अध्याय 10 :: भाग:- 4
सुबह के 7.30 बजे जैसे ही पंचायत शुरू होने वाली थी, वहां 1000 नहीं बल्कि 5000 विधायक के समर्थक जुट चुके थे, जो असगर आलम के नारे लगा रहे थे. तभी वहां लगे माईक पर महादेव मिश्रा की आवाज गूंजने लगी और सारी आवाजें चुप.… "मेरा नाम यदि भुल गए हो तो याद दिलाता चलूं, महादेव मिश्रा.." .. इतना सुनते ही सब चुप.. फिर माईक पर दूसरी आवाज गूंजी... "जो मुझे नहीं जानते उन्हे मै अपना नाम बताता चलूं, मेरा नाम राजवीर सिंह है और गुरुदेव के कहने पर मै भी इस पंचायत का हिस्सा हूं. बस एक ही बात कहूंगा, दंगे के इरादे से जो भी आए हो, अभी लौट जाओ, 5 मिनट का वक्त है. उसके बाद मै नहीं पूछने वाला."..
जैसे ही बैक टू बैक इस इलाके के 2 दबंगो ने अपनी आवाज बुलंद की, वहां के 5000 की भीड़ अगले 5 मिनट में महज 100 लोगो कि रह गई. 5 मिनट समाप्त होते ही, महादेव मिश्रा.… "असगर आलम दंगे भड़काने के इरादे से तुमने लोग बुलाए थे, ये साबित होता है. तुम्हे अपने पोस्ट का घमंड हो गया है, या तो अभी राजीनामा दो, या मै तुम्हारा सर काटकर इसी पीपल के पेड़ पर टांग दूं"..
विधायक असगर... "गुरुदेव मैंने दंगे भड़काने के लिए किसी को नहीं बुलाया. मै भला पंचायत में लोगो को क्यूं लेकर आऊंगा."
महादेव मिश्रा:- बख्तियार (बाजार की सड़क के उस पार के गांव का मुखिया) सच बताओ..
बख्तियार:- गुरुदेव विधायक के लोग दंगे फसाने आए थे, मै गवाह हूं...
महादेव मिश्रा:- असगर अब क्या कहना है..
असगर आलम:- इसपर अंत में बात करते है गुरुदेव, पहले मुख्य मुद्दे पर काम कर ले. क्योंकि किसी की साजिश को गलत साबित करने के लिए मुझे भी तो वक्त चाहिए होगा...
महादेव मिश्रा:- हम्मम ! ठीक है असगर.. चलो मुख्य मुद्दे पर ही आते है.. तुम्हारा बेटा मेले के पहले दिन हुरदांगी किया. अपने दोस्तों के साथ मिलकर बहू-बेटियो के साथ बदतमीजी की.. जिसके लिए पहले भी पंचायत बुलाई गई थी और हिदायत के साथ छोड़ा गया था..
असगर आलम:- मानता हूं गुरुदेव..
महादेव मिश्रा:- उस पंचायत के बाद तुमने गंगा के यहां डकैती करवा दी..
असगर आलम:- मुझे उस बात का इल्म नहीं था, वो पुरा किया मेरे बड़े बेटे सहजाद का काम था.. ये बात मैंने अनूप जी (मेनका के पिता) से भी कहा था. तब इन्होंने कहा था, उनका बेटा कभी इस इलाके में देखा गया तो मार कर फिकवा देगा. तय बात के अनुसार मैंने 3 गुना भरपाई भी की है...
महादेव मिश्रा:- फिर रविवार की घटना के बारे में क्या कहोगे... एक छोटी सी लड़की को इतने अभद्र शब्द कहे तुम्हारे छोटे बेटे और उसके दोस्तो ने. और मेला प्रबंधन ने जब एक्शन लिया तो तुम्हारे तीनो बेटे ने कहा की मेरा छोटे भाई का चैलेंज, हम एक्सेप्ट करते है..
असगर आलम:- गुरुदेव मेरा छोटा बेटा मुझसे और अपने भाइयों से कुछ ज्यादा ही प्यार करता है. हमारे मोह मे आकर वो बदले की भावना से मेले में चला आया, बाकी उसका गलत इरादा नहीं था. इसे आप आवेश मे लिया गया कदम मान सकते है...
महादेव मिश्रा:- असगर तुम कुछ और कह रहे हो, और तुम्हारे बेटों की मनसा कुछ और ही नजर आती है. जब तुम सबको पता था कि तुम्हारा छोटा बेटा गलत है, फिर तुम्हारे तीनो बेटे ने ऐसा हवा क्यों उड़ाई की गांव के बाजार आकर तो देखे वो लड़की... जवाब तुम्हारा बेटे मे से कोई एक देगा...
लियाकत, असगर का दूसरे नंबर का बेटा.… "सभी पांचों का मेरा नमस्कार. मै अपने भाइयों की हरकत से शर्मिंदा हूं, और ये सत्य है कि मेरे सबसे बड़े भाई सहजाद और मुझसे ठीक छोटा वाला भाई अमजद ने मिलकर ऐसी बात बोली थी. लेकिन बोलने के पीछे की वजह कोई दुश्मनी नहीं, बल्कि अपने भाई की हॉस्पिटल में हालत देखकर ऐसा निकला था. अपने भाइयों के ओर से मै माफी मांगता हूं..
महादेव मिश्रा:- तुम्हारा नाम क्या है?
लियाकत:- जी लियाकत है गुरुदेव..
महादेव मिश्रा:- लियाकत तुमने जो कहा वो सही हो सकता है. गुस्से में शायद तुम्हारे दोनो भाई हमला भी कर सकते थे, लेकिन यह कहां से तर्क संगत है कि आवेश मे आकर, तुम्हारे दोनों भाई, अपने दोस्तों के साथ मिलकर गांव के 2 बेटियो को अपने हवस का शिकार बनाने की कोशिश की थी.. फैजान पर 8 लड़की के साथ छेड़खानी और 2 लड़की को गायब करने का आरोप पहले भी साबित हो चुका है. उसकी शादी भी बलात्कार का ही नतीजा था. सिर्फ तुम्हे छोड़कर बाकी तुम्हारे तीनो भाई के कुकर्म माफी लायक नहीं है, सहजाद और अमजद पर भी कई आरोप साबित हो चुके है. वर्तमान की घटना और इतिहास भी देख लो और फिर दो जवाब...
साहजाद:- ए मिश्रा ये कौन सा खेल खेल रहे हो. मदरचोद किसी एक को भी मै नहीं छोड़ने वाला...
असगर ने जैसे ही अपने बेटे को सुना, अपने सर पर हाथ रखकर माथा पीटने लगा. नज़रों के इशारे से उसने अपने दूसरे नंबर के बेटे को देखा, उसने खींचकर अपने बड़े भाई को एक थप्पड़ दिया और अपने साथ आए लोगो को उसे शांत बिठाने के लिए कहने लगा...
लियाकत:- मै पंच के सामने एक प्रस्ताव रखना चाहता हूं...
महादेव मिश्रा:- हां बोलो..
लियाकत:- हमे पूर्ण मामले का ज्ञान हो चला है.. मै चाहता हूं, इस मामले में मै और मेरे अब्बू दोषियों को सजा देंगे.. खबर आप तक पहुंच जाएगी.. यदि हमारी सजा आपको अच्छी ना लगे, तो अगली पंचायत मे आने से पहले मेरे अब्बू राजीनामा देकर पंचायत मे आएंगे और जो भी आप लोगों का फैसला होगा वो हमे मंजूर होगा...
10 मिनट के पंचायत को विराम दिया गया, ताकि आपस म विचार विमर्श किया जाए. इधर जबतक असगर का दूसरे नंबर का बेटा हमारे परिवार के करीब पहुंचा और मेरे सामने हाथ जोड़कर... "तुम तो वाकई शेरनी की तरह हो, 20-25 लड़को के बीच घिरे होकर भी क्या खूब हिम्मत दिखाई. मै तुमसे वादा करता हूं, उनका फैसला मै खुद करूंगा, भले ही वो मेरे भाई ही क्यों ना है. बस एक छोटी सी विनती है"..
पापा:- क्या?
लियाकत:- जब हम पुरा फैसला कर ले और आपको हमारे फैसले से संतुष्टि हो तो आप सपरिवार हमारे आंगन आए और मेहमान नवाजी स्वीकार करे..
महेश भैया:- हम्मम ! तुम पहले करके बताओ, फिर हम जरूर पहुंचेंगे...
इतने में पंचायत ने मंथन के बाद फैसला दिया... "असगर के दूसरे बेटे लियाकत की बात हम मानते है, आने वाले रविवार से पहले तक, वो सबको सजा दे दे. यदि ऐसा करने में विफल हुए तो रविवार की सभा में ये पंचायत बिना किसी पक्ष को सुने अपना फैसला सुना देगी, जो मान्य होगा. अनूप तुम्हे हमारा फैसला मंजूर है"..
पापा:- जैसा पंचो का फैसला हो, हमे मंजूर है...
वहां से सभा टूटी और हर कोई हैरान था. फैसला उन्हीं पर छोड़ना सही था या गलत ये तो रविवार से पहले पता चल ही जाता लेकिन जब सभा टूट रही थी तब नरेंद्र (अमृता का पति) और सुनील (पुष्पा का पति) को लियाकत से जब बात करते देखी, तब मामला समझ में आया कि वो गांव की 2 बेटी कौन थी.
मुझे असगर के बेटों की बेवकूफी पर हंसी आ गई. आप सोच रहे है की ऐसे मामलों में क्या नतीजा होता है तो, मै आपको बता दूं कि यहां कोई फिल्म नही चल रहा, जिसमे जुल्म करने वाला पहले जीत जाए और बाद में एक हीरो उनके जुल्म का हिसाब एक-एक करके ले.
यहां बात ज्यादा बढ़ती है तो रक्त चरित्र ही देखने मिलता है, फिर दुश्मनी को मिटाने के लिए हर एक दुश्मन को साफ कर दिया जाता है. ठीक वैसे ही जैसे आपने गैंग ऑफ़ वासेपुर फिल्म में देखा होगा. हमारे गांव की ऐसी घटनाओं में तो वो फिल्म मात्र एक ट्रेलर था, क्योंकि सहर में रहने वालों को तो भनक भी नहीं होती कि गांव में क्या चल रहा है.
यहां पहले तो किसी तरह मामले को शांत ही किया जाता है, किन्तु जब मामला हाथ से निकल जाए, तो यहां ना तो पुलिस पहुंचती है और ना ही मीडिया, और ना ही फैसला कोर्ट के भरोसे छोड़ते है. फिर तो कुछ दिनों तक लाशों का खेल चलता है और उसके बाद सालों तक सब शांत.
पंचायत खत्म होने के बाद हम सब लौट आए. पापा और भाईय गांव के कुछ लोगो के साथ जब बात कर रहे थे, तब यही कह रहे थे कि असगर और उसका बेटा लियाकत अपनी छवि अब साफ करने के इरादे से होगा.
एक बार बाप को अपने बेटे से मोह हो सकता है, लेकिन जब इज्जत और राजनैतिक कैरियर दाव पर लगा हो, तो सारा मोह भंग हो जाता है. असगर और लियाकत पर कितना दबाव था, इस बात का अंदाजा सिर्फ इस बातों से लगाया जा सकता था कि शुक्रवार के दिन महादेव मिश्रा को खेत में एक स्पॉट पर बुलाया गया. वहां सहजाद, अमजद और उसके 12 साथियों को काटकर वहीं खेत में गार दिया गया.
फैजान और उसके 20 साथियों का इलाज सहर में हो रहा था, वो भी पुलिस कस्टडी में. शुक्रवार की रात में ही उनका बेल करवाया गया और शनिवार को उनका डिस्चार्ज पेपर बन गया. शनिवार को शाम के 4 बजे खबर आयी की मिनी वैन में सवार 21 यात्री, वैन के डबरा में डूबने के कारन सबकी घटनास्थल पर ही मृत्यु हो गई. मामला का संज्ञान लेने मौके पर डीएम और एसपी पहुंचे.
(डबरा, एक बहुत बड़े और गहरे गड्ढे में जमा पानी को कहते है. जिसके ऊपर आमुमण जल कुंभी उगी रहती है. उसे देखकर गहराई का अंदाज़ा नहीं लगाया जा सकता, किन्तु किसी-किसी डबरे की गहराई इतनी होती है कि उसमे 2-3 बस एक साथ समा जाए)
केवल ड्राइवर अपनी जान बचा पाया, क्योंकि घटना के कुछ वक्त पूर्व ही उन लड़को ने ड्राइवर को रास्ते में उतारकर, खुद ही गाड़ी ड्राइव कर रहे थे. रात के 8 बजे पोस्टमार्टम की रिपोर्ट क्लियर बता रही थी कि सब के सब नशे म थे और नशे की हालत में होने के कारण कोई भी अपनी जान बचा नहीं पाया..
ये तो प्रेस और मीडिया की खबर थी, लेकिन सच्चाई क्या थी वो हम सब गांव वाले जानते थे. असगर के कहने पर 2 दिन मे कुल 46 लाश गिरा दी गई थी. जिसमे से 21 लोगो को तो नाटकीय ढंग से डूबा कर मारा गया था. 14 लोग को शुक्रवार को खेत में काटकर फेका गया था और 11 लोगों को लियाकत ने ट्रेस किया था जो उनके भाई सहजाद के साथ मिलकर, पंचायत में दंगा भड़काने पहुंचे थे, जिसमे गांव का मुखिया बख्तियार भी सामिल था.
ये सब लिस्ट महादेव मिश्रा की थी, जिसे उसने लियाकत को सौंपी थी. लियाकत और असगर की मुलाकात, पंचायत से ठीक पहले, बुधवार की रात को, राजवीर अंकल और महादेव मिश्रा से हुई थी. बुधवार की रात ही लियाकत अपने पॉलिटिकल कैरियर को हवा देने और गांव में अपनी स्तिथि को मजबूत करने के लिए, अपने बाप को अपने साथ मिला चुका था.
अंदर ही अंदर वैसे लियाकत की भी अपनी कहानी चल रही थी. दरअसल पुष्पा और अमृता का पति लियाकत का बहुत गहरा मित्र था. वो इतना भन्नाए थे कि वो सबको साफ करने का मन बना चुके थे. चूंकि लियाकत उन दोनों के करीबी मित्र मे से एक था, इसलिए इस मामले की जानकारी लियाकत को भी हो चली थी...
एक ओर ये दोनो थे, तो दूसरे ओर राजवीर अंकल भी सीधा भिड़ंत के इरादे से थे और सबको साफ करने का मन बना चुके थे. इधर मनीष भैया और महेश भैया भी पूरी योजना बना चुके थे, इस सिलसिले में मनीष भैया, अपने मामा ससुर और पूर्व गृह मंत्री से मुलाकात भी कर चुके थे. मनीष और महेश भैया भी पूरी तैयारी में थे.. और इस बात की जानकारी महदेव मिश्रा को हो चली थी.
असगर आलम महादेव मिश्रा का ही चेला था, इसलिए महादेव मिश्रा ने ये गुप्त मीटिंग राखी. उसी मीटिंग में असगर, महादेव मिश्रा के कहने पर अपना पुत्र मोह त्याग दिया था और पंचायत मे क्या करना है, इस बात की योजना एक रात पूर्व ही बन चुकी थी, जिसमे चौंकने की स्तिथि तब बन गई, जब अचानक ही दंगे भड़काने के लिए लोग पहुंच चुके थे... किन्तु जहां महादेव मिश्रा हो ऊपर से राजवीर सिंह भी साथ में, फिर किसी की गुंडई चल सकती थी क्या?
वैसे शुक्रवार और शनिवार को जितने भी मर्डर हुए, वो बिना पंचायत के भी हो सकता था, लेकिन असगर के खराब इमेज को सुधारने और लियाकत को आने वाले लोक सभा इलेक्शन मे लॉन्च की तैयारी के इरादे से, पंचायत का बुलाई गई थी. पंचायत के सारे फैसले पूर्व से सुनिश्चित किए हुए थे, ताकि लियाकत की छवि उभरकर सबके सामने आए..
घिनौने कुकर्म के कारण उपजे माहौल ने ऐसा सामाजिक दबाव बनाया, जिसमे राजनीतिक रंग अपने पूरे उफान पर था और यही राजनीतिक रंग 46 लोगों को काल के गाल में निगल चुकी थी, जिसमे एक गांव का मुखिया भी था. मुखिया के मर्डर को कवर करने के लिए गांव का एक आदमी खुद सरेंडर कर दिया और उसने पुलिस को बताया कि गांव के सड़क और डबरा पर ध्यान ना देने कारन उसके 20 साथी डूबकर मर गए, जिसका दोषी मुखिया बख्तियार था. इसलिए मैंने गुस्से में उसे मार दिया...
उफ्फ क्या माहौल बनाया था लियाकत ने. चारो ओर बस जैसे उसी के नाम का डंका बज रहा हो. पूरे मामले का क्रेडिट लियाकत ही लेकर गया था. बात जो भी हो, लेकिन रविवार की सुबह तो रविवार की सुबह थी. मै आज ठीक वैसे ही तैयार हुई थी जैसे मै शवन मेले के पहले दिन तैयार हुई थी.
पहला अध्याय रक्षा बंधन पर आधारित था । मेनका की ममेरी बहन रूपाली और उसके भाइयों के साथ ।
दुसरा अध्याय मेनका की सुरक्षा के लिए था जिसे राजवीर सिंह ने किया था । और रूपाली एवं उसके मंगेतर नितेश पर भी था जहां रूपाली को मेनका के सामने शर्मिंदगी उठानी पड़ती है ।
मेनका का बड़े पापा के साथ कन्वर्सेशन भी हुआ था..... ये इमोशनल था ।
तीसरा अध्याय फेजान के फैलाए हुए रायते पर था । पंचायत बुलाई गई जहां महादेव मिश्रा और राजवीर की ही तुती चलती है । महादेव मिश्रा काफी ताकतवर शख्स हैं ।
चौथा अध्याय.......
मेनका के साथ बदतमीजी की कीमत विधायक को अपने तीन बेटों की बलि चढ़ा कर देनी पड़ी । सहजाद, अमजद और फेजान.... तीनों को मार दिया गया ।
मैंने गैंगपुर आफ वासेपुर नहीं देखा है लेकिन यदि ऐसा हुआ होगा तो भी मुझे हजम नहीं हो रहा है ।
कैसा बाप है ? कैसा भाई है ? पोलिटिकल फायदे के लिए अपनों को ही यदि बलि चढ़ाना है तो इससे वाहियात काम और क्या होगा । एक नहीं बल्कि अपने तीन तीन बच्चों को कौन मरवाता है ?
वैसे पृथ्वीराज चौहान के बाद जो भी शासन आया , वहां हमने ऐसे कारनामे कई बार पढ़े हैं .... एक विशेष कौम में ।
लेकिन आज के जमाने में ये प्रासंगिक नहीं लगता है ।
सभी अपडेट बेहतरीन थे नैन भाई ।