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Incest ♡ एक नया संसार ♡ (Completed)

आप सबको ये कहानी कैसी लग रही है.????

  • लाजवाब है,,,

    Votes: 185 90.7%
  • ठीक ठाक है,,,

    Votes: 11 5.4%
  • बेकार,,,

    Votes: 8 3.9%

  • Total voters
    204
  • Poll closed .

Yellow Flash

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158
After reading the ending, there is high probability ki story ka second part bhi aayega but who knows except writer. hope unki person life achhi ho aur iska second part bhi likhe because kahani aise mod par khatam ki hai jahan se iske second part ya fir ye kahe ki the raj ki behano ke pyaar ki manzil aur badi maa aka pratima singh ki new life and dada dadi ka family life and raj ki love life kafi kuch shuru hona baki hai even abhay ke bete ki zindgi ko bhi sudharna hai as well as shiva ki zindagi ko bhi. So eagerly waiting for next part of the story.
 

Sanskari Larka

Sᴀk†Lᴀน𝖓da
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Awesome story ending puri tarah se nahi ho payi hai
Nidhi-Viraj ka love story adhuri
Ritu-Viraj ka love story adhuri
Nilam-Viraj ka love story adhuri
Partima v nahi mil payi

Kya is story ka next part bhi aayega???
 
Last edited:

Fighter

THE CREATER OF DEVIL FIGHTERS
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25,444
259
Super & Jabardast & Gajab & Very Nice last update bro

Kamaal ki ending thi kyoki agar next part m dekhane pr or maja aayega

To dono ko bacha liya jyada kuch nhi huaa time k sath vo dono b thik ho jayege

Gudiya ke bare m kya kahu sb mast uska y naraj hona ya ignore krna viraj ko samjh nhi aa rha or baki sbi ko aa rha h ab to ritu ko b pta chal gya sb ek dusre k liye apne love ko sacrifice kr rhe h superb

Vo dono mumbai wapas chali gyi h or yaha b pratibha ne sbi ko bada sok de diya itna kuch krk gajab


Waiting for next part
 

Yellow Flash

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Awesome story ending puri tarah se bhi ho payi hai
Nidhi-Viraj ka love story adhuri
Ritu-Viraj ka love story adhuri
Nilam-Viraj ka love story adhuri
Partima v nahi mil payi

Kya is story ka next part bhi aayega???
Zaruri nahi ki love story hi ho qki viraj abhi tak apni teeno behano se alairf bhai behan wala pyaar hi karta hai but yes there is a story between these aur usko atleast ek end tak le jana chahiye tha jaise neelam aur viraj ki story almost end ho gayi jab neelam ne ye decide kar liya ki wo ab viraj ko jitna ho sake bhulne ki aur ussse jitna ho sake kam milane ki koshish karegi but also abhi tak viraj ki taraf se response baki hai so the story is still alive
 

VIKRANT

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एक नया संसार
अपडेट.......《 63 》

अब तक,,,,,,,,
शिवा की इस बात पर कमिश्नर बुरी तरह हैरान रह गया। किन्तु अपराधी जब खुद ही अपना गुनाह कबूल कर रहा था तो भला उन्हें क्या आपत्ति हो सकती थी? कमिश्नर ने अपने साथ आए एक एसआई को इशारा किया। एसआई ने शिवा के हाॅथ से रिवाल्वर को रुमाल में लपेट कर लिया और फिर उसके दोनो हाॅथों में हॅथकड़ी डाल दी।

मैं दौड़ते हुए रितू दीदी के पास आया था। रितू दीदी को आदित्य अपनी गोंद में लिए बैठा था। रितू दीदी की साॅसें अभी चल रही थी। पवन अभय चाचा के पास चला गया था। जहाॅ पर प्रतिमा अभय की हालत को देख कर रो रही थी। अभय चाचा की हालत भी काफी ख़राब थी। उनका पूरा जिस्म उनके खून से नहाया हुआ था। प्रतिमा बार बार एक ही बात कह रही थी कि मुझे मर जाने दिया होता। मुझ पापिन को क्यों बचाया तुमने?

पुलिस सायरन की आवाज़ सुन कर इमारत के अंदर से बाॅकी सब लोग भी आ गए थे। यहाॅ का मंज़र देख कर सबकी चीख़ें निकल गई थी। माॅ ने जब मुझे सही सलामत देखा तो मुझे खुद से छुपका लिया और मेरे चेहरे पर हर जगह चूमने चाटने लगीं। मैने उन्हें खुद से अलग किया और बताया कि रितू दीदी व अभय चाचा को गोली लगी है। उन्हें जल्द ही हास्पिटल ले जाना पड़ेगा। मेरी बात सुन कर सब लोग रितू दीदी व अभय चाचा के पास आ गए।

रितू दीदी व अभय चाचा की हालत बहुत ख़राब थी। सब लोग रो रहे थे। मैं और पवन दौड़ते हुए कुछ ही दूरी पर खड़ी कई सारी गाड़ियों की तरफ गए। उनमें से एक गाड़ी को स्टार्ट कर मैं फौरन ही उसे इस तरफ ले आया। आदित्य ने रितू दीदी को उठा कर जल्दी से टाटा सफारी में बड़े एहतियात से बिठाया। रितू दीदी के बैठते ही नैना बुआ भी उनके पास आकर बैठ गईं। आदित्य भाग कर गया और दूसरी गाड़ी ले आया। उस गाड़ी में अभय चाचा को फौरन लेटाया गया। उसमें करुणा चाची व रुक्मिणी चाची बैठ गईं। दूसरी अन्य गाड़ियों में बाॅकी सब लोग भी बैठ गए। इसके बाद हम सब तेज़ी से गुनगुन की तरफ बढ़ चले।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

अब आगे,,,,,,,

ऑधी तूफान बने हम सब आख़िर हास्पिटल पहुॅच ही गए। जल्दी जल्दी हमने रितू दीदी व अभय चाचा को स्ट्रेचर पर लिटा कर हास्पिटल के अंदर ले गए। कुछ ही देर में उन दोनो को ओटी के अंदर ले जाया गया। उन्हें अंदर ले जाते ही ओटी का दरवाज़ा बंद हो गया और हम सब बाहर ही चिंता व परेशानी की हालत में खड़े रह गए।

हम सब बेहद दुखी थे और भगवान से उन दोनो को सलामत रखने की मिन्नतें कर रहे थे। करुणा चाची के ऑसू बंद ही नहीं हो रहे थे। कमिश्नर साहब ने पहले ही फोन करके यहाॅ पर डाक्टरों को बता दिया था ताकि यहाॅ पर किसी प्रकार की परेशानी न हो सके और जल्द ही उनका इलाज़ शुरू हो जाए।

बड़ी माॅ हम सब से अलग एक तरफ गुमसुम सी खड़ी थीं। उनकी माॅग का सिंदूर मिटा हुआ था तथा हाॅथ की चूड़ियाॅ भी कुछ टूटी हुई थीं। मतलब साफ था कि पति की मौत के बाद उन्होंने खुद को विधवा बना लिया था। इस वक्त उनके चेहरे पर संसार भर की वीरानी थी। ऑखों में सूनापन था।

अधर्म पर धर्म की तथा बुराई पर अच्छाई की जीत तो हो चुकी थी किन्तु इस जीत में सच्चाई की राह पर चलने वाले दो ब्यक्ति जीवन और मृत्यु के बीच लटके हुए थे। मैं रितू दीदी के लिए सबसे ज्यादा दुखी था। मेरी ऑखों के सामने रह रह कर उनकी सुंदर छवि चमक उठती थी। उनके साथ बिताए हुए हर लम्हें याद आ रहे थे। रितू दीदी ने शुरू से लेकर अब तक मेरा कितना साथ दिया था ये बताने की आवश्यकता नहीं है। अगर मैं ये कहूॅ तो ज़रा भी ग़लत न होगा कि इस जीत का सारा श्रेय ही उनको जाता है। उन्होंने क़दम क़दम पर मुझे सम्हाला था और मेरी रक्षा की थी। यूॅ तो मैं जीवन भर उनका ऋणी ही बन चुका था किन्तु एक ये भी सच्चाई थी कि मैं उन्हें किसी भी सूरत में खोना नहीं चाहता था। मैं बचपन से ही उन्हें बेहद पसंद करता था और उनके लिए कुछ भी कर गुज़रने की चाहत रखता था। अब तक तो नहीं पर अब लग रहा था कि अगर उन्हें कुछ हो गया तो मैं एक पल भी जी नहीं पाऊॅगा।

आदित्य मेरे पास आया और मुझसे बोला कि मैं खुद को सम्हालूॅ और सबको भी सम्हालूॅ। वो खुद भी बेहद दुखी था। उसने हम सबको अपना ही मान लिया था। उसने मुझे समझाया कि मैं खुद को मजबूत करूॅ वरना सब इस सबसे दुखी होते रहेंगे। आदित्य की बात सुन कर मैने खुद को सम्हाला और फिर सबको वहीं एक तरफ लम्बी सी बेंच में बैठ जाने के लिए कहा। मेरे ज़ोर देने पर आख़िर सब लोग बैठ ही गए। मेरी नज़र दूर एक तरफ खड़ी बड़ी माॅ पर पड़ी तो मैं उनके पास चला गया।

बड़ी माॅ कहीं खोई हुई सी खड़ी एकटक शून्य को घूरे जा रही थीं। मैं उनके पास जा कर उनके कंधे पर हाॅथ रखा तो जैसे उनकी तंद्रा टूटी। उन्होंने मेरी तरफ अजीब भाव से देखा और फिर बिना कुछ बोले फिर से शून्य में देखने लगीं। मैने बड़ी माॅ से भी बैठ जाने के लिए कहा तो वो मेरे साथ ही दूसरी साइड की बेंच की तरफ आईं और बैठ गईं। उनके पास ही मैं भी बैठ गया। हलाॅकि मेरे उनके पास बैठ जाने से सामने ही बेंच पर बैठे सब लोग मुझे घूर कर देखने लगे थे मगर मैने उनके घूरने की कोई परवाह नहीं की।

मेरे मन में बड़ी माॅ की उस वक्त की बातें गूॅज रही थी जब उन्होंने मुझे फोन किया था। इतना तो मुझे पता था कि हर इंसान को एक दिन अपने गुनाहों का एहसास होता है। वक्त और हालात इंसान को ऐसी जगह ला कर खड़ा कर देते हैं जब उसे शिद्दत से अपने गुनाहों का एहसास होने लगता है। वही हाल बड़ी माॅ का भी था। एक ये भी सच्चाई थी कि उन्होंने अपने पति से ऑख बंद करके तथा बिना कुछ सोचे समझे बेपनाह प्रेम किया था। जिसका सबूत ये था कि उन्होंने अजय सिंह के हर गुनाह में उसका खुशी खुशी साथ दिया था। उन्होंने कभी भी अपने पति से ये नहीं कहा कि वो ग़लत कर रहा है और वो ग़लत में उसका साथ नहीं देंगी। इंसान जब बार बार गुनाह करने लगता है तब उसका ज़मीर ख़ामोश होकर बैठ जाता है। या फिर इंसान ज़बरदस्ती अपने ज़मीर का करुण क्रंदन दबाता चला जाता है। मगर अंत तो हर चीज़ का एक दिन होता ही है। फिर चाहे वो जिस रूप में हो। ख़ैर, मेरे मन में बड़ी माॅ से फोन पर हुई वो सब बातें चल रही थीं।

बड़ी माॅ से फोन पर पहले तो मैने कठोरतापूर्ण ही बातें की थी किन्तु जब उन्होंने अभय चाचा की असलियत और अपने पति से उनके द्वारा फोन पर हुई बातों के बारे में बताया तो पहले तो मैं हॅसा था, क्योंकि मुझे लगा कि बड़ी माॅ मुझसे कोई चाल चलने का सोच रही हैं जिसमें वो अभय चाचा के खिलाफ ऐसी बातें बता कर मेरे मन में चाचा के प्रति शंका या दरार जैसा माहौल बनाना चाहती हैं। मगर उनकी बातों ने जल्द ही मुझे ये सोचने पर मजबूर कर दिया था कि भला उन्हें ऐसा करने की क्या ज़रूरत थी? दूसरी बात उन्होंने मुझसे कुछ ऐसी बातें भी कीं जिन बातों की मैं उनसे उम्मींद ही नहीं कर सकता था।

काफी समय तक हम सब ऐसे ही बैठे रहे थे। हम सबकी साॅसें हमारे हलक में अटकी हुई थी।
ना चाहते हुए भी मन में ऐसे भी ख़याल आ जाते जिनके तहत हमारे जिस्म का रोयाॅ रोयाॅ तक काॅप जाता था। आख़िर लम्बे इन्तज़ार के बाद ओटी के ऊपर लगा लाल बल्ब बुझा और फिर दरवाजा खुला। दरवाज़ा खुलते ही हम सब एक साथ ही खड़े होकर डाक्टर के पास तेज़ी से पहुॅचे।

"डाक्टर साहब।" सबसे पहले माॅ गौरी ने ही ब्याकुल भाव से पूछा___"मेरा बेटा और बेटी कैसी है अब? वो दोनो ठीक तो हैं न? जल्दी बताइये डाक्टर साहब। वो दोनो ठीक तो है न?"

गौरी माॅ की ब्याकुलता को देख कर डाक्टर तुरंत कुछ न बोला। ये देख कर हम सब पलक झपकते ही घबरा गए। एक साथ हम सब डाक्टर पर चढ़ दौड़े। करुणा चाची बुरी तरह रोने लगी थी। उन्हें इस तरह रोते देख दिव्या भी रोने लगी थी। हम सब को इस तरह ब्यथित देख डाक्टर के चेहरे के भाव बदले।

"आप सबको इस तरह।" डाक्टर ने कहा___"दुखी होने की ज़रूरत नहीं है। वो दोनो ही अब खतरे से बाहर हैं। हमने उनके शरीर से बुलेट निकाल दी है। फिलहाल वो खतरे से बाहर हैं किन्तु खून ज्यादा बह जाने से उनकी हालत अभी बेहतर नहीं है। ख़ैर अभी तो वो दोनो बेहोश हैं। इस लिए आप लोग उनसे बात नहीं कर सकते हैं।"

डाक्टर की बात सुन कर हम सबके निस्तेज पड़ चुके चेहरों पर जैसे नई ताज़गी सी आ गई। हम सब एक दूसरे की तरफ देख देख कर एक दूसरे से कहने लगे कि सब ठीक है। डाक्टर कुछ और भी बातें बता कर चला गया। उसके जाते ही हम सबने ईश्वर का लाख लाख धन्यवाद किया। गौरी माॅ को अचानक ही जाने क्या हुआ कि वो पलटी और गैलरी में एक तरफ को लगभग दौड़ते हुई गईं। हम सब उन्हें इस तरह जाते देख चौंके तथा साथ ही हम सब भी उनके पीछे की तरफ तेज़ी से बढ़ चले।

कुछ ही देर में हम सब जिस जगह उनका पीछा करते हुए पहुॅचे उस जगह का दृष्य देख कर हम सबकी ऑखें नम हो गईं। दरअसल वो गणेश जी का एक छोटा सा मंदिर था। जिसके सामने अपने दोनो हाॅथ जोड़े बैठी गौरी माॅ नज़र आईं हमें। हम सब भी उनके पास जाकर गणेश जी के सामने अपने अपने हाॅथ जोड़ कर खड़े हो गए। गणेश जी की मूर्ति के सामने खड़े हो कर हम सबने उनकी स्तुति की और उनकी इस कृपा के लिए हम सबने उन्हें सच्चे दिल से धन्यवाद दिया।

जैसा कि डाक्टर ने बताया था कि अभी रितू दीदी व अभय चाचा बेहोश हैं। अतः हम सब उनके होश में आने की प्रतीक्षा करने लगे थे। ख़ैर दिन ढल चुका था। मुझे पता था कि इस सबके चक्कर में किसी ने सुबह से कुछ खाया भी नहीं था। अतः मैंने आदित्य व पवन को साथ लिया और पास के ही एक होटेल से सबके लिए खाने पीने का प्रबंध किया। मेरे और आदित्य के ज़ोर देने पर आख़िर सबको थोड़ा बहुत खाना ही पड़ा। हलाॅकि इसके लिए कोई तैयार नहीं था क्योंकि आज हमारे परिवार के एक बड़े सदस्य की मौत हो चुकी थी तथा दूसरा अपने पिता के कत्ल के इल्ज़ाम में गिरफ्तार हो चुका था। निश्चय ही उसे या तो फाॅसी की सज़ा होगी या फिर ऊम्र कैद।

वो दोनो बुरे ही सही किन्तु उनसे खून का रिश्ता तो था ही। फार्महाउस पर कदाचित अभी भी अजय सिंह का मृत शरीर पड़ा होगा। हम सब तो रितू दीदी व अभय चाचू को लेकर हास्पिटल आ गए थे। उसके बाद वहाॅ पर अजय सिंह की लाश यूॅ ही लावारिश ही पड़ी रह गई होगी। या फिर ऐसा हुआ होगा कि कमिश्नर ने इस पर कोई कानूनी प्रक्रिया की होगी। जिसके तहत वो अजय सिंह की लाश का पंचनामा कर उसे पोस्टमार्डम के लिए ले गए होंगे। इस बारे में हमें कोई जानकारी अभी तक मिली नहीं थी, बल्कि ये महज हम सबका ख़याल ही था।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

उस वक्त रात के दस बज रहे थे जब हास्पिटल की एक नर्स ने आ कर हमें बताया कि रितू दीदी व अभय चाचू को होश आ गया है। हम सब नर्स की ये बात सुन कर बेहद खुश हुए और फिर फौरन ही हम सब उस कमरे में पहुॅचे जहाॅ पर रितू दीदी व अभय चाचू को शिफ्ट किया गया था। हम सबने उन दोनो को सही सलामत देखा तो जान में जान आई। करुणा चाची अभय के पास जा कर रोने लगी थी। ये देख कर माॅ ने उन्हें समझाया कि अब उसे रोना नहीं चाहिए बल्कि खुश होना चाहिए कि ईश्वर ने सब कुछ ठीक कर दिया है।

मैं रितू दीदी के पास ही बैठ गया था और एकटक उनके चेहरे की तरफ देख रहा था। वो खुद भी मुझे देखे जा रही थी। उनकी ऑखों में खुशी के ऑसू थे तथा होंठ कुछ कहने के लिए काॅपे जा रहे थे। ये देख कर मैने उन्हें इशारे से ही शान्त रहने को कहा और फिर झुक कर उनके माथे पर चूम लिया। मेरे ऐसा करते ही उनकी ऑखें बंद हो गईं। ऐसे जैसे कि मेरे ऐसा करने से उन्हें कितना सुकून मिला हो। नीलम, सोनम दीदी, आशा दीदी, निधी व दिव्या पास ही चारो तरफ से घेरे खड़ी थीं।

यहाॅ पर मुझे एक चीज़ बहुत अजीब लग रही थी और वो था बड़ी माॅ का बिहैवियर। वो हम सबसे अलग दूर खड़ी थीं। दूर से ही वो अपनी बेटी रितू को देख रही थी। उनकी ऑखों में ऑसू थे। उनसे कोई बात नहीं कर रहा था और ना ही वो किसी से बात करने की कोई कोशिश कर रही थीं। उन्होंने तो जैसे खुद को हम सबसे अलग समझ लिया था।

उस रात हम सब हास्पिटल में ही रहे। दूसरे दिन डाक्टर से मिले तो डाक्टर ने कुछ दिन बेड रेस्ट के लिए यहीं रहने का कहा। इस बीच कमिश्नर साहब भी हमसे मिलने आए और सबका हाल अहवाल लिया। रितू दीदी से वो बड़े प्यार से मिले तथा उन्हें ये भी कहा कि उन्हें उन पर नाज़ है। कमिश्नर साहब ने बताया कि अजय सिंह की डेड बाॅडी पोस्टमार्डम के बाद आज दोपहर तक मिल जाएगी। ताकि हम उनका अंतिम संस्कार कर सकें।

अभय चाचा के बार बार ज़ोर देने पर माॅ इस बात पर राज़ी हुई कि वो बाॅकी सबको लेकर गाॅव जाएॅ। अभय चाचा ने बड़ी माॅ से भी आग्रह किया कि वो सबके साथ गाॅव जाएॅ। मैने नैना बुआ आदि को पवन के साथ ही हवेली जाने का कह दिया। जबकि मैं और आदित्य रितू दीदी व अभय चाचा के पास ही रुकना चाहते थे।

आख़िर बहुत समझाने बुझाने के बाद सब जाने के लिए राज़ी हुए। हास्पिटल से बाहर आकर मैने सबको गाड़ियों में बैठा दिया। मैने केशव जी को फोन करके बुला लिया था। सारी घटना के बारे में जान कर पहले तो वो हैरान हुए उसके बाद खुश भी हुए। मैने उनके कुछ आदमियों को माॅ लोगों के साथ हल्दीपुर जाने के लिए उनसे कहा। केशव जी मेरी बात तुरंत मान गए और फिर उन्होंने सीघ्र ही अपने आदमियों बुला लिया।

करुणा चाची जाने को तैयार ही नहीं हो रही थी। मैने बड़ी मुश्किल से उन्हें समझाया और कहा कि वो किसी बात की फिक्र न करें। ख़ैर उन सबके जाने के बाद मैने कमिश्नर साहब से शिवा के बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि उन्होंने शिवा से बात की थी कि वो चाहे तो कानून से छूट सकता है। किन्तु शिवा अपनी बात पर अडिग है। उसका कहना है कि वो इस जीवन से मुक्ति चाहता है। उसमें अब इतनी हिम्मत नहीं है कि वो वापस सबके बीच रह सके। सारी ज़िंदगी वो सबके सामने शर्म से गड़ा रहेगा और चैन से जी नहीं पाएगा। शिवा के न मानने पर ही कमिश्नर साहब ने केस फाइल किया। अपने बाप की चिता को आग देने के लिए उसे यहाॅ लाया जाएगा उसके बाद पुलिस उसे वापस जेल में बंद कर देगी। अदालत का फैसला क्या होगा इसका पता चलते ही उस पर कानूनी कार्यवाही होगी।

कमिश्नर साहब के जाने के बाद मैं और आदित्य वापस रितू दीदी व अभय चाचा के पास आ गए। अभय चाचा ने मुझसे कहा कि मैं इस सबके बारे में अपनी बड़ी बुआ यानी सौम्या बुआ को भी बता दूॅ और यहाॅ बुला लूॅ। फोन पर सारी बातें बताना उचित नहीं था। चाचा की बात सुन कर मैने बुआ को फोन लगाया। थोड़ी ही देर में दूसरी तरफ से बुआ की आवाज़ मेरे कानों में पड़ी। मैने उन्हें अपना परिचय दिया और जल्द से जल्द हल्दीपुर आने को कहा। मेरे इस तरह बुलाने पर वो चिंतित होकर पूछने लगीं कि बात क्या है? उनके पूछने पर मैने बस यही कहा कि आप बस आ जाइये।

शाम होते होते कमिश्नर साहब की मौजूदगी में शिवा ने अपने बाप अजय सिंह की चिता को अग्नि दे दी। हल्दीपुर ही नहीं बल्कि आस पास के गाॅव में भी ये ख़बर जंगल की आग की तरह फैल गई थी कि ठाकुर गजेन्द्र सिंह बघेल का बड़ा बेटा अब इस दुनियाॅ में नहीं रहा। शमशान पर लोगों की भारी भीड़ जमा थी। आदित्य को रितू दीदी व अभय चाचू के पास छोड़ कर मैं भी गाॅव आ गया था।

सौम्या बुआ आ चुकी थी। यहाॅ आ कर जब उन्हें अपने भाई की मौत का पता चला तो वो दहाड़ें मार मार कर रोने लगी थी। किन्तु बड़ी माॅ ने उन्हें सम्हाल लिया था और कठोर भाव से ये भी कहा कि ऐसे इंसान के मरने का शोक मत करो जिसने अपने जीवन में किसी के साथ कोई अच्छा काम ही न किया हो। बड़ी माॅ की ऐसी बातें सुन कर सौम्या बुआ हतप्रभ रह गई थीं। उन्हें थोड़ी बहुत पता तो था किन्तु सारी असलियत से वो अंजान थीं।

सारी क्रिया संपन्न होते ही सब अपने अपने घर चले गए। इधर हवेली में हर तरफ एक भयावह सा सन्नाटा फैला हुआ था। हवेली के नौकर चाकर सब संजीदा थे। सौम्या बुआ के साथ उनके पति भी आए थे। मैने उनसे सब का ख़याल रखने का कहा और जीप लेकर वापस गुनगुन आ गया। ऐसे ही एक हप्ता गुज़र गया। मैं और आदित्य डाक्टर की परमीशन से रितू दीदी व अभय चाचा को हास्पिटल से घर ले आए। दोनो की हालत अभी नाज़ुक ही थी। इस लिए उनकी देख रेख के लिए सब मौजूद थे।

तेरवीं के दिन ब्राम्हणों को भोज कराया गया। सभी नात रिश्तेदार आए हुए थे। सबकी ज़ुबान पर बस एक ही बात थी कि ठाकुर खानदान में ये अचानक क्या हो गया है? हलाॅकि इतना तो सब समझते थे कि ठाकुर खानदान में कुछ सालों से ग्रहण सा लगा हुआ था। दबी ज़मान में तो लोग ये भी कहते थे कि अजय सिंह ने घर की खुशियों में खुद आग लगाई थी। ख़ैर, एक दिन कमिश्नर साहब का फोन आया उन्होंने बताया कि अदालत ने शिवा को ऊम्र कैद की सज़ा सुनाई है। ये जान कर हम सबको बहुत अजीब लगा था। शिवा ने अपनी मर्ज़ी से अपने इस अंजाम का चुनाव किया था, जबकि वो चाहता तो बड़े आराम से वो कत्ल के इल्ज़ाम से बरी हो जाता। बल्कि अगर ये कहा जाए तो ग़लत न होगा कि उस पर कत्ल जैसा कोई इल्ज़ान लगता ही नहीं। मेरे ज़हन में उससे अंतिम मुलाक़ात की वो सब बातें घूम रहीं थी। मैं समझ सकता था कि वह एकदम से जुनूनी हो चुका था। उसकी सोच ऐसी हो चुकी थी कि उसे कोई समझा नहीं सकता था।

अजय सिंह की मौत के बारे में मैने जगदीश ओबराय को पहले ही सब कुछ बता दिया था। वो ये जान कर आश्चर्यचकित थे कि अभय चाचा ने इतना बड़ा धोखा किया था हमारे साथ। तेरवीं के दिन जगदीश ओबराय हमारे गाॅव आए थे। एक दो दिन रुक कर वो वापस मुम्बई चले गए थे। साथ ही हम सबको समझाया बुझाया भी था कि अब हम सब एक नये सिरे से जीवन पथ पर आगे बढ़ें। जाते समय वो थोड़ा मायूस लगे मुझे तो मैने और माॅ ने उनसे पूॅछ ही लिया कि क्या बात है? हमारे पूछने पर उन्होंने बस इतना ही कहा कि वो अकेले मुम्बई में रह नहीं पाएॅगे। उनकी बातों को हम बखूबी समझते थे। इस लिए उन्हें तसल्ली दी कि वो फिक्र न करें। माॅ ने कहा कि राज और गुड़िया की तो पढ़ाई ही चल रही है अभी। इस लिए वो बहुत जल्द मुम्बई आ जाएॅगे।

जैसा कि आप सबको पता है कि हवेली में तीनों भाइयों का बराबर हिस्सा था तथा हवेली बनाई भी इस तरह गई थी कि सबको बराबर बराबर मिल सके। अतः हवेली में आते ही हम सब अपने अपने हिस्सों में रहने लगे थे। किन्तु इसमें नई बात ये थी कि हम सबका खाना पीना एक ही रसोई में बनने लगा था। रितू दीदी व अभय चाचा की सेहत में काफी सुधार हो गया था। रितू दीदी हमारे हिस्से पर ही एक कमरे में रह रही थीं। बड़ी माॅ(प्रतिमा) अपने हिस्से पर अकेली रहती थी। वो किसी से कोई बात नहीं करती थी और ना ही किसी के सामने आती थी। सारा दिन और रात वो अपने कमरे में ही रहती। रितू दीदी व नीलम उनसे कोई बात नहीं करती थीं। हलाॅकि ऐसा नहीं होना चाहिए था मगर कदाचित दिलो दिमाग़ से वो सब बातें अभी निकली नहीं थी। इस लिए उनसे कोई बात करना ज़रूरी नहीं समझता था। हलाॅकि मैं आदित्य व पवन उनसे बात करते थे और उनके लिए दोनो टाइम का खाना व चाय नास्ता मैं ही लेकर उनके पास जाता था और तब तक उनके पास रहता जब तक कि वो खा नहीं लेती थी।

ऐसे ही समय गुज़र रहा था। धीरे धीरे सब नार्मल हो रहे थे। किन्तु एक चीज़ ऐसी थी जिसने मुझे दुखी किया हुआ था और वो था गुड़िया(निधी) का मेरे प्रति बर्ताव। इतना कुछ होने के बाद और इतने दिन गुज़र जाने के बाद मैने ये देखा था कि उसने मुझसे कोई बात नहीं की थी और ना ही मेरे सामने आने की कोई ख़ता की थी। मैं समझ नहीं पा रहा था कि अपने दिल की इस धड़कन को कैसे मनाऊॅ? मेरे मन में कई बार ये विचार आया कि मैं उसके पास जाऊॅ और उससे बातें करूॅ। उससे पूछूॅ कि ऐसा क्या हो गया है कि उसने मुझसे बात करने की तो बात दूर बल्कि मेरे सामने आना भी बंद कर रखा है? मगर मैं चाह कर भी ऐसा कर नहीं पा रहा था क्योंकि गुड़िया के पास हर समय आशा दीदी बनी रहती थी। अपनी इस बेबसी को मैं किसी के सामने ज़ाहिर भी नहीं कर सकता था।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

ऐसे ही कुछ दिन और गुज़र गए। नीलम तो अब लगभग पूरी तरह ठीक ही हो गई थी। उसकी पीठ का ज़ख्म भी अब ठीक हो चला था। मैं नीलम को अक्सर छेंड़ता रहता था, जिसके जवाब में वो बस मुस्कुरा कर रह जाती थी। मैं उसकी इस प्रतिक्रया से हैरान भी होता और मायूस भी। हैरान इस लिए क्योंकि वो मेरे छेंड़ने पर जवाब में खुद भी मुझे छेंड़ने का कोई उपक्रम नहीं करती थी बल्कि सिर्फ मुस्कुरा कर रह जाती थी। जबकि मायूस इस लिए क्योंकि मैं उससे यही उम्मींद करता था कि वो भी मुझें छेंड़े अथवा मुझसे लड़े झगड़े। मगर जब वो ऐसा न करती तो मैं बस मायूस ही हो जाता था। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि नीलम ऐसा क्यों कर रही थी। मैं महसूस कर रहा था कि नीलम कुछ दिनों से बड़ी अजीब अजीब सी बातें करती थी। उसकी बातों में सबसे ज्यादा इसी बात पर ज़ोर होता था कि मैं रितू दीदी का हमेशा ख़याल रखूॅ और उन्हें कभी दुखी न होने दूॅ।

एक दिन सुबह के लगभग आठ बजे सोनम दीदी व नीलम अपने अपने हाॅथों में छोटा सा बैग लिए तथा तैयार होकर हम सबके बीच आईं और माॅ(गौरी) से कहा कि वो मुम्बई जा रही हैं। कारण ये था कि उनके काॅलेज की पढ़ाई का नुकसान हो रहा था। बात पढ़ाई की थी इस लिए किसी ने उन दोनो को जाने से मना नहीं किया। जाते वक्त नीलम मेरे गले लग मुझसे मिली और एक पुनः उसने रितू दीदी का तथा सबका ख़याल रखने का कहा और फिर मेरी तरफ अजीब भाव से देखने के बाद वह पलट कर सोनम दीदी के साथ हवेली से बाहर निकल गई।

नीलम के जाने से मुझे ऐसा लगा जैसे मेरा कुछ छूटा जा रहा है। नीलम की ऑखों में ऑसू के क़तरे थे। जिन्हें उसने बड़ी सफाई से पोंछ लिया था। दूसरे दिन रुक्मिणी चाची ने हम सबसे अपने घर जाने को कहा। माॅ ने उनसे कहा भी मगर वो नहीं मानी। अतः उन्हें उनके सामान के साथ उनके घर भेज दिया गया। माॅ ने उनसे कहा था कि उनका जब भी दिल करे वो यहाॅ आती रहें।

हम सब अब फिर से एक साथ हो गए थे। इस बात से गाॅव के लोग भी काफी खुश थे। दिन भर किसी न किसी का आना जाना लगा ही रहता था हवेली पर। अभय चाचा व मैं उन सबसे मिलते और दुनियाॅ जहान की बातें होतीं। बड़ी माॅ का रवैया वही था यानी वो अपने कमरे से बाहर नहीं निकलती थीं। पवन लोगों के जाने के बाद मुझे लगा कि अब गुड़िया से बात करने का मौका मिलेगा मगर मेरी उम्मीदों पर पानी फिर गया। क्योंकि आशा दीदी के जाने के बाद गुड़िया का सारा समय उनके घर पर ही गुज़रता था और रात में भी वो उनके घर पर ही सो जाती थी। हवेली में अगर वो आती भी तो दिव्या व रितू दीदी के पास ही रहती। कहने का मतलब ये कि वो खुद को अकेली रखती ही नहीं थी। कदाचित उसे अंदेशा था कि मैं उससे मिलने की तथा उससे बात करने की कोशिश करूॅगा। गुड़िया के इस रवैये से मेरा दिल बहुत दुखी होने लगा था। एक नये संसार का ये रूप देख कर मैं ज़रा भी खुश नहीं था।

मेरा ज्यादातर समय या तो रितू दीदी के पास रहने से या फिर आदित्य के साथ ही गुज़र रहा था। एक दिन अभय चाचा ने कहा कि जब तक उनका स्वास्थ सही नहीं हो जाता मैं खेतों की तरफ का हाल चाल देख लिया करूॅ। चाचा की इस बात से मैं और आदित्य खेतों पर गए और वहाॅ पर सब मजदूरों से मिला। खेतों पर काम कर रहे सभी मजदूर मुझे वहाॅ पर इस तरह देख कर बेहद खुश हो गए थे। सबकी ऑखों में खुशी के ऑसू थे। सब एक ही बात कह रहे थे कि हम अपने जिन मालिक को(मेरे पिता जी) देवता की तरह मानते थे उनके जाने के बाद हम सब बेहद दुखी थे। अजय सिंह ने तो हमेशा हम पर ज़ुल्म ही किया था। किन्तु अब वो फिर से खुश हो गए थे। अपने असल मालिक की औलाद को देख कर वो खुश थे और चाहते थे कि अब वैसा कोई बुरा समय न आए।

एक दिन सुबह जब मैं बड़ी माॅ के लिए चाय नास्ता देने उनके कमरे में गया तो कमरे में बड़ी माॅ कहीं भी नज़र न आईं। उनकी तरफ का सारा हिस्सा छान मारा मैने मगर बड़ी माॅ का कहीं पर भी कोई नामो निशान न मिला। इस बात से मैं भचक्का रह गया। मुझे अच्छी तरह याद था कि जब मैं रात में उनके पास उन्हें खाना खिलाने आया था तब वो अपने कमरे में ही थीं। मैने अपने हाॅथ से उन्हें खाना खिलाया था। हर रोज़ की तरह ही मेरे द्वारा खाना खिलाते समय उनकी ऑखें छलक पड़तीं थी। मैं उन्हें समझाता और कहता कि जो कुछ हुआ उसे भूल जाइये। मेरे दिल में उनके लिए कोई भी बुरा विचार नहीं है।

मैं कमरे को बड़े ध्यान से देख रहा था, इस उम्मीद में कि शायद कोई ऐसा सुराग़ मिल जाए जिससे मुझे पता सके कि बड़ी माॅ कहाॅ गई हो सकती हैं। मगर लाख सिर खपाने के बाद भी मुझे कुछ न मिला। थक हार कर मैं कमरे से ही क्यों बल्कि उनके हिस्से से ही बाहर आ गया। अपनी तरफ डायनिंग हाल में आकर मैने अभय चाचा से बड़ी माॅ के बारे में सब कुछ बताया। मेरी बात सुन कर अभय चाचा और बाॅकी सब भी हैरान रह गए। इस सबसे हम सब ये तो समझ ही गए थे कि बड़ी माॅ शायद हवेली छोंड़ कर कहीं चली गई हैं। उनके जाने की वजह का भी हमें पता था। इस लिए हमने फैसला किया कि बड़ी माॅ की खोज की जाए।

नास्ता पानी करने के बाद मैं आदित्य अभय चाचा बड़ी माॅ की खोज में हवेली से निकल पड़े। अपने साथ कुछ आदमियों को लेकर हम निकले। अभय चाचा अलग गाड़ी में कुछ आदमियों के साथ अलग दिशा में चले जबकि मैं और आदित्य दूसरी गाड़ी में कुछ आदमियों के साथ दूसरी दिशा में। हमने आस पास के सभी गाॅवों में तथा शहर गुनगुन में भी सारा दिन बड़ी माॅ की तलाश में भटकते रहे मगर कहीं भी बड़ी माॅ का पता न चला। रात हो चली थी अतः हम लोग वापस हवेली आ गए। हवेली आ कर हमने सबको बताया कि बड़ी माॅ का कहीं भी पता नहीं चल सका। इस बात से सब बेहद चिंतित व परेशान हो गए।

नीलम तो मुम्बई जा चुकी थी, उसे इस बात का पता ही नहीं था। रितू दीदी को मैने बताया तो उन्होंने कोई जवाब न दिया। उनके चेहरे पर कोई भाव न आया था। बस एकटक शून्य में घूरती रह गई थी। उस रात हम सब ना तो ठीक से खा पी सके और ना ही सो सके। दूसरे दिन फिर से बड़ी माॅ की तलाश शुरू हुई मगर कोई फायदा न हुआ। हमने इस बारे में पुलिश कमिश्नर से भी बात की और उनसे कहा कि बड़ी माॅ की तलाश करें।

चौथे दिन सुबह हम सब नास्ता करने बैठे हुए थे। नास्ते के बाद एक ही काम था और वो था बड़ी माॅ की तलाश करना। नास्ता करते समय ही बाहर मुख्य द्वार को किसी ने बाहर से खटखटाया। दिव्या ने जाकर दरवाज़ा खोला तो बाहर एक आदमी खड़ा था। उसकी पोशाक से ही लग रहा था कि वो पोस्टमैन है। दरवाजा खुलते ही उसने दिव्या के हाॅथ में एक लिफाफा दिया और फिर चला गया।

दिव्या उससे लिफाफा लेकर दरवाज़ा बंद किया और वापस डायनिंग हाल में आ गई। हम लोगों के पास आते ही दिव्य ने वो लिफाफा अभय चाचा को पकड़ा दिया। अभय चाचा ने लिफाफे को उलट कर देखा तो उसमें मेरा नाम लिखा हुआ था। ये देख कर अभय चाचा ने लिफाफा मेरी तरफ सरका दिया।

"ये तुम्हारे नाम पर आया है राज।" अभय चाचा ने मेरी तरफ देखते हुए कहा___"देखो तो क्या है इसमें?"
"जी अभी देखता हूॅ चाचा जी।" मैने कहने के साथ ही टेबल से लिफाफा उठा लिया और फिर उसे एक तरफ से काट कर खोलने लगा। लिफाफे में एक तरफ मेरा नाम व पता लिखा हुआ था तथा दूसरी तरफ भेजने वाले के नाम में "नारायण रस्तोगी" तथा उसका पता लिखा हुआ था।

लिफाफे के अंदर तह किया हुआ कोई काग़ज था। मैने उसे निकाला और फिर उस तह किये हुए काग़ज को खोल कर देखा। काग़ज में पूरे पेज पर किसी की हैण्डराइटिंग से लिखा हुआ कोई मजमून था। मजमून का पहला वाक्य पढ़ कर ही मैं चौंका। मैने लिफाफे को उलट कर भेजने वाले का नाम पुनः पढ़ा। मुझे समझ न आया कि ये नारायण रस्तोगी कौन है और इसने मेरे नाम ऐसा कोई ख़त क्यों लिखा है? जबकि मेरी समझ में इस नाम के किसी भी ब्यक्ति से मेरा दूर दूर तक कोई वास्ता ही नहीं था। मुझे हैरान व चौंकते हुए देख अभय चाचा ने पूछ ही लिया कि क्या बात है? मैने उन्हें बताया लिफाफा भेजने वाले को तो मैं जानता ही नहीं हूॅ फिर इसने मेरे नाम पर ये लिफाफा क्यों भेजा हो सकता हैं? अभय चाचा ने पूछा कि ख़त में क्या लिखा है उसने? उनके पूछने पर मैंने ख़त में लिखे मजमून को सबको सुनाते हुए पढ़ने लगा। खत में लिखा मजमून कुछ इस प्रकार था।

मेरे सबसे अच्छे बेटे राज!
सबसे पहले तो यही कहूॅगी कि तू वाकई में एक देवता जैसे इंसान का नेकदिल बेटा है और मुझे इस बात की खुशी भी है कि तू अच्छे संस्कारों वाला एक सच्चा इंसान है। ईश्वर करे तू इसी तरह नेकदिल बना रहे और सबके लिए प्यार व सम्मान रखे। जिस वक्त तुम मेरे द्वारा लिखे ख़त के इस मजमून को पढ़ रहे होगे उस वक्त मैं इस हवेली से बहुत दूर जा चुकी होऊॅगी। मुझे खोजने की कोशिश मत करना बेटे क्योंकि अब मेरे अंदर इतनी हिम्मत व साहस नहीं रहा कि मैं तुम सबके बीच सामान्य भाव से रह सकूॅ। जीवन में जिसके लिए सबके साथ बुरा किया उसने खुद कभी मेरी कद्र नहीं की। मेरी बेटियाॅ मुझे देखना भी गवाॅरा नहीं करती हैं, और करे भी क्यों? ख़ैर, मुझे उनसे कोई शिकायत नहीं है बेटे। दिल से बस यही दुवा व कामना है कि वो जीवन में सदा सुखी रहें।
मेरा जीवन पापों से भरा पड़ा है। मैने ऐसे ऐसे कर्म किये हैं जिनके बारे में सोच कर ही अब खुद से घृणा होती है। मुझमें अब इतनी हिम्मत नहीं है कि मैं किसी को अपना मुह भी दिखा सकूॅ। आत्मग्लानी, शर्म व अपमान का बोझ इतना ज्यादा है कि इसके साथ अब एक पल भी जीना मुश्किल लग रहा है। बार बार ज़हन में ये विचार आता है कि खुदखुशी कर लूॅ और इस पापी जीवन को खत्म कर दूॅ मगर मैं ऐसा भी नहीं करना चाहती। क्योंकि जीवन को खत्म करने से ईश्वर मुझे कभी माफ़ नहीं करेगा। मुझे इस सबका प्रयाश्चित करना होगा बेटे, बग़ैर प्रयाश्चित के भगवान भी मुझे अपने पास फटकने नहीं देगा। इस लिए बहुत सोच समझ कर मैने ये फैसला किया है कि मैं तुम सबसे कहीं दूर चली जाऊॅ और अपने पापों का प्रयाश्चित करूॅ। तुम सबके बीच रह कर मैं ठीक से प्रयाश्चित नहीं कर सकती थी।
ज़मीन जायदाद के सारे काग़जात मैने अपनी आलमारी में रख दिये हैं बेटा। वकील को मैने सब कुछ बता भी दिया है और समझा भी दिया है। अब इस सारी ज़मीन जायदाद के सिर्फ दो ही हिस्से होंगे। पहला तुम्हारा और दूसरा अभय का। मैने अपने हिस्से का सबकुछ तुम्हारे नाम कर दिया है। कुछ हिस्सा अभय के बेटे के नाम भी कर दिया है। इसे लेने से इंकार मत करना बेटे, बस ये समझ लेना कि एक माॅ ने अपने बेटे को दिया है। मुझे पता है कि तुम्हारे अंदर मेरे प्रति वैसा ही आदर सम्मान है जैसा कि तुम्हारा अपनी माॅ के प्रति है। ख़ैर, इसी आलमारी में वो कागजात भी हैं जो तुम्हारे दादा दादी से संबंधित हैं। उन्हें तुम देख लेना और अपने दादा दादी के बारे में जान लेना।
अंत में बस यही कहूॅगी बेटे कि सबका ख़याल रखना। अब तुम ही इस खानदान के असली कर्ताधर्ता हो। मुझे यकीन है कि तुम अपनी सूझ बूझ व समझदारी से परिवार के हर सदस्य को एक साथ रखोगे और उन्हें सदा खुश रखोगे। अपनी माॅ का विशेष ख़याल रखना बेटे, उस अभागिन ने बहुत दुख सहे हैं। हमारे द्वारा इतना कुछ करने के बाद भी उस देवी ने कभी अपने मन में हमारे प्रति बुरा नहीं सोचा। मैं किसी से अपने किये की माफ़ी नहीं माग सकती क्योंकि मुझे खुद पता है कि मेरा अपराध क्षमा के योग्य नहीं है।
मेरी बेटियों से कहना कि उनकी माॅ ने कभी भी दिल से नहीं चाहा कि उनके साथ कभी ग़लत हो। मैं जहाॅ भी रहूॅगी मेरे दिल में उनके लिए बेपनाह प्यार व दुवाएॅ ही रहेंगी। मुझे तलाश करने की कोशिश मत करना। अब उस घर में मेरे वापस आने की कोई वजह नहीं है और मैं उस जगह अब आना भी नहीं चाहती। मैंने अपना रास्ता तथा अपना मुकाम चुन लिया है बेटे। इस लिए मुझे मेरे हाल पर छोंड़ दो। यही मेरी तुमसे विनती है। ईश्वर तुम्हें सदा सुखी रखे तथा हर दिन हर पल नई खुशी व नई कामयाबी अता करे।
अच्छा अब अलविदा बेटे।
तुम्हारी बड़ी माॅ!
प्रतिमा।

ख़त के इस मजमून को पढ़ कर हम सबकी साॅसें मानों थम सी गई थी। ख़त पढ़ते समय ही पता चला कि ये ख़त तो दरअसल बड़ी माॅ का ही था। जिसे उन्होंने फर्ज़ी नाम व पते से भेजा था मुझे। काफी देर तक हम सब किसी गहन सोच में डूबे बैठे रहे।

"बड़ी भाभी के इस ख़त से।" सहसा अभय चाचा ने इस गहन सन्नाटे को चीरते हुए कहा____"ये बात ज़ाहिर होती है कि अब हम चाह कर भी उन्हें तलाश नहीं कर सकते। क्योंकि ये तो उन्हें भी पता ही होगा कि हम उन्हें खोजने की कोशिश करेंगे। इस लिए अब उनकी पूरी कोशिश यही रहेगी कि हम उन्हें किसी भी सूरत में खोज न पाएॅ। कहने का मतलब ये कि संभव है कि उन्होंने खुद को किसी ऐसी जगह छुपा लिया हो जिस जगह पर हम में से कोई पहुॅच ही न पाए।"

"सच कहा आपने।" मैने कहा___"ख़त में लिखी उनकी बातें यही दर्शाती हैं। किन्तु सवाल ये है कि अगर उन्होंने ख़त के माध्यम से ऐसा कहा है तो क्या हमें सच में उन्हें नहीं खोजना चाहिए?"

"हर्गिज़ नहीं।" अभय चाचा ने कहा___"कम से कम हम में से कोई भी ऐसा नहीं चाह सकता कि बड़ी भाभी हमसे दूर कहीं अज्ञात जगह पर रहें। बल्कि हम सब यही चाहते हैं कि सब कुछ भुला कर हम सब एक साथ नये सिरे से जीवन की शुरुआत करें। हवेली को छोंड़ कर चले जाना ये उनकी मानसिकता की बात थी। उन्हें लगता है कि उन्होंने हम सबके साथ बहुत बुरा किया है इस लिए अब उनका हमारे साथ रहने का कोई हक़ नहीं है। सच तो ये है कि हवेली छोंड़ कर चले जाने की वजह उनका अपराध बोझ है। इसी अपराध बोझ के चलते उनके मन में ऐसा करने का विचार आया है।"

"बात चाहे जो भी हो।" सहसा इस बीच माॅ ने गंभीर भाव से कहा___"उनका इस तरह हवेली से चले जाना बिलकुल भी अच्छी बात नहीं है। उन्हें तलाश करो और सम्मान पूर्वक उन्हें वापस यहाॅ लाओ। हम सब उन्हें वैसा ही आदर सम्मान देंगे जैसा उन्हें मिलना चाहिए। उन्हें वापस यहाॅ पर लाना ज़रूरी है वरना कल को यही गाॅव वाले हमारे बारे में तरह तरह की बातें बनाना शुरू कर देंगे। वो कहेंगे कि अपना हक़ मिलते ही हमने उन्हें हवेली से वैसे ही बेदखल कर दिया जैसे कभी उन्होंने हमें किया था। आख़िर उनमें और हम में फर्क़ ही क्या रह गया? इस लिए सारे काम को दरकिनार करके सिर्फ उन्हें खोज कर यहाॅ वापस लाने का का ही काम करो।"

"आप फिक्र मत कीजिए भाभी।" अभय चाचा ने कहा___"हम एड़ी से चोंटी तक का ज़ोर लगा देंगे बड़ी भाभी की तलाश करने में। हम उन्हें ज़रूर वापस लाएॅगे और उनका आदर सम्मान भी करेंगे।"

"ठीक है फिर।" माॅ ने कहने के साथ ही मेरी तरफ देखा___"बेटा तू तब तक यहीं रहेगा जब तक कि तुम्हारी बड़ी माॅ वापस इस हवेली पर नहीं आ जातीं। मैं जानती हूॅ कि तुम दोनो की पढ़ाई का नुकसान होगा किन्तु इसके बावजूद तुझे अभय के साथ मिल कर अपनी बड़ी माॅ की तलाश करना है।"

"ठीक है माॅ।" मैने कहा___"जैसा आप कहेंगी वैसा ही होगा। मैं जगदीश अंकल को फोन करके बता दूॅगा कि मैं और गुड़िया अभी वहाॅ नहीं आ सकते।"
"पर मुझे अपनी पढ़ाई का नुकसान नहीं करना है माॅ।" सहसा तभी गुड़िया(निधी) कह उठी___"बड़ी माॅ को तलाश करने का काम मुझे तो करना नहीं है। अतः मेरा यहाॅ रुकने का कोई मतलब नहीं है। पवन भइया को भी कंपनी में काम करने के लिए जाना ही है मुम्बई। मैने आशा दीदी से बात की है वो मेरे साथ मुम्बई जाने को तैयार हैं। इस लिए मैं कल ही यहाॅ से जा रही हूॅ।"

गुड़िया की इस बात से हम सब एकदम से उसकी तरफ हैरानी से देखने लगे थे। किसी और का तो मुझे नहीं पता किन्तु उसकी इस बात से मैं ज़रूर स्तब्ध रह गया था और फिर एकाएक ही मेरे दिल में बड़ा तेज़ दर्द हुआ। अंदर एक हूक सी उठी जिसने पलक झपकते ही मेरी ऑखों में ऑसुओं को तैरा दिया। मैं खुद को और अपने अंदर अचानक ही उत्पन्न हो चुके भीषण जज़्बातों को बड़ी मुश्किल से सम्हाला। अपने ऑसुओं को ऑखों में ही जज़्ब कर लिया मैने।

"ये तू क्या कह रही है गुड़िया?" तभी माॅ की कठोर आवाज़ गूॅजी___"तूने मुझे बताए बिना ही ये फैंसला ले लिया कि तुझे मुम्बई जाना है। मुझे तुझसे ऐसी उम्मीद नहीं थी।"

"मैं आपको इस बारे में बताने ही वाली थी माॅ।" निधी ने नज़रें चुराते हुए किन्तु मासूम भाव से कहा___"और वैसे भी इसमे इतना सोचने की क्या बात है? बड़ी माॅ की खोज करने मुझे तो जाना नहीं है, बल्कि ये काम तो चाचा जी लोगों का ही है। दूसरी बात अब मेरे यहाॅ रहने का फायदा भी क्या है, बल्कि नुकसान ही है। आज एक महीना होने को है स्कूल से छुट्टी लिए हुए। इस लिए अब मैं नहीं चाहती कि मेरी पढ़ाई का और भी ज्यादा नुकसान हो।"

"बात तो तुम्हारी सही है गुड़िया।" अभय चाचा ने कहने के साथ ही माॅ(गौरी) की तरफ देखा___"भाभी अब जो होना था वो तो हो ही चुका है। आज महीना होने को आया उस सबको गुज़रे हुए। धीरे धीरे आगे भी सब कुछ ठीक ही हो जाएगा। रही बात बड़ी भाभी को खोजने की तो वो मैं राज और आदित्य करेंगे ही। गुड़िया के यहाॅ रुकने से उसकी पढ़ाई का नुकसान ही है। इस लिए ये अगर जा रही है तो इसे आप जाने दीजिए। आप तो जानती ही हैं कि मुम्बई में भी जगदीश भाई साहब अकेले ही हैं। वो आप लोगों के न रहने से वहाॅ पर बिलकुल भी अच्छा महसूस नहीं कर रहे होंगे। इस लिए गुड़िया पवन और आशा जब उनके पास पहुॅच जाएॅगे तो उनका भी मन लगेगा वहाॅ।"

अभय चाचा की इस बात से माॅ ने तुरंत कुछ नहीं कहा। किन्तु वो अजीब भाव से निधी को देखती ज़रूर रहीं। ऐसी ही कुछ और बातों के बाद यही फैंसला हुआ कि निधी कल पवन व आशा के साथ मुम्बई चली जाएगी। इस बीच सवाल ये भी उठा कि पवन व आशा के चले जाने से रुक्मिणी यहाॅ पर अकेली कैसे रहेंगी? इस सवाल का हल ये निकाला गया कि पवन और आशा के जाने के बाद रुक्मिणी यहाॅ हवेली में हमारे साथ ही रहेंगी।

नास्ता पानी करने के बाद मैं, आदित्य व अभय चाचा बड़ी माॅ की तलाश में हवेली से निकल पड़े। अभय चाचा का स्वास्थ पहले से बेहतर था। हलाॅकि मैंने उन्हें अभी चलना फिरने से मना किया था किन्तु वो नहीं मान रहे थे। इस लिए हमने भी ज्यादा फिर कुछ नहीं कहा। दूसरे दिन निधी पवन व आशा के साथ मुम्बई के लिए निकल गई। गुनगुन रेलवे स्टेशन उनको छोंड़ने के लिए मैं और आदित्य गए थे। इस बीच मेरा दिलो दिमाग़ बेहद दुखी व उदास था। गुड़िया के बर्ताव ने मुझे इतनी पीड़ा पहुॅचाई थी कि इतनी पीड़ा अब तक किसी भी चीज़ से न हुई थी मुझे। मगर बिना कोई शिकवा किये मैं ख़ामोशी से ये सब सह रहा था। मैं इस बात से चकित था कि मेरी सबसे प्यारी बहन जो मेरी जान थी उसने दो महीने से मेरी तरफ देखा तक नहीं था बात करने की तो बात ही दूर थी।

ट्रेन में तीनो को बेठा कर मैं और आदित्य वापस हल्दीपुर लौट आए। मेरा मन बेहद दुखी था। आदित्य ने मुझसे पूछा भी कि क्या बात है मगर मैने उसे ज्यादा कुछ नहीं बताया बस यही कहा कि बड़ी माॅ और गुड़िया के जाने की वजह से कुछ अच्छा नहीं लग रहा है। एक हप्ते पहले आदित्य बड़ा खुश था जब रितू दीदी ने उसकी कलाई पर राखी बाॅधी थी। उसके दोनो हाॅथों में ढेर सारी राखियाॅ बाॅधी थी दीदी ने। जिसे देख कर आदित्य खुद को रोने से रोंक नहीं पाया था। उसके इस तरह रोने पर माॅ आदि सब लोग पहले तो चौंके फिर जब रितू दीदी ने सबको आदित्य की बहन प्रतीक्षा की कहानी बताई तो सब दुखी हो गए थे। सबने आदित्य को इस बात के लिए सांत्वना दी। माॅ ने तो ये तक कह दिया कि आज से वो मेरा बड़ा बेटा है और इस घर का सदस्य है। आदित्य ये सुन कर खुशी से रो पड़ा था। मेरी सभी बहनों ने राखी बाॅधी थी। गुड़िया ने भी मुझे राखी बाॅधा था किन्तु उसका बर्ताव वही था। उसके इस रूखे बर्ताव से सब चकित भी थे। माॅ ने तो पूछ भी लिया था कि ये सब क्या है मगर उसने बड़ी सफाई से बात को टाल दिया था।

हवेली आ कर मैं अपने कमरे में चला गया था। जबकि आदित्य अभय चाचा के पास ही बैठ गया था। सारा दिन मेरा मन दुखी व उदास रहा। जब किसी तरह भी सुकून न मिला तो उठ कर रितू दीदी के पास चला गया। मुझे अपने पास आया देख कर रितू दीदी मुस्कुरा उठीं। उनको भी पता चल गया था गुड़िया वापस मुम्बई चली गई है। मेरे चेहरे के भाव देख कर ही वो समझ गईं कि मैं गड़िया के जाने की वजह से उदास हूॅ।

मुझे यूॅ मायूस व उदास देख कर उन्होंने मुस्कुरा कर अपनी बाहें फैला दी। मैं उनकी फैली हुई बाहों के दरमियां हल्के से अपना सिर रख दिया। मेरे सिर रखते ही उन्होंने बड़े स्नेह भाव से मेरे सिर पर हाॅथ फेरना शुरू कर दिया। अभी मैं रितू दीदी की बाहों के बीच छुपका ही था कि तभी नैना बुआ भी आ गईं और बेड पर मेरे पास ही बैठ गईं।

"क्या बात है मेरा बेटा उदास है?" नैना बुआ ने मेरे सिर के बालों पर उॅगलियाॅ फेरते हुए कहा____"पर यूॅ उदास रहने से क्या होगा राज? अगर कोई बात है तो उसे आपस में सलझा लेना होता है।"

"सुलझाने के लिए मौका भी तो देना चाहिए न बुआ।" मैंने दीदी की बाहों से उठते हुए कहा___"खुद ही किसी बात का फैंसला ले लेना कहाॅ की समझदारी है? उसे ज़रा भी एहसास नहीं है उसके इस रवैये से मुझ पर आज दो महीने से क्या गुज़र रही है।"

"ये हाल तो उसका भी होगा राज।" रितू दीदी ने कहा___"वो तेरी लाडली है। ज़िद्दी भी है, इस लिए वो चाहती होगी कि पहल तू करे।"
"किस बात की पहल दीदी?" मैने अजीब भाव से उनकी तरफ देखा।
"मुझे लगता है कि ये बात तू खुद समझता है।" रितू दीदी ने एकटक मेरी तरफ देखते हुए कहा___"इस लिए पूछने का तो कोई मतलब ही नहीं है।"

मैं उनकी इस बात से उनकी तरफ ख़ामोशी से देखता रहा। नैना बुआ को समझ न आया कि किस बारे में रितू दीदी ने ऐसा कहा था। इधर मैं खुद भी हैरान था कि आख़िर रितू दीदी के ये कहने का क्या मतलब था? मैने रितू दीदी की तरफ देखा तो उनके होठों पर फीकी सी मुस्कान उभर आई थी। फिर जाने क्या सोच कर उनके मुख से निकलता चला गया।

कौन समझाए हमें के आख़िर ये बला क्या है।
दर्द में भी मुस्कुराऊॅ मैं, तो फिर सज़ा क्या है।।

हम जिस बात को लबों से कह नहीं सकते,
कोई उस बात को न समझे, इससे बुरा क्या है।।

रात दिन कुछ भी अच्छा नहीं लगता हमको,
इलाही ख़ैर हो, खुदा जाने ये माज़रा क्या है।।

समंदर में डूब कर भी हमारी तिश्नगी न जाए,
इस दुनियाॅ में इससे बढ़ कर बद्दुवा क्या है।।

अपनी तो बस एक ही आरज़ू है के किसी रोज़,
वो खुद आ कर कहे के बता तेरी रज़ा क्या है।।

रितू दीदी के मुख से निकली इस अजीबो ग़रीब सी ग़ज़ल को सुन कर मैं और नैना बुआ हैरान रह गए। दिलो दिमाग़ में इक हलचल सी तो हुई किन्तु समझ में न आया कि रितू दीदी ने इस ग़ज़ल के माध्यम से क्या कहना चाहा था?

रात में खाना पीना करके हम सब सो गए। दूसरे दिन नास्ता पानी करने के बाद मैं और आदित्य अभय चाचा के साथ फिर से बड़ी माॅ की खोज में निकल गए। ऐसे ही हर दिन होता रहा। किन्तु कहीं भी बड़ी माॅ के बारे में कोई पता न चल सका। हम सब इस बात से बेहद चिंतित व परेशान थे और सबसे ज्यादा हैरान भी थे कि बड़ी माॅ ने आख़िर ऐसी कौन सी जगह पर खुद को छुपा लिया था जहाॅ पर हम पहुॅच नहीं पा रहे थे। उनकी तलाश में ऐसे ही एक महीना गुज़र गया। इस बीच हमने सभी नात रिश्तेदारों को भी बता दिया था उनके बारे में। बड़ी माॅ के पिता जी यानी जगमोहन सिंह भी अपनी बेटी के बारे में सब कुछ जान कर बेहद दुखी हुए थे। किन्तु होनी तो हो चुकी थी। वो खुद भी अपनी बेटी के लापता हो जाने पर दुखी थे।

एक दिन अभय चाचा के कहने पर मैने रितू दीदी की मौजूदगी में बड़ी माॅ के कमरे में रखी आलमारी को खोला और उसमें से सारे काग़जात निकाले। उन काग़जातों में ज़मीन और जायदाद के दो हिस्से थे। तीसरा हिस्सा यानी कि अजय सिंह के हिस्से की ज़मीन व जायदाद तथा दौलत में से लगभग पछत्तर पर्शैन्ट हिस्सा मेरे नाम कर दिया गया था जबकि बाॅकी का पच्चीस पर्शेन्ट अभय चाचा के बेटे शगुन के नाम पर था। उसी आलमारी में कुछ और भी काग़जात थे जो दादा दादी के बारे में थे। उनमें ये जानकारी थी कि दादा दादी को कहाॅ पर रखा गया है?

सारे काग़जातों को देख कर मैने रितू दीदी से तथा अभय चाचा से बात की। मैने उनसे कहा कि मुझे उनके हिस्से का कुछ भी नहीं चाहिए बल्कि उनके हिस्से का सब कुछ रितू दीदी व नीलम के नाम कर दिया जाए। मेरी इस बात से अभय चाचा भी सहमत थे। जबकि रितू दीदी ने साफ कह दिया कि उन्हें कुछ नहीं चाहिए। मगर मैं ज़मीन जायदाद पर कोई ऐसी बात नहीं बनाना चाहता था जिससे भविष्य में किसी तरह का विवाद होने का चान्स बन जाए।

एक दिन हम सब दादा दादी से मिलने शिमला गए। शिमला में ही किसी प्राइवेट जगह पर उन्हें रखा था बड़े पापा ने। शिमला में हम सब दादा दादी से मिले। वो दोनो अभी भी कोमा में ही थे। उन्हें इस हाल में देख कर हम सब बेहद दुखी हो गए थे। डाक्टर ने बताया कि पिछले महीने उनकी बाॅडी पर कुछ मूवमेंट महसूस की गई थी। किन्तु उसके बाद फिर से वैसी ही हालत हो गई थी। डाक्टर ने कहा कि तीन सालों में ये पहली बार था जब पिछले महीने ऐसा महसूस हुआ था। उम्मीद है कि शायद उनके जिस्म में फिर कभी कोई मूवमेन्ट हो।

हमने डाक्टर से दादा दादी को साथ ले जाने के लिए कहा तो डाक्टर ने हमसे कहा कि घर ले जाने का कोई फायदा नहीं है, बल्कि वो अगर यहीं पर रहेंगे तो ज्यादा बेहतर होगा। क्योंकि यहाॅ पर उनकी देख भाल के लिए तथा किसी भी तरह की मूवमेन्ट का पता चलते ही डाक्टर उस बात को बेहतर तरीके से सम्हालेंगे।

डाक्टर की बात सुन कर माॅ ने कहा कि वो माॅ बाबू जी को साथ ही ले जाएॅगी। वो खुद उनकी बेहतर तरीके से देख भाल करेंगी। उन्होंने डाक्टर से ये कहा कि वो किसी क़ाबिल नर्स को हमारे साथ ही रहने के लिए भेज दें। काफी समझाने बुझाने और बहस के बाद यही फैंसला हुआ कि हम दादा दादी को अपने साथ ही ले जाएॅगे। डाक्टर अब क्या कर सकता था? इस लिए उसने हमारे साथ एक क़ाबिल नर्स को भेज दिया। शाम होने से पहले ही हम दादा दादी को लेकर हल्दीपुर आ गए थे।

बड़ी माॅ की तलाश ज़ारी थी। किन्तु अब इस तलाश में फर्क़ ये था कि हमने अपने आदमियों को चारो तरफ उनकी तलाश में लगा दिया था। पुलिस खुद भी उनकी तलाश में लगी हुई थी। अभय चाचा के कहने पर मैं भी अब अपनी पढ़ाई को आगे ज़ारी रखने के लिए मुम्बई जाने को तैयार हो गया था। मैं तो अपनी तरफ से यही कोशिश कर रहा था कि ये जो एक नया संसार बनाया था उसमे हर कोई सुखी रहे, मगर आने वाला समय इस नये संसार के लिए क्या क्या नई सौगात लाएगा इसके बारे में ऊपर बैठे ईश्वर के सिवा किसी को कुछ पता नहीं था।

~~~~~~~~~~समाप्त~~~~~~~~~~~~~

दोस्तो, आप सबके सामने इस कहानी का आख़िरी अपडेट हाज़िर है। उम्मीद करता हूॅ कि आप सबको पसंद आएगा।

हमेशा की तरह आप सबकी प्रतिक्रिया का इन्तज़ार रहेगा।
Greattt shubham bro. Mind blowing update. Superbbb writing.:applause::applause:

To aakhir is story ka the end ho hi gaya. But ending ke baad bhi abhi bahut kuchh baaki rah gaya hai bro jo shayad iske next part ke liye hai. Mujhe lagta hai iska next part bada hi intresting hoga.:coffee1:

Ritu sahi salamat hai ye bahut hua. Abhay singh ko agar kuch ho bhi jata to mujhe iska koi dukh nahi hota. Kyo ki ye character is story me kuchh khaas nahi tha.:coffee1:

Neelam to shayad ab apni maisi ke paas hi mumbai me rahegi. Usne apni badi bahan ke liye apne prem ka tyaag kiya hai. But kya wo apne dil se viraj ki mohabbat mita payegi? Is baat ka pata to shayad next part me hi chalega.:coffee1:

Nidhi ka behaviour kafi dilchasp hai. Jitna wo viraj se bach rahi hai wo utna hi khud ko taklif bhi de rahi hai. Ab dekhna ye hai ki ye jid aur sabr kab tak kaayam rahta hai.:coffee1:

Shiva ko umar kaid ho gayi hai. Maybe next part me iska koi role najar aaye. Sonam ke liye jo iske dil me prem hai wo kya rang layega agar ye umar kaid se bari ho jaye to.:coffee1:

Pratima ne to gajab kar diya bro. Jameen jaaydaad sab kuch lauta diya aur khud kahi chali gayi hai Apne paapo ka pashchataap karne ke liye. But mujhe shak hota hai ki kahi ye next part me koi rahasyamay kirdaar na ban kar aaye.:coffee1:

Is story ne apne end me bahut se sawaal chhode hain. Sab kuch waisa hi nahi hota jaisa ham chaahte hain. Story ke sheershak ke hisaab se story ka end behtar hai.:coffee1:

Iske next part ka besabri se intjaar rahega bro. Main janta hu ki is wakt aap behtar condition me nahi hain. Main dua karuga ki aapki dadi bahut jald theek ho jaye jisse aapka man shaant aur khushi se bhar jaye. Jab aisa hoga tabhi aap koi kaam behtar dhang se kar sakenge.:bigboss:

And :thanks: for the complete your thread. :celebconf:

:yourock::yourock::yourock:
 

Mr. Perfect

"Perfect Man"
1,434
3,733
143
Waaah The_InnoCent bhai kya shandaar update diya hai. Really fantastic update____

Har kahani ka end hota hai wahi huwa bhai. Kamaal ki story thi aur kamaal ki writing skill thi. Aisi story aur aisi writing skill bahut kam padhne ko milti hai. Aapne shuru se last tak story ko baadhe rakha isse aapki kaabiliyat ka pata chalta hai but bhai Jaisi ending ki ummeed thi waisi story ki ending nahi huyi. Thoda nirasha huyi mujhe is baat ki____

Neelam ne kurbani di, nidhi ne bhi kinara kar rakha hai but mohabbat ki tapis se ye kab tak khud ko bachaye rakhenge ye dekhne wali baat hogi____

Ajay singh ki maut ke baad pratima ne sab kuch lauta diya aur khud apne paapo ka prayashchit karne ke liye ghar baar chhod diya. Viraj aditya & abhay singh uski khoj kar rahe hain but uska kahi pata nahi chal raha. Dekhte hain next part me kya hoga____

Story ka end to huwa but bahut sare sawaalo ko khada karne ke baad. Ye sare sawaal next part ke liye hain. Ab dekhte hain next part me in sab ke sath kya kya hota hai. Bhai main ye nahi kahta ki aap abhi is story ka next part start karo bcoz abhi aap apni dadi ke liye pareshan honge. Meri bhagwan se dua hai ki aapki dadi jaldi se theek ho jaye. Uske baad aap fresh mind me iska next part start kijiye_____

Thanks you so much bhai is behtareen story ko ham sabke beech lane ke liye. Meri dua hai aap aisi hi behtareen stories hamare beech laate rahe_____
:flowers2::flowers2::flowers2::flowers2::flowers2::flowers2::flowers2::flowers2:


एक नया संसार
अपडेट.......《 63 》

अब तक,,,,,,,,
शिवा की इस बात पर कमिश्नर बुरी तरह हैरान रह गया। किन्तु अपराधी जब खुद ही अपना गुनाह कबूल कर रहा था तो भला उन्हें क्या आपत्ति हो सकती थी? कमिश्नर ने अपने साथ आए एक एसआई को इशारा किया। एसआई ने शिवा के हाॅथ से रिवाल्वर को रुमाल में लपेट कर लिया और फिर उसके दोनो हाॅथों में हॅथकड़ी डाल दी।

मैं दौड़ते हुए रितू दीदी के पास आया था। रितू दीदी को आदित्य अपनी गोंद में लिए बैठा था। रितू दीदी की साॅसें अभी चल रही थी। पवन अभय चाचा के पास चला गया था। जहाॅ पर प्रतिमा अभय की हालत को देख कर रो रही थी। अभय चाचा की हालत भी काफी ख़राब थी। उनका पूरा जिस्म उनके खून से नहाया हुआ था। प्रतिमा बार बार एक ही बात कह रही थी कि मुझे मर जाने दिया होता। मुझ पापिन को क्यों बचाया तुमने?

पुलिस सायरन की आवाज़ सुन कर इमारत के अंदर से बाॅकी सब लोग भी आ गए थे। यहाॅ का मंज़र देख कर सबकी चीख़ें निकल गई थी। माॅ ने जब मुझे सही सलामत देखा तो मुझे खुद से छुपका लिया और मेरे चेहरे पर हर जगह चूमने चाटने लगीं। मैने उन्हें खुद से अलग किया और बताया कि रितू दीदी व अभय चाचा को गोली लगी है। उन्हें जल्द ही हास्पिटल ले जाना पड़ेगा। मेरी बात सुन कर सब लोग रितू दीदी व अभय चाचा के पास आ गए।

रितू दीदी व अभय चाचा की हालत बहुत ख़राब थी। सब लोग रो रहे थे। मैं और पवन दौड़ते हुए कुछ ही दूरी पर खड़ी कई सारी गाड़ियों की तरफ गए। उनमें से एक गाड़ी को स्टार्ट कर मैं फौरन ही उसे इस तरफ ले आया। आदित्य ने रितू दीदी को उठा कर जल्दी से टाटा सफारी में बड़े एहतियात से बिठाया। रितू दीदी के बैठते ही नैना बुआ भी उनके पास आकर बैठ गईं। आदित्य भाग कर गया और दूसरी गाड़ी ले आया। उस गाड़ी में अभय चाचा को फौरन लेटाया गया। उसमें करुणा चाची व रुक्मिणी चाची बैठ गईं। दूसरी अन्य गाड़ियों में बाॅकी सब लोग भी बैठ गए। इसके बाद हम सब तेज़ी से गुनगुन की तरफ बढ़ चले।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

अब आगे,,,,,,,

ऑधी तूफान बने हम सब आख़िर हास्पिटल पहुॅच ही गए। जल्दी जल्दी हमने रितू दीदी व अभय चाचा को स्ट्रेचर पर लिटा कर हास्पिटल के अंदर ले गए। कुछ ही देर में उन दोनो को ओटी के अंदर ले जाया गया। उन्हें अंदर ले जाते ही ओटी का दरवाज़ा बंद हो गया और हम सब बाहर ही चिंता व परेशानी की हालत में खड़े रह गए।

हम सब बेहद दुखी थे और भगवान से उन दोनो को सलामत रखने की मिन्नतें कर रहे थे। करुणा चाची के ऑसू बंद ही नहीं हो रहे थे। कमिश्नर साहब ने पहले ही फोन करके यहाॅ पर डाक्टरों को बता दिया था ताकि यहाॅ पर किसी प्रकार की परेशानी न हो सके और जल्द ही उनका इलाज़ शुरू हो जाए।

बड़ी माॅ हम सब से अलग एक तरफ गुमसुम सी खड़ी थीं। उनकी माॅग का सिंदूर मिटा हुआ था तथा हाॅथ की चूड़ियाॅ भी कुछ टूटी हुई थीं। मतलब साफ था कि पति की मौत के बाद उन्होंने खुद को विधवा बना लिया था। इस वक्त उनके चेहरे पर संसार भर की वीरानी थी। ऑखों में सूनापन था।

अधर्म पर धर्म की तथा बुराई पर अच्छाई की जीत तो हो चुकी थी किन्तु इस जीत में सच्चाई की राह पर चलने वाले दो ब्यक्ति जीवन और मृत्यु के बीच लटके हुए थे। मैं रितू दीदी के लिए सबसे ज्यादा दुखी था। मेरी ऑखों के सामने रह रह कर उनकी सुंदर छवि चमक उठती थी। उनके साथ बिताए हुए हर लम्हें याद आ रहे थे। रितू दीदी ने शुरू से लेकर अब तक मेरा कितना साथ दिया था ये बताने की आवश्यकता नहीं है। अगर मैं ये कहूॅ तो ज़रा भी ग़लत न होगा कि इस जीत का सारा श्रेय ही उनको जाता है। उन्होंने क़दम क़दम पर मुझे सम्हाला था और मेरी रक्षा की थी। यूॅ तो मैं जीवन भर उनका ऋणी ही बन चुका था किन्तु एक ये भी सच्चाई थी कि मैं उन्हें किसी भी सूरत में खोना नहीं चाहता था। मैं बचपन से ही उन्हें बेहद पसंद करता था और उनके लिए कुछ भी कर गुज़रने की चाहत रखता था। अब तक तो नहीं पर अब लग रहा था कि अगर उन्हें कुछ हो गया तो मैं एक पल भी जी नहीं पाऊॅगा।

आदित्य मेरे पास आया और मुझसे बोला कि मैं खुद को सम्हालूॅ और सबको भी सम्हालूॅ। वो खुद भी बेहद दुखी था। उसने हम सबको अपना ही मान लिया था। उसने मुझे समझाया कि मैं खुद को मजबूत करूॅ वरना सब इस सबसे दुखी होते रहेंगे। आदित्य की बात सुन कर मैने खुद को सम्हाला और फिर सबको वहीं एक तरफ लम्बी सी बेंच में बैठ जाने के लिए कहा। मेरे ज़ोर देने पर आख़िर सब लोग बैठ ही गए। मेरी नज़र दूर एक तरफ खड़ी बड़ी माॅ पर पड़ी तो मैं उनके पास चला गया।

बड़ी माॅ कहीं खोई हुई सी खड़ी एकटक शून्य को घूरे जा रही थीं। मैं उनके पास जा कर उनके कंधे पर हाॅथ रखा तो जैसे उनकी तंद्रा टूटी। उन्होंने मेरी तरफ अजीब भाव से देखा और फिर बिना कुछ बोले फिर से शून्य में देखने लगीं। मैने बड़ी माॅ से भी बैठ जाने के लिए कहा तो वो मेरे साथ ही दूसरी साइड की बेंच की तरफ आईं और बैठ गईं। उनके पास ही मैं भी बैठ गया। हलाॅकि मेरे उनके पास बैठ जाने से सामने ही बेंच पर बैठे सब लोग मुझे घूर कर देखने लगे थे मगर मैने उनके घूरने की कोई परवाह नहीं की।

मेरे मन में बड़ी माॅ की उस वक्त की बातें गूॅज रही थी जब उन्होंने मुझे फोन किया था। इतना तो मुझे पता था कि हर इंसान को एक दिन अपने गुनाहों का एहसास होता है। वक्त और हालात इंसान को ऐसी जगह ला कर खड़ा कर देते हैं जब उसे शिद्दत से अपने गुनाहों का एहसास होने लगता है। वही हाल बड़ी माॅ का भी था। एक ये भी सच्चाई थी कि उन्होंने अपने पति से ऑख बंद करके तथा बिना कुछ सोचे समझे बेपनाह प्रेम किया था। जिसका सबूत ये था कि उन्होंने अजय सिंह के हर गुनाह में उसका खुशी खुशी साथ दिया था। उन्होंने कभी भी अपने पति से ये नहीं कहा कि वो ग़लत कर रहा है और वो ग़लत में उसका साथ नहीं देंगी। इंसान जब बार बार गुनाह करने लगता है तब उसका ज़मीर ख़ामोश होकर बैठ जाता है। या फिर इंसान ज़बरदस्ती अपने ज़मीर का करुण क्रंदन दबाता चला जाता है। मगर अंत तो हर चीज़ का एक दिन होता ही है। फिर चाहे वो जिस रूप में हो। ख़ैर, मेरे मन में बड़ी माॅ से फोन पर हुई वो सब बातें चल रही थीं।

बड़ी माॅ से फोन पर पहले तो मैने कठोरतापूर्ण ही बातें की थी किन्तु जब उन्होंने अभय चाचा की असलियत और अपने पति से उनके द्वारा फोन पर हुई बातों के बारे में बताया तो पहले तो मैं हॅसा था, क्योंकि मुझे लगा कि बड़ी माॅ मुझसे कोई चाल चलने का सोच रही हैं जिसमें वो अभय चाचा के खिलाफ ऐसी बातें बता कर मेरे मन में चाचा के प्रति शंका या दरार जैसा माहौल बनाना चाहती हैं। मगर उनकी बातों ने जल्द ही मुझे ये सोचने पर मजबूर कर दिया था कि भला उन्हें ऐसा करने की क्या ज़रूरत थी? दूसरी बात उन्होंने मुझसे कुछ ऐसी बातें भी कीं जिन बातों की मैं उनसे उम्मींद ही नहीं कर सकता था।

काफी समय तक हम सब ऐसे ही बैठे रहे थे। हम सबकी साॅसें हमारे हलक में अटकी हुई थी।
ना चाहते हुए भी मन में ऐसे भी ख़याल आ जाते जिनके तहत हमारे जिस्म का रोयाॅ रोयाॅ तक काॅप जाता था। आख़िर लम्बे इन्तज़ार के बाद ओटी के ऊपर लगा लाल बल्ब बुझा और फिर दरवाजा खुला। दरवाज़ा खुलते ही हम सब एक साथ ही खड़े होकर डाक्टर के पास तेज़ी से पहुॅचे।

"डाक्टर साहब।" सबसे पहले माॅ गौरी ने ही ब्याकुल भाव से पूछा___"मेरा बेटा और बेटी कैसी है अब? वो दोनो ठीक तो हैं न? जल्दी बताइये डाक्टर साहब। वो दोनो ठीक तो है न?"

गौरी माॅ की ब्याकुलता को देख कर डाक्टर तुरंत कुछ न बोला। ये देख कर हम सब पलक झपकते ही घबरा गए। एक साथ हम सब डाक्टर पर चढ़ दौड़े। करुणा चाची बुरी तरह रोने लगी थी। उन्हें इस तरह रोते देख दिव्या भी रोने लगी थी। हम सब को इस तरह ब्यथित देख डाक्टर के चेहरे के भाव बदले।

"आप सबको इस तरह।" डाक्टर ने कहा___"दुखी होने की ज़रूरत नहीं है। वो दोनो ही अब खतरे से बाहर हैं। हमने उनके शरीर से बुलेट निकाल दी है। फिलहाल वो खतरे से बाहर हैं किन्तु खून ज्यादा बह जाने से उनकी हालत अभी बेहतर नहीं है। ख़ैर अभी तो वो दोनो बेहोश हैं। इस लिए आप लोग उनसे बात नहीं कर सकते हैं।"

डाक्टर की बात सुन कर हम सबके निस्तेज पड़ चुके चेहरों पर जैसे नई ताज़गी सी आ गई। हम सब एक दूसरे की तरफ देख देख कर एक दूसरे से कहने लगे कि सब ठीक है। डाक्टर कुछ और भी बातें बता कर चला गया। उसके जाते ही हम सबने ईश्वर का लाख लाख धन्यवाद किया। गौरी माॅ को अचानक ही जाने क्या हुआ कि वो पलटी और गैलरी में एक तरफ को लगभग दौड़ते हुई गईं। हम सब उन्हें इस तरह जाते देख चौंके तथा साथ ही हम सब भी उनके पीछे की तरफ तेज़ी से बढ़ चले।

कुछ ही देर में हम सब जिस जगह उनका पीछा करते हुए पहुॅचे उस जगह का दृष्य देख कर हम सबकी ऑखें नम हो गईं। दरअसल वो गणेश जी का एक छोटा सा मंदिर था। जिसके सामने अपने दोनो हाॅथ जोड़े बैठी गौरी माॅ नज़र आईं हमें। हम सब भी उनके पास जाकर गणेश जी के सामने अपने अपने हाॅथ जोड़ कर खड़े हो गए। गणेश जी की मूर्ति के सामने खड़े हो कर हम सबने उनकी स्तुति की और उनकी इस कृपा के लिए हम सबने उन्हें सच्चे दिल से धन्यवाद दिया।

जैसा कि डाक्टर ने बताया था कि अभी रितू दीदी व अभय चाचा बेहोश हैं। अतः हम सब उनके होश में आने की प्रतीक्षा करने लगे थे। ख़ैर दिन ढल चुका था। मुझे पता था कि इस सबके चक्कर में किसी ने सुबह से कुछ खाया भी नहीं था। अतः मैंने आदित्य व पवन को साथ लिया और पास के ही एक होटेल से सबके लिए खाने पीने का प्रबंध किया। मेरे और आदित्य के ज़ोर देने पर आख़िर सबको थोड़ा बहुत खाना ही पड़ा। हलाॅकि इसके लिए कोई तैयार नहीं था क्योंकि आज हमारे परिवार के एक बड़े सदस्य की मौत हो चुकी थी तथा दूसरा अपने पिता के कत्ल के इल्ज़ाम में गिरफ्तार हो चुका था। निश्चय ही उसे या तो फाॅसी की सज़ा होगी या फिर ऊम्र कैद।

वो दोनो बुरे ही सही किन्तु उनसे खून का रिश्ता तो था ही। फार्महाउस पर कदाचित अभी भी अजय सिंह का मृत शरीर पड़ा होगा। हम सब तो रितू दीदी व अभय चाचू को लेकर हास्पिटल आ गए थे। उसके बाद वहाॅ पर अजय सिंह की लाश यूॅ ही लावारिश ही पड़ी रह गई होगी। या फिर ऐसा हुआ होगा कि कमिश्नर ने इस पर कोई कानूनी प्रक्रिया की होगी। जिसके तहत वो अजय सिंह की लाश का पंचनामा कर उसे पोस्टमार्डम के लिए ले गए होंगे। इस बारे में हमें कोई जानकारी अभी तक मिली नहीं थी, बल्कि ये महज हम सबका ख़याल ही था।
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उस वक्त रात के दस बज रहे थे जब हास्पिटल की एक नर्स ने आ कर हमें बताया कि रितू दीदी व अभय चाचू को होश आ गया है। हम सब नर्स की ये बात सुन कर बेहद खुश हुए और फिर फौरन ही हम सब उस कमरे में पहुॅचे जहाॅ पर रितू दीदी व अभय चाचू को शिफ्ट किया गया था। हम सबने उन दोनो को सही सलामत देखा तो जान में जान आई। करुणा चाची अभय के पास जा कर रोने लगी थी। ये देख कर माॅ ने उन्हें समझाया कि अब उसे रोना नहीं चाहिए बल्कि खुश होना चाहिए कि ईश्वर ने सब कुछ ठीक कर दिया है।

मैं रितू दीदी के पास ही बैठ गया था और एकटक उनके चेहरे की तरफ देख रहा था। वो खुद भी मुझे देखे जा रही थी। उनकी ऑखों में खुशी के ऑसू थे तथा होंठ कुछ कहने के लिए काॅपे जा रहे थे। ये देख कर मैने उन्हें इशारे से ही शान्त रहने को कहा और फिर झुक कर उनके माथे पर चूम लिया। मेरे ऐसा करते ही उनकी ऑखें बंद हो गईं। ऐसे जैसे कि मेरे ऐसा करने से उन्हें कितना सुकून मिला हो। नीलम, सोनम दीदी, आशा दीदी, निधी व दिव्या पास ही चारो तरफ से घेरे खड़ी थीं।

यहाॅ पर मुझे एक चीज़ बहुत अजीब लग रही थी और वो था बड़ी माॅ का बिहैवियर। वो हम सबसे अलग दूर खड़ी थीं। दूर से ही वो अपनी बेटी रितू को देख रही थी। उनकी ऑखों में ऑसू थे। उनसे कोई बात नहीं कर रहा था और ना ही वो किसी से बात करने की कोई कोशिश कर रही थीं। उन्होंने तो जैसे खुद को हम सबसे अलग समझ लिया था।

उस रात हम सब हास्पिटल में ही रहे। दूसरे दिन डाक्टर से मिले तो डाक्टर ने कुछ दिन बेड रेस्ट के लिए यहीं रहने का कहा। इस बीच कमिश्नर साहब भी हमसे मिलने आए और सबका हाल अहवाल लिया। रितू दीदी से वो बड़े प्यार से मिले तथा उन्हें ये भी कहा कि उन्हें उन पर नाज़ है। कमिश्नर साहब ने बताया कि अजय सिंह की डेड बाॅडी पोस्टमार्डम के बाद आज दोपहर तक मिल जाएगी। ताकि हम उनका अंतिम संस्कार कर सकें।

अभय चाचा के बार बार ज़ोर देने पर माॅ इस बात पर राज़ी हुई कि वो बाॅकी सबको लेकर गाॅव जाएॅ। अभय चाचा ने बड़ी माॅ से भी आग्रह किया कि वो सबके साथ गाॅव जाएॅ। मैने नैना बुआ आदि को पवन के साथ ही हवेली जाने का कह दिया। जबकि मैं और आदित्य रितू दीदी व अभय चाचा के पास ही रुकना चाहते थे।

आख़िर बहुत समझाने बुझाने के बाद सब जाने के लिए राज़ी हुए। हास्पिटल से बाहर आकर मैने सबको गाड़ियों में बैठा दिया। मैने केशव जी को फोन करके बुला लिया था। सारी घटना के बारे में जान कर पहले तो वो हैरान हुए उसके बाद खुश भी हुए। मैने उनके कुछ आदमियों को माॅ लोगों के साथ हल्दीपुर जाने के लिए उनसे कहा। केशव जी मेरी बात तुरंत मान गए और फिर उन्होंने सीघ्र ही अपने आदमियों बुला लिया।

करुणा चाची जाने को तैयार ही नहीं हो रही थी। मैने बड़ी मुश्किल से उन्हें समझाया और कहा कि वो किसी बात की फिक्र न करें। ख़ैर उन सबके जाने के बाद मैने कमिश्नर साहब से शिवा के बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि उन्होंने शिवा से बात की थी कि वो चाहे तो कानून से छूट सकता है। किन्तु शिवा अपनी बात पर अडिग है। उसका कहना है कि वो इस जीवन से मुक्ति चाहता है। उसमें अब इतनी हिम्मत नहीं है कि वो वापस सबके बीच रह सके। सारी ज़िंदगी वो सबके सामने शर्म से गड़ा रहेगा और चैन से जी नहीं पाएगा। शिवा के न मानने पर ही कमिश्नर साहब ने केस फाइल किया। अपने बाप की चिता को आग देने के लिए उसे यहाॅ लाया जाएगा उसके बाद पुलिस उसे वापस जेल में बंद कर देगी। अदालत का फैसला क्या होगा इसका पता चलते ही उस पर कानूनी कार्यवाही होगी।

कमिश्नर साहब के जाने के बाद मैं और आदित्य वापस रितू दीदी व अभय चाचा के पास आ गए। अभय चाचा ने मुझसे कहा कि मैं इस सबके बारे में अपनी बड़ी बुआ यानी सौम्या बुआ को भी बता दूॅ और यहाॅ बुला लूॅ। फोन पर सारी बातें बताना उचित नहीं था। चाचा की बात सुन कर मैने बुआ को फोन लगाया। थोड़ी ही देर में दूसरी तरफ से बुआ की आवाज़ मेरे कानों में पड़ी। मैने उन्हें अपना परिचय दिया और जल्द से जल्द हल्दीपुर आने को कहा। मेरे इस तरह बुलाने पर वो चिंतित होकर पूछने लगीं कि बात क्या है? उनके पूछने पर मैने बस यही कहा कि आप बस आ जाइये।

शाम होते होते कमिश्नर साहब की मौजूदगी में शिवा ने अपने बाप अजय सिंह की चिता को अग्नि दे दी। हल्दीपुर ही नहीं बल्कि आस पास के गाॅव में भी ये ख़बर जंगल की आग की तरह फैल गई थी कि ठाकुर गजेन्द्र सिंह बघेल का बड़ा बेटा अब इस दुनियाॅ में नहीं रहा। शमशान पर लोगों की भारी भीड़ जमा थी। आदित्य को रितू दीदी व अभय चाचू के पास छोड़ कर मैं भी गाॅव आ गया था।

सौम्या बुआ आ चुकी थी। यहाॅ आ कर जब उन्हें अपने भाई की मौत का पता चला तो वो दहाड़ें मार मार कर रोने लगी थी। किन्तु बड़ी माॅ ने उन्हें सम्हाल लिया था और कठोर भाव से ये भी कहा कि ऐसे इंसान के मरने का शोक मत करो जिसने अपने जीवन में किसी के साथ कोई अच्छा काम ही न किया हो। बड़ी माॅ की ऐसी बातें सुन कर सौम्या बुआ हतप्रभ रह गई थीं। उन्हें थोड़ी बहुत पता तो था किन्तु सारी असलियत से वो अंजान थीं।

सारी क्रिया संपन्न होते ही सब अपने अपने घर चले गए। इधर हवेली में हर तरफ एक भयावह सा सन्नाटा फैला हुआ था। हवेली के नौकर चाकर सब संजीदा थे। सौम्या बुआ के साथ उनके पति भी आए थे। मैने उनसे सब का ख़याल रखने का कहा और जीप लेकर वापस गुनगुन आ गया। ऐसे ही एक हप्ता गुज़र गया। मैं और आदित्य डाक्टर की परमीशन से रितू दीदी व अभय चाचा को हास्पिटल से घर ले आए। दोनो की हालत अभी नाज़ुक ही थी। इस लिए उनकी देख रेख के लिए सब मौजूद थे।

तेरवीं के दिन ब्राम्हणों को भोज कराया गया। सभी नात रिश्तेदार आए हुए थे। सबकी ज़ुबान पर बस एक ही बात थी कि ठाकुर खानदान में ये अचानक क्या हो गया है? हलाॅकि इतना तो सब समझते थे कि ठाकुर खानदान में कुछ सालों से ग्रहण सा लगा हुआ था। दबी ज़मान में तो लोग ये भी कहते थे कि अजय सिंह ने घर की खुशियों में खुद आग लगाई थी। ख़ैर, एक दिन कमिश्नर साहब का फोन आया उन्होंने बताया कि अदालत ने शिवा को ऊम्र कैद की सज़ा सुनाई है। ये जान कर हम सबको बहुत अजीब लगा था। शिवा ने अपनी मर्ज़ी से अपने इस अंजाम का चुनाव किया था, जबकि वो चाहता तो बड़े आराम से वो कत्ल के इल्ज़ाम से बरी हो जाता। बल्कि अगर ये कहा जाए तो ग़लत न होगा कि उस पर कत्ल जैसा कोई इल्ज़ान लगता ही नहीं। मेरे ज़हन में उससे अंतिम मुलाक़ात की वो सब बातें घूम रहीं थी। मैं समझ सकता था कि वह एकदम से जुनूनी हो चुका था। उसकी सोच ऐसी हो चुकी थी कि उसे कोई समझा नहीं सकता था।

अजय सिंह की मौत के बारे में मैने जगदीश ओबराय को पहले ही सब कुछ बता दिया था। वो ये जान कर आश्चर्यचकित थे कि अभय चाचा ने इतना बड़ा धोखा किया था हमारे साथ। तेरवीं के दिन जगदीश ओबराय हमारे गाॅव आए थे। एक दो दिन रुक कर वो वापस मुम्बई चले गए थे। साथ ही हम सबको समझाया बुझाया भी था कि अब हम सब एक नये सिरे से जीवन पथ पर आगे बढ़ें। जाते समय वो थोड़ा मायूस लगे मुझे तो मैने और माॅ ने उनसे पूॅछ ही लिया कि क्या बात है? हमारे पूछने पर उन्होंने बस इतना ही कहा कि वो अकेले मुम्बई में रह नहीं पाएॅगे। उनकी बातों को हम बखूबी समझते थे। इस लिए उन्हें तसल्ली दी कि वो फिक्र न करें। माॅ ने कहा कि राज और गुड़िया की तो पढ़ाई ही चल रही है अभी। इस लिए वो बहुत जल्द मुम्बई आ जाएॅगे।

जैसा कि आप सबको पता है कि हवेली में तीनों भाइयों का बराबर हिस्सा था तथा हवेली बनाई भी इस तरह गई थी कि सबको बराबर बराबर मिल सके। अतः हवेली में आते ही हम सब अपने अपने हिस्सों में रहने लगे थे। किन्तु इसमें नई बात ये थी कि हम सबका खाना पीना एक ही रसोई में बनने लगा था। रितू दीदी व अभय चाचा की सेहत में काफी सुधार हो गया था। रितू दीदी हमारे हिस्से पर ही एक कमरे में रह रही थीं। बड़ी माॅ(प्रतिमा) अपने हिस्से पर अकेली रहती थी। वो किसी से कोई बात नहीं करती थी और ना ही किसी के सामने आती थी। सारा दिन और रात वो अपने कमरे में ही रहती। रितू दीदी व नीलम उनसे कोई बात नहीं करती थीं। हलाॅकि ऐसा नहीं होना चाहिए था मगर कदाचित दिलो दिमाग़ से वो सब बातें अभी निकली नहीं थी। इस लिए उनसे कोई बात करना ज़रूरी नहीं समझता था। हलाॅकि मैं आदित्य व पवन उनसे बात करते थे और उनके लिए दोनो टाइम का खाना व चाय नास्ता मैं ही लेकर उनके पास जाता था और तब तक उनके पास रहता जब तक कि वो खा नहीं लेती थी।

ऐसे ही समय गुज़र रहा था। धीरे धीरे सब नार्मल हो रहे थे। किन्तु एक चीज़ ऐसी थी जिसने मुझे दुखी किया हुआ था और वो था गुड़िया(निधी) का मेरे प्रति बर्ताव। इतना कुछ होने के बाद और इतने दिन गुज़र जाने के बाद मैने ये देखा था कि उसने मुझसे कोई बात नहीं की थी और ना ही मेरे सामने आने की कोई ख़ता की थी। मैं समझ नहीं पा रहा था कि अपने दिल की इस धड़कन को कैसे मनाऊॅ? मेरे मन में कई बार ये विचार आया कि मैं उसके पास जाऊॅ और उससे बातें करूॅ। उससे पूछूॅ कि ऐसा क्या हो गया है कि उसने मुझसे बात करने की तो बात दूर बल्कि मेरे सामने आना भी बंद कर रखा है? मगर मैं चाह कर भी ऐसा कर नहीं पा रहा था क्योंकि गुड़िया के पास हर समय आशा दीदी बनी रहती थी। अपनी इस बेबसी को मैं किसी के सामने ज़ाहिर भी नहीं कर सकता था।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

ऐसे ही कुछ दिन और गुज़र गए। नीलम तो अब लगभग पूरी तरह ठीक ही हो गई थी। उसकी पीठ का ज़ख्म भी अब ठीक हो चला था। मैं नीलम को अक्सर छेंड़ता रहता था, जिसके जवाब में वो बस मुस्कुरा कर रह जाती थी। मैं उसकी इस प्रतिक्रया से हैरान भी होता और मायूस भी। हैरान इस लिए क्योंकि वो मेरे छेंड़ने पर जवाब में खुद भी मुझे छेंड़ने का कोई उपक्रम नहीं करती थी बल्कि सिर्फ मुस्कुरा कर रह जाती थी। जबकि मायूस इस लिए क्योंकि मैं उससे यही उम्मींद करता था कि वो भी मुझें छेंड़े अथवा मुझसे लड़े झगड़े। मगर जब वो ऐसा न करती तो मैं बस मायूस ही हो जाता था। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि नीलम ऐसा क्यों कर रही थी। मैं महसूस कर रहा था कि नीलम कुछ दिनों से बड़ी अजीब अजीब सी बातें करती थी। उसकी बातों में सबसे ज्यादा इसी बात पर ज़ोर होता था कि मैं रितू दीदी का हमेशा ख़याल रखूॅ और उन्हें कभी दुखी न होने दूॅ।

एक दिन सुबह के लगभग आठ बजे सोनम दीदी व नीलम अपने अपने हाॅथों में छोटा सा बैग लिए तथा तैयार होकर हम सबके बीच आईं और माॅ(गौरी) से कहा कि वो मुम्बई जा रही हैं। कारण ये था कि उनके काॅलेज की पढ़ाई का नुकसान हो रहा था। बात पढ़ाई की थी इस लिए किसी ने उन दोनो को जाने से मना नहीं किया। जाते वक्त नीलम मेरे गले लग मुझसे मिली और एक पुनः उसने रितू दीदी का तथा सबका ख़याल रखने का कहा और फिर मेरी तरफ अजीब भाव से देखने के बाद वह पलट कर सोनम दीदी के साथ हवेली से बाहर निकल गई।

नीलम के जाने से मुझे ऐसा लगा जैसे मेरा कुछ छूटा जा रहा है। नीलम की ऑखों में ऑसू के क़तरे थे। जिन्हें उसने बड़ी सफाई से पोंछ लिया था। दूसरे दिन रुक्मिणी चाची ने हम सबसे अपने घर जाने को कहा। माॅ ने उनसे कहा भी मगर वो नहीं मानी। अतः उन्हें उनके सामान के साथ उनके घर भेज दिया गया। माॅ ने उनसे कहा था कि उनका जब भी दिल करे वो यहाॅ आती रहें।

हम सब अब फिर से एक साथ हो गए थे। इस बात से गाॅव के लोग भी काफी खुश थे। दिन भर किसी न किसी का आना जाना लगा ही रहता था हवेली पर। अभय चाचा व मैं उन सबसे मिलते और दुनियाॅ जहान की बातें होतीं। बड़ी माॅ का रवैया वही था यानी वो अपने कमरे से बाहर नहीं निकलती थीं। पवन लोगों के जाने के बाद मुझे लगा कि अब गुड़िया से बात करने का मौका मिलेगा मगर मेरी उम्मीदों पर पानी फिर गया। क्योंकि आशा दीदी के जाने के बाद गुड़िया का सारा समय उनके घर पर ही गुज़रता था और रात में भी वो उनके घर पर ही सो जाती थी। हवेली में अगर वो आती भी तो दिव्या व रितू दीदी के पास ही रहती। कहने का मतलब ये कि वो खुद को अकेली रखती ही नहीं थी। कदाचित उसे अंदेशा था कि मैं उससे मिलने की तथा उससे बात करने की कोशिश करूॅगा। गुड़िया के इस रवैये से मेरा दिल बहुत दुखी होने लगा था। एक नये संसार का ये रूप देख कर मैं ज़रा भी खुश नहीं था।

मेरा ज्यादातर समय या तो रितू दीदी के पास रहने से या फिर आदित्य के साथ ही गुज़र रहा था। एक दिन अभय चाचा ने कहा कि जब तक उनका स्वास्थ सही नहीं हो जाता मैं खेतों की तरफ का हाल चाल देख लिया करूॅ। चाचा की इस बात से मैं और आदित्य खेतों पर गए और वहाॅ पर सब मजदूरों से मिला। खेतों पर काम कर रहे सभी मजदूर मुझे वहाॅ पर इस तरह देख कर बेहद खुश हो गए थे। सबकी ऑखों में खुशी के ऑसू थे। सब एक ही बात कह रहे थे कि हम अपने जिन मालिक को(मेरे पिता जी) देवता की तरह मानते थे उनके जाने के बाद हम सब बेहद दुखी थे। अजय सिंह ने तो हमेशा हम पर ज़ुल्म ही किया था। किन्तु अब वो फिर से खुश हो गए थे। अपने असल मालिक की औलाद को देख कर वो खुश थे और चाहते थे कि अब वैसा कोई बुरा समय न आए।

एक दिन सुबह जब मैं बड़ी माॅ के लिए चाय नास्ता देने उनके कमरे में गया तो कमरे में बड़ी माॅ कहीं भी नज़र न आईं। उनकी तरफ का सारा हिस्सा छान मारा मैने मगर बड़ी माॅ का कहीं पर भी कोई नामो निशान न मिला। इस बात से मैं भचक्का रह गया। मुझे अच्छी तरह याद था कि जब मैं रात में उनके पास उन्हें खाना खिलाने आया था तब वो अपने कमरे में ही थीं। मैने अपने हाॅथ से उन्हें खाना खिलाया था। हर रोज़ की तरह ही मेरे द्वारा खाना खिलाते समय उनकी ऑखें छलक पड़तीं थी। मैं उन्हें समझाता और कहता कि जो कुछ हुआ उसे भूल जाइये। मेरे दिल में उनके लिए कोई भी बुरा विचार नहीं है।

मैं कमरे को बड़े ध्यान से देख रहा था, इस उम्मीद में कि शायद कोई ऐसा सुराग़ मिल जाए जिससे मुझे पता सके कि बड़ी माॅ कहाॅ गई हो सकती हैं। मगर लाख सिर खपाने के बाद भी मुझे कुछ न मिला। थक हार कर मैं कमरे से ही क्यों बल्कि उनके हिस्से से ही बाहर आ गया। अपनी तरफ डायनिंग हाल में आकर मैने अभय चाचा से बड़ी माॅ के बारे में सब कुछ बताया। मेरी बात सुन कर अभय चाचा और बाॅकी सब भी हैरान रह गए। इस सबसे हम सब ये तो समझ ही गए थे कि बड़ी माॅ शायद हवेली छोंड़ कर कहीं चली गई हैं। उनके जाने की वजह का भी हमें पता था। इस लिए हमने फैसला किया कि बड़ी माॅ की खोज की जाए।

नास्ता पानी करने के बाद मैं आदित्य अभय चाचा बड़ी माॅ की खोज में हवेली से निकल पड़े। अपने साथ कुछ आदमियों को लेकर हम निकले। अभय चाचा अलग गाड़ी में कुछ आदमियों के साथ अलग दिशा में चले जबकि मैं और आदित्य दूसरी गाड़ी में कुछ आदमियों के साथ दूसरी दिशा में। हमने आस पास के सभी गाॅवों में तथा शहर गुनगुन में भी सारा दिन बड़ी माॅ की तलाश में भटकते रहे मगर कहीं भी बड़ी माॅ का पता न चला। रात हो चली थी अतः हम लोग वापस हवेली आ गए। हवेली आ कर हमने सबको बताया कि बड़ी माॅ का कहीं भी पता नहीं चल सका। इस बात से सब बेहद चिंतित व परेशान हो गए।

नीलम तो मुम्बई जा चुकी थी, उसे इस बात का पता ही नहीं था। रितू दीदी को मैने बताया तो उन्होंने कोई जवाब न दिया। उनके चेहरे पर कोई भाव न आया था। बस एकटक शून्य में घूरती रह गई थी। उस रात हम सब ना तो ठीक से खा पी सके और ना ही सो सके। दूसरे दिन फिर से बड़ी माॅ की तलाश शुरू हुई मगर कोई फायदा न हुआ। हमने इस बारे में पुलिश कमिश्नर से भी बात की और उनसे कहा कि बड़ी माॅ की तलाश करें।

चौथे दिन सुबह हम सब नास्ता करने बैठे हुए थे। नास्ते के बाद एक ही काम था और वो था बड़ी माॅ की तलाश करना। नास्ता करते समय ही बाहर मुख्य द्वार को किसी ने बाहर से खटखटाया। दिव्या ने जाकर दरवाज़ा खोला तो बाहर एक आदमी खड़ा था। उसकी पोशाक से ही लग रहा था कि वो पोस्टमैन है। दरवाजा खुलते ही उसने दिव्या के हाॅथ में एक लिफाफा दिया और फिर चला गया।

दिव्या उससे लिफाफा लेकर दरवाज़ा बंद किया और वापस डायनिंग हाल में आ गई। हम लोगों के पास आते ही दिव्य ने वो लिफाफा अभय चाचा को पकड़ा दिया। अभय चाचा ने लिफाफे को उलट कर देखा तो उसमें मेरा नाम लिखा हुआ था। ये देख कर अभय चाचा ने लिफाफा मेरी तरफ सरका दिया।

"ये तुम्हारे नाम पर आया है राज।" अभय चाचा ने मेरी तरफ देखते हुए कहा___"देखो तो क्या है इसमें?"
"जी अभी देखता हूॅ चाचा जी।" मैने कहने के साथ ही टेबल से लिफाफा उठा लिया और फिर उसे एक तरफ से काट कर खोलने लगा। लिफाफे में एक तरफ मेरा नाम व पता लिखा हुआ था तथा दूसरी तरफ भेजने वाले के नाम में "नारायण रस्तोगी" तथा उसका पता लिखा हुआ था।

लिफाफे के अंदर तह किया हुआ कोई काग़ज था। मैने उसे निकाला और फिर उस तह किये हुए काग़ज को खोल कर देखा। काग़ज में पूरे पेज पर किसी की हैण्डराइटिंग से लिखा हुआ कोई मजमून था। मजमून का पहला वाक्य पढ़ कर ही मैं चौंका। मैने लिफाफे को उलट कर भेजने वाले का नाम पुनः पढ़ा। मुझे समझ न आया कि ये नारायण रस्तोगी कौन है और इसने मेरे नाम ऐसा कोई ख़त क्यों लिखा है? जबकि मेरी समझ में इस नाम के किसी भी ब्यक्ति से मेरा दूर दूर तक कोई वास्ता ही नहीं था। मुझे हैरान व चौंकते हुए देख अभय चाचा ने पूछ ही लिया कि क्या बात है? मैने उन्हें बताया लिफाफा भेजने वाले को तो मैं जानता ही नहीं हूॅ फिर इसने मेरे नाम पर ये लिफाफा क्यों भेजा हो सकता हैं? अभय चाचा ने पूछा कि ख़त में क्या लिखा है उसने? उनके पूछने पर मैंने ख़त में लिखे मजमून को सबको सुनाते हुए पढ़ने लगा। खत में लिखा मजमून कुछ इस प्रकार था।

मेरे सबसे अच्छे बेटे राज!
सबसे पहले तो यही कहूॅगी कि तू वाकई में एक देवता जैसे इंसान का नेकदिल बेटा है और मुझे इस बात की खुशी भी है कि तू अच्छे संस्कारों वाला एक सच्चा इंसान है। ईश्वर करे तू इसी तरह नेकदिल बना रहे और सबके लिए प्यार व सम्मान रखे। जिस वक्त तुम मेरे द्वारा लिखे ख़त के इस मजमून को पढ़ रहे होगे उस वक्त मैं इस हवेली से बहुत दूर जा चुकी होऊॅगी। मुझे खोजने की कोशिश मत करना बेटे क्योंकि अब मेरे अंदर इतनी हिम्मत व साहस नहीं रहा कि मैं तुम सबके बीच सामान्य भाव से रह सकूॅ। जीवन में जिसके लिए सबके साथ बुरा किया उसने खुद कभी मेरी कद्र नहीं की। मेरी बेटियाॅ मुझे देखना भी गवाॅरा नहीं करती हैं, और करे भी क्यों? ख़ैर, मुझे उनसे कोई शिकायत नहीं है बेटे। दिल से बस यही दुवा व कामना है कि वो जीवन में सदा सुखी रहें।
मेरा जीवन पापों से भरा पड़ा है। मैने ऐसे ऐसे कर्म किये हैं जिनके बारे में सोच कर ही अब खुद से घृणा होती है। मुझमें अब इतनी हिम्मत नहीं है कि मैं किसी को अपना मुह भी दिखा सकूॅ। आत्मग्लानी, शर्म व अपमान का बोझ इतना ज्यादा है कि इसके साथ अब एक पल भी जीना मुश्किल लग रहा है। बार बार ज़हन में ये विचार आता है कि खुदखुशी कर लूॅ और इस पापी जीवन को खत्म कर दूॅ मगर मैं ऐसा भी नहीं करना चाहती। क्योंकि जीवन को खत्म करने से ईश्वर मुझे कभी माफ़ नहीं करेगा। मुझे इस सबका प्रयाश्चित करना होगा बेटे, बग़ैर प्रयाश्चित के भगवान भी मुझे अपने पास फटकने नहीं देगा। इस लिए बहुत सोच समझ कर मैने ये फैसला किया है कि मैं तुम सबसे कहीं दूर चली जाऊॅ और अपने पापों का प्रयाश्चित करूॅ। तुम सबके बीच रह कर मैं ठीक से प्रयाश्चित नहीं कर सकती थी।
ज़मीन जायदाद के सारे काग़जात मैने अपनी आलमारी में रख दिये हैं बेटा। वकील को मैने सब कुछ बता भी दिया है और समझा भी दिया है। अब इस सारी ज़मीन जायदाद के सिर्फ दो ही हिस्से होंगे। पहला तुम्हारा और दूसरा अभय का। मैने अपने हिस्से का सबकुछ तुम्हारे नाम कर दिया है। कुछ हिस्सा अभय के बेटे के नाम भी कर दिया है। इसे लेने से इंकार मत करना बेटे, बस ये समझ लेना कि एक माॅ ने अपने बेटे को दिया है। मुझे पता है कि तुम्हारे अंदर मेरे प्रति वैसा ही आदर सम्मान है जैसा कि तुम्हारा अपनी माॅ के प्रति है। ख़ैर, इसी आलमारी में वो कागजात भी हैं जो तुम्हारे दादा दादी से संबंधित हैं। उन्हें तुम देख लेना और अपने दादा दादी के बारे में जान लेना।
अंत में बस यही कहूॅगी बेटे कि सबका ख़याल रखना। अब तुम ही इस खानदान के असली कर्ताधर्ता हो। मुझे यकीन है कि तुम अपनी सूझ बूझ व समझदारी से परिवार के हर सदस्य को एक साथ रखोगे और उन्हें सदा खुश रखोगे। अपनी माॅ का विशेष ख़याल रखना बेटे, उस अभागिन ने बहुत दुख सहे हैं। हमारे द्वारा इतना कुछ करने के बाद भी उस देवी ने कभी अपने मन में हमारे प्रति बुरा नहीं सोचा। मैं किसी से अपने किये की माफ़ी नहीं माग सकती क्योंकि मुझे खुद पता है कि मेरा अपराध क्षमा के योग्य नहीं है।
मेरी बेटियों से कहना कि उनकी माॅ ने कभी भी दिल से नहीं चाहा कि उनके साथ कभी ग़लत हो। मैं जहाॅ भी रहूॅगी मेरे दिल में उनके लिए बेपनाह प्यार व दुवाएॅ ही रहेंगी। मुझे तलाश करने की कोशिश मत करना। अब उस घर में मेरे वापस आने की कोई वजह नहीं है और मैं उस जगह अब आना भी नहीं चाहती। मैंने अपना रास्ता तथा अपना मुकाम चुन लिया है बेटे। इस लिए मुझे मेरे हाल पर छोंड़ दो। यही मेरी तुमसे विनती है। ईश्वर तुम्हें सदा सुखी रखे तथा हर दिन हर पल नई खुशी व नई कामयाबी अता करे।
अच्छा अब अलविदा बेटे।
तुम्हारी बड़ी माॅ!
प्रतिमा।

ख़त के इस मजमून को पढ़ कर हम सबकी साॅसें मानों थम सी गई थी। ख़त पढ़ते समय ही पता चला कि ये ख़त तो दरअसल बड़ी माॅ का ही था। जिसे उन्होंने फर्ज़ी नाम व पते से भेजा था मुझे। काफी देर तक हम सब किसी गहन सोच में डूबे बैठे रहे।

"बड़ी भाभी के इस ख़त से।" सहसा अभय चाचा ने इस गहन सन्नाटे को चीरते हुए कहा____"ये बात ज़ाहिर होती है कि अब हम चाह कर भी उन्हें तलाश नहीं कर सकते। क्योंकि ये तो उन्हें भी पता ही होगा कि हम उन्हें खोजने की कोशिश करेंगे। इस लिए अब उनकी पूरी कोशिश यही रहेगी कि हम उन्हें किसी भी सूरत में खोज न पाएॅ। कहने का मतलब ये कि संभव है कि उन्होंने खुद को किसी ऐसी जगह छुपा लिया हो जिस जगह पर हम में से कोई पहुॅच ही न पाए।"

"सच कहा आपने।" मैने कहा___"ख़त में लिखी उनकी बातें यही दर्शाती हैं। किन्तु सवाल ये है कि अगर उन्होंने ख़त के माध्यम से ऐसा कहा है तो क्या हमें सच में उन्हें नहीं खोजना चाहिए?"

"हर्गिज़ नहीं।" अभय चाचा ने कहा___"कम से कम हम में से कोई भी ऐसा नहीं चाह सकता कि बड़ी भाभी हमसे दूर कहीं अज्ञात जगह पर रहें। बल्कि हम सब यही चाहते हैं कि सब कुछ भुला कर हम सब एक साथ नये सिरे से जीवन की शुरुआत करें। हवेली को छोंड़ कर चले जाना ये उनकी मानसिकता की बात थी। उन्हें लगता है कि उन्होंने हम सबके साथ बहुत बुरा किया है इस लिए अब उनका हमारे साथ रहने का कोई हक़ नहीं है। सच तो ये है कि हवेली छोंड़ कर चले जाने की वजह उनका अपराध बोझ है। इसी अपराध बोझ के चलते उनके मन में ऐसा करने का विचार आया है।"

"बात चाहे जो भी हो।" सहसा इस बीच माॅ ने गंभीर भाव से कहा___"उनका इस तरह हवेली से चले जाना बिलकुल भी अच्छी बात नहीं है। उन्हें तलाश करो और सम्मान पूर्वक उन्हें वापस यहाॅ लाओ। हम सब उन्हें वैसा ही आदर सम्मान देंगे जैसा उन्हें मिलना चाहिए। उन्हें वापस यहाॅ पर लाना ज़रूरी है वरना कल को यही गाॅव वाले हमारे बारे में तरह तरह की बातें बनाना शुरू कर देंगे। वो कहेंगे कि अपना हक़ मिलते ही हमने उन्हें हवेली से वैसे ही बेदखल कर दिया जैसे कभी उन्होंने हमें किया था। आख़िर उनमें और हम में फर्क़ ही क्या रह गया? इस लिए सारे काम को दरकिनार करके सिर्फ उन्हें खोज कर यहाॅ वापस लाने का का ही काम करो।"

"आप फिक्र मत कीजिए भाभी।" अभय चाचा ने कहा___"हम एड़ी से चोंटी तक का ज़ोर लगा देंगे बड़ी भाभी की तलाश करने में। हम उन्हें ज़रूर वापस लाएॅगे और उनका आदर सम्मान भी करेंगे।"

"ठीक है फिर।" माॅ ने कहने के साथ ही मेरी तरफ देखा___"बेटा तू तब तक यहीं रहेगा जब तक कि तुम्हारी बड़ी माॅ वापस इस हवेली पर नहीं आ जातीं। मैं जानती हूॅ कि तुम दोनो की पढ़ाई का नुकसान होगा किन्तु इसके बावजूद तुझे अभय के साथ मिल कर अपनी बड़ी माॅ की तलाश करना है।"

"ठीक है माॅ।" मैने कहा___"जैसा आप कहेंगी वैसा ही होगा। मैं जगदीश अंकल को फोन करके बता दूॅगा कि मैं और गुड़िया अभी वहाॅ नहीं आ सकते।"
"पर मुझे अपनी पढ़ाई का नुकसान नहीं करना है माॅ।" सहसा तभी गुड़िया(निधी) कह उठी___"बड़ी माॅ को तलाश करने का काम मुझे तो करना नहीं है। अतः मेरा यहाॅ रुकने का कोई मतलब नहीं है। पवन भइया को भी कंपनी में काम करने के लिए जाना ही है मुम्बई। मैने आशा दीदी से बात की है वो मेरे साथ मुम्बई जाने को तैयार हैं। इस लिए मैं कल ही यहाॅ से जा रही हूॅ।"

गुड़िया की इस बात से हम सब एकदम से उसकी तरफ हैरानी से देखने लगे थे। किसी और का तो मुझे नहीं पता किन्तु उसकी इस बात से मैं ज़रूर स्तब्ध रह गया था और फिर एकाएक ही मेरे दिल में बड़ा तेज़ दर्द हुआ। अंदर एक हूक सी उठी जिसने पलक झपकते ही मेरी ऑखों में ऑसुओं को तैरा दिया। मैं खुद को और अपने अंदर अचानक ही उत्पन्न हो चुके भीषण जज़्बातों को बड़ी मुश्किल से सम्हाला। अपने ऑसुओं को ऑखों में ही जज़्ब कर लिया मैने।

"ये तू क्या कह रही है गुड़िया?" तभी माॅ की कठोर आवाज़ गूॅजी___"तूने मुझे बताए बिना ही ये फैंसला ले लिया कि तुझे मुम्बई जाना है। मुझे तुझसे ऐसी उम्मीद नहीं थी।"

"मैं आपको इस बारे में बताने ही वाली थी माॅ।" निधी ने नज़रें चुराते हुए किन्तु मासूम भाव से कहा___"और वैसे भी इसमे इतना सोचने की क्या बात है? बड़ी माॅ की खोज करने मुझे तो जाना नहीं है, बल्कि ये काम तो चाचा जी लोगों का ही है। दूसरी बात अब मेरे यहाॅ रहने का फायदा भी क्या है, बल्कि नुकसान ही है। आज एक महीना होने को है स्कूल से छुट्टी लिए हुए। इस लिए अब मैं नहीं चाहती कि मेरी पढ़ाई का और भी ज्यादा नुकसान हो।"

"बात तो तुम्हारी सही है गुड़िया।" अभय चाचा ने कहने के साथ ही माॅ(गौरी) की तरफ देखा___"भाभी अब जो होना था वो तो हो ही चुका है। आज महीना होने को आया उस सबको गुज़रे हुए। धीरे धीरे आगे भी सब कुछ ठीक ही हो जाएगा। रही बात बड़ी भाभी को खोजने की तो वो मैं राज और आदित्य करेंगे ही। गुड़िया के यहाॅ रुकने से उसकी पढ़ाई का नुकसान ही है। इस लिए ये अगर जा रही है तो इसे आप जाने दीजिए। आप तो जानती ही हैं कि मुम्बई में भी जगदीश भाई साहब अकेले ही हैं। वो आप लोगों के न रहने से वहाॅ पर बिलकुल भी अच्छा महसूस नहीं कर रहे होंगे। इस लिए गुड़िया पवन और आशा जब उनके पास पहुॅच जाएॅगे तो उनका भी मन लगेगा वहाॅ।"

अभय चाचा की इस बात से माॅ ने तुरंत कुछ नहीं कहा। किन्तु वो अजीब भाव से निधी को देखती ज़रूर रहीं। ऐसी ही कुछ और बातों के बाद यही फैंसला हुआ कि निधी कल पवन व आशा के साथ मुम्बई चली जाएगी। इस बीच सवाल ये भी उठा कि पवन व आशा के चले जाने से रुक्मिणी यहाॅ पर अकेली कैसे रहेंगी? इस सवाल का हल ये निकाला गया कि पवन और आशा के जाने के बाद रुक्मिणी यहाॅ हवेली में हमारे साथ ही रहेंगी।

नास्ता पानी करने के बाद मैं, आदित्य व अभय चाचा बड़ी माॅ की तलाश में हवेली से निकल पड़े। अभय चाचा का स्वास्थ पहले से बेहतर था। हलाॅकि मैंने उन्हें अभी चलना फिरने से मना किया था किन्तु वो नहीं मान रहे थे। इस लिए हमने भी ज्यादा फिर कुछ नहीं कहा। दूसरे दिन निधी पवन व आशा के साथ मुम्बई के लिए निकल गई। गुनगुन रेलवे स्टेशन उनको छोंड़ने के लिए मैं और आदित्य गए थे। इस बीच मेरा दिलो दिमाग़ बेहद दुखी व उदास था। गुड़िया के बर्ताव ने मुझे इतनी पीड़ा पहुॅचाई थी कि इतनी पीड़ा अब तक किसी भी चीज़ से न हुई थी मुझे। मगर बिना कोई शिकवा किये मैं ख़ामोशी से ये सब सह रहा था। मैं इस बात से चकित था कि मेरी सबसे प्यारी बहन जो मेरी जान थी उसने दो महीने से मेरी तरफ देखा तक नहीं था बात करने की तो बात ही दूर थी।

ट्रेन में तीनो को बेठा कर मैं और आदित्य वापस हल्दीपुर लौट आए। मेरा मन बेहद दुखी था। आदित्य ने मुझसे पूछा भी कि क्या बात है मगर मैने उसे ज्यादा कुछ नहीं बताया बस यही कहा कि बड़ी माॅ और गुड़िया के जाने की वजह से कुछ अच्छा नहीं लग रहा है। एक हप्ते पहले आदित्य बड़ा खुश था जब रितू दीदी ने उसकी कलाई पर राखी बाॅधी थी। उसके दोनो हाॅथों में ढेर सारी राखियाॅ बाॅधी थी दीदी ने। जिसे देख कर आदित्य खुद को रोने से रोंक नहीं पाया था। उसके इस तरह रोने पर माॅ आदि सब लोग पहले तो चौंके फिर जब रितू दीदी ने सबको आदित्य की बहन प्रतीक्षा की कहानी बताई तो सब दुखी हो गए थे। सबने आदित्य को इस बात के लिए सांत्वना दी। माॅ ने तो ये तक कह दिया कि आज से वो मेरा बड़ा बेटा है और इस घर का सदस्य है। आदित्य ये सुन कर खुशी से रो पड़ा था। मेरी सभी बहनों ने राखी बाॅधी थी। गुड़िया ने भी मुझे राखी बाॅधा था किन्तु उसका बर्ताव वही था। उसके इस रूखे बर्ताव से सब चकित भी थे। माॅ ने तो पूछ भी लिया था कि ये सब क्या है मगर उसने बड़ी सफाई से बात को टाल दिया था।

हवेली आ कर मैं अपने कमरे में चला गया था। जबकि आदित्य अभय चाचा के पास ही बैठ गया था। सारा दिन मेरा मन दुखी व उदास रहा। जब किसी तरह भी सुकून न मिला तो उठ कर रितू दीदी के पास चला गया। मुझे अपने पास आया देख कर रितू दीदी मुस्कुरा उठीं। उनको भी पता चल गया था गुड़िया वापस मुम्बई चली गई है। मेरे चेहरे के भाव देख कर ही वो समझ गईं कि मैं गड़िया के जाने की वजह से उदास हूॅ।

मुझे यूॅ मायूस व उदास देख कर उन्होंने मुस्कुरा कर अपनी बाहें फैला दी। मैं उनकी फैली हुई बाहों के दरमियां हल्के से अपना सिर रख दिया। मेरे सिर रखते ही उन्होंने बड़े स्नेह भाव से मेरे सिर पर हाॅथ फेरना शुरू कर दिया। अभी मैं रितू दीदी की बाहों के बीच छुपका ही था कि तभी नैना बुआ भी आ गईं और बेड पर मेरे पास ही बैठ गईं।

"क्या बात है मेरा बेटा उदास है?" नैना बुआ ने मेरे सिर के बालों पर उॅगलियाॅ फेरते हुए कहा____"पर यूॅ उदास रहने से क्या होगा राज? अगर कोई बात है तो उसे आपस में सलझा लेना होता है।"

"सुलझाने के लिए मौका भी तो देना चाहिए न बुआ।" मैंने दीदी की बाहों से उठते हुए कहा___"खुद ही किसी बात का फैंसला ले लेना कहाॅ की समझदारी है? उसे ज़रा भी एहसास नहीं है उसके इस रवैये से मुझ पर आज दो महीने से क्या गुज़र रही है।"

"ये हाल तो उसका भी होगा राज।" रितू दीदी ने कहा___"वो तेरी लाडली है। ज़िद्दी भी है, इस लिए वो चाहती होगी कि पहल तू करे।"
"किस बात की पहल दीदी?" मैने अजीब भाव से उनकी तरफ देखा।
"मुझे लगता है कि ये बात तू खुद समझता है।" रितू दीदी ने एकटक मेरी तरफ देखते हुए कहा___"इस लिए पूछने का तो कोई मतलब ही नहीं है।"

मैं उनकी इस बात से उनकी तरफ ख़ामोशी से देखता रहा। नैना बुआ को समझ न आया कि किस बारे में रितू दीदी ने ऐसा कहा था। इधर मैं खुद भी हैरान था कि आख़िर रितू दीदी के ये कहने का क्या मतलब था? मैने रितू दीदी की तरफ देखा तो उनके होठों पर फीकी सी मुस्कान उभर आई थी। फिर जाने क्या सोच कर उनके मुख से निकलता चला गया।

कौन समझाए हमें के आख़िर ये बला क्या है।
दर्द में भी मुस्कुराऊॅ मैं, तो फिर सज़ा क्या है।।

हम जिस बात को लबों से कह नहीं सकते,
कोई उस बात को न समझे, इससे बुरा क्या है।।

रात दिन कुछ भी अच्छा नहीं लगता हमको,
इलाही ख़ैर हो, खुदा जाने ये माज़रा क्या है।।

समंदर में डूब कर भी हमारी तिश्नगी न जाए,
इस दुनियाॅ में इससे बढ़ कर बद्दुवा क्या है।।

अपनी तो बस एक ही आरज़ू है के किसी रोज़,
वो खुद आ कर कहे के बता तेरी रज़ा क्या है।।

रितू दीदी के मुख से निकली इस अजीबो ग़रीब सी ग़ज़ल को सुन कर मैं और नैना बुआ हैरान रह गए। दिलो दिमाग़ में इक हलचल सी तो हुई किन्तु समझ में न आया कि रितू दीदी ने इस ग़ज़ल के माध्यम से क्या कहना चाहा था?

रात में खाना पीना करके हम सब सो गए। दूसरे दिन नास्ता पानी करने के बाद मैं और आदित्य अभय चाचा के साथ फिर से बड़ी माॅ की खोज में निकल गए। ऐसे ही हर दिन होता रहा। किन्तु कहीं भी बड़ी माॅ के बारे में कोई पता न चल सका। हम सब इस बात से बेहद चिंतित व परेशान थे और सबसे ज्यादा हैरान भी थे कि बड़ी माॅ ने आख़िर ऐसी कौन सी जगह पर खुद को छुपा लिया था जहाॅ पर हम पहुॅच नहीं पा रहे थे। उनकी तलाश में ऐसे ही एक महीना गुज़र गया। इस बीच हमने सभी नात रिश्तेदारों को भी बता दिया था उनके बारे में। बड़ी माॅ के पिता जी यानी जगमोहन सिंह भी अपनी बेटी के बारे में सब कुछ जान कर बेहद दुखी हुए थे। किन्तु होनी तो हो चुकी थी। वो खुद भी अपनी बेटी के लापता हो जाने पर दुखी थे।

एक दिन अभय चाचा के कहने पर मैने रितू दीदी की मौजूदगी में बड़ी माॅ के कमरे में रखी आलमारी को खोला और उसमें से सारे काग़जात निकाले। उन काग़जातों में ज़मीन और जायदाद के दो हिस्से थे। तीसरा हिस्सा यानी कि अजय सिंह के हिस्से की ज़मीन व जायदाद तथा दौलत में से लगभग पछत्तर पर्शैन्ट हिस्सा मेरे नाम कर दिया गया था जबकि बाॅकी का पच्चीस पर्शेन्ट अभय चाचा के बेटे शगुन के नाम पर था। उसी आलमारी में कुछ और भी काग़जात थे जो दादा दादी के बारे में थे। उनमें ये जानकारी थी कि दादा दादी को कहाॅ पर रखा गया है?

सारे काग़जातों को देख कर मैने रितू दीदी से तथा अभय चाचा से बात की। मैने उनसे कहा कि मुझे उनके हिस्से का कुछ भी नहीं चाहिए बल्कि उनके हिस्से का सब कुछ रितू दीदी व नीलम के नाम कर दिया जाए। मेरी इस बात से अभय चाचा भी सहमत थे। जबकि रितू दीदी ने साफ कह दिया कि उन्हें कुछ नहीं चाहिए। मगर मैं ज़मीन जायदाद पर कोई ऐसी बात नहीं बनाना चाहता था जिससे भविष्य में किसी तरह का विवाद होने का चान्स बन जाए।

एक दिन हम सब दादा दादी से मिलने शिमला गए। शिमला में ही किसी प्राइवेट जगह पर उन्हें रखा था बड़े पापा ने। शिमला में हम सब दादा दादी से मिले। वो दोनो अभी भी कोमा में ही थे। उन्हें इस हाल में देख कर हम सब बेहद दुखी हो गए थे। डाक्टर ने बताया कि पिछले महीने उनकी बाॅडी पर कुछ मूवमेंट महसूस की गई थी। किन्तु उसके बाद फिर से वैसी ही हालत हो गई थी। डाक्टर ने कहा कि तीन सालों में ये पहली बार था जब पिछले महीने ऐसा महसूस हुआ था। उम्मीद है कि शायद उनके जिस्म में फिर कभी कोई मूवमेन्ट हो।

हमने डाक्टर से दादा दादी को साथ ले जाने के लिए कहा तो डाक्टर ने हमसे कहा कि घर ले जाने का कोई फायदा नहीं है, बल्कि वो अगर यहीं पर रहेंगे तो ज्यादा बेहतर होगा। क्योंकि यहाॅ पर उनकी देख भाल के लिए तथा किसी भी तरह की मूवमेन्ट का पता चलते ही डाक्टर उस बात को बेहतर तरीके से सम्हालेंगे।

डाक्टर की बात सुन कर माॅ ने कहा कि वो माॅ बाबू जी को साथ ही ले जाएॅगी। वो खुद उनकी बेहतर तरीके से देख भाल करेंगी। उन्होंने डाक्टर से ये कहा कि वो किसी क़ाबिल नर्स को हमारे साथ ही रहने के लिए भेज दें। काफी समझाने बुझाने और बहस के बाद यही फैंसला हुआ कि हम दादा दादी को अपने साथ ही ले जाएॅगे। डाक्टर अब क्या कर सकता था? इस लिए उसने हमारे साथ एक क़ाबिल नर्स को भेज दिया। शाम होने से पहले ही हम दादा दादी को लेकर हल्दीपुर आ गए थे।

बड़ी माॅ की तलाश ज़ारी थी। किन्तु अब इस तलाश में फर्क़ ये था कि हमने अपने आदमियों को चारो तरफ उनकी तलाश में लगा दिया था। पुलिस खुद भी उनकी तलाश में लगी हुई थी। अभय चाचा के कहने पर मैं भी अब अपनी पढ़ाई को आगे ज़ारी रखने के लिए मुम्बई जाने को तैयार हो गया था। मैं तो अपनी तरफ से यही कोशिश कर रहा था कि ये जो एक नया संसार बनाया था उसमे हर कोई सुखी रहे, मगर आने वाला समय इस नये संसार के लिए क्या क्या नई सौगात लाएगा इसके बारे में ऊपर बैठे ईश्वर के सिवा किसी को कुछ पता नहीं था।

~~~~~~~~~~समाप्त~~~~~~~~~~~~~

दोस्तो, आप सबके सामने इस कहानी का आख़िरी अपडेट हाज़िर है। उम्मीद करता हूॅ कि आप सबको पसंद आएगा।

हमेशा की तरह आप सबकी प्रतिक्रिया का इन्तज़ार रहेगा।
 

Sanskari Larka

Sᴀk†Lᴀน𝖓da
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Zaruri nahi ki love story hi ho qki viraj abhi tak apni teeno behano se alairf bhai behan wala pyaar hi karta hai but yes there is a story between these aur usko atleast ek end tak le jana chahiye tha jaise neelam aur viraj ki story almost end ho gayi jab neelam ne ye decide kar liya ki wo ab viraj ko jitna ho sake bhulne ki aur ussse jitna ho sake kam milane ki koshish karegi but also abhi tak viraj ki taraf se response baki hai so the story is still alive
Bhai sahab ap bhul rhe ho viraj last me decide karta hai wapas Mumbai Jane ka aur study continue krne ka
Neelam aur viraj dono same college me hai to dur rahne ka sawal hi nhi uthta
Aur story to baki hi rah gyi is hisab se
 

The_InnoCent

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
79,141
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दोस्तो, मुझे पता है कि आप सब इस कहानी की समाप्ति से खुश अथवा संतुष्ट नहीं हैं। इस कहानी में और भी बहुत कुछ हो सकता था मगर ऐसा हुआ नहीं। इसकी वजह ये है कि मेरे सामने वक्त और हालात ही ऐसे थे कि मैं कुछ और बेहतर करने की सोच ही नहीं पा रहा था। हलाॅकि कहानी के शीर्षक के हिसाब से मैने इस कहानी के इस भाग को समाप्त किया है। अंत में इतने सारे सवाल इस लिए छोंड़ दिये गए क्योंकि इसके आगे का कथानक कुछ अलग ही बनने वाला था।

मैने आप सबसे यही सोच कर ये कहा था कि इसका दूसरा भाग होगा। क्योंकि इसके आगे का कथानक इस कथानक से अलग होगा जो अलग शीर्षक के साथ होगा। हलाॅकि शुरू में मैने ऐसा सोचा भी नहीं था कि ऐसा होगा। मैं तो बस वही लिखता चला गया था जो मेरे दिमाग़ में आता जा रहा था। दूसरे भाग की बात तो तब दिमाग़ में आई जब कथानक ने ऐसा रूप लिया।

आप सबने मेरा बहुत साथ व सहयोग दिया तथा बहुत प्यार भी दिया, इसके लिए आप सभी का बहुत बहुत शुक्रिया। इस सफर में बहुत सारे अनुभव मिले तथा बहुत कुछ देखने सुनने को मिला और साथ ही बहुत कुछ सीखने की भी मिला। कभी अच्छा लगा तो कभी थोड़ा बुरा भी लगा, लेकिन कोई बात नहीं। यही तो जीवन है, हर दिन एक जैसा नहीं हुआ करता।

यहाॅ पर हर ऊम्र के लोग हैं तथा हर तरह की सोच रखने वाले भी हैं। आप सब जानते हैं कि जीवन में हम सारी ज़िंदगी सबको खुश व संतुष्ट रखने की कोशिश करते हैं मगर सच्चाई ये है कि हम अपनी इस कोशिश में पूरी तरह कामयाब नहीं हो पाते। अब सवाल उठता है कि ऐसा क्यों??? क्या हम पूरी इमानदारी व सच्चे दिल से कोशिश नहीं करते अथवा हम जिन्हें खुश रखने की कोशिश करते हैं वो हमारी कोशिशों का जान बूझ कर मान नहीं रखते?? इस सवाल का जवाब ज़रा विवादास्पद है अतः इस बारे में कुछ कहने का कोई फायदा नहीं है।

इस कहानी का अगला भाग कब आएगा इस बारे में अभी मैं खुद भी कुछ नहीं कह सकता क्योंकि मैं आप सबको पहले ही बता चुका हूॅ कि आजकल मैं मानसिक रूप से ठीक नहीं हूॅ। किन्तु हाॅ इतना ज़रूर कहूॅगा कि इस कहानी का अगला भाग लिखूॅगा ज़रूर, भले ही उसके लिए मुझे ज्यादा समय लग जाए।

कहानी के अंत में मैं किसी से कोई शिकवा गिला नहीं करना चाहता। जिन्होंने मुझे अच्छा कहा उनका भी शुक्रिया और जिन्होंने मुझे बुरा कहा उनका भी शुक्रिया। मुझे सबसे बहुत कुछ सीखने को मिला, अतः सबकी हर बात के लिए भी शुक्रिया।

!! धन्यवाद !!
 

Iron Man

Try and fail. But never give up trying
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Aakhirkar es khani ka bhi ant ho gya . Very nice ending . Khani jo badla ke liye shuru hua tha badla lete hi smapt hua .
Pr bhoot swal chhor bhi gaye hain ummid hai jald hi agla part shuru hoga aur hme un swalo ke jwab bhi milenge
 
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mkgpkr

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After reading the ending, there is high probability ki story ka second part bhi aayega but who knows except writer. hope unki person life achhi ho aur iska second part bhi likhe because kahani aise mod par khatam ki hai jahan se iske second part ya fir ye kahe ki the raj ki behano ke pyaar ki manzil aur badi maa aka pratima singh ki new life and dada dadi ka family life and raj ki love life kafi kuch shuru hona baki hai even abhay ke bete ki zindgi ko bhi sudharna hai as well as shiva ki zindagi ko bhi. So eagerly waiting for next part of the story.

I ALSO FEEL LIKE SAME AND WAITING FOR YOUR COME BACK. SUCH A FABULOUS STORY.
 
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