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Adultery ☆ प्यार का सबूत ☆ (Completed)

What should be Vaibhav's role in this story..???

  • His role should be the same as before...

    Votes: 19 9.9%
  • Must be of a responsible and humble nature...

    Votes: 22 11.5%
  • One should be as strong as Dada Thakur...

    Votes: 75 39.1%
  • One who gives importance to love over lust...

    Votes: 44 22.9%
  • A person who has fear in everyone's heart...

    Votes: 32 16.7%

  • Total voters
    192

Game888

Hum hai rahi pyar ke
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Dosto, iske aage do update aur hain. Baaki ke update delete kar diye hain maine kyoki aap sabko vaibhav aur ragini ka suhagrat wala scene chahiye tha. Is liye maine uske aage ke update fir se likhne ka man banaya hai. But time ki kami ke chalte update aane me time lag sakta hai. Lekin iska matlab ye nahi hai ki ye story February me complete nahi hogi...

Story February me hi complete hogi... :check:

Sath banaye rakhe, enjoy kare aur apne vichaar byakt karte rahe... :declare:
Ant nahin ek nai shuruaat bhai, Ragini Rupa aur vaibhav ki jindagi me......
 

Kuresa Begam

Member
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अध्याय - 161
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"मैं अब रहूंगी बेटा।" सरोज काकी ने दृढ़ता से कहा____"अपनी बेटी रूपा को उसी तरह तुमसे विवाह कर के विदा करूंगी जैसे मैं अनुराधा को करती।"

कुछ देर और सरोज काकी से बातें हुईं उसके बाद मैं वहां से चल पड़ा। थोड़े ही समय में मैं भुवन से मिलने अपने खेतों पर पहुंच गया। भुवन खेतों पर ही था। मैं उससे मिला और उसे बरात में चलने का निमंत्रण भी दिया। भुवन इस बात से बड़ा खुश हुआ। उसके बाद मैं हवेली निकल गया।



अब आगे....


वक्त बड़ा जल्दी जल्दी गुज़र रहा था। ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे उसको कुछ ज़्यादा ही जल्दी थी रागिनी का अपने होने वाले पति वैभव से मिलन करवाने की। अभी कुछ दिन पहले ही उसके घर वाले वैभव का तिलक चढ़ाने रुद्रपुर गए थे और अब हल्दी की रस्म होने लगी थी। अब बस कुछ ही दिनों बाद घर में बरात आने वाली थी। सच में समय बड़ी तेज़ गति से गुज़र रहा था।

पूरे घर में खुशी का माहौल छाया हुआ था। सभी सगे संबंधी आ गए थे। सुबह से ही हर कोई भाग दौड़ करते हुए अपने अपने काम में लग गया था। गांव की औरतें आंगन में बैठी ढोलक बजा रहीं थी, गीत गा रहीं थी। संगीत की धुन में सब लड़कियां मिल कर नाच रहीं थीं।

वहीं एक तरफ रागिनी को हल्दी लगाई जा रही थी। हल्दी लगाने वालों की जैसे कतार सी लगी हुई थी। हर कोई उतावला सा दिख रहा था। उसकी भाभियां, उसकी बहनें, गांव की कुछ भाभियां और उसकी सहेली शालिनी। सब गाते हुए उसको हल्दी लगा रहीं थी।

रागिनी के गोरे बदन पर एक मात्र कपड़ा था जोकि उसका कुर्ता ही था जिसकी बाहें उसके कंधों से कटी हुईं थी। नीचे उसने सलवार नहीं पहनी थी लेकिन हां कच्छी ज़रूर पहन रखी थी। उसकी भाभियां जान बूझ कर उसके बदन के ऐसे ऐसे हिस्से पर हल्दी मल रहीं थी जहां पर उनके हाथों की छुवन और मसलन से रागिनी शर्म से पानी पानी हुई जा रही थी। वो ऐसी जगहों पर हाथ लगाने से विरोध भी कर रही थी लेकिन कोई उसकी सुन ही नहीं रहा था। बार बार उसके कुर्ते के अंदर हाथ डाल दिया जाता। फिर उसके पेट, उसकी जांघें, उसकी पिंडलियां, उसके पैर, उसकी पीठ और उसके गले व सीने से होते हुए उसकी ठोस छातियों में भी ज़ोर लगा लगा कर हल्दी मली जाती। रागिनी कभी आह कर उठती तो कभी उसकी सिसकियां निकल जाती तो कभी चीख ही निकल जाती। शर्म के मारे उसका चेहरा हल्दी लगे होने बाद भी सुर्ख पड़ा हुआ नज़र आ रहा था। कुछ समय बाद बाकी सब चली गईं लेकिन शालिनी, वंदना और सुषमा उसके पास ही बैठी उसे हल्दी लगाती रहीं।

"क्यों मेरी बेटी को इतना परेशान किए जा रही हो तुम लोग?" सुलोचना देवी बरामदे में किसी काम से आईं तो उन्होंने रागिनी की हालत देख कर जैसे उन तीनों को डांटा____"कुछ तो शर्म करो। हल्दी लगाने का ये कौन सा तरीका है?"

"ये अवसर रोज़ रोज़ नहीं आता चाची।" शालिनी ने मुस्कुराते हुए कहा____"पिछली बार मेरी हसरत पूरी नहीं हो पाई थी लेकिन इस बार सारी ख़्वाहिश पूरी करूंगी मैं। आप जाइए यहां से। हमें हमारा काम करने दीजिए।"

"ठीक है तुम अपनी ख़्वाहिश पूरी करो।" सुलोचना देवी ने कहा____"लेकिन बेटी थोड़ा दूसरों का भी तो ख़याल करो। क्या सोचेंगे सब?"

"चिंता मत कीजिए चाची।" शालिनी ने कहा___"यहां अब कोई नहीं आने वाला। जिनको शुरू में रागिनी को हल्दी लगाना था वो लगा चुकी हैं। अब सिर्फ मैं और ये भाभियां ही हैं। बाकी बाहर वालों पर नज़र रखने के लिए मैंने कामिनी को बोल रखा है।"

सुलोचना देवी कुछ न बोलीं। वो बस रागिनी के शर्म से लाल पड़े चेहरे को देखती रहीं। रागिनी भी उन्हीं को देख रही थी। उसकी आंखों में एक याचना थी। जैसे कह रही हो कि इन बेशर्मों से उसकी जान बचा लीजिए। सुलोचना देवी को रागिनी की इस हालत पर बड़ी दया आई। वो जानतीं थी कि रागिनी इन मामलों में बहुत शर्म करती है लेकिन वो ये भी जानती थीं कि आज का दिन खुशी का दिन है। किसी को भी नाखुश करना ठीक नहीं था। वैसे भी सब उसके घर की ही तो थीं।

"इन्हें अपने मन की कर लेने दे बेटी।" फिर उन्होंने रागिनी को बड़े प्यार से देखते हुए कहा____"ये सब तेरी खुशियों से खुश हैं इस लिए आज के दिन तू भी किसी बात की शर्म न कर और इस खुशी को दिल से महसूस कर।"

ये कह कर सुलोचना देवी चली गईं। उनके जाने के बाद शालिनी जो उनके जाने की प्रतीक्षा ही कर थी वो फिर से शुरू हो गई। उसने बड़े से कटोरे से हाथ में हल्दी ली और वंदना भाभी को इशारा किया। वंदना ने मुस्कुराते हुए झट से रागिनी का कुर्ता पकड़ कर एकदम से उठा दिया। इधर जैसे ही कुर्ता उठा शालिनी ने हल्दी लिया हाथ झट से रागिनी के कुर्ते में घुसा दिया और उसकी सुडोल छातियों पर हल्दी मलने लगी। जैसे ही रागिनी को ये पता चला उसकी एकदम से चीख निकल गई।

"ऐसे मत चीख मेरी लाडो।" शालिनी ने हंसते हुए कहा____"ये तो कुछ भी नहीं है। सुहागरात को जब जीजा जी तेरी इन छातियों को मसलेंगे तब क्या करेगी तू? क्या तब भी तू ऐसे ही चीखेगी और हवेली में रहने वालों को पता लगवा देगी कि तेरे पतिदेव तेरे साथ क्या कर रहे हैं?"

"चुप कर कमीनी वरना मुंह तोड़ दूंगी तेरा।" रागिनी ने एक हाथ से उसके बाजू में ज़ोर से मारते हुए कहा____"कैसी बेशर्म हो गई है तू। जो मुंह में आता है बोल देती है।"

"मार ले जितना मारना है मुझे।" शालिनी ने मुस्कुराते हुए कहा____"लेकिन मैं तो आज तेरे साथ ऐसे ही मज़े लूंगी, क्यों वंदना भाभी?"

"हां शालिनी।" वंदना ने जैसे उसका साथ देते हुए कहा____"आज तो पूरा मज़ा लेना है रागिनी से। आज हम दोनों मिल कर इसकी सारी शर्म दूर कर देंगे ताकि सुहागरात को इसे अपने पति से कोई शर्म महसूस न हो।"

"हाय राम! भाभी आप भी इस कलमुही का साथ दे रही हैं?" रागिनी ने आश्चर्य से आंखें फैला कर वंदना को देखा____"कम से कम आप तो मुझ पर रहम कीजिए।"

"रागिनी सही कह रही हैं दीदी।" बलवीर सिंह की पत्नी सुषमा ने वंदना से मुस्कुराते हुए कहा____"हमें रागिनी पर रहम करना चाहिए। मेरा मतलब है कि इनकी छातियों पर हल्दी लगा कर छातियों को नहीं मसलना चाहिए। आख़िर वहां पर हाथ लगाने का हक़ तो हमारे जीजा जी का है। शायद इसी लिए हमारी ननद रानी को भी हमारा इनकी छातियों पर हाथ लगाना पसंद नहीं आ रहा है।"

"अरे! हां ये तो तुमने सही कहा सुषमा।" वंदना ने हैरानी से उसकी तरफ देखा____"अब समझ आया कि मेरी लाडो क्यों इतना गुस्सा कर रहीं हैं।"

रागिनी ये सुन कर और भी बुरी तरह शर्मा गई। उसे समझ में नहीं आ रहा था कि वो ऐसा क्या करे जिसके चलते उसे ये सब न सुनना पड़े। ऐसा नहीं था कि उसे इन सबकी बातों से सचमुच का गुस्सा आ रहा था बल्कि सच ये था कि उसको ज़रूरत से ज़्यादा शर्म आ रही थी।

"बात तो आपने सच कही भाभी।" शालिनी ने कहा____"मुझे भी मज़ा लेने के चक्कर में ये ख़याल नहीं रहा था कि वहां पर हाथ लगाने का हक़ तो हमारे जीजा जी का है।" कहने के साथ ही शालिनी ने रागिनी से कहा____"अगर ऐसी ही बात थी तो तूने बताया क्यों नहीं हमें? यार सच में ग़लती हो गई ये तो।"

"तू ना चुप ही रह अब।" रागिनी को कुछ न सुझा तो झूठा गुस्सा दिखाते हुए बोल पड़ी____"और अब मुझे हाथ मत लगाना। मुझे नहीं लगवानी अब हल्दी वल्दी। जाओ सब यहां से।"

"अरे! गुस्सा क्यों होती है?" शालिनी ने हल्दी लिया हाथ उसके गाल पर मलते हुए कहा____"अभी तो और भी जगह बाकी है जहां हल्दी लगानी है।"

"तू ऐसे नहीं मानेगी ना रुक तू।" कहने के साथ ही रागिनी ने बिजली की सी तेज़ी से कटोरे से हल्दी ली और झपट कर शालिनी के ब्लाउज में हाथ डाल कर उसकी बड़ी बड़ी छातियों को हल्दी लगाते हुए मसलने लगी।

अब चीखने चिल्लाने की बारी शालिनी की थी। वो सच में इतना ज़ोर से चिल्लाई कि आंगन में गीत गा रही औरतें एकदम से चौंक कर इधर देखने लगीं। शालिनी को बिल्कुल भी उम्मीद नहीं थी कि उसकी इतनी संस्कारी सहेली इतना बड़ा दुस्साहस कर बैठेगी। उधर वंदना और सुषमा भी चकित भाव से रागिनी को देखने लगीं थी।

"अब बोल कमीनी।" रागिनी बदस्तूर उसकी छातियों को मसलते हुए बोली____"बता अब कैसा लग रहा है तुझे? बहुत देर से तेरा नाटक देख रही थी मैं। अब बताती हूं तुझे।"

"वंदना भाभी बचाइए मुझे।" शालिनी चिल्लाई____"कृपया बचाइए इससे। इस पर भूत सवार हो गया है लगता है। रागिनी छोड़ दे, ना कर ऐसा।"

"क्यों न करूं?" रागिनी ने अचानक ही उसकी एक छाती को ज़ोर से मसल दिया जिससे शालिनी और जोरों से चीख पड़ी, उधर रागिनी ने कहा____"अभी तक तू जो कर रही थी वो क्या सही कर रही थी तू, हां बता ज़रा?"

"माफ़ कर दे मुझे।" शालिनी उससे छूटने का प्रयास करते हुए बोली____"मैं तो बस हल्दी लगा रही थी तुझे।"

"हां तो मैं भी अब हल्दी ही लगा रही हूं तुझे।" रागिनी ने कहा____"तू भी अब वैसे ही लगवा जैसे मुझे लगा रही थी तू।"

इससे पहले कि आंगन में बैठी गीत गा रही औरतें इस तरफ आतीं वंदना और सुषमा ने हस्ताक्षेप किया और किसी तरह रागिनी को समझा बुझा कर शालिनी से छुड़वाया। दोनों ही बुरी तरह हांफने लगीं थी।

"तेरे अंदर कोई भूत आ गया था क्या?" शालिनी ने अपनी उखड़ी सांसों को काबू में करने का प्रयास करते हुए रागिनी से कहा____"ऐसा कैसे कर सकती थी तू? पागल तो नहीं हो गई थी?"

"तुम सब मेरी शर्म दूर कर रही थी ना?" रागिनी ने हांफते हुए कहा____"तो ऐसा कर के मैं भी अपनी शर्म ही दूर कर रही थी। अब बता कैसा लगा तुझे?"

"कैसा लगा की बच्ची।" शालिनी ने अपने सीने पर लगी हल्दी को देखते हुए कहा____"पूरा ब्लाउज ख़राब कर दिया मेरा। अब घर कैसे जाऊंगी मैं?"

"सबको दिखाते हुए जाना।" रागिनी ने सहसा मुस्कुराते हुए कहा____"लोगों को पता तो चलेगा कि तू हल्दी लगवा रही थी किसी से।"

"रुक जा बेटा।" शालिनी ने जैसे धमकी देते हुए कहा____"इसका बदला ले कर रहूंगी मैं। जिस दिन जीजा जी बरात ले कर आएंगे उस दिन उनसे ही शिकायत करूंगी तेरी।"

"हां कर देना।" रागिनी के चेहरे पर शर्म की हल्की लाली उभर आई____"मैं क्या डरती हूं किसी से।"

"हां ये बात तो मैं मानती हूं रागिनी।" सहसा वंदना ने मुस्कुराते हुए कहा____"तुम अपने होने वाले पति से नहीं बल्कि वो खुद ही तुमसे डरते हैं।"

"अच्छा क्या सच में?" सुषमा पूछे बगैर न रह सकी____"क्या सच में जीजा जी रागिनी से डरते हैं?"

"और नहीं तो क्या?" वंदना ने कहा____"पिछली बार जब आए थे तो मैंने इन दोनों की बातें सुनी थी।"

"भाभी नहीं।" रागिनी एकदम से हड़बड़ा गई, फिर मिन्नत सी करते हुए बोली____"कृपया उन बातों को किसी को मत बताइए ना। आपने मुझसे वादा किया था कि आप किसी से नहीं कहेंगी।"

"अच्छा ठीक है नहीं कहती।" वंदना ने रागिनी की मासूम सी शक्ल देखी तो उसे उस पर तरस सा आ गया____"लेकिन ये तो सच ही है ना कि हमारे होने वाले जीजा जी मेरी प्यारी ननद रानी से डरते हैं।"

"ऐसा कुछ नहीं है।" रागिनी ने शर्म से नज़रें चुराते हुए कहा____"आप ऐसे ही झूठ मूठ मत बोलिए।"

"हां तो तू ही बता दे ना कि सच क्या है?" शालिनी ने मुस्कुराते हुए कहा____"वो डरते हैं या तुझसे बेपनाह प्यार करते हैं?"

"मुझे नहीं पता।" रागिनी शर्म से सिमट सी गई____"अच्छा अब अगर हल्दी वाला काम हो गया हो तो मैं नहा लूं। अंदर बहुत अजीब सा महसूस हो रहा है।"

"अंदर??" शालिनी हौले से चौंकी____"अंदर कहां अजीब सा महसूस हो रहा है तुझे। नीचे या ऊपर?"

"तू न अब पिटेगी मुझसे।" रागिनी ने उसको घूरते हुए कहा____"बहुत ज़्यादा मत बोल।"

"लो मैं कहां ज़्यादा बोल रही हूं?" शालिनी ने बुरा सा मुंह बना कर कहा____"पूछ ही तो रही हूं कि नीचे अजीब सा महसूस हो रहा है या ऊपर?"

"शालिनी मत तंग करो मेरी लाडो को।" वंदना को रागिनी पर बहुत ज़्यादा स्नेह आ रहा था इस लिए उसने उसके चेहरे को प्यार से सहलाते हुए कहा____"बड़ी मुद्दत के बाद तो मेरी ननद रानी के चेहरे पर खुशियों के रंग नज़र आए हैं।"

वंदना की इस बात से सहसा माहौल गंभीर सा होता नज़र आया किंतु जल्दी ही शालिनी ने इस माहौल को अपने मज़ाक से दूर कर दिया। थोड़ी देर और इधर उधर का हंसी मज़ाक हुआ उसके बाद सुलोचना देवी के आवाज़ देने पर वंदना उठ कर उनके पास चली गईं। इधर शालिनी और सुषमा रागिनी को ले कर चल पड़ीं

✮✮✮✮

हवेली के बड़े से आंगन में एक जगह तंबू बनाया गया था जिसके नीचे मैं एक छोटे से सिंघासन पर बैठा था। मेरे जिस्म पर इस वक्त मात्र कच्छा ही था, बाकी पूरा बलिष्ट जिस्म बेपर्दा था। तीन तरफ के बरामदे में औरतें बैठी गीत गा रहीं थी। कुछ गांव की औरतें थीं कुछ दूसरे गांव की जो पिता जी के मित्रों के घर से आई हुईं थी। बड़े से आंगन में दोनों तरफ मेरी बहनें और मेरी मामियां नाच रहीं थी। पूरा वातावरण संगीत, ढोल नगाड़े और नाच गाने से गूंज रहा था और गूंजता भी क्यों नहीं...आज हल्दी की रस्म जो थी।

आंगन के बीच लगे तंबू के नीचे मैं सिंघासन पर बैठा था और एक एक कर के सब मुझे हल्दी लगा रहे थे। मां, मेनका चाची, निर्मला काकी, महेंद्र सिंह की पत्नी सुभद्रा देवी, ज्ञानेंद्र सिंह की पत्नी माया देवी, अर्जुन सिंह की पत्नी रुक्मणि देवी, संजय सिंह की पत्नी अरुणा देवी सबने एक एक कर के मुझे हल्दी लगाई। उसके बाद सभी मामियों ने मुझे हल्दी लगाया। कुसुम ने खुशी से चहकते हुए मुझे हल्दी लगाई। मामी की दोनों बेटियां सुमन और सुषमा ने भी लगाई।

छोटे मामा की पत्नी यानि रोहिणी मामी जब मुझे हल्दी लगाने आईं तो मैं उन्हें देख मुस्कुराने लगा। पहले तो उन्होंने ध्यान नहीं दिया और शायद उन्हें याद भी नहीं था किंतु जब मैं उन्हें देखते हुए अनवरत मुस्कुराता ही रहा तो मानों एकदम से उन्हें उस रात का किस्सा याद आ गया जिसके चलते एकदम से उनके चेहरे पर शर्म की लाली उभर आई और वो नज़रें चुराते हुए मुझे हल्दी लगाने लगीं। गुलाबी होठों पर शर्म मिश्रित मुस्कान थी जिसे वो छुपा नहीं पा रहीं थी।

"क्या हुआ मामी?" मैं उनकी हालत पर मज़ा लेने का सोच कर पूछा____"अब तो आपके चेहरे पर अलग ही नूर दिखने लगा है। मामा की परेशानी दूर हो गई है क्या?"

"चुप करो।" वो एकदम से झेंप सी गईं____"बहुत बदमाश हो गए हो तुम।"

"अब ये क्या बात हुई मेरी प्यारी मामी?" मैंने उन्हें छेड़ा____"मैंने भला ऐसा क्या कर दिया है जिसके चलते आप मुझे बदमाश कहने लगीं?"

"अब तुम मेरा मुंह न खोलवाओ।" मामी ने अपनी शर्म को छुपाते हुए मुस्कुरा कर कहा____"तुम दोनों मामा भांजे की बदमाशी समझ गई हूं मैं।"

"ये आप क्या कह रही हैं मामी?" मैंने इधर उधर नज़र घुमा कर उनसे कहा____"खुल कर बताइए ना कि आप क्या समझ गईं हैं?"

"तुम्हें शर्म नहीं आती लेकिन मुझे तो आती है ना?" मामी ने हल्दी लगे हाथ से मेरे दाहिने गाल पर थोड़ा जोर से ठेला। स्पष्ट था कि उन्होंने एक तरह से मुझे इस तरीके से चपत लगाई थी, बोलीं____"मुझे उस रात ही समझ जाना चाहिए था कि तुम दोनों मामा भांजे कौन सी खिचड़ी पका रहे थे।"

"लो जी, अब ये क्या बात हुई भला?" मैं मन ही मन हंसा____"मैं मासूम भला कौन सी खिचड़ी पका सकता हूं? मैं तो बस मामा की परेशानी दूर करना चाहता था और इसी लिए आपको उनके पास भेजा था। क्या उस रात उन्होंने आपको परेशान किया था?"

"और नहीं तो क्या?" मामी का चेहरा कुछ ज़्यादा ही शर्म से लाल पड़ गया। नज़रें चुराते हुए बोलीं____"उन्होंने मुझे बहुत ज़्यादा परेशान किया और ये सब तुम्हारी वजह से हुआ है।"

"हे भगवान!" मैंने जैसे आश्चर्य ज़ाहिर किया____"मैंने तो अच्छा ही सोचा था। ख़ैर ये तो बताइए कि मामा ने आपको किस बात से परेशान किया था? सुबह उनसे पूछा था लेकिन उन्होंने मुझे कुछ बताया ही नहीं था। आप ही बताइए ना कि आख़िर उस रात क्या हुआ था?"

"सच में बहुत बदमाश हो तुम।" मामी ने मुझे घूरते हुए किंतु मुस्कुरा कर कहा____"और बेशर्म भी। अपनी मामी से ऐसी बातें करते हुए ज़रा भी शर्म नहीं आती तुम्हें।"

"पर मैंने तो ऐसा कुछ आपसे कहा ही नहीं जिसमें मुझे शर्म करनी चाहिए।" मैंने अंजान बनने का दिखावा करते हुए कहा____"मैं तो बस आपसे पूछ रहा हूं कि उस रात क्या हुआ था?"

"क्या सच में तुम नहीं जानते?" मामी ने इस बार मुझे उलझनपूर्ण भाव से देखा।

"अगर जानता तो आपसे पूछता ही क्यों?" मैंने मासूम सी शक्ल बना कर कहा____"बताइए ना कि क्या हुआ उस रात?"

"कुछ नहीं हुआ था।" मामी ने सहसा मुस्कुराते हुए कहा____"और अगर कुछ हुआ भी था तो तुम्हारे बताने लायक नहीं है। अब चुपचाप हल्दी लगवाओ, बातें न करो।"

उसके बाद मामी ने मुझे हल्दी लगाई और फिर वो मुस्कुराते हुए चलीं गईं। मैं भी ये सोचते हुए मुस्कुराता रहा कि मामी भी कमाल ही हैं। ख़ैर ऐसे ही कार्यक्रम चलता रहा।

✮✮✮✮

रूपचंद्र के घर में नात रिश्तेदारों का आना शुरू हो गया था। हर रोज़ कोई न कोई आ ही रहा था। साहूकारों के चारो भाईयों के ससुराल वाले, बेटियों के ससुराल वाले। शिव शंकर की बड़ी बेटी नंदिनी का विवाह पहले ही हो चुका था वो भी अपने पति के साथ आ गई थी। मणि शंकर की नव विवाहिता बेटियां आरती और रेखा तो पहले से ही यहीं थी इस लिए उनके ससुराल से दोनों के पति आए हुए थे जो आपस में भाई ही थे।

मणि शंकर के बड़े बेटे चंद्रभान की ससुराल से यानि रूपा की भाभी कुमुद के मायके से उसके भैया भाभी आ गए थे। दूसरी तरफ हरि शंकर के बड़े बेटे और रूपचंद्र के बड़े भाई यानि मानिकचंद्र की ससुराल से उसकी पत्नी नीलम के भैया भाभी कल आने वाले थे। कहने का मतलब ये कि हर रोज़ कोई न कोई मेहमान आ रहा था। हर कोई अपने साथ कुछ न कुछ ले कर आ रहा था। यही सब लोग कुछ समय पहले तब जमा हुए थे जब मणि शंकर की दोनों बेटियों का विवाह हुआ था।

घर काफी बड़ा था इस लिए मेहमानों के रहने की कोई दिक्कत नहीं थी। गौरी शंकर और रूपचंद्र जो अब तक अकेले ही सब कुछ सम्हाल रहे थे उनकी मदद के लिए अब काफी सारे लोग हो गए थे। घर की साफ सफाई और पोताई तो कुछ समय पहले ही हुई थी लेकिन रूपा के विवाह के लिए उसे फिर से पोताया जा रहा था। घर में काफी चहल पहल हो गई थी। इस घर में औरतें और बहू बेटियां तो पहले से ही ज़्यादा थीं लेकिन नात रिश्तेदारों से भी आ गईं थी जिसके चलते और भी भीड़ जमा हो गई थी।

सबको पता था कि रूपा का विवाह इसी गांव के दादा ठाकुर के बेटे वैभव सिंह से होने वाला है। सबको ये भी पता लग चुका था कि रूपा अपने होने वाली पति की दूसरी पत्नी बनने वाली है और उसकी पहली पत्नी दादा ठाकुर की अपनी ही विधवा बहू होगी। इतना ही नहीं सबको ये भी पता लग चुका था कि आज हवेली में रूपा के होने वाले पति की हल्दी की रस्म है। हर कोई इस बात के बारे में अपनी अपनी समझ से चर्चा कर रहा था। गौरी शंकर और रूपचंद्र से जब भी कोई इस बारे में कुछ कहता अथवा पूछता तो वो बड़े तरीके से सबको बताते और समझाते भी जिसके चलते सब उनकी बातों से सहमत हो जाते। आख़िर इतना तो सबको पता ही था कि कुछ समय पहले इन लोगों ने दादा ठोकर के परिवार के साथ क्या किया था।

घर के अंदर रूपा के कमरे में अलग ही नज़ारा था। ढेर सारी औरतें और लड़कियों ने उसे घेर रखा था और तरह तरह की बातों के द्वारा वो रूपा की हालत ख़राब किए हुए थीं। कमरे में हंसी ठिठोली गूंज रही थी।

सबकी सर्व सम्मति से ये तय हुआ था कि अगले हप्ते रूपा की हल्दी वाली रस्म होगी। हालाकि सबको इतनी खुशी थी कि समय से पहले ही घर में रूपा की बड़ी भाभी यानि कुमुद उसको हल्दी और आटे का उपटन लगाने लगीं थी ताकि रूपा के बदन पर अलग ही निखार आ जाए।

घर के अंदर बाकी औरतें ऐसी ऐसी चीज़ें बनाने में लगी हुईं थी जो विवाह के समय बनाई जाती हैं। मसलन, आटे की, बेसन की और मैदे की चीज़ें पूरियां और गोली वगैरह। कुछ औरतें अनाज बीनने में लगीं हुईं थी। कुछ काम करते हुए गाना भी गाए जा रही थीं। एक अलग ही मंज़र नज़र आ रहा था।




━━━━✮━━━━━━━━━━━✮━━━━
Nice update🙏
 

Kuresa Begam

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अध्याय - 162
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सूर्य पश्चिम दिशा में उतरने लगा था। आसमान में लालिमा छा गई थी और शाम घिरने लगी थी। आसमान में उड़ते पंक्षी खुशी से मानों गाना गाते हुए अपने अपने घोंसलों की तरफ लौट रहे थे। घर के पीछे अमरूद के पेड़ के पास बैठी रागिनी जाने किन ख़यालों में खोई हुई थी। कुछ दूर कुएं के पास उसकी छोटी बहन कामिनी कपड़े धो रही थी। इस वक्त पीछे के इस हिस्से में दोनों बहनों के सिवा कोई न था किंतु हां घर के अंदर ज़रूर लोगों की भीड़ थी जिनके बोलने की आवाज़ें यहां तक आ रहीं थी।

आज रागिनी का चेहरा अलग ही नज़र आ रहा था। हल्दी का उपटन तो कई दिन पहले से ही लगाया जा रहा था किंतु आज विशेष रूप से हल्दी की रस्म हुई थी जिसके चलते उसका पूरा बदन ही अलग तरह से चमक रहा था। खूबसूरत चेहरे पर चांद जैसी चमक तो थी ही किंतु उसमें हल्की लालिमा भी विद्यमान थी। शायद ख़यालों में वो कुछ ऐसा सोच रही थी जिसके चलते उसके चेहरे पर लालिमा छाई हुई थी।

"तू यहां है और मैं तुझे तेरे कमरे में ढूंढने गई थी?" शालिनी ने उसके क़रीब आते हुए उससे कहा____"यहां बैठी किसके ख़यालों में गुम है तू और ये क्या तूने स्वेटर भी नहीं पहन रखा? क्या ठंड नहीं लग रही तुझे?"

शालिनी की बातों से रागिनी चौंकते हुए ख़यालों की दुनिया से बाहर आई और उसको देखने लगी। उधर कामिनी जो कपड़े धो रही थी वो भी इस तरफ देखने लगी थी।

"अच्छा हुआ दीदी कि आप आ गईं।" कामिनी ने हौले से मुस्कुराते हुए कहा____"वरना मेरी दीदी जाने कब तक इसी तरह जीजा जी के ख़यालों में खोई रहतीं।"

"देख ले तेरी बहन भी सब समझती है।" शालिनी ने रागिनी को छेड़ा____"अब तू कहेगी कि वो भी तुझे छेड़ने लगी जबकि इसमें किसी की कोई ग़लती नहीं है। तू खुद ही सबको मौका दे देती है छेड़ने का।"

"हां और तू तो कुछ ज़्यादा ही मौका तलाशती रहती है मुझे छेड़ने का।" रागिनी पहले तो शरमाई किंतु फिर उसे घूरते हुए बोली____"ख़ैर बड़ा जल्दी आ गई तू। अपने घर में तेरा मन नहीं लगता क्या? या फिर जीजा जी के बिना अकेले रहा नहीं जाता तुझसे? लगता है बहुत याद आती है तुझे उनकी।"

"आती तो है।" शालिनी ने थोड़ा धीरे से कहा____लेकिन उतना नहीं जितना तुझे अपने होने वाले पतिदेव की आती है। जब भी तेरे पास आती हूं तुझे उनके ख़यालों में ही खोया हुआ पाती हूं। मुझे भी तो बता दे कि आख़िर कैसे कैसे ख़याल आते हैं तुझे? विवाह के बाद क्या क्या करने का सोच लिया है तूने?"

"तू ना सच में बहुत अजीब हो गई है।" रागिनी ने कहा____"पहले तो ऐसी नहीं थी तू। जीजा जी के साथ रहने से कुछ ज़्यादा ही बदल गई है तू।"

"हर लड़की बदल जाती है यार।" शालिनी ने मुस्कुराते हुए कहा____"इसमें नई बात क्या है। ख़ैर तू ये सब छोड़ और ये बता कि वैभव जी के बारे में सोच कर किस तरह के ख़याल बुनने लगी है तू?"

"ऐसा कुछ नहीं है।" रागिनी ने हल्की शर्म के साथ कहा____"और अगर है भी तो क्यों बताऊं तुझे? क्या तूने कभी मुझे अपने और जीजा जी के बारे में बताया है कि तू उनके बारे में कैसे कैसे ख़याल बुनती थी?"

"अच्छा तो अब तू झूठ भी बोलने लगी है?" शालिनी ने हैरानी से उसे देखा____"तूने जो पूछा था मैंने बिना संकोच के तुझे सब बताया था?"

"अच्छा।" रागिनी ने उसे गौर से देखा____"ठीक है तो अपनी सुहागरात के बारे में बता मुझे।"

"आय हाय!" शालिनी के सुर्ख होठों पर गहरी मुस्कान उभर आई____"तो मेरी सहेली को मेरी सुहागरात का किस्सा जानना है। ठीक है, मैं तुझे बिना संकोच के एक एक बात बता दूंगी लेकिन मेरी भी एक शर्त है। उसके बाद तू भी अपनी सुहागरात का एक एक किस्सा मुझे बताएगी, बोल मंज़ूर है?"

"ना बाबा ना।" रागिनी एक ही पल में मानों धराशाई हो गई____"मुझसे नहीं बताया जाएगा। मैं तेरी तरह बेशर्म नहीं हूं।"

"तो फिर मुझसे मेरी सुहागरात के बारे में क्यों पूछ रही है?" शालिनी ने कहा।

"वो तो मैंने ऐसे ही कह दिया था।" रागिनी ने कहा___"तुझे नहीं बताना तो मत बता, वैसे भी मैं ऐसी बातें सुनने की तलबगार भी नहीं हूं।"

"हां हां जानती हूं कि तू बहुत ज़्यादा शरीफ़ और सती सावित्री है।" शालिनी ने कहा____"अब ये सब छोड़ और जा के पहले स्वेटर पहन ले। कहीं ऐसा न हो कि तुझे सर्दी हो जाए और तेरी नाक बहने लगे। ऐसे में बेचारे मेरे जीजा जी कैसे तेरे साथ सुहागरात मनाएंगे?"

"कमीनी धीरे बोल कामिनी सुन लेगी।" रागिनी ने कपड़े धो रही कामिनी की तरफ देख कर उससे कहा____"कुछ तो शर्म किया कर और ये तू एक ही बात पर क्यों अटकी हुई है?"

"क्या करूं यार?" शालिनी ने गहरी मुस्कान के साथ कहा____"माहौल ही उस अकेली बात पर अटके रहने का है। सुहागरात नाम की चीज़ ही इतनी आकर्षक है कि ऐसे समय में बार बार उसी का ख़याल आता है। ख़ास कर तब तो और भी ज़्यादा जब मेरी बहुत ज़्यादा शर्म करने वाली सहेली की होने वाली हो।"

रागिनी ने घूर कर देखा उसे। फिर उसने कामिनी को आवाज़ दे कर उससे अपनी स्वेटर मंगवाई। कामिनी जब चली गई तो उसने कहा____"अब बकवास बंद कर और ये बता यहां किस लिए आई थी?"

"क्या तुझे मेरा आना अच्छा नहीं लगता?" शालिनी ने मासूम सी शक्ल बना कर उसे देखा।

"अच्छा लगता है।" रागिनी ने कहा____"लेकिन तेरा हर वक्त मुझे छेड़ना अच्छा नहीं लगता।"

"क्यों भला?" शालिनी ने भौंहें ऊपर की____"क्या मेरे छेड़ने से तेरे अंदर गुदगुदी नहीं होती?"

"क्यों होगी भला?" रागिनी ने कहा____"बल्कि मुझे तो तेरे इस तरह छेड़ने पर तुझ पर गुस्सा ही आता है। मन करता है तेरा सिर फोड़ दूं।"

"अब तो तू सरासर झूठ बोल रही है।" शालिनी ने बुरा सा मुंह बना कर कहा____"मैं मान ही नहीं सकती कि मेरे छेड़ने पर तुझे अपने अंदर मीठा मीठा एहसास नहीं होता होगा। सच यही है कि तुझे भी बहुत आनंद आता है लेकिन खुल कर बताने में लाज आती है तुझे। कह दे भला कि मेरी ये बातें सच नहीं है?"

रागिनी बगले झांकने लगी। वो फ़ौरन कुछ बोल ना सकी थी। या फिर उसे कुछ सूझा ही नहीं था कि क्या कहे? तभी कामिनी उसका स्वेटर ले कर आ गई जिससे उसने थोड़ी राहत की सांस ली और उससे स्वेटर ले कर पहनने लगी। कामिनी वापस कुएं के पास जा कर कपड़े धोने लगी।

"वैसे मैं ये भी सोचती हूं कि वैभव जी की किस्मत कितनी अच्छी है।" शालिनी ने हल्की मुस्कान के साथ कहा____"मतलब कि पहले वो तुझे ब्याह कर ले जाएंगे और फिर कुछ दिनों के बाद उस रूपा को भी ब्याह कर अपनी हवेली ले जाएंगे। उसके बाद कमरे में पलंग पर उनके एक तरफ तू लेटेगी और दूसरी तरफ रूपा। उफ्फ! दोनों तरफ से उनकी दोनों बीवियां उनसे चिपकेंगी और वो किसी महाराजा की तरह आनंद उठाएंगे। काश! ये मंज़र देखने के लिए मैं भी वहां रहूं तो मज़ा ही आ जाए।"

"हाय राम! कैसी कैसी बातें सोचती है तू?" रागिनी ने आश्चर्य और शर्म से उसको देखते हुए कहा____"क्या सच में तुझे ऐसी बातें करते हुए शर्म नहीं आती?"

"अरे! शर्म क्यों आएगी?" शालिनी ने उसके दोनों कन्धों को पकड़ कर कहा___"तुझसे ही तो बोल रही हूं और तुझसे ऐसा बोलने में कैसी शर्म? तू तो मेरी सहेली है, मेरी जान है।"

"लेकिन मुझे आश्चर्य हो रहा है कि तेरे जैसी निर्लज्ज मेरी सहेली है।" रागिनी ने उसे घूरते हुए कहा____"कैसे कर लेती है ऐसी गन्दी बातें?"

"ये सब छोड़।" शालिनी ने कहा____"और ये बता कि क्या सच में विवाह के बाद ऐसा ही मंज़र होगा हवेली के तेरे कमरे में?"

"हे भगवान! फिर से वही बात।" रागिनी के चेहरे पर हैरानी उभर आई____"मत कर ना ऐसी बातें। कह तो तेरे आगे हाथ जोड़ लूं, पैरों में गिर जाऊं।"

"अरे! मैं तो तेरी शर्म दूर कर रही हूं यार।" शालिनी ने बड़े स्नेह से कहा____"ताकि विवाह के बाद जब तेरी सुहागरात हो तो उस समय तुझे ज़्यादा शर्म न आए। सच कहती हूं मैं तुझे उन पलों के लिए तैयार कर रही हूं।"

"हां तो मत कर।" रागिनी ने गहरी सांस ली____"तू ऐसी बातों से मेरी शर्म नहीं बल्कि हालत ख़राब कर रही है। तुझे अंदाज़ा भी नहीं है कि तेरी ऐसी बातों से मुझे कितना अजीब महसूस होता है।"

"हां मैं समझ सकती हूं यार।" शालिनी ने कहा____"मैं समझ सकती हूं कि तेरे जैसी स्वभाव वाली लड़की का शुरू से ही इस रिश्ते के बारे में सोच सोच कर अब तक क्या हाल हुआ होगा। मैं सब समझती हूं रागिनी लेकिन तू भी इस बात से इंकार नहीं कर सकती कि आने वाले समय में जो कुछ होने वाला है उसका सामना तुझे करना ही पड़ेगा। उससे तू भाग नहीं सकती है।"

"हां जानती हूं मैं।" रागिनी ने अपने कंधों से शालिनी के हाथों को हटाते हुए कहा____"और सच कहूं तो जब भी उस आने वाले पल के बारे में ख़याल आता है तो समूचे बदन में सर्द लहर दौड़ जाती है। मैं मानती हूं कि इस रिश्ते को मैंने सहर्ष स्वीकार कर लिया है और अब उनसे विवाह भी होने वाला है मेरा लेकिन विवाह के बाद जो होगा उसके बारे में सोच कर ही कांप जाती हूं मैं। मुझे समझ नहीं आता कि कैसे मैं उन पलों में खुद को सामान्य रख पाऊंगी और उनका साथ दे पाऊंगी? अगर अपने अंदर का सच बयान करूं तो वो यही है कि उस वक्त शायद मैं पीछे ही हट जाऊंगी। उनको अपने पास नहीं आने दूंगी।"

"ये....ये तू क्या कह रही है रागिनी?" शालिनी के चेहरे पर मानों आश्चर्य नाच उठा। फिर एकदम चिंतित भाव से कहा उसने____"ऐसा ग़ज़ब मत करना यार। उन हसीन पलों में अगर तू पीछे हटेगी अथवा उन्हें अपने क़रीब नहीं आने देगी तो खुद ही सोच कि ऐसे में उनको कैसा लगेगा? क्या उन्हें तकलीफ़ नहीं होगी? क्या वो ये नहीं सोच बैठेंगे कि तू अभी भी शायद उनको अपना देवर ही मानती है?"

"मैं ये सब सोच चुकी हूं शालिनी।" रागिनी ने गंभीरता से कहा____"और फिर खुद को यही समझाती हूं कि मुझे ऐसा करने का सोचना भी नहीं चाहिए। भला इसमें उनका या मेरा क्या दोष है कि हमारा आपस में इस तरह का रिश्ता बन गया है? ये सब तो नियति में ही लिखा था।"

"अगर तू सच में ऐसा सोचती है तो फिर तुझे बाकी कुछ भी नहीं सोचना चाहिए।" शालिनी ने कहा____"और ना ही उन पलों में ऐसी वैसी हरकत करने का सोचना चाहिए। तुझे अपने दिलो दिमाग़ में सिर्फ ये बात बैठा के रखनी चाहिए कि उनसे तेरा पहली बार ही विवाह हुआ है। इसके पहले तेरा उनसे कोई भी दूसरा रिश्ता नहीं था। एक बात और, तू उमर में उनसे बड़ी है, तेरा रिश्ता भी उनसे बड़ा रहा है इस लिए अगर तू ऐसा करेगी तो वो भी ऐसा ही सोचेंगे और आगे कुछ भी नहीं हो सकेगा उनसे। इस लिए मैं तुझसे यही कहूंगी कि सब कुछ अच्छा चल रहा है तो आगे भी सब कुछ अच्छा ही चलने देना। ना तू बीच चौराहे पर रुकना और ना ही उन्हें रुकने के बारे में सोचने देना।"

"ऊपर वाला ही जाने उस वक्त मुझसे क्या हो सकेगा और क्या नहीं।" रागिनी ने अधीरता से कहा।

"ऊपर वाला भी उसी के साथ होता है रागिनी जो बिना झिझक के और बिना रुके अपने कर्तव्य पथ पर चलते हैं।" शालिनी ने कहा____"तेरे जीवन में ऊपर वाले ने इतना अच्छा समय ला दिया है तो अब ये तेरी भी ज़िम्मेदारी है कि तू ऊपर वाले की दी हुई इस सौगात को पूरे मन से स्वीकार करे और पूरे आत्म विश्वास के साथ हर चुनौती को पार करती चली जाए।"

"मैं पूरी कोशिश करूंगी शालिनी।" रागिनी ने अधीरता से कहा____"बाकी जो मेरी किस्मत में लिखा होगा वही होगा।"

"तू चिंता मत कर।" शालिनी ने फिर से उसके कंधों पर अपने हाथ रखे____"मुझे पूरा भरोसा है कि आगे सब कुछ अच्छा ही होगा। मुझे वैभव जी पर भी भरोसा है कि वो तुझे ऐसे किसी भी धर्म संकट में फंसने नहीं देंगे बल्कि तेरे मनोभावों को समझते हुए वही करेंगे जिसमें तेरी खुशी होगी और जो तेरे हित में होगा।"

कुछ देर और दोनों के बीच बातें हुईं उसके बाद शालिनी के कहने पर रागिनी उसके साथ ही अंदर की तरफ चली गई। कामिनी धुले हुए कपड़ों को वहीं बंधी डोरी पर डाल रही थी। कुछ बातें उसके कानों में भी पहुंचीं थी।

✮✮✮✮

मैंने मेनका चाची को इशारा कर के उन्हें कमरे में आने को कहा और खुद उनके कमरे की तरफ बढ़ चला। शाम हो चुकी थी। सबको चाय दी गई थी। इतने लोग थे कि बड़े से बर्तन में चाय बनाई गई थी। बहरहाल, कुछ ही देर में चाची मेरी तरफ आती नज़र आईं। मैं दरवाज़े के पास ही खड़ा हुआ था। अचानक मुझे कुसुम दिखी तो मैंने उसको भी आवाज़ दे कर अपने पास बुलाया। वो खुशी से उछलती हुई जल्दी ही मेरे पास आ गई और मुझे सवालिया नज़रों से देखने लगी।

चाची ने दरवाज़ा खोला तो उनके पीछे मैं और कुसुम कमरे में दाख़िल हो गए। इत्तेफ़ाक से बिजली गुल नहीं थी इस लिए कमरे में बल्ब का पीला प्रकाश फैला हुआ था। चाची अपने पलंग पर जा कर बैठ गईं। मैंने कुसुम को भी उनके पास बैठ जाने को कहा और खुद वहीं उनके पास ही कुर्सी को खिसका कर बैठ गया।

"क्या बात है वैभव बेटा?" चाची ने बड़े स्नेह से मेरी तरफ देखते हुए पूछा____"तुमने किसी ख़ास वजह से मुझे यहां आने का इशारा किया था क्या?"

"हां चाची।" मैंने कहा____"असल में आपसे एक ज़रूरी बात करनी थी। उम्मीद करता हूं कि आप मेरी बात ज़रूर मानेंगी और सिर्फ आप ही नहीं कुसुम भी।"

"बिल्कुल मानूंगी बेटा।" मेनका चाची ने उसी स्नेह के साथ कहा____"बताओ ऐसी क्या बात है?"

"आप तो जानती हैं कि कल विभोर और अजीत विदेश से यहां आ जाएंगे।" मैंने थोड़ा गंभीर हो कर कहा____"मैं आप दोनों से ये कहना चाहता हूं कि उन्हें इस बारे में पता नहीं चलना चाहिए कि आपने या चाचा ने क्या किया था।"

"ऐसा क्यों कहते हो वैभव?" चाची ने सहसा अधीर हो कर कहा____"उनसे इतनी बड़ी बात छुपाने को क्यों कह रहे हो तुम? मैं तो यही चाहती हूं कि उनको भी अपने माता पिता के घिनौने सच का पता चले।"

"नहीं चाची, कृपया ऐसा मत कीजिएगा।" मैंने कहा____"जो गुज़र गया उसे भूल जाने में ही सबकी भलाई है। वो दोनों विदेश में अच्छे मन से शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं तो उन्हें पूरे मन से पढ़ने दीजिए। अगर उन्हें इस बात का पता चला तो वो दोनों जाने क्या क्या सोच कर दुखी हो जाएंगे। इससे उनकी पढ़ाई लिखाई पर गहरा असर पड़ जाएगा। मैं ये किसी भी कीमत पर नहीं चाहता कि मेरे वो दोनों छोटे भाई हम सबके बीच खुद के बारे में उल्टा सीधा सोचने लगें। मेरी आपसे हाथ जोड़ कर विनती है चाची कि आप उन्हें इस बारे में कुछ मत बताइएगा।"

"तुम कहते हो तो नहीं बताऊंगी।" मेनका चाची ने अधीरता से कहा____"लेकिन अगर उन्हें किसी और से इस बात का पता चल गया तो?"

"उन्हें किसी से कुछ पता नहीं चलेगा चाची।" मैंने दृढ़ता से कहा____"वैसे भी इस बारे में बाहर के लोगों को कुछ पता नहीं है और जिन एक दो लोगों को पता है उन्हें पिता जी ने समझा दिया है कि इस बारे में वो विभोर और अजीत को भनक तक न लगने दें।"

"चलो मान लिया कि उन्हें मौजूदा समय में इस बारे में किसी से पता नहीं चलेगा।" चाची ने कहा____"लेकिन कभी न कभी तो उन्हें इस बारे में पता चल ही जाएगा ना। अगर उन्हें किसी और से पता चला तो वो ये सोच कर दुखी हो जाएंगे कि उनकी मां ने इस बारे में खुद उन्हें क्यों नहीं बताया?"

"वैसे तो ये मुमकिन नहीं है चाची।" मैंने कहा____"लेकिन दुर्भाग्य से अगर कभी उन्हें पता चल भी गया तो वो आज के मुकाबले इतना दुखदाई नहीं होगा। इस वक्त ज़रूरी यही है कि उन्हें इस बारे में कुछ भी पता नहीं चलना चाहिए ताकि वो साफ मन से अपनी पढ़ाई कर सकें।"

"भैया सही कह रहे हैं मां।" कुसुम ने मासूमियत से कहा____"विभोर भैया और अजीत को इस समय इस बारे में नहीं बताना चाहिए। मैं तो कभी नहीं बताऊंगी उनको, आप भी कभी मत बताना।"

"ठीक है वैभव।" चाची ने गहरी सांस लेते हुए कहा____"वैसे तो कभी न कभी उनको पता चल ही जाएगा किंतु मैं तुम्हारी बात से सहमत हूं कि इस समय उन्हें ये घिनौना सच बताना ठीक नहीं है।"

"तो फिर मुझे वचन दीजिए चाची कि आप मेरे छोटे भाइयों को इस बारे में कभी कुछ नहीं बताएंगी।" मैंने कहा____"आप वैसा ही करेंगी जिसमें उन दोनों का भविष्य उज्ज्वल बने।"

"क्या वचन देने की ज़रूरत है वैभव?" मेनका चाची ने अधीरता से मेरी तरफ देखा।

"वैसे तो ज़रूरत नहीं है चाची।" मैंने कहा____"लेकिन मेरी तसल्ली के लिए मुझे आपसे इस बात का वचन चाहिए। मैं ये कभी नहीं चाहूंगा कि मेरी प्यारी चाची और मेरे दोनों प्यारे भाई भविष्य में कभी भी दुखी हों।"

"ओह! वैभव, मेरे अच्छे बेटे।" चाची ने मेरे चेहरे को अपने दोनों हाथों में ले कर अपनी तरफ खींचा और फिर बड़े स्नेह से मेरे माथे को चूम लिया____"क्यों मुझ जैसी चाची को इतना मानते हो? क्यों मुझे इतना मान सम्मान देते हो?"

"क्योंकि आपका ये बेटा ऐसा ही है।" मैंने उनकी तरफ देखते हुए प्यार से कहा____"आपका ये बेटा अपनी सबसे सुंदर चाची से बहुत प्यार करता है और चाहता है कि उसकी प्यारी चाची हमेशा खुश रहें।"

मेरी बात सुन कर चाची की आंखें छलक पड़ी। एक झटके से पलंग से उठी और फिर झपट कर मुझे अपने सीने से छुपका लिया। ये देख कुसुम की भी आंखें छलक पड़ीं। वो भी झट से आई और एक तरफ से मुझसे चिपक गई।

"काश! विधाता ने मेरी और तुम्हारे चाचा की बुद्धि न हर ली होती।" चाची ने सिसकते हुए कहा____"तो हम दोनों से इतना बड़ा अपराध न होता।"

"ये सब सोच कर खुद को दुखी मत कीजिए चाची।" मैंने उन्हें खुद से अलग करते हुए कहा____"आप जानती हैं ना कि मैं अपनी प्यारी सी चाची को ना तो दुखी होते देख सकता हूं और ना ही आंसू बहाते हुए।"

"हमने जो किया है उसका दुख एक नासूर बन कर सारी उमर मुझे तड़पाएगा मेरे बेटे।" चाची ने रुंधे गले से कहा____"मैं कितना भी चाहूं इससे बच नहीं सकूंगी। हमेशा ये सोच कर मुझे तकलीफ़ होगी कि मैंने अपने देवता समान जेठ जी और देवी समान अपनी दीदी के प्यार, स्नेह और भरोसे को तोड़ा है।"

"शांत हो जाइए चाची।" मैंने उठ कर उनके चेहरे को अपनी हथेलियों में भर कर कहा____"मैंने आपसे कहा है ना कि मैं अपनी प्यारी सी चाची को दुखी और आंसू बहाते नहीं देख सकता। इस लिए ये सब मत सोचिए। क्या आप अपने बेटे के विवाह जैसे खुशी के अवसर पर इस तरह खुद को दुखी रखेंगी? क्या आप चाहती हैं कि आपका बेटा खुशी के इस अवसर पर अपनी प्यारी सी चाची को दुखी देख खुद भी दुखी हो जाए?"

"नहीं नहीं।" चाची की आंखें छलक पड़ीं। मानों तड़प कर बोलीं____"मैं ऐसा कभी नहीं चाह सकती मेरे बेटे। मैं तो यही चाहती हूं कि मेरे सबसे अच्छे बेटे को दुनिया भर की खुशियां मिल जाएं। मैं अब नहीं रोऊंगी। इस खुशी के मौके पर तुम्हें दुखी नहीं करूंगी।"

"ये हुई न बात। मेरी सबसे प्यारी चाची।" मैंने झुक कर चाची के माथे पर चूम लिया____"चलिए अब, बाहर आपके बिना कहीं कोई काम न बिगड़ जाए। आप तो जानती हैं कि मां को आपके सहारे की कितनी ज़रूरत है।"

आख़िर मेरी बातों से चाची के चेहरे पर से दुख के भाव मिटे और फिर वो मुस्कुराते हुए पलंग से नीचे उतर आईं। कुसुम मुझे भाव विभोर सी देखे जा रही थी। उसकी आंखें भरी हुई थी। ख़ैर कुछ ही पलों में हम तीनों कमरे से बाहर आ गए। चाची और कुसुम अपने अपने काम में लग गईं जबकि मैं खुशी मन से ऊपर अपने कमरे की तरफ बढ़ता चला गया।




━━━━✮━━━━━━━━━━━✮━━━━
Nice update🙏🙏
 

omsairam

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Nice update:)
 
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Ajammy

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Super awesome update brother luvd it
 
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avsji

कुछ लिख लेता हूँ
Supreme
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TheBlackBlood भाई -

मैंने जो लिखा था, वो reverse psychology के चलते लिखा था।
जो काम करने से मना करो, आदमी वही काम करता है। मैंने आपको चैलेंज किया कि आप इस राह नहीं चल सकते, और आप उसी राह पर चल पड़े।

अचानक से ही न जाने कौन कौन से अनावश्यक पात्र प्रकट हो गए हैं। मामा मामी? काए कू भाई?
अनावश्यक से प्रकरण भी। ऐसे में मुझको तो यही लगा कि कहानी भटक गई है।

मैं तो वर-मालाओं के आदान प्रदान तक ही खुश था। कहानी जिस तरह से कसी हुई चल रही थी, अब उससे पूरी तरह भिन्न है।
वैसे आप हमसे बेहतर जानते हैं, क्योंकि कहानी आपकी है। लेकिन सच में, कोई मज़ा नहीं आया पिछले कुछ अपडेट्स से!
 

Kuldipr99

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Nice update 👍
Raagini aur vaibhav ke haldi ho gayi
Bahot kam stories padhi hai aise jisme is Tarah ke scenes Dale Gaye ho
Ragini me badlav to Aya hai vaibhav ke liye but abhi bhi kuch bhav k liye samay hai Jo shadi ke baad door honge shayad
Rekha k Ghar me bhi tayari suru ho gayi hai
Chachi ka kehna sahi hai saath hi saath vaibhav ka bhi ki is samay uske bhaiyon ko sach ka pata na hi chale to acha hai
Keep going 💪
 

Suraj13796

💫THE_BRAHMIN_BULL💫
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वंदना और शालिनी ने मिलकर रागिनी को बातो से निवस्त्र करने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी लेकिन अब तो हाथ भी चलने लगे है।
शुरुवात का वैभव में और अभी के वैभव में जमीन आसमान का फर्क है। पहले वाला वैभव शायद कभी मेनका देवी को माफ नहीं करता लेकिन रागिनी अनु और रूपा की वजह से जो परिवर्तन उसमे आए है उसने वैभव के सोच को इतना परिवर्तित कर दिया है की उसने आसानी से क्षमा कर दिया।
उम्दा अपडेट भाई अगले अपडेट की प्रतीक्षा में ❣️
 

Sunli

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इन्तजार अगले अपडेट का
 
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Ajju Landwalia

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Dosto, iske aage do update aur hain. Baaki ke update delete kar diye hain maine kyoki aap sabko vaibhav aur ragini ka suhagrat wala scene chahiye tha. Is liye maine uske aage ke update fir se likhne ka man banaya hai. But time ki kami ke chalte update aane me time lag sakta hai. Lekin iska matlab ye nahi hai ki ye story February me complete nahi hogi...

Story February me hi complete hogi... :check:

Sath banaye rakhe, enjoy kare aur apne vichaar byakt karte rahe... :declare:

Sabhi updates ek dum shandar he TheBlackBlood Shubham Bhai,

Shadi ke ghar ke mahaul ka ekdum umda aur jivant chitran kiya he aapne.................Haldi ki rasam me bhabhiyo dwara double meaning wali chhedchhad ladka aur ladki dono ke sath hi ki jaati he.............

Mama ki pyas bujhane wala scene bada hi majedar raha.........halanki ye sach bhi he shadi wale ghar me pati patni ka milan bada hi mushkil ho jata he....................

Keep posting Bhai
 
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