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Maybe next yearShubham bhai iska new part kab de rhe ho aap
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Shukriya bhai is khubsurat pratikriya ke liyeTBB मित्र - अत्यंत रोमांचकारी, सभी रसों से परिपूर्ण, इतना शानदार की अश्रु धारा तक बह जाय, दिल को छू लेने वाले प्रकरण, रहस्य, एक्शन, थ्रिलर, रोमांस,......से परिपूर्ण
जितना लिखू परंतु शब्द क्रम पढ़ रहे हैं सच में लगा कि पाठक जी, वेद जी, की रचना पढ़ रहा हूँ, मन प्रफुल्लित हो गया
Good"तो क्या हम हर चीज़ के लिए ईश्वर का इन्तज़ार करते बैठे रहें ?" मैने कहा "ईश्वर ये नहीं कहता कि तुम कोई कर्म ही न करो। अपने हक़ के लिए लड़ना कोई गुनाह नहीं है।"
"भइया कल बड़े पापा ने।" निधि ने अभी अपनी बात भी पूरी न की थी कि माॅ ने उसे चुप करा दिया "तू चुप कर, तुझे बीच में बोलने को किसने कहा था?"
"उसे बोलने दीजिए माॅ।" मैंने कहा मुझे लगा निधि कुछ खास बात कहना चाहती है। "तू बता गुड़िया क्या किया बड़े पापा ने कल ?"
"कुछ नहीं बेटा ये बेकार ही जाने क्या क्या अनाप सनाप बकती रहती है।" माॅ ने जल्दी से खुद ही ये कहा।
"मैं अनाप सनाप नहीं बक रही हूॅ माॅ।" इस बार निधि की आखों में आॅसू और लहजे में आवेश था बोली "कब तक हर बात को सहते रहेंगे हम? कब तक हर बात भइया से छिपाएंगी आप? इस तरह कायर बन कर जीना कहाॅ की समझदारी है?"
"तो तू क्या चाहती है?" माॅ ने गुस्से से कहा "ये कि ऐसी हर बातें तेरे भाई को बताऊं जिससे ये जा कर उनसे लड़ाई झगड़ा करे? बेटा उन लोगों से लड़ने का कोई फायदा नहीं है। उनके पास ताकत है पैसा है हम अकेले कुछ नहीं कर सकते। लड़ाई झगड़े में कभी किसी का भला नहीं हुआ मेरे बच्चों। मैं नहीं चाहती कि किसी वजह से मैं तुम लोगों को खो दूॅ।"
कहने के साथ ही माॅ रोने लगी। मेरा कलेजा हाहाकार कर उठा। माॅ को यूं बेबसी में रोते देख मुझे ऐसा लग रहा था कि सारी दुनिया को आग लगा दूॅ। मेरे माता पिता जैसा दूसरा कोई नहीं था। वो हमेशा दूसरों की खुशी के लिए जीते थे। कभी किसी की तरफ आॅख उठा कर नहीं देखा। कभी किसी को बुरा भला नहीं कहा।
"हम कल ही यहाॅ से कहीं दूर चले जाएंगे बेटा।" माॅ ने अपने आंसू पोंछते हुए कहा "मुझे किसी से कुछ नहीं चाहिए, दो वक़्त की रोटी कहीं भी रह कर कमा खा लेंगे।"
"ठीक है माॅ।" मैं भला कैसे इंकार करता। "जैसा आप कहेंगी वैसा ही होगा। यहाॅ जो भी आपका और गुड़िया का ज़रूरी सामान हो वो ले लीजिए। हम कल सुबह ही निकलेंगे।"
"वैसे तो कोई ज़रूरी सामान यहाॅ नहीं है बेटा।" माॅ ने कहा "बस पहनने वाले हमारे कपड़े ही हैं।"
"और आपके गहने जेवर वगैरा ?" मैंने पूॅछा।
"गहने जेवर मुझ विधवा औरत के किस काम के बेटा?" माॅ ने कहा।
"भइया कल बड़े पापा और बड़ी मां यहां आईं थी।" निधि ने कहा "वो माॅ के सब जेवर उठा ले गईं और बहुत ही बुरा सुलूक किया हमारे साथ। और पता है भइया वो शिवा मुझे गंदे तरीके से छू रहा था। बड़े पापा भी माॅ को बहुत गंदा बोल रहे थे।"
"क् क्या ?????" मेरा पारा एक पल में चढ़ गया। "उन लोगों की ये ज़ुर्रत कि वो मेरी माॅ और बहन के साथ इस नीचता के साथ पेश आएं? छोड़ूॅगा नहीं उन हरामज़ादों को मैं।"
"न नहीं बेटा नहीं।" माॅ ने मुझे सख़्ती से पकड़ कर कहा "उनसे उलझने की कोई ज़रूरत नहीं है। वो बहुत ख़राब लोग हैं, हम कल यहाॅ से चले जाएंगे बेटा बहुत दूर।"
माॅ ने मुझे सख़्ती से पकड़ा हुआ था, जबकि मेरी रॅगों में दौड़ता हुआ लहू उबाल मार रहा था। मुझे लग रहा था कि अभी जाऊं और सबको भूॅन कर रख दूॅ।
"मुझे छोंड़ दीजिए माॅ।" मैंने खुद को छुड़ाने की कोशिश करते हुए कहा "मैं इन कमीनों को दिखाना चाहता हूं कि मेरी माॅ और बहन पर गंदी हरकत करने का अंजाम क्या होता है?"
"न नहीं बेटा तू कहीं नहीं जाएगा।" माॅ ने कहने के साथ ही मेरा दाहिना हाॅथ पकड़ कर अपने सिर पर रखा और कहा "तुझे मेरी क़सम है बेटा। तू उन लोगों से लड़ने झगड़ने का सोचेगा भी नहीं।"
"मुझे अपनी कसम दे कर कायर और बुज़दिल न बनाइए माॅ।" मैंने झुंझला कर कहा "मेरा ज़मीर मेरी आत्मा मर जाएगी ऐसे में।"
"सब कुछ भूल जा मेरे लाल।" माॅ ने रोते हुए कहा "एक तू ही तो है हम दोनों का सहारा। तुझे कुछ हो गया तो क्या होगा हमारा?"
माॅ ने मुझे समझा बुझा कर शान्त कर दिया। मैं वहीं चारपाई पर आॅखें बंद करके लेट गया। जबकि माॅ वहीं एक तरफ खाना बनाने की तैयारी करने लगी और मेरी बहन निधि मेरे ही पास चारपाई में आ कर बैठ गई।
इस वक़्त जहाॅ हम थे वो खेत वाला घर था। घर तो काफी बड़ा था किन्तु यहाॅ रहने के लिए भी सिर्फ एक कमरा दिया गया था। बांकी हर जगह ताला लगा हुआ था। खेतों में काम करने वाले मजदूर इस वक़्त नहीं थे और अगर होंगे भी तो कहीं नज़र नहीं आए। पता नहीं उन लोगों के साथ भी जाने कैसा वर्ताव करते होंगे ये लोग?
ख़ैर जो रूखा सूखा माॅ ने बनाया था उसी को हम सबने खाया और वहीं सोने के लिए लेट गए। चारपाई एक ही थी इस लिए उसमें एक ही ब्यक्ति लेट सकता था। मैंने चारपाई पर माॅ को लिटा दिया हलाॅकि माॅ नीचे ही ज़मीन पर सोने के लिए ज़ोर दे रही थी पर मैं नहीं माना और मजबूरन माॅ को ही चारपाई पर लेटना पड़ा। नीचे ज़मीन पर मैं और निधि एक चादर बिछा कर लेट गए।
कहानी जारी रहेगी,,,,,,,
Agree bro, actually train chhuti ja rahi thiYou're good. But in the end it felt like you were in a hurry.