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शुक्रिया भाई आपकी इस खूबसूरत प्रतिक्रिया के लिए,,,,,,Bada Shandar jandar dhamakedaar and interesting update bhai
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आज का कह नहीं सकता भाई, बस कोशिश करूॅगा। अभी लिखा नहीं है,,,,,Bhai kya aaj update ayegi
Nice update♡ एक नया संसार ♡
अपडेट....... 《 26 》
अब तक,,,,,,,,
"शायद इसी लिए राज।" निधि ने कहीं खोए हुए कहा था। उसे इस बात का आभास ही नहीं था कि वह अपने बड़े भाई को उसके नाम से संबोधित कर ये कहा था। जबकि...
"र राज..???" विराज बुरी तरह चौंका था। उसने निधि को खुद से अलग कर उसके चेहरे की तरफ हैरानी से देखा।
"क क्या हुआ भइया??" निधि चौंकी, उसको कुछ समझ न आया कि उसके भाई ने अचानक उसे खुद से अलग क्यों किया।
"क्या बताऊॅ??" विराज ने अजीब भाव से उसे देखते हुए कहा__"सुना है इश्क़ जब किसी के सर चढ़ जाता है तो उस ब्यक्ति को कुछ ख़याल ही नहीं रह जाता कि वह किससे क्या बोल बैठता है?"
"आप ये क्या कह रहे हैं?" निधि ने उलझन में कहा__"मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा?"
"अरे पागल तूने अभी अभी मुझे मेरा नाम लेकर पुकारा है।" विराज ने कहा__"हाय मेरी बहन प्रेम में कैसी बावली और बेशर्म हो गई है कि अब वो अपने बड़े भाई का नाम भी लेने लगी।"
"क क्याऽऽ????" निधि बुरी तरह उछल पड़ी। हैरत और अविश्वास से उसका मुॅह खुला का खुला रह गया। फिर सहसा उसे एहसास हुआ कि उसके भाई ने अभी क्या कहा है। उसका चेहरा लाज और शर्म से लाल सुर्ख पड़ता चला गया। नज़रें फर्स पर गड़ गईं उसकी। छुईमुई सी नज़र आने लगी वह। उसे इस तरह खड़े न रहा गया। कहीं और मुह छुपाने को न मिला तो पुनः वह विराज से छुपक कर उसके सीने में चेहरा छुपा लिया अपना। विराज को ये अजीब तो लगा किन्तु अपनी बहन की इस अदा पर उसे बड़ा प्यार आया। जीवन में पहली बार वह अपनी बहन को इस तरह और इतना शर्माते देखा था।
अब आगे,,,,,,,
विराज अपनी बहन को अभी इस तरह शर्माते देख ही रहा था कि उसकी पैन्ट की पाॅकेट में पड़ा मोबाइल बज उठा। दोनो ही मोबाइल की रिंगटोन सुन कर चौंके।
"आपका मोबाइल भी न।" निधि ने बुरा सा मुह बना कर कहा__"ग़लत समय पर ही बजता है।"
"अरे! ऐसा क्यों कह रही है तू?" विराज ने पाॅकेट से मोबाइल निकालते हुए कहा था।
"अब जाने दीजिए।" निधि विराज से अलग होकर बोली__"आप देखिये, जाने कौन कबाब में हड्डी बन गया है, हाॅ नहीं तो।"
विराज उसकी बात पर मुस्कुराया और मोबाइल की स्क्रीन पर फ्लैश कर रहे नाम को देख तनिक चौंका फिर मुस्कुरा कर काॅल को रिसीव कर कानों से लगा लिया।
".................।" उधर से जाने क्या कहा गया जिसे सुन कर विराज बुरी तरह चौंका।
"ये क्या कह रहे हो तुम?" विराज ने हैरानी से कहा था।
"...............।" उधर से फिर कुछ कहा गया।
"भाई तूने बहुत अच्छी ख़बर दी है।" विराज खुश होकर बोला__"चल ठीक है मैं देख लूॅगा।"
"..............।"
"ओह तो ये बात है।" विराज ने सहसा सपाट भाव से कहा__"चल कोई बात नहीं भाई। देख लेंगे सबको। और हाॅ...सुन, मैने तेरा काम कर दिया है ठीक है न? चल रख फोन।"
"किससे बात कर रहे थे आप?" निधि ने उत्सुकतावश पूछा।
"अपना ही एक आदमी था गुड़िया।" विराज ने कहा__"उसने फोन करके बहुत अच्छी ख़बर सुनाई है। हमें अब इस टूर को यहीं खत्म करना होगा। क्योंकि बहुत ज़रूरी काम से मुझे कहीं जाना है।"
"क्या मुझे नहीं बताएॅगे?" निधि ने तिरछी नज़र से देखते हुए किन्तु इक अदा से कहा__"कि ऐसी क्या ख़बर सुनाई आपके उस आदमी ने जिसकी वजह से आपको अब जल्दी यहाॅ से निकलना होगा??"
"अरे पागल तुझसे भला क्यों कोई बात छुपाऊॅगा मैं?" विराज हॅसा__"चल रास्ते में बताता हूॅ सब कुछ।"
इसके बाद दोनो भाई बहन शिप के पायलट को सूचित कर शिप को वापस लौटने के लिए कह दिया। लगभग आधे घंटे बाद वो समुंदर के किनारे पर पहुॅचे। इस बीच विराज ने निधि को फोन पर हुई बातों के बारे में बता दिया था जिसे सुन कर वह भी खुश हो गई थी।
शिप से बाहर आकर विराज उस जगह निधि को लेकर गया जहाॅ पर उसकी कार पार्क की हुई थी। दोनो कार में बैठ कर घर की तरफ तेज़ी से बढ़ गए थे। इस बीच विराज ने फोन लगा कर किसी से बातें भी की थी।
शाम होने से पहले ही जब दोनो घर के अंदर पहुॅचे तो माॅ गौरी को ड्राइंगरूम में एक तरफ की दीवार पर लगी बड़ी सी एल ई डी टीवी पर सीरियल देखते पाया। गौरी ने जब अपने बच्चों को देखा तो पहले तो वो चौंकी फिर मुस्करा कर बोली__"आ गए तुम दोनो? चलो अच्छा किया जो जल्दी ही आ गए। जाओ दोनो खुद को साफ सुथरा कर लो तब तक मैं चाय बना कर लाती हूॅ।"
निधि और विराज दोनो अपने अपने कमरे की तरफ बढ़ गए। कुछ ही देर में दोनो फ्रेस होकर आए और सोफों पर बैठ गए। तभी गौरी हाथ में ट्रे लिए आई और दोनो को चाय दी और खुद भी एक कप चाय लेकर वहीं सोफे पर बैठ गई।
"माॅ चाचा जी आ रहे हैं आज।" विराज ने चाय की एक चुश्की लेकर कहा__"और मुझे जल्द ही रेलवे स्टेशन जाना होगा उन्हें रिसीव करने के लिए।"
"क्या कह रहा है तू......अभय आ रहा है???" गौरी बुरी तरह चौंकी थी, बोली__"पर तुझे कैसे पता इसका?"
"गाॅव के एक दोस्त ने मुझे फोन पर इस बात की सूचना दी है माॅ।" विराज ने सहसा गंभीर होकर कहा__"उसने बताया कि अभय चाचा चुपचाप ही हमसे मिलने के लिए गाॅव से निकले हैं। उसने ये भी बताया कि पिछले दिन हवेली में कोई बातचीत हो गई थी और अभय चाचा बहुत गुस्से में भी थे।"
"ऐसी क्या बातचीत हुई होगी?" गौरी ने मानो खुद से ही सवाल किया था, फिर तुरंत ही बोली__"और क्या बताया तेरे उस दोस्त ने?"
"मुझे तो ऐसा लगता है माॅ कि कोई गंभीर बात है।" विराज ने कहा__"मेरा दोस्त कह रहा था कि बड़े पापा ने अभय चाचा के पीछे अपने आदमियों को लगाया हुआ है। इससे तो यही लगता है कि वो अभय चाचा के द्वारा हम तक पहुॅचना चाहते हैं।"
"ठीक कहता है तू।" गौरी ने कहा__"ऐसा ही होगा। और अगर कोई बात हो गई है तो उससे अभय और उसके बीवी बच्चों पर ख़तरा भी होगा। उन्हें पता नहीं है कि उनका बड़ा भाई कितना बड़ा कमीना है।"
"इसी लिए तो मैं उन्हें लेने जा रहा हूॅ माॅ।" विराज ने कहा__"चाचा जी को तो शायद इस बात का अंदेशा भी न होगा कि उनके पीछे उनके बड़े भाई साहब ने अपने आदमी लगा रखे हैं।"
"अगर ये सच है कि अभय के पीछे तेरे बड़े पापा ने अपने आदमी लगा रखे हैं तो तू कैसे अभय को उन आदमियों की नज़रों से बचा कर लाएगा?" गौरी ने कहा__"तुझे तो पता भी नहीं है कि वहाॅ पर किन जगहों पर वो आदमी मौजूद होकर अभय पर नज़र रखे हुए हैं?"
"आप फिक्र मत कीजिए माॅ।" विराज ने कहा__"मैं चाचा जी को सुरक्षित वहाॅ से ले आऊॅगा और उन आदमियों को इसकी भनक भी नहीं लगेगी।"
"ठीक है बेटे।" गौरी ने सहसा फिक्रमंद हो कर कहा__"सम्हल कर जाना और अपने चाचा को सुरक्षित लेकर आना।"
"ऐसा ही होगा माॅ।" विराज ने कहा__"आप बिलकुल भी फिक्र मत कीजिए। मैं उन्हें सुरक्षित ही लेकर आऊॅगा।"
ये कह विराज सोफे से उठ कर बाहर की तरफ चला गया। कुछ ही देर में उसकी कार हवा से बातें कर रही थी। लगभग पन्द्रह मिनट बाद उसकी कार मेन रोड से उतर कर एक तरफ को मुड़ गई। कुछ दूर जाने के बाद विराज ने कार को सड़क के किनारे लगा कर उसे बंद कर दिया और बाॅई कलाई पर बॅधी रिस्टवाच पर ज़रा बेचैनी से नज़र डाली। उसके बाद राइट साइड की तरफ बनी हुई सड़क की तरफ देखने लगा। उसके चेहरे पर ऐसे भाव थे जैसे किसी के आने का इन्तज़ार कर रहा हो।
कुछ ही देर में उस सड़क से उसे चार आदमी आते हुए दिखे। उन चारो आदमियों में एक की वेशभूसा सामान्य थी किन्तु बाॅकी के तीनों आदमियों के जिस्म पर कुली की पोशाक थी। थोड़ी ही देर बाद वो चारो विराज की कार के ड्राइविंग डोर के पास आकर खड़े हो गए।
"आने में इतना समय क्यों लगा दिया तुम लोगों ने?" विराज ने कहा__"मैने तुम लोगों को फोन पर बोला था न कि मुझे एकदम तैयार होकर यहीं पर मिलना।"
"साहब वो रामू की बेटी की तबियत बहुत ख़राब थी।" एक आदमी ने कहा__"इस लिए उसे अस्पताल लेकर जाना पड़ गया था। उसके पास पैसे नहीं थे तो हम सबने पैसों की ब्यवस्था की फिर उसे अस्पताल ले गए। उसी में समय लग गया साहब।"
"क्या हुआ उसकी बेटी को?" विराज ने चौंकते हुए पूछा था।
"पता नहीं साहब।" उस ब्यक्ति ने कहा__"एक हप्ते से बुखार थी उसे। थोड़ी बहुत गोली दवाई करवाई थी रामू ने। लेकिन आज दोपहर उसकी तबीयत कुछ ज्यादा ही बिगड़ गई इस लिए उसे अस्पताल लेकर जाना पड़ गया।"
"चलो कोई बात नहीं।" विराज ने कहा__"रामू को बोलो कि पैसों की चिन्ता न करे। उसकी बेटी के इलाज में जो भी पैसा लगेगा उसे हमारी कंपनी देगी। उसको बोलो कि वो अपनी बेटी का इलाज बेहतर तरीके से करवाए।"
"जी साहब।" उस आदमी ने खुश होकर कहा__"मैं अभी उसे बोलता हूॅ।"
कहने के साथ ही उस आदमी ने अपनी सर्ट की पाॅकेट से एक छोटा सा कीपैड वाला फोन निकाला और उस पर रामू का नम्बर देख उसे लगा दिया। उसने रामू को सारी बात बताई। उसके बाद उसने फोन बंद कर दिया।
विराज ने कार की डैसबोर्ड पर रखा एक लिफाफा उठाया। उसमे से उसने जो चीज़ें निकाली वो कोई फोटोग्राफ्स थे।
"इनमें से एक एक फोटोग्राफ्स तुम चारो अपने पास रखो।" विराज ने कहा__"इस फोटो में जो आदमी है उसे अच्छी तरह देख लो। क्योंकि इस आदमी को बड़ी सावधानी से रेलवे स्टेशन के बाहर लाना है तुम लोगों को।"
"पर साहब इतनी भीड़ में हम उन्हें खोजेंगे कैसे?" एक आदमी ने कहा__"दूसरी बात क्या पता कौन से डिब्बे में होंगे वो?"
"वो जनरल डिब्बे में ही हैं।" विराज ने कहा__"इस लिए तुम लोग सिर्फ जनरल डिब्बे में ही उन्हें खोजोगे। कहीं और खोजने की ज़रूरत नहीं है। बाॅकी तो सब कुछ तुम्हें फोन पर समझा ही दिया था मैने।"
"ठीक है साहब।" दूसरे आदमी ने कहा__"हम सब इस बात का ख़याल रखेंगे कि उनके पीछे लगे हुए उन आदमियों को पता न चल सके कि वो जिनका पीछा कर रहे हैं वो उनकी आॅखों के सामने से कैसे गायब हो गया??"
"वैरी गुड शंकर।" विराज ने कहा__"अभी ट्रेन के आने में समय है। तब तक मैं तुम्हें एक किराए की टैक्सी का इन्तजाम भी कर देता हूॅ। तुम उन्हें रेलवे स्टेशन से बाहर लाओगे, एक आदमी बाहर टैक्सी में बैठा तुम लोगों का इन्तज़ार करेगा। जैसा कि अभी तुम में से एक आदमी को छोंड़ कर बाकी तीनो कुली के वेश में हो इस लिए तुम तीनो में से जिसे भी वो मिलें तो उनके पास जाकर बड़ी सावधानी से सिर्फ वही कहना जो फोन पर समझाया था।"
"ऐसा ही होगा साहब।" एक अन्य आदमी ने कहा__"आप बेफिक्र रहिए।"
"अच्छी बात है।" विराज ने कहा__"चलो बैठो सब, हमें निकलना भी है अब।"
विराज के कहने पर चारो आदमी खुशी से बैठ गए जबकि विराज ने कार को स्टार्ट कर आगे बढ़ा दिया।
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मुम्बई जाने वाली ट्रेन के उस जनरल कोच में भीड़ तो इतनी नहीं थी किन्तु नाम तो जनरल ही था। कोई किसी को भी बैठने के लिए सीट देने को तैयार नहीं था। कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो ज़बरदस्ती लड़ झगड़ कर अपने बैठने के लिए सीट का जुगाड़ कर ही लेते हैं। यहाॅ प्यार इज्जत या अनुनय विनय करने वाले को कोई सीट नहीं देता और ना ही सीट के ज़रा से भी हिस्से में कोई बैठने देता है। जनरल कोच में तो ऐसा है कि अगर आप गाली गलौच या लड़ना जानते हैं या फिर तुरंत ही किसी भी ब्यक्ति पर हावी हो जाना जानते हैं तो बेहतर है। क्योंकि उससे आपको जल्द ही कहीं न कहीं सीट मिल जाती है बैठने के लिए। लेकिन उसमें भी शर्त ये होती है कि आपके पास अपनी सुरक्षा के लिए अपने साथ कुछ लोगों का बैकप होना ज़रूरी है वरना अगर आप अकेले हैं और अकेले ही तोपसिंह बनने की कोशिश कर रहे हैं तो समझिये आपका बुरी तरह पिट जाना तय है।
अभय सिंह गरम मिज़ाज का आदमी था। उसे कब किस बात पर क्रोध आ जाए ये बात वो खुद ही आज तक जान नहीं पाया था। मगर आज उस पर कोई क्रोध हावी न हुआ था। उसने सीट के लिए किसी से कुछ नहीं कहा था, बल्कि हाॅथ में एक छोटा सा थैला लिए वह दरवाजे के पास ही एक तरफ कभी खड़ा हो जाता तो कभी वहीं पर बैठ जाता। सारी रात ऐसे ही निकल गई थी उसकी।
ट्रेन अपने नियमित समय से चार घंटे लेट थी। ये तो भारतीय रेलवे की कोई नई बात नहीं थी किन्तु इस सबसे यात्रियों को जो परेशानी होती है उसका कोई कुछ नहीं कर सकता, ये एक सबसे बड़ी समस्या है। यद्यपि अभय को समय का आभास ही इतना नहीं हुआ था क्योंकि वो तो अपने परिवार और अपने बीवी बच्चों के बारे में ही सोचता रहा था। रह रह कर उसके मन में ये विचार उठता कि उसने अपनी देवी समान भाभी के साथ अच्छा नहीं किया। उसे अपने भतीजे का भी ख़याल आता कि कैसे वह उसे हमेशा इज्जत व सम्मान देता था। परिवार में वही एक लड़का था जिस पर संस्कार और शिष्टाचार कूट कूट कर भरे हुए थे। उसे अपने इस भतीजे पर बड़ा स्नेह और फक्र भी होता था। उसकी भतीजी निधि उसकी लाडली थी। वह परिवार में सबसे ज्यादा निधि को ही प्यार और स्नेह देता था। सब जानते थे कि अभय गुस्सैल स्वभाव का था किन्तु उसका गुस्सा कपूर की तरह उस वक्त काफूर हो जाता जब उसकी लाडली भतीजी अपनी चंचल व नटखट बातों से उसे पहले तो मनाती फिर खुद ही रूठ जाती उससे। उसका अपनी किसी भी बात के अंत में 'हाॅ नहीं तो' जोड़ देना इतना मधुर और हृदय को छू लेने वाला होता कि अभय का सारा गुस्सा पल में दूर हो जाता और वह अपनी लाडली भतीजी को खूब प्यार करता। परिवार की बाॅकी दो भतीजियाॅ उसके पास नहीं आती थी, क्यों कि वो सब उससे डरती थी।
अभय का दिलो दिमाग़ गुज़री हुई बातों को सोच सोच कर बुरी तरह दुखी होता और उसकी आॅखें भर आतीं। वह अपने मन में कई तरह के संकल्प लेता हुआ खुद के मन को हल्का करने की कोशिश करता रहा था।
आख़िर वह समय भी आ ही गया जब ट्रेन मुम्बई के कुर्ला स्टेशन पर पहुॅची। अभय अपनी सोचों के अथाह समुद्र से बाहर आया और उठ कर गेट की तरफ चल दिया। काफी भीड़ थी अंदर, लोग जल्द से जल्द नीचे उतरने के लिए जैसे मरे जा रहे थे। अभय खुद भी लोगों के बीच धक्के खाते हुए गेट की तरफ आ रहा था। हलाॅकि खड़ा वह गेट के थोड़ा पास ही था किन्तु वह इसका क्या करता कि पीछे से आॅधी तूफान बन कर आते हुए लोग बार बार उसे पीछे धकेल कर खुद आगे निकल जाते थे। वह बेचारा बेज़ुबान सा हो गया था। कदाचित् उसकी मानसिक स्थित उस वक्त ऐसी नहीं थी कि वह लोगों के द्वारा खुद को बार बार पीछे धकेल दिये जाने पर कोई प्रतिक्रिया कर सके।
कुछ देर बाद आख़िर वह गेट के पास पहुॅचा और ट्रेन से नीचे उतर गया। प्लेटफार्म पर आदमी ही आदमी नज़र आए उसे। उसे समझ न आया कि किस तरफ जाए? इतने बड़े मुम्बई शहर में वह अपनी भाभी व उनके दोनो बच्चों को कहाॅ और कैसे ढूॅढ़ेगा? उसका तो खुद का कहीं ठिकाना नहीं था। उसे अब महसूस हुआ कि वो कितना असहाय और थका हुआ लग रहा है। भूख और प्यास ने जैसे उस पर अब अपना असर दिखाना शुरू कर दिया था। वह अपने साथ खाने पीने की कोई चीज़ लेकर नहीं चला था। कल अपने दोस्त के घर से खाकर ही चला था। हलाॅकि इतने बड़े सफर के लिए उसके दोस्त की बीवी ने खाने का एक टिफिन तैयार कर दिया था किन्तु अभय ने जाने क्या सोच कर मना कर दिया था।
ट्रेन से उतर कर अभय ने उसी तरफ चलने के लिए अपने कदम बढ़ाए जिस तरफ सारे लोग जा रहे थे। अभी वह कुछ कदम ही चला था कि एक कुली उसके पास आया और उसके अत्यंत निकट आकर बड़े ही रहस्यमय किन्तु संतुलित स्वर में बोला__"साहब जी! आपके भतीजे विराज जी आपको लाने के लिए हमें भेजे हैं। कृपया आप मेरे साथ जल्दी चलें।"
अभय सिंह को पहले तो कुछ समझ न आया फिर जब उसके विवेक ने काम किया तो कुली की इस बात को समझ कर वह बुरी तरह चौंका। उसके चेहरे पर अविश्वास के भाव नाच उठे। उसके मुख से हैरत में डूबा हुआ स्वर निकला__"क् कौन हो तुम? और कहाॅ है मेरा भतीजा?"
"साहब जी अभी आप ज्यादा कुछ न बोलिए।" उस कुली ने कहा__"बस मेरे साथ चलिए और अपना ये बैग मुझे दीजिए। और हाॅ, आप चेहरे से ऐसा ही दर्शाइये जैसे आप अपना सामान कुली को देकर उसके साथ बाहर जा रहे हैं। इधर उधर कहीं मत देखिएगा।"
"अरे...ऐसे कैसे भाई?" अभय को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि ये क्या हो रहा है उसके साथ__"कौन हो तुम और ये सब क्या है?"
"ओह साहब जी समझने की कोशिश कीजिए।" कुली ने चिन्तित स्वर में कहा__"यहाॅ पर ख़तरा है आपके लिए। इस लिए जल्दी से चलिए मेरे साथ। स्टेशन से बाहर आपके भतीजे विराज जी आपकी प्रतीक्षा कर रहे हैं।"
अभय के दिलो दिमाग़ में झनाका सा हुआ। एकाएक ही उसके दिमाग़ की बत्ती जल उठी। उसके मन में विचार उठा कि ये आदमी मुझे जानता है और मेरे लिए ही आया है, वरना दूसरे किसी आदमी को ये सब भला कैसे पता होता? दूसरी बात ये विराज का नाम ले रहा है और कह रहा है कि मेरा भतीजा स्टेशन से बाहर मेरी प्रतीक्षा कर रहा है। लेकिन ख़तरा किस बात का है यहाॅ??
अभय को पूरा मामला तो समझ न आया किन्तु उसने इतना अवश्य किया कि अपना बैग उस कुली को दे दिया। कुली उसका बैग लेकर तुरंत ही पलटा और स्टेशन के बाहर की तरफ चल दिया। उसके पीछे पीछे अभय भी चल दिया। दिमाग़ में कई तरह के विचारों का अंधड़ सा मचा हुआ था उसके।
स्टेशन से बाहर आकर वो कुली अभय को लिए एक टेक्सी के पास पहुॅचा। टैक्सी के अंदर बैग रख कर कुली ने अभय को टैक्सी के अंदर बैठने को कहा। लेकिन अभय न बैठा, उसने सशंक भाव से देखा कुली की तरफ। तब कुली ने एक तरफ हाॅथ का इशारा किया। अभय ने उस तरफ देखा तो चौंक गया, क्योंकि जिस तरफ कुली ने इशारा किया था उस तरफ उसका भतीजा विराज खड़ा था। विराज ने दूर से ही टैक्सी में बैठ जाने के लिए इशारा किया।
अभय अपने भतीजे को देख खुश हो गया और उसने राहत की सास भी ली। वह जल्द ही टैक्सी में बैठ गया। टैक्सी के अंदर चार आदमी थे। अभय के बैठते ही टैक्सी तुरंत आगे बढ़ गई। अभय को ऐसा प्रतीत हुआ जैसे ये सब पहले से ही प्लान बनाया हुआ था। किन्तु उसे ये समझ न आया कि इस सबकी क्या ज़रूरत थी? आख़िर ये क्या चक्कर है?
"तुम सब लोग कौन हो भाई?" टैक्सी के कुछ दूर जाते ही अभय ने पूछा__"और ये सब क्या चक्कर है? मेरा मतलब है कि मुझे इस तरह रहस्यमय तरीके से क्यों ले जाया जा रहा है?"
"साहब जी ये तो हम भी नहीं जानते कि क्या चक्कर है?" कुली बने शंकर ने कहा__"हम तो वही कर रहे हैं जो करने के लिए विराज साहब ने हमे आदेश दिया था।"
अभय ये सुन कर मन ही मन चौंका कि ये विराज को साहब क्यों कह रहा है? किन्तु फिर प्रत्यक्ष में बोला__"ओह, तो अभी हम कहाॅ चल रहे हैं? और मेरा भतीजा विराज कहाॅ गया? वो इस टैक्सी में क्यों नहीं आया?"
"वो अपनी कार में हैं साहब जी।" शंकर ने कहा__"वो हमें आगे एक जगह मिलेंगे।"
"अ अपनी..क..कार में?" अभय लगभग उछल ही पड़ा था। उसे इस बात ने उछाल दिया कि उसके भतीजे के पास कार कहाॅ से आ गई? वह तो खुद भी यही समझ रहा था कि विराज कोई मामूली सा काम करता होगा यहाॅ।
"जी साहब जी।" उधर अभय के मनोभावों से अंजान शंकर ने कहा__"आगे एक जगह पर हमें विराज साहब मिल जाएॅगे। फिर आपको उनके साथ उनकी कार में बैठा कर हम इस टैक्सी को वापस कर देंगे जहाॅ से लाए थे।"
"क्या मतलब?" अभय चौंका, झटके पर झटके खाते हुए पूछा__"कहाॅ से लाए थे इसे? क्या ये टैक्सी तुम्हारी नहीं है?"
"नहीं साहब जी, ये टैक्सी तो हमने किराए पर ली थी।" शंकर ने कहा__"विराज साहब ने ऐसा ही कहा था। बाॅकी सारी बातें वही बताएॅगे आपको।"
अभय उसकी बात सुनकर चुप रह गया। उसे समझ में आ चुका था कि सारी बातें विराज से ही पता चलेंगी। क्योंकि इन्हें ज्यादा कुछ पता नहीं है। शायद विराज ने इन्हें नहीं बताया था। पर ये लोग विराज को साहब क्यों कह रहे हैं? क्या वो इन लोगों का साहब है? अभय का दिमाग़ जैसे जाम सा हो गया था।
अभय को ये बात हजम नहीं हो रही थी। लेकिन उसने फिर कुछ न कहा। टैक्सी तेज़ रफ्तार से कई सारे रास्तों में इधर उधर चलती रही। कुछ ही देर में टैक्सी एक जगह पहुॅच कर रुक गई। टैक्सी के रुकते ही शंकर नीचे उतरा और पीछे का गेट खोल कर अभय को उतरने का संकेत दिया। अभय उसके संकेत पर टैक्सी से उतर आया। अभी वह टैक्सी से उतर कर ज़मीन पर खड़ा ही हुआ था कि तभी।
"प्रणाम चाचा जी।" अभय के उतरते ही एक तरफ से आकर विराज ने अभय के पैर छूकर कहा__"माफ़ कीजिएगा आपको इस तरह यहाॅ लाना पड़ा।"
"अरे राज तुम?? सदा ही खुश रहो।" अभय ने कहा और एकाएक ही भावना में बह कर उसने विराज को अपने गले से लगा लिया, फिर बोला__"आ मेरे गले लग जा मेरा शेर पुत्तर। कदाचित् मेरे दिल को ठंडक मिल जाए।"
अभय की आॅखों में आॅसू छलक आए थे। उसने बड़े ज़ोर से विराज को भींच लिया था। विराज को भी आज अपने चाचा जी के इस तरह गले लगने से बड़ा सुकून मिल रहा था। आज मुद्दतों बाद कोई अपना इस तरह मिला था। शिकवे गिले तो बहुत थे लेकिन सब कुछ भूल गया था विराज। कुछ देर ऐसे ही दोनो गले मिले रहे। फिर अलग हुए। अभय अपने दोनो हाॅथों से विराज का सुंदर सा चेहरा सहला कर उसके शरीर के बाॅकी हिस्सों को देखने लगा।
"कितना दुबला हो गया है मेरा बेटा।" अभय ने भर्राए स्वर में कहा__"पगले अपना ठीक से ख़याल क्यों नहीं रखता है तू? और भ भाभी कैसी हैं...और...और वो मेरी लाडली गुड़िया कैसी है..बता मुझे??"
"सब लोग एकदम ठीक हैं चाचा जी।" विराज ने कहा__"चलिए हम वहीं चलते हैं।"
"हाॅ हाॅ चल राज।" अभय ने तुरंत ही कहा__"मुझे जल्दी से ले चल उनके पास। मुझे भाभी के पास ले चल...मुझे उनसे....।"
वाक्य अधूरा रह गया अभय सिंह का..क्यों कि दिलो दिमाग़ में एकाएक ही तीब्रता से जज्बातों का उबाल सा आ गया था। जिसकी वजह से उसका गला भारी हो गया और उसके मुख से अल्फाज़ न निकल सके।
विराज अपने साथ अभय को लिए कुछ ही दूरी पर खड़ी अपनी कार के पास पहुॅचा। फिर उसने कार का दूसरी तरफ वाला गेट खोल कर अंदर अभय को बैठाया। इस बीच शंकर ने अभय का बैग विराज की कार के अंदर रख दिया था। विराज खुद ड्राइविंग डोर खोल कर ड्राइविंग शीट पर बैठ गया। खिड़की के पास आ गए शंकर से उसने कहा__"उस टैक्सी को वापस कर देना। और ये पैसे रामू को दे देना, और ये तुम सब के लिए।"
विराज ने कार में ही रखे एक छोटे से ब्रीफकेस को खोल कर उसमे से दो हज़ार के नोटों की एक गड्डी शंकर को पकड़ाया था जो रामू की बेटी के इलाज़ के लिए था बाॅकी अलग से दो सौ के नोटों की एक गड्डी उन चारों के लिए। पैसे लेकर चारो ही खुशी खुशी वहाॅ से चले गए।
विराज ने कार स्टार्ट की और आगे चल दिया। अभय ये सब देख कर हैरान भी था और खुश भी।
"ये सब क्या चक्कर था राज?" अभय ने पूछा__"उन लोगों ने बताया कि ये सब करने के लिए उन्हें तुमने कहा था, लेकिन इस सबकी क्या ज़रूरत थी भला?"
"ऐसा करना ज़रूरी था चाचा जी।" विराज ने ड्राइविंग करते हुए कहा__"क्योंकि आपके पीछे कुछ ऐसे आदमी लगे थे जो आपकी निगरानी के लिए लगाए गए थे, बड़े पापा जी के द्वारा।"
"क क्या मतलब??" अभय बुरी तरह चौंका था, बोला__"बड़े भइया ने अपने आदमी मेरे पीछे लगा रखे थे? लेकिन क्यों और कैसे? और...और तुझे कैसे पता ये सब?"
"मुझे सबका पता रहता है चाचा जी।" विराज ने कहा__"वक्त और हालात ने सब कुछ सिखा दिया है आपके इस बेटे को। कल जब आप गाॅव से चले थे तब आपके वहाॅ से चलने की सूचना मुझे मेरे एक दोस्त ने फोन पर दी थी। उसने बताया था कि हवेली में कुछ बातचीत हो गई थी और आप हम लोगों से मिलने के लिए मुम्बई निकल चुके हैं। उसने ये भी बताया कि आपके पीछे बड़े पापा ने अपने आदमी भी लगा दिये हैं जो यहीं मुम्बई में हमारी खोज में न जाने कब से मौजूद थे।"
"ओह तो भइया ने ऐसा भी कर दिया मेरे पीछे?" अभय का चेहरा एकाएक सुलगता सा प्रतीत हुआ__"खैर कोई बात नहीं, उनसे उम्मींद भी क्या की जा सकती है? ख़ैर, तो तुम्हें इस सबकी जानकारी तुम्हारे दोस्त ने दी थी फोन के माध्यम से?"
"जी चाचा जी।" विराज ने कहा__"मुझे लगा कहीं आप पर किसी प्रकार का कोई ख़तरा न हो इस लिए मैने ऐसा किया। मैं खुद स्टेशन के अंदर नहीं गया क्योंकि संभव है बड़े पापा के आदमियों की नज़र मुझ पर पड़ जाती, उसके बाद उनके लिए हर काम आसान हो जाता। इस लिए मैंने उन सबसे बचने का ये उपाय किया। कुली के वेश में मेरे आदमी आपको सुरक्षित स्टेशन से बाहर ले आएॅगे। उसके बाद आपको टैक्सी में बैठा कर मेरे आदमी शहर में तब तक इधर उधर सड़कों में घूमते जब तक कि उन्हें ये एहसास न हो जाए कि किसी के द्वारा उनका पीछा अब नहीं किया जा रहा है। कहने का मतलब ये कि अगर बड़े पापा के आदमी किसी तरह आपको देख लिये हों और आपका पीछा करने लगे हों तो मेरे आदमी टैक्सी को तेज़ रफ्तार में इधर उधर घुमा कर उन आदमियों को गोली दे देंगे। उसके बाद मेरे आदमी सीधा वहाॅ आ जाते जहाॅ पर मैंने उन्हें अपने पास आने को बोला था। यहाॅ से मैं आपको अपनी कार में बैठा कर ले जाता। बड़े पापा के आदमी ढूॅढ़ते ही रह जाते उस टैक्सी को।"
"ओह तो ये प्लान था तुम्हारा?" अभय ये सोच सोच कर हैरान था कि उसका इतना संस्कारी और भोला भाला भतीजा आज इतना कुछ सोचने लगा है, बोला__"बहुत अच्छा किया तुमने राज। मैं तुम्हारी इस समझदारी से बहुत खुश हूॅ।" अभय कुछ पल रुका और फिर एकाएक ही उसके चेहरे पर दुख के भाव आ गए, बोला__" कितना ग़लत था मैं....अपने क्रोध और अविवेक के कारण कभी नहीं सोच सका कि वास्तव में क्या सही था क्या ग़लत? अपने देवता जैसे विजय भइया और देवी जैसी अपनी गौरी भाभी पर शक किया और उनसे ये भी न जानने की कोशिश की कभी कि उन पर लगाए गए आरोप सच भी हैं या ये सब आरोप किसी साजिश के तहत उन पर थोपे गए थे? राज बेटे, अपने देवी देवता जैसे भईया भाभी के साथ मैने ये अच्छा नहीं किया। भगवान मुझे इस सबके लिए कभी माफ़ नहीं करेगा।"
ये कहने के साथ ही अभय की आवाज़ भर्रा गई। उसका चेहरा दुख और ग्लानिवश बिगड़ गया। उसकी आॅखों से आॅसू बह चले। विराज अपने चाचा जी के इस रूप को देख कर खुद भी दुखी हो गया था। वह जानता था कि उसके चाचा चाची का कहीं कोई दोष नहीं था। उनका अपराध तो सिर्फ इतना था कि उन्हें जो कुछ बताया और दिखाया गया था उसी को उन्होंने सच मान लिया था। अपने क्रोध की वजह से चाचा ने कभी ये जानने की कोशिश ही नहीं की थी कि सच्चाई वास्तव में क्या थी?
खैर कुछ ही समय में विराज अपने घर पहुॅच गया। एक बड़े से मेन गेट पर दो गार्ड खड़े थे। विराज की कार देखते ही दोनो गार्ड्स ने मेन गेट खोला। उसके बाद विराज ने कार को अंदर की तरफ बढ़ा दिया। लम्बे चौड़े लान से चलते हुए उसकी कार पोर्च में आकर खड़ी हो गई। दोनो चाचा भतीजा अपनी अपनी तरफ का गुट खोल कर नीचे उतरे। अभय की नज़र जब सामने बड़े से बॅगला टाइप घर पर पड़ी तो वह आश्चर्यचकित सा होकर देखने लगा उसे। इधर उधर दृष्टि घुमा कर देखने लगा हर चीज़ों को।
"राज बेटा ये कहाॅ आ गए हम?" अभय ने अजीब भाव से पूॅछा__"ये तो किसी बहुत ही बड़े आदमी का बॅगला लगता है।"
"आपने बिलकुल सही कहा चाचा जी ये किसी बहुत बड़े आदमी का ही बॅगला है लेकिन।" विराज ने कहा__"लेकिन अब ये बॅगला और ये सब प्रापर्टी आपके इस राज बेटे की ही है।"
"क् क्याऽऽ?????" अभय बुरी तरह चौंका था। आश्चर्य और अविश्वास से उसका मुह खुला का खुला रह गया, बोला__"ये ये सब तेरा है?? लेकिन ये सब तेरा कैसे हो गया राज? क्या तू सच कह रहा है?"
"चलिए अंदर चलते हैं।" विराज ने हल्के से मुस्कुरा कर कहा__" माॅ और गुड़िया आपका इन्तज़ार कर रही हैं।"
अभय विराज की इस बात पर उसके साथ बॅगले के अंदर की तरफ बढ़ा ही था कि कोई तेज़ी से आया और एक झटके से उससे लिपट गया। अभय इस सबसे पहले तो हड़बड़ाया फिर जब उसकी नज़र लिपटने वाले पर पड़ी तो अनायास ही मुस्कुरा उठा वह।
"अरे ये तो मेरी लाडली गुड़िया है।" अभय ने निधि के सिर पर स्नेह से हाथ फेरते हुए कहा__"राज, ये मेरी गुड़िया है, ये...।"
अभय का गला भर आया, उसके जज्बात उसके काबू में न रहे। उसने निधि को अपने से छुपका लिया और रो पड़ा वह। उसे इस ख़याल ने बुरी तरह रुला दिया कि आज मुद्दतों के बाद उसने अपनी गुड़िया पर अपना प्यार लुटाने को मिला है। इसके पहले तो वह जैसे पत्थर का बन गया था। उसके दिलो दिमाग़ में इन सबके लिए क्रोध और घृणा भर दी गई थी। पहले जब उसकी भाभी और गुड़िया खेतों पर बने मकान के एक कमरे में रहती थीं तो वह किसी किसी दिन जाता था लेकिन फिर जैसे ही उसे उस सबका ख़याल आता वैसे ही उसका मन क्रोध और गुस्से से भर जाता और वह पत्थर का बन कर वापस चला आता। अपनी लाडली को प्यार व स्नेह देने के लिए वह तड़प जाता लेकिन आगे बढ़ने से हमेशा ही खुद को रोंक लेता था वह।
"आप आ गए न चाचू" निधि ने रोते हुए कहा__"मैं जानती थी कि आप मेरे बिना ज्यादा दिन नहीं रह सकेंगे वहाॅ पर। लेकिन आने में इतनी देर क्यों कर दी आपने? जाइये आपसे बात नहीं करना मुझे, हाॅ नहीं तो।"
ये कह कर निधि अपने चाचू से अलग हो गई और रूठ कर एक तरफ को मुह कर लिया। अभय को लगा कि उसका हृदय फट जाएगा। अपनी गुड़िया के मुख से बस यही सुनने के लिए तो तरस गया था वह। 'हाॅ नहीं तो' जाने इन शब्दों में ऐसा क्या था कि सुन कर अभय को लगा कि इन शब्दों को सुनने के बाद इस वक्त अगर उसे मृत्यु भी आ जाए तो उसे कोई ग़म न होगा।
"तू रूठ जाएगी तो मैं समझूॅगा कि मुझसे ये सारा संसार रूठ गया मेरी बच्ची।" अभय ने तड़प कर कहा__"यहाॅ तक कि वो ईश्वर भी। और फिर उसके बाद मेरे लिए एक पल भी जीने का कोई मतलब नहीं रह जाएगा।"
"न नहीं चाचू नहीं।" निधि तुरंत ही अभय से लिपट गई। उसकी आॅखों से आॅसू बह चले। रोते हुए बोली__"प्लीज ऐसा मत कहिए। आप तो मेरे सबसे अच्छे चाचू हैं। मैं आपसे नाराज़ नहीं हूॅ। और हाॅ आज के बाद ऐसा कभी मत बोलियेगा नहीं तो सच में मैं आपसे बात नहीं करूॅगी, हाॅ नहीं तो।"
जाने कितनी ही देर तक अभय अपनी लाडली को स्नेह और प्यार के वशीभूत हुए खुद से छुपकाए रहा। उसके सिर पर प्यार से हाॅथ फेरता रहा। विराज ये सब नम आॅखों से देखता रहा।
"अगर अपनी लाडली भतीजी से मिलना जुलना हो गया हो तो अपनी भाभी से भी मिल लो अभय।" सहसा गौरी की ये आवाज़ गूॅजी थी वहाॅ। वह काफी देर से बॅगले के मुख्य दरवाजे पर खड़ी ये सब देख रही थी। उसकी आॅखों में भी आॅसू थे।
गौरी की इस आवाज़ को सुन कर अभय और निधि एक दूसरे से अलग हुए। अभय ने पलट कर गौरी की तरफ देखा। जो उसी की तरफ करुण भाव से देख रही थी। उसकी आॅखों में अपने लिए वही आदर वही स्नेह देख कर अभय का दिलो दिमाग़ अपराध बोझ से भर गया। उसे खुद पर इतनी शर्म और ग्लानी महसूस हुई कि उसे लगा ये धरती फटे और वह उसमें रसातल तक समाता चला जाए। दिलो दिमाग़ में भावनाओं का तेज़ तूफान चलने लगा। हृदय की गति तीब्र हो गई। उसे अपनी जगह पर खड़े रहना मुश्किल सा प्रतीत होने लगा।
बड़ी मुश्किल से उसने खुद को सम्हाला और नयनों में नीर भरे वह तेज़ी से गौरी की तरफ बढ़ा। गौरी के पास पहुॅचते ही वह अपनी देवी समान भाभी के पैरों में लगभग लोट सा गया। उसके जज्बात उसके काबू से बाहर हो गए। फूट फूट कर रो पड़ा वह। मुह से कोई वाक्य नहीं निकल रहे थे उसके।
अपने पुत्र समान देवर को इस तरह बच्चों की तरह रोते देख गौरी का हृदय हाहाकार कर उठा। वह जल्दी से नीचे झुकी और अभय को उसके दोनो कंधों से पकड़ कर बड़ी मुश्किल से उठाया उसने। अभय उससे नज़र नहीं मिला पा रहा था। उसका समूचा चेहरा आॅसुओं से तर था।
"अरे ऐसे क्यों रहे हो पागल?" गौरी खुद भी रोते हुए बोली__"चुप हो जाओ। तुम जानते हो कि मैने हमेशा तुम्हें अपने बेटे की तरह समझा है। इस लिए तुम्हें इस तरह रोते हुए नहीं देख सकती। चुप हो जाओ अभय। अब बिलकुल भी नहीं रोना।"
ये कह कर गौरी ने अभय को अपने सीने से लगा लिया। अपनी भाभी की ममता भरी इन बातों से अभय और भी सिसक सिसक कर रो पड़ा। उसकी आत्मा चीख चीख कर जैसे उससे कह रही थी 'देख ले अभय जिस देवी समान भाभी पर तूने शक किया था और उनके ऊपर लगाए गए आरोपों को सच समझ कर उनसे मुह मोड़ लिया था, आज वही देवी समान भाभी तुझे अपने बेटे की तरह प्यार व स्नेह देकर अपने सीने से लगा रखी है। उसके मन में लेश मात्र भी ये ख़याल नहीं है कि तुमने उनके और उनके बच्चों से किस तरह मुह मोड़ लिया था?'
अभय अपनी आत्मा की इन बातों से बहुत ज्यादा दुखी हो गया। उसे खुद से बेहद घृणा सी होने लगी थी।
"मुझे इस प्रकार अपने ममता के आचल में मत छुपाइये भाभी।" अभय गौरी से अलग होकर बोला__"मैं इस लायक नहीं हूॅ। मैं तो वो पापी हूॅ जिसके अपराधों के लिए कोई क्षमा नहीं है। अगर कुछ है तो सिर्फ सज़ा। हाॅ भाभी....मुझे सज़ा दीजिए। मैं आप सबका गुनहगार हूॅ।"
"ये कैसी पागलपन भरी बातें कर रहे हो अभय?" गौरी ने दोनो हाॅथों के बीच अभय का चेहरा लेकर कहा__"किसने कहा तुमसे कि तुमने कोई अपराध किया है? अरे पगले, मैंने तो कभी ये समझा ही नहीं कि तुमने कोई अपराध किया है। और जब मैने ऐसा कुछ समझा ही नहीं तो क्षमा किस बात के लिए? हाॅ ये दुख अवश्य होता था कि जिस अभय को मैं अपने बेटे की तरह मानती थी वह जाने क्यों अपनी भाभी माॅ से अब मिलने नहीं आता? क्या उसकी भाभी माॅ इतनी बुरी बन गई थी कि वो अब मुझसे बात करने की तो बात ही दूर बल्कि नज़र भी ना मिलाए?"
"इसी लिए तो कह रहा हूॅ भाभी।" अभय रो पड़ा__"इसी लिए तो....कि मैं अपराधी हूॅ। मेरा ये अपराध क्षमा के लायक नहीं है। मुझे इसके लिए सज़ा दीजिए।"
"मैंने तुम्हें हमेशा अपना बेटा ही समझा है अभय।" गौरी ने अभय की आॅखों से आॅसू पोंछते हुए कहा__"इस लिए माॅ अपने बेटे की किसी ग़लती को ग़लती नहीं मानती। बल्कि वह तो उसे नादान समझ कर प्यार व स्नेह ही करने लगती है। चलो, अब अंदर चलो।"
गौरी ने ये कह अभय को उसके कंधों से पकड़ कर अंदर की तरफ चल दी। उसके पीछे विराज और निधि भी अपनी अपनी आॅखों से आॅसू पोंछ कर चल दिये।
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"तुम लोग सब के सब एक नम्बर के निकम्मे हो।" उधर हवेली में अजय सिंह फोन पर दहाड़ते हुए कह रहा था__"किसी काम के नहीं हो तुम लोग। पिछले एक महीने से तुम लोग वहाॅ पर केवल मेरे रुपयों पर ऐश फरमा रहे हो। एक अदना सा काम सौंपा था तुम लोगों को और वह भी तुम लोगों से नहीं हुआ। हर बार अपनी नाकामी की दास्तान सुना देते हो तुम लोग।"
"......................।" उधर से कुछ कहा गया।
"कोई ज़रूरत नहीं है।" अजय सिंह गस्से में गरजते हुए बोला__"तुम लोगों के बस का कुछ नहीं है। इस लिए फौरन चले आओ वहाॅ से।"
ये कह कर अजय सिंह ने मारे गुस्से के लैंड लाइन फोन के रिसीवर को केड्रिल पर लगभग पटक सा दिया था। उसके बाद ड्राइंगरूम के फर्स पर बिछे कीमती कालीन को रौंदते हुए आकर वह वहीं सोफे पर धम्म से बैठ गया।
सामने के सोफे पर बैठी प्रतिमा क्रोध और गुस्से में उबलते अपने पति को एकटक देखती रही। इस वक्त कुछ भी बोलने की हिम्मत नहीं हुई थी उसमे। जबकि अजय सिंह का चेहरा गुस्से में तमतमाया हुआ लाल सुर्ख पड़ गया था। कुछ पल शून्य में घूरते हुए वह लम्बी लम्बी साॅसें लेता रहा। उसके बाद उसने कोट की जेब से सिगारकेस निकाला और उससे एक सिगार निकाल कर होठों के बीच दबा कर उसे लाइटर से सुलगाया। दो चार लम्बे लम्बे कश लेने के बाद उसने उसके गाढ़े से धुएॅ को अपने नाक और मुह से निकाला।
"तुझे तो कुत्ते से भी बदतर मौत दूॅगा हरामज़ादे।" सहसा वह दाॅत पीसते हुए कह उठा__"बस एक बार मेरे हाॅथ लग जा तू। उसके बाद देख कि क्या हस्र करता हूॅ तेरा?"
"क्या बात है अजय?" प्रतिमा ने सहसा मौके की नज़ाक़त को देखकर पूछा__"फोन पर क्या बातें बताई तुम्हारे आदमियों ने?"
"सबके सब हरामज़ादे निकम्मे हैं।" अजय सिंह कुढ़ते हुए बोला__"आने दो सालों को एक लाइन से खड़ा करके गोली मारूॅगा मैं"
"अरे पर बात क्या हुई अजय?" प्रतिमा चौंकी थी__"तुम इतना गुस्से में क्यों पगलाए जा रहे हो?"
"तो क्या करूॅ मैं?" अजय सिंह जैसे बिफर ही पड़ा, बोला__"अपने आदमियों की एक और नाकामी की बात सुन कर क्या मैं कत्थक करने लग जाऊॅ?"
"एक और नाकामी???" प्रतिमा उछल सी पड़ी थी, बोली__"ये क्या कह रहे हो तुम?"
"हाॅ प्रतिमा।" अजय सिंह बोला__"फोन पर मेरे आदमियों ने बताया कि अभय उन्हें गच्चा दे गया।"
"गच्चा दे गया??" प्रतिमा ने ना समझने वाले भाव से कहा__"इसका क्या मतलब हुआ?"
"मेरे आदमियों के अनुसार।" अजय सिंह ने कहा__"अभय उन्हें ट्रेन से उतरते हुए दिखा। उसके बाद वह किसी कुली को अपना बैग देकर उसके साथ स्टेशन के बाहर चला गया। बाहर आकर वह एक टैक्सी में बैठा और वहाॅ से आगे बढ़ गया। मेरे आदमी भी उस टैक्सी के पीछे लग गए। लेकिन उसके बाद वो टैक्सी अचानक ही कहीं गायब हो गई। मेरे उन आदमियों ने उस टैक्सी को बहुत ढूॅढ़ा मगर कहीं उसका पता नहीं चल सका।"
"ये तो बड़ी ही अजीब बात है।" प्रतिमा ने हैरानी से कहा__"कहीं ऐसा तो नहीं कि अभय को इस बात का शक़ हो गया हो कि कोई उसका पीछा कर रहा है और उसने टैक्सी वाले से कहा हो कि वह पीछा करने वालों को गच्चा दे दे।"
"हो सकता है।" अजय सिंह ने सोचने वाले भाव से कहा__"मेरे आदमी ने बताया कि अभय के पास जब कुली आया तो उनके बीच पता नहीं क्या बातें हुईं थी जिसकी वजह से अभय के चेहरे पर चौंकने वाले भाव उभरे थे। ऐसा लगा जैसे वह किसी बात पर चौका हो और वह उस कुली के साथ जाने के लिए तैयार न हुआ था। लेकिन फिर बाद में वह आसानी से अपना बैग कुली को दे दिया और चुपचाप उसके पीछे पीछे चल भी दिया था। चलते समय भी उसके चेहरे पर गहन सोच व उलझन के भाव थे।"
"हाॅ तो इसमें इतना विचार करने की क्या बात है भला?" प्रतिमा ने कहा__"ऐसा तो होता ही है कि आम तौर पर कुलियों की बात पर यात्री लोग इतनी आसानी से आते नहीं हैं। दूसरी बात अभय की उस समय की मानसिक स्थित भी ऐसी नहीं रही होगी कि वह इस तरह किसी कुली के साथ कहीं चल दे।"
"हो सकता है कि तुम्हारी बात ठीक हो लेकिन।" अजय सिंह बोला__"लेकिन इसमें भी सोचने वाली बात तो है ही कि कुली ने ऐसा क्या कहा कि सुनकर अभय बुरी तरह चौंका था और फिर बाद में रहस्यमय तरीके से उस कुली के साथ चल दिया था? कहने का मतलब ये कि उसकी हर एक्टीविटी रहस्यमय लगी थी।"
"अगर ऐसा है भी तो इसमें हम क्या कर सकते हैं?" प्रतिमा ने कहा__"क्योंकि अभय नाम का पंछी तो आपके आदमियों की आॅखों के सामने से गायब ही हो चुका है अब।"
"ये सब मेरे उन हरामज़ादे आदमियों की वजह से ही हुआ है प्रतिमा। खैर छोड़ो ये सब।" अजय सिंह ने गहरी साॅस लेकर कहा__"ये बताओ कि तुमने अपना काम कहाॅ तक पहुॅचाया?"
"अ अपना काम??" प्रतिमा ने ना समझने वाले भाव से कहा__"कौन से काम की बात कर रहे हो तुम?"
"तुम अच्छी तरह जानती हो प्रतिमा कि मैं किस काम के बारे में पूछ रहा हूॅ तुमसे?" अजय सिंह का लहजा सहसा पत्थर की तरह कठोर हो गया__"और अगर तुम इस काम में सीरियस नहीं हो तो बता दो मुझे। अपने तरीके से शिकार करना भली भाॅति आता है मुझे।"
"ओह तो तुम उस काम के बारे में पूछ रहे हो?" प्रतिमा को जैसे ख़याल आया__"यार तुम तो जानते हो कि ये करना इतना आसान नहीं है। भला मैं कैसे अपनी बेटी से ये कह सकूॅगी कि बेटी अपने बाप के पास जा और उनके नीचे लेट जा। ताकि तेरे मदमस्त यौवन का तेरा बाप भोग कर सके।"
"अच्छी बात है प्रतिमा।" अजय सिंह ने ठंडे स्वर में कहा__"अब तुम कुछ नहीं करोगी। जो भी करुॅगा अब मैं ही करूॅगा।"
"न नहीं नहीं अजय।" प्रतिमा बुरी तरह घबरा गई, बोली__"तुम खुद से कुछ नहीं करोगे। मैं अतिसीघ्र ही अपनी बेटी को तुम्हारे नीचे सुलाने के लिए तैयार कर लूॅगी।"
"अब तुम्हारी इन बातों पर ज़रा भी यकीन नहीं है मुझे।" अजय ने कहा__"बहुत देख ली तुम्हारी कोशिशें। तुमने करुणा के बारे में भी यही कहा था और अब अपनी बेटी के लिए भी यही कह रही हो। तुम्हारी कोशिशों का क्या नतीजा निकलता है ये मैं देख चुका हूॅ। इस लिए अब मैं खुद ये काम करूॅगा और तुम मुझे रोंकने की कोशिश नहीं करोगी।"
"पर अजय ये तुम ठीक...।" प्रतिमा का वाक्य बीच में ही रह गया।
"बस प्रतिमा, अब कुछ नहीं सुनना चाहता हूॅ मैं।" अजय सिंह कह उठा__"अब तुम सिर्फ देखो और उसका मज़ा लो।"
प्रतिमा देखती रह गई अजय को। उसका दिल बुरी तरह घबराहट के कारण धड़कने लगा था। चेहरा अनायास ही किसी भय के कारण पीला पड़ गया था उसका। मन ही मन ईश्वर को याद कर उसने अपनी बेटी की सलामती की दुवा की।
अपडेट हाज़िर है दोस्तो,,,,,,
Nice update♡ एक नया संसार ♡
अपडेट.........《 27 》
अब तक,,,,,,,
"अच्छी बात है प्रतिमा।" अजय सिंह ने ठंडे स्वर में कहा__"अब तुम कुछ नहीं करोगी। जो भी करुॅगा अब मैं ही करूॅगा।"
"न नहीं नहीं अजय।" प्रतिमा बुरी तरह घबरा गई, बोली__"तुम खुद से कुछ नहीं करोगे। मैं अतिसीघ्र ही अपनी बेटी को तुम्हारे नीचे सुलाने के लिए तैयार कर लूॅगी।"
"अब तुम्हारी इन बातों पर ज़रा भी यकीन नहीं है मुझे।" अजय ने कहा__"बहुत देख ली तुम्हारी कोशिशें। तुमने करुणा के बारे में भी यही कहा था और अब अपनी बेटी के लिए भी यही कह रही हो। तुम्हारी कोशिशों का क्या नतीजा निकलता है ये मैं देख चुका हूॅ। इस लिए अब मैं खुद ये काम करूॅगा और तुम मुझे रोंकने की कोशिश नहीं करोगी।"
"पर अजय ये तुम ठीक...।" प्रतिमा का वाक्य बीच में ही रह गया।
"बस प्रतिमा, अब कुछ नहीं सुनना चाहता हूॅ मैं।" अजय सिंह कह उठा__"अब तुम सिर्फ देखो और उसका मज़ा लो।"
प्रतिमा देखती रह गई अजय को। उसका दिल बुरी तरह घबराहट के कारण धड़कने लगा था। चेहरा अनायास ही किसी भय के कारण पीला पड़ गया था उसका। मन ही मन ईश्वर को याद कर उसने अपनी बेटी की सलामती की दुवा की।
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अब आगे,,,,,,,,
अभय को अपने साथ लिए गौरी ड्राइंग रूम में दाखिल हुई, उसके पीछे पीछे विराज और निधि भी थे। गौरी ने अभय को सोफे पर बैठाया और खुद भी उसी सोफे पर उसके पास बैठ गई। विराज और निधि सामने वाले सोफे पर एक साथ ही बैठ गये।
अभय सिंह का मन बहुत भारी था। उसका सिर अभी भी अपराध बोझ से झुका हुआ था। गौरी इस बात को बखूबी समझती थी, कदाचित इसी लिए उसने बड़े प्यार से अपने एक हाथ से अभय का चेहरा ठुड्डी से पकड़ कर अपनी तरफ किया।
"ये क्या है अभय?" फिर गौरी ने अधीरता से कहा__"इस तरह सिर झुका कर बैठने की कोई आवश्यकता नहीं है। तुम अपने दिलो दिमाग़ से ऐसे विचार निकाल दो जिसकी वजह से तुम्हें ऐसा लगता है कि तुमने कोई अपराध किया है। तुम्हारी जगह कोई दूसरा होता तो वह भी वही करता जो उन हालातों में तुमने किया। इस लिए मैं ये समझती ही नहीं कि तुमने कोई ग़लती की है या कोई अपराध किया है। इस लिए अपने मन से ये ख़याल निकाल दो अभय और अपने दिल का ये बोझ हल्का करो, जो बोझ अपराध बोझ बन कर तुम्हें शान्ति और सुकून नहीं दे पा रहा है।"
"भाभी आप तो महान हैं इस लिए इस सबसे आप पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता।" अभय ने भारी स्वर में कहा__"किन्तु मैं आप जैसा महान नहीं हूॅ और ना ही मेरा हृदय इतना विशाल है कि उसमें किसी तरह के दुख सहजता से जज़्ब हो सकें। मैं तो बहुत ही छोटी बुद्धि और विचारों वाला हूॅ जिसे कोई भी ब्यक्ति जब चाहे और जैसे भी चाहे अपनी उॅगलियों पर नचा देता है। शायद इसी लिए तो....इसी लिए तो मैं समझ ही नहीं पाया कि कभी कभी जो दिखता है या जो सुनाई देता है वह सिरे से ग़लत भी हो सकता है।"
"ये तुम कैसी बातें कर रहे हो अभय?" गौरी ने दुखी भाव से कहा__"भगवान के लिए ऐसा कुछ मत कहो। अपने अंदर ऐसी ग्लानी मत पैदा करो और ना ही इन सबसे खुद को इस तरह दुखी करो।"
"मुझे कहने दीजिए भाभी।" अभय ने करुण भाव से कहा__"शायद ये सब कहने से मेरे अंदर की पीड़ा में कुछ इज़ाफा हो। आप तो मुझे सज़ा नहीं दे रही हैं तो कम से कम मैं खुद तो अपने आपको सज़ा और तकलीफ़ दे लूॅ। मुझे भी तो इसका एहसास होना चाहिए न भाभी कि जब हृदय को पीड़ा मिलती है तो कैसा लगता है? हमारे अपने जब अपनों को ही ऐसी तक़लीफ़ देते हैं तो उससे हमारी अंतर्आत्मा किस हद तक तड़पती है?"
"नहीं अभय नहीं।" गौरी ने रोते हुए अभय को एक बार फिर से खींच कर खुद से छुपका लिया, बोली__"ऐसी बातें मत करो। मैं नहीं सुन सकती तुम्हारी ये करुण बातें। मैंने तुम्हें अपने बेटे की तरह हमेशा स्नेह दिया है। भला, मैं अपने बेटे को कैसे इस तरह तड़पते हुए देख सकती हूॅ? हर्गिज़ नहीं....।"
देवर भाभी का ये प्यार ये स्नेह ये अपनापन आज ढूॅढ़ने से भी शायद कहीं न मिले। विराज और निधि आॅखों में नीर भरे उन्हें देखे जा रहे थे। कितनी ही देर तक गौरी अभय को खुद से छुपकाए रही। सचमुच इस वक्त ऐसा लग रहा था जैसे अभय दो दो बच्चों का बाप नहीं बल्कि कोई छोटा सा अबोध बालक हो।
"राज।" सहसा गौरी ने विराज की तरफ देख कर कहा__"तुम अपने चाचा जी को उनके रूम में ले जाओ। लम्बे सफर की थकान बहुत होगी। नहा धो कर फ्रेस हो जाएॅगे तो मन हल्का हो जाएगा।"
"जी माॅ।" विराज तुरंत ही सोफे से उठ कर अभय के पास पहुॅच गया। गौरी के ज़ोर देने पर अभय को विराज के साथ कमरे में जाना ही पड़ा। जबकि अभय और विराज के जाने के बाद गौरी उठी और अपनी आॅखों से बहते हुए आॅसुओं को पोंछते हुए किचेन की तरफ बढ़ गई।
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हवेली में डोर बेल की आवाज़ सुनकर प्रतिमा ने जाकर दरवाजा खोला। दरवाजे के बाहर खड़े जिस चेहरे पर उसकी नज़र पड़ी उसे देख कर वह बुरी तरह चौंकी।
"अरे नैना तुम??" प्रतिमा का हैरत में डूबा हुआ स्वर__"आओ आओ अंदर आओ। आज इतने महीनों बाद तुम्हें देख कर मुझे बेहद खुशी हुई।"
दोस्तो ये नैना है....आप सबको तो बताया ही जा चुका है परिवार के सभी सदस्यों के बारे में। फिर भी अगर आप भूल गए हैं तो आप एक बार इस कहानी का पहला अपडेट चेक कर सकते हैं। पहले अपडेट में आपको पता चल जाएगा कि नैना कौन है?
नैना जैसे ही दरवाजे के अंदर आई प्रतिमा ने उसे अपने गले से लगा लिया। प्रतिमा ने महसूस किया कि नैना के हाव भाव बदले हुए हैं। प्रतिमा की बात का उसने मुख से कोई जवाब नहीं दिया था बल्कि वह सिर्फ हल्का सा मुस्कुराई थी। उसकी मुस्कान भी शायद बनावटी ही थी। क्योंकि चेहरे के भाव उसकी मुस्कान से बिलकुल अलग थे।
"दामाद जी कहाॅ हैं?" नैना से अलग होकर प्रतिमा ने दरवाजे के बाहर झाॅकने के बाद पूछा था।
"मैं अकेली ही आई हूॅ भाभी।" नैना ने अजीब भाव से कहा__"सब कुछ छोंड़ कर।"
"क्याऽऽ???" नैना की बात सुनकर प्रतिमा ने चौंकते हुए कहा__"सब कुछ छोंड़ कर से क्या मतलब है तुम्हारा??
"मैंने आदित्य को तलाक दे दिया है।" नैना ने कठोरता से कहा__"अब उससे और उसके घर वालों से मेरा कोई रिश्ता नहीं रहा।"
"त तलाऽऽक????" प्रतिमा बुरी तरह उछल पड़ी__"ये क्या कह रही हो तुम?"
"हाॅ भाभी।" नैना ने कहा__"मैने उस बेवफा को तलाक दे दिया है, और उससे सारे रिश्ते नाते तोड़ कर वापस अपने माॅ बाप व भइया भाभी के पास आ गई हूॅ।"
प्रतिमा की अजीब हालत हो गई उसकी बातें सुनकर। हैरत व अविश्वास से मुह फाड़े वह अपनी छोटी ननद नैना को अपलक देखे जा रही थी। फिर सहसा उसकी तंद्रा तब भंग हुई जब उसके कानों में अंदर से आई उसके पति अजय की आवाज़ गूॅजी। अंदर से अजय सिंह ने आवाज़ लगा कर पूछा था कि कौन आया है बाहर?
अजय सिंह की आवाज़ से प्रतिमा को होश आया जबकि नैना अपने हाॅथ में पकड़ा हुआ बड़ा सा बैग वहीं छोंड़ कर अंदर की तरफ भागी। नैना को इस तरह भागते देख प्रतिमा चौंकी फिर पलट कर पहले दरवाजे को बंद किया उसके बाद नैना के बैग को उठा अंदर की तरफ बढ़ गई।
उधर भागते हुए नैना ड्राइंग रूम में पहुॅची। उसी समय अजय सिंह भी अपने कमरे से इधर ही आता दिखा। नैना अपने बड़े भाई को देख एक पल को ठिठकी फिर तेज़ी से दौड़ती हुई जा कर अजय सिंह से लिपट गई।
"भइयाऽऽ।" नैना अजय से लिपट कर बुरी तरह रोने लगी थी। अजय सिंह उसे इस तरह देख पहले तो चौंका फिर उसे अपनी बाॅहों में ले प्यार व स्नेह से उसके सिर व पीठ पर हाॅथ फेरने लगा।
"अरे क्या हुआ तुझे?" अजय सिंह उसकी पीठ को सहलाते हुए बोला__"इस तरह क्यों रोये जा रही है तू?"
अजय सिंह के इस सवाल का नैना ने कोई जवाब नहीं दिया, बल्कि वह ज़ार ज़ार वैसी ही रोती रही। नैना अपने भाई के सीने से कस के लगी हुई थी। ऐसा लगता था जैसे उसे इस बात का अंदेशा था कि अगर वह अपने भाई से अलग हो जाएगी तो कयामत आ जाएगी।
प्रतिमा भी तब तक पहुॅच गई थी। अपने भाई से लिपटी अपनी ननद को इस तरह रोते देख उसकी आॅखों में भी पानी आ गया। काफी देर तक यही आलम रहा। अजय सिंह ने उसे बड़ी मुश्किल से चुप कराया। फिर उसे उसके कंधे से पकड़ कर चलते हुए आया और उसे सोफे पर आराम से बैठा कर खुद भी उसके पास ही बैठ गया।
"प्रतिमा दामाद जी कहाॅ हैं?" फिर अजय ने प्रतिमा की तरफ देखते हुए पूछा__"उन्हें अपने साथ अंदर क्यों नहीं लाई तुम?"
"दामाद जी नहीं आए अजय।" प्रतिमा ने गंभीरता से कहा__"नैना अकेली ही आई है।"
"क्या???" अजय चौंका__"लेकिन क्यों? दामाद जी साथ क्यों नहीं आए? मेरी फूल जैसी बहन को अकेली कैसे आने दिया उन्होंने? रुको मैं अभी बात करता हू उनसे।"
"अब फोन करने की कोई ज़रूरत नहीं है अजय।" प्रतिमा ने कहा__"नैना अब हमारे पास ही रहेगी....।"
"हमारे पास ही रहेगी??" अजय चकराया, बोला__"इसका क्या मतलब हुआ भला?"
"वो...वो नैना ने दामाद जी को तलाक दे दिया है।" प्रतिमा ने धड़कते दिल के साथ कहा__"इस लिए अब ये यहीं रहेंगी।"
"व्हाऽऽट???" अजय सिंह सोफे पर बैठा हुआ इस तरह उछल पड़ा था जैसे उसके पिछवाड़े के नीचे सोफे का वह हिस्सा अचानक ही किसी बड़ी सी नोंकदार सुई में बदल गया हो, बोला__"ये सब क्या...ये तुम क्या कह रही हो प्रतिमा? नैना ने दामाद जी को तलाक दे दिया है? अरे लेकिन क्यों??"
प्रतिमा के कुछ बोलने से पहले ही नैना एक झटके से उठी और रोते हुए अंदर की तरफ भाग गई। अजय सिंह मूर्खों की तरह उसे जाते देखता रहा।
"प्रतिमा सच सच बताओ।" फिर अजय ने उद्दिग्नता से कहा__"आख़िर ऐसी क्या बात हो गई है जिसकी वजह से नैना ने दामाद जी को तलाक दे दिया है?"
"सारी बातें मुझे भी नहीं पता अजय।" प्रतिमा ने कहा__"नैना ने अभी कुछ भी नहीं बताया है इस बारे में।"
"उससे पूछो प्रतिमा।" अजय सिंह ने कहा__"उससे पूछो कि क्या मैटर है? उसने अपने पति को किस बात पर तलाक दे दिया है?"
"ठीक है मैं बात करती हूॅ उससे।" प्रतिमा कहने के साथ ही उठ कर उस दिशा की तरफ बढ़ गई जिधर नैना गई थी। जबकि अजय सिंह किसी गहरी सोच में डूबा नज़र आने लगा था।
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"मिस्टर चौहान।" हास्पिटल की गैलरी पर दीवार से सटी बेंच पर बैठे एक ऐसे शख्स के कानों से ये वाक्य टकराया जिसके चेहरे पर इस वक्त गहन परेशानी व दुख के भाव थे। उसने सिर उठा कर देखा। उसके सामने एक डाक्टर खड़ा उसी की तरफ संजीदगी से देख रहा था।
"मिस्टर चौहान।" डाक्टर ने कहा__"प्लीज आप मेरे साथ आइए। मुझे आपसे कुछ ज़रूरी बातें करनी है।"
"डाक्टर मेरी बेटी कैसी है अब?" बेन्च से एक ही झटके में उठते हुए उस शख्स ने हड़बड़ाहट से पूछा था__"वो अब ठीक तो है ना?"
"अब वो बिलकुल ठीक है मिस्टर चौहान लेकिन।" डाक्टर का वाक्य अधूरा रह गया।
"ल लेकिन क्या डाक्टर?" शख्स ने असमंजस से पूछा।
"आप प्लीज़ मेरे साथ आइए।" डाक्टर ने ज़ोर देकर कहा__"मुझे आपसे अकेले में बात करनी है। प्लीज़ कम हेयर...।"
कहने के साथ ही डाक्टर एक तरफ बढ़ गया। उसे जाते देख वो शख्स भी तेज़ी से उसके पीछे लपका। चेहरे पर हज़ारों तरह के भाव एक पल में ही गर्दिश करते नज़र आने लगे थे उसके। कुछ ही देर में डाक्टर के पीछे पीछे वह उसके केबिन में पहुॅचा।
"मिस्टर चौहान।" डाक्टर अपनी चेयर के पास पहुॅच कर तथा अपने सामने बड़ी सी टेबल के पार रखीं चेयर की तरफ हाथ के इशारे के साथ कहा__"हैव ए सीट प्लीज़।"
डाक्टर के कहने पर वो शख्स जिसे डाक्टर उसके सर नेम से संबोधित कर रहा था किसी यंत्रचालित सा आगे बढ़ा और एक हाथ से चेयर को पीछे कर उसमें बैठ गया। उसके बैठ जाने के बाद केबिन में दोनो के बीच कुछ देर के लिए ख़ामोशी छाई रही।
"कहो डाक्टर।" फिर खामोशी को चीरते हुए उस शख्स ने भारी स्वर में कहा__"क्या ज़रूरी बातें करनी थी आपको?"
"मिस्टर चौहान।" डाक्टर ने भूमिका बनाते हुए किन्तु संतुलित लहजे में कहा__"मैं चाहता हूॅ कि आप मेरी बातों को शान्ती और बड़े धैर्य के साथ सुनें।"
"आख़िर बात क्या है डाक्टर?" शख्स ने सहसा अंजाने भय से घबरा कर कहा था, बोला__"मुझे पता है कि मेरी बेटी के साथ किसी ने रेप किया है जिसकी वजह से उसकी आज ये हालत है। मैं धरती आसमान एक कर दूॅगा उस हरामज़ादे को ढूढ़ने में जिसने मेरी बेटी को आज इस हालत में पहुॅचाया है। उसे ऐसी मौत दूॅगा कि फरिश्ते भी देख कर थर थर काॅपेंगे।"
"प्लीज़ कंट्रोल योरसेल्फ मिस्टर चौहान प्लीज।" डाक्टर ने कहा__"आपको इसके आगे जो भी करना हो आप करते रहियेगा, लेकिन उसके पहले शान्ती और धैर्य के साथ आप मेरी बातें सुन लीजिए।"
"ठीक है कहिए।" उस शख्स ने गहरी साॅस ली।
"ये तो आप जानते ही हैं कि आपकी बेटी के साथ क्या हुआ है।" डाक्टर ने कहा__"पर ये आधा सच है।"
"क्या मतलब?" चौहान चौंका।
"आपकी बेटी के साथ एक से ज्यादा लोगों ने रेप की वारदात को अंजाम दिया है?" डाक्टर ने संजीदगी से कहा__"उसने खुद शराब पी थी या फिर उसे पिलाई गई थी। ऐसी शराब जिसमें ड्रग्स मिला हुआ था। इससे यही साबित होता है कि ये सब जिन लोगों ने भी किया है पहले से ही सोच समझकर किया है।"
"ये आप क्या कह रहे हैं डाक्टर?" चौहान की हालत खराब थी, बोला__"मेरी बेटी के साथ इतना कुछ किया उन हरामज़ादों ने।"
"ये सब तो कुछ भी नहीं है।" डाक्टर ने गंभीरता से कहा__"बल्कि अब जो बात मैं आपको बताना चाहता हूॅ वो बहुत ही गंभीर बात है। मैं चाहता हूॅ कि आप मेरी उस बात को सुनकर अपना धैर्य नहीं खोएंगे।"
"आख़िर ऐसी क्या बात है डाक्टर?" चौहान हतोत्साहित सा बोला__"क्या कहना चाहते हैं आप? साफ साफ बताओ क्या बात है?"
"आपकी बेटी प्रेग्नेन्ट है।" डाक्टर ने मानो धमाका सा किया था__"वह भी दो महीने की।"
"क्याऽऽ????" चेयर पर बैठा चौहान ये सुन कर उछल पड़ा था, बोला__"ये आप क्या कह रहे हैं डाक्टर? ऐसा कैसे हो सकता है?"
"इस बारे में भला मैं कैसे बता सकता हूॅ मिस्टर चौहान?" डाक्टर ने कहा__"ये तो आपकी बेटी को ही पता होगा। मैंने तो आपको वही बताया है जो आपकी बेटी की जाॅच से हमें पता चला है।"
चौहान भौचक्का सा डाक्टर को देखता रह गया था। उसके दिलो दिमाग़ में अभी तक धमाके हो रहे थे। असहाय अवस्था में बैठा रह गया था वह।
तभी केबिन का गेट खुला और एक नर्स अंदर दाखिल हुई।
"सर वो पुलिस बाहर आपका इन्तज़ार कर रही है।" नर्स ने डाक्टर की तरफ देख कर कहा था।
"ठीक है हम आते हैं।" डाक्टर ने उससे कहा फिर चौहान की तरफ देख कर कहा__"मिस्टर चौहान आइए चलते हैं।"
उसके बाद दोनो केबिन के बाहर आ गए। चौहान के चेहरे से ही लग रहा था कि वह दुखी है, किन्तु अपने इस दुख को वह जज़्ब करने की कोशिश कर रहा था।
बाहर गैलरी में आते ही डाक्टर को पुलिस के कुछ शिपाही दिखाई दिये। वह चौहान के साथ चलता हुआ रिसेशन पर पहुॅचा। जहाॅ पर इंस्पेक्टर की वर्दी में रितू खड़ी थी। सिर पर पी-कैप व दाहिने हाॅथ में पुलिसिया रुल था जिसे वह कुछ पलों के अन्तराल में अपनी बाॅई हथेली पर हल्के से मार रही थी।
"हैलो इंस्पेक्टर।" डाक्टर रितू के पास पहुॅचते ही बोला था।
"क्या उस लड़की को होश आ गया डाक्टर?" रितू ने पुलिसिया अंदाज़ में पूछा__"मुझे उसका स्टेटमेन्ट लेना है।"
"मिस रितू।" डाक्टर ने कहा__"बस कुछ ही समय में उसे होश आ जाएगा फिर आप उसका बयान ले सकती हैं।" डाक्टर ने कहने के साथ ही चौहान की तरफ इशारा करते हुए कहा__"ये उस लड़की के पिता हैं। मिस्टर शैलेन्द्र चौहान।"
"ओह आई सी।" रितू ने चौहान की तरफ देखते हुए कहा__"मुझे दुख है अंकल कि आपकी बेटी के साथ ऐसा हादसा हुआ?"
"सब भाग्य की बातें हैं बेटा।" चौहान ने हारे हुए खिलाड़ी की तरह बोला__"हम चाहे सारी ऊम्र सबके साथ अच्छा करते रहें और सबका अच्छा भला सोचते रहें लेकिन हमें हमारे भाग्य से जो मिलना होता है वो मिल ही जाता है।"
"हाॅ ये तो है अंकल।" रितू ने कहा__"ख़ैर, आपकी बेटी का ये केस फाइल हो चुका है, बस आपके साइन की ज़रूरत है। लड़की के बयान के बाद पुलिस इस केस को अच्छी तरह देख लेगी। जिसने भी इस घिनौने काम को अंजाम दिया है उसको बहुत जल्द जेल की सलाखों के पीछे अधमरी अवस्था में पाएंगे आप।"
"उससे क्या होगा बेटी?" चौहान ने गंभीरता से कहा__"क्या वो सब वापस हो जाएगा जो लुट गया या बरबाद हो गया है?"
"आप ये कैसी बातें कर रहे हैं अंकल?" रितू ने हैरत से कहा__"क्या आप नहीं चाहते कि जिसने भी आपकी बेटी के साथ ये किया है उसे कानून के द्वारा शख्त से शख्त सज़ा मिले?"
"उसे कानून नहीं।" चौहान के चेहरे पर अचानक ही हाहाकारी भाव उभरे__"उसे मैं खुद अपने हाथों से सज़ा दूॅगा। तभी मेरी और मेरी बेटी की आत्मा को शान्ती मिलेगी।"
"तो क्या आप कानून को हाथ में लेंगे?" रितू ने कहा__"नहीं अंकल, ये पुलिस केस है और उसे कानूनन ही सज़ा प्राप्त होगी।"
"तुम अपना काम करो बेटी।" चौहान ने कहा__"और मुझे मेरा काम अपने तरीके से करना है।"
तभी वहाॅ पर एक नर्स आई। उसने बताया कि उस लड़की को होश आ गया है और उसे दूसरे रूम में शिफ्ट कर दिया गया है। नर्स की बात सुनकर डाक्टर ने रितू को उससे बयान लेने की परमीशन दी किन्तु ये भी कहा कि पेशेन्ट को ज्यादा किसी बात के लिए मजबूर न करें। चौहान साथ में जाना चाहता था किन्तु रितू ने ये कह कर उसे रोंक लिया कि ये पुलिस केस है इस लिए पहले पुलिस उससे मिलेगी और उसका बयान लेगी।
इंस्पेक्टर रितू अपने साथ एक महिला शिपाही को लिए उस कमरे में पहुॅची जिस कमरे में उस लड़की को शिफ्ट किया गया था। डाक्टर खुद भी साथ आया था। किन्तु फिर एक नर्स को कमरे में छोंड़ कर वह बाहर चला गया था।
हास्पिटल वाले बेड पर लेटी वह लड़की आॅखें बंद किये लेटी थी। ये अलग बात है कि उसकी बंद आॅखों की कोरों से आॅसूॅ की धार सी बहती दिख रही थी। उसके शरीर का गले से नीचे का सारा हिस्सा एक चादर से ढ्का हुआ था। कमरे में कुछ लोगों के आने की आहट से भी उसने अपनी आॅखें नहीं खोली थी। बल्कि उसी तरह पुर्वत् लेटी रही थी वह।
"अब कैसी तबियत है तुम्हारी?" रितू उसके करीब ही एक स्टूल पर बैठती हुई बोली थी। उसके इस प्रकार पूॅछने पर लड़की ने अपनी आॅखें खोली और रितू की तरफ चेहरा मोड़ कर देखा उसे। रितू पर नज़र पड़ते ही उसकी आॅखों में हैरत के भाव उभरे। ये बात रितू ने भी महसूस की थी।
"अब कैसा फील कर रही हो?" रितु ने पुनः उसकी तरफ देख कर किन्तु इस बार हल्के से मुस्कुराते हुए पूछा__"अगर अच्छा फील कर रही हो तो अच्छी बात है। मुझे तुमसे इस वारदात के बारे में कुछ पूछताॅछ करनी है। लेकिन उससे पहले मैं तुम्हें ये बता दूॅ कि तुम्हें मुझसे भयभीत होने की कोई ज़रूरत नहीं है। मैं भी तुम्हारी तरह एक लड़की ही हूॅ और हाॅ तुम मुझे अपनी दोस्त समझ सकती हो, ठीक है ना?"
लड़की के चेहरे पर कई सारे भाव आए और चले भी गए। उसने रितू की बातों का अपनी पलकों को झपका कर जवाब दिया।
"ओके, तो अब तुम मुझे सबसे पहले अपना नाम बताओ।" रितू ने मुस्कुरा कर कहा।
"वि वि...विधी।" उस लड़की के थरथराते होठों से आवाज़ आई।
उसका नाम सुन कर रितू को झटका सा लगा। मस्तिष्क में जैसे बम्ब सा फटा था। चेहरे पर एक ही पल में कई तरह के भाव आए और फिर लुप्त हो गए। रितू ने सीघ्र ही खुद को नार्मल कर लिया।
"ओह....कितना खूबसूरत सा नाम है तुम्हारा।" रितू ने कहा। उसके दिमाग़ में कुछ और ही ख़याल था, बोली__"विधी...विधी चौहान, राइट?"
लड़की की आॅखों में एक बार पुनः चौंकने के भाव आए थे। एकाएक ही उसका चेहरा सफेद फक्क सा पड़ गया था। चेहरे पर घबराहट के चिन्ह नज़र आए। उसने अपनी गर्दन को दूसरी तरफ मोड़ लिया।
"तो विधी।" रितू ने कहा__"अब तुम मुझे बेझिझक बताओ कि क्या हुआ था तुम्हारे साथ?"
रितू की बात पर विधी ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। वह दूसरी तरफ मुह किये लेटी रही। जबकि उसकी ख़ामोशी को देख कर रितू ने कहा__"देखो ये ग़लत बात है विधी। अगर तुम कुछ बताओगी नहीं तो मैं कैसे उस अपराधी को सज़ा दिला पाऊॅगी जिसने तुम्हारी यानी मेरी दोस्त की ऐसी हालत की है? इस लिए बताओ मुझे....सारी बातें विस्तार से बताओ कि क्या और कैसे हुआ था?"
"मु मुझे कुछ नहीं पता।" विधी ने दूसरी तरफ मुह किये हुए ही कहा__"मैं नहीं जानती कि किसने कब कैसे मेरे साथ ये सब किया?"
"तुम झूॅठ बोल रही विधी।" रितू की आवाज़ सहसा तेज़ हो गई__"भला ऐसा कैसे हो सकता है कि तुम्हारे साथ इतना कुछ हुआ और तुम्हें इस सबके बारे में थोड़ा सा भी पता न हुआ हो?"
"भला मैं झूॅठ क्यों बोलूॅगी आपसे?" विधी ने इस बार रितू की तरफ पलट कर कहा था।
"हाॅ लेकिन सच भी तो नहीं बोल रही हो तुम?" रितू ने कहा__"आख़िर वो सब बताने में परेशानी क्या है? देखो अगर तुम नहीं बताओगी तो सच जानने के लिए पुलिस के पास और भी तरीके हैं। कहने का मतलब ये कि, हम ये पता लगा ही लेंगे कि तुम्हारे साथ ये सब किसने किया है?"
बेड पर लेटी विधी के चेहरे पर असमंजस व बेचैनी के भाव उभरे। कदाचित् समझ नहीं पा रही थी कि वह रितू की बातों का क्या और कैसे जवाब दे?
"तुम्हारे चेहरे के भाव बता रहे हैं विधी कि तुम मेरे सवालों से बेचैन हो गई हो।" रितू ने कहा__"तुम जानती हो कि तुम्हारे साथ ये सब किसने किया है। लेकिन बताने में शायद डर रही हो या फिर हिचकिचा रही हो।"
विधी ने कमरे में मौजूद लेडी शिपाही व नर्स की तरफ एक एक दृष्टि डाली फिर वापस रितू की तरफ दयनीय भाव से देखने लगी। रितू को उसका आशय समझते देर न लगी। उसने तुरंत ही लेडी शिपाही व नर्स को बाहर जाने का इशारा किया। नर्स ने बाहर जाते हुए इतना ही कहा कि पेशेन्ट को किसी बात के लिए ज्यादा मजबूर मत कीजिएगा क्योंकि इससे उसके दिलो दिमाग़ पर बुरा असर पड़ सकता है। नर्स तथा लेडी शिपाही के बाहर जाने के बाद रितू ने पलट कर विधी की तरफ देखा।
"देखो विधी, अब इस कमरे में हम दोनो के सिवा दूसरा कोई नहीं है।" रितू ने प्यार भरे लहजे से कहा__"अब तुम मुझे यानी अपनी दोस्त को बता सकती हो कि ये सब तुम्हारे साथ कब और किसने किया है?"
"क..क कल मैं अपने एक दोस्त की बर्थडे पार्टी में गई थी।" विधी ने मानो कहना शुरू किया, उसकी आवाज़ में लड़खड़ाहट थी__"वहाॅ पर हमारे काॅलेज की कुछ और लड़कियाॅ थी जो हमारे ही ग्रुप की फ्रैण्ड्स थी और साथ में कुछ लड़के भी। पार्टी में सब एंज्वाय कर रहे थे। मेरी दोस्त परिधि ने मनोरंजन का सारा एरेन्जमेन्ट किया हुआ था। जिसमें बियर और शराब भी थी। दोस्त के ज़ोर देने पर मैंने थोड़ा बहुत बियर पिया था। लेकिन मुझे याद है कि उस बियर से मैने अपना होश नहीं खोया था। हम सब डान्स कर रहे थे, तभी मेरी एक फ्रैण्ड ने मेरे हाॅथ में काॅच का प्याला पकड़ाया और मस्ती के ही मूड में मुझे पीने का इशारा किया। मैंने भी मुस्कुरा कर उसके दिये हुए प्याले को अपने मुह से लगा लिया और उसे धीरे धीरे करके पीने लगी। किन्तु इस बार इसका टेस्ट पहले वाले से अलग था। फिर भी मैंने उसे पी लिया। कुछ ही देर बाद मेरा सर भारी होने लगा। वहाॅ की हर चीज़ मुझे धुंधली सी दिखने लगी थी। उसके बाद मुझे नहीं पता कि किसने मेरे साथ क्या किया? हाॅ बेहोशी में मुझे असह पीड़ा का एहसास ज़रूर हो रहा था, इसके सिवा कुछ नहीं। जब मुझे होश आया तो मैंने अपने आपको यहाॅ हास्पिटल में पाया। मुझे नहीं पता कि यहाॅ पर मैं कैसे आई? लेकिन इतना जान चुकी हूॅ कि मेरा सबकुछ लुट चुका है, मैं किसी को मुह दिखाने के काबिल नहीं रही।"
इतना सब कहने के साथ ही विधी बेड पर पड़े ही ज़ार ज़ार रोने लगी थी। उसकी आॅखों से आॅसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे। इंस्पेक्टर रितू उसकी बात सुनकर पहले तो हैरान रही फिर उसने उसे बड़ी मुश्किल से शान्त कराया।
"तुम्हें यहाॅ पर मैं लेकर आई थी विधी।" रितू ने गंभीरता से कहा__"पुलिस थाने में किसी अंजान ब्यक्ति ने फोन करके हमें सूचित कर बताया कि शहर से बाहर मेन सड़क के नीचे कुछ दूरी पर एक लड़की बहुत ही गंभीर हालत में पड़ी है। वो जगह हल्दीपुर की अंतिम सीमा के पास थी, जहाॅ से हम तुम्हें उठा कर यहाॅ हास्पिटल लाए थे।"
"ये आपने अच्छा नहीं किया।" विधी ने सिसकते हुए कहा__"उस हालत में मुझे वहीं पर मर जाने दिया होता। कम से कम उस सूरत में मुझे किसी के सामने अपना मुह तो न दिखाना पड़ता। मेरे घर वाले, मेरे माता पिता को मुझे देख कर शर्म से अपना चेहरा तो न झुका लेना पड़ता।"
"देखो विधी।" रितू ने समझाने वाले भाव से कहा__"इस सबमें तुम्हारी कोई ग़लती नहीं है और ये बात तुम्हारे पैरेन्ट्स भी जानते और समझते हैं। ग़लती जिनकी है उन्हें इस सबकी शख्त से शख्त सज़ा मिलेगी। तुम्हारे साथ ये अत्याचार करने वालों को मैं कानून की सलाखों के पीछे जल्द ही पहुचाऊॅगी।"
विधी कुछ न बोली। वह बस अपनी आॅखों में नीर भरे देखती रही रितू को। जबकि,,
"अच्छा ये बताओ कि तुम्हारी दोस्त की पार्टी में उस वक्त कौन कौन मौजूद था जिनके बारे में तुम जानती हो?" रितू ने पूछा__"साथ ही ये भी बताओ कि तुम्हें उनमें से किन पर ये शक़ है कि उन्होने तुम्हारे साथ ऐसा किया हो सकता है? तुम बेझिझक होकर मुझे उन सबका नाम पता बताओ।"
विधी कुछ देर सोचती रही फिर उसने पार्टी में मौजूद कुछ लड़के लड़कियों के बारे में रितू को बता दिया। रितू ने एक काग़ज पर उन सबका नाम पता लिख लिया। उसके बाद कुछ और पूछताछ करने के बाद रितू कमरे से बाहर आ गई।
रितू को डाक्टर ने बताया कि वो लड़की दो महीने की प्रैग्नेन्ट है। ये सुन कर रितू बुरी तरह चौंकी थी। हलाॅकि मिस्टर चौहान ने डाक्टर को मना किया था कि ये बात वह किसी को न बताए। किन्तु डाक्टर ने अपना फर्ज़ समझ कर पुलिस के रूप में रितू को बता दिया था।
रितू ने मिस्टर चौहान को एक बार थाने में आने का कह कर हास्पिटल से निकल गई थी। उसके मस्तिष्क में एक ही ख़याल उछल कूद मचा रहा था कि 'क्या ये वही विधी है जिसे विराज प्यार करता था'???? रितू ने कभी विधी को देखा नहीं था, और नाही उसके बारे में उसके भाई विराज ने कभी बताया था। उसे तो बस कहीं से ये पता चला था कि उसका भाई विराज किसी विधी नाम की लड़की से प्यार करता है। इस लिए आज जब उसने उस लड़की के मुख से उसका नाम विधी सुना तो उसके दिमाग़ में तुरंत ही उस विधी का ख़याल आ गया जिस विधी नाम की लड़की से उसका भाई प्यार करता है। रितु के मन में पहले ये विचार ज़रूर आया कि वह एक बार उससे ये जानने की कोशिश करे कि क्या वह विराज को जानती है? लेकिन फिर उसने तुरंत ही अपने मन में आए इस विचार के तहत उससे इस बारे में पूछने का ख़याल निकाल दिया। उसे लगा ये वक्त अभी इसके लिए सही नहीं है।
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रात में डिनर करने के बाद एक बार फिर से सब ड्राइंग रूम में एकत्रित हुए। अभय किसी सोच में डूबा हुआ था। गौरी ने उसे सोच में डूबा देख कर कहा__"करुणा और बच्चे कैसे हैं अभय?"
"आं..हाॅ सब ठीक हैं भाभी।" अभय ने चौंकते हुए कहा था।
"शगुन कैसा है?" गौरी ने पूछा__"क्या अभी भी वैसी ही शरारतें करता है वह? करुणा तो उसकी शरारतों से परेशान हो जाती होगी न? और...और मेरी बेटी दिव्या कैसी है...उसकी पढ़ाई कैसी चल रही है?"
"सब अच्छे हैं भाभी।" अभय ने नज़रें चुराते हुए कहा__"दिव्या की पढ़ाई भी अच्छी चल रही है।"
"क्या बात है?" गौरी उसे नज़रें चुराते देख चौंकी__"तुम मुझसे क्या छुपा रहे हो अभय? घर में सब ठीक तो हैं ना? मुझे बताओ अभय....मेरा दिल घबराने लगा है।"
"कोई ठीक नहीं है भाभी कोई भी।" अभय के अंदर से मानो गुबार फट पड़ा__"हवेली में कोई भी ठीक नहीं हैं। करुणा और बच्चों को मैं करुणा के मायके भेज कर ही यहाॅ आया हूॅ। इस समय घर के हालात बहुत ख़राब हैं भाभी। किसी पर भरोसा करने लायक नहीं रहा अब।"
"आख़िर हुआ क्या है अभय?" गौरी के चेहरे पर चिन्ता के भाव उभर आए__"साफ साफ बताते क्यों नहीं?"
सामने सोफे पर बैठे विराज और निधि भी परेशान हो उठे थे। दिल किसी अंजानी आशंकाओं से धड़कने लगा था उनका।
"क्या बताऊॅ भाभी?" अभय ने असहज भाव से कहा__"मुझे तो बताने में भी आपसे शरम आती है।"
"क्या मतलब?" गौरी ही नहीं बल्कि अभय की इस बात से विराज और निधि भी बुरी तरह चौंके थे।
"एक दिन की बात है।" फिर अभय कहता चला गया। उसने वो सारी बातें बताई जो शिवा ने किया था। उसने बताया कि कैसे शिवा उसके न रहने पर उसके घर आया था और अपनी चाची को बाथरूम में नहाते देखने की कोशिश कर रहा था। इस सबके बाद कैसे करुणा ने आत्म हत्या करने की कोशिश की थी। अभय ये सब बताए जा रहा था और बाॅकी सब आश्चर्य से मुह फाड़े सुनते जा रहे थे।
"हे भगवान।" गौरी ने रोते हुए कहा__"ये सब क्या हो गया? मेरी फूल सी बहन को भी नहीं बक्शा उस नासपीटे ने।"
"ये तो कुछ भी नहीं है भाभी।" अभय ने भारी स्वर में कहा__"उस हरामज़ादे ने तो आपकी बेटी दिव्या पर भी अपनी गंदी नज़रें डालने में कोई संकोच नहीं किया।"
"क्या?????" गौरी उछल पड़ी।
"हाॅ भाभी।" अभय ने कहा__"ये बात खुद दिव्या ने मुझे बताई थी।"
"जैसे माॅ बाप हैं वैसा ही तो बेटा होगा।" गौरी ने कहा__"माॅ बाप खुद ही अपने बेटे को इस राह पर चलने की शह दे रहे हैं अभय।"
"क्या मतलब?" इस बार बुरी तरह उछलने की बारी अभय की थी, बोला__"ये आप क्या कह रही हैं?"
"यही सच है अभय।" गौरी ने गंभीरता से कहा__"आपके बड़े भाई साहब और भाभी बहुत ही शातिर और घटिया किस्म के हैं। तुम उनके बारे में कुछ नहीं जानते। लेकिन मैं और माॅ बाबू जी उनके बारे में अच्छी तरह जानते हैं। तुम्हें तो वही बताया और दिखाया गया जो उन्होंने गढ़ कर तुम्हें दिखाना था। ताकि तुम उनके खिलाफ न जा सको।"
"उस हादसे के बाद से मुझे भी ऐसा ही कुछ लगने लगा है भाभी।" अभय ने बुझे स्वर में कहा__"उस हादसे ने मेरी आॅखें खोल दी। तथा मुझे इस सबके बारे में सोचने पर मजबूर कर दिया। इसी लिए तो मैं सारी बातों को जानने के लिए आप सबके पास आया हूॅ। मुझे दुख है कि मैंने सारी बातें पहले ही आप सबसे जानने की कोशिश क्यों नहीं की? अगर ये सब मैने पहले ही पता कर लिया होता तो आप सबको इतनी तक़लीफ़ें नहीं सहनी पड़ती। मैं आप सबके लिए बड़े भइया भाभी से लड़ता और उन्हें उनके इस कृत्य की सज़ा भी देता।"
"तुम उनका कुछ भी न कर पाते अभय।" गौरी ने कहा__"बल्कि अगर तुम उनके रास्ते का काॅटा बनने की कोशिश करते तो वो तुम्हें भी उसी तरह अपने रास्ते से हमेशा हमेशा के लिए हटा देते जैसे उन्होंने राज के पिता को हटा दिया था।"
"क्या???????" अभय बुरी तरह उछला था, बोला__"मॅझले भइया को.....???"
"हाॅ अभय।" गौरी की आॅखें छलक पड़ी__"तुम सब यही समझते हो कि तुम्हारे मॅझले भइया की मौत खेतों में सर्प के काटने से हुई थी। ये सच है लेकिन ये सब सोच समझ कर किया गया था। वरना ये बताओ कि खेत पर बने मकान के कमरे में कोई सर्प कहाॅ से आ जाता और उन्हें डस कर मौत दे देता? सच तो ये है कि कमरे में लेटे तुम्हारे भइया को सर्प से कटाया गया और जब वो मृत्यु को प्राप्त हो गए तो उन्हें कमरे से उठा कर खेतों के बीच उस जगह डाल दिया गया जिस जगह खेत में पानी लगाया जा रहा था। ये सब इस लिए किया गया ताकि सबको यही लगे कि खेतों में पानी लगाते समय ही तुम्हारे भइया को किसी ज़हरीले सर्प ने काटा और वहीं पर उनकी मृत्यु हो गई।"
"हे भगवान।" अभय अपने दोनो हाथों को सिर पर रख कर रो पड़ा__"मेरे देवता जैसे भाई को इन अधर्मियों ने इस तरह मार दिया था। नहीं छोंड़ूॅगा....ज़िंदा नहीं छोड़ूॅगा उन लोगों को मैं।"
"नहीं अभय।" गौरी ने कहा__"उन्हें उनके कुकर्मों की सज़ा ज़रूर मिलेगी।"
"पर ये सब आपको कैसे पता भाभी कि मॅझले भइया को इन लोगों ने ही सर्प से कटवा कर मारा था?" अभय ने पूछा__"और वो सब भी बताइए भाभी जो इन लोगों ने आपके साथ किया है? मैं जानना चाहता हूॅ कि इन लोगों ने मेरे देवी देवता जैसे भइया भाभी पर क्या क्या अनाचार किये हैं? मैं जानना चाहता हूॅ कि शेर की खाल ओढ़े इन भेड़ियों का सच क्या है?"
"मैं जानती हूॅ कि तुम जाने बग़ैर रहोगे नहीं अभय।" गौरी ने गहरी साॅस ली__"और तुम्हें जानना भी चाहिए। आख़िर हक़ है तुम्हारा।"
"तो फिर बताइए भाभी।" अभय ने उत्सुकता से कहा__"मुझे इन लोगों का घिनौना सच सुनना है।"
अभय की बात सुन कर गौरी ने एक गहरी साॅस ली। उसके चेहरे पर अनायास ही ऐसे भाव उभर आए थे जैसे अपने आपको इस परिस्थिति के लिए तैयार कर रही हो।
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प्रतिमा हवेली में ऊपरी हिस्से पर बने उस कमरे में पहुॅची जिस कमरे के बेड पर इस वक्त नैना औंधी पड़ी सिसकियाॅ ले लेकर रोये जा रही थी। प्रतिमा उसे इस तरह रोते देख उसके पास पहुॅची और बेड के एक साइड बैठ कर उसे उसके कंधों से पकड़ अपनी तरफ खींच कर पलटाया। नैना ने पलटने के बाद जैसे ही अपनी भाभी को देखा तो झटके से उठ कर उससे लिपट कर रोने लगी। प्रतिमा ने किसी तरह उसे चुप कराया।
"शान्त हो जाओ नैना।" प्रतिमा ने गंभीरता से कहा__"और मुझे बताओ कि आख़िर ऐसा क्या हुआ है जिसकी वजह से तुमने दामाद जी को तलाक दे दिया है? देखो पति पत्नी के बीच थोड़ी बहुत अनबन तो होती ही रहती है। इस लिए इसमें तलाक दे देना कोई समझदारी नहीं है। बल्कि हर बात को तसल्ली से और समझदारी से सुलझाना चाहिए।"
"भाभी इसमे मेरी कहीं भी कोई ग़लती नहीं है।" नैना ने दुखी भाव से कहा__"मैं तो हमेशा ही आदित्य को दिलो जान से प्यार करती रही थी। सब कुछ ठीक ठाक ही था लेकिन पिछले छः महीने से हमारे बीच संबंध ठीक नहीं थे। इसकी वजह ये थी आदित्य किसी दूसरी लड़की से संबंध रखने लगे थे। जब मुझे इस बात का पता चला और मैंने उनसे इस बारे में बात की तो वो मुझ पर भड़क गए। कहने लगे कि मैं बाॅझ हूॅ इस लिए अब वो मुझसे कोई मतलब नहीं रखना चाहते हैं। मैने उनसे हज़ारो बार कहा कि अगर मैं बाॅझ हूॅ तो मुझे एक बार डाक्टर को दिखा दीजिए। पर वो मेरी सुनने को तैयार ही नहीं थे। तब मैने खुद एक दिन डाक्टर से चेक अप करवाया। बाद में डाक्टर ने कहा कि मैं बिलकुल ठीक हूॅ यानी बाॅझ नहीं हूॅ। मैंने डाक्टर की वो रिपोर्ट लाकर उन्हें दिखाया और कहा कि मैं बाॅझ नहीं हूॅ। बल्कि बच्चे पैदा कर सकती हूॅ। इस लिए एक बार आप भी अपना चेक अप करवा लीजिए। मेरी इस बात से वो गुस्सा हो गए और मुझे गालियाॅ देने लगे। कहने लगे कि तू क्या कहना चाहती है कि मैं ही नामर्द हूॅ? बस भाभी इसके बाद तो पिछले छः महीने से यही झगड़ा चलता रहा हमारे बीच। इस सबका पता जब मेरे सास ससुर को चला तो वो भी अपने बेटे के पक्ष में ही बोलने लगे और मुझे उल्टा सीधा बोलने लगे। अब आप ही बताइए भाभी मैं क्या करती? ऐसे पति और ससुराल वालों के पास मैं कैसे रह सकती थी? इस लिए जब मुझमें ज़ुल्म सहने की सहन शक्ति न रही तो तंग आकर एक दिन मैने उन्हें तलाक दे दिया।"
नैना की सारी बातें सुनने के बाद प्रतिमा भौचक्की सी उसे देखती रह गई। काफी देर तक कोई कुछ न बोला।
"ये तो सच में बहुत ही गंभीर बात हो गई नैना।" फिर प्रतिमा ने गहरी साॅस लेकर कहा__"तो क्या आदित्य ने तलाक के पेपर्स पर अपने साइन कर दिये?"
"पहले तो नहीं कर रहा था।" नैना ने अधीरता से कहा__"फिर जब मैंने ये कहा कि मेरे भइया भाभी खुद भी एक वकील हैं और वो जब आपको कोर्ट में घसीट कर ले जाएॅगे तब पता चलेगा उन्हें। कोर्ट में सबके सामने मैं चीख चीख कर बताऊॅगी कि आदित्य सिंह नामर्द है और बच्चा पैदा नहीं कर सकता तब तुम्हारी इज्जत दो कौड़ी की भी नहीं रह जाएगी। बस मेरे इस तरह धमकाने से उसने फिर तलाक के पेपर्स पर अपने साइन किये थे।"
"लेकिन मुझे ये समझ में नहीं आ रहा कि तुम्हें इस बात का पता पहले क्यों नहीं चला कि आदित्य नामर्द है?" प्रतिमा ने उलझन में कहा__"बल्कि ये सब अब क्यों हुआ? क्या आदित्य का पेनिस बहुत छोटा है या फिर उसके पेनिस में इरेक्शन नहीं होता? आख़िर प्राब्लेम क्या है उसमें?"
"और सबकुछ ठीक है भाभी।" नैना ने सिर झुकाते हुए कहा__"लेकिन मुझे लगता है कि उसके स्पर्म में कमी है। जिसकी वजह से बच्चा नहीं हो पा रहा है। मैंने बहुत कहा कि एक बार वो डाक्टर से चेक अप करवा लें लेकिन वो इस बात को मानने के लिए तैयार ही नहीं हैं।"
"ओह, चलो कोई बात नहीं।" प्रतिमा ने उसके चेहरे को सहलाते हुए कहा__"अब तुम फ्रेश हो जाओ तब तक मैं तुम्हारे लिए गरमा गरम खाना तैयार कर देती हूॅ।"
नैना ने सिर को हिला कर हामी भरी। जबकि प्रतिमा उठ कर कमरे से बाहर निकल गई। बाहर आते ही वह चौंकी क्योंकि अजय सिंह दरवाजे की बाहरी साइड दीवार से चिपका हुआ खड़ा था। प्रतिमा को देख कर वह अजीब ढंग से मुस्कुराया और फिर प्रतिमा के साथ ही नीचे चला गया।
अपडेट हाज़िर है दोस्तो,,,,,,
Nice update♡ एक नया संसार ♡
अपडेट..........《 28 》
अब तक,,,,,,,
"पहले तो नहीं कर रहा था।" नैना ने अधीरता से कहा__"फिर जब मैंने ये कहा कि मेरे भइया भाभी खुद भी एक वकील हैं और वो जब आपको कोर्ट में घसीट कर ले जाएॅगे तब पता चलेगा उन्हें। कोर्ट में सबके सामने मैं चीख चीख कर बताऊॅगी कि आदित्य सिंह नामर्द है और बच्चा पैदा नहीं कर सकता तब तुम्हारी इज्जत दो कौड़ी की भी नहीं रह जाएगी। बस मेरे इस तरह धमकाने से उसने फिर तलाक के पेपर्स पर अपने साइन किये थे।"
"लेकिन मुझे ये समझ में नहीं आ रहा कि तुम्हें इस बात का पता पहले क्यों नहीं चला कि आदित्य नामर्द है?" प्रतिमा ने उलझन में कहा__"बल्कि ये सब अब क्यों हुआ? क्या आदित्य का पेनिस बहुत छोटा है या फिर उसके पेनिस में इरेक्शन नहीं होता? आख़िर प्राब्लेम क्या है उसमें?"
"और सबकुछ ठीक है भाभी।" नैना ने सिर झुकाते हुए कहा__"लेकिन मुझे लगता है कि उसके स्पर्म में कमी है। जिसकी वजह से बच्चा नहीं हो पा रहा है। मैंने बहुत कहा कि एक बार वो डाक्टर से चेक अप करवा लें लेकिन वो इस बात को मानने के लिए तैयार ही नहीं हैं।"
"ओह, चलो कोई बात नहीं।" प्रतिमा ने उसके चेहरे को सहलाते हुए कहा__"अब तुम फ्रेश हो जाओ तब तक मैं तुम्हारे लिए गरमा गरम खाना तैयार कर देती हूॅ।"
नैना ने सिर को हिला कर हामी भरी। जबकि प्रतिमा उठ कर कमरे से बाहर निकल गई। बाहर आते ही वह चौंकी क्योंकि अजय सिंह दरवाजे की बाहरी साइड दीवार से चिपका हुआ खड़ा था। प्रतिमा को देख कर वह अजीब ढंग से मुस्कुराया और फिर प्रतिमा के साथ ही नीचे चला गया।
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अब आगे,,,,,,,
गौरी को एक दम से चुप और कुछ सोचते हुए देख अभय सिंह से रहा न गया। उसके चेहरे पर बेचैनी और उत्सुकता प्रतिपल बढ़ती ही चली जा रही।
"आप चुप क्यों हो गईं भाभी?" अभय ने अधीरता से कहा__"बताइये न, मेरे मन में वो सब कुछ जानने की तीब्र उत्सुकता जाग उठी है। मैं जल्द से जल्द सब कुछ आपसे जानना चाहता हूॅ।"
अभय की उत्सुकता और बेचैनी देख गौरी के चेहरे पर अजीब से भाव उभरे तथा गुलाब की कोमल कोमल पंखुड़ियों जैसे होठों पर फीकी सी मुस्कान उभर आई। उसने अभय की तरफ देखने के बाद अपने सामने कहीं शून्य में देखने लगी।
"तुम मेरे बच्चों की तरह ही हो।" गौरी शून्य में घूरते हुए ही बोली__"और कोई भी माॅ अपने बच्चों के सामने या फिर खुद बच्चों से ऐसी बातें नहीं कर सकती जिन्हें कहने के लिए रिश्ते और मर्यादा इसकी इज़ाज़त ही न दे। लेकिन फिर भी कहूॅगी अभय। वक्त और हालात हमारे सामने कभी कभी ऐसा रूप लेकर आ जाते हैं कि हम फक़त बेबस से हो जाते हैं। हमें वो सब कुछ करना पड़ जाता है जिसे करने के बारे में हम कभी कल्पना भी नहीं करते। ख़ैर, अब जो कुछ भी मैं कहने जा रही हूॅ उसमें कई सारी बातें ऐसी भी हैं जिन्हें मैं स्पष्ट रूप से तुम लोगों के सामने नहीं कह सकती, किन्तु हाॅ तुम लोग उन बातों का अर्थ ज़रूर समझ सकते हो।"
इतना कह कर गौरी ने एक गहरी साॅस ली और फिर से उसी तरह शून्य में घूरते हुए कहने लगी__"ये सब तब से शुरू हुआ था जब मैं ब्याह कर अपने पति यानी विजय सिंह जी के घर आई थी। उस समय हमारा घर घर जैसा ही था आज की तरह हवेली में तब्दील नहीं था। मैं एक ग़रीब घर की लड़की थी। मेरे माॅ बाप ग़रीब थे, खेती किसानी करते थे। अपने माता पिता की मैं अकेली ही संतान थी। मेरा ना तो कोई भाई था और ना ही कोई बहन। ईश्वर ने मेरे सिवा मेरे माॅ बाप को दूसरी कोई औलाद दी ही नहीं थी। इसके बाद भी मेरे माॅ बाप को भगवान से कोई शिकायत नहीं थी। वो मुझे दिलो जान से प्यार व स्नेह करते थे। जब मैं बड़ी हुई तो सभी बच्चों की तरह मुझे भी मेरे माॅ बाप ने गाॅव के स्कूल में पढ़ने के लिए मेरा दाखिला करा दिया। मैं खुशी खुशी स्कूल जाने लगी थी। किन्तु एक हप्ते बाद ही मेरा स्कूल में पढ़ना लिखना बंद हो गया। दरअसल मैं छोटी सी बच्ची ही तो थी। एक दिन मास्टर जी ने मुझसे क ख ग घ सुनाने को कहा तो मैं सुनाने लगी। लेकिन मुझे आता नहीं था इस लिए जैसे आता वैसे ही सुनाने लगी तो मास्टर जी मुझे ज़ोर से डाॅट दिया। उनकी डाॅट से मैं डर कर रोने लगी। मैं अपने माॅ बाप इकलौती लाडली बेटी थी। मेरे माॅ बाप ने कभी मुझे डाॅटा नहीं था शायद यही वजह थी कि जब मास्टर जी ने मुझे ज़ोर से डाॅटा तो मुझे बेहद दुख व अपमान सा महसूस हुआ और मैं रोने लगी थी। मुझे रोते देख मास्टर जी ने मुझे चुप कराने के लिए फिर से ज़ोर से डाॅटा। उनके द्वारा फिर से डाॅटे जाने से मैं और भी तेज़ तेज़ रोने लगी थी। मास्टर जी ने देखा कि मैं चुप नहीं हो रही हूॅ तो उन्होंने मुझ पर छड़ी उठा दी। दो तीन छड़ी लगते ही मेरा रोना जैसे चीखों में बदल गया। पूरे स्कूल में मेरा रोना चिल्लाना गूॅजने लगा। मेरे इस तरह रोने और चिल्लाने से मास्टर जी बहुत ज्यादा गुस्से में आ गए। उसी वक्त एक दूसरे मास्टर जी मेरा रोना और चिल्लाना सुन कर आ गए। दूसरे मास्टर जी को देख कर पहले वाले मास्टर जी रुक गए और इस बीच मैं रोते हुए ही स्कूल से भाग कर अपने घर आ गई। घर में उस वक्त मेरे पिता जी भोजन कर रहे थे। मुझे इस तरह रोता बिलखता देख वो चौंके। मैं रोते हुए आई और अपने पिता जी से लिपट गई। मेरे पिता मुझसे पूछने लगे कि किसने मुझे रुलाया है तो मैंने रोते रोते सब कुछ बता दिया। सारी बात सुन कर मेरे पिता जी बड़ा गुस्सा हुए लेकिन माॅ के समझाने पर शान्त हो गए। लेकिन इस सबसे हुआ ये कि मेरे पिता जी ने दूसरे दिन से मुझे स्कूल नहीं भेजा। उन्होंने साफ कह दिया था कि जिस स्कूल में मेरी बेटी मार कर रुलाया गया है उस स्कूल में मेरी बेटी अब कभी नहीं पढ़ेगी। बस इसके बाद मैं घर में ही पलती बढ़ती रही। उस समय मेरी उमर पन्द्रह साल थी जब एक दिन बाबू जी(गजेन्द्र सिंह बघेल) हमारे घर आए। बाबू जी को आस पास के सभी गाॅव वाले जानते थे। उन्हें कहीं से पता चला था कि इस गाॅव में हेमराज सिंह(पिता जी) की बेटी है जो बहुत ही सुंदर व सुशील है। बाबू जी अपने मॅझले बेटे विजय सिंह जी के लिए लड़की देखने आए थे। मेरे पिता जी ने बाबू जी को बड़े आदर व सम्मान के साथ बैठाया। घर में जो भी रुखे सूखे जल पान की ब्यवस्था उन्होंने वो सब बाबू जी के लिए किया। बाबू जी ने मेरे पिता जी का मान रखने के लिए थोड़ा बहुत जल पान किया उसके बाद उन्होने अपनी बात रखी। मेरे पिता ये जान कर बड़ा खुश हुए कि ठाकुर साहब अपने बेटे के लिए उनकी लड़की का हाॅथ खुद ही माॅगने आए हैं। भला कौन बाप नहीं चाहेगा कि उसकी बेटी इतने बड़े घर में न ब्याही जाए? और फिर रिश्ता जब खुद ही चलकर उनके द्वार पर आया था तो इंकार का सवाल ही नहीं था। किन्तु पिता जी की आर्थिक स्थित अच्छी नहीं थी इस लिए लेने देने वाली बात से घबरा रहे थे। बाबू जी जानते थे इस बात को इस लिए उन्होंने साफ कह दिया था कि हेमराज हमें सिर्फ तुम्हारी लड़की चाहिए जिसे हम अपनी बेटी और बहू बना सकें। बस फिर क्या था। सब कुछ तय हो गया और एक अच्छे व शुभ मुहूर्त को मेरी शादी हो गई। मुझे नहीं पता था कि मैं किस तरह के घर में और किस तरह के लोगों के बीच आ गई हूॅ? माॅ बाप ने बस यही सीख दी थी कि अपने पति को परमेश्वर मानना। अपने सास ससुर की मन से सेवा करना। बड़ों का आदर व सम्मान करना तथा छोटों को प्यार व स्नेह देना।
एक लड़की का नसीब कितना अजीब होता है कि बचपन से जवानी तक अपने माॅ बाप के पास हॅसी खुशी से रहती है और फिर शादी हो जाने के बाद वह एक नये घर में अपने पति के साथ एक नया संसार बनाने के लिए चली जाती है। अपने माॅ बाप के घर में उनका निश्छल प्यार और स्नेह पा कर पली बढ़ी वो लड़की एक दिन उन सबसे दूर चली जाती है।
शादी के बाद जब मैं इस घर में आई तो मेरे मन में डर व भय के सिवा कुछ न था। अपने माॅ बाप से यूॅ अचानक ही दूर हो जाने से हर पल बस रोना ही आ रहा था। पर ये सब तो हर लड़की की नियति होती है। हर लड़की के साथ एक दिन यही होता है। ख़ैर, रात हुई तो एक ऐसे इंसान से मिलना हुआ जो किसी फरिश्ते से कम न था। उन्होंने मुझे प्यार दिया इज्जत दी और इस क़ाबिल बनाया कि जब सुबह हुई तो मुझे लगा जैसे ये घर शदियों से मेरा ही था। मुझे लग ही नहीं रहा था कि मैं किसी दूसरे के घर में किसी अजनबी के पास आ गई हूॅ। राज के पिता ऐसे थे कि उन्होने मुझे इतना बदल दिया था। मुझे उनसे प्रेम हो गया और मैं जानती थी कि उन्हें भी मुझसे उतना ही प्रेम हो गया था।
मेरी दोनो ननदें यानी सौम्या और नैना दिन भर मेरे पास ही जमी रहती थी। उन्होने ये एहसास ही नहीं होने दिया कि वो दोनो मेरे लिए अजनबी हैं। माॅ बाबू बड़ा खुश थे। आख़िर उनकी पसंद की लड़की उनकी बहू बन कर उस घर में आई थी। ऐसे ही एक हप्ता गुज़र गया। इन एक हप्तों में मेरे मन से पूरी तरह डर व झिझक जा चुकी थी। मुझे घर के सभी लोग अच्छे लगने लगे थे। विजय जी से इतना प्रेम हो गया था कि उनके बिना एक पल भी नहीं रहा जाता था। वो दिन भर खेतों पर काम में ब्यस्त रहते और शाम को ही घर आते। जब वो कमरे में मेरे पास आते तो मुझे रूठी हुई पाते। फिर वो मुझे मनाते। हर दिन मेरे लिए छुपा कर फूलों का गजरा खुद बना कर लाते और मेरे बालों में खुद ही लगाते। आईने के सामने ले जाकर मुझे खड़ा कर देते और मेरे पीछे खड़े होकर तथा आईने में देखते हुए मुझसे कहते "मैं सारे संसार के सामने चीख चीख कर ये कह सकता हूॅ कि इस संसार में तुमसे खूबसूरत दूसरा कोई नहीं। मैं तो बेकार व निकम्मा था जाने किन पुन्य प्रतापों का ये फल था जो तुम मुझे मिली हो" उनकी इन बातों से मैं गदगद हो जाती। मुझे ध्यान ही न रहता कि मैं उनसे रूठी हुई थी। सब कुछ जैसे भूल जाती मैं।
इस बीच मैंने महसूस किया था कि बड़े भइया और बड़ी दीदी इन दोनो का ब्यौहार सबसे अलग था। बड़े भइया विजय जी से ज्यादा बात नहीं करते थे। उसी तरह प्रतिमा दीदी मुझसे ज्यादा बात नहीं करती थी। हलाॅकि वो उस समय शहर में ही रहते थे। पर जब भी वो दोनो आते तो उनका ब्यौहार ऐसा ही होता हम दोनो से।
ऐसे ही चलता रहा। हम सब खुश थे किन्तु ये सच था कि बड़े भइया और दीदी विजय जी और मुझसे हमेशा से ही उखड़े से रहते। मैने अक्सर देखा था कि बड़े भइया किसी न किसी बात पर विजय जी को उल्टा सीधा बोलते रहते थे। ये अलग बात थी कि विजय जी उनकी किसी भी बात का बुरा नहीं मानते थे और ना ही पलट कर कोई जवाब देते थे।
एक दिन की बात है मैं अपने कमरे में नहाने के बाद कपड़े पहन रही थी, मुझे ऐसा लगा जैसे छिप कर कोई मुझे कपड़े पहनते हुए देख रहा है। मैंने पलट कर देखा तो कहीं कोई नहीं था। मैंने इसे अपना वहम समझ कर फिर से कपड़े पहनने लगी। तभी कमरे के बाहर से मेरी बड़ी ननद सौम्या की आवाज़ आई। वो कह रही थी "बड़े भइया आप यहाॅ, भाभी के कमरे के दरवाजे के पास छिप कर क्यों खड़े हैं?" सौम्या की इस बात को सुन कर मैं सन्न रह गई। ये जान कर मेरे पैरों तले से ज़मीन निकल गई कि जेठ जी छिप कर मुझे कपड़े पहनते हुए देख रहे थे। मुझे ध्यान ही नहीं था कि मेरे कमरे का दरवाजा खुला हुआ है। मेरी हालत ऐसी हो गई जैसे काटो तो एक बूद भी खून न निकले। फिर जब मुझे होश आया तो अनायास ही जाने किस भावना के तहत मुझे रोना आ गया। सौम्या जब मेरे कमरे में आई तो उसने मुझे रोता पाया। वह मुझे रोते देख हैरान रह गई। उसे किसी अनिष्ट की आशंका हुई। उसने तो देखा ही था कि उसका बड़ा भाई मेरे कमरे के बाहर दरवाजे के पास छिप कर खड़ा था। उसे समझते देर न लगी कि कुछ तो हुआ है। उसने तुरंत ही मुझे शान्त करने की कोशिश की और पूछने लगी क्या हुआ है? मैंने रोते हुए यही कहा कि मुझे तो कुछ पता ही नहीं था कि कौन दरवाजे के पास छिपकर मुझे कपड़े पहनते देख रहा है, वो तो तब पता चला जब तुमने बाहर जेठ जी से वो सब कहा था। मेरी बातें सुन कर सौम्या भी स्तब्ध रह गई। फिर उसने कहा कि ये बात मैं किसी से न कहूॅ क्यों कि घर में हंगामा हो जाएगा। इस लिए इस बात को भूल जाऊॅ लेकिन आइंदा से ये ख़याल ज़रूर रखूॅ कि दरवाजा खुला न रहे।
उस दिन के बाद जेठ जी का मुझे देखने का नज़रिया बदल चुका था। वो किसी न किसी बहाने मुझे देख ही लेते। मैं पन्द्रह साल की नासमझ ही थी। मुझे सिर पर साड़ी द्वारा घूॅघट करने का भूल जाता था। जेठ जी मुझे देखते और जब मेरी नज़र उन पर पड़ती तो वो बस मुस्कुरा देते। मुझे ये सब बड़ा अजीब लगता और मैं इस सबसे डर भी जाती।
उधर विजय जी खेतों में दिन रात मेहनत करते और ज्यादा से ज्यादा मात्रा में फसल उगाते। शहर में बेंच कर जो भी मुनाफा होता वो उस सारे पैसों को बाबू जी के हाॅथ में पकड़ा देते। उन पर तो जैसे पागलपन सवार था खेतों में दिन रात मेहनत करने का। उनकी मेहनत व लगन से अच्छा खासा मुनाफा भी होता। मैं अक्सर उनके पास खेतों में उन्हें खाना देने के बहाने चली जाती। मुझे उनके साथ रहना अच्छा लगता था फिर चाहे वो किसी भी जगह हों। हम दोनो खेतों में नये नये पौधे लगाते और खूब सारी बातें करते।
समय गुज़रता रहा। समय के साथ साथ उनका स्वभाव जो पहले से ही बदला हुआ था वो और ज्यादा बदल गया था। जेठ जी जब भी बड़ी दीदी के साथ शहर से आते तो उनका बस एक ही काम होता था...मुझे ज्यादा से ज्यादा देखना। घर में अगर कोई न होता तो वो मुझसे बातें करने की कोशिश भी करते। किन्तु मैं उनकी किसी बात को कोई जवाब न देती बल्कि अपने कमरे में आकर दरवाजा अंदर से लगा लेती। जैसा की गाॅवों में होता है कि जेठ व ससुर के सामने घूॅघट करके ही जाना है और उनके सामने कोई आवाज़ नहीं निकालना है, बात करने की तो बात दूर। इस लिए जेठ जी जब खुद ही मुझसे बातें करने और करवाने की कोशिश करते तो मैं डर जाती और भाग कर अपने कमरे में जाकर अंदर से दरवाजा बंद कर लेती। इतना तो मैं समझ गई थी कि जेठ जी की नीयत मेरे प्रति सही नहीं है। मगर किसी से कह भी नहीं सकती थी। मैं नहीं चाहती थी कि मेरी वजह से घर में कोई कलह शुरू हो जाए।
उधर विजय जी की मेहनत से घर में ढेर सारा पैसा आने लगा था। बाबू जी अपने इस बेटे से बड़ा खुश थे। मुझसे भी खुश थे क्योंकि मैं उनकी नज़र में एक आदर्श बहू थी। एक बार जेठ जी फिर आए शहर से। किन्तु इस बार वो पैसों के लिए आए थे क्योंकि उन्हें शहर में खुद का कारोबार करना था। उन्होने बाबू जी से इस बारे में बात की और उनसे पैसे मागे। इस बाबूजी नाराज़ भी हुए। पैसों के बारे में उन्होने यही कहा कि ये सब पैसे विजय की मेहनत का नतीजा है इस लिए उससे पूछना पड़ेगा। बाबू जी की इस बात ने जेठ जी के मन में विजय जी के लिए और भी ज़हर भर गया। मुझे आज भी नहीं पता कि ऐसी क्या वजह थी जिसकी वजह से जेठ जी के मन में अपने इस भाई के लिए इतना ज़हर भरा हुआ था? जबकि सब जानते थे कि विजय जी हमेशा उनका आदर व सम्मान करते थे। उनकी किसी भी बात का बुरा नहीं मानते थे। ख़ैर, पैसा लेकर जेठ जी शहर चले गए। इस बार जब वो आए थे तो किसी भी दिन उन्होंने वो हरकतें नहीं की जो इसके पहले करते थे मुझे देखने की। शहर में जेठ जी ने खुद का कारोबार शुरू कर लिया। इधर विजय जी के ज़ेहन में ये भूत सवार हो गया था कि घर को तुड़वा कर इसे नये सिरे से बनवा कर हवेली का रूप दिया जाए। उन्होने बाबू की सहमति से हवेली की बुनियाद रखी। हवेली को तैयार करने में भारी पैसा खर्च हुआ। यहाॅ तक की बाद में हवेली का बाॅकी काम कर्ज लेकर करना पड़ा। जेठ जी ने पैसा देने से इंकार कर दिया।
इस बीच बड़ी दीदी को एक बेटी हुई। इसका पता भी हम सबको बाद में चला था। ख़ैर, जब वो शहर से आए तो बाबू जी इस खबर से नाराज़ तो हुए किन्तु फिर हमेशा की तरह ही चुप रह गए।
मैं इस बात से खुश थी कि जेठ जी अब चोरी छिपे मुझे देखने वाली हरकतें करना बंद कर दिये थे। इस बीच अभय ने भी अपनी पसंद की लड़की से शादी कर ली। बाबू जी इस बात से नाराज़ हुए लेकिन कर भी क्या सकते थे? लेकिन करुणा का आचरण बहुत अच्छा था, वो पढ़ी लिखी थी लेकिन उसमें संस्कार भी थे। मैं उसे अपनी छोटी बहन बना कर खुश थी। हम दोनों का आपस में बड़ा प्रेम था। कोई कह ही नहीं सकता था कि वो मेरी देवरानी है। अभय गुस्सैल स्वाभाव के ज़रूर थे किन्तु उनके अंदर अपने से बड़ों का आदर सम्मान करने की भावना थी। प्रेम के चक्कर में छोटी ऊम्र ही उन्होने शादी कर ली थी। लेकिन बाबू जी शायद इस लिए चुप रह गए थे क्योंकि वो अपने पैरों पर खड़े थे। गाॅव के ही सरकारी स्कूल में अध्यापक थे वो।
इधर हवेली बन कर तैयार हो चुकी थी। कर्ज़ भी काफी हो गया था लेकिन विजय जी के लिए तो जैसे ये कर्ज़ कोई मायने ही नहीं रखता था। बाबू जी ने हवेली के तैयार होने पर बड़े धूमधाम से गृह प्रवेश का उत्सव मनाया। शहर से बड़े भइया और दीदी भी आईं। हवेली देख कर वो दोनो ही हैरान थे किन्तु प्रत्यक्ष में हमेशा की तरह ही ग़लतियाॅ बता रहे थे। बाबू जी सब जानते भी थे और समझते भी थे किन्तु हमेशा चुप रहते।
ऐसे ही चार साल गुज़र गए और मुझे एक बेटा हुआ। मेरे बेटे के जन्म के चार दिन बाद बड़े भइया और दीदी को फिर से एक बेटी हुई। बाबू जी ने अपने पोते के जन्म पर बड़े धूमधाम से उत्सव मनाया। बड़े भइया और दीदी इससे नाराज़ हुए। उनका कहना था कि उनकी बेटियों के जन्म उत्सव नहीं मनाया जबकि विजय के बेटे के जन्म पर बड़ा उत्सव मना रहे हैं आप। उनकी इन बातों से बाबू जी का गुस्सा उस दिन जैसे फट पड़ा था। उन्होंने गुस्से में बहुत कुछ सुना दिया उन दोनो को। बात भी सही थी। दरअसल वो दोनो खुद को हम सबसे अलग कर लिए थे। शहर में खुद का कारोबार और बड़ा सा एक घर था उनके पास। शायद इसी का घमंड होने लगा था उन्हें। वो सोचते थे कि कहीं हम लोग उनके कारोबार और शहर के मकान में हिस्सा न मागने लगें इस लिए वो हमेशा हम सबसे कटे कटे से रहते। जबकि यहा हवेली और ज़मीन जायदाद में अपना हक़ समझते थे।
गौरी कुछ पल के लिए रुकी और गहरी साॅसें लेने लगी। सब लोग साॅस बाधे उसकी बातें सुन रहे थे।
"मैं जानती हूॅ अभय कि मैने अभी जो कुछ कहा उस सबको तुम जानते हो।" गौरी ने कहा__"तुम सोच रहे होगे कि मैं ये सब तुम्हें क्यों बता रही हूॅ जबकि मुझे तो सिर्फ वो सब बताना चाहिए जो इन लोगों ने मेरे और मेरे पति के साथ किया था। ख़ैर, ये सब बताने का मतलब यही था कि जो कुछ हुआ उसकी बुनियाद उसकी शुरूआत यहीं से हुई थी। ज़हर के बीज यहीं से बोना शुरू हुए थे।
राज जब दो साल का हुआ तो मेरी बड़ी ननद सौम्या की शादी की बात चली। बाबू जी ने बड़े भइया को संदेश भेजवाया और कहा कि वो अपनी बहन की शादी के लिए अपनी तरफ से क्या खर्चा कर सकते हैं? बाबू जी बात से बड़े भइया ने पैसा देने से साफ इंकार कर दिया था। उनका कहना था कि उनका कारोबार आजकल बहुत घाटे में चल रहा है इस लिए वो पैसे नहीं पाएॅगे। बाबू जी उनकी इस बात से बेहद दुख हुआ। बाबू जी के दुख का जब विजय जी को पता चला तो वो खेतों से आकर हवेली में बाबू जी से मिले। उन्होने बाबू जी से कहा कि आप किसी बात की फिक्र न करें, सौम्या की शादी बड़े धूमधाम से ही होगी। बाबू जी जानते थे कि हवेली बनाने में जो कर्जा हुआ था उसे विजय जी ने कितनी मेहनत करके चुकाया था। इसके बाद कहीं फिर से न कर्ज़ा हो जाए। खैर, सौम्या की शादी हुई और वैसे ही धूमधाम से हुई जैसा कि विजय जी ने बाबू जी से कहा था। शहर से बड़े भइया और दीदी भी थे, वो दोनो हैरान थे किन्तु सामने पर यही कहते फिलते बाबू जी से कि इतना खर्च करने की क्या ज़रूरत थी? इससे जो कर्ज़ हुआ है उसे मेरे सिर पर मत मढ़ दीजिएगा। बाबू जी इस बात से बेहद गुस्सा हुए। कहने लगे कि तुम तो वैसे ही खुद को सबसे अलग समझते हो, तुम्हें किसी बात की चिन्ता करने की कोई ज़रूरत नहीं है। मेरे दो दो सपूत अभी बाॅकी हैं जो मेरा हर तरह से साथ देंगे और दे भी रहे हैं। सौम्या की शादी के तीसरे दिन बड़े भइया ने बाबू जी से कहा कि अगर आप ये समझते हैं कि मैं आप सबसे खुद को अलग समझता हूॅ तो आप मुझे सचमुच ही अलग कर दीजिए। ये रोज रोज की बेज्जती मुझसे नहीं सुनी जाती। बाबू जी ने कहा कि तुम तो अलग ही हो अब किस तरह अलग करें तुम्हें? तो बड़े भइया ने कहा कि मेरे हिस्से में जो भी आता हो उसे मुझे दे दीजिए। हवेली में और ज़मीनों में जो भी मेरा हिस्सा हो। बाबू जी उनकी इस बात पर गुस्सा हो गए। कहने लगे कि तुम्हारा हवेली में तभी हिस्सा हो सकता है जब तुम अपने हिस्से की कीमत दोगे। क्योंकि हवेली में तुमने अपनी तरफ से एक रुपया भी नहीं लगाया। हवेली में जो भी रुपया पैसा लगा और जो भी कर्ज़ा हुआ उस सबको अकेले विजय ने चुकता किया है। हाॅ अगर विजय चाहे तो अपनी मर्ज़ी से तुम्हें बिना कीमत चुकाए हवेली में हिस्सा दे सकता है।
बाबू जी की बात से बड़े भइया नाराज़ हो गए। कहने लगे कि विजय होता कौन है मुझे हिस्सा देने वाला। उस मजदूर के सामने मैं हाॅथ फैलाने नहीं जाऊॅगा। मुझे आपसे हिस्सा चाहिए। उनकी इन बातों से बाबू जी भी गुस्सा हो गए। कहने लगे कि अगर ऐसी बात है तो तुम्हें भी अपने कारोबार और शहर के मकान में दोनो भाइयों को हिस्सा देना होगा। तुम्हारा कारोबार तो वैसे भी विजय के ही पैसों की बुनियाद पर खड़ा हुआ है। बाबू जी इस बात से बड़े भइया ने साफ कह दिया कि मेरे कारोबार और शहर के मकान में किसी का कोई हिस्सा नहीं है। तो बाबू जी ने भी कह दिया कि फिर तुम भी ये भूल जाओ कि तुम्हारा इस हवेली में और ज़मीनों में कोई हिस्सा है।
बाबू जी की इस बात से बड़े भइया गुस्सा हो गए। कहने लगे कि ये आप ठीक नहीं कर रहे हैं। आप बाप होकर भी अपने बेटों के बीच पक्षपात कर रहे हैं। बाबू जी ने कहा कि तुम अपने आपको होशियार समझते हो कि तुम सबके हिस्सा ले लो और तुमसे कोई न ले। ये कहाॅ का न्याय कर रहे हो तुम? अरे तुम तो बड़े भाई हो, तुम्हें तो खुद सोचना चाहिए कि तुम अपने छोटे भाइयों का भला करो और भला ही सोचो।
बाबू जी की इन बातों से बड़े भइया कुछ न बोले और पैर पटकते हुए वापस शहर चले गए। उधर ये सारी बातें जब विजय जी को पता चलीं तो वो बाबू जी से बोले कि आपको बड़े भइया से ऐसा नहीं कहना चाहिए था। भला क्या ज़रूरत थी उनसे ये कहने की कि हवेली में हिस्सा तभी मिलेगा जब वो अपने हिस्से की कीमत चुकाएॅगे? मैने ये सोच कर ये सब नहीं किया था कि बाद में मैं अपने ही भाइयों से हवेली की कीमत वसूल करूॅ। बाबू जी बोले इतना महान मत बनो बेटे। ये दुनिया बहुत बुरी है, यहाॅ बड़े खुदगर्ज़ लोग रहते हैं। समय के साथ खुद को भी बदलो बेटा। वरना ये दुनिया तुम जैसे नेक और सच्चे ब्यकित को जीने नहीं देगी। बाबू जी की इस बात पर विजय जी बोले जैसे सूरज अपना रोशनी फैलाने वाला स्वभाव नहीं बदल सकता वैसे ही मेरा स्वभाव भी नहीं बदल सकता। आप और माॅ की सेवा करूॅ छोटे भाई के लिए खुद की सारी खुशियाॅ निसार कर दूॅ। भला क्या लेकर जाऊॅगा इस दुनियाॅ से? सब यहीं तो रह जाएगा न बाबू जी। इंसान की सबसे बड़ी दौलत व पूॅजी तो वो है जिसे पुन्य कहते हैं। एक यही तो लेकर जाता है वह भगवान के पास।
विजय जी की इन बातों से बाबू जी अवाक् रह गए। कुछ देर बाद बोले तू तो कोई फरिश्ता है बेटे। मन से बैरागी है तू। तुझे किसी धन दौलत का मोह नहीं है। जब तू पढ़ता लिखता नहीं था न तो दिन रात कोसता था तुझे। सोचता था कि कैसा निकम्मा बेटा दिया था मुझे भगवान ने लेकिन भला मुझे क्या पता था कि वही निकम्मा बेटा एक दिन इतना महान निकलेगा। मुझे तुझपे गर्व है बेटे। लेकिन मेरी एक बात हमेशा याद रखना कि दूसरों खुश रखने के लिए खुद का बने रहना भी ज़रूरी होता है।
बाबू जी की इस बात को सुन कर विजय जी मुस्कुराए और फिर से अपनी कर्मभूमि यानी खेतों पर चले गए। बाबू जी की बातों में छुपे किसी अर्थ को शायद विजय जी समझ नहीं पाए थे। लेकिन बाबू जी को शायद भविष्य दिख गया था।
उधर शहर में बड़े भइया और दीदी इस बार कुछ और ही खिचड़ी पका रहे थे। सौम्या की शादी को एक महीना हो गया था जब बड़े भइया और दीदी को तीसरी औलाद के रूप में एक बेटा हुआ था। वो दोनो शहर से आए थे घर। इस बार बाबू जी ने उनके बेटे के जन्म पर राज के जन्मोत्सव से भी ज्यादा उत्सव मनाया कारण यही था कि बड़े भइया और दीदी को ये न लगे कि हमें कोई खुशी नही हुई है उनके बेटे के जन्म पर। बड़े भइया खुद भी उत्सव में खूब पैसा बहा रहे थे। वो दिखाना चाहते थे कि वो किसी से कम नहीं हैं। ख़ैर, इस बार एक नई चीज़ देखने को मिली। वो ये थी कि बड़े भइया और दीदी हम सब से बड़े अच्छे तरीके से मिल जुल रहे थे। विजय जी से भी उन्होने अच्छे तरीके से बातें की। एक दिन बड़े भइया खेतों पर घूमने गए। वहाॅ पर उन्होने देखा कि ज़मीनों पर काफी अच्छी फसल उगी हुई थी। बगल से जो बंज़र सा पहले बड़ा सा मैदान हुआ करता था अब वहाॅ पर अच्छे खासे पेढ़ लगाए जा चुके थे। खेतों पर एक तरफ बड़ा सा मकान भी बन रहा था। खेतों पर बहुत से मजदूर काम कर रहे थे। विजय जी ने बड़े भइया को वहाॅ पर देखा तो वो भाग कर उनके पास आए और बड़े आदर व सम्मान से उन्हें खेतों के बारें में तथा फसलों से होने वाली आमदनी के के बारे में बताने लगे। उन्होंने ये भी बताया कि दूसरी तरफ जो बीस एकड़ की खाली ज़मीन पड़ी थी उसमें मौसमी फलों के बाग़ लगाने की तैयारी हो रही है। उससे काफी ज्यादा आमदनी होगी।
ऐसे ही बातें चलती रही फिर बातों ही बातों में जब हवेली का ज़िक्र आया तो विजय जी ने खुद कहा कि हवेली में सबका बराबर का हिस्सा है वो जब चाहें ले सकते हैं। उन्हें कोई कीमत नहीं चाहिए। ये सब अपनो के लिए ही तो बनाया गया है। विजय जी की इन बातों से बड़े भइया खुश हो गए। किन्तु उनके मन में शायद कुछ और ही था जो उस वक्त समझ नहीं आया था।
ऐसे ही वक्त गुज़रता रहा। इसी बीच मुझे एक बेटी हुई और दस दिन बाद करुणा ने भी एक सुंदर सी बच्ची को जन्म दिया। राज उस वक्त चार साल का हो गया था। वो दिन भर अपनी उन दोनो बहनों के साथ ही रहता, और उनके साथ ही हॅसता खेलता। शहर से बड़े भइया और दीदी भी आए थे। सबके लिए कपड़े भी लाए थे। हम सब बेहद खुश थे इस सबसे।
इस बीच एक परिवर्तन ये हुआ कि बड़े भइया शहर से हप्ते में एक दो दिन के लिए हवेली आने लगे थे। माॅ बाबू जी से वो बड़े सम्मान से बातें करते और खेतों पर भी जाते। वहाॅ देखते सुनते सब। मैं और करुणा घर के सारे काम करती। उसके बाद मैं खेत चली जाती विजय जी के पास। खेतों में जो मकान बन रहा था वो बन गया था।
इस बीच बच्चे भी बड़े हो रहे थे। राज पाॅच साल का हुआ तो उसका स्कूल में दाखिला करा दिया अभय ने। गर्मियों में जब स्कूल की छुट्टियाॅ होती तो बड़े भइया और दीदी के बच्चे भी शहर से गाॅव हवेली में आ जाते। सब बच्चे एक साथ खेलते और खेतों में जाते। बड़े भइया की बड़ी बेटी रितू अपनी माॅ पर गई थी। वो ज्यादा हम लोगों से घुलती मिलती नहीं थी। शिवा अपने बाप पर ही गया था। वह अपनी चीज़ें किसी को नहीं देता था और दूसरों की चीज़ें लड़ झगड़ कर ले लेता था। राज से अक्सर उसकी लड़ाई हो जाती थी। बच्चे तो नासमझ होते हैं उन्हें अच्छे बुरे का ज्ञान कहाॅ होता है। इस लिए अगर इनकी आपस में कभी लड़ाई होती तो जेठानी जी अक्सर नाराज़ हो जाती थीं। बड़ी मुश्किल से गर्मियों की छुट्टियाॅ कटती और जेठानी जी अपने बच्चों को लेकर शहर चली जातीं।
दोस्तो, अपडेट हाज़िर है,,,,,,
अगले अपडेट से फ्लैशबैक को शार्ट करके लिखूॅगा,
Nice update♡ एक नया संसार ♡
अपडेट..........《 29 》
अब तक,,,,,,,,,,
ऐसे ही वक्त गुज़रता रहा। इसी बीच मुझे एक बेटी हुई और दस दिन बाद करुणा ने भी एक सुंदर सी बच्ची को जन्म दिया। राज उस वक्त चार साल का हो गया था। वो दिन भर अपनी उन दोनो बहनों के साथ ही रहता, और उनके साथ ही हॅसता खेलता। शहर से बड़े भइया और दीदी भी आए थे। सबके लिए कपड़े भी लाए थे। हम सब बेहद खुश थे इस सबसे।
इस बीच एक परिवर्तन ये हुआ कि बड़े भइया शहर से हप्ते में एक दो दिन के लिए हवेली आने लगे थे। माॅ बाबू जी से वो बड़े सम्मान से बातें करते और खेतों पर भी जाते। वहाॅ देखते सुनते सब। मैं और करुणा घर के सारे काम करती। उसके बाद मैं खेत चली जाती विजय जी के पास। खेतों में जो मकान बन रहा था वो बन गया था।
इस बीच बच्चे भी बड़े हो रहे थे। राज पाॅच साल का हुआ तो उसका स्कूल में दाखिला करा दिया अभय ने। गर्मियों में जब स्कूल की छुट्टियाॅ होती तो बड़े भइया और दीदी के बच्चे भी शहर से गाॅव हवेली में आ जाते। सब बच्चे एक साथ खेलते और खेतों में जाते। बड़े भइया की बड़ी बेटी रितू अपनी माॅ पर गई थी। वो ज्यादा हम लोगों से घुलती मिलती नहीं थी। शिवा अपने बाप पर ही गया था। वह अपनी चीज़ें किसी को नहीं देता था और दूसरों की चीज़ें लड़ झगड़ कर ले लेता था। राज से अक्सर उसकी लड़ाई हो जाती थी। बच्चे तो नासमझ होते हैं उन्हें अच्छे बुरे का ज्ञान कहाॅ होता है। इस लिए अगर इनकी आपस में कभी लड़ाई होती तो जेठानी जी अक्सर नाराज़ हो जाती थीं। बड़ी मुश्किल से गर्मियों की छुट्टियाॅ कटती और जेठानी जी अपने बच्चों को लेकर शहर चली जातीं।
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अब आगे,,,,,,,,,,,,
प्रतिमा अपने पति के साथ जब अपने कमरे में पहुॅची तो अचानक ही पीछे से अजय ने उसे अपनी गिरफ्त में ले लिया साथ ही अपने होठों को उसकी गर्दन पर लगा कर करते हुए अपने दोनो हाथों से प्रतिमा के बड़े बड़े चूॅचों को बुरी तरह मसलने लगा।
"आऽऽऽह धीरे से प्लीज़।" प्रतिमा की दर्द और मज़े में डूबी आह निकल गई थी, बोली___"ज़रा धीरे से आहहहहह मसलो न अजय। मुझे दर्द हो रहा है।"
"ये धीरे से मसलने वाली चीज़ नहीं है मेरी जान।" अजय सिंह ने उसी तरह प्रतिमा के चूॅचों को मसलते हुए कहा__"इन्हें तो आटे की तरह गूॅथा और मसला जाता है। देख लो मैं वही कर रहा हूॅ।"
"वो तो मैं देख ही रही हूॅ।" प्रतिमा ने आहें भरते हुए कहा___"पर मुझे ये नहीं समझ आ रहा कि इस समय तुम ये सब इतने उतावलेपन से क्यों कर रहे हो? आख़िर किस बात का जोश चढ़ गया है तुम्हें?"
"मत पूछो डियर।" अजय सिंह ने खुद आह सी भरते हुए कहा___"इस हवेली में आज एक और चूॅत आ गई है। मेरी छोटी बहन की प्यारी प्यारी सी चूॅत। हाय काश! उसकी उस चूॅत को पेलने का मौका मिल जाए तो कसम से मज़ा आ जाए प्रतिमा।"
"हे भगवान।" प्रतिमा उछल पड़ी__"तो इस वजह से जोश चढ़ा हुआ है तुम्हें? कसम से अजय तुम न कभी नहीं सुधर सकते। तुम्हारे ही नक्शे कदम पर हमारा बेटा भी चल रहा है। मैने हज़ार बार देखा है उसे, उसकी नज़रें अपनी बहनों पर ही नहीं खुद मुझ पर भी गड़ जाती हैं। उसे ये भी ख़याल नहीं कि मैं उसकी माॅ हूॅ। ये सब तुम्हारी वजह से है अजय। तुम खुद उसकी ग़लतियों को नज़रअंदाज़ करते रहते हो।"
"अरे तो क्या हो गया मेरी जान?" अजय ने प्रतिमा को उठाकर बेड पर लेटा दिया और फिर उसके ऊपर आकर बोला___"नज़रें तो होती ही हैं नज़ारा करने के लिए। तुम तीनो माॅ बेटियाॅ हो ही इतनी हाॅट एण्ड सेक्सी कि हमारे बेटे का भी इमानडोल गया।"
"तुम्हारे बेटे का बस चले तो अपनी माॅ बहनों को भी अपने नीचे लेटा कर पेल दे।" प्रतिमा ने हॅस कर कहा था।
"तो इसमें दिक्कत क्या है डियर?" अजय ने बेशर्मी से हॅसते हुए कहा__"उसे भी अपनी कुण्ड का अमृत पिला दो। शायद उसकी प्यास और तड़प मिट ही जाए।"
"ओह अजय कुछ तो शर्म करो।" प्रतिमा ने हैरानी से देखा__"भला ऐसा मैं कैसे कर सकती हूॅ? वो मेरा बेटा है, मैने उसे पैदा किया है।"
"तो क्या हुआ मेरी जान?" अजय ने अपना एक हाॅथ सरका कर प्रतिमा की साड़ी को ऊपर कर उसकी नंगी चूॅत को मसलते हुए कहा___"इसी रास्ते से ही पैदा किया ना अपने बेटे को? अब इसी रास्ते का स्वाद भी चखा दो उसे। यकीन मानो मेरी जान उसके बाद तुम्हारा बेटा तुम्हारा गुलाम ना हो जाए तो कहना।"
"उफफफफ अजय तम्हें ज़रा भी एहसास नहीं है कि तुम क्या बकवास किये जा रहे हो?" प्रतिमा ने नाराज़गी भरे लहजे से कहा__"तुम मुझे ऐसा करने के लिए कैसे कह सकते हो? क्या तुम्हें ज़रा सी भी इस बात से तक़लीफ़ नहीं होगी कि हमारा बेटा तुम्हारी चीज़ों का भोग करे? किस मिट्टी के बने हो तुम यार?"
"यार तो कौन सा घिस जाएगी तुम्हारी ये रस से भरी हुई चूत?" अजय ने अपने हाॅथ की दो उॅगलियाॅ प्रतिमा की रिस रही चूत में अंदर तक डाल कर कहा___"एक बार अपने बेटे का हथियार भी तो डलवा कर मज़ा लो। सक्सेना के साथ तो बड़ा मज़ा करती थी तुम। दो दो हथियारों से आगे पीछे से पेलवाती थी तुम। कसम से डियर, अगर ऐसा हो जाए तो मज़ा ही आ जाए। हम दोनो बाप बेटे एक साथ मिल कर तुम्हारी आगे पीछे से ठुकाई करेंगे।"
"आआआहहहहह अजय।" प्रतिमा ने मदहोशी में कहा___"मत करो ऐसी बातें। मुझे कुछ हो रहा है।"
"हाहाहाहा जब ऐसी बातों से ही तुम्हें कुछ होने लगा है तो ज़रा सोचो डार्लिंग।" अजय ने हॅसते हुए कहा___"सोचो डियर तब क्या होगा जब हम दोनो बाप बेटों के हथियार तुम्हारी पेलाई करेंगे?"
"शशशशशशश कुछ करो अजय।" प्रतिमा की हालत ख़राब___"जल्दी से कुछ करो। मेरी चूत में आग जलने लगी है। इसे बुझाओ जल्दी। वरना मैं इस आग में जल जाऊॅगी।"
"क्या करूॅ डियर?" अजय मुस्कुराया था।
"कुछ भी करो।" प्रतिमा ने बेड सीट को दोनो हाथों की मुट्ठियों में भींचते हुए कहा___"पर मेरी इस आग को शान्त करो जल्दी। उफफफ ये आज क्या हो रहा है मुझे??"
"आज बेटे के हथियार की बात चली है ना इस लिए शायद ऐसा हो रहा है तुम्हें।" अजय ने कहा__"पर बेटे का हथियार तो इस वक्त यहाॅ नहीं है मेरी जान। कहो तो फोन करके शहर से बुला लूॅ उसे?"
"उसे तो आने में समय लगेगा अजय।" प्रतिमा ने आहें भरते हुए कहा___"तुम्हें ही इस आग को शान्त करना पड़ेगा। शशश जल्दी मुझे पेलो ना अजय।"
"इसका मतलब तुम्हें अपने बेटे से पेलवाने में अब कोई ऐतराज़ नहीं है।" अजय मुस्कुराया।
"मुझे तुम्हारी किसी बात से कभी कोई ऐतराज हुआ है क्या?" प्रतिमा ने झटके से उठ कर अजय के कपड़े उतारना शुरू कर दिया था, बोली___"मैं तो तुम्हारी हर जायज़ नाजायज़ बात को अब तक मानती ही आ रही हूॅ। अब जल्दी से मुझे आगे पीछे पेलो। बहुत आग लगी हुई है।"
"ठीक है फिर कल हम दोनो शहर चलेंगे और वहीं पर अपने बेटे के साथ थ्रीसम करेंगे।" अजय ने कहा।
"जो तुम्हारी मर्ज़ी लेकिन अभी तो मुझे शान्त करो।" प्रतिमा ने अजय को नंगा कर दिया था।
अजय ने प्रतिमा की दोनो टाॅगों को अपने दोनों कंधों पर रखा और पोजीशन बना कर प्रतिमा पर छाता चला गया। कमरे के अंदर जैसे एकाएक कोई भारी तूफान आ गया था।
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फ्लैशबैक________
उधर मुम्बई में,
कुछ पल रुकने के बाद गौरी ने गहरी साॅस ली उसके बाद फिर से कहा___"ऐसे ही कुछ साल गुज़र गए। सब कुछ बहुत अच्छा चल रहा था। राज़ अब बड़ा हो गया था। उस समय वह दस जमात में पढ़ रहा था। पढ़ने लिखने में वह शुरू से ही तेज़ था क्योंकि उसकी पढ़ाई की सारी जिम्मेदारी अभय और करुणा पर थी। विजय जी ने बाबू जी के लिए एक बढ़िया सी कार खरीद दी थी तथा अभय के लिए एक बुलेट मोटर साइकिल।
अब की बार जब गर्मियों की छुट्टियाॅ हुईं तो फिर से जेठ जेठानी अपने बच्चों के साथ शहर से गाव आए। किन्तु इस बार हालातों में बहुत बड़ा बदलाव हो चुका था।
गौरी की नज़रें सामने एक बड़े से टेबल पर रखे काॅच के एक बड़े से जार में टिकी थी। जिस जार में भरे हुए पानी पर रंग बिरंगी मछलियाॅ तैर रही थी। उसी काॅच के जार में गौरी एकटक देखे जा रही थी। जैसे वहाॅ कोई फिल्म चल रही हो। एक ऐसी फिल्म जो गुज़रे हुए कल का एक हिस्सा थी।
"कल से ही तुम अपने काम में लग जाओ मेरी जान।" अपने कमरे में बेड के एक तरफ बैठे अजय ने प्रतिमा से कहा___"हमें किसी भी कीमत पर उस मजदूर को अपने काबू में करना है।"
"और अगर उसने कोई हंगामा खड़ा कर दिया तो?" प्रतिमा ने तर्क दिया___"तब तो मैं इस घर में किसी को मुह दिखाने के काबिल भी न रह जाऊॅगी।"
"ऐसा कुछ नहीं होगा।" अजय ने पुरज़ोर लहजे में कहा___"मुझे पता है वो साला इस बारे में किसी को कुछ नहीं बताएगा। और अगर उसने इस सबमें ज्यादा चूॅ चाॅ की तो उसके इलाज़ के लिए भी फिर प्लान बी अपनाया जाएगा।"
"और प्लान बी क्या है?" प्रतिमा ने मुस्कुराते हुए पूछा था।
"प्लान बी ये है कि तुम्हारी उन हरकतों से अगर वह घर में किसी से कुछ कहता है और अगर सारी बात तुम पर ही आती है तो तुम उल्टा उस पर ही इल्ज़ाम लगाना।" अजय सिंह उसे समझा रहा था___"चीख चीख कर सबसे यही कहना कि विजय खुद कई दिन से तुम्हारी इज्जत लूटने के चक्कर में था। बाद में फिर मैं हूॅ ही इन हालातों को अंजाम तक ले जाने के लिए।"
"तुम क्या करोगे उस सूरत में?" प्रतिमा ने पूछा।
"वो सब तुम मुझ पर छोंड़ दो।" अजय ने कहा___"अभी उतना ही करो जितना कहा है। इधर मैं भी अपने काम में लग जाता हूॅ।"
"ठीक है।" प्रतिमा ने कहा___"लेकिन अभय और करुणा से सावधान रहना। अभय की तरह करुणा भी ज़रा तेज़ तर्रार है।"
"चिन्ता मत करो।" अजय ने कहा___"सबको देख लूॅगा एक एक करके। पहले इन दोनो से तो निपट लूॅ।"
"ठीक है।" प्रतिमा ने कहा___"आज विजय का खाना लेकर मैं जाऊॅगी। गौरी की तबियत बुखार के चलते परसो से कुछ खराब है। कल तो नैना गई थी विजय को खाना देने। आज मैं जाऊॅगी।"
"ठीक है।" अजय ने कहा__"और हाॅ ब्लाउज बिलकुल बड़े गले वाला पहन कर जाना। बाॅकी तो तुम समझदार ही हो।"
प्रतिमा मुस्कुरा कर बेड से उठी और कमरे से बाहर निकल गई। जबकि अजय के होठों पर एक ज़हरीली मुस्कान तैर उठी। वह उसी बेड पर आराम से लेट कर ऊपर छत में कुंडे पर तेज़ रफ्तार से घूम रहे पंखे की तरफ घूरने लगा था।
प्रतिमा जब किचेन में पहुॅची तो उसकी छोटी ननद नैना विजय के लिए टिफिन तैयार कर रही थी। नैना उस वक्त बाइस तेइस साल की थी। उसने अपनी पढ़ाई छोड़ दी थी और बीएस सी करने बाद अब घर में ही रहती थी। उसकी शादी के लिए बाबू जी लड़का तलाश कर रहे थे।
"क्या कर रही हो नैना?" प्रतिमा ने बड़े प्यार से नैना से पूछा था।
"मॅझले भइया के लिए खाने का टिफिन तैयार कर रही हूॅ भाभी।" नैना ने कहा__"मॅझली भाभी की तबियत ठीक नहीं है न इस लिए ये टिफिन मैं ही ले जा रही हूॅ कल से। ख़ैर छोड़िये आप बताइये आप किस काम से किचेन में आई हैं?"
"मैं भी इसी लिए यहाॅ आई थी कि अपने देवर के लिए खाना पहुॅचा दूॅ।" प्रतिमा ने मुस्कुराते हुए कहा___"बेचारी रात दिन जी तोड़ मेहनत करते हैं।"
"हीहीहीही आप तो शहर वाली हैं भाभी आप खेतों पर टिफिन लेकर जाएॅगी तो लोग क्या कहेंगे?" नैना ने हॅसते हुए कहा___"जाने दीजिए भाभी ये आपको शोभा नहीं देगा। टिफिन तैयार हो गया है अब चलती हूॅ मैं। आज तो वैसे भी देर हो गई है। मॅझले भइया के पेट में तो अब तक चेहे भी कूदने लगे होंगे।"
"तो तुम भी मुझे ताना मारने लगी हो?" प्रतिमा ने अपने चेहरे पर दुख के भाव प्रकट करते हुए कहा___"क्या मेरा इतना भी हक़ नहीं बनता कि मैं अपनी इच्छा से इस घर में कुछ कर सकूॅ?"
"ये आप क्या कह रही हैं भाभी?" नैना ने हड़बड़ाते हुए कहा___"भला मैं क्यों आपको ताना मारूॅगी। और बाकी सब भी कहाॅ आपको ताना मारते हैं?"
"सब समझती हूॅ मैं।" प्रतिमा ने कहा___"लोग मेरे सामने मेरे मुख पर नहीं बोलते लेकिन मेरे पीठ पीछे तो सब यही बोलते हैं न। एक मैं हूॅ जो हर बार यहीं सोच कर आती हूॅ कि घर में इस बार सबका हाॅथ बटाऊॅगी और सबसे खूब हॅसूॅगी बोलूॅगी। लेकिन हर बार यहाॅ आने पर मेरी इन सभी इच्छाओं पर ग्रहण लग जाता है।"
"ओह भाभी प्लीज़।" नैना कह उठी__"आप ये सब बेकार ही सोचती हैं। आपके बारे कोई कुछ नहीं बोलता है और ना ही सोचता है ऐसा वैसा।"
"तो फिर क्यों मुझे इन सब कामों को करने से मना कर रही हो तुम?" प्रतिमा ने कहा__"मुझे करने दो ना जिसे करने का मेरा बहुत मन करता है। मैं भी सबकी तरह ये सब काम खशी खुशी करना चाहती हूॅ।"
"पर भाभी आप ये।" नैना का वाक्य अधूरा रह गया।
"देखा, फिर से वही शुरू कर दिया।" प्रतिमा ने कहा__"तुम अभी भी यही समझती हो कि मैं ये सब करूॅगी तो लोग क्या सोचेंगे। अरे हर काम की शुरूआत पर लोग ऐसा ही सोचते हैं। तो क्या हम लोगों की सोच को लेकर कोई काम ही ना करें? दूसरे लोग सोचें या न सोचें किन्तु इस घर के लोग सबसे पहले सोच लेते हैं।"
नैना हैरान परेशान देखती रह गई प्रतिमा को। उसे समझ नहीं आ रहा था कि अपनी भाभी को क्या कहे।
"मैं तो ये सब इसी लिए कह रही थी भाभी क्योंकि आपको इन सब कामों की आदत नहीं है।" नैना ने कहा__"बाहर जिस्म को जला देने वाली धूप है और गर्मी इतनी कि पूछो ही मत। आप बेवजह इस धूप और गरमी में परेशान हो जाएॅगी।"
"कुछ नहीं होगा मुझे।" प्रतिमा ने कहा__"और क्या अपने देवर के लिए इतना भी नहीं कर सकती मैं?"
"अच्छा ठीक है भाभी।" नैना ने कहा__"पर मैं भी आपके साथ चलूॅगी। आप अकेले इस धूप में परेशान हो जाएॅगी।"
"नहीं नैना।" प्रतिमा ने कहा__"मुझे अकेले ही जाने दो। अकेली जाऊॅगी तो देवर जी को भी लगेगा कि उनकी भाभी को उनकी फिकर है। वरना अगर तुम्हारे साथ जाऊॅगी तो वो यही सोचेंगे कि मैं वहाॅ कोई एहसान जताने आई थी।"
"विजय भइया ऐसे नहीं हैं भाभी।" नैना ने हॅस कर कहा__"वो किसी के भी बारे में कुछ भी बुरा नहीं सोचते। बल्कि वो तो हमारे देश के पूर्व प्रधानमंत्री डाॅ मनमोहन सिंह की तरह एकदम चुप व शान्त रहने वाले हैं।"
"चलो छोड़ो ये सब।" प्रतिमा ने कहने के साथ ही नैना के हाॅथ से टिफिन ले लिया__"जब तक गौरी अच्छी तरह से ठीक नहीं हो जाती तब तक खेतों में विजय को खाना पहुॅचाने की जिम्मेदारी मेरी है। और तुम्हारी जिम्मेदारी ये है कि तुम रितू और नीलम यहाॅ हैं तब तक उनको पढ़ाओ।"
"ठीक है भाभी जैसा आप कहें।" नैना ने हॅसते हुए कहा__"आप सच में बहुत स्वीट हैं। आई लव यू माई स्वीट ऐण्ड ब्यूटीफुल भाभी।"
"ओह लव यू टू माई स्वीट ननद रानी।" प्रतिमा ने भी मुस्कुराकर कहा__"चलो अब मैं चलती हूॅ।"
इतना कह कर प्रतिमा किचेन से बाहर आ कर अपने कमरे की तरफ बढ़ गई। जबकि नैना अपने कमरे की तरफ मुस्कुराते हुए चली गई। इधर कमरे में आकर प्रतिमा ने टिफिन को बेड के पास दीवार तरफ सटे एक टेबल पर रखा और फिर आलमारी की तरफ बढ़ गई।
"क्या हुआ तुम यहीं हो?" अजय सिंह ने चौंकते हुए कहा था___"अभी तक खेतों पर गई नहीं???"
"तुम तो इस सबको इतना आसान समझते हो जबकि तुम्हें पता होना चाहिए कि कहने और करने में ज़मीन आसमान का फर्क होता है।" प्रतिमा ने आलमारी से एक झीनी सी साड़ी निकालते हुए कहा था।
"वो तो मुझे भी पता है।" अजय सिंह ने कहा___"लेकिन मेरे कहने का मतलब ये था कि टिफिन तैयार करने में बेवजह इतना समय क्यों लगा दिया तुमने?"
"यार जब मैं किचेन में गई तो वहाॅ पर नैना आलरेडी टिफिन तैयार कर चुकी थी।" प्रतिमा ने कहा___"और वह टिफिन लेकर खेतों पर जाने ही वाली थी। इस लिए मुझे उसे इमोशनली ब्लैकमेल करना पड़ा।"
"क्या मतलब??" अजय सिंह चौंका।
प्रतिमा ने उसे किचेन में नैना और खुद के बीच हुई सारी बातें बता दी। सारी बातें सुनने के बाद अजय सिंह बोला___"ये बिलकुल सही किया तुमने। और अब इसके आगे का भी ऐसा ही परफेक्ट हो तो मज़ा ही आ जाए।"
"ऐसा ही होगा डियर।" प्रतिमा ने अपने जिस्म से पहले वाले कपड़े उतार दिये। अब वह ऊपर मात्र ब्रा में थी जबकि नीचे पेटीकोट था।
"इस ब्रा को भी उतार दो ना डियर।" अजय सिंह मुस्कुराया__"अपने बड़े बड़े तरबूजों के ऊपर सिर्फ ये लोकट वाला ब्लाउज ही पहन कर जाओ। ताकि उस साले मजदूर को नज़ारा करने में आसानी हो।"
"बड़े बेशर्म हो सच में।" प्रतिमा ने हॅसते हुए कहा और अपने हाॅथों को पीछे अपनी पीठ पर ले जाकर ब्रा का हुक खोल कर उसे अपने शरीर से अलग कर दिया।
"हाय, इन भारी भरकम तरबूजों पर जब उस मजदूर की दृष्टि पड़ेगी तो यकीनन उस साले की आॅखें फटी की फटी रह जाॅएॅगी।" अजय ने आह सी भरते हुए कहा था___"सारा इमान पल भर में चकनाचूर हो जाएगा उसका।"
"काश! ऐसा ही हो।" प्रतिमा ने ब्लाऊज को पहनते हुए कहा___"अगर बात बन गई तो मुझे भी एक नई चीज़ मिल जाएगी।"
"बिलकुल बात बनेगी डियर।" अजय सिंह ने ज़ोर देकर कहा___"तुम तो उर्वशी या मेनका से भी सुंदर व मालदार हो। भला तुम्हारे सामने वो मजदूर कब तक टिका रहेगा?"
"तुम हर बात पर उसे मजदूर क्यों बोल रहे हो अजय?" प्रतिमा ने कहा___"जबकि वह भी तुम्हारी तरह ठाकुर गजेन्द्र सिंह बघेल की औलाद है और तुम्हारा सगा भाई है।"
"जो भी हो।" अजय सिंह बोला__"है तो एक मजदूर ही ना? अब मजदूर को मजदूर ना कहूॅ तो और क्या कहूॅ?"
"चलो अब मैं जा रहीं हूॅ।" प्रतिमा ने आदमकद आईने में खुद को देखने के बाद कहा__"अब मेरा ड्रेस ठीक है ना?"
"एकदम झक्कास है मेरी जान।" अजय सिंह ने कहा___"इस ड्रेस में तुम्हें देख कर अब तो मुझे ऐसा लग रहा है कि अभी एक बार तुम्हें इसी बेड पर पटक कर पेल दूॅ पर जाने दो।"
प्रतिमा उसकी इस बात पर हॅस पड़ी और फिर टेबल से टिफिन उठा कर कमरे से बाहर जली गई।
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वर्तमान_______
हल्दीपुर पुलिस स्टेशन !
"तो क्या जानकारी मिली तुम्हें?" अपनी कुर्सी पर बैठी रितू ने सामने खड़े हवलदार से पूछा था।
"मैडम जिन लड़के लड़कियों की लिस्ट आपने दी थी।" वह हवलदार कह रहा था जिसकी वर्दी की नेम प्लेट पर उसका नाम राम सिंह लिखा हुआ था, बोला___"उनमें से कुछ तो उसी काॅलेज के हैं जिस काॅलेज में वो पीड़िता यानी विधी चौहान पढ़ती है जबकि बाॅकी के सब बाहरी हैं। मेरा मतलब कि उस काॅलेज के नहीं हैं।"
"बाहर से कौन से लड़के लड़कियाॅ हैं?" रितू ने पूछा था।
"बाहर के तो सब लड़के ही हैं मैडम।" हवलदार रामसिंह ने कहा___"वो भी दो ही हैं। एक तो वही संपत है जो इसी इलाके का एक छोटा मोटा ग़ुडा मवाली है जबकि दूसरा संदीप अग्निहोत्री है, ये दूसरे काॅलेज में बीए लास्ट इयर का छात्र है।"
"ओके बाकी के सब लोगों के बारे में क्या पता चला?" रितू ने पूछा।
"विधी के साथ काॅलेज में पढ़ने वाली जिस लड़की की बर्थडे पार्टी थी उस रात, उसका नाम खुशी जिन्दल है। बड़े बाप की औलाद है। माॅ बाप पूणे में रहते हैं। यहाॅ पर वह अपनी एक आया के साथ रहती है और वो मकान भी उसके बाप ने ही उसे खरीद कर दिया था। ताकि वह अपनी आया के साथ रह कर काॅलेज में पढ़ाई कर सके। पार्टी में दोस्तों के रूप में चार लड़के थे और पाॅच लड़कियाॅ, जिनमे से एक लड़की खुशी जिन्दल की आया की थी। दो लड़के बाहरी थे। सभी लड़कों की डिटेल इस प्रकार है____
1, सूरज चौधरी, 22 साल का विधी के ही कालेज में एम ए का छात्र है। इसके बाप का नाम दिवाकर चौधरी है। ये शहर का पोलिटीसियन है। इसके बारे में सारा शहर जानता है कि ये कैसा आदमी है। इसके कई गैर कानूनी धंधे भी कानून के नाक के नीचे से चलते हैं। सूरज चौधरी अपने बाप की बिगड़ी हुई औलाद है। पता चला है कि इसने कई लड़कियों की ज़िंदिगियाॅ बरबाद की हैं। अपनी सुंदर पर्शनालिटी और पैसों की वजह से कोई भी लड़की इसकी तरफ आकर्षित हो जाती है। ये लड़कियों को प्यार के जाल में फॅसा कर उनकी अश्लील वीडियो बना कर उन्हें हर तरह के काम करने के लिए ब्लैकमेल करता है। विधी चौहान इससे प्यार करती है।
2, अलोक वर्मा, ये भी सूरज के साथ ही पढ़ता है। सूरज का पक्का यार है ये। बाप बहुत साल पहले गंभीर बीमारी से चल बसा था तब से यह अपनी विधवा माॅ के साथ ही रहता है। इसकी माॅ किसी प्राइवेट कंपनी में काम करती है।
3, किशन श्रीवास्तव, ये भी सूरज के साथ ही कालेज में पढ़ता है। इसके बाप का नाम अवधेश श्रीवास्तव है। ये इसी शहर का एक क्रिमिनल लायर है। इसके दिवाकर चौधरी से बड़े गहरे संबंध हैं। दिवाकर चौधरी के हर ग़ैरकानूनी काम में ये उसकी हर तरह से मदद करता है।
4, रोहित मेहरा, ये भी सूरज के साथ ही उस कालेज में पढ़ता है। इसके बाप ईआ नाम अशोक मेहरा है। ये शहर का बिल्डर है। पैसों की कोई कमी नहीं है इसके पास। सुना है कई ज़मीनों पर इसने अवैध कब्जा किया हुआ है। इसके भी दिवाकर चौधरी और वकील अवधेश श्रीवास्तव से बड़े गहरे संबंध हैं।
5, नीता ब्यास, ये 20 साल की है और विधी के साथ ही उस कालेज में पढ़ती है। ये इन्दौर की रहने वाली है। यहाॅ पर ये अपने मामा जी के यहाॅ रह कर ही पढ़ाई कर रही है।
6, अनीता ब्यास, ये नीता की जुड़वा बहन है तथा ये भी अपनी बहन के साथ ही मामा जी के यहाॅ रहकर पढ़ाई कर रही है।
7, स्नेहा शर्मा, ये 20 साल की है, ये भी विधी के साथ ही कालेज में पढ़ती है। इसका बाप सरकारी बैंक में मैनेजर है।
8, संजना सिंह, ये 20 साल की है, और विधी के साथ ही कालेज में पढ़ती है। इसके बाप का इसी शहर में एक बड़ा सा माॅल है। ये दो भाई बहन है। इसका भाई संजय सिंह इससे छोटा है और अभी इस साल हाई स्कूल में है।
"मैडम ये थे उस कालेज में विधी के साथ एक ग्रुप में रहने वाले लड़के लड़कियाॅ।" रामदीन ने कहा___"मैने अपने तरीके से पता किया है कि विधी के साथ जो घटना घटित हुई उसमें सूरज चौधरी मुख्य आरोपी है। सूरज के साथ ही इस हादसे को अंजाम देने में उसके ये चारों दोस्त और उस बर्थडे गर्ल यानी खुशी जिन्दल का भी बराबर का हाॅथ है। बात दरअसल ये थी कि विधी एक अच्छे घर की और अच्छे संस्कारों वाली लड़की थी। वह खूबसूरत थी। कभी किसी लड़के को भाव नहीं देती थी। आज से दो तीन साल पहले वह किसी विराज सिंह नाम के लड़के से प्यार करती थी जो उसके साथ ही स्कूल में पढ़ता था। वो स्कूल और ये कालेज लगभग पास में ही थे इस लिए सूरज की नज़र इस पर बहुत पहले से ही थी। उसने बड़ी मुश्किल से किसी तरह इससे दोस्ती कर ली थी। उसके बाद ऐसे ही एक दिन इसने अपने जन्मदिन पर अपने सभी दोस्तों को फार्महाउस पर इन्वाइट किया था। विधी को भी उसने खासतौर पर इन्वाइट किया था। विधी जब इसके फार्महाउस पर उस शाम गई तो पार्टी में सब काफी एंज्वाय कर रहे थे। इस बीच सूरज ने विधी को अपनी दोस्ती का वास्ता देकर इसे कोल्ड ड्रिंक पिला दिया। उस कोल्ड ड्रिंक में हल्का ड्रग्स भी मिला हुआ था। विधी ने जब उस कोल्ड ड्रिंक को पिया तो उसे कुछ देर बाद चक्कर से आने लगे। सूरज अपनी चाल में कामयाब हो चुका था, उसने अपनी एक दोस्त जिसका नाम रिया सचदेवा था उससे कह कर विधी को कमरे में ले गई और उसे बेड पर लिटा दिया। विधी को कुछ होश नहीं था। इधर सूरज कमरे में आया और विधी के जिस्म से सारे कपड़े उतार कर और खुद भी पूरी तरह निर्वस्त्र होकर विधी के साथ गंदा काम किया। इस सबकी वीडियो सूरज का ही एक दोस्त अलोक वर्मा बना रहा था। ख़ैर जब विधी को होश आया तो वह अपने घर में अपने ही बेडरूम थी। उसे पिछली शाम का सब कुछ याद आया। उसे इस बात की हैरानी हुई कि वह अपने घर कैसे आई? तब उसकी माॅ ने बताया कि उसकी एक दोस्त जिसका नाम रिया था वह उसे छोंड़ कर गई थी। विधी की माॅ ने उसे इस बात के लिए डाॅटा भी था कि उसने शराब क्यों पी थी? विधी ने कहा वो शराब नहीं बस कोल्ड ड्रिंक ही था शायद किसी ने ग़लती से उसमें कुछशराब मिला दी होगी। ख़ैर ये बात तो चली गई। लेकिन माॅ के जाने के बाद जब विधी बेड से उठकर बाथरूम की तरफ जाने के लिए बेड से नीचे उतरी तो उसकी चीख़ निकलते निकलते रह गई। अपने पैरों पर उससे खड़े ही ना हुआ गया। उसे समझते देर न लगी कि उसके साथ क्या हुआ है। किन्तु अब समझने से भला क्या हो सकता था? वह तो लुट चुकी थी। बरबाद हो चुकी थी। वह इस बात को अपने माॅ बाप से बता भी नहीं सकती थी। अकेले में वह खूब रोती। इस बात कई दिन गुज़र गए। वह स्कूल नहीं गई थी कई दिन से। माॅ से उसने बता दिया था कि उसकी तबियत ठीक नहीं है। फिर एक दिन उसके मोबाइल पर एक अंजान नंबर से एम एम एस आया। जिसे देख कर उसके पैरों तले से ज़मीन निकल गई। उसे सारा संसार अंधकारमय दिखने लगा था। तभी उसी नंबर से काल भी आया। उसने जब उस काल को रिसीव किया तो सामने से सूरज की आवाज़ को सुन कर चौंक गई। वह उसे बड़ी बेशर्मी से कह रहा था कि कैसी लगी हम दोनो की फिल्म? विधी रोती गिड़गिड़ाती रही और पूछती रही कि उसने उसके साथ उसकी दोस्ती के साथ इतना बड़ा छल क्यों किया? आख़िर क्यों उसने उसे इस तरह बरबाद कर दिया? मगर वो तो शिकारी था। खूबसूरत लड़कियों का शिकारी। सूरज ने धमकी देते हुए कहा कि अगले दिन स्कूल आए और उसके साथ उसके फार्महाउस पर चले वरना वह ये एम एम एस उसके बाप के मोबाइल पर भेज देगा। विधी मरती क्या न करती वाली स्थित में आ चुकी थी। बस यहीं से उसकी बरबादी की दास्तां शुरू हो गई। वह हर बार सूरज के द्वारा ब्लैकमेल होती रही। विधी जिस विराज नाम के लड़के से प्यार करती थी उससे उसने संबंध तोड़ लिया था। ऐसे ही दिन महीने साल गुजर गए। विधी पढ़ने में होशियार थी। कालेज में हमेशा वह अपनी ग्रुप की लड़कियों से टाप करती थी। खुशी जिन्दल इस बात से उससे बेहद जलती थी। इस लिए उसने सूरज के साथ मिलकर पिछली रात इस गंभीर हादसे को अंजाम दिया था।"
"मामला तो पूरी तरफ पहले ही साफ था रामदीन।" रितू ने कहा___"मैने दूसरी मुलाक़ात में विधी से इस सबकी सारी सच्चाई जानने की बहुत कोशिश की लेकिन उसने कुछ नहीं बताया। इस लिए मुझे तुम्हें इस काम में लगाना पड़ा। ख़ैर, यकीनन तुमने शानदार जानकारी हासिल की है।"
"शुक्रिया मैडम।" रामदीन खुश हो गया, बोला___"पर मुझे ये समझ में नहीं आ रहा कि विधी ने आपको इस सबकी सारी बातें क्यों नहीं बताई? जबकि होना तो ये चाहिए था कि उसे अब ऐसे हरामियों के खिलाफ सारा सच उगल कर उन्हें कानून के लेपेटे में डलवा देना चाहिए था।"
"सबकी अपनी कुछ न कुछ मजबूरियाॅ होती हैं रामदीन।" रितू ने गंभीरता से कुछ सोचते हुए कहा___"कुछ ऐसी भी बातें होती हैं जिन्हें किसी भी हाल में कह पाना संभव नहीं हो पाता। या फिर ये सोच कर उसने मुझे कुछ नहीं बताया कि कानून भी भला उन लोगों का क्या कर लेगा? वह जानती है कि जिन लोगों ने उसके साथ ये कुकर्म किया वो बड़े बड़े लोगों की बिगड़ी हुई औलादें हैं। कानून उन तक पहुॅच ही नहीं सकता।"
"तो क्या इस केस की फाइल ऐसे ही बंद कर दी जाएगी मैडम?" रामदीन चौंका___"क्या उस बेचारी लड़की के साथ इंसाफ नहीं हो पाएगा?"
"मैने ऐसा तो नहीं कहा रामदीन।" रितू कुर्सी से उठ कर तथा वहीं पर चहल कदमी करते हुए बोली___"लड़की के साथ इंसाफ ज़रूर होगा। फिर भले ही उसके लिए कोई दूसरा रास्ता ही क्यों ना चुनना पड़े।"
"मैं कुछ समझा नहीं मैडम?" रामदीन ने उलझनपूर्ण भाव से कहा।
"सब समझ जाओगे रामदीन।" रितू के चेहरे पर कठोरता आ गई थी___"बस समय का इंतज़ार करो।"
रामदीन को बिलकुल भी समझ ना आया कि उसकी ये आला अफसर क्या कहे जा रही है? जबकि रितू ने टेबल पर रखी पीकैप को उठा कर उसे सिर पाया ब्यवस्थित किया और फिर लम्बे लम्बे डग भरती हुई थाने से बाहर निकल गई।
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फ्लैशबैक अब आगे______
नैना ने सच ही कहा था कि बाहर तेज़ धूप और भयानक गर्मी में वह परेशान हो जाएगी। प्रतिमा की हालत ख़राब हो चली थी। सिर पर पड़ी तेज़ धूप और गर्मी ने उसका बुरा हाल कर दिया था। आसमान में सफेद बादल छाए थे और हवा भी न के बराबर ही चल रही थी। जिसकी वजह से वह पसीना पसीना हो चली थी।
पतली सी पिंक कलर की साड़ी तथा उसी से मैच करता बड़े गले का ब्लाउज। जिसमें कैद उसकी भारी भरकम चूचियाॅ उसके चलने पर एक लय से ऊपर नीचे थिरक रही थी। ब्लाउज के ऊपरी हिस्से से उसकी सुडौल चूचियों का एक चौथाई हिस्सा स्पष्ट दिख रहा था। गोरे सफ्फाक बदन पर ये लिबास उसकी खूबसूरती और मादकता पर जैसे चार चाॅद लगाए हुए था। प्रतिमा तीन बच्चों की माॅ थी लेकिन मजाल है कि कोई ये ताड़ सके कि ये खूबसूरत बला तीन तीन बच्चों की माॅ है।
ऐसा नहीं था कि वह कभी खेतों पर नहीं गई थी। एक दो बार वह पहले ही कभी गई थी। इस लिए उसे खेतों के रास्ते का पता था। हवेली से एक किलो मीटर की दूरी पर खेत थे। इधर का हिस्सा गाॅव के उत्तर दिशा की तरफ तथा गाॅव से हट कर था।
प्रतिमा जब खेतों पर पहुॅची तो उसने देखा कि हर तरफ सुन्नाटा फैला हुआ है। बहुत से खेतों पर गेहूॅ की फसल पक कर तैयार खड़ी थी और एक तरफ से उसकी कटाई भी चालू थी। हलाॅकि इस वक्त वहाॅ पर कहीं भी कोई मजदूर फसल काटते हुए दिख नहीं रहा था। शायद तेज़ धूप के कारण काम बंद था या फिर सभी मजदूर दोपहर में खाना खाने के लिए खए होंगे।
प्रतिमा की हालत भले ही खराब हो चुकी थी किन्तु जब उसने खेतों पर हर जगह सुनापन देखा तो वह इससे खुश भी हो गई। उसे लगा चलो जिस मकसद से वह यहाॅ आई है वह बेझिझक हो जाएगा। कोई देखने सुनने वाला भी नहीं है यहाॅ। उसने देखा एक तरफ खेतों पर ही बड़ा सा पक्का मकान बना था। मकान के बाहर दो स्वराज कंपनी के ट्रैक्टर व थ्रेशर मशीन खड़ी थी। मकान का मुख्य दरवाजा खुला हुआ था।
प्रतिमा ने धड़कते दिल से मुख्य दरवाजे के अंदर कदम रखा ही था कि किसी से बड़े ज़ोर से टकराई। उसकी भारी भरकम छातियों में किसी पुरूष का फौलाद जैसा सीना टकराया था। प्रतिमा इस अचानक हुई घटना से बुरी तरह घबरा गई। टक्कर लगते ही वह पीछे की तरफ बड़ी तेज़ी से गिरने ही लगी थी कि सामने नजर आए पुरूस ने बड़ी सीघ्रता से उसका हाॅथ पकड़ कर उसे पीछे गिरने से बचा लिया।
प्रतिमा का दिल बुरी तरह धड़के जा रहा था। ख़ैर सम्हलने के बाद उसकी नज़र सामने खड़े शख्स पड़ी तो चौंक गई। सामने उसका देवर विजय सिंह सिर झुकाए खड़ा था। उसे इस तरह सिर झुकाए देख प्रतिमा को समझ न आया कि ये सिर झुकाए क्यों खड़ा है?
"क्या बात है देवर जी?" प्रतिमा ने मुस्कुराते हुए कहा___"ज़रा देख कर तो चला कीजिए। भला कोई इतनी भी ज़ोर से टक्कर मारता है क्या??"
"माफ़ कर दीजिए भाभी।" विजय सिंह ने सिर झुकाए हुए ही शर्मिंदगी से बोला__"मुझे उम्मीद ही नहीं थी कोई इस तरह सामने से आ जाएगा।"
"चलो कोई बात नहीं विजय।" प्रतिमा ने माहौल को समान्य बनाने की गरज से कहा___"ग़लती सिर्फ तुम्हारी ही बस नहीं है, मेरी भी है क्योंकि मैने भी तो ये आशा नहीं की थी कोई मेरे सामने से इस तरह आ टकराएगा।"
"पर मुझे देख कर बाहर आना चाहिए था न भाभी।" विजय सिंह ने खेद भरे भाव से कहा।
"ओहो विजय।" प्रतिमा ने कहा___"इसमें इतना खेद प्रकट करने की कोई ज़रूरत नहीं है। लेकिन हाॅ एक बात तो कहूॅगी मैं।"
"जी कहिए भाभी।" विजय ने कहा__"अगर आप कोई सज़ा देना चाहती हैं तो ज़रूर दीजिए। ऐसी धृष्ठता के लिए मुझे सज़ा तो मिलनी ही चाहिए।"
"ओफ्फो विजय फिर वही बात।" प्रतिमा हैरान थी कि विजय किस टाइप का इंसान है। क्या दुनियाॅ में कोई इतना भी शरीफ़ हो सकता है? फिर बोली___"मुझे तुमसे कोई शिकायत नहीं है विजय। मैं तो बस ये कहने वाली थी कि क्या फौलाद का सीना है तुम्हारा जो मेरी कोमल छातियों का कचूमर बना दिया था?"
"ज जी क्या मतलब?" विजय बुरी तरह चौंका था। सिर उठाकर हैरानी से अपनी भाभी की तरफ देखने लगा था वह।
"इतने भोले ना बनो विजय।" प्रतिमा ने हॅसते हुए कहा___"तुम भी अच्छी तरह समझ गए हो कि मेरे कहने का क्या मतलब था?"
"अरे ये सब बेकार की बातें छोंड़िए भाभी और ये बताइये कि आप यहाॅ इतनी धूप व गर्मी में क्यों आई हैं?" विजय ने बेचैनी से पहलू बदला था___"नैना क्यों नहीं आई? और आपको भी इतना तकल्लुफ करने की क्या ज़रूरत थी भला?"
"क्या तुम्हें मेरा यहाॅ आना अच्छा नहीं लगा विजय?" प्रतिमा ने दुखी भाव का नाटक करके कहा___"क्या मैं यहाॅ नहीं आ सकती?"
"न नहीं भाभी ऐसी कोई बात नहीं है।" विजय ने हड़बड़ाकर कहा___"मैं बस इस लिए ऐसा कह रहा हूॅ क्योंकि तेज़ धूप और गर्मी बहुत है। ऐसे माहौल की आपको आदत नहीं है ना?"
"देखो विजय तुम भी नैना की तरह मुझे ताना मत मारने लग जाना।" प्रतिमा ने कहा__"तुम सब मुझे ऐसा कह कर दुखी क्यों करते हो? मेरा भी दिल करता है कि मैं भी तुम सबकी तरह ये सब करूॅ। लेकिन तुम सब अपनी इन बातों से मुझे ये सब करने ही नहीं देते। मैं ही पागल हूॅ जो बेकार में इस हवेली के लोगों को अपना मानती हूॅ और चाहती हूॅ कि सब मुझे भी अपना समझें।"
"ये आप क्या कह रही हैं भाभी?" विजय हैरान परेशान सा बोला___"भला हम सब आपके लिए ऐसा क्यों सोचेंगे? माॅ बाबूजी के बाद आप दोनो ही तो हम सबसे बड़ी हैं इस लिए हम सब यही चाहते हैं आप कुछ ना करें बल्कि आराम से बैठ कर खाइये और हम छोटों को सेवा करने का भाग्य प्रदान करें।"
"बस बस सब समझती हूॅ मैं।" प्रतिमा ने तुनकते हुए कहा__"अब क्या यहीं पर खड़े रहेंगे या अंदर भी चलेंगे? चलिए अंदर और हाॅ हाॅथ मुह धोकर जल्दी से आइये। तब तक मैं थाली लगाती हूॅ।"
"जी ठीक है भाभी।" विजय ने कहा और बाहर की तरफ बढ़ गया। जबकि प्रतिमा अंदर की तरफ बढ़ गई।
अपडेट हाज़िर है दोस्तो,,,,,,,
दोस्तो आप ये बताइये कि फ्लैशबैक को इसी तरह वर्तमान के साथ लेकर चलूॅ या खाली फ्लैशबैक ही रहने दूॅ???
Nice update♡ एक नया संसार ♡
अपडेट...........《 30 》
अब तक,,,,,,,,,
"क्या तुम्हें मेरा यहाॅ आना अच्छा नहीं लगा विजय?" प्रतिमा ने दुखी भाव का नाटक करके कहा___"क्या मैं यहाॅ नहीं आ सकती?"
"न नहीं भाभी ऐसी कोई बात नहीं है।" विजय ने हड़बड़ाकर कहा___"मैं बस इस लिए ऐसा कह रहा हूॅ क्योंकि तेज़ धूप और गर्मी बहुत है। ऐसे माहौल की आपको आदत नहीं है ना?"
"देखो विजय तुम भी नैना की तरह मुझे ताना मत मारने लग जाना।" प्रतिमा ने कहा__"तुम सब मुझे ऐसा कह कर दुखी क्यों करते हो? मेरा भी दिल करता है कि मैं भी तुम सबकी तरह ये सब करूॅ। लेकिन तुम सब अपनी इन बातों से मुझे ये सब करने ही नहीं देते। मैं ही पागल हूॅ जो बेकार में इस हवेली के लोगों को अपना मानती हूॅ और चाहती हूॅ कि सब मुझे भी अपना समझें।"
"ये आप क्या कह रही हैं भाभी?" विजय हैरान परेशान सा बोला___"भला हम सब आपके लिए ऐसा क्यों सोचेंगे? माॅ बाबूजी के बाद आप दोनो ही तो हम सबसे बड़ी हैं इस लिए हम सब यही चाहते हैं आप कुछ ना करें बल्कि आराम से बैठ कर खाइये और हम छोटों को सेवा करने का भाग्य प्रदान करें।"
"बस बस सब समझती हूॅ मैं।" प्रतिमा ने तुनकते हुए कहा__"अब क्या यहीं पर खड़े रहेंगे या अंदर भी चलेंगे? चलिए अंदर और हाॅ हाॅथ मुह धोकर जल्दी से आइये। तब तक मैं थाली लगाती हूॅ।"
"जी ठीक है भाभी।" विजय ने कहा और बाहर की तरफ बढ़ गया। जबकि प्रतिमा अंदर की तरफ बढ़ गई।
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अब आगे,,,,,,,,,,,
फ्लैशबैक आगे_______
थोड़ी ही देर में विजय सिंह हाॅथ मुह धोकर आया और जैसे ही वह अंदर एक बड़े हाल से होते हुए एक कमरे में दाखिल हुआ तो बुरी तरह चौंका। कारण कमरे के अंदर प्रतिमा लकड़ी की एक बेन्च पर झुक कर टिफिन से खाना निकाल निकाल कर उसे अलग अलग करके रख रही थी। किन्तु झुकने की वजह से उसकी साड़ी का आॅचल कंधे से खिसक कर ज़मीन पर गिरा हुआ था। उसने आॅचल को आलपिन के सहारे ब्लाउज पर फसाया हुआ नहीं था। ऐसा उसने जानबूझ कर ही किया था। ताकि वह जब चाहे बड़ी आसानी से झुक कर अपना आॅचल गिरा कर विजय को अपनी खरबूजे जैसी बड़ी बड़ी किन्तु ठोस चूचियाॅ दिखा सके। उसने जो ब्लाउज पहना था वह बड़े गले का था, पीठ पर भी काफी ज्यादा खुला हुआ था। अंदर ब्रा ना होने के कारण उसकी आधे से ज्यादा चूचियाॅ दिख रही थी। वह जानती थी कि विजय हाथ मुह धोकर आ चुका है और अब वह कमरे के दरवाजे के पास उसके द्वारा दिखाए जाने वाले हाहाकारी नज़ारे को देख एकदम से बुत बन गया है।
प्रतिमा बिलकुल भी ज़हिर नहीं कर रही थी कि वो ये सब जानबूझ कर रही है। बल्कि वह यही दर्शा रही थी कि उसे अपनी हालत का पता ही नहीं है। उसने एक बार भी सिर उठा कर दरवाजे पर खड़े विजय की तरफ नहीं देखा था। बल्कि वह उसी तरह झुकी हुई टिफिन से खाना निकाल कर अलग अलग रख रही थी।
विजय सिंह मुकम्मल मर्द था किन्तु उसमें शिष्टाचार और संस्कार कूट कूट कर भरे हुए थे। उसे अपने से बड़ों का आदर सम्मान करना ही आता था। अपनी पत्नी के अलावा वह किसी भी औरत पर ऐसी नज़र नहीं डालता था। खेतों पर काम करने वाली हर ऊम्र की औरतें भी थी मगर मजाल है जो विजय सिंह ने कभी उन पर गंदी नज़र डाली हो। ये तो फिर भी उसकी सगी भाभी थी। कहते हैं बड़ी भाभी माॅ समान होती है, उस पर गंदी दृष्टि डालना पाप है।
विजय सिंह को तुरंत ही होश आया। वह एकदम से हड़बड़ा गया और साथ ही उसके अंदर अपराध बोझ सा बैठता चला गया। उसका मन भारी हो गया। अपने ज़हन से इस दृष्य को तुरंत ही झटक दिया उसने। मन ही मन भगवान से हज़ारों बार तौबा की उसने। उसके बाद वह बेवजह ही खाॅसते हुए कमरे के अंदर दाखिल हुआ। उसका खाॅसने का तात्पर्य यही था कि उसकी भाभी उसके खाॅसने की आवाज़ से अपनी स्थिति को सम्हाल ले। मगर विजय की हालत उस वक्त ख़राब हो गई जब उसके खाॅसने का प्रतिमा पर कोई असर ही न हुआ। बल्कि वह तो अभी भी यही ज़ाहिर कर रही थी कि उसे अपनी हालत का पता ही नहीं है। उसने तो जब विजय को देखा तो बस यही कहा___"लो विजय मैने तुम्हारा स्वादिष्ट भोजन अलग अलग करके लगा दिया है। चलो शुरू हो जाओ, देख लो अभी गरमा गरम है।"
विजय को सिर झुका चुपचाप बेन्च के इस तरफ ही रखी कुर्सी पर बैठ गया और चुपचाप खाना खाने लगा।
"उफ्फ विजय यहाॅ खेतों में इस गर्मी में भी कितनी मेहनत करते हो तुम।" प्रतिमा ने आह सी भरते हुए कहा___"पर शायद तुम्हारी इस सबकी आदत हो गई है। इस लिए तुम पर जैसे कुछ फर्क ही नहीं पड़ता। मेरा तो गर्मी के मारे बुरा हाल हुआ जा रहा है। ऐसा लगता है जैसे सारे कपड़े उतार कर फेंक दूॅ अभी।"
प्रतिमा की इस बात से विजय सिंह को ठसका लग गया। वह ज़ोर ज़ोर से खाॅसने लगा।
"अरे क्या हुआ आराम से खाओ विजय।" प्रतिमा मन ही मन मुस्कुराई थी।
उसे खाॅसता देख प्रतिमा तुरंत ही एक तरफ मटके में रखे पानी को ग्लास में भर कर ग्लास विजय के मुह से लगा दिया। विजय की नज़र एक बार फिर से प्रतिमा के खरबूजों पर पड़ गई। इस बार तो वह उसके बहुत ही पास थी। उसके खरबूजे विजय की आॅखों से बस एक फुट ही दूर थे। इतने पास से वह उन्हें स्पष्ट देख रहा था। गोरे गोरे खरबूजों पर एक एक किन्तु छोटा सा तिल जो उन्हें और भी ज्यादा रसदार व हालत को खराब करने वाला बना रहा था। प्रतिमा इस सारी क्रिया में यही दर्शा रही थी कि उसे अभी भी अपनी हालत का कुछ पता नहीं है। और इस बार तो जैसे वह फिक्रवश ऐसा कर रही थी।
बड़ी मुश्किल से विजय के गले से पानी नीचे उतरा। उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करे? आज पहली बार वह ऐसी सेचुएशन के बीच फॅसा था। विजय जब पानी पी चुका तो प्रतिमा ने भी उसके मुख से ग्लास हटा लिया, हलाॅकि ये उसकी मजबूरी ही थी। क्योकि अगर वो ऐसा न करती तो विजय को शक भी हो सकता था कि वह इस तरह उसके इतने पास झुकी क्यों है?
किन्तु विजय सिंह पर रहम तो उसने अभी भी नहीं किया। वह अभी भी अपना आॅचल गिराए हुए ही थी। अंदाज़ वहीं था जैसे उसे इसका पता ही न हो। वह जानती थी कि विजय उसे इस तरह देख कर बहुत ज्यादा असहज महसूस कर रहा है।
उसके मन में आया कि कहीं विजय ये न सोच बैठे कि मुझे अपनी हालत का इतने देर से पता क्यों नहीं हो रहा? या फिर ऐसा मैं जानबूझ कर उसे दिखा रही हूॅ। अगर विजय को ये शक हो गया या उसने ऐसा महसूस कर लिया तो काम पहले ही ख़राब हो जाएगा। जबकि मुझे ये सब बहुत आगे तक करना है। शुरुआत में इतना ज्यादा दिखावा ठीक नहीं होगा। ये सोच कर ही वह सम्हल गई।
"हाय दैया।" उसने चौंकने और सकपकाने की बड़ी शानदार ऐक्टिंग की___"मेरा आॅचल कैसे गिर गया।"
इतना कह कर उसने जल्दी से अपने आॅचल को पकड़ कर उसे अपने खरबूजों ढॅकते हुए कंधे पर डाल लिया। फिर जैसे उसने माहौल को बदलने की गरज से विजय से कहा___"कल से मैं तुम्हारे लिए दूध भी ले आया करूॅगी विजय।"
"ज जी,,,,।" विजय बुरी तरह चौंका था___"दू दूध...मगर किस लिए भाभी?"
"तुम भी हद करते हो विजय।" प्रतिमा ने कहा___"खेतों में रात दिन इतनी मेहनत करते हो और रूका सूखा खाओगे तो कमज़ोर नहीं पड़ जाओगे? इस लिए मेहनत के हिसाब से उस तरह का आहार भी लेना चाहिए।"
"भाभी, इसकी कोई ज़रूरत नहीं है।" विजय ने झिझकते हुए कहा___"और वैसे भी मुझे दू दूध पसंद नहीं है।"
"क्याऽऽ????" प्रतिमा ने चौंकने का नाटक किया___"हे भगवान! कैसे आदमी हो तुम विजय? तुम्हें दूध नहीं पसंद?? अरे दूध के लिए सारी दुनियाॅ पागल है।"
"क्या मतलब???" विजय गड़बड़ा गया, बोला___"भला इसके लिए सारी दुनियाॅ कैसे पागल हो सकती है???"
"तुम भी ना बुद्धू के बुद्धू ही रहोगे।" प्रतिमा ने बुरा सा मुह बनाया___"ये बताओ कि आज कल दूध के बिना किसी का गुज़ारा है क्या? नहीं ना? सुबह उठते ही सबसे पहले दूध की ही बनी चाय चाहिए होती है। और इतना ही नहीं बल्कि एक दिन में कम से कम चार बार आदमी चाय पीता है। बाॅकी बहुत सी चीज़ें जो दूध से ही बनती हैं उनका तो हिसाब ही अलग है। अब जब यही दूध किसी को न मिलो तो सोचो दुनिया पागल हो जाएगी कि नहीं?"
"हाॅ ये तो है।" विजय ने कहा।
"इसी लिए कहती हूॅ।" प्रतिमा ने कहा__"कल से तुम्हारे लिए दूध लाया करूॅगी और फिर मैं खुद ही तुम्हें दूध पिलाऊॅगी। देखूॅगी कैसे नहीं पियोगे तुम?"
विजय सिंह की हवा शंट। वह हैरान परेशान सा प्रतिमा को देखने लगा। जबकि उसकी इस हालत को देख कर प्रतिमा मन ही मन हॅस रही थी। किन्तु प्रत्यक्ष में यही दिखा रही थी वो ये सब उसकी सेहत का ध्यान में रख कर कह रही थी। पर चूॅकि इन बातों में उसके दो अर्थ निकल रहे थे जो विजय सिंह को असमंजस में डाल कर असहज कर रहे थे।
"क्या हुआ चुप क्यों हो गए विजय?" प्रतिमा ने कहा___"दूध की बातों से तो नहीं घबरा गए तुम?"
"न न नहीं तो।" विजय सकपका गया।
"देखो विजय।" प्रतिमा ने कहा___"तुम जो मेहनत करते हो उसके लिए दूध घी का सेवन करना बहुत ज़रूरी है। वरना बुढ़ापे में किसी काम के नहीं रह जाओगे तुम। आज गौरी को भी बोलूॅगी कि तुम्हारे खाने पीने का अच्छी तरह से ख़याल रखा करे। अभी जब तक बच्चों की छुट्टियाॅ हैं तब तक मैं रोज़ाना तुम्हें खुद अपने हाथ से टिफिन तैयार करके लाऊॅगी।"
"आ आप तो बेवजह परेशान हो रही हैं भाभी।" विजय ने बेचैनी से कहा___"मैं रोज़ाना स्वादिष्ट और फायदेमंद भोजन ही करता हूॅ।"
"वो तो मुझे दिख ही रहा है।" प्रतिमा ने घूर कर देखा विजय सिंह को, बोली___"अगर वैसा ही भोजन करते तो अपने शरीर की ऐसी हालत नहीं बना लेते तुम।"
"ऐसी हालत????" विजय ने चौंकते हुए कहा___"क्या हुआ भला मेरी हालत को?? अच्छा भला तो हूॅ भाभी।"
"बस बस रहने दो तुम।" प्रतिमा ने कहा__"पोज तो ऐसे दे रहे हो जैसे दारा सिंह तुम्हीं हो।"
विजय सिंह को समझ न आया कि वो क्या कहे? दरअसल उसे अपनी भाभी से ऐसी बात करने का ये पहला अवसर था। शादी के बाद कभी ऐसे मधुर संबंध ही नहीं रहे थे कि वो अपनी प्रतिमा भाभी से कभी बात करता या घुलता मिलता। ख़ैर विजय सिंह ने किसी तरह खाना खाया और सीघ्र ही उठ कर कमरे से बाहर चला गया। कमरे से बाहर जब वह आया तब उसने जैसे राहत की साॅस ली। वह बाहर भी रुका नहीं बल्कि खेतों की तरफ तेज़ तेज़ करमों से बढ़ता चला गया। जबकि कमरे से भागते हुए बाहर आई प्रतिमा ने जब विजय को दूर खेतों पर जाते देखा तो उसके होठों पर कमीनी मुस्कान रेंग गई।
"आज तो इतना ही काफी था विजय।" प्रतिमा ने अजीब भाव से कहा___"मगर इतने से डोज में ही तुम्हारी ये हालत बता रही है कि तुम ज्यादा दिनों तक मेरे सामने टिक नहीं पाओगे। मेरे इस हुस्न के जाल में जल्द ही फॅस जाओगे। हाय विजय, थोड़ा जल्दी फॅस जाना मेरी जान क्योंकि ज्यादा देर तक बर्दास्त नहीं कर पाऊॅगी मैं।"
यही सब बड़बड़ाती हुई प्रतिमा वापस कमरे में गई। और बेन्च से टिफिन वाले सब बर्तन इकट्ठा करके वह कमरे से बाहर आ गई। कमरे के दरवाजों को ढुलका कर वह मकान से बाहर आ गई और फिर हवेली की तरफ बढ़ चली। मन में कई तरह के ख़याल बुने जा रही थी वह।
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इधर हवेली में दोपहर को हर कोई अपने अपने कमरे में होता था। बच्चों को भी दोपहर की धूप में कहीं बाहर नहीं जाने दिया छाता था। माॅ बाबूजी हमेशा की तरह नीचे वाले हिस्से पर बने अपने कमरे में ही रहते थे। बाबू जी को महाभारत पढ़ने का बड़ा शौक था। वो खाली समय में महाभारत की मोटी सी किताब लेकर आरामदायी कुर्सी पर बैठ जाते थे अपने कमरे में। जबकि माॅ जी बिस्तर पड़ी रहती। उनके घुटनों में बात की शिकायत थी इस लिए वो ज्यादा चलती फिरती नहीं थी।
राज और गुड़िया ज्यादातर अपने चाचा चाची के पास ही रहते थे। करुणा उन दोनो को पढ़ाती थी। राज से उसे बड़ा प्यार था। हवेली में सबका अपना अपना हिस्सा था। हलाॅकि उस वक्त बटवारा नहीं हुआ था लेकिन तीनो रहते उसी तरह थे अलग अलग। जबकि खाना पीना सबका साथ में ही होता था। उस समय हवेली में ऐसा था कि अंदर से ही सबके हिस्से में जाया जा सकता था। उसके लिए हर पार्टिशन में एक बड़ा सा दरवाजे थे जो ज्यादातर खुले ही रहते थे। विजय सिंह जिस हिस्से पर रहता था उसी हिस्से में माॅ बाबूजी भी नीचे रहते थे। विजय और गौरी का कमरा ऊपर वाले फ्लोर पर था। सबका खाना भी यहीं पर बनता था। नैना अजय सिंह वाले हिस्से पर रहती थी। क्योंकि वो स्कूल के समय पर खाली ही रहता था इस लिए वह उस हिस्से में ही अकेली रहती थी। हलाॅकि उसके साथ बच्चों में से कोई भी रोज़ सोने के लिए चला जाता था।
विजय सिंह दिन में खेतों पर ही रहता था और फिर रात में ही हवेली आता था। दोपहर का खाना उसे पहुॅचा दिया जाता था। हप्ते में एक दो दिन वह खेतों पर भी रात में रुक जाता था। पर ये तभी होता था जब रुकने की ज़रूरत हो अन्यथा नहीं।
प्रतिमा के जाने के कुछ देर बाद ही अजय सिंह बेड से उठा और कमरे से बाहर आ गया। इस वक्त वह अपने हिस्से की तरफ ही था। उसे पता था कि उसकी छोटी बहन नैना उसके हिस्से पर ही ऊपर अपने कमरे में है। वह कमरे से निकल कर ऊपर जाने के लिए सीढ़ियों की तरफ बढ़ गया। सीढ़ियाॅ चढ़ते हुए वह ऊपर नैना के कमरे के पास पहुॅचा। उसने बंद दरवाजे पर आहिस्ता से हाॅथ रखा और उसे कमरे की तरफ पुश किया। किन्तु कमरा अंदर से बंद था। अजय सिंह ने झुक कर दरवाजे के की-होल सें अपनी दाहिनी आॅख सटा दी। कमरे के अंदर नैना बेड पर लेटी हुई दिखी उसे। उसके हाॅथ में कोई मोटी सी किताब थी जिसे वह मन ही मन पढ़ रही थी। ये देख अजय सिंह ने राहत की साॅस ली और फिर दबे पाॅव वह नीचे उतर आया।
नीचे आकर उसने पार्टीशन वाले दरवाजे के पास पहुॅचा। किन्तु उससे पहले वह बाएॅ साइड के पार्टीशन वाले दरवाजे की तरफ भी देखा। उसने ये दरवाजा बंद कर दिया था ताकि उधर से कोई इधर का देख न सके। बाएॅ साइड वाला हिस्सा अभय सिंह व करुणा का था, तथा दाएॅ साइड विजय सिंह का जबकि बीच का हिस्सा अजय सिंह का था।
दाएॅ तरफ वाले हिस्से के पार्टीशन पर लगे दरवाजे को पार कर वह दबे पाॅव ऊपर की तरफ जाने के लिए सीढ़ियों की तरफ बढ़ा। उसे पता था कि सीढ़ियों के पास जाने के लिए उसे माॅ बाबूजी के कमरे के सामने से होकर ही गुज़रना पड़ेगा। उसका दिल अनायास ही धड़कने लगा था। माॅ बाबूजी के कमरे के पास से होकर वह दबे पाॅव ही सीढ़ियों के पास पहुॅचा। उसके बाद आहिस्ता से सीढ़ियाॅ चढ़ता चला गया वह।
ऊपर आकर वह दाहिने साइड चौड़ी बालकनी से होते हुए गौरी के कमरे के पास पहुॅचा। धाड़ धाड़ बजती धड़कनों को काबू में रखने की असफल कोशिश भी कर रहा था वह। किन्तु कहते हैं ना कि चोर का दिल बेहद कमज़ोर होता है, वही हाल अजय सिंह का था। कमरे के पास पहुॅच कर उसने दरवाजे पर हाॅथ रख कर उसे कमरे की तरफ धकेला। कमरा बेआवाज़ अंदर की तरफ पुश हो गया।
ये देख कर अजय सिंह की आॅखें चमक उठीं। उसने दरवाजे बहुत ही आहिस्ता से थोड़ा और अंदर की तरफ धकेला ताकि वह थोड़ी सी झिरी से ही पहले कमरे के अंदर की वस्तुस्थिति का पता लगा सके। ख़ैर, झिरी के बनते ही अजय सिंह ने कमरे के अंदर उस थोड़ी सी झिरी से देखा। अंदर एक कोने की तरफ रखे बेड पर गौरी दूसरी तरफ को करवट लिए पड़ी थी। ऊपर छत पर पंखा मध्यम स्पीड से घूम रहा था जिसकी हवा से उसकी साड़ी का एक सिरा हिल रहा था। गर्मी के दिन थे इस लिए गौरी ने साड़ी को अपने बदन के ऊपरी हिस्से से हटाया हुआ था। ऊपर सिर्फ ब्लाउज ही था। गर्दन के नीचे पीठ की तरफ वाला एक तिहाई भाग दिख रहा था तथा नीचे कमर दिख रही थी। कमर के नीचे उसका पिछवाड़ा था जो कि साड़ी से ढॅका हुआ ही था। उसके नीचे उसकी साड़ी पेटीकोट सहित उटनों तक ऊपर खिसकी हुई थी जिसके कारण उसकी दूध सी गोरी पिंडिलियाॅ स्पष्ट दिख रही थी। पैरों में मोटी सी किन्तु घुंघुरूदार पायल थी।
अजय सिंह दरवाजे पर खड़ा न रह सका। वह आहिस्ता से दरवाजे को खोला और अंदर दबे पाॅव कमरे के अंदर दाखिल हो गया। अंदर आकर वह दबे पाॅव ही बेड की तरफ बढ़ा। उसके दिल की धड़कनें पूरी गति से दौड़ रही थी जिसकी धमक किसी हॅथौड़े की तरह उसे अपनी कनपटियों पर स्पष्ट बजती सुनाई पड़ रही थी।
बेड के बेहद करीब पहुॅच कर अजय सिंह रुक गया। कमरे में खिड़की से आता हुआ प्रकाश फैला हुआ था जिसकी वजह से कमरे में मौजूद हर चीज़ स्पष्ट दिखाई दे रही थी। बेड के करीब पहुॅच कर अजय सिंह ने देखा कि गौरी दूसरी तरफ करवट लिए पड़ी थी। उसने अपना बायाॅ हाॅथ मोड़ कर अपनी बाॅई कनपटी के नीचे रखा हुआ था जबकि दाहिना हाॅथ उसके पेट के आगे बेड पर टिका हुआ था। अजय सिंह धड़कते दिल के साथ झुक कर गौरी के चेहरे की तरफ देखा तो उसे पता चला कि गौरी की आॅखें बंद हैं। अजय सिंह को यकीन करना मुश्किल था कि गौरी सो रही है या फिर उसने यूॅ ही अपनी आॅखें बंद की हुई हैं।
गौरी के चाॅद जैसे चेहरे पर इस वक्त ज़माने भर की मासूमियत थी। आज कल उसकी तबीयत ज़रा नाशाद थी इस लिए उसके चेहरे पर वो नूर नहीं दिख रहा था जो हमेशा रहता था। किन्तु अजय सिंह को तो जैसे ऐसा चेहरा भी किसी नूर से कम न था। वह ये मान चुका था कि गौरी दुनियाॅ की सबसे खूबसूरत औरत है। उसकी खुद की बीवी भी खूबसूरती में कम न थी लेकिन गौरी के सामने उसकी खूबसूरती जैसे फीकी पड़ जाती थी। परिवार की हर औरत खूबसूरती में एक दूसरे को मात दे रही थी। लेकिन अजय सिंह का दिल गौरी के लिए धड़कता था। वह समझ नहीं पा रहा था कि ये वह गौरी की खूबसूरती पर हवस की वजह से आकर्शित था या फिर उसे गौरी से प्रेम था।
अजय सिंह ने थोड़ा और आगे की तरफ झुक कर देखा तो एकाएक ही उसके मन में संगीत सा बज उठा। गौरी के सीने के दोनो बड़े बड़े उभार आपस में दबे होने की वजह से उसकी ब्लाउज से बाहर झाॅक रहे थे। अजय सिंह जैसे उनमें ही खो गया। तभी वह बुरी तरह डर भी गया। क्योंकि उसी वक्त गौरी ने एक गहरी साॅस लेते हुए पहले तो हल्की सी अॅगड़ाई ली और फिर सीधी लेट गई। अजय सिंह की धड़कन जो बुरी तरह बढ़ गई थी वो अब इस दृश्य को देख कर जैसे रुक ही गई। गौरी सीधी लेट गई थी। जैसा कि बताया जा चुका है कि गौरी ने गर्मी के चलते अपनी साड़ी को अपने ऊपरी भाग से हटाया हुआ था। इस लिए उसके सीधा लेटते ही ब्लाउज में कैद उसकी भारी छातियाॅ एकदम से तन गई थी। नीचे दूध सा गोरा नंगा पेट और उस पर उसकी गहरी नाभी। अजय सिंह की हालत एक पल में खराब हो गई। उसका जी चाहा कि वह तुरंत झुक कर गौरी के पेट और नाभी को अपनी जीभ से चूसना चाटना शुरू कर दे किन्तु वह ऐसा कुछ चाह कर भी नहीं कर सकता था।
गौरी की छातियाॅ बिना ब्रा के किसी कुतुब मीनार की तरह तनी हुई थी। अजय सिंह की नापाक नज़रें गौरी के पूरे जिस्म को जैसे स्कैन सा कर रही थीं। उसका खूबसूरत चेहरा और बिना लिपिस्टिक के ही लाल सुर्ख होंठ थे उसके। जिन्हें अपने होंठो में भर लेने के लिए जैसे उसे आमंत्रित कर रहे थे। और अजय सिंह ने उस निमंत्रण को स्वीकार भी कर लिया। वह मानो सम्मोहित सा हो गया था। वह सम्मोहित सा होकर ही आहिस्ता आहिस्ता गौरी के चेहरे की तरफ झुकने लगा। उसके हृदय की गति प्रतिपल रुकती हुई महसूस हो रही थी। वह गौरी के चेहरे के बेहद करीब झुक गया। उसके नथुनों में गौरी की गर्म साॅसें पड़ी। उसकी साॅसों की महक से जैसे वह मदहोश सा होने लगा। उसकी साॅस भारी हो गई। उसने गहरी साॅस खींचकर उसे तेज़ी से ही बाहर छोंड़ा और जैसे यहीं पर उससे बड़ी भारी ग़लती हो गई। एक तो गहरी साॅस लेने की आवाज़ और दूसरी तेज़ी से ही उस लम्बी साॅस को नाक के रास्ते बाहर निकालने से गौरी के चेहरे पर गर्म साॅस का तीब्र वेग से स्पर्श हुआ। जिससे गौरी की नींद टूट गई। उसने पलकें झपकाते हुए अपनी आॅखें खोल दी और....और अपने चेहरे के इतने करीब किसी को झुके देख वह बुरी तरह डर गई साथ ही हड़बड़ा भी गई। इधर अजय सिंह को भी जैसे साॅप सा सूॅघ गया। वह बड़ी तेज़ी से सीधा खड़ा हो गया। किन्तु तब तक देर हो चुकी थी।
गौरी ने जब देखा कि उसके चेहरे पर झुका हुआ शख्स कोई और नहीं बल्कि उसका जेठ है तो उसकी हालत खराब हो गई। मारे घबराहट के उसे समझ ही न आया कि क्या करे वह। फिर जैसे ही दिमाग़ ने काम किया तो उसने हड़बड़ा कर सीघ्रता से अपनी साड़ी को अपने बदन पर डाला।
"माफ़ करना गौरी।" अजय सिंह मानो तब तक खुद को सम्हाल चुका था, इस लिए बड़ी शालीनता बोला___"वो मैं दरअसल देखने आया था कि क्या हुआ है तुम्हें? मैने सुना कि कई दिन से तुम्हारी तबीयत ठीक नहीं है इस लिए देखने चला आया था।"
गौरी बोली तो कुछ न। बोलने वाली हालत में ही नहीं थी वह। अपने सिर पर साड़ी का घूॅघट डाल कर वह तेज़ी से ही बेड से नीचे उतर आई थी और अजय सिंह से दूर जाकर खड़ी हो गई थी। उसका दिल धाड़ धाड़ करके सरपट दौड़े जा रहा था। अपनी जगह पर खड़ी वह थरथर काॅप रही थी। उसे लग रहा था कि उसकी काॅपती हुई टाॅगें उसका भार ज्यादा देर तक सह नहीं पाएॅगी। वह बड़ी मुश्किल से खुद को सम्हाले खड़ी थी।
"अरे घबराने की कोई ज़रूरत नहीं है गौरी।" उधर अजय सिंह उसकी हालत का बखूबी अंदाज़ा लगाते हुए बोला___"तुम मेरी छोटी बहन के समान हो। मैंने कहा न कि तुम्हें बस देखने आया था यहाॅ। तुम आराम से सो रही थी तो मैने तुम्हें जगाना उचित नहीं समझा। मैं देख रहा था कि कैसे सारे संसार भर की मासूमियत अपने चेहरे पर लिए तुम सो रही हो। अगर तुम्हें मेरा इस तरह देखना अच्छा नहीं लगा तो माफ़ कर देना अपने इस बड़े भइया को।"
गौरी ने इस बार भी कुछ नहीं कहा। बल्कि वह पूर्व की भाॅति ही खड़ी रही। अजय सिंह उसका जेठ था और यहाॅ का ये रिवाज़ था कि जेठ और ससुर के सामने घूॅघट में ही रहना है और उनसे बोलना नहीं है। यही एक भारतीय बहू के लिए नियम था यहाॅ गाॅवों में।
"पता नहीं किस शदी में जी रहे हैं ये सब लोग?" अजय सिंह कह रहा था___"आज भी वही पुरानी परंपराएॅ और फिज़ूल के नियम कानून व रीति रिवाज़ों में बॅधे हुए हैं सब। शहरों में ये सब रूढ़िवादिता नहीं है और ना ही वहाॅ पर इस सबको उचित मानता है कोई। शहर में सब लोग एक दूसरे से बोलते हैं। किसी के ऊपर किसी तरह की कोई पाबंदी नहीं रहती। भारतीय कानून ने भी हर मर्द व औरत को समानता का अधिकार दिया हुआ है। इस लिए ये सब बेकार की परंपराएॅ छोड़ो तुम सब। इज्जत सम्मान देने के लिए ये ज़रूरी नहीं होता कि कोई बहू अपने जेठ या ससुर के सामने चार हाथ का घूॅघट करे और उनसे बात न करे। बल्कि इज्जत सम्मान ये सब किये बग़ैर भी दिया जा सकता है।"
अजय सिंह की इन सब बातों का भला गौरी क्या जवाब देती? हलाॅकि उसे भी पता था कि शहर में वही सब नियम चलते हैं जिसके बारे में उसका जेठ उससे कह रहा है। किन्तु ये सब नियम कानून गाॅव देहातों में लागू नहीं हो सकते थे। ये सब यहाॅ इतना आसान नहीं था बल्कि ऐसा करने वाली बहू को समाज के ये लोग चरित्रहीन की संज्ञा दे देते हैं।
"ख़ैर छोंड़ो ये सब।" अजय सिंह ने कहा___"गाॅव देहात में तो ये सब चल ही नहीं सकता। पता नहीं कब समझेंगे ये लोग? देश समाज की उन्नति में बाधा ऐसी सोच ही डालती है। ख़ैर, मैं अभय को बोल दूॅगा कि तुम्हें शहर ले जाए और वहाॅ किसी अच्छे डाक्टर से तुम्हारा इलाज़ करवा दे। चलो जाओ अब तुम आराम करो।"
इतना सब कह कर अजय सिंह कमरे से बाहर की तरफ निकल गया। जबकि गौरी उसके जाने के बाद भी काफी देर तक बुत बनी खड़ी रही। मन में यही ख़याल बार बार डंक मार रहा था कि जेठ जी यहाॅ किस लिए आए थे? क्या फिर से पहले की तरह बुरी नीयत से या सच में वो उसकी तबीयत के बारे में ही जानने आए थे? वो इस तरह मेरे इतने करीब कैसे आ सकते थे? क्या मतलब हुआ इस सबका?
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गौरी के पास से आकर अजय सिंह पुनः अपने कमरे में बेड पर लेट गया था। उसका दिल अभी तक सामान्य नहीं हुआ था। अंदर अभी भी घबराहट के निसां शेष थे। बेड पर पड़े पड़े वह इन्हीं सब बातों के बारे में सोचे जा रहा था। बार बार वह इस ख़याल से डर जाता था कि अच्छा हुआ समय रहते उसने वस्तुस्थिति को सम्हाल लिया था वरना कुछ भी हो सकता था। अपनी बातों से उसने गौरी को जता दिया था कि वो सिर्फ उसकी तबीयत के बारे में ही जानने के लिए आया था उसके कमरे में। किन्तु उसके मन में बार बार ये सवाल भी उठ जाता था कि क्या वह अपनी बातों से गौरी को संतुष्ट कर पाया था? कहीं ऐसा तो नहीं कि गौरी को उस पर अभी भी कोई संदेह है? वह किसी निष्कर्श पर न पहुॅचा था।
अपने कमरे में वह जाने कितनी ही देर तक इस सबके बारे में सोचता रहा। उसे होश तब आया जब उसके कमरे का दरवाजा खोल कर उसकी पत्नी प्रतिमा अंदर दाखिल हुई। धूप और गर्मी से आने के कारण उसकी हालत खराब थी। पसीने से उसका जिस्म चमक रहा था। पतली सी साड़ी उसके शरापा बदन से चिपकी हुई थी। कमरे में आते ही प्रतिमा ने पहले कमरे का दरवाजा बंद किया उसके बाद सीधा बेड पर आकर चारो खाने चित्त होकर पसर गई। लेटते ही गहरी गहरी साॅसें लेने लगी वह। बड़े गले के ब्लाउज से उसकी भारी चूचियाॅ आधे से ज्यादा दिख रही थी।
अजय सिंह ने जब उसे इस हालत में देखा तो उससे रहा न गया। गौरी को देखकर ही उसके अंदर आग सी लग गई थी और अब अपनी पत्नी को इस तरह देखा तो होश खो बैठा वह। प्रतिमा आॅखें कर गहरी साॅसें ले रही थी जबकि अजय सिंह ने उसे पल भर में दबोच लिया। वह इतना उतावला हो चुका था कि वह प्रतिमा के ब्लाउज को उसके ऊपरी गले के भाग वाले सिरों को पकड़ कर एक झटके से फाड़ दिया। नाज़ुक सा ब्लाउज था बेचारा वह अजय सिंह झटका नहीं सह सका। ब्लाउज के सारे बटन एक साथ टूटते चले गए। अजय सिंह पागल सा हो गया था। ब्लाउज के अलग होते ही प्रतिमा की भारी भरकम चूचियाॅ उछल कर बाहर आ गईं। अजय ने उन दोनो फुटबालों को दोनो हाथों से शख्ती से दबोच कर उनके निप्पल को अपना मुह खोल कर भर लिया और बुरी तरह से उन्हें चुभलाने लगा।
प्रतिमा एकाएक ही हुए इस हमले से हतप्रभ सी रह गई। किन्तु अजय की रॅग रॅग से वाकिफ थी इस लिए बस मुस्कुरा कर रह गई। अजय सिंह उसकी चूचियों को बुरी तरह मसल रहा था और साथ ही साथ उनको अपने दाॅतों से काटता भी जा रहा था। वह पल भर में जानवर नज़र आने लगा था।
"आहहहहह धीरे से अजय।" प्रतिमा की दर्द में डूबी कराह निकल गई___"दर्द हो रहा है मुझे। ये कैसा पागलपन है? क्या हो गया है तुम्हें?"
"चुपचाप लेटी रह मेरी राॅड।" अजय सिंह मानो गुर्राया___"वरना ब्लाउज की तरह तेरा सब कुछ फाड़ कर रख दूॅगा।"
"अरे तो फाड़ ना भड़वे।" प्रतिमा भी उसी लहजे में बोली___"लगता है गौरी का भूत फिर से सवार हो गया तुझे। चल अच्छा हुआ, जब जब ये भूत सवार होता है तुझ पर तब तब तू मेरी मस्त पेलाई करता है। आहहहह हाय फाड़ दे रे....मुझ पर भी बड़ी आग लगी हुई है। शशशश आहहहह रंडे के जने नीचे का भी कुछ ख़याल कर। क्या चूचियों पर ही लगा रहेगा?"
"हरामज़ादी साली।" अजय सिंह उठ कर प्रतिमा की साड़ी को पेटीकोट सहित एक झटके में उलट दिया। साड़ी और पेटीकोट के हटते ही प्रतिमा नीचे से पूरी तरह नंगी हो गई।
"साली पेन्टी भी पहन कर नहीं गई थी उस मजदूर के पास।" अजय सिंह ने ज़ोर से प्रतिमा की चूत को अपने एक हाॅथ से दबोच लिया। प्रतिमा की सिसकारी गूॅज उठी कमरे में।
"आहहहह दबोचता क्या है रंडी के जने उसे मुह लगा कर चाट ना।" प्रतिमा अपने होशो हवाश में नहीं थी___"उस हरामी विजय ने तो कुछ न किया। हाय अगर एक बार कहता तो क्या मैं उसे खोल कर दे न देती? आहहह ऐसे ही चाट.....शशशशश अंदर तक जीभ डाल भड़वे की औलाद।"
अजय सिंह पागल सा हो गया। उसे इस तरह की गाली गलौज वाला सेक्स बहुत पसंद था। प्रतिमा को भी इससे बड़ा आता था। और आज तो दोनो पर आग जैसे भड़की हुई थी। अजय सिंह प्रतिमा की चूत में मानो घुसा जा रहा था। उसका एक हाॅथ ऊपर प्रतिमा की एक चूची पर जिसे वह बेदर्दी से मसले जा रहा था जबकि दूसरा हाथ प्रतिमा की चूत की फाॅकों पर था जिन्हें वह ज़रूरत के हिसाब से फैला रहा था।
कमरे में हवस व वासना का तूफान चालू था। प्रतिमा की सिसकारियाॅ कमरे में गूॅजती हुई अजीब सी मदहोशी का आलम पैदा कर रही थी। अजय सिंह उसकी चूत पर काफी देर तक अपनी जीभ से चुहलबाजी करता रहा।
"आहहहह ऐसे ही रे बड़ा मज़ा आ रहा है मुझे।" प्रतिमा बड़बड़ा रही थी। उसकी आॅखें मज़े में बेद थी। बेड पर पड़ी वह बिन पानी के मछली की तरह छटपटा रही थी।
"शशशश आहहह अब उसे छोंड़ और जल्दी से पेल मुझे भड़वे हरामी।" प्रतिमा ने हाॅथ बढ़ा कर अजय सिंह के सिर के बालों को पकड़ कर ऊपर उठाया। अजय सिंह उसके उठाने पर उठा। उसका पूरा चेहरा प्रतिमा के चूत रस से भींगा हुआ था। ऊपर उठते ही वह प्रतिमा के होठों पर टूट पड़ा। प्रतिमा अपने ही चूत रस का स्वाद लेने लगी इस क्रिया से।
प्रतिमा ने खुद को अलग कर बड़ी तेज़ी से अजय सिंह के कपड़ों उतारना शुरू कर दिया। कुछ ही पल में अजय सिंह मादरजाद नंगा हो गया। उसका हथियार फनफना कर बाहर आ गया। प्रतिमा उकड़ू लेट कर तुरंत ही उसे एक हाथ से पकड़ कर मुह में भर लिया।
अजय सिंह की मज़े से आॅखें बंद हो गई तथा मुह से आह निकल गई। वह प्रतिमा के बालों को मजबूती से पकड़ कर उसके मुह में अपनी कमर हिलाते हुए अपना हथियार पेलने लगा। वह पूरी तरह जानवर नज़र आने लगा था। ज़ोर ज़ोर से वह प्रतिमा के गले तक अपना हथियार पेल रहा था। प्रतिमा की हालत खराब हो गई। उसका चेहरा लाल सुर्ख पड़ गया। आॅखें बाहर को आने लग जाती थी साथ ही आॅखों से आॅसू भी आने लगे। तभी अजय ने उसके सिर को पीछे की तरफ से पकड़ कर अपने हथियार की तरफ मजबूती से खींचा। नतीजा ये हुआ कि उसका हथियार पूरा का पूरा प्रतिमा के मुह मे गले तक चला गया। प्रतिमा की आॅखें बाहर को उबल पड़ी। आॅखों से आॅसू बहने लगे। साॅस लेना मुश्किल पड़ गया उसे। उसका जिस्म झटके खाने लगा। उसके मुह से लार टपकने लगी।
प्रतिमा को लगा कि उसकी साॅसें टूट जाएॅगी। अजय सिंह उसे मजबूती से पकड़े हुए था। वह अपने मुह से उसके हथियार को निकालने के लिए छटपटाने लगी। अजय को उसकी इस हालत का ज़रा भी ख़याल नहीं था, वह तो मज़े में आॅकें बंद किये ऊपर की तरफ सिर को उठाया हुआ था।
प्रतिमा के मुह से गूॅ गूॅ की अजीब सी आवाज़े निकल रही थी। जब उसने देखा कि अजय सिंह उसे मार ही डालेगा तो उसने अपने दोनो हाॅथों से अजय सिंह के पेट पर पूरी ताकत से चिकोटी काटी।
"आहहहहहहह।" अजय सिंह के मुह से चीख निकल गई। वह एक झटके से उसके सिर को छोंड़ कर तथा उसके मुह से अपने हथियार को निकाल कर अलग हट गया। मज़े की जिस दुनियाॅ में वह अभी तक परवाज़ कर रहा था उस दुनिया से गिर कर वह हकीकत की दुनियाॅ में आ गया था। बेड के दूसरी तरफ घुटनो पर खड़ा वह अपने पेट के उस हिस्से को सहलाए जा रहा था जहाॅ पर प्रतिमा ने चिकोटी काटी थी। उसे प्रतिमा की इस हरकत पर बेहद गुस्सा आया था किन्तु जब उसने प्रतिमा की हालत को देखा तो हैरान रह गया। प्रतिमा का चेहरा लाल सुर्ख तमतमाया हुआ था। वह बेड पर पड़ी अपनी साॅसें बहाल कर रही थी।
"तुमको ज़रा भी अंदाज़ा है कि तुमने क्या किया है मेरे साथ?" प्रतिमा ने गुस्से से फुंकारते हुए कहा___"तुम अपने मज़े में ये भी भूल गए कि मेरी जान भी जा सकती थी। तुम इंसान नहीं जानवर हो अजय। आज के बाद मेरे करीब भी मत आना वरना मुझसे बुरा कोई नहीं होगा।"
अजय सिंह उसकी ये बातें सुनकर हैरान रह गया था। किन्तु जब उसे एहसास हुआ कि वास्तव में उसने क्या किया था तो वह शर्मिंदगी से भर गया। वह जानता था कि प्रतिमा वह औरत थी जो उसके कहने पर दुनिया का कोई भी काम कर सकती थी और करती भी थी। ये उसका अजय के प्रति प्यार था वरना कौन ऐसी औरत है जो पति के कहने पर इस हद तक भी गिरने लग जाए कि वह किसी भी ग़ैर मर्द के नीचे अपना सब कुछ खोल कर लेट जाए???? अजय सिंह को अपनी ग़लती का एहसास हुआ। वह तुरंत ही आगे बढ़ कर प्रतिमा से माफी माॅगने लगा तथा उसको पकड़ने के लिए जैसे ही उसने हाथ बढ़ाया तो प्रतिमा ने झटक दिया उसे।
"डोन्ट टच मी।" प्रतिमा गुर्राई और फिर उसी तरह गुस्से में तमतमाई हुई वह बेड से नीचे उतरी और बाथरूम के अंदर जाकर दरवाजा बंद कर लिया उसने। अजय सिंह शर्मिंदा सा उसे देखता रह गया। उसमें अपराध बोझ था इस लिए उसकी हिम्मत न हुई कि वह प्रतिमा को रोंक सके। उधर थोड़ी ही देर में प्रतिमा बाथरूम से मुह हाॅथ धोकर निकली। आलमारी से एक नया ब्लाउज निकाल कर पहना, तथा उसी साड़ी को दुरुस्त करने के बाद उसने आदमकद आईने में देख कर अपने हुलिये को सही किया। सब कुछ ठीक करने के बाद वह बिना अजय की तरफ देखे कमरे से बाहर निकल गई। अजय सिंह समझ गया था कि प्रतिमा उससे बेहद नाराज़ हो गई है। उसका नाराज़ होना जायज़ भी था। भला इस तरह कौन अपनी पत्नी की जान ले लेने वाला सेक्स करता है?? अजय सिंह असहाय सा नंगा ही बेड पर पसर गया था।
दोस्तो अपडेट हाज़िर है,,,,,,,,,,
Nice update♡ एक नया संसार ♡
अपडेट...........《 31 》
अब तक,,,,,,,
"तुमको ज़रा भी अंदाज़ा है कि तुमने क्या किया है मेरे साथ?" प्रतिमा ने गुस्से से फुंकारते हुए कहा___"तुम अपने मज़े में ये भी भूल गए कि मेरी जान भी जा सकती थी। तुम इंसान नहीं जानवर हो अजय। आज के बाद मेरे करीब भी मत आना वरना मुझसे बुरा कोई नहीं होगा।"
अजय सिंह उसकी ये बातें सुनकर हैरान रह गया था। किन्तु जब उसे एहसास हुआ कि वास्तव में उसने क्या किया था तो वह शर्मिंदगी से भर गया। वह जानता था कि प्रतिमा वह औरत थी जो उसके कहने पर दुनिया का कोई भी काम कर सकती थी और करती भी थी। ये उसका अजय के प्रति प्यार था वरना कौन ऐसी औरत है जो पति के कहने पर इस हद तक भी गिरने लग जाए कि वह किसी भी ग़ैर मर्द के नीचे अपना सब कुछ खोल कर लेट जाए???? अजय सिंह को अपनी ग़लती का एहसास हुआ। वह तुरंत ही आगे बढ़ कर प्रतिमा से माफी माॅगने लगा तथा उसको पकड़ने के लिए जैसे ही उसने हाथ बढ़ाया तो प्रतिमा ने झटक दिया उसे।
"डोन्ट टच मी।" प्रतिमा गुर्राई और फिर उसी तरह गुस्से में तमतमाई हुई वह बेड से नीचे उतरी और बाथरूम के अंदर जाकर दरवाजा बंद कर लिया उसने। अजय सिंह शर्मिंदा सा उसे देखता रह गया। उसमें अपराध बोझ था इस लिए उसकी हिम्मत न हुई कि वह प्रतिमा को रोंक सके। उधर थोड़ी ही देर में प्रतिमा बाथरूम से मुह हाॅथ धोकर निकली। आलमारी से एक नया ब्लाउज निकाल कर पहना, तथा उसी साड़ी को दुरुस्त करने के बाद उसने आदमकद आईने में देख कर अपने हुलिये को सही किया। सब कुछ ठीक करने के बाद वह बिना अजय की तरफ देखे कमरे से बाहर निकल गई। अजय सिंह समझ गया था कि प्रतिमा उससे बेहद नाराज़ हो गई है। उसका नाराज़ होना जायज़ भी था। भला इस तरह कौन अपनी पत्नी की जान ले लेने वाला सेक्स करता है?? अजय सिंह असहाय सा नंगा ही बेड पर पसर गया था।
अब आगे,,,,,,,,,,
फ्लैशबैक अब आगे______
उस दिन और उस रात प्रतिमा ने अजय सिंह की तरफ देखा तक नहीं बात करने की तो बात दूर। अजय सिंह अपनी पत्नी के इस रवैये बेहद परेशान हो गया था, वह अपने किये पर बेहद शर्मिंदा था। वह जानता था कि उसने ग़लती की थी किन्तु अब जो हो गया उसका क्या किया जा सकता था? उसने कई बार प्रतिमा से उस कृत्य के लिए माफ़ी माॅगी लेकिन प्रतिमा हर बार उसे गुस्से से देख कर उससे दूर चली गई थी।
ख़ैर दूसरा दिन शुरू हुआ। आज प्रतिमा का रवैया एकदम सामान्य था। कदाचित् रात के बाद अब उसका गुस्सा उतर गया था। पिछली रात वह दूसरे कमरे में अंदर से कुंडी लगा कर सोई थी। वह जानती थी अजय उसे मनाने उसके पास आएगा और हुआ भी वही लेकिन प्रतिमा कमरे का दरवाजा नहीं खोला था। अजय सिंह मुह लटकाए वापस चला गया था। रात में प्रतिमा ने इस बारे में बहुत सोचा और इस निष्कर्स पर पहुॅची कि अजय सिंह का इसमें भला क्या दोष हो सकता है? उस सूरत में कोई भी मर्द वही करता जो उसने किया। मज़े की चरम सीमा का एक रूप ऐसा भी हो सकता है कि वह उस सूरत में सब कुछ भूल बैठता है। अजय सिंह के साथ भी तो वही हुआ था। प्रतिमा उससे प्यार भी बहुत करती थी, वह उससे इस तरह बेरूखी अख्तियार नहीं कर सकती थी बहुत देर तक।
सुबह जब हुई तो सबसे पहले वह अजय सिंह से बड़े प्यार से मिली। अजय सिंह इस बात से बेहद खुश हुआ। ख़ैर, दोपहर में प्रतिमा फिर से विजय सिंह के लिए खाने का टिफिन तैयार कर तथा एक प्लास्टिक के बोतल में पका हुआ दूध लेकर खेतों की तरफ चल दी। आज भी उसने पिछले दिन की ही तरह लिबास पहना हुआ था। खूबसूरत गोरे बदन पर आज उसने पतली सी पीले रंग की साड़ी और उसी से मैच करता बड़े गले का ब्लाउज पहना था। ब्लाउज के अंदर आज भी उसने ब्रा नहीं पहना था।
प्रतिमा मदमस्त चाल से तथा मन में हज़ारों ख़याल बुनते हुए खेतों पर बने मकान में पहुॅची। पिछले दिन की ही तरह आज भी आस पास खेतों पर कोई मजदूर नज़र नहीं आया उसे,अलबत्ता विजय सिंह ज़रूर उसे दाईं तरफ लगे बोरबेल पर नज़र आया। वह बोर के पानी से हाॅथ मुह धो रहा था।
प्रतिमा ने ग़ौर से उसे देखा फिर मुस्कुरा कर मकान के अंदर की तरफ बढ़ गई। कमरे में पहुॅच कर उसने पिछले दिन की ही तरह बेन्च पर टिफिन से निकाल कर खाना लगाने लगी। आज उसने अपना आॅचल ढुलकाया नहीं था। शायद ये सोच कर कि विजय कहीं ये न सोच बैठे कि रोज़ रोज़ मैं अपना आॅचल क्यों गिरा देती हूॅ?
कुछ ही देर में विजय सिंह कमरे में आ गया। कमरे में अपनी भाभी को देख कर वह चौंका फिर सामान्य होकर वहीं बेन्च के पास कुर्सी पर बैठ गया।
"आज भी आपको ही कस्ट उठाना पड़ा भाभी।" विजय सिंह ने कहा___"कितनी तेज़ धूप और गर्मी होती है, कहीं आपको लू लग गई और आप बीमार हो गई तो??"
"अरे कुछ नहीं होगा मुझे।" प्रतिमा ने कहा___"इतनी भी नाज़ुक नहीं हूॅ जो इतने से ही बीमार हो जाऊॅगी। और अगर हो भी जाऊॅगी तो क्या हुआ? मेरी दवाई करवाने तुमको ही जाना पड़ेगा। जाओगे न मुझे लेकर?"
"अरे क्या बात करती हैं आप?" विजय सिंह गड़बड़ाया___"भगवान करे आपको कभी कुछ न हो भाभी।"
"हमारे चाहने से क्या होता है?" प्रतिमा ने कहा___"जिसको जब जो होना होता है वो हो ही जाता है। इस लिए कह रही हूॅ कि अगर मैं बीमार पड़ जाऊॅ तो तुम मुझे ले चलोगे न डाक्टर के पास??"
"इसमें भला पूछने की क्या बात है?" विजय सिंह ने कहा___"और हाॅ आपको डाक्टर के पास ले जाने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी बल्कि डाक्टर को मैं खुद आपके पास ले आऊॅगा।"
"ऐसा शायद तुम इस लिए कह रहे हो कि तुम मुझे अपने साथ ले जाना ही नहीं चाहते।" प्रतिमा ने बुरा सा मुह बनाया___"सोचते होगे कि मुझ बुढ़िया को कौन ढोता फिरेगा?"
"बु बुढ़िया???" विजय सिंह को फिर से ठसका लग गया। वह ज़ोर ज़ोर से खाॅसने लगा। प्रतिमा ने सीघ्रता से उठ कर मटके से ग्लास में पानी लिये उसके मुह से लगा दिया। इस बीच उसे सच में ध्यान न आया कि उसका आॅचल नीचे गिर गया है।
"क्या हुआ आज भी ठसका लग गया तुम्हें?" प्रतिमा ने कहा___"क्या रोज़ ऐसे ही होता है खाते समय?"
विजय सिंह कुछ बोल न सका। उसकी आॅखों के बहुत पास प्रतिमा की बड़ी बड़ी चूचियाॅ आधे से ज्यादा ब्लाउज से झूलती दिख रही थी। विजय सिंह की हालत पल भर में खराब हो गई। वह पानी पीना भूल गया था।
"क्या हुआ पानी पियो न?" प्रतिमा ने कहा फिर अनायास ही उसका ध्यान इस तरफ गया कि विजय उसके सीने की तरफ एकटक देखे जा रहा है। ये देख वह मुस्कुराई।
"आज दूध लेकर आई हूॅ तुम्हारे लिए।" प्रतिमा ने मुस्कुराते हुए कहा___"और हाॅ जहाॅ देख रहे हो न वहाॅ सूखा पड़ा है। इस लिए तो अलग से लाई हूॅ।"
विजय सिंह को जबरदस्त झटका लगा। प्रतिमा को लगा कहीं उसने ज्यादा तो नहीं बोल दिया। अंदर ही अंदर घबरा गई थी वह किन्तु चेहरे से ज़ाहिर न होने दिया उसने। बल्कि सीधी खड़ी होकर उसने अपने आॅचल को सही कर लिया था।
"अरे ऐसे आॅखें फाड़ फाड़ कर क्या देख रहे हो मुझे?" प्रतिमा हॅसी___"मैं तो मज़ाक कर रही थी तुमसे। देवर भाभी के बीच इतना तो चलता है न? चलो अब जल्दी से खाना खाओ।"
विजय सिंह चुपचाप खाना खाने लगा। इस बार वह बड़ा जल्दी जल्दी खा रहा था। ऐसा लगता था जैसे उसे कहीं जाने की बड़ी जल्दी थी।
"तुम खाना खाओ तब तक मैं बाहर घूम लेती हूॅ।" प्रतिमा ने कहा___"और हाॅ दूध ज़रूर पी लेना।"
"जी भाभी।" विजय ने नीचे को सिर किये ही कहा था।
उधर प्रतिमा मुस्कुराती हुई कमरे से बाहर निकल गई। पता नहीं क्या चल रहा था उसके दिमाग़ में?"
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वर्तमान________
"अरे नैना बुआ आप??" रितू जैसे ही हवेली के अंदर ड्राइंग रूम में दाखिल हुई तो सोफे पर नैना बैठी दिखी___"ओह बुआ मैं बता नहीं सकती कि आपको यहाॅ देख कर मैं कितना खुश हुई हूॅ।"
"ओह माई गाड।" नैना सोफे से उठते हुए किन्तु हैरानी से बोली___"तू तो पुलिस वाली बन गई। कितनी सुन्दर लग रही है तेरे बदन पर ये पुलिस की वर्दी। आई एम सो प्राउड आफ यू। आ मेरे गले लग जा रितू।"
दोनो एक दूसरे के गले मिली। फिर दोनो एक साथ ही सोफे पर बैठ गई।
"मुझे डैड ने बताया ही नहीं कि आप आईं हैं यहाॅ।" रितू ने खेद भरे भाव से कहा___"वरना मैं पुलिस थाने से भाग कर आपके पास आ जाती। ख़ैर, आब बताइये कैसी हैं आप और फूफा जी कैसे हैं?"
"मैं तो ठीक ही हूॅ रितू।" नैना ने सहसा गंभीर होकर कहा___"लेकिन तेरे फूफा जी का पूछो ही मत।"
"अरे ऐसा क्यों कह रही हैं आप?" रितू ने चौंकते हुए कहा____"फूफा जी के बारे में क्यों न पूछूॅ भला?"
"क्यों कि अब वो तेरे फूफा जी नहीं रहे।" नैना ने कहा___"मैने उस नामर्द को तलाक़ दे दिया है और अब यहीं रहूॅगी अपने घर में।"
"त...ला...क़????" रितू बुरी तरह उछल पड़ी थी___"लेकिन क्यों बुआ? ऐसी भी भला क्या बात हो गई कि आपने उन्हें तलाक़ दे दिया?"
नैना ने कुछ पल सोचा और फिर सारी बात बता दी उसे जो उसने प्रतिमा को बताई थी। सारी बातें सुनने के बाद रितू सन्न रह गई।
"ठीक किया आपने।" फिर रितू ने कहा___"ऐसे आदमी के पास रहने का कोई मतलब ही नहीं है जो ऐसी सोच रखता हो।"
"रितू मैं सोच रही हूॅ कि मैं कोई ज्वाब कर लूॅ।" नैना ने हिचकिचाते हुए कहा___"अगर तेरी नज़र में मेरे लिए कोई ज्वाब हो तो दिलवा दे मुझे।"
"आपको ज्वाब करने की क्या ज़रूरत है बुआ?" रितू ने हैरानी से कहा___"क्या आप ये समझती हैं कि आप हमारे लिए बोझ बन जाएॅगी?"
"ऐसी बात नहीं है रितू।" नैना ने कहा__"बस मेरा मन बहलता रहेगा। सारा दिन बेड पर पड़े पड़े इस सबके बारे में सोच सोच कर कुढ़ती रहूॅगी। इस लिए अगर कोई ज्वाब करने लगूॅगी तो मेरा दिन आराम से कट जाया करेगा।"
"क्या इस बारे में आपने डैड से बात की है?" रितू ने कहा।
"भइया और भाभी से मैने अभी इस बारे में कोई बात नहीं की है।" नैना ने कहा___"पर मैं जानती हूॅ कि भइया मुझे ज्वाब करने की इजाज़त कभी नहीं देंगे। वो भी यही समझेंगे कि मैं उनके लिए बोझ बन जाऊॅगी ऐसा मैं सोच रही हूॅ।"
"हाॅ ये बात है ही।" रितू ने कहा___"हम में से कोई नहीं चाहेगा कि आप कोई ज्वाब करें।"
"नहीं रितू प्लीज़।" नैना ने रितू के हाॅथ को अपने हाथ में लेकर कहा___"समझने की कोशिश कर मेरी बच्ची। क्या तू चाहती है कि तेरी बुआ उस सबके बारे में सोच सोच कर दुखी हो?"
"नहीं बुआ हर्गिज़ नहीं।" रितू ने मजबूती से इंकार में सिर हिलाया___"मैं तो चाहती हूॅ कि मेरी प्यारी बुआ हमेशा खुश रहें।"
"तो फिर कोई ज्वाब दिलवा दे मुझे।" नैना ने कहा___"मैं कोई भी काम करने को तैयार हूॅ। बस काम ऐसा हो कि मुझे एक सेकण्ड के लिए भी कुछ सोचने का समय न मिले।"
"ज्वाब तो मैं आपको दिलवा दूॅगी।" रितू ने कहा____"लेकिन उससे पहले एक बार डैड से भी इसके लिए पूछना पड़ेगा।"
"ठीक है मैं बात करूॅगी भइया से।" नैना ने कहा___"अब जा तू भी चेन्ज कर ले तब तक मैं तेरे कुछ खाने का बंदोबस्त करती हूॅ।"
"आप परेशान मत होइये बुआ।" रितू ने कहा____"माॅम हैं ना इस सबके लिए।"
"इसमें परेशानी की क्या बात है?" नैना ने कहा___"शादी से पहले भी तो मैं यही करती थी तेरे लिए भूल गई क्या?"
"कैसे भूल सकती हूॅ बुआ?" रितू ने मुस्कुरा कर कहा___"मुझे सब याद है। आप हम तीनो बहन भाई को पढ़ाया करती थी और पिटाई भी करती थी।"
"अरे वो तो मैं प्यार से मारती थी।" नैना हॅस पड़ी___"और वो ज़रूरी भी तो था न?"
"सही कह रही हैं आप।" रितू ने कहा__"जब तक हम बच्चे रहते हैं तब तक हमें ये सब बुरा लगता है और जब बड़े हो जाते हैं तो लगता है कि बचपन में पढ़ाई के लिए जो पिटाई होती थी वो हमारे भले के लिए ही होती थी।"
"मैने घर के सभी बच्चों को पढ़ाया था।" नैना ने कुछ सोचते हुए कहा___"किन्तु उन सभी बच्चों में एक ही ऐसा बच्चा था जो मेरे हाॅथों मार नहीं खाया और वो था हमारा राज। मैं सोचा करती थी कि ऐसा कौन सा सवाल उससे करूॅ जो उससे न बने और फिर मैं उसकी पिटाई करूॅ मगर हाय रे कितना तेज़ था राज। हर विषय उसका कम्प्लीट रहता था। छोटे भइया भाभी ने उसे बचपन से ही पढ़ाई में जीनियस बना रखा था। वैसी ही निधी भी थी। जाने कहाॅ होंगे वो सब?"
कहते कहते नैना की आॅखों में आॅसू आ गए। रितू के चेहरे पर बेहद ही गंभीर भाव आ गए थे। उसके मुख से कोई शब्द नहीं निकला बल्कि शख्ती से उसने मानो लब सी लिए थे।
"क्या हो गया है इस घर की खुशियों को?" नैना ने गंभीरता से कहा___"न जाने किसकी नज़र लग गई इस घर के हॅसते मुस्कुराते हुए लोगो पर? सब कुछ बिखर गया। विजय भइया क्या गए जैसे इस घर की रूह ही चली गई। माॅ बाबू जी उनके सदमें में कोमा में चले गए। गौरी भाभी और उनके बच्चे जाने दुनियाॅ के किस कोने में जी रहे होंगे? बड़ी भाभी ने बताया कि करुणा भाभी भी अपने बच्चों के साथ अपने मायके चली गईं हैं जबकि अभय भइया किसी काम से कहीं बाहर गए हैं। इतनी बड़ी हवेली में गिनती के चार लोग हैं। ये भाग्य की कैसी विडम्बना है रितू???"
"ये सवाल ऐसा है बुआ जो हर शख्स की ज़ुबां पर रक्श करता है।" रितू ने कहा___"लेकिन उसका कोई जवाब नहीं है।"
"जबाव तो हर सवाल का होता है रितू।" नैना ने कहा___"संसार में ऐसा कुछ है ही नहीं जिसका जवाब न हो।"
"आप कहना क्या चाहती हैं बुआ?" रितू ने हैरानी से देखा था।
"कहने को तो बहुत कुछ है रितू।" नैना ने गहरी साॅस ली___"लेकिन कहने का कोई मतलब नहीं है।"
"प्लीज कहिए न बुआ।" रितू ने कहा__"अगर कोई बात है मन में तो बेझिझक कहिये।"
"जाने दे रितू।" नैना ने पहलू बदला___"तू सुना कैसी चल रही है तेरी पुलिस की नौकरी??"
"बस ठीक ही है बुआ।" रितू की आॅखों के सामने विधी का चेहरा नाच गया___"आप तो जानती ही हैं इस नौकरी में दिन रात भागा दौड़ी ही होती रहती है। कभी इस मुजरिम के पीछे तो कभी किसी क़ातिल के पीछे।"
"हाॅ ये तो है।" नैना ने कहा___"लेकिन पुलिस आफीसर बनने का सपना तो तूने ही देखा था न बचपन से।"
"बचपन में तो बस ये सब एक बचपना टाइप का था बुआ।" रितू ने कहा___"लेकिन जब बड़े होने पर हर चीज़ की समझ आई तो लगा कि सचमुच मुझे पुलिस आफीसर बनना चाहिए। मेरी ख्वाहिश थी कि पुलिस आफीसर बन कर मैं दादा दादी जी के एक्सीडेन्ट वाला केस फिर से रिओपेन करके उसकी तहकीक़ात करूॅगी। मगर सब कुछ जैसे एक ख्वाहिश मात्र ही रह गया।"
"क्या मतलब???" नैना चौंकी।
"मतलब ये बुआ कि मैं दादा जी के एक्सीडेन्ट वाले केस में कुछ नहीं कर सकती।" रितू ने असहाय भाव से कहा___"क्योंकि मैने उस केस की फाइल को बहुत बारीकी से पढ़ा है, उसमें कहीं पर भी ये नहीं दिखाया गया कि वो एक्सीडेन्ट एक सोची समझी साजिश का नतीजा था बल्कि ये रिपोर्ट बना कर फाइल बंद कर दी गई कि वो एक्सीडेन्ट महज एक हादसा या दुर्घटना थी जो कि सामने से आ रहे ट्रक से टकराने से हो गई थी। ट्रक का ड्राइवर नशे में था जिसकी वजह से उसने ध्यान ही नहीं दिया और साइड होने बजाय उसने दादा जी की कार से टकरा गया था।"
"लेकिन सवाल ये है कि तुझे ऐसा क्यों लगता है कि वो एक्सीडेन्ट महज दुर्घटना नहीं बल्कि किसी की सोची समझी साजिश थी?" नैना ने हैरानी से कहा___"यानी कोई बाबूजी को जान से मार देना चाहता था।"
"मुझे शुरू में इस बात का सिर्फ अंदेशा था बुआ।" रितू कह रही थी___"वो भी इस लिए क्योंकि ऐसा शहरों में होता है। दादा जी की किसी से कोई दुश्मनी नहीं थी। फिर भी उनके साथ ये हादसा हुआ। उस समय इसके बारे में इस एंगल से मेरा सिर्फ सोचना था। मैं नहीं जानती थी मैं ऐसा क्यों सोचती थी? शायद इस लिए कि शुरू से ही मेरे ज़हन में क्राइम के प्रति सोचने का ऐसा नज़रिया था। किन्तु पुलिस की नौकरी ज्वाइन करने बाद जब मैने उस केस की फाइल को बारीकी से अध्ययन किया तो मुझे यकीन हो गया कि वो एक्सीडेन्ट महज कोई दुर्घटना नहीं थी बल्कि जान बूझ कर दादाजी की कार में टक्कर मारी गई थी।"
"ऐसा क्या था उस फाइल में?" नैना की आॅखें हैरत से फटी पड़ी थी____"जिससे तुझे यकीन हो गया कि ये सब सोच समझ कर किया गया था?"
"फाइल में जिस जगह पर एक्सीडेन्ट यानी कि दादा जी की कार का एक्सीडेन्ट हुआ था उस जगह पर जाकर मैने खुद निरीक्षण किया है।" रितू ने कहा___"मेन हाइवे पर उस जगह भले ही ज्यादातर वाहनों का आना जाना नहीं है लेकिन फिर भी इक्का दुक्का वाहन तो आते जाते ही रहते हैं वहाॅ पर। इतनी चौड़ी सड़क पर कोई ट्रक वाला अपनी लेन से आकर कैसे किसी कार को टक्कर मार सकता है? ये ठीक है कि वो टू-लेन सड़क नहीं थी बल्कि टू-इन-वन थी। फिर भी इतनी चौड़ी सड़क पर कोई ट्रक वाला अपनी लेन से हट कर कैसे टक्कर मार देगा। फाइल में लिखा है कि ट्रक का ड्राइवर नशे में था तो सवाल है कि नशे की उस हालत में उसने एक ही एक्सीडेन्ट क्यों कियों किया? बल्कि एक से ज्यादा एक्सीडेन्ट हो सकते थे उससे मगर ऐसा नहीं था। अब चूॅकि फाइल में ना तो उस ट्रक वाले का कोई अता पता है और ना ही कोई ऐसा सबूत जिसके तहत आगे की कोई कार्यवाही की जा सके इस लिए मैं कुछ नहीं कर सकती।"
"क्या सिर्फ यही एक वजह है जिससे तुझे लगता है कि बाबू जी का एक्सीडेन्ट महज दुर्घटना नहीं थी?" नैना ने कहा___"या फिर कोई और भी वजह है तेरे पास??"
अभी रितू कुछ बोलने ही वाली थी कि उसकी पैन्ट की जेब में पड़ा मोबाइल बज उठा। उसने पाॅकेट से मोबाइल निकाल कर स्क्रीन में फ्लैश कर रहें नंबर को देखा फिर काल रिसीव कर उसे कान से लगा कर कहा___"हाॅ रामदीन बोलो क्या बात है?"
"....................." उधर से पता नहीं क्या कहा गया।
"ओह चलो ठीक है।" रितू ने कहा___"मैं फौरन पहुॅच रही हूॅ।"
फोन काटने के बाद रितू एक झटके से सोफे से खड़ी हो गई और फिर नैना से कहा__"माफ़ करना बुआ मुझे तत्काल पुलिस स्टेशन जाना होगा।"
"ठीक रितू आराम से जाना।" नैना ने कहा___"शाम को जल्दी आना।"
"जी बिलकुल बुआ।" रितू ने मुस्कुरा कर कहा___"रात में हम दोनो खूब सारी बातें करेंगे।"
इसके बाद रितू वहाॅ से चली गई। जबकि नैना वहीं सोफे पर बैठी उसे बाहर की तरफ जाते देखती रही। इस बात से अंजान कि पीछे दीवार के उस तरफ खड़ा अजय सिंह इन दोनो की बातें सुन रहा था। उसके पीछे प्रतिमा भी खड़ी थी।
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फ्लैशबैक अब आगे_______
विजय सिंह खाना खाने के बाद तथा दूध पीने के बाद थोड़ी देर वहीं एक तरफ रखे बिस्तर पर आराम करना चाहता था। किन्तु उसने सोचा कि उसकी भाभी बाहर धूप में जाने कहाॅ घूम रही होंगी? इस लिए उसे देखने के लिए तथा ये कहने के लिए कि वो अब घर जाएॅ बहुत धूप व गर्मी है, वह कमरे से निकल कर बाहर आ गया।
बाहर आकर उसने आस पास देखा लेकिन प्रतिमा उसे कहीं नज़र न आई। ये देख कर वह चिन्तित हो उठा। वह तुरंत ही आगे बढ़ते हुए आस पास देखने लगा। चलते चलते वह आमों के बाग़ की तरफ बढ़ गया। यहाॅ लगभग दस एकड़ में आमों के पेड़ लगाए गए थे। आधुनिक प्रक्रिया के तहत बहुत कम समय में ही ये बड़े हो कर फल देने लगे थे। ये मौसम भी आमों का ही था।
विजय सिंह जब बाग़ के पास पहुॅचा तो देखा कि प्रितिमा एक आम के पेड़ के पास खड़ी ऊपर की तरफ देख रही थी। उसने अपने पल्लू को कमर में घुमा कर खोंसा हुआ था। उसके दोनो हाॅथ ऊपर थे। विजय सिंह के देखते ही देखते वह ऊपर की तरफ उछली और फिर नीचे आ गई। विजय सिंह उसे ये हरकत करते देख मुस्कुरा उठा। उसे देख कर कोई नहीं कह सकता था कि ये तीन तीन बच्चों की माॅ है बल्कि इस वक्त वह जिस तरह से उछल उछल कर ऊपर लगे आम को तोड़ने का प्रयास कर रही थी उससे यही लगता था कि वो अभी भी कोई अल्हड़ सी लड़की ही थी। वह बार बार पहले से ज्यादा ज़ोर लगा कर ऊपर उछलती लेकिन वह नाकाम होकर नीचे आ जाती। आम उसकी पहुच से दूर था किन्तु फिर भी वो मान नहीं थी। उछल कूद के चक्कर में वह पसीना पसीना हो गई थी। उसकी दोनो काख पसीने से भीगी हुई थी तथा ब्लाउज भी भीग गया था। चेहरे और कनपटियों पर भी पसीना रिसा हुआ था।
विजय सिंह उसके पास जाकर बोला___"तो आप यहाॅ आम तोडने का प्रयास कर रही हैं। मैं ढूॅढ रहा था कि जाने आप कहाॅ गायब हो गई हैं?"
"अरे भला मैं अब कहाॅ गायब हो जाऊॅगी विजय?" प्रतिमा ने मुस्कुरा कर कहा__"इस ऊम्र में तुम्हारे भइया को छोंड़ कर भला कहाॅ जा सकती हूॅ?"
"चलिये मैं आपको आम तोड़ कर दे देता हूॅ फिर आप आराम से बैठ कर खाइयेगा।" उसकी बात पर ज़रा भी ध्यान दिये बग़ैर विजय ने कहा था।
"नहीं विजय।" प्रतिमा ऊपर थोड़ी ही दूरी पर लगे आम को देखती हुई बोली___"इसे तो मैं ही तोड़ूॅगी।"
"पर वो तो आपकी पहुॅच से दूर है भाभी।" विजय भी आम की तरफ देखते हुए बोला___"भला आप उस तक कैसे पहुॅच पाएॅगी? और जब पहुॅचेंगी ही नहीं तो उसे तोड़ेंगी कैसे?"
"कह तो तुम भी ठीक ही रहे हो।" प्रतिमा ने बड़ी मासूमियत से दोनो हाथ कमर पर रख कर कहा___"सचमुच मैं काफी देर से प्रयास कर रही हूॅ इस मुए को तोड़ने का लेकिन ये मेरे हाॅथ ही नहीं लग रहा।"
"इसी लिए तो कहता हूॅ कि मैं तोड़ देता हूॅ भाभी।" विजय ने कहा___"आप फालतू में ही इस गर्मी में परेशान हो रही हैं।"
"लेकिन मैं इसे अपने हाॅथ से ही तोड़ना चाहती हूॅ विजय।" प्रतिमा ने कहा___"मुझे बहुत खुशी होगी अगर मैं इसे अपने से तोड़ कर खाऊॅगी तो।"
"फिर तो ये संभव नहीं है भाभी।" विजय ने कहा___"या फिर ऐसा कीजिए कि नीचे से एक पत्थर उठाइये और उस आम को निशाना लगा कर पत्थर मार कर तोड़ लीजिए।"
"उफ्फ विजय ये तो मुझसे और भी नहीं होगा।" प्रतिमा ने आहत भाव से कहा___"क्या तुम मेरी मदद नहीं कर सकते?"
"म मैं...????" विजय चौंका___"भला मैं कैसे आपकी मदद कर सकता हूॅ?"
"बिलकुल कर सकते हो विजय।" प्रतिमा ने खुश होकर कहा___"तुम मुझे अपनी बाहों से ऊपर उठा सकते हो। उसके बाद मैं बड़े आराम से उस आम को तोड़ लूॅगी।"
"क क्या????" विजय सिंह बुरी तरह उछल पड़ा, हैरत से उसकी आॅखें फैलती चली गई थी, बोला___"ये आप क्या कह रही हैं भाभी? नहीं नहीं ये मैं नहीं कर सकता। आप कोई दूसरा आम देख लीजिए जो आपकी पहुॅच पर हो उसे तोड़ लीजिए।"
"अरे तो इसमें क्या है विजय?" प्रतिमा ने लापरवाही से कहा___"थोड़ी देर की तो बात है। तुम मुझे बड़े आराम से उठा सकते हो, मैं इतनी भी भारी नहीं हूॅ। तुम्हारी गौरी से तो कम ही हूॅ।"
"पर भाभी मैं आपको कैसे उठा सकता हूॅ?" विजय की हालत खराब___"नहीं भाभी ये मुझसे हर्गिज़ भी नहीं हो सकता।"
"क्यों नहीं हो सकता विजय?" प्रतिमा उसके पास आकर बोली___"बल्कि मुझे तो बड़ी खुशी होगी विजय कि तुम्हारे द्वारा ही सही किन्तु मैं अपने हाॅथों से उस आम को तोड़ूॅगी। प्लीज़ विजय....मेरे लिए...मेरी खुशी के लिए ये कर दो न?"
विजय सिंह को समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करे? वह तो खुद को कोसे जा रहा था कि वह यहाॅ आया ही क्यों था?
"उफ्फ विजय पता नहीं क्या सोच रहे हो तुम?" प्रतिमा ने कहा___"भला इसमें इतना सोचने की ज़रूरत है? तुम कोई ग़ैर तो नहीं हो न और ना ही मैं तुम्हारे लिए कोई ग़ैर हूॅ। हम दोनो देवर भाभी हैं और इतना तो बड़े आराम से चलता है। मैं तो कुछ नहीं सोच रही हूॅ ऐसा वैसा। फिर तुम क्यों सोच रहे हो?"
"पर भाभी किसी को पता चलेगा तो लोग क्या सोचेंगे हमारे बारे में?" विजय सिंह ने हिचकिचाते हुए कहा।
"सबसे पहली बात तो यहाॅ पर हम दोनो के अलावा कोई तीसरा है ही नहीं।" प्रतिमा कह रही थी___"और अगर होता भी तो मुझे उसकी कोई परवाह नहीं होती क्योंकि हम कुछ ग़लत तो कर नहीं रहे होंगे फिर किसी से डरने की या किसी के कुछ सोचने से डरने की क्या ज़रूरत है? देवर भाभी के बीच इतना प्यारवश चलता है। अब छोड़ों इस बात को और जल्दी से आओ मेरे पास।"
विजय सिंह का दिल धाड़ धाड़ करके बज रहा था। उसे लग रहा था कि वह यहाॅ से भाग जाए किन्तु फिर उसने भी सोचा कि इसमें इतना सोचने की भला क्या ज़रूरत है? उसकी भाभी ठीक ही तो कह रही है कि इतना तो देवर भाभी के बीच चलता है। फिर वो कौन सा कुछ ग़लत करने जा रहे हैं।
"ओफ्फो विजय कितना सोचते हो तुम?" प्रतिमा ने खीझते हुए कहा____"तुम्हारी जगह अगर मैं होती तो एक पल भी न लगाती इसके लिए।"
"अच्छा ठीक है भाभी।" विजय उसके पास जाते हुए बोला___"लेकिन इसके बारे आप किसी से कुछ मत कहियेगा। बड़े भइया से तो बिलकुल भी नहीं।"
"अरे मैं किसी से कुछ नहीं कहूॅगी विजय।" प्रतिमा हॅस कर बोली___"ये तो हमारी आपस की बात है न। अब चलो जल्दी से मुझे उठाओ। सम्हाल कर उठाना, गिरा मत देना मुझे। पता चले कि लॅगड़ाते हुए हवेली जाना पड़े।"
विजय सिंह कुछ न बोला बल्कि झिझकते हुए वह प्रतिमा के पास पहुॅचा। प्रतिमा की हालत ये सोच सोच कर रोमाॅच से भरी जा रही थी कि विजय उसे अपनी बाहों में उठाने वाला है। अंदर से थराथरा तो वह भी रही थी किन्तु दोनो की मानसिक अवस्था में अलग अलग हलचल थी।
विजय सिंह झुक कर प्रतिमा को उसकी दोनो टाॅगों को अपने दोनो बाजुओं से पकड़ कर ऊपर की तरफ खड़े होते हुए उठाना शुरू किया। प्रतिमा ने झट से अपने दोनो हाॅथों को विजय सिंह के दोनो कंधो पर रख दिया। वह एकटक विजय को देखे जा रही थी। उस विजय को जिसके चेहरे पर इस बात की ज़रा भी शिकन नहीं थी कि उसने कोई बोझ उठाया हुआ है। ये अलग बात थी कि दिल में बढ़ी घबराहट की वजह से उसके चहरे पर पसीना छलछला आया था।
प्रतिमा बड़ी शातिर औरत चालाक औरत थी। उसने विजय को उसके कंधो पर से पकड़ा हुआ था। जैसे ही विजय ने उसे ऊपर उठाना शुरू किया तो वह झट से खुद को सम्हालने के लिए अपने सीने के भार को विजय के सिर पर टिका दिया। उसकी भारी भारी चूचियाॅ जो अब तक पसीने से भींग गई थी वो विजय के माथे से जा टकराई। विजय के नथुनों में प्रतिमा के जिस्म की तथा उसके पसीने की महक समाती चली गई। विजय को किसी नशे के जैसा आभास हुआ।
"वाह विजय तुमने तो मुझे किसी रुई की बोरी की तरह उठा लिया।" प्रतिमा ने हॅ कर कहा___"अब और ऊपर उठाओ ताकि मैं उस आम को तोड़ सकूॅ।"
विजय ने उसे पूरा ऊपर उठा दिया। प्रतिमा का नंगा पेट विजय के चेहरे के पास था। उसकी गोरी सी किन्तु गहरी नाभी विजय की ऑखों के बिलकुल पास थी। उसका पेट एकदम गोरा और बेदाग़ था। विजय इस सबको देखना नहीं चाहता था मगर क्या करे मजबूरी थी। उसे अपने अंदर अजीब सी मदहोशी का एहसास हो रहा था। उधर प्रतिमा मन ही मन मुस्कुराए जा रही थी। आम का वो फल तो उसके हाॅथ में ही छू रहा था जिसे वह बड़े आराम से तोड़ सकती थी किन्तु वह चाहती थी इस परिस्थिति में विजय उसके साथ कुछ तो करे ही। ये सच था कि अगर विजय उसे वहीं पर लेटा कर उसका भोग भी करने लग जाता तो उसे कोई ऐतराज़ न होता मगर ये संभव नहीं था।
विजय प्रतिमा के पेट पर अपने चेहरे को छूने नहीं देना चाहता था। वह जानता था कि गर्मी किसी के सम्हाले नहीं सम्हलती। गर्मी जब सिर चढ़ने लगती है तो सबसे पहले विवेक का नास होता है। उसके बाद सब कुछ तहस नहस हो जाता है। उधर प्रतिमा बखूबी समझती थी कि विजय कलियुग का हरिश्चन्द्र है, यानी वो किसी भी कीमत वो नहीं करेगा जो वह चाहती है। मतलब जो कुछ करना था उसे स्वयं ही करना था।
प्रतिमा ने महसूस किया कि विजय उसके नंगे पेट से अपने चेहरे को दूर हटाने की कामयाब कोशिश कर रहा है। ये देख कर प्रतिमा ने अपने जिस्म को अजीब से अंदाज़ में इस तरह हिलाया कि विजय को यही लगे कि वह अपना संतुलन बनाए रखने के लिए ही ऐसा किया है। प्रतिमा ने जैसे ही अपने जिस्म को हिलाया वैसे ही उसका पेट विजय के चेहरे से जा लगा। उसका मुह और नाॅक बिलकुल उसकी गहरी नाभी में मानो दब सा गया था। विजय सिंह इससे बुरी तरह विचलित हो गया। उसने पुनः अपने चेहरे को दूर हटाने की कोशिश की किन्तु इस बार वह कामयाब न हुआ। क्योंकि प्रतिमा ऊपर से उससे चिपक सी गई थी। विजय सिंह की हाॅथ की पकड़ ढीली पड़ गई। परिणामस्वरूप प्रतिमा का जिस्म नीचे खिसकने लगा।
"क्या कर रहे हो विजय?" प्रतिमा ने सीघ्रता से कहा___"ठीक से पकड़ो न मुझे।"
"आपने आम तोड़ लिया कि नहीं?" विजय ने उसे फिर सै ऊपर उठाते हुए कहा___"जल्दी तोड़िये न भाभी।"
"क्या हुआ विजय?" प्रतिमा हॅस कर बोली___"मेरा भार नहीं सम्हाला जा रहा क्या तुमसे?"
"ऐसी बात नहीं है भाभी।" विजय ने झिझकते हुए कहा___"पर एक आम तोड़ने में कितना समय लगेगा आपको?"
"अरे मैं एक आम थोड़ी न तोड़ रही हूॅ विजय।" प्रतिमा ने कहा___"कई सारे तोड़ रही हूॅ ताकि तुम्हें बार बार उठाना ना पड़े मुझे।"
"ठीक है भाभी।" विजय ने कहा___"पर ज़रा जल्दी कीजिए न क्योंकि खेतों में काम करने वाले मजदूरों के आने का समय हो गया है।"
"अच्छा ठीक है।" प्रतिमा ने कहा___"अब और आम नहीं तोड़ूॅगी। अब आहिस्ता से नीचे उतारो मुझे।"
विजय सिंह तो जैसे यही चाहता था। उसने अपनी पकड़ ढीली कर दी जिससे प्रतिमा नीचे खिसकने लगी। उसने दोनो हाॅथों में आम लिया हुआ था इस लिए सहारे के लिए उसने कोहनी टिकाया हुआ था विजय पर। प्रतिमा का भारी छातियाॅ विजय के चेहरे पर से रगड़ खाती हुई घप्प से उसके सीने में जा लगी। प्रतिमा के मुह से मादक सिसकारी निकल गई। विजय ने उसकी इस सिसकारी को स्पष्ट सुना था।
"उफ्फ विजय बड़े चालू हो तुम तो।" प्रतिमा ने हॅस कर कहा___"मेरे दोनो हाॅथों में आम हैं इस लिए ठीक से संतुलन नहीं बना पाई और तुम इसी का फायदा उठा रहे हो। चलो कोई बात नहीं। कम से कम आम तो मिल ही गए मुझे। चलो दोनो बैठ कर खाते हैं यहीं पेड़ की ठंडी छाॅव के नीचे बैठ कर।"
"आप खा लीजिए भाभी।" विजय ने असहज भाव से कहा___"मैं तो रोज़ ही खाता हूॅ। अभी ठीक से पके नहीं हैं। एक हप्ते बाद इनमें मीठापन आ जाएगा।"
"देखो न विजय यहाॅ कितना अच्छा लग रहा है।" प्रतिमा ने कहा___"पेड़ों की छाॅव और मदमस्त करने वाली ठंडी ठंडी हवा। इस हवा के सामने तो एसी भी फेल है। मन करता है यहीं पर सारा दिन बैठी रहूॅ। घर में पंखा और कुलर में भी गर्मी शान्त नहीं होती और ऊपर से बीच बीच में लाइट चली जाती हो तो फिर समझो कि प्राण ही निकलने लगते हैं।"
"हाॅ गाॅवों में तो लाइट का आना जाना लगा ही रहता है।" विजय ने कहा___"मैं सोच रहा हूॅ कि हवेली में एक दो जनरेटर रखवा देता हूॅ ताकि अगर लाइन न रहे तो उसके द्वारा बिजली मिल सके और किसी को इस गर्मी में परेशान न होना पड़े।"
"ये तो तमने बहुत अच्छा सोचा है।" प्रतिमा ने कहने के साथ ही वहीं पेड़ के नीचे साफ करने के बाद साड़ी के पल्लू को बिछा कर बैठ गई। उसे इस तरह पल्लू को बिछाकर बैठते देख विजय हैरान रह गया। उसकी भारी छातियाॅ उसके बड़े गले वाले ब्लाउज से स्पष्ट नुमायाॅ हो रही थी।
"आओ न विजय तुम भी मेरे पास ही बैठ जाओ।" प्रतिमा ने एक आम को उठाकर कहा__"ऐसा लगता है कि इन्हें पहले पानी से धोना पड़ेगा।"
"जी बिलकुल भाभी।" विजय ने कहा__"इन्हें धोना ही पड़ेगा वरना इनका जो रस होता है वो अखर बदन में लग जाएगा तो वहाॅ इनफेक्शन होने की संभावना होती है।"
"तो अब क्या करें विजय?" प्रतिमा ने कहा__"मेरा मतलब पानी तो यहाॅ पर है नहीं।"
"दीजिए मैं इन्हें धोकर लाता हूॅ।" विजय ने कहा और उन सारे आमो को उठा कर बाग़ से बाहर चला गया।
"कितने भोले हो विजय।" विजय के जाने के बाद प्रतिमा बड़बड़ाई___"किन्तु समझते सब कुछ हो। और शायद ये भी समझ ही गए होगे कि तुम्हारी भाभी एक नंबर की छिनाल या राॅड है। उफ्फ विजय क्या करूॅ तुम्हारा? तुम्हारी जगह कोई और होता तो अब तक मुझे मेरे आगे पीछे से पेल चुका होता था। तुम भी मुझे पेलोगे विजय....बस थोड़ा और मेहनत करनी पड़ेगी तुम्हें पटाने में। और अगर उससे भी न पटे तो फिर आख़िर में एक ही चारा रह जाएगा। हाय विजय आ जाओ न....समझ क्यों नहीं रहे हो कि तुम्हारी ये राॅड भाभी यहाॅ बाग़ में अकेले तुम्हारे साथ मज़े करना चाहती है। मुझे अपनी मजबूत बाहों में कस लो न विजय....मेरे जिस्म से ये कपड़े चीर फाड़ कर निकाल दो और टूट पड़ो मुझ पर। आहहहहहह शशशशश विजय मुझे तब तक पेलो जब तक की मेरा दम न निकल जाए। देख लो विजय....तुम्हारी ये राॅड भाभी सिर्फ तुम्हारे लिए यहाॅ आई है। मुझे मसल डालो.....मुझे रगड़ डालो.....हाय मेरे अंदर की इस आग को शान्त कर दो विजय।"
पेड़ के नीचे बैठी प्रतिमा हवश व वासना के हाथों अंधी होकर जाने क्या क्या बड़बड़ाए जा रही थी। कुछ ही देर में विजय सिंह आ गया और उसने धुले हुए आमों को एक बाॅस की टोकरी में रख कर लाया था। उसने प्रतिमा की तरफ देखा तो चौंक पड़ा।
"आपको क्या हुआ भाभी?" विजय ने हैरानी से कहा___"आपका चेहरा इतना लाल सुर्ख क्यों हो रखा है? कहीं आपको लू तो नहीं लग गई। हे भगवान आपकी तबीयत तो ठीक है न भाभी।"
"मैं एकदम ठीक हूॅ विजय।" विजय को अपने लिए फिक्र करते देख प्रतिमा को पल भर के लिए अपनी सोच पर ग्लानी हुई उसके बाद उसने कहा___"और मेरे लिए तुम्हारी ये फिक्र देख कर मुझे बेहद खुशी भी हुई। मैं जानती हूॅ तुम सब हमें अपना समझते हो तथा हमारे लिए तुम्हारे अंदर कोई मैल नहीं है। एक हम थे कि अपनो से ही बेगाने बन गए थे। मुझे माफ़ कर दो विजय.... ।" कहने के साथ ही प्रतिमा की आॅखों में आॅसू आ गए और वह एक झटके से उठ कर विजय से लिपट गई।
विजय उसकी इस हरकत से हैरान रह गया था। किन्तु प्रतिमा की सिसकियों का सुन कर वह यही समझा कि ये सब उसने भावना में बह कर किया है। लेकिन भला वह क्या जानता था कि औरत उस बला का नाम है जिसका रहस्य देवता तो क्या भगवान भी नहीं समझ सकते।
अपडेट हाज़िर है दोस्तो,,,,,,,,