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Incest ♡ एक नया संसार ♡ (Completed)

आप सबको ये कहानी कैसी लग रही है.????

  • लाजवाब है,,,

    Votes: 185 90.7%
  • ठीक ठाक है,,,

    Votes: 11 5.4%
  • बेकार,,,

    Votes: 8 3.9%

  • Total voters
    204
  • Poll closed .

Vicky2009

Member
297
350
63
अपडेट...........《 22 》

अब तक,,,,,,,

"चिन्ता मत करो करुणा।" अभय ने कठोर भाव से कहा__"मुझे पता है कि अपने रास्ते पर आने वाली रुकावट से कैसे निपटना है।"
"फिर भी सावधान रहिएगा।" करुणा ने कहा__"क्योंकि इस सबसे ये तो समझ आ ही गया है कि वो लोग किसी के साथ कुछ भी कर सकते हैं।"

"कुछ भी करने वालों को मैं देख लूॅगा करुणा।" अभय ने कहा__"मेरे मुम्बई जाने के बाद तुम यहाॅ सबकी देख भाल अच्छे से करना। दिव्या तब तक स्कूल नहीं जाएगी जब तक मैं मुम्बई से लौट नहीं आता।"

"क्या ऐसा नहीं हो सकता कि हम सब ही मुम्बई चलें?" करुणा ने कहा__"कौन जाने आपके जाने के बाद यहाॅ कैसे हालात बन जाएॅ? उस स्थिति में मैं अकेली औरत भला किसी का कैसे मुकाबला करूॅगी??"

"मैं तुम सबको मुम्बई नहीं ले जा सकता क्योंकि मुम्बई में तुम लोगों को लिए मैं कहाॅ कहाॅ भटकूॅगा? अंजान शहर में अपना कहीं कोई ठिकाना भी तो होना चाहिए।" अभय ने कहा__"इस लिए तुम ऐसा करो कि कुछ दिन के लिए दिव्या और शगुन को लेकर अपने मायके चली जाओ। वहाॅ तुम सब सुरक्षित रहोगे, और मैं भी तुम लोगों के लिए निश्चिंत रहूॅगा।"

"हाॅ ये ठीक रहेगा।" करुणा ने कहा__"आप मेरे भाई को फोन कर दीजिए वो आ जाएगा और हम लोगों को अपने साथ ले जाएगा।"
"ठीक है।" अभय ने कहा__"मैं बात करता हूॅ तुम्हारे भाई से, तब तक तुम ज़रा चाय तो बना कर पिला दो मुझे।"
"जी अभी लाई।" करुणा ने बेड से उठते हुए कहा।



अब आगे,,,,,,,,

जैसा कि अभय ने निर्णय ले लिया था इस लिए उसने ससुराल में अपने साले युवराज सिंह को फोन कर दिया था और उसे जल्द से जल्द यहाॅ से करुणा के साथ दिव्या तथा शगुन को ले जाने के लिए कह दिया था। अभय के साले युवराज ने अचानक इस तरह यहाॅ आने और फिर अपने साथ उसकी बहन व भांजा भांजी को घर ले जाने का कारण पूॅछा तो अभय ने कुछ नहीं बताया। बस यही कहा कि वह कुछ दिनों के लिए बाहर जा रहा है।

अभय ने करुणा तथा दिव्या से भी कह दिया था कि इस बात की चर्चा वो लोग अपने मायके तथा ननिहाल में किसी से नहीं करेंगी। अभय की ससुराल हल्दीपुर से ज्यादा दूर नहीं थी। बल्कि एक घंटे की दूरी पर थी। इस लिए उसके साले को आने में ज़्यादा देर नहीं हुई।

करुणा ने अपने पति अभय के लिए शाम का खाना बना कर रख दिया था जिसे वह गरम करके शाम को खा लेगा और खुद भारी मन से अपने बच्चों को लेकर अपने भाई के साथ अपने मायके मणिपुर चली गई थी। अभय ने उसे बता दिया था कि वह अगले दिन सुबह ही यहाॅ से मुम्बई के लिए निकलेगा। अभय ने अपनी पत्नी और बच्चों को अपने साले के साथ बेहद ही गुप्त रूप से भेजा था। किसी को भनक तक न लगने दी थी कि उसकी पत्नी और बच्चे किसके साथ कब कहाॅ गए हैं?

करुणा ने अभय से कहा था कि वह आज रात यहाॅ हवेली में न रहे बल्कि अपने किसी दोस्त या मित्र के यहाॅ रात रुक जाए और सुबह वहीं से मुम्बई के लिए रवाना हो जाएं। करुणा ये सब किसी अंजानी आशंका की वजह से कह रही थी जबकि उसकी इस सलाह पर अभय ने आवेश में कहा था__"मैं किसी से बाल बराबर भी नहीं डरता करुणा। मैंने किसी के साथ कोई ग़लत काम नहीं किया है, इस लिए किसी से डरने का सवाल ही नहीं है। रही बात बड़े भइया की तो उन्हें भी देख लूॅगा। मैं भी तो देखूॅ कि कितने बड़े तीसमारखाॅ हैं वो???" करुणा अभय की इस बात पर कुछ न बोल सकी थी।

उधर प्रतिमा ने अपने पति अजय सिंह को फोन करके आज हुई इस घटना के बारे में सब कुछ बता दिया था। जिसे सुन कर अजय सिंह के पैरों तले से ज़मीन निकल गई थी। उसे अपने बेटे पर बेहद गुस्सा आ रहा था। उसी की वजह से ये सब हुआ था वर्ना अभय ये सब कभी न सोचता कि उससे क्या कुछ छुपाया गया था??

अजय सिंह अपने बेटे के इस कार्य पर गुस्सा तो बहुत हुआ था किन्तु वह ये भी जानता था कि अब गुस्सा करने का कोई मतलब नहीं है। यानी जो होना था वो तो हो ही चुका था। अब तो उसे ये करना था कि इससे आगे कोई बात बढ़े ही न और ना ही उस पर कोई बात आए।

अजय सिंह अपनी फैक्टरी को फिर से चालू करने की कोशिशों में लगा हुआ था इस लिए वह ज्यादातर हवेली से बाहर ही रहता था। किन्तु आज हुई इस घटना की जानकारी जब उसकी पत्नी द्वारा फोन के माध्यम से उसे मिली तो वह शहर से हवेली आने के लिए कह दिया था प्रतिमा से। उसने ये भी हिदायत दी थी कि आज की घटना के बारे में उसकी बेटी रितू को पता न चले। जबकि अपने बेटे शिवा को कुछ दिन के लिए शहर में बने मकान पर रहने के लिए कह दिया था। ऐसा इस लिए था क्योंकि शिवा की बुरी हालत देखकर कोई भी ढेरों सवाल पूॅछने लगता। जबकि रितू तो अब पुलिस वाली थी, हर बात पर शक करना उसका पेशा था। दूसरी बात वह अपने भाई की आवारा गर्दी करने वाली इस असलियत से अंजान भी नहीं थी। इस लिए वह कई तरह के सवाल पूछने लगती सबसे। अजय सिंह ने प्रतिमा से ये भी कह दिया था कि वह हवेली में रहने वाले नौकर व नौकरानियों को भी इस बात की ठोस शब्दों में हिदायत दे दे कि वो लोग आज हुई इस घटना के बारे में एक लफ्ज़ भी रितू से न कहें या उनके द्वारा किसी तरह रितू के कानों तक ये बात न पहुॅचे।

अजय सिंह शाम को हवेली पहुॅचा था। हवेली में शमशान की तरह सन्नाटा फैला हुआ था। ऐसा लगता था जैसे इतनी बड़ी हवेली में किसी जीव का कहीं कोई वजूद ही न हो। अजय सिंह समझ सकता था कि हवेली में ये सन्नाटा क्यों फैला हुआ है। उसकी बेटी रितू किसी केस के सिलसिले में बाहर ही थी, यानी अभी तक वह हवेली नहीं लौटी थी पुलिस थाने से। जबकि शिवा अजय सिंह के पालतू कुछ आदमियों के साथ शहर वाले मकान में कुछ दिन रहने के लिए चला गया था।

अजय सिंह खामोशी से अपने कमरे की तरफ बढ़ गया। कमरे में पहुॅचते ही अजय सिंह ने देखा कि उसकी बीवी प्रतिमा बेड पर पड़ी है। बेड पर पड़ी प्रतिमा एकटक व निरंतर कमरे की छत पर झूल रहे पंखे को घूरे जा रही थी। बल्कि अगर ये कहें तो ज़रा भी ग़लत न होगा कि वह पंखे को भी नहीं घूर रही थी वह तो बस शून्य में ही देखे जा रही थी। उसका मन कहीं और ही भटका हुआ नज़र आ रहा था। कदाचित् यही वजह थी कि उसे कमरे में अजय सिंह के दाखिल होने का ज़रा भी एहसास न हुआ था।

अजय सिंह ने गौर से अपनी बीवी की तरफ देखा फिर उसने अपने जिस्म पर मौजूद कोट को उतार कर उसे दीवार पर लगे एक हैंगर पर लटका दिया। इसके बाद वह बेड की तरफ बढ़ा। प्रतिमा अभी भी कहीं खोई हुई शून्य में घूरे जा रही थी।

"ऐसे किन ख़यालों में गुम हो प्रतिमा?" अजय सिंह ने उसे देखते हुए कहा__"जिसकी वजह से तुम्हें ये भी एहसास नहीं हो रहा कि मैं कब से इस कमरे में आया हुआ हूॅ?"

"सब कुछ खत्म हो गया अजय।" प्रतिमा उसी मुद्रा में तथा अजीब से भाव के साथ बिना अजय की तरफ देखे ही बोली__"सब कुछ खत्म हो गया। कुछ भी शेष नहीं बचा। हमने गुज़रे हुए कल में जो कुछ भी अपने हित के लिए किया था वो सब अब बेपर्दा हो चुका है। कैसी अजीब सी स्थित हो गई है हमारी। मैं और तुम ज़िंदा तो हैं मगर ऐसा लगता है जैसे हमारी एक एक साॅस हमारे मरे हुए होने की गवाही दे रही है। हम ऐसे जी रहे हैं अजय जैसे हर साॅस हमने किसी से उधार ली हुई है। आज आलम ये है कि हम अपने ही बच्चों के बीच डर डर कर जीवन का एक एक पल गुज़ार रहे हैं। कहीं ऐसा तो नहीं अजय कि हमने जो कुछ भी अपने सुख सुविधा के लिए अपनों के साथ किया है उसी का प्रतिफल आज हमें इस रूप में मिल रहा है?"

"ये तुम क्या कह रही हो प्रतिमा?" अजय सिंह पहले तो चौंका था फिर अजीब भाव से प्रतिमा की तरफ देखते हुए कहा__"यकीन नहीं होता यार। अरे इतनी सी बात पर तुम इतना हताश व विचलित हो गई??? नहीं डियर, तुम इतनी निराशावादी बातें नहीं कर सकती। तुमने तो गुज़रे हुए कल में मेरे कहने पर ऐसे ऐसे कठिन व हैरतअंगेज कामों को अंजाम दिया है जिसे करने के लिए कोई साधारण औरत सोच भी न सके।"

"मैं भी तो एक इंसान हूॅ, एक औरत ही हूॅ अजय।" प्रतिमा ने बेड से उठ कर तथा गंभीर होकर कहा__"भले ही गुज़रे हुए कल में मैंने तुम्हारे कहने पर या हमारे हित के लिए हैरतअंगेज कामों को अंजाम दिया हो मगर मुझे इस बात का भी एहसास है कि वह सब जो मैने किया था वो निहायत ही ग़लत था। ये एक सच्चाई है अजय कि इंसान जो कुछ भी कर्म करता है उसके बारे में वो इंसान भी भली भाॅति जान रहा होता है कि वह किस प्रकार का कर्म कर रहा है? इंसान जान रहा होता है कि वह ग़लत कर्म कर रहा है इसके बावजूद वह रुकता नहीं है बल्कि ग़लत कर्म को करता ही चला जाता है। कदाचित् इस लिए कि उसमें ही उसका हित होता है। जब इंसान सिर्फ अपने ही हित के लिए ज़ोर देता है तब वह ये नहीं देखता कि अपने हित में उसने किस किस की खुशियों की या किस किस के जीवन की बलि चढ़ा दी है?"

"ये आज तुम्हें क्या हो गया है प्रतिमा?" अजय सिंह हैरान परेशान होकर बोला__"कैसी बहकी बहकी बातें कर रही हो तुम?"

"सच्चाई किसी भी तरह की हो अजय उसे सुन कर ऐसा ही लगता है सबको।" प्रतिमा ने फीकी सी मुस्कान के साथ कहा__"क्या ये सच नहीं है कि हमने सिर्फ अपने स्वार्थ व हित के लिए अपने ही रिश्तों के साथ अहित किया है? ये बात तुम भी भली भाॅति जानते और समझते हो अजय। हाॅ ये अलग बात है कि तुम इस सब को स्वीकार न करो।"

"इन सब बातों का अब कोई मतलब नहीं रह गया है प्रतिमा।" अजय ने बेचैनी से पहलू बदलते हुए कहा__"और मत भूलो इसके पहले तुमने भी इन सब बातों के बारे में नहीं सोचा था। आज ऐसा क्या हो गया है जिसकी वजह से तुम किसी के साथ सही ग़लत और हित अहित की बातें करने लगी? "

"आज हालात बदल गए हैं अजय।" प्रतिमा ने कहा__"पहले हम दूसरों के साथ अहित कर रहे थे इस लिए कुछ भी नहीं सोच रहे थे। मगर आज जब हमारे साथ अहित होने लगा है तब हमें इन सबका एहसास होना स्वाभाविक ही है। ये इंसानी फितरत है अजय, जब तक कोई बात खुद पर नहीं आती तब तक हमें किसी बात का एहसास ही नहीं होता।"

"ये सब बेकार की बातें हैं प्रतिमा।" अजय सिंह ने कहा__"आज की घटना से तुम ज़रा विचलित हो गई हो। जबकि इस सबसे इतना परेशान या दुखी होने की कोई ज़रूरत नहीं है।"

"तुम्हें आज के समय की वस्तुस्थित का एहसास ही नहीं है अजय।" प्रतिमा ने कहा__"अगर होता तो समझते कि हालात किस कदर बिगड़ गए हैं। ज़रा सोचो अजय...जो अभय आज तक हमारी ही कही बातों पर आॅख बंद करके यकीन करता आया था वही आज हमारी हर बात पर शक करने लगा है। इतना ही नहीं उसने तो हर सच्चाई का पता लगाने के लिए कदम भी उठाने की बात कर रहा था। अगर उसने ऐसा किया और इस सबसे उसे सारी सच्चाई का पता चल गया तो सोचो क्या होगा अजय?"

"कुछ नहीं होगा प्रतिमा।" अजय ने बड़ी सहजता से कहा__"तुम बेकार ही इतना परेशान हो रही हो। तुम्हें मैंने बताया नहीं है...हमारी सारी ज़मीन और ज़ायदाद अब सिर्फ हमारे ही बच्चों के नाम पर हैं। ये हवेली भी मैंने तुम्हारे नाम पर करवा दी है। मैं जब चाहूॅ तब अभय को इस हवेली और सारी ज़मीनों से बेदखल कर सकता हूॅ। यूॅ समझो कि वो सिर्फ मेरे रहमो करम पर इस हवेली पर है। मुम्बई में किसी होटल या ढाबे पर अपनी माॅ बहन के साथ कप प्लेट धोने वाले उस हरामज़ादे विराज का तो पत्ता ही साफ है। इस लिए कानूनन कोई कुछ भी नहीं कर सकता मेरा। अभय को अगर सच्चाई का पता चल भी गया तो क्या कर लेगा हमारा??"

प्रतिमा अवाक् सी देखती रह गई अजय की तरफ। उसे कुछ कहने के लिए तुरंत कुछ सूझा ही नहीं। जबकि.....

"मैने कहा था न कि तुम बेकार ही इतना परेशान हो रही हो।" अजय सिंह ने मुस्कुराते हुए प्रतिमा के खूबसूरत चेहरे को सहला कर कहा__"तुमने तो खुद मेरे साथ कानून की एल एल बी की है। इस लिए जानती हो कि कानूनन कोई कुछ नहीं कर सकता। मैंने सारी ज़मीनें हमारे बच्चों के नाम कर दी हैं। और अगर कोई बात होगी भी तो इनमें से किसी के पास इतनी क्षमता ही नहीं है कि ये लोग ज़मीन ज़ायदाद को पाने के लिए मेरे साथ कोई मुकदमा वगैरह कर सकें। और अगर इन लोगों ने मुकदमा चलाने की कोशिश भी की तो सारी ज़िन्दगी इनसे कोर्ट कचहरी का चक्कर लगवाऊॅगा। इतने में ही इन सबका मूत निकल जाएगा।"

"वो सब तो ठीक है अजय।" प्रतिमा के चेहरे पर पहली बार राहत के भाव उभरे थे, किन्तु फिर तुरंत ही असहज होकर बोली__"लेकिन हम अपनी बेटियों को इस सबके लिए कैसे कन्विंस करेंगे? नीलम का तो भरोसा है कि वो हमसे कोई सवाल जवाब नहीं करेगी, लेकिन रितू का कुछ कह नहीं सकते। वो शुरू से ही तेज़ तर्रार रही हैं और न्यायप्रिय भी। अब तो वह पुलिस वाली भी बन गई है इस लिए इस सबका पता चलते ही वह कहीं हम पर ही न कोई केस ठोंक दे।"

"हद करती हो यार।" अजय सिंह ठहाका लगा कर हॅसते हुए बोला__"अपनी ही बेटी से इतना डरने लगी हो तुम।"
"ज्यादा शेखी न बघारो तुम।" प्रतिमा ने अजीब भाव से कहा__"आज भले ही इतना हॅस रहे हो तुम, मगर थोड़े दिन पहले तुम्हारी भी जान हलक में अटकी पड़ी थी जब रितू ने फैक्टरी वाला केस रिओपेन किया था।"

"यार सच कह रही हो तुम।" अजय सिंह ने मुस्कुराते हुए कहा__"यकीनन उस समय मेरी हालत की वाट लगी हुई थी। कितनी अजीब बात थी कि मेरी ही बेटी मेरी ही*****मारने पर तुली हुई थी। भला उस बेचारी को क्या पता था कि उसके द्वारा इस प्रकार से मेरी*****मारने से मुझे कितनी तक़लीफ हो रही थी।"

"अब आए न लाइन पर।" प्रतिमा खिलखिला कर हॅसते हुए बोली__"बड़ा उड़ने लगे थे अभी तो।"
"यार मेरा तो के एल पी डी भी हो गया।" अजय सिंह ने उदास भाव से कहा__"मेरे बेटे ने ही सारा काम खराब कर दिया वर्ना करुणा की आगे पीछे से लेने का चान्स बन ही जाना था। अब तो ये असंभव नहीं तो नामुमकिन ज़रूर हो गया है।"

"असंभव क्यों नहीं??" प्रतिमा चौंकी।
"असंभव इस लिए नहीं क्यों कि मैं चाहूॅ तो अभी भी उसको आगे पीछे से ठोंक सकता हूॅ।" अजय सिंह ने कहा__"लेकिन ये सब अब प्यार या उसकी रज़ामंदी से नहीं हो सकेगा बल्कि इसके लिए मुझे बल का प्रयोग करना पड़ेगा।"

"क्या मतलब है तुम्हारा?" प्रतिमा हैरान।
"साली को उठवा लूॅगा किसी दिन।" अजय सिंह सहसा कठोर भाव से बोला__"और शहर में अपने नये वाले फार्महाउस पर रखूॅगा उसे। वहीं रात दिन उसकी आगे पीछे से लूॅगा। इतना ही नहीं अपने आदमियों को भी मज़ा करने का कह दूॅगा। मेरे आदमी उसकी आगे पीछे से बजा बजा कर उसकी***** का ****** बना देंगे।"

"ऐसा सोचना भी मत।" प्रतिमा ने आॅखें फैलाकर कहा__"वर्ना अभय तुम्हें कच्चा चबा जाएगा।"
"अभय की माॅ की ***** साले की।" अजय ने कहा__"उसने अगर ज्यादा उछल कूद करने की कोशिश की तो उसका भी वही अंजाम होगा जो विजय का हुआ था, लेकिन ज़रा अलग तरीके से।"

"उसकी छोंड़ो अजय।" प्रतिमा ने सहसा पहलू बदलते हुए कहा__"हमारी बेटी रितू के बारे में सोचो। उसे इस झमेले के लिए कैसे मनाएंगे?"

"उसकी भी फिक्र मत करो डियर।" अजय सिंह ने कुछ सोचते हुए कहा__"तुम तो जानती हो कि मुझे अपने रास्तों पर किसी तरह के काॅटें पसंद नहीं हैं। हम दोनो उसे इस सबके लिए पहले प्यार से समझाएंगे, अगर उसे हमारी बातें समझ आ गईं तो ठीक है वर्ना मजबूरन उसके साथ भी हमें बल का प्रयोग करना ही पड़ेगा।"

"न नहीं अजय नहीं।" प्रतिमा ने सहसा घबरा कर कहा__"तुम उसके लिए ऐसा कैसे कह सकते हो? वह हमारी अपनी बेटी है। हर ब्यक्ति की अपनी एक फितरत होती है, रितू की फितरत हम जैसी नहीं है तो इसमें उसकी क्या ग़लती है? इंसान का स्वभाव जन्म से ही बनने लगता है, और फिर हर इंसान का अपना एक प्रारब्ध भी तो होता है। सब एक जैसी सोच विचार के नहीं हो सकते अजय, ये प्रकृति के नियमों के खिलाफ है।"

"मुझे पता है प्रतिमा।" अजय सिंह ने गंभीरता से कहा__"मैं जानता हूॅ कि हमारी बेटी उनमें से है जिनकी रॅगों में सच्चाई और ईमानदारी का खून दौड़ता है। लेकिन हमारे साथ मामला ज़रा जुदा है, यानी हमारी बेटी का ये सच्चाई और ईमानदारी वाला खून भविस्य में हमारे लिए बड़ी मुसीबत भी खड़ी कर सकता है।"

"ऐसा कुछ नहीं होगा अजय।" प्रतिमा ने मजबूती से कहा__"मैं अपनी बेटी को अपने तरीके से समझाऊॅगी। वो ज़रूर मेरी बात को समझेगी और मानेगी भी।"

"अच्छी बात है।" अजय ने कहा__"तुम उसे अपने तरीके से ज़रूर समझा देना। क्योंकि तुम्हारे बाद अगर मुझे समझाना पड़ा उसे तो हो सकता है मेरा समझाना तुम्हें पसंद न आए।"

"मैं ज़रूर समझाऊॅगी अजय।" प्रतिमा के जिस्म में ठण्डी सी सिहरन दौड़ती चली गई थी, फिर बोली__"लेकिन अब अभय के बारे में भी तो सोचो। उसने साफ शब्दों में कहा है कि वह इस सच्चाई का पता लगाएगा कि गौरी और उसके बच्चों के साथ वास्तव में हुआ क्या था? इस लिए वह इस सबका पता लगाने के लिए मुम्बई में विराज तथा विराज की माॅ बहन के पास जाने का बोल रहा था। अगर उसे सारी बातों का पता चल गया तो क्या होगा अजय??"

"उसे जाने दो मेरी जान।" अजय ने अजीब से लहजे में कहा__"उसे सारी सच्चाई का पता लग भी जाएगा तो अब कोई कुछ भी नहीं कर सकेगा। जिस चीज़ के लिए हमने ये सब किया था वो तो हमें हासिल हो ही चुका है। इस लिए जाने दो जिसे जहाॅ जाना हो। विराज के साथ साथ उसकी माॅ बहन को तो मेरे आदमी भी ढूॅढ़ रहे हैं। अच्छा है कि अभय भी उन्हें तलाश करेगा वहाॅ मुम्बई में। साला इतनी बड़ी मुम्बई में कहाॅ ढूॅढेगा उन कप प्लेट धोने वालों को?"

"इस बारे में कुछ कहा नहीं जा सकता।" प्रतिमा ने कहा__"संभव है किसी संयोग के चलते अभय उन लोगों को ढूॅढ़ ही ले।"
"अगर ऐसा है तो मैं अपने कुछ आदमियों को अभय के पीछे लगा देता हूॅ।" अजय ने कुछ सोचते हुए कहा__"यदि अभय उन लोगों को ढूॅढने में कामयाब हो जाएगा तो मेरे आदमी तुरंत ही इस बात की मुझे सूचना दे देंगे।"

"हाॅ ये बिलकुल ठीक रहेगा अजय।" प्रतिमा ने खुश होकर कहा__"उस सूरत में तुम अपने आदमियों को आदेश दे देना कि वो इन सबको किसी भी तरह यहाॅ हमारे पास ले आएं। उसके बाद हम अपने तरीके से उन सबका कल्याण करेंगे।"

"ऐसा ही होगा मेरी जान।" अजय सिंह ने मुस्कुराते हुए कहा__"सब कुछ हमारे हिसाब से ही होगा और अभय के यहाॅ से जाते ही मैं उसकी खूबसूरत बीवी करुणा को भी अपने आदमियों के द्वारा उठवा लूॅगा।"

"ऐसा करना हमारे लिए कहीं खतरे का सबब न बन जाए अजय।" प्रतिमा ने अजय को अजीब भाव से देखते हुए कहा__"मुझे लगता है कि इस काम में तुम्हें अभी इतनी जल्दी इतना बड़ा क़दम नहीं उठाना चाहिए।"

"एक दिन तो ये होना ही है प्रतिमा।" अजय सिंह ने कहा__"और वैसे भी आज जिस तरह के हालात बन गए हैं उससे सारी बातें सबके सामने आ ही जाएॅगी। इस लिए जब सारी बातों को खुल ही जाना है तो इस काम में मैं देरी क्यों करूॅ? मुझे हर हाल में अपनी ख्वाहिशों को परवान चढ़ाना है डियर। मेरी शुरू से ही ये ख्वाहिश थी कि मैं गौरी तथा करुणा को अपने इसी बेड पर अपने नीचे लिटाऊॅ और उन दोनो के खूबसूरत किन्तु गदराए हुए मादक जिस्म का भोग करूॅ।"

"ख्वाहिश तो तुम्हारी अपनी बेटियों को भी अपने नीचे लिटाने की है अजय।" प्रतिमा ने मुस्कुराते हुए कहा__"तो क्या अपनी बेटियों के साथ भी अपने छोटे भाईयों की बीवियों की तरह जबरदस्ती करोगे?"

"अगर ज़रूरत पड़ी तो ऐसा भी करुॅगा मेरी जान।" अजय ने स्पष्ट भाव से कहा__"लेकिन हमारी बेटियों को मेरे नीचे लाने की जिम्मेदारी तुम्हारी है। तुम अगर इस काम में सफल हो जाती हो तो अच्छी बात है वर्ना घी निकालने के लिए मुझे अपनी उॅगली को टेंढ़ा करना ही पड़ेगा।"

प्रतिमा हैरान परेशान सी देखती रह गई अपने पति को। वह समझ नहीं पा रही थी कि उसका पति किस तरह का इंसान है??????
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उधर मुम्बई में।
विराज अपने वादे के अनुसार रविवार यानी स्कूल की छुट्टी के दिन निधि को बड़े से शिप में समुंदर घुमाने ले आया था। निधि बेहद खुश थी इस सबसे। पता नहीं क्या क्या उसके दिमाग़ में चलता रहता था। कदाचित् फिल्में देखने का असर ज्यादा हो गया था उस पर।

पिछली सारी रात वह विराज के कमरे में रही थी। सारी रात उसने तरह तरह की योजनाएं बना बना कर विराज को बताती रही थी कि कल समुंदर में किस किस तरह से हम मस्ती करेंगे। उसकी ऊल जुलूल बातों से विराज बुरी तरह परेशान हो गया था। किन्तु वह उसे कुछ कह नहीं सकता था क्योंकि निधि उसकी जान थी। उसकी खुशी के लिए वह कुछ भी कर सकता था। विराज ने उसकी सभी बातों पर अमल करने का उसे वचन दिया और फिर प्यार से उसे अपने सीने से छुपका कर कहा था__"गुड़िया अब हम लोग सो जाते हैं, कल सुबह हमें जल्दी निकलना भी है न।" विराज की इस बात से और उसको इस तरह सीने से छुपका लेने से निधि खुश हो गई और खुशी खुशी ही नींद की आगोश में चली गई थी।

सुबह हुई तो दोनो ने नास्ता पानी किया और कुछ ज़रूरी चीज़ें लेकर घर से निकल पड़े। गौरी के द्वारा उन्हें शख्त हिदायतें भी दी गई थी कि वहाॅ पर सावधानी से ही काम लेना और शाम होने से पहले पहले घर वापिस आ जाना। विराज निधि को लेकर कार से निकल गया था।

जगदीश ओबराय की अच्छी जान पहचान थी जिसकी वजह से विराज को किसी बात की कोई परेशानी नहीं हुई थी। कहने का मतलब ये कि विराज ने एक बेहतरीन सुख सुविधा सम्पन्न शिप को शाम तक के लिए बुक करवा लिया था।
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शिप मे दो चालक और एक गाइड करने वाला था बाॅकी पूरा शिप खाली ही था। इस खूबसूरत शिप में चढ़ कर निधि खुशी से फूली नहीं समा रही थी। उसका बस चलता तो वह मारे खुशी के आसमान में उड़ने लगती। वह विराज से चिपकी हुई थी। फिर वह उससे अलग होकर शिप के किनारे पर आ गई तथा यहीं से हर तरफ का नज़ारा करने लगी थी। विराज उसे इस तरह खुश होते देख खुद भी खुश था। उसे आज पहली बार यहाॅ खुले आसमान के नीचे समुंदर में इस तरह अपनी बहन के साथ आकर खुशी हुई थी। वह अपनी बहन को ही देख रहा था, जो कभी कहीं देखती तो कभी कहीं और देखने लगती। उसके लिए ये सब नया था, हलाॅकि फिल्मों में उसने जाने कितनी दफा एक से बढ़कर एक सीन्स देखे थे। किन्तु यह नज़ारा उसके जीवन का पहला और वास्तविक था। विराज अपनी गुड़िया को इस तरह खुश होते देख खुद भी खुश था। फिर एकाएक ही जाने क्या सोच कर उसकी आॅखों में आॅसू आ गए। कदाचित् ये सोच कर कि इसके पहले उन लोगों ने ऐसी किसी खुशी को पाने की कल्पना भी न की थी। उसके अपनों ने किस तरह उसे और उसकी माॅ बहन को हर चीज़ से बेदखल कर दिया था। कुछ दर्द ऐसे भी थे जो अक्सर तन्हाई में उसे रुलाते थे।

अभी वह ये सब सोच कर आॅसू बहा ही रहा था कि निधि उसके सामने आ गई। उसने निधि को देखकर जल्दी से मुह फेर लिया ताकि वह उसकी आॅखों में आॅसू न देख सके।

"आप क्या समझते हैं मुझे कुछ पता नहीं चलता??" निधि ने भर्राए गले से कहा__"अगर आप ऐसा समझते हैं तो ग़लत समझते हैं आप। संसार की ऐसी कोई चीज़ नहीं है जिसे देख कर मैं अपने होश खो दूॅ और मुझे ये भी न पता चल सके कि जो मेरी जान है उसे किस पल किस दर्द ने आकर रुला दिया है। आप कहीं भी रहें लेकिन मैं ये महसूस कर लेती हूॅ कि आप किस लम्हें में किस दर्द से गुज़रे हैं।"

"ये सब क्या बोल रही है पगली?" विराज ने खुद को सम्हालते हुए तथा हॅसते हुए कहा__"चल छोंड़ ये सब और आ हम दोनों एंज्वाय करते हैं।"

"आप बातों को टालिये मत।" निधि ने विराज के चेहरे की तरफ एकटक देखते हुए कहा__"मुझे वचन दीजिए कि आज के बाद आप कभी भी अपनी आॅखों में आॅसू नहीं लाएॅगे।"

"जिन चीज़ों पर किसी इंसान का कोई बस ही न हो उन चीज़ों के लिए कैसे भला कोई वचन दे सकता है गुड़िया?" विराज ने फीकी सी मुस्कान के साथ कहा__"हाॅ इतना ज़रूर कह सकता हूॅ कि आइंदा ऐसा न हो ऐसी कोशिश करूॅगा।"

निधि एक झटके से विराज से लिपट गई, उसकी आॅखों में आॅसू थे, बोली__"क्यों उन सब चीज़ों के बारे में इतना सोचते हैं आप जिनके बारे में सोचने से हमें सिर्फ दुख और आॅसू मिलते हैं? मत सोचा कीजिए न वो सब...आप नहीं जानते कि आपको इस तरह दुख में आॅसू बहाते देख कर मुझ पर और माॅ पर क्या गुज़रती है? सबसे ज्यादा मुझे तक़लीफ होती है...आप उसे भूल जाइए न भाईया...क्यों उसे इतना याद करते हैं जिसे आपकी पाक मोहब्बत की कोई क़दर ही न थी कभी।"

विराज के दिलो दिमाग़ को ज़बरदस्त झटका लगा। ये क्या कह गई थी उसकी गुड़िया?? उसे ऐसा लगा जैसे उसके पास में ही कोई बम्ब बड़े ज़ोर से फटा हो और फिर सब कुछ खत्म व शान्त। कानों में सिर्फ साॅय साॅय की ध्वनि गूॅजती महसूस हो रही थी। विराग किसी बुत की तरह खड़ा रह गया था। उसकी पथराई सी आॅखें निधि के उस चेहरे पर जमी हुई थी जिस चेहरे को आॅसुओं ने धो डाला था। फिर सहसा जैसे उसे होश आया। उसने निधि के मासूम से चेहरे को अपनी दोनों हॅथेलियों के बीच लिया और झुक कर उसके माॅथे पर एक चुबन लिया। इसके बाद वह पलटा और शिप के अंदर की तरफ चला गया। जबकि निधि वहीं पर खड़ी रह गई।

जब काफी देर हो जाने पर भी विराज अंदर से न आया तो निधि के चेहरे पर चिंता व परेशानी के भाव गर्दिश करने लगे। उसे अपने भाई के लिए चिन्ता होने लगी और उसका दिलो दिमाग बेचैन हो उठा। वह तुरंत ही अंदर की तरफ बढ़ गई। समुंदर में उठती हुई लहरों के बीच तैरता हुआ शिप बढ़ता ही जा रहा था। निधि जब अंदर पहुॅची तो शिप में मौजूद गाइड करने वाला आदमी बाहर की ही तरफ आता दिखाई दिया। निधि ने उससे विराज के बारे में पूछा तो उसने हाथ के इशारे से एक तरफ संकेत किया और बाहर निकल गया। जबकि निधि उसकी बताई हुई दिशा की तरफ बढ़ गई। एक कमरे में दाखिल होते ही उसकी नज़र जैसे ही अपने भाई पर पड़ी तो उसे झटका सा लगा। उसके पाॅव वहीं पर ठिठक गए। उसकी आॅखों से बड़े तेज़ प्रवाह से आॅसू बहने लगे। उसका दिल बुरी तरह हाहाकार कर उठा था।



अपडेट हाज़िर है दोस्तो.....
आप सबकी प्रतिक्रिया का इन्तज़ार रहेगा,,,,,

दोस्तो ये अपडेट कल रात ही आधे से ज्यादा तैयार किया था, आज जैसे जैसे समय मिला इसे पूरा किया और आपके सामने हाज़िर कर दिया,,,,,
Nice
 
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Vicky2009

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♡ एक नया संसार ♡
अपडेट..........《 33 》


अब तक,,,,,,,

उसे समझते देर न लगी कि ये दिवाकर चौधरी का गुप्त कमरा है। वह धड़कते दिल के साथ कमरे में दाखिल हो गई। अंदर पहुॅच कर उसने देखा बहुत सारा कबाड़ भरा हुआ था यहाॅ। ये सब देख कर रितू हैरान रह गई। उसे समझ में न आया कि कोई कबाड़ को ऐसे गुप्त रूप से क्यों रखेगा?? रितू ने हर चीज़ को बारीकी से देखा। उसके पास समय नहीं था। क्योंकि उसकी खुद की हालत ख़राब थी। काफी देर तक खोजबीन करने के बाद भी उसे कोई खास चीज़ नज़र न आई। इस लिए वह बाहर आ गई मखर तभी जैसे उसे कुछ याद आया। वह फिर से अंदर गई। इस बार उसने तेज़ी से इधर उधर देखा। जल्द ही उसे एक तरफ की दीवार से सटा हुआ एक टेबल दिखा। टेबल के आस पास तथा ऊपर भी काफी सारा कबाड़ सा पड़ा हुआ था। किन्तु रितू की नज़र कबाड़ के बीच रखे एक छोटे से रिमोट पर पड़ी। उसने तुरंत ही उसे उठा लिया। वो रिमोट टीवी के रिमोट जैसा ही था।

रितू ने हरा बटन दबाया तो उसके दाएॅ तरफ हल्की सी आवाज़ हुई। रितू ने उस तरफ देखा तो उछल पड़ी। ये एक दीवार पर बनी गुप्त आलमारी थी जो आम सूरत में नज़र नहीं आ रही थी। रितू ने आगे बढ़ कर आलमारी की तलाशी लेनी शुरू कर दी। उसमें उसे काफी मसाला मिला। जिन्हें उसने कमरे में ही पड़े एक गंदे से बैग में भर लिया। उसके बाद उसने रिमोट से ही उस आलमारी को बंद कर दिया।

रितू उस बैग को लेकर वापस बाहर आ गई और ड्राइविंग सीट पर बैठ कर जिप्सी को फार्महाउस से मेन सड़क की तरफ दौड़ा दिया। इस वक्त उसके चेहरे पर पत्थर जैसी कठोरता तथा नफ़रत विद्यमान थी। दिलो दिमाग़ में भयंकर चक्रवात सा चल रहा था। उसकी जिप्सी ऑधी तूफान बनी दौड़ी चली जा रही थी।
_____________________________


अब आगे,,,,,,,,,,

वर्तमान अब आगे_______

रितू की पुलिस जिप्सी जिस जगह रुकी वह एक बहुत ही कम आबादी वाला एरिया था। सड़क के दोनो तरफ यदा कदा ही मकान दिख रहे थे। इस वक्त रितू जिस जगह पर आकर रुकी थी वह कोई फार्महाउस था। जिप्सी की आवाज़ से थोड़ी ही देर में फार्महाउस का बड़ी सी बाउंड्री पर लगा लोहे का भारी गेट खुला। गेट के खुलते ही रितू ने जिप्सी को आगे बढ़ा दिया, उसके पीछे गेट पुनः बंद हो गया। जिप्सी को बड़े से मकान के पास लाकर रितू ने रोंक दिया और फिर उससे नीचे उतर गई।

रितू की हालत बहुत ख़राब हो चुकी थी। बदन में जान नहीं रह गई थी। गेट को बंद करने के बाद दो लोग भागते हुए उसके पास आए।

"अरे क्या हुआ बिटिया तुम्हें?" एक लम्बी मूॅछों वाले ब्यक्ति ने घबराकर कहा___"ये क्या हालत बना ली है तुमने? किसने की तुम्हारी ये हालत? मैं उसे ज़िन्दा नहीं छोंड़ूॅगा बिटिया।"
"काका इन सबको अंदर तहखाने में बंद कर दो।" रितू ने उखड़ी हुई साॅसों से कहा__"और ध्यान रखना किसी को इन लोगों का पता न चल सके। ये तुम्हारी जिम्मेदारी है काका।"

"वो सब तो मैं कर लूॅगा बिटिया।" काका की ऑखों में ऑसू तैरते दिखे___"लेकिन तुम्हारी हालत ठीक नहीं है। तुम्हें जल्द से जल्द हास्पिटल लेकर जाना पड़ेगा। मैं बड़े ठाकुर साहब को फोन लगाता हूॅ बिटिया।"

"नहीं काका प्लीज़।" रितू ने कहा___"जितना कहा है पहले उतना करो। मैं ठीक हूॅ..बस काकी को फस्ट एड बाक्स के साथ मेरे कमरे में भेज दीजिए जल्दी। लेकिन उससे पहले इन्हें तहखाने में बंद कीजिए।"

"ये सब कौन हैं बेटी?" एक अन्य आदमी ने पूछा___"इन सबकी हालत भी बहुत खराब लग रही है।"
"ये सब के सब एक नंबर के मुजरिम हैं शंभू काका।" रितू ने कहा___"इन लोगों बड़े से बड़ा संगीन गुनाह किया है।"

"फिर तो इनको जान से मार देना चाहिए बिटिया।" काका ने जिप्सी में बेहोश पड़े सूरज और उसके दोस्तों को देख कर कहा।
"इन्हें मौत ही मिलेगी काका।" रितू ने भभकते हुए कहा___"लेकिन थोड़ा थोड़ा करके।"

उसके बाद रितू के कहने पर उन दोनो ने उन सभी लड़को को उठा उठा कर अंदर तहखाने में ले जाकर बंद कर दिया। जबकि रितू अंदर अपने कमरे की तरफ बढ़ गई। थोड़ी ही देर में काकी फर्स्ट एड बाक्स लेकर आ गई। रितू के कहने पर काकी ने कमरे का दरवाजा अंदर से बंद कर दिया।

रितू ने वर्दी की शर्ट किसी तरह अपने बदन से उतारा। काकी हैरत से देखे जा रही थी।उसके चेहरे पर चिन्ता और दुख साफ दिख रहे थे।

"ये सब कैसे हुआ बिटिया?" काकी ने आगे बढ़ कर शर्ट उतारने में रितू की मदद करते हुए कहा___"देखो तो कितना खून बह गया है, पूरी शरट भींग गई है।"

"अरे काकी ये सब तो चलता रहता है।" रितू ने बदन से शर्ट को अलग करते हुए कहा__"इस नौकरी में कई तरह के मुजरिमों से पाला पड़ता रहता है।"
"अरे तो ऐसी नौकरी करती ही क्यों हो बिटिया?" काकी ने कहा___"भला का कमी है तुम्हें? सब कुछ तो है।"

"बात कमी की नहीं है काकी।" रितू ने कहा___"बात है शौक की। ये नौकरी मैं अपने शौक के लिए कर रही हूॅ। ख़ैर ये सब छोड़िये और मैं जैसा कहूॅ वैसा करते जाइये।"

कहने के साथ ही रितू बेड पर उल्टा होकर लेट गई। इस वक्त वह ऊपर से सिर्फ एक पिंक कलर की ब्रा में थी। दूध जैसी गोरी पीठ पर हर तरफ खून ही खून दिख रहा था। ब्रा के हुक के ऊपरी हिस्से पर दाएॅ से बाएं चाकू का चीरा लगा था। जो कि दाहिने कंधे के थोड़ा नीचे से टेंढ़ा बाएॅ तरफ लगभग दस इंच का था। काकी ने जब उस चीरे को देखा तो उसके शरीर में सिहरन सी दौड़ गई।

"हाय दइया ये तो बहुत खराब कटा है।" काकी ने मुह फाड़ते हुए कहा___"ये सब कैसे हो गया बिटिया? पूरी पीठ पर चीरा लगा है।"
"ये सब छोड़ो आप।" रितू ने गर्दन घुमा कर पीछे काकी की तरफ देख कर कहा___"आप उस बाक्स से रुई लीजिए और उसमे डेटाॅल डाल कर मेरी ठीठ पर फैले इस खून को साफ कीजिए।"

"पर बिटिया तुम्हें दर्द होगा।" काकी ने चिन्तित भाव से कहा___"मैं ये कैसे कर पाऊॅगी?"
"मुझे कुछ नहीं होगा काकी।" रितू ने कहा__"बल्कि अगर आप ऐसा नहीं करेंगी तो ज़रूर मुझे कुछ हो जाएगा। क्या आप चाहती हैं कि आपकी बिटिया को कुछ हो जाए?"

"नहीं नहीं बिटिया।" काकी की ऑखों में ऑसू आ गए___"ये क्या कह रही हो तुम? तुम्हें कभी कुछ न हो बिटिया। मेरी सारी उमर भी तुम्हें लग जाए। रुको मैं करती हूॅ।"

रितू काकी की बातों से मुस्कुरा कर रह गई और अपनी गर्दन वापस सीधा कर तकिये में रख लिया। काकी ने बाक्स से रुई निकाला और उसमे डेटाॅल डाल कर रितू की पीठ पर डरते डरते हाॅथ बढ़ाया। वह बहुत ही धीरे धीरे रितू की पीठ पर फैले खून को साफ कर रही थी। कदाचित वह नहीं चाहती थी कि रितू को ज़रा भी दर्द हो।

"आप डर क्यों रही हैं काकी?" सहसा रितू ने कहा___"अच्छे से हाॅथ गड़ा कर साफ कीजिये न। मुझे बिलकुल भी दर्द नहीं होगा। आप फिक्र मत कीजिए।"

रितू के कहने पर काकी पहले की अपेक्षा अब थोड़ा ठीक से साफ कर रही थी। मगर बड़े एहतियात से ही। कुछ समय बाद ही काकी ने रितू की पीठ को साफ कर दिया। किन्तु चीरा वाला हिस्सा उसने साफ नहीं किया। रितू ने उससे कहा कि वो चीरे वाले हिस्से को भी अच्छी तरह साफ करें। क्योंकि जब तक वो अच्छी तरह साफ नहीं होगा तब तक उस पर दवा नहीं लगाई जा सकती। काकी ने बड़ी सावधानी से उसे भी साफ किया। फिर रितू के बताने पर उसने बाक्स से निकाल कर एक मल्हम चीरे पर लगाया और फिर उसकी पट्टी की। चीरे वाले स्थान से जितना खून बहना था वह बह चुका था किन्तु बहुत ही हल्का हल्का अभी भी रिस रहा था। हलाॅकि अब पट्टी हो चुकी थी इस लिए रितू को आराम मिल रहा था। उसने दर्द की एक टेबलेट खा ली थी।

"अब तुम आराम करो बिटिया।" काकी ने कहा___"तब तक मैं तुम्हारे लिए गरमा गरम खाना बना देती हूॅ।
"नहीं काकी।" रितू ने कहा___"आप खाना बनाने का कस्ट न करें। बस एक कप काफी पिला दीजिए।"

"ठीक है जैसी तुम्हारी मर्ज़ी।" काकी ने कहा और रितू के ऊपर एक चद्दर डाल कर कमरे से बाहर निकल गई। जबकि रितू ने अपनी आॅखें बंद कर ली। कुछ देर ऑखें बंद कर जाने वह क्या सोचती रही फिर उसने अपनी ऑखें खोली और बेड के बगल से ही एक छोटे से स्टूल पर रखे लैण्डलाइन फोन की तरफ अपना हाथ बढ़ाया।

रिसीवर कान से लगा कर उसने कोई नंबर डायल किया। कुछ ही पल में उधर बेल जाने की आवाज़ सुनाई देने लगी।

"हैलो कमिश्नर जगमोहन देसाई हेयर।" उधर से कहा गया।
"जय हिन्द सर मैं इंस्पेक्टर रितू बोल रही हूॅ।" रितू ने उधर की आवाज़ सुनने के बाद कहा।
"ओह यस ऑफिसर।" उधर से कमिश्नर ने कहा___"क्या रिपोर्ट है?"

"सर एक फेवर चाहिए आपसे।" रितू ने कहा।
"फेवर???" कमिश्नर चकराया__"कैसा फेवर हम कुछ समझे नहीं।"
"सर सारी डिटेल मैं आपको आपसे मिल कर ही बताऊॅगी।" रितू ने कहा___"फोन पर बताना उचित नहीं है।"

"ओकेनो प्राब्लेम।" कमिश्नर ने कहा__"अब बताओ कैसे फेवर की बात कर रही थी तुम?"
"सर मैं चाहती हूॅ कि इस केस की सारी जानकारी सिर्फ आप तक ही रहे।" रितू कह रही थी___"आप जानते हैं कि मैंने विधी के रेप केस की अभी तक कोई फाइल नहीं बनाई है। बस आपको इस बारे में इन्फार्म किया था।"

"हाॅ ये हम जानते हैं।" कमिश्नर ने कहा__"पर तुम करना क्या चाहती हो ये हम जानना चाहते हैं?"
"कल आपसे मिल कर सारी बातें बताऊॅगी सर।" रितू ने कहा___"इस वक्त मैं आपसे बस ये फेवर चाहती हूॅ कि दिवाकर चौधरी के बेटे और उसके दोस्तों के बारे में अगर आपके पास कोई बात आए तो आप यही कहिएगा कि पुलिस का इस बात से कोई संबंध नहीं है।"

"क्या मतलब??" कमिश्नर बुरी तरह चौंका था__"आख़िर तुम क्या कर रही हो ऑफिसर? उस समय भी तुमने हमसे इमेडिएटली सर्च वारंट के लिए कहा था और हमने उसका तुरंत इंतजाम भी किया। लेकिन अब तुम ये सब बोल रही हो आख़िर हुआ क्या है?"

"सर मैं आपको सारी बातें मिल कर ही बताऊॅगी।" रितूने कहा___"प्लीज़ सर ट्राई टू अंडरस्टैण्ड।"
"ओके फाइन।" कमिश्नर ने कहा__"हम कल तुम्हारा वेट करेंगे आफिसर।"
"जय हिन्द सर।" रितू ने कहा और रिसीवर वापस केड्रिल पर रख दिया।

रितू ने फिर से आॅखें बंद कर ली। तभी कमरे में काकी दाखिल हुई। उसके हाथ में एक ट्रे था जिसमें एक बड़ा सा कप रखा था। आहट सुन कर रितू ने ऑखें खोल कर देखा। काकी को देखते ही वह बड़ी सावधानी से उठ कर बेड पर बैठ गई। उसके बैठते ही काकी ने रितू को काफी का कप पकड़ाया।

काफी पीने के बाद रितू को थोड़ा बेहतर फील हुआ और वह बेड से उतर आई। आलमारी से उसने एक ब्लू कलर का जीन्स का पैन्ट और एक रेड कलर की टी-शर्ट निकाल कर उसे पहना तथा ऊपर से एक लेदर की जाॅकेट पहन कर उसने आईने में खुद को देखा। फिर पुलिस की वर्दी वाले पैन्ट से होलेस्टर सहित सर्विस रिवाल्वर निकाल कर उसे जीन्स के बेल्ट पर फॅसाया तथा आलमारी से एक रेड एण्ड ब्लैक मिक्स गाॅगल्स निकाल कर उसे ऑखों पर लगाया और फिर बाहर निकल गई।

बाहर उसे काकी दिखी। उसने काकी से कहा कि वह जा रही है। काकी उसे यूॅ देख कर हैरान रह गई। उसे समझ में न आया कि ये लड़की तो अभी थोड़ी देर पहले गंभीर हालत में थी और अब एकदम से टीम टाम होकर चल भी दी।

मकान के बाहर आकर रितू पुलिस जिप्सी की तरफ बढ़ी। वह ये देख कर खुश हो गई कि काका ने जिप्सी को अच्छे से धोकर साफ सुथरा कर दिया था। रितू को काका की समझदारी पर कायल होना पड़ा। जिप्सी को स्टार्ट कर रितू मेन गेट की तरफ बढ़ चली।

"काका उन लोगों का ध्यान रखना।" रितू ने गेट के पास खड़े काका और शंभू काका दोनो की तरफ देख कर कहा___"आज रात का खाना उन्हें नहीं देना। कल मैं दोपहर को आऊॅगी।"

"ठीक है बिटिया।" काका ने कहा__"तुम बिलकुल भी चिन्ता न करो। वो अब यहाॅ से कहीं नहीं जा पाएॅगे।"
"चलो फिर कल मिलती हूॅ आपसे।" रितू ने कहने के साथ ही जिप्सी को गेट के बाहर की तरफ निकाल दिया और मेन रोड पर आते ही जिप्सी हवा से बातें करने लगी।
_____________________

फ्लैशबैक अब आगे_______

कमरे से प्रतिमा के जाने के बाद विजय सिंह वापस अपने बिस्तर पर लेट गया। उसके ज़हन में यही ख़याल बार बार उभर रहा था कि वह अपनी भाभी का क्या करे? वह स्पष्टरूप से उससे कह चुकी थी कि वो उससे प्रेम करती है और वह अपने दिल में उसके लिए भी थोड़ी सी जगह दे। भला ऐसा कैसे हो सकता था? विजय सिंह इस बारे में सोचना भी ग़लत व पाप समझता था। उधर प्रतिमा उसकी कोई बात सुनने या मानने को तैयार ही नहीं थी। वह प्रतिमा से बहुत ज्यादा परेशान हो गया था। उसे डर था कि कहीं किसी दिन ये सब बातें उसके माॅ बाबूजी को न पता चल जाएॅ वरना अनर्थ हो जाएगा। आज वो जो मुझे सबसे अच्छा और अपना सबसे लायक बेटा समझते हैं , तो इस सबका पता चलते ही मेरे बारे में उनकी सोच बदल जाएगी। वो यही समझेंगे कि वासना और हवस के लिए मैने ही अपनी माॅ समान भाभी को बरगलाया है या फिर ज़बरदस्ती की है उनसे। कोई मेरी बात का यकीन नहीं करेगा। बड़े भइया को तो और भी मौका मिल जाएगा मेरे खिलाफ ज़हर उगलने का।

विजय सिंह ये सब सोच सोच कर बुरी तरह परेशान व दुखी भी हो रहा था। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करे? वह अब किसी भी सूरत में प्रतिमा के सामने नहीं आना चाहता था। उसने तय कर लिया था कि अब वह देर रात में ही खेतों से हवेली आया करेगा और अपने कमरे में ही खाना मॅगवा कर खाया करेगा।

अगले दिन से विजय की दिनचर्या यही हो गई। वह सुबह जल्दी हवेली से निकल जाता, दोपहर में गौरी उसके लिए खाना ले जाती। गौरी उसके साथ खेतों पर दिन ढले तक रहती फिर वह हवेली आ जाती जबकि विजय सिंह देर रात को ही हवेली लौटत। गौरी कई दिन से गौर कर रही थी कि विजय सिंह कुछ दिनों से कुछ परेशान सा रहने लगा है। उसने उसकी परेशानी का पूछा भी किन्तु विजय सिंह हर बार इस बात को टाल जाता। भला वह क्या बताता उसे कि वह किस वजह से परेशान रहता है आजकल?

विजय सिंह की इस दिनचर्या से प्रतिमा को अब उसके पास जाने की तो बात ही दूर बल्कि उसे देख पाने तक को नहीं मिलता था। इस सबसे प्रतिमा बेहद परेशान व नाखुश हो गई थी। अजय सिंह भी परेशान था इस सबसे। उसकी भी कोई दाल नहीं गल रही थी। गौरी के चलते प्रतिमा को खेतों पर जाने का मौका ही नहीं मिलता था। ऐसा नहीं था कि वह जा नहीं सकती थी लेकिन वह चाहती थी कि वह जब भी खेतों पर जाए तो खेतों पर गौरी न हो बल्कि वह और विजय सिंह बस ही हों वहाॅ। ताकि वह बड़े आराम से विजय पर प्रेम बाॅण चलाए।

एक दिन प्रतिमा को मौका मिल ही गया। दरअसल सुबह सुबह जब गौरी अपने कमरे के बाथरूम में नहा रही तो फर्स पर उसका पैर फिसल गया और वह बड़ा ज़ोर से गिरी थी। जिससे उसकी कमर में असह पीड़ा होने लगी थी। इस सबका परिणाम ये हुआ कि गौरी खेतों पर विजय के लिए खाना लेकर न जा सकी बल्कि प्रतिमा को जाने का सुनहरा मौका मिल गया। प्रतिमा पहले की भाॅति ही पतली साड़ी और बिना ब्रा का ब्लाउज पहना और विजय के लिए टिफिन लेकर खेतों पर चली गई।

प्रतिमा को पता था कि ये मौका उसे बड़े संजोग से मिला है इस लिए वह इस मौके को खोना नहीं चाहती थी। उसने सोच लिया था कि आज वह विजय से अपने प्रेम के लिए कुछ न कुछ तो करेगी ही। उसके पास समय भी नहीं बचा था। बच्चों के स्कूल की छुट्टियाॅ दो दिन बाद खत्म हो रही थी।

नियति को जो मंजूर होता है वही होता है। ये संजोग था कि गौरी का पैर फिसला और उसने बिस्तर पकड़ लिया जिसके कारण प्रतिमा को खेतों में जाने का अवसर मिल गया और एक ये भी संजोग ही था कि आज खेतों पर फिर कोई मजदूर नहीं था। सारी रात जुती हुई ज़मीन पर पानी लगाया और लगवाया था उसने। सुबह नौ बजे सारे मजदूर गए थे। आज के लिए सारा काम हो गया था।

प्रतिमा जब खेतों पर पहुॅची तो हर तरफ सन्नाटा फैला हुआ पाया। आस पास कोई न दिखा उसे। वह मकान के अंदर नहीं गई बल्कि आस पास घूम घूम कर देखा उसने हर तरफ। न कोई मजदूर और ना ही विजय सिंह उसे कहीं नज़र न आए। प्रतिमा को खुशी हुई कि खेतों पर कोई मजदूर नहीं है और अब वह बेफिक्र होकर कुछ भी कर सकती है।


मकान के अंदर जाकर जब वह कमरे में पहुॅची तो विजय को बिस्तर पर सोया हुआ पाया। उसके मुख से हल्के खर्राटों की आवाज़ भी आ रही थी। इस वक्त उसके शरीर पर नीचे एक सफेद धोती थी और ऊपर एक बनियान। वह पक्का किसान था। पढ़ाई छोंड़ने के बाद उसने खेतों पर ही अपना सारा समय गुज़ारा था। ये उसकी कर्मभूमि थी। यहाॅ पर उसने खून पसीना बहाया था। जिसका परिणाम ये था कि उसका शरीर पत्थर की तरह शख्त था। छः फिट लम्बा था वह तथा हट्टा कट्टा शरीर था। किन्तु चेहरे पर हमेशा सादगी विद्यमान रहती थी उसके। उसका ब्यक्तित्व ऐसा था कि गाॅव का हर कोई उसे प्रेम व सम्मान देता था।

प्रतिमा सम्मोहित सी देखे जा रही थी उसे। फिर सहसा जैसे उसे होश आया और एकाएक ही उसके दिमाग़ की बत्ती जल उठी। जाने क्या चलने लगा था उसके मन में जिसे सोच कर वह मस्कुराई। उसने टिफिन को बड़ी सावधानी से वहीं पर रखे एक बेन्च पर रख दिया और सावधानी से विजय की चारपाई के पास पहुॅची।


विजय चारपाई पर चूॅकि गहरी नींद में सोया हुआ था इस लिए उसे ये पता नहीं चला कि उसके कमरे में कौन आया है? प्रतिमा उसके हट्टे कट्टे शरीर को इतने करीब से देख कर आहें भरने लगी। उसने नज़र भर कर विजय को ऊपर से नीचे तक देखा। उसके अंदर काम वासना की अगन सुलग उठी। कुछ देर यूॅ ही ऑखों में वासना के लाल लाल डोरे लिए वह उसे देखती रही फिर सहसा वह वहीं फर्स पर घुटनों के बल बैठती चली गई। उसके हृदय की गति अनायास ही बढ़ गई थी। उसने विजय के चेहरे पर गौर से देखा। विजय किसी कुम्भकर्ण की तरह सो रहा था। प्रतिमा को जब यकीन हो गया कि विजय किसी हल्की आहट पर इतना जल्दी जगने वाला नहीं है तो उसने उसके चेहरे से नज़र हटा कर विजय की धोती यानी लुंगी के उस हिस्से पर नज़र डाली जहाॅ पर विजय का लिंग उसकी लुंगी के अंदर छिपा था। लिंग का उभार लुंगी पर भी स्पष्ट नज़र आ रहा था।

प्रतिमा ने धड़कते दिल के साथ अपने हाॅथों को बढ़ा कर विजय की लुंगी को उसके छोरों से पकड़ कर आहिस्ता से इधर और उधर किया। जिससे विजय के नीचे वाला हिस्सा नग्न हो गया। लुंगी के अंदर उसने कुछ नहीं पहन रखा था। प्रतिमा ने देखा गहरी नींद में उसका घोंड़े जैसा लंड भी गहरी नींद में सोया पड़ा था। लेकिन उस हालत में भी वह लम्बा चौड़ा नज़र आ रहा था। उसका लंड काला या साॅवला बिलकुल नहीं था बल्कि गोरा था बिलकुल अंग्रेजों के लंड जैसा गोरा। उसे देख कर प्रतिमा के मुॅह में पानी आ गया था। उसने बड़ी सावधानी से उसे अपने दाहिने हाॅथ से पकड़ा। उसको इधर उधर से अच्छी तरह देखा। वो बिलकुल किसी मासूम से छोटे बच्चे जैसा सुंदर और प्यारा लगा उसे। उसने उसे मुट्ठी में पकड़ कर ऊपर नीचे किया तो उसका बड़ा सा सुपाड़ा जो हल्का सिंदूरी रंग का था चमकने लगा और साथ ही उसमें कुछ हलचल सी महसूस हुई उसे। उसने ये महसूस करते ही नज़र ऊपर की तरफ करके गहरी नींद में सोये पड़े विजय की तरफ देखा। वो पहले की तरह ही गहरी नींद में सोया हुआ लगा। प्रतिमा ने चैन की साॅस ली और फिर से अपनी नज़रें उसके लंड पर केंद्रित कर दी। उसके हाॅथ के स्पर्श से तथा लंड को मुट्ठी में लिए ऊपर नीचे करने से लंड का आकार धीरे धीरे बढ़ने लगा था। ये देख कर प्रतिमा को अजीब सा नशा भी चढ़ता जा रहा था उसकी साॅसें तेज़ होने लगी थी। उसने देखा कि कुछ ही पलों में विजय का लंड किसी घोड़े के लंड जैसा बड़ा होकर हिनहिनाने लगा था। प्रतिमा को लगा कहीं ऐसा तो नहीं कि विजय जाग रहा हो और ये देखने की कोशिश कर रहा हो कि उसके साथ आगे क्या क्या होता है? मगर उसे ये भी पता था कि अगर विजय जाग रहा होता तो इतना कुछ होने ही न पाता क्योंकि वह उच्च विचारों तथा मान मर्यादा का पालन करने वाला इंसान था। वो कभी किसी को ग़लत नज़र से नहीं देखता था, ऐसा सोचना भी वो पाप समझता था। उसके बारे में वो जान चुका था कि वह क्या चाहती है उससे इस लिए वो हवेली में अब कम ही रहता था। दिन भर खेत में ही मजदूरों के साथ वक्त गुज़ार देता था और देर रात हवेली में आता तथा खाना पीना खा कर अपने कमरे में गौरी के साथ सो जाता था। वह उससे दूर ही रहता था। इस लिए ये सोचना ही ग़लत था कि इस वक्त वह जाग रहा होगा। प्रतिमा ने देखा कि उसका लंड उसकी मुट्ठी में नहीं आ रहा था तथा गरम लोहे जैसा प्रतीत हो रहा था। अब तक प्रतिमा की हालत उसे देख कर खराब हो चुकी थी। उसे लग रहा था कि जल्दी से उछल कर इसको अपनी चूत के अंदर पूरा का पूरा घुसेड़ ले। किन्तु जल्दबाजी में सारा खेल बिगड़ जाता इस लिए अपने पर नियंत्रण रखा उसने और उसके सुंदर मगर बिकराल लंड को मुट्ठी में लिए आहिस्ता आहिस्ता सहलाती रही।

प्रतिमा को जाने क्या सूझी कि वह धीरे से उठी और अपने जिस्म से साड़ी निकाल कर एक तरफ फेंक दी। इतना हीं नहीं उसने अपने ब्लाउज के हुक खोल कर उसे भी अपने जिस्म से निकाल दिया। ब्लाउज के हटते ही उसकी खरबूजे जैसी भारी चूचियाॅ उछल पड़ीं। इसके बाद उसने पेटीकोट को भी उतार दिया। अब प्रतिमा बिलकुल मादरजाद नंगी थी। उसका चेहरा हवस तथा वासना से लाल पड़ गया था।

अपने सारे कपड़े उतारने के बाद प्रतिमा फिर से चारपाई के पास घुटनों के बल बैठ गई। उसकी नज़र लुंगी से बाहर उसके ही द्वारा निकाले गए विजय सिंह के हलब्बी लंड पर पड़ी। अपना दाहिना हाॅथ बढ़ा कर उसने उसे आहिस्ता से पकड़ा और फिर आहिस्ता आहिस्ता ही सहलाने लगी। प्रतिमा उसको अपने मुह में भर कर चूसने के लिए पागल हुई जा रही थी, जिसका सबूत ये था कि प्रतिमा अपने एक हाथ से कभी अपनी बड़ी बड़ी चूचियों को मसलने लगती तो कभी अपनी चूॅत को। उसके अंदर वासना अपने चरम पर पहुॅच चुकी थी। उससे बरदास्त न हुआ और उसने एक झटके से नीचे झुक कर विजय के लंड को अपने मुह में भर लिया....और जैसे यहीं पर उससे बड़ी भारी ग़लती हो गई। उसने ये सब अपने आपे से बाहर होकर किया था। विजय का लंड जितना बड़ा था उतना ही मोटा भी था। प्रतिमा ने जैसे ही उसे झटके से अपने मुह में लिया तो उसके ऊपर के दाॅत तेज़ी से लंड में गड़ते चले गए और विजय के मुख से चीख निकल गई साथ ही वह हड़बड़ा कर तेज़ी से चारपाई पर उठ कर बैठ गया। अपने लंड को इस तरह प्रतिमा के मुख में देख वह भौचक्का सा रह गया किन्तु फिर तुरंत ही वह उसके मुह से अपना लंड निकाल कर तथा चारपाई से उतर कर दूर खड़ा हो गया। उसका चेहरा एक दम गुस्से और घ्रणा से भर गया। ये सब इतना जल्दी हुआ कि कुछ देर तक तो प्रतिमा को कुछ समझ ही न आया कि ये सब क्या और कैसे हो गया? होश तो तब आया जब विजय की गुस्से से भरी आवाज़ उसके कानों से टकराई।

"ये क्या बेहूदगी है?" विजय लुंगी को सही करके तथा गुस्से से दहाड़ते हुए कह रहा था__"अपनी हवस में तुम इतनी अंधी हो चुकी हो कि तुम्हें ये भी ख़याल नहीं रहा कि तुम किसके साथ ये नीच काम कर रही हो? अपने ही देवर से मुह काला कर रही हो तुम। अरे देवर तो बेटे के समान होता है ये ख़याल नहीं आया तुम्हें?"

प्रतिमा चूॅकि रॅगे हाॅथों ऐसा करते हुए पकड़ी गई थी उस दिन, इस लिए उसकी ज़ुबान में जैसे ताला सा लग गया था। उस दिन विजय का गुस्से से भरा वह खतरनाक रूप उसने पहली बार देखा था। वह गुस्से में जाने क्या क्या कहे जा रहा था मगर प्रतिमा सिर झुकाए वहीं चारपाई के नीचे बैठी रही उसी तरह मादरजात नंगी हालत में। उसे ख़याल ही नहीं रह गया था कि वह नंगी ही बैठी है। जबकि,,,

"आज तुमने ये सब करके बहुत बड़ा पाप किया है।" विजय कहे जा रहा था__"और मुझे भी पाप का भागीदार बना दिया। क्या समझता था मैं तुम्हें और तुम क्या निकली? एक ऐसी नीच और कुलटा औरत जो अपनी हवस में अंधी होकर अपने ही देवर से मुह काला करने लगी। तुम्हारी नीयत का तो पहले से ही आभास हो गया था मुझे इसी लिए तुमसे दूर रहा। मगर ये नहीं सोचा था कि तुम अपनी नीचता और हवस में इस हद तक भी गिर जाओगी। तुममें और बाज़ार की रंडियों में कोई फर्क नहीं रह गया अब। चली जाओ यहाॅ से...और दुबारा मुझे अपनी ये गंदी शकल मत दिखाना वर्ना मैं भूल जाऊॅगा कि तुम मेरे बड़े भाई की बीवी हो। आज से मेरा और तुम्हारा कोई रिश्ता नहीं...अब जा यहाॅ से कुलटा औरत...देखो तो कैसे बेशर्मों की तरह नंगी बैठी है?"

विजय की बातों से ही प्रतिमा को ख़याल आया कि वह तो अभी नंगी ही बैठी हुई है तब से। उसने सीघ्रता से अपनी नग्नता को ढॅकने के लिए अपने कपड़ों की तरफ नज़रें घुमाई। पास में ही उसके कपड़े पड़े थे। उसने जल्दी से अपनी साड़ी ब्लाउज पेटीकोट को समेटा किन्तु फिर उसके मन में जाने क्या आया कि वह वहीं पर रुक गई।

विजय की बातों ने प्रतिमा के अंदर मानो ज़हर सा घोल दिया था। जो हमेशा उसे इज्ज़त और सम्मान देता था आज वही उसे आप की जगह तुम और तुम के बाद तू कहते हुए उसकी इज्ज़त की धज्जियाॅ उड़ाए जा रहा था। उसे बाजार की रंडी तक कह रहा था। प्रतिमा के दिल में आग सी धधकने लगी थी। उसे ये डर नहीं था कि विजय ये सब किसी से बता देगा तो उसका क्या होगा। बल्कि अब तो सब कुछ खुल ही गया था इस लिए उसने भी अब पीछे हटने का ख़याल छोंड़ दिया था।

उसने उसी हालत में खिसक कर विजय के पैर पकड़ लिए और फिर बोली__"तुम्हारे लिए मैं कुछ भी बनने को तैयार हूॅ विजय। मुझे इस तरह अब मत दुत्कारो। मैं तुम्हारी शरण में हूॅ, मुझे अपना लो विजय। मुझे अपनी दासी बना लो, मैं वही करूॅगी जो तुम कहोगे। मगर इस तरह मुझे मत दुत्कारो...देख लो मैंने ये सब तुम्हारा प्रेम पाने के लिए किया है। माना कि मैंने ग़लत तरीके से तुम्हारे प्रेम को पाने की कोशिश की लेकिन मैं क्या करती विजय? मुझे और कुछ सूझ ही नहीं रहा था। पहले भी मैंने तुम्हें ये सब जताने की कोशिश की थी लेकिन तुमने समझा ही नहीं इस लिए मैंने वही किया जो मुझे समझ में आया। अब तो सब कुछ जाहिर ही हो गया है,अब तो मुझे अपना लो विजय...मुझे तुम्हारा प्यार चाहिए।"

"बंद करो अपनी ये बकवास।" विजय ने अपने पैरों को उसके चंगुल से एक झटके में छुड़ा कर तथा दहाड़ते हुए कहा__"तुझ जैसी गिरी हुई औरत के मैं मुह नहीं लगना चाहता। मुझे हैरत है कि बड़े भइया ने तुझ जैसी नीच और हवस की अंधी औरत से शादी कैसे की? ज़रूर तूने ही मेरे भाई को अपने जाल में फसाया होगा।"

"जो मर्ज़ी कह लो विजय।" प्रतिमा ने सहसा आखों में आॅसू लाते हुए कहा__"मगर मुझे अपने से दूर न करो। दिन रात तुम्हारी सेवा करूॅगी। मैं तुम्हें उस गौरी से भी ज्यादा प्यार करूॅगी विजय।"

"ख़ामोशशशश।" विजय इस तरह दहाड़ा था कि कमरे की दीवारें तक हिल गईं__"अपनी गंदी ज़ुबान से मेरी गौरी का नाम भी मत लेना वर्ना हलक से ज़ुबान खींचकर हाॅथ में दे दूॅगा। तू है क्या बदजात औरत...तेरी औकात आज पता चल गई है मुझे। तेरे जैसी रंडियाॅ कौड़ी के भाव में ऐरों गैरों को अपना जिस्म बेंचती हैं गली चौराहे में। और तू गौरी की बात करती है...अरे वो देवी है देवी...जिसकी मैं इबादत करता हूॅ। तू उसके पैरों की धूल भी नहीं है समझी?? अब जा यहाॅ से वर्ना धक्के मार कर इसी हालत में तुझे यहाॅ से बाहर फेंक दूॅगा।"

प्रतिमा समझ चुकी थी कि उसकी किसी भी बात का विजय पर अब कोई प्रभाव पड़ने वाला नहीं था। उल्टा उसकी बातों ने उसे और उसके अंतर्मन को बुरी तरह शोलों के हवाले कर दिया था। उसने जिस तरीके से उसे दुत्कार कर उसका अपमान किया था उससे प्रतिमा के अंदर भीषण आग लग चुकी थी और उसने मन ही मन एक फैंसला कर लिया था उसके और उसके परिवार के लिए।

"ठीक है विजय सिंह।" फिर उसने अपने कपड़े समेटते हुए ठण्डे स्वर में कहा था__"मैं तो जा रही हूं यहाॅ से मगर जिस तरह से तुमने मुझे दुत्कार कर मेरा अपमान किया है उसका परिणाम तुम्हारे लिए कतई अच्छा नहीं होगा। ईश्वर देखेगा कि एक औरत जब इस तरह अपमानित होकर रुष्ट होती है तो भविष्य में उसका क्या परिणाम निकलता है??"

प्रतिमा की बात का विजय सिंह ने कोई जवाब नहीं दिया बल्कि गुस्से से उबलती हुई ऑखों से उसे देख गर वहीं मानो हिकारत से थूॅका और फिर बाहर निकल गया। जबकि बुरी तरह ज़लील व अपमानित प्रतिमा ने अपने कपड़े पहने और हवेली जाने के लिए कमरे से बाहर निकल गई। उसके अंदर प्रतिशोध की ज्वाला धधक हुई उठी थी।

हवेली पहुॅच कर प्रतिमा ने अपने पति अजय सिंह से आज विजय सिंह से हुए कारनामे का सारा व्रत्तान्त मिर्च मशाला लगा कर सुनाया। उसकी सारी बातें सुन कर अजय सिंह सन्न रह गया था। उसे यकीन नहीं हो रहा था कि आज इतना बड़ा काण्ड हो गया है।

"मुझे उस हरामज़ादे से अपने अपमान का प्रतिशोध लेना है अजय।" प्रतिमा ने किसी ज़हरीली नागिन की भाॅति फुंकारते हुए कहा___"जब तक मैं उससे अपमान का बदला नहीं लूॅगी तब तक मेरी आत्मा को शान्ति नहीं मिलेगी।"

"ज़रूर डियर।" अजय सिंह ने सहसा कठोरता से कहा___"तुम्हारे इस अपमान का बदला ज़रूर उससे लिया जाएगा। आज के इस हादसे से ये तो साबित हो ही गया कि वो मजदूर हमारे झाॅसे में आने वाला नहीं है। सोचा था कि सब मिल बाॅट कर खाएॅगे और मज़ा करेंगे लेकिन नहीं उस मजदूर को तो कलियुग का हरिश्चन्द्र बनना है। इस लिए ऐसे इंसान का जीवित रहना हमारे लिए अच्छी बात नहीं है। उसके रहते हम अपनी हसरतों को पूरा नहीं कर पाएॅगे प्रतिमा। वो मजदूर हमारे रास्ते का सबसे बड़ा काॅटा है। इस काॅटे को अब जड़ से उखाड़ कर फेंकना ही पड़ेगा।"

"जो भी करना हो जल्दी करो अजय।" प्रतिमा ने कहा___"मैं उस कमीने की अब शकल भी नहीं देखना चाहती कभी। साला कुत्ता मुझे दुत्कारता है। कहता था कि मैं उसकी गौरी की पैरों की धूल भी नहीं हूॅ। मुझे रंडी बोलता है। मैं दिखाऊॅगी उसे कि मेरे सामने उसकी वो राॅड गौरी कुछ भी नहीं है। उसे सबके नीचे न लेटाया तो मेरा भी नाम प्रतिमा सिंह बघेल नहीं। उसे कोठे की नहीं बल्कि बीच चौराहे की रंडी बनाऊॅगी मैं।"

"शान्त हो जाओ प्रतिमा।" अजय सिंह ने उसे खुद से लगा लिया___"सब कुछ वैसा ही होगा जैसा तुम चाहती हो। लेकिन ज़रा तसल्ली से और सोच समझ कर बनाए गए प्लान के अनुसार। ताकि किसी को किसी बात का कोई शक न हो पाए।"

"ठीक है अजय।" प्रतिमा ने कहा___"लेकिन मैं ज्यादा दिनों तक उसे जीवित नहीं देखना चाहती। तुम जल्दी ही कुछ करो।"
"फिक्र मत करो मेरी जान।" अजय ने कुछ सोचते हुए कहा___"आज से और अभी से प्लान बी शुरू। अब चलो गुस्सा थूॅको और मेरे साथ प्यार की वादियों में खो जाओ।"

ये दोनो तो अपने प्यार और वासना में खो गए थे लेकिन उधर खेतों में विजय सिंह बोर बेल के पास बने एक बड़े से गड्ढे में था। उस गड्ढे में हमेशा बोर का पानी भरा रहता था। विजय सिंह उसी पानी से भरे गड्ढे में था। उसके ऊपर बोर का पानी गिर रहा था। वह एकदम किसी पुतले की भाॅति खड़ा था। उसका ज़हन उसके पास नहीं था। बोर का पानी निरंतर उसके सिर पर गिर रहा था।

विजय सिंह के की ऑखों के सामने बार बार वही मंज़र घूम रहा था। उसे ऐसा महसूस हो रहा था जैसे अभी भी उसका लंड प्रतिमा के मुह मे हो। इस मंज़र को देखते ही उसके जिस्म को झटका सा लगता और वह ख़यालों की दुनियाॅ से बाहर आ जाता। उसका मन आज बहुत ज्यादा दुखी हो गया था। उसे यकीन नहीं आ रहा था कि उसकी सगी भाभी उसके साथ ऐसा घटिया काम कर सकती है। विजय सिंह के मन में सवाल उभरता कि क्या यहीं प्रेम था उसका?

विजय सिंह ये तो समझ गया था कि उसकी भाभी ज़रा खुले विचारों वाली औरत थी। शहर वाली थी इस लिए शहरों जैसा ही रहन सहन था उसका। कुछ दिन से उसकी हरकतें ऐसी थी जिससे साफ पता चलता था कि वह विजय से वास्तव में कैसा प्रेम करती है। किन्तु विजय सिंह को उससे इस हद तक गिर जाने की उम्मीद नहीं थी। विजय सिंह को सोच सोच कर ही उस पर घिन आ रही थी कि कितना घटिया काम कर रही थी वह।

उस दिन विजय सिंह सारा दिन उदास व दुखी रहा। उसका दिल कर रहा था कि वह कहीं बहुत दूर चला जाए। किसी को अपना मुह न दिखाए किन्तु हर बार गौरी और बच्चों का ख़याल आ जाता और फिर जैसे उसके पैरों पर ज़ंजीरें पड़ जातीं।किसी ने सच ही कहा है कि बीवी बच्चे किसी भी इंसान की सबसे बड़ी कमज़ोरी होते हैं। जब आप उनके बारे में दिल से सोचते हैं तो बस यही लगता है कि चाहे कुछ भी हो जाए पर इन पर किसी तरह की कोई पराशानी न हो।

विजय सिंह हमेशा की तरह ही देर से हवेली पहुॅचा। अन्य दिनों की अपेक्षा आज उसका मन किसी भी चीज़ में नहीं लग रहा था। उसने खुद को सामान्य रखने बड़ी कीशिश कर रहा था वो। अपने कमरे में जाकरवह फ्रेश हुआ और बेड पर आकर बैठ गया।



अपडेट हाज़िर है दोस्तो,,,,,,,,
 
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Vicky2009

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एक नया संसार

अपडेट.......《 39 》


अब तक,,,,,,,,


"मैं चलूॅगा भाई।" आशू राना कह उठा__"अब से आपको कोई शिकायत का मौका नहीं दूॅगा। इस भाई की बात मेरी समझ में आ गई है। मुझे एहसास हो रहा है भाई कि इसने जो कुछ भी मेरे बारे में कहा वो एक कड़वा सच है। सच ही तो कहा है भाई ने कि सब लोग मेरे बुरे आचरण की वजह से मुझसे दूर भागते हैं। मगर अब ऐसा नहीं होगा भाई। मैं इसके साथ रह कर एक अच्छा इंसान बनूॅगा और ज़रूर बनूॅगा।"

"ये हुई न बात।" मैने कहा___"चल आजा इसी बात पर गले लग जा मेरे। कितनी बड़ी बात है कि आज काॅलेज के पहले ही दिन में पहले दुश्मनी हुई और फिर दोस्ती भी हो गई।"

आशू मेरे गले लग गया। मैने देखा बेड पर पड़े भूषण राना की ऑखों में खुशी के ऑसूॅ थे। कुछ देर और वहाॅ पर रुकने के बाद मैने भूषण राना से जाने की इजाज़त माॅगी तो उसने पहले मुझसे मेरा फोन नंबर लिया और मैने भी उसका लिया। फिर भूषण के कहने पर आशू मुझे भूषण की कार से काॅलेज तक छोंड़ा। पूरे रास्ते आशू राना का चेहरा खिला खिला नज़र आया मुझे। मैं समझ गया कि ये अब ज़रूर सुधर जाएगा।

काॅलेज के गेट के पास उतार कर आशू वापस लौट गया जबकि मैं पार्किंग की तरफ बढ़ गया अपनी बाइक को लेने के लिए। पार्किंग से अपनी बाइक पर सवार होकर अभी मैने बाइक को स्टार्ट करने के लिए सेल्फ पर अॅगूठा रखा ही था कि मेरा मोबाइल फोन बज उठा। मैने पैंट की जेब से मोबाइल निकाल कर स्क्रीन पर फ्लैश कर रहे नंबर को देखा तो मेरे चेहरे पर सोचने वाले भाव उजागर हो गए।
____________________________


अब आगे,,,,,,,,

"हम कुछ भी नहीं सुनना जानते कमिश्नर हमारे बच्चे जहाॅ भी हों उन्हें ढूॅढ़ कर हमारे सामने तुरंत हाज़िर करो।" दिवाकर चौधरी फोन पर गुस्से में कह रहा था___"वरना तुम सोच भी नहीं सकते कि हम क्या कर सकते हैं? हमें पता चला है कि बच्चों ने किसी लड़की के साथ रेप किया है। मगर ये सब तो चलता ही रहता है इस उमर में। अगर हमें पता चला कि इस रेप की वजह से ही हमारे बच्चे गायब हैं तो समझ लेना कमिश्नर इस शहर में कोई इंसान ज़िदा नहीं बचेगा।"

".................."उधर से कुछ कहा गया।
"तो अगर पुलिस ने उस लड़की के रेप पर कोई केस नहीं बनाया तो कहाॅ गए हमारे बच्चे?" दिवाकर चौधरी गर्जा___"आज दो दिन हो गए कमिश्नर। अभी तक बच्चों का कहीं कोई अता पता नहीं है।"

"............." उधर से फिर कुछ कहा गया।
"तुम्हारे पास चौबीस घंटे का टाइम है कमिश्नर।" दिवाकर चौधरी ने कहा___"अगर चौबीस घंटे के अंदर हमारे बच्चे हमारी ऑखों के सामने न दिखे तो समझ लेना कि हम क्या करते हैं फिर।"

कहने के साथ ही दिवाकर चौधरी ने फोन के रिसीवर को केड्रिल पर पटक दिया। गुस्से से तमतमाया हुआ आया और वहीं सोफे पर बैठ गया। इस वक्त वहाॅ रखे बाॅकी सोफों पर उसके सभी मित्र यार बैठे हुए थे। सबके चेहरों पर चिंता व परेशानी साफ दिखाई दे रही थी।

"क्या कहा कमिश्नर ने?" अशोक मेहरा ने उत्सुकता से पूछा था।
"क्या उस रेप की वजह से हमारे बच्चे गायब हैं?" सुनीता वर्मा ने कहा___"ज़रूर पुलिस वालों ने ही उन सबको गिरफ्तार किया होगा।"

"पुलिस की इतनी हिम्मत नहीं है सुनीता कि वो हमारे बच्चों को छू भी सके।" दिवाकर चौधरी ने कहा___"मुझे लगता है कि हमारे बच्चे खुद ही अंडरग्राउण्ड हो गए हैं। उन्होंने सोचा होगा कि इस हादसे से कहीं उनको पुलिस न पकड़ ले। इस लिए वो कहीं छुप गए होंगे। उन बेवकूफों का इतना भी दिमाग़ नहीं चला कि उनको किसी से डरने की कोई ज़रूरत ही नहीं थी। ख़ैर, तुम लोग चिन्ता मत करो। हमारे बच्चे जहाॅ भी होंगे सही सलामत ही होंगे।"

"पर चौधरी साहब।" अवधेश श्रीवास्तव ने कहा___"उन लोगों को हमें एक बार फोन तो कर ही देना चाहिये था। मगर दो दिन से फोन ही बंद हैं उन सबका। समझ में नहीं आ रहा कि कहाॅ गए होंगे वो। आपके फार्महाउस पर भी नहीं हैं। हमारे आदमी देख आए हैं वहाॅ। लेकिन हैरानी की बात है कि आपके फार्महाउस के वो दोनो गार्ड्स भी वहाॅ नहीं हैं। इसका क्या मतलब हो सकता है?"

"भाग गए होंगे साले कामचोर।" दिवाकर चौधरी ने कहा___"उस समय जब उनके हाॅथ में बंदूखें थमाई थी तभी समझ आ गया था कि ये इस काम के लिए बेहद कमज़ोर हैं। ख़ैर छोड़ो। कमिश्नर को हमने डोज दे दी है। वो ज़रूर पता करेगा बच्चों का।"

"आप तो ऐसे बेफिक्र हैं चौधरी साहब जैसे आपको अपने बच्चों की कोई चिंता ही नहीं है।" सुनीता वर्मा ने कहा___"पर मुझे चिंता है। क्योंकि मुझ विधवा का एक वही तो सहारा है। अगर उसे कुछ हो गया तो किसके लिए जियूॅगी मैं?"

"ओफ्फो सुनीता।" दिवाकर चौधरी ने सहसा उसे अपनी तरफ खींच लिया। एक हाॅथ से उसकी ठुड्डी पकड़ कर बोला___"वैसे तो उसे कुछ नहीं होगा। और अगर थोड़े पल के लिए मान भी लिया जाए तो चिंता क्यों करती हो? हम हैं न तुम्हारे सहारे के लिए। अब तक भी तो सहारा ही बने हुए थे हम और आगे भी बने ही रहेंगे।"

"आपको तो बस हर वक्त मस्ती ही सूझती रहती है चौधरी साहब।" सुनीता ने कहा__"जबकि इस वक्त हालात किस क़दर गंभीर हैं इसका आपको अंदाज़ा भी नहीं है।"
"तुम भूल रही हो सुनीता डार्लिंग कि हम कौन हैं?" दिवाकर चौधरी ने कहा__"हम इस शहर की वो हस्ती हैं जिसकी इजाज़त के बिना एक पत्त भी नहीं हिल सकता। इस लिए तुम इस बात की चिंता करना छोंड़ दो कि बच्चों के साथ कोई बुरा करेगा।"

"चौधरी साहब बिलकुल ठीक कह रहे हैं सुनीता।" अशोक मेहरा ने कहा___"हमारे बच्चे ज़रूर किसी दूसरे शहर में मौज मस्ती कर रहे होंगे।"
"मौज मस्ती हमें भी तो करनी चाहिए न अशोक?" दिवाकर ने कहा___"बहुत दिन हो गए सुनीता के साथ भरपूर मस्ती नहीं की हमने।"

"आपने तो मेरे मन की बात कह दी चौधरी साहब।" अवधेश श्रीवास्तव ने मुस्कुराते हुए कहा___"आज हो ही जाए मस्ती।"
"क्या कहती हो डार्लिंग?" दिवाकर चौधरी ने सुनीता के एक भारी बोबे को ज़ोर से मसलते हुए कहा___"हो जाए वन टू का फोर?"

"अरे मैं तो चाहती ही हूॅ कि आप सब मुझे मसल कर रख दो।" सुनीता ने अपने होठों को दाॅतों तले दबाते हुए कहा___"मेरे जिस्म में तो हर वक्त आग लगी रहती है। अलोक का बाप तो कमीना मुझे भरी जवानी में छोंड़ कर मर गया। वो तो भगवान का शुकर था कि आप लोग मेरे जीवन में आ गए वरना जाने क्या होता मेरा?"

"भगवान सब अच्छे के लिए ही करता है मेरी राॅड सुनीता।" दिवाकर चौधरी ने सुनीता के ब्लाउज के बटन खोलते हुए कहा___"और आज तो हम सब तेरी आगे पीछे दोनो साइड से अच्छे से लेंगे।"

"हाॅ तो ठीक है न।" सुनीता ने अपना हाथ बढ़ा कर दिवाकर के पजामें के ऊपर से ही उसके लौड़े को पकड़ लिया___"मेरा कोई भी छेंद खाली न रखना।"
"आज तो साली तेरी चीखें निकालेंगे हम तीनों।" दिवाकर चौधरी ने कहा___"चलो भाई लोग अंदर कमरे में चलो। आज इस राॅड को तबीयत से पेलते हैं।"

दिवाकर चौधरी की बात सुन कर बाॅकी तीनो भी मुस्कुराते हुए सोफों से उठ खड़े हुए।
"चौधरी साहब आपकी बेटी तो नहीं है न बॅगले में?" अशोक मेहरा ने पूछा__"वरना उसे पता चल जाएगा कि हम सब क्या कर रहे हैं।"
"नहीं है यार।" दिवाकर ने कहा___"शायद कहीं बाहर गई हुई है।"

अभी वे सब कमरे की तरफ बढ़े ही थे कि सहसा पीछे से दिवाकर के पीए ने आवाज़ दी।
"चौधरी साहब, चौधरी साहब।" पीए ने बदहवास से लहजे में कहा था।

"क्या बात है मनोहर लाल?" दिवाकर चौधरी के लहजे में कठोरता थी__"क्यों गला फाड़ रहे तुम? देख नहीं रहे, हम ज़रूरी काम से कमरे में जा रहे हैं?"
"ज़रूर जाइये चौधरी साहब।" मनोहर लाल ने अजीब भाव से कहा___"लेकिन उससे पहले इसे तो देख लीजिए।"

"क्या है ये?" दिवाकर चौधरी की भृकुटी तन गई, बोला___"तुम हमें मोबाइल देखने का कह रहे हो इस वक्त? दिमाग़ तो ठीक है न तुम्हारा?"
"आप एक बार देख लीजिए न चौधरी साहब।" मनोहर लाल ने विनती भरे भाव से कहा___"उसके बाद आपको जो करना है करते रहिएगा।"

"दिखाओ क्या है ये?" दिवाकर चौधरी ने मनोहर लाल के हाथ से मोबाइल छींन लिया था। मोबाइल की स्क्रीन पर कोई वीडियो पुश मोड पर नज़र आ रहा था।
"तुमने हमें ये दिखाने के लिए रोंका है मनोहर लाल?" दिवाकर चौधरी ने गुस्से से कहा।
"गुस्सा मत कीजिए चौधरी साहब।" मनोहर लाल ने कहा___"एक बार उस वीडिओ को प्ले तो कीजिए।"

दिवाकर चौधरी ने पहले तो खा जाने वाली नज़रों से मनोहर लाल को देखा फिर मोबाइल की स्क्रीन पर देखते हुए उस वीडिओ को प्ले कर दिया। बड़े से स्क्रीन टच मोबाइल में वीडिओ के प्ले होते ही जो कुछ नज़र आया उसे देख कर दिवाकर चौधरी के होश उड़ गए। दिलो दिमाग़ सुन्न सा पड़ता चला गया। ये सच है कि उसके हाॅथ से मोबाइल छूटते छूटते बचा था। सिर पर एकाएक ही जैसे पूरा आसमान ही भरभरा कर गिर पड़ा था उसके।

चौधरी की हालत एक पल में ऐसी हो गई जैसे उसका सब कुछ लुट गया हो। चेहरा फक्क पड़ गया था उसका। बाॅकी दोनो और सुनीता भी चौधरी की ये दशा देख कर बुरी तरह चौंके। उन्हें समझ न आया कि अचानक चौधरी साहब को क्या हो गया है।

"क्या हुआ चौधरी साहब?" अवधेश श्रीवास्तव ने हैरानी से कहा__"आप इस तरह बुत से क्यों बन गए? क्या है उस मोबाइल में?"
"आं हा, लो तुम भी देख लो।" दिवाकर चौधरी ने मोबाइल पकड़ा दिया उसे।

अवधेश के साथ साथ अशोक व सुनीता ने भी मोबाइल में चालू वीडियो को देखा। और अगले ही पल उनकी भी हालत खराब हो गई।
"ये सब क्या है मनोहर लाल?" अशोक वर्मा ने गुस्से से कहा___"चौधरी साहब का ऐसा वीडियो इस मोबाइल में कहा से आया?"

"ये वीडियो किसी अंजान नंबर से भेजा गया है सर।" मनोहर ने कहा___"अभी पाॅच मिनट पहले ही आया है। इतना ही नहीं अलग अलग चार वीडियो और भी हैं। बाॅकियों को भी प्ले करके देख लीजिए।"

अशोक ने वैसा ही किया। कहने का मतलब ये कि चारो वीडियो अलग अलग ब्यक्तियों के थे। पहला दिवाकर चौधरी का, दूसरा अशोक मेहरा का, तीसरा सुनीता वर्मा का और चौथा अवधेश श्रीवास्तव का।

चारो वीडियो देखने के बाद उन चारों की हालत बेहद खराब हो गई। सबके पैरों तले से ज़मीन कोसों दूर निकल गई थी।

"चौधरी साहब ये सब वीडियो हम लोगों के कैसे बन गए?" अशोक मेहरा ने कहा__"और इन वीडियोज में जो जगह है वो तो आपके फार्महाउस की ही है। मतलब साफ है कि वहीं पर हमारे ऐसे वीडियो बनाए गए। मगर सवाल है कि किसने बनाए ऐसे वीडियो? क्या हमारे बच्चों ने? यकीनन चौधरी साहब, ये उन लोगों ने ही बनाया है।"

"अशोक सही कह रहे हैं चौधरी साहब।" अवधेश श्रीवास्तव ने कहा___"हमारे बच्चों ने ही ये वीडियो बनाया। क्योंकि बाहरी कोई वहाॅ जा ही नहीं सकता।"
"ये सब छोंड़ो और ये सोचो कि ये वीडियो किसने भेजा हमारे फोन पर?" दिवाकर चौधरी ने कहा___"हमारे बच्चे तो ऐसा करेंगे नहीं। क्योंकि ऐसा करने की उनके पास कोई वजह ही नहीं है। उन्होंने ये सोच कर वीडियो बनाया कि हम अपने बाप वोगों की मौज मस्ती अपनी ऑखों से देखेंगे। उनके दिमाग़ में ऐसे वीडियोज हमारे पास भेजने का कोई सवाल ही नहीं है क्योंकि उनकी हर इच्छाओं की पूर्ति हम बखूबी करते हैं। ये किसी और का ही काम है अवधेश। हमारे फोन में वीडियो भेजने का मतलब है कि सामने वाला हमें बताना चाहता है कि उसके पास हमारी इस करतूत का सबूत है और वो हमें जब चाहे एक्सपोज कर सकता है। अब सवाल ये है कि वो कौन है जिसने ये वीडियो भेजा और किस मकसद के तहत भेजा?"

"मामला बेहद गंभीर हो गया है चौधरी साहब।" सुनीता ने कहा___"हमारे बच्चों ने तो हमें बड़ी भारी मुसीबत में डाल दिया है।"
"मुसीबत तो अब हो ही गई है मगर इससे निपटने का रास्ता तो अब ढूढ़ना ही पड़ेगा न?" दिवाकर चौधरी ने कहा__"सबसे पहले ये पता करना होगा कि ये वीडियो उसके पास कैसे आए और उसने हमें किस मकसद से भेजा है?

"वीडियो आपके फार्महाउस के उसी कमरे में बनाया गया है चौधरी साहब जिस कमरे में हम लोग अक्सर शबाब का मज़ा लूटा करते हैं।" अशोक ने कहा___"मतलब साफ है वीडियो भेजने वाले को ये वीडियो वहीं से मिले होंगे। अब सबसे बड़ा सवाल ये है कि आपके फार्महाउस पर ऐसा कौन ब्यक्ति गया और ये सब वीडियोज वहाॅ से उठा कर चंपत हो गया? आपके फार्महाउस के वो गार्ड्स कहाॅ थे उस वक्त जब कोई बाहरी वहाॅ आकर ये सब काण्ड कर गया?"

अशोक मेहरा की इन बातों से सन्नाटा छा गया हाल में। सबका दिमाग़ मानो चकरघिन्नी बन कय रह गया था। किसी को कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि ये सब अचानक कौन सी आफत आ गई थी। जिसने उन सब महारथियों को अपंग सा बना दिया था।

"मनोहर लाल पता करो किसने ये हिमाकत की है?" दिवाकर चौधरी ने कहा___"जिस नंबर से ये वीडियोज आईं हैं उस नंबर पर फोन करो।"
"मैने बहुतों बार फोन लगाया चौधरी साहब लेकिन नंबर बंद बता रहा है।" मनोहर लाल ने कहा___"आप कहें तो पुलिस को ये नंबर दे दूॅ वो जल्द ही पता कर लेंगे कि ये नंबर किसका है और किस जगह से इस नंबर के द्वारा ये वीडियोज भेजी गई हैं?"

"तुम्हारा दिमाग़ तो नहीं ख़राब हो गया मनोहर लाल।" दिवाकर गुस्से से बोला__"ये घटिया ख़याल आया कैसे तुम्हारे ज़हन में? सोचो अगर हमने पुलिस को नंबर दिया तो उसका अंजाम क्या हो सकता है? जिसने भी ये दुस्साहस किया है वो कोई मामूली ब्यक्ति नहीं हो सकता। उसे भी ये पता होगा कि हम उसका पता लगाने के लिए उसका नंबर पुलिस को दे सकते हैं। उसने पुलिस को नंबर न देने की कोई चेतावनी भले ही हमें नहीं दी है मगर हमें तो सोचना समझना चाहिए न? अगर हमने ऐसा किया तो संभव है कि वो हमारे ये वीडियो पुलिस को दे दे या सार्वजनिक कर दे। उस सूरत में हमारा सारा किस्सा ही खत्म हो जाएगा। शहर की जनता और ये पुलिस प्रशासन सब हमारे खिलाफ़ हो जाएॅगे। इस लिए हमें ठंडे दिमाग़ से इसके बारे में सोचना होगा। बिना मतलब के या बिना मकसद के कोई किसी के साथ ऐसा नहीं करता। उसने ऐसा किया है तो देर सवेर ज़रूर उसका कोई मैसेज या फोन भी आएगा। तब हम उससे पूछेंगे कि वह क्या चाहता है हमसे?"

"इसका मतलब अब हम उस ब्यक्ति के किसी फोन या मैसेज का इंतज़ार करें जिसने ये वीडियोज हमें भेजा है?" अवधेश श्रीवास्तव ने कहा।
"इसके अलावा हमारे पास दूसरा कोई रास्ता भी तो नहीं है।" दिवाकर ने कहा___"हमें एक बार उससे बात तो करनी पड़ेगी। आख़िर पता तो चले कि उसने ऐसा किस मकसद से किया है? उसके बाद ही हम कोई अगला क़दम उठा सकते हैं।"

"ठीक है चौधरी साहब।" अशोक मेहरा ने कहा___"जैसा आप उचित समझें वैसा कीजिए। मगर ये मैटर ऐसा है कि हम सबके होश उड़ा देगा। सब कुछ बरबाद कर देगा।"
"बस एक बार उसका कोई फोन या मैसेज तो आने दो।" दिवाकर ने कहा___"उसके बाद हम बताएॅगे उसे कि हमारे साथ ऐसी हरकत करने का अंजाम कितना भयावह होता है।"

दिवाकर चौधरी की इस बात से एक बार फिर हाल में सन्नाटा छा गया। किन्तु सबके मन में जो तूफान उठ चुका था उसे रोंकना उनके बस में न था।
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"चौधरी आज से तेरे बुरे दिन शुरू हो गए हैं। मासूम और मजलूमों पर तूने, तेरे साथियों ने और तेरे हराम के पिल्लों ने जो भी ज़ुल्म ढाए हैं उनका हिसाब देने का समय आ गया है।" रितू की कार ऑधी तूफान बनी फार्महाउस की तरफ दौड़ी जा रही थी। साथ ही मन ही मन वह ये सब कहती भी जा रही थी।

रितू ने ऐसी जगह से अपने नये मोबाइल फोन द्वारा वो वीडियोज चौधरी के मोबाइल पर भेजे थे जिस जगह पर एक नई बिल्डिंग का निर्माण कार्य चल रहा था। किन्तु इस वक्त वहाॅ पर कोई न था। यहीं से उसने चौधरी को वोडियोज भेजे थे। वीडियो भेजने के बाद उसने फोन को स्विचऑफ कर दिया था। उसका खुद का जो आईफोन था वो पहले से ही स्विचऑफ था। उसके दिमाग़ में हर चीज़ से बचने की भी सोच थी।

ऑधी तूफान बनी उसकी जिप्सी उसके फार्महाउस पर रुकी। जिप्सी से उतर कर वह तेज़ी से अपने कमरे की तरफ बढ़ गई। बाहर मेन गेट पर शंकर काका नज़र आया था उसे किन्तु हरिया काका नज़र नहीं आया था। कमरे में जाकर उसने नया वाला फोन आलमारी में रखा और उसे लाॅक कर तुरंत पलटी।

जिप्सी में बैठी रितू का रुख अब अपने हवेली की तरफ था। उसके दिमाग़ में बड़ी तेज़ी से कई सारी चीज़ें चल रही थी। उसके ज़हन में ये बात हर पल बनी हुई थी कि उसने विधी से वादा किया था कि विराज को उसके पास ज़रूर लाएगी।

रितू के पास विराज का कोई काॅन्टैक्ट करने का ज़रिया न था। इस लिए उसने ये पता लगाने के लिए किसी आदमी को लगाया हुआ था कि उसके किसी दोस्तों के पास विराज का कोई अता पता हो। दूसरे दिन सुबह ही उसके आदमी ने उसे बताया था कि विराज के दो ही लड़के खास दोस्त हुआ करते थे। एक का नाम दिनेश सिंह था जो कि आजकल देश के किसी दूसरे राज्य में नौकरी कर रहा है। दूसरे दोस्त का नाम है पवन सिंह चंदेल। ये विराज का स्कूल के समय से ही दोस्त था। ग़रीब है, आज कल हल्दीपुर में ही बस स्टैण्ड के पास पान की दुकान खोल रखा है। घर में विधवा माॅ के अलावा एक बहन है जो ऊम्र में उससे बड़ी है। मगर आर्थिक परेशानी की वजह से वह अपनी बड़ी बहन की शादी नहीं करा पा रहा है।

रितू के खबरी ने उसे पवन सिंह का नंबर लाकर दिया था। रितू ने पवन को फोन लगा कर उसे अपना परिचय दिया और मिलने का कहा था। खैर, रातू जब पवन से मिली तो उससे विराज के बारे में पूछा तो पवन ने बड़ा अजीब सा जवाब दिया था उसे।

"आप मेरे दोस्त राज की बड़ी बहन हैं इस लिए आप मेरी भी बड़ी बहन के समान ही हैं।" पवन ने कहा था___"आप मेरे घर पर आई हैं, आपका तहे दिल से स्वागत है। लेकिन अगर आप मुझसे मेरे जिगरी यार का पता या फोन नंबर पूछने आई हैं तो माफ़ कीजिएगा दीदी। मैं आपको ना तो उसका पता बताऊॅगा और ना ही उसका फोन नंबर दूॅगा।"

"लेकिन क्यों पवन क्यों?" रितू ने चकित भाव से कहा था___"तुम एक बहन को उसके भाई का अता पता क्यों नहीं बताओगे?"
"बहन.....भाई???" पवन सिंह बड़े अजीब भाव से हॅसा था, उसकी उस हॅसी में रितू ने साफ साफ दर्द महसूस किया____"कौन बहन भाई दीदी? अरे मेरे यार ने तो सबको हमेशा अपना ही माना था मगर उसके खुद के माॅ बाप और बहन के अलावा किसी भी परिवार वाले ने उसे अपना नहीं माना। और और आप???? आप भी बताइये दीदी, आप ने राज को कब अपना भाई माना था? अरे उसे तो आपने बचपन से लेकर आज तक सिर्फ दुत्कारा है दीदी। ख़ैर, जाने दीजिए। आपसे ये सब कहने का मुझे कोई हक़ नहीं है। माफ़ करना दीदी, आपको देख कर जाने कैसे गुस्सा सा आ गया था और दिल का गुबार मुख से निकल गया। मगर, जिस काम के लिए आप यहाॅ आई हैं वो हर्गिज़ नहीं होगा। मुझे सब पता है दीदी, मेरे दोस्त राज और उसकी माॅ बहन को खोजने के लिए आपके डैड ने अपने आदमियों को जाने कब से लगाया हुआ है। मगर कोई भी उनका आदमी उसे ढूॅढ़ नहीं पाएगा।"

"तुम ग़लत समझ रहे हो पवन।" रितू ने बेचैनी भरे भाव से कहा था___"मैं ये मानती हूॅ कि मैने अपने उस भाई को कभी अपना नहीं माना था लेकिन आज ऐसा नहीं है भाई। आज तुम्हारी ये दीदी बहुत प्यार करने लगी है अपने उस भाई से। इस वक्त अगर राज मेरे सामने आ जाए तो मैं उसके पैरों में पड़ कर उससे अपने किये की मुआफ़ी माॅग लूॅगी। ये सब समय समय की बातें हैं पवन। हम जब बच्चे होते हैं तो बिलकुल कुम्हार के पास रखी हुई उस गीली और कच्ची मिट्टी की तरह होते हैं। हमारे माता पिता कुम्हार की तरह ही होते हैं। वो जैसे चाहें अपने बच्चों को किसी मिट्टी के घड़े की तरह ढाल देते हैं। कहने का मतलब ये कि, मेरे माॅम डैड ने हम बहन भाइयों को बचपन से जो सिखाया पढ़ाया हम उसी को करते चले गए। लेकिन वक्त हमेशा एक जैसा नहीं रहता पवन। हर सच्चाई को एक दिन पर्दे से निकल कर बाहर आना ही पड़ता है। यही उसकी नियति होती है। और सच्चाई क्या है क्या नहीं ये मुझे समझ आ गया है। मुझे पता है पवन कि मेरा भाई राज वो कोहिनूर है जिसका कोई मोल हो ही नहीं सकता।"

"वाह दीदी वाह।" पवन कह उठा___"आज आपके मुख से ये अमृत वाणी कैसे निकल रही है? हैरत की बात है, खैर मुझे क्या है। मगर इतना जान लीजिए कि मैं आपकी इन मीठी बातों के जाल में फॅसने वाला नहीं हूॅ। मेरी वजह से मेरे दोस्त को कोई नुकसान नहीं पहुॅचा सकता। अब आप जाइये दीदी। मुझे आपसे और कोई बात नहीं करनी है।"

"कैसे यकीन दिलाऊॅ पवन?" रितू की ऑखों में ऑसू आ गए___"आखिर कैसे तुम्हें यकीन दिलाऊॅ कि मैं अब वैसी नहीं रही? मैं हनुमान जी की तरह अपना सीना चीर कर नहीं दिखा सकती मगर भगवान जानता है कि मेरे सीने में मेरा भाई ज़रूर मौजूद हो गया है। तुम मुझे उसका गुनहगार समझते हो तो चलो ठीक है पवन। तुम मुझे राज का अता पता भी न दो मगर इतना तो उसे बता ही सकते हो न वो कुछ देर के लिए अपनी उस विधी के पास आ जाए जिससे वह आज भी उतना ही प्यार करता होगा जितना पहले करता था।"

"नाम मत लीजिए उस बेवफ़ा का।" पवन ने सहसा आवेशयुक्त लहजे में कहा___"उसी की बेवफ़ाई की वजह से मेरा दोस्त रात रात भर मेरे पास रोता रहता था। कितना चाहता था वो उसे। मगर उस दिन पता चला कि दुनियाॅ भर की कसमें और दलीलें देने वाली वो लड़की कितनी झूठी और मक्कार थी जिस दिन आप लोगों ने मेरे दोस्त को और उसके माॅ बहन को हवेली से बाहर धकेल दिया था। उधर आप लोगों ने हवेली से धकेला और इधर उस कम्बख्त ने मेरे दोस्त को अपने दिल से धकेल दिया। एक पल में गिरगिट की तरह रंग बदल लिया था उस लड़की ने। रुपये पैसे से मोहब्बत थी उसे ना कि मेरे दोस्त से।"

"सच्चाई क्या है इसका तुम्हें पता नहीं है पवन।" रितू ने दुखी भाव से कहा__"तुम और विराज ही क्या बल्कि नहीं समझ सकता कि उसने ऐसा क्यों किया था?"
"अरे दौलत के लिए दीदी दौलत के लिए।" पवन ने झट से कहा___"उसने मेरे दोस्त की सच्ची मोहब्बत को अपने पैरों तले रौंदा था।"

"ये सच नहीं है पवन।" रितू ने कहा__"अगर सच्चाई जान लोगे न तो पैरों तले से ज़मीन गायब हो जाएगी तुम्हारे। उसने ये सब इस लिए किया था ताकि विराज उससे नफ़रत करने लगे और किसी दूसरी लड़की के साथ प्यार मोहब्बत करने का सोचे। माना कि ये आसान नहीं था मगर वक्त और हालात हर ज़ख्म भर देता और एक नया मोड़ भी जीवन में ले आता है।"

"आप कहना क्या चाहती हैं दीदी?" पवन ने कहा___"और इन सब बातों का आज कहने का क्या मतलब है?"
"विधी को ब्लड कैंसर था पवन।" रितू ने मानो धमाका किया___"और वो भी लास्ट स्टेज का। इसी लिए उसने ये सब किया था राज के साथ। ताकि वह उसे भूल जाए और दूर हो जाए उससे।"

"क क्या?????" पवन बुरी तरह चौंका था___"ये ये आप क्या कह रही हैं दीदी? विधी को कैंसर?? नहीं नहीं ऐसा नहीं हो सकता। ये सब झूठ है।"
"अगर तुम्हें मेरी बात का यकीन नहीं है तो मेरे साथ चल कर खुद अपनी ऑखों से देख लो तुम।" रितू ने कहा___"इस वक्त भी वह हास्पिटल में ही है। तुमने शायद सुना नहीं होगा उस रेप के बारे में जो अभी कुछ दिनों पहले ही हुआ था। विधी के साथ ये हादसा हुआ था जिससे उसकी हालत बहुत खराब हो गई थी। हास्पिटल में जब उसे भर्ती किया गया तभी उसके चेकअप से डाक्टर को ये पता चला कि विधी को लास्ट स्टेज का ब्लड कैंसर है। जबकि कैंसर वाली बात विधी को पहले से ही पता थी।"

पवन सिंह रितू को अजीब भाव से इस तरह देखने लगा था जैसे रितू का सिर धड़ से अलग होकर ऊपर हवा में अचानक ही कत्थक करने लग गया हो। अविश्वास से फटी हुई उसकी ऑखों में एकाएक ही ऑसू आ गए।

"हे भगवान! ये क्या हो गया?" पवन ने ऊपर की तरफ देख कर दुखी भाव से कहा__"एक और सच्चे प्रेम की ये दशा कर दी तूने। बहुत बेरहम और बेदर्द है तू। दीदी, मुझे उस महान लड़की को देखना है। उससे मुआफ़ी माॅगना है। हे भगवान कितना बुरा भला कहा मैने उसे और आज तक बुरा भला सोचता भी रहा हूॅ।"

रितू पवन को लेकर हास्पिटल पहुॅची तो पवन ने देखा विधी को। विधी की कुरुण हालत देख कर पवन का कलेजा मुह को आ गया। वह विधी के पैरों में अपना सिर रख दिया और माफ़ी माॅगने लगा। पवन बहुत ही भावुक किस्म का लड़का था, इस लिए ज्यादा देर तक वह विधी के पास न रह सका था। उसे रह रह कर रोना आने लगता था।

हास्पिटल से बाहर आकर उसने खुद को और अपने अंदर के जज़्बातों को शान्त किया। तभी पीछे से रितू ने उसके कंधे पर हाथ रखा। उसने पलट कर देखा उसे।

"क्या अब भी तुम्हें लगता है पवन कि मैं तुमसे झूॅठ बोल रही हूॅ?" रितू ने कहा था।
"नहीं दीदी, प्लीज माफ़ कर दीजिए।" पवन ने अपने हाथ जोड़ कर कहा था।
"इसी विधी ने मुझे एहसास कराया कि मैं कितना ग़लत सोचती थी अब तक अपने भाई विराज के लिए।" रितू ने कहा___"विधी की कहानी ने मुझे ये एहसास कराया भाई कि मेरा अपने भाई के लिए आज तक अनुचित ब्यौहार करना कितना ग़लत था। इसको मैने वचन दिया है पवन कि इसके महबूब को इसके पास ज़रूर लाऊॅगी। मैं इसी लिए तुम्हारे पास आई थी पवन। मैंने अपने भाई के साथ क्या किया है अबतक उसका फल मुझे ज़रूर मिलेगा और मिलना भी चाहिए।"

"ऐसा मत कहिए दीदी।" पवन ने कहा__"ये सब समय समय की बातें हैं। जो बीत गया उसे भूल जाइये और एक नया संसार बनाने की सोचिये। मैं अभी विराज को फोन करता हूॅ और उसे विधी के बारे में सब बताता हूॅ।"

"नहीं नहीं पवन।" रितू ने झट से कहा__"उसे ये मत बताना कि विधी को क्या हुआ है। बल्कि कुछ और बोलो। कुछ ऐसा कि वो दूसरे दिन मुंबई से यहाॅ आने के लिए चल दे।"
"ठीक है दीदी।" पवन ने कहा था__"मैं ऐसा ही करता हूॅ।"

कहने के साथ ही पवन ने विराज को फोन को फोन लगा दिया था। उसका दिल बुरी तरह धड़के जा रहा था। रिंग जाने की आवाज़ सुनाई दे रही थी। और तभी,

"हाॅ भाई बोल कैसे याद किया?" उधर से विराज ने कहा था।
"भाई अगर तेरे पास टाइम हो तो तू जल्दी से गाॅव आ जा।" पवन ने कहा था।
"अरे क्या हुआ भाई?" विराज के चौंकने जैसी आवाज़ आई___"सब ठीक तो है ना?"

"बस भाई तू कल ही आजा यहाॅ।" पवन ने गंभीरता से कहा___"तुझे मेरी क़सम है भाई। तू कल यहाॅ आएगा।"
"पर बात क्या है पवन?" विराज का चिंतित स्वर उभरा___"देख तू मुझसे कुछ भी मत छुपा ओके। चाची(पवन की माॅ) की तबीयत तो ठीक है ना? पूजा दीदी ठीक तो हैं ना मेरे भाई? सच सच बता न क्या बात है?"

"भाई परेशान न हो।" पवन ने कहा__"बस तू कल आजा भाई। बाॅकी सब कुछ तुझे यहाॅ आने पर ही पता चलेगा। तू आएगा न कल?"
"मैं आज ही रात की ट्रेन से निकल लूॅगा यहाॅ से।" विराज ने कहा___"कल दोपहर तक पहुॅच जाऊॅगा।"

"ठीक है भाई मैं तुझे बस स्टैण्ड पर ही मिलूॅगा।" पवन ने कहा___"मुझे पहुॅचते ही फोन कर देना।"
"आखिर बात क्या है यार?" विराज की आवाज़ आई___"तू बता क्यों नहीं रहा है?"
"तू आजा बस।" पवन ने कहा___"चल रखता हूॅ फोन।"

पवन ने फोन काट दिया। एक गहरी साॅस ली उसने और फिर रितू की तरफ देखते हुए कहा___"लीजिए दीदी। मेरा यार कल दोपहर को आ जाएगा यहाॅ।"

"तुमने मेरे वचन को झूठा होने से बचा लिया मेरे भाई।" रितू ने की ऑखें भर आई। उसने झपट कर पवन को अपने गले से लगा लिया।
"आपने भी तो मुझे पाप करने से बचाया दीदी।" पवन ने कहा___"आज तक मैं अपने मन में उस विधी को जाने कितना बुरा भला कहता था जिस विधी को मुझे प्रणाम करना चाहिए था।"

"ऐसी बातें मेरे भाई विराज का एक अच्छा दोस्त ही कह सकता है।" रितू ने पवन से अलग होकर कहा___"इतने ऊॅचे संस्कार उसके ही दोस्तों में हो सकते हैं। मुझे अपने भाई और उसके ऐसे दोस्तों पर नाज़ है। चलो अब मैं चलती हूॅ भाई। लेकिन एक विनती है तुमसे, विराज से ये मत कहना कि ये सब मैने कहा था तुमसे।"

"अरे मगर क्यों दीदी?" पवन चौंका था__"आप ऐसा क्यों चाहती हैं? अब तो आप उसे अपने गले से लगा लीजिए दीदी। क्यों अपनी बेरुखी और बेदर्दी से उसका दिल दुखाना चाहती हैं? या फिर मैं ये समझूॅ कि आपने वो सब जो कहा था वो सब एक झूठ था?"

"नहीं मेरे भाई।" रितू ने कहा___"मैं तो चाहती हूॅ कि अपने भाई को मैं अपने कलेजे से लगा लूॅ मगर मुझे ये भी पता है कि उसकी जान को खतरा भी है। अगर मेरे डैड को पता चल जाए कि विराज गाॅव आया हुआ है तो सोचो क्या होगा? इस लिए मैं सबसे पहले उसकी सेफ्टी का ख़याल रखूॅगी।"

"ओह दीदी सचमुच।" पवन ने कहा__"ये तो मैं भूल ही गया था। तो आप उसकी सेफ्टी के लिए क्या करेंगी दीदी?"
"वो तुम मुझ पर छोंड़ दो भाई।" रितू ने कहा___"मेरे रहते मेरे भाई को कोई छू भी नहीं सकेगा।"

रितू के चेहरे पर एकाएक ही कठोरता आ गई थी। पलक झपकते ही शेरनी की भाॅति ज़लज़ला नज़र आने लगा था उसके चेहरे पर। पवन सिंह एक बार को तो काॅप ही गया था उसे इस रूप में देख कर।

रितू के मन में यही सब फिल्म की तरह चल रहा था। उसकी जिप्सी ऑधी तूफान बनी हवेली की तरफ दौड़ी जा रही थी। उसे पता था कि उसका बाप विराज को खोजने के लिए अपने आदमियों को लगाया हुआ है। संभव है कि अजय सिंह ने अपने आदमियों को गाॅव हल्दीपुर और शहर गुनगुन में भी फैला रखा हो। रितू के मन में सिर्फ एक ही विचार था कि विराज को किसी भी हालत में अपने बाप और उसके आदमियों की नज़र में नहीं आने देना है। ये उसकी जिम्मेदारी थी कि विराज पर किसी तरह का कोई संकट न आ पाए। क्योंकि वास्तविकता तो यही थी न कि विराज को उसने ही पवन सिंह के द्वारा बुलवाया है।


रितू की जिप्सी हवेली के गेट से अंदर दाखिल होते हुए पोर्च में जाकर रुकी। जिप्सी से उतर कर वह अंदर की तरफ बढ़ गई।

दोस्तो अपडेट हाज़िर है,,,,,,,,

मैने आप लोगों को अपनी दूसरी कहानी के अपडेट में बताया था कि मेरे रिलेटिव में शादी है इस लिए मुझे वापस घर जाना है। मैं उसी दिन घर के लिए निकल गया था दोस्तो। इसी लिए अपडेट नहीं दे पाया। आप लोग तो जानते हैं इस समय शादियों का सीजन चल रहा है। तो दोस्तो उसी के लिए वापस छुट्टी लेकर आया हूॅ घर।

ये अपडेट मैने जल्दी जल्दी में लिखा है ताकि आप लोगों को इरिटेट न होना पड़े। लेकिन इसके बाद अपडेट आने में देर हो सकती है दोस्तो इस लिए नाराज़ न होना।

धन्यवाद,,,,,
Interesting ☺️
 
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Vicky2009

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एक नया संसार

अपडेट.........《 49 》


अब तक,,,,,,,

मार्केट के पास आते ही उसे दूसरी गाड़ी पर वो पुलिस वाले दिखे। उनमें से एक पुलिस वाले ने रितू को बताया कि उसने उस अधेड़ आदमी को दूसरी दवाइयाॅ खरीद कर दे दी हैं। उसकी बात सुन कर रितू आगे बढ़ गई। उसके पीछे दूसरे पुलिस वाले भी अपनी गाड़ी में चल पड़े। उनकी नज़र रितू की जिप्सी पर थोड़ा सा फैली हुई उस ब्लैक कलर की प्लास्टिक की पन्नी पर पड़ी जिसके नीचे रितू ने उस लड़की को छुपा दिया था। किन्तु उन लोगों ने इस पर ज्यादा ध्यान न दिया। उनको अपने आला अफसर का आदेश था कि इंस्पेक्टर रितू के आस पास ही रहना है और उसकी किसी भी गतिविधी पर कोई सवाल जवाब नहीं करना है।

रितू की जिप्सी ऑधी तूफान बनी हल्दीपुर की तरफ बढ़ी चली जा रही थी। उसके पीछे ही दूसरी गाड़ी पर वो पुलिस वाले भी थे। रितू को अंदेशा था कि हल्दीपुर के पास वाले रास्तों पर कहीं उसका बाप या उसके आदमी मिल न जाएॅ मगर हल्दीपुर के उस पुल तक तो कोई नहीं मिला था। पुल से दाहिने साइड जिप्सी को मोड़ कर रितू फार्महाउस की तरफ बढ़ चली। कुछ दूरी पर आकर रितू ने जिप्सी को रोंक दिया। कुछ ही पलों में उसके पीछे वाली गाड़ी भी उसके पास आकर रुक गई।

"अब आप सब यहाॅ से वापस लौट जाइये।" रितू ने एक पुलिस वाले की तरफ देख कर कहा___"आज का काम इतना ही था। अगर ज़रूरत पड़ी तो वायरलेस या फोन द्वारा सूचित कर दिया जाएगा।"
"ओके मैडम।" एक पुलिस वाले ने कहा___"जैसा आप कहें। जय हिन्द।"

उन सबने रितू को सैल्यूट किया और फिर अपनी गाड़ी को वापस मोड़ कर वहाॅ से चले गए। उनके जाते ही रितू ने भी अपनी जिप्सी को फार्महाउस की तरफ बढ़ा दिया। आने वाला समय अपनी आस्तीन में क्या छुपा कर लाने वाला था ये किसी को पता न था।"
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~


अब आगे,,,,,,,

उधर एक तरफ!
एक लम्बे चौड़े हाल के बीचो बीच एक बड़ी सी टेबल के चारो तरफ कुर्सियाॅ लगी हुई थी। उन सभी कुर्सियों पर इस वक्त कई सारे अजनबी चेहरे बैठे दिख रहे थे। सामने फ्रंट की मुख्य कुर्सी खाली थी। हर शख्स के सामने मिनरल वाटर से भरे हुए काॅच के ग्लास रखे हुए थे। लम्बे चौड़े हाल में इस वक्त ब्लेड की धार की मानिन्द पैना सन्नाटा फैला हुआ था। वो सब अजनबी चेहरे ऐसे थे जिन्हें देख कर ही प्रतीत हो रहा था कि ये सब किसी न किसी अपराध की दुनियाॅ ताल्लुक ज़रूर रखते हैं। उन अजनबी चेहरों के बीच ही कुछ ऐसे भी चेहरे थे जो शक्ल सूरत से विदेशी नज़र आ रहे थे।

"और तो सब ठीक ही है।" उनमें से एक ने हाल में फैले हुए सन्नाटे को भेदते हुए कहा___"मगर ठाकुर साहब का हमसे इस तरह इन्तज़ार करवाना बिलकुल भी पसंद नहीं आता। हर बार यही होता है कि हम सब टाइम से कान्फ्रेन्स हाल में मीटिंग के लिए आ जाते हैं मगर ठाकुर साहब तो ठाकुर साहब हैं। हर बार निर्धारित समय से आधा घंटे लेट ही आते हैं।"

"अब इसमें हम क्या कर सकते हैं कमलनाथ जी?" एक अन्य ब्यक्ति ने मानो असहाय भाव से कहा___"वो ठाकुर साहब हैं। शायद हमसे इस तरह इन्तज़ार करवाने में वो अपनी शान समझते हैं। हलाॅकि ऐसा होना नहीं चाहिए, क्योंकि यहाॅ पर कोई भी किसी से कम नहीं है। हम सबको एक दूसरे का बराबर आदर व सम्मान करना चाहिए। मगर ये बात ठाकुर साहब से कौन कहे?"

"यस यू आर अब्सोल्यूटली राइट मिस्टर पाटिल।" सहसा एक विदेशी कह उठा___"हमको भी ठाकुर का इस तरह वेट करवाना पसंद नहीं आता हाय। वो क्या समझता हाय कि हम लोगों की कोई औकात नहीं हाय? अरे हम चाहूॅ तो अभी इसी वक्त ठाकुर को खरीद सकता हाय। बट हम भी इसी लिए चुप रहता हाय कि तुम सब भी चुप रहता हाय।"

"इट्स ओके मिस्टर लारेन।" पाटिल ने कहा___"ये आख़िरी बार है। आज ठाकुर से हम सब इस बारे में एक साथ चर्चा करेंगे और उनसे कहेंगे कि हम सबकी तरह वो भी टाइम पर मीटिंग हाल में आया करें। इस तरह हमसे वेट करवा कर हमारी तौहीन करने का उन्हें कोई हक़ नहीं है। अगर आप मेरी इस बात से सहमत हैं तो प्लीज जवाब दीजिए।"

पाटिल की इस बात पर सबने अपनी प्रतिक्रिया दी। जो कि पाटिल की बातों पर सहमति के रूप में ही थी। कुछ देर और समय बीतने के बाद तभी हाल में अजय सिंह दाखिल हुआ और मुख्य कुर्सी पर आकर बैठ गया। उसने सबकी तरफ देख कर बड़े रौबीले अंदाज़ से हैलो किया। उसकी इस हैलो का जवाब सबने इस तरह दिया जैसे बग़ैर मन के रहे हों। इस बात को खुद अजय सिंह ने भी महसूस किया।

"साॅरी फ्रैण्ड्स हमें आने में ज़रा देर हो गई।" अजय सिंह ने बनावटी खेद प्रकट करते हुए कहा___"आई होप आप सब इस बात से डिस्टर्ब नहीं हुए होंगे। एनीवेज़....
"ठाकुर साहब दिस इज टू मच।" एक अन्य ब्यक्ति कह उठा___"आप हर बार ऐसा ही करते हैं और फिर बाद में ये कह देते हैं कि साॅरी फ्रैण्ड्स हमें आने में ज़रा देर हो गई। आप हर बार लेट आकर हम सबकी तौहीन करते हैं। हम सब आधा घंटे तक आपके आने का वेट करते रहते हैं। आपको क्या लगता है कि हम लोगों के पास दूसरा कोई काम ही नहीं है? हम सब भी अपने अपने कामों में ब्यस्त रहते हैं मगर टाइम से कहीं भी पहुॅचने के लिए समय पहले से ही निकाल लेते हैं। इस बिजनेस में हम सब बराबर हैं। यहाॅ कोई छोटा बड़ा नहीं है। हम सबने आपको मेन कुर्सी पर बैठने का अधिकार अपनी खुशी से दिया था। मगर इसका मतलब ये नहीं कि आप उसका नाजायज़ मतलब निकाल लें। हम सबने डिसाइड कर लिया है कि अगर आपका रवैया ऐसा ही रहा तो हम सब आपसे बिजनेस का अपना अपना हिस्सा वापस ले लेंगे। दैट्स
आल।"

उस ब्यक्ति की ये सारी बातें सुन कर अजय सिंह अंदर ही अंदर बुरी तरह तिलमिला कर रह गया था। ये सच था कि हर बार वो इन सबसे इन्तज़ार करवा कर यही जताता था कि उसके सामने इन लोगों की कोई अहमियत नहीं है। बल्कि वो इन सबसे ज्यादा अहमियत रखता है। आज तक इस बिजनेस से जुड़े ये सब लोग उसकी इस आदत पर कोई सवाल नहीं खड़ा किये थे जिसकी वजह से उसे यही लगता रहा था कि यू सब उसे बहुत ज्यादा इज्ज़त व अहमियत देते हैं और इसी लिए वो ऐसा करता रहा था। मगर आज जैसे इन सबके धैर्य का बाॅध टूट गया था। जिसका नतीजा इस रूप में उसके सामने आया था। उस शख्स की बातों से उसके अहं को ज़बरदस्त चोंट पहुॅची लेकिन वो ये बात अच्छी तरह जानता था कि इस बारे में अगर उसने कुछ उल्टा सीधा बोला तो काम बिगड़ जाने में पल भर की भी देर नहीं लगेगी। इस लिए वो उस शख्स की उन सभी कड़वी बातों को जज़्ब कर गया था।

"आई नो मिस्टर तेवतिया।" अजय सिंह ने कहा__"बट इस सबसे हमारा ये मतलब हर्गिज़ भी नहीं है कि हम आप सबको अपने से छोटा समझते हैं। हम सब फ्रैण्ड्स हैं और हम में से कोई छोटा बड़ा नहीं है। हर बार हम मीटिंग में देर से पहुॅचते हैं इसका हमें यकीनन बेहद अफसोस होता है। मगर क्या करें हो जाता है। मगर हमें ये भी पता होता है कि आप सब हमारी इस ग़लती को नज़रअंदाज़ कर देंगे।"

"इट्स ओके ठाकुर साहब।" कमलनाथ ने कहा__"बट ध्यान रखियेगा कि अगली बार से ऐसा न हो। कभी कभार की बात हो तो समझ में आता है मगर हर बार ऐसा हो तो मूड ख़राब होना स्वाभाविक बात है।"

"यस ऑफकोर्स मिस्टर कमलनाथ।" अजय सिंह एक बार फिर गुस्से और अपमान का घूॅट पीकर बोला__"अब अगर आप सबकी इजाज़त हो तो काम की बात करें?"
"जी बिलकुल।" पाटिल ने कहा___"
उसके पहले हम ये जानना चाहते हैं कि समय से पहले इस तरह अचानक मीटिंग रखने की क्या वजह थी?"

"आप सबको तो इस बात का पता ही है कि मौजूदा वक्त में हमारे हालात बिलकुल भी ठीक नहीं हैं।" अजय सिंह ने बेबस भाव से कहा___"पिछले कुछ समय से हमारे साथ बेहद गंभीर और बेहद नुकसानदाई घटनाएॅ घट रही हैं। उन घटनाओं के पीछे कौन है ये भी हम पता लगा चुके हैं। इस लिए अब हम चाहते हैं कि आप सब हमारे इस बुरे वक्त में हमारा साथ दें।"

"वैसे तो आप खुद ही सक्षम हैं ठाकुर साहब।" पाटिल ने कहा___"किन्तु इसके बाद भी आप हम सबसे मदद की आशा रखते हैं तो मैं तैयार हूॅ। आख़िर हम सब एक ही तो हैं। हर तरह की मसीबत व परेशानी का एक साथ मिल कर मुकाबला करेंगे तो हर जंग में हमारी फतह होगी।"

"हमें भी आपके इन मौजूदा हालातों का पता है ठाकुर साहब।" एक अन्य ब्यक्ति ने कहा___"इस लिए हम सब आपके साथ हैं। आप हुकुम दें कि हमें क्या करना होगा?"
"आप सब हमारा साथ देने के लिए तैयार हैं इससे बड़ी बात व खुशी और क्या होगी भला? रही बात आपके कुछ करने की तो आप बस हमारे साथ ही बने रहें कुछ समय के लिए या फिर अपने कुछ ऐसे आदमी हमें दीजिए जो हर तरह के फन में माहिर हों।"

"जैसी आपकी इच्छा ठाकुर साहब।" कमलनाथ ने कहा___"हम सब आपके साथ हैं और हमारे ऐसे आदमी भी आपके पास आ जाएॅगे जो हर तरह के फन में माहिर हैं। अब से आपकी परेशानी हमारी परेशानी है। क्यों फ्रैण्ड्स आप सब क्या कहते हैं??"

कमलनाथ के अंतिम वाक्य पर सबने अपनी प्रतिक्रिया सहमति के रूप में दी। ये सब देख कर अजय सिंह अंदर ही अंदर बेहद खुश हो गया था।

"मिस्टर सिंह।" सहसा इस बीच एक विदेशी ने कहा___"पिछली डील अभी तक कम्प्लीट नहीं हुआ। क्या हम जान सकता हाय कि इतना डिले करने का तुम्हारा क्या मतलब हाय? बात थोड़ी बहुत की होती तो हम उसको भूल भी सकता था बट एज यू नो वो सारी चीज़ें लाखों करोड़ों में हाय। सो हाउ कैन आई फारगेट?"

"हम जानते हैं मिस्टर लाॅरेन।" अजय सिंह ने बेचैनी से पहलू बदला___"कि वो सब करोड़ों का सामान है। लेकिन मौजूदा वक्त में हम ऐसी स्थित में नहीं हैं कि आपका पैसा आपको दे सकें। इसके लिए आपको तब तक रुकना पड़ेगा जब तक कि हमारे सिर पर से ये मुसीबत और ये परेशानी न हट जाए। प्लीज़ ट्राई टू अण्डरस्टैण्ड मिस्टर लाॅरेन।"

"ओखे।" लाॅरेन ने कहा___"नो प्राब्लेम हम तुम्हारी हर तरह से मदद करेगा। बट सारी प्राब्लेम फिनिश होने के बाद तुम हमारा पूरा पैसा देगा। इस बात का प्रामिस करना पड़ेगा तुमको।"
"मिस्टर लाॅरेन।" सहसा कमलनाथ ने कहा___"ये आप कैसी बात कर रहे हैं? आप जानते हैं कि ठाकुर साहब के पास इस समय कितनी गंभीर समस्याएॅ हैं इसके बाद भी आप सिर्फ अपने मतलब की बात कर रहे हैं। जबकि आपको करना तो ये चाहिए था कि आप सब कुछ भूल कर सिर्फ ठाकुर साहब को उनकी समस्याओं से बाहर निकालें।"

"तो हमने कब मना किया इस बात से मिस्टर कमलनाथ?" लाॅरेन ने कहा___"हम कह ओ रहा है कि हम हर तरह से इनकी मदद करेगा।"
"हाॅ लेकिन यहाॅ पर आपको अपने पैसों की बात करना उचित नहीं है न।" कमलनाथ ने कहा___"आपको ये भी तो सोचना चाहिए कि पैसा सिर्फ आपका ही बस बकाया नहीं है ठाकुर साहब के पास, हम सबका भी है। लेकिन हमने तो इनसे पैसों के बारे में कोई बात नहीं की।"

"ओखे आयम साॅरी।" लाॅरेन ने बेचैनी से पहलू बदलते हुए कहा___"सो अब बताइये क्या करना है हम लोगो को?"
"ये तो ठाकुर साहब ही बताएॅगे।" कमलनाथ ने कहा__"कि हम सबको क्या करना होगा?"
"हमने आप सबको पहले ही बता दिया है कि आप सब अपने कुछ ऐसे आदमी हमें दीजिए जो हर तरह के काम में माहिर हों।" अजय सिंह ने कहा___"उसके बाद हम खुद ही तय करेंगे कि हमें उन आदमियों से क्या और कैसे काम लेना है?"

"ठीक है ठाकुर साहब।" पाटिल ने कहा___"हमारे पास जो भी ऐसे आदमी हैं। उन सबको आपके पास भेज देंगे।"
"ओह थैक्यू सो मच टू आल ऑफ यू डियर फ्रैण्ड्स।" अजय सिंह ने खुश होकर कहा___"और हाॅ, हम आप सबसे वादा करते हैं कि इस सबसे निपट लेने के बाद हम बहुत जल्द आप सबके पैसों का हिसाब किताब कर देंगे।"

अजय सिंह की इस बात के साथ ही मीटिंग खत्म हो गई। सबने अजय सिंह को अपने आदमी भेजने का कहा और फिर सब एक एक करके मीटिंग हाल से बाहर की तरफ चले गए। सबके जाने के बाद अजय सिंह भी बाहर की तरफ निकल गया। बाहर पार्किंग में खड़ी अपनी कार में बैठ कर अजय सिंह घर की तरफ निकल गया।

कुछ ही समय में अजय सिंह हवेली पहुॅच गया। अंदर ड्राइंगरूम में रखे सोफों पर प्रतिमा और शिवा बैठे थे। अजय सिंह भी वहीं रखे एक सोफे पर बैठ गया। उसने प्रतिमा को चाय बनाने का कहा तो प्रतिमा रसोई की तरफ बढ़ गई। जबकि अजय सिंह ने गले पर कसी टाई को ढीला कर आराम से सोफे की पिछली पुश्त से पीठ टिका कर लगभग लेट सा गया।

शिवा को समझ न आया कि अपने बाप से बातों का सिलसिला कैसे और कहाॅ से शुरू करे? ऐसा कदाचित इस लिए था क्योंकि आज सारा दिन उसने अपनी माॅ के साथ मौज मस्ती की थी। इस बात के कारण कहीं न कहीं हल्की सी झिझक उसके अंदर मौजूद थी।

"आप इतना लेट कैसे हो गए डैड?" आख़िर शिवा ने बात शुरू कर ही दी, बोला___"आपने तो कहा था कि जल्दी आ रहा हूॅ?"
"एक ज़रूरी मीटिंग में ब्यस्त हो गया था बेटे।" अजय सिंह ने उसी हालत में कहा___"कल से हमारे पास कुछ ऐसे आदमी होंगे जो हर तरह के काम में माहिर होंगे। अब मैं भी देखूॅगा कि वो हरामज़ादा विराज और रितू कैसे उन आदमियों को ठिकाने लगाते हैं?"

"ऐसे वो कौन से आदमी हैं डैड?" शिवा ने ना समझने वाले भाव से कहा___"क्या आप अभी भी ऐसे किन्हीं आदमियों पर ही भरोसा करेंगे? जबकि पालतू आदमियों का क्या हस्र हुआ है ये आपको बताने की ज़रूरत नहीं है।"

"हमारे आदमी दिमाग़ से पूरी तरह पैदल थे बेटे।" अजय सिंह ने कहा___"वो सब अपने शारीरिक बल को महत्व देते थे तभी तो मात खा गए। उन्होंने ये कभी सोचा ही नहीं कि शरीरिक बल से कहीं ज्यादा दिमाग़ी बल कारगर होता है। ख़ैर, अब जो आदमी यहाॅ आएॅगे वो सब खलीफ़ा लोग होंगे। जो हर वक्त हर तरह के ख़तरे वाले कामों को ही अंजाम देते हैं। दूसरी बात ये है कि रितू एक आम लड़की नहीं है जिसे कोई भी ऐरा गैरा ब्यक्ति आसानी से पकड़ लेगा, बल्कि वो एक पुलिस वाली भी है। जिसके पास सारा पुलिस डिपार्टमेन्ट भी है। ऐसे में अगर हम खुद उस पर हाॅथ डालेंगे तो वो हमें कानून की चपेट में डाल सकती है। इस लिए हमने सोचा है कि हम पहले ऐसे आदमियों के द्वारा उसे पकड़ लें कि जिनसे वो आसानी से मुकाबला भी न कर सके। मुकाबले से मेरा मतलब ये है कि मेरे वो आदमी उसे ऐसा घेरा बना कर पकड़ेंगे जिसके बारे में उसे अंदेशा तक न हो पाएगा।"

"ओह आई सी।" शिवा को सारी बात जैसे समझ आ गई थी, बोला___"ये सही रणनीत है डैड। अगर वो सब आदमी वैसे ही हर काम में माहिर हैं जैसा कि आप बता रहे हैं तो फिर यकीनन ये सही क़दम है।"

अभी अजय सिंह कुछ बोलने ही वाला था कि तभी किचेन से आती हुई प्रतिमा हाॅथ में चाय का ट्रे लिए वहाॅ पर आ गई। उसने दोनो बाप बेटे को एक एक कप चाय पकड़ाई और एक कप खुद लेकर वहीं एक सोफे पर बैठ गई।

"कौन से आदमियों की बात चल रही है अजय?" प्रतिमा ने सोफे पर बैठने के साथ ही पूछा था। उसके पूछने पर अजय सिंह ने उसे भी वही सब बता दिया जो अभी उसने शिवा को बताया था। सारी बात सुनने के बाद प्रतिमा कुछ देर गंभीरता से सोचती रही।

"तो अब तुमने बाहर से आदमी मॅगवाए हैं।" फिर प्रतिमा ने तिरछी नज़र से देखते हुए कहा___"और उन पर भरोसा भी है तुम्हें कि वो तुम्हें इस बार नाकामी का नहीं बल्कि फतह का स्वाद चखाएॅगे?"
"बिलकुल।" अजय सिंह ने स्पष्ट भाव से कहा___"ये सब ऐसे आदमी हैं जिनका वास्ता अपराध की हक़ीक़त दुनियाॅ से है और ये सब उस अपराध की दुनियाॅ के सफल खिलाड़ी हैं।"

"चलो इनका कारनामा भी देख लेते हैं।" प्रतिमा ने सहसा गहरी साॅस ली___"वैसे इस बात पर भी ध्यान देना कि समय हर वक्त इसी बस के लिए नहीं रहता।"
"क्य मतलब??" अजय सिंह चकराया।
"मतलब ये कि हर बार एक जैसी ही चाल चलना एक सफल खिलाड़ी की पहचान नहीं होती।" प्रतिमा ने समझाने वाले भाव से कहा__"ऐसे में सामने वाले खिलाड़ी के दिमाग़ में ये मैसेज जाता है कि उसका प्रतिद्वंदी कमज़ोर है जो सिर्फ एक ही तरह की चाल चलना जानता है और उसकी ये बेवकूफी भी कि उसी एक तरह की चाल से वह खेल को जीत लेने की उम्मीद भी करता है। इस लिए एक अच्छे खिलाड़ी को चाहिए कि बीच बीच में अपनी चाल को बदल भी लेना चाहिए।"

"बात तो तुम्हारी ठीक है डियर।" अजय सिंह ने चाय का खाली कप सामने काॅच की टेबल पर रखते हुए बोला___"लेकिन इसको इस एंगल से भी तो सोच कर देखो ज़रा। मतलब ये कि सामने वाले खिलाड़ी के दिमाग़ में हम जानबूझ कर ये मैसेज डाल रहे हैं कि हमारे पास सिर्फ एक ही तरह की चाल है। उसे ऐसा समझने दो। जबकि हम सही समय आने पर अपनी चाल को बदल कर उसे ऐसे मात देंगे कि उसे इसकी उम्मीद भी न होगी हमसे। जिसे वो हमारी कमज़ोरी समझेगा वो दरअसल हमारी चाल का ही एक हिस्सा होगा।"

"ओहो क्या बात है डियर हस्बैण्ड।" प्रतिमा ने सहसा मुस्कुराते हुए कहा___"क्या तर्क निकाला है। ये भी ठीक है। चल जाएगा। मगर सबसे ज्यादा ध्यान देने वाली बात ये है कि हमारे पास समय नहीं है समय बर्बाद करने के लिए भी। सोचने वाली बात है कि हम अब भी वहीं हैं जहाॅ पर थे जबकि हमारा दुश्मन बहुत कुछ करके यहाॅ निकल भी चुका है। हाॅ अजय, वो रंडी का जना विराज अब यहाॅ नहीं होगा। बल्कि जिस काम से वो यहाॅ आया था उस काम को करके वो वापस मुम्बई चला गया होगा। आख़िर इस बात का एहसास तो उसे भी है कि उसने हमारे इतने सारे आदमियों का क्रियाकर्म करके गायब किया है जिसका अंजाम किसी भी सूरत में उसके हित में नहीं होगा। इस लिए अपना काम पूरा करने के बाद वो यहाॅ पर एक पल भी रुकना गवाॅरा नहीं करेगा।"

"माॅम ठीक कह रही हैं डैड।" सहसा इस बीच शिवा ने भी अपना पक्ष रखा___"वो यकीनन यहाॅ से चला गया होगा। भला ऐसे ख़तरे के बीच रुकने की कहाॅ की समझदारी ।होगी? अब ये भी स्पष्ट हो गया है कि उसके बाद यहाॅ सिर्फ रितू दीदी ही रह गई हैं।"

"रितू ही बस नहीं है बेटे।" अजय सिंह ने कहा___"बल्कि उसके साथ तुम्हारी नैना बुआ भी है।"
"क्याऽऽ???" अजय सिंह की इस बात से शिवा और प्रतिमा दोनो ही बुरी तरह चौंके थे, जबकि प्रतिमा ने कहा___"तुम ये कैसे कह सकते हो अजय? नैना तो वापस अपने ससुराल चली गई थी न उस दिन?"

"वो ससुराल नहीं।" अजय सिंह ने कहा___"बल्कि रितू के साथ कहीं और गई थी। नैना ने तो ससुराल जाने का सिर्फ बहाना बनाया था जबकि हक़ीक़त ये थी कि रितू उसे खुद यहाॅ से निकाल कर ले गई थी। ये सब रितू का ही किया धरा था।"

"लेकिन ये सब तुम्हें कैसे पता अजय?" प्रतिमा ने चकित भाव से कहा___"और रितू ने भला ऐसा क्यों किया होगा?"
"उस दिन नैना जब रितू के साथ गई तो ये सच है कि एक भाई होने के नाते मुझे खुशी हुई थी कि चलो अच्छा हुआ कि नैना को उसके ससुराल वालों ने बुलाया है।" अजय सिंह कह रहा था___"मगर जब दो दिन बाद भी नैना का कोई फोन नहीं आया तो मैने सोचा कि मैं ही फोन करके पता कर लूॅ कि वहाॅ सब ठीक तो है न? इस लिए मैने नैना के ससुराल में नैना को फोन लगाया मगर नैना का फोन बंद बता रहा था। कई बार के लगाने पर भी जब नैना का फोन बंद ही बताता रहा तो मैने नैना के हस्बैण्ड को फोन लगाया और उनसे पूछा नैना के बारे में तो उसने साफ साफ कठोरता से मना कर दिया कि उसके यहाॅ नैना नहीं आई और ना ही उसका नैना से कोई लेना देना है अब। नैना के पति की ये बात सुन कर मेरा दिमाग़ घूम गया। मुझे समझते देर न लगी कि नैना को हवेली से निकाल कर रितू ही ले गई है। उसे शायद ये बात कहीं से पता चल गई होगी कि हम दोनो बाप बेटे की गंदी नज़र नैना पर है। इस लिए रितू ने उसे इस हवेली से बड़ी चालाकी से निकाल लिया और अपनी बुआ को किसी ऐसी जगह पर सुरक्षित रखने का सोचा होगा जहाॅ पर हम आसानी से पहुॅच भी न सकें।"

"हे भगवान! इतना बड़ा खेल खेल गई रितू।" प्रतिमा ने हैरानी से कहा___"अगर ये बात सच है तो यकीनन हमारी बेटी ने हमें उल्लू बना दिया है। उसने बड़ी सफाई और चतुराई से आपके मुह से आपका मन पसंद निवाला छीन लिया है जिसका हमें एहसास तक नहीं हो सका।"

"जब हमारी बेटी ने ही हमें धोखा दे दिया तो कोई क्या कर सकता है?" अजय सिंह ने कहा___"लेकिन अब जो हम उसके साथ करेंगे उसकी उसने कल्पना भी न की होगी। हम उसके माॅ बाप हैं, हमने उसे बचपन से लेकर अब तक क्या कुछ नहीं दिया। उसने जिस चीज़ की आरज़ू की हमने पल भर में उस चीज़ को लाकर उसके क़दमों में डाल दिया। मगर उसने हमारे लाड प्यार का ये सिला दिया हमें। इतने सालों का लाड प्यार उसके लिए कोई मायने नहीं रखता। देख लो प्रतिमा, ये है तुम्हारी बेटी का अपने माॅ बाप के प्रति प्रेम और लगाव। जो अपने बाप के दुश्मन के साथ मिल कर खुद अपने ही पैरेंट्स के लिए मौत का सामान जुटाने पर तुली हुई है। इस हाल में अगर तुम मुझसे ये कहो कि मैं उसकी इस धृष्टता को माफ़ कर दूॅ तो ऐसा हर्गिज़ नहीं हो सकता अब। तुम्हारी बेटी ने अपने ही बाप के हाथों अब ऐसी मौत को चुन लिया है जिसके दर्द का किसी को एहसास नहीं हो सकता।"

"पहले मुझे भी लगता था अजय कि वो आख़िर हमारी बेटी है।" प्रतिमा ने कठोरता से कहा___"मगर उसके इस कृत्य से मुझे भी उस पर अब बेहद गुस्सा आया हुआ है। मैं जानती हूॅ कि वो अब दूध पीती बच्ची नहीं रही है जिसके कारण उसे हर चीज़ का पाठ पढ़ाना पड़ेगा। बल्कि अब वो बड़ी हो गई है। जिसे अपने और अपनों के अच्छे बुरे का बखूबी ख़याल है। इसके बाद भी वो अपने ही पैरेंट्स का बुरा चाहने वाला काम किया है तो अब मैं भी यही कहूॅगी कि उसे उसके इस अपराध की शख्त से शख्त सज़ा मिले। दैट्स आल।"

कुछ देर और तीनो के बीच बातें होती रहीं उसके बाद तीनों ने रात का खाना खाया और सोने के लिए कमरों में चले गए। इस बात से अंजान कि आने वाली सुबह उनके लिए क्या धमाका करने वाली है????
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रितू की जिप्सी फार्महाउस पहुॅची।
लोहे वाले गेट के पास ही शंकर और हरिया काका बंदूख लिए खड़े थे। रितू की जिप्सी को देखते ही दोनो ने गेट खोल दिया। गेट खुलते ही रितू ने जिप्सी की गेट के अंदर बढ़ा दिया। कुछ ही पल में रितू की जिप्सी पोर्च में जाकर रुकी। जिप्सी से उतर कर रितू ने हरिया काका को आवाज़ देकर बुलाया। हरिया के आते ही रितू ने उससे जिप्सी के पीछे बड़ी सी प्वालीथिन के नीचे ढॅकी मंत्री की बेटी को उठा कर तहखाने में ले जाने को कहा। उससे ये भी कहा कि तहखाने में उसे अच्छी तरह बाॅध कर ही रखे।

रितू के कहने पर हरिया ने वैसा ही किया। आज एक लड़की को इस तरह तहखाने में ले आते देख हरिया काका अंदर ही अंदर बेहद खुश हो गया था। लड़की को देख कर उसके मन में ढेर सारे लड्डू फूट रहे थे। काफी दिन से लड़की गाॅड मार मार कर वो अब उकता सा गया था। अब उसे एक फ्रेश माल की ज़रूरत महसूस हो रही थी। बिंदिया को ज्यादा सेक्स करना पसंद नहीं था इस लिए हरिया को वह रोज रोज अपने पास नहीं आने देती थी। जिसकी वजह से हरिया उससे खूब नाराज़ हो जाया करता था। मगर कर भी क्या सकता था??

मन में ढेर सारे खुशी के लड्डू फोड़े वह लड़की को तहखाने में ले जाकर उसे वहीं तहखाने के फर्स पर लेटा दिया। लड़की अभी भी बेहोश ही थी। तहखाने में रस्सियों से बॅधे वो चारो असहाय अवस्था में लगभग झूल से रहे थे। उन चारों की हालत ऐसी हो गई थी कि पहचान में नहीं आ रहे थे। जिस्म पर एक एक कच्छा था उन चारों के और कुछ नहीं। इस वक्त चारो के सिर नीचे की तरफ झुके हुए थे। उनमें इतनी भी हिम्मत नहीं थी कि सिर उठा कर सामने की तरफ देख भी सकें कि कौन किसे लेकर आया है? हरिया काका ने एक नज़र उन चारों पर डाली उसके बाद वो लड़की की तरफ एक बार देखने के बाद तहखाने से बाहर की तरफ चला गया। कुछ देर में जब वो आया तो उसके दोनो हाॅथ में एक लकड़ी की कुर्सी थी।

लकड़ी की कुर्सी को तहखाने में एक तरफ रख कर वो पलटा और फिर लड़की उठा कर उस कुर्सी पर बैठा दिया। उसने लड़की के दोनो हाथों को कुर्सी के दोनो साइड एक एक करके रस्सी से बाॅध दिया। उसके बाद उसके पैरों को भी नीचे कुर्सी के दोनो पावों पर एक एक कर बाॅध दिया। लड़की के झुके हुए सिर को ऊपर उठा कर उसने कुर्सी की पिछली पुश्त से टिका दिया। कुछ देर तक हरिया काका उस लड़की को ललचाई नज़रों से देखता रहा उसके बाद वो तहखाने से बाहर आ गया। तहखाने का गेट बंद कर वो बाहर गेट के पास खड़े शंकर के करीब आ गया।

उधर, मंत्री की बेटी को हरिया के हवाले करने के बाद रितू अंदर अपने कमरे की तरफ बढ़ गई। कमरे में आकर उसने अपनी वर्दी को उतारा और बाथरूम में घुस गई। जब वह फ्रेश होकर बाहर आई तो कमरे में नैना बुआ को देख कर वह चौंकी। दरअसल इस वक्त वह सिर्फ एक हल्के पिंक कलर के टाॅवेल में थी।

बाॅथरूम का दरवाजा खुलने की आवाज़ से बेड पर बैठी नैना का ध्यान उस तरफ गया तो रितू को मात्र टाॅवेल में देख कर वह हौले से मुस्कुराई। उसके यूॅ मुस्कुराने से रितू के चेहरे पर अनायास ही लाज और हया की सुर्खी फैल गई। होठों पर हल्की मुस्कान के साथ ही उसकी नज़रें झुकती चली गईं। रितू का इस तरह शरमाना नैना को काफी अच्छा लगा। उसे पता था कि उसकी ये भतीजी भले ही ऊपर से कितनी ही कठोर हो किन्तु अंदर से वह एक शुद्ध भारतीय लड़की है जो ऐसी परिस्थिति में शरमाना भी जानती है।

"चल मुझसे शरमाने की ज़रूरत नहीं है रितू।" नैना ने मुस्कुराते हुए कहा___"तू आराम से अपने कपड़े पहन ले। फिर हम बातें करेंगे।"
"शर्म तो आएगी ही बुआ।" रितू ने इजी फील करने के बाद ही हौले से मुस्कुराते हुए कहा___"मैं इस तरह पहले कभी भी किसी के सामने नहीं आई। भले ही वो मेरे घर का ही कोई सदस्य हो।"

"हाॅ जानती हूॅ मैं।" नैना ने कहा___"पर इतना तो आजकल आम बात है मेरी बच्ची। सो फील इजी एण्ड कम्फर्टेबल।"
नैना की इस बात से रितू बस मुस्कुराई और फिर पास ही एक साइड रखी आलमारी से उसने अपने कपड़े निकाले और फिर वापस बाथरूम में घुस गई। ये देख कर नैना एक बार पुनः मुस्कुरा उठी।

थोड़ी देर बाद रितू जब बाथरूम से बाहर आई तो इस बार उसके खूबसूरत से बदन पर भारतीय लड़कियों का शुद्ध सलवार सूट था और सीने पर दुपट्टा। वो इन कपड़ों में बहुत ही खूबसूरत लग रही थी। नैना ने उसे गहरी नज़र से एक बार ऊपर से नीचे तक देखा फिर बेड से उठ कर रितू के पास आई और रितू का सिर पकड़ कर अपनी तरफ किया और उसके माथे पर हल्के चूम लिया।

"बहुत खूबसूरत लग रही है मेरी बच्ची।" फिर नैना ने मुस्कुरा कर कहा___"किसी की नज़र न लगे। ईश्वर हर बला से दूर रखे तुझे।"
"आप भी न बुआ।" रितू ने हॅसते हुए कहा___"ख़ैर छोड़िये ये बताइये आपको यहाॅ अच्छा तो लगता है न? कहीं ऐसा तो नहीं कि आप यहाॅ पर इजी फील नहीं करती हैं और खुद को यहाॅ मजबूरीवश रहने का सोचती हैं?"

"अरे नहीं रितू।" नैना ने रितू का हाॅथ पकड़ कर उसे बेड पर बैठाने के बाद खुद भी बैठते हुए कहा___"यहाॅ मुझे बहुत अच्छा लगता है। हर मुसीबत हर परेशानी से दूर हूॅ यहाॅ। यहाॅ शान्त व साफ वातावरण मन को बेहद सुकून देता है। यहाॅ बिंदिया भौजी हैं और तू है बस इससे ज्यादा और क्या चाहिए? पिछले कुछ दिनों में अपने कुछ अज़ीज़ों से भी मिल लिया, ऐसा लगा जैसे फिर से इस घर में वही पुराना वाला दौर लौट आया है।"

"चिन्ता मत कीजिए बुआ।" रितू ने कहा___"पुराना वाला समय फिर से आएगा। फिर से पहले जैसी ही खुशियाॅ हमारे बीच रक्श करेंगी। बस इन खुशियों को बरबाद करने वालों का एक बार किस्सा खत्म हो जाए। उसके बाद फिर से वही हमारा वही संसार होगा मगर एक नये संसार के रूप में। जिसमें सबके बीच सिर्फ बेपनाह प्यार होगा। जहाॅ किसी घृणा अथवा किसी प्रकार की नफ़रत के लिए कोई स्थान हीं नहीं होगा।"

"क्या सच में तूने अपने माता पिता के लिए उनका अंजाम बुरा ही सोचा हुआ है?" नैना ने पूछा___"क्या ऐसा नहीं हो सकता कि उन्हें उनके कर्मों की सज़ा भी मिल जाए और वो हमारे साथ भी रहें एक अच्छे इंसानों की तरह?"

"ये असंभव है बुआ।" रितू ने कठोरता से कहा__"जो इंसान इतना ज्यादा अपने सोच और विचार से गिर जाए कि वो अपनी ही औलाद के बारे में इतना गंदा करने का सोच डाले उससे भविष्य में अच्छाई की उम्मीद हर्गिज़ नहीं करनी चाहिए। दूसरी बात, भले ही ईश्वर उनके अपराधों के लिए उन्हें माफ़ कर दे मगर मैं किसी सूरत पर उन्हें माफ़ नहीं कर सकती। उन्होंने माफ़ी के लिए कहीं पर भी कोई रास्ता नहीं छोंड़ा है। उन्होंने हर रिश्ते के लिए सिर्फ गंदा सोचा है और गंदा किया है। उन्होने अपने स्वार्थ के लिए अपने देवता जैसे भाई की हत्या की। अपनी बहन सामान छोटे भाई की पत्नी पर बुरी नज़र डाली। सबसे बड़ी बात तो उन्होंने ये की कि अपने ही बेटे के साथ अपनी पत्नी को उस काम में शामिल किया जिस काम को किसी भी जाति धर्म में उचित नहीं माना जाता बल्कि सबसे ऊॅचे दर्ज़े का पाप माना जाता है। ऐसे इंसानों को माफ़ी कैसे मिल सकती है बुआ? नहीं हर्गिज़ नहीं। ना तो मैं माफ़ करने वाली हूॅ और ना ही मेरा भाई राज उन घटिया लोगों को माफ़ करेगा। एक पल के लिए अगर ऐसा हो जाए कि राज उन्हें माफ़ भी कर दे मगर मैं....मैं नहीं माफ़ कर सकती। हाॅ बुआ....मेरे अंदर उनके प्रति इतना ज़हर और इतनी नफ़रत भर चुकी है कि अब ये उनकी मौ से ही दूर होगी। मुझे दुख इस बात का नहीं होगा कि मेरे माॅ बाप दुनियाॅ से चले गए बल्कि मरते दम तक इस बात का मलाल रहेगा कि ऐसे गंदे इंसानों की औलाद बना कर ईश्वर ने मुझे इस धरती पर भेज दिया था।"

रितू की इन बातों से नैना चकित भाव से देखती रह गई उसे। उसे एहसास था कि रितू के अंदर इस वक्त किस तरह की भावनाओं का चक्रवात चालू था जिसके तहत वो इस तरह अपने ही माॅ बाप के लिए ऐसा बोल रही थी। नैना खुद भी यही समझती थी कि रितू अपनी जगह परी तरह सही है। ऐसे इंसान के मर जाने का कोई दुख या संताप नहीं हो सकता।

"माॅ बाप तो वो होते हैं बुआ जो अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा देते हैं।" रितू दुखी भाव से कहे जा रही थी__"बाल्य अवस्था से ही अपने बच्चों के अंदर अच्छे संस्कार डालते हैं। सबके प्रति आदर व सम्मान करने की भावना के बीज बोते हैं। सबके लिए अच्छा सोचने की सीख देते हैं। कभी किसी के बारे में बुरा न सोचने का ज्ञान देते हैं। मगर मेरे माॅ बाप ने तो अपने तीनों बच्चों को बचपन से सिर्फ यही पाठ पढ़ाया था कि हवेली के अंदर रहने वाला हर ब्यक्ति बुरा है। इनसे ज्यादा बात मत करना और ना ही इन्हें अपने पास आने देना। कहते हैं इंसान वही देता है जो उसके पास होता है। सच ही तो है बुआ, मेरे माॅ बाप के पास यही सब तो था अपने बच्चों को देने के लिए। वो खुद ऊॅचे दर्ज़े के बुरे इंसान थे, उनके अंदर पाप और बुराईयों का भण्डार था। वही सब उन्होंने अपने बच्चों को भी दिया। ये तो समय की बात है बुआ कि वो हमेशा एक जैसा नहीं रहता। हर चीज़ की हकीक़त कैसी होती है ये बताने के लिए समय ज़रूर आपको ऐसे मोड़ पर ले आता है जहाॅ आपको हर चीज़ की असलियत का पता चल जाता है। इस लिए ये अच्छा ही हुआ कि समय मुझे ऐसे मोड़ पर ले आया। वरना मैं जीवन भर इस बात से बेख़बर रहती कि जिन लोगों के बारे में मुझे बचपन से ये पाठ पढ़ाया गया था कि ये सब बुरे लोग हैं वो वास्तव में कितने अच्छे थे और गंगा की तरह पवित्र थे।"

"हर इंसान की सोच अलग होती है रितू।" नैना ने गहरी साॅस लेते हुए कहा___"और हर इंसान की इच्छाएॅ भी अलग होती हैं। कुछ लोग अपनी इच्छा और खुशी के लिए अनैतिकता की सीमा लाॅघ जाते हैं और कुछ लोग दूसरों की खुशी और भलाई के लिए अपनी हर खुशी और इच्छाओं का गला घोंट देते हैं। अनैतिकता की राह पर चलने वाले ये सोचना गवाॅरा नहीं करते कि जो कर्म वो कर रहे हैं उससे जाति समाज और खुद के घर परिवार पर कितना बुरा प्रभाव पड़ेगा? उन्हें तो बस अपनी खुशियों से मतलब होता है। जबकि इसके विपरीत अच्छे इंसान अपने अच्छे कर्मों से आदर्श के नये नये कीर्तिमान स्थापित करते हैं। ख़ैर छोंड़ इन बातों को और ये बता कि आगे का क्या सोचा है?"

"सोचना क्या है बुआ?" रितू ने कहा___"मेरा भाई मुझसे कह गया है कि मैं उसके वापस आने का इन्तज़ार करूॅ। उसके बाद हम दोनो बहन भाई इस किस्से का खात्मा करेंगे।"
"पर ये सब होगा कैसे?" नैना ने कहा___"तुम दोनो इस काम को अकेले कैसे अंजाम तक पहुॅचाओगे?"

"मुझे खुद पर और अपने भाई राज पर पूरा भरोसा है बुआ।" रितू ने गर्व से कहा___"आप देखना हम दोनो कैसे इस सबको फिनिश करते हैं? अब तो रितू राज स्पेशल गेम होगा बुआ। मैं बस राज के आने का बेसब्री से इन्तज़ार कर रही हूॅ।"

"तुम तो ऐसे कह रही हो जैसे ये सब बहुत सहज है।" नैना ने हैरानी से कहा___"जबकि मेरा तो सोच सोच कर ही दिल बुरी तरह से घबराया जा रहा है।"
"इसमें घबराने वाली क्या बात है बुआ?" रितू ने स्पष्ट भाव से कहा___"सीधी और साफ बात है कि जो लोग सिर पर मौत का कफ़न बाॅध कर चलते हैं वो फिर किसी चीज़ से घबराते नहीं हैं। बल्कि मौत से भी डॅट कर मुकाबला करते हैं। जहाॅ तक मेरी बात है तो अब अगर मेरी जान भी मेरे भाई की सुरक्षा में चली जाए तो कोई ग़म नहीं है। बल्कि मुझे बेहद खुशी होगी कि मेरी जान मेरे ऐसे भाई की सलामती के लिए फना हो गई जिसने वास्तव में मुझे हमेशा अपनी दीदी माना और हमेशा मुझे इज्ज़त व सम्मान दिया।"

"ऐसा मत कह रितू।" नैना की ऑखों से ऑसू छलक पड़े, बोली____"तुझे कुछ नहीं होगा और ख़बरदार अगर दुबारा से ऐसी फालतू की बात की तो। तू मेरी जान है मेरी बच्ची। तुझे कुछ नहीं होगा क्योंकि तू सच्चाई की राह पर चल रही है, धर्म की राह पर मुकीम है तू। अगर किसी को कुछ होगा तो वो उन्हें होगा जो इस देश समाज और परिवार के लिए कलंक हैं।"

"ख़ैर जाने दीजिए बुआ।" रितू ने मानो पहलू बदला__"इन सब बातों में क्या रखा है? होना तो वही है जो हर किसी की नियति में लिखा हुआ है। आइये खाना खाने चलते हैं। बिंदिया काकी ने खाना तैयार कर दिया होगा।"

रितू की ये बात सुन कर नैना उसे कुछ देर अजीब भाव से देखती रही, फिर रितू के उठते ही वो भी बेड से उठ बैठी। कमरे से बाहर आकर दोनो डायनिंग हाल की तरफ बढ़ चलीं। जहाॅ पर करुणा का भाई और अभय सिंह का साला बैठा इन्हीं का इन्तज़ार कर रहा था। ये दोनो भी वहीं रखी एक एक कुर्सियों पर बैठ गई। कुछ ही देर में बिंदिया ने सबको खाना परोसा। खाना खाने के बाद सब अपने अपने कमरों की तरफ सोने के लिए चले गए।
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सुबह हुई!
उस वक्त सुबह के लगभग साढ़े आठ बज रहे थे जब रास्तों पर धूल उड़ाती हुई कई सारी गाड़ियाॅ आकर हवेली के बाहर एक एक करके रुकीं। वो तीन गाड़ियाॅ थी। एक सफारी, एक इनोवा, और एक आई20 थी। तीनों गाड़ियों के रुकते ही सभी गाड़ियों के दरवाजे एक साथ खुले और खुल चुके दरवाजे से एक एक दो दो करके कई सारे आदमी गाड़ियों से बाहर निकले।

बाहर आते ही वो सब एक साथ हवेली के उस हिस्से के मुख्य दरवाजे की तरफ बढ़े जो हिस्सा अजय सिंह का था। इस वक्त दरवाजा बंद था। आस पास कुछ ऐसे आदमी भी बाहर मौजूद थे जिनके हाॅथों में बंदूख, रिवाल्वर आदि हथियार थे। गाड़ियों से आने वाले सभी लोग मुख्य दरवाजे की तरफ मुड़ चले। आस पास खड़े अजय सिंह के बंदूखधारी आदमियों के चेहरों पर अजीब से भाव उभरे। अजीब से इस लिए क्यों कि गाड़ियों से आने वाले सभी आदमी एकदम दनदनाते हुए मुख्य दरवाजे की तरफ बढ़ चले थे।

आस पास खड़े बंदूखधारी आदमी उन लोगों की इस धृष्टता को देख उन्हें रोंकने के लिए उन लोगों के सामने आ गए और उन्हें रोंक कर उनसे पूछने लगे कि वो कौन लोग हैं और इस तरह कैसे बिना कुछ पूछे अंदर की तरफ बढ़े चले जा रहे हैं? किन्तु बंदूखधारियों के पूछने पर उन लोगों ने कोई जवाब नहीं दिया बल्कि अपने अपने कोट की सामने वाली पाॅकेट से अपना अपना आई कार्ड निकाल कर बंदूखधारियों को दिखा दिया। बंदूखधारी ये देख कर बुरी तरह चौंके कि वो सब सी बी आई की स्पेशल ऑफीसर थे। बंदूखधारियों को बिलीउल भी समझ न आया कि वो लोग यहाॅ क्यों आए हैं और वो खुद अब क्या करें? उधर आई कार्ड दिखाने के बाद वो लोग मुख्य दरवाजे के पास पहुॅच गए और दरवाजे पर लगी कुण्डी को ज़ोर से बजा दिया।

कुछ ही देर में दरवाजा खुला। दरवाजे पर नाइट गाउन पहने प्रतिमा नज़र आई। अपने सामने इतने सारे अजनबी आदमियों को देख कर वो चौंकी। उसके चेहरे पर ना समझने वाले भाव उभरे।

"जी कहिए।" फिर उसने अजीब भाव से कहा___"आप लोग कौन हैं? और यहाॅ किस काम से आए हैं?"
"हमें अंदर तो आने दीजिए मैडम।" एक आदमी ने ज़रा शालीन भाव से कहा___"मिस्टर अजय सिंह से मिलना है।"

"पर आप लोग हैं कौन?" प्रतिमा ने दरवाजे पर खड़े खड़े ही पूछा___"ये तो बताया नहीं आपने।"
"सब पता चल जाएगा मैडम।" उस आदमी ने कहा__"हम सब मिस्टर अजय सिंह के गहरे दोस्त यार हैं। प्लीज, उन्हें कहिए कि हम उनसे मिलने आए हैं।"

प्रतिमा उस आदमी की बात सुन कर देखती रह गई उसे। उसके चेहरे पर ऐसे भाव थे जैसे उसे यकीन न आ रहा हो कि ये लोग अछय सिंह के दोस्त हो सकते हैं। कुछ देर उस आदमी को देखते रहने के बाद जाने क्या सोच कर प्रतिमा दरवाजे से हट कर पलटी और अंदर की तरफ बढ़ती चली गई। उसके पीचे पीछे ये सब भी ओल दिये।

कुछ ही देर में प्रतिमा के पीछे पीछे ये सब ड्राइंग रूम में पहुॅच गए। प्रतिमा ने सोफों की तरफ हाॅथ का इशारा कर उन लोगों को बैठने के लिए कहा। प्रतिमा के इस प्रकार कहने पर वो सब लोग सोफों पर बैठ गए जबकि प्रतिमा अंदर कमरे की तरफ बढ़ गई।

थोड़ी ही देर में अजय सिंह ड्राइंग रूम में दाखिल हुआ। ड्राइंग रूम में सोफों पर बैठे इतने सारे लोगों पर नज़र पड़ते ही उसके चेहरे पर अजनबीयत के भाव उभरे। जैसे पहचानने की कोशिश कर रहा हो कि ये सब लोग कौन हैं?

"माफ़ करना मगर हमने आप लोगों को पहचाना नहीं।" फिर उसने एक अलग सोफे पर बैठते हुए कहा।
"इसके पहले कभी हम लोग आपसे मिले ही कहाॅ थे जो आप हमें पहचान लेते।" एक कोटधारी ने अजीब भाव से कहा___"ख़ैर, आपकी जानकारी के लिए हम बता दें कि हम सब सी बी आई से हैं और यहाॅ आपको चरस, अफीम, और ड्रग्स का धंधा करने के जुर्म में गिरफ्तार करने आए हैं। हमारे पास आपके खिलाफ़ स्पेशल वारंट भी है। इस लिए आप बिना कुछ सवाल जवाब किये हमारे साथ चलने का कस्ट करें।"

सी बी आई के उस आदमी के मुख से ये बात सुन कर अजय सिंह के पैरों के नीचे से ज़मीन खिसक गई। बुत सा बन गय था वह। मुख से कोई बोल न फूटा। जिस्म के सभी मसामों ने पल भर में ढेर सारा पसीना उगल दिया। चेहरा इस तरह नज़र आने लगा था जैसे धमनियों में दौड़ते हुए लहू की एक बूॅद भी शेष न बची हो। एकदम फक्क पड़ गया था।

"ये...ये...क्...क्या बकवास कर रहे हैं आप?" फिर सहसा बदहवाश से अजय सिंह ने जैसे खुद को सम्हाला था और फिर वापस ठाकुरों वाले रौब में आते हुए बोला था। ये अलग बात है कि उसके उस रौब में रत्ती भर भी रौब दिखाई न दिया, बोला___"आप होश में तो हैं न? आप जानते हैं कि आप किसके सामने क्या बकवास कर रहे हैं?"

"हम तो पूरी तरह होशो हवाश में ही हैं मिस्टर अजय सिंह।" सीबीआई ऑफिसर ने कहा___"किन्तु आपके होशो हवाश ज़रूर कहीं खो गए से नज़र आने लगे हैं। रही बात आपकी कि आप कौन हैं और हम आपसे क्या कह रहे हैं तो इससे कोई फर्क़ नहीं पड़ता। क्योंकि हम कानून के नुमाइंदे हैं। हमारे लिए छोटे बड़े सब एक जैसे ही होते हैं। ख़ैर, हमने आपके शहर वाले मकान से भारी मात्रा में ग़ैर कानूनी ज़खीरा बरामद किया है। सारी जाॅच पड़ताल के बाद जब हमें ये पता चला कि वो सब आपकी संमत्ति है तो हम कोर्ट से स्पेशल वारंट लेकर आपको यहाॅ गिरफ्तार करने चले आए। इस लिए अब आपके पास हमारे साथ चलने के सिवा दूसरा कोई चारा नहीं है।"

ऑफीसर की ये बात सुन कर एक बार फिर से अजय सिंह की हालत ख़राब हो गई। वो सोच भी नहीं सकता था कि उसके साथ ऐसा भी कभी हो सकता है। उसे तुरंत ही फैक्ट्री में लगी आग का वाक्या याद आया जब तहखाने से उसका ग़ैर कानूनी सामान गायब होने का पता चला था उसे। वो ये भी समझ गया था कि ये सब विराज ने ही किया था। प्रतिमा ने इस बात का अंदेशा भी ब्यक्त किया था कि किसी ऐसे मौके पर वो ये सब कानून के हवाले कर सकता है जबकि हम कुछ भी करने की स्थिति में ही न रह जाएॅगे। मतलब साफ था कि प्रतिमा की कही बात आज सच हो गई थी। यानी विराज ने उस सारे सामान को उसके शहर वाले मकान में रखा और फिर इसकी सूचना सीबीआई को दे दी और अब सीबीआई वाले अजय सिंह के पास स्पेशल वारंट लेकर आ गए थे। अजय सिंह खुद भी सरकारी वकील रह चुका था इस लिए जानता था कि ऐसे मौके पर वह कुछ भी नहीं कर सकता था। कोई दूसरा जुर्म होता तो कदाचित वो कोई जुगाड़ लगा कर अपनी ज़मानत करवा भी लेता मगर यहाॅ तो जुर्म ही संगीन था।

"किस सोच में डूब गए मिस्टर अजय सिंह?" तभी उसे सोचो में गुम देख ऑफीसर ने कहा___"आप अपनी मर्ज़ी से हमारे साथ चलेंगे तो बेहतर होगा, वरना आप जानते है कि हमारे पास बहुत से तरीके हैं आपको यहाॅ से ले चलने के लिए।"

"ऑफीसर।" सहसा अजय सिंह ने अजीब भाव से कहा___"ये सब झूॅठ हैं। हम ऐसा कोई काम नहीं करते जिसे कानून की नज़र में जुर्म कहा जाए। ये यकीनन किसी की साजिश है हमें फसाने की। हाॅ ऑफीसर, ये साजिश ही है। काफी समय से हमारा शहर वाला मकान खाली पड़ा है इसलिए संभव है कि किसी ने ये सब गैर कानूनी चीज़ें वहाॅ पर छुपा कर रखी रही होंगी। हमारा इस सबसे कीई लेना देना नहीं है।"

"सच और झूठ का फैसला तो अब अदालत ही करेगी मिस्टर अजय सिंह।" ऑफिसर ने कहा___"हमारा काम तो बस इतना है कि प्राप्त सबूतों के आधार पर आपको गिरफ्तार कर अदालत के समक्ष खड़ा कर दें। इस लिए अब आपकी कोई दलील हमारे सामने चलने वाली है।"

अभी अजय सिंह कुछ कहने ही वाला था कि तभी अंदर से प्रतिमा और शिवा आकर वहीं पर खड़े हो गए। दोनो के चेहरों पर हल्दी पुती हुई थी। मतलब साफ था कि यहाॅ की सारी वार्तालाप उन दोनो ने सुन ली थी।

"ये सब क्या है डैड?" शिवा ने अंजान बनते हुए पूछा___"ये कौन लोग हैं और यहाॅ किस लिए आए हैं?"
"ये सब सीबीआई से हैं बेटे।" अजय सिंह ने बुझे मन से कहा___"और ये हमे गिरफ्तार करने आए हैं। इनका कहना है कि हमारे शहर वाले मकान से इन्होंने भारी मात्रा में चरस अफीम ड्रग्स आदि चीज़ें बरामद की हैं।"

"व्हाऽऽट??" शिवा ने चौंकते हुए कहा___"ये आप क्या कह रहे हैं डैड? भला ऐसा कैसे हो सकता है? हमारे शहर वाले मकान में वो सब चीज़ें कहाॅ से आ गई?"
"मैं तो पहले ही कहती थी कि तुम शहर वाले उस मकान को बेंच दो।" प्रतिमा ने जाने क्या सोच कर ये बात कही थी, बोली___"मगर मेरी सुनते कहाॅ हो तुम? अब देख लो इसका अंजाम। जाने कब से खाली पड़ा था वह। आज कल किसी का क्या भरोसा कि वो मकान के अंदर आकर क्या क्या खुराफात करने लग जाएॅ।"

"अरे तो भला हमें क्या पता था प्रतिमा कि ऐसा भी कोई कर सकता है?" अजय सिंह ने प्रतिमा की चाल को बखूबी समझते हुए कहा___"अगर पता होता तो हम उस मकान की देख रेख के लिए कोई आदमी रख देते न।"
"किसने किया होगा ये सब?" प्रतिमा ने कहा___"भला हमसे किसी की ऐसी क्या दुश्मनी हो सकती है जिसके तहत उसने हमारे साथ इतना बड़ा काण्ड कर दिया?"

"मिस्टर अजय सिंह।" सहसा ऑफिसर ने हस्ताक्षेप करते हुए कहा___"ये सब बातें आप बाद में सोचिएगा। इस वक्त आप हमारे साथ चलने का कस्ट करें प्लीज़।"
"अरे ऐसे कैसे ले जाएॅगे आप डैड को?" सहसा शिवा आवेशयुक्त भाव से बोल पड़ा___"मेरे डैड बिलकुल बेगुनाह हैं। आप इन्हें ऐसे कहीं नहीं ले जा सकते। ये तो हद ही हो गई कि करे कोई और भरे कोई और।"

"तुम शान्त हो जाओ बेटे।" अजय सिंह ने अपने कूढ़मगज बेटे की बातों पर मन ही मन कुढ़ते हुए बोला___"बात चाहे जो भी हो लेकिन हमें इनके साथ जाना ही पड़ेगा। ये सब कानून के रखवाले हैं। दूसरी बात इन्हें हमारे मकान से वो सब चीज़ें मिली हैं इस लिए पहली नज़र में हर कोई यही समझेगा और कहेगा कि वो सब चीज़ें हमारी हैं। यानी हम ग़ैर कानूनी धंधा भी करते हैं। दूसरा ब्यक्ति ये नहीं सोचेगा कि कोई अन्य ब्यक्ति ये सब चीज़ें हमारे मकान में रख कर हमें फॅसा भी सकता है। अतः मौजूदा हालात में हमें कानून का हर कहा मानना पड़ेगा और उसका साथ देना पड़ेगा। तुम फिक्र मत करो बेटे, ये हमें ले जाकर हमसे इस सबके बारे में पूॅछताछ करेंगे। इस सबके लिए हमें तभी सज़ा मिलेगी जब ये साबित हो जाएगा कि वो सब चीज़ें वास्तव में हमारी ही हैं या हम कोई ग़ैर कानूनी धंधा भी करते हैं।"

अजय सिंह की बात सुन कर शिवा कुछ बोल न सका। प्रतिमा ने भी कुछ न कहा। कदाचित वो खुद भी अजय सिंह की इस बात से सहमत थी। दूसरी बात, वो तो जानती ही थी कि वो सब चीज़ें सच में अजय सिंह की ही हैं। इस लिए ये सब सोच कर और इसके अंजाम का सोच कर वो अंदर ही अंदर बुरी तरह घबराए भी जा रही थी। वो अच्छी तरह जानती थी कि ऐसे मामले में कानून की गिरफ्त से बचना असंभव नहीं तो नामुमकिन ज़रूर था।

इधर अजय सिंह के मन में भी यही सब चल रहा था। उसे भी एहसास था कि इससे बचना बहुत मुश्किल काम है। इस लिए वो कोई न कोई जुगाड़ लगाने भी सोच रहा था। मगर चूॅकि उसके पुराने कानूनी कनेक्शन पहले ही खत्म हो चुके थे इस लिए वो कुछ कर पाने की हालत में नहीं था। दूसरी सबसे बड़ी बात ये थी कि उसे इस बात का एहसास हो चुका था कि अगर किसी तरह वो पुलिस कमिश्नर अथवा प्रदेश के मंत्री को अपने हक़ में कर भी ले तो तब भी बात अपने पक्ष में नहीं होनी थी। क्योंकि उसने देखा था कि उसके साथ घटी पिछली सभी घटनाओं में ऐसा हुआ था कि ऊपर से ही शख्त आदेश मिला था।

अजय सिंह के पसीने छूट रहे थे मगर उसके दिमाग़ में कोई बेहतर जुगाड़ आ नहीं रहा था। वक्त और हालात ने अचानक ही इस तरह से अपना रंग बदल लिया था कि उसको कुछ करने लायक छोंड़ा ही नहीं था। उसने कल्पना तक न की थी कि वो इतना बेबस व लाचार हो जाएगा और इतनी आसानी से कानून की चपेट में आ जाएगा।

"तो चलें मिस्टर अजय सिंह?" सहसा ड्राइंग रूम में छाए सन्नाटे को भेदते हुए उस ऑफिसर ने कहा__"अगर आपको ये लगता है कि ये सब किसी ने आपको फॅसाने के उद्देश्य से किया है और इस सबमें आपका कोई हाॅथ नहीं है तो फिक्र मत कीजिए। हम सच्चाई का पता लगा लेंगे। किन्तु उससे पहले आपको हमारे साथ चलना ही पड़ेगा और तहकीक़ात में हमारा सहयोग करना पड़ेगा।"

उस ऑफिसर के इतना कहते ही अजय सिंह ने गहरी साॅस ली और फिर सोफे से उठ खड़ा हुआ। इस वक्त उसके बदन पर नाइट ड्रेस ही था इस लिए उसने ऑफिसर से ड्रेस बदल लेने की परमीशन माॅगी। ऑफिसर ने परमीशन दे दी। परमीशन मिलते ही अजय सिंह कमरे की तरफ बढ़ गया। उसके जाते ही ऑफिसर ने एक अन्य ऑफिसर की तरफ देख कर ऑखों से कुछ इशारा किया। ऑफिसर का इशारा समझ कर दूसरा ऑफिसर तुरंत ही अजय सिंह के पीछे कमरे की तरफ बढ़ गया। मतलब साफ था कि ऑफिसर को इस बात का अंदेशा था कि अंदर कमरे अजय सिंह कहीं फोन पर किसी से कोई बात वगैरा न करने लगे। जबकि मौजूदा हालात में ऐसा करना हर्गिज़ भी जायज़ बात न थी।

कुछ ही देर में ऑफिसर के साथ ही अजय सिंह कमरे से आता दिखाई दिया। उसके आते ही सभी लोग सोफों पर से उठे और अजय सिंह के साथ ही बाहर आ गए। जबकि पीछे बुत बने अजय सिंह की बीवी और बेटा खड़े रह गए थे। फिर जैसे प्रतिमा को होश आया। वो एकदम से तेज़ क़दमों के साथ बाहर की तरफ भागते हुए गई। जब वो बाहर आई तो उसने देखा कि सीबीआई के सभी ऑफिसर अपनी अपनी गाड़ियों में बैठ रहे थे। एक अन्य गाड़ी की पिछली शीट पर अजय सिंह को बिठाया जा रहा था, और उसके बाद उसके बगल से ही एक अन्य ऑफिसर बैठ गया था।

प्रतिमा के देखते ही देखते सीबीआई वालों का वो क़ाफिला अजय सिंह को साथ लिए हवेली से दूर चला गया। प्रतिमा को ऐसा महसूस हुआ जैसे उसकी मुकम्मल दुनियाॅ ही नेस्तनाबूत हो गई हो। इस एहसास के साथ ही प्रतिमा की ऑखें छलक पड़ीं और फिर जैसे उसके जज़्बात उसके काबू में रह सके। वो दरवाजे पर खड़ी खड़ी ही फूट फूट कर रो पड़ी। तभी उसके पीछे शिवा नमूदार हुआ और अपनी रोती हुई माॅ को उसके कंधे से पकड़ कर अपनी तरफ घुमाया और फिर उसे अपने सीने से लगा लिया।
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उधर रितू के फार्महाउस पर भी सुबह हो गई थी। अपने कमरे के अटैच बाथरूम में नहाने के बाद रितू कपड़े पहन रही थी जब उसके कमरे का दरवाजा बाहर से कुण्डी के दवारा बजाया गया था। रितू ने पूछा कौन है तो बाहर से नैना की आवाज़ आई थी कि मैं हूॅ बेटा जल्दी से दरवाज़ा खोलो। बस, उसके बाद रितू ने आनन फानन में अपने कपड़े पहने और फिर जाकर कमरे का दरवाज़ा खोला। दरवाज़ा खुलते ही नैना बुवा पर नज़र पड़ी तो वह हल्के से चौंकी।

"क्या बात है बुआ?" रितू ने शशंक भाव से पूछा__"आप इस तरह? सब ठीक तो है न?"
"ये ले।" नैना ने जल्दी से अपना दाहिना हाथ रितू की तरफ बढ़ाया___"ये अख़बार पढ़। इसमें ऐसी ख़बर छपी है छिसे पढ़ कर तेरे होश न उड़ जाएॅ तो कहना।"

"अच्छा।" रितू ने अख़बार अपने हाॅथ में लेते हुए कहा___"भला ऐसी क्या ख़बर छपी है इस अख़बार में जिसे पढ़ने पर मेरे होश ही उड़ जाएॅगे?"
"तू पढ़ तो सही।" नैना कहने के साथ ही दरवाजे के अंदर रितू को खींचते हुए ले आई, बोली___"बताने में वो बात नहीं होगी जितना कि खुद ख़बर पढ़ने से होगी।"

नैना, रितू को खींचते हुए बेड के क़रीब आई और उसमें रितू को बैठा कर खुद भी बैठ गई और रितू के चेहरे के भावों को बारीकी से देखने लगी। रितू ने अख़बार की फ्रंट पेज़ पर छपी ख़बर पर अपनी दृष्टि डाली और ख़बर की हेड लाईन पढ़ते ही वो बुरी तरह उछल पड़ी। अख़बार में छपी ख़बर कुछ इस प्रकार थी।

*शहर के मशहूर कपड़ा ब्यापारी अजय सिंह के मकान से करोड़ों का ग़ैर कानूनी सामान बरामद*

(गुनगुन): हल्दीपुर के रहने वाले ठाकुर अजय सिंह बघेल वल्द गजेन्द्र सिंह बघेल जो कि एक मशहूर कपड़ा ब्यापारी हैं उनके गुनगुन स्थित मकान पर कल शाम को सीबीआई वालों ने छापा मारा। मकान के अंदर से भारी मात्रा में चरस अफीम ड्रग्स आदि जानलेवा चीज़ें सीबीआई के हाथ लगी। ग़ौरतलब बात ये है कि गुनगुन स्थित ठाकुर अजय सिंह का वो मकान कुछ समय से खाली पड़ा था, इस लिए ये स्पष्ट रूप से नहीं कहा जा सकता कि ग़ैर कानूनी चीज़ों का इतना बड़ा ज़खीरा उनके मकान में कहाॅ से आ गया? ऐसा इस लिए क्योंकि ठाकुर अजय सिंह जैसे मशहूर कारोबारी से ऐसे संगीन धंधे की बात सोची नहीं जा सकती जो कि जुर्म कहलाता है। इस लिए संभव है कि ये सब उनके किसी दुश्मन की सोची समझी साजिश का ही नतीजा हो। ख़ैर, अब देखना ये होगा कि सीबीआई वालों की जाॅच पड़ताड़ से क्या सच्चाई सामने आती है? अब ये तो निश्चित बात है कि ठाकुर अजय सिंह के मकान से मिले इतने सारे ग़र कानूनी सामान के तहत सीबीआई वाले बहुत जल्द ठाकुर अजय सिंह को अपनी हिरासत में लेकर इस बारे में पूछताॅछ करेंगे। किन्तु अगर सीबीआई की जाॅच में ये बात सामने आई कि वो सब ग़ैर कानूनी सामान ठाकुर अजय सिंह का ही है तो यकीनन ठाकुर अजय सिंह को इस संगीन जुर्म में कानून के द्वारा शख्तसे शख्त सज़ा मिलेगी।

अख़बार में छपी इस ख़बर को पढ़ कर यकीनन रितू के होश उड़ ही गए थे। उसके दिमाग़ की बत्ती बड़ी तेज़ी से जली थी और साथ ही उसे विराज की वो बात याद आई जब उसने गुनगुन रेलवे स्टेशन पर रितू से कहा था कि बहुत जल्द अजय सिंह को एक झटका लगने वाला है। ये भी कि उसकी सेफ्टी के लिए वह भी ऐसा करेगा कि अजय सिंह या उसका कोई आदमी उस तक पहुॅच ही नहीं पाएगा।

"इसका मतलब तो यही हुआ बुआ कि अब तक डैड को सीबीआई वाले गिरफ्तार कर लिए होंगे।" रितू ने गहरी साॅस लेते हुए कहा___"और अगर ऐसा हो गया होगा तो यकीनन डैड लम्बे से नप जाएॅगे। एक ही झटके में वो कानून की ऐसी चपेट में आ जाएॅगे जहाॅ से निकल पाना असंभव नहीं तो नामुमकिन ज़रूर है।"

"ये तो अच्छा ही हुआ न रितू।" नैना ने कहा___"बुरे काम करने का ये अंजाम तो होना ही था। लेकिन सबसे बड़ा सवाल ये है कि ये सब हुआ कैसे?
"ये सब राज की वजह से हुआ है बुआ।" रितू ने बताया___"उसने कल रेलवे स्टेशन में मुझसे कहा था कि वो कुछ ऐसा करेगा जिससे डैड मुझ तक पहुॅच ही नहीं पाएॅगे। ये तो सच है बुआ कि डैड ग़ैर कानूनी धंधा करते थे और फैक्ट्री में मौजूद तहखाने में उनका ये सब ग़ैर कानूनी सामान भी था जिसे राज ने ही गायब किया था। ऐसा उसने इस लिए किया था ताकि वह उस सामान के आधार पर जब चाहे डैड को कानून की गिरफ्त में डलवा सके। इस लिए उसने ऐसा ही किया है बुआ लेकिन मुझे लगता है कि ये सब महज डैड को डराने और मौजूदा हालात से निपटने के लिए राज ने किया है। क्योंकि राज उन्हें अपने हाॅथों से उनके अपराधों की सज़ा देगा, नाकि कानून द्वारा उन्हें किसी तरह की सज़ा दिलवाएगा।"

"लेकिन बेटा।" नैना ने तर्क सा दिया___"कानून की चपेट में आने के बाद बड़े भइया भला कानून की गिरफ्त से कैसे बाहर आएॅगे और फिर कैसे राज उन्हें अपने हाॅथों से सज़ा देगा?"
"उसका भी इंतजाम राज ने किया ही होगा बुआ।" रितू ने कहा___"आज के इस अख़बार में छपी ख़बर के अनुसार ग़ैर कानूनी सामान डैड के मकान से बरामद ज़रूर हुआ है लेकिन ये भी बताया गया है कि चूॅकि गुनगुन स्थित मकान काफी समय से खाली था इस लिए संभव है कि डैड को फॅसाने के लिए उनके किसी दुश्मन ने ऐसा किया होगा। इस लिए सीबीआई वाले इस बारे में सिर्फ पूॅछताछ करेंगे। अब आप खुद समझ सकती हैं बुआ कि राज ने केस को इतना कमज़ोर क्यों बनाया हुआ है कि डैड कानून की गिरफ्त से मामूली पूछताछ के बाद छूट जाएॅ?।"

"लेकिन ये सवाल तो अपनी जगह खड़ा ही रहेगा न रितू कि बड़े भइया के मकान में वो ग़ैर कानूनी सामान कैसे पाया गया?" नैना ने कहा___"इस लिए इस सवाल के साल्व हुए बिना बड़े भइया इस केस से कैसे छूट जाएॅगे भला?"

"बहुत आसान है बुआ।" रितू ने कहा___"पैसों के लिए आजकल लोग बहुत कुछ कर जाते हैं। कहने का मतलब ये कि वो किसी ऐसे ब्यक्ति को ढूॅढ़ लेंगे जो पैसों के लिए कुछ भी करने को तैयार हो जाए। वो ब्यक्ति इस बात को खुद स्वीकार करेगा कि वो सारा ग़ैर कानूनी सामान उसका खुद का है और उसने डैड के मकान में उसे इस लिये छुपाया हुआ था क्योंकि वो मकान काफी समय से खाली था तथा उसके लिए एक सुरक्षित जगह की तरह था।"

"चलो ये तो मान लिया कि ऐसा हो सकता है।" नैना ने मानो तर्क किया___"किन्तु सबसे बड़ा सवाल ये ये है कि तुम्हारे डैड ऐसे किसी ब्यक्ति को लाएॅगे कहाॅ से? जबकि वो खुद ही सीबीआई वालों की निगरानी में रहेंगे और उनके पास किसी से संपर्क स्थापित करने के लिए कीई ज़रिया ही नहीं होगा।"

"सवाल बहुत अच्छा है बुआ।" रितू ने कुछ सोचते हुए कहा__"किन्तु अगर हम ये सोच कर देखें कि ये सब राज का ही किया धरा है तो ये भी निश्चित बात है कि वो खुद ही ऐसा कुछ करेगा जिससे डैड सीबीआई या कानून के चंगुल से बाहर आ जाएॅ।"

"ऐसे मामलों में कानून के चंगुल से किसी का बाहर आ जाना नामुमकिन तो नहीं होता रितू।" नैना ने गहरी साॅस लेते हुए कहा___"किन्तु अगर तू ये कह रही है कि राज तेरे डैड को किसी हैरतअंगेज कारनामे की वजह से बाहर निकाल ही लेगा तो सवाल ये उठता है कि ऐसा क्या करेगा राज? दूसरी बात, जब उसे कानून की गिरफ्त से निकाल ही लेना है तो फिर तेरे डैड की कानून की चपेट में लाने का मतलब ही क्या था?"

"खजूर पर चढ़े इंसान को ज़मीन पर पटकने का मकसद था उसका।" रितू ने कहा___"वो कहते हैं न कि जब तक ऊॅट पहाड़ के सामने नहीं आता तब तक उसे यही लगता है कि उससे ऊॅचा कोई है ही नहीं। यही हाल मेरे डैड का था बुआ। राज का मकसद कदाचित यही है कि वो डैड को एहसास दिलाना चाहता है कि इस दुनियाॅ में उनसे भी बड़े बड़े ख़लीफा मौजूद हैं। वो चाहे तो उन्हें एक पल में चुटकियों में मसल सकता है। आज के इस वाक्ये के बाद संभव है कि डैड की विचारधारा में कुछ तो परिवर्तन ज़रूर आया होगा।"

"ये तो सच कहा तूने।" नैना ने कहा___"अगर सीबीआई वाले बड़े भइया को अपने साथ ले गए होंगे तो ये सच है कि बड़े भइया को आज आटे दाल के भाव का पता चल जाएगा।"

"हाॅ बुआ।" रितू ने कहा___"राज को मौजूदा हालातों का बखूबी एहसास था। कदाचित उसे ये अंदेशा था कि इतनी नाकामियों के बाद डैड अब खुद मैदान में उतरेंगे और हमें खोज कर हमारा क्रिया कर्म करेंगे। इसी लिए राज ने ये क़दम उठाया कि जब डैड ही कानून की गिरफ़्त में रहेंगे तो भला हम पर किसी तरह का उनकी तरफ से कोई संकट आएगा ही कैसे?"

"तो इसका मतलब ये हुआ कि बड़े भइया को राज ने कानून की गिरफ्त में फॅसाया।" नैना को जैसे सारी बात समझ में आ गई थी, बोली___"सिर्फ इस लिए कि वो तेरे डैड को एहसास दिला सके कि वो जिसे पिद्दी का शोरबा समझते हैं वो दरअसल ऐसा है कि उनको छठी का दूध याद दिला सकता है। ख़ैर, इन बातों से ये भी एक बात समझ में आती है कि राज ने तुझको सेफ करने के लिए भी तेरे डैड को कुछ दिनों के लिए कानून की गिरफ्त में फॅसाया है। दो दिन बाद तो वो खुद ही यहाॅ आ जाएगा और संभव है ऐसा कुछ कर दे जिससे उसका शिकार कानून की चपेट से बाहर आ जाए।"

"यू आर अब्सोल्यूटली राइट बुआ।" रितू ने कहा___"राज का यकीनन यही प्लान हो सकता है। ख़ैर, अब तो इस बात की फिक्र करने की कोई ज़रूरत नहीं है कि डैड या उनके किसी आदमी से हमें कोई ख़तरा है।"
"लेकिन एक बात सोचने वाली है रितू।" नैना ने सोचने वाले भाव से चहा___"तेरे डैड की इस गिरफ्तारी से तेरी माॅ और तेरे भाई पर इसका गहरा प्रभाव पड़ा होगा। प्रतिमा भाभी ने खुद भी वकालत की पढ़ाई की है इस लिए संभव है कि वो तेरे डैड को कानून की गिरफ्त से निकालने का कोई जुगाड़ लगाएॅ।"

"कोई फायदा नहीं होने वाला बुआ।" रितू ने कहा__"जिसे जितना ज़ोर लगाना है लगा ले मगर हाॅथ कुछ नहीं आएगा। क्योंकि एक तो मामला ही इतना संगीन है दूसरे इस सबमें राज का हाॅथ है। उसकी पहुॅच काफी लम्बी है, इस लिए उसकी पहुॅच के आगे इन लोगों का कोई भी पैंतरा काम नहीं करने वाला। ये तो पक्की बात है कि होगा वहीं जो राज चाहेगा।"

"हाॅ ये तो है।" नैना ने कहा___"ख़ैर देखते हैं क्या होता है? वैसे इस बारे में क्या अभी तक तुमने राज से बात नहीं की??"
"अभी तो नहीं की बुआ।" रितू ने कहा___"पर अब जल्द ही उससे बात करूॅगी। वास्तव में उसने बड़ा हैरतअंगेज काम किया है। मुझे तो उससे ये उम्मीद ही नहीं थी।"

"वक्त और हालात एक इंसान को कहाॅ से कहाॅ पहुॅचा देते हैं और उससे क्या क्या करवा देते हैं ये सब उस तरह का समय आने पर ही पता चलता है।" नैना ने जाने क्या सोच कर कहा___"सोचने वाली बात है कि राज जो एक बेहद ही सीधा सादा लड़का हुआ करता था आज वो इतना जहीन तथा इतना शातिर दिमाग़ का भी हो गया है।"

"इसमें उसकी कोई ग़लती नहीं है बुआ।" रितू ने भारी मन से कहा___"उसे इस तरह का बनाने वाले भी मेरे ही पैरेंट्स हैं। इंसान अपनों का हर कहा मानता है और उसका जुल्म भी सह लेता है लेकिन उसकी भी एक समय सीमा होती है। इतना कुछ जिसके साथ हुआ हो वो ऐसा भी न बन सके तो फिर कैसा इंसान है वो?"

नैना, रितू की बात सुन कर उसे देखती रह गई। कुछ देर और ऐसी ही बातों के बाद वो दोनो ही कमरे से बाहर आ गईं और नीचे नास्ते की टेबल पर आकर बैठ गईं। जहाॅ पर करुणा का भाई हेमराज पहले से ही मौजूद था। रितू अपनी नैना बुआ के साथ अलग अलग कुर्सियों पर बैठी ही थी कि उसका आई फोन बज उठा। उसने मोबाइल की स्क्रीन पर फ्लैश कर रहे "माॅम" नाम को देखा तो उसके होठों पर अनायास ही नफ़रत व घृणा से भरी मुस्कान फैल गई। कुछ सेकण्ड तक वो मोबाइल की स्क्रीन को देखती रही फिर उसने आ रही काल को कट कर दिया। काल कट करते वक्त उसके चेहरे पर बेहद कठोरता के भाव थे।
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उधर मुम्बई में!
सुबह हुई!
अजय सिंह व प्रतिमा की दूसरी बेटी नीलम की ऑखें गहरी नींद से खुल तो गईं थी मगर वो खुद बेड से न उठी थी अभी तक। हॅसती मुस्कुराती हुई रहने वाली मासूम सी नीलम एकाएक ही जैसे बेहद गुमसुम सी रहने लगी थी। काॅलेज में हुई उस घटना को आज हप्ता से ज्यादा दिन गुज़र गया था किन्तु उस घटना की ताज़गी आज भी उसके ज़हन में बनी हुई थी। उसे अपनी इज्ज़त के तार तार हो जाने का इतना दुख न होता जितना आज उसे इस बात पर हो रहा था कि उसका चचेरा भाई उसे नफ़रत और घृणा की दृष्टि से देख कर इस तरह उसके सामने से मुह फेर कर चला गया था जैसे वो उसे पहचानता ही न था। नीलम और विराज दोनो ही हमउमर थे किन्तु नीलम का बिहैवियर भी रितू की तरह रहा था विराज के साथ।

उस दिन की घटना ने नीलम के मुकम्मल वजूद को हिला कर रख दिया था। उसने इस घटना के बारे में अपने खुद के पैरेंट्स को बिलकुल भी नहीं बताया था। मौसी की लड़की को बस बताया था किन्तु उसने उससे भी वादा ले लिया था कि वो उसके घरवालों को ये बात न बताए कभी।

उस दिन की घटना के बाद पहले तो दो दिन नीलम काॅलेज नहीं गई थी किन्तु फिर तीसरे दिन से जाने लगी थी। काॅलेज में हर जगह उसकी नज़रें बस अपने चचेरे भाई विराज को ही ढूॅढ़तीं मगर पिछले कई दिनों से उसे अपना वो चचेरा भाई काॅलेज में कहीं न दिखा था। उसे समझ नहीं आ रहा था कि आख़िर विराज काॅलेज क्यों नहीं आ रहा? कहीं ऐसा तो नहीं कि उसकी वजह से उसने ये काॅलेज ही छोंड़ दिया हो। ये सोच कर ही नीलम की जान उसके हलक में आकर फॅस जाती। वो सोचती कि अगर विराज ने सच में उसकी ही वजह से काॅलेज छोंड़ दिया होगा तो ये कितनी बड़ी बात है। मतलब कि आज के समय में विराज उससे इतनी नफ़रत करता है कि वो उसे देखना तक गवाॅरा नहीं करता। ये सब बातें नीलम को रात दिन किसी ज़हरीले सर्प की भाॅति डसती रहती थी।

"बस एक बार।" नीलम के मुख से हर बार बस यही बात निकलती____"सिर्फ एक बार फिर से मुझे मिल जाओ मेरे भाई। तुमसे मिल कर मैं अपने किये की माफ़ी माॅगना चाहती हूॅ। मुझे एहसास है कि मेरे भाई कि मैने बचपन से लेकर अब तक तुम्हें सिर्फ दुख दिया है। तुम्हें तरह तरह की बातों से जलील किया था। मगर एक तुम थे कि मेरी उन कड़वी बातों का कभी भी बुरा नहीं मानते थे। जबकि कोई और होता तो जीवन भर मुझे देखना तक पसंद न करता। मुझे सब कुछ अच्छी तरह से याद है भाई। मेरे माॅम डैड ने हमेशा हम भाई बहनों को यही सिखाया था कि तुम सब बुरे लोग हो इस लिए हम तुमसे दूर रहें और कभी भी किसी तरह का कोई मेल मिलाप न रखें। हम बच्चे ही तो थे भाई, जैसा माॅ बाप सिखाते थे उसी को सच मान लेते थे और फिर इस सबकी आदत ही पड़ गई थी। मगर उस दिन तुमने मेरी इज्ज़त बचा कर ये जता दिया कि तुम बुरे नहीं हो सकते। जिस तरह से तुम मुझे देख कर नफ़रत व घृणा से अपना मुह मोड़ कर चले गए थे, उससे मुझे एहसास हो चुका था कि तुमने जो किया वो एक ऊॅचे दर्ज़े का कर्म था और जो मैंने अब तक किया था वो हद से भी ज्यादा निचले दर्ज़े का कर्म था। मुझे बस एक बार मिल जाओ राज। मैं तुमसे अपने गुनाहों की माफ़ी माॅगना चाहती हूॅ। तुम जो भी सज़ा दोगे उस सज़ा को मैं खुशी खुशी कुबूल कर लूॅगी। प्लीज़ राज, बस एक बार मुझे मिल जाओ। तुम काॅलेज क्यों नहीं आ रहे हो? क्या इतनी नफ़रत करते हो तुम अपनी इस बहन से कि जिस काॅलेज में मैं हूॅ वहाॅ तुम पढ़ ही नहीं सकते? ऐसा मत करना मेरे भाई। वरना मैं अपनी ही नज़रों में इस क़दर गिर जाऊॅगी कि फिर उठ पाना मेरे लिए असंभव हो जाएगा।"

ये सब बातें अपने आप से ही करना जैसे नीलम की दिनचर्या में शामिल हो गया था। उसके मौसी की लड़की उसे इस बारे में बहुत समझाती मगर नीलम पर उसकी बातों का कोई असर न होता। काॅलेज में हुई घटना से नीलम थोड़ा गुमसुम सी रहने लगी थी। मगर इसका कारण यही था कि विराज काॅलेज नहीं आ रहा था। वो हर रोज़ समय पर काॅलेज पहुॅच जाती और सारा दिन काॅलेज में रुकती। उसकी नज़रें हर दिन अपने भाई को तलाश करती मगर अंत में उन ऑखों में मायूसी के साथ साथ ऑसू भर आते और फिर वो दुखी भाव से घर लौट जाती। कालेज के बाॅकी स्टूडेंट्स नार्मल ही थे। उस घटना के बाद किसी ने कभी कोई टीका टिप्पणी न की थी।

कुछ देर ऐसे ही सोचो में गुम वह बेड पर पड़ी रही उसके बाद वो उठी और बाथरूम की तरफ बढ़ गई। बाथरूम में फ्रेश होने के बाद वो वापस कमरे में आई और काॅलेज के यूनीफार्म पहन कर तथा कंधे पर एक मध्यम साइज़ का बैग लेकर वो कमरे से बाहर की तरफ बढ़ी ही थी कि उसका मोबाइल बज उठा। उसने बैग के ऊपरी हिस्से की चैन खोला और अपना मोबाइल निकाल कर स्क्रीन पर नज़र आ रहे "माॅम" नाम को देखा तो उसने काल रिसीव कर मोबाइल कानों से लगा लिया।

"............।" उधर से प्रतिमा ने कुछ कहा।
"क्याऽऽऽ????" नीलम के हाॅथ से मोबाइल छूटते छूटते बचा था। उसके हलक से जैसे चीख सी निकल गई थी, बोली___"ये ये आप क्या कह रही हैं माॅम? डैड को सीबीआई वाले ले गए? मगर क्यों??? आख़िर ऐसा क्या किया है डैड ने?"

"............।" उधर से प्रतिमा ने फिर कुछ कहा।
"ओह अब क्या होगा माॅम?" प्रतिमा की बात सुनने के बाद नीलम ने संजीदगी से कहा___"क्या रितू दीदी ने कुछ नहीं किया? वो भी तो एक पुलिस ऑफिसर हैं?"
"..............।" उधर से प्रतिमा ने कुछ देर तक कुछ बात की।

"क्याऽऽ???" नीलम बुरी तरह उछल पड़ी____"ये आप क्या कह रही हैं? दीदी भला ऐसा कैसे कर सकती हैं माॅम? नहीं नहीं, आपको और डैड को ज़रूर कोई ग़लतफहमी हुई है। रितू दीदी ये सब कर ही नहीं सकती हैं। आप तो जानती हैं कि दीदी ने कभी उसकी तरफ देखना तक पसंद नहीं किया था। फिर भला आज वो कैसे उसका साथ देने लगीं? ये तो इम्पाॅसिबल है माॅम।"

"...........।" उधर से प्रतिमा ने फिर कुछ कहा।
"मैं इस बारे में दीदी से बात करूॅगी माॅम।" नीलम ने गंभीरता से कहा___"उनसे पूछूॅगी कि आख़िर वो ये सब क्यों कर रही हैं?"
"............।" उधर से प्रतिमा ने झट से कुछ कहा।
"क्यों नहीं पूॅछ सकती माॅम?" नीलम ने ज़रा चौंकते हुए कहा___"आख़िर पता तो चलना ही चाहिए कि उनके मन में क्या है अपने पैरेंट्स के प्रति? इस लिए मैं उनसे फोन लगा कर ज़रूर इस बारे में बात करूॅगी।"

"..........।" उधर से प्रतिभा ने फिर कुछ कहा।
"मैं भी आ रही हूॅ माॅम।" नीलम ने कहा___"ऐसे समय में में मुझे अपने माॅ डैड के पास ही रहना है। दूसरी बात मैं देखना चाहती हूॅ कि रितू दीदी ये सब कैसे करती हैं अपने ही माॅ बाप और भाई के खिलाफ़?"
"...............।" उधर से प्रतिमा ने कुछ कहा।
"ओके माॅम।" नीलम ने कहा और काल कट कर दिया।

इस वक्त उसके दिलो दिमाग़ में एकाएक ही तूफान सा चालू हो गया था। मन में तरह तरह के सवाल उभरने लगे थे। जिनका जवाब फिलहाल उसके पास न था किन्तु जानना आवश्यक था उसके लिए। दरवाजे की तरफ न जाकर वह वापस पलट कर बेड पर बैठ गई और गहन सोच में डूब गई।

"डैड को सीबीआई वाले अपने साथ ले गए।" नीलम मन ही मन सोच रही थी___"वजह ये कि उनके शहर वाले मकान से भारी मात्रा में चरस अफीम व ड्रग्स जैसी गैर कानूनी चीज़ें सीबीआई वालो को बरामद हुई। सवाल ये उठता है कि क्या सच में डैड इस तरह का कोई ग़ैर कानूनी धंधा करते हैं? वहीं दूसरी तरफ रितू दीदी आज कल अपने ही पैरेंट्स के खिलाफ़ जाकर राज का साथ दे रही हैं। भला ये असंभव काम संभव कैसे हो सकता है? आख़िर ऐसा क्या हुआ है कि दीदी माॅम डैड के सबसे बड़े दुश्मन का साथ देने लगी हैं? माॅम ने बताया कि राज गाॅव आया था, इसका मतलब इसी लिए वो काॅलेज नहीं आ रहा था। मगर वो गाॅव गया किस लिए था? और गाॅव में ऐसा क्या हुआ है कि दीदी अपने उस चचेरे भाई का साथ देने लगीं जिसे वो कभी देखना भी पसंद नहीं करती थीं?"

नीलम के ज़हन में हज़ारों तरह के सवाल इधर उधर घूमने लगे थे मगर नीलम को ये सब बातें हजम नहीं हो रही थी। सोचते सोचते सहसा नीलम के दिमाग़ की बत्ती जली। उसके मन में विचार आया कि वो खुद भी तो कभी राज को अपना भाई नहीं समझती थी जबकि आज हालात ये हैं कि वो अपने उसी भाई से मिल कर अपने उन गुनाहों की उससे माफ़ी माॅगना चाहती है। कहीं न कहीं उसका अपने इस भाई के प्रति हृदय परिवर्तन हुआ था तभी तो उसके दिल में ऐसे भावनात्मक भाव आए थे। दूसरी तरफ रितू दीदी भी राज का साथ दे रही हैं। इसका मतलब कुछ तो ऐसा हुआ है जिसके चलते दीदी का भी राज के प्रति हृदय परिवर्तन हुआ है और वो आज उसका साथ भी दे रही हैं। इतना ही नहीं अपने ही पैरेंट्स के खिलाफ़ राज के साथ लड़ाई लड़ रही हैं।

नीलम को अपना ये विचार जॅचा। उसको एहसास हुआ कि कुछ तो ऐसी बात हुई जिसका उसे इस वक्त कोई पता नहीं है। ये सब सोचने के बाद उसने मोबाइल पर रितू दीदी का नंबर ढूॅढ़ा और काल लगा कर मोबाइल कान से लगा लिया। काल जाने की रिंग बजती सुनाई दी उसे। कुछ ही देर में उधर से रितू ने काल रिसीव किया।

"............।" उधर से रितू ने कुछ कहा।
"मैं तो बिलकुल ठीक हूॅ दीदी।" नीलम ने कहा___"आप बताइये आप कैसी हैं?"
"...........।" उधर से रितू ने फिर कुछ कहा।
"हाॅ दीदी काॅलेज अच्छा चल रहा है और साथ में पढ़ाई भी अच्छी चल रही है।" नीलम ने कहने के साथ ही पहलू बदला___"दीदी, अभी अभी माॅम का फोन आया था मेरे पास। उन्होंने कुछ ऐसा बताया जिसे सुन कर मेरे होश ही उड़ गए हैं। वो कह रही थी कि डैड को सीबीआई वाले ग़ैर कानूनी सामान के चलते अपने साथ ले गए हैं। ये भी कि आप विराज का साथ दे रही हैं। ये सब क्या चक्कर है दीदी? प्लीज़ बताइये न कि ऐसा क्या हो गया है कि आप अपने ही पैरेंट्स के खिलाफ़ हैं? माॅम कह रही थी कि आपने उनका काल भी रिसीव नहीं किया। वो आपको भी डैड के बारे में सूचित करना चाहती थी।"

".............।" उधर से रितू ने काफी देर तक कुछ कहा।
"बातों को गोल गोल मत घुमाइये दीदी।" नीलम ने बुरा सा मुह बनाया____"साफ साफ बताइये न कि आख़िर क्या बात हो गई है जिसकी वजह से आप माॅम डैड के खिलाफ़ हो कर उस विराज का साद दे रही हैं?"

"...........।" उधर से रितू ने फिर कुछ कहा।
"इसका मतलब आप खुद मुझे कुछ भी बताना नहीं चाहती हैं।" नीलम ने कहा___"और ये कह रही हैं कि सच्चाई का पता मैं खुद लगाऊॅ। ठीक है दीदी, मैं आ रही हूॅ। क्या आपसे मिल भी नहीं सकती मैं?"

"............।" उधर से रितू ने कुछ कहा।
"ठीक है दीदी।" नीलम ने कहा___"लेकिन मैं इतना ज़रूर जानती हूॅ कि बात भले ही चाहे जो कुछ भी हुई हो मगर ऐसा नहीं होना चाहिए कि बच्चे अपने माॅ बाप से इस तरह खिलाफ़ हो जाएॅ।"

इतना कहने के बाद नीलम ने काल कट कर दिया और फिर दुखी भाव से बेड पर कुछ देर बैठी जाने क्या सोचती रही। उसके बाद जैसे उसने कोई फैसला किया और फिर उठ कर काॅलेज की यूनिफार्म को उतारने लगी। कुछ ही देर में उसने दूसरे कपड़े पहन लिए और फिर कमरे से बाहर निकल गई।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~


इधर विराज एण्ड पार्टी की ट्रेन अपने निर्धारित समय से कुछ ही समय की देरी से आख़िर मुम्बई पहुॅच ही गई थी। सब लोग ट्रेन से बाहर आए और फिर प्लेटफार्म से बाहर की तरफ निकल गए। विराज ने मुम्बई पहुॅचने से पहले ही जगदीश ओबराय को फोन कर दिया था। इस लिए जैसे ही ये लोग स्टेशन से बाहर आए वैसे ही जगदीश ओबराय बाहर मिल गया। उसके साथ एक कार और थी। सब लोग कार मे बैठ कर घर के लिए निकल गए।

रास्ते में जगदीश अंकल ने मुझे बताया कि उन्होंने माॅ से बात कर ली है। पहले तो माॅ मेरी वापसी की बात सुन कर नाराज़ हुईं। मगर जगदीश अंकल ने उन्हें सारी बात तरीके से बताई और ये यकीन दिलाया कि मुझे कुछ नहीं होगा तब जाकर वो राज़ी हुई थी। लेकिन उन्होंने ये भी कहा कि वो एक बार मुझे देखना चाहती हैं। अतः अब मैं इन लोगों के साथ ही घर तक जा रहा था। वरना मेरा प्लान ये था कि मैं यहाॅ से वापस उसी ट्रेन से लौट जाता।

मुम्बई से वापसी के लिए इसी ट्रेन को लगभग कुछ घण्टे बाद जाना था इस लिए मैं बड़े आराम से गर जाकर माॅ से मिल सकता था। ख़ैर, कुछ ही समय बाद हम सब घर पहुॅच गए। घर पर सब एक दूसरे से मिले। करुणा चाची जब माॅ से मिली तो बहुत रो रही थी और बार बार माॅ से माफ़ियाॅ माॅग रही थी। माॅ ने उन्हें अपने सीने से लगा लिया था। करुणा चाची को वो हमेशा अपनी छोटी बहन की तरह मानती थी और प्यार करती थी। आशा दीदी और उनकी माॅ से भी मेल मिलाप हुआ। मिलने मिलाने में ही काफी समय ब्यतीत हो गया था।

मैं अपने कमरे में जाकर फ्रेश हो गया था। आदित्य भी फ्रेश हो गया था। उसे मेरे साथ ही वापस गाॅव जाना था। निधी भी सबसे मिली। करुणा चाची ने उसे ढेर सारा प्यार व स्नेह दिया था। दिव्या और शगुन को माॅ ने अपने सीने से ही छुपकाया हुआ था। अभय चाचा खुश थे कि उनके बीवी बच्चे सही सलामत यहाॅ आ गए थे। अब उन्हें उनके लिए कोई फिक्र नहीं थी। शायद यही वजह थी कि वो खुद भी मेरे साथ चलने की बात करने लगे थे। उनका कहना था कि वो खुद भी इस जंग में हिस्सा लेंगे और अपने बड़े भाई से इस सबका बदला लेंगे। मगर मैने और जगदीश अंकल ने उन्हें समझा बुझा कर मना कर दिया था।

मैने एक बात महसूस की थी कि निधी का बिहैवियर मेरे प्रति कुछ अलग ही था। इसके पहले वह हमेशा मेरे पषास में ही रहने की कोशिश करती थी जबकि अब वो मुझसे दूर दूर ही रह रही थी। यहाॅ तक कि मेरी तरफ देख भी नहीं थी वो। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि वो ऐसा क्यों कर रही थी। मैने एक दो बार खुद उससे बात करने की कोशिश की मगर वो किसी न किसी बहाने से मेरे पास से चली ही जाती थी। मुझे उसके इस रूखे ब्यवहार से तक़लीफ़ भी हो रही थी। वो मेरी जान थी, मैं उसकी बेरुखी पल भर के लिए भी सह नहीं सकता था मगर सबके सामने भला मैं उससे इस बारे कैसे बात कर सकता था? मेरे पास वक्त नहीं था, इस लिए मैने मन में सोच लिया था कि सब कुछ ठीक करने के बाद मैं उससे बात करूॅगा और उसकी किसी भी प्रकार की नाराज़गी को दूर करूॅगा।

मैं माॅ से मिला तो माॅ मेरी वापसी की बात से भावुक हो गईं। उन्हें पता था कि मैं वापस किस लिए जा रहा हूॅ इस लिए वो मुझे बार बार अपना ख़याल रखने के लिए कह रही थी। ख़ैर मैने उन्हें आश्वस्त कराया कि मैं खुद का ख़याल करूॅगा और मुझे कुछ नहीं होगा।

चलने से पहले मैने सबसे आशीर्वाद लिया और फिर आदित्य के साथ वापसी के लिए चल दिया। मेरे साथ जगदीश अंकल भी थे। पवन और आशा दीदी मुझे अपना ख़याल रखने का कहा और खुशी खुशी मुझे विदा किया। हलाॅकि मैं जानता था कि वो अंदर से मेरे जाने से दुखी हैं। उन्हें मेरी फिक्र थी। अभय चाचा ने मुझे सम्हल कर रहने को कहा। करुणा चाची ने मुझे प्यार दिया और विजयी होने का आशीर्वाद दिया। मैं दिव्या और शगुन को प्यार व स्नेह देकर निधी की तरफ देखा तो वो कहीं नज़र न आई। मैं समझ गया कि वो मुझसे मिलना नहीं चाहती है। इस बात से मुझे तक़लीफ़ तो हुई किन्तु फिर मैंने उस तक़लीफ़ को जज़्ब किया और जगदीश अंकल के साथ कार में बैठ कर वापस रेलवे स्टेशन की तरफ चल दिया।

रेलवे स्टेशन पहुॅच कर मैं और आदित्य कार से उतरे। जगदीश अंकल ने मुझे एक पैकिट दिया और कहा कि मैं उसे अपने बैग में चुपचाप डाल लूॅ। मैने ऐसा ही किया। उसके बाद जगदीश अंकल से मेरी कुछ ज़रूरी बातें हुईं और फिर मैं और आदित्य प्लेटफार्म की तरफ बढ़ गए। ट्रेन वापसी के लिए बस चलने ही वाली थी। हम दोनो ट्रेन में अपनी अपनी शीट पर बैठ गए। मैने मोबाइल से रितू दीदी को फोन किया और उन्हें बताया कि सब लोगों को मैने सुरक्षित पहुॅचा दिया है और अब मैं वापस आ रहा हूॅ। रितू दीदी इस बात से खुश हो गईं। फिर उन्होंने मुझे अख़बार में छपी ख़बर के बारे में बताया और पूॅछा कि ये सब क्या है तो मैने कहा कि मिल कर बताऊॅगा।

रितू दीदी से बात करने के बाद मैं आदित्य से बातें करने लगा। तभी मेरी नज़र एक ऐसे चेहरे पर पड़ी जिसे देख कर मैं चौंक पड़ा और हैरान भी हुआ। मेरे मन में सवाल उठा कि क्या उसने मुझे देख लिया होगा????? मैने अपनी पैंट की जेब से रुमाल निकाल कर अपने मुख पर बाॅध लिया और फिर आराम से आदित्य से बातें करने लगा। किन्तु मेरी नज़र बार बार उस चेहरे पर चली ही जाती थी। जिस चेहरे पर मैं एक अजीब सी उदासी देख रहा था।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

अपडेट हाज़िर है दोस्तो,,,,,,

देरी के लिए मैं तहे दिल से माफ़ी चाहता हूॅ दोस्तो। बीच में मैं काम की वजह से बहुत ज्यादा ब्यस्त हो गया था। अपडेट कल ही तैयार हो गया था और मैं अपडेट को आप सबके सामने हाज़िर भी करना चाहता था, मगर इस फोरम की साइट मेरे मोबाइल पर खुल ही नहीं रही थी। अभी सुबह मैने फिर से ओपेन किया तो खुल गई, तो मैने आपके सामने अपडेट हाज़िर कर दिया।

आप सबकी खूबसूरत प्रतिक्रिया और शानदार रिव्यू का इन्तज़ार रहेगा,,,,,,,,
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Vicky2009

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एक नया संसार
अपडेट.......《 54 》


अब तक,,,,,,

"सब वक्त और हालात की बातें हैं ठाकुर।" दिवाकर चौधरी ने कहा___"उसके पास हमारे खिलाफ़ सबूत भी हैं और हमारे बच्चे भी हैं जिनके तहत उसका पलड़ा बहुत भारी है। अगर कम से कम हमारे बच्चे उसके पास नहीं होते तो हम उसे बताते कि हमारे साथ ऐसी ज़ुर्रत करने की क्या सज़ा मिल सकती थी उसे? ख़ैर छोंड़ो, तुम बताओ कि क्या तुम इस मामले में हमारी कोई मदद कर सकते हो या नहीं?"

"मैं पूरी कोशिश करूॅगा चौधरी साहब।" अजय सिंह ने कहा___"कि मैं इस मामले में आपके लिए कुछ खास कर सकूॅ और जैसा कि आपको मैं बता ही चुका हूॅ कि वो नामुराद मुझे भी अपना दुश्मन समझता है और मुझसे बदला ले रहा है तो उस हिसाब से ये भी सच है कि मैं भी यही चाहता हूॅ कि जल्द से जल्द वो मेरी पकड़ में आ जाए। एक बार पता चल जाए कि वो कमीना किस कोने में छुपा बैठा है उसके बाद तो मैं उसका खात्मा बहुत ही खूबसूरत ढंग से करूॅगा।"

"ठीक है ठाकुर।" चौधरी ने कहा___"हम भी यही चाहते हैं कि उसके ठिकाने का पता किसी तरह से चल जाए। उसके बाद हमारे लिए कोई क़दम उठाना भी आसान हो जाएगा।"

ऐसी ही कुछ देर और कुछ बातें होती रहीं। शाम घिर चुकी थी और अब रात होने वाली थी। इस लिए अजय सिंह चौधरी से इजाज़त लेकर वापस हल्दीपुर के लिए निकल चुका था। सारे रास्ते वह चौधरी के बारे में सोचता रहा था। उसे यकीन नहीं हो रहा था कि उसका भतीजा इतना बड़ा सूरमा हो सकता है कि वो प्रदेश के मंत्री तक को अपनी मुट्ठी में कैद कर ले। उसने मंत्री से कह तो दिया था कि वो इस मामले में उसकी मदद करेगा मगर ये तो वही जानता था कि वो उसकी कितनी मदद कर सकता था? ख़ैर थका हारा व परेशान हालत में अजय सिंह अपनी हवेली पहुॅच गया था। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वो खुद अपने तथा चौधरी के लिए अब क्या करे?
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

अब आगे,,,,,,,,

मैंने दरवाजा खोला तो देखा बाहर रितू दीदी थी। मेरे द्वारा दरवाजा खुलते ही वो मुझे देख कर पहले तो मुस्कुराई फिर जैसे ही उन्हें देख कर मैं एक तरफ हुआ तो वो दरवाजे से अंदर की तरफ कमरे में आ गईं। उन्हें कमरे में आते देख मुझे समझ न आया कि रितू दीदी रात में सोने की बजाय इस वक्त यहाॅ मेरे पास किस वजह से आई हैं?

दरवाजा बंद करके मैं पलटा और बेड की तरफ आ गया। रितू दीदी बेड पर ही एक किनारे पर बैठी हुई थी। इस वक्त उनके खूबसूरत बदन पर नाइट ड्रेस था। मैं खुद भी एक हाफ बनियान और शार्ट्स में था। हलाॅकि मुझे उनके यहाॅ इस वक्त आने पर कोई ऐतराज़ नहीं था बल्कि मैं तो खुश ही हुआ था मगर सोचने वाली बात तो थी ही कि इस वक्त उनके यहाॅ आने की क्या वजह हो सकती है?

"कहीं मैने तुझे डिस्टर्ब तो नहीं किया न राज?" मुझे बेड की तरफ आते देख सहसा रितू दीदी ने बड़ी मासूमियत से कहा___"कहीं ऐसा तो नहीं कि मैने यहाॅ आ कर तेरी नींद में खलल डाल दिया हो?"

"ये आप कैसी बातें कर रही हैं दीदी?" मैं उनके पास ही बेड पर बैठते हुए बोला___"भला आपकी वजह से मैं कैसे डिस्टर्ब हो जाऊॅगा? बिलकुल भी नहीं दीदी, मुझे भी अभी नींद नहीं आ रही थी।"

"अच्छा भला वो क्यों?" रितू दीदी ने सहसा मेरे चेहरे की तरफ ग़ौर से देखते हुए कहा___"क्या विधी की याद आ रही थी?"
"उसकी याद आने का तो सवाल ही नहीं है।" मैने अजीब भाव से कहा___"क्योंकि मैं उसे एक पल के लिए भी भूलता ही नहीं हूॅ। दूसरी बात याद तो उन्हें करते हैं न जिन्हें हम भूले हुए होते हैं?"

"ओह राज।" रितू दीदी ने एकदम से मेरा चेहरा अपनी हॅथेलियों के बीच ले लिया, और फिर भारी स्वर में मुझसे बोली___"मैं जानती हूॅ कि तू विधी को इतनी आसानी से भूल नहीं सकता है। आख़िर तुम दोनो ने एक दूसरे से टूट कर मोहब्बत जो की थी, ऊपर से वो सब हो गया। मगर भाई, उस सबको याद करने से भी भला क्या होगा? बल्कि होगा ये कि तू हर पल उसे याद करके दुखी होता रहेगा। इस लिए तू खुद को सम्हाल मेरे भाई और उस सबसे बाहर निकल। तुझे पता है न कि मैं तुझे अब किसी भी सूरत में दुखी होते हुए नहीं देख सकती हूॅ। अगर तू खुश नहीं रहेगा तो मैं भी खुश नहीं रहूॅगी। अब तो तेरे ही खुशी में मेरी खुशी है राज और तेरे दुख में मेरा दुख है।"

"मैं जानता हूॅ दीदी।" मैंने उदास भाव से कहा___"मगर क्या करूॅ? यादों पर मेरा कोई अख़्तियार ही नहीं है। दिन तो गुज़र जाता है किसी तरह मगर ये रात.....ये रात और रात की ये तन्हाई जाने कहाॅ से मेरे दिल को दुखी करने के लिए उसकी यादें ले आती हैं? बस उसके बाद सब कुछ ऐसा लगने लगता है जैसे इस संसार में अब कुछ भी नहीं रह गया ऐसा जिसकी वजह से मैं खुश हो सकूॅ।"

"ऐसा मत कह मेरे भाई।" रितू दीदी ने मुझे एकदम से खुद से छुपका लिया और फिर दुखी भाव से बोली___"हम सब भी तो हैं न जिनकी वजह से तू खुश हो सकता है। क्या सिर्फ विधी ही ऐसी थी जिसकी वजह से तू खुश हो सकता था? क्या गौरी चाची और गुड़िया कुछ भी नहीं जिनके लिए तू खुश रह सके?"

"हर रिश्ते की अपनी एक अलग अहमियत होती है दीदी।" मैने कहा___"मगर जो दिल का रिश्ता होता है और प्रेम के रिश्ते से जुड़ा होता है उसकी बात ही अलग होती है। हलाॅकि रिश्ता कोई भी हो उसके टूट जाने पर अथवा उसके न रह जाने पर तक़लीफ़ तो होती ही है। हम जिन्हें चाहते हैं तथा जिनसे प्रेम करते हैं वो अगर दुनियाॅ जहाॅन में हैं तो उनसे ताल्लुक न रहने के बाद भी इतनी तक़लीफ़ नहीं होती लेकिन अगर वो इस दुनियाॅ में ही नहों तो ये सोच सोच कर और भी ज्यादा तक़लीफ़ होती है कि अब वो इंसान उसे कभी भी नहीं मिल सकता। इंसान के दुनियाॅ में बने रहने से ये उम्मीद तो बनी ही रहती है कि कभी न कभी उसे वो ब्यक्ति मिलेगा ही। मगर......।"

"बस कर राज।" रितू दीदी फफक कर रो पड़ी___"मैं और कुछ नहीं सुन सकती। मुझे तो इतने से ही इतनी तक़लीफ़ हो रही है जबकि वो सब तो तेरे साथ घटा है तो तुझे कितनी ज्यादा तक़लीफ़ होती होगी। मुझे उस सबका एहसास है मेरे भाई मगर प्लीज....भगवान के लिए खुद को अपनी इस तक़लीफ़ से निकालने की कोशिश कर।"

"फिक्र मत कीजिए दीदी।" मैने दीदी को खुद से अलग कर उनके चेहरे को अपनी हॅथेलियों में लेते हुए कहा___"ये दुख तक़लीफ़ें लाख असहनीय सही मगर ये मुझे नेस्तनाबूत नहीं कर सकती हैं। इतनी हिम्मत तो और इतनी कूबत तो है मुझमें कि मैं इन सबको जज़्ब कर सकूॅ। ख़ैर छोंड़िये ये सब और ये बताइये कि आप इस वक्त यहाॅ किस वजह से आई थी? क्या कोई काम था मुझसे?"

"क्या मैं तेरे पास बेवजह नहीं आ सकती राज?" रितू दीदी ने पुनः बड़ी मासूमियत से मुझे देखा था__"क्या मुझे अपने भाई के पास आने के लिए किसी वजह की ज़रूरत है?"
"नहीं दीदी ऐसी तो कोई बात नहीं है।" मैने झेंपते हुए कहा___"बल्कि आप जब चाहें तब मेरे पास आ सकती हैं। मैने
तो हालातों के बारे में सोच कर आपसे ऐसा कहा था।"

"हालातों के बारे में बात करने के लिए दिन काफी है मेरे भाई।" रितू दीदी ने कहा___"कम से कम रात में तो उस सबसे दूर होकर हमें सुकून मिले। हर पल उसी के बारे में सोच सोच कर परेशान होना क्या अच्छी बात है?"

"आपने सही कहा दीदी।" मैने कहा___"हर वक्त एक ही चीज़ के बारे में सोच सोच कर परेशान होना बिलकुल भी उचित नहीं है। किन्तु ये भी सच है कि हालात ऐसे हैं कि हम भले ही ये सब सोच कर ऐसा कहें मगर ज़हन से वो सब बातें जाती भी तो नहीं हैं।"

"कोशिश करोगे तो ज़रूर जाएॅगी राज।" रितू दीदी ने कहा___"मगर तुम तो कोशिश ही नहीं करते हो। बस सोचते रहते हो जाने क्या क्या? अच्छा ये बता कि नीलम से क्या बात हुई थी तेरी?"

"बताया तो था आपको।" मैने कहा।
"हाॅ बताया तो था तूने।" रितू दीदी ने सहसा मुस्कुराते हुए कहा___"और ये भी बताया था कि कैसे तुम दोनो ट्रेन में धमाल मचा रखे थे।"
"क्या करता दीदी।" मैने सहसा गंभीर होकर कहा__"उसी सबके लिए तो तरसा था मैं। मैं हमेशा ये चाहता था कि नीलम मुझसे लड़ाई करे, हम दोनो के बीच में खूब शैतनी भरा माहौल बना रहा करे। मगर वो सब ख्वाहिशें ही रहीं। आज सुबह जब ट्रेन में नीलम मेरे ऊपर झुकी हुई मुझे देख रही थी तो अचानक ही मेरे मन में वो सब बातें आ गई थी और फिर मैने उसे छेंड़ा। उसके बाद सचमुच वैसा ही हुआ दीदी जैसे की मैं हमेशा आरज़ू किया करता था। उस वक्त मैं बहुत खुश था औरुझे पता था नीलम भी उस सबसे बेहद खुश थी। उसके हाव भाव से ज़ाहिर हो रहा था कि वो भी मेरे साथ वो सब करके उन पलों को एंज्वाय कर रही थी।"

"काश उस वक्त मैं भी वहाॅ होती राज।" रितू दीदी ने सहसा आह सी भरते हुए कहा___"मैं भी नीलम की तरह तेरे साथ वैसी ही मस्ती करती।"
"अरे पर आप कैसे करती दीदी?" मैं दीदी की ये बात सुन कर चौंक पड़ा था___"आप तो मुझसे बड़ी हैं न, जबकि नीलम और मैं एक ही ऊम्र के हैं इस लिए हमारे बीच वैसी मस्ती हो सकती थी।"

"तो क्या हुआ भाई?" रितू दीदी ने कहा___"मैं तुझसे बड़ी हूॅ तो क्या हुआ? क्या मैं बड़ी होने की वजह से अपने भाई के साथ मस्ती नहीं कर सकती? ये किस कानून की किताब में लिखा है मुझे बता तो ज़रा?"

"हाॅ लिखा तो नहीं है मगर।" मैं दीदी की बात सुन कर सकपका गया था___"फिर भी आप मुझसे बड़ी तो हैं ही और मैं आपसे खुल कर वैसी मस्ती नहीं कर सकता था।"
"सीधे सीधे कह दे न कि तुझे मेरे साथ मस्ती करना पसंद ही नहीं आता।" रितू दीदी ने सहसा बुरा सा मुह बनाते हुए कहा___"एक नीलम ही बस तो है जिसके साथ तुझे वो सब करना अच्छा लगता है। जाओ मुझे तुमसे कोई बात नहीं करनी।"

रितू दीदी ये कहने के साथ ही मुझसे ज़रा हट कर बैठ गईं और एक तरफ को मुह फुला कर बैठ गईं। मैं ये सब देख कर भौचक्का सा रह गया। मुझे उनसे इस सबकी उम्मीद बिलकुल भी नहीं थी। कदाचित इस लिए क्योंकि उनका कैरेक्टर ही ऐसा था। वो शुरू से ही हिटलर स्वभाव की रही थी। उन्हें ये सब बिलकुल भी पसंद नहीं था। मगर इस वक्त वो हिटलर दीदी नहीं बल्कि किसी छोटी सी बच्ची की तरह मुह फुला कर एक तरफ बैठ गई थी। उनके चेहरे पर इस वक्त इतनी क्यूट सी नाराज़गी देख कर मैं हैरान भी था और अंदर ही अंदर ये सोच कर खुश भी कि इस वक्त रितू दीदी सच में किसी मासूम सी बच्ची की तरह लग रही थी। मुझे उनके इस तरह रूठ कर मुह फुला लेने से उन पर बेहद प्यार आया। मुझे ऐसा लगा जैसे इस क्यूट सी बच्ची पर मैं सारी दुनियाॅ हार जाऊॅ।

"अरे ये क्या बात हुई दीदी?" फिर सहसा मुझे वस्तुस्थित का बोध हुआ तो मैं उनके क़रीब जाते ही उनके कंधे पर हाॅथ रख कर बोला था मगर....।
"दूर रहो मुझसे।" रितू दीदी ने अपने कंधे से मेरे हाॅथ को झटकते हुए उसी रूठे हुए भाव से कहा___"और हाॅ मुझसे बात मत करो अब। मैं तुम्हारी कोई दीदी वीदी नहीं हूॅ। जाओ उस नीलम के पास।"

"ये आप कैसी बातें कर रही हैं दीदी?" मैं हैरान परेशान सा हो कर कह उठा___"आप तो मेरी सबसे अच्छी व सबसे प्यारी दीदी हैं। भला मैं आपसे कैसे दूर हो सकता हूॅ और आपसे बात न करूॅ ऐसा तो हो ही नहीं सकता।"

"बस बस खूब समझती हूॅ मैं।" रितू दीदी ने उसी अंदाज़ से मगर इस बार ज़रा तीखे भाव से कहा___"मस्का लगाना कोई तुमसे सीखे।"
"मैं मस्का नहीं लगा रहा दीदी।" मैं एक बार से उनके पास खिसक कर गया और फिर बोला___"मैं किसी की भी कसम खा कर कह सकता हूॅ कि आप मेरी सबसे अच्छी दीदी हैं और मेरे दिल में जो स्थान आपका है वो किसी और का नहीं हो सकता।"

मेरी इस बात का मानो तुरंत असर हुआ। रितू दीदी एकदम से मेरी तरफ इस तरह देखने लगीं थी जैसे उन्हें मेरी इस बात से कितनी ज्यादा खुशी हुई हो। फिर सहसा जैसे उन्हें याद आया कि वो तो मुझसे रूठी हुई थीं। इस लिए उनके चेहरे के भाव पलक झपकते ही पहले जैसे हो गए और वो फिर से मुह फुला कर एक तरफ को अपना चेहरा कर लिया। मुझे उनके इस तरह रंग बदल लेने से मन ही मन हॅसी तो आई मगर मैं हॅसा नहीं। वरना मुझे पता था कि उसके बाद कैसे हालात हो जाने थे।

"ठीक है दीदी आप मुझसे मत बात कीजिए।" मैने इमोशनल ब्लैकमेल का नाटक किया___"शायद मेरा नसीब ही ऐसा है कि जिसे भी अपना समझता हूॅ वो मेरा अपना नहीं रहता। एक आप ही तो थी जिन्हें सबसे ज्यादा अपना समझता था और अपनी दुख तक़लीफ़ें दिखाता था मगर....।"

मेरा वाक्य पूरा भी न हो पाया था कि अचानक ही रितू दीदी की एक हॅथेली कुकर के ढक्कन की तरह मेरे मुह पर आकर फिट हो गई। उनकी ऑखों में ऑसू थे। वो मुझे इस तरह देखे जा रही थी जैसे कह रही हों कि आइंदा ऐसी बातें कभी मत करना।

"क्यों ऐसी बातें करता है राज?" फिर दीदी ने सहसा दुखी भाव से कहा___"क्या मैं तुझसे रूठ भी नहीं सकती? मुझे भी नीलम की तरह तुझसे लड़ना झगड़ना है भाई। मुझे भी अपने इस प्यारे भाई के साथ जी भर के मस्ती करनी है। तुझे तो पता है कि मुझे इसके पहले ये सब पसंद ही नहीं था मगर अब मुझे भी लगता है कि मैं तुझसे तेरी बड़ी बहन बन कर नहीं बल्कि तेरी छोटी बहन बन कर रूठूॅ लड़ूॅ और तुझे परेशान करूॅ। मगर तू ही नहीं चाहता कि मुझे भी वैसी खुशी मिले जैसे तुझे और नीलम को वो सब करके मिली थी।"

"ऐसा नहीं है दीदी।" मैने उनको उनके कंधों से पकड़ते हुए कहा___"हमारे पारिवारिक रिश्तों में मेरी और भी कई दीदी होंगी मगर मेरी जो सबसे ज्यादा फेवरेट दीदी है वो सिर्फ आप हो। आपके लिए हॅसते हॅसते अपनी जान भी दे सकता हूॅ मैं। ख़ैर अगर आपकी भी यही इच्छा है तो ठीक है दीदी अब से आप भी मुझसे नीलम की तरह रूठ सकती हैं और लड़ाई झगड़ा कर सकती हैं। मुझे खुशी होगी कि आप भी खुद को इस रूप में खुशी देना चाहती हैं।"

"हाॅ मगर ये तभी होगा न भाई जब तू मुझे भी तुम या तू कह कर संबोधित करे।" रितू दीदी ने कहा___"जैसे तू नीलम से करता है। तभी तो वो सब करने में मज़ा आएगा।"
"ऐसा कैसे हो सकता है दीदी?" मैं दीदी की बात सुन कर बुरी तरह हैरान रह गया था, बोला___"आप मुझसे बड़ी हैं इस लिए मैं उस सबके लिए आपके मान सम्मान को ताक पर नहीं रख सकता।"

"ठीक है मगर उस वक्त तो बोल सकता है न जब हम आपस में वैसी मस्ती करेंगे।" दीदी ने कहा___"बाॅकी आम सिचुएशन में तू वही बोलना जो अब तक बोलता आया है। और हाॅ अब यही फाइनल है। इससे आगे मुझे कुछ नहीं सुनना है, समझ गया न?"

मेरी हालत मरता क्या न करता वाली हो गई थी। मैं अब कुछ नहीं कह सकता था। अगर कहता या कोई ऑब्जेक्शन करता तो निश्चिय ही दीदी नाराज़ हो जाती जो कि मैं कभी नहीं चाह सकता था।

"ठीक है दीदी।" फिर मैने गहरी साॅस ली___"जैसा आपको अच्छा लगे।"
"गुड।" दीदी के चेहरे पर रौनक आ गई___"तो शुरू करें?"
"क्या मतलब??" मैं उनकी इस बात से एकदम से चकरा गया।

"अरे वही भाई।" दीदी ने मुस्कुराते हुए कहा___"जो तू नीलम के साथ कर रहा था। मैं चाहती हूॅ कि श्रीगणेश हो ही जाए मस्ती का।"
"पर दीदी इस वक्त ये सब??" मैं बुरी तरह घबरा सा गया था। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि अब क्या करूॅ?

"इस वक्त क्या??" रितू दीदी ने ऑखें दिखाई।
"आप भी कमाल करती हैं।" मैने कहा___"भला ये भी कोई वक्त है इन सब चीज़ों का? हमारी वजह से बेकार में ही सब लोगों की नींद का कबाड़ा हो जाएगा। वैसे भी आज सब बहुत थके हुए हैं। इस लिए इस वक्त नहीं दीदी हम दिन में किसी वक्त धमाल कर लेंगे।"

"हाॅ ये तो सच कहा तूने।" रितू दीदी ने कहा___"सचमुच सबकी नींद का सत्यानाश हो जाएगा। चल कोई बात नहीं। इस वक्त तो तुझे बक्श दिया मगर याद रख कल छोंड़ूॅगी नहीं तुझे।"

"क्या???" मैं दीदी की इस बात से चौंका। फिर सहसा ऊपर की तरफ देखते हुए बोला___"हे भगवान मुझे शैतान की इस बच्ची से बचा लेना।"
"क्या कहा तूने?" रितू दीदी की ऑखें फैल गईं। वो एकदम से मेरी तरफ पलटीं फिर बोली___"मैं शैतान की बच्ची? रुक बताती हूॅ तुझे।"

इससे पहले कि मैं अपने बचाव के लिए कुछ कर पाता रितू दीदी मुझ पर झपट पड़ीं। उन्होंने मुझे धक्का दे कर बेड पर गिरा दिया और खुद भी बेड के बीचो बीच आकर मेरे जिस्म के हर हिस्सों पर गुदगुदी करने लगीं। मुझे उनकी गुदगुदी से हॅसी तो नहीं आ रही थी मगर मैं जानबूझ कर हॅसने लगा था और उनसे अपने कहे की माफ़ियाॅ माॅगने लगा था। मगर रितू दीदी मेरे माफ़ी माॅगने पर भी मुझे गुदगुदी करना बंद नहीं कर रही थीं।

"प्लीज बस कीजिए न दीदी।" मैने हॅसते हुए कहा__"सब लोगों की नींद टूट जाएगी।"
"टूट जाने दे अब।" रितू दीदी ने कहा___"मुझे किसी की कोई परवाह नहीं है समझे? तूने मुझे शैतान की बच्ची बोला है न तो तुझे अब शैतान की ये बच्ची छोंड़ेगी नहीं।"

"अच्छा जी।" मैने कहा___"ऐसी बात है क्या? लगता है इस बच्ची का इलाज करना ही पड़ेगा।"
"तू कुछ नहीं कर पाएगा भोंदूराम।" रितू दीदी ने कहा___"जबकि मैं तेरी हालत ख़राब कर दूॅगी आज।"
"ओ हैलो।" मैने सहसा दीदी के दोनों हाथ पकड़ लिए फिर बोला___"कहीं ऐसा न हो कि मेरी हालत ख़राब करने के चक्कर में खुद तुम्हारी ही हालत ख़राब हो जाए।"

"अच्छा बच्चू।" दीदी अपने हाॅथों को मेरी पकड़ से छुड़ाने की कोशिश करते हुए कहा___"इतनी बड़ी ग़लतफहमी भी है तुझको। शायद तुझे पता नहीं है कि मैं जूड़ो कराटे में ब्लैक बेल्ट होल्डर हूॅ।"

"फाॅर काइण्ड योर इन्फाॅरमेशन।" मैने कहा___"मैं भी मार्शल आर्ट्स में ब्लैक बेल्ट हूॅ। इतना ही नहीं कुंग फूॅ का भी एक्सपर्ट हूॅ मैं। इस लिए तुम मुझे कम समझने की ग़लती मत करना।"

"चल चल हवा आने दे तू।" रितू दीदी ने बुरा सा मुह बनाते हुए कहा___"बड़ा आया कुंग फू एक्सपर्ट। मेरे सामने तेरा कोई भी आर्ट्स नहीं चलने वाला।"
"और अगर चल गया तो??" मैने मुस्कुराते हुए कहा।
"चल ही नहीं सकता।" रितू दीदी कहने के साथ ही मेरे ऊपर आ गई___"अब बोल बच्चू। बड़ा कुंग फू एक्सपर्ट बनता है न।"

मैने एकदम से पलटी मारी, रितू दीदी को मुझसे इतनी जल्दी इसकी उम्मीद नहीं थी। परिणाम ये हुआ कि जहाॅ पहले मैं पड़ा हुआ था वहाॅ रितू दीदी पड़ी थी और मैं उनके ऊपर। मेरी इस हरकत से पहले तो रितू दीदी घबरा ही गईं फिर मुझे देखते ही बोली___"ओये ये क्या है? तूने ये कैसे किया?"

"हाहाहाहा क्या हुआ बहना?" मैने उनके दोनो हाॅथ दोनो साइड से बेड पर रख दिया___"हवा निकल गई क्या तुम्हारी? बड़ा जूड़ो कराटे बता रही थी न। अब बोलो क्या करूॅ तुम्हारे साथ?"
"तूने चीटिंग की है।" रितू दीदी मेरी पकड़ से अपने हाॅथ छुड़ाने की नाकाम कोशिश करते हुए कहा___"तूने धोखे से मुझे नीचे कर दिया है।"

"अच्छा जब हारने लगी तो चीटिंग का नाम दे दिया।" मैने कहा___"चलो यही सही, लेकिन तुम तो जानती हो न प्यार और जंग में सब जायज है। अब बताओ शैतान की बच्ची कि क्या करूॅ तुम्हारे साथ?"

"ओये ज्यादा दिमाग़ न चला समझे।" रितू दीदी ने एकाएक ही मेरे पीछे से अपनी दोनो टाॅगों को दोनो साइड से ऊपर कर मेरी गर्दन में फॅसा लिया और फिर हल्का झटका दिया। परिणाम ये हुआ कि मैं उनके पैरों की तरफ उलटता चला गया। इधर दीदी पलक झपकते ही बेड से उठ कर फिर से मेरे ऊपर आ गईं।

"क्यों कुंग फू एक्सपर्ट अब क्या हाल हैं तेरे?" रितू दीदी मेरे पेट पर बैठी उछलने लगी थी, उन्होंने अपने दोनो हाथों से मेरे हाथ भी पकड़ रखे थे।
"हाल तो बहुत अच्छा है।" मैने कहा___"आपकी जीत में भी मेरी ही जीत है दीदी।"

मेरे ऐसा कहने पर रितू दीदी एकदम से शान्त पड़ गईं। मेरी ऑखों में एकटक देखने लगी थी वो। फिर जाने क्या उनके मन में आया वो उसी हालत में मेरे ऊपर ही मेरे सीने से लग कर छुपक गईं।

"तूने खेल क्यों बंद कर दिया राज।" फिर दीदी उसी हालत में उदास होकर कहा___"मुझे तो बहुत अच्छा लग रहा था।"
"मुझे पता है दीदी।" मैने उनके सिर पर हाथ फेरते हुए कहा___"मगर ऐसी चीज़ों की शुरूआत थोड़ी थोड़ी से ही होती है न। वैसे भी रात काफी हो गई है। इस सबसे कोई भी यहाॅ आ सकता है और हमें ये सब करते देख कर क्या सोचेगा। इस लिए मुझे लगता है इतना बहुत है आज के लिए। अब आपको भी अपने कमरे में जा कर सो जाना चाहिए।"

"क्यों, क्या मैं तेरे कमरे में तेरे साथ नहीं सो सकती?" रितू दीदी ने सहसा मेरे सीने से अपना सिर उठा कर मेरी तरफ देखते हुए कहा।
"बिलकुल सो सकती हैं दीदी।" मैंने मुस्कुरा कर कहा___"पर मैने ऐसा इस लिए कहा कि आपको शायद अपने कमरे में ही बेहतर तरीके से नींद आए और आप कंफर्टेबल महसूस करें।"

"ऐसा कुछ नहीं है मेरे भाई।" रितू दीदी ने मेरे गाल खींचते हुए किन्तु मुस्कुरा कर कहा___"मुझे तो तेरे साथ सोने में और भी अच्छी नींद आएगी और मुझे कंफर्टेबल भी महसूस होगा। ऐसा लगेगा जैसे मैं दुनियाॅ की सबसे सुरक्षित जगह पर हूॅ।"

"अगर ऐसी बात है तो ठीक है दीदी।" मैने भी मुस्कुराते हुए कहा___"जैसा आपको अच्छा लगे वैसा कीजिए। अब चलिए सो जाते हैं।"
"ओये क्या तुझे नींद आ रही है?" दीदी ने ऑखें फैलाते हुए कहा था।
"हाॅ लग तो रहा है ऐसा।" मैने कहा।

"ठीक है तू सो जा फिर।" दीदी ने कहने के साथ ही अपना सिर वापस मेरे सीने में रख लिया।
"पर आप तो मेरे ऊपर लेटी हुई हैं न दीदी।" मैने असहज भाव से कहा___"ऐसे में कैसे मैं सो सकूॅगा भला?"
"जिसको सोना होता है न वो कैसे भी सो जाता है।" रितू दीदी ने अजीब भाव से कहा___"मैं तो तेरे ऊपर ही सोऊॅगी। तुझे भी ऐसे ही सोना पड़ेगा आज।"

रितू दीदी की इस बात से मैं हैरान रह गया मगर करता भी क्या? कोई ज़ोर ज़बरदस्ती भी उनसे नहीं कर सकता था। इस लिए चुपचाप अपनी ऑखें बंद कर ली मैने और सोने की कोशिश करने लगा। जबकि मेरे चुप हो जाने पर रितू दीदी जो मेरे सीने पर अपना सिर रखे हुए थी वो मुस्कुराए जा रही थी। उनका पूरा बदन ही मेरे ऊपर था। मुझे बड़ा अजीब भी लग रहा था और असहज भी। असहज इस लिए क्योंकि दीदी के सीने के उभार मेरे सीने के बस थोड़ा ही नीचे धॅसे हुए महसूस हो रहे थे। हलाॅकि मेरे ज़हन में उनके प्रति कोई भी ग़लत भावना नहीं थी मगर सोचने वाली बात तो थी ही। ख़ैर, कुछ ही देर में मुझे नींद आ गई और मैं सो गया। मुझे नहीं पता दीदी को कब नींद आई थी।
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उधर मंत्री दिवाकर चौधरी के यहाॅ से आने के बाद अजय सिंह सारे रास्ते सोचों में गुम रहा था। हवेली से जब वह चला था तो सबसे पहले गुनगुन में वो एयरटेल के सर्विस सेन्टर गया था। जहाॅ से उसने अपने पहले वाले नंबर के ही दो सिम कार्ड लिया था और उन्हें अपने मोबाइल फोन पर डाल लिया था। उसे पता था कि फोन बंद होने की वजह से उससे संबंध रखने वाले सभी उसके चाहने वाले परेशान होंगे। रास्ते में ही कई सारे लोगों के फोन आए थे उसे जिनसे उसने बात की और उन्हें बताया कि किस वजह हे उसका फोन बंद था।

अजय सिंह ने अपने उन बिजनेस दोस्तों से भी बात की जिन्होंने उसकी मदद के लिए अपने अपने आदमी भेजे थे। सबसे फारिग़ होकर ही वह अपने घर पहुॅचा था। हवेली पहुॅचते पहुॅचते उसे रात के साढ़े आठ से ऊपर हो गए थे। अंदर उसे ड्राइंगरूम में सब मिल गए। सब आपस में बात चीत कर हॅसे जा रहे थे। नीलम, सोनम, शिवा, तथा प्रतिमा आदि सब जगमोहन सिंह के पास ही बैठ थे।

अजय सिंह को आया देख कर नीलम व सोनम उससे मिली। अजय सिंह ने उन दोनो को प्यार दिया और फिर कपड़े चेन्ज करने का कह कर अपने कमरे की तरफ बढ़ गया। प्रतिमा के कहने पर बाॅकी सब भी फ्रेश होने चले गए। रात का डिनर सविता ने तैयार कर दिया था अतः फ्रेश होने के बाद सब एक साथ डायनिंग हाल में आ कर बैठ गए। डिनर के दौरान सबके बीच नार्मल ही बातें हुई। इस बीच जगमोहन सिंह ने कहा कि उसे कल वापस जाना होगा क्योंकि वो इस समय एक ज़रूरी केस के सिलसिले में लखहगा हुआ है। प्रतिमा की हार्दिक इच्छा थी कि उसके पापा अभी कुछ दिन यहाॅ रुकें मगर उसे भी पता था कि उसके पिता एक बहुत बड़े वकील हैं जिनके पास समय का बहुत ही ज्यादा अभाव है।

जगमोहन सिंह ने ये ज़रूर कहा कि अब वो आते रहेंगे यहाॅ। उनकी इस बात से सब खुश हो गए। ख़ैर डिनर के बाद सब सोने के लिए अपने अपने कमरों में चले गए।

"तो मिल आए तुम मंत्री जी से?" अपने कमरे में आते ही प्रतिमा ने बेड पर लेटे अजय सिंह की तरफ देखते हुए कहा___"वैसे किस सिलसिले में बुलाया था उसने तुम्हें? क्या कोई खास वजह थी?"

"इस बारे में कुछ न ही पूछो तो अच्छा है प्रतिमा।" अजय सिंह ने गहरी साॅस ली थी।
"अरे ये क्या बात हुई भला?" प्रतिमा बेड पर आते हुए बोली___"क्या कोई ऐसी बात है जिसे तुम मुझसे बताना नहीं चाहते हो?"

"नहीं यार ऐसी कोई बात नहीं है।" अजय सिंह ने बेचैनी से पहलू बदला___"भला ऐसी कोई बात हुई है अब तक जिसे मैने तुमसे शेयर न किया हो?"
"वही तो।" प्रतिमा ने अजय सिंह से सट कर लेटते हुए कहा___"वही तो डियर, मुझे भी तो पता चले कि मंत्री ने किस वजह से मेरे अजय को बुलाया था?"

"दरअसल बात ऐसी है प्रतिमा।" अजय सिंह ने कहा___"कि तुम सुनोगी तो हजम नहीं कर पाओगी।"
"अरे जाने भी दो।" प्रतिमा मुस्कुराई___"बड़ी से बड़ी बात तुम्हारी ये प्रतिमा हजम कर चुकी है फिर भला ये क्या चीज़ होगी।"

"मंत्री का जब फोन आया।" अजय सिंह ने कहा___"और जब उसने मुझे दोस्त कहा तो ये सच है कि मुझे उस वक्त बेहद खुशी हुई थी। किन्तु उससे मिल कर तथा उसकी बातें सुनकर मेरी सारी खुशी कपूर की तरह काफूर हो गई।"

"ये तुम क्या कह रहे हो अजय?" प्रतिमा के चेहरे पर हैरत के भाव उभरे___"ऐसी भला क्या बातें कही उसने जिसकी वजह से तुम्हारी उम्मीदों और खुशियों पर पानी फिर गया?"

प्रतिमा के पूछने पर अजय सिंह ने मंत्री का सारा किस्सा उसे सुना दिया। ये भी बताया कि मंत्री उससे खुद मदद की उम्मीद किये बैठा है। सारी बातें सुनने के बाद प्रतिमा का मारे आश्चर्य के बुरा हाल हो गया। उसे यकीन नहीं हो रहा था कि अजय सिंह जो किस्सा सुना रहा है उसमें कहीं कोई सच्चाई है। मगर उसे पता था कि अजय सिंह झूठ मूठ का कोई किस्सा उसे हर्गिज़ भी नहीं सुनाएगा। यानी उसके द्वारा कहा हर लफ्ज़ सही था।

"ये तो बड़ी ही हैरतअंगेज बात है अजय।" प्रतिमा के चेहरे पर मौजूद हैरत कम नहीं हो रही थी, बोली___"उस गौरी का वो पिल्ला इस प्रदेश के मंत्री को भी अपने शिकंजे में लिया हुआ है। यकीन नहीं होता कि कल का छोकरा इतने बड़े बड़े काण्ड कर रहा है।"

"गए थे मंत्री के पास उससे मदद की उम्मीद लेकर।" अजय सिंह ने अजीब भाव से कहा___"मगर खुद उसकी उम्मीद बन कर आ गए।"
"तुम्हें मंत्री से साफ साफ कह देना चाहिए था अजय कि तुम इस मामले में उसकी कोई मदद नहीं कर सकते।" प्रतिमा ने कहा___"क्योंकि तुम खुद भी कुछ कर सकने की स्थित में नहीं हो।"

"उसे अपने बारे में सारी सच्चाई नहीं बता सकता था डियर।" अजय सिंह ने कहा___"तुम खुद सोचो कि मैं वो सब उससे कैसे बता देता? इससे तो उसके सामने मेरी इज्ज़त का कचरा हो जाता न। वो क्या सोचता मेरे बारे में कि मैंने अपनी वासना और हवश के चलते अपने ही घर की बहू बेटियों की इज्ज़त पर अपनी नीयत ख़राब ही नहीं की बल्कि उनके साथ वो सब करने के लिए क़दम भी बढ़ाया। नहीं प्रतिमा नहीं, इससे तो उसकी नज़र में कोई वैल्यू ही न रह जाती। वो साला मुझे गंदी नाली का कीड़ा समझने लगता।"

"बात तो तुम्हारी ठीक ही है अजय।" प्रतिमा ने सोचने वाले अंदाज़ से कहा___"मगर अब क्या करोगे तुम? तुमने तो उससे वादा कर लिया है कि तुम इस मामले में उसकी मदद करोगे। जबकि तुम खुद अच्छी तरह जानते हो कि तुम खुद अपनी ही मदद नहीं कर पा रहे हो, फिर उसकी मदद कैसे कर सकोगे? मंत्री से मदद का वादा करके तुमने एक नई मुसीबत को दावत दे दी है अजय। वो मंत्री अब हर समय तुम्हें फोन करेगा अथवा बुलाएगा ये जानने के लिए कि तुमने उसकी मदद के रूप में अब तक क्या किया है? उस सूरत में तुम उसे क्या जवाब दोगे?"

"मैने उससे मदद का वादा नहीं किया है प्रतिमा।" अजय सिंह ने कहा___"सिर्फ ये कहा है कि मैं इस मामले में उसकी मदद के लिए अपनी तरफ से पूरी कोशिश करूॅगा बस। इसमे मुसीबत की बात भला कहाॅ से आ गई? मैने कोई एग्रीमेंट तो किया नहीं है जिसके चलते वो मुझ पर कोई ऐक्शन लेगा। सीधी सी बात है मैने उसकी मदद के लिए अपनी तरफ से कोशिश की मगर उसका काम नहीं हो सका इसमें मैं और ज्यादा क्या कर सकता था?"

"चलो ये तो आने वाला समय ही बताएगा कि इस मामले में क्या होता है?" प्रतिमा ने गहरी साॅस ली___"किन्तु हाॅ ये ज़रूर सोचने वाली बात है कि विराज ने मंत्री को इस ढंग से पंगु बनाया हुआ है। हम तो ये सोच सोच कर परेशान थे कि वो यहाॅ आया किस लिए था, पर अब पता चला कि वो अपनी उस प्रेमिका की वजह से यहाॅ आया था।"

"हाॅ प्रतिमा।" अजय सिंह के चेहरे पर सोचने वाले भाव उभरे___"मंत्री से मिल कर तथा उसकी बातों से ही इस सच्चाई का पता चला वरना तो हमें पता भी न चलता कि वो साला यहाॅ आया किस वजह से था? इतना ही नहीं उसने मेरे अलावा और किसे अपने मक्कड़ जाल में फॅसा रखा था? मंत्री के जिन लड़कों ने उस विधी नाम की लड़की का रेप किया था वो विराज की प्रेमिका थी और वो गंभीर हालत में हल्दीपुर थाना क्षेत्र में हमारी बेटी रितू के द्वारा पाई गई थी।"

"एक मिनट अजय।" प्रतिमा के चेहरे पर एकाएक ही चौंकने के भाव उभरे थे, फिर उसने कहा___"मुझे अब सारा मामला समझ आ गया है। ये भी समझ आ गया है कि हमारी बेटी हमारे खिलाफ़ हो कर क्यों उस विराज का साथ देने लगी है जिस विराज की वो अब तक शक्ल भी नहीं देखना चाहती थी।"

"क्या समझ आ गया है तुम्हें?" अजय सिंह के माथे पर सहसा शिकन उभरी।
"ये मामला विधी के रेप से ही शुरू हुआ है।" प्रतिमा ने कहना शुरू किया___"हाॅ अजय ये सारी कहानी विधी के रेप केस से ही शुरू हुई है। मंत्री के द्वारा बताई गई सारी बातों पर ग़ौर करने के बाद इसकी कड़ियाॅ कुछ इस प्रकार से मेरे दिमाग़ में जुड़ी हैं, ग़ौर से सुनो। विधी नाम की जिस लड़की का रेप हुआ वो गंभीर हालत में हमारी बेटी को मिली। रितू चूॅकि पुलिस वाली थी इस लिए ये उसकी ड्यूटी थी कि वो इस मामले में रेप की गई लड़की के रेपिस्टों की तलाश करे और उन्हें कानूनन सज़ा दिलवाए। किन्तु उससे पहले उसने ये किया होगा कि गंभीर हालत में पाई गई उस लड़की को उसने हास्पिटल में भर्ती कराया तथा लड़की के विषय में जानकारी भी हासिल की होगी। रितू ने विधी से तहकीक़ात के रूप में उस लड़की से उसके साथ हुए उस हादसे की सच्चाई प्राप्त की होगी। इसी सच्चाई के दौरान उसे पता चला होगा कि विधी वो लड़की है जो उसके चचेरे भाई विराज से प्यार भी करती थी और विराज भी उससे प्यार करता था। किन्तु उसे ये समझ में न आया होगा कि दो प्यार करने वाले एक दूसरे से दूर कैसे हैं? क्योंकि अगर दूर न होते तो विधी के साथ वो हादसा होता ही नहीं। इस लिए रितू ने विधी से उसके और विराज के बीच की दूरियों के बारे में पूछा होगा तब विधी ने उसे बताया होगा कि सच्चाई क्या है। वो सच्चाई ज़रूर ऐसी रही होगी जिसने रितू के दिल में चोंट की होगी। विधी के द्वारा ही उसे पता चला होगा कि विराज असल में कितना अच्छा लड़का है तथा ये भी कि उसके साथ उसके बड़े पापा ने कितना अत्याचार किया है। विधी की बातों ने रितू को सोचने पर मजबूर कर दिया होगा। किन्तु उसे इतना जल्दी इस बात पर यकीन नहीं आया होगा कि हमने विराज व विराज की माॅ बहन के साथ ग़लत किया हो सकता है। अतः उसने अपने तरीके से इस सबका पता लगाने का सोचा होगा। याद करो अजय ये उसी समय की बात है जब नैना यहीं थी और एक रात मैं तुम और शिवा साथ में ही वो मौज मस्ती कर रहे थे। मुझे पूरा यकीन है कि सच्चाई का पता लगाने की राह पर चलते हुए रितू उस रात हमारी वो रास लीला देख ली होगी। मैं ऐसा इस लिए कह रही हूॅ क्योंकि उस रात के बाद से ही रितू का बिहैवियर हमारे प्रति बदला था। याद करो दूसरे दिन कैसे उसने शिवा को खरी खोटी सुना दी थी। उस वक्त हमें पता नहीं था किन्तु अब समझ आ रहा है कि उसने शिवा को इतने गुस्से से क्यों झिड़का था? ख़ैर, उसके बाद वो बड़ी सफाई से नैना को भी यहाॅ से निकाल ले गई। उसको पता चल गया होगा कि तुम अपनी ही बहन को अपने नीचे लेटाने का मंसूबा बनाए बैठे हो। इस लिए वो नैना को बड़ी सफाई से यहाॅ ले गई। इस सबसे उसे और कुछ जानने की ज़रूरत ही नहीं रह गई थी। उसने उस रात हम तीनों की सारी बातें सुन ली होगी और जान गई होगी कि विराज की माॅ के साथ असल में हुआ क्या था? अथवा हमने उसके साथ किया क्या था? इतना सब कुछ काफी था उसका हमारे खिलाफ होने के लिए और विराज के साथ मिल जाने के लिए। इन्हीं सब के दौरान उसने विराज को मुम्बई से बुलाया होगा। किन्तु उसके पास विराज का कोई काॅटेक्ट नहीं था इस लिए उसने विराज के क़रीबी दोस्तों के बारे में पता लगाया होगा। विराज के दोस्त के रूप में उसे पवन मिला, पवन को उसने विधी का वास्ता देकर कहा होगा कि वो विराज को यहाॅ बुला ले। बस उसके बाद क्या क्या हुआ इसका तो पता ही है तुम्हें।"

प्रतिमा की इतनी लम्बी चौड़ी थ्यौरी सुन कर अजय सिंह आश्चर्यचकित रह गया था। काफी देर तक उसके मुख से कोई बोल न फूटा। फिर सहसा उसके चेहरे पर प्रतिमा के प्रति प्रसंसा के भाव उभरे। उसे प्रतिमा की सूझ बूझ और दूरदर्शिता की दाद देनी पड़ी। जबकि....।

"अब रहा सवाल इस बात का कि रितू ने इसके पहले विधी के साथ हुए उस रेप हादसे पर उन रेपिष्टों को कानूनन सज़ा क्यों नहीं दिलवाई?" प्रतिमा ने मानो पुनः कहना शुरू किया___"तो इसका जवाब तुम मंत्री के द्वारा पा ही चुके हो। मंत्री के अनुसार इंस्पेक्टर रितू ने विधी रेप केस के रेपिस्टों को पकड़ कर उन्हें कानूनन सज़ा दिलवाने की ज़रूर कोशिश की हो सकती है किन्तु मामला क्योंकि मंत्री के बच्चों का था इस लिए मंत्री की ताकत व पहुॅच के चलते कानूनन भी कुछ नहीं हो सकता था इस लिए रितू के आला अफसर ने भी रितू को इस मामले में हस्ताक्षेप न करने की सलाह दी होगी। विधी के माॅ बाप को भी यही समझ आया होगा, इसी लिए उन्होंने भी कोई केस करने का ख़याल अपने ज़हन से निकाल दिया होगा। दैट्स इट।"

"तुमने तो इस तरह इन सब बातों को खोल दिया है जैसे कि तुम इन सब चीज़ों का लाइव टेलीकास्ट देख रही थी और उसकी कमेंट्री भी कर रही थी।" अजय सिंह प्रभावित लहजे में बोला___"यकीनन तुम्हारा दिमाग़ काफी शार्प है। ख़ैर यहाॅ पर इसके आगे की कड़ी कुछ इस तरह है। विराज जब मुम्बई से आया और उसने अपनी लवर की वो हालत देखी तो उससे सहन नहीं हुआ। बल्कि उसका खून खौल गया होगा। किन्तु उसे भी समझ आ ही गया होगा कि वो विधी को कानूनन कोई न्याय नहीं दिला सकता। क्योंकि रेप करने वालों के आका बहुत बड़ी हस्ती थे। मगर जवान खून इसके बाद भी शान्त न हुआ होगा। तब उसने खुद उन लड़कों को सज़ा देने का सोचा होगा जिन लड़कों ने उसकी प्रेमिका के साथ वो घिनौना कुकर्म किया था। विराज के फैसले पर रितू ने भी अपनी सहमति दी होगी और उसकी मदद करने का वादा भी किया होगा। मंत्री के ही अनुसार, विराज और रितू मंत्री के फार्महाउस पहुॅचे और वहाॅ से मंत्री के उन बच्चों को धर लिया और वहीं से ही उनके हाथ कुछ ऐसे सबूत भी लगे जो मंत्री को विराज की मुट्ठी में कैद करने के लिए काफी थे दैट्स आल।"

"बिलकुल।" प्रतिमा ने कहा___"मंत्री को जब पता चला कि उसके बच्चों का किडनैपर हल्दीपुर के ठाकुर अजय सिंह का भतीजा है तो उसने आज तुम्हें ये सोच कर फोन किया कि तुम इस मामले में उसकी यकीनन मदद कर सकते हो। ये अलग बात है कि तुम खुद भी मंत्री की तरह ही विराज की मुट्ठी में कैद हो।"

"ये क्या कह रही हो तुम?" अजय सिंह चौका___"मैं भला कैसे उस हरामज़ादे की मुट्ठी में कैद हूॅ?"
"कमाल है डियर।" प्रतिमा मुस्कुराई___"ये बात कैसे भूल सकते हो तुम कि विराज के पास तुम्हारी वो सब चीज़ें हैं जो तुम्हें किसी भी पल कानून की भयानक चपेट में ले लेने के लिए काफी हैं।"

"ओह हाॅ वो न।" अजय सिंह को अचानक ही जैसे सब कुछ याद आ गया और ये भी सच है कि वो सब याद आते ही उसके समूचे जिस्म में झुरझुरी सी दौड़ गई थी। उससे आगे कुछ कहते न बन सका था।

"बड़ी गंभीर सिचुएशन है अजय।" प्रतिमा ने उसके चेहरे के भावों को पढ़ते हुए गंभीरता से कहा___"सबकुछ कर सकने की कूबत होते हुए भी कुछ नहीं कर सकते, न तुम और ना ही वो मंत्री। मगर मुझे एक बात ये समझ नहीं आती कि जब इतना मसाला विराज के पास तुम दोनो के खिलाफ़ मौजूद है तो वो उस मसाले का उपयोग क्यों नहीं करता?"

"किया तो था उपयोग उसने।" अजय सिंह ने कहा___"उस मसाले के आधार पर ही तो उसने नकली सीबीआई वालों को भेजा था मुझे यहाॅ से ले जाने के लिए।"
"अरे हाॅ डियर।" प्रतिमा के मस्तिष्क में जैसे एकाएक ही बल्ब रौशन हुआ, बोली___"इस नये चक्कर को तो मैं भूल ही गई थी। ये भी तो सोचने का एक जटिल मुद्दा है। आख़िर विराज ने ऐसा किस वजह से किया होगा? नकली सीबीआई वालों को भेज कर उसने तुम्हें ग़ैर कानूनी धंधा करने तथा ग़ैर कानूनी पदार्थ रखने के जुर्म में गिरफ्तार करवाया और फिर दो दिन बाद बिना तुमसे कुछ पूछताॅछ किये छोंड़ भी दिया। सोचने वाली बात है कि इस सबसे उसे क्या मिला होगा? या फिर इससे उसका कौन सा फायदा हुआ होगा?"

"साला ऐसे ऐसे काम करता है कि कुछ समझ में ही नहीं आता।" अजय सिंह ने कठोर भाव से कहा___"सोचते सोचते दिमाग़ की नशें तक दर्द करने लगती हैं। मगर मजाल है जो कुछ समझ आए। हद हो गई ये तो। साला कल का छोकरा इतना शातिर होगा ये तो ख्वाब में भी नहीं सोचा था मैने।"

"मुझे कुछ कुछ समझ आ रहा है उसके ऐसा करने का चक्कर।" प्रतिमा ने ये कह कर मानो अजय सिंह के ऊपर बम्ब फोड़ दिया था।
"क..क..क्या समझ आ रहा है तुम्हें?" अजय सिंह बुरी तरह हैरानी से पूछ बैठा था।

"ये तो तुम भी समझते हो न।" प्रतिमा ने समझाने वाले अंदाज़ से कहा___"कि विराज की नज़र में ये एक जंग है जो उसने हमारे साथ शुरू की हुई है। जब कोई इंसान किसी से जंग शुरू करता है तब वो सबसे पहले अपनी कमज़ोरियों को अपने प्रतिद्वंदी से या तो छुपाता है या फिर उसकी पहुॅच से बहुत दूर कर देता है।"

"तुम क्या कह रही हो?" अजय सिंह उलझ कर रह गया, बोला___"मेरी कुछ समझ में नहीं आ रहा?"
"याद करो अजय।" प्रतिमा ने कहा___"हमारे आदमी ने हमें क्या ख़बर दी थी? यही न कि विराज मुम्बई से आए अपने दोस्त के साथ पवन की फैमिली को एम्बूलेन्स में बैठा कर चला गया था और एम्बूलेन्स के आगे आगे एक जीप भी थी। जिसमें कि यकीनन रितू ही थी। यहाॅ पर मेरे कहने का मतलब ये है कि विराज ने ऐसा क्यों किया? आख़िर उसे क्या ज़रूरत थी पवन और उसकी फैमिली को अपने साथ कहीं ले जाने की? इस सवाल के बारे में अगर ग़ौर से सोचोगे तो जवाब ज़रूर मिल जाएगा। मतलब ये कि पवन और पवन की फैमिली विराज की कमज़ोरी थे। उसने सोचा होगा कि देर सवेर हमे इस बात का पता चल ही जाएगा कि उसके दोस्त पवन ने उसकी सहायता की थी और वो यहाॅ उसके ही घर में रुका था। अतः हम इसके लिए उसके दोस्त और उसकी फैमिली को कोई नुकसान भी पहुॅचा सकते हैं। ये सोच कर उसने पवन आदि को सुरक्षित रखना अपना कर्तब्य समझा। किन्तु उसके सामने समस्या रही होगी कि वो पवन आदि को सुरक्षित कैसे करे? उसकी समस्या का समाधान रितू ने किया होगा। उसने उन सब को किसी ऐसी जगह चलने को कहा होगा जहाॅ पर वो सब लोग पूर्णरूप से सुरक्षित रह सकते थे। यहाॅ पर ये भी समझ आ रहा है कि वो लोग एम्बूलेन्स से ही क्यों गए थे? दरअसल एम्बूलेंस ही एक ऐसा किफायती वाहन हो सकता था जिसमें सब लोग बड़े आराम से तथा बिना किसी बाधा के कहीं भी जा सकते थे। हम या हमारे आदमी सोच ही नहीं सकते थे कि वो लोग किसी एम्बूलेंस जैसे वाहन में यहाॅ से जा सकते हैं।एम्बूलेन्स के आगे आगे कुछ फाॅसले पर रितू अपनी जिप्सी में जा रही थी। फाॅसले पर इस लिए ताकि अगर हम या हमारे आदमी रास्ते में कहीं मिलें भी तो वो उस पर शक न कर सकें किसी बात का। कहने का मतलब ये कि रितू की मदद से विराज ने अपनी एक कमज़ोरी को हमारी पहुॅच से दूर कर दिया।"

"मगर इसमें ये कहाॅ फिट बैठता है कि वो इस सबके लिए मुझे ऐसे चक्कर में फॅसा कर बाद में छोंड़ भी दे?" अजय सिंह सहसा बीच में ही बोल पड़ा था___"और वैसे भी ये वाला चक्कर तो उस सबके बहुत बाद अभी हुआ है।"

"मेरी बात तो पूरी होने दो डियर।" प्रतिमा ने कहा___"मैं सब कुछ विस्तार से ही बता रही हूॅ और तुम्हारे सवाल की तरफ ही आ रही हूॅ। विराज के यहाॅ आने पर हमने ये अनुमान लगाया था कि संभव है कि वो यहाॅ पर अभय के बीवी बच्चों को लेने आया हो। हलाॅकि ये भी एक अहम बात है अजय, क्योंकि आज के हालात में विराज की दूसरी कमज़ोरी अभय के बीवी बच्चे भी हैं। इस लिए संभव है कि वो उन्हें भी अपने साथ ही ले गया हो। अभय ने उससे कहा होगा कि अगर संभव हो सके तो वो अपने साथ अपनी चाची व अपने भाई बहन को भी ले आए। विराज मुम्बई से यही सोच कर आया रहा होगा कि वो विधी को देखेगा और फिर अपनी छोटी चाची व उसके बच्चों को साथ ले कर पुनः मुम्बई लौट जाएगा। मगर यहाॅ आने के बाद विधी के मामले में वो एक अलग ही चक्कर में पड़ गया। ऐसे माहौल में वो भला वो कैसे यहाॅ से चला जाता? दूसरी बात यहाॅ पर तो वैसे भी उसके लिए खतरा ही था। अतः अपने साथ साथ अपनी कमज़ोरियों को भी दूर करना उसकी पहली प्राथमिकता थी। रितू के द्वारा उसे कोई सुरक्षित जगह तो ज़रूर मिल गई रही होगी मगर उससे कदाचित वो संतुष्ट न रहा होगा। वो चाहता रहा होगा कि उसकी सभी कमज़ोरियाॅ हमारी पहुॅच से काफी दूर होनी चाहिए और काफी दूर तो मुम्बई ही थी। अतः उसने फैसला किया होगा कि सबको मुम्बई भेज दिया जाए। उधर उसे इस बात का भी एहसास रहा होगा कि रितू अब चूॅकि हमारे खिलाफ होकर उसकी मदद कर रही है इस लिए अब उस पर भी खतरा ही है और वो उसे खतरा के बीच में अकेला छोंड़ भी नहीं सकता था। तब उसने एक प्लान बनाया और वो प्लान यही था कि वो तुम्हें कम से कम दो दिन के लिए सीबीआई की गिरफ्त में डलवा दे। इसका फायदा ये था कि जब तुम ही मैदान पर न होते तो रितू पर खतरे की सीमा न के बराबर ही रह जाती। उधर प्लान के मुताबिक विराज अपनी कमज़ोरियों को लेकर वापस मुम्बई चला गया। मुम्बई में सबको छोंड़ कर वो उसी दिन वापस यहाॅ के लिए चल दिया।"

"तो तुम्हारे हिसाब से विराज ने इसी सबके लिए मुझे ऐसे चक्करें फाॅसा था?" अजय सिंह ने गहरी साॅस लेते हुए कहा___"मगर तुमने ये कैसे कह दिया कि विराज उन सबको लेकर मुम्बई ही गया था?"

"इस आधार पर कि उसने तुम्हें दो दिन के लिए ही उस चक्कर में फाॅसा था।" प्रतिमा ने कहा___"इन दो दिनों में वो आराम से मुम्बई जाकर लौट भी सकता है। उसने तुम्हें नकली सीबीआई के जाल में फाॅसा जबकि वो चाहता तो तुम्हें सचमुच में ही रियल सीबीआई की गिरफ्त में पहुॅचा देता। मगर उसने ऐसा नहीं किया। उसका मकसद सिर्फ इतना ही था कि तुम दो दिन के लिए अंडरग्राउण्ड रहो"

"यकीनन ऐसा ही हुआ लगता है।" अजय सिंह ने कहा___"ख़ैर, सोचने वाली बात है कि रितू उसकी मदद कर रही है और वो उसे तथा उसके साथ साथ पवन आदि को भी सुरक्षित ले गई थी। मगर सवाल है कि ऐसी कौन सी जगह वो ले गई होगी?"

"किसी ऐसी जगह।" प्रतिमा ने सोचने वाले भाव से कहा___"जहाॅ पर किसी ग़ैर का आना जाना न हो और जहाॅ पर उन्हें किसी के खतरे का भी आभास तक न हो।"
"ऐसी कौन सी जग......।" अजय सिंह कहते कहते एकदम से रुक गया था। उसके चेहरे पर चौंकने के भाव उभर आए और फिर वो सहसा अजीब भाव से बोल पड़ा___"अरे....ओह माई गाड मैं भी न बहुत बड़ा बेवकूफ हूॅ प्रतिमा।"

"क्यों, क्या हुआ?" प्रतिमा उसके मुख से ये सुन कर चौंक पड़ी थी, बोली___"ऐसा क्यों कह रहे हो तुम?"
"क्यों न कहूॅ यार?" अजय सिंह एकाएक ही आहत भाव से बोला___"मैं बेवकूफ ही तो हूॅ। इस बारे में तो मुझे पहले ही सोच लेना चाहिए था कि रितू नैना को लिये कहाॅ रह सकती है?"

"क्या मतलब??" प्रतिमा के चेहरे पर हैरानी के भाव उभरे।
"तुम्हें याद है न कि हमने अपने तीनों बच्चों के नाम एक एक फार्महाउस किया था?" अजय सिंह ने आवेशयुक्त भाव से कहा था।
"ओह हाॅ।" प्रतिमा एकदम से उछल पड़ी थी। एकदम से जैसे उसे अजय सिंह की बात समझ में आ गई थी, अतः बोली___"तो क्या तुम ये कह रहे कि रितू....?"

"हाॅ प्रतिमा।" अजय सिंह प्रतिमा की बात पूरी होने से पहले ही बोल पड़ा___"मैं यही कह रहा हूॅ कि रितू उस समय नैना को लिए अपने उसी फार्महाउस पर गई होगी जिस फार्महाउस को मैने उसके नाम किया था। सोचो प्रतिमा वो जगह उन सबके लिए कितनी आसान तथा महफूज हो सकती है। उफ्फ ये बात मेरे ज़हन में पहले क्यों नहीं आई वरना हम पहले ही रितू नैना आदि सबको पकड़ सकते थे। बहुत बड़ी ग़लती हो गई प्रतिमा, मैं खुद अपनी ही ग़लती की वजह से जीती हुई बाज़ी को हार गया।"

"अरे तो अभी भी क्या बिगड़ा है अजय?" प्रतिमा ने कहा___"हो सकता है कि वो सब अभी भी वहीं पर मौजूद हों। तुम्हें तुरंत ही वहाॅ जाना चाहिए।"
"नहीं प्रतिमा।" अजय सिंह ने पूरी मजबूती से गर्दन को न में हिला कर कहा___"अब कुछ नहीं हो सकता। वो लोग अब हमें फार्महाउस पर नहीं मिलेंगे। क्योंकि ये बात तो वो भी समझते रहे होंगे कि फार्महाउस उनके लिए कुछ समय के लिए ज़रूर सुरक्षित जगह हो सकती है मगर हमेशा के लिए नहीं। ये मत भूलो कि रितू के साथ में विराज भी है। वो कमीना बहुत शातिर है। अब तक की उसकी सारी गतिविधियाॅ ये बताती हैं कि वो हमसे दो क़दम आगे ही रहता है। हम जिस चीज़ के बारे में सोचते हैं वो शातिर लड़का उस चीज़ को पहले ही अंजाम दे चुका होता है।"

"फिर भी एक बार पता करने में क्या जाता है?" प्रतिमा ने कहा___"हो सकता है वो अभी भी वहीं पर हों। उनके दिमाग़ में ये सोच होगी कि उनके वहाॅ होने का पता तुम्हें ज़रूर चलेगा इस लिए तुम फिर ये सोच कर वहाॅ उनका पता करने नहीं जाओगे कि अब वो वहाॅ हो ही नहीं सकते हैं। ये एक मनोवैज्ञानिक सोच है अजय, इसी के आधार पर वो तुम्हारे दिमाग़ को पढ़ता है और वही करता है जिसकी तुम उम्मीद ही नहीं करते। कहने का मतलब ये कि तुम इस वक्त ये सोच रहे हो कि वो लोग वहाॅ होंगे ही नहीं अतः तुम उनका पता करने नहीं जाओगे जबकि वो तुम्हारी इसी सोच के चलते वहाॅ मौजूद रहेंगे।"

"मनोविज्ञान के रूप में तुम्हारा तर्क अच्छा है और अपनी जगह सही भी है।" अजय सिंह ने कहा___"मगर मुझे नहीं लगता है कि विराज जैसा शातिर दिमाग़ लड़का इतना बड़ा जोखिम उठाएगा। बल्कि संभव है कि उसने कोई दूसरा सुरक्षित ठिकाना ढूॅढ़ लिया होगा। फिर भी अगर तुम्हारा मन नहीं मानता तो ठीक है मैं अभी पता करवा लेता हूॅ।"

ये कह कर अजय सिंह ने सिरहाने की तरफ ही रखे अपने लैण्डलाइन फोन का रिसीवर उठाकर कान से लगाया और उस पर कोई नंबर पंच करने लगा। थोड़ी देर बाद ही उसने अपने किसी आदमी से कहा कि वो फला जगह पर बने उसके फार्महाउस में जाए और पता करे कि वहाॅ इस वक्त कौन कौन मौजूद है? अपने आदमी को हुकुम देने के बाद अजय सिंह ने रिसीवर वापस केड्रिल पर रख दिया।

"थोड़ी ही देर में दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा डियर।" अजय सिंह ने कहा___"मेरा आदमी कुछ ही देर में पता करके मुझे उस सबकी सूचना फोन पर दे देगा।"
"इस बात का यकीन तो मुझे भी है अजय।" प्रतिमा ने कहा___"वो लोग फार्महाउस में नहीं होंगे मगर इसके बावजूद एक बार पता करना भी कोई हर्ज़ की बात नहीं है। ख़ैर, चलो ये मान के चलते हैं कि वो लोग फार्महाउस पर नहीं होंगे तो सवाल ये है कि उन लोगों ने आख़िर किस जगह पर अपना दूसरा सुरक्षित ठिकाना बनाया होगा?"

"इस बारे में भला क्या कहा जा सकता है?" अजय सिंह ने गहरी साॅस ली___"सच कहूॅ तो मेरा अब दिमाग़ ही काम नहीं कर रहा है। समझ में नहीं आता कि आख़िर ऐसा क्या करूॅ जिससे कि सब कुछ मेरी मुट्ठी में आ जाए?"

"सबसे पहले तो तुम्हें अपनी सोच का दायरा बड़ा करना होगा अजय।" प्रतिमा ने उसे ज्ञान देने वाले अंदाज़ से कहा___"तुम्हें विराज की सोच से दो नहीं बल्कि चार क़दम आगे की सोच रखनी होगी। तभी वो सब संभव हो सकता है जो तुम चाहते हो।"

"सबसे बड़ी समस्या ये है डियर कि उसके पास मेरे खिलाफ वो ग़ैर कानूनी सबूत हैं।" अजय सिंह बेचैनी से बोला___"वो साला उनके आधार पर कभी भी कानून की चपेट में ला सकता है।"

"वो उन सबूतों इस्तेमाल नहीं करेगा अजय।" प्रतिमा ने कहा___"अगर करना ही होता तो वो कब का कर चुका होता। वो सबूत तो उसके पास महज तुरुप के इक्के की तरह मौजूद हैं। यानी जब वो दूसरे किसी तरीके से तुमसे अपना बदला नहीं ले पाएगा तब वो उनका इस्तेमाल करेगा। कदाचित उसके मन में ये सोच है कि वो तुम्हें कानून की सलाखों के पीछे पहुॅचा कर आसान सज़ा नहीं देना चाहता। बल्कि खुद अपने हाॅथों से तुम्हें कोई ऐसी सज़ा देना चाहता है छिसके बारे में तुमने ख्वाब में भी न सोचा हो।"

"यकीनन तुम सही कह रही हो प्रतिमा।" अजय सिंह के जिस्म में झुरझरी सी हुई थी, बोला___"उसके मन में यकीनन यही होगा। वो मुझे खुद अपने हाॅथों से सज़ा देना चाहता है। दूसरी बात, जिस तरह से उसने मुझे फॅसा रखा है उससे वो निश्चय ही अपने मंसूबों में कामयाब हो जाएगा। मगर मुझे ये समझ में नहीं आता कि जब उसकी मुट्ठी में सब कुछ है तो वो देर किस बात पर कर रहा है?"

"यही तो सोचने वाली बात है अजय।" प्रतिमा के चेहरे पर सोचों के भाव उभरे___"वो इतना शातिर है कि हम उसकी सोच को समझ हीं नहीं पाते। जबकि वो हमारी उम्मीदों से परे वाला काम कर जाता है। वो चाहे तो यकीनन एक झटके में ऐसा कुछ कर सकता है जिसके तहत हम सब उसके सामने दीन हीन दसा में हाज़िर हो जाएॅ मगर वो ऐसा इस लिए नहीं कर रहा क्योंकि उसे लगता होगा कि ये काम तो वो कभी भी कर सकता है। वो कुछ ऐसा करने की फिराक़ में होगा जो हमारे लिए हद से भी ज्यादा असहनीय हो। यकीनन ऐसा ही हो सकता है अजय और कदाचित वो ऐसा कर भी रहा है।"

"क क्या कर रहा है वो?" अजय सिंह मानो अंदर ही अंदर काॅप कर रह गया था।
"सबसे पहले तो उसने यही किया।" प्रतिमा ने कहा___"कि उसने हमारी बेटी को हमसे अलग कर अपने साथ मिला लिया। क्या ये बड़ी बात नहीं है अजय कि हमारी जो बेटी उसकी शक्ल तक देखना पसंद नहीं करती थी वो आज शायद विराज को ही सच्चे दिल से अपना भाई मानने लगी है और इतना ही नहीं उसके लिए अपने ही माॅ बाप के खिलाफ़ हो गई। अगर उसे हमारी हर असलियत का पता चल चुका है तो ये भी संभव है कि उसने हमसे रिश्ता भी तोड़ लिया हो। सारी बातों को ग़ौर से सोचो तो समझ में आता है कि वास्तव में विराज ने कितना बड़ा तीर मार लिया है।"

"इसमे कोई संदेह नहीं है यार।" अजय सिंह ने गहरी साॅस लेते हुए कहा___"रितू को अपने साथ इस तरह से मिला लेना बहुत बड़ी बात है।"
"और मुझे तो ये भी लगता है अजय।" प्रतिमा ने सोचने वाले अंदाज़ से कहा___"कि विराज का अगला क़दम हमारी दूसरी बेटी नीलम को भी अपनी तरफ मिला लेना होगा। नीलम को ज्यादा दुनियादारी का पता नहीं है। किन्तु हाॅ ये सच है कि वो भी अपनी बड़ी बहन की ही तरह सच्चाई की राह पर चलने की सोच रखती है। इस लिए अगर उसे हमारी असलियत के बारे में पता चल गया तो ये निश्चित बात है कि वो भी हमारे खिलाफ़ हो जाएगी। वैसे क्या पता हो ही गई हो।"

"ऐसा तुम कैसे कह सकती हो भला?" अजय सिंह को अपने पैरों तले से मानो ज़मीन खिसकती हुई महसूस हुई, बोला___"नहीं नहीं ऐसा नहीं हो सकता। पता नहीं क्या अनाप शनाप बोले जा रही हो तुम?"

"विराज की सोच से अगर चार क़दम आगे चलना है तो ऐसा सोचना ही पड़ेगा डियर हस्बैण्ड।" प्रतिमा ने मुस्कुराते हुए कहा___"मैं ऐसा बेवजह ही नहीं कह रही हूॅ बल्कि ऐसा कहने की मेरे पास कुछ पुख्ता वजहें भी हैं।"

"क कैसी वजहें?" अजय सिंह के चेहरे पर हैरत के भाव उभरे।
"पिछली दो तीन दिन की घटनाओं पर ज़रा बारीकी से ग़ौर करो डियर।" प्रतिमा ने कहा___"विराज ने तुम्हें नकली सीबीआई के जाल में फॅसा कर क्यों अंडरग्राउण्ड किया? इसका जवाब ये है कि उसे अपनी कमज़ोरियों को सुरक्षित या तुम्हारी पहुॅच से दूर करना था। किन्तु उसे लगा होगा कि उसके मुम्बई चले से यहाॅ रितू और नैना अकेली पड़ जाएॅगी। हालात ऐसे थे कि उन दोनो पर किसी भी समय तुम्हारे रूप में कोई संकट आ सकता था। अतः विराज ने एक तीर से दो शिकार किया, पहला ये कि तुम्हें नकली सीबीआई की कैद में रख कर सुरक्षित सबको यहाॅ से मुम्बई ले जाएगा और दूसरा ये कि उसके यहाॅ न रहने पर रितू व नैना के ऊपर तुम्हारा कोई संकट भी न रहता। दो दिन बाद उसने तुम्हें इसी लिए छोंड़ दिया क्योंकि वो मुम्बई से वापस यहाॅ आ गया और फिर आते ही उसने सबसे महत्वपूर्ण काम ये किया कि फार्महाउस से रितू व नैना को अपने साथ किसी दूसरी ऐसी जगह शिफ्ट किया जहाॅ पर तुम्हारा खतरा न के बराबर ही हो। ये उसी दिन की बात है अजय जब तुम्हें सीबीआई वाले ले गए थे, तब मैने रितू को फोन लगाया था तुम्हारे बारे में बताने के लिए मगर उसने मेरा फोन नहीं उठाया बल्कि काट दिया था। तब मैने नीलम को फोन लगाया और उसे बताया कि यहाॅ क्या हुआ है। उसे मैने ये भी बताया कि उसकी बड़ी बहन हमारे खिलाफ हो गई है। मेरी बात सुन कर वो घबरा गई और उसने यहाॅ आने के लिए कहा था। यहाॅ पर ग़ौर करने की बात ये है कि संभव है कि नीलम ने मुझसे बात करने के बाद रितू से बात की हो और उससे पूछा हो कि वो क्यों माॅम डैड के खिलाफ हो गई हैं। उसके पूछने पर संभव है कि रितू ने उसे हमारी सारी सच्चाई बता दी हो। हलाॅकि ऐसा हुआ नहीं है, क्योंकि अगर ऐसा हुआ होता तो यहाॅ आने के बाद नीलम का बिहैवियर कुछ तो अलग हमें समझ ही आता। किन्तु वो यहाॅ आने पर नार्मल ही थी। इसका मतलब कि रितू ने उसे कुछ नहीं बताया था उस दिन। किन्तु हाॅ ऐसा हो सकता है कि नीलम के द्वारा माॅम डैड के खिलाफ़ हो जाने का कारण पूछने पर रितू ने उससे बस यही कहा हो कि वो खुद सच्चाई का पता लगाए। अतः संभव है कि नीलम अब बड़ी ही सफाई से सच्चाई का पता भी लगा रही हो। दूसरी बात विराज के यहाॅ से जाने के दिन की काॅउटिंग करें तो पता चलता है कि विराज उसी दिन वापस यहाॅ के लिए मुम्बई से चल दिया था जिस दिन हमारी बेटी नीलम वहाॅ से चली थी और फिर आज यहाॅ पहुॅची है। मेरे कहने का मतलब ये है कि ऐसा यकीनन हो सकता है कि विराज और नीलम एक ही ट्रेन से यहाॅ आए हों अथवा ऐसा भी हो सकता है कि ट्रेन में ये दोनो मिले भी हों और उनके बीच कोई बातचीत भी हुई हो।"

"अब बस भी करो यार।" अजय सिंह सहसा खीझते हुए बोल पड़ा था___"तुम तो ऐसी ऐसी बातें नाॅन स्टाप करती चली जा रही हो जो कि अब मेरे सिर के ऊपर से जाने लगी हैं। मुझे समझ में नहीं आता कि ये सब बातें तुम्हारे दिमाग़ में आती कैसे हैं? कभी ऐसा तो कभी वैसा, कभी ये हो सकता है तो कभी वो हो सकता है। व्हाट दा हेल इज दिस यार? तुम तो मेरे दिमाग़ का अपनी बातों से ही दही किये दे रही हो।"

"कमाल करते हो डियर हस्बैण्ड।" प्रतिमा ने सहसा खिलखिला कर हॅसते हुए कहा___"अगर ऐसा नहीं सोचोगे तो कैसे विराज की सोच से आगे जा पाओगे? कैसे उसे अपनी मुट्ठी में कैद कर पाओगे तुम?"

"भाड़ में जाए विराज।" अजय सिंह सहसा गुस्से में बोल पड़ा___"साले ने जीना हराम कर दिया है मेरा। ऊपर से मेरी बेटी को भी अपने साथ मिला लिया उसने। बस एक बार....एक बार मेरे सामने आ जाए वो। उसके बाद मैं बताऊॅगा कि मेरे साथ ऐसी चुहलबाज़ी करने का अंजाम क्या होता है?"

"सोचने वाली बात है डियर हस्बैण्ड।" प्रतिमा ने अजय सिंह के चेहरे की तरफ देखते हुए कहा___"जो लड़का बग़ैर सामने आए तुम्हारी ये हालत कर रखा है वो अगर खुल कर सामने आ जाए तो सोचो क्या हो?"

"क्या होगा?" अजय सिंह ताव में बोला___"साले माॅ बहन बीच चौराहे पर चोदूॅगा मैं। एक बार सामने बस आ जाए वो हरामज़ादा।"
"इसका उल्टा भी तो हो सकता है डियर।" प्रतिमा ने सहसा मुस्कुरा कर कहा___"हाॅ डियर इसका उल्टा भी तो हो सकता है। यानी कि तुम तो बीच चौराहे पर उसकी माॅ बहन को न चोद पाओ मगर वो सच में ही तुम्हारे बीवी बच्चों को बीच चौराहे पर रौंद डाले।"

"ये क्या बकवास कर रही हो तुम?" अजय सिंह ने कठोर भाव से कहा___"होश में तो हो न तुम? ये तुम कैसी वाहियात बातें कर रही हो?"
"सच हमेशा कड़वा ही लगता है मेरे बलम।" प्रतिमा ने अजय सिंह के चेहरे को अपनी एक हॅथेली से सहला कर कहा___"मगर सोचो तो सही। हालात जिस तरह से उसकी मुट्ठी में हैं उससे क्या वो ये सब नहीं कर सकता?"

प्रतिमा की इस बात पर अजय सिंह कुछ बोन न सका। कदाचित उसे एहसास हो गया था कि प्रतिमा सच कह रही थी। सच ही तो था, वो भला क्या कर सकता था विराज का? जबकि विराज अगर चाहे तो यकीनन वो सब कर सकता है जिस चीज़ की बात प्रतिमा कर रही थी। ख़ैर अभी अजय सिंह ये सब सोच ही रहा था कि तभी सिरहाने की तरफ रखा लैण्डलाइन फोन बज उठा। अजर सिंह ने हाथ बढ़ा कर रिसीवर उठाया और कान से लगा लिया। दूसरी तरफ से कुछ देर तक जाने क्या कहा। जवाब में ये कह कर अजय सिंह ने रिसीवर वापस रख दिया कि "चलो कोई बात नहीं"।

"क्या कहा तुम्हारे आदमी ने?" अजय सिंह के रिसीवर रखते ही प्रतिमा ने उससे पूछा था।
"यही कि इस वक्त फार्महाउस पर कोई इंसान तो क्या एक परिंदा तक मौजूद नहीं है।" अजय सिंह ने गहरी साॅस लेते हुए कहा___"किन्तु हाॅ वहाॅ पर हमारी वो जीप ज़रूर उसे मिली है जो जीप हमारे ही एक आदमी के साथ लापता हो गई थी।"

"इसका मतलब।" प्रतिमा ने सोचने वाले भाव के साथ कहा___"विराज ने मुम्बई से आते ही फार्महाउस से सबको दूसरी किसी सुरक्षित जगह पर शिफ्ट कर दिया है। कदाचित उसे अब ये आभास हो चुका था कि फार्महाउस पर अब एक भी पल रुकना उनके लिए ठीक नहीं है। इस लिए इससे पहले कि तुम्हें उसके वहाॅ होने का पता चले और तुम वहाॅ पहुॅचो उससे पहले ही वो उन सबको लेकर कही दूसरी जगह कूच कर गया। वाकई अजय, बड़ा ही शातिर दिमाग़ है उसका। वरना सोचने वाली बात है कि इतने दिन तक तो वो वहीं पर रहा था। भला एक दिन और वहाॅ रुक जाने में उसे क्या प्राब्लेम हो सकती थी। मगर नहीं, उसे तो आभास हो गया था कि अब वहाॅ पर खतरा बढ़ गया था उन सबके लिए। अतः फौरन ही सबको लेकर चलता बना वो। अब बताओ डियर हस्बैण्ड, उसकी सोच तुम्हारी सोच से दो क़दम आगे है कि नहीं?"

अजय सिंह निरुत्तर सा हो गया था। उसे समझ में ही नहीं आया कि अब वो प्रतिमा की इस बात का क्या जवाब दे? प्रतिमा बड़े ग़ौर से उसके चेहरे की तरफ कुछ देर तक देखती रही। फिर ये कह कर उसके बगल से ही लेट गई कि___"अब सो जाओ माई डियर। ज्यादा सोचने से कुछ नहीं होगा अब। नई सुबह के साथ तथा नई सोच के साथ कुछ नया करने की कोशिश करना।" अजय सिंह को भी लगा कि प्रतिमा ठीक कह रही है। अतः उसने भी अपने ज़हन से इन सारी बातों को झटका और दूसरी तरफ करवॅट लेकर लेट गया। किन्तु दोनो ही इस बात से बेख़बर थे कि सिरहाने के ऊपर ही एक बड़ी सी खिड़की थी जिसका एक पल्ला हल्का सा खुला हुआ था और उस हल्के खुले हुए पल्ले पर दो कान खरगोश की तरह खड़े उन दोनो की अब तक की सारी बातें सुन चुके थे।
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सुबह मेरी नींद खुली तो देखा कि रितू दीदी अभी भी उसी हालत में मेरे ऊपर लेटी हुई हैं। उनका वजन या ये कहिए कि उनका बोझ ज्यादा तो नहीं था मगर क्योंकि वो रात भर मेरे ऊपर ही लेटी रही थीं तो मुझे अब ऐसा लग रहा था जैसे मेरे ऊपर कितना भारी बोझ रखा हुआ हो। मेरी नींद खुलने का कारण बोझ का एहसास तो था ही किन्तु दूसरा एक कारण ये भी था कि मुझे शूशू आई हुई थी। आप तो जानते ही हैं कि सुबह सुबह शूशू के चलते हमारे महाराज स्टैण्डप पोजीशन में होते हैं।

मुझे महाराज के स्टैण्डप होने का जैसे ही एहसास हुआ मैं एकदम से घबरा सा गया। मुझे लगा कि कहीं अगर रितू दीदी जग गईं और उन्हें भी मेरे महाराज के स्टैण्डप होने का एहसास हो गया तो भारी गड़बड़ हो सकती है। वो मेरे बारे कुछ भी उल्टा सीधा सोच सकती हैं। अतः मुझे उनके जगने से पहले ही अपनी इस हालत को ठीक कर लेना था। मैने हल्का सा सिर उठा कर देखा तो रितू दीदी किसी छोटी सी बच्ची की तरह मेरे सीने पर वैसे ही छुपकी हुई सो रही थी जैसे रात को वो सोई थी।

मैने बहुत ही आहिस्ता से दाहिने तरफ करवॅट लेकर रितू दीदी को बेड पर इस तरह बड़ी सफाई से लेटाया कि उनकी नींद में ज़रा भी खलल न पड़ सके। राइट साइड बेड पर लेटा कर मैने उन्हें ठीक से सीधा कर दिया। हलाॅकि वो सीधी ही थी मगर उनके दोनो हाॅथ मुड़े हुए थे जिन्हें मैने सीधा कर दिया था। मैने देखा रितू दीदी के खूबसूरत चेहरे पर इस वक्त संसार भर की मासूमियत विद्यमान थी। उन्हें मेक-अप का ज़रा भी शौक नहीं था। वो बिना मेक-अप के ही बहुत खूबसूरत थी। बड़ी माॅ(प्रतिमा) की तरह ही वो बेहद खूबसूरत थी। किन्तु एक अच्छे नेचर की वजह से उनकी खूबसूरती बड़ी माॅ से लाख गुना ज्यादा थी। मुझे रितू दीदी को देख कर उन पर बेपनाह प्यार आ रहा था। मैने झुक कर उनके माॅथे पर हौले से एक किस किया और फिर मुस्कुराते हुए मैं पलट कर आहिस्ता से ही बेड से उतर कर कमरे से अटैच बाथरूथ की तरफ बढ़ गया।

कुछ देर बाद जब मैं बाथरूम से सुबह के कामों से फारिग़ हो कर वापस कमरे में बेड के पास आया तो देखा रितू दीदी अभी भी वैसी ही लेटी हुईं थी किन्तु इस वक्त उनके गुलाब की पंखुड़ियों जैसे होठों पर बहुत ही दिलकस मुस्कान फैली हुई थी। ये देख कर मैं चौंका फिर मैं मुस्कुराते हुए आहिस्ता से बेड पर आ कर रितू दीदी के पास ही बैठ गया और उन्हें देखने लगा।

"गुड मार्निंग माई दा मोस्ट ब्यूटीपुल दीदी।" फिर मैने हौले से मुस्कुराते हुए किन्तु उन्हें देखते हुए ही कहा___"मुझे पता है आप जग चुकी हैं। किन्तु ये समझ नहीं आया कि आपके होठों पर ये खूबसूरत मुस्कान किस बात पर फैली हुई है? हलाॅकि आपको सुबह सुबह इस तरह मुस्कुराते हुए देख कर मैं बहुत खुश हो गया हूॅ।"

मेरी इस बात पर रितू दीदी के होठों की उस मुस्कान में और भी इज़ाफा हुआ और उन्होंने पट से अपनी ऑखें खोल दी। कुछ देर तक मुझे वो उसी मुस्कान के साथ देखती रहीं फिर बोलीं____"मेरे होठों पर ये मुस्कान तेरी ही वजह से है राज। मुझे नहीं पता था कि सुबह सुबह मेरा सबसे खूबसूरत और सबसे अच्छा भाई मुझे इतना प्यार से लेटा कर तथा मेरे माॅथे पर चूम कर मुझसे इतना ज्यादा प्यार करने का सबूत देगा। सच कहती हूॅ मेरे भाई, आज की ये सुबह मेरे लिए अब तक की सबसे बेस्ट सुबह थी।"

"ओह तो आप उस वक्त जगी हुई थीं?" मैने चौंकते हुए कहा___"अगर ऐसा था तो फिर आप चुपचाप ऑखें बंद कर सोये होने का नाटक क्यों कर रही थी?"
"अरे बुद्धूराम।" रितू दीदी ने मुस्कुराते हुए कहा___"अगर मैं दिखा देती कि मैं जाग चुकी हूॅ तो फिर मुझे तेरा वो प्यार कैसे मिल पाता भला जो तूने मेरे माॅथे पर चूम कर जताया था?"

"अच्छा जी।" मैं कह तो गया मगर अब ये सोच सोच कर घबराने भी लगा था कि रितू दीदी अगर जग गई थी तो कहीं उन्हें मेरे महाराज के स्टैण्डप होने का बोध तो नहीं हो गया? और अगर ऐसा हो गया होगा तो यकीनन वो मेरे में ग़लत सोचने लगी होंगी। मैं भगवान से विनती करने लगा कि प्लीज ऐसा कुछ न होने देना। फिर मैने खुद को सम्हालते हुए बोला___"पर आप जगी कब थीं दीदी?"

"मैं तो तेरे जगने से पहले ही जाग गई थी।" ये कह कर रितू दीदी ने जैसे मेरे सिर पर बम्ब फोड़ा___"पर उठी इस लिए नहीं कि मुझे उस तरह लेटे रहने में बड़ा मज़ा आ रहा था।"
"क्या????" मेरे मुख से मानो चीख सी निकल गई थी, फिर बुरी तरह सकपकाते हुए बोला___"मेरा मतलब आप मेरे जगने से पहले कैसे जग गई थी?"

"अरे ये कैसा सवाल है राज?" रितू दीदी के चेहरे पर हैरानी के भाव उभरे। ये अलग बात थी कि उनके होठों पर मुस्कान वैसी ही बरकरार थी, बोली___"क्या मैं तेरे जागने से पहले खुद नहीं जाग सकती और तू इस तरह चौंक क्यों रहा है मेरे जगने की बात सुन कर? क्या तुझे मेरे जाग जाने पर कोई प्राब्लेम हुई है?"

"न.न..नहीं तो।" मैं एक बार फिर बुरी तरह सकपका गया। मुझे समझ न आया कि क्या कहूॅ___"ऐसी तो कोई बात नहीं है दीदी।"
"फिर तू इस तरह चौंका क्यों?" रितू दीदी की मुस्कान और भी गहरी हो गई___"अरे ये क्या???"

"क..क.क्या हुआ दीदी?" मैं उनके इस प्रकार कहने पर बुरी तरह डर गया। मेरे चेहरे पर उभरे पसीने में पल भर में इज़ाफा हो गया।
"ये तेरे माॅथे पर सुबह सुबह इतना पसीना कैसे उभर आया राज?" रितू दीदी ने मानो एक और बम्ब मेरे सिर पर फोड़ दिया___"क्या बात है मेरे भाई तेरी तबीयत तो ठीक है न?"

"त..त.तबीयत???" उनकी इस बात से मेरी हालत पल भर में ख़राब हो गई___"क्या मतलब है आपका? मैं तो एकदम ठीक हूॅ दीदी।"
"तू सच कहा रहा है न?" रितू दीदी ने अजीब भाव से मेरी तरफ ध्यान से देखते हुए पूछा___"और तू सच में ठीक ठाक है न?"

"ओफ्फो दीदी।" मैंने बेचैनी और परेशानी की हालत में कहा___"ये सुबह सुबह क्या अपनी पुलिसगीरी दिखाने लगी हैं आप?"
"पुलिसगीरी??" रितू दीदी चौंकी___"मैं कहाॅ पुलिसगीरी दिखा रही हूॅ तुझे? मैं तो तेरी तबीयत के बारे में ही पूछ रही हूॅ।"

"तो फिर ये पुलिस वालों की तरह तहकीक़ात करने का क्या मतलब है आपका?" मैं अब तक अपनी हालत से काफी हद तक उबर चुका था, बोला___"इतनी देर से देख रहा हूॅ कि आप बाल की खाल निकालने पर तुली हुई हैं। इतना भी नहीं सोचा कि मुझ मासूम पर इस सबसे क्या गुज़रने लगी है, हाॅ नहीं तो।"

मैने ये बात इतने भोलेपन और इतनी मासूमियत से कही थी कि रितू दीदी की हॅसी छूट गई। वो एकदम से बेड पर उठ कर बैठ गई और फिर झपट कर मुझे अपने गले से लगा लिया।

"तू सचमुच बहुत स्वीट है राज।" रितू दीदी ने मेरी पीठ पर अपने दोनो हाथ फेरते हुए कहा___"ऊपर से तेरा आज अपनी इस बात में गुड़िया(निधी) का वो तकिया कलाम यूज करना। उफ्फ जान ही ले गया रे।"

गुड़िया का ख़याल आते ही मेरे अंदर भी एक अजीब सी झुरझुरी दौड़ गई। पलक झपकते ही उसका चेहरा मेरी ऑखों के सामने उभर आया। उस चेहरे में ज़माने भर की उदासी थी, तड़प थी। मेरा दिल एकदम से निधी के लिए बेचैन हो उठा। सुबह सुबह रितू दीदी की जो मुस्कान देख कर मुझे खुशी हुई थी वो गुड़िया का उदास चेहरा मेरी ऑखों के सामने उभर आने से जाने कहाॅ गायब हो गई थी। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि निधी ने अचानक मुझसे बात करना क्यों बंद कर दिया था? बात करना तो दूर बल्कि वो तो मेरे सामने ही नहीं आती थी।

"क्या हुआ राज?" रितू दीदी ने मुझे चुप जान कर मुझसे अलग होते हुए पूछा___"तू एकदम से गुमसुम सा क्यों हो गया? क्या मेरी बातों से तेरा दिल दुख गया है? देख अगर ऐसी बात है तो प्लीज मुझे माफ़ कर दे।"

"नहीं दीदी।" मैने उनके मुख पर अपना हाॅथ रख दिया, फिर बोला___"आपने कुछ नहीं किया है। आप भला कैसे मेरा दिल दुखा सकती हैं? मुझे पता है आप मुझे बहुत प्यार करती हैं।"

"तो फिर क्या बात है?" रितू दीदी ने सहसा गंभीर होकर पूछा___"तू एकदम से ही गुमसुम सा क्यों नज़र आने लगा है? आख़िर किस बात ने तुझे इतना सीरियस कर दिया है? क्या मुझे नहीं बताएगा?"

"मैं दरअसल गुड़िया की वजह से सीरियस हो गया हूॅ दीदी।" मैने गंभीरता से कहा___"पता नहीं क्या बात है जो वो मुझसे बात करने की तो बात दूर बल्कि वो मेरे सामने भी नहीं आती। जबकि उसे पता है कि मैं उसकी शरारत भरी बातों के बिना पल भर भी नहीं रह सकता।"

"ऐसा कब से है?" रितू दीदी ने पूछा___"तूने उसे कुछ कहा था क्या? या फिर तूने उसे किसी बात पर डाॅटा होगा। वो तेरी लाडली है इस लिए वो तेरे ज़ारा से भी डाॅट देने पर सीरियस हो सकती है। संभव है ऐसा ही कुछ हो।"

"मैं उसे ख्वाब में भी नहीं डाॅट सकता दीदी।" मैने पुरज़ोर लहजे में कहा___"और ना ही मैने उसे कुछ ऐसा वैसा कहा है जिससे उसे बुरा लग जाए।"
"तो फिर कोई दूसरी वजह होगी।" रितू दीदी ने सोचने वाले भाव से कहा___"कोई ऐसी वजह जिसके बारे में तुम्हें पता ही न हो।"

"ऐसी क्या वजह हो सकती है भला?" मैने कहा___"अगर कोई बात होती तो गुड़िया मुझे ज़रूर बताती।"
"कुछ बातें ऐसी भी होती हैं राज।" रितू दीदी ने समझाने वाले अंदाज़ से कहा___"जिन्हें एक बहन अपने भाई से नहीं कह सकती। वैसे इसका पता करने का सबसे अच्छा तरीका ये है कि तू उसे फोन लगा और उससे बात कर।"

"वो मेरा फोन नहीं उठाएगी दीदी।" मैने कहा___"और ना ही मुझसे बात करेगी। अगर करना होता तो अभी जब मैं मुम्बई गया था तो वो मुझसे कुछ तो बात करती। मगर वो तो मेरे सामने आई तक नहीं। आते समय मैं ही उससे मिलने उसके कमरे में गया था। मैने देखा कि कमरे में बेड पर वो ऑखें बंद कर सोने का दिखावा कर रही थी। मतलब साफ था कि वो मुझसे ना तो मिलना चाहती है और ना ही बात करना चाहती है।"

"बड़ी हैरत की बात है ये तो।" रितू दीदी के चेहरे पर हैरत के भाव उभरे___"चल ठीक है मैं अपने फोन से उसे काल करती हूॅ और मैं उससे बात करती हूॅ।"
"हाॅ ये ठीक रहेगा दीदी।" मैने खुश होते हुए कहा___"पर आप उससे ये मत कहना कि आपने उसे मेरे बातों के चलते फोन किया है और ना ही ये बताना कि मैं आपके ही पास बैठा हुआ हूॅ।"

रितू दीदी ने मेरी बात पर हाॅ में अपना सिर हिलाया और ये कह कर बेड से नीचे उतरने लगी कि वो अपने कमरे से अपना फोन लेकर अभी आती हैं। उनके जाने के बाद मैं बेड पर ही उनके आने का इन्तज़ार करने लगा। बेड के पास ही एक छोटी सी टेबल थी जिसमें मेरा मोबाइल फोन रखा हुआ था। मुझे ख़याल आया कि रितू दीदी के पास तो गुड़िया(निधी) का नंबर है ही नहीं। अतः मैने टेबल से अपना फोन उठा कर उसमे से गुड़िया का नंबर दीदी को देने का सोचा।

मैने अपने फोन को उठा कर मोबाइल के बगल से लगी बटन पर अॅगूठे से पुश किया तो स्क्रीन जल उठी। स्क्रीन जलते ही उसमें मुझे एक मैसेज नज़र आया जो व्हाट्सएप में था और जिसे नीलम ने भेजा था। मैने फोन को अनलाॅक करके उस मैसेज को खोला। नीलम के भेजे गए मैसेज को पढ़ता चला गया मैं। मैं ये जान कर हैरान हुआ कि नीलम ने मैसेज में सच्चाई का पता लग जाने वाली बात कही थी और वो मुझसे मिलना चाहती थी। मैं चकित था कि नीलम ने इतना जल्दी सच्चाई का पता कैसे लगा लिया? उसने मैसेज में सिर्फ इतना ही लिखा था कि___"राज मुझे पता चल गया है कि सच्चाई क्या है और किस वजह से रितू दीदी माॅम डैड के खिलाफ होकर तुम्हारे साथ हो गई हैं। सारी बातें तुमसे मिलने के बाद ही बताऊॅगी इस लिए मुझे तुमसे फौरन ही मिलना है। अब ये तुम बताओ कि मैं तुमसे कब कैसे और कहाॅ मिल सकती हूॅ। मेरे इस मैसेज का जवाब जितना जल्दी हो सके देना। तुम्हारी बहन नीलम परी।"

मैं नीलम के इस मैसेज से हैरान भी था और खुश भी। हैरान इस लिए कि उसने इतनी जल्दी सच्चाई का पता कर लिया था और खुश इस लिए कि अब वो भी कदाचित रितू दीदी की तरह मेरे पास ही रहेगी। अभी मैं ये सब सोच कर खुश ही हो रहा था कि तभी रितू दीदी मेरे कमरे में अपना फोन लिए आ गईं। उनकी नज़र मेरे चेहरे पर मौजूद खुशी के भावों पर पड़ी तो उनके चेहरे पर चौंकने के भाव उभरे।

"ओये होये बड़ा खुश लग रहा है भाई।" फिर वो मुस्कुराते हुए मुझसे बोली___"कोई दूसरी गर्लफ्रैण्ड मिल गई क्या तुझे?"
"अरे नहीं दीदी।" मैं उनकी इस बात से मुस्कुराते हुए बोला___"ऐसी कोई बात नहीं है। दरअसल मेरे फोन पर नीलम का मैसेज आया था रात में। उसके मैसेज को पढ़ कर ही खुश हो रहा था।"

"ओह तो ये बात है।" रितू दीदी बेड पर मेरे पास ही बैठते हुए कहा___"ऐसा क्या लिख कर भेजा है उसने मैसेज में जिसके चलते तू इतना खुश हो रहा है? ज़रा मुझे भी तो सुना उसका मैसेज।"

लीजिए, आप खुद ही पढ़ लीजिए।" मैने मोबाइल उनके हाथ में पकड़ाते हुए कहा___"हो सकता है कि आप भी मेरी तरह उसका मैसेज पढ़ कर खुश हो जाएॅ।"
"उसके लिए मुझे मैसेज पढ़ने की ज़रूरत नहीं है मेरे प्यारे भाई।" रितू दीदी ने मुझे देखते हुए कहा___"क्योंकि अगर तू खुश है तो मैं तुझे खुश देख कर ही खुश हो जाऊॅगी।"

मैं उनकी इस बात से बस मुस्कुरा कर रह गया। जबकि ऐसा कहने के बाद दीदी ने नीलम के मैसेज की तरफ देखा और मैसेज को पढ़ने लगीं। मैसेज पढ़ते ही उनके चेहरे पर हैरत और खुशी के मिले जुले भाव उभरे और फिर एकाएक ही उनके चेहरे पर गंभीरता छा गई।

"क्या हुआ दीदी?" मैं उनके चेहरे पर अचानक ही उभर आई उस गंभीरता को देख चौंकते हुए पूछा___"आपको नीलम के इस मैसेज को पढ़ कर खुशी नहीं हुई?"
"खुशी तो हुई राज।" रितू दीदी ने पूर्वत गंभीर भाव से ही कहा___"ये जानकर अच्छा भी लगा कि नीलम को भी सच्चाई का पता चल गया है मगर गंभीरता वाली बात ये है कि कहीं डैड को भी न इस बात का आभास हो जाए कि नीलम को भी सच्चाई पता चल गई होगी। उस सूरत में नीलम पर खतरा भी पैदा हो सकता है।"

"ये आप क्या कह रही हैं दीदी?" मैने हैरानी से कहा__"भला बड़े पापा को इस बात का आभास कैसे हो जाएगा कि नीलम उनकी सच्चाई जान चुकी होगी?"
"तुम मेरी माॅम को नहीं जानते राज।" रितू दीदी ने उसी गंभीरता से कहा___"उन्होंने डैड के साथ ही वकालत की पढ़ाई की थी। उनका दिमाग़ बहुत ही शार्प है। डैड से कई गुना ज्यादा उनका दिमाग़ चलता है। वो पिछले कुछ दिनों की घटनाओं को मद्दे नज़र रखते हुए डैड को ये बात समझा सकती हैं कि नीलम को सच्चाई का पता ज़रूर चल गया होगा अथवा वो सच्चाई का पता लगाने की राह पर चल रह होगी।"

"बात कुछ समझ में नहीं आई दीदी।" मैंने उलझनपूर्ण भाव से कहा___"भला बड़ी माॅ ऐसा क्या सोच कर बड़े पापा को समझाएॅगी?"
"सीधी सी बात है राज।" दीदी ने कहा___"ये तो उन्हें अब तक समझ आ ही गया होगा कि हमने क्या क्या और किस तरीके से किया है? इस लिए उन्हें इस सबकी कड़ियाॅ जोड़ने में कोई मुश्किल नहीं होगी। कहने का मतलब ये कि सारी घटनाओं के बाद वो अब उस दिन की घटनाओं को आपस में मिलाएॅगी जिस दिन डैड को हमारे नकली सीबीआई वाले गिरफ्तार करके ले गए थे और फिर बिना कुछ पूछताॅछ किये उन्हें दो दिन बाद छोंड़ भी दिया था। डैड को ये यो पता चल ही गया था कि वो सब तुम्हारा ही किया धरा था, क्योंकि तुम्हारे उन नकली सीबीआई वाले आदमियों ने अपनी बातों के बीच तुम्हारा ही नाम लिया था। अतः सारी बातें जानने के बाद माॅम को ये सोचने में ज़रा भी समय नहीं लगेगा कि तुमने डैड को दो दिन के लिए अंडरग्राउण्ड करके अपना कौन सा अहम किया हो सकता है। यानी उन्हें ये तो अंदाज़ा था ही कि तुम अभी यहीं हो और यहीं से ही सारी घटनाओं को अंजाम दे रहे हो। मगर ये भी भूलने वाली बात नहीं है कि तुम्हारे पास पवन और उसकी फैमिली भी है जो कि तुम्हारी कमज़ोरी के रूप में हैं। तुम ये हर्गिज भी नहीं चाहोगे कि तुम्हारी कमज़ोरी डैड के हाॅथ लग जाए। क्योंकि उस सूरत में तुम बहुत ही ज्यादा कमज़ोर पड़ जाओगे और ये भी संभव है कि उस सूरत में तुम मजबूरन डैड के हाॅथ भी लग जाओ। उसके बाद किस्सा खत्म। इस लिए तुम यही चाहोगे कि सबसे पहले तुम अपनी कमज़ोरियों को या तो पूर्णरूप से सुरक्षित कर दो या फिर उन्हें डैड की पहुॅच से बहुत दूर कर दो। माॅम के दिमाग़ में यही बातें होगी और वो सोचेंगी कि तुम ऐसा ही करना चाहोगे। यानी पवन तथा उसकी माॅ बहन को डैड की पहुॅच से दूर मुम्बई भेज देना चाहोगे। किन्तु तुम्हारे पास समस्या ये होगी कि पवन आदि को लेकर जाने के बाद मैं और नैना बुआ यहाॅ अकेली रह जाएॅगी, और हम दोनो पर डैड का खतरा रहेगा। अतः तुम कोई ऐसा जुगाड़ लगाओगे जिससे तुम्हारे दोनो काम आसानी से और सुरक्षित तरीके से हो जाएॅ। तब तुमने सोचा कि डैड के रूप में राजा को ही सह और मात दे दी जाए जिससे ना रहेगा बाॅस और ना ही बजेगी बाॅसुरी वाली बात हो जाएगी। यही तुमने किया भी और जब तुम वापस मुम्बई से लौट आए तो डैड को भी छोंड़ दिया अपने नकली सीबीआई के आदमियों के हवाले से।"

"ये सब तो ठीक है दीदी।" मैने शख्त हैरानी से दीदी की तरफ देखते हुए कहा___"किन्तु इसमें ये बात कहाॅ से आती है कि उन्हें ये पता चल सकता है कि नीलम भी उनकी सच्चाई को जान चुकी है या फिर सच्चाई जानने की राह पर चल रही होगी?"

"वहीं पर आ रही हूॅ माई डियर ब्रदर।" रितू दीदी ने सहसा मुस्कुराते हुए कहा___"माॅम ये सोचेंगी कि उसी दिन तीन तीन लोग हल्दीपुर कैसे आ गए? मतलब कि डैड तो हवेली आए ही उनके साथ साथ उसी दिन नीलम भी हवेली आ पहुॅची और ये भी उनके ज़हन में होगा कि तुम भी वापस मुम्बई से आ गए होगे और इसी लिए डैड को छोंड़ भी दिया था। तो सोचने वाली बात थी ये तीन लोग संयोगवश तो नहीं आ गए थे यहाॅ। यानी कहीं न कहीं इसमें कोई पेंच या भेद ज़रूर था। माॅम को सोचने और समझने में देर नहीं लगेगी कि जिस ट्रेन से तुम आए उसी ट्रेन से नीलम भी आई होगी और बहुत हद तक ये भी संभव है कि तुम दोनो की मुलाक़ात भी ट्रेन में हुई हो। मुलाक़ात जब होती है तो कुछ न कुछ बात चीत भी होती है। अब चूॅकि हालात ऐसे थे कि तुम दोनो के बीच में नार्मल बातें तो होंगी नहीं यानी कि तक़रार भरी अथवा गिले शिकवे संबंधी बातें हुई होंगी। दूसरी बात माॅम ने मुझे फोन किया था पर मैने उनका फोन उठाया नहीं तब उन्होंने नीलम को फोन किया। नीलम ने मुझे फोन कर मुझसे बात की थी और पूछा था कि मैं अपने ही माॅम डैड के खिलाफ होकर तुम्हारे साथ क्यों हूॅ तब मैने उससे कहा था कि वो सच्चाई का पता खुद लगाए। यही बात माॅम ने भी सोचा होगा। यानी उन्हें ये लगा होगा कि मैने नीलम को सारी बातें बता दी होंगी और अब नीलम सच्चाई जान चुकी है। या फिर अगर मैने नहीं बताया होगा तो इतना तो ज़रूर ही कहा होगा कि मेरे माॅम डैड के खिलाफ़ होने की वजह का पता वो खुद लगाए। इस लिए नीलम वजह या सच्चाई का पता लगाने आई होगी।" रितू दीदी ने इतना कहने के बाद गहरी साॅस ली और फिर बोली___"इन सब बातों की वजह से ही मैं कह रही हूॅ राज कि नीलम पर अब ख़तरा है और उस नादान व नासमझ को इस बात का एहसास भी नहीं होगा कि वो कितनी बड़ी मुसीबत में फॅस सकती है। उसे उस जगह से निकालना होगा राज वरना सच में अनर्थ हो सकता है। वो हवश के पुजारी मेरी मासूम बहन को बरबाद कर सकते हैं।"

"नहींऽऽ।" मैंने सहसा आवेश में आकर कहा___"ऐसा हर्गिज़ नहीं होगा दीदी और मैं होने भी नहीं दूॅगा। अगर मेरी मासूम बहन को उन लोगों ने छुआ भी तो उन्हें इसका अंजाम बहुत ही भयानक रूप से भुगतना पड़ेगा।"

"नीलम के साथ में सोनम भी है।" रितू दीदी ने गंभीरता से कहा___"उसे भी उन लोगों से दूर करना होगा। मैं उस कमीने शिवा को बहुत अच्छे तरीके से जानती हूॅ। उसे वासना और हवश के चलते रिश्तों का कोई भान नहीं रहेगा और वो सोनम को भी हवश भरी नज़रों से देख रहा होगा। हे भगवान ये नीलम उसे अपने साथ लेकर यहाॅ आई ही क्यों थी?"

"फिक्र मत कीजिए दीदी।" मैने कठोरता से कहा___"उन दोनो को कुछ नहीं होगा। अब मैदान में खुल कर आने का समय आ गया है। आपके डैड को ये बताने का समय आ गया है कि अगर मैं उनके सामने भी आ जाऊॅ तो मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकते हैं।"

"कुछ भी करने से पहले तुम्हें नीलम और सोनम को सुरक्षित वहाॅ से निकालना होगा।" रितू दीदी ने समझाने वाले अंदाज़ से कहा___"उसके बाद ही हम कोई ठोस क़दम उठाने में सक्षम हो सकते हैं।"

"ठीक है दीदी।" मैने कहा___"मैं नीलम से बात करके उसे सब कुछ समझाता हूॅ कि उसे क्या और कैसे करना है। आप भी गुड़िया से बात कर लीजिए। और हाॅ इस बात की बिलकुल भी फिक्र मत कीजिए कि नीलम व सोनम दीदी में से किसी को भी मेरे रहते कुछ होगा। मैं अपनी जान देकर भी उनकी इज्ज़त और जान की हिफाज़त करूॅगा।"

"ऐसा मत कह राज।" रितू दीदी की ऑखें छलक पड़ी, बोली___"तुझे कुछ होने से पहले ही मैं अपनी जान दे दूॅगी। मेरा सबसे प्यारा भाई ही नहीं रहेगा तो मैं इस पापी दुनियाॅ में अकेली जी कर क्या करूॅगी।"

"सब ठीक ही होगा दीदी।" मैने दीदी को अपने से छुपका लिया___"और मैं सब कुछ ठीक करने की पूरी कोशिश भी करूॅगा। चलिए अब आप भी फ्रेश हो लीजिए, सुबह हो गई है। नैना बुआ आपको आपके कमरे में न देखेंगी तो कहीं आपको ढूॅढ़ने न लग जाएॅ। अतः अब आप जाइये और हाॅ गुड़िया से ज़रूर बात कर लीजिएगा।"

मेरे कहने पर रितू दीदी ने मुझसे अलग होकर हाॅ में सिर हिलाया। मैने उन्हें अपने फोन से गुड़िया का नंबर मैसेज किया। उसके बाद दीदी कमरे से चली गईं। उनके जाने के बाद मैंने गहरी साॅस ली तथा फिर मैने नीलम को मैसेज किया। अपने मोबाइल को हाॅथ में लिए मैं नीलम की तरफ से उसके रिप्लाई का इन्तज़ार करने लगा।
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दोस्तो, आप सबके सामने अपडेट हाज़िर है,,,,,,,,
आप सबकी खूबसूरत प्रतिक्रिया और आपके शानदार रिव्यू का बेसब्री से इन्तज़ार रहेगा।
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