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Adultery ☆ प्यार का सबूत ☆ (Completed)

What should be Vaibhav's role in this story..???

  • His role should be the same as before...

    Votes: 19 10.0%
  • Must be of a responsible and humble nature...

    Votes: 22 11.6%
  • One should be as strong as Dada Thakur...

    Votes: 74 38.9%
  • One who gives importance to love over lust...

    Votes: 44 23.2%
  • A person who has fear in everyone's heart...

    Votes: 31 16.3%

  • Total voters
    190

aka3829

Prime
3,369
12,318
159
☆ प्यार का सबूत ☆
अध्याय - 19
----------☆☆☆----------



अब तक,,,,,,

अभी मैं रूपा के बारे में ये सब सोच ही रहा था कि तभी मेरी नज़र दूर से आती हुई बग्घी पर पड़ी। मैं समझ गया कि हवेली का कोई सदस्य मेरी तलाश करता हुआ इस तरह आ रहा है। बग्घी अभी दूर ही थी इस लिए मैं जामुन के उस पेड़ से निकल कर खेतों में घुस गया। मैंने मन ही मन सोच लिया था कि साहूकारों के अंदर की बात का पता मैं रूपा के द्वारा ही लगाऊंगा। खेत में गेहू की पकी हुई फसल खड़ी थी और मैं उसी के बीच बैठ गया था जिससे किसी की नज़र मुझ पर नहीं पड़ सकती थी। कुछ ही देर में बग्घी मेरे सामने सड़क पर आई। मेरी नज़र बग्घी में बैठे हुए शख़्स पर पड़ी तो मैं हलके से चौंक पड़ा।

अब आगे,,,,,,



बग्घी में बैठे हुए शख़्स को देख कर मैं चौंका तो था ही किन्तु सोच में भी पड़ गया था। साहूकारों ने ठाकुरों से अपने रिश्ते सुधार लिए थे मगर उसका असर इतना जल्दी देखने को मिलेगा इसकी मुझे उम्मीद नहीं थी। बग्घी में मझले चाचा जगताप के साथ शाहूकार हरिशंकर का दूसरा बेटा रूपचंद्र बैठा हुआ था और उसी को देख कर मैं चौंका था।

बग्घी में मझले चाचा रूपचंद्र के साथ थे और आगे बढ़े जा रहे थे। पहले तो मैंने यही सोचा था कि बग्घी में मेरे परिवार का कोई सदस्य होगा जो कि मुझे खोजने के लिए आया होगा लेकिन यहाँ तो कुछ और ही दिख रहा था। ख़ैर बग्घी काफी आगे निकल चुकी थी इस लिए मैं भी खेतों से निकल कर उनके पीछे हो लिया। मैं देखना चाहता था कि मझले चाचा जी रूप चंद्र के साथ आख़िर जा कहां रहे हैं?

बग्घी में पीछे की तरफ छतुरी जैसा बना हुआ था जिससे उसमे बैठा हुआ इंसान पीछे की तरफ देख नहीं सकता था। मैं तेज़ तेज़ क़दमों के साथ चलते हुए बग्घी का पीछा कर रहा था। हलांकि बग्घी की रफ़्तार मुझसे ज़्यादा थी लेकिन मैं फिर भी उससे अपनी दूरी बराबर ही बना कर चल रहा था। कुछ देर बाद बग्घी मुख्य सड़क से नीचे उतर कर पगडण्डी में आ गई। ये पगडण्डी वाला वही रास्ता था जो बंज़र ज़मीन और मेरे झोपड़े की तरफ जाता था।

बग्घी को पगडण्डी में मुड़ते देख मेरे ज़हन में ख़याल उभरा कि ये लोग उधर क्यों जा रहे हैं? कहीं ऐसा तो नहीं कि जगताप चाचा जी सच में ही मुझे खोजने निकले हों? उन्होंने सोचा होगा कि हवेली से निकलने के बाद मैं शायद अपने झोपड़े में ही गया होऊंगा। ऐसा भी हो सकता है कि मुंशी हवेली गया हो और वहां पर जगताप चाचा जी ने उससे मेरे बारे में पूछा हो या फिर मुंशी ने खुद ही उन्हें बताया हो।

मैं तेज़ तेज़ चलते हुए बग्घी का पीछा कर रहा था और इस चक्कर में मेरी साँसें फूल गईं थी और मेरे पैर भी दुखने लगे थे मगर मैं फिर भी बढ़ता ही जा रहा था। कुछ ही समय में बग्घी मेरे झोपड़े के पास पहुंच कर रुक गई। मैं उनसे बीस पच्चीस क़दम की दूरी पर था। मैंने देखा कि बग्घी के रुकते ही जगताप चाचा जी और रूपचंद्र बग्घी से नीचे उतरे और झोपड़े की तरफ बढ़ गए। इसका मतलब वो लोग मुझे ही खोजने आये थे।

मेरे मन में ख़याल उभरा कि मुझे उन दोनों की बातें सुननी चाहिए। मुझे जगताप चाचा जी के साथ शाहूकार के लड़के का होना बिलकुल भी हजम नहीं हो रहा था इस लिए मैं सावधानी से आगे बढ़ चला। कुछ ही देर में मैं झोपड़े के पास पहुंच गया। झोपड़े के पास इक्का दुक्का पेड़ थे बाकी झाड़ियां थी। मैं छिपते छिपाते चलते हुए झाड़ियों के बीच आ कर रुक गया। यहाँ से झोपड़ा क़रीब दस कदम की दूरी पर था।

"यहां भी नहीं है तो फिर कहां गया होगा वैभव?" चाचा जी की आवाज़ मेरे कानों में पड़ी____"मुंशी जी ने तो कहा था कि वो सुबह इसी तरफ गया था।"
"कहीं ऐसा तो नहीं कि वो आपके बगीचे वाले मकान में गए हों?" रूपचंद्र की आवाज़ आई____"वो जगह उनके रुकने के लिए काफी बेहतर है। मेरे ख़याल से आपको वहीं जाना चाहिए।"

"क्यों, तुम नहीं चलोगे क्या साथ में?" चाचा जी ने पूछा तो रूपचंद्र ने कहा____"आप जाइए चाचा जी। मुझे इस गांव में कुछ ज़रूरी काम है इस लिए मैं आपके साथ अब नहीं जा पाऊंगा।"

"अच्छा ठीक है।" चाचा जी ने कहा____"लेकिन वापसी में क्या पैदल आओगे तुम?"
"मैंने गौरव से बताया था कि मुझे इस गांव में कुछ काम है।" रूपचंद्र ने कहा____"इस लिए वो मुझे लेने के लिए मोटर साइकिल ले के आ जाएगा। आप मेरी चिंता मत कीजिए।"
"फिर ठीक है।" चाचा जी ने कहा और फिर वो चल कर बग्घी के पास आए।

झाड़ियों के बीच छुपा बैठा मैं उन्हें देख रहा था। चाचा जी बग्घी में बैठे और घोड़ों की लगाम को हरकत दी तो घोड़े आवाज़ करते हुए चल पड़े। जगताप चाचा जी के जाने के बाद रूपचंद्र के होठों पर हल्की सी मुस्कान उभर आई और फिर उसने एक बार मेरे झोपड़े को देखा, उसके बाद वो मुरारी काका के गांव की तरफ जाने वाली पगडण्डी पर चल पड़ा।

रूपचंद्र मुरारी काका के गांव की तरफ जा रहा था और मैं ये सोचने लगा था कि उसका मुरारी काका के गांव में कौन सा ज़रूरी काम हो सकता है? अपने मन में उठे इस सवाल का जवाब पाने के लिए मैंने फैसला किया कि मुझे भी उसके पीछे जाना चाहिए। ये सोच कर मैं फ़ौरन ही झाड़ियों से निकला और रूपचंद्र के पीछे हो लिया।

पगडण्डी के दोनों तरफ सन्नाटा फैला हुआ था। कुछ दूरी से दूसरे गांव के खेत दिखने लगते थे जहां पर कुछ किसान लोग अपने खेतों की कटाई में लगे हुए थे। इक्का दुक्का पेड़ भी लगे हुए थे। मैं बहुत ही सावधानी से रूपचंद्र का पीछा कर रहा था। मुझे इस बात का डर भी था कि अगर उसने पलट कर पीछे देखा तो मैं ज़रूर उसकी नज़र में आ जाऊंगा क्योंकि इस तरफ छुपने का कोई ज़रिया नहीं था।

रूपचंद्र अपनी ही धुन में चला जा रहा था। ऐसा लग रहा था जैसे उसे किसी बात की फ़िक्र ही ना हो। हलांकि मेरे लिए ये अच्छी बात ही थी क्योंकि वो अपनी धुन में जा रहा था और ऐसे में इंसान इधर उधर या पीछे पलट कर नहीं देखता। कुछ ही समय बाद मुझे मुरारी काका का घर दिखने लगा। जैसा कि मैंने पहले भी बताया था कि मुरारी काका का घर उसके गांव से अलग हट कर बना हुआ था, जहां पर उसके खेत थे। एक तरह से ये समझ लीजिए कि मुरारी काका का घर उसके खेत में ही बना हुआ था।

रूपचंद्र मुझसे क़रीब पंद्रह बीस क़दम की दूरी पर था। मुरारी काका के घर के पास कुछ पेड़ पौधे लगे थे जिससे अब अगर रूपचंद्र पलट कर पीछे देखता भी तो मैं आसानी से किसी न किसी पेड़ के पीछे खुद को छुपा सकता था। मुरारी काका के घर के पास पहुंच कर रूपचंद्र रुक गया और फिर इधर उधर देखने लगा। मैं समझ गया कि वो पलट कर पीछे भी देखेगा इस लिए मैं जल्दी से पास के ही एक पेड़ के पीछे छुप गया। पेड़ के पीछे से मैंने हल्का सा सिर बाहर निकाल कर देखा तो सचमुच रूपचंद्र पीछे ही देख रहा था। हलांकि वो मुझे देख नहीं सकता था क्योंकि इस वक़्त वो ये उम्मीद ही नहीं कर सकता था कि कोई उसका पीछा कर रहा होगा। इस लिए उसने फौरी तौर पर इधर उधर देखा और फिर मुरारी काका के घर की तरफ बढ़ चला।

रूपचंद्र को मुरारी काका के घर की तरफ बढ़ते देख मैं चौंक गया था और साथ ही ये भी सोचने लगा था कि रूपचंद्र मुरारी काका के घर की तरफ क्यों जा रहा होगा? आख़िर मुरारी काका के घर में इस वक़्त वो किससे मिलने जा रहा होगा? पलक झपकते ही ऐसे न जाने कितने ही सवाल मेरे ज़हन में उभरते चले गए थे और इस सबकी वजह से मेरे ज़हन में एक अजीब सी आशंका ने जन्म ले लिया था।

मैंने देखा कि रूपचंद्र मुरारी काका के घर के दरवाज़े पर पहुंच कर रुक गया था। इस वक़्त आस पास कोई नहीं था। घर के सामने सड़क के किनारे पर पेड़ के नीचे जो चबूतरा बना था वो भी खाली था इस वक़्त। फसलों की कटाई का मौसम था इस लिए मैं समझ सकता था कि लोग इस वक़्त अपने अपने खेतों में कटाई करने गए होंगे।

दरवाज़े के पास पहुंच कर रूपचंद्र ने एक बार फिर से इधर उधर देखा और फिर उसने दरवाज़े की कुण्डी पकड़ कर दरवाज़े पर बजाया। कुछ ही देर में दरवाज़ा खुला और मैंने रूपचंद्र के चेहरे पर अचानक ही उभर आई चमक को देखा और साथ ही उसके होठों पर फ़ैल गई मुस्कान को भी। पेड़ के पीछे से मुझे दरवाज़े के उस पार का दिख नहीं रहा था इस लिए मैं ये न जान सका कि दरवाज़ा किसने खोला था। हलांकि मेरा अंदाज़ा ये था कि दरवाज़ा अनुराधा ने ही खोला होगा क्योंकि उसकी माँ इस वक़्त गेहू की फसल काटने के लिए खेतों पर गई होगी।

रूपचंद्र दरवाज़े के पास कुछ पलों तक खड़ा कुछ बोलता रहा और फिर वो दरवाज़े के अंदर दाखिल हो गया। मेरे दिल की धड़कनें ये सोच कर ज़ोर ज़ोर से चलने लगीं थी कि आख़िर रूपचंद्र इस वक्त अनुराधा के घर पर किस लिए आया होगा? क्या अनुराधा से उसका कोई चक्कर है? इस ख़याल के साथ ही मेरी आँखों के सामने अनुराधा का मासूमियत से भरा चेहरा उजागर हो गया। मैं सोचने लगा कि क्या अनुराधा का कोई सम्बन्ध शाहूकार हरिशंकर के लड़के रूपचंद्र से हो सकता है? मेरा दिल ये मानने को तैयार ही नहीं था मगर मैं ये भी जानता था कि किसी के अंदर क्या है इस बारे में भला कोई कैसे जान सकता है?

उधर रूपचंद्र जैसे ही दरवाज़े के अंदर दाखिल हुआ तो दरवाज़ा बंद हो गया। ये देख कर मेरे मन में और भी कई तरह की आशंकाए उभरने लगीं। मेरे मन में सवाल उभरा कि क्या मुझे ये पता करना चाहिए कि इस वक्त घर के अंदर रूपचंद्र और अनुराधा के बीच क्या बातें हो रही हैं? मेरे मन में उभरे इस सवाल का जवाब भी मेरे मन ने ही दिया कि बिलकुल मुझे इस बात का पता लगाना ही चाहिए।

मैं इधर उधर नज़र घुमा कर पेड़ के पीछे से निकला और तेज़ी से मुरारी काका के घर की तरफ बढ़ गया। दरवाज़े के पास पहुंच कर मैंने दरवाज़े की झिरी से अंदर देखने की कोशिश की तो जल्द ही मुझे अंदर आँगन में रूपचंद्र और अनुराधा खड़े हुए दिख ग‌ए। जैसा कि मैंने पहले ही बताया था कि मुरारी काका का घर मिट्टी का बना हुआ था और सामने वाली दीवार एक ही थी जिस पर दरवाज़ा लगा हुआ था। दरवाज़े के अंदर जाते ही आँगन मिल जाता था।

दरवाज़े की झिरी से मुझे रूपचंद्र और अनुराधा दोनों ही नज़र आ रहे थे। रूपचंद्र की पीठ दरवाज़े की तरफ थी और अनुराधा का चेहरा दरवाज़े की तरफ होने से मैं साफ़ देख सकता था कि इस वक्त उसके चेहरे पर कैसे भाव थे।

अनुराधा के चेहरे पर इस वक़्त चिंता और परेशानी वाले भाव थे। उसने अपनी गर्दन को हल्का सा झुकाया हुआ था। उसके दोनों हाथ उसके सीने पर पड़े दुपट्टे के छोरों को पकड़ कर बेचैनी से उमेठने में लगे हुए थे। दोनों के बीच ख़ामोशी थी। मेरा दिल ज़ोर ज़ोर से धड़क रहा था और मैं समझने की कोशिश कर रहा था कि आख़िर रूपचंद्र इस वक़्त यहाँ आया क्यों होगा?

"क्या हुआ?" रूपचंद्र ने दो क़दम अनुराधा की तरफ बढ़ते हुए कहा____"तुम मुझसे इतना डर क्यों रही हो? मैं तुम्हें खा थोड़ी न जाऊंगा।"
"जी वो..।" अनुराधा सहम कर दो क़दम पीछे हटते हुए बोली____"आपने उस दिन जैसा कहा था मैंने छोटे ठाकुर से वैसा ही कह दिया था। उसके बाद फिर वो दुबारा मेरे घर नहीं आए।"

"उसे आना भी नहीं चाहिए यहां।" रूपचंद्र चल कर अनुराधा के पीछे गया और फिर कमीनी मुस्कान के साथ उसके कान के पास अपना मुँह ला कर बोला____"क्योंकि इसी में तुम्हारी और तुम्हारे परिवार की भलाई है। ख़ैर छोड़ो ये बात, अगर तुम मेरे कहे अनुसार चलोगी तो फ़ायदे में ही रहोगी। उस वैभव के बारे में अब सोचना भी मत। वो तुम लोगों का साथ नहीं देगा और ना ही कोई मदद करेगा। मदद भी वो तभी कर पाएगा न जब वो मदद करने के लिए खुद सक्षम हो। तुम्हें पता है कल उसने फिर से हमसे झगड़ा किया था। मेरे ताऊ ने उसे थोड़ा सा उकसाया तो उसकी गांड में आग लग गई और फिर वो मेरे ताऊ के लड़कों से भिड़ गया। हाहाहा कसम से मैंने ऐसा लम्पट और मूर्ख आदमी अपने जीवन में कभी नहीं देखा। ख़ैर हमारे लिए तो अच्छा ही है। पता चला है कि अपने बाप से भी भिड़ गया था और फिर गुस्से में हवेली छोड़ कर चला गया है कहीं। अब तुम समझ सकती हो कि वो तुम लोगों की ना तो कोई मदद कर सकता है और ना ही तुम्हारे बाप का कर्ज़ा चुका सकता है।"

रूपचंद्र की बातें सुन कर जहां एक तरफ अनुराधा एकदम चुप थी वहीं दूसरी तरफ उसकी बातें सुनकर मेरी झांठें सुलग गईं थी। मन तो किया कि अभी दरवाज़े को एक लात मार कर खोल दूं और फिर अंदर जा कर रूपचंद्र की गर्दन पकड़ लूं मगर फिर मैंने ये सोच कर अपने गुस्से को काबू किया कि देखूं तो सही, ये शाहूकार का पूत और क्या क्या बोलता है अनुराधा से।

"तुम्हारी माँ ने मुझे इजाज़त दी थी कि मैं अपना कर्ज़ा तुम्हारी इस मदमस्त जवानी का रसपान कर के वसूल कर लूं।" रूपचंद्र ने पीछे से अनुराधा की गर्दन के पास हल्के से चूमते हुए कहा____"मगर मैंने अभी तक ऐसा नहीं किया। जानती हो क्यों? क्योंकि मैं चाहता हूं कि तुम ख़ुद अपनी ख़ुशी से अपने इस हुस्न को मेरे सामने बेपर्दा करो और फिर मुझसे कहो कि मेरे इस गदराए हुए जिस्म को जैसे चाहो मसलो और जैसे चाहो भोग लो।"

रूपचंद्र की बातें सुन कर अनुराधा की आँखों से आंसू छलक पड़े। उसके चेहरे पर दुःख संताप और अपमान के भाव उभर आये थे। तभी वो अचानक ही आगे बढ़ कर रूपचंद्र की तरफ पलटी और फिर कातर भाव से बोली____"ऐसा मत कीजिए। मैं आपके आगे हाथ जोड़ती हूं। आप चाहें तो अपना कर्ज़ हमारी ज़मीनें ले कर चुकता कर लीजिए मगर मेरे साथ ऐसा मत कीजिए।"

"ज़मीनों का मैं क्या करुंगा मेरी जान?" रूपचंद्र ने मुस्कुराते हुए कहा____"वो तो मेरे पास बहुत हैं मगर तुम्हारे जैसी हूर की परी नहीं है मेरे पास। जब से मुझे पता चला था कि उस हरामज़ादे वैभव की नज़र भी तुम पर है तब से मैंने भी ये सोच लिया था कि अब तुम और तुम्हारा ये गदराया हुआ मादक जिस्म सिर्फ और सिर्फ मेरा ही होगा। वैभव को रास्ते से हटाने का कोई तरीका नहीं मिल रहा था मुझे मगर भगवान की दया से तरीका मिल ही गया। एक रात मैं उसका पीछा करते हुए यहाँ आया तो देखा घर के पीछे तुम्हारी माँ नंगी हो कर उस हरामज़ादे से अपनी चूत मरवा रही थी। पहले तो मैं ये सब देख कर बड़ा ही हैरान हुआ मगर फिर अचानक ही मेरे अकल के दरवाज़े खुले और इस सब में मुझे एक मस्त उपाय नज़र आया। मैंने सोच लिया कि तेरी माँ को इसके लिए मजबूर करुंगा और उससे कहूंगा कि अगर उसने अपनी बेटी को मेरे लिए राज़ी नहीं किया तो पूरे गांव में इस बात की डिग्गी पिटवा दूंगा कि उसका दादा ठाकुर के बेटे वैभव के साथ नाजायज़ सम्बन्ध है। ख़ैर उस रात मैं वैभव का वो कारनामा देख कर चुपचाप चला गया था। सोचा था कि मौका देख कर यहां आऊंगा और तुम्हारी मां से इस सिलसिले में बात करूंगा। वैभव को अपने रास्ते से हटाने के लिए मैंने बहुत सोच समझ कर ये क़दम उठाया था। ख़ैर उस दिन मैं घर से चला तो पता चला कि तुम्हारे बाप की किसी ने हत्या कर दी है। मैं ये जान कर एकदम से उछल ही पड़ा था और सोचने लगा कि साला अब ये क्या काण्ड हो गया? ऐसे हालात में मैं अपने उस काम को अंजाम नहीं दे सकता था लेकिन मैं ये ज़रूर पता करने में लग गया कि तुम्हारे बाप की हत्या किसने की होगी। इसका पता जल्द ही चल गया मुझे। मेरे एक आदमी ने बताया कि तुम्हारा काका जगन अपने भाई की अत्या का जिम्मेदार वैभव को मान रहा है। ये जान कर तो मैं खुशी से बौरा ही गया और मन ही मन हंसते हुए सोचा कि उस वैभव के तो लौड़े ही लग ग‌ए। तुम्हारे बाप की इस हत्या से मुझे वैभव को अपने रास्ते से हटाने का एक और उपाय मिल गया। पहले तो मैं तुम्हारी माँ से मिला और उसे बताया कि वैभव के साथ उसकी मज़े की दास्तान का मुझे पता है इस लिए अगर वो अपनी इज्ज़त सरे बाज़ार नीलाम होता नहीं देखना चाहती तो वो वही करे जो मैं कहूं। तुम्हारी माँ मरती क्या न करती वाली हालत में फंस गई थी। आख़िर उसे मजबूर हो कर मेरी बात माननी ही पड़ी मगर उसने मुझसे ये कहा कि वो खुद अपनी बेटी से इस बारे में बात नहीं कर सकती, इस लिए मुझे खुद ही उससे बात करना होगा। तुम्हारी माँ की इजाज़त मिलते ही मैं शेर से सवा शेर बन गया।"

रूपचंद्र की बातें सुन कर अनुराधा थर-थर कांपती हुई खड़ी थी। भला वो ऐसी परिस्थिति में कर भी क्या सकती थी? जबकि मैं रूपचंद्र की बातें सुन कर गुस्से से उबलने लगा था। उधर रूपचंद्र कुछ देर सांस लेने के लिए रुक गया था और अनुराधा के पीछे खड़ा वो अनुराधा की दाहिनी बांह पर अपना हाथ फेरने लगा था। उसके ऐसा करने से अनुराधा बुरी तरह कसमसाने लगी थी।

"उस दिन वैभव जब तुम्हारे घर आया तो उधर मैं उसके झोपड़े की तरफ गया।" रूपचंद्र ने अनुराधा को अपनी तरफ पलटा कर कहा____"झोपड़े के सामने खेत पर मेरी नज़र उस जगह पड़ी जहां पर उसने गेहू की पुल्लियों के गट्ठे जमा कर रखे थे। ये देख कर मैं मुस्कुराया। उस साले ने हमेशा ही हमें नीचे दिखाया था जिससे उसके प्रति हमारे मन में हमेशा ही गुस्सा और नफ़रत भरी रही थी। उसकी फसल के गड्ड को देख कर मैंने सोचा कि क्यों न उसकी मेहनत को आग के हवाले कर दिया जाए। ये सोच कर मैं खेत की तरफ बढ़ा और फिर जेब से माचिस निकाल कर मैंने उसके गेहू के उस गड्ड में माचिस की जलती हुई तीली छुआ दी। सूखी हुई गेहू की फसल में आग लगने में ज़रा भी देर न लगी। देखते ही देखते आग ने उसकी पूरी फसल को अपनी चपेट में ले लिया। ये सब करने के बाद मैं फ़ौरन ही वहां से नौ दो ग्यारह हो गया। वैभव की फसल में आग लगाने से मैं बड़ा खुश था। पहली बार उसे उस तरह से शिकस्त दे कर मुझे ख़ुशी महसूस हो रही थी। मैं जानता था कि जब वो ये सब देखेगा तो उसकी गांड तक जल कर ख़ाक हो जाएगी और वो गुस्से में अपने बाल नोचने लगेगा। पगलाया हुआ वो इधर उधर भटकते हुए उस इंसान की खोज करेगा जिसने उसकी इतनी मेहनत से उगाई हुई फसल में आग लगाईं थी।"

रूपचंद्र फिर से चुप हुआ तो इस बार मेरी आँखों से गुस्से की आग जैसे लपटों में निकलती हुई नज़र आने लगी थी। तो मेरी फसल को आग लगाने वाला हरिशंकर ये बेटा रूपचंद्र था और मैं बेवजह ही उस साए को दोष दे रहा था जो उस रात मुझसे टकराया था।

"उसके बाद मेरे मन में बस तुम्हें ही पाने की इच्छा बची थी।" रूपचंद्र ने अनुराधा के चेहरे को अपनी हथेलियों में लेते हुए कहा____"वैभव सिंह हवेली लौट गया था और इधर मैं तुम्हारे घर पर आ धमका। तुम्हें उसके और तुम्हारी माँ के बारे में सब कुछ बताया और फिर कहा कि अब जब वो कमीना वैभव तुम्हारे घर आये तो तुम्हें उससे वही कहना है जो मैं तुम्हें कहने को बोलूंगा। उस दिन जब तुमने वैभव से वो सब कहा था तब मैं तुम्हारी रसोई के अंदर खड़ा सब कुछ देख सुन रहा था। मैंने देखा था कि कैसे वो हरामज़ादा तुम्हारी बातें सुन कर सकते में आ गया था और फिर जब तुमने उससे ये कहा कि अब तुम उसकी शक्ल भी नहीं देखना चाहती तो कैसे उसका चेहरा देखने लायक हो गया था। बेचारा भावना में बह गया था। मुझे तो उस वक़्त उसकी शक्ल देख कर बड़ी हंसी आ रही थी। ख़ैर अब छोडो ये सब बातें और चलो कमरे में चलते हैं।"

"नहीं नहीं।" रूपचंद्र की ये बात सुन कर अनुराधा एकदम से घबरा कर पीछे हट गई, फिर बोली____"भगवान के लिए मुझ पर दया कीजिए। मेरी ज़िन्दगी बर्बाद मत कीजिए।"
"ऐसा नहीं हो सकता मेरी गुले गुलज़ार।" आगे बढ़ते हुए रूपचंद्र ने कमीनी मुस्कान के साथ कहा_____"तुम्हें पाने के लिए मैंने कितने सारे पापड़ बेले हैं। मेरी इतनी मेहनत पर ऐसे तो न पानी फेरो मेरी जान। चलो जल्दी कमरे में चलो। मैं अब और ज़्यादा बरदास्त नहीं कर सकता। तुम्हारे इस गदराये हुए बदन को चाटने के लिए मेरी जीभ लपलपा रही है। तुम्हारे इन सुर्ख और रसीले होठों की शहद को चखने के लिए मेरा मन मचला जा रहा है।"

"नही नहीं।" अनुराधा बुरी तरह रोती हुई घर के पीछे की तरफ जाने वाले दरवाज़े की तरफ दौड़ पड़ी। उसे भागता देख रूपचंद्र बड़ी ही बेहयाई से हँसा और फिर तेज़ी से उसके पीछे दौड़ पड़ा। इधर मैं भी समझ गया कि इस खेल को यहीं पर समाप्त करने का अब वक़्त आ गया है।

मैं तेज़ी से खड़ा हुआ और ज़ोर से दरवाज़े पर लात मारी तो दरवाज़ा भड़ाक से खुल गया। असल में दरवाज़ा अंदर से कुण्डी लगा कर बंद नहीं किया गया था। शायद रूपचंद्र को कुण्डी लगाने का ध्यान ही नहीं रहा होगा या फिर उसे इतना यकीन था कि इस वक़्त यहाँ पर कोई नहीं आ सकता।

दरवाज़ा जब तेज़ आवाज़ करते हुए खुला तो अनुराधा के पीछे भागता हुआ रूपचंद्र एकदम से रुक गया। अनुराधा भी दरवाज़े की तेज़ आवाज़ सुन कर ठिठक गई थी। इधर दरवाज़ा खुला तो मैं अंदर दाखिल हुआ। रूपचंद्र की नज़र जब मुझ पर पड़ी तो उसकी जैसे माँ बहन नानी मामी सब एक साथ ही मर ग‌ईं। आँखों में आश्चर्य और दहशत लिए वो बुत बना मेरी तरफ देखता ही रह गया था, जबकि अनुराधा ने जब मुझे देखा तो उसके चेहरे पर राहत के साथ साथ ख़ुशी के भी भाव उभर आए।

"इस वक़्त मेरे हाथ पैर मुझसे चीख चीख कर कह रहे हैं कि रूपचंद्र नाम के इस आदमी को तब तक मारुं जब तक कि उसके जिस्म से उसकी नापाक रूह नहीं निकल जाती।" दरवाज़े को अंदर से कुण्डी लगा कर बंद करने के बाद मैं रूपचंद्र की तरफ बढ़ते हुए सर्द लहजे में कहा____"इस वक़्त दुनिया की कोई भी ताकत तुझे मुझसे नहीं बचा सकती नाजायज़ों की औलाद।"

"आ आप यहाँ कैसे????" रूपचंद्र मारे डर के हकलाते हुए बड़ी मुश्किल से बोला।
"हम तो हर जगह जिन्न की तरह प्रगट हो जाते हैं रूप के चांद।" मैंने उसकी तरफ बढ़ते हुए कहा_____"मैंने सुना कि तूने अनुराधा को पाने के लिए न जाने कितने ही पापड़ बेले हैं और ये भी सुना कि उसके गदराये हुए बदन को चाटने के लिए तेरी जीभ लपलपाई जा रही है।"

"नहीं तो।" रूप चंद्र बुरी तरह हड़बड़ा गया____"मैंने ऐसा तो कुछ नहीं कहा छोटे ठाकुर। आप तो बेवजह ही जाने क्या क्या कहे जा रहे हैं आअह्ह्ह्हह।"

"महतारीचोद।" मैंने बिजली की सी तेज़ी से रूपचंद्र के पास पहुंच कर उसके चेहरे में एक घूंसा मारा तो वो उछल कर दूर जा गिरा, जबकि उसकी तरफ बढ़ते हुए मैंने गुस्से से कहा____"क्या समझता है मुझे कि मैं निरा चूतिया हूं....हां?"

"ये आप ठीक नहीं कर रहे छोटे ठाकुर।" मैंने झुक कर रूपचंद्र को उसकी शर्ट का कॉलर पकड़ कर उठाया तो वो बोल पड़ा____"आपको शायद पता नहीं है कि अब ठाकुरों से हमारे रिश्ते सुधर चुके हैं आआह्ह्ह्।"

"मैं जानता हूं मादरचोद कि तुम हरामज़ादों ने किस लिए हमसे अपने रिश्ते सुधारे हैं।" रूपचंद्र के पेट में मैंने ज़ोर से घुटने का वार किया तो वो दर्द से कराह उठा, जबकि मैंने आगे कहा____"दोस्ती कर के पीठ पर छूरा मारना चाहते हो तुम लोग।"

"नहीं छोटे ठाकुर।" दर्द से बिलबिलाते हुए रूपचंद्र ने कहा____"आप ग़लत समझ रहे हैं।
"तेरी माँ को चोदूं मादरचोद।" मैंने रूपचंद्र को उठा कर आँगन की कच्ची ज़मीन पर पटक दिया जिससे उसके हलक से ज़ोरदार चीख निकल गई____"तू मुझे बताएगा कि मैं क्या समझ रहा हूं? तुझे क्या लगा कि मुझे कुछ पता ही नहीं है? जब तू जगताप चाचा जी के साथ बग्घी में बैठ कर आ रहा था तभी से मैं तेरे पीछे लगा हुआ था। जगताप चाचा जी के साथ तू मेरे झोपड़े तक आया उसके बाद तूने उन्हें ये कह कर वापस भेज दिया कि तुझे इस गांव में कोई ज़रूरी काम है। मैंने भी सोचा कि देखूं तो सही कि तेरा इस गांव में कौन सा ज़रूरी काम है। उसके बाद तेरा पीछा करते हुए जब यहाँ आया तो देखा और सुना भी कि तेरा ज़रूरी काम क्या था।"

"मुझे माफ़ कर दीजिए छोटे ठाकुर।" मेरी बात सुन कर रूपचंद्र पहले तो बुरी तरह हैरान हुआ था फिर अचानक ही रंग बदल कर गिड़गिड़ाते हुए बोला____"मुझसे बहुत बड़ी ग़लती हो गई है। मैं आपसे वादा करता हूं कि अब से ऐसी ग़लती नहीं होगी।"

"तू साले जलती आग में कूद कर भी कहेगा ना कि अब से तू ऐसा नहीं करेगा तब भी मैं तेरा यकीन नहीं करुंगा।" मैंने उसके पेट में एक लात लगाते हुए कहा____"क्योंकि मैं जानता हूं कि तुम लोगों की ज़ात कुत्ते की पूंछ वाली है जो कभी सुधर ही नहीं सकती।"

"मां की कसम छोटे ठाकुर।" रूपचंद्र ने गले में हाथ लगाते हुए जल्दी से कहा____"मैं अब से ऐसा कुछ भी नहीं करुंगा।"
"अगर तू यहाँ पर मेरे द्वारा रंगे हाथों पकड़ा न गया होता।" मैंने उसे फिर से उठाते हुए कहा____"तो क्या तू ऐसा कहने के बारे में सोचता?"

मेरी बात सुन कर रूपचंद्र कुछ न बोला। उसका चेहरा भय के मारे पीला ज़र्द पड़ चुका था। जब वो कुछ न बोला तो मैंने सर्द लहजे में कहा_____"तेरी चुप्पी ने मुझे बता दिया है कि तू ऐसा नहीं सोचता। क्या कहा था तूने अनुराधा से कि कमरे में चल?"

"मुझे माफ़ कर दीजिए छोटे ठाकुर।" रूपचंद्र रो देने वाले लहजे में बोला____"मैं अब सपने में भी अनुराधा को ऐसा नहीं कहूंगा। यहाँ तक कि उसके बाप ने जो कर्ज़ा लिया था उस कर्ज़े को भी भूल जाऊंगा।"

"वो तो तू अगर ना भी भूलता तब भी तुझे भूलना ही पड़ता बेटीचोद।" मैंने खींच के एक थप्पड़ उसके गाल पर मारा तो वो लहरा गया, जबकि मैंने अनुराधा की तरफ देखते हुए उससे कहा____"ये हरामज़ादा तुम्हें इस तरह से जलील कर रहा था और तुमने मुझे बताना भी ज़रूरी नहीं समझा।"

मेरी बात सुन कर अनुराधा कुछ न बोल सकी बल्कि सिर को झुकाए अपनी जगह पर खड़ी रही। उसके कुछ न बोलने पर मैंने कहा____"कितना कर्ज़ा लिया था मुरारी काका ने इससे?"

"मुझे नहीं पता छोटे ठाकुर।" अनुराधा ने धीमे स्वर में नज़रें झुकाये हुए ही कहा____"मां को पता होगा।"
"तू बता बे मादरचोद।" मैंने रूपचंद्र की तरफ गुस्से से देखते हुए कहा____"कितना कर्ज़ा दिया था तूने मुरारी काका को?"

"वो तो पिता जी ने दिया था।" रूपचंद्र ने सहमे हुए लहजे में कहा____"मैं बस इतना ही जानता हूं कि अनुराधा के बाप ने मेरे पिता जी से दो साल पहले कर्ज़ा लिया था जिसे वो अब तक चुका नहीं पाया था।"

"तो क्या तेरे बाप ने तुझे कर्ज़ा वसूली के लिए यहाँ भेजा था?" मैंने गुस्से से दाँत पीसते हुए पूछा तो रूपचंद्र जल्दी से बोला____"नहीं छोटे ठाकुर। वो तो मैं अपनी मर्ज़ी से ही कर्ज़ा वसूलने के बहाने यहाँ आया था।"

"मन तो करता है कि तुझे भी वैसे ही आग लगा कर जला दू जैसे तूने मेरी फसल को जलाया था।" मैंने उसके चेहरे पर ज़ोर से घूंसा मारते हुए कहा तो वो चीखते हुए दूर जा गिरा, जबकि मैं उसकी तरफ बढ़ते हुए बोला_____"मगर मैं तुझे जलाऊंगा नहीं बल्कि तेरे उस हाथ को तोड़ूंगा जिस हाथ से तूने मेरी फसल को आग लगाया था। चल बता किस हाथ से आग लगाया था तूने?"

"माफ़ कर दीजिए छोटे ठाकुर।" रूपचंद्र डर के मारे रो ही पड़ा_____"मैं आपकी टट्टी खाने को तैयार हूं मगर भगवान के लिए मुझे माफ़ कर दीजिए।"
"बता मादरचोद वरना दोनों हाथ तोड़ दूंगा।" मैंने ज़ोर से एक लात उसके पेट में मारी तो वो पेट पकड़ कर दोहरा हो गया। कुछ दूरी पर खड़ी अनुराधा ये सब सहमी हुई नज़रों से देख रही थी।

"मैं आपके पैर पड़ता हूं छोटे ठाकुर।" रूपचंद्र सच में ही मेरे पैरों को पकड़ कर गिड़गिड़ा उठा____"बस इस बार मुझे माफ़ कर दीजिए। अगली बार अगर मैंने ऐसा कुछ किया तो आप बेशक मुझे जान से मार देना।"

"चल उठ।" मैंने झटका दे कर उसे अपने पैरों से दूर करते हुए कहा____"और जा कर अनुराधा के पैरों में सिर रख कर अपने किए की उससे माफ़ी मांग और ये भी कह कि आज से तू उसे अपनी बहन मानेगा।"

मारता क्या न करता वाली हालत थी रूपचंद्र की। मेरी बात सुन कर वो तेज़ी से उठा और लपक कर अनुराधा के पास पहुंचा। अनुराधा के पैरों में गिर कर वो उससे माफ़ी मांगने लगा। अनुराधा ये सब देख कर एकदम से बौखला गई और उसने मेरी तरफ देखा तो मैंने इशारे से ही उसे शांत रहने को कहा।

"अनुराधा बहन मुझे माफ़ कर दो।" अनुराधा के पैरों में गिरा रूपचंद्र बोल रहा था____"मैंने जो कुछ भी तुम्हें कहा है उसके लिए मुझे माफ़ कर दो बहन। आज के बाद मैं ऐसा कुछ भी नहीं कहूंगा और ना ही यहाँ कभी आऊंगा।"

रूपचंद्र के द्वारा इस तरह माफ़ी मांगने पर अनुराधा घबरा कर मेरी तरफ देखने लगी थी। मैंने उसे इशारे से ही कहा कि वो उससे घबराए नहीं बल्कि अगर उसे माफ़ करना है तो माफ़ कर दे और अगर उसे सज़ा देना है तो मुझे बताए।

"ठीक ठीक है।" अनुराधा ने घबराहये हुए भाव से कहा____"मैंने आपको माफ़ किया। अब उठ जाइए।"
"बहुत बहुत शुक्रिया अनुराधा बहन।" रूपचंद्र उठ कर ख़ुशी से हाथ जोड़ते हुए बोला____"मैं पिता जी से कह दूंगा कि वो मुरारी काका को दिया हुआ कर्ज़ा माफ़ कर दें।"

"अब तू फ़ौरन ही यहाँ से निकल ले।" मैंने सर्द लहजे में रूपचंद्र से कहा____"और हां, अगर मुझे कहीं से भी पता चला कि तू इस घर के आस पास भी कभी आया है तो सोच लेना। वो दिन तेरी ज़िन्दगी का आख़िरी दिन होगा।"

मेरी बात सुन कर रूपचंद्र ने सिर हिलाया और दरवाज़ा खोल कर इस तरह भागा जैसे अगर वो रुक जाता तो उसकी जान उसकी हलक में आ जाती। रूपचंद्र के जाने के बाद मैंने अनुराधा की तरफ देखा। वो नज़रें झुकाए मुझसे दस क़दम की दूरी पर खड़ी थी।

"मुझे भी माफ़ कर दो अनुराधा।" मैंने संजीदा भाव से कहा____"मैं यहाँ अपने ही द्वारा किए गए वादे को तोड़ कर आ गया हूं। मैंने तो तुमसे वादा किया था कि मैं तुम्हें अपनी शक्ल तभी दिखाऊंगा जब मैं मुरारी काका के हत्यारे का पता लगा लूंगा।"

"आपको माफ़ी मांगने की ज़रूरत नहीं है छोटे ठाकुर।" अनुराधा ने धीमे स्वर में कहा____"माफ़ी तो मुझे मांगनी चाहिए कि मैंने आपसे उस दिन उस लहजे में बात की और आपको जाने क्या क्या कह दिया था।"

"मैंने बाहर से रूपचंद्र की सारी बातें सुन ली हैं अनुराधा।" मैंने उसकी तरफ बढ़ते हुए कहा____"इस लिए मैं जान गया हूं कि तुमने उस दिन वो सब मुझसे उसके ही कहने पर कहा था। हलांकि ये बात तो सच ही है कि मेरे और तुम्हारी माँ के बीच उस रात वैसे सम्बन्ध बने थे किन्तु ये ज़रा भी सच नहीं है कि मैंने मुरारी काका की हत्या की है। मैंने उस दिन भी तुमसे कहा था कि मैंने जो गुनाह किया है उसके लिए तुम मुझे जो चाहे सज़ा दे दो और आज भी तुमसे यही कहूंगा।"

"आपने और माँ ने जो कुछ किया है।" अनुराधा ने नज़रें झुकाए हुए ही कहा____"वो सब आप दोनों की इच्छा से ही हुआ है। इस लिए उसके लिए मैं सिर्फ आपको ही दोष क्यों दू? मुझे तो इस बारे में कुछ पता ही नहीं था। वो तो रूपचंद्र ने ही एक दिन मुझे ये सब बताया था और फिर मुझसे कहा था कि जब आप मेरे घर आएं तो मैं आपसे वो सब कहूं। उसने धमकी दी थी कि अगर मैंने वो सब आपसे नहीं कहा तो वो मेरे छोटे भाई के साथ बहुत बुरा करेगा। मैं मजबूर थी छोटे ठाकुर। उस दिन पता नहीं वो कहां से मेरे घर में आ धमका था और उसके आने के कुछ देर बाद आप भी आ गए थे।"

"शायद वो मुझ पर पहले से ही नज़र रखे हुए था।" मैंने सोचने वाले भाव से कहा____"ख़ैर मुझे तुमसे कोई शिकायत नहीं है अनुराधा। बल्कि मुझे खुद अपने बारे में बुरा लग रहा है कि मैंने काकी के साथ वैसा सम्बन्ध बनाया।"

"भगवान के लिए अब इस बात को भूल जाइए छोटे ठाकुर।" अनुराधा ने नज़र उठा कर मेरी तरफ देखते हुए बेचैनी से कहा____"मैं उस बारे में अब आपसे कोई बात नहीं करना चाहती। मुझे तो सोच कर ही शर्म आती है कि मेरी माँ ने आपके साथ वो सब कैसे किया?"

"होनी अटल होती है अनुराधा।" मैंने गंभीर भाव से कहा____"होनी अनहोनी पर किसी का कोई ज़ोर नहीं होता। सब कुछ उस ऊपर वाले के इशारे पर ही होता है। हम इंसान तो बस उसका माध्यम बनते हैं और उस माध्यम में ही हम सही और ग़लत ठहरा दिए जाते हैं। कितनी अजीब बात है ना?"

मेरी बात सुन कर अनुराधा ख़ामोशी से मेरी तरफ देखती रही। उसके मासूम से चेहरे पर मेरी नज़र ठहर सी गई और साथ ही दिल में अजीब अजीब से एहसास भी उभरने लगे। मैंने फ़ौरन ही उसके चेहरे से अपनी नज़रें हटा ली।

"मुझे लगता है कि इन साहूकारों ने ही मुरारी काका की हत्या की है।" फिर मैंने कुछ सोचते हुए अनुराधा से कहा____"मुझसे अपनी दुश्मनी निकालने के लिए इन लोगों ने मुरारी काका की हत्या की और उनकी हत्या के आरोप में मुझे फसाना चाहा। वो तो दादा ठाकुर ने पुलिस के दरोगा से मिल कर दरोगा को यहाँ आने से मना कर दिया था वरना उस दिन यकीनन वो दरोगा यहाँ आता और फिर मुरारी काका की हत्या का दोषी मान कर वो मुझे पकड़ कर यहाँ से ले जाता। शायद यही इन साहूकारों का षड़यंत्र था।"

"अगर ऐसा है तो दादा ठाकुर ने पुलिस के दरोगा को यहाँ आने से मना क्यों किया था?" अनुराधा ने कहा_____"क्या उन्हें पहले से ही ये पता चल गया था कि साहूकारों ने ही मेरे बाबू की हत्या की है और उनकी हत्या के जुर्म में वो लोग आपको फंसा देना चाहते हैं?"

"सच भले ही यही हो अनुराधा।" मैंने अनुराधा की गहरी आँखों में देखते हुए कहा____"लेकिन इस सच को साबित करने के लिए न हमारे पास कोई ठोस प्रमाण है और ना ही शायद पुलिस के दरोगा के पास हो सकता है। पिता जी को भी शायद ये बात पता रही होगी। शक की बिना पर दरोगा भले ही मुझे पकड़ कर ले जाता मगर जब मैं हत्यारा साबित ही नहीं होता तो उसे मुझे छोड़ना ही पड़ता। मैं भले ही साफ़ बच कर थाने से आ जाता किन्तु इस सबके चलते मेरे माथे पर ये दाग़ तो लग ही जाता कि ठाकुर खानदान के एक सदस्य को पुलिस का दरोगा पकड़ कर ले गया था और उसे जेल में भी बंद कर दिया था। दादा ठाकुर यही दाग़ मेरे माथे पर शायद नहीं लगने देना चाहते थे और इसी लिए उन्होंने दरोगा को यहाँ आने से मना कर दिया होगा। हलांकि उन्होंने दरोगा को गुप्त रूप से काका के हत्यारे का पता लगाने के लिए भी कहा था। पता नहीं अब तक उसने हत्यारे का पता लगाया भी होगा या नहीं।"

अभी मैंने ये सब कहा ही था कि तभी पीछे की तरफ जाने वाले दरवाज़े पर दस्तक हुई। दस्तक सुन कर अनुराधा चौंकी और उसने मेरी तरफ देखा। दोपहर हो चुकी थी और आसमान से सूरज की चिलचिलाती हुई धूप बरस रही थी। दरवाज़े के उस पार शायद अनुराधा की माँ थी। अनुराधा बेचैनी से मेरी तरफ देख रही थी। शायद उसे इस बात की चिंता होने लगी थी कि अगर दरवाज़े पर उसकी माँ ही है तो उसने अगर यहाँ पर अपनी बेटी को मेरे साथ अकेले देख लिया तो वो क्या सोचेगी?

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Bahut achha update diya he bhai. Lekin yaha vaibhav ko rupchand ko itani asani se nahi jane dena chahiye tha. Jab wo itana dara hua tha to aur dara kar sahukaro ki chaal bhi jaan sakta tha aur ya fir use pakad kar dada takur ke pass le jata aur batata ki kaise usane ek gareeb ladki ka fayda uthana chaha aur kaise usane usaki mehnat ko aag ke havale kar diya.
Dusari aur jaruri baat yaha vaibhav ko ruchand ki bato se ye bhi pata chal jana chahiye ki wo sab sahukar usaki jaldi gussa ho jane ki is kamjori ko kaise bhunana chah rahe he. Isliye use ab apna jhuta ahankaar chhod kar haveli wapas chale jana chahiye. Isase pehle ki koi bahut badi unhoni ho jaye. Mera ye bhi manana he ki haveli me reh kar hi wo in sab shadyantra ka bhanda fod sakta he. Aur agar wo is story ka hero he to usake man me apne mata pita ke liye kuch to adar dikhao.

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aalu

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E sala betichod bahut hi sochta hain, murari kaka kee gand kisne maari... Anuradha ke samne jaa ke mera lund kyun nahin khara hota hain... Bitiya ne maiya ke chudai dekh lee, aur gussa hain kee maiya se pehle hamko kahe gabhin na kiya...

Ab bhabhi ko dekh ke land khara hota hain, lekin bol nahin shakta hain kee bra panty de do muth marna hain,, ab bhaujai ko bhaiya theek se leta na honge,, isliye unhe asli thakur na mana hain,,, yaar pata hain toh bata kyun nahin deti, bhauji se le ke bahiniya shab sala KLPD karti rahti hain, abe bata do isko jo bhi maloom hain, toh bechara muth mar ke shant ho jayega...

Jab dekho tab garmi sir pe chadhte rahta hain, chut mil na raha hain,, toh garmi sahukar ke laundo pe nikal diya, ab saale sahukar ke laundo gussa na honge toh kya kare, saale uski bahiniya ko kas ke daba ke pela hain, toh aarti utarenge tumka... ab teeno bhaio isliye gussa honge kee sala 4 mahine se maal daba ke pel rahe honge, ab iske aa jana se maal pe daka par gaya hoga...

Hamko toh lagta hain teno bhaio ko line se khara kar ke lund pel de, jab mimiyanenge tab sara sach lund se nikal ke bahar aa jayega... E sala saya-saya kar raha hain, saya uthane ko mil toh gaya, ab kahe garma raha hain, abe bhosdi chod isko bata deta ke isko kisse khatra hain, toh ee shatark na rahta khud se,, janta hain kee iski gand mein kire bhare hue hain jab tak yeh kisi kee maar na le ya phir kisi se marwa na le chain se na baithega....

Sala hamesha lund se sochta hain haweli toh chhor aaya, lekin kahan jayega socha na, sala sochta hi toh bahut hain lekin jab sochna chahiye tab deemag mein guh bhara hota hain,,, ab haweli chhor aaya, bahiniya kahe garamail thee, bhabhi kahee ucchal rahi thee,, kuchho pata na kiya, ab sidha nishane pe hain jo bhi dushman hain, khule mein waar karna aasan hoga, ab iska guman bhi lund jitan bara hain hamesha khara hi rahta hain,, jhukega toh nahin....

Chlo iske lund ne kuchh karname toh kiye, ab iske lund ke devi rupa rani iski bhedi banti hain ya wo lund pe laat marti hain.... Aaaj rup ke chand toh kisi B-grade movie ke C-grade villain ke tarah apna sara plan usse suna raha tha jaise pandit path sunata hain,, sale ko aise chhor diya, jaroor yeh phir se pith pechhe waar karega, ghayal naag ucchal ke lund pe hi katega..,

Bara niyati ka path padha raha hain, maiya chod ke kehta hain honi thee ho gaya, betichod bara harami hai,,,, ab bhi suthar ban raha hain kaheen de de...
 

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इस अपडेट में कहानी के आरंभ में हुई घटना में से उठी कई प्रश्नों में से एक का उत्तर मिला की बैभव का फसल रुपचन्द ने जलाई थी पूर्वों मतभेद तथा हाता पाई यों में मिली शिकस्त से रुपचन्द के मन में बैभव के प्रति हिंसा और नफरत के विचार थे और उसी में घी डाला बैभव के कामदेव अवतार जिससे वो हर लड़की को पटा ही लेता था by hook or crook,और उससी रुपचन्द में बैभव के लिए जलन का पैदा होना स्वाभाविक है,मगर जब रुपचन्द ने मुरारी और साहूकारों से ली गई करज के बारे में पता चल तो उसी में रुपचन्द को बैभव को शिकस्त देने के उम्मीद मिली और सोने पे सुहागा तब हुआ जब मुरारी के हत्या के आरोप बैभव पे लगे,खैर उसने योजना बनाकर मुरारी की बीवी और बेटी को अपने जाल में फांस लिया,अभी जेहन में एक सवाल आ रहा है अगर रुपचन्द हमेशा बैभव का पीछा कर रहा था तो उसको मुरारी के हत्या के बारे में पता हो कहीं ऐसा तो नहीं अंधेरे में बैभव को धक्का देने वाला वही हो,खैर सवाल कई हैं जो आगे चल के पता चल ही जाएगी .
Shukriya bhai is khubsurat sameeksha ke liye,,,,:hug:
Murari ki hatya me sawaal kayi hain lekin un sawaalo ka jawaab dheere dheere milta rahega. Khair sath bane rahiye,,,,:dost:
 

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Vaibhav .. kya baat hai .. naam to bada soch samajh ke likhe ho 'masoom lekhak' :hehe: ...
Soch samajh kar to nahi rakha tha maine, bas jo naam zahen me aaya usi ko final kar diya tha,,,,:D
yo chora to chok-kha Vaibhav badha raha hai apne baap bade thakur ka .. waise ye baat aaj vaibhav se murari ne bahut khoob he kahi ki koi bhi kisi ki madad bina matlab ke nahi karta .. hamesha uske peeche koi na koi arth, matlab ya mansha chuppi hoti hai .. waise Murari ki kya mansha hai ye wo shayad batane wala tha .. agar Vaibhav aag-babula hokar jungle ki aur prasthaan na karta ...
Murari ki mansha next update me aapko pata chal jayegi,,,,:declare:
shayad ab kahani mein raaz ujaagar hone ka samay aa chuka hai .. ab shayad Vaibhav ke saath-saath humein bhi jhatke milne waale hai ...
Abhi itna jaldi kaha, abhi to bhumika ban rahi hai kahani ki,,,,:D
waise sharab se yaad aaya .. wo 'Kayakalp' ko shuru karne ka kya hua .. waise shayad maine forum par kisi aur lekhak ke dwaara bhi 'kayakalp' naam ki kahani ka title padha hai .. kya wo aapki he kahani hai ya fir uski apni ...
Abhi to new stories likhne me maza aa raha hai firefox bhai. Kuch alag alag likhne ka man kar raha hai is liye abhi isi me man laga hai. Aap sabhi ka sath bana raha to kaayakalp ko bhi shuru karenge,,,,:D

Ji haan story section me kayakalp naam se ek aur story running hai. Shuru me jab maine dekha tha to socha meri kahani kisne shuru kar di. Fir pata chala ki wo story alag hai. Meri wali story to private area me araam farma rahi hai,,,,:lol1:
 

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बहुत ही शानदार अपडेट है । आखिरकार वैभव की फसल जलाने वाले का पता तो चल गया । देर सवेर मुरारी काका के हत्यारे का पता भी चल ही जाएगा । परंतू जगताप ठाकुर के साथ साहूकार का बेटा बग्गी में क्या कर रहा था क्या सारे षडयंत्र के पीछे चाचा का ही हाथ तो नही है
Shukriya bhai,,,,:hug:
Dhire dhire saare raaz khulenge bhai. Khair sath bane rahiye,,,,:dost:
 

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वाह वाह सुभम भाई साहब क्या मस्त अपडेट किया है आपने। खुस कर दिया। आखिर पता चल गया कि आग किसने लगाई। अब ज़रा ये भी बता देते की खून किसने किया?
Shukriya bhai,,,,:hug:
Murari ka khoon kisne kiya iska pata itna jaldi kaise chal jaayega bhai,,,, :D
 

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yaha sirf guess kiya tha maine ..
waise chacha ke upar shak hai par waha aur bhi the to ye update padhke rupchandr ke upar bhi shak kiya ..
Update me saaf saaf likha tha ki harishankar ke ghar se wo khud aur uska bada bhai manishankar aur uske dono bete nikle the aur fir sadak par aaye the jaha par unhe vaibhav mil gaya tha. Harishankar ka bada beta maanik aur uska dusra beta roopchandra waha nahi the,,,,,:dazed:
yaha sirf guess kiya ...par ab samajh aaya ki jab hatya huyi tab rupchandr waha nahi tha .
Aisa roopchandra ki baato se zaahir hua tha, baaki sach kya hai ye to abhi parde me hai,,,, :D
 
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Bahut achha update diya he bhai. Lekin yaha vaibhav ko rupchand ko itani asani se nahi jane dena chahiye tha. Jab wo itana dara hua tha to aur dara kar sahukaro ki chaal bhi jaan sakta tha aur ya fir use pakad kar dada takur ke pass le jata aur batata ki kaise usane ek gareeb ladki ka fayda uthana chaha aur kaise usane usaki mehnat ko aag ke havale kar diya.
Shukriya bade bhaiya ji,,,,:hug:
Beshak vaibhav use dara dhamka kar aur bhi torture kar sakta tha aur usse kuch bhi puchh sakta tha lekin use dada thakur ke saamne pesh nahi kar sakta tha kyoki isse uske khud ka ye raaz bhi faas ho jata ki uska Murari kaaka ki biwi ke sath najayaz sambandh tha. Vaibhav aisa nahi kar sakta balki agar use shak hai ki shahukaaro ne hi koi shadyantra racha hai to wo khud is baat ka pata lagana zyada behtar samjhega. Fir bhale hi ye uska moorkhatapoorn faisla ho,,,,:dazed:
Dusari aur jaruri baat yaha vaibhav ko ruchand ki bato se ye bhi pata chal jana chahiye ki wo sab sahukar usaki jaldi gussa ho jane ki is kamjori ko kaise bhunana chah rahe he. Isliye use ab apna jhuta ahankaar chhod kar haveli wapas chale jana chahiye. Isase pehle ki koi bahut badi unhoni ho jaye. Mera ye bhi manana he ki haveli me reh kar hi wo in sab shadyantra ka bhanda fod sakta he. Aur agar wo is story ka hero he to usake man me apne mata pita ke liye kuch to adar dikhao.

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Vaibhav jaisi maansikta wala insaan itna jaldi haar maan kar jhukna pasand nahi karta. Hamari aur aapki nazar me bhale hi ye sab uska jhootha ahankaar lage magar wo aisa nahi samajhta. Yahi vajah hai ki aaj wo aisi situation me hai,,,,:dazed:

Khair dekhiye waqt aur halaat use kaha le jate hain,,, :D
 
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