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Rowdy

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UPDATE 11


इधर गांव में आज खुशी का माहौल था। सब गांव वाले अपनी अपनी जमीन पकड़ बेहद खुश थे। और सब से ज्यादा खुश मंगलू लग रहा था। गांव के लोगो की भीड़ इकट्ठा थी। तभी मंगलू ने कहा...

मंगलू -- सुनो, सुनो सब लोग। वो लड़का हमारे लिए फरिश्ता बन कर आया है। अगर आज वो नही होता तो, आने वाले कुछ महीनो में हमारी जमीनों पर कॉलेज बन गया होता। इसी लिए मैने सोचा है, की क्यूं ना हम सब उस लड़के पास जाकर उसे कल होने वाले भूमि पूजन में एक खास दावत दे पूरे गांव वालो की तरफ से।

आदमी –(सहमति देते हुए) सही कहते हो मंगलू, हम सबको ऐसा करना चाहिए।

मंगलू -- तो एक काम करते है, मैं और बनवारी उस लड़के को आमंत्रित करने जा रहे है कल के लिए। और तुम सब लोग कल के कार्यक्रम की तयारी शुरू करो। कल के भूमि पूजन में उस लड़के के लिए दावत रखेजाएगी गांव में ये दिन हमारे लिए त्योहार से कम नहीं है

मंगलू की बात सुनकर सभी गांव वाले हर्ष और उल्लास के साथ हामी भरते है। उसके बाद मंगलू और बनवारी दोनो हॉस्टल की तरफ निकल रहे थे की तभी...

पूरे गांव में आज खुशी की हवा सी चल रही थी। सभी मरद , बूढ़े, बच्चे , औरते और जवान लड़कियां सब मस्ती में मग्न थे। राज भी अपने दोस्तो के साथ गांव वालो के साथ मजा ले रहा था।

राज के साथ खड़ा राजू बोला...

राजू -- यार राज, ये लड़का आखिर है कौन? जिसके आगे ठाकुराइन भी भीगी बिल्ली बन कर रह गई।

राज -- हां यार, ये बात तो मुझे भी कुछ समझ नहीं आई। पर जो भी हो, उस हरामी ठाकुर का मुंह देखने लायक था। और सब से मजे की बात तो ये है, की वो हमारे इसी कॉलेज पढ़ने आया है। कल जब कॉलेज में उस हरामी अमन का इससे सामना होगा तो देखना कितना मज़ा आएगा!! अमन की तो पुंगी बजने वाली है, अब उसका ठाकुराना उसकी गांड़ में घुसेगा।

राजू -- ये बात तूने एक दम सच कही अजय, कल कॉलेज में मजा आयेगा।

गीता देवी – अरे राज क्या कर रहा है तू , इधर आ जरा

राज – हा मां बता क्या काम है

गीता देवी – तू भी चला जा मंगलू के संग मिल के आजाना उस लड़के से

राज – मैं तो रोज ही मिलूगा मां वो और हम एक ही कॉलेज पे एक ही क्लास में है , तुझे मिलना है तो तू चली जा काकी के संग

गीता देवी –(कुछ सोच के मंगलू को बोलती है) मंगलू भईया सुनो जरा

मंगलू – जी दीदी बताए

गीता देवी – भईया उस लड़के को दावत पे आमंत्रित के लिए आप दोनो अकेले ना जाओ हम भी साथ चलती है उसने अकेले इतना कुछ किया हम गांव वालो के लिए तो इतना तो कर ही सकते है हम भी

जहा एक तरफ सब गांव वाले इस खुशी के मौके पे अभय को कल के भूमि पूजन के साथ दावत पे आमंत्रित के लिए मानने जा रहे थे। वही दूसरी तरफ, पायल एक जी शांत बैठी थी।

पायल की खामोशी उसकी सहेलियों से देखी नही जा रही थी। वो लोग पायल के पास जाकर बैठ गई, और पायल को झिंझोड़ते हुए बोली।

नूर – कम से कम आज तो थोड़ा मुस्कुरा दे पता नही आखिरी बार तुझे कब मुस्कुराते हुए देखी थी। देख पायल इस तरह से तो जिंदगी चलने से रही, तू मेरी सबसे पक्की सहेली है, तेरी उदासी मुझे भी अंदर ही अंदर खाए जाति है। थोड़ा अपने अतीत से नीकल फिर देख जिंदगी कितनी हसीन है।

पायल-- (अपनी सहेली की बात सुनकर बोली) क्या करू नूर? वो हमेशा मेरे जहन में घूमता रहे है, मैं उसे एक पल के लिए भी नही भूला पा रही हूं। उसके साथ हाथ पकड़ कर चलना, और ना जाने क्या क्या, ऐसा लगता है जैसे कल ही हुआ है ये सब। क्या करू? कहा ढूंढू उसे, कुछ समझ में नहीं आ रहा है?

नूर -- (पायल की बात सुनकर बोली) तू तो दीवानी हो गई है री, पर समझ मेरी लाडो, अब वो लौट कर...

पायल -- (अपना हाथ नूर के मुंह पर रखते हुए) फिर कभी ऐसा मत बोलना नूर। (कहते हुए पायल वहा से चली जाति है)

इस तरफ मंगलू , बनवारी , गीता देवी और एक औरत के साथ जा रहे थे चलते चलते रास्ते में ही अभय उनको दिख गया जो अकेले मैदान में बैठा आसमान को देख रहा था तभी मंगलू और बनवारी चले गए अभय के सामने

मंगलू – कैसे हो बेटा

अभय --(अनजान बनते हुए) मैं ठीक हूं अंकल, आप तो वही है ना जो कल उस खेत में...

मंगलू -- ठीक कहा बेटा, में वही हूं जिसे तुमने कल ठकुराइन के सामने गिड़गिड़ाते हुए देखा था। क्या करता बेटा? यही एक उम्मीद तो बची थी सिर्फ हम गांव वालो में। की शायद गिड़गिड़ाने से हमे हमारी जमीन मिल जाए। पर हम वो कर के भी थक चुके थे। निराश हो चुके थे। पर शायद भगवान ने तुम्हे भेज दिया हम गरीबों के दुख पर खुशियों की बौछार करने के लिए।

अभय -- (सारी बात को समझते हुए) मैं कुछ समझा नही अंकल? मैने तो सिर्फ वो पेड़ ना काटने की आवाज उठाई थी, जो कानून गलत नही है। बस बाकी और मैने कुछ नही किया।

अभय की बात सुनकर, मंगलू की आंखो से आसूं टपक पड़े, ये देख कर अभय बोला...

अभय -- अरे अंकल आ... आप क्यूं ऐसे....?

मंगलू -- आज तक सिर्फ सुना था बेटा, की सच और ईमानदारी की पानी से पनपा पौधा कभी उखड़ता नही है। आज यकीन भी हो गया।

अभय -- माफ कीजिएगा अंकल, लेकिन मैं आपकी बातों को समझ नही पा रहा हूं।

अभय की दुविधा दूर करते हुए मंगलू ने कहा...

मंगलू -- जिस पेड़ को कल तुमने कटने से बचाया है। उस पेड़ को इस गांव के ठाकुर मनन सिंह और उनके बेटे अभय सिंह ने अपने हाथों से लगाया था। जब तक ठाकुर साहब थे, ये गांव भी उसी पौधे की तरह हरा भरा खिलता और बड़ा होता गया। खुशियां तो मानो इस गांव का नसीब बन कर आई थी, ठाकुर साहब का बेटा...अभय बाबा , मानो उनकी ही परछाई थे वो। कोई जाति पति का भेद भाव नही दिल खोल कर हमारे बच्चो के साथ खेलते। हमे कभी ऐसा नहीं लगा की ये इस हवेली के छोटे ठाकुर है, बल्कि हमे ऐसा लगता था की वो बच्चा हमारे ही आंगन का है। उसका मुस्कुराता चेहरा आज भी हम गांव वालो के दिल से नही निकला और शायद कभी निकलेगा भी नही। ना जाने कैसा सैलाब आया , पहले हमारे भगवान जैसे ठाकुर साहब को ले डूबी, फिर एक तूफान जो इस मुस्कुराते चेहरे को भी हमसे दूर कर दिया।

कहते हुए मंगलू की आंखो से उस दुख की धारा फूट पड़ी। अभय के लिए भी ये बहुत कठिन था। उसका दिल कर रहा था की वो बता दे की, काका उस तूफान में भटका वो मुस्कुराता चेहरा आज फिर से लौट आया है। पर वो नही कह सका। अपनी दिल की बात दिल में ही समेट कर रह गया। अभय का दिल भी ये सुन कर भर आया, की उसे कितना प्यार करते है सब गांव वाले। जिस प्यार की बारिश के लिए वो अपनी मां के ऊपर टकटकी लगाए रहता था वही प्यार गांव वालो के दिल में पनप रहा था। भाऊक हो चला अभय, सुर्ख आवाज में बोला...

अभि -- मैं समझ सकता हूं आपकी हालत अंकल।

ये सुनकर मंगलू अपनी आंखो से बह रहे उस आसूं को पूछते हुए बोला...

मंगलू -- बेटा, हमारे यहां कल हम भूमि पूजन का उत्सव मनाते है, पर इस बार हमे ऐसा लगा था शायद हमारे पास ये जमीन नही है। इस लिए हम अपनी भूमि का पूजा नही कर पाए। पर आज तुम्हारी वजह से हमारी जमीनें हमारी ही है। इस लिए कल रात हमने ये उत्सव रखा है, तो हम सब गांव वालो की तरफ से मैं तुम्हे आमंत्रित करने आया हूं। आना जरूर बेटा।

मंगलू की बात सुनकर, अभय का दिल जोर जोर से धड़कने लगा। वो खुद से बोला...

अभय – मन में (मैं कैसे भूल सकता हूं ये दिन)

मंगलू -- (अभय को गुमसुम देख) क्या हुआ बेटा? कोई परेशानी है?

अभय --(चौकते हुए) न... नही, काका। कोई परेशानी नहीं, मैं कल ज़रूर आऊंगा।

अभय की बात सुन मंगलू अपने लोगो के साथ खुशी खुशी विदा लेके चला गया जबकि अभय बैठ के आसमान को देखने लगा तभी पीछे से किसी औरत ने आवाज दी

औरत – साहेब जी आप अकेले क्यों बैठे हो यहां पे

अभय पलट के अपने सामने औरतों को देखता है तो झट से खड़ा हो जाता है

अभय – नही कुछ नही आंटी जी ऐसे ही बैठा..

औरत –(अभय को गौर से देखते हुए) बहुत ही अच्छी जगह चुनी है आपने जानते हो यहां पर बैठ के मन को जो शांति मिलती है वो कही नही मिलती

अभय – हा मुझे भी यहां बहुत सुकून मिल रहा है आंटी

औरत – अगर आप बुरा ना मानो एक बात पूछूं

अभय – हा पूछो ना आ

औरत – आपको खाने में क्या क्या पसंद है

अभय – मुझे सब कुछ पसंद है लेकिन सबसे ज्यादा पराठे पसंद है

औरत – मेरे बेटे को पराठे बहुत पसंद है मै बहुत अच्छे पराठे बनाती हूं देखना मेरे हाथ के गोभी के पराठे खा के मजा आजाएगा आपको

अभय – (जोर से हस्ते हुए) आपको पता है बड़ी मां मुझे गोभी के पराठे....

बोलने के बाद जैसे ही अभय ने औरत की तरफ नजर घुमाई देखा उसकी आखों में आसू थे

गीता देवी – (आंख में आसू लिए) तुझे देखते ही मुझे लगने लगा था तू ही हमारा अभय है

अभय –(रोते हुए) बड़ी मां (बोलते ही गीता देवी ने अभय को गले से लगा लिया)

गीता देवी – क्यों चला गया था रे छोर के हमे एक बार भी नही सोचा तूने अपनी बड़ी मां के लिए

अभय – (रूंधे गले से) मैं...मैं...मुझे माफ कर दो बड़ी मां

गीता देवी – (आसू पोंछ के) चल घर चल तू मेरे साथ

अभय – नही बड़ी मां अभी नही आ सकता मै....

तभी पीछे से किसी ने आवाज दी.... गीता

अभय – (धीरे से जल्दी में बोला) बड़ी मां गांव में किसी को भी पता नहीं चलना चाहीए मेरे बारे में मैं आपको बाद में सब बताऊग

सत्या बाबू – गीता यहां क्या कर रही हो (अभय को देख के) अरे बाबू साहेब आप भी यहां पे

गीता देवी – कल गांव में भूमि पूजन रखा है साथ ही गांव वालो ने खास इनके लिए दावत भी रखी है उसी के लिए मानने आए थे हम सब बाकी तो चले गए मैने सोचा हाल चाल ले लू

सत्या बाबू – ये तो बहुत अच्छी बात बताए तुमने गीता

गीता देवी – (अभय से) अच्छा आप कल जरूर आना इंतजार करेगे आपका (बोल के सत्या बाबू और गीता देवी निकल गए वहा से)

सत्या बाबू – गीता आज सुबह सुबह मैं मिला था बाबू साहब से उनसे बाते करते वक्त जाने दिल में अभय बाबा का ख्याल आया था उनके जैसे नीली आखें

गीता देवी –(मुस्कुराते हुए) ये हमारे अभय बाबा ही है

सत्या बाबू –(चौकते हुए) लेकिन कैसे खेर छोड़ो उनको साथ लेके क्यों नही चली घर में राज को पता चलेगा कितनी खुश हो जाएगा चलो अभी लेके चलते है....

गीता देवी – (बीच में टोकते हुए) शांति से काम लीजिए आप और जरा ठंडे दिमाग से सोचिए इतने वक्त तक अभय बाबा घर से दूर रहे अकेले और अब इतने सालो बाद वापस आए कॉलेज में एडमिशन लेके वो भी अपने गांव में आपको ये सब बाते अजीब नही लगती है

सत्या बाबू – हा बात अजीब तो है

गीता देवी – अभय ने माना किया है मुझे बताने से किसी को भी आप भी ध्यान रख्येगा गलती से भी किसी को पता न चले अभय के बारे में और राज को भी मत बताना आप वो खुद बताएगा अपने आप

सत्या बाबू – ठीक है , आज मैं बहुत खुश हो गीता अभय बाबा के आते ही गांव वालो की जमीन की समस्या हल हो गए देखना गीता एक दिन बड़े ठाकुर की तरह अभय बाबा भी गांव में खुशीयो की बारिश करेगे

गीता देवी और सत्या बाबू बात करते हुए निकल गए घर के लिए जबकि इस तरफ रमन ओर मुनीम आपस में बाते कर रहे थे

रमन – (पेड़ के नीचे बैठा सिगरेट का कश लेते हुए) मुनीम, मैने तुझे समझाया था। की भाभी के पास तू दुबारा मत जाना, फिर भी तू क्यूं गया?

मुनीम -- (घबराहट में) अरे मा...मालिक मैं तो इस लिए गया था की। मैं मालकिन को ये यकीन दिला सकू की सब गलती मेरी ही है।

रमन -- (गुस्से में) तुझे यहां पे यकीन दिलाने की पड़ी है। और उधर मेरे हाथो से इतना बड़ा खजाना निकल गया। साला...कॉलेज बनवाने के नाम पर मैने गांव वालो की ज़मीन हथिया लि थी अब क्या जवाब दुगा मैं उन लोगो को साला मजाक बन के रह जाएगा मेरा सबके सामने जैसे कल रात गांव वालो के सामने हुआ और वो हराम का जना वो छोकरा जाने कहा

(कहते हुए रमन की जुबान कुछ सोच के एक पल के लिए खामोश हो गई...)

रमन -- ऐ मुनीम...क्या लगता है तुझे ये छोकरा कौन है? कही ये सच में....?

मुनीम -- शुभ शुभ बोलो मालिक? इसीलिए उस लाश को रखवाया था मैने जंगल में तभी अगले दिन लाश मिली थी गांव वालो को?

रमन – धीरे बोल मुनीम के बच्चे इन पेड़ों के भी कान होते है , तू नही था वहा पर , कल रात को जिस तरह से वो छोकरा भाभीं से बात कर रहा था ऐसा लग रहा था जैसे बड़ी नफरत हो उसमे उपर से हवेली में जो हुआ और यहां तू अपनी...

मुनीम – (बीच में बात काटते हुए) मालिक मैं सिर्फ यह कहना चाहता हूं ऐसी कोई बात नही है? जरूर ये छोकरा आप के ही किसी दुश्मन का मोहरा होगा। जो घर की चंद बाते बोलकर ठाकुराइन को ये यकीन दिलाना चाहता है की, वो उन्ही का बेटा है।

रमन -- और उस ठाकुराइन को यकीन भी हो गया। मुनीम मुझे ये सपोला बहुत खतरनाक लग रहा है, फन निकलने से पहले ही इससे कुचल देना ही बेहतर होगा। आते ही धमाका कर दिया।

मुनीम -- जी मालिक, वो भी बिना आवाज वाला।

ये सुनकर तो रमन का चेहरा गुस्से से लाल हो गया, जिसे देख मुनीम के छक्के छूट गए...

रमन -- मुनीम, जरा संभल के बोला कर। नही तो मेरा धमाका तुझ पर भारी पड़ सकता है। बोलने से पहले समझ लिया कर की उस बात का कोई गलत मतलब मेरे लिए तो नही।

मुनीम रमन से गिड़गिड़ा कर बोला...

रमन -- (हाथ जोड़ते हुए) गलती हो गई मालिक, आगे से ध्यान रखूंगा। आप चिंता मत करो, उस सपोले को दूध मैं अच्छी तरह से पिलाऊंगा।
मुनीम की बात सुनते ही, रमन झट से बोल पड़ा...

रमन -- नही अभी ऐसा कुछ करने की जरूरत नहीं है भाभी का पूरा ध्यान उस छोकरे पर ही है। अगर उसे कुछ भी हुआ, तो भाभी अपनी ठाकुरानी गिरी दिखाने में वक्त नहीं लगाएगी। और अब तो उस पर मेरा दबदबा भी नही रहा। कहीं वो एक एक कर के सारे पन्ने पलटते ना लग जाए , तू समझा ना मैं क्या कह रहा हूं?

मुनीम -- समझ गया मालिक मतलब उस सपोले को सिर्फ पिटारे में कैद कर के रखना है, और समय आने पर उसे मसलना है।

मुनीम की बात सुनकर रमन कुछ बोला तो नही पर सिगरेट की एक कश लेते हुए मुस्कुराया और वहा से चल दिया..

सुबह से शाम होने को आई हवेली में संध्या का मन उतावला हो रहा था अभय से मिलने के लिए काम से फुरसत पा कर संध्या अपनी कार से निकल गई हॉस्टल के तरफ तभी रास्ते में संध्या ने कार को रोक के सामने देखा आम के बगीचे में एक लड़कि अकेली बैठी थी पेड़ के नीचे उसे देख के संध्या कार से उतर के वहा जाने लगी

संध्या – पायल तू यहां पे अकेले

पायल – ठकुराइन आप , जी मैं..वो..वो

संध्या –(बात को कटते हुए) सब जानती हू मै तू और अभय अक्सर यहां आया करते थे ना घूमने है ना पायल

पायल – नही ठकुराइन जी बल्कि वो ही मुझे अपने साथ लाया करता था जबरदस्ती , उसी की वजह से मेरी भी आदत बन गई यहां आने की , जाने वो कब आएगा , बोलता था मेरे लिए चूड़ियां लेके आएगा अच्छी वाली और एक बार आपके कंगन लेके आगया था ठकुराइन , मुझे ये चूड़ी कंगन नही चाहिए बस वो चाहिए

कहते हुए पायल की आंखो में आसूं आ गए, ये देख कर संध्या खुद को रोक नहीं पाई और आगे बढ़कर पायल को अपने सीने से लगा लेती है, और भाऊक हो कर बोली...

संध्या -- बहुत प्यार करती है ना तू उसे आज भी?

पायल एक पल के लिए तो ठाकुराइन का इतना प्यार देखकर हैरान रह गई। फिर ठाकुराइन की बातो पर गौर करते हुए बोली...

पायल -- प्यार क्या होता है, वो तो पता नही । लेकिन उसकी याद हर पल आती रहती है।

पायल की बात सुनकर संध्या की आंखो में भी आसूं छलक गए और वो एक बार कस के पायल को अपने सीने से चिपका लेती है।

संध्या पायल को अपने सीने से चिपकाई वो सुर्ख आवाज में बोली...

संध्या -- तू भी मुझसे बहुत नाराज़ होगी ना पायल ?

संध्या की बात सुनकर, पायल संध्या से अलग होते हुए बोली...

पायल -- आपसे नाराज़ नहीं हु मै, हां लेकिन आप जब भी बेवजह अभय को मरती थी तब मुझे आप पर बहुत गुस्सा आता था। कई बार अभय से पूछती थी की, तुम्हारी मां तुम्हे इतना क्यूं मरती है? तो मुस्कुराते हुए बोलता था की, मारती है तो क्या हुआ बाद में उसी जख्मों पर रोते हुए प्यार से मलहम भी तो लगाती है मेरी मां। थोड़ा गुस्से वाली है मेरी मां पर प्यार बहुत करती है। उसके मुंह से ये सुनकर आपके ऊपर से सारा गुस्सा चला जाता था।

पायल की बातो ने संध्या की आंखो को दरिया बना दी। वो एक शब्द नही बोल पाई, शायद अंदर ही अंदर तड़प रही थी और रो ना पाने की वजह से गला भी दुखने लगा था। फिर भी वो अपनी आवाज पर काबू पाते हुए बोली...

संध्या --(अपने हाथ से पायल के आसू पोंछ के) पायल अगर तुझे एतराज ना हो कल का भूमि पूजन मैं तेरे साथ करना चाहती हूं क्या तू इजाजत देगी मुझे

पायल – जी ठकुराइन अगर आप चाहे हर साल मैं आपके साथ भूमि पूजन करूगी।

संध्या – देख अंधेरा होने को है आजा मैं तुझे घर छोर देती हूं (अपनी कार में पायल को घर छोर के जैसे ही संध्या आगे चल ही रही थी की सामने अभय उसे जाता हुआ मिला)

संध्या –(कार रोक के) हॉस्टल जा रहे हो आओ कार में आजाओ मैं छोर देती हूं

संध्या की बात सुनकर, अभय मुस्कुराते हुए बोला...

अभय -- आप को परेशान होने की जरूरत नहीं है मैडम। मैं चला जाऊंगा । और वैसे भी हॉस्टल कौन सा दूर है यहां से।

संध्या -- दूर तो नही है, पर फिर भी।

कहते हुए संध्या का चेहरा उदासी में लटक गया। ये देख कर अभय ने कुछ सोचा और फिर बोला...


अभय -- ठीक है चलिए चलता हूं मैं

ये सुनकर संध्या का चेहरा फूल की तरह खिल गया अभय के कार में बैठते ही संध्या ने कार आगे बड़ा दी कुछ दूर चलने के बाद अभय ने बोला...

अभय -- तुझे लगता है ना की मैं तेरा बेटा हूं तो अब तू मेरे मुंह से भी सुन ले, हां मैं ही अभय हूं।

ये सुनते ही संध्या एक जोरदार ब्रेक लगाते हुए कार को रोक देती है अभय के मुंह से सुनकर तो उसकी खुशी का ठिकाना ही न था। उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था की वो क्या बोले? वो तुरंत ही जोर जोर से रोने लगती है, और उसके मुंह से सिर्फ गिड़गिड़ाहट की आवाज ही निकल रही थी...

हाथ बढ़ाते हुए उसने अपना हाथ अभय के हाथ पर रखा तो अभय ने दूर झटक दिया। ये देख संध्या का दिल तड़प कर रह गया...

संध्या -- मुझे पता है, तुम मुझसे नाराज़ हो। मैने गलती ही ऐसी की है की, उसकी माफी नहीं है। तुम्हे मुझे जो सजा देनी है दो, मारो, पीटो, काटो, जो मन में आए...मुझसे यूं नाराज न हो। बड़े दिनों बाद दिल को सुकून मिला है। लेकिन मेरी किस्मत तो देखो मैं मेरा बेटा मेरी आंखो के सामने है और मैं उसे गले भी नही लगा पा रही हूं। कैसे बताऊं तुम्हे की मैं कितना तड़प रही हूं?

रोते हुऐ संध्या अपने दिल की हालत बयां कर रही थी। और अभय शांत बैठा उसकी बातो सुन रहा था।
संध्या ने जब देखा अभय कुछ नही बोल रहा है तो, उसका दिल और ज्यादा घबराने लगा। मन ही मन भगवान से यही गुहार लगी रही थी की, उसे उसका बेटा माफ कर दे...

संध्या -- मु...मुझे तो कुछ समझ ही नही आ रहा है की, मैं ऐसा क्या बोलूं या क्या करूं जिससे तुम मान जाओ। तुम ही बताओ ना की मैं क्या करूं?

ये सुनकर अभय हंसने लगा...अभय को इस तरह से हंसता देख संध्या का दिल एक बार फिर से रो पड़ा। वो समझ गई की, उसकी गिड़गिड़ाहट अभय के लिए मात्र एक मजाक है और कुछ नही और तभी अभय बोला...

अभय -- कुछ नही कर सकती तू। हमारे रास्ते अलग है। और मेरे रास्ते पे तेरे कदमों के निशान भी न पड़ने दू मैं। और तू सब कुछ ठीक करने की बात करती है। मुझे तुझसे कोई हमदर्दी नही है। तेरे ये आंसू मेरे लिए समुद्र का वो कतरा है है जो किसी काम का नही। क्या हुआ? कहा गई तेरी वो ठकुराइनो वाली आवाज? मुनीम इससे आज खाना मत देना। मुनीम ये स्कूल ना जाय तो इसे पेड़ से बांध कर रखना। अमन तू तो मेरा राजा बेटा है। आज से उस लड़की के साथ तुझे देखा तो तेरी खाल उधेड़ लूंगी।

अभय -- मैं उस लड़की के साथ तब भी था, आज भी हू और कल भी रहूंगा। बहुत उधेड़ी है तूने मेरी खाल। अच्छा लग रहा है, बड़ा सुकून मिल रहा है, तेरी हालत देख कर। (अभय जोर से हंसते हुए) ...तुम ही बताओ की मैं क्या करू? की तुम मान जाओ। हा... हा... हा। नौटंकी बाज़ तो तू है ही। क्या हुआ...वो तेरा राजा बेटा कहा गया? उससे प्यार नही मिल रहा है क्या अब तुझे? नही मिलता होगा, वो क्या है ना अपना अपना ही होता है, शायद तुझे मेरे जाने के पता चला होगा। अरे तुझे शर्म है क्या ? तू किस मुंह से मेरे सामने आती है, कभी खुद से पूछती है क्या? बेशर्म है तू, तुझे कुछ फर्क नही पड़ता...

संध्या बस चुप चाप बैठी मग्न हो कर रो रही थी मगर अब चिल्लाई...

संध्या – हा... हा बेशर्म हूं मैं, घटिया औरत हूं मैं। मगर तेरी मां हूं मैं। तू मुझे इस तरह नही छोड़ सकता। जन्म दिया है तुझे मैने। तेरी ये जिंदगी मुझसे जुड़ी है, इस तरह से अलग हो जाए ऐसा मैं होने नही दूंगी।

संध्या की चिल्लाहट सुन कर, अभय एक बार मुस्कुराया और बोला...

अभय -- तो ठीक है, लगी रह तू अपनी जिंदगी को मेरी जिंदगी से जोड़ने में।

ये कहते हुए अभय कार से जैसे ही नीचे उतरने को हुआ, संध्या ने अभय का हाथ पकड़ लिया। और किसी भिखारी की तरह दया याचना करते हुए अभय से बोली...

संध्या -- ना जा छोड़ के, कोई नही है तेरे सिवा मेरा। कुछ अच्छा नहीं लगता जब तू मेरे पास नहीं रहता। रह जा ना मेरे साथ, तू किसी कोने में भी रखेगा मुझे वहा पड़ा रहूंगी, सुखी रोटी भी ला कर देगा वो भी खा लूंगी, बस मुझे छोड़ कर ना जा। रुक जा ना, तेरे साथ रहने मन कर रहा है।

संध्या की करुण वाणी अगर इस समय कोई भी सुन लेता तो शत प्रतिशत पिघल जाता, उसने अपने दिल के हर वो दर्द को शब्दो में बयान कर दी थी। इस बार अभय भी थोड़ा भाऊक हो कर बड़े ही प्यार से बोला...

अभय -- याद है तुझे, मैं भी कभी यही बोला करता था तुझसे। जब रात को तू मुझे सुलाने आती थी। मैं भी तेरा हाथ पकड़ कर बोलता था, रह जा ना मां, तेरे साथ अच्छा लगता है। तू पास रहती है तो मुझे बहुत अच्छी नींद आती है, रुक जा ना मां, मेरे पास ही सो जा। मगर तू नही रुकी तब तुझे बहीखाता बनाना होता हिसाब देखना होता और उस रात को भी यही कहा था तुझे , लेकिन उस रात किसी और को तेरे साथ सोना था। याद है या बताऊ कॉन आया था सोने तेरे कमरे में......

संध्या – नहीं...चुप हो जा। तेरे पैर पड़ती हूं।

कहते हुए संध्या ने अभय का हाथ छोड़ दिया, और दूसरी तरफ मुंह घुमा लिया। ना जाने क्या हुआ उसे, ना रो रही थी ना कुछ बोल रही थी, बस बेबस सी पड़ी थी....

उसकी ऐसी हालत देख कर अभय जाने के लिए पलट गया और बिना पलते एक बार फिर बोला...

अभय -- जाते जाते तुझे एक बात बता दूं। तू गुलाब का वो फूल है, जिसके चारो तरफ सिर्फ कांटे ही कांटे है। सिर्फ एक मैं ही था, जो तुझे उन काटो से बचा सकता था। मगर तूने मुझे पतझड़ के सूखे हुए उस पत्ते की तरह खुद से अलग कर दिया की अब मैं भी तेरे चारों तरफ बिछे काटों को देखकर सुकून महसूस करता हूं...

ये कहकर अभय वहा से चला जाता है, संध्या बेचारी अपनी नजर उठा कर अंधेरे में अपने बेटे को देखना चाही, मगर कार के बाहर उसे सिर्फ अंधेरा ही दिखा......
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जारी रहेगा ✍️✍️
दर्दनाक इमोशन से भरपूर शानदार अपडेट
 

DEVIL MAXIMUM

"सर्वेभ्यः सर्वभावेभ्यः सर्वात्मना नमः।"
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दर्दनाक इमोशन से भरपूर शानदार अपडेट
Thank you sooo much Rowdy bhai
 

DEVIL MAXIMUM

"सर्वेभ्यः सर्वभावेभ्यः सर्वात्मना नमः।"
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Ek anjaan humsafar

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UPDATE 43


दोपहर का वक्त था इस वक्त अभय और शालिनी दोनो अभय के हॉस्टल में आ गए थे अभय अपने कमरे का दरवाजा खोलने जा रहा था कि किसी ने दरवाजा पहले खोल दिया जिसे देख....

अभय –(चौक के) तुम यहां पर कैसे....

सायरा –(मुस्कुरा के) ठकुराइन ने भेजा मुझे....

अभय –लेकिन मैने तो तुम्हे....

सायरा –(बीच में) हा मैने बताया ठकुराइन को वे बोली आज शालिनी जी आई है इसीलिए मुझे यहां वापस भेज दिया हवेली में चांदनी है उनके साथ....

शालिनी –(मुस्कुरा के) कैसी हो सायरा काम कैसा चल रहा है यहां तुम्हारा....

सायरा – मै अच्छी हूँ मैडम बाकी यहां का काम अभी काफी उलझा हुआ है....

शालिनी – हूंमम....

अभय –(दोनो की बात सुन के) मां ये कौन से काम के बारे में बात कर रहे हो आप मैने सायरा से भी पूछा था लेकिन इसने भी नहीं बताया मुझे आखिर बात है क्या मां....

शालिनी – (मुस्कुरा के) इस बारे में तुझे ज्यादा सोचने की जरूरत नहीं है समझा तू सिर्फ पढ़ाई पर ध्यान दे सही वक्त आने पर सब पता चल जाएगा तुझे....

अभय –ठीक है मां, अच्छा अब आप नहा लो फिर साथ में खाना खाते है....

शालीन –(कमरे को देख) तू यहां रहता है इस कमरे में....

सायरा –(अभय के बोलने पहली ही) जी मैडम ये तो शुक्र है कि AC लग गया यहां पर वर्ना ये तो सिर्फ पंखे चला के सोता था इतनी गर्मी में....

शालिनी –(सायरा की बात सुन अभय से) मुझे क्यों नहीं बताया तूने इस बारे में....

अभय –मा आप भी ना जरा जरा सी बात के लिए सोचने लगते हो आप मुझे कोई दिक्कत नहीं हो रही थी यहां रहने में....

शालिनी –(मुस्कुरा के) बात बनाने में आगे है बस , चल ठीक है तयार होके आती हु....

बोल के शालीन चली गई बाथरूम पीछे से....

अभय –(सायरा से) क्या जरूरत थी मां से ये सब बोलने की तेरे चक्कर में मेरी क्लास ना लग जाए कही....

अभय की बात सुन सायरा हसने लगी....

सायरा –(हस्ते हुए) ठीक है , तुम भी जाके नहा लो मैं खाना गरम करके लगाती हूं....

बोल के सायरा चली गई थोड़ी देर बाद तीनों ने मिल के खाना खाया जिसके बाद सायरा बर्तन साफ करके हवेली चली गई....

अभय – मां आप थक गए होगे आप बेड पे आराम करो मै....

शालिनी – तेरे से मिल के मेरी थकान पहले चली गई आराम को छोड़ मेरे साथ बैठ पहले....

बोलते ही अभय बैठ गया शालिनी के साथ....

शालिनी –अब बता जरा संध्या को किस वजह से किडनैप किया गया था....

अभय – पता नहीं मां मै जब खंडर में गया (जो हुआ सब बता के) उसके बाद अस्पताल ले आया और फिर कल (संध्या के कमरे में मोबाइल की बात बता के) मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा है मां आखिर कौन कर रहा है ये सब....

शालिनी –(बात सुन के)एक बात मुझे भी समझ नहीं आई खंडर में ऐसा क्या है जो....

शालिनी ने इतना बोला ही था अभय ने तुरंत हाथ आगे बढ़ा के सिक्के दिखाते हुए....

शालिनी –(सोने के सिक्कों को देख) ये क्या है अभय कहा से मिले तुझे....

अभय –(संध्या के बेहोश होने से पहले की बात बता के) उसके बाद मैं दरवाजे के पास गया काफी ढूंढने पर आपको पता है मुझे क्या पता चला....

शालिनी – क्या पता चला....

अभय –(अपने गले का लॉकेट दिखा के) ये चाबी है उस दरवाजे की जिसके जरिए दरवाजा खोला मैने ओर अन्दर सोना ही सोना भरा हुआ था जाने कितने तरह के सोना था वहां पर मा लेकिन....

शालिनी – लेकिन क्या अभय....

अभय – मां मुझे ये समझ नहीं आ रहा है कि जब इतना खजाना होने के बाद भी मेरे दादा ने क्यों किसी को नहीं बताया उसके बारे में....

शालिनी –(बीच में टोक के) एक मिनिट तूने बताया था कि ये लॉकेट तुझे तेरी मां ने दिया था....

अभय – हा मा बस यही तो बात समझ नहीं आई मुझे सिर्फ उसे ही क्यों पता था और किसी को क्यों नहीं....

शालिनी –(अभय के सर में हाथ फेर के) बेटा ये दौलत है ही एसी चीज अपनो को अपनो के पास ले आती है या दूर कर देती है दुश्मन को दोस्त भी यही बनाती है और दोस्त को दुश्मन भी , तू ये बता तूने किस किस को बताया है इसके बारे में....

अभय – किसी को नहीं बताया मां अपने दोस्तों तक को नहीं बताया मैने....

शालिनी –अब मेरी बात सुन ध्यान से ऐसी बहुत सी बातें है जो तुझे अभी पता नहीं है इसीलिए सबके साथ जैसा है वैसा ही रह और रही इस खजाने की बात तो तू ये जान ले कि ये तेरा ही है सिर्फ....

अभय –(चौक के) क्या लेकिन मां ये....

शालिनी –(बीच में टोक अभय के गाल पे हाथ रख के) मैने कहा ना वक्त आने पर तुझे सब पता चल जाएगा....

अभय –(मुस्कुरा के) ठीक है मां जैसा आप बोलो....

शालिनी – अच्छा अब ये बता कहा है वो मुनीम और शंकर....

अभय –(एक कमरे में इशारा करके) वहा पर है दोनो....

शालिनी –चल मिल के आते है दोनो से....

कमरे में आते ही शंकर जमीन में गद्दा बिछा के आराम कर रहा था वहीं मुनीम बेड में बंधा हुआ था उसके मू में पट्टी बांधी हुई थी गु गु कर रहा था....

अभय –(ये नजारा देख शंकर को उठा के) ये क्या है इसके मू में पट्टी क्यों बंधी....

शंकर – मालिक ये मुनीम बोल बोल के सिर खाएं जा रहा था मेरा....

अभय –क्या बोल के सिर खा रहा था ये....

शंकर – यहां से भागने के लिए....

शंकर की बात सुन अभय चलता हुआ गया मुनीम के पास मू से पट्टी हटा के हाथ पैर खोल के....

अभय – (शालिनी की तरफ इशारा करके) जनता है कौन है ये पुलिस DIG ऑफिसर और मेरी मां....

अभय की बात सुन शंकर डर से तुरंत खड़ा हो गया और मुनीम की आंखे डर और हैरानी से बड़ी हो गई शालिनी को देख के....

मुनीम –(डर से शालिनी के पैर पकड़ के) मुझे माफ कर दीजिए मैडम मै....

इससे पहले मुनीम कुछ बोलता तभी कमरे में एक चाटे की आवाज गूंज उठी.....

चटाआक्ककककककककककक...

मुनीम के गाल में पड़ा था चाटा....

शालिनी –(अभय से) तुम दोनो थोड़ी देर के लिए बाहर जाओ और दरवाजा बंद कर देना....

आज पहली बार अभय ने शालिनी की आखों में बेइंतहा गुस्सा देखा जिसे देख अभय बिना कुछ बोले शंकर को साथ लेके कमरे से बाहर निकल गया और दरवाजा बंद कर दिया करीबन 15 से 20 मिनट के बाद शालिनी दरवाजा खोल बाहर आई सामने अभय को खड़ा पाया....

अभय – (शालिनी के बाहर आते ही) क्या हुआ मां....

शालिनी –(मुस्कुरा के) कुछ भी नहीं, (शंकर से) जा के मुनीम को बांध दो और तुम आराम करो , (अभय से) अच्छा ये बता शाम को क्या करता है तू....

अभय –घूमता हू अपने दोस्तो के साथ....

शालिनी – अच्छी बात है चल मुझे हवेली ले चल....

अभय –(हवेली जाने का सुन के) मा आप सुबह से आए हुए हो आराम तक नहीं किया और अब हवेली जाने की बात पहले आराम कर लो मां फिर जहा बोलो वहा ले चलूंगा आपको....

शालिनी –(मुस्कुरा के) आराम तो करना है बेटा लेकिन वक्त देख क्या हो रहा है शाम होने को आई है अब रात में आराम होगा सीधा अब ये बता तू चलेगा हवेली या मुझे हवेली छोड़ के घूमने जाएगा दोस्तो के साथ....

अभय – मां आप बोलो तो आपके साथ रहूंगा....

शालिनी – कोई न तू मुझे हवेली छोड़ के दोस्तो के साथ घूम ले मै कॉल कर दूंगी तुझे लेने आ जाना....

अभय – ठीक है मां....

बोल के अभय बाइक से निकल गया शालिनी को लेके , हवेली आके शालिनी गेट में उतर के....

शालिनी – मै कॉल करती हु तुझे ठीक है....

अभय – मै इंतजार करूंगा मां....

बोल के अभय निकल गया बाइक से इधर जैसे ही शालिनी हवेली के अन्दर आई सामने हॉल में ललिता , मालती , शनाया , चांदनी और संध्या बैठ बाते कर रहे थे...

शालिनी को देख चांदनी मां बोलने जा रही थी कि तभी....

संध्या – शालिनी जी....

शालिनी का नाम सुन बाकी सबका ध्यान हवेली के गेट की तरफ गया अन्दर आते ही शालिनी ने सबको प्रणाम कर संध्या के बगल आके बैठ गई....

संध्या – आप अकेली आए हो कोई साथ में....

शालिनी – (संध्या के हाथ में अपना हाथ रख के) वो मुझे छोड़ के गया हवेली के बाहर तक लेने आएगा....

संध्या –(हा में सिर हिला के) इनसे मिलिए ये ललिता है रमन की वाइफ और ये मालती है मेरे छोटे देवर प्रेम की वाइफ और इनको आप जानती है ये शनाया है मेरी बहन....

शालिनी – इन्हें कैसे भूल सकती हु मै यही तो पढ़ाती थी मेरे बेटे को स्कूल में....

शालिनी की (मेरे बेटे) बात सुन संध्या जो मुस्कुरा रही थी वो हल्की हो गई जिसे शालिनी ने देख लिया....

शनाया –(शालिनी से) आप क्या लेगी चाय या ठंडा....

शालिनी – (सबको देख जो चाय पी रहे थे) सभी के साथ चाय....

बोल के शनाया चाय लेने चली गई....

शालिनी – (ललिता और मालती से) कैसी है आप दोनों....

ललिता और मालती एक साथ – जी अच्छे है....

शालिनी –(मालती की गोद में बच्चे को देख) आपका बच्चा बहुत सुंदर है कितने साल का हो गया है....

मालती –जी ये लड़की है अभी 3 साल की है....

शालिनी –(मालती से बच्ची को अपनी गोद में लेके) बहुत प्यारी है किसपर गई है ये....

मालती –(हसी रोक के) जी वैसे ये मेरी नहीं है हमारे गांव में पहले थानेदार था ये उसकी बेटी है....

शालिनी –(बात याद आते ही) ओह माफ करिएगा मुझे मै तो भूल ही गई थी....

मालती –(हल्का मुस्कुरा के) जी कोई बात नहीं वैसे भी अब ये मेरी बेटी है और मैं इसकी मां....

शालिनी –(मालती की बात सुन मुस्कुरा के) ये बहुत ही अच्छी बात है मालती तुमसे अच्छी मां इसे नहीं मिल सकती बल्कि मैं कहती हु कि तुम इसकी कस्टडी भी लेलो मै तुम्हारी मदद कर दूंगी इसमें बस 2 से 3 पेपर वर्क में इसकी कस्टडी परमानेंट तुम्हे मिल जाएगी....

संध्या –(शालिनी की बात सुन) आपने बिल्कुल सही कहा शालिनी जी हम तो भूल ही गए थे इस कम को करना....

शालिनी – ये कम मै तुरंत कर दूंगी लेकिन प्लीज पहले तो आप मुझे सिर्फ मेरा नाम लेके बात करो और जी मत लगाना आप....

संध्या – लेकिन आप भी मेरा नाम लेके बात करिएगा प्लीज....

दोनो की बात सुन के सभी मुस्कुराने लगे तब शनाया आई और चाय दी शालिनी को चाय पीते वक्त सबकी नजर बचा के शालिनी ने संध्या को कुछ इशारा किया जिसे समझ के....

संध्या – शालिनी आइए मै आपको अपना कमरा दिखाती हु....

बोल के अपने नौकर को आवाज दी चांदनी और नौकर की मदद से संध्या को अपने कमरे में ले जाया गया जिसके बाद संध्या को आराम करने का बोल के शनाया , ललिता और मालती कमरे से चले गए रह गए सिर्फ शालिनी और चांदनी कमरे में....

संध्या –(शालिनी से) क्या बात है शालिनी आपने इशारे से अकेले में बात करने को क्यों बोला मुझे....

शालिनी –एक बात बताए उस खंडर में जो कुछ भी है उसके बारे में सिर्फ आपको कैसे पता है....

संध्या –(चौक के) आ....आ...आप को कैसे....

शालिनी –(संध्या के हाथ में अपना हाथ रख के) तुम्हारी तरह मै भी मां हू अभय की वो मुझसे कभी कुछ नहीं छुपाता है....

संध्या –(शालिनी की बात सुन गहरी सास लेके) क्या आप कमल ठाकुर को जानती है....

शालिनी –हा अच्छी तरह से....

संध्या – कमल ठाकुर का इकलौते बेटे अर्जुन ठाकुर को भी....

शालिनी – हा उसे भी जानती हू बहुत अच्छे से कई बार मिल चुकी हूँ मै....

संध्या –(मुस्कुरा के) जब मेरा अभय छोटा था उस वक्त 2 साल का तब अर्जुन ठाकुर करीबन 10 साल का था कई बार अर्जुन अपने पिता कमल ठाकुर के साथ यहां आता तो सिर्फ अभय को अपनी गोद में लेके उसके साथ खेलता था जबकि कमल ठाकुर सीधे जाते बड़े ठाकुर के पास मिलने या इनसे (मनन ठाकुर) मिलते थे और साथ ही काफी वक्त से बड़े ठाकुर और कमल ठाकुर मिल कर साथ में व्यापार करने के लिए गांव से बाहर जाया करते थे एक बार बड़े ठाकुर और कमल ठाकुर मिल के विदेश यात्रा पर गए थे अपने साथ में एक जहाज लेके आ रहे थे ताकि विदेश से व्यापार न करके यही समुंदर के रस्ते व्यापार कर सके अपनी जमीन पर तभी समुंदर में तूफान आना शुरू हो रहा था रस्ते में एक टापू पर रुकने का फैसला किया उन्होंने जब तक तूफान न थम जाए उसी वक्त बड़े ठाकुर और कमल ठाकुर उस टापू पर घूम रहे थे और वही पर उन्हें वो खजाना मिला दोनो ने मिल के इसे जहाज में रखवा के समुंदर के रस्ते यहां ले आए लेकिन इतना बड़े खजाने को छिपा के रखने समस्या आ रही थी तब कमल ठाकुर ने इसमें मदद की बड़े ठाकुर की पुरानी वाली हवेली को खंडर के रूप में प्रस्तुत करने का सुझाव दिया कमल ठाकुर ने और बड़े ठाकुर को ये योजना अच्छी लगी और फिर उन्होंने मिल के खंडर में खजाने को छुपा दिया साथ ही कमल ठाकुर ने विदेश जाके खुद एक ताला बनवाया दरवाजे के साथ और यहां लेके उसे बंद कर दिया उसके बाद से खंडर वाली जगह को बड़े ठाकुर ने श्रापित घोषित कर दिया....

शालिनी – अगर बड़े ठाकुर और कमल ठाकुर ने साथ मिल के ये काम किया तो सारा का सारा खजाना सिर्फ बड़े ठाकुर को क्यों दिया कमल ठाकुर ने....

संध्या – एसा नहीं है शालिनी विदेश से आते वक्त रस्ते में ही बड़े ठाकुर और कमल ठाकुर ने मिल के बाट लिया था सब कुछ....

शालिनी – तो फिर बड़े ठाकुर ने खंडर में ही क्यों रखा यहां पर भी रख सकते थे ना....

संध्या – पता नहीं शालिनी वैसे तो मरने से पहले बड़े ठाकुर ने खजाने की चाबी मुझे दी थी लेकिन उससे पहले खजाने के बारे में बड़े ठाकुर ने इनको (मनन ठाकुर) को बताया था और साथ में लेके गए थे वहां पर इनको (मनन ठाकुर) और फिर उसके कुछ साल 2 साल के बाद बड़े ठाकुर बीमार रहने लगे धीरे धीरे ये बीमारी (मनन ठाकुर) इनको भी लग गई पहले बड़े ठाकुर चले गए उसके बाद से जाने कैसे मेरी सास सुनैना ठाकुर अचानक से गायब हो गई....

शालिनी –(बीच में टोकते हुए) एक मिनिट संध्या सुनैना ठाकुर का गायब होना ये कैसे हुआ....

संध्या – विदेश से आने के बाद बड़े ठाकुर ने मेरी सास सुनैना ठाकुर को सब बता दिया था कुछ महीने के बाद मुझे सुनने में आया कि कोई खंडर वाली जमीन लेने के लिए काफी पीछे पड़ा हुआ है बड़े ठाकुर के लेकिन बड़े ठाकुर और कमल ठाकुर साफ मना कर चुके थे उस आदमी को लेकिन तभी कुछ समय के बाद मेरी सास सुनैना ठाकुर ने एक दिन बड़े ठाकुर से खंडर के बारे में बात छेड़ी जिसके बाद बड़े ठाकुर बहुत नाराज हुए थे मेरी सास से और एक दिन रात को मैने देखा मेरी सास किसी से फोन पर बाते कर रही थी छुप छुप के काफी देर तक हस हस के लेकिन मैं जान नहीं पाई कि किस्से बात करती थी मेरी सास , बड़े ठाकुर और सुनैना ठाकुर में एक दिन काफी कहा सुनी हो गई उस वक्त गुस्से में बड़े ठाकुर हवेली से बाहर निकल गए और कुछ देर बाद मेरी सास भी निकल गई बाहर हवेली से जब तक मुझे पता चलता वो हवेली से जा चुकी थी उस दिन (मनन ठाकुर) ये शहर गए हुए थे काम से तब मैने मुनीम से पता लगाने को बोला मेरी सास का काफी देर इंतजार करते करते आखिर कार रात में मेरी सास आई हवेली में कोई अपनी कार से छोड़ने आया था बाहर से ही चला गया था वो मेरी सास अपने कमर में जा रही थी मैं अपने कमरे के दरवाजे से छुप के अपनी सास को जाते हुए देख रही थी बिखरे बाल हाथ की चुड़ी टूटी हुई गले में कई लाल दाग उनको देख के एसा लग रहा था जैसे कि....

शालिनी –(संध्या के कंधे में हाथ रख के) समझ गई मैं संध्या , फिर आगे क्या हुआ....

संध्या – होना क्या था दिन से निकले बड़े ठाकुर अगले दिन हवेली वापस आय आते ही अपने कमरे में गए कुछ देर बाद सुनैना ठाकुर के रोने की आवाज आने लगी और बड़े ठाकुर गुस्से में हवेली से बाहर चले गए रोने की आवाज सुन मै कमरे में गई देखा वहां पर मोबाइल जमीन में टूटा पड़ा है सुनैना ठाकुर एक कोने में बैठ के रो रही थी मैने उनसे काफी पूछा लेकिन कुछ नहीं बताया उन्होंने मुझे उस दिन के बाद जैसे बड़े ठाकुर ने सुनैना ठाकुर से बात करना बंद कर दिया था यहां तक सोते भी अलग थे एक दिन मैने अपनी आखों से देखा बड़े ठाकुर सोफे में सो रहे थे और सुनैना ठाकुर बेड में ये नजारा मैने कई बार देखा एक दिन हिम्मत करके मैने अकेले में बड़े ठाकुर से इस बारे में बात की लेकिन उन्होंने मुस्कुरा के मेरे सिर में हाथ फेरा और बोला....

रतन ठाकुर – संध्या बेटा बड़े अरमानों के साथ तुझे इस हवेली में लाया हु मै अपनी बहू बना के नहीं बल्कि बेटी बना के लाया हूँ तुझे तेरी सेवा मैने देखी है दिल से करती है सेवा सबकी बस एक वादा कर बेटा मुझसे अगर कल को मुझे कुछ हो गया तो तू पूरे परिवार को समेट के रखेंगी....

संध्या –एसी बाते मत बोलिए बाबू जी....

रतन ठाकुर –(हस के) अरे पगली एक न एक दिन तो सबको जाना है अब तू ज्यादा मत सोच बस वादा कर मुझसे....

संध्या – मैं वादा करती हू आपसे बाबू जी....

उसके कुछ समय के बाद से ही तबियत खराब होना शुरू हो गई पहले बाबू जी चले गए कुछ वक्त के बाद ये (मनन ठाकुर) भी चले गए और तब से मैं देख रही हू पूरे परिवार की बाग डोर....

शालिनी – और कमल ठाकुर का क्या हुआ....

संध्या – वो भी बीमारी के कारण दुनिया से विदा हो गए....

शालिनी – और उनका बेटा अर्जुन ठाकुर....

संध्या – कमल ठाकुर के गुजरने के बाद वो आखिरी बार था जब मैने अर्जुन को देख था उसके बाद से कभी न देखा और न सुना मैने अर्जुन के बारे में , उस बेचारे का कमल ठाकुर और उसकी मां के इलावा कोई नहीं था दुनिया में मेरी सास सुनैना ठाकुर की तरह अर्जुन भी जाने कहा चला गया....

शालिनी –(संध्या की सारी बात सुन के) एक बात तो बताओ अभय को वो लॉकेट क्या तुमने दिया था उसे....

संध्या – हा मैने दिया था उसे....

शालिनी –(मुस्कुरा के) तो खजाने की चाबी तुमने अभय को दे दी....

संध्या –(हल्का सा हस के) मेरा असली खजाना सिर्फ वही है बस इसीलिए उसे वो चाबी दे दी मैने....

शालिनी –(अपनी बेटी चांदनी से जो काफी देर से चुप चाप बैठ के सारी बात सुन रही थी) तो चांदनी तेरी तहकीकात कहा तक पहुंची....

चांदनी – घर का भेदी लंका धाय....

शालिनी –(चांदनी की बात सुन) क्या मतलब है तेरा कहने का....

चांदनी – मां हवेली का कोई तो है जो ये सब कर रहा है या करवा रहा है इतना शातिर है वो हर बार दूसरे के कंधे पे बंदूक रख के चलाए जा रहा है जब से अभय गांव आया है कुछ न कुछ गड़बड़ होना शुरू हो रही है हवेली में फिर अभय पे जान लेवा हमला उसके बाद हमारे साथ जो हुआ एक बात तो पक्की है हवेली के लोगो की जानकारी यहां हवेली से बाहर भेजी जा रही है पल पल की....

शालिनी – हवेली में कोई ये सब कर रहा है ये कैसे बोल रही हो तुम....

चांदनी –(अस्पताल में संध्या के बेड की नीचे छुपे मोबाइल की बात बता के) मैने मोबाइल का पता करवाया लास्ट कॉल यहां हवेली से आई थी उसमें इसीलिए मैने यहां हवेली में जिसके पास जो भी जितने भी मोबाइल हो उसकी सारी डिटेल्स निकलवाने के लिए बोल दिया है उम्मीद है कल तक मिल जाएगी डिटेल मुझे....

शालिनी – वैसे तूने एक्शन क्यों नहीं लिया....

चांदनी – मां किसपे एक्शन लू मै किस बिना पे हाथ डालू और किसपे मेरी एक गलती मेरा पर्दा फाश करवा सकती है और दुश्मन को सावधान इसीलिए मैने अपने लोगो को सभी की निगरानी पर रख हुआ है वैसे मा रमन पर भी निगरानी रखी हुई थी मैने लेकिन आपके लाडले ने पहले ही आपको सब बता दिया....

शालिनी – (हस के) क्यों जलन हो रही है क्या तुझे....

चांदनी –भला मुझे क्यों जलन होने लगी मेरे भाई से....

शालिनी –(मुस्कुरा के) मजाक कर रही हूँ तेरे से....

चांदनी –(सीरियाई होके) मां जाने क्यों कभी कभी एसा लगता है जैसे अभय कुछ छुपा रहा है हमसे....

शालिनी –(मुस्कुरा के) हमसे नहीं तुझसे...

चांदनी – मुझ से क्यों....

शालिनी – गांव का सरपंच और मुनीम दोनो ही उसके पास है....

चांदनी –(चौक के) मुनीम कैसे सरपंच का पता था मुझे....

संध्या – (बीच में) उसी ने मेरे पैर का ये हाल किया है....

शालिनी – (संध्या से) तुझे पता है मुनीम के एक पैर की हड्डी तोड़ दी है अभय ने और हॉस्टल में ही उसे लगातार टाचर दिए जा रहा है....

चांदनी –(संध्या के कंधे पे हाथ रख के) देखा मौसी मैने कहा था ना आपसे....

शालिनी – चांदनी आगे का क्या करना है तुम्हे....

चांदनी – पहले अभय और अब मौसी ये दोनो ही इस वक्त खतरे के निशान में आ चुके है अलग रहेंगे तो खतरा बना रहेगा दोनो पे एक साथ रहेंगे खतरा फिर भी रहेगा लेकिन उसे हैंडल तो किया जा सकता है आसानी से तब....

शालिनी –ठीक है अब मेरी बात ध्यान से सुनो....

फिर शालिनी ने कुछ कहा जिसके बाद चांदनी ने हा में सिर हिलाया....

शालिनी – (संध्या से) तुम बिल्कुल भी मत घबराना कुछ नहीं होगा किसी को तेरा अभय तुझे जरूर मिलेगा ये सिर्फ मेरा नहीं बल्कि एक मा का दूसरी मां से वादा है ये....

काफी देर तक एक दूसरे से बात कर रहे थे उसके बाद संध्या से विदा लेके शालिनी कमरे से जाने लगी संध्या के कमरे से बाहर निकल हॉल में आके सबसे विदा ले रही थी कि तभी उनका मोबाइल बजा जिसपे बात करके....

शालिनी –(ललिता शनाया और मालती से) अच्छा अब मुझे इजाजत दीजिए चलती हूँ मै....

ललिता – यही रुक जाते आप....

शालिनी – प्लान तो रुकने का ही था मेरा गांव में कुछ दिन के लिए लेकिन एक इमरजेंसी आ गई है मुझे कल सुबह ही निकलना होगा शहर की तरफ अपने लोगो के साथ....

मालती – रात का खाना हमारे साथ खाइए....

शालिनी –नहीं मालती आज नहीं लेकिन अगली बार जरूर , अच्छा मुझे इजाजत दीजिए अब जल्द ही फिर मुलाक़ात होगी....

बोल के शालिनी हवेली के बाहर निकल गई जहां अभय गेट में खड़ा इंतजार कर रहा था शालिनी को साथ लेके हॉस्टल में आते ही दोनों ने खाना खाया और सो गए जबकि इस तरफ....

औरत –(कॉल में रंजीत सिन्हा से) एक अच्छी खबर है तुम्हारे लिए....

रंजीत सिन्हा –(खुश होके) अच्छा क्या बात है....

औरत –आज शालिनी हवेली आई थी लेकिन जाने से पहले बता के गई कि वो कल सुबह वापस जा रही है शहर....

रंजीत सिन्हा –(चौक के) क्या तुम सच बोल रही हो....

औरत – अरे हा बाबा सच बोल रही हू मै अब तू देख ले मौका और दस्तूर खुद चल के तेरे पास आया है....

रंजीत सिन्हा – (हस्ते हुए) शालिनी के जाते ही अपना अधूरा काम पूरा करूंगा मै....

औरत –लेकिन कैसे....

रंजीत सिन्हा –उसके लिए तुझे संध्या को घुमाना होगा शाम के वक्त हवेली के गेट के पास बने बगीचे में उसी वक्त अपने काम को अंजाम दूंगा मै....

औरत – (मुस्कुरा के) उसके लिए मुझे अकेले कुछ नहीं करना पड़ेगा क्योंकि शाम के वक्त लगभग सभी टहलते है वहां पर....

रंजीत सिन्हा – तो ठीक है शालिनी कल सुबह जाएगी और मैं शाम को अपने काम को अंजाम दूंगा....

बोल के कॉल काट दिया दोनो ने अगली सुबह शालिनी और अभय जल्दी से उठ गए....

शालिनी – अभय जल्दी से तैयार हो जा....

अभय – जल्दी क्यों मां कही जाना है क्या....

शालिनी – हा गीता दीदी के घर चल मिलना है उनसे....

अभय –मां दिन में चलते है अभी कॉलेज जाना है मुझे....

शालिनी – एक काम कर आज कॉलेज मत जा सीधा गीता दीदी के पास चल फिर मुझे जाना है....

अभय –(चौक के) क्या जाना है कहा लेकिन आप कल ही तो आए हो आज जाने की बात....

शालिनी – हा बेटा जरूरी काम आ गया है शहर में मुझे सोचा गीता दीदी से मिल के जाऊं....

अभय –ये गलत बात है मां मैने सोचा आपके साथ रहूंगा गांव घुमाऊंगा आपको लेकिन आप तो आज ही....

शालिनी – (मुस्कुरा के) तो कौन सा हमेशा के लिए जा रही हूँ मै मिलने आऊंगी तेरे से नहीं तो कॉल पे बात कर लिया करना मेरे से और जब मन करे तेरा आ जाना शहर मेरे पास....

इससे पहले अभय कुछ बोलता....

शालिनी –(जल्दी से बोली) अच्छा चल पहले मिलते है गीता दीदी से....

बोल के दोनो निकल गए गीता देवी की तरफ घर में आते ही दरवाजा खटखटाया तो गीता देवी ने दरवाजा खोला....

गीता देवी –(अपने घर शालिनी को देख) अरे आइए शालिनी जी क्या बात है आज सुबह सुबह....

शालिनी – हा असल में मुझे जरूरी काम से वापस शहर जाना पड़ रहा है सोचा जाने से पहले आप से मिल लूं....

गीता देवी – बहुत जल्दी जा रहे हो आप वापस कुछ दिन रुक जाते आप....

शालिनी – पुलिस की नौकरी तो आप मुझसे बेहतर जानते हो दीदी कब कहा से बुलावा आए पता नहीं पड़ता है....

गीता देवी – हा सो तो है शालिनी जी....

अभय – बड़ी मां राज कहा है....

गीता देवी – अंदर कमरे में तैयार हो रहा है कॉलेज जाने के लिए....

गीता देवी की बात सुन अभय कमरे में चल गया राज के पास....

राज – (अभय को देख) अबे तू इतनी सुबह सुबह क्या बात है....

अभय – कुछ नहीं यार वो मां आज ही वापस जा रही है तो मिलने आई है बड़ी मां से....

राज – अरे इतनी जल्दी....

अभय – हा वही तो यार मानती ही नहीं मां बात मेरी....

राज – पुलिस का काम ही ऐसा होता है यार चल ये बता कॉलेज चल रहा है साथ में या बाद में आएगा....

अभय – नहीं यार आज नहीं आऊंगा कॉलेज मां ने मना किया है....

राज – यार मन तो मेरा भी नहीं है आज जाने का....

अभय – तो चल आज तू और मैं साथ में घूमते है मै बड़ी मां से बोल देता हू....

अभय बाहर आके गीता देवी से....

अभय – बड़ी मां आज राज को कॉलेज मत भेजो आज मेरे साथ रहेगा....

शालिनी –(तुरंत बीच में) बहुत अच्छी बात है तू एक कम कर राज के साथ घूम के आजा और साथ में अच्छा सा नाश्ता लेके आ तब तक मैं ओर गीता दीदी बाते करते है आपस में....

बात सुन के अभय और राज निकल गए घर के बाहर उनके जाते ही....

गीता देवी – क्या बात है शालिनी जी आपने उन दोनों को बाहर क्यों भेज दिया नाश्ता तो मैं यही बना देती सबके लिए....

शालिनी – जानती हू दीदी लेकिन उनके सामने आपसे मै वो बात नहीं कर सकती थी इसीलिए बाहर भेज दिया दोनो को....

गीता देवी – क्या बात है शालिनी जी बताए....

उसके बाद शालिनी ने कुछ बात की गीता देवी से काफी देर तक बात चलती रही दोनो की जब तक अभय और राज वापस नहीं आ गए दोनो के आते ही सबने मिल के नाश्ता किया एक दूसरे से विदा लेके निकल गए साथ में राज भी आया हॉस्टल में आते ही शालिनी ने अपना बैग लिया हॉस्टल के बाहर निकल जहां शालिनी की कार खड़ी थी ड्राइवर के साथ कार में समान रख....

शालिनी –(अभय को गले से लगा के) दिल छोटा मत कर मै जल्दी ही आऊंगी तेरे पास तब तक अच्छे से पढ़ाई करना तू....

अभय –(मुस्कुरा के) ठीक है मां....

बोल के शालिनी कार में बैठने लगी कि तभी....

शालिनी – अरे अभय मै शायद अपना बैग तेरे कमरे में भूल गई जाके ले आ....

शालिनी की बात सुन अभय कमरे की तरफ निकल गया उसके जाते ही....

शालिनी – राज मेरी बात ध्यान से सुनो....

उसके बाद शालिनी ने राज से कुछ बात कहने लगी कुछ समय बाद अभय वापस आया बैग लेके जिसे लेके शालिनी ने अभय के सर पे हाथ फेर कार से निकल गई शहर की तरफ अभय पीछे खड़ा कार को जाते हुए देखता रहा जब तक कार उसकी आंख से ओझल नहीं हो गई....

अभय – जब अपना दूर जाता है आपसे कितनी बेचैनी होने लगती है ना राज....

राज –(अभय के कंधे पे हाथ रख देखा तो आसू थे आखों में उसकी अपने हाथ से आसू पोछ गले लगा के) जितना दूर सही लेकिन है तो तेरे दिल में ही चल मायूस मत हो जल्दी आएगी बोला है ना तेरे को चल चलते है घूमने कही....

राज की बात सुन हा में सिर हिला के बाइक से निकलने जा रहे थे कि तभी एक लड़की की प्यारी सी आवाज आई....

लड़की – HELLOOO Mr.ABHAY....
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जारी रहेगा✍️✍️
Badiya update tha Bhai, Dhanyavad. Aapka agla dhamakedaar update ka intezaar rahega hamein Besabri se, Bhai.
 

Ek anjaan humsafar

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Itne din se ek silent reader banke aapki story Ko pad Raha tha Maine kyon ki iske pahle bhi yeh story achanak se bandh ho gayi, kahin dubara aisa na ho yeh hi dar sata Rahi thi mujhe - ISI wajah se apan bas khamoshi se kahani Ko follow kar raha tha Bhai , Lekin like jarur karta tha har ek update Ko. Ab kahani aage bhi badegi and it will reach its logical end, I am damn sure & hope you shall fulfill your promise of completing this fantabulous story, dear bro, by giving regular & timely updates. Sorry, dear bro please don't mistake my apprehensions - as you too are very much aware that in XF, many good stories remain incomplete for some reason or other. Hence, I sincerely apologise & request you to forgive me if I have hurt you in any manner. Regards.
.
 

Ek anjaan humsafar

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Food India GIF by Nilons
 

DEVIL MAXIMUM

"सर्वेभ्यः सर्वभावेभ्यः सर्वात्मना नमः।"
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Badiya update tha Bhai, Dhanyavad. Aapka agla dhamakedaar update ka intezaar rahega hamein Besabri se, Bhai.
Thank you sooo much Ek anjaan humsafar bhai
 

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Don't worry story apne anjaam tak jaroor aaygi
 
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