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Life me bahut kuch ghatit hota rahta hai, kuch ghatnaye achanak se ho jati hain. Ye prasang usi ka hissa hai. Dusre...bhavishya ki ek roop rekha bhi hai. Man me bahut si baaten thiमामी के साथ कभी-कभार मजाक हो ही जाता है लेकिन मामा के साथ मजाक और वह भी सेक्स सम्बंधित मजाक ! तौबा - तौबा ! शायद यह भी सम्भव है पर इसके लिए मामा - भांजे के उम्र मे लगभग समानता हो । हमउम्र हों ।
लेकिन अचानक से यह प्रसंग क्यों ? पुरी कहानी मे अबतक इनका कोई रोल नही रहा । और शायद रहा भी हो तो मात्र औपचारिकवश । कहीं आगे चलकर मामा - मामी कोई खास रोल तो नही प्ले करने वाले हैं ?
Ek time tha jab aapne hi aisa karne ka suggestion diya tha aur ab aap hi apne suggestion se mukar rahe hain...halaaki ye sab pahle hi likh chuka tha main. Reason wahi hai rupa ka ek beti ke roop me prem zaahir karna, saroj ko apna jatana. Baaki uski apni beti ka sach to apni jagah rahega hi. Uske jane ka dukh bhi rahega, koi kitni hi koshish kar le door karne ki lekin rupa beti ke roop me jo zaahir karna chahti hai use bhi to nazarandaz nahi kar sakti saroj .रूपा ने सरोज काकी और उनके छोटे बेटे को अपनी शादी के लिए आमंत्रित किया । रूपा का कहना है , वो शादी से कुछ दिन पहले ही उसके घर आ जाए ।
यह एक अच्छा डिसिजन था । शायद रूपा की सोच होगी कि इसी बहाने सरोज का दुख दर्द कुछ कम हो ! लेकिन मुझे लगता नही इससे सरोज के गमों मे कोई कमी आयेगी । वो साहूकारों के आवास पर रूपा को दुल्हन लिबास मे देख , वैभव के साथ उसकी ब्याह होते देख अवश्य ही अनुराधा को याद कर आंसू बहायेगी ।
ऐसे वक्त मे उन्हे अपनी दिवंगत बेटी की याद आना ही आना है ।
खैर देखते है , शायद रूपा ने कुछ और भी सोच रखा हो !
Thanksबहुत ही बेहतरीन अपडेट शुभम भाई।
आउटस्टैंडिंग एंड अमेजिंग अपडेट।