• If you are trying to reset your account password then don't forget to check spam folder in your mailbox. Also Mark it as "not spam" or you won't be able to click on the link.

Thriller 100 - Encounter !!!! Journey Of An Innocent Girl (Completed)

9,995
41,826
218
मेनका को एक और तजुर्बा मिला । जिसे वो अपना फेमिली मानती चली आ रही थी वो भ्रम टुटा । वो अपने पांच परिवारों में एकलौती लड़की थी तो उसे लगता था कि सभी उसे और उसके नखरों को पसंद करेंगे मगर उसे नीलेश की बातों से उसे हकीकत समझ आ गई होगी ।

संगीता का कैरेक्टर एक शहरी लड़की का है जो अपने ब्याह के चक्कर में नकुल के घर आई है । ना ना करते हुए भी नीलेश के साथ शादी करने के लिए मान गई और शादी से पहले सेक्स भी कर ली ।...... काफी बोल्ड और बिंदास छोकरी है । मगर लास्ट में की गई उसकी हरकत किसी गहरे चाल को जन्म देती है । ये शायद मिथलेश नामक लड़के के साथ किए गए किसी गलत कार्य का बदला दिखाई दे रहा है ।..... मिथलेश कौन है ? शायद नेक्स्ट अपडेट में मालूम पड़ेगा ।

नीलेश और उसका परिवार , जैसा है मैंने पहले कहा था , धुर्त और कपटी लोग लगते हैं ।
नकुल के फादर एक जमीन का सौदा कर रहे हैं मेनका के फादर के मदद से । शायद पंडित जी ने वही कागजात मेनका को दिए थे चुपके-चुपके । और इस सौदे से नीलेश एंड फैमिली खुश नहीं है ।

मुझे मेनका की मां का ये कहना कि तु नकुल को अपने दहेज में लेकर चली जाना - बहुत बढ़िया लगा । आखिर नकुल ही तो मेनका का सबसे प्यारा और अनमोल दोस्त है । ऐसे रिश्तेदारों से ही रिश्तों पर भरोसा बना रहता है ।

सारे अपडेट्स आउटस्टैंडिंग थे नैन भाई ।
मेरा कभी कभी व्यापार के चलते फोरम पर आना कम हो जाता है इसलिए पढ़ना और लिखना कुछ नहीं हो पाता । फिर भी मेरी एक आदत है कि जब मैं कोई कहानी पढ़ना शुरू करता हूं तो वो पुरा ही पढ़ता हूं । भले कुछ लेट हो जाय लेकिन कहानी को पुरा पढ़ता हूं ।

इस स्टोरी को जैसे अब तक लिखते आये है वैसे ही लिखते रहिए । तभी तो हमें १०० एनकाउंटर याद रह पायेगा ।
 
Last edited:

Naina

Nain11ster creation... a monter in me
31,619
92,285
304
तीसरी घटना:- आखरी भाग








भाभी भी लगभग ठीक हो चुकी थी और अब चल फिर कर सकती थी, भारी काम छोड़कर छोटे बड़े काम वो कर रही थी. मै अपने कमरे में बैठकर लैपटॉप चला रही थी, देखा जाए तो प्राची दीदी ने ही सिखाया था चलाना, और मै एक्सेल के काम को सीख रही थी…


"मेनका, क्या हम बात कर सकते है"… डेढ़ महीने बाद वो अपने मायके से लौट रही थी और मेरे ख्याल से आते के साथ ही उन्होंने मुझसे बात करने की इक्छा जताई थी…


मै:- हां शायद मै भी आपसे नजरे मिलाकर बात करने की स्थिति में हूं भाभी, चलो आपके ही कमरे में चलते है, यहां हमारी बाते कोई सुन ना ले…


हम दोनों ही भाभी के कमरे में पहुंचे, भाभी ने कमरे का दरवाजा लगा दिया और शीशे के पर्दे खोल दिए और मेरे पास आकर बैठ गई… शायद कहां से शुरू करें इसी उधेड़बुन में हम दोनों चल रहे थे, इसलिए दोनो के बीच खामोशी छाई रही… "मेनका क्या सब कुछ पहले जैसा नहीं हो सकता है."..


मै:- सब कुछ पहले जैसा ही है भाभी, बस कुछ बदलाव चल रहा है, उसे हम दोनों को स्वीकारना होगा. मैंने तो बहुत पहले ही कहा था आगे बढ़ो..


भाभी:- कुणाल और किशोर के नाम पर तुमने आत्महत्या करने से तो रोक लिया, लेकिन तुम्हारी नाराजगी मुझे रोज मारती है मेमनी, भुल भी जाओ उन बातो को..


मै:- भाभी क्या भुल जाऊं मै.. जिनकी हैसियत नहीं इस आंगन में बिना पूछे आने की, उसके साथ आप इसी कमरे में.. छी.. कुछ तो लिहाज किया होता.. क्या आपको जारा भी एहसास नहीं हुआ की मै जान जाऊंगी तो मेरी क्या हालत होगी..

मेरा विश्वास टूटा था भाभी. मुझे पल-पल ऐसा लग रहा था, जैसे मेरी श्वांस अटक रही हो. मां से बढ़कर थी आप मेरे लिए, आपको जारा भी इस बात का एहसास ना रहा.. मै पूछती हूं, आपकी जहग मै होती और आपने ये सब अपनी आखों से देखा होता तो आपको कैसा लगता बताओ ना..


हम दोनों ही रो रहे थे.. आशु जैसे फुट-फुट कर निकल रहे थे.. गुस्से में मेरे मुंह से कुछ ऐसा निकल गया कि भाभी अपना ही सर दीवार से मारने लगी.. किसी तरह मैंने उन्हें रोका, और दोनो बच्चो का वास्ता देकर चुपचाप बैठने के लिए कहा..


हम दोनों बहुत देर तक रोए.. भाभी सुबकती हुई कहने लगी.. "3 लोग इस दुनिया से गायब हो गए है."…


मैंने आश्चर्य से उनकी ओर देखा.. मानो मेरे नजरो में सवाल के बौछार लगे हो… भाभी मेरे आशु पोछती हुई कहने लगी… "तुमने जो देखा उससे तुम्हारी नफरत की वजह समझ में आती है और तुमने रास्ता भी वो चुन लिया, लेकिन मेरा क्या जो अपने ही नजरो के सामने अपने पति को ये सब करते देखी हो. आखिर क्या कमी थी मुझेमें, या मैंने कभी खुश नहीं रखा था उन्हें."


भाभी की बात सुनकर मै बिल्कुल ख़ामोश हो गई. फिर उन्होंने अपने मोबाइल से कुछ तस्वीरें निकाल कर दिखाई, जिसके एक तस्वीर में मनीष भईया एक औरत को चूम रहे थे, और ऐसी चूमने कि 3-4 तस्वीरें थी. वो औरत कौन थी हम दोनों जानते थे.. और उनकी सिर्फ एक रास लीला की तस्वीर नहीं थी, बल्कि ऐसे ही 1 लड़की और 2 औरतों के साथ संबंध थे..


भाभी:- इसके आगे की भी तस्वीरें है, केवल चूमने कि ही नहीं.. लेकिन ये उचित नहीं की मै तुम्हे वो सब दिखाऊं… मै बस फंस गई मुरली के चंगुल में, और वहां से वंशी भी उस खेल में सामिल हो गया..

कभी ऐसा नहीं हुआ कि मै अपनी मर्जी से मर्यादा को लांघ गई, लेकिन जब उनके हाथ मेरे जिस्म से लगते, तो मै चाहकर भी उन्हें मना नहीं कर पाती. मेरी नजर में मैंने कोई गलती नहीं की.. मुझे इन सब चक्करों में केवल अपने पति की बेवफ़ाई से फसी.. पहले तस्वीर और वीडियो बाहर गांव में दिखाने की धमकी ने मुझे आत्मसमर्पण करने पर मजबूर किया, बाद में कभी-कभी उन्हें अपनी मर्जी से ढील दे दी..

मुझे कैसा लगता होगा होगा जब मै एक बेवफा के साथ रात गुजार रही हूं और पलटकर पूछने पर ऐसा क्यों किए, तो रात भर थप्पड़ और लात खाते रहो. फिर अंत में एक प्यारी सी धमकी भी मिल जाती है, कि यदि कोई नाटक किया तो दूसरी बीवी ले आऊंगा…


मैं इस वक़्त प्राची दीदी की कहीं बात को याद कर रही थी. उस दिन बिल्कुल सही कहा था उन्होंने… सेक्स के मुद्दे पर बहस करना ही बेकार है कि कौन सही कौन गलत, बस अपना दामन बचाकर चलो. देखा जाए तो भाभी की गलती थी भी और नहीं भी, सब नजरिए का खेल है. मुद्दा ये नहीं की पहले कौन फिसला, मुद्दा ये था कि दोनो ही गलत थे, या फिर दोनो ही सही.. मुझमें इतनी आकलन करने की शक्ति नहीं थी और होती भी तो मै नहीं कर सकती थी…


मैंने तो सोच लिया जो जिसके कर्म, मै अपने रिश्ते खराब क्यों करूं फिर भईया हो या भाभी.. रात के अंधेरे में इस गांव में क्या कहानी रची जाती है उससे मुझे कोई सरोकार ही नही. फिर भाभी से तो मुझे सबसे ज्यादा लगाव था, इसलिए वो वाकया शायद मेरा दम घोंट गया, और यही हाल मेरी भाभी का था. तभी तो वो खुद को गोली मारने जितना बड़ा कदम उठा ली. वरना यहां बेशर्मी का आलम तो ऐसा है की खुद करप्शन करते पड़के गए तो या तो पकड़ने वाले को करप्ट बाना दो या फिर उसे रास्ते से ही हटा दो…


और मै अपनी छोटी भाभी को जानती हूं, वो इन दोनों में ही काफी सक्षम है. फिर इन मामलों में कोई उनका पार नहीं पा सकता. यदि उन्होंने ठान लिया कि किसी को साफ ही कर देना है तो उसकी भलाई इसी में है कि वो जगह छोड़ दे, वरना अंधेरी रात कब उसे निगल ले कोई समझ नहीं पाता. आगे श्याद उसी के किस्से आने वाले है क्योंकि वो डेढ़ महीने बाद विश्वास के साथ लौट रही थी…


"कौन से तीन लोग गायब हो गए भाभी"… मै बस अब इस मुद्दे पर ज्यादा बहस नहीं करना चाहती थी, और मुझे लग चुका था कि भाभी भी अपना दामन साफ करने के लिए 3 लोग को गायब करवा चुकी है, मै बस उनके विषय में जानती और भाभी से मुस्कुराकर कहती हम पहले जैसे ही है अब.. जो कि सही भी था..


भाभी:- मुरली, वंशी और अनुज..


"अनुज"… लेकिन ये क्यों… भाभी के खुद का अपना भाई गायब है, और घर में किसी को पता तक नहीं… मै हैरानी से भाभी को देखने लगी… मन में खुद से चार बार सोची, चार बार खुद से ही दोहराया… "अपने ही सगे छोटे भाई को"… भाभी बिल्कुल सामान्य दिख रही थी, ऐसा की उसने अपने सारे आशु और चिंता कहीं पीछे छोड़ आयी हो… लेकिन मेरे चेहरे के बदलते भाव उनके सामने थे और उनका शांत रूप मेरे सामने…


भाभी, शायद मेरे अंदर चल रहे अनगिनत सवाल को पढ़ चुकी थी….. "तुम्हारा नकुल को रात में बुलाना, मुझे सोचने पर मजबूर कर गया… उसी के अगले दिन तुम इस बात को याद करके रोई की मैंने खुद को गोली मार ली, वो रोना तुम किसी को दिखा नहीं सकती थी ये हम दोनों जानते हैं"…

"कमाल की बात थी मेरा भाई गया था घर, लेकिन तुम्हारे रोने वक़्त वो वापस हॉस्पिटल आ गया था, वो भी ऐसी हालात की देखकर ही संदेह हो जाए. बिखरे बाल, जैसे तैसे पहने कपड़े और चेहरे पर चिंता के भाव, "कहीं मै पकड़ा ना जाऊं"….

मज़े की बात सुनो, वो अगले दिन सुबह निकालने वाला था लेकिन आनन फानन में, मां को लेकर उसी के 1 घंटे बाद निकल गया. 2 दिन बाद मेरी मां का कॉल लगाकर ये पूछना कि…. "क्या कोई कान की बूंदी मेरे पास छूट गई है, क्योंकि अनुज के शर्ट से एक कान की बूंदी निकली है, जो शायद उसने अपनी बीवी के लिए लिया था, लेकिन एक ही कान का है"… मैंने वीडियो कॉल लगाकर देखा तो मेरे पाऊं के नीचे से जमीन खिसकी हुई थी"

खैर उस बूंदी को तो मैंने फिकवा दिया, ताकि किसी को उसकी जानकारी ना हो लेकिन सच्चाई क्या थी, ये शायद तुम नहीं बताती… क्योंकि कहीं ना कहीं इस परिस्थिति में तुम मेरी ही वजह से फसी थी… प्राची को बुलाया मैंने, फिर उससे पूरी सच्चाई का पता चले. मै हर रिश्ते निभाने से पहले एक औरत हूं और जबरस्ती करने के घाव कैसे होते है भाला मै नहीं समझूंगी…

दिल को बहुत मजबूत बनाया, भाई था ना वो भी, साथ में उसकी एक बीवी और एक नवजात बच्चा भी, लेकिन काम उसके माफी लायक नहीं थे. मैंने मुरली और वंशी को 50 हजार दिए थे इस काम को सफाई से करने के लिए. उसे समझ में ना आए की मामला क्या है, इसलिए मैंने कह दिया, बड़े भैया मेरे ज्यादा करीबी है और मेरा छोटा उसी के साथ गद्दारी कर रहा… काम पूरा करो… मुरली और वंशी ने अनुज का काम खत्म कर दिया और इन दोनों को किसी और ने गायब कर दिया…


मै:- ये क्यों नहीं कहती की अपना दामन आपने साफ करने के लिए उनको भी साफ करवा दिया, खुद को तो गोली मार ही ली थी, फिर इस खेल के रचयता को क्यों माफी दे दी…


भाभी:- तू पागल है क्या ? तुम्हारे भैया ने किसी के साथ जबरदस्ती नहीं की समझी… हां हमारे रिश्ते में वो बेवफा थे, लेकिन किसी के साथ बलात्कार का मानसिक बीमारी उनमें नहीं… मुरली और वंशी ने मुझे पहले ब्लैकमेल किया था, शायद उस वक़्त उन्हें या खुद को गोली मार लेती, तो हमारे बीच का किस्सा नहीं बढ़ता, बस मुझे अपनी पति को सुधारना होता. कहीं ना कहीं उन दोनों के साथ होने में मेरी भी मर्जी थी, बस कोई मां नहीं चाहती कि उसके सीक्रेट रिलेशन उसके बेटी को पता चले, इस दर्द ने मुझे तोड़ दिया.. हमने अपनी मर्जी से गलती की थी, फिर मनीष हो, मुरली हो या फिर मै. तो उन दोनों को गायब क्यों करवाती.. तेरी कसम मेरा हाथ नहीं है..


मै:- कुत्ति हरकत का यही नतीजा होता है, गया होगा किसी का घर उजाड़ने इस बार सामनेवाले ने उसे लपेटना है बेहतर समझा… भाभी मुझे कोई गिला नहीं, शायद मुझे इन बातो को ज्यादा जानना नहीं चाहिए.. इसलिए अब से मै दूर हूं इन मुद्दों से.. बस मुझे रुलाना मत कभी… दुनिया भार में जाए वो क्या करती है. आप मेरे लिए मां से बढ़कर हो. अगली बार शायद मै बर्दास्त नहीं कर पाऊं. आप अपनी अधूरी कोशिश की थी और मै कोशिश नहीं मर कर दिखा दूंगी… फिर आप भी चिंता मुक्त हो जाना…


भाभी:- एक तूफान आया था जो अब थम गया है… मैने मनीष को उसके एक रिश्ते के बारे में बताया था, तुम समझ सकती हो किसके बारे में बताया होगा.. लेकिन हाथ बंधे वो अपने सारे संबंध के बारे में बता दिया और बस इतना ही कहे. तुम्हरा फैसला ही मै मानूंगा.. कहकर यकीन तो नहीं दिला सकता लेकिन एक बार माफ करके गले लगाओगी, तो मै फिर कभी ऐसे सिचुएशन नहीं आने दूंगा..


मैंने इससे आगे उन विषयों पर बात करना उचित नहीं समझा, बस भाभी को दरवाजा खोलने कह दी और जब वो लौटकर आयि, तो उसकी गोद में लेटकर मुझे सुलाने के लिए कहने लगी.. उनके मुसकुराते चेहरे पर आशु थे और वो अपने हाथ से प्यार से बाल को सहला रही थी..


ना जाने क्यों मै भी आशु बहा रही थी. हम दोनों ख़ामोश थे जैसे दिल का बोझ बहते आशुओं से निकल रहा हो… दुनिया की ये इकलौती भाभी होंगी शायद, जिसने ये नहीं सोचा कि उसकी ननद के जलवे से मेरा भाई फिसला. शायद मैं उनकी सच में बेटी ही थी, इसलिए मेरी नाराजगी से टूटकर वो पहले खुद की ही जान ले ली, बाद में अपने भाई की.


देखा जाए तो जैसे मैंने सबसे छिपाया था उनसे भी छिपा लिया… प्राची दीदी को भी भरोसा हुआ ही होगा भाभी पर, वरना वो मूर्ख नहीं की एक भाभी को उसके ननद के साथ हुई घटना को बता दे. वो इतनी समझदारी तो रखती ही थी कि इन मुद्दों में भाभी का भाई बच जाएगा और ननद फंसेगी, फिर भी उन्होंने बता दिया. ये थी मेरे प्रति मेरी भाभी के लगाव और विश्वास की कहानी… जिंदगी में आपके साथ जब ऐसे लोग हो ना, फिर कभी जिंदगी से सिकायात नहीं होती.


परिवार में कभी कभी उथल पुथल हो जाती है.. संयम ही एक मात्र उपाय है जिससे हर बुरी सिचुएशन से निकला जा सकता है, ये हम दोनों ही सोच रहे थे.. बहुत दिन बाद हमारी खुशियां लौटी थी.. 5 महीने के करीब हो गए थे उन घटनाओं को, पहले भाभी बाद में उसका भाई….. अब कहीं जाकर मै शायद सुकून की श्वंस ले रही थी. भाभी मेरी मां ही थी क्योंकि लाचारी का फायदा उठाने वाले उस दुष्ट अनुज को मैं भी मरते हुए ही देखना चाहती थी, बस भाभी की तरह मुझमें करने की हिम्मत नहीं थी….
subut kya hai ki us kothe wali roopa ne anuj ko mara hai :waiting:
Na koi crim scene, na koi evidence... aur is bholi menka ne maan li uski baat... Yeh kaisa racha tune kamini kothe wali roopa :mad:
aur haan us praschi ki toh aisi ki taisi :buttkick:
subut chahiye hume :waiting: kaise, kaha, kab kis tarike se, kis waqt aur weapon se ya khali haath se :bat:
Khair let's see what happens next
Brilliant update with awesome writing skill nainu ji :yourock: :yourock:
 
Last edited:

Naina

Nain11ster creation... a monter in me
31,619
92,285
304
चौथी घटना:- भाग 1





आह जिंदगी भी क्या खुशनुमा होती है जब आप कुछ बोझ से खुद को निश्चिंत पाते हो. खैर जिंदगी में एक ही वक़्त में केवल एक काम होते रहे, ये तो संभव नहीं और खासकर भारत के पढ़ने वाले छात्र छात्राओं में. पढ़ाई कर रहे है तो आप केवल पढ़ाई नहीं करते, साथ में अन्य कामों को भी करना पड़ता है. कुछ काम जो आपकी जिम्मेदारी होती है, उनसे मुंह नहीं मोड़ सकते और कुछ जो अनचाहे काम आ जाते है, जिसमें आप ना चाहते हुए भी शामिल हो जाते है…


बहरहाल एक लंबे समय से चले आ रहे बोझ जैसे अब उतर सा गया था. भाभी के साथ संबंध पहले कि तरह ही मजबूत और बेहतर भी था, और अब तो हम दोनों ने मिलकर योजना भी बनानी शुरू कर दी थी कि बड़े भैया महेश और बड़ी भाभी सोभा को यहां पास में ही बसाना है…


वो क्या है ना हमारे मिश्रा टोला का ये खानदानी कल्चर, मुझे आज तक कभी समझ में नहीं आया.. मेरे पड़ोस में तो खैर नकुल के पापा रघुवीर थे जो 5th जेनरेशन में थे और नकुल को मिलाकर ये उनका तीसरा जेनरेशन था, जिसमे माता पिता को केवल इकलौती संतान थी. वैसे देखा जाए तो नकुल के पूर्वज अपने ननिहाल में बसे थे.


कहने का अर्थ ये है कि जब नकुल के दादा के दादा का जमाना था तब उन्हें एक बेटा और एक बेटी हुई थी. उन्होंने अपनी बेटी को अपने पास बसा लिया और बेटा अलग होकर दूसरे गांव में बसा था. और तभी जो बेटी हमारे पड़ोस में बसी थी, उसके तीसरे जेनरेशन में नकुल है…


हमारे यहां तो बहुत प्रचलित कहावत भी है, बेटी पास में बसी हो तो वो फरिक ही कहलाती है. नकुल का तो पुरा समेटा हुआ परिवार था. जिसमे नकुल भी अकेला संतान था. हालांकि देखा जाए तो नकुल के पास सबसे ज्यादा संपत्ति होनी चाहिए थी, लेकिन नकुल के दादा ने लगभग पूरी संपत्ति को ऐसे बर्बाद करके चले गए, की उनका कर्ज समेटते समेटते नकुल के पापा रघुवीर भईया की कमर ही टूट गई. एक जेनरेशन पहले जो राजा थे अब उनके पास मात्र 8 एकड़ की खेत रह गई थी, पर किसी भी वक़्त रघुवीर भईया ने हौसला नहीं हारा.


तो केवल नकुल के परिवार को छोड़ दिया जाए, तो मेरे ही परिवार को देख लीजिए. मेरे पापा और बड़े पापा में जब बंटवारा हुआ तो मेरे बड़े पापा मंदिर के पास वाले गांव में शिफ्ट कर गए. मेरे बड़े भईया, यानी महेश भईया नहर के पास शिफ्ट कर गए.


नकुल के घर के बाजू में वो बबलू भईया का घर, जो हमारे थर्ड जेनरेशन से थे उनके पापा यहां पर बसे थे, तो उनका एक भाई नहर के पास मकान बनाए है, तो दूसरा मंदिर के पास वाले गांव में, जहां हमारे अन्य फरिक बसते है. देखा जाए तो 2 सगे भाई आस पास में कभी नहीं बसे…


कारन वही था कि 2 सगे भाई एक हो भी जाए, लेकिन उनकी पत्नी के बीच गृह क्लेश ऐसा होता है कि लोग गृह क्लेश में बर्बाद हो जाए. बस अब मुझे इस मिथ को तोड़ना था. खैर ये एक धीमा प्रोसेस था, जिसे वक़्त के साथ सुलझाया जाना था, जिसपर मैंने और छोटी भाभी ने मिलकर काम शुरू कर दिया था..


ये तो थी मेरी पढ़ाई के अलावा खुद के हाथ में लीया गया एक काम जिम्मा, जिसमे अब मेरी इक्छा थी कि मेरी बड़ी भाभी यहीं पड़ोस में बसे. पढ़ाई की बात करे तो मेरे लिए कॉलेज की छुट्टियां ना जाने कब से चल रही थी. गोली कांड के बाद, भाभी के गांव वापस लौटने पर मेरा कॉलेज जाना पुरा अनियमित हो गया था. ऊपर से जब भाभी डेढ़ महीने नहीं थी, तब उस बीच भी कॉलेज जाने का एक भी दिन मौका नहीं मिला, बस किसी तरह परीक्षा देने चली गई थी..


वैसे मुझे कॉलेज जाने में अब कोई दिलचस्पी रह भी नहीं गई थी, क्योंकि ऑनलाइन ट्यूशन और सीए एंट्रेंस एग्जाम के मटेरियल में ही मै इतना उलझी रहती, की कॉलेज जाना अब समय की बरबादी लगने लगा था.. ऊपर से मेरे पास इतना खाली वक़्त था कि मै 11th का पूरा कोर्स आधे साल में ही समाप्त कर चुकी थी. कॉलेज में जो भी पढ़ाया जाना था वो मेरा पहले से पढ़ा हुए था.


लेकिन जो लोग नियमित रूप से कॉलेज जाते थे, निश्चित तौर पर उनके छुट्टियों का दौर चल रहा था. इसी बीच एक सुबह लता का कॉल मेरे पास आया और बीते दिनों में कॉलेज ना आने की वजह पूछने लगी. मैं बहुत ज्यादा बताने मै रुचि नहीं रखती की मै क्या कर रही हूं, इसलिए कारन मां का घर में अकेला रहना ही बताया.


थोड़ी देर बातो के दौरान उसके कॉल करने का कारन मुझे पता चल गया. लड़की का आज जन्मदिन था और कुछ समय के लिए वो अपना वक़्त दोस्तो के साथ बिताना चाहती थी, इसलिए अपने गांव की कुछ सखियों के साथ मुझे भी उसने निमंत्रण दिया…


मै अब क्या कह देती, 5 मिनट बाद वापस कॉल करती हूं, ऐसा कहकर मै मां के पास आ गई. उनको मैंने सारी बातें बताई. मां ने तो साफ कह दिया तुम्हारी बस परिचित है, कोई खास दोस्त है नहीं, इसलिए नकुल के साथ जाओ, 10 मिनट बाद वापस चली आना. कहना तो मां का भी सही था, थी तो परिचित ही. ना उसका दिल टूटे और ना ही मेरा ज्यादा समय बर्बाद हो.


मै तैयार होकर नकुल के घर पहुंची, और सामने दरवाजे पर ही खड़ी एक अनजान लड़की मुझे रोकती.. "कौन हो तुम, और किससे मिलना है"..


मै उसे ऊपर से लेकर नीचे तक देखी. दिखने में तो किसी हेरोइन से कम ना लग रही थी, ऊपर से चाल ढाल और टॉप-लोअर बता रहा था कि ये गांव की तो नहीं थी. मैंने ऊपर से नीचे तक उसे एक बार देखी… "जी मै मेनका हूं".. इतना ही कही उससे, अभी आगे का परिचय भी नहीं दी थी.. "ओह मेनका, वो विश्वामित्र की तपस्या भंग करने वाली मेनका"..


मै:- जी मै उनका अवतार नहीं हूं, मै तो बस नकुल के पास जा रही थी…


लड़की:- नकुल से तुम्हारा क्या काम...


मै:- मुझे ऐसा क्यों लगा रहा है कि आप सब जानकर भी मेरी खिंचाई कर रही है… वैसे इतना नजदीक रहकर किसी से बात नहीं कीजिएगा, वरना सबको पता चल जाएगा आप स्मोक करती है.… बहुत ज्यादा फर्क नहीं पड़ता कि आप क्या करती है, बस यहां के चुग्लिखोर गैंग को बात करने के लिए एक टॉपिक मिल जाएगा. अब आपको ऐतराज ना हो तो मै मिल लूं नकुल से..


लड़की:- मै संगीता हूं, नकुल की ममेरी बहन. जब तुमने नाम बताया तभी मै समझ गई तुम कौन हो. बस सोची थोड़ा खिंचाई ही करके देख ले.


मै:- नमस्ते संगीता दी, लड़का पसंद आ गया..


संगीता:- प्लीज मुझे दीदी मत बुलाओ, और तुम्हे कैसे पता की मै यहां लड़का देखने आयी हूं…


मै:- गांव है ये, यहां खबर इंटरनेट से जल्दी वियराल हो जाती है… वैसे आप बाहर क्या कर रही है..


संगीता मुझे आंख मारती… "कोना ढूंढने आयी थी, सिगरेट कहां सुलगाना सुरक्षित होगा, वैसे पीछे बगीचा मस्त जगह है, लेकिन उधर ही एक औरत मेरी सास बनने कि इक्छा से, मेरे मम्मी पापा को कन्विंस करने की कोशिश कर रही है.. वो सबसे आखरी वाला घर उन्हीं का है…


मै:- ओह माखन काका, हमारे परिवार के लोग लच्छेदार बातें ज्यादा करते है संगीता जी, दिल से कोशिश करेंगे तो राजी कर ही लेंगे, लेकिन उन्हें क्या पता वो गलत जगह कोशिश कर रहे है..


संगीता:- हीहीहीहीही… मेरे स्मोक के आदत से पकड़ी ना की, मै गांव में शादी नहीं करना चाहती..


मै:- हां उसी से पकड़ी, मुझे नहीं लगता कि किसी को आप हां भी कहने वाली है..


संगीता:- नहीं, एक लड़के की प्रोफाइल जच गई है. दिन बाद वो आ रहे है देखने, लड़का देखने और सुनने में काफी शानदार है, बिल्कुल जोड़ी मेड फॉर ईच अदर वाली. यहां मेरे फूफा (नीलेश के पापा) को वो लड़का भी बहुत पसंद है, इनफैक्ट इस लड़के (नीलेश) से ज्यादा वो पसंद है और लड़का भी बैंगलोर में जॉब करता है तो इनकार करने की कोई वजह नहीं बनती…


मै:- बेस्ट ऑफ लक फिर तो.. अब तो मुझे अंदर जाने दीजिए..


संगीता:- ओह हां.. जाओ नकुल उन्हीं के बीच बैठा है..


"काफी हसमुख स्वभाव की है... लेकिन यें भी है यदि यहां माखन चाचा के घर की बहू बनती, फिर तो इनके पास देवरों की कमी नहीं रहती.. मै जब ये सोच रही थी कि खुद में हंसी आ गई.. जब मै वहां पहुंची लोग बात चीत में लगे हुए थे..
is sangita ki yeh majal ki menka ko rok tok kare... akhir uski aukat hi kya hai :mad:
himmat kaise huyi uski majak karne ki :mad2:
संगीता:- हीहीहीहीही…
Iski hanshi bhi chudail jaisi... are jaake kahi bhi shaadi kar bas menka se dur reh warna yeh bhi roast ho jani hai :bat:
Khair let's see what happens next
Brilliant update with awesome writing skill nainu ji :yourock: :yourock: :yourock:
 
  • Like
Reactions: DARK WOLFKING

Naina

Nain11ster creation... a monter in me
31,619
92,285
304
चौथी घटना:- भाग 2









माखन चाचा अपने बेटे नीलेश की तारीफ में पुरा बुर्ज खलीफा बाना रहे थे और मेरा भतीजा नकुल, जिसके रिश्ते में नीलेश दूर का चाचा लग रहा था, उसे अपने नजदीक का जीजाजी बनाने की जैसे ठान लिया हो. माखन चाचा शुरू करते और नकुल पकड़ कर खींच देता..


बातों के दौरान नकुल ने मुझे एक बार देखा और अनदेखा करके फिर से बात करने लगा. मैंने आश्चर्य से अपनी आखें बड़ी करके उसे घुरनी लगी, लेकिन कुत्ता पलट कर देखा तक नहीं, भाव खा रहा था.. सोच रही थी चली ही जाऊं, फिर बाद में इसे बताऊंगी. इतने में ही भाभी (नकुल की मां) ने मुझे पकड़ लिया, और आने का कारन पूछने लगी.


मैंने भी गुस्से में कह दिया… "मंदिर के पास एक दोस्त से मिलने जाना था, लेकिन मुझे लगता नहीं कि नकुल सर के पास आज वक़्त नहीं… शायद चाचा के रिश्ता तय करने में व्यस्त है, इसलिए देखकर मुंह फेर लिया"..


नकुल:- खुद जब बिज़ी रहती हो दीदी तब कुछ नहीं, मुझे तो वैसे याद ना किया होगा, कोई काम परा है तभी आयी हो..


"हां ठीक है उससे मै अब पहले जैसी नहीं मिल रही थी, लेकिन मै तो कभी नहीं कहने गई की 5 महीने पहले जब सहर से लौटी थी, तब नीतू के चक्कर में कैसे इग्नोर किया था.. नहीं जाना अब इसके साथ".. उसकी बात सुनकर मेरा चेहरा उतर गया था और मै भाभी (नकुल की मां) से हाथ छुड़ाकर जबरदस्ती मुस्कुराती हुई कहने लगी… "शायद नाराज है मुझसे, मै बाद में आती हूं"…


बाकी सब दर्शक से हो गए उसके बाद, क्योंकि नकुल को दूर से ही समझ में आ गया कि मेरे अंदर की भावना क्या थी और मै अब वहां रुक नहीं सकती थी, क्योंकि मुझे रोना था. दूसरो का पता नहीं लेकिन जब कोई अपना मुझसे ऐसे बिहेव करे तो मुझे रोना आ जाता है…


नकुल की मां भी ये समझ गई इसलिए मुझे लेकर वो सीधा अपने बेडरूम में चली आयी. कुछ देर रोकर मै भी चुप हो गई और कुछ देर डांट खाकर नकुल के भी अक्ल ठिकाने आ गया… कुछ देर बाद नकुल तैयार होकर बाहर खड़ा था और हम दोनों लता के घर जाने के लिए निकल गए.


मै इसके साथ थी, तो इस आशिक़ को अपनी मसूका के दीदार करने का मौका भी मिल गया. मुझसे बिना पूछे ही सीधा गाड़ी ले जाकर नीतू के घर पर रोक दिया, और मेरे ओर देखने लगा. मुझे इतना तेज गुस्सा आया की एक हाथ उसके सर पर दे मारी.. "कुत्ता कहीं का".. और बस इतना कहकर मै नीचे उतर गई.


बेचारे की किस्मत, कॉलेज बंद होने के कारन नीतू से आमने-सामने की मुलाकात नहीं हो पा रही थी, और आज मेरे बहाने आया भी तो दीदार-ए-यार शायद किस्मत में लिखा नहीं था. नीतू अपने किसी दोस्त के साथ घंटे भर पहले वही छोटी सी बाजार में राशन का सारा सामान लेने गई थी. उसका उतरा चेहरा देखकर मुझे बहुत हंसी आयी. बड़ी मुश्किल से मै वहां पर हंसी दबा ली, लेकिन जैसे ही बोलेरो में बैठी, मै हंसती हुई लोटपोट हो गई…


नकुल हुंह करता हुआ गाड़ी चलाने लगा. मैं उसकी एक तस्वीर खींचकर दिखती… "देख ले खुद को, ये रहा तू. ठीक से तो मुछ भी नहीं आयी है रे नकुल, अभी चेहरे पर रोए ही हैं, क्यों उसके पीछे है. 3 साल में वो शादी कर लेगी, और जब तक तू शादी लायक होगा, उसके 4-5 साल के बच्चे हो जाएंगे."..


नकुल:- हुंह !


मै:- मत सुन मेरी. जनता है मै तेरी हर बात मान लेती हुं, लेकिन तू मेरी एक बात भी नहीं सुनता..


नकुल:- नहीं सुनता तो अभी साथ नहीं चलता…


मै:- इसे बात सुनना कहते है गधे.. इसे अपनी दीदी का काम करना कहते है… खैर छोड़, अभी लड़कपन है..


नकुल:- हां और तू दादी हो गई ना…


मै:- दादी नहीं भी हुई तो क्या हुआ, मुझ पर तो शासन तू भी करता है.. बाहर क्या कर रही हो, सबसे बात करने की जरूरत नहीं.. बोल शासन नहीं करता क्या?


नकुल:- वो तो बस तुम्हारी फ़िक्र रहती है..


मै:- तो मैंने कब बुरा माना.. मुझे भी तुम्हारी फिक्र होती है. लेकिन तुम लड़के हो ना.. वो मर्द वाली फीलिंग.. हटाओ यार इन लड़कियों को या घर की लेडीज को, दिमाग ही कितना होगा, जो बाहर का ज्ञान हो. यदि तुझे लेकर मै किसी लड़के घर जाऊं तो नकुल?


नकुल:- सॉरी, अब ऐसा नहीं करूंगा..


मै:- मज़ाक कर रही थी पागल, ऐसे मुंह क्यों लटकाए है…


मेरी बात पर वो कोई प्रतिक्रिया नहीं दिया, शायद कुछ सोच रहा हो. कुछ ही देर में हम मंदिर के पास थे और लता मुझे लेने के लिए आ रही थी. पूरी सजी धजी और तैयार होकर आ रही थी. काफी प्यारी दिख रही थी..


वो जैसे ही मेरे पास पहुंची…. "एक छोटी सी समस्या है मेनका".. वहां केवल लड़कियां ही है, और तुम्हारा भतीजा वहां"..…


मै:- हद है लता, ये बात पहले बताना था ना…


लता:- फिर तो तुम मना कर देती..


मै:- अब भी माना ही कर रही हूं, मै इसे पागलों कि तरह बाहर छोड़कर तुम्हारे साथ जाऊं, ये हो ही नहीं सकता.. चल नकुल..


नकुल:- दीदी वो आपको इतने प्यार से इन्वाइट करने आयी है, तुम जाओ. यहां मै जबतक बांध किनारे वाले खेत देख आता हूं..


मै:- वो तू बाद में आकर देख लेना.. लता ऐसा नहीं होता है, वो मेरे साथ आया है, मै उसे बाहर खड़ा छोड़ ही नहीं सकती… ऐसा संभव ही नहीं..


नकुल:- दीदी चुपचाप जाओ… मै कह रहा हूं ना कोई बात नहीं है.. या फिर बहस करनी है..


मै:- लेकिन नकुल..


नकुल:- क्या दीदी, मै क्या विदेश में हूं, या किसी नई जगह पर. इस गांव में तो रोज ही आना होता है. अब जाओ भी, और ज्यादा सोचो मत…


मै:- हम्मम ! ठीक है मै तुम्हे फोन करती हूं..


मेरी सच में जाने की इक्छा नहीं हो रही थी. मै लता के साथ चल भी रही थी और 1-2 बार मुड़कर नकुल को देख भी रही थी.. "वो बच्चा नहीं है मेनका, क्यों परेशान हो रही है"…


मै:- तुम्हारे भैया के साथ मै ऐसा करती तो तुम्हे कैसा लगता..


लता:- इकलौती तुम ही हो जिसे बॉडीगार्ड के साथ आना पड़ता है वरना इस गांव से उस गांव तो मै अकेली आ जा सकती हूं, और मेरी तरह कई और लड़कियां भी, फिर इधर से हो या उधर से… एक बस तुझे ही डर लगता है कोई उठा ना ले.


मै:- मतलब यहां मेरा ही ब्रेन वाश किया जा रहा है..


लता:- ब्रेन वाश नहीं है ये मेनका.. सच्चाई है. इस पूरे इलाके में किसी मजनू की इतनी हिम्मत नहीं की जबरदस्ती छेड़ छाड़ कर ले. बाकी किसी कि मर्जी है तो वो तो उसके लिए रात के अंधेरे में भी निकल सकती है… कुवें की मेंढक क्यों बनी परी है…


मै:- गांव के बारे में मेरा ज्ञान बढ़ाने का शुक्रिया, लेकिन जब घर का कोई मेरे साथ होता है तो दिल को सुकून रहता है…


लता:- हां जानती हूं डरपोक कहीं की.. वरना अकेली चलेगी कम, और हर आवाज़ पर तेरा कलेजा ऊपर नीचे होता रहेगा, मेरे पीछे तो नहीं परा…


मै:- हा हा हा हा हा.. लवली जोक, चल अब.. वैसे सारी लड़कियां मिलकर करने क्या वाली हो..


लता:- अब तो चली ही आयी, खुद ही देख लो…


ओ तेरी, ये पड़ोस का गांव था या कोई टीन मॉडल शूटिंग, पता नहीं चल रहा था. नीचे किसी ने शॉर्ट स्कर्ट डाल रखे थे, तो कोई शॉर्ट्स में थी. ऊपर के लिए छोटे वस्त्र का जुगाड ना लगा तो केवल ब्रा में ही थी, वो भी शहर की स्टाइलिश कप वाली ब्रा थी, जिसमें स्तन बिल्कुल गोल और उसके ऊपर का खुला हिस्सा काफी आकर्षक दिखता था.


उन्हें देखकर ही मेरी आखें बड़ी हो गई… "ये कौन अबला लड़की हमारे बीच आ गई."… लता के गांव की दोस्त मधु थी. हमसे 1 साल सीनियर हमारे ही कॉलेज में. वो मेरे चेहरे के भाव को पढ़ती हुई पूछने लगी…


मै:- मै बिल्कुल भी अबला नहीं हूं मधु, बस यहां का माहौल काफी प्रेरणा वाला है उसी का जायजा अपनी फटी आखों से ले रही थी.


लता:- आखें तो इसके भतीजे की फटी रह जाती अगर वो यहां आ जाता…..


मधु:- वही नकुल ना, जो उस नीतू के चक्कर में है… अच्छा लड़का है, आ भी जाता तो शर्मता ही, बाकियों की तरह तो नहीं है..


भले ही झूठ हो, लेकिन आप जिसे चाहते है, कोई ऐसे कॉम्प्लीमेंट दे जिसमे एक लड़की खुद ब्रा में हो और सामने वाले के लिए ऐसा कह दे, फिर तो चेहरे पर मुस्कान और प्राउड वाली फीलिंग आनी लाजमी है. मै भी अंदर से प्राउड फील कर रही थी लेकिन फिर भी कहने कहीं….. "मै सामने हूं इसलिए उसकी तारीफ करके मुझे ही उल्लू बना लो"..


मधु:- तुम ज्यादा मेरे साथ रही नहीं ना मेनका इसलिए. जो सही है, मै सीधा मुंह पर कहती हूं, फिर मुझे किसी का डर भी नहीं होता. मै तो तुम्हारे भतीजे को जानती भी नहीं थी, लेकिन नीतू के साथ उसे देखी थी कॉलेज के पीछे स्टाफ क्वार्टर के ओर… नीतू उसके साथ ऐसे थी कि कोई दूसरा गांव का लड़का होता ना तो पुरा मज़ा लेकर आया होता… मगर वो कुछ देर रुका और चला गया, जबकि नीतू के शक्ल पर लिखा था वो पूरी तरह तैयार होकर आयी थी.. मैंने ये बात लता को बताई, तब उसी ने फिर तुम्हारे और नकुल के बारे में बताया था…


तभी एक और लता की सहेली रिंकी…. "तो तू क्या करने गई थी उस कोपचे में, ये तो बता दे…"


मधु:- तू अपने भतार के बारे में बताती है… जो मै बता दूं.. वैसे एक बॉयफ्रेंड मेरा भी है… कुता टाइप.. अकेली क्या थी, उसका हाथ सीधा मलाई पर..


रिंकी:- तू भी तो तैयार होकर मज़े ही लेने गई होगी, वो भी फिर तुझे पुरा मज़ा देकर मलाई की घोटाई करके फुला रहा है..


मधु:- कुछ भी मत बोल, अब लड़के के साथ अकेले में इतना तो सोचकर ही जाना होगा कि वो हाथ लगा सकता है.. लेकिन मज़ा लेने दू इतनी भी बेवकूफ नहीं… प्यार करती हूं इसलिए थोड़ी नादानी सह लेती हूं, और वो भी मुझे फोर्स नहीं करता.. बस 2 साल और, फिर हम शादी कर लेंगे…


गांव काफी तरक्की में था ये मुझे आज पता चल रहा था. मै बात को बदलती… "जन्म दिन की मुबारकबाद लता.. ये ले तेरा गिफ्ट"..


लता:- ये क्या पेन ड्राइव टाइप की चीज दे रही.. कहीं इसमें अंग्रेजी वाली वीडियो तो नहीं…


रिंकी… "अन्नःह्हहहहहहहहहहहहहहहहहहह, उफ्फफफफफफफफफफफफफ, आह्हहहहहहहहहहहहहहहहहहह.. कम ऑन फ़्क मी हर्डर..... आह्हहहहहहहहहहहहहहहहहहह…"..


उसके एक्सप्रेशन और मधु को पकड़ कर उसके एरोटिक एक्शन देखकर हम सब जोड़-जोड़ से हसने लगे. मधु भी कहां कम थी, वो भी उसके छोटे-छोटे दोनो स्तन को पूरी ताकत से जकड़ते… "आजा कूतिया आज तुझे मै जन्नत ही दिखाती हूं"..


बेचारी वो रिंकी बिल्कुल सिहर गई. मानो किसी ने उसके निप्पल उखाड़ने के इरादे से खींच ली हो. उसके आखों में पानी आ गया, और वो दौड़कर बाथरूम में घुस गई… "एक ही पकड़ में उंगली करने भाग गई"… मधु उसे पीछे से छेड़ती हुई कहने लगी..


लता:- पागल कहीं की तू बौरा जाती है. इतना तेज चिमटी काटने की क्या जरूरत थी, वो रोने लगी. तू ना कभी कभी ओवर कर देती है…


मधु:- मुझसे लिपटा चिपटी पहले वहीं करने आयी थी, मै नहीं गई थी…


लता:- हां तो कोई तुझसे मज़ाक करे तो तू ऐसे उसे रुला देगी, ऊपर से गलती मानने के बदले चढ़ रही है…


मधु:- सबको खाली मेरी ही गलती दिखती है.. वो तो दूध की धुली है ना.. जानती भी है कल मै झुककर काम कर रही थी, तो पीछे ऐसा चमाट मारी थी कि उसके 5 उंगलियों के छाप उखाड़ आएं थे..


लता:- दिखवाई किससे थी जो पता चला 5 उंगलियों के छाप थे.. पहले तो ये बता..


लता की बात सुनकर तो मधु भी हंस हंस कर पागल हो गई. खैर काफी फनी माहौल था यहां का. ये तीनों यानी कि रिंकी, मधु और लता जब फुरसत हुई तब तीनों ही मुझे घूरती… "ये किस तरह का पेन ड्राइव है, जिसमें अटैच करने वाला कुछ है ही नहीं"..


मुझे पता था लता के घर में कंप्यूटर लगा हुआ है इसलिए मै भी एक ब्लूटूथ माईक उठा लाई थी उसके लिए.. ऑनलाइन मुझे 400 रुपए 1 मिला था, उपयोगी समझकर मैंने भी 5 मंगवा लिए थे.. हां पर ब्लूटूथ की ज्यादा रेंज नहीं थी, केवल 20 मीटर का रेंज था.


जैसे ही मैंने लता को इसके बारे में बताया, वहां खड़ी तीनों की आखें बड़ी हो गई. लता अपने साथ मुझे एक कमरे में ले गई, वहां अपने पलंग के नीचे वो एक लंबा बैग निकली. अपने खिड़की के बराबर एक स्टैंड लगाई और उसके ऊपर टेलीस्कोप फिट कर दी…


मुझे लगा था गांव में इकलौती मै ही पागल हूं, जो किसी आस पड़ोस की बात सुनने के लिए ब्लूटूथ माईक खरीद ली. हां इरादे तो ऐसे ही थे, बस हिम्मत नहीं हुई कभी किसी की जासूसी करने की. जब आप इंटरनेट की दुनिया में होते है तो ऐसे छोटे बड़े पागलपन चलते रहते है.


मेरे पागलपन छोटे थे, लेकिन इसके पागलपन तो कुछ ज्यादा ही बड़े थे. ये तो दूसरे के घर में ताका झांकी का समान खरीद रखी थी, वो अलग बात है कि इसका पुरा फायदा तो ऊंचाई पर से देखने में होता, नीचे ग्राउंड फ्लोर से बस आकाश के तारे ही अच्छे से देखे जा सकते थे…


पूछने पर पता चला कि वो भी ऑनलाइन मग्वाई थी 3 महीने पहले. तभी मधु, मुझे टेलीस्कोप से, सामने एक दूर खड़ी सैकॉर्पायो के आस पास देखने कहीं.. हां वो स्कॉर्पियो खिड़की से भी दिख रही थी, लेकिन माचिस के डिब्बे जैसी बिल्कुल छोटी…
Story ke baaki ke kirdaaro ko kuch sikhna chahiye nakul se...
nakul aur menka jaise nischal aur nandini ki avatar ho :dost:
are yaar phir se bholi menka fanshi in tharki saheliyo ke changul mein :doh:
Khair let's see what happens next
Brilliant update with awesome writing skill nainu ji :applause: :applause:
 

Naina

Nain11ster creation... a monter in me
31,619
92,285
304
चौथी घटना:- भाग 3







मै टेलीस्कोप से वहां देखने लगी… अंदर से 4 मर्द मुंह बांधे निकल रहे थे, और उनके पीछे 2 लड़की मुंह बांधे थी. सभी लोग स्कॉर्पियो में बैठे और वहां से निकल गए. मुझे शक हुआ कि 4 लड़को में मै 2 को जानती हूं, क्योंकि पहनावा और चाल ढाल अपनी कहानी बयां कर रही थी, लेकिन हर किसी की अपनी निजी जिंदगी है और मुझे क्या लेना देना वहां से…


सभी एक छोटे से कच्चे घर से निकल रहे थे… गाड़ी के जाते ही वहां पास में बैठा 4 लड़का, जो उस कच्चे मकान के आसपास फैले थे, वो भी उठकर वहां से चले गए.…


मै टेलीस्कोप से हट गयी और उनसे कहने लगी… "कोई अपने परिवार के साथ कहीं जा रहा था, इसमें मुझे क्यों दिखा रही थी"…


लता:- इसे तो कुछ भी पता नहीं, छोड़ जाने दे..




इधर एक घंटे पहले…


पीछे सुनसान पड़े उस झोपड़ी में पहले 2 लड़कियां और 2 लड़के पहुंचे. जैसे ही वो दोनो पहुंचे आस पास निगरानी देने के लिए 4 लड़के खड़े हो गए… जैसे ही वो चारो अंदर पहुंचे… दोनो लड़के दोनो लड़कियों को गले लगाकर चूमने लगे…


"आह ! नीलेश, मै नकुल की दोस्त हूं"… नीलेश उसका गला को चूमते… "उसमे दोस्ती जैसा क्या है नीतू, मै तुम्हे खुश रखूंगा, रानी बनाकर रखूंगा"..


"नहीं मै केवल नीतू के साथ आयी थी, उसने कहा बस किसी से मिलना है, प्लीज मेरे साथ ऐसा मत करो, प्लीज.. किसी को पता चल गया तो मै बदनाम हो जाऊंगी".. नीतू के साथ आयी दूसरी लड़की पूनम ने कहा…


नीलेश के साथ पहुंचा उसका सबसे करीबी दोस्त और ठीक उसके पास के मकान में रहने वाला उसका भाई नंदू, पूनम की हल्की उभरी चूची को हल्के-हल्के दबाते हुए… "किसी को कुछ पता नहीं चलेगा.. आज से तू मेरी रानी है और नीतू नीलेश की, दोनो को किसी बात की कमी ना हो इसलिए 1-1 लाख कल ही तो तुम्हारे खाते मै जमा करवा दिए है, नीतू ने तो तुम्हे बताया ही होगा. मुझसे डर क्यों रही हो."


पूनम:- आप मुझसे बहुत बड़े है, मै अभी बहुत छोटी हूं, प्लीज ऐसा मत करो.. मुझे पैसे की क्या जरूरत.. मैं उसे वापस कर दूंगी..


इधर नीतू नीलेश के चंगुल से छूटती… "मै जा रही हूं निलेश, नकुल को पता चलेगा तो ना जाने क्या हो जाएगा"..


नीलेश:- ठीक है मै तुम्हे फोर्स नहीं करूंगा, बस 2 मिनट मेरी बात सुन लो, आओ..


नीलेश उसे अपने साथ कच्चे मकाम के एक छोटे से कमरे में ले गया, जहां लकड़ी की एक चौकी रखी हुई थी और उसपर बिस्तर बिछा हुआ था… इधर नीलेश का भाई नंदू भी ठीक वैसे ही बहला फुसलाकर पूनम को भी दूसरे कमरे में ले आया…


नीलेश जैसे ही कमरे में पहुंचा, नीतू के गले को चूमते हुए…. "तुम्हे इतना सोचने कि जरूरत नहीं है नीतू, वैसे भी वो तुमसे शादी थोड़े ना करता"..


"आह, नहीं प्लीज मुझे जाने दो. मै ऐसी लड़की नहीं हूं. नकुल मुझे अच्छा लगता है क्योंकि आज तक कभी उसने मुझे छूने की कोशिश नहीं की. उसके साथ.. आह नहीं, प्लीज हाथ मत लगाओ मुझे"..


नीलेश उसके गले को चूमते हुए धीरे-धीरे उसके चूची को सहलाने लगा. नीतू विरोध तो कर रही थी, लेकिन इस विरोधाभास के बावजूद भी नीलेश लगातार उसके चूची को प्यार से मसल रहा था और उसके गले को चूम रहा था.


नीतू के श्वांस धीरे-धीरे चढ़ने लगी और वो खामोशी से बैठकर तेज-तेज श्वंस ले रही थी.... नीलेश अपने अनुभव का परिचय देते हुए, उसके सीने से उसका दुपट्टा हटाकर उसके सीने के खुले भाग को चूमते हुए, धीरे-धीरे अपने जीभ चलाने लगा..


नीतू गहरी अंगड़ाई लेती, बिस्तर को अपनी मुट्ठी में भींच कर दोनो हाथ से चादर को दबोच ली… नीलेश धीरे-धीरे उसके खुले सीने को चूमते और चाटते हुए, अपना एक हाथ उसके चूची पर रखकर गोल-गोल घुमाते हुए मसलने लगा. उसका दूसरा हाथ धीरे से नीचे जाते हुए, उसके दोनो पाऊं के बीच में जबरदस्ती घुसने की कोशिश करने लगा… "नहीं प्लीज नीलेश, वहां मत टच करो.. मै अभी तक कुंवारी हो"..


नीलेश पूरी जीभ से, उसके गर्दन से लेकर नीचे सीने के क्लीवेज लाइन तक चाटते हुए…. "बस जो हो रहा है होने दो, मज़ा लो तुम भी"… उसकी बात सुनकर नीतू ख़ामोश हो गई, लेकिन अपने दोनो जांघे दबोची रही… नीलेश दोनो पाऊं के बीच जबरदस्ती अपने हाथ डालकर उसकी चूत को ऊपर से ही रगड़ने लगा…


नीतू के पाऊं जैसे कांप गए हो. उसकी निप्पल अकड़ गई थी और दोनो जांघ की मजबूत जकड़ ढीली पड़ने लगी. हां और ना के विरोधाभास में फसी नीतू के पाऊं कांपने लगे थे और बदन जलने लगा था… उसे मानो मेहसूस हो रहा था कि अंदर भूचाल मचा है.


नीलेश ने कब उसका कुर्ता ऊपर करके, उसके ब्रा को उसके चूची पर से समेट कर ऊपर गले तक ले गया, उसे पता भी नहीं चला. अचानक ही नीतू को होश आया और अपने हाथो से वो अपने उम्र से थोड़ा ज्यादा विकसित चूची को अपने हाथ से ढकने कि कोशिश करने लगी… बिल्कुल मस्त और सीने से गोल लगे चूची को देखकर नीलेश के आखों में चमक आ गई..


वो पीछे मुड़कर दरवाजे पर एक बार देखा, शायद वक़्त दिन का था और ज्यादा देर यहां किसी लड़की के साथ रहना खतरनाक साबित हो सकता था, इसलिए वो देर ना करते तुरंत ही थोड़ा जोर लगाकर उसके हाथ को चूची से हटाकर उसे लिटा दिया और बड़ी-बारी से उसके छोटे-छोटे निप्पल को मुंह में लेकर चूसने लगा..


नीतू तेज-तेज आह्हहहहहहहहहहहहहहह भरती अपने दातों तले होंठ को दबा रही थी और सर दाएं बाएं करती, अपने हाथ को बिस्तर पर पटक रही थी.. उसके चूत की लहर पूरे पाऊं में दौड़ने लगी और हिलते पाऊं से तेज-तेज पायल की आवाज आ रही थी.. नीलेश उसे चूची को चूसते हुए नीचे आने हाथ ले गया और उसके सलवार के नाड़े को खोलने लगा. नीतू उसका हाथ बीच में ही पकड़ ली लेकिन दोनो को ही पता था ये मात्र एक झीझक है..


जल्द ही निलेश ने उसके सलवार का नारा खोल दिया और पैंटी सहित उसका सलवार को खींचकर घुटने में ले आया. नीतू के हाथ स्वताः ही उसके चूत के ऊपर चले गए और दोनो पाऊं के बीच में वो पूरे जोड़ से अपने खजाने को छिपाने कि कोशिश कर रही थी....


लेकिन ताला कैसा भी हो, चोर किसी ना किसी विधि से तिजोरी खोलकर खजाना लूट ही लेता है. नीलेश ने एक बार फिर ऊपर के ओर रुख किया और उसकी चूची को अपने मुंह में लेकर, उसे पूरा भिगोते हुए जोर-जोर से चूसने लगा, दूसरो चूची को मुट्ठी में भरकर उसे मसलते हुए, धीरे-धीरे अंगूठे से उसके निप्पल को घूमाने लगा..


मस्ती की लहर में नीतू ने एक बार फिर अपनी आंखें मूंद ली.. नीलेश का एक हाथ धीरे-धीरे नीचे उसके चूत कि ओर जाने लगा.. विरोध वो जताकर भी कुछ नहीं कर पा रही थी और जैसे ही उसके छोटी सी चूत के फांक पर नीलेश की उंगली परी, नीतू पूरी गनगना गई. नीचे से उसके चूतड़ जैसे हल्का-हलका हिलना शुरू हो गए थे..


नीलेश लगातार उसके छोटी सी चूत के फांक को अपने कठोर उंगली से रगड़ते हुए उसके श्वांस को बेकाबू कर रहा था… नीतू के मुंह से बस .. "आह्हहहहहहहहहहहहहहहहहहह, उफ्फफफफफफफफफफफफफ" की दबी सी आवाज निकल रही थी और उसके दोनो हाथ नीलेश की कलाई को पकड़े मानो मिन्नतें कर रही हो...… छोड़ दो मेरी चूत रगड़ना, मेरे अंदर क्या हो रहा है मुझे पता नहीं.. ये बेचैनी कहीं जान ना ले ले"..


नीलेश को समझ में आ गया लौंडिया तैयार है तभी उसने दरवाजे के ओर इशारा किया और इधर वो चूत के अंदर अपनी एक उंगली डालकर हौले-हौले इतने प्यार से ऊपर नीचे करने लगा कि वासना में नीतू की आखें लाल हो गई. नीलेश चूत पर उंगली करते हुये उसके होंठ पर अपने होंठ रख दिए..


नीतू अपना सिना ऊपर उठती अपनी चूची को हवा में पुरा तान दी और दोनो हाथ उसके सर पर डालकर उसके होंठ को पागलों की तरह काटने लगी.. तभी नीतू को आभाश हुआ कि उस जगह पर उन दोनों के अलावा भी कोई और मौजूद है..


लेकिन उसके होंठ को नीलेश ने अपने मुंह में जकड़ रखा था और इतने में ही उसके दोनो पाऊं हवा में थे. सलवार और पैंटी घुटनों में ही था और बीच से उसके गीली चूत पर कोई अपना लंड घीसने लगा.. नीतू हवा में ही अपने पाऊं जोड़-जोड़ से हिलाने लगी. नीतू अपने हाथ को झटककर छुटने की कोशिश करने लगी, लेकिन तबतक घिसता हुए लंड, गप से उसकी गीली सी छोटी चूत में आधा घुस गया. चूत इतनी छोटी थी कि दीवार से उसके घुसते लंड को वो मेहसूस कर सकती थी.


नीतू पूरी तरह से तिलमिला गई. किसी तरह छूटना चाहती थी, लेकिन नीलेश उसके होंठ दबा कर उसके सर को नीचे किए हुए था और दोनो हाथ को जकड़े थे… "आववववववव.. नहींईईईईईईई" जैसे आवाज़ घूट कर अंदर ही रह गई, तभी एक और जोड़ का झटका लगा और उसके छोटी सी चूत में पुरा लंड घुस गया.


नीतू छटपटा कर अपने सर दाएं बाएं करने की कोशिश करने लगी. वो दर्द से छटपटाती हुई किसी तरह छुटने की कोशिश कर रही थी, लेकिन शिकार को दबोचा जा रहा था, और वो कुछ कर नहीं सकती थी… नीतू के सलवार का नाड़ा लटककर उसके चूतड़ पर लहरा रहा था. दोनो पाऊं के बीच उसकी चूत के फांक झांक रही थी. और कोई उसके चूत के अंदर दबा के पुरा लंड पेलकर, अब जोर-जोर से झटके मारना शुरू कर चुका था.


नीतू लगातार कसमसा रही थी, लेकिन जिस तरह से नीलेश ने उसके वासना की आग भड़काई थी, उसकी छोटी सी चूत के द्वार खुलने के लिए बेकरार हो गए थे… कुछ ही देर के मर्दाना झटको में नीतू को मज़ा मिलना शुरू हो चुका था. नीतू का विरोध में कसमसाने बिल्कुल मादक एहसास में बदल गया. उसकि कमर नीचे से अपने आप ही हिलने लगी.


जैसे ही उसके कमर हिलने लगे, लंड अंदर घुसाया लड़का गिरीश, नीलेश का शर्ट खींचकर उसके ऊपर से हटने कहा… जैसे ही नीलेश ने नीतू को छोड़ा वो तेज-तेज श्वांस लेती अपनी छाती ऊपर नीचे करने लगी. धक्के के साथ थिरकते उसके गोल चूची देखकर नीलेश अपना लंड निकलकर हिलाने लगा…


नीतू, मादक सिसकारी की आवाज धीमे-धीमे अपने होंठ से निकाल रही थी, लेकिन अपनी आखें बिल्कुल मूंदे थी और देखना नहीं चाहती थी कि कौन उसे भोग रहा. वो तो बस कमर हिलाकर चूत में घुसते लंड का पूरा मज़ा अपनी दबी सी आवाज में ले रही थी…


अब तो उस लड़के गिरीश के भी झटके तेज होते जा रहे थे.. हाचक कर वो ऐसे चोद रहा था मानो वर्षों बाद उसके अरमान पूरे हो रहे हो. चूत कि कसावट को गिरीश भी मेहसूस करके, चूत को पूरी रफ्तार से रौंद रहा था… नीतू और गिरीश दोनो पसीने पसीने हुए जा रहे थे… तभी जोड़ की आवाज करती नीतू ने बिस्तर को अपनी मुट्ठी में दबोच ली, इधर गिरीश भी उसके टांग पर अपनी पकड़ पुरा मजबूत बनाते हुए और जोर-जोर से झटके मारते हुए पुरा लंड चूत के अंदर घुसेड़ कर अटका दिया.


गिरीश का कमर ठुमुक-ठुमुक करते जोड़-जोड़ से हिलने लगा. और वो अपना कमर हिला-हिला कर, पुरा वीर्य नीतू की चूत में गिराकर, अपना लटका हुआ लंड बाहर निकाल लिया.. इधर नीलेश भी अपने लंड को मुठिया रहा था और वो भी चरम पर था. जोड़ की पिचकारी उसने भी छोड़ दी. उसका गरम वीर्य कुछ नीचे तो कुछ बूंद नीतू के चूची पर गिर गया.


नीतू थकी सी हालत में बैठकर अपने चूत को चादर से साफ करके, अपने बदन को साफ की. तेजी के साथ अपने कपड़े को ठीक करती कभी वो नीलेश को तो कभी उसके साथ खड़े लड़के गिरीश को देख रही थी.


गिरीश आगे बढ़कर उसके छोटे से चेहरे के होंठ को चूमते हुए… अपने हैंड बैग से नोट की एक पूरी गड्डी, उसके बैग में डाल दिया. लगभग 1 लाख रुपए थे… "सुन इतने में सहर में कमाल की रण्डी मिल जाती, वो भी 5 रातों के लिए. चुपचाप रख ले, ये तेरी चूत खोलने को कीमत है. जबतक तेरे चूत फ़ैल नहीं जाता तब तक तुम्हे अच्छी कीमत देता रहूंगा.. बस चुपचाप ऐसे ही मज़ा लिया कर और मज़ा दिया कर"…


नीतू खामोशी से उसकी बात सुनकर हा में अपना सर हिला दी और धीमे आवाज़ में कहने लगी… "सब अंदर डाल दिए, मै प्रेगनेंट हो गई तो"..


नीलेश:- अभी जब तुझे वापस बाजार छोड़ने जाएंगे तो गोली दिला दूंगा. अब चिंता मत कर और बस मज़े ले जवानी के. वैसे भी वो नकुल तेरे फ्री में ही मज़े लेता ना… चूत खुलने के 2 लाख मिल रहे अब क्या चाहिए. आगे भी अच्छी कीमत मिलती रहेगी… तेरी उम्र ही ऐसी है कि कोई भी पागल हो जाए…


नीतू उसकी बात सुनकर कुछ नहीं बोली और अपने दोस्त के बारे में पूछने लगी… उसकी दोस्त पूनम, जो लगभग उसी वक़्त दूसरे कमरे में गई थी. वो जैसे ही अंदर गई भागकर कोने में जाकर दुबक गई. बिल्कुल छोटी सी लड़की, गोल मुंह, और प्यार सी सूरत वाली सुंदर लड़की. जिसके बदन पर उभार आने शुरू ही हुए थे, अपने से 7-8 साल बड़े लड़के नंदू की मनसा को जानकर वो रोती हुई बस मिन्नते करती दुबक गई..


फिर उस कमरे में जो चाकू के जोड़ पर आत्मसमर्पण करवाया गया, उसके पहले तो धमकी मिली की कपड़े उतार ले खुद से, वरना कपड़े फट जाएंगे और तुम्हे यहीं छोड़कर चले जाएंगे…


दुबली-पतली एक डरी-सहमी सी लड़की, जिसके अंग अभी ठीक पूर्ण विकसित होना भी शुरू नहीं हुए थे. फिर बहते आशुं के बीच जो कहानी लिखी गई, उसका जिक्र करना शायद सोभनिय नहीं होगा. पूनम बिल्कुल गुमसुम, पहले से बाहर आकर कोने में चुपचाप बैठी हुई थी.. उसे कमरे तक में लेकर तो नंदू गया था, लेकिन छटपटाती चिड़िया के मज़े लूटे एक 52 वर्षीय अधिकारी ने, जो डिस्ट्रिक्ट डेप्युटी कलेक्टर था और जिसके हाथ में विकास भवन के टेंडर की इतनी फाइल्स थी कि जिन्हे नंदू और नीलेश अब एक-एक करके अपने नाम करवाता.


डीडीसी (डिस्ट्रिक्ट डेप्युटी कलेक्टर) इतना बौराया था कि वो तो पूनम को एक हफ्ते अपने पास रखने के 10 लाख तक दे रहा था, लेकिन नीलेश ने माना कर दिया. मना तो कर लिया लेकिन साथ में ये जरूर आश्वासन दिया कि 10 बार की ये आप की ही अमानत है. नीलेश ने पूनम के बैग में भी एक लाख की गद्दी डाल दी और दोनो से कहने लगा..


"पहले सुभ आरम्भ के 2 लाख कम नहीं होते. आगे और भी मिलेंगे इसलिए दोनो चुपचाप मज़े लो. किसी ने अपनी जुबान खोली ना कूतिया, तो वो रात को सोएगी जरूर, लेकिन सुबह गांव के चौपाल पर नगी मिलेगी"…


नीतू और पूनम दोनो ही खामोशी से सब सुन रही . नीतू ने पहले पूनम का हुलिया ठीक किया, फिर बाद में खुद के बाल और चेहरा ठीक किए. सभी अपने चेहरे पर पर्दा डाले बाहर निकल अाए और बाहर आकर स्कॉर्पियो में बैठकर छोटे से बाजार के ओर निकल गए, जहां जाने के लिए नीतू अपने दोस्त के साथ घर से निकली थी.. जाना था जापान पहुंच गई चीन, इसलिए अब नीतू और उसकी सहेली को वापस जापान छोड़ा जा रहा था…


उस छोटे से बाजार के थोड़ा सा आगे जाकर सुनसान सड़क पर स्कॉर्पियो को रोक दिया गया, जिसमें से पहले नीतू और पूनम बड़ी तेजी में निकली और वहीं से कच्चा रास्ता पकड़कर घूमकर बाजार चली आयी. उसके कुछ दूर आगे जाकर नंदू, गिरीश और नीलेश उतर गये. वो सभी सड़क के किनारे लगी अपनी एक गाड़ी में बैठकर वापस गांव आ गये.




लता के घर में…


मैंने जब देखा तब वो लोग जा रहे थे. मास्क सबके चेहरे पर लगा था लेकिन 2 की चाल ढाल मुझे पूरे तरह से पता थी. दोनो नीलेश और नंदू है, ऐसी मुझे शंका हुई लेकिन मुझे की करना था. मैंने भी लता को बता दिया कि कोई अपने परिवार के साथ जा रहा है, इसमें मुझे क्या करना है..


इसपर मधु मुझे लता से ही कहने लगी… "इसे लगता है कुछ भी पता नहीं. एक लड़का तो गिरीश है, हमारे ही गांव का, वो तो हम जानते है. ये बाकी के कौन लोग है"… गिरीश, ये नाम भी चौंकाने वाला था मेरे लिए, क्योंकि गिरीश हमारे ही थर्ड जेनरेशन से था और लता के गांव के मुखिया प्रवीण मिश्रा का छोटा बेटा. हमारे परिवार से इनके परिवार का बहुत ज्यादा कोई मेल मिलाप नहीं था, बस जानते थे..


वहां अब गिरीश हो या फिर बबलू भईया या गांव का कोई भी, ये उनका निजी मामला था. मै आराम से उस कमरे से बाहर निकल गई. तभी जिज्ञासावश लता मुझसे पूछने लगी कि क्या ये ब्लूटूथ डिवाइस उस कच्चे मकान तक का रेंज दे सकती है…


मैंने फिर उन्हें प्रोडक्ट मैनुअल दिखाते हुए कहा कि ये इन बिलट बैटरी के साथ 6 घंटा का बैकअप देती है और इसका रंज 20 मीटर है… वो भी बिना बाधा के. फिर उन्होंने पूछा ये बाधा क्या होती है. मैंने उन्हें फिर समझाया जैसे सीसे की दीवार यार फिर आम दीवार भी इसके रेंज को प्रभावित करती है, बाकी जब इस्तमाल करोगी तो समझ जाओगी…


मुझे आए लगभग आधे घंटे हो गए थे.. और ज्यादा रुकना मुझे उचित नहीं लगा क्योंकि नकुल को दरवाजे के बाहर छोड़ आयी थी, जो की मुझे अंदर से अच्छा मेहसूस नहीं करवा रहा था. मैंने फिर नकुल को कॉल लगाकर मंदिर आने कह दिया और खुद लता के साथ वहां से निकल गई..


मेरे पहुंचने से पहले ही नकुल वहां इंतजार जर रहा था… मैंने लता से विदा ली और नकुल के साथ वापस घर निकल गई…
matlab is story main rape bhi add hai :sigh:
aur woh bhi ek teenager ki :sigh:
 

Naina

Nain11ster creation... a monter in me
31,619
92,285
304
चौथी घटना:- आखरी भाग






मै और नकुल लौट रहे थे. लता की कुछ बातें मेरे दिमाग में थी, बाकी दिमाग में कचरा भरने की ना तो कभी आदत थी और ना रहेगी… मै कुछ सोचती हुई नकुल से पूछने लगी…. "नकुल मै गांव अकेली क्यों नहीं घूम सकती?"..


नकुल:- किसने ऐसा तुमसे कहा कि तुम गांव अकेली नहीं घूम सकती..


मै:- सबने ही तो कहा है…


नकुल:- अच्छा कुणाल और किशोर (छोटे भईया मनीष के बच्चे) अकेले गांव घूम सकते है क्या? या फिर केशव और साक्षी (बड़े भैया महेश के बच्चे)..


मै:- ओह ऐसी बात है क्या !!! अच्छा और कोई बात नहीं है ना… खा मेरी कसम.


नकुल कुछ देर सोचते हुए… "नहीं और कोई बात नहीं है"..


मै:- फिर तू बोलने में वक़्त क्यों लिया…


नकुल:- बस कुछ सोच रहा था…


मै:- बता ना मुझे, जरूर मेरे अकेले बाहर घूमने को लेकर कुछ सोच रहा होगा…


नकुल:- जी नहीं मै बस ये सोच रहा था कि अकेले गांव में घूमने कहां जा सकती हो… हां चाय की टपरी है चौपाल पर वहीं जा सकती हो.


मै:- आ हा हा हा हा हा… आ हा हा हा हा हा.. नकुल मेरा हाथ पकड़ मैं हंसते हंसते कहीं गाड़ी से बाहर ना गिर जाऊं…


नकुल:- पागल, गांव घूमने तुम अकेली भी जा सकती हो. कभी अकेली गई नहीं ना इसलिए किसी को साथ लेकर चलने की तुम्हे आदत हो गई है, बस इतनी सी बात है… इस क्षेत्र में पड़ने वाले 8 गांव में सब अपने ही तो लोग है. अपने 6 घर में इतने फंक्शन्स हुए है, ऊपर से सावन के मेले में पूरे परिवार के साथ हमरा मंदिर इतना आना जाना होता है कि तुम भले किसी को जानो या ना जानो, सब तुम्हे जानते होंगे… फिर भी किसी को साथ लेकर चलना कोई गलत थोड़े ना है मेनका...

मै भी बाजार किराने का सामान लेने जाता हूं तो किसी दोस्त को लेकर जाता हूं.. आज तक किसी को अकेले घूमती देखी हो, शायद ही किसी को देखी होगी. क्योंकि घूमने के लिए भी कंपनी चाहिए और दुर्भाग्यवश हमारे पड़ोस में तुम्हे कंपनी देने वाला कोई नहीं, सिवाय मेरे. इसलिए मै तुम्हारे साथ चलता हूं… मुझे लगा तुम जैसी होसियार लड़की इतनी बात समझती होगी, मुझे नहीं पता था कि अब तक तुम ये बात नहीं समझती…


मै:- हां मै जानती थी ये सब, वो तो बस मै तुम्हारे विचार जानने को इकछुक थी कि तुम्हारी क्या राय है इसपर.. मुझे लगा कहोगे लड़की का अकेले निकालना सुरक्षित नहीं…


नकुल:- मेनका जहां असुरक्षित लगेगा वहां तो सब कहेंगे ना.. अच्छा एक बात बताओ कभी सुनी हो गांव में किसी लड़की के साथ छेड़खानी हुई हो..


मै:- नहीं ऐसा तो कभी नहीं सुना..


नकुल:- फिर गांव में तुम्हारा अकेले घूमना हम कैसे असुरक्षित मान ले. हम यहां अपने लोगो के बीच है.. ये सहर थोड़े है की चार मजनू सिटी बजाते चल रहे है और लोग अपने काम में लगे है.. यहां पति पत्नी भी सड़क पर साथ चलते है तो सलीखे से चलते है… ताकि छेड़खानी का केस समझकर कोई टांग हाथ ना तोड़ दे..


मै:- ओह समझ गई… मतलब मै कार से अकेली मंदिर आ सकती हूं..


नकुल:- इतनी भी दूर अकेली जाने की ख्वाइश ना कर, की चिंता में हमारे प्राण सुख जाए..


मै:- अच्छा और जब शादी करके जाऊंगी तब… फिर तो ये जगह, जिन लोगों के बीच पली बढ़ी, वो सब कहीं गुम हो जाएगा…


नकुल:- इतनी दूर की बात सोचकर परेशान मत कर… बाकी दिमाग की सारी शंका दूर हुई या कुछ अब भी दिमाग में घूम रहा है..


मै:- नाह ! अब कुछ नहीं.. और थैंक्स.. तू तो मेरी सहेली है.. बहुत दिनों से जिस बात का जवाब नहीं मिल रहा था, उसका जवाब बातो-बातो में मिल गया..


नकुल:- मुझे भी तो बता, या केवल अपने सवाल के जवाब चाहिए होते है..


मै:- नहीं रे गधे बस अब सब कुछ अच्छा लग रहा है… हर कोई अपने दोस्त के साथ कंपनी में घूमते है… वो नीतू पूनम के साथ. लता, मधु के साथ. मां छोटी भाभी के साथ. मेरे पापा, तेरे पापा के साथ. वैसे ही मै तुम्हारे साथ.. तू मेरा भतीजे के साथ मेरी सहेली भी.. मै तो शुरू से अकली घूम रही, बस आज ये बात क्लियर हुआ है..


नकुल:- हां लेकिन लोगो के पास बोल मत देना की ये मेरी सहेली है, वरना लोग कुछ और ही सोच लेंगे… वैसे देखा जाए तो मै, तेरे अलावा केवल नंदू चाचा और शशांक के साथ ही कहीं बाहर जाता हूं.. शशांक अब है नहीं और नंदू चाचा और नीलेश एक दूसरे में संपूर्ण है, आज कल तो दोनो के दोस्ती के किस्से गांव से लेकर सहर में मशहूर है. पिछले 2 महीने में दोनो ने मिलकर 40 लाख का प्रोफिट बनाया है.


मै:- अच्छा है ना अपने परिवार के लोग आगे बढ़ रहे है. तेरी ममेरी बहन कि किस्मत में ताला लगा है जो इतना कमाने वाले अच्छे लड़के को ना कर दी…


नकुल:- पापा को तो वो दूसरा लड़का ज्यादा पसंद है मेनका. मां भी नहीं चाहती की रिश्तेदारी में शादी हो, बाकी डिटेल तो वहीं लोग जाने…


मै:- वैसे तेरी संगीता दीदी है बहुत मस्त, ना इस बात की टेंशन की दूसरे उसके बारे में सोच रहे ना ही ताका झांकी की आदत, पड़ोस में क्या हो रहा…


नकुल:- हम सहर में रहते तो लाइफ ही कुछ और रहती.. वहां कम से लोगो को इतनी फुर्सत तो नहीं होती की किसके घर में क्या हो रहा है.... और यहां तो कोई यदि छींक दे, तो सड़क कर चलते लोग पूछ लेते है… "अरे फालना बाबू, मैंने सुना आज आपको छींक आयी. एक बार आयी थी या 2 बार. ये शर्दी वाली छींक थी या अचानक आ गई. अचानक अगर एक बार छींक आए तो बनता काम बिगाड़ जाता है.. छींकने से पहले कोई बड़ा काम तो नहीं ठान लिए थे"…


नकुल बोले जा रहा था और मै हंसे जा रही थी.. मै किसी तरह अपनी हंसी रोकती उसे कहने लगी कि बस भाई बस, छींक के पीछे इतने सारे सवाल तुझसे कौन कर गया… मेरी बात सुनकर वो भी हसने लगा… तकरीबन 11 बजे तक हम दोनों ही घर पर थे.


भाभी बिल्कुल तैयार बैठी हुई थी, शायद भईया का इंतजार कर रही हो. पूछने पर पता चला कि दोनो सहर जा रहे है. उनके जाने की वजह क्या पूछ बैठी, एक के बाद एक काम कि लिस्ट लंबी होती जा रही थी… तभी नकुल बीच में कहने लगा… "एक काम क्यों नहीं करते, मेनका दीदी को किराने के समान की लिस्ट दे दो, वो किराने का सामान ले आएगी, आप लोग यहां से सीधा सहर निकलो.."..


मां:- हां नकुल ये सही कह रहा है, मेनका और नकुल किराने का सामान ले आते हैं, तुम दोनो सहर निकल जाओ…


नकुल:- नहीं मै भी सहर जा रहा हूं संगीता दीदी को लेकर.. मै तो केवल मेनका दीदी की बात कर रहा था…


मां और भाभी दोनो एक साथ नकुल को घूरती हुई…. "तू पागल हो गया है क्या?"..


नकुल:- क्या हो गया सो…


मां:- वो इतनी दूर अकेली कैसी जा सकती है…


नकुल:- दादी आप जा सकती है अकेले…


मां:- मै चली तो जाऊं, लेकिन मुझसे इतना काम नहीं होगा.. फिर यहां का काम कौन देखेगा..


नकुल:- अभी की बात नहीं कर रहा की अभी जा सकती हो या नहीं.. वैसे बाजार तक अकेली जा सकती हो, सामान लाने..


मां:- जाती है थी, अब थोड़ी अवस्था हो गई, वरना आगे भी जाते ही रहती..


नकुल:- और चाची तुम..


भाभी:- मै क्यों नहीं जा सकती अकेले, जब ये सहर में टेंडर का काम देखते है और बाबूजी कटाई का, तो मै या मां जी ही तो जाया करते थे बाजार..


नकुल:- तो जब मैंने मेनका दीदी का नाम लिया तो ऐसे उछलकर मुझे क्यों कहने लगी… "पागल हो गया है क्या?"


"कौन पागल हो गया"… बाबूजी और मनीष भईया एक साथ दरवाजे से अंदर आए और बाबूजी ने नकुल से पूछा…


नकुल:- यहां मेरे अलावा और कोई पागल आपको नजर आ रहा है क्या दादा..


पापा:- मनीष इसे भी साथ में सहर लिए जा, रांची के बस में चढ़ा देना और ड्राइवर को बोलना पागलखाने छोड़ आने…


मै:- हां सब हाथ धोकर पर जाओ इसके पीछे..


मनीष भईया:- वैसे भतीजा लाल किस बात को लेकर सभा का आयोजन कर रहे..


नकुल:- अकेली दादी बाजार से किराना का समान ला सकती है. अकेली चाची भी जा सकती है लेकिन दीदी अकेले नहीं जा सकती… इस सवाल के लिए मै पागल घोषित हो गया…


पापा:- हम्मम ! कुछ चीजें होती है, जो जितना पर्दे के दायरे में रहे, उतनी अच्छी लगती है नकुल. तुम्हारी दादी या चाची का जाना बस उस वक़्त की मजबूरी हो सकती है, लेकिन हमारी कभी इक्छा नहीं रही दिल से.. क्या समझे..




नकुल:- हां दादा आप सही कहे. हम तो अपने ओर से घर के लेडीज को पूरा सहुलियत ही देते है. घर में उन्हें कैसे रहना चाहिए, कैसे बात करना चाहिए, किससे कितना बात करना चाहिए.. कोई बाहरी यदि घर में बैठा हो तो कितना उनके सामने आना चाहिए, कितना नहीं… इतना कुछ शुरू से सीखाने के बाद उन्हें बाहर अकेले भेजने में चिंता ही बनी रहती है. चिंता इस बात की नहीं होती की हमने जो सिखाया वो हमारी घर की लेडीज बाहर कर रही होगी की नहीं… भरोसा दूसरे का नहीं होता, की उनकी नजर और नजरिया कैसा है, फिर दिल में एक अनचाहे बदनामी का डर…

फिर कहानी आगे बढ़ती है. स्वाभाविक सी बात है जितने प्यार से और जितने संस्कारो के साथ अपनी लाडली बेटी को पाला, उसी के अनुसार उसके जीने का तरीका और सोचने का नजरिया भी होगा. फिर एक दिन बाजार के हाईवे के पास वाले 10 एकड़ जमीन, जो बेटी की शादी के लिए रखे है, उसका हम वैल्यू निकालने बैठेंगे.. ओह तकरीबन 6 से 8 करोड़ की वैल्यू आती है. ओह, इतने दहेज में एक आईएएस (IAS), आईपीएस (IPS), या उच्च सरकारी पद वाला दामाद मिल सकता है. लेकिन वो लड़के बड़ी मुश्किल से गांव की लड़की को देखने के लिए राजी होते हैं. और जब लड़की देखकर जाता है, तो शादी से इंकार देता है, क्योंकि उसे पता है हमारी लड़की को वो अपने किसी पार्टी फंक्शन में ले जाएगा, तो वो वहां के माहौल से मैच नहीं कर पाएगी…

1 से 2 करोड़ दहेज में कोई बड़ा बिज़नेस मैन भी मिल सकता है, लेकिन क्या करे उसके साथ भी वही समस्या है, गांव की लड़की है, सहर में उसे हर चीज सीखना होगा, लेकिन फिर भी जिस जगह में पली है और जिस माहौल में ढली है उसका असर तो कुछ ना कुछ रह ही जाना है…

तो कहानी का अंतिम भाग में ये बचता है कि अंत में अपनी तरह का ही एक जमींदार फैमिली खोज दो. लेकिन क्या फायदा जो अच्छे लड़के होते है वो सहर में नौकरी कर रहे होते है और जो कतई आवारा होते है वो गांव में बचे रहे जाते है.. मै ऐसा नहीं कह रहा की सभी आवारा होते है, लेकिन लड़की की शादी की बात अब मां बाप अकेले थोड़े तय करते है, लड़का अच्छा है, लड़का अच्छा है ऐसा कहने वाले बहुत से रिश्तेदार तो रिश्ता ना होने पर तो मुंह भी फुला लेते है..

अब बेचारे मां बाप 4 बुरा लड़का छांटने के बाद आपस में ही विचार करते है, लड़की की उम्र निकली जा रही. एक ओर मां बाप ये सोच रहे होते है और दूसरी ओर हवा भी बहना शुरू हो जातो है… "सुना फलाने के बेटे को देखने गए थे, राजा परिवार है उसका, इतना सुखी संपन्न. दादा उसके खूंटे में हाथी को बांधकर पालते थे. ऐसे घर में रिश्ता थोड़े ना होना था, छांट दिया होगा लड़के वालों ने"

अब ये उड़ती-उड़ती खबर मिल गई की गांव वाले कह रहे है कि अच्छा घर परिवार नहीं मिलेगा. लो जी हो गया फोकस शिफ्ट. अब घराना देखो पहले. ऐसा घर होना चाहिए कि 5 बीघा खेत और बिक जाए तो गम नहीं, लेकिन खानदान ऐसा खोजना जहां एक नहीं 2 हाथी को खूंटे से बांध कर पालते थे…

घराना मिल गया शानदार और लड़का काम चलाऊ. फिर यही निकलता है शादी के वक़्त, "अब क्या कर सकते है आज कल हर लड़के की यही कहानी होती है, थोड़ा बहुत तो सब मनचले होते है." "दारू शराब क्या हम नहीं पीते.. शादी के बाद सुधार जाएगा"….

बस खुद के विश्वास के भरोसे की शादी के बाद लड़का सुधार जाएगा, हम अपने घर की लाडली को पूरे रिस्क के साथ ऐसे लड़के से बांध देते है.. आगे सोचते रहो सुधरा की नहीं सुधरा, क्योंकि हमने जिस माहौल में अपनी लड़की को पाला है, फिर वो कभी कहने नहीं आएगी की मुझे ऐसे लड़के के गले क्यों बांध दिया.

सबसे मज़ेदार तो अब आएगा.. पति को सुधारने के लिए यदि लड़की ने जोड़ जबरदस्ती की, तो पहले तो उसे थप्पड़ पड़ेंगे और तब भी ना लड़की मानी और उस लड़के को आगे भी सुधारने कि कोशिश करती रही, तो बड़ा प्यारा सा खबर मिलेगा, "लड़की का किसी के साथ पहले से चक्कर था. शादी के बाद भी गांव में किसी से चक्कर है"… फिर बचपन से हमारे अनुसार दिए संस्कार में पली अपनी लाडली बेटी से ये पूछते भी देर नहीं लगती… "हमारे परवरिश में कौन सी कमी रह गई थी जो तूने हमारी नाक कटवा दी."

अब पति के लात्तम-जूते से वो ढीट हो गई, तो ऐसे सिचुएशन में शाशिकला आंटी की तरह बन जाती है, जिसका नाम लेकर आज भी गांव वाले अपशब्द बोल देते है. या फिर नीरू आंटी वाली कहानी होगी, रात को सोएगी और जिल्लत की वो अपनी जिंदगी को कहेगी, सर अब बस.. लेकिन यहां भी शशिकला जैसा ही हाल होगा है. लोग नीरू जैसे लड़की के मरने के बाद भी कहेंगे, लड़की में ही दोष था और पूरी उम्र उसके खानदान को घसीटते रहेंगे"..

कमाल है ना मेनका दीदी जैसी साफ सुथरी माहौल में पली लड़की को ऐसा कुछ झेलना परता है. जबकि कुछ नाम मै परिवार के सामने नहीं गिना सकता जिसकी परवरिश किन माहौल में हुई थी और उसकी जिंदगी कैसी कट रही..

आप लोग ये नहीं समझिए की मै आपको मेनका दीदी का ग़लत गार्डियन कह रहा. लेकिन कम से कम उन्हें खुद से खड़ा तो होने दो. खुद से माहौल को इतना तो परखने दो की वो इतना तो मुंह खोल सके कि आपको कह सके "पापा ये लड़का पसंद नहीं". रिश्ते की बात करने सहर से आए अपने पसंदीदा लड़के को सिर्फ इस वजह से ना खो दे, क्योंकि देखा सुनी के वक़्त मेनका दीदी एक शब्द ना वो लड़के से बात कर पाए, और ना आपसे कह पाए, पापा ये लड़का पसंद था, लेकिन अफ़सोस की किसी लड़के से बात करते वक़्त मेरा मुंह ही नहीं खुलता.

कल को वो सहर का अच्छा लड़का, मेनका दीदी के हाव-भाव और बातचीत से ये ना कहे कि.. "नहीं ये तो गांव की है"… खैर आप लोग बेटी को पालते ही है शादी के लक्ष्य तक पहुंचने के लिए, इसलिए शादी कि बात पर समझाया. वरना हम से भी थोड़ा पिछड़े गांव के है राजवीर चाचा और उनकी बेटी प्राची दीदी से आप हॉस्पिटल में मिल चुके हैं। शायद दिल से पहली आवाज़ यही आएगी होगी की कितनी संस्कारी है ये लड़की, जबकि वो शाम के 7 बजे तक वहां हमसे हॉस्पिटल में मिली, बेझिझक उन्होंने सब से बात किया. दुकान में ना जाने कितने अंजान लोगो से बेझिझक बात करती होंगी उसकी बात ही छोड़ दीजिए. गांव आयी तो बिल्कुल गांव के माहौल में और किसी कलेक्टर से बात करना हो तो बिल्कुल अलग अंदाज में.

एक बात और, वो जहां से पढ़ी है ना, बिहार के कई जिले का एक भी स्टूडेंट उस इंस्टीट्यूट की सीढ़ियां नहीं चढ़ा होगा. अपने खुद के शॉप को देखती है और प्राची दीदी के बारे में बाकी की डिटेल मुझे देने कि जरूरत नहीं… चलता हूं मै, शायद दादा को कुछ और ज्यादा पर्दे की जरूरत ना पड़ने लगे. क्योंकि कल से तो नंदू चाचा की मां ने कहना भी शुरू कर दिया है, "मेनका अब जवान लगने लगी है, उसपर ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है"… अब ये बात दादी भी सुन ही लेगी फिर उन्हें भी मेनका दीदी जवान लगने लगेगी.. उसके बाद फिर पूरे खानदान को… अब छोटा हूं तो दादा की इतनी तो मदद कर ही सकता हूं कि पर्दे के कपड़े का पूरा थान खरीदकर ले आऊं.



नाह ! ये लड़का गंगा में खड़ा होकर भी का देता की इसने ये बात खुद से सोचकर बोली है, तो भी मै मान नहीं सकती थी. बचपन से साथ रही हूं, ये भी जानती हुं ये कितना धूर्त है, लेकिन इतनी सफाई से इतनी गहराई की बात करना तो इससे संभव नहीं. फिर कैसे कैसे कैसे.…. खैर अभी इसपर सोचने से पहले घर के लोगो को देख लूं..


मन के ख्याल को मै विराम देती सबके चेहरे देखने लगी. भाभी और भैया के चेहरे पर तो साफ लिखा था कि जैसे वो गांव के आवारा की कहानी इन्ही दोनो के लिए कही गई है. नकुल ने जो 2 नाम लिए थे, शशिकला और नीरू, दोनो ही हमारे आगे टोल की 2 खास दोस्त थी, बिल्कुल प्यारी और मासूम. उन्हें भी मेरी तरह ही बड़ा किया गया था. दोनो की बहुत ही भव्य शादी हुई थी, ऐसा जो लोग कई वर्षों तक याद करे.


और शादी के बाद की कहानी नकुल बता दिया. शशिकला के केस में उसने बस इतना किया की पहले तो गांव से बाहर भागी, फिर पहला केस फाइल कर दी थी पति पर और डाइवोर्स लिया, फिर दूसरा केस अपने घरवालों पर. और दोनो जगह से कानूनन लड़कर अपना पूरा हक ली. फिर शशिकला पूरी सम्पत्ति को बेचकर कहां शिफ्ट हुई किसी को पता नहीं.. आखरी जो सुनी थी, वो मैंगलोर में है.


पापा घर के मुखिया की कुर्सी पर बैठे थे. उनके आते ही भाभी सर पर पल्लू डाले मां के साथ अपने कमरे का बाहर किसी समीक्षक कि तरह बैठी थी. और मेरे मनीष भईया, वो सबके चेहरे की भावना को पढ़ने वाले ऐसे समीक्षक थे, जो भेंर चाल चलने का इरादा बनाए थे. हवा जिस ओर रुख करेगी, उस ओर वो भी. वैसे शशिकला और नीरू के तरह, एक आवारा की कहानी तो इस घर में भी थी, बस मामला बढ़ने के बदले मेरी भाभी भी भईया के नक्शे पर चलने का फैसला ले लिया…


मै अपने मन में बहुत सी बातों की समीक्षा कर रही थी, तभी नकुल दरवाजे से चिल्लाया… "दादू, ये है बेड़ियां तोड़ने वाला काला चश्मा, और ये रहा कुछ पर्दा, दोनो में से जो मेनका दीदी के लिए सही लगे, उठा लो"..


ये गधा आज करना क्या चाह रहा था, लगता है या तो आज वाह-वाही बटोरेगा या जूते खाकर जाएगा. शांत तो उसकी जिंदगी आज के दिन नहीं रह सकती… तभी मेरे पापा खड़े हो गए और नकुल को घूरते हुए उसे एक थप्पड़ लगा दिए.. "आव बेचारा… इसकी तो, ये तो ब्लूटूथ पर किसी से चिपका था. कुत्ता कहीं का, इसे बाद में बताती हूं"..


पापा ने जैसी ही नकुल को थप्पड़ मारा, पहले तो मेरे दिल से निकला "बेचारा".... लेकिन थप्पड़ पड़ने के बाद जिस तरह से नकुल ने एक बार अपने बाए देखा, मेरी नजर भी उस ओर चली गई, पता चला भाई साहब ऑनलाइन प्रवचन को यहां बस बोल रहे थे. आवाज इसकी और सारांश किसी और का. वैसे जो उसके कान से छोटकु पिद्दी सा गिरा था, मेरा प्यारा ब्लूटूथ था. सॉरी ब्लूटूथ कहना थोड़ा जाहिल वाला हो जाएगा, वो था जेबीएल का एयरडोप. इसको बोली थी तेरे लिए नया मंगवा दिया है मेरा मत ले, लेकिन ये कब लेकर गया मुझे पता भी नहीं चला..


अच्छा हुआ इसे थप्पड़ पड़ा, चलो पापा बहुत घुर लिए नकुल को, आ भी जाओ और डाल दो पर्दा मेरे ऊपर. ऊप्स ! मेरे लिए थोड़ा मुश्किल हो गया ये पल, शायद इतनी खुश थी कि आखों से आशु आ गए, लेकिन मेरे आशु ना दिखे इसके लिए पापा ने वो काला चस्मा खुद अपने हाथो से मेरे आखों पर डाल दिए, किन्तु खुद के आशु नहीं छिपा पाए….


"नकुल ने जो भी बताया बिल्कुल सही बताया. हम सब अंत में यही करते है. लड़की पर शुरू से ही अपनी ख्वाहिशें थोप देते है, ना तो भावना दिखती है और ना ही कभी दिखते है अपनी बच्ची के अरमान. मैंने अपनी बेटी को ऐसे हालातो के लिए नहीं पाला की कोई उसे रुला सके. बस ये लड़का हमे थोड़ा देर से समझाया कि हम गलत पर्दे तले अपनी बच्ची को पाल रहे थे… मेनका तुमने हम पर भरोसा किया अब हम तुमपर करेंगे. जिम्मेदारी और जवाबदेही बस इतना ही याद रखना"…


पापा बहुत ज्यादा नहीं बोले, उनके इतना बोलकर जाने के बाद, किसी और ने भी कुछ नहीं बोला. बस सबके चेहरे पर हसी थी और मै नकुल को देख रही थी. भले ही वो ब्लूटूथ लगाकर नीतू से ही सारा ज्ञान क्यों ना ले रहा हो, लेकिन बात को सामने रखने के लिए जो हिम्मत और बात करने का जो टोन चाहिए था, उसे नकुल से बेहतर शायद ही कोई कर सकता था…


नकुल से मुझे बहुत सी बातें करनी थी, लेकिन शायद वो सच कह रहा था कि उसे संगीता को लेकर सहर जाना है. चुपके से उसने वो एयरडोप उठाया और वहां से चला गया, और मै मन ही मन उसे धन्यवाद कहती अपने कमरे में चली आयी…
kya baat hai nakul toh chha gaya.. :applause: :claps:
bhatija ho toh aisa aur dost bhi :superb:
Khair let's see what happens next
Brilliant update with awesome writing skill nainu ji :applause: :applause:
 
  • Like
Reactions: DARK WOLFKING

Naina

Nain11ster creation... a monter in me
31,619
92,285
304
पांचवा किस्सा:- पहला भाग







आह !! आज़ादी की उड़ान. मैंने बहुत कुछ सुन रखा था इस बारे में. पढ़ा भी था, और जो सहर के लोग कभी कभार टकराते उनसे भी सुना था, गांव में लड़कियों को खुद से बहुत कुछ करने की इजाजत नहीं होती, वो अलग बात थी कि आज तक मुझे कभी ऐसा मेहसूस नहीं हुआ था…


मै अपनी मनोदशा क्या बयान करूं. सुनने में अच्छा लग रहा था. मुझे भी अच्छा लग रहा था कि मुझे कुछ छूट मिल गई है. अभी ठीक से सोची भी नहीं थी कि अकेले बाहर जाने का सही मतलब क्या होता है. एक्सपर्ट एडवाइस यानी कि प्राची दीदी को बताई भी नहीं थी ये बात, और ना ही उनसे पूछा था कि अकेले घूमने का क्या मतलब होता है, इतने में मां कमरे में आयी और कहने लगी तैयार हो जा, बाजार से आज सारा सामान तुम्हे ही लाना है.


बाकी सब तो ठीक है लेकिन ये भी ना हुआ किसी को, की चलो ठीक है मार्केटिंग कैसे करते है 2-4 बार साथ ले जाकर दिखा दे, फिर उसके बाद कहे ठीक है अब आगे से मेनका ये खुद कर लेगी..


मै बेचारी बच्ची, आज ही तो अकेले उड़ने की इजाजत मिली थी, और ऐसा लगा जैसे कह रहे हो चल बेटा उड़ जा आकाश में. हां ऐसा ना सोचूं तो क्या सोच लूं, सबके साथ मंदिर गई थी तो मंदिर भी तो बोल सकते थे जाने, की जा बेटा पूजा कर आ. कॉलेज कई बार गई थी तो कह देती कॉलेज तक अकेली जा और चली आना, लेकिन नहीं जा बाजार से सामान ले आना. आज तक किसी के साथ जो काम नहीं करने गई, उसे अकेले बोल रहे थे करने. ऐसा थोड़ा ना होते है कि पहली बार पंख खोले हो और कह दिए चल बेटा अब वहां से उड़ान भरकर आ, जो जगह आज तक हमने तुझे कभी दिखाया नहीं.


ये इत्ती बड़ी 2 मीटर की सामान की लिस्ट थामा दी गई, जबकि उसमे अनाज तो खरीदना ही नहीं था. भईया अपनी गाड़ी से निकल गए थे, पापा की कार में उतना सामान आता नहीं इसलिए मै भी अपनी रेंग रोवर लेकर निकल गई. ओह हां निकालने से पहले हल्का मेकअप, काजल, बिंदी और हाथ में चूड़ियां डालकर निकली थी…


कुछ ही देर में मै वहां किराने की दुकान में पहुंची. चलो एक बात कि राहत थी, यहां बैठकर सामान लेने की वायास्था थी. मैंने भी दुकानदार को अपनी लिस्ट थमाई और सामान निकालने के लिए बोल दी… दुकानदार लिस्ट देखकर एक बार मेरी शक्ल देखा और पूछने लगा… "तुम्हारा नाम क्या है, और किसके यहां से अाई हो"..


मैने भी अपना परिचय दे दिया. हां ठीक है दुकानदार और मेरे बीच थोड़ा फासला था और मै इतना प्यार से ऊंचे सुर में बोली थी कि, 3 बार दुकानदार के पूछने और 3 बार मेरे बताने के बाद भी, उसने चेहरा ऐसा बनाया जैसे उसने कुछ सुना नहीं और हारकर फिर पूछना उचित नहीं समझा, अपना काम करने लगा.


लता की बात कुछ-कुछ सही थी, पता नहीं क्यों मै बात-बात पर चौंक रही थी और थोड़ा डर भी लग रहा था. मै दिल के डर को दूर करने कॉल नकुल को लगा दी. शुक्र है आज फोन बिज़ी नहीं आ रहा था…. "शॉपिंग चल रही है दीदी"… फोन उठाते ही उसने कहा… मैंने भी प्रतिउत्तर में नकीयाते हुई लहराता सा "नकुल" कहने लगी.. मानो कहना चाह रही हूं, अकेले वाली बात सुनने में अच्छा लगता है, लेकिन बाजार में अकेले सामान खरीदना बहुत रिस्कि काम है.


नकुल:- क्या हुआ परेशान क्यों हो रही हो..


मै:- अकेले बाजार में बिल्कुल भी अच्छा नहीं लग रहा. मुझे डर लग रहा है..


नकुल:- मैंने कहा था ना कंपनी वाली बात..


मै:- अब वहां के खानदान में किसी के घर लड़की नहीं हुई तो मेरी गलती है क्या?


नकुल:- आराम से, आराम से, क्यों इतना चिढ़ रही हो..


मै:- तूने फसाया है, अब मै नहीं जानती तू क्या करेगा, लेकिन अभी अभी अभी तू मेरे पास आएगा बस..


नकुल:- दीदी सब सही तो है, एयरडोप कान में लगाओ और मुझसे बात करती रहो..


मै:- ताकि कल सब बातें करने लगे, अनूप मिश्रा की बेटी ठीक से जवान नहीं हुई और फोन पर चिपकी रहती है…


नकुल:- अच्छा ठीक है अपने बाएं देखो सड़क के उस पार..


मैंने उस पार देखा, नकुल फोन स्पीकर पर डाले हुए था और वहां मेरे घर के सारे लोग मेरी बात सुनकर हंस रहे थे. मै फोन काटकर उन्हें एक बार देखी और लज्जा गई. पापा हंसते हुए मेरे पास पहुंचे, मै अपनी नाकामयाबी पापा में सिमटकर छिपाने लगी.


उनके जब गले लगी तो बता नहीं सकती, कितना राहत कि श्वांस ले रही थी. इस एहसास को मैं बयान नहीं कर सकती थी. भाभी और भैया भी वहां थे. मां मेरे पास पहुंची उन्हें देखकर मै पापा को छोड़कर उनसे सिमट गई. मां हंसती हुई मेरे सर पर हाथ फेरती कहने लगी… "नकुल ने सही ही कहा था. यहां इसकी पूरी खाली दुकान में डर रही है, पता नहीं त्योहार के समय जब दुकान भरी रहती है, तब तेरा क्या होता. सच ही कहा था, हमने मिलकर तुझे पुरा गावर बनाकर रखा था."


उस दुकानदार ने जैसे ही पापा को देखा अपनी जगह छोड़कर वो पापा के पास खड़ा हो गया… "ये आपकी बेटी है अनूप भईया"


पापा:- तुम ऐसे क्यों पूछ रहे गंगा..


दुकानदार:- नहीं भईया इससे मैंने 3 बार पूछा, लेकिन ठीक से बता नहीं पाई…


पापा:- आज थोड़ी घबराई सी थी, इसलिए शायद ठीक से जवाब नहीं दे पाई..


कुछ देर मां पापा दुकानदार से बतियाने लगे और मै खड़ी होकर उनकी बात सुनती रही. नकुल और मनीष भईया दोनो अपनी सवारी को लेकर सहर के ओर निकल गए. पापा ने फिर उन्हें सारा समान निकालकर पैक करने कह दिया और हमे लेकर पास के चाय समोसे की दुकान में चले अाए.


हम सब एक टेबल पर बैठे हुए थे और पापा ने सबके लिए 2 समोसा और मिठाई लगाने कह दिया. इतने में वो दुकानदार गंगा आकर मां और पिताजी को अपने साथ 2 मिनट आने के लिए कहने लगा..


पापा मुझे जबतक नाश्ता करने के लिए बोलकर उनके साथ निकल गए.. मुझे आस पास के लोगों से ज्यादा मतलब नहीं था इसलिए मै भी मोबाइल निकालकर कुछ-कुछ करने लगी. तभी एक लड़का मेरी टेबल पर समोसा और मिठाई लगा गया, जिसके नीचे एक टिश्यू पेपर पर लिखा था… "अब तक जवाब नहीं दी, मुझसे दोस्ती करोगी."


वो पेपर देखकर ही मेरी हिचकी निकलने लगी. मै आस-पास पापा को ढूंढने लगी… और जब पापा कहीं नहीं दिखे तो दबी सी आखों से पास खड़े लड़के को देखने लगी, जो ये संदेश लेकर आया था… मै हिचकी लेती उसे घुर रही थी और वो हंसता हुआ दुकान के काउंटर पर इशारा करने लगा..


मैंने काउंटर पर देखा, सांवला रूप, सलोना चेहरा, छरहरा बदन, बड़ी बड़ी सी आखें, और मेरी ओर देखकर इतने प्यार से मुस्कुरा रहा था, मानो खींच रहा हो अपनी ओर. मै यहां पूरी तरह डरी थी, लेकिन उसे देखकर एक पल के लिए मेरी नजर ठहर गई और फिर मैंने अपने नजरो को उसपर से हटा लिया… "दीदी पानी पी लो, आपकी हिचकी बंद हो जाएगी"…


मेरी हिचकी तो पहले से ही काउंटर वाले लड़के को देखकर बंद हो गई थी, फिर मै पास खड़े लड़के को घुरकर देखने लगी… "ये क्या है".. मैंने गले को 2 बार और खरासा लेकिन फिर भी आवाज़ ठीक से नहीं निकली. एक ओर मां पापा का टेंशन और ऊपर से ये मेरी घबराई सी आवाज. मैंने थोड़ा ध्यान लगाया और आंखो मै गुस्सा लाते… "ये सब क्या है, यहां होटल में आने वाले के साथ ऐसे ही करते हो क्या? रुको मैं ये पेपर अभी अपने पापा को दिखाती हूं, फिर तुम सबकी अक्ल ठिकाने आएगी.. पापा, पापा"..



मै जोर से चीखने लगी, और इतने में पापा वहां आ गए. पापा तो बाद में पहुंचे पहले तो लोगो का वहां भिड़ लगने लगा.. कुछ लड़के बेचारी लड़की को सहारा देने तुरंत पहुंच रहे थे, तो कुछ बुजुर्ग पूछने में लगे हुए थे कि "क्या हुआ बेटी"..


इतने में मां और पिताजी भी भागते हुए पहुंच गए.. "क्या हुआ मेनका?".. आते ही उन्होंने पूछा. मेरे साथ तो सांप छूछंदर वाली कहानी हो गई. दोस्तो वाली बात बता देती तो यहां इतना बवाल होता की उसकी बस कल्पना ही की जा सकती थी, नहीं बताती तो उस लड़के मन बढ़ जाता, चिल्लाई पापा को बुलाई लेकिन कुछ कहा नहीं..


कुछ सूझ नहीं रहा था, तभी खुद को शांत करती, मां और पापा को अपने साथ आने के लिए कही. दोनो को किनारे ले जाती हुई कहने लगी… "पापा वो काउंटर पर जो लड़का बैठा है ना, वो मेरी सहेली को लेटर भेजकर पूछता है.. क्या मुझसे दोस्ती करोगे"…


गांव की लड़की को छेड़ा, बात सुनकर ही पापा आग बबूला हो गए. मुझे क्या पता था हंगामा सहेली के नाम से भी हो जाता है. सूक्र है मां साथ थी. वो मेरे सर पर एक हाथ मारती हुई कहने लगी… "तुझमें अक्ल है की नहीं. अच्छा तू जा वहां नाश्ता कर, हम काम खत्म करके आते है फिर उसे देख लेंगे"…


मै चुपचाप आकर अपने टेबल पर बैठ गई. मैं दोनो लड़के के चेहरे के भाव लेने के लिए अपना चस्मा आंखो पर चढ़ा ली और थोड़ी सी मुंडी घुमा कर उन्हें देखने लगी. मैंने इतने ढीट लड़के आज तक नहीं देखे थे. दोनो को पता था कि मैंने पापा से उनकी शिकायत की है. एक तो कॉलेज का लड़का था, जिसने मुझे पत्री भेजी थी. दूसरा उसका संदेश वाहक जिसके सामने मैंने पापा को बुलाया, धमका तक दिया की पापा से शिकायत करूंगी. इतना करने के बावजूद भी ढीट की परिभाषा था वो मेरे कॉलेज का लड़का. वो मेरी ओर देखकर मुस्कुरा रहा था, और संदेशवाहक लड़के को पकड़े हुए कुछ बातें कर रहा था..


हालांकि वो संदेशवाहक थोड़ा डारा हुआ लग रहा था, लेकिन दूसरे लड़के के चेहरे पर तो डर नाम का कोई भाव ही नहीं था, उल्टा उसे शायद पता चल गया कि मैं उसके ओर देख रही हूं… सामने मेन्यू का बड़ा सा ब्लैक बोर्ड लगा था, उसपर छापे हर आयटम की लिस्ट को मिटा दिया… और मेरे ओर देखते हुए ही अपने साथ वाले लड़के से कुछ कहा.


उसकी बात सुनकर तो जैसे उस लड़के की आखें फटी रह गई हो, चेहरे की हवाइयां उड़ गई हो. तभी वो मेरे कॉलेज का लड़का, बिना मुझ पर से नजर हटाए अपने दोस्त को एक थप्पड़ मारा. वो लड़का भी खीसियाकर चौक उठाया और बरे बरे अक्षरों में लिख दिया… "आज मेरे दोस्त के आने की खुशी में एक समोसा के साथ एक समोसा मुफ्त. सब लोग खाइए और दिल से दुआ देते जाइए"..


मेरी हिचकी आना लाजमी था. मै एक घूंट पानी भी पी रही थी और तिरछी नजरो से वो लिखा हुआ भी पढ़ रही थी. तभी मां और पापा वहां पहुंच गए, उन्होंने इशारों में उस लड़के को बुलाया.


सच कहूं तो इस वक़्त मेरी हालत ठीक वैसी ही थी जैसी बिना पानी के छटपटाती हुई मछली. मेरे पाऊं में तो जैसे वाइब्रेटर फिट हो गए थे, दोनो हाथ से घुटने को दबा रही थी लेकिन पाऊं था कि रुकने का नाम ही ना ले. इतने में वो लड़का भी हमारे पास पहुंच गया, और हिम्मत तो जैसे कूट-कूट कर उसके अंदर भर गया हो. आकर ठीक मेरे पास खड़ा हो गया.. डर के मारे मेरे माथे से पसीना आने लगा. बार-बार यही ख्याल आ रहा था, जो खुल्लम खुल्ला बोर्ड पर इतने बड़े अक्षरों में लिखवा सकता था वो क्या पता मुंह खोलने पर क्या बोल दे… हेय भगवान, हेय भगवान, बस इतना ही चल रहा था मेरे अंदर…


पापा थोड़े कड़क लहजे में पूछने लगे… "मै ये क्या सुन रहा हूं रवि"..


रवि बड़े ही शालीनता से… "क्या हो गया अंकल"


पापा:- मेनका यही है ना जो तुम्हारी सहेली को छेड़ रहा था..


मै उंगलियों में उंगलियां फसाकर, अपनी हथेली मसलती हुई बस हां में अपना सर हिला दी… जैसे ही मैंने अपनी सहमति दी, वो लड़का रवि कहने लगा… "अंकल मेनका से पूछिए, मैंने इसकी कौन सी सहेली को छेड़ा है. एक इसकी दोस्त है नीतू और दूसरी लता, बेफिक्र होकर कहो फोन लगाने और पूछने. किसी ने हां कह दिया तो आपका जूता मेरा सर"..
are aukat hi kya hai iski amir gharane ki bholi bhali ladki kya dekhi lag gaye line maarne.. are menka itni dar kyun rahi hai sab sach sach bata kyun nahi deti aur do teen jhuth bhi jod le ki ravi ne usko ashlil ishare bhi karta hai :D toh jaake kuch khoon kharaba ho kahani mein :evillaugh:
aur haan sabse pehle us prachi ki band bajni chahiye :D
Khair let's see what happens next
Brilliant update with awesome writing skill nainu ji :yourock: :yourock: :yourock: :yourock:
 
Last edited:
  • Like
Reactions: DARK WOLFKING

Naina

Nain11ster creation... a monter in me
31,619
92,285
304
मां मेरा सर अपने गोद में रखकर मेरे गालों पर हाथ फेरती… "ये सब छोटी-छोटी बातें है मेनका. हां लेकिन इन छोटी बातो को भी नजरंदाज नहीं करना चाहिए. पहले छोटे स्तर से सुलझाने को कोशिश करो. उस लड़के को साफ सब्दो में खुद से जाकर बोल दो. इन लड़को को कुछ सोचने की हिम्मत तब आती है, जब हम ख़ामोश रह जाते है.

अपनी खामोशी को तोड़ना सीखो. फिर तुम खुद समझ जाओगी कौन सी बात पापा को बतानी है, कौन सी बात मम्मी को, कौन सी बात नकुल को और कौन सी बात भाभी को. जब तुम खुद से सब कुछ समझोगी, तो छोटी बड़ी परेशानियों का हल निकालना आसान हो जाएगा, वरना हर वक़्त तुम्हारी नजर किसी ना किसी सहारे को ढूंढ़ती रहेगी. समझ गई…
satya vachan :adore: :adore:
 

Naina

Nain11ster creation... a monter in me
31,619
92,285
304
पांचवा किस्सा:- दूसरा भाग





मुझे लगा मामला कहीं फंस ना जाए इसलिए मै हड़बड़ा कर कहने लगी… "तुमने नहीं लिखकर भेजा था… क्या मुझसे दोस्ती करोगी"..


मां पिताजी के सामने उससे सीधा बोलने के लिए भी मैंने कितनी हिम्मत जुटाई थी. उसे तो देखो, मेरे मां पापा के सामने ही मुझे देखकर हसने लगा और मेरे ओर देखते हुए अपने सर पर हाथ रखकर ऐसे हंस रहा था, मानो अपनी आखों से ही मुझे बेवकूफ कहने की कोशिश कर रहा हो…


पापा:- क्या हुआ, मेनका की बात पर ऐसे पागलों कि तरह हंस क्यों रहे हो?


रवि:- अंकल आप तो जानते है, मै यहां केवल अपने पापा के मदद के लिए गांव में हूं. सुनिए अंकल मेरी दीदी जब अपने बर्थडे पर दोस्तो को इन्वाइट करतीं है, तो उसमें लड़का या लड़की में बेहदभाव नहीं होता… दोस्त मतलब दोस्त होते है.. लेकिन जानते है आपको क्यों बता रहा हूं ये बात, क्योंकि आप पढ़े लिखे और सुलझे लोग है, आप दोस्त मतलब दोस्त ही समझेंगे. लेकिन यहां किसी गांव वाले को बोल दूं ना मेरी दीदी की दोस्ती लड़को से है, तो आपको पता है… अब आप ही बताइए जिस जगह के लोग अपने दिमाग में 100 गंदगी लिए रहते है, ऐसे माहौल में मै किसी लड़की से ऐसा पूछ सकता हूं क्या?

हां एक किसी लड़की को मैंने सिर्फ इतना कहा था कि हम साथ पढ़ते है, इसलिए हम केवल दोस्त है. और मेरे लिए दोस्त मतलब दोस्त होता है, फिर मै लड़का और लड़की में फर्क नहीं समझता. सुबह से शाम तक तुम्हारा काम करूंगा तो शाम को घर में नाश्ता भी करवाना होगा.. मै तुम्हारे काम से कहीं बाहर जाऊंगा तो तुम्हे बाइक में पेट्रोल भरवाना होगा.. 2 बजे रात में भी कहोगी तो दोस्त होने के नाते मै तुम्हारे दरवाजा पर खड़ा रहूंगा… लेकिन कभी भी मुझसे गांव के लड़के वाली दोस्ती समझी ना, जो कहते दोस्त है और मिलते है किसी कोने में, तो मै गला घोंटा दूंगा तुम्हारा…

मै तुम्हारे साथ चलूंगा तो तुम्हारे पापा के सामने भी तुम्हारे साथ चलता रहूंगा, क्योंकि मेरे मन में खोंट नही. बस हम लड़का और लड़की है, इस बात का ख्याल रखूंगा और हम लहज़े से चलेंगे या साथ में घूमेंगे, ताकि लोगों को भी गलतफहमी ना हो.. क्योंकि हम जहां रहते है वहां के कल्चर का भी सम्मान करना पड़ता है..

हां इतनी बात मैंने एक लड़की को कही थी. अब उसने मेनका के क्या कान भरे वो मै नहीं जानता, आप फोन लगाकर उस लड़की से भी पूछ सकते है. मेनका ने जो बताया, उस घटना की सच्चाई मैंने सच-सच बताया है… अब आप चाहें तो इसके लिए थप्पड़ मार लीजिए. मुझे भी गांव के दूसरे लड़के की तरह समझ सकते है, चाहे तो पापा से शिकायत भी कर सकते है, वो आपकी समझदारी और फैसले पर निर्भर करता है. क्योंकि पूरे गांव को पता है कि आप कितने समझदार है और अपनी सलाह से ना जाने कितने भटके लोगों को सही रास्ते पर ले आए है…


मुझे तो हलवाई लगा ये. मां और पापा को तो पुरा चासनी में ही डूबा दिया. मुझे तो पापा के चेहरे से साफ दिख भी रहा था कि वो खुद में कितना प्राउड टाइप फील कर रहे है और ये ढीट, बेशर्म, बार-बार मेरे ओर देखकर मुस्कुरा भी रहा था…


पापा:- नहीं फिर भी किसी लड़की को दोस्ती के लिए कहना..


रवि:- अंकल मैंने उस लड़की को समझाया था कि दोस्त क्या होता है, दोस्ती के लिए तो उसने पूछा था.


मां:- आपी भी ना बच्चो कि बात में कितना रुचि लेने लगे हो… हमारी मेनका का दोस्त नहीं है क्या..


पाप:- कौन है वो..


मां:- नकुल है और कौन है.. दोनो बचपन से ऐसे साथ रहे है कि कभी इस ओर ख्याल नहीं गया… रवि ने उस लड़की को सही समझाया है… कोई बात नहीं है रवि, तुम जाओ.


ये लड़का तो मेरे नकुल का भी बाप था. साला कैसे बात को घुमा दिया. कोई अपनी बातो में इतना कॉन्फिडेंट कैसे हो सकता है.. अपने झूट पर कितना विश्वास का तड़का लगा गया. प्रतिक्रिया में अंदर से इतना ही निकला… "उफ्फ, इस लड़के ने तो आज पक्का मेरा 1 किलो खून सूखा दिया होगा."


मुझे विश्वास हो गया कि मैंने पापा से ये भी कहा होता ना की इसने मुझसे ही 3 बार दोस्ती करने के लिए पूछा था, तो भी नतीजा में कोई बदलाव नहीं होना था. मैंने भी सभी बातो को दरकिनार करते हुए अपने समोसे और मिठाई पर कन्सन्ट्रेट करने लगी… कुछ देर बाद हम लोग वापस किराना दुकान में थे. चिपकू कहीं का, मेरे पीछे किराना दुकान तक आ गया… हमारा सारा सामान पैक था, उसे रवि और उसका दोस्त गाड़ी में रखने लगा..


तभी मां ने पापा के कान में कुछ कहा और पापा ने उस किराना दुकानदार को इशारे में कुछ समझाया… वो अपने मोबाइल से कॉल लगाया और दुकान के पीछे से एक लेडी निकलकर आयी. वो लेडी मां को अपने साथ ले जाने लगी तब पापा ने मुझे भी कहा तू भी चली जा मां के साथ.


मुझे की करना था, पापा के कहने पर मै भी चल दी. दुकान के पीछे ही उनका बड़ा सा मकान था. नीचे तकरीबन 6000 स्क्वेयर फीट का गोदाम बना हुआ था और पीछे जाते के साथ ही बाएं ओर से ऊपर जाने की सीढ़ियां बनी थी, जिसके ऊपर के फ्लोर पर रहने के लिए पुरा मकान बना हुआ था..


मै पहली बार ऊपर आ रही थी. इसका घर तो बिल्कुल किसी सहर के घर जैसा था. नीचे पुरा मार्बल के फ्लोर, चारो ओर पुरा व्यवस्थित कमरे की बनावट, साफ सफाई इतनी की मन प्रसन्न हो जाए. मेरी माते श्री आते ही सीधा बाथरूम में घुस गई और मै वहीं खुली सी जगह में बाहर एक कुर्सी पर बैठ गई..


मै जैसे ही वहां बैठी, वो रवि ठीक मेरे सामने आकर बैठ गया…. "हेल्लो मेनका"..


मै, इधर-उधर नजर दौरती…. "तुम आज क्या मुझे पागल बनाने की कसम खाकर आए हो, देखो मै बहुत इरिटेट हो रही हूं"…


रवि:- मम्मी मेरी दोस्त आयी है और आप ने उसे चाय के लिए भी नहीं पूछी..


रवि जब ये बात कह रहा था, तभी मां बाहर निकल कर आयी. जैसे ही रवि ने मां को देखा, तुरंत उनके पास पहुंचते…."आंटी, अंकल ने कहा है मेनका के फोन से तुरंत भाभी को कॉल लगा लीजिए, कुछ जरूरी बात करनी है शायद"..


मां रवि की बात सुनकर मेरी ओर देखी और मै उठकर कॉल लगती हुई कहने लगी "चलो मां"..


रवि:- ऐसे कैसे चलो मां, गांव जाकर आंटी कहेंगी तुम्हारे दोस्त के घर गई और चाय के लिए भी नहीं पूछा… क्यों आंटी..


मां:- अरे ना रे रवि हम फिर कभी चाय पी लेंगे, घर पर कोई नहीं है. वैसे भी अब मेनका ही आएगी मार्केटिंग करने, तो तू आराम से इसे चाय पिलाते रहना, अभी हमे जाने दे…


रवि:- ठीक है आंटी जैसा आपकी मर्जी, बस गांव में मेनका से झगड़ा मत कीजिएगा की कैसे तुम्हारे साथ के पढ़ने वाले दोस्त है…


क्या है ये सब. छोटे-छोटे तूफान दो ना जिंदगी में भगवान. 15 साल की उम्र तक तो गांव की दुनिया अलग थी, तो उसे वैसे ही रहने दो ना. या फिर एक-एक करके बताना था ना कि मेनका तुम्ही ऐसा सोच रही, लेकिन ये भ्रम केवल तुम्हारा अपना पाला है, ना तो तुम्हारे घर के लोगों ने बताया और ना ही पड़ोस के लोगों ने कुछ कहा, बस खुद से ही बहुत चीजों कि गलत समीक्षा करे बैठी हो.


आज का दिन ही मेरे लिए मिथ ब्रेक दिन कहा जाए तो गलत नहीं होगा. कुछ कुछ चीजें समझ में आ रही थी और कुछ भ्रम भी टूट रहे थे. मां रवि की बात पर हंसती हुई चल दी वहां से. मै जाते हुए पीछे मुड़कर उसे ही देख रही थी. बहुत ही ज्यादा सौतन था. उसे देखते हुए अपने चेहरे पर किसी तरह की भावना नहीं आने दी, लेकिन जैसे ही मै आगे मुड़ी, पता नहीं क्यों उसके बारे में सोचकर ही मुस्कुराने लगी… ढीट, जिद्दी और सौतन..


मै पुरा सामान लेकर गांव चली आयी, लेकिन मेरे ख्यालों में रवि ही था. जब वो पास था, तब तो मुझे पुरा डारा दिया था. परेशान करने कि हदें पार कर दी, लेकिन अब जब उसकी हरकतें याद आ रही थी, मेरे चेहरे पर मुस्कान छा रही थी. बहुत ज्यादा ही मुस्कान… पता नहीं क्यों लेकीन पहली बार मै किसी लड़के के बारे में इतना सोच रही थी…


ज्यादा सोचना भटकाव है, इसलिए मैंने भी अपने ध्यान को पूर्ण रूप से किताबों में उलझा सा लिया. रात के 8 बजे के करीब भईया और भाभी दोनो ही लौट रहे थे. दोनो के चेहरे बता रहे थे कि कितना थके हुए थे, साथ में कुछ आभास सा हुआ की दोनो किसी बात को लेकर काफी परेशान से थे..


मां पिताजी के साथ उन लोगो की बातचीत चल रही थी. मै जब उनके करीब पहुंची तब पापा रमन, प्रवीण और माखन चाचा का नाम ले रहे थे.. बात क्या थी मुझे पता नहीं, लेकिन मेरे पहुंचने के साथ ही सब मेरे विषय में बात करने लगे…


मेरे पहले दिन के अनुभव के बारे में सबको ज्ञात था और उसी पर बात करते हुए हंस भी रहे थे और खाना भी खा रहे थे. मै बेचारी सबके लिए खाना परोस रही थी तो वहां से जा भी नहीं सकती थी…


बात चलते-चलते फिर रवि पर आ गई. रवि की बात जैसे ही शुरू हुई, मां का ध्यान आज दिन की मेरी बातों पर चला गया… सब लोग जब चले गए तब मां मेरे पास आराम से बैठ गई और मुझे खिलाने लगी.


खाने के बाद जैसे ही मै बर्तन साफ करने के लिए खड़ी हुई, मां मेरा हाथ पकड़कर अपने पास बिठाति… "कोई लड़का तेरी दोस्त को लेटर देगा तो ये बात तुम पापा को बताओगी"…


"मां, मै फिर क्या करूंगी"… मैंने मासूमियत से पूछा..


मां मेरा सर अपने गोद में रखकर मेरे गालों पर हाथ फेरती… "ये सब छोटी-छोटी बातें है मेनका. हां लेकिन इन छोटी बातो को भी नजरंदाज नहीं करना चाहिए. पहले छोटे स्तर से सुलझाने को कोशिश करो. उस लड़के को साफ सब्दो में खुद से जाकर बोल दो. इन लड़को को कुछ सोचने की हिम्मत तब आती है, जब हम ख़ामोश रह जाते है.

अपनी खामोशी को तोड़ना सीखो. फिर तुम खुद समझ जाओगी कौन सी बात पापा को बतानी है, कौन सी बात मम्मी को, कौन सी बात नकुल को और कौन सी बात भाभी को. जब तुम खुद से सब कुछ समझोगी, तो छोटी बड़ी परेशानियों का हल निकालना आसान हो जाएगा, वरना हर वक़्त तुम्हारी नजर किसी ना किसी सहारे को ढूंढ़ती रहेगी. समझ गई…


मै:- हां समझ गई मां.. वैसे मां आप सब आज इतना परेशान क्यों है?


मां:- ये इस घर और गांव की समस्या है बेटी, हमे ही इसे सारी उम्र देखना है. तुम बस अपने पढ़ाई में ध्यान दो.


मै:- क्या ये मेरा घर नहीं है ? हुंह ! मुझे अच्छा नहीं लगा ये…


मां:- कुछ अंदरुनी बातें है बेटा जो तुम्हारे ना जानना ही अच्छा है. गांव और गांव की गन्दी राजनीति से जितना दूर रखो खुद को उतना अच्छा होगा. बाकी एक ही बात याद रखना, किसी को छेड़ो नहीं, और कोई यदि छेड़े तो उसे फिर कभी छोड़ना मत. क्योंकि एक बार की चुप्पी उम्र भर का दर्द होता है..


मां किस ओर इशारे कर रही थी वो तो मुझे पता नहीं था, लेकिन कुछ तो पीठ पीछे लोग इनके साथ बुरा कर रहे थे, जो सबके चेहरे उतरे हुए और चिंता में थे. मै शायद बहुत ही छोटी थी इन बड़ों के मामले को सुलझाने में, लेकिन दिल में एक कसक तो उठती ही है कि घर में कौन सी समस्या चल रही है जिस वजह से सबके चेहरे उतरे हुए है.. कहीं रमन, प्रवीण और माखन चाचा को लेकर तो कोई बात नहीं.


मेरे छोटे से दिमाग में कुछ बातो के ओर ध्यान भटका तो रहे थे, परन्तु उन बातों का कोई आधार नहीं था इसलिए मैंने अपने मन की शंका को अंदर ही दबाकर अपने काम को ही करने का फैसला किया…
I think menka apne chachhere bhaiyo aur nakul ke sath milke us ravi ko kahi le jaake maarke fenk aana chahiye.. yeh roz roz ki jhik jhik koun bardast kare kissa hi khatam kar de toh behtar hai :D
मां:- कुछ अंदरुनी बातें है बेटा जो तुम्हारे ना जानना ही अच्छा है. गांव और गांव की गन्दी राजनीति से जितना दूर रखो खुद को उतना अच्छा होगा. बाकी एक ही बात याद रखना, किसी को छेड़ो नहीं, और कोई यदि छेड़े तो उसे फिर कभी छोड़ना मत. क्योंकि एक बार की चुप्पी उम्र भर का दर्द होता है..
:bow: menka yeh baat zyada dhyan deni chahiye aur waise bhi menka kaafi samjhdaar hai..
Khair let's see what happens next
Brilliant update with awesome writing skill nainu ji :yourock: :yourock: :yourock:
 

Naina

Nain11ster creation... a monter in me
31,619
92,285
304
पांचवा किस्सा:- आखरी भाग






रात के खाने के बाद थोड़ी-थोड़ी नीद आ रही थी. किन्तु बिहार में जो स्टूडेंट रात में सो गया फिर उसका नसीब भी सो जाता है, ऐसा प्रतियोगिता कि परीक्षा करने वाले स्टूडेंट में काफी प्रचलित है. थोड़ा सा म्यूज़िक सुनकर मै वापस 9.30 बजे से पढ़ने बैठ गई..


3 घंटे बिना ध्यान भटकाए मै पढ़ने के बाद सोने की तैयारी करने लगी. रोज की तरह ही सोने से पहले मैंने सीसी टीवी चेक किया. ओह शायद ये बात रह गई थी. 4 महीने पहले वाय- फाय कनेक्शन लगाने वाले ने सीसी टीवी लगवाने का भी विचार दिया था. पापा भी बहुत पहले से सोच रहे थे, लेकिन उनको मन मुताबिक सीसी टीवी लगाने वाला नहीं मिल रहा था.


हाई स्पीड इंटरनेट लगाने वाले के पास मेरे पापा के सारे सवाल का जवाब था और उनके इक्छा अनुसार ही कैमरा इंस्टॉल कर गया. चोर कैमरा वो भी छोटा छोटा, केवल घर के चारो ओर बाहर का नजारा दिखाए. नाइट विजन हाई रिजॉल्यूशन कैमरा जो रात में 200 मीटर का कवर देता था.


मै सोने से पहले एक नजर सीसी टीवी पर मार रही थी, तभी मेरी नजर पड़ोस के बगीचे में गई. वहीं नकुल के घर का बगीचा जहां बेफिक्र होकर संगीता सिगरेट का छल्ला उड़ाने की बात कर रही थी. वो सच में बगीचे के प्रवेश द्वार के किनारे 12.30 बजे रात में बैठकर सिगरेट का छल्ला उड़ा रही थी और हाथ में शायद जाम भी था.


थी तो वो काफी सेफ जगह. चारो ओर 10 फिट की ऊंची बाउंड्री और जिस जगह वो कार्यक्रम कर रही थी, उस दीवार के किनारे हमारे दाएं या बाएं के छत पर खड़ा कोई देख ना पता, उसे सामने की छत से देखा जा सकता था, जबकि सामने 300 मीटर तक कोई छत नहीं थी बल्कि भविष्य नीति के तहत घर बनाने के लिए सबने अपनी जमीन छोड़ राखी थी…


संगीता को देखकर मैंने बस इतना ही कहा… "अमेरिकन लड़की.. हीहीहीहीही"


नींद बहुत ज्यादा आ रही थी और मै अब एक मिनट भी जागना नहीं चाह रही थी, इसलिए आराम से अपनी नींद लेने लगी. एक छोटे सी नींद लेने के बाद सुबह 4 बजे मै जाग चुकी थी. जल्दी से 6 बजे तक घर के सारे काम खत्म करके मै वापस से सोने चली गई.


लगभग यही दिनचर्या मै बहुत दिनों से अपनाई हुई थी. 12 से 12.30 बजे रात में सोना, 4 बजे सुबह जागना, घर का काम खत्म करके वापस फिर सो जाना और आराम से 8-9 बजे सुबह तक उठाना. दिन में मुझे कभी सोने की आदत नहीं थी..


2 दिन और बीते होंगे, सुबह के तकरीबन 10 बजे नकुल मेरे कमरे में आया और हाथ पकड़ कर खींचने लगा… "क्या हुआ, ऐसे खींच क्यों रहा है गधा"..


नकुल:- मै जानता हूं आज कल तू कटी-कटी रहती है मुझसे, कोई बात नहीं, बिज़ी है अच्छा है.. लेकिन आज मै बहुत खुश हूं और मै चाहता हूं कि सबसे पहले तू मिले मेरी खुशी से…


मै:- रुक रुक रुक..


नकुल:- क्या हुआ..


मै:- कुत्ता अब ये मत कहना कि तूने शादी कर लीया है… और पहले मुझे ही मिलवाने ले जा रहा..


नकुल:- आज कल मैंने सुना है लैपटॉप पर काफी फिल्में देख रही हो, उसी का असर तो नहीं हो गया… अच्छा हुआ किसी ने सुना नहीं, वरना यहीं बवाल हो जाता.. अब बकवास बंद कर और चलो भी…


मै:- ऐसे जाऊंगी मै बाहर, इन कपड़ो में..


नकुल:- अच्छी तो लग रही है, क्या बुराई है इसमें..


मै:- चल बाहर निकल, अभी 10 मिनट में तैयार होकर आती हूं..


नकुल:- पक्का ना, नहीं जाने का कोई बहाना तो नहीं बना रही…


मै:- नहीं भाई सच में चल रही, तू 10 मिनट इंतजार कर…


पता नहीं क्यों लें जा रहा था, लेकिन घर में पड़े-पड़े मै भी बोर हो रही थी, इसलिए मै भी चल दी.. जाते-जाते पीछे से भाभी ने पूछा भी कहां जा रही हो, तो नकुल चिल्लाता हुए कहने लगा.. 2-3 घंटे लग जाएंगे.. हम दोनों किसी काम से बाहर जा रहे..


"पागल है क्या, झूट क्यों बोला.. 2-3 घंटे का कौन सा काम है"… मै गाड़ी में बैठती हुई पूछने लगी..


वो कुछ नहीं बोला केवल ड्राइव करता रहा.. मै भी सोची कुछ सरप्राइज होगा और साथ जा तो रही हूं, इसलिए उसके बाद मैंने नहीं पूछा कि कहां और क्यों ले जा रहा है बस 2 दिन पहले के सवाल दिमाग में था और मै घूरती हुई पूछने लगी…


"ये अकेले बाहर घूमने पर इतना लंबा चौड़ा भाषण और प्लानिंग तूने कब कैसे और किसके साथ मिलकर बनाया. और तुझे शर्म तो आयी ना होगी जो मेरा ब्लूटूथ उठाकर ले गया."


नकुल:- हद है, ब्लूटूथ अलग होता है ये एयरडोप है..


मै:- बात को घुमा मत, सारे रास्ते मुझे ब्लूटूथ पर डिस्कस नहीं करना है, ये मेरे अकेले घूमने की बात कहां से आयी अचानक उस दिन. और मुझे अकेले घूमने की कौन सी जरूरत आ परी है ये बता… मै अकेली जाऊं बाजार से सामान लाने या इस गांव से उस गांव तक पागलों कि तरह भटकती रहूं, तुम्हे नहीं लगता कि मेरे अकेले घूमने की बात को लेकर घर में कुछ ज्यादा ही सुना गए थे, तुम दोनो..


नकुल:- मतलब क्या है, फिर मुझसे पूछी क्यों थी, क्या मै अकेले नहीं घूम सकती?


मै:- मुझे बात नहीं करनी इस बारे में, तुम्हे भ्रम हुआ था बस.


मेरी बात सुनकर नकुल मुंह फेर लिया. शायद थोड़ा गुस्सा भी था. शायद इस बात को मै ही नहीं समझ पा रही थी कि अकेले घूमना होता क्या है. क्योंकि बाजार जिस दिन गई थी उसके बाद तो 2 दिन दरवाजे से भी बाहर नहीं निकली, फिर दिल में ख्याल खुद से ही आता रहा की अकेले कहीं भी घूमना बहुत ही रिस्की है.


जब सबके बीच एक ढीट लड़का इतनी हिम्मत कर सकता है तो अकेले में क्या हाल होता मेरा. मेरे लिए एक दुविधा का विषय था ये, जिसकी समीक्षा करना ही बहुत मुश्किल हो गया था. खुद तो कंफ्यूज थी ही नकुल को भी कर रही थी, जबकि लड़के देखने से लेकर शादी तक की सभी बात कितना सटीक कह गया था…


मै:- सॉरी भाई, अब मुंह मत फुला, मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा है, इसलिए पूछ रही हूं? कुछ भी खुद से करने की छूट मिलना एक बात है लेकिन खुद से अकेले उन चीजों को करना बहुत ही मुश्किल होता है, इसलिए कंफ्यूज हूं?


नकुल:- मुझे ज्यादा नहीं पता, जब तुमने अकेले घूमने की बात पूछी तो मैंने प्राची दीदी को चुपके से मैसेज कर दिया. घर पहुंचने से पहले उनका रिप्लाइ आ गया, मेनका का एयरडोप कान में लगाओ, आज लड़की को अकेले घूमने की इजाज़त दिलवानी है.. जबतक तुम चाची (मेरी छोटी भाभी) के पास गई तबतक मैंने वो एयरडोप उठाया और प्राची दीदी से कनेक्ट हो गया.


मै:- प्राची दीदी को शशिकला और नीरू के बारे में कैसे पता..


नकुल:- उन्होंने पहले ही पूछा था हमारे गांव में कोई डाइवोर्स और सुसाइड का केस हुआ था, मैंने बस उन्हें 2 नाम बता दिए, उन्होंने भी अपना लंबा भाषण खींच दिया…


मै:- हां और भाषण में अपने मुंह से खुद की तारीफ भी कर गई. ये भी बहुत चालू है, अपनी वाह-वाहि बटोरने का एक मौका भी नहीं छोड़ती.. शशिकला और नीरू की बात सुनकर मुझे लगा तू नीतू के साथ लगा हुआ है…


नकुल:- उसकी औकात है क्या इतना सोचने कि, प्राची दीदी बेस्ट है. वैसे भी उन्होंने अपने मुंह से अपनी तारीफ नहीं की थी बल्कि ऐसा उदाहरण पेश की जिससे दादा दादी (मेरे मां पिताजी) पूरे अंदर तक हील जाए..


मै:- केवल वही नहीं, हम सब भी अंदर से हिले थे. मै तो ऐसा हिली कि दोबारा बस इतना ही ख्याल आया, अच्छा है मेरे आस पास कोई मेरे उम्र की लड़की नहीं, जिसके साथ मुझे अकेले घूमने की कंपनी मिली होती. तू है तो मेरा बाहर निकालना भी है, वरना कहीं जाने का ख्याल भी नहीं आता.


नकुल:- अब फिर मै बीच में क्यों आ गया…


मै:- तू बीच में नहीं मेरे साथ है.. चल चुपचाप गाड़ी चला और क्या दिखाने ले जा रहा है वो दिखा…


10 मिनट बाद हम लोग छोटे से बाजार में थे और नकुल सड़क के किनारे गाड़ी रोककर खड़ा था… "ये क्या है नकुल, कुछ बताएगा अब"..


नकुल:- मेनका रुक जाओ ना बस 10 मिनट..


इतना कहकर वो गाड़ी से नीचे उतर गया और इधर-उधर देखते थोड़ा आगे बढ़ गया.. जैसे ही वो आगे बढ़ा कांच पर कोई हाथ मारने लगा… मै मुड़कर देखी तो रवि खड़ा था.. मै चारो ओर नजर घुमा कर देखने लगी, मुझे नकुल कहीं नजर नहीं आ रहा था. पता नहीं मै क्यों इतनी डरपोक थी, जबकि इसकी पिछली हरकतो पर तो मै बाद में मै मुस्कुराई भी थी…


वो कांच पीटता रहा लेकिन मैंने कोई प्रतिक्रिया नहीं दिया, बस सीधी होकर अपनी आखें मूंदे थी… "आआआआआआ"… जैसे ही कंधे पर हाथ परा, मै डर के मेरे जोर से चीखने लगी. मै इतनी जोर से चिल्लाई की नकुल भी डर गया… "पागल कहीं की, भूत देख ली क्या? खुद भी डर रही है मुझे भी डारा रही है."


हम दोनों ही अपनी बढ़ी धड़कनों को काबू करने में लगे हुए थे, तभी फ़िर से कांच पर नॉक हुआ और नकुल ने शिशा नीचे कर दिया.… "क्या हुआ तुम दोनों ऐसे चींख क्यों रहे हो"… फिर से रवि खड़ा था. ना जाने कहां भाग गया था और कहां से भागकर आया था…


नकुल:- कुछ नहीं, दीदी का पाऊं नीचे दब गया था.


रवि:- नकुल तुम शायद किसी सरप्राइज के लिए यहां मेनका को लेकर आए थे ना, मै कह दूंगा तो तुम्हारा दिल ना कहीं टूट जाए..


नकुल:- अरे हां, मै भी ना भुल ही गया… दीदी अपनी मुंडी जारा दाएं ओर घुमाओ..


बड़े से एक खुले ट्रक से, पर्दे में लिपटी हुई एसयूवी (SUV) नीचे उतर रही थी. मै तेजी से नीचे उतरकर नकुल का हाथ पकड़ी और खींचती हुई… "तेरी रेंज रोवर"..


वो हंसकर मेरी ओर देखा.. मै इतनी खुश हुई की उसके गले लग गई.. उसका गाल खींचकर कहने लगी.. "मुझे चिंता होती थी तेरी कभी-कभी, अब सुकून में हूं, पर्दा हटाकर दिखायेगा नहीं."..


नकुल ने वहीं लेबर से पर्दा हटाकर दिखाने के लिए बोला, और फिर से वापस लगाने के लिए भी. मस्त गाड़ी थी मै तो काफी खुश थी. लेबर वापस से कवर चढ़ा कर डिलीवरी दिया, पेपर साइन करवाए और चले गए. नकुल गाड़ी की चाभी मेरे हाथ में रखते… "यहां से पहले पेट्रोल पंप, और उधर से ही घूमकर मंदिर.. चले फिर"…


हम दोनों ही निकल पड़े. सच ही कहा था नकुल ने शायद 2-3 घंटे ना लग जाए. वहां से हम दोनों घूमकर मंदिर पहुंचे, जिस वजह से थोड़ा ज्यादा समय लग गया. मदिर पहुंचकर बड़े ही ऐतिहात से मैंने केवल बोनट का घूंघट उठा दिया और तबतक नकुल पुजारी जी को बुला लाया.. पुजारी जी गाड़ी देखते ही कहने लगे.. अभी पूजा का उपयुक्त समय नहीं है, आधे घंटे बाद करवाने, तबतक मंदिर पर बैठकर प्रतीक्षा कर ले..


मै मंदिर पर बैठी हुई मोबाइल चलाने लगी और नकुल जबतक नीतू के साथ लगा हुआ था. किस्मत से प्राची दीदी भी फुरसत में थी और हम दोनों वीडियो कॉल पर बतियाने लगे.. बात वहीं परसो की कहानी से शुरू हुई और मै उनसे गुस्से में कहने लगी कि घर में किसी भी चीज के लिए ना तो मुझे कभी रोका गया और ना ही कभी टोका गया, फिर इतना कहने की क्या जरूरत थी.

मेरे सवाल थे और प्राची दीदी के जवाब. उन्होंने लगातार मुझे सुना और मै लगभग 15 मिनट तक उनसे केवल सवाल ही करती रह गई. बहुत स्मार्ट थी वो, उन्होंने सिर्फ इतना ही कहा, बिगड़ने वाले घर में रहकर भी बिगड़ जाते है और अच्छे लोग बुरी जगह में फंसकर भी अपना दामन बचा ले जाते है.. बस जरूरत होती है परख की जो खुद से लोग नहीं करते और दूसरो के नजरिए पर जीते है. तुम्हारे सारे सवाल तुम्हारे है उनका जवाब खुद से ढूंढो. बाकी तुम्हारे केस में मुझे बहुत ज्यादा समझाने कि इसलिए जरूरत नहीं पड़ती, क्योंकि तुम नकुल के साथ रहती हो और नकुल तुम्हारे साथ और जबतक तुम दोनो साथ हो, एक दूसरे को सही राह पर चलाते रहोगे…


मैंने बहुत जिद की उनसे जानने की उन्होंने नकुल और मुझे लेकर ऐसा क्यों कहा, लेकिन उन्होंने साफ मना कर दिया. वो बस इतना ही कही, इस सवाल का जवाब एक दिन खुद मुझे मिल जाएगा, उसके लिए किसी से पूछने की जरूरत नहीं.


फिर बात आगे बढ़ी, हमलोग इधर उधर की बातें करने लगे, तभी प्राची दीदी मुझे छेड़ती हुई कहने लगी… "मेनका देख जबसे ट्रीटमेंट शुरू की है, तेरा पुजारी तुझे ही देख रहा"..


उनकी बात सुनकर कलेजा एक दम से जैसे धड़का हो.. आश्चर्य में मेरी आखें थोड़ी बड़ी ही गई, तभी दीदी उधर से चिल्लाई… "झल्ली, उसे देखना मत, तू इधर ध्यान दे"…


मैं भी उनका बात मानकर बातें करने लगी.. इतने में नकुल भी आ गया, और वीडियो कॉल पर बातें करते देख, कुछ दूर पीछे ही खड़ा हो गया.. प्राची दीदी चुकी उसे देख चुकी थी, इसलिए उन्होंने हेड फोन निकालकर उसके पास जाने कहीं, और फोन स्पीकर पर..


जैसे ही हम दोनों फ्रेम में आए… "क्यों नालायक, फिर इसे अकेला छोड़कर आशिक़ी झाड़ने निकल गया था"


उनकी बात पर मै जोड़-जोड़ से हसने लगी… नकुल थोड़ा चिढ़कर… "नहीं मै गाड़ी के पास था, आप ये बार बार लगाई-भिड़ाई ना करो, जब से मेनका दीदी आपसे मिलकर सहर से लौटी है, पता नहीं क्यों मुझसे कटी-कटी रहती है"..


प्राची:- कटी नहीं रहती है भाई, बस वो तुझे खुश देखना चाहती है समझा. तू तो ज्यादा समझदार है, तुझे भी अब सब डिटेल में बताना परे फिर तो हो गया. तुम्हारी पहली बड़ी सफलता की तुम्हे ढेरों बधाई, अब जाओ तुम दोनो मै भी चली"..


हमने फिर पूजा करवाई और वहां से हम सीधा घर निकल गए. घर जाने से पहले मैंने घबराकर सबको ये सूचना दे दी कि कोई गाड़ी से हमारे पीछे है और हम उस गांव लेकर पहुंच रहे…


फिर क्या था मैंने पहले आगे नकुल को जाने दिया, ताकि आवेश में आकर कहीं नई गाड़ी को ही ना तोड़-फोड़ कर दे.. जैसे ही वो गाड़ी लगाकर उतरा पुरा मोहल्ला ही नकुल का कॉलर पकड़कर पूछने लगा… "तेरे साथ गई थी मेनका, उसे कहां छोड़ आया"


तभी वो अपना हाथ दिखाते हुए सबको कहने लगा… "वो देखो सामने से गाड़ी चलाते हुए आ रही है.. और साथ में आप दोनो (नकुल के मम्मी पापा) के लिए सरप्राइज भी ला रही…


फिर तो गाड़ी दरवाजे पर खड़ी हुई, पट को जल्दी से हटाया गया और नकुल के सरप्राइज को देखकर तो सबकी आंखें फटी की फटी रह गई.. मै आराम से नकुल को खींचकर अपने साथ बोनट पर बिठाई…


"हां तो गांव वालो किस-किस ने नकुल को आवारा और किसी काम का नहीं है ऐसा कहा था.. एक-एक करके आओ और आप सब माफी मंगो, वरना सबकी लिस्ट तैयार है और ये मेनका मिश्रा आज के बाद उससे कभी बात नहीं करेगी"..


"इति सी है तू, और इत्ता सा है तेरा भतीजा, उसके लिए सबको अपना काम छुड़वाकर यहां खड़ा करवा दी है, और हम तुमसे माफी मांगे. अनूप डंडा ला जारा."… रिश्ते में मेरे पापा के बड़े भैया और सेकंड जेनरेशन से.. उन्होंने आखें दिखाते हुए कहा..


मै:- नकुल लगता है इन लोगों को कदर नहीं है हमारी, तेरी तो वैसे भी नहीं थी अब मेरी भी ना रही.. जा रही हूं अब मै, आज से आप सब में से किसी से भी बात कर ली ना तो देखना..


हमारी एक भाभी, स्नेहा… "कहां जा रही है रूठकर, कहे तो लड़का देखकर परमानेंट विदा कर दे..


मै:- भौजी हमसे ज्यादा तेजी ना बतियाओ, वरना मै बता दूंगी सबको की सुधीर भईया पिछली बार आपको मायके ले जाने के बहाने कुल्लू मनाली लेकर गए थे एक हफ्ते के लिए.. ऑनलाइन टिकिट मैंने ही बुक किया था, वो भी हवाई जहाज का..


भरी भीड़ में मैंने भंडा फोड़ कर दिया फिर तो बेचारी ऐसे पानी-पानी हुई की झट से दोनो दंपति मुंह छिपाकर भागे.. हंसी ठहाके का माहौल सा वहां बन गया. तकरीबन 1 घंटे तक रोककर एक बड़ा सा परिवार हंसी मज़ाक करते रहे.. लेकिन शायद अंत इसी खट्ठास से होना था..


हंसी मज़ाक सब तो ठीक था, लेकिन कुछ बातें यहां की मुझे बहुत चोट देती थी. पता नहीं क्यों नकुल को, नंदू और नीलेश के परिवार के लोग हर बात पर ताने दे दिया करते थे, इस विषय में एक बार मै अपने चाचा से बहस भी कर बैठी थी. वो अलग बात थी की इस बात के लिए मुझे थप्पड़ पड़ी थी, लेकिन अफ़सोस नहीं हुआ था.


आज भी लोग ताने दिए बिना रहे नहीं, कहने लगे 8 एकड़ खेत को बढ़ाने के बदले उल्टा खेत के पैसे इधर-उधर करके ये गाड़ी खरीद लाया. यही हाल रहा तो बचा खेत भी बिक जाएगा. बाप 6 लाख कर्ज में है और बेटा फुटानी झाड़ रहा.


मै क्या बोलती मेरी मां ने भी मजाक-मजाक में उस दादी यानी कि नंदू की दादी, और उसकी मां को प्यार से बस इतना ही कहा… "32 लाख इधर-उधर करके अपने बाप के लिए गाड़ी ही लाया है, बाकी जमीन बेचनी की आदत होती तो अखबार में खबर छपती"..


नंदू और नीलेश के परिवार को मां आड़े हाथ सुना रही थी. बहुत पहले सहर के एक मशहूर लॉज से नीलेश और नंदू पकड़े गए थे, उसके बाद इनका भी नाम अखबार में आया था. उसी चक्कर में दोनो ने 8 लाख रुपए भी गंवा दिए थे.


मां की बात जैसे नंदू भईया की मां और उसकी दादी के दिल में छेद कर गई हो जैसे. और यहां कम कौन था.. उसकी दादी भी कहने लगी.... "लगता है जेल सप्लाई का टेंडर मनीष और रूपा के हाथ से चला गया, उसकी भड़ास निकाल रहे है. मै तो तुझे कहने भी नहीं गई थी. जिसे कहने गई वो चुप है और ये अपनी भड़ास निकाल रही"..


मेरी मां यूं तो वहां खड़े होकर इस बात का जवाब देती, लेकिन छोटी भाभी उनका हाथ पकड़कर ले जाने लगी. तभी पीछे से नंदू भईया की भाभी स्नेहा कहने लगी…. "खुद तो जिंदगी में तरक्की किए नहीं और जान बूझ कर हर जगह हमारे कंपिटेशन में टेंडर डालते है. 1 साल से हर जगह मुंह कि खा रहे है तब भी बेशर्मों को शर्म नहीं आती. उल्टा हम समझाने के लिए किसी को कुछ कहते है तो जान बूझकर खुन्नस निकलाने चले आते है"..


आ गई इनकी शामत, रुपा मिश्रा पलट गई और मां को वहां खड़े रहने के लिए बोल दी. नकुल मेरे ओर चॉकलेट बढ़ाते हुए कहने लगा… "ले अब फ्री शो का मज़ा ले"..


भाभी बड़ी स्टाइल से चलती हुई अाई, तीनों को, यानी की, नंदू की दादी, मां और उसकी भाभी को घूरते…. "ठीक से बोलना सीखा इन्हे नंदू, वरना बता देना की रुपा मिश्रा को जलन होने लगी, तो टेंडर लेना दूर कि बात है, टेंडर उठाने के लिए जो हम 12 लाइसेंस बाना रखे है, वो रुपा भाभी के एक कहे में सारे लाइसेंस ही रद हो जाने है. ये भी बता की तू उन खास ठेकेदारों में एक है जो दमरी के साथ चमरी.."


भाभी ने इतना ही कहा था कि नीलेश सामने आकर अपने दोनो हाथ भाभी के सामने जोड़ते… "भाभी इनकी आदत जानती तो हो, मुझसे गलती हुई जो मैंने कहा था की हमारी टक्कर सीधे मनीष भईया से हो गई और उनके हाथ एक भी सप्लाई नहीं लगा…"


रूपा:- हम्मम ! तो हंसिए ना देवर जी और मिठाई खिलाइए और खुशी से गांव में मिलकर रहिए…


ओह तो ये बात है, परसो भाभी और भैया सहर टेंडर के लिए गए हुए थे. मुझे अभी की बात से 2 रात पहले की घटना पता चली. यहां की बात सुनकर पहली बार ऐसा लगा कि अंदर ही अंदर कोई पारिवारिक मसला जरूर है, तभी भाभी ने इनकी बात को इतना आड़े हाथ लिया. वरना रुपा भाभी बहुत ही कम मौके पर बोलती थी, लेकिन जब भी बोलती थी फिर कोई भी पलट कर जवाब देदे इतनी हिम्मत करते मैंने आज तक किसी में नहीं देखी और ना ही अभी किसी की हुई.


भाभी घर वापस जाने लगी लेकिन नीलेश, उसकी मां और नंदू ने उन्हें रोककर अपने घर ले गए, मां को भी खींचकर ले गए. मै और नकुल वहां से निकल गए क्योंकि झगड़ा के बाद पंचायत भी तो होना था और इन पंचायत में हमारा कोई काम नहीं था… मै नकुल के साथ वपास अपने घर चली आयी.


घर लौट तो अाई लेकिन 2 रात पहले की उठी शंका को आज आधार मिल चुका था और अंदर से विश्वास होना शुरू हो चुका था कि इन 6 घरों के बीच जो मेल मिलाप की कहानी है, वो बस ऊपर-ऊपर दिखाने के लिए है बाकी अंदर के रिश्ते खोखले है…
Oh ho toh saari aag us tharki prachi ki hi lagayi huyi hai :D
Yeh ravi phir aa gaya.. are koi toh ishe maar daalo :D pata nahi kahe jinda hai yeh.. :D
are kya baat roopa toh phir se chha gayi :D
I think menka apne bhaiyo aur bhatijo ke sath milke nandu aur nilech ke Khandaan ko khatam kar dena chahiye.. :approve:
are kuch toh khoon kharaba ho, :D
Khair let's see what happens next
Brilliant update with awesome writing skill nainu ji :yourock: :yourock: :yourock:
 
  • Like
Reactions: Iron Man
Top