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Thriller ♡ बेरहम इश्क़ ♡

TheBlackBlood

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
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प्रिया के इस ह्रदय परिवर्तन का राज क्या है ? जो लड़की एक शख्स को सात साल पहले धोखा दे गई , जिस लड़की ने मात्र , मात्र एक दिन पहले उस शख्स पर निगाहों से भाले , बरछियां बरसाई वह लड़की अचानक से उस शख्स का खिदमत - गार कैसे बन गई ।
यह इन्कलाबी कायापलट आखिर क्यों ! ऐसा एक रात मे क्या हो गया कि मोहतरमा , मीना कुमारी के रोल मे दिखने लगी ?

खैर जब जागो तभी सबेरा । देर से ही सही पर प्रिया को अपने गलती का एहसास तो हुआ ।
Wakt aur haalaat badi kutti cheez hote hain. Kuch log aam situation me kisi ke saamne jhukna pasand nahi karte but musibat me gadhe ko bhi baap bana lene ko taiyar ho jate hain. Tab ham uske bare me aisa hi soch baithte hain.... :D

Anyway aage Priya ki is mentality ko samajh jayenge..
इधर हमारे हीरो साहब ने अंतिम क्षणों मे हमे सस्पेंस मे डाल दिया । प्रिया के जाने के बाद उनके चेहरे पर मौजूद अर्थपूर्ण मुस्कान कुछ कुछ अनर्थ का इशारा कर रहे है ।
जब लड़की बेवफाई करी तब लड़के ने चुपचाप अपनी आंखे बंद कर ली लेकिन जब लड़की ने वफा करने की कोशिश करी तो लड़के की न केवल दोनो आंखे बल्कि त्रिनेत्र की भृकुटी भी तन गई ।

आखिर हमारे अरमान साहब के अरमान क्या है ?
Duniya me ajeeb khopdi walo ki kami nahi hai. Arman bhi unhi ajeeb khopdi walo me se hai.... :D
खुबसूरत अपडेट शुभम भाई ।
Thanks bade bhaiya :hug:
 
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TheBlackBlood

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
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भाग- ०३
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उसके बाद अरमान ने देखा कि प्रिया ने डेढ़ दो घंटे में उसके घर का बहुत कुछ हुलिया बदल दिया था।
इस सबके चलते उसका अपना हुलिया बिगड़ गया था।
उसके कपड़े गंदे हो गए थे।
घर के पीछे बने बाथरूम में जा कर उसने अपने आपको थोड़ा बहुत साफ किया और फिर अरमान से किसी दिन फिर से आने का बोल कर चली गई।
उसके जाते ही अरमान के होठों पर एक रहस्यमय मुस्कान उभर आई थी।



अब आगे....


प्रिया जब अपने फ्लैट पर पहुंची तो शाम के साढ़े चार बज चुके थे
उसकी सौतेली बेटी अंकिता के आने का समय हो गया था।
प्रिया ने फ़ौरन ही अपने कमरे में जा कर सबसे पहले अपने गंदे कपड़े उतारे और अटैच बाथरूम में घुस गई।

जल्दी जल्दी उसने खुद को साफ किया और फिर कमरे में आ कर दूसरे कपड़े पहन लिए।
गंदे वाले कपड़ों को वाशिंग मशीन में डाल ही रही थी कि दरवाज़े की घंटी बज उठी।
वो समझ गई कि उसकी बेटी अंकिता स्कूल से आ गई है।
कपड़ों को मशीन में डाल कर वो तेज़ी से बाहर वाले दरवाज़े के पास पहुंची और गेट खोल दिया।

"आ गई मेरी बेटी?"

अंकिता पर नज़र पड़ते ही उसने बड़े ही स्नेह से कहा और फिर दरवाज़े से एक तरफ हट कर अंकिता को अंदर आने का रास्ता दिया।

अंकिता उसे देख कर थोड़ा सा मुस्कुराई और फिर अपना बैग लिए अंदर दाख़िल हो गई।

प्रिया ने ये सोच कर मन ही मन राहत की सांस ली कि अच्छा हुआ जो वो वक्त पर आ गई थी वरना उसकी बेटी को यहां इंतज़ार करना पड़ता और संभव था कि उसके सवालों के जवाब भी देने पड़ जाते।

[][][][][]

"ये तो कमाल हो गया।" विशाल ने सामने वाले सोफे पर बैठे अरमान को देखते हुए थोड़ी हैरानी से कहा──"यकीन नहीं होता कि वो आज तेरे घर आई और उसने तेरे घर का हुलिया भी ठीक किया।"

"उम्मीद तो मुझे भी नहीं थी।" अरमान ने कहा──"लेकिन फिर भी मेरा दिल कह रहा था कि वो मुझसे मिलने ज़रूर आएगी।"

"ये तूने उस दिन भी कहा था।" विशाल ने कहा──"ख़ैर, तो अब आगे क्या? मेरा मतलब है कि ये सब होने के बाद आगे का क्या प्लान है तेरा?"

"आगे का प्लान तब बनेगा जब ये कन्फर्म हो जाएगा कि वो मेरे लिए और क्या चाहती है?" अरमान ने एक सिगरेट जलाते हुए कहा──"मेरा मतलब है कि मेरी हालत को बेहतर बनाने के लिए वो क्या क्या करती है?"

"आज जो कुछ उसने तुझसे कहा है और जो कुछ उसने किया है।" विशाल ने भी एक सिगरेट जलाई, फिर कहा──"उससे तो यही प्रतीत होता है कि वो हर कीमत पर यही चाहती है कि तू खुद को बदले और किसी अच्छी लड़की से शादी कर के अपनी दुनिया आबाद कर ले। उसे एहसास है कि तेरी ये हालत उसी की वजह से है इस लिए वो पूरी कोशिश करेगी कि तू वही करे जो वो चाहती है। अगर तू खुद नहीं करेगा तो यकीनन वो खुद इसके लिए प्रयास करेगी।"

"लगता तो यही है।" अरमान ने कहा──"अब देखना ये है कि वो क्या क्या करती है?"

"वो क्या क्या करेगी ये तो ख़ैर आने वाला वक्त ही बताएगा।" विशाल ने कहा──"लेकिन जाने क्यों तेरे इरादे मुझे नेक नहीं लग रहे।"

"मेरे इरादे नेक ही हैं डियर।" अरमान ने सिगरेट का एक लंबा कश ले कर उसका धुआं उड़ाते हुए कहा──"अपनी चाहत अपनी मोहब्बत को वापस हासिल करना ग़लत तो नहीं। वैसे, इतना तो तुझे भी पता है कि जब तक इंसान के इरादे नेक होते हैं तब तक साला उसे कुछ भी हासिल नहीं होता। मुझे ही देख ले, क्या मिला मुझे इरादा नेक बनाए रखने से? सच तो ये है मेरे दोस्त कि कुछ हासिल करने के लिए कभी कभी नेक की जगह ग़लत इरादे भी रखने चाहिए। अगर यही सब सात साल पहले किया होता तो आज वो किसी और की नहीं बल्कि मेरी बीवी होती।"

"तू सच में बहुत अजीब है।" विशाल ने अपनी बची हुई सिगरेट को ऐश ट्रे में बुझाते हुए कहा──"इन सात सालों में तुझे एक से बढ़ कर एक हसीन लड़कियां मिल सकती थीं लेकिन साला तेरी सुई उस प्रिया में ही अटकी रही। तू चाहता तो कब का अपनी दुनिया बसा लेता मगर नहीं, तुझे तो वही वापस चाहिए थी जिसने तुझे ठुकरा दिया था? ऐसा पागलपन क्यों यार?"

"तुझे ये पागलपन लगता है?" अरमान ने उसकी तरफ तिरछी नज़र से देखा──"जबकि ये मेरे दिल की ख़्वाहिश की बात है। उन सच्चे जज़्बातों की बात है जिन्हें उसने ठुकरा दिया था और मेरे दिल को चूर चूर कर दिया था। ख़ैर मैं जानता था कि जिस तरह की चाहत उसने की थी वैसा ज़रूर होगा। यानि वो सचमुच किसी रईस व्यक्ति से शादी करेगी। अपनी ज़िद तो बस इतनी सी थी कि अगर वो दुबारा कहीं मिले तो उसे इस बात का एहसास कराऊं कि दुनिया में दौलत भले ही उसे हज़ारों ऐशो आराम दे देगी लेकिन खुशी का असली एहसास क्या होता है इससे वो हमेशा महरूम ही रहेगी।"

"तो क्या तुझे ये लगता है कि रईस व्यक्ति की बीवी होने के बाद भी वो खुशी के असली एहसास से महरूम है?" विशाल ने पूछा।

"हां, ऐसा हो भी सकता है।" अरमान ने कहा──"और अगर ऐसा नहीं होगा तो मैं उसे इसका एहसास कराऊंगा।"

"मुझे तो ऐसा लगता है कि तू इस बारे में ज़रूरत से ज़्यादा ही सोच रहा है।" विशाल ने कहा──"हो सकता है कि उसके प्रति तेरा ये ख़याल बेवजह अथवा बेबुनियाद ही हो।"

"बिल्कुल हो सकता है।" अरमान ने कहा──"मगर जैसा कि मैंने कहा अगर उसे एहसास नहीं होगा तो मैं खुद एहसास कराऊंगा।"

"और ऐसा तू करेगा कैसे?"

"मैं बताऊंगा नहीं बल्कि तुझे ऐसा कर के दिखाऊंगा।" अरमान ने पूरे आत्मविश्वास के साथ कहा──"संभव है कि थोड़ा समय लग जाए लेकिन ऐसा होगा ज़रूर। बस तू देखता जा।"

विशाल अपलक उसे देखता रहा।
इस वक्त अरमान के चेहरे पर अगर उसे कुछ दिख रहा था तो वो था──आत्मविश्वास, दृढ़ निश्चय और पत्थर जैसी कठोरता।

[][][][][]

अंकिता शाम साढ़े पांच बजे ट्यूशन पढ़ने चली जाती थी। इस बीच प्रिया थोड़ी देर आराम करती थी।
उसका पति अशोक शाम के साढ़े आठ या नौ बजे के क़रीब आता था।

अंकिता के जाने के बाद प्रिया अपने कमरे में बेड पर लेटी हुई थी।
बार बार अरमान के ख़याल आ रहे थे।
हालाकि वो उसके बारे में इतना ज़्यादा सोचना नहीं चाहती थी लेकिन जाने क्यों उसका भटकता हुआ मन बार बार उसकी तरफ ही चला जाता था।

वो सोचने लग जाती थी कि अरमान सचमुच उसे दिल की गहराइयों से प्यार करता है।
ये उसके प्रेम की शिद्दत ही थी कि उसने अब तक अपने जीवन में किसी और लड़की को जगह नहीं दी थी।

एकाएक ही उसे ख़याल आया कि अरमान ने उसकी वजह से अपना कैसा हाल बना लिया है।
उसे और उसके घर को देख कर इतना तो अब वो समझ ही गई थी कि अरमान ने उसे या फिर ये कहें कि अपनी मोहब्बत को खोने के बाद हर चीज़ से जैसे किनारा ही कर लिया था।
कदाचित यही वजह है कि वो आज भी एक मिडल क्लास आदमी ही बना रहा और उसका कोई खास मुकाम नहीं बन सका।

जब तक वो उससे मिली न थी तब तक उसे कभी ख़याल तक नहीं आया था उसका लेकिन अब उससे मिलने और उसकी हालत देखने के बाद बार बार उसका मन उसी के बारे में सोचने लगता था।

उसे ऐसा प्रतीत होता जैसे उसके अंदर से कोई कह रहा हो कि──"देख प्रिया, तेरी वजह से उस व्यक्ति ने अपना जीवन बर्बाद कर लिया। वो आज भी तुझे टूट कर चाहता है। क्या उसका हाल जान लेने के बाद भी तेरा उसके प्रति कोई फर्ज़ नहीं बनता? माना कि तू उसके लिए हर चीज़ नहीं कर सकती लेकिन कम से कम इतना तो कर ही सकती है जिससे कि उसके अंदर अपनी दुनिया बसा लेने का ख़याल आ जाए।"

"मैं करूंगी।" अपने अंदर की आवाज़ सुन प्रिया के मुख से अनायास ही निकल गया──"मुझसे जितना हो सकेगा उतना उसकी भलाई के लिए कुछ न कुछ करूंगी।"

"क्या करेगी तू?" अंदर से उसकी अंतरात्मा ने उससे पूछा──"और क्या तुझे लगता है कि अरमान खुद को बदल कर तथा पिछला सब कुछ भुला कर एक नए सिरे से अपना जीवन शुरू करेगा?"

"हां, मुझे यकीन है कि अरमान मेरी कोई भी बात नहीं टालेगा।" प्रिया ने जवाब दिया।

शाम साढ़े आठ बजे के क़रीब उसका पति अशोक आया।
प्रिया ये देख कर खुश हुई कि वो अपने साथ एक मेड को ले कर आया है।
मेड शादी शुदा थी किंतु उसकी उमर प्रिया जितनी ही लग रही थी।

अशोक ने बताया कि मेड का पति कंपनी में ही काम करता है। उसके पति को कंपनी की तरफ से कालोनी में कमरा तो मिला हुआ है लेकिन वो अपनी पत्नी मीरा को कालोनी के कमरे में नहीं रख सकता। वो आज ही गांव से अपनी पत्नी को ले कर आया था और कंपनी के बाहर कहीं किराए से कमरा ढूंढ रहा था। अशोक को जब कंपनी के एक आदमी ने इस बारे में बताया तो उसने मीरा के पति को बुला कर उससे बात की और ये भी कहा कि वो उसे कहीं पास में ही कमरा दिलवा देगा बशर्ते वो अपनी बीवी को उसके यहां काम करने को राज़ी हो।

मीरा के पति को इससे कोई आपत्ति नहीं थी। बल्कि वो ये सोच कर खुशी से राज़ी हो गया था कि अशोक जैसे बड़े आदमी के घर में काम करने से उसकी पत्नी भी चार पैसे कमा लेगी जिससे उसके परिवार का गुज़ारा बेहतर तरीके से हो सकेगा।

बहरहाल, मेड के आ जाने से प्रिया खुश हो गई थी। अशोक ने बताया कि मीरा अपने पति के लिए सुबह का नाश्ता बना कर सुबह जल्दी ही यहां आ जाया करेगी और फिर दोपहर तक यहीं रहेगी। सारे काम करने के बाद वो वापस अपने घर चली जाया करेगी और फिर शाम को आएगी। शाम का खाना पीना बना कर वो वापस अपने घर पति के पास चली जाएगी।
प्रिया को इससे कोई परेशानी नहीं थी।

[][][][][]

अगले दिन।

"अरे! प्रिया तुम?" अरमान ने जैसे ही दरवाज़ा खोला तो बाहर प्रिया को खड़ा देख थोड़ा चौंकते हुए बोला──"मैं खुली आंखों से कोई हसीन ख़्वाब तो नहीं देख रहा?"

"मुझे लगा ही था कि तुम घर पर ही होगे।" प्रिया ने अंदर दाख़िल होते हुए कहा──"तुम्हारी और तुम्हारे घर की हालत देख कर यही लगता है कि तुम हमेशा ही ऐसे रहना चाहते हो। अरे! दुनिया के लोग कहां से कहां पहुंच गए और तुम अब भी उसी दुनिया में खोए हुए हो जिसका कोई मतलब ही नहीं है। आख़िर कब तक ऐसे बेमतलब की ज़िंदगी जीते रहोगे तुम?"

"दिल अगर ऐसे ही जीने पर मजबूर करे तो कोई क्या करे प्रिया?" अरमान ने मानो ठंडी आह भरते हुए कहा──"हालांकि कभी कभी मैं भी सोचता हूं कि अपनी इस ज़िंदगी से बाहर निकल कर कुछ करूं लेकिन ऐसा हो ही नहीं पाता। पहले भी मेरा पागल दिल मेरे दिमाग़ पर हावी था और आज भी हावी है।"

"तुम और तुम्हारी बातें दोनों ही बहुत अजीब हैं।" प्रिया ने धड़कते दिल से कहा──"और ये तुम्हारे घर के बाहर टैक्सी किसकी खड़ी है? कल भी खड़ी थी।"

"किराए की है, उसे चलाता हूं मैं।" अरमान ने कहा──"असल में अपना थोड़ा बहुत जो खर्चा है वो टैक्सी चला कर ही पूरा हो जाता है। दिन में आराम करता हूं और रात में टैक्सी चलाता हूं। रात में ठीक रहता है क्योंकि देर रात जो सवारियां मिलती हैं उससे दुगनी तिगुनी आमदनी हो जाती है। उस आमदनी में से टैक्सी मालिक को कुछ पकड़ा देता हूं और बाकी जो बचता है वो अपना पेट भरने के लिए पर्याप्त होता है।"

अरमान की ये बातें सुन कर प्रिया को ज़बरदस्त धक्का लगा।
उसके अंदर ये सोच कर दर्द भरी टीस उभरी थी कि अरमान जैसा पढ़ा लिखा इंसान आज उसकी वजह से टैक्सी चला कर अपना जीवन यापन कर रहा है।
इस एहसास ने प्रिया को अंदर ही अंदर झकझोर कर रख दिया।
एक बार पुनः उसके मन में ख़याल उभरा कि काश! उसने अरमान को ठुकराया न होता।

अरमान की बात सुनने के बाद वो जज़्बातों में बहने लगी थी और शायद यही वजह थी कि वो फ़ौरन कुछ बोल ना सकी थी।
फिर किसी तरह उसने खुद को सम्हाला और घर की बाकी की सफाई में लग गई।

उसे ख़ामोशी से काम में लग गया देख अरमान के होठों पर रहस्यमय मुस्कान उभर आई।

"अच्छा ये बताओ कुछ खाया पिया है कि नहीं?" थोड़ी देर की ख़ामोशी के बाद प्रिया ने उसकी तरफ देख कर पूछा।

"हां, वो बाहर एक ढाबे से खा कर ही आया था।" अरमान ने बताया──"बस आराम करने ही जा रहा था कि तुमने दरवाज़ा खटखटा दिया।"

"ओह! इसका मतलब मैं ग़लत समय पर आ गई हूं?" प्रिया ने कहा──"अगर मुझे पता होता कि ये तुम्हारे रेस्ट करने का टाइम है तो नहीं आती।"

"कोई बात नहीं।" अरमान ने उसे बड़ी मोहब्बत से देखा──"तुम अगर रोज़ इसी तरह यहां आओगी तो मुझे रेस्ट करने की ज़रूरत ही नहीं पड़ेगी। तुम्हें देख लेने से ही दिलो दिमाग़ खुशी से बाग़ बाग़ हो जाया करेगा।"

प्रिया उसकी मोहब्बत भरी नज़रों का सामना न कर सकी और ना ही उसकी ऐसी बातों का कोई जवाब दे सकी।
ये अलग बात है कि उसकी धड़कनें तेज़ हो गईं थी।
ये सोच कर भी कि वो किसी की पत्नी है और एक ऐसे पराए मर्द के घर आई है जो अकेला तो है ही लेकिन उसका पूर्व प्रेमी भी है।

"लुक अरमान।" फिर उसने एक गहरी सांस ले कर कहा──"ये सब ठीक नहीं है। मेरा मतलब है कि मेरे प्रति तुम्हारी ये भावनाएं ठीक नहीं हैं। तुम्हें समझना होगा कि मैं किसी की पत्नी हूं और इस जन्म में तुम्हारी नहीं हो सकती। तुम्हारे लिए बेहतर यही होगा कि तुम खुद को सम्हालो और नए सिरे से अपनी ज़िंदगी शुरू करो।"

"अगर कोई चाह ले तो सब कुछ हो सकता है प्रिया।" अरमान ने उसकी तरफ दो क़दम बढ़ कर कहा──"तुम कहती हो कि इस जन्म में तुम मेरी नहीं हो सकती जबकि मैं कहता हूं कि यकीनन हो सकती हो।"

"क...क्या मतलब है तुम्हारा?"

प्रिया को झटका सा लगा।
हैरत भरी नज़रों से अरमान को देखने लगी वो।
अंदर ही अंदर थोड़ा घबरा भी उठी।

"मतलब बहुत सीधा और सरल है प्रिया।" अरमान ने कहा──"इंसान अगर चाह ले तो असंभव चीज़ को भी संभव बना सकता है। आज तुम भले ही किसी और की पत्नी हो लेकिन अगर चाहो तो मेरी पत्नी भी बन सकती हो। उसके लिए तुम्हें सिर्फ अपने पति को तलाक़ देना होगा और फिर मुझसे विवाह कर लेना होगा।"

"क्..क्या?? पागल हो क्या?" प्रिया ने आश्चर्य से आंखें फाड़ कर उसे देखा──"तुम सोच भी कैसे सकते हो कि मैं ऐसा करूंगी?"

"मैंने कहा भी नहीं कि तुम ऐसा करो।" अरमान ने अजीब भाव से मुस्कुराते हुए कहा──"मैंने तो सिर्फ ये बताया है कि इंसान अगर चाह ले तो सब कुछ हो सकता है। तुम ऐसा नहीं करना चाहती तो ये तुम्हारी सोच और मर्ज़ी की बात है।"

प्रिया को समझ न आया कि क्या कहे?
वो अभी भी आश्चर्य से आंखें फाड़े अरमान को देखे जा रही थी।
अरमान अच्छी तरह समझता था कि उसकी बातों ने प्रिया के मनो मस्तिष्क में कैसा तूफ़ान खड़ा कर दिया होगा।

"दूसरों को समझाना और उन्हें उपदेश देना बहुत आसान होता है।" फिर अरमान ने होठों पर फीकी सी मुस्कान सजा कर कहा──"मगर तुम भी जानती हो कि कहने में और करने में बहुत फ़र्क होता है। लोग दूसरों को बदलने के लिए जाने कैसे कैसे पैंतरे आज़माते हैं लेकिन वो एक बात ये नहीं सोचते कि जिसे वो बदलने की कोशिश कर रहे हैं वो बदलना भी चाहते हैं या नहीं? इस वक्त तुम भी मुझे बदलने की कोशिश ही कर रही हो जबकि सच्चाई ये है कि मैं किसी भी कीमत पर बदलना ही नहीं चाहता। आख़िर क्यों बदलूं? किसके लिए बदलूं? किस खुशी में बदलूं? अरे! जब मेरे अंदर किसी चीज़ की ख़्वाहिश ही नहीं है, किसी बात की कोई खुशी ही नहीं है तो किस आधार पर खुद को बदलूं? हां, एक तुम्हारी आरज़ू ज़रूर है लेकिन तुम मेरी हो नहीं सकती फिर किस लिए नई दुनिया बसाऊं? मेरा दिल किसी और की चाहत ही नहीं करता तो क्यों बेसबब किसी को अपना बना कर उसकी ज़िंदगी बर्बाद करूं, बताओ ज़रा?"

प्रिया को जैसे कोई जवाब ही न सूझा।
वो भौचक्की सी अरमान जैसे अजूबे को देखती रह गई।
फिर जैसे उसे होश आया तो उसने अपने ज़हन को झटका दे कर खुद को विचारों के भंवर से आज़ाद किया और फिर पलट कर पुनः साफ सफाई के काम में लग गई।

उसे समझ नहीं आ रहा था कि आख़िर अब वो ऐसा क्या करे जिससे अरमान सब कुछ भुला कर अपनी इस वीरान और बेमतलब सी ज़िंदगी से तौबा कर ले?
काम करते हुए वो यही सब सोचती जा रही थी लेकिन उसे कुछ सूझ नहीं रहा था।

अरमान ने भी आगे कुछ कहना उचित नहीं समझा था।
प्रिया क़रीब एक घंटे तक रही उसके बाद अपना हुलिया सही कर के चली गई।
जाते समय उसने सिर्फ इतना ही कहा कि समय मिला तो वो कल फिर आएगी लेकिन इसी शर्त पर कि वो थोड़ा समझने का प्रयास करे।



क्रमशः....
 

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शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
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79,808
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354
भाग- ०४
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"क्या बात है।" रात खा पी कर प्रिया जब अपने कमरे में पहुंची तो उसके चेहरे पर छाई गंभीरता को भांप कर उसके पति अशोक ने उससे पूछा──"मेड के आ जाने पर भी तुम खुश नहीं दिख रही?"

"ज..जी??" प्रिया एकदम से हड़बड़ा सी गई, फिर जल्दी ही खुद को सम्हाल कर बोली──"मेरा मतलब है ये क्या कह रहे हैं आप? मैं तो खुश ही हूं।"

"ऐसा लग तो नहीं रहा।" अशोक ने अपलक प्रिया को देखते हुए कहा──"बहुत देर से नोटिस कर रहा हूं तुम्हें। मेड के आने के बाद से अब तक मैंने तुम्हारे चेहरे पर खुशी के भाव नहीं देखे। ज़ाहिर है, कोई तो ऐसी बात है जिसकी वजह से तुम्हारा चांद की तरह नज़र आने वाला चेहरा बुझा हुआ और थोड़ा गम्भीर सा नज़र आ रहा है।"

अपने पति अशोक की ये बातें सुनते ही प्रिया ये सोच कर एकदम से घबरा उठी कि उसके चेहरे की गंभीरता अशोक को कहीं ये न समझा दे कि वो अपने पूर्व प्रेमी से दो दो बार मिल चुकी है।

माना कि अशोक उसे बहुत प्यार करता है और उसका हर नाज़ नखरा भी खुशी से सहता है लेकिन पत्नी को अपने पूर्व प्रेमी से मिलने की बात जान लेने के बाद वो यकीनन उससे ख़फा हो सकता है।

उसकी खुशहाल शादीशुदा ज़िंदगी में पलक झपकते ही तूफ़ान आ सकता है।
उसका पति उसे चरित्रहीन समझ कर उसे घर से भी निकाल सकता है।
उसकी सौतेली बेटी जो उसे भले ही मां कह कर नहीं पुकारती लेकिन सगी मां जैसी ही समझ कर उससे लगाव और स्नेह रखती है, वो ये सब जान कर उससे घृणा करने लगेगी।

प्रिया के मनो मस्तिष्क में पलक झपकते ही ये सारे ख़याल उभरते चले गए और उसकी रूह तक को थर्रा गए।

"क्या हुआ?" अभी वो ये सब सोच कर खुद को सम्हाल ही रही थी कि तभी अशोक की आवाज़ ने फिर से उसे चौंका दिया──"तुम कुछ बोल क्यों नहीं रही बेबी? देखो, तुम अच्छी तरह जानती हो कि मैं तुमसे कितना प्यार करता हूं। तुम्हें हर पल खुश देखना चाहता हूं। तुम्हारी हर ख़्वाहिश पूरी करता हूं लेकिन तुम्हारा उतरा हुआ चेहरा देख कर मैं थोड़ा चिंता में पड़ गया हूं। मैं जानना चाहता हूं कि मेरी खूबसूरत क्वीन को आख़िर किस बात ने गंभीर बना दिया है?"

"न...नहीं ऐसी कोई बात नहीं है अशोक।" प्रिया ने धड़कते दिल से कहा──"मेरा यकीन कीजिए मुझे किसी बात ने गंभीर नहीं बनाया है। बात बस इतनी सी थी कि इतने दिनों से घर के काम खुद ही कर रही थी इस लिए थकान थोड़ी ज़्यादा ही हो गई थी। शायद इसी वजह से मेरे चेहरे की रंगत थोड़ी डाउन सी लगी आपको।"

"तुम सच कह रही हो न?"

अशोक ने उसका हाथ पकड़ कर अपनी तरफ खींचते हुए कहा।

"हां बाबा, सच ही कह रही हूं।" अपने पति का स्नेह और प्यार देख प्रिया ने मन ही मन राहत की सांस ली और मुस्कुराते हुए खुद को उसके सुपुर्द करते हुए कहा──"भला इतने केयरिंग पति के रहते मुझे किस बात की फ़िक्र हो सकती है? एक ही बात की थोड़ी तकलीफ़ हो रही थी उसे भी आज आपने दूर कर दी। नाउ, आई एम सो हैप्पी।"

"दैट्स लाईक ए गुड गर्ल।" अशोक उसको अपने ऊपर लिए हुए बेड पर आहिस्ता से लेट गया।

प्रिया का पूरा भार उसके ऊपर आ गया था।
उसके सीने के ठोस उभार अशोक के सीने में मानो धंस से गए थे।
अशोक ने उसकी पीठ और कमर से अपने हाथ हटाए और फिर उसके चेहरे को हौले से थाम कर बड़े प्यार से कहा──"चलो अब तो अपने शहद जैसे होठों को चूम लेने दो।"

"चूम लीजिए।" प्रिया मुस्कुराई──"मैंने कब मना किया है भला?"

"सुबह मना की तो थी तुम।" अशोक उसकी आंखों में झांकता बोला──"कह रही थी कि जब तक मैं मेड ले कर नहीं आऊंगा तब तक तुम मुझे पप्पी नहीं दोगी।"

"हां तो।" प्रिया ने थोड़ी अदा से कहा──"अब अगर आप हर रोज़ मेड लाने का बोल कर भूल जाएंगे तो मैं भी तो थोड़ा गुस्सा दिखाऊंगी ही।"

"अच्छा, ऐसा क्या?" अशोक ने मुस्कुराते हुए कहा──"चलो, अब तो मेड भी आ गई और मेरी जान खुश भी हो गई इस लिए पप्पी के साथ साथ बाकी सब कुछ भी कर सकता हूं ना?"

अशोक की बात का मतलब समझते ही प्रिया के चेहरे पर शर्म की हल्की लाली फैल गई।
उसने शर्म से मुस्कुराते हुए अशोक के सीने में अपना चेहरा छुपा लिया।
अशोक को उसके यूं शर्मा जाने पर उस पर बेहद प्यार आया।
उसके बाद वो आहिस्ता आहिस्ता प्रिया को चूमना शुरू कर दिया।

[][][][][]

"टैक्सी।"

दूसरे दिन प्रिया ने सड़क पर एक टैक्सी को आते देख हाथ देते हुए आवाज़ दी।
टैक्सी वाले ने उसकी आवाज़ सुनी तो उसकी तरफ टैक्सी ला कर रोक दी।

"अरे वाह!" टैक्सी ड्राइवर जोकि अरमान ही निकला, उसने प्रिया को देखते ही चहक कर कहा──"क्या बात है, आज तो अगर मैं कुछ और भी सोच लेता तो वो भी हो जाता।"

"म...मतलब??" प्रिया टैक्सी ड्राइवर के रूप में अरमान को देख कर पहले तो हैरान हुई फिर उसकी बात सुनते ही बोली।

"एक्चुअली, आज मैं ये सोच रहा था कि काश! रास्ते में मुझे तुम मिल जाओ तो तुम्हें अपनी टैक्सी में बैठा कर ले चलूं।" अरमान ने टैक्सी से बाहर आ कर प्रिया की तरफ देखते हुए कहा──"और देख लो, जो मैं चाह रहा था वही हो गया। तभी तो कह रहा हूं कि आज अगर कुछ और भी सोच लेता तो शायद वो भी हो जाता।"

"तुम कुछ ज़्यादा ही नहीं सोच रहे?" प्रिया ने धड़कते दिल से कहा──"और तुम तो रात में टैक्सी चलाते हो ना तो फिर दिन के इस वक्त टैक्सी में कहां घूम रहे हो?"

"क्या करें डियर, हम जैसे मामूली लोगों का वक्त कहां हमेशा एक जैसा रहता है?" अरमान ने टैक्सी का पिछला दरवाज़ा खोल कर प्रिया से कहा──"कल तुम्हारे जाने के बाद सो गया था। जब आंख खुली तो फील हुआ कि तबीयत कुछ ठीक नहीं है। थोड़ी कमज़ोरी भी फील हो रही थी। इस चक्कर में कल रात टैक्सी ले कर कहीं जा ही नहीं पाया। पास के एक मेडिकल स्टोर से दवा ली और खा कर फिर से सो गया। सुबह जब उठा तो तबीयत बेहतर लगी। अब क्योंकि रात टैक्सी चला कर खर्चे के लिए कुछ कमा नहीं पाया था इस लिए सोचा दिन में ही टैक्सी चला लूं।"

"कुछ तो अपने बारे में सोचो अरमान।" प्रिया को उसकी ख़राब तबीयत का जान कर उसके लिए बहुत बुरा लगा।
एकाएक ही उसे फ़िक्र होने लगी उसकी।

वो झट से खुले दरवाज़े से टैक्सी की पिछली सीट पर बैठ गई।
अरमान ने हौले से मुस्कुराते हुए टैक्सी का पिछला दरवाज़ा बंद किया और फिर घूम कर अपनी ड्राइविंग सीट पर आ गया।
अगले ही पल उसने टैक्सी को आगे बढ़ा दिया।

"तो बताईए मैडम, कहां जाना है आपको?" फिर उसने बैक व्यू मिरर में प्रिया को देखते हुए पूछा।

"किसी अच्छे से हॉस्पिटल में ले चलो।" प्रिया की नज़र भी पीछे से बैक व्यू मिरर में दिख रहे अरमान पर पड़ गई थी।

"ह...हॉस्पिटल???" अरमान हल्के से चौंका──"हॉस्पिटल क्यों? तुम्हारी तबीयत तो ठीक है ना?"

"मेरी तबीयत ठीक है।" प्रिया ने बैक मिरर में अरमान पर नज़रें जमाए हुए ही कहा──"लेकिन तुम्हारी ठीक नहीं है इस लिए हॉस्पिटल चलो।"

"अरे! ये...ये क्या कह रही हो तुम?" अरमान एकदम से बौखला सा गया। फिर सम्हल कर बोला──"देखो, मैं बिल्कुल ठीक हूं और वैसे भी हॉस्पिटल में अपना इलाज़ करवाने के लिए पैसे नहीं हैं मेरे पास।"

"पैसे मैं दे दूंगी।" प्रिया ने सपाट लहजे में कहा──"तुम बस हॉस्पिटल चलो।"

"नहीं जाऊंगा।" अरमान ने सहसा सड़क के किनारे टैक्सी रोक दी, फिर मिरर में ही प्रिया को देखते हुए बोला───"और हां, मैं दुनिया के किसी भी इंसान का एहसान अपने ऊपर ले लूंगा लेकिन तुम्हारा नहीं।"

"अ...अरमान ये...ये तुम कैसी बातें कर रहे हो?" अचानक से उसका ये बर्ताव देख प्रिया की आंखें फैल गईं──"तुम सोच भी कैसे सकते हो कि मैं ऐसा तुम पर एहसान करने के लिए कह रही हूं?"

"बहुत खूब।" अरमान व्यंग से मुस्कुरा उठा──"उल्टा चोर कोतवाल को डांटे? ज़रा अपने गिरेबान में झांक कर तो देखो प्रिया। एक बार ज़रा देखो और फिर सोचो कि क्या तुमने ऐसा काम नहीं किया था जो मैं कभी सोच नहीं सकता था? चलो मान लिया कि मेरी हैसियत तुम्हें दुनिया का हर सुख और ऐशो आराम देने की नहीं थी जिसके चलते तुमने एक रईस व्यक्ति से शादी कर ली लेकिन....लेकिन इतने सालों बाद जब उस दिन इत्तेफ़ाक से तुमसे मुलाक़ात हुई तो तुमने कैसा बर्ताव किया था मेरे साथ? पैसे और गुरूर में तुम इतनी अंधी थी कि तुमने उस व्यक्ति का मज़ाक उड़ाया और उसे नीचा दिखाया जो तुम्हें दिलो जान से चाहता रहा है। इतना ही नहीं जिसने तुम्हारे सिवा कभी एक पल के लिए भी किसी दूसरी लड़की को अपने दिल में बैठाने का नहीं सोचा। क्या तुम्हारा वो बर्ताव और तुम्हारे वो कर्म मेरी सोच और उम्मीद से परे नहीं थे?"

प्रिया को फ़ौरन कोई जवाब नहीं सूझा।
अपराध बोध से उसका सिर झुकता चला गया।
सच ही तो कहा था अरमान ने।
उसने एक हफ़्ता पहले अरमान के साथ ऐसा ही तो बर्ताव किया था।

"सुना था औरत को कभी कोई समझ नहीं सकता।" उधर अरमान ने उसे चुप देख अधीरता से कहा──"आज तुम्हारा ये बर्ताव भी मुझे समझ नहीं आ रहा। उस दिन तो तुम मेरी हैसियत और मेरी हालत का मज़ाक उड़ा रही थी और खुद को आसमान से भी ऊंचा दिखा रही थी। कोई कसर नहीं छोड़ी थी मेरे दिल को छलनी छलनी करने में लेकिन अब मुझ पर मेहरबानी करती जा रही हो? भला किस लिए प्रिया? जो इंसान तुम्हारे लेवल का है ही नहीं उससे अचानक से ऐसा लगाव क्यों? उसकी भलाई के बारे में सोचना क्यों? उसके लिए फ़िक्र क्यों?"

प्रिया को अब भी कोई जवाब नहीं सूझा।
उसकी जुबान को जैसे ताला लग गया था।
सिर झुकाए वो ख़ामोशी से अरमान की बातें सुनती रही।
हां, उसके दिलो दिमाग़ में ज़बरदस्त हलचल ज़रूर मच गई थी।

"एक बात अच्छी तरह समझ लो प्रिया।" अरमान ने पुनः कहा──"मैं कल भी तुम्हें दिलो जान से प्यार करता था, आज भी करता हूं और आगे भी हमेशा करता रहूंगा। दुनिया का कोई भी व्यक्ति अथवा दुनिया की कोई भी ताक़त मेरे दिलो दिमाग़ से तुम्हारे प्रति इस चाहत को निकाल नहीं सकती। मैं जैसा हूं आगे भी वैसा ही रहूंगा। तुम्हें मेरी हालत पर तरस खा कर मुझ पर कोई एहसान करने की कोई ज़रूरत नहीं है और ना ही मुझ पर कोई हक़ जताने की ज़रूरत है।"

"म...मैं मानती हूं अरमान कि तुम्हें ठुकरा कर मैंने तुम्हारे साथ बिल्कुल भी अच्छा नहीं किया था।" प्रिया ने थोड़ा दुखी हो कर कहा──"शायद उस समय मैं ज़रूरत से ज़्यादा ही मतलबी हो गई थी। तभी तो तुम्हारे बारे में ये तक नहीं सोचा था कि मेरे द्वारा इस तरह ठुकरा दिए जाने पर तुम्हारे दिल पर क्या गुज़रेगी। उस समय तो मेरे अंदर बस एक ही ख़्वाहिश थी कि मेरी शादी एक ऐसे व्यक्ति से हो जो अमीर हो और जो मुझे दुनिया का हर ऐशो आराम दे। उसके बाद जब सच में मेरी ख़्वाहिश पूरी हो गई तो उस खुशी में मुझे ये पता ही नहीं चला कि कब मेरे अंदर अमीरी का गुरूर आ कर घर कर गया। इतने सालों बाद जब तुम उस दिन मुझे मिले तो जाने कैसे मैं तुमसे वो सब कहती चली गई? तुम्हें और तुम्हारी हालत को देख कर उस समय मेरे अंदर शायद ये सोच कर ऐसी वाहियात भावना पैदा हो गई थी कि वो तुम ही थे जिससे मैं शादी करने वाली थी और हर चीज़ के लिए खुद को मोहताज बना लेने वाली थी। शुक्र था कि मैंने सही समय पर अपना इरादा बदल कर तुमसे शादी नहीं की, बल्कि एक अमीर व्यक्ति से की जिसके चलते आज मैं किसी रानी की तरह ऐश कर रही हूं। हां अरमान, उस समय मेरे अंदर ऐसी ही भावनाएं प्रबल रूप से उभर आईं थी और फिर मैंने वो सब कह कर तुम्हारा दिल दुखा दिया था। बाद में अपने घर जा कर जब मैंने तुम्हारे और अपने बारे में गहराई से सोचा तो एहसास हुआ कि मुझे वो सब नहीं कहना चाहिए था। वो भी एक ऐसे इंसान से जो आज भी मुझ जैसी मतलबी और बेवफ़ा लड़की से प्यार करता है और आज तक अपनी दुनिया नहीं बसाई। यकीन करो अरमान, जब ये एहसास हुआ तो मुझे अपने उस बर्ताव पर बहुत गुस्सा आया और तुम्हारे लिए बहुत दुख हुआ। रात भर नींद नहीं आई। मैंने फ़ैसला किया कि तुम्हारे घर आ कर तुमसे अपने उस बर्ताव की माफ़ी मांगूंगी।"

"ठीक है।" अरमान ने कहा──"मैंने तुम्हें माफ़ कर दिया है। अब तुम वापस अपनी दुनिया में लौट जाओ। मेरे बारे में सोचने की कोई ज़रूरत नहीं है तुम्हें।"

"ऐसा मत कहो प्लीज़।" प्रिया का गला भर आया। याचना सी करती हुई बोली──"देर से ही सही मुझे ये एहसास हो गया है कि मैंने तुम्हारे साथ बहुत ग़लत किया है। अपनी उस ग़लती का किसी तरह पश्चाताप करना चाहती हूं। मैं चाहती हूं कि तुम पिछला सब कुछ भुला कर एक नए सिरे से ज़िंदगी शुरू करो। किसी अच्छी लड़की से शादी कर के अपना घर बसा लो। अगर तुम ऐसा कर लोगे तो मुझे सच में बहुत खुशी होगी वरना मुझे यही दुख तड़पाता रहेगा कि मेरी वजह से तुमने अपनी ज़िंदगी बर्बाद कर ली अथवा ये कहूं कि मैंने तुम्हारी ज़िन्दगी बर्बाद कर दी है। प्लीज़ अरमान, मैं तुमसे हाथ जोड़ कर विनती करती हूं। प्लीज़ आख़िरी बार मेरी ये इच्छा पूरी कर दो।"

"नो, नेवर।" अरमान ने पूरी मजबूती से इंकार में सिर हिला कर कहा──"तुम आज भी सिर्फ अपनी खुशी के बारे में ही सोच रही हो प्रिया। तुम चाहती हो कि मैं अपनी हालत सुधार लूं ताकि तुम्हें किसी प्रकार का अपराध बोध न रहे और तुम चैन से खुशी खुशी अपनी दुनिया में ऐशो आराम के साथ जी सको। वाह! प्रिया, कितना अजब सितम कर रही हो मुझ पर। एक बार भी ये नहीं सोच रही कि तुम्हारे सिवा दुनिया की किसी भी दूसरी औरत से मुझे कोई खुशी हासिल ही नहीं हो सकती। मामला मेरे दिल का है प्रिया। इस दिल ने अपने अंदर सिर्फ और सिर्फ तुम्हारी चाहत को पनाह दे रखा है। उसको किसी और के बारे में सोचना गवारा ही नहीं है। अब तुम ही बताओ ऐसे में भला मैं कैसे अपनी दुनिया को नए सिरे से शुरू करूं?"

"ह...हां मैं ये समझती हूं अरमान।" प्रिया उसकी दीवानगी देख अंदर तक कांप गई, फिर बोली──"लेकिन ये भी समझती हूं कि इंसान जब किसी के साथ बंधन में बंध जाता है तो देर सवेर उससे लगाव हो ही जाता है और फिर देर सवेर वो लगाव प्रेम में भी बदल जाता है। तुम एक बार किसी लड़की से शादी तो करो। मुझे पूरा यकीन है कि तुम्हारे दिल में उस लड़की के प्रति भावनाएं ज़रूर पैदा हो जाएंगी।"

"जानता हूं।" अरमान ने कहा──"लेकिन मैं ऐसा करना ही नहीं चाहता। मैं वो काम करना ही नहीं चाहता जिसकी वजह से मेरे दिल में तुम्हारे सिवा किसी दूसरे के लिए प्रेम जैसी कोमल भावनाएं जन्म ले लें। इस जन्म में तो अब मरते दम तक सिर्फ तुम्हीं से मोहब्बत करूंगा और तुम्हारी दर्द देने वाली यादों के साथ ही पूरा जीवन गुज़ारूंगा।"

प्रिया आश्चर्य चकित सी देखती रह गई उसे।
उसे यकीन नहीं हो रहा था कि अरमान के अंदर उसके प्रति ऐसी दीवानगी हो सकती है।
उसे यकीन नहीं हो रहा था कि अरमान ऐसी सोच रख सकता है।

"तुम मेरी फ़िक्र मत करो।" उधर अरमान ने होठों पर फीकी सी मुस्कान सजा कर कहा──"अगर मेरे बारे में सोचोगी तो ज़िंदगी को ऐशो आराम के साथ नहीं काट पाओगी। तुम अपनी दुनिया में खुश रहो। एक बात और, मेरी भलाई के लिए और मुझे सुधारने के लिए तुम चाहे कुछ भी कर लो लेकिन तुम इसमें कामयाब नहीं हो पाओगी। मैं सिर्फ उसी के साथ अपनी दुनिया बसाऊंगा जिसे मैं आज भी टूट टूट कर प्यार करता हूं, यानि तुमसे। तुम मेरी हो नहीं सकती और मैं किसी और का बनना नहीं चाहता। तुम बेकार में ही ये सब कर रही हो। जाओ, वापस अपनी दुनिया में लौट जाओ। मैं ये भी नहीं चाहता कि मेरी वजह से तुम्हारी शादीशुदा ज़िंदगी में ज़रा सा भी भूचाल आए।"

प्रिया को ऐसा महसूस हुआ जैसे उसका ज़हन एकदम से कुंद पड़ गया है।
उसे समझ ही नहीं आ रहा था कि अब वो अरमान से क्या कहे?
उसके दिलो दिमाग़ में ज़बरदस्त हलचल मची हुई थी।
उसे ऐसा लगने लगा जैसे एकाएक वो किसी मजधार में फंस गई है जहां से निकलना उसके लिए बड़ा ही मुश्किल लग रहा है।

उसने दुखी मन से एक नज़र अरमान की तरफ डाली और फिर दरवाज़ा खोल कर टैक्सी से उतर गई।
अरमान ने उससे कुछ नहीं कहा।
यहां तक कि जब वो बिना कुछ बोले एक तरफ को चल पड़ी तो उसने उसे रोका तक नहीं।
किंतु....उसे जाता देख उसके होठों पर रहस्यमय मुस्कान ज़रूर उभर आई।


क्रमशः....
 
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भाग- ०२
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प्रिया ने टैक्सी वाले को रुकने को कहा तो ड्राइवर ने उसकी बताई हुई जगह पर टैक्सी रोक दी।
दोपहर के ढाई बज रहे थे।
कुछ देर पहले धूप खिली हुई थी लेकिन अब आसमान में हल्के काले बादल छा गए थे।
ठंडी ठंडी हवा चल रही थी जिसके चलते उसके रेशमी बाल बार बार उसके चहरे को ढंक दे रहे थे।

टैक्सी ड्राइवर को उसने किराया दिया और पलट कर एक तरफ को चल दी।
चलते हुए वो इधर उधर देखती भी जा रही थी।
हर तरफ उसे बदला बदला सा नज़र आ रहा था।
एक वक्त था जब इस जगह की हर चीज़ उसके ज़हन में छपी हुई थी लेकिन अब हर जगह बदलाव नज़र आ रहा था।

"मैं क्यों खुद को रोक नहीं पा रही?" उसने जैसे खुद से ही कहा──"क्यों मेरे मन में बार बार उसके पास जाने के ख़याल उभर रहे हैं? नहीं नहीं, ये ग़लत है। मुझे ऐसा नहीं करना चाहिए। मैं एक शादी शुदा हूं और एक इज्ज़तदार घर की बहू भी हूं। मुझे अपने अतीत के बारे में सोचना भी नहीं चाहिए।"

मन में उभरते इन ख़यालों ने सहसा उसके क़दम रोक दिए।
उसने गर्दन घुमा कर इधर उधर देखा।
उसे एकदम से ऐसा लगा जैसे आस पास की हर चीज़ उसे अजीब तरह से घूरने लगी है।
इस एहसास ने एकदम से उसकी धड़कनें तेज़ कर दी।
वो खुद को अपराधी सा महसूस करने लगी।

"ये...ये कैसा महसूस हो रहा है मुझे?" उसने अपनी बढ़ चली सांसों को काबू करने के लिए अपने सीने पर एक हाथ रख कर सोचा──"आज से पहले तो ऐसा कभी महसूस नहीं हुआ मुझे?"

प्रिया ने आंखें बंद कर के गहरी गहरी सांसें ली।
किसी तरह अपनी हालत को दुरुस्त किया।
उसे थोड़ी हैरानी हो रही थी कि ये कैसा महसूस हो रहा है उसे?

"वापस लौट जा प्रिया।" अचानक उसके अंदर से आवाज़ आई──"अपने गुज़रे हुए समय की तरफ देखना ठीक नहीं है।"

"हां, पर मेरे गुज़रे हुए कल का एक किरदार मेरे सामने भी तो आ गया था उस दिन, फिर उसका क्या?" प्रिया ने मन ही मन अपने अंदर की उस प्रिया से कहा जिसने उसे आवाज़ दी थी──"तुमने भी तो सुना ही होगा कि उस दिन मैंने किस लहजे में उससे बातें की थी? यकीनन मेरी उन बातों ने बहुत ज़्यादा उसका दिल दुखाया होगा। उसके चेहरे पर उभरी पीड़ा इस बात का सबूत भी दे रही थी मगर उस वक्त मुझे उसकी पीड़ा का तनिक भी आभास नहीं हुआ था। उस वक्त मैं गुरूर में अंधी जो थी। भला क्या ज़रूरत थी मुझे उसको वो सब बोलने की? बोलना तो उसे चाहिए था क्योंकि छोड़ा तो मैंने ही था उसे, मगर उसने शिकायत में एक लफ्ज़ भी नहीं कहा था मुझसे?"

"हां तो क्या हुआ?" उसके अंदर की प्रिया ने उससे कहा──"उसे छोड़ कर कौन सा ग़लत काम किया था तुमने? अपने हित और अपने सुख के बारे में तो हर कोई सोचता है। तुमने अपनी खुशियों के बारे में सोच कर जो किया वो बिल्कुल भी ग़लत नहीं था। बल्कि ग़लत तो तुम अब करने जा रही हो। वापस लौट जाओ प्रिया, ये मत भूलो कि अब तुम शादी शुदा हो और किसी के घर की अमानत के साथ साथ आबरू भी हो। अगर तुम्हारे पति को पता चल गया कि तुम अपने अतीत की तरफ पलट गई हो तो यकीन मानो अच्छा नहीं होगा।"

प्रिया अपने अंदर की इस आवाज़ को सुन कर बुरी तरह कांप गई।
पलक झपकते ही उसकी आंखों के सामने उसके पति अशोक और उसके परिवार वालों के चेहरे उजागर होते चले गए।

ठंडी ठंडी हवा चलने के बाद भी उसका चेहरा पसीने से भर गया।
उसने हड़बड़ा कर दुपट्टे से चेहरे का पसीना पोंछा और पुनः इधर उधर देखने लगी।

वो सड़क के किनारे खड़ी थी।
सड़क के दोनों तरफ तरह तरह की दुकानें थी।
सड़क पर वाहनों का आना जाना लगा हुआ था।
कई तरह के लोग आते जाते नज़र आ रहे थे उसे।
कुछ जो उसके पास से गुज़र रहे थे जो उसे अजीब तरह से देखते और आगे बढ़ जाते।

प्रिया ये सब देख बुरी तरह हड़बड़ा गई।
थोड़ा घबरा भी गई।
सहसा उसे एहसास हुआ कि सड़क के किनारे उसका यूं खड़े रहना उचित नहीं है।
अगले ही पल वो फ़ौरन ही खुद को सम्हालते हुए एक तरफ को बढ़ चली।

"क्या कर रही है प्रिया?" अंदर वाली प्रिया ने फिर से उसे पुकारा──"तू अभी भी आगे बढ़ी जा रही है? क्या पूरी तरह बेवकूफ ही है तू?"

"चुप रहो तुम।" प्रिया ने मन ही मन अपने अंदर की प्रिया को गुस्से से डांटा──"मैं जानती हूं कि ये ठीक नहीं है लेकिन एक बार, बस एक बार उससे मिलना चाहती हूं। उससे अपने उस दिन के बिहैवियर के लिए माफ़ी मांगना चाहती हूं। उसके बाद, मेरा यकीन करो...उसके बाद मैं दुबारा कभी उससे मिलने का सोचूंगी भी नहीं।"

"अच्छा? क्या सच में?" अंदर की प्रिया ने जैसे तंज़ किया।

"हां सच में।" प्रिया ने मन ही मन ये जवाब देते हुए ऐसा महसूस किया जैसे अपनी ये बात उसे खुद ही झूठी लग रही हो, बोली──"माफ़ी मांगने के बाद कभी नहीं मिलूंगी उससे।"

उसके ऐसा कहने पर इस बार उसे अपने अंदर से कोई आवाज़ सुनाई नहीं दी।
उसे थोड़ी हैरानी हुई।
उसने ध्यान से अपने अंदर की आवाज़ सुनने की कोशिश की।
मगर कुछ भी महसूस नहीं हुआ उसे।

सड़क पर वाहनों का शोर हो रहा था।
प्रिया ने खुद को सम्हाला और नज़र उठा कर बाएं तरफ जाने वाले रास्ते की तरफ देखा।

"मैडम किधर जाना है आपको?" एक ऑटो वाले ने उसके क़रीब अपने ऑटो को धीमा करते हुए आवाज़ दी।

प्रिया ने उसकी तरफ देखा और फिर ना में सिर हिला कर आगे बढ़ चली।
ऑटो वाले ने अपना ऑटो आगे बढ़ा दिया।

प्रिया बाएं तरफ जाने वाले रास्ते में मुड़ गई।
उसके मन में काफी उथल पुथल चल रही थी लेकिन जैसे उसने अब पूरा मन बना लिया था कि वो वहां जा कर ही रहेगी।

सहसा वो रुक गई।
उसने एक बार पुनः इधर उधर देखा।
सब कुछ बदला बदला सा दिख रहा था उसे।

"दुनिया कितना जल्दी बदल जाती है।" उसने मन ही मन कहा किंतु अगले ही पल उसे खुद का ख़याल आ गया──"मैं भी तो बदल गई थी।"

इस ख़याल ने उसके अंदर एक टीस सी पैदा कर दी।
उसे थोड़ी तकलीफ़ हुई।
बुरा भी महसूस हुआ।
आंखें बंद कर के उसने एक गहरी सांस ली।

"यहीं से तो एक पतला रास्ता जाता था उसके घर की तरफ।" प्रिया ने एक तरफ देखते हुए सोचा──"लेकिन अब तो यहां वो रास्ता ही नहीं है। हे भगवान! अब क्या करूं?"

प्रिया एकाएक ही परेशान सी नज़र आने लगी।
उसे समझ न आया कि सवा सात सालों में कोई रास्ता कैसे ग़ायब हो सकता है?

तभी सहसा उसके मन में ख़याल उभरा कि उसे किसी से उसके घर की तरफ जाने वाले रास्ते के बारे में पूछना चाहिए।

अभी वो पलटी ही थी कि तभी एक और ऑटो वाला उसके क़रीब अपना ऑटो ले कर आ गया।
प्रिया के मन में बिजली की तरह ये विचार कौंधा कि ऑटो वालों को हर जगह की जानकारी होती है।
यानि अगर वो ऑटो वाले को पता बताए तो वो उसे उसके घर तक ज़रूर पहुंचा सकता है।

इस विचार के साथ ही उसके चेहरे पर एक चमक उभर आई।
उसने फौरन ही ऑटो वाले को पता बताया तो ऑटो वाला उसके बताए हुए पते पर चलने को तैयार हो गया।

प्रिया झट से ऑटो में बैठ गई।
ऑटो जब चल पड़ा तो उसने इत्मीनान की सांस ली।
मन में ये सोच कर खुशी हुई कि आख़िर अब वो उसके घर पहुंच ही जाएगी और उससे मिलेगी भी।

सहसा उसे याद आया कि कैसे उस दिन उसने उस फाइव स्टार होटल के सामने उसको उल्टा सीधा बोला था।
प्रिया को बहुत बुरा महसूस होने लगा।
अपनी आंखें बंद कर के उसने मन ही मन उससे माफ़ी मांगी।

[][][][][]

"ये लीजिए मैडम, आपने जो पता बताया था वहां पहुंच गए हम।" ऑटो वाले की इस बात से प्रिया ने एकदम से चौंक कर अपनी आंखें खोल दी।

उसे ये सोच कर हैरानी हुई कि इतनी देर से वो आंखें बंद किए जाने किन ख़यालों में गुम थी जिसके चलते उसे समय के गुज़र जाने का आभास तक नहीं हुआ।

बहरहाल, वो ऑटो से नीचे उतरी।
अपने पर्स से निकाल कर उसने ऑटो वाले को पैसे दिए।
ऑटो वाला जब चला गया तो उसने पलट कर उस जगह को देखा जहां के लिए वो आई थी।

शहर की आबादी से बस थोड़ा ही पीछे वो बस्ती थी जो उसे जानी पहचानी लग रही थी।
बस्ती के बाकी घर तो अपना रूप बदल चुके थे लेकिन उनके किनारे पर एक घर ऐसा था जो आज भी अपने पुराने रूप में ही अपना वजूद क़ायम किए हुए था।

उस घर को देख प्रिया की धड़कनें अनायास ही तेज़ हो गईं।
उसने उस घर की तरफ बढ़ने के लिए अपने क़दम बढ़ाने चाहे मगर उसे अपने क़दम एकदम से भारी भारी से महसूस होने लगे।

मन में तरह तरह के ख़यालों का बवंडर सा चल पड़ा।
उसने किसी तरह खुद को सम्हाला और फिर खुद को मजबूत करते हुए आगे बढ़ चली।
थोड़ी ही देर में वो उस घर के सामने पहुंच गई।

एक माले का घर था वो।
आज भी उसकी दीवारें नीले रंग को बचाए हुए थीं।
दीवारों को देख कर स्पष्ट प्रतीत होता था कि उनमें वर्षों से पेंट नहीं किया गया है।
कहीं कहीं पर तो दीवारों की छपाई भी उखड़ी हुई दिख रही थी।

मकान के बीचो बीच लकड़ी का एक दरवाज़ा था जो पुराना सा हो गया नज़र आ रहा था।
मकान के सामने पहले काफी जगह हुआ करती थी लेकिन अब वो जगह थोड़ी सी रह गई थी क्योंकि सामने से चौड़ी सड़क बन गई थी जोकि आरसीसी वाली थी।

प्रिया जाने कितनी ही देर तक उस दरवाज़े और मकान को देखती रही।
उसकी आंखों के सामने गुज़रे वक्त की कई सारी तस्वीरें चमकने लगीं थी।
ज़हन में कई सारी यादें उभरने लगीं थी।

तभी एक मोटर साइकिल सड़क पर हॉर्न बजाते हुए उसके पास से गुज़री जिसके चलते वो होश में आई।
उसने हड़बड़ा कर पहले इधर उधर देखा फिर वापस मकान के दरवाज़े को देखने लगी।
मकान के बाहर ही एक तरफ टैक्सी खड़ी थी।

उसने देखा, दरवाज़े पर कोई ताला नहीं लगा हुआ था और ना ही बाहर से कुंडी द्वारा बंद था। मतलब साफ था इस वक्त अंदर कोई तो था।
इस ख़याल ने प्रिया की धड़कनों को एक बार फिर से बढ़ा दिया।
फिर उसी धड़कते दिल के साथ वो दरवाज़े की तरफ बढ़ चली।

एक तरफ जहां उसकी धड़कनें बढ़ी हुईं थी वहीं दूसरी तरफ उसके अंदर तरह तरह के ख़याल उभर रहे थे।

दरवाज़े के क़रीब पहुंच कर उसने अपना एक हाथ आगे बढ़ाया।
वो ये देख कर थोड़ा चौंकी कि उसका हाथ कांप रहा है।

अगले ही पल उसने दरवाज़े पर दस्तक दी और किसी के द्वारा दरवाज़ा खोले जाने का इंतज़ार करने लगी।
उसकी धड़कनें पहले से कई गुना तेज़ हो गईं थीं।
घबराहट के चलते चेहरे पर पसीना उभर आया था।

जब आधा मिनट गुज़र जाने पर भी दरवाज़ा न खुला तो उसने कांपते हाथ से एक बार फिर दरवाज़े पर दस्तक दी।

"आ रहा हूं भाई?" अंदर से उसे एक चिर परिचित आवाज़ सुनाई दी जो दरवाज़े की तरफ ही आती महसूस हुई।

पहले से ही बढ़ी हुई धड़कनें अब धाड़ धाड़ कर के बजते हुए किसी हथौड़े की तरह उसके कानों में धमकने लगीं।
उसने बड़ी मुश्किल से खुद को सम्हाला और आने वाले वक्त के लिए खुद को तैयार करने की कोशिश में लग गई।

कुछ ही पलों में हल्की चरमराहट के साथ दरवाज़ा खुला।
खुले दरवाज़े के बीच उसे अरमान नज़र आया।
वही अरमान जिसे दो दिन पहले उसने फाइव स्टार होटल के बाहर उल्टा सीधा बोला था।
वही अरमान जो आज भी उसे दिलो जान से प्यार करता था।
चेहरे पर बढ़ी हुई दाढ़ी मूंछें और सिर पर बड़े बड़े किंतु थोड़ा उलझे हुए बाल।

उधर दरवाज़े के बाहर प्रिया को खड़ा देख अरमान के चेहरे पर आश्चर्य के भाव उभरे।
ना प्रिया को समझ आया कि क्या कहे और ना ही अरमान को।

"अ..अरे! प्रिया तुम? यहां?" फिर अरमान ने ही चौंकते हुए ख़ामोशी तोड़ी──"यकीन नहीं हो रहा कि मेरे ग़रीबखाने में तुम आई हो।"

"हां...वो...मैं।" प्रिया ने अटकते हुए कहा──"मैं दरअसल, आई मीन....।"

"अगर तुम्हारी शान में गुस्ताख़ी न हो।" अरमान ने दरवाज़े से एक तरफ हटते हुए कहा──"तो अंदर आ जाओ।"

अरमान की इस बात ने प्रिया के अंदर अजीब सी टीस पैदा की किंतु फिर वो खुद को सम्हालते हुए अंदर दाख़िल हो गई।

घर के अंदर आते ही प्रिया इधर उधर नज़र दौड़ाते हुए हर चीज़ को देखने लगी।
सब कुछ बड़ा ही अजीब सा दिख रहा था उसे।

मकान की जैसी हालत बाहर से थी वैसी ही हालत अंदर से भी थी।
सब कुछ अस्त व्यस्त।
कोई भी चीज़ अपनी जगह पर सही ढंग से मौजूद नहीं थी।

"माफ़ करना।" सहसा अरमान की आवाज़ ने उसे उसकी तरफ देखने पर मजबूर किया। उधर अरमान ने कहा──"मेरा ये ग़रीबखाना तुम्हारे बैठने के क़ाबिल तो नहीं है फिर भी अगर तुम ठीक समझो तो बैठ जाओ यहां। मैं तब तक तुम्हारे लिए कुछ चाय नाश्ते का प्रबंध करता हूं।"

"न...नहीं नहीं।" प्रिया ने हड़बड़ा कर जल्दी से कहा──"इसकी कोई ज़रूरत नहीं है और हां मुझे यहां बैठने में भी कोई प्रोब्लम नहीं होगी।"

अरमान ने फटे पुराने सोफे पर थोड़ा साफ सुथरा एक चद्दर डाल दिया जिस पर प्रिया बैठ गई।
उसे बड़ा अजीब सा लग रहा था।
कभी वो एक नज़र अरमान को देख लेती तो कभी इधर उधर देखने लगती।

"अंकल कहां हैं?" फिर उसने जैसे बात करने का सिलसिला शुरू करते हुए पूछा।

"वहां।" अरमान ने अपने हाथ की एक उंगली को छत की तरफ उठाते हुए कहा──"मुझे छोड़ कर जाने वालों में एक तुम ही हो जो वापस लौटी हो। पापा जब से गए तो अब तक वापस नहीं लौटे और ना ही इस जीवन में कभी लौटेंगे।"

"क...क्या मतलब?" प्रिया की धड़कनें विचित्र ख़यालों के उभर आने के चलते थम सी गईं।

"मतलब ये कि।" अरमान ने फीकी मुस्कान के साथ कहा──"जो लोग ईश्वर को प्यारे हो जाते हैं वो हमारे पास वापस लौट कर नहीं आते।"

"क...क्या???" प्रिया बुरी तरह उछल पड़ी──"तु...तुम्हारा मतलब है कि अंकल अब नहीं....?"

"हां।" अरमान ने कहा──"चार साल पहले ग़लती से एक ट्रक वाले ने उन्हें टक्कर मार दी थी। हॉस्पिटल पहुंचने से पहले ही उन्होंने दम तोड़ दिया था। मां तो पहले ही गुज़र गईं थी तुम्हें तो पता ही है। अपनों के नाम पर एक पापा ही थे लेकिन अब वो भी नहीं हैं। अब ये घर भी अकेला है और मैं भी।"

प्रिया उसकी बातें सुन कर कुछ बोल न सकी।
उसे यकीन नहीं हो रहा था कि अरमान के पिता अब इस दुनिया में नहीं हैं।
उसे अरमान के लिए बहुत ही बुरा फील होने लगा।

उसे पहली बार एहसास हुआ कि अरमान वास्तव में अंदर से कितना दुखी होगा।
सहसा उसे ये सोच कर अपने आप पर गुस्सा आया कि उसने ऐसे दुखी इंसान को उल्टा सीधा बोल कर और भी कितना दुखी किया था।

उसका जी चाहा कि ये ज़मीन फटे और वो उसमें अपना मुंह छुपा कर समा जाए।
पहली बार उसे अपनी करनी पर बेहद शर्म महसूस हुई।
पहली बार उसे महसूस हुआ कि ऐसे व्यक्ति को ठुकरा कर उसने उसके साथ कितना ग़लत किया था।

"अ....अरमान।" फिर वो भारी गले से बोली──"मुझे माफ़ कर दो प्लीज़। मैं तुम्हारी गुनहगार हूं। मैंने पहले भी तुम्हारा दिल दुखाया था और उस दिन भी अपने गुरूर में दिल दुखा दिया था। वास्तव में बहुत बुरी हूं मैं।"

कहते कहते प्रिया की आंखें छलक पड़ीं।
हालाकि उसने अपने जज़्बातों को काबू करने की बहुत कोशिश की थी लेकिन भावनाओं का ज्वार इतना प्रबल हो उठा था कि उसके सम्हाले न सम्हला था।

"तुम्हें मुझसे किसी बात के लिए माफ़ी मांगने की ज़रूरत नहीं है।" अरमान ने कहा──"सच तो ये है कि जो कुछ भी हुआ था या हुआ है वो सब मेरी किस्मत में ही लिखा था। ऊपर वाले ने मेरे नसीब में कभी कुछ अच्छा होना लिखा ही नहीं, तभी तो सब मुझे छोड़ कर चले गए।"

"ऐसा मत कहो।" प्रिया ने कहा──"और ये बताओ कि तुमने अपने साथ साथ इस घर की ये कैसी हालत बना रखी है?"

"बड़ी अजीब बात है।" अरमान ने हल्के से मुस्कुरा कर कहा──"तुम मुझसे मेरी और मेरे घर की हालत के बारे में पूछ रही हो? अभी दो दिन पहले तो तुम मुझे जाने क्या क्या बोल रही थी, फिर आज तुम्हारा लहजा इतना कैसे बदल गया? तुम इतनी नर्म कैसे हो ग‌ई?""

प्रिया को फ़ौरन कुछ कहने के लिए जवाब न सूझा।
कुछ पलों तक तो वो अरमान से निगाहें चुराए रखी किंतु फिर जैसे उसने साहस जुटाया।

"अ..अरमान।" फिर वो थोड़ा संजीदा हो कर बोली──"उस दिन के लिए मैं बहुत शर्मिंदा हूं। प्लीज़ मेरे उस बर्ताव के लिए मुझे माफ़ कर दो।"

"क्या मेरे माफ़ ना करने से तुम्हें कोई फ़र्क पड़ जाएगा?" अरमान ने अजीब भाव से उसे देखा──"वैसे मुझे तो ऐसा नहीं लगता। अगर फ़र्क पड़ना ही होता तो आज से सवा सात साल पहले तुमने मुझे ठुकरा नहीं दिया होता। तुम मेरी सच्ची मोहब्बत का मान रखती और जो मेरी हैसियत थी उसको कबूल कर हमेशा के लिए मेरी हो जाती। इसका तो यही मतलब हुआ प्रिया कि तुम्हें मुझसे कभी कोई प्रेम था ही नहीं बल्कि तुम्हारे दिल में सिर्फ इस बात की चाहत थी कि तुम्हारी शादी एक ऐसे व्यक्ति से हो जो तुम्हें दुनिया का हर सुख और ऐशो आराम दे सके। ख़ैर, बहुत बहुत मुबारक हो, तुमने जिन चीज़ों की ख़्वाहिश की थी वो तुम्हें मिल ग‌ईं।"

प्रिया को एक बार फिर से कोई जवाब न सूझा।
उसके दिलो दिमाग़ में जज़्बातों की ज़बरदस्त आंधियां चलने लगीं थी।
उसे शिद्दत से एहसास हो रहा था कि सचमुच उसने अरमान के साथ वैसा प्रेम नहीं किया था जैसा वो उससे करता था।

"शायद तुम सच कह रहे हो अरमान।" फिर उसने खुद को सम्हालते हुए तथा गहरी सांस ले कर कहा──"और मैं मानती हूं कि शायद मेरे दिल में तुम्हारे जैसा प्रेम नहीं था। ख़ैर एक सच ये भी है कि शायद हमारी किस्मत में एक दूसरे का होना लिखा ही नहीं था। तुम प्लीज़, खुद को सम्हालो और अपने जीवन को इस तरह बर्बाद मत करो। अभी भी वक्त है, किसी अच्छी लड़की से शादी कर लो और अपनी दुनिया को आबाद कर लो। क्या तुम मेरी इतनी सी बात नहीं मान सकते?"

"ऐसा क्यों होता है प्रिया कि प्रेम करने वाले को अपनी मोहब्बत के लिए हर तरह की कीमत चुकानी पड़ती है?" अरमान ने थोड़ी ही दूरी पर रखी एक चारपाई पर बैठने के बाद कहा──"ऐसा क्यों होता है कि आशिक को उसकी हर बात माननी पड़ती है जिसे वो टूट कर मोहब्बत कर रहा होता है? क्यों उसकी मोहब्बत उस आशिक के जज़्बातों को नहीं समझती और वो करने पर मजबूर कर देती है जो वो किसी भी कीमत पर करना नहीं चाहता मगर उसे करना ही पड़ता है?"

"शायद सच्चा प्रेम वही है जिसमें त्याग और बलिदान दिया जाता है।" प्रिया ने लरजते स्वर में कहा──"जो ऐसा करते हैं वही सच्चा प्रेम करने वाले कहलाते हैं। मुझे एहसास है कि तुमने मुझसे सच्चा प्रेम किया है। ये तो मैं थी जिसने तुम्हारे सच्चे प्रेम की क़दर नहीं की और तुम्हें ठुकरा के किसी और की हो गई। अरमान, तुमने ये गाना तो सुना ही होगा ना──'कभी किसी को मुकम्मल जहां नहीं मिलता।' प्रेम करने वालों का ज़्यादातर ऐसा ही इतिहास रहा है। वो बहुत खुशनसीब होते हैं जिन्हें मोहब्बत नसीब होती है। ख़ैर मेरी तुमसे बस यही विनती है कि प्लीज़ गुज़री हुई बातों और यादों को भुलाने की कोशिश करो और अपनी दुनिया बसा लो। उस दिन अपने गुरूर में तुम्हें उल्टा सीधा बोल गई थी लेकिन बाद में एहसास हुआ कि मुझे ऐसा नहीं करना चाहिए था। इसी लिए तो आज तुमसे माफ़ी मांगने आई हूं। यकीन मानो उसी पल से बेचैन थी तुमसे मिल कर तुमसे माफ़ी मांगने के लिए। जब नहीं रहा गया तो आज भागी चली आई यहां।"

"चलो इसी बहाने मेरे ग़रीबखानें में तुम्हारे क़दम तो पड़े।" अरमान ने फीकी मुस्कान के साथ कहा──"मुद्दतों बाद इस उजड़े हुए आशियाने को बहार की खुशबू मिली है।"

"बहुत अजीब बातें करते हो तुम।" प्रिया की धड़कनें अरमान की बातों से धाड़ धाड़ कर के बज उठतीं थी।
खुद को बड़ी मुश्किल से सम्हाले हुए थी वो।

"वक्त और हालात इंसान को बहुत कुछ सिखा देते हैं।" अरमान ने कहा──"बातें करना भी और ऐसे हाल में रहना भी।"

"हम्म्म।" प्रिया को समझ न आया कि क्या कहे, फिर सहसा वो इधर उधर देखने के बाद बोली──"अच्छा अब बातें बंद करो। मैं ज़रा इस घर का हुलिया ठीक कर देती हूं। जाने कब से तुमने इस घर की साफ सफाई नहीं की है।"

"तुम्हें ये सब करने की ज़रूरत नहीं है।" अरमान ने कहा──"मुझे ऐसे हाल में रहने की आदत है। वैसे भी अगर तुम ये सब करोगी तो मेरे अंदर फिर से एक ऐसी उम्मीद पैदा हो जाएगी जिसका पूरा होना संभव नहीं है।"

"उम्मीद ऐसी करो जिसका पूरा होना संभव हो।" प्रिया ने कहा──"फालतू की बातें सोचना बेवकूफी होती है। अब चलो उठो और मुझे मेरा काम करने दो। मेरे पास ज़्यादा समय नहीं है। मेरी बेटी अपने स्कूल से शाम साढ़े चार बजे आती है। अभी दो ढाई घंटे हैं मेरे पास। तब तक मैं यहां का थोड़ा बहुत हुलिया तो सही कर ही दूंगी। बाकी फिर किसी दिन आ कर कर दूंगी।"

अरमान मना करता ही रह गया लेकिन प्रिया ने उसकी एक न मानी।
अरमान को उसके आगे हथियार डाल देने पड़े।
हालाकि मन ही मन उसे इस बात की खुशी हो रही थी कि चलो इसी बहाने प्रिया उसके घर में तो थी।
उसकी स्थिति देखने से उसके मन में उसके प्रति कोई भावना तो पैदा हुई थी।

उसके बाद अरमान ने देखा कि प्रिया ने डेढ़ दो घंटे में उसके घर का बहुत कुछ हुलिया बदल दिया था।
इस सबके चलते उसका अपना हुलिया बिगड़ गया था।
उसके कपड़े गंदे हो गए थे।
घर के पीछे बने बाथरूम में जा कर उसने अपने आपको थोड़ा बहुत साफ किया और फिर अरमान से किसी दिन फिर से आने का बोल कर चली गई।
उसके जाते ही अरमान के होठों पर एक रहस्यमय मुस्कान उभर आई थी।



क्रमशः.....
Shandaar bhai❤️
 
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Bahut khubsurat likha raha ho bhai❤️
Armaan priya ko paa kar hi raha ga
भाग- ०४
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"क्या बात है।" रात खा पी कर प्रिया जब अपने कमरे में पहुंची तो उसके चेहरे पर छाई गंभीरता को भांप कर उसके पति अशोक ने उससे पूछा──"मेड के आ जाने पर भी तुम खुश नहीं दिख रही?"

"ज..जी??" प्रिया एकदम से हड़बड़ा सी गई, फिर जल्दी ही खुद को सम्हाल कर बोली──"मेरा मतलब है ये क्या कह रहे हैं आप? मैं तो खुश ही हूं।"

"ऐसा लग तो नहीं रहा।" अशोक ने अपलक प्रिया को देखते हुए कहा──"बहुत देर से नोटिस कर रहा हूं तुम्हें। मेड के आने के बाद से अब तक मैंने तुम्हारे चेहरे पर खुशी के भाव नहीं देखे। ज़ाहिर है, कोई तो ऐसी बात है जिसकी वजह से तुम्हारा चांद की तरह नज़र आने वाला चेहरा बुझा हुआ और थोड़ा गम्भीर सा नज़र आ रहा है।"

अपने पति अशोक की ये बातें सुनते ही प्रिया ये सोच कर एकदम से घबरा उठी कि उसके चेहरे की गंभीरता अशोक को कहीं ये न समझा दे कि वो अपने पूर्व प्रेमी से दो दो बार मिल चुकी है।

माना कि अशोक उसे बहुत प्यार करता है और उसका हर नाज़ नखरा भी खुशी से सहता है लेकिन पत्नी को अपने पूर्व प्रेमी से मिलने की बात जान लेने के बाद वो यकीनन उससे ख़फा हो सकता है।

उसकी खुशहाल शादीशुदा ज़िंदगी में पलक झपकते ही तूफ़ान आ सकता है।
उसका पति उसे चरित्रहीन समझ कर उसे घर से भी निकाल सकता है।
उसकी सौतेली बेटी जो उसे भले ही मां कह कर नहीं पुकारती लेकिन सगी मां जैसी ही समझ कर उससे लगाव और स्नेह रखती है, वो ये सब जान कर उससे घृणा करने लगेगी।

प्रिया के मनो मस्तिष्क में पलक झपकते ही ये सारे ख़याल उभरते चले गए और उसकी रूह तक को थर्रा गए।

"क्या हुआ?" अभी वो ये सब सोच कर खुद को सम्हाल ही रही थी कि तभी अशोक की आवाज़ ने फिर से उसे चौंका दिया──"तुम कुछ बोल क्यों नहीं रही बेबी? देखो, तुम अच्छी तरह जानती हो कि मैं तुमसे कितना प्यार करता हूं। तुम्हें हर पल खुश देखना चाहता हूं। तुम्हारी हर ख़्वाहिश पूरी करता हूं लेकिन तुम्हारा उतरा हुआ चेहरा देख कर मैं थोड़ा चिंता में पड़ गया हूं। मैं जानना चाहता हूं कि मेरी खूबसूरत क्वीन को आख़िर किस बात ने गंभीर बना दिया है?"

"न...नहीं ऐसी कोई बात नहीं है अशोक।" प्रिया ने धड़कते दिल से कहा──"मेरा यकीन कीजिए मुझे किसी बात ने गंभीर नहीं बनाया है। बात बस इतनी सी थी कि इतने दिनों से घर के काम खुद ही कर रही थी इस लिए थकान थोड़ी ज़्यादा ही हो गई थी। शायद इसी वजह से मेरे चेहरे की रंगत थोड़ी डाउन सी लगी आपको।"

"तुम सच कह रही हो न?"

अशोक ने उसका हाथ पकड़ कर अपनी तरफ खींचते हुए कहा।

"हां बाबा, सच ही कह रही हूं।" अपने पति का स्नेह और प्यार देख प्रिया ने मन ही मन राहत की सांस ली और मुस्कुराते हुए खुद को उसके सुपुर्द करते हुए कहा──"भला इतने केयरिंग पति के रहते मुझे किस बात की फ़िक्र हो सकती है? एक ही बात की थोड़ी तकलीफ़ हो रही थी उसे भी आज आपने दूर कर दी। नाउ, आई एम सो हैप्पी।"

"दैट्स लाईक ए गुड गर्ल।" अशोक उसको अपने ऊपर लिए हुए बेड पर आहिस्ता से लेट गया।

प्रिया का पूरा भार उसके ऊपर आ गया था।
उसके सीने के ठोस उभार अशोक के सीने में मानो धंस से गए थे।
अशोक ने उसकी पीठ और कमर से अपने हाथ हटाए और फिर उसके चेहरे को हौले से थाम कर बड़े प्यार से कहा──"चलो अब तो अपने शहद जैसे होठों को चूम लेने दो।"

"चूम लीजिए।" प्रिया मुस्कुराई──"मैंने कब मना किया है भला?"

"सुबह मना की तो थी तुम।" अशोक उसकी आंखों में झांकता बोला──"कह रही थी कि जब तक मैं मेड ले कर नहीं आऊंगा तब तक तुम मुझे पप्पी नहीं दोगी।"

"हां तो।" प्रिया ने थोड़ी अदा से कहा──"अब अगर आप हर रोज़ मेड लाने का बोल कर भूल जाएंगे तो मैं भी तो थोड़ा गुस्सा दिखाऊंगी ही।"

"अच्छा, ऐसा क्या?" अशोक ने मुस्कुराते हुए कहा──"चलो, अब तो मेड भी आ गई और मेरी जान खुश भी हो गई इस लिए पप्पी के साथ साथ बाकी सब कुछ भी कर सकता हूं ना?"

अशोक की बात का मतलब समझते ही प्रिया के चेहरे पर शर्म की हल्की लाली फैल गई।
उसने शर्म से मुस्कुराते हुए अशोक के सीने में अपना चेहरा छुपा लिया।
अशोक को उसके यूं शर्मा जाने पर उस पर बेहद प्यार आया।
उसके बाद वो आहिस्ता आहिस्ता प्रिया को चूमना शुरू कर दिया।

[][][][][]

"टैक्सी।"

दूसरे दिन प्रिया ने सड़क पर एक टैक्सी को आते देख हाथ देते हुए आवाज़ दी।
टैक्सी वाले ने उसकी आवाज़ सुनी तो उसकी तरफ टैक्सी ला कर रोक दी।

"अरे वाह!" टैक्सी ड्राइवर जोकि अरमान ही निकला, उसने प्रिया को देखते ही चहक कर कहा──"क्या बात है, आज तो अगर मैं कुछ और भी सोच लेता तो वो भी हो जाता।"

"म...मतलब??" प्रिया टैक्सी ड्राइवर के रूप में अरमान को देख कर पहले तो हैरान हुई फिर उसकी बात सुनते ही बोली।

"एक्चुअली, आज मैं ये सोच रहा था कि काश! रास्ते में मुझे तुम मिल जाओ तो तुम्हें अपनी टैक्सी में बैठा कर ले चलूं।" अरमान ने टैक्सी से बाहर आ कर प्रिया की तरफ देखते हुए कहा──"और देख लो, जो मैं चाह रहा था वही हो गया। तभी तो कह रहा हूं कि आज अगर कुछ और भी सोच लेता तो शायद वो भी हो जाता।"

"तुम कुछ ज़्यादा ही नहीं सोच रहे?" प्रिया ने धड़कते दिल से कहा──"और तुम तो रात में टैक्सी चलाते हो ना तो फिर दिन के इस वक्त टैक्सी में कहां घूम रहे हो?"

"क्या करें डियर, हम जैसे मामूली लोगों का वक्त कहां हमेशा एक जैसा रहता है?" अरमान ने टैक्सी का पिछला दरवाज़ा खोल कर प्रिया से कहा──"कल तुम्हारे जाने के बाद सो गया था। जब आंख खुली तो फील हुआ कि तबीयत कुछ ठीक नहीं है। थोड़ी कमज़ोरी भी फील हो रही थी। इस चक्कर में कल रात टैक्सी ले कर कहीं जा ही नहीं पाया। पास के एक मेडिकल स्टोर से दवा ली और खा कर फिर से सो गया। सुबह जब उठा तो तबीयत बेहतर लगी। अब क्योंकि रात टैक्सी चला कर खर्चे के लिए कुछ कमा नहीं पाया था इस लिए सोचा दिन में ही टैक्सी चला लूं।"

"कुछ तो अपने बारे में सोचो अरमान।" प्रिया को उसकी ख़राब तबीयत का जान कर उसके लिए बहुत बुरा लगा।
एकाएक ही उसे फ़िक्र होने लगी उसकी।

वो झट से खुले दरवाज़े से टैक्सी की पिछली सीट पर बैठ गई।
अरमान ने हौले से मुस्कुराते हुए टैक्सी का पिछला दरवाज़ा बंद किया और फिर घूम कर अपनी ड्राइविंग सीट पर आ गया।
अगले ही पल उसने टैक्सी को आगे बढ़ा दिया।

"तो बताईए मैडम, कहां जाना है आपको?" फिर उसने बैक व्यू मिरर में प्रिया को देखते हुए पूछा।

"किसी अच्छे से हॉस्पिटल में ले चलो।" प्रिया की नज़र भी पीछे से बैक व्यू मिरर में दिख रहे अरमान पर पड़ गई थी।

"ह...हॉस्पिटल???" अरमान हल्के से चौंका──"हॉस्पिटल क्यों? तुम्हारी तबीयत तो ठीक है ना?"

"मेरी तबीयत ठीक है।" प्रिया ने बैक मिरर में अरमान पर नज़रें जमाए हुए ही कहा──"लेकिन तुम्हारी ठीक नहीं है इस लिए हॉस्पिटल चलो।"

"अरे! ये...ये क्या कह रही हो तुम?" अरमान एकदम से बौखला सा गया। फिर सम्हल कर बोला──"देखो, मैं बिल्कुल ठीक हूं और वैसे भी हॉस्पिटल में अपना इलाज़ करवाने के लिए पैसे नहीं हैं मेरे पास।"

"पैसे मैं दे दूंगी।" प्रिया ने सपाट लहजे में कहा──"तुम बस हॉस्पिटल चलो।"

"नहीं जाऊंगा।" अरमान ने सहसा सड़क के किनारे टैक्सी रोक दी, फिर मिरर में ही प्रिया को देखते हुए बोला───"और हां, मैं दुनिया के किसी भी इंसान का एहसान अपने ऊपर ले लूंगा लेकिन तुम्हारा नहीं।"

"अ...अरमान ये...ये तुम कैसी बातें कर रहे हो?" अचानक से उसका ये बर्ताव देख प्रिया की आंखें फैल गईं──"तुम सोच भी कैसे सकते हो कि मैं ऐसा तुम पर एहसान करने के लिए कह रही हूं?"

"बहुत खूब।" अरमान व्यंग से मुस्कुरा उठा──"उल्टा चोर कोतवाल को डांटे? ज़रा अपने गिरेबान में झांक कर तो देखो प्रिया। एक बार ज़रा देखो और फिर सोचो कि क्या तुमने ऐसा काम नहीं किया था जो मैं कभी सोच नहीं सकता था? चलो मान लिया कि मेरी हैसियत तुम्हें दुनिया का हर सुख और ऐशो आराम देने की नहीं थी जिसके चलते तुमने एक रईस व्यक्ति से शादी कर ली लेकिन....लेकिन इतने सालों बाद जब उस दिन इत्तेफ़ाक से तुमसे मुलाक़ात हुई तो तुमने कैसा बर्ताव किया था मेरे साथ? पैसे और गुरूर में तुम इतनी अंधी थी कि तुमने उस व्यक्ति का मज़ाक उड़ाया और उसे नीचा दिखाया जो तुम्हें दिलो जान से चाहता रहा है। इतना ही नहीं जिसने तुम्हारे सिवा कभी एक पल के लिए भी किसी दूसरी लड़की को अपने दिल में बैठाने का नहीं सोचा। क्या तुम्हारा वो बर्ताव और तुम्हारे वो कर्म मेरी सोच और उम्मीद से परे नहीं थे?"

प्रिया को फ़ौरन कोई जवाब नहीं सूझा।
अपराध बोध से उसका सिर झुकता चला गया।
सच ही तो कहा था अरमान ने।
उसने एक हफ़्ता पहले अरमान के साथ ऐसा ही तो बर्ताव किया था।

"सुना था औरत को कभी कोई समझ नहीं सकता।" उधर अरमान ने उसे चुप देख अधीरता से कहा──"आज तुम्हारा ये बर्ताव भी मुझे समझ नहीं आ रहा। उस दिन तो तुम मेरी हैसियत और मेरी हालत का मज़ाक उड़ा रही थी और खुद को आसमान से भी ऊंचा दिखा रही थी। कोई कसर नहीं छोड़ी थी मेरे दिल को छलनी छलनी करने में लेकिन अब मुझ पर मेहरबानी करती जा रही हो? भला किस लिए प्रिया? जो इंसान तुम्हारे लेवल का है ही नहीं उससे अचानक से ऐसा लगाव क्यों? उसकी भलाई के बारे में सोचना क्यों? उसके लिए फ़िक्र क्यों?"

प्रिया को अब भी कोई जवाब नहीं सूझा।
उसकी जुबान को जैसे ताला लग गया था।
सिर झुकाए वो ख़ामोशी से अरमान की बातें सुनती रही।
हां, उसके दिलो दिमाग़ में ज़बरदस्त हलचल ज़रूर मच गई थी।

"एक बात अच्छी तरह समझ लो प्रिया।" अरमान ने पुनः कहा──"मैं कल भी तुम्हें दिलो जान से प्यार करता था, आज भी करता हूं और आगे भी हमेशा करता रहूंगा। दुनिया का कोई भी व्यक्ति अथवा दुनिया की कोई भी ताक़त मेरे दिलो दिमाग़ से तुम्हारे प्रति इस चाहत को निकाल नहीं सकती। मैं जैसा हूं आगे भी वैसा ही रहूंगा। तुम्हें मेरी हालत पर तरस खा कर मुझ पर कोई एहसान करने की कोई ज़रूरत नहीं है और ना ही मुझ पर कोई हक़ जताने की ज़रूरत है।"

"म...मैं मानती हूं अरमान कि तुम्हें ठुकरा कर मैंने तुम्हारे साथ बिल्कुल भी अच्छा नहीं किया था।" प्रिया ने थोड़ा दुखी हो कर कहा──"शायद उस समय मैं ज़रूरत से ज़्यादा ही मतलबी हो गई थी। तभी तो तुम्हारे बारे में ये तक नहीं सोचा था कि मेरे द्वारा इस तरह ठुकरा दिए जाने पर तुम्हारे दिल पर क्या गुज़रेगी। उस समय तो मेरे अंदर बस एक ही ख़्वाहिश थी कि मेरी शादी एक ऐसे व्यक्ति से हो जो अमीर हो और जो मुझे दुनिया का हर ऐशो आराम दे। उसके बाद जब सच में मेरी ख़्वाहिश पूरी हो गई तो उस खुशी में मुझे ये पता ही नहीं चला कि कब मेरे अंदर अमीरी का गुरूर आ कर घर कर गया। इतने सालों बाद जब तुम उस दिन मुझे मिले तो जाने कैसे मैं तुमसे वो सब कहती चली गई? तुम्हें और तुम्हारी हालत को देख कर उस समय मेरे अंदर शायद ये सोच कर ऐसी वाहियात भावना पैदा हो गई थी कि वो तुम ही थे जिससे मैं शादी करने वाली थी और हर चीज़ के लिए खुद को मोहताज बना लेने वाली थी। शुक्र था कि मैंने सही समय पर अपना इरादा बदल कर तुमसे शादी नहीं की, बल्कि एक अमीर व्यक्ति से की जिसके चलते आज मैं किसी रानी की तरह ऐश कर रही हूं। हां अरमान, उस समय मेरे अंदर ऐसी ही भावनाएं प्रबल रूप से उभर आईं थी और फिर मैंने वो सब कह कर तुम्हारा दिल दुखा दिया था। बाद में अपने घर जा कर जब मैंने तुम्हारे और अपने बारे में गहराई से सोचा तो एहसास हुआ कि मुझे वो सब नहीं कहना चाहिए था। वो भी एक ऐसे इंसान से जो आज भी मुझ जैसी मतलबी और बेवफ़ा लड़की से प्यार करता है और आज तक अपनी दुनिया नहीं बसाई। यकीन करो अरमान, जब ये एहसास हुआ तो मुझे अपने उस बर्ताव पर बहुत गुस्सा आया और तुम्हारे लिए बहुत दुख हुआ। रात भर नींद नहीं आई। मैंने फ़ैसला किया कि तुम्हारे घर आ कर तुमसे अपने उस बर्ताव की माफ़ी मांगूंगी।"

"ठीक है।" अरमान ने कहा──"मैंने तुम्हें माफ़ कर दिया है। अब तुम वापस अपनी दुनिया में लौट जाओ। मेरे बारे में सोचने की कोई ज़रूरत नहीं है तुम्हें।"

"ऐसा मत कहो प्लीज़।" प्रिया का गला भर आया। याचना सी करती हुई बोली──"देर से ही सही मुझे ये एहसास हो गया है कि मैंने तुम्हारे साथ बहुत ग़लत किया है। अपनी उस ग़लती का किसी तरह पश्चाताप करना चाहती हूं। मैं चाहती हूं कि तुम पिछला सब कुछ भुला कर एक नए सिरे से ज़िंदगी शुरू करो। किसी अच्छी लड़की से शादी कर के अपना घर बसा लो। अगर तुम ऐसा कर लोगे तो मुझे सच में बहुत खुशी होगी वरना मुझे यही दुख तड़पाता रहेगा कि मेरी वजह से तुमने अपनी ज़िंदगी बर्बाद कर ली अथवा ये कहूं कि मैंने तुम्हारी ज़िन्दगी बर्बाद कर दी है। प्लीज़ अरमान, मैं तुमसे हाथ जोड़ कर विनती करती हूं। प्लीज़ आख़िरी बार मेरी ये इच्छा पूरी कर दो।"

"नो, नेवर।" अरमान ने पूरी मजबूती से इंकार में सिर हिला कर कहा──"तुम आज भी सिर्फ अपनी खुशी के बारे में ही सोच रही हो प्रिया। तुम चाहती हो कि मैं अपनी हालत सुधार लूं ताकि तुम्हें किसी प्रकार का अपराध बोध न रहे और तुम चैन से खुशी खुशी अपनी दुनिया में ऐशो आराम के साथ जी सको। वाह! प्रिया, कितना अजब सितम कर रही हो मुझ पर। एक बार भी ये नहीं सोच रही कि तुम्हारे सिवा दुनिया की किसी भी दूसरी औरत से मुझे कोई खुशी हासिल ही नहीं हो सकती। मामला मेरे दिल का है प्रिया। इस दिल ने अपने अंदर सिर्फ और सिर्फ तुम्हारी चाहत को पनाह दे रखा है। उसको किसी और के बारे में सोचना गवारा ही नहीं है। अब तुम ही बताओ ऐसे में भला मैं कैसे अपनी दुनिया को नए सिरे से शुरू करूं?"

"ह...हां मैं ये समझती हूं अरमान।" प्रिया उसकी दीवानगी देख अंदर तक कांप गई, फिर बोली──"लेकिन ये भी समझती हूं कि इंसान जब किसी के साथ बंधन में बंध जाता है तो देर सवेर उससे लगाव हो ही जाता है और फिर देर सवेर वो लगाव प्रेम में भी बदल जाता है। तुम एक बार किसी लड़की से शादी तो करो। मुझे पूरा यकीन है कि तुम्हारे दिल में उस लड़की के प्रति भावनाएं ज़रूर पैदा हो जाएंगी।"

"जानता हूं।" अरमान ने कहा──"लेकिन मैं ऐसा करना ही नहीं चाहता। मैं वो काम करना ही नहीं चाहता जिसकी वजह से मेरे दिल में तुम्हारे सिवा किसी दूसरे के लिए प्रेम जैसी कोमल भावनाएं जन्म ले लें। इस जन्म में तो अब मरते दम तक सिर्फ तुम्हीं से मोहब्बत करूंगा और तुम्हारी दर्द देने वाली यादों के साथ ही पूरा जीवन गुज़ारूंगा।"

प्रिया आश्चर्य चकित सी देखती रह गई उसे।
उसे यकीन नहीं हो रहा था कि अरमान के अंदर उसके प्रति ऐसी दीवानगी हो सकती है।
उसे यकीन नहीं हो रहा था कि अरमान ऐसी सोच रख सकता है।

"तुम मेरी फ़िक्र मत करो।" उधर अरमान ने होठों पर फीकी सी मुस्कान सजा कर कहा──"अगर मेरे बारे में सोचोगी तो ज़िंदगी को ऐशो आराम के साथ नहीं काट पाओगी। तुम अपनी दुनिया में खुश रहो। एक बात और, मेरी भलाई के लिए और मुझे सुधारने के लिए तुम चाहे कुछ भी कर लो लेकिन तुम इसमें कामयाब नहीं हो पाओगी। मैं सिर्फ उसी के साथ अपनी दुनिया बसाऊंगा जिसे मैं आज भी टूट टूट कर प्यार करता हूं, यानि तुमसे। तुम मेरी हो नहीं सकती और मैं किसी और का बनना नहीं चाहता। तुम बेकार में ही ये सब कर रही हो। जाओ, वापस अपनी दुनिया में लौट जाओ। मैं ये भी नहीं चाहता कि मेरी वजह से तुम्हारी शादीशुदा ज़िंदगी में ज़रा सा भी भूचाल आए।"

प्रिया को ऐसा महसूस हुआ जैसे उसका ज़हन एकदम से कुंद पड़ गया है।
उसे समझ ही नहीं आ रहा था कि अब वो अरमान से क्या कहे?
उसके दिलो दिमाग़ में ज़बरदस्त हलचल मची हुई थी।
उसे ऐसा लगने लगा जैसे एकाएक वो किसी मजधार में फंस गई है जहां से निकलना उसके लिए बड़ा ही मुश्किल लग रहा है।

उसने दुखी मन से एक नज़र अरमान की तरफ डाली और फिर दरवाज़ा खोल कर टैक्सी से उतर गई।
अरमान ने उससे कुछ नहीं कहा।
यहां तक कि जब वो बिना कुछ बोले एक तरफ को चल पड़ी तो उसने उसे रोका तक नहीं।
किंतु....उसे जाता देख उसके होठों पर रहस्यमय मुस्कान ज़रूर उभर आई।


क्रमशः....
 
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भाग- ०३
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उसके बाद अरमान ने देखा कि प्रिया ने डेढ़ दो घंटे में उसके घर का बहुत कुछ हुलिया बदल दिया था।
इस सबके चलते उसका अपना हुलिया बिगड़ गया था।
उसके कपड़े गंदे हो गए थे।
घर के पीछे बने बाथरूम में जा कर उसने अपने आपको थोड़ा बहुत साफ किया और फिर अरमान से किसी दिन फिर से आने का बोल कर चली गई।
उसके जाते ही अरमान के होठों पर एक रहस्यमय मुस्कान उभर आई थी।



अब आगे....


प्रिया जब अपने फ्लैट पर पहुंची तो शाम के साढ़े चार बज चुके थे
उसकी सौतेली बेटी अंकिता के आने का समय हो गया था।
प्रिया ने फ़ौरन ही अपने कमरे में जा कर सबसे पहले अपने गंदे कपड़े उतारे और अटैच बाथरूम में घुस गई।

जल्दी जल्दी उसने खुद को साफ किया और फिर कमरे में आ कर दूसरे कपड़े पहन लिए।
गंदे वाले कपड़ों को वाशिंग मशीन में डाल ही रही थी कि दरवाज़े की घंटी बज उठी।
वो समझ गई कि उसकी बेटी अंकिता स्कूल से आ गई है।
कपड़ों को मशीन में डाल कर वो तेज़ी से बाहर वाले दरवाज़े के पास पहुंची और गेट खोल दिया।

"आ गई मेरी बेटी?"

अंकिता पर नज़र पड़ते ही उसने बड़े ही स्नेह से कहा और फिर दरवाज़े से एक तरफ हट कर अंकिता को अंदर आने का रास्ता दिया।

अंकिता उसे देख कर थोड़ा सा मुस्कुराई और फिर अपना बैग लिए अंदर दाख़िल हो गई।

प्रिया ने ये सोच कर मन ही मन राहत की सांस ली कि अच्छा हुआ जो वो वक्त पर आ गई थी वरना उसकी बेटी को यहां इंतज़ार करना पड़ता और संभव था कि उसके सवालों के जवाब भी देने पड़ जाते।

[][][][][]

"ये तो कमाल हो गया।" विशाल ने सामने वाले सोफे पर बैठे अरमान को देखते हुए थोड़ी हैरानी से कहा──"यकीन नहीं होता कि वो आज तेरे घर आई और उसने तेरे घर का हुलिया भी ठीक किया।"

"उम्मीद तो मुझे भी नहीं थी।" अरमान ने कहा──"लेकिन फिर भी मेरा दिल कह रहा था कि वो मुझसे मिलने ज़रूर आएगी।"

"ये तूने उस दिन भी कहा था।" विशाल ने कहा──"ख़ैर, तो अब आगे क्या? मेरा मतलब है कि ये सब होने के बाद आगे का क्या प्लान है तेरा?"

"आगे का प्लान तब बनेगा जब ये कन्फर्म हो जाएगा कि वो मेरे लिए और क्या चाहती है?" अरमान ने एक सिगरेट जलाते हुए कहा──"मेरा मतलब है कि मेरी हालत को बेहतर बनाने के लिए वो क्या क्या करती है?"

"आज जो कुछ उसने तुझसे कहा है और जो कुछ उसने किया है।" विशाल ने भी एक सिगरेट जलाई, फिर कहा──"उससे तो यही प्रतीत होता है कि वो हर कीमत पर यही चाहती है कि तू खुद को बदले और किसी अच्छी लड़की से शादी कर के अपनी दुनिया आबाद कर ले। उसे एहसास है कि तेरी ये हालत उसी की वजह से है इस लिए वो पूरी कोशिश करेगी कि तू वही करे जो वो चाहती है। अगर तू खुद नहीं करेगा तो यकीनन वो खुद इसके लिए प्रयास करेगी।"

"लगता तो यही है।" अरमान ने कहा──"अब देखना ये है कि वो क्या क्या करती है?"

"वो क्या क्या करेगी ये तो ख़ैर आने वाला वक्त ही बताएगा।" विशाल ने कहा──"लेकिन जाने क्यों तेरे इरादे मुझे नेक नहीं लग रहे।"

"मेरे इरादे नेक ही हैं डियर।" अरमान ने सिगरेट का एक लंबा कश ले कर उसका धुआं उड़ाते हुए कहा──"अपनी चाहत अपनी मोहब्बत को वापस हासिल करना ग़लत तो नहीं। वैसे, इतना तो तुझे भी पता है कि जब तक इंसान के इरादे नेक होते हैं तब तक साला उसे कुछ भी हासिल नहीं होता। मुझे ही देख ले, क्या मिला मुझे इरादा नेक बनाए रखने से? सच तो ये है मेरे दोस्त कि कुछ हासिल करने के लिए कभी कभी नेक की जगह ग़लत इरादे भी रखने चाहिए। अगर यही सब सात साल पहले किया होता तो आज वो किसी और की नहीं बल्कि मेरी बीवी होती।"

"तू सच में बहुत अजीब है।" विशाल ने अपनी बची हुई सिगरेट को ऐश ट्रे में बुझाते हुए कहा──"इन सात सालों में तुझे एक से बढ़ कर एक हसीन लड़कियां मिल सकती थीं लेकिन साला तेरी सुई उस प्रिया में ही अटकी रही। तू चाहता तो कब का अपनी दुनिया बसा लेता मगर नहीं, तुझे तो वही वापस चाहिए थी जिसने तुझे ठुकरा दिया था? ऐसा पागलपन क्यों यार?"

"तुझे ये पागलपन लगता है?" अरमान ने उसकी तरफ तिरछी नज़र से देखा──"जबकि ये मेरे दिल की ख़्वाहिश की बात है। उन सच्चे जज़्बातों की बात है जिन्हें उसने ठुकरा दिया था और मेरे दिल को चूर चूर कर दिया था। ख़ैर मैं जानता था कि जिस तरह की चाहत उसने की थी वैसा ज़रूर होगा। यानि वो सचमुच किसी रईस व्यक्ति से शादी करेगी। अपनी ज़िद तो बस इतनी सी थी कि अगर वो दुबारा कहीं मिले तो उसे इस बात का एहसास कराऊं कि दुनिया में दौलत भले ही उसे हज़ारों ऐशो आराम दे देगी लेकिन खुशी का असली एहसास क्या होता है इससे वो हमेशा महरूम ही रहेगी।"

"तो क्या तुझे ये लगता है कि रईस व्यक्ति की बीवी होने के बाद भी वो खुशी के असली एहसास से महरूम है?" विशाल ने पूछा।

"हां, ऐसा हो भी सकता है।" अरमान ने कहा──"और अगर ऐसा नहीं होगा तो मैं उसे इसका एहसास कराऊंगा।"

"मुझे तो ऐसा लगता है कि तू इस बारे में ज़रूरत से ज़्यादा ही सोच रहा है।" विशाल ने कहा──"हो सकता है कि उसके प्रति तेरा ये ख़याल बेवजह अथवा बेबुनियाद ही हो।"

"बिल्कुल हो सकता है।" अरमान ने कहा──"मगर जैसा कि मैंने कहा अगर उसे एहसास नहीं होगा तो मैं खुद एहसास कराऊंगा।"

"और ऐसा तू करेगा कैसे?"

"मैं बताऊंगा नहीं बल्कि तुझे ऐसा कर के दिखाऊंगा।" अरमान ने पूरे आत्मविश्वास के साथ कहा──"संभव है कि थोड़ा समय लग जाए लेकिन ऐसा होगा ज़रूर। बस तू देखता जा।"

विशाल अपलक उसे देखता रहा।
इस वक्त अरमान के चेहरे पर अगर उसे कुछ दिख रहा था तो वो था──आत्मविश्वास, दृढ़ निश्चय और पत्थर जैसी कठोरता।

[][][][][]

अंकिता शाम साढ़े पांच बजे ट्यूशन पढ़ने चली जाती थी। इस बीच प्रिया थोड़ी देर आराम करती थी।
उसका पति अशोक शाम के साढ़े आठ या नौ बजे के क़रीब आता था।

अंकिता के जाने के बाद प्रिया अपने कमरे में बेड पर लेटी हुई थी।
बार बार अरमान के ख़याल आ रहे थे।
हालाकि वो उसके बारे में इतना ज़्यादा सोचना नहीं चाहती थी लेकिन जाने क्यों उसका भटकता हुआ मन बार बार उसकी तरफ ही चला जाता था।

वो सोचने लग जाती थी कि अरमान सचमुच उसे दिल की गहराइयों से प्यार करता है।
ये उसके प्रेम की शिद्दत ही थी कि उसने अब तक अपने जीवन में किसी और लड़की को जगह नहीं दी थी।

एकाएक ही उसे ख़याल आया कि अरमान ने उसकी वजह से अपना कैसा हाल बना लिया है।
उसे और उसके घर को देख कर इतना तो अब वो समझ ही गई थी कि अरमान ने उसे या फिर ये कहें कि अपनी मोहब्बत को खोने के बाद हर चीज़ से जैसे किनारा ही कर लिया था।
कदाचित यही वजह है कि वो आज भी एक मिडल क्लास आदमी ही बना रहा और उसका कोई खास मुकाम नहीं बन सका।

जब तक वो उससे मिली न थी तब तक उसे कभी ख़याल तक नहीं आया था उसका लेकिन अब उससे मिलने और उसकी हालत देखने के बाद बार बार उसका मन उसी के बारे में सोचने लगता था।

उसे ऐसा प्रतीत होता जैसे उसके अंदर से कोई कह रहा हो कि──"देख प्रिया, तेरी वजह से उस व्यक्ति ने अपना जीवन बर्बाद कर लिया। वो आज भी तुझे टूट कर चाहता है। क्या उसका हाल जान लेने के बाद भी तेरा उसके प्रति कोई फर्ज़ नहीं बनता? माना कि तू उसके लिए हर चीज़ नहीं कर सकती लेकिन कम से कम इतना तो कर ही सकती है जिससे कि उसके अंदर अपनी दुनिया बसा लेने का ख़याल आ जाए।"

"मैं करूंगी।" अपने अंदर की आवाज़ सुन प्रिया के मुख से अनायास ही निकल गया──"मुझसे जितना हो सकेगा उतना उसकी भलाई के लिए कुछ न कुछ करूंगी।"

"क्या करेगी तू?" अंदर से उसकी अंतरात्मा ने उससे पूछा──"और क्या तुझे लगता है कि अरमान खुद को बदल कर तथा पिछला सब कुछ भुला कर एक नए सिरे से अपना जीवन शुरू करेगा?"

"हां, मुझे यकीन है कि अरमान मेरी कोई भी बात नहीं टालेगा।" प्रिया ने जवाब दिया।

शाम साढ़े आठ बजे के क़रीब उसका पति अशोक आया।
प्रिया ये देख कर खुश हुई कि वो अपने साथ एक मेड को ले कर आया है।
मेड शादी शुदा थी किंतु उसकी उमर प्रिया जितनी ही लग रही थी।

अशोक ने बताया कि मेड का पति कंपनी में ही काम करता है। उसके पति को कंपनी की तरफ से कालोनी में कमरा तो मिला हुआ है लेकिन वो अपनी पत्नी मीरा को कालोनी के कमरे में नहीं रख सकता। वो आज ही गांव से अपनी पत्नी को ले कर आया था और कंपनी के बाहर कहीं किराए से कमरा ढूंढ रहा था। अशोक को जब कंपनी के एक आदमी ने इस बारे में बताया तो उसने मीरा के पति को बुला कर उससे बात की और ये भी कहा कि वो उसे कहीं पास में ही कमरा दिलवा देगा बशर्ते वो अपनी बीवी को उसके यहां काम करने को राज़ी हो।

मीरा के पति को इससे कोई आपत्ति नहीं थी। बल्कि वो ये सोच कर खुशी से राज़ी हो गया था कि अशोक जैसे बड़े आदमी के घर में काम करने से उसकी पत्नी भी चार पैसे कमा लेगी जिससे उसके परिवार का गुज़ारा बेहतर तरीके से हो सकेगा।

बहरहाल, मेड के आ जाने से प्रिया खुश हो गई थी। अशोक ने बताया कि मीरा अपने पति के लिए सुबह का नाश्ता बना कर सुबह जल्दी ही यहां आ जाया करेगी और फिर दोपहर तक यहीं रहेगी। सारे काम करने के बाद वो वापस अपने घर चली जाया करेगी और फिर शाम को आएगी। शाम का खाना पीना बना कर वो वापस अपने घर पति के पास चली जाएगी।
प्रिया को इससे कोई परेशानी नहीं थी।

[][][][][]

अगले दिन।

"अरे! प्रिया तुम?" अरमान ने जैसे ही दरवाज़ा खोला तो बाहर प्रिया को खड़ा देख थोड़ा चौंकते हुए बोला──"मैं खुली आंखों से कोई हसीन ख़्वाब तो नहीं देख रहा?"

"मुझे लगा ही था कि तुम घर पर ही होगे।" प्रिया ने अंदर दाख़िल होते हुए कहा──"तुम्हारी और तुम्हारे घर की हालत देख कर यही लगता है कि तुम हमेशा ही ऐसे रहना चाहते हो। अरे! दुनिया के लोग कहां से कहां पहुंच गए और तुम अब भी उसी दुनिया में खोए हुए हो जिसका कोई मतलब ही नहीं है। आख़िर कब तक ऐसे बेमतलब की ज़िंदगी जीते रहोगे तुम?"

"दिल अगर ऐसे ही जीने पर मजबूर करे तो कोई क्या करे प्रिया?" अरमान ने मानो ठंडी आह भरते हुए कहा──"हालांकि कभी कभी मैं भी सोचता हूं कि अपनी इस ज़िंदगी से बाहर निकल कर कुछ करूं लेकिन ऐसा हो ही नहीं पाता। पहले भी मेरा पागल दिल मेरे दिमाग़ पर हावी था और आज भी हावी है।"

"तुम और तुम्हारी बातें दोनों ही बहुत अजीब हैं।" प्रिया ने धड़कते दिल से कहा──"और ये तुम्हारे घर के बाहर टैक्सी किसकी खड़ी है? कल भी खड़ी थी।"

"किराए की है, उसे चलाता हूं मैं।" अरमान ने कहा──"असल में अपना थोड़ा बहुत जो खर्चा है वो टैक्सी चला कर ही पूरा हो जाता है। दिन में आराम करता हूं और रात में टैक्सी चलाता हूं। रात में ठीक रहता है क्योंकि देर रात जो सवारियां मिलती हैं उससे दुगनी तिगुनी आमदनी हो जाती है। उस आमदनी में से टैक्सी मालिक को कुछ पकड़ा देता हूं और बाकी जो बचता है वो अपना पेट भरने के लिए पर्याप्त होता है।"

अरमान की ये बातें सुन कर प्रिया को ज़बरदस्त धक्का लगा।
उसके अंदर ये सोच कर दर्द भरी टीस उभरी थी कि अरमान जैसा पढ़ा लिखा इंसान आज उसकी वजह से टैक्सी चला कर अपना जीवन यापन कर रहा है।
इस एहसास ने प्रिया को अंदर ही अंदर झकझोर कर रख दिया।
एक बार पुनः उसके मन में ख़याल उभरा कि काश! उसने अरमान को ठुकराया न होता।

अरमान की बात सुनने के बाद वो जज़्बातों में बहने लगी थी और शायद यही वजह थी कि वो फ़ौरन कुछ बोल ना सकी थी।
फिर किसी तरह उसने खुद को सम्हाला और घर की बाकी की सफाई में लग गई।

उसे ख़ामोशी से काम में लग गया देख अरमान के होठों पर रहस्यमय मुस्कान उभर आई।

"अच्छा ये बताओ कुछ खाया पिया है कि नहीं?" थोड़ी देर की ख़ामोशी के बाद प्रिया ने उसकी तरफ देख कर पूछा।

"हां, वो बाहर एक ढाबे से खा कर ही आया था।" अरमान ने बताया──"बस आराम करने ही जा रहा था कि तुमने दरवाज़ा खटखटा दिया।"

"ओह! इसका मतलब मैं ग़लत समय पर आ गई हूं?" प्रिया ने कहा──"अगर मुझे पता होता कि ये तुम्हारे रेस्ट करने का टाइम है तो नहीं आती।"

"कोई बात नहीं।" अरमान ने उसे बड़ी मोहब्बत से देखा──"तुम अगर रोज़ इसी तरह यहां आओगी तो मुझे रेस्ट करने की ज़रूरत ही नहीं पड़ेगी। तुम्हें देख लेने से ही दिलो दिमाग़ खुशी से बाग़ बाग़ हो जाया करेगा।"

प्रिया उसकी मोहब्बत भरी नज़रों का सामना न कर सकी और ना ही उसकी ऐसी बातों का कोई जवाब दे सकी।
ये अलग बात है कि उसकी धड़कनें तेज़ हो गईं थी।
ये सोच कर भी कि वो किसी की पत्नी है और एक ऐसे पराए मर्द के घर आई है जो अकेला तो है ही लेकिन उसका पूर्व प्रेमी भी है।

"लुक अरमान।" फिर उसने एक गहरी सांस ले कर कहा──"ये सब ठीक नहीं है। मेरा मतलब है कि मेरे प्रति तुम्हारी ये भावनाएं ठीक नहीं हैं। तुम्हें समझना होगा कि मैं किसी की पत्नी हूं और इस जन्म में तुम्हारी नहीं हो सकती। तुम्हारे लिए बेहतर यही होगा कि तुम खुद को सम्हालो और नए सिरे से अपनी ज़िंदगी शुरू करो।"

"अगर कोई चाह ले तो सब कुछ हो सकता है प्रिया।" अरमान ने उसकी तरफ दो क़दम बढ़ कर कहा──"तुम कहती हो कि इस जन्म में तुम मेरी नहीं हो सकती जबकि मैं कहता हूं कि यकीनन हो सकती हो।"

"क...क्या मतलब है तुम्हारा?"

प्रिया को झटका सा लगा।
हैरत भरी नज़रों से अरमान को देखने लगी वो।
अंदर ही अंदर थोड़ा घबरा भी उठी।

"मतलब बहुत सीधा और सरल है प्रिया।" अरमान ने कहा──"इंसान अगर चाह ले तो असंभव चीज़ को भी संभव बना सकता है। आज तुम भले ही किसी और की पत्नी हो लेकिन अगर चाहो तो मेरी पत्नी भी बन सकती हो। उसके लिए तुम्हें सिर्फ अपने पति को तलाक़ देना होगा और फिर मुझसे विवाह कर लेना होगा।"

"क्..क्या?? पागल हो क्या?" प्रिया ने आश्चर्य से आंखें फाड़ कर उसे देखा──"तुम सोच भी कैसे सकते हो कि मैं ऐसा करूंगी?"

"मैंने कहा भी नहीं कि तुम ऐसा करो।" अरमान ने अजीब भाव से मुस्कुराते हुए कहा──"मैंने तो सिर्फ ये बताया है कि इंसान अगर चाह ले तो सब कुछ हो सकता है। तुम ऐसा नहीं करना चाहती तो ये तुम्हारी सोच और मर्ज़ी की बात है।"

प्रिया को समझ न आया कि क्या कहे?
वो अभी भी आश्चर्य से आंखें फाड़े अरमान को देखे जा रही थी।
अरमान अच्छी तरह समझता था कि उसकी बातों ने प्रिया के मनो मस्तिष्क में कैसा तूफ़ान खड़ा कर दिया होगा।

"दूसरों को समझाना और उन्हें उपदेश देना बहुत आसान होता है।" फिर अरमान ने होठों पर फीकी सी मुस्कान सजा कर कहा──"मगर तुम भी जानती हो कि कहने में और करने में बहुत फ़र्क होता है। लोग दूसरों को बदलने के लिए जाने कैसे कैसे पैंतरे आज़माते हैं लेकिन वो एक बात ये नहीं सोचते कि जिसे वो बदलने की कोशिश कर रहे हैं वो बदलना भी चाहते हैं या नहीं? इस वक्त तुम भी मुझे बदलने की कोशिश ही कर रही हो जबकि सच्चाई ये है कि मैं किसी भी कीमत पर बदलना ही नहीं चाहता। आख़िर क्यों बदलूं? किसके लिए बदलूं? किस खुशी में बदलूं? अरे! जब मेरे अंदर किसी चीज़ की ख़्वाहिश ही नहीं है, किसी बात की कोई खुशी ही नहीं है तो किस आधार पर खुद को बदलूं? हां, एक तुम्हारी आरज़ू ज़रूर है लेकिन तुम मेरी हो नहीं सकती फिर किस लिए नई दुनिया बसाऊं? मेरा दिल किसी और की चाहत ही नहीं करता तो क्यों बेसबब किसी को अपना बना कर उसकी ज़िंदगी बर्बाद करूं, बताओ ज़रा?"

प्रिया को जैसे कोई जवाब ही न सूझा।
वो भौचक्की सी अरमान जैसे अजूबे को देखती रह गई।
फिर जैसे उसे होश आया तो उसने अपने ज़हन को झटका दे कर खुद को विचारों के भंवर से आज़ाद किया और फिर पलट कर पुनः साफ सफाई के काम में लग गई।

उसे समझ नहीं आ रहा था कि आख़िर अब वो ऐसा क्या करे जिससे अरमान सब कुछ भुला कर अपनी इस वीरान और बेमतलब सी ज़िंदगी से तौबा कर ले?
काम करते हुए वो यही सब सोचती जा रही थी लेकिन उसे कुछ सूझ नहीं रहा था।

अरमान ने भी आगे कुछ कहना उचित नहीं समझा था।
प्रिया क़रीब एक घंटे तक रही उसके बाद अपना हुलिया सही कर के चली गई।
जाते समय उसने सिर्फ इतना ही कहा कि समय मिला तो वो कल फिर आएगी लेकिन इसी शर्त पर कि वो थोड़ा समझने का प्रयास करे।



क्रमशः....
Bahut hi badhiya update diya hai TheBlackBlood bhai....
Nice and beautiful update....
 

Rekha rani

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Both update awesome
Araman priya ke sath emotional card khel raha hai, priya ki najro me sabit kar rha hai ki uske thukrane ke bad arman ne apni life narak bana li hai,
Abhi priya majbut hai lekin lagta nhi Arman ke aise emotional attack ke aage rah payegi,
Priya ke ghar me aayi mad kahi arman ka hi koi mohra to nhi jo aage jakr príya ko kamjor krne me help kregi
 
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Iron Man

Try and fail. But never give up trying
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भाग- ०३
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उसके बाद अरमान ने देखा कि प्रिया ने डेढ़ दो घंटे में उसके घर का बहुत कुछ हुलिया बदल दिया था।
इस सबके चलते उसका अपना हुलिया बिगड़ गया था।
उसके कपड़े गंदे हो गए थे।
घर के पीछे बने बाथरूम में जा कर उसने अपने आपको थोड़ा बहुत साफ किया और फिर अरमान से किसी दिन फिर से आने का बोल कर चली गई।
उसके जाते ही अरमान के होठों पर एक रहस्यमय मुस्कान उभर आई थी।



अब आगे....


प्रिया जब अपने फ्लैट पर पहुंची तो शाम के साढ़े चार बज चुके थे
उसकी सौतेली बेटी अंकिता के आने का समय हो गया था।
प्रिया ने फ़ौरन ही अपने कमरे में जा कर सबसे पहले अपने गंदे कपड़े उतारे और अटैच बाथरूम में घुस गई।

जल्दी जल्दी उसने खुद को साफ किया और फिर कमरे में आ कर दूसरे कपड़े पहन लिए।
गंदे वाले कपड़ों को वाशिंग मशीन में डाल ही रही थी कि दरवाज़े की घंटी बज उठी।
वो समझ गई कि उसकी बेटी अंकिता स्कूल से आ गई है।
कपड़ों को मशीन में डाल कर वो तेज़ी से बाहर वाले दरवाज़े के पास पहुंची और गेट खोल दिया।

"आ गई मेरी बेटी?"

अंकिता पर नज़र पड़ते ही उसने बड़े ही स्नेह से कहा और फिर दरवाज़े से एक तरफ हट कर अंकिता को अंदर आने का रास्ता दिया।

अंकिता उसे देख कर थोड़ा सा मुस्कुराई और फिर अपना बैग लिए अंदर दाख़िल हो गई।

प्रिया ने ये सोच कर मन ही मन राहत की सांस ली कि अच्छा हुआ जो वो वक्त पर आ गई थी वरना उसकी बेटी को यहां इंतज़ार करना पड़ता और संभव था कि उसके सवालों के जवाब भी देने पड़ जाते।

[][][][][]

"ये तो कमाल हो गया।" विशाल ने सामने वाले सोफे पर बैठे अरमान को देखते हुए थोड़ी हैरानी से कहा──"यकीन नहीं होता कि वो आज तेरे घर आई और उसने तेरे घर का हुलिया भी ठीक किया।"

"उम्मीद तो मुझे भी नहीं थी।" अरमान ने कहा──"लेकिन फिर भी मेरा दिल कह रहा था कि वो मुझसे मिलने ज़रूर आएगी।"

"ये तूने उस दिन भी कहा था।" विशाल ने कहा──"ख़ैर, तो अब आगे क्या? मेरा मतलब है कि ये सब होने के बाद आगे का क्या प्लान है तेरा?"

"आगे का प्लान तब बनेगा जब ये कन्फर्म हो जाएगा कि वो मेरे लिए और क्या चाहती है?" अरमान ने एक सिगरेट जलाते हुए कहा──"मेरा मतलब है कि मेरी हालत को बेहतर बनाने के लिए वो क्या क्या करती है?"

"आज जो कुछ उसने तुझसे कहा है और जो कुछ उसने किया है।" विशाल ने भी एक सिगरेट जलाई, फिर कहा──"उससे तो यही प्रतीत होता है कि वो हर कीमत पर यही चाहती है कि तू खुद को बदले और किसी अच्छी लड़की से शादी कर के अपनी दुनिया आबाद कर ले। उसे एहसास है कि तेरी ये हालत उसी की वजह से है इस लिए वो पूरी कोशिश करेगी कि तू वही करे जो वो चाहती है। अगर तू खुद नहीं करेगा तो यकीनन वो खुद इसके लिए प्रयास करेगी।"

"लगता तो यही है।" अरमान ने कहा──"अब देखना ये है कि वो क्या क्या करती है?"

"वो क्या क्या करेगी ये तो ख़ैर आने वाला वक्त ही बताएगा।" विशाल ने कहा──"लेकिन जाने क्यों तेरे इरादे मुझे नेक नहीं लग रहे।"

"मेरे इरादे नेक ही हैं डियर।" अरमान ने सिगरेट का एक लंबा कश ले कर उसका धुआं उड़ाते हुए कहा──"अपनी चाहत अपनी मोहब्बत को वापस हासिल करना ग़लत तो नहीं। वैसे, इतना तो तुझे भी पता है कि जब तक इंसान के इरादे नेक होते हैं तब तक साला उसे कुछ भी हासिल नहीं होता। मुझे ही देख ले, क्या मिला मुझे इरादा नेक बनाए रखने से? सच तो ये है मेरे दोस्त कि कुछ हासिल करने के लिए कभी कभी नेक की जगह ग़लत इरादे भी रखने चाहिए। अगर यही सब सात साल पहले किया होता तो आज वो किसी और की नहीं बल्कि मेरी बीवी होती।"

"तू सच में बहुत अजीब है।" विशाल ने अपनी बची हुई सिगरेट को ऐश ट्रे में बुझाते हुए कहा──"इन सात सालों में तुझे एक से बढ़ कर एक हसीन लड़कियां मिल सकती थीं लेकिन साला तेरी सुई उस प्रिया में ही अटकी रही। तू चाहता तो कब का अपनी दुनिया बसा लेता मगर नहीं, तुझे तो वही वापस चाहिए थी जिसने तुझे ठुकरा दिया था? ऐसा पागलपन क्यों यार?"

"तुझे ये पागलपन लगता है?" अरमान ने उसकी तरफ तिरछी नज़र से देखा──"जबकि ये मेरे दिल की ख़्वाहिश की बात है। उन सच्चे जज़्बातों की बात है जिन्हें उसने ठुकरा दिया था और मेरे दिल को चूर चूर कर दिया था। ख़ैर मैं जानता था कि जिस तरह की चाहत उसने की थी वैसा ज़रूर होगा। यानि वो सचमुच किसी रईस व्यक्ति से शादी करेगी। अपनी ज़िद तो बस इतनी सी थी कि अगर वो दुबारा कहीं मिले तो उसे इस बात का एहसास कराऊं कि दुनिया में दौलत भले ही उसे हज़ारों ऐशो आराम दे देगी लेकिन खुशी का असली एहसास क्या होता है इससे वो हमेशा महरूम ही रहेगी।"

"तो क्या तुझे ये लगता है कि रईस व्यक्ति की बीवी होने के बाद भी वो खुशी के असली एहसास से महरूम है?" विशाल ने पूछा।

"हां, ऐसा हो भी सकता है।" अरमान ने कहा──"और अगर ऐसा नहीं होगा तो मैं उसे इसका एहसास कराऊंगा।"

"मुझे तो ऐसा लगता है कि तू इस बारे में ज़रूरत से ज़्यादा ही सोच रहा है।" विशाल ने कहा──"हो सकता है कि उसके प्रति तेरा ये ख़याल बेवजह अथवा बेबुनियाद ही हो।"

"बिल्कुल हो सकता है।" अरमान ने कहा──"मगर जैसा कि मैंने कहा अगर उसे एहसास नहीं होगा तो मैं खुद एहसास कराऊंगा।"

"और ऐसा तू करेगा कैसे?"

"मैं बताऊंगा नहीं बल्कि तुझे ऐसा कर के दिखाऊंगा।" अरमान ने पूरे आत्मविश्वास के साथ कहा──"संभव है कि थोड़ा समय लग जाए लेकिन ऐसा होगा ज़रूर। बस तू देखता जा।"

विशाल अपलक उसे देखता रहा।
इस वक्त अरमान के चेहरे पर अगर उसे कुछ दिख रहा था तो वो था──आत्मविश्वास, दृढ़ निश्चय और पत्थर जैसी कठोरता।

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अंकिता शाम साढ़े पांच बजे ट्यूशन पढ़ने चली जाती थी। इस बीच प्रिया थोड़ी देर आराम करती थी।
उसका पति अशोक शाम के साढ़े आठ या नौ बजे के क़रीब आता था।

अंकिता के जाने के बाद प्रिया अपने कमरे में बेड पर लेटी हुई थी।
बार बार अरमान के ख़याल आ रहे थे।
हालाकि वो उसके बारे में इतना ज़्यादा सोचना नहीं चाहती थी लेकिन जाने क्यों उसका भटकता हुआ मन बार बार उसकी तरफ ही चला जाता था।

वो सोचने लग जाती थी कि अरमान सचमुच उसे दिल की गहराइयों से प्यार करता है।
ये उसके प्रेम की शिद्दत ही थी कि उसने अब तक अपने जीवन में किसी और लड़की को जगह नहीं दी थी।

एकाएक ही उसे ख़याल आया कि अरमान ने उसकी वजह से अपना कैसा हाल बना लिया है।
उसे और उसके घर को देख कर इतना तो अब वो समझ ही गई थी कि अरमान ने उसे या फिर ये कहें कि अपनी मोहब्बत को खोने के बाद हर चीज़ से जैसे किनारा ही कर लिया था।
कदाचित यही वजह है कि वो आज भी एक मिडल क्लास आदमी ही बना रहा और उसका कोई खास मुकाम नहीं बन सका।

जब तक वो उससे मिली न थी तब तक उसे कभी ख़याल तक नहीं आया था उसका लेकिन अब उससे मिलने और उसकी हालत देखने के बाद बार बार उसका मन उसी के बारे में सोचने लगता था।

उसे ऐसा प्रतीत होता जैसे उसके अंदर से कोई कह रहा हो कि──"देख प्रिया, तेरी वजह से उस व्यक्ति ने अपना जीवन बर्बाद कर लिया। वो आज भी तुझे टूट कर चाहता है। क्या उसका हाल जान लेने के बाद भी तेरा उसके प्रति कोई फर्ज़ नहीं बनता? माना कि तू उसके लिए हर चीज़ नहीं कर सकती लेकिन कम से कम इतना तो कर ही सकती है जिससे कि उसके अंदर अपनी दुनिया बसा लेने का ख़याल आ जाए।"

"मैं करूंगी।" अपने अंदर की आवाज़ सुन प्रिया के मुख से अनायास ही निकल गया──"मुझसे जितना हो सकेगा उतना उसकी भलाई के लिए कुछ न कुछ करूंगी।"

"क्या करेगी तू?" अंदर से उसकी अंतरात्मा ने उससे पूछा──"और क्या तुझे लगता है कि अरमान खुद को बदल कर तथा पिछला सब कुछ भुला कर एक नए सिरे से अपना जीवन शुरू करेगा?"

"हां, मुझे यकीन है कि अरमान मेरी कोई भी बात नहीं टालेगा।" प्रिया ने जवाब दिया।

शाम साढ़े आठ बजे के क़रीब उसका पति अशोक आया।
प्रिया ये देख कर खुश हुई कि वो अपने साथ एक मेड को ले कर आया है।
मेड शादी शुदा थी किंतु उसकी उमर प्रिया जितनी ही लग रही थी।

अशोक ने बताया कि मेड का पति कंपनी में ही काम करता है। उसके पति को कंपनी की तरफ से कालोनी में कमरा तो मिला हुआ है लेकिन वो अपनी पत्नी मीरा को कालोनी के कमरे में नहीं रख सकता। वो आज ही गांव से अपनी पत्नी को ले कर आया था और कंपनी के बाहर कहीं किराए से कमरा ढूंढ रहा था। अशोक को जब कंपनी के एक आदमी ने इस बारे में बताया तो उसने मीरा के पति को बुला कर उससे बात की और ये भी कहा कि वो उसे कहीं पास में ही कमरा दिलवा देगा बशर्ते वो अपनी बीवी को उसके यहां काम करने को राज़ी हो।

मीरा के पति को इससे कोई आपत्ति नहीं थी। बल्कि वो ये सोच कर खुशी से राज़ी हो गया था कि अशोक जैसे बड़े आदमी के घर में काम करने से उसकी पत्नी भी चार पैसे कमा लेगी जिससे उसके परिवार का गुज़ारा बेहतर तरीके से हो सकेगा।

बहरहाल, मेड के आ जाने से प्रिया खुश हो गई थी। अशोक ने बताया कि मीरा अपने पति के लिए सुबह का नाश्ता बना कर सुबह जल्दी ही यहां आ जाया करेगी और फिर दोपहर तक यहीं रहेगी। सारे काम करने के बाद वो वापस अपने घर चली जाया करेगी और फिर शाम को आएगी। शाम का खाना पीना बना कर वो वापस अपने घर पति के पास चली जाएगी।
प्रिया को इससे कोई परेशानी नहीं थी।

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अगले दिन।

"अरे! प्रिया तुम?" अरमान ने जैसे ही दरवाज़ा खोला तो बाहर प्रिया को खड़ा देख थोड़ा चौंकते हुए बोला──"मैं खुली आंखों से कोई हसीन ख़्वाब तो नहीं देख रहा?"

"मुझे लगा ही था कि तुम घर पर ही होगे।" प्रिया ने अंदर दाख़िल होते हुए कहा──"तुम्हारी और तुम्हारे घर की हालत देख कर यही लगता है कि तुम हमेशा ही ऐसे रहना चाहते हो। अरे! दुनिया के लोग कहां से कहां पहुंच गए और तुम अब भी उसी दुनिया में खोए हुए हो जिसका कोई मतलब ही नहीं है। आख़िर कब तक ऐसे बेमतलब की ज़िंदगी जीते रहोगे तुम?"

"दिल अगर ऐसे ही जीने पर मजबूर करे तो कोई क्या करे प्रिया?" अरमान ने मानो ठंडी आह भरते हुए कहा──"हालांकि कभी कभी मैं भी सोचता हूं कि अपनी इस ज़िंदगी से बाहर निकल कर कुछ करूं लेकिन ऐसा हो ही नहीं पाता। पहले भी मेरा पागल दिल मेरे दिमाग़ पर हावी था और आज भी हावी है।"

"तुम और तुम्हारी बातें दोनों ही बहुत अजीब हैं।" प्रिया ने धड़कते दिल से कहा──"और ये तुम्हारे घर के बाहर टैक्सी किसकी खड़ी है? कल भी खड़ी थी।"

"किराए की है, उसे चलाता हूं मैं।" अरमान ने कहा──"असल में अपना थोड़ा बहुत जो खर्चा है वो टैक्सी चला कर ही पूरा हो जाता है। दिन में आराम करता हूं और रात में टैक्सी चलाता हूं। रात में ठीक रहता है क्योंकि देर रात जो सवारियां मिलती हैं उससे दुगनी तिगुनी आमदनी हो जाती है। उस आमदनी में से टैक्सी मालिक को कुछ पकड़ा देता हूं और बाकी जो बचता है वो अपना पेट भरने के लिए पर्याप्त होता है।"

अरमान की ये बातें सुन कर प्रिया को ज़बरदस्त धक्का लगा।
उसके अंदर ये सोच कर दर्द भरी टीस उभरी थी कि अरमान जैसा पढ़ा लिखा इंसान आज उसकी वजह से टैक्सी चला कर अपना जीवन यापन कर रहा है।
इस एहसास ने प्रिया को अंदर ही अंदर झकझोर कर रख दिया।
एक बार पुनः उसके मन में ख़याल उभरा कि काश! उसने अरमान को ठुकराया न होता।

अरमान की बात सुनने के बाद वो जज़्बातों में बहने लगी थी और शायद यही वजह थी कि वो फ़ौरन कुछ बोल ना सकी थी।
फिर किसी तरह उसने खुद को सम्हाला और घर की बाकी की सफाई में लग गई।

उसे ख़ामोशी से काम में लग गया देख अरमान के होठों पर रहस्यमय मुस्कान उभर आई।

"अच्छा ये बताओ कुछ खाया पिया है कि नहीं?" थोड़ी देर की ख़ामोशी के बाद प्रिया ने उसकी तरफ देख कर पूछा।

"हां, वो बाहर एक ढाबे से खा कर ही आया था।" अरमान ने बताया──"बस आराम करने ही जा रहा था कि तुमने दरवाज़ा खटखटा दिया।"

"ओह! इसका मतलब मैं ग़लत समय पर आ गई हूं?" प्रिया ने कहा──"अगर मुझे पता होता कि ये तुम्हारे रेस्ट करने का टाइम है तो नहीं आती।"

"कोई बात नहीं।" अरमान ने उसे बड़ी मोहब्बत से देखा──"तुम अगर रोज़ इसी तरह यहां आओगी तो मुझे रेस्ट करने की ज़रूरत ही नहीं पड़ेगी। तुम्हें देख लेने से ही दिलो दिमाग़ खुशी से बाग़ बाग़ हो जाया करेगा।"

प्रिया उसकी मोहब्बत भरी नज़रों का सामना न कर सकी और ना ही उसकी ऐसी बातों का कोई जवाब दे सकी।
ये अलग बात है कि उसकी धड़कनें तेज़ हो गईं थी।
ये सोच कर भी कि वो किसी की पत्नी है और एक ऐसे पराए मर्द के घर आई है जो अकेला तो है ही लेकिन उसका पूर्व प्रेमी भी है।

"लुक अरमान।" फिर उसने एक गहरी सांस ले कर कहा──"ये सब ठीक नहीं है। मेरा मतलब है कि मेरे प्रति तुम्हारी ये भावनाएं ठीक नहीं हैं। तुम्हें समझना होगा कि मैं किसी की पत्नी हूं और इस जन्म में तुम्हारी नहीं हो सकती। तुम्हारे लिए बेहतर यही होगा कि तुम खुद को सम्हालो और नए सिरे से अपनी ज़िंदगी शुरू करो।"

"अगर कोई चाह ले तो सब कुछ हो सकता है प्रिया।" अरमान ने उसकी तरफ दो क़दम बढ़ कर कहा──"तुम कहती हो कि इस जन्म में तुम मेरी नहीं हो सकती जबकि मैं कहता हूं कि यकीनन हो सकती हो।"

"क...क्या मतलब है तुम्हारा?"

प्रिया को झटका सा लगा।
हैरत भरी नज़रों से अरमान को देखने लगी वो।
अंदर ही अंदर थोड़ा घबरा भी उठी।

"मतलब बहुत सीधा और सरल है प्रिया।" अरमान ने कहा──"इंसान अगर चाह ले तो असंभव चीज़ को भी संभव बना सकता है। आज तुम भले ही किसी और की पत्नी हो लेकिन अगर चाहो तो मेरी पत्नी भी बन सकती हो। उसके लिए तुम्हें सिर्फ अपने पति को तलाक़ देना होगा और फिर मुझसे विवाह कर लेना होगा।"

"क्..क्या?? पागल हो क्या?" प्रिया ने आश्चर्य से आंखें फाड़ कर उसे देखा──"तुम सोच भी कैसे सकते हो कि मैं ऐसा करूंगी?"

"मैंने कहा भी नहीं कि तुम ऐसा करो।" अरमान ने अजीब भाव से मुस्कुराते हुए कहा──"मैंने तो सिर्फ ये बताया है कि इंसान अगर चाह ले तो सब कुछ हो सकता है। तुम ऐसा नहीं करना चाहती तो ये तुम्हारी सोच और मर्ज़ी की बात है।"

प्रिया को समझ न आया कि क्या कहे?
वो अभी भी आश्चर्य से आंखें फाड़े अरमान को देखे जा रही थी।
अरमान अच्छी तरह समझता था कि उसकी बातों ने प्रिया के मनो मस्तिष्क में कैसा तूफ़ान खड़ा कर दिया होगा।

"दूसरों को समझाना और उन्हें उपदेश देना बहुत आसान होता है।" फिर अरमान ने होठों पर फीकी सी मुस्कान सजा कर कहा──"मगर तुम भी जानती हो कि कहने में और करने में बहुत फ़र्क होता है। लोग दूसरों को बदलने के लिए जाने कैसे कैसे पैंतरे आज़माते हैं लेकिन वो एक बात ये नहीं सोचते कि जिसे वो बदलने की कोशिश कर रहे हैं वो बदलना भी चाहते हैं या नहीं? इस वक्त तुम भी मुझे बदलने की कोशिश ही कर रही हो जबकि सच्चाई ये है कि मैं किसी भी कीमत पर बदलना ही नहीं चाहता। आख़िर क्यों बदलूं? किसके लिए बदलूं? किस खुशी में बदलूं? अरे! जब मेरे अंदर किसी चीज़ की ख़्वाहिश ही नहीं है, किसी बात की कोई खुशी ही नहीं है तो किस आधार पर खुद को बदलूं? हां, एक तुम्हारी आरज़ू ज़रूर है लेकिन तुम मेरी हो नहीं सकती फिर किस लिए नई दुनिया बसाऊं? मेरा दिल किसी और की चाहत ही नहीं करता तो क्यों बेसबब किसी को अपना बना कर उसकी ज़िंदगी बर्बाद करूं, बताओ ज़रा?"

प्रिया को जैसे कोई जवाब ही न सूझा।
वो भौचक्की सी अरमान जैसे अजूबे को देखती रह गई।
फिर जैसे उसे होश आया तो उसने अपने ज़हन को झटका दे कर खुद को विचारों के भंवर से आज़ाद किया और फिर पलट कर पुनः साफ सफाई के काम में लग गई।

उसे समझ नहीं आ रहा था कि आख़िर अब वो ऐसा क्या करे जिससे अरमान सब कुछ भुला कर अपनी इस वीरान और बेमतलब सी ज़िंदगी से तौबा कर ले?
काम करते हुए वो यही सब सोचती जा रही थी लेकिन उसे कुछ सूझ नहीं रहा था।

अरमान ने भी आगे कुछ कहना उचित नहीं समझा था।
प्रिया क़रीब एक घंटे तक रही उसके बाद अपना हुलिया सही कर के चली गई।
जाते समय उसने सिर्फ इतना ही कहा कि समय मिला तो वो कल फिर आएगी लेकिन इसी शर्त पर कि वो थोड़ा समझने का प्रयास करे।



क्रमशः....
Shaandar Mast lovely update 💓 💓 🔥
 
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भाग- ०४
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"क्या बात है।" रात खा पी कर प्रिया जब अपने कमरे में पहुंची तो उसके चेहरे पर छाई गंभीरता को भांप कर उसके पति अशोक ने उससे पूछा──"मेड के आ जाने पर भी तुम खुश नहीं दिख रही?"

"ज..जी??" प्रिया एकदम से हड़बड़ा सी गई, फिर जल्दी ही खुद को सम्हाल कर बोली──"मेरा मतलब है ये क्या कह रहे हैं आप? मैं तो खुश ही हूं।"

"ऐसा लग तो नहीं रहा।" अशोक ने अपलक प्रिया को देखते हुए कहा──"बहुत देर से नोटिस कर रहा हूं तुम्हें। मेड के आने के बाद से अब तक मैंने तुम्हारे चेहरे पर खुशी के भाव नहीं देखे। ज़ाहिर है, कोई तो ऐसी बात है जिसकी वजह से तुम्हारा चांद की तरह नज़र आने वाला चेहरा बुझा हुआ और थोड़ा गम्भीर सा नज़र आ रहा है।"

अपने पति अशोक की ये बातें सुनते ही प्रिया ये सोच कर एकदम से घबरा उठी कि उसके चेहरे की गंभीरता अशोक को कहीं ये न समझा दे कि वो अपने पूर्व प्रेमी से दो दो बार मिल चुकी है।

माना कि अशोक उसे बहुत प्यार करता है और उसका हर नाज़ नखरा भी खुशी से सहता है लेकिन पत्नी को अपने पूर्व प्रेमी से मिलने की बात जान लेने के बाद वो यकीनन उससे ख़फा हो सकता है।

उसकी खुशहाल शादीशुदा ज़िंदगी में पलक झपकते ही तूफ़ान आ सकता है।
उसका पति उसे चरित्रहीन समझ कर उसे घर से भी निकाल सकता है।
उसकी सौतेली बेटी जो उसे भले ही मां कह कर नहीं पुकारती लेकिन सगी मां जैसी ही समझ कर उससे लगाव और स्नेह रखती है, वो ये सब जान कर उससे घृणा करने लगेगी।

प्रिया के मनो मस्तिष्क में पलक झपकते ही ये सारे ख़याल उभरते चले गए और उसकी रूह तक को थर्रा गए।

"क्या हुआ?" अभी वो ये सब सोच कर खुद को सम्हाल ही रही थी कि तभी अशोक की आवाज़ ने फिर से उसे चौंका दिया──"तुम कुछ बोल क्यों नहीं रही बेबी? देखो, तुम अच्छी तरह जानती हो कि मैं तुमसे कितना प्यार करता हूं। तुम्हें हर पल खुश देखना चाहता हूं। तुम्हारी हर ख़्वाहिश पूरी करता हूं लेकिन तुम्हारा उतरा हुआ चेहरा देख कर मैं थोड़ा चिंता में पड़ गया हूं। मैं जानना चाहता हूं कि मेरी खूबसूरत क्वीन को आख़िर किस बात ने गंभीर बना दिया है?"

"न...नहीं ऐसी कोई बात नहीं है अशोक।" प्रिया ने धड़कते दिल से कहा──"मेरा यकीन कीजिए मुझे किसी बात ने गंभीर नहीं बनाया है। बात बस इतनी सी थी कि इतने दिनों से घर के काम खुद ही कर रही थी इस लिए थकान थोड़ी ज़्यादा ही हो गई थी। शायद इसी वजह से मेरे चेहरे की रंगत थोड़ी डाउन सी लगी आपको।"

"तुम सच कह रही हो न?"

अशोक ने उसका हाथ पकड़ कर अपनी तरफ खींचते हुए कहा।

"हां बाबा, सच ही कह रही हूं।" अपने पति का स्नेह और प्यार देख प्रिया ने मन ही मन राहत की सांस ली और मुस्कुराते हुए खुद को उसके सुपुर्द करते हुए कहा──"भला इतने केयरिंग पति के रहते मुझे किस बात की फ़िक्र हो सकती है? एक ही बात की थोड़ी तकलीफ़ हो रही थी उसे भी आज आपने दूर कर दी। नाउ, आई एम सो हैप्पी।"

"दैट्स लाईक ए गुड गर्ल।" अशोक उसको अपने ऊपर लिए हुए बेड पर आहिस्ता से लेट गया।

प्रिया का पूरा भार उसके ऊपर आ गया था।
उसके सीने के ठोस उभार अशोक के सीने में मानो धंस से गए थे।
अशोक ने उसकी पीठ और कमर से अपने हाथ हटाए और फिर उसके चेहरे को हौले से थाम कर बड़े प्यार से कहा──"चलो अब तो अपने शहद जैसे होठों को चूम लेने दो।"

"चूम लीजिए।" प्रिया मुस्कुराई──"मैंने कब मना किया है भला?"

"सुबह मना की तो थी तुम।" अशोक उसकी आंखों में झांकता बोला──"कह रही थी कि जब तक मैं मेड ले कर नहीं आऊंगा तब तक तुम मुझे पप्पी नहीं दोगी।"

"हां तो।" प्रिया ने थोड़ी अदा से कहा──"अब अगर आप हर रोज़ मेड लाने का बोल कर भूल जाएंगे तो मैं भी तो थोड़ा गुस्सा दिखाऊंगी ही।"

"अच्छा, ऐसा क्या?" अशोक ने मुस्कुराते हुए कहा──"चलो, अब तो मेड भी आ गई और मेरी जान खुश भी हो गई इस लिए पप्पी के साथ साथ बाकी सब कुछ भी कर सकता हूं ना?"

अशोक की बात का मतलब समझते ही प्रिया के चेहरे पर शर्म की हल्की लाली फैल गई।
उसने शर्म से मुस्कुराते हुए अशोक के सीने में अपना चेहरा छुपा लिया।
अशोक को उसके यूं शर्मा जाने पर उस पर बेहद प्यार आया।
उसके बाद वो आहिस्ता आहिस्ता प्रिया को चूमना शुरू कर दिया।

[][][][][]

"टैक्सी।"

दूसरे दिन प्रिया ने सड़क पर एक टैक्सी को आते देख हाथ देते हुए आवाज़ दी।
टैक्सी वाले ने उसकी आवाज़ सुनी तो उसकी तरफ टैक्सी ला कर रोक दी।

"अरे वाह!" टैक्सी ड्राइवर जोकि अरमान ही निकला, उसने प्रिया को देखते ही चहक कर कहा──"क्या बात है, आज तो अगर मैं कुछ और भी सोच लेता तो वो भी हो जाता।"

"म...मतलब??" प्रिया टैक्सी ड्राइवर के रूप में अरमान को देख कर पहले तो हैरान हुई फिर उसकी बात सुनते ही बोली।

"एक्चुअली, आज मैं ये सोच रहा था कि काश! रास्ते में मुझे तुम मिल जाओ तो तुम्हें अपनी टैक्सी में बैठा कर ले चलूं।" अरमान ने टैक्सी से बाहर आ कर प्रिया की तरफ देखते हुए कहा──"और देख लो, जो मैं चाह रहा था वही हो गया। तभी तो कह रहा हूं कि आज अगर कुछ और भी सोच लेता तो शायद वो भी हो जाता।"

"तुम कुछ ज़्यादा ही नहीं सोच रहे?" प्रिया ने धड़कते दिल से कहा──"और तुम तो रात में टैक्सी चलाते हो ना तो फिर दिन के इस वक्त टैक्सी में कहां घूम रहे हो?"

"क्या करें डियर, हम जैसे मामूली लोगों का वक्त कहां हमेशा एक जैसा रहता है?" अरमान ने टैक्सी का पिछला दरवाज़ा खोल कर प्रिया से कहा──"कल तुम्हारे जाने के बाद सो गया था। जब आंख खुली तो फील हुआ कि तबीयत कुछ ठीक नहीं है। थोड़ी कमज़ोरी भी फील हो रही थी। इस चक्कर में कल रात टैक्सी ले कर कहीं जा ही नहीं पाया। पास के एक मेडिकल स्टोर से दवा ली और खा कर फिर से सो गया। सुबह जब उठा तो तबीयत बेहतर लगी। अब क्योंकि रात टैक्सी चला कर खर्चे के लिए कुछ कमा नहीं पाया था इस लिए सोचा दिन में ही टैक्सी चला लूं।"

"कुछ तो अपने बारे में सोचो अरमान।" प्रिया को उसकी ख़राब तबीयत का जान कर उसके लिए बहुत बुरा लगा।
एकाएक ही उसे फ़िक्र होने लगी उसकी।

वो झट से खुले दरवाज़े से टैक्सी की पिछली सीट पर बैठ गई।
अरमान ने हौले से मुस्कुराते हुए टैक्सी का पिछला दरवाज़ा बंद किया और फिर घूम कर अपनी ड्राइविंग सीट पर आ गया।
अगले ही पल उसने टैक्सी को आगे बढ़ा दिया।

"तो बताईए मैडम, कहां जाना है आपको?" फिर उसने बैक व्यू मिरर में प्रिया को देखते हुए पूछा।

"किसी अच्छे से हॉस्पिटल में ले चलो।" प्रिया की नज़र भी पीछे से बैक व्यू मिरर में दिख रहे अरमान पर पड़ गई थी।

"ह...हॉस्पिटल???" अरमान हल्के से चौंका──"हॉस्पिटल क्यों? तुम्हारी तबीयत तो ठीक है ना?"

"मेरी तबीयत ठीक है।" प्रिया ने बैक मिरर में अरमान पर नज़रें जमाए हुए ही कहा──"लेकिन तुम्हारी ठीक नहीं है इस लिए हॉस्पिटल चलो।"

"अरे! ये...ये क्या कह रही हो तुम?" अरमान एकदम से बौखला सा गया। फिर सम्हल कर बोला──"देखो, मैं बिल्कुल ठीक हूं और वैसे भी हॉस्पिटल में अपना इलाज़ करवाने के लिए पैसे नहीं हैं मेरे पास।"

"पैसे मैं दे दूंगी।" प्रिया ने सपाट लहजे में कहा──"तुम बस हॉस्पिटल चलो।"

"नहीं जाऊंगा।" अरमान ने सहसा सड़क के किनारे टैक्सी रोक दी, फिर मिरर में ही प्रिया को देखते हुए बोला───"और हां, मैं दुनिया के किसी भी इंसान का एहसान अपने ऊपर ले लूंगा लेकिन तुम्हारा नहीं।"

"अ...अरमान ये...ये तुम कैसी बातें कर रहे हो?" अचानक से उसका ये बर्ताव देख प्रिया की आंखें फैल गईं──"तुम सोच भी कैसे सकते हो कि मैं ऐसा तुम पर एहसान करने के लिए कह रही हूं?"

"बहुत खूब।" अरमान व्यंग से मुस्कुरा उठा──"उल्टा चोर कोतवाल को डांटे? ज़रा अपने गिरेबान में झांक कर तो देखो प्रिया। एक बार ज़रा देखो और फिर सोचो कि क्या तुमने ऐसा काम नहीं किया था जो मैं कभी सोच नहीं सकता था? चलो मान लिया कि मेरी हैसियत तुम्हें दुनिया का हर सुख और ऐशो आराम देने की नहीं थी जिसके चलते तुमने एक रईस व्यक्ति से शादी कर ली लेकिन....लेकिन इतने सालों बाद जब उस दिन इत्तेफ़ाक से तुमसे मुलाक़ात हुई तो तुमने कैसा बर्ताव किया था मेरे साथ? पैसे और गुरूर में तुम इतनी अंधी थी कि तुमने उस व्यक्ति का मज़ाक उड़ाया और उसे नीचा दिखाया जो तुम्हें दिलो जान से चाहता रहा है। इतना ही नहीं जिसने तुम्हारे सिवा कभी एक पल के लिए भी किसी दूसरी लड़की को अपने दिल में बैठाने का नहीं सोचा। क्या तुम्हारा वो बर्ताव और तुम्हारे वो कर्म मेरी सोच और उम्मीद से परे नहीं थे?"

प्रिया को फ़ौरन कोई जवाब नहीं सूझा।
अपराध बोध से उसका सिर झुकता चला गया।
सच ही तो कहा था अरमान ने।
उसने एक हफ़्ता पहले अरमान के साथ ऐसा ही तो बर्ताव किया था।

"सुना था औरत को कभी कोई समझ नहीं सकता।" उधर अरमान ने उसे चुप देख अधीरता से कहा──"आज तुम्हारा ये बर्ताव भी मुझे समझ नहीं आ रहा। उस दिन तो तुम मेरी हैसियत और मेरी हालत का मज़ाक उड़ा रही थी और खुद को आसमान से भी ऊंचा दिखा रही थी। कोई कसर नहीं छोड़ी थी मेरे दिल को छलनी छलनी करने में लेकिन अब मुझ पर मेहरबानी करती जा रही हो? भला किस लिए प्रिया? जो इंसान तुम्हारे लेवल का है ही नहीं उससे अचानक से ऐसा लगाव क्यों? उसकी भलाई के बारे में सोचना क्यों? उसके लिए फ़िक्र क्यों?"

प्रिया को अब भी कोई जवाब नहीं सूझा।
उसकी जुबान को जैसे ताला लग गया था।
सिर झुकाए वो ख़ामोशी से अरमान की बातें सुनती रही।
हां, उसके दिलो दिमाग़ में ज़बरदस्त हलचल ज़रूर मच गई थी।

"एक बात अच्छी तरह समझ लो प्रिया।" अरमान ने पुनः कहा──"मैं कल भी तुम्हें दिलो जान से प्यार करता था, आज भी करता हूं और आगे भी हमेशा करता रहूंगा। दुनिया का कोई भी व्यक्ति अथवा दुनिया की कोई भी ताक़त मेरे दिलो दिमाग़ से तुम्हारे प्रति इस चाहत को निकाल नहीं सकती। मैं जैसा हूं आगे भी वैसा ही रहूंगा। तुम्हें मेरी हालत पर तरस खा कर मुझ पर कोई एहसान करने की कोई ज़रूरत नहीं है और ना ही मुझ पर कोई हक़ जताने की ज़रूरत है।"

"म...मैं मानती हूं अरमान कि तुम्हें ठुकरा कर मैंने तुम्हारे साथ बिल्कुल भी अच्छा नहीं किया था।" प्रिया ने थोड़ा दुखी हो कर कहा──"शायद उस समय मैं ज़रूरत से ज़्यादा ही मतलबी हो गई थी। तभी तो तुम्हारे बारे में ये तक नहीं सोचा था कि मेरे द्वारा इस तरह ठुकरा दिए जाने पर तुम्हारे दिल पर क्या गुज़रेगी। उस समय तो मेरे अंदर बस एक ही ख़्वाहिश थी कि मेरी शादी एक ऐसे व्यक्ति से हो जो अमीर हो और जो मुझे दुनिया का हर ऐशो आराम दे। उसके बाद जब सच में मेरी ख़्वाहिश पूरी हो गई तो उस खुशी में मुझे ये पता ही नहीं चला कि कब मेरे अंदर अमीरी का गुरूर आ कर घर कर गया। इतने सालों बाद जब तुम उस दिन मुझे मिले तो जाने कैसे मैं तुमसे वो सब कहती चली गई? तुम्हें और तुम्हारी हालत को देख कर उस समय मेरे अंदर शायद ये सोच कर ऐसी वाहियात भावना पैदा हो गई थी कि वो तुम ही थे जिससे मैं शादी करने वाली थी और हर चीज़ के लिए खुद को मोहताज बना लेने वाली थी। शुक्र था कि मैंने सही समय पर अपना इरादा बदल कर तुमसे शादी नहीं की, बल्कि एक अमीर व्यक्ति से की जिसके चलते आज मैं किसी रानी की तरह ऐश कर रही हूं। हां अरमान, उस समय मेरे अंदर ऐसी ही भावनाएं प्रबल रूप से उभर आईं थी और फिर मैंने वो सब कह कर तुम्हारा दिल दुखा दिया था। बाद में अपने घर जा कर जब मैंने तुम्हारे और अपने बारे में गहराई से सोचा तो एहसास हुआ कि मुझे वो सब नहीं कहना चाहिए था। वो भी एक ऐसे इंसान से जो आज भी मुझ जैसी मतलबी और बेवफ़ा लड़की से प्यार करता है और आज तक अपनी दुनिया नहीं बसाई। यकीन करो अरमान, जब ये एहसास हुआ तो मुझे अपने उस बर्ताव पर बहुत गुस्सा आया और तुम्हारे लिए बहुत दुख हुआ। रात भर नींद नहीं आई। मैंने फ़ैसला किया कि तुम्हारे घर आ कर तुमसे अपने उस बर्ताव की माफ़ी मांगूंगी।"

"ठीक है।" अरमान ने कहा──"मैंने तुम्हें माफ़ कर दिया है। अब तुम वापस अपनी दुनिया में लौट जाओ। मेरे बारे में सोचने की कोई ज़रूरत नहीं है तुम्हें।"

"ऐसा मत कहो प्लीज़।" प्रिया का गला भर आया। याचना सी करती हुई बोली──"देर से ही सही मुझे ये एहसास हो गया है कि मैंने तुम्हारे साथ बहुत ग़लत किया है। अपनी उस ग़लती का किसी तरह पश्चाताप करना चाहती हूं। मैं चाहती हूं कि तुम पिछला सब कुछ भुला कर एक नए सिरे से ज़िंदगी शुरू करो। किसी अच्छी लड़की से शादी कर के अपना घर बसा लो। अगर तुम ऐसा कर लोगे तो मुझे सच में बहुत खुशी होगी वरना मुझे यही दुख तड़पाता रहेगा कि मेरी वजह से तुमने अपनी ज़िंदगी बर्बाद कर ली अथवा ये कहूं कि मैंने तुम्हारी ज़िन्दगी बर्बाद कर दी है। प्लीज़ अरमान, मैं तुमसे हाथ जोड़ कर विनती करती हूं। प्लीज़ आख़िरी बार मेरी ये इच्छा पूरी कर दो।"

"नो, नेवर।" अरमान ने पूरी मजबूती से इंकार में सिर हिला कर कहा──"तुम आज भी सिर्फ अपनी खुशी के बारे में ही सोच रही हो प्रिया। तुम चाहती हो कि मैं अपनी हालत सुधार लूं ताकि तुम्हें किसी प्रकार का अपराध बोध न रहे और तुम चैन से खुशी खुशी अपनी दुनिया में ऐशो आराम के साथ जी सको। वाह! प्रिया, कितना अजब सितम कर रही हो मुझ पर। एक बार भी ये नहीं सोच रही कि तुम्हारे सिवा दुनिया की किसी भी दूसरी औरत से मुझे कोई खुशी हासिल ही नहीं हो सकती। मामला मेरे दिल का है प्रिया। इस दिल ने अपने अंदर सिर्फ और सिर्फ तुम्हारी चाहत को पनाह दे रखा है। उसको किसी और के बारे में सोचना गवारा ही नहीं है। अब तुम ही बताओ ऐसे में भला मैं कैसे अपनी दुनिया को नए सिरे से शुरू करूं?"

"ह...हां मैं ये समझती हूं अरमान।" प्रिया उसकी दीवानगी देख अंदर तक कांप गई, फिर बोली──"लेकिन ये भी समझती हूं कि इंसान जब किसी के साथ बंधन में बंध जाता है तो देर सवेर उससे लगाव हो ही जाता है और फिर देर सवेर वो लगाव प्रेम में भी बदल जाता है। तुम एक बार किसी लड़की से शादी तो करो। मुझे पूरा यकीन है कि तुम्हारे दिल में उस लड़की के प्रति भावनाएं ज़रूर पैदा हो जाएंगी।"

"जानता हूं।" अरमान ने कहा──"लेकिन मैं ऐसा करना ही नहीं चाहता। मैं वो काम करना ही नहीं चाहता जिसकी वजह से मेरे दिल में तुम्हारे सिवा किसी दूसरे के लिए प्रेम जैसी कोमल भावनाएं जन्म ले लें। इस जन्म में तो अब मरते दम तक सिर्फ तुम्हीं से मोहब्बत करूंगा और तुम्हारी दर्द देने वाली यादों के साथ ही पूरा जीवन गुज़ारूंगा।"

प्रिया आश्चर्य चकित सी देखती रह गई उसे।
उसे यकीन नहीं हो रहा था कि अरमान के अंदर उसके प्रति ऐसी दीवानगी हो सकती है।
उसे यकीन नहीं हो रहा था कि अरमान ऐसी सोच रख सकता है।

"तुम मेरी फ़िक्र मत करो।" उधर अरमान ने होठों पर फीकी सी मुस्कान सजा कर कहा──"अगर मेरे बारे में सोचोगी तो ज़िंदगी को ऐशो आराम के साथ नहीं काट पाओगी। तुम अपनी दुनिया में खुश रहो। एक बात और, मेरी भलाई के लिए और मुझे सुधारने के लिए तुम चाहे कुछ भी कर लो लेकिन तुम इसमें कामयाब नहीं हो पाओगी। मैं सिर्फ उसी के साथ अपनी दुनिया बसाऊंगा जिसे मैं आज भी टूट टूट कर प्यार करता हूं, यानि तुमसे। तुम मेरी हो नहीं सकती और मैं किसी और का बनना नहीं चाहता। तुम बेकार में ही ये सब कर रही हो। जाओ, वापस अपनी दुनिया में लौट जाओ। मैं ये भी नहीं चाहता कि मेरी वजह से तुम्हारी शादीशुदा ज़िंदगी में ज़रा सा भी भूचाल आए।"

प्रिया को ऐसा महसूस हुआ जैसे उसका ज़हन एकदम से कुंद पड़ गया है।
उसे समझ ही नहीं आ रहा था कि अब वो अरमान से क्या कहे?
उसके दिलो दिमाग़ में ज़बरदस्त हलचल मची हुई थी।
उसे ऐसा लगने लगा जैसे एकाएक वो किसी मजधार में फंस गई है जहां से निकलना उसके लिए बड़ा ही मुश्किल लग रहा है।

उसने दुखी मन से एक नज़र अरमान की तरफ डाली और फिर दरवाज़ा खोल कर टैक्सी से उतर गई।
अरमान ने उससे कुछ नहीं कहा।
यहां तक कि जब वो बिना कुछ बोले एक तरफ को चल पड़ी तो उसने उसे रोका तक नहीं।
किंतु....उसे जाता देख उसके होठों पर रहस्यमय मुस्कान ज़रूर उभर आई।


क्रमशः....
Bahut hi shaandar update diya hai TheBlackBlood bhai....
Nice and lovely update....
 

ibn.gardi

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Superb start!
 
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