श्रावण मेला ।। भाग:- 12
मां ने भी मुझे नहीं जगाया श्याद उन्हे लगा हो मै देर रात तक जागती हूं, इसलिए मुझे सोते छोड़ दिया. अगले दिन दोपहर के लगभग 2 बजे कई लड़कियों का झुंड मेरे आंगन में पहुंच गया और उन सब की लीडर पुष्पा दीदी, जोर-जोर से मुझे आवाज लगाने लगी. मां को अपनी आखों पर विश्वास नहीं हुआ कि आगे के टोला से इतनी सारी लड़कियां पहुंची थी. साथ में पुष्पा और अमृता के हसबैंड भी थे.
अब थे तो वो दोनो जमाई ही. साथ मे शादी के बाद पहली बार पुष्पा और अमृता हमारे घर आयी थी, मां उन्हे कैसे बिना कुछ खाए और बिना विदाई के जाने देती. मेरी दोनो भाभी और मां लग गई काम पर और मै घर आए लोगो को बिठाकर उनसे बातें कर रही थी..
अभी पुरा माहौल भरा था कि उसी वक्त रवि भी वहां पहुंच गया. रवि को देखकर मैंने फीकी मुस्कान दी और उसे भी बैठने के लिए कहने लगी. मै क्या उसे बैठने कहूंगी, पुष्पा और अमृता ने मिलकर उसे अपने पास ही बिठा लिया और सवालिया नज़रों से घूरती हुई, मुझसे पूछने लगी कि... "उस दिन तो तुमने कहा था रवि को जानती नही, फिर ये यहां क्या कर रहा है"..
मै:- आप सब लोग रवि और उसके दोस्त को बधाई दे दो पहले. एसएससी का एग्जाम क्लियर कर लिया है. जनवरी तक ये जॉब ट्रेनिग के लिए निकल रहा है.. वो भी इसकी जॉब सीधा दिल्ली के इनकम टैक्स डिपार्टमेंट में लगी है..
ये लड़कियां भी ना क्या हूटिंग करती है. फिर तो हर कोई रवि से पार्टी मांगने लगा. हंगामे जब हुआ तो उस बीच मां और भाभी भी वहां पहुंच गई और उन्होंने भी जब ये बात सुनी, तो रवि को बधाई देने लगी. किन्तु जब माहौल पुरा शांत हुआ तो सवाल फिर से वही था... "किस काम से आए हो रवि"..
सबको समझते हुए मै कहने लगी... "मुझे मैथमेटिक्स और रीजनिंग के पेपर में कुछ समस्या आ रही थी, इसलिए रवि को मैंने ही बुलवाया था, तैयारी के लिए हम टाइमिंग डिस्कस कर ले. उसी के लिए आया था"…
थोड़ी देर की बातचीत के बाद सबके लिए थोड़ा सा नस्ता लग गया और निकलते वक्त दोनो बेटी और जमाई को विदाई भी मिली. हालांकि ना नुकुर का दौड़ चलता रहा, पुष्पा और अमृता बस इतना ही समझाती रही की इस टोला में मेनका की कोई हम उम्र नहीं, इसलिए वो खुद को अकेला ना मेहसूस करे, इस वजह से पहुंची है. लेकिन रिवाज तो रिवाज होता है उसे कैसे छोड़ सकते है..
वहां से हमारा काफिला निकला तो, लेकिन इस बार पुष्पा दीदी फंस गई, क्योंकि वैसे लोग अपने-अपने ग्रुप के साथ, अपनी साधन में मेले के लिए निकल जाते है. लेकिन 10 लोग को ले जाने की व्यवस्था कहां से जुगाड़े. मैंने फिर रवि से ही मदद मांग लिया. मै अपनी कार रवि को ड्राइव करने के लिए दे दी, जिसमे 5 लोग सवार ही गए और नकुल के यहां की बोलेरो मै ले आयी, जिसमे 6 लोग सवार हो गए, और हम मेले के लिए निकल गए.
मै हंस रही थी, बात कर रही थी लेकिन अंदर ही अंदर कहीं ना कहीं घूट भी रही थी. कारन वहीं था, पुष्पा और अमृता का रवि से कुछ ज्यादा ही चिपकना. मै इस परिस्थिति में किसे दोष दूं और खुद को कितना समझाती रहूं की हर कोई अपनी जिंदगी जी रहा तुम्हे क्या. लेकिन ये दिल है कि मानता ही नहीं.
समझदारी इसी मे थी कि जो बर्दास्त ना हो, उसे अपनी आखों से देखा नहीं जाए. मै दीप्ति और एक दो लडकियों को लेकर एक जीजा को ले उड़ी और मस्ती मज़ाक के बीच मेले का आनंद लेते हुए हम सब वापस लौट आए.
देखते ही देखते मेला अपने आखरी हफ्ते में पहुंच गया था. मेले का मुख्य आकर्षण इसी हफ्ते में होता है जब औरकेस्ट्रा मे लड़कियां नाचती है और बाकी सभी उसे देखने दूर-दूर से आते है. शुद्ध रूप से कहा जाए तो ये आयोजन केवल पुरषों के मनोरंजन के लिए रखा जाता था, जिसमे नाचने वाली महिलाओं को छोड़कर, अन्य किसी महिला का वहां जाने का कोई मतलब ही नहीं बनता है.
इस बार सावन 5 सोमवार का था और मंगलवार के दिन महीने का अंत होना था इसलिए ऑर्केस्ट्रा शनिवार की रात से शुरू होता और मंगलवार के दिन समाप्त होता. नकुल के ना होने से मै पहले से अकेली पड़ गई थी, ऊपर से रवि को देखने जाने की रुचि भी खत्म हो गई.
शायद रवि भी यह फैसला कर चुका था कि वो मुझसे दूरियां ही बनाकर चलेगा इसलिए जब मै उसे अपने दिल की बात बताई, उसके बाद सिर्फ वो मेरे एग्जाम मे हेल्प के लिए दोपहर के 2 से 4 के बीच का समय लेकर गया था, जो मेला खत्म होने के कुछ दिन बाद से शुरू होता. इसके अलवा उसने कोई बात नहीं हुई..
चौथे सोमवार की सुबह थी, जब मै भाभी और मां के साथ मंदिर पहुंची थी. मुझे क्या पता था यहां पहुंचकर मुझे सरप्राइज़ मिलने वाला था. मै जैसे ही मंदिर पहुंची, मेरे ठीक सामने प्राची दीदी और राजवीर अंकल खड़े थे. मै अचंभित होकर उन्हे देखने लगी और जैसे ही वो मेरे करीब पहुंची, शिकायती लहजे में प्राची दीदी से पूछने लगी... "आने से पहले आप बता भी नहीं सकती थी क्या? अब ये मत कहना की अचानक प्लान बन गया"…
प्राची:- नहीं बाबा अचानक प्लान नहीं बना, बल्कि तुम्हे सरप्राइज़ देना था इसलिए नहीं बताई. तेरा पूंछ कहीं नजर नहीं आ रहा है, कहां गया..
मै:- मेरा पूंछ नहीं है वो, नकुल के लिए ऐसा कहोगी तो मै आपसे बात नहीं करूंगी..
प्राची:- हा हा हा हा.. तुम दोनो को छेड़ने का मज़ा ही कुछ और है वैसे सीरियसली वो आशिक़ है कहां..
मै:- उसने जैसा वादा किया था उसी पर काम कर रहा है. पॉलीहाउस के ट्रेनिंग के लिए गया है. वहां से बंगलौर अपने दोस्त के पास जाएगा और कुछ दिन घूम फिर कर जब वापस आएगा तब काम पर लग जाएगा..
प्राची:- फिर तो अच्छा है, उससे रात में आराम से बात करूंगी... चल अभी मेला घूमते है..
मै:- आपको भी सोमवार का ही दिन मिला था, किसी और दिन नहीं घूम सकती थी...
प्राची:- कोई नहीं बच्चा हम 3 दिन है अभी यहां पर.. और तीनो दिन तुम्हारे साथ मेला ही घूमेंगे..
मै:- प्योर बनिया है आप और आप 3 दिन गांव घूमने आयी है. ये क्यों नहीं कहती की बांस की सिक का कई डिज़ाइनर तैयार हो गए है, उसी सिलसिले में आप आयी है..
प्राची:- अरे अरे अरे... तू तो उलहाना भी देनें लगी...
"मुझे भी आपको छेड़ ही रही हूं. चलिए पूजा करके कुछ देर भटकते है, फिर आज आपकी छुट्टी. जो भी जरूरी काम हो आज ही निपटा लेना".. मै अपनी बात कहकर, प्राची दीदी का हाथ पकड़कर उन्हें अपने साथ मंदिर ले गई, जहां लता और मधु पहले से मेरा इंतजार कर रही थी. उन दोनों को मैंने प्राची दीदी से मिलवाया और हम पूजा करने चल दिए.
अगला 2 दिन उनके साथ कैसे बिता पता ही नहीं चला. बृहस्पति वार को प्राची दीदी वापस दिल्ली के लिए निकल गई और मै भी अपने काम मै व्यस्त हो गई. हफ्ते का आखरी दिन था वो. रविवार की सुबह लता और मधु ने इतना जिद किया की मै ना चाहते हुए भी मेले में जाने के लिए मजबूर हो गई.
हम तीनो ही मेला घूमने मे मसरूफ से हो गए. हालांकि मुझे ज्यादा रुचि तो नहीं थी, लेकिन फिर भी मै उनकी खुशी के लिए मेला घूम रही थी. मेले का लुफ्त उठाते हम उस ओर से भी गुजरे जहां इस वक्त बलून फोड़ने की प्रतियोगिता भी अपने आखरी दौड़ में चल रहा था...
प्रतियोगिता कुछ ऐसी थी कि 5 प्रतियोगी 5 फिट की दूरी पर खड़े थे. हर प्रतियोगी के लिए 20 बुलेट और 20 बलून थे. हर किसी के बलून का रंग अलग-अलग था. बलून मे गैस भरकर बलून को हवा में उड़ाया जाता और 10 सेकंड के बाद हर प्रतियोगी अपने अपने बलून पर निशाना लगाता.. एक बार बुलेट खत्म उसके बाद काउंटिंग होती की किसने कितने बलून फोड़े..
शायद आखरी चरण के पहले 5 प्रतियोगी का फैसला हो चुका था, इसलिए मनीष भैया और भाभी मे वहीं पर तीखी बहस चल रही थी. वो दोनो खुद को ही विजेता घोषित किए जा रहे थे और दोनो के समर्थक अपने-अपने प्रिय निशानची का समर्थन कर रहे थे..
तभी वहां लता और मधु पहुंच गई. वो दोनो तो रवि का ही सपोर्ट करने लगी. उन दोनों को देखकर रूपा भाभी कहने लगी... "मेनका की सहेली होकर रवि को सपोर्ट कर रही. एक लड़की दूसरी लड़की को ही सपोर्ट करे तो ज्यादा अच्छा है, इससे नारी शक्ति बढ़ती है."..
मधु:- भाभी रवि हमारे साथ पढ़ता है. बलून फोड़ने के लिए एक दुकान आरक्षित कर दिया, हम तो इसे ही सपोर्ट करेंगे, क्यों मेनका तुम क्या कहती हो..
मै:- मै तो नरेंद्र जीजू (अमृता का पति) के समर्थन में हूं.. हवा में अब तक 6 बलून फोड़ चुके है.. और मुझे लगता है वो ही सबसे आगे रहने वाले है... जीजू कम से कम 15 बलून तो फोड़कर ही आना..
जैसे ही मैंने ये बात कही, पुष्पा और अमृता दीदी दोनो ही हूटिंग करती हुई चिल्लाने लगी... "मेनका रूपा भाभी के समर्थन में आ जाओ, घर से दुश्मनी अच्छी नहीं"..
मै:- हट नहीं करती मै छोटी भाभी का समर्थन, जिसे जो दुश्मनी निकालनी है निकाल लो… वो देखो 10 बलून फोड़ डाले जीजू ने.. तीनो मशहूर निशानची, रूपा मिश्रा, मनीष मिश्रा और रवि अग्रवाल के बराबर पहुंच गए जीजू.. कम ऑन जीजू कम से कम 15 बलून फोड़कर ही दम लेना.. अभी ही डिफरेंस बाना लो..
मेरी हूटिंग सुनकर गांव की भाभी जो रूपा भाभी के समर्थन में थी, उन्होंने मजबूत प्रतिद्वंदी का ध्यान भटकाने के लिए फिर जो ही कमेंट्री की... "गोली लोड हो गई, आंख नली पर और हवा में बहन का बलून लहराते दिख रहा".. "अरे दीदी बहन ही क्यों किसी साली का बलून भी तो हो सकता है"..… "दीदी बड़ा बलून है दिमाग में सलहज का ही बलून होगा... लगा निशाना जमाई बाबू और लगाओ दम"…. फिर सब एक साथ जोड़ से चिल्लाते... "और ये गया किसी बेचारी का बलून"…
अब जब 8-10 आवाज पीछे से ऐसे हूटिंग करे, तो कहां से कोई कन्सन्ट्रेट कर पाए.. एक बात तो थी, रूपा भाभी ने अपने बहुत से समर्थक जरूर बना लिए थे. ऐसे नहीं तो वैसे लेकिन कैसे भी करके वो जीत ही जाएगी, ऐसा सबको लगता था. लेकिन नरेंद्र भी ध्यान वाला आदमी था. इतना ध्यान भटकाने के बाद भी फाइनल स्कोर उनका 12 रहा, जो की अब तक का सबसे अव्वल स्कोर था, बाकी 10 बलून के साथ रूपा भाभी, मनीष भैया और रवि तीनो टाय पर चल रहे थे...
फाइनल 4 लोगो के बीच होना था.. हालांकि फाइनल फर्स्ट और सेकंड के बीच होता है, लेकिन इस बार सेकंड पोजिशन पर 3 लोगों के बीच टाय था. फाइनल अब मंगलवार को खेला जाना था और इसी के साथ वहां की भिड़ भी समाप्त हो गई. लता और मधु की मुलाकात मैंने पुष्पा और अमृता दीदी से करवाई.
पुष्पा और अमृता दीदी, दोनो ही मुझे डांटती हुई कहने लगी, मेनका हर परिस्थिति में बहन को सपोर्ट किया कर, वरना अच्छा नहीं होगा.. उनकी बात सुनकर सभी हसने लगे. जितनी भी गांव की कुंवारी बहने थी, सबने उन दोनों को आड़े हाथ लेते हुए सुना दिया कि.… "बहनों की मेजोरिटी को आप को भी सपोर्ट करना चाहिए और हम सब जीजू के समर्थन में है, आपने मेजोरिटी छोड़ा तो आपके लिए अच्छा नहीं होगा"..
amazing update hai nain bhai,
Behad hi shandaar aur lajawab update hai bhai,
Prachi didi ke aane se menka bahot jaldi apne gam ko bhool gayi hai,
Aur ye pratiyogita to bahot hi romanchak mor par pahunch gayi hai,
Ab dekhte hain ki aage kya hota hai