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Incest ♡ एक नया संसार ♡ (Completed)

आप सबको ये कहानी कैसी लग रही है.????

  • लाजवाब है,,,

    Votes: 185 90.7%
  • ठीक ठाक है,,,

    Votes: 11 5.4%
  • बेकार,,,

    Votes: 8 3.9%

  • Total voters
    204
  • Poll closed .

TheBlackBlood

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
79,765
117,167
354
awesome update bhai flashback mast jaa raha hai.
शुक्रिया भाई आपकी इस खूबसूरत प्रतिक्रिया के लिए,,,,,
 

TheBlackBlood

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
79,765
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NICE AND FANTASTIC UPDATE BHAI
शुक्रिया भाई आपकी इस खूबसूरत प्रतिक्रिया के लिए,,,,,
 

TheBlackBlood

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
79,765
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AAP ki kahani zabardast hai bus update jaldi diya karen
शुक्रिया भाई आपकी इस खूबसूरत प्रतिक्रिया के लिए,,,,,
 

TheBlackBlood

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
79,765
117,167
354
Esa mat karna bhai lekin flesback ke sath thoda thoda or halchal bhi diya karo last updet aapne pura flesback me hi khatam kardiya or khas bat bhai sabki filings bhi dikhav waiting for next updet
भाई मुझे समझ नहीं आ रहा कि सबकी फीलिंग्स आपको कहाॅ नज़र नहीं आई???
 

TheBlackBlood

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
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354
♡ एक नया संसार ♡
अपडेट...........《 31 》

अब तक,,,,,,,

"तुमको ज़रा भी अंदाज़ा है कि तुमने क्या किया है मेरे साथ?" प्रतिमा ने गुस्से से फुंकारते हुए कहा___"तुम अपने मज़े में ये भी भूल गए कि मेरी जान भी जा सकती थी। तुम इंसान नहीं जानवर हो अजय। आज के बाद मेरे करीब भी मत आना वरना मुझसे बुरा कोई नहीं होगा।"

अजय सिंह उसकी ये बातें सुनकर हैरान रह गया था। किन्तु जब उसे एहसास हुआ कि वास्तव में उसने क्या किया था तो वह शर्मिंदगी से भर गया। वह जानता था कि प्रतिमा वह औरत थी जो उसके कहने पर दुनिया का कोई भी काम कर सकती थी और करती भी थी। ये उसका अजय के प्रति प्यार था वरना कौन ऐसी औरत है जो पति के कहने पर इस हद तक भी गिरने लग जाए कि वह किसी भी ग़ैर मर्द के नीचे अपना सब कुछ खोल कर लेट जाए???? अजय सिंह को अपनी ग़लती का एहसास हुआ। वह तुरंत ही आगे बढ़ कर प्रतिमा से माफी माॅगने लगा तथा उसको पकड़ने के लिए जैसे ही उसने हाथ बढ़ाया तो प्रतिमा ने झटक दिया उसे।

"डोन्ट टच मी।" प्रतिमा गुर्राई और फिर उसी तरह गुस्से में तमतमाई हुई वह बेड से नीचे उतरी और बाथरूम के अंदर जाकर दरवाजा बंद कर लिया उसने। अजय सिंह शर्मिंदा सा उसे देखता रह गया। उसमें अपराध बोझ था इस लिए उसकी हिम्मत न हुई कि वह प्रतिमा को रोंक सके। उधर थोड़ी ही देर में प्रतिमा बाथरूम से मुह हाॅथ धोकर निकली। आलमारी से एक नया ब्लाउज निकाल कर पहना, तथा उसी साड़ी को दुरुस्त करने के बाद उसने आदमकद आईने में देख कर अपने हुलिये को सही किया। सब कुछ ठीक करने के बाद वह बिना अजय की तरफ देखे कमरे से बाहर निकल गई। अजय सिंह समझ गया था कि प्रतिमा उससे बेहद नाराज़ हो गई है। उसका नाराज़ होना जायज़ भी था। भला इस तरह कौन अपनी पत्नी की जान ले लेने वाला सेक्स करता है?? अजय सिंह असहाय सा नंगा ही बेड पर पसर गया था।

अब आगे,,,,,,,,,,
फ्लैशबैक अब आगे______

उस दिन और उस रात प्रतिमा ने अजय सिंह की तरफ देखा तक नहीं बात करने की तो बात दूर। अजय सिंह अपनी पत्नी के इस रवैये बेहद परेशान हो गया था, वह अपने किये पर बेहद शर्मिंदा था। वह जानता था कि उसने ग़लती की थी किन्तु अब जो हो गया उसका क्या किया जा सकता था? उसने कई बार प्रतिमा से उस कृत्य के लिए माफ़ी माॅगी लेकिन प्रतिमा हर बार उसे गुस्से से देख कर उससे दूर चली गई थी।

ख़ैर दूसरा दिन शुरू हुआ। आज प्रतिमा का रवैया एकदम सामान्य था। कदाचित् रात के बाद अब उसका गुस्सा उतर गया था। पिछली रात वह दूसरे कमरे में अंदर से कुंडी लगा कर सोई थी। वह जानती थी अजय उसे मनाने उसके पास आएगा और हुआ भी वही लेकिन प्रतिमा कमरे का दरवाजा नहीं खोला था। अजय सिंह मुह लटकाए वापस चला गया था। रात में प्रतिमा ने इस बारे में बहुत सोचा और इस निष्कर्स पर पहुॅची कि अजय सिंह का इसमें भला क्या दोष हो सकता है? उस सूरत में कोई भी मर्द वही करता जो उसने किया। मज़े की चरम सीमा का एक रूप ऐसा भी हो सकता है कि वह उस सूरत में सब कुछ भूल बैठता है। अजय सिंह के साथ भी तो वही हुआ था। प्रतिमा उससे प्यार भी बहुत करती थी, वह उससे इस तरह बेरूखी अख्तियार नहीं कर सकती थी बहुत देर तक।

सुबह जब हुई तो सबसे पहले वह अजय सिंह से बड़े प्यार से मिली। अजय सिंह इस बात से बेहद खुश हुआ। ख़ैर, दोपहर में प्रतिमा फिर से विजय सिंह के लिए खाने का टिफिन तैयार कर तथा एक प्लास्टिक के बोतल में पका हुआ दूध लेकर खेतों की तरफ चल दी। आज भी उसने पिछले दिन की ही तरह लिबास पहना हुआ था। खूबसूरत गोरे बदन पर आज उसने पतली सी पीले रंग की साड़ी और उसी से मैच करता बड़े गले का ब्लाउज पहना था। ब्लाउज के अंदर आज भी उसने ब्रा नहीं पहना था।

प्रतिमा मदमस्त चाल से तथा मन में हज़ारों ख़याल बुनते हुए खेतों पर बने मकान में पहुॅची। पिछले दिन की ही तरह आज भी आस पास खेतों पर कोई मजदूर नज़र नहीं आया उसे,अलबत्ता विजय सिंह ज़रूर उसे दाईं तरफ लगे बोरबेल पर नज़र आया। वह बोर के पानी से हाॅथ मुह धो रहा था।

प्रतिमा ने ग़ौर से उसे देखा फिर मुस्कुरा कर मकान के अंदर की तरफ बढ़ गई। कमरे में पहुॅच कर उसने पिछले दिन की ही तरह बेन्च पर टिफिन से निकाल कर खाना लगाने लगी। आज उसने अपना आॅचल ढुलकाया नहीं था। शायद ये सोच कर कि विजय कहीं ये न सोच बैठे कि रोज़ रोज़ मैं अपना आॅचल क्यों गिरा देती हूॅ?

कुछ ही देर में विजय सिंह कमरे में आ गया। कमरे में अपनी भाभी को देख कर वह चौंका फिर सामान्य होकर वहीं बेन्च के पास कुर्सी पर बैठ गया।

"आज भी आपको ही कस्ट उठाना पड़ा भाभी।" विजय सिंह ने कहा___"कितनी तेज़ धूप और गर्मी होती है, कहीं आपको लू लग गई और आप बीमार हो गई तो??"

"अरे कुछ नहीं होगा मुझे।" प्रतिमा ने कहा___"इतनी भी नाज़ुक नहीं हूॅ जो इतने से ही बीमार हो जाऊॅगी। और अगर हो भी जाऊॅगी तो क्या हुआ? मेरी दवाई करवाने तुमको ही जाना पड़ेगा। जाओगे न मुझे लेकर?"

"अरे क्या बात करती हैं आप?" विजय सिंह गड़बड़ाया___"भगवान करे आपको कभी कुछ न हो भाभी।"
"हमारे चाहने से क्या होता है?" प्रतिमा ने कहा___"जिसको जब जो होना होता है वो हो ही जाता है। इस लिए कह रही हूॅ कि अगर मैं बीमार पड़ जाऊॅ तो तुम मुझे ले चलोगे न डाक्टर के पास??"

"इसमें भला पूछने की क्या बात है?" विजय सिंह ने कहा___"और हाॅ आपको डाक्टर के पास ले जाने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी बल्कि डाक्टर को मैं खुद आपके पास ले आऊॅगा।"

"ऐसा शायद तुम इस लिए कह रहे हो कि तुम मुझे अपने साथ ले जाना ही नहीं चाहते।" प्रतिमा ने बुरा सा मुह बनाया___"सोचते होगे कि मुझ बुढ़िया को कौन ढोता फिरेगा?"

"बु बुढ़िया???" विजय सिंह को फिर से ठसका लग गया। वह ज़ोर ज़ोर से खाॅसने लगा। प्रतिमा ने सीघ्रता से उठ कर मटके से ग्लास में पानी लिये उसके मुह से लगा दिया। इस बीच उसे सच में ध्यान न आया कि उसका आॅचल नीचे गिर गया है।

"क्या हुआ आज भी ठसका लग गया तुम्हें?" प्रतिमा ने कहा___"क्या रोज़ ऐसे ही होता है खाते समय?"

विजय सिंह कुछ बोल न सका। उसकी आॅखों के बहुत पास प्रतिमा की बड़ी बड़ी चूचियाॅ आधे से ज्यादा ब्लाउज से झूलती दिख रही थी। विजय सिंह की हालत पल भर में खराब हो गई। वह पानी पीना भूल गया था।

"क्या हुआ पानी पियो न?" प्रतिमा ने कहा फिर अनायास ही उसका ध्यान इस तरफ गया कि विजय उसके सीने की तरफ एकटक देखे जा रहा है। ये देख वह मुस्कुराई।
"आज दूध लेकर आई हूॅ तुम्हारे लिए।" प्रतिमा ने मुस्कुराते हुए कहा___"और हाॅ जहाॅ देख रहे हो न वहाॅ सूखा पड़ा है। इस लिए तो अलग से लाई हूॅ।"

विजय सिंह को जबरदस्त झटका लगा। प्रतिमा को लगा कहीं उसने ज्यादा तो नहीं बोल दिया। अंदर ही अंदर घबरा गई थी वह किन्तु चेहरे से ज़ाहिर न होने दिया उसने। बल्कि सीधी खड़ी होकर उसने अपने आॅचल को सही कर लिया था।

"अरे ऐसे आॅखें फाड़ फाड़ कर क्या देख रहे हो मुझे?" प्रतिमा हॅसी___"मैं तो मज़ाक कर रही थी तुमसे। देवर भाभी के बीच इतना तो चलता है न? चलो अब जल्दी से खाना खाओ।"

विजय सिंह चुपचाप खाना खाने लगा। इस बार वह बड़ा जल्दी जल्दी खा रहा था। ऐसा लगता था जैसे उसे कहीं जाने की बड़ी जल्दी थी।

"तुम खाना खाओ तब तक मैं बाहर घूम लेती हूॅ।" प्रतिमा ने कहा___"और हाॅ दूध ज़रूर पी लेना।"
"जी भाभी।" विजय ने नीचे को सिर किये ही कहा था।

उधर प्रतिमा मुस्कुराती हुई कमरे से बाहर निकल गई। पता नहीं क्या चल रहा था उसके दिमाग़ में?"
_______________________

वर्तमान________

"अरे नैना बुआ आप??" रितू जैसे ही हवेली के अंदर ड्राइंग रूम में दाखिल हुई तो सोफे पर नैना बैठी दिखी___"ओह बुआ मैं बता नहीं सकती कि आपको यहाॅ देख कर मैं कितना खुश हुई हूॅ।"

"ओह माई गाड।" नैना सोफे से उठते हुए किन्तु हैरानी से बोली___"तू तो पुलिस वाली बन गई। कितनी सुन्दर लग रही है तेरे बदन पर ये पुलिस की वर्दी। आई एम सो प्राउड आफ यू। आ मेरे गले लग जा रितू।"

दोनो एक दूसरे के गले मिली। फिर दोनो एक साथ ही सोफे पर बैठ गई।

"मुझे डैड ने बताया ही नहीं कि आप आईं हैं यहाॅ।" रितू ने खेद भरे भाव से कहा___"वरना मैं पुलिस थाने से भाग कर आपके पास आ जाती। ख़ैर, आब बताइये कैसी हैं आप और फूफा जी कैसे हैं?"

"मैं तो ठीक ही हूॅ रितू।" नैना ने सहसा गंभीर होकर कहा___"लेकिन तेरे फूफा जी का पूछो ही मत।"
"अरे ऐसा क्यों कह रही हैं आप?" रितू ने चौंकते हुए कहा____"फूफा जी के बारे में क्यों न पूछूॅ भला?"

"क्यों कि अब वो तेरे फूफा जी नहीं रहे।" नैना ने कहा___"मैने उस नामर्द को तलाक़ दे दिया है और अब यहीं रहूॅगी अपने घर में।"
"त...ला...क़????" रितू बुरी तरह उछल पड़ी थी___"लेकिन क्यों बुआ? ऐसी भी भला क्या बात हो गई कि आपने उन्हें तलाक़ दे दिया?"

नैना ने कुछ पल सोचा और फिर सारी बात बता दी उसे जो उसने प्रतिमा को बताई थी। सारी बातें सुनने के बाद रितू सन्न रह गई।

"ठीक किया आपने।" फिर रितू ने कहा___"ऐसे आदमी के पास रहने का कोई मतलब ही नहीं है जो ऐसी सोच रखता हो।"
"रितू मैं सोच रही हूॅ कि मैं कोई ज्वाब कर लूॅ।" नैना ने हिचकिचाते हुए कहा___"अगर तेरी नज़र में मेरे लिए कोई ज्वाब हो तो दिलवा दे मुझे।"

"आपको ज्वाब करने की क्या ज़रूरत है बुआ?" रितू ने हैरानी से कहा___"क्या आप ये समझती हैं कि आप हमारे लिए बोझ बन जाएॅगी?"
"ऐसी बात नहीं है रितू।" नैना ने कहा__"बस मेरा मन बहलता रहेगा। सारा दिन बेड पर पड़े पड़े इस सबके बारे में सोच सोच कर कुढ़ती रहूॅगी। इस लिए अगर कोई ज्वाब करने लगूॅगी तो मेरा दिन आराम से कट जाया करेगा।"

"क्या इस बारे में आपने डैड से बात की है?" रितू ने कहा।
"भइया और भाभी से मैने अभी इस बारे में कोई बात नहीं की है।" नैना ने कहा___"पर मैं जानती हूॅ कि भइया मुझे ज्वाब करने की इजाज़त कभी नहीं देंगे। वो भी यही समझेंगे कि मैं उनके लिए बोझ बन जाऊॅगी ऐसा मैं सोच रही हूॅ।"

"हाॅ ये बात है ही।" रितू ने कहा___"हम में से कोई नहीं चाहेगा कि आप कोई ज्वाब करें।"
"नहीं रितू प्लीज़।" नैना ने रितू के हाॅथ को अपने हाथ में लेकर कहा___"समझने की कोशिश कर मेरी बच्ची। क्या तू चाहती है कि तेरी बुआ उस सबके बारे में सोच सोच कर दुखी हो?"

"नहीं बुआ हर्गिज़ नहीं।" रितू ने मजबूती से इंकार में सिर हिलाया___"मैं तो चाहती हूॅ कि मेरी प्यारी बुआ हमेशा खुश रहें।"
"तो फिर कोई ज्वाब दिलवा दे मुझे।" नैना ने कहा___"मैं कोई भी काम करने को तैयार हूॅ। बस काम ऐसा हो कि मुझे एक सेकण्ड के लिए भी कुछ सोचने का समय न मिले।"

"ज्वाब तो मैं आपको दिलवा दूॅगी।" रितू ने कहा____"लेकिन उससे पहले एक बार डैड से भी इसके लिए पूछना पड़ेगा।"
"ठीक है मैं बात करूॅगी भइया से।" नैना ने कहा___"अब जा तू भी चेन्ज कर ले तब तक मैं तेरे कुछ खाने का बंदोबस्त करती हूॅ।"

"आप परेशान मत होइये बुआ।" रितू ने कहा____"माॅम हैं ना इस सबके लिए।"
"इसमें परेशानी की क्या बात है?" नैना ने कहा___"शादी से पहले भी तो मैं यही करती थी तेरे लिए भूल गई क्या?"

"कैसे भूल सकती हूॅ बुआ?" रितू ने मुस्कुरा कर कहा___"मुझे सब याद है। आप हम तीनो बहन भाई को पढ़ाया करती थी और पिटाई भी करती थी।"
"अरे वो तो मैं प्यार से मारती थी।" नैना हॅस पड़ी___"और वो ज़रूरी भी तो था न?"
"सही कह रही हैं आप।" रितू ने कहा__"जब तक हम बच्चे रहते हैं तब तक हमें ये सब बुरा लगता है और जब बड़े हो जाते हैं तो लगता है कि बचपन में पढ़ाई के लिए जो पिटाई होती थी वो हमारे भले के लिए ही होती थी।"

"मैने घर के सभी बच्चों को पढ़ाया था।" नैना ने कुछ सोचते हुए कहा___"किन्तु उन सभी बच्चों में एक ही ऐसा बच्चा था जो मेरे हाॅथों मार नहीं खाया और वो था हमारा राज। मैं सोचा करती थी कि ऐसा कौन सा सवाल उससे करूॅ जो उससे न बने और फिर मैं उसकी पिटाई करूॅ मगर हाय रे कितना तेज़ था राज। हर विषय उसका कम्प्लीट रहता था। छोटे भइया भाभी ने उसे बचपन से ही पढ़ाई में जीनियस बना रखा था। वैसी ही निधी भी थी। जाने कहाॅ होंगे वो सब?"

कहते कहते नैना की आॅखों में आॅसू आ गए। रितू के चेहरे पर बेहद ही गंभीर भाव आ गए थे। उसके मुख से कोई शब्द नहीं निकला बल्कि शख्ती से उसने मानो लब सी लिए थे।

"क्या हो गया है इस घर की खुशियों को?" नैना ने गंभीरता से कहा___"न जाने किसकी नज़र लग गई इस घर के हॅसते मुस्कुराते हुए लोगो पर? सब कुछ बिखर गया। विजय भइया क्या गए जैसे इस घर की रूह ही चली गई। माॅ बाबू जी उनके सदमें में कोमा में चले गए। गौरी भाभी और उनके बच्चे जाने दुनियाॅ के किस कोने में जी रहे होंगे? बड़ी भाभी ने बताया कि करुणा भाभी भी अपने बच्चों के साथ अपने मायके चली गईं हैं जबकि अभय भइया किसी काम से कहीं बाहर गए हैं। इतनी बड़ी हवेली में गिनती के चार लोग हैं। ये भाग्य की कैसी विडम्बना है रितू???"

"ये सवाल ऐसा है बुआ जो हर शख्स की ज़ुबां पर रक्श करता है।" रितू ने कहा___"लेकिन उसका कोई जवाब नहीं है।"
"जबाव तो हर सवाल का होता है रितू।" नैना ने कहा___"संसार में ऐसा कुछ है ही नहीं जिसका जवाब न हो।"

"आप कहना क्या चाहती हैं बुआ?" रितू ने हैरानी से देखा था।
"कहने को तो बहुत कुछ है रितू।" नैना ने गहरी साॅस ली___"लेकिन कहने का कोई मतलब नहीं है।"

"प्लीज कहिए न बुआ।" रितू ने कहा__"अगर कोई बात है मन में तो बेझिझक कहिये।"
"जाने दे रितू।" नैना ने पहलू बदला___"तू सुना कैसी चल रही है तेरी पुलिस की नौकरी??"

"बस ठीक ही है बुआ।" रितू की आॅखों के सामने विधी का चेहरा नाच गया___"आप तो जानती ही हैं इस नौकरी में दिन रात भागा दौड़ी ही होती रहती है। कभी इस मुजरिम के पीछे तो कभी किसी क़ातिल के पीछे।"

"हाॅ ये तो है।" नैना ने कहा___"लेकिन पुलिस आफीसर बनने का सपना तो तूने ही देखा था न बचपन से।"
"बचपन में तो बस ये सब एक बचपना टाइप का था बुआ।" रितू ने कहा___"लेकिन जब बड़े होने पर हर चीज़ की समझ आई तो लगा कि सचमुच मुझे पुलिस आफीसर बनना चाहिए। मेरी ख्वाहिश थी कि पुलिस आफीसर बन कर मैं दादा दादी जी के एक्सीडेन्ट वाला केस फिर से रिओपेन करके उसकी तहकीक़ात करूॅगी। मगर सब कुछ जैसे एक ख्वाहिश मात्र ही रह गया।"

"क्या मतलब???" नैना चौंकी।
"मतलब ये बुआ कि मैं दादा जी के एक्सीडेन्ट वाले केस में कुछ नहीं कर सकती।" रितू ने असहाय भाव से कहा___"क्योंकि मैने उस केस की फाइल को बहुत बारीकी से पढ़ा है, उसमें कहीं पर भी ये नहीं दिखाया गया कि वो एक्सीडेन्ट एक सोची समझी साजिश का नतीजा था बल्कि ये रिपोर्ट बना कर फाइल बंद कर दी गई कि वो एक्सीडेन्ट महज एक हादसा या दुर्घटना थी जो कि सामने से आ रहे ट्रक से टकराने से हो गई थी। ट्रक का ड्राइवर नशे में था जिसकी वजह से उसने ध्यान ही नहीं दिया और साइड होने बजाय उसने दादा जी की कार से टकरा गया था।"

"लेकिन सवाल ये है कि तुझे ऐसा क्यों लगता है कि वो एक्सीडेन्ट महज दुर्घटना नहीं बल्कि किसी की सोची समझी साजिश थी?" नैना ने हैरानी से कहा___"यानी कोई बाबूजी को जान से मार देना चाहता था।"

"मुझे शुरू में इस बात का सिर्फ अंदेशा था बुआ।" रितू कह रही थी___"वो भी इस लिए क्योंकि ऐसा शहरों में होता है। दादा जी की किसी से कोई दुश्मनी नहीं थी। फिर भी उनके साथ ये हादसा हुआ। उस समय इसके बारे में इस एंगल से मेरा सिर्फ सोचना था। मैं नहीं जानती थी मैं ऐसा क्यों सोचती थी? शायद इस लिए कि शुरू से ही मेरे ज़हन में क्राइम के प्रति सोचने का ऐसा नज़रिया था। किन्तु पुलिस की नौकरी ज्वाइन करने बाद जब मैने उस केस की फाइल को बारीकी से अध्ययन किया तो मुझे यकीन हो गया कि वो एक्सीडेन्ट महज कोई दुर्घटना नहीं थी बल्कि जान बूझ कर दादाजी की कार में टक्कर मारी गई थी।"

"ऐसा क्या था उस फाइल में?" नैना की आॅखें हैरत से फटी पड़ी थी____"जिससे तुझे यकीन हो गया कि ये सब सोच समझ कर किया गया था?"
"फाइल में जिस जगह पर एक्सीडेन्ट यानी कि दादा जी की कार का एक्सीडेन्ट हुआ था उस जगह पर जाकर मैने खुद निरीक्षण किया है।" रितू ने कहा___"मेन हाइवे पर उस जगह भले ही ज्यादातर वाहनों का आना जाना नहीं है लेकिन फिर भी इक्का दुक्का वाहन तो आते जाते ही रहते हैं वहाॅ पर। इतनी चौड़ी सड़क पर कोई ट्रक वाला अपनी लेन से आकर कैसे किसी कार को टक्कर मार सकता है? ये ठीक है कि वो टू-लेन सड़क नहीं थी बल्कि टू-इन-वन थी। फिर भी इतनी चौड़ी सड़क पर कोई ट्रक वाला अपनी लेन से हट कर कैसे टक्कर मार देगा। फाइल में लिखा है कि ट्रक का ड्राइवर नशे में था तो सवाल है कि नशे की उस हालत में उसने एक ही एक्सीडेन्ट क्यों कियों किया? बल्कि एक से ज्यादा एक्सीडेन्ट हो सकते थे उससे मगर ऐसा नहीं था। अब चूॅकि फाइल में ना तो उस ट्रक वाले का कोई अता पता है और ना ही कोई ऐसा सबूत जिसके तहत आगे की कोई कार्यवाही की जा सके इस लिए मैं कुछ नहीं कर सकती।"

"क्या सिर्फ यही एक वजह है जिससे तुझे लगता है कि बाबू जी का एक्सीडेन्ट महज दुर्घटना नहीं थी?" नैना ने कहा___"या फिर कोई और भी वजह है तेरे पास??"

अभी रितू कुछ बोलने ही वाली थी कि उसकी पैन्ट की जेब में पड़ा मोबाइल बज उठा। उसने पाॅकेट से मोबाइल निकाल कर स्क्रीन में फ्लैश कर रहें नंबर को देखा फिर काल रिसीव कर उसे कान से लगा कर कहा___"हाॅ रामदीन बोलो क्या बात है?"

"....................." उधर से पता नहीं क्या कहा गया।
"ओह चलो ठीक है।" रितू ने कहा___"मैं फौरन पहुॅच रही हूॅ।"

फोन काटने के बाद रितू एक झटके से सोफे से खड़ी हो गई और फिर नैना से कहा__"माफ़ करना बुआ मुझे तत्काल पुलिस स्टेशन जाना होगा।"

"ठीक रितू आराम से जाना।" नैना ने कहा___"शाम को जल्दी आना।"
"जी बिलकुल बुआ।" रितू ने मुस्कुरा कर कहा___"रात में हम दोनो खूब सारी बातें करेंगे।"

इसके बाद रितू वहाॅ से चली गई। जबकि नैना वहीं सोफे पर बैठी उसे बाहर की तरफ जाते देखती रही। इस बात से अंजान कि पीछे दीवार के उस तरफ खड़ा अजय सिंह इन दोनो की बातें सुन रहा था। उसके पीछे प्रतिमा भी खड़ी थी।
___________________

फ्लैशबैक अब आगे_______

विजय सिंह खाना खाने के बाद तथा दूध पीने के बाद थोड़ी देर वहीं एक तरफ रखे बिस्तर पर आराम करना चाहता था। किन्तु उसने सोचा कि उसकी भाभी बाहर धूप में जाने कहाॅ घूम रही होंगी? इस लिए उसे देखने के लिए तथा ये कहने के लिए कि वो अब घर जाएॅ बहुत धूप व गर्मी है, वह कमरे से निकल कर बाहर आ गया।

बाहर आकर उसने आस पास देखा लेकिन प्रतिमा उसे कहीं नज़र न आई। ये देख कर वह चिन्तित हो उठा। वह तुरंत ही आगे बढ़ते हुए आस पास देखने लगा। चलते चलते वह आमों के बाग़ की तरफ बढ़ गया। यहाॅ लगभग दस एकड़ में आमों के पेड़ लगाए गए थे। आधुनिक प्रक्रिया के तहत बहुत कम समय में ही ये बड़े हो कर फल देने लगे थे। ये मौसम भी आमों का ही था।

विजय सिंह जब बाग़ के पास पहुॅचा तो देखा कि प्रितिमा एक आम के पेड़ के पास खड़ी ऊपर की तरफ देख रही थी। उसने अपने पल्लू को कमर में घुमा कर खोंसा हुआ था। उसके दोनो हाॅथ ऊपर थे। विजय सिंह के देखते ही देखते वह ऊपर की तरफ उछली और फिर नीचे आ गई। विजय सिंह उसे ये हरकत करते देख मुस्कुरा उठा। उसे देख कर कोई नहीं कह सकता था कि ये तीन तीन बच्चों की माॅ है बल्कि इस वक्त वह जिस तरह से उछल उछल कर ऊपर लगे आम को तोड़ने का प्रयास कर रही थी उससे यही लगता था कि वो अभी भी कोई अल्हड़ सी लड़की ही थी। वह बार बार पहले से ज्यादा ज़ोर लगा कर ऊपर उछलती लेकिन वह नाकाम होकर नीचे आ जाती। आम उसकी पहुच से दूर था किन्तु फिर भी वो मान नहीं थी। उछल कूद के चक्कर में वह पसीना पसीना हो गई थी। उसकी दोनो काख पसीने से भीगी हुई थी तथा ब्लाउज भी भीग गया था। चेहरे और कनपटियों पर भी पसीना रिसा हुआ था।

विजय सिंह उसके पास जाकर बोला___"तो आप यहाॅ आम तोडने का प्रयास कर रही हैं। मैं ढूॅढ रहा था कि जाने आप कहाॅ गायब हो गई हैं?"
"अरे भला मैं अब कहाॅ गायब हो जाऊॅगी विजय?" प्रतिमा ने मुस्कुरा कर कहा__"इस ऊम्र में तुम्हारे भइया को छोंड़ कर भला कहाॅ जा सकती हूॅ?"

"चलिये मैं आपको आम तोड़ कर दे देता हूॅ फिर आप आराम से बैठ कर खाइयेगा।" उसकी बात पर ज़रा भी ध्यान दिये बग़ैर विजय ने कहा था।
"नहीं विजय।" प्रतिमा ऊपर थोड़ी ही दूरी पर लगे आम को देखती हुई बोली___"इसे तो मैं ही तोड़ूॅगी।"

"पर वो तो आपकी पहुॅच से दूर है भाभी।" विजय भी आम की तरफ देखते हुए बोला___"भला आप उस तक कैसे पहुॅच पाएॅगी? और जब पहुॅचेंगी ही नहीं तो उसे तोड़ेंगी कैसे?"

"कह तो तुम भी ठीक ही रहे हो।" प्रतिमा ने बड़ी मासूमियत से दोनो हाथ कमर पर रख कर कहा___"सचमुच मैं काफी देर से प्रयास कर रही हूॅ इस मुए को तोड़ने का लेकिन ये मेरे हाॅथ ही नहीं लग रहा।"

"इसी लिए तो कहता हूॅ कि मैं तोड़ देता हूॅ भाभी।" विजय ने कहा___"आप फालतू में ही इस गर्मी में परेशान हो रही हैं।"
"लेकिन मैं इसे अपने हाॅथ से ही तोड़ना चाहती हूॅ विजय।" प्रतिमा ने कहा___"मुझे बहुत खुशी होगी अगर मैं इसे अपने से तोड़ कर खाऊॅगी तो।"

"फिर तो ये संभव नहीं है भाभी।" विजय ने कहा___"या फिर ऐसा कीजिए कि नीचे से एक पत्थर उठाइये और उस आम को निशाना लगा कर पत्थर मार कर तोड़ लीजिए।"
"उफ्फ विजय ये तो मुझसे और भी नहीं होगा।" प्रतिमा ने आहत भाव से कहा___"क्या तुम मेरी मदद नहीं कर सकते?"

"म मैं...????" विजय चौंका___"भला मैं कैसे आपकी मदद कर सकता हूॅ?"
"बिलकुल कर सकते हो विजय।" प्रतिमा ने खुश होकर कहा___"तुम मुझे अपनी बाहों से ऊपर उठा सकते हो। उसके बाद मैं बड़े आराम से उस आम को तोड़ लूॅगी।"

"क क्या????" विजय सिंह बुरी तरह उछल पड़ा, हैरत से उसकी आॅखें फैलती चली गई थी, बोला___"ये आप क्या कह रही हैं भाभी? नहीं नहीं ये मैं नहीं कर सकता। आप कोई दूसरा आम देख लीजिए जो आपकी पहुॅच पर हो उसे तोड़ लीजिए।"

"अरे तो इसमें क्या है विजय?" प्रतिमा ने लापरवाही से कहा___"थोड़ी देर की तो बात है। तुम मुझे बड़े आराम से उठा सकते हो, मैं इतनी भी भारी नहीं हूॅ। तुम्हारी गौरी से तो कम ही हूॅ।"

"पर भाभी मैं आपको कैसे उठा सकता हूॅ?" विजय की हालत खराब___"नहीं भाभी ये मुझसे हर्गिज़ भी नहीं हो सकता।"
"क्यों नहीं हो सकता विजय?" प्रतिमा उसके पास आकर बोली___"बल्कि मुझे तो बड़ी खुशी होगी विजय कि तुम्हारे द्वारा ही सही किन्तु मैं अपने हाॅथों से उस आम को तोड़ूॅगी। प्लीज़ विजय....मेरे लिए...मेरी खुशी के लिए ये कर दो न?"

विजय सिंह को समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करे? वह तो खुद को कोसे जा रहा था कि वह यहाॅ आया ही क्यों था?

"उफ्फ विजय पता नहीं क्या सोच रहे हो तुम?" प्रतिमा ने कहा___"भला इसमें इतना सोचने की ज़रूरत है? तुम कोई ग़ैर तो नहीं हो न और ना ही मैं तुम्हारे लिए कोई ग़ैर हूॅ। हम दोनो देवर भाभी हैं और इतना तो बड़े आराम से चलता है। मैं तो कुछ नहीं सोच रही हूॅ ऐसा वैसा। फिर तुम क्यों सोच रहे हो?"

"पर भाभी किसी को पता चलेगा तो लोग क्या सोचेंगे हमारे बारे में?" विजय सिंह ने हिचकिचाते हुए कहा।
"सबसे पहली बात तो यहाॅ पर हम दोनो के अलावा कोई तीसरा है ही नहीं।" प्रतिमा कह रही थी___"और अगर होता भी तो मुझे उसकी कोई परवाह नहीं होती क्योंकि हम कुछ ग़लत तो कर नहीं रहे होंगे फिर किसी से डरने की या किसी के कुछ सोचने से डरने की क्या ज़रूरत है? देवर भाभी के बीच इतना प्यारवश चलता है। अब छोड़ों इस बात को और जल्दी से आओ मेरे पास।"

विजय सिंह का दिल धाड़ धाड़ करके बज रहा था। उसे लग रहा था कि वह यहाॅ से भाग जाए किन्तु फिर उसने भी सोचा कि इसमें इतना सोचने की भला क्या ज़रूरत है? उसकी भाभी ठीक ही तो कह रही है कि इतना तो देवर भाभी के बीच चलता है। फिर वो कौन सा कुछ ग़लत करने जा रहे हैं।

"ओफ्फो विजय कितना सोचते हो तुम?" प्रतिमा ने खीझते हुए कहा____"तुम्हारी जगह अगर मैं होती तो एक पल भी न लगाती इसके लिए।"
"अच्छा ठीक है भाभी।" विजय उसके पास जाते हुए बोला___"लेकिन इसके बारे आप किसी से कुछ मत कहियेगा। बड़े भइया से तो बिलकुल भी नहीं।"

"अरे मैं किसी से कुछ नहीं कहूॅगी विजय।" प्रतिमा हॅस कर बोली___"ये तो हमारी आपस की बात है न। अब चलो जल्दी से मुझे उठाओ। सम्हाल कर उठाना, गिरा मत देना मुझे। पता चले कि लॅगड़ाते हुए हवेली जाना पड़े।"

विजय सिंह कुछ न बोला बल्कि झिझकते हुए वह प्रतिमा के पास पहुॅचा। प्रतिमा की हालत ये सोच सोच कर रोमाॅच से भरी जा रही थी कि विजय उसे अपनी बाहों में उठाने वाला है। अंदर से थराथरा तो वह भी रही थी किन्तु दोनो की मानसिक अवस्था में अलग अलग हलचल थी।

विजय सिंह झुक कर प्रतिमा को उसकी दोनो टाॅगों को अपने दोनो बाजुओं से पकड़ कर ऊपर की तरफ खड़े होते हुए उठाना शुरू किया। प्रतिमा ने झट से अपने दोनो हाॅथों को विजय सिंह के दोनो कंधो पर रख दिया। वह एकटक विजय को देखे जा रही थी। उस विजय को जिसके चेहरे पर इस बात की ज़रा भी शिकन नहीं थी कि उसने कोई बोझ उठाया हुआ है। ये अलग बात थी कि दिल में बढ़ी घबराहट की वजह से उसके चहरे पर पसीना छलछला आया था।

प्रतिमा बड़ी शातिर औरत चालाक औरत थी। उसने विजय को उसके कंधो पर से पकड़ा हुआ था। जैसे ही विजय ने उसे ऊपर उठाना शुरू किया तो वह झट से खुद को सम्हालने के लिए अपने सीने के भार को विजय के सिर पर टिका दिया। उसकी भारी भारी चूचियाॅ जो अब तक पसीने से भींग गई थी वो विजय के माथे से जा टकराई। विजय के नथुनों में प्रतिमा के जिस्म की तथा उसके पसीने की महक समाती चली गई। विजय को किसी नशे के जैसा आभास हुआ।

"वाह विजय तुमने तो मुझे किसी रुई की बोरी की तरह उठा लिया।" प्रतिमा ने हॅ कर कहा___"अब और ऊपर उठाओ ताकि मैं उस आम को तोड़ सकूॅ।"

विजय ने उसे पूरा ऊपर उठा दिया। प्रतिमा का नंगा पेट विजय के चेहरे के पास था। उसकी गोरी सी किन्तु गहरी नाभी विजय की ऑखों के बिलकुल पास थी। उसका पेट एकदम गोरा और बेदाग़ था। विजय इस सबको देखना नहीं चाहता था मगर क्या करे मजबूरी थी। उसे अपने अंदर अजीब सी मदहोशी का एहसास हो रहा था। उधर प्रतिमा मन ही मन मुस्कुराए जा रही थी। आम का वो फल तो उसके हाॅथ में ही छू रहा था जिसे वह बड़े आराम से तोड़ सकती थी किन्तु वह चाहती थी इस परिस्थिति में विजय उसके साथ कुछ तो करे ही। ये सच था कि अगर विजय उसे वहीं पर लेटा कर उसका भोग भी करने लग जाता तो उसे कोई ऐतराज़ न होता मगर ये संभव नहीं था।

विजय प्रतिमा के पेट पर अपने चेहरे को छूने नहीं देना चाहता था। वह जानता था कि गर्मी किसी के सम्हाले नहीं सम्हलती। गर्मी जब सिर चढ़ने लगती है तो सबसे पहले विवेक का नास होता है। उसके बाद सब कुछ तहस नहस हो जाता है। उधर प्रतिमा बखूबी समझती थी कि विजय कलियुग का हरिश्चन्द्र है, यानी वो किसी भी कीमत वो नहीं करेगा जो वह चाहती है। मतलब जो कुछ करना था उसे स्वयं ही करना था।

प्रतिमा ने महसूस किया कि विजय उसके नंगे पेट से अपने चेहरे को दूर हटाने की कामयाब कोशिश कर रहा है। ये देख कर प्रतिमा ने अपने जिस्म को अजीब से अंदाज़ में इस तरह हिलाया कि विजय को यही लगे कि वह अपना संतुलन बनाए रखने के लिए ही ऐसा किया है। प्रतिमा ने जैसे ही अपने जिस्म को हिलाया वैसे ही उसका पेट विजय के चेहरे से जा लगा। उसका मुह और नाॅक बिलकुल उसकी गहरी नाभी में मानो दब सा गया था। विजय सिंह इससे बुरी तरह विचलित हो गया। उसने पुनः अपने चेहरे को दूर हटाने की कोशिश की किन्तु इस बार वह कामयाब न हुआ। क्योंकि प्रतिमा ऊपर से उससे चिपक सी गई थी। विजय सिंह की हाॅथ की पकड़ ढीली पड़ गई। परिणामस्वरूप प्रतिमा का जिस्म नीचे खिसकने लगा।

"क्या कर रहे हो विजय?" प्रतिमा ने सीघ्रता से कहा___"ठीक से पकड़ो न मुझे।"
"आपने आम तोड़ लिया कि नहीं?" विजय ने उसे फिर सै ऊपर उठाते हुए कहा___"जल्दी तोड़िये न भाभी।"

"क्या हुआ विजय?" प्रतिमा हॅस कर बोली___"मेरा भार नहीं सम्हाला जा रहा क्या तुमसे?"
"ऐसी बात नहीं है भाभी।" विजय ने झिझकते हुए कहा___"पर एक आम तोड़ने में कितना समय लगेगा आपको?"

"अरे मैं एक आम थोड़ी न तोड़ रही हूॅ विजय।" प्रतिमा ने कहा___"कई सारे तोड़ रही हूॅ ताकि तुम्हें बार बार उठाना ना पड़े मुझे।"
"ठीक है भाभी।" विजय ने कहा___"पर ज़रा जल्दी कीजिए न क्योंकि खेतों में काम करने वाले मजदूरों के आने का समय हो गया है।"

"अच्छा ठीक है।" प्रतिमा ने कहा___"अब और आम नहीं तोड़ूॅगी। अब आहिस्ता से नीचे उतारो मुझे।"

विजय सिंह तो जैसे यही चाहता था। उसने अपनी पकड़ ढीली कर दी जिससे प्रतिमा नीचे खिसकने लगी। उसने दोनो हाॅथों में आम लिया हुआ था इस लिए सहारे के लिए उसने कोहनी टिकाया हुआ था विजय पर। प्रतिमा का भारी छातियाॅ विजय के चेहरे पर से रगड़ खाती हुई घप्प से उसके सीने में जा लगी। प्रतिमा के मुह से मादक सिसकारी निकल गई। विजय ने उसकी इस सिसकारी को स्पष्ट सुना था।

"उफ्फ विजय बड़े चालू हो तुम तो।" प्रतिमा ने हॅस कर कहा___"मेरे दोनो हाॅथों में आम हैं इस लिए ठीक से संतुलन नहीं बना पाई और तुम इसी का फायदा उठा रहे हो। चलो कोई बात नहीं। कम से कम आम तो मिल ही गए मुझे। चलो दोनो बैठ कर खाते हैं यहीं पेड़ की ठंडी छाॅव के नीचे बैठ कर।"

"आप खा लीजिए भाभी।" विजय ने असहज भाव से कहा___"मैं तो रोज़ ही खाता हूॅ। अभी ठीक से पके नहीं हैं। एक हप्ते बाद इनमें मीठापन आ जाएगा।"

"देखो न विजय यहाॅ कितना अच्छा लग रहा है।" प्रतिमा ने कहा___"पेड़ों की छाॅव और मदमस्त करने वाली ठंडी ठंडी हवा। इस हवा के सामने तो एसी भी फेल है। मन करता है यहीं पर सारा दिन बैठी रहूॅ। घर में पंखा और कुलर में भी गर्मी शान्त नहीं होती और ऊपर से बीच बीच में लाइट चली जाती हो तो फिर समझो कि प्राण ही निकलने लगते हैं।"

"हाॅ गाॅवों में तो लाइट का आना जाना लगा ही रहता है।" विजय ने कहा___"मैं सोच रहा हूॅ कि हवेली में एक दो जनरेटर रखवा देता हूॅ ताकि अगर लाइन न रहे तो उसके द्वारा बिजली मिल सके और किसी को इस गर्मी में परेशान न होना पड़े।"

"ये तो तमने बहुत अच्छा सोचा है।" प्रतिमा ने कहने के साथ ही वहीं पेड़ के नीचे साफ करने के बाद साड़ी के पल्लू को बिछा कर बैठ गई। उसे इस तरह पल्लू को बिछाकर बैठते देख विजय हैरान रह गया। उसकी भारी छातियाॅ उसके बड़े गले वाले ब्लाउज से स्पष्ट नुमायाॅ हो रही थी।

"आओ न विजय तुम भी मेरे पास ही बैठ जाओ।" प्रतिमा ने एक आम को उठाकर कहा__"ऐसा लगता है कि इन्हें पहले पानी से धोना पड़ेगा।"
"जी बिलकुल भाभी।" विजय ने कहा__"इन्हें धोना ही पड़ेगा वरना इनका जो रस होता है वो अखर बदन में लग जाएगा तो वहाॅ इनफेक्शन होने की संभावना होती है।"

"तो अब क्या करें विजय?" प्रतिमा ने कहा__"मेरा मतलब पानी तो यहाॅ पर है नहीं।"
"दीजिए मैं इन्हें धोकर लाता हूॅ।" विजय ने कहा और उन सारे आमो को उठा कर बाग़ से बाहर चला गया।

"कितने भोले हो विजय।" विजय के जाने के बाद प्रतिमा बड़बड़ाई___"किन्तु समझते सब कुछ हो। और शायद ये भी समझ ही गए होगे कि तुम्हारी भाभी एक नंबर की छिनाल या राॅड है। उफ्फ विजय क्या करूॅ तुम्हारा? तुम्हारी जगह कोई और होता तो अब तक मुझे मेरे आगे पीछे से पेल चुका होता था। तुम भी मुझे पेलोगे विजय....बस थोड़ा और मेहनत करनी पड़ेगी तुम्हें पटाने में। और अगर उससे भी न पटे तो फिर आख़िर में एक ही चारा रह जाएगा। हाय विजय आ जाओ न....समझ क्यों नहीं रहे हो कि तुम्हारी ये राॅड भाभी यहाॅ बाग़ में अकेले तुम्हारे साथ मज़े करना चाहती है। मुझे अपनी मजबूत बाहों में कस लो न विजय....मेरे जिस्म से ये कपड़े चीर फाड़ कर निकाल दो और टूट पड़ो मुझ पर। आहहहहहह शशशशश विजय मुझे तब तक पेलो जब तक की मेरा दम न निकल जाए। देख लो विजय....तुम्हारी ये राॅड भाभी सिर्फ तुम्हारे लिए यहाॅ आई है। मुझे मसल डालो.....मुझे रगड़ डालो.....हाय मेरे अंदर की इस आग को शान्त कर दो विजय।"

पेड़ के नीचे बैठी प्रतिमा हवश व वासना के हाथों अंधी होकर जाने क्या क्या बड़बड़ाए जा रही थी। कुछ ही देर में विजय सिंह आ गया और उसने धुले हुए आमों को एक बाॅस की टोकरी में रख कर लाया था। उसने प्रतिमा की तरफ देखा तो चौंक पड़ा।

"आपको क्या हुआ भाभी?" विजय ने हैरानी से कहा___"आपका चेहरा इतना लाल सुर्ख क्यों हो रखा है? कहीं आपको लू तो नहीं लग गई। हे भगवान आपकी तबीयत तो ठीक है न भाभी।"
"मैं एकदम ठीक हूॅ विजय।" विजय को अपने लिए फिक्र करते देख प्रतिमा को पल भर के लिए अपनी सोच पर ग्लानी हुई उसके बाद उसने कहा___"और मेरे लिए तुम्हारी ये फिक्र देख कर मुझे बेहद खुशी भी हुई। मैं जानती हूॅ तुम सब हमें अपना समझते हो तथा हमारे लिए तुम्हारे अंदर कोई मैल नहीं है। एक हम थे कि अपनो से ही बेगाने बन गए थे। मुझे माफ़ कर दो विजय.... ।" कहने के साथ ही प्रतिमा की आॅखों में आॅसू आ गए और वह एक झटके से उठ कर विजय से लिपट गई।

विजय उसकी इस हरकत से हैरान रह गया था। किन्तु प्रतिमा की सिसकियों का सुन कर वह यही समझा कि ये सब उसने भावना में बह कर किया है। लेकिन भला वह क्या जानता था कि औरत उस बला का नाम है जिसका रहस्य देवता तो क्या भगवान भी नहीं समझ सकते।


अपडेट हाज़िर है दोस्तो,,,,,,,,
 

TheBlackBlood

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अपडेट दे दिया है भाई,,,,,,,
 

Arjun Singh 72

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awesome fantastic update
bhai flashbacks jaldi katam karol
 
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