षष्ठ अध्याय :
पुनःस्थापना वर्तमान काल
रात्रि का समय अनन्या और अमित रात को डिनर करके घर की तरफ़ वापिस लौट रहे थे, अमित वहाँ कार बुलाना चाहता था पर अनन्या के कहने पर वो पैदल ही घर जाने का फ़ैसला करते हैं| दोनो सुनसान सड़क पर चलते जा रहे हैं.... रात ज़्यादा होने के कारण कोई और आ जा भी नहीं रहा था... आसमान में तारे साफ़ दिख रहे थे... आज चाँद कहीं ग़ायब था जो अँधेरे को और भी ज़्यादा गहरा कर रहा था...
अनन्या : तुम हर रोज़ अपना काम छोड़ कर मुझसे मिलने चले आते हो...
अमित : अरे मेरे पास क्या काम?
अनन्या : क्यूँ काम तो सबके पास होता है..
अमित : मैंने भी जॉब करने का सोचा था, पर पापा ने माना कर दिया...
अनन्या : हम्म....
अमित : और तुमने अब क्या करने का सोचा है...?
अनन्या कोई जवाब नहीं देती... कुछ देर बाद अमित फिर से पूछता है..
अमित : तुमने कुछ बताया नहीं...
फिर से अनन्या का कोई रिप्लाई नहीं आता अमित अनन्या की तरफ़ देखता है, और थोड़ी देर के लिए चकित होता है... अनन्या एक स्थान पर खड़ी है, उसके शरीर की सारी हरकतें बंद हो गयी जैसे वो कोई मूर्ति हो... वो उसे हिला कर होश में लाने की कोशिश करता है पर कुछ नहीं होता बल्कि वो ज़मीन पर गिर जाती है,
अमित : क्या हुआ... अनन्या उठो अनन्या... आँखे खोलो....
वो अनन्या को होश में लाने की कोशिश करता है.... उसे पता भी नहीं चलता पर कुछ आकृतियाँ उन दोनो को चारो ओर से घेरना शुरु कर देती हैं... कुछ ही देर में उनके चारों ओर 8 से 10 प्राणी कुछ काली आकृतियों के आकार में खड़े थे, और वहाँ से कुछ दूर एक एजेंट फ़ोन पर बोलता है..
एजेंट : विधि मेम, उन दोनो को beasts ने घेर लिया है.
(भूतकाल में)
पाशा और अश्वमानव के बीच युद्ध चरम पर है... उनके युद्ध के कारण कुछ क्षेत्र के पेड़ टूटकर ख़ाली हो गए और पाशा के काफ़ी सैनिकों के शव धरती पर पड़े थे.... दोनो के शस्त्र आपस में टकराते और उस टकराव से आसमान में बिजली कोंध जाती.... हालाँकि ये टकराव तो जंगल के मध्य था परंतु इसका असर काफ़ी दूर तक देखा जा रहा था.... नगर में लोग बाहर आकर जंगल में गिरती हुई बिजलियों को देखते है.....
वही कही दूर इस टकराव से योग समाधि में लीन शुक्राचार्य भी व्यथित होकर उठ जाते है... और अपने रथ पर सवार हो अपने सारथी को चलने का आदेश देते है, साथ ही निरंतर आकाश पर उनकी दृष्टि बनी रहती है...
युद्ध के मैदान में... एक तरफ़ से अश्वमानव हवा में छलाँग लगाता है और दूसरी ओर पाशा भी हवा में कूदता है... ग़ज़ब की ताक़त थी पाशा की.... अपनी भर भरकम काया के साथ इतनी ऊपर कूदना कोई सोच भी नहीं सकता.... साथ ही जैसे वो ऊपर कूदता धरती कपकंपा जाती.... हवा में अश्वमानव की तलवार पाशा के फरसे से टकराती हुयी निकल जाती है.... चिंगरियां पूरे इलाके में ऐसे फैलती है जैसे किसी ने आतिशबाज़ी की हो... और दोनो धरती पर वापिस खड़े होकर... एक दूसरे की ओर देखते है.... अश्वमानव काफ़ी थका हुआ है... वो ज़ोर ज़ोर से हाँफ रहा है.... और काफ़ी ग़ुस्से से पाशा की ओर देखते हुए... पूरी ताक़त से अपनी तलवार को पकड़ता है.... पाशा की साँसे भी थोड़ी तेज़ चल रही है.... उसके माथे पर आए पसीने को देख लगता है कि ये युद्ध काफ़ी समय से चल रहा है... वैसे ये ग़लत भी नहीं... पिछले 3 दिनो से वो दोनो.. एक दूसरे से युद्ध कर रहे है....
(वर्तमान में)
अमित का ध्यान अनन्या से हट कर जब आसपास जाता है उसे आभास होता है वो किसी मुसीबत में फँस चुका है| सायों में से एक आगे बढकर आता है... जब अमित उसे देखता है उसके पैरों तले से जैसे ज़मीन निकल गयी हो... एक अदमकद या बोले तो सामान्य क़द से कही ज्यादा बड़ा एक पशु समान मानव उसके सामने खड़ा था.... दिखने में एक वानर के समान पर काले रंग का | एक के बाद एक सारे पशु प्राणी पास आते गए , सभी दिखने में एक समान... क़द में थोड़ा अंतर दिखता... उनमे से 3-4 वानरो ने अटैक कर अमित को एक तरफ़ खींच कर पकड़ लिया... अमित ने अपनी पूरी ताक़त लगाई पर पशु शक्ति के आगे उसकी ताक़त बस नाममात्र साबित हुई... बाक़ी सब अनन्या की तरफ़ गए और उसे उठाकर उनमें से एक ने उसे ध्यान से देखा कुछ निरीक्षण करने के बाद उसे अपने कन्धे पर रख लिया.... बाक़ी सब उसके साथ वहाँ से निकलने लगे... उन्होंने वहाँ से बस एक क़दम ही उठाया होगा... तभी वो एक स्पीड में आती motorbike को देखकर थोड़ा चकित हो गए... इससे पहले की वो कुछ सोच पाते... bike पर आती विधि ने Bike की स्पीड एक दम बढाकर उसपर से जम्प लगाई.. bike सीधे जाकर beasts से टकरायी और उसने हवा में गुलाटी खाकर एक को ज़ोरदार किक मारी जो अनन्या को लिए हुए था... इससे अनन्या थोड़ा दूर जा गिरी विधि पीछे मुड़ी और अपनी बग़ल से गन निकालकर अमित को पकड़े हुए beasts पर fire किया.. gun से गोली की जगह कुछ लेज़र टाइप निकला और अमित को पकड़े हुए एक बीस्ट थोड़ा दूर जाकर गिरा.. पास आकर वो दूसरे beast को एक किक मारती है और अमित को बोलती है..
विधि : इतना बड़ा ढोर हो गया है, भाई को बहन की रक्षा करनी होती है... और यहाँ मुझे ही तुम्हें बचाना पड़ रहा है...
अमित को थोड़ा मौक़ा मिला... और उसने अपने बग़ल के beast को एक किक मारी जिससे वो थोड़ा आज़ाद हुआ....
अमित : अब तुम अपनी बड़बड़ बंद करो... टाइम पर एंट्री क्या मारी ख़ुद को हीरोइन समझने लगी...
विधि : हीरोईन हूँ तो समझूँगी ही...
कुछ beasts उनकी तरफ़ भाग के आते है वो दोनो जम्प करके ऊपर से निकल जाते है....
अमित : बड़ी आयी हीरोईन बनने, शक्ल देखी है....., ये अनन्या कहाँ गयी....?
अनन्या beasts के हमले से एक तरफ़ गिरी पड़ी हुई है... अमित उस और जाने की कोशिश करता है.... तभी 2 beast आकर उसे पकड़ लेते हैं... जैसे ही विधि उसे बचाने के लिए फिर उस तरफ़ जाने की कोशिश करती है... 2 beast उसे भी पकड़ लेते है... उसने पूरी ताक़त लगायी पर कुछ फायेदा नहीं हुआ... बाक़ी beasts भी अनन्या को लेने चल पड़ते है... अनन्या को ख़तरे में देख... अमित बैचेन होने लगता है...वो अपनी पूरी ताक़त लगाकर छूटने की कोशिश करता है पर कोई फ़ायदा नहीं दिखता... जैसे जैसे beast अनन्या के पास जाते है उसकी बैचेनी बढ़ने लगती है... और उसके चेहरे के भाव भी बदलने लगते है... जैसे ही वो अनन्या को उठाने की कोशिश करते है... अमित अपना आपा खोकर... पूरी ताक़त लगाने की कोशिश करता है... धीरे धीरे उसका चेहरा लाल होने लगता है .... वो जितनी ताक़त लगाता उसका चेहरा उतना ज़्यादा लाल हो रहा था... और एक ज़ोरदार धमाका होता है.... सबका ध्यान एकदम से अमित की ओर जाता है...
विधि की आँखे आश्चर्य से फैल जाती है... जिसने सारी उम्र अविश्वसनीय कार्य किये हो और चीज़ें देखी हो उसके लिए भी ये आश्चर्य ही था... धमाके का केंद्र उसका भाई था... और उसके दोनो हाथो से आग की लपटे निकल रही थी... दोनो beast उसमें जलकर मर चुके थे... ठीक इसी समय विधि की टीम के बाक़ी मेम्बर भी वहाँ पहुँच जाते है...
एक दम हुए धमाके और अत्यधिक ऊर्जा के बहाव के कारण अमित बेहोश होकर गिर जाता है..... उसी समय अपने 2 साथियों की मौत को देख , ख़तरे को भाँप कर सभी beasts एक साथ अजीब सी आवाज़ निकलना शुरु कर देते है.... कुछ ही देर में देखते देखते आसपास से, गटर के अंदर से, बिल्डिंग की छतों से... कुछ 50-60 beasts और आकर उन सबको घेर लेते है...
(भूतकाल में)
पाशा और अश्वमानव के मध्य युद्ध को चलते हुए अनवरत को 7 दिन हो चुके है.... वो दोनो अभी भी एक दूसरे पर नृशंस वार कर रहे है.... दोनो के जिस्म पर लगे वारो को देख कर पता लगता है.. के एक दूसरे पर कितने प्राण घातक वार किए है.... पाशा की मोटी चमड़ी पर ज़्यादा घावों का पता नहीं चल पा रहा.. वही अश्वमानव के जिस्म पर शायद ही कोई ऐसा हिस्सा बचा हो जहाँ घाव ना दिखता हो...
पाशा : तूने मुझे काफ़ी परेशान किया... अब मेंरा ग़ुस्सा बढ़ रहा है....
अश्वमानव : हम्म हूउऊ... हीनन्न पाशा आगे बढता है..
दूसरी ओर से अश्वमानव भी आगे आकर अपनी पूरी ताक़त से तलवार को घुमाता है... इसी समय पाशा भी पूरी ताक़त से अपने फरसे को तलवार से टकराता है... और जानबूझ कर फरसे को छोड़.. एक हाथ से अश्वमानव की तलवार को छीनते हुए... उसके नीचे जाकर एक ज़ोरदार झटके से उसे हवा में उठाकर बग़ल में फेंकता है... एक ज़ोरदार वार से तलवार को उसके पेट में उतारकर पेट के निचले हिस्से से सीने तक चीर देता है... जिससे अश्वमानव के सारे अंदरूनी अंग बाहर निकलकर आ जाते हैं...यही उसका अंत था |
(वर्तमान में)
विधि और उसकी टीम ने आज से पहले कभी भी इतनी तादाद में beasts नहीं देखे थे... इनसे निपटना उनके लिए आसान ना था... पहले कुछ देर उन्होंने फायर करने का ट्राई किया पर उन्हें समझ आ गया की ये किसी काम का नहीं है... सभी लोग बीच में फँसे हुए थे... और 50-60 beast उन्हें घेरे खड़े थे... वही कुछ 10 अनन्या को लेने जा रहे थे... यहाँ विधि के सामने अमित बेहोश पड़ा था.... उसकी टीम, समीर (जो वह टीम के साथ पहुँचा था) घिरे हुए थे.. कुछ समझ नहीं आ रहा था कि क्या करें... मौत सबके सरो पर आकर खड़ी हो चुकी थी.....
अचानक...बग़ल से कुछ दसों beasts हवा में उड़ते हुए दिखे... जैसे किसी ने काग़ज़ के पत्तों के समान उन्हें फेंक दिया हो... सभी ने आश्चर्य से उस ओर देखा तो... एक आकृति... नारी रूप में... पूरी तरह ऊर्जा की तरह.... सफ़ेद रोशनी के जैसे चमकती हुई.... बाल सूर्य के समान ऊर्जा छोड़ते हुए... लहरा रहे है.. और वो खड़ी है.... अपने साथियो की दशा देख बाक़ी beasts उस पर अटैक करने के लिए भागते है... पर उसके पास पहुँच कर वो सिर्फ़ एक हाथ के वार से जैसे कोई मच्छर को हटाता है वैसे सबको छित्तर बित्तर करके धीरे धीरे आगे बढ रही थी... जैसे ही कुछ और उस पर अटैक करने आगे बढे... उसकी आँखो से निकली ऊर्जा ने सबको जलाकर भस्म कर दिया.... इसके बाद बाक़ी beasts डर से वहाँ से भाग गए... अब विधि और उसकी पूरी टीम वहाँ खड़ी थी... वो धीरे धीरे इनके पास आती जा रही थी... इन्हें समझ नहीं आ रहा था ये क्या करे... ये दोस्त है या दुश्मन.... जैसे ही वो इनके पास पहुँचती है. उसकी रोशनी ग़ायब हो जाती है और वो ज़मीन पर गिर जाती है..... वो कोई और नहीं अनन्या ही थी... अब उनके सामने दोनो अमित और अनन्या अचेत अवस्था में पड़े है.... फ़िलहाल के लिए संकट भी टल चुका था.... विधि एक आवाज़ में बोलती है :
विधि : इन दोनो को पूरी सुरक्षा के साथ हेड्क्वॉर्टर ले चलो... इनके होश में आने के बाद वही बाक़ी जानकारी मिलेगी....
(भूतकाल में)
शुक्राचार्य एक गुफा से बाहर आकर अपने रथ में बैठ कर सारथी को आदेश देते है... अतिशीघ्र महाराज पाशा के पास चलो... 7 दिन लगातार चले युद्ध के पश्चात्... पाशा अपने शिविर में विश्राम कर रहा था... तभी वहाँ गुरु शुक्राचार्य का आगमन होता है , आते ही... वो पाशा को आदेश देते है...
शुक्राचार्य: वत्स.... युद्ध की तैयारी आरम्भ कर दो...
पाशा : युद्ध, किस से?
शुक्राचार्य : अद्विका से... (बोलते ही शुक्राचार्यके चेहरे पर भय के भाव थे...) और सुनकर पाशा के चेहरे पर आश्चर्य के....
सप्तम अध्याय :
आगमन वर्तमान समय :
defenders headquarter :
समय सुबह 4 बजे अनन्या और अमित अभी भी बेहोश है... कुछ डॉक्टर और नर्स उनके treatment में लगे है, वहाँ से बाहर काँच की खिड़की से अंदर देखते हुए... भानु और विधि.... बात कर रहे थे...
भानु : तो यह है वो.... अमित इसे कैसे जानता है कुछ पता....
विधि : नहीं.... लेकिन आज एक और अजीब घटना घटी.... अमित के हाथों से आग की लपटे निकली उन्ही से 2 beast जल के राख हो गए थे... पता नहीं ये कैसे हुआ...?
भानु : इसका मतलब है की अग्नि तत्व ने अपना अगला वारिस चुन लिया है...और वो तुम्हारा भाई है....
विधि : जहाँ तक मुझे पता है... कोई भी मूल तत्व अपना अगला धारक एक ही वंश से चुनते है... परंतु आप तो किसी भी तत्व के धारक नहीं है... फिर अमित कैसे अग्नि का धारक बन सकता है....?
भानु : वो इसलिए बेटा... मैं भले ही किसी तत्व का धारक नहीं... पर अग्नि तत्व हमारे वंश में ही है... और इस पीढ़ी में उसने अमित को चुना है..
विधि : पर dad... ये सब आपने मुझे पहले क्यूँ नहीं बताया...क्या कुछ और भी है जो मुझे अभी जानना है....?
भानु : हाँ बेटा अभी बहुत कुछ है... तुम्हें अद्विका की कहानी तो याद है ना जो बचपन में तुम्हारे दादा तुम्हें सुनाते थे... वो सिर्फ़ एक कहानी नहीं है... वो एक गुज़रा हुआ कल है... और हमारा अस्तित्व उसी से जुड़ा हुआ है......
(भूतकाल में)
शुक्राचार्य : हाँ पुत्र... अद्विका से...
पाशा : परंतु गुरुदेव... मैंने अपने इन्ही हाथो से उसका वध किया है...
शुक्राचार्य : और वही हमारी सबसे बड़ी भूल थी... जिसका हम प्रायश्चित नहीं कर सकते..., आज हमें ज्ञात हुआ की हमारी अतीत की एक छोटी सी भूल कैसे हमारे लिए इतनी बड़ी मुसीबत बन जाएगी.... हालाँकि मुझे इसका पहले से ही ज्ञान होना चाहिए था, पर.... सुनो वत्स... आज मैं तुम्हें एक कहानी सुनाता हूँ.... इस ब्रह्माण्ड का निर्माण कैसे हुआ वो तो मेरे लिए भी एक रहस्य है , जिसका उत्तर किसी भी देव के पास नहीं है... सिवाय त्रिदेवो और आदिशक्ति के... मैं नहीं जानता इन चारों में कौन पहले आया कौन बाद में... पर इतना तो पक्का है ये चारों... इस ब्रह्माण्ड के जन्म के पूर्व से है.. और वो इस से परे है... बाक़ी सारे देवता मानव असुर यक्ष गंधर्व पशु इत्यादि... इस ब्रह्माण्ड के नियमो द्वारा बंधे हुए है..... अभी मैं तुम्हें इस ब्रह्माण्ड के संरचना में नहीं लेकर जाऊँगा.. और मुझे नहीं लगता की तुम्हारी असुर बुद्धि में 3 आयामी दुनिया ओर 4/5/6/7 आयामी दुनिया के बीच अंतर करने की क्षमता होगी... जब ओंकार की नाद से उत्पन ऊर्जा से इस ब्रह्माण्ड के शून्य से तत्व कण निकल कर एक दिशा में गए वही... प्रतिकण विपरीत दिशा में गए..... समय के साथ साथ उन्ही कणो ने धीरे धीरे... सूर्य और ग्रहो का रूप लेना शुरू किया.... आपस के गुरुत्वाकर्षण बल से आकाशधाराए और सौर मंडल भी बने.... ब्रह्मा जी ने कुछ ग्रहो पर जीवन का निर्माण भी किया... त्रिदेवो ने कुछ नियम भी बनाए जो इस ब्रह्माण्ड में सभी पर लागू होते है... मैं तुम्हें अभी उनमे से सिर्फ़ दो ही बता रहा हूँ... चूँकि बाक़ियों का अभी हमारी वार्ता से कोई सम्बंध नहीं है...
1) जब उन्होंने इंसान की उत्पत्ति की तो उसे एक तोहफ़ा दिया... किसी भी बंधन से मुक्त इच्छा का... उसकी इच्छा किसी के अधीन नहीं होगी... ओर जो भी इस नियम के विरुद्ध किसी भी मनुष्य की इच्छा पर नियंत्रण करने की कोशिश करता है वो उनकी सज़ा का भागी है.... जब मनुष्य की इच्छा स्वतंत्र है तो वो भले और बुरे दोनो तरह के काम करता है... उसके इन्ही कर्मों के आधार पर उसकी मृत्युपरांत उसे कर्मों का फल देने के लिए सुर और असुर का निर्माण किया.... जहाँ सभी देवों को स्वर्ग मिला वही सभी असुरों को पाताल में नर्क में रहना पड़ा... उस समय सभी को ये सही लगा क्यूँकि सभी अपनी अपनी कार्यस्थली पर ही रह रहे थे... समय के साथ स्वर्ग के शासक बदलते गए... वंश के आधार पर उत्तराधिकारी अपने अपने क्षेत्र के राजा बने ओर कार्य प्रणाली सुचारू रूप से चल रही थी... पर धीरे धीरे असुरों को लगने लगा जैसे उनके साथ अन्याय हुआ है... वो किसी भी तरह से देवताओं से पीछे नहीं थे... फिर भी वो नर्क में क्यूँ रहे और बाक़ी देवता जो उनके योग्य भी नहीं तो स्वर्ग का सुख भोगे... यही विचार धारा मेरी भी थी.... इसलिए देवकुल में जन्मे जाने के पश्चात् भी मैंने असुरों का गुरु होना स्वीकार किया....
2) दूसरा नियम है समय धारा पर... समय अनंत है... और वो अपने एक ख़ास तरीक़े से चलता है जिसे हम देखे तो वो एक दिशा में बहता है... पर फिर भी उसके कई पहलू राज ही रखे गए है.... हालाँकि देवों को शक्ति प्राप्त है की वो समय धारा पर आगे और पीछे देख सकते है... पर उन्हें उसमें छेड़छाड़ करने का कोई अधिकार नहीं है..... हर एक प्राणी का प्रारब्ध पहले से ही लिखा जा चुका है... इस यात्रा में व्यक्ति का भविष्य है और नियति भी है.... भविष्य उस व्यक्ति के लिए हुए निर्णय पर बनता है... वो अभी पूर्णत: नहीं लिखा गया... ये समय के साथ बदलता रहता है... परंतु नियति जन्म के साथ ही लिखी जाती है.... वो अटल है... उसे कोई नहीं टाल सकता.... अगर किसी व्यक्ति के द्वारा लिए गए निर्णय अगर उसकी नियति के विपरीत है तो भले ही नियति पूरी होने में थोड़ा समय लगे... पर ब्रह्माण्ड की सभी शक्तियाँ उस व्यक्ति के भविष्य को उसकी नियति की तरफ़ मोड़ने लगते है.... और मैंने भी एक ग़लती की थी... जब एक बार मुझे लगा कि मेरे एक शिष्य को मैं अगर उसके भविष्य में की ग़लतियों की जानकारी दूँ तो वो स्वर्ग पर विजय प्राप्त कर लेगा.... परंतु मेरी इसी ग़लती की वजह से मुझसे मेरी समय में झाँकनेकी शक्ति छीन ली गयी... आज जब मुझे इसकी सबसे ज़्यादा ज़रूरत है... मैं असहाय महसूस कर रहा हूँ...
पाशा : वो क्यूँ गुरुदेव ?
शुक्राचार्य : वो इसलिए पुत्र.... अद्विका की मृत्यु पश्चात् अब तक जो घटनाए हुई है... और जो आगे होंगी... वो इशारा दे रही है की तुम्हारी मृत्यु की तैयारी चल रही है....
(वर्तमान में)
भानु : बेटा अद्विका की मृत्यु के बाद शुक्राचार्य और पाशा काफ़ी निश्चिन्त हो गए... और पाशा ने एक ग़लती की थी जो ना उसने रीयलाईज़ की और ना ही उसने कभी उस के बारे में शुक्राचार्य से कोई बात की... वो थी जो उसने अपने एक सैनिक को अद्विका के बाल उसके घोड़े की पूछ पर बाँधने का आदेश दिया था... उसे लगा कि ये उसकी शक्ति और उस राज्य पर उसकी सत्ता को दिखाएगा... पर उन बालों ने धीरे धीरे अद्विका की बिखरी हुयी ऊर्जा को एकत्रित करना शुरु कर दिया.... और कुछ ही दिनो में वो एक साधारण घोड़ा अश्वमानव में बदल गया.... जो वास्तव में अद्विका ही थी.... उसके बाद अद्विका और पाशा की फिर से जंग हुई... जो लगभग 7 दिनो तक चली... पर 7 दिनो तक लड़ने के बाद भी वो उसे पहचान ना पाया और एक बार फिर उसका वध कर उसका शव वही छोड़ आया.... उस समय किसी देवदूत ने घोड़े की पूछ से अद्विका के बालों को निकालकर एक सुरक्षित पेटी में रखा... और समय का wait किया... समय की उस धारा में किसी को पता नहीं पाशा कहाँ खो गया.... उस बीच जो घटनाए हुयी उनका कहीं वर्णन नहीं है... उन्हें इसलिए कहीं लिखित या मौखिक रूप में नहीं रखा क्योंकि उन्हें जानना पूरे समय चक्र की संतुलन को बिगाड़ देता... कभी कभी तो मैंने ये भी सुना है की वो समय कभी घटित ही नहीं हुआ... त्रिदेवो ने उसे अभीतक खाली रखा है एक समय आने पर उसका निर्णय ही.. हमारे आज के वर्तमान और भूतकाल के भविष्य की नीव रखेगा...
(भूतकाल में)
शुक्राचार्य : अभी तुम जिस अश्वमानव से लड़ रहे थे... तुमने सोचा की एक तुच्छ प्राणी तुमसे 7 दिनो तक युद्ध कर सकता है...? नहीं पुत्र... वो अद्विका ही थी.. वो एक बार वापिस आयी है और वो फिर आएगी... इस बार पूरी तैयारी के साथ आएगी... अब समझदारी इसी में ही है की युद्ध की तैयारी करो.... इस मानव सेना के भरोसे मत रहो.... अपनी असुर सेना को बुलाओ...आवाहन करो असुर महायोद्धाओं का जिनके सामने पूरी सेना भी छोटी पड़े.... इतना ही नहीं पुत्र....
पाशा : और क्या गुरुदेव...?
शुक्राचार्य: तुम्हें जाना होगा एक यात्रा पर.... जो तपस्या से भी ज़्यादा कठिन है... l
पाशा : कैसी यात्रा...
शुक्राचार्य : अगर अद्विका अपनी पूर्ण शक्ति के साथ लौटी तो तुम्हें भी उसके बराबर शक्ति की आवश्यकता पड़ेगी... तुम जाओ इस ब्रह्माण्ड के समानांतर आयामों में... वहाँ जो भी तुम्हारे रूप है... तुम्हें उन सबका वध करना है... जैसे ही किसी आयाम से तुम अपने एक रूप को मारोगे... उसकी शक्ति बाक़ी सभी रूपों में बराबर बँट जाएगी... जैसे ही तुम सातों प्रमुख आयामों में अपने रूपों को मार दोगे... तुम भी अद्विका के समान बन जाओगे....
(वर्तमान में)
भानु और विधि आपस में बातें करने में व्यस्त थे, उन्हें पता ही नहीं चला कब अमित को होश आ गया था और वो बाहर आ गया...
भानु : अमित... बेटा कैसे हो.. अब ठीक लग रहा है...?
अमित : हाँ dad मैं ठीक हूँ, और मैं अपने आप को पहले से काफ़ी अच्छा महसूस कर रहा हूँ... पर मुझे हुआ क्या था.... और वो प्राणी कैसे थे वहाँ..?
भानु : वो जनवरो का विकसित रूप है... हम उन्हें beast कहते है... वैसे ये पहली बार नहीं है जब वो आए..वो अकसर आते रहते है... पर अभी तक विधि उन्हें सामान्य जन से दूर रखती थी...यही हमारा काम है...
अमित : ओह.. पर वो हमपर हमला क्यूँ कर रहे थे... हम ने उनका क्या बिगाड़ा है... वो यहा क्यूँ आए....?
भानु : वैसे जो तुमने अभी देखे बस वो ही नहीं यहाँ और भी प्रजाति के beasts है... और बेटा वो कही से आए नहीं...ये धरती उन्ही की है... वो हम इंसान है जिसने इस पर क़ब्ज़ा कर लिया है...
अमित : मतलब... मुझे कुछ समझ में नहीं आया...
भानु : हम अभी उसी बारे में बात कर रहे है... तुम भी सुनो....
(भानु अमित को संक्षेप में अभी तक की कहानी सुनाता है)
अब आगे .... समय के साथ... वो पेटी उस वक़्त के अग्नि तत्व धारी... को उसकी सुरक्षा की ज़िम्मेदारी के साथ दी... ये काफ़ी आसान था क्योंकि किसी को उसके अस्तित्व की कोई जानकारी नहीं थी तो किसी से कोई ख़तरा नहीं था... पर वो कोई रिस्क नहीं लेना चाहते थे... हमारे पूर्वज पीढ़ी दर पीढ़ी... अपने कर्तव्य का बराबर निर्वाह करते और जब उनका जीवन अंत काल पर होता तो इसे अगली पीढ़ी को सौंप देते... समय बीतता गया... धरती पर एक महायुद्ध हुआ... महाभारत का महायुद्ध... कहने को तो वो एक अधर्म के विरुद्ध धर्म का युद्ध था... पर हमारे पूर्वजों ने सिर्फ़ इंसान को इंसान से लड़ते देखा... नहीं पता कि क्या धर्म विजय हुआ या अधर्म विजय हुआ... पर मानव जाति की इससे बड़ी हार किसी ने नहीं देखी होगी... पूरी धरती लहूलुहान थी... शायद ये नरसंहार प्रकृति को भी नहीं पसंद आया... इसलिए सूर्य ने अपना आकर बढ़ाना शुरु कर दिया था...जो की प्रलय का सूचक था.... कहने को कुछ भी कहो... पर ज्ञानी लोग जानते थे कि सूर्य अपनी सारी ऊर्जा ख़त्म करने वाला है... और अपने जीवन काल के अगले चरण में आ गया है... जिसे हम red dwarf भी बोलते है.... अब सिर्फ़ कुछ ही दिनो या माह का समय शेष बचा था... उसके बाद सूर्य अपना आकर बड़ा करते करते पृथ्वी को भी लील लेगा... लेकिन शायद कुछ महात्माओ को इसका ज्ञान पहले से ही था... उन्होंने उस समय कुछ यान तैयार करे हुए थे जिसमें उन्होंने कुछ चुनिंदा लोगों को यान बैठा कर 3 अलग अलग सौर मंडलो में जो उन्होंने पहले से ही निश्चित कर रखा था ,भेज दिया... साथ में हमें मानुष जाती के बीज भी दिए... जो की नयी दुनिया में फिरसे जीवन का संचार करेंगे.... 3 यान शायद इसलिए भेजे हो उन्हें पूरी जानकारी नहीं होगी की कौनसा ग्रह जीवन के लिए ज़्यादा उपयुक्त होगा.... बाक़ी 2 का क्या हुआ... ये हमें आज तक नहीं पता चला... ना जाने वो जीवित भी है या नहीं... पर हमारे पूर्वज अपनी यात्रा पर अपने सामान के साथ वो बक्सा भी ले आए.. आख़िर उसकी सुरक्षा का दायित्व हमारे ऊपर ही था... पूरी यात्रा पर वो मानसिक सम्पर्क से वहाँ सूचनाए दे रहे थे... और जैसे ही उनका यान यहाँ उतरा... उन्होंने पाया... की ये धरती भी हुबहू उनकी खुदकी धरती के समान ही थी... यहा भी जल वायु सब उनके अनुरूप थी... वो काफ़ी ख़ुश हुए थे ये जानकर की अब यहाँ वो नए जीवन की शुरुआत कर सकते है... पर जैसे ही वे समुद्र में बीजपात्र को डालने जाने लगे... उन्हे इस ग्रह के बारे में कुछ और भी पता चला... उस समय इस धरती पर सरीसर्पो का राज था.... और भी कई जाती के पशु यहाँ रहते थे और धरती के काफ़ी हिस्सों पर अलग अलग प्राणी राज करते थे... उस समय ठीक नहीं लगा की किसी और की धरती पर हम अपनी दुनिया बसाना शुरु करे... तब उन्होंने मानसिक सम्पर्क से यहाँ की विस्तृत जानकारी भेजी... पर उसका कोई जवाब नहीं आया... लगता है तब तक प्रलय वहाँ आ चुकी थी , वहाँ कोई नहीं था इनका मार्गदर्शन करने के लिए... और यान में कहीं और जाने का ना तो कोई और जगह पता थी ना ही इतनी ऊर्जा... अब उन्हें लगने लगा जैसे मनुष्य जाती की आख़िरी उम्मीद उनके हाथ में है... कोई और चारा भी नहीं है... तो उन्होंने बीजपात्र को समुद्र में डाल दिया.... उसके बाद की सारी कहानी एक तरह से evolution की तरह स्कूल में पढाई गयी है... वो तो तुम्हें पता ही होगा.... कैसे अदिमानव से इंसान.. धीरे धीरे सभ्यताए... और आज high-tech society बना रखी है... लेकिन जो नहीं पता वो ये की... जैसे जैसे इंसान विकसित हुआ... पशु भी विकसित हुए... कुछ थे जो इंसानो के पालतू बन गए... पर कुछ है जो आज भी जानते है इस धरती का सत्य और वो आज भी उनकी आज़ादी के लिए लड़ते है... इंसान ने विकास तो किया... पर समय समय पर उन्हें ज्ञान देने के लिए और उनकी रक्षा करने के लिए... हमारा वंश और कुछ अन्य परिवार जो उस समय से आजतक ये जंग लड़ रहे है... तथा छुपके इनके बीच ही रहते है....
अमित : dad, आप भी कौन सी परियों की कहानी सुनाने लग गए....
भानु : ये सत्य है पुत्र और ये वो सत्य है जो आजतक तुमने कभी सुना नहीं इसलिए इसपर विश्वास नहीं कर रहे....
अमित : और अनन्या को क्या हुआ....?
भानु : अभी कहानी पूरी नहीं हुई... सुनो आगे....
अष्टम अध्याय :
संधि स्थान :
दिल्ली के पास हरियाणा का एक गाँव... माता का जागरण चल रहा है... पावन है सबसे ऊँचा है साँचा है ये दरबार, कलयुग में भी होते है यहाँ रोज़ चमत्कार ले अम्बे नाम चल रे चल वैष्णो धाम चल रे, ले अम्बे नाम चल रे चल वैष्णो धाम चल रे अब बात सुनो त्रेता युग की बात पुरानी, इतिहास है ये अम्बे माँ की सच्ची कहानी... माँ ने कहा है दानव जब सिर उठाएँगे तब तब मेरे हाथ से वो मुँह की खाएँगे... ................... जागरण में गायक अपनी मधुर आवाज़ में माता के भजन से एक जादुई माहौल बनाए हुए था... सभी लोग वहाँ भक्ति रस में डूबे हुए थे... स्टेज के ठीक सामने हवन कुंड के समक्ष बैठे यजमान के पास एक व्यक्ति बड़ी ही तेज़ी से भागा हुआ आता है.. और उनके कान में कुछ बोलता है... ध्यान में लीन बैठे हुए उनकी आँखे खुलती है... चेहरे पर कठोर भाव, रोबदार ढाढी मूँछ, गठा हुए बलिष्ठ शरीर के स्वामी... सफ़ेद धोती और केसरिया अंगवस्त्र में स्वयं भीम समान लग रहे थे...
उन्होंने उस से कहा, “उन्हें बोलो हम अभी अपनी पूजा में व्यस्त है... जागरण के बाद हम स्वयं वहाँ उपस्थित होंगे...." वो वहाँ से निकल कर अपने रिसीवर पर मेसिज भेजता है..
अंजनी को इन्फ़ोर्म कर दिया वो ख़ुद पहुँच जाएँगे... मूव टू नेक्स्ट.....
वहाँ के काफ़ी दूर... UK Manchester united के फूटबाल स्टेडियम में मैच चल रहा था MU vs Liverpool... रात के 12 बजे stadium के चारों तरफ़ लाइट जल रही थी... लोगों की काफ़ी भीड़ थी... स्टेडियम houseful था.... दोनो टीम एक दूसरे को काँटे की टक्कर दे रही थी... उस मैच को एंजोय कर रहा था फ़र्स्ट row में बैठा हुआ एक शख्स... उम्र में लगभग 50 के ऊपर.. देखने में बुज़ुर्ग पर कमाल की एनर्जी जो उसके मैच के हर पल को एंजोय करते हुए देख सकते थे... कुछ देर बाद एक अनजान व्यक्ति वहाँ आकर उसके कान में कुछ फुसफुसाता है और बदले में वो थोड़ी देर के लिए मैच को भूलकर उसे देखता है और बोलता है...
“ठीक है मैं समय से पहले पहुँच जाऊँगा... “ उसके बाद वो व्यक्ति स्टेडियम से बाहर निकल कर एक वैन के पास आकर transmitter पर बोलता है... सर मिस्टर विल्यम को इंफ़ोर्म कर दिया वो टाइम पर पहुँच जाएँगे.....
वहाँ से काफ़ी दूर आसमान में एक aircraft से कोई बाहर निकल कर जम्प लगाता है... नीचे गिरते हुए हवा में अपनी कलाबाज़ियो का प्रदर्शन करते हुए काफ़ी नीचे तक आता है... फिर एक निश्चित ऊँचाई पर पहुँचकर वो अपना पैरशूट खोलता है... और एक एक्स्पर्ट जम्पर की तरह ग्राउंड पर बने निर्धारित स्थान पर लैंड करता है.... लैंड होने के बाद अपने पैरशूट को अलग करते हुए... जैसे ही हेल्मेट उठता है... पीछे से ऑरेंज कलर के लम्बे घुंघराले बाल निकलते है.. जो सूरज की रोशनी में चमक रहे थे... चेहरे से देखने में बहुत ख़ूबसूरत, रंगत दूध जैसे रंग की और आँखे लाइट ग्रे थी.... जैसे ही वो लड़की बेस स्टेशन पर पहुँचती है... एक व्यक्ति उसके पास पहुँच कर उसे कुछ बोलता है... और वो रेस्पॉन्स में उसे थम्ज़-अप करके उसे कन्फ़र्म करती है... और वो वहाँ से निकल जाता है.... कुछ दूर आकर अपने ट्रांसमीटर पर बोलता है....
“जफरीना को भी बता दिया... वो पहुँच जाएगी....., सिर्फ़ एक बचा है... पर शायद अब उसकी ज़रूरत ना पड़े.... “
(भूतकाल में)
गुरु शुक्राचार्य, पाशा और रक्तकूट एक साथ पाशा के कक्ष में थे....
पाशा : रक्तकूट.... हमें गुरुदेव के आदेशानुसार आयाम यात्रा पर जाना होगा... लेकिन जाने से पूर्व हमारा आदेश है... आज से गुरुदेव जो भी बोले उसे हमारा आदेश समझ कर अमल किया जाए...
रक्तकूट : जो आज्ञा महाराज.. आपका पुनः आगमन कब होगा...?
पाशा : वो तो हमें भी नहीं पता.. पर हम कोशिश करेंगे जल्दी ही हो...
शुक्राचार्य : रक्तकूट अब तुम्हें यहाँ और भी ज़रूरी कार्य पूर्ण करने है...
रक्तकूट : आज्ञा गुरुदेव...
शुक्राचार्य : सबसे पहले तो तुम अपने इस मानव रूप को त्याग कर वापिस अपने असली असुर रूप में आ जाओ... पूर्ण असुर सेना को धरती पर ले आओ.... (सुनकर रक्त कूट के चेहरे पर आश्चर्य के भाव थे)
रक्तकूट : क्या आप देवताओ पर आक्रमण करने का विचार कर रहे है महाराज...?
पाशा : नहीं रक्तकूट, परन्तु एक विशाल युद्ध की तैयारी कर रहे है... तुम इसपर अधिक विचार न कर आज्ञा का पालन करो
शुक्राचार्य : रक्तकूट, सिर्फ सेना को ही नही लाना , बल्कि धरती के गर्भ में सदियों से सो रहे हमारे राक्षस वीरो को भी जगाना है ... और ये कार्य भी तुम्हे शीघ्र अतिशीघ्र करना है... इसलिए अविलम्ब प्रस्थान करो ..
रक्तकूट : जो आज्ञा गुरुदेव ...
शुक्राचार्य : राजन अब आप भी प्रस्थान कीजिये... आपको भी अपनी यात्रा शीघ्र ही पूर्ण करनी होगी...
(वर्तमान में)
अमित अपने पिता की ओर देखता है, उसकी आँखों में काफी प्रश्न थे, भानु उसकी जिज्ञासा का भाँप आगे की कहानी शुरु करते है ...
भानु : तो पुत्र, कहानी का एक सिरा तो हमारे अस्तित्व के इस गृह पर आने का था.. परन्तु इस कहानी में उस समय हमारे साथ लाये हुए बक्से का भी काफी योगदान है ... जब उसे हमारे हवाले किया गया था.. उस समय हमें बताया गया था की जब अद्विका का आगमन होगा तब इसकी जरुरत पड़ेगी.. उसके बाद हमने पीढ़ी दर पीढ़ी उस महाशक्ति का इंतजार किया परन्तु धरती के अंत तक कोई नहीं आया... हम अपनी जिम्मेदारी समझ बक्से को अपने साथ यहाँ ले आये.. परन्तु यहाँ आकर हमारे साथी ही अब अद्विका के वापिस आने की उम्मीद खो चुके थे ... जब वो उस धरती पर नहीं आई तो अब तो हम एक अंजान गृह पर थे , उसका आना किसी भी हाल में संभव न था... सबकी सहमति पर हमने उसे घने जंगलो के बीच एक गहरे गड्ढे में दफ़न कर दिया ताकि वो किसी के हाथ न लगे... हालाँकि सबको यकीन नहीं था परन्तु फिर भी हम अग्नि तत्वधारियो ने बक्से की सुरक्षा को अपना कर्त्तव्य माना और हम regularly समय समय पर देखते रहे की वो सुरक्षित है या नहीं...| कई सदियों तक ये जिम्मेदारी हमारे वंश में पीढ़ी दर पीढ़ी एक दूसरे को मिलती रही...और वो सुरक्षित रहा.. परन्तु १ साल पहले वो बक्सा वहाँ से गायब हो गया .. मैंने दिन रात साधना में बैठ कर अपने मानस रूप में धरती के चारो ओर चक्कर काटे पर मैं उसे ढून्ढ न पाया..| लेकिन कुछ दिनों पूर्व इस धरती की उर्जा क्षेत्र में बदलाव महसूस किये.. ये बदलाव अपने आप नहीं हो सकते थे केवल किसी शक्तिशाली उर्जा स्रोत से संभव थे.. मैं अपने कक्ष में बैठ अपने मानस रूप की सहायता से इसकी जानकारी इक्कठा करने लगा, इतना बड़ा बदलाव् डिफेंडर्स के सर्विलेंस से न बच पाया और विधि ने भी एक टीम इसके पीछे लगा दी.. साथ ही beasts भी इसके पीछे पीछे आ गए.. इतनी ऊर्जा शायद उनके लिए वरदान के सामान थी...| जब मैं इसकी गहराई में गया तो मेरी समझ में आया की समय अपनी चाल चल गया.. और उस बक्से से अद्विका के बाल किसी तरह अनन्या के सर तक पहुच गए थे... सबसे पहले तो उन बालो ने अद्विका के सर पर खुद की जडे बनायीं.. उसके बाद ऊर्जा का प्रवाह ब्रह्माण्ड से उसके शरीर में होने लगा... अनन्या को कैंसर था और उसकी मृत्यु कैंसर से ही होनी थी, परन्तु अद्विका के बालो की वजह से जो ऊर्जा इसके शरीर में प्रवाहित हुई उसने इसके शरीर की सारी बीमारी ठीक कर दी, परन्तु इसका मृत्यु का समय तो निश्चित हो चुका था, और कल रात जब ये तुम्हारे साथ जा रही थी उस समय इसकी मृत्यु हो गयी... साथ ही बिना आत्मा के शरीर में उर्जा का प्रवाह बढ गया फिर अद्विका का आगमन उसके बाद कल तुमने स्वयं देखा था..
अमित : तो इसका मतलब ये अनन्या नहीं है..
भानु : हाँ बेटा अनन्या का अंत हो चुका है... यही उसका प्रारब्ध था...
(भूतकाल में)
रक्तकूट अपने घोड़े पर बढा चला जा रहा था तीव्र गति से, पश्चिम दिशा की ओर सूरज डूबने की तैयारी कर रहा था... जैसे जैसे सूरज नीचे आता उसके घोड़े की टापों की आवाज और तेज हो जाती.. जैसे उसे समय से पहले कहीं पहुचना हो... वो एक के बाद एक कस्बो को पार करता हुआ.. जंगलो के बीच से होता हुआ.. एक पुराने किले के खंडहर के अन्दर पहुच कर अपने घोड़े से नीचे उतरता है... घोड़े से उतरकर वो अंदर की तरफ चलता है और एक कक्ष के मध्य पहुच कर एक बड़ी आसन रूपी शिला पर जाकर खड़ा होता है.. जिससे कक्ष के वहां मध्य में से जमीन खुलकर एक बड़ी शिला बाहर आती है... उसपर एक सोने का प्याला रखा है जिसके चारो ओर विभिन्न रत्न जड़े हुए है... उस प्याले को देख रक्तकूट की आंखे चमक उठी और आगे बढ कर उसने अपने पास रखे थैले में हाथ डाला, अन्दर से एक कटा हुआ सर निकला.. देखकर लगता था की जैसे कुछ समय पहले ही कटा हो... उसने उससे निकलते हुए रक्त को प्याले में इकट्टा करना शुरु कर दिया और कुछ देर बाद सर को फेंककर प्याला उठा लिया... दोनों हाथो से उसे पकड़ कर.. उसे अपने मुह के पास ले आया.. धीरे धीरे एक एक घूँट कर उसे पीने लगा.... जैसे जैसे वो उसे पी रहा था वैसे वैसे आसमान में बिजली कड़कने लगी ओर उसका रूप भी बदल कर एक भयंकर असुर के समान हो गया था... उसने प्याले को वापिस उसके स्थान पर रख दिया और वो शिला पुनः जमीन में लोप हो गयी... सेनापति रक्तकूट अब एक असुर बन चुका था... अगले ही पल उसने एक जोरदार आवाज में पुकारा....
“आ जाओ मेरे सदियों से सोये हुए सैनिको आ जाओ... आज तुम्हारे जागने का समय आ गया है... , जागो और जगाओ अपने बाकी साथियों को भी... मैं पूरी पाताल सेना का आह्वान करता हूँ|" फिर देखते ही देखते वहाँ दीवारों से कई सारे हथियारबंद राक्षस निकलने लगे... एक के बाद एक, बाहर मैदान में इकट्ठे होने लगे.. देखते ही देखते, सौ, हज़ार, लाख, दस लाख, या करोडो असुर सैनिक वहां जमा हो गए... अपनी पूरी सेना को देख रक्तकूट के चेहरे पर एक शैतानी हँसी आती है और वो उन्हें आदेश देता है... "जाओ और जाकर महाराज पाशा के राज्य की सीमा पर मेरी प्रतीक्षा करो.. अभी मुझे जाकर कुछ आवश्यक कार्य निपटाना है पाताल में..."
(वर्तमान में)
भानु अमित को कहानी सुनाने में इतने व्यस्त थे कि उन्हें पता ही नहीं चला, अन्दर अनन्या के जिस्म में हरकत शुरु हो गयी... और अचानक अनन्या के शरीर से फिर वही रौशनी फूटने लगी , वो वहाँ बेड से खड़ी होगयी... जैसे ही दरवाजें से तेज रौशनी आई भानु और अमित ने अंदर देखा.. तब तक अनन्या ने कमरे के पीछे की दीवार को खंडित कर दिया और वहाँ से बाहर जम्प करके सीधे एक चलती हुयी सड़क के बीच में जा खड़ी हुई... तेज स्पीड में आती गाड़िया संभल न पाई और कुछ गाड़ियाँ एक के बाद एक आकर टकराई... टकराने से गाड़िया टूट गयी काफी जान-माल का नुकसान हुआ पर वो वहीँ खड़ी रही.... जैसे कुछ हुआ ही नहीं... आसपास ऐसे देख रही जैसे वो जिंदगी में पहली बार ये सब देख रही थी.. गाड़ियां.. ऊंची ऊँची बिल्डिंग्स... उसे बीच सड़क में देख और रास्ता ब्लाक हुआ देख काफी गाड़िया हॉर्न भी बजाने लगी... जिसके रेस्पोंस में उसे कुछ समझ नहीं आया तो उसने गाडियों को कोई जानवर समझ हांथो से और लातो से इथर उधर फेंकना शुरु कर दिया.. इधर भानु और अमित गेट खोलकर जैसे ही कमरे की टूटी दीवार पर पहुचे, वो समझ चुके थे कि अब देर हो चुकी है और अनन्या को रोकना जरुरी है... लेकिन इस से पहले वो कुछ एक्शन ले पाते.. उन्होंने देखा अनन्या द्वारा फेंकी गयी गाड़ियां एक दम हवा में रुक गयी और आराम से नीचे आ रही है , उनमे सवार लोग भी सुरक्षित है.. वहां खड़ी दूसरी लडकी को देख भानु बोलते है,
“बिलकुल समय पर आई हो जफरीना...” भानु जफरिना को मानसिक सन्देश से बोलते है... ध्यान रहे ये यहाँ से ज्यादा दूर न जाये.. इसे वापिस हेडक्वार्टर ले जाना होगा.. ये वो ही है... ये सुन जफरिना की आंखे थोड़ी चमकती है.. और एक हाथ का इशारा कर अनन्या की ओर देखती है.. जैसे उसने कोई आदेश दिया हो... अनन्या के आसपास हवा काफी तेजी से चलने लगती है... फिर चक्रवात बना कर उसे रोकने का प्रयास करती है... कुछ समय के लिए अनन्या चक्रवात में भ्रमित होती है, फिर अंपने हाथो को चक्रवात में डाल कर उसे उल्टा घुमाती है और चक्रवात वहीँ ख़तम हो जाता है... जिसे देख जफरिना के पैरो तले जमीन निकल जाती है.. और अनन्या अपनी राह पर आगे बढ़ने लगती है.. ठीक उसी पल धरती से मिटटी निकल कर उसे जकड़ने लडती है , देखते ही देखते उसे पूरा ढक लेती है, जैसे एक पहाड़ उसके ऊपर बन गया हो... जफरिना के बगल में विलियम खड़ा था , उसने मौका न गंवाते हुए डायलॉग मार दिया.... “अभी बच्ची हो काफी कुछ सीखना बाकी है... अपनी प्रैक्टिस पर थोडा ज्यादा ध्यान दो...” जफरिना ने कुछ नहीं कहा बस do not care टाइप attitude दिखा कर साइड हो गयी.. पर इतनी तस्सल्ली थी की अनन्या को रोक लिया.. लेकिन कुछ ही समय तक.. जब तक विलियम कुछ समझ पाता उसका बनाया हुआ मिटटी का पहाड़ एक मटके की तरह टूट कर बिखर गया .. और अनन्या वापिस बाहर आ चुकी थी.. इतनी देर में भानु औरअमित भी बाहर आ गए थे.. वो चारो अब एक साथ थे..
जफरिना : हमने अपनी अपनी शक्तिया try करके देख ली पर लगता है इस पर उनका कोई असर नहीं है... कुछ idea बाकि दोनों कब तक आएंगे..?
भानु : दो नहीं एक, अग्नि ने अमित को चुन लिया है पर इसका अभी अपनी शक्तियों पर नियंत्रण नहीं है...
तभी पीछे से आवाज आई.. “पर हमारा तो है...”
पीछे अंजनी खड़े थे...
अंजनी : आप लोग भी क्या मूर्खता कर रहे हो... और
भानु मुझे तुमसे ये उम्मीद नहीं थी..., जो स्वयं सभी तत्वों की आराध्य है तुम उन्हें इन्ही तत्वों से बांधना चाहते हो.. ये मत भूलो.. इन तत्वों में हमें चुना है.. हमारी शक्तियां इनके आधीन है , और ये स्वयं आदिशक्ति के अधीन है.. तुम आदिशक्ति के अंश को इन्ही से बांधना चाह रहे हो..?
भानु : आप सही कह रहे है.. पर आपके पास अभी कोई उपाय है इन्हें रोकने का..?
अंजनी : उसके लिए हमें इनसे बात करनी होगी...
अंजनी वहां खड़े होकर ध्यान लगाते है और स्वयं जल में परिवर्तित होकर अनन्या के पास जाते है , उसके शरीर से मिल जाते है... एक दम अनन्या के चलते चलते पैर रुक जाते है , काफी समय तक वो एक ही स्थान पर खड़ी रही, जैसे किसी गहन चिंतन में हो.. लगभग २-३ घंटे के बाद.. अनन्या के जिस्म से रौशनी निकलनी कम होकर बंद हो गयी, वो वापिस मुड़कर भानु की तरफ आती है.. अंजनी भी अपने रूप में वापिस आ जाता है.. जैसे ही वो वहां पहुचती है.. अमित उसे देख कर बोलता है..
“अनन्या” वो अमित को देखती है और बोलती है...
“मेरा नाम अद्विका है....”
Dosto book me jitna tha utna tho maine app logonke samne rakh diya abb aage me mera maa bete ke madhur milan khatam karne ke baad start kardoonga tab tak ye pado or haa siraj bhai iss story ko ek hafte baad taatkalik roop se band karo pls