Bhot hi salinta bhara update dono ke bich ke bond ko kafi aache se aapne sambhala bhi h jode bhi rakha h ......Updated 03
सूरज कमरे से निकल के अनाज में आके बैठ गया और अपने पहले प्यार नेहा के बारे में अपने घर वालो को क्या बोले केसे बोले इस सोच में डूब गया...सूरज आंगन में बैठा था जहां सामने एक कोने में घर का कॉमन बाथरूम था...
पुराने दरवाजा खुलते हुए आवाज करता हुए खुला... गांव की सुबह शांति भरे वातावरण में इस आवाज ने सूरज का ध्यान अपनी ओर किया...आवाज का पीछा करते हुए सूरज की नजर दरवाजे तक पहुंच गई... सूरज की धड़कन जैसे रुक गई... वो सामने से आती खूबसूरत महिला को देख अपनीर नजर झुका कर शर्म से लाल हुआ ऐसे उठ के बाहर जाने लगा जैसे उसने कुछ न देखा हो...
उसके सामने का नजारा कुछ यूं था दोस्तो....
पेटीकोट में खुद के नंगे बदन को छुपाती हुए सुमित्रा यानी सूरज की मां अपने गीले और कामुक दूध से जिस्म को संभालती हुए अपने कमरे की और चल दी... सूरज की मां के दो स्तन उसके चलने से उपर नीचे होते... गुलाबी पेटीकोट बस सूरज की मां के आधे जिस्म को छुपा पा रहा था आधा रेशमी मुलायम जिस्म पूरी तरह से खुली हवा में सांस ले पा रहा था....
सूरज बाहर निकल गया और दुपहर को आया... घर का माहोल एक दिन में इतना बदल जाएगा किसी ने सोचा नही था.. सिर्फ एक रिश्ते के बदल जाने से जैसे ये घर कोई नया ही घर मालूम होता था... जब भी पारुल और सूरज का सामना होता दोनो एक दूसरे से मुंह मोड़ लेते और बाकी घर के लोग भी अपनी बाते रोक देते और गंभीर हो जाते...और जैसे तैसे कर दोनो को मिलान ने तरीके करने पे लग जाते पर ये सब माहोल को और अधिक अजीब बना दे रहा था...
सूरज जब आया सब खाना लग गया था...
सुमित्रा – बहू सूरज आ गया है उसके लिए खाना लगा दे तो...
सूरज टेबल पर बैठ कर और तभी सामने से पूरी तरह से सुहागन के रूप में पारुल आई... जैसा सूरज हमेशा से सोचता था कि उसकी पत्नी भी भाभी जेसी सुंदर होगी...आज उसकी वही भाभी उसकी पत्नी के रूप में खास उसके लिए सज संवर के घर में काम कर रही थी... सूरज का दिल फिर से जोर जोर से धडकने लगा...
सूरज थोड़ी देर बाद बोला...
सूरज – मां मुझे कुछ दिन के लिए मुंबई जाना होगा... वहा कुछ काम ही उसे खतम कर आता हु....
सुमित्रा – बेटा शादी को एक दिन नही हुआ बिचारी पारुल बहू का तो सोच... पहले तुम उसे ठीक से वक्त तो दो...
सूरज – बस कुछ दिन फिर तो यही से कुछ काम देख लूंगा और यहां का काम अब में ही संभाल लूंगा आप चिंता न करे...
सुमित्रा – अरे बेटा में क्या बोल रही हु तू क्या समझ रहा है... तू अब सिर्फ मेरा बेटा नही... इस पगली की और देख कैसे रहेगी तेरे बिना... ये कुछ बोल नही रही तो क्या तू अपनी मनमानी करेगा...जाना ही है तो बहु को साथ ले जा...
सूरज – मां ऑफिस का काम है भाभी क्या करेगी वहा...
सूरज के पापा – पुराने रिश्ते भूल नई सिरे से अपनी शादी सुदा जिंदगी की एक नई शुरुवात करो तुम दोनो... यही सही मौका है की तुम दोनो अकेले में एक दूसरे के साथ रहो और एक दुसरे को जानो....
सूरज – लेकिन पापा...
सूरज के पापा – लेकिन वेकीन कुछ नही जो बोल दिया सो बोल दिया...और बहु को खुस रख.. बाकी तुम दोनो बच्चे नही...
सुमित्रा धीरे से पारुल के कान में – बहू सब संभाल लेना.. पहल तुझे ही करनी है...इसी में सब की खुशी होगी....
सब के दबाव में आके मजबूरन सूरज अपनी पत्नी पारुल को भी साथ मुंबई ले आया...
किसी ने सही कहा है कि सफर सुरू तो करो में हमसफ़र अपने आप बन जाएंगे...
मुंबई जाते जाते ही दोनो देवर भाभी में कुछ कुछ बाते होने लगी... यहां न कोई तीसरा था तो था नहीं तो एक दुसरे से बात करना तो अनिवार्य होना ही था...
सूरज को यहां कोई टोकने वाला था नही और पारुल खुद से बोल नही पाई इस लिए अब सूरज पारुल को भाभी कह ke ही बाते करने लगा...उसे पता था कि उसकी भाभी कभी गांव से बाहर नही गई इस लिए वो हर बात उसकी पत्नी पारुल को समझा देता....और इस उनके बीच फिर से दूरी कम होने लगी पति पत्नी जितनी नही पर देवर भाभी वाली नजदीकिया आने लगी....
स्टेशन पे उतर के सूरज पारुल को एक होटल ले आया...और कमरे में समान रख अपनी भाभी को बेड पे बैठा के खुद जमीन पे बैठ...उसके पैरो पास बैठ बोलने लगा....
सूरज – भाभी मुझे माफ करना में आप को कभी अपनी पत्नी के रूप में नहीं देख सकते न आप मुझे... (आखों में आसू आ गए)
पारुल बस सुन रही थी....
सूरज – भाभी में नेहा के बिना नहीं रह सकता भाभी मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा पापा को केसे बोलूं....और वो नेहा के बारे मे सब बोल देता है...
पारुल अपने आसू जैसे तैसे रोकती है...उसे आने वाले घर के माहोल का आदाजा हो रहा था.. कही न कही वो सूरज से प्यार तो करती थी पारुल का दिल बिना जुड़े ही फिर से टूट गया... पारुल फिर भी अपने देवर के साथ कोई रोमेंटिक वाला रिश्ता नही सोची थी... बस उसे सुरज पे एक विश्वाश हो गया था जब सूरज ने शादी के लिए हा बोला था उसे लगा जैसे परी को एक अच्छे पापा मिल रहे है...पारुल बड़ी हिम्मत के साथ अपने दुख को छुपा के हस के बोली...
पारुल – बस इतनी सी बात.... आप बिलकुल फिकर मत कीजिएगा में बात कर लूंगी ससुरजी से...(पारुल एक पतिव्रता स्त्री थी चाहे वो दिल से सूरज को पति का हक न दे पर... वो पत्नी का हर कर्तव्य पूरा करने को तैयार थी बस उसका पति उसे बोल के देखे.. पारुल के लिए सात फेरों और मगलसूत्र का अर्ध बहोत अथिक था दूसरी और सूरज के लिए जैसे ये बस एक रिवाज थे....उसे कोई ऐसा डर या आस्था नहीं थी शादी की क्समो रीति रिवाजों पे...और पारुल थी एक रूढ़िवादी समाज से रीति रिवाज का पूरी श्रद्धा से पालन करना ही खुद का धर्म मानती...)
सूरज – सच भाभी...आप बेस्ट हो भाभी....
और सूरज खूसी के मारे उठ खड़ा हुआ और अपनी भाभी को बाहों में भर उसके गालों को चूम लिया...
पारुल के लिए ये चुबन बड़ा उत्तेजक रहा...उसके उसे लगा जैसे उसका पति उसे चूम रहा हो...लेकिन ये उसका पति सूरज नही देवर सूरज था...पारुल शर्म से लाल हो गई..लेकिन अपने होस में थी...मन में बोली “ पारुल तुझे क्या हो रहा है वो बस अपनी भाभी को...तुझे नही...इतना क्या हो रहा है तूझे"
सूरज – भाभी आप भी चलोगे मेरे साथ उसके पापा से मिलने जाना है आज...(सूरज था तो 25 साल का ना समझ लड़का भोलेपन में ही अपनी पत्नी को बोल रहा था की उसकी प्रेमिका से मिलने आई... हा ये शादी बस समझोता ही थी पर पारुल के लिए शादी कोई खेल न थी पर सूरज जैसे अपनी भाभी का दुःख न देख अपनी खुशी में डूब गया था)
पारुल – ने नही आ सकती आप जाओ....
सुरज – भाभी आप मुझे आप आप मत बोला करो कितना अजीब लगता है...और आप को आना पड़ेगा भाभी...आप को मेरी कसम....
पारुल आगे माना नही कर पाई....
और दोनो अपना सामान ले कर सूरज के फ्लैट पे चले गई...
गेट पे खड़ा सिक्युरिटी वाला दोनों को घूर रहा था...
घर का दरवाजा खोल ही रहा था के पड़ोस आंटी पारुल को देख बोली...
आंटी – सूरज बेटा शादी कर के आई हो... कितने अच्छे हो साथ में...
सूरज – नही नही आंटी ये मेरी भाभी है...बस मुबई घूमने आई थी....
पारुल के दिल को फिर से थक्का सा लगा...लेकिन वो खुद समझा लि "सही तो बोल रहा है क्या गलत है" मन में...
ये तो आने वाला वक्त ही पता सकता है...बहुत रोमांचक कहानी है मित्र, क्या आगे सूरज और सुमित्रा के बीच रिश्ता बनने के आसार है ?
आप का धन्यवाद...Bhot hi salinta bhara update dono ke bich ke bond ko kafi aache se aapne sambhala bhi h jode bhi rakha h ......
very interesting story.Update 01
सूरज अपनी ऑफिस में काम करने में व्यस्त अपनी कंप्यूटर स्क्रीन से एक पल पल के लिए भी नजरें नही हटा रहा था.. डेस्क पे पड़ा उसका फोन पिछले 5 मीन से बज रहा था.. आखिर में सूरज के सामने ही बैठे उसके मैनेजर ने तंग आले बोला..."सूरज अपना फोन साइलेंट करो या उठा लो परेशान कर दिया अब है आवाज ने..."
सूरज गड़बड़ाता हुआ फोन उठा लेता है और थोड़ा
गुस्सा करता हुआ बोला " मां आप को बोला था ना कि ऑफिस के समय कॉल मत किया करो बाद में बाद करता हू"
सामने से उसकी मां की रोती हुई आवाज आती है और मां के शब्द सुन सूरज सुन पड़ गया... उसकी आखों से अचानक आशु बहन लगे...वो फोन रख तुरत बाहर निकलने लगा...पीछे से मैनेजर उसे आवाज दे रहा था लेकिन सूरज को जैसे कुछ सुनाई ही न रहा हो वैसे वो ऑफिस से निकल गया...
सूरज ट्रेन में बैठे हुए गहरी सोच में चला गया...
कुछ साल पहले....
सूरज के बड़े भाई (चाचा के लड़के) – अरे छोटे ये क्या है...
सूरज के बड़े भाई रिषभ के हाथ में सूरज का ऑफर लेटर था...
सूरज – कुछ नहीं भईया बस एक कंपनी में इंटरव्यू हुआ था...
रिषभ – अरे तेरी जॉब लग गई...(पड़ के ) अरे क्या बात है छोटे मुंबई में और 15 LPA ... क्या बात है अभी सब को खुशखबरी देता हू...
सूरज – भईया रहने दो में नही जा रहा... वहा यही कुछ करने का सोच रहा हू...
रिषभ – अरे पागल है क्या इतना पड़ के यहां क्या करेगा..
सूरज की चुप्पी देख जैसे रिषभ सब समझ गया...दोनो भाई का रिश्ता ही ऐसा था की एक दूसरे की मन की बात समझ जाते थे... वो सूरज के पास एक उसके पास बैठ के उसे बोला....
रिसभ – अरे पागल तू यहां की कोई फिकर मत कर यहां में हु ना... छोटी मां और छोटे पापा की बिलकुल फिकर ना कर और वैसे अभी से इतना मत सोच अभी तू छोटा है कुछ साल आराम से अपनी लाइफ एंजॉय कर ले फिर तुझे जो सही लगे....
प्रेसेंट समय में.....
सूरज अपने गांव पहुंचा तब तक अंतिम संस्कार हो चुका था... सूरज को बड़ा अफसोस हो रहा था की वो एक आखरी बार भी उसके बड़े भाई से मिल न पाया... कास वो घर से इतना दूर न होता...
सूरज आंगन में ही गांव वालो के साथ बैठ गया और वहां उसे कुछ कुछ बाते पता चली लेकिन अभी तक वो कुछ ठीक से समझ पाने की हालत में नहीं था...रात हो गए...सब अपने अपने घर चले गई थे...
तभी परी (रिषभ की बेटी) सूरज घर में बुलाने आती है.. परी अपने चाचा से मिल उनके गले लग जाती है और सूरज के आखों से फिर से आसू बहने लगे... परी को गोद में उठा कर वो घर में आता है...अपनी मां के साथ बैठ सूरज भावुक हो उठा और मां की गोद में सर रख खुट खूट के रो पड़ा... छोटी सी परी को कुछ समझ नहीं आ रहा...
अगले दिन सुबह गांव वाले सूरज के घर कुछ खाने के लिए ले जाते है...जैसे तैसे सब को गांव वाले थोड़ा थोड़ा खाना खिला देते है...पर पारुल (सूरज की भाभी) ने कुछ नही खाया था...
सब के जाने के बाद सुमित्रा उसके पास गई कुछ खाना ले कर...सूरज भी अपनी मां के पीछे पीछे अपनी भाभी के कमरे में जाने लगा.... पारुल कमरे में सफेद सारी में एक कोने में बैठी थी...
(रिसभ के मा कुछ साल पहले ही चल बसी थी)
पारुल सूरज से 4 साल बड़ी थी वो 28 की और सूरज 25 का होंगे.. दोनो के बीच बहुत गहरा और पवित्रा रिश्ता था... सूरज के लिए उसकी भाभी जैसे बड़ी बहन थी और पारुल तो सूरज को अपने बेटे जैसे प्यार करती...
हर वक्त हंसती खेलती चुलबुली भाभी को इसे देख सूरज वहा से जाने ही वाला था की उसकी मां बोली.."बेटा अब तू ही खिला अपनी भाभी को मेरी तो एक नही सुन रही पगली खाएंगी नही तो कैसे चलेगा...अपना नही तो परी के बारे में तो सोच उसे तो कुछ समझ भी नही रहा...और सुमित्रा के आखों से आसू निकल गई" और वो बाहर चली गई...
अब कमरे बस सूरज और उसकी भाभी थे...सूरज अपनी भाभी के पास जाता है और आगे क्या करे उसे कुछ सूझ नही रहा था की पारुल उठ खड़ी हुई और सूरज को कस के आलिंगन करते हुए रोने लगी...सूरज की हिम्मत न हुए की अपनी भाभी को वो अपनी बाहों me भर उन्हे सहला के शांत करे... वो बस किसी मूर्ति के जैसे खड़ा रहा... पारुल ने अपनी सारा दुख सूरज को फिर से कह सुनाया और सूरज भी रोने लगा और भावुक होके अपनी भाभी को अपनी बाहों में भर सहलाने लगा...दोनो के मन में कोई खोट न थी... दोनो अपना दुख साझा करने लगे... सूरज ने भाभी को बेड पे बैठा के खाने खिलाने की नाकाम कोशिश की... सूरज के साथ पारुल रिषभ के बाद सब से करीब थी...इन कुछ सालो में पारुल सूरज से एक पवित्र रिश्ते से जुड़ गई थी...भाभी को तंग करना मजाक मस्ती करना सूरज को बड़ा पसंद था और पारुल भी सूरज के साथ खुल ke मस्ती करती....पर न तो कभी सूरज के दिल दिमाग एम कोई गलत ख्याल आया ना तो पारुल के....
अपनी भाभी की न खाने की जिद से परेशान हो उठा...तभी वो बाहर गया और परी को ले आया...और परी के हाथो से खाना दिया तब जैसे तैसे पारुल को न चाहते हुए भी खाना पड़ा...
इसे ही कुछ दिन हफ्ते निकल गई और सारी विधि पूरी हो गई... पारुल भाभी अभितक गुमसुम रहती थी पर परी की वजह से थोड़ी चहर पहर रहती...
एक साम गांव के कुछ बड़े बुजुर्क और पारुल के माता पिता घर आई और सूरज के माता पिता और चाचा से बात की और बाद में सूरज को बुलाया गया...
सूरज के पिताजी बोले – देखिए ये ही मेरा बेटा सूरज अभी मुंबई में काम करता है.. अगर आप को सही लगे तो.. में पारुल बेटी को अपने घर की बहु बनाना चाहूगा...(पारुल के माता पिता की और देख)
सूरज का दिमाग घूम गया...जिस भाभी ने इतने साल उसे राखी बांधी थी उस के साथ शादी और वो भी अपन बड़े भाई की विधवा से...सूरज के हाथ पैर सुन पड़ गई...न वो अपने पिता को इसे सब के सामने टोक सकता था न उसके दिमाग में कुछ सूझ रहा था...
गांव वाले – देखिए आप की बेटी अभी जवान है पर उसकी बेटी को कोई दूसरा घर यहां जैसा प्यार नही सब का परी के साथ रिश्ता जुड़ गया है और रिषभ के पिताजी के पास तो बस उनकी पोती ही रही है..
पारुल के पिताजी – देखिए हमारे लिए तो ये खुशी की बात है की उसी घर में हमारी बेटी रहे पर क्या आप का लड़का जोकि पारुल से उम्र में छोटा है और बड़े सहर मै काम करता है वो...क्या वो एक गांव की विधवा लड़की से शादी करेगा...
सूरज के पिताजी – देखिए अब तो उसे यही रहना है...और रही बात पसंद न पसंद की तो सूरज अपने भाई और परी से बहोत प्यार करता है उनके लिए शादी तो बहुत छोटी बात है..और आप तो सब जानते ही हो ऐसा कोई पहली बार तो हो नहीं रहा गांव में... आप बिलकुल निश्चित रहिए...और बस हा बोलिए पारुल बेटियां हमारे घर की बहू थी और रहेगी....
पारुल के पिताजी और गांव वाले– सूरज बेटा आप को कोई एतराज़ तो नही???
सूरज बिचारा न वो हा बोलना चाहता था ना वो मना कर सकता था... पिताजी से पूछना तो संभव ही न था..वो अपनी मां की ओर किसी आश से दिखाता जो उसे इसारे में कह रही थी की हा बोल दे...और बिचारे को आखिर बोलना ही पड़ा..पर वो आखिरी कोसिस कर लेता है...
सूरज – जी मुझे कोई दिक्कत नही पर भाभी की का फैसला आखरी होगा.. अगर उनकी हा हो तो मुझे भी कोई दिक्कत नही....
सब चले जाते है... सूरज बस इस आश में था की उसकी भाभी कभी राजी नहीं होगी और शादी नही हो पाएगी...
लेकिन हुआ जो सूरज ने सोचा नही था.. पारुल भी अपनी मजबूरी में हा कर देती है...और वैसे भी उसकी हा या ना से ये शादी नही रुकने वाली थी... इस लिए पारुल को भी न चाहते हुए भी हा करनी पड़ी....पारुल का भी दिल दिमाग काम नही कर रहा था...
दोनो की ऐसी हालत में ही कुछ घर के बड़ो की मौजूदगी में शादी करवा दी गई...
और अब पारुल सूरज की भाभी से जीवनसंगिनी बन गई... दोनो की सुहागरात की रात भी आ गई और अभी तक दोनो ने एक दूसरे से बात तक नहीं की थी न दोनो मे से किसी ने हम्मत हो रही थी..
पारुल कमरे में दुल्हन बनी बैठी थी...पारुल किसी अप्सरा सी खूबसूरत लग रही थी...
a different kind of story.Updated 03
सूरज कमरे से निकल के अनाज में आके बैठ गया और अपने पहले प्यार नेहा के बारे में अपने घर वालो को क्या बोले केसे बोले इस सोच में डूब गया...सूरज आंगन में बैठा था जहां सामने एक कोने में घर का कॉमन बाथरूम था...
पुराने दरवाजा खुलते हुए आवाज करता हुए खुला... गांव की सुबह शांति भरे वातावरण में इस आवाज ने सूरज का ध्यान अपनी ओर किया...आवाज का पीछा करते हुए सूरज की नजर दरवाजे तक पहुंच गई... सूरज की धड़कन जैसे रुक गई... वो सामने से आती खूबसूरत महिला को देख अपनीर नजर झुका कर शर्म से लाल हुआ ऐसे उठ के बाहर जाने लगा जैसे उसने कुछ न देखा हो...
उसके सामने का नजारा कुछ यूं था दोस्तो....
पेटीकोट में खुद के नंगे बदन को छुपाती हुए सुमित्रा यानी सूरज की मां अपने गीले और कामुक दूध से जिस्म को संभालती हुए अपने कमरे की और चल दी... सूरज की मां के दो स्तन उसके चलने से उपर नीचे होते... गुलाबी पेटीकोट बस सूरज की मां के आधे जिस्म को छुपा पा रहा था आधा रेशमी मुलायम जिस्म पूरी तरह से खुली हवा में सांस ले पा रहा था....
सूरज बाहर निकल गया और दुपहर को आया... घर का माहोल एक दिन में इतना बदल जाएगा किसी ने सोचा नही था.. सिर्फ एक रिश्ते के बदल जाने से जैसे ये घर कोई नया ही घर मालूम होता था... जब भी पारुल और सूरज का सामना होता दोनो एक दूसरे से मुंह मोड़ लेते और बाकी घर के लोग भी अपनी बाते रोक देते और गंभीर हो जाते...और जैसे तैसे कर दोनो को मिलान ने तरीके करने पे लग जाते पर ये सब माहोल को और अधिक अजीब बना दे रहा था...
सूरज जब आया सब खाना लग गया था...
सुमित्रा – बहू सूरज आ गया है उसके लिए खाना लगा दे तो...
सूरज टेबल पर बैठ कर और तभी सामने से पूरी तरह से सुहागन के रूप में पारुल आई... जैसा सूरज हमेशा से सोचता था कि उसकी पत्नी भी भाभी जेसी सुंदर होगी...आज उसकी वही भाभी उसकी पत्नी के रूप में खास उसके लिए सज संवर के घर में काम कर रही थी... सूरज का दिल फिर से जोर जोर से धडकने लगा...
सूरज थोड़ी देर बाद बोला...
सूरज – मां मुझे कुछ दिन के लिए मुंबई जाना होगा... वहा कुछ काम ही उसे खतम कर आता हु....
सुमित्रा – बेटा शादी को एक दिन नही हुआ बिचारी पारुल बहू का तो सोच... पहले तुम उसे ठीक से वक्त तो दो...
सूरज – बस कुछ दिन फिर तो यही से कुछ काम देख लूंगा और यहां का काम अब में ही संभाल लूंगा आप चिंता न करे...
सुमित्रा – अरे बेटा में क्या बोल रही हु तू क्या समझ रहा है... तू अब सिर्फ मेरा बेटा नही... इस पगली की और देख कैसे रहेगी तेरे बिना... ये कुछ बोल नही रही तो क्या तू अपनी मनमानी करेगा...जाना ही है तो बहु को साथ ले जा...
सूरज – मां ऑफिस का काम है भाभी क्या करेगी वहा...
सूरज के पापा – पुराने रिश्ते भूल नई सिरे से अपनी शादी सुदा जिंदगी की एक नई शुरुवात करो तुम दोनो... यही सही मौका है की तुम दोनो अकेले में एक दूसरे के साथ रहो और एक दुसरे को जानो....
सूरज – लेकिन पापा...
सूरज के पापा – लेकिन वेकीन कुछ नही जो बोल दिया सो बोल दिया...और बहु को खुस रख.. बाकी तुम दोनो बच्चे नही...
सुमित्रा धीरे से पारुल के कान में – बहू सब संभाल लेना.. पहल तुझे ही करनी है...इसी में सब की खुशी होगी....
सब के दबाव में आके मजबूरन सूरज अपनी पत्नी पारुल को भी साथ मुंबई ले आया...
किसी ने सही कहा है कि सफर सुरू तो करो में हमसफ़र अपने आप बन जाएंगे...
मुंबई जाते जाते ही दोनो देवर भाभी में कुछ कुछ बाते होने लगी... यहां न कोई तीसरा था तो था नहीं तो एक दुसरे से बात करना तो अनिवार्य होना ही था...
सूरज को यहां कोई टोकने वाला था नही और पारुल खुद से बोल नही पाई इस लिए अब सूरज पारुल को भाभी कह ke ही बाते करने लगा...उसे पता था कि उसकी भाभी कभी गांव से बाहर नही गई इस लिए वो हर बात उसकी पत्नी पारुल को समझा देता....और इस उनके बीच फिर से दूरी कम होने लगी पति पत्नी जितनी नही पर देवर भाभी वाली नजदीकिया आने लगी....
स्टेशन पे उतर के सूरज पारुल को एक होटल ले आया...और कमरे में समान रख अपनी भाभी को बेड पे बैठा के खुद जमीन पे बैठ...उसके पैरो पास बैठ बोलने लगा....
सूरज – भाभी मुझे माफ करना में आप को कभी अपनी पत्नी के रूप में नहीं देख सकते न आप मुझे... (आखों में आसू आ गए)
पारुल बस सुन रही थी....
सूरज – भाभी में नेहा के बिना नहीं रह सकता भाभी मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा पापा को केसे बोलूं....और वो नेहा के बारे मे सब बोल देता है...
पारुल अपने आसू जैसे तैसे रोकती है...उसे आने वाले घर के माहोल का आदाजा हो रहा था.. कही न कही वो सूरज से प्यार तो करती थी पारुल का दिल बिना जुड़े ही फिर से टूट गया... पारुल फिर भी अपने देवर के साथ कोई रोमेंटिक वाला रिश्ता नही सोची थी... बस उसे सुरज पे एक विश्वाश हो गया था जब सूरज ने शादी के लिए हा बोला था उसे लगा जैसे परी को एक अच्छे पापा मिल रहे है...पारुल बड़ी हिम्मत के साथ अपने दुख को छुपा के हस के बोली...
पारुल – बस इतनी सी बात.... आप बिलकुल फिकर मत कीजिएगा में बात कर लूंगी ससुरजी से...(पारुल एक पतिव्रता स्त्री थी चाहे वो दिल से सूरज को पति का हक न दे पर... वो पत्नी का हर कर्तव्य पूरा करने को तैयार थी बस उसका पति उसे बोल के देखे.. पारुल के लिए सात फेरों और मगलसूत्र का अर्ध बहोत अथिक था दूसरी और सूरज के लिए जैसे ये बस एक रिवाज थे....उसे कोई ऐसा डर या आस्था नहीं थी शादी की क्समो रीति रिवाजों पे...और पारुल थी एक रूढ़िवादी समाज से रीति रिवाज का पूरी श्रद्धा से पालन करना ही खुद का धर्म मानती...)
सूरज – सच भाभी...आप बेस्ट हो भाभी....
और सूरज खूसी के मारे उठ खड़ा हुआ और अपनी भाभी को बाहों में भर उसके गालों को चूम लिया...
पारुल के लिए ये चुबन बड़ा उत्तेजक रहा...उसके उसे लगा जैसे उसका पति उसे चूम रहा हो...लेकिन ये उसका पति सूरज नही देवर सूरज था...पारुल शर्म से लाल हो गई..लेकिन अपने होस में थी...मन में बोली “ पारुल तुझे क्या हो रहा है वो बस अपनी भाभी को...तुझे नही...इतना क्या हो रहा है तूझे"
सूरज – भाभी आप भी चलोगे मेरे साथ उसके पापा से मिलने जाना है आज...(सूरज था तो 25 साल का ना समझ लड़का भोलेपन में ही अपनी पत्नी को बोल रहा था की उसकी प्रेमिका से मिलने आई... हा ये शादी बस समझोता ही थी पर पारुल के लिए शादी कोई खेल न थी पर सूरज जैसे अपनी भाभी का दुःख न देख अपनी खुशी में डूब गया था)
पारुल – ने नही आ सकती आप जाओ....
सुरज – भाभी आप मुझे आप आप मत बोला करो कितना अजीब लगता है...और आप को आना पड़ेगा भाभी...आप को मेरी कसम....
पारुल आगे माना नही कर पाई....
और दोनो अपना सामान ले कर सूरज के फ्लैट पे चले गई...
गेट पे खड़ा सिक्युरिटी वाला दोनों को घूर रहा था...
घर का दरवाजा खोल ही रहा था के पड़ोस आंटी पारुल को देख बोली...
आंटी – सूरज बेटा शादी कर के आई हो... कितने अच्छे हो साथ में...
सूरज – नही नही आंटी ये मेरी भाभी है...बस मुबई घूमने आई थी....
पारुल के दिल को फिर से थक्का सा लगा...लेकिन वो खुद समझा लि "सही तो बोल रहा है क्या गलत है" मन में...