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Thriller 100 - Encounter !!!! Journey Of An Innocent Girl (Completed)

nain11ster

Prime
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अध्याय 11 भाग:- 6 (जिंगदी का पहला लंबा सफर)






संगीता ने एयरपोर्ट पर गर्मजोशी के साथ हमारा स्वागत किया. वाकई नकुल और मेरे आने का वो दिल से खुशी जाहिर कर रही थी. हम तीनो ही संगीता के साथ उनके फ्लैट के ओर चल दी. रास्ते भर हम वहां के चारो ओर का नजारा लेने लगे. ऊंची-ऊंची बिल्डिंग और सड़क पर भागती जिंदगी.. हां वो अलग बात थी कि यहां की बिल्डिंग जितनी ऊंची थी उनके अंदर के मकान उतने ही छोटे...


संगीता अपने रूम पार्टनर ऋतु के साथ 2 बीएचके फ्लैट में रहती थी. संगीता कुछ दिनों के लिए अपने रूम पार्टनर के रूम मे शिफ्ट हो गई. उन्होंने अपना कमरा मुझे दे दिया और नकुल हॉल में एडजस्ट हो गया.


बाकी सब तो ठीक था लेकिन 2 दिन बाद ही मुझे और नकुल को मेहसूस हुआ कि इस जगह मे कुछ ज्यादा ही बोरियत है. दिन भर हम दोनों फ्लैट मे पड़े रहते, ना तो कोई पड़ोसी हमे जानने वाला और ना ही घूमने के लिए ऐसी जगह जहां जाया जा सके.


शाम को हम संगीता के साथ कभी इस मॉल तो कभी उस मॉल मे घूमने जाया करते थे. इसके अलावा और कुछ भी करने को नहीं था. अब लोग शॉपिंग ही करेंगे तो कितना कर सकते है. हां किन्तु कुछ गजेट हमे अच्छी क्वालिटी के वहां सस्ते रेट में मिल गए.


बंगलौर में हमारा ये सातवा दिन था जब नकुल का दोस्त शशांक हमारे यहां फ्लैट पर आया. पिछले 4 दिन से वो यहां आता और दोनो फिर शाम तक घूमने निकल जाते. रोज की तरह वो दोनो बिल्कुल गर्मजोशी के साथ मिले. शशांक से महज औपचारिक बातें करके मै कमरे में चली गई और लैपटॉप ऑन करके बैठ गई. थोड़ी देर बाद नकुल कमरे में आया और पूछने लगा क्या वो शशांक के साथ बाहर जाए. मै मुस्कुराते हुए उसके बाल बिखेर दी और कहने लगी आराम से पुरा घूमकर आना..


कुछ घंटे ही सही, लेकिन मै वहां पूरी अकेले थी. जिंदगी का ये मेरा पहला अनुभव था. थोड़ा असहज और थोड़ा खो जाने वाले पल होते थे. "इस वक्त का भी अपना ही मजा है" … खुद से कहती हुई मै मुस्कुराई और अपने स्टडी मटेरियल को देखने लगी...


किसी ने सच ही कहा है किताब आपका सच्चा साथी होता है. मै एक बार जब अपने किताब मै डूबती, फिर कहां होश था. मुझे तो होश नहीं था लेकिन आज पहली बार ऐसा हुआ था कि नकुल की भी बेहोश होने की खबर आयी थी.


उस वक्त मै और संगीता बैठकर बातें कर रहे थे, जब शशांक ने मेरे नंबर पर कॉल किया और बताया कि नकुल घर जाने के लायक नहीं है. उसकी बात सुनकर मै बता नहीं सकती कितनी परेशान हो गई. फोन मैंने संगीता को दिया और उसके बताए पते पर हम दोनों पहुंचे...


वहां पहुंची तो पता चला वो थ्री स्तर होटल की एक बार थी, जहां नकुल जमीन पर बैठा था, 2 वेटर उसे घेरे हुए थे और उसके पास शशांक नहीं था. हम दोनों भागकर उसके पास पहुंचे. बार के मैनेजर ने हमे पूरी बात बताई. नकुल, शशांक और उसके दोस्तों ने मिलकर 40 हजार का शराब पी गए थे...


मै घुरकर् उस बार मैनेजर को देखी और पूछने लगी... "जब सबने मिलकर पिया था, फिर मेरे भाई को चोर की तरह पकड़ कर क्यों रखे हो"..


बार मैनेजर:- बाकी सब कहां गए हमे नही पता, एक यही बचा हुआ था इसलिए हमने इसे बिठा लिया..


संगीता:- छोड़ ना पेमेंट करते हैं और चलते है.


मै:- पेमेंट तो 40 हजार के बदले मै 4 लाख का कर दूं, लेकिन इनकी हिम्मत कैसे हुए नकुल को ऐसे बिठाने की... ओय क्या मेरे भाई ने दारू ऑर्डर किया था.. बोलते क्यों नहीं..


बार मैनेजर:- देखिए मिस आप चिल्लाए नहीं, हमारे दूसरे कस्टमर डीस्ट्रब हो रहे हैं..


मै:- कुछ देर में तुम्हारा पुरा बार डीस्ट्रब हो जाएगा...


बार मैनेजर:- तुम जैसों को पीने की औकाद नहीं रहती तो ऐसे ही करते हो. लेकिन हमे भी तुम्हे सीधा करने आता है.. मै अभी पुलिस बुलाता हूं..


संगीता:- मेनका बहुत हुआ, चलो. नकुल की हालात भी ठीक नहीं लग रही...


मै:- आप 2 मिनट चुप रहिए. इसने समझ क्या रखा है.. तुम जैसे अपनी तुची हरकत को ढकने के लिए ऐसे पुलिस का नाम लेते हो. डराते किसे हो पुलिस के नाम से.. बुलाओ तुम पुलिस और मै मीडिया बुलाती हूं.. तुम जानते भी हो तुमने 11th के एक स्टूडेंट को दारू पिलाई है.. तुम्हारे पूरे बार का लाइसेंस नहीं कैंसल करवाया तो मेरा नाम मेनका नहीं..


जैसे ही मैंने नकुल की डिटेल और लॉ की बात की, उस मैनेजर को पसीने आने लगे. मै तो पूरे गुस्से में थी इसलिए उन लोगों ने संगीता से ही बात करने में समझादरी समझी..


मैनेजर लगभग मिन्नत करते संगीता से मेरे विषय में कहने लगा.. प्लीज उस लड़की को समझाए कि ऐसा करने से हमारी नौकरी चली जाएगी.. यहां हंगामा नहीं करने... संगीता मेरी ओर लगभग रिक्वेस्ट भरी नजरो से देखती हुई कहने लगी.. "अब तो जो होना था वो हो गया, तुम क्या चाहती हो"..


मै:- ये लोग यहां माईक पर अनाउंस कर सबके सामने माफी मांगे, और कहे कि गलती से उन्होंने नकुल को यहां बिठा दिया, पूरे प्रकरण में उसका दोष नही है. और इज्जत के साथ नकुल को कार में बिठाए, तब जाकर मुझे सुकून मिलेगा.. हिम्मत कैसे हो गई नकुल को चोरों की तरह बिठाने की..


जैसा मैंने कहा ठीक वैसा ही हुआ. वो अनाउंस करके सबके सामने माफी मांगे और नकुल को कार तक छोड़ने आए. संगीता जबतक उसे कार में बिठा रही थी, मैंने उसका पूरा बिल पेमेंट कर दिया. पेमेंट करके मै जैसे ही मुड़ी, सामने शशांक और उसके 2 दोस्त खड़े थे.. "मेनका तुमने क्यों पेमेंट किया, हम तो आ ही गए थे पेमेंट करने.. मैने तो बस नकुल को ले जाने के लिए कह रहा था".


उसकी बातें सुनकर मै गुस्से से और पागल हो गई. खींचकर उसे एक तमाचा मारते... "मैनेजर साहब आपने सुना ना ये पुरा पेमेंट करेगा, मेरे पैसा वापस कीजिए और इनसे पेमेंट ले लीजिए. साथ मे मेरा नंबर भी नोट कर लीजिए. यदि ये पेमेंट ना दे पाए तो कल सुबह मुझे कॉल कीजिए. साथ मे पेमेंट ना देने की स्तिथि में आप लोगों ने इसके साथ क्या किया, उसकी डिटेल हिस्ट्री भी बता दीजिएगा. यदि इनकी रात भर की हिस्ट्री अच्छी लगी तो 40 की जगह 60 हजार पेमेंट करूंगी"..


जितना मैंने बेइज्जत किया था उस मैनेजर को, शायद वो पुरा याद किया. उसने 40 हजार पुरा वापस करते हुए कहा.. "आप जाइए मिस, आप पर पूरा यकीन है कि मेरे पैसे कहीं नहीं जाएंगे.. बाकी इनका क्या करना है वो मै देख लेता हूं.


मै उसके बैच से उसका नाम पढ़ती.. "ठीक है सुरेश कार्तिक भैया, गुस्से में कहा सुना माफ कीजिएगा. हम कभी ऐसे माहौल में नहीं जिए जहां पैसों के लिए कोई हमे ऐसे चोरों की तरह बिठा दे. अंदर से खून खौल जाता है


मैनेजर:- सुरेश कर्तिकेन है पुरा नाम. वैसे मुझे भी आप माफ कर दीजिएगा. क्या करूं ये बार है ना इसलिए पैसे ना देने वालों से जब हम प्यार से मांगकर थक जाते हैं तो मजबूरन हमे कड़ा रुख इख्तियार करना पड़ता है. वो औकाद वाली बात पर मै भी शर्मिंदा हूं. आप जाइए, बाकी मै देखता हूं...


मै, मैनेजर से अपना झगड़ा निपटाकर, वहां से तुरंत कार मे आ गई. नकुल की हालत एक अलग ही चिंता का विषय था. संगीता ड्राइव कर रही थी और मै नकुल को देखकर आंसू बहा रही थी... "संगीता ये पहले से पीता है, फिर इसकी हालत इतनी खराब क्यों लग रही है. बिल्कुल होश में ही नहीं है"..


संगीता:- तुम्हे कैसे पता की ये पीता है..


मै:- बचपन से उसके साथ रहती हूं संगीता, मै नहीं जानुगी तो कौन जानेगा.. कितना भी पी ले, मुझे देखकर होश में ही रहेगा.. उन कुत्तों ने जरूर कुछ मिलाकर पिलाया है..


संगीता:- एक काम करते है फिर, इसे हॉस्पिटल लेकर चलते है. रिस्क नहीं ले सकते..


मै:- हां मै भी वही सोच रही थी..


हम दोनों फ्लैट के थोड़ी दूर पर स्थित एक हॉस्पिटल गए. नाईट डॉक्टर ने उसका चेक उप किया और कुछ ब्लड टेस्ट करने भेज दिया... तकरीबन आधे घंटे बाद आकर कहने लगा... "ड्रग ओवर डोज के कारन हुआ है, एक रात एडमिट करना होगा"..


संगीता:- डॉक्टर कैसा ड्रग ओवरडोज..


डॉक्टर:- इसने पहले मेडिकल नशा किया फिर काफी ज्यादा अल्कोहल लिया है, इसलिए इसकी हालत ऐसी है. इसे कॉडीन फॉस्फेट का ओवर डोज मिला है..


डॉक्टर की बात सुनकर मै रोने लगी. संगीता मुझे कंधे का सहारा देकर मेरी आंसू पोछती हुई शांत की. एक टेबल पर बैठकर हम दोनों ही कॉफी की चुस्की लेने लगे... संगीता मुझे देखती हुई पूछने लगी, तुम्हें कब से पता है कि वो पीता है"..


मै:- इस बार होली का त्योहार से. होली मे ये नकुल मनीष भैया के साथ चाचू चाचू करते जा चिपका था.. बहुत सुनाया था मैंने तो दोनो को..


संगीत:- तुमने फिर छोड़ने के लिए नहीं कहा..


मै:- ज्यादा नहीं कह पाती, हम दोनों हम उम्र भी तो है, इसलिए हम एक दूसरे को लगभग दोस्त की तरह ही ट्रीट करते है. हां लेकिन मेरे टोकने के कारन, मेरे डर से कम से कम लिमिट मे तो रहता है, ज्यादा टोकी तो वो जो एक बीच की छोटी सी दीवार है, वो भी ना चला जाए कहीं. कहीं वो सोचने ना लगे, जब सबको सब कुछ पता ही है तो अब क्या छिपाना.. क्या करूं कुछ बातो में हार जाती हूं.. फिर घर में कौन ऐसा नहीं जो पीता ना हो.. सीखा तो उसने घर से ही है...


संगीता:- चलो कम से कम नकुल मे सेंस ऑफ़ रिस्पांसिबिलिटी तो है. नकुल मे बिल्कुल तुम्हारी छवि है मेनका, उसमे भी तुम्हारी तरह केयरिंग नेचर है..


मै, थोड़ा मुस्कुराती हुई... "सब यही कहते है कि नकुल मे मेरी छवि दिखती है, जबकि सच तो ये है कि मुझमें नकुल की छवि है. वो जितना केयरिंग पूरे खानदान के लिए है और खासकर मेरे लिए रहता है, उसी की वजह से मै भी सबकी केयर करना सीख गई.

आपको पता नहीं है वो कई ऐसे मामले तो बाहर निपटा देता है, जो किसी को पता नहीं चलता. इसलिए लोगों को नकुल के किए का पता नहीं लगता. मै तो कई ऐसे मामले उंगली पर गिनवा सकती हूं...


संगीता:- चलो इस बात से बात समाप्त करते है, कि तुम दोनो कमाल के हो.


मै:- ये हुई ना बात...


सुबह 10 बजे उसे डिस्चार्ज मिला. हालांकि नकुल को होश तो 6 बजे ही आ गया था, लेकिन सीनियर डॉक्टर के सुपरविजन और डिस्चार्ज के बाद ही उसे जाने दिया जाता. मैंने संगीता को जबरदस्ती ऑफिस भेज दिया और नकुल को लेकर फ्लैट चल दी..


वो अपने आप में अफ़सोस कर रहा था, साथ ही साथ मै अपनी नाराज़गी पहले ही दिखा चुकी थी, इसलिए वो हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था मुझसे बात करने की. पूरे रास्ते दोनो के बीच लगभग खामोशी ही बनी रही. जब वो फ्लैट पहुंचा तब सीधा वो अपने कमरे में जाने लगा.. कड़क आवाज में उसे बस खाने के लिए कहने लगी और वहीं हॉल में बैठ गई...


वो 1 ही प्लेट मे हम दोनों के लिए नाश्ता निकालकर ले आया, और खाने के लिए कहने लगा.. मै थोड़ी सी नाराजगी दिखती हुई उसे अकेले खाने के लिए बोल दी. कुछ ज्यादा ही जब वो जिद करने लगा, तो मैने साफ कह दिया मै यहां से चली जाऊंगी.… मेरी बात सुनकर वो खाने लगा और खाकर सोने चला गया.


उसे डांटने का मुझे अफ़सोस भी हो रहा था, लेकिन उसकी हरकत ही कुछ ऐसी थी कि गुस्सा आना लाजमी था. दिन का खाना बनाकर मै 11 बजे के करीब खाकर वहीं हॉल में ही सो गई.. रात भर की जागी थी बहुत गहरी नींद में थी.


बहुत तेज आहट हो रही थी, मेरी नींद खुल गई. आखों के सामने जो नजारा था वो देखकर तो मै दंग रह गई. हॉल के कई सामान बिखरे परे थे और फर्श पर पेट पकड़े शशांक और उसके साथ वही उसके 2 दोस्त थे, जिसे कल मै बार मे देखी थी..


"नकुल तू ये क्या कर रहा है. इन्हे पिट क्यों रहा है. नकुल तू सुन भी रहा है कि नहीं"… मै नकुल का कंधा खींचकर कहने लगी. बड़ी-बड़ी लाल-लाल आंखे मुझे दिखाते हुए कहने लगा.. "बिल्कुल चुप और जाकर बैठ जाओ"..


उसकी बात सुनकर मै उसे खींचकर एक थप्पड़ मारती... "कुछ पूछ रही हूं, मुझे बताएगा"


नकुल लगभग मुझ पर चिल्लाते... "एक बार से समझती नहीं क्या, अभी तुम्हे किनारे रहना है. समझी या नहीं"..


मै हां मे सर हिलाकर पीछे हटती हुई कहने लगी... "खून का एक कतरा फर्श पर नहीं गिरना चाहिए".. और इतना कहकर मै आकर चेयर पर बैठ गई. नकुल काफी गुस्से में दिख रहा था. गुस्से में उसने फिर से तीनो के पेट पर लात जमा दिया... जाकर किचेन से चाकू और बिस्तर से चादर उठाकर ले आया. बड़ी तेजी के साथ चादर को काटकर उसने रस्सी बनाई और एक-एक चेयर पर तीनो को बांध दिया.
 

nain11ster

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अध्याय 11 भाग:- 7 (जिंगदी का पहला लंबा सफर)







इतने में ही संगीता और उसकी रूममेट ऋतु चली आयी. दोनो अपने हॉल का हुलिया देखी, फिर सामने 2 लड़के कुर्सी से बंधे हुए थे और तीसरा लड़का बांधा जा रहा था.. "यहां हो क्या रहा है"… नकुल के कानो मे जैसे ही आवाज गई, वो मेरी ओर देखा... मै संगीता और उसकी फ्रेंड ऋतु का हाथ पकड़कर अंदर ले आयी और हाथ जोड़कर बस चुपचाप बैठने के लिए कहने लगी...


इतने में कर्रहती आवाज में शशांक कहने लगा... "भाई गलती हो गई माफ कर दे"..


नकुल ने खींचकर उसे इतने जोर का थप्पड़ मारा की उसका गाल पर पंजे के निशान छप गए... नकुल उन दोनों से पूछते... "क्यों बे तुम दोनो का बाप क्या करता है"…


पहला लड़का... मेरे पापा बैंक मैनेजर है.


दूसरा लड़का... मेरे पापा बिहार पुलिस मे एसआई है..


नकुल:- और इस शशांक का बाप एक जमींदार है, जो अपने बेटे को एसी मे पाला है.. जानते हो मेरे पापा एक किसान है और उसने मेरी परवरिश किसान की तरह की है.. जब ट्रैक्टर खराब हो जाता है तो बीघा खेत बैल से भी जोत लेता हूं.. घंटो बैठकर खेत में फसल के साथ उगे घास को बैठकर हाथो से उखाड़ता हूं, ताकि फसल अच्छी हो.. साले पोटैसियम पर उगे फसल और सब्जी खाने वाले, पिज़्ज़ा बर्गर लवर्स.. केवल 3 लड़के लेकर आए थे हमे सबक सिखाने..


नकुल बोलता जा रहा था, थप्पड़ उसके चलते जा रहे थे. वाकई मे नकुल अंदर से इतना मजबूत था की इन जैसे 10 लड़को की मार वो घंटो झेल सकता था, लेकिन नकुल के हर थप्पड़ के साथ जैसे उनकी आंखे और चेहरे की बनावट हो रही थी, वो बता रही थी कि तीनो असहनीय पिरा से गुजर रहे है..


उनको इस प्रकार मारते देख ऋतु पूछने लगी... "ये तीनो तुम लोगों के साथ मार पिट आए थे क्या?"


संगीता:- हां मेनका बताओ ना यहां क्या हुआ था?..


ऋतु:- यार ये नकुल तो बिल्कुल किसी फिल्मी हीरो की तरह एक्शन कर रहा है. मैटर बाद में पता करेंगे, एक्शन विथ डायलॉग मज़ेदार है..


संगीता:- मै भी एन्जॉय कर रही हूं..


मै अपने सर पर हाथ रखते... "पागलों ये फिल्म ना है.. मार पीट से मामला बढ़ता है.. अब इन एक्शन लवर्स को कौन समझाए"..


इधर जबतक नकुल, शशांक को घूरते... कुत्ते के पिल्ले 2 साल पहले भी तुझे समझाया था ना, दोस्ती अपनी जगह है लेकिन घर के लोग अपनी जगह, समझाया था कि नहीं...


चटाक से फिर एक थप्पड़.. और शशांक के आंखो से आंसू और मुंह से दर्द भरी चींख निकल गई. नकुल लगभग 20 से 25 थप्पड़ सबको चिपका चुका था. मै बता नहीं सकती की तीनो के शक्ल को, नकुल ने सिर्फ गाल पर मारकर कैसा बिगाड़ दिया था... उसकी बात मै मान चुकी थी, अब नकुल की बारी थी... "नकुल मै तेरे कहने पर यहां आकर बैठ गई थी, अब तू भी इनको छोड़ दे."


नकुल मेरी बात सुनकर फिर से तीनो को 4-5 थप्पड़ घूमाकर देते... "दीदी ने कहा है इसलिए छोड़ रहा हूं. बंगलौर हो या गांव अभी 5-6 साल तू मुझे अपनी शक्ल मत दिखना, वरना तुझे देखकर तेरी बात याद आ जाएगी और जहां दिखेगा वहां मारूंगा, फिर वो कोर्ट हो या पुलिस स्टेशन या किसी मिलिट्री कैंप मे ही क्यों ना बैठा हो"..


नकुल ने तीनो के हाथ खोल दिए, और तीनो को एक-एक लात मारकर दरवाजे से बाहर कर दिया. नकुल बाथरूम के ओर जाते.. "दीदी मेरे कपड़े निकाल दो, मै जरा नहाकर आता हूं"..


मै, उन दोनों को देखती... "सॉरी वो आपके हॉल के समान कुछ टूट गए, मै थोड़ी देर से साफ किए देती हूं"..


ऋतु:- सफाई की चिंता क्यों, अभी सफाई करने वाली आएगी वो सब कर लेगी. और कल भी एक्शन करते वक्त कुछ तोड़ना हो तो तोड़ देना. बस नकुल से कहना अगली बार हाथ-पाऊं खोलकर सामने वालों से बचाव करते हुए मारने..


मै:- ऋतु जी आप कहां की रहने वाली है..


ऋतु:- जबलपुर..


मै:- तो क्या जबलपुर मे ऐसे लड़को की लड़ाई नहीं होती..


ऋतु:- होती क्यों नहीं, वहां भी बहुत मस्त एक्शन होते है, लेकिन ऐसा एक्शन कम ही देखने को मिलता है जहां अकेला 3 पर भारी पर जाए..


मै:- आप धन्य है मिस, मै जरा नकुल के कपड़े निकाल कर आयी..


मैंने नकुल के कपड़े निकालकर रूम मे रख दी थी. वो नहाकर टॉवेल मे ही हॉल से होते हुए कमरे में गया. जब वो जा रहा था ऋतु उसके गठीले बदन को देखकर कहने लगी... "बिना जिम के ही उसने तो इतना गठीला बदन बाना लिया है"..


मै:- गठीला के साथ साथ फुर्तीला भी है. वैसे भी उसकी जो क्षमता है वो किसी जिम से कभी नहीं आ सकती.. हुमारे यहां के एक-एक लेबर की स्टेमिना ऐसी होती है कि उसके सामने जिम जाकर बैल की तरह बॉडी फुलाए लोग 2 घंटे ना टिक पाए. वो तो उन लेबर को काम के अनुसार डाइट नहीं मिलता, लेकिन फिर भी अपना खून जलाते है और काम करने की ऐसी आदत बना लेते है कि थकते नहीं...


इतने में नकुल अपने कपड़े पहनकर बाहर आ गया. मै उसे अपने पास बिठाकर…"यहां अभी क्या चल रहा था"..


नकुल:- जानती हो मेरी मां कहती थी कि ये शशांक मुझे अच्छा नहीं लगता. उसके साथ क्यों रहता है, मै समझ नहीं पाता कभी मां ऐसा क्यों कहती है. मुझे लगता था कि तुम शशांक को बाहरी लड़का समझती हो, इसलिए ज्यादा बात नहीं करती. लेकिन ये तो कुत्ता था, कुत्ता साला. और मै इसके लिए मरा जा रहा था बंगलौर आने के लिए..


संगीता:- मतलब तू मेरी वजह से बंगलौर नहीं आया..


मै:- नाना आपके वजह से ही आया है. शशांक भी एक कारन था जो नकुल को मजबूर कर रहा था बंगलौर आने.. क्यों नकुल..


नकुल:- हां बिल्कुल..


मै:- वैसे तू उसे कल रात के लिए मार रहा था क्या?


नकुल:- थी कुछ बात, जाने दो. मार खाने वाला चाल करेगा, तो मार खायेगा ही..


मै:- और ये कोर्ट में घुसकर मारना, मिलिट्री और पुलिस स्टेशन ये सब क्या था..


नकुल:- ज्यादा हो गया क्या दीदी...


मै:- ज्यादा नहीं बहुत ज्यादा, लेकिन कोई ना फ्लो मे इतना चलता है. वैसे तूने उसे मारा किसलिए वो तो बता..


नकुल:- जाने दो ना मै नहीं बता पाऊंगा.. मै तो सरिया पीछे डालने वाला था लेकिन यहां आप सब हो करके सिर्फ थप्पड़ मारकर छोड़ दिया..


ऋतु:- मुझे कोई समस्या नहीं होती, और हमारे घर में रॉड भी है..


संगीता:- हां सही कही ऋतु..


मै:- ओय तू इन एक्शन लवर्स की मत सुन और मुझे पूरी बात बता.. कल से लेकर अभी तक जो कुछ भी हुआ.....


नकुल:- बोला ना तुम्हे नहीं बात सकता फिर बच्चो जैसे क्यों जिद पकड़कर बैठ गई हो..


मै:- अच्छा मै संगीता, कमरे में जाती हूं, तू ऋतु को बता दे..


नकुल:- तुम्हारे पूरे खानदान की आदत है, सुई एक ही सवाल पर अटक जाती है..


उसकी बात सुनकर मै उसे जैसे ही घुरी, वो हाथ जोड़ते हुए मुझे और संगीता को कमरे में जाने के किए कहा, और ऋतु से उसने पुरा मामला ऊपर-ऊपर बता दिया...


दरअसल कल नकुल के दारू मे पानी मिक्स करने की जगह मेडिकल नशे का सामान मिक्स करके पिला दिया इन लोगों ने.. इनका पुरा मटेरियल एक सोड के बॉटल मे रखा था, इसलिए नकुल को शक भी नहीं हुआ. उसके दोस्तों के साथ नकुल 20-25 मिनट तक पेग लिया है, ये याद था उसे. उसके बाद शशांक ने मुझे (मेनका) लेकर कुछ बात नकुल से कहीं. जिसे सुनने के बाद नकुल, शशांक को समझाते हुए कहा कि देख भाई, वो मेरी बुआ है और इस दूर के रिश्ते को जाने दो तो वो मेरी बड़ी बहन है, जबकि मै उससे लगभग साल भर का बड़ा हूं. इसलिए उनके बारे में कुछ नहीं"..


लेकिन वहां नकुल कुछ करने के लिए होश में नहीं था, और वो लोग लगातार मेरे बारे में बोलते रहे. नकुल जब होश में आया तब वो हॉस्पिटल में मेरे गुस्से का सामना कर रहा था और शशांक की बात याद करके अंदर ही अंदर जल रहा था..


तकरीबन 4.30 बजे शाम मे उसकी नींद खुली. वो मुझे हॉल में सोया देखा और मेरे सर के पास बैठ गया. इतने में ही शशांक और उसके दोस्त पहुंच गए, शराब और शोडा बॉटल लेकर. नकुल ने फिर भी घर आए लोगों से कहा, देखो कल रात जो तुमने नशे की हालात में उल्टा सीधा कहा था वो मुझे सब याद है. कल के बाद से मै तुम्हारा शक्ल नहीं देखना चाहता, बेहतर होगा चले जाओ..


नकुल के समझाने के बाद भी उसे बात समझ में नहीं आयी. उसे लगा वो 3 है और नकुल अकेला तो यहां उसे पिलाकर या मार पीटकर सुलाकर कुछ भी कर सकता है. क्योंकि कल रात को जो मैंने उसे थप्पड़ मारा और 40 हजार के लिए जो उसे घर फोन करने पर मजबूर करवा दिया, उसी का बदला लेने आया था.


नकुल ने दोबारा उसे समझाया कि देखो मेरी दीदी सो रही है और उन्हें मेरा मार पीट करना बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगता. खैर उन्हे क्या हमारे घर में सब यही समझाते है कि जहां तक हो सके लफ्डों से दूर रहो, इसलिए कहता हूं बात आगे ना बढ़ाओ और अच्छे इंसान की तरह यहां से चले जाओ..


लेकिन कुत्ते की वो दुम शशांक नहीं माना और कहने लगा की जो अरमान लेकर आए है, पुरा करके ही जाएंगे. उस मेनका से तो थप्पड़ का बदला लेकर रहेंगे.. ऐसा नकुल ने ऋतु को बताया, बाकी उस वक्त जो भी हुआ हो. नहीं माने वो लोग और नकुल का हाथ, शशांक के 2 दोस्तो ने पकड़ लिया और शशांक ने नकुल के मुंह पर एक घुसा जमा दिया.


नकुल ने जवाब मे शशांक को एक लात उसके पेट में जमा दिया और बाकी उसके दोनो दोस्त को भी अपने पाऊं के घुटने से, एक घुटना उनके पेट पर भी जमा दिया. इसी वक्त मेरी नींद खुल गई थी और तीनो नीचे गिरे कर्राह रहे थे.


नकुल ने जो भी ऋतु को बताया, हां मुझे नकुल के बातो पर यकीन था, वरना वो लड़ाई से अंत-अंत तक परहेज करता है. इसका सबसे बड़ा एग्जाम्पल तो नीलेश का ही केस था, जिसमे मुखिया बख्तियार के आदमी ने नकुल को कई बार मारा था. नकुल पुरा सक्षम था जवाबी हमलें के लिए, लेकिन नकुल जानता था जवाबी हमला मतलब अंत तक लड़ने के किए तैयार रहो, जो कि मौजूदा वक्त को देखते ये संभव नहीं था. इसलिए वो झगड़ा को टालने में ही ज्यादा विश्वास किया...


मै अपने संदर्व मे तो ज्यादा बता नहीं सकती थी, क्योंकि आज तक मैंने शशांक से लगभग दूरियां ही बना कर रखी थी. गांव में भी औपचारिक बातो के अलावा उससे बहुत ज्यादा बातें नहीं हुई थी, लेकिन आशा भाभी (नकुल की मां) ने मुझे शक्त हिदायत दी थी कि मै शशांक से दूर ही रहूं. आज मुझे भी उनकी बातो का मतलब समझ में आ रहा था.


खैर किसके दिल में क्या है वो कौन जान सकता है. नकुल थोड़ा अपसेट था और उसका ध्यान भटकाने के लिए मै उसकी क्लास लेती हुई कहने लगी... "मै गांव में नहीं हूं नकुल, भैया ने मुझे तुम्हारे भरोसे भेजा है"…


किन्तु इससे पहले कि मै नकुल की और भी ज्यादा क्लास ले पाती, बीच में ही संगीता कूद पड़ी और कहने लगी... "जो हो गया उसपर क्या रोना. अब जो होनेवाला है उसपर सोचना है"..


नकुल संगीता के ओर देखकर मानो जैसे धन्यवाद कह रहा हो. संगीता अपनी बात आगे बढ़ती हुई कहने लगी... "माफ करना मै पूरे हफ्ते समय नहीं दे पाई, लेकिन अब वक्त है एक ब्रेक का.. सो कल से हम अगले 8-10 दिन बंगलौर से केरल के रोड ट्रिप पर होंगे...
 

ragish7357

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nice update bro......to menka mausi or bde papa ke yha to ghum li........or ab hawai safar se pahuchi banglor...........dekhte h ye or nakul sangita didi ke sath milkr wka kya - kya knd krte h...........
 
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एक्शन वाला अपडेट, और अब रोड ट्रिप शुरू।
 
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ragish7357

MaSooM ReAdeR
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wowww ye to nakul ne ldko ki band hi bja di..........or ab suru hogi road trip...............let's wait of road trip from banglor to kerla.,.........
 
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अध्याय 10 :: भाग:- 4




सुबह के 7.30 बजे जैसे ही पंचायत शुरू होने वाली थी, वहां 1000 नहीं बल्कि 5000 विधायक के समर्थक जुट चुके थे, जो असगर आलम के नारे लगा रहे थे. तभी वहां लगे माईक पर महादेव मिश्रा की आवाज गूंजने लगी और सारी आवाजें चुप.… "मेरा नाम यदि भुल गए हो तो याद दिलाता चलूं, महादेव मिश्रा.." .. इतना सुनते ही सब चुप.. फिर माईक पर दूसरी आवाज गूंजी... "जो मुझे नहीं जानते उन्हे मै अपना नाम बताता चलूं, मेरा नाम राजवीर सिंह है और गुरुदेव के कहने पर मै भी इस पंचायत का हिस्सा हूं. बस एक ही बात कहूंगा, दंगे के इरादे से जो भी आए हो, अभी लौट जाओ, 5 मिनट का वक्त है. उसके बाद मै नहीं पूछने वाला."..


जैसे ही बैक टू बैक इस इलाके के 2 दबंगो ने अपनी आवाज बुलंद की, वहां के 5000 की भीड़ अगले 5 मिनट में महज 100 लोगो कि रह गई. 5 मिनट समाप्त होते ही, महादेव मिश्रा.… "असगर आलम दंगे भड़काने के इरादे से तुमने लोग बुलाए थे, ये साबित होता है. तुम्हे अपने पोस्ट का घमंड हो गया है, या तो अभी राजीनामा दो, या मै तुम्हारा सर काटकर इसी पीपल के पेड़ पर टांग दूं"..


विधायक असगर... "गुरुदेव मैंने दंगे भड़काने के लिए किसी को नहीं बुलाया. मै भला पंचायत में लोगो को क्यूं लेकर आऊंगा."


महादेव मिश्रा:- बख्तियार (बाजार की सड़क के उस पार के गांव का मुखिया) सच बताओ..


बख्तियार:- गुरुदेव विधायक के लोग दंगे फसाने आए थे, मै गवाह हूं...


महादेव मिश्रा:- असगर अब क्या कहना है..


असगर आलम:- इसपर अंत में बात करते है गुरुदेव, पहले मुख्य मुद्दे पर काम कर ले. क्योंकि किसी की साजिश को गलत साबित करने के लिए मुझे भी तो वक्त चाहिए होगा...


महादेव मिश्रा:- हम्मम ! ठीक है असगर.. चलो मुख्य मुद्दे पर ही आते है.. तुम्हारा बेटा मेले के पहले दिन हुरदांगी किया. अपने दोस्तों के साथ मिलकर बहू-बेटियो के साथ बदतमीजी की.. जिसके लिए पहले भी पंचायत बुलाई गई थी और हिदायत के साथ छोड़ा गया था..


असगर आलम:- मानता हूं गुरुदेव..


महादेव मिश्रा:- उस पंचायत के बाद तुमने गंगा के यहां डकैती करवा दी..


असगर आलम:- मुझे उस बात का इल्म नहीं था, वो पुरा किया मेरे बड़े बेटे सहजाद का काम था.. ये बात मैंने अनूप जी (मेनका के पिता) से भी कहा था. तब इन्होंने कहा था, उनका बेटा कभी इस इलाके में देखा गया तो मार कर फिकवा देगा. तय बात के अनुसार मैंने 3 गुना भरपाई भी की है...


महादेव मिश्रा:- फिर रविवार की घटना के बारे में क्या कहोगे... एक छोटी सी लड़की को इतने अभद्र शब्द कहे तुम्हारे छोटे बेटे और उसके दोस्तो ने. और मेला प्रबंधन ने जब एक्शन लिया तो तुम्हारे तीनो बेटे ने कहा की मेरा छोटे भाई का चैलेंज, हम एक्सेप्ट करते है..


असगर आलम:- गुरुदेव मेरा छोटा बेटा मुझसे और अपने भाइयों से कुछ ज्यादा ही प्यार करता है. हमारे मोह मे आकर वो बदले की भावना से मेले में चला आया, बाकी उसका गलत इरादा नहीं था. इसे आप आवेश मे लिया गया कदम मान सकते है...


महादेव मिश्रा:- असगर तुम कुछ और कह रहे हो, और तुम्हारे बेटों की मनसा कुछ और ही नजर आती है. जब तुम सबको पता था कि तुम्हारा छोटा बेटा गलत है, फिर तुम्हारे तीनो बेटे ने ऐसा हवा क्यों उड़ाई की गांव के बाजार आकर तो देखे वो लड़की... जवाब तुम्हारा बेटे मे से कोई एक देगा...


लियाकत, असगर का दूसरे नंबर का बेटा.… "सभी पांचों का मेरा नमस्कार. मै अपने भाइयों की हरकत से शर्मिंदा हूं, और ये सत्य है कि मेरे सबसे बड़े भाई सहजाद और मुझसे ठीक छोटा वाला भाई अमजद ने मिलकर ऐसी बात बोली थी. लेकिन बोलने के पीछे की वजह कोई दुश्मनी नहीं, बल्कि अपने भाई की हॉस्पिटल में हालत देखकर ऐसा निकला था. अपने भाइयों के ओर से मै माफी मांगता हूं..


महादेव मिश्रा:- तुम्हारा नाम क्या है?


लियाकत:- जी लियाकत है गुरुदेव..


महादेव मिश्रा:- लियाकत तुमने जो कहा वो सही हो सकता है. गुस्से में शायद तुम्हारे दोनो भाई हमला भी कर सकते थे, लेकिन यह कहां से तर्क संगत है कि आवेश मे आकर, तुम्हारे दोनों भाई, अपने दोस्तों के साथ मिलकर गांव के 2 बेटियो को अपने हवस का शिकार बनाने की कोशिश की थी.. फैजान पर 8 लड़की के साथ छेड़खानी और 2 लड़की को गायब करने का आरोप पहले भी साबित हो चुका है. उसकी शादी भी बलात्कार का ही नतीजा था. सिर्फ तुम्हे छोड़कर बाकी तुम्हारे तीनो भाई के कुकर्म माफी लायक नहीं है, सहजाद और अमजद पर भी कई आरोप साबित हो चुके है. वर्तमान की घटना और इतिहास भी देख लो और फिर दो जवाब...


साहजाद:- ए मिश्रा ये कौन सा खेल खेल रहे हो. मदरचोद किसी एक को भी मै नहीं छोड़ने वाला...


असगर ने जैसे ही अपने बेटे को सुना, अपने सर पर हाथ रखकर माथा पीटने लगा. नज़रों के इशारे से उसने अपने दूसरे नंबर के बेटे को देखा, उसने खींचकर अपने बड़े भाई को एक थप्पड़ दिया और अपने साथ आए लोगो को उसे शांत बिठाने के लिए कहने लगा...


लियाकत:- मै पंच के सामने एक प्रस्ताव रखना चाहता हूं...


महादेव मिश्रा:- हां बोलो..


लियाकत:- हमे पूर्ण मामले का ज्ञान हो चला है.. मै चाहता हूं, इस मामले में मै और मेरे अब्बू दोषियों को सजा देंगे.. खबर आप तक पहुंच जाएगी.. यदि हमारी सजा आपको अच्छी ना लगे, तो अगली पंचायत मे आने से पहले मेरे अब्बू राजीनामा देकर पंचायत मे आएंगे और जो भी आप लोगों का फैसला होगा वो हमे मंजूर होगा...


10 मिनट के पंचायत को विराम दिया गया, ताकि आपस म विचार विमर्श किया जाए. इधर जबतक असगर का दूसरे नंबर का बेटा हमारे परिवार के करीब पहुंचा और मेरे सामने हाथ जोड़कर... "तुम तो वाकई शेरनी की तरह हो, 20-25 लड़को के बीच घिरे होकर भी क्या खूब हिम्मत दिखाई. मै तुमसे वादा करता हूं, उनका फैसला मै खुद करूंगा, भले ही वो मेरे भाई ही क्यों ना है. बस एक छोटी सी विनती है"..


पापा:- क्या?


लियाकत:- जब हम पुरा फैसला कर ले और आपको हमारे फैसले से संतुष्टि हो तो आप सपरिवार हमारे आंगन आए और मेहमान नवाजी स्वीकार करे..


महेश भैया:- हम्मम ! तुम पहले करके बताओ, फिर हम जरूर पहुंचेंगे...

इतने में पंचायत ने मंथन के बाद फैसला दिया... "असगर के दूसरे बेटे लियाकत की बात हम मानते है, आने वाले रविवार से पहले तक, वो सबको सजा दे दे. यदि ऐसा करने में विफल हुए तो रविवार की सभा में ये पंचायत बिना किसी पक्ष को सुने अपना फैसला सुना देगी, जो मान्य होगा. अनूप तुम्हे हमारा फैसला मंजूर है"..


पापा:- जैसा पंचो का फैसला हो, हमे मंजूर है...


वहां से सभा टूटी और हर कोई हैरान था. फैसला उन्हीं पर छोड़ना सही था या गलत ये तो रविवार से पहले पता चल ही जाता लेकिन जब सभा टूट रही थी तब नरेंद्र (अमृता का पति) और सुनील (पुष्पा का पति) को लियाकत से जब बात करते देखी, तब मामला समझ में आया कि वो गांव की 2 बेटी कौन थी.

मुझे असगर के बेटों की बेवकूफी पर हंसी आ गई. आप सोच रहे है की ऐसे मामलों में क्या नतीजा होता है तो, मै आपको बता दूं कि यहां कोई फिल्म नही चल रहा, जिसमे जुल्म करने वाला पहले जीत जाए और बाद में एक हीरो उनके जुल्म का हिसाब एक-एक करके ले.


यहां बात ज्यादा बढ़ती है तो रक्त चरित्र ही देखने मिलता है, फिर दुश्मनी को मिटाने के लिए हर एक दुश्मन को साफ कर दिया जाता है. ठीक वैसे ही जैसे आपने गैंग ऑफ़ वासेपुर फिल्म में देखा होगा. हमारे गांव की ऐसी घटनाओं में तो वो फिल्म मात्र एक ट्रेलर था, क्योंकि सहर में रहने वालों को तो भनक भी नहीं होती कि गांव में क्या चल रहा है.


यहां पहले तो किसी तरह मामले को शांत ही किया जाता है, किन्तु जब मामला हाथ से निकल जाए, तो यहां ना तो पुलिस पहुंचती है और ना ही मीडिया, और ना ही फैसला कोर्ट के भरोसे छोड़ते है. फिर तो कुछ दिनों तक लाशों का खेल चलता है और उसके बाद सालों तक सब शांत.


पंचायत खत्म होने के बाद हम सब लौट आए. पापा और भाईय गांव के कुछ लोगो के साथ जब बात कर रहे थे, तब यही कह रहे थे कि असगर और उसका बेटा लियाकत अपनी छवि अब साफ करने के इरादे से होगा.


एक बार बाप को अपने बेटे से मोह हो सकता है, लेकिन जब इज्जत और राजनैतिक कैरियर दाव पर लगा हो, तो सारा मोह भंग हो जाता है. असगर और लियाकत पर कितना दबाव था, इस बात का अंदाजा सिर्फ इस बातों से लगाया जा सकता था कि शुक्रवार के दिन महादेव मिश्रा को खेत में एक स्पॉट पर बुलाया गया. वहां सहजाद, अमजद और उसके 12 साथियों को काटकर वहीं खेत में गार दिया गया.


फैजान और उसके 20 साथियों का इलाज सहर में हो रहा था, वो भी पुलिस कस्टडी में. शुक्रवार की रात में ही उनका बेल करवाया गया और शनिवार को उनका डिस्चार्ज पेपर बन गया. शनिवार को शाम के 4 बजे खबर आयी की मिनी वैन में सवार 21 यात्री, वैन के डबरा में डूबने के कारन सबकी घटनास्थल पर ही मृत्यु हो गई. मामला का संज्ञान लेने मौके पर डीएम और एसपी पहुंचे.


(डबरा, एक बहुत बड़े और गहरे गड्ढे में जमा पानी को कहते है. जिसके ऊपर आमुमण जल कुंभी उगी रहती है. उसे देखकर गहराई का अंदाज़ा नहीं लगाया जा सकता, किन्तु किसी-किसी डबरे की गहराई इतनी होती है कि उसमे 2-3 बस एक साथ समा जाए)


केवल ड्राइवर अपनी जान बचा पाया, क्योंकि घटना के कुछ वक्त पूर्व ही उन लड़को ने ड्राइवर को रास्ते में उतारकर, खुद ही गाड़ी ड्राइव कर रहे थे. रात के 8 बजे पोस्टमार्टम की रिपोर्ट क्लियर बता रही थी कि सब के सब नशे म थे और नशे की हालत में होने के कारण कोई भी अपनी जान बचा नहीं पाया..


ये तो प्रेस और मीडिया की खबर थी, लेकिन सच्चाई क्या थी वो हम सब गांव वाले जानते थे. असगर के कहने पर 2 दिन मे कुल 46 लाश गिरा दी गई थी. जिसमे से 21 लोगो को तो नाटकीय ढंग से डूबा कर मारा गया था. 14 लोग को शुक्रवार को खेत में काटकर फेका गया था और 11 लोगों को लियाकत ने ट्रेस किया था जो उनके भाई सहजाद के साथ मिलकर, पंचायत में दंगा भड़काने पहुंचे थे, जिसमे गांव का मुखिया बख्तियार भी सामिल था.


ये सब लिस्ट महादेव मिश्रा की थी, जिसे उसने लियाकत को सौंपी थी. लियाकत और असगर की मुलाकात, पंचायत से ठीक पहले, बुधवार की रात को, राजवीर अंकल और महादेव मिश्रा से हुई थी. बुधवार की रात ही लियाकत अपने पॉलिटिकल कैरियर को हवा देने और गांव में अपनी स्तिथि को मजबूत करने के लिए, अपने बाप को अपने साथ मिला चुका था.


अंदर ही अंदर वैसे लियाकत की भी अपनी कहानी चल रही थी. दरअसल पुष्पा और अमृता का पति लियाकत का बहुत गहरा मित्र था. वो इतना भन्नाए थे कि वो सबको साफ करने का मन बना चुके थे. चूंकि लियाकत उन दोनों के करीबी मित्र मे से एक था, इसलिए इस मामले की जानकारी लियाकत को भी हो चली थी...


एक ओर ये दोनो थे, तो दूसरे ओर राजवीर अंकल भी सीधा भिड़ंत के इरादे से थे और सबको साफ करने का मन बना चुके थे. इधर मनीष भैया और महेश भैया भी पूरी योजना बना चुके थे, इस सिलसिले में मनीष भैया, अपने मामा ससुर और पूर्व गृह मंत्री से मुलाकात भी कर चुके थे. मनीष और महेश भैया भी पूरी तैयारी में थे.. और इस बात की जानकारी महदेव मिश्रा को हो चली थी.


असगर आलम महादेव मिश्रा का ही चेला था, इसलिए महादेव मिश्रा ने ये गुप्त मीटिंग राखी. उसी मीटिंग में असगर, महादेव मिश्रा के कहने पर अपना पुत्र मोह त्याग दिया था और पंचायत मे क्या करना है, इस बात की योजना एक रात पूर्व ही बन चुकी थी, जिसमे चौंकने की स्तिथि तब बन गई, जब अचानक ही दंगे भड़काने के लिए लोग पहुंच चुके थे... किन्तु जहां महादेव मिश्रा हो ऊपर से राजवीर सिंह भी साथ में, फिर किसी की गुंडई चल सकती थी क्या?


वैसे शुक्रवार और शनिवार को जितने भी मर्डर हुए, वो बिना पंचायत के भी हो सकता था, लेकिन असगर के खराब इमेज को सुधारने और लियाकत को आने वाले लोक सभा इलेक्शन मे लॉन्च की तैयारी के इरादे से, पंचायत का बुलाई गई थी. पंचायत के सारे फैसले पूर्व से सुनिश्चित किए हुए थे, ताकि लियाकत की छवि उभरकर सबके सामने आए..


घिनौने कुकर्म के कारण उपजे माहौल ने ऐसा सामाजिक दबाव बनाया, जिसमे राजनीतिक रंग अपने पूरे उफान पर था और यही राजनीतिक रंग 46 लोगों को काल के गाल में निगल चुकी थी, जिसमे एक गांव का मुखिया भी था. मुखिया के मर्डर को कवर करने के लिए गांव का एक आदमी खुद सरेंडर कर दिया और उसने पुलिस को बताया कि गांव के सड़क और डबरा पर ध्यान ना देने कारन उसके 20 साथी डूबकर मर गए, जिसका दोषी मुखिया बख्तियार था. इसलिए मैंने गुस्से में उसे मार दिया...


उफ्फ क्या माहौल बनाया था लियाकत ने. चारो ओर बस जैसे उसी के नाम का डंका बज रहा हो. पूरे मामले का क्रेडिट लियाकत ही लेकर गया था. बात जो भी हो, लेकिन रविवार की सुबह तो रविवार की सुबह थी. मै आज ठीक वैसे ही तैयार हुई थी जैसे मै शवन मेले के पहले दिन तैयार हुई थी.
पहला अध्याय रक्षा बंधन पर आधारित था । मेनका की ममेरी बहन रूपाली और उसके भाइयों के साथ ।
दुसरा अध्याय मेनका की सुरक्षा के लिए था जिसे राजवीर सिंह ने किया था । और रूपाली एवं उसके मंगेतर नितेश पर भी था जहां रूपाली को मेनका के सामने शर्मिंदगी उठानी पड़ती है ।
मेनका का बड़े पापा के साथ कन्वर्सेशन भी हुआ था..... ये इमोशनल था ।
तीसरा अध्याय फेजान के फैलाए हुए रायते पर था । पंचायत बुलाई गई जहां महादेव मिश्रा और राजवीर की ही तुती चलती है । महादेव मिश्रा काफी ताकतवर शख्स हैं ।
चौथा अध्याय.......
मेनका के साथ बदतमीजी की कीमत विधायक को अपने तीन बेटों की बलि चढ़ा कर देनी पड़ी । सहजाद, अमजद और फेजान.... तीनों को मार दिया गया ।
मैंने गैंगपुर आफ वासेपुर नहीं देखा है लेकिन यदि ऐसा हुआ होगा तो भी मुझे हजम नहीं हो रहा है ।
कैसा बाप है ? कैसा भाई है ? पोलिटिकल फायदे के लिए अपनों को ही यदि बलि चढ़ाना है तो इससे वाहियात काम और क्या होगा । एक नहीं बल्कि अपने तीन तीन बच्चों को कौन मरवाता है ?
वैसे पृथ्वीराज चौहान के बाद जो भी शासन आया , वहां हमने ऐसे कारनामे कई बार पढ़े हैं .... एक विशेष कौम में ।
लेकिन आज के जमाने में ये प्रासंगिक नहीं लगता है ।

सभी अपडेट बेहतरीन थे नैन भाई ।
 
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अध्याय 11 भाग:- 2 (जिंगदी का पहला लंबा सफर)





मै और नकुल, नकुल के कमरे में ही ये सारी बातें कर रहे थे और हमे क्या पता कि कुछ लोग छिपकर हमारी बात सुन रहे थे. जैसे ही नकुल की बातें खत्म हुई, नकुल के पापा रघुवीर भैया और उसकी मां आशा भाभी नकुल के कमरे में पहुंची और उसका कान मारोड़ते... "तो तू है वो जो मेनका को इन बाहरी बातो का ज्ञान देता है"..


मै, रघुवीर भैया का हाथ नकुल के कान से हटाती… "हम दोनों आपस में डिस्कस नहीं करेंगे, तो क्या आप लोगों से डिस्कस करने जाएंगे.. हमे जो सही-गलत लगता है, आपस में बातिया लेते है. आप लोग आते है अपनी बात हमे बताने.. तब तो कहते हो बच्चे हो.. नकुल को जितना पॉलिटिक्स का ज्ञान था वो मुझे बता रहा था"…


मां:- और तू तो हम सबकी नानी है मेनका. जितना तू नकुल के लिए मरती है, हम मे से किसी और के लिए उसका आधा भी मर लेती, तो समझते हम धन्य हो गए..


मै:- "नकुल मेरी हम उम्र बहन जैसी है... जैसे 2 बहनों का प्यार होता है, वैसे ही हम दोनों का है.. गलती आप लोगो कि है. क्यों बेटियो का गला घोट देती थी उसके पैदा होने से पहले. कितना कुछ छूट गया मेरा, आपको पता भी है... वो लता और मधु एक ही गली की है, रिश्ते में बहने और पक्की सहेली.. जहां भी जाती है साथ रहती है.. किसी का आशा नहीं रखना पड़ता उन्हे.."

"मै शुरू से जहां भी घूमने गई नकुल मेरा हाथ पकड़े था. भोज खाने जाना हो, शादी मे जाना हो, त्योहार मे जाना हो, मेले में जाना हो.. हर जगह तो नकुल ही था. कहां कोई लड़की मेरे साथ थी.. अब नकुल जैसा सोचता है, वैसा वो मुझसे बात करता है. और मै जैसा सोचती हूं वो मै नकुल को बताती हूं... इसलिए मेरे सोच में लड़को वाली सोच तो आएगी ही. वैसे भी नकुल के साथ होने से एक बात तो अच्छी है.. कम से कम आप लोगों की तरह मै चुगली करना पसंद नहीं करती. और ना ही दूसरे लड़की के पहनावे और गहनों को लेकर बातचीत करती हूं...


नकुल:- क्या बात कही हो दीदी, सभी की बोलती बंद कर दी..


मै:- मै किसी की बोलती नहीं बंद की बस सबको अपने दिल की बात बता रही हूं. सब अपने हम उम्र के साथ रहना पसंद करते है, सो मै भी करती हूं. लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि मेरा लगाव आप सब में से किसी से कम हो जाता है.. मै आप सबको भी उतना ही प्यार करती हूं.. नकुल सुबह-सुबह चला जाएगा फिर 2 महीने बाद देखूंगी, इसलिए बैठकर बातें कर रही थी, लेकिन आप सबको तो वो भी देखा नहीं जाता...


मां:- कहा था ना ये हमारी नानी है.. देखा दिल की बात बताते-बताते उलहाना भी दे दी. हम चुगली करते है, दूसरी औरतों के कपड़े और गहने देखकर उसके बारे में बात करते है..


मै:- सॉरी, ज्यादा बोल दी क्या?


आशा भाभी मेरे गले लगती... "हां थोड़ा ज्यादा हो गया, हम सब को लपेट ली. लेकिन कोई ना इतना चलता है. चलो चाची (मेरी मां) यहां से दोनो बहनों को बतीया लेने दो..


हमारे घर के लोग भी ना, पहले रंग में भंग डाल देंगे, फिर कहते है अकेला छोड़ दो. खैर मै भी नकुल से थोड़ी देर बात करके वापस घर आ गई. तकरीबन 12 बज रहे होंगे जब पापा घर आए. उनके आते ही मै उनके साथ उनके कमरे में चली गई, और पापा के साथ बैठकर उनसे पूछने लगी, क्या मेरे मुद्दे मे लियाकत ने अपनी दुश्मनी निकली है?


तब पापा ने कहा कि किसी से ये बात डिस्कस नहीं करने. पुरा मामला पंचायत के एक रात पहले ही तय हो गया था. तभी तो हम सब शॉक्ड हो गए थे कि जब सब कुछ तय हो गया था फिर ये दंगा भड़काने कौन आ गया..


पता चला विधायक के बड़े बेटे और वो मुखिया बख्तियार ने मिलकर ये योजना बनाई थी. फिर मामला को राजवीर जी ने संभाला. इधर वो लियाकत पहले से सब मन बाना चुका था, उसे मौका और सपोर्ट दोनो मिल गया और वो चढ़ गया सीढी.


मै:- पापा लियाकत ने मुझे डेढ़ करोड़ रुपए भी दिए है..


पापा:- वो तेरे पैसे है, किसी को बताना मत इस बारे में..


मै:- लेकिन क्यों पापा..


पापा:- बस ऐसे ही, मत बताना किसी को..


मै:- किसी को मतलब बाहरी को ही ना..


पापा:- नहीं घर के लोगों को.. बात ये नहीं कि लोग तुझ से पैसे मांग लेंगे. बात फिर हो जाती है कि तेरी मां किसी के पास बैठी और गलती से उसके मुंह से निकल गया.. ऐसे ही एक के मुंह से दूसरे और दूसरे के मुंह से तीसरे तक बात पहुंच जाती है.. और ये मामला बहुत नाजुक है..


मै:- पापा बस नकुल ये बात जानता है लेकिन विश्वास रखो वो किसी को कुछ नहीं कहेगा..


पापा:- हां मै जानता हूं कि वो किसी से कुछ नहीं कहेगा..


मै:- ठीक है पापा फिर ये बात मै किसी से नहीं कहूंगी. अब मै जाती हूं..


पापा:- अच्छा सुन बेटा, कुछ दिन के लिए तू कहीं घूम क्यों नहीं आती. इतना टेंशन भरे माहौल से गुजरी है और एक बड़े कांड का अहम हिस्सा हो, तो मै सोच रहा था 1-2 महीने के लिए कहीं हो आओ..


मै:- पापा आपको नहीं लगता कि आप बेकार मे टेंशन ले रहे. ठीक है मै 3 महीने के लिए घर में ही पैक हो जाती हूं, अपने कमरे से ही नहीं निकलूंगी..


पापा:- पागल घर है ये जेल नहीं.. जैसा तुम्हे ठीक लगे. बस लगा कि माहौल इतना टेंशन भरा था तो कुछ दिन बाहर घूम लोगी तो मन लगा रहेगा. वैसे भी एक लंबे समय से कहीं घूमने गई भी नहीं.


मै:- पापा बात क्या है, जो आदमी रोज रात को उठकर मुझे 2 बार देखकर जाता है, वो आज खुद से दूर करने की बात कर रहे.. सच-सच बताओ पापा..


पापा:- तुमने हिम्मत दिखाई मुझे खुशी हुई. तुम्हे पता है कहां छोड़ना चाहिए, कहां भिड़ना चाहिए और कहां पुरा भिड़ जाना चाहिए. लेकिन तुम्हारे नाम पर जो इतना बड़ा कांड हुआ है, उसके बाद बहुत से लोग घर आकर तुम्हे बधाइयां देंगे. सब सबाशी देंगे.. और ये सबशी बहुत खतरनाक होती है बेटा..


मै:- कैसे पापा, मुझे भी समझाओ ना...


पापा:- बस मै अपनी ज़िंदगी के कुछ पुराने पाप को देखकर ऐसा बोल रहा हूं मेनका.. काश वो सबाशि सुनकर मेरे दिल में बार-बार एक ही जैसे काम करने की इक्छा नहीं जागी होती, तो मै इतनी गलतियां नहीं करता..


मै:- बस पापा मुझे और नहीं जानना. हां मै गलत को गलत ही कहूंगी, लेकिन मै वो सुन नहीं पाऊंगी पापा. आप बस कोशिश करना की आप सारी गलतियों को सुधार सके.... आपकी इक्छा है तो मै कहीं घूम आती हूं, आप बताओ कहां चली जाऊं.. मामा के साथ जाऊं, या मै कविता मौसी के यहां हो आऊं. या फिर..


पापा:- फिर क्या मेनका..


मै:- आप डाटोगे तो नहीं..


पापा:- गुस्सा आएगा तो थोड़ा बोल दूंगा, सुन लेना और क्या?


मै:- पापा मै बड़े पापा के पास चली जाऊं क्या?


पापा मेरी बात सुनकर अपना मुंह फेर लिए. पता नहीं शायद उनके पुराने जख्म कुरेद दिए थे मैंने. वो कुछ बोल ही नहीं पाए… कुछ देर तक अपना मुंह दूसरी ओर ही घुमाए रहे... मै उनके कंधे पर हाथ रखती... "पापा आप रो रहे है"..


मुझे साफ पता चल रहा था कि पापा अपने आंख साफ कर रहे है. वो वापस मुड़ते... "कुछ बातें हमेशा खटकती है, मै पिछले 16 साल से सोच रहा हूं कि मैंने सही किया था या गलत."..


मै:- गलत किया था पापा.. इतनी दुविधा में क्यों है. अब भी एक मन से खुद को सांत्वना देने की कोशिश में क्यों जुटे है, जबकि आप सब कुछ समझते है..


पापा:- हां सही कही.. पंच का फैसला अपनी जगह था लेकिन मै तो उनका भाई था.. ये गलती चुभती है.. जमीन तक बेईमानी कर गया था मै.. तेरी मां ने नहीं समझाया होता तो..


मै:- पापा ये 16 साल तक भाई से दूर रहने वाली भी गलती नहीं होती पापा. बस झिझक मात्र से आप दूर है बड़े पापा से.. आप छोटे है, इसलिए झिझक छोड़कर आपको उनके पास जाना चाहिए था...


पापा:- हम्मम ! ठीक है एक काम करते है..


मै:- क्या पापा...


पापा:- तू कल नकुल के साथ कविता के पास चली जा.. वहां कुछ दिन रहना फिर यहां के कुछ पेंडिंग काम निपटाने के बाद मै वहां पहुंच जाऊंगा. वहां से फिर हम सब भैया के पास चलेंगे...


मै:- कुछ पेंडिंग काम निपटाने में कितने दिन लगेंगे..


पापा:- 10 दिन तो लग ही जाएंगे..


मै:- ठीक है सुबह आप कविता मासी को कॉल कर देना, किसी को बस स्टैंड भेज देने, मै बस स्टैंड मे उतर जाऊंगी, और नकुल अपना फ्लाइट पकड़ने पटना निकल जाएगा..


पापा:- ठीक है मै फोन कर देता हूं.. और सुन वहां किसी को तंग मत करना..


मै:- मै क्या साक्षी हूं जो सबको तंग करूंगी.. वैसे पापा क्या मै साक्षी और केशव को भी लेते चली जाऊं..


पापा:- नाना, उन दोनों को मत लेकर जा, वरना यहां झगड़ा हो जाएगा..


मै:- मै समझी नहीं, साक्षी को ले जाने से यहां क्यों झगड़ा हो जाएगा...


पापा:- बड़ी बहू के पिताजी की तबीयत खराब है, वो दोनो कल तक निकल जाएंगे. ऐसे में उसके नाना-नानी को पता चलेगा कि उसके नाति और नातिन कहीं और घूम रहे तो गृह युद्ध छिड़ जाएगा.. तू क्या अपनी बड़ी भाभी को नहीं जानती..


मै:- कोई बात नहीं, मै और मेरा लैपटॉप... मेरे तन्हाई का साथी..


पापा:- जितनी पढ़ाई जरूरी है, उतना ही पढ़ाई से ब्रेक लेना भी..


मै:- पापा ये कुछ अजीब तरह की बातें नहीं हो रही..


पापा:- अजीब कैसे हुई बिल्कुल सही बात है..


मै:- और वो कैसे..


पापा:- जैसे लगातार खेती के बाद जमीन को साल भर खाली छोड़ने से मिट्टी की उपजा वापस आ जाती है, वैसे ही घूम फिर कर आने के बाद दिमाग फ्रेश हो जाता है फिर सारी बातें बिल्कुल फटाफट दिमाग में घुसती है..


मै:- पापा..


पापा:- क्या हुआ..


मै:- दोनो बात का कोई संबंध नहीं है.. पढ़ाई रेगुलर होनी चाहिए और दिमाग को रोज ही ब्रेक भी मिलना चाहिए. फिर तो मुझे खाने का उदहारण देना होगा..


पापा:- कैसा उदहारण..


मै:- 5 दिन भूखा रखने के बाद पेट भी पुरा रिलैक्स रहेगा, तब जो भी खाओगे फटाफट पच जाएगा... पेट की सारी तकलीफ दूर हो जाएगी..


पापा:- ये एग्जाम्पल मैच नहीं कर रहा.. लॉजिक मे मै ही जीता हूं..


मै:- ठीक आप है जीते मै हारी.. आप फ्री है क्या?


पापा:- हां फ्री हूं.. तो चलिए मेरे साथ सहर, मुझे कुछ सामान खरीदना है..


पापा:- नकुल के साथ चली जा..


मै:- मुझे आपके साथ दिल कर रहा है जाने का, नकुल के साथ जाना होता तो पहले पूछ लेती ना...


पापा:- अच्छा ठीक है, अपनी मां को भी बोल से तैयार होने और कहना कि अपने पोते-पोती को छोड़ देने और अकेले मेरे साथ चले.. तू नकुल के साथ जा. मै और तुम्हारी मां अलग आते है..


मै:- जैसा आप कहो पापा.. मां को मै बोल देती हूं..


कुछ ही देर में हम तैयार थे. सहर पहुंचकर पापा ने अपनी कार सहर वाले घर में पार्क की और हमारे साथ ही चल दिए.. "मेनका तुम मुझे साथ मे क्यों लाई"..


नकुल:- बूढ़े लोग के साथ लाने पर 40% डिस्काउंट है इसलिए साथ लेकर आयी...


धीरे मेरे कान के पास नकुल ने ऐसे बोला की मेरी जोर की हंसी छूट गई.. पापा जोड़ से डांटते हुए पूछने लगे... "मेरे सवाल पर इसने ऐसा क्या बोला जो तुम हंसने लगी"


मै:- पापा नकुल कह रहा था दादा इतने बुद्धू कैसे हो सकते है, पैसे खर्च करवाने लाए है और किसलिए.…


पापा:- पैसे क्या पेड़ पर उगते है जो मै ऐसे ही खर्च कर दूं... सभी जरूरत की चीजें तो है ही इसके पास..


नकुल:- सही है दादा, बिलकुल सही है... वैसे तो दोनो बाप बेटी लाखो उड़ाने से पहले सोचोगे नहीं, लेकिन दिखाओगे ऐसे की पैसे हमेशा हिसाब से ही खर्च करते हो..


मां:- बहुत सही जवाब दिया मेरे पोते. वैसे तेरे दादा ने सोचा था कि तुझे आज एक नया मोबाइल दिला दे. लेकिन अब जब ऐसी बातें तुमने कर दी है तो तू देख ले..


नकुल:- दादा, वो तो चमरे की जुबान है, फिसल जाती है, प्लीज आप दिल से मत लेना.. कुछ तो बोलो.. दादा..


पापा:- मोबाइल दिलाना कैंसल..


नकुल:- नहीं नहीं नहीं दादा, क्या आप भी हम छोटे बच्चो की बात का बुरा मान जाते हो, दीदी तुम ही समझाओ ना..


मै:- ऐसा है बाबू की हम बाप बेटी तो लाखो लूटाने से पहले सोचते नहीं ना, इसलिए तुम्हारी बात सुनकर हमारे ज्ञान के द्वार खुल गए..


नकुल:- प्लीज बस मेरे मोबाइल आने तक अपने ज्ञान के द्वार को बंद कर लो..


पापा:- अच्छा मेरे एक सवाल का तू सही-सही जवाब दे, फिर मै तेरी बात को भुल जाऊंगा और तुझे मोबाइल भी दिला दूंगा..


नकुल:- आसान सा सवाल पूछना दादा, जिसका जवाब मै दे दूं..


पापा:- क्या तू अपना घूमना 20 दिन के लिए टाल सकता है..


नकुल:- हद है, कोई काम है तो सीधा बोल दो ना दादा, कौन सा मै बॉर्डर पर जंग लडने जा रहा जो देश का एक सिपाही कम हो जाएगा, 20 दिन बाद चला जाऊंगा घूमने..


मै:- पापा नहीं.. उसे जाने दो.. आप बिल्कुल ग़लत कर रहे है..


नकुल:- पहले दादा को बात तो करने दो, फिर ना गलत या सही का फैसला होगा..


मै:- मैंने बोल दिया है ना गलत है, मतलब गलत है.. तू कल बंगलौर के लिए अपनी फ्लाइट लेगा..


नकुल:- पर टिकट तो मैंने बृहस्पति वार को ही कैंसल करवाई थी..


मै:- लेकिन क्यों..


नकुल:- मुझे संगीता दीदी से टिकट लेना अच्छा नहीं लगा इसलिए..


मै:- हां वो मै समझ गई, लेकिन टिकट क्यों कैंसल करवाया..


नकुल:- अभी तो बताया, मुझे अच्छा नहीं लगा.…


मै:- अभी तो मै भी कहीं ना, तेरी बात समझ गई, लेकिन टिकट क्यों कैंसल करवाया..


नकुल:- बस ऐसे ही, उससे ज्यादा मत पूछो..


मां:- क्यों रे तू तो कल बंगलौर जाने की पूरी प्लांनिंग कर चुका था. तेरा बैग वग्रह सब पैक है, फिर तू बंगलौर कैसे जाता...


नकुल:- पहले सोचा सर्वे कर लूं फिर बंगलौर निकलूंगा..


मै:- चलो आ गया अपना शॉपिंग की जगह.. पापा आप यहां पहले आए थे कि नहीं..


मै, प्राची दीदी का शॉपिंग कॉम्प्लेक्स दिखती हुई उनसे पूछने लगी. पापा ने ना में जवाब दिया और कहने लगे, कभी मौका ही नहीं मिला. ये राजवीर जी का शॉपिंग कॉम्प्लेक्स है ना....


मै:- जी नहीं ये प्राची दीदी का शॉपिंग कॉम्प्लेक्स है…


पापा मेरी बात सुनकर हसने लगे और हम सब उस शॉपिंग कॉम्प्लेक्स में पहुंच गए. मां पापा को वहां मैंने थोड़ी देर घुमाया, फिर पापा कहने लगे, मेनका यहां कुछ काम है तो वो कर लो, नहीं तो पहले मेरे साथ चलो, कुछ शॉपिंग मुझे भी करनी है फिर तुम मुझे यहां कुछ देर घुमा देना और नकुल के साथ चली जाना


मां:- ऐसे कौन सी हड़बड़ी मची है मिश्रा जी, जो मेनका को भागने मे लगे हो..


मै:- पापा आपको यहां फिल्म दिखने लाये है मां.. (मैंने ऐसे ही फिरकी ली)


मां:- फिल्म और तेरे पापा.. भुल जाओ.. 17 साल हो गए फिल्म दिखाए और 8 साल हो गए इनके साथ बाजार आए.. ये और इनका काम..


मै:- पापा मै ये कार छोड़ दूं और घर से कार उठा लू, या आप घर की कार लेकर आओगे..


पापा:- मै समझा नहीं..


मै:- पापा मुझे लगता है आपको मां की शिकायत पहले दूर करनी चाहिए, इसलिए मै अपने काम का समान लेकर यहां से निकलती हूं...


पापा:- हां यही ठीक रहेगा..


मां:- मिश्रा जी कभी-कभी आप भी ना हद करने लगते हो.. साथ चलेंगे सब...


नकुल:- दादी तो आप ही आंख मूंद लीजिए और दादा हद कार रहे है तो करने दीजिए. चलो दीदी..


पापा:- रुक दीदी के भतीजे, और जारा हम सब को बताओ की टिकट क्यों कैंसल की..


नकुल:- आप लोगों की सुई ना एक ही बात पर अटक जाती है... पंचायत में जब विधायक के बेटे लियाकत ने कहा कि वो सजा तय करेगा, तभी मैंने टिकट कैंसल करवा दिया था. मुझे नेताओं के बात पर रत्ती भर भी भरोसा नहीं था. मेरा घूमना उतना जरूरी नहीं था जितना की ये मामला सुलझाना..


पापा:- तो ठीक है अब जब टिकट कैंसल हो ही गई है, तो पहले तू मेनका के साथ 20 दिन उसके हिसाब से घूम ले, बाद में वो तेरे हिसाब से घूम लेगी..


नकुल:- ठीक है दादा..


मै:- क्या ठीक है.. पापा इसे स्वार्थी होना कहते है..


नकुल:- दादा हम चलते है, आपने जैसा सोचा है वैसा ही होगा..


मै:- बहुत बड़ा हो गया है तू..


नकुल:- बिल्कुल ख़ामोश, जारा भी आवाज नहीं.. अभी यहां जो काम से आयी थी वो करो..


मै नकुल की बात का कोई जवाब न देकर सीधा फुटवेयर सेक्शन में चली गई और वहां से मैंने कुछ फुट वेयर खरीदे. फिर मै इलेक्ट्रॉनिक सेक्शन में जाकर एक टेरबाइट का हार्ड डिस्क उठा लाई. जैसे ही मेरी यहां की शॉपिंग खत्म हुई नकुल से पूछने लगी... "तुझे कुछ नहीं लेना क्या"..


नकुल:- क्या लूं मै..


मै:- स्पोर्ट शु लेले..


नकुल:- यहां से नहीं लूंगा बंगलौर से खरीदूंगा..


मै:- पक्का तुझे कुछ नहीं चाहिए या झिझक रहा है लेने में..


नकुल:- मुझे कुछ चाहिए भी नहीं और हां झिझक भी रहा हूं..


मै:- अब तुझे क्या हुआ जो मुंह फुलाए है..


नकुल:- अपने साथ आने से मना क्यों कर रही हो..


मै:- मना नहीं करूंगी तो मूड सही हो जाएगा ना..


नकुल:- येस..


मै:- ठीक है नहीं माना करती चल अब बता तुझे क्या चाहिए..


नकुल:- कहा तो कुछ नहीं चाहिए.. बंगलौर में खरीदेंगे..


"पागल कहीं का, चल चलते है" हम दोनों ही हसने लगे और वहां से निकलकर मै कंप्यूटर सेक्शन में आ गई. वहां से मैंने जैसे ही एक प्यारा सा मिनी टच स्क्रीन लैपटॉप उठाया, नकुल मुझे टोकते... "पैसे है तो बस लैपटॉप, मोबाइल और टैबलेट्स खरीदने में ही उड़ा दोगी क्या?"..


मै:- नहीं रे बाबा.. मै लगातार बाहर रहूंगी ना और घर का लैपटॉप कहीं ले नहीं जा सकती, इसलिए अपना सारा स्टडी मटेरियल इसमें ट्रांसफर मारकर देखती रहूंगी...


नकुल:- कहीं घूमने जाओगी तो वहां बैठकर पढ़ोगी क्या.. घूमने को घूमने के तरीके से लेना चाहिए...


मै:- तो मुझे क्या करना चाहिए...


नकुल:- ले लो लैपटॉप, मन ना लगा तो मूवी तो देख ही सकती है. साथ में एक पोर्टेबल स्पीकर मेरे लिए भी खरीद लेना.. गाने सुनने और मूवी देखने के लिए काम आएगा..


मै:- तो जाकर पसंद कर ले ना.. और सुन एक नेकबैंड और एक हेडसेट भी ले लेना..


नकुल:- अरे ये हेड फोन वग्रह सब बंगलौर से ले लेना.. वहां लेटेस्ट और अच्छे क्वालिटी के मिलेंगे.. यहां सब लोकल माल मिलेगा..


मै:- जी सर जैसा आप कहें...


हमारी आपस की छोटी-मोटी नोक-झोंक, हंसी मज़ाक और खरीदारी चलती रही. हम लोग अपनी शॉपिंग करके वहां से चले आए, और मै अपनी पैकिंग करने लगी. सुबह 7 बजे की बस से हमे निकालना था, इसलिए मै जल्दी सो गई. जाने से पहले मैंने दोनो भैया और भाभी को अपने 2 महीने का प्लान बता दिया. दोनो ही थोड़े हैरान थे और इस बात से चिंतित थे कि मै और नकुल इतने छोटे होकर उतने दूर बंगलौर अकेले कैसे जाएंगे....


नकुल ने भरोसा जताया कि कुछ चिंता कि बात नहीं है, हम वाराणसी से ही फ्लाइट लेकर सीधा बंगलौर और फिर वहां हमे संगीता दीदी लेने चली आएगी. लौटते वक्त यदि दिल ना माने तो आप हमे पटना लेने आ। जाना.. अब भी कोई चिंता है क्या?


अब पापा और मां ने हामी भरी थी तो वो लोग भी बेमन होकर बस इतना ही कहे की ठीक है पहले मासी के पास जाओ, बाकी बात बाद में होगी..
विधायक का सबसे संस्कारी लड़का लियाकत ही निकला ।
कितना बढ़िया काम किया उसने.... अपने पोलिटिकल फायदे के लिए अपने तीन सगे भाइयों को मरवा दिया । बहुत बढ़िया ।
एक और भी अच्छा काम किया उसने..... मेनका को कार के साथ डेढ़ करोड़ रुपए भी गिफ्ट किए ।
लेकिन दुःख इस बात का है कि मेनका ने वो गिफ्ट स्विकार कर लिए । सैकड़ों लोगों के लाशों बहाकर लियाकत हीरो बन गया ।
शायद महादेव मिश्रा , राजवीर के साथ साथ पुरा गांव लियाकत का फैन हो जाए । क्योंकि उसने मेनका की मदद की ।
लेकिन............. वो विलेन ही रहेगा ।

मेनका और उसके फादर में बहुत बढ़िया कन्वर्सेशन हुआ ।
मेनका को कुछेक दिनों के लिए गांव से बाहर चले जाना चाहिए ।

बहुत बढ़िया अपडेट नैन भाई ।
 

nain11ster

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wowww ye to nakul ne ldko ki band hi bja di..........or ab suru hogi road trip...............let's wait of road trip from banglor to kerla.,.........

Thoda sa action yahan bhi dalne ki kosis kar raha hun... isliye aise chhote chhote action scene likh deta hun... Action ko pasand karne ke liye dhanywad .. baki road trip aaj se shuru hai ..
 
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