♡ एक नया संसार ♡
अपडेट.........《 49 》
अब तक,,,,,,,
मार्केट के पास आते ही उसे दूसरी गाड़ी पर वो पुलिस वाले दिखे। उनमें से एक पुलिस वाले ने रितू को बताया कि उसने उस अधेड़ आदमी को दूसरी दवाइयाॅ खरीद कर दे दी हैं। उसकी बात सुन कर रितू आगे बढ़ गई। उसके पीछे दूसरे पुलिस वाले भी अपनी गाड़ी में चल पड़े। उनकी नज़र रितू की जिप्सी पर थोड़ा सा फैली हुई उस ब्लैक कलर की प्लास्टिक की पन्नी पर पड़ी जिसके नीचे रितू ने उस लड़की को छुपा दिया था। किन्तु उन लोगों ने इस पर ज्यादा ध्यान न दिया। उनको अपने आला अफसर का आदेश था कि इंस्पेक्टर रितू के आस पास ही रहना है और उसकी किसी भी गतिविधी पर कोई सवाल जवाब नहीं करना है।
रितू की जिप्सी ऑधी तूफान बनी हल्दीपुर की तरफ बढ़ी चली जा रही थी। उसके पीछे ही दूसरी गाड़ी पर वो पुलिस वाले भी थे। रितू को अंदेशा था कि हल्दीपुर के पास वाले रास्तों पर कहीं उसका बाप या उसके आदमी मिल न जाएॅ मगर हल्दीपुर के उस पुल तक तो कोई नहीं मिला था। पुल से दाहिने साइड जिप्सी को मोड़ कर रितू फार्महाउस की तरफ बढ़ चली। कुछ दूरी पर आकर रितू ने जिप्सी को रोंक दिया। कुछ ही पलों में उसके पीछे वाली गाड़ी भी उसके पास आकर रुक गई।
"अब आप सब यहाॅ से वापस लौट जाइये।" रितू ने एक पुलिस वाले की तरफ देख कर कहा___"आज का काम इतना ही था। अगर ज़रूरत पड़ी तो वायरलेस या फोन द्वारा सूचित कर दिया जाएगा।"
"ओके मैडम।" एक पुलिस वाले ने कहा___"जैसा आप कहें। जय हिन्द।"
उन सबने रितू को सैल्यूट किया और फिर अपनी गाड़ी को वापस मोड़ कर वहाॅ से चले गए। उनके जाते ही रितू ने भी अपनी जिप्सी को फार्महाउस की तरफ बढ़ा दिया। आने वाला समय अपनी आस्तीन में क्या छुपा कर लाने वाला था ये किसी को पता न था।"
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अब आगे,,,,,,,
उधर एक तरफ!
एक लम्बे चौड़े हाल के बीचो बीच एक बड़ी सी टेबल के चारो तरफ कुर्सियाॅ लगी हुई थी। उन सभी कुर्सियों पर इस वक्त कई सारे अजनबी चेहरे बैठे दिख रहे थे। सामने फ्रंट की मुख्य कुर्सी खाली थी। हर शख्स के सामने मिनरल वाटर से भरे हुए काॅच के ग्लास रखे हुए थे। लम्बे चौड़े हाल में इस वक्त ब्लेड की धार की मानिन्द पैना सन्नाटा फैला हुआ था। वो सब अजनबी चेहरे ऐसे थे जिन्हें देख कर ही प्रतीत हो रहा था कि ये सब किसी न किसी अपराध की दुनियाॅ ताल्लुक ज़रूर रखते हैं। उन अजनबी चेहरों के बीच ही कुछ ऐसे भी चेहरे थे जो शक्ल सूरत से विदेशी नज़र आ रहे थे।
"और तो सब ठीक ही है।" उनमें से एक ने हाल में फैले हुए सन्नाटे को भेदते हुए कहा___"मगर ठाकुर साहब का हमसे इस तरह इन्तज़ार करवाना बिलकुल भी पसंद नहीं आता। हर बार यही होता है कि हम सब टाइम से कान्फ्रेन्स हाल में मीटिंग के लिए आ जाते हैं मगर ठाकुर साहब तो ठाकुर साहब हैं। हर बार निर्धारित समय से आधा घंटे लेट ही आते हैं।"
"अब इसमें हम क्या कर सकते हैं कमलनाथ जी?" एक अन्य ब्यक्ति ने मानो असहाय भाव से कहा___"वो ठाकुर साहब हैं। शायद हमसे इस तरह इन्तज़ार करवाने में वो अपनी शान समझते हैं। हलाॅकि ऐसा होना नहीं चाहिए, क्योंकि यहाॅ पर कोई भी किसी से कम नहीं है। हम सबको एक दूसरे का बराबर आदर व सम्मान करना चाहिए। मगर ये बात ठाकुर साहब से कौन कहे?"
"यस यू आर अब्सोल्यूटली राइट मिस्टर पाटिल।" सहसा एक विदेशी कह उठा___"हमको भी ठाकुर का इस तरह वेट करवाना पसंद नहीं आता हाय। वो क्या समझता हाय कि हम लोगों की कोई औकात नहीं हाय? अरे हम चाहूॅ तो अभी इसी वक्त ठाकुर को खरीद सकता हाय। बट हम भी इसी लिए चुप रहता हाय कि तुम सब भी चुप रहता हाय।"
"इट्स ओके मिस्टर लारेन।" पाटिल ने कहा___"ये आख़िरी बार है। आज ठाकुर से हम सब इस बारे में एक साथ चर्चा करेंगे और उनसे कहेंगे कि हम सबकी तरह वो भी टाइम पर मीटिंग हाल में आया करें। इस तरह हमसे वेट करवा कर हमारी तौहीन करने का उन्हें कोई हक़ नहीं है। अगर आप मेरी इस बात से सहमत हैं तो प्लीज जवाब दीजिए।"
पाटिल की इस बात पर सबने अपनी प्रतिक्रिया दी। जो कि पाटिल की बातों पर सहमति के रूप में ही थी। कुछ देर और समय बीतने के बाद तभी हाल में अजय सिंह दाखिल हुआ और मुख्य कुर्सी पर आकर बैठ गया। उसने सबकी तरफ देख कर बड़े रौबीले अंदाज़ से हैलो किया। उसकी इस हैलो का जवाब सबने इस तरह दिया जैसे बग़ैर मन के रहे हों। इस बात को खुद अजय सिंह ने भी महसूस किया।
"साॅरी फ्रैण्ड्स हमें आने में ज़रा देर हो गई।" अजय सिंह ने बनावटी खेद प्रकट करते हुए कहा___"आई होप आप सब इस बात से डिस्टर्ब नहीं हुए होंगे। एनीवेज़....
"ठाकुर साहब दिस इज टू मच।" एक अन्य ब्यक्ति कह उठा___"आप हर बार ऐसा ही करते हैं और फिर बाद में ये कह देते हैं कि साॅरी फ्रैण्ड्स हमें आने में ज़रा देर हो गई। आप हर बार लेट आकर हम सबकी तौहीन करते हैं। हम सब आधा घंटे तक आपके आने का वेट करते रहते हैं। आपको क्या लगता है कि हम लोगों के पास दूसरा कोई काम ही नहीं है? हम सब भी अपने अपने कामों में ब्यस्त रहते हैं मगर टाइम से कहीं भी पहुॅचने के लिए समय पहले से ही निकाल लेते हैं। इस बिजनेस में हम सब बराबर हैं। यहाॅ कोई छोटा बड़ा नहीं है। हम सबने आपको मेन कुर्सी पर बैठने का अधिकार अपनी खुशी से दिया था। मगर इसका मतलब ये नहीं कि आप उसका नाजायज़ मतलब निकाल लें। हम सबने डिसाइड कर लिया है कि अगर आपका रवैया ऐसा ही रहा तो हम सब आपसे बिजनेस का अपना अपना हिस्सा वापस ले लेंगे। दैट्स आल।"
उस ब्यक्ति की ये सारी बातें सुन कर अजय सिंह अंदर ही अंदर बुरी तरह तिलमिला कर रह गया था। ये सच था कि हर बार वो इन सबसे इन्तज़ार करवा कर यही जताता था कि उसके सामने इन लोगों की कोई अहमियत नहीं है। बल्कि वो इन सबसे ज्यादा अहमियत रखता है। आज तक इस बिजनेस से जुड़े ये सब लोग उसकी इस आदत पर कोई सवाल नहीं खड़ा किये थे जिसकी वजह से उसे यही लगता रहा था कि यू सब उसे बहुत ज्यादा इज्ज़त व अहमियत देते हैं और इसी लिए वो ऐसा करता रहा था। मगर आज जैसे इन सबके धैर्य का बाॅध टूट गया था। जिसका नतीजा इस रूप में उसके सामने आया था। उस शख्स की बातों से उसके अहं को ज़बरदस्त चोंट पहुॅची लेकिन वो ये बात अच्छी तरह जानता था कि इस बारे में अगर उसने कुछ उल्टा सीधा बोला तो काम बिगड़ जाने में पल भर की भी देर नहीं लगेगी। इस लिए वो उस शख्स की उन सभी कड़वी बातों को जज़्ब कर गया था।
"आई नो मिस्टर तेवतिया।" अजय सिंह ने कहा__"बट इस सबसे हमारा ये मतलब हर्गिज़ भी नहीं है कि हम आप सबको अपने से छोटा समझते हैं। हम सब फ्रैण्ड्स हैं और हम में से कोई छोटा बड़ा नहीं है। हर बार हम मीटिंग में देर से पहुॅचते हैं इसका हमें यकीनन बेहद अफसोस होता है। मगर क्या करें हो जाता है। मगर हमें ये भी पता होता है कि आप सब हमारी इस ग़लती को नज़रअंदाज़ कर देंगे।"
"इट्स ओके ठाकुर साहब।" कमलनाथ ने कहा__"बट ध्यान रखियेगा कि अगली बार से ऐसा न हो। कभी कभार की बात हो तो समझ में आता है मगर हर बार ऐसा हो तो मूड ख़राब होना स्वाभाविक बात है।"
"यस ऑफकोर्स मिस्टर कमलनाथ।" अजय सिंह एक बार फिर गुस्से और अपमान का घूॅट पीकर बोला__"अब अगर आप सबकी इजाज़त हो तो काम की बात करें?"
"जी बिलकुल।" पाटिल ने कहा___"
उसके पहले हम ये जानना चाहते हैं कि समय से पहले इस तरह अचानक मीटिंग रखने की क्या वजह थी?"
"आप सबको तो इस बात का पता ही है कि मौजूदा वक्त में हमारे हालात बिलकुल भी ठीक नहीं हैं।" अजय सिंह ने बेबस भाव से कहा___"पिछले कुछ समय से हमारे साथ बेहद गंभीर और बेहद नुकसानदाई घटनाएॅ घट रही हैं। उन घटनाओं के पीछे कौन है ये भी हम पता लगा चुके हैं। इस लिए अब हम चाहते हैं कि आप सब हमारे इस बुरे वक्त में हमारा साथ दें।"
"वैसे तो आप खुद ही सक्षम हैं ठाकुर साहब।" पाटिल ने कहा___"किन्तु इसके बाद भी आप हम सबसे मदद की आशा रखते हैं तो मैं तैयार हूॅ। आख़िर हम सब एक ही तो हैं। हर तरह की मसीबत व परेशानी का एक साथ मिल कर मुकाबला करेंगे तो हर जंग में हमारी फतह होगी।"
"हमें भी आपके इन मौजूदा हालातों का पता है ठाकुर साहब।" एक अन्य ब्यक्ति ने कहा___"इस लिए हम सब आपके साथ हैं। आप हुकुम दें कि हमें क्या करना होगा?"
"आप सब हमारा साथ देने के लिए तैयार हैं इससे बड़ी बात व खुशी और क्या होगी भला? रही बात आपके कुछ करने की तो आप बस हमारे साथ ही बने रहें कुछ समय के लिए या फिर अपने कुछ ऐसे आदमी हमें दीजिए जो हर तरह के फन में माहिर हों।"
"जैसी आपकी इच्छा ठाकुर साहब।" कमलनाथ ने कहा___"हम सब आपके साथ हैं और हमारे ऐसे आदमी भी आपके पास आ जाएॅगे जो हर तरह के फन में माहिर हैं। अब से आपकी परेशानी हमारी परेशानी है। क्यों फ्रैण्ड्स आप सब क्या कहते हैं??"
कमलनाथ के अंतिम वाक्य पर सबने अपनी प्रतिक्रिया सहमति के रूप में दी। ये सब देख कर अजय सिंह अंदर ही अंदर बेहद खुश हो गया था।
"मिस्टर सिंह।" सहसा इस बीच एक विदेशी ने कहा___"पिछली डील अभी तक कम्प्लीट नहीं हुआ। क्या हम जान सकता हाय कि इतना डिले करने का तुम्हारा क्या मतलब हाय? बात थोड़ी बहुत की होती तो हम उसको भूल भी सकता था बट एज यू नो वो सारी चीज़ें लाखों करोड़ों में हाय। सो हाउ कैन आई फारगेट?"
"हम जानते हैं मिस्टर लाॅरेन।" अजय सिंह ने बेचैनी से पहलू बदला___"कि वो सब करोड़ों का सामान है। लेकिन मौजूदा वक्त में हम ऐसी स्थित में नहीं हैं कि आपका पैसा आपको दे सकें। इसके लिए आपको तब तक रुकना पड़ेगा जब तक कि हमारे सिर पर से ये मुसीबत और ये परेशानी न हट जाए। प्लीज़ ट्राई टू अण्डरस्टैण्ड मिस्टर लाॅरेन।"
"ओखे।" लाॅरेन ने कहा___"नो प्राब्लेम हम तुम्हारी हर तरह से मदद करेगा। बट सारी प्राब्लेम फिनिश होने के बाद तुम हमारा पूरा पैसा देगा। इस बात का प्रामिस करना पड़ेगा तुमको।"
"मिस्टर लाॅरेन।" सहसा कमलनाथ ने कहा___"ये आप कैसी बात कर रहे हैं? आप जानते हैं कि ठाकुर साहब के पास इस समय कितनी गंभीर समस्याएॅ हैं इसके बाद भी आप सिर्फ अपने मतलब की बात कर रहे हैं। जबकि आपको करना तो ये चाहिए था कि आप सब कुछ भूल कर सिर्फ ठाकुर साहब को उनकी समस्याओं से बाहर निकालें।"
"तो हमने कब मना किया इस बात से मिस्टर कमलनाथ?" लाॅरेन ने कहा___"हम कह ओ रहा है कि हम हर तरह से इनकी मदद करेगा।"
"हाॅ लेकिन यहाॅ पर आपको अपने पैसों की बात करना उचित नहीं है न।" कमलनाथ ने कहा___"आपको ये भी तो सोचना चाहिए कि पैसा सिर्फ आपका ही बस बकाया नहीं है ठाकुर साहब के पास, हम सबका भी है। लेकिन हमने तो इनसे पैसों के बारे में कोई बात नहीं की।"
"ओखे आयम साॅरी।" लाॅरेन ने बेचैनी से पहलू बदलते हुए कहा___"सो अब बताइये क्या करना है हम लोगो को?"
"ये तो ठाकुर साहब ही बताएॅगे।" कमलनाथ ने कहा__"कि हम सबको क्या करना होगा?"
"हमने आप सबको पहले ही बता दिया है कि आप सब अपने कुछ ऐसे आदमी हमें दीजिए जो हर तरह के काम में माहिर हों।" अजय सिंह ने कहा___"उसके बाद हम खुद ही तय करेंगे कि हमें उन आदमियों से क्या और कैसे काम लेना है?"
"ठीक है ठाकुर साहब।" पाटिल ने कहा___"हमारे पास जो भी ऐसे आदमी हैं। उन सबको आपके पास भेज देंगे।"
"ओह थैक्यू सो मच टू आल ऑफ यू डियर फ्रैण्ड्स।" अजय सिंह ने खुश होकर कहा___"और हाॅ, हम आप सबसे वादा करते हैं कि इस सबसे निपट लेने के बाद हम बहुत जल्द आप सबके पैसों का हिसाब किताब कर देंगे।"
अजय सिंह की इस बात के साथ ही मीटिंग खत्म हो गई। सबने अजय सिंह को अपने आदमी भेजने का कहा और फिर सब एक एक करके मीटिंग हाल से बाहर की तरफ चले गए। सबके जाने के बाद अजय सिंह भी बाहर की तरफ निकल गया। बाहर पार्किंग में खड़ी अपनी कार में बैठ कर अजय सिंह घर की तरफ निकल गया।
कुछ ही समय में अजय सिंह हवेली पहुॅच गया। अंदर ड्राइंगरूम में रखे सोफों पर प्रतिमा और शिवा बैठे थे। अजय सिंह भी वहीं रखे एक सोफे पर बैठ गया। उसने प्रतिमा को चाय बनाने का कहा तो प्रतिमा रसोई की तरफ बढ़ गई। जबकि अजय सिंह ने गले पर कसी टाई को ढीला कर आराम से सोफे की पिछली पुश्त से पीठ टिका कर लगभग लेट सा गया।
शिवा को समझ न आया कि अपने बाप से बातों का सिलसिला कैसे और कहाॅ से शुरू करे? ऐसा कदाचित इस लिए था क्योंकि आज सारा दिन उसने अपनी माॅ के साथ मौज मस्ती की थी। इस बात के कारण कहीं न कहीं हल्की सी झिझक उसके अंदर मौजूद थी।
"आप इतना लेट कैसे हो गए डैड?" आख़िर शिवा ने बात शुरू कर ही दी, बोला___"आपने तो कहा था कि जल्दी आ रहा हूॅ?"
"एक ज़रूरी मीटिंग में ब्यस्त हो गया था बेटे।" अजय सिंह ने उसी हालत में कहा___"कल से हमारे पास कुछ ऐसे आदमी होंगे जो हर तरह के काम में माहिर होंगे। अब मैं भी देखूॅगा कि वो हरामज़ादा विराज और रितू कैसे उन आदमियों को ठिकाने लगाते हैं?"
"ऐसे वो कौन से आदमी हैं डैड?" शिवा ने ना समझने वाले भाव से कहा___"क्या आप अभी भी ऐसे किन्हीं आदमियों पर ही भरोसा करेंगे? जबकि पालतू आदमियों का क्या हस्र हुआ है ये आपको बताने की ज़रूरत नहीं है।"
"हमारे आदमी दिमाग़ से पूरी तरह पैदल थे बेटे।" अजय सिंह ने कहा___"वो सब अपने शारीरिक बल को महत्व देते थे तभी तो मात खा गए। उन्होंने ये कभी सोचा ही नहीं कि शरीरिक बल से कहीं ज्यादा दिमाग़ी बल कारगर होता है। ख़ैर, अब जो आदमी यहाॅ आएॅगे वो सब खलीफ़ा लोग होंगे। जो हर वक्त हर तरह के ख़तरे वाले कामों को ही अंजाम देते हैं। दूसरी बात ये है कि रितू एक आम लड़की नहीं है जिसे कोई भी ऐरा गैरा ब्यक्ति आसानी से पकड़ लेगा, बल्कि वो एक पुलिस वाली भी है। जिसके पास सारा पुलिस डिपार्टमेन्ट भी है। ऐसे में अगर हम खुद उस पर हाॅथ डालेंगे तो वो हमें कानून की चपेट में डाल सकती है। इस लिए हमने सोचा है कि हम पहले ऐसे आदमियों के द्वारा उसे पकड़ लें कि जिनसे वो आसानी से मुकाबला भी न कर सके। मुकाबले से मेरा मतलब ये है कि मेरे वो आदमी उसे ऐसा घेरा बना कर पकड़ेंगे जिसके बारे में उसे अंदेशा तक न हो पाएगा।"
"ओह आई सी।" शिवा को सारी बात जैसे समझ आ गई थी, बोला___"ये सही रणनीत है डैड। अगर वो सब आदमी वैसे ही हर काम में माहिर हैं जैसा कि आप बता रहे हैं तो फिर यकीनन ये सही क़दम है।"
अभी अजय सिंह कुछ बोलने ही वाला था कि तभी किचेन से आती हुई प्रतिमा हाॅथ में चाय का ट्रे लिए वहाॅ पर आ गई। उसने दोनो बाप बेटे को एक एक कप चाय पकड़ाई और एक कप खुद लेकर वहीं एक सोफे पर बैठ गई।
"कौन से आदमियों की बात चल रही है अजय?" प्रतिमा ने सोफे पर बैठने के साथ ही पूछा था। उसके पूछने पर अजय सिंह ने उसे भी वही सब बता दिया जो अभी उसने शिवा को बताया था। सारी बात सुनने के बाद प्रतिमा कुछ देर गंभीरता से सोचती रही।
"तो अब तुमने बाहर से आदमी मॅगवाए हैं।" फिर प्रतिमा ने तिरछी नज़र से देखते हुए कहा___"और उन पर भरोसा भी है तुम्हें कि वो तुम्हें इस बार नाकामी का नहीं बल्कि फतह का स्वाद चखाएॅगे?"
"बिलकुल।" अजय सिंह ने स्पष्ट भाव से कहा___"ये सब ऐसे आदमी हैं जिनका वास्ता अपराध की हक़ीक़त दुनियाॅ से है और ये सब उस अपराध की दुनियाॅ के सफल खिलाड़ी हैं।"
"चलो इनका कारनामा भी देख लेते हैं।" प्रतिमा ने सहसा गहरी साॅस ली___"वैसे इस बात पर भी ध्यान देना कि समय हर वक्त इसी बस के लिए नहीं रहता।"
"क्य मतलब??" अजय सिंह चकराया।
"मतलब ये कि हर बार एक जैसी ही चाल चलना एक सफल खिलाड़ी की पहचान नहीं होती।" प्रतिमा ने समझाने वाले भाव से कहा__"ऐसे में सामने वाले खिलाड़ी के दिमाग़ में ये मैसेज जाता है कि उसका प्रतिद्वंदी कमज़ोर है जो सिर्फ एक ही तरह की चाल चलना जानता है और उसकी ये बेवकूफी भी कि उसी एक तरह की चाल से वह खेल को जीत लेने की उम्मीद भी करता है। इस लिए एक अच्छे खिलाड़ी को चाहिए कि बीच बीच में अपनी चाल को बदल भी लेना चाहिए।"
"बात तो तुम्हारी ठीक है डियर।" अजय सिंह ने चाय का खाली कप सामने काॅच की टेबल पर रखते हुए बोला___"लेकिन इसको इस एंगल से भी तो सोच कर देखो ज़रा। मतलब ये कि सामने वाले खिलाड़ी के दिमाग़ में हम जानबूझ कर ये मैसेज डाल रहे हैं कि हमारे पास सिर्फ एक ही तरह की चाल है। उसे ऐसा समझने दो। जबकि हम सही समय आने पर अपनी चाल को बदल कर उसे ऐसे मात देंगे कि उसे इसकी उम्मीद भी न होगी हमसे। जिसे वो हमारी कमज़ोरी समझेगा वो दरअसल हमारी चाल का ही एक हिस्सा होगा।"
"ओहो क्या बात है डियर हस्बैण्ड।" प्रतिमा ने सहसा मुस्कुराते हुए कहा___"क्या तर्क निकाला है। ये भी ठीक है। चल जाएगा। मगर सबसे ज्यादा ध्यान देने वाली बात ये है कि हमारे पास समय नहीं है समय बर्बाद करने के लिए भी। सोचने वाली बात है कि हम अब भी वहीं हैं जहाॅ पर थे जबकि हमारा दुश्मन बहुत कुछ करके यहाॅ निकल भी चुका है। हाॅ अजय, वो रंडी का जना विराज अब यहाॅ नहीं होगा। बल्कि जिस काम से वो यहाॅ आया था उस काम को करके वो वापस मुम्बई चला गया होगा। आख़िर इस बात का एहसास तो उसे भी है कि उसने हमारे इतने सारे आदमियों का क्रियाकर्म करके गायब किया है जिसका अंजाम किसी भी सूरत में उसके हित में नहीं होगा। इस लिए अपना काम पूरा करने के बाद वो यहाॅ पर एक पल भी रुकना गवाॅरा नहीं करेगा।"
"माॅम ठीक कह रही हैं डैड।" सहसा इस बीच शिवा ने भी अपना पक्ष रखा___"वो यकीनन यहाॅ से चला गया होगा। भला ऐसे ख़तरे के बीच रुकने की कहाॅ की समझदारी ।होगी? अब ये भी स्पष्ट हो गया है कि उसके बाद यहाॅ सिर्फ रितू दीदी ही रह गई हैं।"
"रितू ही बस नहीं है बेटे।" अजय सिंह ने कहा___"बल्कि उसके साथ तुम्हारी नैना बुआ भी है।"
"क्याऽऽ???" अजय सिंह की इस बात से शिवा और प्रतिमा दोनो ही बुरी तरह चौंके थे, जबकि प्रतिमा ने कहा___"तुम ये कैसे कह सकते हो अजय? नैना तो वापस अपने ससुराल चली गई थी न उस दिन?"
"वो ससुराल नहीं।" अजय सिंह ने कहा___"बल्कि रितू के साथ कहीं और गई थी। नैना ने तो ससुराल जाने का सिर्फ बहाना बनाया था जबकि हक़ीक़त ये थी कि रितू उसे खुद यहाॅ से निकाल कर ले गई थी। ये सब रितू का ही किया धरा था।"
"लेकिन ये सब तुम्हें कैसे पता अजय?" प्रतिमा ने चकित भाव से कहा___"और रितू ने भला ऐसा क्यों किया होगा?"
"उस दिन नैना जब रितू के साथ गई तो ये सच है कि एक भाई होने के नाते मुझे खुशी हुई थी कि चलो अच्छा हुआ कि नैना को उसके ससुराल वालों ने बुलाया है।" अजय सिंह कह रहा था___"मगर जब दो दिन बाद भी नैना का कोई फोन नहीं आया तो मैने सोचा कि मैं ही फोन करके पता कर लूॅ कि वहाॅ सब ठीक तो है न? इस लिए मैने नैना के ससुराल में नैना को फोन लगाया मगर नैना का फोन बंद बता रहा था। कई बार के लगाने पर भी जब नैना का फोन बंद ही बताता रहा तो मैने नैना के हस्बैण्ड को फोन लगाया और उनसे पूछा नैना के बारे में तो उसने साफ साफ कठोरता से मना कर दिया कि उसके यहाॅ नैना नहीं आई और ना ही उसका नैना से कोई लेना देना है अब। नैना के पति की ये बात सुन कर मेरा दिमाग़ घूम गया। मुझे समझते देर न लगी कि नैना को हवेली से निकाल कर रितू ही ले गई है। उसे शायद ये बात कहीं से पता चल गई होगी कि हम दोनो बाप बेटे की गंदी नज़र नैना पर है। इस लिए रितू ने उसे इस हवेली से बड़ी चालाकी से निकाल लिया और अपनी बुआ को किसी ऐसी जगह पर सुरक्षित रखने का सोचा होगा जहाॅ पर हम आसानी से पहुॅच भी न सकें।"
"हे भगवान! इतना बड़ा खेल खेल गई रितू।" प्रतिमा ने हैरानी से कहा___"अगर ये बात सच है तो यकीनन हमारी बेटी ने हमें उल्लू बना दिया है। उसने बड़ी सफाई और चतुराई से आपके मुह से आपका मन पसंद निवाला छीन लिया है जिसका हमें एहसास तक नहीं हो सका।"
"जब हमारी बेटी ने ही हमें धोखा दे दिया तो कोई क्या कर सकता है?" अजय सिंह ने कहा___"लेकिन अब जो हम उसके साथ करेंगे उसकी उसने कल्पना भी न की होगी। हम उसके माॅ बाप हैं, हमने उसे बचपन से लेकर अब तक क्या कुछ नहीं दिया। उसने जिस चीज़ की आरज़ू की हमने पल भर में उस चीज़ को लाकर उसके क़दमों में डाल दिया। मगर उसने हमारे लाड प्यार का ये सिला दिया हमें। इतने सालों का लाड प्यार उसके लिए कोई मायने नहीं रखता। देख लो प्रतिमा, ये है तुम्हारी बेटी का अपने माॅ बाप के प्रति प्रेम और लगाव। जो अपने बाप के दुश्मन के साथ मिल कर खुद अपने ही पैरेंट्स के लिए मौत का सामान जुटाने पर तुली हुई है। इस हाल में अगर तुम मुझसे ये कहो कि मैं उसकी इस धृष्टता को माफ़ कर दूॅ तो ऐसा हर्गिज़ नहीं हो सकता अब। तुम्हारी बेटी ने अपने ही बाप के हाथों अब ऐसी मौत को चुन लिया है जिसके दर्द का किसी को एहसास नहीं हो सकता।"
"पहले मुझे भी लगता था अजय कि वो आख़िर हमारी बेटी है।" प्रतिमा ने कठोरता से कहा___"मगर उसके इस कृत्य से मुझे भी उस पर अब बेहद गुस्सा आया हुआ है। मैं जानती हूॅ कि वो अब दूध पीती बच्ची नहीं रही है जिसके कारण उसे हर चीज़ का पाठ पढ़ाना पड़ेगा। बल्कि अब वो बड़ी हो गई है। जिसे अपने और अपनों के अच्छे बुरे का बखूबी ख़याल है। इसके बाद भी वो अपने ही पैरेंट्स का बुरा चाहने वाला काम किया है तो अब मैं भी यही कहूॅगी कि उसे उसके इस अपराध की शख्त से शख्त सज़ा मिले। दैट्स आल।"
कुछ देर और तीनो के बीच बातें होती रहीं उसके बाद तीनों ने रात का खाना खाया और सोने के लिए कमरों में चले गए। इस बात से अंजान कि आने वाली सुबह उनके लिए क्या धमाका करने वाली है????
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रितू की जिप्सी फार्महाउस पहुॅची।
लोहे वाले गेट के पास ही शंकर और हरिया काका बंदूख लिए खड़े थे। रितू की जिप्सी को देखते ही दोनो ने गेट खोल दिया। गेट खुलते ही रितू ने जिप्सी की गेट के अंदर बढ़ा दिया। कुछ ही पल में रितू की जिप्सी पोर्च में जाकर रुकी। जिप्सी से उतर कर रितू ने हरिया काका को आवाज़ देकर बुलाया। हरिया के आते ही रितू ने उससे जिप्सी के पीछे बड़ी सी प्वालीथिन के नीचे ढॅकी मंत्री की बेटी को उठा कर तहखाने में ले जाने को कहा। उससे ये भी कहा कि तहखाने में उसे अच्छी तरह बाॅध कर ही रखे।
रितू के कहने पर हरिया ने वैसा ही किया। आज एक लड़की को इस तरह तहखाने में ले आते देख हरिया काका अंदर ही अंदर बेहद खुश हो गया था। लड़की को देख कर उसके मन में ढेर सारे लड्डू फूट रहे थे। काफी दिन से लड़की गाॅड मार मार कर वो अब उकता सा गया था। अब उसे एक फ्रेश माल की ज़रूरत महसूस हो रही थी। बिंदिया को ज्यादा सेक्स करना पसंद नहीं था इस लिए हरिया को वह रोज रोज अपने पास नहीं आने देती थी। जिसकी वजह से हरिया उससे खूब नाराज़ हो जाया करता था। मगर कर भी क्या सकता था??
मन में ढेर सारे खुशी के लड्डू फोड़े वह लड़की को तहखाने में ले जाकर उसे वहीं तहखाने के फर्स पर लेटा दिया। लड़की अभी भी बेहोश ही थी। तहखाने में रस्सियों से बॅधे वो चारो असहाय अवस्था में लगभग झूल से रहे थे। उन चारों की हालत ऐसी हो गई थी कि पहचान में नहीं आ रहे थे। जिस्म पर एक एक कच्छा था उन चारों के और कुछ नहीं। इस वक्त चारो के सिर नीचे की तरफ झुके हुए थे। उनमें इतनी भी हिम्मत नहीं थी कि सिर उठा कर सामने की तरफ देख भी सकें कि कौन किसे लेकर आया है? हरिया काका ने एक नज़र उन चारों पर डाली उसके बाद वो लड़की की तरफ एक बार देखने के बाद तहखाने से बाहर की तरफ चला गया। कुछ देर में जब वो आया तो उसके दोनो हाॅथ में एक लकड़ी की कुर्सी थी।
लकड़ी की कुर्सी को तहखाने में एक तरफ रख कर वो पलटा और फिर लड़की उठा कर उस कुर्सी पर बैठा दिया। उसने लड़की के दोनो हाथों को कुर्सी के दोनो साइड एक एक करके रस्सी से बाॅध दिया। उसके बाद उसके पैरों को भी नीचे कुर्सी के दोनो पावों पर एक एक कर बाॅध दिया। लड़की के झुके हुए सिर को ऊपर उठा कर उसने कुर्सी की पिछली पुश्त से टिका दिया। कुछ देर तक हरिया काका उस लड़की को ललचाई नज़रों से देखता रहा उसके बाद वो तहखाने से बाहर आ गया। तहखाने का गेट बंद कर वो बाहर गेट के पास खड़े शंकर के करीब आ गया।
उधर, मंत्री की बेटी को हरिया के हवाले करने के बाद रितू अंदर अपने कमरे की तरफ बढ़ गई। कमरे में आकर उसने अपनी वर्दी को उतारा और बाथरूम में घुस गई। जब वह फ्रेश होकर बाहर आई तो कमरे में नैना बुआ को देख कर वह चौंकी। दरअसल इस वक्त वह सिर्फ एक हल्के पिंक कलर के टाॅवेल में थी।
बाॅथरूम का दरवाजा खुलने की आवाज़ से बेड पर बैठी नैना का ध्यान उस तरफ गया तो रितू को मात्र टाॅवेल में देख कर वह हौले से मुस्कुराई। उसके यूॅ मुस्कुराने से रितू के चेहरे पर अनायास ही लाज और हया की सुर्खी फैल गई। होठों पर हल्की मुस्कान के साथ ही उसकी नज़रें झुकती चली गईं। रितू का इस तरह शरमाना नैना को काफी अच्छा लगा। उसे पता था कि उसकी ये भतीजी भले ही ऊपर से कितनी ही कठोर हो किन्तु अंदर से वह एक शुद्ध भारतीय लड़की है जो ऐसी परिस्थिति में शरमाना भी जानती है।
"चल मुझसे शरमाने की ज़रूरत नहीं है रितू।" नैना ने मुस्कुराते हुए कहा___"तू आराम से अपने कपड़े पहन ले। फिर हम बातें करेंगे।"
"शर्म तो आएगी ही बुआ।" रितू ने इजी फील करने के बाद ही हौले से मुस्कुराते हुए कहा___"मैं इस तरह पहले कभी भी किसी के सामने नहीं आई। भले ही वो मेरे घर का ही कोई सदस्य हो।"
"हाॅ जानती हूॅ मैं।" नैना ने कहा___"पर इतना तो आजकल आम बात है मेरी बच्ची। सो फील इजी एण्ड कम्फर्टेबल।"
नैना की इस बात से रितू बस मुस्कुराई और फिर पास ही एक साइड रखी आलमारी से उसने अपने कपड़े निकाले और फिर वापस बाथरूम में घुस गई। ये देख कर नैना एक बार पुनः मुस्कुरा उठी।
थोड़ी देर बाद रितू जब बाथरूम से बाहर आई तो इस बार उसके खूबसूरत से बदन पर भारतीय लड़कियों का शुद्ध सलवार सूट था और सीने पर दुपट्टा। वो इन कपड़ों में बहुत ही खूबसूरत लग रही थी। नैना ने उसे गहरी नज़र से एक बार ऊपर से नीचे तक देखा फिर बेड से उठ कर रितू के पास आई और रितू का सिर पकड़ कर अपनी तरफ किया और उसके माथे पर हल्के चूम लिया।
"बहुत खूबसूरत लग रही है मेरी बच्ची।" फिर नैना ने मुस्कुरा कर कहा___"किसी की नज़र न लगे। ईश्वर हर बला से दूर रखे तुझे।"
"आप भी न बुआ।" रितू ने हॅसते हुए कहा___"ख़ैर छोड़िये ये बताइये आपको यहाॅ अच्छा तो लगता है न? कहीं ऐसा तो नहीं कि आप यहाॅ पर इजी फील नहीं करती हैं और खुद को यहाॅ मजबूरीवश रहने का सोचती हैं?"
"अरे नहीं रितू।" नैना ने रितू का हाॅथ पकड़ कर उसे बेड पर बैठाने के बाद खुद भी बैठते हुए कहा___"यहाॅ मुझे बहुत अच्छा लगता है। हर मुसीबत हर परेशानी से दूर हूॅ यहाॅ। यहाॅ शान्त व साफ वातावरण मन को बेहद सुकून देता है। यहाॅ बिंदिया भौजी हैं और तू है बस इससे ज्यादा और क्या चाहिए? पिछले कुछ दिनों में अपने कुछ अज़ीज़ों से भी मिल लिया, ऐसा लगा जैसे फिर से इस घर में वही पुराना वाला दौर लौट आया है।"
"चिन्ता मत कीजिए बुआ।" रितू ने कहा___"पुराना वाला समय फिर से आएगा। फिर से पहले जैसी ही खुशियाॅ हमारे बीच रक्श करेंगी। बस इन खुशियों को बरबाद करने वालों का एक बार किस्सा खत्म हो जाए। उसके बाद फिर से वही हमारा वही संसार होगा मगर एक नये संसार के रूप में। जिसमें सबके बीच सिर्फ बेपनाह प्यार होगा। जहाॅ किसी घृणा अथवा किसी प्रकार की नफ़रत के लिए कोई स्थान हीं नहीं होगा।"
"क्या सच में तूने अपने माता पिता के लिए उनका अंजाम बुरा ही सोचा हुआ है?" नैना ने पूछा___"क्या ऐसा नहीं हो सकता कि उन्हें उनके कर्मों की सज़ा भी मिल जाए और वो हमारे साथ भी रहें एक अच्छे इंसानों की तरह?"
"ये असंभव है बुआ।" रितू ने कठोरता से कहा__"जो इंसान इतना ज्यादा अपने सोच और विचार से गिर जाए कि वो अपनी ही औलाद के बारे में इतना गंदा करने का सोच डाले उससे भविष्य में अच्छाई की उम्मीद हर्गिज़ नहीं करनी चाहिए। दूसरी बात, भले ही ईश्वर उनके अपराधों के लिए उन्हें माफ़ कर दे मगर मैं किसी सूरत पर उन्हें माफ़ नहीं कर सकती। उन्होंने माफ़ी के लिए कहीं पर भी कोई रास्ता नहीं छोंड़ा है। उन्होंने हर रिश्ते के लिए सिर्फ गंदा सोचा है और गंदा किया है। उन्होने अपने स्वार्थ के लिए अपने देवता जैसे भाई की हत्या की। अपनी बहन सामान छोटे भाई की पत्नी पर बुरी नज़र डाली। सबसे बड़ी बात तो उन्होंने ये की कि अपने ही बेटे के साथ अपनी पत्नी को उस काम में शामिल किया जिस काम को किसी भी जाति धर्म में उचित नहीं माना जाता बल्कि सबसे ऊॅचे दर्ज़े का पाप माना जाता है। ऐसे इंसानों को माफ़ी कैसे मिल सकती है बुआ? नहीं हर्गिज़ नहीं। ना तो मैं माफ़ करने वाली हूॅ और ना ही मेरा भाई राज उन घटिया लोगों को माफ़ करेगा। एक पल के लिए अगर ऐसा हो जाए कि राज उन्हें माफ़ भी कर दे मगर मैं....मैं नहीं माफ़ कर सकती। हाॅ बुआ....मेरे अंदर उनके प्रति इतना ज़हर और इतनी नफ़रत भर चुकी है कि अब ये उनकी मौ से ही दूर होगी। मुझे दुख इस बात का नहीं होगा कि मेरे माॅ बाप दुनियाॅ से चले गए बल्कि मरते दम तक इस बात का मलाल रहेगा कि ऐसे गंदे इंसानों की औलाद बना कर ईश्वर ने मुझे इस धरती पर भेज दिया था।"
रितू की इन बातों से नैना चकित भाव से देखती रह गई उसे। उसे एहसास था कि रितू के अंदर इस वक्त किस तरह की भावनाओं का चक्रवात चालू था जिसके तहत वो इस तरह अपने ही माॅ बाप के लिए ऐसा बोल रही थी। नैना खुद भी यही समझती थी कि रितू अपनी जगह परी तरह सही है। ऐसे इंसान के मर जाने का कोई दुख या संताप नहीं हो सकता।
"माॅ बाप तो वो होते हैं बुआ जो अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा देते हैं।" रितू दुखी भाव से कहे जा रही थी__"बाल्य अवस्था से ही अपने बच्चों के अंदर अच्छे संस्कार डालते हैं। सबके प्रति आदर व सम्मान करने की भावना के बीज बोते हैं। सबके लिए अच्छा सोचने की सीख देते हैं। कभी किसी के बारे में बुरा न सोचने का ज्ञान देते हैं। मगर मेरे माॅ बाप ने तो अपने तीनों बच्चों को बचपन से सिर्फ यही पाठ पढ़ाया था कि हवेली के अंदर रहने वाला हर ब्यक्ति बुरा है। इनसे ज्यादा बात मत करना और ना ही इन्हें अपने पास आने देना। कहते हैं इंसान वही देता है जो उसके पास होता है। सच ही तो है बुआ, मेरे माॅ बाप के पास यही सब तो था अपने बच्चों को देने के लिए। वो खुद ऊॅचे दर्ज़े के बुरे इंसान थे, उनके अंदर पाप और बुराईयों का भण्डार था। वही सब उन्होंने अपने बच्चों को भी दिया। ये तो समय की बात है बुआ कि वो हमेशा एक जैसा नहीं रहता। हर चीज़ की हकीक़त कैसी होती है ये बताने के लिए समय ज़रूर आपको ऐसे मोड़ पर ले आता है जहाॅ आपको हर चीज़ की असलियत का पता चल जाता है। इस लिए ये अच्छा ही हुआ कि समय मुझे ऐसे मोड़ पर ले आया। वरना मैं जीवन भर इस बात से बेख़बर रहती कि जिन लोगों के बारे में मुझे बचपन से ये पाठ पढ़ाया गया था कि ये सब बुरे लोग हैं वो वास्तव में कितने अच्छे थे और गंगा की तरह पवित्र थे।"
"हर इंसान की सोच अलग होती है रितू।" नैना ने गहरी साॅस लेते हुए कहा___"और हर इंसान की इच्छाएॅ भी अलग होती हैं। कुछ लोग अपनी इच्छा और खुशी के लिए अनैतिकता की सीमा लाॅघ जाते हैं और कुछ लोग दूसरों की खुशी और भलाई के लिए अपनी हर खुशी और इच्छाओं का गला घोंट देते हैं। अनैतिकता की राह पर चलने वाले ये सोचना गवाॅरा नहीं करते कि जो कर्म वो कर रहे हैं उससे जाति समाज और खुद के घर परिवार पर कितना बुरा प्रभाव पड़ेगा? उन्हें तो बस अपनी खुशियों से मतलब होता है। जबकि इसके विपरीत अच्छे इंसान अपने अच्छे कर्मों से आदर्श के नये नये कीर्तिमान स्थापित करते हैं। ख़ैर छोंड़ इन बातों को और ये बता कि आगे का क्या सोचा है?"
"सोचना क्या है बुआ?" रितू ने कहा___"मेरा भाई मुझसे कह गया है कि मैं उसके वापस आने का इन्तज़ार करूॅ। उसके बाद हम दोनो बहन भाई इस किस्से का खात्मा करेंगे।"
"पर ये सब होगा कैसे?" नैना ने कहा___"तुम दोनो इस काम को अकेले कैसे अंजाम तक पहुॅचाओगे?"
"मुझे खुद पर और अपने भाई राज पर पूरा भरोसा है बुआ।" रितू ने गर्व से कहा___"आप देखना हम दोनो कैसे इस सबको फिनिश करते हैं? अब तो रितू राज स्पेशल गेम होगा बुआ। मैं बस राज के आने का बेसब्री से इन्तज़ार कर रही हूॅ।"
"तुम तो ऐसे कह रही हो जैसे ये सब बहुत सहज है।" नैना ने हैरानी से कहा___"जबकि मेरा तो सोच सोच कर ही दिल बुरी तरह से घबराया जा रहा है।"
"इसमें घबराने वाली क्या बात है बुआ?" रितू ने स्पष्ट भाव से कहा___"सीधी और साफ बात है कि जो लोग सिर पर मौत का कफ़न बाॅध कर चलते हैं वो फिर किसी चीज़ से घबराते नहीं हैं। बल्कि मौत से भी डॅट कर मुकाबला करते हैं। जहाॅ तक मेरी बात है तो अब अगर मेरी जान भी मेरे भाई की सुरक्षा में चली जाए तो कोई ग़म नहीं है। बल्कि मुझे बेहद खुशी होगी कि मेरी जान मेरे ऐसे भाई की सलामती के लिए फना हो गई जिसने वास्तव में मुझे हमेशा अपनी दीदी माना और हमेशा मुझे इज्ज़त व सम्मान दिया।"
"ऐसा मत कह रितू।" नैना की ऑखों से ऑसू छलक पड़े, बोली____"तुझे कुछ नहीं होगा और ख़बरदार अगर दुबारा से ऐसी फालतू की बात की तो। तू मेरी जान है मेरी बच्ची। तुझे कुछ नहीं होगा क्योंकि तू सच्चाई की राह पर चल रही है, धर्म की राह पर मुकीम है तू। अगर किसी को कुछ होगा तो वो उन्हें होगा जो इस देश समाज और परिवार के लिए कलंक हैं।"
"ख़ैर जाने दीजिए बुआ।" रितू ने मानो पहलू बदला__"इन सब बातों में क्या रखा है? होना तो वही है जो हर किसी की नियति में लिखा हुआ है। आइये खाना खाने चलते हैं। बिंदिया काकी ने खाना तैयार कर दिया होगा।"
रितू की ये बात सुन कर नैना उसे कुछ देर अजीब भाव से देखती रही, फिर रितू के उठते ही वो भी बेड से उठ बैठी। कमरे से बाहर आकर दोनो डायनिंग हाल की तरफ बढ़ चलीं। जहाॅ पर करुणा का भाई और अभय सिंह का साला बैठा इन्हीं का इन्तज़ार कर रहा था। ये दोनो भी वहीं रखी एक एक कुर्सियों पर बैठ गई। कुछ ही देर में बिंदिया ने सबको खाना परोसा। खाना खाने के बाद सब अपने अपने कमरों की तरफ सोने के लिए चले गए।
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सुबह हुई!
उस वक्त सुबह के लगभग साढ़े आठ बज रहे थे जब रास्तों पर धूल उड़ाती हुई कई सारी गाड़ियाॅ आकर हवेली के बाहर एक एक करके रुकीं। वो तीन गाड़ियाॅ थी। एक सफारी, एक इनोवा, और एक आई20 थी। तीनों गाड़ियों के रुकते ही सभी गाड़ियों के दरवाजे एक साथ खुले और खुल चुके दरवाजे से एक एक दो दो करके कई सारे आदमी गाड़ियों से बाहर निकले।
बाहर आते ही वो सब एक साथ हवेली के उस हिस्से के मुख्य दरवाजे की तरफ बढ़े जो हिस्सा अजय सिंह का था। इस वक्त दरवाजा बंद था। आस पास कुछ ऐसे आदमी भी बाहर मौजूद थे जिनके हाॅथों में बंदूख, रिवाल्वर आदि हथियार थे। गाड़ियों से आने वाले सभी लोग मुख्य दरवाजे की तरफ मुड़ चले। आस पास खड़े अजय सिंह के बंदूखधारी आदमियों के चेहरों पर अजीब से भाव उभरे। अजीब से इस लिए क्यों कि गाड़ियों से आने वाले सभी आदमी एकदम दनदनाते हुए मुख्य दरवाजे की तरफ बढ़ चले थे।
आस पास खड़े बंदूखधारी आदमी उन लोगों की इस धृष्टता को देख उन्हें रोंकने के लिए उन लोगों के सामने आ गए और उन्हें रोंक कर उनसे पूछने लगे कि वो कौन लोग हैं और इस तरह कैसे बिना कुछ पूछे अंदर की तरफ बढ़े चले जा रहे हैं? किन्तु बंदूखधारियों के पूछने पर उन लोगों ने कोई जवाब नहीं दिया बल्कि अपने अपने कोट की सामने वाली पाॅकेट से अपना अपना आई कार्ड निकाल कर बंदूखधारियों को दिखा दिया। बंदूखधारी ये देख कर बुरी तरह चौंके कि वो सब सी बी आई की स्पेशल ऑफीसर थे। बंदूखधारियों को बिलीउल भी समझ न आया कि वो लोग यहाॅ क्यों आए हैं और वो खुद अब क्या करें? उधर आई कार्ड दिखाने के बाद वो लोग मुख्य दरवाजे के पास पहुॅच गए और दरवाजे पर लगी कुण्डी को ज़ोर से बजा दिया।
कुछ ही देर में दरवाजा खुला। दरवाजे पर नाइट गाउन पहने प्रतिमा नज़र आई। अपने सामने इतने सारे अजनबी आदमियों को देख कर वो चौंकी। उसके चेहरे पर ना समझने वाले भाव उभरे।
"जी कहिए।" फिर उसने अजीब भाव से कहा___"आप लोग कौन हैं? और यहाॅ किस काम से आए हैं?"
"हमें अंदर तो आने दीजिए मैडम।" एक आदमी ने ज़रा शालीन भाव से कहा___"मिस्टर अजय सिंह से मिलना है।"
"पर आप लोग हैं कौन?" प्रतिमा ने दरवाजे पर खड़े खड़े ही पूछा___"ये तो बताया नहीं आपने।"
"सब पता चल जाएगा मैडम।" उस आदमी ने कहा__"हम सब मिस्टर अजय सिंह के गहरे दोस्त यार हैं। प्लीज, उन्हें कहिए कि हम उनसे मिलने आए हैं।"
प्रतिमा उस आदमी की बात सुन कर देखती रह गई उसे। उसके चेहरे पर ऐसे भाव थे जैसे उसे यकीन न आ रहा हो कि ये लोग अछय सिंह के दोस्त हो सकते हैं। कुछ देर उस आदमी को देखते रहने के बाद जाने क्या सोच कर प्रतिमा दरवाजे से हट कर पलटी और अंदर की तरफ बढ़ती चली गई। उसके पीचे पीछे ये सब भी ओल दिये।
कुछ ही देर में प्रतिमा के पीछे पीछे ये सब ड्राइंग रूम में पहुॅच गए। प्रतिमा ने सोफों की तरफ हाॅथ का इशारा कर उन लोगों को बैठने के लिए कहा। प्रतिमा के इस प्रकार कहने पर वो सब लोग सोफों पर बैठ गए जबकि प्रतिमा अंदर कमरे की तरफ बढ़ गई।
थोड़ी ही देर में अजय सिंह ड्राइंग रूम में दाखिल हुआ। ड्राइंग रूम में सोफों पर बैठे इतने सारे लोगों पर नज़र पड़ते ही उसके चेहरे पर अजनबीयत के भाव उभरे। जैसे पहचानने की कोशिश कर रहा हो कि ये सब लोग कौन हैं?
"माफ़ करना मगर हमने आप लोगों को पहचाना नहीं।" फिर उसने एक अलग सोफे पर बैठते हुए कहा।
"इसके पहले कभी हम लोग आपसे मिले ही कहाॅ थे जो आप हमें पहचान लेते।" एक कोटधारी ने अजीब भाव से कहा___"ख़ैर, आपकी जानकारी के लिए हम बता दें कि हम सब सी बी आई से हैं और यहाॅ आपको चरस, अफीम, और ड्रग्स का धंधा करने के जुर्म में गिरफ्तार करने आए हैं। हमारे पास आपके खिलाफ़ स्पेशल वारंट भी है। इस लिए आप बिना कुछ सवाल जवाब किये हमारे साथ चलने का कस्ट करें।"
सी बी आई के उस आदमी के मुख से ये बात सुन कर अजय सिंह के पैरों के नीचे से ज़मीन खिसक गई। बुत सा बन गय था वह। मुख से कोई बोल न फूटा। जिस्म के सभी मसामों ने पल भर में ढेर सारा पसीना उगल दिया। चेहरा इस तरह नज़र आने लगा था जैसे धमनियों में दौड़ते हुए लहू की एक बूॅद भी शेष न बची हो। एकदम फक्क पड़ गया था।
"ये...ये...क्...क्या बकवास कर रहे हैं आप?" फिर सहसा बदहवाश से अजय सिंह ने जैसे खुद को सम्हाला था और फिर वापस ठाकुरों वाले रौब में आते हुए बोला था। ये अलग बात है कि उसके उस रौब में रत्ती भर भी रौब दिखाई न दिया, बोला___"आप होश में तो हैं न? आप जानते हैं कि आप किसके सामने क्या बकवास कर रहे हैं?"
"हम तो पूरी तरह होशो हवाश में ही हैं मिस्टर अजय सिंह।" सीबीआई ऑफिसर ने कहा___"किन्तु आपके होशो हवाश ज़रूर कहीं खो गए से नज़र आने लगे हैं। रही बात आपकी कि आप कौन हैं और हम आपसे क्या कह रहे हैं तो इससे कोई फर्क़ नहीं पड़ता। क्योंकि हम कानून के नुमाइंदे हैं। हमारे लिए छोटे बड़े सब एक जैसे ही होते हैं। ख़ैर, हमने आपके शहर वाले मकान से भारी मात्रा में ग़ैर कानूनी ज़खीरा बरामद किया है। सारी जाॅच पड़ताल के बाद जब हमें ये पता चला कि वो सब आपकी संमत्ति है तो हम कोर्ट से स्पेशल वारंट लेकर आपको यहाॅ गिरफ्तार करने चले आए। इस लिए अब आपके पास हमारे साथ चलने के सिवा दूसरा कोई चारा नहीं है।"
ऑफीसर की ये बात सुन कर एक बार फिर से अजय सिंह की हालत ख़राब हो गई। वो सोच भी नहीं सकता था कि उसके साथ ऐसा भी कभी हो सकता है। उसे तुरंत ही फैक्ट्री में लगी आग का वाक्या याद आया जब तहखाने से उसका ग़ैर कानूनी सामान गायब होने का पता चला था उसे। वो ये भी समझ गया था कि ये सब विराज ने ही किया था। प्रतिमा ने इस बात का अंदेशा भी ब्यक्त किया था कि किसी ऐसे मौके पर वो ये सब कानून के हवाले कर सकता है जबकि हम कुछ भी करने की स्थिति में ही न रह जाएॅगे। मतलब साफ था कि प्रतिमा की कही बात आज सच हो गई थी। यानी विराज ने उस सारे सामान को उसके शहर वाले मकान में रखा और फिर इसकी सूचना सीबीआई को दे दी और अब सीबीआई वाले अजय सिंह के पास स्पेशल वारंट लेकर आ गए थे। अजय सिंह खुद भी सरकारी वकील रह चुका था इस लिए जानता था कि ऐसे मौके पर वह कुछ भी नहीं कर सकता था। कोई दूसरा जुर्म होता तो कदाचित वो कोई जुगाड़ लगा कर अपनी ज़मानत करवा भी लेता मगर यहाॅ तो जुर्म ही संगीन था।
"किस सोच में डूब गए मिस्टर अजय सिंह?" तभी उसे सोचो में गुम देख ऑफीसर ने कहा___"आप अपनी मर्ज़ी से हमारे साथ चलेंगे तो बेहतर होगा, वरना आप जानते है कि हमारे पास बहुत से तरीके हैं आपको यहाॅ से ले चलने के लिए।"
"ऑफीसर।" सहसा अजय सिंह ने अजीब भाव से कहा___"ये सब झूॅठ हैं। हम ऐसा कोई काम नहीं करते जिसे कानून की नज़र में जुर्म कहा जाए। ये यकीनन किसी की साजिश है हमें फसाने की। हाॅ ऑफीसर, ये साजिश ही है। काफी समय से हमारा शहर वाला मकान खाली पड़ा है इसलिए संभव है कि किसी ने ये सब गैर कानूनी चीज़ें वहाॅ पर छुपा कर रखी रही होंगी। हमारा इस सबसे कीई लेना देना नहीं है।"
"सच और झूठ का फैसला तो अब अदालत ही करेगी मिस्टर अजय सिंह।" ऑफिसर ने कहा___"हमारा काम तो बस इतना है कि प्राप्त सबूतों के आधार पर आपको गिरफ्तार कर अदालत के समक्ष खड़ा कर दें। इस लिए अब आपकी कोई दलील हमारे सामने चलने वाली है।"
अभी अजय सिंह कुछ कहने ही वाला था कि तभी अंदर से प्रतिमा और शिवा आकर वहीं पर खड़े हो गए। दोनो के चेहरों पर हल्दी पुती हुई थी। मतलब साफ था कि यहाॅ की सारी वार्तालाप उन दोनो ने सुन ली थी।
"ये सब क्या है डैड?" शिवा ने अंजान बनते हुए पूछा___"ये कौन लोग हैं और यहाॅ किस लिए आए हैं?"
"ये सब सीबीआई से हैं बेटे।" अजय सिंह ने बुझे मन से कहा___"और ये हमे गिरफ्तार करने आए हैं। इनका कहना है कि हमारे शहर वाले मकान से इन्होंने भारी मात्रा में चरस अफीम ड्रग्स आदि चीज़ें बरामद की हैं।"
"व्हाऽऽट??" शिवा ने चौंकते हुए कहा___"ये आप क्या कह रहे हैं डैड? भला ऐसा कैसे हो सकता है? हमारे शहर वाले मकान में वो सब चीज़ें कहाॅ से आ गई?"
"मैं तो पहले ही कहती थी कि तुम शहर वाले उस मकान को बेंच दो।" प्रतिमा ने जाने क्या सोच कर ये बात कही थी, बोली___"मगर मेरी सुनते कहाॅ हो तुम? अब देख लो इसका अंजाम। जाने कब से खाली पड़ा था वह। आज कल किसी का क्या भरोसा कि वो मकान के अंदर आकर क्या क्या खुराफात करने लग जाएॅ।"
"अरे तो भला हमें क्या पता था प्रतिमा कि ऐसा भी कोई कर सकता है?" अजय सिंह ने प्रतिमा की चाल को बखूबी समझते हुए कहा___"अगर पता होता तो हम उस मकान की देख रेख के लिए कोई आदमी रख देते न।"
"किसने किया होगा ये सब?" प्रतिमा ने कहा___"भला हमसे किसी की ऐसी क्या दुश्मनी हो सकती है जिसके तहत उसने हमारे साथ इतना बड़ा काण्ड कर दिया?"
"मिस्टर अजय सिंह।" सहसा ऑफिसर ने हस्ताक्षेप करते हुए कहा___"ये सब बातें आप बाद में सोचिएगा। इस वक्त आप हमारे साथ चलने का कस्ट करें प्लीज़।"
"अरे ऐसे कैसे ले जाएॅगे आप डैड को?" सहसा शिवा आवेशयुक्त भाव से बोल पड़ा___"मेरे डैड बिलकुल बेगुनाह हैं। आप इन्हें ऐसे कहीं नहीं ले जा सकते। ये तो हद ही हो गई कि करे कोई और भरे कोई और।"
"तुम शान्त हो जाओ बेटे।" अजय सिंह ने अपने कूढ़मगज बेटे की बातों पर मन ही मन कुढ़ते हुए बोला___"बात चाहे जो भी हो लेकिन हमें इनके साथ जाना ही पड़ेगा। ये सब कानून के रखवाले हैं। दूसरी बात इन्हें हमारे मकान से वो सब चीज़ें मिली हैं इस लिए पहली नज़र में हर कोई यही समझेगा और कहेगा कि वो सब चीज़ें हमारी हैं। यानी हम ग़ैर कानूनी धंधा भी करते हैं। दूसरा ब्यक्ति ये नहीं सोचेगा कि कोई अन्य ब्यक्ति ये सब चीज़ें हमारे मकान में रख कर हमें फॅसा भी सकता है। अतः मौजूदा हालात में हमें कानून का हर कहा मानना पड़ेगा और उसका साथ देना पड़ेगा। तुम फिक्र मत करो बेटे, ये हमें ले जाकर हमसे इस सबके बारे में पूॅछताछ करेंगे। इस सबके लिए हमें तभी सज़ा मिलेगी जब ये साबित हो जाएगा कि वो सब चीज़ें वास्तव में हमारी ही हैं या हम कोई ग़ैर कानूनी धंधा भी करते हैं।"
अजय सिंह की बात सुन कर शिवा कुछ बोल न सका। प्रतिमा ने भी कुछ न कहा। कदाचित वो खुद भी अजय सिंह की इस बात से सहमत थी। दूसरी बात, वो तो जानती ही थी कि वो सब चीज़ें सच में अजय सिंह की ही हैं। इस लिए ये सब सोच कर और इसके अंजाम का सोच कर वो अंदर ही अंदर बुरी तरह घबराए भी जा रही थी। वो अच्छी तरह जानती थी कि ऐसे मामले में कानून की गिरफ्त से बचना असंभव नहीं तो नामुमकिन ज़रूर था।
इधर अजय सिंह के मन में भी यही सब चल रहा था। उसे भी एहसास था कि इससे बचना बहुत मुश्किल काम है। इस लिए वो कोई न कोई जुगाड़ लगाने भी सोच रहा था। मगर चूॅकि उसके पुराने कानूनी कनेक्शन पहले ही खत्म हो चुके थे इस लिए वो कुछ कर पाने की हालत में नहीं था। दूसरी सबसे बड़ी बात ये थी कि उसे इस बात का एहसास हो चुका था कि अगर किसी तरह वो पुलिस कमिश्नर अथवा प्रदेश के मंत्री को अपने हक़ में कर भी ले तो तब भी बात अपने पक्ष में नहीं होनी थी। क्योंकि उसने देखा था कि उसके साथ घटी पिछली सभी घटनाओं में ऐसा हुआ था कि ऊपर से ही शख्त आदेश मिला था।
अजय सिंह के पसीने छूट रहे थे मगर उसके दिमाग़ में कोई बेहतर जुगाड़ आ नहीं रहा था। वक्त और हालात ने अचानक ही इस तरह से अपना रंग बदल लिया था कि उसको कुछ करने लायक छोंड़ा ही नहीं था। उसने कल्पना तक न की थी कि वो इतना बेबस व लाचार हो जाएगा और इतनी आसानी से कानून की चपेट में आ जाएगा।
"तो चलें मिस्टर अजय सिंह?" सहसा ड्राइंग रूम में छाए सन्नाटे को भेदते हुए उस ऑफिसर ने कहा__"अगर आपको ये लगता है कि ये सब किसी ने आपको फॅसाने के उद्देश्य से किया है और इस सबमें आपका कोई हाॅथ नहीं है तो फिक्र मत कीजिए। हम सच्चाई का पता लगा लेंगे। किन्तु उससे पहले आपको हमारे साथ चलना ही पड़ेगा और तहकीक़ात में हमारा सहयोग करना पड़ेगा।"
उस ऑफिसर के इतना कहते ही अजय सिंह ने गहरी साॅस ली और फिर सोफे से उठ खड़ा हुआ। इस वक्त उसके बदन पर नाइट ड्रेस ही था इस लिए उसने ऑफिसर से ड्रेस बदल लेने की परमीशन माॅगी। ऑफिसर ने परमीशन दे दी। परमीशन मिलते ही अजय सिंह कमरे की तरफ बढ़ गया। उसके जाते ही ऑफिसर ने एक अन्य ऑफिसर की तरफ देख कर ऑखों से कुछ इशारा किया। ऑफिसर का इशारा समझ कर दूसरा ऑफिसर तुरंत ही अजय सिंह के पीछे कमरे की तरफ बढ़ गया। मतलब साफ था कि ऑफिसर को इस बात का अंदेशा था कि अंदर कमरे अजय सिंह कहीं फोन पर किसी से कोई बात वगैरा न करने लगे। जबकि मौजूदा हालात में ऐसा करना हर्गिज़ भी जायज़ बात न थी।
कुछ ही देर में ऑफिसर के साथ ही अजय सिंह कमरे से आता दिखाई दिया। उसके आते ही सभी लोग सोफों पर से उठे और अजय सिंह के साथ ही बाहर आ गए। जबकि पीछे बुत बने अजय सिंह की बीवी और बेटा खड़े रह गए थे। फिर जैसे प्रतिमा को होश आया। वो एकदम से तेज़ क़दमों के साथ बाहर की तरफ भागते हुए गई। जब वो बाहर आई तो उसने देखा कि सीबीआई के सभी ऑफिसर अपनी अपनी गाड़ियों में बैठ रहे थे। एक अन्य गाड़ी की पिछली शीट पर अजय सिंह को बिठाया जा रहा था, और उसके बाद उसके बगल से ही एक अन्य ऑफिसर बैठ गया था।
प्रतिमा के देखते ही देखते सीबीआई वालों का वो क़ाफिला अजय सिंह को साथ लिए हवेली से दूर चला गया। प्रतिमा को ऐसा महसूस हुआ जैसे उसकी मुकम्मल दुनियाॅ ही नेस्तनाबूत हो गई हो। इस एहसास के साथ ही प्रतिमा की ऑखें छलक पड़ीं और फिर जैसे उसके जज़्बात उसके काबू में रह सके। वो दरवाजे पर खड़ी खड़ी ही फूट फूट कर रो पड़ी। तभी उसके पीछे शिवा नमूदार हुआ और अपनी रोती हुई माॅ को उसके कंधे से पकड़ कर अपनी तरफ घुमाया और फिर उसे अपने सीने से लगा लिया।
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उधर रितू के फार्महाउस पर भी सुबह हो गई थी। अपने कमरे के अटैच बाथरूम में नहाने के बाद रितू कपड़े पहन रही थी जब उसके कमरे का दरवाजा बाहर से कुण्डी के दवारा बजाया गया था। रितू ने पूछा कौन है तो बाहर से नैना की आवाज़ आई थी कि मैं हूॅ बेटा जल्दी से दरवाज़ा खोलो। बस, उसके बाद रितू ने आनन फानन में अपने कपड़े पहने और फिर जाकर कमरे का दरवाज़ा खोला। दरवाज़ा खुलते ही नैना बुवा पर नज़र पड़ी तो वह हल्के से चौंकी।
"क्या बात है बुआ?" रितू ने शशंक भाव से पूछा__"आप इस तरह? सब ठीक तो है न?"
"ये ले।" नैना ने जल्दी से अपना दाहिना हाथ रितू की तरफ बढ़ाया___"ये अख़बार पढ़। इसमें ऐसी ख़बर छपी है छिसे पढ़ कर तेरे होश न उड़ जाएॅ तो कहना।"
"अच्छा।" रितू ने अख़बार अपने हाॅथ में लेते हुए कहा___"भला ऐसी क्या ख़बर छपी है इस अख़बार में जिसे पढ़ने पर मेरे होश ही उड़ जाएॅगे?"
"तू पढ़ तो सही।" नैना कहने के साथ ही दरवाजे के अंदर रितू को खींचते हुए ले आई, बोली___"बताने में वो बात नहीं होगी जितना कि खुद ख़बर पढ़ने से होगी।"
नैना, रितू को खींचते हुए बेड के क़रीब आई और उसमें रितू को बैठा कर खुद भी बैठ गई और रितू के चेहरे के भावों को बारीकी से देखने लगी। रितू ने अख़बार की फ्रंट पेज़ पर छपी ख़बर पर अपनी दृष्टि डाली और ख़बर की हेड लाईन पढ़ते ही वो बुरी तरह उछल पड़ी। अख़बार में छपी ख़बर कुछ इस प्रकार थी।
*शहर के मशहूर कपड़ा ब्यापारी अजय सिंह के मकान से करोड़ों का ग़ैर कानूनी सामान बरामद*
(गुनगुन): हल्दीपुर के रहने वाले ठाकुर अजय सिंह बघेल वल्द गजेन्द्र सिंह बघेल जो कि एक मशहूर कपड़ा ब्यापारी हैं उनके गुनगुन स्थित मकान पर कल शाम को सीबीआई वालों ने छापा मारा। मकान के अंदर से भारी मात्रा में चरस अफीम ड्रग्स आदि जानलेवा चीज़ें सीबीआई के हाथ लगी। ग़ौरतलब बात ये है कि गुनगुन स्थित ठाकुर अजय सिंह का वो मकान कुछ समय से खाली पड़ा था, इस लिए ये स्पष्ट रूप से नहीं कहा जा सकता कि ग़ैर कानूनी चीज़ों का इतना बड़ा ज़खीरा उनके मकान में कहाॅ से आ गया? ऐसा इस लिए क्योंकि ठाकुर अजय सिंह जैसे मशहूर कारोबारी से ऐसे संगीन धंधे की बात सोची नहीं जा सकती जो कि जुर्म कहलाता है। इस लिए संभव है कि ये सब उनके किसी दुश्मन की सोची समझी साजिश का ही नतीजा हो। ख़ैर, अब देखना ये होगा कि सीबीआई वालों की जाॅच पड़ताड़ से क्या सच्चाई सामने आती है? अब ये तो निश्चित बात है कि ठाकुर अजय सिंह के मकान से मिले इतने सारे ग़र कानूनी सामान के तहत सीबीआई वाले बहुत जल्द ठाकुर अजय सिंह को अपनी हिरासत में लेकर इस बारे में पूछताॅछ करेंगे। किन्तु अगर सीबीआई की जाॅच में ये बात सामने आई कि वो सब ग़ैर कानूनी सामान ठाकुर अजय सिंह का ही है तो यकीनन ठाकुर अजय सिंह को इस संगीन जुर्म में कानून के द्वारा शख्तसे शख्त सज़ा मिलेगी।
अख़बार में छपी इस ख़बर को पढ़ कर यकीनन रितू के होश उड़ ही गए थे। उसके दिमाग़ की बत्ती बड़ी तेज़ी से जली थी और साथ ही उसे विराज की वो बात याद आई जब उसने गुनगुन रेलवे स्टेशन पर रितू से कहा था कि बहुत जल्द अजय सिंह को एक झटका लगने वाला है। ये भी कि उसकी सेफ्टी के लिए वह भी ऐसा करेगा कि अजय सिंह या उसका कोई आदमी उस तक पहुॅच ही नहीं पाएगा।
"इसका मतलब तो यही हुआ बुआ कि अब तक डैड को सीबीआई वाले गिरफ्तार कर लिए होंगे।" रितू ने गहरी साॅस लेते हुए कहा___"और अगर ऐसा हो गया होगा तो यकीनन डैड लम्बे से नप जाएॅगे। एक ही झटके में वो कानून की ऐसी चपेट में आ जाएॅगे जहाॅ से निकल पाना असंभव नहीं तो नामुमकिन ज़रूर है।"
"ये तो अच्छा ही हुआ न रितू।" नैना ने कहा___"बुरे काम करने का ये अंजाम तो होना ही था। लेकिन सबसे बड़ा सवाल ये है कि ये सब हुआ कैसे?
"ये सब राज की वजह से हुआ है बुआ।" रितू ने बताया___"उसने कल रेलवे स्टेशन में मुझसे कहा था कि वो कुछ ऐसा करेगा जिससे डैड मुझ तक पहुॅच ही नहीं पाएॅगे। ये तो सच है बुआ कि डैड ग़ैर कानूनी धंधा करते थे और फैक्ट्री में मौजूद तहखाने में उनका ये सब ग़ैर कानूनी सामान भी था जिसे राज ने ही गायब किया था। ऐसा उसने इस लिए किया था ताकि वह उस सामान के आधार पर जब चाहे डैड को कानून की गिरफ्त में डलवा सके। इस लिए उसने ऐसा ही किया है बुआ लेकिन मुझे लगता है कि ये सब महज डैड को डराने और मौजूदा हालात से निपटने के लिए राज ने किया है। क्योंकि राज उन्हें अपने हाॅथों से उनके अपराधों की सज़ा देगा, नाकि कानून द्वारा उन्हें किसी तरह की सज़ा दिलवाएगा।"
"लेकिन बेटा।" नैना ने तर्क सा दिया___"कानून की चपेट में आने के बाद बड़े भइया भला कानून की गिरफ्त से कैसे बाहर आएॅगे और फिर कैसे राज उन्हें अपने हाॅथों से सज़ा देगा?"
"उसका भी इंतजाम राज ने किया ही होगा बुआ।" रितू ने कहा___"आज के इस अख़बार में छपी ख़बर के अनुसार ग़ैर कानूनी सामान डैड के मकान से बरामद ज़रूर हुआ है लेकिन ये भी बताया गया है कि चूॅकि गुनगुन स्थित मकान काफी समय से खाली था इस लिए संभव है कि डैड को फॅसाने के लिए उनके किसी दुश्मन ने ऐसा किया होगा। इस लिए सीबीआई वाले इस बारे में सिर्फ पूॅछताछ करेंगे। अब आप खुद समझ सकती हैं बुआ कि राज ने केस को इतना कमज़ोर क्यों बनाया हुआ है कि डैड कानून की गिरफ्त से मामूली पूछताछ के बाद छूट जाएॅ?।"
"लेकिन ये सवाल तो अपनी जगह खड़ा ही रहेगा न रितू कि बड़े भइया के मकान में वो ग़ैर कानूनी सामान कैसे पाया गया?" नैना ने कहा___"इस लिए इस सवाल के साल्व हुए बिना बड़े भइया इस केस से कैसे छूट जाएॅगे भला?"
"बहुत आसान है बुआ।" रितू ने कहा___"पैसों के लिए आजकल लोग बहुत कुछ कर जाते हैं। कहने का मतलब ये कि वो किसी ऐसे ब्यक्ति को ढूॅढ़ लेंगे जो पैसों के लिए कुछ भी करने को तैयार हो जाए। वो ब्यक्ति इस बात को खुद स्वीकार करेगा कि वो सारा ग़ैर कानूनी सामान उसका खुद का है और उसने डैड के मकान में उसे इस लिये छुपाया हुआ था क्योंकि वो मकान काफी समय से खाली था तथा उसके लिए एक सुरक्षित जगह की तरह था।"
"चलो ये तो मान लिया कि ऐसा हो सकता है।" नैना ने मानो तर्क किया___"किन्तु सबसे बड़ा सवाल ये ये है कि तुम्हारे डैड ऐसे किसी ब्यक्ति को लाएॅगे कहाॅ से? जबकि वो खुद ही सीबीआई वालों की निगरानी में रहेंगे और उनके पास किसी से संपर्क स्थापित करने के लिए कीई ज़रिया ही नहीं होगा।"
"सवाल बहुत अच्छा है बुआ।" रितू ने कुछ सोचते हुए कहा__"किन्तु अगर हम ये सोच कर देखें कि ये सब राज का ही किया धरा है तो ये भी निश्चित बात है कि वो खुद ही ऐसा कुछ करेगा जिससे डैड सीबीआई या कानून के चंगुल से बाहर आ जाएॅ।"
"ऐसे मामलों में कानून के चंगुल से किसी का बाहर आ जाना नामुमकिन तो नहीं होता रितू।" नैना ने गहरी साॅस लेते हुए कहा___"किन्तु अगर तू ये कह रही है कि राज तेरे डैड को किसी हैरतअंगेज कारनामे की वजह से बाहर निकाल ही लेगा तो सवाल ये उठता है कि ऐसा क्या करेगा राज? दूसरी बात, जब उसे कानून की गिरफ्त से निकाल ही लेना है तो फिर तेरे डैड की कानून की चपेट में लाने का मतलब ही क्या था?"
"खजूर पर चढ़े इंसान को ज़मीन पर पटकने का मकसद था उसका।" रितू ने कहा___"वो कहते हैं न कि जब तक ऊॅट पहाड़ के सामने नहीं आता तब तक उसे यही लगता है कि उससे ऊॅचा कोई है ही नहीं। यही हाल मेरे डैड का था बुआ। राज का मकसद कदाचित यही है कि वो डैड को एहसास दिलाना चाहता है कि इस दुनियाॅ में उनसे भी बड़े बड़े ख़लीफा मौजूद हैं। वो चाहे तो उन्हें एक पल में चुटकियों में मसल सकता है। आज के इस वाक्ये के बाद संभव है कि डैड की विचारधारा में कुछ तो परिवर्तन ज़रूर आया होगा।"
"ये तो सच कहा तूने।" नैना ने कहा___"अगर सीबीआई वाले बड़े भइया को अपने साथ ले गए होंगे तो ये सच है कि बड़े भइया को आज आटे दाल के भाव का पता चल जाएगा।"
"हाॅ बुआ।" रितू ने कहा___"राज को मौजूदा हालातों का बखूबी एहसास था। कदाचित उसे ये अंदेशा था कि इतनी नाकामियों के बाद डैड अब खुद मैदान में उतरेंगे और हमें खोज कर हमारा क्रिया कर्म करेंगे। इसी लिए राज ने ये क़दम उठाया कि जब डैड ही कानून की गिरफ़्त में रहेंगे तो भला हम पर किसी तरह का उनकी तरफ से कोई संकट आएगा ही कैसे?"
"तो इसका मतलब ये हुआ कि बड़े भइया को राज ने कानून की गिरफ्त में फॅसाया।" नैना को जैसे सारी बात समझ में आ गई थी, बोली___"सिर्फ इस लिए कि वो तेरे डैड को एहसास दिला सके कि वो जिसे पिद्दी का शोरबा समझते हैं वो दरअसल ऐसा है कि उनको छठी का दूध याद दिला सकता है। ख़ैर, इन बातों से ये भी एक बात समझ में आती है कि राज ने तुझको सेफ करने के लिए भी तेरे डैड को कुछ दिनों के लिए कानून की गिरफ्त में फॅसाया है। दो दिन बाद तो वो खुद ही यहाॅ आ जाएगा और संभव है ऐसा कुछ कर दे जिससे उसका शिकार कानून की चपेट से बाहर आ जाए।"
"यू आर अब्सोल्यूटली राइट बुआ।" रितू ने कहा___"राज का यकीनन यही प्लान हो सकता है। ख़ैर, अब तो इस बात की फिक्र करने की कोई ज़रूरत नहीं है कि डैड या उनके किसी आदमी से हमें कोई ख़तरा है।"
"लेकिन एक बात सोचने वाली है रितू।" नैना ने सोचने वाले भाव से चहा___"तेरे डैड की इस गिरफ्तारी से तेरी माॅ और तेरे भाई पर इसका गहरा प्रभाव पड़ा होगा। प्रतिमा भाभी ने खुद भी वकालत की पढ़ाई की है इस लिए संभव है कि वो तेरे डैड को कानून की गिरफ्त से निकालने का कोई जुगाड़ लगाएॅ।"
"कोई फायदा नहीं होने वाला बुआ।" रितू ने कहा__"जिसे जितना ज़ोर लगाना है लगा ले मगर हाॅथ कुछ नहीं आएगा। क्योंकि एक तो मामला ही इतना संगीन है दूसरे इस सबमें राज का हाॅथ है। उसकी पहुॅच काफी लम्बी है, इस लिए उसकी पहुॅच के आगे इन लोगों का कोई भी पैंतरा काम नहीं करने वाला। ये तो पक्की बात है कि होगा वहीं जो राज चाहेगा।"
"हाॅ ये तो है।" नैना ने कहा___"ख़ैर देखते हैं क्या होता है? वैसे इस बारे में क्या अभी तक तुमने राज से बात नहीं की??"
"अभी तो नहीं की बुआ।" रितू ने कहा___"पर अब जल्द ही उससे बात करूॅगी। वास्तव में उसने बड़ा हैरतअंगेज काम किया है। मुझे तो उससे ये उम्मीद ही नहीं थी।"
"वक्त और हालात एक इंसान को कहाॅ से कहाॅ पहुॅचा देते हैं और उससे क्या क्या करवा देते हैं ये सब उस तरह का समय आने पर ही पता चलता है।" नैना ने जाने क्या सोच कर कहा___"सोचने वाली बात है कि राज जो एक बेहद ही सीधा सादा लड़का हुआ करता था आज वो इतना जहीन तथा इतना शातिर दिमाग़ का भी हो गया है।"
"इसमें उसकी कोई ग़लती नहीं है बुआ।" रितू ने भारी मन से कहा___"उसे इस तरह का बनाने वाले भी मेरे ही पैरेंट्स हैं। इंसान अपनों का हर कहा मानता है और उसका जुल्म भी सह लेता है लेकिन उसकी भी एक समय सीमा होती है। इतना कुछ जिसके साथ हुआ हो वो ऐसा भी न बन सके तो फिर कैसा इंसान है वो?"
नैना, रितू की बात सुन कर उसे देखती रह गई। कुछ देर और ऐसी ही बातों के बाद वो दोनो ही कमरे से बाहर आ गईं और नीचे नास्ते की टेबल पर आकर बैठ गईं। जहाॅ पर करुणा का भाई हेमराज पहले से ही मौजूद था। रितू अपनी नैना बुआ के साथ अलग अलग कुर्सियों पर बैठी ही थी कि उसका आई फोन बज उठा। उसने मोबाइल की स्क्रीन पर फ्लैश कर रहे "माॅम" नाम को देखा तो उसके होठों पर अनायास ही नफ़रत व घृणा से भरी मुस्कान फैल गई। कुछ सेकण्ड तक वो मोबाइल की स्क्रीन को देखती रही फिर उसने आ रही काल को कट कर दिया। काल कट करते वक्त उसके चेहरे पर बेहद कठोरता के भाव थे।
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उधर मुम्बई में!
सुबह हुई!
अजय सिंह व प्रतिमा की दूसरी बेटी नीलम की ऑखें गहरी नींद से खुल तो गईं थी मगर वो खुद बेड से न उठी थी अभी तक। हॅसती मुस्कुराती हुई रहने वाली मासूम सी नीलम एकाएक ही जैसे बेहद गुमसुम सी रहने लगी थी। काॅलेज में हुई उस घटना को आज हप्ता से ज्यादा दिन गुज़र गया था किन्तु उस घटना की ताज़गी आज भी उसके ज़हन में बनी हुई थी। उसे अपनी इज्ज़त के तार तार हो जाने का इतना दुख न होता जितना आज उसे इस बात पर हो रहा था कि उसका चचेरा भाई उसे नफ़रत और घृणा की दृष्टि से देख कर इस तरह उसके सामने से मुह फेर कर चला गया था जैसे वो उसे पहचानता ही न था। नीलम और विराज दोनो ही हमउमर थे किन्तु नीलम का बिहैवियर भी रितू की तरह रहा था विराज के साथ।
उस दिन की घटना ने नीलम के मुकम्मल वजूद को हिला कर रख दिया था। उसने इस घटना के बारे में अपने खुद के पैरेंट्स को बिलकुल भी नहीं बताया था। मौसी की लड़की को बस बताया था किन्तु उसने उससे भी वादा ले लिया था कि वो उसके घरवालों को ये बात न बताए कभी।
उस दिन की घटना के बाद पहले तो दो दिन नीलम काॅलेज नहीं गई थी किन्तु फिर तीसरे दिन से जाने लगी थी। काॅलेज में हर जगह उसकी नज़रें बस अपने चचेरे भाई विराज को ही ढूॅढ़तीं मगर पिछले कई दिनों से उसे अपना वो चचेरा भाई काॅलेज में कहीं न दिखा था। उसे समझ नहीं आ रहा था कि आख़िर विराज काॅलेज क्यों नहीं आ रहा? कहीं ऐसा तो नहीं कि उसकी वजह से उसने ये काॅलेज ही छोंड़ दिया हो। ये सोच कर ही नीलम की जान उसके हलक में आकर फॅस जाती। वो सोचती कि अगर विराज ने सच में उसकी ही वजह से काॅलेज छोंड़ दिया होगा तो ये कितनी बड़ी बात है। मतलब कि आज के समय में विराज उससे इतनी नफ़रत करता है कि वो उसे देखना तक गवाॅरा नहीं करता। ये सब बातें नीलम को रात दिन किसी ज़हरीले सर्प की भाॅति डसती रहती थी।
"बस एक बार।" नीलम के मुख से हर बार बस यही बात निकलती____"सिर्फ एक बार फिर से मुझे मिल जाओ मेरे भाई। तुमसे मिल कर मैं अपने किये की माफ़ी माॅगना चाहती हूॅ। मुझे एहसास है कि मेरे भाई कि मैने बचपन से लेकर अब तक तुम्हें सिर्फ दुख दिया है। तुम्हें तरह तरह की बातों से जलील किया था। मगर एक तुम थे कि मेरी उन कड़वी बातों का कभी भी बुरा नहीं मानते थे। जबकि कोई और होता तो जीवन भर मुझे देखना तक पसंद न करता। मुझे सब कुछ अच्छी तरह से याद है भाई। मेरे माॅम डैड ने हमेशा हम भाई बहनों को यही सिखाया था कि तुम सब बुरे लोग हो इस लिए हम तुमसे दूर रहें और कभी भी किसी तरह का कोई मेल मिलाप न रखें। हम बच्चे ही तो थे भाई, जैसा माॅ बाप सिखाते थे उसी को सच मान लेते थे और फिर इस सबकी आदत ही पड़ गई थी। मगर उस दिन तुमने मेरी इज्ज़त बचा कर ये जता दिया कि तुम बुरे नहीं हो सकते। जिस तरह से तुम मुझे देख कर नफ़रत व घृणा से अपना मुह मोड़ कर चले गए थे, उससे मुझे एहसास हो चुका था कि तुमने जो किया वो एक ऊॅचे दर्ज़े का कर्म था और जो मैंने अब तक किया था वो हद से भी ज्यादा निचले दर्ज़े का कर्म था। मुझे बस एक बार मिल जाओ राज। मैं तुमसे अपने गुनाहों की माफ़ी माॅगना चाहती हूॅ। तुम जो भी सज़ा दोगे उस सज़ा को मैं खुशी खुशी कुबूल कर लूॅगी। प्लीज़ राज, बस एक बार मुझे मिल जाओ। तुम काॅलेज क्यों नहीं आ रहे हो? क्या इतनी नफ़रत करते हो तुम अपनी इस बहन से कि जिस काॅलेज में मैं हूॅ वहाॅ तुम पढ़ ही नहीं सकते? ऐसा मत करना मेरे भाई। वरना मैं अपनी ही नज़रों में इस क़दर गिर जाऊॅगी कि फिर उठ पाना मेरे लिए असंभव हो जाएगा।"
ये सब बातें अपने आप से ही करना जैसे नीलम की दिनचर्या में शामिल हो गया था। उसके मौसी की लड़की उसे इस बारे में बहुत समझाती मगर नीलम पर उसकी बातों का कोई असर न होता। काॅलेज में हुई घटना से नीलम थोड़ा गुमसुम सी रहने लगी थी। मगर इसका कारण यही था कि विराज काॅलेज नहीं आ रहा था। वो हर रोज़ समय पर काॅलेज पहुॅच जाती और सारा दिन काॅलेज में रुकती। उसकी नज़रें हर दिन अपने भाई को तलाश करती मगर अंत में उन ऑखों में मायूसी के साथ साथ ऑसू भर आते और फिर वो दुखी भाव से घर लौट जाती। कालेज के बाॅकी स्टूडेंट्स नार्मल ही थे। उस घटना के बाद किसी ने कभी कोई टीका टिप्पणी न की थी।
कुछ देर ऐसे ही सोचो में गुम वह बेड पर पड़ी रही उसके बाद वो उठी और बाथरूम की तरफ बढ़ गई। बाथरूम में फ्रेश होने के बाद वो वापस कमरे में आई और काॅलेज के यूनीफार्म पहन कर तथा कंधे पर एक मध्यम साइज़ का बैग लेकर वो कमरे से बाहर की तरफ बढ़ी ही थी कि उसका मोबाइल बज उठा। उसने बैग के ऊपरी हिस्से की चैन खोला और अपना मोबाइल निकाल कर स्क्रीन पर नज़र आ रहे "माॅम" नाम को देखा तो उसने काल रिसीव कर मोबाइल कानों से लगा लिया।
"............।" उधर से प्रतिमा ने कुछ कहा।
"क्याऽऽऽ????" नीलम के हाॅथ से मोबाइल छूटते छूटते बचा था। उसके हलक से जैसे चीख सी निकल गई थी, बोली___"ये ये आप क्या कह रही हैं माॅम? डैड को सीबीआई वाले ले गए? मगर क्यों??? आख़िर ऐसा क्या किया है डैड ने?"
"............।" उधर से प्रतिमा ने फिर कुछ कहा।
"ओह अब क्या होगा माॅम?" प्रतिमा की बात सुनने के बाद नीलम ने संजीदगी से कहा___"क्या रितू दीदी ने कुछ नहीं किया? वो भी तो एक पुलिस ऑफिसर हैं?"
"..............।" उधर से प्रतिमा ने कुछ देर तक कुछ बात की।
"क्याऽऽ???" नीलम बुरी तरह उछल पड़ी____"ये आप क्या कह रही हैं? दीदी भला ऐसा कैसे कर सकती हैं माॅम? नहीं नहीं, आपको और डैड को ज़रूर कोई ग़लतफहमी हुई है। रितू दीदी ये सब कर ही नहीं सकती हैं। आप तो जानती हैं कि दीदी ने कभी उसकी तरफ देखना तक पसंद नहीं किया था। फिर भला आज वो कैसे उसका साथ देने लगीं? ये तो इम्पाॅसिबल है माॅम।"
"...........।" उधर से प्रतिमा ने फिर कुछ कहा।
"मैं इस बारे में दीदी से बात करूॅगी माॅम।" नीलम ने गंभीरता से कहा___"उनसे पूछूॅगी कि आख़िर वो ये सब क्यों कर रही हैं?"
"............।" उधर से प्रतिमा ने झट से कुछ कहा।
"क्यों नहीं पूॅछ सकती माॅम?" नीलम ने ज़रा चौंकते हुए कहा___"आख़िर पता तो चलना ही चाहिए कि उनके मन में क्या है अपने पैरेंट्स के प्रति? इस लिए मैं उनसे फोन लगा कर ज़रूर इस बारे में बात करूॅगी।"
"..........।" उधर से प्रतिभा ने फिर कुछ कहा।
"मैं भी आ रही हूॅ माॅम।" नीलम ने कहा___"ऐसे समय में में मुझे अपने माॅ डैड के पास ही रहना है। दूसरी बात मैं देखना चाहती हूॅ कि रितू दीदी ये सब कैसे करती हैं अपने ही माॅ बाप और भाई के खिलाफ़?"
"...............।" उधर से प्रतिमा ने कुछ कहा।
"ओके माॅम।" नीलम ने कहा और काल कट कर दिया।
इस वक्त उसके दिलो दिमाग़ में एकाएक ही तूफान सा चालू हो गया था। मन में तरह तरह के सवाल उभरने लगे थे। जिनका जवाब फिलहाल उसके पास न था किन्तु जानना आवश्यक था उसके लिए। दरवाजे की तरफ न जाकर वह वापस पलट कर बेड पर बैठ गई और गहन सोच में डूब गई।
"डैड को सीबीआई वाले अपने साथ ले गए।" नीलम मन ही मन सोच रही थी___"वजह ये कि उनके शहर वाले मकान से भारी मात्रा में चरस अफीम व ड्रग्स जैसी गैर कानूनी चीज़ें सीबीआई वालो को बरामद हुई। सवाल ये उठता है कि क्या सच में डैड इस तरह का कोई ग़ैर कानूनी धंधा करते हैं? वहीं दूसरी तरफ रितू दीदी आज कल अपने ही पैरेंट्स के खिलाफ़ जाकर राज का साथ दे रही हैं। भला ये असंभव काम संभव कैसे हो सकता है? आख़िर ऐसा क्या हुआ है कि दीदी माॅम डैड के सबसे बड़े दुश्मन का साथ देने लगी हैं? माॅम ने बताया कि राज गाॅव आया था, इसका मतलब इसी लिए वो काॅलेज नहीं आ रहा था। मगर वो गाॅव गया किस लिए था? और गाॅव में ऐसा क्या हुआ है कि दीदी अपने उस चचेरे भाई का साथ देने लगीं जिसे वो कभी देखना भी पसंद नहीं करती थीं?"
नीलम के ज़हन में हज़ारों तरह के सवाल इधर उधर घूमने लगे थे मगर नीलम को ये सब बातें हजम नहीं हो रही थी। सोचते सोचते सहसा नीलम के दिमाग़ की बत्ती जली। उसके मन में विचार आया कि वो खुद भी तो कभी राज को अपना भाई नहीं समझती थी जबकि आज हालात ये हैं कि वो अपने उसी भाई से मिल कर अपने उन गुनाहों की उससे माफ़ी माॅगना चाहती है। कहीं न कहीं उसका अपने इस भाई के प्रति हृदय परिवर्तन हुआ था तभी तो उसके दिल में ऐसे भावनात्मक भाव आए थे। दूसरी तरफ रितू दीदी भी राज का साथ दे रही हैं। इसका मतलब कुछ तो ऐसा हुआ है जिसके चलते दीदी का भी राज के प्रति हृदय परिवर्तन हुआ है और वो आज उसका साथ भी दे रही हैं। इतना ही नहीं अपने ही पैरेंट्स के खिलाफ़ राज के साथ लड़ाई लड़ रही हैं।
नीलम को अपना ये विचार जॅचा। उसको एहसास हुआ कि कुछ तो ऐसी बात हुई जिसका उसे इस वक्त कोई पता नहीं है। ये सब सोचने के बाद उसने मोबाइल पर रितू दीदी का नंबर ढूॅढ़ा और काल लगा कर मोबाइल कान से लगा लिया। काल जाने की रिंग बजती सुनाई दी उसे। कुछ ही देर में उधर से रितू ने काल रिसीव किया।
"............।" उधर से रितू ने कुछ कहा।
"मैं तो बिलकुल ठीक हूॅ दीदी।" नीलम ने कहा___"आप बताइये आप कैसी हैं?"
"...........।" उधर से रितू ने फिर कुछ कहा।
"हाॅ दीदी काॅलेज अच्छा चल रहा है और साथ में पढ़ाई भी अच्छी चल रही है।" नीलम ने कहने के साथ ही पहलू बदला___"दीदी, अभी अभी माॅम का फोन आया था मेरे पास। उन्होंने कुछ ऐसा बताया जिसे सुन कर मेरे होश ही उड़ गए हैं। वो कह रही थी कि डैड को सीबीआई वाले ग़ैर कानूनी सामान के चलते अपने साथ ले गए हैं। ये भी कि आप विराज का साथ दे रही हैं। ये सब क्या चक्कर है दीदी? प्लीज़ बताइये न कि ऐसा क्या हो गया है कि आप अपने ही पैरेंट्स के खिलाफ़ हैं? माॅम कह रही थी कि आपने उनका काल भी रिसीव नहीं किया। वो आपको भी डैड के बारे में सूचित करना चाहती थी।"
".............।" उधर से रितू ने काफी देर तक कुछ कहा।
"बातों को गोल गोल मत घुमाइये दीदी।" नीलम ने बुरा सा मुह बनाया____"साफ साफ बताइये न कि आख़िर क्या बात हो गई है जिसकी वजह से आप माॅम डैड के खिलाफ़ हो कर उस विराज का साद दे रही हैं?"
"...........।" उधर से रितू ने फिर कुछ कहा।
"इसका मतलब आप खुद मुझे कुछ भी बताना नहीं चाहती हैं।" नीलम ने कहा___"और ये कह रही हैं कि सच्चाई का पता मैं खुद लगाऊॅ। ठीक है दीदी, मैं आ रही हूॅ। क्या आपसे मिल भी नहीं सकती मैं?"
"............।" उधर से रितू ने कुछ कहा।
"ठीक है दीदी।" नीलम ने कहा___"लेकिन मैं इतना ज़रूर जानती हूॅ कि बात भले ही चाहे जो कुछ भी हुई हो मगर ऐसा नहीं होना चाहिए कि बच्चे अपने माॅ बाप से इस तरह खिलाफ़ हो जाएॅ।"
इतना कहने के बाद नीलम ने काल कट कर दिया और फिर दुखी भाव से बेड पर कुछ देर बैठी जाने क्या सोचती रही। उसके बाद जैसे उसने कोई फैसला किया और फिर उठ कर काॅलेज की यूनिफार्म को उतारने लगी। कुछ ही देर में उसने दूसरे कपड़े पहन लिए और फिर कमरे से बाहर निकल गई।
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इधर विराज एण्ड पार्टी की ट्रेन अपने निर्धारित समय से कुछ ही समय की देरी से आख़िर मुम्बई पहुॅच ही गई थी। सब लोग ट्रेन से बाहर आए और फिर प्लेटफार्म से बाहर की तरफ निकल गए। विराज ने मुम्बई पहुॅचने से पहले ही जगदीश ओबराय को फोन कर दिया था। इस लिए जैसे ही ये लोग स्टेशन से बाहर आए वैसे ही जगदीश ओबराय बाहर मिल गया। उसके साथ एक कार और थी। सब लोग कार मे बैठ कर घर के लिए निकल गए।
रास्ते में जगदीश अंकल ने मुझे बताया कि उन्होंने माॅ से बात कर ली है। पहले तो माॅ मेरी वापसी की बात सुन कर नाराज़ हुईं। मगर जगदीश अंकल ने उन्हें सारी बात तरीके से बताई और ये यकीन दिलाया कि मुझे कुछ नहीं होगा तब जाकर वो राज़ी हुई थी। लेकिन उन्होंने ये भी कहा कि वो एक बार मुझे देखना चाहती हैं। अतः अब मैं इन लोगों के साथ ही घर तक जा रहा था। वरना मेरा प्लान ये था कि मैं यहाॅ से वापस उसी ट्रेन से लौट जाता।
मुम्बई से वापसी के लिए इसी ट्रेन को लगभग कुछ घण्टे बाद जाना था इस लिए मैं बड़े आराम से गर जाकर माॅ से मिल सकता था। ख़ैर, कुछ ही समय बाद हम सब घर पहुॅच गए। घर पर सब एक दूसरे से मिले। करुणा चाची जब माॅ से मिली तो बहुत रो रही थी और बार बार माॅ से माफ़ियाॅ माॅग रही थी। माॅ ने उन्हें अपने सीने से लगा लिया था। करुणा चाची को वो हमेशा अपनी छोटी बहन की तरह मानती थी और प्यार करती थी। आशा दीदी और उनकी माॅ से भी मेल मिलाप हुआ। मिलने मिलाने में ही काफी समय ब्यतीत हो गया था।
मैं अपने कमरे में जाकर फ्रेश हो गया था। आदित्य भी फ्रेश हो गया था। उसे मेरे साथ ही वापस गाॅव जाना था। निधी भी सबसे मिली। करुणा चाची ने उसे ढेर सारा प्यार व स्नेह दिया था। दिव्या और शगुन को माॅ ने अपने सीने से ही छुपकाया हुआ था। अभय चाचा खुश थे कि उनके बीवी बच्चे सही सलामत यहाॅ आ गए थे। अब उन्हें उनके लिए कोई फिक्र नहीं थी। शायद यही वजह थी कि वो खुद भी मेरे साथ चलने की बात करने लगे थे। उनका कहना था कि वो खुद भी इस जंग में हिस्सा लेंगे और अपने बड़े भाई से इस सबका बदला लेंगे। मगर मैने और जगदीश अंकल ने उन्हें समझा बुझा कर मना कर दिया था।
मैने एक बात महसूस की थी कि निधी का बिहैवियर मेरे प्रति कुछ अलग ही था। इसके पहले वह हमेशा मेरे पषास में ही रहने की कोशिश करती थी जबकि अब वो मुझसे दूर दूर ही रह रही थी। यहाॅ तक कि मेरी तरफ देख भी नहीं थी वो। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि वो ऐसा क्यों कर रही थी। मैने एक दो बार खुद उससे बात करने की कोशिश की मगर वो किसी न किसी बहाने से मेरे पास से चली ही जाती थी। मुझे उसके इस रूखे ब्यवहार से तक़लीफ़ भी हो रही थी। वो मेरी जान थी, मैं उसकी बेरुखी पल भर के लिए भी सह नहीं सकता था मगर सबके सामने भला मैं उससे इस बारे कैसे बात कर सकता था? मेरे पास वक्त नहीं था, इस लिए मैने मन में सोच लिया था कि सब कुछ ठीक करने के बाद मैं उससे बात करूॅगा और उसकी किसी भी प्रकार की नाराज़गी को दूर करूॅगा।
मैं माॅ से मिला तो माॅ मेरी वापसी की बात से भावुक हो गईं। उन्हें पता था कि मैं वापस किस लिए जा रहा हूॅ इस लिए वो मुझे बार बार अपना ख़याल रखने के लिए कह रही थी। ख़ैर मैने उन्हें आश्वस्त कराया कि मैं खुद का ख़याल करूॅगा और मुझे कुछ नहीं होगा।
चलने से पहले मैने सबसे आशीर्वाद लिया और फिर आदित्य के साथ वापसी के लिए चल दिया। मेरे साथ जगदीश अंकल भी थे। पवन और आशा दीदी मुझे अपना ख़याल रखने का कहा और खुशी खुशी मुझे विदा किया। हलाॅकि मैं जानता था कि वो अंदर से मेरे जाने से दुखी हैं। उन्हें मेरी फिक्र थी। अभय चाचा ने मुझे सम्हल कर रहने को कहा। करुणा चाची ने मुझे प्यार दिया और विजयी होने का आशीर्वाद दिया। मैं दिव्या और शगुन को प्यार व स्नेह देकर निधी की तरफ देखा तो वो कहीं नज़र न आई। मैं समझ गया कि वो मुझसे मिलना नहीं चाहती है। इस बात से मुझे तक़लीफ़ तो हुई किन्तु फिर मैंने उस तक़लीफ़ को जज़्ब किया और जगदीश अंकल के साथ कार में बैठ कर वापस रेलवे स्टेशन की तरफ चल दिया।
रेलवे स्टेशन पहुॅच कर मैं और आदित्य कार से उतरे। जगदीश अंकल ने मुझे एक पैकिट दिया और कहा कि मैं उसे अपने बैग में चुपचाप डाल लूॅ। मैने ऐसा ही किया। उसके बाद जगदीश अंकल से मेरी कुछ ज़रूरी बातें हुईं और फिर मैं और आदित्य प्लेटफार्म की तरफ बढ़ गए। ट्रेन वापसी के लिए बस चलने ही वाली थी। हम दोनो ट्रेन में अपनी अपनी शीट पर बैठ गए। मैने मोबाइल से रितू दीदी को फोन किया और उन्हें बताया कि सब लोगों को मैने सुरक्षित पहुॅचा दिया है और अब मैं वापस आ रहा हूॅ। रितू दीदी इस बात से खुश हो गईं। फिर उन्होंने मुझे अख़बार में छपी ख़बर के बारे में बताया और पूॅछा कि ये सब क्या है तो मैने कहा कि मिल कर बताऊॅगा।
रितू दीदी से बात करने के बाद मैं आदित्य से बातें करने लगा। तभी मेरी नज़र एक ऐसे चेहरे पर पड़ी जिसे देख कर मैं चौंक पड़ा और हैरान भी हुआ। मेरे मन में सवाल उठा कि क्या उसने मुझे देख लिया होगा????? मैने अपनी पैंट की जेब से रुमाल निकाल कर अपने मुख पर बाॅध लिया और फिर आराम से आदित्य से बातें करने लगा। किन्तु मेरी नज़र बार बार उस चेहरे पर चली ही जाती थी। जिस चेहरे पर मैं एक अजीब सी उदासी देख रहा था।
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अपडेट हाज़िर है दोस्तो,,,,,,
देरी के लिए मैं तहे दिल से माफ़ी चाहता हूॅ दोस्तो। बीच में मैं काम की वजह से बहुत ज्यादा ब्यस्त हो गया था। अपडेट कल ही तैयार हो गया था और मैं अपडेट को आप सबके सामने हाज़िर भी करना चाहता था, मगर इस फोरम की साइट मेरे मोबाइल पर खुल ही नहीं रही थी। अभी सुबह मैने फिर से ओपेन किया तो खुल गई, तो मैने आपके सामने अपडेट हाज़िर कर दिया।
आप सबकी खूबसूरत प्रतिक्रिया और शानदार रिव्यू का इन्तज़ार रहेगा,,,,,,,,