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Incest ♡ एक नया संसार ♡ (Completed)

आप सबको ये कहानी कैसी लग रही है.????

  • लाजवाब है,,,

    Votes: 185 90.7%
  • ठीक ठाक है,,,

    Votes: 11 5.4%
  • बेकार,,,

    Votes: 8 3.9%

  • Total voters
    204
  • Poll closed .
10,197
42,874
258
एक नया संसार

अपडेट........《 45 》


अब तक,,,,,,,,,

बेड पर पड़े ब्यक्ति के चेहरे की तरफ आकर मेरी नज़र जिस चेहरे पर पड़ी उसे देख कर मैं बुरी तरह उछल पड़ा। हैरत और आश्चर्य से मेरी ऑखें फट पड़ीं। किन्तु फिर जैसे एकदम से मुझे होश आया और मेरी ऑखों के सामने मेरा गुज़रा हुआ वो कल घूमने लगा जिसमें मैं था एक विधी नाम की लड़की थी और उस लड़की के साथ शामिल मेरा प्यार था। फिर एकाएक ही तस्वीर बदली और उस तस्वीर में उसी विधी नाम की लड़की का धोखा था, उसकी बेवफाई थी। उसी तस्वीर में मेरा वो रोना था वो चीखना चिल्लाना था और नफ़रत मेरी थी। ये सब चीज़ें मेरी ऑखों के सामने कई बार तेज़ी से घूमती चली गई।

मेरे चेहरे के भाव बड़ी तेज़ी से बदले। दुख दर्द और नफ़रत के भाव एक साथ आकर ठहर गए। ऑखों में ऑसूॅ भर आए मगर मैने उन्हें शख्ती से ऑखों में ही जज़्ब कर लिया। दिल में एक तेज़ गुबार सा उठा और उस गुबार के साथ ही मेरी ऑखों में चिंगारियाॅ सी जलने बुझने लगीं।

मेरे दिल की धड़कने और मेरी साॅसें तेज़ तेज़ चलने लगी थी। मेरे मुख से कोई अल्फाज़ नहीं निकल रहे थे। किन्तु ये सच है कि कुछ कहने के लिए मेरे होंठ फड़फड़ा रहे थे। मुझे ऐसा लग रहा था कि या तो मैं खुद को कुछ कर लूॅ या फिर बेड पर ऑखें बंद किये आराम से पड़ी इस लड़की को खत्म कर दूॅ। किन्तु जाने कैसे मैं कुछ कर नहीं पा रहा था।

अभी मैं अपनी इस हालत से जूझ ही रहा था कि सहसा बेड पर आराम से करवॅट लिए पड़ी उस बला ने अपनी ऑखें खोली जिस बला को मैने टूट टूट कर चाहा था।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~


अब आगे,,,,,,,,,

उथर, अभय चाचा की ससुराल में।
करुणा चाची इस वक्त अपने कमरे में आराम कर रही थी। दोपहर हो चुकी थी। सब लोगों के खाना खा लेने के बाद उन्होंने भी खाया और फिर आराम करने के लिए अपने कमरे में चली गईं। करुणा चाची के मायके वालों का परिचय देने की यहाॅ पर कदाचित कोई ज़रूरत तो नहीं है पर फिर भी पाठकों की जानकारी के लिए दे ही देता हूॅ।

चन्द्रकान्त सिंह राजपूत, ये करुणा चाची के दादा जी हैं। इनकी उमर इस समय पैंसठ के ऊपर है। ये एक फौजी आदमी हैं। फौज में मेजर थे ये। अब तो ख़ैर सरकारी पेंशन ही मिलती है इन्हें किन्तु खुद भी घर परिवार और ज़मीन जायदाद से सम्पन्न हैं ये।

हेमलता सिंह राजपूत, ये करुणा चाची की दादी हैं। ये बाॅसठ साल की हैं। चन्द्रकाॅत सिंह और हेमलता सिंह के तीन लड़के और एक लड़की थी।

उदयराज सिंह राजपूत, ये चन्द्रकाॅत सिंह के बड़े बेटे थे जो कुछ साल पहले गंभीर बीमारी के चलते भगवान को प्यारे हो चुके हैं।
सुभद्रा सिंह राजपूत, ये करुणा चाची की माॅ हैं। उमर यही कोई पचास के आस पास। विधवा हैं ये। इनके दो ही बच्चे हैं। सबसे पहले करुणा चाची उसके बाद हेमराज सिंह राजपूत। हेमराज सिंह की भी शादी हो चुकी है और उसके दो बच्चे हैं।

मेघराज सिंह राजपूत, ये करुणा चाची के चाचा हैं। इनकी उमर पचास के आस पास है। पढ़े लिखे हैं ये। मगर अपनी सारी ज़मीनों पर खेती बाड़ी का काम करवाते हैं। इनकी पत्नी का नाम सरोज है जो कि पैंतालीस साल की हैं। इनके दो बेटे हैं जो शहर में रह कर पढ़ाई करते हैं।

गिरिराज सिंह राजपूत, ये करुणा चाची के छोटे चाचा हैं। ये पैंतालीस साल के हैं और शहर में ही रहते हैं। शहर में ये एक बड़ी सी प्राइवेट कंपनी में बड़ी पोस्ट पर कार्यरत हैं। इनकी पत्नी का नाम शैलजा है। इनके दो बच्चे हैं जो शहर में ही रहते हैं अपने माॅ बाप के साथ।

पुष्पा सिंह, ये करुणा चाची की इकलौती बुआ हैं। उमर यही कोई चालीस के आस पास। इनके पति का नाम भरत सिंह है। ये पेशे से सरकारी डाक्टर हैं। पुष्पा बुआ के दो बच्चे हैं। एक बच्चा पढ़ाई करके एक बड़ी कंपनी में नौकरी कर रहा है जबकि दूसरा बेटा अपने बाप की तरह डाक्टर बनना चाहता है इस लिए डाक्टरी की पढ़ाई कर रहा है।

तो ये था करुणा चाची के मायके वालों का संक्षिप्त परिचय। अब कहानी की तरफ चलते हैं।
करुणा चाची अपने कमरे में बेड पर पड़ी किसी गहरे ख़यालों में गुम थी। कल उनके पास उनके पति अभय का फोन आया था। उन्होंने बताया था कि विराज किसी काम से गाव आया है, इस लिए वो बच्चों को लेकर उसके साथ ही मुम्बई आ जाए। अभय ने करुणा को पहले ही बता दिया था कि वो मुम्बई में विराज के साथ ही रह रहा है। उसने सारी राम कहानी करुणा को बता दिया था।

करुणा अपने पति से असलियत जान कर बहुत हैरान हुई थी और बेहद दुखी भी। उसने स्वप्न में भी उम्मीद न की थी कि एक भाई अपने भाई को इस तरह जान से मार सकता है। अपनी जेठानी प्रतिमा के चरित्र का सुन कर उसे लकवा सा मार गया था। उसके मन में प्रतिमा के प्रति घृणा व नफ़रत पैदा हो गई थी। उसे याद आता कि कैसे प्रतिमा उसके पास आकर उससे अश्लील बातें किया करती थी।

करुणा को अब समझ में आया था कि उसकी जेठानी उससे ऐसी अश्लील बातें क्यों किया करती थी। उसका एक ही मकसद होता था कि वो करुणा से ऐसी बातें करके उसके अंदर वासना की आग को भड़का दे ताकि करुणा उस आग में जलते हुए कुछ भी करने को तैयार हो जाए। करुणा ये सब सोच सोच कर हैरान थी कि उसकी जेठानी उसके साथ क्या करना चाहती थी।

करुणा ने भगवान का लाख लाख शुक्रिया अदा किया कि अच्छा हुआ कि वो अपनी जेठानी की उन बातों से खुद को सम्हाले रखा था। वरना जाने कैसा अनर्थ हो जाता। अभय ने उसे सब कुछ बता दिया था। उसने करुणा को बता दिया था कि उसका भतीजा विराज अब बहुत बड़ा आदमी बन गया है। उसने बताया कि कैसे एक ग़ैर इंसान ने उसे अपना बेटा बना लिया और उसके नाम अपनी अरबों की संपत्ति कर दी। करुणा ये सब जान कर बहुत खुश हुई थी। उसकी ऑखों से ऑसू छलक पड़े थे ये सब जान कर।

अभय ने जब उससे कहा कि वो बच्चों को लेकर विराज के साथ मुम्बई आ जाए तो वो इस बात से बड़ा खुश हुई थी। उसे लग रहा था कि कितना जल्दी वो मुम्बई पहुॅच जाए और बड़ी बहन के समान अपनी जेठानी गौरी से मिले। उससे मिल कर वो अपने बर्ताव के लिए माफ़ी मागना चाहती थी और उससे लिपट कर खूब रोना चाहती थी। जब से उसे अभय के द्वारा सारी सच्चाई का पता चला था तब से वह अकेले में अक्सर ऑसू बहाती रहती थी। उसे अपनी जेठानी गौरी के साथ बिताए हर पल याद आते। उसे याद आता कि कैसे गौरी उसे अपनी छोटी बहन की तरह मानती थी और उससे प्यार करती थी। उसे कोई काम नहीं करने दिया करती थी। वो हमेशा यही कहती कि तुम पढ़ी लिखी हो इस लिए तुम्हारा काम सिर्फ बच्चों को पढ़ाना है। घर के सारे काम वो खुद कर लेगी।

बेड पर
पड़ी करुणा ये सब सोच सोच कर ऑसू बहा ही रही थी कि सहसा उसका मोबाइल बज उठा। वो ख़यालों के अथाह सागर से बाहर आई और सिरहाने रखे मोबाइल को उठाकर उसकी स्क्रीन में फ्लैश कर रहे 'अभय जी' नाम को देखा तो तुरंत ही उसने काल को रिसीव कर मोबाइल को कान से लगा लिया।

"...........।" उधर से अभय ने कुछ कहा।
"क्या???" करुणा हल्के से चौंकी____"आज ही निकलना होगा मुझे? मगर बात क्या है जी? आप तो कह रहे थे कि कल जाना है।"
"........।" उधर से अभय ने फिर कुछ कहा।
"ये क्या कह रहे हैं आप?" करुणा के चेहरे पर एकाएक ही चिंता के भाव आ गए___"ऐसा कैसे हो सकता है?"

".......।" उधर से अभय कुछ देर तक उससे कुछ कहता रहा।
"ठीक है आप चिंता मत कीजिए।" करुणा ने कहा__"मैं हेमराज के साथ ही बच्चों को लेकर यहाॅ से निकलूॅगी। उसके बाद मैं रेलवे स्टेशन पर विराज से मिल लूॅगी।"

"..........।" उधर से अभय ने फिर कुछ कहा।
"जी ठीक है।" करुणा ने कहा___"मैं अभी माॅ और दादा जी से बात करती हूॅ। सामान कुछ ज्यादा नहीं है। बस एक बैग ही है। बाॅकी जैसा आप कहें।"
"..........।" उधर से अभय ने कुछ कहा।
"हाॅ ठीक है।" करुणा ने सिर हिलाया___"मैं सामान ज्यादा नहीं लूॅगी। आप हेमराज को समझा दीजिएगा।"

उधर से अभय ने कुछ और कहा जिस पर करुणा ने हाॅ कह कर सिर हिलाया उसके बाद काल कट हो गई। काल कट होने के बाद करुणा ने गहरी साॅस ली और फिर बेड से उतर कर कमरे से बाहर आ गई।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~


इधर हास्पिटल में।
मेरे दिलो दिमाग़ में ऑधी तूफान चल रहा था। मुझ पर नज़र पड़ते ही बेड पर पड़ी विधी के चेहरे पर ऐसे भाव उभरे जैसे वह मुझे देख कर एकदम से स्टेचू में तब्दील हो गई हो। एकटक मेरी तरफ देखे जा रही थी वह। फिर सहसा उसके चेहरे के भाव एकाएक ही बदले। उस चेहरे पर दुख और पीड़ा के भाव उभर आए। पथराई हुई ऑखों ने अपने अंदर से किसी टूटे हुए बाॅध की तरह ऑसुओं को बाहर की तरफ तेज़ प्रवाह से बहाना शुरू कर दिया।

उसके चेहरे के बदले हुए उन भावों को देख कर भी मेरे अंदर की नफ़रत और आक्रोश में कोई कमी नहीं आई। मेरी ऑखों के सामने कोई और ही मंज़र घूम रहा था। गुज़रे हुए कल की तस्वीरें बार बार ऑखों के सामने घूम रही थीं। अभी मैं इन सब तस्वीरों को देख ही रहा था कि तभी बेजान हो चुके विधी के जिस्म में हल्का सा कंपन हुआ और उसके थरथराते हुए होठों से जो लड़खड़ाता हुआ शब्द निकला उसने मुझे दूसरी दुनियाॅ से लाकर इस हकीक़त की दुनियाॅ में पटक दिया।

"र..राऽऽऽज।" बहुत ही करुण भाव से मगर लरज़ता हुआ विधी का ये स्वर मेरे कानो से टकराया। हकीक़त की दुनियाॅ में आते ही मेरी नज़र विधी के चेहरे पर फिर से पड़ी तो इस बार मेरा समूचा अस्तित्व हिल गया। विधी की ऑखों से ऑसू बह रहे थे, उसके चेहरे पर अथाह पीड़ा के भाव थे। ये सब देख कर मेरा हृदय हाहाकार कर उठा। पल भर में मेरे अंदर मौजूद उसके प्रति मेरी नफ़रत घृणा और गुस्सा सब कुछ साबुन के झाग की तरह बैठता चला गया। मेरे टूटे हुए दिल के किसी टुकड़े में दबा उसके लिए बेपनाह प्यार चीख उठा।

मैने देखा कि करवॅट के बल लेटी विधी का एक हाॅथ धीरे से ऊपर की तरफ ऐसे अंदाज़ में उठा जैसे वो मुझे अपने पास बुला रही हो। मेरा समूचा जिस्म ही नहीं बल्कि अंदर की आत्मा तक में एक झंझावात सा हुआ। मैं किसी सम्मोहन के वशीभूत होकर उसकी तरफ बढ़ चला। इस वक्त जैसे मैं खुद को भूल ही चुका था। कुछ ही पल में मैं विधी के पास उसके उस उठे हुए हाॅथ के पास पहुॅच गया।

"त तुम आ गए राज।" मुझे अपने करीब देखते ही उसने अपने उस उठे हुए हाथ से मेरी बाॅई कलाई को पकड़ते हुए कहा___"मैं तुम्हारे ही आने का यहाॅ इन्तज़ार कर रही थी। मेरी साॅसें सिर्फ तुम्हें ही देखने के लिए बची हुई हैं।"

मेरे मुख से उसकी इन बातों पर कोई लफ्ज़ न निकला। किन्तु मैं उसकी आख़िरी बात सुन कर बुरी तरह चौंका ज़रूर। हैरानी से उसकी तरफ देखा मैने। मगर फिर अचानक ही जाने क्या हुआ मुझे कि मेरे चेहरे पर फिर से वही नफ़रत और गुस्सा उभर आया। मैने एक झटके से उसके हाॅथ से अपनी कलाई को छुड़ा लिया।

"अब ये कौन सा नया नाटक शुरू किया है तुमने?" मेरे मुख से सहसा गुर्राहट निकली___"और क्या कहा तुमने कि तुम मेरा ही इन्तज़ार कर थी? भला क्यों कर रही थी मेरा इन्तज़ार? कहीं ऐसा तो नहीं कि तुम्हें पता चल गया हो कि इस समय मैं फिर से रुपये पैसे वाला हो गया हूॅ? इस लिए पैसों के लिए फिर से मुझे बुला लिया तुमने। वाह क्या बात है जवाब नहीं है तेरा। अब समझ में आई सारी बात मुझे। मुझे मुम्बई से बुलाने के लिए मेरे ही दोस्त का इस्तेमाल किया तूने। क्या दिमाग़ लगाया है तूने लड़की क्या दिमाग़ लगाया है। मगर तेरे इस दिमाग़ लगाने से अब कुछ नहीं होने वाला। मैं तेरे इस नाटक में फॅसने वाला नहीं हूॅ अब। इतना तो सबक सीख ही लिया है मैने कि तुझ जैसी लड़की से कैसे दूर रहा जाता है। मुश्किल तो था मगर सह लिया है मैने, और अब उस सबसे बहुत दूर निकल गया हूॅ। अब कोई लड़की मुझे अपने रूप जाल में या अपने झूठे प्यार के जाल में नहीं फॅसा सकती। इस लिए लड़की, ये जो तूने नाटक रचा है न उसे यहीं खत्म कर दे। अब कुछ नहीं मिलने वाला यहाॅ। मेरा यार भोला था नासमझ था इस लिए तेरी बातों के जाल में फॅस गया और मुझे यहाॅ बुला लिया। मगर चिंता मत कर मैं अपने यार को सम्हाल लूॅगा।"

मैने ये सब बिना रुके मानो एक ही साॅस में कह दिया था और कहने के बाद उसके पास एक पल भी रुकना गवाॅरा न किया। पलट कर वापस चल दिया, दो क़दम चलने के बाद सहसा मैं रुका और पलट कर बोला___"एक बात कहूॅ। आज भी तुझे उतना ही प्यार करता हूॅ जितना पहले किया करता था मगर बेपनाह प्यार करने के बावजूद अब तुझे पाने की मेरे दिल में ज़रा सी भी हसरत बाॅकी नहीं है।"

ये कह कर मैं तेज़ी से पलट गया। पलट इस लिए गया क्योंकि मैं उस बेवफा को अपनी ऑखों में भर आए ऑसुओं को दिखाना नहीं चाहता था। मेरा दिल अंदर ही अंदर बुरी तरह तड़पने लगा था। मुझे लग रहा था कि मैं हास्पिटल के बाहर दौड़ते हुए जाऊॅ और बीच सड़क पर घुटनों के बल बैठ कर तथा आसमान की तरफ चेहरा करके ज़ोर ज़ोर से चीखूॅ चिल्लाऊॅ और दहाड़ें मार मार कर रोऊॅ। सारी दुनियाॅ मेरा वो रुदन देखे मगर वो न देखे सुने जिसे मैं आज भी टूट कर प्यार करता हूॅ।

"तुम्हारी इन बातों से पता चलता है राज कि तुम आज के समय में मुझसे कितनी नफ़रत करते हो।" सहसा विधी की करुण आवाज़ मेरे कानों पर पड़ी____"और सच कहूॅ तो ऐसा तुम्हें करना भी चाहिए। मुझे इसके लिए तुमसे कोई शिकायत नहीं है। मैने जो कुछ भी तुम्हारे साथ किया था उसके लिए कोई भी यही करता। मगर, मेरा यकीन करो राज मेरे मन में ना तो पहले ये बात थी और ना ही आज है कि मैने पैसों के लिए ये सब किया।"

"बंद करो अपनी ये बकवास।" मैने पलट कर चीखते हुए कहा था, बोला___"तेरी फितरत को अच्छी तरह जानता हूॅ मैं। आज भी तूने मुझे इसी लिए बुलवाया है क्योंकि तुझे पता चल चुका है कि अब मैं फिर से पैसे वाला हो गया हूॅ। पैसों से प्यार है तुझे, पैसों के लिए तू किसी भी लड़के के दिल के साथ खिलवाड़ कर सकती है। मगर, अब तेरी कोई भी चाल मुझ पर चलने वाली नहीं है समझी? मेरा दिल तो करता है कि इसी वक्त तुझे तेरे किये की सज़ा दूॅ मगर नहीं कर सकता मैं ऐसा। क्योंकि मुझसे तेरी तरह किसी को चोंट पहुॅचाना नहीं आता और ना ही मैं अपने मतलब के लिए तेरे साथ कुछ करना चाहता हूॅ। तुझे अगर मैं कोई दुवा नहीं दे सकता तो बद्दुवा भी नहीं दूॅगा।"

मेरी बातें सुन कर विधी के दिल में कदाचित टीस सी उभरी। उसकी ऑखें बंद हो गई और बंद ऑखों से ऑसुओं की धार बह चली। मगर फिर जैसे उसने खुद को सम्हाला और मेरी तरफ कातर भाव से देखने लगी। उसे इस तरह अपनी तरफ देखता पाकर एक बार मैं फिर से हिल गया। मेरे दिल में बड़ी ज़ोर की पीड़ा हुई मगर मैने खुद को सम्हाला। आज भी उसके चेहरे की उदासी और ऑखों में ऑसू देख कर मैं तड़प जाता था किन्तु अंदर से कोई चीख कर मुझसे कहने लगता इसने तेरे प्यार की कदर नहीं की। इसने तुझे धोखा दिया था। तेरी सच्ची चाहत को मज़ाक बना कर रख दिया था। बस इस एहसास के साथ ही उसके लिए मेरे अंदर जो तड़प उठ जाती थी वो कहीं गुम सी हो जाती थी।

"तुमने तो मुझे कोई सज़ा नहीं दी राज।" सहसा विधी ने पुनः करुण भाव से कहा___"मगर मेरी ज़िदगी ने मुझे खुद सज़ी दी है। ऐसी सज़ा कि मेरी साॅसें बस चंद दिनों की या फिर चंद पलों की ही मेहमान हैं। किस्मत बड़ी ख़राब चीज़ भी होती है, एक पल में हमसे वो सब कुछ छीन लेती है जिसे हम किसी भी कीमत पर किसी को देना नहीं चाहते। किस्मत पर किसी का ज़ोर नहीं चलता राज। ये मेरी बदकिस्मती ही तो थी कि मैने तुम्हारे साथ वो सब किया। मगर यकीन मानो उस समय जो मुझे समझ में आया मैने वही किया। क्योंकि मुझे कुछ और सूझ ही नहीं रहा था। भला मैं ये कैसे सह सकती थी कि मेरी छोटी सी ज़िदगी के साथ तुम इस हद तक मुझे प्यार करने लगो कि मेरे मरने के बाद तुम खुद को सम्हाल ही न पाओ? उस समय मैने तुम्हें धोखा दिया मगर उस समय के मेरे धोखे ने तुम्हें इतना भी टूट कर बिखरने नहीं दिया कि बाद में तुम सम्हल ही न पाते। मैं मानती हूॅ कि दिल जब किसी के द्वारा टूटता है तो उसका दर्द हमेशा के लिए दिल के किसी कोने में दबा बैठा रहता है। मगर, उस समय के हालात में तुम टूटे तो ज़रूर मगर इस हद तक नहीं बिखरे। वरना आज मेरे सामने इस तरह खड़े नहीं रहते। आज तुम जिस मुकाम पर हो वहाॅ नहीं पहुॅच पाते।"

विधी की बातें सुन कर मुझे कुछ समझ न आया कि ये क्या अनाप शनाप बके जा रही है? मगर उसके लहजे में और उसके भाव में कुछ तो ऐसा था जिसने मुझे कुछ हद तक शान्त सा कर दिया था।

"तो तुम क्या चाहती थी कि मैं टूट कर बिखर जाता और फिर कभी सम्हलता ही नहीं?" मैने तीके भाव से कहा___"अरे मैं तो आज भी उसी हालत में हूॅ। मगर कहते हैं न कि इंसान के जीवन में सिर्फ उसी बस का हक़ नहीं होता बल्कि उसके परिवार वालों का भी होता है। मेरी माॅ मेरी बहन ने मुझे प्यार ही इतना दिया है कि मैं बिखर कर भी नहीं बिखरा। मैने भी सोच लिया कि ऐसी लड़की के लिए क्या रोना जिसने प्यार को कभी समझा ही नहीं? रोना है तो उनके लिए रोओ जो सच में मुझसे प्यार करते हैं।"

"ये तो खुशी की बात है कि तुमने ऐसा सोचा और खुद को सम्हाल लिया।" विधी ने फीकी मुस्कान के साथ कहा__"मैं भी यही चाहती थी कि तुम उस सबसे खुद को सम्हाल लो और जीवन में आगे बढ़ जाओ। किसी एक के चले जाने से किसी का जीवन रुक नहीं जाता। समझदार इंसान को सबकुछ भूल कर आगे बढ़ जाना चाहिए। वही तुमने किया, इस बात से मैं खुश हूॅ राज। यही तो चाहती थी मैं। यकीन मानो तुम्हें आज इस तरह देख कर मेरे मन का बोझ उतर गया है। मैं तुमसे ये नहीं कहूॅगी कि तुम मुझे उस सबके लिए माफ़ कर दो जो कुछ मैने तुम्हारे साथ किया था। अगर तुम ऐसे ही खुश हो तो भला मैं माफ़ी माॅग कर तुम्हारी उस खुशी को कैसे मिटा सकती हूॅ? अब तुम जाओ राज, जीवन में खूब तरक्की करो और अपनों के साथ साथ खुद को भी खुश रखो। और हाॅ, जीवन में मुझे कभी याद मत करना, क्योंकि मैं याद करने लायक नहीं हूॅ।"

विधी की इन विचित्र बातों ने मुझे उलझा कर रख दिया था। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि आज इसे हो क्या गया है? ये तो ऐसी बातें कह रही थी जैसे कोई उपदेशक हो। मेरे दिलो दिमाग़ में तरह तरह की बातें चलने लगी थीं।

"जाते जाते मेरी एक आरज़ू भी पूरी करते जाओ राज।" विधी का वाक्य मेरे कानों से टकराया___"हलाॅकि तुमसे कोई आरज़ू रखने का मुझे कोई हक़ तो नहीं है मगर मैं जानती हूॅ कि तुम मेरी आरज़ू ज़रूर पूरी करोगे।" कहने के बाद विधी कुछ पल के लिए रुकी फिर बोली___"मेरे पास आओ न राज। मैं तुम्हें और तुम्हारे चेहरे को जी भर के देखना चाहती हूॅ। तुम्हारे चेहरे की इस सुंदर तस्वीर को अपनी ऑखों में फिर से बसा लेना चाहती हूॅ। मेरी ये आरज़ू पूरी कर दो राज। इतना तो कर ही सकते हो न तुम?"

विधी की बात सुन कर मेरे दिलो दिमाग़ में धमाका सा हुआ। मेरे पूरे जिस्म में झुरझुरी सी हुई। पेट में बड़ी तेजी से जैसे कोई गैस का गोला घूमने लगा था। दिमाग़ एकदम सुन्ना सा पड़ता चला गया। कानों में कहीं दूर से सीटियों की अनवरत आवाज़ गूॅजती महसूस हुई मुझे। पल भर में मेरे ज़हन में जाने कितने ही प्रकार के ख़याल आए और जाने कहाॅ गुम हो गए। बस एक ही ख़याल गुम न हुआ और वो ये था कि विधी ऐसा क्यों चाह रही है?

किसी गहरे ख़यालों में खोया हुआ मैं इस तरह विधी की तरफ बढ़ चला जैसे मुझ पर किसी तरह का सम्मोहन हो गया हो। कुछ ही पल में मैं विधी के करीब उसके चेहरे के पास जा कर खड़ा हो गया। मेरे खड़े होते ही विधी ने किसी तरह खुद को उठाया और बेड की पिछली पुश्त से पीठ टिका लिया। अब वो अधलेटी सी अवस्था में थी। चेहरा ऊपर करके उसने मेरे चेहरे की तरफ देखा। उसकी ऑखों में ऑसुओं का गरम जल तैरता हुआ नज़र आया मुझे। मैने पहली बार उसके चेहरे को बड़े ध्यान से देखा और अगले ही पल बुरी तरह चौंक पड़ा मैं। मुझे विधी के चेहरे पर मुकम्मल खिज़ा दिखाई दी। जो चेहरा हर पल ताजे खिले गुलाब की मानिन्द खिला हुआ रहा करता था आज उस चेहरे पर वीरानियों के सिवा कुछ न था। ऐसा लगता था जैसे वो शदियों से बीमार हो।

उसे इस हालत में देख कर एक बार फिर से मेरा दिल तड़प उठा। जी चाहा कि अभी झपट कर उसे अपने सीने से लगा लूॅ मगर ऐन वक्त पर मुझे उसका धोखा याद आ गया। उसका वो दो टूक जवाब देना याद आ गया। मुझे भिखारी कहना याद आ गया। इन सबके याद आते ही मेरे चेहरे पर कठोरता छाती चली गई। एक बार फिर से मेरे अंदर से नफ़रत और गुस्सा उभर कर आया और मेरे चेहरे तथा ऑखों में आकर ठहर गया।

"मैं तुम्हें दुवा में ये भी नहीं कह सकती कि तुम्हें मेरी उमर लग जाए।" तभी विधी ने छलक आए ऑसुओं के साथ कहा___"बस यही दुवा करती हूॅ कि तुम हमेशा खुश रहो। जीवन में हर कोई तुम्हें दिलो जान से प्यार करे। कभी किसी के द्वारा तुम्हारा दिल न दुखे। खुदा मिलेगा तो उससे पूछूॅगी कि मैने ऐसा क्या गुनाह किया था जो उसने मुझे ऐसी ज़िंदगी बक्शी थी? ख़ैर, अब तुम जाओ राज, मैने तुम्हारी तस्वीर को इस तरह अपनी ऑखों में बसा लिया है कि अब हर जन्म में मुझे सिर्फ तुम ही नज़र आओगे।"

विधी की इस बात से एक बार फिर से मेरे चेहरे पर उभर आए नफ़रत व गुस्से में कमी आ गई। मैंने उसे अजीब भाव से देखा। मेरे अंदर कोई ज़ोर ज़ोर से चीखे जा रहा था कि इसे एक बार अपने सीने से लगा ले राज। मगर मैने अपने अंदर के उस शोर को शख्ती से दबा दिया और पलट कर कमरे के बाहर की तरफ चल दिया। मैने महसूस किया कि मेरी कोई अनमोल चीज़ मुझसे हमेशा के लिए दूर हुई जा रही है। मेरे दिल की धड़कने अनायास ही ज़ोर ज़ोर से धड़कने लगी। मनो मस्तिष्क में बड़ी तेज़ी से कोई तूफान चलने लगा था। अभी मैं दरवाजे के पास ही पहुॅचा था कि.....

"रुक जाओऽऽ।" ये वाक्य एक नई आवाज़ के साथ मेरे कानों से टकराया था। दरवाजे के करीब बढ़ते हुए मेरे क़दम एकाएक ही रुक गए। मैं बिजली की सी तेज़ी से पलटा। कमरे में ही बेड के पास खड़ी जिस शख्सियत पर मेरी नज़र पड़ी उसे देख कर मैं हक्का बक्का रह गया। आश्चर्य और अविश्वास से मेरी ऑखें फटी की फटी रह गईं। मुझे अपनी ऑखों पर यकीन नहीं हुआ कि जिस शख्सियत को मेरी ऑखें देख रही हैं वो सच में वही हैं या फिर ये मेरी ऑखों का कोई भ्रम है।

"मुझे तुमसे ये उम्मीद नहीं थी राज।" सहसा ये नई आवाज़ फिर से मेरे कानों से टकराई___"तुम इस तरह कैसे यहाॅ से जा सकते हो? इतनी बेरुख़ी तो कोई अपने किसी दुश्मन से भी नहीं जाहिर करता जितनी तुम विधी को देख कर ज़ाहिर कर रहे हो।"

इस बार मैं बुरी तरह चौंका। ये तो सच में वही हैं। यानी रितू दीदी। जी हाॅ दोस्तो, ये वही रितू दीदी हैं जिन्होंने अपने जीवन में कभी भी मुझे भाई नहीं माना और ना ही मुझसे बात करना ज़रूरी समझा। मगर मैं इस बात से हैरान था कि वो यहाॅ कैसे मौजूद हो सकती हैं? जब मैं आया था इस कमरे में तब तो ये यहाॅ नहीं थी, फिर अचानक ये कहाॅ से यहाॅ पर प्रकट हो गईं?

"प्लीज़ दीदी।" तभी बेड पर अधलेटी अवस्था में बैठी विधी ने रितू दीदी से कहा___"कुछ मत कहिए उसे।"
"नहीं विधी।" रितू दीदी ने आवेशयुक्त भाव से कहा__"मुझे बोलने दे अब। माना कि तूने जो किया वो उस समय के हिसाब से ग़लत था मगर इसका मतलब ये नहीं कि बिना किसी बात को जाने समझे ये तुझे इस तरह बोल कर यहाॅ से चला जाए।"

"नहीं दीदी प्लीज़।" विधी ने विनती करते हुए कहा___"ऐसा मत कहिए उसे। मुझे किसी बात की सफाई नहीं देना है उससे। आप जानती हैं कि मैं उसे किसी भी तरह का दुख नहीं देना चाहती अब।"
"क्यों करती है रे ऐसा तू?" रितू दीदी की आवाज़ सहसा भारी हो गई, ऑखों में ऑसू आ गए, बोली___"ऐसा मत कर विधी। वरना ये ज़मीन और वो आसमान फट जाएगा। तू चाहती थी न कि तू अपने आख़िरी समय में अपने इस महबूब की बाहों में ही दम तोड़े? फिर क्यों अब इस सबसे मुकर रही हो तू? अब तक तो तड़प ही रही थी न तो अब अपने अंतिम समय में क्यों इस तड़प को लेकर जाना चाहती है? नहीं नहीं, मैं ऐसा हर्गिज़ नहीं होने दूॅगी।"

रितू दीदी की बातें सुन कर मेरे दिलो दिमाग़ में भयंकर विष्फोट हुआ। ऐसा लगा जैसे आसमान से कोई बिजली सीधा मेरे दिल पर गिर पड़ी हो। पलक झपकते ही मेरी हालत ख़राब हो गई। दिमाग़ में हर बात बड़ी तेज़ी से घूमने लगी। एक एक बात, एक एक दृष्य मेरे ज़हन से टकराने लगे। पवन का मुझे फोन करके यहाॅ अर्जेन्ट बुलाना, मेरे द्वारा वजह पूछने पर उसका अब तक चुप रहना। हास्पिटल के इस कमरे के बाहर से ये कह कर चले जाना कि मैं यहाॅ जो कुछ भी देखूॅ सुनूॅ उसे देख सुन कर खुद को सम्हाले रखूॅ। हास्पिटल के इस कमरे के अंदर विधी का मुझसे मिलना, उसकी वो सब विचित्र बातें और अब रितू दीदी का यहाॅ मौजूद होकर ये सब कहना। ये सब चीज़ें मेरे दिलो दिमाग़ में बड़ी तेज़ी घूमने लगी थी।

मुझे अब समझ आया कि असल माज़रा क्या है। मेरे दिमाग़ ने काम करना शुरू कर दिया और अब मुझे सब कुछ समझ में आने लगा था। दरअसल विधी को कुछ हुआ है जिसके लिए पवन ने मुझे यहाॅ बुलाया था। मगर विधी को ऐसा क्या हो गया है? रितू दीदी ने ये क्या कहा कि____ "तू चाहती थी न कि तू अपने आख़िरी समय में अपने इस महबूब की बाहों में ही दम तोड़े?" हे भगवान! ये क्या कहा रितू दीदी ने?

"नननहींऽऽऽऽ।" अपने ही सोचों में डूबा मैं पूरी शक्ति से चीख पड़ा था, पल भर में मेरी ऑखों से ऑसुओं का जैसे कोई बाॅध टूट पड़ा। मैं भागते हुए विधी के पास आया। इधर मेरी चीख से रितू दीदी और विधी भी चौंक पड़ी थी।

मैं भागते हुए विधी के पास आया था, बेड के किनारे पर बैठ कर मैने विधी को उसके दोनो कंधों से पकड़ कर खुद से छुपका लिया और बुरी तरह रो पड़ा। मैं विधी को अपने सीने से बुरी तरह भींचे हुए था। मेरे मुख से कोई बोल नहीं फूट रहा था। मैं बस रोये जा रहा था। मुझे समझ में आ चुका था कि विधी को कुछ ऐसा हो गया है जिससे वो मरने वाली है। ये बात मेरे लिए मेरी जान ले लेने से कम नहीं थी।

"नहीं राज।" विधी मुझसे छुपकी खुद भी रो रही थी, किन्तु उसने खुद को सम्हालते हुए कहा___"इस तरह मत रोओ। मैं अपनी ऑखों के सामने तुम्हें रोते हुए नहीं देख सकती। प्लीज़ चुप हो जाओ न।"
"नहीं नहीं नहीं।" मैंने तड़पते हुए कहा___"तुम मुझे छोंड़ कर कहीं नहीं जाओगी। तुम नहीं जानती कि तुम्हारे लिए कितना तड़पा हूॅ मैं। पर अब और नहीं विधी। मैं तुम्हें कुछ नहीं होने दूॅगा।"

"पागल मत बनो राज।" विधी ने मेरे सिर को सहलाते हुए कहा___"खुद को सम्हालो और जीवन में आगे बढ़ो।"
"मैं कुछ नहीं जानता विधी।" मैने सिसकते हुए कहा___"मैं फिर से तुम्हें खोना नहीं चाहता। मुझे बताओ कि क्या हुआ है तुम्हें? मैं तुम्हारा इलाज़ करवाऊॅगा। दुनियाॅ भर के डाक्टरों को तुम्हारे इलाज़ के लिए पल भर में ले आऊॅगा।"

"अब कुछ नहीं हो सकता राज।" विधी ने सहसा मुझसे अलग होकर मेरे चेहरे को अपनी दोनो हॅथेलियों में लेते हुए कहा___"मैने कहा न कि मेरा सफर खत्म हो चुका है। मुझे ब्लड कैंसर है वो भी लास्ट स्टेज का। मेरी साॅसें किसी भी पल रुक सकती हैं और मैं भगवान के पास चली जाऊॅगी।"

"ननहींऽऽऽ।" विधी की ये बात सुनकर मुझे ज़बरदस्त झटका लगा। ऑखों के सामने अॅधेरा सा छा गया। हर चीज़ जैसे किसी शून्य में डूबती महसूस हुई मुझे। कानों में कुछ भी सुनाई नहीं दे रहा था मुझे। दिल की धड़कने रुक सी गई और मैं एकदम से अचेत सी अवस्था में आ गया।

"राऽऽऽज।" विधी के हलक से चीख निकल गई, वो मेरे चेहरे को थपथपाते हुए बुरी तरह रोने लगी। पास में ही खड़ी रितू दीदी भी दौड़ कर मेरे पास आ गईं। मुझे पीछे से पकड़ते हुए मुझे ज़ोर ज़ोर से आवाज़ें लगाने लगीं। सब कुछ एकदम से ग़मगीन सा हो गया था। वक्त को एक जगह ठहर जाने में एक पल का भी समय नहीं लगा।

वो दोनो बुरी तरह रोये जा रही थी। रितू दीदी के दिमाग़ ने काम किया। पास ही टेबल पर रखे पानी के ग्लास को उठा कर उससे मेरे चेहरे पर पानी छिड़का उन्होंने। थोड़ी ही देर में मुझे होश आ गया। होश में आते ही मैं विधी से लिपट कर ज़ार ज़ार रोने लगा।

"क्यों विधी क्यों?" मैने बिलखते हुए उससे कहा___"क्यों छुपाया तुमने मुझसे? क्या इसी लिए तुमने मेरे साथ वो सब किया था, ताकि मैं तुमसे दूर चला जाऊॅ? और मैं मूरख ये समझता रहा कि तुमने मेरे साथ कितना ग़लत किया था। कितना बुरा हूॅ मैं, आज तक मैं तुम्हें भला बुरा कहता रहा। तुम्हारे बारे में कितना कुछ बुरा सोचता रहा। मैने कितना बड़ा अपराध किया है विधी। हाय कितना बड़ा पाप किया मैने। मुझे तो भगवान भी कभी माफ़ नहीं करेगा।"

"नहीं राज नहीं।" विधी ने तड़प कर मुझे अपने से छुपका लिया, बोली___"तुमने कोई अपराध नहीं किया, कोई पाप नहीं किया। तुमने तो बस प्यार ही किया है मुझे, हर रूप में तुमने मुझे प्यार किया है राज। मुझे तुम पर नाज़ है। ईश्वर से यही दुवा करूॅगी कि हर जन्म में मुझे तुम्हारा ही प्यार मिले।"

"अपने आपको सम्हालो राज।" सहसा रितू दीदी ने मुझे पीछे से पकड़े हुए कहा___"ईश्वर इस बात का गवाह है कि तुम दोनो ने कोई पाप नहीं किया है। विधी ने उस समय जो किया उसमें भी उसके मन में सिर्फ यही था कि तुम उससे दूर हो जाओ और एक नये सिरे से जीवन में आगे बढ़ो। तुम खुद सोचो राज कि जो विधी तुम्हें दिलो जान से प्यार करती थी उसने तुम्हें अपने से दूर करने के लिए खुद को कैसे पत्थर दिल बनाया होगा? उसका दिल कितना तड़पा होगा? मगर इसके बाद भी उसने तुम्हें खुद से दूर किया। उस समय का वो दुख आज के इस दुख से भारी नहीं था।"

"लेकिन दीदी इसने मुझसे ये बात छुपाई ही क्यों थी?" मैने रोते हुए कहा___"क्या इसे मेरे प्यार पर भरोसा नहीं था? मैं इसके इलाज़ के लिए धरती आसमान एक कर देता और इसको इस गंभीर बिमारी से बचा लेता।"

"नहीं राज।" दीदी ने कहा___"तुम उस समय भी कुछ न कर पाते क्योंकि तब तक कैंसर इसके खून में पूरी तरह फैल चुका था। पहले इस बात का इसे पता ही नहीं था और जब पता चला तो डाक्टर ने बताया कि इसके इलाज में ढेर सारा पैसा लगेगा और इसका इलाज हमारे देश में हो पाना भी मुश्किल था। उस समय ना तो तुम इतने सक्षम थे और ना ही इसके माता पिता जो इसका इलाज करवा पाते। इस लिए विधी ने फैंसला किया कि वो तुमसे जितना जल्दी हो सके दूर हो जाए। क्योंकि तब तुम्हें इस बात का भी दुख होता कि तुम इसका इलाज नहीं करवा पाए। सब कुछ हमारे हाॅथ में नहीं होता राज। कुछ ईश्वर का भी दखल होता है।"

"कुछ भी कहिये दीदी।" मैने कहा___"कम से कम मैं अपनी विधी के साथ तो रहता। उसे खुद से अलग करके उसे दुखों के सागर में डूबने तो न देता।"
"नहीं राज तुम इस सबसे दुखी मत हो।" विधी ने कहा___"सब कुछ भूल जाओ। मैं बस ये चाहती हूॅ कि तुम मुझे खुशी खुशी इस दुनियाॅ से अलविदा करो। आज तुम्हारी बाहों में हूॅ तो मेरे सारे दुख दर्द दूर हो गए हैं। मेरी ख्वाहिश थी कि मेरा दम निकले तो सिर्फ मेरे महबूब की बाहों में। तुम्हारी सुंदर छवि को अपनी ऑखों में बसा कर यहाॅ से जाना चाहती थी। इस लिए दीदी से मैने अपनी ये इच्छा बताई और दीदी ने मुझसे वादा किया कि ये तुमको मेरे पास लेकर ज़रूर आएॅगी।"

मैं विधी की इस बात से चौंका। पलट कर रितू दीदी की तरफ देखा तो रितू दीदी की नज़रें झुक गईं। उनके चेहरे पर एकाएक ही ग्लानि और अपराध बोझ जैसे भाव उभर आए।

"राज, तुम्हारी रितू दीदी अब पहले जैसे नहीं रहीं।" सहसा विधी ने मुझसे कहा___"ये तुमसे बहुत प्यार करती हैं। इन्हें कभी खुद से दूर न करना। इन्होंने जो कुछ किया उसमे इनका कोई दोष नहीं था। इन्होंने तो वही किया था जो इन्हें बचपन से सिखाया गया था। आज हर सच्चाई इनको पता चल चुकी है इस लिए अब ये तुम्हें ही अपना भाई मानती हैं। तुम इन्हें माफ़ कर देना। इनका मुझ पर बहुत बड़ा उपकार है राज। ये मुझे अपनी छोटी बहन जैसा प्यार देती हैं। जब से ये मुझे मिली हैं तब से मुझे यही एहसास होता रहा है जैसे कि तुम मेरे पास ही हो।"

विधी की इन बातों से मुझे झटका सा लगा। मैने एक बार फिर से पलट कर रितू दीदी की तरफ देखा। उनका सिर पूर्व की भाॅति ही झुका हुआ था। मैने अपने दोनो हाॅथों से उनके चेहरे को लेकर उनके चेहरे को ऊपर उठाया। जैसे ही उनका चेहरा ऊपर हुआ तो मुझे उनका ऑसुओं से तर चेहरा दिखा। मेरा कलेजा हिल गया उनका ये हाल देख कर। मैने उन्हें अपने सीने से लगा लिया। मेरे सीने से लगते ही रितू दीदी की रुलाई फूट गई। वो फूट फूट कर रोने लगी थी। जाने कब से उनके अंदर ये गुबार दबा हुआ था और अब वो इस रूप में निकल रहा था।

"ये क्या दीदी?" मैने उनके सिर को प्यार से सहलाते हुए कहा___"चुप हो जाइये दीदी। अरे आप तो मेरी सबसे प्यारी और बहादुर दीदी हैं। चलिये अब चुप हो जाइये।"
"तू इतना अच्छा क्यों है राज?" रितू दीदी का रोना बंद ही नहीं हो रहा था____"तुझे मुझ पर गुस्सा क्यों नहीं आता? मैने तुझे कभी अपना भाई नहीं माना। हमेशा तेरा दिल दुखाया मैने। मुझे वो सब याद है मेरे भाई जो कुछ मैने तेरे साथ किया है। जब जब मुझे वो सब याद आता है तब तब मुझे खुद से घृणा होने लगती है। मुझे ऐसा लगने लगता है कि मैं अपने आपको क्या कर डालूॅ।"

"नहीं दीदी।" मैने उन्हें खुद से अलग करके उनके ऑसुओं को पोंछते हुए कहा___"ऐसा कभी सोचना भी मत। मेरे मन में कभी भी आपके प्रति कोई बुरा ख़याल नहीं आया। कहीं न कहीं मुझे भी इस बात का एहसास था कि आप वही कर रही हैं जो आपको सिखाया जाता था।"

"ये सब तू मेरा दिल रखने के लिए कह रहा है न?" रितू दीदी ने कहा___"जबकि मुझे पता है कि तुझे मेरे उस बर्ताव से कितनी तक़लीफ़ होती थी।"
"हाॅ बुरा तो लगता था दीदी।" मैने कहा___"मगर उस सबके लिए आप पर कभी गुस्सा नहीं आता था। हर बार यही सोचता था कि इस बार आप मुझसे ज़रूर बात करेंगी।"

"और मैं इतनी बुरी थी कि हर बार तेरी उन मासूम सी उम्मीदों को तोड़ देती थी।" रितू ने सिर झुका लिया, बोली___"तू उस सबके लिए मुझे सज़ा दे मेरे भाई। तेरी हर सज़ा को मैं हॅसते हुए कुबूल कर लूॅगी।"
"ठीक है दीदी।" मैने कहा___"आपकी सज़ा यही है कि अब से आप ये सब बिलकुल भी नहीं सोचेंगी और ना ही ये सब सोच कर खुद को रुलाओगी। यही आपकी सज़ा है।"

मेरी ये सज़ा सुन कर रितू दीदी देखती रह गईं मुझे और सहसा फिर से उनकी ऑखों से ऑसू बह चले। वो मुझसे लिपट गईं। वो इस तरह मुझसे लिपटी हुई थी जैसे वो मुझे अपने अंदर समा लेना चाहती हों।

विधी अपना ऑसुओं से तर चेहरा लिए हम दोनो बहन भाई को देख रही थी। उसके होठों पर मुस्कान थी। सहसा तभी उसे ज़ोर का धचका लगा। हम दोनो बहन भाई का ध्यान विधी की तरफ गया। विधी को आए उस ज़ोर के धचके से अचानक ही खाॅसी आने लगी। मैं बुरी तरह चौंका। उधर विधी को लगातार खाॅसी आने लगी थी। मैं ये देख कर बुरी तरह घबरा गया। मेरे साथ साथ रितू दीदी भी घबरा गई। मैने विधी को अपनी बाहों में ले लिया।

"विधी, क्या हुआ तुम्हें?" मैं बदहवाश सा कहता चला गया___"तुम ठीक तो हो न? ये खाॅसी कैसे आने लगी तुम्हें। डाक्टरऽऽऽ.....डा डाक्टर को बुलाओ कोई।"

मैं पागलों की तरह इधर उधर देखने लगा। मेरी नज़र रितू दीदी पर पड़ी तो मैं उन्हें देख कर एकाएक ही रो पड़ा___"दीदी, देखो न विधी को अचानक ये क्या होने लगा है? प्लीज़ दीदी जल्दी से डाक्टर को बुलाइये। जाइये जल्दी.....डाक्टर बुलाइये। मेरी विधी को ये खाॅसी कैसे आने लगी है अचानक?"

मेरी बात सुन कर रितू दीदी को जैसे होश आया। वो बदहवाश सी होकर पहले इधर उधर देखी फिर भागते हुए कमरे से बाहर की तरफ लपकी। इधर मैं लगातार विधी को अपनी बाहों में लिए उसे फुसला रहा था। मेरा दिलो दिमाग़ एकदम से जैसे कुंद सा पड़ गया था। उधर विधी को रह रह कर खाॅसी आ रही थी। सहसा तभी उसके मुख से खून निकला। ये देख कर मैं और भी घबरा गया। मैं ज़ोर ज़ोर से डाक्टर डाक्टर चिल्लाने लगा। विधी की हालत प्रतिपल ख़राब होती जा रही थी। उसकी हालत देख कर मेरी जान हलक में आकर फॅस गई थी।

तभी कमरे में भागते हुए डाक्टर नर्सें और रितू दीदी आ गई। उनके पीछे ही विधी के माॅम डैड भी आ गए। उनके चेहरे से ही लग रहा था कि उनकी हालत बहुत ख़राब है। डाक्टर ने आते ही विधी को देखा।

"देखिये इनकी हालत बहुत ख़राब है।" डाक्टर ने विधी को चेक करने के बाद कहा___"ऐसा लगता है कि आज इनका बचना बहुत मुश्किल है।"
"डाऽऽऽऽक्टर।" मैं पूरी शक्ति से चीख पड़ा था___"ज़ुबान सम्हाल कर बात कर वरना हलक से ज़ुबान खींच कर तेरे हाॅथ में दे दूॅगा समझे? मेरी विधी को कुछ नहीं होगा। इसे कुछ नहीं होने दूॅगा मैं। मैं इसे ठीक कर दूॅगा।"

"बेटीऽऽऽ।" विधी की माॅ भाग कर विधी के पास आई और रोते हुए बोली___"मैं कैसे जी पाऊॅगी अगर तुझे कुछ हो गया तो?"
"ममाॅ।" खाॅसते हुए विधी के मुख से लरजते हुए शब्द निकले___"आज मैं बहुत खुश हूॅ। अपने महबूब की बाहों में हूॅ। कितने अच्छे वक्त पर मेरा दम निकलने वाला है। उस भगवान से शिकायत तो थी मगर अब कोई शिकायत भी नहीं रह गई। उसने मेरी आख़िरी ख्वाहिश को जो पूरी कर दी माॅम। मेरे जाने के बाद डैड का ख़याल रखियेगा।"

"नहीं नहीं।" मैं ज़ार ज़ार रो पड़ा___"तुम्हें कुछ नहीं होगा विधी और अगर कुछ हो गया न तो सारी दुनियाॅ को आग लगा दूॅगा मैं। सबको जीवन मृत्यु देने वाले उस ईश्वर से नफ़रत करने लगूॅगा मैं।"
"ऐसा मत कहो राज।" विधी ने थरथराते लबों से कहा___"मरना तो एक दिन सबको ही होता है, फर्क सिर्फ इतना है कि कोई जल्दी मर जाता है तो कोई ज़रा देर से। मगर हर कोई मरता ज़रूर है। मेरे लिए इससे बड़ी भला और क्या बात हो सकती है कि मैं अपने जन्म देने वाले माता पिता के सामने और अपने महबूब की बाहों में मरने जा रही हूॅ। मुझे हॅसते हुए विदा करो मेरे साजन। तुम्हारी ये दासी तुम्हारे इन खूबसूरत अधरों की मुस्कान देख कर मरना चाहती है। मुझसे वादा करों मेरे महबूब कि मेरे जाने के बाद तुम खुद को कभी तक़लीफ़ नहीं दोगे। किसी ऐसी लड़की के साथ अपनी दुनियाॅ बसा लोगे जो तुमसे इस विधी से भी ज्यादा प्यार करे।"

"नहीं विधी नहीं।" मैंने रोते हुए झुक कर उसके माथे से अपना माथा सटा लिया___"मत करो ऐसी बातें। तुम मुझे छोंड़ कहीं नहीं जाओगी। मैं तुम्हारे बिना जीने की कल्पना भी नहीं कर सकता।"
"क्या यही प्यार करते हो मुझसे?" विधी ने अटकते हुए स्वर में कहा___"बोलो मेरे देवता। ये कैसा प्यार है तुम्हारा कि तुम अपनी इस दासी की अंतिम इच्छा भी पूरी नहीं कर रहे?"

"मैं कुछ नहीं जानता विधी।" मैने मजबूती से सिर हिलाते हुए कहा___"मुझे प्यार व्यार कुछ नहीं दिख रहा। मैं सिर्फ इतना जानता हूॅ कि तुम मुझे अकेला छोंड़ कर कहीं नहीं जाओगी बस।"
"अरे मैं तुम्हें छोंड़ कर कहाॅ जा रही हूॅ राज?" विधी ने मेरे चेहरे को सहला कर कहा___"मेरा दिल मेरी आत्मा तो तुममें ही बसी है। तुम मुझे हर वक्त अपने क़रीब ही महसूस करोगे। ये तो जिस्मों की जुदाई है राज, और इस जिस्म का जुदा होना भी तो ज़रूरी है। क्योंकि मेरा ये जिस्म तुम्हारे लायक नहीं रहा। ये बहुत मैला हो चुका है मेरे महबूब। इसका खाक़ में मिल जाना बहुत ज़रूरी हो गया है।"

"दीदी इसे समझाओ न।" मैने पलट कर दीदी की तरफ देखते हुए कहा___"देखिये कैसी बेकार की बातें कर रही है ये। इससे कहिये न दीदी कि ये मुझे छोंड़ कहीं न जाए। इससे कहिये न कि मैं इसके बिना जी नहीं पाऊॅगा।"

मेरी बात सुन कर दीदी कुछ बोलने ही वाली थी कि सहसा इधर विधी को फिर से खाॅसी का धचका लगा। मैने पलट कर विधी को देखा। उसके मुख से खून निकल कर बाहर आ गया था।

"रराऽऽज।" विधी ने उखड़ती हुई साॅसों के साथ कहा___"अब मुझे जाना होगा। मुझे वचन दो मेरे हमदम कि तुम मेरे बाद कभी भी खुद को दुखी नहीं रखोगे। अपनी इस दासी को वचन दो मेरे देवता। मुझे हॅसते हुए विदा करो। और....और एक बार अपनी वो मनमोहक मुस्कान दिखा दो न मुझे। मेरे पास समय नहीं है, मेरे प्राण लेने के लिए देवदूत आ रहे हैं। मैं उन्हें अपनी तरफ आते हुए स्पष्ट देख रही हूॅ।"

"नहींऽऽऽ।" मैं बुरी तरह रो पड़ा___"ऐसा मत कहो। मुझे यूॅ छोंड़ कर मत जाओ प्लीऽऽऽज़। मैं मर जाऊॅगा विधी।"
"हठ न करो मेरे महबूब।" विधी को हिचकियाॅ आने लगी थीं, बोली___"मुझे वचन दो राज। मेरी अंतिम यात्रा को आसान बना दो मेरे देवता।"

मेरे दिलो दिमाग़ ने काम करना मानों बंद कर दिया था। मगर विधी की करुण पुकार ने मुझे बिवश कर दिया। मैंने देखा कि उसका एक हाथ मुझसे वचन लेने के लिए हवा में उठा हुआ था। मैने उसके हाॅथ में अपना हाॅथ रख दिया। मेरे हाॅथ को पकड़ कर उसने हल्के से दबाया। उसके निस्तेज पड़ चुके चेहरे पर हल्का सा नूर दिखा।

"अब अपने अधरों की वो खूबसूरत मुस्कान भी दिखा दो राज।" विधी ने बंद होती पलकों के साथ साथ मगर टूटती हुई साॅसों के साथ कहा___"एक मुद्दत हो गई मैने इन अधरों की उस मनमोहक मुस्कान को नहीं देखा। देर न करो मेरे देवता, जल्दी से दिखा दो वो मुस्कान मुझे।"

ये कैसा सितम था मुझ पर कि इस हाल में भी मुझे वो मुस्कुराने को कह रही थी। भला ये कैसे कर सकता था मैं और भला ये कैसे हो सकता था मुझसे? मगर मेरी जान ने ये रज़ा की थी मुझसे। उसकी आख़िरी ख्वाहिश को पूरा करना मेरा फर्ज़ था, भले ही ये मेरे लिए नामुमकिन था। मैने खुद को बड़ी मुश्किल से सम्हाला। रितू दीदी मेरे पीछे ही मुझे पकड़े बैठी हुई थी। सिरहाने की तरफ विधी के माॅम डैड ऑसुओं से तर चेहरा लिए खड़े थे। कुछ दूरी पर वो डाक्टर और नर्स खड़ी थी। जिनके चेहरों पर इस वक्त दुख के भाव गर्दिश कर रहे थे।

मैने देखा कि मेरी बाहों में पड़ी विधी बड़ी मुश्किल से अपनी ऑखें खोले मुझे ही देखने की कोशिश में लगी थी। मेरे ऑखों से रह रह कर ऑसूॅ बह जाते थे। दिलो दिमाग़ के जज़्बात मेरे बस में नहीं थे। मैने खुद को सम्हालने के लिए और अपने अधरों पर मुस्कान लाने के लिए अपनी ऑखें बंद कर बेकाबूॅ हो चुके जज़्बातों पर काबू पाने की नाकाम सी कोशिश की। उसके बाद ऑखें खोल कर मैने विधी की तरफ देखा, मेरे होठों पर बड़ी मुश्किल से हल्की सी मुस्कान उभरी। मेरी उस मुस्कान को देख कर विधी के सूखे हुए अधरों पर भी हल्की सी मुस्कान उभर आई। और फिर तभी.......

मैने महसूस किया कि उसका जिस्म एकदम से ढीला पड़ गया है। हलाॅकि वो मुझे उसी तरह एकटक देखती हुई हल्का सा मुस्कुरा रही थी। उसके जिस्म में कोई हरकत नहीं हो रही थी। अभी मैं ये सब महसूस ही कर रहा था कि तभी मेरे कानों में विधी की माॅ की ज़ोरदार चीख सुनाई दी। उनकी इस चीख़ से जैसे सबको होश आया और फिर तो जैसे चीखों का और रोने का बाज़ार गर्म हो गया। मुझे मेरे कानों में सबका रुदन स्पष्ट सुनाई दे रहा था मगर मेरी निगाहें अपलक विधी के चेहरे पर गड़ी हुई थी। मैं एकदम से शून्य में खोया हुआ था।

हास्पिटल के उस कमरे में मौजूद विधी के माॅम डैड और रितू दीदी बुरी तरह विधी से लिपटे रोये जा रहे थे। सबसे ज्यादा हालत ख़राब विधी की माॅम की थी। उसके डैड मानो सदमें में जा चुके थे। मेरे कानों में सबका रोना चिल्लाना ऐसे सुनाई दे रहा था जैसे किसी अंधकूप में ये सब मौजूद हों।

सहसा रितू दीदी का ध्यान मुझ पर गया। मैं एकटक विधी की खुली हुई ऑखों को और उसके अधरों पर उभरी हल्की सी उस मुस्कान को देखे जा रहा था। मेरा दिलो दिमाग़ एकदम से सुन्न पड़ा हुआ था। रितू दीदी ने मुझे पकड़ कर ज़ोर से हिलाया। किन्तु मुझ पर कुछ भी असर न हुआ। मेरे चेहरे पर कोई भाव नहीं थे, ऐसा लग रहा था जैसे मैं ज़िंदा तो हूॅ मगर मेरे अंदर किसी प्रकार की कोई प्रतिक्रिया नहीं हो रही है।

"राऽऽऽऽज।" रितू दीदी मुझे पकड़ कर झकझोरते हुए चीखी___"होश में आ मेरे भाई। देख विधी हमे छोंड़ कर चली गई रे। तू सुन रहा है न मेरी बात?"
"शान्त हो जाओ दीदी।" मैने धीरे से उनसे कहा___"मेरी विधी मुझे सुकून से देख रही है। उसे देखने दो दीदी। देखिये न दीदी, मेरी विधी के होंठो पर कितनी सुंदर मुस्कान फैली हुई है। इसे ऐसे ही मुस्कुराने दीजिए। अरे....आप सब इतना शोर क्यों कर रहे हैं? प्लीज़ चुप हो जाइये। वरना मेरी विधी को अच्छा नहीं लगेगा। उसे सुकून से मुस्कुराने दीजिए।"

रितू दीदी ही नहीं बल्कि विधी के माॅम डैड भी मेरी इस बात से सन्न रह गए। जबकि मैं बड़े प्यार से विधी के चेहरे पर आ गई उसके बालों की लट को एक तरफ हटाते हुए उसे देखे जा रहा था। मैं उसकी उस मुस्कान को देख कर खुद भी मुस्कुरा रहा था।

सहसा पीछे से रितू दीदी मुझसे लिपट गई और बुरी तरह सिसकने लगीं। विधी की माॅ ने मेरे सिर पर प्यार से अपना हाॅथ रखा। वो खुद भी सिसक रही थी।
"बेटा, अपने आपको सम्हालो।" वो बराबर मेरे सिर पर हाॅथ फेरते हुए सिसक रही थी___"जाने वाली तो अब चली गई है। वो लौट कर वापस नहीं आएगी। कब तक तुम अपनी इस विधी को इस तरह देखते रहोगे?"

"चुप हो जाइये माॅ।" मैने सिर उठाकर बड़ी मासूमियत से कहा___"कुछ मत बोलिए। देखिए न विधी सुकून से कैसे मुझे देख कर मुस्कुरा रही है। इसे ऐसे ही मुस्कुराने दीजिए माॅ। इसे डिस्टर्ब मत कीजिए।"

मेरी बातों से सब समझ गए थे कि मुझ पर पागलपन सवार हो चुका है। मैं इस बात को स्वीकार नहीं कर रहा हूॅ कि विधी अब इस दुनियाॅ में नहीं रही। ये देख कर सबकी ऑखों से ऑसू छलकने लगे। विधी के डैड मेरे पास आए और मुझे उन्होंने अपने से छुपका लिया।

"ये कैसा प्यार है बेटा?" फिर वो रुॅधे हुए गले से बोल पड़े___"तुम दोनो का ये प्रेम हमें पहले क्यों नहीं पता चल पाया? तुम्हारे जैसा दामाद मुझे मिलता तो जैसे मुझे सारी दुनियाॅ की दौलत मिल जाती। हे भगवान कितना बेरहम है तू। मेरे मासूम से बच्चों के साथ इतना बड़ा घात किया तुमने? तेरा कलेजा ज़रा भी नहीं काॅपा?"

विधी के डैड खुद को सम्हाल न सके और वो मुझे अपने से छुपकाए बुरी तरह रो पड़े। पास ही में खड़े डाक्टर और नर्स भी हम सबकी हालत देख कर बेहद दुखी नज़र आ रहे थे। ख़ैर, काफी देर तक यही माहौल कायम रहा। हर कोई मुझे समझा रहा था, बहला रहा था मगर मैं बस यही कहता जा रहा था कि___"आप सब शान्त रहिए, मेरी विधी को यूॅ शोर करके डिस्टर्ब मत कीजिए।"

उस वक्त तो मेरा दिमाग़ ही ख़राब हो गया जब सब लोग मुझे विधी से अलग करने लगे। डाक्टर ने एम्बूलेन्स का इंतजाम कर दिया था। इस लिए विधी के डैड अब अपनी बेटी के मृत शरीर को हास्पिटल से ले जाने के लिए मुझे विधी से अलग करने लगे। मैं विधी से अलग नहीं हो रहा था। सब मुझे समझा रहे थे। विधी की माॅ मेरे इस पागलपन से बुरी तरह रोते हुए मुझे अपने से छुपकाये हुए थी। रितू दीदी मुझे छोंड़ ही नहीं रही थी।

आख़िर, सबके समझाने बुझाने के बाद और काफी मसक्कत करने के बाद मैं विधी से अलग हुआ। मगर मैने विधी को हाथ नहीं लगाने दिया किसी को। मैने खुद ही उसे अपनी बाहों में उठा लिया और फिर सबके ज़ोर देने पर कमरे से बाहर की तरफ बढ़ चला। मेरे चेहरे पर दुख दर्द के कोई भाव नहीं थे। मैं अपनी बाहों में विधी को लिए बाहर की तरफ आ गया। विधी की जो ऑखें पहले खुली हुई थी उन ऑखों को उनकी पलकों के साथ विधी के डैड ने अपनी हॅथेली से बंद कर दिया था। किन्तु उसके अधरों पर फैली हुई वो मुस्कान अभी भी वैसी ही कायम थी।

थोड़ी ही देर में हम सब हास्पिटल के बाहर आ गए। हास्पिटल के बाहर एम्बूलेन्स खड़ी थी। बाएॅ साइड मोटर साइकिल खड़ी थी जिसके पास ही खड़ा पवन किसी गहरे ख़यालों में खोया हुआ खड़ा था। हास्पिटल के बाहर आते ही जब कुछ शोर शराबा हुआ तो बरबस ही पवन का ध्यान हमारी तरफ गया। उसने पलट कर देखा हमारी तरफ। मेरी बाहों में विधी को इस हालत में देख कर वह सकते में आ गया। पलक झपकते ही उसकी हालत ख़राब हो गई। अपनी जगह पर खड़ा वो पत्थर की मूर्ति में तब्दील हो गया।

इधर थोड़ी ही देर में मैं विधी को लिए एम्बूलेन्स में सवार हो गया। मेरे साथ ही रितू दीदी, विधी की माॅ और उसके डैड बैठ गए। हम लोगों के बैठते ही एम्बूलेन्स का पिछला दरवाजा बंद ही किया जा रहा था कि सहसा भागते हुए पवन हमारे पास आया। एम्बूलेन्स के अंदर का दृष्य देखते ही उसके होश फाख्ता हो गए। एक स्ट्रेचर की तरह दिखने वाली लम्बी सी पाटरी पर विधी को सफेद कफन में गले तक ढॅका देखते ही पवन की ऑखें छलछला आईं। वो बुरी तरह मुझे देखते हुए रोने लगा। जबकि मैं एकदम शान्त अवस्था में विधी के होठों पर उभरी उस मुस्कान को देखे जा रहा था।

पवन के रोने की आवाज़ जैसे ही मेरे कानों में पड़ी मैने तुरंत पवन की तरफ देखा और उॅगली को अपने होठों पर रख कर उसे चुप रहने का इशारा किया। मेरे चेहरे के आव भाव देख कर पवन का कलेजा फटने को आ गया। वो बिना एक पल गवाॅए एम्बूलेन्स में चढ़ कर मेरे पास आ गया और मुझे शख्ती से पकड़ कर खुद से छुपका लिया। उसकी ऑखों से ऑसू रुक ही नहीं रहे थे।

रितू दीदी ने पवन को समझा बुझा कर चुप कराया और उसे घर जाने को कहा। किन्तु पवन मुझे छोंड़ कर जाने को तैयार ही नहीं हो रहा था। इस लिए रितू दीदी ने उसे समझाया कि उसका घर में रहना बहुत ज़रूरी है। क्योंकि उसके डैड यानी अजय सिंह का कोई भरोसा नहीं था कि वो क्या कर बैठे। ये तो उसे पता चल ही जाएगा कि राज यहाॅ पर किसके यहाॅ आया है? अगर उसे पता चल गया कि वो पवन के यहाॅ आया है तो उसके घर वालों के लिए ख़तरा हो जाएगा। रितू दीदी के बार बार समझाने पर पवन दुखी मन से एम्बूलेन्स से उतर गया।

पवन के उतरते ही एम्बूलेन्स चल पड़ी। विधी की माॅ अभी भी धीमी आवाज़ में सिसक रही थी। सामने की शीट पर विधी के माॅम डैड बैठे थे और इधर की शीट पर मैं व रितू दीदी। हमारे बीच का पोर्शन जो खाली था उसमें विधी को बड़ी सी स्ट्रेचर रूपी पाटरी पर लिटाया गया था। मैं एकटक उसकी मुस्कान को घूरे जा रहा था। मेरे लिए दुनियाॅ जहान से जैसे कोई मतलब नहीं था।

रितू दीदी को जैसे कुछ याद आया तो उन्होंने पाॅकेट से मोबाइल निकाल कर किसी से कुछ देर कुछ बात की और फिर काल कट करके मोबाइल पुनः अपनी पाॅकेट में डाल लिया। कुछ समय बाद ही एम्बूलेन्स रुकी और थोड़ी ही देर में पिछला गेट खुला तो विधी के माॅम डैड बाहर आ गए। उनके साथ ही रितू दीदी भी एम्बूलेन्स से बाहर आ गई। रितू दीदी ने मेरा हाॅथ पकड़ कर बाहर आने का इशारा किया। मैं बाहर की तरफ अजीब भाव से देखने लगा। सब मुझे ही दुखी भाव से देख रहे थे।

ख़ैर, हास्पिटल से आए दो कर्मचारियों ने उस स्ट्रेचर को बाहर निकाला जिस पर विधी लेटी हुई थी। स्ट्रेचर को बाहर निकाल कर उन्होंने उसे ज़मीन पर रखना ही चाहा था कि मैंने उन्हें पकड़ लिया। जिससे हवा में ही उन लोगों ने स्ट्रेचर को उठाये रखा। मैने विधी को अपनी बाहों में उठा लिया। विधी के माॅम डैड ये देख कर एक बार फिर से रो पड़े।

विधी को लेकर मैं विधी के घर की तरफ बढ़ा तो विधी के माॅम डैड भी आगे आ गए। आस पास के लोगों ने देखा तो कुछ ही समय में वहाॅ भीड़ जमा हो गई। आस पास के जिन लोगों से इनके अच्छे संबंध थे उन लोगों ने ये सब देख कर भारी दुख जताया। लगभग एक घण्टे बाद फिर से विधी को एक लकड़ी की स्ट्रेचर बना कर उसमे लिटाया गया। इन सब कामों के बीच मैं बराबर विधी के पास ही था और मेरे पास रितू दीदी मौजूद रहीं।

उस वक्त दिन के चार बज रहे थे जब मैं विधी के जनाजे को तीन और आदमियों के साथ लिए मरघट में पहुॅचा था। आगे की तरफ मैं और विधी के डैडी अपने अपने कंधे पर जनाजे का एक एक छोर रखा हुआ था। काफी सारे लोग हमारे साथ थे। मेरे चेहरे पर कोई भाव नहीं था। इतना कुछ होने के बाद भी मैं आश्चर्यजनक रूप से एकदम शान्त चित्त था। मरघट में पहुॅच कर हमने विधी के जनाजे को वहीं ज़मीन पर रखा। कुछ औरतें साथ आई हुई थी। उन लोगों ने वहाॅ पर कपड़ों के द्वारा चारो तरफ से पर्दा करके विधी को नहलाया धुलाया और फिर उसे कपड़े पहनाए। इसके बाद उसे लकड़ी की चिता पर लेटा दिया गया।

विधी को चिता में लेटे देख सहसा मुझे ज़ोर का झटका लगा। मेरी ऑखों के सामने पिछली सारी बातें बड़ी तेज़ी से घूमने लगीं। चिता के चारो तरफ सफेद कपड़ों में खड़े लोगों पर मेरी दृष्टि पड़ी। उन सबको देखने के बाद मेरी नज़र चिता पर सफेद कपड़ों में लिपटी विधी पर पड़ी। उसे उस हालत में देखते ही सहसा मेरे अंदर ज़ोर का चक्रवात सा उठा।

"विधीऽऽऽऽऽ।" मैं पूरी शक्ति से चीख पड़ा और भागते हुए चिता के पास पहुॅच गया। सफेद कपड़ों में ऑखें बंद किये लेटी विधी के चेहरे को देख कर मैं उससे लिपट गया और फूट फूट कर रोने लगा। पल भर में मेरी हालत ख़राब हो गई। विधी के चेहरे को दोनो हाॅथों से पकड़े मैं दहाड़ें मार मार कर रोये जा रहा था।

मुझे इस तरह विधी से लिपट कर रोते देख कुछ लोग भागते हुए मेरे पास आए और मुझे विधी के पास से खींच कर दूर ले जाने लगे। मैने उन सबको झटक दिया, वो सब दूर जाकर गिरे। खुद को उनके चंगुल से छुड़ाते ही मैं फिर से भागते हुए विधी के पास आया और फिर से उससे लिपट कर रोने लगा। मुझे इस हालत में ये सब करते देख विधी के डैड और रितू दीदी दौड़ कर मेरे पास आईं और मुझे विधी के पास से दूर ले जाने लगीं।

"खुद को सम्हालो राज।" रितू दीदी बुरी तरह रोते हुए बोली___"ये क्या पागलपन है? तुम ऐसा कैसे कर सकते हो? तुम अपनी विधी को दिये हुए वचन को कैसे तोड़ सकते हो? क्या तुम भूल गए कि अंतिम समय में विधी ने तुमसे क्या वचन लिया था?"

"दीदी विधी मुझे छोंड़ कर कैसे जा सकती है?" मैं उनसे लिपट कर रोते हुए बोला___"उससे कहो कि वो उठ कर मेरे पास आए।"
"अपने आपको सम्हालो बेटा।" सहसा विधी के डैड ने दुखी भाव से कहा___"इस तरह विलाप करने से तुम अपनी विधी की आत्मा को ही दुख दे रहे हो। ज़रा सोचो, वो तुम्हें इस तरह दुखी होकर रोते हुए देख रही होगी तो उस पर क्या गुज़र रही होगी? क्या तुम अपनी विधी को उसके मरने के बाद भी दुखी करना चाहते हो?"

"नहीं हर्गिज़ नहीं पापा जी।" मैंने पूरी ताकत से इंकान में सिर हिलाया___"मैं उसे ज़रा सा भी दुख नहीं दे सकता और ना ही उसे दुखी देख सकता हूॅ।"
"तो फिर ये पागलपन छोंड़ दो बेटे।" विधी के डैड मेरे सिर पर हाथ फेरते हुए बोले___"अगर तुम इस तरह दुखी होगे और रोओगे तो विधी को बिलकुल अच्छा नहीं लगेगा बल्कि उसे बहुत ज्यादा दुख होगा इस सबसे। इस लिए बेटा, अपने अंदर के जज़्बातों को शान्त करने की कोशिश करो और खुशी खुशी अपनी विधी को चिताग्नि दो। हाॅ बेटे, अब तुम्हें ही उसे चिताग्नि देनी है। तुम दोनो का रिश्ता आत्माओं से जुड़ा हुआ है इस लिए उसे चिताग्नि देने का हक़ सिर्फ तुम्हारा ही है। मेरी बेटी भले ही अब इस दुनियाॅ में नहीं है, मगर मेरे लिए तुम ही मेरे दामाद व बेटे रहोगे हमेशा। अब चलो बेटा और अपनी विधी को चिताग्नि दो।"

"अगर आप खुद इस बात को इस तरह कुबूल करके कहते हैं तो ठीक है पापा जी।" मैने दुखी भाव से कहा___"मगर मैं भी उसे यूॅ ही चिताग्नि नहीं दूॅगा। बल्कि उसे पहले सुहागन बना कर अपनी पत्नी बनाऊॅगा। फिर उसे चिताग्नि दूॅगा।"

मेरी ये बातें सुन कर विधी के डैड की ही नहीं बल्कि हर किसी की ऑखों से ऑसू छलक पड़े। विधी के डैड ने मुझे अपने सीने से लगा लिया। पंडित वहाॅ पर मौजूद था ही इस लिए सबकी सहमति से मैं विधी के पास गया और एक औरत के हाॅथ में मौजूद सिंदूर की डिबिया से अपनी दो चुटकियों में सिंदूर लिया और फिर उसे विधी की सूनी माॅग में भर दिया। मैंने अपने अंदर के जज़्बातों को लाख रोंका मगर मेरे ऑसुओं ने जैसे ऑखों से बगावत कर दी।

रितू दीदी और विधी के डैड दोनो ने मुझे कंधों से पकड़ा। मैने विधी की माॅग में सिंदूर भर कर उसे सुहागन बनाया, फिर उसके माथे को चूम कर पीछे हट गया। शान्त पड़े मरघट में एकाएक ही तेज़ हवा चली और फिर दो मिनट में ही शान्त हो गई। ये कदाचित इशारा था विधी का कि मेरी इस क्रिया से वह कितना खुश हो गई है।

पंडित ने कुछ देर कुछ पूजा करवाई और फिर उसने मुझसे अंतिम संस्कार की सारी विधि करवाई। तत्पश्चात मेरे हाथ में एक मोटा सा डण्डा पकड़ाया जिसके ऊपरी छोर पर मशाल की तरह आग जल रही थी। पंडित के ही निर्देश पर मैने उस मशाल से विधी को चिताग्नि दी।

देखते ही देखते लकड़ी की उस चिता पर आग ने अपना प्रभाव दिखाया और वह उग्र से उग्र होती चली गई। मैं भारी मन से विधी की जलती हुई चिता को देखे जा रहा था। मेरे पास रितू दीदी और विधी के माॅम डैड खड़े थे। कुछ समय बाद वहाॅ पर मौजूद लोग वहाॅ से धीरे धीरे जाने लगे। अंत में सिर्फ हम चार लोग ही रह गए।

विधी के डैड के ज़ोर देने पर ही मैं उनके साथ घर की तरफ वापस चला। मेरे अंदर भयंकर तूफान चल रहा था। मगर मैने शख्ती से उसे दबाया हुआ था। मुझे लग रहा था कि मैं दहाड़ें मार मार कर खूब रोऊॅ। उस ऊपर वाले से चीख चीख कर कहूॅ कि वो मेरी विधी को सही सलामत वापस कर दे मुझे। मगर कदाचित ऐसा होना अब संभव नहीं था। ख़ैर भारी मन के साथ ही हम सब घर आ गए।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~


इस सब में शाम हो चुकी थी। रितू दीदी के फोन पर पवन का बार बार काल आ रहा था। इस वक्त मैं और रितू दीदी विधी के घर पर ही थे। घर में कोई न कोई बाहरी आदमी आता और शोग प्रकट करके चला जाता। धीरे धीरे शाम का अॅधेरा भी छाने लगा था। विधी के माॅम डैड ने मुझे और रितू दीदी को भी घर जाने को कहा। हम लोगों का वहाॅ से आने का मन तो नहीं था पर मजबूरी थी। इस लिए रितू दीदी मुझे लेकर वहाॅ से चल दी।

रास्ते में रितू दीदी के मोबाइल पर किसी का काल आया तो उन्होने देखा उसे और काल को पिक कर मोबाइल कान से लगा लिया। कुछ देर तक उन्होंने जाने क्या बात की फिर उन्होंने काल कट कर दी।

हास्पिटल के पास आते ही मैने देखा कि उनके सामने एक पुलिस जिप्सी आकर रुकी। रितू दीदी ने मुझे उस पर बैठने को कहा तो मैं चुपचाप बैठ गया। पुलिस जिप्सी से एक आदमी बाहर निकला। उसने दीदी को सैल्यूट किया।
"अब तुम जाओ रामसिंह।" रितू दीदी ने उससे कहा___"बाॅकी लोगों को भी सूचित कर देना कि सावधान रहेंगे और उन पर नज़र रखे रहेंगे।"
"यह मैडम।" उस आदमी ने कहने के साथ ही पुनः सैल्यूट किया और एक तरफ बढ़ गया।

उस आदमी के जाते ही दीदी जिप्सी की ड्राइविंग शीट पर बैठीं और उसे यूटर्न देकर एक तरफ को बढ़ा दिया। दीदी के बगल वाली शीट पर मैं चुपचाप बैठा था। मेरी ऑखें शून्य में डूबी हुई थी। मुझे पता ही नहीं चला कि जिप्सी कहाॅ कहाॅ से चलते हुए कब रुक गई थी। चौंका तब जब दीदी की आवाज़ मेरे कानों में पड़ी। मैने इधर उधर देखा तो पता चला कि ये तो पवन के घर के सामने जिप्सी पर बैठा हुआ हूॅ मैं।

ये देख कर मैं जिप्सी से बिना कुछ बोले उतर गया और पवन के घर के अंदर की तरफ बढ़ा ही था कि सहसा दीदी ने कहा___"मेरी बात सुनो राज।"

दीदी की इस बात से मैने पलट कर उन्हें देखा। वो जिप्सी से उतर कर मेरे पास ही आ गई। तब तक जिप्सी की आवाज़ सुन कर अंदर से पवन और आदित्य भी आ गए थे। पवन और आदित्य मुझे देखते ही मुझसे लिपट कर रोने लगे। शायद पवन ने आदित्य को सारी कहानी बता दी थी। कुछ देर वो दोनो मुझसे लिपटे रोते रहे। उसके बाद रितू दीदी के कहने पर वो दोनो अलग हुए।

"मैं जानती हूॅ कि इस वक्त तुम लोग कहीं भी जाने की हालत में नहीं हो।" दीदी ने गंभीरता से कहा___"खास कर राज तो बिलकुल भी नहीं। मगर मैं ये भी जानती हूॅ कि तुम लोगों का यहाॅ पर रुकना भी सही नहीं है। इस लिए तुम सब मेरे साथ ऐसी जगह चलो जहाॅ पर तुम लोगों के होने की उम्मीद मेरे डैड कर ही नहीं सकते। हाॅ पवन, तुम सब मेरे फार्महाउस पर चल रहे हो अभी के अभी।"

"शायद आप ठीक कह रही हैं दीदी।" पवन ने बुझे मन से कहा___"मगर इतने सारे सामान के साथ हम सब एकसाथ कैसे वहाॅ जा सकेंगे? और कैसे जा सकेंगे? क्योंकि संभव है कि रास्ते में ही कहीं हमे अजय चाचा या उनके आदमी मिल जाएॅ।"
"उसकी चिंता तुम मत करो भाई।" दीदी ने कहा___"मैने वाहन का इंतजाम कर दिया है। लो वो आ भी गया।"

दीदी के कहने पर पवन ने पलट कर देखा तो सच में एक ऐसा वाहन उसे दिखा जिसे देख कर वो चौंक गया। दरअसल वो वाहन एक एम्बूलेन्स था। मेरी नज़र भी एम्बूलेन्स पर पड़ी तो उसे देख कर अनायास ही मेरा मन भारी हो गया। लाख रोंकने के बावजूद मेरी ऑखों से ऑसू छलक गए। ये देख कर रितू दीदी ने मुझे अपने सीने से लगा लिया।

"नहीं मेरे भाई।" रितू दीदी ने तड़प कर कहा__"ऐसे मत रो। तू नहीं जानता कि तेरी ऑखों से अगर ऑसू का एक कतरा भी गिरता है तो मेरे दिल में नस्तर सा चल जाता है। मैं जानती हूॅ कि इस सबको भूलना या इससे बाहर निकलना इतना आसान नहीं है तेरे लिए मगर खुद को सम्हालना तो पड़ेगा ही भाई। किसी और के लिए न सही मगर अपनी उस विधी के लिए जिसको तुमने वचन दिया है।"

"कैसे दीदी कैसे?" मेरी रुलाई फूट गई___"कैसे मैं उस सबको भुला दूॅ? मुझे तो अभी भी यकीन नहीं हो रहा है कि ऐसा कुछ हो गया है।"
"बस कुछ मत बोल मेरे भाई।" रितू दीदी ने मेरी ऑखों से ऑसू पोंछते हुए कहा___"शान्त हो जा। सब कुछ ठीक हो जाएगा। भगवान जब दुख देता है तो उसे सहने की शक्ति भी देता है। तू अपने अंदर उस शक्ति को महसूस कर भाई।"

मैं कुछ न बोला। मेरी इस हालत से पवन और आदित्य की ऑखों से भी ऑसू बहने लगे थे।
"पवन तुमने ये बात चाची और आशा को तो नहीं बताई न?" दीदी ने पवन से पूछा था।

दीदी के पूछने पर पवन ने अपना सिर झुका लिया। दीदी को समझते देर न लगी कि उसने ये बातें सबको बता दी है। अभी दीदी कुछ कहने ही वाली थी कि अंदर से रोने की आवाज़ें आने लगीं जो प्रतिपल तीब्र होती जा रही थी। रितू दीदी तेज़ी से मुझे लिये अंदर की तरफ बढ़ी। उनके पीछे पवन और आदित्य भी बढ़ चले।

अंदर बैठक तक भी न पहुॅचे थे कि रास्ते में ही पवन की माॅ और बहन रोते हुए मिल गईं। शायद उनको पता चल गया था कि मैं आ गया हूॅ। इस लिए दोनो ही रोते हुए बाहर की तरफ भागी चली आ रही थी। मुझ पर नज़र पड़ते ही वो दोनो मुझसे लिपट कर बुरी तरह रोने लगीं। आशा दीदी की हालत तो बहुत ख़राब थी। वो मुझसे लिपटी बहुत ज्यादा रो रही थी। उन दोनो को देख कर मेरी भी रुलाई फूट पड़ी थी। रितू दीदी ने बड़ी मुश्किल से हम तीनों को चुप कराया। मगर आशा दीदी सिसकती रहीं।

"चाची आप तो समझदार हैं न।" रितू दीदी कह रही थी___"आपको तो समझना चाहिए न कि इस तरह रोने से राज को और भी ज्यादा तक़लीफ़ होगी। ये तो वैसे भी इसी सदमें में डूबा हुआ है। आपको तो इसे सम्हालना चाहिए पर आप दोनो तो खुद रो रो कर इसके दुख को बढ़ा रही हैं।"

रितू दीदी की बात माॅ के समझ में आ गई थी इस लिए उन्होंने जल्दी से अपने ऑसू पोंछ लिए और मुझे अपने से छुपका कर मुझे प्यार दुलार करने लगीं।

"पवन तुम दोनो सामान को जल्दी से उस वाहन पर रखो और जल्द से जल्द यहाॅ से चलने की तैयारी करो।" रितू दीदी ने पवन की तरफ देखते हुए कहा। दीदी के कहने पर पवन और आदित्य दोनो अंदर की तरफ बढ़ गए। कुछ ही देर में जो कुछ भी ज़रूरी सामान पैक कर दिया गया था उसे लाकर बाहर खड़ी एम्बूलेन्स में रख दिया उन दोनो ने।

सामान रख जाने के बाद रितू दीदी ने हम सबको उस एम्बूलेन्स में बैठने को कहा और खुद अकेले जिप्सी में बैठ गईं। घर से बाहर आकर माॅ ने दरवाजे पर ताला लगा दिया और मुझे साथ में लिये एम्बूलेन्स में बैठ गईं। पवन आदित्य और आशा दीदी पहले ही उसमें बैठ चुके थे। हम लोगों के बैठते ही रितू दीदी ने एम्बूलेन्स के ड्राइवर को अपने पीछे आने का इशारा कर दिया।

रितू दीदी के दिमाग़ की दाद देनी होगी, क्योंकि उन्होंने बहुत कुछ सोच कर वाहन के रूप में एम्बूलेन्स को चुना था। उनकी सोच थी कि एम्बूलेन्स में हम लोगों के बैठे होने की उनके डैड कल्पना भी न कर सकेंगे। और ऐसा हुआ भी। रास्ते में कहीं पर भी हमें अजय सिंह या उसका कोई आदमी नहीं मिला। एक जगह मिला भी पर उन लोगों ने एम्बूलेन्स पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया। एम्बूलेन्स के सौ मीटर की दूरी पर रितू दीदी की जिप्सी आगे आगे चल रही थी। इतनी दूरी इस लिए ताकि कोई ये भी शक न करे कि एम्बूलेन्स रितू दीदी के साथ ही है।

ऐसे ही हम हल्दीपुर गाॅव से बाहर आ गए और उस नहर के पुल के पास से हम लोग पूर्व दिशा की तरफ मुड़ गए। लगभग बीस मिनट बाद हम सब दीदी के फार्महाउस पर पहुॅच गए। दीदी को ये भी पता चल चुका था कि मेरे साथ करुणा चाची और उनके बच्चों को भी मुम्बई जाना था मगर इस सबके हो जाने से उन्होंने मेरे फोन से करुणा चाची को फोन कर कह दिया था कि मैं आज नहीं जा रहा बल्कि वो अपने भाई के साथ यहीं पर आ जाएॅ कल।

फार्महाउस पर पहुॅच कर दीदी ने एम्बूलेन्स से सारा सामान उतरवा कर अंदर रखवा दिया। एम्बूलेन्स के जाने के बाद हम सब अंदर की तरफ बढ़ चले। अंदर ड्राइंगरूम में ही सोफे पर बैठी नैना बुआ पर मेरी नज़र पड़ी तो मैं हल्के से चौंका। नैना बुआ मुझे देखते ही सोफे से उठ कर भागते हुए मेरे पास आईं और झटके से मुझे अपने सीने से लगा लिया। उनकी ऑखों में ढेर सारे ऑसू आ गए थे मगर उन्होने उन्हें छलकने नहीं दिया। अपने जज़्बातों को बड़ी मुश्किल से दबाया हुआ था उन्होंने। शायद दीदी ने उन्हें सबकुछ बता दिया था और समझा भी दिया था कि मुझसे मिल कर वो ज्यादा रोयें नहीं।

ख़ैर, ऐसे माहौल में हम सब बेहद दुखी थे इस लिए उस रात किसी ने अन्न का एक दाना तक अपने मुख में नहीं डाला। रात में मेरे साथ बेड पर मेरे एक तरफ रितू दीदी थीं तो दूसरी तरफ आशा दीदी। सारी रात किसी भी ब्यक्ति को नींद नहीं आई। सबने मुझे अपने अपने तरीके से बहुत समझाया था। तब जाकर मुझे कुछ होश आया था। बेड पर मैं अपनी दोनो बहनों के बीच लेटा ऊपर घूम रहे पंखे को देखता रहा। सारी रात ऐसे ही गुज़र गई। मेरी दोनो बहनें अपने हृदय में मेरे प्रति दुख छुपाए मुझे अपनी अपनी तरफ से छुपकाए यूॅ ही लेटी रह गईं थी। आने वाली सुबह मेरे जीवन में और कैसे दुख दर्द की भूमिका बनाएगी इसके बारे में वक्त के सिवा कोई नहीं जानता था।



दोस्तो, अपडेट हाज़िर है,,,,,,,,

मैं नहीं जानता दोस्तो कि इस अपडेट में मैं वो सब डाल पाया हूॅ या नहीं जिन चीज़ों ने आप सबके दिलो दिमाग़ को हिला कर रख दिया हो। इतना ज़रूर कहूॅगा कि पिछले सभी एक से लेकर 44 अपडेट तक लिखना मेरे लिए इतना मुश्किल काम नहीं लगा था जितना कि इस अपडेट को लिखने में लगा है।

ख़ैर, आप सबकी खूबसूरत प्रतिक्रियाएॅ और शानदार फीडबैक का इन्तज़ार रहेगा।
बहुत ही इमोशनल अपडेट था..... तीन चार बार में रूक रूक कर पढ़ना पड़ा क्योंकि मैं भी बहुत संवेदनशील व्यक्ति हूं । आंखें नम हो गई विधि की दर्दनाक मौत पढ़कर ।

क्या कहुं इस अपडेट के लिए...... निशब्द ।
लाजवाब स्टोरी और उससे भी अच्छा आपके लिखने का अंदाजेबयां ।
 

TheBlackBlood

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
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बहुत ही इमोशनल अपडेट था..... तीन चार बार में रूक रूक कर पढ़ना पड़ा क्योंकि मैं भी बहुत संवेदनशील व्यक्ति हूं । आंखें नम हो गई विधि की दर्दनाक मौत पढ़कर ।

क्या कहुं इस अपडेट के लिए...... निशब्द ।
लाजवाब स्टोरी और उससे भी अच्छा आपके लिखने का अंदाजेबयां ।
Bahut bahut shukriya SANJU ( V. R. ) bhai aapki is khubsurat pratikriya ke liye,,,,:hug:

Vidhi wala update likhne me bahut sochna pada tha aur kafi mushkil bhi huyi thi sanju bhai. Love ka matter tha is liye uski gahraayi me utar kar ahsaas karna tha. Khair isme kuch meri kalpana ne aur kuch meri real life love story ke dard ne madad ki thi,,,,,:D
 
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Bahut bahut shukriya SANJU ( V. R. ) bhai aapki is khubsurat pratikriya ke liye,,,,:hug:

Vidhi wala update likhne me bahut sochna pada tha aur kafi mushkil bhi huyi thi sanju bhai. Love ka matter tha is liye uski gahraayi me utar kar ahsaas karna tha. Khair isme kuch meri kalpana ne aur kuch meri real life love story ke dard ne madad ki thi,,,,,:D
मनोज कुमार और आशा पारेख की मूवी " दो बदन " और दिव्या भारती , पृथ्वी की मूवी " इसमें दिल का क्या कसूर " की कुछ कुछ यादें ताजा करा गई थी । मैं सच में बहुत इमोशनल हो गया था ।
 

TheBlackBlood

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aapne iske baad story shuru ki thi uska kya hua? vo aapne adhuri chod di thi ?
Haan kuch reasons ki vajah se story close kar diya tha maine. Khair iska second part fir se restart karuga magar Raj-Rani story ke baad,,,,:dazed:
 

Rajizexy

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nice start
 
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RAAZ

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Bhai jitni story padta gaya utna hi usme khota gaya aur apkey likhne ke style ka qayal hota gaya magar ek cheez chahe viraj n party, Ajay n party aur Minister N party jo bhi mansooba banate hai agle waley ko uska step ba step andaza hona thoda atpata laga Matlab kahi na kahi ko ek party ko weak hona thaa. Khair yah koi aisi badi cheez bhi nahi ek tarah se sabka thinking level ek hi hai. Bus jis ka execution better hoga woh yah jung jeetaga.


एक नया संसार
अपडेट........《 57 》

अब तक,,,,,,,,

"अपने भगवान को याद कर ले बच्चे।" फिर उसने मेरी तरफ खतरनाक भाव से बढ़ते हुए कहा___"उनसे दुवा कर कि तेरे जिस्म की हड्डियाॅ सलामत रहें।"
"ये डाॅयालग मैं भी बोल सकता हूॅ तुम्हारे लिए।" मैने मुस्कुरा कर कहा___"पर ये सोच कर नहीं बोला कि फालतू की डींगें मारना मेरी फितरत नहीं है।"

मेरी ये बात सुन कर वो जैसे बुरी तरह तिलमिला गया था। मुझे पता था कि उसके सामने मैं कुछ भी नहीं हूॅ। अगर मैं एक बार भी उसके फौलादी शिकंजे में फॅस गया तो फिर शायद भगवान ही मालिक होगा मेरा। मगर मुझे खुद पर और अपने गुरू की सिखाई हुई कला पर पूर्ण विश्वास था।

वो पूरे वेग से मेरी तरफ बढ़ा और अपने दाहिने हाॅथ को भी उसी वेग से मुझ पर चलाया था। मैं फुर्ती से नीचे झुका मगर झुकते ही मेरे हलक से चीख निकल गई। कारण उसने हाॅथ चलाने के बाद ही अपने दाहिने पैर को उठाकर उसका घुटना भी चला दिया था जो सीधा मेरे झुके हुए चेहरे से टकराया था। मैं उछलते हुए सीधा हुआ ही था कि उसने बिजली की सी फुर्ती से घूम कर मेरे सीने पर फ्लाइंग किक जमा दी। नतीजा ये हुआ कि मेरे हलक से ज़ोर की हिचकी निकली और मैं पीछे की तरफ हवा में लहराते हुए ही नीचे कच्ची ज़मीन पर चारो खाने चित्त जा गिरा। गिरते ही मेरी ऑखों के सामने अनगिनत तारे नाॅच गए। कुछ पल के लिए तो ऑखों के सामने अॅधेरा भी छा गया। प्रहार इतना ज़बरदस्त था कि मुझसे तुरंत उठा न गया। सीने में बड़ी असहनीय पीड़ा महसूस हुई मुझे। मेरे कानो में नीलम व सोनम की चीखें भी टकराई। कदाचित मुझे इस तरह गिरते देख वो बेहर डर गई थी और मुझे कुछ हो जाने की आशंका से वो बुरी तरह चीखी थीं।

सहसा मेरी नज़र मेरे नज़दीक ही पहुॅच चुके उस आदमी पर पड़ी। मेरे क़रीब पहुॅचते ही उसने अपने पैर को उठाया और ज़मीन पर चित्त गिरे मेरे पेट की तरफ तीब्र वेग से चलाया। मैं बिजली की सी फुर्ती से कई पलटा खाते हुए दूसरी तरफ हो गया तथा साथ ही उछल कर खड़ा भी हो गया। ये अलग बात है इस तरह उछल कर खड़े होने से अचानक ही मुझे अपने सीने पर पीड़ा का एहसास हुआ। मैं समझ चुका था कि अगर ये आदमी इसी तरह मुझ पर और दो चार प्रहार करने में सफल हो गया तो यकीनन मेरा काम तमाम हो जाना है। अतः अब मैं उससे पूरी तरह सतर्कता से मुकाबला करने के लिए तैयार हो गया।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

अब आगे,,,,,,,

मंत्री दिवाकर चौधरी इस वक्त गुनगुन में ही एक ऐसी जगह पर था जहाॅ पर उसके ही किसी खास जान पहचान वाले के माल का उद्घाटन समारोह था। माल का मालिक या यूॅ कहिए कि मंत्री के उस जान पहचान वाले खास आदमी का नाम शैलेन्द्र बंसल था। जो मुख्य रूप से आगरा का रहने वाला था। बहुत पहले ही उसकी मुलाक़ात मंत्री से हुई थी। कहते हैं कि जो जैसा होता है उसे वैसा मिल ही जाता है फिर चाहे वो दुनियाॅ के किसी भी कोने में चला जाए।

शैलेन्द्र बंसल और मंत्री के बीच क्या मंत्रणा हुई थी इस बारे में तो ख़ैर वो दोनो ही बता सकते थे किन्तु मंत्री के कैरेक्टर के हिसाब से सोचने पर पता चलता था कि शैलेन्द्र बंसल भी मंत्री के ही जैसे कैरेक्टर का आदमी था। इसका खुलासा तब हुआ जब मंत्री ने शैलेन्द्र को अपने यहाॅ कारोबार के रूप में एक बड़ा सा माॅल स्थापित करने का प्रस्ताव दिया था। मंत्री के ही सहयोग से तथा उसके ही निर्देशन पर गुनगुन में अच्छी खासी ज़मीन पर ग़ैर कानूनी रूप से कब्जा कर उस स्थान पर बहुत ही कम समय में एक बड़ा सा माॅल बन कर तैयार हो गया था जिसका उद्घाटन आज खुद मंत्री के द्वारा हुआ था।

मंत्री के निर्देशन में बना ये माॅल सबकी नज़र में माॅल ही था जहाॅ पर हर तरह का उपयोगी सामान लोगों को ख़रीदने पर मिल जाता मगर कोई नहीं जानता था इसी माॅल के बेसमेन्ट में दरअसल मंत्री व शैलेन्द्र बंसल ग़ैर कानूनी धंधे को अंजाम देने की बुनियाद भी रख चुके थे।

माॅल का उद्घाटन तथा वहाॅ पर कुछ ज़रूरी मीटिंग करने के बाद मंत्री माॅल से बाहर आकर अपने सुरक्षा कर्मियों से घिरा अपनी कार के पास पहुॅचा ही था कि सहसा उसकी कोट की जेब में मौजूद मोबाइल बज उठा। एक हाॅथ से मोबाइल को निकालने के साथ ही मंत्री अपनी कार की पिछली सीट पर बैठ गया। उसके बाद उसने बज रहे मोबाइल की स्क्रीन की तरफ देखा। उसके बैठते ही उसके साथ आगे पीछे उसके सुरक्षा गार्ड भी बैठ गए। इसके बाद कार आगे बढ़ चली।

"हाॅ कहो राणे।" मोबाइल की स्क्रीन पर डिटेक्टिव राणे का नाम देख कर मंत्री ने फौरन ही काल को रिसीव कर मोबाइल को कान से लगाने के साथ ही कहा___"क्या बात है? कहीं ऐसा तो नहीं कि तुमने उस सारे काम को कर लिया है जिस काम को करने के लिए हमने तुम्हें लगाया था? अगर ऐसा है तो भाई मान गए तुम्हें। इतने कम समय में तो दुनियाॅ का कोई भी जासूस काम को अंजाम नहीं दे सकता। अभी कल ही तो लगे थे तुम काम में।"

"आप ग़लत समझ रहे हैं चौधरी साहब।" उधर से राणे का स्वर उभरा___"जिस काम के लिए आपने मुझे लगाया है वो काम भला इतना जल्दी कैसे हो जाएगा?"
"ओह ऐसा क्या।" मंत्री ने बुरा सा मुह बनाया___"हम तो मियाॅ खांमखां ही तुम्हें जेम्स बाण्ड का बाप नहीं बल्कि दादा समझ बैठे थे। ख़ैर, ये बताओ कि अगर काम नहीं हुआ है तो तुमने हमें फोन किस बात के लिए किया है?"

"दरअसल मैने।" उधर से राणे ने कहा___"बहुत ही ज़रूरी बात बताने के लिए आपको फोन किया है।"
"अरे तो मियाॅ।" मंत्री तपाक से बोला___"बात क्यों बढ़ा रहे हो? ज़रूरी बात तो तुमें अतिसीघ्र बताना चाहिए न। ख़ैर जल्दी बताओ कौन सी ज़रूरी बात है?"

"कल आपके यहाॅ से जाने के बाद।" उधर से राणे कह रहा था___"मैने अजय सिंह का पता किया और उसके पीछे लग गया। मैं देखना चाहता था कि उसने जो कुछ आपसे कहा था उसमें कितनी सच्चाई थी तथा वो आपके प्रति कितना वफ़ादार है?"

"ओह।" मंत्री के कान खड़े हो गए___"तो क्या देखा और क्या जाना तुमने?"
"कल तो उसने कुछ खास नहीं किया था।" हरीश राणे ने कहा___"किन्तु आज सुबह नौ या दस बजे के क़रीब वह अपनी कार में किसी आदमी को लिए गुनगुन के रेलवे स्टेशन आया था। स्टेशन से बाहर वो अकेला निकला था। मतलब कि उसके साथ जो दूसरा आदमी था उसे वो शायद रेलवे स्टेशन छोंड़ने आया था। स्टेशन के बाहर जब वह आया तो उसी समय उसके मोबाइल पर किसी का काल आया तथा उसने किसी से कुछ देर तक बातें की। बात करने के बाद ही एकदम से उसके हाव भाव बदले से नज़र आए जिसके तहत वो अपनी कार में बैठ कर फौरन स्टेशन से बंदूख से छूटी गोली की तरह हवा हो गया। मैं उसके पीछे ही था कि अचानक कुछ देर बाद उसके पास तीन अलग अलग जीपों में ढेर सारे आदमी हथियारों से लैश आए। उनमें से एक आदमी अजय सिंह की कार में बैठ गया। उसके बाद अजय सिंह की कार के चलते ही बाॅकी तीनों जीपों में सवार आदमी भी अजय सिंह के पीछे पीछे चल पड़े।"

"अब बस भी करो मियाॅ।" सहसा मंत्री राणे की बात बीच में ही काटते हुए किन्तु परेशान भाव से कह उठा___"तुम तो इस तरह शुरू हो गए जैसे कोई टेप रिकार्डर शुरू हो जाता है। मुख्य बात बताओ कि मामला क्या हुआ है बस।"

"मुख्य बात ये है कि।" उधर से राणे ने कहा___"इस वक्त जहाॅ पर मैं हूॅ वहाॅ पर एक से बढ़ कर एक धुरंधर लोगों की पूरी फौज आई हुई है। इतना ही नहीं यहाॅ पर एक
मंदिर है जिसके सामने कई सारे हट्टे कट्टे लोग खड़े हैं। एक हट्टा कट्टा आदमी एक मामूली से लड़के से ज़बरदस्त लड़ाई कर रहा है। अजय सिंह तथा उसके साथ आए सब लोग लड़ाई देख रहे हैं। मैने तो अजय सिंह को ये भी कहते सुना है कि इस हराम के पिल्ले को इतना मारो कि हगने मूतने के भी काबिल न बचे। मंदिर के पास ही दो लड़कियाॅ दो आदमियों से घिरी खड़ी हैं तथा बुरी तरह रोये जा रही हैं। उनके मुख से बार बार एक ही बात निकल रही है कि प्लीज उसे कुछ मत करो। इसका मतलब ये हुआ चौधरी साहब कि ये वही लड़का है जिसका नाम विराज है। अजय सिंह ने कदाचित उसे घेर लिया है और अब वह उसके आदमियों के रहमो करम पर है।"

"ओह तो ये बात है।" मंत्री के जिस्म में जाने क्या सोच कर झुरझुरी सी हुई, बोला___"चलो अच्छा ही हुआ कि वो साला ठाकुर की पकड़ में आ गया है। अब सब कुछ सही हो जाएगा राणे।"

"यकीनन।" उधर से राणे ने कहा___"आपका दुश्मन अजय सिंह की पकड़ में आ चुका है। अब आप अगर चाहें तो इस मौके का फायदा उठा सकते हैं। यानी आप भी यहाॅ आ जाइये और बहती गंगा में डुबकी लगा कर अपना काम भी कर लीजिए।"

"अब हमें वहाॅ आने की ज़रूरत नहीं है राणे।" मंत्री ने कहा___"वो लड़का तो अब अजय सिंह की पकड़ में आ ही गया है। अतः अजय सिंह अपने वादे के अनुसार उसे हमारे हवाले भी कर देगा। उसके बाद तो उसे हमारी हर चीज़ लौटानी ही पड़ेगी। फिर हम उसका क्या हस्र करेंगे इसके बारे में उसने सोचा भी न होगा।"

"तो फिर मेरे लिए क्या आदेश है चौधरी साहब?" उधर से हरीश राणे ने कहा___"मुझे नहीं लगता कि अब इसके बाद भी मेरा कोई काम है यहाॅ। यानी आपका दुश्मन ठाकुर अजय सिंह से देर सवेर आपको मिल ही जाएगा और फिर आप उससे जैसे चाहेंगे वैसे अपने वो वीडियोज तथा अपने बच्चे वापस ले सकेंगे।"

"ठीक कह रहे हो तुम राणे।" मंत्री ने कहा___"अगर यही आलम है वहाॅ का तो फिर अब रह ही क्या गया है तुम्हारे कुछ करने के लिए? इस लिए अगर तुम चाहो तो वापस आ सकते हो या फिर ऐसा करो कि अभी फिलहाल तुम वहीं पर रहो और देखते रहो कि नतीजा क्या निकलता है? जैसा कि इस सबके बारे में ठाकुर ने हमें सूचना तक नहीं दी है इस लिए संभव है कि उसके मन में हमारे प्रति कोई खोट हो। इस लिए तुम ठाकुर की कार्यवाही के बारे में अंत तक देखते रहो। अगर ठाकुर इसके बाद भी हमें उस सबके बारे में नहीं बताता है तो हम उसे भी देख लेंगे। तुम ये ज़रूर देखना कि ठाकुर उस लड़के को तथा अपनी बेटी को कहाॅ कैद करके रखता है?"

"ठीक है चौधरी साहब।" उधर से हरीश राणे के ऐसा कहने के साथ ही मंत्री ने काल कट कर दी। हरीश राणे से बात करने के बाद मंत्री इस सबके बारे में सोचने लगा। उसे उम्मीद तो थी कि ठाकुर उससे गद्दारी नहीं करेगा किन्तु उसे इस बात का भी एहसास था कि ठाकुर साला जब अपनों का ही नहीं हुआ तो भला उसका क्या होगा?

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रितू और आदित्य इस वक्त दो अलग अलग पेड़ों पर चढ़े हुए थे। जहाॅ से उन दोनों को मंदिर के सामने का नज़ारा स्पष्ट दिख रहा था। विराज के साथ क्या क्या हुआ था ये उन दोनो ने अपनी ऑखों से देखा था। दोनो ही विराज के लिए बेहद चिंतित व परेशान थे। उन दोनो को उम्मीद नहीं थी कि अचानक ही ऐसा कुछ हो सकता है।

विराज को इस तरह मार खाते देख आदित्य तुरंत पेड़ की शाखा से नीचे कूदने ही वाला था कि रितू ने उसे रुकने का इशारा किया था। उसे उसने समझाया था कि उसके जाने से भी इस वक्त कुछ नहीं हो सकता था। उल्टा वो खुद भी विराज की तरह पकड़ में आ सकता है। आदित्य को रितू से ये उम्मीद नहीं थी किन्तु फिर उसे भी लगा कि रितू सही कह रही है। इस वक्त वहाॅ पर जाना खतरे से खाली नहीं था। संभव था विराज उसकी वजह से कमज़ोर ही पड़ जाता।

दोनो के पास अब कोई दूसरा चारा नहीं था। हलाॅकि रितू के मन में कुछ और ही चल रहा था। उसके चेहरे के भाव बता रहे थे कि वो इस सिचुएशन पर ज्यादा गंभीर नहीं हुई है। कदाचित उसे बस समय का इंतज़ार था।

आदित्य की नज़र सहसा शेखर के मौसा यानी केशव की तरफ पड़ी। केशव जी के साथ तीन जीपों में आदमी थे जिनके हाॅथों में बंदूख, लट्ठ तथा हाॅकी जैसे हथियार नज़र आ रहे थे। जिन पेड़ों पर ये दोनो चढ़े हुए थे उन्हीं पेड़ों के बीच से होते हुए केशव और उसके आदमियों की जीपें गुज़री थीं। ये देख कर आदित्य ने रितू की तरफ देखा। रितू ने भी आदित्य की तरफ देखा मगर उसने कोई रिएक्शन नहीं दिया। पता नहीं क्या चल रहा था उसके मन में??
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इधर मेरी तरफ।
मैं समझ गया था कि मेरा प्रतिद्वंदी ताकत के मामले में मुझसे कहीं ज्यादा है। अतः अब ताकत के साथ साथ दिमाग़ से भी काम लेना ज़रूरी था। उधर वो आदमी मेरी तरफ इस तरह देख देख कर मुस्कुरा रहा था जैसे वो मुझे सचमुच में चींटी ही समझ रहा हो और जब चाहे मुझे मसल कर रख दे किन्तु अभी वो मुझे जैसे खिला रहा था।

"क्यों बच्चे दर्द तो नहीं हो रहा न?" उस आदमी ने ब्यंगात्मक लहजे में मुस्कुरा कर कहा___"वैसे अभी तो मैने तुम पर ताकत से कोई वार ही नहीं किया है। वरना तुम इस तरह सही सलामत खड़े न रहते बल्कि अपने हाॅथ पैर की हड्डियाॅ तुड़वाए ज़मीन पर पड़े रहते।"

"मैं भी अभी तक सिर्फ देख ही रहा था कि।" मैने कहा___"भाड़े के कुत्तों में कितना दम होता है?"
"अच्छा।" वह तिलमिलाया तो ज़रूर मगर फिर भी मुस्कुरा कर ही बोला___"तो क्या देखा और क्या समझ आया तुझे?"

"यही कि।" मैने मुस्कुरा कर कहा___"कुत्ते तो कुत्ते ही होते हैं वो कभी शेर का शिकार नहीं कर सकते।"
"यू बास्टर्ड।" वो बुरी तरह क्रोध में आते हुए मेरी तरफ बढ़ा और गुस्से में आग बबूला होते हुए मुझ पर हमला कर दिया।

मैं तो अब पूरी तरह से सतर्क हो चुका था और उसके किसी भी हमले के लिए पूरी तरह से तैयार था। जैसे ही उसने मेरी नाॅक में अपने दाहिने हाॅथ का पंच मारा मैं फुर्ती से एक तरफ हुआ और बिजली की सी स्पीड से पलट कर उसकी तरफ पीठ करते हुए उसके उस हाॅथ को दोनो हाॅथों से पकड़ कर अपने दाहिने कंधे पर रखा और फिर पूरी ताकत से नीचे की तरफ ज़ोर का झटका दिया। परिणामस्वरूप कड़कड़ की आवाज़ के साथ ही उसका हाॅथ बीच से टूट गया। हाॅथ के टूटते ही वह हलाल होते बकरे की तरह चिल्लाया। जबकि मैंने इतने पर ही बस नहीं किया बल्कि फुर्ती से घूम कर उसके पीछे आया और इससे पहले कि वो कुछ समझ पाता मैने फुर्ती से उसके सिर को दोनो हाथों से पकड़ा और ज़ोर से बाॅई तरफ को झटक दिया। नतीजा ये हुआ कि एक बार पुनः फिज़ा में कड़कड़ की आवाज़ हुई और उसकी गर्दन एक तरफ को झूल गई, साथ ही वह लहराते हुए ज़मीन पर गिरा और शान्त पड़ गया। उसे देख कर अब कोई भी कह सकता था कि वो मर चुका है।

आस पास खड़े उसके सभी हट्टे कट्टे आदमी ये नज़ारा देख कर आश्चर्यचकित रह गए। किसी को भी इस सब पर यकीन न आया कि ये दो पल में अचानक क्या हो गया है? अपनी अपनी जगह पर खड़े सबके सब बुत से बन गए थे। ऊपर मंदिर के दरवाजे के जस्ट सामने ही दोनो तरफ से एक एक आदमी से घिरी नीलम व सोनम दीदी भी ये सब देख कर हक्का बक्का रह गई थी।

"ओये मारो रे इस हरामज़ादे को।" सहसा फिज़ा में छा चुके सन्नाटे को एक आदमी ने ज़ोर से चिल्लाते हुए भंग किया, बोला___"इसने अब्दुल को जान से मार दिया। इस साले की हड्डी पसली तोड़ डालो सब।"

उस आदमी की इस बात से सब जैसे होशो हवाश में आए और फिर चारो तरफ से मेरी तरफ दौड़ पड़े। मैं जानता था कि सबके सब साले साॅड हैं। इस वक्त गुस्से में ये सब सचमुच मेरी हड्डियाॅ तोड़ सकते थे। अभी वो सब मेरे नज़दीक पहुॅचे भी नहीं थे कि तभी बहुत सारे आदमी हाॅथों में बंदूख, लट्ठ व हाॅकी जैसे हथियार लिए चारो तरफ से उन सब आदमियों पर टूट पड़े। मैं समझ गया कि ये सब केशव जी के आदमी हैं। ये देख कर मैने राहत की साॅस ली।

केशव जी के वो आदमी बिना कुछ सोचे समझे तथा बिना कुछ बोले एकदम से टूट पड़े थे उन हट्टे कट्टे आदमियों पर। नतीजा ये हुआ कि वो सब जिन जिन के निशाने पर आए वो सब देखते ही देखते लहू लुहान नज़र आने लगे। मंदिर के बाहर इतने सारे आदमी और उनके शोर से वातावरण गूॅज उठा। अभी ये सब हंगामा मचा ही हुआ था कि तभी अलग अलग दिशाओं से एक बार पुनः वैसे ही हट्टे कट्टे आदमी निकल कर आए और केशव जी के उन आदमियों पर पिल पड़े। हलाॅकि उन सबके हाॅथ खाली थे किन्तु जल्द ही उनके हाॅथों में भी हथियार नज़र आने लगे। उन लोगों ने केशव जी के आदमियों से उनके ही हथियार छीन कर उन पर प्रहार करना शुरू कर दिया था।

केशव जी के जिन आदमियों के पास बंदूखें थी वो गोलियाॅ बरसाए जा रहे थे। जिसका नतीजा ये हो रहा था कि जिन पर भी गोली लगती वो सीधा यमलोक ही पहुॅच रहा था। इधर मैं आस पास देख रहा था कि आदित्य व रितू दीदी कहाॅ हैं? मैं हैरान था कि वो दोनो अभी तक आए क्यों नहीं? मैं खुद भी इस मुठभेड़ में किसी न किसी से लड़े जा रहा था।

"सबके सब अपनी अपनी जगह रुक जाओ।" सहसा इस आवाज़ की गर्जना को सुन कर मैं चौंक गया। पलट कर देखा तो ऊपर जहाॅ पर नीलम व सोनम दीदी खड़ी थी उनके पास ही बड़े पापा यानी अजय सिंह खड़े थे। उनके हाॅथ में रिवाल्वर थी जिसे वो सोनम की कनपटी पर लगाए खड़े थे। उन आदमियों का पता ही नहीं था जो इसके पहले नीलम व सोनम दीदी को कवर किये खड़े थे। शायद सबके आते ही वो भी लड़ाई में शामिल हो गए थे।

अजय सिंह की ज़ोरदार आवाज़ को सुन कर सबके सब जहाॅ के तहाॅ रुक गए। उन सब के रुकते ही अजय सिंह के साथ आए फिरोज़ खान के सभी आदमियों ने केशव तथा उनके आदमियों को गन प्वाइंट पर ले लिया। सब कुछ एकदम से बदल गया। अभी कुछ ही देर पहले तो हालात हमारे हक़ नज़र आए थे किन्तु अब बाज़ी फिर से पलट गई थी।

"तुम लोगों ने बहुत तमाशा कर लिया है।" शान्त पड़ गए माहौल में अजय सिंह की आवाज़ गूॅजी___"अब ज़रा मेरी बात कान खोल कर सुनो सबके सब। अगर मेरे आदमियों के अलावा कोई दूसरा आदमी अपनी जगह से हिला तो समझ लो वो अपनी मौत का जिम्मेदार खुद होगा।"

अजय सिंह की इस बात से कोई कुछ न बोला। कुछ देर की ख़ामोशी के बाद सहसा अजय सिंह ने मेरी तरफ देखा और फिर मुस्कुरा कर कहा___"तो आख़िर तुम मेरी पकड़ में आ ही गए भतीजे? बहुत सताया तुमने और बहुत ज्यादा तड़पाया भी मुझे। मगर कोई बात नहीं, मैं उस सबका ब्याज सहित हिसाब ले ही लूॅगा। मगर उससे पहले मैं ज़रा अपनी बेटियों से तो मिल लूॅ।"

कहने के साथ ही अजय सिंह ने एक हाॅथ बढ़ा कर नीलम को उसके सिर के बालों से पकड़ कर ज़ोर से अपनी तरफ खींचा। नीलम के हलक से दर्द में डूबी चीख़ निकल गई। हलाॅकि उसकी व सोनम दीदी दोनो की ही हालत बहुत ख़राब हो चुकी थी। उनके चेहरों पर मौत जैसा ख़ौफ़ मानो ताण्डव सा कर रहा था।

"क्यों बिटिया रानी।" अजय सिंह ने दाॅत पीसते हुए नीलम के चेहरे के पास अपना चेहरा लाते हुए कहा___"तुम्हारे इस बाप के लौड़े में ऐसी क्या कमी नज़र आ गई थी जो तुम दोनो बहनों ने अपने इस भाई के लौड़े को थाम लिया?"

"अजय सिंह।" मैं पूरी शक्ति से चिल्लाया___"ज़ुबान सम्हाल कर बात कर। ये मत भूल कि जिससे तू इस घिनौने तरीके से बात कर रहा है वो खुद तेरी ही बेटी है। मेरे दिलो दिमाग़ में तेरे लिए जो इज्ज़त बाॅकी थी उसे भी आज तूने ये घिनौनी बात बोल कर खत्म कर ली है। यकीनन तू इस संसार का सबसे गंदा और सबसे पापी इंसान है, बल्कि इंसान ही नहीं है तू, राक्षस है राक्षस।"

"मैं चाहूॅ तो इसी वक्त तेरी इस कड़वी ज़ुबान को तेरे हलक से निकाल कर चील कौवों को खिला दूॅ।" मेरी बातों से तिलमिलाया हुआ अजय सिंह गुर्राया___"मगर जैसा कि मैने कहा न कि पहले मैं अपनी बिटियों से मिल लूॅ, उसके बाद तुझसे भी अच्छे से मिलूॅगा।"

"आप सच में बहुत गंदे हैं डैड।" नीलम ने बुरी तरह रोते हुए कहा___"काश ये सब सच न होता। अच्छा होता कि इस सबके बारे में मुझे पता ही न चलता। रितू दीदी ने बहुत अच्छा किया था जो उन्होंने आप जैसे गंदे व पापी माॅ बाप को ठुकरा दिया है और अभी जिस तरीके से आपने मुझे वो शब्द कहे हैं उससे आपने बता दिया कि आपके मन में अपनी ही बहू बेटियों के प्रति क्या है?"

"इन सब बातों का अब कोई मतलब नहीं रह गया है बिटिया रानी।" अजय सिंह ने अजीब भाव से कहा___"ये सच है कि मैंने हमेशा अपने ही घर की औरतों व बेटियों को अपने नीचे सुलाने की ख्वाहिश की है। मगर इसमें बुरा क्या किया है मैने ? हर इंसान को अपनी इच्छा पूरी करने का हक़ होता है। मैने भी अपनी इच्छाओं को पूरा ही तो करना चाहा है। ख़ैर छोंड़, ये बता कि तुझे यहीं पर नंगा करूॅ या हवेली ले जाकर आराम से तुझे लड़की से औरत बनाऊॅ?"

"तू कुत्ते की मौत मरेगा अजय सिंह।" मैं पूरी शक्ति से दहाड़ते हुए बोला___"तेरे जिस्म में कीड़े पड़ेंगे। तू सड़ सड़ कर मरेगा। तू वासना और हवश में इतना अंधा हो चुका है कि तुझे रिश्ते नाते भी नज़र नहीं आ रहे हैं।"

"कुत्ते की मौत तो मैं तुझे मारूॅगा भतीजे।" अजय सिंह ने कहा___"लेकिन उससे पहले मैं तेरी माॅ गौरी, तेरी बहन निधी, व तेरी चाची करुणा इन तीनो को जी भर के तेरे ही सामने पेलूॅगा, वो भी आगे पीछे दोनो तरफ से। उसके बाद उन सबको रंडी बज़ार में बेंचूॅगा भी, तब तुझे मारूॅगा।"

"अपने जैसे ही हिजड़ों की फौज ले कर आया है।" मैने कहा___"और इन्हीं हिजड़ों की फौज के बलबूते पर तू इतना कुछ बोल पा रहा है। तुझमें अगर दम है तो मुझसे खुद मुकाबला कर।"

"इसे मारो रे।" अजय सिंह ज़ोर से चिल्लाया___"इस हराम के पिल्ले को इतना मारो कि हगने मूतने के भी काबिल न बचे। बहुत देर से ये हरामज़ादा बड़ बड़ किये जा रहा है। पहले इसकी ही हड्डियाॅ तोड़ो।"

अजय सिंह के कहने की देर थी। चारो तरफ से वही हट्टे कट्टे आदमी मेरी तरफ बढ़ते हुए आ गए। वो चार थे और मैं अकेला। मैं अजय सिंह की उन अश्लीलतापूर्ण बातों से बुरी तरह क्रोध व गुस्से से भन्ना उठा था। जैसे ही एक मेरी तरफ झपटा मैने बिजली की तरह फुर्ती दिखाई और उछल कर एक ज़बरदस्त फ्लाइंग किक उसकी गर्दन पर जड़ दी। उसके मुख से घुटी घुटी सी चीख निकली साथ ही कड़कड़ की आवाज़ भी हुई। ज़मीन पर औंधे मुह जब वह गिरा तो फिर उठ न सका।

ये देख कर नीलम को उसके बालों से पकड़े अजय सिंह हक्का बक्का रह गया। कदाचित उसे मुझसे ऐसे किसी चमत्कार की स्वप्न में भी उम्मीद नहीं थी। वो ऑखें फाड़े मुझे देखने लगा था। इधर उस आदमी के गिर कर शान्त पड़ते ही बाॅकी तीन थोड़ी देर के लिए ठिठके और फिर एक साथ मेरी तरफ झपटे। मैंने अपनी जगह से ऊॅची छलांग लगाई तथा हवा में ही कलाबाज़ी खाते हुए उन तीनों के बीच से बाहर उनके पीछे आ खड़ा हुआ। जबकि वो तीनों ही झोंक में आकर आपस में ही टकरा गए।

"रुक जा सुअर की औलाद।" तभी अजय सिंह चिल्लाया___"वरना मेरे एक ही इशारे पर मेरे साथ आए मेरे ये सब हथियारों से लैश आदमी तुझे पल भर में गोलियों से भून कर छलनी कर देंगे।"

"तू मुझे गोलियों से छलनी नहीं कर सकता कुत्ते।" मैने कहने के साथ ही अपनी टाॅग चला दी एक की पीठ पर। जिसकी पीठ पर लात का प्रहार पड़ा था वो अपने साथ दूसरे को साथ लिए ही ज़मीन पर गिर गया, जबकि तीसरा अभी पलटा ही था कि मैने पैर के घुटने का वार उसके पेट में किया तो वो बिलबिला उठा। साथ ही बोलता भी जा रहा था ज़ोर से____"तेरे लिए तो मैं एक तुरुप के इक्के की तरह हूॅ न। मुझे बंधक बना कर ही तो तू बाॅकी सबको मुम्बई से यहाॅ बुलाएगा। अगर मैं ही मर गया तो तू कैसे बुला सकेगा उन सबको?"

"ज्यादा बकवास न कर समझा।" अजय सिंह पहले तो सकपकाया, फिर चिल्लाया___"मैं कहता हूॅ ये उछलना कूदना बंद कर वरना मैं नीलम को यहीं पर नंगा कर दूॅगा।"
"नहींऽऽऽ।" अपने बाप की ये बात सुन कर नीलम तो बुरी तरह रोते हुए चीखी ही उसके साथ में सोनम भी चीख पड़ी थी। इधर अजय सिंह का वाक्य जैसे ही मेरे कानों से टकराया मैं एकदम से रुक गया। मैं जानता था कि अजय सिंह ये ज़रूर कर सकता था। उसे इस वक्त अपनी व अपनी बेटी की इज्ज़त की कोई परवाह नहीं थी।

"तुम मेरी इज्ज़त की परवाह मत करो राज।" सहसा नीलम रोते हुए चिल्लाई___"वैसे भी मुझे इस नीच आदमी की ऐसी बेहूदा बातें अपने लिए सुन कर जीने की इच्छा मर गई है। इस लिए तुम मेरी चिन्ता मत करो और इन सारे राक्षसों का वध कर दो।"

"ओहो क्या बात है।" अजय सिंह चमका___"देखो तो क्या इज्ज़त दी है मेरी बिटिया रानी ने मुझे। ख़ैर कोई बात नहीं, पर हाॅ मरना तो है ही तुझे और तुझे ही बस क्यों बल्कि तेरी बड़ी बहन को भी मरना होगा। मुझे ऐसी औलाद के जीने मरने से अब कोई फर्क़ नहीं पड़ेगा जो अपने ही माॅ बाप के मौत का सामान करती फिरे। बचपन से अब तक मैंने तुम दोनो को हर चीज़ दी है। जिस चीज़ पर तुम दोनो ने हाॅथ रखा उस चीज़ को मैने तुम दोनो के नाम कर दी। मगर बदले में दिया क्या तुम दोनो ने?? अरे देने की तो बात दूर बल्कि मेरे दुश्मन का साथ देकर मेरी मौत चाही तुम दोनो ने। अरे माॅ बाप जैसे भी हों माॅ बाप ही होते हैं। ख़ैर जाने दो, मुझे इस बात का दुख नहीं है कि इस लड़के ने मेरा इतना ज्यादा नुकसान करके मेरा जीना हराम किया है बल्कि इस बात का दुख है कि मेरी अपनी बेटियाॅ मुझे और अपनी माॅ तथा भाई को त्याग कर इसका साथ दिया। इस लिए इसकी सज़ा तो मिलेगी तुम दोनो को। मगर उससे पहले तुम दोनो के साथ मैं वो करूॅगा जो दुनियाॅ में किसी भी बाप ने न किया होगा।"

"तुझ जैसे इंसान से और किसी बात की उम्मीद भी क्या की जा सकती है।" नीलम ने सहसा ज़हरीले भाव से कहा___"जो अपनी ही औलाद को अपने नीचे सुलाना चाहता हो उसके जैसा नीच व पापी दूसरा कौन होगा? उस दिन सोचते सोचते मेरा बुरा हाल हो गया था कि आख़िर ऐसा क्या हो गया है जिसकी वजह से दीदी ने अपने ही माॅ बाप को त्याग दिया है, मगर उस रात जब मैने अपने कानों से सब कुछ सुना तो मेरे पैरों तले से ज़मीन खिसक गई। इतना बड़ा धोखा, इतना बड़ा कुकर्म किया तूने जिसके बारे में अगर किसी को पता चल जाए तो तुझ पर थूॅकना तक पसंद न करे।"

"हरामज़ादी कुतिया।" अजय सिंह बुरी तरह तमतमा गया, और फिर दो तीन थप्पड़ जल्दी जल्दी नीलम के गालों पर जड़ दिया उसने। ये देख कर सोनम उसे पकड़ने के लिए आगे बढ़ी तो सहसा वहीं पर आ गए फिरोज़ खान ने उसे गन प्वाइंट पर रख लिया। इधर नीलम के गालों पर थप्पड़ पड़ते ही मेरा खून भी खौल गया।

"लड़की पर क्या हाॅथ उठाता है नीच इंसान?" मैने दहाड़ते हुए कहा___"असली मर्द है तो इधर आ और मुझसे दो दो हाॅथ कर। कसम पैदा करने वाले की तेरे जिस्म की एक एक हड्डियों को न तोड़ा तो अपने बाप ठाकुर विजय सिंह की औलाद नहीं।"

"तेरी गर्मी का इलाज अब करना ही पड़ेगा।" अजय सिंह पलट कर गुर्राया, फिर उन्हीं हट्टे कट्टे आदमियों की तरफ देखते हुए कहा___"खड़े क्या हो तुम लोग? इस साले को इतना मारो कि इसकी सारी हेकड़ी निकल जाए।"

बस फिर क्या था? उन तीनों ने मुझे धोना शुरू कर दिया। मैं कुछ करने की हालत में नहीं था। अगर कुछ करता तो अजय सिंह फिर से नीलम के साथ कुछ उल्टा सीधा करने लगता। अभी मैं मार खा ही रहा था कि सहसा मेरे अलावा किसी और की भी चीख गूॅजी वहाॅ। मैने सिर उठा कर देखा तो चौंक गया। आदित्य एक आदमी को बुरी तरह मारे जा रहा था। आदित्य के अचानक ही इस तरह आ जाने से बाॅकी खड़े सब भौचक्के से रह गए।

"तुम यहाॅ क्यों आ गए आदी?" मैंने सहसा हतास भाव से कहा___"तुम्हें यहाॅ नहीं आना चाहिए था।"
"ज्यादा बकवास मत करो समझे।" आदित्य ने तीखे भाव से कहा___"मैं कायर नहीं हूॅ जो इतनी देर से चुपचाप तुम्हें इस तरह मार खाते देखता रहता। बहुत देर से रितू के कहने पर रुका हुआ था मगर अब और नहीं रुक सकता था मेरे यार। तेरा साथ भी न दिया तो साला धिक्कार है मुझ पर।"

मैं अब क्या कहता उसे। उधर आदित्य के आ जाने से अजय सिंह भी चौंका था। उसे नहीं पता था कि आदित्य कौन है, किन्तु इतना तो वो समझ ही गया था कि आदित्य कदाचित मेरा ही साथी है। अतः उसने सीघ्र ही ऊॅची आवाज़ में मुझसे कहा___"अपने साथी को बोल भतीजे कि ज्यादा उछल कूद न करे। अगर यहाॅ पर ये तेरी तरह मार खाने ही आया है तो चुपचाप अब ये भी मार खाए।"

"तुझे तो मैं कुत्ते की तरह मारूॅगा हरामज़ादे।" आदित्य चीखा___"इतनी देर से देख रहा हूॅ कि तू भाड़े के इन टट्टुओं की वजह से ही शेर बना हुआ है, जबकि खुद तुझमें कितनी मर्दानगी है वो तो तू भी जानता ही होगा साले। कितनी बार मेरे दोस्त ने तुझे लड़ने के लिए ललकारा मगर तू इससे लड़ने नहीं आया। मतलब साफ है कि तू इससे डरता है और खुद भी जानता है कि तू अपने भतीजे से टक्कर नहीं ले सकता। हाहाहाहा राज यार, तेरा ये ताऊ तो कायर और डरपोंक निकला।"

"ठाकुर साहब।" सहसा फिरोज़ खान बोल पड़ा___"आप कहें तो एक ही झटके में इस आदमी का काम तमाम कर दूॅ। इसकी हिम्मत कैसे हुई आपसे ऐसे बात करने की?"

"कोई बात नहीं खान।" अजय सिंह बोला___"इसे भी खुजली हो रखी है। इस लिए इसकी भी धुनाई शुरू करवा दो। कुछ देर में ही हमसे रहम की भीख माॅगने लगेगा।"
"ठीक है ठाकुर साहब।" फिरोज़ खान ने कहा और फिर अपने आदमियों को हुक्म दिया।

कुछ ही देर में हम दोनो की धुनाई शुरू हो गई। ये देख कर नीलम व सोनम दीदी बुरी तरह रोये जा रही थी और साथ ही अजय सिंह से हमें ना मारने के लिए कहे भी जा रही थी। मगर उनके कहने का अजय सिंह पर कोई असर न हुआ।

अभी ये सब हो ही रहा था कि एकाएक ही संपूर्ण वातावरण में पुलिस सायरन की आवाज़ें आने लगी। इन आवाज़ों को सुन कर अजय सिंह व फिरोज़ खान बुरी तरह चौंक पड़े। उन्हें समझ न आया कि यहाॅ पुलिस कैसे आ गई? देखते ही देखते मंदिर के चारो तरफ से ढेर सारे पुलिस वालों का हुजूम उमड़ पड़ा।

"तुम सबको पुलिस ने चारो तरफ से घेर लिया है।" सहसा तभी माइक पर किसी की आवाज़ गूॅजी___"इस लिए सब अपने अपने हथियार नीचे रख कर अपने आपको पुलिस के हवाले कर दो। वरना हमें तुम सब पर गोलियाॅ चलाने में भी कोई हिचकिचाहट नहीं होगी।"

"ठाकुर साहब।" सहसा बुरी तरह घबराया हुआ फिरोज खान कह उठा___"ये पुलिस वाले यहाॅ कैसे आ गए? अब हम सब पुलिस के द्वारा पकड़ लिए जाएॅगे। कुछ कीजिए ठाकुर साहब। आप तो जानते हैं कि पुलिस को मेरी और मेरे आदमियों को बड़ी शिद्दत से तलाश है। मैं और मेरे साथी पुलिस के हाॅथ नहीं लगना चाहते। खुदा के लिए कुछ कीजिए।"

"मुझे पता है कि।" अजय सिंह ने सोचने वाले भाव से कहा___"इन पुलिस वालों को यहाॅ किसने बुलाया है? हाॅ खान, ये सब रितू का किया धरा है। उसी कुतिया ने इन पुलिस वालों को बुलाया है। इतनी देर से देख रहा हूॅ वो हरामज़ादी कहीं दिखाई नहीं दे रही है। ज़रूर पुलिस वालों के साथ ही होगी।"

"किसी का भी किया धरा हो ठाकुर साहब।" फिरोज़ खान ने कहा___"मामला तो बिगड़ ही गया है अब। मगर समझदार आदमी वही है जो ऐसे समय पर भी खुद को बचा ले और अपने दुश्मन को मात दे दे।"

"सही कहा तुमने खान।" अजय सिंह ने कहा____"मुझे ऐसा ही कुछ करना होगा। अरे हाॅ एक काम करता हूॅ। इन दोनो को यहाॅ से अपने साथ ले चलते हैं। वो साला इन्हीं दोनो को लेने आया था न। अब जब इन्हें नहीं ले जा पाएगा तो यकीनन ये उसकी ज़बरदस्त हार होगी। अब वो इन दोनो के लिए मेरे पास सिर के बल आएगा।"

"बिलकुल सही कहा आपने।" फिरोज़ खान ने कहा__"किन्तु अब हमें देर नहीं करनी चाहिए। यहाॅ से इन दोनो को लेकर बड़ी होशियारी से खिसक लेना चाहिए।"
"ठीक है।" अजय सिंह ने कहा___"चलो इन दोनो को एक एक करके उठा कर ले चलते हैं। इससे पहले कि पुलिस हम तक पहुॅचे हम पीछे के इस वाले हिस्से से निकल लेते हैं। मुख्य रास्ते की तरफ जाना यकीनन खतरे से खाली नहीं होगा। मेरी कार इसी वाले हिस्से की तरफ है। अच्छा हुआ कि कार ज्यादा पीछे की तरफ उस मुख्य रास्ते की तरफ नहीं खड़ी की थी मैने।"

अजय सिंह की बातें सुन कर नीलम व सोनम दीदी बुरी तरह घबरा गई और उनके चंगुल से छूटने के लिए छटपटाने लगी थी। मगर कदाचित अजय सिंह को उनसे इसी बात की उम्मीद थी। यही वजह थी कि उसने मजबूती से उन्हें पकड़ा हुआ था। किन्तु अब उसकी बात से फिरोज़ ने भी सोनम दीदी को पकड़ लिया। यानी एक एक को ले कर मंदिर के बगल से सीढ़ियाॅ उतरने लगे वो दोनो।

नीलम व सोनम जब खुद को उनके चंगुल से न छुड़ा पाई तो पूरी शक्ति से चिल्लाने लगीं। इधर पुलिस के आ जाने से मैं और आदित्य पहले तो हैरान हुए उसके बाद तुरंत ही बात समझ में आ गई कि ये सब रितू दीदी का लास्ट बैकअप प्लान था जिसके बारे में उन्होंने सस्पेंस बनाया हुआ था उस समय। ख़ैर पुलिस वालों ने सबको घेर लिया। इधर नीलम व सोनम दीदी के चिल्लाने से मेरा और आदित्य का ध्यान उस तरफ गया तो देखा अजय सिंह व फिरोज़ खान ज़बरदस्ती उन दोनो को अपने साथ लिए सीढ़ियाॅ उतरते चले जा रहे थे।

मैंने आदित्य की तरफ देखा और फिर हम दोनो ही उनकी तरफ तेज़ी से दौड़ पड़े। अभी हम सीढ़ियों के पास भी न पहुॅचे थे कि सहसा वातावरण में गोली चलने की आवाज़ आई और साथ ही चीख़ की भी। हम दोनो ये देख कर चौंके कि सोनम दीदी को साथ लिए उतर रहा फिरोज़ खान का अचानक ही बैलेंस बिगड़ा और उसके हाॅथ से सोनम का हाॅथ छूट गया, साथ ही वह सीढ़ियों पर लुढ़कता हुआ नीचे चला गया। उसके हाॅथ से उसका रिवाल्वर छूट कर जाने कहाॅ गिर कर गुम सा हो गया था। उसके बाएॅ पैर की टाॅग से खून बहता हुआ नज़र आया।

गोली की आवाज़ और फिरोज़ खान को यूॅ लुढ़कते देख अजय सिंह बुरी तरह उछल पड़ा। भौचक्का सा पहले तो उसने फिरोज़ खान को लुढ़कते हुए देखता रहा उसके बाद जैसे उसे होश आया तो फौरन ही इधर उधर नज़र घुमाई उसने। किन्तु तब तक देर हो चुकी थी। उसी वक्त सीढ़ियों के बगल से ही रितू दीदी मानो प्रगट सी हुई और तेज़ी से अपने बाप के पैर को पकड़ कर झटक दिया। जिसका नतीजा ये हुआ कि बुरी तरह घबरा कर चीखते हुए अजय सिंह भरभरा कर सीढ़ियों पर पिछवाड़े के बल गिर पड़ा। किन्तु उसके साथ ही नीलम भी गिर पड़ी थी। क्योंकि अजय सिंह ने उसका हाॅथ उस वक्त तक छोंड़ा ही नहीं था। छोंड़ा भी तो तब जब उसके साथ ही साथ नीलम भी अनबैलेंस होकर गिर पड़ी थी। नीलम के मुख से दर्द में डूबी कराह निकल गई।

ये सब हो ही रहा था कि हम दोनो भी उनके पास पहुॅच गए। आदित्य ने तो आते ही फिरोज़ खान को धर लिया। जबकि मैने सीढ़ियों पर गिरने के बाद उठ रहे अजय सिंह को उसके कालर से पकड़ कर उठाया और बिना कुछ बोले पैर के घुटने का वार उसके पेट पर जड़ दिया। अजय सिंह दर्द से चीख पड़ा।

"रुक जाओ राज।" सहसा मेरे क़रीब पहुॅचते ही रितू दीदी ने कहा____"ये इंसान यकीनन सिर्फ और सिर्फ तुम्हारा ही शिकार है मगर, उससे पहले मुझे इस नीच व पापी इंसान से दो चार बातें तो कर लेने दो।"

दीदी की बात सुन कर मैने अजय सिंह को छोंड़ दिया। अजय सिंह इस वक्त अजीब सी हालत में था। ऐसी हालत में कि उसका वर्णन करना भी कठिन था। इधर मेरे एक तरफ हटते ही रितू दीदी अपने बाप के सामने आ कर खड़ी हो गई।

"सुना है कि माॅ बाप से बढ़ कर।" फिर रितू दीदी ने बड़े ही गंभीर भाव से कहा___"संपूर्ण सृष्टि में कोई नहीं होता। यहाॅ तक कि भगवान भी नहीं। इसी लिए माॅ बाप को श्रेस्ठ व महान कहा जाता है। मगर माॅ बाप भी ऐसे ही महान नहीं बन जाते हैं बल्कि अच्छे कर्मों से महान बनते हैं। तुम नीलम से कह रहे थे कि तुमने हमें सब कुछ दिया है बदले में हमने क्या दिया? इसका जवाब ये है कि हर माॅ बाप अपने बच्चों के लिए बहुत कुछ करते हैं, यहाॅ तक कि ज़रूरत पड़ने पर अपना बलिदान भी दे देते हैं। मगर बच्चे सच में उनके लिए कुछ नहीं कर पाते ऐसा। मगर हम ऐसे नहीं थे, हमने बचपन से लेकर अब तक आप दोनो को दुनिया का सबसे अच्छा माता पिता माना मगर जब सच का पता चला तो रूह काॅप गई हमारी। दुनियाॅ में ऐसे कौन माता पिता हैं जो अपनी ही बेटियों को अपने नीचे सुलाने के बारे में सोचते हैं? मुझे अपनी सिर्फ एक अच्छाई के बारे में बता दो अजय सिंह जो कि तुमने अपने आज तक के जीवन में की हो। अगर तुमने अपनी एक भी अच्छाई के बारे में बता दिया तो इसी वक्त तुम्हारी ये बेटी अपने माॅ बाप के पास वापस लौट आएगी।"

रितू दीदी की इस बात पर अजय सिंह कुछ बोल न सका। किन्तु हाॅ कठोर भाव से देख ज़रूर रहा था। जबकि उसकी इस कठोरता से देखने की ज़रा भी परवाह न करते हुए कहा दीदी ने कहा___"तुम वो इंसान हो अजय सिंह जिसने एक हॅसते खेलते, भरे पूरे व खुशहाल परिवार का बेड़ा गर्क कर दिया। इतना तो मैने भी अपनी ऑखों से देखा था कि विजय चाचा कभी भी तुमसे ऑखें मिला कर बात नहीं करते थे। हम इतने भी अबोध व अज्ञानी नहीं थे कि हमें कुछ समझ न आए। सच्चाई का पता चलने के बाद ही सही मगर मुझे पिछली वो सब बातें याद आईं जो मेरे सामने होती थीं। तब उनके बारे में नहीं सोचती थी क्योंकि तब तुम्हारी सिखाई हुई बातें मुझे उनके बारे में सोचने की भी ज़रूरत महसूस नहीं कराती थी। मगर अब सब कुछ खुली किताब की तरह हो गया है। तुमने धन दौलत के लालच में तथा गौरी चाची को हाॅसिल करने के जुनून में अपने देवता जैसे भाई को ज़हरीले सर्प से डसवा कर मौत के घाट उतार दिया। उसके बाद झूठ मूठ कर आरोप लगा कर मेरी देवी समान चाची को चरित्रहीन बना दिया। इतना ही नहीं एक रात तुम दोनों की बातों को जब दादा जी ने सुन लिया और वो जब गुस्से से तुम्हारे कमरे में आ धमके और तुम्हें खरी खोटी सुनाने लगे तो तुमने उन्हें भी जान से मार देने की धमकी दी। ये भी कहा कि अगर उन्होंने किसी के सामने ज्यादा गला फाड़ने की कोशिश की तो तुम उनकी छोटी बेटी यानी कि नैना बुआ को उठवा लोगे। दादा जी उस वक्त ये सोच कर डर गए कि तुम वाकई में ऐसा कर सकते हो। जो अपने भाई का न हुआ वो भला किसका हो जाएगा? दादी जी रोते हुए अपने कमरे में चले गए। उन्होंने दादी से तुम्हारा सारा काला चिट्ठा बताया जिसे सुन कर बेचारी दादी का भी बुरा हाल हो गया। दूसरे दिन अभय चाचा स्कूल पढ़ाने गए हुए थे, उस समय दादा दादी तैयार होकर विजय चाचा की दी हुई कार से जब कहीं जाने लगे तो तुमने पूछा कि वो कहाॅ जा रहे हैं तब उन्होंने एक बार फिर से गुस्सा होते हुए साफ साफ तुमसे कहा कि वो पुलिस स्टेशन जा रहे हैं। ताकि तुम्हारी रिपोर्ट कर सकें। दादा जी की बात सुन कर तुम्हारी हवा निकल गई। तुम फौरन ही माॅम के पास गए और माॅम को सारी बात बताई तब माॅम ने कहा कि इससे बचने का एक ही तरीका है कि दादा दादी को खत्म कर दिया जाए। तुम्हारे पास इसके अलावा कोई दूसरा चारा भी नहीं था। इस लिए फौरन ही अपनी कार लेकर निकल लिये। रास्ते में ही तुमने अपने इसी फिरोज़ खान नाम के साथी को फोन लगाया और इसे दादा दादी को जान से मार देने की सुपारी दी। इसने फौरन ही तुम्हारी बात मान कर रास्ते में ही ट्रक द्वारा दादा जी की कार को टक्कर मार दी। ट्रक की ज़ोरदार टक्कर से दादा जी की कार सड़क पर ही दो तीन पलटियाॅ खाईं। ये देख कर ये खान फौरन ही वहाॅ से ट्रक लेकर फरार हो गया। सुनसान सड़क पर उलटी पड़ी कार के अंदर दादा दादी खून से लथपथ बेहोश पड़े थे। तभी कोई वाहन वाला उसी रास्ते से आया और उसने जब वो सब देखा तो उसने इसकी सूचना पुलिस को दी। पुलिस वहाॅ पहुॅची और कार के अंदर खून से लथपथ पड़े दादा दादी को चेक किया तो वो दोनो ही ज़िंदा थे उस वक्त। अतः फौरन ही उन्हें बेहतर इलाज़ के लिए गुनगुन ले गए। तहकीक़ात में ही पता चला कि जिनका एक्सीडेंट हुआ था वो दरअसल हल्दीपुर के ठाकुर गजेन्द्र सिंह बघेल तथा उनकी धर्मपत्नी इन्द्राणी सिंह बघेल हैं। इस बात का पता चलते ही तुम्हें सूचित किया पुलिस ने। तुम ये जान कर बुरी तरह घबरा गए कि दादा दादी तो ज़िंदा हैं अभी और वो पुलिस को सब कुछ बता भी देंगे। अतः तुम फौरन ही गुनगुन के लिए हवेली से रवाना हो गए। ख़ैर दादा दादी के सिर पर बड़ी गंभीर चोंटें आई थी जिसकी वजह से वो दोनो ही कोमा में चले गए। डाक्टर अब भला क्या कर सकता था। उसने साफ कह दिया था कि अब तो बस समय का ही इन्तज़ार करें कि कब वो दोनो कोमा से बाहर आते हैं। डाक्टर की बात सुन कर तुमने फिलहाल के लिए तो राहत महसूस की मगर तुम भी जानते थे कि कोमा एक ऐसी चीज़ होती है जिसमें गया इंसान कभी भी होश में आ सकता है। यानी तुम्हें डर था कि दादा दादी अगर कोमा से बाहर आ गए तो तुम्हारे लिए अच्छा नहीं होगा। अतः तुमने फिर से माॅम के परामर्श किया और फिर दादा दादी को बेहतर इलाज़ का कह कर एक ऐसी जगह ले गए जहाॅ के बारे में ज्यादा किसी को पता ही नहीं था। ख़ैर छोंड़ो ये सब, तुम्हारे जुर्म की दास्तान तो बहुत लम्बी है मगर मैंने तुमसे ये सब इस लिए कहा है कि तुम जान सको कि मुझे सब कुछ पता है। तुमने इतने अपराध व पाप किये हैं कि इसके लिए शायद भगवान भी माफ़ नहीं करेगा और करना भी नहीं चाहिए।"

रितू दीदी की बात सुन कर अजय सिंह का मुह लटक गया इस बार। उसके चेहरे पर शर्म व अपमान के भाव एकाएक ही उभर आए थे। तभी इस बीच नीलम आई और रितू के गले लग कर सिसक सिसक कर रोने लगी। सोनम दीदी भी सिसक रही थी। उधर आदित्य ने फिरोज़ खान को मार मार कर अधमरा कर दिया था। उसमें अब हिलने तक की शक्ति नहीं बची थी। तभी दो पुलिस वाले आए और फिरोज़ खान को उठा कर ले गए।

फिरोज़ खान के जितने भी आदमी थे तथा प्रतिमा ने जो आदमी भेजे थे उन सबको पुलिस ने पकड़ लिया था। ये सारी पुलिस फोर्स गुनगुन में नये नये आए एसीपी रमाकान्त शुक्ला के द्वारा लाई गई थी। सबको पकड़ने के बाद एसीपी रमाकान्त शुक्ला चल कर अजय सिंह के पास आया।

"अब आपके भी ससुराल चलने का वक्त हो चुका है ठाकुर साहब।" एसीपी ने मुस्कुराते हुए कहा___"उम्मीद करता हूॅ कि ससुराल में आप खुद को बेहतर महसूस करेंगे।"
"नये नये आए लगते हो ऑफिसर।" अजय सिंह ने उसकी तरफ तिरछी नज़र से देखते हुए कहा___"इस लिए इतना अकड़ रहे हो। मगर ज्यादा खुशफहमी में मत रहना कि तुम मुझे सुसराल में ज्यादा देर तक रख पाओगे।"

"जानता हूॅ।" एसीपी पुनः मुस्कुराया___"मगर फिलहाल तो मेरे साथ चलना ही पड़ेगा आपको। बाद का बाद में देखा जाएगा। वैसे भी हम तो यहाॅ फिरोज़ खान जैसे वान्टेड मुजरिम को ही पकड़ने आए थे। हमें सूचना मिली थी कि यहाॅ पर वो मुज़रिम अपने पूरे दलबल के साथ मौजूद है। इस लिए आ धमके यहाॅ। मगर हमें क्या पता था कि उसके साथ साथ मुझे आप जैसी कमीनी शख्सियत को भी धर लेना पड़ेगा।"

"तमीज़ से बात करो ऑफिसर।" अजय सिंह बुरी तरह तिलमिलाते हुए तीखे भाव से बोला___"वरना ऐसा न हो कि इस बददमीजी के लिए तुम्हें बाद में पछताना पड़े।"

"रस्सी जल गई मगर कसबल बाॅकी हैं अभी।" एसीपी ने कठोर भाव से कहा___"वैसे तुम्हारी जानकारी के लिए बता दूॅ कि मैं किसी के बाप से भी नहीं डरता। इस लिए मुझ पर धौंस जमाने की सोचना भी मत। वरना मेरे हाॅथ में आया हुआ मुजरिम मुख से कम बल्कि पिछवाड़े से ज्यादा चिल्लाता है। अब इज्ज़त से चलो मेरे साथ वरना ले जाने के तरीके तो हम पुलिस वालों को बड़े शानदार भी आते हैं।"

एसीपी के गरम होते मिजाज़ को देख कर अजय सिंह अंदर ही अंदर अपमान का कड़वा घूॅट पी कर रह गया। फिर उसने आग उगलती ऑखों से पहले मुझे देखा फिर रितू दीदी को उसके बाद एसीपी रमाकान्त शुक्ला के साथ चल दिया। कुछ दूर जाने के बाद सहसा अजय सिंह रुका और फिर पलट कर बोला___"अभी तो मैं जा रहा हूॅ मगर जल्द ही लौटूॅगा और इस बार जब लौटूॅगा न तो तुम में से किसी को भी ज़िंदा नहीं छोंड़ूॅगा।"

अजय सिंह की ये बात सुन कर मैं, आदित्य, रितू दीदी व सोनम दीदी ने तो कुछ न कहा किन्तु नीलम को जाने क्या हुआ कि वो तेज़ी से अपने बाप के पास गई और इससे पहले कि कोई कुछ समझ पाता "चटाऽऽक"। अजय सिंह का दाहिना गाल झन्ना गया।

"ये तमाचा मामूली भले ही है।" फिर नीलम ने गुर्राते हुए कहा___"मगर ये तुम्हें इस बात की याद ज़रूर दिलाएगा कि तूने क्या पाप किया है जिसके तहत ये इनाम के रूप में मिला है तुझे तेरी ही बेटी से। अब जा यहाॅ से, मुझे तेरी शक्ल भी देखना अब गवाॅरा नहीं है।"

अजय सिंह से इतना कहने के बाद रोती हुई नीलम हमारे पास आ गई जबकि अपनी ही बेटी से ऐसा इनाम पा कर अजय सिंह मानो गर्त में डूबता चला गया। वह फिर रुका नहीं बल्कि एसीपी के साथ दूर होता चला गया। उसके जाते ही हम सब भी एक तरफ चल पड़े। मगर तभी गज़ब हो गया।

वातारण में धांय से गोली चलने की आवाज़ हुई और फिर फिज़ा में नीलम की चीख भी गूॅज गई। दरअसल नीलम के थप्पड़ मारने पर अजय सिंह अपमान में जल उठा था। वो एसीपी के साथ ही बगल से चल रहा था। तभी उसकी नज़र एसीपी के होलेस्टर में फॅसी उसकी रिवाल्वर पर पड़ी थी। अजय सिंह ने पलक झपकते ही जैसे निर्णय ले लिया था और फिर बेहद फुर्ती से उसने एसीपी के होलेस्टर से रिवाल्वर निकाला और पलट कर उसने नीलम पर गोली चला दी थी। हम में से किसी को भी इसकी उम्मीद नहीं थी। उधर गोली चलने की आवाज़ से एसीपी भी बौखला गया था। उसने जैसे ही पलट कर अजय सिंह की तरफ देखा तो चौंक पड़ा। कारण अजय सिंह ने मुस्कुराते हुए खुद ही उसका रिवाल्वर उसे दे दिया। एसीपी उसके इस बिहैवियर से दंग रह गया था।

गोली नीलम की पीठ के दाहिने भाग के थोड़ा सा नीचे लगी थी। नीलम की पीठ से खून की तेज़ धार बहने लगी थी। वो लहरा कर गिर ही जाती अगर मैने फुर्ती से उसे पकड़ न लिया होता। सिचुएशन एकदम से ही बदल गई थी। नीलम को गोली लगने से हम सब बुरी तरह घबरा गए थे। उसकी प्रतिपल बिगड़ती हालत से हम सब रो पड़े। मैने उसे अपनी गोंद में उठा लिया और तेज़ी से मंदिर के पीछे खड़ी अपनी कार की तरफ भाग चला। मेरे पीछे ही बाॅकी सब दौड़ने लगे थे।

पुलिस और एसीपी ने सबको पकड़ा था किन्तु केशव जी तथा उनके साथ आए लोगों को नहीं पकड़ा था। ये मेरे लिए हैरानी की बात थी। किन्तु इस वक्त उनसे इसके बारे में पूछने का किसी को होश न था। रितू व सोनम दीदी बुरी तरह रोये जा रही थी। सीघ्र ही मैं नीलम को लिए कार के पास पहुॅचा। आदित्य ने जल्दी से कार का पिछला गेट खोला तो मैने नीलम को पिछली सीट पर किसी तरह लेटाया और जगह बनाते हुए खुद भी सीट पर बैठ गया। सीट पर बैठने के बाद मैने नीलम को खुद से छुपका लिया तथा उसकी ठीठ पर हाॅथ रख कर दबा दिया ताकि खून ज्यादा बहने न पाए। मेरे बैठते ही आदित्य ने कार की ड्राइंविंग सीट सम्हाली।

केशव जी ने रितू दीदी से कहा कि वो सोनम दीदी को अपनी कार में बैठा लेंगे। क्योंकि मेरी कार में आगे की सीट पर रितू दीदी बैठ गई थी और पीछे अब जगह ही नहीं थी। किन्तु सोनम दीदी न मानी। वो बुरी तरह रोये जा रही थी और कह रही थी कि वो नीलम के पास ही रहेंगी। मैने भी ज्यादा समय बरबाद न करते हुए गेट की तरफ खिसक लिया। सोनम दीदी दूसरी तरफ से आकर नीलम के पैरों की तरफ सीट पर ही बैठ गईं। ख़ैर सबके बैठते ही आदित्य ने कार को तेज़ी से दौड़ा दिया। हमारे पीछे पीछे ही केशव जी तथा उनके आदमी जीपों में आ रहे थे।
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"ये तुम क्या कह रहे हो राणे?" अपने आवास के ड्राइंग रूम में लैण्डलाइन फोन के रिसीवर को कान से लगाए मंत्री ने बुरी तरह चौंकते हुए कहा था____"ठाकुर और उसके आदमियों को पुलिस पकड़ कर ले गई?"

"..............।" उधर से हरीश राणे ने कुछ कहा।
"क्या कह रहे हो तुम।" चौधरी हैरान___"वहाॅ पर भारी मात्रा में पुलिस आई हुई थी?? मगर पुलिस वहाॅ आई कैसे? हमारा मतलब है कि पुलिस को वहाॅ पर किसने बुलाया होगा? एक मिनट राणे....एक मिनट, हम सब समझ गए। ये ज़रूर उस थानेदारनी का काम होगा। उसी ने पुलिस को बुलवाया होगा। ठाकुर के इतने सारे आदमियों को पंगु बना देने का यही तो सबसे ज़बरदस्त तरीका था राणे। साली तगड़ा गेम खेल गई। एक ही झटके में सारा खेल ही खत्म कर दिया उसने।"

"............।" उधर से राणे ने फिर कुछ कहा।
"ओह तो ठाकुर ने जाते जाते अपनी ही बेटी को गोली मार कर लहूलुहान कर दिया।" चौधरी के चेहरे पर मौजूद भावों में परिवर्तन हुआ___"और अब विराज एण्ड पार्टी ठाकुर की उस लड़की को मरने से बचाने के लिए फौरन ही हास्पिटल लेकर आ रहे हैं। उन्हें आने दो राणे, वो ज़रूर यहीं आएॅगे। ताकि गुनगुन के ही किसी अच्छे से हास्पिटल में उसे भर्ती करा सकें और उसका बेहतर से बेहतर इलाज़ करा सकें। उन्हें आने दो यहाॅ हम उन सबका बहुत अच्छे से स्वागत करेंगे। तुम बस उनके पीछे ही रहना और हमें हालातों की ख़बर देते रहना।"

"..............।" राणे ने उधर से फिर कुछ कहा।
"वो सब हम देख लेंगे राणे।" चौधरी ने कहा___"हम कमिश्नर से इस बारे में पता करेंगे तथा ठाकुर से भी मिलेंगे। अगर उसने हमसे ये कहा कि वो ये सब करने के बाद ही इस सबके बारे में बताने वाला था तो ज़रूर उसकी ज़मानत करवाएॅगे हम। वरना भला हमें क्या पड़ी है उसे जेल से छुड़ाने की? जिस काम के लिए हमने उससे संपर्क बनाया था वो काम तो तुमने बखूबी कर ही दिया है और अब हमें पल पल की ख़बर भी दे रहे हो कि हमारे दुश्मन कहाॅ आ रहे हैं। इस लिए अब ज्यादा फिक्र की बात ही नहीं है।"

"..............।" उधर से हरीश राणे ने कुछ कहा।
"हाॅ ये भी सही कहा तुमने।" चौधरी ने कहा___"यानी हमें इस वक्त अभी उन पर हाॅथ नहीं डालना चाहिए। बल्कि उनके असल ठिकानों के बारे में पता करना चाहिए। उसके बाद ही हमें उन पर कार्यवाही करनी चाहिए। ये तुमने सही सलाह दी है राणे। बात भी सही है, अभी अगर हमने उन पर हाॅथ डाला तो संभव है कि इससे हम पर या हमारे बच्चों पर ही कोई संकट आ जाए। क्या पता उसका कोई आदमी हमारी गतिविधियों पर नज़र रखे हुए हो, उस सूरत में वो हमें ही नुकसान पहुॅचा सकता है। अतः ये ज़रूरी है कि हम अभी चुप ही रहें और उसके असल ठिकाने का तुम्हारे द्वारा पता करने की कोशिश करें।"

"..................।" उधर से राणे ने फिर कुछ कहा।
"ठीक है राणे।" फिर चौधरी ने कहा___"अब ऐसा ही करेंगे। तुम बस उनके पीछे ही लगे रहना और हाॅ ये बताने की आवश्यकता नहीं है कि उनसे ज़रा सावधान रहना।"

इसके साथ ही चौधरी ने रिसीवर वापस केड्रिल पर रख दिया। इस वक्त उसके चेहरे पर राहत के भाव थे। खुशी की एक अलग ही चमक उसके चेहरे पर दिखाई देने लगी थी। रिसीवर रखने के बाद वह आया और फिर से सोफे पर बैठ गया। उसके सामने ही अगल बगल के सोफों पर अवधेश, अशोक व सुनीता आदि बैठे हुए थे।

"हमारे इस काम में उस जासूस के लिए ये सब करना कोई मुश्किल काम नहीं था।" फिर मंत्री ने शिगार सुलगाने के बाद कहा___"और ना ही ये ऐसा केस था जिसमें उसे अपना माथा पच्ची करना पड़ता। ये सब तो हम भी कर सकते थे किन्तु तब जब करने की स्थित में होते। ख़ैर, जो भी हो, अच्छी बात ये है कि हालात अब हमारे हक़ में बहुत हद तक आ चुके हैं।"

"क्या कहा राणे ने?" अशोक के पूछने पर चौधरी ने सबको सब कुछ बता दिया। सारी बातें जानने के बाद उन तीनों के भी चेहरों पर राहत व खुशी के भाव उभर आए।

"हालात तो वाकई हमारे पक्ष में हैं चौधरी साहब।" अशोक ने कहा___"और ये हमारे लिए खुशी की बात भी है। किन्तु ठाकुर के साथ आज जो कुछ भी हुआ वो अगर न होता तो यकीनन आज उसकी गिरफ्त में उसका भतीजा तथा उसकी बेटी होती। उसके बाद वो हमें इस बात की जानकारी देता। कहने का मतलब ये कि इतना कुछ हो जाने के बाद हम अतिसीघ्र ही अपने दुश्मन से मिलते और उसके कब्जे से अपनी हर चीज़ ले भी लेते। लेकिन ऐसा हो नहीं सका, पुलिस ने ऐन मौके पर आकर सारा खेल ही ख़राब कर दिया।"

"इस मामले में पहली बार पुलिस का हाॅथ भी दिखाई दिया है चौधरी साहब।" अवधेश ने कहा____"और जिस तरह से इतनी सारी पुलिस फोर्स को लेकर वो एसीपी वहाॅ पहुॅचा था इससे ज़ाहिर होता है कि कहीं न कहीं पुलिस का भी इस मामले में दखल है। बल्कि ये कहना चाहिए कि शुरू से ही दखल था। ये अलग बात है कि इसके पहले पुलिस ने खुले तौर पर इस बात को ज़ाहिर नहीं किया था।"

"ये बात तो मैने उसी दिन कही थी।" सहसा अशोक ने तपाक से कहा___"कि संभव है कि पुलिस इस सारे मामले में गुप्त रूप से शामिल हो और आज इस बात का सबूत के रूप में पता भी चल गया हमें।"

"हम कमिश्नर से इस बारे में अभी बात करेंगे।" मंत्री ने कहने के साथ ही अपना मोबाइल निकाला____"उसे अब साफ साफ बताना ही पड़ेगा कि माज़रा क्या है तथा उसने हमें धोखे में रखने की हिम्मत कैसे की?"

कहने के साथ ही मंत्री ने पुलिस कमिश्नर को काल लगा कर मोबाइल अपने कान से लगा लिया। दूसरी तरफ काफी देर तक रिंग जाने के बाद काल रिसीव की गई।

"जी कहिए मंत्री जी।" उधर से कमिश्नर की आवाज़ उभरी___"आज इस नाचीज़ को कैसे याद किया आपने?"
"ये ड्रामेबाज़ी छोंड़ो कमिश्नर।" चौधरी ने सपाट लहजे में कहा___"और ये बताओ कि ये सब क्या चक्कर चला रहे हो तुम?"

"च..चक्कर???" उधर से कमिश्नर का चौंका हुआ स्वर उभरा____"ये आप क्या कह रहे हैं मंत्री जी?"
"देखो कमिश्नर।" चौधरी ने तीखे भाव से कहा___"हमें फालतू की बकवास बिलकुल भी पसंद नहीं है। तुम अच्छी तरह जानते हो और समझते भी हो कि हम किस बारे में बात कर रहे हैं?"

"बड़ी अजीब बात कर रहे हैं आप मंत्री जी।" उधर से कमिश्नर ने कहा___"भला जिस बात को आप बताएॅगे ही नहीं उस बात के बारे में मैं कैसे कुछ जान पाऊॅगा? आप तो जानते हैं कि इंसान अंतर्यामी तो होता ही नहीं है।"

"हम हल्दीपुर में आधा घंटा पहले घटी घटना के बारे में बात कर रहे हैं।" चौधरी ने मन ही मन दाॅत पीसते हुए कहा___"अब ये मत कहना कि तुम इस घटना के बारे में भी नहीं जानते।"

"ओह तो आप उस घटना की बात कर रहे हैं?" उधर जैसे कमिश्नर की अब बात समझ में आई थी, बोला___"उस घटना के बारे में तो मुझे अच्छी तरह पता है मंत्री जी। लेकिन आपका उस घटना से क्या लेना देना है? जबकि हमारे डिपार्टमेंट के एसीपी ने तो वहाॅ पर एक मोस्ट वान्टेड अपराधी को पकड़ने के लिए घेराबंदी की थी और फिर अपराधी को पकड़ कर अपने साथ ले भी आए।"

"किस अपराधी को पकड़ने गई थी तुम्हारी पुलिस?" मंत्री ने पूछा।
"यूॅ तो शहर कई तरह के मुजरिमों से भरा पड़ा है मंत्री जी मगर।" उधर से कमिश्नर ने कहा___"हमारी पुलिस फोर्स ने जिस मोस्ट वान्टेड अपराधी को पकड़ने के लिए हल्दीपुर के पास वाले गाॅव माधोपुर में घेराबंदी की थी उसका नाम फिरोज़ खान है। इस नाम के अपराधी के बारे में तो आपने भी काफी सुना होगा। आप तो जानते हैं कि ये अपराधी कब से पुलिस व कानून के लिए सिर का दर्द बना हुआ था। आज हमारे ही एक विश्वासपात्र मुखबिर ने हमें बताया कि फिरोज़ खान अपनी गैंग के साथ इस समय माधोपुर में मौजूद है। बस फिर क्या था, हमने उसे पकड़ने के लिए अभी हाल ही में नये नये आए एसीपी रमाकान्त शुक्ला को भेज दिया। मगर मेरी समझ में ये नहीं आता कि आपको इस मामले से क्या लेना देना हो गया? अगर मुनासिब समझें तो मुझे भी बताइये मंत्री जी।"

"नहीं ऐसी कोई बात नहीं है।" चौधरी ने बात को टालने की गरज़ से कहा___"वैसे पता चला है कि तुम्हारी पुलिस ने हल्दीपुर के ठाकुर अजय सिंह को भी गिरफ्तार कर लिया है। भला ये क्या चक्कर है कमिश्नर? क्या वो ठाकुर भी फिरोज़ खान की तरह मोस्ट वान्टेड अपराधी है?"

"ठाकुर अजय सिंह को तो ज़रूरी पूॅछताॅछ के लिए गिरफ्तार किया गया है मंत्री जी।" उधर से कमिश्नर ने कहा___"दरअसल हमारे मुखबिर ने बताया था कि फिरोज़ खान हल्दीपुर के ठाकुर अजय सिंह की कार में ही बैठा हुआ था। इस लिए उन्हें गिरफ्तार करना पड़ा। तहकीक़ात में उनसे पूछा जाएगा कि फिरोज़ खान नाम का खतरनाक अपराधी उनकी कार में उनके साथ क्यों बैठा हुआ था? आख़िर उनका फिरोज़ खान से क्या संबंध है?"

"ओह तो ये बात है।" चौधरी को मानो बात समझ में आ गई, बोला____"वैसे सुना है कि ठाकुर और उसके भतीजे के बीच किसी मामले में तगड़ी रंजिश है। सुना तो ये भी है कि ठाकुर की बेटी खुद तुम्हारे पुलिस डिपार्टमेंट की इंस्पेक्टर है और वो अपने ही माॅ बाप के खिलाफ़ होकर ठाकुर के दुश्मन भतीजे का साथ दे रही है।"

"बाॅकी सारी बातों के बारे में तो मुझे कुछ नहीं पता है मंत्री जी।" उधर से कमिश्नर ने कहा___"लेकिन ये सच है कि ठाकुर अजय सिंह की बेटी हमारे पुलिस डिपार्टमेंट में इंस्पेक्टर के रूप में कार्यरत है। बहुत ही इमानदार तथा बहादुर ऑफीसर है वो।"

"अब इस बारे में तो तुम्हें ही पता होगा कमिश्नर।" चौधरी ने कहा___"आफ्टरआल वो तुम्हारे पुलिस महकमे से है। चलो कोई बात नहीं, अच्छा अब हम फोन रखते हैं।"

इतना कह कर चौधरी ने काल कट कर दी। फिर बुझ चुके शिगार को सामने टेबल पर रखे ऐशट्रे में रखा और दूसरा शिगार निकाल कर सुलगा लिया। शिगार के दो तीन गहरे गहरे कश लेने के बाद उसने ढेर सारा धुआॅ ऊपर की तरफ उछाला।

"क्या कहा कमिश्नर ने चौधरी साहब?" अवधेश श्रीवास्तव पूछे बग़ैर न रह सका था।
"बेवकूफ़ बनाने की कोशिश कर रहा था हमें।" चौधरी ने कहा___"उस साले को ये पता ही नहीं है कि वो किसे बेवकूफ बनाने चला था? साला राजनीति का खेल हम खेलते हैं और वो हमसे राजनीति कर रहा था।"
"ऐसा क्या कह रहा था वो आपसे?" अशोक ने पूछा।

मंत्री ने उसे सारी बातें बता दी, उसके बाद उसने फिर से शिगार का एक कश लिया फिर बोला___"जबकि साफ पता चलता है कि सच्चाई क्या है? डिटेक्टिव राणे के अनुसार विराज एण्ड पार्टी ठाकुर की दूसरी बेटी को लेने गए थे। किसी तरह से इस बात की जानकारी ठाकुर को हुई और वह फिरोज़ खान को उसके गुर्गों के साथ माधोपुर जा धमका, जहाॅ पर उसका आमना सामना विराज एण्ड पार्टी से हुआ। विराज को अंदेशा रहा होगा कि उसका ताऊ उसे पकड़ने का ऐसा ही कुछ इंतजाम करके आएगा। इस बात को ध्यान में रखते हुए उन लोगों ने भी ठाकुर से बचने का उपाय सोचा होगा। ठाकुर की बेटी क्योंकि अब विराज के साथ ही है इस लिए ठाकुर से बचने के लिए उसने अपने पुलिस महकमें का सहारा लिया। उसे पता था कि पुलिस के आ जाने से अजय सिंह कुछ कर नहीं पाएगा। बात भी सही है कि पुलिस से पंगा करने का कोई मतलब ही नहीं था। यानी वो सब पुलिस की मदद से बड़े आराम से ठाकुर की दूसरी बेटी को ले आएॅगे और ठाकुर कुछ भी नहीं कर पाएगा।"

"यकीनन चौधरी साहब।" अवधेश ने गहरी साॅस लेते हुए कहा___"ठाकुर ने विराज एण्ड पार्टी को घेर कर पकड़ने का ज़बरदस्त प्लान बनाया था। ये अलग बात है कि बदकिस्मती से उसके उस ज़बरदस्त प्लान की खुद उसकी ही बेटी ने धज्जियाॅ उड़ा दी। इतना ही नहीं पुलिस को बुलवा कर वो अपनी छोटी को बहन को तो अपने साथ ले ही गई ऊपर से अपने बाप को भी गिरफ्तार करवा दिया।"

"लेकिन ठाकुर भी कम कमीना नहीं था।" अशोक ने झट से कहा___"पुलिस के साथ जाते जाते भी उसने एसीपी का रिवाल्वर निकाल कर अपनी छोटी बेटी को गोली मार दी। ये इस बात का सबूत है चौधरी साहब कि उस वक्त वह अपनी औलाद से किस क़दर ख़फा था और फिर गुस्से में आकर उसने बेटी को जान से मारने की कोशिश की। अगर समय रहते उसकी बेटी का विराज एण्ड पार्टी ने इलाज़ करवा लिया तब तो ठीक है वरना ठाकुर ने तो अपनी बेटी का काम तमाम कर ही दिया है समझिये।"

"जो भी होता है अच्छे के लिए ही होता है।" मंत्री दिवाकर चौधरी ने कहा___"इस सबकी वजह से हमारा फायदा ये हुआ है कि हमारा दुश्मन हमारे जासूस राणे की नज़र में आ गया है। राणे विराज एण्ड पार्टी के पीछे साये की तरह लगा रहेगा। अभी तो वो सब किसी हाॅस्पिटल में ही गए होंगे क्योंकि ठाकुर की बेटी को मौत से बचाना उन सबकी पहली प्राथमिकता होगी। उसके बाद वो यकीनन उस जगह जाएॅगे जहाॅ पर उन लोगों ने अपना ठिकाना बनाया होगा। राणे को जैसे ही उनके ठिकाने का पता चल जाएगा वैसे ही वो हमें सूचित कर देगा। बस, उसके बाद क्या होगा ये बताने की ज़रूरत नहीं है शायद।"

"ये तो वाकई हमारे ही हक़ में है।" सहसा इस बीच सुनीता बोल पड़ी___"ठाकुर की घटना ने उसे भले ही करारी शिकस्त दी हो मगर इस सबमें हमारा यकीनन फायदा हो गया है। दूसरी बात जासूस राणे को इस काम के लिए बुलाने का भी बहुत अच्छा निर्णय साबित हुआ हमारा।"

"बिलकुल सही कहा तुमने।" चौधरी ने कहा___"अगर राणे को हमने बुलाया न होता तो हमें इतनी बड़ी सफलता हर्गिज़ भी नहीं मिल सकती थी। क्योंकि इस बात का हमें पता ही न चलता कि विराज एण्ड पार्टी और ठाकुर के बीच क्या हुआ है? ठाकुर का भी कोई भरोसा नहीं था कि वो हमें इस बारे में कुछ बताता भी या नहीं।"

"ख़ैर, जो भी हो।" अवधेश ने कहा___"इस सबसे हमें फायदा तो यकीनन ही हुआ है मगर इस बीच हमारे लिए ये सोचना भी महत्वपूर्ण है कि इस मामले में पुलिस का दखल किस उद्देश्य से हुआ है? क्या सचमुच ही वो मोस्ट वान्टेट अपराधी फिरोज़ खान को ही पकड़ने के उद्देश्य से वहाॅ पर पहुॅची थी या फिर इसके पीछे भी पुलिस की कोई ऐसी चाल थी कि वो एक तीर से दो शिकार कर सके। कहने का मतलब ये कि ज़ाहिर तौर पर उसने हमें यही दिखाया हो कि उसका दखल महज फिरोज़ खान को ही पकड़ना था जबकि असल में उसका मकसद कुछ और ही रहा हो, जिसका संबंध हमसे हो।"

"हो सकता है।" चौधरी के चेहरे पर सोचने वाले भाव उभर आए____"किन्तु कमिश्नर की बातों से भी कुछ ज़ाहिर नहीं हो सका। या तो उसने जान बूझ कर हमें घुमा दिया है या फिर ऐसा कुछ हो ही न। यानी हो सकता है कि हम जिस चीज़ की शंका कर रहे हैं वो बेवजह ही हो।"

"शंका तो शंका ही होती है चौधरी साहब।" अशोक ने कहा___"भले ही वो बेवजह ही हो मगर हमारे मन में शंका तो है न। इस लिए जब तक हमें इस मामले में सच्चाई का पता नहीं चलता तब तक हमारी ये शंका हमारे अंदर से जाएगी भी नहीं।"

"चलो अगर ऐसा है भी।" चौधरी ने कहा___"तो वो आने वाले समय में ज़ाहिर तो हो ही जाएगा। तब हम देख लेंगे कि हमें उस बारे में क्या करना है। अभी के हालात में जो ज़रूरी है, हमे उस पर ज्यादा ध्यान देना है। हमें किसी भी कीमत पर अपने बच्चे तथा हमारे लिए डायनामाइट बने उन वीडियोज को हाॅसिल करना है। मौजूदा हालातों पर ग़ौर करें तो ये स्पष्ट हो चुका है कि बहुत जल्द राणे के द्वारा हमें इस सबमें सफलता मिलेगी।"

चौधरी की बात सुन कर सबके सिर सहमति में हिले। उसके बाद कुछ और इधर उधर की बातें हुई उन लोगों के बीच। फिर सब अपने अपने काम पर चले गए।
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इधर आदित्य ऑधी तूफान की तरह दौड़ाते हुए कार को हास्पिटल की तरफ लिए जा रहा था। नीलम की हालत की वजह से हम सब बेहद दुखी हो गए थे। मैं बार बार नीलम को पुकार रहा था। उसकी पलकें बार बार बंद हो जाती थी। मैने अपने एक हाॅथ की हॅथेली को नीलम की पीठ पर कस के लगाया हुआ था ताकि उसका खून न बहने पाए। नीलम पहले तो दर्द और पीड़ा से कराह रही थी किन्तु अब वो प्रतिपल शान्त पड़ती जा रही थी। उसकी ये हालत देख कर मैं बदहवाश सा था और बार बार उसे पुकार रहा था। मेरे बाएॅ साइड ही नीलम के पैरों के पास बैठी सोनम दीदी अभी भी सिसक रही थीं। वो खुद भी पागलों की तरह नीलम को पुकारे जा रही थी।

रितू दीदी आगे बैठी हुई थी। उनके चेहरे पर भी पीड़ा के भाव उभर आते थे किन्तु उन्होंने खुद को सम्हाला हुआ था। उनके चेहरे पर मौजूद भाव प्रतिपल बदल रहे थे। कभी कभी तो ऐसे भाव उभर आते थे जैसे उन्होंने किसी बात के लिए कठोर फैसला किया हो। आदित्य फुल स्पीड से कार को भगा रहा था। तभी डैश बोर्ड के पास ही रखा मेरा मोबाइल फोन बज उठा। फोन के बजने से जैसे रितू दीदी की तंद्रा टूटी। उन्होंने हाॅथ बढ़ा कर मोबाइल उठाया और स्क्रीन पर फ्लैश कर रहे मौसा जी नाम को देख कर काल रिसीव की उन्होंने।

उधर से मौसा जी ने जाने ऐसा क्या कहा कि रितू दीदी एकदम से चौंक पड़ी, साथ ही कार की खिड़की से इधर उधर देखने भी लगी थी। फिर उन्होंने ये कह कर फोन रख दिया कि___"आपने यकीनन ये बहुत बड़ी ख़बर दी है मौसा जी। किन्तु उसे बोलिए कि अगर संभव हो सके तो उसे पकड़ ले। आप भी जल्दी से उसके पास जाइये और जाकर उसे अपने कब्जे में ले लीजिए।"

"क्या हुआ रितू??" कार चलाते हुए आदित्य ने सहसा एक नज़र रितू दीदी की तरफ डालते हुए पूछा।
"मंत्री मेरी चेतावनी के बावजूद अपनी हरकतों से बाज नहीं आया।" रितू दीदी ने कहा___"उसने जब देखा कि वो खुद कुछ नहीं कर सकता है तो उसने अपने काम के लिए एक जासूस को बुलवाया और उस जासूस को हमारे पीछे लगा दिया।"

"ये क्या कह रही हो तुम?" आदित्य रितू की बात सुन बुरी तरह चौंका था, फिर बोला___"मगर तुम्हें ये सब कैसे पता चला?"
"मुझे नहीं।" रितू दीदी ने कहा___"बल्कि मौसा जी के एक आदमी को पता चला है। उसी ने बताया है मौसा जी को। दरअसल हम सब लोग तो वहाॅ से चले आए मगर मौसा जी का एक आदमी ग़लती से वहीं रह गया। मौसा जी बता रहे थे कि उनका वो आदमी उस वक्त अपना पेट साफ करने चला गया था। इसी बीच हम सब वहाॅ से जल्दबाज़ी में निकल आए। कुछ देर में जब वो अपना पेट साफ करके आया तो हम लोगों को दूर जाते हुए देखा उसने। वो वहाॅ से चलते हुए कुछ दूर आया। फिर उसने अपना मोबाइल निकाल कर मौसा जी को फोन करने ही वाला था कि तभी उसे किसी के बात करने की आवाज़ सुनाई दी। वो आवाज़ की दिशा में गया तो उसने देखा कि मंदिर से लगभग पचास मीटर की दूरी पर एक आदमी पेड़ की ओट में खड़ा किसी से फोन पर बातें कर रहा था। मौसा जी का आदमी उससे कुछ ही दूरी पर था। उसने उस आदमी के कुछ पास जाकर उसकी बातें सुन ली। उसकी बातों में डैड के अलावा हमारा भी ज़िक्र था, साथ ही वह जिससे बात कर रहा था उसे वह चौधरी साहब कह कर संबोधित कर रहा था। मौसा जी के आदमी को उसकी बातों से समझ आ गया कि वो हम सबके पीछे ही लगा हुआ है। अतः उसने तुरंत ही इस बात की सूचना मौसा जी को फोन लगा कर दे दी।"

"ओह तो ये बात है।" आदित्य ने कहा।
"हाॅ, मैने अपने मुखबिरों को मंत्री तथा उसके सभी साथियों के पीछे लगाया हुआ था।" रितू दीदी ने कहा___"उन सबकी रिपोर्ट यही थी कि मंत्री या उसके साथियों ने ऐसा वैसा कुछ नहीं किया है। बल्कि उन सबकी दिन चर्या तथा कार्य सामान्य ही था। मुझे भी उम्मीद नहीं थी कि वो कमीना अपने इस काम के लिए किसी जासूस को हायर कर लेगा। मगर कोई बात नहीं, ये बहुत अच्छा हुआ कि मंत्री के उस जासूस का पता चल गया। कहते हैं कि ईश्वर जो भी करता है उसके पीछे कोई ठोस वजह ज़रूर होती है। वरना सोचने वाली बात है कि मौसा जी जिन आदमियों को अपने साथ लेकर आए थे उन आदमियों में से किसी एक को उस वक्त टायलेट क्यों आता? ये ईश्वर की ही मर्ज़ी थी कि उसे उस वक्त टायलेट आया और वो टायलेट के लिए हमसे दूर चला गया। उसके बाद जब वह आया तो हम सब उस जगह से निकल चुके थे जबकि वो वहीं छूट गया। ईश्वर हमारे साथ है आदित्य, वो नहीं चाहता कि किसी वजह से हम फॅस जाएॅ। हमें नहीं पता था कि मंत्री ने कोई जासूस हमारे पीछे लगाया हुआ है अतः ईश्वर इस सबके द्वारा हमें उस जासूस के बारे में भी बता दिया।"

"सचमुच।" आदित्य कह उठा___"कुदरत का हर काम हैरतअंगेज़ होता है। ख़ैर, अब उस जासूस का क्या करना है?"
"अभी तो फिलहाल उसे किसी भी तरह से पकड़ लेने के लिए मैंने मौसा जी से कहा है।" रितू दीदी ने कहा___"उसका पकड़ में आना भी बेहद ज़रूरी है वरना वो हमारा पीछा करता रहता और अंततः हमारे ठिकाने तक पहुॅच जाता। उसके बाद वो हमारे ठिकाने के बारे में मंत्री को बता देता। बस फिर तो खेल ही खत्म हो जाना था।"

"सचमुच।" आदित्य ने कहा___"बहुत बड़ी मुसीबत में फॅसने वाले थे हम सब।"
"हाॅ आदित्य।" रितू दीदी ने कहा___"मंत्री अपने दलबल के साथ अगर हमारे ठिकाने पर आ धमकता तो हम उस हालात में उस वक्त कुछ कर नहीं पाते और फिर हम सबके साथ मंत्री क्या सुलूक करता इसका अंदाज़ा भी नहीं लगाया जा सकता।"

"शुकर है।" आदित्य ने कहा___"ईश्वर ने हमें बचा लिया। अब तो यही दुवा करो कि वो जासूस मौसा जी की पकड़ में आ ही जाए। वरना अगर वो हाॅथ से निकल गया तो मुसीबत एक बार फिर से हम पर आ जाएगी। ईश्वर बार बार ऐसा संयोग नहीं बनाएगा।"

"सही कहा तुमने।" रितू दीदी ने कहा___"देखते हैं मौसा जी तथा उनके आदमी क्या करते हैं? इस वक्त तो हमें नीलम को बचाना है।"
"वैसे एक बात कहूॅ रितू।" आदित्य ने कहा___"तुम्हारे जैसा कमीना बाप मैने आज तक न कहीं देखा है और ना ही कहीं सुना है। खुद पापों की गठरी लिए फिरता है और अपनी ही बेटी के साथ......छिः..मुझे तो सोच कर ही ऐसे आदमी से घृणा हो रही है।"

"अगर मेरी बहन को कुछ हुआ न आदित्य।" सहसा रितू दीदी के मुख से ज़हर में डूबे शब्द निकले___"तो उस इंसान का मैं वो हाल करूॅगी कि बड़े से बड़ा जल्लाद भी उसका हाल देख कर थर्रा जाएगा।"

"अब तो उसकी नियति ही ऐसी बन चुकी है।" आदित्य ने कहा___"कि उसकी जब भी मौत होगी तो यकीनन बहुत भयानक तरीके से होगी।"

आदित्य की बात पर रितू दीदी कुछ न बोली। किन्तु उनके चेहरे के भाव बता रहे थे कि अपने अंदर के तूफान को उन्होंने कितनी मुश्किल से रोंका हुआ है। मैं उन दोनों की सारी बातें सुन रहा था। तभी रितू दीदी ने किसी को फोन लगाया और उससे कुछ बातें की। आदित्य ने बहुत ही कम समय में कार को हाॅस्पिटल पहुॅचा दिया।

हाॅस्पिटल के सामने कार के रुकते ही मैने जल्दी से गेट खोला और नीलम को सावधानी से निकाल कर अपनी गोंद में लिया और बिना किसी की तरफ देखे हाॅस्पिटल की तरफ लगभग दौड़ते हुए जाने लगा। मेरे पीछे ही बाॅकी सब भी आ रहे थे। कुछ ही देर में मैं नीलम को लिए हाॅस्पिटल के अंदर आ गया। वहाॅ का माहौल देख कर ऐसा लगा जैसे वहाॅ के डाक्टर तथा कर्मचारी हमारा ही इन्तज़ार कर रहे थे। जल्द ही दो आदमी स्ट्रेचल लिये मेरे पास आए। मैने आहिस्ता से नीलम को स्ट्रेचर पर लिटा दिया। मेरे लेटाते ही वो दोनो आदमी स्ट्रेचर को तेज़ी से ठेलते हुए ले जाने लगे। मैं, आदित्य, रितू व सोनम दीदी भी साथ ही साथ चलने लगे थे। थोड़ी ही देर में वो दोनो आदमी नीलम को स्ट्रेचर सहित ओटी में ले गए। डाक्टर ने हम सबको ओटी के बाहर ही रोंक दिया और खुद अंदर चला गया।

हम चारो वहीं पर खड़े रह गए थे। हम चारों के मन में बस एक ही बात थी कि नीलम को कुछ न हो। अभी हम सब वहाॅ पर खड़े ही थे कि तभी वहाॅ पर एसीपी रमाकान्त शुक्ला भी आ गया। उसने आते ही रितू दीदी से नीलम के बारे में पूछा तो दीदी ने बता दिया कि अभी अभी उसे ओटी में ले जाया गया है। एसीपी ने रितू दीदी से कहा कि उसने समूचे हास्पिटल में अंदर बाहर पुलिस के आदमी सादे कपड़ों में तैनात कर दिये हैं। इस लिए अब किसी का ख़तरा नहीं है। एसीपी की बात सुन कर रितू दीदी ने उसे इसके लिए धन्यवाद किया। कुछ देर बाद एसीपी ये कह कर चला गया कि वो नीलम का हाल चाल लेने फिर आएगा।

एसीपी के जाने के कुछ देर बाद हम चारों वहीं गैलरी पर दीवार से सटी हुई रखी लम्बी चेयर्स पर बैठ गए। कुछ देर बाद मैं उठा और हाॅस्पिटल से बाहर पानी लाने के लिए चला गया। पानी लाकर मैने रितू दीदी व सोनम दीदी को दिया। उसके बाद उसी कुर्सी पर बैठ कर हम सब डाक्टर के बाहर आने का इन्तज़ार करने लगे। हम सबके लबों से बस एक ही दुवा निकल रही कि नीलम को कुछ न हो।
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दोस्तो, आप सबके सामने अपडेट हाज़िर कर दिया है। आशा करता हूॅ कि आप सबको पसंद आएगा।

आप सबकी प्रतिक्रिया तथा आप सबके रिव्यू का इन्तज़ार रहेगा।
 

TheBlackBlood

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
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Bhai jitni story padta gaya utna hi usme khota gaya aur apkey likhne ke style ka qayal hota gaya magar ek cheez chahe viraj n party, Ajay n party aur Minister N party jo bhi mansooba banate hai agle waley ko uska step ba step andaza hona thoda atpata laga Matlab kahi na kahi ko ek party ko weak hona thaa. Khair yah koi aisi badi cheez bhi nahi ek tarah se sabka thinking level ek hi hai. Bus jis ka execution better hoga woh yah jung jeetaga.
Bahut bahut shukriya RAAZ bhai aapki is khubsurat pratikriya ke liye,,,,:hug:

Sabke sochne ka apna ek nazariya hota hai bhai. Bade bade log the, situation ke anusaar ham kisi bhi cheez ke bare me sirf andaza hi to lagate hain. Jitna dimaag chalta hai utna lagate hi hain aur sambhaavnaye lagate hain,,,,,:dazed:
 
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Shubham bro ye story meri all time favourite rahi hai. Itne time ke baad bhi iska ek ek scene mere dimaag me chhapa huwa hai. Really bro mind blowing story. :)
 
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