पांचवा किस्सा:- आखरी भाग
रात के खाने के बाद थोड़ी-थोड़ी नीद आ रही थी. किन्तु बिहार में जो स्टूडेंट रात में सो गया फिर उसका नसीब भी सो जाता है, ऐसा प्रतियोगिता कि परीक्षा करने वाले स्टूडेंट में काफी प्रचलित है. थोड़ा सा म्यूज़िक सुनकर मै वापस 9.30 बजे से पढ़ने बैठ गई..
3 घंटे बिना ध्यान भटकाए मै पढ़ने के बाद सोने की तैयारी करने लगी. रोज की तरह ही सोने से पहले मैंने सीसी टीवी चेक किया. ओह शायद ये बात रह गई थी. 4 महीने पहले वाय- फाय कनेक्शन लगाने वाले ने सीसी टीवी लगवाने का भी विचार दिया था. पापा भी बहुत पहले से सोच रहे थे, लेकिन उनको मन मुताबिक सीसी टीवी लगाने वाला नहीं मिल रहा था.
हाई स्पीड इंटरनेट लगाने वाले के पास मेरे पापा के सारे सवाल का जवाब था और उनके इक्छा अनुसार ही कैमरा इंस्टॉल कर गया. चोर कैमरा वो भी छोटा छोटा, केवल घर के चारो ओर बाहर का नजारा दिखाए. नाइट विजन हाई रिजॉल्यूशन कैमरा जो रात में 200 मीटर का कवर देता था.
मै सोने से पहले एक नजर सीसी टीवी पर मार रही थी, तभी मेरी नजर पड़ोस के बगीचे में गई. वहीं नकुल के घर का बगीचा जहां बेफिक्र होकर संगीता सिगरेट का छल्ला उड़ाने की बात कर रही थी. वो सच में बगीचे के प्रवेश द्वार के किनारे 12.30 बजे रात में बैठकर सिगरेट का छल्ला उड़ा रही थी और हाथ में शायद जाम भी था.
थी तो वो काफी सेफ जगह. चारो ओर 10 फिट की ऊंची बाउंड्री और जिस जगह वो कार्यक्रम कर रही थी, उस दीवार के किनारे हमारे दाएं या बाएं के छत पर खड़ा कोई देख ना पता, उसे सामने की छत से देखा जा सकता था, जबकि सामने 300 मीटर तक कोई छत नहीं थी बल्कि भविष्य नीति के तहत घर बनाने के लिए सबने अपनी जमीन छोड़ राखी थी…
संगीता को देखकर मैंने बस इतना ही कहा… "अमेरिकन लड़की.. हीहीहीहीही"
नींद बहुत ज्यादा आ रही थी और मै अब एक मिनट भी जागना नहीं चाह रही थी, इसलिए आराम से अपनी नींद लेने लगी. एक छोटे सी नींद लेने के बाद सुबह 4 बजे मै जाग चुकी थी. जल्दी से 6 बजे तक घर के सारे काम खत्म करके मै वापस से सोने चली गई.
लगभग यही दिनचर्या मै बहुत दिनों से अपनाई हुई थी. 12 से 12.30 बजे रात में सोना, 4 बजे सुबह जागना, घर का काम खत्म करके वापस फिर सो जाना और आराम से 8-9 बजे सुबह तक उठाना. दिन में मुझे कभी सोने की आदत नहीं थी..
2 दिन और बीते होंगे, सुबह के तकरीबन 10 बजे नकुल मेरे कमरे में आया और हाथ पकड़ कर खींचने लगा… "क्या हुआ, ऐसे खींच क्यों रहा है गधा"..
नकुल:- मै जानता हूं आज कल तू कटी-कटी रहती है मुझसे, कोई बात नहीं, बिज़ी है अच्छा है.. लेकिन आज मै बहुत खुश हूं और मै चाहता हूं कि सबसे पहले तू मिले मेरी खुशी से…
मै:- रुक रुक रुक..
नकुल:- क्या हुआ..
मै:- कुत्ता अब ये मत कहना कि तूने शादी कर लीया है… और पहले मुझे ही मिलवाने ले जा रहा..
नकुल:- आज कल मैंने सुना है लैपटॉप पर काफी फिल्में देख रही हो, उसी का असर तो नहीं हो गया… अच्छा हुआ किसी ने सुना नहीं, वरना यहीं बवाल हो जाता.. अब बकवास बंद कर और चलो भी…
मै:- ऐसे जाऊंगी मै बाहर, इन कपड़ो में..
नकुल:- अच्छी तो लग रही है, क्या बुराई है इसमें..
मै:- चल बाहर निकल, अभी 10 मिनट में तैयार होकर आती हूं..
नकुल:- पक्का ना, नहीं जाने का कोई बहाना तो नहीं बना रही…
मै:- नहीं भाई सच में चल रही, तू 10 मिनट इंतजार कर…
पता नहीं क्यों लें जा रहा था, लेकिन घर में पड़े-पड़े मै भी बोर हो रही थी, इसलिए मै भी चल दी.. जाते-जाते पीछे से भाभी ने पूछा भी कहां जा रही हो, तो नकुल चिल्लाता हुए कहने लगा.. 2-3 घंटे लग जाएंगे.. हम दोनों किसी काम से बाहर जा रहे..
"पागल है क्या, झूट क्यों बोला.. 2-3 घंटे का कौन सा काम है"… मै गाड़ी में बैठती हुई पूछने लगी..
वो कुछ नहीं बोला केवल ड्राइव करता रहा.. मै भी सोची कुछ सरप्राइज होगा और साथ जा तो रही हूं, इसलिए उसके बाद मैंने नहीं पूछा कि कहां और क्यों ले जा रहा है बस 2 दिन पहले के सवाल दिमाग में था और मै घूरती हुई पूछने लगी…
"ये अकेले बाहर घूमने पर इतना लंबा चौड़ा भाषण और प्लानिंग तूने कब कैसे और किसके साथ मिलकर बनाया. और तुझे शर्म तो आयी ना होगी जो मेरा ब्लूटूथ उठाकर ले गया."
नकुल:- हद है, ब्लूटूथ अलग होता है ये एयरडोप है..
मै:- बात को घुमा मत, सारे रास्ते मुझे ब्लूटूथ पर डिस्कस नहीं करना है, ये मेरे अकेले घूमने की बात कहां से आयी अचानक उस दिन. और मुझे अकेले घूमने की कौन सी जरूरत आ परी है ये बता… मै अकेली जाऊं बाजार से सामान लाने या इस गांव से उस गांव तक पागलों कि तरह भटकती रहूं, तुम्हे नहीं लगता कि मेरे अकेले घूमने की बात को लेकर घर में कुछ ज्यादा ही सुना गए थे, तुम दोनो..
नकुल:- मतलब क्या है, फिर मुझसे पूछी क्यों थी, क्या मै अकेले नहीं घूम सकती?
मै:- मुझे बात नहीं करनी इस बारे में, तुम्हे भ्रम हुआ था बस.
मेरी बात सुनकर नकुल मुंह फेर लिया. शायद थोड़ा गुस्सा भी था. शायद इस बात को मै ही नहीं समझ पा रही थी कि अकेले घूमना होता क्या है. क्योंकि बाजार जिस दिन गई थी उसके बाद तो 2 दिन दरवाजे से भी बाहर नहीं निकली, फिर दिल में ख्याल खुद से ही आता रहा की अकेले कहीं भी घूमना बहुत ही रिस्की है.
जब सबके बीच एक ढीट लड़का इतनी हिम्मत कर सकता है तो अकेले में क्या हाल होता मेरा. मेरे लिए एक दुविधा का विषय था ये, जिसकी समीक्षा करना ही बहुत मुश्किल हो गया था. खुद तो कंफ्यूज थी ही नकुल को भी कर रही थी, जबकि लड़के देखने से लेकर शादी तक की सभी बात कितना सटीक कह गया था…
मै:- सॉरी भाई, अब मुंह मत फुला, मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा है, इसलिए पूछ रही हूं? कुछ भी खुद से करने की छूट मिलना एक बात है लेकिन खुद से अकेले उन चीजों को करना बहुत ही मुश्किल होता है, इसलिए कंफ्यूज हूं?
नकुल:- मुझे ज्यादा नहीं पता, जब तुमने अकेले घूमने की बात पूछी तो मैंने प्राची दीदी को चुपके से मैसेज कर दिया. घर पहुंचने से पहले उनका रिप्लाइ आ गया, मेनका का एयरडोप कान में लगाओ, आज लड़की को अकेले घूमने की इजाज़त दिलवानी है.. जबतक तुम चाची (मेरी छोटी भाभी) के पास गई तबतक मैंने वो एयरडोप उठाया और प्राची दीदी से कनेक्ट हो गया.
मै:- प्राची दीदी को शशिकला और नीरू के बारे में कैसे पता..
नकुल:- उन्होंने पहले ही पूछा था हमारे गांव में कोई डाइवोर्स और सुसाइड का केस हुआ था, मैंने बस उन्हें 2 नाम बता दिए, उन्होंने भी अपना लंबा भाषण खींच दिया…
मै:- हां और भाषण में अपने मुंह से खुद की तारीफ भी कर गई. ये भी बहुत चालू है, अपनी वाह-वाहि बटोरने का एक मौका भी नहीं छोड़ती.. शशिकला और नीरू की बात सुनकर मुझे लगा तू नीतू के साथ लगा हुआ है…
नकुल:- उसकी औकात है क्या इतना सोचने कि, प्राची दीदी बेस्ट है. वैसे भी उन्होंने अपने मुंह से अपनी तारीफ नहीं की थी बल्कि ऐसा उदाहरण पेश की जिससे दादा दादी (मेरे मां पिताजी) पूरे अंदर तक हील जाए..
मै:- केवल वही नहीं, हम सब भी अंदर से हिले थे. मै तो ऐसा हिली कि दोबारा बस इतना ही ख्याल आया, अच्छा है मेरे आस पास कोई मेरे उम्र की लड़की नहीं, जिसके साथ मुझे अकेले घूमने की कंपनी मिली होती. तू है तो मेरा बाहर निकालना भी है, वरना कहीं जाने का ख्याल भी नहीं आता.
नकुल:- अब फिर मै बीच में क्यों आ गया…
मै:- तू बीच में नहीं मेरे साथ है.. चल चुपचाप गाड़ी चला और क्या दिखाने ले जा रहा है वो दिखा…
10 मिनट बाद हम लोग छोटे से बाजार में थे और नकुल सड़क के किनारे गाड़ी रोककर खड़ा था… "ये क्या है नकुल, कुछ बताएगा अब"..
नकुल:- मेनका रुक जाओ ना बस 10 मिनट..
इतना कहकर वो गाड़ी से नीचे उतर गया और इधर-उधर देखते थोड़ा आगे बढ़ गया.. जैसे ही वो आगे बढ़ा कांच पर कोई हाथ मारने लगा… मै मुड़कर देखी तो रवि खड़ा था.. मै चारो ओर नजर घुमा कर देखने लगी, मुझे नकुल कहीं नजर नहीं आ रहा था. पता नहीं मै क्यों इतनी डरपोक थी, जबकि इसकी पिछली हरकतो पर तो मै बाद में मै मुस्कुराई भी थी…
वो कांच पीटता रहा लेकिन मैंने कोई प्रतिक्रिया नहीं दिया, बस सीधी होकर अपनी आखें मूंदे थी… "आआआआआआ"… जैसे ही कंधे पर हाथ परा, मै डर के मेरे जोर से चीखने लगी. मै इतनी जोर से चिल्लाई की नकुल भी डर गया… "पागल कहीं की, भूत देख ली क्या? खुद भी डर रही है मुझे भी डारा रही है."
हम दोनों ही अपनी बढ़ी धड़कनों को काबू करने में लगे हुए थे, तभी फ़िर से कांच पर नॉक हुआ और नकुल ने शिशा नीचे कर दिया.… "क्या हुआ तुम दोनों ऐसे चींख क्यों रहे हो"… फिर से रवि खड़ा था. ना जाने कहां भाग गया था और कहां से भागकर आया था…
नकुल:- कुछ नहीं, दीदी का पाऊं नीचे दब गया था.
रवि:- नकुल तुम शायद किसी सरप्राइज के लिए यहां मेनका को लेकर आए थे ना, मै कह दूंगा तो तुम्हारा दिल ना कहीं टूट जाए..
नकुल:- अरे हां, मै भी ना भुल ही गया… दीदी अपनी मुंडी जारा दाएं ओर घुमाओ..
बड़े से एक खुले ट्रक से, पर्दे में लिपटी हुई एसयूवी (SUV) नीचे उतर रही थी. मै तेजी से नीचे उतरकर नकुल का हाथ पकड़ी और खींचती हुई… "तेरी रेंज रोवर"..
वो हंसकर मेरी ओर देखा.. मै इतनी खुश हुई की उसके गले लग गई.. उसका गाल खींचकर कहने लगी.. "मुझे चिंता होती थी तेरी कभी-कभी, अब सुकून में हूं, पर्दा हटाकर दिखायेगा नहीं."..
नकुल ने वहीं लेबर से पर्दा हटाकर दिखाने के लिए बोला, और फिर से वापस लगाने के लिए भी. मस्त गाड़ी थी मै तो काफी खुश थी. लेबर वापस से कवर चढ़ा कर डिलीवरी दिया, पेपर साइन करवाए और चले गए. नकुल गाड़ी की चाभी मेरे हाथ में रखते… "यहां से पहले पेट्रोल पंप, और उधर से ही घूमकर मंदिर.. चले फिर"…
हम दोनों ही निकल पड़े. सच ही कहा था नकुल ने शायद 2-3 घंटे ना लग जाए. वहां से हम दोनों घूमकर मंदिर पहुंचे, जिस वजह से थोड़ा ज्यादा समय लग गया. मदिर पहुंचकर बड़े ही ऐतिहात से मैंने केवल बोनट का घूंघट उठा दिया और तबतक नकुल पुजारी जी को बुला लाया.. पुजारी जी गाड़ी देखते ही कहने लगे.. अभी पूजा का उपयुक्त समय नहीं है, आधे घंटे बाद करवाने, तबतक मंदिर पर बैठकर प्रतीक्षा कर ले..
मै मंदिर पर बैठी हुई मोबाइल चलाने लगी और नकुल जबतक नीतू के साथ लगा हुआ था. किस्मत से प्राची दीदी भी फुरसत में थी और हम दोनों वीडियो कॉल पर बतियाने लगे.. बात वहीं परसो की कहानी से शुरू हुई और मै उनसे गुस्से में कहने लगी कि घर में किसी भी चीज के लिए ना तो मुझे कभी रोका गया और ना ही कभी टोका गया, फिर इतना कहने की क्या जरूरत थी.
मेरे सवाल थे और प्राची दीदी के जवाब. उन्होंने लगातार मुझे सुना और मै लगभग 15 मिनट तक उनसे केवल सवाल ही करती रह गई. बहुत स्मार्ट थी वो, उन्होंने सिर्फ इतना ही कहा, बिगड़ने वाले घर में रहकर भी बिगड़ जाते है और अच्छे लोग बुरी जगह में फंसकर भी अपना दामन बचा ले जाते है.. बस जरूरत होती है परख की जो खुद से लोग नहीं करते और दूसरो के नजरिए पर जीते है. तुम्हारे सारे सवाल तुम्हारे है उनका जवाब खुद से ढूंढो. बाकी तुम्हारे केस में मुझे बहुत ज्यादा समझाने कि इसलिए जरूरत नहीं पड़ती, क्योंकि तुम नकुल के साथ रहती हो और नकुल तुम्हारे साथ और जबतक तुम दोनो साथ हो, एक दूसरे को सही राह पर चलाते रहोगे…
मैंने बहुत जिद की उनसे जानने की उन्होंने नकुल और मुझे लेकर ऐसा क्यों कहा, लेकिन उन्होंने साफ मना कर दिया. वो बस इतना ही कही, इस सवाल का जवाब एक दिन खुद मुझे मिल जाएगा, उसके लिए किसी से पूछने की जरूरत नहीं.
फिर बात आगे बढ़ी, हमलोग इधर उधर की बातें करने लगे, तभी प्राची दीदी मुझे छेड़ती हुई कहने लगी… "मेनका देख जबसे ट्रीटमेंट शुरू की है, तेरा पुजारी तुझे ही देख रहा"..
उनकी बात सुनकर कलेजा एक दम से जैसे धड़का हो.. आश्चर्य में मेरी आखें थोड़ी बड़ी ही गई, तभी दीदी उधर से चिल्लाई… "झल्ली, उसे देखना मत, तू इधर ध्यान दे"…
मैं भी उनका बात मानकर बातें करने लगी.. इतने में नकुल भी आ गया, और वीडियो कॉल पर बातें करते देख, कुछ दूर पीछे ही खड़ा हो गया.. प्राची दीदी चुकी उसे देख चुकी थी, इसलिए उन्होंने हेड फोन निकालकर उसके पास जाने कहीं, और फोन स्पीकर पर..
जैसे ही हम दोनों फ्रेम में आए… "क्यों नालायक, फिर इसे अकेला छोड़कर आशिक़ी झाड़ने निकल गया था"
उनकी बात पर मै जोड़-जोड़ से हसने लगी… नकुल थोड़ा चिढ़कर… "नहीं मै गाड़ी के पास था, आप ये बार बार लगाई-भिड़ाई ना करो, जब से मेनका दीदी आपसे मिलकर सहर से लौटी है, पता नहीं क्यों मुझसे कटी-कटी रहती है"..
प्राची:- कटी नहीं रहती है भाई, बस वो तुझे खुश देखना चाहती है समझा. तू तो ज्यादा समझदार है, तुझे भी अब सब डिटेल में बताना परे फिर तो हो गया. तुम्हारी पहली बड़ी सफलता की तुम्हे ढेरों बधाई, अब जाओ तुम दोनो मै भी चली"..
हमने फिर पूजा करवाई और वहां से हम सीधा घर निकल गए. घर जाने से पहले मैंने घबराकर सबको ये सूचना दे दी कि कोई गाड़ी से हमारे पीछे है और हम उस गांव लेकर पहुंच रहे…
फिर क्या था मैंने पहले आगे नकुल को जाने दिया, ताकि आवेश में आकर कहीं नई गाड़ी को ही ना तोड़-फोड़ कर दे.. जैसे ही वो गाड़ी लगाकर उतरा पुरा मोहल्ला ही नकुल का कॉलर पकड़कर पूछने लगा… "तेरे साथ गई थी मेनका, उसे कहां छोड़ आया"
तभी वो अपना हाथ दिखाते हुए सबको कहने लगा… "वो देखो सामने से गाड़ी चलाते हुए आ रही है.. और साथ में आप दोनो (नकुल के मम्मी पापा) के लिए सरप्राइज भी ला रही…
फिर तो गाड़ी दरवाजे पर खड़ी हुई, पट को जल्दी से हटाया गया और नकुल के सरप्राइज को देखकर तो सबकी आंखें फटी की फटी रह गई.. मै आराम से नकुल को खींचकर अपने साथ बोनट पर बिठाई…
"हां तो गांव वालो किस-किस ने नकुल को आवारा और किसी काम का नहीं है ऐसा कहा था.. एक-एक करके आओ और आप सब माफी मंगो, वरना सबकी लिस्ट तैयार है और ये मेनका मिश्रा आज के बाद उससे कभी बात नहीं करेगी"..
"इति सी है तू, और इत्ता सा है तेरा भतीजा, उसके लिए सबको अपना काम छुड़वाकर यहां खड़ा करवा दी है, और हम तुमसे माफी मांगे. अनूप डंडा ला जारा."… रिश्ते में मेरे पापा के बड़े भैया और सेकंड जेनरेशन से.. उन्होंने आखें दिखाते हुए कहा..
मै:- नकुल लगता है इन लोगों को कदर नहीं है हमारी, तेरी तो वैसे भी नहीं थी अब मेरी भी ना रही.. जा रही हूं अब मै, आज से आप सब में से किसी से भी बात कर ली ना तो देखना..
हमारी एक भाभी, स्नेहा… "कहां जा रही है रूठकर, कहे तो लड़का देखकर परमानेंट विदा कर दे..
मै:- भौजी हमसे ज्यादा तेजी ना बतियाओ, वरना मै बता दूंगी सबको की सुधीर भईया पिछली बार आपको मायके ले जाने के बहाने कुल्लू मनाली लेकर गए थे एक हफ्ते के लिए.. ऑनलाइन टिकिट मैंने ही बुक किया था, वो भी हवाई जहाज का..
भरी भीड़ में मैंने भंडा फोड़ कर दिया फिर तो बेचारी ऐसे पानी-पानी हुई की झट से दोनो दंपति मुंह छिपाकर भागे.. हंसी ठहाके का माहौल सा वहां बन गया. तकरीबन 1 घंटे तक रोककर एक बड़ा सा परिवार हंसी मज़ाक करते रहे.. लेकिन शायद अंत इसी खट्ठास से होना था..
हंसी मज़ाक सब तो ठीक था, लेकिन कुछ बातें यहां की मुझे बहुत चोट देती थी. पता नहीं क्यों नकुल को, नंदू और नीलेश के परिवार के लोग हर बात पर ताने दे दिया करते थे, इस विषय में एक बार मै अपने चाचा से बहस भी कर बैठी थी. वो अलग बात थी की इस बात के लिए मुझे थप्पड़ पड़ी थी, लेकिन अफ़सोस नहीं हुआ था.
आज भी लोग ताने दिए बिना रहे नहीं, कहने लगे 8 एकड़ खेत को बढ़ाने के बदले उल्टा खेत के पैसे इधर-उधर करके ये गाड़ी खरीद लाया. यही हाल रहा तो बचा खेत भी बिक जाएगा. बाप 6 लाख कर्ज में है और बेटा फुटानी झाड़ रहा.
मै क्या बोलती मेरी मां ने भी मजाक-मजाक में उस दादी यानी कि नंदू की दादी, और उसकी मां को प्यार से बस इतना ही कहा… "32 लाख इधर-उधर करके अपने बाप के लिए गाड़ी ही लाया है, बाकी जमीन बेचनी की आदत होती तो अखबार में खबर छपती"..
नंदू और नीलेश के परिवार को मां आड़े हाथ सुना रही थी. बहुत पहले सहर के एक मशहूर लॉज से नीलेश और नंदू पकड़े गए थे, उसके बाद इनका भी नाम अखबार में आया था. उसी चक्कर में दोनो ने 8 लाख रुपए भी गंवा दिए थे.
मां की बात जैसे नंदू भईया की मां और उसकी दादी के दिल में छेद कर गई हो जैसे. और यहां कम कौन था.. उसकी दादी भी कहने लगी.... "लगता है जेल सप्लाई का टेंडर मनीष और रूपा के हाथ से चला गया, उसकी भड़ास निकाल रहे है. मै तो तुझे कहने भी नहीं गई थी. जिसे कहने गई वो चुप है और ये अपनी भड़ास निकाल रही"..
मेरी मां यूं तो वहां खड़े होकर इस बात का जवाब देती, लेकिन छोटी भाभी उनका हाथ पकड़कर ले जाने लगी. तभी पीछे से नंदू भईया की भाभी स्नेहा कहने लगी…. "खुद तो जिंदगी में तरक्की किए नहीं और जान बूझ कर हर जगह हमारे कंपिटेशन में टेंडर डालते है. 1 साल से हर जगह मुंह कि खा रहे है तब भी बेशर्मों को शर्म नहीं आती. उल्टा हम समझाने के लिए किसी को कुछ कहते है तो जान बूझकर खुन्नस निकलाने चले आते है"..
आ गई इनकी शामत, रुपा मिश्रा पलट गई और मां को वहां खड़े रहने के लिए बोल दी. नकुल मेरे ओर चॉकलेट बढ़ाते हुए कहने लगा… "ले अब फ्री शो का मज़ा ले"..
भाभी बड़ी स्टाइल से चलती हुई अाई, तीनों को, यानी की, नंदू की दादी, मां और उसकी भाभी को घूरते…. "ठीक से बोलना सीखा इन्हे नंदू, वरना बता देना की रुपा मिश्रा को जलन होने लगी, तो टेंडर लेना दूर कि बात है, टेंडर उठाने के लिए जो हम 12 लाइसेंस बाना रखे है, वो रुपा भाभी के एक कहे में सारे लाइसेंस ही रद हो जाने है. ये भी बता की तू उन खास ठेकेदारों में एक है जो दमरी के साथ चमरी.."
भाभी ने इतना ही कहा था कि नीलेश सामने आकर अपने दोनो हाथ भाभी के सामने जोड़ते… "भाभी इनकी आदत जानती तो हो, मुझसे गलती हुई जो मैंने कहा था की हमारी टक्कर सीधे मनीष भईया से हो गई और उनके हाथ एक भी सप्लाई नहीं लगा…"
रूपा:- हम्मम ! तो हंसिए ना देवर जी और मिठाई खिलाइए और खुशी से गांव में मिलकर रहिए…
ओह तो ये बात है, परसो भाभी और भैया सहर टेंडर के लिए गए हुए थे. मुझे अभी की बात से 2 रात पहले की घटना पता चली. यहां की बात सुनकर पहली बार ऐसा लगा कि अंदर ही अंदर कोई पारिवारिक मसला जरूर है, तभी भाभी ने इनकी बात को इतना आड़े हाथ लिया. वरना रुपा भाभी बहुत ही कम मौके पर बोलती थी, लेकिन जब भी बोलती थी फिर कोई भी पलट कर जवाब देदे इतनी हिम्मत करते मैंने आज तक किसी में नहीं देखी और ना ही अभी किसी की हुई.
भाभी घर वापस जाने लगी लेकिन नीलेश, उसकी मां और नंदू ने उन्हें रोककर अपने घर ले गए, मां को भी खींचकर ले गए. मै और नकुल वहां से निकल गए क्योंकि झगड़ा के बाद पंचायत भी तो होना था और इन पंचायत में हमारा कोई काम नहीं था… मै नकुल के साथ वपास अपने घर चली आयी.
घर लौट तो अाई लेकिन 2 रात पहले की उठी शंका को आज आधार मिल चुका था और अंदर से विश्वास होना शुरू हो चुका था कि इन 6 घरों के बीच जो मेल मिलाप की कहानी है, वो बस ऊपर-ऊपर दिखाने के लिए है बाकी अंदर के रिश्ते खोखले है…
Oh ho toh saari aag us tharki prachi ki hi lagayi huyi hai
Yeh ravi phir aa gaya.. are koi toh ishe maar daalo
pata nahi kahe jinda hai yeh..
are kya baat roopa toh phir se chha gayi
I think menka apne bhaiyo aur bhatijo ke sath milke nandu aur nilech ke Khandaan ko khatam kar dena chahiye..
are kuch toh khoon kharaba ho,
Khair let's see what happens next
Brilliant update with awesome writing skill nainu ji