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Adultery ☆ प्यार का सबूत ☆ (Completed)

What should be Vaibhav's role in this story..???

  • His role should be the same as before...

    Votes: 19 9.9%
  • Must be of a responsible and humble nature...

    Votes: 22 11.5%
  • One should be as strong as Dada Thakur...

    Votes: 75 39.3%
  • One who gives importance to love over lust...

    Votes: 44 23.0%
  • A person who has fear in everyone's heart...

    Votes: 31 16.2%

  • Total voters
    191

juhi gupta

Member
263
1,151
139
शानदार अपडेट,
रूपा और कुमुद ने हवेली पहुच का दादा ठाकुर को वैभव पर होने वाले हमले की खबर पहुचा दी है।
दादा ठाकुर खुश भी है कि रूपा ने इतनी रात में उन्हें ये इतला दी। रूपा ने उन्हें अपनी कसम देकर अपने घर वालो को न बताने के बारे में मना लिया। रूपा ने बहुत अच्छे से अपने ताऊजी पर शके वाली बात छुपा ली।
उधर वैभव अपनी रास लीला में मग्न है लेकिन रात में अनुराधा का खयाल आने पर खुद ही अपने चरित्र के बारे में सोच रहा है और अनुराधा उसे सही लगती है और खुद गलत
उधर दादा ठाकुर शिवा को चंद्रपुर भेजने के लिए उसके कमरे पर पहुच गए और तुरन्त चंद्रपुर जाने को कहा,
अब आगे के लिए अगले अपडेट की प्रतिक्षा रहेगा
दोस्तो, कहानी का अगला अध्याय - 59 पोस्ट कर दिया है। आशा है आप सभी को पसंद आएगा। आप सबकी समीक्षा अथवा विचारों का इंतज़ार रहेगा... :love:
khushi ki baat he aap vapas aa gaye ,hamesha ki tarah bahut shandaar update,plz ab lagatar likhiyega
 

Iron Man

Try and fail. But never give up trying
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@09vk

Member
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123
अध्याय - 59
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अब तक....

जगताप के कहने पर शेरा ने उस काले नकाबपोश को उस खाली कमरे में एक तरफ डाल दिया। काले नकाबपोश के चेहरे पर अभी भी काला नक़ाब था जिसे जगताप ने एक झटके से उतार दिया। कमरे में एक तरफ लालटेन का प्रकाश था इस लिए उस प्रकाश में जगताप ने उस आदमी को देखा। काला नकाबपोश उसे इस गांव का नहीं लग रहा था। जगताप की नज़र उसके एक हाथ पर पड़ी जो टूटा हुआ था। उसने पलट कर शेरा की तरफ देखा तो शेरा ने बताया कि मुकाबले में उसी ने उसका हाथ तोड़ा है, तभी तो वो उसके हाथ लगा था। ख़ैर, जगताप और शेरा कमरे से बाहर आ गए। जगताप के कहने पर एक दरबान ने उस कमरे के दरवाज़े की कुंडी बंद कर उसमें ताला लगा दिया।

अब आगे....

उस वक्त शाम के क़रीब नौ बजने वाले थे। रूपा अपनी भाभी कुमुद के साथ अपने घर से दिशा मैदान जाने के लिए निकली थी। यूं तो आसमान में आधे से कम चांद था जिसकी वजह से हल्की रोशनी थी किंतु आसमान में काले बादलों ने डेरा जमाना शुरू कर दिया था। ऐसा लगता था जैसे रात के किसी प्रहर बारिश हो सकती थी। काले बादलों ने उस आधे से कम चांद को ढंक रखा था जिसकी वजह से उसकी रोशनी धरती पर नहीं पहुंच पा रही थी। रूपा और कुमुद पर मानों काले बादलों ने मेहरबानी कर रखी थी। घर के पीछे आने के बाद वो दोनों लंबा चक्कर लगाते हुए सीधा हवेली पहुंच गईं थी। कुमुद ने साड़ी से घूंघट किया हुआ था और रूपा ने अपने दुपट्टे को मुंह में लपेट लिया था ताकि रास्ते में अगर कोई मिले भी तो वो उन दोनों को पहचान न सके। दोनों ने अपने अपने लोटे को घर के पीछे ही एक जगह छिपा दिया था।

ननद भौजाई दोनों ही पहली बार हवेली आईं थी। दादा ठाकुर की हवेली के बारे में सुना बहुत था दोनों ने लेकिन कभी यहां आने का कोई अवसर नहीं मिला था। दोनों की धड़कनें बढ़ी हुईं थी। कुमुद कई बार रूपा को बोल चुकी थी कि कहीं हम किसी के द्वारा पकड़े न जाएं इस लिए वापस घर लौट चलते हैं लेकिन रूपा ने तो जैसे ठान लिया था कि अब तो वो हवेली जा कर दादा ठाकुर को सब कुछ बता कर ही रहेगी।

हवेली के हाथी दरवाज़े के पास पहुंच कर दोनों ही रुक गईं। हल्के अंधेरे में उन्हें हाथी दरवाज़े के पार दूर हवेली बनी हुई नज़र आई जो अंधेरे में बड़ी ही अजीब और भयावह सी नज़र आ रही थी। कुछ देर तक दोनों इधर उधर देखती रहीं उसके बाद आगे बढ़ चलीं। दोनों की धड़कनें पहले से और भी ज़्यादा तेज़ हो गईं। अभी दोनों ने हाथी दरवाज़े को पार ही किया था कि सहसा एक तेज़ मर्दाना आवाज़ को सुन कर दोनों के होश उड़ गए। घबराहट के मारे पलक झपकते ही दोनों का बुरा हाल हो गया।

"कौन हो तुम दोनों?" सहसा एक आदमी अंधेरे में दोनों के सामने किसी जिन्न की तरह नमूदार हो कर कड़क आवाज़ में बोला____"और इस वक्त कहां जा रही हो?"

"ज...जी वो हमें दादा ठाकुर से मिलना है।" कुमुद से पहले रूपा ने हिम्मत जुटा कर धीमें स्वर में कहा।
"दादा ठाकुर से??" वो आदमी जोकि हवेली का दरबान था चौंकते हुए दोनों को देखा____"तुम दोनों को भला उनसे क्या काम है?"

"देखिए हमारा उनसे मिलना बहुत ही ज़रूरी है।" रूपा ने अपनी बढ़ी हुई धड़कनों को काबू करते हुए कहा____"आप कृपया हमें दादा ठाकुर के पास पहुंचा दीजिए।"
"अरे! ऐसे कैसे भला?" दरबान ने हाथ झटकते हुए संदिग्ध भाव से कहा____"पहले तुम दोनों ये बताओ कि कौन हो और रात के इस वक्त अंधेरे में कहां से आई हो?"

"देखिए आप समझ नहीं रहे हैं।" कुमुद ने सहसा आगे बढ़ कर कहा____"आपके लिए ये जानना ज़रूरी नहीं है कि हम कौंन है और कहां से आए हैं, बल्कि ज़रूरी ये है कि आप हमें जल्द से जल्द दादा ठाकुर के पास पहुंचा दीजिए।"

"आप हमें ग़लत मत समझिए।" रूपा ने कहा____"असल में बात कुछ ऐसी है कि हम सिर्फ़ दादा ठाकुर को ही बता सकते हैं। कृपा कर के आप या तो हमें दादा ठाकुर के पास पहुंचा दीजिए या फिर आप ख़ुद ही जा कर दादा ठाकुर को बता दीजिए कि कोई उनसे मिलने आया है।"

दरबान दोनों की बात सुन कर सोच में पड़ गया। रात के इस वक्त दो औरतों का हवेली में आना उसके लिए हैरानी की बात थी किंतु आज कल जो हालात थे उसका उसे भी थोड़ा बहुत पता था इस लिए उसने सोचा कि एक बार दादा ठाकुर को इस बारे में सूचित ज़रूर करना चाहिए।

"ठीक है।" फिर उसने थोड़ा नम्र भाव से कहा___"तुम दोनों यहीं रुको। मैं दादा ठाकुर को तुम दोनों के बारे में सूचित करता हूं। अगर उन्होंने तुम दोनों को बुलाया तो मैं तुम दोनों को अंदर उनके पास ले चलूंगा।"

दरबान की बात सुन कर दोनों ने हां में सिर हिलाया। उसके बाद दरबान दोनों को यहीं रुकने का बोल कर तेज़ कदमों के साथ हवेली की तरफ बढ़ता चला गया। इधर कुमुद और रूपा अंधेरे में इधर उधर देखने लगीं थी। उन्हें डर भी लग रहा था कि कहीं कोई गड़बड़ न हो जाए अथवा वो दोनों किसी ऐसे आदमी के द्वारा न पकड़ी जाएं जो उन्हें पहचानता हो। दूसरा डर इस बात का भी था कि अगर दोनों को घर लौटने में ज़्यादा देर हो गई तो वो दोनों घर वालों को क्या जवाब देंगी?

ख़ैर कुछ ही देर में दरबान लगभग दौड़ता हुआ आया और हांफते हुए दोनों से अंदर चलने को कहा। दरबान के द्वारा अंदर चलने की बात सुन कर दोनों ने राहत की लंबी सांस ली और फिर दरबान के पीछे पीछे हवेली की तरफ बढ़ चलीं। कुछ ही समय में दोनों उस दरबान के साथ हवेली के अंदर बैठक में पहुंच गईं। दोनों के दिल बुरी तरह धड़क रहे थे। दरबान उन दोनों को बैठक में छोड़ कर बाहर चला गया था। बैठक में इस वक्त कोई नहीं था। दोनों अपनी घबराहट को काबू करने का प्रयास करते हुए बैठक की दीवारों को देखने लगीं थी। तभी सहसा किसी के आने की आहट से दोनों चौंकीं और फ़ौरन ही पलट कर पीछे देखा। नज़र एक ऐसी शख्सियत पर पड़ी जिनके लंबे चौड़े और हट्टे कट्टे बदन पर सफ़ेद कुर्ता पजामा था। कुर्ते के ऊपर उन्होंने एक साल ओढ़ रखा था। चेहरे पर रौब और तेज़ का मिला जुला संगम था। बड़ी बड़ी मूंछें और क़रीब तीन अंगुल की दाढ़ी जिनके बाल आधे से थोड़ा कम सफ़ेद नज़र आ रहे थे।

"कौन हैं आप दोनों?" दादा ठाकुर ने अपने सिंहासन पर बैठने के बाद बड़े नम्र भाव से दोनों की तरफ देखते हुए पूछा____"और रात के इस वक्त हमसे क्यों मिलना चाहती थीं?"

दादा ठाकुर की आवाज़ से दोनों को होश आया तो दोनों हड़बड़ा गईं और फिर खुद को सम्हाले हुए आगे बढ़ कर एक एक कर के दोनों ने झुक कर दादा ठाकुर के पांव छुए। दादा ठाकुर दोनों को ये करते देख हल्के से चौंके किन्तु फिर सामान्य भाव से दोनों को आशीर्वाद दिया। कुमुद ने तो उनके सामने घूंघट कर रखा था लेकिन रूपा ने अपने चेहरे से दुपट्टा हटा लिया।

"मैं रूपा हूं दादा ठाकुर।" रूपा ने अपनी घबराहट को काबू करते हुए कहा____"मेरे पिता जी का नाम हरि शंकर है और ये मेरी भाभी कुमुद हैं।"
"हरि शंकर??" दादा ठाकुर एकदम से चौंके, फिर हैरानी से बोले___"अच्छा अच्छा, तुम साहूकार हरि शंकर की बेटी हो? हमें लग ही रहा था कि कहीं तो तुम्हें देखा है। ख़ैर, ये बताओ बेटी कि रात के इस वक्त इस तरह से यहां आने का क्या कारण है? अगर कोई बात थी तो सुबह दिन के उजाले में भी तुम आ सकती थी यहां।"

"सुबह दिन के उजाले में आती तो शायद देर हो जाती दादा ठाकुर।" रूपा ने बेचैन भाव से कहा____"इस लिए रात के इस वक्त यहां आना पड़ा हम दोनों को।"

"हम कुछ समझे नहीं बेटी।" दादा ठाकुर के चेहरे पर उलझन के भाव उभर आए थे, बोले____"आख़िर ऐसी क्या बात थी जिसके लिए तुम दोनों को रात के इस वक्त यहां आना पड़ा। एक बात और, तुम हमें दादा ठाकुर नहीं बल्कि ताऊ जी कह सकती हो। हम दादा ठाकुर दूसरों के लिए हैं, जबकि तुम तो हमारे घर परिवार जैसी ही हो। ख़ैर, अब बताओ बात क्या है?"

"वो बात ये है ताऊ जी कि आपके छोटे बेटे की जान को ख़तरा है।" रूपा ने अपनी बढ़ी हुई धड़कनों को बड़ी मुश्किल से सम्हालते हुए कहा____"अगर हम सुबह आते तो बहुत देर हो जाती इस लिए हम आपको इस बारे में बताने के लिए फ़ौरन यहां चले आए।"

"हमारे बेटे की जान को ख़तरा है?" दादा ठाकुर बुरी तरह चौंके____"ये क्या कह रही हो बेटी?"
"मैं सच कह रही हूं ताऊ जी।" रूपा ने कहा।

"पर तुम्हें कैसे पता कि हमारे बेटे की जान को ख़तरा है?" दादा ठाकुर बुरी तरह हैरान थे कि रूपा जैसी लड़की को इतनी बड़ी बात कैसे पता चली? उसी हैरानी से उसकी तरफ देखते हुए बोले____"हम तुमसे जानना चाहते हैं बेटी कि इतनी बड़ी बात तुम्हें कहां से और कैसे पता चली?"

रूपा ने एक बार कुमुद की तरफ देखा और फिर गहरी सांस ले कर सब कुछ दादा ठाकुर को बताना शुरू कर दिया। उसने ये नहीं बताया कि वैभव को ख़त्म करने के लिए कहने वाला खुद उसका ताऊ मणि शंकर था। सारी बातें सुनने के बाद दादा ठाकुर गहरी सोच में डूब गए। सबसे ज़्यादा उन्हें ये सोच कर हैरानी हो रही थी कि इतनी बड़ी बात को बताने के लिए साहूकार हरि शंकर की बेटी अपनी भाभी के साथ रात के वक्त हवेली आ गई थी।

"इतनी बड़ी बात बता कर तुमने हम पर बहुत बड़ा उपकार किया है बेटी।" दादा ठाकुर ने गंभीर भाव से कहा____"तुम्हारे इस उपकार का बदला हम अपनी जान दे कर भी नहीं चुका सकते। बस यही दुआ करते हैं कि ऊपर वाला तुम्हें हमेशा खुश रखे लेकिन बेटी इसके लिए तुम दोनों को खुद रात के इस वक्त यहां आने की क्या ज़रूरत थी? हमारा मतलब है कि ये बात तुम अपने पिता जी अथवा ताऊ जी को बताती। वो खुद हमारे पास आ कर हमसे ये सब बता सकते थे। इसके लिए तुम्हें खुद इतनी तकलीफ़ उठाने की क्या ज़रूरत थी?"

"मैंने उस वक्त जब ये सब सुना था तो मुझे समझ ही नहीं आया था कि क्या करूं?" दादा ठाकुर की बात सुन कर रूपा अंदर ही अंदर बुरी तरह घबरा गई थी, किंतु फिर जल्दी ही खुद को सम्हाले हुए बोली____"मेरे साथ कुमुद भाभी भी थीं तो मैंने इन्हें बताया। हम दोनों ने निश्चय किया कि जितना समय हमें अपने घर वालों को ये सब बताने में लगेगा उतने में तो हम खुद ही यहां आ कर आपको सब कुछ बता सकते हैं।"

"ख़ैर जो भी किया तुम दोनों ने बहुत ही अच्छा किया है।" दादा ठाकुर ने कहा____"और इसके लिए हम तुम दोनों से बेहद प्रसन्न हैं। हम अपने बेटे की जान को बचाने के लिए जल्द ही कुछ न कुछ करेंगे। ये सब होने के बाद हम तुम्हारे पिता और ताऊ से भी मिलेंगे और उन्हें खुशी खुशी बताएंगे कि उनकी बहू और बेटी ने हम पर कितना बड़ा उपकार किया है।"

"नहीं नहीं ताऊ जी।" रूपा बुरी तरह घबरा गई, फिर खुद को सम्हाले हुए बोली____"आप ये सब बातें हमारे पिता जी को या ताऊ जी को बिलकुल भी मत बताइएगा।"

"अरे! ये कैसी बात कर रही हो बेटी?" दादा ठाकुर ने हैरानी से कहा____"तुम दोनों ने हम पर इतना बड़ा उपकार किया है और हम तुम्हारे इतने बड़े उपकार को तुम्हारे ही घर वालों को न बताएं ये तो बिल्कुल भी उचित नहीं है। आख़िर तुम्हारे पिता और ताऊ जी को भी तो पता चलना चाहिए कि उनकी तरह उनकी बहू बेटी भी हमारे प्रति वफ़ादार हैं और हमारे अच्छे के लिए सोचती हैं। तुम चिंता मत करो बेटी, देखना ये सब जान कर तुम्हारे घर वाले भी बहुत प्रसन्न हो जाएंगे।"

"नहीं ताऊ जी।" रूपा का मारे घबराहट के बुरा हाल हो गया था, किसी तरह बोली____"मैं आपसे विनती करती हूं कि आप इस बारे में मेरे घर वालों में से किसी को भी कुछ मत बताइएगा। मेरे घर वाले बहुत ज़्यादा पुराने विचारों वाले हैं। अगर उन्हें पता चला कि उनके घर की बेटी और बहू रात के वक्त उनकी गैर जानकारी में हवेली गईं थी तो वो हम पर बहुत ही ज़्यादा नाराज़ हो जाएंगे।"

"ऐसा कुछ भी नहीं होगा बेटी।" दादा ठाकुर ने मानो उसे आश्वासन दिया____"तुम दोनों को इस बारे में फ़िक्र करने की कोई ज़रूरत नहीं है। हम उन्हें समझाएंगे कि तुम दोनों ने रात के वक्त हवेली में आ कर कोई अपराध नहीं किया है बल्कि हवेली में रहने वाले दादा ठाकुर पर उपकार किया है। हमें यकीन है कि ये बात जान कर उन सबका सिर गर्व से ऊंचा हो जाएगा।"

"आप मुझे बेटी कह रहे हैं ना ताऊ जी।" रूपा ने इस बार अधीरता से कहा____"तो इस बेटी की बात मान लीजिए ना। आप हमारे घर वालों को इस बारे में कुछ भी नहीं बताएंगे, आपको हम दोनों की क़सम है ताऊ जी।"

"बड़ी हैरत की बात है।" दादा ठाकुर ने चकित भाव से कहा____"ख़ैर, अगर तुम ऐसा नहीं चाहती तो ठीक है हम इस बारे में किसी को कुछ नहीं बताएंगे। तुमने हमें क़सम दे दी है तो हम तुम्हारी क़सम का मान रखेंगे।"

"आपका बहुत बहुत धन्यवाद ताऊ जी।" रूपा ने कहने के साथ ही दादा ठाकुर के पैर छुए और फिर खड़े हो कर कहा____"अब हमें जाने की इजाज़त दीजिए। काफी देर हो गई है हमें।"

रूपा के बाद कुमुद ने भी दादा ठाकुर के पांव छुए और फिर दादा ठाकुर की इजाज़त ले कर हवेली से बाहर निकल गईं। दादा ठाकुर हवेली के मुख्य दरवाज़े तक उन्हें छोड़ने आए। कुछ ही देर में दोनों अंधेरे में गायब हो गईं। उनके जाने के बाद दादा ठाकुर गहरी सोच और चिंता में डूब गए। उनके ज़हन में ख़्याल उभरा कि वैभव की जान को ख़तरा है अतः उन्हें जल्द से जल्द कुछ करना होगा। रूपा के अनुसार वैभव को जान से मारने वाला सुबह ही चंदनपुर के लिए रवाना हो जाएगा। दादा ठाकुर के मन में सवाल उभरा कि ऐसा कौन हो सकता है जो उनके बेटे को जान से मारने के लिए सुबह ही चंदनपुर के लिए निकलने वाला है? क्या वो इसी गांव का है या फिर किसी दूसरे गांव का?

✮✮✮✮

"वैभव महाराज कहां चले गए थे आप?" मैं जैसे ही घर पहुंचा तो वीरेंद्र ने पूछा____"हमने सोचा एक साथ ही दिशा मैदान के लिए चलेंगे पर आप तो जाने कहां गायब हो गए थे?"

"जी वो गांव तरफ घूमने निकल गया था।" मैंने सामान्य भाव से कहा____"सोचा आप सब व्यस्त हैं तो अकेला ही घूम फिर आता हूं। वैसे आप फ़िक्र न करें, यहां से निकला तो राघव भैया मिल गए। उन्हीं से दरबार होने लगी तो समय का पता ही नहीं चला।"

"चलिए कोई बात नहीं।" वीरेंद्र ने कहा____"अगर आपको दिशा मैदान के लिए चलना हो तो चलिए मेरे साथ।"
"नहीं, अब तो सुबह ही जाऊंगा।" मैंने कहा____"आप फुर्सत हो आइए। मैं यहीं बाबू जी के पास बैठता हूं।"

वीरेंद्र सिर हिला कर निकल गया और मैं अंदर आ कर बैठक में भाभी के पिता जी के पास बैठ गया। बैठक में और भी कुछ लोग बैठे हुए थे जिनसे बाबू जी ने मेरा परिचय कराया। अब क्योंकि मैं भी दामाद ही था इस लिए सबने मेरे पांव छुए। मुझे अपने से बड़ों का इस तरह से पांव छूना अजीब लगता था लेकिन क्या करें उनका अपना धर्म था। सब मेरा और मेरे पिता जी का हाल चाल पूछते रहे उसके बाद गांव के लोग चले गए।

रात में हम सबने साथ ही भोजन किया। भाभी और भाभी की छोटी बहन कामिनी रसोई में थी जबकि वीरेंद्र की पत्नी अपने कमरे में अपने नन्हें से बच्चे के साथ थी। खाना परोसने का काम कंचन और मोहिनी कर रहीं थी। बड़े भैया के चाचा ससुर भी हम सबके साथ खाना खाने के लिए बैठे हुए थे। मैंने महसूस किया कि कंचन मुझसे नज़रें चुरा रही थी। ज़ाहिर था आज शाम को जो कुछ हमारे बीच हुआ था उससे उसका नज़रें चुराना लाज़मी था। मैं उसे पूरी तरह से नंगा देख चुका था और इस वजह से वो मेरे सामने शर्मा रही थी। आस पास सब लोग थे इस लिए उससे मैं कुछ कह नहीं सकता था वरना उसकी अच्छी खासी खिंचाई करता। ख़ैर जल्दी ही हम सब का खाना हो गया तो हम सब उठ गए।

गर्मी का मौसम था इस लिए घर के बाहर ही चारपाई लगा कर हम सबके सोने की व्यवस्था की गई। मेरे साथ जो आदमी आए थे उन सबको वीरेंद्र ने भोजन करवाया और उन लोगों को भी घर के बाहर ही अलग अलग चारपाई पर सोने की व्यवस्था कर दी। कुछ देर हम सब बातें करते रहे उसके बाद सोने के लिए लेट गए।

मुझे नींद नहीं आ रही थी। आंखों के सामने बार बार जमुना के साथ हुई चुदाई का दृश्य उजागर हो जाता था जिसके चलते मेरा रोम रोम रोमांच से भर जाता था। सुषमा और कंचन के नंगे जिस्म भी आंखों के सामने उजागर हो जाते थे। मैं सोचने लगा कि अब जब दोनों से दुबारा अकेले में मुलाक़ात होगी तो वो दोनों कैसा बर्ताव करेंगी? मैं इस बारे में सोच जी रहा था कि सहसा मुझे अनुराधा का ख़्याल आ गया।

अनुराधा का ख़्याल आया तो एकदम से मेरे दिलो दिमाग़ में अजीब से ख़्याल उभरने लगे। मैं सोचने लगा कि इस वक्त वो भी चारपाई पर लेटी होगी। मेरे मन में सवाल उभरा कि क्या वो भी मेरे बारे में सोचती होगी? मुझे याद आया कि उस दिन उसने कितनी बेरुखी से मुझसे बातें की थी और फिर मुझे वो सब कह कर उसके घर से चले जाना पड़ा था। क्या सच में अनुराधा को यही लगता है कि मैं बाकी लड़कियों की तरह ही उसे अपने जाल में फंसाना चाहता हूं? इस सवाल पर मैं विचार करने लगा। कुछ देर सोचने के बाद सहसा मुझे कुछ आभास हुआ। मैंने सोचा, अगर वो मेरे बारे में ऐसा सोचती है तो क्या ग़लत सोचती है? माना कि ये सिर्फ मैं जानता हूं कि मैं उसके बारे में कुछ भी ग़लत नहीं सोचता हूं लेकिन इस बात को भी तो नकारा नहीं जा सकता कि मेरा चरित्र पहले जैसा ही है।

एकदम से मुझे आभास हुआ कि मैं अपने उसी चरित्र की वजह से अभी कुछ घंटे पहले जमुना के साथ ग़लत काम कर के आया हूं और ये भी सच ही है कि जमुना के अलावा मैं सुषमा और कंचन को भी भोगने की हसरत पाले बैठा हूं। भला ये क्या बात हुई कि एक तरफ मैं अनुराधा की नज़र में अच्छा इंसान बनने का दिखावा कर रहा हूं वहीं दूसरी तरफ मैं अभी भी पहले की तरह हर लड़की और हर औरत को भोगने की ख़्वाइश रखे हुए हूं? इस बात के एहसास ने एकदम से मुझे सोचो के गहरे समुद्र में डुबा दिया। मैंने सोचा, अनुराधा ने अगर मुझसे वो सब कहा तो क्या ग़लत कहा था? मैं तो आज भी वैसा ही हूं जैसा हमेशा से था। फिर मैं अनुराधा से ये क्यों कहता हूं कि उसने मुझे मुकम्मल तौर पर बदल दिया है? क्या सच में मैं बदल गया हूं? नहीं, बिल्कुल नहीं बदला हूं मैं। अगर सच में बदल गया होता तो आज ना तो मैं सुषमा और कंचन को भोगने की इच्छा रखता और ना ही जमुना के साथ वो सब करता। इसका मतलब अनुराधा से मैंने अपने बदल जाने के बारे में जो कुछ कहा वो सब झूठ था। इस सबके बावजूद मैं ये ख़्वाइश रखता हूं कि अनुराधा मुझे समझे और वही करे जो मैं उससे चाहता हूं।

अचानक से मैंने महसूस किया कि मेरे दिलो दिमाग़ में आंधियां सी चलने लगीं हैं। एक अजीब सा द्वंद चलने लगा था मेरे अंदर जिसकी वजह से एकदम से मुझे अजीब सा लगने लगा। मैंने बेचैनी और बेबसी से चारपाई पर करवट बदली और ज़हन से इन सारी बातों को निकालने की कोशिश करने लगा मगर जल्दी ही आभास हुआ कि ये इतना आसान नहीं है। काफी देर तक मैं इन सारी बातों की वजह से परेशान और व्यथित रहा और फिर ना जाने कब मेरी आंख लग गई।

✮✮✮✮

"मालिक आप यहां?" शेरा ने दरवाज़ा खोला और जैसे ही उसकी नज़र बाहर खड़े दादा ठाकुर पर पड़ी तो आश्चर्य से बोल पड़ा था____"अगर मेरे लिए कोई हुकुम था तो किसी आदमी के द्वारा मुझे बोलवा लिया होता। आपने यहां आने का कष्ट क्यों किया मालिक?"

"कोई बात नहीं शेरा।" दादा ठाकुर ने दरवाज़े के अंदर दाख़िल होते हुए कहा____"वैसे भी बात ऐसी है कि उसके लिए हमारा खुद ही यहां आना ज़रूरी था।"

शेरा ने फटाफट चारपाई को सरका कर दादा ठाकुर के पास रखा तो दादा ठाकुर उस पर बैठ गए। ये पहला अवसर था जब दादा ठाकुर शेरा जैसे अपने किसी गुलाम के घर आए थे। दादा ठाकुर ने एक नज़र घर की दीवारों पर डाली और फिर शेरा की तरफ देखा।

"तुम्हें इसी वक्त चंदनपुर जाना होगा शेरा।" फिर उन्होंने गंभीर भाव से कहा____"अपने साथ कुछ आदमियों को भी ले जाना। असल में हमें अभी कुछ देर पहले ही पता चला है कि वैभव की जान को ख़तरा है। हम नहीं जानते कि वो कौन लोग हैं लेकिन इतना ज़रूर पता चला है कि वो सुबह ही चंदनपुर जाएंगे और वहां वैभव पर जानलेवा हमला करेंगे। तुम्हारा काम वैभव की जान को बचाना ही नहीं बल्कि उन लोगों को पकड़ना भी है जो वैभव को जान से मारने के इरादे से वहां पहुंचेंगे।"

"आप फ़िक्र मत कीजिए मालिक।" शेरा ने गर्मजोशी से कहा____"मेरे रहते छोटे ठाकुर को कोई छू भी नहीं सकेगा। मैं अपनी जान दे कर भी छोटे ठाकुर की रक्षा करूंगा और उन लोगों को पकडूंगा।"

"बहुत बढ़िया।" दादा ठाकुर ने शाल के अंदर से कुछ निकाल कर शेरा की तरफ बढ़ाते हुए कहा____"इसे अपने पास रखो और साथ में इस पोटली को भी लेकिन ध्यान रहे इसका स्तेमाल तभी करना जब बहुत ही ज़रूरी हो जाए।"

शेरा ने दादा ठाकुर के हाथ से कपड़े में लिपटी दोनों चीजें ले ली। शेरा ने एक चीज़ से कपड़ा हटाया तो देखा उसमें एक रिवॉल्वर था। दूसरी कपड़े की पोटली कुछ वजनी थी और उसमें से कुछ खनकने की आवाज़ भी आई। शेरा समझ गया कि उसमें रिवॉल्वर की गोलियां हैं।

"हमें पूरी उम्मीद है कि तुम अपना काम पूरी सफाई से और पूरी सफलता से करोगे।" दादा ठाकुर ने चारपाई से उठते हुए कहा____"कोशिश यही करना कि वो हमलावर ज़िंदा तुम्हारे हाथ लग जाएं।"

"मैं पूरी कोशिश करूंगा मालिक।" शेरा ने कहा____"मैं अभी इसी समय कुछ आदमियों को ले कर चांदपुर के लिए निकल जाऊंगा।"
"अगर वहां के हालात काबू से बाहर समझ में आएं तो फ़ौरन किसी के द्वारा हमें सूचना भेजवा देना।" दादा ठाकुर ने कहा____"चंदनपुर का सफ़र लंबा है इस लिए तुम हरिया के अस्तबल से घोड़े ले लेना।"

दादा ठाकुर की बात सुन कर शेरा ने सिर हिलाया और फिर उन्हें प्रणाम किया। दादा ठाकुर ने उसे विजयी होने का आशीर्वाद दिया और फिर दरवाज़े से बाहर निकल गए। दादा ठाकुर के जाने के बाद शेरा ने फ़ौरन ही अपने कपड़े पहने और कपड़ों की जेब में रिवॉल्वर के साथ दूसरी पोटली डालने के बाद घर से बाहर निकल गया।


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Nice update 👍
 

kamdev99008

FoX - Federation of Xossipians
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अध्याय - 59
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अब तक....

जगताप के कहने पर शेरा ने उस काले नकाबपोश को उस खाली कमरे में एक तरफ डाल दिया। काले नकाबपोश के चेहरे पर अभी भी काला नक़ाब था जिसे जगताप ने एक झटके से उतार दिया। कमरे में एक तरफ लालटेन का प्रकाश था इस लिए उस प्रकाश में जगताप ने उस आदमी को देखा। काला नकाबपोश उसे इस गांव का नहीं लग रहा था। जगताप की नज़र उसके एक हाथ पर पड़ी जो टूटा हुआ था। उसने पलट कर शेरा की तरफ देखा तो शेरा ने बताया कि मुकाबले में उसी ने उसका हाथ तोड़ा है, तभी तो वो उसके हाथ लगा था। ख़ैर, जगताप और शेरा कमरे से बाहर आ गए। जगताप के कहने पर एक दरबान ने उस कमरे के दरवाज़े की कुंडी बंद कर उसमें ताला लगा दिया।

अब आगे....

उस वक्त शाम के क़रीब नौ बजने वाले थे। रूपा अपनी भाभी कुमुद के साथ अपने घर से दिशा मैदान जाने के लिए निकली थी। यूं तो आसमान में आधे से कम चांद था जिसकी वजह से हल्की रोशनी थी किंतु आसमान में काले बादलों ने डेरा जमाना शुरू कर दिया था। ऐसा लगता था जैसे रात के किसी प्रहर बारिश हो सकती थी। काले बादलों ने उस आधे से कम चांद को ढंक रखा था जिसकी वजह से उसकी रोशनी धरती पर नहीं पहुंच पा रही थी। रूपा और कुमुद पर मानों काले बादलों ने मेहरबानी कर रखी थी। घर के पीछे आने के बाद वो दोनों लंबा चक्कर लगाते हुए सीधा हवेली पहुंच गईं थी। कुमुद ने साड़ी से घूंघट किया हुआ था और रूपा ने अपने दुपट्टे को मुंह में लपेट लिया था ताकि रास्ते में अगर कोई मिले भी तो वो उन दोनों को पहचान न सके। दोनों ने अपने अपने लोटे को घर के पीछे ही एक जगह छिपा दिया था।

ननद भौजाई दोनों ही पहली बार हवेली आईं थी। दादा ठाकुर की हवेली के बारे में सुना बहुत था दोनों ने लेकिन कभी यहां आने का कोई अवसर नहीं मिला था। दोनों की धड़कनें बढ़ी हुईं थी। कुमुद कई बार रूपा को बोल चुकी थी कि कहीं हम किसी के द्वारा पकड़े न जाएं इस लिए वापस घर लौट चलते हैं लेकिन रूपा ने तो जैसे ठान लिया था कि अब तो वो हवेली जा कर दादा ठाकुर को सब कुछ बता कर ही रहेगी।

हवेली के हाथी दरवाज़े के पास पहुंच कर दोनों ही रुक गईं। हल्के अंधेरे में उन्हें हाथी दरवाज़े के पार दूर हवेली बनी हुई नज़र आई जो अंधेरे में बड़ी ही अजीब और भयावह सी नज़र आ रही थी। कुछ देर तक दोनों इधर उधर देखती रहीं उसके बाद आगे बढ़ चलीं। दोनों की धड़कनें पहले से और भी ज़्यादा तेज़ हो गईं। अभी दोनों ने हाथी दरवाज़े को पार ही किया था कि सहसा एक तेज़ मर्दाना आवाज़ को सुन कर दोनों के होश उड़ गए। घबराहट के मारे पलक झपकते ही दोनों का बुरा हाल हो गया।

"कौन हो तुम दोनों?" सहसा एक आदमी अंधेरे में दोनों के सामने किसी जिन्न की तरह नमूदार हो कर कड़क आवाज़ में बोला____"और इस वक्त कहां जा रही हो?"

"ज...जी वो हमें दादा ठाकुर से मिलना है।" कुमुद से पहले रूपा ने हिम्मत जुटा कर धीमें स्वर में कहा।
"दादा ठाकुर से??" वो आदमी जोकि हवेली का दरबान था चौंकते हुए दोनों को देखा____"तुम दोनों को भला उनसे क्या काम है?"

"देखिए हमारा उनसे मिलना बहुत ही ज़रूरी है।" रूपा ने अपनी बढ़ी हुई धड़कनों को काबू करते हुए कहा____"आप कृपया हमें दादा ठाकुर के पास पहुंचा दीजिए।"
"अरे! ऐसे कैसे भला?" दरबान ने हाथ झटकते हुए संदिग्ध भाव से कहा____"पहले तुम दोनों ये बताओ कि कौन हो और रात के इस वक्त अंधेरे में कहां से आई हो?"

"देखिए आप समझ नहीं रहे हैं।" कुमुद ने सहसा आगे बढ़ कर कहा____"आपके लिए ये जानना ज़रूरी नहीं है कि हम कौंन है और कहां से आए हैं, बल्कि ज़रूरी ये है कि आप हमें जल्द से जल्द दादा ठाकुर के पास पहुंचा दीजिए।"

"आप हमें ग़लत मत समझिए।" रूपा ने कहा____"असल में बात कुछ ऐसी है कि हम सिर्फ़ दादा ठाकुर को ही बता सकते हैं। कृपा कर के आप या तो हमें दादा ठाकुर के पास पहुंचा दीजिए या फिर आप ख़ुद ही जा कर दादा ठाकुर को बता दीजिए कि कोई उनसे मिलने आया है।"

दरबान दोनों की बात सुन कर सोच में पड़ गया। रात के इस वक्त दो औरतों का हवेली में आना उसके लिए हैरानी की बात थी किंतु आज कल जो हालात थे उसका उसे भी थोड़ा बहुत पता था इस लिए उसने सोचा कि एक बार दादा ठाकुर को इस बारे में सूचित ज़रूर करना चाहिए।

"ठीक है।" फिर उसने थोड़ा नम्र भाव से कहा___"तुम दोनों यहीं रुको। मैं दादा ठाकुर को तुम दोनों के बारे में सूचित करता हूं। अगर उन्होंने तुम दोनों को बुलाया तो मैं तुम दोनों को अंदर उनके पास ले चलूंगा।"

दरबान की बात सुन कर दोनों ने हां में सिर हिलाया। उसके बाद दरबान दोनों को यहीं रुकने का बोल कर तेज़ कदमों के साथ हवेली की तरफ बढ़ता चला गया। इधर कुमुद और रूपा अंधेरे में इधर उधर देखने लगीं थी। उन्हें डर भी लग रहा था कि कहीं कोई गड़बड़ न हो जाए अथवा वो दोनों किसी ऐसे आदमी के द्वारा न पकड़ी जाएं जो उन्हें पहचानता हो। दूसरा डर इस बात का भी था कि अगर दोनों को घर लौटने में ज़्यादा देर हो गई तो वो दोनों घर वालों को क्या जवाब देंगी?

ख़ैर कुछ ही देर में दरबान लगभग दौड़ता हुआ आया और हांफते हुए दोनों से अंदर चलने को कहा। दरबान के द्वारा अंदर चलने की बात सुन कर दोनों ने राहत की लंबी सांस ली और फिर दरबान के पीछे पीछे हवेली की तरफ बढ़ चलीं। कुछ ही समय में दोनों उस दरबान के साथ हवेली के अंदर बैठक में पहुंच गईं। दोनों के दिल बुरी तरह धड़क रहे थे। दरबान उन दोनों को बैठक में छोड़ कर बाहर चला गया था। बैठक में इस वक्त कोई नहीं था। दोनों अपनी घबराहट को काबू करने का प्रयास करते हुए बैठक की दीवारों को देखने लगीं थी। तभी सहसा किसी के आने की आहट से दोनों चौंकीं और फ़ौरन ही पलट कर पीछे देखा। नज़र एक ऐसी शख्सियत पर पड़ी जिनके लंबे चौड़े और हट्टे कट्टे बदन पर सफ़ेद कुर्ता पजामा था। कुर्ते के ऊपर उन्होंने एक साल ओढ़ रखा था। चेहरे पर रौब और तेज़ का मिला जुला संगम था। बड़ी बड़ी मूंछें और क़रीब तीन अंगुल की दाढ़ी जिनके बाल आधे से थोड़ा कम सफ़ेद नज़र आ रहे थे।

"कौन हैं आप दोनों?" दादा ठाकुर ने अपने सिंहासन पर बैठने के बाद बड़े नम्र भाव से दोनों की तरफ देखते हुए पूछा____"और रात के इस वक्त हमसे क्यों मिलना चाहती थीं?"

दादा ठाकुर की आवाज़ से दोनों को होश आया तो दोनों हड़बड़ा गईं और फिर खुद को सम्हाले हुए आगे बढ़ कर एक एक कर के दोनों ने झुक कर दादा ठाकुर के पांव छुए। दादा ठाकुर दोनों को ये करते देख हल्के से चौंके किन्तु फिर सामान्य भाव से दोनों को आशीर्वाद दिया। कुमुद ने तो उनके सामने घूंघट कर रखा था लेकिन रूपा ने अपने चेहरे से दुपट्टा हटा लिया।

"मैं रूपा हूं दादा ठाकुर।" रूपा ने अपनी घबराहट को काबू करते हुए कहा____"मेरे पिता जी का नाम हरि शंकर है और ये मेरी भाभी कुमुद हैं।"
"हरि शंकर??" दादा ठाकुर एकदम से चौंके, फिर हैरानी से बोले___"अच्छा अच्छा, तुम साहूकार हरि शंकर की बेटी हो? हमें लग ही रहा था कि कहीं तो तुम्हें देखा है। ख़ैर, ये बताओ बेटी कि रात के इस वक्त इस तरह से यहां आने का क्या कारण है? अगर कोई बात थी तो सुबह दिन के उजाले में भी तुम आ सकती थी यहां।"

"सुबह दिन के उजाले में आती तो शायद देर हो जाती दादा ठाकुर।" रूपा ने बेचैन भाव से कहा____"इस लिए रात के इस वक्त यहां आना पड़ा हम दोनों को।"

"हम कुछ समझे नहीं बेटी।" दादा ठाकुर के चेहरे पर उलझन के भाव उभर आए थे, बोले____"आख़िर ऐसी क्या बात थी जिसके लिए तुम दोनों को रात के इस वक्त यहां आना पड़ा। एक बात और, तुम हमें दादा ठाकुर नहीं बल्कि ताऊ जी कह सकती हो। हम दादा ठाकुर दूसरों के लिए हैं, जबकि तुम तो हमारे घर परिवार जैसी ही हो। ख़ैर, अब बताओ बात क्या है?"

"वो बात ये है ताऊ जी कि आपके छोटे बेटे की जान को ख़तरा है।" रूपा ने अपनी बढ़ी हुई धड़कनों को बड़ी मुश्किल से सम्हालते हुए कहा____"अगर हम सुबह आते तो बहुत देर हो जाती इस लिए हम आपको इस बारे में बताने के लिए फ़ौरन यहां चले आए।"

"हमारे बेटे की जान को ख़तरा है?" दादा ठाकुर बुरी तरह चौंके____"ये क्या कह रही हो बेटी?"
"मैं सच कह रही हूं ताऊ जी।" रूपा ने कहा।

"पर तुम्हें कैसे पता कि हमारे बेटे की जान को ख़तरा है?" दादा ठाकुर बुरी तरह हैरान थे कि रूपा जैसी लड़की को इतनी बड़ी बात कैसे पता चली? उसी हैरानी से उसकी तरफ देखते हुए बोले____"हम तुमसे जानना चाहते हैं बेटी कि इतनी बड़ी बात तुम्हें कहां से और कैसे पता चली?"

रूपा ने एक बार कुमुद की तरफ देखा और फिर गहरी सांस ले कर सब कुछ दादा ठाकुर को बताना शुरू कर दिया। उसने ये नहीं बताया कि वैभव को ख़त्म करने के लिए कहने वाला खुद उसका ताऊ मणि शंकर था। सारी बातें सुनने के बाद दादा ठाकुर गहरी सोच में डूब गए। सबसे ज़्यादा उन्हें ये सोच कर हैरानी हो रही थी कि इतनी बड़ी बात को बताने के लिए साहूकार हरि शंकर की बेटी अपनी भाभी के साथ रात के वक्त हवेली आ गई थी।

"इतनी बड़ी बात बता कर तुमने हम पर बहुत बड़ा उपकार किया है बेटी।" दादा ठाकुर ने गंभीर भाव से कहा____"तुम्हारे इस उपकार का बदला हम अपनी जान दे कर भी नहीं चुका सकते। बस यही दुआ करते हैं कि ऊपर वाला तुम्हें हमेशा खुश रखे लेकिन बेटी इसके लिए तुम दोनों को खुद रात के इस वक्त यहां आने की क्या ज़रूरत थी? हमारा मतलब है कि ये बात तुम अपने पिता जी अथवा ताऊ जी को बताती। वो खुद हमारे पास आ कर हमसे ये सब बता सकते थे। इसके लिए तुम्हें खुद इतनी तकलीफ़ उठाने की क्या ज़रूरत थी?"

"मैंने उस वक्त जब ये सब सुना था तो मुझे समझ ही नहीं आया था कि क्या करूं?" दादा ठाकुर की बात सुन कर रूपा अंदर ही अंदर बुरी तरह घबरा गई थी, किंतु फिर जल्दी ही खुद को सम्हाले हुए बोली____"मेरे साथ कुमुद भाभी भी थीं तो मैंने इन्हें बताया। हम दोनों ने निश्चय किया कि जितना समय हमें अपने घर वालों को ये सब बताने में लगेगा उतने में तो हम खुद ही यहां आ कर आपको सब कुछ बता सकते हैं।"

"ख़ैर जो भी किया तुम दोनों ने बहुत ही अच्छा किया है।" दादा ठाकुर ने कहा____"और इसके लिए हम तुम दोनों से बेहद प्रसन्न हैं। हम अपने बेटे की जान को बचाने के लिए जल्द ही कुछ न कुछ करेंगे। ये सब होने के बाद हम तुम्हारे पिता और ताऊ से भी मिलेंगे और उन्हें खुशी खुशी बताएंगे कि उनकी बहू और बेटी ने हम पर कितना बड़ा उपकार किया है।"

"नहीं नहीं ताऊ जी।" रूपा बुरी तरह घबरा गई, फिर खुद को सम्हाले हुए बोली____"आप ये सब बातें हमारे पिता जी को या ताऊ जी को बिलकुल भी मत बताइएगा।"

"अरे! ये कैसी बात कर रही हो बेटी?" दादा ठाकुर ने हैरानी से कहा____"तुम दोनों ने हम पर इतना बड़ा उपकार किया है और हम तुम्हारे इतने बड़े उपकार को तुम्हारे ही घर वालों को न बताएं ये तो बिल्कुल भी उचित नहीं है। आख़िर तुम्हारे पिता और ताऊ जी को भी तो पता चलना चाहिए कि उनकी तरह उनकी बहू बेटी भी हमारे प्रति वफ़ादार हैं और हमारे अच्छे के लिए सोचती हैं। तुम चिंता मत करो बेटी, देखना ये सब जान कर तुम्हारे घर वाले भी बहुत प्रसन्न हो जाएंगे।"

"नहीं ताऊ जी।" रूपा का मारे घबराहट के बुरा हाल हो गया था, किसी तरह बोली____"मैं आपसे विनती करती हूं कि आप इस बारे में मेरे घर वालों में से किसी को भी कुछ मत बताइएगा। मेरे घर वाले बहुत ज़्यादा पुराने विचारों वाले हैं। अगर उन्हें पता चला कि उनके घर की बेटी और बहू रात के वक्त उनकी गैर जानकारी में हवेली गईं थी तो वो हम पर बहुत ही ज़्यादा नाराज़ हो जाएंगे।"

"ऐसा कुछ भी नहीं होगा बेटी।" दादा ठाकुर ने मानो उसे आश्वासन दिया____"तुम दोनों को इस बारे में फ़िक्र करने की कोई ज़रूरत नहीं है। हम उन्हें समझाएंगे कि तुम दोनों ने रात के वक्त हवेली में आ कर कोई अपराध नहीं किया है बल्कि हवेली में रहने वाले दादा ठाकुर पर उपकार किया है। हमें यकीन है कि ये बात जान कर उन सबका सिर गर्व से ऊंचा हो जाएगा।"

"आप मुझे बेटी कह रहे हैं ना ताऊ जी।" रूपा ने इस बार अधीरता से कहा____"तो इस बेटी की बात मान लीजिए ना। आप हमारे घर वालों को इस बारे में कुछ भी नहीं बताएंगे, आपको हम दोनों की क़सम है ताऊ जी।"

"बड़ी हैरत की बात है।" दादा ठाकुर ने चकित भाव से कहा____"ख़ैर, अगर तुम ऐसा नहीं चाहती तो ठीक है हम इस बारे में किसी को कुछ नहीं बताएंगे। तुमने हमें क़सम दे दी है तो हम तुम्हारी क़सम का मान रखेंगे।"

"आपका बहुत बहुत धन्यवाद ताऊ जी।" रूपा ने कहने के साथ ही दादा ठाकुर के पैर छुए और फिर खड़े हो कर कहा____"अब हमें जाने की इजाज़त दीजिए। काफी देर हो गई है हमें।"

रूपा के बाद कुमुद ने भी दादा ठाकुर के पांव छुए और फिर दादा ठाकुर की इजाज़त ले कर हवेली से बाहर निकल गईं। दादा ठाकुर हवेली के मुख्य दरवाज़े तक उन्हें छोड़ने आए। कुछ ही देर में दोनों अंधेरे में गायब हो गईं। उनके जाने के बाद दादा ठाकुर गहरी सोच और चिंता में डूब गए। उनके ज़हन में ख़्याल उभरा कि वैभव की जान को ख़तरा है अतः उन्हें जल्द से जल्द कुछ करना होगा। रूपा के अनुसार वैभव को जान से मारने वाला सुबह ही चंदनपुर के लिए रवाना हो जाएगा। दादा ठाकुर के मन में सवाल उभरा कि ऐसा कौन हो सकता है जो उनके बेटे को जान से मारने के लिए सुबह ही चंदनपुर के लिए निकलने वाला है? क्या वो इसी गांव का है या फिर किसी दूसरे गांव का?

✮✮✮✮

"वैभव महाराज कहां चले गए थे आप?" मैं जैसे ही घर पहुंचा तो वीरेंद्र ने पूछा____"हमने सोचा एक साथ ही दिशा मैदान के लिए चलेंगे पर आप तो जाने कहां गायब हो गए थे?"

"जी वो गांव तरफ घूमने निकल गया था।" मैंने सामान्य भाव से कहा____"सोचा आप सब व्यस्त हैं तो अकेला ही घूम फिर आता हूं। वैसे आप फ़िक्र न करें, यहां से निकला तो राघव भैया मिल गए। उन्हीं से दरबार होने लगी तो समय का पता ही नहीं चला।"

"चलिए कोई बात नहीं।" वीरेंद्र ने कहा____"अगर आपको दिशा मैदान के लिए चलना हो तो चलिए मेरे साथ।"
"नहीं, अब तो सुबह ही जाऊंगा।" मैंने कहा____"आप फुर्सत हो आइए। मैं यहीं बाबू जी के पास बैठता हूं।"

वीरेंद्र सिर हिला कर निकल गया और मैं अंदर आ कर बैठक में भाभी के पिता जी के पास बैठ गया। बैठक में और भी कुछ लोग बैठे हुए थे जिनसे बाबू जी ने मेरा परिचय कराया। अब क्योंकि मैं भी दामाद ही था इस लिए सबने मेरे पांव छुए। मुझे अपने से बड़ों का इस तरह से पांव छूना अजीब लगता था लेकिन क्या करें उनका अपना धर्म था। सब मेरा और मेरे पिता जी का हाल चाल पूछते रहे उसके बाद गांव के लोग चले गए।

रात में हम सबने साथ ही भोजन किया। भाभी और भाभी की छोटी बहन कामिनी रसोई में थी जबकि वीरेंद्र की पत्नी अपने कमरे में अपने नन्हें से बच्चे के साथ थी। खाना परोसने का काम कंचन और मोहिनी कर रहीं थी। बड़े भैया के चाचा ससुर भी हम सबके साथ खाना खाने के लिए बैठे हुए थे। मैंने महसूस किया कि कंचन मुझसे नज़रें चुरा रही थी। ज़ाहिर था आज शाम को जो कुछ हमारे बीच हुआ था उससे उसका नज़रें चुराना लाज़मी था। मैं उसे पूरी तरह से नंगा देख चुका था और इस वजह से वो मेरे सामने शर्मा रही थी। आस पास सब लोग थे इस लिए उससे मैं कुछ कह नहीं सकता था वरना उसकी अच्छी खासी खिंचाई करता। ख़ैर जल्दी ही हम सब का खाना हो गया तो हम सब उठ गए।

गर्मी का मौसम था इस लिए घर के बाहर ही चारपाई लगा कर हम सबके सोने की व्यवस्था की गई। मेरे साथ जो आदमी आए थे उन सबको वीरेंद्र ने भोजन करवाया और उन लोगों को भी घर के बाहर ही अलग अलग चारपाई पर सोने की व्यवस्था कर दी। कुछ देर हम सब बातें करते रहे उसके बाद सोने के लिए लेट गए।

मुझे नींद नहीं आ रही थी। आंखों के सामने बार बार जमुना के साथ हुई चुदाई का दृश्य उजागर हो जाता था जिसके चलते मेरा रोम रोम रोमांच से भर जाता था। सुषमा और कंचन के नंगे जिस्म भी आंखों के सामने उजागर हो जाते थे। मैं सोचने लगा कि अब जब दोनों से दुबारा अकेले में मुलाक़ात होगी तो वो दोनों कैसा बर्ताव करेंगी? मैं इस बारे में सोच जी रहा था कि सहसा मुझे अनुराधा का ख़्याल आ गया।

अनुराधा का ख़्याल आया तो एकदम से मेरे दिलो दिमाग़ में अजीब से ख़्याल उभरने लगे। मैं सोचने लगा कि इस वक्त वो भी चारपाई पर लेटी होगी। मेरे मन में सवाल उभरा कि क्या वो भी मेरे बारे में सोचती होगी? मुझे याद आया कि उस दिन उसने कितनी बेरुखी से मुझसे बातें की थी और फिर मुझे वो सब कह कर उसके घर से चले जाना पड़ा था। क्या सच में अनुराधा को यही लगता है कि मैं बाकी लड़कियों की तरह ही उसे अपने जाल में फंसाना चाहता हूं? इस सवाल पर मैं विचार करने लगा। कुछ देर सोचने के बाद सहसा मुझे कुछ आभास हुआ। मैंने सोचा, अगर वो मेरे बारे में ऐसा सोचती है तो क्या ग़लत सोचती है? माना कि ये सिर्फ मैं जानता हूं कि मैं उसके बारे में कुछ भी ग़लत नहीं सोचता हूं लेकिन इस बात को भी तो नकारा नहीं जा सकता कि मेरा चरित्र पहले जैसा ही है।

एकदम से मुझे आभास हुआ कि मैं अपने उसी चरित्र की वजह से अभी कुछ घंटे पहले जमुना के साथ ग़लत काम कर के आया हूं और ये भी सच ही है कि जमुना के अलावा मैं सुषमा और कंचन को भी भोगने की हसरत पाले बैठा हूं। भला ये क्या बात हुई कि एक तरफ मैं अनुराधा की नज़र में अच्छा इंसान बनने का दिखावा कर रहा हूं वहीं दूसरी तरफ मैं अभी भी पहले की तरह हर लड़की और हर औरत को भोगने की ख़्वाइश रखे हुए हूं? इस बात के एहसास ने एकदम से मुझे सोचो के गहरे समुद्र में डुबा दिया। मैंने सोचा, अनुराधा ने अगर मुझसे वो सब कहा तो क्या ग़लत कहा था? मैं तो आज भी वैसा ही हूं जैसा हमेशा से था। फिर मैं अनुराधा से ये क्यों कहता हूं कि उसने मुझे मुकम्मल तौर पर बदल दिया है? क्या सच में मैं बदल गया हूं? नहीं, बिल्कुल नहीं बदला हूं मैं। अगर सच में बदल गया होता तो आज ना तो मैं सुषमा और कंचन को भोगने की इच्छा रखता और ना ही जमुना के साथ वो सब करता। इसका मतलब अनुराधा से मैंने अपने बदल जाने के बारे में जो कुछ कहा वो सब झूठ था। इस सबके बावजूद मैं ये ख़्वाइश रखता हूं कि अनुराधा मुझे समझे और वही करे जो मैं उससे चाहता हूं।

अचानक से मैंने महसूस किया कि मेरे दिलो दिमाग़ में आंधियां सी चलने लगीं हैं। एक अजीब सा द्वंद चलने लगा था मेरे अंदर जिसकी वजह से एकदम से मुझे अजीब सा लगने लगा। मैंने बेचैनी और बेबसी से चारपाई पर करवट बदली और ज़हन से इन सारी बातों को निकालने की कोशिश करने लगा मगर जल्दी ही आभास हुआ कि ये इतना आसान नहीं है। काफी देर तक मैं इन सारी बातों की वजह से परेशान और व्यथित रहा और फिर ना जाने कब मेरी आंख लग गई।

✮✮✮✮

"मालिक आप यहां?" शेरा ने दरवाज़ा खोला और जैसे ही उसकी नज़र बाहर खड़े दादा ठाकुर पर पड़ी तो आश्चर्य से बोल पड़ा था____"अगर मेरे लिए कोई हुकुम था तो किसी आदमी के द्वारा मुझे बोलवा लिया होता। आपने यहां आने का कष्ट क्यों किया मालिक?"

"कोई बात नहीं शेरा।" दादा ठाकुर ने दरवाज़े के अंदर दाख़िल होते हुए कहा____"वैसे भी बात ऐसी है कि उसके लिए हमारा खुद ही यहां आना ज़रूरी था।"

शेरा ने फटाफट चारपाई को सरका कर दादा ठाकुर के पास रखा तो दादा ठाकुर उस पर बैठ गए। ये पहला अवसर था जब दादा ठाकुर शेरा जैसे अपने किसी गुलाम के घर आए थे। दादा ठाकुर ने एक नज़र घर की दीवारों पर डाली और फिर शेरा की तरफ देखा।

"तुम्हें इसी वक्त चंदनपुर जाना होगा शेरा।" फिर उन्होंने गंभीर भाव से कहा____"अपने साथ कुछ आदमियों को भी ले जाना। असल में हमें अभी कुछ देर पहले ही पता चला है कि वैभव की जान को ख़तरा है। हम नहीं जानते कि वो कौन लोग हैं लेकिन इतना ज़रूर पता चला है कि वो सुबह ही चंदनपुर जाएंगे और वहां वैभव पर जानलेवा हमला करेंगे। तुम्हारा काम वैभव की जान को बचाना ही नहीं बल्कि उन लोगों को पकड़ना भी है जो वैभव को जान से मारने के इरादे से वहां पहुंचेंगे।"

"आप फ़िक्र मत कीजिए मालिक।" शेरा ने गर्मजोशी से कहा____"मेरे रहते छोटे ठाकुर को कोई छू भी नहीं सकेगा। मैं अपनी जान दे कर भी छोटे ठाकुर की रक्षा करूंगा और उन लोगों को पकडूंगा।"

"बहुत बढ़िया।" दादा ठाकुर ने शाल के अंदर से कुछ निकाल कर शेरा की तरफ बढ़ाते हुए कहा____"इसे अपने पास रखो और साथ में इस पोटली को भी लेकिन ध्यान रहे इसका स्तेमाल तभी करना जब बहुत ही ज़रूरी हो जाए।"

शेरा ने दादा ठाकुर के हाथ से कपड़े में लिपटी दोनों चीजें ले ली। शेरा ने एक चीज़ से कपड़ा हटाया तो देखा उसमें एक रिवॉल्वर था। दूसरी कपड़े की पोटली कुछ वजनी थी और उसमें से कुछ खनकने की आवाज़ भी आई। शेरा समझ गया कि उसमें रिवॉल्वर की गोलियां हैं।

"हमें पूरी उम्मीद है कि तुम अपना काम पूरी सफाई से और पूरी सफलता से करोगे।" दादा ठाकुर ने चारपाई से उठते हुए कहा____"कोशिश यही करना कि वो हमलावर ज़िंदा तुम्हारे हाथ लग जाएं।"

"मैं पूरी कोशिश करूंगा मालिक।" शेरा ने कहा____"मैं अभी इसी समय कुछ आदमियों को ले कर चांदपुर के लिए निकल जाऊंगा।"
"अगर वहां के हालात काबू से बाहर समझ में आएं तो फ़ौरन किसी के द्वारा हमें सूचना भेजवा देना।" दादा ठाकुर ने कहा____"चंदनपुर का सफ़र लंबा है इस लिए तुम हरिया के अस्तबल से घोड़े ले लेना।"

दादा ठाकुर की बात सुन कर शेरा ने सिर हिलाया और फिर उन्हें प्रणाम किया। दादा ठाकुर ने उसे विजयी होने का आशीर्वाद दिया और फिर दरवाज़े से बाहर निकल गए। दादा ठाकुर के जाने के बाद शेरा ने फ़ौरन ही अपने कपड़े पहने और कपड़ों की जेब में रिवॉल्वर के साथ दूसरी पोटली डालने के बाद घर से बाहर निकल गया।


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दोस्तो, कहानी का अगला अध्याय - 59 पोस्ट कर दिया है। आशा है आप सभी को पसंद आएगा। आप सबकी समीक्षा अथवा विचारों का इंतज़ार रहेगा... :love:
अभी वैभव की जान को बचाने के लिए शेरा को तो भेज दिया.....................................लेकिन मुझे लगता है यहाँ शेरा की गैरमौजूदगी में भी तो कुछ दुर्घटना घाट सकती है.................................
वैभव के मन को अनुराधा का प्यार बदल्न में लगा हुआ है........................ लेकिन तन की आग के आगे वो हार जाता है

देखते हैं वक़्त अभी और क्या दिखाता है
 

Thakur

Alag intro chahiye kya ?
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अध्याय - 58
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अब तक....

शेरा को लगा काला नकाबपोश बेवजह ही सफ़ेदपोश का गुणगान कर रहा है इस लिए समय को बर्बाद न करते हुए उसने उसकी कनपटी के ख़ास हिस्से पर वार किया जिसका नतीजा ये हुआ कि काला नकाबपोश जल्द ही बेहोशी की गर्त में डूबता चला गया। उसके बाद शेरा ने उसे उठा कर कंधे पर लादा और एक तरफ को बढ़ता चला गया।

अब आगे....

रूपा अपने कमरे में पलंग पर लेटी गहरी सोच में डूबी हुई थी। बार बार उसके कानों में बाग़ में मौजूद उस पहले साए की बातें गूंज उठती थीं जिसकी वजह से वो गहन सोच के साथ साथ गहन चिंता में भी पड़ गई थी। उसे यकीन नहीं हो रहा था कि जिस आवाज़ को उसने सुना था वो उसका कोई अपना था। वो अच्छी तरह जान गई थी कि वो आवाज़ किसकी थी लेकिन उसने जो कुछ कहा था उस पर उसे यकीन नहीं हो रहा था। उसे तो अब यही लगता था कि दादा ठाकुर से हमारे रिश्ते अच्छे हो गए हैं और इस वजह से वो वैभव के सपने फिर से देखने लगी थी। वो वैभव से बेहद प्रेम करती थी और इसका सबूत यही था कि उसने अपना सब कुछ वैभव को सौंप दिया था।

रूपा को पता चल गया था कि उसके प्रियतम वैभव की जान को ख़तरा है। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वो अपने प्रियतम की जान को कैसे महफूज़ करे? उसका बस चलता तो वो इसी वक्त चंदनपुर जा कर वैभव को इस बारे में सब कुछ बता देती और उससे कहती कि वो अपनी सुरक्षा का हर तरह से ख़्याल करे। सहसा उसे वैभव की वो बातें याद आईं जो उसने पिछली मुलाक़ात में उससे मंदिर में कही थीं। उस वक्त रूपा को उसकी बातों पर ज़रा भी यकीन नहीं हुआ था और यही वजह थी कि उसने कभी ये जानने और समझने की कोशिश नहीं की थी कि उसके घर वाले संबंध सुधार लेने के बाद भी दादा ठाकुर और उनके परिवार के बारे में कैसे ख़्याल रखते हैं? आज जब उसने बाग़ में वो सब सुना तो जैसे उसके पैरों तले से ज़मीन ही खिसक गई थी। वो सोचने पर मजबूर हो गई कि क्या सच में उसके घर वाले कुत्ते की दुम ही हैं जो कभी सीधे नहीं हो सकते?

जब से दोनों खानदान के बीच संबंधों में सुधार हुआ था तब से वो वैभव के साथ अपने जीवन के हसीन सपने देखने लगी थी। वो जानती थी कि उसकी तरह वैभव के दिल में उसके प्रति प्रेम के जज़्बात नहीं हैं लेकिन वो ये भी जानती थी कि बाकी लड़कियों की तरह वैभव उसके बारे में नहीं सोचता। अगर वो उसे प्रेम नहीं करता है तो उसे बाकी लड़कियों की तरह अपनी हवस मिटाने का साधन भी नहीं समझता है। कहने का मतलब ये कि कहीं न कहीं वैभव के दिल में उसके प्रति एक सम्मान की भावना ज़रूर है।

अभी रूपा ये सब सोच ही रही थी कि सहसा उसे किसी के आने का आभास हुआ। वो फ़ौरन ही पलंग पर सीधा लेट गई और अपने चेहरे के भावों को छुपाने का प्रयास करने लगी। कुछ ही पलों में उसके कमरे में उसकी एकमात्र भाभी कुमुद दाखिल हुई। कुमुद उसके ताऊ मणि शंकर की बहू और चंद्रभान की बीवी थी।

"अब कैसी तबियत है मेरी प्यारी ननदरानी की?" कुमुद ने पलंग के किनारे बैठ कर उससे मुस्कुरा कर पूछा____"चूर्ण का कोई फ़ायदा हुआ कि नहीं?"
"अभी तो एक बार दिशा मैदान हो के आई हूं भौजी।" रूपा ने कहा____"देखती हूं अब क्या समझ में आता है।"

"फ़िक्र मत करो।" कुमुद ने रूपा के हाथ को अपने हाथ में ले कर कहा____"चूर्ण का ज़रूर फ़ायदा होगा और मुझे यकीन है अब तुम्हें शौच के लिए नहीं जाना पड़ेगा।"

"यही बेहतर होगा भौजी।" रूपा ने कहा____"वरना रात में आपको भी मेरे साथ तकलीफ़ उठानी पड़ जाएगी। अगर ऐसा हुआ तो आपका मज़ा भी ख़राब हो जाएगा।"
"कोई बात नहीं।" रूपा के कहने का मतलब समझते ही कुमुद ने गहरी मुस्कान के साथ कहा____"अपनी प्यारी ननदरानी के लिए आज के मज़े की कुर्बानी दे दूंगी मैं। तुम्हारे भैया कहीं भागे थोड़े न जा रहे हैं।"

कुमुद की बात सुन कर रूपा के होठों पर मुस्कान उभर आई। इस घर में कुमुद का सबसे ज़्यादा रूपा से ही गहरा दोस्ताना था। दोनों ननद भाभी कम और सहेलियां ज़्यादा थीं। अपनी हर बात एक दूसरे से साझा करतीं थीं दोनों। कुमुद को रूपा और वैभव के संबंधों का पहले शक हुआ था और फिर जब उसने ज़ोर दे कर रूपा से इस बारे में पूछा तो रूपा ने कबूल कर लिया था कि हां वो वैभव से प्रेम करती है और वो अपना सब कुछ वैभव को सौंप चुकी है। कुमुद को ये जान कर बेहद आश्चर्य हुआ था लेकिन वो उसके प्रेम भाव को भी बखूबी समझती थी। एक अच्छी सहेली की तरह वो उसे सलाह भी देती थी कि वैभव जैसे लड़के से प्रेम करना तो ठीक है लेकिन वो उस लड़के के सपने न देखे क्योंकि उसके घर वाले कभी भी उसका रिश्ता उस लड़के से नहीं करना चाहेंगे। दूर दूर तक के लोग जानते हैं कि दादा ठाकुर का छोटा बेटा कैसे चरित्र का लड़का है। कुमुद के समझाने पर रूपा को अक्सर थोड़ा तकलीफ़ होती थी। वो जानती थी कि कुमुद ग़लत नहीं कहती थी, वो खुद भी वैभव के चरित्र से परिचित थी लेकिन अब इसका क्या किया जाए कि इसके बावजूद वो वैभव से प्रेम करती थी और उसी के सपने देखने पर मजबूर थी।

"क्या हुआ?" रूपा को कहीं खोया हुआ देख कुमुद ने कहा____"क्या फिर से उस लड़के के ख़्यालों में खो गई?"
"मुझे आपसे एक सहायता चाहिए भौजी।" रूपा ने सहसा गंभीर भाव से कहा____"कृपया मना मत कीजिएगा।"

"बात क्या है रूपा?" कुमुद ने उसकी गंभीरता को भांपते हुए पूछा____"कोई परेशानी है क्या?"
"हां भौजी।" रूपा एकदम से उठ कर बैठ गई, फिर गंभीर भाव से बोली____"बहुत बड़ी परेशानी और चिंता की बात हो गई है। इसी लिए तो कह रही हूं कि मुझे आपसे एक सहायता चाहिए।"

"आख़िर बात क्या है?" कुमुद के माथे पर चिंता की लकीरें उभर आईं____"ऐसी क्या बात हो गई है जिसकी वजह से तुम मुझसे सहायता मांग रही हो? मुझे सब कुछ बताओ रूपा। आख़िर ऐसा क्या हो गया है जिसके चलते अचानक से तुम इतना चिंतित हो गई हो?"

"पहले मेरी क़सम खाइए भौजी।" रूपा ने झट से कुमुद का हाथ पकड़ कर अपने सिर पर रख लिया, फिर बोली____"पहले मेरी क़सम खाइए कि मैं आपको जो कुछ भी बताऊंगी उसके बारे में आप इस घर में किसी को कुछ भी नहीं बताएंगी।"

"तुम मेरी ननद ही नहीं बल्कि सहेली भी हो रूपा।" कुमुद ने कहा____"तुम अच्छी तरह जानती हो कि हम कभी भी एक दूसरे के राज़ किसी से नहीं बताते। फिर क़सम देने की क्या ज़रूरत है तुम्हें? क्या तुम्हें अपनी भौजी पर यकीन नहीं है?"

"खुद से भी ज़्यादा यकीन है भौजी।" रूपा ने बेचैन भाव से कहा____"लेकिन फिर भी आप एक बार मेरी क़सम खा लीजिए। मेरी बात को अन्यथा मत लीजिए भौजी।"

"अच्छा ठीक है।" कुमुद ने कहा____"मैं अपनी सबसे प्यारी ननद और सबसे प्यारी सहेली की क़सम खा कर कहती हूं कि तुम मुझे जो कुछ भी बताओगी उसके बारे में मैं कभी भी किसी से ज़िक्र नहीं करूंगी। तुम्हारा हर राज़ मेरे सीने में मरते दम तक दफ़न रहेगा। अब बताओ कि आख़िर बात क्या है?"

"वैभव की जान को ख़तरा है भौजी।" रूपा ने दुखी भाव से कहा____"अभी कुछ देर पहले जब मैं दिशा मैदान के लिए गई थी तब मैंने बाग़ में कुछ लोगों से इस बारे में सुना था।"

"य...ये क्या कह रही हो तुम?" कुमुद ने हैरत से आंखें फैला कर कहा____"भला बाग़ में ऐसे वो कौन लोग थे जो वैभव के बारे में ऐसी बातें कर रहे थे?"
"आप सुनेंगी तो आपको यकीन नहीं होगा भौजी।" रूपा ने आहत भाव से कहा____"मुझे ख़ुद अभी तक यकीन नहीं हो रहा है।"

"पर वो लोग थे कौन रूपा?" कुमुद ने उलझनपूर्ण भाव से पूछा____"जिन्होंने वैभव के बारे में ऐसा कुछ कहा जिसे सुन कर तुम ये सब कह रही हो। मुझे पूरी बात बताओ।"

रूपा ने कुमुद को सब कुछ बता दिया। जिसे सुन कर कुमुद भी गहरे ख़्यालों में खोई हुई नज़र आने लगी। उधर सब कुछ बताने के बाद रूपा ने कहा_____"आपको पता है वैभव को ख़त्म करने के लिए कहने वाला कौन था? वो व्यक्ति कोई और नहीं आपके ही ससुर थे यानि मेरे ताऊ जी। मैंने अच्छी तरह उनकी आवाज़ को सुना था भौजी। वो ताऊ जी ही थे।"

कुमुद को रूपा के मुख से अपने ससुर के बारे में ये जान कर ज़बरदस्त झटका लगा। एकदम से उससे कुछ कहते न बन पड़ा था। चेहरे पर ऐसे भाव उभर आए थे जैसे वो इस बात को यकीन करने की कोशिश कर रही हो।

"बाकी दो लोग कौन थे मैं नहीं जानती भौजी।" कुमुद को गहरी सोच में डूबा देख रूपा ने कहा____"उन दोनों की आवाज़ मेरे लिए बिल्कुल ही अंजानी थी लेकिन ताऊ जी की आवाज़ को पहचानने में मुझसे कोई ग़लती नहीं हुई है।"

"ऐसा कैसे हो सकता है रूपा?" कुमुद ने गहरी सांस लेते हुए कहा____"अब तो हवेली वालों से हमारे संबंध अच्छे हो गए हैं ना? ससुर जी ने तो खुद ही अच्छे संबंध बनाने की पहल की थी तो फिर वो खुद ही ऐसा कैसे कर सकते हैं?"

"यही तो समझ में नहीं आ रहा भौजी।" रूपा ने चिंतित भाव से कहा____"अगर ताऊ जी ने खुद पहल कर के हवेली वालों से अपने संबंध सुधारे थे तो अब वो ऐसा क्यों कर रहे हैं? इसका तो यही मतलब हो सकता है ना कि संबंध सुधारने का उन्होंने सिर्फ़ दिखावा किया था जबकि आज भी वो हवेली वालों को अपना दुश्मन समझते हैं। यही बात कुछ समय पहले वैभव ने भी मुझसे कही थी भौजी।"

"क्या मतलब?" कुमुद ने चौंकते हुए पूछा____"क्या कहा था वैभव ने?"
"उसे भी यही लगता है कि हमारे घर वालों ने उससे संबंध सुधार लेने का सिर्फ़ दिखावा किया है जबकि ऐसा करने के पीछे यकीनन हमारी कोई चाल है।" रूपा ने कहा____"वैभव ने मुझसे कहा भी था कि अगर वो ग़लत कह रहा है तो मैं खुद इस बारे में पता कर सकती हूं। उस दिन मुझे उसकी बातों पर यकीन नहीं हुआ था इस लिए मैंने कभी इसके बारे में पता लगाने का नहीं सोचा था लेकिन अभी शाम को जो कुछ मैंने सुना उससे मैं सोचने पर मजबूर हो गई हूं।"

"अगर सच यही है।" कुमुद ने गंभीरता से कहा____"तो यकीनन ये बहुत ही गंभीर बात है रूपा। मुझे समझ नहीं आ रहा कि ससुर जी ऐसा क्यों कर रहे हैं? आख़िर हवेली वालों से उनकी क्या दुश्मनी है जिसकी वजह से वो ऐसा कर रहे हैं? इस घर में मुझे आए हुए डेढ़ दो साल हो गए हैं लेकिन मैंने कभी किसी के मुख से दोनों खानदानों के बीच की दुश्मनी का असल कारण नहीं सुना। ये ज़रूर सुनती आई हूं कि तुम्हारे भाई लोगों का उस लड़के से कभी न कभी लड़ाई झगड़ा होता ही रहता है। जब संबंध अच्छे बने तो ससुर जी खुद ही उस लड़के को हमारे घर ले कर आए थे। मैंने सुना था कि वो घर बुला कर उस लड़के का सम्मान करना चाहते थे। उस दिन जब वैभव आया था तो मैंने देखा था कि वो सबसे कितने अच्छे तरीके से मिल रहा था और अपने से बड़ों के पैर छू कर आशीर्वाद ले रहा था। मेरी गुड़िया को तो वो अपने साथ हवेली ही ले गया था। अब सोचने वाली बात है कि अगर ससुर जी खुद उस लड़के को सम्मान देने के लिए यहां ले कर आए थे तो अब उसी लड़के को ख़त्म करने का कैसे सोच सकते हैं?"

"ज़ाहिर है वैभव को अपने घर ला कर उसे सम्मान देना महज दिखावा ही था।" रूपा ने कहा____"जबकि उनके मन में तो वैभव के प्रति नफ़रत की ही भावना थी। ये भी निश्चित ही समझिए कि अगर ताऊजी ऐसी मानसिकता रखते हैं तो ऐसी ही मानसिकता उनके सभी भाई भी रखते ही होंगे। भला वो अपने बड़े भाई साहब के खिलाफ़ कैसे जा सकते हैं? कहने का मतलब ये कि वो सब हवेली वालों से नफ़रत करते हैं और उन सबका एक ही मकसद होगा____'हवेली के हर सदस्य का खात्मा कर देना।"

रूपा की बातें सुन कर कुमुद हैरत से देखती रह गई उसे। उसके ज़हन में विचारों की आंधियां सी चलने लगीं थी। उसे यकीन नहीं हो रहा था कि उसके घर वालों का सच ऐसा भी हो सकता है।

"मुझे आपकी सहायता चाहिए भौजी।" रूपा ने चिंतित भाव से कहा____"मुझे किसी भी तरह वैभव को इस संकट से बचाना है।"
"पर तुम कर भी क्या सकोगी रूपा?" कुमुद ने बेचैन भाव से कहा____"तुमने बताया कि वैभव अपनी भाभी को ले कर चंदनपुर गया हुआ है तो तुम भला कैसे उसे इस संकट से बचाओगी? क्या तुम रातों रात चंदनपुर जाने का सोच रही हो?"

"नहीं भौजी।" रूपा ने कहा____"चंदनपुर तो मैं किसी भी कीमत पर नहीं जा सकती क्योंकि ये मेरे लिए संभव ही नहीं हो सकेगा लेकिन हवेली तो जा ही सकती हूं।"

"ह...हवेली??" कुमुद ने हैरानी से रूपा को देखा।
"हां भौजी।" रूपा ने कहा____"आपकी सहायता से मैं हवेली ज़रूर जा सकती हूं और वहां पर दादा ठाकुर को इस बारे में सब कुछ बता सकती हूं। वो ज़रूर वैभव को इस संकट से बचाने के लिए कुछ न कुछ कर लेंगे।"

"बात तो तुम्हारी ठीक है।" कुमुद ने सोचने वाले भाव से कहा____"लेकिन तुम हवेली कैसे जा पाओगी? सबसे पहले तो तुम्हारा इस घर से बाहर निकलना ही मुश्किल है और अगर मान लो किसी तरह हवेली पहुंच भी गई तो वहां रात के इस वक्त कैसे हवेली में प्रवेश कर पाओगी?"

"मेरे पास एक उपाय है भौजी।" रूपा के चेहरे पर सहसा चमक उभर आई थी, बोली____"घर में सबको पता है कि मेरा पेट ख़राब है जिसके चलते मुझे बार बार दिशा मैदान के लिए जाना पड़ता है। तो उपाय ये है कि मैं आपके साथ दिशा मैदान जाने के लिए घर से बाहर जाऊंगी। उसके बाद बाहर से सीधा हवेली चली जाऊंगी। वैसे भी घर में कोई ये कल्पना ही नहीं कर सकता कि मैं ऐसे किसी काम के लिए सबकी चोरी से हवेली जा सकती हूं।"

"वाह! रूपा क्या मस्त उपाय खोजा है तुमने।" कुमुद के चेहरे पर खुशी की चमक उभर आई, अतः मुस्कुराते हुए बोली____"आज मैं पूरी तरह से मान गई कि तुम सच में वैभव से बेहद प्रेम करती हो वरना अपने ही परिवार के खिलाफ़ जा कर ऐसी बात हवेली में जा कर बताने का कभी न सोचती।"

"मुझे इस बात को बताने की कोई खुशी नहीं है भौजी।" रूपा ने उदास भाव से कहा____"क्योंकि हवेली में दादा ठाकुर को जब मेरे द्वारा इस बात का पता चलेगा तो ज़ाहिर है कि उसके बाद मेरे अपने घर वाले भी संकट में घिर जाएंगे। वैभव की जान बचाने के चक्कर में मैं अपनों को ही संकट में डाल दूंगी और ये बात सोच कर ही मुझे अपने आपसे घृणा हो रही है।"

"मैं मानती हूं कि ऐसा करने से तुम अपने ही घर वालों को संकट में डाल दोगी।" कुमुद ने कहा____"लेकिन इसका भी एक सटीक उपाय है मेरी प्यारी ननदरानी।"
"क्या सच में?" रूपा के मुरझाए चेहरे पर सहसा खुशी की चमक फिर से उभर आई____"क्या कोई ऐसा उपाय है जिससे मेरे ऐसा करने के बाद भी मेरे घर वालों पर कोई संकट न आए?"

"हां रूपा।" कुमुद ने कहा____"उपाय ये है कि तुम दादा ठाकुर से इस बारे में बताने से पहले ये आश्वासन ले लो कि वो हमारे घर वालों पर किसी भी तरह का कोई संकट नहीं आने देंगे। अगर वो आश्वासन दे देते हैं तो ज़ाहिर है कि तुम्हारे द्वारा ये सब बताने पर भी वो हमारे घर वालों के लिए ख़तरा नहीं बनेंगे।"

"और अगर वो न माने तो?" रूपा ने संदिग्ध भाव से पूछा____"अगर वो गुस्से में आ कर सच में हमारे घर वालों के लिए ख़तरा बन गए तो?"

"नहीं, ऐसा नहीं होगा।" कुमुद ने मानों पूरे विश्वास के साथ कहा____"डेढ़ दो सालों में इतना तो मैं भी जान गई हूं कि दादा ठाकुर किस तरह के इंसान हैं। मुझे यकीन है कि जब तुम सब कुछ बताने के बाद हमारे परिवार पर संकट न आने के लिए उनसे कहोगी तो वो तुम्हें निराश नहीं करेंगे। आख़िर वो ये कैसे भूल जाएंगे कि तुमने अपने परिवार के खिलाफ़ जा कर उनके बेटे के जीवन को बचाने का प्रयास किया है? मुझे पूरा यकीन है रूपा कि वो हमारे लिए कोई भी ख़तरा नहीं बनेंगे।"

"अगर आपको उन पर यकीन है।" रूपा ने गहरी सांस लेते हुए कहा____"तो फिर हम दोनों दिशा मैदान के लिए चलते हैं। अब एक पल का भी देर करना ठीक नहीं है।"

"रुको, एक उपाय और है रूपा।" कुमुद ने कुछ सोचते हुए कहा____"एक ऐसा उपाय जिससे किसी बात की चिंता करने की ज़रूरत ही नहीं रहेगी।"
"क्या मतलब??" रूपा के माथे पर उलझन के भाव उभर____"भला इस तरह का क्या उपाय हो सकता है भौजी?"

"बड़ा सीधा सा उपाय है मेरी प्यारी लाडो।" कुमुद ने मुस्कुराते हुए कहा____"और वो ये कि हम दादा ठाकुर को ये नहीं बताएंगे कि वैभव को ख़त्म करने के लिए किसने कहा है। कहने का मतलब ये कि तुम उनसे सिर्फ यही बताना कि तुमने हमारे बाग में कुछ लोगों को ऐसी बातें करते सुना था जिसमें वो लोग चंदनपुर जा कर वैभव को जान से मारने को कह रहे थे। दादा ठाकुर अगर ये पूछेंगे कि तुम उस वक्त बाग में क्या कर रही थी तो बोल देना कि तुम्हारा पेट ख़राब था इस लिए तुम वहां पर दिशा मैदान के लिए गई थी और उसी समय तुमने ये सब सुना था।"

"ये उपाय तो सच में कमाल का है भौजी।" रूपा के चेहरे पर खुशी के भाव उभर आए____"यानि मुझे ताऊ जी के बारे में दादा ठाकुर से बताने की ज़रूरत ही नहीं है और जब ताऊ जी का ज़िक्र ही नहीं होगा तो दादा ठाकुर से हमारे परिवार को कोई ख़तरा भी नहीं होगा। वाह! भौजी क्या उपाय बताया है आपने।"

"ऐसा करने से एक तरह से हम अपने परिवार वालों के साथ गद्दारी भी नहीं करेंगे रूपा।" कुमुद ने कहा____"और उन्हें दादा ठाकुर के क़हर से भी बचा लेंगे। वैभव से तुम प्रेम करती हो तो उसके लिए ऐसा कर के तुम उसके प्रति अपनी वफ़ा भी साबित कर लोगी। इससे कम से कम तुम्हारे दिलो दिमाग़ में कोई अपराध बोझ तो नहीं रहेगा।"

"सही कहा भौजी।" रूपा एकदम कुमुद के लिपट कर बोली____"आप ने सच में मुझे एक बड़े धर्म संकट से बचा लिया है। आप मेरी सबसे अच्छी भौजी हैं।"
"सिर्फ़ भौजी नहीं मेरी प्यारी ननदरानी।" कुमुद ने प्यार से रूपा की पीठ को सहलाते हुए कहा___"बल्कि तुम्हारी सहेली भी। तुम्हें मैं ननद से ज़्यादा अपनी सहेली मानती हूं।"

"हां मेरी प्यारी सहेली।" रूपा ने हल्के से हंसते हुए कहा____"अब चलिए, हमें जल्द से जल्द ये काम करना है। देर करना ठीक नहीं है।"

रूपा की बात सुन कर कुमुद मुस्कुराई और फिर रूपा के दाएं गाल को प्यार से सहला कर पलंग से उठ गई। उसके बाद उसने रूपा को चलने का इशारा किया और खुद कमरे से बाहर निकल गई। रूपा को ऐसा महसूस हुआ जैसे उसके दिलो दिमाग़ में जो अब तक भारी बोझ पड़ा हुआ था वो पलक झपकते ही गायब हो गया है। हवेली जाने के ख़्याल ने उसे एकदम से रोमांचित सा कर दिया था। आज पहली बार वो हवेली जाने वाली थी और पहली बार वो कोई ऐसा काम करने वाली थी जिसके बारे में उसके घर वाले कल्पना भी नहीं कर सकते थे।


✮✮✮✮

"क्या बात है?" बैठक में बैठे दादा ठाकुर ने हैरानी भरे भाव से अभिनव को देखते हुए कहा____"उनसे कुछ पता चला है क्या?"

"अभी तो कुछ पता नहीं चला है पिता जी।" अभिनव ने कहा____"हमारे आदमी वैभव के दोनों दोस्तों और जगन पर बराबर नज़र रखे हुए हैं। अभी मैं उनसे ही मिल कर आ रहा हूं। हमारे आदमियों के अनुसार वो तीनों सामान्य दिनों की तरह ही अपने अपने काम में लगे हुए थे। सुबह से अब तक वो लोग अपने अपने घरों से बाहर तो गए थे लेकिन किसी ऐसे आदमी से नहीं मिले जिसे सफ़ेदपोश अथवा काला नकाबपोश कहा जा सके। वैसे भी सफ़ेदपोश और काला नकाबपोश उन लोगों से रात के अंधेरे में ही मिलता है। दिन में शायद इस लिए नहीं मिलता होगा क्योंकि इससे उनका भेद खुल जाने का ख़तरा रहता होगा।"

"मेरा खयाल तो ये है भैया कि हम सीधे उन तीनों को पकड़ लेते हैं।" जगताप ने कहा____"माना कि वो लोग सफ़ेदपोश अथवा काले नकाबपोश के बारे में कुछ न बता पाएंगे लेकिन इतना तो ज़रूर बता सकते हैं कि उन लोगों ने आख़िर किस वजह से हमारे खिलाफ़ जा कर सफ़ेदपोश से मिल गए और उसके इशारे पर चलने लगे?"

"जगन का तो समझ में आता है चाचा जी कि उसने अपने बड़े भाई की ज़मीन हड़पने के लिए ये सब किया होगा।" अभिनव ने कहा____"लेकिन सुनील और चेतन किस वजह से उस सफेदपोश के सुर में चलने लगे ये सोचने वाली बात है। संभव है कि इसके पीछे उनकी कोई मजबूरी रही होगी लेकिन ये पता करना ज़रूरी है कि दोनों ने सफ़ेदपोश के कहने पर क्या किया है? रही बात उन लोगों को सीधे पकड़ लेने की तो ऐसा करना ख़तरनाक भी हो सकता है क्योंकि अगर वो लोग किसी मजबूरी में सफ़ेदपोश का साथ दे रहे हैं तो ज़ाहिर है कि हमारे द्वारा उन्हें पकड़ लेने से उनकी या उनके परिवार वालों की जान को ख़तरा हो जाएगा।"

"हम अभिनव की बातों से सहमत हैं जगताप।" दादा ठाकुर ने कहा____"हम किसी भी मामले को जानने के लिए किसी निर्दोष की जान को ख़तरे में नहीं डाल सकते। बेशक हमारा उनसे बहुत कुछ जानना ज़रूरी है लेकिन इस तरीके से नहीं कि हमारी किसी ग़लती की वजह से उन पर या उनके परिवार पर संकट आ जाए। जहां अब तक हमने इंतज़ार किया है वहीं थोड़ा इंतज़ार और सही।"

दादा ठाकुर की बात सुन कर जगताप अभी कुछ बोलने ही वाला था कि तभी एक दरबान अंदर आया और उसने दादा ठाकुर से कहा कि एक आदमी आया है और उनसे शीघ्र मिलना चाहता है। दरबान की बात सुन कर दादा ठाकुर ने कुछ पल सोचा और फिर दरबान से कहा ठीक है उसे अंदर भेज दो। दरबान के जाने के कुछ ही देर बाद जो शख़्स बैठक में आया। उसे देख दादा ठाकुर हल्के से चौंके। आने वाला शख़्स कोई और नहीं बल्कि शेरा था। दादा ठाकुर को समझते देर न लगी कि शेरा को उन्होंने जो काम दिया था उसमें वो कामयाब हो कर ही लौटा है। अगर वो कामयाब न हुआ होता तो वो अपनी शक्ल न दिखाता। दादा ठाकुर इस बात से अंदर ही अंदर खुश हो गए और साथ ही उनकी धड़कनें भी थोड़ा तेज़ हो गईं।

"प्रणाम मालिक।" शेरा ने हाथ जोड़ कर दादा ठाकुर को प्रणाम किया और फिर जगताप को भी।
"क्या बात है?" दादा ठाकुर ने शेरा की तरफ देखते हुए कहा____"इस वक्त तुम यहां? सब ठीक तो है न?"

"जी मालिक सब ठीक है।" शेरा ने अदब से कहा____"आपको एक ख़बर देने आया हूं। अगर आप मुनासिब समझें तो अर्ज़ करूं?"
"ज़रूरत नहीं है।" दादा ठाकुर कहने के साथ ही एक झटके में अपने सिंहासन से उठे, फिर बोले____"हम जानते हैं तुम क्या कहना चाहते हो। बस ये बताओ कहां हैं वो?"

शेरा ने जवाब देने से पहले बैठक में बैठे अभिनव और जगताप को देखा और फिर कहा____"माफ़ कीजिए मालिक लेकिन एक ही हाथ लगा है। मैं उसे अपने साथ ही ले कर आया हूं।"

शेरा की बात सुन कर दादा ठाकुर मन ही मन थोड़ा चौंके और फिर पलट कर बारी बारी से अपने बेटे अभिनव और छोटे भाई जगताप को देखा। उसके बाद कुछ सोचते हुए उन्होंने जगताप से कहा____"एक अच्छी ख़बर है जगताप।"

"कैसी ख़बर भैया?" जगताप ने उलझन भरे भाव से कहा____"और ये शेरा किसके हाथ लगने की बात कर रहा है?"
"हमने शेरा को एक बेहद ही महत्वपूर्ण काम सौंपा था" दादा ठाकुर ने कहा____"हमें ये तो उम्मीद थी कि ये हमारे द्वारा दिए गए काम को यकीनन सफलतापूर्वक अंजाम देगा लेकिन ये उम्मीद नहीं थी कि ये इतना जल्दी अपना काम कर लेगा। ख़ैर बात ये है कि शेरा के हाथ सफ़ेदपोश अथवा काले नकाबपोश में से कोई एक लग गया है और ये उसे अपने साथ ही ले कर आया है।"

"क...क्या??" जगताप से पहले अभिनव आश्चर्य से बोल पड़ा____"मेरा मतलब है कि क्या आप सच कह रहे हैं पिता जी?"
"बिलकुल।" दादा ठाकुर ने ख़ास भाव से कहा____"शेरा ने उनमें से किसी एक को पकड़ लिया है और उसे अपने साथ यहां ले आया है।" कहने के साथ ही दादा ठाकुर शेरा से मुखातिब हुए____"तुमने बहुत अच्छा काम किया है शेरा। तुम हमारी उम्मीद पर बिलकुल खरे उतरे। ख़ैर ये बताओ कि उनमें से कौन तुम्हारे हाथ लगा है?"

"मैं तो सफ़ेदपोश को ही पकड़ने के लिए उसके पीछे गया था मालिक।" शेरा ने कहा___"लेकिन बाग़ में अचानक से वो गायब हो गया। मैंने उसे बहुत खोजा लेकिन उसका कहीं पता नहीं चल सका। उसके बाद मैं काले नकाबपोश को खोजने लगा और आख़िर वो मुझे मिल ही गया। उसको अपने कब्जे में लेने के लिए मुझे उसके साथ काफी ज़ोरदार मुकाबला करना पड़ा जिसका नतीजा ये निकला कि आख़िर में मैंने उसे अपने कब्जे में ले ही लिया।"

"ये तो सच में बड़े आश्चर्य और कमाल की बात हुई भैया।" जगताप ने खुशी से कहा____"शेरा के हाथ उस सफ़ेदपोश का खास आदमी लग गया है। अब हम उसके द्वारा पलक झपकते ही सफ़ेदपोश तक पहुंच सकते हैं। उसके बाद हमें ये जानने में देर नहीं लगेगी कि हमारे साथ इस तरह का खेल खेलने वाला वो सफ़ेदपोश कौन है? बस एक बार वो मेरे हाथ लग जाए उसके बाद तो मैं उसकी वो हालत करूंगा कि दुबारा जन्म लेने से भी इंकार करेगा।"

"बेशक ऐसा ही होगा जगताप।" दादा ठाकुर ने कहा____"लेकिन तब तक हमें पूरे होशो हवास में रहना होगा। ख़ैर तुम शेरा के साथ जाओ और उस काले नकाबपोश को हवेली के किसी कमरे में बंद कर दो। हम सुबह उससे पूछताछ करेंगे।"

"सुबह क्यों भैया?" जगताप ने कहा____"हमें तो अभी उससे पूछताछ करनी चाहिए। उससे सफ़ेदपोश के बारे में सब कुछ जान कर जल्द से जल्द उस सफ़ेदपोश को खोजना चाहिए।"

"इतना बेसब्र मत हो जगताप।" दादा ठाकुर ने हल्के से मुस्कुराते हुए कहा____"धीरज से काम लो। हम जानते हैं कि तुम जल्द से जल्द हमारे दुश्मन को खोज कर उसको नेस्तनाबूत कर देना चाहते हो लेकिन इतना बेसब्र होना ठीक नहीं है। अब तो वो काला नकाबपोश हमारे हाथ लग ही गया है इस लिए सुबह हम सब उससे तसल्ली से पूछताछ करेंगे।"

"ठीक है भैया।" जगताप ने कहा____"जैसा आपको ठीक लगे।"
"हम तुम्हारे इस काम से बेहद खुश हैं शेरा।" दादा ठाकुर ने शेरा से कहा____"इसका इनाम ज़रूर मिलेगा तुम्हें?"
"माफ़ कीजिए मालिक।" शेरा ने हाथ जोड़ कर कहा____"आपके द्वारा इनाम लेने में मुझे तभी खुशी होगी जब उस सफ़ेदपोश को भी पकड़ कर आपके सामने ले आऊंगा।"

शेरा की बात सुन कर दादा ठाकुर मुस्कुराए और आगे बढ़ कर शेरा के बाएं कंधे पर अपना हाथ रख कर हल्के से दबाया। उसके बाद उन्होंने जगताप को शेरा के साथ जाने को कहा। जगताप और शेरा बैठक से बाहर आए। हवेली के एक तरफ दीवार के सहारे और दो दरबानों की निगरानी में काला नकाबपोश बेहोश पड़ा हुआ था। जगताप के कहने पर शेरा ने उसे उठा कर कंधे पर लाद लिया और फिर वो जगताप के पीछे पीछे हवेली के उत्तर दिशा की तरफ बढ़ता चला गया। जल्दी ही वो हवेली के एक तरफ बने एक सीलनयुक्त कमरे में पहुंच गया।

जगताप के कहने पर शेरा ने उस काले नकाबपोश को उस खाली कमरे में एक तरफ डाल दिया। काले नकाबपोश के चेहरे पर अभी भी काला नक़ाब था जिसे जगताप ने एक झटके से उतार दिया। कमरे में एक तरफ लालटेन का प्रकाश था इस लिए उस प्रकाश में जगताप ने उस आदमी को देखा। काला नकाबपोश उसे इस गांव का नहीं लग रहा था। जगताप की नज़र उसके एक हाथ पर पड़ी जो टूटा हुआ था। उसने पलट कर शेरा की तरफ देखा तो शेरा ने बताया कि मुकाबले में उसी ने उसका हाथ तोड़ा है, तभी तो वो उसके हाथ लगा था। ख़ैर, जगताप और शेरा कमरे से बाहर आ गए। जगताप के कहने पर एक दरबान ने उस कमरे के दरवाज़े की कुंडी बंद कर उसमें ताला लगा दिया।


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Finally kuchh he sahi par chhipe chehere saamne to aaye 🕵️‍♂️
Par inka mukhiya Khud Rupa ka baap hoga ye na sochs tha . Baharhaal Rupa kaise Thakur sahab tak Ye jankari pohovhanti he ?
 

Thakur

Alag intro chahiye kya ?
Prime
3,240
6,773
159
अध्याय - 59
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अब तक....

जगताप के कहने पर शेरा ने उस काले नकाबपोश को उस खाली कमरे में एक तरफ डाल दिया। काले नकाबपोश के चेहरे पर अभी भी काला नक़ाब था जिसे जगताप ने एक झटके से उतार दिया। कमरे में एक तरफ लालटेन का प्रकाश था इस लिए उस प्रकाश में जगताप ने उस आदमी को देखा। काला नकाबपोश उसे इस गांव का नहीं लग रहा था। जगताप की नज़र उसके एक हाथ पर पड़ी जो टूटा हुआ था। उसने पलट कर शेरा की तरफ देखा तो शेरा ने बताया कि मुकाबले में उसी ने उसका हाथ तोड़ा है, तभी तो वो उसके हाथ लगा था। ख़ैर, जगताप और शेरा कमरे से बाहर आ गए। जगताप के कहने पर एक दरबान ने उस कमरे के दरवाज़े की कुंडी बंद कर उसमें ताला लगा दिया।

अब आगे....

उस वक्त शाम के क़रीब नौ बजने वाले थे। रूपा अपनी भाभी कुमुद के साथ अपने घर से दिशा मैदान जाने के लिए निकली थी। यूं तो आसमान में आधे से कम चांद था जिसकी वजह से हल्की रोशनी थी किंतु आसमान में काले बादलों ने डेरा जमाना शुरू कर दिया था। ऐसा लगता था जैसे रात के किसी प्रहर बारिश हो सकती थी। काले बादलों ने उस आधे से कम चांद को ढंक रखा था जिसकी वजह से उसकी रोशनी धरती पर नहीं पहुंच पा रही थी। रूपा और कुमुद पर मानों काले बादलों ने मेहरबानी कर रखी थी। घर के पीछे आने के बाद वो दोनों लंबा चक्कर लगाते हुए सीधा हवेली पहुंच गईं थी। कुमुद ने साड़ी से घूंघट किया हुआ था और रूपा ने अपने दुपट्टे को मुंह में लपेट लिया था ताकि रास्ते में अगर कोई मिले भी तो वो उन दोनों को पहचान न सके। दोनों ने अपने अपने लोटे को घर के पीछे ही एक जगह छिपा दिया था।

ननद भौजाई दोनों ही पहली बार हवेली आईं थी। दादा ठाकुर की हवेली के बारे में सुना बहुत था दोनों ने लेकिन कभी यहां आने का कोई अवसर नहीं मिला था। दोनों की धड़कनें बढ़ी हुईं थी। कुमुद कई बार रूपा को बोल चुकी थी कि कहीं हम किसी के द्वारा पकड़े न जाएं इस लिए वापस घर लौट चलते हैं लेकिन रूपा ने तो जैसे ठान लिया था कि अब तो वो हवेली जा कर दादा ठाकुर को सब कुछ बता कर ही रहेगी।

हवेली के हाथी दरवाज़े के पास पहुंच कर दोनों ही रुक गईं। हल्के अंधेरे में उन्हें हाथी दरवाज़े के पार दूर हवेली बनी हुई नज़र आई जो अंधेरे में बड़ी ही अजीब और भयावह सी नज़र आ रही थी। कुछ देर तक दोनों इधर उधर देखती रहीं उसके बाद आगे बढ़ चलीं। दोनों की धड़कनें पहले से और भी ज़्यादा तेज़ हो गईं। अभी दोनों ने हाथी दरवाज़े को पार ही किया था कि सहसा एक तेज़ मर्दाना आवाज़ को सुन कर दोनों के होश उड़ गए। घबराहट के मारे पलक झपकते ही दोनों का बुरा हाल हो गया।

"कौन हो तुम दोनों?" सहसा एक आदमी अंधेरे में दोनों के सामने किसी जिन्न की तरह नमूदार हो कर कड़क आवाज़ में बोला____"और इस वक्त कहां जा रही हो?"

"ज...जी वो हमें दादा ठाकुर से मिलना है।" कुमुद से पहले रूपा ने हिम्मत जुटा कर धीमें स्वर में कहा।
"दादा ठाकुर से??" वो आदमी जोकि हवेली का दरबान था चौंकते हुए दोनों को देखा____"तुम दोनों को भला उनसे क्या काम है?"

"देखिए हमारा उनसे मिलना बहुत ही ज़रूरी है।" रूपा ने अपनी बढ़ी हुई धड़कनों को काबू करते हुए कहा____"आप कृपया हमें दादा ठाकुर के पास पहुंचा दीजिए।"
"अरे! ऐसे कैसे भला?" दरबान ने हाथ झटकते हुए संदिग्ध भाव से कहा____"पहले तुम दोनों ये बताओ कि कौन हो और रात के इस वक्त अंधेरे में कहां से आई हो?"

"देखिए आप समझ नहीं रहे हैं।" कुमुद ने सहसा आगे बढ़ कर कहा____"आपके लिए ये जानना ज़रूरी नहीं है कि हम कौंन है और कहां से आए हैं, बल्कि ज़रूरी ये है कि आप हमें जल्द से जल्द दादा ठाकुर के पास पहुंचा दीजिए।"

"आप हमें ग़लत मत समझिए।" रूपा ने कहा____"असल में बात कुछ ऐसी है कि हम सिर्फ़ दादा ठाकुर को ही बता सकते हैं। कृपा कर के आप या तो हमें दादा ठाकुर के पास पहुंचा दीजिए या फिर आप ख़ुद ही जा कर दादा ठाकुर को बता दीजिए कि कोई उनसे मिलने आया है।"

दरबान दोनों की बात सुन कर सोच में पड़ गया। रात के इस वक्त दो औरतों का हवेली में आना उसके लिए हैरानी की बात थी किंतु आज कल जो हालात थे उसका उसे भी थोड़ा बहुत पता था इस लिए उसने सोचा कि एक बार दादा ठाकुर को इस बारे में सूचित ज़रूर करना चाहिए।

"ठीक है।" फिर उसने थोड़ा नम्र भाव से कहा___"तुम दोनों यहीं रुको। मैं दादा ठाकुर को तुम दोनों के बारे में सूचित करता हूं। अगर उन्होंने तुम दोनों को बुलाया तो मैं तुम दोनों को अंदर उनके पास ले चलूंगा।"

दरबान की बात सुन कर दोनों ने हां में सिर हिलाया। उसके बाद दरबान दोनों को यहीं रुकने का बोल कर तेज़ कदमों के साथ हवेली की तरफ बढ़ता चला गया। इधर कुमुद और रूपा अंधेरे में इधर उधर देखने लगीं थी। उन्हें डर भी लग रहा था कि कहीं कोई गड़बड़ न हो जाए अथवा वो दोनों किसी ऐसे आदमी के द्वारा न पकड़ी जाएं जो उन्हें पहचानता हो। दूसरा डर इस बात का भी था कि अगर दोनों को घर लौटने में ज़्यादा देर हो गई तो वो दोनों घर वालों को क्या जवाब देंगी?

ख़ैर कुछ ही देर में दरबान लगभग दौड़ता हुआ आया और हांफते हुए दोनों से अंदर चलने को कहा। दरबान के द्वारा अंदर चलने की बात सुन कर दोनों ने राहत की लंबी सांस ली और फिर दरबान के पीछे पीछे हवेली की तरफ बढ़ चलीं। कुछ ही समय में दोनों उस दरबान के साथ हवेली के अंदर बैठक में पहुंच गईं। दोनों के दिल बुरी तरह धड़क रहे थे। दरबान उन दोनों को बैठक में छोड़ कर बाहर चला गया था। बैठक में इस वक्त कोई नहीं था। दोनों अपनी घबराहट को काबू करने का प्रयास करते हुए बैठक की दीवारों को देखने लगीं थी। तभी सहसा किसी के आने की आहट से दोनों चौंकीं और फ़ौरन ही पलट कर पीछे देखा। नज़र एक ऐसी शख्सियत पर पड़ी जिनके लंबे चौड़े और हट्टे कट्टे बदन पर सफ़ेद कुर्ता पजामा था। कुर्ते के ऊपर उन्होंने एक साल ओढ़ रखा था। चेहरे पर रौब और तेज़ का मिला जुला संगम था। बड़ी बड़ी मूंछें और क़रीब तीन अंगुल की दाढ़ी जिनके बाल आधे से थोड़ा कम सफ़ेद नज़र आ रहे थे।

"कौन हैं आप दोनों?" दादा ठाकुर ने अपने सिंहासन पर बैठने के बाद बड़े नम्र भाव से दोनों की तरफ देखते हुए पूछा____"और रात के इस वक्त हमसे क्यों मिलना चाहती थीं?"

दादा ठाकुर की आवाज़ से दोनों को होश आया तो दोनों हड़बड़ा गईं और फिर खुद को सम्हाले हुए आगे बढ़ कर एक एक कर के दोनों ने झुक कर दादा ठाकुर के पांव छुए। दादा ठाकुर दोनों को ये करते देख हल्के से चौंके किन्तु फिर सामान्य भाव से दोनों को आशीर्वाद दिया। कुमुद ने तो उनके सामने घूंघट कर रखा था लेकिन रूपा ने अपने चेहरे से दुपट्टा हटा लिया।

"मैं रूपा हूं दादा ठाकुर।" रूपा ने अपनी घबराहट को काबू करते हुए कहा____"मेरे पिता जी का नाम हरि शंकर है और ये मेरी भाभी कुमुद हैं।"
"हरि शंकर??" दादा ठाकुर एकदम से चौंके, फिर हैरानी से बोले___"अच्छा अच्छा, तुम साहूकार हरि शंकर की बेटी हो? हमें लग ही रहा था कि कहीं तो तुम्हें देखा है। ख़ैर, ये बताओ बेटी कि रात के इस वक्त इस तरह से यहां आने का क्या कारण है? अगर कोई बात थी तो सुबह दिन के उजाले में भी तुम आ सकती थी यहां।"

"सुबह दिन के उजाले में आती तो शायद देर हो जाती दादा ठाकुर।" रूपा ने बेचैन भाव से कहा____"इस लिए रात के इस वक्त यहां आना पड़ा हम दोनों को।"

"हम कुछ समझे नहीं बेटी।" दादा ठाकुर के चेहरे पर उलझन के भाव उभर आए थे, बोले____"आख़िर ऐसी क्या बात थी जिसके लिए तुम दोनों को रात के इस वक्त यहां आना पड़ा। एक बात और, तुम हमें दादा ठाकुर नहीं बल्कि ताऊ जी कह सकती हो। हम दादा ठाकुर दूसरों के लिए हैं, जबकि तुम तो हमारे घर परिवार जैसी ही हो। ख़ैर, अब बताओ बात क्या है?"

"वो बात ये है ताऊ जी कि आपके छोटे बेटे की जान को ख़तरा है।" रूपा ने अपनी बढ़ी हुई धड़कनों को बड़ी मुश्किल से सम्हालते हुए कहा____"अगर हम सुबह आते तो बहुत देर हो जाती इस लिए हम आपको इस बारे में बताने के लिए फ़ौरन यहां चले आए।"

"हमारे बेटे की जान को ख़तरा है?" दादा ठाकुर बुरी तरह चौंके____"ये क्या कह रही हो बेटी?"
"मैं सच कह रही हूं ताऊ जी।" रूपा ने कहा।

"पर तुम्हें कैसे पता कि हमारे बेटे की जान को ख़तरा है?" दादा ठाकुर बुरी तरह हैरान थे कि रूपा जैसी लड़की को इतनी बड़ी बात कैसे पता चली? उसी हैरानी से उसकी तरफ देखते हुए बोले____"हम तुमसे जानना चाहते हैं बेटी कि इतनी बड़ी बात तुम्हें कहां से और कैसे पता चली?"

रूपा ने एक बार कुमुद की तरफ देखा और फिर गहरी सांस ले कर सब कुछ दादा ठाकुर को बताना शुरू कर दिया। उसने ये नहीं बताया कि वैभव को ख़त्म करने के लिए कहने वाला खुद उसका ताऊ मणि शंकर था। सारी बातें सुनने के बाद दादा ठाकुर गहरी सोच में डूब गए। सबसे ज़्यादा उन्हें ये सोच कर हैरानी हो रही थी कि इतनी बड़ी बात को बताने के लिए साहूकार हरि शंकर की बेटी अपनी भाभी के साथ रात के वक्त हवेली आ गई थी।

"इतनी बड़ी बात बता कर तुमने हम पर बहुत बड़ा उपकार किया है बेटी।" दादा ठाकुर ने गंभीर भाव से कहा____"तुम्हारे इस उपकार का बदला हम अपनी जान दे कर भी नहीं चुका सकते। बस यही दुआ करते हैं कि ऊपर वाला तुम्हें हमेशा खुश रखे लेकिन बेटी इसके लिए तुम दोनों को खुद रात के इस वक्त यहां आने की क्या ज़रूरत थी? हमारा मतलब है कि ये बात तुम अपने पिता जी अथवा ताऊ जी को बताती। वो खुद हमारे पास आ कर हमसे ये सब बता सकते थे। इसके लिए तुम्हें खुद इतनी तकलीफ़ उठाने की क्या ज़रूरत थी?"

"मैंने उस वक्त जब ये सब सुना था तो मुझे समझ ही नहीं आया था कि क्या करूं?" दादा ठाकुर की बात सुन कर रूपा अंदर ही अंदर बुरी तरह घबरा गई थी, किंतु फिर जल्दी ही खुद को सम्हाले हुए बोली____"मेरे साथ कुमुद भाभी भी थीं तो मैंने इन्हें बताया। हम दोनों ने निश्चय किया कि जितना समय हमें अपने घर वालों को ये सब बताने में लगेगा उतने में तो हम खुद ही यहां आ कर आपको सब कुछ बता सकते हैं।"

"ख़ैर जो भी किया तुम दोनों ने बहुत ही अच्छा किया है।" दादा ठाकुर ने कहा____"और इसके लिए हम तुम दोनों से बेहद प्रसन्न हैं। हम अपने बेटे की जान को बचाने के लिए जल्द ही कुछ न कुछ करेंगे। ये सब होने के बाद हम तुम्हारे पिता और ताऊ से भी मिलेंगे और उन्हें खुशी खुशी बताएंगे कि उनकी बहू और बेटी ने हम पर कितना बड़ा उपकार किया है।"

"नहीं नहीं ताऊ जी।" रूपा बुरी तरह घबरा गई, फिर खुद को सम्हाले हुए बोली____"आप ये सब बातें हमारे पिता जी को या ताऊ जी को बिलकुल भी मत बताइएगा।"

"अरे! ये कैसी बात कर रही हो बेटी?" दादा ठाकुर ने हैरानी से कहा____"तुम दोनों ने हम पर इतना बड़ा उपकार किया है और हम तुम्हारे इतने बड़े उपकार को तुम्हारे ही घर वालों को न बताएं ये तो बिल्कुल भी उचित नहीं है। आख़िर तुम्हारे पिता और ताऊ जी को भी तो पता चलना चाहिए कि उनकी तरह उनकी बहू बेटी भी हमारे प्रति वफ़ादार हैं और हमारे अच्छे के लिए सोचती हैं। तुम चिंता मत करो बेटी, देखना ये सब जान कर तुम्हारे घर वाले भी बहुत प्रसन्न हो जाएंगे।"

"नहीं ताऊ जी।" रूपा का मारे घबराहट के बुरा हाल हो गया था, किसी तरह बोली____"मैं आपसे विनती करती हूं कि आप इस बारे में मेरे घर वालों में से किसी को भी कुछ मत बताइएगा। मेरे घर वाले बहुत ज़्यादा पुराने विचारों वाले हैं। अगर उन्हें पता चला कि उनके घर की बेटी और बहू रात के वक्त उनकी गैर जानकारी में हवेली गईं थी तो वो हम पर बहुत ही ज़्यादा नाराज़ हो जाएंगे।"

"ऐसा कुछ भी नहीं होगा बेटी।" दादा ठाकुर ने मानो उसे आश्वासन दिया____"तुम दोनों को इस बारे में फ़िक्र करने की कोई ज़रूरत नहीं है। हम उन्हें समझाएंगे कि तुम दोनों ने रात के वक्त हवेली में आ कर कोई अपराध नहीं किया है बल्कि हवेली में रहने वाले दादा ठाकुर पर उपकार किया है। हमें यकीन है कि ये बात जान कर उन सबका सिर गर्व से ऊंचा हो जाएगा।"

"आप मुझे बेटी कह रहे हैं ना ताऊ जी।" रूपा ने इस बार अधीरता से कहा____"तो इस बेटी की बात मान लीजिए ना। आप हमारे घर वालों को इस बारे में कुछ भी नहीं बताएंगे, आपको हम दोनों की क़सम है ताऊ जी।"

"बड़ी हैरत की बात है।" दादा ठाकुर ने चकित भाव से कहा____"ख़ैर, अगर तुम ऐसा नहीं चाहती तो ठीक है हम इस बारे में किसी को कुछ नहीं बताएंगे। तुमने हमें क़सम दे दी है तो हम तुम्हारी क़सम का मान रखेंगे।"

"आपका बहुत बहुत धन्यवाद ताऊ जी।" रूपा ने कहने के साथ ही दादा ठाकुर के पैर छुए और फिर खड़े हो कर कहा____"अब हमें जाने की इजाज़त दीजिए। काफी देर हो गई है हमें।"

रूपा के बाद कुमुद ने भी दादा ठाकुर के पांव छुए और फिर दादा ठाकुर की इजाज़त ले कर हवेली से बाहर निकल गईं। दादा ठाकुर हवेली के मुख्य दरवाज़े तक उन्हें छोड़ने आए। कुछ ही देर में दोनों अंधेरे में गायब हो गईं। उनके जाने के बाद दादा ठाकुर गहरी सोच और चिंता में डूब गए। उनके ज़हन में ख़्याल उभरा कि वैभव की जान को ख़तरा है अतः उन्हें जल्द से जल्द कुछ करना होगा। रूपा के अनुसार वैभव को जान से मारने वाला सुबह ही चंदनपुर के लिए रवाना हो जाएगा। दादा ठाकुर के मन में सवाल उभरा कि ऐसा कौन हो सकता है जो उनके बेटे को जान से मारने के लिए सुबह ही चंदनपुर के लिए निकलने वाला है? क्या वो इसी गांव का है या फिर किसी दूसरे गांव का?

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"वैभव महाराज कहां चले गए थे आप?" मैं जैसे ही घर पहुंचा तो वीरेंद्र ने पूछा____"हमने सोचा एक साथ ही दिशा मैदान के लिए चलेंगे पर आप तो जाने कहां गायब हो गए थे?"

"जी वो गांव तरफ घूमने निकल गया था।" मैंने सामान्य भाव से कहा____"सोचा आप सब व्यस्त हैं तो अकेला ही घूम फिर आता हूं। वैसे आप फ़िक्र न करें, यहां से निकला तो राघव भैया मिल गए। उन्हीं से दरबार होने लगी तो समय का पता ही नहीं चला।"

"चलिए कोई बात नहीं।" वीरेंद्र ने कहा____"अगर आपको दिशा मैदान के लिए चलना हो तो चलिए मेरे साथ।"
"नहीं, अब तो सुबह ही जाऊंगा।" मैंने कहा____"आप फुर्सत हो आइए। मैं यहीं बाबू जी के पास बैठता हूं।"

वीरेंद्र सिर हिला कर निकल गया और मैं अंदर आ कर बैठक में भाभी के पिता जी के पास बैठ गया। बैठक में और भी कुछ लोग बैठे हुए थे जिनसे बाबू जी ने मेरा परिचय कराया। अब क्योंकि मैं भी दामाद ही था इस लिए सबने मेरे पांव छुए। मुझे अपने से बड़ों का इस तरह से पांव छूना अजीब लगता था लेकिन क्या करें उनका अपना धर्म था। सब मेरा और मेरे पिता जी का हाल चाल पूछते रहे उसके बाद गांव के लोग चले गए।

रात में हम सबने साथ ही भोजन किया। भाभी और भाभी की छोटी बहन कामिनी रसोई में थी जबकि वीरेंद्र की पत्नी अपने कमरे में अपने नन्हें से बच्चे के साथ थी। खाना परोसने का काम कंचन और मोहिनी कर रहीं थी। बड़े भैया के चाचा ससुर भी हम सबके साथ खाना खाने के लिए बैठे हुए थे। मैंने महसूस किया कि कंचन मुझसे नज़रें चुरा रही थी। ज़ाहिर था आज शाम को जो कुछ हमारे बीच हुआ था उससे उसका नज़रें चुराना लाज़मी था। मैं उसे पूरी तरह से नंगा देख चुका था और इस वजह से वो मेरे सामने शर्मा रही थी। आस पास सब लोग थे इस लिए उससे मैं कुछ कह नहीं सकता था वरना उसकी अच्छी खासी खिंचाई करता। ख़ैर जल्दी ही हम सब का खाना हो गया तो हम सब उठ गए।

गर्मी का मौसम था इस लिए घर के बाहर ही चारपाई लगा कर हम सबके सोने की व्यवस्था की गई। मेरे साथ जो आदमी आए थे उन सबको वीरेंद्र ने भोजन करवाया और उन लोगों को भी घर के बाहर ही अलग अलग चारपाई पर सोने की व्यवस्था कर दी। कुछ देर हम सब बातें करते रहे उसके बाद सोने के लिए लेट गए।

मुझे नींद नहीं आ रही थी। आंखों के सामने बार बार जमुना के साथ हुई चुदाई का दृश्य उजागर हो जाता था जिसके चलते मेरा रोम रोम रोमांच से भर जाता था। सुषमा और कंचन के नंगे जिस्म भी आंखों के सामने उजागर हो जाते थे। मैं सोचने लगा कि अब जब दोनों से दुबारा अकेले में मुलाक़ात होगी तो वो दोनों कैसा बर्ताव करेंगी? मैं इस बारे में सोच जी रहा था कि सहसा मुझे अनुराधा का ख़्याल आ गया।

अनुराधा का ख़्याल आया तो एकदम से मेरे दिलो दिमाग़ में अजीब से ख़्याल उभरने लगे। मैं सोचने लगा कि इस वक्त वो भी चारपाई पर लेटी होगी। मेरे मन में सवाल उभरा कि क्या वो भी मेरे बारे में सोचती होगी? मुझे याद आया कि उस दिन उसने कितनी बेरुखी से मुझसे बातें की थी और फिर मुझे वो सब कह कर उसके घर से चले जाना पड़ा था। क्या सच में अनुराधा को यही लगता है कि मैं बाकी लड़कियों की तरह ही उसे अपने जाल में फंसाना चाहता हूं? इस सवाल पर मैं विचार करने लगा। कुछ देर सोचने के बाद सहसा मुझे कुछ आभास हुआ। मैंने सोचा, अगर वो मेरे बारे में ऐसा सोचती है तो क्या ग़लत सोचती है? माना कि ये सिर्फ मैं जानता हूं कि मैं उसके बारे में कुछ भी ग़लत नहीं सोचता हूं लेकिन इस बात को भी तो नकारा नहीं जा सकता कि मेरा चरित्र पहले जैसा ही है।

एकदम से मुझे आभास हुआ कि मैं अपने उसी चरित्र की वजह से अभी कुछ घंटे पहले जमुना के साथ ग़लत काम कर के आया हूं और ये भी सच ही है कि जमुना के अलावा मैं सुषमा और कंचन को भी भोगने की हसरत पाले बैठा हूं। भला ये क्या बात हुई कि एक तरफ मैं अनुराधा की नज़र में अच्छा इंसान बनने का दिखावा कर रहा हूं वहीं दूसरी तरफ मैं अभी भी पहले की तरह हर लड़की और हर औरत को भोगने की ख़्वाइश रखे हुए हूं? इस बात के एहसास ने एकदम से मुझे सोचो के गहरे समुद्र में डुबा दिया। मैंने सोचा, अनुराधा ने अगर मुझसे वो सब कहा तो क्या ग़लत कहा था? मैं तो आज भी वैसा ही हूं जैसा हमेशा से था। फिर मैं अनुराधा से ये क्यों कहता हूं कि उसने मुझे मुकम्मल तौर पर बदल दिया है? क्या सच में मैं बदल गया हूं? नहीं, बिल्कुल नहीं बदला हूं मैं। अगर सच में बदल गया होता तो आज ना तो मैं सुषमा और कंचन को भोगने की इच्छा रखता और ना ही जमुना के साथ वो सब करता। इसका मतलब अनुराधा से मैंने अपने बदल जाने के बारे में जो कुछ कहा वो सब झूठ था। इस सबके बावजूद मैं ये ख़्वाइश रखता हूं कि अनुराधा मुझे समझे और वही करे जो मैं उससे चाहता हूं।

अचानक से मैंने महसूस किया कि मेरे दिलो दिमाग़ में आंधियां सी चलने लगीं हैं। एक अजीब सा द्वंद चलने लगा था मेरे अंदर जिसकी वजह से एकदम से मुझे अजीब सा लगने लगा। मैंने बेचैनी और बेबसी से चारपाई पर करवट बदली और ज़हन से इन सारी बातों को निकालने की कोशिश करने लगा मगर जल्दी ही आभास हुआ कि ये इतना आसान नहीं है। काफी देर तक मैं इन सारी बातों की वजह से परेशान और व्यथित रहा और फिर ना जाने कब मेरी आंख लग गई।

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"मालिक आप यहां?" शेरा ने दरवाज़ा खोला और जैसे ही उसकी नज़र बाहर खड़े दादा ठाकुर पर पड़ी तो आश्चर्य से बोल पड़ा था____"अगर मेरे लिए कोई हुकुम था तो किसी आदमी के द्वारा मुझे बोलवा लिया होता। आपने यहां आने का कष्ट क्यों किया मालिक?"

"कोई बात नहीं शेरा।" दादा ठाकुर ने दरवाज़े के अंदर दाख़िल होते हुए कहा____"वैसे भी बात ऐसी है कि उसके लिए हमारा खुद ही यहां आना ज़रूरी था।"

शेरा ने फटाफट चारपाई को सरका कर दादा ठाकुर के पास रखा तो दादा ठाकुर उस पर बैठ गए। ये पहला अवसर था जब दादा ठाकुर शेरा जैसे अपने किसी गुलाम के घर आए थे। दादा ठाकुर ने एक नज़र घर की दीवारों पर डाली और फिर शेरा की तरफ देखा।

"तुम्हें इसी वक्त चंदनपुर जाना होगा शेरा।" फिर उन्होंने गंभीर भाव से कहा____"अपने साथ कुछ आदमियों को भी ले जाना। असल में हमें अभी कुछ देर पहले ही पता चला है कि वैभव की जान को ख़तरा है। हम नहीं जानते कि वो कौन लोग हैं लेकिन इतना ज़रूर पता चला है कि वो सुबह ही चंदनपुर जाएंगे और वहां वैभव पर जानलेवा हमला करेंगे। तुम्हारा काम वैभव की जान को बचाना ही नहीं बल्कि उन लोगों को पकड़ना भी है जो वैभव को जान से मारने के इरादे से वहां पहुंचेंगे।"

"आप फ़िक्र मत कीजिए मालिक।" शेरा ने गर्मजोशी से कहा____"मेरे रहते छोटे ठाकुर को कोई छू भी नहीं सकेगा। मैं अपनी जान दे कर भी छोटे ठाकुर की रक्षा करूंगा और उन लोगों को पकडूंगा।"

"बहुत बढ़िया।" दादा ठाकुर ने शाल के अंदर से कुछ निकाल कर शेरा की तरफ बढ़ाते हुए कहा____"इसे अपने पास रखो और साथ में इस पोटली को भी लेकिन ध्यान रहे इसका स्तेमाल तभी करना जब बहुत ही ज़रूरी हो जाए।"

शेरा ने दादा ठाकुर के हाथ से कपड़े में लिपटी दोनों चीजें ले ली। शेरा ने एक चीज़ से कपड़ा हटाया तो देखा उसमें एक रिवॉल्वर था। दूसरी कपड़े की पोटली कुछ वजनी थी और उसमें से कुछ खनकने की आवाज़ भी आई। शेरा समझ गया कि उसमें रिवॉल्वर की गोलियां हैं।

"हमें पूरी उम्मीद है कि तुम अपना काम पूरी सफाई से और पूरी सफलता से करोगे।" दादा ठाकुर ने चारपाई से उठते हुए कहा____"कोशिश यही करना कि वो हमलावर ज़िंदा तुम्हारे हाथ लग जाएं।"

"मैं पूरी कोशिश करूंगा मालिक।" शेरा ने कहा____"मैं अभी इसी समय कुछ आदमियों को ले कर चांदपुर के लिए निकल जाऊंगा।"
"अगर वहां के हालात काबू से बाहर समझ में आएं तो फ़ौरन किसी के द्वारा हमें सूचना भेजवा देना।" दादा ठाकुर ने कहा____"चंदनपुर का सफ़र लंबा है इस लिए तुम हरिया के अस्तबल से घोड़े ले लेना।"

दादा ठाकुर की बात सुन कर शेरा ने सिर हिलाया और फिर उन्हें प्रणाम किया। दादा ठाकुर ने उसे विजयी होने का आशीर्वाद दिया और फिर दरवाज़े से बाहर निकल गए। दादा ठाकुर के जाने के बाद शेरा ने फ़ौरन ही अपने कपड़े पहने और कपड़ों की जेब में रिवॉल्वर के साथ दूसरी पोटली डालने के बाद घर से बाहर निकल गया।


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Maanana padega ye Dada Thakur ne bhigo bhigo ke badaam khaye honge:D jo har baat ko aram se soch samaz ke dekhte he ,analyze karke perfect action lete he :bow:
Rahi baat Vaibhav ki to aisa he ke jis chij ki aadat pad gayi he wo chhode na chhutegi :sigh2:
Fir chahe jitna saadhu bano ya jo bhi karo
 
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