रिव्यू लिखने के लिए अभी सोचना पड़ेगादूसरा अपडेटशहर की एक कोने में, एक छोटा सा बार l उस बार में एक शख्स एक टेबल पर अकेला शराब पी रहा था l तभी एक आदमी बार के अंदर आता है, बिखरे बाल, चेहरे पर हल्की दाढ़ी l ऐसा लग रहा था जैसे कहीं से पीटा हुआ आया था l वह अनजान शख्स अपनी नजर इधर उधर घुमाता है देखता है एक टेबल पर एक आदमी अकेला बैठा हुआ है तो वह उस टेबल के पास आता है और उस बैठे हुए शख्स से पूछता है
~~~~~~~~~~~
अनजान - क्या यह टेबल, खाली है l
शख्स - (कुछ नहीं कहता, उसे घूर कर देखता है)
अनजान - क्या मैं यहाँ बैठ सकता हूँ l
शख्स - बैठ जा, मेरे बाप का क्या जाता है l
अनजान - आप क्या पी रहे हैं l
शख्स - दूध, दिख नहीं रहा है, अंधा है क्या l अबे यह बार है बार, जो एक बार आए वह बार बार आए l
"आह हा हा आहा आहा" वहाँ पर मौजूद शराबियों में से किसीने कहा l
शख्स - तेरी शक्ल बता रहा है, तू मंदिर जाने वालों में से है l यहाँ क्यूँ आया है l
अनजान - आप जिसके लिए आए हैं l
शख्स - मैं इधर अपना मुफ़्त का पैसा उड़ाने आया हूँ l
अनजान - मेरा भी कुछ ऐसा इरादा है l
शख्स - तो जा उड़ा ना, मेरा दिमाग क्यूँ चाट रहा है l
अनजान - मैंने पहले कभी पिया नहीं है, इसलिए आपसे पूछ रहा था कि आप क्या पी रहे हैं l
शख्स - ओ हो हो हो हो, तो पहली बार आया है l (वेटर से) ओए
वेटर - जी सर जी
शख्स - इसके लिए एक नारंगी ला...
अनजान - नहीं सुनो (वेटर से) इस बार की सबसे बढ़िया शराब लेकर आओ, वह भी फूल बॉटल l (वेटर चला जाता है)
शख्स - ओ हो, लगता है बेड़े मालदार हो l
अनजान - नहीं ऐसी बात नहीं है, अगर शराब पीना ही है तो बढ़िया से शुरुआत क्यूँ ना करें l
शख्स - हम्म्म, फूल बॉटल, अकेले पी पाओगे l
अनजान - क्यूँ आप भी तो हैं साथ l नहीं पियेंगे साथ?
शख्स - नहीं ऐसी बात नहीं है, तुम मेरे बारे में जानते ही क्या हो l
अनजान - अभी पहचान कर लेते हैं, मेरा नाम भविष्य है l
शख्स - क्या, यह कैसा नाम है l
भविष्य - इसमे मैं क्या कर सकता हूँ l यह नाम मेरे माँ बाप ने दिया है l और आपका
शख्स - रमेश, रमेश पुरोहित l (इतने में वेटर दो ग्लास और एक बॉटल, दो पानी के बोतल और दो ग्लास रख देता है)
भविष्य - (वेटर से) कुछ चखना भी ले आना l
वेटर - क्या लाऊँ सर
भविष्य - (रमेश की ओर दिखा कर) उनसे पूछो( वेटर रमेश की ओर देखता है)
रमेश - एक चिकन पकौड़ा बोन लेस
वेटर चला जाता है, भविष्य और रमेश आपस में बात बढ़ाते हुए पेग बना कर पीने लगते हैं l कुछ देर बाद रमेश पर नशा हावी होने लगता है l भविष्य भी अपने पेग में कम और रमेश के पेग में ज्यादा शराब डाल रहा था l कुछ देर बाद रमेश टेबल पर सर रख कर सो जाता है l वेटर जब आता है भविष्य बिल चुकाता है और टीप देते हुए वेटर से कहता है
भविष्य - इन्हें बाहर ले जाने में मेरा मदत करोगे l
वेटर - जी जरूर
फिर दोनों रमेश को सहारा दे कर बाहर लाते हैं कि एक कार आकर रुकती है l भविष्य वेटर की मदत से पिछली सीट पर रमेश को सुला देता है और फिर आगे जाकर ड्राइवर के बगल में बैठ जाता है l
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
सुबह सुबह नाश्ते पर सभी बैठे हुए हैं l सबके चेहरे पर खुशी देख कर अंतस मन ही मन खुश होता है l सबकी नाश्ता खत्म हो जाता है तो अंतस अपनी नौकरी पर जॉइनिंग के लिए तैयार हो कर आता है तो सामने उसकी माँ थाली में दिया जला कर नजर उतारती है
अंतस - मम्मा, मैं कोई जंग लड़ने नहीं जा रहा l नौकरी जॉइन करने जा रहा हूँ l
लक्ष्मी - जानती हूँ, तू कोई जंग नहीं लड़ने नहीं जा रहा l पर अचानक आयी इस खुशी को किसीकी नजर ना लग जाये l
अरविंद - हाँ, लक्ष्मी जी हाँ, कहीं नजर ना लग जाये, इसलिए अच्छी तरह से नजर उतारो
लक्ष्मी अंतस के माथे पर तिलक लगाती है l अंतस भी अपनी माँ की पैर छू कर आशीर्वाद लेता है l फिर वह बाहर आता है तो देखता है अरविंद अपनी स्कुटर पर उसका इंतजार कर रहा है l
अरविंद - चल आजा बेटा, शुभ काम में देरी नहीं होनी चाहिए
अंतस - पापा आप
अरविंद - देख आज मैं तुझे स्कुटर पर बिठा कर तेरे ऑफिस लिए जाऊँगा l और रास्ते मे जो भी दिखेगा सबके सामने अपनी मूँछ पर ताव देते हुआ जाऊँगा l
अंतस हँस देता है, अरविंद अपनी स्कुटर को स्टार्ट करता है l अंतस उसके पीछे बैठ जाता है l जैसे ही स्कुटर जाने को होता है एक चमचमाती हुई कार उनके सामने रुकती है l गाड़ी से एक आदमी और एक खूबसूरत लड़की उतरते हैं l
आदमी - एस्क्युज मी, क्या आप मिस्टर अंतस कुमार हैं
अंतस - (स्कुटर से उतर कर) जी, मैं ही हूँ अंतस कुमार विद्यापति
आदमी - हम आपके घर को रेनोवेट करने आए हैं, जैसा कि आपने हमें ऑर्डर किया था l
अंतस - ओ हाँ हाँ, ठीक है, आप घर को अच्छी तरह से देख लीजिए और जहाँ जहाँ जितना हो सके उतना कर दीजिए l
आदमी - जी सर
वह आदमी उस लड़की के साथ अंतस के घर के अंदर जाता है l इतने में कार की ड्राइवर गाड़ी को एक किनारे लगा देता है l अरविंद अपने बेटे अंतस को लेकर स्कुटर में निकल जाता है l
अरविंद - तुमने रेनोवेट के लिए कब कहा l
अंतस - कल ही, जैसे ही नौकरी की कंफर्मेशन मिली, तभी इनको ऑर्डर कर दिया था l
अरविंद - कितने दिन लगेंगे और कितना खर्चा लगेगा l
अंतस - आप उसकी चिंता मत कीजिए, कंपनी क्वार्टर के बदले में यह रेनोवेशन का चार्ज उठा रही है l
अरविंद - अरे वाह, खारबेल ग्रुप्स कंपनी अपने एंप्लोईस का बड़ा ध्यान रखती है l
अंतस इस बात का कोई जवाब नहीं देता, पर अरविंद फॉर्च्यून टावर पहुँचने तक कुछ ना कुछ उल जलूल बातेँ करता रहा l अंतस को अच्छा लग रहा था कि उसका बाप बिल्कुल एक छोटे बच्चे की तरह बेसिर पैर की बातेँ कर रहा था l फॉर्च्यून टावर के पास पहुँचते ही वहाँ पर खड़े सेक्यूरिटी गार्ड अंतस को सलाम ठोकता है और स्कुटर के लिए अंदर की ओर रास्ता दिखाता है l अरविंद स्कुटर को अंदर लेजाकर पार्क कर देता है l
अरविंद - तू इससे पहले भी कभी आया था क्या l
अंतस - नहीं क्यूँ क्या हुआ l
अरविंद - यह गार्ड तुझे ऐसा सॅल्युट दिया जैसे तुझे पहले से ही जानता हो l
अंतस - जिनको नौकरी मिली है, उनकी डिटेल्स और फोटो तक, इन सेक्यूरिटी गार्ड्स के टेबलेट पर दिया गया होगा l इसलिए उसने मुझे सॅल्युट किया l
अरविंद - ओ ओ ओ
अंतस - अब चलें,
अरविंद - हाँ हाँ चलो चलें
दोनों बाप बेटे टावर के अंदर लिफ्ट से सातवें फ्लोर पर जाते हैं l वह फ्लोर खारबेल ग्रुप्स का एच आर सेक्शन था l रिसेप्शन में अंतस अपना काग़ज़ दिखाता है l रिसेप्शनिस्ट कागज लेकर देखती है और अंतस को अंदर जाने के लिए कहती है l जैसे ही अंतस के साथ अरविंद जाने को होता है रिसेप्शनिस्ट उसे रोक कर लॉबी में इंतजार करने के लिए कहती है l अरविंद भी बात मान कर लॉबी में सोफ़े पर बैठ जाता है l कांच की दीवारों के पार से अपने बेटे अंतस को ओझल होते देखता है l तभी उसका ध्यान टूटता है
-एस्क्युज मी सर, क्या आप मिस्टर अंतस कुमार के पिताजी हैं
अरविंद - (एक खूबसूरत लड़की थी) जी जी, यस यस
लड़की एक फुड ट्राली के साथ आई थी l वह तुरंत ही अरविंद के सामने नाश्ता परोस देती है l अरविंद को कुछ समझ में नहीं आता है l वह मन ही मन सोचने लगता है इस कंपनी में क्या हर एंप्लोईस के रिश्तेदारों से ऐसा बर्ताव करते होंगे या फिर उसके बेटे को कोई बड़ी पोजिशन हासिल हो गया है l
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
रमेश अपनी आँखे खोलता है l उसे छत नहीं दिख रही थी l वह अपना हाथ चेहरे पर लाने की कोशिश करता है पर उसका हाथ बंधा हुआ था l वह चौंकता है बिस्तर पर उठ बैठता है l अपनी नजर कमरे के अंदर दौड़ाने लगता है l यह किसी हस्पताल की ऑपरेशन थिएटर की तरह लग रहा था l उसके बदन पर उसके अपने कपड़े नहीं थे उल्टा मरीज़ को पहनाने वाले कपड़ों में था l वह सोच में पड़ जाता है कि पिछली रात दारु पी रहा था और पीते पीते टेबल पर ही सिर टीका कर सो गया था l वह अपनी हाथों को खिंचता है पर कोई फायदा नहीं होता l बड़ी मजबूती के साथ बेड से बंधा हुआ था l
रमेश - (चिल्ला कर) कोई है, मुझे कोई सुन पा रहा है, ओ हैलो
"चिल्ला क्यूँ रहा है" कहते हुए भविष्य एक डॉक्टर के साथ कमरे में आता है l
रमेश - तुम, तुमने मुझे यहाँ क्यूँ बाँध रखा है,
भविष्य - तू किसी काम का नहीं है, इसलिए सोचा तेरे पास जो भी काम की चीज़ है वह ले लिया जाए l
रमेश - क्या मतलब है तुम्हारा
भविष्य - देख शराब की टेबल पर कोई अकेला होता है, तो वह अपनी जिंदगी पर बोझ होता है l तुझे कल अकेला देखा इसलिए उठा कर ले आया l
रमेश - क्या बक रहे हो कुछ समझ में नहीं आ रहा l मैं इस हस्पताल में क्या कर रहा हूँ l
डॉक्टर - यह हस्पताल नहीं है l यह मेरा लैब है l
रमेश - लैब, कैसा लैब
भविष्य - हम एक्चुअली ह्यूमन ऑर्गन स्मगल करते हैं, जो लोग यूस लेस होते हैं उनसे यूज फूल ऑर्गन निकाल कर पैसा कमाते हैं l
रमेश - क्या,नहीं तुम लोग मेरे साथ ऐसा नहीं कर सकते l
भविष्य - क्यूँ नहीं कर सकते, तू रात भर से गायब है मगर कोई ढूंढ नहीं रहा मतलब तेरे रहने ना रहने से किसीको कोई फर्क़ नहीं पड़ता l
रमेश - देखो मैं शादी शुदा हूँ, मेरे माँ बाप हैं, पत्नी है प्लीज मुझे जाने दो प्लीज (गिड़गिड़ाने लगता है)
भविष्य - देख आज तो नहीं पर कल तेरे लाश को तेरे घर वालों के पास पहुँचा दूँगा l
रमेश - नहीं
भविष्य - हाँ, क्यूँकी तेरे खून में एल्कोहल बहुत मात्रा में है इसलिए आज तू बच गया (रमेश चिल्लाने लगता है तो भविष्य उसके मुहँ पर सर्जिकल टेप चिपका देता है l रमेश बस गुँ गुँ कर रह जाता है)
भविष्य - हाँ तो डॉक्टर कितना माल मिलेगा l
डॉक्टर - सात लाख
भविष्य - सिर्फ सात लाख, मुझे तो यह करोड़ों का आसामी लगा था l इसकी आँखे निकाली जा सकती है, इसका दिल, फेफड़े, गुर्दा और कलेजा तक निकले जा सकते हैं l
डॉक्टर - अच्छा ठीक है, दस लाख, और ज्यादा नहीं वर्ना तुम इसे ले जा कर दफा हो सकते हो l
भविष्य - भगवान से तो डरो, तुम कमाओ करोड़ों में और हमें लाखों की छींट l
डॉक्टर - देख तेरे से डील नहीं हो पा रहा तो अपना लगेज को लेकर यहाँ से रफू चक्कर हो जा l
भविष्य - ठीक है, मुझे मंजूर है यह डील
दोनों हाथ मिलाते हैं और मुस्कराते हुए बेड पर बँधा रमेश को देखते हैं जिसका आँख डर के मारे फैल गई थी और चेहरा पसीने से तर रहा था l
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
लॉबी में बैठे बैठे अरविंद ने कब झपकी ले ली थी उसे पता ही नहीं था l जब उसकी आँखे खुलती हैं तब उसे एहसास होता है कि अंतस उसे हिला हिला कर जगा रहा है l झटपट उठ कर अपनी चारों तरफ देखता है l ऑफिस के सारे स्टाफ़ उसीकी और देख रहे थे l अरविंद मन ही मन में शर्मिंदा होता है l
अंतस - पापा चलें l (यही एक शब्द उसके भीतर जान और स्फूर्ति भर देती है)
अरविंद - हाँ हाँ चलो चलें l
अरविंद उस जगह से जल्दी निकल जाना चाहता था l इसलिए करीब करीब भागते हुए लिफ्ट तक पहुँचता है फिर जैसे ही लिफ्ट का दरवाजा खुलता है वह जल्दी से लिफ्ट के अंदर घुस जाता है l पीछे पीछे अंतस भी आ जाता है l
अरविंद - पता ही नहीं चला मैं कब सो गया l उन लोगों को बुरा लगा होगा हैं ना l
अंतस - नहीं पापा, ऐसा कुछ नहीं है l मैं जानता हूँ आप कल रात सोये नहीं होंगे l
अरविंद - हाँ कल रात मैं इतना खुस था कि मुझे नींद ही नहीं आई l शीट ऑफिस में तेरा इम्प्रेशन खराब तो नहीं हुआ होगा ना l
अंतस - नहीं पापा, ऐसा कुछ नहीं हुआ है l
दोनों लिफ्ट से बाहर आते हैं l अरविंद अभी भी भागते हुए पार्किंग में जाकर गाड़ी निकालता है l गाड़ी लेकर जब अंतस के पास पहुँचता है तो देखता है अंतस के हाथ में एक लेदर बैग था l
अरविंद - यह तेरे हाथ में बैग कैसा l
अंतस - ऑफिस का है, कुछ कागजात वगैरह हैं l
अरविंद - अच्छा आ बैठ, जल्दी निकलते हैं l
अंतस पीछे बैठ जाता है तो अरविंद गाड़ी घर की ओर ले जाता है l
अरविंद - तेरे अंदर जाने के बाद, मुझे खाना सर्व किया गया l मैंने भी लाज शर्म छोड़ कर ठूंसता गया l पेट भारी हो गया था, इसलिए झपकी आ गई थी l
अंतस - हाँ, समझ सकता हूँ l
अरविंद - क्या सोच रहे होंगे तेरे ऑफिस के स्टाफ l
अंतस - हाँ उन्हें थोड़ी डिस्टर्बेंस हो रहा था l
अरविंद - हाँ मैं समझ सकता हूँ, उनको डिस्टर्ब मेरे खर्राटे किए होंगे हा हा हा हा हा हा
अरविंद के साथ अंतस भी हँसने लगता है l तभी उनकी स्कुटर को ओवर टेक करते हुए एक पुलिस की जीप इन्हें रुकने के लिए इशारा करते हुए थोड़ी दूर रुकती है l पुलिस की जीप उन्हें इस तरह से रोकना अरविंद को जितना हैरान करता है उससे कहीं ज्यादा परेशान करता है l
अरविंद - अरे अब फिर क्या हो गया
अंतस - पता नहीं, चलिए देखते हैं क्या होता है
अरविंद अपना स्कुटर को पुलिस की जीप के पास रोकता है l दोनों स्कुटर से उतरते हैं, अरविंद गाड़ी की कागजात निकाल कर जीप की ओर जाने लगता है l देखता है जीप के अंदर वही दरोगा है जिसने दस लाख रुपये लेकर अंतस को छोड़ा था l
अरविंद - क्या बात है इंस्पेक्टर साहब, अब क्या गलती हो गई
इंस्पेक्टर - परसों मैंने आपसे जो रकम ली थी, उसकी वज़ह, जानते हैं आप
अरविंद - जी, जी नहीं साहब
इंस्पेक्टर - वह रकम मैंने आपसे इसलिए ली थी ताकि जिसने आपके बेटे के खिलाफ केस दर्ज की थी उसे वह रकम दे कर केस वापस ले जाने के लिए समझा सकूँ
अरविंद - जी, जी इंस्पेक्टर साहब
इंस्पेक्टर - (गहरी साँस छोड़ते हुए) पहले उसने पैसे ले लिए थे और केस भी वापस ले लिया था, पर आज सुबह आ कर अपनी गलती मान ली और यह पैसे लौटा दिया (कह कर इंस्पेक्टर काग़ज़ में लिपटे कुछ नोटों की गड्डीयाँ अरविंद के हाथों में थमा देता है) (अरविंद भौचक्का रह जाता है) अगर कुछ ज्यादती मुझसे हुई हो तो मुझे माफ कर दीजियेगा l
इतना कह कर इंस्पेक्टर अपनी जीप के साथ चला जाता है l हाथों में दस लाख रुपयों का बंडल लेकर मुहँ फाड़े इंस्पेक्टर को ओझल होते देख रहा था l वह चौंकता है जब अंतस उसे आवाज देता है
अंतस - पापा,
अरविंद - हाँ, हाँ (घूम कर अंतस के पास आता है) (थोड़ा हकलाते) बेटा अंतस
अंतस - हाँ पापा
अरविंद - एक चिकोटी काटना
अंतस - क्या
अरविंद - कहीं मैं अभी भी सोया हुआ तो नहीं हूँ l
अंतस - नहीं पापा, आप जागे हुए हैं, आप और मैं स्कुटर पर यहाँ आए हैं और अभी अभी वह पुलिस वाला आपके पैसे लौटा कर गया है l
अरविंद - अच्छा, इसका मतलब मैं जागा हुआ हूँ, हा हा हा हा, मैं जागा हुआ हूँ
अंतस - हाँ पापा
अरविंद - बेटा मुझे यकीन ही नहीं हो रहा, यह इंस्पेक्टर कितना बड़ा रिश्वत खोर है यह पूरी दुनिया जानती है, पर इसने अभी अभी मुझे मेरा पैसा लौटा दिया
अंतस - मैंने कहा था पापा, अब सब ठीक हो जाएगा
अरविंद - हाँ हाँ जैसे ही तेरी नौकरी लगी सब अपने आप सारे बिगड़े काम ठीक हो रहे हैं l (हाथ जोड़ कर आसमान की ओर देखते हुए) है भगवान कास मेरी कल्याणी की भी घर गृहस्थी सँवर जाए
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
रमेश भाग रहा था, बड़ी मुश्किल से छुटा था l उसे यह अच्छी तरह से समझ में आ गया था, वह अभी किडनैप हुआ था एक ह्युमन ऑर्गन ट्रैफिकिंग गैंग के हाथों l वह तो उसकी किस्मत ने साथ दिया इसलिए अच्छी तरह से जोर लगाने पर उसके बंधन टूट गए l गनीमत है उसे वहाँ से भागते हुए किसीने नहीं देखा था l भागते भागते रमेश हांफने और थकने लगा था l हांफते हांफते इतना थक गया था कि वह सड़क किनारे एक कल्वर्ट पर बैठ कर अपनी साँसे दुरुस्त करने लगता है l इतने में विपरीत दिशा से एक गाड़ी को आते देखता है वह उसके सामने खड़ा हो जाता है l ड्राइवर ब्रेक लगा कर गाड़ी को रोकता है l वह एक पुलिस की जीप थी, उस जीप से एक इंस्पेक्टर उतर कर गालियाँ देने लगता है
इंस्पेक्टर - अबे आँख के अंधे, तुझे पुलिस की ही गाड़ी मिली थी क्या मरने के लिए l
रमेश - (अपनी साँस को नार्मल करते हुए) क्या आप पुलिस वाले हैं
इंस्पेक्टर - अबे ढक्कन तुझे मैं वर्दी में पोस्ट मैन दिख रहा हूँ
ड्राइवर - (इंस्पेक्टर से) साब जी, यह तो वही लापता बंदा लग रहा है, जिसे हम ढूँढ रहे हैं l
इंस्पेक्टर - क्या (अपनी जेब से एक फोटो निकाल कर देखता है और रमेश से हुलिया मिला कर देखता है) अरे हाँ, यही तो है (रमेश से) अबे तु कहाँ चला गया था, और यह मरीजों वालीं कपड़े में क्यूँ है l
रमेश को यह जान कर चैन आता है कि पुलिस उसे ढूँढ रही थी l रमेश इंस्पेक्टर से उस पर बीते हर एक पल को विस्तार में बताता है l
इंस्पेक्टर - अच्छा तो तु किडनैप हो गया था l
रमेश - जी इंस्पेक्टर साहब l
इंस्पेक्टर - क्या तुझे उनके अड्डे के बारे में पता है l
रमेश - हाँ है
इंस्पेक्टर - कितने लोग थे वहाँ पर?
रमेश - जी मैंने सिर्फ दो लोग ही देखे वहाँ पर l
इंस्पेक्टर - तो ठीक है चलो, लगे हाथ उन्हें गिरफ्तार कर लेते हैं और ह्युमन ऑर्गन ट्रैफिकिंग का भांडा फोड़ देते हैं (ड्राइवर से) हेड क्वार्टर में खबर करो l हमे रमेश मिल गया है और लोकेशन की जानकारी देते हुए एक्स्ट्रा फोर्स को भेजने के लिए कहो
ड्राइवर वायर लेस सेट से हेडक्वार्टर पर खबर करते हुए एक्स्ट्रा फोर्स भेजने के लिए कहता है l रमेश को पीछे बैठने के लिए कह कर इंस्पेक्टर रमेश के साथ उसी जगह पर जाता है जहां पर रमेश बेड पर बंधा हुआ था l
एक सुनसान जगह पर एक आधी तैयार बिल्डिंग में आते हैं रमेश रास्ता दिखाते हुए इंस्पेक्टर को बिल्डिंग के अंदर ले जाता है l इंस्पेक्टर देखता है एक कमरा जहाँ बिल्कुल ऑपरेशन थिएटर की तरह हर सामान से भरपूर था l तभी कमरे में भविष्य और डॉक्टर प्रवेश करते हैं l
भविष्य - अबे कहाँ भाग गया था l
रमेश - इंस्पेक्टर साहब, यही वह बंदा है जिसने मुझे शराब पीला कर बेहोश कर यहाँ ले आया था l यह और यह डॉक्टर दोनों मिलकर यह काम करते हैं l
इंस्पेक्टर - (भविष्य से) क्यूँ बे, मरीजों के हाथ पैर कैसे बाँधा जाता है तुझे नहीं मालूम l यह खोल के तोड़ कर भाग गया l (रमेश अब चौंकता है) यह तो गनीमत समझो रास्ते में मुझे मिल गया, वर्ना
रमेश - (हैरत और डर के मारे अंदाज में) इसका मतलब आप इनके साथी हैं l
इंस्पेक्टर - हाँ
इससे पहले कि रमेश भागने के बारे सोच पाए इंस्पेक्टर हॉलस्टर से गन निकाल कर रमेश पर तान देता है l रमेश को अब मौत साक्षात नजर आ रही थी l
Riky भाई मेरी यह कहानी का प्लॉट साहेब से प्रेरित है पर यकीन मानिये साहेब जैसा बिल्कुल नहीं है lकुछ कुछ तो मुझे साहेब वाला ही सीन कह रहा है।
आपने सही कहा किस्मत इतनी मेहरबान नहीं होती l खास कर तब जब पुलिस वाला आगे से आए और रिश्वत में ली हुई रकम लौटा दे l तो हाँ कोई मिला है जिसके साथ हमारा हीरो एक डील किया है lकिस्मत इतनी भी मेहरबान नहीं होती कि खोए पैसे भी वापस आ जाएं और कमाई भी बढ़ जाए। अंतस के साथ ऐसा कुछ तो हुआ है, या कोई मिला है जिसने किसी काम के बदले इतना कुछ दिया है उसे।
इसकी भी पुष्टि अगले अपडेट में हो जाएगीसाथ साथ आप जो ह्यूमन ऑर्गन ट्रैफिकिंग का एंगल लाय हैं वो भी उसी ओर इशारा कर रहा है।
हाँ एक पिता बहुत खुस तब होता है जब उसका बेटा उससे आगे निकल जाए lबहरहाल, बहुत ही जबरदस्त अपडेट।
बच्चे की तरक्की देख बाप एक बच्चा बन गया, बहुत ही सुंदर वर्णन किया आपने इस बात का।
कोई नारिव्यू लिखने के लिए अभी सोचना पड़ेगा
घटनाक्रम अलग अलग भ्रम पैदा कर रहे हैं
Nice and superb update....दूसरा अपडेटशहर की एक कोने में, एक छोटा सा बार l उस बार में एक शख्स एक टेबल पर अकेला शराब पी रहा था l तभी एक आदमी बार के अंदर आता है, बिखरे बाल, चेहरे पर हल्की दाढ़ी l ऐसा लग रहा था जैसे कहीं से पीटा हुआ आया था l वह अनजान शख्स अपनी नजर इधर उधर घुमाता है देखता है एक टेबल पर एक आदमी अकेला बैठा हुआ है तो वह उस टेबल के पास आता है और उस बैठे हुए शख्स से पूछता है
~~~~~~~~~~~
अनजान - क्या यह टेबल, खाली है l
शख्स - (कुछ नहीं कहता, उसे घूर कर देखता है)
अनजान - क्या मैं यहाँ बैठ सकता हूँ l
शख्स - बैठ जा, मेरे बाप का क्या जाता है l
अनजान - आप क्या पी रहे हैं l
शख्स - दूध, दिख नहीं रहा है, अंधा है क्या l अबे यह बार है बार, जो एक बार आए वह बार बार आए l
"आह हा हा आहा आहा" वहाँ पर मौजूद शराबियों में से किसीने कहा l
शख्स - तेरी शक्ल बता रहा है, तू मंदिर जाने वालों में से है l यहाँ क्यूँ आया है l
अनजान - आप जिसके लिए आए हैं l
शख्स - मैं इधर अपना मुफ़्त का पैसा उड़ाने आया हूँ l
अनजान - मेरा भी कुछ ऐसा इरादा है l
शख्स - तो जा उड़ा ना, मेरा दिमाग क्यूँ चाट रहा है l
अनजान - मैंने पहले कभी पिया नहीं है, इसलिए आपसे पूछ रहा था कि आप क्या पी रहे हैं l
शख्स - ओ हो हो हो हो, तो पहली बार आया है l (वेटर से) ओए
वेटर - जी सर जी
शख्स - इसके लिए एक नारंगी ला...
अनजान - नहीं सुनो (वेटर से) इस बार की सबसे बढ़िया शराब लेकर आओ, वह भी फूल बॉटल l (वेटर चला जाता है)
शख्स - ओ हो, लगता है बेड़े मालदार हो l
अनजान - नहीं ऐसी बात नहीं है, अगर शराब पीना ही है तो बढ़िया से शुरुआत क्यूँ ना करें l
शख्स - हम्म्म, फूल बॉटल, अकेले पी पाओगे l
अनजान - क्यूँ आप भी तो हैं साथ l नहीं पियेंगे साथ?
शख्स - नहीं ऐसी बात नहीं है, तुम मेरे बारे में जानते ही क्या हो l
अनजान - अभी पहचान कर लेते हैं, मेरा नाम भविष्य है l
शख्स - क्या, यह कैसा नाम है l
भविष्य - इसमे मैं क्या कर सकता हूँ l यह नाम मेरे माँ बाप ने दिया है l और आपका
शख्स - रमेश, रमेश पुरोहित l (इतने में वेटर दो ग्लास और एक बॉटल, दो पानी के बोतल और दो ग्लास रख देता है)
भविष्य - (वेटर से) कुछ चखना भी ले आना l
वेटर - क्या लाऊँ सर
भविष्य - (रमेश की ओर दिखा कर) उनसे पूछो( वेटर रमेश की ओर देखता है)
रमेश - एक चिकन पकौड़ा बोन लेस
वेटर चला जाता है, भविष्य और रमेश आपस में बात बढ़ाते हुए पेग बना कर पीने लगते हैं l कुछ देर बाद रमेश पर नशा हावी होने लगता है l भविष्य भी अपने पेग में कम और रमेश के पेग में ज्यादा शराब डाल रहा था l कुछ देर बाद रमेश टेबल पर सर रख कर सो जाता है l वेटर जब आता है भविष्य बिल चुकाता है और टीप देते हुए वेटर से कहता है
भविष्य - इन्हें बाहर ले जाने में मेरा मदत करोगे l
वेटर - जी जरूर
फिर दोनों रमेश को सहारा दे कर बाहर लाते हैं कि एक कार आकर रुकती है l भविष्य वेटर की मदत से पिछली सीट पर रमेश को सुला देता है और फिर आगे जाकर ड्राइवर के बगल में बैठ जाता है l
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
सुबह सुबह नाश्ते पर सभी बैठे हुए हैं l सबके चेहरे पर खुशी देख कर अंतस मन ही मन खुश होता है l सबकी नाश्ता खत्म हो जाता है तो अंतस अपनी नौकरी पर जॉइनिंग के लिए तैयार हो कर आता है तो सामने उसकी माँ थाली में दिया जला कर नजर उतारती है
अंतस - मम्मा, मैं कोई जंग लड़ने नहीं जा रहा l नौकरी जॉइन करने जा रहा हूँ l
लक्ष्मी - जानती हूँ, तू कोई जंग नहीं लड़ने नहीं जा रहा l पर अचानक आयी इस खुशी को किसीकी नजर ना लग जाये l
अरविंद - हाँ, लक्ष्मी जी हाँ, कहीं नजर ना लग जाये, इसलिए अच्छी तरह से नजर उतारो
लक्ष्मी अंतस के माथे पर तिलक लगाती है l अंतस भी अपनी माँ की पैर छू कर आशीर्वाद लेता है l फिर वह बाहर आता है तो देखता है अरविंद अपनी स्कुटर पर उसका इंतजार कर रहा है l
अरविंद - चल आजा बेटा, शुभ काम में देरी नहीं होनी चाहिए
अंतस - पापा आप
अरविंद - देख आज मैं तुझे स्कुटर पर बिठा कर तेरे ऑफिस लिए जाऊँगा l और रास्ते मे जो भी दिखेगा सबके सामने अपनी मूँछ पर ताव देते हुआ जाऊँगा l
अंतस हँस देता है, अरविंद अपनी स्कुटर को स्टार्ट करता है l अंतस उसके पीछे बैठ जाता है l जैसे ही स्कुटर जाने को होता है एक चमचमाती हुई कार उनके सामने रुकती है l गाड़ी से एक आदमी और एक खूबसूरत लड़की उतरते हैं l
आदमी - एस्क्युज मी, क्या आप मिस्टर अंतस कुमार हैं
अंतस - (स्कुटर से उतर कर) जी, मैं ही हूँ अंतस कुमार विद्यापति
आदमी - हम आपके घर को रेनोवेट करने आए हैं, जैसा कि आपने हमें ऑर्डर किया था l
अंतस - ओ हाँ हाँ, ठीक है, आप घर को अच्छी तरह से देख लीजिए और जहाँ जहाँ जितना हो सके उतना कर दीजिए l
आदमी - जी सर
वह आदमी उस लड़की के साथ अंतस के घर के अंदर जाता है l इतने में कार की ड्राइवर गाड़ी को एक किनारे लगा देता है l अरविंद अपने बेटे अंतस को लेकर स्कुटर में निकल जाता है l
अरविंद - तुमने रेनोवेट के लिए कब कहा l
अंतस - कल ही, जैसे ही नौकरी की कंफर्मेशन मिली, तभी इनको ऑर्डर कर दिया था l
अरविंद - कितने दिन लगेंगे और कितना खर्चा लगेगा l
अंतस - आप उसकी चिंता मत कीजिए, कंपनी क्वार्टर के बदले में यह रेनोवेशन का चार्ज उठा रही है l
अरविंद - अरे वाह, खारबेल ग्रुप्स कंपनी अपने एंप्लोईस का बड़ा ध्यान रखती है l
अंतस इस बात का कोई जवाब नहीं देता, पर अरविंद फॉर्च्यून टावर पहुँचने तक कुछ ना कुछ उल जलूल बातेँ करता रहा l अंतस को अच्छा लग रहा था कि उसका बाप बिल्कुल एक छोटे बच्चे की तरह बेसिर पैर की बातेँ कर रहा था l फॉर्च्यून टावर के पास पहुँचते ही वहाँ पर खड़े सेक्यूरिटी गार्ड अंतस को सलाम ठोकता है और स्कुटर के लिए अंदर की ओर रास्ता दिखाता है l अरविंद स्कुटर को अंदर लेजाकर पार्क कर देता है l
अरविंद - तू इससे पहले भी कभी आया था क्या l
अंतस - नहीं क्यूँ क्या हुआ l
अरविंद - यह गार्ड तुझे ऐसा सॅल्युट दिया जैसे तुझे पहले से ही जानता हो l
अंतस - जिनको नौकरी मिली है, उनकी डिटेल्स और फोटो तक, इन सेक्यूरिटी गार्ड्स के टेबलेट पर दिया गया होगा l इसलिए उसने मुझे सॅल्युट किया l
अरविंद - ओ ओ ओ
अंतस - अब चलें,
अरविंद - हाँ हाँ चलो चलें
दोनों बाप बेटे टावर के अंदर लिफ्ट से सातवें फ्लोर पर जाते हैं l वह फ्लोर खारबेल ग्रुप्स का एच आर सेक्शन था l रिसेप्शन में अंतस अपना काग़ज़ दिखाता है l रिसेप्शनिस्ट कागज लेकर देखती है और अंतस को अंदर जाने के लिए कहती है l जैसे ही अंतस के साथ अरविंद जाने को होता है रिसेप्शनिस्ट उसे रोक कर लॉबी में इंतजार करने के लिए कहती है l अरविंद भी बात मान कर लॉबी में सोफ़े पर बैठ जाता है l कांच की दीवारों के पार से अपने बेटे अंतस को ओझल होते देखता है l तभी उसका ध्यान टूटता है
-एस्क्युज मी सर, क्या आप मिस्टर अंतस कुमार के पिताजी हैं
अरविंद - (एक खूबसूरत लड़की थी) जी जी, यस यस
लड़की एक फुड ट्राली के साथ आई थी l वह तुरंत ही अरविंद के सामने नाश्ता परोस देती है l अरविंद को कुछ समझ में नहीं आता है l वह मन ही मन सोचने लगता है इस कंपनी में क्या हर एंप्लोईस के रिश्तेदारों से ऐसा बर्ताव करते होंगे या फिर उसके बेटे को कोई बड़ी पोजिशन हासिल हो गया है l
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
रमेश अपनी आँखे खोलता है l उसे छत नहीं दिख रही थी l वह अपना हाथ चेहरे पर लाने की कोशिश करता है पर उसका हाथ बंधा हुआ था l वह चौंकता है बिस्तर पर उठ बैठता है l अपनी नजर कमरे के अंदर दौड़ाने लगता है l यह किसी हस्पताल की ऑपरेशन थिएटर की तरह लग रहा था l उसके बदन पर उसके अपने कपड़े नहीं थे उल्टा मरीज़ को पहनाने वाले कपड़ों में था l वह सोच में पड़ जाता है कि पिछली रात दारु पी रहा था और पीते पीते टेबल पर ही सिर टीका कर सो गया था l वह अपनी हाथों को खिंचता है पर कोई फायदा नहीं होता l बड़ी मजबूती के साथ बेड से बंधा हुआ था l
रमेश - (चिल्ला कर) कोई है, मुझे कोई सुन पा रहा है, ओ हैलो
"चिल्ला क्यूँ रहा है" कहते हुए भविष्य एक डॉक्टर के साथ कमरे में आता है l
रमेश - तुम, तुमने मुझे यहाँ क्यूँ बाँध रखा है,
भविष्य - तू किसी काम का नहीं है, इसलिए सोचा तेरे पास जो भी काम की चीज़ है वह ले लिया जाए l
रमेश - क्या मतलब है तुम्हारा
भविष्य - देख शराब की टेबल पर कोई अकेला होता है, तो वह अपनी जिंदगी पर बोझ होता है l तुझे कल अकेला देखा इसलिए उठा कर ले आया l
रमेश - क्या बक रहे हो कुछ समझ में नहीं आ रहा l मैं इस हस्पताल में क्या कर रहा हूँ l
डॉक्टर - यह हस्पताल नहीं है l यह मेरा लैब है l
रमेश - लैब, कैसा लैब
भविष्य - हम एक्चुअली ह्यूमन ऑर्गन स्मगल करते हैं, जो लोग यूस लेस होते हैं उनसे यूज फूल ऑर्गन निकाल कर पैसा कमाते हैं l
रमेश - क्या,नहीं तुम लोग मेरे साथ ऐसा नहीं कर सकते l
भविष्य - क्यूँ नहीं कर सकते, तू रात भर से गायब है मगर कोई ढूंढ नहीं रहा मतलब तेरे रहने ना रहने से किसीको कोई फर्क़ नहीं पड़ता l
रमेश - देखो मैं शादी शुदा हूँ, मेरे माँ बाप हैं, पत्नी है प्लीज मुझे जाने दो प्लीज (गिड़गिड़ाने लगता है)
भविष्य - देख आज तो नहीं पर कल तेरे लाश को तेरे घर वालों के पास पहुँचा दूँगा l
रमेश - नहीं
भविष्य - हाँ, क्यूँकी तेरे खून में एल्कोहल बहुत मात्रा में है इसलिए आज तू बच गया (रमेश चिल्लाने लगता है तो भविष्य उसके मुहँ पर सर्जिकल टेप चिपका देता है l रमेश बस गुँ गुँ कर रह जाता है)
भविष्य - हाँ तो डॉक्टर कितना माल मिलेगा l
डॉक्टर - सात लाख
भविष्य - सिर्फ सात लाख, मुझे तो यह करोड़ों का आसामी लगा था l इसकी आँखे निकाली जा सकती है, इसका दिल, फेफड़े, गुर्दा और कलेजा तक निकले जा सकते हैं l
डॉक्टर - अच्छा ठीक है, दस लाख, और ज्यादा नहीं वर्ना तुम इसे ले जा कर दफा हो सकते हो l
भविष्य - भगवान से तो डरो, तुम कमाओ करोड़ों में और हमें लाखों की छींट l
डॉक्टर - देख तेरे से डील नहीं हो पा रहा तो अपना लगेज को लेकर यहाँ से रफू चक्कर हो जा l
भविष्य - ठीक है, मुझे मंजूर है यह डील
दोनों हाथ मिलाते हैं और मुस्कराते हुए बेड पर बँधा रमेश को देखते हैं जिसका आँख डर के मारे फैल गई थी और चेहरा पसीने से तर रहा था l
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
लॉबी में बैठे बैठे अरविंद ने कब झपकी ले ली थी उसे पता ही नहीं था l जब उसकी आँखे खुलती हैं तब उसे एहसास होता है कि अंतस उसे हिला हिला कर जगा रहा है l झटपट उठ कर अपनी चारों तरफ देखता है l ऑफिस के सारे स्टाफ़ उसीकी और देख रहे थे l अरविंद मन ही मन में शर्मिंदा होता है l
अंतस - पापा चलें l (यही एक शब्द उसके भीतर जान और स्फूर्ति भर देती है)
अरविंद - हाँ हाँ चलो चलें l
अरविंद उस जगह से जल्दी निकल जाना चाहता था l इसलिए करीब करीब भागते हुए लिफ्ट तक पहुँचता है फिर जैसे ही लिफ्ट का दरवाजा खुलता है वह जल्दी से लिफ्ट के अंदर घुस जाता है l पीछे पीछे अंतस भी आ जाता है l
अरविंद - पता ही नहीं चला मैं कब सो गया l उन लोगों को बुरा लगा होगा हैं ना l
अंतस - नहीं पापा, ऐसा कुछ नहीं है l मैं जानता हूँ आप कल रात सोये नहीं होंगे l
अरविंद - हाँ कल रात मैं इतना खुस था कि मुझे नींद ही नहीं आई l शीट ऑफिस में तेरा इम्प्रेशन खराब तो नहीं हुआ होगा ना l
अंतस - नहीं पापा, ऐसा कुछ नहीं हुआ है l
दोनों लिफ्ट से बाहर आते हैं l अरविंद अभी भी भागते हुए पार्किंग में जाकर गाड़ी निकालता है l गाड़ी लेकर जब अंतस के पास पहुँचता है तो देखता है अंतस के हाथ में एक लेदर बैग था l
अरविंद - यह तेरे हाथ में बैग कैसा l
अंतस - ऑफिस का है, कुछ कागजात वगैरह हैं l
अरविंद - अच्छा आ बैठ, जल्दी निकलते हैं l
अंतस पीछे बैठ जाता है तो अरविंद गाड़ी घर की ओर ले जाता है l
अरविंद - तेरे अंदर जाने के बाद, मुझे खाना सर्व किया गया l मैंने भी लाज शर्म छोड़ कर ठूंसता गया l पेट भारी हो गया था, इसलिए झपकी आ गई थी l
अंतस - हाँ, समझ सकता हूँ l
अरविंद - क्या सोच रहे होंगे तेरे ऑफिस के स्टाफ l
अंतस - हाँ उन्हें थोड़ी डिस्टर्बेंस हो रहा था l
अरविंद - हाँ मैं समझ सकता हूँ, उनको डिस्टर्ब मेरे खर्राटे किए होंगे हा हा हा हा हा हा
अरविंद के साथ अंतस भी हँसने लगता है l तभी उनकी स्कुटर को ओवर टेक करते हुए एक पुलिस की जीप इन्हें रुकने के लिए इशारा करते हुए थोड़ी दूर रुकती है l पुलिस की जीप उन्हें इस तरह से रोकना अरविंद को जितना हैरान करता है उससे कहीं ज्यादा परेशान करता है l
अरविंद - अरे अब फिर क्या हो गया
अंतस - पता नहीं, चलिए देखते हैं क्या होता है
अरविंद अपना स्कुटर को पुलिस की जीप के पास रोकता है l दोनों स्कुटर से उतरते हैं, अरविंद गाड़ी की कागजात निकाल कर जीप की ओर जाने लगता है l देखता है जीप के अंदर वही दरोगा है जिसने दस लाख रुपये लेकर अंतस को छोड़ा था l
अरविंद - क्या बात है इंस्पेक्टर साहब, अब क्या गलती हो गई
इंस्पेक्टर - परसों मैंने आपसे जो रकम ली थी, उसकी वज़ह, जानते हैं आप
अरविंद - जी, जी नहीं साहब
इंस्पेक्टर - वह रकम मैंने आपसे इसलिए ली थी ताकि जिसने आपके बेटे के खिलाफ केस दर्ज की थी उसे वह रकम दे कर केस वापस ले जाने के लिए समझा सकूँ
अरविंद - जी, जी इंस्पेक्टर साहब
इंस्पेक्टर - (गहरी साँस छोड़ते हुए) पहले उसने पैसे ले लिए थे और केस भी वापस ले लिया था, पर आज सुबह आ कर अपनी गलती मान ली और यह पैसे लौटा दिया (कह कर इंस्पेक्टर काग़ज़ में लिपटे कुछ नोटों की गड्डीयाँ अरविंद के हाथों में थमा देता है) (अरविंद भौचक्का रह जाता है) अगर कुछ ज्यादती मुझसे हुई हो तो मुझे माफ कर दीजियेगा l
इतना कह कर इंस्पेक्टर अपनी जीप के साथ चला जाता है l हाथों में दस लाख रुपयों का बंडल लेकर मुहँ फाड़े इंस्पेक्टर को ओझल होते देख रहा था l वह चौंकता है जब अंतस उसे आवाज देता है
अंतस - पापा,
अरविंद - हाँ, हाँ (घूम कर अंतस के पास आता है) (थोड़ा हकलाते) बेटा अंतस
अंतस - हाँ पापा
अरविंद - एक चिकोटी काटना
अंतस - क्या
अरविंद - कहीं मैं अभी भी सोया हुआ तो नहीं हूँ l
अंतस - नहीं पापा, आप जागे हुए हैं, आप और मैं स्कुटर पर यहाँ आए हैं और अभी अभी वह पुलिस वाला आपके पैसे लौटा कर गया है l
अरविंद - अच्छा, इसका मतलब मैं जागा हुआ हूँ, हा हा हा हा, मैं जागा हुआ हूँ
अंतस - हाँ पापा
अरविंद - बेटा मुझे यकीन ही नहीं हो रहा, यह इंस्पेक्टर कितना बड़ा रिश्वत खोर है यह पूरी दुनिया जानती है, पर इसने अभी अभी मुझे मेरा पैसा लौटा दिया
अंतस - मैंने कहा था पापा, अब सब ठीक हो जाएगा
अरविंद - हाँ हाँ जैसे ही तेरी नौकरी लगी सब अपने आप सारे बिगड़े काम ठीक हो रहे हैं l (हाथ जोड़ कर आसमान की ओर देखते हुए) है भगवान कास मेरी कल्याणी की भी घर गृहस्थी सँवर जाए
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
रमेश भाग रहा था, बड़ी मुश्किल से छुटा था l उसे यह अच्छी तरह से समझ में आ गया था, वह अभी किडनैप हुआ था एक ह्युमन ऑर्गन ट्रैफिकिंग गैंग के हाथों l वह तो उसकी किस्मत ने साथ दिया इसलिए अच्छी तरह से जोर लगाने पर उसके बंधन टूट गए l गनीमत है उसे वहाँ से भागते हुए किसीने नहीं देखा था l भागते भागते रमेश हांफने और थकने लगा था l हांफते हांफते इतना थक गया था कि वह सड़क किनारे एक कल्वर्ट पर बैठ कर अपनी साँसे दुरुस्त करने लगता है l इतने में विपरीत दिशा से एक गाड़ी को आते देखता है वह उसके सामने खड़ा हो जाता है l ड्राइवर ब्रेक लगा कर गाड़ी को रोकता है l वह एक पुलिस की जीप थी, उस जीप से एक इंस्पेक्टर उतर कर गालियाँ देने लगता है
इंस्पेक्टर - अबे आँख के अंधे, तुझे पुलिस की ही गाड़ी मिली थी क्या मरने के लिए l
रमेश - (अपनी साँस को नार्मल करते हुए) क्या आप पुलिस वाले हैं
इंस्पेक्टर - अबे ढक्कन तुझे मैं वर्दी में पोस्ट मैन दिख रहा हूँ
ड्राइवर - (इंस्पेक्टर से) साब जी, यह तो वही लापता बंदा लग रहा है, जिसे हम ढूँढ रहे हैं l
इंस्पेक्टर - क्या (अपनी जेब से एक फोटो निकाल कर देखता है और रमेश से हुलिया मिला कर देखता है) अरे हाँ, यही तो है (रमेश से) अबे तु कहाँ चला गया था, और यह मरीजों वालीं कपड़े में क्यूँ है l
रमेश को यह जान कर चैन आता है कि पुलिस उसे ढूँढ रही थी l रमेश इंस्पेक्टर से उस पर बीते हर एक पल को विस्तार में बताता है l
इंस्पेक्टर - अच्छा तो तु किडनैप हो गया था l
रमेश - जी इंस्पेक्टर साहब l
इंस्पेक्टर - क्या तुझे उनके अड्डे के बारे में पता है l
रमेश - हाँ है
इंस्पेक्टर - कितने लोग थे वहाँ पर?
रमेश - जी मैंने सिर्फ दो लोग ही देखे वहाँ पर l
इंस्पेक्टर - तो ठीक है चलो, लगे हाथ उन्हें गिरफ्तार कर लेते हैं और ह्युमन ऑर्गन ट्रैफिकिंग का भांडा फोड़ देते हैं (ड्राइवर से) हेड क्वार्टर में खबर करो l हमे रमेश मिल गया है और लोकेशन की जानकारी देते हुए एक्स्ट्रा फोर्स को भेजने के लिए कहो
ड्राइवर वायर लेस सेट से हेडक्वार्टर पर खबर करते हुए एक्स्ट्रा फोर्स भेजने के लिए कहता है l रमेश को पीछे बैठने के लिए कह कर इंस्पेक्टर रमेश के साथ उसी जगह पर जाता है जहां पर रमेश बेड पर बंधा हुआ था l
एक सुनसान जगह पर एक आधी तैयार बिल्डिंग में आते हैं रमेश रास्ता दिखाते हुए इंस्पेक्टर को बिल्डिंग के अंदर ले जाता है l इंस्पेक्टर देखता है एक कमरा जहाँ बिल्कुल ऑपरेशन थिएटर की तरह हर सामान से भरपूर था l तभी कमरे में भविष्य और डॉक्टर प्रवेश करते हैं l
भविष्य - अबे कहाँ भाग गया था l
रमेश - इंस्पेक्टर साहब, यही वह बंदा है जिसने मुझे शराब पीला कर बेहोश कर यहाँ ले आया था l यह और यह डॉक्टर दोनों मिलकर यह काम करते हैं l
इंस्पेक्टर - (भविष्य से) क्यूँ बे, मरीजों के हाथ पैर कैसे बाँधा जाता है तुझे नहीं मालूम l यह खोल के तोड़ कर भाग गया l (रमेश अब चौंकता है) यह तो गनीमत समझो रास्ते में मुझे मिल गया, वर्ना
रमेश - (हैरत और डर के मारे अंदाज में) इसका मतलब आप इनके साथी हैं l
इंस्पेक्टर - हाँ
इससे पहले कि रमेश भागने के बारे सोच पाए इंस्पेक्टर हॉलस्टर से गन निकाल कर रमेश पर तान देता है l रमेश को अब मौत साक्षात नजर आ रही थी l
Amazing writingप्रोलॉग
~~~~~~×- हाय..
×- ओ.. हाय..
×- शाम ढल रही है... इस वक़्त तुम... मुझसे क्यूँ मिलना चाहती थी...
×- एक बात करनी थी...
×- कैसी बात...
×- देखो... आम तौर पर... लड़कियाँ कभी पहल नहीं करतीं... पर..
×- पर... पर क्या..
×- ओ हो... बड़ा मजा आ रहा है तुम्हें...
×- मजा... अरे यार... यह कैसी बात कर रही हो... बताओ... क्यूँ बुलाया मुझे..
×- आ आ आह.. इट्स सो डिसगस्टींग... ओके... मैं... मैं तुमसे प्यार करने लगी हूँ...
×- ह्वाट... देखो... मज़ाक की भी हद होती है...
×- यू स्टुपिड... आई एम इन लव विथ यू... मुझे पहल करनी पड़ रही है... और यह... तुमसे कहना पड़ रहा है... तुम्हें यह मज़ाक लग रहा है...
×- आर यू गॉन मैड... पूरी दुनिया में... तुम्हें कोई नहीं मिला...
×- ओ हैलो... डोंट बी ऐक्ट स्मार्ट... मैं जानती हूँ... तुम भी मुझसे प्यार करते हो... हर लड़की की तरह मैं भी चाहती थी... के तुम पहल करो... मुझसे प्यार का इजहार करो... पर पता नहीं क्यों... तुमसे हो नहीं पा रहा.. तो मैंने तुम्हारा काम आसान कर दिया...
×- देखो... तुम्हें कोई गलत फहमी हो गई है... मैं तुमसे प्यार नहीं करता...
×- (टुटे मन से) प्यार नहीं करते... क्यूँ नहीं करते.. क्या मैं इतनी खराब हूँ...
×- ओह गॉड... खराब तुम नहीं हो... खराब मैं हूँ... मेरी किस्मत है... मैं... मैं किसी से भी प्यार नहीं कर सकता...
×- (थोड़ी ऊँची आवाज़ में) क्यूँ नहीं कर सकते प्यार..
×- (बेबसी के साथ) मैं... मैं तुम्हें कैसे समझाऊँ... बस इतना समझ लो... तकदीर ने मुझे प्यार करने की इजाजत नहीं दी है... (मुड़ जाता है)
×- (पीछे से आकार उसे अपनी तरफ मोड़ती है) अगर प्यार नहीं है... तो सीधे सीधे कहो... मुझसे प्यार नहीं है... यह बहाने क्यूँ बना रहे हो... तकदीर इजाजत नहीं दे रहा है...
×- अच्छा ठीक है... हाँ हाँ हाँ... मुझे तुमसे प्यार नहीं है...
×- (थोड़ी नर्म पड़ कर) क्या किसी और से प्यार करते हो...
×- (तड़प कर) नहीं नहीं नहीं... मैं... किसी से भी प्यार नहीं कर सकता... बस यूँ समझ लो... मेरे हर रिश्ते का एक हद है... एक उम्र है... इससे आगे मैं तुम्हें कुछ नहीं समझा सकता...
×- ठीक है... मुझे बस इतना बताओ... मुझ में क्या कमी है...
×- कमी तुममें नहीं है... मुझमें है... तुम आसमान में पूनम की चांद हो... और मैं अमावस की रात...
×- तो मुझे अपने आसमान में आने दो... मेरी रौशनी से... अपने अमावस की अंधेरे को दूर करो...
×- उसके लिए... अमावस को गुजरना होगा...
×- तो अमावस के गुजर जाने तक मैं इंतजार करुँगी...
×- नहीं... तुम ऐसा कुछ भी मत करो... क्यूँकी यह अमावस कभी खत्म नहीं होगा... बस यूँ समझो... एक सफर में हम तुम मिले... पहले मंजिल मेरी आई... मैं उतर गया... पर तुम्हारा सफर जारी है... क्यूँकी तुम्हारी मंजिल अभी आना बाकी है... इसलिये प्लीज... मुझसे प्यार मत करो...
×- (फीकी हँसी हँसते हुए) मेरी भी मंजिल वही है... जो तुम्हारी मंजिल है... मैं एक लड़की हूँ... इस शहर में... हर एक नज़र को पहचानती हूँ... महसुस करी हूँ... पर तुम अलग हो... पता नहीं.. वह क्या बात है... जो तुम्हें रोक रही है... पर मैंने महसूस किया है... तुम्हारे साँसों में मेरी खुशबु को... तुम्हारे दिल में अपनी धड़कन को... मैं तुम्हें इतने दिनों में इस हद तक जान गई हूँ... जितना मैं खुदको जानती हूँ... तुम मेरे अधूरे एहसास को पूरा करते हो.. तुम मेरे हर पहलू को... मुकम्मल करते हो... मैं तुमसे प्यार करना कैसे छोड़ दूँ... नहीं अब तो तुम्हें हासिल करना है... या फिर मर जाना है... (कह कर वहाँ से चली जाती है)
×- (जाते हुए अपनी आँखों से ओझल होते देख रहा था) अब मैं तुम्हें कैसे बताऊँ... प्यार के पहलू में... मैं तुम्हारा दूसरा पहलू हूँ... बिल्कुल उस सिक्के की तरह... सिक्का तो मुकम्मल होती है... पर दोनों पहलू... एक दूसरे को कभी देख नहीं पाते... एक दूसरे के खिलाफ पीठ कर खड़े होते हैं... मुझे माफ कर दो...
Congratulations bhai for new storyप्रोलॉग
~~~~~~×- हाय..
×- ओ.. हाय..
×- शाम ढल रही है... इस वक़्त तुम... मुझसे क्यूँ मिलना चाहती थी...
×- एक बात करनी थी...
×- कैसी बात...
×- देखो... आम तौर पर... लड़कियाँ कभी पहल नहीं करतीं... पर..
×- पर... पर क्या..
×- ओ हो... बड़ा मजा आ रहा है तुम्हें...
×- मजा... अरे यार... यह कैसी बात कर रही हो... बताओ... क्यूँ बुलाया मुझे..
×- आ आ आह.. इट्स सो डिसगस्टींग... ओके... मैं... मैं तुमसे प्यार करने लगी हूँ...
×- ह्वाट... देखो... मज़ाक की भी हद होती है...
×- यू स्टुपिड... आई एम इन लव विथ यू... मुझे पहल करनी पड़ रही है... और यह... तुमसे कहना पड़ रहा है... तुम्हें यह मज़ाक लग रहा है...
×- आर यू गॉन मैड... पूरी दुनिया में... तुम्हें कोई नहीं मिला...
×- ओ हैलो... डोंट बी ऐक्ट स्मार्ट... मैं जानती हूँ... तुम भी मुझसे प्यार करते हो... हर लड़की की तरह मैं भी चाहती थी... के तुम पहल करो... मुझसे प्यार का इजहार करो... पर पता नहीं क्यों... तुमसे हो नहीं पा रहा.. तो मैंने तुम्हारा काम आसान कर दिया...
×- देखो... तुम्हें कोई गलत फहमी हो गई है... मैं तुमसे प्यार नहीं करता...
×- (टुटे मन से) प्यार नहीं करते... क्यूँ नहीं करते.. क्या मैं इतनी खराब हूँ...
×- ओह गॉड... खराब तुम नहीं हो... खराब मैं हूँ... मेरी किस्मत है... मैं... मैं किसी से भी प्यार नहीं कर सकता...
×- (थोड़ी ऊँची आवाज़ में) क्यूँ नहीं कर सकते प्यार..
×- (बेबसी के साथ) मैं... मैं तुम्हें कैसे समझाऊँ... बस इतना समझ लो... तकदीर ने मुझे प्यार करने की इजाजत नहीं दी है... (मुड़ जाता है)
×- (पीछे से आकार उसे अपनी तरफ मोड़ती है) अगर प्यार नहीं है... तो सीधे सीधे कहो... मुझसे प्यार नहीं है... यह बहाने क्यूँ बना रहे हो... तकदीर इजाजत नहीं दे रहा है...
×- अच्छा ठीक है... हाँ हाँ हाँ... मुझे तुमसे प्यार नहीं है...
×- (थोड़ी नर्म पड़ कर) क्या किसी और से प्यार करते हो...
×- (तड़प कर) नहीं नहीं नहीं... मैं... किसी से भी प्यार नहीं कर सकता... बस यूँ समझ लो... मेरे हर रिश्ते का एक हद है... एक उम्र है... इससे आगे मैं तुम्हें कुछ नहीं समझा सकता...
×- ठीक है... मुझे बस इतना बताओ... मुझ में क्या कमी है...
×- कमी तुममें नहीं है... मुझमें है... तुम आसमान में पूनम की चांद हो... और मैं अमावस की रात...
×- तो मुझे अपने आसमान में आने दो... मेरी रौशनी से... अपने अमावस की अंधेरे को दूर करो...
×- उसके लिए... अमावस को गुजरना होगा...
×- तो अमावस के गुजर जाने तक मैं इंतजार करुँगी...
×- नहीं... तुम ऐसा कुछ भी मत करो... क्यूँकी यह अमावस कभी खत्म नहीं होगा... बस यूँ समझो... एक सफर में हम तुम मिले... पहले मंजिल मेरी आई... मैं उतर गया... पर तुम्हारा सफर जारी है... क्यूँकी तुम्हारी मंजिल अभी आना बाकी है... इसलिये प्लीज... मुझसे प्यार मत करो...
×- (फीकी हँसी हँसते हुए) मेरी भी मंजिल वही है... जो तुम्हारी मंजिल है... मैं एक लड़की हूँ... इस शहर में... हर एक नज़र को पहचानती हूँ... महसुस करी हूँ... पर तुम अलग हो... पता नहीं.. वह क्या बात है... जो तुम्हें रोक रही है... पर मैंने महसूस किया है... तुम्हारे साँसों में मेरी खुशबु को... तुम्हारे दिल में अपनी धड़कन को... मैं तुम्हें इतने दिनों में इस हद तक जान गई हूँ... जितना मैं खुदको जानती हूँ... तुम मेरे अधूरे एहसास को पूरा करते हो.. तुम मेरे हर पहलू को... मुकम्मल करते हो... मैं तुमसे प्यार करना कैसे छोड़ दूँ... नहीं अब तो तुम्हें हासिल करना है... या फिर मर जाना है... (कह कर वहाँ से चली जाती है)
×- (जाते हुए अपनी आँखों से ओझल होते देख रहा था) अब मैं तुम्हें कैसे बताऊँ... प्यार के पहलू में... मैं तुम्हारा दूसरा पहलू हूँ... बिल्कुल उस सिक्के की तरह... सिक्का तो मुकम्मल होती है... पर दोनों पहलू... एक दूसरे को कभी देख नहीं पाते... एक दूसरे के खिलाफ पीठ कर खड़े होते हैं... मुझे माफ कर दो...