई हो उनकी मनोदशा के बारे में सोचो जगताप।" पिता जी ने कहा____"ये सब दुखी हैं। इस दुख में इन्हें कुछ भी समझ में नहीं आ रहा कि ये लोग क्या कह रहे हैं? इनकी जगह पर खुद को रख कर सोचोगे तो समझ जाओगे कि ये लोग अपनी जगह ग़लत नहीं हैं।"
पिता जी जगताप चाचा को समझा रहे थे और मैं ख़ामोशी से खड़ा ये सोच रहा था कि पिता जी गांव वालों पर गुस्सा क्यों नहीं हुए? वो चाहते तो एक पल में इन लोगों की हेकड़ी निकाल देते, ये कह कर कि जिन रेखा और शीला की मौत का आरोप वो हम पर लगा रहे हैं वही रेखा और शीला हमारे दुश्मन के कहने पर हमारे खिलाफ़ जाने क्या क्या गुल खिला रहीं थी। मैं इस बात से थोड़ा हैरान था कि पिता जी इस बात को उनसे कहने की बजाय उनसे ऐसा कोमल बर्ताव कर रहे थे? मुझे लगा ज़रूर उनके ऐसा करने के पीछे कोई ना कोई ख़ास कारण होगा, पर क्या?
"हम तुम लोगों का दुख अच्छी तरह समझते हैं।" पिता जी की इस बात से मैं ख़्यालों से बाहर आया। उधर वो गांव वालों से कह रहे थे____"और हमें इस बात का भी बुरा नहीं लगा कि तुम लोग रेखा और शीला की मौत का आरोप हम पर लगा रहे हो। तुम्हारी जगह हम होते तो हम भी ऐसा ही करते। इस बात को कोई नहीं नकार सकता कि उन दोनों की मौत हमारी हवेली और हमारे बाग़ पर हुई है लेकिन ऐसा क्यों और कैसे हुआ है इस बात का हम पता लगा कर ही रहेंगे। तुम लोग हमारे पास इंसाफ़ के लिए आए हो तो यकीन मानो हम ज़रूर इंसाफ़ करेंगे लेकिन उसके लिए हमें थोड़ा वक्त चाहिए। हम उम्मीद करते हैं कि तब तक के लिए तुम सब शांति और धैर्य से काम लोगे।"
पिता जी की ये बातें सुन कर गांव वाले आपस में कुछ खुसुर फुसुर करने लगे। कुछ देर बाद रंगा नाम के आदमी ने कहा____"ठीक है दादा ठाकुर, अगर आप हमसे थोड़ा वक्त चाहते हैं तो हमें मंजूर है और कृपया हमें माफ़ कीजिए कि हमने आपसे ऐसे तरीके से बातें की लेकिन यकीन मानिए हम में से किसी का भी इरादा आपका अपमान करने का नहीं था और ना ही कभी हो सकता है।"
रंगा की इस बात के बाद पिता जी ने सबको खुशी खुशी अपने अपने घर लौट जाने को कहा जिससे वो सब वापस चले गए। उन लोगों के चले जाने के बाद हम लोग भी वापस बैठक में आ गए। गांव वालों का इस तरह से हवेली पर आना और उन लोगों द्वारा इस तरीके से हम पर आरोप लगाते हुए बातें करना कोई मामूली बात नहीं हुई थी। ऐसा पहली बार हुआ था कि गांव के लोग बेख़ौफ हो कर हमारी हवेली पर आए थे और पूरी निडरता से हमसे ऐसी बातें की थी। ज़ाहिर है ये सब हमारे लिए काफी गंभीर बात हो गई थी।
पिता जी ने जगताप चाचा को इस मामले के बारे में पता लगाने का काम सौंपा तो वो बड़े अदब के साथ सिर नवा कर चले गए। विभोर और अजीत भी अंदर चले गए थे। अब बैठक में हम सिर्फ़ तीन लोग ही थे।
"आपने जगताप चाचा को इस मामले के बारे में पता लगाने का काम क्यों सौंपा पिता जी?" मैंने पिता जी को कुछ सोचते हुए देखा तो उनसे पूछा____"क्या आपको यकीन है कि वो इस मामले का पूरी ईमानदारी से पता लगाएंगे?"
"हम जानते हैं कि तुम दोनों के मन में इस वक्त कई सवाल होंगे।" पिता जी ने गहरी सांस लेते हुए कहा____"किंतु वक्त और हालात को देखते हुए हमारा ऐसा करना ज़रूरी था। जगताप को भी हमने इसी लिए ये काम सौंपा ताकि उसके मन में ये ख़्याल न उभरे कि हम उस पर संदेह करने लगे हैं। उसे ये काम सौंप कर हमने उसके मन में यही बात बैठाई है कि हमारी नज़र में अभी भी उसकी वही अहमियत है जो हमेशा से रही है। इससे वो खुश भी होगा और अपने काम में लगा भी रहेगा। अगर वो अपनी जगह बेकसूर है तो इस मामले में वो कुछ न कुछ तो करेगा ही और अगर वो हमारे खिलाफ़ है तब भी उसके द्वारा कुछ न कुछ करने से हमें लाभ हो सकता है। उसके लिए ज़रूरी है कि उस पर बारीकी से नज़र रखी जाए।"
"आपको क्या लगता है आज के वक्त में गांव के लोग हमारे बारे में क्या सोचते होंगे?" बड़े भैया ने पिता जी की तरफ देखते हुए थोड़ा झिझकते हुए पूछा____"अभी जिस तरह से गांव के कुछ लोगों ने हवेली में आ कर आपसे ऐसे लहजे में बातें की उससे क्या आपको नहीं लगता कि उनके अंदर से हमारे प्रति मान सम्मान और डर जैसी बात जा चुकी है?"
"हमारी सोच एवं नज़रिए में और तुम्हारी सोच तथा नज़रिए में यही तो फ़र्क है बर्खुरदार।" पिता जी ने हम दोनों को अजीब भाव से देखते हुए कहा____"तुम दोनों वो देख रहे थे जो फिलहाल मायने नहीं रखता था जबकि हम वो देख रहे थे जो उन लोगों में ख़ास नज़र आ रहा था। तुम दोनों ने शायद इस बात पर ध्यान ही नहीं दिया कि गांव के जो लोग आए हुए थे उनमें से सिर्फ़ वही लोग ऐसी बातें कर रहे थे जो रेखा और शीला के कुछ भी नहीं लगते थे। उन लोगों के बीच रेखा का पति मंगल और शीला का पति देवधर दोनों ही मौजूद थे लेकिन उन दोनों ने एक बार भी इस मामले में हमसे कुछ भी नहीं कहा। क्या तुम लोग इस बात को समझते हो कि ऐसा क्यों हुआ होगा?"
पिता जी की बातें सुन कर तथा उनके इस सवाल पर मैं और बड़े भैया एक दूसरे की तरफ देखने लगे और समझने की कोशिश करने लगे। उधर पिता जी हम दोनों की तरफ कुछ देर ख़ामोशी से देखते रहे उसके बाद हल्के से मुस्कुराए।
"हर समय जोश से नहीं बल्कि होश से काम लेना चाहिए।" फिर उन्होंने जैसे हम दोनों भाईयों को समझाते हुए कहा____"जिस वक्त वो लोग उस लहजे में हमसे बातें कर रहे थे उस वक्त हमें भी बुरा लगा था और हमारा भी दिमाग़ ख़राब हुआ था। मन में एकदम से ख़्याल उभर आया था कि उन लोगों की हिम्मत कैसे हुई हमसे ऐसे लहजे में बात करने की लेकिन हमने अपने अंदर मचल उठे गुस्से को रोका और ठंडे दिमाग़ से काम लिया। तभी तो हमें नज़र आया कि उन लोगों के यहां आने का असल मकसद क्या था?"
"आप ये क्या कह रहे हैं पिता जी?" बड़े भैया बोल ही पड़े____"मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा।"
"पर शायद मुझे समझ आ गया है भैया।" मैंने बड़े भैया की तरफ देखते हुए कहा____"शायद पिता जी के कहने का मतलब ये है कि गांव वालों का हवेली में आना और उनके द्वारा हमसे ऐसे लहजे में बात करने के पीछे एक ख़ास कारण है। जैसा कि पिता जी ने कहा उन लोगों में वही लोग हमसे ऐसे लहजे में बातें कर रहे थे और इंसाफ़ की मांग कर रहे थे जो रेखा और शीला के कुछ भी नहीं लगते थे जबकि रेखा और शीला दोनों के ही पति चुप थे। इसका मतलब ये हुआ कि किसी ने उनमें से कुछ लोगों को हमारे खिलाफ़ भड़काया है।"
"तुम्हारे कहने का मतलब है कि सरजू कलुआ और रंगा तीनों ऐसे व्यक्ति थे जिन्हें हमारे खिलाफ़ भड़काया गया है?" बड़े भैया ने हैरानी से मेरी तरफ देखते हुए कहा तो मैंने कहा_____"बिलकुल, शायद यही सच पिता जी हमसे ज़ाहिर करना चाहते हैं।"
"हां, लेकिन ज़रूरी नहीं कि सिर्फ सरजू कलुआ और रंगा ही ऐसे व्यक्ति हैं जिन्हें हमारे खिलाफ़ भड़काया गया होगा।" पिता जी ने कहा_____"संभव है कि गांव के कुछ और लोगों को भी इसी तरह भड़काया गया हो। अभी तो फिलहाल तीन लोग ही नज़र में आए हैं लेकिन इसमें कोई शक नहीं कि ये हमारे लिए निहायत ही गंभीर बात है। उन तीनों की भड़काने वाली बातों से मंगल और देवधर उस वक्त कुछ बोले नहीं थे इससे उन लोगों को अपने मकसद में आगे बढ़ने का अवसर नहीं मिला था लेकिन ऐसी स्थिति हमेशा नहीं रहने वाली है। अगर सच में उनका इरादा मंगल और देवधर को हमारे खिलाफ़ कर देना ही है तो वो देर सवेर अपने इस इरादे में ज़रूर सफल हो जाएंगे।"
"ये तो सच में विकट समस्या वाली बात हो गई पिता जी।" बड़े भैया गंभीरता से कह उठे____"ऐसी स्थिति में अब हमें क्या करना चाहिए?"
"हमें सरजू कलुआ और रंगा पर नज़र रखनी होगी।" पिता जी ने कहा____"वो भी कुछ इस तरीके से कि उन्हें खुद पर नज़र रखी जाने की भनक तक न लग सके। अगर वाकई में उन तीनों के इरादे नेक नहीं हैं और वो किसी के कहने पर ही ऐसा कर रहे हैं तो ज़रूर उन पर नज़र रखे जाने से हमें कुछ न कुछ फ़ायदा मिलेगा।"
"फिर तो हमें जल्द ही अपने कुछ भरोसे के आदमियों को उन पर नज़र रखने के काम पर लगा देना चाहिए पिता जी।" मैंने जोशपूर्ण भाव से कहा____"हमारे पास फिलहाल अपने असल दुश्मन तक पहुंचने का कोई रास्ता या सुराग़ नहीं है तो अगर इस तरह में हमारे हाथ कुछ लग जाता है तो ये बड़ी बात ही होगी।"
कुछ देर और इस संबंध में पिता जी से हमारी बातें हुईं उसके बाद हम दोनों भाई बैठक से चले गए। एक तरफ जहां मैं इस मामले से गंभीर सोच में डूब गया था वहीं दूसरी तरफ इस बात से खुश भी था कि मेरे बड़े भैया अब मेरे साथ थे और ऐसे मामले में वो भी हमारे साथ क़दम से क़दम मिला कर चल रहे थे।
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