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Bahut bahut shukriya SANJU ( V. R. ) bhai aapke is khubsurat review ke liye,,,,इतनी बारिकी से... इतनी गहराई से.... इतने समर्पण भाव से लिखना.......इतने बड़े बड़े अपडेट लिखना । आपके डेडीकेशन , आपकी मेहनत और आपके हौसले को सलाम शुभम भाई । ?
लव यू ।
मैंने बहुतों किताबें पढ़ी है.... आज भी एकावन साल के उम्र में भी पढ़ते आ रहा हूं.... यहां भी कई सालों से पढ़ रहा हूं लेकिन जिस तरह से आपने इस कहानी पर मेहनत की है वो सच में काबिले-तारीफ है ।
अजय सिंह बाघेला के किरदार को बड़ी ही खूबसूरती से पेश किया है । उसका नेगेटिव किरदार कभी कभी तो सारे कैरेक्टर पर भी भारी पड़ गया था ।
प्रतिमा और शिवा.....अंत मे पाठकों की सहानुभूति बटोर गए ।
रितू का किरदार बाकी सभी औरतों पर भारी रहा ।
लेकिन बाघेला फेमिली से नैना , दिव्या , शगुन , और सौम्या का रोल कहानी में बहुत ही कम लगा ।
शिवा का आजीवन कारावास का सजा पाना.... ये कहीं न कहीं कुछ अजीब सा लगा ।...... उसने अजय सिंह की हत्या की जिसके लिए उसे ये दण्ड अदालत ने सुनाई.... और उसने अपने जूर्म को अदालत में कबूल किया था इसलिए अदालत ने बिना झिझक उसके जूर्म की सजा सुना दी ।........ लेकिन अदालत किसी मुलजिम के इकबाले जूर्म से फैसला नहीं सुनाता है..... वो गवाहों के बयान , हालात और साक्ष्य पर फैसला सुनाता है ।....... शिवा ने अपने पिता की हत्या की लेकिन किन हालातों में की ?.... उसके फादर ने करीब करीब दो को तो जान से मार ही डाला था...अगर शिवा ने उसे नहीं मारा होता तो हो सकता है कि अजय सिंह ने और कितने लोगों का कत्ल कर दिया होता । शिवा ने अजय सिंह को मार कर कई लोगों की जान की रक्षा की..... पुलिस भी गवाह है.... वहां मौजूद हर कोई गवाह है । उसके इकबाले जूर्म के बावजूद भी कोर्ट उसे सजा नहीं दे सकती थी...... और वो भी आजीवन कारावास.... ये तो शर्तिया नहीं । बशर्ते अदालत में वकीलों ने सारे साक्ष्य रखे होते ।
कहानी बहुत ही अच्छी थी.... अब इसके दुसरे पार्ट का इंतजार है ।......... शायद उसकी झलक " रितूराज " में आ गई है ।
Devnagiri me itne bade bade update likhna bahut mushkil kaam tha. Isi chakkar me update bhi deri se aata tha. Us time ki baat hi alag thi. Naya naya aaya tha to likhne ka junoon bhi tha, fir wakt ke sath sath us junoon ko jung bhi lagna shuru ho gaya,,,,
Is story me aapne kahani ke alawa sabke comments bhi dekhe honge to zarur samajh gaye honge ki mujhe kis tarah ghumaya gaya. Kamdev bhai aur firefox bhai hi kaafi the hawa bharne ke liye. Jabki apni story par ye khud kitne imaandaar hain ye sabko pata hai magar mujh masoom ko in logo ne bahut sataya. Khair ye to baad me samajh aaya ki ye in logo ka pyar tha. Ishq mohabbat to apne ko bhi huyi magar aisa pyar expect nahi kiya tha. Thoda emotional hu is liye zara si baat par maano aag lag jati hai aur fir us aag ko bujhne me time lag jata hai,,,,,
Kayakalp ke bare me sochta hu to bahut saari cheeze kisi film ki tarah aankho ke saamne ujaagar hone lagti hain. Khair uska jab number aayega to tasalli se likhuga. Dusri baat "Ritu-Raj" me jo aapne jhalak dekhi hai uska kayakalp se door door tak koi taalluk nahi hai. Jaisa usme dikhaya gaya hai waisa kayakalp me nahi hoga. Uska plot alag hai. Abhi to BEGUNAAH par uljha hua hu, uske e baad Raj-Rani ko likhuga. Kayakalp ka number last me aayega,,,,