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Jab mnn kre bhai aapkaAcha hai na, aaj sabko update padhne ko milega, mai baad me padh kar reply dunga![]()
Bilkul bhai kam bhi jaroori haiAbhi office jana padega bhai![]()
Thank you sooo much venom 111 bhaiBhai sach me raman thakur ki kya jalai hai sandhya thakur ne ... Nice uodate
Abhay sarpanch ki biwi or raman ki baat sunkar kafi kuch samajh gaya hai, wahi satya babu ne jo kaha tha us se bhi abhay ka man vichlit hua hai, wo sochne pe majboor ho gaya hai, doosri or thakurain ne meeting bula ke sarpanch ki maar li,or geeta devi ka naam bhi sarpanch ki kursi ke liye chun liya, kahani me naya mod aagaya hai, jo ki kahani jarurat bhi thiUPDATE 29
अभय , राज , राजू और लल्ला चारो दोस्त ट्रेन की एसी बोगी में चिप के रमन और सरपंच को बीवी उर्मिला की रासलीला देखते रहे कुछ समय बिता था की तभी उर्मिला ने बोलना शुरू किया...
उर्मिला –क्या बात है ठाकुर साहब आज आप बहुत जोश में थे....
रमन –(उर्मिला की बात सुन हल्का मुस्कुरा के) तू चीज ही ऐसी है मेरी जान....
उर्मिला –(मुस्कुरा के) लगता है लल्लीता से मन भर गया है आपका....
रमन – वो साली क्या साथ देगी मेरा उसका दिमाग घुटनो में पड़ा रहता है या तो हवेली में लगी रहेगी या अपनी बेटी के साथ....
उर्मिला – (मू बना के) कितनी बार कहा आपसे मुझे हवेली में रख लो हमेशा के लिए बस आपकी बाहों में रहूंगी हमेशा लेकिन आप हो के सुनते कहा हो....
रमन – तू तो जानती है मेरी रानी मेरे हाथ में कुछ भी नही है....
उर्मिला –ये बात आप जाने कितने सालों से बोल रहे हो ऐसे तो आप कभी हवेली में नही ले जाओगे मुझे.....
रमन – क्या बताओ मेरी रानी पहले तो सब मेरे हाथ में था हवेली की बाग डोर और संध्या भी लेकिन जब से उसका उसका बेटा अभय हवेली से भागा है तब से संध्या मेरे हाथ में नही रही इसीलिए धीरे धीरे इत्मीनान से उसे काबू में करने में लगा हुआ था मैं लेकिन फिर इतने साल बाद एक लौंडे के आ जाने से वो पागल सी हो गई है संध्या जाने कहा कहा से गड़े मुर्दे उखड़ने में लगी है.....
उर्मिला – वही लड़का ना जिसने गांव में आते ही गांव वालो को जमीन आपके हाथ से निकल गई....
रमन – है वही लौंडा की वजह से हुआ है ये सब वो साली उसे अपना बेटा अभय समझ रही है....
उर्मिला – (चौक के) कही सच में वो उसका बेटा अभय तो नही....
रमन – अरे नही मेरी जान वो कोई अभय नही है वो तो डी आई जी शालिनी सिन्हा का बेटा है जो शहर से यहां कॉलेज में पढ़ने आया है....
उर्मिला – शहर से यहां गांव में पढ़ने अजीब बात है.....
रमन – कोई अजीब बात नही है मुफ्त में पढ़ने आया है यहां स्कॉलरशिप मिली है उस लौंडे को , आते ही इत्तेफाक से संध्या से मुलाकात हो गई उसकी रास्ते में जाने क्या बात हुई रास्ते में ऐसी उसे अपना बेटा समझने लगी संध्या तब से हाथ से निकल गई है मेरे.....
उर्मिला – (मुस्कुरा के) इतने साल फायदा भी तो खूब उठाया है आपने ठकुराइन का....
रमन – क्या खाक फायदा मिला मुझे साली गांव की जमीन निकल गई मेरे हाथ से बस एक बार कॉलेज की नीव पड़ जाति उस जमीन पर तो चाह के भी कोई कुछ नही कर पता उस जमीन में डिग्री कॉलेज बनने से लेकिन उस लौंडे ने आके....
उर्मिला – (हस के) तो फिर से ऐसा कुछ कर दो आप जिससे जमीन भी आपकी हो जाय और ठकुराइन भी जैसे आपने दस साल पहले किया था जंगल में मिली बच्चे की लाश को अभय के स्कूल के कपड़े पहना कर उसे अभय साबित कर दिया था....
रमन – नही अभी मैं कुछ नही कर सकता हू संध्या को शक हो गया है मेरे उपर अब उसे भी लगने लगा है इन सब में मेरा भी हाथ है बस सबूत न मिलने की वजह से बचा हुआ हू मै वर्ना अब तक बुरा फस गया होता मैं....
उर्मिला – ठाकुर साहब इस चक्कर में अपनी बेटी को मत भूल जाना आप पूनम आपकी बेटी है ना की उस सरपंच शंकर चौधरी की इतने सालो में उसे मैने शक तक होने नही दिया इस बात का....
रमन – तू चिंता मत कर ऐसा वैसा कुछ नही होने दुगा मैं जरूरत पड़ी तो रास्ते से हटा दुगा उस लौंडे को रही संध्या की बात 3 दिन बाद जन्मदिन है उसका इस बार हवेली में पार्टी जरूर होगी खुद संध्या देगी वो पार्टी उस लौंडे के दिखाने के लिए उस दिन संध्या को मना लूगा मैं और नही भी हुआ ऐसा तो भी कोई बात नही आखिर मेरा भी हक बनता है हवेली और जायदाद पर....
उर्मिला – अब सब कुछ आपके हाथ है ठाकुर साहब मुझे सिर्फ हमारी बेटी की चिंता है.....
रमन – फिक्र मत कर तू चल जल्दी से कपड़े पहन ले...
उर्मिला – (बीच में बात काटते हुए) इतनी भी जल्दी क्या है ठाकुर साहब आज मैं फुरसत से आई हू आपके पास शंकर गया हुआ है शहर काम से और बेटी गई है अपनी सहेली के घर उसके जन्म दिन के लिए आज वही रहेगी वो...
रमन – वाह मेरी जान तूने तो मेरी रात बना दी आज की आजा….
बोल के दोनो शुरू हो गए अपनी काम लीला में जिसके बाद राज , अभय , राजू और लल्ला चुप चाप दबे पांव निकल गए ट्रेन की बोगी से , बाहर आते ही चारो दोस्त जल्दी से अभय की बाइक के पास आ गए तब राज बोला...
राज –(अभय से) तूने देखा और सुना , कुछ समझ आया तुझे...अभय चुप रहा बस अपना सर उपर आसमान में करके के देखता रहा जिसे देख राज बोला...
राज – (हल्का सा हस के) चल चलते है हमलोग यहां से , घर भी जाना है मां और बाब राह देख रहे होगे मेरी...
राज की बात सुन राजू बोला...
राजू – हा यार चल अब रुक के क्या फायदा होगा साली ने अरमान जगा दिया मेरे...
लल्ला – (राजू की बात सुन के) यार ये सरपंच की बीवी साली कंचा माल है यार....
राज –(दोनो की बात सुन के) अबे पगला गए हो क्या बे तुम दोनो....
राजू – अबे ओ ज्यादा शरीफ मत बन अरमान तो तेरे भी जाग गए है नीचे देख के बात कर बे....
राज –(अपनी पैंट में बने तंबू को देख मुस्कुरा के) हा यार वो सरपंच की बीवी ने सच में अरमानों को हिला दियारे....
लल्ला – क्यों अभय बाबू क्या बोलते हो तुम अब तो वो गुस्सा नही दिख रहा है तेरे चेहरे पर लगता है सरपंच की बीवी की जवानी का जादू चल गया है तेरे ऊपर भी.....
राज – (हस्ते हुए) साले तभी मू छुपा रहा है देखो तो जरा साले को....
अभय –(हस्ते हुए) ओय संभाल के राज वर्ना दीदी को बता दुगा तू क्या कर रहा है....
राज – (हस के) हा हा जैसे मैं नही बोलूगा पायल से कुछ भी क्यों बे....बोल कर चारो दोस्त हसने लगे और निकल गए घर की तरफ रास्ते में राजू और लल्ला अपनी साइकिल से घर निकल गए जबकि अभय और राज एक साथ बाइक में हॉस्टल आ गए...
राज – (अभय से) चल भाई हॉस्टल आ गया तेरा....अभय – यार मन नही कर रहा आज अकेले रहने का.....
राज –(हसके) इरादा तो नेक है तेरे....
अभय – नही यार वो बात नही है....
राज –(बात समझ के) देख अभय जो हुआ जैसे हुआ तेरे सामने है सब कुछ कैसा भी हो लेकिन छुपता नही है कभी सामने आ जाता है एक ना एक दिन उस दिन बगीचे में तूने जो बात बोल के निकल गया था वो भी अधूर...
अभय –(राज की बात काट अपना मू बना के) यार तू कहा की बात कहा ले जा रहा है देख जो भी देखा और जो भी सुना मैने सब समझ गया बात को अब जाने दे सब बातो को तू जा घर बड़ी मां राह देख रही होगी तेरी कल मिलते है....
राज बाइक खड़ी करके जाने लगा तभी अभय बोला...
अभय – अबे पैदल जाएगा क्या बाइक से जा रात हो गई है काफी कितना सन्नाटा भी है...
राज – लेकिन कल सुबह तू कैसे आयगा....
अभय – मेरी चिंता मत कर भाई पैदल आ जाऊंगा कल कॉलेज में ले लूगा बाइक तेरे से....
राज घर की तरफ निकल गया और अभय हॉस्टल के अन्दर चला गया कमरे में आते ही दरवाजा बंद करके लेट गया अभय बेड में...
अभय – (अपने आप से बोलने लगा) एक बात तो समझ आ गई ये सारा खेल रमन ठाकुर का खेला हुआ है रमन ठाकुर तुझे लगता है इस खेल को खेल के तू पूरी तरह से कामयाब हो गया है लेकिन नही आज कसम खाता हू मै अपने बाप की गिन गिन के बदला लूगा मैं तुझसे हर उस मार का जो तूने और तेरे बेटे की वजह से मिली बिना वजह उस ठकुराइन से मुझे , वैसा ही खेल को खेलूगा मैं भी , गांव वालो का तूने खून चूसा है ना , ब्याज के साथ उसकी कीमत दिलाऊगा उन गांव वालो को तेरे से मैं , रही उस ठकुराइन की बात सबक उसे भी मिलेगा जरूर लेकिन आराम से जब तक दीदी उसके साथ है मुझे ऐसा वैसा कुछ भी करने नही देगी लेकिन मैं करूंगा तो जरूर (अपनी पॉकेट से मोबाइल निकल के किसी को कॉल कर बोला) हेलो कैसी हो अल्लित्ता....
अलित्ता – (अभय की आवाज सुन के) मस्त हू तुम कैसे हो आज इतने दिन बाद कॉल किया तुमने....
अभय – अच्छा हू मै भी , एक काम है तुमसे....
अलित्ता – हा बोलो ना क्या सेवा करूं तुम्हारी....
अभय – बस कुछ सामान की जरूरत है मुझे...
अलित्ता – क्यों अपनी दीदी से बोल देते वो मना कर देती क्या....
अभय – ऐसी बात नही है अलित्ता असल में दीदी कभी मना नही करेगी मुझे लेकिन मैं दीदी को बिना बताए काम करना चाहता हू.....
अलित्ता –(अभय की बात समझ के) क्या चाहिए तुम्हे बोलो मैं अरेंज करवाती हू जल्द ही.....
अभय – मैं मैसेज करता हू तुम्हे डिटेल्स....
अलित्ता – ठीक है मैसेज करो तुम डिटेल्स परसो तक मिल जाएगा तुम्हे सारा समान.....
अभय – ठीक है और थैंक्यू अलित्ता.....
अलित्ता – (मुस्कुरा के) कोई बात नही तुम्हे जब भी जरूरत हो कॉल कर लेना मुझे ठीक है बाए....
बोल के अभय ने कॉल कट कर मैसेज कर दिया डिटेल को जिसे पड़ के अलित्ता के बगल में बैठे KINGको डिटेल्स दिखाई जिसे देख KING
बोला...
KING– (डिटेल्स पड़ के) भेज दो ये सामान उसे , लगता है अभय अब अपने कदमों को आगे बड़ा रहा है अकेले बिना किसी की मदद के जरूर कुछ जानकारी मिली है उसे अच्छा है.....
अलित्ता – आखिर ठाकुर का खून है उबाल तो मारेगा ही ना...
KING– उम्मीद करता हू अभय जो भी काम करने जा रहा हो उससे ठाकुर साहब की आत्मा को शांति मिले....
अलित्ता – हा ऐसा ही होगा जरूर.....
इस तरफ अभय बेड में लेता हुआ था तभी संध्या का कॉल आया जिसे देख अभय ने रुक के कॉल रिसीव कर कान में लगाया...
संध्या – (कुछ सेकंड चुप रहने के बाद) कैसे हो तुम....
अभय – (धीरे से) अच्छा हू....
संध्या – (अभय की आवाज सुन) खाना खा लिया तुमने....
अभय – हा अभी आराम कर रहा हू मै....
संध्या – घर वापस आजा....
अभय – देख मैं तेरे से आराम से बात कर रहा हू इसका मतलब ये नही तेरी फरमाइश भी पूरी करूगा.....
संध्या – 3 दिन बाद एक पार्टी रखी है हवेली में....
अभय –हा जनता हू जन्मदिन जो है तेरा....
संध्या – तुझे याद है तू...तू आएगा ना देख प्लीज माना मत करना तू आगया है ना इसीलिए पहली बार मना रही हू....
अभय – (हस के) मेरा क्या काम है तेरी पार्टी में और भी तो तेरे खास लोग आएंगे उसमे भला मेरे जैसों का कोई मोल नहीं तेरी पार्टी में या कही नौकर तो काम नही पड़ गए तुझे इसीलिए बुला रही है मुझे....
संध्या – ऐसा तो मत बोल कोई नही आएगा बस घर के है लोग...
अभय – लेकिन मेरी गिनती तेरे घर के लोगो में नही आती...
संध्या –(रोते हुए) ऐसा मत बोल सबसे कोई मतलब नहीं मेरा बस तुझ से मतलब है बस तू आजा बदले में जो बोल मैं वो करूगी....
अभय – सिर्फ मेरे लिए इतना बोल रही क्योंकि आज मैं यहां हू उससे पहले कभी सोचा तूने इन गांव वालो का जिनकी जमीनों में कर्ज के नाम पर कब्जा किया जा रहा था जबरन तरीके से तब देखा तूने....
संध्या – तेरे इलावा कोई नही मेरा तूही मेरा सब कुछ है तेरी कसम खा के बोलती हू मुझे सच में कुछ नही पता था इस बारे में....
अभय –(संध्या की ये बात सुन के चुप रह कुछ सेकंड फिर बोला) तू नही जानती इस वजह से कितना कुछ झेला है गांव वालो ने कर्ज के बदले ब्याज पर ब्याज लिया गया उनसे जो रोज तपती धूप में खेती करते ताकी अपने परिवार का पेट भर सके सोच इतने सालो में उनके साथ क्या क्या नहीं हुआ होगा उनके दर्द का कोई अंदाजा नही लगा सकता (रूंधे गले से) अगर बाबा होते ऐसा कभी नहीं होने देते...
बोल के फोन कट कर दिया अभय ने इस तरफ हवेली में संध्या के संग चांदनी बैठी सारी बाते सुन रही थी...
चांदनी – (रोती हुई संध्या को गले लगा के) बस करिए मत रोइए....
संध्या –(आसू पोच के) नही चांदनी आज इतने दिनो बाद उसने मुझ से बात की आराम से बिल्कुल अपने बाबा की तरह सोचता है अपने से पहले दूसरो के बारे में....
चांदनी – आप खुश है ना....
संध्या – बहुत खुश हू आज मैं (चांदनी का हाथ पकड़ के) शुक्रिया चांदनी तुम्हारी वजह से ये हुआ है...
चांदनी – नही ठकुराइन इसमें शुक्रिया जैसी कोई बात नही है ये मेरा फर्ज है अभय भाई है मेरा उसके लिए नही करूंगी तो किसके लिए करूगी....
संध्या – ये तू मुझे ठकुराइन क्यों बोलती रहती है शालिनी जी को बहन माना है मैने तो तू मुझे मासी बोला कर अब से....
चांदनी – लेकिन सिर्फ आपको अकेले में....
संध्या – कोई जरूरत नहीं है सबसे सामने बोलेगी बेझिजक....
चांदनी –(मुस्कुरा के) ठीक है मासी अब खुश हो आप....
संध्या – (गले लगा के) हा बहुत खुश हू , चल अब सोजा कल तुझे मेरे साथ चलना है तुझे दिखाओगी गांव की मीटिंग जहा सरपंच बैठक लगाते है सभी गांव वालो की....
चांदनी – लेकिन वहा पर क्या काम मेरा...
संध्या – (मुस्कुरा के) वो तू कल खुद देख लेना चल अब सोजा सुबह जल्दी चलना है....
चांदनी –(मुस्कुरा के) जैसा आप कहे मासी.....
हस के चांदनी चली गई अपने कमरे में आराम करने चांदनी के जाने के बाद संध्या ने शंकर चौधरी (सरपंच) को कॉल किया..
संध्या –(कॉल पर) हेलो शंकर....
शंकर (सरपंच) – प्रणाम ठकुराइन इतने वक्त याद किया आपने...
संध्या – जी ये कहने के लिए कॉल किया की कल पूरे गांव वालो को बैठक बुलाइए गा और ध्यान रहे सभी गांव वाले होने चाहिए वहा पर..
शंकर (सरपंच) – कुछ जरूरी काम है ठकुराइन....
संध्या – जी कल वही पर बात होगी सबके सामने वक्त पे तयार होके आइए गा.....
बोल के कॉल कट कर दिया जबकि शंकर चौधरी (सरपंच) को शहर गया हुआ था काम से उसने कॉल लगाया रमन ठाकुर को को इस वक्त सरपंच की बीवी उर्मिला के साथ कामलीला में लगा हुआ था....
रमन –(मोबाइल में सरपंच का कॉल देख के उर्मिला से) तूने तो बोला था शंकर शहर गया हुआ है....
उर्मिला – हा क्यों क्या हुआ...
रमन –(अपना मोबाइल दिखा के जिस्म3 शंकर की कॉल आ रही थी) तो इस वक्त क्यों कॉल कर रहा है ये...
उर्मिला –(चौक के) पता नही देखिए जरा क्या बात है...
रमन –(कॉल उठा के स्पीकर में डाल के) हा सरपंच बोल क्या बात है...
शंकर (सरपंच) – हवेली में कोई बात हुई है क्या ठाकुर साहेब...
रमन – नही तो क्यों क्या हुआ...
शंकर (सरपंच) –(संध्या की कही सारी बात बता के) अब क्या करना है ठाकुर साहब...
रमन –(सरपंच की बात सुन हैरान होके) जाने अब क्या खिचड़ी पका रही है ये औरत साली चैन से सास तक लेने नही देती है एक काम कर जो कहा है वो की तू बाकी मैं भी कल रहूंगा वहा पर देखते है क्या करने वाली है ये औरत अब....
उर्मिला –(रमन का कॉल कट होते बोली) ये सब अचानक से क्यों ठाकुर साहब...
रमन –यही बात तो मुझे भी समझ नही आ रही है चल तू कपड़े पहन ले मैं तुझे घर छोड़ देता हू फिर हवेली जाके देखता हू क्या माजरा है ये...इधर हवेली में संध्या ने एक कॉल और मिलाया गीता देवी को...
संध्या – (कॉल पर गीता देवी से) दीदी कैसी हो आप...
गीता देवी – अच्छी हू तूने इतने वक्त कॉल किया सब ठीक तो है न संध्या...
संध्या – हा दीदी सब ठीक है मैने सरपंच को बोल के कल सभी गांव वालो की बैठक बुलवाई है मैं चाहती हू आप सभी गांव की औरतों को साथ लेके आए वहा पर....
गीता देवी –(हैरान होके) ऐसी क्या बात है संध्या ये अचनक से बैठक सभी गांव वालो को....
संध्या – आप ज्यादा सवाल मत पूछिए दीदी बस कल सभी को लेक आ जायेगा.....
गीता देवी –(संध्या को बात सुन के) ठीक है कल आ जाऊंगी
बोल के दोनो ने कॉल कट कर दिया उसी समय राज और सत्य बाबू पास में बैठे थे सत्य बाबू बोले...
सत्य बाबू – क्या बात है सब ठीक तो है ना हवेली में....
गीता देवी – हा सब ठीक है (फिर जो बात हो गई सब बता दिया) देखते है कल क्या होता है बैठक में.....
सत्य बाबू – कमाल की बात आज ही मुझे अभय मिला था....
गीता देवी – अभय मिला था आपको तो घर लेके क्यों नही आए उसे....
सत्य बाबू –यही बोला मैने समझाया उसे....
गीता देवी – फिर क्या बोला अभय.....
सत्य बाबू ने सारी बात बताई जिसे सुन के गीता देवी कुछ बोलने जा रही थी कि तभी राज बीच में बोल पड़ा...
राज –(बातो के बीच में) ओह तो ये बात है तभी मैं सोचूं आज अभय को हुआ क्या है....
गीता देवी और सत्य बाबू एक साथ –(चौक के) क्या हुआ था अभय को....
फिर राज ने सारी घटना बताई लेकिन रमन और उर्मिला की बात छोड़ के जिसे सुन के गीता देवी और सत्य बाबू की आखें बड़ी हो गई...
गीता देवी –(गुस्से में सत्य बाबू से) आप ना कमाल करते हो क्या जरूरत थी अभय को ये बात बताने की बच्चा है वो अभी उसे क्या पता इतने साल उसके ना होने से क्या हुआ है गांव में और आपने उसे ही जिम्मेदार ठहरा दिया भला ये कोई तरीका होता है क्या एक बच्चे से बात करने का....
सत्या बाबू –(अपने सिर पे हाथ रख के) अरे भाग्यवान अभय को बताने का ये मकसद नही था मेरा मैं भी बस यही चाहता था वो संध्या से नफरत ना करे इसीलिए उसे सच बताया था...
गीता देवी –(मू बना के) सच बताने का एक तरीका भी होता है बताना होता तो मैं नही बता सकती थी अभय को सच या राज नही बता सकता था शुक्र है भगवान का कुछ अनर्थ नही हुआ वर्ना मू ना दिखा पाती मैं संध्या को कभी (राज से) और तू भी ध्यान रखना ऐसी वैसी कोई बात नही करना अभय से समझा ना....
राज – ठीक है मां....
गीता देवी – एक बात तो बता तुझे पता था ना अभय की ऐसी हालत है तो तू उसे हॉस्टल में छोड़ के कैसे आ गया घर ले आता उसे या वही रुक जाता , एक काम कर तू अभी जा अभय के पास वही सो जाके जाने कैसा दोस्त है , तू भी इनकी तरह हरकत कर रहा है.....
राज –अरे अरे मां ऐसा कुछ भी नही है अभय ठीक है अब....
गीता देवी – लेकिन अभी तो तूने कहा.....
राज – (अपने सिर पे हाथ रख के) मां बात असल में ये है की वहा पर जब ये सब हुआ तब हम आपस में बात कर रहे थे कि तभी वहा पर रमन और सरपंच की बीवी (उर्मिला) को देख लिया हमने , वो दोनो एक साथ यार्ड में खड़ी एसी वाली बोगी में चढ़ गए फिर....(बोल के चुप हो गया राज)....
गीता देवी – फिर क्या बोल आगे भी....
राज –(झिझक ते हुए) वो...मां....वो...मां....
सत्य बाबू – ये वो मां वो मां क्या लगा रखा आगे बोल क्या हुआ वहा पर.....
राज – देख मां नाराज मत होना तू वो रमन और उर्मिला काकी दोनो एक साथ (बोल के सर झुका दिया राज ने)....
गीता देवी –(बात का मतलब समझ के राज के कान पकड़ बोली) तो तू ये सब देखने गया था क्यों बोल....
राज –आ आ आ आ मां लग रही है मां तेरी कसम खाता हू वो सब देखने नही गए थे मां (फिर पूरी बात बता के)....
सत्या बाबू –(गुस्से में) नीच सिर्फ नीच ही रहता है थू है इसके ठाकुर होंने पर इतनी गिरी हरकत ठाकुर रतन सिंह का नाम मिट्टी में मिला रहा है रमन इससे अच्छा तो मनन ठाकुर था कम से कम भला करता था गांव के लोगो का और ये......
गीता देवी – जाने दीजिए क्या कर सकते है अब इस नीच इंसान का इसकी वजह से संध्या की आज ये हालत है बेटा पास होते हुए भी दूर है वो मां सुनने तक को तरस गई है अभय के मू से सब रमन के वजह से हुआ है जाने इतनी दौलत का क्या करेगा मरने के बाद (राज को देख गुस्से से) और तू अगर फिर कभी ऐसा कुछ हुआ या सुन लिया मैने तेरी खेर नही समझा....
राज –(हल्का हस के) हा मां पक्का....
अगले दिन सुबह अभय कॉलेज गया जहा उसे राज , राजू और लल्ला मिले...
अभय – आज कुछ है क्या कॉलेज में इतना सन्नाटा क्यों है यार....
राजू – अबे आज सुबह सुबह सरपंच ने बैठक बुलाई है गांव के लोगो की सब वही गए है....
अभय –(कुछ सोच के) सरपंच तो शहर गया हुआ था ना इतनी जल्दी कैसे आ गया यार....
राज – अबे कल रात को ठकुराइन का कॉल आया था मां को बोला रही थी सभी औरतों को लेके आने को बैठक में तभी लल्ला आया नही है कॉलेज....
अभय – पायल भी नही दिख रही है यार.....
राजू – हा भाई और नीलम भी नही दिख रही है.....
अभय – ओह हो तो ये बात है मतलब तू लाइन में लगा हुआ है या पता लिया तूने नीलम को....
राजू – भाई मान गई है नीलम बस कभी अकेले में घूमने का मौका नहीं मिलता है यह पर...
राज – मिलेगा मिलेगा जरूर मिलेगा मौका भी लेकिन अभी चल चलते है पंचायत में देखे क्या होने वाला है वहा पर....
बोल के तीनों निकल गए पंचायत की तरफ वहा पर एक तरफ रमन और सरपंच इनके दूसरी तरफ संध्या और साथ में चांदनी , ललिता और मालती बैठे थे और बाकी के सभी गांव वाले मौजूद थे एक तरफ गांव के बच्चे बूढ़े आदमी थे और दूसरी तरफ औरते तब सरपंच ने बोलना शुरू किया...
सरपंच – आज की बैठक हमारे गांव की ठकुराइन ने बुलाई है वह आप सबसे कुछ बात करना चाहती है....
संध्या –(सरपंच की बात सुन खड़ी होके सभी गांव वालो के सामने) काफी वक्त से आप सभी गांव वालो को कई तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ा यहां तक कि आपकी जमीन तक गिरवी में चली गई थी मैं उन सभी गलतियों के लिए आप सब से माफी मांगती हू और ये चाहती हू की आपकी जो भी समस्याएं है खेती को लेके या अनाज को लेके आप बिना झिजक के बताए खुल के मुझे मैं मदद करूगी बदले में कुछ भी नही मागूगी...
सरपंच – (बीच में ठकुराइन से) ठकुराइन गांव वालो को उनकी जमीन मिल गई है वापस उन्हें अब क्या जरूरत किसी चीज की...
संध्या –(बात बीच में काट के) यही बात गांव वाले खुद बोले तो यकीन आए मुझे (सभी गांव वालो से) तो बताए क्या सिर्फ जमीन मिलने पर आप खुश है और कोई समस्या नही आपको....
तभी एक गांव वाला बोला..
गांव वाला – ठकुराइन मैं अपने घर में इकलौता हू कमाने वाला मेरा खेत भी दूर है यहां से पानी वक्त से मिल नही पता है जिस कारण फसल बर्बाद हो जाती है और बैंक का ब्याज तक नहीं दे पता वक्त पर जिसके चलते बैंक वालो ने मेरी खेत की जमीन में कब्जा कर लिया है....
बोल के रोने लगा इसके साथ कई लोगो ने अपनी समस्या बताई खेती और बैंक के कर्जे को लेके जिसे सुन कर संध्या सरपंच को देख के बोली..
संध्या –अब क्या बोलते है आप सरपंच क्या ये काम होता है सरपंच का गांव में क्या इसीलिए आपको गांव में सरपंच के रूप में चुना गया था लगता है अब सरपंची आपके बस की रही नही...
गांव वाला बोला – (हाथ जोड़ के) ठकुराइन कई बार कोशिश की हमने अपनी समस्या आप तक पहुंचाने की लेकिन पिछले कई साल तक हमे ना हवेली की भीतर तो दूर सख्त मना कर दिया गया गांव का कोई बंदा हवेली की तरफ जाएगा भी नही और कॉलेज की जमीन के वक्त भी सरपंच के आगे गांव के कई लोग गिड़ गिड़ाये लेकिन सिवाय मायूसी के इलावा कुछ न मिला हमे....
संध्या –(बात सुनने के बाद गांव वालो से) काफी वक्त से गांव में सरपंची का चुनाव नही हुआ है क्या आपका कोई उम्मीद वार है ऐसा जिसे आप सरपंच के पड़ के लिए समझते हो लेकिन जरूरी नहीं वो आदमी हो औरत भी हो कोई दिक्कत नही...
इस बात से सरपंच के सर पर फूटा एक बॉम्ब साथ ही रमन के कान से धुवा निकलने लगा इतने गांव वालो के सामने संध्या से उसकी कुछ भी कहने की हिम्मत नही हो रही थी...
गांव वाले –(सब गीता देवी को आगे कर) ठकुराइन गीता देवी से बेहतर कोई नहीं संभाल सकता है सरपंच....
संध्या –(मुस्कुरा के) तो ये तय रहा इस बार गांव में सरपंच का पद गीता देवी संभालेगी....
शंकर (सरपंच)–(बीच में बात काट के) ठकुराइन ये गलता है इस तरह आप ये तय नही कर सकती कॉन सरपंच बनेगा कॉन नही इसकी मंजूरी के नियम होते है और कानून भी.....
संध्या –(बात सुन मुस्कुरा के) अच्छा तो जब गांव वालो को जरूरत थी तब कहा थे आप तब याद नही आया आपको नियम कानून जब गांव वालो की जमीन छीनी जा रही थी ब्याज के नाम पर तब चुप क्यों थे आप क्यों नही आए आप हवेली और क्यों नही आवाज उठाई आपने है कोई जवाब आपके पास इसके बाद भी अगर आप शिकायत करना चाहते है तो जाए लेकिन ध्यान रखिए बात का गांव वालो ने बदले में आपकी शिकायत कर दी तब क्या होगा आपका सोच लीजिए गा....
इस बात से जहा सब गांव वाले खुश हो गए इतने साल बाद संध्या का ठकुराइन वाला रूप देख वही सरपंच का मू बंद हो गया कुछ कहने लायक ना बचा और ना ही इन सब के बीच रमन की हिम्मत हुए कुछ बोल सके जबकि अभय ये नजारा देख मुस्कुराए जा रहा था...
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जारी रहेगा![]()
बहुत ही गजब और अप्रतिम अपडेट है भाई मजा आ गयाUPDATE 29
अभय , राज , राजू और लल्ला चारो दोस्त ट्रेन की एसी बोगी में चिप के रमन और सरपंच को बीवी उर्मिला की रासलीला देखते रहे कुछ समय बिता था की तभी उर्मिला ने बोलना शुरू किया...
उर्मिला –क्या बात है ठाकुर साहब आज आप बहुत जोश में थे....
रमन –(उर्मिला की बात सुन हल्का मुस्कुरा के) तू चीज ही ऐसी है मेरी जान....
उर्मिला –(मुस्कुरा के) लगता है लल्लीता से मन भर गया है आपका....
रमन – वो साली क्या साथ देगी मेरा उसका दिमाग घुटनो में पड़ा रहता है या तो हवेली में लगी रहेगी या अपनी बेटी के साथ....
उर्मिला – (मू बना के) कितनी बार कहा आपसे मुझे हवेली में रख लो हमेशा के लिए बस आपकी बाहों में रहूंगी हमेशा लेकिन आप हो के सुनते कहा हो....
रमन – तू तो जानती है मेरी रानी मेरे हाथ में कुछ भी नही है....
उर्मिला –ये बात आप जाने कितने सालों से बोल रहे हो ऐसे तो आप कभी हवेली में नही ले जाओगे मुझे.....
रमन – क्या बताओ मेरी रानी पहले तो सब मेरे हाथ में था हवेली की बाग डोर और संध्या भी लेकिन जब से उसका उसका बेटा अभय हवेली से भागा है तब से संध्या मेरे हाथ में नही रही इसीलिए धीरे धीरे इत्मीनान से उसे काबू में करने में लगा हुआ था मैं लेकिन फिर इतने साल बाद एक लौंडे के आ जाने से वो पागल सी हो गई है संध्या जाने कहा कहा से गड़े मुर्दे उखड़ने में लगी है.....
उर्मिला – वही लड़का ना जिसने गांव में आते ही गांव वालो को जमीन आपके हाथ से निकल गई....
रमन – है वही लौंडा की वजह से हुआ है ये सब वो साली उसे अपना बेटा अभय समझ रही है....
उर्मिला – (चौक के) कही सच में वो उसका बेटा अभय तो नही....
रमन – अरे नही मेरी जान वो कोई अभय नही है वो तो डी आई जी शालिनी सिन्हा का बेटा है जो शहर से यहां कॉलेज में पढ़ने आया है....
उर्मिला – शहर से यहां गांव में पढ़ने अजीब बात है.....
रमन – कोई अजीब बात नही है मुफ्त में पढ़ने आया है यहां स्कॉलरशिप मिली है उस लौंडे को , आते ही इत्तेफाक से संध्या से मुलाकात हो गई उसकी रास्ते में जाने क्या बात हुई रास्ते में ऐसी उसे अपना बेटा समझने लगी संध्या तब से हाथ से निकल गई है मेरे.....
उर्मिला – (मुस्कुरा के) इतने साल फायदा भी तो खूब उठाया है आपने ठकुराइन का....
रमन – क्या खाक फायदा मिला मुझे साली गांव की जमीन निकल गई मेरे हाथ से बस एक बार कॉलेज की नीव पड़ जाति उस जमीन पर तो चाह के भी कोई कुछ नही कर पता उस जमीन में डिग्री कॉलेज बनने से लेकिन उस लौंडे ने आके....
उर्मिला – (हस के) तो फिर से ऐसा कुछ कर दो आप जिससे जमीन भी आपकी हो जाय और ठकुराइन भी जैसे आपने दस साल पहले किया था जंगल में मिली बच्चे की लाश को अभय के स्कूल के कपड़े पहना कर उसे अभय साबित कर दिया था....
रमन – नही अभी मैं कुछ नही कर सकता हू संध्या को शक हो गया है मेरे उपर अब उसे भी लगने लगा है इन सब में मेरा भी हाथ है बस सबूत न मिलने की वजह से बचा हुआ हू मै वर्ना अब तक बुरा फस गया होता मैं....
उर्मिला – ठाकुर साहब इस चक्कर में अपनी बेटी को मत भूल जाना आप पूनम आपकी बेटी है ना की उस सरपंच शंकर चौधरी की इतने सालो में उसे मैने शक तक होने नही दिया इस बात का....
रमन – तू चिंता मत कर ऐसा वैसा कुछ नही होने दुगा मैं जरूरत पड़ी तो रास्ते से हटा दुगा उस लौंडे को रही संध्या की बात 3 दिन बाद जन्मदिन है उसका इस बार हवेली में पार्टी जरूर होगी खुद संध्या देगी वो पार्टी उस लौंडे के दिखाने के लिए उस दिन संध्या को मना लूगा मैं और नही भी हुआ ऐसा तो भी कोई बात नही आखिर मेरा भी हक बनता है हवेली और जायदाद पर....
उर्मिला – अब सब कुछ आपके हाथ है ठाकुर साहब मुझे सिर्फ हमारी बेटी की चिंता है.....
रमन – फिक्र मत कर तू चल जल्दी से कपड़े पहन ले...
उर्मिला – (बीच में बात काटते हुए) इतनी भी जल्दी क्या है ठाकुर साहब आज मैं फुरसत से आई हू आपके पास शंकर गया हुआ है शहर काम से और बेटी गई है अपनी सहेली के घर उसके जन्म दिन के लिए आज वही रहेगी वो...
रमन – वाह मेरी जान तूने तो मेरी रात बना दी आज की आजा….
बोल के दोनो शुरू हो गए अपनी काम लीला में जिसके बाद राज , अभय , राजू और लल्ला चुप चाप दबे पांव निकल गए ट्रेन की बोगी से , बाहर आते ही चारो दोस्त जल्दी से अभय की बाइक के पास आ गए तब राज बोला...
राज –(अभय से) तूने देखा और सुना , कुछ समझ आया तुझे...अभय चुप रहा बस अपना सर उपर आसमान में करके के देखता रहा जिसे देख राज बोला...
राज – (हल्का सा हस के) चल चलते है हमलोग यहां से , घर भी जाना है मां और बाब राह देख रहे होगे मेरी...
राज की बात सुन राजू बोला...
राजू – हा यार चल अब रुक के क्या फायदा होगा साली ने अरमान जगा दिया मेरे...
लल्ला – (राजू की बात सुन के) यार ये सरपंच की बीवी साली कंचा माल है यार....
राज –(दोनो की बात सुन के) अबे पगला गए हो क्या बे तुम दोनो....
राजू – अबे ओ ज्यादा शरीफ मत बन अरमान तो तेरे भी जाग गए है नीचे देख के बात कर बे....
राज –(अपनी पैंट में बने तंबू को देख मुस्कुरा के) हा यार वो सरपंच की बीवी ने सच में अरमानों को हिला दियारे....
लल्ला – क्यों अभय बाबू क्या बोलते हो तुम अब तो वो गुस्सा नही दिख रहा है तेरे चेहरे पर लगता है सरपंच की बीवी की जवानी का जादू चल गया है तेरे ऊपर भी.....
राज – (हस्ते हुए) साले तभी मू छुपा रहा है देखो तो जरा साले को....
अभय –(हस्ते हुए) ओय संभाल के राज वर्ना दीदी को बता दुगा तू क्या कर रहा है....
राज – (हस के) हा हा जैसे मैं नही बोलूगा पायल से कुछ भी क्यों बे....बोल कर चारो दोस्त हसने लगे और निकल गए घर की तरफ रास्ते में राजू और लल्ला अपनी साइकिल से घर निकल गए जबकि अभय और राज एक साथ बाइक में हॉस्टल आ गए...
राज – (अभय से) चल भाई हॉस्टल आ गया तेरा....अभय – यार मन नही कर रहा आज अकेले रहने का.....
राज –(हसके) इरादा तो नेक है तेरे....
अभय – नही यार वो बात नही है....
राज –(बात समझ के) देख अभय जो हुआ जैसे हुआ तेरे सामने है सब कुछ कैसा भी हो लेकिन छुपता नही है कभी सामने आ जाता है एक ना एक दिन उस दिन बगीचे में तूने जो बात बोल के निकल गया था वो भी अधूर...
अभय –(राज की बात काट अपना मू बना के) यार तू कहा की बात कहा ले जा रहा है देख जो भी देखा और जो भी सुना मैने सब समझ गया बात को अब जाने दे सब बातो को तू जा घर बड़ी मां राह देख रही होगी तेरी कल मिलते है....
राज बाइक खड़ी करके जाने लगा तभी अभय बोला...
अभय – अबे पैदल जाएगा क्या बाइक से जा रात हो गई है काफी कितना सन्नाटा भी है...
राज – लेकिन कल सुबह तू कैसे आयगा....
अभय – मेरी चिंता मत कर भाई पैदल आ जाऊंगा कल कॉलेज में ले लूगा बाइक तेरे से....
राज घर की तरफ निकल गया और अभय हॉस्टल के अन्दर चला गया कमरे में आते ही दरवाजा बंद करके लेट गया अभय बेड में...
अभय – (अपने आप से बोलने लगा) एक बात तो समझ आ गई ये सारा खेल रमन ठाकुर का खेला हुआ है रमन ठाकुर तुझे लगता है इस खेल को खेल के तू पूरी तरह से कामयाब हो गया है लेकिन नही आज कसम खाता हू मै अपने बाप की गिन गिन के बदला लूगा मैं तुझसे हर उस मार का जो तूने और तेरे बेटे की वजह से मिली बिना वजह उस ठकुराइन से मुझे , वैसा ही खेल को खेलूगा मैं भी , गांव वालो का तूने खून चूसा है ना , ब्याज के साथ उसकी कीमत दिलाऊगा उन गांव वालो को तेरे से मैं , रही उस ठकुराइन की बात सबक उसे भी मिलेगा जरूर लेकिन आराम से जब तक दीदी उसके साथ है मुझे ऐसा वैसा कुछ भी करने नही देगी लेकिन मैं करूंगा तो जरूर (अपनी पॉकेट से मोबाइल निकल के किसी को कॉल कर बोला) हेलो कैसी हो अल्लित्ता....
अलित्ता – (अभय की आवाज सुन के) मस्त हू तुम कैसे हो आज इतने दिन बाद कॉल किया तुमने....
अभय – अच्छा हू मै भी , एक काम है तुमसे....
अलित्ता – हा बोलो ना क्या सेवा करूं तुम्हारी....
अभय – बस कुछ सामान की जरूरत है मुझे...
अलित्ता – क्यों अपनी दीदी से बोल देते वो मना कर देती क्या....
अभय – ऐसी बात नही है अलित्ता असल में दीदी कभी मना नही करेगी मुझे लेकिन मैं दीदी को बिना बताए काम करना चाहता हू.....
अलित्ता –(अभय की बात समझ के) क्या चाहिए तुम्हे बोलो मैं अरेंज करवाती हू जल्द ही.....
अभय – मैं मैसेज करता हू तुम्हे डिटेल्स....
अलित्ता – ठीक है मैसेज करो तुम डिटेल्स परसो तक मिल जाएगा तुम्हे सारा समान.....
अभय – ठीक है और थैंक्यू अलित्ता.....
अलित्ता – (मुस्कुरा के) कोई बात नही तुम्हे जब भी जरूरत हो कॉल कर लेना मुझे ठीक है बाए....
बोल के अभय ने कॉल कट कर मैसेज कर दिया डिटेल को जिसे पड़ के अलित्ता के बगल में बैठे KINGको डिटेल्स दिखाई जिसे देख KING
बोला...
KING– (डिटेल्स पड़ के) भेज दो ये सामान उसे , लगता है अभय अब अपने कदमों को आगे बड़ा रहा है अकेले बिना किसी की मदद के जरूर कुछ जानकारी मिली है उसे अच्छा है.....
अलित्ता – आखिर ठाकुर का खून है उबाल तो मारेगा ही ना...
KING– उम्मीद करता हू अभय जो भी काम करने जा रहा हो उससे ठाकुर साहब की आत्मा को शांति मिले....
अलित्ता – हा ऐसा ही होगा जरूर.....
इस तरफ अभय बेड में लेता हुआ था तभी संध्या का कॉल आया जिसे देख अभय ने रुक के कॉल रिसीव कर कान में लगाया...
संध्या – (कुछ सेकंड चुप रहने के बाद) कैसे हो तुम....
अभय – (धीरे से) अच्छा हू....
संध्या – (अभय की आवाज सुन) खाना खा लिया तुमने....
अभय – हा अभी आराम कर रहा हू मै....
संध्या – घर वापस आजा....
अभय – देख मैं तेरे से आराम से बात कर रहा हू इसका मतलब ये नही तेरी फरमाइश भी पूरी करूगा.....
संध्या – 3 दिन बाद एक पार्टी रखी है हवेली में....
अभय –हा जनता हू जन्मदिन जो है तेरा....
संध्या – तुझे याद है तू...तू आएगा ना देख प्लीज माना मत करना तू आगया है ना इसीलिए पहली बार मना रही हू....
अभय – (हस के) मेरा क्या काम है तेरी पार्टी में और भी तो तेरे खास लोग आएंगे उसमे भला मेरे जैसों का कोई मोल नहीं तेरी पार्टी में या कही नौकर तो काम नही पड़ गए तुझे इसीलिए बुला रही है मुझे....
संध्या – ऐसा तो मत बोल कोई नही आएगा बस घर के है लोग...
अभय – लेकिन मेरी गिनती तेरे घर के लोगो में नही आती...
संध्या –(रोते हुए) ऐसा मत बोल सबसे कोई मतलब नहीं मेरा बस तुझ से मतलब है बस तू आजा बदले में जो बोल मैं वो करूगी....
अभय – सिर्फ मेरे लिए इतना बोल रही क्योंकि आज मैं यहां हू उससे पहले कभी सोचा तूने इन गांव वालो का जिनकी जमीनों में कर्ज के नाम पर कब्जा किया जा रहा था जबरन तरीके से तब देखा तूने....
संध्या – तेरे इलावा कोई नही मेरा तूही मेरा सब कुछ है तेरी कसम खा के बोलती हू मुझे सच में कुछ नही पता था इस बारे में....
अभय –(संध्या की ये बात सुन के चुप रह कुछ सेकंड फिर बोला) तू नही जानती इस वजह से कितना कुछ झेला है गांव वालो ने कर्ज के बदले ब्याज पर ब्याज लिया गया उनसे जो रोज तपती धूप में खेती करते ताकी अपने परिवार का पेट भर सके सोच इतने सालो में उनके साथ क्या क्या नहीं हुआ होगा उनके दर्द का कोई अंदाजा नही लगा सकता (रूंधे गले से) अगर बाबा होते ऐसा कभी नहीं होने देते...
बोल के फोन कट कर दिया अभय ने इस तरफ हवेली में संध्या के संग चांदनी बैठी सारी बाते सुन रही थी...
चांदनी – (रोती हुई संध्या को गले लगा के) बस करिए मत रोइए....
संध्या –(आसू पोच के) नही चांदनी आज इतने दिनो बाद उसने मुझ से बात की आराम से बिल्कुल अपने बाबा की तरह सोचता है अपने से पहले दूसरो के बारे में....
चांदनी – आप खुश है ना....
संध्या – बहुत खुश हू आज मैं (चांदनी का हाथ पकड़ के) शुक्रिया चांदनी तुम्हारी वजह से ये हुआ है...
चांदनी – नही ठकुराइन इसमें शुक्रिया जैसी कोई बात नही है ये मेरा फर्ज है अभय भाई है मेरा उसके लिए नही करूंगी तो किसके लिए करूगी....
संध्या – ये तू मुझे ठकुराइन क्यों बोलती रहती है शालिनी जी को बहन माना है मैने तो तू मुझे मासी बोला कर अब से....
चांदनी – लेकिन सिर्फ आपको अकेले में....
संध्या – कोई जरूरत नहीं है सबसे सामने बोलेगी बेझिजक....
चांदनी –(मुस्कुरा के) ठीक है मासी अब खुश हो आप....
संध्या – (गले लगा के) हा बहुत खुश हू , चल अब सोजा कल तुझे मेरे साथ चलना है तुझे दिखाओगी गांव की मीटिंग जहा सरपंच बैठक लगाते है सभी गांव वालो की....
चांदनी – लेकिन वहा पर क्या काम मेरा...
संध्या – (मुस्कुरा के) वो तू कल खुद देख लेना चल अब सोजा सुबह जल्दी चलना है....
चांदनी –(मुस्कुरा के) जैसा आप कहे मासी.....
हस के चांदनी चली गई अपने कमरे में आराम करने चांदनी के जाने के बाद संध्या ने शंकर चौधरी (सरपंच) को कॉल किया..
संध्या –(कॉल पर) हेलो शंकर....
शंकर (सरपंच) – प्रणाम ठकुराइन इतने वक्त याद किया आपने...
संध्या – जी ये कहने के लिए कॉल किया की कल पूरे गांव वालो को बैठक बुलाइए गा और ध्यान रहे सभी गांव वाले होने चाहिए वहा पर..
शंकर (सरपंच) – कुछ जरूरी काम है ठकुराइन....
संध्या – जी कल वही पर बात होगी सबके सामने वक्त पे तयार होके आइए गा.....
बोल के कॉल कट कर दिया जबकि शंकर चौधरी (सरपंच) को शहर गया हुआ था काम से उसने कॉल लगाया रमन ठाकुर को को इस वक्त सरपंच की बीवी उर्मिला के साथ कामलीला में लगा हुआ था....
रमन –(मोबाइल में सरपंच का कॉल देख के उर्मिला से) तूने तो बोला था शंकर शहर गया हुआ है....
उर्मिला – हा क्यों क्या हुआ...
रमन –(अपना मोबाइल दिखा के जिस्म3 शंकर की कॉल आ रही थी) तो इस वक्त क्यों कॉल कर रहा है ये...
उर्मिला –(चौक के) पता नही देखिए जरा क्या बात है...
रमन –(कॉल उठा के स्पीकर में डाल के) हा सरपंच बोल क्या बात है...
शंकर (सरपंच) – हवेली में कोई बात हुई है क्या ठाकुर साहेब...
रमन – नही तो क्यों क्या हुआ...
शंकर (सरपंच) –(संध्या की कही सारी बात बता के) अब क्या करना है ठाकुर साहब...
रमन –(सरपंच की बात सुन हैरान होके) जाने अब क्या खिचड़ी पका रही है ये औरत साली चैन से सास तक लेने नही देती है एक काम कर जो कहा है वो की तू बाकी मैं भी कल रहूंगा वहा पर देखते है क्या करने वाली है ये औरत अब....
उर्मिला –(रमन का कॉल कट होते बोली) ये सब अचानक से क्यों ठाकुर साहब...
रमन –यही बात तो मुझे भी समझ नही आ रही है चल तू कपड़े पहन ले मैं तुझे घर छोड़ देता हू फिर हवेली जाके देखता हू क्या माजरा है ये...इधर हवेली में संध्या ने एक कॉल और मिलाया गीता देवी को...
संध्या – (कॉल पर गीता देवी से) दीदी कैसी हो आप...
गीता देवी – अच्छी हू तूने इतने वक्त कॉल किया सब ठीक तो है न संध्या...
संध्या – हा दीदी सब ठीक है मैने सरपंच को बोल के कल सभी गांव वालो की बैठक बुलवाई है मैं चाहती हू आप सभी गांव की औरतों को साथ लेके आए वहा पर....
गीता देवी –(हैरान होके) ऐसी क्या बात है संध्या ये अचनक से बैठक सभी गांव वालो को....
संध्या – आप ज्यादा सवाल मत पूछिए दीदी बस कल सभी को लेक आ जायेगा.....
गीता देवी –(संध्या को बात सुन के) ठीक है कल आ जाऊंगी
बोल के दोनो ने कॉल कट कर दिया उसी समय राज और सत्य बाबू पास में बैठे थे सत्य बाबू बोले...
सत्य बाबू – क्या बात है सब ठीक तो है ना हवेली में....
गीता देवी – हा सब ठीक है (फिर जो बात हो गई सब बता दिया) देखते है कल क्या होता है बैठक में.....
सत्य बाबू – कमाल की बात आज ही मुझे अभय मिला था....
गीता देवी – अभय मिला था आपको तो घर लेके क्यों नही आए उसे....
सत्य बाबू –यही बोला मैने समझाया उसे....
गीता देवी – फिर क्या बोला अभय.....
सत्य बाबू ने सारी बात बताई जिसे सुन के गीता देवी कुछ बोलने जा रही थी कि तभी राज बीच में बोल पड़ा...
राज –(बातो के बीच में) ओह तो ये बात है तभी मैं सोचूं आज अभय को हुआ क्या है....
गीता देवी और सत्य बाबू एक साथ –(चौक के) क्या हुआ था अभय को....
फिर राज ने सारी घटना बताई लेकिन रमन और उर्मिला की बात छोड़ के जिसे सुन के गीता देवी और सत्य बाबू की आखें बड़ी हो गई...
गीता देवी –(गुस्से में सत्य बाबू से) आप ना कमाल करते हो क्या जरूरत थी अभय को ये बात बताने की बच्चा है वो अभी उसे क्या पता इतने साल उसके ना होने से क्या हुआ है गांव में और आपने उसे ही जिम्मेदार ठहरा दिया भला ये कोई तरीका होता है क्या एक बच्चे से बात करने का....
सत्या बाबू –(अपने सिर पे हाथ रख के) अरे भाग्यवान अभय को बताने का ये मकसद नही था मेरा मैं भी बस यही चाहता था वो संध्या से नफरत ना करे इसीलिए उसे सच बताया था...
गीता देवी –(मू बना के) सच बताने का एक तरीका भी होता है बताना होता तो मैं नही बता सकती थी अभय को सच या राज नही बता सकता था शुक्र है भगवान का कुछ अनर्थ नही हुआ वर्ना मू ना दिखा पाती मैं संध्या को कभी (राज से) और तू भी ध्यान रखना ऐसी वैसी कोई बात नही करना अभय से समझा ना....
राज – ठीक है मां....
गीता देवी – एक बात तो बता तुझे पता था ना अभय की ऐसी हालत है तो तू उसे हॉस्टल में छोड़ के कैसे आ गया घर ले आता उसे या वही रुक जाता , एक काम कर तू अभी जा अभय के पास वही सो जाके जाने कैसा दोस्त है , तू भी इनकी तरह हरकत कर रहा है.....
राज –अरे अरे मां ऐसा कुछ भी नही है अभय ठीक है अब....
गीता देवी – लेकिन अभी तो तूने कहा.....
राज – (अपने सिर पे हाथ रख के) मां बात असल में ये है की वहा पर जब ये सब हुआ तब हम आपस में बात कर रहे थे कि तभी वहा पर रमन और सरपंच की बीवी (उर्मिला) को देख लिया हमने , वो दोनो एक साथ यार्ड में खड़ी एसी वाली बोगी में चढ़ गए फिर....(बोल के चुप हो गया राज)....
गीता देवी – फिर क्या बोल आगे भी....
राज –(झिझक ते हुए) वो...मां....वो...मां....
सत्य बाबू – ये वो मां वो मां क्या लगा रखा आगे बोल क्या हुआ वहा पर.....
राज – देख मां नाराज मत होना तू वो रमन और उर्मिला काकी दोनो एक साथ (बोल के सर झुका दिया राज ने)....
गीता देवी –(बात का मतलब समझ के राज के कान पकड़ बोली) तो तू ये सब देखने गया था क्यों बोल....
राज –आ आ आ आ मां लग रही है मां तेरी कसम खाता हू वो सब देखने नही गए थे मां (फिर पूरी बात बता के)....
सत्या बाबू –(गुस्से में) नीच सिर्फ नीच ही रहता है थू है इसके ठाकुर होंने पर इतनी गिरी हरकत ठाकुर रतन सिंह का नाम मिट्टी में मिला रहा है रमन इससे अच्छा तो मनन ठाकुर था कम से कम भला करता था गांव के लोगो का और ये......
गीता देवी – जाने दीजिए क्या कर सकते है अब इस नीच इंसान का इसकी वजह से संध्या की आज ये हालत है बेटा पास होते हुए भी दूर है वो मां सुनने तक को तरस गई है अभय के मू से सब रमन के वजह से हुआ है जाने इतनी दौलत का क्या करेगा मरने के बाद (राज को देख गुस्से से) और तू अगर फिर कभी ऐसा कुछ हुआ या सुन लिया मैने तेरी खेर नही समझा....
राज –(हल्का हस के) हा मां पक्का....
अगले दिन सुबह अभय कॉलेज गया जहा उसे राज , राजू और लल्ला मिले...
अभय – आज कुछ है क्या कॉलेज में इतना सन्नाटा क्यों है यार....
राजू – अबे आज सुबह सुबह सरपंच ने बैठक बुलाई है गांव के लोगो की सब वही गए है....
अभय –(कुछ सोच के) सरपंच तो शहर गया हुआ था ना इतनी जल्दी कैसे आ गया यार....
राज – अबे कल रात को ठकुराइन का कॉल आया था मां को बोला रही थी सभी औरतों को लेके आने को बैठक में तभी लल्ला आया नही है कॉलेज....
अभय – पायल भी नही दिख रही है यार.....
राजू – हा भाई और नीलम भी नही दिख रही है.....
अभय – ओह हो तो ये बात है मतलब तू लाइन में लगा हुआ है या पता लिया तूने नीलम को....
राजू – भाई मान गई है नीलम बस कभी अकेले में घूमने का मौका नहीं मिलता है यह पर...
राज – मिलेगा मिलेगा जरूर मिलेगा मौका भी लेकिन अभी चल चलते है पंचायत में देखे क्या होने वाला है वहा पर....
बोल के तीनों निकल गए पंचायत की तरफ वहा पर एक तरफ रमन और सरपंच इनके दूसरी तरफ संध्या और साथ में चांदनी , ललिता और मालती बैठे थे और बाकी के सभी गांव वाले मौजूद थे एक तरफ गांव के बच्चे बूढ़े आदमी थे और दूसरी तरफ औरते तब सरपंच ने बोलना शुरू किया...
सरपंच – आज की बैठक हमारे गांव की ठकुराइन ने बुलाई है वह आप सबसे कुछ बात करना चाहती है....
संध्या –(सरपंच की बात सुन खड़ी होके सभी गांव वालो के सामने) काफी वक्त से आप सभी गांव वालो को कई तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ा यहां तक कि आपकी जमीन तक गिरवी में चली गई थी मैं उन सभी गलतियों के लिए आप सब से माफी मांगती हू और ये चाहती हू की आपकी जो भी समस्याएं है खेती को लेके या अनाज को लेके आप बिना झिजक के बताए खुल के मुझे मैं मदद करूगी बदले में कुछ भी नही मागूगी...
सरपंच – (बीच में ठकुराइन से) ठकुराइन गांव वालो को उनकी जमीन मिल गई है वापस उन्हें अब क्या जरूरत किसी चीज की...
संध्या –(बात बीच में काट के) यही बात गांव वाले खुद बोले तो यकीन आए मुझे (सभी गांव वालो से) तो बताए क्या सिर्फ जमीन मिलने पर आप खुश है और कोई समस्या नही आपको....
तभी एक गांव वाला बोला..
गांव वाला – ठकुराइन मैं अपने घर में इकलौता हू कमाने वाला मेरा खेत भी दूर है यहां से पानी वक्त से मिल नही पता है जिस कारण फसल बर्बाद हो जाती है और बैंक का ब्याज तक नहीं दे पता वक्त पर जिसके चलते बैंक वालो ने मेरी खेत की जमीन में कब्जा कर लिया है....
बोल के रोने लगा इसके साथ कई लोगो ने अपनी समस्या बताई खेती और बैंक के कर्जे को लेके जिसे सुन कर संध्या सरपंच को देख के बोली..
संध्या –अब क्या बोलते है आप सरपंच क्या ये काम होता है सरपंच का गांव में क्या इसीलिए आपको गांव में सरपंच के रूप में चुना गया था लगता है अब सरपंची आपके बस की रही नही...
गांव वाला बोला – (हाथ जोड़ के) ठकुराइन कई बार कोशिश की हमने अपनी समस्या आप तक पहुंचाने की लेकिन पिछले कई साल तक हमे ना हवेली की भीतर तो दूर सख्त मना कर दिया गया गांव का कोई बंदा हवेली की तरफ जाएगा भी नही और कॉलेज की जमीन के वक्त भी सरपंच के आगे गांव के कई लोग गिड़ गिड़ाये लेकिन सिवाय मायूसी के इलावा कुछ न मिला हमे....
संध्या –(बात सुनने के बाद गांव वालो से) काफी वक्त से गांव में सरपंची का चुनाव नही हुआ है क्या आपका कोई उम्मीद वार है ऐसा जिसे आप सरपंच के पड़ के लिए समझते हो लेकिन जरूरी नहीं वो आदमी हो औरत भी हो कोई दिक्कत नही...
इस बात से सरपंच के सर पर फूटा एक बॉम्ब साथ ही रमन के कान से धुवा निकलने लगा इतने गांव वालो के सामने संध्या से उसकी कुछ भी कहने की हिम्मत नही हो रही थी...
गांव वाले –(सब गीता देवी को आगे कर) ठकुराइन गीता देवी से बेहतर कोई नहीं संभाल सकता है सरपंच....
संध्या –(मुस्कुरा के) तो ये तय रहा इस बार गांव में सरपंच का पद गीता देवी संभालेगी....
शंकर (सरपंच)–(बीच में बात काट के) ठकुराइन ये गलता है इस तरह आप ये तय नही कर सकती कॉन सरपंच बनेगा कॉन नही इसकी मंजूरी के नियम होते है और कानून भी.....
संध्या –(बात सुन मुस्कुरा के) अच्छा तो जब गांव वालो को जरूरत थी तब कहा थे आप तब याद नही आया आपको नियम कानून जब गांव वालो की जमीन छीनी जा रही थी ब्याज के नाम पर तब चुप क्यों थे आप क्यों नही आए आप हवेली और क्यों नही आवाज उठाई आपने है कोई जवाब आपके पास इसके बाद भी अगर आप शिकायत करना चाहते है तो जाए लेकिन ध्यान रखिए बात का गांव वालो ने बदले में आपकी शिकायत कर दी तब क्या होगा आपका सोच लीजिए गा....
इस बात से जहा सब गांव वाले खुश हो गए इतने साल बाद संध्या का ठकुराइन वाला रूप देख वही सरपंच का मू बंद हो गया कुछ कहने लायक ना बचा और ना ही इन सब के बीच रमन की हिम्मत हुए कुछ बोल सके जबकि अभय ये नजारा देख मुस्कुराए जा रहा था...
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Shandar kuchh kuchh bharpai kar rahi hai Shandhya Kamraan ki beti ko gaud lena achha decision hai. Aur paheli ka raaz sach me Abhay ke liye bahut easy raha mujhe to answer pahle nahi pata chali thi.UPDATE 27
चांदनी और संध्या जैसे ही कामरान के घर के अन्दर आए अपने सामने कामरान की लाश को पंखे पे लटकते हुए पाया जिसे देख दोनो की आखें बड़ी हो गईं तभी एक छोटी बच्ची पे नजर गई दोनो की जो जमीन में बैठी पंखे पे लटक रहे कामरान को देख पापा पापा कर रही थी जिसे देख संध्या उसके पास तुरंत गई और बच्ची को अपनी गोद में उठा लिया इस पहले दोनो में कोई कुछ बोलता या करता के तभी बगल के कमरे से दो आदमी निकल के संध्या और चांदनी को धक्का देके तुरंत भागे घर के बाहर....
काफी जोर से धक्का देने की वजह से संध्या के साथ चांदनी अपना बैलेंस संभाल ना पाई दोनो गिर पड़े जमीन पर लेकिन किस्मत से दोनो में से किसी को कुछ नही हुआ तभी घर के बाहर से किसी की आवाज आई जिसे सुन चांदनी ने बाहर जाके देखा उसकी टीम के 3 लोगो ने उन दोनो लोगो को पकड़ के मार रहे थे जिसे देख चांदनी बोली...
चांदनी – (अपने साथियों को देख) तुम तीनो यहां पर कैसे
आरव – चीफ ने नजर बनाए रखने को कहा था ठकुराइन पर , हमने xx गांव की पुलिस को कॉल कर दिया है वो आती होगी
चांदनी – ठीक है इन्हे ले जाओ अच्छे से खातिर दारी करके जानकारी निकालो इनसे
आरव – ठीक है मैडम
बोल के आरव अपने दोनो साथी के साथ उन दोनो आदमी को लेके निकल गया उनके जाते ही चांदनी वापस घर में गई जहा संध्या बच्चे को गोद लिए हुई थी...
चांदनी – हमे चलना चाहिए यहां से xx गांव की पुलिस यहां आ रही है
संध्या – ठीक है चलो (बोल के बच्चे को साथ ले जाने लगी तभी)
चांदनी – ठकुराइन बच्चे को यही छोड़ना होगा बच्चे को नही ले जा सकते है
संध्या – लेकिन चांदनी बच्चे को यहां कैसे छोड़ सकते है वो भी अकेले यहां कोई और दिख भी नही रहा है
चांदनी – पर पुलिस को क्या कहेंगे हम आप जानते हो मैं अपनी जानकारी नहीं दे सकती
संध्या – मैं बात कर लूंगी तुम परेशान मत हो
संध्या की बात पर चांदनी ने अपना सर हा बोल के घर में इधर उधर देखने लगी तभी चांदनी को कुछ दिखा लाश (कामरान) की जेब में उसे धीरे से निकाल के पढ़ने लगी जिसमे एक पहेली लिखी थी..
#(अगर तुम इंसाफ हो तो सच सच बताना आखों पे पट्टी बांधने का क्या लोगे हर्जाना)#
चांदनी – (पहेली को पड़ के) क्या मतलब हुआ इसका
इससे पहले चांदनी कुछ बोलती तभी पुलिस सायरन की आवाज आई कुछ सेकंड में पुलिस कामरान के घर में दाखिल हुई अपने सामने ठकुराइन को देख...
पुलिस – नमस्ते ठकुराइन आप यहां पर
संध्या – जी हम यहां अपने जरूरी काम से मिलने आए थे थानेदार से लेकिन यहां आते ही ये देखने को मिला
पुलिस – तो वो कॉल आपकी तरफ से आया था हमे
चांदनी –(बीच में) जी हा इंस्पेक्टर साहेब मैने किया था
इसके बाद पुलिस अपना काम करने लगी धीरे से कामरान की लाश को नीचे उतारा गया जिसे देख कामरान की बेटी संध्या की गोद में बैठे बैठे पापा पापा करने लगी उसकी आवाज सुन एक पल के लिए चांदनी और संध्या के आसू निकल आए...
घर की छान बीन करने से बेहोशी की हालत में मेड मिली जो बच्चे की देख भाल करती थी उसे होश में लाके जानकारी ली गई जिससे पता चला कामरान की बीवी साल भर पहले मर गई थी जिस वजह से कामरान के बच्चे की देख रेख मेड करती थी जानकारी मिलने के बाद संध्या बोली पुलिस से...
संध्या – (पुलिस से) आपको जो भी कागजी करवाही करनी हो करे आज से ये बच्ची की जिम्मेदारी मेरी है अब से ये हमारे साथ रहेगी
पुलिस – ठकुराइन हमे कोई दिक्कत नही है अगर कोई इसका रिश्तेदार आ गया तो...
संध्या – अगर ऐसा हुआ तो हम बात कर लगे उससे
इसके बाद पुलिस वहा से चली गई उनके जाते ही संध्या और चांदनी बच्चे को लेके निकल गई रास्ते में चांदनी बोली..
चांदनी – आप बच्चे को साथ क्यों ले आए अपने
संध्या – चांदनी एक बार अनजाने में मैने जो किया उसकी सजा मैं आज तक भुगत रही हू भले इसके पिता ने गलत किया हो लेकिन उसकी सजा इस मासूम बच्ची को क्यों मिले इसीलिए ले आई अपने साथ...
चांदनी –(मुस्कुरा के) आपने बिलकुल सही फैसला लिया ठकुराइन जी
संध्या – लेकिन एक बात समझ में नहीं आ रही है मुझे किसने मारा होगा कामरान को घर में मेड को बेहोश कर दिया
चांदनी – जिसने भी ये किया है वो कामरान को सिर्फ मारने आया था उसने बच्चे को कुछ नही किया बस मेड को बेहोश कर दिया और कामरान को मारने के बाद उसे पंखे में लटका दिया ताकि आत्महत्या लगे लेकिन किस्मत से हम थोड़ा जल्दी आ गए कातिल को सब कुछ सेट करने का मौका नहीं मिला
संध्या – हम कामरान से मिलने जा रहे है ये बात पुलिस स्टेशन में हवलदारों को पता थी
चांदनी – और रमन ठाकुर को
संध्या – (हैरान होके) कही रमन ने नही मार दिया कामरान को
चांदनी – कुछ कह नही सकती मै इस बारे में , अब तो रमन से बात करके है पता चलेगा
थोड़ी देर में हवेली में आ गए संध्या और चांदनी बच्चे के साथ जिसे देख मालती और ललिता बोली..
ललिता – अरे दीदी बच्चे को कहा से लाए आप
संध्या –(कामरान के घर जो हुआ उसे बता के) उससे मिलने गई थी तभी ये सब हुआ
ललिता – (चौक के) उसे कोई क्यों मरेगा दीदी
संध्या – पता नही ललिता मुझे भी समझ नही आई बात
मालती –(बच्चे को गोद में लेके) बहुत अच्छा किया आपने दीदी जो बच्चे को ले आए यहां पर...
बोल के बच्चे के साथ खेलने लगी मालती जिसे देख संध्या और ललिता बाकी की बात भूल कर मुस्कुरा उठे अपने कमरे में चले गए...
खेर ये तो इनके साथ हुआ आपने देखा अब जरा थोड़ा पीछे चलते है जब रमन हवेली से निकला था कामरान के घर उससे मिलने के लिए लेकिन रास्ते में रमन की मुलाकात हो गई अभय से क्योंकि अभय निकला था अपने दोस्तो से मिलने के लिए बाइक लेके उसी वक्त रमन तेजी से निकल रहा था अपनी कार से तभी रास्ते में रमन की कार अचानक से अभय की बाइक के सामने आ गई एक्सीडेंट होते बचा जिसके बाद..
रमन –(अपनी कार से निकलते ही) अंधा है क्या देख के नही चल सकता है
अभय –(गुस्से में) अंधा तो तू है जिसे सामने से आती हुई गाड़ी नही दिख रही थी
रमन –(गुस्से में) सुन बे लौंडे तेरी ये हरकतों से तू उस संध्या को बेवकूफ बना सकता है मुझे नहीं अच्छे से समझता हू तुम्हारे जैसे लोगो को चंद पैसे के लिए कैसे किसी के जज्बातों के साथ खेलते है
अभय –(हस्ते हुए) क्या कहा तूने जज्बातों के साथ मैं खेल रहा हू अगर ऐसा है तो तू क्या कर रहा है जिसे सब गांव वालो के सामने भाभी बोलता था आज उसी का नाम लेके बोल रहा है मुझे समझ में नहीं आई ये बात बेवकूफ कॉन है तू या वो ठकुराइन अगर मेरी पूछो तो तुम दोनो ही बेवकूफ हो अवल दर्जे के
रमन – (गुस्से में अभय का कॉलर पकड़ के) बहुत बोल लिया तूने लौंडे
इससे पहले की रमन आगे कुछ बोलता तभी अभय ने लगातार दो घुसे मारे नाक पर उसके बाद रमन का कॉलर पकड़ के बोला...
अभय – अपने ये ठाकुरों वाला रोब गांव के कमजोर और मजबूर लोगो को दिखा अगर दोबारा मेरे गिरेबान में हाथ डाला तेरा वो हाथ तोड़ के तेरे पिछवाड़े में घुसेड़ दुगा समझा , अब अपनी नाक को संभाल और जा डॉक्टर को दिखा दे कही तेरी नाक ना काट जाय...
बोल के अभय बाइक लेके चला गया पीछे रमन अपनी नाक पकड़े डॉक्टर के पास चला गया काफी देर अस्पताल में लगने की वजह से रमन जा नही पाया कामरान के घर और थक हार कर रमन हवेली वापसी निकल गया जहा संध्या और चांदनी पहले आ चुके थे रमन हवेली में आते ही...
ललिता – (अपने पति को नाक पर बैंडेज देख) ये क्या आपकी नाक पर पट्टी क्या हो गया
रमन – रास्ते में वो लौंडा मिला एक नंबर का बत्तमीज निकला कार चलाते वक्त अचानक से सामने आ गया जब बोला मैने तो हाथ उठा लिया मुझपर...
हाल में बैठे अमन , मालती , संध्या , चांदनी , निधि और शनाया बाते सुन रहे थे तभी अमन बोला...
अमन – (संध्या से) देखा आपने अब वो लौंडा इस हद तक बत्तमीजी पे उतर आया है बड़ो तक का लिहाज नही करता
संध्या – वैसे ही जैसे तुम कॉलेज में अपने टीचर्स का लिहाज नही करते...
संध्या की बात सुन अमन का मू बंद हो गया लेकिन रमन ने बोलना शुरू किया...
रमन – भाभी बात किसके बारे में हो रही है और आप किसको बोल रही हो
संध्या –(रमन की बात सुन के) रमन सामने वाले पर उंगली उठाने से पहले देख लेना चाहिए खुद के हाथ की तीन उंगली तुम्हारे तरफ इशारा कर रही है
रमन – (चौक के) क्या मतलब है आपका
संध्या – यही की पुलिस में एफ आई आर कभी हुई ही नहीं थी और ना ही उस लाश का पोस्ट मॉर्टम हुआ था किस बात की जल्दी थी तुम्हे जानना तक जरूरी नहीं समझा वो लाश किसकी है आखिर
रमन – (हड़बड़ा के) भाभी उस वक्त हालत ही ऐसे थे हवेली के हर कोई अभय के जाने के गम में था
संध्या – अच्छा इसीलिए तुमने मुनीम से कहल वाया पुलिस को की ठकुराइन एफ आई आर नही करना चाहती क्यों यही बात है ना
रमन – (घबरा के) भाभी ऐसी कोई बात नही है मैं तो...
संध्या –(बात काटते हुए) तो क्या बात है कही मुनीम को सपना तो नहीं आया जो चला गया पुलिस स्टेशन मना करने एफ आई आर के लिए बोलो यही बात है क्या
रमन –(जान छुड़ाने के चक्कर में) मैं कल ही पता करवाता हू भाभी
संध्या –कोई जरूरत नहीं है कुछ भी करने की अब जो करना होगा वो मैं खुद करूगी , भरोसे की कीमत मैं पहले चुका चुकी हू अब और नहीं (नौकर से) जल्दी से खाना लगाओ..
खाना खा के सब अपने कमरों में जाने लगे तभी संध्या ने चांदनी को इशारे से अपने कमरे में आने के लिए कहा...
चांदनी – (संध्या के कमरे में आके) आपने बुलाया
संध्या – चांदनी मुझे शालिनी जी से बात करनी है बात करा
चांदनी –(मुस्कुरा के अपनी मां शालिनी को कॉल करती है) हेलो मां कैसी हो आप
शालिनी – मैं अच्छी हू तू बता कैसी है
चांदनी – मैं भी अच्छी हू मां
ठकुराइन जी आपसे बात करना चाहती है
संध्या –(चांदनी से फोन लेते हुए) नमस्ते शालिनी जी
शालिनी – नमस्ते ठकुराइन जी कैसी है आप
संध्या – बस ठीक हू शालिनी जी बाकी आप जानती है
शालिनी – जी आप बिलकुल बेफिक्र रहिए ठकुराइन जी सब ठीक हो जाएगा जल्दी ही
संध्या –बस इसी उम्मीद में जी रही हू और प्लीज आप मुझे नाम से बुलाए
शालिनी – (मुस्कुरा के) एक शर्त पर आप भी मुझे नाम लेके बात करेगी तभी
संध्या – (मुस्कुरा के) जी ठीक है
शालिनी – अब बताए आप कुछ बात करना चाहती है
संध्या – मुझे आपकी मदद की जरूरत है (जो कुछ हुआ वो सब बता कर) मैं चाहती हू आप किसी को थाने का इंचार्ज बना के भेजे जो ईमानदार हो मुझे पता करवाना है दस साल पहले जो हुआ उसके बारे में
शालिनी – फिक्र मत करो संध्या एक दिन का वक्त दो मैं कुछ करती हू जल्द ही
संध्या – शुक्रिया शालिनी
शालिनी – इसमें शुक्रिया की जरूरत नहीं है संध्या अभय आपका बेटा है वैसे मेरा भी बेटा है वो उसके लिए ये कुछ भी नही है , खेर चांदनी से बात कराए मेरी
चांदनी –(संध्या से फोन लेके) हा मां
शालिनी – जे भी हुआ उससे क्या लगता है तुम्हे
चांदनी – पता नही मां लेकिन मुझे एक नोट मिला है लाश की जेब से उसमे पहेली लिखी है
#(अगर तुम इंसाफ हो तो सच सच बताना आखों पे पट्टी बांधने का क्या लोगे हर्जाना)#
शालिनी – कामरान को मार कर ये पहेली छोड़ गया कोई
चांदनी – दो लोग मिले है भाग रहे थे उन्हें पकड़ लिया गया है मेरे लोग पूछ ताछ कर रहे है पता चलते ही बताऊगी आपको
शालिनी – ठीक है ख्याल रखना और नजर बनाए रखना खास कर अभय पर वो अकेला जरूर है हॉस्टल में और आजाद भी
चांदनी – बस इस बात की फिक्र है मां
शालिनी – फिक्र मत कर अगर ऐसी कोई भी बात होगी वो तुझे जरूर बताएगा
चांदनी – हा मां अच्छा बाद में बात करती हू
बोल के कॉल कट कर दिया तब संध्या बोली...
संध्या – क्या बात है चांदनी तुम कुछ परेशान सी लग रही हो
चांदनी – जी ठकुराइन कामरान की बॉडी से मुझे ये नोट मिला है पहेली लिखी है इसमें समझ में नहीं आ रहा है क्या मतलब है इसका और कातिल ने उसे मार कर ये पहेली क्यों छोड़ दी
संध्या – कही कातिल पहेली के जरिए कुछ कहना तो नही चाहता
चांदनी – (पहेली पड़ के) कुछ समझ में नहीं आ रहा है क्या मतलब हो सकता है इस पहेली का
संध्या – (चांदनी की बात सुन के) रात काफी हो रही है तुम आराम करो चांदनी कल कॉलेज भी जाना है इस बारे में बाद में सोचना
हा बोल के चांदनी चली गई कमरे में सोने जबकि अपने अभय बाबू शाम को घूमने निकले थे लेकिन रमन से मुलाकात के बाद वापस हॉस्टल में लौट आए जहा सायरा ने उन्हें खाना दिया और आज की हुई घटना बताई जिसके बाद अभय सो गया अगले दिन सुबह सायरा के जागने से उठा और निकल गया मॉर्निंग वॉक पर कुछ ही देर में तयार होके कॉलेज में आ गए सभी...
अभय की नई बाइक देख के तीनों दोस्त ने घेर लिया अभय को...
राज – (बाइक देख के) क्या बात है लौंडे नई बाइक कब ली बे
अभय – कल मिली है भाई दीदी ने दी है
राज – ओह हो तेरे ब्रदर की होने वाली दुल्हन ने वाह मानना पड़ेगा मेरी दुल्हन की चॉइस को
अभय – (चौक के) अबे अभी तक तेरे सिर से भूत नही उतरा क्या
राजू – (अभय से) अभय शराबी कभी शराब पीना छोड़ता है क्या
राज – (शायरी) क्या चाहूँ रब से उसे पाने के बाद , किसका करूँ इंतज़ार उसके आने के बाद, क्यों मोहब्बत में जान लुटा देते हैं लोग,मैंने भी यह जाना इश्क़ करने के बाद
लल्ला –(राज की शायरी सुन के) देख ले अभी तक नशा बरकरार है इनका
अभय – यार इसके चक्कर में कही क्लास के भी ना रहे हम लोग
तभी पीछे से पायल ने आके बोला...
पायल – कभी खुद ने ऐसा कुछ किया नही जब दोस्त को प्यार हुआ तो पीछा छुड़ाने में लगे हो तुम तीनों
अभय – अरे मैने एसा कब कहा यार मैं तो बस...
पायल –(बीच में टोकते हुए) कहोगे भी कैसे कुछ होगा तब कहोगे ना
अभय – पायल बात को समझ वो टीचर है और ये स्टूडेंट मेल होना नामुमकिन है यार
पायल – अच्छा किसने कहा नामुमकिन है एसा वो टीचर है तो क्या वो लड़की नही है दिल नही है उनका क्या प्यार नही हो सकता है उनको और क्या पता राज पसंद आ गया हो उनको
अभय –(पायल की बात सुन मन में – अब कैसे बताऊं तुझे वो मेरी बहन है , अच्छा होगा पतली गली पकड़ के निकल ले अभय) ठीक है करे अपने प्यार का इजहार उनसे
पायल – करेगा जरूर करेगा सबके सामने करेगा क्यों राज
तभी राज ने देखा कॉलेज गेट से चांदनी आ रही थी धीरे धीरे चलते चलते राज के बगल से गुजर ने लगी तभी राज बोला...
राज – (चांदनी को अपने बगल से जाता देख)
मुसाफिर इश्क़ का हूं मैं
मेरी मंज़िल मुहब्बत है,
तेरे दिल में ठहर जाऊं
अगर तेरी इजाज़त है।
शायरी सुन चांदनी ने जैसे पलट के देखा राज अकेला खड़ा था चेहरे पर मुस्कान लिए..
चांदनी – तुम पढ़ने आते हो कॉलेज में या शायरी करने
राज – आप जो बना दे मैं हस्ते हस्ते बन जाने को तयार हू
चांदनी –(चौक के) क्या
राज – आपको देख के दिल झूमने लगता है मेरा साथ ही दिल गाने लगता है
चांदनी – (हस्ते हुए) अपने सीर से प्यार का भूत उतार दो अच्छा रहेगा तुम्हारे लिए
राज –(मुस्कुरा के)
प्यार जो हकीकत में प्यार होता है,
जिन्दगी में सिर्फ एक बार होता है,
निगाहों के मिलते मिलते दिल मिल जाये,
ऐसा इतेफाक सिर्फ एक बार होता है।।
शायरी सुन के चांदनी हल्का मुस्कुरा के चली गाई कॉलेज में उसके जाते ही राज ने पलट के देखा खुद को वो अकेला खड़ा पाया बाकी सब गायब थे राज ने चारो तरफ देखा एक कोने में अभय , राजू , लल्ला , पायल , और नीलम छुप के देख रहे थे राज को...
राज –(सभी को देख के) अबे तुम सब वहा क्या कर रहे हो बे
पायल – तेरी जरा तारीफ क्या कर दी तू सच में शुरू हो गया देख तो लेता कॉलेज है तेरे चक्कर में हम नप जाते अभी
राज – अच्छा थोड़ी देर पहले तू ही बोल रही थी खुले आम सबके सामने इजहार करूंगा प्यार का उसका क्या
पायल – इसका मतलब ये थोड़ी ना की हम साथ हो तेरे उस वक्त (नीलम से) चल क्लास में चलते है वर्ना इसके चक्कर में हमे कॉलेज से निकल ना दिया जाय...
जब ये सब बाते हो रही थी तब राजू , अभय और लल्ला अपने मू पे हाथ रख के हंसे जा रहे थे पायल के जाते ही तीनों जोर से हसने लगे...
राजू – इसे बोलते है दोस्ती का इम्तेहानसमझे जब कॉलेज में टीचर से मार खाने की बात हो अच्छे से अच्छे दोस्त भी किनारे हो जाते है भाई
लल्ला –(हस्ते हुए) और तूने तो टीचर से प्यार कर लिया
अभय – देख मेरे भाई हर मामले में हम तेरे साथ रहेंगे लेकिन इस मामले में तू अकेला पाएगा खुद को हम दूर दूर तक नजर नहीं आएंगे तुझे इसमें
राज – (राजू और लल्ला को देख के) यार गद्दार , (अभय को देख के) साले शर्म नही आती तुझे अपने जीजा पे हस्ते हुए साले , बोला था ना आदत डाल ले
बोल के निकल गया राज पीछे से राजू और लल्ला हस रहे थे अभय और राज पे...
अभय – (हस्ते हुए) देखो तो जरा कैसे बच्चे की तरह मू फुल्लाए जा रहा है
राजू और लल्ला –(अभय से) भाई ये जीजा वाली तरकी हो गईं तेरी कमाल है भाईचलो चलते है क्लास में
इसी तरह हसी मजाक में कॉलेज का दिन काट गया छुट्टी होते ही सब वापस जाने लगे घर तभी चांदनी ने अभय को रोका हुआ था इशारा कर के सबके जाते ही आखरी में अभय अपनी बाइक से निकला तभी पीछे से चांदनी आके बैठ गई अभय के साथ...
अभय – (दीदी से) हा दीदी कहा ले चलूं आपको
चांदनी – हवेली छोड़ दे मुझे
अभय –(हवेली का नाम सुनते ही) हवेली में
चांदनी –(मुस्कुरा के) तेरे से बात करनी है मुझे हवेली चल रास्ते में बात करते हुए चलते है मुझे छोड़ के वापस आ जाना ठीक है...
दीदी की बात सुन अभय ने बाइक शुरू की निकल गए हवेली की तरफ रास्ते में चांदनी बोली...
चांदनी – तो तू खंडर में गया था मुझे बताए बगैर
अभय –(बाइक में ब्रेक लगा के) आपको कैसे पता दीदी
चांदनी –पहले बाइक चला तू सब बताती हू तुझे
बाइक शुरू करके चलाने लगा अभय तब चांदनी बोली..
चांदनी – तो अब बता खंडर क्यों गया था तू
फिर अभय ने अपने बचपन की बात बताई जब घर से भगा था रास्ते में क्या हुआ था जिसे सुन चांदनी बोली...
चांदनी – तो जब तू खंडर में गया वहा पर क्या देखा तूने
अभय –(खंडर में जो हुआ सब बता साथ ही हॉस्टल में वापस आने के बाद वीडियो में देखा वो बताए) इसीलिए मैंने हाल फिलहाल खंडर में दोबारा जाने का फैसला बदल लिया है
चांदनी – (अभय की सारी बात सुन के) तुझे पक्का यकीन है खंडर के अन्दर बिल्कुल हवेली जैसा सब बना हुआ है
अभय – हा दीदी मेरा आधा बचपन बीता है उस हवेली में कैसे भूल सकता हू मै उसे
चांदनी – और कुछ नजर आया तुझे खंडर में कुछ अजीब सा लगा हो ऐसा कुछ
अभय – दीदी वो भूत के सामने आने से पहले किसी के बात करने की आवाज सुनी थी लेकिन सही से कुछ समझ नही आया मुझे क्या बात कर रहे थे लेकिन दीदी आपको कैसे पता मैं वहा गया था
चांदनी –जैसे भी पता चला हो ये भी पता चला तू अकेला नही था तेरा साथ राज भी था वहा पर
अभय – मतलब आपको सब पता है पहले से
चांदनी –देख अभय तू इन सब बातो को मजाक में मत ले समझा तुझे पता भी है उस खंडर में मेरे चीफ के 4 बेस्ट ऑफिसर गए थे जिनका आज तक पता भी नही चला है वो जिंदा भी है या मर गए है और तू उस जग चला गया वो भी रात के अंधेरे में
अभय – दीदी आपकी कसम मुझे नही पता था इस बारे में बचपन में जो देखा था उस बारे में पता करने गया था मैं बस
चांदनी – चल ठीक है देख अभय जो भी करना हो कर लेकिन एक बात सोच लेना तेरी बहुत चिंता रहती है मां और मुझे एक तो तू अकेला रहता है हॉस्टल में इसीलिए
अभय – दीदी फिकर मत करो आप मैं ठीक हू संभल के रहता हू और रही खंडर की बात अभी के लिए मैं उस तरफ देख भी नही रहा जाना दूर की बात है
चांदनी – और ये कब तक के लिए है
अभय –(मुस्कुरा के) जब तक मुझे तस्सली ना हो जाय वहा जो कोई भी है उसे हमारे आने और जाने का पता ना चला हो तब तक
चांदनी – (मुस्कुरा के) मुझे लगा ही था
अभय – जाने दीजिए कल शाम को क्या हुआ था दीदी मैने सुना कामरान को किसी ने मार दिया
चांदनी – हा उसे मार कर किसी ने उसकी जेब में एक पहेली छोड़ दी थी
अभय – पहेली कॉन सी पहेली है दीदी बताओ
चांदनी – #(अगर तुम इंसाफ हो तो सच सच बताना आखों पे पट्टी बांधने का क्या लोगे हर्जाना)#
जाने क्या बताना चाहता है कातिल इस पहेली के जरिए
अभय – रिश्वत
चांदनी – क्या
अभय – अरे दीदी आपकी पहेली का जवाब है ये (रिश्वत)
चांदनी – तुझे कैसे पता
अभय –(मुस्कुरा के) दीदी आप अभी तक नही समझी बात को क्यों की आप पुलिस में हो ना इसीलिए तो , देखो दीदी आज के युग में कोई पुलिस के पचड़े में पड़ना नही चाहता है इसलिए जान छुड़ाने के लिए रिश्वत देते है लोग अब समझे आप आखों में पट्टी बांधने का हर्जाना का मतलब....
पहेली का जवाब सुन चांदनी चुप हो गईं सोचने लगी कुछ तभी अभय ने बाइक रोक बोला...
अभय –(कंधा हिलाते हुए) क्या हुआ दीदी किस सोच में डूब गए आप
चांदनी –(अभय द्वारा कंधा हिलाने से होश में आते हुए) कुछ नही सोच रही थी की...
अभय – (बीच में बात काटते हुए) दीदी इतना भी मत सोचो जो हुआ उसे बदल तो नही सकते हम वैसे भी कामरान कॉन सा दूध का धुला था आखिर था तो रिश्वत खोर ही ना
चांदनी – उसकी एक छोटी से बेटी के इलावा कोई नही था उसका दुनिया में
अभय – बहुत बुरा हुआ खुद तो चला गया अब उसकी बेटी का क्या होगा दीदी
चांदनी –(हल्का हस के) ठकुराइन उसे ले आई अपने साथ हवेली में कल ही
अभय – (हस के) जो औरत अपने बेटे तक को संभाल ना पाई वो दूसरों के बच्चो को संभालेगी आपको लगता है एसा दीदी
चांदनी –जरूरी नहीं जो दिखता हो वही सच हो सच्चाई उसके उल्टी भी होती है कभी कभी
अभय – मुझे क्या वो जाने उसके काम जाने वैसे हवेली आ गई
चांदनी – तेरी बातो में मैने ध्यान ही नही दिया चल तू भी जाके आराम कर और ध्यान रखना मेरी बात का...
बोल के चांदनी हवेली के मेन गेट से होते हुए अन्दर चली गई जबकि अभय हवेली के मेन गेट के बाहर खड़ा सिर्फ हवेली को देखता रहा जैसे कुछ याद कर रहा हो जिस वजह से आंख में हल्का आसू आ गए जिसे साफ कर अभय निकल गया हॉस्टल की तरफ जबकि हवेली में चांदनी के आते ही...
रमन –(चांदनी से) काफी लेट हो गए आने में आप किसके साथ आए आप कॉन था वो
चांदनी – कॉलेज का स्टूडेंट था मैने उससे कहा था छोड़ दे मुझे हवेली तक
रमन – अरे आप मुझे बता देते मैं भेज देता कार अपनी लेने के लिए आपको
चांदनी – शुक्रिया ठाकुर साहब कभी जरूरत पड़ी तो जरूर बताऊगी आपको...
बोल के चांदनी चली गई अपने कमरे की तरफ पीछे रमन जाति हुई चांदनी को देखता रहा और तभी रमन को किसी ने आवाज दी जिसे सके रमन बोला..
संध्या – रमन
रमन –अरे भाभी बताए क्या बात है
संध्या – (घूर के देखते हुए) अच्छा होगा तेरे लिए अपने काम से मतलब रख तू दोबारा चांदनी की तरफ अपनी गंदी नजर डाली तो समझ लेना और ये बात मैं दोबारा नही बोलूगी
रमन – भाभी ये कॉलेज की टीचर है ना की आपकी कोई रिश्तेदार जिसके वजह से आप मुझे सुना रही हो बाते
संध्या – मतलब तुझे समझ नही आई बात मेरी
रमन – देखो भाभी अब बहुत हो गया कभी उस लौंडे ले लिए आप मुझे सुनाते हो बाते तो कभी अमन को तना देते हो चलो एक बार मान भी लू उसे अपना बेटा मानते हो आप लेकिन इसके लिए क्या बोलोगे आप
संध्या – बेटी नही तो क्या हुआ बेटी से काम भी नही है मेरे लिए समझ आ गई बात तुझे और दोबारा मुझे समझाना ना पड़े तो अच्छा होगा तेरे लिए (बोल के जाने लगी तभी रुक के पलट के रमन को बोली) मैने बात कर ली है डी आई जी से कल तक गांव में नया दरोगा आ जाएगा साथ ही मेरे केस की छान बीन भी शुरू कर देगा और तब तक के लिए तुम गांव से बाहर कही नही जाओगे समझे...
बोल के संध्या कमरे में चली गई पीछे रमन की बोलती बंद हो गई संध्या की बात से जबकि रसोई में खड़ी ललिता ये नजारा देख मुस्कुरा रही थी....
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