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जैसे की आप ने देखा सूरज की मां को कल रात भरपूर यौन सुख का आनंद मिला...और वही अब मुंबई में ट्रेन से पारुल और सूरज पहुंच चुके थे...जैसे की आप ने पड़ा सूरज अपनी पड़ोस वाली आंटी को जूठ बोल दिया की पारुल उसकी भाभी है और वो उसे घुमाने लाया है...इस बात से पारुल का दिल बैठ गया था की सूरज उसे बस उसकी भाभी मान रहा था...वही दूसरी और अब धीरे धीरे पारुल ने ये स्वीकार कर लिया था की जैसे भी हालत में ये शादी हुए हो लेकिन ये वो शादी की कसमें.... उसके गले में पहना हुआ सूरज के नाम का मंगलसूत्र और मांग में सिन्दूर उसे न चाहते हुए भी वो अब सूरज की
अर्द्धांगिनी थी... और पारुल अब सूरज को अपने पति न दिल से लेकिन दिमाग से तो मान ही चुकी थी....वही उसे बहोत बुरा भी लगा था लेकिन जता नही रही थी की उसे नेहा से मन ही मन न चाहते हुए भी एक चीड़ चढ़ रही थी...वही पारुल का दिल इतना साफ था की वो ये भी चाहती थी की चाहे उसे कुछ भी करना पड़े लेकिन खुद की खुसी के लिए वो सूरज के पहले प्यार को उस से दूर नही होने देगी...वो मन ही मन ये भी निश्चय कर बैठी थी की घर जाते ही अपन सास ससुर से बात करेगी इस बारे में....
सूरज का प्लान था की लंच वो नेहा के पाप के साथ करे और उनकी बात भी हो... 25 साल का होते हुए भी सूरज जैसे किसी 16 साल के बच्चे जैसा मालूम होता था जब बात जिम्मेदारी की आती थी... नहीं तो कोई मर्द कैसे अपनी दो रात पुरानी शादी को भूल एक नई रिश्ते की बात करने उतावला हो रहा था...क्या सुराज के मन में एक पल के लिए भी अपने भाई की विधवा और अब उसकी पत्नी के दुख का अंदाजा न लगा...क्या उसे छोटी सी परी का भी एक पल के लिए खयाल नहीं आया जो उसे चाचू चाचू करती उसकी गोद में बैठ जाती है... कया सूरज को अपने परिवार के मान सम्मान का कोई विचार नहीं था....
सायद सूरज अपने प्यार में पूरी तरह से अंधा हो गया था...होता भी क्यों नहीं जब उसे इस मुबई जैसे सहारे में किसी का सहारा नहीं मिल रहा था तब न जाने कहा से नेहा उसके जीवन में आई... चुलबुली नटखट बदमाश नेहा ने जैसे साधारण और छोटे से गांव के लड़के पर ऐसा जादू किया की सुरज चारो खानों चिढ़ हो गया... अपनी उम्र से 6 साल छोटी नेहा से सूरज पागलों जैसे प्यार करने लगा...(नेहा 19 साल) नेहा भी एक साफ दिल की लड़की थी तभी तो एक अमीर बाप की बेटी होते हुए भी वो एक आम लड़के के प्यार में पड़ गई थी... सूरज के प्यार ने नेहा को काफी बदल दिया था... अब वो पहले वाली नेहा न थी जिसे अपने पापा की दौलत की अकड़ थी... धीरे धीरे नेहा पे सूरज का रंग चढ़ रहा गया था.... सूरज के नजरिए से देखें थे नेहा तब केवल 18 साल की थी और अपने पतले शरीर और छोटे कद काठी के कारण वो बस 13 14 साल की बच्ची लगती थी...गोरा रंग... गुलाबी होठ.. घने लम्बे बाल... उसे नेहा काफी क्यूट लगती वो उसे इसे ट्रीट जैसे वो किसी छोटी बच्ची हो...
*.....एक साल पहले...जब नेहा स्कूल में पड़ती थी.......*
इस दौरान सूरज नया नया मुंबई में नौकरी करने आया था... पहली ही जॉब होने से उसे इस सहर का कोई अनुभव न था दोस्त थे पर सब इतने दूर रहते थे की वो एक दम अकेला हो चुका था...वो एक अच्छे एरिया में रहा करते था शेयरिंग रूम में...वही उसके पास की एक बिल्डिंग में नेहा रहती थी...
जब से सुराज यहां आया था ऑफिस से आते हुए वो नेहा को स्कूल जाते और जब वो खाना खाने बाहर जाया करता तब नेहा वही खेल रही होती...वो इतना ध्यान नहीं देता था पर फिर भी उसकी नजर न चाहते हुए भी नेहा की खिलखिलाहट भरी आवाज उसके कानो तक तो जाति...और एक दो पल किए सूरज नेहा की और देख मन ही मन खुश होता...
खाने के बाद सूरज रोज वही आस पास चक्कर लगाता.. वहा चलन के लिए रोड के एक तरफ काफी जगा थी कहा पेड़ पोथे भी लगे थे...कुछ लड़के लड़कियां भी वहा बैठ के प्यार की बाते करते... यहां के लोग गांव जैसे नही थे सब खुले विचार रखते थे... लड़किया वेस्टर्न कल्चर के कपड़े ही पहना करती थी नेहा भी खेलते हुए बस एक छोटी सी शॉर्ट्स और उपर बस बिना स्लीव वाली टी शर्ट या स्पोर्ट्स ब्रा पहन के आती...उसकी आधे से अधिक बॉडी साफ खुली होती... ये कोई बड़ी बात नहीं थी यहां...और ये सूरज भी अच्छे से समझ चुका था अपने कॉलेज के दिनों से ही....
पता नही कैसे लेकिन नेहा भी अब सूरज की मौजूदगी महसूस कर रही थी...उसके अंदर हो रहे बदलाव उसे सूरज जैसे उस से बड़े लड़के की और अपने आप खीच रही थी...अब नेहा जब सूरज को अपने आस पास पाती वो शर्म से लाल हो जाती...अब दोनो की नजरे मिल जाती सूरज को नेहा अभी तक बस एक क्यूट बच्ची से अधिक नहीं लगती थी...लेकिन उसका दिल नेहा को देख बस खुस हो उठता...
वही नेहा की हालत कुछ और नेहा अपने अंदर हो रहे बदलाव से अभी अभी वाकिफ हुए थी...उसे बस अभी यौन उत्तेजना सुरु हुए थी...उसकी योनि पे अब हल्के हल्के बाल आ चुके थे... नेहा को सूरज अच्छा लगने लगा था...लेकिन ये ये सिर्फ उसका यौन उत्तेजना का परिणाम था या कहे तो पहले पहले शारीरिक आकर्षण का नतीजा...
एक दिन आया जब सूरज तहल रहा था और नेहा के साथ उसके कोई दोस्त नहीं थे... नेहा एक और से आ रही थी और सूरज दूसरी और से... संजोग से आस पास कोई नही था....नेहा का दिल जोरो से धड़क रहा था...उसके दिमाग में बहोत कुछ चल रहा था पर उसे आज अपने क्रश से बात करनी ही थी...वो ये मोका जाने नही देना चाहती थी...नेहा वही रुक गई... जैसे जैसे सूरज पास आ रहा था नेहा की दिल की धड़कन बढ़ रही थी...नेहा की दो छोटी छोटी चूचियां उपर नीचे होने लगी...जब सूरज उसके करीब से गुजरा सूरज ने उसे एक स्माइल दी...सूरज भी थोड़ा असहज हुआ अपने आगे एक लड़की को खड़ा हुआ ब्लश करते देख....
लेकिन नेहा उसे अभी तक कोई 13 14 साल की बच्ची ही मालूम होती थी...
तभी नेहा बड़ी हिम्मत कर अपनी सहद से मीठी आवाज में बोली..और सूरज की और चल के जानें लगी...
नेहा – (नेहा थी एक दम नटखट बदमाश लड़की लेकिन अपने से बड़े लड़के को देख सरामा भी रही थी) में नेहा...क्या आप मेरी मदद करोगे....
सूरज के लिए बेशक वो एक बच्ची ही थी पर उसके सामने इतनी खुसबूरत लड़की थी जिसे देख सूरज भी थोड़ा हड़बड़ी में बोला " हा बोला ना...आप यही रहते होना"
दोनो के बिच काफी गरमाहट बड़ गई थी दोनों की दिल की धड़कन बढ़ चुकी थी...लेकिन कुछ देर में दोनों सहज हो गई... दोनो को लगा कि एक जगा इस खड़ा रहना बड़ा अजीब है तो दोनो साथ में चकते हुए बाते करने लगे...
सूरज – अरे आप कुछ मदद करने के लिए पूछ रही थी...मेरे तो दिमाग से निकल गया...
नेहा एक दम से डर गए की अब क्या बोले लेकिन कुछ सोच सच ही बोल दिया.. हा कुछ हद तक...
नेहा – वो...वो में अकेली थी तो सोचा की आप आज बात की जाय... वैसे तो हम रोज मिलते ही बस बात नही हुए कभी...(नेहा शर्म से लाल हो गई)
सूरज – चलो अच्छा हुआ वैसे मुझे भी आज एक छोटी सी प्यारी दोस्त मिल गई... तुम सब को देख मुझे भी मेरे बचपन के दिन याद आ जाते है...खास कर के जब तुम और तुम्हारी दोस्त साइकिल लेके घुमती हो बहोत प्यारी लगती हो....(और सूरज ने नेहा के सर ले हाथ रख उसे सहला दिया..)
नेहा को सूरज का पहला स्पर्श भा गया पर उसे अच्छा नही लगा कि सूरज उसे एक छोटी बच्ची समझ रहा था....
नेहा – (थोड़ा मुंह फुला के जो उसे देख साफ पता चल रहा था की वो नजर थी) (उसका बड़बोलापन अब बाहर आने को तैयार था) (वो अपने जूते जमीन पे जोर से मार के नाराजगी दिखाते हुए बोली) प्लीज में कोई छोटी बच्ची नहीं...और पहले तो में आप से चोटी हु तो मुझे आप आप मत बोलो...(गुस्सा हो के) समझे....
सूरज मन ही मन सोच रहा था ये कैसी लड़की ही एक घंटा नही हुआ बात करे और ये इसे हुकुम दे रही है जैसे मेरी बीबी हो....और सूरज थोड़ा हस दिया...(नेहा और गुस्सा हो गई)
सूरज – अच्छा तो आप बड़ी हो गई हो...लेकिन मुझे तो नही लगता....(और वो इस बार नेहा के गाल को खींच दिया)
सूरज में इतनी हिम्मत बस इस बात से आ रही क्यू कि एक तो वो नेहा को बस एक छोटी बच्ची समझ रहा था और दूसरी वजह थी नेहा खुद...जो इतना हक जता रही थी..और दोनो एक दुसरे को काफी दिन से बिना बात किए ही जानते थे...एक दुसरे को बस रोज देख के...
नेहा का गोरा गाल एक दम से उस जगा से जहा सूरज ने गाल खींचा था पूरा लाल रंग का हो उठा...अब नेहा सूरज को और प्यारी लग रही थी....
नेहा नाराज होके वहा से चली गई...लेकिन ये मुलाकाते अब रोजाना होने लगी.. सूरज को ये भी पता चल गया कि वो 18 साल की है...लेकिन फिर भी उसके मन में नेहा के लिए कोई वैसा ख्याल न आया...धीरे धीरे नेहा दोस्तो मे साथ कम और सूरज के साथ ज्यादा टहलने लगी...
और दिन बीतते गई नेहा के साथ साम को बिताए हुए बस कुछ पल अब सूरज की सारी थकान दिन कर देती..वो अब सारा दिन बस साम होने का इंतजार में रहता... नेहा तो अब दिल दिमाग सब तरह से सूरज की हो चुकी थी...पर सूरज नेहा को बस एक दोस्त की तरह ही पसंद करता था...