• If you are trying to reset your account password then don't forget to check spam folder in your mailbox. Also Mark it as "not spam" or you won't be able to click on the link.

Incest ♡ एक नया संसार ♡ (Completed)

आप सबको ये कहानी कैसी लग रही है.????

  • लाजवाब है,,,

    Votes: 185 90.7%
  • ठीक ठाक है,,,

    Votes: 11 5.4%
  • बेकार,,,

    Votes: 8 3.9%

  • Total voters
    204
  • Poll closed .

Hellohoney

Well-Known Member
3,423
8,317
159
Intehan ho gai intjar ki waiting for next updet
 
  • Like
Reactions: TheBlackBlood

Jay Sutar

अहं ब्रह्मास्मि
2,484
31,685
189
waiting..................
 
  • Like
Reactions: TheBlackBlood

TheBlackBlood

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
79,765
116,959
354
♡ एक नया संसार ♡
अपडेट..........《 33 》

अब तक,,,,,,,

उसे समझते देर न लगी कि ये दिवाकर चौधरी का गुप्त कमरा है। वह धड़कते दिल के साथ कमरे में दाखिल हो गई। अंदर पहुॅच कर उसने देखा बहुत सारा कबाड़ भरा हुआ था यहाॅ। ये सब देख कर रितू हैरान रह गई। उसे समझ में न आया कि कोई कबाड़ को ऐसे गुप्त रूप से क्यों रखेगा?? रितू ने हर चीज़ को बारीकी से देखा। उसके पास समय नहीं था। क्योंकि उसकी खुद की हालत ख़राब थी। काफी देर तक खोजबीन करने के बाद भी उसे कोई खास चीज़ नज़र न आई। इस लिए वह बाहर आ गई मखर तभी जैसे उसे कुछ याद आया। वह फिर से अंदर गई। इस बार उसने तेज़ी से इधर उधर देखा। जल्द ही उसे एक तरफ की दीवार से सटा हुआ एक टेबल दिखा। टेबल के आस पास तथा ऊपर भी काफी सारा कबाड़ सा पड़ा हुआ था। किन्तु रितू की नज़र कबाड़ के बीच रखे एक छोटे से रिमोट पर पड़ी। उसने तुरंत ही उसे उठा लिया। वो रिमोट टीवी के रिमोट जैसा ही था।

रितू ने हरा बटन दबाया तो उसके दाएॅ तरफ हल्की सी आवाज़ हुई। रितू ने उस तरफ देखा तो उछल पड़ी। ये एक दीवार पर बनी गुप्त आलमारी थी जो आम सूरत में नज़र नहीं आ रही थी। रितू ने आगे बढ़ कर आलमारी की तलाशी लेनी शुरू कर दी। उसमें उसे काफी मसाला मिला। जिन्हें उसने कमरे में ही पड़े एक गंदे से बैग में भर लिया। उसके बाद उसने रिमोट से ही उस आलमारी को बंद कर दिया।

रितू उस बैग को लेकर वापस बाहर आ गई और ड्राइविंग सीट पर बैठ कर जिप्सी को फार्महाउस से मेन सड़क की तरफ दौड़ा दिया। इस वक्त उसके चेहरे पर पत्थर जैसी कठोरता तथा नफ़रत विद्यमान थी। दिलो दिमाग़ में भयंकर चक्रवात सा चल रहा था। उसकी जिप्सी ऑधी तूफान बनी दौड़ी चली जा रही थी।
_____________________________

अब आगे,,,,,,,,,,

वर्तमान अब आगे_______

रितू की पुलिस जिप्सी जिस जगह रुकी वह एक बहुत ही कम आबादी वाला एरिया था। सड़क के दोनो तरफ यदा कदा ही मकान दिख रहे थे। इस वक्त रितू जिस जगह पर आकर रुकी थी वह कोई फार्महाउस था। जिप्सी की आवाज़ से थोड़ी ही देर में फार्महाउस का बड़ी सी बाउंड्री पर लगा लोहे का भारी गेट खुला। गेट के खुलते ही रितू ने जिप्सी को आगे बढ़ा दिया, उसके पीछे गेट पुनः बंद हो गया। जिप्सी को बड़े से मकान के पास लाकर रितू ने रोंक दिया और फिर उससे नीचे उतर गई।

रितू की हालत बहुत ख़राब हो चुकी थी। बदन में जान नहीं रह गई थी। गेट को बंद करने के बाद दो लोग भागते हुए उसके पास आए।

"अरे क्या हुआ बिटिया तुम्हें?" एक लम्बी मूॅछों वाले ब्यक्ति ने घबराकर कहा___"ये क्या हालत बना ली है तुमने? किसने की तुम्हारी ये हालत? मैं उसे ज़िन्दा नहीं छोंड़ूॅगा बिटिया।"
"काका इन सबको अंदर तहखाने में बंद कर दो।" रितू ने उखड़ी हुई साॅसों से कहा__"और ध्यान रखना किसी को इन लोगों का पता न चल सके। ये तुम्हारी जिम्मेदारी है काका।"

"वो सब तो मैं कर लूॅगा बिटिया।" काका की ऑखों में ऑसू तैरते दिखे___"लेकिन तुम्हारी हालत ठीक नहीं है। तुम्हें जल्द से जल्द हास्पिटल लेकर जाना पड़ेगा। मैं बड़े ठाकुर साहब को फोन लगाता हूॅ बिटिया।"

"नहीं काका प्लीज़।" रितू ने कहा___"जितना कहा है पहले उतना करो। मैं ठीक हूॅ..बस काकी को फस्ट एड बाक्स के साथ मेरे कमरे में भेज दीजिए जल्दी। लेकिन उससे पहले इन्हें तहखाने में बंद कीजिए।"

"ये सब कौन हैं बेटी?" एक अन्य आदमी ने पूछा___"इन सबकी हालत भी बहुत खराब लग रही है।"
"ये सब के सब एक नंबर के मुजरिम हैं शंभू काका।" रितू ने कहा___"इन लोगों बड़े से बड़ा संगीन गुनाह किया है।"

"फिर तो इनको जान से मार देना चाहिए बिटिया।" काका ने जिप्सी में बेहोश पड़े सूरज और उसके दोस्तों को देख कर कहा।
"इन्हें मौत ही मिलेगी काका।" रितू ने भभकते हुए कहा___"लेकिन थोड़ा थोड़ा करके।"

उसके बाद रितू के कहने पर उन दोनो ने उन सभी लड़को को उठा उठा कर अंदर तहखाने में ले जाकर बंद कर दिया। जबकि रितू अंदर अपने कमरे की तरफ बढ़ गई। थोड़ी ही देर में काकी फर्स्ट एड बाक्स लेकर आ गई। रितू के कहने पर काकी ने कमरे का दरवाजा अंदर से बंद कर दिया।

रितू ने वर्दी की शर्ट किसी तरह अपने बदन से उतारा। काकी हैरत से देखे जा रही थी।उसके चेहरे पर चिन्ता और दुख साफ दिख रहे थे।

"ये सब कैसे हुआ बिटिया?" काकी ने आगे बढ़ कर शर्ट उतारने में रितू की मदद करते हुए कहा___"देखो तो कितना खून बह गया है, पूरी शरट भींग गई है।"

"अरे काकी ये सब तो चलता रहता है।" रितू ने बदन से शर्ट को अलग करते हुए कहा__"इस नौकरी में कई तरह के मुजरिमों से पाला पड़ता रहता है।"
"अरे तो ऐसी नौकरी करती ही क्यों हो बिटिया?" काकी ने कहा___"भला का कमी है तुम्हें? सब कुछ तो है।"

"बात कमी की नहीं है काकी।" रितू ने कहा___"बात है शौक की। ये नौकरी मैं अपने शौक के लिए कर रही हूॅ। ख़ैर ये सब छोड़िये और मैं जैसा कहूॅ वैसा करते जाइये।"

कहने के साथ ही रितू बेड पर उल्टा होकर लेट गई। इस वक्त वह ऊपर से सिर्फ एक पिंक कलर की ब्रा में थी। दूध जैसी गोरी पीठ पर हर तरफ खून ही खून दिख रहा था। ब्रा के हुक के ऊपरी हिस्से पर दाएॅ से बाएं चाकू का चीरा लगा था। जो कि दाहिने कंधे के थोड़ा नीचे से टेंढ़ा बाएॅ तरफ लगभग दस इंच का था। काकी ने जब उस चीरे को देखा तो उसके शरीर में सिहरन सी दौड़ गई।

"हाय दइया ये तो बहुत खराब कटा है।" काकी ने मुह फाड़ते हुए कहा___"ये सब कैसे हो गया बिटिया? पूरी पीठ पर चीरा लगा है।"
"ये सब छोड़ो आप।" रितू ने गर्दन घुमा कर पीछे काकी की तरफ देख कर कहा___"आप उस बाक्स से रुई लीजिए और उसमे डेटाॅल डाल कर मेरी ठीठ पर फैले इस खून को साफ कीजिए।"

"पर बिटिया तुम्हें दर्द होगा।" काकी ने चिन्तित भाव से कहा___"मैं ये कैसे कर पाऊॅगी?"
"मुझे कुछ नहीं होगा काकी।" रितू ने कहा__"बल्कि अगर आप ऐसा नहीं करेंगी तो ज़रूर मुझे कुछ हो जाएगा। क्या आप चाहती हैं कि आपकी बिटिया को कुछ हो जाए?"

"नहीं नहीं बिटिया।" काकी की ऑखों में ऑसू आ गए___"ये क्या कह रही हो तुम? तुम्हें कभी कुछ न हो बिटिया। मेरी सारी उमर भी तुम्हें लग जाए। रुको मैं करती हूॅ।"


रितू काकी की बातों से मुस्कुरा कर रह गई और अपनी गर्दन वापस सीधा कर तकिये में रख लिया। काकी ने बाक्स से रुई निकाला और उसमे डेटाॅल डाल कर रितू की पीठ पर डरते डरते हाॅथ बढ़ाया। वह बहुत ही धीरे धीरे रितू की पीठ पर फैले खून को साफ कर रही थी। कदाचित वह नहीं चाहती थी कि रितू को ज़रा भी दर्द हो।

"आप डर क्यों रही हैं काकी?" सहसा रितू ने कहा___"अच्छे से हाॅथ गड़ा कर साफ कीजिये न। मुझे बिलकुल भी दर्द नहीं होगा। आप फिक्र मत कीजिए।"

रितू के कहने पर काकी पहले की अपेक्षा अब थोड़ा ठीक से साफ कर रही थी। मगर बड़े एहतियात से ही। कुछ समय बाद ही काकी ने रितू की पीठ को साफ कर दिया। किन्तु चीरा वाला हिस्सा उसने साफ नहीं किया। रितू ने उससे कहा कि वो चीरे वाले हिस्से को भी अच्छी तरह साफ करें। क्योंकि जब तक वो अच्छी तरह साफ नहीं होगा तब तक उस पर दवा नहीं लगाई जा सकती। काकी ने बड़ी सावधानी से उसे भी साफ किया। फिर रितू के बताने पर उसने बाक्स से निकाल कर एक मल्हम चीरे पर लगाया और फिर उसकी पट्टी की। चीरे वाले स्थान से जितना खून बहना था वह बह चुका था किन्तु बहुत ही हल्का हल्का अभी भी रिस रहा था। हलाॅकि अब पट्टी हो चुकी थी इस लिए रितू को आराम मिल रहा था। उसने दर्द की एक टेबलेट खा ली थी।

"अब तुम आराम करो बिटिया।" काकी ने कहा___"तब तक मैं तुम्हारे लिए गरमा गरम खाना बना देती हूॅ।
"नहीं काकी।" रितू ने कहा___"आप खाना बनाने का कस्ट न करें। बस एक कप काफी पिला दीजिए।"

"ठीक है जैसी तुम्हारी मर्ज़ी।" काकी ने कहा और रितू के ऊपर एक चद्दर डाल कर कमरे से बाहर निकल गई। जबकि रितू ने अपनी आॅखें बंद कर ली। कुछ देर ऑखें बंद कर जाने वह क्या सोचती रही फिर उसने अपनी ऑखें खोली और बेड के बगल से ही एक छोटे से स्टूल पर रखे लैण्डलाइन फोन की तरफ अपना हाथ बढ़ाया।

रिसीवर कान से लगा कर उसने कोई नंबर डायल किया। कुछ ही पल में उधर बेल जाने की आवाज़ सुनाई देने लगी।

"हैलो कमिश्नर जगमोहन देसाई हेयर।" उधर से कहा गया।
"जय हिन्द सर मैं इंस्पेक्टर रितू बोल रही हूॅ।" रितू ने उधर की आवाज़ सुनने के बाद कहा।
"ओह यस ऑफिसर।" उधर से कमिश्नर ने कहा___"क्या रिपोर्ट है?"

"सर एक फेवर चाहिए आपसे।" रितू ने कहा।
"फेवर???" कमिश्नर चकराया__"कैसा फेवर हम कुछ समझे नहीं।"
"सर सारी डिटेल मैं आपको आपसे मिल कर ही बताऊॅगी।" रितू ने कहा___"फोन पर बताना उचित नहीं है।"

"ओकेनो प्राब्लेम।" कमिश्नर ने कहा__"अब बताओ कैसे फेवर की बात कर रही थी तुम?"
"सर मैं चाहती हूॅ कि इस केस की सारी जानकारी सिर्फ आप तक ही रहे।" रितू कह रही थी___"आप जानते हैं कि मैंने विधी के रेप केस की अभी तक कोई फाइल नहीं बनाई है। बस आपको इस बारे में इन्फार्म किया था।"

"हाॅ ये हम जानते हैं।" कमिश्नर ने कहा__"पर तुम करना क्या चाहती हो ये हम जानना चाहते हैं?"
"कल आपसे मिल कर सारी बातें बताऊॅगी सर।" रितू ने कहा___"इस वक्त मैं आपसे बस ये फेवर चाहती हूॅ कि दिवाकर चौधरी के बेटे और उसके दोस्तों के बारे में अगर आपके पास कोई बात आए तो आप यही कहिएगा कि पुलिस का इस बात से कोई संबंध नहीं है।"

"क्या मतलब??" कमिश्नर बुरी तरह चौंका था__"आख़िर तुम क्या कर रही हो ऑफिसर? उस समय भी तुमने हमसे इमेडिएटली सर्च वारंट के लिए कहा था और हमने उसका तुरंत इंतजाम भी किया। लेकिन अब तुम ये सब बोल रही हो आख़िर हुआ क्या है?"

"सर मैं आपको सारी बातें मिल कर ही बताऊॅगी।" रितूने कहा___"प्लीज़ सर ट्राई टू अंडरस्टैण्ड।"
"ओके फाइन।" कमिश्नर ने कहा__"हम कल तुम्हारा वेट करेंगे आफिसर।"
"जय हिन्द सर।" रितू ने कहा और रिसीवर वापस केड्रिल पर रख दिया।

रितू ने फिर से आॅखें बंद कर ली। तभी कमरे में काकी दाखिल हुई। उसके हाथ में एक ट्रे था जिसमें एक बड़ा सा कप रखा था। आहट सुन कर रितू ने ऑखें खोल कर देखा। काकी को देखते ही वह बड़ी सावधानी से उठ कर बेड पर बैठ गई। उसके बैठते ही काकी ने रितू को काफी का कप पकड़ाया।

काफी पीने के बाद रितू को थोड़ा बेहतर फील हुआ और वह बेड से उतर आई। आलमारी से उसने एक ब्लू कलर का जीन्स का पैन्ट और एक रेड कलर की टी-शर्ट निकाल कर उसे पहना तथा ऊपर से एक लेदर की जाॅकेट पहन कर उसने आईने में खुद को देखा। फिर पुलिस की वर्दी वाले पैन्ट से होलेस्टर सहित सर्विस रिवाल्वर निकाल कर उसे जीन्स के बेल्ट पर फॅसाया तथा आलमारी से एक रेड एण्ड ब्लैक मिक्स गाॅगल्स निकाल कर उसे ऑखों पर लगाया और फिर बाहर निकल गई।

बाहर उसे काकी दिखी। उसने काकी से कहा कि वह जा रही है। काकी उसे यूॅ देख कर हैरान रह गई। उसे समझ में न आया कि ये लड़की तो अभी थोड़ी देर पहले गंभीर हालत में थी और अब एकदम से टीम टाम होकर चल भी दी।

मकान के बाहर आकर रितू पुलिस जिप्सी की तरफ बढ़ी। वह ये देख कर खुश हो गई कि काका ने जिप्सी को अच्छे से धोकर साफ सुथरा कर दिया था। रितू को काका की समझदारी पर कायल होना पड़ा। जिप्सी को स्टार्ट कर रितू मेन गेट की तरफ बढ़ चली।

"काका उन लोगों का ध्यान रखना।" रितू ने गेट के पास खड़े काका और शंभू काका दोनो की तरफ देख कर कहा___"आज रात का खाना उन्हें नहीं देना। कल मैं दोपहर को आऊॅगी।"

"ठीक है बिटिया।" काका ने कहा__"तुम बिलकुल भी चिन्ता न करो। वो अब यहाॅ से कहीं नहीं जा पाएॅगे।"
"चलो फिर कल मिलती हूॅ आपसे।" रितू ने कहने के साथ ही जिप्सी को गेट के बाहर की तरफ निकाल दिया और मेन रोड पर आते ही जिप्सी हवा से बातें करने लगी।
_____________________

फ्लैशबैक अब आगे_______

कमरे से प्रतिमा के जाने के बाद विजय सिंह वापस अपने बिस्तर पर लेट गया। उसके ज़हन में यही ख़याल बार बार उभर रहा था कि वह अपनी भाभी का क्या करे? वह स्पष्टरूप से उससे कह चुकी थी कि वो उससे प्रेम करती है और वह अपने दिल में उसके लिए भी थोड़ी सी जगह दे। भला ऐसा कैसे हो सकता था? विजय सिंह इस बारे में सोचना भी ग़लत व पाप समझता था। उधर प्रतिमा उसकी कोई बात सुनने या मानने को तैयार ही नहीं थी। वह प्रतिमा से बहुत ज्यादा परेशान हो गया था। उसे डर था कि कहीं किसी दिन ये सब बातें उसके माॅ बाबूजी को न पता चल जाएॅ वरना अनर्थ हो जाएगा। आज वो जो मुझे सबसे अच्छा और अपना सबसे लायक बेटा समझते हैं , तो इस सबका पता चलते ही मेरे बारे में उनकी सोच बदल जाएगी। वो यही समझेंगे कि वासना और हवस के लिए मैने ही अपनी माॅ समान भाभी को बरगलाया है या फिर ज़बरदस्ती की है उनसे। कोई मेरी बात का यकीन नहीं करेगा। बड़े भइया को तो और भी मौका मिल जाएगा मेरे खिलाफ ज़हर उगलने का।

विजय सिंह ये सब सोच सोच कर बुरी तरह परेशान व दुखी भी हो रहा था। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करे? वह अब किसी भी सूरत में प्रतिमा के सामने नहीं आना चाहता था। उसने तय कर लिया था कि अब वह देर रात में ही खेतों से हवेली आया करेगा और अपने कमरे में ही खाना मॅगवा कर खाया करेगा।

अगले दिन से विजय की दिनचर्या यही हो गई। वह सुबह जल्दी हवेली से निकल जाता, दोपहर में गौरी उसके लिए खाना ले जाती। गौरी उसके साथ खेतों पर दिन ढले तक रहती फिर वह हवेली आ जाती जबकि विजय सिंह देर रात को ही हवेली लौटत। गौरी कई दिन से गौर कर रही थी कि विजय सिंह कुछ दिनों से कुछ परेशान सा रहने लगा है। उसने उसकी परेशानी का पूछा भी किन्तु विजय सिंह हर बार इस बात को टाल जाता। भला वह क्या बताता उसे कि वह किस वजह से परेशान रहता है आजकल?

विजय सिंह की इस दिनचर्या से प्रतिमा को अब उसके पास जाने की तो बात ही दूर बल्कि उसे देख पाने तक को नहीं मिलता था। इस सबसे प्रतिमा बेहद परेशान व नाखुश हो गई थी। अजय सिंह भी परेशान था इस सबसे। उसकी भी कोई दाल नहीं गल रही थी। गौरी के चलते प्रतिमा को खेतों पर जाने का मौका ही नहीं मिलता था। ऐसा नहीं था कि वह जा नहीं सकती थी लेकिन वह चाहती थी कि वह जब भी खेतों पर जाए तो खेतों पर गौरी न हो बल्कि वह और विजय सिंह बस ही हों वहाॅ। ताकि वह बड़े आराम से विजय पर प्रेम बाॅण चलाए।

एक दिन प्रतिमा को मौका मिल ही गया। दरअसल सुबह सुबह जब गौरी अपने कमरे के बाथरूम में नहा रही तो फर्स पर उसका पैर फिसल गया और वह बड़ा ज़ोर से गिरी थी। जिससे उसकी कमर में असह पीड़ा होने लगी थी। इस सबका परिणाम ये हुआ कि गौरी खेतों पर विजय के लिए खाना लेकर न जा सकी बल्कि प्रतिमा को जाने का सुनहरा मौका मिल गया। प्रतिमा पहले की भाॅति ही पतली साड़ी और बिना ब्रा का ब्लाउज पहना और विजय के लिए टिफिन लेकर खेतों पर चली गई।

प्रतिमा को पता था कि ये मौका उसे बड़े संजोग से मिला है इस लिए वह इस मौके को खोना नहीं चाहती थी। उसने सोच लिया था कि आज वह विजय से अपने प्रेम के लिए कुछ न कुछ तो करेगी ही। उसके पास समय भी नहीं बचा था। बच्चों के स्कूल की छुट्टियाॅ दो दिन बाद खत्म हो रही थी।

नियति को जो मंजूर होता है वही होता है। ये संजोग था कि गौरी का पैर फिसला और उसने बिस्तर पकड़ लिया जिसके कारण प्रतिमा को खेतों में जाने का अवसर मिल गया और एक ये भी संजोग ही था कि आज खेतों पर फिर कोई मजदूर नहीं था। सारी रात जुती हुई ज़मीन पर पानी लगाया और लगवाया था उसने। सुबह नौ बजे सारे मजदूर गए थे। आज के लिए सारा काम हो गया था।

प्रतिमा जब खेतों पर पहुॅची तो हर तरफ सन्नाटा फैला हुआ पाया। आस पास कोई न दिखा उसे। वह मकान के अंदर नहीं गई बल्कि आस पास घूम घूम कर देखा उसने हर तरफ। न कोई मजदूर और ना ही विजय सिंह उसे कहीं नज़र न आए। प्रतिमा को खुशी हुई कि खेतों पर कोई मजदूर नहीं है और अब वह बेफिक्र होकर कुछ भी कर सकती है।


मकान के अंदर जाकर जब वह कमरे में पहुॅची तो विजय को बिस्तर पर सोया हुआ पाया। उसके मुख से हल्के खर्राटों की आवाज़ भी आ रही थी। इस वक्त उसके शरीर पर नीचे एक सफेद धोती थी और ऊपर एक बनियान। वह पक्का किसान था। पढ़ाई छोंड़ने के बाद उसने खेतों पर ही अपना सारा समय गुज़ारा था। ये उसकी कर्मभूमि थी। यहाॅ पर उसने खून पसीना बहाया था। जिसका परिणाम ये था कि उसका शरीर पत्थर की तरह शख्त था। छः फिट लम्बा था वह तथा हट्टा कट्टा शरीर था। किन्तु चेहरे पर हमेशा सादगी विद्यमान रहती थी उसके। उसका ब्यक्तित्व ऐसा था कि गाॅव का हर कोई उसे प्रेम व सम्मान देता था।

प्रतिमा सम्मोहित सी देखे जा रही थी उसे। फिर सहसा जैसे उसे होश आया और एकाएक ही उसके दिमाग़ की बत्ती जल उठी। जाने क्या चलने लगा था उसके मन में जिसे सोच कर वह मस्कुराई। उसने टिफिन को बड़ी सावधानी से वहीं पर रखे एक बेन्च पर रख दिया और सावधानी से विजय की चारपाई के पास पहुॅची।


विजय चारपाई पर चूॅकि गहरी नींद में सोया हुआ था इस लिए उसे ये पता नहीं चला कि उसके कमरे में कौन आया है? प्रतिमा उसके हट्टे कट्टे शरीर को इतने करीब से देख कर आहें भरने लगी। उसने नज़र भर कर विजय को ऊपर से नीचे तक देखा। उसके अंदर काम वासना की अगन सुलग उठी। कुछ देर यूॅ ही ऑखों में वासना के लाल लाल डोरे लिए वह उसे देखती रही फिर सहसा वह वहीं फर्स पर घुटनों के बल बैठती चली गई। उसके हृदय की गति अनायास ही बढ़ गई थी। उसने विजय के चेहरे पर गौर से देखा। विजय किसी कुम्भकर्ण की तरह सो रहा था। प्रतिमा को जब यकीन हो गया कि विजय किसी हल्की आहट पर इतना जल्दी जगने वाला नहीं है तो उसने उसके चेहरे से नज़र हटा कर विजय की धोती यानी लुंगी के उस हिस्से पर नज़र डाली जहाॅ पर विजय का लिंग उसकी लुंगी के अंदर छिपा था। लिंग का उभार लुंगी पर भी स्पष्ट नज़र आ रहा था।

प्रतिमा ने धड़कते दिल के साथ अपने हाॅथों को बढ़ा कर विजय की लुंगी को उसके छोरों से पकड़ कर आहिस्ता से इधर और उधर किया। जिससे विजय के नीचे वाला हिस्सा नग्न हो गया। लुंगी के अंदर उसने कुछ नहीं पहन रखा था। प्रतिमा ने देखा गहरी नींद में उसका घोंड़े जैसा लंड भी गहरी नींद में सोया पड़ा था। लेकिन उस हालत में भी वह लम्बा चौड़ा नज़र आ रहा था। उसका लंड काला या साॅवला बिलकुल नहीं था बल्कि गोरा था बिलकुल अंग्रेजों के लंड जैसा गोरा। उसे देख कर प्रतिमा के मुॅह में पानी आ गया था। उसने बड़ी सावधानी से उसे अपने दाहिने हाॅथ से पकड़ा। उसको इधर उधर से अच्छी तरह देखा। वो बिलकुल किसी मासूम से छोटे बच्चे जैसा सुंदर और प्यारा लगा उसे। उसने उसे मुट्ठी में पकड़ कर ऊपर नीचे किया तो उसका बड़ा सा सुपाड़ा जो हल्का सिंदूरी रंग का था चमकने लगा और साथ ही उसमें कुछ हलचल सी महसूस हुई उसे। उसने ये महसूस करते ही नज़र ऊपर की तरफ करके गहरी नींद में सोये पड़े विजय की तरफ देखा। वो पहले की तरह ही गहरी नींद में सोया हुआ लगा। प्रतिमा ने चैन की साॅस ली और फिर से अपनी नज़रें उसके लंड पर केंद्रित कर दी। उसके हाॅथ के स्पर्श से तथा लंड को मुट्ठी में लिए ऊपर नीचे करने से लंड का आकार धीरे धीरे बढ़ने लगा था। ये देख कर प्रतिमा को अजीब सा नशा भी चढ़ता जा रहा था उसकी साॅसें तेज़ होने लगी थी। उसने देखा कि कुछ ही पलों में विजय का लंड किसी घोड़े के लंड जैसा बड़ा होकर हिनहिनाने लगा था। प्रतिमा को लगा कहीं ऐसा तो नहीं कि विजय जाग रहा हो और ये देखने की कोशिश कर रहा हो कि उसके साथ आगे क्या क्या होता है? मगर उसे ये भी पता था कि अगर विजय जाग रहा होता तो इतना कुछ होने ही न पाता क्योंकि वह उच्च विचारों तथा मान मर्यादा का पालन करने वाला इंसान था। वो कभी किसी को ग़लत नज़र से नहीं देखता था, ऐसा सोचना भी वो पाप समझता था। उसके बारे में वो जान चुका था कि वह क्या चाहती है उससे इस लिए वो हवेली में अब कम ही रहता था। दिन भर खेत में ही मजदूरों के साथ वक्त गुज़ार देता था और देर रात हवेली में आता तथा खाना पीना खा कर अपने कमरे में गौरी के साथ सो जाता था। वह उससे दूर ही रहता था। इस लिए ये सोचना ही ग़लत था कि इस वक्त वह जाग रहा होगा। प्रतिमा ने देखा कि उसका लंड उसकी मुट्ठी में नहीं आ रहा था तथा गरम लोहे जैसा प्रतीत हो रहा था। अब तक प्रतिमा की हालत उसे देख कर खराब हो चुकी थी। उसे लग रहा था कि जल्दी से उछल कर इसको अपनी चूत के अंदर पूरा का पूरा घुसेड़ ले। किन्तु जल्दबाजी में सारा खेल बिगड़ जाता इस लिए अपने पर नियंत्रण रखा उसने और उसके सुंदर मगर बिकराल लंड को मुट्ठी में लिए आहिस्ता आहिस्ता सहलाती रही।

प्रतिमा को जाने क्या सूझी कि वह धीरे से उठी और अपने जिस्म से साड़ी निकाल कर एक तरफ फेंक दी। इतना हीं नहीं उसने अपने ब्लाउज के हुक खोल कर उसे भी अपने जिस्म से निकाल दिया। ब्लाउज के हटते ही उसकी खरबूजे जैसी भारी चूचियाॅ उछल पड़ीं। इसके बाद उसने पेटीकोट को भी उतार दिया। अब प्रतिमा बिलकुल मादरजाद नंगी थी। उसका चेहरा हवस तथा वासना से लाल पड़ गया था।

अपने सारे कपड़े उतारने के बाद प्रतिमा फिर से चारपाई के पास घुटनों के बल बैठ गई। उसकी नज़र लुंगी से बाहर उसके ही द्वारा निकाले गए विजय सिंह के हलब्बी लंड पर पड़ी। अपना दाहिना हाॅथ बढ़ा कर उसने उसे आहिस्ता से पकड़ा और फिर आहिस्ता आहिस्ता ही सहलाने लगी। प्रतिमा उसको अपने मुह में भर कर चूसने के लिए पागल हुई जा रही थी, जिसका सबूत ये था कि प्रतिमा अपने एक हाथ से कभी अपनी बड़ी बड़ी चूचियों को मसलने लगती तो कभी अपनी चूॅत को। उसके अंदर वासना अपने चरम पर पहुॅच चुकी थी। उससे बरदास्त न हुआ और उसने एक झटके से नीचे झुक कर विजय के लंड को अपने मुह में भर लिया....और जैसे यहीं पर उससे बड़ी भारी ग़लती हो गई। उसने ये सब अपने आपे से बाहर होकर किया था। विजय का लंड जितना बड़ा था उतना ही मोटा भी था। प्रतिमा ने जैसे ही उसे झटके से अपने मुह में लिया तो उसके ऊपर के दाॅत तेज़ी से लंड में गड़ते चले गए और विजय के मुख से चीख निकल गई साथ ही वह हड़बड़ा कर तेज़ी से चारपाई पर उठ कर बैठ गया। अपने लंड को इस तरह प्रतिमा के मुख में देख वह भौचक्का सा रह गया किन्तु फिर तुरंत ही वह उसके मुह से अपना लंड निकाल कर तथा चारपाई से उतर कर दूर खड़ा हो गया। उसका चेहरा एक दम गुस्से और घ्रणा से भर गया। ये सब इतना जल्दी हुआ कि कुछ देर तक तो प्रतिमा को कुछ समझ ही न आया कि ये सब क्या और कैसे हो गया? होश तो तब आया जब विजय की गुस्से से भरी आवाज़ उसके कानों से टकराई।

"ये क्या बेहूदगी है?" विजय लुंगी को सही करके तथा गुस्से से दहाड़ते हुए कह रहा था__"अपनी हवस में तुम इतनी अंधी हो चुकी हो कि तुम्हें ये भी ख़याल नहीं रहा कि तुम किसके साथ ये नीच काम कर रही हो? अपने ही देवर से मुह काला कर रही हो तुम। अरे देवर तो बेटे के समान होता है ये ख़याल नहीं आया तुम्हें?"

प्रतिमा चूॅकि रॅगे हाॅथों ऐसा करते हुए पकड़ी गई थी उस दिन, इस लिए उसकी ज़ुबान में जैसे ताला सा लग गया था। उस दिन विजय का गुस्से से भरा वह खतरनाक रूप उसने पहली बार देखा था। वह गुस्से में जाने क्या क्या कहे जा रहा था मगर प्रतिमा सिर झुकाए वहीं चारपाई के नीचे बैठी रही उसी तरह मादरजात नंगी हालत में। उसे ख़याल ही नहीं रह गया था कि वह नंगी ही बैठी है। जबकि,,,

"आज तुमने ये सब करके बहुत बड़ा पाप किया है।" विजय कहे जा रहा था__"और मुझे भी पाप का भागीदार बना दिया। क्या समझता था मैं तुम्हें और तुम क्या निकली? एक ऐसी नीच और कुलटा औरत जो अपनी हवस में अंधी होकर अपने ही देवर से मुह काला करने लगी। तुम्हारी नीयत का तो पहले से ही आभास हो गया था मुझे इसी लिए तुमसे दूर रहा। मगर ये नहीं सोचा था कि तुम अपनी नीचता और हवस में इस हद तक भी गिर जाओगी। तुममें और बाज़ार की रंडियों में कोई फर्क नहीं रह गया अब। चली जाओ यहाॅ से...और दुबारा मुझे अपनी ये गंदी शकल मत दिखाना वर्ना मैं भूल जाऊॅगा कि तुम मेरे बड़े भाई की बीवी हो। आज से मेरा और तुम्हारा कोई रिश्ता नहीं...अब जा यहाॅ से कुलटा औरत...देखो तो कैसे बेशर्मों की तरह नंगी बैठी है?"

विजय की बातों से ही प्रतिमा को ख़याल आया कि वह तो अभी नंगी ही बैठी हुई है तब से। उसने सीघ्रता से अपनी नग्नता को ढॅकने के लिए अपने कपड़ों की तरफ नज़रें घुमाई। पास में ही उसके कपड़े पड़े थे। उसने जल्दी से अपनी साड़ी ब्लाउज पेटीकोट को समेटा किन्तु फिर उसके मन में जाने क्या आया कि वह वहीं पर रुक गई।

विजय की बातों ने प्रतिमा के अंदर मानो ज़हर सा घोल दिया था। जो हमेशा उसे इज्ज़त और सम्मान देता था आज वही उसे आप की जगह तुम और तुम के बाद तू कहते हुए उसकी इज्ज़त की धज्जियाॅ उड़ाए जा रहा था। उसे बाजार की रंडी तक कह रहा था। प्रतिमा के दिल में आग सी धधकने लगी थी। उसे ये डर नहीं था कि विजय ये सब किसी से बता देगा तो उसका क्या होगा। बल्कि अब तो सब कुछ खुल ही गया था इस लिए उसने भी अब पीछे हटने का ख़याल छोंड़ दिया था।

उसने उसी हालत में खिसक कर विजय के पैर पकड़ लिए और फिर बोली__"तुम्हारे लिए मैं कुछ भी बनने को तैयार हूॅ विजय। मुझे इस तरह अब मत दुत्कारो। मैं तुम्हारी शरण में हूॅ, मुझे अपना लो विजय। मुझे अपनी दासी बना लो, मैं वही करूॅगी जो तुम कहोगे। मगर इस तरह मुझे मत दुत्कारो...देख लो मैंने ये सब तुम्हारा प्रेम पाने के लिए किया है। माना कि मैंने ग़लत तरीके से तुम्हारे प्रेम को पाने की कोशिश की लेकिन मैं क्या करती विजय? मुझे और कुछ सूझ ही नहीं रहा था। पहले भी मैंने तुम्हें ये सब जताने की कोशिश की थी लेकिन तुमने समझा ही नहीं इस लिए मैंने वही किया जो मुझे समझ में आया। अब तो सब कुछ जाहिर ही हो गया है,अब तो मुझे अपना लो विजय...मुझे तुम्हारा प्यार चाहिए।"

"बंद करो अपनी ये बकवास।" विजय ने अपने पैरों को उसके चंगुल से एक झटके में छुड़ा कर तथा दहाड़ते हुए कहा__"तुझ जैसी गिरी हुई औरत के मैं मुह नहीं लगना चाहता। मुझे हैरत है कि बड़े भइया ने तुझ जैसी नीच और हवस की अंधी औरत से शादी कैसे की? ज़रूर तूने ही मेरे भाई को अपने जाल में फसाया होगा।"

"जो मर्ज़ी कह लो विजय।" प्रतिमा ने सहसा आखों में आॅसू लाते हुए कहा__"मगर मुझे अपने से दूर न करो। दिन रात तुम्हारी सेवा करूॅगी। मैं तुम्हें उस गौरी से भी ज्यादा प्यार करूॅगी विजय।"

"ख़ामोशशशश।" विजय इस तरह दहाड़ा था कि कमरे की दीवारें तक हिल गईं__"अपनी गंदी ज़ुबान से मेरी गौरी का नाम भी मत लेना वर्ना हलक से ज़ुबान खींचकर हाॅथ में दे दूॅगा। तू है क्या बदजात औरत...तेरी औकात आज पता चल गई है मुझे। तेरे जैसी रंडियाॅ कौड़ी के भाव में ऐरों गैरों को अपना जिस्म बेंचती हैं गली चौराहे में। और तू गौरी की बात करती है...अरे वो देवी है देवी...जिसकी मैं इबादत करता हूॅ। तू उसके पैरों की धूल भी नहीं है समझी?? अब जा यहाॅ से वर्ना धक्के मार कर इसी हालत में तुझे यहाॅ से बाहर फेंक दूॅगा।"

प्रतिमा समझ चुकी थी कि उसकी किसी भी बात का विजय पर अब कोई प्रभाव पड़ने वाला नहीं था। उल्टा उसकी बातों ने उसे और उसके अंतर्मन को बुरी तरह शोलों के हवाले कर दिया था। उसने जिस तरीके से उसे दुत्कार कर उसका अपमान किया था उससे प्रतिमा के अंदर भीषण आग लग चुकी थी और उसने मन ही मन एक फैंसला कर लिया था उसके और उसके परिवार के लिए।

"ठीक है विजय सिंह।" फिर उसने अपने कपड़े समेटते हुए ठण्डे स्वर में कहा था__"मैं तो जा रही हूं यहाॅ से मगर जिस तरह से तुमने मुझे दुत्कार कर मेरा अपमान किया है उसका परिणाम तुम्हारे लिए कतई अच्छा नहीं होगा। ईश्वर देखेगा कि एक औरत जब इस तरह अपमानित होकर रुष्ट होती है तो भविष्य में उसका क्या परिणाम निकलता है??"

प्रतिमा की बात का विजय सिंह ने कोई जवाब नहीं दिया बल्कि गुस्से से उबलती हुई ऑखों से उसे देख गर वहीं मानो हिकारत से थूॅका और फिर बाहर निकल गया। जबकि बुरी तरह ज़लील व अपमानित प्रतिमा ने अपने कपड़े पहने और हवेली जाने के लिए कमरे से बाहर निकल गई। उसके अंदर प्रतिशोध की ज्वाला धधक हुई उठी थी।

हवेली पहुॅच कर प्रतिमा ने अपने पति अजय सिंह से आज विजय सिंह से हुए कारनामे का सारा व्रत्तान्त मिर्च मशाला लगा कर सुनाया। उसकी सारी बातें सुन कर अजय सिंह सन्न रह गया था। उसे यकीन नहीं हो रहा था कि आज इतना बड़ा काण्ड हो गया है।

"मुझे उस हरामज़ादे से अपने अपमान का प्रतिशोध लेना है अजय।" प्रतिमा ने किसी ज़हरीली नागिन की भाॅति फुंकारते हुए कहा___"जब तक मैं उससे अपमान का बदला नहीं लूॅगी तब तक मेरी आत्मा को शान्ति नहीं मिलेगी।"

"ज़रूर डियर।" अजय सिंह ने सहसा कठोरता से कहा___"तुम्हारे इस अपमान का बदला ज़रूर उससे लिया जाएगा। आज के इस हादसे से ये तो साबित हो ही गया कि वो मजदूर हमारे झाॅसे में आने वाला नहीं है। सोचा था कि सब मिल बाॅट कर खाएॅगे और मज़ा करेंगे लेकिन नहीं उस मजदूर को तो कलियुग का हरिश्चन्द्र बनना है। इस लिए ऐसे इंसान का जीवित रहना हमारे लिए अच्छी बात नहीं है। उसके रहते हम अपनी हसरतों को पूरा नहीं कर पाएॅगे प्रतिमा। वो मजदूर हमारे रास्ते का सबसे बड़ा काॅटा है। इस काॅटे को अब जड़ से उखाड़ कर फेंकना ही पड़ेगा।"

"जो भी करना हो जल्दी करो अजय।" प्रतिमा ने कहा___"मैं उस कमीने की अब शकल भी नहीं देखना चाहती कभी। साला कुत्ता मुझे दुत्कारता है। कहता था कि मैं उसकी गौरी की पैरों की धूल भी नहीं हूॅ। मुझे रंडी बोलता है। मैं दिखाऊॅगी उसे कि मेरे सामने उसकी वो राॅड गौरी कुछ भी नहीं है। उसे सबके नीचे न लेटाया तो मेरा भी नाम प्रतिमा सिंह बघेल नहीं। उसे कोठे की नहीं बल्कि बीच चौराहे की रंडी बनाऊॅगी मैं।"

"शान्त हो जाओ प्रतिमा।" अजय सिंह ने उसे खुद से लगा लिया___"सब कुछ वैसा ही होगा जैसा तुम चाहती हो। लेकिन ज़रा तसल्ली से और सोच समझ कर बनाए गए प्लान के अनुसार। ताकि किसी को किसी बात का कोई शक न हो पाए।"

"ठीक है अजय।" प्रतिमा ने कहा___"लेकिन मैं ज्यादा दिनों तक उसे जीवित नहीं देखना चाहती। तुम जल्दी ही कुछ करो।"
"फिक्र मत करो मेरी जान।" अजय ने कुछ सोचते हुए कहा___"आज से और अभी से प्लान बी शुरू। अब चलो गुस्सा थूॅको और मेरे साथ प्यार की वादियों में खो जाओ।"

ये दोनो तो अपने प्यार और वासना में खो गए थे लेकिन उधर खेतों में विजय सिंह बोर बेल के पास बने एक बड़े से गड्ढे में था। उस गड्ढे में हमेशा बोर का पानी भरा रहता था। विजय सिंह उसी पानी से भरे गड्ढे में था। उसके ऊपर बोर का पानी गिर रहा था। वह एकदम किसी पुतले की भाॅति खड़ा था। उसका ज़हन उसके पास नहीं था। बोर का पानी निरंतर उसके सिर पर गिर रहा था।

विजय सिंह के की ऑखों के सामने बार बार वही मंज़र घूम रहा था। उसे ऐसा महसूस हो रहा था जैसे अभी भी उसका लंड प्रतिमा के मुह मे हो। इस मंज़र को देखते ही उसके जिस्म को झटका सा लगता और वह ख़यालों की दुनियाॅ से बाहर आ जाता। उसका मन आज बहुत ज्यादा दुखी हो गया था। उसे यकीन नहीं आ रहा था कि उसकी सगी भाभी उसके साथ ऐसा घटिया काम कर सकती है। विजय सिंह के मन में सवाल उभरता कि क्या यहीं प्रेम था उसका?

विजय सिंह ये तो समझ गया था कि उसकी भाभी ज़रा खुले विचारों वाली औरत थी। शहर वाली थी इस लिए शहरों जैसा ही रहन सहन था उसका। कुछ दिन से उसकी हरकतें ऐसी थी जिससे साफ पता चलता था कि वह विजय से वास्तव में कैसा प्रेम करती है। किन्तु विजय सिंह को उससे इस हद तक गिर जाने की उम्मीद नहीं थी। विजय सिंह को सोच सोच कर ही उस पर घिन आ रही थी कि कितना घटिया काम कर रही थी वह।

उस दिन विजय सिंह सारा दिन उदास व दुखी रहा। उसका दिल कर रहा था कि वह कहीं बहुत दूर चला जाए। किसी को अपना मुह न दिखाए किन्तु हर बार गौरी और बच्चों का ख़याल आ जाता और फिर जैसे उसके पैरों पर ज़ंजीरें पड़ जातीं।किसी ने सच ही कहा है कि बीवी बच्चे किसी भी इंसान की सबसे बड़ी कमज़ोरी होते हैं। जब आप उनके बारे में दिल से सोचते हैं तो बस यही लगता है कि चाहे कुछ भी हो जाए पर इन पर किसी तरह की कोई पराशानी न हो।

विजय सिंह हमेशा की तरह ही देर से हवेली पहुॅचा। अन्य दिनों की अपेक्षा आज उसका मन किसी भी चीज़ में नहीं लग रहा था। उसने खुद को सामान्य रखने बड़ी कीशिश कर रहा था वो। अपने कमरे में जाकरवह फ्रेश हुआ और बेड पर आकर बैठ गया।


अपडेट हाज़िर है दोस्तो,,,,,,,,
 
Top