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Thriller ♡ बेरहम इश्क़ ♡

park

Well-Known Member
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भाग- ०२
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प्रिया ने टैक्सी वाले को रुकने को कहा तो ड्राइवर ने उसकी बताई हुई जगह पर टैक्सी रोक दी।
दोपहर के ढाई बज रहे थे।
कुछ देर पहले धूप खिली हुई थी लेकिन अब आसमान में हल्के काले बादल छा गए थे।
ठंडी ठंडी हवा चल रही थी जिसके चलते उसके रेशमी बाल बार बार उसके चहरे को ढंक दे रहे थे।

टैक्सी ड्राइवर को उसने किराया दिया और पलट कर एक तरफ को चल दी।
चलते हुए वो इधर उधर देखती भी जा रही थी।
हर तरफ उसे बदला बदला सा नज़र आ रहा था।
एक वक्त था जब इस जगह की हर चीज़ उसके ज़हन में छपी हुई थी लेकिन अब हर जगह बदलाव नज़र आ रहा था।

"मैं क्यों खुद को रोक नहीं पा रही?" उसने जैसे खुद से ही कहा──"क्यों मेरे मन में बार बार उसके पास जाने के ख़याल उभर रहे हैं? नहीं नहीं, ये ग़लत है। मुझे ऐसा नहीं करना चाहिए। मैं एक शादी शुदा हूं और एक इज्ज़तदार घर की बहू भी हूं। मुझे अपने अतीत के बारे में सोचना भी नहीं चाहिए।"

मन में उभरते इन ख़यालों ने सहसा उसके क़दम रोक दिए।
उसने गर्दन घुमा कर इधर उधर देखा।
उसे एकदम से ऐसा लगा जैसे आस पास की हर चीज़ उसे अजीब तरह से घूरने लगी है।
इस एहसास ने एकदम से उसकी धड़कनें तेज़ कर दी।
वो खुद को अपराधी सा महसूस करने लगी।

"ये...ये कैसा महसूस हो रहा है मुझे?" उसने अपनी बढ़ चली सांसों को काबू करने के लिए अपने सीने पर एक हाथ रख कर सोचा──"आज से पहले तो ऐसा कभी महसूस नहीं हुआ मुझे?"

प्रिया ने आंखें बंद कर के गहरी गहरी सांसें ली।
किसी तरह अपनी हालत को दुरुस्त किया।
उसे थोड़ी हैरानी हो रही थी कि ये कैसा महसूस हो रहा है उसे?

"वापस लौट जा प्रिया।" अचानक उसके अंदर से आवाज़ आई──"अपने गुज़रे हुए समय की तरफ देखना ठीक नहीं है।"

"हां, पर मेरे गुज़रे हुए कल का एक किरदार मेरे सामने भी तो आ गया था उस दिन, फिर उसका क्या?" प्रिया ने मन ही मन अपने अंदर की उस प्रिया से कहा जिसने उसे आवाज़ दी थी──"तुमने भी तो सुना ही होगा कि उस दिन मैंने किस लहजे में उससे बातें की थी? यकीनन मेरी उन बातों ने बहुत ज़्यादा उसका दिल दुखाया होगा। उसके चेहरे पर उभरी पीड़ा इस बात का सबूत भी दे रही थी मगर उस वक्त मुझे उसकी पीड़ा का तनिक भी आभास नहीं हुआ था। उस वक्त मैं गुरूर में अंधी जो थी। भला क्या ज़रूरत थी मुझे उसको वो सब बोलने की? बोलना तो उसे चाहिए था क्योंकि छोड़ा तो मैंने ही था उसे, मगर उसने शिकायत में एक लफ्ज़ भी नहीं कहा था मुझसे?"

"हां तो क्या हुआ?" उसके अंदर की प्रिया ने उससे कहा──"उसे छोड़ कर कौन सा ग़लत काम किया था तुमने? अपने हित और अपने सुख के बारे में तो हर कोई सोचता है। तुमने अपनी खुशियों के बारे में सोच कर जो किया वो बिल्कुल भी ग़लत नहीं था। बल्कि ग़लत तो तुम अब करने जा रही हो। वापस लौट जाओ प्रिया, ये मत भूलो कि अब तुम शादी शुदा हो और किसी के घर की अमानत के साथ साथ आबरू भी हो। अगर तुम्हारे पति को पता चल गया कि तुम अपने अतीत की तरफ पलट गई हो तो यकीन मानो अच्छा नहीं होगा।"

प्रिया अपने अंदर की इस आवाज़ को सुन कर बुरी तरह कांप गई।
पलक झपकते ही उसकी आंखों के सामने उसके पति अशोक और उसके परिवार वालों के चेहरे उजागर होते चले गए।

ठंडी ठंडी हवा चलने के बाद भी उसका चेहरा पसीने से भर गया।
उसने हड़बड़ा कर दुपट्टे से चेहरे का पसीना पोंछा और पुनः इधर उधर देखने लगी।

वो सड़क के किनारे खड़ी थी।
सड़क के दोनों तरफ तरह तरह की दुकानें थी।
सड़क पर वाहनों का आना जाना लगा हुआ था।
कई तरह के लोग आते जाते नज़र आ रहे थे उसे।
कुछ जो उसके पास से गुज़र रहे थे जो उसे अजीब तरह से देखते और आगे बढ़ जाते।

प्रिया ये सब देख बुरी तरह हड़बड़ा गई।
थोड़ा घबरा भी गई।
सहसा उसे एहसास हुआ कि सड़क के किनारे उसका यूं खड़े रहना उचित नहीं है।
अगले ही पल वो फ़ौरन ही खुद को सम्हालते हुए एक तरफ को बढ़ चली।

"क्या कर रही है प्रिया?" अंदर वाली प्रिया ने फिर से उसे पुकारा──"तू अभी भी आगे बढ़ी जा रही है? क्या पूरी तरह बेवकूफ ही है तू?"

"चुप रहो तुम।" प्रिया ने मन ही मन अपने अंदर की प्रिया को गुस्से से डांटा──"मैं जानती हूं कि ये ठीक नहीं है लेकिन एक बार, बस एक बार उससे मिलना चाहती हूं। उससे अपने उस दिन के बिहैवियर के लिए माफ़ी मांगना चाहती हूं। उसके बाद, मेरा यकीन करो...उसके बाद मैं दुबारा कभी उससे मिलने का सोचूंगी भी नहीं।"

"अच्छा? क्या सच में?" अंदर की प्रिया ने जैसे तंज़ किया।

"हां सच में।" प्रिया ने मन ही मन ये जवाब देते हुए ऐसा महसूस किया जैसे अपनी ये बात उसे खुद ही झूठी लग रही हो, बोली──"माफ़ी मांगने के बाद कभी नहीं मिलूंगी उससे।"

उसके ऐसा कहने पर इस बार उसे अपने अंदर से कोई आवाज़ सुनाई नहीं दी।
उसे थोड़ी हैरानी हुई।
उसने ध्यान से अपने अंदर की आवाज़ सुनने की कोशिश की।
मगर कुछ भी महसूस नहीं हुआ उसे।

सड़क पर वाहनों का शोर हो रहा था।
प्रिया ने खुद को सम्हाला और नज़र उठा कर बाएं तरफ जाने वाले रास्ते की तरफ देखा।

"मैडम किधर जाना है आपको?" एक ऑटो वाले ने उसके क़रीब अपने ऑटो को धीमा करते हुए आवाज़ दी।

प्रिया ने उसकी तरफ देखा और फिर ना में सिर हिला कर आगे बढ़ चली।
ऑटो वाले ने अपना ऑटो आगे बढ़ा दिया।

प्रिया बाएं तरफ जाने वाले रास्ते में मुड़ गई।
उसके मन में काफी उथल पुथल चल रही थी लेकिन जैसे उसने अब पूरा मन बना लिया था कि वो वहां जा कर ही रहेगी।

सहसा वो रुक गई।
उसने एक बार पुनः इधर उधर देखा।
सब कुछ बदला बदला सा दिख रहा था उसे।

"दुनिया कितना जल्दी बदल जाती है।" उसने मन ही मन कहा किंतु अगले ही पल उसे खुद का ख़याल आ गया──"मैं भी तो बदल गई थी।"

इस ख़याल ने उसके अंदर एक टीस सी पैदा कर दी।
उसे थोड़ी तकलीफ़ हुई।
बुरा भी महसूस हुआ।
आंखें बंद कर के उसने एक गहरी सांस ली।

"यहीं से तो एक पतला रास्ता जाता था उसके घर की तरफ।" प्रिया ने एक तरफ देखते हुए सोचा──"लेकिन अब तो यहां वो रास्ता ही नहीं है। हे भगवान! अब क्या करूं?"

प्रिया एकाएक ही परेशान सी नज़र आने लगी।
उसे समझ न आया कि सवा सात सालों में कोई रास्ता कैसे ग़ायब हो सकता है?

तभी सहसा उसके मन में ख़याल उभरा कि उसे किसी से उसके घर की तरफ जाने वाले रास्ते के बारे में पूछना चाहिए।

अभी वो पलटी ही थी कि तभी एक और ऑटो वाला उसके क़रीब अपना ऑटो ले कर आ गया।
प्रिया के मन में बिजली की तरह ये विचार कौंधा कि ऑटो वालों को हर जगह की जानकारी होती है।
यानि अगर वो ऑटो वाले को पता बताए तो वो उसे उसके घर तक ज़रूर पहुंचा सकता है।

इस विचार के साथ ही उसके चेहरे पर एक चमक उभर आई।
उसने फौरन ही ऑटो वाले को पता बताया तो ऑटो वाला उसके बताए हुए पते पर चलने को तैयार हो गया।

प्रिया झट से ऑटो में बैठ गई।
ऑटो जब चल पड़ा तो उसने इत्मीनान की सांस ली।
मन में ये सोच कर खुशी हुई कि आख़िर अब वो उसके घर पहुंच ही जाएगी और उससे मिलेगी भी।

सहसा उसे याद आया कि कैसे उस दिन उसने उस फाइव स्टार होटल के सामने उसको उल्टा सीधा बोला था।
प्रिया को बहुत बुरा महसूस होने लगा।
अपनी आंखें बंद कर के उसने मन ही मन उससे माफ़ी मांगी।

[][][][][]

"ये लीजिए मैडम, आपने जो पता बताया था वहां पहुंच गए हम।" ऑटो वाले की इस बात से प्रिया ने एकदम से चौंक कर अपनी आंखें खोल दी।

उसे ये सोच कर हैरानी हुई कि इतनी देर से वो आंखें बंद किए जाने किन ख़यालों में गुम थी जिसके चलते उसे समय के गुज़र जाने का आभास तक नहीं हुआ।

बहरहाल, वो ऑटो से नीचे उतरी।
अपने पर्स से निकाल कर उसने ऑटो वाले को पैसे दिए।
ऑटो वाला जब चला गया तो उसने पलट कर उस जगह को देखा जहां के लिए वो आई थी।

शहर की आबादी से बस थोड़ा ही पीछे वो बस्ती थी जो उसे जानी पहचानी लग रही थी।
बस्ती के बाकी घर तो अपना रूप बदल चुके थे लेकिन उनके किनारे पर एक घर ऐसा था जो आज भी अपने पुराने रूप में ही अपना वजूद क़ायम किए हुए था।

उस घर को देख प्रिया की धड़कनें अनायास ही तेज़ हो गईं।
उसने उस घर की तरफ बढ़ने के लिए अपने क़दम बढ़ाने चाहे मगर उसे अपने क़दम एकदम से भारी भारी से महसूस होने लगे।

मन में तरह तरह के ख़यालों का बवंडर सा चल पड़ा।
उसने किसी तरह खुद को सम्हाला और फिर खुद को मजबूत करते हुए आगे बढ़ चली।
थोड़ी ही देर में वो उस घर के सामने पहुंच गई।

एक माले का घर था वो।
आज भी उसकी दीवारें नीले रंग को बचाए हुए थीं।
दीवारों को देख कर स्पष्ट प्रतीत होता था कि उनमें वर्षों से पेंट नहीं किया गया है।
कहीं कहीं पर तो दीवारों की छपाई भी उखड़ी हुई दिख रही थी।

मकान के बीचो बीच लकड़ी का एक दरवाज़ा था जो पुराना सा हो गया नज़र आ रहा था।
मकान के सामने पहले काफी जगह हुआ करती थी लेकिन अब वो जगह थोड़ी सी रह गई थी क्योंकि सामने से चौड़ी सड़क बन गई थी जोकि आरसीसी वाली थी।

प्रिया जाने कितनी ही देर तक उस दरवाज़े और मकान को देखती रही।
उसकी आंखों के सामने गुज़रे वक्त की कई सारी तस्वीरें चमकने लगीं थी।
ज़हन में कई सारी यादें उभरने लगीं थी।

तभी एक मोटर साइकिल सड़क पर हॉर्न बजाते हुए उसके पास से गुज़री जिसके चलते वो होश में आई।
उसने हड़बड़ा कर पहले इधर उधर देखा फिर वापस मकान के दरवाज़े को देखने लगी।
मकान के बाहर ही एक तरफ टैक्सी खड़ी थी।

उसने देखा, दरवाज़े पर कोई ताला नहीं लगा हुआ था और ना ही बाहर से कुंडी द्वारा बंद था। मतलब साफ था इस वक्त अंदर कोई तो था।
इस ख़याल ने प्रिया की धड़कनों को एक बार फिर से बढ़ा दिया।
फिर उसी धड़कते दिल के साथ वो दरवाज़े की तरफ बढ़ चली।

एक तरफ जहां उसकी धड़कनें बढ़ी हुईं थी वहीं दूसरी तरफ उसके अंदर तरह तरह के ख़याल उभर रहे थे।

दरवाज़े के क़रीब पहुंच कर उसने अपना एक हाथ आगे बढ़ाया।
वो ये देख कर थोड़ा चौंकी कि उसका हाथ कांप रहा है।

अगले ही पल उसने दरवाज़े पर दस्तक दी और किसी के द्वारा दरवाज़ा खोले जाने का इंतज़ार करने लगी।
उसकी धड़कनें पहले से कई गुना तेज़ हो गईं थीं।
घबराहट के चलते चेहरे पर पसीना उभर आया था।

जब आधा मिनट गुज़र जाने पर भी दरवाज़ा न खुला तो उसने कांपते हाथ से एक बार फिर दरवाज़े पर दस्तक दी।

"आ रहा हूं भाई?" अंदर से उसे एक चिर परिचित आवाज़ सुनाई दी जो दरवाज़े की तरफ ही आती महसूस हुई।

पहले से ही बढ़ी हुई धड़कनें अब धाड़ धाड़ कर के बजते हुए किसी हथौड़े की तरह उसके कानों में धमकने लगीं।
उसने बड़ी मुश्किल से खुद को सम्हाला और आने वाले वक्त के लिए खुद को तैयार करने की कोशिश में लग गई।

कुछ ही पलों में हल्की चरमराहट के साथ दरवाज़ा खुला।
खुले दरवाज़े के बीच उसे अरमान नज़र आया।
वही अरमान जिसे दो दिन पहले उसने फाइव स्टार होटल के बाहर उल्टा सीधा बोला था।
वही अरमान जो आज भी उसे दिलो जान से प्यार करता था।
चेहरे पर बढ़ी हुई दाढ़ी मूंछें और सिर पर बड़े बड़े किंतु थोड़ा उलझे हुए बाल।

उधर दरवाज़े के बाहर प्रिया को खड़ा देख अरमान के चेहरे पर आश्चर्य के भाव उभरे।
ना प्रिया को समझ आया कि क्या कहे और ना ही अरमान को।

"अ..अरे! प्रिया तुम? यहां?" फिर अरमान ने ही चौंकते हुए ख़ामोशी तोड़ी──"यकीन नहीं हो रहा कि मेरे ग़रीबखाने में तुम आई हो।"

"हां...वो...मैं।" प्रिया ने अटकते हुए कहा──"मैं दरअसल, आई मीन....।"

"अगर तुम्हारी शान में गुस्ताख़ी न हो।" अरमान ने दरवाज़े से एक तरफ हटते हुए कहा──"तो अंदर आ जाओ।"

अरमान की इस बात ने प्रिया के अंदर अजीब सी टीस पैदा की किंतु फिर वो खुद को सम्हालते हुए अंदर दाख़िल हो गई।

घर के अंदर आते ही प्रिया इधर उधर नज़र दौड़ाते हुए हर चीज़ को देखने लगी।
सब कुछ बड़ा ही अजीब सा दिख रहा था उसे।

मकान की जैसी हालत बाहर से थी वैसी ही हालत अंदर से भी थी।
सब कुछ अस्त व्यस्त।
कोई भी चीज़ अपनी जगह पर सही ढंग से मौजूद नहीं थी।

"माफ़ करना।" सहसा अरमान की आवाज़ ने उसे उसकी तरफ देखने पर मजबूर किया। उधर अरमान ने कहा──"मेरा ये ग़रीबखाना तुम्हारे बैठने के क़ाबिल तो नहीं है फिर भी अगर तुम ठीक समझो तो बैठ जाओ यहां। मैं तब तक तुम्हारे लिए कुछ चाय नाश्ते का प्रबंध करता हूं।"

"न...नहीं नहीं।" प्रिया ने हड़बड़ा कर जल्दी से कहा──"इसकी कोई ज़रूरत नहीं है और हां मुझे यहां बैठने में भी कोई प्रोब्लम नहीं होगी।"

अरमान ने फटे पुराने सोफे पर थोड़ा साफ सुथरा एक चद्दर डाल दिया जिस पर प्रिया बैठ गई।
उसे बड़ा अजीब सा लग रहा था।
कभी वो एक नज़र अरमान को देख लेती तो कभी इधर उधर देखने लगती।

"अंकल कहां हैं?" फिर उसने जैसे बात करने का सिलसिला शुरू करते हुए पूछा।

"वहां।" अरमान ने अपने हाथ की एक उंगली को छत की तरफ उठाते हुए कहा──"मुझे छोड़ कर जाने वालों में एक तुम ही हो जो वापस लौटी हो। पापा जब से गए तो अब तक वापस नहीं लौटे और ना ही इस जीवन में कभी लौटेंगे।"

"क...क्या मतलब?" प्रिया की धड़कनें विचित्र ख़यालों के उभर आने के चलते थम सी गईं।

"मतलब ये कि।" अरमान ने फीकी मुस्कान के साथ कहा──"जो लोग ईश्वर को प्यारे हो जाते हैं वो हमारे पास वापस लौट कर नहीं आते।"

"क...क्या???" प्रिया बुरी तरह उछल पड़ी──"तु...तुम्हारा मतलब है कि अंकल अब नहीं....?"

"हां।" अरमान ने कहा──"चार साल पहले ग़लती से एक ट्रक वाले ने उन्हें टक्कर मार दी थी। हॉस्पिटल पहुंचने से पहले ही उन्होंने दम तोड़ दिया था। मां तो पहले ही गुज़र गईं थी तुम्हें तो पता ही है। अपनों के नाम पर एक पापा ही थे लेकिन अब वो भी नहीं हैं। अब ये घर भी अकेला है और मैं भी।"

प्रिया उसकी बातें सुन कर कुछ बोल न सकी।
उसे यकीन नहीं हो रहा था कि अरमान के पिता अब इस दुनिया में नहीं हैं।
उसे अरमान के लिए बहुत ही बुरा फील होने लगा।

उसे पहली बार एहसास हुआ कि अरमान वास्तव में अंदर से कितना दुखी होगा।
सहसा उसे ये सोच कर अपने आप पर गुस्सा आया कि उसने ऐसे दुखी इंसान को उल्टा सीधा बोल कर और भी कितना दुखी किया था।

उसका जी चाहा कि ये ज़मीन फटे और वो उसमें अपना मुंह छुपा कर समा जाए।
पहली बार उसे अपनी करनी पर बेहद शर्म महसूस हुई।
पहली बार उसे महसूस हुआ कि ऐसे व्यक्ति को ठुकरा कर उसने उसके साथ कितना ग़लत किया था।

"अ....अरमान।" फिर वो भारी गले से बोली──"मुझे माफ़ कर दो प्लीज़। मैं तुम्हारी गुनहगार हूं। मैंने पहले भी तुम्हारा दिल दुखाया था और उस दिन भी अपने गुरूर में दिल दुखा दिया था। वास्तव में बहुत बुरी हूं मैं।"

कहते कहते प्रिया की आंखें छलक पड़ीं।
हालाकि उसने अपने जज़्बातों को काबू करने की बहुत कोशिश की थी लेकिन भावनाओं का ज्वार इतना प्रबल हो उठा था कि उसके सम्हाले न सम्हला था।

"तुम्हें मुझसे किसी बात के लिए माफ़ी मांगने की ज़रूरत नहीं है।" अरमान ने कहा──"सच तो ये है कि जो कुछ भी हुआ था या हुआ है वो सब मेरी किस्मत में ही लिखा था। ऊपर वाले ने मेरे नसीब में कभी कुछ अच्छा होना लिखा ही नहीं, तभी तो सब मुझे छोड़ कर चले गए।"

"ऐसा मत कहो।" प्रिया ने कहा──"और ये बताओ कि तुमने अपने साथ साथ इस घर की ये कैसी हालत बना रखी है?"

"बड़ी अजीब बात है।" अरमान ने हल्के से मुस्कुरा कर कहा──"तुम मुझसे मेरी और मेरे घर की हालत के बारे में पूछ रही हो? अभी दो दिन पहले तो तुम मुझे जाने क्या क्या बोल रही थी, फिर आज तुम्हारा लहजा इतना कैसे बदल गया? तुम इतनी नर्म कैसे हो ग‌ई?""

प्रिया को फ़ौरन कुछ कहने के लिए जवाब न सूझा।
कुछ पलों तक तो वो अरमान से निगाहें चुराए रखी किंतु फिर जैसे उसने साहस जुटाया।

"अ..अरमान।" फिर वो थोड़ा संजीदा हो कर बोली──"उस दिन के लिए मैं बहुत शर्मिंदा हूं। प्लीज़ मेरे उस बर्ताव के लिए मुझे माफ़ कर दो।"

"क्या मेरे माफ़ ना करने से तुम्हें कोई फ़र्क पड़ जाएगा?" अरमान ने अजीब भाव से उसे देखा──"वैसे मुझे तो ऐसा नहीं लगता। अगर फ़र्क पड़ना ही होता तो आज से सवा सात साल पहले तुमने मुझे ठुकरा नहीं दिया होता। तुम मेरी सच्ची मोहब्बत का मान रखती और जो मेरी हैसियत थी उसको कबूल कर हमेशा के लिए मेरी हो जाती। इसका तो यही मतलब हुआ प्रिया कि तुम्हें मुझसे कभी कोई प्रेम था ही नहीं बल्कि तुम्हारे दिल में सिर्फ इस बात की चाहत थी कि तुम्हारी शादी एक ऐसे व्यक्ति से हो जो तुम्हें दुनिया का हर सुख और ऐशो आराम दे सके। ख़ैर, बहुत बहुत मुबारक हो, तुमने जिन चीज़ों की ख़्वाहिश की थी वो तुम्हें मिल ग‌ईं।"

प्रिया को एक बार फिर से कोई जवाब न सूझा।
उसके दिलो दिमाग़ में जज़्बातों की ज़बरदस्त आंधियां चलने लगीं थी।
उसे शिद्दत से एहसास हो रहा था कि सचमुच उसने अरमान के साथ वैसा प्रेम नहीं किया था जैसा वो उससे करता था।

"शायद तुम सच कह रहे हो अरमान।" फिर उसने खुद को सम्हालते हुए तथा गहरी सांस ले कर कहा──"और मैं मानती हूं कि शायद मेरे दिल में तुम्हारे जैसा प्रेम नहीं था। ख़ैर एक सच ये भी है कि शायद हमारी किस्मत में एक दूसरे का होना लिखा ही नहीं था। तुम प्लीज़, खुद को सम्हालो और अपने जीवन को इस तरह बर्बाद मत करो। अभी भी वक्त है, किसी अच्छी लड़की से शादी कर लो और अपनी दुनिया को आबाद कर लो। क्या तुम मेरी इतनी सी बात नहीं मान सकते?"

"ऐसा क्यों होता है प्रिया कि प्रेम करने वाले को अपनी मोहब्बत के लिए हर तरह की कीमत चुकानी पड़ती है?" अरमान ने थोड़ी ही दूरी पर रखी एक चारपाई पर बैठने के बाद कहा──"ऐसा क्यों होता है कि आशिक को उसकी हर बात माननी पड़ती है जिसे वो टूट कर मोहब्बत कर रहा होता है? क्यों उसकी मोहब्बत उस आशिक के जज़्बातों को नहीं समझती और वो करने पर मजबूर कर देती है जो वो किसी भी कीमत पर करना नहीं चाहता मगर उसे करना ही पड़ता है?"

"शायद सच्चा प्रेम वही है जिसमें त्याग और बलिदान दिया जाता है।" प्रिया ने लरजते स्वर में कहा──"जो ऐसा करते हैं वही सच्चा प्रेम करने वाले कहलाते हैं। मुझे एहसास है कि तुमने मुझसे सच्चा प्रेम किया है। ये तो मैं थी जिसने तुम्हारे सच्चे प्रेम की क़दर नहीं की और तुम्हें ठुकरा के किसी और की हो गई। अरमान, तुमने ये गाना तो सुना ही होगा ना──'कभी किसी को मुकम्मल जहां नहीं मिलता।' प्रेम करने वालों का ज़्यादातर ऐसा ही इतिहास रहा है। वो बहुत खुशनसीब होते हैं जिन्हें मोहब्बत नसीब होती है। ख़ैर मेरी तुमसे बस यही विनती है कि प्लीज़ गुज़री हुई बातों और यादों को भुलाने की कोशिश करो और अपनी दुनिया बसा लो। उस दिन अपने गुरूर में तुम्हें उल्टा सीधा बोल गई थी लेकिन बाद में एहसास हुआ कि मुझे ऐसा नहीं करना चाहिए था। इसी लिए तो आज तुमसे माफ़ी मांगने आई हूं। यकीन मानो उसी पल से बेचैन थी तुमसे मिल कर तुमसे माफ़ी मांगने के लिए। जब नहीं रहा गया तो आज भागी चली आई यहां।"

"चलो इसी बहाने मेरे ग़रीबखानें में तुम्हारे क़दम तो पड़े।" अरमान ने फीकी मुस्कान के साथ कहा──"मुद्दतों बाद इस उजड़े हुए आशियाने को बहार की खुशबू मिली है।"

"बहुत अजीब बातें करते हो तुम।" प्रिया की धड़कनें अरमान की बातों से धाड़ धाड़ कर के बज उठतीं थी।
खुद को बड़ी मुश्किल से सम्हाले हुए थी वो।

"वक्त और हालात इंसान को बहुत कुछ सिखा देते हैं।" अरमान ने कहा──"बातें करना भी और ऐसे हाल में रहना भी।"

"हम्म्म।" प्रिया को समझ न आया कि क्या कहे, फिर सहसा वो इधर उधर देखने के बाद बोली──"अच्छा अब बातें बंद करो। मैं ज़रा इस घर का हुलिया ठीक कर देती हूं। जाने कब से तुमने इस घर की साफ सफाई नहीं की है।"

"तुम्हें ये सब करने की ज़रूरत नहीं है।" अरमान ने कहा──"मुझे ऐसे हाल में रहने की आदत है। वैसे भी अगर तुम ये सब करोगी तो मेरे अंदर फिर से एक ऐसी उम्मीद पैदा हो जाएगी जिसका पूरा होना संभव नहीं है।"

"उम्मीद ऐसी करो जिसका पूरा होना संभव हो।" प्रिया ने कहा──"फालतू की बातें सोचना बेवकूफी होती है। अब चलो उठो और मुझे मेरा काम करने दो। मेरे पास ज़्यादा समय नहीं है। मेरी बेटी अपने स्कूल से शाम साढ़े चार बजे आती है। अभी दो ढाई घंटे हैं मेरे पास। तब तक मैं यहां का थोड़ा बहुत हुलिया तो सही कर ही दूंगी। बाकी फिर किसी दिन आ कर कर दूंगी।"

अरमान मना करता ही रह गया लेकिन प्रिया ने उसकी एक न मानी।
अरमान को उसके आगे हथियार डाल देने पड़े।
हालाकि मन ही मन उसे इस बात की खुशी हो रही थी कि चलो इसी बहाने प्रिया उसके घर में तो थी।
उसकी स्थिति देखने से उसके मन में उसके प्रति कोई भावना तो पैदा हुई थी।

उसके बाद अरमान ने देखा कि प्रिया ने डेढ़ दो घंटे में उसके घर का बहुत कुछ हुलिया बदल दिया था।
इस सबके चलते उसका अपना हुलिया बिगड़ गया था।
उसके कपड़े गंदे हो गए थे।
घर के पीछे बने बाथरूम में जा कर उसने अपने आपको थोड़ा बहुत साफ किया और फिर अरमान से किसी दिन फिर से आने का बोल कर चली गई।
उसके जाते ही अरमान के होठों पर एक रहस्यमय मुस्कान उभर आई थी।



क्रमशः.....
Nice and superb update....
 

dhparikh

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प्रिया ने टैक्सी वाले को रुकने को कहा तो ड्राइवर ने उसकी बताई हुई जगह पर टैक्सी रोक दी।
दोपहर के ढाई बज रहे थे।
कुछ देर पहले धूप खिली हुई थी लेकिन अब आसमान में हल्के काले बादल छा गए थे।
ठंडी ठंडी हवा चल रही थी जिसके चलते उसके रेशमी बाल बार बार उसके चहरे को ढंक दे रहे थे।

टैक्सी ड्राइवर को उसने किराया दिया और पलट कर एक तरफ को चल दी।
चलते हुए वो इधर उधर देखती भी जा रही थी।
हर तरफ उसे बदला बदला सा नज़र आ रहा था।
एक वक्त था जब इस जगह की हर चीज़ उसके ज़हन में छपी हुई थी लेकिन अब हर जगह बदलाव नज़र आ रहा था।

"मैं क्यों खुद को रोक नहीं पा रही?" उसने जैसे खुद से ही कहा──"क्यों मेरे मन में बार बार उसके पास जाने के ख़याल उभर रहे हैं? नहीं नहीं, ये ग़लत है। मुझे ऐसा नहीं करना चाहिए। मैं एक शादी शुदा हूं और एक इज्ज़तदार घर की बहू भी हूं। मुझे अपने अतीत के बारे में सोचना भी नहीं चाहिए।"

मन में उभरते इन ख़यालों ने सहसा उसके क़दम रोक दिए।
उसने गर्दन घुमा कर इधर उधर देखा।
उसे एकदम से ऐसा लगा जैसे आस पास की हर चीज़ उसे अजीब तरह से घूरने लगी है।
इस एहसास ने एकदम से उसकी धड़कनें तेज़ कर दी।
वो खुद को अपराधी सा महसूस करने लगी।

"ये...ये कैसा महसूस हो रहा है मुझे?" उसने अपनी बढ़ चली सांसों को काबू करने के लिए अपने सीने पर एक हाथ रख कर सोचा──"आज से पहले तो ऐसा कभी महसूस नहीं हुआ मुझे?"

प्रिया ने आंखें बंद कर के गहरी गहरी सांसें ली।
किसी तरह अपनी हालत को दुरुस्त किया।
उसे थोड़ी हैरानी हो रही थी कि ये कैसा महसूस हो रहा है उसे?

"वापस लौट जा प्रिया।" अचानक उसके अंदर से आवाज़ आई──"अपने गुज़रे हुए समय की तरफ देखना ठीक नहीं है।"

"हां, पर मेरे गुज़रे हुए कल का एक किरदार मेरे सामने भी तो आ गया था उस दिन, फिर उसका क्या?" प्रिया ने मन ही मन अपने अंदर की उस प्रिया से कहा जिसने उसे आवाज़ दी थी──"तुमने भी तो सुना ही होगा कि उस दिन मैंने किस लहजे में उससे बातें की थी? यकीनन मेरी उन बातों ने बहुत ज़्यादा उसका दिल दुखाया होगा। उसके चेहरे पर उभरी पीड़ा इस बात का सबूत भी दे रही थी मगर उस वक्त मुझे उसकी पीड़ा का तनिक भी आभास नहीं हुआ था। उस वक्त मैं गुरूर में अंधी जो थी। भला क्या ज़रूरत थी मुझे उसको वो सब बोलने की? बोलना तो उसे चाहिए था क्योंकि छोड़ा तो मैंने ही था उसे, मगर उसने शिकायत में एक लफ्ज़ भी नहीं कहा था मुझसे?"

"हां तो क्या हुआ?" उसके अंदर की प्रिया ने उससे कहा──"उसे छोड़ कर कौन सा ग़लत काम किया था तुमने? अपने हित और अपने सुख के बारे में तो हर कोई सोचता है। तुमने अपनी खुशियों के बारे में सोच कर जो किया वो बिल्कुल भी ग़लत नहीं था। बल्कि ग़लत तो तुम अब करने जा रही हो। वापस लौट जाओ प्रिया, ये मत भूलो कि अब तुम शादी शुदा हो और किसी के घर की अमानत के साथ साथ आबरू भी हो। अगर तुम्हारे पति को पता चल गया कि तुम अपने अतीत की तरफ पलट गई हो तो यकीन मानो अच्छा नहीं होगा।"

प्रिया अपने अंदर की इस आवाज़ को सुन कर बुरी तरह कांप गई।
पलक झपकते ही उसकी आंखों के सामने उसके पति अशोक और उसके परिवार वालों के चेहरे उजागर होते चले गए।

ठंडी ठंडी हवा चलने के बाद भी उसका चेहरा पसीने से भर गया।
उसने हड़बड़ा कर दुपट्टे से चेहरे का पसीना पोंछा और पुनः इधर उधर देखने लगी।

वो सड़क के किनारे खड़ी थी।
सड़क के दोनों तरफ तरह तरह की दुकानें थी।
सड़क पर वाहनों का आना जाना लगा हुआ था।
कई तरह के लोग आते जाते नज़र आ रहे थे उसे।
कुछ जो उसके पास से गुज़र रहे थे जो उसे अजीब तरह से देखते और आगे बढ़ जाते।

प्रिया ये सब देख बुरी तरह हड़बड़ा गई।
थोड़ा घबरा भी गई।
सहसा उसे एहसास हुआ कि सड़क के किनारे उसका यूं खड़े रहना उचित नहीं है।
अगले ही पल वो फ़ौरन ही खुद को सम्हालते हुए एक तरफ को बढ़ चली।

"क्या कर रही है प्रिया?" अंदर वाली प्रिया ने फिर से उसे पुकारा──"तू अभी भी आगे बढ़ी जा रही है? क्या पूरी तरह बेवकूफ ही है तू?"

"चुप रहो तुम।" प्रिया ने मन ही मन अपने अंदर की प्रिया को गुस्से से डांटा──"मैं जानती हूं कि ये ठीक नहीं है लेकिन एक बार, बस एक बार उससे मिलना चाहती हूं। उससे अपने उस दिन के बिहैवियर के लिए माफ़ी मांगना चाहती हूं। उसके बाद, मेरा यकीन करो...उसके बाद मैं दुबारा कभी उससे मिलने का सोचूंगी भी नहीं।"

"अच्छा? क्या सच में?" अंदर की प्रिया ने जैसे तंज़ किया।

"हां सच में।" प्रिया ने मन ही मन ये जवाब देते हुए ऐसा महसूस किया जैसे अपनी ये बात उसे खुद ही झूठी लग रही हो, बोली──"माफ़ी मांगने के बाद कभी नहीं मिलूंगी उससे।"

उसके ऐसा कहने पर इस बार उसे अपने अंदर से कोई आवाज़ सुनाई नहीं दी।
उसे थोड़ी हैरानी हुई।
उसने ध्यान से अपने अंदर की आवाज़ सुनने की कोशिश की।
मगर कुछ भी महसूस नहीं हुआ उसे।

सड़क पर वाहनों का शोर हो रहा था।
प्रिया ने खुद को सम्हाला और नज़र उठा कर बाएं तरफ जाने वाले रास्ते की तरफ देखा।

"मैडम किधर जाना है आपको?" एक ऑटो वाले ने उसके क़रीब अपने ऑटो को धीमा करते हुए आवाज़ दी।

प्रिया ने उसकी तरफ देखा और फिर ना में सिर हिला कर आगे बढ़ चली।
ऑटो वाले ने अपना ऑटो आगे बढ़ा दिया।

प्रिया बाएं तरफ जाने वाले रास्ते में मुड़ गई।
उसके मन में काफी उथल पुथल चल रही थी लेकिन जैसे उसने अब पूरा मन बना लिया था कि वो वहां जा कर ही रहेगी।

सहसा वो रुक गई।
उसने एक बार पुनः इधर उधर देखा।
सब कुछ बदला बदला सा दिख रहा था उसे।

"दुनिया कितना जल्दी बदल जाती है।" उसने मन ही मन कहा किंतु अगले ही पल उसे खुद का ख़याल आ गया──"मैं भी तो बदल गई थी।"

इस ख़याल ने उसके अंदर एक टीस सी पैदा कर दी।
उसे थोड़ी तकलीफ़ हुई।
बुरा भी महसूस हुआ।
आंखें बंद कर के उसने एक गहरी सांस ली।

"यहीं से तो एक पतला रास्ता जाता था उसके घर की तरफ।" प्रिया ने एक तरफ देखते हुए सोचा──"लेकिन अब तो यहां वो रास्ता ही नहीं है। हे भगवान! अब क्या करूं?"

प्रिया एकाएक ही परेशान सी नज़र आने लगी।
उसे समझ न आया कि सवा सात सालों में कोई रास्ता कैसे ग़ायब हो सकता है?

तभी सहसा उसके मन में ख़याल उभरा कि उसे किसी से उसके घर की तरफ जाने वाले रास्ते के बारे में पूछना चाहिए।

अभी वो पलटी ही थी कि तभी एक और ऑटो वाला उसके क़रीब अपना ऑटो ले कर आ गया।
प्रिया के मन में बिजली की तरह ये विचार कौंधा कि ऑटो वालों को हर जगह की जानकारी होती है।
यानि अगर वो ऑटो वाले को पता बताए तो वो उसे उसके घर तक ज़रूर पहुंचा सकता है।

इस विचार के साथ ही उसके चेहरे पर एक चमक उभर आई।
उसने फौरन ही ऑटो वाले को पता बताया तो ऑटो वाला उसके बताए हुए पते पर चलने को तैयार हो गया।

प्रिया झट से ऑटो में बैठ गई।
ऑटो जब चल पड़ा तो उसने इत्मीनान की सांस ली।
मन में ये सोच कर खुशी हुई कि आख़िर अब वो उसके घर पहुंच ही जाएगी और उससे मिलेगी भी।

सहसा उसे याद आया कि कैसे उस दिन उसने उस फाइव स्टार होटल के सामने उसको उल्टा सीधा बोला था।
प्रिया को बहुत बुरा महसूस होने लगा।
अपनी आंखें बंद कर के उसने मन ही मन उससे माफ़ी मांगी।

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"ये लीजिए मैडम, आपने जो पता बताया था वहां पहुंच गए हम।" ऑटो वाले की इस बात से प्रिया ने एकदम से चौंक कर अपनी आंखें खोल दी।

उसे ये सोच कर हैरानी हुई कि इतनी देर से वो आंखें बंद किए जाने किन ख़यालों में गुम थी जिसके चलते उसे समय के गुज़र जाने का आभास तक नहीं हुआ।

बहरहाल, वो ऑटो से नीचे उतरी।
अपने पर्स से निकाल कर उसने ऑटो वाले को पैसे दिए।
ऑटो वाला जब चला गया तो उसने पलट कर उस जगह को देखा जहां के लिए वो आई थी।

शहर की आबादी से बस थोड़ा ही पीछे वो बस्ती थी जो उसे जानी पहचानी लग रही थी।
बस्ती के बाकी घर तो अपना रूप बदल चुके थे लेकिन उनके किनारे पर एक घर ऐसा था जो आज भी अपने पुराने रूप में ही अपना वजूद क़ायम किए हुए था।

उस घर को देख प्रिया की धड़कनें अनायास ही तेज़ हो गईं।
उसने उस घर की तरफ बढ़ने के लिए अपने क़दम बढ़ाने चाहे मगर उसे अपने क़दम एकदम से भारी भारी से महसूस होने लगे।

मन में तरह तरह के ख़यालों का बवंडर सा चल पड़ा।
उसने किसी तरह खुद को सम्हाला और फिर खुद को मजबूत करते हुए आगे बढ़ चली।
थोड़ी ही देर में वो उस घर के सामने पहुंच गई।

एक माले का घर था वो।
आज भी उसकी दीवारें नीले रंग को बचाए हुए थीं।
दीवारों को देख कर स्पष्ट प्रतीत होता था कि उनमें वर्षों से पेंट नहीं किया गया है।
कहीं कहीं पर तो दीवारों की छपाई भी उखड़ी हुई दिख रही थी।

मकान के बीचो बीच लकड़ी का एक दरवाज़ा था जो पुराना सा हो गया नज़र आ रहा था।
मकान के सामने पहले काफी जगह हुआ करती थी लेकिन अब वो जगह थोड़ी सी रह गई थी क्योंकि सामने से चौड़ी सड़क बन गई थी जोकि आरसीसी वाली थी।

प्रिया जाने कितनी ही देर तक उस दरवाज़े और मकान को देखती रही।
उसकी आंखों के सामने गुज़रे वक्त की कई सारी तस्वीरें चमकने लगीं थी।
ज़हन में कई सारी यादें उभरने लगीं थी।

तभी एक मोटर साइकिल सड़क पर हॉर्न बजाते हुए उसके पास से गुज़री जिसके चलते वो होश में आई।
उसने हड़बड़ा कर पहले इधर उधर देखा फिर वापस मकान के दरवाज़े को देखने लगी।
मकान के बाहर ही एक तरफ टैक्सी खड़ी थी।

उसने देखा, दरवाज़े पर कोई ताला नहीं लगा हुआ था और ना ही बाहर से कुंडी द्वारा बंद था। मतलब साफ था इस वक्त अंदर कोई तो था।
इस ख़याल ने प्रिया की धड़कनों को एक बार फिर से बढ़ा दिया।
फिर उसी धड़कते दिल के साथ वो दरवाज़े की तरफ बढ़ चली।

एक तरफ जहां उसकी धड़कनें बढ़ी हुईं थी वहीं दूसरी तरफ उसके अंदर तरह तरह के ख़याल उभर रहे थे।

दरवाज़े के क़रीब पहुंच कर उसने अपना एक हाथ आगे बढ़ाया।
वो ये देख कर थोड़ा चौंकी कि उसका हाथ कांप रहा है।

अगले ही पल उसने दरवाज़े पर दस्तक दी और किसी के द्वारा दरवाज़ा खोले जाने का इंतज़ार करने लगी।
उसकी धड़कनें पहले से कई गुना तेज़ हो गईं थीं।
घबराहट के चलते चेहरे पर पसीना उभर आया था।

जब आधा मिनट गुज़र जाने पर भी दरवाज़ा न खुला तो उसने कांपते हाथ से एक बार फिर दरवाज़े पर दस्तक दी।

"आ रहा हूं भाई?" अंदर से उसे एक चिर परिचित आवाज़ सुनाई दी जो दरवाज़े की तरफ ही आती महसूस हुई।

पहले से ही बढ़ी हुई धड़कनें अब धाड़ धाड़ कर के बजते हुए किसी हथौड़े की तरह उसके कानों में धमकने लगीं।
उसने बड़ी मुश्किल से खुद को सम्हाला और आने वाले वक्त के लिए खुद को तैयार करने की कोशिश में लग गई।

कुछ ही पलों में हल्की चरमराहट के साथ दरवाज़ा खुला।
खुले दरवाज़े के बीच उसे अरमान नज़र आया।
वही अरमान जिसे दो दिन पहले उसने फाइव स्टार होटल के बाहर उल्टा सीधा बोला था।
वही अरमान जो आज भी उसे दिलो जान से प्यार करता था।
चेहरे पर बढ़ी हुई दाढ़ी मूंछें और सिर पर बड़े बड़े किंतु थोड़ा उलझे हुए बाल।

उधर दरवाज़े के बाहर प्रिया को खड़ा देख अरमान के चेहरे पर आश्चर्य के भाव उभरे।
ना प्रिया को समझ आया कि क्या कहे और ना ही अरमान को।

"अ..अरे! प्रिया तुम? यहां?" फिर अरमान ने ही चौंकते हुए ख़ामोशी तोड़ी──"यकीन नहीं हो रहा कि मेरे ग़रीबखाने में तुम आई हो।"

"हां...वो...मैं।" प्रिया ने अटकते हुए कहा──"मैं दरअसल, आई मीन....।"

"अगर तुम्हारी शान में गुस्ताख़ी न हो।" अरमान ने दरवाज़े से एक तरफ हटते हुए कहा──"तो अंदर आ जाओ।"

अरमान की इस बात ने प्रिया के अंदर अजीब सी टीस पैदा की किंतु फिर वो खुद को सम्हालते हुए अंदर दाख़िल हो गई।

घर के अंदर आते ही प्रिया इधर उधर नज़र दौड़ाते हुए हर चीज़ को देखने लगी।
सब कुछ बड़ा ही अजीब सा दिख रहा था उसे।

मकान की जैसी हालत बाहर से थी वैसी ही हालत अंदर से भी थी।
सब कुछ अस्त व्यस्त।
कोई भी चीज़ अपनी जगह पर सही ढंग से मौजूद नहीं थी।

"माफ़ करना।" सहसा अरमान की आवाज़ ने उसे उसकी तरफ देखने पर मजबूर किया। उधर अरमान ने कहा──"मेरा ये ग़रीबखाना तुम्हारे बैठने के क़ाबिल तो नहीं है फिर भी अगर तुम ठीक समझो तो बैठ जाओ यहां। मैं तब तक तुम्हारे लिए कुछ चाय नाश्ते का प्रबंध करता हूं।"

"न...नहीं नहीं।" प्रिया ने हड़बड़ा कर जल्दी से कहा──"इसकी कोई ज़रूरत नहीं है और हां मुझे यहां बैठने में भी कोई प्रोब्लम नहीं होगी।"

अरमान ने फटे पुराने सोफे पर थोड़ा साफ सुथरा एक चद्दर डाल दिया जिस पर प्रिया बैठ गई।
उसे बड़ा अजीब सा लग रहा था।
कभी वो एक नज़र अरमान को देख लेती तो कभी इधर उधर देखने लगती।

"अंकल कहां हैं?" फिर उसने जैसे बात करने का सिलसिला शुरू करते हुए पूछा।

"वहां।" अरमान ने अपने हाथ की एक उंगली को छत की तरफ उठाते हुए कहा──"मुझे छोड़ कर जाने वालों में एक तुम ही हो जो वापस लौटी हो। पापा जब से गए तो अब तक वापस नहीं लौटे और ना ही इस जीवन में कभी लौटेंगे।"

"क...क्या मतलब?" प्रिया की धड़कनें विचित्र ख़यालों के उभर आने के चलते थम सी गईं।

"मतलब ये कि।" अरमान ने फीकी मुस्कान के साथ कहा──"जो लोग ईश्वर को प्यारे हो जाते हैं वो हमारे पास वापस लौट कर नहीं आते।"

"क...क्या???" प्रिया बुरी तरह उछल पड़ी──"तु...तुम्हारा मतलब है कि अंकल अब नहीं....?"

"हां।" अरमान ने कहा──"चार साल पहले ग़लती से एक ट्रक वाले ने उन्हें टक्कर मार दी थी। हॉस्पिटल पहुंचने से पहले ही उन्होंने दम तोड़ दिया था। मां तो पहले ही गुज़र गईं थी तुम्हें तो पता ही है। अपनों के नाम पर एक पापा ही थे लेकिन अब वो भी नहीं हैं। अब ये घर भी अकेला है और मैं भी।"

प्रिया उसकी बातें सुन कर कुछ बोल न सकी।
उसे यकीन नहीं हो रहा था कि अरमान के पिता अब इस दुनिया में नहीं हैं।
उसे अरमान के लिए बहुत ही बुरा फील होने लगा।

उसे पहली बार एहसास हुआ कि अरमान वास्तव में अंदर से कितना दुखी होगा।
सहसा उसे ये सोच कर अपने आप पर गुस्सा आया कि उसने ऐसे दुखी इंसान को उल्टा सीधा बोल कर और भी कितना दुखी किया था।

उसका जी चाहा कि ये ज़मीन फटे और वो उसमें अपना मुंह छुपा कर समा जाए।
पहली बार उसे अपनी करनी पर बेहद शर्म महसूस हुई।
पहली बार उसे महसूस हुआ कि ऐसे व्यक्ति को ठुकरा कर उसने उसके साथ कितना ग़लत किया था।

"अ....अरमान।" फिर वो भारी गले से बोली──"मुझे माफ़ कर दो प्लीज़। मैं तुम्हारी गुनहगार हूं। मैंने पहले भी तुम्हारा दिल दुखाया था और उस दिन भी अपने गुरूर में दिल दुखा दिया था। वास्तव में बहुत बुरी हूं मैं।"

कहते कहते प्रिया की आंखें छलक पड़ीं।
हालाकि उसने अपने जज़्बातों को काबू करने की बहुत कोशिश की थी लेकिन भावनाओं का ज्वार इतना प्रबल हो उठा था कि उसके सम्हाले न सम्हला था।

"तुम्हें मुझसे किसी बात के लिए माफ़ी मांगने की ज़रूरत नहीं है।" अरमान ने कहा──"सच तो ये है कि जो कुछ भी हुआ था या हुआ है वो सब मेरी किस्मत में ही लिखा था। ऊपर वाले ने मेरे नसीब में कभी कुछ अच्छा होना लिखा ही नहीं, तभी तो सब मुझे छोड़ कर चले गए।"

"ऐसा मत कहो।" प्रिया ने कहा──"और ये बताओ कि तुमने अपने साथ साथ इस घर की ये कैसी हालत बना रखी है?"

"बड़ी अजीब बात है।" अरमान ने हल्के से मुस्कुरा कर कहा──"तुम मुझसे मेरी और मेरे घर की हालत के बारे में पूछ रही हो? अभी दो दिन पहले तो तुम मुझे जाने क्या क्या बोल रही थी, फिर आज तुम्हारा लहजा इतना कैसे बदल गया? तुम इतनी नर्म कैसे हो ग‌ई?""

प्रिया को फ़ौरन कुछ कहने के लिए जवाब न सूझा।
कुछ पलों तक तो वो अरमान से निगाहें चुराए रखी किंतु फिर जैसे उसने साहस जुटाया।

"अ..अरमान।" फिर वो थोड़ा संजीदा हो कर बोली──"उस दिन के लिए मैं बहुत शर्मिंदा हूं। प्लीज़ मेरे उस बर्ताव के लिए मुझे माफ़ कर दो।"

"क्या मेरे माफ़ ना करने से तुम्हें कोई फ़र्क पड़ जाएगा?" अरमान ने अजीब भाव से उसे देखा──"वैसे मुझे तो ऐसा नहीं लगता। अगर फ़र्क पड़ना ही होता तो आज से सवा सात साल पहले तुमने मुझे ठुकरा नहीं दिया होता। तुम मेरी सच्ची मोहब्बत का मान रखती और जो मेरी हैसियत थी उसको कबूल कर हमेशा के लिए मेरी हो जाती। इसका तो यही मतलब हुआ प्रिया कि तुम्हें मुझसे कभी कोई प्रेम था ही नहीं बल्कि तुम्हारे दिल में सिर्फ इस बात की चाहत थी कि तुम्हारी शादी एक ऐसे व्यक्ति से हो जो तुम्हें दुनिया का हर सुख और ऐशो आराम दे सके। ख़ैर, बहुत बहुत मुबारक हो, तुमने जिन चीज़ों की ख़्वाहिश की थी वो तुम्हें मिल ग‌ईं।"

प्रिया को एक बार फिर से कोई जवाब न सूझा।
उसके दिलो दिमाग़ में जज़्बातों की ज़बरदस्त आंधियां चलने लगीं थी।
उसे शिद्दत से एहसास हो रहा था कि सचमुच उसने अरमान के साथ वैसा प्रेम नहीं किया था जैसा वो उससे करता था।

"शायद तुम सच कह रहे हो अरमान।" फिर उसने खुद को सम्हालते हुए तथा गहरी सांस ले कर कहा──"और मैं मानती हूं कि शायद मेरे दिल में तुम्हारे जैसा प्रेम नहीं था। ख़ैर एक सच ये भी है कि शायद हमारी किस्मत में एक दूसरे का होना लिखा ही नहीं था। तुम प्लीज़, खुद को सम्हालो और अपने जीवन को इस तरह बर्बाद मत करो। अभी भी वक्त है, किसी अच्छी लड़की से शादी कर लो और अपनी दुनिया को आबाद कर लो। क्या तुम मेरी इतनी सी बात नहीं मान सकते?"

"ऐसा क्यों होता है प्रिया कि प्रेम करने वाले को अपनी मोहब्बत के लिए हर तरह की कीमत चुकानी पड़ती है?" अरमान ने थोड़ी ही दूरी पर रखी एक चारपाई पर बैठने के बाद कहा──"ऐसा क्यों होता है कि आशिक को उसकी हर बात माननी पड़ती है जिसे वो टूट कर मोहब्बत कर रहा होता है? क्यों उसकी मोहब्बत उस आशिक के जज़्बातों को नहीं समझती और वो करने पर मजबूर कर देती है जो वो किसी भी कीमत पर करना नहीं चाहता मगर उसे करना ही पड़ता है?"

"शायद सच्चा प्रेम वही है जिसमें त्याग और बलिदान दिया जाता है।" प्रिया ने लरजते स्वर में कहा──"जो ऐसा करते हैं वही सच्चा प्रेम करने वाले कहलाते हैं। मुझे एहसास है कि तुमने मुझसे सच्चा प्रेम किया है। ये तो मैं थी जिसने तुम्हारे सच्चे प्रेम की क़दर नहीं की और तुम्हें ठुकरा के किसी और की हो गई। अरमान, तुमने ये गाना तो सुना ही होगा ना──'कभी किसी को मुकम्मल जहां नहीं मिलता।' प्रेम करने वालों का ज़्यादातर ऐसा ही इतिहास रहा है। वो बहुत खुशनसीब होते हैं जिन्हें मोहब्बत नसीब होती है। ख़ैर मेरी तुमसे बस यही विनती है कि प्लीज़ गुज़री हुई बातों और यादों को भुलाने की कोशिश करो और अपनी दुनिया बसा लो। उस दिन अपने गुरूर में तुम्हें उल्टा सीधा बोल गई थी लेकिन बाद में एहसास हुआ कि मुझे ऐसा नहीं करना चाहिए था। इसी लिए तो आज तुमसे माफ़ी मांगने आई हूं। यकीन मानो उसी पल से बेचैन थी तुमसे मिल कर तुमसे माफ़ी मांगने के लिए। जब नहीं रहा गया तो आज भागी चली आई यहां।"

"चलो इसी बहाने मेरे ग़रीबखानें में तुम्हारे क़दम तो पड़े।" अरमान ने फीकी मुस्कान के साथ कहा──"मुद्दतों बाद इस उजड़े हुए आशियाने को बहार की खुशबू मिली है।"

"बहुत अजीब बातें करते हो तुम।" प्रिया की धड़कनें अरमान की बातों से धाड़ धाड़ कर के बज उठतीं थी।
खुद को बड़ी मुश्किल से सम्हाले हुए थी वो।

"वक्त और हालात इंसान को बहुत कुछ सिखा देते हैं।" अरमान ने कहा──"बातें करना भी और ऐसे हाल में रहना भी।"

"हम्म्म।" प्रिया को समझ न आया कि क्या कहे, फिर सहसा वो इधर उधर देखने के बाद बोली──"अच्छा अब बातें बंद करो। मैं ज़रा इस घर का हुलिया ठीक कर देती हूं। जाने कब से तुमने इस घर की साफ सफाई नहीं की है।"

"तुम्हें ये सब करने की ज़रूरत नहीं है।" अरमान ने कहा──"मुझे ऐसे हाल में रहने की आदत है। वैसे भी अगर तुम ये सब करोगी तो मेरे अंदर फिर से एक ऐसी उम्मीद पैदा हो जाएगी जिसका पूरा होना संभव नहीं है।"

"उम्मीद ऐसी करो जिसका पूरा होना संभव हो।" प्रिया ने कहा──"फालतू की बातें सोचना बेवकूफी होती है। अब चलो उठो और मुझे मेरा काम करने दो। मेरे पास ज़्यादा समय नहीं है। मेरी बेटी अपने स्कूल से शाम साढ़े चार बजे आती है। अभी दो ढाई घंटे हैं मेरे पास। तब तक मैं यहां का थोड़ा बहुत हुलिया तो सही कर ही दूंगी। बाकी फिर किसी दिन आ कर कर दूंगी।"

अरमान मना करता ही रह गया लेकिन प्रिया ने उसकी एक न मानी।
अरमान को उसके आगे हथियार डाल देने पड़े।
हालाकि मन ही मन उसे इस बात की खुशी हो रही थी कि चलो इसी बहाने प्रिया उसके घर में तो थी।
उसकी स्थिति देखने से उसके मन में उसके प्रति कोई भावना तो पैदा हुई थी।

उसके बाद अरमान ने देखा कि प्रिया ने डेढ़ दो घंटे में उसके घर का बहुत कुछ हुलिया बदल दिया था।
इस सबके चलते उसका अपना हुलिया बिगड़ गया था।
उसके कपड़े गंदे हो गए थे।
घर के पीछे बने बाथरूम में जा कर उसने अपने आपको थोड़ा बहुत साफ किया और फिर अरमान से किसी दिन फिर से आने का बोल कर चली गई।
उसके जाते ही अरमान के होठों पर एक रहस्यमय मुस्कान उभर आई थी।



क्रमशः.....
Nice update....
 
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प्रिया के इस ह्रदय परिवर्तन का राज क्या है ? जो लड़की एक शख्स को सात साल पहले धोखा दे गई , जिस लड़की ने मात्र , मात्र एक दिन पहले उस शख्स पर निगाहों से भाले , बरछियां बरसाई वह लड़की अचानक से उस शख्स का खिदमत - गार कैसे बन गई ।
यह इन्कलाबी कायापलट आखिर क्यों ! ऐसा एक रात मे क्या हो गया कि मोहतरमा , मीना कुमारी के रोल मे दिखने लगी ?

खैर जब जागो तभी सबेरा । देर से ही सही पर प्रिया को अपने गलती का एहसास तो हुआ ।
इधर हमारे हीरो साहब ने अंतिम क्षणों मे हमे सस्पेंस मे डाल दिया । प्रिया के जाने के बाद उनके चेहरे पर मौजूद अर्थपूर्ण मुस्कान कुछ कुछ अनर्थ का इशारा कर रहे है ।
जब लड़की बेवफाई करी तब लड़के ने चुपचाप अपनी आंखे बंद कर ली लेकिन जब लड़की ने वफा करने की कोशिश करी तो लड़के की न केवल दोनो आंखे बल्कि त्रिनेत्र की भृकुटी भी तन गई ।

आखिर हमारे अरमान साहब के अरमान क्या है ?
खुबसूरत अपडेट शुभम भाई ।
 
Last edited:

kas1709

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भाग- ०२
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प्रिया ने टैक्सी वाले को रुकने को कहा तो ड्राइवर ने उसकी बताई हुई जगह पर टैक्सी रोक दी।
दोपहर के ढाई बज रहे थे।
कुछ देर पहले धूप खिली हुई थी लेकिन अब आसमान में हल्के काले बादल छा गए थे।
ठंडी ठंडी हवा चल रही थी जिसके चलते उसके रेशमी बाल बार बार उसके चहरे को ढंक दे रहे थे।

टैक्सी ड्राइवर को उसने किराया दिया और पलट कर एक तरफ को चल दी।
चलते हुए वो इधर उधर देखती भी जा रही थी।
हर तरफ उसे बदला बदला सा नज़र आ रहा था।
एक वक्त था जब इस जगह की हर चीज़ उसके ज़हन में छपी हुई थी लेकिन अब हर जगह बदलाव नज़र आ रहा था।

"मैं क्यों खुद को रोक नहीं पा रही?" उसने जैसे खुद से ही कहा──"क्यों मेरे मन में बार बार उसके पास जाने के ख़याल उभर रहे हैं? नहीं नहीं, ये ग़लत है। मुझे ऐसा नहीं करना चाहिए। मैं एक शादी शुदा हूं और एक इज्ज़तदार घर की बहू भी हूं। मुझे अपने अतीत के बारे में सोचना भी नहीं चाहिए।"

मन में उभरते इन ख़यालों ने सहसा उसके क़दम रोक दिए।
उसने गर्दन घुमा कर इधर उधर देखा।
उसे एकदम से ऐसा लगा जैसे आस पास की हर चीज़ उसे अजीब तरह से घूरने लगी है।
इस एहसास ने एकदम से उसकी धड़कनें तेज़ कर दी।
वो खुद को अपराधी सा महसूस करने लगी।

"ये...ये कैसा महसूस हो रहा है मुझे?" उसने अपनी बढ़ चली सांसों को काबू करने के लिए अपने सीने पर एक हाथ रख कर सोचा──"आज से पहले तो ऐसा कभी महसूस नहीं हुआ मुझे?"

प्रिया ने आंखें बंद कर के गहरी गहरी सांसें ली।
किसी तरह अपनी हालत को दुरुस्त किया।
उसे थोड़ी हैरानी हो रही थी कि ये कैसा महसूस हो रहा है उसे?

"वापस लौट जा प्रिया।" अचानक उसके अंदर से आवाज़ आई──"अपने गुज़रे हुए समय की तरफ देखना ठीक नहीं है।"

"हां, पर मेरे गुज़रे हुए कल का एक किरदार मेरे सामने भी तो आ गया था उस दिन, फिर उसका क्या?" प्रिया ने मन ही मन अपने अंदर की उस प्रिया से कहा जिसने उसे आवाज़ दी थी──"तुमने भी तो सुना ही होगा कि उस दिन मैंने किस लहजे में उससे बातें की थी? यकीनन मेरी उन बातों ने बहुत ज़्यादा उसका दिल दुखाया होगा। उसके चेहरे पर उभरी पीड़ा इस बात का सबूत भी दे रही थी मगर उस वक्त मुझे उसकी पीड़ा का तनिक भी आभास नहीं हुआ था। उस वक्त मैं गुरूर में अंधी जो थी। भला क्या ज़रूरत थी मुझे उसको वो सब बोलने की? बोलना तो उसे चाहिए था क्योंकि छोड़ा तो मैंने ही था उसे, मगर उसने शिकायत में एक लफ्ज़ भी नहीं कहा था मुझसे?"

"हां तो क्या हुआ?" उसके अंदर की प्रिया ने उससे कहा──"उसे छोड़ कर कौन सा ग़लत काम किया था तुमने? अपने हित और अपने सुख के बारे में तो हर कोई सोचता है। तुमने अपनी खुशियों के बारे में सोच कर जो किया वो बिल्कुल भी ग़लत नहीं था। बल्कि ग़लत तो तुम अब करने जा रही हो। वापस लौट जाओ प्रिया, ये मत भूलो कि अब तुम शादी शुदा हो और किसी के घर की अमानत के साथ साथ आबरू भी हो। अगर तुम्हारे पति को पता चल गया कि तुम अपने अतीत की तरफ पलट गई हो तो यकीन मानो अच्छा नहीं होगा।"

प्रिया अपने अंदर की इस आवाज़ को सुन कर बुरी तरह कांप गई।
पलक झपकते ही उसकी आंखों के सामने उसके पति अशोक और उसके परिवार वालों के चेहरे उजागर होते चले गए।

ठंडी ठंडी हवा चलने के बाद भी उसका चेहरा पसीने से भर गया।
उसने हड़बड़ा कर दुपट्टे से चेहरे का पसीना पोंछा और पुनः इधर उधर देखने लगी।

वो सड़क के किनारे खड़ी थी।
सड़क के दोनों तरफ तरह तरह की दुकानें थी।
सड़क पर वाहनों का आना जाना लगा हुआ था।
कई तरह के लोग आते जाते नज़र आ रहे थे उसे।
कुछ जो उसके पास से गुज़र रहे थे जो उसे अजीब तरह से देखते और आगे बढ़ जाते।

प्रिया ये सब देख बुरी तरह हड़बड़ा गई।
थोड़ा घबरा भी गई।
सहसा उसे एहसास हुआ कि सड़क के किनारे उसका यूं खड़े रहना उचित नहीं है।
अगले ही पल वो फ़ौरन ही खुद को सम्हालते हुए एक तरफ को बढ़ चली।

"क्या कर रही है प्रिया?" अंदर वाली प्रिया ने फिर से उसे पुकारा──"तू अभी भी आगे बढ़ी जा रही है? क्या पूरी तरह बेवकूफ ही है तू?"

"चुप रहो तुम।" प्रिया ने मन ही मन अपने अंदर की प्रिया को गुस्से से डांटा──"मैं जानती हूं कि ये ठीक नहीं है लेकिन एक बार, बस एक बार उससे मिलना चाहती हूं। उससे अपने उस दिन के बिहैवियर के लिए माफ़ी मांगना चाहती हूं। उसके बाद, मेरा यकीन करो...उसके बाद मैं दुबारा कभी उससे मिलने का सोचूंगी भी नहीं।"

"अच्छा? क्या सच में?" अंदर की प्रिया ने जैसे तंज़ किया।

"हां सच में।" प्रिया ने मन ही मन ये जवाब देते हुए ऐसा महसूस किया जैसे अपनी ये बात उसे खुद ही झूठी लग रही हो, बोली──"माफ़ी मांगने के बाद कभी नहीं मिलूंगी उससे।"

उसके ऐसा कहने पर इस बार उसे अपने अंदर से कोई आवाज़ सुनाई नहीं दी।
उसे थोड़ी हैरानी हुई।
उसने ध्यान से अपने अंदर की आवाज़ सुनने की कोशिश की।
मगर कुछ भी महसूस नहीं हुआ उसे।

सड़क पर वाहनों का शोर हो रहा था।
प्रिया ने खुद को सम्हाला और नज़र उठा कर बाएं तरफ जाने वाले रास्ते की तरफ देखा।

"मैडम किधर जाना है आपको?" एक ऑटो वाले ने उसके क़रीब अपने ऑटो को धीमा करते हुए आवाज़ दी।

प्रिया ने उसकी तरफ देखा और फिर ना में सिर हिला कर आगे बढ़ चली।
ऑटो वाले ने अपना ऑटो आगे बढ़ा दिया।

प्रिया बाएं तरफ जाने वाले रास्ते में मुड़ गई।
उसके मन में काफी उथल पुथल चल रही थी लेकिन जैसे उसने अब पूरा मन बना लिया था कि वो वहां जा कर ही रहेगी।

सहसा वो रुक गई।
उसने एक बार पुनः इधर उधर देखा।
सब कुछ बदला बदला सा दिख रहा था उसे।

"दुनिया कितना जल्दी बदल जाती है।" उसने मन ही मन कहा किंतु अगले ही पल उसे खुद का ख़याल आ गया──"मैं भी तो बदल गई थी।"

इस ख़याल ने उसके अंदर एक टीस सी पैदा कर दी।
उसे थोड़ी तकलीफ़ हुई।
बुरा भी महसूस हुआ।
आंखें बंद कर के उसने एक गहरी सांस ली।

"यहीं से तो एक पतला रास्ता जाता था उसके घर की तरफ।" प्रिया ने एक तरफ देखते हुए सोचा──"लेकिन अब तो यहां वो रास्ता ही नहीं है। हे भगवान! अब क्या करूं?"

प्रिया एकाएक ही परेशान सी नज़र आने लगी।
उसे समझ न आया कि सवा सात सालों में कोई रास्ता कैसे ग़ायब हो सकता है?

तभी सहसा उसके मन में ख़याल उभरा कि उसे किसी से उसके घर की तरफ जाने वाले रास्ते के बारे में पूछना चाहिए।

अभी वो पलटी ही थी कि तभी एक और ऑटो वाला उसके क़रीब अपना ऑटो ले कर आ गया।
प्रिया के मन में बिजली की तरह ये विचार कौंधा कि ऑटो वालों को हर जगह की जानकारी होती है।
यानि अगर वो ऑटो वाले को पता बताए तो वो उसे उसके घर तक ज़रूर पहुंचा सकता है।

इस विचार के साथ ही उसके चेहरे पर एक चमक उभर आई।
उसने फौरन ही ऑटो वाले को पता बताया तो ऑटो वाला उसके बताए हुए पते पर चलने को तैयार हो गया।

प्रिया झट से ऑटो में बैठ गई।
ऑटो जब चल पड़ा तो उसने इत्मीनान की सांस ली।
मन में ये सोच कर खुशी हुई कि आख़िर अब वो उसके घर पहुंच ही जाएगी और उससे मिलेगी भी।

सहसा उसे याद आया कि कैसे उस दिन उसने उस फाइव स्टार होटल के सामने उसको उल्टा सीधा बोला था।
प्रिया को बहुत बुरा महसूस होने लगा।
अपनी आंखें बंद कर के उसने मन ही मन उससे माफ़ी मांगी।

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"ये लीजिए मैडम, आपने जो पता बताया था वहां पहुंच गए हम।" ऑटो वाले की इस बात से प्रिया ने एकदम से चौंक कर अपनी आंखें खोल दी।

उसे ये सोच कर हैरानी हुई कि इतनी देर से वो आंखें बंद किए जाने किन ख़यालों में गुम थी जिसके चलते उसे समय के गुज़र जाने का आभास तक नहीं हुआ।

बहरहाल, वो ऑटो से नीचे उतरी।
अपने पर्स से निकाल कर उसने ऑटो वाले को पैसे दिए।
ऑटो वाला जब चला गया तो उसने पलट कर उस जगह को देखा जहां के लिए वो आई थी।

शहर की आबादी से बस थोड़ा ही पीछे वो बस्ती थी जो उसे जानी पहचानी लग रही थी।
बस्ती के बाकी घर तो अपना रूप बदल चुके थे लेकिन उनके किनारे पर एक घर ऐसा था जो आज भी अपने पुराने रूप में ही अपना वजूद क़ायम किए हुए था।

उस घर को देख प्रिया की धड़कनें अनायास ही तेज़ हो गईं।
उसने उस घर की तरफ बढ़ने के लिए अपने क़दम बढ़ाने चाहे मगर उसे अपने क़दम एकदम से भारी भारी से महसूस होने लगे।

मन में तरह तरह के ख़यालों का बवंडर सा चल पड़ा।
उसने किसी तरह खुद को सम्हाला और फिर खुद को मजबूत करते हुए आगे बढ़ चली।
थोड़ी ही देर में वो उस घर के सामने पहुंच गई।

एक माले का घर था वो।
आज भी उसकी दीवारें नीले रंग को बचाए हुए थीं।
दीवारों को देख कर स्पष्ट प्रतीत होता था कि उनमें वर्षों से पेंट नहीं किया गया है।
कहीं कहीं पर तो दीवारों की छपाई भी उखड़ी हुई दिख रही थी।

मकान के बीचो बीच लकड़ी का एक दरवाज़ा था जो पुराना सा हो गया नज़र आ रहा था।
मकान के सामने पहले काफी जगह हुआ करती थी लेकिन अब वो जगह थोड़ी सी रह गई थी क्योंकि सामने से चौड़ी सड़क बन गई थी जोकि आरसीसी वाली थी।

प्रिया जाने कितनी ही देर तक उस दरवाज़े और मकान को देखती रही।
उसकी आंखों के सामने गुज़रे वक्त की कई सारी तस्वीरें चमकने लगीं थी।
ज़हन में कई सारी यादें उभरने लगीं थी।

तभी एक मोटर साइकिल सड़क पर हॉर्न बजाते हुए उसके पास से गुज़री जिसके चलते वो होश में आई।
उसने हड़बड़ा कर पहले इधर उधर देखा फिर वापस मकान के दरवाज़े को देखने लगी।
मकान के बाहर ही एक तरफ टैक्सी खड़ी थी।

उसने देखा, दरवाज़े पर कोई ताला नहीं लगा हुआ था और ना ही बाहर से कुंडी द्वारा बंद था। मतलब साफ था इस वक्त अंदर कोई तो था।
इस ख़याल ने प्रिया की धड़कनों को एक बार फिर से बढ़ा दिया।
फिर उसी धड़कते दिल के साथ वो दरवाज़े की तरफ बढ़ चली।

एक तरफ जहां उसकी धड़कनें बढ़ी हुईं थी वहीं दूसरी तरफ उसके अंदर तरह तरह के ख़याल उभर रहे थे।

दरवाज़े के क़रीब पहुंच कर उसने अपना एक हाथ आगे बढ़ाया।
वो ये देख कर थोड़ा चौंकी कि उसका हाथ कांप रहा है।

अगले ही पल उसने दरवाज़े पर दस्तक दी और किसी के द्वारा दरवाज़ा खोले जाने का इंतज़ार करने लगी।
उसकी धड़कनें पहले से कई गुना तेज़ हो गईं थीं।
घबराहट के चलते चेहरे पर पसीना उभर आया था।

जब आधा मिनट गुज़र जाने पर भी दरवाज़ा न खुला तो उसने कांपते हाथ से एक बार फिर दरवाज़े पर दस्तक दी।

"आ रहा हूं भाई?" अंदर से उसे एक चिर परिचित आवाज़ सुनाई दी जो दरवाज़े की तरफ ही आती महसूस हुई।

पहले से ही बढ़ी हुई धड़कनें अब धाड़ धाड़ कर के बजते हुए किसी हथौड़े की तरह उसके कानों में धमकने लगीं।
उसने बड़ी मुश्किल से खुद को सम्हाला और आने वाले वक्त के लिए खुद को तैयार करने की कोशिश में लग गई।

कुछ ही पलों में हल्की चरमराहट के साथ दरवाज़ा खुला।
खुले दरवाज़े के बीच उसे अरमान नज़र आया।
वही अरमान जिसे दो दिन पहले उसने फाइव स्टार होटल के बाहर उल्टा सीधा बोला था।
वही अरमान जो आज भी उसे दिलो जान से प्यार करता था।
चेहरे पर बढ़ी हुई दाढ़ी मूंछें और सिर पर बड़े बड़े किंतु थोड़ा उलझे हुए बाल।

उधर दरवाज़े के बाहर प्रिया को खड़ा देख अरमान के चेहरे पर आश्चर्य के भाव उभरे।
ना प्रिया को समझ आया कि क्या कहे और ना ही अरमान को।

"अ..अरे! प्रिया तुम? यहां?" फिर अरमान ने ही चौंकते हुए ख़ामोशी तोड़ी──"यकीन नहीं हो रहा कि मेरे ग़रीबखाने में तुम आई हो।"

"हां...वो...मैं।" प्रिया ने अटकते हुए कहा──"मैं दरअसल, आई मीन....।"

"अगर तुम्हारी शान में गुस्ताख़ी न हो।" अरमान ने दरवाज़े से एक तरफ हटते हुए कहा──"तो अंदर आ जाओ।"

अरमान की इस बात ने प्रिया के अंदर अजीब सी टीस पैदा की किंतु फिर वो खुद को सम्हालते हुए अंदर दाख़िल हो गई।

घर के अंदर आते ही प्रिया इधर उधर नज़र दौड़ाते हुए हर चीज़ को देखने लगी।
सब कुछ बड़ा ही अजीब सा दिख रहा था उसे।

मकान की जैसी हालत बाहर से थी वैसी ही हालत अंदर से भी थी।
सब कुछ अस्त व्यस्त।
कोई भी चीज़ अपनी जगह पर सही ढंग से मौजूद नहीं थी।

"माफ़ करना।" सहसा अरमान की आवाज़ ने उसे उसकी तरफ देखने पर मजबूर किया। उधर अरमान ने कहा──"मेरा ये ग़रीबखाना तुम्हारे बैठने के क़ाबिल तो नहीं है फिर भी अगर तुम ठीक समझो तो बैठ जाओ यहां। मैं तब तक तुम्हारे लिए कुछ चाय नाश्ते का प्रबंध करता हूं।"

"न...नहीं नहीं।" प्रिया ने हड़बड़ा कर जल्दी से कहा──"इसकी कोई ज़रूरत नहीं है और हां मुझे यहां बैठने में भी कोई प्रोब्लम नहीं होगी।"

अरमान ने फटे पुराने सोफे पर थोड़ा साफ सुथरा एक चद्दर डाल दिया जिस पर प्रिया बैठ गई।
उसे बड़ा अजीब सा लग रहा था।
कभी वो एक नज़र अरमान को देख लेती तो कभी इधर उधर देखने लगती।

"अंकल कहां हैं?" फिर उसने जैसे बात करने का सिलसिला शुरू करते हुए पूछा।

"वहां।" अरमान ने अपने हाथ की एक उंगली को छत की तरफ उठाते हुए कहा──"मुझे छोड़ कर जाने वालों में एक तुम ही हो जो वापस लौटी हो। पापा जब से गए तो अब तक वापस नहीं लौटे और ना ही इस जीवन में कभी लौटेंगे।"

"क...क्या मतलब?" प्रिया की धड़कनें विचित्र ख़यालों के उभर आने के चलते थम सी गईं।

"मतलब ये कि।" अरमान ने फीकी मुस्कान के साथ कहा──"जो लोग ईश्वर को प्यारे हो जाते हैं वो हमारे पास वापस लौट कर नहीं आते।"

"क...क्या???" प्रिया बुरी तरह उछल पड़ी──"तु...तुम्हारा मतलब है कि अंकल अब नहीं....?"

"हां।" अरमान ने कहा──"चार साल पहले ग़लती से एक ट्रक वाले ने उन्हें टक्कर मार दी थी। हॉस्पिटल पहुंचने से पहले ही उन्होंने दम तोड़ दिया था। मां तो पहले ही गुज़र गईं थी तुम्हें तो पता ही है। अपनों के नाम पर एक पापा ही थे लेकिन अब वो भी नहीं हैं। अब ये घर भी अकेला है और मैं भी।"

प्रिया उसकी बातें सुन कर कुछ बोल न सकी।
उसे यकीन नहीं हो रहा था कि अरमान के पिता अब इस दुनिया में नहीं हैं।
उसे अरमान के लिए बहुत ही बुरा फील होने लगा।

उसे पहली बार एहसास हुआ कि अरमान वास्तव में अंदर से कितना दुखी होगा।
सहसा उसे ये सोच कर अपने आप पर गुस्सा आया कि उसने ऐसे दुखी इंसान को उल्टा सीधा बोल कर और भी कितना दुखी किया था।

उसका जी चाहा कि ये ज़मीन फटे और वो उसमें अपना मुंह छुपा कर समा जाए।
पहली बार उसे अपनी करनी पर बेहद शर्म महसूस हुई।
पहली बार उसे महसूस हुआ कि ऐसे व्यक्ति को ठुकरा कर उसने उसके साथ कितना ग़लत किया था।

"अ....अरमान।" फिर वो भारी गले से बोली──"मुझे माफ़ कर दो प्लीज़। मैं तुम्हारी गुनहगार हूं। मैंने पहले भी तुम्हारा दिल दुखाया था और उस दिन भी अपने गुरूर में दिल दुखा दिया था। वास्तव में बहुत बुरी हूं मैं।"

कहते कहते प्रिया की आंखें छलक पड़ीं।
हालाकि उसने अपने जज़्बातों को काबू करने की बहुत कोशिश की थी लेकिन भावनाओं का ज्वार इतना प्रबल हो उठा था कि उसके सम्हाले न सम्हला था।

"तुम्हें मुझसे किसी बात के लिए माफ़ी मांगने की ज़रूरत नहीं है।" अरमान ने कहा──"सच तो ये है कि जो कुछ भी हुआ था या हुआ है वो सब मेरी किस्मत में ही लिखा था। ऊपर वाले ने मेरे नसीब में कभी कुछ अच्छा होना लिखा ही नहीं, तभी तो सब मुझे छोड़ कर चले गए।"

"ऐसा मत कहो।" प्रिया ने कहा──"और ये बताओ कि तुमने अपने साथ साथ इस घर की ये कैसी हालत बना रखी है?"

"बड़ी अजीब बात है।" अरमान ने हल्के से मुस्कुरा कर कहा──"तुम मुझसे मेरी और मेरे घर की हालत के बारे में पूछ रही हो? अभी दो दिन पहले तो तुम मुझे जाने क्या क्या बोल रही थी, फिर आज तुम्हारा लहजा इतना कैसे बदल गया? तुम इतनी नर्म कैसे हो ग‌ई?""

प्रिया को फ़ौरन कुछ कहने के लिए जवाब न सूझा।
कुछ पलों तक तो वो अरमान से निगाहें चुराए रखी किंतु फिर जैसे उसने साहस जुटाया।

"अ..अरमान।" फिर वो थोड़ा संजीदा हो कर बोली──"उस दिन के लिए मैं बहुत शर्मिंदा हूं। प्लीज़ मेरे उस बर्ताव के लिए मुझे माफ़ कर दो।"

"क्या मेरे माफ़ ना करने से तुम्हें कोई फ़र्क पड़ जाएगा?" अरमान ने अजीब भाव से उसे देखा──"वैसे मुझे तो ऐसा नहीं लगता। अगर फ़र्क पड़ना ही होता तो आज से सवा सात साल पहले तुमने मुझे ठुकरा नहीं दिया होता। तुम मेरी सच्ची मोहब्बत का मान रखती और जो मेरी हैसियत थी उसको कबूल कर हमेशा के लिए मेरी हो जाती। इसका तो यही मतलब हुआ प्रिया कि तुम्हें मुझसे कभी कोई प्रेम था ही नहीं बल्कि तुम्हारे दिल में सिर्फ इस बात की चाहत थी कि तुम्हारी शादी एक ऐसे व्यक्ति से हो जो तुम्हें दुनिया का हर सुख और ऐशो आराम दे सके। ख़ैर, बहुत बहुत मुबारक हो, तुमने जिन चीज़ों की ख़्वाहिश की थी वो तुम्हें मिल ग‌ईं।"

प्रिया को एक बार फिर से कोई जवाब न सूझा।
उसके दिलो दिमाग़ में जज़्बातों की ज़बरदस्त आंधियां चलने लगीं थी।
उसे शिद्दत से एहसास हो रहा था कि सचमुच उसने अरमान के साथ वैसा प्रेम नहीं किया था जैसा वो उससे करता था।

"शायद तुम सच कह रहे हो अरमान।" फिर उसने खुद को सम्हालते हुए तथा गहरी सांस ले कर कहा──"और मैं मानती हूं कि शायद मेरे दिल में तुम्हारे जैसा प्रेम नहीं था। ख़ैर एक सच ये भी है कि शायद हमारी किस्मत में एक दूसरे का होना लिखा ही नहीं था। तुम प्लीज़, खुद को सम्हालो और अपने जीवन को इस तरह बर्बाद मत करो। अभी भी वक्त है, किसी अच्छी लड़की से शादी कर लो और अपनी दुनिया को आबाद कर लो। क्या तुम मेरी इतनी सी बात नहीं मान सकते?"

"ऐसा क्यों होता है प्रिया कि प्रेम करने वाले को अपनी मोहब्बत के लिए हर तरह की कीमत चुकानी पड़ती है?" अरमान ने थोड़ी ही दूरी पर रखी एक चारपाई पर बैठने के बाद कहा──"ऐसा क्यों होता है कि आशिक को उसकी हर बात माननी पड़ती है जिसे वो टूट कर मोहब्बत कर रहा होता है? क्यों उसकी मोहब्बत उस आशिक के जज़्बातों को नहीं समझती और वो करने पर मजबूर कर देती है जो वो किसी भी कीमत पर करना नहीं चाहता मगर उसे करना ही पड़ता है?"

"शायद सच्चा प्रेम वही है जिसमें त्याग और बलिदान दिया जाता है।" प्रिया ने लरजते स्वर में कहा──"जो ऐसा करते हैं वही सच्चा प्रेम करने वाले कहलाते हैं। मुझे एहसास है कि तुमने मुझसे सच्चा प्रेम किया है। ये तो मैं थी जिसने तुम्हारे सच्चे प्रेम की क़दर नहीं की और तुम्हें ठुकरा के किसी और की हो गई। अरमान, तुमने ये गाना तो सुना ही होगा ना──'कभी किसी को मुकम्मल जहां नहीं मिलता।' प्रेम करने वालों का ज़्यादातर ऐसा ही इतिहास रहा है। वो बहुत खुशनसीब होते हैं जिन्हें मोहब्बत नसीब होती है। ख़ैर मेरी तुमसे बस यही विनती है कि प्लीज़ गुज़री हुई बातों और यादों को भुलाने की कोशिश करो और अपनी दुनिया बसा लो। उस दिन अपने गुरूर में तुम्हें उल्टा सीधा बोल गई थी लेकिन बाद में एहसास हुआ कि मुझे ऐसा नहीं करना चाहिए था। इसी लिए तो आज तुमसे माफ़ी मांगने आई हूं। यकीन मानो उसी पल से बेचैन थी तुमसे मिल कर तुमसे माफ़ी मांगने के लिए। जब नहीं रहा गया तो आज भागी चली आई यहां।"

"चलो इसी बहाने मेरे ग़रीबखानें में तुम्हारे क़दम तो पड़े।" अरमान ने फीकी मुस्कान के साथ कहा──"मुद्दतों बाद इस उजड़े हुए आशियाने को बहार की खुशबू मिली है।"

"बहुत अजीब बातें करते हो तुम।" प्रिया की धड़कनें अरमान की बातों से धाड़ धाड़ कर के बज उठतीं थी।
खुद को बड़ी मुश्किल से सम्हाले हुए थी वो।

"वक्त और हालात इंसान को बहुत कुछ सिखा देते हैं।" अरमान ने कहा──"बातें करना भी और ऐसे हाल में रहना भी।"

"हम्म्म।" प्रिया को समझ न आया कि क्या कहे, फिर सहसा वो इधर उधर देखने के बाद बोली──"अच्छा अब बातें बंद करो। मैं ज़रा इस घर का हुलिया ठीक कर देती हूं। जाने कब से तुमने इस घर की साफ सफाई नहीं की है।"

"तुम्हें ये सब करने की ज़रूरत नहीं है।" अरमान ने कहा──"मुझे ऐसे हाल में रहने की आदत है। वैसे भी अगर तुम ये सब करोगी तो मेरे अंदर फिर से एक ऐसी उम्मीद पैदा हो जाएगी जिसका पूरा होना संभव नहीं है।"

"उम्मीद ऐसी करो जिसका पूरा होना संभव हो।" प्रिया ने कहा──"फालतू की बातें सोचना बेवकूफी होती है। अब चलो उठो और मुझे मेरा काम करने दो। मेरे पास ज़्यादा समय नहीं है। मेरी बेटी अपने स्कूल से शाम साढ़े चार बजे आती है। अभी दो ढाई घंटे हैं मेरे पास। तब तक मैं यहां का थोड़ा बहुत हुलिया तो सही कर ही दूंगी। बाकी फिर किसी दिन आ कर कर दूंगी।"

अरमान मना करता ही रह गया लेकिन प्रिया ने उसकी एक न मानी।
अरमान को उसके आगे हथियार डाल देने पड़े।
हालाकि मन ही मन उसे इस बात की खुशी हो रही थी कि चलो इसी बहाने प्रिया उसके घर में तो थी।
उसकी स्थिति देखने से उसके मन में उसके प्रति कोई भावना तो पैदा हुई थी।

उसके बाद अरमान ने देखा कि प्रिया ने डेढ़ दो घंटे में उसके घर का बहुत कुछ हुलिया बदल दिया था।
इस सबके चलते उसका अपना हुलिया बिगड़ गया था।
उसके कपड़े गंदे हो गए थे।
घर के पीछे बने बाथरूम में जा कर उसने अपने आपको थोड़ा बहुत साफ किया और फिर अरमान से किसी दिन फिर से आने का बोल कर चली गई।
उसके जाते ही अरमान के होठों पर एक रहस्यमय मुस्कान उभर आई थी।



क्रमशः.....
Nice update....
 
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TheBlackBlood

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
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Bahut hi shaandar update diya hai TheBlackBlood bhai....
Nice and lovely update....
Thanks
 

TheBlackBlood

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
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You're very welcome! I'm really glad you liked the review, and I'm happy that my interpretation resonated with you. It’s great to hear that the outline aligns with what I imagined—it sounds like an exciting journey ahead. I’m sure with the readers' support, your story will reach its beautiful conclusion. I’ll definitely be following along and can’t wait to see how everything unfolds. Keep up the amazing work and don’t hesitate to share more thoughts or updates! Best of luck!
Stay with us... :dost:
 

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शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
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Awesome update
Priya अपनी गलती मानकर अरमान से माफी मांगने उसके घर तक पहुंच गई,
कुछ शिकवे शिकायत के बाद शायद दोनों के मन को कुछ ठंडक मिली होगी,
प्रिया अपनी सात साल पहले और अभी उस दिन के व्यवहार के लिए एक माफी मांगकर अपने दिल को तसल्ली देना चाहती है क्या अरमान उसे माफ करेगा या उसके मन में कुछ और ही चल रहा है
क्या प्रिया का दिल उसे सही वार्निंग दे रहा था अतीत से दूर रहने की,
प्रिया के लौटने के बाद अरमान के होंठो पर जो मुस्कान थी उसकी वजह क्या होगी क्या प्रिया के मन में अचानक से जो गिल्ट पैदा हुआ क्या उसके पीछे अरमान का किया धरा है कुछ
Aaj do update de raha hu taaki story ko samajhne me thodi asaani ho jaye. Iske sath hi aap sabko ye bhi samajh aa jaye ki Arman ki asal me mentality kaisi hai aur ab wo kya karna chahta hai... :approve:

Anyway thanks for your valuable and lovely feedback :hug:
 

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