Sanju@
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bahut hi behtarin updateअध्याय - 44
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अब तक....
"मैंने अच्छी तरह सुना है छोटे ठाकुर।" उसने अजीब सी आवाज़ में कहा____"लेकिन मेरा काम उसके पीछे जा कर उसको खोजना नहीं है बल्कि तुम्हारी सुरक्षा करना है। मैं तुम्हें यहां पर अकेला छोड़ कर कहीं नहीं जाने वाला।"
मैं जानता था कि उसे मेरे पिता जी से ऐसा ही करने का हुकुम मिला था इस लिए गुस्से का घूंट पी कर रह गया। क़रीब दस मिनट बाद शंभू आया। वो बुरी तरह हांफ रहा था। आते ही उसने मुझसे कहा कि पता नहीं वो नकाबपोश कहां गायब हो गया। मुझसे कुछ दूरी पर खड़े जब एक दूसरे नकाबपोश पर उसकी नज़र पड़ी तो वो चौंका। मैंने शंभू को शांत रहने को कहा और ये भी कि वो शीला के घर में जा कर उसके पति को बता दे कि उसकी बीवी का किसी ने क़त्ल कर दिया है।
अब आगे....
मैं थका हुआ सा और कुछ हारा हुआ सा हवेली पहुंचा। शंभू तो मेरे साथ ही बगीचे से आया था लेकिन मेरी सुरक्षा करने वाला वो नकाबपोश जाने कब गायब हो गया था इसका मुझे पता ही नहीं चला था। शीला की इस तरह हत्या हो जाएगी इसकी मुझे ख़्वाब में भी उम्मीद नहीं थी। मेरी नज़र में एक वही थी जो षड्यंत्रकारियों तक मुझे पहुंचा सकती थी लेकिन उसकी हत्या हो जाने से मानों फिर से हमारे लिए मुश्किलें खड़ी हो गईं थी। ख़ैर अब भला क्या हो सकता था।
हवेली में पहुंचा तो देखा धनंजय नाम का दारोगा अपने दो तीन हवलदारों के साथ आया हुआ था। जिस नौकरानी ने ज़हर खा कर खुद खुशी की थी वो उसकी जांच कर चुका था और अब उसे पोस्टमार्टम के लिए भेजने वाला था। कुछ ही देर में उन हवलदारों ने रेखा नाम की उस नौकरानी की लाश को जीप में लादा और दारोगा के आदेश पर चले गए। उनके जाने के बाद दारोगा पिता जी के साथ उस कमरे की तरफ फिर से चल पड़ा था जिस कमरे में रेखा को मेनका चाची ने मृत अवस्था में देखा था। मैं उनके साथ ही था इस लिए देख रहा था कि कैसे वो दारोगा कमरे की बड़ी बारीकी से जांच कर रहा था। कुछ ही देर में उसे कमरे के एक कोने में एक छोटा सा कागज़ का टुकड़ा पड़ा हुआ मिला जिसे उसने एक चिमटी की मदद से बड़ी सावधानी से उठाया और अपनी जेब से एक छोटी सी पन्नी निकाल कर उस कागज़ को उसमें सावधानी से डाल दिया।
जब तक हम सब वापस बैठक में आए तब तक जगताप चाचा भी आ गए थे। उनके साथ में रेखा के घर वाले भी थे जो बेहद ही दुखी लग रहे थे। ज़ाहिर है, जगताप चाचा ने जब उन्हें बताया होगा कि रेखा ने खुद खुशी कर ली है तो वो भीषण सदमे में चले गए होंगे। पिता जी ने रेखा के घर वालों को आश्वासन दिया कि वो इस बात का पता ज़रूर लगाएंगे कि रेखा ने आख़िर किस वजह से खुद खुशी की है? कुछ देर तक पिता जी रेखा के घर वालों को समझाते बुझाते रहे उसके बाद उन्हें ये कह कर वापस अपने घर जाने को कह दिया कि रेखा का मृत शरीर पोस्टमार्टम के बाद जल्दी ही उन्हें मिल जाएगा।
गांव के लोग अच्छी तरह जानते थे कि हम कभी भी किसी के साथ कुछ भी बुरा नहीं करते थे बल्कि हमेशा गांव वालों की मदद ही करते थे। यही वजह थी कि गांव वाले पिता जी को देवता की तरह मानते थे लेकिन आज जो कुछ हुआ था उससे बहुत कुछ बदल जाने वाला था। हवेली में काम करने वाली दो दो नौकरानियों की मौत हो चुकी थी और ये कोई साधारण बात नहीं थी। पूरे गांव में ही नहीं बल्कि आस पास के गांवों में भी ये बात जंगल की आग की तरह फ़ैल जानी थी और इसका सबसे बड़ा प्रभाव ये होना था कि लोगों के मन में हमारे प्रति कई तरह की बातें उभरने लग जानी थी। स्थिति काफी बिगड़ गई थी लेकिन अब जो कुछ हो चुका था उसे न तो बदला जा सकता था और ना ही मिटाया जा सकता था।
ख़ैर पिता जी ने दारोगा को भी ये कह कर जाने को कहा कि वो बाद में उससे मुलाक़ात करेंगे। दरोगा के जाने के बाद बैठक में बस हम तीन लोग ही रह गए। अभी हम सब बैठक में ही बैठे थे कि तभी बड़े भैया के साथ विभोर और अजीत बाहर से अंदर दाखिल हुए। उन्हें रात के इस वक्त हवेली लौटने पर पिता जी तथा जगताप चाचा दोनों ही नाराज़ हुए और उन्हें डांटा भी। वो तीनों उनके डांटने पर सिर झुकाए ही खड़े रहे और जब पिता जी ने अंदर जाने को कहा तो वो चुप चाप चले गए। इधर मैं ये सोचने लगा था कि बड़े भैया ज़्यादातर विभोर और अजीत के साथ ही क्यों घूमते फिरते रहते हैं?
हवेली की दो नौकरानियों की आज मौत हो चुकी थी इस वजह से पूरी हवेली में एक अजीब सी ख़ामोशी छाई हुई थी। पिता जी ने जगताप चाचा से तांत्रिक के बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि उसका किसी ने क़त्ल कर दिया है। पिता जी ये सुन कर स्तब्ध रह गए थे। उसके बाद जगताप चाचा ने पिता जी से पूछा कि कुल गुरु के यहां जाने पर क्या पता चला तो पिता जी ने हमें जो कुछ बताया उससे हम और उलझ गए।
पिता जी के अनुसार ये सच है कि कुल गुरु को डराया धमकाया गया था लेकिन उन्हें डराने धमकाने का काम पत्र के माध्यम से किया गया था। किसी ने उनके पास पत्र में लिख कर अपनी धमकी भेजी थी कि पिता जी को बड़े भैया के बारे में वैसी भविष्यवाणी तो करनी ही है लेकिन विस्तार से ये नहीं बताना है कि उनके बेटे की मौत वास्तव में किस वजह से होगी। पत्र में साफ़ साफ़ धमकी लिखी हुई थी कि अगर उन्होंने ऐसा नहीं किया तो उनके पूरे परिवार को ख़त्म कर दिया जाएगा। पिता जी की ये बातें सुन कर मैं और जगताप चाचा गहरी सोच में पड़ गए थे। कहने का मतलब ये कि कुल गुरु के यहां जाने का भी कोई फ़ायदा नहीं हुआ था। कुल गुरु को खुद भी नहीं पता था कि उन्हें इस तरह की धमकी देने वाला कौन था? अब जब उन्हें ही नहीं पता था तो भला वो पिता जी को क्या बताते?
अभी हम इस बारे में बातें ही कर रहे थे कि हवेली के बाहर पहरे पर खड़ा एक आदमी अंदर आया और उसने बताया कि साहूकारों के घर से दो लोग आए हैं। पिता जी उसकी बात सुन कर बोले ठीक है उन्हें अंदर भेज दो। कुछ ही पलों में साहूकार मणि शंकर अपने बड़े बेटे चंद्रभान के साथ अंदर बैठक में आया। दुआ सलाम के बाद पिता जी ने उन दोनों को पास ही रखी कुर्सियों पर बैठने को कहा तो वो दोनों शुक्रिया कहते हुए बैठ गए।
"क्या बात है पिता और पुत्र दोनों एक साथ इस वक्त हमारे यहां कैसे?" पिता जी ने शालीनता से किंतु हल्की मुस्कान के साथ कहा।
"गांव के एक दो हिस्सों में रोने धोने की आवाज़ें सुनाई दी थीं ठाकुर साहब।" मणि शंकर ने कहा____"पूछने पर पता चला कि आपकी हवेली में दो दो नौकरानियों की अकस्मात मौत हो गई है इस वजह से उन दोनों नौकरानियों के घरों में ये मातम का माहौल छा गया है। ये ख़बर ऐसी थी कि मुझे यकीन ही नहीं हुआ, पर कई लोगों का यही कहना था इस लिए यहां आने से खुद को रोक नहीं सका। मुझे एकदम से चिंता हुई कि आख़िर ऐसा कैसे हो गया आपके यहां?"
"सब उस ऊपर वाले की माया है मणि शंकर जी।" पिता जी ने कहा____"कब किसके साथ क्या हो जाए ये कौन जानता है भला? हम सब तो किसी काम से बाहर गए हुए थे। शाम को जब वापस आए तो इस सबका पता चला। हमें ख़ुद समझ नहीं आ रहा कि आख़िर ऐसा कैसे हो गया? ख़ैर ये सब कैसे हुआ है इसका पता ज़रूर लगाएंगे हम। आज से पहले ऐसा कभी नहीं हुआ कि हवेली में काम करने वाली किसी नौकरानी की इस तरह से मौत हुई हो।"
"आते समय गांव के कुछ लोगों से पता चला कि एक नौकरानी ने हवेली में ज़हर खा कर खुद खुशी कर ली थी।" मणि शंकर ने कहा____"और एक नौकरानी के बारे में उन लोगों ने बताया कि शाम को देवधर की बीवी शीला की किसी ने हत्या कर दी है। ये भी पता चला कि उसकी लाश आपके ही बगीचे में पड़ी मिली थी।"
"सही कहा।" पिता जी ने गंभीरता से कहा____"शाम को वैभव उसकी खोज में उसके घर गया था। असल में वो समय से पहले ही हवेली से चली गई थी। हम जानना चाहते थे कि आख़िर ऐसी क्या बात हो गई थी जिसके चलते वो बिना किसी को कुछ बताए ही यहां से चली गई थी? वैभव ने उसके पति से उसके बारे में पूछा था, उसके बाद ये जब उसकी खोज में आगे गया तो हमारे ही बगीचे में इसे उसकी लाश मिली। हमारे लिए ये बड़ी ही हैरानी की बात है कि एक ही दिन में हमारी हवेली में काम करने वाली दो दो नौकरानियों की इस तरह कैसे मौत हो सकती है? ख़ैर, इस सनसनीखेज़ माजरे का पता तो निश्चय ही करना पड़ेगा। हमें दुख इस बात का है कि दोनों के घर वालों पर अकस्मात ही इतनी भारी विपत्ति आ गई है।"
"मैं भी यही चाहता हूं ठाकुर साहब कि इसका जल्द से जल्द पता लगाया जाए।" मणि शंकर ने गहरी सांस लेते हुए कहा____"क्योंकि ये जो कुछ भी हुआ है बिलकुल भी ठीक नहीं हुआ है। लोग हम पर भी उंगली उठाएंगे। वो यही सोचेंगे कि इस सबके जिम्मेदार हम ही होंगे क्योंकि हम हमेशा आपसे मन मुटाव रखते थे। ठाकुर साहब, हमारे बीच पहले कैसे संबंध थे इस बात को हम और आप दोनों ही भूल चुके हैं और इसी लिए हमने हमारे बीच एक अच्छे रिश्ते का आधार स्तंभ खड़ा किया है। मैं किसी भी कीमत पर ये नहीं चाहता कि हमारे बीच किसी और की वजह से फिर से कोई मन मुटाव हो जाए।"
"इस बात से आप बेफ़िक्र रहें मणि शंकर जी।" पिता जी ने कहा____"हम भी समझते हैं कि इस हादसे के बाद लोगों के जहन में कैसे कैसे ख़्याल उभर सकते हैं। हमें लोगों के ख़्यालों से कोई मतलब नहीं है बल्कि उस सच्चाई से मतलब है जिसके तहत हवेली में काम करने वाली दो दो नौकरानियों की मौत हो गई है। हम उन दोनों की मौत की असल वजह का पता ज़रूर लगाएंगे।"
"मैं यही सब सोच कर इस वक्त यहां आया था ठाकुर साहब।" मणि शंकर ने कहा____"सच कहूं तो मेरे मन में ये ख़्याल भी उभर आया था कि कहीं आप भी ना इस हादसे के लिए हम पर शक करने लगें। अभी अभी तो हमारे बीच अच्छे संबंध बने हैं और अगर किसी ग़लतफहमी की वजह से हमारे संबंधों में फिर से दरार पड़ गई तो सबसे ज़्यादा तकलीफ़ मुझे ही होगी।"
"आप इस बात से निश्चिंत रहें मणि शंकर जी।" पिता जी ने कहा____"हम अच्छी तरह जानते हैं कि आप ऐसा कुछ करने का सोच भी नहीं सकते हैं। ख़ैर, छोड़िए इन बातों को और चलिए साथ में बैठ कर भोजन करते हैं। अभी हम में से भी किसी ने भोजन नहीं किया है।"
"शुक्रिया ठाकुर साहब।" मणि शंकर ने मुस्कुराते हुए कहा____"पर हम तो भोजन कर चुके हैं। आप लोग भोजन कीजिए, और अब हमें जाने की इजाज़त भी दीजिए।"
पिता जी ने एक दो बार और मणि शंकर से भोजन के लिए कहा लेकिन उसने ये कह कर इंकार कर दिया कि फिर किसी दिन। उसके बाद मणि शंकर अपने बेटे चंद्रभान के साथ दुआ सलाम कर के चला गया। इस हादसे के बाद भोजन करने की इच्छा तो किसी की भी नहीं थी लेकिन थोड़ा बहुत खाया ही हमने। मेरे ज़हन में बस यही बातें गूंज रहीं थी कि मणि शंकर आख़िर किस इरादे से हमारे यहां आया था? उसने जो कुछ हमारे संबंधों के बारे में कहा था क्या वो सच्चे दिल से कहा था या फिर सच में ही उसका इस मामले में कोई हाथ हो सकता है? क्या उसकी मंशा ये थी कि यहां आ कर अपनी सफाई दे कर वो अपना पक्ष सच्चा कर ले ताकि हमारा शक उस पर न जाए?
मैंने पिता जी की तरफ देखते हुए कुछ कहना ही चाहा था कि उन्होंने इशारे से ही मुझे चुप रहने को कहा। मुझे ये थोड़ा अजीब तो लगा किन्तु जल्दी ही मुझे समझ आ गया कि वो शायद जगताप चाचा की मौजूदगी में कोई बात नहीं करना चाहते थे। ख़ैर उसके बाद हमने खाना खाया और अपने अपने कमरों में सोने के लिए चल दिए।
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पता नहीं उस वक्त रात का कौन सा प्रहर था किंतु नींद में ही मुझे ऐसा आभास हुआ मानों कहीं से कोई आवाज़ आ रही हो। मेरी नींद में खलल पड़ चुका था। नींद टूटी तो मैंने आखें खोल कर चारो तरफ देखा। कमरे में बिजली का मध्यम प्रकाश था और छत के कुंडे पर लटक रहा पंखा मध्यम गति से चल रहा था। मैं समझने की कोशिश करने लगा कि आवाज़ किस चीज़ की थी? तभी फिर से हल्की आवाज़ हुई। रात के सन्नाटे में मेरे कानों ने फ़ौरन ही आवाज़ का पीछा किया। आवाज़ दरवाज़े की तरफ से आई थी। ज़हन में ख़्याल उभरा कि कमरे के बाहर ऐसा कौन हो सकता है जो इस तरह से दरवाज़ा थपथपा रहा है?
मैं सतर्कता से पलंग पर उठ कर बैठ गया। पूरी हवेली में सन्नाटा छाया हुआ था और मैं ये समझने की भरपूर कोशिश कर रहा था कि रात के इस वक्त कौन हो सकता है? मन में सवाल उभरा, क्या मेरा कोई दुश्मन हवेली में घुस आया है लेकिन अगर ऐसा होता तो वो मेरे कमरे का दरवाज़ा क्यों थपथपाता? मेरा दुश्मन तो पूरी ख़ामोशी अख़्तियार कर के ही मुझ तक पहुंचने की कोशिश करता। ज़ाहिर है ये जो कोई भी है वो मेरा दुश्मन नहीं हो सकता, बल्कि कोई ऐसा है जो इस वक्त किसी ख़ास वजह से मुझ तक पहुंचना चाहता है। ये सोच कर एक बार फिर से मैं सोचने लगा कि ऐसा कोई व्यक्ति कौन हो सकता है?
मैं ये सोच ही रहा था कि दरवाज़े को फिर से हल्की आवाज़ में थपथपाया गया। इस बार चुप रहना ठीक नहीं था, अतः मैं बड़ी ही सावधानी से पलंग से नीचे उतरा। दरवाज़े के क़रीब पहुंच कर मैंने बड़े आहिस्ता से और बड़ी ही सतर्कता से दरवाज़े को खोला। मेरे दिल की धड़कनें अनायास ही तीव्र गति से चलने लगीं थी। ख़ैर, जैसे ही मैंने दरवाज़ा खोला तो बाहर नीम अंधेरे में खड़े जिस शख़्स पर मेरी नज़र पड़ी उसे देख कर मैं बुरी तरह हैरान रह गया।
बाहर पिता जी खड़े थे। अपने पिता यानी दादा ठाकुर को रात के इस वक्त अपने कमरे के दरवाज़े के बाहर इस तरह से आया देख मेरा हैरान हो जाना लाज़मी था। ऐसा पहले कभी नहीं हुआ था कि पिता जी मेरे कमरे में रात के वक्त इस तरह से आए हों। ख़ैर मैंने उन्हें अंदर आने का रास्ता दिया तो वो ख़ामोशी से ही अंदर आ गए। मैंने दरवाज़े को वापस बंद किया और पलट कर उनकी तरफ देखा। वो जा कर पलंग पर बैठ चुके थे। अपने पिता को अपने कमरे में आया देख मेरी धड़कनें तेज़ हो गईं थी और साथ ही ज़हन में कई तरह के ख़्याल भी उभरने लगे थे।
"बैठो।" पिता जी ने धीमें स्वर में मुझे हुकुम सा दिया तो मैं ख़ामोशी से आगे बढ़ कर पलंग पर उनसे थोड़ा दूर बैठ गया। अब तक मैं ये समझ गया था कि कोई बेहद ज़रूरी और गंभीर बात ज़रूर है जिसके चलते पिता जी मेरे कमरे में रात के इस वक्त आए हैं।
"हम जानते हैं कि हमारे इस वक्त यहां आने से तुम्हारे मन में कई तरह के सवाल उभर आए होंगे।" पिता जी ने जैसे भूमिका बनाते हुए कहा_____"लेकिन क्योंकि हालात ही कुछ ऐसे हैं कि हमें रात के इस वक्त इस तरह से यहां पर आना पड़ा।"
"जी, मैं समझता हूं पिता जी।" मैंने उनकी तरह ही धीमें स्वर में कहा_____"अब तक तो मैं भी इतना समझ चुका हूं कि जो कोई भी हमारे साथ ये सब कर रहा है वो बहुत ही शातिर है। वो इतना शातिर है कि अब तक हर क़दम पर हम उसके द्वारा सिर्फ मात ही खाते आए हैं। हमें अगर कहीं से उससे ताल्लुक रखता कुछ भी पता चलता है तो वो उस जड़ को ही ख़त्म कर देता है जिसके द्वारा हमें उस तक पहुंचने की संभावना होती है। इससे एक बात तो साबित हो चुकी है कि उसे हमारे हर क्रिया कलाप की पहले से ही ख़बर हो जाती है और ऐसा तभी हो सकता है जब उस तक ख़बर पहुंचाने वाला कोई हमारे ही बीच में मौजूद हो।"
"तुमने बिल्कुल सही कहा।" पिता जी ने गंभीर भाव से कहा____"आज जो कुछ भी हुआ है उससे हमें भी ये बात समझ आ गई है। निश्चित तौर पर हमारे उस दुश्मन का कोई भेदिया हमारे ही बीच मौजूद है, ये अलग बात है कि हम उस भेदिए को फिलहाल पहचान नहीं पाए हैं। तुमने मुरारी के भाई जगन के द्वारा उस तांत्रिक का पता लगवाया लेकिन जब तुम लोग उस तांत्रिक के पास पहुंचे तो वो तांत्रिक स्वर्ग सिधार चुका था। ये कोई इत्तेफ़ाक़ नहीं है कि हम उसके पास पहुंचते हैं और वो उससे पहले ही किसी के द्वारा कत्ल किया हुआ पाया जाता है। ज़ाहिर है कि हमारे दुश्मन को पहले ही पता चल चुका था कि हमें उसकी करतूत पता चल गई है जिसके चलते हम उस तांत्रिक के पास पहुंच कर उसके बारे में मालूमात करेंगे, किंतु ऐसा न होने पाए इस लिए हमारे दुश्मन ने पहले ही उस तांत्रिक को मार दिया। अब सवाल ये है कि हमारे दुश्मन को ये कैसे पता चला कि हमें उसकी करतूत के बारे में पता चल चुका है, जिसके लिए उसे फ़ौरन ही उस तांत्रिक का काम तमाम कर देना चाहिए? क्या जगन उसका भेदिया हो सकता है? क्या उसी ने इस बारे में हमारे दुश्मन को बताया होगा? लेकिन हमें नहीं लगता कि जगन ने ऐसा किया होगा या फिर ये कहें कि वो भेदिया हो सकता है क्योंकि हमारे हर क्रिया कलाप की दुश्मन तक ख़बर पहुंचाना उसके बस का नहीं हो सकता। ऐसा काम तो वही कर सकता है जो हमारे क़रीब ही रहता हो, जबकि जगन कभी हवेली नहीं आया और ना ही उससे हमारा कभी मिलना जुलना रहा था।"
"तो क्या लगता है आपको?" मैंने गहरी सांस लेते हुए धीमें स्वर में कहा____"इस तरह का भेदिया कौन हो सकता है जो हमारी पल पल की ख़बर हमारे दुश्मन तक पहुंचा सकता है? वैसे आप जगन के बारे में इतना जल्दी इस निष्कर्ष पर कैसे पहुंच सकते हैं कि वो हमारे दुश्मन का भेदिया नहीं हो सकता? मेरा मतलब है कि ज़रूरी नहीं कि हमारे बीच की ख़बर प्राप्त करने के लिए उसे हमारे बीच ही मौजूद रहना पड़े। किसी और तरीके से भी तो वो हमारे क्रिया कलापों की ख़बर प्राप्त कर सकता है।"
"कहना क्या चाहते हो?" पिता जी के माथे पर सहसा बल पड़ गया था।
"यही कि जगन ऐसा भेदिया हो सकता है जिसे किसी अन्य भेदिए के द्वारा हमारी ख़बरें दी जाती होंगी।" मैंने बेहद संतुलित भाव से कहा____"यानि कि एक भेदिया वो होगा जो हमारे बीच मौजूद रहता है और यहां की ख़बरों को वो अपने दूसरे साथी भेदिए जगन के द्वारा हमारे दुश्मन तक बड़ी ही सावधानी से पहुंचा देता होगा।"
"हां, ऐसा भी हो सकता है।" पिता जी ने मेरी तरफ देखते हुए कहा____"तुम्हारे इस तर्क़ को हम इस लिए मान रहे हैं क्योंकि अब तक जिस तरह से हमारे शातिर दुश्मन ने कारनामें किए हैं उससे इस बात को स्वीकार करने में हमें कोई झिझक नहीं है। ख़ैर अब सोचने वाली बात ये है कि जगन जैसा व्यक्ति हमारे खिलाफ़ हो कर किसी और के लिए ऐसा काम क्यों करेगा?"
"ज़ाहिर है किसी मज़बूरी की वजह से।" मैंने सोचने वाले भाव से कहा_____"या फिर धन के लालच की वजह से। वैसे मेरा ख़्याल यही है कि वो इन दोनों ही वजहों से ऐसा काम कर सकता है। मज़बूरी ये हो सकती है कि वो किसी के कर्ज़े तले दबा होगा और धन का लालच इस लिए कि उसकी आर्थिक स्थिति ज़्यादा ठीक नहीं है।"
"यानि हम ये कह सकते हैं कि जगन हमारे दुश्मन का भेदिया हो सकता है।" पिता जी ने कहा____"फिर भी अपने शक की पुष्टि के लिए ज़रूरी है कि उस पर नज़र रखी जाए, लेकिन कुछ इस तरीके से कि उसे अपनी नज़र रखे जाने का ज़रा भी शक न हो सके।"
मैं पिता जी की बातों से पूर्णतया सहमत था इस लिए ख़ामोशी से सिर हिला दिया। कहीं न कहीं मैं भी इस बात को समझ रहा था कि जगन ने ऐसा काम यकीनन किया जो सकता है। मुरारी की हत्या के बाद अब उसकी ज़मीन जायदाद को कब्जा लेने का भी अगर वो सोच ले तो ये कोई हैरत की बात नहीं हो सकती थी। इसके लिए अगर उसे किसी की सरपरस्ती मिली होगी तो यकीनन वो इससे पीछे हटने का नहीं सोचेगा। ख़ैर, मेरे जहन में इस संबंध में और भी बातें थी इस लिए इस वक्त मैं पिता जी से उस सबके बारे में भी विचार विमर्श कर लेना चाहता था।
"मुंशी चंद्रकांत के बारे में आपका क्या ख़्याल है?" कुछ सोचते हुए मैंने पिता जी से कहा____"बेशक उसके बाप दादा हवेली और हवेली में रहने वालों के प्रति पूरी तरह से वफ़ादार रहे हैं लेकिन क्या मुंशी चंद्रकांत भी अपने बाप दादाओं की तरह हमारे प्रति वफ़ादार हो सकता है?"
"बेशक, वो वफ़ादार है।" पिता जी ने कहा____"हमें कभी भी ऐसा आभास नहीं हुआ जिससे कि हम ये सोच सकें कि वो हमसे या हमारे परिवार के किसी भी सदस्य से नाखुश हो। हम आज भी कभी कभी उसकी गैरजानकारी में उसकी वफ़ादारी की परीक्षा लेते हैं और परिणाम के रूप में हमने हमेशा यही पाया है कि वो अपनी जगह पर पूरी तरह सही है और हवेली के प्रति पूरी तरह वफ़ादार भी है।"
"संभव है कि वो इस हद तक चालाक हो कि उसे हमेशा आपकी परीक्षा लेने वाली मंशा का आभास हो जाता हो।" मैंने तर्क़ किया____"और वो उस समय पर पूरी तरह से ईमानदार हो जाता हो ताकि वो आपकी परीक्षा में खरा उतर सके।"
"चलो मान लेते हैं कि वो इतना चालाक होगा कि वो हमेशा परीक्षा लेने वाली हमारी मंशा को ताड़ जाता होगा।" पिता जी ने कहा____"लेकिन अब तुम ये बताओ कि वो हमारे खिलाफ़ ऐसा कुछ करेगा ही क्यों? आख़िर हमने उसका ऐसा क्या बुरा किया है जिसके चलते वो हमसे इतनी भारी दुश्मनी निभाने पर तुल जाएगा?"
"संभव है कि हमारे द्वारा उसके साथ कुछ तो ऐसा बुरा हो ही गया हो।" मैंने कहा____"जिसका कभी हमें एहसास ही ना हुआ हो जबकि वो हमें अपना दुश्मन समझने लगा हो?"
"ये सिर्फ ऐसी संभावनाएं हैं।" पिता जी ने गहरी सांस लेते हुए कहा____"जिनमें कोई वास्तविकता है कि नहीं इस पर पूरी तरह संदेह है।"
"बेशक है।" मैंने कहा____"पर संभावनाओं के द्वारा ही तो हम किसी निष्कर्ष पर पहुंचेंगे। वैसे अगर मैं ये कहूं कि मुंशी चंद्रकांत का संबंध गांव के साहूकारों से भी हो सकता है तो इस बारे में आप क्या कहेंगे?"
"ऐसा संभव नहीं है।" पिता जी ने कहा____"क्योंकि गांव के साहूकारों से हमेशा ही उसके ख़राब संबंध रहे हैं। जिन साहूकारों ने जीवन भर उसे सिर्फ दुख ही दिया हो वो उन्हीं को अपना मित्र कैसे बना लेगा?"
"गांव के साहूकारों से उसका ख़राब संबंध आपको और दुनिया वालों को दिखाने के लिए भी तो हो सकता है।" मैंने फिर से तर्क़ किया____"जबकि असल बात ये हो कि उनके बीच गहरा मैत्री भाव हो। ऐसा भी हो सकता है कि हमारी तरह साहूकारों ने मुंशी से भी अपने संबंध सुधार लिए हों और अब वो उनके साथ मिल कर हमारे खिलाफ़ कोई खेल खेल रहा हो।"
"अगर ऐसा कुछ होता।" पिता जी ने कहा____"तो कभी न कभी हमारे आदमियों को ज़रूर उस पर संदेह होता। अब तक ऐसा कुछ भी नज़र नहीं आया है तो ज़ाहिर है कि उसका साहूकारों से कोई ताल्लुक नहीं है।"
"चलिए मान लेता हूं कि वो ऐसा नहीं हो सकता।" मैंने ख़ास भाव से कहा____"लेकिन आप भी ये समझते हैं कि पहले में और अब में ज़मीन आसमान का फ़र्क हो गया है। पहले हम मुंशी के प्रति इतने सजग नहीं थे क्योंकि पहले कभी ऐसे हालात भी नहीं थे किंतु अब हैं और इस लिए अब हमें हर उस व्यक्ति की जांच करनी होगी जिसका हमसे ज़रा सा भी संबंध है।"
"मौजूदा समय में जिस तरह के हालात हैं।" पिता जी ने कहा____"उसके हिसाब से यकीनन हमें मुंशी पर भी खास तरह से निगरानी रखनी ही होगी।"
"दोनों नौकरानियों की मौत के बाद" मैंने पिता जी की तरफ देखते हुए कहा____"मणि शंकर का अपने बेटे के साथ उसी समय हमारी हवेली पर यूं टपक पड़ना क्या आभास कराता है आपको? रात को उसने उन दोनों की मौत हो जाने से उस संबंध में जो कुछ कहा क्या आप उसकी बातों से इत्तेफ़ाक़ रखते हैं?"
"उन दोनों नौकरानियों की मौत के संबंध में उसने जो कुछ कहा उससे उसका यही मतलब था कि उसका उस कृत्य से या उस हादसे से कोई संबंध नहीं है।" पिता जी ने सोचने वाले भाव से कहा____"यानि वो चाहता है कि हम किसी भी तरीके से उस पर इस हादसे के लिए शक न करें। हालाकि अगर उसका उन दोनों नौकरानियों की मौत में कोई हाथ भी होगा तब भी हमारे पास ऐसा कोई सबूत नहीं है जिससे हम ये पक्के तौर पर कह सकें कि उन दोनों की हत्या उसी ने की है अथवा करवाई है।"
"चोर की दाढ़ी में तिनका वाली बात भी तो हो सकती है पिता जी।" मैंने कहा____"इस हादसे के संबंध में हमारे पास कोई सबूत नहीं है ये बात सिर्फ़ हम जानते हैं किंतु वो इस बारे में पूरी तरह आस्वस्त नहीं होगा। संभव है कि उसे शक हो कि हमारे पास ऐसा कोई सबूत हो इस लिए उसने खुद ही आ कर इस संबंध में अपनी सफाई देना अपनी बुद्धिमानी समझी। या ये भी हो सकता है कि उसने यहां आ कर यही जानने समझने की कोशिश की हो कि इस हादसे के बाद उसके प्रति हमारे कैसे विचार हैं?"
"संभव है कि ऐसा ही हो।" पिता जी ने कुछ सोचते हुए कहा____"किंतु ये बात तो सत्य ही है कि हमारे पास इस हादसे के संबंध में कोई सबूत नहीं है और ना ही हम पक्के तौर पर ये कह सकते हैं कि ऐसा किसने किया होगा?"
"क्या आप ये मानते हैं कि हमारी हवेली में उन दोनों नौकरानियों को रखवाने वाले साहूकार हो सकते हैं?" मैंने पिता जी की तरफ गौर से देखते हुए कहा____"और क्या आपको ये भी शक है कि हमारे खिलाफ़ षडयंत्र करने वाले गांव के ये साहूकार ही होंगे?"
"क्या फ़र्क पड़ता है?" पिता जी ने मानों बात को टालने की गरज से कहा____"शक होगा भी तब भी क्या हो जाएगा? हमारे पास ऐसा कोई सबूत तो है ही नहीं।"
"यानि आप ये मानते हैं कि हमारे खिलाफ़ षडयंत्र करने वाले गांव के ये साहूकार ही हो सकते हैं?" मैंने फिर से उनकी तरफ गौर से देखा।
"किसी और से हमारी कोई दुश्मनी ही नहीं है।" पिता जी ने कहा____"जब से हमने होश सम्हाला है तब से हमने यही देखा है कि गांव के साहूकारों के अलावा बाकी सबसे हमारे अच्छे संबंध रहे हैं। हमसे पहले बड़े दादा ठाकुर के समय में भी यही हाल था। ये अलग बात है कि उनकी सोच में और हमारी सोच में काफ़ी फ़र्क है। जब तक वो थे तब तक दूर दूर तक लोगों के मन में उनके प्रति ऐसी दहशत थी कि कोई भी व्यक्ति उनके खिलाफ़ जाने का सोच भी नहीं सकता था। उनके बाद जब हमने दादा ठाकुर का ताज पहना तो हमने अपनी सोच के अनुसार लोगों के मन से उनकी उस छवि को दूर करने की ही कोशिश की। हमें ये बिलकुल पसंद नहीं था कि लोगों के अंदर हमारे प्रति बड़े दादा ठाकुर जैसी दहशत हो बल्कि हमने हमेशा यही कोशिश की है कि लोग बेख़ौफ हो कर हमारे सामने अपनी बात रखें और हम पूरे दिल से उनकी बातें सुन कर उनका दुख दूर करें। ख़ैर तो हमारे कहने का यही मतलब है कि हमारी कभी किसी से ऐसी कोई दुश्मनी नहीं हुई जिसके चलते कोई हमारे खिलाफ़ इस तरह का षडयंत्र करने लगे। गांव के साहूकारों से भी हमारा ऐसा कोई झगड़ा नहीं रहा है। ये अलग बात है कि उनकी बुरी करनी के चलते ही हमें कई बार उनके खिलाफ़ ही पंचायत में फ़ैसला सुनाना पड़ा है। अब अगर वो सिर्फ इसी के चलते हमें अपना दुश्मन समझने लगे हों तो अलग बात है।"
"जैसा कि आपने बताया कि आपके पहले बड़े दादा ठाकुर की दहशत थी लोगों के अंदर।" मैंने सोचने वाले अंदाज़ से कहा____"तो क्या ये नहीं हो सकता कि बड़े दादा ठाकुर के समय में कभी ऐसा कुछ हुआ हो जिसका नतीजा आज हमें इस रूप में देखने को मिल रहा है? आपने एक बार बताया था कि गांव के साहूकारों से हमारे संबंध बहुत पहले से ही ख़राब रहे हैं तो ज़ाहिर है कि इन ख़राब संबंधों की वजह इतनी मामूली तो नहीं हो सकती। संभव है कि बड़े दादा ठाकुर के समय में इन लोगों में इतनी हिम्मत न रही हो कि ये उनके खिलाफ़ कुछ कर सकें किंतु अब उनमें यकीनन ऐसी हिम्मत है।"
"पिता जी के समय का दौर ही कुछ अलग था।" पिता जी ने गहरी सांस ले कर कहा____"हर तरफ उनकी तूती बोलती थी। यह तक कि शहर के मंत्री लोग भी हवेली में आ कर उनके पैरों के नीचे ही बैठते थे। उनकी दहशत का आलम ये था कि हम दोनों भाई कभी भी उनकी तरफ सिर उठा कर नहीं देखते थे। गांव के ये साहूकार उन्हें देख कर जूड़ी के मरीज़ की तरफ कांपते थे। ख़ैर, हमारे संज्ञान में तो ऐसा कोई वाक्या नहीं है जिसके चलते हम ये कह सकें कि उनके द्वारा गांव के साहूकारों का क्या अनिष्ट हुआ था जिसका बदला लेने के लिए वो आज इस तरह से हमारे खिलाफ़ षडयंत्र कर रहे होंगे।"
"मुझे तो अब यही लग रहा है कि अगर गांव के साहूकार ही ये सब कर रहे हैं तो ज़रूर इस दुश्मनी के बीज बड़े दादा ठाकुर के समय पर ही बोए गए थे।" मैंने गंभीरता से कहा____"किंतु एक बात समझ नहीं आ रही और वो ये कि हमारा दुश्मन उस रेखा नाम की नौकरानी के द्वारा आपके कमरे से कागज़ात क्यों निकलवाना चाहता था? भला उसका कागज़ात से क्या लेना देना?"
"यही तो सब बातें हैं जो हमें सोचने पर मजबूर किए हुए हैं।" पिता जी ने कहा_____"मामला सिर्फ़ किसी का किसी से दुश्मनी भर का नहीं है बल्कि मामला इसके अलावा भी कुछ है। साहूकार लोग अगर हमसे अपनी किसी दुश्मनी का बदला ही लेना चाहते हैं तो ज़्यादा से ज़्यादा वो हमें और हमारे खानदान को ख़त्म कर देने का ही सोचेंगे। उनका हमारे कागज़ातों से कोई लेना देना नहीं हो सकता।"
"लेना देना क्यों नहीं हो सकता पिता जी?" मैंने संतुलित भाव से कहा____"ज़ाहिर है हमारे ख़त्म हो जाने के बाद हमारी सारी ज़मीन जायदाद लावारिश हो जाएगी, इस लिए वो चाहते होंगे कि हमारे बाद हमारा सब कुछ उनका हो जाए।"
"हां ऐसा भी हो सकता है।" पिता जी ने कुछ सोचते हुए हामी भरी।
"वैसे क्या आपने भी एक बात पर गौर किया है?" मैंने उनकी तरफ देखा तो उन्होंने सिर उठा कर मुझे देखा और पूछा____"कौन सी बात पर?"
"यही कि हमारा जो भी दुश्मन है।" मैंने अपने शब्दों पर ज़ोर देते हुए कहा____"उसने अब तक सिर्फ़ और सिर्फ़ हम दोनों भाईयों को ही अपना शिकार बनाने की कोशिश की है। यदि इसे स्पष्ट रूप से कहूं तो वो ये है कि उसने आपके बेटों को ही मौत के मुंह तक पहुंचाने की कोशिश की है जबकि जगताप चाचा के दोनों बेटों में से किसी पर भी आज तक किसी प्रकार की आंच तक नहीं आई है। आपकी नज़र में इसका क्या मतलब हो सकता है?"
"यकीनन, हमने तो इस तरफ ध्यान ही नहीं दिया था।" पिता जी के चेहरे पर एकाएक चौंकने वाले भाव उभर आए थे, बोले____"तुम बिलकुल सही कह रहे हो। अभी तक हमारे दुश्मन ने सिर्फ़ हमारे बेटों को ही नुकसान पहुंचाने की कोशिश की है। इससे यही ज़ाहिर होता है कि हमारा दुश्मन सिर्फ़ हमें और हमारी औलाद को ही अपना दुश्मन समझता है, जबकि जगताप को नहीं।"
"क्या लगता है आपको?" मैंने उनकी तरफ अपलक देखते हुए कहा____"ऐसा क्यों होगा अथवा ये कहें कि ऐसा कैसे हो सकता है? क्या इसका ये मतलब हो सकता है कि जगताप चाचा हमारे दुश्मन से मिले हुए हो सकते हैं या फिर जगताप चाचा ही वो शख़्स हैं जो हमें अपने रास्ते से हटाना चाहते हैं? अगर ऐसा है तो ये भी समझ आ जाता है कि उन्हें कागज़ातों की ज़रूरत क्यों होगी? ज़ाहिर है वो सब कुछ अपने नाम पर कर लेना चाहते हैं, किंतु जब तक आप हैं या आपकी औलादें हैं तब तक उनका अपने मकसद में कामयाब होना लगभग असम्भव ही है।"
मेरी इन बातों को सुन कर पिता जी कुछ न बोले। उनके चेहरे पर कई तरह के भाव गर्दिश करते नज़र आने लगे थे। ऐसा प्रतीत हुआ जैसे वो किसी गहरे समुद्र में डूब गए हों। कुछ पलों तक तो मैं उनकी तरफ से किसी प्रतिक्रिया का इंतज़ार करता रहा किन्तु जब वो सोच में ही डूबे रहे तो मैंने उनका ध्यान भंग करते हुए कहा____"क्या अभी भी आप उन्हें त्रेता युग के भरत या लक्ष्मण समझते हैं जो अपने बड़े भाई को ही अपना सब कुछ समझते हैं और खुद के बारे में किसी भी तरह की चाहत नहीं रखते?"
"हमारा दिल तो नहीं मानता।" पिता जी ने गंभीर भाव से कहा____"लेकिन आज कल हम जिस तरह के हालातों के चक्रव्यूह में फंसे हुए हैं उसकी वजह से हम अपनों पर ही संदेह करने पर मजबूर से हो गए हैं। यही वजह थी कि उस समय बैठक में जगताप की मौजूदगी में हमने तुम्हें चुप रहने का इशारा किया था। हम हमेशा जगताप को त्रेता युग के भरत और लक्ष्मण की तरह ही मानते आए हैं और अब तक हमें इस बात का यकीन भी था कि जगताप जैसा हमारा भाई हमें ही अपना सब कुछ समझता है। हमें हमेशा उसके जैसा भाई मिलने का गर्व भी था लेकिन हमारे लिए ये बड़े ही दुख की बात है कि अब हम अपने उसी भाई पर संदेह करने पर मजबूर हो गए हैं। अगर आने वाले समय में उसके प्रति हमारा ये संदेह मिथ्या साबित हुआ तो हम कैसे अपने उस भाई से नज़रें मिला पाएंगे?"
इतना सब कहते कहते सहसा पिता जी की आवाज़ भारी हो गई। मैंने पहली बार उन्हें इतना भावुक होते देखा था। मेरी नज़र में उनकी छवि एक पत्थर दिल वाले इंसान की थी लेकिन आज पता चला कि वो सिर्फ़ बाहर से ही पत्थर की तरह कठोर नज़र आते थे जबकि अंदर से उनका हृदय बेहद ही कोमल था। मुझे समझ न आया कि उनकी इन बातों के बाद अब मैं क्या कहूं लेकिन मैं ये भी जानता था कि ये समय भावुकता के भंवर में फंसने का हर्गिज़ नहीं था।
"मैं इतना बड़ा तो नहीं हो गया हूं कि आपको समझा सकूं।" फिर मैंने झिझकते हुए कहा____"लेकिन ये तो आप भी अच्छी तरह जानते हैं कि एक अच्छा इंसान कभी भी अपनों के प्रति ऐसी नकारात्मक सोच नहीं रख सकता। हमें वक्त और हालात के आगे मजबूर हो जाना पड़ता है और उसी के चलते हम कुछ ऐसा भी कर गुज़रते हैं जो सामान्य वक्त में हम करने का सोच भी नहीं सकते।"
"हमें खुशी हुई कि जीवन के यथार्थ के बारे में अब तुम इतनी गंभीरता से सोचने लगे हो।" पिता जी ने मेरी तरफ देखते हुए कहा____"तुम्हारे बदले हुए इस व्यक्तित्व के बारे में हम जब भी सोचते हैं तो हमें हैरत होती है। ख़ैर, तो अब हमें न चाहते हुए भी जगताप के क्रिया कलापों पर भी नज़र रखनी होगी।"
"उससे भी पहले कल सुबह हमें बड़े भैया को किसी ऐसे तांत्रिक या झाड़ फूंक करने वाले के पास ले कर जाना होगा।" मैंने कहा____"जो बड़े भैया पर किए गए तंत्र मंत्र का बेहतर इलाज़ कर सके। इस तंत्र मंत्र के प्रभाव की वजह से जाने वो कैसा कैसा बर्ताव करने लगे हैं। एक बात और, मुझे लगता है कि उनकी तरह मुझ पर भी कोई तंत्र मंत्र किया गया है।"
"ये...ये क्या कह रहे हो तुम?" पिता जी मेरी आख़िरी बात सुन कर चौंक पड़े थे, बोले____"तुम्हें ऐसा क्यों लगता है कि तुम पर भी तंत्र मंत्र का प्रयोग किया गया है?"
"पिछले कुछ समय से मुझे एक ही प्रकार का सपना आ रहा है।" मैंने गंभीर भाव से कहा____"आप तो जानते हैं कि हर किसी को कोई न कोई सपना आता ही रहता है लेकिन ऐसा बहुत ही कम होता है कि किसी को एक ही सपना बार बार आए। ज़ाहिर है इसके पीछे कुछ तो वजह होगी ही। मुझे अंदेशा है कि ज़रूर इसके पीछे कोई तंत्र मंत्र वाला चक्कर है।"
"अगर ऐसा है तो यकीनन ये बहुत ही गंभीर बात है।" पिता जी ने गहन विचार के साथ कहा____"हमारा दुश्मन जब हमारा या तुम्हारा कुछ नहीं बिगाड़ पाया तो उसने ऐसे तंत्र मंत्र का सहारा लिया जिसके बारे में हम कल्पना भी नहीं कर सकते थे। ख़ैर, कल सुबह तुम भी अपने बड़े भाई के साथ चलना। तुमने जब हमें अपने बड़े भाई के साथ तंत्र मंत्र की क्रिया होने के बारे में बताया था तब पिछली रात हमें यही सोच सोच कर रात भर नींद नहीं आई थी कि दुनिया में लोग किसी के साथ क्या कुछ कर गुज़रते हैं।"
"दुनिया में ऐसे न जाने कितने ही अजीब लोग भरे पड़े हैं।" मैंने कहा____"जो ऐसी ही मानसिकता वाले हैं। ख़ैर, कल सुबह जब हम यहां से किसी तांत्रिक या झाड़ फूंक करने वाले के पास जायेंगे तो हमें अपनी सुरक्षा का भी ख़ास इंतजाम रखना होगा। संभव है कि अपनी नाकामी से बौखलाया या गुस्साया हुआ हमारा दुश्मन रास्ते में कहीं हम पर हमला करने का न सोचे। दूसरी बात, जगताप चाचा को भी हमें अपने साथ ही ले चलना होगा। ऐसा न हो कि उन्हें किसी तरह का शक हो जाए हम पर।"
"कल शाम उस नौकरानी के साथ क्या हुआ था?" पिता जी ने मेरी तरफ देखते हुए पूंछा____"हम जानना चाहते हैं कि उस नौकरानी के द्वारा हमारा दुश्मन हमारे साथ असल में क्या करवा रहा था?"
"माफ़ कीजिएगा पिता जी।" मैंने इस बार थोड़ा शख़्त भाव से कहा____"इस वक्त इस बारे में मैं आपको कुछ भी नहीं बता सकता लेकिन फ़िक्र मत कीजिए, जल्दी ही इस बारे में आपको सारी बातों से अवगत करा दूंगा।"
पिता जी मेरी बात सुन कर मेरी तरफ एकटक देखने लगे थे। उनके इस तरह देखने से मेरी धड़कनें अनायास ही तेज़ हो गईं थी। ख़ैर, उन्होंने इस बारे में मुझसे कुछ नहीं कहा और फिर वो पलंग से उतर कर चल दिए। दरवाज़े तक मैं उन्हें छोड़ने आया। उनके जाने के बाद मैंने दरवाज़े को अंदर से बंद किया और पलंग पर आ कर लेट गया। मेरे दिलो दिमाग़ में कई सारी बातें चलने लगीं थी। उस दूसरी वाली नौकरानी के सारे चक्कर को मैं अपने तरीक़े से सम्हालना चाहता था। अब समय आ गया था कि अपने दोनों चचेरे भाईयों का हिसाब किताब ख़ास तरीके से किया जाए।
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वैभव की अपने घर वालो पर शक करना जायज है क्युकी जो खिलाड़ी खेल खेल रहा है वो दो कदम आगे है इसका मतलब घर के किसी खास द्वारा उस तक खबर पहुंचाई गई है मणि शंकर अपनी सफाई देने दादा ठाकुर के पास आता है इसका मतलब साहूकार भी इस में मिले हो सकते हैं मुंशी की बहु के संबंध साहूकारों के लड़को से है तो इसकी कोई जो वजह रही होगी ???
मुझे लगता है जगन भी सो सकता है क्युकी तांत्रिक की बात केवल वैभव और जगन को ही पता थी ??????
मुझे लगता है इस काम में साहूकार जगत चाचा मुंशी और जगन अजीत विभोर सब आपस में जुड़े हुए हैं शीला ने ये सब अजीत विभोर के लिए पैसों के लिए किया था तो फिर उसको क्यो मारा वह भी उनसे ही मिली थी उसने सिर्फ थोड़ी सी कहानी बताई थी वैभव को चाय में जो दवाई वैभव को पिलाई जा रही थी वो साहूकारों के लड़के ने दी थी
इन सब से यही लगता है इस साजिश में सब का कुछ न कुछ रोल है क्योंकि एक आदमी पूरी हवेली की और वैभव दादा ठाकुर की खबर नहीं रख सकता है इंतजार है अगले अपडेट का......