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अभय , राज , राजू और लल्ला चारो दोस्त ट्रेन की एसी बोगी में चिप के रमन और सरपंच को बीवी उर्मिला की रासलीला देखते रहे कुछ समय बिता था की तभी उर्मिला ने बोलना शुरू किया...
उर्मिला –क्या बात है ठाकुर साहब आज आप बहुत जोश में थे....
रमन –(उर्मिला की बात सुन हल्का मुस्कुरा के) तू चीज ही ऐसी है मेरी जान....
उर्मिला –(मुस्कुरा के) लगता है लल्लीता से मन भर गया है आपका....
रमन – वो साली क्या साथ देगी मेरा उसका दिमाग घुटनो में पड़ा रहता है या तो हवेली में लगी रहेगी या अपनी बेटी के साथ....
उर्मिला – (मू बना के) कितनी बार कहा आपसे मुझे हवेली में रख लो हमेशा के लिए बस आपकी बाहों में रहूंगी हमेशा लेकिन आप हो के सुनते कहा हो....
रमन – तू तो जानती है मेरी रानी मेरे हाथ में कुछ भी नही है....
उर्मिला –ये बात आप जाने कितने सालों से बोल रहे हो ऐसे तो आप कभी हवेली में नही ले जाओगे मुझे.....
रमन – क्या बताओ मेरी रानी पहले तो सब मेरे हाथ में था हवेली की बाग डोर और संध्या भी लेकिन जब से उसका उसका बेटा अभय हवेली से भागा है तब से संध्या मेरे हाथ में नही रही इसीलिए धीरे धीरे इत्मीनान से उसे काबू में करने में लगा हुआ था मैं लेकिन फिर इतने साल बाद एक लौंडे के आ जाने से वो पागल सी हो गई है संध्या जाने कहा कहा से गड़े मुर्दे उखड़ने में लगी है.....
उर्मिला – वही लड़का ना जिसने गांव में आते ही गांव वालो को जमीन आपके हाथ से निकल गई....
रमन – है वही लौंडा की वजह से हुआ है ये सब वो साली उसे अपना बेटा अभय समझ रही है....
उर्मिला – (चौक के) कही सच में वो उसका बेटा अभय तो नही....
रमन – अरे नही मेरी जान वो कोई अभय नही है वो तो डी आई जी शालिनी सिन्हा का बेटा है जो शहर से यहां कॉलेज में पढ़ने आया है....
उर्मिला – शहर से यहां गांव में पढ़ने अजीब बात है.....
रमन – कोई अजीब बात नही है मुफ्त में पढ़ने आया है यहां स्कॉलरशिप मिली है उस लौंडे को , आते ही इत्तेफाक से संध्या से मुलाकात हो गई उसकी रास्ते में जाने क्या बात हुई रास्ते में ऐसी उसे अपना बेटा समझने लगी संध्या तब से हाथ से निकल गई है मेरे.....
उर्मिला – (मुस्कुरा के) इतने साल फायदा भी तो खूब उठाया है आपने ठकुराइन का....
रमन – क्या खाक फायदा मिला मुझे साली गांव की जमीन निकल गई मेरे हाथ से बस एक बार कॉलेज की नीव पड़ जाति उस जमीन पर तो चाह के भी कोई कुछ नही कर पता उस जमीन में डिग्री कॉलेज बनने से लेकिन उस लौंडे ने आके....
उर्मिला – (हस के) तो फिर से ऐसा कुछ कर दो आप जिससे जमीन भी आपकी हो जाय और ठकुराइन भी जैसे आपने दस साल पहले किया था जंगल में मिली बच्चे की लाश को अभय के स्कूल के कपड़े पहना कर उसे अभय साबित कर दिया था....
रमन – नही अभी मैं कुछ नही कर सकता हू संध्या को शक हो गया है मेरे उपर अब उसे भी लगने लगा है इन सब में मेरा भी हाथ है बस सबूत न मिलने की वजह से बचा हुआ हू मै वर्ना अब तक बुरा फस गया होता मैं....
उर्मिला – ठाकुर साहब इस चक्कर में अपनी बेटी को मत भूल जाना आप पूनम आपकी बेटी है ना की उस सरपंच शंकर चौधरी की इतने सालो में उसे मैने शक तक होने नही दिया इस बात का....
रमन – तू चिंता मत कर ऐसा वैसा कुछ नही होने दुगा मैं जरूरत पड़ी तो रास्ते से हटा दुगा उस लौंडे को रही संध्या की बात 3 दिन बाद जन्मदिन है उसका इस बार हवेली में पार्टी जरूर होगी खुद संध्या देगी वो पार्टी उस लौंडे के दिखाने के लिए उस दिन संध्या को मना लूगा मैं और नही भी हुआ ऐसा तो भी कोई बात नही आखिर मेरा भी हक बनता है हवेली और जायदाद पर....
उर्मिला – अब सब कुछ आपके हाथ है ठाकुर साहब मुझे सिर्फ हमारी बेटी की चिंता है.....
रमन – फिक्र मत कर तू चल जल्दी से कपड़े पहन ले...
उर्मिला – (बीच में बात काटते हुए) इतनी भी जल्दी क्या है ठाकुर साहब आज मैं फुरसत से आई हू आपके पास शंकर गया हुआ है शहर काम से और बेटी गई है अपनी सहेली के घर उसके जन्म दिन के लिए आज वही रहेगी वो...
रमन – वाह मेरी जान तूने तो मेरी रात बना दी आज की आजा….
बोल के दोनो शुरू हो गए अपनी काम लीला में जिसके बाद राज , अभय , राजू और लल्ला चुप चाप दबे पांव निकल गए ट्रेन की बोगी से , बाहर आते ही चारो दोस्त जल्दी से अभय की बाइक के पास आ गए तब राज बोला...
राज –(अभय से) तूने देखा और सुना , कुछ समझ आया तुझे...अभय चुप रहा बस अपना सर उपर आसमान में करके के देखता रहा जिसे देख राज बोला...
राज – (हल्का सा हस के) चल चलते है हमलोग यहां से , घर भी जाना है मां और बाब राह देख रहे होगे मेरी...
राज की बात सुन राजू बोला...
राजू – हा यार चल अब रुक के क्या फायदा होगा साली ने अरमान जगा दिया मेरे...
लल्ला – (राजू की बात सुन के) यार ये सरपंच की बीवी साली कंचा माल है यार....
राज –(दोनो की बात सुन के) अबे पगला गए हो क्या बे तुम दोनो....
राजू – अबे ओ ज्यादा शरीफ मत बन अरमान तो तेरे भी जाग गए है नीचे देख के बात कर बे....
राज –(अपनी पैंट में बने तंबू को देख मुस्कुरा के) हा यार वो सरपंच की बीवी ने सच में अरमानों को हिला दियारे....
लल्ला – क्यों अभय बाबू क्या बोलते हो तुम अब तो वो गुस्सा नही दिख रहा है तेरे चेहरे पर लगता है सरपंच की बीवी की जवानी का जादू चल गया है तेरे ऊपर भी.....
राज – (हस्ते हुए) साले तभी मू छुपा रहा है देखो तो जरा साले को....
अभय –(हस्ते हुए) ओय संभाल के राज वर्ना दीदी को बता दुगा तू क्या कर रहा है....
राज – (हस के) हा हा जैसे मैं नही बोलूगा पायल से कुछ भी क्यों बे....बोल कर चारो दोस्त हसने लगे और निकल गए घर की तरफ रास्ते में राजू और लल्ला अपनी साइकिल से घर निकल गए जबकि अभय और राज एक साथ बाइक में हॉस्टल आ गए...
राज – (अभय से) चल भाई हॉस्टल आ गया तेरा....अभय – यार मन नही कर रहा आज अकेले रहने का.....
राज –(हसके) इरादा तो नेक है तेरे....
अभय – नही यार वो बात नही है....
राज –(बात समझ के) देख अभय जो हुआ जैसे हुआ तेरे सामने है सब कुछ कैसा भी हो लेकिन छुपता नही है कभी सामने आ जाता है एक ना एक दिन उस दिन बगीचे में तूने जो बात बोल के निकल गया था वो भी अधूर...
अभय –(राज की बात काट अपना मू बना के) यार तू कहा की बात कहा ले जा रहा है देख जो भी देखा और जो भी सुना मैने सब समझ गया बात को अब जाने दे सब बातो को तू जा घर बड़ी मां राह देख रही होगी तेरी कल मिलते है....
राज बाइक खड़ी करके जाने लगा तभी अभय बोला...
अभय – अबे पैदल जाएगा क्या बाइक से जा रात हो गई है काफी कितना सन्नाटा भी है...
राज – लेकिन कल सुबह तू कैसे आयगा....
अभय – मेरी चिंता मत कर भाई पैदल आ जाऊंगा कल कॉलेज में ले लूगा बाइक तेरे से....
राज घर की तरफ निकल गया और अभय हॉस्टल के अन्दर चला गया कमरे में आते ही दरवाजा बंद करके लेट गया अभय बेड में...
अभय – (अपने आप से बोलने लगा) एक बात तो समझ आ गई ये सारा खेल रमन ठाकुर का खेला हुआ है रमन ठाकुर तुझे लगता है इस खेल को खेल के तू पूरी तरह से कामयाब हो गया है लेकिन नही आज कसम खाता हू मै अपने बाप की गिन गिन के बदला लूगा मैं तुझसे हर उस मार का जो तूने और तेरे बेटे की वजह से मिली बिना वजह उस ठकुराइन से मुझे , वैसा ही खेल को खेलूगा मैं भी , गांव वालो का तूने खून चूसा है ना , ब्याज के साथ उसकी कीमत दिलाऊगा उन गांव वालो को तेरे से मैं , रही उस ठकुराइन की बात सबक उसे भी मिलेगा जरूर लेकिन आराम से जब तक दीदी उसके साथ है मुझे ऐसा वैसा कुछ भी करने नही देगी लेकिन मैं करूंगा तो जरूर (अपनी पॉकेट से मोबाइल निकल के किसी को कॉल कर बोला) हेलो कैसी हो अल्लित्ता....
अलित्ता – (अभय की आवाज सुन के) मस्त हू तुम कैसे हो आज इतने दिन बाद कॉल किया तुमने....
अभय – अच्छा हू मै भी , एक काम है तुमसे....
अलित्ता – हा बोलो ना क्या सेवा करूं तुम्हारी....
अभय – बस कुछ सामान की जरूरत है मुझे...
अलित्ता – क्यों अपनी दीदी से बोल देते वो मना कर देती क्या....
अभय – ऐसी बात नही है अलित्ता असल में दीदी कभी मना नही करेगी मुझे लेकिन मैं दीदी को बिना बताए काम करना चाहता हू.....
अलित्ता –(अभय की बात समझ के) क्या चाहिए तुम्हे बोलो मैं अरेंज करवाती हू जल्द ही.....
अभय – मैं मैसेज करता हू तुम्हे डिटेल्स....
अलित्ता – ठीक है मैसेज करो तुम डिटेल्स परसो तक मिल जाएगा तुम्हे सारा समान.....
अभय – ठीक है और थैंक्यू अलित्ता.....
अलित्ता – (मुस्कुरा के) कोई बात नही तुम्हे जब भी जरूरत हो कॉल कर लेना मुझे ठीक है बाए....
बोल के अभय ने कॉल कट कर मैसेज कर दिया डिटेल को जिसे पड़ के अलित्ता के बगल में बैठे KING को डिटेल्स दिखाई जिसे देख KING बोला...
KING – (डिटेल्स पड़ के) भेज दो ये सामान उसे , लगता है अभय अब अपने कदमों को आगे बड़ा रहा है अकेले बिना किसी की मदद के जरूर कुछ जानकारी मिली है उसे अच्छा है.....
अलित्ता – आखिर ठाकुर का खून है उबाल तो मारेगा ही ना...
KING – उम्मीद करता हू अभय जो भी काम करने जा रहा हो उससे ठाकुर साहब की आत्मा को शांति मिले....
अलित्ता – हा ऐसा ही होगा जरूर.....
इस तरफ अभय बेड में लेता हुआ था तभी संध्या का कॉल आया जिसे देख अभय ने रुक के कॉल रिसीव कर कान में लगाया...
संध्या – (कुछ सेकंड चुप रहने के बाद) कैसे हो तुम....
अभय – (धीरे से) अच्छा हू....
संध्या – (अभय की आवाज सुन) खाना खा लिया तुमने....
अभय – हा अभी आराम कर रहा हू मै....
संध्या – घर वापस आजा....
अभय – देख मैं तेरे से आराम से बात कर रहा हू इसका मतलब ये नही तेरी फरमाइश भी पूरी करूगा.....
संध्या – 3 दिन बाद एक पार्टी रखी है हवेली में....
अभय –हा जनता हू जन्मदिन जो है तेरा....
संध्या – तुझे याद है तू...तू आएगा ना देख प्लीज माना मत करना तू आगया है ना इसीलिए पहली बार मना रही हू....
अभय – (हस के) मेरा क्या काम है तेरी पार्टी में और भी तो तेरे खास लोग आएंगे उसमे भला मेरे जैसों का कोई मोल नहीं तेरी पार्टी में या कही नौकर तो काम नही पड़ गए तुझे इसीलिए बुला रही है मुझे....
संध्या – ऐसा तो मत बोल कोई नही आएगा बस घर के है लोग...
अभय – लेकिन मेरी गिनती तेरे घर के लोगो में नही आती...
संध्या –(रोते हुए) ऐसा मत बोल सबसे कोई मतलब नहीं मेरा बस तुझ से मतलब है बस तू आजा बदले में जो बोल मैं वो करूगी....
अभय – सिर्फ मेरे लिए इतना बोल रही क्योंकि आज मैं यहां हू उससे पहले कभी सोचा तूने इन गांव वालो का जिनकी जमीनों में कर्ज के नाम पर कब्जा किया जा रहा था जबरन तरीके से तब देखा तूने....
संध्या – तेरे इलावा कोई नही मेरा तूही मेरा सब कुछ है तेरी कसम खा के बोलती हू मुझे सच में कुछ नही पता था इस बारे में....
अभय –(संध्या की ये बात सुन के चुप रह कुछ सेकंड फिर बोला) तू नही जानती इस वजह से कितना कुछ झेला है गांव वालो ने कर्ज के बदले ब्याज पर ब्याज लिया गया उनसे जो रोज तपती धूप में खेती करते ताकी अपने परिवार का पेट भर सके सोच इतने सालो में उनके साथ क्या क्या नहीं हुआ होगा उनके दर्द का कोई अंदाजा नही लगा सकता (रूंधे गले से) अगर बाबा होते ऐसा कभी नहीं होने देते...
बोल के फोन कट कर दिया अभय ने इस तरफ हवेली में संध्या के संग चांदनी बैठी सारी बाते सुन रही थी...
चांदनी – (रोती हुई संध्या को गले लगा के) बस करिए मत रोइए....
संध्या –(आसू पोच के) नही चांदनी आज इतने दिनो बाद उसने मुझ से बात की आराम से बिल्कुल अपने बाबा की तरह सोचता है अपने से पहले दूसरो के बारे में....
चांदनी – आप खुश है ना....
संध्या – बहुत खुश हू आज मैं (चांदनी का हाथ पकड़ के) शुक्रिया चांदनी तुम्हारी वजह से ये हुआ है...
चांदनी – नही ठकुराइन इसमें शुक्रिया जैसी कोई बात नही है ये मेरा फर्ज है अभय भाई है मेरा उसके लिए नही करूंगी तो किसके लिए करूगी....
संध्या – ये तू मुझे ठकुराइन क्यों बोलती रहती है शालिनी जी को बहन माना है मैने तो तू मुझे मासी बोला कर अब से....
चांदनी – लेकिन सिर्फ आपको अकेले में....
संध्या – कोई जरूरत नहीं है सबसे सामने बोलेगी बेझिजक....
चांदनी –(मुस्कुरा के) ठीक है मासी अब खुश हो आप....
संध्या – (गले लगा के) हा बहुत खुश हू , चल अब सोजा कल तुझे मेरे साथ चलना है तुझे दिखाओगी गांव की मीटिंग जहा सरपंच बैठक लगाते है सभी गांव वालो की....
चांदनी – लेकिन वहा पर क्या काम मेरा...
संध्या – (मुस्कुरा के) वो तू कल खुद देख लेना चल अब सोजा सुबह जल्दी चलना है....
चांदनी –(मुस्कुरा के) जैसा आप कहे मासी.....
हस के चांदनी चली गई अपने कमरे में आराम करने चांदनी के जाने के बाद संध्या ने शंकर चौधरी (सरपंच) को कॉल किया..
संध्या –(कॉल पर) हेलो शंकर....
शंकर (सरपंच) – प्रणाम ठकुराइन इतने वक्त याद किया आपने...
संध्या – जी ये कहने के लिए कॉल किया की कल पूरे गांव वालो को बैठक बुलाइए गा और ध्यान रहे सभी गांव वाले होने चाहिए वहा पर..
शंकर (सरपंच) – कुछ जरूरी काम है ठकुराइन....
संध्या – जी कल वही पर बात होगी सबके सामने वक्त पे तयार होके आइए गा.....
बोल के कॉल कट कर दिया जबकि शंकर चौधरी (सरपंच) को शहर गया हुआ था काम से उसने कॉल लगाया रमन ठाकुर को को इस वक्त सरपंच की बीवी उर्मिला के साथ कामलीला में लगा हुआ था....
रमन –(मोबाइल में सरपंच का कॉल देख के उर्मिला से) तूने तो बोला था शंकर शहर गया हुआ है....
उर्मिला – हा क्यों क्या हुआ...
रमन –(अपना मोबाइल दिखा के जिस्म3 शंकर की कॉल आ रही थी) तो इस वक्त क्यों कॉल कर रहा है ये...
उर्मिला –(चौक के) पता नही देखिए जरा क्या बात है...
रमन –(कॉल उठा के स्पीकर में डाल के) हा सरपंच बोल क्या बात है...
शंकर (सरपंच) – हवेली में कोई बात हुई है क्या ठाकुर साहेब...
रमन – नही तो क्यों क्या हुआ...
शंकर (सरपंच) –(संध्या की कही सारी बात बता के) अब क्या करना है ठाकुर साहब...
रमन –(सरपंच की बात सुन हैरान होके) जाने अब क्या खिचड़ी पका रही है ये औरत साली चैन से सास तक लेने नही देती है एक काम कर जो कहा है वो की तू बाकी मैं भी कल रहूंगा वहा पर देखते है क्या करने वाली है ये औरत अब....
उर्मिला –(रमन का कॉल कट होते बोली) ये सब अचानक से क्यों ठाकुर साहब...
रमन –यही बात तो मुझे भी समझ नही आ रही है चल तू कपड़े पहन ले मैं तुझे घर छोड़ देता हू फिर हवेली जाके देखता हू क्या माजरा है ये...इधर हवेली में संध्या ने एक कॉल और मिलाया गीता देवी को...
संध्या – (कॉल पर गीता देवी से) दीदी कैसी हो आप...
गीता देवी – अच्छी हू तूने इतने वक्त कॉल किया सब ठीक तो है न संध्या...
संध्या – हा दीदी सब ठीक है मैने सरपंच को बोल के कल सभी गांव वालो की बैठक बुलवाई है मैं चाहती हू आप सभी गांव की औरतों को साथ लेके आए वहा पर....
गीता देवी –(हैरान होके) ऐसी क्या बात है संध्या ये अचनक से बैठक सभी गांव वालो को....
संध्या – आप ज्यादा सवाल मत पूछिए दीदी बस कल सभी को लेक आ जायेगा.....
गीता देवी –(संध्या को बात सुन के) ठीक है कल आ जाऊंगी
बोल के दोनो ने कॉल कट कर दिया उसी समय राज और सत्य बाबू पास में बैठे थे सत्य बाबू बोले...
सत्य बाबू – क्या बात है सब ठीक तो है ना हवेली में....
गीता देवी – हा सब ठीक है (फिर जो बात हो गई सब बता दिया) देखते है कल क्या होता है बैठक में.....
सत्य बाबू – कमाल की बात आज ही मुझे अभय मिला था....
गीता देवी – अभय मिला था आपको तो घर लेके क्यों नही आए उसे....
सत्य बाबू –यही बोला मैने समझाया उसे....
गीता देवी – फिर क्या बोला अभय.....
सत्य बाबू ने सारी बात बताई जिसे सुन के गीता देवी कुछ बोलने जा रही थी कि तभी राज बीच में बोल पड़ा...
राज –(बातो के बीच में) ओह तो ये बात है तभी मैं सोचूं आज अभय को हुआ क्या है....
गीता देवी और सत्य बाबू एक साथ –(चौक के) क्या हुआ था अभय को....
फिर राज ने सारी घटना बताई लेकिन रमन और उर्मिला की बात छोड़ के जिसे सुन के गीता देवी और सत्य बाबू की आखें बड़ी हो गई...
गीता देवी –(गुस्से में सत्य बाबू से) आप ना कमाल करते हो क्या जरूरत थी अभय को ये बात बताने की बच्चा है वो अभी उसे क्या पता इतने साल उसके ना होने से क्या हुआ है गांव में और आपने उसे ही जिम्मेदार ठहरा दिया भला ये कोई तरीका होता है क्या एक बच्चे से बात करने का....
सत्या बाबू –(अपने सिर पे हाथ रख के) अरे भाग्यवान अभय को बताने का ये मकसद नही था मेरा मैं भी बस यही चाहता था वो संध्या से नफरत ना करे इसीलिए उसे सच बताया था...
गीता देवी –(मू बना के) सच बताने का एक तरीका भी होता है बताना होता तो मैं नही बता सकती थी अभय को सच या राज नही बता सकता था शुक्र है भगवान का कुछ अनर्थ नही हुआ वर्ना मू ना दिखा पाती मैं संध्या को कभी (राज से) और तू भी ध्यान रखना ऐसी वैसी कोई बात नही करना अभय से समझा ना....
राज – ठीक है मां....
गीता देवी – एक बात तो बता तुझे पता था ना अभय की ऐसी हालत है तो तू उसे हॉस्टल में छोड़ के कैसे आ गया घर ले आता उसे या वही रुक जाता , एक काम कर तू अभी जा अभय के पास वही सो जाके जाने कैसा दोस्त है , तू भी इनकी तरह हरकत कर रहा है.....
राज –अरे अरे मां ऐसा कुछ भी नही है अभय ठीक है अब....
गीता देवी – लेकिन अभी तो तूने कहा.....
राज – (अपने सिर पे हाथ रख के) मां बात असल में ये है की वहा पर जब ये सब हुआ तब हम आपस में बात कर रहे थे कि तभी वहा पर रमन और सरपंच की बीवी (उर्मिला) को देख लिया हमने , वो दोनो एक साथ यार्ड में खड़ी एसी वाली बोगी में चढ़ गए फिर....(बोल के चुप हो गया राज)....
गीता देवी – फिर क्या बोल आगे भी....
राज –(झिझक ते हुए) वो...मां....वो...मां....
सत्य बाबू – ये वो मां वो मां क्या लगा रखा आगे बोल क्या हुआ वहा पर.....
राज – देख मां नाराज मत होना तू वो रमन और उर्मिला काकी दोनो एक साथ (बोल के सर झुका दिया राज ने)....
गीता देवी –(बात का मतलब समझ के राज के कान पकड़ बोली) तो तू ये सब देखने गया था क्यों बोल....
राज –आ आ आ आ मां लग रही है मां तेरी कसम खाता हू वो सब देखने नही गए थे मां (फिर पूरी बात बता के)....
सत्या बाबू –(गुस्से में) नीच सिर्फ नीच ही रहता है थू है इसके ठाकुर होंने पर इतनी गिरी हरकत ठाकुर रतन सिंह का नाम मिट्टी में मिला रहा है रमन इससे अच्छा तो मनन ठाकुर था कम से कम भला करता था गांव के लोगो का और ये......
गीता देवी – जाने दीजिए क्या कर सकते है अब इस नीच इंसान का इसकी वजह से संध्या की आज ये हालत है बेटा पास होते हुए भी दूर है वो मां सुनने तक को तरस गई है अभय के मू से सब रमन के वजह से हुआ है जाने इतनी दौलत का क्या करेगा मरने के बाद (राज को देख गुस्से से) और तू अगर फिर कभी ऐसा कुछ हुआ या सुन लिया मैने तेरी खेर नही समझा....
राज –(हल्का हस के) हा मां पक्का....
अगले दिन सुबह अभय कॉलेज गया जहा उसे राज , राजू और लल्ला मिले...
अभय – आज कुछ है क्या कॉलेज में इतना सन्नाटा क्यों है यार....
राजू – अबे आज सुबह सुबह सरपंच ने बैठक बुलाई है गांव के लोगो की सब वही गए है....
अभय –(कुछ सोच के) सरपंच तो शहर गया हुआ था ना इतनी जल्दी कैसे आ गया यार....
राज – अबे कल रात को ठकुराइन का कॉल आया था मां को बोला रही थी सभी औरतों को लेके आने को बैठक में तभी लल्ला आया नही है कॉलेज....
अभय – पायल भी नही दिख रही है यार.....
राजू – हा भाई और नीलम भी नही दिख रही है.....
अभय – ओह हो तो ये बात है मतलब तू लाइन में लगा हुआ है या पता लिया तूने नीलम को....
राजू – भाई मान गई है नीलम बस कभी अकेले में घूमने का मौका नहीं मिलता है यह पर...
राज – मिलेगा मिलेगा जरूर मिलेगा मौका भी लेकिन अभी चल चलते है पंचायत में देखे क्या होने वाला है वहा पर....
बोल के तीनों निकल गए पंचायत की तरफ वहा पर एक तरफ रमन और सरपंच इनके दूसरी तरफ संध्या और साथ में चांदनी , ललिता और मालती बैठे थे और बाकी के सभी गांव वाले मौजूद थे एक तरफ गांव के बच्चे बूढ़े आदमी थे और दूसरी तरफ औरते तब सरपंच ने बोलना शुरू किया...
सरपंच – आज की बैठक हमारे गांव की ठकुराइन ने बुलाई है वह आप सबसे कुछ बात करना चाहती है....
संध्या –(सरपंच की बात सुन खड़ी होके सभी गांव वालो के सामने) काफी वक्त से आप सभी गांव वालो को कई तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ा यहां तक कि आपकी जमीन तक गिरवी में चली गई थी मैं उन सभी गलतियों के लिए आप सब से माफी मांगती हू और ये चाहती हू की आपकी जो भी समस्याएं है खेती को लेके या अनाज को लेके आप बिना झिजक के बताए खुल के मुझे मैं मदद करूगी बदले में कुछ भी नही मागूगी...
सरपंच – (बीच में ठकुराइन से) ठकुराइन गांव वालो को उनकी जमीन मिल गई है वापस उन्हें अब क्या जरूरत किसी चीज की...
संध्या –(बात बीच में काट के) यही बात गांव वाले खुद बोले तो यकीन आए मुझे (सभी गांव वालो से) तो बताए क्या सिर्फ जमीन मिलने पर आप खुश है और कोई समस्या नही आपको....
तभी एक गांव वाला बोला..
गांव वाला – ठकुराइन मैं अपने घर में इकलौता हू कमाने वाला मेरा खेत भी दूर है यहां से पानी वक्त से मिल नही पता है जिस कारण फसल बर्बाद हो जाती है और बैंक का ब्याज तक नहीं दे पता वक्त पर जिसके चलते बैंक वालो ने मेरी खेत की जमीन में कब्जा कर लिया है....
बोल के रोने लगा इसके साथ कई लोगो ने अपनी समस्या बताई खेती और बैंक के कर्जे को लेके जिसे सुन कर संध्या सरपंच को देख के बोली..
संध्या –अब क्या बोलते है आप सरपंच क्या ये काम होता है सरपंच का गांव में क्या इसीलिए आपको गांव में सरपंच के रूप में चुना गया था लगता है अब सरपंची आपके बस की रही नही...
गांव वाला बोला – (हाथ जोड़ के) ठकुराइन कई बार कोशिश की हमने अपनी समस्या आप तक पहुंचाने की लेकिन पिछले कई साल तक हमे ना हवेली की भीतर तो दूर सख्त मना कर दिया गया गांव का कोई बंदा हवेली की तरफ जाएगा भी नही और कॉलेज की जमीन के वक्त भी सरपंच के आगे गांव के कई लोग गिड़ गिड़ाये लेकिन सिवाय मायूसी के इलावा कुछ न मिला हमे....
संध्या –(बात सुनने के बाद गांव वालो से) काफी वक्त से गांव में सरपंची का चुनाव नही हुआ है क्या आपका कोई उम्मीद वार है ऐसा जिसे आप सरपंच के पड़ के लिए समझते हो लेकिन जरूरी नहीं वो आदमी हो औरत भी हो कोई दिक्कत नही...
इस बात से सरपंच के सर पर फूटा एक बॉम्ब साथ ही रमन के कान से धुवा निकलने लगा इतने गांव वालो के सामने संध्या से उसकी कुछ भी कहने की हिम्मत नही हो रही थी...
गांव वाले –(सब गीता देवी को आगे कर) ठकुराइन गीता देवी से बेहतर कोई नहीं संभाल सकता है सरपंच....
संध्या –(मुस्कुरा के) तो ये तय रहा इस बार गांव में सरपंच का पद गीता देवी संभालेगी....
शंकर (सरपंच)–(बीच में बात काट के) ठकुराइन ये गलता है इस तरह आप ये तय नही कर सकती कॉन सरपंच बनेगा कॉन नही इसकी मंजूरी के नियम होते है और कानून भी.....
संध्या –(बात सुन मुस्कुरा के) अच्छा तो जब गांव वालो को जरूरत थी तब कहा थे आप तब याद नही आया आपको नियम कानून जब गांव वालो की जमीन छीनी जा रही थी ब्याज के नाम पर तब चुप क्यों थे आप क्यों नही आए आप हवेली और क्यों नही आवाज उठाई आपने है कोई जवाब आपके पास इसके बाद भी अगर आप शिकायत करना चाहते है तो जाए लेकिन ध्यान रखिए बात का गांव वालो ने बदले में आपकी शिकायत कर दी तब क्या होगा आपका सोच लीजिए गा....
इस बात से जहा सब गांव वाले खुश हो गए इतने साल बाद संध्या का ठकुराइन वाला रूप देख वही सरपंच का मू बंद हो गया कुछ कहने लायक ना बचा और ना ही इन सब के बीच रमन की हिम्मत हुए कुछ बोल सके जबकि अभय ये नजारा देख मुस्कुराए जा रहा था...
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जारी रहेगा
अभय , राज , राजू और लल्ला चारो दोस्त ट्रेन की एसी बोगी में चिप के रमन और सरपंच को बीवी उर्मिला की रासलीला देखते रहे कुछ समय बिता था की तभी उर्मिला ने बोलना शुरू किया...
उर्मिला –क्या बात है ठाकुर साहब आज आप बहुत जोश में थे....
रमन –(उर्मिला की बात सुन हल्का मुस्कुरा के) तू चीज ही ऐसी है मेरी जान....
उर्मिला –(मुस्कुरा के) लगता है लल्लीता से मन भर गया है आपका....
रमन – वो साली क्या साथ देगी मेरा उसका दिमाग घुटनो में पड़ा रहता है या तो हवेली में लगी रहेगी या अपनी बेटी के साथ....
उर्मिला – (मू बना के) कितनी बार कहा आपसे मुझे हवेली में रख लो हमेशा के लिए बस आपकी बाहों में रहूंगी हमेशा लेकिन आप हो के सुनते कहा हो....
रमन – तू तो जानती है मेरी रानी मेरे हाथ में कुछ भी नही है....
उर्मिला –ये बात आप जाने कितने सालों से बोल रहे हो ऐसे तो आप कभी हवेली में नही ले जाओगे मुझे.....
रमन – क्या बताओ मेरी रानी पहले तो सब मेरे हाथ में था हवेली की बाग डोर और संध्या भी लेकिन जब से उसका उसका बेटा अभय हवेली से भागा है तब से संध्या मेरे हाथ में नही रही इसीलिए धीरे धीरे इत्मीनान से उसे काबू में करने में लगा हुआ था मैं लेकिन फिर इतने साल बाद एक लौंडे के आ जाने से वो पागल सी हो गई है संध्या जाने कहा कहा से गड़े मुर्दे उखड़ने में लगी है.....
उर्मिला – वही लड़का ना जिसने गांव में आते ही गांव वालो को जमीन आपके हाथ से निकल गई....
रमन – है वही लौंडा की वजह से हुआ है ये सब वो साली उसे अपना बेटा अभय समझ रही है....
उर्मिला – (चौक के) कही सच में वो उसका बेटा अभय तो नही....
रमन – अरे नही मेरी जान वो कोई अभय नही है वो तो डी आई जी शालिनी सिन्हा का बेटा है जो शहर से यहां कॉलेज में पढ़ने आया है....
उर्मिला – शहर से यहां गांव में पढ़ने अजीब बात है.....
रमन – कोई अजीब बात नही है मुफ्त में पढ़ने आया है यहां स्कॉलरशिप मिली है उस लौंडे को , आते ही इत्तेफाक से संध्या से मुलाकात हो गई उसकी रास्ते में जाने क्या बात हुई रास्ते में ऐसी उसे अपना बेटा समझने लगी संध्या तब से हाथ से निकल गई है मेरे.....
उर्मिला – (मुस्कुरा के) इतने साल फायदा भी तो खूब उठाया है आपने ठकुराइन का....
रमन – क्या खाक फायदा मिला मुझे साली गांव की जमीन निकल गई मेरे हाथ से बस एक बार कॉलेज की नीव पड़ जाति उस जमीन पर तो चाह के भी कोई कुछ नही कर पता उस जमीन में डिग्री कॉलेज बनने से लेकिन उस लौंडे ने आके....
उर्मिला – (हस के) तो फिर से ऐसा कुछ कर दो आप जिससे जमीन भी आपकी हो जाय और ठकुराइन भी जैसे आपने दस साल पहले किया था जंगल में मिली बच्चे की लाश को अभय के स्कूल के कपड़े पहना कर उसे अभय साबित कर दिया था....
रमन – नही अभी मैं कुछ नही कर सकता हू संध्या को शक हो गया है मेरे उपर अब उसे भी लगने लगा है इन सब में मेरा भी हाथ है बस सबूत न मिलने की वजह से बचा हुआ हू मै वर्ना अब तक बुरा फस गया होता मैं....
उर्मिला – ठाकुर साहब इस चक्कर में अपनी बेटी को मत भूल जाना आप पूनम आपकी बेटी है ना की उस सरपंच शंकर चौधरी की इतने सालो में उसे मैने शक तक होने नही दिया इस बात का....
रमन – तू चिंता मत कर ऐसा वैसा कुछ नही होने दुगा मैं जरूरत पड़ी तो रास्ते से हटा दुगा उस लौंडे को रही संध्या की बात 3 दिन बाद जन्मदिन है उसका इस बार हवेली में पार्टी जरूर होगी खुद संध्या देगी वो पार्टी उस लौंडे के दिखाने के लिए उस दिन संध्या को मना लूगा मैं और नही भी हुआ ऐसा तो भी कोई बात नही आखिर मेरा भी हक बनता है हवेली और जायदाद पर....
उर्मिला – अब सब कुछ आपके हाथ है ठाकुर साहब मुझे सिर्फ हमारी बेटी की चिंता है.....
रमन – फिक्र मत कर तू चल जल्दी से कपड़े पहन ले...
उर्मिला – (बीच में बात काटते हुए) इतनी भी जल्दी क्या है ठाकुर साहब आज मैं फुरसत से आई हू आपके पास शंकर गया हुआ है शहर काम से और बेटी गई है अपनी सहेली के घर उसके जन्म दिन के लिए आज वही रहेगी वो...
रमन – वाह मेरी जान तूने तो मेरी रात बना दी आज की आजा….
बोल के दोनो शुरू हो गए अपनी काम लीला में जिसके बाद राज , अभय , राजू और लल्ला चुप चाप दबे पांव निकल गए ट्रेन की बोगी से , बाहर आते ही चारो दोस्त जल्दी से अभय की बाइक के पास आ गए तब राज बोला...
राज –(अभय से) तूने देखा और सुना , कुछ समझ आया तुझे...अभय चुप रहा बस अपना सर उपर आसमान में करके के देखता रहा जिसे देख राज बोला...
राज – (हल्का सा हस के) चल चलते है हमलोग यहां से , घर भी जाना है मां और बाब राह देख रहे होगे मेरी...
राज की बात सुन राजू बोला...
राजू – हा यार चल अब रुक के क्या फायदा होगा साली ने अरमान जगा दिया मेरे...
लल्ला – (राजू की बात सुन के) यार ये सरपंच की बीवी साली कंचा माल है यार....
राज –(दोनो की बात सुन के) अबे पगला गए हो क्या बे तुम दोनो....
राजू – अबे ओ ज्यादा शरीफ मत बन अरमान तो तेरे भी जाग गए है नीचे देख के बात कर बे....
राज –(अपनी पैंट में बने तंबू को देख मुस्कुरा के) हा यार वो सरपंच की बीवी ने सच में अरमानों को हिला दियारे....
लल्ला – क्यों अभय बाबू क्या बोलते हो तुम अब तो वो गुस्सा नही दिख रहा है तेरे चेहरे पर लगता है सरपंच की बीवी की जवानी का जादू चल गया है तेरे ऊपर भी.....
राज – (हस्ते हुए) साले तभी मू छुपा रहा है देखो तो जरा साले को....
अभय –(हस्ते हुए) ओय संभाल के राज वर्ना दीदी को बता दुगा तू क्या कर रहा है....
राज – (हस के) हा हा जैसे मैं नही बोलूगा पायल से कुछ भी क्यों बे....बोल कर चारो दोस्त हसने लगे और निकल गए घर की तरफ रास्ते में राजू और लल्ला अपनी साइकिल से घर निकल गए जबकि अभय और राज एक साथ बाइक में हॉस्टल आ गए...
राज – (अभय से) चल भाई हॉस्टल आ गया तेरा....अभय – यार मन नही कर रहा आज अकेले रहने का.....
राज –(हसके) इरादा तो नेक है तेरे....
अभय – नही यार वो बात नही है....
राज –(बात समझ के) देख अभय जो हुआ जैसे हुआ तेरे सामने है सब कुछ कैसा भी हो लेकिन छुपता नही है कभी सामने आ जाता है एक ना एक दिन उस दिन बगीचे में तूने जो बात बोल के निकल गया था वो भी अधूर...
अभय –(राज की बात काट अपना मू बना के) यार तू कहा की बात कहा ले जा रहा है देख जो भी देखा और जो भी सुना मैने सब समझ गया बात को अब जाने दे सब बातो को तू जा घर बड़ी मां राह देख रही होगी तेरी कल मिलते है....
राज बाइक खड़ी करके जाने लगा तभी अभय बोला...
अभय – अबे पैदल जाएगा क्या बाइक से जा रात हो गई है काफी कितना सन्नाटा भी है...
राज – लेकिन कल सुबह तू कैसे आयगा....
अभय – मेरी चिंता मत कर भाई पैदल आ जाऊंगा कल कॉलेज में ले लूगा बाइक तेरे से....
राज घर की तरफ निकल गया और अभय हॉस्टल के अन्दर चला गया कमरे में आते ही दरवाजा बंद करके लेट गया अभय बेड में...
अभय – (अपने आप से बोलने लगा) एक बात तो समझ आ गई ये सारा खेल रमन ठाकुर का खेला हुआ है रमन ठाकुर तुझे लगता है इस खेल को खेल के तू पूरी तरह से कामयाब हो गया है लेकिन नही आज कसम खाता हू मै अपने बाप की गिन गिन के बदला लूगा मैं तुझसे हर उस मार का जो तूने और तेरे बेटे की वजह से मिली बिना वजह उस ठकुराइन से मुझे , वैसा ही खेल को खेलूगा मैं भी , गांव वालो का तूने खून चूसा है ना , ब्याज के साथ उसकी कीमत दिलाऊगा उन गांव वालो को तेरे से मैं , रही उस ठकुराइन की बात सबक उसे भी मिलेगा जरूर लेकिन आराम से जब तक दीदी उसके साथ है मुझे ऐसा वैसा कुछ भी करने नही देगी लेकिन मैं करूंगा तो जरूर (अपनी पॉकेट से मोबाइल निकल के किसी को कॉल कर बोला) हेलो कैसी हो अल्लित्ता....
अलित्ता – (अभय की आवाज सुन के) मस्त हू तुम कैसे हो आज इतने दिन बाद कॉल किया तुमने....
अभय – अच्छा हू मै भी , एक काम है तुमसे....
अलित्ता – हा बोलो ना क्या सेवा करूं तुम्हारी....
अभय – बस कुछ सामान की जरूरत है मुझे...
अलित्ता – क्यों अपनी दीदी से बोल देते वो मना कर देती क्या....
अभय – ऐसी बात नही है अलित्ता असल में दीदी कभी मना नही करेगी मुझे लेकिन मैं दीदी को बिना बताए काम करना चाहता हू.....
अलित्ता –(अभय की बात समझ के) क्या चाहिए तुम्हे बोलो मैं अरेंज करवाती हू जल्द ही.....
अभय – मैं मैसेज करता हू तुम्हे डिटेल्स....
अलित्ता – ठीक है मैसेज करो तुम डिटेल्स परसो तक मिल जाएगा तुम्हे सारा समान.....
अभय – ठीक है और थैंक्यू अलित्ता.....
अलित्ता – (मुस्कुरा के) कोई बात नही तुम्हे जब भी जरूरत हो कॉल कर लेना मुझे ठीक है बाए....
बोल के अभय ने कॉल कट कर मैसेज कर दिया डिटेल को जिसे पड़ के अलित्ता के बगल में बैठे KING को डिटेल्स दिखाई जिसे देख KING बोला...
KING – (डिटेल्स पड़ के) भेज दो ये सामान उसे , लगता है अभय अब अपने कदमों को आगे बड़ा रहा है अकेले बिना किसी की मदद के जरूर कुछ जानकारी मिली है उसे अच्छा है.....
अलित्ता – आखिर ठाकुर का खून है उबाल तो मारेगा ही ना...
KING – उम्मीद करता हू अभय जो भी काम करने जा रहा हो उससे ठाकुर साहब की आत्मा को शांति मिले....
अलित्ता – हा ऐसा ही होगा जरूर.....
इस तरफ अभय बेड में लेता हुआ था तभी संध्या का कॉल आया जिसे देख अभय ने रुक के कॉल रिसीव कर कान में लगाया...
संध्या – (कुछ सेकंड चुप रहने के बाद) कैसे हो तुम....
अभय – (धीरे से) अच्छा हू....
संध्या – (अभय की आवाज सुन) खाना खा लिया तुमने....
अभय – हा अभी आराम कर रहा हू मै....
संध्या – घर वापस आजा....
अभय – देख मैं तेरे से आराम से बात कर रहा हू इसका मतलब ये नही तेरी फरमाइश भी पूरी करूगा.....
संध्या – 3 दिन बाद एक पार्टी रखी है हवेली में....
अभय –हा जनता हू जन्मदिन जो है तेरा....
संध्या – तुझे याद है तू...तू आएगा ना देख प्लीज माना मत करना तू आगया है ना इसीलिए पहली बार मना रही हू....
अभय – (हस के) मेरा क्या काम है तेरी पार्टी में और भी तो तेरे खास लोग आएंगे उसमे भला मेरे जैसों का कोई मोल नहीं तेरी पार्टी में या कही नौकर तो काम नही पड़ गए तुझे इसीलिए बुला रही है मुझे....
संध्या – ऐसा तो मत बोल कोई नही आएगा बस घर के है लोग...
अभय – लेकिन मेरी गिनती तेरे घर के लोगो में नही आती...
संध्या –(रोते हुए) ऐसा मत बोल सबसे कोई मतलब नहीं मेरा बस तुझ से मतलब है बस तू आजा बदले में जो बोल मैं वो करूगी....
अभय – सिर्फ मेरे लिए इतना बोल रही क्योंकि आज मैं यहां हू उससे पहले कभी सोचा तूने इन गांव वालो का जिनकी जमीनों में कर्ज के नाम पर कब्जा किया जा रहा था जबरन तरीके से तब देखा तूने....
संध्या – तेरे इलावा कोई नही मेरा तूही मेरा सब कुछ है तेरी कसम खा के बोलती हू मुझे सच में कुछ नही पता था इस बारे में....
अभय –(संध्या की ये बात सुन के चुप रह कुछ सेकंड फिर बोला) तू नही जानती इस वजह से कितना कुछ झेला है गांव वालो ने कर्ज के बदले ब्याज पर ब्याज लिया गया उनसे जो रोज तपती धूप में खेती करते ताकी अपने परिवार का पेट भर सके सोच इतने सालो में उनके साथ क्या क्या नहीं हुआ होगा उनके दर्द का कोई अंदाजा नही लगा सकता (रूंधे गले से) अगर बाबा होते ऐसा कभी नहीं होने देते...
बोल के फोन कट कर दिया अभय ने इस तरफ हवेली में संध्या के संग चांदनी बैठी सारी बाते सुन रही थी...
चांदनी – (रोती हुई संध्या को गले लगा के) बस करिए मत रोइए....
संध्या –(आसू पोच के) नही चांदनी आज इतने दिनो बाद उसने मुझ से बात की आराम से बिल्कुल अपने बाबा की तरह सोचता है अपने से पहले दूसरो के बारे में....
चांदनी – आप खुश है ना....
संध्या – बहुत खुश हू आज मैं (चांदनी का हाथ पकड़ के) शुक्रिया चांदनी तुम्हारी वजह से ये हुआ है...
चांदनी – नही ठकुराइन इसमें शुक्रिया जैसी कोई बात नही है ये मेरा फर्ज है अभय भाई है मेरा उसके लिए नही करूंगी तो किसके लिए करूगी....
संध्या – ये तू मुझे ठकुराइन क्यों बोलती रहती है शालिनी जी को बहन माना है मैने तो तू मुझे मासी बोला कर अब से....
चांदनी – लेकिन सिर्फ आपको अकेले में....
संध्या – कोई जरूरत नहीं है सबसे सामने बोलेगी बेझिजक....
चांदनी –(मुस्कुरा के) ठीक है मासी अब खुश हो आप....
संध्या – (गले लगा के) हा बहुत खुश हू , चल अब सोजा कल तुझे मेरे साथ चलना है तुझे दिखाओगी गांव की मीटिंग जहा सरपंच बैठक लगाते है सभी गांव वालो की....
चांदनी – लेकिन वहा पर क्या काम मेरा...
संध्या – (मुस्कुरा के) वो तू कल खुद देख लेना चल अब सोजा सुबह जल्दी चलना है....
चांदनी –(मुस्कुरा के) जैसा आप कहे मासी.....
हस के चांदनी चली गई अपने कमरे में आराम करने चांदनी के जाने के बाद संध्या ने शंकर चौधरी (सरपंच) को कॉल किया..
संध्या –(कॉल पर) हेलो शंकर....
शंकर (सरपंच) – प्रणाम ठकुराइन इतने वक्त याद किया आपने...
संध्या – जी ये कहने के लिए कॉल किया की कल पूरे गांव वालो को बैठक बुलाइए गा और ध्यान रहे सभी गांव वाले होने चाहिए वहा पर..
शंकर (सरपंच) – कुछ जरूरी काम है ठकुराइन....
संध्या – जी कल वही पर बात होगी सबके सामने वक्त पे तयार होके आइए गा.....
बोल के कॉल कट कर दिया जबकि शंकर चौधरी (सरपंच) को शहर गया हुआ था काम से उसने कॉल लगाया रमन ठाकुर को को इस वक्त सरपंच की बीवी उर्मिला के साथ कामलीला में लगा हुआ था....
रमन –(मोबाइल में सरपंच का कॉल देख के उर्मिला से) तूने तो बोला था शंकर शहर गया हुआ है....
उर्मिला – हा क्यों क्या हुआ...
रमन –(अपना मोबाइल दिखा के जिस्म3 शंकर की कॉल आ रही थी) तो इस वक्त क्यों कॉल कर रहा है ये...
उर्मिला –(चौक के) पता नही देखिए जरा क्या बात है...
रमन –(कॉल उठा के स्पीकर में डाल के) हा सरपंच बोल क्या बात है...
शंकर (सरपंच) – हवेली में कोई बात हुई है क्या ठाकुर साहेब...
रमन – नही तो क्यों क्या हुआ...
शंकर (सरपंच) –(संध्या की कही सारी बात बता के) अब क्या करना है ठाकुर साहब...
रमन –(सरपंच की बात सुन हैरान होके) जाने अब क्या खिचड़ी पका रही है ये औरत साली चैन से सास तक लेने नही देती है एक काम कर जो कहा है वो की तू बाकी मैं भी कल रहूंगा वहा पर देखते है क्या करने वाली है ये औरत अब....
उर्मिला –(रमन का कॉल कट होते बोली) ये सब अचानक से क्यों ठाकुर साहब...
रमन –यही बात तो मुझे भी समझ नही आ रही है चल तू कपड़े पहन ले मैं तुझे घर छोड़ देता हू फिर हवेली जाके देखता हू क्या माजरा है ये...इधर हवेली में संध्या ने एक कॉल और मिलाया गीता देवी को...
संध्या – (कॉल पर गीता देवी से) दीदी कैसी हो आप...
गीता देवी – अच्छी हू तूने इतने वक्त कॉल किया सब ठीक तो है न संध्या...
संध्या – हा दीदी सब ठीक है मैने सरपंच को बोल के कल सभी गांव वालो की बैठक बुलवाई है मैं चाहती हू आप सभी गांव की औरतों को साथ लेके आए वहा पर....
गीता देवी –(हैरान होके) ऐसी क्या बात है संध्या ये अचनक से बैठक सभी गांव वालो को....
संध्या – आप ज्यादा सवाल मत पूछिए दीदी बस कल सभी को लेक आ जायेगा.....
गीता देवी –(संध्या को बात सुन के) ठीक है कल आ जाऊंगी
बोल के दोनो ने कॉल कट कर दिया उसी समय राज और सत्य बाबू पास में बैठे थे सत्य बाबू बोले...
सत्य बाबू – क्या बात है सब ठीक तो है ना हवेली में....
गीता देवी – हा सब ठीक है (फिर जो बात हो गई सब बता दिया) देखते है कल क्या होता है बैठक में.....
सत्य बाबू – कमाल की बात आज ही मुझे अभय मिला था....
गीता देवी – अभय मिला था आपको तो घर लेके क्यों नही आए उसे....
सत्य बाबू –यही बोला मैने समझाया उसे....
गीता देवी – फिर क्या बोला अभय.....
सत्य बाबू ने सारी बात बताई जिसे सुन के गीता देवी कुछ बोलने जा रही थी कि तभी राज बीच में बोल पड़ा...
राज –(बातो के बीच में) ओह तो ये बात है तभी मैं सोचूं आज अभय को हुआ क्या है....
गीता देवी और सत्य बाबू एक साथ –(चौक के) क्या हुआ था अभय को....
फिर राज ने सारी घटना बताई लेकिन रमन और उर्मिला की बात छोड़ के जिसे सुन के गीता देवी और सत्य बाबू की आखें बड़ी हो गई...
गीता देवी –(गुस्से में सत्य बाबू से) आप ना कमाल करते हो क्या जरूरत थी अभय को ये बात बताने की बच्चा है वो अभी उसे क्या पता इतने साल उसके ना होने से क्या हुआ है गांव में और आपने उसे ही जिम्मेदार ठहरा दिया भला ये कोई तरीका होता है क्या एक बच्चे से बात करने का....
सत्या बाबू –(अपने सिर पे हाथ रख के) अरे भाग्यवान अभय को बताने का ये मकसद नही था मेरा मैं भी बस यही चाहता था वो संध्या से नफरत ना करे इसीलिए उसे सच बताया था...
गीता देवी –(मू बना के) सच बताने का एक तरीका भी होता है बताना होता तो मैं नही बता सकती थी अभय को सच या राज नही बता सकता था शुक्र है भगवान का कुछ अनर्थ नही हुआ वर्ना मू ना दिखा पाती मैं संध्या को कभी (राज से) और तू भी ध्यान रखना ऐसी वैसी कोई बात नही करना अभय से समझा ना....
राज – ठीक है मां....
गीता देवी – एक बात तो बता तुझे पता था ना अभय की ऐसी हालत है तो तू उसे हॉस्टल में छोड़ के कैसे आ गया घर ले आता उसे या वही रुक जाता , एक काम कर तू अभी जा अभय के पास वही सो जाके जाने कैसा दोस्त है , तू भी इनकी तरह हरकत कर रहा है.....
राज –अरे अरे मां ऐसा कुछ भी नही है अभय ठीक है अब....
गीता देवी – लेकिन अभी तो तूने कहा.....
राज – (अपने सिर पे हाथ रख के) मां बात असल में ये है की वहा पर जब ये सब हुआ तब हम आपस में बात कर रहे थे कि तभी वहा पर रमन और सरपंच की बीवी (उर्मिला) को देख लिया हमने , वो दोनो एक साथ यार्ड में खड़ी एसी वाली बोगी में चढ़ गए फिर....(बोल के चुप हो गया राज)....
गीता देवी – फिर क्या बोल आगे भी....
राज –(झिझक ते हुए) वो...मां....वो...मां....
सत्य बाबू – ये वो मां वो मां क्या लगा रखा आगे बोल क्या हुआ वहा पर.....
राज – देख मां नाराज मत होना तू वो रमन और उर्मिला काकी दोनो एक साथ (बोल के सर झुका दिया राज ने)....
गीता देवी –(बात का मतलब समझ के राज के कान पकड़ बोली) तो तू ये सब देखने गया था क्यों बोल....
राज –आ आ आ आ मां लग रही है मां तेरी कसम खाता हू वो सब देखने नही गए थे मां (फिर पूरी बात बता के)....
सत्या बाबू –(गुस्से में) नीच सिर्फ नीच ही रहता है थू है इसके ठाकुर होंने पर इतनी गिरी हरकत ठाकुर रतन सिंह का नाम मिट्टी में मिला रहा है रमन इससे अच्छा तो मनन ठाकुर था कम से कम भला करता था गांव के लोगो का और ये......
गीता देवी – जाने दीजिए क्या कर सकते है अब इस नीच इंसान का इसकी वजह से संध्या की आज ये हालत है बेटा पास होते हुए भी दूर है वो मां सुनने तक को तरस गई है अभय के मू से सब रमन के वजह से हुआ है जाने इतनी दौलत का क्या करेगा मरने के बाद (राज को देख गुस्से से) और तू अगर फिर कभी ऐसा कुछ हुआ या सुन लिया मैने तेरी खेर नही समझा....
राज –(हल्का हस के) हा मां पक्का....
अगले दिन सुबह अभय कॉलेज गया जहा उसे राज , राजू और लल्ला मिले...
अभय – आज कुछ है क्या कॉलेज में इतना सन्नाटा क्यों है यार....
राजू – अबे आज सुबह सुबह सरपंच ने बैठक बुलाई है गांव के लोगो की सब वही गए है....
अभय –(कुछ सोच के) सरपंच तो शहर गया हुआ था ना इतनी जल्दी कैसे आ गया यार....
राज – अबे कल रात को ठकुराइन का कॉल आया था मां को बोला रही थी सभी औरतों को लेके आने को बैठक में तभी लल्ला आया नही है कॉलेज....
अभय – पायल भी नही दिख रही है यार.....
राजू – हा भाई और नीलम भी नही दिख रही है.....
अभय – ओह हो तो ये बात है मतलब तू लाइन में लगा हुआ है या पता लिया तूने नीलम को....
राजू – भाई मान गई है नीलम बस कभी अकेले में घूमने का मौका नहीं मिलता है यह पर...
राज – मिलेगा मिलेगा जरूर मिलेगा मौका भी लेकिन अभी चल चलते है पंचायत में देखे क्या होने वाला है वहा पर....
बोल के तीनों निकल गए पंचायत की तरफ वहा पर एक तरफ रमन और सरपंच इनके दूसरी तरफ संध्या और साथ में चांदनी , ललिता और मालती बैठे थे और बाकी के सभी गांव वाले मौजूद थे एक तरफ गांव के बच्चे बूढ़े आदमी थे और दूसरी तरफ औरते तब सरपंच ने बोलना शुरू किया...
सरपंच – आज की बैठक हमारे गांव की ठकुराइन ने बुलाई है वह आप सबसे कुछ बात करना चाहती है....
संध्या –(सरपंच की बात सुन खड़ी होके सभी गांव वालो के सामने) काफी वक्त से आप सभी गांव वालो को कई तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ा यहां तक कि आपकी जमीन तक गिरवी में चली गई थी मैं उन सभी गलतियों के लिए आप सब से माफी मांगती हू और ये चाहती हू की आपकी जो भी समस्याएं है खेती को लेके या अनाज को लेके आप बिना झिजक के बताए खुल के मुझे मैं मदद करूगी बदले में कुछ भी नही मागूगी...
सरपंच – (बीच में ठकुराइन से) ठकुराइन गांव वालो को उनकी जमीन मिल गई है वापस उन्हें अब क्या जरूरत किसी चीज की...
संध्या –(बात बीच में काट के) यही बात गांव वाले खुद बोले तो यकीन आए मुझे (सभी गांव वालो से) तो बताए क्या सिर्फ जमीन मिलने पर आप खुश है और कोई समस्या नही आपको....
तभी एक गांव वाला बोला..
गांव वाला – ठकुराइन मैं अपने घर में इकलौता हू कमाने वाला मेरा खेत भी दूर है यहां से पानी वक्त से मिल नही पता है जिस कारण फसल बर्बाद हो जाती है और बैंक का ब्याज तक नहीं दे पता वक्त पर जिसके चलते बैंक वालो ने मेरी खेत की जमीन में कब्जा कर लिया है....
बोल के रोने लगा इसके साथ कई लोगो ने अपनी समस्या बताई खेती और बैंक के कर्जे को लेके जिसे सुन कर संध्या सरपंच को देख के बोली..
संध्या –अब क्या बोलते है आप सरपंच क्या ये काम होता है सरपंच का गांव में क्या इसीलिए आपको गांव में सरपंच के रूप में चुना गया था लगता है अब सरपंची आपके बस की रही नही...
गांव वाला बोला – (हाथ जोड़ के) ठकुराइन कई बार कोशिश की हमने अपनी समस्या आप तक पहुंचाने की लेकिन पिछले कई साल तक हमे ना हवेली की भीतर तो दूर सख्त मना कर दिया गया गांव का कोई बंदा हवेली की तरफ जाएगा भी नही और कॉलेज की जमीन के वक्त भी सरपंच के आगे गांव के कई लोग गिड़ गिड़ाये लेकिन सिवाय मायूसी के इलावा कुछ न मिला हमे....
संध्या –(बात सुनने के बाद गांव वालो से) काफी वक्त से गांव में सरपंची का चुनाव नही हुआ है क्या आपका कोई उम्मीद वार है ऐसा जिसे आप सरपंच के पड़ के लिए समझते हो लेकिन जरूरी नहीं वो आदमी हो औरत भी हो कोई दिक्कत नही...
इस बात से सरपंच के सर पर फूटा एक बॉम्ब साथ ही रमन के कान से धुवा निकलने लगा इतने गांव वालो के सामने संध्या से उसकी कुछ भी कहने की हिम्मत नही हो रही थी...
गांव वाले –(सब गीता देवी को आगे कर) ठकुराइन गीता देवी से बेहतर कोई नहीं संभाल सकता है सरपंच....
संध्या –(मुस्कुरा के) तो ये तय रहा इस बार गांव में सरपंच का पद गीता देवी संभालेगी....
शंकर (सरपंच)–(बीच में बात काट के) ठकुराइन ये गलता है इस तरह आप ये तय नही कर सकती कॉन सरपंच बनेगा कॉन नही इसकी मंजूरी के नियम होते है और कानून भी.....
संध्या –(बात सुन मुस्कुरा के) अच्छा तो जब गांव वालो को जरूरत थी तब कहा थे आप तब याद नही आया आपको नियम कानून जब गांव वालो की जमीन छीनी जा रही थी ब्याज के नाम पर तब चुप क्यों थे आप क्यों नही आए आप हवेली और क्यों नही आवाज उठाई आपने है कोई जवाब आपके पास इसके बाद भी अगर आप शिकायत करना चाहते है तो जाए लेकिन ध्यान रखिए बात का गांव वालो ने बदले में आपकी शिकायत कर दी तब क्या होगा आपका सोच लीजिए गा....
इस बात से जहा सब गांव वाले खुश हो गए इतने साल बाद संध्या का ठकुराइन वाला रूप देख वही सरपंच का मू बंद हो गया कुछ कहने लायक ना बचा और ना ही इन सब के बीच रमन की हिम्मत हुए कुछ बोल सके जबकि अभय ये नजारा देख मुस्कुराए जा रहा था...
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जारी रहेगा
अभय , राज , राजू और लल्ला चारो दोस्त ट्रेन की एसी बोगी में चिप के रमन और सरपंच को बीवी उर्मिला की रासलीला देखते रहे कुछ समय बिता था की तभी उर्मिला ने बोलना शुरू किया...
उर्मिला –क्या बात है ठाकुर साहब आज आप बहुत जोश में थे....
रमन –(उर्मिला की बात सुन हल्का मुस्कुरा के) तू चीज ही ऐसी है मेरी जान....
उर्मिला –(मुस्कुरा के) लगता है लल्लीता से मन भर गया है आपका....
रमन – वो साली क्या साथ देगी मेरा उसका दिमाग घुटनो में पड़ा रहता है या तो हवेली में लगी रहेगी या अपनी बेटी के साथ....
उर्मिला – (मू बना के) कितनी बार कहा आपसे मुझे हवेली में रख लो हमेशा के लिए बस आपकी बाहों में रहूंगी हमेशा लेकिन आप हो के सुनते कहा हो....
रमन – तू तो जानती है मेरी रानी मेरे हाथ में कुछ भी नही है....
उर्मिला –ये बात आप जाने कितने सालों से बोल रहे हो ऐसे तो आप कभी हवेली में नही ले जाओगे मुझे.....
रमन – क्या बताओ मेरी रानी पहले तो सब मेरे हाथ में था हवेली की बाग डोर और संध्या भी लेकिन जब से उसका उसका बेटा अभय हवेली से भागा है तब से संध्या मेरे हाथ में नही रही इसीलिए धीरे धीरे इत्मीनान से उसे काबू में करने में लगा हुआ था मैं लेकिन फिर इतने साल बाद एक लौंडे के आ जाने से वो पागल सी हो गई है संध्या जाने कहा कहा से गड़े मुर्दे उखड़ने में लगी है.....
उर्मिला – वही लड़का ना जिसने गांव में आते ही गांव वालो को जमीन आपके हाथ से निकल गई....
रमन – है वही लौंडा की वजह से हुआ है ये सब वो साली उसे अपना बेटा अभय समझ रही है....
उर्मिला – (चौक के) कही सच में वो उसका बेटा अभय तो नही....
रमन – अरे नही मेरी जान वो कोई अभय नही है वो तो डी आई जी शालिनी सिन्हा का बेटा है जो शहर से यहां कॉलेज में पढ़ने आया है....
उर्मिला – शहर से यहां गांव में पढ़ने अजीब बात है.....
रमन – कोई अजीब बात नही है मुफ्त में पढ़ने आया है यहां स्कॉलरशिप मिली है उस लौंडे को , आते ही इत्तेफाक से संध्या से मुलाकात हो गई उसकी रास्ते में जाने क्या बात हुई रास्ते में ऐसी उसे अपना बेटा समझने लगी संध्या तब से हाथ से निकल गई है मेरे.....
उर्मिला – (मुस्कुरा के) इतने साल फायदा भी तो खूब उठाया है आपने ठकुराइन का....
रमन – क्या खाक फायदा मिला मुझे साली गांव की जमीन निकल गई मेरे हाथ से बस एक बार कॉलेज की नीव पड़ जाति उस जमीन पर तो चाह के भी कोई कुछ नही कर पता उस जमीन में डिग्री कॉलेज बनने से लेकिन उस लौंडे ने आके....
उर्मिला – (हस के) तो फिर से ऐसा कुछ कर दो आप जिससे जमीन भी आपकी हो जाय और ठकुराइन भी जैसे आपने दस साल पहले किया था जंगल में मिली बच्चे की लाश को अभय के स्कूल के कपड़े पहना कर उसे अभय साबित कर दिया था....
रमन – नही अभी मैं कुछ नही कर सकता हू संध्या को शक हो गया है मेरे उपर अब उसे भी लगने लगा है इन सब में मेरा भी हाथ है बस सबूत न मिलने की वजह से बचा हुआ हू मै वर्ना अब तक बुरा फस गया होता मैं....
उर्मिला – ठाकुर साहब इस चक्कर में अपनी बेटी को मत भूल जाना आप पूनम आपकी बेटी है ना की उस सरपंच शंकर चौधरी की इतने सालो में उसे मैने शक तक होने नही दिया इस बात का....
रमन – तू चिंता मत कर ऐसा वैसा कुछ नही होने दुगा मैं जरूरत पड़ी तो रास्ते से हटा दुगा उस लौंडे को रही संध्या की बात 3 दिन बाद जन्मदिन है उसका इस बार हवेली में पार्टी जरूर होगी खुद संध्या देगी वो पार्टी उस लौंडे के दिखाने के लिए उस दिन संध्या को मना लूगा मैं और नही भी हुआ ऐसा तो भी कोई बात नही आखिर मेरा भी हक बनता है हवेली और जायदाद पर....
उर्मिला – अब सब कुछ आपके हाथ है ठाकुर साहब मुझे सिर्फ हमारी बेटी की चिंता है.....
रमन – फिक्र मत कर तू चल जल्दी से कपड़े पहन ले...
उर्मिला – (बीच में बात काटते हुए) इतनी भी जल्दी क्या है ठाकुर साहब आज मैं फुरसत से आई हू आपके पास शंकर गया हुआ है शहर काम से और बेटी गई है अपनी सहेली के घर उसके जन्म दिन के लिए आज वही रहेगी वो...
रमन – वाह मेरी जान तूने तो मेरी रात बना दी आज की आजा….
बोल के दोनो शुरू हो गए अपनी काम लीला में जिसके बाद राज , अभय , राजू और लल्ला चुप चाप दबे पांव निकल गए ट्रेन की बोगी से , बाहर आते ही चारो दोस्त जल्दी से अभय की बाइक के पास आ गए तब राज बोला...
राज –(अभय से) तूने देखा और सुना , कुछ समझ आया तुझे...अभय चुप रहा बस अपना सर उपर आसमान में करके के देखता रहा जिसे देख राज बोला...
राज – (हल्का सा हस के) चल चलते है हमलोग यहां से , घर भी जाना है मां और बाब राह देख रहे होगे मेरी...
राज की बात सुन राजू बोला...
राजू – हा यार चल अब रुक के क्या फायदा होगा साली ने अरमान जगा दिया मेरे...
लल्ला – (राजू की बात सुन के) यार ये सरपंच की बीवी साली कंचा माल है यार....
राज –(दोनो की बात सुन के) अबे पगला गए हो क्या बे तुम दोनो....
राजू – अबे ओ ज्यादा शरीफ मत बन अरमान तो तेरे भी जाग गए है नीचे देख के बात कर बे....
राज –(अपनी पैंट में बने तंबू को देख मुस्कुरा के) हा यार वो सरपंच की बीवी ने सच में अरमानों को हिला दियारे....
लल्ला – क्यों अभय बाबू क्या बोलते हो तुम अब तो वो गुस्सा नही दिख रहा है तेरे चेहरे पर लगता है सरपंच की बीवी की जवानी का जादू चल गया है तेरे ऊपर भी.....
राज – (हस्ते हुए) साले तभी मू छुपा रहा है देखो तो जरा साले को....
अभय –(हस्ते हुए) ओय संभाल के राज वर्ना दीदी को बता दुगा तू क्या कर रहा है....
राज – (हस के) हा हा जैसे मैं नही बोलूगा पायल से कुछ भी क्यों बे....बोल कर चारो दोस्त हसने लगे और निकल गए घर की तरफ रास्ते में राजू और लल्ला अपनी साइकिल से घर निकल गए जबकि अभय और राज एक साथ बाइक में हॉस्टल आ गए...
राज – (अभय से) चल भाई हॉस्टल आ गया तेरा....अभय – यार मन नही कर रहा आज अकेले रहने का.....
राज –(हसके) इरादा तो नेक है तेरे....
अभय – नही यार वो बात नही है....
राज –(बात समझ के) देख अभय जो हुआ जैसे हुआ तेरे सामने है सब कुछ कैसा भी हो लेकिन छुपता नही है कभी सामने आ जाता है एक ना एक दिन उस दिन बगीचे में तूने जो बात बोल के निकल गया था वो भी अधूर...
अभय –(राज की बात काट अपना मू बना के) यार तू कहा की बात कहा ले जा रहा है देख जो भी देखा और जो भी सुना मैने सब समझ गया बात को अब जाने दे सब बातो को तू जा घर बड़ी मां राह देख रही होगी तेरी कल मिलते है....
राज बाइक खड़ी करके जाने लगा तभी अभय बोला...
अभय – अबे पैदल जाएगा क्या बाइक से जा रात हो गई है काफी कितना सन्नाटा भी है...
राज – लेकिन कल सुबह तू कैसे आयगा....
अभय – मेरी चिंता मत कर भाई पैदल आ जाऊंगा कल कॉलेज में ले लूगा बाइक तेरे से....
राज घर की तरफ निकल गया और अभय हॉस्टल के अन्दर चला गया कमरे में आते ही दरवाजा बंद करके लेट गया अभय बेड में...
अभय – (अपने आप से बोलने लगा) एक बात तो समझ आ गई ये सारा खेल रमन ठाकुर का खेला हुआ है रमन ठाकुर तुझे लगता है इस खेल को खेल के तू पूरी तरह से कामयाब हो गया है लेकिन नही आज कसम खाता हू मै अपने बाप की गिन गिन के बदला लूगा मैं तुझसे हर उस मार का जो तूने और तेरे बेटे की वजह से मिली बिना वजह उस ठकुराइन से मुझे , वैसा ही खेल को खेलूगा मैं भी , गांव वालो का तूने खून चूसा है ना , ब्याज के साथ उसकी कीमत दिलाऊगा उन गांव वालो को तेरे से मैं , रही उस ठकुराइन की बात सबक उसे भी मिलेगा जरूर लेकिन आराम से जब तक दीदी उसके साथ है मुझे ऐसा वैसा कुछ भी करने नही देगी लेकिन मैं करूंगा तो जरूर (अपनी पॉकेट से मोबाइल निकल के किसी को कॉल कर बोला) हेलो कैसी हो अल्लित्ता....
अलित्ता – (अभय की आवाज सुन के) मस्त हू तुम कैसे हो आज इतने दिन बाद कॉल किया तुमने....
अभय – अच्छा हू मै भी , एक काम है तुमसे....
अलित्ता – हा बोलो ना क्या सेवा करूं तुम्हारी....
अभय – बस कुछ सामान की जरूरत है मुझे...
अलित्ता – क्यों अपनी दीदी से बोल देते वो मना कर देती क्या....
अभय – ऐसी बात नही है अलित्ता असल में दीदी कभी मना नही करेगी मुझे लेकिन मैं दीदी को बिना बताए काम करना चाहता हू.....
अलित्ता –(अभय की बात समझ के) क्या चाहिए तुम्हे बोलो मैं अरेंज करवाती हू जल्द ही.....
अभय – मैं मैसेज करता हू तुम्हे डिटेल्स....
अलित्ता – ठीक है मैसेज करो तुम डिटेल्स परसो तक मिल जाएगा तुम्हे सारा समान.....
अभय – ठीक है और थैंक्यू अलित्ता.....
अलित्ता – (मुस्कुरा के) कोई बात नही तुम्हे जब भी जरूरत हो कॉल कर लेना मुझे ठीक है बाए....
बोल के अभय ने कॉल कट कर मैसेज कर दिया डिटेल को जिसे पड़ के अलित्ता के बगल में बैठे KING को डिटेल्स दिखाई जिसे देख KING बोला...
KING – (डिटेल्स पड़ के) भेज दो ये सामान उसे , लगता है अभय अब अपने कदमों को आगे बड़ा रहा है अकेले बिना किसी की मदद के जरूर कुछ जानकारी मिली है उसे अच्छा है.....
अलित्ता – आखिर ठाकुर का खून है उबाल तो मारेगा ही ना...
KING – उम्मीद करता हू अभय जो भी काम करने जा रहा हो उससे ठाकुर साहब की आत्मा को शांति मिले....
अलित्ता – हा ऐसा ही होगा जरूर.....
इस तरफ अभय बेड में लेता हुआ था तभी संध्या का कॉल आया जिसे देख अभय ने रुक के कॉल रिसीव कर कान में लगाया...
संध्या – (कुछ सेकंड चुप रहने के बाद) कैसे हो तुम....
अभय – (धीरे से) अच्छा हू....
संध्या – (अभय की आवाज सुन) खाना खा लिया तुमने....
अभय – हा अभी आराम कर रहा हू मै....
संध्या – घर वापस आजा....
अभय – देख मैं तेरे से आराम से बात कर रहा हू इसका मतलब ये नही तेरी फरमाइश भी पूरी करूगा.....
संध्या – 3 दिन बाद एक पार्टी रखी है हवेली में....
अभय –हा जनता हू जन्मदिन जो है तेरा....
संध्या – तुझे याद है तू...तू आएगा ना देख प्लीज माना मत करना तू आगया है ना इसीलिए पहली बार मना रही हू....
अभय – (हस के) मेरा क्या काम है तेरी पार्टी में और भी तो तेरे खास लोग आएंगे उसमे भला मेरे जैसों का कोई मोल नहीं तेरी पार्टी में या कही नौकर तो काम नही पड़ गए तुझे इसीलिए बुला रही है मुझे....
संध्या – ऐसा तो मत बोल कोई नही आएगा बस घर के है लोग...
अभय – लेकिन मेरी गिनती तेरे घर के लोगो में नही आती...
संध्या –(रोते हुए) ऐसा मत बोल सबसे कोई मतलब नहीं मेरा बस तुझ से मतलब है बस तू आजा बदले में जो बोल मैं वो करूगी....
अभय – सिर्फ मेरे लिए इतना बोल रही क्योंकि आज मैं यहां हू उससे पहले कभी सोचा तूने इन गांव वालो का जिनकी जमीनों में कर्ज के नाम पर कब्जा किया जा रहा था जबरन तरीके से तब देखा तूने....
संध्या – तेरे इलावा कोई नही मेरा तूही मेरा सब कुछ है तेरी कसम खा के बोलती हू मुझे सच में कुछ नही पता था इस बारे में....
अभय –(संध्या की ये बात सुन के चुप रह कुछ सेकंड फिर बोला) तू नही जानती इस वजह से कितना कुछ झेला है गांव वालो ने कर्ज के बदले ब्याज पर ब्याज लिया गया उनसे जो रोज तपती धूप में खेती करते ताकी अपने परिवार का पेट भर सके सोच इतने सालो में उनके साथ क्या क्या नहीं हुआ होगा उनके दर्द का कोई अंदाजा नही लगा सकता (रूंधे गले से) अगर बाबा होते ऐसा कभी नहीं होने देते...
बोल के फोन कट कर दिया अभय ने इस तरफ हवेली में संध्या के संग चांदनी बैठी सारी बाते सुन रही थी...
चांदनी – (रोती हुई संध्या को गले लगा के) बस करिए मत रोइए....
संध्या –(आसू पोच के) नही चांदनी आज इतने दिनो बाद उसने मुझ से बात की आराम से बिल्कुल अपने बाबा की तरह सोचता है अपने से पहले दूसरो के बारे में....
चांदनी – आप खुश है ना....
संध्या – बहुत खुश हू आज मैं (चांदनी का हाथ पकड़ के) शुक्रिया चांदनी तुम्हारी वजह से ये हुआ है...
चांदनी – नही ठकुराइन इसमें शुक्रिया जैसी कोई बात नही है ये मेरा फर्ज है अभय भाई है मेरा उसके लिए नही करूंगी तो किसके लिए करूगी....
संध्या – ये तू मुझे ठकुराइन क्यों बोलती रहती है शालिनी जी को बहन माना है मैने तो तू मुझे मासी बोला कर अब से....
चांदनी – लेकिन सिर्फ आपको अकेले में....
संध्या – कोई जरूरत नहीं है सबसे सामने बोलेगी बेझिजक....
चांदनी –(मुस्कुरा के) ठीक है मासी अब खुश हो आप....
संध्या – (गले लगा के) हा बहुत खुश हू , चल अब सोजा कल तुझे मेरे साथ चलना है तुझे दिखाओगी गांव की मीटिंग जहा सरपंच बैठक लगाते है सभी गांव वालो की....
चांदनी – लेकिन वहा पर क्या काम मेरा...
संध्या – (मुस्कुरा के) वो तू कल खुद देख लेना चल अब सोजा सुबह जल्दी चलना है....
चांदनी –(मुस्कुरा के) जैसा आप कहे मासी.....
हस के चांदनी चली गई अपने कमरे में आराम करने चांदनी के जाने के बाद संध्या ने शंकर चौधरी (सरपंच) को कॉल किया..
संध्या –(कॉल पर) हेलो शंकर....
शंकर (सरपंच) – प्रणाम ठकुराइन इतने वक्त याद किया आपने...
संध्या – जी ये कहने के लिए कॉल किया की कल पूरे गांव वालो को बैठक बुलाइए गा और ध्यान रहे सभी गांव वाले होने चाहिए वहा पर..
शंकर (सरपंच) – कुछ जरूरी काम है ठकुराइन....
संध्या – जी कल वही पर बात होगी सबके सामने वक्त पे तयार होके आइए गा.....
बोल के कॉल कट कर दिया जबकि शंकर चौधरी (सरपंच) को शहर गया हुआ था काम से उसने कॉल लगाया रमन ठाकुर को को इस वक्त सरपंच की बीवी उर्मिला के साथ कामलीला में लगा हुआ था....
रमन –(मोबाइल में सरपंच का कॉल देख के उर्मिला से) तूने तो बोला था शंकर शहर गया हुआ है....
उर्मिला – हा क्यों क्या हुआ...
रमन –(अपना मोबाइल दिखा के जिस्म3 शंकर की कॉल आ रही थी) तो इस वक्त क्यों कॉल कर रहा है ये...
उर्मिला –(चौक के) पता नही देखिए जरा क्या बात है...
रमन –(कॉल उठा के स्पीकर में डाल के) हा सरपंच बोल क्या बात है...
शंकर (सरपंच) – हवेली में कोई बात हुई है क्या ठाकुर साहेब...
रमन – नही तो क्यों क्या हुआ...
शंकर (सरपंच) –(संध्या की कही सारी बात बता के) अब क्या करना है ठाकुर साहब...
रमन –(सरपंच की बात सुन हैरान होके) जाने अब क्या खिचड़ी पका रही है ये औरत साली चैन से सास तक लेने नही देती है एक काम कर जो कहा है वो की तू बाकी मैं भी कल रहूंगा वहा पर देखते है क्या करने वाली है ये औरत अब....
उर्मिला –(रमन का कॉल कट होते बोली) ये सब अचानक से क्यों ठाकुर साहब...
रमन –यही बात तो मुझे भी समझ नही आ रही है चल तू कपड़े पहन ले मैं तुझे घर छोड़ देता हू फिर हवेली जाके देखता हू क्या माजरा है ये...इधर हवेली में संध्या ने एक कॉल और मिलाया गीता देवी को...
संध्या – (कॉल पर गीता देवी से) दीदी कैसी हो आप...
गीता देवी – अच्छी हू तूने इतने वक्त कॉल किया सब ठीक तो है न संध्या...
संध्या – हा दीदी सब ठीक है मैने सरपंच को बोल के कल सभी गांव वालो की बैठक बुलवाई है मैं चाहती हू आप सभी गांव की औरतों को साथ लेके आए वहा पर....
गीता देवी –(हैरान होके) ऐसी क्या बात है संध्या ये अचनक से बैठक सभी गांव वालो को....
संध्या – आप ज्यादा सवाल मत पूछिए दीदी बस कल सभी को लेक आ जायेगा.....
गीता देवी –(संध्या को बात सुन के) ठीक है कल आ जाऊंगी
बोल के दोनो ने कॉल कट कर दिया उसी समय राज और सत्य बाबू पास में बैठे थे सत्य बाबू बोले...
सत्य बाबू – क्या बात है सब ठीक तो है ना हवेली में....
गीता देवी – हा सब ठीक है (फिर जो बात हो गई सब बता दिया) देखते है कल क्या होता है बैठक में.....
सत्य बाबू – कमाल की बात आज ही मुझे अभय मिला था....
गीता देवी – अभय मिला था आपको तो घर लेके क्यों नही आए उसे....
सत्य बाबू –यही बोला मैने समझाया उसे....
गीता देवी – फिर क्या बोला अभय.....
सत्य बाबू ने सारी बात बताई जिसे सुन के गीता देवी कुछ बोलने जा रही थी कि तभी राज बीच में बोल पड़ा...
राज –(बातो के बीच में) ओह तो ये बात है तभी मैं सोचूं आज अभय को हुआ क्या है....
गीता देवी और सत्य बाबू एक साथ –(चौक के) क्या हुआ था अभय को....
फिर राज ने सारी घटना बताई लेकिन रमन और उर्मिला की बात छोड़ के जिसे सुन के गीता देवी और सत्य बाबू की आखें बड़ी हो गई...
गीता देवी –(गुस्से में सत्य बाबू से) आप ना कमाल करते हो क्या जरूरत थी अभय को ये बात बताने की बच्चा है वो अभी उसे क्या पता इतने साल उसके ना होने से क्या हुआ है गांव में और आपने उसे ही जिम्मेदार ठहरा दिया भला ये कोई तरीका होता है क्या एक बच्चे से बात करने का....
सत्या बाबू –(अपने सिर पे हाथ रख के) अरे भाग्यवान अभय को बताने का ये मकसद नही था मेरा मैं भी बस यही चाहता था वो संध्या से नफरत ना करे इसीलिए उसे सच बताया था...
गीता देवी –(मू बना के) सच बताने का एक तरीका भी होता है बताना होता तो मैं नही बता सकती थी अभय को सच या राज नही बता सकता था शुक्र है भगवान का कुछ अनर्थ नही हुआ वर्ना मू ना दिखा पाती मैं संध्या को कभी (राज से) और तू भी ध्यान रखना ऐसी वैसी कोई बात नही करना अभय से समझा ना....
राज – ठीक है मां....
गीता देवी – एक बात तो बता तुझे पता था ना अभय की ऐसी हालत है तो तू उसे हॉस्टल में छोड़ के कैसे आ गया घर ले आता उसे या वही रुक जाता , एक काम कर तू अभी जा अभय के पास वही सो जाके जाने कैसा दोस्त है , तू भी इनकी तरह हरकत कर रहा है.....
राज –अरे अरे मां ऐसा कुछ भी नही है अभय ठीक है अब....
गीता देवी – लेकिन अभी तो तूने कहा.....
राज – (अपने सिर पे हाथ रख के) मां बात असल में ये है की वहा पर जब ये सब हुआ तब हम आपस में बात कर रहे थे कि तभी वहा पर रमन और सरपंच की बीवी (उर्मिला) को देख लिया हमने , वो दोनो एक साथ यार्ड में खड़ी एसी वाली बोगी में चढ़ गए फिर....(बोल के चुप हो गया राज)....
गीता देवी – फिर क्या बोल आगे भी....
राज –(झिझक ते हुए) वो...मां....वो...मां....
सत्य बाबू – ये वो मां वो मां क्या लगा रखा आगे बोल क्या हुआ वहा पर.....
राज – देख मां नाराज मत होना तू वो रमन और उर्मिला काकी दोनो एक साथ (बोल के सर झुका दिया राज ने)....
गीता देवी –(बात का मतलब समझ के राज के कान पकड़ बोली) तो तू ये सब देखने गया था क्यों बोल....
राज –आ आ आ आ मां लग रही है मां तेरी कसम खाता हू वो सब देखने नही गए थे मां (फिर पूरी बात बता के)....
सत्या बाबू –(गुस्से में) नीच सिर्फ नीच ही रहता है थू है इसके ठाकुर होंने पर इतनी गिरी हरकत ठाकुर रतन सिंह का नाम मिट्टी में मिला रहा है रमन इससे अच्छा तो मनन ठाकुर था कम से कम भला करता था गांव के लोगो का और ये......
गीता देवी – जाने दीजिए क्या कर सकते है अब इस नीच इंसान का इसकी वजह से संध्या की आज ये हालत है बेटा पास होते हुए भी दूर है वो मां सुनने तक को तरस गई है अभय के मू से सब रमन के वजह से हुआ है जाने इतनी दौलत का क्या करेगा मरने के बाद (राज को देख गुस्से से) और तू अगर फिर कभी ऐसा कुछ हुआ या सुन लिया मैने तेरी खेर नही समझा....
राज –(हल्का हस के) हा मां पक्का....
अगले दिन सुबह अभय कॉलेज गया जहा उसे राज , राजू और लल्ला मिले...
अभय – आज कुछ है क्या कॉलेज में इतना सन्नाटा क्यों है यार....
राजू – अबे आज सुबह सुबह सरपंच ने बैठक बुलाई है गांव के लोगो की सब वही गए है....
अभय –(कुछ सोच के) सरपंच तो शहर गया हुआ था ना इतनी जल्दी कैसे आ गया यार....
राज – अबे कल रात को ठकुराइन का कॉल आया था मां को बोला रही थी सभी औरतों को लेके आने को बैठक में तभी लल्ला आया नही है कॉलेज....
अभय – पायल भी नही दिख रही है यार.....
राजू – हा भाई और नीलम भी नही दिख रही है.....
अभय – ओह हो तो ये बात है मतलब तू लाइन में लगा हुआ है या पता लिया तूने नीलम को....
राजू – भाई मान गई है नीलम बस कभी अकेले में घूमने का मौका नहीं मिलता है यह पर...
राज – मिलेगा मिलेगा जरूर मिलेगा मौका भी लेकिन अभी चल चलते है पंचायत में देखे क्या होने वाला है वहा पर....
बोल के तीनों निकल गए पंचायत की तरफ वहा पर एक तरफ रमन और सरपंच इनके दूसरी तरफ संध्या और साथ में चांदनी , ललिता और मालती बैठे थे और बाकी के सभी गांव वाले मौजूद थे एक तरफ गांव के बच्चे बूढ़े आदमी थे और दूसरी तरफ औरते तब सरपंच ने बोलना शुरू किया...
सरपंच – आज की बैठक हमारे गांव की ठकुराइन ने बुलाई है वह आप सबसे कुछ बात करना चाहती है....
संध्या –(सरपंच की बात सुन खड़ी होके सभी गांव वालो के सामने) काफी वक्त से आप सभी गांव वालो को कई तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ा यहां तक कि आपकी जमीन तक गिरवी में चली गई थी मैं उन सभी गलतियों के लिए आप सब से माफी मांगती हू और ये चाहती हू की आपकी जो भी समस्याएं है खेती को लेके या अनाज को लेके आप बिना झिजक के बताए खुल के मुझे मैं मदद करूगी बदले में कुछ भी नही मागूगी...
सरपंच – (बीच में ठकुराइन से) ठकुराइन गांव वालो को उनकी जमीन मिल गई है वापस उन्हें अब क्या जरूरत किसी चीज की...
संध्या –(बात बीच में काट के) यही बात गांव वाले खुद बोले तो यकीन आए मुझे (सभी गांव वालो से) तो बताए क्या सिर्फ जमीन मिलने पर आप खुश है और कोई समस्या नही आपको....
तभी एक गांव वाला बोला..
गांव वाला – ठकुराइन मैं अपने घर में इकलौता हू कमाने वाला मेरा खेत भी दूर है यहां से पानी वक्त से मिल नही पता है जिस कारण फसल बर्बाद हो जाती है और बैंक का ब्याज तक नहीं दे पता वक्त पर जिसके चलते बैंक वालो ने मेरी खेत की जमीन में कब्जा कर लिया है....
बोल के रोने लगा इसके साथ कई लोगो ने अपनी समस्या बताई खेती और बैंक के कर्जे को लेके जिसे सुन कर संध्या सरपंच को देख के बोली..
संध्या –अब क्या बोलते है आप सरपंच क्या ये काम होता है सरपंच का गांव में क्या इसीलिए आपको गांव में सरपंच के रूप में चुना गया था लगता है अब सरपंची आपके बस की रही नही...
गांव वाला बोला – (हाथ जोड़ के) ठकुराइन कई बार कोशिश की हमने अपनी समस्या आप तक पहुंचाने की लेकिन पिछले कई साल तक हमे ना हवेली की भीतर तो दूर सख्त मना कर दिया गया गांव का कोई बंदा हवेली की तरफ जाएगा भी नही और कॉलेज की जमीन के वक्त भी सरपंच के आगे गांव के कई लोग गिड़ गिड़ाये लेकिन सिवाय मायूसी के इलावा कुछ न मिला हमे....
संध्या –(बात सुनने के बाद गांव वालो से) काफी वक्त से गांव में सरपंची का चुनाव नही हुआ है क्या आपका कोई उम्मीद वार है ऐसा जिसे आप सरपंच के पड़ के लिए समझते हो लेकिन जरूरी नहीं वो आदमी हो औरत भी हो कोई दिक्कत नही...
इस बात से सरपंच के सर पर फूटा एक बॉम्ब साथ ही रमन के कान से धुवा निकलने लगा इतने गांव वालो के सामने संध्या से उसकी कुछ भी कहने की हिम्मत नही हो रही थी...
गांव वाले –(सब गीता देवी को आगे कर) ठकुराइन गीता देवी से बेहतर कोई नहीं संभाल सकता है सरपंच....
संध्या –(मुस्कुरा के) तो ये तय रहा इस बार गांव में सरपंच का पद गीता देवी संभालेगी....
शंकर (सरपंच)–(बीच में बात काट के) ठकुराइन ये गलता है इस तरह आप ये तय नही कर सकती कॉन सरपंच बनेगा कॉन नही इसकी मंजूरी के नियम होते है और कानून भी.....
संध्या –(बात सुन मुस्कुरा के) अच्छा तो जब गांव वालो को जरूरत थी तब कहा थे आप तब याद नही आया आपको नियम कानून जब गांव वालो की जमीन छीनी जा रही थी ब्याज के नाम पर तब चुप क्यों थे आप क्यों नही आए आप हवेली और क्यों नही आवाज उठाई आपने है कोई जवाब आपके पास इसके बाद भी अगर आप शिकायत करना चाहते है तो जाए लेकिन ध्यान रखिए बात का गांव वालो ने बदले में आपकी शिकायत कर दी तब क्या होगा आपका सोच लीजिए गा....
इस बात से जहा सब गांव वाले खुश हो गए इतने साल बाद संध्या का ठकुराइन वाला रूप देख वही सरपंच का मू बंद हो गया कुछ कहने लायक ना बचा और ना ही इन सब के बीच रमन की हिम्मत हुए कुछ बोल सके जबकि अभय ये नजारा देख मुस्कुराए जा रहा था...
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जारी रहेगा
अभय , राज , राजू और लल्ला चारो दोस्त ट्रेन की एसी बोगी में चिप के रमन और सरपंच को बीवी उर्मिला की रासलीला देखते रहे कुछ समय बिता था की तभी उर्मिला ने बोलना शुरू किया...
उर्मिला –क्या बात है ठाकुर साहब आज आप बहुत जोश में थे....
रमन –(उर्मिला की बात सुन हल्का मुस्कुरा के) तू चीज ही ऐसी है मेरी जान....
उर्मिला –(मुस्कुरा के) लगता है लल्लीता से मन भर गया है आपका....
रमन – वो साली क्या साथ देगी मेरा उसका दिमाग घुटनो में पड़ा रहता है या तो हवेली में लगी रहेगी या अपनी बेटी के साथ....
उर्मिला – (मू बना के) कितनी बार कहा आपसे मुझे हवेली में रख लो हमेशा के लिए बस आपकी बाहों में रहूंगी हमेशा लेकिन आप हो के सुनते कहा हो....
रमन – तू तो जानती है मेरी रानी मेरे हाथ में कुछ भी नही है....
उर्मिला –ये बात आप जाने कितने सालों से बोल रहे हो ऐसे तो आप कभी हवेली में नही ले जाओगे मुझे.....
रमन – क्या बताओ मेरी रानी पहले तो सब मेरे हाथ में था हवेली की बाग डोर और संध्या भी लेकिन जब से उसका उसका बेटा अभय हवेली से भागा है तब से संध्या मेरे हाथ में नही रही इसीलिए धीरे धीरे इत्मीनान से उसे काबू में करने में लगा हुआ था मैं लेकिन फिर इतने साल बाद एक लौंडे के आ जाने से वो पागल सी हो गई है संध्या जाने कहा कहा से गड़े मुर्दे उखड़ने में लगी है.....
उर्मिला – वही लड़का ना जिसने गांव में आते ही गांव वालो को जमीन आपके हाथ से निकल गई....
रमन – है वही लौंडा की वजह से हुआ है ये सब वो साली उसे अपना बेटा अभय समझ रही है....
उर्मिला – (चौक के) कही सच में वो उसका बेटा अभय तो नही....
रमन – अरे नही मेरी जान वो कोई अभय नही है वो तो डी आई जी शालिनी सिन्हा का बेटा है जो शहर से यहां कॉलेज में पढ़ने आया है....
उर्मिला – शहर से यहां गांव में पढ़ने अजीब बात है.....
रमन – कोई अजीब बात नही है मुफ्त में पढ़ने आया है यहां स्कॉलरशिप मिली है उस लौंडे को , आते ही इत्तेफाक से संध्या से मुलाकात हो गई उसकी रास्ते में जाने क्या बात हुई रास्ते में ऐसी उसे अपना बेटा समझने लगी संध्या तब से हाथ से निकल गई है मेरे.....
उर्मिला – (मुस्कुरा के) इतने साल फायदा भी तो खूब उठाया है आपने ठकुराइन का....
रमन – क्या खाक फायदा मिला मुझे साली गांव की जमीन निकल गई मेरे हाथ से बस एक बार कॉलेज की नीव पड़ जाति उस जमीन पर तो चाह के भी कोई कुछ नही कर पता उस जमीन में डिग्री कॉलेज बनने से लेकिन उस लौंडे ने आके....
उर्मिला – (हस के) तो फिर से ऐसा कुछ कर दो आप जिससे जमीन भी आपकी हो जाय और ठकुराइन भी जैसे आपने दस साल पहले किया था जंगल में मिली बच्चे की लाश को अभय के स्कूल के कपड़े पहना कर उसे अभय साबित कर दिया था....
रमन – नही अभी मैं कुछ नही कर सकता हू संध्या को शक हो गया है मेरे उपर अब उसे भी लगने लगा है इन सब में मेरा भी हाथ है बस सबूत न मिलने की वजह से बचा हुआ हू मै वर्ना अब तक बुरा फस गया होता मैं....
उर्मिला – ठाकुर साहब इस चक्कर में अपनी बेटी को मत भूल जाना आप पूनम आपकी बेटी है ना की उस सरपंच शंकर चौधरी की इतने सालो में उसे मैने शक तक होने नही दिया इस बात का....
रमन – तू चिंता मत कर ऐसा वैसा कुछ नही होने दुगा मैं जरूरत पड़ी तो रास्ते से हटा दुगा उस लौंडे को रही संध्या की बात 3 दिन बाद जन्मदिन है उसका इस बार हवेली में पार्टी जरूर होगी खुद संध्या देगी वो पार्टी उस लौंडे के दिखाने के लिए उस दिन संध्या को मना लूगा मैं और नही भी हुआ ऐसा तो भी कोई बात नही आखिर मेरा भी हक बनता है हवेली और जायदाद पर....
उर्मिला – अब सब कुछ आपके हाथ है ठाकुर साहब मुझे सिर्फ हमारी बेटी की चिंता है.....
रमन – फिक्र मत कर तू चल जल्दी से कपड़े पहन ले...
उर्मिला – (बीच में बात काटते हुए) इतनी भी जल्दी क्या है ठाकुर साहब आज मैं फुरसत से आई हू आपके पास शंकर गया हुआ है शहर काम से और बेटी गई है अपनी सहेली के घर उसके जन्म दिन के लिए आज वही रहेगी वो...
रमन – वाह मेरी जान तूने तो मेरी रात बना दी आज की आजा….
बोल के दोनो शुरू हो गए अपनी काम लीला में जिसके बाद राज , अभय , राजू और लल्ला चुप चाप दबे पांव निकल गए ट्रेन की बोगी से , बाहर आते ही चारो दोस्त जल्दी से अभय की बाइक के पास आ गए तब राज बोला...
राज –(अभय से) तूने देखा और सुना , कुछ समझ आया तुझे...अभय चुप रहा बस अपना सर उपर आसमान में करके के देखता रहा जिसे देख राज बोला...
राज – (हल्का सा हस के) चल चलते है हमलोग यहां से , घर भी जाना है मां और बाब राह देख रहे होगे मेरी...
राज की बात सुन राजू बोला...
राजू – हा यार चल अब रुक के क्या फायदा होगा साली ने अरमान जगा दिया मेरे...
लल्ला – (राजू की बात सुन के) यार ये सरपंच की बीवी साली कंचा माल है यार....
राज –(दोनो की बात सुन के) अबे पगला गए हो क्या बे तुम दोनो....
राजू – अबे ओ ज्यादा शरीफ मत बन अरमान तो तेरे भी जाग गए है नीचे देख के बात कर बे....
राज –(अपनी पैंट में बने तंबू को देख मुस्कुरा के) हा यार वो सरपंच की बीवी ने सच में अरमानों को हिला दियारे....
लल्ला – क्यों अभय बाबू क्या बोलते हो तुम अब तो वो गुस्सा नही दिख रहा है तेरे चेहरे पर लगता है सरपंच की बीवी की जवानी का जादू चल गया है तेरे ऊपर भी.....
राज – (हस्ते हुए) साले तभी मू छुपा रहा है देखो तो जरा साले को....
अभय –(हस्ते हुए) ओय संभाल के राज वर्ना दीदी को बता दुगा तू क्या कर रहा है....
राज – (हस के) हा हा जैसे मैं नही बोलूगा पायल से कुछ भी क्यों बे....बोल कर चारो दोस्त हसने लगे और निकल गए घर की तरफ रास्ते में राजू और लल्ला अपनी साइकिल से घर निकल गए जबकि अभय और राज एक साथ बाइक में हॉस्टल आ गए...
राज – (अभय से) चल भाई हॉस्टल आ गया तेरा....अभय – यार मन नही कर रहा आज अकेले रहने का.....
राज –(हसके) इरादा तो नेक है तेरे....
अभय – नही यार वो बात नही है....
राज –(बात समझ के) देख अभय जो हुआ जैसे हुआ तेरे सामने है सब कुछ कैसा भी हो लेकिन छुपता नही है कभी सामने आ जाता है एक ना एक दिन उस दिन बगीचे में तूने जो बात बोल के निकल गया था वो भी अधूर...
अभय –(राज की बात काट अपना मू बना के) यार तू कहा की बात कहा ले जा रहा है देख जो भी देखा और जो भी सुना मैने सब समझ गया बात को अब जाने दे सब बातो को तू जा घर बड़ी मां राह देख रही होगी तेरी कल मिलते है....
राज बाइक खड़ी करके जाने लगा तभी अभय बोला...
अभय – अबे पैदल जाएगा क्या बाइक से जा रात हो गई है काफी कितना सन्नाटा भी है...
राज – लेकिन कल सुबह तू कैसे आयगा....
अभय – मेरी चिंता मत कर भाई पैदल आ जाऊंगा कल कॉलेज में ले लूगा बाइक तेरे से....
राज घर की तरफ निकल गया और अभय हॉस्टल के अन्दर चला गया कमरे में आते ही दरवाजा बंद करके लेट गया अभय बेड में...
अभय – (अपने आप से बोलने लगा) एक बात तो समझ आ गई ये सारा खेल रमन ठाकुर का खेला हुआ है रमन ठाकुर तुझे लगता है इस खेल को खेल के तू पूरी तरह से कामयाब हो गया है लेकिन नही आज कसम खाता हू मै अपने बाप की गिन गिन के बदला लूगा मैं तुझसे हर उस मार का जो तूने और तेरे बेटे की वजह से मिली बिना वजह उस ठकुराइन से मुझे , वैसा ही खेल को खेलूगा मैं भी , गांव वालो का तूने खून चूसा है ना , ब्याज के साथ उसकी कीमत दिलाऊगा उन गांव वालो को तेरे से मैं , रही उस ठकुराइन की बात सबक उसे भी मिलेगा जरूर लेकिन आराम से जब तक दीदी उसके साथ है मुझे ऐसा वैसा कुछ भी करने नही देगी लेकिन मैं करूंगा तो जरूर (अपनी पॉकेट से मोबाइल निकल के किसी को कॉल कर बोला) हेलो कैसी हो अल्लित्ता....
अलित्ता – (अभय की आवाज सुन के) मस्त हू तुम कैसे हो आज इतने दिन बाद कॉल किया तुमने....
अभय – अच्छा हू मै भी , एक काम है तुमसे....
अलित्ता – हा बोलो ना क्या सेवा करूं तुम्हारी....
अभय – बस कुछ सामान की जरूरत है मुझे...
अलित्ता – क्यों अपनी दीदी से बोल देते वो मना कर देती क्या....
अभय – ऐसी बात नही है अलित्ता असल में दीदी कभी मना नही करेगी मुझे लेकिन मैं दीदी को बिना बताए काम करना चाहता हू.....
अलित्ता –(अभय की बात समझ के) क्या चाहिए तुम्हे बोलो मैं अरेंज करवाती हू जल्द ही.....
अभय – मैं मैसेज करता हू तुम्हे डिटेल्स....
अलित्ता – ठीक है मैसेज करो तुम डिटेल्स परसो तक मिल जाएगा तुम्हे सारा समान.....
अभय – ठीक है और थैंक्यू अलित्ता.....
अलित्ता – (मुस्कुरा के) कोई बात नही तुम्हे जब भी जरूरत हो कॉल कर लेना मुझे ठीक है बाए....
बोल के अभय ने कॉल कट कर मैसेज कर दिया डिटेल को जिसे पड़ के अलित्ता के बगल में बैठे KING को डिटेल्स दिखाई जिसे देख KING बोला...
KING – (डिटेल्स पड़ के) भेज दो ये सामान उसे , लगता है अभय अब अपने कदमों को आगे बड़ा रहा है अकेले बिना किसी की मदद के जरूर कुछ जानकारी मिली है उसे अच्छा है.....
अलित्ता – आखिर ठाकुर का खून है उबाल तो मारेगा ही ना...
KING – उम्मीद करता हू अभय जो भी काम करने जा रहा हो उससे ठाकुर साहब की आत्मा को शांति मिले....
अलित्ता – हा ऐसा ही होगा जरूर.....
इस तरफ अभय बेड में लेता हुआ था तभी संध्या का कॉल आया जिसे देख अभय ने रुक के कॉल रिसीव कर कान में लगाया...
संध्या – (कुछ सेकंड चुप रहने के बाद) कैसे हो तुम....
अभय – (धीरे से) अच्छा हू....
संध्या – (अभय की आवाज सुन) खाना खा लिया तुमने....
अभय – हा अभी आराम कर रहा हू मै....
संध्या – घर वापस आजा....
अभय – देख मैं तेरे से आराम से बात कर रहा हू इसका मतलब ये नही तेरी फरमाइश भी पूरी करूगा.....
संध्या – 3 दिन बाद एक पार्टी रखी है हवेली में....
अभय –हा जनता हू जन्मदिन जो है तेरा....
संध्या – तुझे याद है तू...तू आएगा ना देख प्लीज माना मत करना तू आगया है ना इसीलिए पहली बार मना रही हू....
अभय – (हस के) मेरा क्या काम है तेरी पार्टी में और भी तो तेरे खास लोग आएंगे उसमे भला मेरे जैसों का कोई मोल नहीं तेरी पार्टी में या कही नौकर तो काम नही पड़ गए तुझे इसीलिए बुला रही है मुझे....
संध्या – ऐसा तो मत बोल कोई नही आएगा बस घर के है लोग...
अभय – लेकिन मेरी गिनती तेरे घर के लोगो में नही आती...
संध्या –(रोते हुए) ऐसा मत बोल सबसे कोई मतलब नहीं मेरा बस तुझ से मतलब है बस तू आजा बदले में जो बोल मैं वो करूगी....
अभय – सिर्फ मेरे लिए इतना बोल रही क्योंकि आज मैं यहां हू उससे पहले कभी सोचा तूने इन गांव वालो का जिनकी जमीनों में कर्ज के नाम पर कब्जा किया जा रहा था जबरन तरीके से तब देखा तूने....
संध्या – तेरे इलावा कोई नही मेरा तूही मेरा सब कुछ है तेरी कसम खा के बोलती हू मुझे सच में कुछ नही पता था इस बारे में....
अभय –(संध्या की ये बात सुन के चुप रह कुछ सेकंड फिर बोला) तू नही जानती इस वजह से कितना कुछ झेला है गांव वालो ने कर्ज के बदले ब्याज पर ब्याज लिया गया उनसे जो रोज तपती धूप में खेती करते ताकी अपने परिवार का पेट भर सके सोच इतने सालो में उनके साथ क्या क्या नहीं हुआ होगा उनके दर्द का कोई अंदाजा नही लगा सकता (रूंधे गले से) अगर बाबा होते ऐसा कभी नहीं होने देते...
बोल के फोन कट कर दिया अभय ने इस तरफ हवेली में संध्या के संग चांदनी बैठी सारी बाते सुन रही थी...
चांदनी – (रोती हुई संध्या को गले लगा के) बस करिए मत रोइए....
संध्या –(आसू पोच के) नही चांदनी आज इतने दिनो बाद उसने मुझ से बात की आराम से बिल्कुल अपने बाबा की तरह सोचता है अपने से पहले दूसरो के बारे में....
चांदनी – आप खुश है ना....
संध्या – बहुत खुश हू आज मैं (चांदनी का हाथ पकड़ के) शुक्रिया चांदनी तुम्हारी वजह से ये हुआ है...
चांदनी – नही ठकुराइन इसमें शुक्रिया जैसी कोई बात नही है ये मेरा फर्ज है अभय भाई है मेरा उसके लिए नही करूंगी तो किसके लिए करूगी....
संध्या – ये तू मुझे ठकुराइन क्यों बोलती रहती है शालिनी जी को बहन माना है मैने तो तू मुझे मासी बोला कर अब से....
चांदनी – लेकिन सिर्फ आपको अकेले में....
संध्या – कोई जरूरत नहीं है सबसे सामने बोलेगी बेझिजक....
चांदनी –(मुस्कुरा के) ठीक है मासी अब खुश हो आप....
संध्या – (गले लगा के) हा बहुत खुश हू , चल अब सोजा कल तुझे मेरे साथ चलना है तुझे दिखाओगी गांव की मीटिंग जहा सरपंच बैठक लगाते है सभी गांव वालो की....
चांदनी – लेकिन वहा पर क्या काम मेरा...
संध्या – (मुस्कुरा के) वो तू कल खुद देख लेना चल अब सोजा सुबह जल्दी चलना है....
चांदनी –(मुस्कुरा के) जैसा आप कहे मासी.....
हस के चांदनी चली गई अपने कमरे में आराम करने चांदनी के जाने के बाद संध्या ने शंकर चौधरी (सरपंच) को कॉल किया..
संध्या –(कॉल पर) हेलो शंकर....
शंकर (सरपंच) – प्रणाम ठकुराइन इतने वक्त याद किया आपने...
संध्या – जी ये कहने के लिए कॉल किया की कल पूरे गांव वालो को बैठक बुलाइए गा और ध्यान रहे सभी गांव वाले होने चाहिए वहा पर..
शंकर (सरपंच) – कुछ जरूरी काम है ठकुराइन....
संध्या – जी कल वही पर बात होगी सबके सामने वक्त पे तयार होके आइए गा.....
बोल के कॉल कट कर दिया जबकि शंकर चौधरी (सरपंच) को शहर गया हुआ था काम से उसने कॉल लगाया रमन ठाकुर को को इस वक्त सरपंच की बीवी उर्मिला के साथ कामलीला में लगा हुआ था....
रमन –(मोबाइल में सरपंच का कॉल देख के उर्मिला से) तूने तो बोला था शंकर शहर गया हुआ है....
उर्मिला – हा क्यों क्या हुआ...
रमन –(अपना मोबाइल दिखा के जिस्म3 शंकर की कॉल आ रही थी) तो इस वक्त क्यों कॉल कर रहा है ये...
उर्मिला –(चौक के) पता नही देखिए जरा क्या बात है...
रमन –(कॉल उठा के स्पीकर में डाल के) हा सरपंच बोल क्या बात है...
शंकर (सरपंच) – हवेली में कोई बात हुई है क्या ठाकुर साहेब...
रमन – नही तो क्यों क्या हुआ...
शंकर (सरपंच) –(संध्या की कही सारी बात बता के) अब क्या करना है ठाकुर साहब...
रमन –(सरपंच की बात सुन हैरान होके) जाने अब क्या खिचड़ी पका रही है ये औरत साली चैन से सास तक लेने नही देती है एक काम कर जो कहा है वो की तू बाकी मैं भी कल रहूंगा वहा पर देखते है क्या करने वाली है ये औरत अब....
उर्मिला –(रमन का कॉल कट होते बोली) ये सब अचानक से क्यों ठाकुर साहब...
रमन –यही बात तो मुझे भी समझ नही आ रही है चल तू कपड़े पहन ले मैं तुझे घर छोड़ देता हू फिर हवेली जाके देखता हू क्या माजरा है ये...इधर हवेली में संध्या ने एक कॉल और मिलाया गीता देवी को...
संध्या – (कॉल पर गीता देवी से) दीदी कैसी हो आप...
गीता देवी – अच्छी हू तूने इतने वक्त कॉल किया सब ठीक तो है न संध्या...
संध्या – हा दीदी सब ठीक है मैने सरपंच को बोल के कल सभी गांव वालो की बैठक बुलवाई है मैं चाहती हू आप सभी गांव की औरतों को साथ लेके आए वहा पर....
गीता देवी –(हैरान होके) ऐसी क्या बात है संध्या ये अचनक से बैठक सभी गांव वालो को....
संध्या – आप ज्यादा सवाल मत पूछिए दीदी बस कल सभी को लेक आ जायेगा.....
गीता देवी –(संध्या को बात सुन के) ठीक है कल आ जाऊंगी
बोल के दोनो ने कॉल कट कर दिया उसी समय राज और सत्य बाबू पास में बैठे थे सत्य बाबू बोले...
सत्य बाबू – क्या बात है सब ठीक तो है ना हवेली में....
गीता देवी – हा सब ठीक है (फिर जो बात हो गई सब बता दिया) देखते है कल क्या होता है बैठक में.....
सत्य बाबू – कमाल की बात आज ही मुझे अभय मिला था....
गीता देवी – अभय मिला था आपको तो घर लेके क्यों नही आए उसे....
सत्य बाबू –यही बोला मैने समझाया उसे....
गीता देवी – फिर क्या बोला अभय.....
सत्य बाबू ने सारी बात बताई जिसे सुन के गीता देवी कुछ बोलने जा रही थी कि तभी राज बीच में बोल पड़ा...
राज –(बातो के बीच में) ओह तो ये बात है तभी मैं सोचूं आज अभय को हुआ क्या है....
गीता देवी और सत्य बाबू एक साथ –(चौक के) क्या हुआ था अभय को....
फिर राज ने सारी घटना बताई लेकिन रमन और उर्मिला की बात छोड़ के जिसे सुन के गीता देवी और सत्य बाबू की आखें बड़ी हो गई...
गीता देवी –(गुस्से में सत्य बाबू से) आप ना कमाल करते हो क्या जरूरत थी अभय को ये बात बताने की बच्चा है वो अभी उसे क्या पता इतने साल उसके ना होने से क्या हुआ है गांव में और आपने उसे ही जिम्मेदार ठहरा दिया भला ये कोई तरीका होता है क्या एक बच्चे से बात करने का....
सत्या बाबू –(अपने सिर पे हाथ रख के) अरे भाग्यवान अभय को बताने का ये मकसद नही था मेरा मैं भी बस यही चाहता था वो संध्या से नफरत ना करे इसीलिए उसे सच बताया था...
गीता देवी –(मू बना के) सच बताने का एक तरीका भी होता है बताना होता तो मैं नही बता सकती थी अभय को सच या राज नही बता सकता था शुक्र है भगवान का कुछ अनर्थ नही हुआ वर्ना मू ना दिखा पाती मैं संध्या को कभी (राज से) और तू भी ध्यान रखना ऐसी वैसी कोई बात नही करना अभय से समझा ना....
राज – ठीक है मां....
गीता देवी – एक बात तो बता तुझे पता था ना अभय की ऐसी हालत है तो तू उसे हॉस्टल में छोड़ के कैसे आ गया घर ले आता उसे या वही रुक जाता , एक काम कर तू अभी जा अभय के पास वही सो जाके जाने कैसा दोस्त है , तू भी इनकी तरह हरकत कर रहा है.....
राज –अरे अरे मां ऐसा कुछ भी नही है अभय ठीक है अब....
गीता देवी – लेकिन अभी तो तूने कहा.....
राज – (अपने सिर पे हाथ रख के) मां बात असल में ये है की वहा पर जब ये सब हुआ तब हम आपस में बात कर रहे थे कि तभी वहा पर रमन और सरपंच की बीवी (उर्मिला) को देख लिया हमने , वो दोनो एक साथ यार्ड में खड़ी एसी वाली बोगी में चढ़ गए फिर....(बोल के चुप हो गया राज)....
गीता देवी – फिर क्या बोल आगे भी....
राज –(झिझक ते हुए) वो...मां....वो...मां....
सत्य बाबू – ये वो मां वो मां क्या लगा रखा आगे बोल क्या हुआ वहा पर.....
राज – देख मां नाराज मत होना तू वो रमन और उर्मिला काकी दोनो एक साथ (बोल के सर झुका दिया राज ने)....
गीता देवी –(बात का मतलब समझ के राज के कान पकड़ बोली) तो तू ये सब देखने गया था क्यों बोल....
राज –आ आ आ आ मां लग रही है मां तेरी कसम खाता हू वो सब देखने नही गए थे मां (फिर पूरी बात बता के)....
सत्या बाबू –(गुस्से में) नीच सिर्फ नीच ही रहता है थू है इसके ठाकुर होंने पर इतनी गिरी हरकत ठाकुर रतन सिंह का नाम मिट्टी में मिला रहा है रमन इससे अच्छा तो मनन ठाकुर था कम से कम भला करता था गांव के लोगो का और ये......
गीता देवी – जाने दीजिए क्या कर सकते है अब इस नीच इंसान का इसकी वजह से संध्या की आज ये हालत है बेटा पास होते हुए भी दूर है वो मां सुनने तक को तरस गई है अभय के मू से सब रमन के वजह से हुआ है जाने इतनी दौलत का क्या करेगा मरने के बाद (राज को देख गुस्से से) और तू अगर फिर कभी ऐसा कुछ हुआ या सुन लिया मैने तेरी खेर नही समझा....
राज –(हल्का हस के) हा मां पक्का....
अगले दिन सुबह अभय कॉलेज गया जहा उसे राज , राजू और लल्ला मिले...
अभय – आज कुछ है क्या कॉलेज में इतना सन्नाटा क्यों है यार....
राजू – अबे आज सुबह सुबह सरपंच ने बैठक बुलाई है गांव के लोगो की सब वही गए है....
अभय –(कुछ सोच के) सरपंच तो शहर गया हुआ था ना इतनी जल्दी कैसे आ गया यार....
राज – अबे कल रात को ठकुराइन का कॉल आया था मां को बोला रही थी सभी औरतों को लेके आने को बैठक में तभी लल्ला आया नही है कॉलेज....
अभय – पायल भी नही दिख रही है यार.....
राजू – हा भाई और नीलम भी नही दिख रही है.....
अभय – ओह हो तो ये बात है मतलब तू लाइन में लगा हुआ है या पता लिया तूने नीलम को....
राजू – भाई मान गई है नीलम बस कभी अकेले में घूमने का मौका नहीं मिलता है यह पर...
राज – मिलेगा मिलेगा जरूर मिलेगा मौका भी लेकिन अभी चल चलते है पंचायत में देखे क्या होने वाला है वहा पर....
बोल के तीनों निकल गए पंचायत की तरफ वहा पर एक तरफ रमन और सरपंच इनके दूसरी तरफ संध्या और साथ में चांदनी , ललिता और मालती बैठे थे और बाकी के सभी गांव वाले मौजूद थे एक तरफ गांव के बच्चे बूढ़े आदमी थे और दूसरी तरफ औरते तब सरपंच ने बोलना शुरू किया...
सरपंच – आज की बैठक हमारे गांव की ठकुराइन ने बुलाई है वह आप सबसे कुछ बात करना चाहती है....
संध्या –(सरपंच की बात सुन खड़ी होके सभी गांव वालो के सामने) काफी वक्त से आप सभी गांव वालो को कई तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ा यहां तक कि आपकी जमीन तक गिरवी में चली गई थी मैं उन सभी गलतियों के लिए आप सब से माफी मांगती हू और ये चाहती हू की आपकी जो भी समस्याएं है खेती को लेके या अनाज को लेके आप बिना झिजक के बताए खुल के मुझे मैं मदद करूगी बदले में कुछ भी नही मागूगी...
सरपंच – (बीच में ठकुराइन से) ठकुराइन गांव वालो को उनकी जमीन मिल गई है वापस उन्हें अब क्या जरूरत किसी चीज की...
संध्या –(बात बीच में काट के) यही बात गांव वाले खुद बोले तो यकीन आए मुझे (सभी गांव वालो से) तो बताए क्या सिर्फ जमीन मिलने पर आप खुश है और कोई समस्या नही आपको....
तभी एक गांव वाला बोला..
गांव वाला – ठकुराइन मैं अपने घर में इकलौता हू कमाने वाला मेरा खेत भी दूर है यहां से पानी वक्त से मिल नही पता है जिस कारण फसल बर्बाद हो जाती है और बैंक का ब्याज तक नहीं दे पता वक्त पर जिसके चलते बैंक वालो ने मेरी खेत की जमीन में कब्जा कर लिया है....
बोल के रोने लगा इसके साथ कई लोगो ने अपनी समस्या बताई खेती और बैंक के कर्जे को लेके जिसे सुन कर संध्या सरपंच को देख के बोली..
संध्या –अब क्या बोलते है आप सरपंच क्या ये काम होता है सरपंच का गांव में क्या इसीलिए आपको गांव में सरपंच के रूप में चुना गया था लगता है अब सरपंची आपके बस की रही नही...
गांव वाला बोला – (हाथ जोड़ के) ठकुराइन कई बार कोशिश की हमने अपनी समस्या आप तक पहुंचाने की लेकिन पिछले कई साल तक हमे ना हवेली की भीतर तो दूर सख्त मना कर दिया गया गांव का कोई बंदा हवेली की तरफ जाएगा भी नही और कॉलेज की जमीन के वक्त भी सरपंच के आगे गांव के कई लोग गिड़ गिड़ाये लेकिन सिवाय मायूसी के इलावा कुछ न मिला हमे....
संध्या –(बात सुनने के बाद गांव वालो से) काफी वक्त से गांव में सरपंची का चुनाव नही हुआ है क्या आपका कोई उम्मीद वार है ऐसा जिसे आप सरपंच के पड़ के लिए समझते हो लेकिन जरूरी नहीं वो आदमी हो औरत भी हो कोई दिक्कत नही...
इस बात से सरपंच के सर पर फूटा एक बॉम्ब साथ ही रमन के कान से धुवा निकलने लगा इतने गांव वालो के सामने संध्या से उसकी कुछ भी कहने की हिम्मत नही हो रही थी...
गांव वाले –(सब गीता देवी को आगे कर) ठकुराइन गीता देवी से बेहतर कोई नहीं संभाल सकता है सरपंच....
संध्या –(मुस्कुरा के) तो ये तय रहा इस बार गांव में सरपंच का पद गीता देवी संभालेगी....
शंकर (सरपंच)–(बीच में बात काट के) ठकुराइन ये गलता है इस तरह आप ये तय नही कर सकती कॉन सरपंच बनेगा कॉन नही इसकी मंजूरी के नियम होते है और कानून भी.....
संध्या –(बात सुन मुस्कुरा के) अच्छा तो जब गांव वालो को जरूरत थी तब कहा थे आप तब याद नही आया आपको नियम कानून जब गांव वालो की जमीन छीनी जा रही थी ब्याज के नाम पर तब चुप क्यों थे आप क्यों नही आए आप हवेली और क्यों नही आवाज उठाई आपने है कोई जवाब आपके पास इसके बाद भी अगर आप शिकायत करना चाहते है तो जाए लेकिन ध्यान रखिए बात का गांव वालो ने बदले में आपकी शिकायत कर दी तब क्या होगा आपका सोच लीजिए गा....
इस बात से जहा सब गांव वाले खुश हो गए इतने साल बाद संध्या का ठकुराइन वाला रूप देख वही सरपंच का मू बंद हो गया कुछ कहने लायक ना बचा और ना ही इन सब के बीच रमन की हिम्मत हुए कुछ बोल सके जबकि अभय ये नजारा देख मुस्कुराए जा रहा था...
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जारी रहेगा
चांदनी और संध्या जैसे ही कामरान के घर के अन्दर आए अपने सामने कामरान की लाश को पंखे पे लटकते हुए पाया जिसे देख दोनो की आखें बड़ी हो गईं तभी एक छोटी बच्ची पे नजर गई दोनो की जो जमीन में बैठी पंखे पे लटक रहे कामरान को देख पापा पापा कर रही थी जिसे देख संध्या उसके पास तुरंत गई और बच्ची को अपनी गोद में उठा लिया इस पहले दोनो में कोई कुछ बोलता या करता के तभी बगल के कमरे से दो आदमी निकल के संध्या और चांदनी को धक्का देके तुरंत भागे घर के बाहर....
काफी जोर से धक्का देने की वजह से संध्या के साथ चांदनी अपना बैलेंस संभाल ना पाई दोनो गिर पड़े जमीन पर लेकिन किस्मत से दोनो में से किसी को कुछ नही हुआ तभी घर के बाहर से किसी की आवाज आई जिसे सुन चांदनी ने बाहर जाके देखा उसकी टीम के 3 लोगो ने उन दोनो लोगो को पकड़ के मार रहे थे जिसे देख चांदनी बोली...
चांदनी – (अपने साथियों को देख) तुम तीनो यहां पर कैसे
आरव – चीफ ने नजर बनाए रखने को कहा था ठकुराइन पर , हमने xx गांव की पुलिस को कॉल कर दिया है वो आती होगी
चांदनी – ठीक है इन्हे ले जाओ अच्छे से खातिर दारी करके जानकारी निकालो इनसे
आरव – ठीक है मैडम
बोल के आरव अपने दोनो साथी के साथ उन दोनो आदमी को लेके निकल गया उनके जाते ही चांदनी वापस घर में गई जहा संध्या बच्चे को गोद लिए हुई थी...
चांदनी – हमे चलना चाहिए यहां से xx गांव की पुलिस यहां आ रही है
संध्या – ठीक है चलो (बोल के बच्चे को साथ ले जाने लगी तभी)
चांदनी – ठकुराइन बच्चे को यही छोड़ना होगा बच्चे को नही ले जा सकते है
संध्या – लेकिन चांदनी बच्चे को यहां कैसे छोड़ सकते है वो भी अकेले यहां कोई और दिख भी नही रहा है
चांदनी – पर पुलिस को क्या कहेंगे हम आप जानते हो मैं अपनी जानकारी नहीं दे सकती
संध्या – मैं बात कर लूंगी तुम परेशान मत हो
संध्या की बात पर चांदनी ने अपना सर हा बोल के घर में इधर उधर देखने लगी तभी चांदनी को कुछ दिखा लाश (कामरान) की जेब में उसे धीरे से निकाल के पढ़ने लगी जिसमे एक पहेली लिखी थी..
#(अगर तुम इंसाफ हो तो सच सच बताना आखों पे पट्टी बांधने का क्या लोगे हर्जाना)#
चांदनी – (पहेली को पड़ के) क्या मतलब हुआ इसका
इससे पहले चांदनी कुछ बोलती तभी पुलिस सायरन की आवाज आई कुछ सेकंड में पुलिस कामरान के घर में दाखिल हुई अपने सामने ठकुराइन को देख...
पुलिस – नमस्ते ठकुराइन आप यहां पर
संध्या – जी हम यहां अपने जरूरी काम से मिलने आए थे थानेदार से लेकिन यहां आते ही ये देखने को मिला
पुलिस – तो वो कॉल आपकी तरफ से आया था हमे
चांदनी –(बीच में) जी हा इंस्पेक्टर साहेब मैने किया था
इसके बाद पुलिस अपना काम करने लगी धीरे से कामरान की लाश को नीचे उतारा गया जिसे देख कामरान की बेटी संध्या की गोद में बैठे बैठे पापा पापा करने लगी उसकी आवाज सुन एक पल के लिए चांदनी और संध्या के आसू निकल आए...
घर की छान बीन करने से बेहोशी की हालत में मेड मिली जो बच्चे की देख भाल करती थी उसे होश में लाके जानकारी ली गई जिससे पता चला कामरान की बीवी साल भर पहले मर गई थी जिस वजह से कामरान के बच्चे की देख रेख मेड करती थी जानकारी मिलने के बाद संध्या बोली पुलिस से...
संध्या – (पुलिस से) आपको जो भी कागजी करवाही करनी हो करे आज से ये बच्ची की जिम्मेदारी मेरी है अब से ये हमारे साथ रहेगी
पुलिस – ठकुराइन हमे कोई दिक्कत नही है अगर कोई इसका रिश्तेदार आ गया तो...
संध्या – अगर ऐसा हुआ तो हम बात कर लगे उससे
इसके बाद पुलिस वहा से चली गई उनके जाते ही संध्या और चांदनी बच्चे को लेके निकल गई रास्ते में चांदनी बोली..
चांदनी – आप बच्चे को साथ क्यों ले आए अपने
संध्या – चांदनी एक बार अनजाने में मैने जो किया उसकी सजा मैं आज तक भुगत रही हू भले इसके पिता ने गलत किया हो लेकिन उसकी सजा इस मासूम बच्ची को क्यों मिले इसीलिए ले आई अपने साथ...
चांदनी –(मुस्कुरा के) आपने बिलकुल सही फैसला लिया ठकुराइन जी
संध्या – लेकिन एक बात समझ में नहीं आ रही है मुझे किसने मारा होगा कामरान को घर में मेड को बेहोश कर दिया
चांदनी – जिसने भी ये किया है वो कामरान को सिर्फ मारने आया था उसने बच्चे को कुछ नही किया बस मेड को बेहोश कर दिया और कामरान को मारने के बाद उसे पंखे में लटका दिया ताकि आत्महत्या लगे लेकिन किस्मत से हम थोड़ा जल्दी आ गए कातिल को सब कुछ सेट करने का मौका नहीं मिला
संध्या – हम कामरान से मिलने जा रहे है ये बात पुलिस स्टेशन में हवलदारों को पता थी
चांदनी – और रमन ठाकुर को
संध्या – (हैरान होके) कही रमन ने नही मार दिया कामरान को
चांदनी – कुछ कह नही सकती मै इस बारे में , अब तो रमन से बात करके है पता चलेगा
थोड़ी देर में हवेली में आ गए संध्या और चांदनी बच्चे के साथ जिसे देख मालती और ललिता बोली..
ललिता – अरे दीदी बच्चे को कहा से लाए आप
संध्या –(कामरान के घर जो हुआ उसे बता के) उससे मिलने गई थी तभी ये सब हुआ
ललिता – (चौक के) उसे कोई क्यों मरेगा दीदी
संध्या – पता नही ललिता मुझे भी समझ नही आई बात
मालती –(बच्चे को गोद में लेके) बहुत अच्छा किया आपने दीदी जो बच्चे को ले आए यहां पर...
बोल के बच्चे के साथ खेलने लगी मालती जिसे देख संध्या और ललिता बाकी की बात भूल कर मुस्कुरा उठे अपने कमरे में चले गए...
खेर ये तो इनके साथ हुआ आपने देखा अब जरा थोड़ा पीछे चलते है जब रमन हवेली से निकला था कामरान के घर उससे मिलने के लिए लेकिन रास्ते में रमन की मुलाकात हो गई अभय से क्योंकि अभय निकला था अपने दोस्तो से मिलने के लिए बाइक लेके उसी वक्त रमन तेजी से निकल रहा था अपनी कार से तभी रास्ते में रमन की कार अचानक से अभय की बाइक के सामने आ गई एक्सीडेंट होते बचा जिसके बाद..
रमन –(अपनी कार से निकलते ही) अंधा है क्या देख के नही चल सकता है
अभय –(गुस्से में) अंधा तो तू है जिसे सामने से आती हुई गाड़ी नही दिख रही थी
रमन –(गुस्से में) सुन बे लौंडे तेरी ये हरकतों से तू उस संध्या को बेवकूफ बना सकता है मुझे नहीं अच्छे से समझता हू तुम्हारे जैसे लोगो को चंद पैसे के लिए कैसे किसी के जज्बातों के साथ खेलते है
अभय –(हस्ते हुए) क्या कहा तूने जज्बातों के साथ मैं खेल रहा हू अगर ऐसा है तो तू क्या कर रहा है जिसे सब गांव वालो के सामने भाभी बोलता था आज उसी का नाम लेके बोल रहा है मुझे समझ में नहीं आई ये बात बेवकूफ कॉन है तू या वो ठकुराइन अगर मेरी पूछो तो तुम दोनो ही बेवकूफ हो अवल दर्जे के
रमन – (गुस्से में अभय का कॉलर पकड़ के) बहुत बोल लिया तूने लौंडे
इससे पहले की रमन आगे कुछ बोलता तभी अभय ने लगातार दो घुसे मारे नाक पर उसके बाद रमन का कॉलर पकड़ के बोला...
अभय – अपने ये ठाकुरों वाला रोब गांव के कमजोर और मजबूर लोगो को दिखा अगर दोबारा मेरे गिरेबान में हाथ डाला तेरा वो हाथ तोड़ के तेरे पिछवाड़े में घुसेड़ दुगा समझा , अब अपनी नाक को संभाल और जा डॉक्टर को दिखा दे कही तेरी नाक ना काट जाय...
बोल के अभय बाइक लेके चला गया पीछे रमन अपनी नाक पकड़े डॉक्टर के पास चला गया काफी देर अस्पताल में लगने की वजह से रमन जा नही पाया कामरान के घर और थक हार कर रमन हवेली वापसी निकल गया जहा संध्या और चांदनी पहले आ चुके थे रमन हवेली में आते ही...
ललिता – (अपने पति को नाक पर बैंडेज देख) ये क्या आपकी नाक पर पट्टी क्या हो गया
रमन – रास्ते में वो लौंडा मिला एक नंबर का बत्तमीज निकला कार चलाते वक्त अचानक से सामने आ गया जब बोला मैने तो हाथ उठा लिया मुझपर...
हाल में बैठे अमन , मालती , संध्या , चांदनी , निधि और शनाया बाते सुन रहे थे तभी अमन बोला...
अमन – (संध्या से) देखा आपने अब वो लौंडा इस हद तक बत्तमीजी पे उतर आया है बड़ो तक का लिहाज नही करता
संध्या – वैसे ही जैसे तुम कॉलेज में अपने टीचर्स का लिहाज नही करते...
संध्या की बात सुन अमन का मू बंद हो गया लेकिन रमन ने बोलना शुरू किया...
रमन – भाभी बात किसके बारे में हो रही है और आप किसको बोल रही हो
संध्या –(रमन की बात सुन के) रमन सामने वाले पर उंगली उठाने से पहले देख लेना चाहिए खुद के हाथ की तीन उंगली तुम्हारे तरफ इशारा कर रही है
रमन – (चौक के) क्या मतलब है आपका
संध्या – यही की पुलिस में एफ आई आर कभी हुई ही नहीं थी और ना ही उस लाश का पोस्ट मॉर्टम हुआ था किस बात की जल्दी थी तुम्हे जानना तक जरूरी नहीं समझा वो लाश किसकी है आखिर
रमन – (हड़बड़ा के) भाभी उस वक्त हालत ही ऐसे थे हवेली के हर कोई अभय के जाने के गम में था
संध्या – अच्छा इसीलिए तुमने मुनीम से कहल वाया पुलिस को की ठकुराइन एफ आई आर नही करना चाहती क्यों यही बात है ना
रमन – (घबरा के) भाभी ऐसी कोई बात नही है मैं तो...
संध्या –(बात काटते हुए) तो क्या बात है कही मुनीम को सपना तो नहीं आया जो चला गया पुलिस स्टेशन मना करने एफ आई आर के लिए बोलो यही बात है क्या
रमन –(जान छुड़ाने के चक्कर में) मैं कल ही पता करवाता हू भाभी
संध्या –कोई जरूरत नहीं है कुछ भी करने की अब जो करना होगा वो मैं खुद करूगी , भरोसे की कीमत मैं पहले चुका चुकी हू अब और नहीं (नौकर से) जल्दी से खाना लगाओ..
खाना खा के सब अपने कमरों में जाने लगे तभी संध्या ने चांदनी को इशारे से अपने कमरे में आने के लिए कहा...
चांदनी – (संध्या के कमरे में आके) आपने बुलाया
संध्या – चांदनी मुझे शालिनी जी से बात करनी है बात करा
चांदनी –(मुस्कुरा के अपनी मां शालिनी को कॉल करती है) हेलो मां कैसी हो आप
शालिनी – मैं अच्छी हू तू बता कैसी है
चांदनी – मैं भी अच्छी हू मां ठकुराइन जी आपसे बात करना चाहती है
संध्या –(चांदनी से फोन लेते हुए) नमस्ते शालिनी जी
शालिनी – नमस्ते ठकुराइन जी कैसी है आप
संध्या – बस ठीक हू शालिनी जी बाकी आप जानती है
शालिनी – जी आप बिलकुल बेफिक्र रहिए ठकुराइन जी सब ठीक हो जाएगा जल्दी ही
संध्या –बस इसी उम्मीद में जी रही हू और प्लीज आप मुझे नाम से बुलाए
शालिनी – (मुस्कुरा के) एक शर्त पर आप भी मुझे नाम लेके बात करेगी तभी
संध्या – (मुस्कुरा के) जी ठीक है
शालिनी – अब बताए आप कुछ बात करना चाहती है
संध्या – मुझे आपकी मदद की जरूरत है (जो कुछ हुआ वो सब बता कर) मैं चाहती हू आप किसी को थाने का इंचार्ज बना के भेजे जो ईमानदार हो मुझे पता करवाना है दस साल पहले जो हुआ उसके बारे में
शालिनी – फिक्र मत करो संध्या एक दिन का वक्त दो मैं कुछ करती हू जल्द ही
संध्या – शुक्रिया शालिनी
शालिनी – इसमें शुक्रिया की जरूरत नहीं है संध्या अभय आपका बेटा है वैसे मेरा भी बेटा है वो उसके लिए ये कुछ भी नही है , खेर चांदनी से बात कराए मेरी
चांदनी –(संध्या से फोन लेके) हा मां
शालिनी – जे भी हुआ उससे क्या लगता है तुम्हे
चांदनी – पता नही मां लेकिन मुझे एक नोट मिला है लाश की जेब से उसमे पहेली लिखी है
#(अगर तुम इंसाफ हो तो सच सच बताना आखों पे पट्टी बांधने का क्या लोगे हर्जाना)#
शालिनी – कामरान को मार कर ये पहेली छोड़ गया कोई
चांदनी – दो लोग मिले है भाग रहे थे उन्हें पकड़ लिया गया है मेरे लोग पूछ ताछ कर रहे है पता चलते ही बताऊगी आपको
शालिनी – ठीक है ख्याल रखना और नजर बनाए रखना खास कर अभय पर वो अकेला जरूर है हॉस्टल में और आजाद भी
चांदनी – बस इस बात की फिक्र है मां
शालिनी – फिक्र मत कर अगर ऐसी कोई भी बात होगी वो तुझे जरूर बताएगा
चांदनी – हा मां अच्छा बाद में बात करती हू
बोल के कॉल कट कर दिया तब संध्या बोली...
संध्या – क्या बात है चांदनी तुम कुछ परेशान सी लग रही हो
चांदनी – जी ठकुराइन कामरान की बॉडी से मुझे ये नोट मिला है पहेली लिखी है इसमें समझ में नहीं आ रहा है क्या मतलब है इसका और कातिल ने उसे मार कर ये पहेली क्यों छोड़ दी
संध्या – कही कातिल पहेली के जरिए कुछ कहना तो नही चाहता
चांदनी – (पहेली पड़ के) कुछ समझ में नहीं आ रहा है क्या मतलब हो सकता है इस पहेली का
संध्या – (चांदनी की बात सुन के) रात काफी हो रही है तुम आराम करो चांदनी कल कॉलेज भी जाना है इस बारे में बाद में सोचना
हा बोल के चांदनी चली गई कमरे में सोने जबकि अपने अभय बाबू शाम को घूमने निकले थे लेकिन रमन से मुलाकात के बाद वापस हॉस्टल में लौट आए जहा सायरा ने उन्हें खाना दिया और आज की हुई घटना बताई जिसके बाद अभय सो गया अगले दिन सुबह सायरा के जागने से उठा और निकल गया मॉर्निंग वॉक पर कुछ ही देर में तयार होके कॉलेज में आ गए सभी...
अभय की नई बाइक देख के तीनों दोस्त ने घेर लिया अभय को...
राज – (बाइक देख के) क्या बात है लौंडे नई बाइक कब ली बे
अभय – कल मिली है भाई दीदी ने दी है
राज – ओह हो तेरे ब्रदर की होने वाली दुल्हन ने वाह मानना पड़ेगा मेरी दुल्हन की चॉइस को
अभय – (चौक के) अबे अभी तक तेरे सिर से भूत नही उतरा क्या
राजू – (अभय से) अभय शराबी कभी शराब पीना छोड़ता है क्या
राज – (शायरी) क्या चाहूँ रब से उसे पाने के बाद , किसका करूँ इंतज़ार उसके आने के बाद, क्यों मोहब्बत में जान लुटा देते हैं लोग,मैंने भी यह जाना इश्क़ करने के बाद
लल्ला –(राज की शायरी सुन के) देख ले अभी तक नशा बरकरार है इनका
अभय – यार इसके चक्कर में कही क्लास के भी ना रहे हम लोग
तभी पीछे से पायल ने आके बोला...
पायल – कभी खुद ने ऐसा कुछ किया नही जब दोस्त को प्यार हुआ तो पीछा छुड़ाने में लगे हो तुम तीनों
अभय – अरे मैने एसा कब कहा यार मैं तो बस...
पायल –(बीच में टोकते हुए) कहोगे भी कैसे कुछ होगा तब कहोगे ना
अभय – पायल बात को समझ वो टीचर है और ये स्टूडेंट मेल होना नामुमकिन है यार
पायल – अच्छा किसने कहा नामुमकिन है एसा वो टीचर है तो क्या वो लड़की नही है दिल नही है उनका क्या प्यार नही हो सकता है उनको और क्या पता राज पसंद आ गया हो उनको
अभय –(पायल की बात सुन मन में – अब कैसे बताऊं तुझे वो मेरी बहन है , अच्छा होगा पतली गली पकड़ के निकल ले अभय) ठीक है करे अपने प्यार का इजहार उनसे
पायल – करेगा जरूर करेगा सबके सामने करेगा क्यों राज
तभी राज ने देखा कॉलेज गेट से चांदनी आ रही थी धीरे धीरे चलते चलते राज के बगल से गुजर ने लगी तभी राज बोला...
राज – (चांदनी को अपने बगल से जाता देख) मुसाफिर इश्क़ का हूं मैं मेरी मंज़िल मुहब्बत है, तेरे दिल में ठहर जाऊं अगर तेरी इजाज़त है।
शायरी सुन चांदनी ने जैसे पलट के देखा राज अकेला खड़ा था चेहरे पर मुस्कान लिए..
चांदनी – तुम पढ़ने आते हो कॉलेज में या शायरी करने
राज – आप जो बना दे मैं हस्ते हस्ते बन जाने को तयार हू
चांदनी –(चौक के) क्या
राज – आपको देख के दिल झूमने लगता है मेरा साथ ही दिल गाने लगता है
चांदनी – (हस्ते हुए) अपने सीर से प्यार का भूत उतार दो अच्छा रहेगा तुम्हारे लिए
राज –(मुस्कुरा के) प्यार जो हकीकत में प्यार होता है, जिन्दगी में सिर्फ एक बार होता है,
निगाहों के मिलते मिलते दिल मिल जाये, ऐसा इतेफाक सिर्फ एक बार होता है।।
शायरी सुन के चांदनी हल्का मुस्कुरा के चली गाई कॉलेज में उसके जाते ही राज ने पलट के देखा खुद को वो अकेला खड़ा पाया बाकी सब गायब थे राज ने चारो तरफ देखा एक कोने में अभय , राजू , लल्ला , पायल , और नीलम छुप के देख रहे थे राज को...
राज –(सभी को देख के) अबे तुम सब वहा क्या कर रहे हो बे
पायल – तेरी जरा तारीफ क्या कर दी तू सच में शुरू हो गया देख तो लेता कॉलेज है तेरे चक्कर में हम नप जाते अभी
राज – अच्छा थोड़ी देर पहले तू ही बोल रही थी खुले आम सबके सामने इजहार करूंगा प्यार का उसका क्या
पायल – इसका मतलब ये थोड़ी ना की हम साथ हो तेरे उस वक्त (नीलम से) चल क्लास में चलते है वर्ना इसके चक्कर में हमे कॉलेज से निकल ना दिया जाय...
जब ये सब बाते हो रही थी तब राजू , अभय और लल्ला अपने मू पे हाथ रख के हंसे जा रहे थे पायल के जाते ही तीनों जोर से हसने लगे...
राजू – इसे बोलते है दोस्ती का इम्तेहान समझे जब कॉलेज में टीचर से मार खाने की बात हो अच्छे से अच्छे दोस्त भी किनारे हो जाते है भाई
लल्ला –(हस्ते हुए) और तूने तो टीचर से प्यार कर लिया
अभय – देख मेरे भाई हर मामले में हम तेरे साथ रहेंगे लेकिन इस मामले में तू अकेला पाएगा खुद को हम दूर दूर तक नजर नहीं आएंगे तुझे इसमें
राज – (राजू और लल्ला को देख के) यार गद्दार , (अभय को देख के) साले शर्म नही आती तुझे अपने जीजा पे हस्ते हुए साले , बोला था ना आदत डाल ले
बोल के निकल गया राज पीछे से राजू और लल्ला हस रहे थे अभय और राज पे...
अभय – (हस्ते हुए) देखो तो जरा कैसे बच्चे की तरह मू फुल्लाए जा रहा है
राजू और लल्ला –(अभय से) भाई ये जीजा वाली तरकी हो गईं तेरी कमाल है भाई चलो चलते है क्लास में
इसी तरह हसी मजाक में कॉलेज का दिन काट गया छुट्टी होते ही सब वापस जाने लगे घर तभी चांदनी ने अभय को रोका हुआ था इशारा कर के सबके जाते ही आखरी में अभय अपनी बाइक से निकला तभी पीछे से चांदनी आके बैठ गई अभय के साथ...
अभय – (दीदी से) हा दीदी कहा ले चलूं आपको
चांदनी – हवेली छोड़ दे मुझे
अभय –(हवेली का नाम सुनते ही) हवेली में
चांदनी –(मुस्कुरा के) तेरे से बात करनी है मुझे हवेली चल रास्ते में बात करते हुए चलते है मुझे छोड़ के वापस आ जाना ठीक है...
दीदी की बात सुन अभय ने बाइक शुरू की निकल गए हवेली की तरफ रास्ते में चांदनी बोली...
चांदनी – तो तू खंडर में गया था मुझे बताए बगैर
अभय –(बाइक में ब्रेक लगा के) आपको कैसे पता दीदी
चांदनी –पहले बाइक चला तू सब बताती हू तुझे
बाइक शुरू करके चलाने लगा अभय तब चांदनी बोली..
चांदनी – तो अब बता खंडर क्यों गया था तू
फिर अभय ने अपने बचपन की बात बताई जब घर से भगा था रास्ते में क्या हुआ था जिसे सुन चांदनी बोली...
चांदनी – तो जब तू खंडर में गया वहा पर क्या देखा तूने
अभय –(खंडर में जो हुआ सब बता साथ ही हॉस्टल में वापस आने के बाद वीडियो में देखा वो बताए) इसीलिए मैंने हाल फिलहाल खंडर में दोबारा जाने का फैसला बदल लिया है
चांदनी – (अभय की सारी बात सुन के) तुझे पक्का यकीन है खंडर के अन्दर बिल्कुल हवेली जैसा सब बना हुआ है
अभय – हा दीदी मेरा आधा बचपन बीता है उस हवेली में कैसे भूल सकता हू मै उसे
चांदनी – और कुछ नजर आया तुझे खंडर में कुछ अजीब सा लगा हो ऐसा कुछ
अभय – दीदी वो भूत के सामने आने से पहले किसी के बात करने की आवाज सुनी थी लेकिन सही से कुछ समझ नही आया मुझे क्या बात कर रहे थे लेकिन दीदी आपको कैसे पता मैं वहा गया था
चांदनी –जैसे भी पता चला हो ये भी पता चला तू अकेला नही था तेरा साथ राज भी था वहा पर
अभय – मतलब आपको सब पता है पहले से
चांदनी –देख अभय तू इन सब बातो को मजाक में मत ले समझा तुझे पता भी है उस खंडर में मेरे चीफ के 4 बेस्ट ऑफिसर गए थे जिनका आज तक पता भी नही चला है वो जिंदा भी है या मर गए है और तू उस जग चला गया वो भी रात के अंधेरे में
अभय – दीदी आपकी कसम मुझे नही पता था इस बारे में बचपन में जो देखा था उस बारे में पता करने गया था मैं बस
चांदनी – चल ठीक है देख अभय जो भी करना हो कर लेकिन एक बात सोच लेना तेरी बहुत चिंता रहती है मां और मुझे एक तो तू अकेला रहता है हॉस्टल में इसीलिए
अभय – दीदी फिकर मत करो आप मैं ठीक हू संभल के रहता हू और रही खंडर की बात अभी के लिए मैं उस तरफ देख भी नही रहा जाना दूर की बात है
चांदनी – और ये कब तक के लिए है
अभय –(मुस्कुरा के) जब तक मुझे तस्सली ना हो जाय वहा जो कोई भी है उसे हमारे आने और जाने का पता ना चला हो तब तक
चांदनी – (मुस्कुरा के) मुझे लगा ही था
अभय – जाने दीजिए कल शाम को क्या हुआ था दीदी मैने सुना कामरान को किसी ने मार दिया
चांदनी – हा उसे मार कर किसी ने उसकी जेब में एक पहेली छोड़ दी थी
अभय – पहेली कॉन सी पहेली है दीदी बताओ
चांदनी – #(अगर तुम इंसाफ हो तो सच सच बताना आखों पे पट्टी बांधने का क्या लोगे हर्जाना)#
जाने क्या बताना चाहता है कातिल इस पहेली के जरिए
अभय – रिश्वत
चांदनी – क्या
अभय – अरे दीदी आपकी पहेली का जवाब है ये (रिश्वत)
चांदनी – तुझे कैसे पता
अभय –(मुस्कुरा के) दीदी आप अभी तक नही समझी बात को क्यों की आप पुलिस में हो ना इसीलिए तो , देखो दीदी आज के युग में कोई पुलिस के पचड़े में पड़ना नही चाहता है इसलिए जान छुड़ाने के लिए रिश्वत देते है लोग अब समझे आप आखों में पट्टी बांधने का हर्जाना का मतलब....
पहेली का जवाब सुन चांदनी चुप हो गईं सोचने लगी कुछ तभी अभय ने बाइक रोक बोला...
अभय –(कंधा हिलाते हुए) क्या हुआ दीदी किस सोच में डूब गए आप
चांदनी –(अभय द्वारा कंधा हिलाने से होश में आते हुए) कुछ नही सोच रही थी की...
अभय – (बीच में बात काटते हुए) दीदी इतना भी मत सोचो जो हुआ उसे बदल तो नही सकते हम वैसे भी कामरान कॉन सा दूध का धुला था आखिर था तो रिश्वत खोर ही ना
चांदनी – उसकी एक छोटी से बेटी के इलावा कोई नही था उसका दुनिया में
अभय – बहुत बुरा हुआ खुद तो चला गया अब उसकी बेटी का क्या होगा दीदी
चांदनी –(हल्का हस के) ठकुराइन उसे ले आई अपने साथ हवेली में कल ही
अभय – (हस के) जो औरत अपने बेटे तक को संभाल ना पाई वो दूसरों के बच्चो को संभालेगी आपको लगता है एसा दीदी
चांदनी –जरूरी नहीं जो दिखता हो वही सच हो सच्चाई उसके उल्टी भी होती है कभी कभी
अभय – मुझे क्या वो जाने उसके काम जाने वैसे हवेली आ गई
चांदनी – तेरी बातो में मैने ध्यान ही नही दिया चल तू भी जाके आराम कर और ध्यान रखना मेरी बात का...
बोल के चांदनी हवेली के मेन गेट से होते हुए अन्दर चली गई जबकि अभय हवेली के मेन गेट के बाहर खड़ा सिर्फ हवेली को देखता रहा जैसे कुछ याद कर रहा हो जिस वजह से आंख में हल्का आसू आ गए जिसे साफ कर अभय निकल गया हॉस्टल की तरफ जबकि हवेली में चांदनी के आते ही...
रमन –(चांदनी से) काफी लेट हो गए आने में आप किसके साथ आए आप कॉन था वो
चांदनी – कॉलेज का स्टूडेंट था मैने उससे कहा था छोड़ दे मुझे हवेली तक
रमन – अरे आप मुझे बता देते मैं भेज देता कार अपनी लेने के लिए आपको
चांदनी – शुक्रिया ठाकुर साहब कभी जरूरत पड़ी तो जरूर बताऊगी आपको...
बोल के चांदनी चली गई अपने कमरे की तरफ पीछे रमन जाति हुई चांदनी को देखता रहा और तभी रमन को किसी ने आवाज दी जिसे सके रमन बोला..
संध्या – रमन
रमन –अरे भाभी बताए क्या बात है
संध्या – (घूर के देखते हुए) अच्छा होगा तेरे लिए अपने काम से मतलब रख तू दोबारा चांदनी की तरफ अपनी गंदी नजर डाली तो समझ लेना और ये बात मैं दोबारा नही बोलूगी
रमन – भाभी ये कॉलेज की टीचर है ना की आपकी कोई रिश्तेदार जिसके वजह से आप मुझे सुना रही हो बाते
संध्या – मतलब तुझे समझ नही आई बात मेरी
रमन – देखो भाभी अब बहुत हो गया कभी उस लौंडे ले लिए आप मुझे सुनाते हो बाते तो कभी अमन को तना देते हो चलो एक बार मान भी लू उसे अपना बेटा मानते हो आप लेकिन इसके लिए क्या बोलोगे आप
संध्या – बेटी नही तो क्या हुआ बेटी से काम भी नही है मेरे लिए समझ आ गई बात तुझे और दोबारा मुझे समझाना ना पड़े तो अच्छा होगा तेरे लिए (बोल के जाने लगी तभी रुक के पलट के रमन को बोली) मैने बात कर ली है डी आई जी से कल तक गांव में नया दरोगा आ जाएगा साथ ही मेरे केस की छान बीन भी शुरू कर देगा और तब तक के लिए तुम गांव से बाहर कही नही जाओगे समझे...
बोल के संध्या कमरे में चली गई पीछे रमन की बोलती बंद हो गई संध्या की बात से जबकि रसोई में खड़ी ललिता ये नजारा देख मुस्कुरा रही थी....
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जारी रहेगा
Shandar kuchh kuchh bharpai kar rahi hai Shandhya Kamraan ki beti ko gaud lena achha decision hai. Aur paheli ka raaz sach me Abhay ke liye bahut easy raha mujhe to answer pahle nahi pata chali
शाम के वक्त अभय हॉस्टल के बाहर निकल बगीचे में टहल रहा था उस पेड़ के पास जिसे मनन ठाकुर ने अपने बेटे अभय के साथ बोया था तभी किसी ने पीछे से अभय के कंधे पर हाथ रखा पलट के देख अभय बोला....
अभय – बाबा
सत्य बाबू – कैसे हो बेटा
अभय – अच्छा हू बाबा
सत्य बाबू – इस दिन के बाद तू आया नही घर पे
अभय – बाबा मैं नही चाहता की किसी को पता चले मेरी असलियत इसीलिए
सत्य बाबू – अरे तो क्या हुआ बेटा तूने तो गांव आते ही जो काम किया है उसे देख गांव का हर इंसान तुझे अपने घर बुलाया इससे असलियत का पता कैसे चलेगा किसी को
अभय – (मुस्कुरा के) ठीक है बाबा और बताए बाबा आपका काम कैसा चल रहा है
सत्य बाबू – सबकी की तरह मेरा भी काम वैसा ही है बेटा रोज कूवा खोद ना पानी पीना
अभय – अब पहले जैसी खेतो में वो हरियाली नही रही बाबा एसा क्यों बाबा
सत्य बाबू – इस दस सालो में बहुत कुछ बदल गया है बेटा अपने गांव में
अभय – समझ सकता हू बाबा ब्याज पे ब्याज वसूल कर उस ठकुराइन ने गांव के साथ गांव वालो को लूटने में जो लगे हुए है
सत्य बाबू – ऐसी बात नही है बेटा ठकुराइन पिछले दस सालो में हवेली से नाम मात्र के लिए बाहर आई है तेरे जाने के बाद ठकुराइन ने देखा तक नहीं पलट के गांव में क्या हो रहा है रमन ठाकुर ने....
अभय –(बीच में बात काटते हुए) हा समझ गया बाबा रमन ठाकुर और ठकुराइन दोनो ने मिल कर अच्छा खेल खेला गांव भर में मेरे जाने का अच्छा खासा बहाना बना कर हवेली से बाहर न निकलने का
सत्य बाबू – नही बेटा तेरे जाने के गम में ठकुराइन टूट सी गई थी जाने कितने महीनो तक होश में नही थी हर वक्त बस एक नाम उसकी जुबान में रहता था अभय अभय अभय
अभय – ये सब बहाना है बाबा सिर्फ दिखावा है गांव वालो को दिखाने के लिए ताकी झूठा प्यार का दिखावा कर से सबके सामने
सत्या बाबू – किसके सामने दिखावा करेगी ठकुराइन हवेली के नौकरों के सामने
अभय – क्या मतलब है बाबा
सत्य बाबू – जिस दिन जंगल में वो लाश मिली थी उस दिन से हवेली में मातम छाया था ठकुराइन की हालत दिन ब दिन बिगड़ती जा रही थी हवेली में कोई उस दिन के बाद कोई गांव वाला का जाना बंद हो गया था बस हवेली के नौकरों थे जिनसे ठकुराइन के हालात का पता चलता था गांव वालो को ये कई महीनो तक चलता रहा जिसके चलते रमन ठाकुर और मुनीम ने गांव वालो का हवेली में आना बंद करवा दिया था बस इस बात का अच्छा फायदा उठाया रमन ने हर बार मुनीम से कहलवा कर गांव वालो से कर्ज के नाम से ब्याज पे ब्याज वसूल करवाना बेटा अगर उस दिन तुम नही आते तो आज गांव वालो की जमीन पर रमन कब्जा कर डिग्री कॉलेज बनवा रहा होता जिसके चलते ना जाने कितने गांव वाले आत्महत्या कर चुके होते उन सब के पास इस जमीन के इलावा कुछ नही जिसे अपना और अपने परिवार का गुजारा कर से....
सत्य बाबू की बात सुन अभय खुद अपनी सोच में डूब गया अपने मन में ही सोचने लगा...
अभय –(अपने मन में – क्या सच में मेरे भाग जाने से ऐसा हुआ गांव वालो के साथ क्या सच में उस ठकुराइन.....नही नही अभय जरूरी नहीं ये सच हो लेकिन बाबा कभी झूठ नहीं बोल सकते क्या मिलेगा उस ठकुराइन के बारे में झूठी बात बता के ये सब उस रमन और मुनीम का किया धरा है लेकिन बिना उस ठकुराइन की इजाजत के कैसे कर सकता है मुनीम या रमन और दिखावा करना होता तो उस ठकुराइन को गांव वालो के सामने करती हवेली में अकेले नही कुछ तो खेल खेला है उस ठकुराइन ने अपने यार के साथ मिल के जिससे गांव वाले तक अंजान है एक मिनट अगर बात ऐसी थी तो क्यों उस दिन उस ठकुराइन ने गांव वालो को उनकी जमीन वापस करी जब मैने पेड़ काटने को रोका था मुझे दिखाने के लिए तो नही तब तो उसे पता तक नहीं था की मैं ही अभय हू तब मेरा हाथ पकड़ के बोल रही थी उसे इस बारे में कुछ नही पता क्या वो सब सच था या धोखा (अपनी आखें बंद कर) क्या हो रहा है ये सब समझ नही आ रहा है मुझे)...
सत्य बाबू की बात पर अभय अपनी सोच में डूबा हुआ था तभी सत्य बाबू ने देखा सोचते सोचते अभय ने अपनी आखें बंद की तब सत्य बाबू को एहसास हुआ को अभय उनकी बात के बारे में कुछ ज्यादा ही गहराई से सोच रहा है तभी सत्य बाबू ने अभय के कंधे पर हाथ रख बोले...
सत्या बाबू –(अभय के कंधे पे हाथ रख) ज्यादा मत सोचो बेटा होनी को कोई न टाल सका है ना बदल सका है तुम उन बातो को सोच के परेशान मत हो भला जिस बात पे अपना बस ना चले उसके बारे में क्या सोचना वो भी अब , तुम अपनी पढ़ाई पर ध्यान दो बेटा अपने पिता की तरह अच्छे इंसान बनो उनका नाम रोशन करो ताकि तुम्हारे पिता की तरह लोग भी तुम्हे माने , अच्छा चलता हू बेटा और तुम घर पे भी आया करो तुम्हारा अपना ही घर है वो भी
अभय – (हल्का हस के) जी बाबा
बोल के सत्या बाबू चले गए घर की तरफ जबकि अभय वापस चल दिया हॉस्टल की तरफ चलते चलते हॉस्टल के अन्दर जाने लगा तभी पीछे से सायरा भी उसी वक्त हॉस्टल में आ रही थी अभय को देख उसे पुकारने लगी...
सायरा – अभय अभय अभय...
सायरा के लगातार 3 बार पुकारने पर भी अभय चलता हुआ हॉस्टल के अन्दर चला गया जिसे देख सायरा को ताजुब हुआ...
सायरा – क्या हो गया इसे इतनी बार नाम पुकारने पर भी सुना नही अभय ने
सायरा चलते हुए अभय के कमरे में आते ही देखा अभय खिड़की में खड़ा होके बाहर देख रहा था....
सायरा –(अभय के कंधे पे हाथ रख के) क्या हुआ अभय कहा खोए हुए हो कितने बार पुकारा तुम्हारा नाम मैने
अभय –(सायरा को देख के) बस ऐसे ही कुछ सोच रहा था तुम बताओ कैसा रहा तुम्हारा दिन
सायरा – अच्छा था
अभय – हवेली कब जाती हो तुम
सायरा – जाती रहती हू दिन में
अभय – एक बात पूछनी है तुमसे सच बताना तुम 2 साल से हो ना हवेली में तुम्हे क्या लगता है मेरे घर से भाग जाने के बाद क्या क्या हुआ है हवेली में
सायरा – तुम अपनी दीदी से क्यों नहीं पूछ लेते हो
अभय – इस वक्त मैं अपनी दोस्त से बात कर रहा हू ना की दीदी के ऑफिसर से
सायरा – अच्छा रहेगा तुम अपनी दीदी से बात करो इस बारे में
अभय – (सायरा का जवाब सुन के) ठीक है
सायरा – खाना बनाने जा रही हूं तुम चाय पी लो जब तक
अभय –(बिना सायरा की तरफ देखे) तुम पी लो मेरी इच्छा नही है
सायरा – (अभय का नाराजगी भरा जवाब सुन के) ठीक है तुम्हे जानना है ना क्या हुआ था हवेली में सुनो जितनी जानकारी मिली गांव और हवेली में लोगो की बात जान के वो ये है की तुम्हारे चले जाने के बाद ठकुराइन अपने आप में नही थी दिन रात सिर्फ तुम्हे याद करती हर वक्त सिर्फ तुम्हारे कमरे में चली जाती तुम्हारी हर चीज चाहे तुम्हारी किताबे या तुम्हारी बनाई तस्वीरे उन्हें देख तुम्हे याद कर के हर वक्त रोती रहती खुद को कोसती थी वो अपने आप को जिम्मेदार मानती थी इन सब बातो का जबकि सच तो.....
अभय –(तभी अपनी बाइक की चाबी ली बोल के जाने लगा) आने में देर लगेगी मुझे काम से जा रहा हू खाना तुम खा लेना मैं बाद में आके खा लूगा....
बोल के अभय निकल गया बाहर पीछे हैरान खड़ी सायरा को समझ नही आया हुआ क्या है जबकि सायरा आज अभय को सच बता रही थी लेकिन अभय अधूरी बात सुने चला गया हॉस्टल के बाहर उसके जाते ही सायरा खाना बनाने में लग गई जबकि इस तरफ एक औरत कॉल पर किसी से बात कर रही थी...
औरत –(कॉल पर) तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है क्या तुमने कामरान को क्यों मार दिया
सामने से आदमी – नही मरता तो हमारी सारी मेहनत पर पानी फिर जाति क्योंकि ठकुराइन उससे मिलने जा रही थी दस साल पहले जो हुआ उसके गड़े मुर्दे उखड़ जाते
औरत – बेवकूफ कम से कम उसकी बेटी का सोच लेता छोटी सी बच्ची है किसके सहारे रहेगी वो सोचा है
सामने से आदमी – मैने ठेका नही लिया है इन सब बातो का समझी बदले की आग में जल रहा हू मै पिछले कई सालों से जब तक बर्बाद न कर दू तब तक ये आग बुझेगी नही और तू क्यों इतना सोच रही है भूल गई अपना बदला एक बच्ची के बारे में सोच के अभी तो और भी खून बहेगा जो भी रास्ते में आएगा उसका यही हश्र होगा
औरत – हा बदला लेना है मुझे भी उसके लिए किसी बेगुनाह के खून से अपने हाथ नही रंगना चाहती हू मै तुझे भी समझा रही हू बदले की आग में अंधा मत हो कही अपने अंधेपन पे कोई गलती कर बैठना
सामने से आदमी – तुझे क्या लगता है ये सिर्फ शुरुवात है अभी और भी मारेजाएगे लोग
औरत – क्या मतलब है तेरा
सामने से आदमी – तुझे पता नही है दो लोग खंडर में आए थे सालो की किस्मत अच्छी है खंडर में लगे कैमरे से बच गए वर्ना उनका भी हाल कामरान जैसा होता
औरत – आखिर क्या है उस खंडर में जिसे तुम लोग इतने सालो से डूंड रहे हो
सामने से आदमी – वो जो भी है तेरी मेरी जिंदीगी को बदल के रख देगा
औरत – मुझे सिर्फ बदले से मतलब है
सामने से आदमी – अरे मेरी बुलबुल मैं बदले के बाद की बात कर रहा हू , अब छोड़ इन सब बातो को ये बता कब आ रही है तू कितना वक्त बीत गया है
औरत – बस थोड़ा और सब्र कर ले बदला पूरा होते ही तेरी बाहों में ही रहूंगी हमेशा के लिए
सामने से आदमी – तू बोल तो आज ही उस सपोले को रास्ते से हटा के उसकी मां को रण्डी बना दू सभी लोग घाट लगाएं बैठे है ठकुराइन के शिकार के लिए
औरत – इतनी आसानी से बदला नही लेना है मुझे ठकुराइन से अभी तो और भी बहुत कुछ होना है उसके साथ वैसे भी अभय नफरत की आग लेके आया है यहां पर कुछ चोट उसको देने दो अपनी प्यारी मां के दिल को उसे दर्द में तड़पते देख बहुत सुकून मिलता है मुझे
सामने से आदमी – जैसे तेरी मर्जी
औरत – वैसे रमन कुछ ज्यादा ही परेशान लग रहा है मुनीम के ना होने से क्या किया है तूने मुनीम का
सामने से आदमी – उस सपोले ने टांग तोड़ दी है मुनीम की लेटा पड़ा है मेरे सामने एक बार होश में आ जाए सारी जानकारी निकाल के हटा दुगा रास्ते से इसे भी
औरत – तड़पा तड़पा के मारना उस मुनीम को
सामने से आदमी – तेरी मुनीम से क्या दुश्मनी है बताया नही तूने आज तक
औरत – बताऊगी जरूर बताऊगी बस मेरा ये काम जरूर करना तब तेरा काम हो जाएं
सामने से आदमी – ठीक है मेरी बुलबुल चल रखता हू ख्याल रखना अपना...
बोल के कॉल कर कर दिया इस आदमी ने उसके बाद उस आदमी ने किसी को कॉल किया और बोला...
आदमी – कैसे हो म.....
सामने से –(गुस्से में बीच में टोकते हुए) हरमजादे तुझे कितनी बार बोला है कॉल पर कोई बात बोलने से पहले 100 बार सोचा कर कही ऐसा ना होजाय ये तेरी जिंदिगी की आखरी कॉल हो
आदमी –(घबराते हुए) माफ करना मैं बस मालिक बोल रहा था आपको
सामने से – चल बोल क्यों कॉल किया है तूने
आदमी – मालिक मैने कैमरे में कई बार देखा लेकिन उन दोनो की शकल नही दिखी वो सामने आएं ही नहीं कैमरे के
सामने से – आखिर कॉन हो सकते है वो दोनो
आदमी – मालिक मुझे ऐसा लागत है कही वो ठाकुर का सपोला तो नही क्योंकि वही गांव में नया आया है जिसे जानकारी नहीं होगी खंडर के श्राप के बारे में
सामने से – बेवकूफ इंसान उसे आना होता तो अकेले आता नाकी किसी को साथ में लेके , ये जरूर वही होगा जिसके 4 लोगो को तूने गायब किया है खंडर से शायद कोई अपने लोगो की तलाश में आया होगा रात में चुपके से और तेरे लगे कैमरे भी देख लिए होगे उसने तभी चेहरा सामने नही लाया वो कैमरे में अपना
आदमी – अब क्या हुकुम है मालिक
सामने से – रुक थोड़ा शांत रह तू , मुझे पता चला है कोई नया इंस्पेक्टर आ रहा है कामरान की जगह इसीलिए खंडर का काम शांत रह के निपटा और एक बात अपने दिमाग में डाल ले अगली बार जब किसी को मारने जाना तो बच्चा हो या औरत जिंदा मत छोड़ना किसी को समझा
आदमी – समझ गया मालिक आगे से कोई गलती नही होगी
बोल के दोनो ने कॉल कट कर दिया उसी वक्त एक कमरे में एक लड़का और एक औरत सोफे पर बैठ ये सारी बात हेड फोन से सुन रहे थे जिसे सुन के औरत किसी को कॉल मिलने लगी जिसे देख लड़का बोला...
लड़का – किसे कॉल मिला रही हो आप शालिनी जी
शालिनी – मुझे बताना होगा संध्या को...
लड़का – (बीच में) अच्छा उससे क्या होगा सोचा है आपने , जैसे ही आपने ये बात बताई तो समझ लीजिए जब तक हम वहा पहुचेगे उससे पहले ही आपको कॉल आएगा ये बताने के लिए दो लाशे पड़ी है जिसमे एक संध्या होगी दूसरा अभय अगर वो अकेला हुआ तो या उसके साथ उसके दोस्तो की लाश हो और शायद आपकी बेटी चांदनी भी
शालिनी –(रोते हुए) प्लीज ऐसा मत बोलो उन्हीं के सहारे जी रही हू मै उन्हें कुछ हो गया तो प्लीज कुछ करो आखिर तुम KING हो
KING – जब तक आप शांत रहेगी तब तक ऐसा कुछ नहीं होगा , ये तो अच्छा था मैने अभय पर नजर बनाए रखी है इसीलिए खंडर के कैमरे से उसकी शक्ल गायब करवा दिया मैने लेकिन मुझे सिर्फ ये खंडर वाली पहेली समझ नही आ रही है आखिर क्या हो सकता है उस खंडर में ऐसा जिसके लिए ये लोग कई सालो से लगे हुए है क्या डूंड रहे है ये लोग
शालिनी – कही कोई खजाना का चक्कर तो नही
KING – शालिनी जी जहा तक मुझे लगता है खजाना जैसा शायद ही कुछ हो वहा पर ये तो अच्छा है की आपकी बेटी ने अभी तक प्रॉपर्टी के पेपर नही दिखाए संध्या ठाकुर को और ना ही जानकारी उन्हें तो अभी ये भी जानकारी नहीं है उनकी कितनी प्रॉपर्टी है यही बात गलती से अगर जिस दिन खुल जाए तो वो हवेली कुरुक्षेत्र का मैदान बन जाएगी
शालिनी – (KING की बात सुन घबरा के) मैं अभी चांदनी को बोल देती हू गलती से भी वो पेपर्स की जानकारी न दे किसी को
KING –(शालिनी को रोकते हुए) रुक जाइए शालिनी जी जरा सोचिए वकील का एक्सीडेंट साथ ही आपकी बेटी को प्रॉपर्टी के पेपर्स का मिलना और उसे लेके गांव जाना मतलब समझ रही है आप यही की आपकी बेटी ने अभी तक किसी को पेपर्स की हवा तक लगने नही दी इससे साफ जाहिर है चांदनी को इस बात की जानकारी है अच्छे से जो न हो कुछ तो सोच रखा है आपकी बेटी ने (मुस्कुरा के) और क्यों न हो आखिर है तो आपकी बेटी उपर से सी बी आई ऑफिसर
शालिनी – तुमने अभी तक बताया नही आखिर तुम क्यों कर रहे हो इतना सब कुछ अभय के लिए
KING – (मुस्कुरा के) किसने कहा मैं ये सब अभय के लिए कर रहा हू ये सिर्फ और सिर्फ ठाकुर साहब के लिए कर रहा हू मै , उनके लिए जितना भी करू कम ही है
शालिनी – तो तुम अभय के साथ क्यों नही गए उसका साथ देने
KING – शालिनी जी इस दुनिया में बच्चा आता जरूर है और मां बाप उसका पालन पोषण भी करते है और अपनी उंगली पकड़ा की खड़ा होना चलना भी सिखाते है इसका मतलब ये नही की हर वक्त मां बाप अपने बच्चे को चलने के लिए अपनी उंगली का सहारा दे उस बच्चे को खुद भी कोशिश करनी पड़ती है खड़े होने के लिए चलने के लिए मैने भी तो संभाला था अपने आप को खुद से काबिल बन के आज KING बना ना मैं , अभय को भी खुद निपटना है इन सब से हर वक्त सहारा कोई नही बन सकता है उसका कोई भी , करने दो उसे जो करना है पता लगाए वो खुद सच का फर्ज है उसका और कर्म भी , वैसे आप परेशान मत होइए जल्द ही मैं अभय से मिलने जा रहा हू गांव में तब आप नॉर्मल बात करते रहिए सबसे , अच्छा चलता हू...
इस तरफ अभय बाइक चलाते चलाते आजाता है रेलवे स्टेशन की तरफ बाइक को खड़ा कर के पैदल चल देता है एक जगह खड़ा होके उस जगह को देख वो दिन याद करता है जब वो घर से भागा था भागते भागते इसी जगह आया जहा से उसे ट्रेन मिली थी जिसपे चढ़ के चला गया था गांव से दूर वही खड़े होके याद आया वो पल जब चलती ट्रेन में देखा था जहा उसे अपनी हवेली नजर आ रही थी ट्रेन की पटरी के बीच खड़ा होके अपने बीती हुई उस रात को याद कर रहा था की तभी पीछे से कोई दौड़ के आया और वन साथ अभय को पटरी के बीच निकल के बाहर निकाला के तभी एक ट्रेन होर्न की आवाज के साथ तेजी निकलने लगी जिसे देख अभय हैरान हो गया....
जैसे ही ट्रेन निकली तभी किसी ने अभय के गाल में जोर से चाटा मारा CCCCHHHHHAAAAATTTTTTTAAAAKKKKK जिसके बाद अभय ने पलट के देखा तो वहा राज खड़ा था जो गुस्से से देख रहा था अभय को तभी पीछे से राजू और लल्ला दौड़ते हुए आ गए....
राज – (गुस्से से) तेरा दिमाग खराब हो गया है क्या , आखिर करने क्या आया था तू यहां पर
अभय –(जगह को चारो तरफ देख हालत समझ के) यार मैं अपनी सोच में गुम था पता नही चला चलते चलते यहां कैसे आ गया
लल्ला – अबे अगर हमे एक पल के और देरी होती तो जाने क्या हो जाता आज
राजू – तुझे हुआ क्या है बे साला हम तीनो हॉस्टल से आवाज लगा रहे थे तुझे और तू है की एक बार तक सुना नही ऐसी भी कॉन सी सोच में डूब गया था बे तू , अबे तेरे चक्कर में हम कितनी तेजी से साइकिल चलाते हुए यहां तक आए है पता है तुझे
राज – चल क्या रहा है तेरे दिमाग में बता जरा
अभय – कुछ नही यार चलो चलते है यहां से
राज – चुप चाप मेरे सवाल का जवाब दे अभय वर्ना एक और लगाऊगा साले गाल पे तेरे पागल नही है हम जो तेरा पीछा करते यहां तक आ गए
अभय – (गुस्से में राज से) सही कहा तूने मैं हू ही इस काबिल मारो मुझे (राजू और लल्ला से) तुम दोनो भी मारो मुझे सब मेरी वजह से हो रहा है , मेरी वजह से इतने साल तक पूरे गांव को इतनी दिक्कत का सामना करना पड़ा , मेरी वजह से कर्ज के नाम पर ब्याज पे ब्याज वसूला गया गांव वालो से और मेरी ही वजह से सब गांव वालो की जमीन छीनी जा रही थी ताकी डिग्री कॉलेज बन सके वहा पर आज मेरी वजह से ही गांव में वो रौनक नही रही जो दस साल पहले हुआ करती थी खड़े क्यों हो मारो मुझे मारो...
अभय की बात सुन राज , लल्ला और राजू तीनों एक दूसरे को देखने लगे जैसे समझने की कोशिश कर रहे हो की क्या हो रहा है ये सब तब राज बोला...
राज –(शांत मन से) ये क्या बोले जा रहा है तू अभय भला तू कैसे जिम्मेदार हुआ यार इस सब बातो का
अभय – मैं ही जिम्मेदार हू इन सब का राज ये सब कुछ मेरी वजह से हुआ है
राजू – देख अभय पहेली में बात मत कर सही से बता आखिर बात क्या है
लल्ला – (कुछ देख के राजू , राज और अभय को धीरे से) चुप रहो तुम तीनो
राजू – क्या है बे
लल्ला –(धीरे से) अबे धीरे से बोल (अपनी उंगली से इशारा करके) वो देखो सामने यार्ड में रमन ठाकुर की कार
जैसे ही तीनों ने यार्ड की तरफ देखा जहा पर रमन ठाकुर किसी औरत के साथ कार से उतर यार्ड में खड़ी ट्रेन की एसी बोगी के अंडर जा रहा था जिसे देख चारो दोस्तो ने एक दूसरे को देखा तब राज बोला...
राज –(धीरे से) रमन ठाकुर यहां पर और कॉन है वो औरत चेहरा दिखा क्या तुमलोगो को उसका
अभय –(धीरे से) नही (फिर गुस्से से) लेकिन अब इसको कोई नही देख पाएगा आज के बाद इस गांव में मिटा दुगा इसको आज मैं , इसी ने ही दस सालो तक गांव वालो का जीना हराम किया हुआ था आज मैं...
राजू –(अभय के मू पे हाथ रख के) चुप कर बे थोड़ी देर तू
राज – (धीरे से) देख अभय अभी के लिए शांत होजा तू ये वक्त जोश का नही होश में रहने का वक्त है पहले चल के देखते है कोन है वो औरत जिसके साथ रमन उस बोगी में गया है
अभय – और कॉन हो सकती है आई होगी अपने यार के साथ गुल छर्रे उड़ाने गांव की ठकुराइन..
अभय की बात सुनके तीनों ने पहले एक दूसरे को देखा तब राज ने अभय का मू हाथ से पकड़ के...
राज –(मू पे हाथ रख के) देख अभय जब तक सबूत न हो अच्छा रहेगा तू अपना मू बंद रख
अभय –(अपने मू से राज का हाथ हटा के) ठीक है सबूत चाहिए न तुझे चल के खुद देख ले अपनी आखों से तब यकीन आएगा तुझे...
बोल के चारो दोस्त चलते हुए धीरे से ट्रेन की बोगी में चढ़ अन्दर छुप के देखने लगे जहा का नजारा कुछ ऐसा था...
रमन ने उर्मिला को गहरा चुम्मन दिया फिर उसका हाथ पकड़ उसे खड़ा कर...रमन ने उसके साड़ी के आंचल को नीचे गिरा दिया
उसके ब्लाउज़ में फंसे हुए बूब्स रमन की आंखों के सामने थे
उर्मिला का सीना तेजी से ऊपर नीचे हो रहा था
उसके सीने की क्लीवेज़ देखकर रमन से सब्र नहीं हुआ और वो उर्मिला पर झपट पड़ा
अब तक जो काम बहुत प्यार से, धीरे से हो रहा था उसने तेजी पकड़ ली
रमन के दोनो हाथ उसकी नरम छतियो का मर्दन मरने लगे….
उर्मिला को मजा भी बहुत आ रहा था और शायद अपने दर्द को भुलाकर उससे मिलने वाले मजे को महसूस करके उर्मिला सिसकारियां मार रही थी
कुछ ही देर में रमन ने उर्मिला जिस्म के एक-2 कपड़े को निकाल फेंका और उसे नंगा कर दिया...
अब उर्मिला पूरी नंगी होकर लेटी थी उसके सामने ट्रैन बर्थ पर
वो बिन पानी की मछली जैसी मचल रही थी
रमन अपनी आंखों फाड़े उर्मिला के खूबसूरत जिस्म को घूरे जा रहा था मानो जैसे जमाने बाद देखने को मिला हो जबकि उर्मिला ट्रेन बर्थ पर लेटी अपने जिस्म को हिला रही थी इस तरह मानो जल बिन मछली की तरह तड़प रही हो
उर्मिला के गोरे रंग और मोटे मम्मे देख रमन की लार टपक रही थी
उसने अपने लार टपकाती जुबान को जब उर्मिला के मोटे निपल्स पर रखा तो उसकी आनंदमयी चीख़ से पूरा बोगी जैसे हिल गई हो
रमन को वैसे भी किसी आमंत्रण की जरूरत नहीं थी
वो अपने होंठ से उर्मिला के गोरे बूब्स पर चित्रकारी करने में लग गया...
जिस तरह से उन्हें चूस रहा था, साफ लग रहा था कि वो कितना प्यासा है
उर्मिला के दोनो मुम्मों को अच्छी तरह से चूस चूसकर लाल करने के बाद वो अपनी जीभ उसके नंगे पेट पर फिराता हुआ नीचे की तरफ जाने लगा
और जब रमन की करामाती जीभ उसकी उफ़नती हुई चूत में डुबकी लगायी तो उर्मिला भी उसकी गर्मी से जल उठी
अंदर से निकल रही गर्मी इतनी तेज थी कि रमन को अपने चेहरे के सामने गर्म हीटर लगा हुआ महसूस हो रहा था
पर अंदर की मलाई चाटकर उसके मीठेपन को महसूस करके रमन अब जानवर बन चुका था
bell super 2 helmet large उर्मिला की चूत के मोटे होंठ को अपने होंठो में समेट कर रमन ने जोर से चुप्पा मारा
उर्मिला की कमर हवा में उठ गई, उसने रमन के सर को पकड़ कर जोर से अपनी चूत में दबा दिया ताकि उसकी मचल रही जीभ जितना हो सके उसके अंदर तक जा सके...
पर जीभ की भी एक लिमिट होती है
इसलिए अब उससे लंबी चीज को निकालने का वक्त आ चुका था
रमन खड़ा हुआ और उसने आनन फानन में अपने सारे कपडे निकाल फेंके और जब उसका लोढ़ा उर्मिला ने देखा लंड का टोपा ठीक उसके सामने था
जैसे ललचा रहा हो की उसे चूस ले
और वो लालच में आ भी गई
उर्मिला ने अपने होंठो पर जीभ फेराई और उसके लंड को मुंह में लेकर चूसने लगी
top fb pic रमन के लंड का टोपा मुंह में आने से पहले वो उर्मिला के दांतो से रगड़ खाता हुआ अंदर गया
थोडी पीढ़ा तो हुई रमन को पर उर्मिला के मुंह की गर्मी से मिलने वाले मजे के सामने वो दर्द कुछ नहीं था
और जब अपने कुशल मुंह से सकिंग करना शुरू किया तो रमन भी आँखे बंद करके उसका मजा लेने लगा
करीब 5 मिनट तक उसे चूसने के बाद जब उर्मिला ने लंड मुंह से बाहर निकाला तो पीछे -2 ढेर सारा गाड़ा थूक भी उसे बाहर फेंकना पड़ा
अब उससे और सब्र नहीं हो रहा था, उसने अपनी टाँगे फैलाई और रमन को अपने ऊपर खींच लिया
लंड ने भी अपने आप उसकी चूत को खोज लिया और वो सीधा दनदनाता हुआ उसके अंदर घुसता चला गया
और एक बार फिर से उर्मिला के मुंह से आनंदमयी सिसकारी निकल गई
“ओह्ह्ह्हह्हहह्ह्ह्हह्हहह्ह्ह्हह्हहह्ह्ह्हह्हहह्ह्ह्हह्हहह्ह्ह्हह्हह उम्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्.. मजाआआआआआआआआआआआआआआआआआआआआआआआआआआआआआआआआआआआआआआआआआआआआआआआआआआआआआआआआआआआआआआआआआआआआआआआआआ गया उम्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्… कितने वक्त से प्यासी थी……….. आज सारी प्यास बुझा दो मेरी……. उम्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्........... चोदो मुझे....... जोर से चोदो ….. फाड़ दो मेरी चूत ……..
रमन को उर्मिला का चिल्लाने का ये तरीका पसंद आ रहा था
वैसे भी चुदाई का यही नियम होता है, जितना खुलकर एक दूसरे से चुदोगे , उतना ही मजा मिलेगा
रमन इस वक्त उसकी पाव रोटी जैसी चूत को अपने लण्ड से बुरी तरह से कूट रहा था
पूरी बोगी में फच फच की आवाजें आ रही थी
best multi host download service कुछ देर तक रमन सवारी करता रहा उर्मिला की ओर बाद में उर्मिला ने रमन को एक झटके से नीचे किया और खुद ऊपर आ गई
अब वो उसके लंड को अपनी चूत में अच्छे से कंट्रोल कर सकती थी
उर्मिला ने उसकी छाती पर अपने हाथ रखे और अपनी छातियों को हिलाते हुए जोरों से उसके ऊपर उछलने लगी
रमन ने उसके मोटे और फैले हुए कुल्हो को पकड़ कर नीचे से जोरों से झटके मारने शुरू कर दिए
उन झटकों को उसने कुछ मिनट तक बिना रुके मारा
अब झटका देकर पलटने की बारी रमन की थी...
उसने उसे घोड़ी बनाया और होले से उसकी चूत में अपना लोड़ा खिसका कर मजे ले-लेकर उसे चोदने लगा
उर्मिला को इस पोजीशन में काफी मजा आ रहा था नीचे की सीट पर मुंह रगड़के वो अपनी सिसकारीयों को दबाने का असफ़ल प्रयास कर रही थी उसकी भरंवा गांड को हाथ से पकड़कर रमन अपने लंड से हलचल मचा रहा था...
उर्मिला के मुंह की लार निकलकर ट्रेन की सीट पर गिर रही थी
आंखें चढ़ आईं उसकी जब रमन ने उसकी गांड को पकड़कर उसकी रेल बनाना शुरू की...
तेज झटके इतने जोर से कि उससे सांस लेना भी मुश्किल हो रहा था
जैसे ही सांस लेने लगती पीछे से आ रहे धक्का से वो फिर से उचक पड़ती..
और वो वक्त भी जल्द आ गया जब रमन का पानी अपने चरमोत्कर्ष पर आकर बाहर निकलने पर आतुर हो गया
रमन ने जल्द से अपना लंड उर्मिला की चूत से बाहर निकाल लिया
उर्मिला पलटी और अपने चूत रस से भीगे लंड को अपने मुंह में भरकर आखिरी बूंद तक निचोड़ डाला
बाकी का सारा रस उसकी छाती और मुंह पर आ गिरा
जिसकी वजह से वो और भी सुंदर दिखाई देने लगी
रमन ने एक जोरदार हुंकार भरते हुए अपने लंड के नल को पूरा खाली कर उर्मिला के बगल में लेट गया दोनो ही अपनी आंख बंद करके लेटे रहे...
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जारी रहेगा
Abhay ko ab khud hi doubt hone laga hai Sandhya ke bare me apne vichar ko lekar. Wow first sex scene ... Of Urmila and Raman achha raha . beautiful update...Aur ye kya ab king ka relation thakur ke sath bhi hai aur sath hi sath Shalini se bhi.
अभय , राज , राजू और लल्ला चारो दोस्त ट्रेन की एसी बोगी में चिप के रमन और सरपंच को बीवी उर्मिला की रासलीला देखते रहे कुछ समय बिता था की तभी उर्मिला ने बोलना शुरू किया...
उर्मिला –क्या बात है ठाकुर साहब आज आप बहुत जोश में थे....
रमन –(उर्मिला की बात सुन हल्का मुस्कुरा के) तू चीज ही ऐसी है मेरी जान....
उर्मिला –(मुस्कुरा के) लगता है लल्लीता से मन भर गया है आपका....
रमन – वो साली क्या साथ देगी मेरा उसका दिमाग घुटनो में पड़ा रहता है या तो हवेली में लगी रहेगी या अपनी बेटी के साथ....
उर्मिला – (मू बना के) कितनी बार कहा आपसे मुझे हवेली में रख लो हमेशा के लिए बस आपकी बाहों में रहूंगी हमेशा लेकिन आप हो के सुनते कहा हो....
रमन – तू तो जानती है मेरी रानी मेरे हाथ में कुछ भी नही है....
उर्मिला –ये बात आप जाने कितने सालों से बोल रहे हो ऐसे तो आप कभी हवेली में नही ले जाओगे मुझे.....
रमन – क्या बताओ मेरी रानी पहले तो सब मेरे हाथ में था हवेली की बाग डोर और संध्या भी लेकिन जब से उसका उसका बेटा अभय हवेली से भागा है तब से संध्या मेरे हाथ में नही रही इसीलिए धीरे धीरे इत्मीनान से उसे काबू में करने में लगा हुआ था मैं लेकिन फिर इतने साल बाद एक लौंडे के आ जाने से वो पागल सी हो गई है संध्या जाने कहा कहा से गड़े मुर्दे उखड़ने में लगी है.....
उर्मिला – वही लड़का ना जिसने गांव में आते ही गांव वालो को जमीन आपके हाथ से निकल गई....
रमन – है वही लौंडा की वजह से हुआ है ये सब वो साली उसे अपना बेटा अभय समझ रही है....
उर्मिला – (चौक के) कही सच में वो उसका बेटा अभय तो नही....
रमन – अरे नही मेरी जान वो कोई अभय नही है वो तो डी आई जी शालिनी सिन्हा का बेटा है जो शहर से यहां कॉलेज में पढ़ने आया है....
उर्मिला – शहर से यहां गांव में पढ़ने अजीब बात है.....
रमन – कोई अजीब बात नही है मुफ्त में पढ़ने आया है यहां स्कॉलरशिप मिली है उस लौंडे को , आते ही इत्तेफाक से संध्या से मुलाकात हो गई उसकी रास्ते में जाने क्या बात हुई रास्ते में ऐसी उसे अपना बेटा समझने लगी संध्या तब से हाथ से निकल गई है मेरे.....
उर्मिला – (मुस्कुरा के) इतने साल फायदा भी तो खूब उठाया है आपने ठकुराइन का....
रमन – क्या खाक फायदा मिला मुझे साली गांव की जमीन निकल गई मेरे हाथ से बस एक बार कॉलेज की नीव पड़ जाति उस जमीन पर तो चाह के भी कोई कुछ नही कर पता उस जमीन में डिग्री कॉलेज बनने से लेकिन उस लौंडे ने आके....
उर्मिला – (हस के) तो फिर से ऐसा कुछ कर दो आप जिससे जमीन भी आपकी हो जाय और ठकुराइन भी जैसे आपने दस साल पहले किया था जंगल में मिली बच्चे की लाश को अभय के स्कूल के कपड़े पहना कर उसे अभय साबित कर दिया था....
रमन – नही अभी मैं कुछ नही कर सकता हू संध्या को शक हो गया है मेरे उपर अब उसे भी लगने लगा है इन सब में मेरा भी हाथ है बस सबूत न मिलने की वजह से बचा हुआ हू मै वर्ना अब तक बुरा फस गया होता मैं....
उर्मिला – ठाकुर साहब इस चक्कर में अपनी बेटी को मत भूल जाना आप पूनम आपकी बेटी है ना की उस सरपंच शंकर चौधरी की इतने सालो में उसे मैने शक तक होने नही दिया इस बात का....
रमन – तू चिंता मत कर ऐसा वैसा कुछ नही होने दुगा मैं जरूरत पड़ी तो रास्ते से हटा दुगा उस लौंडे को रही संध्या की बात 3 दिन बाद जन्मदिन है उसका इस बार हवेली में पार्टी जरूर होगी खुद संध्या देगी वो पार्टी उस लौंडे के दिखाने के लिए उस दिन संध्या को मना लूगा मैं और नही भी हुआ ऐसा तो भी कोई बात नही आखिर मेरा भी हक बनता है हवेली और जायदाद पर....
उर्मिला – अब सब कुछ आपके हाथ है ठाकुर साहब मुझे सिर्फ हमारी बेटी की चिंता है.....
रमन – फिक्र मत कर तू चल जल्दी से कपड़े पहन ले...
उर्मिला – (बीच में बात काटते हुए) इतनी भी जल्दी क्या है ठाकुर साहब आज मैं फुरसत से आई हू आपके पास शंकर गया हुआ है शहर काम से और बेटी गई है अपनी सहेली के घर उसके जन्म दिन के लिए आज वही रहेगी वो...
रमन – वाह मेरी जान तूने तो मेरी रात बना दी आज की आजा….
बोल के दोनो शुरू हो गए अपनी काम लीला में जिसके बाद राज , अभय , राजू और लल्ला चुप चाप दबे पांव निकल गए ट्रेन की बोगी से , बाहर आते ही चारो दोस्त जल्दी से अभय की बाइक के पास आ गए तब राज बोला...
राज –(अभय से) तूने देखा और सुना , कुछ समझ आया तुझे...अभय चुप रहा बस अपना सर उपर आसमान में करके के देखता रहा जिसे देख राज बोला...
राज – (हल्का सा हस के) चल चलते है हमलोग यहां से , घर भी जाना है मां और बाब राह देख रहे होगे मेरी...
राज की बात सुन राजू बोला...
राजू – हा यार चल अब रुक के क्या फायदा होगा साली ने अरमान जगा दिया मेरे...
लल्ला – (राजू की बात सुन के) यार ये सरपंच की बीवी साली कंचा माल है यार....
राज –(दोनो की बात सुन के) अबे पगला गए हो क्या बे तुम दोनो....
राजू – अबे ओ ज्यादा शरीफ मत बन अरमान तो तेरे भी जाग गए है नीचे देख के बात कर बे....
राज –(अपनी पैंट में बने तंबू को देख मुस्कुरा के) हा यार वो सरपंच की बीवी ने सच में अरमानों को हिला दियारे....
लल्ला – क्यों अभय बाबू क्या बोलते हो तुम अब तो वो गुस्सा नही दिख रहा है तेरे चेहरे पर लगता है सरपंच की बीवी की जवानी का जादू चल गया है तेरे ऊपर भी.....
राज – (हस्ते हुए) साले तभी मू छुपा रहा है देखो तो जरा साले को....
अभय –(हस्ते हुए) ओय संभाल के राज वर्ना दीदी को बता दुगा तू क्या कर रहा है....
राज – (हस के) हा हा जैसे मैं नही बोलूगा पायल से कुछ भी क्यों बे....बोल कर चारो दोस्त हसने लगे और निकल गए घर की तरफ रास्ते में राजू और लल्ला अपनी साइकिल से घर निकल गए जबकि अभय और राज एक साथ बाइक में हॉस्टल आ गए...
राज – (अभय से) चल भाई हॉस्टल आ गया तेरा....अभय – यार मन नही कर रहा आज अकेले रहने का.....
राज –(हसके) इरादा तो नेक है तेरे....
अभय – नही यार वो बात नही है....
राज –(बात समझ के) देख अभय जो हुआ जैसे हुआ तेरे सामने है सब कुछ कैसा भी हो लेकिन छुपता नही है कभी सामने आ जाता है एक ना एक दिन उस दिन बगीचे में तूने जो बात बोल के निकल गया था वो भी अधूर...
अभय –(राज की बात काट अपना मू बना के) यार तू कहा की बात कहा ले जा रहा है देख जो भी देखा और जो भी सुना मैने सब समझ गया बात को अब जाने दे सब बातो को तू जा घर बड़ी मां राह देख रही होगी तेरी कल मिलते है....
राज बाइक खड़ी करके जाने लगा तभी अभय बोला...
अभय – अबे पैदल जाएगा क्या बाइक से जा रात हो गई है काफी कितना सन्नाटा भी है...
राज – लेकिन कल सुबह तू कैसे आयगा....
अभय – मेरी चिंता मत कर भाई पैदल आ जाऊंगा कल कॉलेज में ले लूगा बाइक तेरे से....
राज घर की तरफ निकल गया और अभय हॉस्टल के अन्दर चला गया कमरे में आते ही दरवाजा बंद करके लेट गया अभय बेड में...
अभय – (अपने आप से बोलने लगा) एक बात तो समझ आ गई ये सारा खेल रमन ठाकुर का खेला हुआ है रमन ठाकुर तुझे लगता है इस खेल को खेल के तू पूरी तरह से कामयाब हो गया है लेकिन नही आज कसम खाता हू मै अपने बाप की गिन गिन के बदला लूगा मैं तुझसे हर उस मार का जो तूने और तेरे बेटे की वजह से मिली बिना वजह उस ठकुराइन से मुझे , वैसा ही खेल को खेलूगा मैं भी , गांव वालो का तूने खून चूसा है ना , ब्याज के साथ उसकी कीमत दिलाऊगा उन गांव वालो को तेरे से मैं , रही उस ठकुराइन की बात सबक उसे भी मिलेगा जरूर लेकिन आराम से जब तक दीदी उसके साथ है मुझे ऐसा वैसा कुछ भी करने नही देगी लेकिन मैं करूंगा तो जरूर (अपनी पॉकेट से मोबाइल निकल के किसी को कॉल कर बोला) हेलो कैसी हो अल्लित्ता....
अलित्ता – (अभय की आवाज सुन के) मस्त हू तुम कैसे हो आज इतने दिन बाद कॉल किया तुमने....
अभय – अच्छा हू मै भी , एक काम है तुमसे....
अलित्ता – हा बोलो ना क्या सेवा करूं तुम्हारी....
अभय – बस कुछ सामान की जरूरत है मुझे...
अलित्ता – क्यों अपनी दीदी से बोल देते वो मना कर देती क्या....
अभय – ऐसी बात नही है अलित्ता असल में दीदी कभी मना नही करेगी मुझे लेकिन मैं दीदी को बिना बताए काम करना चाहता हू.....
अलित्ता –(अभय की बात समझ के) क्या चाहिए तुम्हे बोलो मैं अरेंज करवाती हू जल्द ही.....
अभय – मैं मैसेज करता हू तुम्हे डिटेल्स....
अलित्ता – ठीक है मैसेज करो तुम डिटेल्स परसो तक मिल जाएगा तुम्हे सारा समान.....
अभय – ठीक है और थैंक्यू अलित्ता.....
अलित्ता – (मुस्कुरा के) कोई बात नही तुम्हे जब भी जरूरत हो कॉल कर लेना मुझे ठीक है बाए....
बोल के अभय ने कॉल कट कर मैसेज कर दिया डिटेल को जिसे पड़ के अलित्ता के बगल में बैठे KING को डिटेल्स दिखाई जिसे देख KING बोला...
KING – (डिटेल्स पड़ के) भेज दो ये सामान उसे , लगता है अभय अब अपने कदमों को आगे बड़ा रहा है अकेले बिना किसी की मदद के जरूर कुछ जानकारी मिली है उसे अच्छा है.....
अलित्ता – आखिर ठाकुर का खून है उबाल तो मारेगा ही ना...
KING – उम्मीद करता हू अभय जो भी काम करने जा रहा हो उससे ठाकुर साहब की आत्मा को शांति मिले....
अलित्ता – हा ऐसा ही होगा जरूर.....
इस तरफ अभय बेड में लेता हुआ था तभी संध्या का कॉल आया जिसे देख अभय ने रुक के कॉल रिसीव कर कान में लगाया...
संध्या – (कुछ सेकंड चुप रहने के बाद) कैसे हो तुम....
अभय – (धीरे से) अच्छा हू....
संध्या – (अभय की आवाज सुन) खाना खा लिया तुमने....
अभय – हा अभी आराम कर रहा हू मै....
संध्या – घर वापस आजा....
अभय – देख मैं तेरे से आराम से बात कर रहा हू इसका मतलब ये नही तेरी फरमाइश भी पूरी करूगा.....
संध्या – 3 दिन बाद एक पार्टी रखी है हवेली में....
अभय –हा जनता हू जन्मदिन जो है तेरा....
संध्या – तुझे याद है तू...तू आएगा ना देख प्लीज माना मत करना तू आगया है ना इसीलिए पहली बार मना रही हू....
अभय – (हस के) मेरा क्या काम है तेरी पार्टी में और भी तो तेरे खास लोग आएंगे उसमे भला मेरे जैसों का कोई मोल नहीं तेरी पार्टी में या कही नौकर तो काम नही पड़ गए तुझे इसीलिए बुला रही है मुझे....
संध्या – ऐसा तो मत बोल कोई नही आएगा बस घर के है लोग...
अभय – लेकिन मेरी गिनती तेरे घर के लोगो में नही आती...
संध्या –(रोते हुए) ऐसा मत बोल सबसे कोई मतलब नहीं मेरा बस तुझ से मतलब है बस तू आजा बदले में जो बोल मैं वो करूगी....
अभय – सिर्फ मेरे लिए इतना बोल रही क्योंकि आज मैं यहां हू उससे पहले कभी सोचा तूने इन गांव वालो का जिनकी जमीनों में कर्ज के नाम पर कब्जा किया जा रहा था जबरन तरीके से तब देखा तूने....
संध्या – तेरे इलावा कोई नही मेरा तूही मेरा सब कुछ है तेरी कसम खा के बोलती हू मुझे सच में कुछ नही पता था इस बारे में....
अभय –(संध्या की ये बात सुन के चुप रह कुछ सेकंड फिर बोला) तू नही जानती इस वजह से कितना कुछ झेला है गांव वालो ने कर्ज के बदले ब्याज पर ब्याज लिया गया उनसे जो रोज तपती धूप में खेती करते ताकी अपने परिवार का पेट भर सके सोच इतने सालो में उनके साथ क्या क्या नहीं हुआ होगा उनके दर्द का कोई अंदाजा नही लगा सकता (रूंधे गले से) अगर बाबा होते ऐसा कभी नहीं होने देते...
बोल के फोन कट कर दिया अभय ने इस तरफ हवेली में संध्या के संग चांदनी बैठी सारी बाते सुन रही थी...
चांदनी – (रोती हुई संध्या को गले लगा के) बस करिए मत रोइए....
संध्या –(आसू पोच के) नही चांदनी आज इतने दिनो बाद उसने मुझ से बात की आराम से बिल्कुल अपने बाबा की तरह सोचता है अपने से पहले दूसरो के बारे में....
चांदनी – आप खुश है ना....
संध्या – बहुत खुश हू आज मैं (चांदनी का हाथ पकड़ के) शुक्रिया चांदनी तुम्हारी वजह से ये हुआ है...
चांदनी – नही ठकुराइन इसमें शुक्रिया जैसी कोई बात नही है ये मेरा फर्ज है अभय भाई है मेरा उसके लिए नही करूंगी तो किसके लिए करूगी....
संध्या – ये तू मुझे ठकुराइन क्यों बोलती रहती है शालिनी जी को बहन माना है मैने तो तू मुझे मासी बोला कर अब से....
चांदनी – लेकिन सिर्फ आपको अकेले में....
संध्या – कोई जरूरत नहीं है सबसे सामने बोलेगी बेझिजक....
चांदनी –(मुस्कुरा के) ठीक है मासी अब खुश हो आप....
संध्या – (गले लगा के) हा बहुत खुश हू , चल अब सोजा कल तुझे मेरे साथ चलना है तुझे दिखाओगी गांव की मीटिंग जहा सरपंच बैठक लगाते है सभी गांव वालो की....
चांदनी – लेकिन वहा पर क्या काम मेरा...
संध्या – (मुस्कुरा के) वो तू कल खुद देख लेना चल अब सोजा सुबह जल्दी चलना है....
चांदनी –(मुस्कुरा के) जैसा आप कहे मासी.....
हस के चांदनी चली गई अपने कमरे में आराम करने चांदनी के जाने के बाद संध्या ने शंकर चौधरी (सरपंच) को कॉल किया..
संध्या –(कॉल पर) हेलो शंकर....
शंकर (सरपंच) – प्रणाम ठकुराइन इतने वक्त याद किया आपने...
संध्या – जी ये कहने के लिए कॉल किया की कल पूरे गांव वालो को बैठक बुलाइए गा और ध्यान रहे सभी गांव वाले होने चाहिए वहा पर..
शंकर (सरपंच) – कुछ जरूरी काम है ठकुराइन....
संध्या – जी कल वही पर बात होगी सबके सामने वक्त पे तयार होके आइए गा.....
बोल के कॉल कट कर दिया जबकि शंकर चौधरी (सरपंच) को शहर गया हुआ था काम से उसने कॉल लगाया रमन ठाकुर को को इस वक्त सरपंच की बीवी उर्मिला के साथ कामलीला में लगा हुआ था....
रमन –(मोबाइल में सरपंच का कॉल देख के उर्मिला से) तूने तो बोला था शंकर शहर गया हुआ है....
उर्मिला – हा क्यों क्या हुआ...
रमन –(अपना मोबाइल दिखा के जिस्म3 शंकर की कॉल आ रही थी) तो इस वक्त क्यों कॉल कर रहा है ये...
उर्मिला –(चौक के) पता नही देखिए जरा क्या बात है...
रमन –(कॉल उठा के स्पीकर में डाल के) हा सरपंच बोल क्या बात है...
शंकर (सरपंच) – हवेली में कोई बात हुई है क्या ठाकुर साहेब...
रमन – नही तो क्यों क्या हुआ...
शंकर (सरपंच) –(संध्या की कही सारी बात बता के) अब क्या करना है ठाकुर साहब...
रमन –(सरपंच की बात सुन हैरान होके) जाने अब क्या खिचड़ी पका रही है ये औरत साली चैन से सास तक लेने नही देती है एक काम कर जो कहा है वो की तू बाकी मैं भी कल रहूंगा वहा पर देखते है क्या करने वाली है ये औरत अब....
उर्मिला –(रमन का कॉल कट होते बोली) ये सब अचानक से क्यों ठाकुर साहब...
रमन –यही बात तो मुझे भी समझ नही आ रही है चल तू कपड़े पहन ले मैं तुझे घर छोड़ देता हू फिर हवेली जाके देखता हू क्या माजरा है ये...इधर हवेली में संध्या ने एक कॉल और मिलाया गीता देवी को...
संध्या – (कॉल पर गीता देवी से) दीदी कैसी हो आप...
गीता देवी – अच्छी हू तूने इतने वक्त कॉल किया सब ठीक तो है न संध्या...
संध्या – हा दीदी सब ठीक है मैने सरपंच को बोल के कल सभी गांव वालो की बैठक बुलवाई है मैं चाहती हू आप सभी गांव की औरतों को साथ लेके आए वहा पर....
गीता देवी –(हैरान होके) ऐसी क्या बात है संध्या ये अचनक से बैठक सभी गांव वालो को....
संध्या – आप ज्यादा सवाल मत पूछिए दीदी बस कल सभी को लेक आ जायेगा.....
गीता देवी –(संध्या को बात सुन के) ठीक है कल आ जाऊंगी
बोल के दोनो ने कॉल कट कर दिया उसी समय राज और सत्य बाबू पास में बैठे थे सत्य बाबू बोले...
सत्य बाबू – क्या बात है सब ठीक तो है ना हवेली में....
गीता देवी – हा सब ठीक है (फिर जो बात हो गई सब बता दिया) देखते है कल क्या होता है बैठक में.....
सत्य बाबू – कमाल की बात आज ही मुझे अभय मिला था....
गीता देवी – अभय मिला था आपको तो घर लेके क्यों नही आए उसे....
सत्य बाबू –यही बोला मैने समझाया उसे....
गीता देवी – फिर क्या बोला अभय.....
सत्य बाबू ने सारी बात बताई जिसे सुन के गीता देवी कुछ बोलने जा रही थी कि तभी राज बीच में बोल पड़ा...
राज –(बातो के बीच में) ओह तो ये बात है तभी मैं सोचूं आज अभय को हुआ क्या है....
गीता देवी और सत्य बाबू एक साथ –(चौक के) क्या हुआ था अभय को....
फिर राज ने सारी घटना बताई लेकिन रमन और उर्मिला की बात छोड़ के जिसे सुन के गीता देवी और सत्य बाबू की आखें बड़ी हो गई...
गीता देवी –(गुस्से में सत्य बाबू से) आप ना कमाल करते हो क्या जरूरत थी अभय को ये बात बताने की बच्चा है वो अभी उसे क्या पता इतने साल उसके ना होने से क्या हुआ है गांव में और आपने उसे ही जिम्मेदार ठहरा दिया भला ये कोई तरीका होता है क्या एक बच्चे से बात करने का....
सत्या बाबू –(अपने सिर पे हाथ रख के) अरे भाग्यवान अभय को बताने का ये मकसद नही था मेरा मैं भी बस यही चाहता था वो संध्या से नफरत ना करे इसीलिए उसे सच बताया था...
गीता देवी –(मू बना के) सच बताने का एक तरीका भी होता है बताना होता तो मैं नही बता सकती थी अभय को सच या राज नही बता सकता था शुक्र है भगवान का कुछ अनर्थ नही हुआ वर्ना मू ना दिखा पाती मैं संध्या को कभी (राज से) और तू भी ध्यान रखना ऐसी वैसी कोई बात नही करना अभय से समझा ना....
राज – ठीक है मां....
गीता देवी – एक बात तो बता तुझे पता था ना अभय की ऐसी हालत है तो तू उसे हॉस्टल में छोड़ के कैसे आ गया घर ले आता उसे या वही रुक जाता , एक काम कर तू अभी जा अभय के पास वही सो जाके जाने कैसा दोस्त है , तू भी इनकी तरह हरकत कर रहा है.....
राज –अरे अरे मां ऐसा कुछ भी नही है अभय ठीक है अब....
गीता देवी – लेकिन अभी तो तूने कहा.....
राज – (अपने सिर पे हाथ रख के) मां बात असल में ये है की वहा पर जब ये सब हुआ तब हम आपस में बात कर रहे थे कि तभी वहा पर रमन और सरपंच की बीवी (उर्मिला) को देख लिया हमने , वो दोनो एक साथ यार्ड में खड़ी एसी वाली बोगी में चढ़ गए फिर....(बोल के चुप हो गया राज)....
गीता देवी – फिर क्या बोल आगे भी....
राज –(झिझक ते हुए) वो...मां....वो...मां....
सत्य बाबू – ये वो मां वो मां क्या लगा रखा आगे बोल क्या हुआ वहा पर.....
राज – देख मां नाराज मत होना तू वो रमन और उर्मिला काकी दोनो एक साथ (बोल के सर झुका दिया राज ने)....
गीता देवी –(बात का मतलब समझ के राज के कान पकड़ बोली) तो तू ये सब देखने गया था क्यों बोल....
राज –आ आ आ आ मां लग रही है मां तेरी कसम खाता हू वो सब देखने नही गए थे मां (फिर पूरी बात बता के)....
सत्या बाबू –(गुस्से में) नीच सिर्फ नीच ही रहता है थू है इसके ठाकुर होंने पर इतनी गिरी हरकत ठाकुर रतन सिंह का नाम मिट्टी में मिला रहा है रमन इससे अच्छा तो मनन ठाकुर था कम से कम भला करता था गांव के लोगो का और ये......
गीता देवी – जाने दीजिए क्या कर सकते है अब इस नीच इंसान का इसकी वजह से संध्या की आज ये हालत है बेटा पास होते हुए भी दूर है वो मां सुनने तक को तरस गई है अभय के मू से सब रमन के वजह से हुआ है जाने इतनी दौलत का क्या करेगा मरने के बाद (राज को देख गुस्से से) और तू अगर फिर कभी ऐसा कुछ हुआ या सुन लिया मैने तेरी खेर नही समझा....
राज –(हल्का हस के) हा मां पक्का....
अगले दिन सुबह अभय कॉलेज गया जहा उसे राज , राजू और लल्ला मिले...
अभय – आज कुछ है क्या कॉलेज में इतना सन्नाटा क्यों है यार....
राजू – अबे आज सुबह सुबह सरपंच ने बैठक बुलाई है गांव के लोगो की सब वही गए है....
अभय –(कुछ सोच के) सरपंच तो शहर गया हुआ था ना इतनी जल्दी कैसे आ गया यार....
राज – अबे कल रात को ठकुराइन का कॉल आया था मां को बोला रही थी सभी औरतों को लेके आने को बैठक में तभी लल्ला आया नही है कॉलेज....
अभय – पायल भी नही दिख रही है यार.....
राजू – हा भाई और नीलम भी नही दिख रही है.....
अभय – ओह हो तो ये बात है मतलब तू लाइन में लगा हुआ है या पता लिया तूने नीलम को....
राजू – भाई मान गई है नीलम बस कभी अकेले में घूमने का मौका नहीं मिलता है यह पर...
राज – मिलेगा मिलेगा जरूर मिलेगा मौका भी लेकिन अभी चल चलते है पंचायत में देखे क्या होने वाला है वहा पर....
बोल के तीनों निकल गए पंचायत की तरफ वहा पर एक तरफ रमन और सरपंच इनके दूसरी तरफ संध्या और साथ में चांदनी , ललिता और मालती बैठे थे और बाकी के सभी गांव वाले मौजूद थे एक तरफ गांव के बच्चे बूढ़े आदमी थे और दूसरी तरफ औरते तब सरपंच ने बोलना शुरू किया...
सरपंच – आज की बैठक हमारे गांव की ठकुराइन ने बुलाई है वह आप सबसे कुछ बात करना चाहती है....
संध्या –(सरपंच की बात सुन खड़ी होके सभी गांव वालो के सामने) काफी वक्त से आप सभी गांव वालो को कई तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ा यहां तक कि आपकी जमीन तक गिरवी में चली गई थी मैं उन सभी गलतियों के लिए आप सब से माफी मांगती हू और ये चाहती हू की आपकी जो भी समस्याएं है खेती को लेके या अनाज को लेके आप बिना झिजक के बताए खुल के मुझे मैं मदद करूगी बदले में कुछ भी नही मागूगी...
सरपंच – (बीच में ठकुराइन से) ठकुराइन गांव वालो को उनकी जमीन मिल गई है वापस उन्हें अब क्या जरूरत किसी चीज की...
संध्या –(बात बीच में काट के) यही बात गांव वाले खुद बोले तो यकीन आए मुझे (सभी गांव वालो से) तो बताए क्या सिर्फ जमीन मिलने पर आप खुश है और कोई समस्या नही आपको....
तभी एक गांव वाला बोला..
गांव वाला – ठकुराइन मैं अपने घर में इकलौता हू कमाने वाला मेरा खेत भी दूर है यहां से पानी वक्त से मिल नही पता है जिस कारण फसल बर्बाद हो जाती है और बैंक का ब्याज तक नहीं दे पता वक्त पर जिसके चलते बैंक वालो ने मेरी खेत की जमीन में कब्जा कर लिया है....
बोल के रोने लगा इसके साथ कई लोगो ने अपनी समस्या बताई खेती और बैंक के कर्जे को लेके जिसे सुन कर संध्या सरपंच को देख के बोली..
संध्या –अब क्या बोलते है आप सरपंच क्या ये काम होता है सरपंच का गांव में क्या इसीलिए आपको गांव में सरपंच के रूप में चुना गया था लगता है अब सरपंची आपके बस की रही नही...
गांव वाला बोला – (हाथ जोड़ के) ठकुराइन कई बार कोशिश की हमने अपनी समस्या आप तक पहुंचाने की लेकिन पिछले कई साल तक हमे ना हवेली की भीतर तो दूर सख्त मना कर दिया गया गांव का कोई बंदा हवेली की तरफ जाएगा भी नही और कॉलेज की जमीन के वक्त भी सरपंच के आगे गांव के कई लोग गिड़ गिड़ाये लेकिन सिवाय मायूसी के इलावा कुछ न मिला हमे....
संध्या –(बात सुनने के बाद गांव वालो से) काफी वक्त से गांव में सरपंची का चुनाव नही हुआ है क्या आपका कोई उम्मीद वार है ऐसा जिसे आप सरपंच के पड़ के लिए समझते हो लेकिन जरूरी नहीं वो आदमी हो औरत भी हो कोई दिक्कत नही...
इस बात से सरपंच के सर पर फूटा एक बॉम्ब साथ ही रमन के कान से धुवा निकलने लगा इतने गांव वालो के सामने संध्या से उसकी कुछ भी कहने की हिम्मत नही हो रही थी...
गांव वाले –(सब गीता देवी को आगे कर) ठकुराइन गीता देवी से बेहतर कोई नहीं संभाल सकता है सरपंच....
संध्या –(मुस्कुरा के) तो ये तय रहा इस बार गांव में सरपंच का पद गीता देवी संभालेगी....
शंकर (सरपंच)–(बीच में बात काट के) ठकुराइन ये गलता है इस तरह आप ये तय नही कर सकती कॉन सरपंच बनेगा कॉन नही इसकी मंजूरी के नियम होते है और कानून भी.....
संध्या –(बात सुन मुस्कुरा के) अच्छा तो जब गांव वालो को जरूरत थी तब कहा थे आप तब याद नही आया आपको नियम कानून जब गांव वालो की जमीन छीनी जा रही थी ब्याज के नाम पर तब चुप क्यों थे आप क्यों नही आए आप हवेली और क्यों नही आवाज उठाई आपने है कोई जवाब आपके पास इसके बाद भी अगर आप शिकायत करना चाहते है तो जाए लेकिन ध्यान रखिए बात का गांव वालो ने बदले में आपकी शिकायत कर दी तब क्या होगा आपका सोच लीजिए गा....
इस बात से जहा सब गांव वाले खुश हो गए इतने साल बाद संध्या का ठकुराइन वाला रूप देख वही सरपंच का मू बंद हो गया कुछ कहने लायक ना बचा और ना ही इन सब के बीच रमन की हिम्मत हुए कुछ बोल सके जबकि अभय ये नजारा देख मुस्कुराए जा रहा था...
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जारी रहेगा