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Romance ❤️स्पंदना❤️

avsji

कुछ लिख लेता हूँ
Supreme
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Kala Nag भाई, एक बात सही सही बताइएगा -- क्या ये कहानी पक्का "रोमांटिक" है?
😂 😂 😂 😂 😂 अभी तक पढ़ कर तो एक और थ्रिलर कहानी लग रही है ये।
दुनिया में एक भी ऐसी नौकरी नहीं है, जो पहले ही दिन से अपने नए नवेले मातहत पर इस क़दर मेहरबान हो जाय। मतलब - काली दाल है भाई पूरी की पूरी!

उधर बराबर में ऑर्गन ट्रैफिकिंग का कोण भी आ गया।
रोमांस का "अ" भी नहीं पढ़ने में आया अभी तक। कैसी रोमांटिक कहानी है मित्र? 😂😂

वैसे जो भी है, ये कहानी भी विश्वरूप की ही तरह रोचक है और बाँध कर रख रही है!
Awesome job!
 

randibaaz chora

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Bhai update plss
 
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Kala Nag

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Are bhai.. bhai... hum to chote mote lekhak hai, dhurander to apne avsji and SANJU ( V. R. ) HalfbludPrince aka foji bhai jaise bhai log hain, ओर मै तो आज भी आप जैसे महानुभावों से कुछ ना कुछ सीखता ही रहता हूॅ।।
भाई मेरे आपने जितने कहानी लिख डाले हैं उतना मैंने लिखे नहीं है इसलिए आपको धुरंधर कहा गलत तो नहीं कहा
मैं कहानी लिखता तो हूँ पर उसके लिए कोई constructive comment का सहारा लेता हूँ
 

Kala Nag

Mr. X
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ये क्या लफडा है नाग भैया? लडकी आगे से प्रपोज कर रही , मगर लडका मना कर रहा है :dazed: कुछ तो बात है , ओर वो कया है ये तो आप ही बता सकते है। वैल सुरूवात काफी बढीया है, मित्र :claps::claps::claps:
पहले के तीन चार अपडेट आपको कंफ्यूज करेंग bबाद में नायिका के सामने आने के बाद कहानी आपको भायेगी
अब क्या है कि थ्रिलर लिख लिख कर आदत छूटी नहीं है
 

Kala Nag

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जीवन की पहली नौकरी और पहली ही नौकरी मे VIP ट्रीटमेंट !
सर्विस ज्वाइनिंग के पहले दिन ही कर्मचारी के घर का रिनोवेशन ।
गार्ड द्वारा कर्मचारी और उसके पिता को ' गार्ड ऑफ ऑनर ' सम्मान ।
रिसेप्शनिस्ट का पलकें बिछाकर स्वागत करना ।
कर्मचारी के पिता जी की आवभगत और लजीज भोजन पेश करना ।
पिता जी के ऑफिस मे ही गंभीर निद्रा लेने पर भी किसी तरह की आपत्ति पेश न करना ।
और पुलिस का अचानक ह्रदय परिवर्तन होना ।

बुज्जी भाई , दाल मे कुछ काला नही बल्कि पुरी दाल ही काली लग रही है । यह ' खारबेल ग्रूप ' किस चीज का व्यापार करती है ? हमारे सीधे सादे , भोले भाले अंतस मे ऐसा क्या देख लिया जो उसे कंपनी का VIP कर्मचारी बना दिया ?
कुछ तो अवश्य गड़बड़ है ।
भाई कहानी में थोड़ा डार्क शेड है
अब थ्रिलर लिख कर निकला हूँ रोमांटिक के रंग में आने के लिए थोड़ा वक़्त लगेगा l
खैर , एक पिता और पुत्र के दरम्यान इस पुरे प्रकरण मे जो - जो बातें हुई , जो प्यार दिखाई दिया , जो खुशी की उत्तेजना इन दोनो ने महसूस की वह हमारे दिल तक उतर गई ।
बहुत दुख होगा जब इन्हे यह पता चलेगा कि यह सब और कुछ नही एक मृग मरीचका मात्र है । और यह दुख हम रीडर्स भी महसूस करेंगे ।
हाँ पर कुछ बातेँ झूट से आरंभ होती है क्यूँकी वह झूठ बहुत सुंदर और सुकून देने वाले होते हैं l जब सच सामने आयेगा तब पीड़ा दायक होगा
इस कहानी के साथ एक और कहानी चल रही है - ह्यूमन ऑर्गन ट्रैफिकिंग की । फिल्म ' साहेब ' की भी जिक्र हो रही है । यह फिल्म मैने भी देखा है । उत्पल दत्त साहब और अनिल कपूर की भूमिका वाकई मे अद्भुत है ।
देखते है इस फिल्म और इस कहानी मे क्या समानता है !

खुबसूरत अपडेट बुज्जी भाई ।
आउटस्टैंडिंग एंड अमेजिंग अपडेट ।
हर रीडर को साहेब फिल्म की वाईव आ रही है l कहानी उससे अलग है निश्चित रूप से अलग है l बस कहानी को आगे बढ़ने देते हैं फिर देखते हैं l
 

Kala Nag

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Kala Nag भाई, एक बात सही सही बताइएगा -- क्या ये कहानी पक्का "रोमांटिक" है?
😂 😂 😂 😂 😂 अभी तक पढ़ कर तो एक और थ्रिलर कहानी लग रही है ये।
दुनिया में एक भी ऐसी नौकरी नहीं है, जो पहले ही दिन से अपने नए नवेले मातहत पर इस क़दर मेहरबान हो जाय। मतलब - काली दाल है भाई पूरी की पूरी!
कहानी में थोड़ा डार्क शेड है
क्या करूँ मित्र अभी अभी थ्रिलर के केंचुली से निकला हूँ इसलिए आदत छूट नहीं रही है
उधर बराबर में ऑर्गन ट्रैफिकिंग का कोण भी आ गया।
रोमांस का "अ" भी नहीं पढ़ने में आया अभी तक। कैसी रोमांटिक कहानी है मित्र? 😂😂

वैसे जो भी है, ये कहानी भी विश्वरूप की ही तरह रोचक है और बाँध कर रख रही है!
Awesome job!
खैर तीन चार अपडेट जाने दीजिए फिर नायिका को आने दीजिए फिर देखते हैं कहानी में क्या मोड़ देख सकते हैं
 

Kala Nag

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Sanju@

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प्रोलॉग
~~~~~~
×- हाय..
×- ओ.. हाय..
×- शाम ढल रही है... इस वक़्त तुम... मुझसे क्यूँ मिलना चाहती थी...
×- एक बात करनी थी...
×- कैसी बात...
×- देखो... आम तौर पर... लड़कियाँ कभी पहल नहीं करतीं... पर..
×- पर... पर क्या..
×- ओ हो... बड़ा मजा आ रहा है तुम्हें...
×- मजा... अरे यार... यह कैसी बात कर रही हो... बताओ... क्यूँ बुलाया मुझे..
×- आ आ आह.. इट्स सो डिसगस्टींग... ओके... मैं... मैं तुमसे प्यार करने लगी हूँ...
×- ह्वाट... देखो... मज़ाक की भी हद होती है...
×- यू स्टुपिड... आई एम इन लव विथ यू... मुझे पहल करनी पड़ रही है... और यह... तुमसे कहना पड़ रहा है... तुम्हें यह मज़ाक लग रहा है...
×- आर यू गॉन मैड... पूरी दुनिया में... तुम्हें कोई नहीं मिला...
×- ओ हैलो... डोंट बी ऐक्ट स्मार्ट... मैं जानती हूँ... तुम भी मुझसे प्यार करते हो... हर लड़की की तरह मैं भी चाहती थी... के तुम पहल करो... मुझसे प्यार का इजहार करो... पर पता नहीं क्यों... तुमसे हो नहीं पा रहा.. तो मैंने तुम्हारा काम आसान कर दिया...
×- देखो... तुम्हें कोई गलत फहमी हो गई है... मैं तुमसे प्यार नहीं करता...
×- (टुटे मन से) प्यार नहीं करते... क्यूँ नहीं करते.. क्या मैं इतनी खराब हूँ...
×- ओह गॉड... खराब तुम नहीं हो... खराब मैं हूँ... मेरी किस्मत है... मैं... मैं किसी से भी प्यार नहीं कर सकता...
×- (थोड़ी ऊँची आवाज़ में) क्यूँ नहीं कर सकते प्यार..
×- (बेबसी के साथ) मैं... मैं तुम्हें कैसे समझाऊँ... बस इतना समझ लो... तकदीर ने मुझे प्यार करने की इजाजत नहीं दी है... (मुड़ जाता है)
×- (पीछे से आकार उसे अपनी तरफ मोड़ती है) अगर प्यार नहीं है... तो सीधे सीधे कहो... मुझसे प्यार नहीं है... यह बहाने क्यूँ बना रहे हो... तकदीर इजाजत नहीं दे रहा है...
×- अच्छा ठीक है... हाँ हाँ हाँ... मुझे तुमसे प्यार नहीं है...
×- (थोड़ी नर्म पड़ कर) क्या किसी और से प्यार करते हो...
×- (तड़प कर) नहीं नहीं नहीं... मैं... किसी से भी प्यार नहीं कर सकता... बस यूँ समझ लो... मेरे हर रिश्ते का एक हद है... एक उम्र है... इससे आगे मैं तुम्हें कुछ नहीं समझा सकता...
×- ठीक है... मुझे बस इतना बताओ... मुझ में क्या कमी है...
×- कमी तुममें नहीं है... मुझमें है... तुम आसमान में पूनम की चांद हो... और मैं अमावस की रात...
×- तो मुझे अपने आसमान में आने दो... मेरी रौशनी से... अपने अमावस की अंधेरे को दूर करो...
×- उसके लिए... अमावस को गुजरना होगा...
×- तो अमावस के गुजर जाने तक मैं इंतजार करुँगी...
×- नहीं... तुम ऐसा कुछ भी मत करो... क्यूँकी यह अमावस कभी खत्म नहीं होगा... बस यूँ समझो... एक सफर में हम तुम मिले... पहले मंजिल मेरी आई... मैं उतर गया... पर तुम्हारा सफर जारी है... क्यूँकी तुम्हारी मंजिल अभी आना बाकी है... इसलिये प्लीज... मुझसे प्यार मत करो...
×- (फीकी हँसी हँसते हुए) मेरी भी मंजिल वही है... जो तुम्हारी मंजिल है... मैं एक लड़की हूँ... इस शहर में... हर एक नज़र को पहचानती हूँ... महसुस करी हूँ... पर तुम अलग हो... पता नहीं.. वह क्या बात है... जो तुम्हें रोक रही है... पर मैंने महसूस किया है... तुम्हारे साँसों में मेरी खुशबु को... तुम्हारे दिल में अपनी धड़कन को... मैं तुम्हें इतने दिनों में इस हद तक जान गई हूँ... जितना मैं खुदको जानती हूँ... तुम मेरे अधूरे एहसास को पूरा करते हो.. तुम मेरे हर पहलू को... मुकम्मल करते हो... मैं तुमसे प्यार करना कैसे छोड़ दूँ... नहीं अब तो तुम्हें हासिल करना है... या फिर मर जाना है... (कह कर वहाँ से चली जाती है)

×- (जाते हुए अपनी आँखों से ओझल होते देख रहा था) अब मैं तुम्हें कैसे बताऊँ... प्यार के पहलू में... मैं तुम्हारा दूसरा पहलू हूँ... बिल्कुल उस सिक्के की तरह... सिक्का तो मुकम्मल होती है... पर दोनों पहलू... एक दूसरे को कभी देख नहीं पाते... एक दूसरे के खिलाफ पीठ कर खड़े होते हैं... मुझे माफ कर दो...
:congrats: For starting new story thread....
 

Sanju@

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❤️पहला अपडेट❤️
~~~~~~~
शाम ढल चुकी है, रात गहरा रहा है l भुवनेश्वर शहर पता नहीं कब सोता है, चौबीसों घंटे शोरगुल भीड़भाड़ में मसरूफ रहता है l इतना व्यस्त महानगर किसी के पास किसी के तरफ़ मुड़ कर उसे देख कर कुछ पूछने तक का वक़्त नहीं है l ऐसी ही कोलाहल मय शहर में एक बस्ती पात्रपड़ा, जिसके बीचोबीच एक छोटा सा घर है, लक्ष्मी निवास l उस घर के ड्रॉइंग रुम में चार प्राणी, जिनकी आँख दरवाजे पर टिकी हुई है l किसीके आने की राह तक रही है l घर का मालिक अरविंद विद्यापति, उसकी पत्नी लक्ष्मी विद्यापति बड़ी बेटी कल्याणी विद्यापति और छोटी बेटी गीतांजली विद्यापति, चारों परेशान और थोड़े घबराए हुए कभी घड़ी की ओर तो कभी बाहर दरवाजे की ओर देखे जा रहे हैं l अरविंद विद्यापति कमरे में चहल कदम कर रहा था

लक्ष्मी - अब आप कितनी देर तक कमरे में इधर उधर होते रहेंगे l बैठ जाइए ना l
कल्याणी - हाँ पापा, आपकी सेहत ठीक नहीं है l प्लीज पापा बैठ जाइए, टेंशन में आपकी बीपी हाई हो जाएगा...
गीता - हाँ पापा, भैया आ जाएंगे, थोड़ा गुस्सा हो कर ही गए हैं l

चलते चलते अरविंद अचानक खड़ा हो जाता है तो लक्ष्मी आगे बढ़ कर अरविंद को खिंच कर कमरे में पड़ी एक कुर्सी पर बिठाती है l कल्याणी भाग कर अंदर जाती है और एक ग्लास पानी लाकर अरविंद को देती है l अरविंद एक घुट पीकर पानी किनारे रख देता है l

अरविंद - लक्ष्मी,
लक्ष्मी - हाँ
अरविंद - क्या तुम्हारे बेटे को, मुझे कुछ कहना का हक नहीं है l
लक्ष्मी - आप ऐसा क्यों कह रहे हैं, आपका खून है, आपका पूरा हक बनता है l
अरविंद - तो फिर सुबह से गया है, अभी तक क्यूँ नहीं आया l
लक्ष्मी - आ जाएगा,कहाँ जाएगा l
अरविंद - नहीं लक्ष्मी आज मैंने उसे बहुत नाराज कर दिया l
कल्याणी - हाँ पापा, बेचारा खाना खाने बैठा था, आधी थाली छोडकर चला गया l
लक्ष्मी - तू चुप रह, बड़ी आई भाई की वकालत करने l रात भर थाने में था, जिसे घर लाने के लिए तेरे पापा ने लाला के सामने हाथ जोड़े पैर पड़े l दस लाख लेकर थानेदार को दिया तब जाकर थानेदार ने तेरे भाई को छोड़ा l बदले में दो शब्द नहीं कह सकते थे तेरे पापा l
गीता - पर भैया का दोष भी तो कुछ नहीं था l
लक्ष्मी - अपने घर में क्या कम मुसीबतें हैं जो वह दूसरों फटे में घुसने चला था l

घर में कुछ देर के लिए शांति छा जाती है l दीवार पर लगी घड़ी की टिक टिक आवाज़ ही सुनाई दे रही थी l तभी बाहर गेट खुलने की आवाज़ सबके कानों में पड़ती है l

गीता - (खुशी के मारे) मम्मा .. पापा.. भैया आ गए l
कल्याणी - (खुशी व्यक्त करते हुए) देखा मैं ना कहती थी, अंतस आ जाएगा l

कमरे में अंतस प्रवेश करता है l उसके सिर पर और हाथ में पट्टी बंधी हुई थी l उसकी ऐसी हालत देख कर अरविंद को गुस्सा आता है और तमतमा कर खड़ा हो जाता है l

अरविंद - ओ, कल रात की कसर अधूरी रह गई थी क्या, जिसे पूरा करने सुबह से निकल गया था l किससे मार पीट कर आया है, और मुझे कितना पैसे उधार लेने होंगे बोल दे l वैसे तो घर गिरवी पड़ा हुआ है, हम सब किसी सड़क किनारे बिक जाएंगे ताकि तेरी हर करनी की कीमत हम दे सकें l
लक्ष्मी - आप थोड़ी देर के लिए चुप हो जाइए प्लीज l सुबह का गया अभी लौटा है प्लीज़ l

अरविंद चुप हो जाता है और अपने कमरे में चला जाता है l अंतस ड्रॉइंग रुम में एक हिस्से में चादर से बनी अपने कमरे में जाता है कपड़े बदल कर बाथरूम में जाता है और नहा धो कर रात की लिबास पहने बाहर आता है l जब खाने पर आता है तो देखता है नीचे एक ही चटाई लगी है जिसके सामने एक ही थाली लगी हुई थी l उसकी माँ और दो बहनें उसकी थाली लगा कर उसके खाने का इंतजार कर रहे थे l

अंतस - मम्मा , सिर्फ एक ही थाली, पापा और आप लोग
कल्याणी - हम कब इकट्ठे खाए थे अंतस l वैसे भी तू सुबह से भूखा पेट बाहर गया था l तु खा ले, हम सब तेरे बाद खाएंगे l
अंतस - नहीं, आज के बाद हम सब, जब तक साथ हैं तब तक साथ ही खाएंगे l
लक्ष्मी - नहीं बेटा, तू खाना अपनी दीदी और छोटी के साथ खाले l तेरे पापा तो नहीं खाएंगे तेरे साथ, नाराज हैं तुझसे, उनके साथ मैं खाना खा लूँगी l

लक्ष्मी की बात सुनकर अंतस की दोनों बहनें अपनी अपनी थाली लेकर चटाई लगा कर अंतस के अगल बगल में बैठ जाती हैं l


अंतस - नहीं मम्मा, आज के बाद, जब तक हम साथ हैं हमेशा साथ साथ बैठ कर खाना खाएंगे l
लक्ष्मी - क्या तू बाहर से पी कर आया है l ऐसी बहकी बहकी बातेँ क्यूँ कर रहा है l
अंतस - मम्मा, क्या मैं तुम्हें पीया हुआ लग रहा हूँ l बस मैं यह कह रहा हूँ, आज से बल्कि अभी से हम सब मिलकर खाना खाएंगे l
लक्ष्मी - अच्छा, तो जा, आज तू खुद अपने पापा को बुला कर ला, जा l

अंतस अपनी थाली छोडकर उठता है, और अरविंद के कमरे की जाता है l ऐसा पहली बार घर में हो रहा था l अंतस हिम्मत कर के अपने पापा से बात करने उनके कमरे में जा रहा था l उसे बेखौफ जाते देख

गीता - मम्मा,आज भैया को क्या हो गया है l
कल्याणी - तुमने शाम को बाहर देखा था, सूरज किस तरफ से डूबा था l
लक्ष्मी - पता नहीं अब क्या कांड होगा, चलो चलकर देखते हैं

तीनों पीछे पीछे आकर अरविंद के कमरे के सामने खड़े हो जाते हैं l कमरे के अंदर अंतस अरविंद के सामने खड़ा हुआ था l अरविंद यूँ अंतस को अपने सामने देख कर थोड़ा चकीत होते हैं फिर पूछते हैं

अरविंद - क्या हुआ, कुछ कहना सुनना बाकी रह गया क्या l
अंतस - नहीं पापा, मम्मा ने थाली लगा दिया है, आपका इंतजार है, चलिए हम मिल बैठ कर साथ खाना खाते हैं l
अरविंद - साथ खाना खाएं, क्यूँ, जाओ बेटे जाओ, जाकर पेट भर खाना खा लो l तुम खाने पर मेरा इंतजार मत करो l मैं खाने के साथ साथ दिन भर की जिल्लत, अपमान गुस्सा और दुख को भी खा लेता हूँ l जिसे ना तो बांटा जा सकता है, ना ही किसीको बताया जा सकता है l

अंतस अरविंद के सामने पालथी मार कर बैठ जाता है और अरविंद का हाथ अपने हाथ में लेता है l अरविंद को आज अंतस के बरताव पर हैरत होता है l अंतस अरविंद के चेहरे को देख कर

अंतस - पापा, आज के बाद आपको कभी जिल्लत झेलना नहीं पड़ेगा l कभी अपमानित नहीं होना पड़ेगा l आपका हर ग़म, हर दुख मैं अपने सिर ले लूँगा l आइए पापा, हम साथ बैठ कर खाना खाते हैं l
अरविंद - क्या ग़म बांटेगा रे तु l तेरी दीदी घर में ब्याहने के बाद मैके में है, जिसे उसकी पति ने यहाँ छोड रखा है l(बाहर कल्याणी सुन कर अपनी रोना दबा लेती है) जिसके लिए मुझे दिन रात पैसे जुगाड़ने पड़े l पर तुझे छुड़ाने के लिए उन पैसों के साथ साथ लाला से भी उधार लेना पड़ा l
अंतस - मैं जानता हूँ पापा
अरविंद - नहीं, नहीं जानता तू कुछ l बेटा, जवानी में खून में खूब उबाल होता है l बड़ो की बातों में, बंदिशें लगती हैं, इसलिए बड़ो के खिलाफ बच्चें खिलाफत करते हैं l पर यह सब उनके अच्छे के लिए है यह समझते समझते बहुत देर हो जाती है l जब मैं तेरे उम्र का था तब तेरे ही तरह दोस्तों के लिए, अपनों के लिए, दोस्तों के लोगों के बहकावे में आकर मारपीट दंगे फसाद किया करता था l नतीजा यह रहा के मेरे सारे दोस्त, सारे अपने आगे बढ़ गए मगर मैं बहुत पीछे रह गया l मैं तेरे पर गुस्सा इसलिए होता रहता हूँ, जिन वजहों ने मुझे मुझे नाकारा नाकाम बना रखा l आज तुझे उन्हीं हालातों से गुज़रता देख मेरी अपनी नाकामियों का गुस्सा तुझपर उतार देता हूँ l
अंतस - जानता हूँ पापा जानता हूँ l अब मैंने भी दुनिया को पहचान लिया है l कल रात भर जिस दोस्त के लिए पुलिस थाने में रुका था वह मेरे लिए थाने नहीं आया l थाने में आप मेरे लिए रात भर रुके l इसलिए अब मेरे लिए आप जो मायने रखते हैं अब कोई नहीं रखता l चलिए हम सब मिलकर आज खाना खाते हैं l आज आप सबको एक खुश खबर भी देना है इसलिए चलिए l (अंतस खड़े हो कर अरविंद का हाथ खिंचता है)
अरविंद - (अपनी कुर्सी से ना उठ कर) खुशी, ख़बर, कैसी खुशी खबर l
अंतस - पापा, मुझे आज नौकरी मिल गई है l
लक्ष्मी - क्या (कह कर अंदर आती है पीछे पीछे कल्याणी और गीता भी आती हैं) तुझे नौकरी मिली है l
अंतस - हाँ मम्मा बहुत ही अच्छी नौकरी, इतनी अच्छी के हमारे सारे दुख दूर हो जाएंगे l

अरविंद खुशी के मारे उठ खड़ा होता है उसके चेहरे पर खुशी चमकने लगती है पर अचानक उसे संदेह होता है, इसलिए पूछता है

अरविंद - सुबह तू घर से भला चंगा गया था पर अब जब लौटा है हाथ और सिर पर पट्टी बंधा हुआ है l यह कैसी नौकरी मिली है तुझे
अंतस - मैं जानता था आपको यकीन नहीं आयेगा (कह कर अपनी जेब से एक काग़ज़ निकाल कर अरविंद के हाथ में देता है) यह रहा मेरा एपॉइंटमेंट लेटर l

सबके मुहँ हैरत के मारे खुल जाती है l अरविंद को यकीन नहीं हो रहा था l वह काग़ज़ को बड़े ध्यान से देखता है l हाँ यह एपॉइंटमेंट लेटर ही था l अंतस मय विद्यापति के नाम पर ही है l हैरत और अविश्वास के भाव से अपने बेटे को देखता है

अंतस - हाँ पापा, सुबह आपकी डांट सुनकर मैं घर से निकल गया था l जूठ नहीं बोलूँगा मारपीट के उद्देश्य से ही निकला था पर जोश जोश में सड़क का ध्यान नहीं था इसलिए एक कार से टाकरा गया l उस कार में एक भला मानस बैठा था जिसने मुझे हस्पताल लेजाकर मरहम पट्टी कारवाया l बातों बातों में उसने मुझे अशोका होटल में हो रहे ऐर खारबेल ग्रुप्स के वॉक इन इंटरव्यू में हिस्सा लेने के लिए कहा l मैंने उसकी बात मान कर इंटरव्यू में पार्टिसिपेट किया और
कल्याणी - तुझे नौकरी मिल गई
अंतस - हाँ दीदी
गीता - (चहकते हुए) जॉइनिंग कब है भैया
अंतस - कल ही, फॉर्च्यून टावर में उनके ऑफिस में
लक्ष्मी - इतनी बड़ी खुशी की बात तू हम सबको ऐसे बता रहा है l
अंतस - इसीलिए कह रहा हूँ चलिए हम सब मिलकर एक-दूसरे साथ खाना खाएंगे

सभी परिवार वाले खुशी खुशी हँसी ठिठोली करते हुए रात का खाना खाते हैं l

~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

अचानक अंतस की नींद टूटती है l शायद आधी रात हो गया था l दो कमरों में एक में उसके माता पिता और दूसरे में उसकी दो बहने सो रहे थे l ड्रॉइंग रुम के एक कोने में सोफ़े कम बेड पर सोया हुआ था l यही उसकी जगह थी इस छोटे से घर में l वह अपनी बिस्तर से उठ कर नाइट बल्ब की रौशनी में पानी पीने के लिए किचेन की ओर जाता है कि उसके माता पिता के बातचीत उसके कानों में पड़ता है तो उसके कदम ठिठक जाते हैं l

लक्ष्मी - (दबी आवाज में) ओ हो, अब सो भी जाओ, आधी रात हो चुका है, वह एपॉइंटमेंट लेटर आपके बेटे का है, पर उस लेटर को दुलार ऐसे रहे हो जैसे वह लेटर आपको मिला है
अरविंद - (दबी आवाज में) अरे अंतस की माँ, तुम जानती भी हो किस कंपनी का यह एपॉइंटमेंट लेटर है ? खारबेल ग्रुप्स कंपनी l पैकेज देखो, सालाना बीस लाख l अरे अंतस की माँ, पूरे पात्रपड़ा में मेरे बेटे के बराबर अब कौन है बोलो तो ज़रा l
लक्ष्मी - अच्छा जी, अब आपका बेटा हो गया l शाम तक तो वह मेरा बेटा था l
अरविंद - चलो ठीक है, हमारा बेटा खुश l
लक्ष्मी - हाँ खुश, अब तो सो जाइए l
अरविंद - अरे अंतस की माँ, ज़रा सोचो, शाम तक हम लोग कितने मायूस थे, हारे हुए लग रहे थे, लूटे हुए थे l फिर अचानक ऐसी खुशी, इतनी खुशी हमारी झोली में आ जाती है l अब यह खुशी कहीं चली ना जाए, खो ना जाए, इसलिए मुझसे सोया नहीं जा रहा है l
लक्ष्मी - बिल्कुल बच्चों जैसी बात कर रहे हैं l काग़ज़ आपके हाथ में है और आप को डर है कि कहीं खुशी चली ना जाए l
अरविंद - हाँ अंतस की माँ, तुम तो जानती हो ना, हमेशा दोस्तों और अपनों के लिए लड़ाई मोल ले कर मैंने अपनी जिंदगी तबाह और बर्बाद कर दिया था l जिनके लिए लड़ा वह लोग मुझे छोड़ कर आगे बढ़ गए मैं पीछे छूट गया l इतना पीछे, के एक प्राईवेट स्कुल में एक शिक्षक ही बनकर रह गया l
लक्ष्मी - अभी क्यूँ आप ऐसी बातेँ कर रहे हैं l
अरविंद - मैं अपनी नाकामियों को अंतस को दोहराते पाया l तुमने देखा नहीं कैसे अपने दोस्त के लिए सड़क छाप गुंडों से लड़ गया पर जब साथ देने का आया, वही दोस्त पुलिस स्टेशन तक नहीं आया अपना बयान तक देने नहीं आया l मैंने सोचा शायद मेरी तरह अंतस की जिंदगी बर्बाद हो गया l पर भगवान से हमारा दुख देखा ना गया, तभी तो बिगड़ने पहले बात बन गई l
लक्ष्मी - पर अंतस की छुड़ाने के लिए आपने उस बदतमीज लाला से दस लाख रुपये उधार भी लिए हैं l
अरविंद - हाँ तो क्या हुआ अंतस की माँ, अब अंतस इतना कमाएगा के हमारे सारे दुख दूर होने वाले हैं l
लक्ष्मी - हाँ हो जायेंगे, अब तो सो जाइए l वह काग़ज़ है आपका बेटा अंतस नहीं जो इतना दुलार रहे हैं l
अरविंद - अरे मेरी सहभगिनी, अर्धांगिनी अब तुम्हें कैसे बताऊँ मैं मेरा बेटा मेरे कंधे की बोझ को किस कदर हल्का कर दिया l ऐसा लग रहा है जैसे मैं उड़ रहा हूँ l
लक्ष्मी - ठीक है, अब आप वह टेबल लैम्प बंद कीजिए कम से कम मुझे तो सोने दीजिए l
अरविंद - अरे भाग्यवान मेरे साथ आज की रात जाग लो, मुझसे आज सोया नहीं जाएगा, सच कहूँ तो आज पीने को बड़ा मन कर रहा था
लक्ष्मी - लो अब यह कसर भी रह गई, और भी कुछ करने का मन है क्या
अरविंद - हाँ है ना, कल मैं अपनी स्कुटर पर बिठा कर अंतस को फॉर्च्यून टावर ले जाऊँगा जॉइनिंग के लिए
लक्ष्मी - है भगवान, बस बहुत हो गया अब आप सोयेंगे या मैं चीख कर सबको जगाऊँ l
अरविंद - ठीक है ठीक है

टेबल लैम्प की स्विच बंद होने की आवाज़ सुनाई देती है l अंतस की आँख भीग गए थे अपने माता पिता की बातें सुन कर l वह मुड़ा ही था कि अपने सामने गीता को खड़े हुए पाता है l इससे पहले अंतस कुछ कहता गीता इशारे से उसे चुप रहने को कहती है l फिर गीता अंतस की हाथ पकड़ कर ड्रॉइंग रुम के सोफ़े पर लेकर आती है, अंतस को बिठा कर खुद भी बैठ जाती है l

गीता - (दबी और धीमी आवाज में) भैया सच सच बताना, यह नौकरी, क्या सच में (रुक जाती है)
अंतस - मेरी नौकरी सच में लगा है, तुझे क्यों मुझ पर शक हो रहा है
गीता - भैया, तुम जब आए हाथ में पट्टी, सिर पर पट्टी l फिर अचानक एपॉइंटमेंट लेटर l मैं यह नहीं जानती, पर इतना जरूर कहूँगी, काश आज की यह खुशियाँ कहीं कोई बुलबुला साबित ना हो
अंतस - तु ऐसी बात क्यूँ कर रही है
गीता - भैया, हम जहाँ रह रहे हैं, वहीं सब हर रोज हमारा मज़ाक बना रहे हैं l दीदी शादी के बाद भी यहाँ है, इसलिए मुहल्ले भर लोगों की सहानुभूति की आड़ में भद्दी नजर गड़ी रहती है l पापा ने लाला के पास घर गिरवी रख दीदी की शादी कारवाई थी l कल जब तुम्हारे लिए पैसे मांगे तो वह कमीना हरामी लाला पैसे देने घर पर आया l पानी पीने के बहाने पापा और मम्मा के सामने दीदी का हाथ पकड़ लिया l हम कितने मजबूर थे भैया उस लाला को कुछ करना तो दूर कह भी नहीं पाए l (अपनी रोना दबा देती है पर अंतस को महसूस हो जाता है इसके अंतस गीता को गले लगा कर)
अंतस - बस छोटी बस l जो भी बुरा हुआ, जितना भी बुरा हुआ बस वह आखरी था l हमारे पिता ने दुनिया से जुझा, लड़ा l अब उनकी लड़ाई मैं अपने सिर ले रहा हूँ l तू देखेगी जिन्होंने हमारा मज़ाक बनाया है, जिन्होंने पापा की अच्छाई का सिला धोखे से दिया है, सब कल से अपना अपना हिसाब देंगे, और यह सब तु कल से देखेगी l
गीता - (अलग हो कर) और दीदी, दीदी का क्या
अंतस - दीदी, दीदी को पूछते ढूंढते देखना जीजाजी आयेंगे, बड़े इज़्ज़त और सम्मान के साथ दीदी को अपने घर लेकर जाएंगे l जहां वह दीदी को रानी की तरह रखेंगे
गीता - सच भैया, इस एक नौकरी पर, तुम्हें इतना भरोसा l
अंतस - हाँ, यही वह नौकरी है जो हमें समाज में हमारा इज़्ज़त दिलाएगा l (गीता और भी कुछ कहना चाहती थी पर अंतस उसे चुप कराता है) श्श्श, जा अब सो जा, कल का सुरज, हमारे परिवार के लिए एक नया सुबह लाने वाला है l अब और कोई गप नहीं जा
बहुत ही शानदार और लाजवाब अपडेट है ज़िन्दगी की गाड़ी बड़ी मुश्किल से चल रही हैं
 

parkas

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आज दोपहर तक पोस्ट कर दूँगा
कारण कहानी के अपडेट में थोड़ा एडिट कर परिवर्तन करना पड़ा
Besabari se intezaar rahega next update ka Kala Nag bhai....
 
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