Kuresa Begam
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Nice updateअध्याय - 165
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कामिनी उसके साथ खुशी खुशी अंदर की तरफ चली दी। विदाई के लिए हर कोई जल्दी जल्दी काम में लग गया था। पांव पूजन में बहुत सारा उपहार मिल गया था जिसे उठा कर बाहर रखा जा रहा था।
अब आगे....
सुबह सभी बारातियों को चाय नाश्ता करवाया गया। इसके साथ ही विदाई की तैयारियां भी शुरू हो गईं। घर से और लोगों द्वारा जो उपहार और सामान मिला था उसको ट्रैक्टर में रखवा दिया गया। बाहर बैंड बाजा वाले गाना बजाना कर रहे थे। हर कोई किसी न किसी काम के लिए दौड़ लगा रहा था।
दूसरी तरफ रागिनी भाभी के पिता वीरभद्र सिंह जी पिता जी के पास बैठे हुए थे और उनसे हाथ जोड़ कर बार बार यही कह रहे थे कि उनके स्वागत में अगर कहीं कोई त्रुटि हुई हो तो वो उन्हें माफ़ करें। पिता जी बार बार उन्हें समझा रहे थे कि उनसे कोई त्रुटि नहीं हुई है और अगर हो भी जाती तो वो बुरा नहीं मानते। उनके लिए सबसे ज़्यादा खुशी इस बात की है कि उनकी बहू ने इस रिश्ते को हां कहा और अब ये विवाह भी हो गया। अपनी जिस बहू को बेटी मान कर वो इतना प्यार और स्नेह देते थे वो उन्हें फिर से उसी रूप में मिल गई जिस रूप में वो उसे देखना चाहते थे। वीरभद्र सिंह जी पिता जी की ये बातें सुन कर उनका आभार मान रहे थे और कह रहे थे कि ये सब उनकी ही वजह से हुआ है। ये उनकी बेटी का सौभाग्य है कि उसे उनके जैसे ससुर पिता के रूप में मिले हैं।
आख़िर विदाई का समय आ ही गया। घर के अंदर से रोने धोने की आवाज़ें आने लगीं। जाने कितनी ही औरतों का करुण क्रंदन वातावरण में गूंजने लगा। मैं कार में बैठा हुआ था। मेरे पीछे कुसुम सुमन और सुषमा बैठी हुईं थी। आते समय अमर मामा भी साथ में थे लेकिन अब क्योंकि भाभी भी मेरे साथ ही कार में जाने वाली थीं तो उनके बैठने के लिए कार में जगह नहीं थी। अमर मामा ने सुमन और सुषमा को कार से उतार कर अपने साथ जीप में चलने को कहा जिससे वो उतर गईं।
थोड़ी ही देर में अंदर से औरतें बाहर आती नज़र आईं। सब की सब रो रहीं थी। उनके बीच रागिनी भाभी सबसे लिपट कर बुरी तरह विलाप कर रहीं थी। उनकी मां, चाची, भाभियां, बहनें, शालिनी और गांव की बहुत सी औरतें सब रो रहीं थी। कुछ ही पलों में वो घर से बाहर आ गई। सहसा भाभी की नज़र अपने पिता वीरभद्र पर पड़ी तो उनके पास जा कर उनसे लिपट गईं और बिलख बिलख कर रोने लगीं। वीरभद्र जी खुद को सम्हाल न सके। अपनी बेटी को हृदय से लगा कर वो खुद भी सिसक उठे। पास में ही उनके छोटे भाई बलभद्र जी खड़े थे। रागिनी भाभी उनसे भी लिपट गईं और चाचा चाचा कहते हुए रोने लगीं। बलभद्र जी भी खुद को सम्हाल न सके। दोनों परिवार में रागिनी ही एक ऐसी लड़की थी जिसमें इतने सारे गुण थे और वो हमेशा से ही सबकी चहेती रही थी।
वीर सिंह, बलवीर सिंह और वीरेंद्र सिंह कुछ ही दूरी पर खड़े आंसू बहाए जा रहे थे। अपनी बहन को यूं रोते देख उनकी आंखें भी बरसने लगीं थी और फिर जब रागिनी उनके पास आ कर उनसे लिपट कर रोने लगी तो उनकी हिचकियां भी निकल गईं। पूरा वातावरण गमगीन सा हो गया। यहां तक कि पिता जी की आंखों में भी आंसू भर आए।
बेटी की विदाई का ये पल घर वालों के लिए बड़ा ही भावुक और संवेदनशील होता है। पत्थर से पत्थर दिल इंसान भी भावनाओं में बह जाता है और मोम की तरह पिघल कर रो पड़ता है। यही हाल था सबका। औरतों का तो पहले से ही रुदन चालू था। भाभी की मां सुलोचना देवी को बार बार चक्कर आ जाता था। यही हाल उनकी देवरानी पुष्पा देवी का भी था। उनकी बहुएं और गांव की औरतें उन्हें सम्हालने लगतीं थी।
रागिनी भाभी की छोटी बहनें, सभी भाभियां और सहेली शालिनी सभी के चेहरे आंसुओं से तर थे। आख़िर भाइयों के बहुत समझाने बुझाने पर रागिनी भाभी उनसे अलग हुईं। शालिनी और कामिनी भाग कर आईं और उन्हें कार की तरफ ले चलीं। उनके पीछे औरतें भी आ गईं। ऐसा लगा जैसे एक बार फिर से भाभी पलट कर सबसे जा लिपटेंगी और रोने लगेंगी किंतु तभी शालिनी और वंदना ने उन्हें सम्हाल लिया और दुखी भाव से समझाते हुए उन्हें कार के अंदर बैठ जाने के लिए ज़ोर देने लगीं। इधर कार के अंदर बैठा मैं अपनी भाभी....नहीं नहीं अपनी पत्नी का रुदन देख खुद भी दुखी हो उठा था। मेरे अंदर एक तूफ़ान सा उठ गया था। उन्हें इस तरह तकलीफ़ से रोते देख मुझसे सहन नहीं हो रहा था लेकिन क्या कर सकता था। ये वक्त ही ऐसा था।
आख़िर किसी तरह वो कार के अंदर आ कर मेरे बगल से बैठ ही गईं लेकिन उनका रोना अब भी कम नहीं हो रहा था। कार की खिड़की से अपने हाथ बार बार बाहर निकाल कर रो ज़ोरों से रोने लगती थीं और बाहर निकलने को उतारू हो जातीं थी। कार के बाहर तरफ शालिनी, कामिनी, वंदना, सुषमा और उनकी मां चाची वगैरह खड़ी सिसक रहीं थी और साथ ही तरह तरह की बातें उन्हें समझाए जा रहीं थी।
कुछ समय बाद सबकी सहमति मिलते ही कार के ड्राइवर ने कार को स्टार्ट कर आगे बढ़ाना शुरू कर दिया लेकिन थोड़ी ही दूर जा कर वो रुक गया। अगले ही पल एक रस्म यहां भी हुई उसके बाद ड्राइवर ने कार को आगे बढ़ा दिया। कार के अंदर भाभी का रोना अभी भी चालू था। वो कभी बाबू जी कह कर रोती तो कभी मां कह कर। कभी भैया कह कर तो कभी भाभी कह कर। मेरे दूसरी तरफ बैठी कुसुम उन्हें इस तरह रोते देख खुद भी आंसू बहाने लगी थी। उससे अपनी भाभी का रोना देखा नहीं जा रहा था। पहले तो वो चुपचाप बस आंसू ही बहाए जा रही थी किंतु जब कार कुछ दूर आ गई तो वो भाभी को न रोने के लिए कहने लगी। आख़िर उसके बहुत कहने पर उनका रोना बंद हुआ लेकिन सिसकियां तब भी बंद न हुईं।
कार के पीछे पीछे अन्य लोग वाहनों में चले आ रहे थे। कच्ची सड़क पर एक लंबा काफ़िला नज़र आ रहा था। बीच में एक बस थी। सबसे पीछे ट्रैक्टर था जिसमें सामान लदा हुआ था।
क़रीब आधा घंटा समय गुज़रा था कि पीछे से एक जीप आई। उसमें अमर मामा बैठे थे। वो बोले कि आगे एक जगह कार रोक देना क्योंकि बहू को पानी पिलाना है जोकि उसका देवर पिलाएगा। ऐसा ही हुआ, कुछ दूर आने के बाद एक अनुकूल जगह पर ड्राइवर ने कार रोक दी।
थोड़ी ही देर में एक जीप हमारे पास आ कर रुकी। उसमें से विभोर और अजीत उतर कर हमारे पास आए। कुछ और लोग भी आ गए। थोड़ी ही दूर एक गांव दिख रहा था। सड़क के किनारे किसी का घर था जहां पर एक कुआं भी था। मामा विभोर को कुएं पर ले गए। विभोर ने कुएं से पानी खींचा और फिर मामा के दिए लोटे में पानी भर कर हमारे पास आया।
अजब और विचित्र संयोग था। एक वक्त था जब मैंने देवर के रूप में रागिनी भाभी को इसी तरह पानी पिलाया था और नेग में उन्होंने मुझे एक सोने की अंगूठी दी थी। आज वही भाभी मेरी पत्नी बन चुकीं थी और उनके देवर के रूप में विभोर उन्हें पानी पिलाने आया था। कितनी कमाल की बात थी कि उनके जीवन में ये रस्म अजीब तरह से दो बार हो रही थी।
बहरहाल, विभोर पानी ले कर आया और बहुत ही खुशी मन से उसने कार का दरवाज़ा खोल कर रागिनी भाभी की तरफ पानी से भरा लोटा बढ़ाया। रागिनी भाभी ने घूंघट के अंदर से एक नज़र विभोर को देखा और अपना हाथ बढ़ा कर उससे लोटा ले लिया। उसके बाद एक हाथ से उन्होंने अपने घूंघट को उठाया और लोटे को अपने मुंह के पास ले जा कर पानी पीने लगीं। मैं और कुसुम उन्हीं को देख रहे थे।
थोड़ी देर बाद रागिनी भाभी ने लोटा वापस विभोर को दे दिया और अपने गले से सोने की चैन उतार कर विभोर को पहना दिया। विभोर बड़ा खुश हुआ और उनके पैर छू कर मुस्कुराते हुए चला गया।
काफ़िला फिर से चल पड़ा। रागिनी भाभी घूंघट किए अब शांति से बैठी हुईं थी। इधर जैसे जैसे रुद्रपुर क़रीब आ रहा था मेरी धड़कनें बढ़ती जा रहीं थी। यूं तो कार में ड्राइवर के अलावा सिर्फ कुसुम ही थी इस लिए मैं उनसे बात कर सकता था लेकिन जाने क्यों उनसे बात करने की हिम्मत नहीं हो रही थी।
"वैसे भैया।" अचानक कुसुम मुस्कुराते हुए बोल पड़ी____"विभोर भैया को तो बड़ा फ़ायदा हुआ। भाभी को उन्होंने बस पानी पिलाया और उन्हें सोने की चैन मिल गई। मुझे और अजीत को तो कुछ दिया ही नहीं भाभी ने। हमारे साथ ये नाइंसाफी क्यों?"
"इस बारे में भला मैं क्या कहूं गुड़िया?" मैंने भाभी पर एक नज़र डालने के बाद उससे कहा____"मैंने तो ऐसा कुछ किया नहीं है। जिन्होंने किया है तुझे उनसे ही पूछना चाहिए।"
"मतलब आप कुछ नहीं कहेंगे?" कुसुम ने हैरानी से मेरी तरफ देखा____"वाह! क्या कहने आपके। भाभी के आते ही आप अपनी लाडली बहन को नज़रअंदाज़ करने लगे। बड़ी मां से शिकायत करूंगी आपकी, हां नहीं तो।"
"अरे! ये क्या कह रही है तू?" मैं उसकी बातों से चौंका____"तू मुझ पर गुस्सा क्यों होती है गुड़िया? मैंने तो कुछ किया ही नहीं है।"
"हां यही तो बात है कि आपने कुछ किया ही नहीं।" कुसुम ने बुरा सा मुंह बनाते हुए कहा____"वैसे तो बड़ा कहते हैं कि तू मेरी गुड़िया है, मेरी जान है, मेरा सब कुछ है।"
मुझे समझ ना आया कि अब क्या करूं? भाभी भी कुछ बोल नहीं रहीं थी और गुड़िया थी कि मुझे घूरे ही जा रही थी। मैं सोचने लगा कि अब कैसे अपनी गुड़िया का पक्ष ले कर उसकी नाराज़गी दूर करूं?
"इ...इन पर क्यों गुस्सा होती हो कुसुम?" सहसा भाभी ने धीरे से कुसुम की तरफ देखते हुए कहा____"मुझे बताओ क्या चाहिए तुम्हें?"
"अरे वाह!" भाभी की बात सुनते ही कुसुम का चेहरा खुशी से खिल उठा। फिर मुझे देखते हुए बोली____"देखा भैया, आपने तो अपनी गुड़िया के लिए कुछ नहीं किया लेकिन मेरी सबसे अच्छी वाली भाभी ने झट से पूछ लिया कि मुझे क्या चाहिए। इसका मतलब आपसे ज़्यादा भाभी मुझे मानती हैं।"
"वाह! क्या बात है।" मैंने उसे घूरा____"कुछ मिलने की बात आई तो बड़ा जल्दी पाला बदल लिया तूने। अभी तक तो मैं ही तेरा सबसे अच्छे वाला भैया था और तुझे अपनी जान मानता था और अब ऐसा बोल रही है तू? चल कोई बात नहीं, अब से मैं भी तुझे नहीं विभोर और अजीत को सबसे ज़्यादा प्यार करूंगा और उन्हें अपनी जान कहूंगा।"
"अरे अरे! ये क्या कह रहे हैं आप?" कुसुम बुरी तरह बौखला गई____"नहीं नहीं ऐसा नहीं करेंगे आप। मुझसे ग़लती हो गई, अपनी गुड़िया को माफ़ कर दीजिए ना। आप तो मेरे सबसे अच्छे वाले भैया हैं ना?"
"अच्छा।" मैं मुस्कुराया____"बड़ा जल्दी समझ आ गया तुझे।"
"क्यों मेरी मासूम सी ननद को सता रहे हैं?" भाभी ने लरजते स्वर में धीरे से कहा____"इसका हम दोनों पर बराबर हक़ है। इसे हमसे जो भी चाहिए वो देना हमारा फर्ज़ है।"
"ये, देखा आपने।" कुसुम खुशी से मानों उछल ही पड़ी____"भाभी को आपसे ज़्यादा पता है। अब बताइए, क्या अब भी कुछ कहेंगे आप मुझे?"
"अरे! मैंने तो पहले भी तुझे कुछ नहीं कहा था पागल।" मैंने उसके चेहरे को प्यार से सहला कर कहा____"ख़ैर चल बता अब, क्या चाहिए तुझे?"
"मुझे।" कुसुम सोचने लगी, फिर जैसे उसे कुछ समझ आया तो बोली____"मुझे ना आप दोनों से सिर्फ एक ही चीज़ चाहिए। मैं आप दोनों से बस यही मांगती हूं कि आप दोनों एक दूसरे से बहुत प्यार करें और जैसे अब तक आप दोनों मुझे इतना ज़्यादा प्यार देते आए हैं वैसे ही हमेशा देते रहें।"
कुसुम की बात सुन कर मैं दंग रह गया। मैंने रागिनी भाभी की तरफ देखा। उन्होंने भी गर्दन घुमा कर मुझे देखा। घूंघट के अंदर उनके चेहरे पर लाज की सुर्खी छा गई नज़र आई और होठों पर शर्म से भरी हल्की मुस्कान।
"क्या हुआ?" हमें कुछ न बोलता देख कुसुम बोल पड़ी____"आप दोनों कुछ बोल क्यों नहीं रहे? क्या आप दोनों मेरी ये मांग पूरी नहीं करेंगे?"
"मुझे तो तेरी ये मांग मंज़ूर है गुड़िया।" मैंने धड़कते दिल से कहा____"बाकी तेरी भाभी का मुझे नहीं पता।"
"म...मुझे भी मंज़ूर है कुसुम।" रागिनी भाभी ने थोड़े झिझक के साथ कहा____"बाकी तुम्हें तो मैं पहले भी बहुत मानती थी और आगे भी मानूंगी। तुम सच में हमारी गुड़िया हो।"
भाभी की बात सुनते ही जहां कुसुम खुशी से झूम उठी वहीं मेरी धड़कनें ये सोच कर तेज़ हो गईं कि क्या सच में रागिनी भाभी वही करेंगी जो अभी उन्होंने कहा है? यानि क्या सच में वो मुझसे प्यार करेंगी? पलक झपकते ही ज़हन में न जाने कैसे कैसे ख़याल उभर आए। मैंने फ़ौरन खुद को सम्हाला। ख़ैर ऐसी ही हंसी खुशी के साथ बाकी का सफ़र गुज़रा और हम रुद्रपुर में दाख़िल हो कर हवेली पहुंच गए।
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हवेली में मां और चाची हमारे स्वागत के लिए पहले से ही तैयार थीं। जैसे ही हम सब वहां पहुंचे तो आगे का कार्यक्रम शुरू हो गया।
कार मुख्य द्वार के सामने खड़ी थी। मां बाकी औरतों के साथ हमारा परछन करने के लिए आगे बढ़ीं। सब एक साथ गीत गा रहीं थी। एक तरफ बैंड बाजा वाले लगे पड़े थे। हवेली के बाहर विशाल मैदान में भारी भीड़ इकट्ठा हो गई थी। इधर मां मेरी और अपनी नई नवेली बहू की गाते हुए आरती उतार रहीं थी। कुछ देर परछन की उनकी क्रियाएं चलती रहीं उसके बाद हम दोनों कार से उतरे।
एक बार फिर से वातावरण में बंदूकें गरज उठीं थी। एक बार फिर से नाच गाना शुरू हो गया था। इस बार ऐसा हुआ कि जल्दी थमा ही नहीं। मामा लोग नाचने वालियों पर रुपए उड़ा रहे थे। महेंद्र सिंह, अर्जुन सिंह और संजय सिंह भी पीछे नहीं हटे। वो भी पैसे उड़ाने लगे। बैंड बाजा वाले अपना गाना बजाना भूल कर रुपए पैसे बिनने लगे। गांव के कुछ छोटे बच्चे घुस आए थे वो भी बिनने लगे।
काफी देर तक नाच गाना चलता रहा। इस बीच मैं और रागिनी भाभी वापस कार में बैठ कर नाच गाना देखने लगे थे। जब वो सब बंद हुआ तो मां और मेनका चाची मेरे पास आईं और हम दोनों को अंदर चलने को कहा।
मुख्य द्वार की दहलीज़ पर पहुंचते ही मां ने रुकने का इशारा किया। डेढी के अंदर पीतल का एक लोटा रखा हुआ था जिसमें चावल थे। मां के कहने पर रागिनी भाभी ने अपने एक पांव से उस लोटे को ठेला तो वो आगे की तरफ लुढ़क गया। सभी मुस्कुराते हुए आगे बढ़ीं। कुछ ही क़दम पर एक बड़ी सी थाली रखी हुई थी जिसमें रंग घुला हुआ था। चाची के कहने पर भाभी ने उसमें अपने दोनों पैर रखे और फिर आगे बढ़ चलीं। मैं उनके साथ ही चल रहा था।
कुछ ही समय में हम सब अंदर आ गए। उसके बाद अंदर कुछ परंपरा के अनुसार रस्में और रीतियां होने लगीं, पूजा वगैरह हुई। एक तरफ सबके भोजन की व्यवस्था शुरू हो गई।
आज खिचड़ी भी थी जिसमें बहू के हाथों सबको खिचड़ी परोसी जानी थी। खाने वाले अपनी स्वेच्छा से उपहार अथवा रुपए पैसे बहू को देते थे। कुछ समय बाद ऐसा ही हुआ। सबने अपनी अपनी तरफ से अनेकों उपहार और रुपए पैसे उन्हें दिए जिन्हें कुसुम कजरी सुमन और सुषमा पकड़ती जा रहीं थी।
आख़िर इस सबके संपन्न होने के बाद थोड़ी राहत मिली। पिता जी के मित्रगण अपने अपने घरों को लौट गए। अब हवेली में सिर्फ नात रिश्तेदार ही रह गए थे। मैं गुसलखाने में नहा धो कर मामा के पास आ कर बैठ गया था। रात भर का थका था और अब मुझे बिस्तर ही दिखाई दे रहा था लेकिन कमरे में जाने से झिझक रहा था क्योंकि मेरे कमरे में रागिनी भाभी पहुंच चुकीं थी। हालाकि दुल्हन को देखने वालों का आगमन शुरू हो गया था जोकि गांव की औरतें ही थीं किंतु उन्हें कुछ देर आराम करने के लिए कमरे में पहुंचा दिया गया था।
"क्या हुआ भांजे?" मैं जैसे ही मामा के पास बैठा तो मामा ने कहा____"थक गया होगा ना तू? रात भर बैठे रहना आसान बात नहीं होती। एक काम कर कमरे में जा के आराम कर।"
"थक तो गया हूं मामा।" मैंने कहा____"लेकिन कमरे में कैसे जाऊं? वहां तो....।"
"ओह! समझ गया।" मामा हल्के से मुस्कुराए____"तो किसी दूसरे कमरे में जा कर आराम कर ले। हवेली में कमरों की कमी थोड़ी ना है। या फिर तू अपने कमरे में ही आराम करना चाहता है?"
"नहीं, ऐसी बात नहीं है।" मैं थोड़ा झेंप गया____"ठीक है मैं किसी दूसरे कमरे में आराम करने चला जाता हूं।"
अभी मैं जाने ही लगा था कि तभी रोहिणी मामी आ गईं। शायद उन्होंने हमारी बातें सुन लीं थी। अतः मुस्कुराते हुए बोलीं____"क्या हुआ वैभव? अपने कमरे में आराम करने में क्या समस्या है?"
"क...कोई समस्या नहीं है मामी।" मैं हकलाते हुए बोला____"लेकिन बात ये है कि फिलहाल मैं अकेले स्वतंत्र रूप से कहीं आराम कर लेना चाहता हूं।"
"हां ज़रूरी भी है।" मामी ने गहरी मुस्कान के साथ कहा____"क्या पता बाद में आराम करने का मौका मिले न मिले।"
"अरे अरे! ये कैसी बातें कर रही हो तुम?" मामा एकदम से चौंक कर बोल पड़े____"भांजे से थोड़ा तो लिहाज करो, जाओ यहां से।"
मामी हंसते हुए चली गईं। मामा ने मुझे आराम करने को कहा तो मैं ये सोचते हुए एक कमरे की तरफ बढ़ चला कि मामी भी मौका देख कर व्यंग बाण चला ही देती हैं। ख़ैर मैं नीचे ही एक कमरे में जा कर पलंग पर लेट गया। बड़ा ही सुखद एहसास हुआ। पहली बार एहसास हुआ कि गद्देदार बिस्तर कितना आरामदायक और सुखदाई होता है। कुछ ही देर में मुझे नींद ने अपनी आगोश में ले लिया। बंद पलकों में एकदम से एक हसीन ख़्वाब चलचित्र की तरह दिखने लगा। उसके बाद शाम तक मैं सोता ही रहा।
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रूपा खा पी कर अपने कमरे में बिस्तर पर लेटी हुई थी। पिछले कुछ दिनों से उसे अकेले रहने का बहुत ही कम अवसर मिला था। जैसे जैसे विवाह का दिन क़रीब आ रहा था उसकी धड़कनें बढ़ती जा रहीं थी। मन में तो बहुत पहले ही उसने न जाने कैसे कैसे ख़्वाब बुन लिए थे जिनके बारे में सोच कर ही उसके अंदर एक सुखद अनुभूति होने लगती थी लेकिन आज का दिन बाकी दिनों से बहुत अलग महसूस हो रहा था उसे। आज उसका होने वाला पति अपनी पहली पत्नी को ब्याह कर ले आया था। हवेली में बैंड बाजा बजने की गूंज उसके कानों तक भी पहुंची थी। कल उसकी बड़ी मां यानि फूलवती और चाची सुनैना देवी हवेली गई हुईं थी जब वैभव की बारात हवेली से निकलने वाली थी।
बिस्तर पर लेटी रूपा के मन में बहुत सी बातें चल रहीं थी। उन सब बातों को सोचते हुए कभी उसकी धड़कनें तेज़ हो जातीं तो कभी थम सी जातीं। आंखों के सामने कभी वैभव का चेहरा उभर आता तो कभी रागिनी का तो कभी दोनों का एक साथ। वो कल्पना करने लगती कि उसका प्रियतम आज अपनी पहली पत्नी के साथ एक ही कमरे में रहेगा, उसके साथ एक ही बिस्तर पर होगा और....और फिर दोनों एक साथ प्रेम में डूब जाएंगे। इस एहसास के साथ ही रूपा को थोड़ा झटका सा लगता और वो एकदम से वर्तमान में आ जाती। फिर वो खुद को समझाने लगती कि बहुत जल्द वो भी अपने प्रियतम की पत्नी बन कर हवेली में पहुंच जाएगी और रागिनी दीदी की ही तरह वैभव उसे भी प्रेम करेंगे।
"अरे! रूपा सुना तुमने?" सहसा कमरे में उसकी बड़ी भाभी कुमुद दाख़िल हुई और उससे बोली____"तुम्हारे होने वाले पतिदेव अपनी पहली दुल्हन ले आए। हमारे घर के सामने से ही वो सब निकले हैं। अब तक तो परछन भी हो गया होगा।"
"हां बैंड बाजा बजने की आवाज़ें मैंने भी सुनी हैं भाभी।" रूपा बिस्तर से उठ कर बोली____"क्या बड़ी मां नहीं गईं वहां?"
"गईं हैं।" कुमुद ने कहा____"उनके साथ राधा भी गई है।"
"रूप भैया आ गए क्या?" रूपा ने पूछा____"वो भी तो उनकी बारात में गए थे।"
"जब बारात आ गई है तो वो भी आ ही गए होंगे।" कुमुद ने कहा____"फिलहाल घर तो अभी नहीं आए वो। आ जाएंगे थोड़ी देर में। ख़ैर तुम बताओ, अकेले में किसके ख़यालों में गुम थी?"
"किसी के तो नहीं।" रूपा एकदम से शरमाते हुए बोली____"मैं तो बस ऐसे ही लेटी हुई थी।"
"झूठ ऐसा बोलो जिसे सामने वाला यकीन कर ले।" कुमुद ने मुस्कुराते हुए कहा____"मुझे अच्छी तरह पता है कि इस वक्त तुम अपने होने वाले पतिदेव के बारे में ही सोचने में गुम थी। ज़रा बताओ तो कि क्या क्या सोच लिया है तुमने?"
"ऐसा कुछ नहीं है भाभी।" रूपा ने शर्म से मुस्कुराते हुए कहा____"मैं भला क्यों कुछ सोचूंगी?"
"क्या सच में?" कुमुद ने अपनी भौंहें उठा कर उसे देखा____"क्या सच में तुम आज की स्थिति के बारे में नहीं सोच रही थी? मैं मान ही नहीं सकती कि तुम्हारे मन में अपने होने वाले पति और अपनी सौतन के संबंध में कोई ख़याल ही न आया होगा।"
"उन्हें मेरी सौतन मत कहिए भाभी।" रूपा ने सहसा अधीर हो कर कहा____"वो तो मेरी दीदी हैं, सबसे अच्छी वाली बड़ी दीदी। मैं बहुत खुश हूं कि उनका फिर से विवाह हो गया और अब उनका जीवन खुशी के रंगों से भर जाएगा। मैं यही दुआ करती हूं कि आज की रात वो उन्हें खूब प्यार करें और उनके सारे दुख को भुला दें।"
"तुम सच में बहुत अद्भुत हो रूपा।" कुमुद ने पास आ कर रूपा के कंधे को दबाते हुए कहा____"दुनिया की हर औरत अपने पति की दूसरी पत्नी को अपनी सौतन ही मानती है और ये भी सच ही है कि वो कभी उस औरत को पसंद नहीं करती लेकिन तुम इसका अपवाद हो मेरी ननद रानी। तुम अपने पति की उन नव विवाहिता पत्नी को सच्चे दिल से अपनी दीदी कहती हो और उनकी खुशियों की कामना कर रही हो। ऐसा तुम्हारे अलावा शायद ही कोई सोच सकता है।"
"मैं ये सब नहीं जानती भाभी।" रूपा ने कहा____"मैं तो बस इतना चाहती हूं कि उनसे जुड़ा हर व्यक्ति खुश रहे। ईश्वर से यही कामना करती हूं कि मेरे दिल में भी हमेशा उनसे जुड़े हर व्यक्ति के लिए आदर, सम्मान और प्रेम की ही भावना रहे।"
"तुम प्रेम की मूरत हो रूपा।" कुमुद ने कहा____"तुम कभी किसी के बारे में कुछ बुरा सोच ही नहीं सकती हो। काश! दुनिया की हर औरत का हृदय तुम्हारे जैसा हो जाए।"
"मैं सोच रही हूं कि इस वक्त रागिनी दीदी सुहागन के पूरे श्रृंगार में कैसी दिखती होंगी?" रूपा ने कहा____"उनकी सुंदरता के बारे में मैंने पहले भी बहुत सुना था। विधवा के लिबास में उन्हें देखा भी है। वो सादगी और सौम्यता से भरी हुई हैं। उनका हृदय बहुत साफ और निश्छल है। मेरा बहुत मन कर रहा है कि मैं उन्हें दुल्हन के रूप में सजा हुआ देखूं। फिर आपसे आ कर कहूं कि आप भी मुझे उस दिन उनके जैसा ही सजाना।"
"पागल हो तुम।" कुमुद ने प्यार से उसका चेहरा सहलाया____"चिंता मत करो, मैं तुम्हें तुम्हारी रागिनी दीदी से भी ज़्यादा अच्छे तरीके से सजाऊंगी। तुम अपनी दीदी से कम सुंदर नहीं लगोगी देख लेना।"
"नहीं भाभी।" रूपा ने झट से कहा____"मैं उनसे ज़्यादा नहीं सजना चाहती। मैं चाहती हूं कि मेरी दीदी को मुझसे ज़्यादा उनका प्यार मिले। मैं तो बस अपनी दीदी के साथ रह कर उनके जैसा बनने की कोशिश करूंगी। मैं चाहती हूं कि जैसे वो कुसुम को अपनी गुड़िया कहते हैं और उसे जी जान से प्यार करते हैं वैसे ही मेरी दीदी मुझे अपनी छोटी सी गुड़िया मान कर मुझे प्यार करें। जब ऐसा होगा तो कितना अच्छा होगा ना भाभी?"
"ओह! रूपा बस करो।" कुमुद ने भावना में बह कर उसे अपने सीने से लगा लिया। उसकी आंखें भर आईं थी, बोली____"किस मिट्टी की बनी हुई हो तुम? तुम्हारे हृदय में क्यों ऐसी अनोखी भावनाएं जन्म ले लेती हैं? मेरी प्यारी ननद, मेरी प्यारी रूपा। भगवान तुम्हें हमेशा ऐसा ही बनाए रखे। हमेशा तुम्हें खुश रखे। हमेशा तुम्हें तुम्हारे प्रियतम के प्रेम का उपहार दे।"
कुमुद सच में रूपा की बातों से भाव विभोर सी हो गई थी। उसका बस चलता तो वो रूपा को अपने सीने के अंदर समा लेती। उधर रूपा के सुर्ख होठों पर हल्की सी मुस्कान उभर आई और आंख से आंसू का एक कतरा छलक गया।
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