• If you are trying to reset your account password then don't forget to check spam folder in your mailbox. Also Mark it as "not spam" or you won't be able to click on the link.

Thriller 100 - Encounter !!!! Journey Of An Innocent Girl (Completed)

krish1152

Well-Known Member
5,089
15,491
188
Note For My Lovely Readers


Pyare mitro ye halki fulki kahani main bilkul apne aur aapke manoranjan ke liye likh raha hun, jo ki meri erotica fantasy hai, jise main shabdon ke jariye aap sab tak pahunchane ja raha hun... Ab sabhi readers kriya dhyan den... Write ke sath chhota sa interview by nain11ster..

Kahani kis mode me likhi ja rahi hai... Jaisa ki tital hai... Journey of an innocent girl.. to kahani first person mode me likhi ja rahi hai, jo ek ladki ke hi ird-gird ghumegi...

Total Chepter :- 100 (ye 100 update nahi hai, 100 chepter hai. isliye koi confusion na rahe)

Update chhapne ki prakriya:- Hafte me 4 update confirm.. jyada aa gaya to samjh lijiyega mood achha hai.. :D

Kahani me Romance:- naa ke barabar

Kahani me family drama:- bus intro aur scene banane ke liye..

Kahani me thrill:- naa ke barabar

Kahani me erotica:- sari kayanat milkar usi disha ke ore le jaynge..

Kahani ka motive:- purani baten yaad aa gayi... Xforum par koi motive ke sath story padhta hai kya.. just joking... Sex aur samaj ka najariya bus yahi hai motive .. lekin complete fictional bus har chepter ke part ko aap khud se juda hua mehsus karenge..

Readers se apekshayen... Kriya comment dekar hausla badhate rahe...

Aisi kahani likhne ka matlab... Let's the reader decide .. maine kya likha...

Anth me kuch kahna chahenge... Uprokt batayi gayi sari baten asmanjas wali hain, isliye unpar jyada tavojjo na den. :D

Isi ke sath main khud se kiye gaye sawal jawab ko samapt karta hun... Ummid hai aap sab sath banaye rakhenge... Pahli baar puri kahani ko reveal kar diya hun.... Bus jo log padhe.. apna vichar jaroor dete jayen..

Dhanywaad
Nice start lagta hai appsu baba ka aahsirvad mill gaya aap KO 🤗🤗
 

Chutiyadr

Well-Known Member
16,890
41,414
259
पांचवा किस्सा:- दूसरा भाग





मुझे लगा मामला कहीं फंस ना जाए इसलिए मै हड़बड़ा कर कहने लगी… "तुमने नहीं लिखकर भेजा था… क्या मुझसे दोस्ती करोगी"..


मां पिताजी के सामने उससे सीधा बोलने के लिए भी मैंने कितनी हिम्मत जुटाई थी. उसे तो देखो, मेरे मां पापा के सामने ही मुझे देखकर हसने लगा और मेरे ओर देखते हुए अपने सर पर हाथ रखकर ऐसे हंस रहा था, मानो अपनी आखों से ही मुझे बेवकूफ कहने की कोशिश कर रहा हो…


पापा:- क्या हुआ, मेनका की बात पर ऐसे पागलों कि तरह हंस क्यों रहे हो?


रवि:- अंकल आप तो जानते है, मै यहां केवल अपने पापा के मदद के लिए गांव में हूं. सुनिए अंकल मेरी दीदी जब अपने बर्थडे पर दोस्तो को इन्वाइट करतीं है, तो उसमें लड़का या लड़की में बेहदभाव नहीं होता… दोस्त मतलब दोस्त होते है.. लेकिन जानते है आपको क्यों बता रहा हूं ये बात, क्योंकि आप पढ़े लिखे और सुलझे लोग है, आप दोस्त मतलब दोस्त ही समझेंगे. लेकिन यहां किसी गांव वाले को बोल दूं ना मेरी दीदी की दोस्ती लड़को से है, तो आपको पता है… अब आप ही बताइए जिस जगह के लोग अपने दिमाग में 100 गंदगी लिए रहते है, ऐसे माहौल में मै किसी लड़की से ऐसा पूछ सकता हूं क्या?

हां एक किसी लड़की को मैंने सिर्फ इतना कहा था कि हम साथ पढ़ते है, इसलिए हम केवल दोस्त है. और मेरे लिए दोस्त मतलब दोस्त होता है, फिर मै लड़का और लड़की में फर्क नहीं समझता. सुबह से शाम तक तुम्हारा काम करूंगा तो शाम को घर में नाश्ता भी करवाना होगा.. मै तुम्हारे काम से कहीं बाहर जाऊंगा तो तुम्हे बाइक में पेट्रोल भरवाना होगा.. 2 बजे रात में भी कहोगी तो दोस्त होने के नाते मै तुम्हारे दरवाजा पर खड़ा रहूंगा… लेकिन कभी भी मुझसे गांव के लड़के वाली दोस्ती समझी ना, जो कहते दोस्त है और मिलते है किसी कोने में, तो मै गला घोंटा दूंगा तुम्हारा…

मै तुम्हारे साथ चलूंगा तो तुम्हारे पापा के सामने भी तुम्हारे साथ चलता रहूंगा, क्योंकि मेरे मन में खोंट नही. बस हम लड़का और लड़की है, इस बात का ख्याल रखूंगा और हम लहज़े से चलेंगे या साथ में घूमेंगे, ताकि लोगों को भी गलतफहमी ना हो.. क्योंकि हम जहां रहते है वहां के कल्चर का भी सम्मान करना पड़ता है..

हां इतनी बात मैंने एक लड़की को कही थी. अब उसने मेनका के क्या कान भरे वो मै नहीं जानता, आप फोन लगाकर उस लड़की से भी पूछ सकते है. मेनका ने जो बताया, उस घटना की सच्चाई मैंने सच-सच बताया है… अब आप चाहें तो इसके लिए थप्पड़ मार लीजिए. मुझे भी गांव के दूसरे लड़के की तरह समझ सकते है, चाहे तो पापा से शिकायत भी कर सकते है, वो आपकी समझदारी और फैसले पर निर्भर करता है. क्योंकि पूरे गांव को पता है कि आप कितने समझदार है और अपनी सलाह से ना जाने कितने भटके लोगों को सही रास्ते पर ले आए है…


मुझे तो हलवाई लगा ये. मां और पापा को तो पुरा चासनी में ही डूबा दिया. मुझे तो पापा के चेहरे से साफ दिख भी रहा था कि वो खुद में कितना प्राउड टाइप फील कर रहे है और ये ढीट, बेशर्म, बार-बार मेरे ओर देखकर मुस्कुरा भी रहा था…


पापा:- नहीं फिर भी किसी लड़की को दोस्ती के लिए कहना..


रवि:- अंकल मैंने उस लड़की को समझाया था कि दोस्त क्या होता है, दोस्ती के लिए तो उसने पूछा था.


मां:- आपी भी ना बच्चो कि बात में कितना रुचि लेने लगे हो… हमारी मेनका का दोस्त नहीं है क्या..


पाप:- कौन है वो..


मां:- नकुल है और कौन है.. दोनो बचपन से ऐसे साथ रहे है कि कभी इस ओर ख्याल नहीं गया… रवि ने उस लड़की को सही समझाया है… कोई बात नहीं है रवि, तुम जाओ.


ये लड़का तो मेरे नकुल का भी बाप था. साला कैसे बात को घुमा दिया. कोई अपनी बातो में इतना कॉन्फिडेंट कैसे हो सकता है.. अपने झूट पर कितना विश्वास का तड़का लगा गया. प्रतिक्रिया में अंदर से इतना ही निकला… "उफ्फ, इस लड़के ने तो आज पक्का मेरा 1 किलो खून सूखा दिया होगा."


मुझे विश्वास हो गया कि मैंने पापा से ये भी कहा होता ना की इसने मुझसे ही 3 बार दोस्ती करने के लिए पूछा था, तो भी नतीजा में कोई बदलाव नहीं होना था. मैंने भी सभी बातो को दरकिनार करते हुए अपने समोसे और मिठाई पर कन्सन्ट्रेट करने लगी… कुछ देर बाद हम लोग वापस किराना दुकान में थे. चिपकू कहीं का, मेरे पीछे किराना दुकान तक आ गया… हमारा सारा सामान पैक था, उसे रवि और उसका दोस्त गाड़ी में रखने लगा..


तभी मां ने पापा के कान में कुछ कहा और पापा ने उस किराना दुकानदार को इशारे में कुछ समझाया… वो अपने मोबाइल से कॉल लगाया और दुकान के पीछे से एक लेडी निकलकर आयी. वो लेडी मां को अपने साथ ले जाने लगी तब पापा ने मुझे भी कहा तू भी चली जा मां के साथ.


मुझे की करना था, पापा के कहने पर मै भी चल दी. दुकान के पीछे ही उनका बड़ा सा मकान था. नीचे तकरीबन 6000 स्क्वेयर फीट का गोदाम बना हुआ था और पीछे जाते के साथ ही बाएं ओर से ऊपर जाने की सीढ़ियां बनी थी, जिसके ऊपर के फ्लोर पर रहने के लिए पुरा मकान बना हुआ था..


मै पहली बार ऊपर आ रही थी. इसका घर तो बिल्कुल किसी सहर के घर जैसा था. नीचे पुरा मार्बल के फ्लोर, चारो ओर पुरा व्यवस्थित कमरे की बनावट, साफ सफाई इतनी की मन प्रसन्न हो जाए. मेरी माते श्री आते ही सीधा बाथरूम में घुस गई और मै वहीं खुली सी जगह में बाहर एक कुर्सी पर बैठ गई..


मै जैसे ही वहां बैठी, वो रवि ठीक मेरे सामने आकर बैठ गया…. "हेल्लो मेनका"..


मै, इधर-उधर नजर दौरती…. "तुम आज क्या मुझे पागल बनाने की कसम खाकर आए हो, देखो मै बहुत इरिटेट हो रही हूं"…


रवि:- मम्मी मेरी दोस्त आयी है और आप ने उसे चाय के लिए भी नहीं पूछी..


रवि जब ये बात कह रहा था, तभी मां बाहर निकल कर आयी. जैसे ही रवि ने मां को देखा, तुरंत उनके पास पहुंचते…."आंटी, अंकल ने कहा है मेनका के फोन से तुरंत भाभी को कॉल लगा लीजिए, कुछ जरूरी बात करनी है शायद"..


मां रवि की बात सुनकर मेरी ओर देखी और मै उठकर कॉल लगती हुई कहने लगी "चलो मां"..


रवि:- ऐसे कैसे चलो मां, गांव जाकर आंटी कहेंगी तुम्हारे दोस्त के घर गई और चाय के लिए भी नहीं पूछा… क्यों आंटी..


मां:- अरे ना रे रवि हम फिर कभी चाय पी लेंगे, घर पर कोई नहीं है. वैसे भी अब मेनका ही आएगी मार्केटिंग करने, तो तू आराम से इसे चाय पिलाते रहना, अभी हमे जाने दे…


रवि:- ठीक है आंटी जैसा आपकी मर्जी, बस गांव में मेनका से झगड़ा मत कीजिएगा की कैसे तुम्हारे साथ के पढ़ने वाले दोस्त है…


क्या है ये सब. छोटे-छोटे तूफान दो ना जिंदगी में भगवान. 15 साल की उम्र तक तो गांव की दुनिया अलग थी, तो उसे वैसे ही रहने दो ना. या फिर एक-एक करके बताना था ना कि मेनका तुम्ही ऐसा सोच रही, लेकिन ये भ्रम केवल तुम्हारा अपना पाला है, ना तो तुम्हारे घर के लोगों ने बताया और ना ही पड़ोस के लोगों ने कुछ कहा, बस खुद से ही बहुत चीजों कि गलत समीक्षा करे बैठी हो.


आज का दिन ही मेरे लिए मिथ ब्रेक दिन कहा जाए तो गलत नहीं होगा. कुछ कुछ चीजें समझ में आ रही थी और कुछ भ्रम भी टूट रहे थे. मां रवि की बात पर हंसती हुई चल दी वहां से. मै जाते हुए पीछे मुड़कर उसे ही देख रही थी. बहुत ही ज्यादा सौतन था. उसे देखते हुए अपने चेहरे पर किसी तरह की भावना नहीं आने दी, लेकिन जैसे ही मै आगे मुड़ी, पता नहीं क्यों उसके बारे में सोचकर ही मुस्कुराने लगी… ढीट, जिद्दी और सौतन..


मै पुरा सामान लेकर गांव चली आयी, लेकिन मेरे ख्यालों में रवि ही था. जब वो पास था, तब तो मुझे पुरा डारा दिया था. परेशान करने कि हदें पार कर दी, लेकिन अब जब उसकी हरकतें याद आ रही थी, मेरे चेहरे पर मुस्कान छा रही थी. बहुत ज्यादा ही मुस्कान… पता नहीं क्यों लेकीन पहली बार मै किसी लड़के के बारे में इतना सोच रही थी…


ज्यादा सोचना भटकाव है, इसलिए मैंने भी अपने ध्यान को पूर्ण रूप से किताबों में उलझा सा लिया. रात के 8 बजे के करीब भईया और भाभी दोनो ही लौट रहे थे. दोनो के चेहरे बता रहे थे कि कितना थके हुए थे, साथ में कुछ आभास सा हुआ की दोनो किसी बात को लेकर काफी परेशान से थे..


मां पिताजी के साथ उन लोगो की बातचीत चल रही थी. मै जब उनके करीब पहुंची तब पापा रमन, प्रवीण और माखन चाचा का नाम ले रहे थे.. बात क्या थी मुझे पता नहीं, लेकिन मेरे पहुंचने के साथ ही सब मेरे विषय में बात करने लगे…


मेरे पहले दिन के अनुभव के बारे में सबको ज्ञात था और उसी पर बात करते हुए हंस भी रहे थे और खाना भी खा रहे थे. मै बेचारी सबके लिए खाना परोस रही थी तो वहां से जा भी नहीं सकती थी…


बात चलते-चलते फिर रवि पर आ गई. रवि की बात जैसे ही शुरू हुई, मां का ध्यान आज दिन की मेरी बातों पर चला गया… सब लोग जब चले गए तब मां मेरे पास आराम से बैठ गई और मुझे खिलाने लगी.


खाने के बाद जैसे ही मै बर्तन साफ करने के लिए खड़ी हुई, मां मेरा हाथ पकड़कर अपने पास बिठाति… "कोई लड़का तेरी दोस्त को लेटर देगा तो ये बात तुम पापा को बताओगी"…


"मां, मै फिर क्या करूंगी"… मैंने मासूमियत से पूछा..


मां मेरा सर अपने गोद में रखकर मेरे गालों पर हाथ फेरती… "ये सब छोटी-छोटी बातें है मेनका. हां लेकिन इन छोटी बातो को भी नजरंदाज नहीं करना चाहिए. पहले छोटे स्तर से सुलझाने को कोशिश करो. उस लड़के को साफ सब्दो में खुद से जाकर बोल दो. इन लड़को को कुछ सोचने की हिम्मत तब आती है, जब हम ख़ामोश रह जाते है.

अपनी खामोशी को तोड़ना सीखो. फिर तुम खुद समझ जाओगी कौन सी बात पापा को बतानी है, कौन सी बात मम्मी को, कौन सी बात नकुल को और कौन सी बात भाभी को. जब तुम खुद से सब कुछ समझोगी, तो छोटी बड़ी परेशानियों का हल निकालना आसान हो जाएगा, वरना हर वक़्त तुम्हारी नजर किसी ना किसी सहारे को ढूंढ़ती रहेगी. समझ गई…


मै:- हां समझ गई मां.. वैसे मां आप सब आज इतना परेशान क्यों है?


मां:- ये इस घर और गांव की समस्या है बेटी, हमे ही इसे सारी उम्र देखना है. तुम बस अपने पढ़ाई में ध्यान दो.


मै:- क्या ये मेरा घर नहीं है ? हुंह ! मुझे अच्छा नहीं लगा ये…


मां:- कुछ अंदरुनी बातें है बेटा जो तुम्हारे ना जानना ही अच्छा है. गांव और गांव की गन्दी राजनीति से जितना दूर रखो खुद को उतना अच्छा होगा. बाकी एक ही बात याद रखना, किसी को छेड़ो नहीं, और कोई यदि छेड़े तो उसे फिर कभी छोड़ना मत. क्योंकि एक बार की चुप्पी उम्र भर का दर्द होता है..


मां किस ओर इशारे कर रही थी वो तो मुझे पता नहीं था, लेकिन कुछ तो पीठ पीछे लोग इनके साथ बुरा कर रहे थे, जो सबके चेहरे उतरे हुए और चिंता में थे. मै शायद बहुत ही छोटी थी इन बड़ों के मामले को सुलझाने में, लेकिन दिल में एक कसक तो उठती ही है कि घर में कौन सी समस्या चल रही है जिस वजह से सबके चेहरे उतरे हुए है.. कहीं रमन, प्रवीण और माखन चाचा को लेकर तो कोई बात नहीं.


मेरे छोटे से दिमाग में कुछ बातो के ओर ध्यान भटका तो रहे थे, परन्तु उन बातों का कोई आधार नहीं था इसलिए मैंने अपने मन की शंका को अंदर ही दबाकर अपने काम को ही करने का फैसला किया…
educating menika --- is storyy ka mere taraff se diya gaya naa :)
menika apne anubhawo se sikh rahi hai aur naye anubhaw bana rahi hai , abhi bahut kuchh dekhana bacha hai ...
 

nain11ster

Prime
23,612
80,666
259
:superb: :good: :perfect: awesome update hai nain bhai,
Behad hi shandaar, lajawab aur amazing update hai bhai,
ravi ne menka ke dimaag par gahra chhap chhod diya hai,
vahin ghar mein ab koi nai hi problem shuru ho gayi hai,
Ab dekhte hain ki aage kya hota hai
Pariwar me aise pariwarik masle to hote rahte hain ... Dekhiye ye kaun sa masla tha aur kahan tak baat jati hai
 

nain11ster

Prime
23,612
80,666
259
Behad hi shandar or jabardast update
Bechara manish ko maa pita se muft me prasad mil gaya ab dekhte hai jab thik hokar aati hai to kaise rahti hai bhabhi aur ye nakul kya gul khila raha jo rupye mangne ki jarurat pad gayi baato me apne chacha ko phasha liya aur menka ko smartphone bhi mil jayega .
Kachi umr ka pyar panpa hai loh purush bhaiya ... Thoda ladke ko iron rod supply kar dijiyega .. kaleja majboot kar le :D
 
Top