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sam21003

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UPDATE 11


इधर गांव में आज खुशी का माहौल था। सब गांव वाले अपनी अपनी जमीन पकड़ बेहद खुश थे। और सब से ज्यादा खुश मंगलू लग रहा था। गांव के लोगो की भीड़ इकट्ठा थी। तभी मंगलू ने कहा...

मंगलू -- सुनो, सुनो सब लोग। वो लड़का हमारे लिए फरिश्ता बन कर आया है। अगर आज वो नही होता तो, आने वाले कुछ महीनो में हमारी जमीनों पर कॉलेज बन गया होता। इसी लिए मैने सोचा है, की क्यूं ना हम सब उस लड़के पास जाकर उसे कल होने वाले भूमि पूजन में एक खास दावत दे पूरे गांव वालो की तरफ से।

आदमी –(सहमति देते हुए) सही कहते हो मंगलू, हम सबको ऐसा करना चाहिए।

मंगलू -- तो एक काम करते है, मैं और बनवारी उस लड़के को आमंत्रित करने जा रहे है कल के लिए। और तुम सब लोग कल के कार्यक्रम की तयारी शुरू करो। कल के भूमि पूजन में उस लड़के के लिए दावत रखेजाएगी गांव में ये दिन हमारे लिए त्योहार से कम नहीं है

मंगलू की बात सुनकर सभी गांव वाले हर्ष और उल्लास के साथ हामी भरते है। उसके बाद मंगलू और बनवारी दोनो हॉस्टल की तरफ निकल रहे थे की तभी...

पूरे गांव में आज खुशी की हवा सी चल रही थी। सभी मरद , बूढ़े, बच्चे , औरते और जवान लड़कियां सब मस्ती में मग्न थे। राज भी अपने दोस्तो के साथ गांव वालो के साथ मजा ले रहा था।

राज के साथ खड़ा राजू बोला...

राजू -- यार राज, ये लड़का आखिर है कौन? जिसके आगे ठाकुराइन भी भीगी बिल्ली बन कर रह गई।

राज -- हां यार, ये बात तो मुझे भी कुछ समझ नहीं आई। पर जो भी हो, उस हरामी ठाकुर का मुंह देखने लायक था। और सब से मजे की बात तो ये है, की वो हमारे इसी कॉलेज पढ़ने आया है। कल जब कॉलेज में उस हरामी अमन का इससे सामना होगा तो देखना कितना मज़ा आएगा!! अमन की तो पुंगी बजने वाली है, अब उसका ठाकुराना उसकी गांड़ में घुसेगा।

राजू -- ये बात तूने एक दम सच कही अजय, कल कॉलेज में मजा आयेगा।

गीता देवी – अरे राज क्या कर रहा है तू , इधर आ जरा

राज – हा मां बता क्या काम है

गीता देवी – तू भी चला जा मंगलू के संग मिल के आजाना उस लड़के से

राज – मैं तो रोज ही मिलूगा मां वो और हम एक ही कॉलेज पे एक ही क्लास में है , तुझे मिलना है तो तू चली जा काकी के संग

गीता देवी –(कुछ सोच के मंगलू को बोलती है) मंगलू भईया सुनो जरा

मंगलू – जी दीदी बताए

गीता देवी – भईया उस लड़के को दावत पे आमंत्रित के लिए आप दोनो अकेले ना जाओ हम भी साथ चलती है उसने अकेले इतना कुछ किया हम गांव वालो के लिए तो इतना तो कर ही सकते है हम भी

जहा एक तरफ सब गांव वाले इस खुशी के मौके पे अभय को कल के भूमि पूजन के साथ दावत पे आमंत्रित के लिए मानने जा रहे थे। वही दूसरी तरफ, पायल एक जी शांत बैठी थी।

पायल की खामोशी उसकी सहेलियों से देखी नही जा रही थी। वो लोग पायल के पास जाकर बैठ गई, और पायल को झिंझोड़ते हुए बोली।

नूर – कम से कम आज तो थोड़ा मुस्कुरा दे पता नही आखिरी बार तुझे कब मुस्कुराते हुए देखी थी। देख पायल इस तरह से तो जिंदगी चलने से रही, तू मेरी सबसे पक्की सहेली है, तेरी उदासी मुझे भी अंदर ही अंदर खाए जाति है। थोड़ा अपने अतीत से नीकल फिर देख जिंदगी कितनी हसीन है।

पायल-- (अपनी सहेली की बात सुनकर बोली) क्या करू नूर? वो हमेशा मेरे जहन में घूमता रहे है, मैं उसे एक पल के लिए भी नही भूला पा रही हूं। उसके साथ हाथ पकड़ कर चलना, और ना जाने क्या क्या, ऐसा लगता है जैसे कल ही हुआ है ये सब। क्या करू? कहा ढूंढू उसे, कुछ समझ में नहीं आ रहा है?

नूर -- (पायल की बात सुनकर बोली) तू तो दीवानी हो गई है री, पर समझ मेरी लाडो, अब वो लौट कर...

पायल -- (अपना हाथ नूर के मुंह पर रखते हुए) फिर कभी ऐसा मत बोलना नूर। (कहते हुए पायल वहा से चली जाति है)

इस तरफ मंगलू , बनवारी , गीता देवी और एक औरत के साथ जा रहे थे चलते चलते रास्ते में ही अभय उनको दिख गया जो अकेले मैदान में बैठा आसमान को देख रहा था तभी मंगलू और बनवारी चले गए अभय के सामने

मंगलू – कैसे हो बेटा

अभय --(अनजान बनते हुए) मैं ठीक हूं अंकल, आप तो वही है ना जो कल उस खेत में...

मंगलू -- ठीक कहा बेटा, में वही हूं जिसे तुमने कल ठकुराइन के सामने गिड़गिड़ाते हुए देखा था। क्या करता बेटा? यही एक उम्मीद तो बची थी सिर्फ हम गांव वालो में। की शायद गिड़गिड़ाने से हमे हमारी जमीन मिल जाए। पर हम वो कर के भी थक चुके थे। निराश हो चुके थे। पर शायद भगवान ने तुम्हे भेज दिया हम गरीबों के दुख पर खुशियों की बौछार करने के लिए।

अभय -- (सारी बात को समझते हुए) मैं कुछ समझा नही अंकल? मैने तो सिर्फ वो पेड़ ना काटने की आवाज उठाई थी, जो कानून गलत नही है। बस बाकी और मैने कुछ नही किया।

अभय की बात सुनकर, मंगलू की आंखो से आसूं टपक पड़े, ये देख कर अभय बोला...

अभय -- अरे अंकल आ... आप क्यूं ऐसे....?

मंगलू -- आज तक सिर्फ सुना था बेटा, की सच और ईमानदारी की पानी से पनपा पौधा कभी उखड़ता नही है। आज यकीन भी हो गया।

अभय -- माफ कीजिएगा अंकल, लेकिन मैं आपकी बातों को समझ नही पा रहा हूं।

अभय की दुविधा दूर करते हुए मंगलू ने कहा...

मंगलू -- जिस पेड़ को कल तुमने कटने से बचाया है। उस पेड़ को इस गांव के ठाकुर मनन सिंह और उनके बेटे अभय सिंह ने अपने हाथों से लगाया था। जब तक ठाकुर साहब थे, ये गांव भी उसी पौधे की तरह हरा भरा खिलता और बड़ा होता गया। खुशियां तो मानो इस गांव का नसीब बन कर आई थी, ठाकुर साहब का बेटा...अभय बाबा , मानो उनकी ही परछाई थे वो। कोई जाति पति का भेद भाव नही दिल खोल कर हमारे बच्चो के साथ खेलते। हमे कभी ऐसा नहीं लगा की ये इस हवेली के छोटे ठाकुर है, बल्कि हमे ऐसा लगता था की वो बच्चा हमारे ही आंगन का है। उसका मुस्कुराता चेहरा आज भी हम गांव वालो के दिल से नही निकला और शायद कभी निकलेगा भी नही। ना जाने कैसा सैलाब आया , पहले हमारे भगवान जैसे ठाकुर साहब को ले डूबी, फिर एक तूफान जो इस मुस्कुराते चेहरे को भी हमसे दूर कर दिया।

कहते हुए मंगलू की आंखो से उस दुख की धारा फूट पड़ी। अभय के लिए भी ये बहुत कठिन था। उसका दिल कर रहा था की वो बता दे की, काका उस तूफान में भटका वो मुस्कुराता चेहरा आज फिर से लौट आया है। पर वो नही कह सका। अपनी दिल की बात दिल में ही समेट कर रह गया। अभय का दिल भी ये सुन कर भर आया, की उसे कितना प्यार करते है सब गांव वाले। जिस प्यार की बारिश के लिए वो अपनी मां के ऊपर टकटकी लगाए रहता था वही प्यार गांव वालो के दिल में पनप रहा था। भाऊक हो चला अभय, सुर्ख आवाज में बोला...

अभि -- मैं समझ सकता हूं आपकी हालत अंकल।

ये सुनकर मंगलू अपनी आंखो से बह रहे उस आसूं को पूछते हुए बोला...

मंगलू -- बेटा, हमारे यहां कल हम भूमि पूजन का उत्सव मनाते है, पर इस बार हमे ऐसा लगा था शायद हमारे पास ये जमीन नही है। इस लिए हम अपनी भूमि का पूजा नही कर पाए। पर आज तुम्हारी वजह से हमारी जमीनें हमारी ही है। इस लिए कल रात हमने ये उत्सव रखा है, तो हम सब गांव वालो की तरफ से मैं तुम्हे आमंत्रित करने आया हूं। आना जरूर बेटा।

मंगलू की बात सुनकर, अभय का दिल जोर जोर से धड़कने लगा। वो खुद से बोला...

अभय – मन में (मैं कैसे भूल सकता हूं ये दिन)

मंगलू -- (अभय को गुमसुम देख) क्या हुआ बेटा? कोई परेशानी है?

अभय --(चौकते हुए) न... नही, काका। कोई परेशानी नहीं, मैं कल ज़रूर आऊंगा।

अभय की बात सुन मंगलू अपने लोगो के साथ खुशी खुशी विदा लेके चला गया जबकि अभय बैठ के आसमान को देखने लगा तभी पीछे से किसी औरत ने आवाज दी

औरत – साहेब जी आप अकेले क्यों बैठे हो यहां पे

अभय पलट के अपने सामने औरतों को देखता है तो झट से खड़ा हो जाता है

अभय – नही कुछ नही आंटी जी ऐसे ही बैठा..

औरत –(अभय को गौर से देखते हुए) बहुत ही अच्छी जगह चुनी है आपने जानते हो यहां पर बैठ के मन को जो शांति मिलती है वो कही नही मिलती

अभय – हा मुझे भी यहां बहुत सुकून मिल रहा है आंटी

औरत – अगर आप बुरा ना मानो एक बात पूछूं

अभय – हा पूछो ना आ

औरत – आपको खाने में क्या क्या पसंद है

अभय – मुझे सब कुछ पसंद है लेकिन सबसे ज्यादा पराठे पसंद है

औरत – मेरे बेटे को पराठे बहुत पसंद है मै बहुत अच्छे पराठे बनाती हूं देखना मेरे हाथ के गोभी के पराठे खा के मजा आजाएगा आपको

अभय – (जोर से हस्ते हुए) आपको पता है बड़ी मां मुझे गोभी के पराठे....

बोलने के बाद जैसे ही अभय ने औरत की तरफ नजर घुमाई देखा उसकी आखों में आसू थे

गीता देवी – (आंख में आसू लिए) तुझे देखते ही मुझे लगने लगा था तू ही हमारा अभय है

अभय –(रोते हुए) बड़ी मां (बोलते ही गीता देवी ने अभय को गले से लगा लिया)

गीता देवी – क्यों चला गया था रे छोर के हमे एक बार भी नही सोचा तूने अपनी बड़ी मां के लिए

अभय – (रूंधे गले से) मैं...मैं...मुझे माफ कर दो बड़ी मां

गीता देवी – (आसू पोंछ के) चल घर चल तू मेरे साथ

अभय – नही बड़ी मां अभी नही आ सकता मै....

तभी पीछे से किसी ने आवाज दी.... गीता

अभय – (धीरे से जल्दी में बोला) बड़ी मां गांव में किसी को भी पता नहीं चलना चाहीए मेरे बारे में मैं आपको बाद में सब बताऊग

सत्या बाबू – गीता यहां क्या कर रही हो (अभय को देख के) अरे बाबू साहेब आप भी यहां पे

गीता देवी – कल गांव में भूमि पूजन रखा है साथ ही गांव वालो ने खास इनके लिए दावत भी रखी है उसी के लिए मानने आए थे हम सब बाकी तो चले गए मैने सोचा हाल चाल ले लू

सत्या बाबू – ये तो बहुत अच्छी बात बताए तुमने गीता

गीता देवी – (अभय से) अच्छा आप कल जरूर आना इंतजार करेगे आपका (बोल के सत्या बाबू और गीता देवी निकल गए वहा से)

सत्या बाबू – गीता आज सुबह सुबह मैं मिला था बाबू साहब से उनसे बाते करते वक्त जाने दिल में अभय बाबा का ख्याल आया था उनके जैसे नीली आखें

गीता देवी –(मुस्कुराते हुए) ये हमारे अभय बाबा ही है

सत्या बाबू –(चौकते हुए) लेकिन कैसे खेर छोड़ो उनको साथ लेके क्यों नही चली घर में राज को पता चलेगा कितनी खुश हो जाएगा चलो अभी लेके चलते है....

गीता देवी – (बीच में टोकते हुए) शांति से काम लीजिए आप और जरा ठंडे दिमाग से सोचिए इतने वक्त तक अभय बाबा घर से दूर रहे अकेले और अब इतने सालो बाद वापस आए कॉलेज में एडमिशन लेके वो भी अपने गांव में आपको ये सब बाते अजीब नही लगती है

सत्या बाबू – हा बात अजीब तो है

गीता देवी – अभय ने माना किया है मुझे बताने से किसी को भी आप भी ध्यान रख्येगा गलती से भी किसी को पता न चले अभय के बारे में और राज को भी मत बताना आप वो खुद बताएगा अपने आप

सत्या बाबू – ठीक है , आज मैं बहुत खुश हो गीता अभय बाबा के आते ही गांव वालो की जमीन की समस्या हल हो गए देखना गीता एक दिन बड़े ठाकुर की तरह अभय बाबा भी गांव में खुशीयो की बारिश करेगे

गीता देवी और सत्या बाबू बात करते हुए निकल गए घर के लिए जबकि इस तरफ रमन ओर मुनीम आपस में बाते कर रहे थे

रमन – (पेड़ के नीचे बैठा सिगरेट का कश लेते हुए) मुनीम, मैने तुझे समझाया था। की भाभी के पास तू दुबारा मत जाना, फिर भी तू क्यूं गया?

मुनीम -- (घबराहट में) अरे मा...मालिक मैं तो इस लिए गया था की। मैं मालकिन को ये यकीन दिला सकू की सब गलती मेरी ही है।

रमन -- (गुस्से में) तुझे यहां पे यकीन दिलाने की पड़ी है। और उधर मेरे हाथो से इतना बड़ा खजाना निकल गया। साला...कॉलेज बनवाने के नाम पर मैने गांव वालो की ज़मीन हथिया लि थी अब क्या जवाब दुगा मैं उन लोगो को साला मजाक बन के रह जाएगा मेरा सबके सामने जैसे कल रात गांव वालो के सामने हुआ और वो हराम का जना वो छोकरा जाने कहा

(कहते हुए रमन की जुबान कुछ सोच के एक पल के लिए खामोश हो गई...)

रमन -- ऐ मुनीम...क्या लगता है तुझे ये छोकरा कौन है? कही ये सच में....?

मुनीम -- शुभ शुभ बोलो मालिक? इसीलिए उस लाश को रखवाया था मैने जंगल में तभी अगले दिन लाश मिली थी गांव वालो को?

रमन – धीरे बोल मुनीम के बच्चे इन पेड़ों के भी कान होते है , तू नही था वहा पर , कल रात को जिस तरह से वो छोकरा भाभीं से बात कर रहा था ऐसा लग रहा था जैसे बड़ी नफरत हो उसमे उपर से हवेली में जो हुआ और यहां तू अपनी...

मुनीम – (बीच में बात काटते हुए) मालिक मैं सिर्फ यह कहना चाहता हूं ऐसी कोई बात नही है? जरूर ये छोकरा आप के ही किसी दुश्मन का मोहरा होगा। जो घर की चंद बाते बोलकर ठाकुराइन को ये यकीन दिलाना चाहता है की, वो उन्ही का बेटा है।

रमन -- और उस ठाकुराइन को यकीन भी हो गया। मुनीम मुझे ये सपोला बहुत खतरनाक लग रहा है, फन निकलने से पहले ही इससे कुचल देना ही बेहतर होगा। आते ही धमाका कर दिया।

मुनीम -- जी मालिक, वो भी बिना आवाज वाला।

ये सुनकर तो रमन का चेहरा गुस्से से लाल हो गया, जिसे देख मुनीम के छक्के छूट गए...

रमन -- मुनीम, जरा संभल के बोला कर। नही तो मेरा धमाका तुझ पर भारी पड़ सकता है। बोलने से पहले समझ लिया कर की उस बात का कोई गलत मतलब मेरे लिए तो नही।

मुनीम रमन से गिड़गिड़ा कर बोला...

रमन -- (हाथ जोड़ते हुए) गलती हो गई मालिक, आगे से ध्यान रखूंगा। आप चिंता मत करो, उस सपोले को दूध मैं अच्छी तरह से पिलाऊंगा।
मुनीम की बात सुनते ही, रमन झट से बोल पड़ा...

रमन -- नही अभी ऐसा कुछ करने की जरूरत नहीं है भाभी का पूरा ध्यान उस छोकरे पर ही है। अगर उसे कुछ भी हुआ, तो भाभी अपनी ठाकुरानी गिरी दिखाने में वक्त नहीं लगाएगी। और अब तो उस पर मेरा दबदबा भी नही रहा। कहीं वो एक एक कर के सारे पन्ने पलटते ना लग जाए , तू समझा ना मैं क्या कह रहा हूं?

मुनीम -- समझ गया मालिक मतलब उस सपोले को सिर्फ पिटारे में कैद कर के रखना है, और समय आने पर उसे मसलना है।

मुनीम की बात सुनकर रमन कुछ बोला तो नही पर सिगरेट की एक कश लेते हुए मुस्कुराया और वहा से चल दिया..

सुबह से शाम होने को आई हवेली में संध्या का मन उतावला हो रहा था अभय से मिलने के लिए काम से फुरसत पा कर संध्या अपनी कार से निकल गई हॉस्टल के तरफ तभी रास्ते में संध्या ने कार को रोक के सामने देखा आम के बगीचे में एक लड़कि अकेली बैठी थी पेड़ के नीचे उसे देख के संध्या कार से उतर के वहा जाने लगी

संध्या – पायल तू यहां पे अकेले

पायल – ठकुराइन आप , जी मैं..वो..वो

संध्या –(बात को कटते हुए) सब जानती हू मै तू और अभय अक्सर यहां आया करते थे ना घूमने है ना पायल

पायल – नही ठकुराइन जी बल्कि वो ही मुझे अपने साथ लाया करता था जबरदस्ती , उसी की वजह से मेरी भी आदत बन गई यहां आने की , जाने वो कब आएगा , बोलता था मेरे लिए चूड़ियां लेके आएगा अच्छी वाली और एक बार आपके कंगन लेके आगया था ठकुराइन , मुझे ये चूड़ी कंगन नही चाहिए बस वो चाहिए

कहते हुए पायल की आंखो में आसूं आ गए, ये देख कर संध्या खुद को रोक नहीं पाई और आगे बढ़कर पायल को अपने सीने से लगा लेती है, और भाऊक हो कर बोली...

संध्या -- बहुत प्यार करती है ना तू उसे आज भी?

पायल एक पल के लिए तो ठाकुराइन का इतना प्यार देखकर हैरान रह गई। फिर ठाकुराइन की बातो पर गौर करते हुए बोली...

पायल -- प्यार क्या होता है, वो तो पता नही । लेकिन उसकी याद हर पल आती रहती है।

पायल की बात सुनकर संध्या की आंखो में भी आसूं छलक गए और वो एक बार कस के पायल को अपने सीने से चिपका लेती है।

संध्या पायल को अपने सीने से चिपकाई वो सुर्ख आवाज में बोली...

संध्या -- तू भी मुझसे बहुत नाराज़ होगी ना पायल ?

संध्या की बात सुनकर, पायल संध्या से अलग होते हुए बोली...

पायल -- आपसे नाराज़ नहीं हु मै, हां लेकिन आप जब भी बेवजह अभय को मरती थी तब मुझे आप पर बहुत गुस्सा आता था। कई बार अभय से पूछती थी की, तुम्हारी मां तुम्हे इतना क्यूं मरती है? तो मुस्कुराते हुए बोलता था की, मारती है तो क्या हुआ बाद में उसी जख्मों पर रोते हुए प्यार से मलहम भी तो लगाती है मेरी मां। थोड़ा गुस्से वाली है मेरी मां पर प्यार बहुत करती है। उसके मुंह से ये सुनकर आपके ऊपर से सारा गुस्सा चला जाता था।

पायल की बातो ने संध्या की आंखो को दरिया बना दी। वो एक शब्द नही बोल पाई, शायद अंदर ही अंदर तड़प रही थी और रो ना पाने की वजह से गला भी दुखने लगा था। फिर भी वो अपनी आवाज पर काबू पाते हुए बोली...

संध्या --(अपने हाथ से पायल के आसू पोंछ के) पायल अगर तुझे एतराज ना हो कल का भूमि पूजन मैं तेरे साथ करना चाहती हूं क्या तू इजाजत देगी मुझे

पायल – जी ठकुराइन अगर आप चाहे हर साल मैं आपके साथ भूमि पूजन करूगी।

संध्या – देख अंधेरा होने को है आजा मैं तुझे घर छोर देती हूं (अपनी कार में पायल को घर छोर के जैसे ही संध्या आगे चल ही रही थी की सामने अभय उसे जाता हुआ मिला)

संध्या –(कार रोक के) हॉस्टल जा रहे हो आओ कार में आजाओ मैं छोर देती हूं

संध्या की बात सुनकर, अभय मुस्कुराते हुए बोला...

अभय -- आप को परेशान होने की जरूरत नहीं है मैडम। मैं चला जाऊंगा । और वैसे भी हॉस्टल कौन सा दूर है यहां से।

संध्या -- दूर तो नही है, पर फिर भी।

कहते हुए संध्या का चेहरा उदासी में लटक गया। ये देख कर अभय ने कुछ सोचा और फिर बोला...


अभय -- ठीक है चलिए चलता हूं मैं

ये सुनकर संध्या का चेहरा फूल की तरह खिल गया अभय के कार में बैठते ही संध्या ने कार आगे बड़ा दी कुछ दूर चलने के बाद अभय ने बोला...

अभय -- तुझे लगता है ना की मैं तेरा बेटा हूं तो अब तू मेरे मुंह से भी सुन ले, हां मैं ही अभय हूं।

ये सुनते ही संध्या एक जोरदार ब्रेक लगाते हुए कार को रोक देती है अभय के मुंह से सुनकर तो उसकी खुशी का ठिकाना ही न था। उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था की वो क्या बोले? वो तुरंत ही जोर जोर से रोने लगती है, और उसके मुंह से सिर्फ गिड़गिड़ाहट की आवाज ही निकल रही थी...

हाथ बढ़ाते हुए उसने अपना हाथ अभय के हाथ पर रखा तो अभय ने दूर झटक दिया। ये देख संध्या का दिल तड़प कर रह गया...

संध्या -- मुझे पता है, तुम मुझसे नाराज़ हो। मैने गलती ही ऐसी की है की, उसकी माफी नहीं है। तुम्हे मुझे जो सजा देनी है दो, मारो, पीटो, काटो, जो मन में आए...मुझसे यूं नाराज न हो। बड़े दिनों बाद दिल को सुकून मिला है। लेकिन मेरी किस्मत तो देखो मैं मेरा बेटा मेरी आंखो के सामने है और मैं उसे गले भी नही लगा पा रही हूं। कैसे बताऊं तुम्हे की मैं कितना तड़प रही हूं?

रोते हुऐ संध्या अपने दिल की हालत बयां कर रही थी। और अभय शांत बैठा उसकी बातो सुन रहा था।
संध्या ने जब देखा अभय कुछ नही बोल रहा है तो, उसका दिल और ज्यादा घबराने लगा। मन ही मन भगवान से यही गुहार लगी रही थी की, उसे उसका बेटा माफ कर दे...

संध्या -- मु...मुझे तो कुछ समझ ही नही आ रहा है की, मैं ऐसा क्या बोलूं या क्या करूं जिससे तुम मान जाओ। तुम ही बताओ ना की मैं क्या करूं?

ये सुनकर अभय हंसने लगा...अभय को इस तरह से हंसता देख संध्या का दिल एक बार फिर से रो पड़ा। वो समझ गई की, उसकी गिड़गिड़ाहट अभय के लिए मात्र एक मजाक है और कुछ नही और तभी अभय बोला...

अभय -- कुछ नही कर सकती तू। हमारे रास्ते अलग है। और मेरे रास्ते पे तेरे कदमों के निशान भी न पड़ने दू मैं। और तू सब कुछ ठीक करने की बात करती है। मुझे तुझसे कोई हमदर्दी नही है। तेरे ये आंसू मेरे लिए समुद्र का वो कतरा है है जो किसी काम का नही। क्या हुआ? कहा गई तेरी वो ठकुराइनो वाली आवाज? मुनीम इससे आज खाना मत देना। मुनीम ये स्कूल ना जाय तो इसे पेड़ से बांध कर रखना। अमन तू तो मेरा राजा बेटा है। आज से उस लड़की के साथ तुझे देखा तो तेरी खाल उधेड़ लूंगी।

अभय -- मैं उस लड़की के साथ तब भी था, आज भी हू और कल भी रहूंगा। बहुत उधेड़ी है तूने मेरी खाल। अच्छा लग रहा है, बड़ा सुकून मिल रहा है, तेरी हालत देख कर। (अभय जोर से हंसते हुए) ...तुम ही बताओ की मैं क्या करू? की तुम मान जाओ। हा... हा... हा। नौटंकी बाज़ तो तू है ही। क्या हुआ...वो तेरा राजा बेटा कहा गया? उससे प्यार नही मिल रहा है क्या अब तुझे? नही मिलता होगा, वो क्या है ना अपना अपना ही होता है, शायद तुझे मेरे जाने के पता चला होगा। अरे तुझे शर्म है क्या ? तू किस मुंह से मेरे सामने आती है, कभी खुद से पूछती है क्या? बेशर्म है तू, तुझे कुछ फर्क नही पड़ता...

संध्या बस चुप चाप बैठी मग्न हो कर रो रही थी मगर अब चिल्लाई...

संध्या – हा... हा बेशर्म हूं मैं, घटिया औरत हूं मैं। मगर तेरी मां हूं मैं। तू मुझे इस तरह नही छोड़ सकता। जन्म दिया है तुझे मैने। तेरी ये जिंदगी मुझसे जुड़ी है, इस तरह से अलग हो जाए ऐसा मैं होने नही दूंगी।

संध्या की चिल्लाहट सुन कर, अभय एक बार मुस्कुराया और बोला...

अभय -- तो ठीक है, लगी रह तू अपनी जिंदगी को मेरी जिंदगी से जोड़ने में।

ये कहते हुए अभय कार से जैसे ही नीचे उतरने को हुआ, संध्या ने अभय का हाथ पकड़ लिया। और किसी भिखारी की तरह दया याचना करते हुए अभय से बोली...

संध्या -- ना जा छोड़ के, कोई नही है तेरे सिवा मेरा। कुछ अच्छा नहीं लगता जब तू मेरे पास नहीं रहता। रह जा ना मेरे साथ, तू किसी कोने में भी रखेगा मुझे वहा पड़ा रहूंगी, सुखी रोटी भी ला कर देगा वो भी खा लूंगी, बस मुझे छोड़ कर ना जा। रुक जा ना, तेरे साथ रहने मन कर रहा है।

संध्या की करुण वाणी अगर इस समय कोई भी सुन लेता तो शत प्रतिशत पिघल जाता, उसने अपने दिल के हर वो दर्द को शब्दो में बयान कर दी थी। इस बार अभय भी थोड़ा भाऊक हो कर बड़े ही प्यार से बोला...

अभय -- याद है तुझे, मैं भी कभी यही बोला करता था तुझसे। जब रात को तू मुझे सुलाने आती थी। मैं भी तेरा हाथ पकड़ कर बोलता था, रह जा ना मां, तेरे साथ अच्छा लगता है। तू पास रहती है तो मुझे बहुत अच्छी नींद आती है, रुक जा ना मां, मेरे पास ही सो जा। मगर तू नही रुकी तब तुझे बहीखाता बनाना होता हिसाब देखना होता और उस रात को भी यही कहा था तुझे , लेकिन उस रात किसी और को तेरे साथ सोना था। याद है या बताऊ कॉन आया था सोने तेरे कमरे में......

संध्या – नहीं...चुप हो जा। तेरे पैर पड़ती हूं।

कहते हुए संध्या ने अभय का हाथ छोड़ दिया, और दूसरी तरफ मुंह घुमा लिया। ना जाने क्या हुआ उसे, ना रो रही थी ना कुछ बोल रही थी, बस बेबस सी पड़ी थी....

उसकी ऐसी हालत देख कर अभय जाने के लिए पलट गया और बिना पलते एक बार फिर बोला...

अभय -- जाते जाते तुझे एक बात बता दूं। तू गुलाब का वो फूल है, जिसके चारो तरफ सिर्फ कांटे ही कांटे है। सिर्फ एक मैं ही था, जो तुझे उन काटो से बचा सकता था। मगर तूने मुझे पतझड़ के सूखे हुए उस पत्ते की तरह खुद से अलग कर दिया की अब मैं भी तेरे चारों तरफ बिछे काटों को देखकर सुकून महसूस करता हूं...

ये कहकर अभय वहा से चला जाता है, संध्या बेचारी अपनी नजर उठा कर अंधेरे में अपने बेटे को देखना चाही, मगर कार के बाहर उसे सिर्फ अंधेरा ही दिखा......
.kya baat devil bhai aap ki likhani ko salam dil nikal ke rakh diy waqie koi jawab nahi ek ek shabad me aap ki mehnat dikhti
aap ke liye chand likhta hu
Jo dil pe guzarti hai hum rakam ( bardast ) karte hai
Hum taskarie (charcha) lauhe kalam karte hai
जारी रहेगा ✍️✍️
 
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sam21003

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UPDATE 14

संध्या का एसा रूप देख ललिता , मालती और रमन तीनों हिल के रह गए थे किसी को कुछ समझ नहीं आ रहा था की क्या करे ललिता और मालती डिनर टेबल साफ करने में लग गए थे और रमन हवेली से बाहर निकल के किसी को फोन मिलाया....

रमन – मुनीम मैने तुझे इस लड़के का पता लगाने को बोला था अभी तक क्यों नही पता लग पाया तुझे

मुनीम – मालिक उस लड़के का पता नही चल पा रहा है कही से भी इसीलिए मैंने शहर से एक लड़के को बुलाया है जो उस लड़के की जानकारी निकाल सकता है

रमन – कॉन है वो कब करेगा काम

मुनीम – मालिक आप बगीचे वाले कमरे में आजाओ मैं उसे वही लेके आता हू

दोपहर का वक्त था अभय हॉस्टल के कमरे में आते ही उसे रमिया मिली...

रमिया – बाबू जी खाना तयार है आप हाथ मू धो लिजिए मैं खाना लगाती हू

अभय – कल की बात से नाराज हो अभी भी क्या

रमिया – नही बाबू जी ऐसी कोई बात नही है

अभय – अच्छा फिर क्या बात है

रमिया – बात तो पता नही बाबू जी लेकिन कल से देख रही हू हवेली में मालकिन ने कल रात को कुछ नही खाया और आज सुबह भी जाने किस बात पे रमन बाबू पे गुस्सा हो रही थी मालकिन

अभय – (हस्ते हुए) अच्छा ऐसा क्या हो गया जो तुम इतनी परेशान हो रही हो

रमिया –पता नही बाबू जी मैं 2 साल पहले आई हू यहा तभी से देख रही हू मालकिन को रोज रात को जब सब आराम से सो रहे होते है तब मालकिन अपने कमरे में कम अपने बेटे के कमरे में होती थी , कभी कभी तो उन्ही के कमरे में सो जाती थी

अभय – (रमिया की बात पे ध्यान ना देते हुए) तुझे यहां भेजा गाया है मेरे लिए , तब तक के लिए हवेली को भूल जा चल खाना खाते है भूख लगी है बहुत

इधर हवेली में जब हर कोई अपने कमरे में दिन में आराम कर रहा होता है तब संध्या हवेली के बाहर अपनी कार से निकल जाती है कही कार ड्राइव करते हुए किसी के घर के बाहर कार रोक के बाहर निकल के घर का दरवाजा खट खटाती है तभी एक औरत दरवाजा खोलती है उसे देख संध्या रोते हुए उसके गले लग जाती है.....

औरत – (रोना सुन के) क्या बात है संध्या तू ऐसे रो क्यों रही है

संध्या – मुझसे बहुत बड़ी गलती हो गई है दीदी मैने आपकी बात ना मान के...

औरत – चुप पहले अंदर चल तू

अपने घर के अंदर लेजा के संध्या को बैठाती है की तभी किसी की आवाज आती है..

सत्या बाबू – कॉन आया है गीता

गीता देवी – खुद ही देख लो आके कॉन आया है

सत्या बाबू – (अपने सामने संध्या को देख के) ठकुराइन आज इतने सालो के बाद गरीब के घर में....

गीता देवी – (बीच में टोकते हुए) ठकुराइन नही मेरी छोटी बहन आई है घर में

सत्या बाबू – ठीक है तुम बात करो आराम से मैं खेत में जा रहा हू राज का खाना लेके शाम को त्यार रहना

गीता देवी – जी ठीक है (सत्या बाबू के जाने के बाद संध्या से बोली) अब बता क्या बात है क्यों रो रही है तू

संध्या – मुझसे बहुत बड़ी गलती हो गई दीदी उसी की सजा मिल रही है मुझे जिस जिस पर विश्वास किया उसी ने धोखा दिया

गीता देवी – संध्या तू सही से बता बात क्या है कैसे सजा , कॉन सी गलती और किसने धोखा दिया तुझे

संध्या – इनके (अपने पति) जाने के बाद हवेली और खेती के हिसाब , बहिखाते की सारी जिम्मेदारी मुझ पे आ गई थी और अभय उदास सा रहने लगा था , हवेली , खेती और बहिखाते अकेले ये सब संभालना साथ अभय को , मेरे लिए आसान नहीं था इसीलिए ऐसे में मैने रमन की मदद ली ताकि सब संभालना आसान हो जाय धीरे धीरे वक्त बिता मैं ज्यादा तर हवेली और खेती के हिसाब में व्यस्त रहने लगी लेकिन इसी बीच कई बार अभय की शिकयत आती थी मेरे पास शुरू शुरू में मैने इतना ध्यान नहीं दिया लेकिन फिर अभय की शिकायते बड़ने लगी समझाया करती थी मैं लेकिन फिर से वही सब शिकयत और मुझसे बर्दाश नही होता था की मेरे बेटे की शिकायत लोग करते रहते थे अक्सर लेकिन वही अमन की कोई शिकायत नही करता था हर कोई अमन की तारीफ करता बस इसी गुस्से में मैने हाथ उठाया अभय पर और ना जाने कितनी बार हाथ उठाया मैने अभय पे

लेकिन दीदी मेरे अभय ने कभी अपनी सफाई नही दी मुझे और फिर आई वो मनहूस रात जिसके बाद मेरी जिन्दगी पूरी तरह से बदल गई

(बोल के जोर से रोने लगी इस तरह से संध्या का रोना देख के गीता देवी को भी घभराहट होने लगी)

गीता देवी – (घबरा के) संध्या क्या हुआ था ऐसे क्यों रो रही है बता क्या हुआ उस रात को

संध्या –(रोते हुए) पता नही दीदी कैसे हुआ उस रात मैं बहक गई थी रमन के साथ...

गीता देवी – (गुस्से में) ये क्या बकवास कर रही है तू , तू ऐसा कैसे बहक गई , सही से बता संध्या हुआ क्या था ऐसा उस रात को

संध्या –(रोते हुए) मुझे सच में नही पता दीदी ये सब कैसे हुआ , कभी कभी अकेली रातों में अपने पति की याद आती थी तो अपनी शादी को तस्वीरों को देख लिया करती थी उस रात को भी वही तस्वीर देख रही थी क्योंकि कल का दिन मेरे अभय के लिए खुशी का दिन था कल अभय का जन्म दिन था मैंने दिन में सोच लिया और सभी को बता दिया था आज मैं अभय के साथ सोऊगी , कई बार अभय कहता रहता था मुझे की उसके साथ सोऊं , कमरे से जाने को थी तभी मुझे अजीब से उलझन होने लगी थी शशिर में अपने , मैने सोचा आराम करूगी ठीक हो जाओगी , अपनी शादी की तस्वीर को अलमारी में रख के जाने को हुई तभी मेरे शरीर की उलझन बड़ने लगी थी इसी बीच कमरे में रमन आया हुआ था उसे देख के मैं इनकी (अपने पति) कल्पना करने लगी थी क्योंकि दोनो भाईयो की सूरत एक जैसे जो थी और इसके बाद कब मैं रमन के साथ...

बोलते बोलते रोने लगी संध्या

गीता देवी –(संध्या के सिर पे हाथ रख के) फिर क्या हुआ था

संध्या – होश आने पर अपने आप को रमन के साथ पाया मैने कुछ बोलती उससे पहले रमन ने बोला मुझे वो काफी वक्त से मुझे चाहता है काफी वक्त से मेरे साथ ये सब करना चाहता था मन तो हो रहा था मेरा रमन को अभी सबक सिखा दू लेकिन गलती इसमें पूरी उसकी अकेले की नही थी मेरी भी थी काफी देर तक हम बेड में रहे बाद में मैंने रमन को अपने कमरे में जाने को बोला ताकी हवेली में किसी को पता ना चले , अपने अभय की नजर में गिरना नही चाहती थी मैं इसीलिए चाह के भी रमन को कुछ नही कहा मैने , लेकिन उस मनहूस रात ने मेरी जिंदिगी को नर्क बना दिया अगले दिन अभय हवेली में नही है ये पता चला और उसके बाद जंगल में लाश मिली बच्चे की जिसने अभय जैसे कपड़े पहने थे और तब से मेरी जीने को इच्छा मर गई थी , लेकिन अमन को देख के जी रही थी मैं

और अब 11 साल बाद वो वापस आगया दीदी मेरा अभय वापस आगया पहली मुलाकात से मुझे चौका दिया और अगले मुलाकात में उसने बता दिया वो अभय है मेरा और साथ में ये भी बताया को कितनी नफरत करता है क्योंकि उसने मुझे देखा था रमन के साथ कमरे में और क्या कहा उसने मुझसे जानती हो दीदी यह की उसको मेरे आसू मेरा प्यार सब नौंटकी लगता है उसके आने से गांव वालो को जमीन मिली जिसका मुझे पता तक नहीं था और उसके आने से ही आज मैं जान पाई हू दीदी की जिनपे मैने आंख बंद कर के भरोसा किया उन सबने मेरी ही पीठ में छूरा घोपा है सबने धोखा दिया मुझे सबने झूठ पे झूठ बोल के मुझसे पाप करवाया , अभय की नजरो में मुझे हमेशा हमेशा के लिए गिरा दिया उन सबने , दीदी बात तो मैने आपकी भी नही मानी अगर मानी होती तो शायद आज ये दिन नही देखना पड़ता मुझे

बस दीदी मेरी एक इच्छा पूरी कर देना मेरे मरने के बाद कम से कम मुझे अग्नि जरूर दिला देना अभय के हाथो से (रोते हुए)

गीता देवी – (रोते हुए संध्या को गले से लगा के) चुप बिल्कुल चुप तू क्यों मरने लगी अभी तो तुझे उन सबको रोते हुए देखना है जिसने तुझे रुलाया है जिन्होंने ये नीच हरकत की है अभी उनका भी हिसाब होना बाकी है उन्होंने मां और बेटे के बीच दरार डाली है अरे उपर वाला भी मां और बेटे के रिश्ते की डोर को छूने से डरता है क्योंकि उपर वाला भी एक मां को दुवा ले सकता है लेकिन एक मां के दिल से निकली बदूवा से वो खुद डरता है लेकिन यहां इंसानों ने ये काम किया.....

गीता देवी – तूने पता किया अगर अभय यहां है तो फिर वो लाश किसकी थी जो गांव वालो को मिली थी जंगल में कहा से आए उस लाश में अभय के स्कूल के कपड़े

संध्या – नही दीदी मैने इस बारे में कोई बात नही की ये सब मुनीम या रमन ही देखते है ज्यादा तर बाहर के काम , बस अब आपके सिवा कोई नही मेरा दीदी जिसपे भरोसा कर सकू और हवेली में मुझे किसी पे भरोसा नहीं रहा

गीता देवी – (संध्या की बातो को ध्यान से सुन के किसी को कॉल किया)

सामने से – हेलो कॉन

गीता देवी – द....द...देव भईया

देव –(आवाज सुन मुस्कुरा के) गीता दीदी , बरसों के बाद आज आपको याद आई अपने भाई की

गीता देवी – (रोते हुए) तेरी एक बहन और भी है भूल गया तू और आज उसे अपने भाई की सबसे ज्यादा जरूरत है बस कुछ मत बोलना , भूल जा पुरानी बात को , यहां तेरी बहन की जिंदिगी बर्बाद कर दी है दुश्मनों ने

देव – (गुस्से में) किसकी इतनि मजाल है जो देवेंद्र ठाकुर की बहन की जिंदीगी बर्बाद करने की हिम्मत करें , देवी भद्र काली की कसम है मुझे , उसके वंश का नाश कर देगा ये देवेंद्र ठाकुर , मैं अभी आ रहा हू दीदी

इस तरफ रमन आगया था बगीचे में बने कमरे में वहा पे मुनीम और 2 लड़के पहले से इंतजार कर रहे थे रमन का...

रमन – मुनीम बाहर कार किसकी खड़ी है और कॉन बताएगा उस लड़के के बारे में

मुनीम – मालिक कार इन दोनो की है ये दोनो लड़को को शहर से बुलाया है ये कंप्यूटर के बड़े हैकर है (लड़के से) बता दे मालिक को कैसे पता चलेगा लड़के के बारे में

पहला लड़का – उस लड़के की कोई फोटो है आपके पास या डिटेल

रमन – हा फोटो निकलवाई है कॉलेज से उसकी

रमन अपने मोबाइल में फोटो दिखाता है , लड़का मोबाइल लेके सिस्टम में कनेक्ट करता है सर्च करता है फोटो से अभय की डिटेल को....

दूसरा लड़का – ये इनलीगल काम है जानते हो ना आप इस तरह से किसी की जानकारी निकालना मतलब समझ रहे हो ना आप

रमन – (500 की 2 गद्दी देते हुए) अब तो सब लीगल हो गया है ना

पहला लड़का – हा बस 5 मिनट में इसकी कुण्डली निकल जाएगी



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तभी लड़के के कंप्यूटर में अलर्ट मैसेज आता जिसे देख लड़का घबरा जाता है और तभी सिस्टम में उसी लड़के की फोटो दिखने लगती है साथ में उस कमरे में जो भी है उनकी भी फोटो थी डरते डरते अपने सिस्टम में कुछ करता उससे पहले ही उस लड़के के मोबाइल में कॉल आने लगता है मोबाइल में कॉलर का नेम देख के आखें बड़ी हो जाती है उसकी....

पहला लड़का – (कॉल रिसीव करके) हैलो

सामने से – लगता है अपनी औकात भूल गया है तू जानता है ना किसके बिल में हाथ डाल रहा है

पहला लड़का – (डरते हुए) मुझे माफ करिएगा मैडम मैं नही जानता था की ये....

सामने से – (बीच में बात काटते हुए) अपना बोरिया बिस्तर बांध के निकल तेरा काम हो गया वहा का

पहला लड़का – वो मैडम

सामने से – (गुस्से में) अभी निकल

पहला लड़का डरते हुए कॉल कट करके अपना सामान लेके दूसरे लड़को को चलने किए बोल के कमरे से बाहर भाग जाता है उसके पीछे दूसरा लड़का आने लगा तभी रमन उसका कॉलर पकड़ के....

रमन – बिना काम किया भाग रहा है तू , एक लाख दिए है मैने काम के...

दूसरा लड़का – (रमन को उसके पैसे वापस करते हुए) ये रहे पैसे आपके और आज के बाद याद रखना हम कभी नही मिले थे एक दूसरे से

मुनीम – लेकिन तुम दोनो भाग क्यों रहे हो किसका कॉल आगया था

दूसरा लड़का – मुझे नही पता किसका कॉल था लेकिन मेरा बॉस सिर्फ 2 लोगो से डरता है एक या तो वो मेरे बॉस का बॉस हो या फिर उन सब भी कोई बड़ा हो और ये लड़का उनमें से कॉन है मुझे नही पता

बोल के बाहर अपनी कार से भाग जाते है दोनो लड़के..

रमन – मुनीम ये दोनो लौंडे साले भाग गए , एक काम कर इंतजाम कर दे उस लड़के का और याद रहे कल सुबह गांव के समुंदर के बीच (किनारे) पे एक कटी फटी लाश मिलनी चाहिए समझ गया ना

मुनीम – (मुस्कुरा के) जी मालिक एसा ही होगा

इस तरफ गीता देवी के घर के बाहर 4 कारे आ कर रुकती है तीन कार से सूट बूट में बॉडीगार्ड निकलते है और बीच की कार से एक 40 साल का आदमी निकल के गीता देवी के घर में जाता है अंदर जाते ही...

आदमी – (अपने सामने बैठी गीता देवी साथ में संध्या को देख के) दीदी

गीता देवी – देव भईया

देव – (आगे आके गीता देवी के पैर छू के) कैसे हो आप दीदी

गीता देवी – अच्छी हू भईया

देव – संध्या क्या अभी तक नाराज हो अपने भाई से

संध्या रोते हुए गले लग गई देव के...

देव – (प्यार से सिर पे हाथ फेरते हुए) अरे पगली रोती क्यों है तेरा भाई जिंदा है अभी

गीता देवी – छल हुआ है संध्या के साथ अपनो के हाथो सिवाय धोखे के कुछ ना मिला इसे ऐसा खेल खेला गया अनजाने में दोनो मां और बेटे के बीच प्यार की जगह नफरत ने लेली , ऐसी नफरत आज एक बेटे को उसके मां के आसू भी नौटंकी लगते है उसे और इन सब का कारण है हवेली में रहने वाले लोग

देव – (सारी बात सुन के गीता देवी से) मुझे पूरी बात बताओ दीदी हुआ क्या है मेरी बहन के साथ

उसके बाद गीता देवी ने सारी बात बता दी देव को जिसे सुन के....

देव – (संध्या से बोला) तेरे साथ ये सब हो रहा था और तूने मुझे एक बार भी बताना जरूरी नही समझा , मानता हू तेरा सगा भाई ना सही लेकिन तुझे तो मैने सगी बहन माना है हमेशा से

संध्या – (रोते हुए) ऐसी बात नही है भईया इनके जाने के बाद से ही हवेली और काम की जिम्मेदारी मुझ पे आगयी थी उसको निभाने में जाने कब मैं खुद के बेटे की दुश्मन बन गई..

देव – (बीच में बात को काटते हुए) सब समझता हू मेरी बहन दादा ठाकुर के गुजरने के बाद पहल जिम्मेदारी मनन के हाथो में आई उसके बाद तेरे कंधो पे , मैने मनन को पहल कई बार समझने की कोशिश की थी अपने भाई पे भरोसा ना करे लेकिन वो नहीं माना कहता था जैसा भी है मेरा भाई है और एक भाई दूसरे भाई का कभी गलत नही करेगा उसकी यहीं गलती ने आज तुझे इस मुकाम में लाके खड़ा कर दिया , (संध्या के आसू पोछ के) हमारा भांजा कहा है कैसा दिखता है , मनन जैसा दिखता होगा है ना

गीता देवी – (अपने मोबाइल में फोटो दिखा के) ये देखिए भईया ऐसा दिखता है आपका भांजा

देव – (मोबाइल में अभय की फोटो देख के हैरान हो जाता है) ये...ये है वो लेकिन ये कैसे हो सकता है अगर ये तेरा बेटा है तो फिर वो...

गीता देवी – क्या हुआ भईया आप फोटो देख के हैरान क्यों हो गए

देव – (संध्या से) तुम कैसे कह सकती हो की ये तेरा बेटा है

संध्या – आप ऐसा क्यों बोल रहे हो भईया ये अभय ही है मेरा बेटा वही नैन नक्श वो सारी बाते जो सिर्फ इसके इलावा कोई नही जानता है

देव – (सारी बाते सुन के किसी सोच में डूब जाता है और तुरंत किसी को कॉल करता है) हेलो शालिनी जी

शालिनी सिन्हा – प्रणाम ठाकुर साहब आज कैसे याद किया

देव – शालिनी जी आपकी बेटी कहा पे है मेरी बात हो सकती है उससे

शालिनी सिन्हा – ठाकुर साहेब वो तो निकल चुकी है लेकिन बात क्या है

देव – शालिनी जी मैने आपसे पूछा था उस लड़के के बारे में , अब आप सच सच बताएगा क्या वो लड़का सच में आपका बेटा है की नही

शालिनी सिन्हा – ठाकुर साहब वैसे तो मेरा कोई बेटा नही सिर्फ एक बेटी है और रही बात उस लड़के की हा उसे अपना बेटा ही मानती हूं मैं , उसके आने से मेरे परिवार में बेटे की कमी भी पूरी हो गई

देव – क्या नाम है उसका

शालिनी सिन्हा – अभय , ठाकुर अभय सिंह , मेरी बेटी उसी के पास आ रही है , लेकिन आप ऐसा क्यों पुछ रहे है

देव – अच्छा तो ये बात है (हस्ते हुए) शालिनी जी अभय यहीं पर है अपने गांव में वापस आगया है

शालिनी सिन्हा – (हस्ते हुए) हा ठाकुर साहब मेरी बेटी किसी केस के सिलसिले में गांव के लिए निकली है क्या आप जानते है किसी संध्या ठाकुर को

देव – जी वो मेरी मु बोली बहन है , बात क्या है

शालिनी सिन्हा – बात कुछ ऐसी है ठाकुर साहब (फिर शालिनी सिन्हा कुछ बात बताती चली गई देव को कुछ देर बात करने के बाद) इसीलिए उपर से ऑर्डर आया है तभी इस मामले की तह तक जाने के लिए भेजा गया है कुछ लोगो को..

देव – ठीक है शालिनी जी मैं ध्यान रखूंगा (कॉल कट करके किसी सोच में था देव)

गीता देवी – भईया क्या बात है आप किस सोच में डूबे है

देव – (मुस्कुरा के) ये लड़का अभय सच में कमाल का है मैने इस जैसा लड़का कही नही देखा अपने पिता मनन की तरह नेक जरूर है लेकिन उतना भी नेक नही जितना हमारे मनन ठाकुर थे

संध्या – क्या मतलब है इसका भईया

देव – बस इतना समझ ले तेरा बेटा खुद यहां नही आया उसे लाया गया है यहां पे और ये बात उसे खुद नही पता है और जिसे पता है वो खुद आ रही है जल्द ही मुलाकात होगी उससे तेरी भी

गीता देवी – क्या मतलब तेरी भी से आपका

देव – मतलब मैं मिल चुका हू अभय से और उस लड़की से भी जिसके साथ अभय रहता था

संध्या – कॉन है वो लड़की और अभय से उसका क्या...

देव – वो लड़की कोई मामूली लड़की नही सी बी आई ऑफिसर चांदनी सिन्हा है , डी आई जी शालिनी सिन्हा की एक लौती बेटी और बाकी की बात सिर्फ चांदनी बता सकती है लेकिन एक बात का ख्याल रहे ये बात बाहर नही जाने चाहिए यहां से और संध्या तेरे कॉलेज में चांदनी को टीचर बना के भेजा जा रहा है और उसके लोग तेरे साथ तेरी हवेली में रहेंगे नौकर के भेष में

संध्या – भईया मेरा अभय...

देव – (सिर पे हाथ फेर के) थोड़ा वक्त दे उसे मेरी बहन नफरत का बीज जो बोया गया है उसे इतनी आसानी से नही हटाया जा सकता है इतना सबर किया है तूने थोड़ा और कर ले।

देव –(गीता देवी से) अच्छा दीदी चलता हू मै लेकिन जब भी आपको अपने भाई की जरूरत पड़े बेजीझक बुला लेना (संध्या से) बहन अब भूलना मत तेरा भाई हर समय तेरे साथ है ।
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.kahani twist aa gaya
Ab aayega asali maz
Great job
.
जारी रहेगा✍️✍️
 
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sam21003

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UPDATE 15

देवेंद्र ठाकुर अपनी कार में बैठ के निकल गया रास्ते में अंगरक्षक ने देवेंद्र ठाकुर को मुस्कुराते हुए देखा तो पूछा

अंगरक्षक – क्या बात है सर आप जब यह आए गुस्सा और घबराहट थी आपकी चहरे पर लेकिन वापस जाते वक्त मुस्कुराहट है

देव – (मुस्कुराते हुए) आज देवी मां की लीला को देख कर मन खुश हो गया मेरा

अंगरक्षक – ऐसा क्या हो गया सर

देव – कुछ महीने पहले हम शहर गए थे याद है फंक्शन में जहा पर मुझपे जान लेवा हमला हुआ था

अंगरक्षक – हा सर अच्छे से याद है अगर शालिनी जी की बेटी और उनका भाई ना होता तो जाने क्या हो जाता उस दिन

देव – (मुस्कुरा के) हा बस उस लड़के की बात ही निराली थी उसे देख के मुझे मेरे बचपन के दोस्त मनन ठाकुर की याद आ गई थी और जानते हो वो लड़का कोई और नहीं मेरे बचपन के दोस्त मनन ठाकुर का बेटा है ये मुझे आज पता चला

अंगरक्षक – लेकिन सर वो तो

देव –(बीच में बात काटते हुए) हा जानते है हम लेकिन सच यही है बस यही सोच के हसी आ रही है....देवी भद्र काली की लीला अपराम पार है , अच्छा सुनो मैं चाहता हूं तुम इस साल गांव में मेला लगेगा तब वहा पे कुश्ती का आयोजन करना हम चाहते है अपने भांजे को तोहफा देना

अंगरक्षक – तोहफा देने के लिए कुश्ती का आयोजन समझ नही बात मुझे

देव – उसने जब हमारी ओर हमारे परिवार की जान बचाई तब हम उसे तोहफा में बाइक देना चाहते थे तब उसने कहा था मैंने अपना धर्म निभाया है ठाकुर साहब मुझे तोहफा देने से अच्छा आप जरूरत मंद की मदद कर दीजिएगा, उसके कही बात दिल को भा गई मेरे इसीलिए कुश्ती के बहाने अपने भांजे को तोहफा देना चाहते है

अंगरक्षक – समझ गया सर ऐसा ही होगा

देव और उनका अंगरक्षक बात करते करते निकल गए अपने गांव की ओर जबकि इस तरफ संध्या अभी भी गीता देवी के साथ बैठे बाते कर रही थी...

गीता देवी – शाम होने को आ रही है संध्या तू भी जाके तयारी कर आज गांव में भूमि पूजन है याद है ना तु वक्त पे आजाना सब साथ में पूजन करेगे

संध्या – दीदी क्या अभय आएगा वहा पे

गीता देवी – क्यों नहीं आएगा वो तो बचपन में सबसे पहले आ जाता था पूजन में इस बार भी जरूर आएगा बस तू अपने आप पर काबू रखना जानती है ना अभय की नाराजगी को

संध्या – वो सामने होता है मेरे कदम अपने आप उसके पास चले जाते है दीदी नही रोक पाती हू खुद को , नही बर्द्श होती है दूरी उससे मन करता है बस मेरे सामने रहे हर वक्त

गीता देवी – (गाल पे हाथ रख के) समझती हू तेरे दिल की भावना को , देव भईया ने कहा ना थोड़ा सब्र रख तू सब ठीक हो जाएगा

गीता देवी के समझने पर संध्या चली गई हवेली तयारी के लिए भूमि पूजन की इधर हॉस्टल में अभय खाना खा के आराम कर रहा था शाम को 6 बजे रमिया ने उठाया....

रमिया –(चाय हाथ में लिए अभय को जागते हुए) बाबू जी उठिए शाम हो गई है

अभय – अरे तू यही पे है अभी तक गई नही हवेली

रमिया – नही बाबू जी आज गांव में भूमि पूजन है ना इसीलिए रुक गई यही से पूजन में जाऊंगी सीधे

अभय – (चाय की चुस्की लेते हुए) वाह अच्छी चाय बनाती हो तुम मजा आजाता है तेरे हाथ की चाय पीने पर

रमिया –(शर्मा के) शुक्रिया बाबूंजी

अभय – अच्छा सुन एक काम है तुझसे कल शाम से रोज 3 लोगो का खाना बनाना तू

रमिया – 3 लोगो का खाना कॉन आ रहा है बाबू जी

अभय – है कोई मेरा खास कल आएंगे वो दोनो

रमिया – लेकिन बाबू जी कल तो कॉलेज के नए टीचर आ रहे है यहां पर

अभय – हा उन्हीं के साथ आ रहा है वो भी यही उनका रहने की व्यवस्था मेरे बगल वाले कमरे में करना ठीक है

रमिया – ठीक है बाबू जी

बोल के रमिया चली गई अभय चाय पी के त्यार हो गया था तभी उसके मोबाइल में कॉल आया किसी का

अभय –(मोबाइल देख के) PRIVATE NUMBER (कॉल रिसीव करके सामने से लड़की की आवाज आई)

लड़की – कैसे हो अभय बाबू

अभय – अब किस लिए फोन किया है तुमने

लड़की – इतनी भी नाराजगी अच्छी नहीं होती अभय

अभय – अच्छा तुम दोनो जो किया मेरे साथ उसके बाद भी तुम मुझसे हाल चाल पूछ रही हो। तुम्हारी वजह से में....

लड़की – (बात को काटते हुए) हमारे वजह से कुछ नही हुआ है अभय तुम शायद भूल रहे हो हमे तुम्हारे नही बल्कि तुम्हे हमारी जरूरत थी सौदा भी तुमने किया था , तुम्हे जो चाहीए था तुम्हे वो मिला और हमे जो चाहीए था वो ले लिया हमने बस और अब तुम सारा ब्लेम हम पे डाल रहे हो।

अभय – (बिना कुछ बोले गुस्से में गहरी सास ले रहा था)

लड़की – छोड़ो अभय गुस्सा से कोई हल नहीं निकलता है गलत ना तुम हो ना हम , खेर सुबह सुबह समुंदर के बीच (किनारे) का नजर देखा है जब सूरज उगता है कितना सुंदर नजारा होता है , वो देखना जरूर तुम शायद तुम्हे तुम्हारी समस्या का हल मिल जाए

अभय जब तक कुछ बोलता तब तक कॉल कट हो गया था अपने गुस्से को शांत कर गांव की तरफ निकल गया

आज की रात गांव पूरा चमक रहा था। गांव वालो की खुशियां टिमटिमाते हुए छोटे बल्ब बयां कर रही थी। सब गांव वाले आज नए नए कपड़े पहन कर एक जगह एकत्रित थे। एक जगह पर पकवान बन रहा था। तो एक जगह पर औरते अपना गीत गा रही थी। कही बुजुर्ग लोग बैठे आपस में बात कर रहे थे, तो कही बच्चे अपना बचपन शोर गुल करते हुए जी रहे थे। अल्हड़ जवानी की पहेली फुहार में भीगी वो लड़किया भी आज हसीन लग रही थी जिसे देख गांव के जवान मर्द अपनी आंखे सेंक रहे थे।
चारो तरफ शोर गुल और खुशियां ही थी, भूमि पूजन का उत्सव गांव वालो के लिए खुशियां समेत कर अपनी झोली में लाई थी इधर संध्या भी त्यार होके पूजा की थाली हाथ में लिए हाल से होते हुए बाहर को जा रहे थी तभी

मालती – दीदी आप इस वक्त पूजा की थाली लिए कहा जा रहे हो

संध्या – आज भूमि पूजन है ना वही जा रही हू मै और सुन खाने पे मेरा इंतजार मत करना बाहर ही खाना खा के आऊंगी

इतना बोल संध्या बिना मालती की बात पे ध्यान दिए निकल गई हवेली से कार लेके चलते चलते बीच रास्ते में बगीचे में संध्या की आंखो के सामने एक लैंप जलता हुआ दिखा। और उस लैंप की रौशनी में खड़ी एक लड़की दिखी कार रोक की संध्या अपने कदम लड़की की तरफ बढ़ा दी संध्या जब नजदीक पहुंची तो देखी की वो लड़की पायल थी, जो आज लाल रंग की सारी हाथो में पूजा की थाली लिए खड़ी थी।

संध्या – कैसी हो पायल

पायल – (पीछे मुड़ के) प्रणाम ठकुराइन अच्छी हू मै

संध्या – प्रणाम , पूजा में जा रही है तू

पायल – जी ठकुराइन

संध्या –आजा मेरे साथ चल मैं भी वही जा रही हू (अपने साथ पायल को कार में बैठे के कार आगे बड़ा दी चलते चलते संध्या बोली) पायल तुझे एक बात कहूं लेकिन वादा कर अपने तक रखेगी बात को

पायल – क्या बात है ठकुराइन जी ऐसी कॉन सी बात है

संध्या – जो खुशी मुझे नही मिल सकी मैं नही चाहती तू उसका गम में इस तरह डूबी रहे ही वक्त

पायल – मैं कुछ समझी नही आप क्या कहना चाहती हो ठकुराइन

संध्या – तेरा अभय जिंदा है यहीं है इसी गांव में याद वो लड़का जिसने आते ही गांव वालो को उनकी जमीन दिला दी , वो ही तेरा अभय है पायल

पायल – (मुस्कुराते हुए) जानती हू ठकुराइन

संध्या – (कार को ब्रेक लगा के) तू जानती है लेकिन कैसे

पायल – (आंख में आसू लिए) उस अलबेलें को कैसे भूल सकती हू मै जिसके इंतजार में आज तक कर रही हू उसदिन भीड़ में मैने उसे देखा था वही नैन नक्श लेकिन मुझे लगा शायद मेरा वहम है लेकिन मेरे बाबा जब उसे भूमि पूजन का न्योता देने गए थे तब वापस आके मां को बता रहे थे उसकी बातो को तब मैंने उनकी बात सुन मुझे यकीन हो गया की यही मेरा अभय है

संध्या – तो अब तक तू बोली क्यों नही कुछ भी

पायल – उस पागल ने इतने साल तरसाया है मुझे वो भी तो तरसे पता चले उसे भी इंतजार कैसा होता है

संध्या –(मुस्कुरा के पायल को गले लगा के) बड़ी हो गई है लेकिन तेरा बचपना नही गया तुझे जो अच्छा लगे वो कर , लेकिन अब तो मुस्कुरा दे सुना था मैने गांव वालो से जब से अभय गया तब से हंसना भूल गई है तू

संध्या की बात सुन के पायल हस दी दोनो मुस्कुराते हुए निकल गए गांव की तरफ जहा पर भूमि पूजन की तयारी की गई थी ठकुराइन को देख साथ में उनके पायल को देख के गांव वालो ने ठकुराइन का स्वागत किया कुछ समय के बाद अभय भी आ गया वहा पे जोर शोर से भूमि पूजन हुआ फिर सुरु हुई दावत

जहा ये सब हो रहा था वही अभय की नजर सिर्फ पायल पे टिकी हुई थी और संध्या की नजर सिर्फ अभय पर उसकी एक नजर को तरस रहे थी संध्या लेकिन अभय ने पलट के एक बार भी संध्या को नही देखा वो दोनो बात तो गांव वालो से कर रहे थे पर नजरे कही और ही थी।

संध्या – (अभय को देखते हुए खुद के मन से बोली) बेटा एक नजर अपनी मां की तरफ भी देख लो, मैं भी इसी आस में बैठी हूं। पूरा प्यार प्रेमिका पर ही , थोड़ा सा इस मां के लिए भी नही, हाय रे मेरी किस्मत!

संध्या अपनी सोच में डूबी अपनी किस्मत को कोस रही थी, तब तक वह राज , लल्ला और राजू तीनों दोस्त भी पहुंच जाते है। राज , अभय के पास आकर खड़ा हो जाता है जब राज ने अभय को देखा की उसके नजरे बार बार पायल पे ही जा रही है तो, वो पायल की तरफ बढ़ा। और पायल के नजदीक पहुंच कर बोला...

राज -- क्या बात है पायल? तूने तो उस छोकरे को दीवाना बना दीया है, कॉलेज में और यहा भी उसकी नजर तुझपे ही अटकी है।

राज की बात सुनकर, पायल बोली...

पायल -- कोई पागल लगता है, आते से ही देख रही हू घूरे जा रहा है बस सब बैठे है फिर भी बेशर्म की तरह मुझे ही घूर रहा है बदतमीज है।

राज -- वैसे, कल मज़ा आएगा।

पायल -- क्यूं ऐसा क्या होगा कल?

राज-- कल कॉलेज में जब ये तुझे इसी तरह घुरेगा, तो तेरा वो सरफिरा आशिक अमन इसकी जमकर धुलाई करेगा, तो देखने में मजा आयेगा।

पायल -- मुझे तो नही लगता।

पायल की बात सुनकर राज आश्चर्य से बोला...

राज -- क्या नही लगता?

पायल -- यही, की अमन इस पागल का कुछ बिगड़ पाएगा

राज -- (चौकते हुए) क्यूं तू ऐसा कैसे बोल सकती है तुझे पता नही क्या अमन के हरामीपन के बारे में।

पायल -- पता है, पर उससे बड़ा हरामि तो मुझे ये पागल लग रहा है। देखा नही क्या तुमने इस पागल को? सांड है पूरा, हाथ है हथौड़ा, गलती से भी उस पर एक भी पड़ गया तो बेचारे का सारा बॉडी ब्लॉक हो जायेगा। उस अमन की तरह मुफ्त की रोटियां खाने वालो में से तो नही लगता ये पागल। और वैसे भी वो मुझे देख रहा है तो उस अमन का क्या जाता है?

पायल की बाते राज को कुछ समझ नहीं आ रही थी...

राज -- अरे तू कहना क्या चाहती है तू उसकी तारीफ भी कर रही है और एक तरफ उसे पागल भी बोल रही है। क्या मतलब है...?

ये सुनकर पायल जोर से हस पड़ी.......

पायल को मुस्कुराता देख सब दंग रह गए, सालो बाद पायल आज मुस्कुराई थी...पास खड़ी उसकी सहेलियां तो मानो उनके होश ही उड़ गए हो। राज का भी कुछ यही हाल था। पायल मुस्कुराते हुए अभि भी अभय को ही देख रही थी।

और इधर पायल को मुस्कुराता देख अभय भी मंगलू और गांव वालो से बात करते हुए मुस्कुरा पड़ता है।
सब के मुंह खुले के खुले पड़े थे। पायल की एक सहेली भागते हुए कुछ औरतों के पास गई, जहा पायल की मां शांति भी थी...

काकी...काकी...काकी

उस लड़की की उत्तेजित आवाज सुनकर सब औरते उसको देखते हुए बोली...

औरत – अरे का हुआ, नीलम कहे इतना चिल्ला रही है?

नीलम ने कुछ बोलने के बजाय अपना हाथ उठते हुए पायल की तरफ इशारा किया सब औरते की नजर पायल के मुस्कुराते हुए चेहरे पर पड़ी, जिसे देख कर सब के मुंह खुले के खुले रह गए। सब से ज्यादा अचंभा तो शांति को था, ना जाने कितने सालों के बाद आज उसने अपनी बेटी का खिला और मुस्कुराता हुआ चेहरा देखी थी वो।

शांति -- है भगवान, मैं कही सपना तो नहीं देख रही हूं।

कहते हुए वो भागते हुए पायल के पास पहुंची पायल जब अपनी मां को देखती है तो उसकी मां रो रही थी। ये देख कर पायल झट से बोल पड़ी...

पायल -- मां, तू रो क्यूं रही है?

शांति -- तू , मुस्कुरा रही थी मेरी लाडो। एक बार फिर से मुस्कुरा ना।
ये सुन कर पायल इस बार सिर्फ मुस्कुराई ही नहीं बल्कि खिलखिला कर हंस पड़ी। सभी औरते और लड़किया भी पायल का खूबसूरत चेहरा देख कर खुशी से झूम उठी। पायल की जवानी का ये पहेली मुस्कान थी, जो आज सबने देखा था। वाकई मुस्कान जानलेवा था। पर शायद ये मुस्कान किसी और के लिए था...

पायल -- हो गया, मुस्कुरा दी मेरी मां। अब तो तू रोना बंद कर।

ये सुनकर शांति भी मुस्कुरा पड़ी, शांति को नही पता था की उसकी बेटी किस वजह से आज खुश है?किस कारण वो मुस्कुरा रही थी? और शायद जानना भी नही चाहती थी, उसके लिए तो सबसे बड़ी बात यही थी की, बरसो बाद उसकी फूल जैसी बेटी का मुरझाया चेहरा गुलाब की तरह खिला था।

पायल – (राज को बोली) अब तुभी अपनी शायरी सुना दे जल्दी से कल कॉलेज भी तो जाना है

पायल की बात सुन के सभी गांव वाले हसने लगे फिर सब गांव वाले एक तरफ होने लगे तभी संध्या बोली...

संध्या – (राज से) इधर आजाओ राज यहां से सबको सुनाई देगी

राज चला गया संध्या के बगल में खड़े होके त्यार हो गया शायरी सुनने के लिए इस वक्त सब गांव वालो और अभय की नजर राज पे टिकी थी

राज की शायरी उसकी जुबानी

अर्ज किया है

अभी तो मैंने नापी है,
मुट्ठी भर जमीन,
अभी तो नापना,आसमान बाकि है,
अभी तो लांघा है, समंदर मैंने,
अभी तो बाज की उडान बाकी हैं।।


शायरी सुन के सभी गांव वालो ने जोर से तालिया बजानी सुरु कर दी

सभी गांव वाले – बहुत खूब राज बहुत खूब

अर्ज किया है

कभी मै रहके भी घर पर नहीं हूं ,
जहाँ मै हूँ, वहाँ अकसर नहीं हूँ ,
किसी को चोट मुझसे क्या लगेगी,
किसी की राह का पत्थर नहीं हूँ,
रहा फूलों की संगती में निरंतर,
बहारों का भले शायर नहीं हूँ,
तेरा दर खुला हैं मेरे लिए हमेशा,
ये क्या कम है कि बेघर नहीं हूँ ।।

राजू और लल्ला – सिटी बजा के जोर से जोर से तल्लिया बजाने लगे

सभी गांव वाले ये नजारा देख के मुस्कुरा के तालिया बजाने लगे साथ अभय भी खुशी के साथ तल्लियो में साथ दे रहा था सबका

राजू – भाई कोई प्यार वाली भी सुना दे शायरी

राज – (मुस्कुरा के) अर्ज किया है

इस वास्ते दामन चाक किया शायद ये जुनूँ काम आ जाए
दीवाना समझ कर ही उन के होंटों पे मेरा नाम आ जाए
मैं ख़ुश हूँ अगर गुलशन के लिए कुछ लहू काम आ जाए
लेकिन मुझ को डर है इस गुल-चीं पे न इल्ज़ाम आ जाए
ऐ काश हमारी क़िस्मत में ऐसी भी कोई शाम आ जाए
इक चाँद फलक पर निकला हो इक चाँद सर-ए-शाम आ जाए
मय-ख़ाना सलामत रह जाए इस की तो किसी को फ़िक्र नहीं
मय-ख़्वार हैं बस इस ख़्वाहिश में साक़ी पे कुछ इल्ज़ाम आ जाए
पीने का सलीका कुछ भी नहीं इस पर है ये ख़्वाहिश है रिंदों की
जिस जाम पे हक़ है साकी का हाथों में वही जाम आ जाए
इस वास्ते ख़ाक-ए-परवाना पर शमा बहाती है आँसू
मुमकिन है वफ़ा के क़िस्से में उस का भी कहीं नाम आ जाए
अफ़्साना मुकम्मल है लेकिन अफ़्साने का उनवाँ कुछ भी नहीं

ऐ मौत बस इतनी मोहलत दे उन का कोई पैग़ाम आ जाए

लल्ला – (जोर से हस्ते हुए) लो लगता है भाई की नैया पार हो गई उसे भी किसी से प्यार हो गया है कॉन है वो खुश नसीब बताओ जरा

लल्ला की बात सुन के सब गांव वाले जोर से हसने लगे साथ में तालिया बजा के खुशी जाहिर करने लगे साथ अभय भी में ले रहा था इस बात के

राज – (हस्ते हुए) अर्ज किया है की....

पायल – (बीच में टोकते हुए) अरे राज एक शायरी दोस्ती पर भी सुना दे

गांव वालो के साथ पायल को बात सुन अभय भी राज को देखने लगा शायद अब और मजा आएगा शायरी में लेकिन...

राज – दोस्ती पर शायरी (हल्का मुस्कुरा के) क्या सुनाऊं दोस्ती पे शायरी , राजू और लल्ला के इलावा एक ही दोस्त था मेरा (हल्का हस के) जब उसे अपनी शायरी सुनता था हर बार मेरी शायरी की टांग तोड़ देता था वो , पूरे स्कूल में सिर्फ हम 4 ही दोस्त ही तो थे जो साथ खेलते भी थे साथ में घूमते भी थे कभी समंदर के किनारे घंटो तक नहाते थे मस्ती करते थे तो कभी अमरूद के बाग के पेड़ो से अमरूद तोड़ के खाया करते थे तो कभी आम के बगीचे में आम तोड़ के खाया करते थे घर में देर हो जाती थी जाने में तो (हसके) डाट खाया करते थे , लेकिन फिर अगले दिन हस के एक दूसरे से मिला करते थे , बस वो आखरी दिन याद है मुझे जब उसके साथ बगीचे में खेला था मैने उसके बाद उस रात मैं बहुत सोचता रहा कल मेरे जिगरी यार का जन्मदिन है क्या दू उसे तोहफे में तो उसके लिए एक शायरी लिख डाली सोचा था अगले दिन तोहफे में अपने यार को कागज में कलम से लिखी चांद लाइन शायरी की दूंगा तो जरूर उसकी भी टांग तोड़ देगा , अगले दिन स्कूल में उसकी राह देखता रहा लेकिन वो नहीं आया हा जब मैं घर गया तो ये जरूर पता चला की अब वो कभी नही आएगा, उसदिन से दोस्ती पर शायरी कभी बना नही पाया मैं डर लगता था नए दोस्त बनाने में , बस एक आखरी शायरी बनाए थी अपने दोस्त के लिए दोस्ती पर

राज – (अपने आसू पोंछ हल्का सा हस के) अर्ज किया है

तुम्हारे जन्मदिवस पर मिले तुम्हें ढेर सारे उपहार, खुशियाँ तुम्हारी दुगनी हो मिले सुख समृद्धि अपार ! चेहरा हमेशा खिला रहे आपका गुलाब की तरह,
नाम हमेशा रोशन रहे आपका आफताब की तरह, अँधेरे में भी चमकते रहे आप महताब की तरह,
और दुःख में भी हँसते रहे आप फूलों की तरह !
अगर याद न रहे आपको अपना जन्मदिन, चेक करते रहना यूँ ही अपने मोबाइल के इनबॉक्स हर दिन,
मैं कभी न भूलूंगा अपने यार का सबसे खास दिन, चाहे वह मेरे जीवन का हो सबसे आखिरी दिन

राज – वादा तो कर दिया मैने की अपने जीवन के आखरी दिन तक मैं उसका जन्मदिन नही भूलूगा , (आखों में आसू के साथ) लेकिन ये कभी नही सोचा था वो दिन उसका आखरी दिन होगा ,(आसमान को देखते हुए) वो कहता था मुझसे की एक दिन वो आसमान में तारा बन के चमकेगा जिसकी चमक बाकी तारो से अलग ही होगी , हर रोज उसे उन तारो की नगरी में डूडता हू , एक बार मां ने मुझे कहा आसमान को देखते हुए की वो देख वो तारा तेरे दादा जी है , वो तारा तेरी दादी , वो मेरी नानी , वो मेरे नाना , लेकिन मैं सिर्फ अपने दोस्त को डूडता रहा कभी दिखा नही मुझे जाने कौन से तारे की पीछे छुपा हुआ है।

राज – राजू और लल्ला के इलावा मेरा सिर्फ एक ही सच्चा दोस्त था उसका नाम अभय है।

बोल के राज चुप हो गया तभी पीछे से किसी ने राज के कंधे पे हाथ रखा , राज ने पलट के देखा तो...

संध्या – (राज के आसू अपने हाथो से पोंछ के गले लगा लिया उसे) मुझे माफ कर देना राज मैं तेरी भी कसूरवार हू शायद मेरी वजह से तेरा दोस्त दूर हुआ तुझसे ना मैं एक अच्छी मां बन पाई और ना अच्छी ठकुराइन , कभी समझ ही ना पाई....

दूर खड़ा अभय को देखते हुए बोले जा रही थी आगे संध्या कुछ बोलती उससे पहले ही पीछे से गीता देवी ने संध्या और राज दोनो के कंधे में एक साथ हाथ रख के बोली..

गीता देवी – (राज के सर पे हाथ फेर के) चुप होजा बेटा ऐसे खुशी के मौके पर रोया नही करते वर्ना क्या सोचेगा अभय की उसका पहलवान दोस्त लड़कियों की तरह रोता है उपर वाला सब ठीक कर देगा

गांव में ज्यादा तर लोग जानते थे की ये चारो अच्छे दोस्त है लेकिन आज ये भी जान गए थे अच्छे के साथ इन चारो की दोस्ती भी सच्ची है शायद इसीलिए वो भी अपने आसू ना रोक सके इसके बाद सभी गांव वाले जाने लगे अपने घर की ओर लेकिन जाते जाते राजू , लल्ला और राज के सर पे खुशी और प्यार से हाथ फेर के जा रहे थे

जब ये सब हो रहा था वही एक तरफ अभय दूर होके एक पेड़ के पीछे छुप के आंख में आसू लिए अपने तीनों दोस्तो को देख रहा था जाने वो क्या मजबूरी थी जिसके चलते अभय अपने दोस्तो को भी नही बता सकता था की वही उनका जिगरी यार अभय है।
.oss dost se kya dosti jo dost ho dus bees ka aur oss chand ko kya dekhna Jo chand ho din tees ka
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जारी रहेगा✍️✍️
 
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